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त्रिपुर भैरवी साधना त्रिपुर भैरवी दे वी की की जाती है त्रिपुर भैरवी दे वी 10 महाविद्याओं में बहुत ही तीव्र और

शक्तिशाली दे वी है यह दे वी हर प्रकार के बाधाओं से साधक की सुरक्षा करती है त्रिपुर भैरवी 10 महाविद्याओं के


क्रम में आती है इसको करने वाला साधक सभी प्रकार से उन्नति प्राप्त करता है त्रिपुर भैरवी को माता काली का ही
अंश माना गया है त्रिपुर भैरवी की साधना में सबसे पहले उनका ध्यान किया जाता है इन मंत्रों से उद्भव दानू
सहस्त्र कांति मरूणा त्रिपुर भैरवी दे वी किसी भी प्रकार के बड़े से बड़े तांत्रिक प्रयोग को काट सकती है बंधे हुए
व्यापार या किसी भी प्रकार की बंधन जोकि साधक के परिवार को नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया हो त्रिपुर
भैरवी साधना से कट जाता है साधक यह साधना 1 दिन की कर सकते हैं यदि वह किसी समस्या को दरू करना
चाहें लेकिन यदि कोई साधक त्रिपुर भैरवी दे वी को सिद्ध करना चाहे तो वह यह साधना 21 दिन की कर सकता है
यह साधना किसी भी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार या तत
ृ ीया तिथि को कर सकते हैं इस साधना को ब्रह्म मुहूर्त में सुबह
के समय या रात्रि के समय भी किया जा सकता है यह साधना मैं दिशा पर्व
ू या उत्तर रहती है इस साधना में
सामग्री त्रिपुर भैरवी यंत्र गुटिका और माला लगती है इस साधना में पीले वस्त्रों का उपयोग साधक कर सकता है
इस साधना में चौकी पर पीला वस्त्र बिछाया जाता है और उस पर त्रिपरु भैरवी दे वी की फोटो यंत्र गटि
ु का रखी
जाती है त्रिपुर भैरवी कि साधना में एक कपड़े पर अष्टगंध से तीन दे वियां बनानी होती हैं यदि ना बना सके तो 3
कोनों का त्रिभज
ु बनाकर उनपर तीन बिंदी लगाकर भी साधना की जा सकती है इस साधना में दीपक जलाना होता
है जी का और बाकी सामग्री अन्य साधना ओं के जैसे ही होती है जैसे दे वी पर चढ़ाने के लिए सामग्री उपयोग की
जाती हैं इस साधना में परू ी तरह से श्रद्धा रखना आवश्यक है इस साधना को संपर्ण
ू करने के लिए प्रतिदिन 21
माला से लेकर 101 माला तक जाप किया जा सकता है साधना का मंत्र आगे दिया जा रहा है जिसका जाप करना
है साथ ही प्रार्थना मंत्र भी दिया जा रहा है इस साधना को सभी साधक कर सकते हैं

विनियोग ः

अस्य त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणा मूर्ति ऋषिः

शक्तिछन्दः त्रिपुर भैरवी देवता ऐं बीज ह्रीं शक्तिः क्लीं

कीलकं मम् अभीष्ट सिध्दिये जपे विनियोगः

करन्यास

हसरां अंगुष्ठाभ्यां नमः।

हसरीं तर्जनीभ्यां नमः।

हसरू मध्यमाभ्यां नमः।

हसरै अनामिकाभ्यां नमः।

हसरौ कनिष्ठकाभ्यां नमःः

हसरः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादिन्यास

हसरां ह्दयाय नमः।


हसरीं शिरसे नमः।

हसरू शिखायै वषट् ।

हसरै कवचाय हुं।

हसरौ नेत्रयाय वौषट् ।

हसरः अस्त्राय फट् ।

ध्यानः

उघभ्दानु सहस्त्रकान्तिमरूणा क्षौमां शिरोमालिकां।

रक्तालिप्त पयोधरां जप वटीं विघामभीति वरम्।

हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्र विलसव्दक्त्रारविन्द श्रियं।

देवीं बध्द हिमांशु रत्न मुकु टां वन्दे रविन्दस्थिताम्।।

आगे त्रिपुर भैरवी मूल मंत्र जप करें ः

हसरैं हसकलरीं हसरौं।।

जप करने के पश्चात दशांश हवन तर्पण मार्जन करना चाहिए व अगले दिन कन्या भोजन करा सकते हैं

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