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साधना में शु चिता का ध्यान रखना परम आवश्यक होता है , ले किन श्रीगणे श के उच्छिष्ट गणपति
स्वरूप की साधना में शु चि-अशु चि का बं धन नहीं है । यह शीघ्र फल प्रदान करते हैं । प्राचीन ग्रंथों में
इस बात का उल्ले ख आता है कि पु राने समय में गणपति के इस स्वरूप या उच्छिष्ट चाण्डालिनी की
साधना करने वाले अल्प भोजन से हजारों लोगों का भं डारा कर दे ते थे । कृत्या प्रयोग में इससे रक्षा
होती है । गणे शजी के इस स्वरूप की पूजा, अर्चना और साधना से उच्च पद और ऐश्वर्य की प्राप्ति
होती है ।
कैसे होती है उच्छिष्ट गणपति की साधना
उच्छिष्ट गणपति की साधना में साधक का मुं ह जूंठा होना चाहिए। जै से पान, इलायची, सु पारी आदि
कोई चीज साधना के समय मुं ह में होनी चाहिए। अलग-अलग कामना के लिए अलग-अलग वस्तु का
प्रयोग करना चाहिए।
* वशीकरण के लौंग और इलायची का प्रयोग करना चाहिए।
* किसी भी फल की कामना के लिए सु पारी का प्रयोग करना चाहिए।
* अन्न या धन वृ दधि
् के लिए गु ड़ का प्रयोग करना चाहिए।
* सर्वसिद्धि के लिए ताम्बु ल का प्रयोग करना चाहिए।
मं तर् और विनियोग
।। हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।।
विनियोग
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मं तर् स्य कंकोल ऋषि:,
विराट छन्द:, श्री उच्छि गणपति दे वता,
मम अभीष्ट (जो भी कामना हो) या सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।
न्यास
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मं तर् स्य कंकोल ऋषि: नम: शिरीस।
विराट छन्दसे नम: मु खे।
उच्छिष्ट गणपति दे वता नम: हृदये ।
सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वां गे।
ऐसा कहकर निर्दिष्ट अं गों पर हाथ लगाएं ...
ॐ हस्ति अं गुष्ठाभ्यां नम: हृदयाय नम:
ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नम: शिरसे स्वाहा
ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नम: शिखाये वषट्
ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नम: कवचाय हुँ
ॐ हस्ति पिशाचि लिखे कनिष्ठकाभ्यां नम: नै तर् त्रयाय वोषट्
ॐ हस्ति पिशाचि लिख स्वाहा करतल कर पृ ष्ठाभ्यां नम: अस्त्राय फट्
ध्यान
।। रक्त वर्ण त्रिनै तर् , चतु र्भुज, पाश, अं कुश, मोदक पात्र तथा हस्तिदं त धारण किए हुए। उन्मत्त
गणे शजी का मैं ध्यान करता हं ।ू
कृष्ण चतु र्दशी से ले कर शु क्ल चतु र्दशी तक आठ हजार जप नित्य कर दशां श हवन करें । भोजन से पूर्व
गणपति के निमित्त ग्रास निकालें । ऐसी मान्यता है कि उच्छिष्ट गणपति की आराधना से कुबे र को नौ
निधियां प्राप्त हुई थीं और विभिषण लं कापति बने थे ।
अं त में बलि प्रदान करें ।
बलि मं तर्
गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणे शाय महायक्षायायं बलि:।