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विनियोग ||
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मं तर् स्य कंकोल ऋषि:, विराट
छन्द:, श्री उच्छि गणपति दे वता, मम अभीष्ट (जो भी कामना हो)
या सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।
न्यास ||
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मं तर् स्य कंकोल ऋषि: नम: शिरीस
|
विराट छन्दसे नम: मु खे | उच्छिष्ट गणपति दे वता नम: हृदये |
सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वां गे |
ध्यान ||
।। रक्त वर्ण त्रिनै तर् , चतु र्भुज, पाश, अं कुश, मोदक पात्र तथा
हस्तिदं त धारण किए हुए। उन्मत्त गणे शजी का मैं ध्यान करता हं ू
कृष्ण चतु र्दशी से ले कर शु क्ल चतु र्दशी तक आठ हजार जप नित्य
कर दशां श हवन करें । भोजन से पूर्व गणपति के निमित्त ग्रास
निकालें |