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ॐ अस्य श्री बु ध मं तर् स्य गौतम ऋषिः, अनु ष्टु प छं द:, समि

पु त्री शान्ति दे वता,


ब्रह्मा बीज, सम्यि शक्ति:, मम अभीष्ट सिध्यर्थं म जपे विनियोगः

ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बु धाय नम:

प्रियं गुकलिकाश्यामं रुपे णाप्रतिमं बु धम्


सौम्यं सौम्यगु णोपे तं तं बु धं प्रणमाम्यहम्

ॐ चन्द्रपु त्राय विदमहे रोहिणी प्रियाय धीमहि तन्नो बु ध:


प्रचोदयात
ॐ सौम्य रूपाय विदमहे वाणे शाय धीमहि तन्नो सौम्यः प्रचोदयात्
ॐ गजाध्वजाय विदम ् हे सूख हस्ताय धीमहि तन्नो बु ध प्रचोदयात्

पीताम्बर: पीतवपु किरीटी,चतु र्भुजो दे वदु:खापहर्ता |


धर्मस्य धृ क सोमसु त: सदा मे ,सिं हाधिरुढ़ो वरदो बु धश्च ||
प्रियं गुकनकश्यामं रूपे णाप्रतिमं बु धम |
सौम्यं सौम्यगु णोपे तं नमामि शशिनन्दनम ||
सोमसु नुर्बुधश्चै व सौम्य: सौम्यगु णान्वित: |
सदा शान्त: सदा क्षे मो नमामि शशिनन्दनम ||
उत्पातरूपी जगतां चन्द्रपु त्रो महाद्यु ति: |
सूर्यप्रियकरोविद्वान पीडां हरतु मे बु धं ||
शिरीषपु ष्पसं काशं कपिलीशो यु वा पु न: |
सोमपु त्रो बु धश्चै व सदा शान्तिं प्रयच्छतु ||
श्याम: शिरालश्च कलाविधिज्ञ: कौतूहली कोमलवाग्विलासी |
रजोधिको मध्यमरूपधृ क स्या-दा ताम्रने तर् ो द्विजराजपु त्र: ||
अहो चन्द्रासु त श्रीमन मागधर्मासमु दभव: |
अत्रिगोत्रश्चतु र्बाहु: खड्गखे टकधारक: ||
गदाधरो नृ सिंहस्थ: स्वर्णनाभसमन्वित: |
केतकीद्रुमपत्राभ: इन्द्रविष्णु पर् पूजित: ||
ज्ञे यो बु ध: पण्डितश्च रोहिणे यश्च सोमज: |
कुमारो राजपु त्रश्च शै शवे शशिनन्दन: ||
गु रुपु त्रश्च तारे यो विबु धो बोधनस्तथा |
सौम्य: सौम्यगु णोपे तो रत्नदानफलप्रद: ||
एतानि बु धनामानि प्रात: काले पठे न्नर: |
् र्विवृ दधि
बु दधि ् तां याति बु धपीडा न जायते ||

उच्छिष्ट गण‍पति की साधना | बु ध

।। हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।।

विनियोग ||
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मं तर् स्य कंकोल ऋषि:, विराट
छन्द:, श्री उच्छि गणपति दे वता, मम अभीष्ट (जो भी कामना हो)
या सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।

न्यास ||
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मं तर् स्य कंकोल ऋषि: नम: शिरीस
|
विराट छन्दसे नम: मु खे | उच्छिष्ट गणपति दे वता नम: हृदये |
सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वां गे |

कहकर निर्दिष्ट अं गों पर हाथ लगाएं

ॐ हस्ति अं गुष्ठाभ्यां नम: हृदयाय नम:


ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नम: शिरसे स्वाहा
ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नम: शिखाये वषट् ‍
ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नम: कवचाय हुँ
ॐ हस्ति पिशाचि लिखे कनिष्ठकाभ्यां नम: नै तर् त्रयाय वोषट् ‍
ॐ हस्ति पिशाचि लिख स्वाहा करतल कर पृ ष्ठाभ्यां नम: अस्त्राय
फट् ‍

ध्यान ||
।। रक्त वर्ण त्रिनै तर् , चतु र्भुज, पाश, अं कुश, मोदक पात्र तथा
हस्तिदं त धारण किए हुए। उन्मत्त गणे शजी का मैं ध्यान करता हं ू
कृष्ण चतु र्दशी से ले कर शु क्ल चतु र्दशी तक आठ हजार जप नित्य
कर दशां श हवन करें । भोजन से पूर्व गणपति के निमित्त ग्रास
निकालें |

अं त में बलि प्रदान करें । बलि मं तर्


गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणे शाय महायक्षायायं बलि:।

दुर्गा उपासना भक्ति के साथ ऐसी शक्ति दे ने वाली मानी गई है , जो


दुर्गति करने वाले तमाम बु रे विचार, दुर्गुण या दोषों का शमन कर
दे ती है । इसलिए दुर्गा को दुर्गतिनाशिनी भी पु कारा जाता है । 
शास्त्रों में बदहाली से बचने के लिए ही माता दुर्गा की उपासना के
लिए आठ अक्षरों का 1 अद्भुत मं तर् बताया गया है । इस मं तर् की
अचूक शक्ति से रोग, कर्ज, शत्रु बाधा खत्म होकर सिद्धि, सं तान,
सफलता पाने की सारी इच्छाएं भी पूरी हो जाती है । जानिए, यह
मं तर् और सरल पूजा उपाय - 
- शु क्रवार या नियमित रूप से माता दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को
लाल पूजा सामग्री खासतौर पर लाल फू ल व प्रसाद चढ़ाकर
स्फटिक की माला से नीचे लिखा दुर्गा मं तर् कम से कम एक माला
यानी 108 बार या यथाशक्ति जरूर बोलें । मं तर् है -  
ॐ ह्रीं दंु दुर्गायै नम:

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