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श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः

होली व्रत कथा


श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः


और पूजा विधध
श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः


श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः


श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः
श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः

|| होली व्रत कथा ||


श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः


होली को लेकर हहरण्यकश्यप और उसकी बहन होललका की कथा अत्यधधक प्रचललत है। प्राचीन
काल में अत्याचारी राक्षसराज हहरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा ललया कक संसार
का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे , न हदन
में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर। यहां तक कक कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए।

श्री नरस हिं नमः


श्री नरस हिं नमः

ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत ननरं कुश बन बैठा। हहरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में
अटू ट नवश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रह्लाद भगवान नवष्णु का परम भक्त था और उस पर
भगवान नवष्णु की कृपा-दृकि थी। हहरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदे श हदया कक वह उसके अनतररक्त
ककसी अन्य की स्तुनत न करे । प्रह्लाद के न मानने पर हहरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो
गया। उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय ककए लेककन व प्रभु-कृपा से बचता रहा।
श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः


हहरण्यकश्यप की बहन होललका को अग्नि से बचने का वरदान था। उसको वरदान था की वो आग
में नहीं जलती थी। हहरण्यकश्यप ने अपनी बहन होललका की सहायता से प्रहलाद को आग में
जलाकर मारने की योजना बनाई। होललका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के
उद्देश्य से आग में जा बैठी। प्रभु-कृपा से होललका जल कर वहीं भस्म हो गई। इस प्रकार प्रह्लाद
को मारने के प्रयास में होललका की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् हहरण्यकश्यप को मारने के ललए
भगवान नवष्णु नरं लसंह अवतार में खंभे से ननकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का
श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः

संधधकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हहरण्यकश्यप को मार डाला। तभी से
होली का त्योहार मनाया जाने लगा।

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श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः
श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः

|| होली व्रत पूजा विधध ||


श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः


होललका दहन लजस स्थान पर करना है उसे गंगाजल से पहले शुद्ध कर लें। इसके बाद वहां सूखे
उपले, सूखी लकडी, सूखी घास आहद रखें। इसके बाद पूवव हदशा की तरफ मुख करके बैठें। आप
चाहें तो गाय के गोबर से होललका और प्रहलाद की प्रनतमाएं भी बना सकते हैं। इसके साथ ही
भगवान नरलसंह की पूजा करें ।
श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः


होली व्रत पूजा विधध इस प्रकार है।

 पूजा के समय एक लोटा जल, माला, चावल, रोली, गंध, मूंग, सात प्रकार के अनाज, फूल,
कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, होली पर बनने वाले पकवान व नाररयल रखें।
 नई फसलें जैसे चने की बाललयां और गेहूं की बाललयां भी रखी जाती हैं।
 कच्चे सूत को होललका के चारों तरफ तीन या सात पररक्रमा करते हुए लपेटें। उसके बाद
श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः


सभी सामग्री होललका दहन की अग्नि में अकपवत करें ।
 ये मंत्र पढें - और पूजन के पश्च्यात अर्घ्व अवश्य दें।

अहकूटा भयत्रस्ैैः कृता त्वं होलल बाललशैैः ।


अतस्वां पूजययष्यावम भूवत-भूवत प्रदाययनीम् ।।
श्री नरस हिं नमः

श्री नरस हिं नमः

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