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InstaPDF - in Holika Dahan Vrat Katha and Pooja Vidhi 246
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श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः
श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः
ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत ननरं कुश बन बैठा। हहरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में
अटू ट नवश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रह्लाद भगवान नवष्णु का परम भक्त था और उस पर
भगवान नवष्णु की कृपा-दृकि थी। हहरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदे श हदया कक वह उसके अनतररक्त
ककसी अन्य की स्तुनत न करे । प्रह्लाद के न मानने पर हहरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो
गया। उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय ककए लेककन व प्रभु-कृपा से बचता रहा।
श्री नरस हिं नमः
संधधकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हहरण्यकश्यप को मार डाला। तभी से
होली का त्योहार मनाया जाने लगा।
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श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः
श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः
पूजा के समय एक लोटा जल, माला, चावल, रोली, गंध, मूंग, सात प्रकार के अनाज, फूल,
कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, होली पर बनने वाले पकवान व नाररयल रखें।
नई फसलें जैसे चने की बाललयां और गेहूं की बाललयां भी रखी जाती हैं।
कच्चे सूत को होललका के चारों तरफ तीन या सात पररक्रमा करते हुए लपेटें। उसके बाद
श्री नरस हिं नमः
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श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः श्री नरस हिं नमः
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