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श्रीगुरु-प्रणाम मंत्र महामंत्र

ॐ अज्ञान तितिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
चक्षुरुन्मीतलिं येन िस्मै श्री गुरवे निः ॥ हरे राि हरे राि राि राि हरे हरे ॥

श्रीवैष्णव-वंदना
वाञ्छा-कल्पिरुभ्यश्च कृपा-तिन्धुभ्य एव च । तीर्थ आह्वान मंत्र
पतििानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो निो निः ॥ गंगे च यिुने चैव गोदावरर िरस्वति ।
निमदे तिंधो कावेरर जलेऽत्वस्मन् ितितधं कुरु ॥
श्रीमन्नित्यानन्द प्रभु वन्दना
तनत्यानन्द ! निस्तुभ्यं प्रेिानन्द-प्रदातयने। स्नान मंत्र
कलौ कल्मष-नाशाय जाह्नवापिये निः ॥ अपतवत्रः पतवत्रो वा िवामवस्ां गिोऽतप वा ।
यः स्मरे ि् पुंडरीकाक्षं ि बाह्याभ्यंिर शुतचः ॥
श्रीमन्महाप्रभु वन्दना
निो िहावदान्याय कृष्ण-प्रेि प्रदाय िे ।
आचमन मंत्र
कृष्णाय कृष्ण-चैिन्य-नाम्ने गौरत्विषे निः ॥
ॐ केशवाय निः । ॐ नारायणाय निः । ॐ िाधवाय निः ।

श्रीकृष्ण-प्रणाम मंत्र
न्नतलक िारण नामापराि
हे कृष्ण! करुणातिन्धो! दीनबन्धो! जगत्पिे!
गोपेश! गोतपकाकान्त! राधाकान्त! निोस्तुिे॥ १. श्रीहररभत्वि परायण िाधुओं की तनंदा ।
ललाट िें - ॐ केशवाय निः
२. श्रीतवष्णु िे तशवातद दे विाओं को स्विंत्र िानना एवं
श्रीमती रान्निका प्रणाम मंत्र उदर (पेट) िें - ॐ नारायणाय निः
श्रीहररनाि िे तशव आतद के नािों को स्विंत्र ििझना अ्ाम ि्
िप्तकाञ्चन गौराति ! राधे ! वृन्दावनेश्वरर ! वक्षस्ल िें - ॐ िाधवाय निः
दू िरे दे विाओं को तवष्णु िे स्विंत्र ईश्वर ििझना एवं श्रीकृष्ण
वृषभानुिुिे! दे तव ! प्रणिाति हरर तप्रये ॥ कंठ िें - ॐ गोतवंदाय निः
के नाि-रूप-गुण-लीला को श्रीकृष्ण के स्वरूप िे तभि
दतक्षण पाश्वम िें - ॐ तवष्णवे निः
ििझना।
श्रीतुलसी-प्रणाम मंत्र दतक्षण भुजा िें - ॐ िधुिूदनाय निः
३. नाि-िितवद् गुरु की अवज्ञा ।
वृन्दायै िुलिी दे व्यै तप्रयायै केशवस्य च। दतक्षण स्कंध िें - ॐ तत्रतवक्रिाय निः
४. वेद और िािि-पुराणों की तनंदा ।
कृष्णभत्वि-प्रदे दे तव! ित्यवत्यै निो निः ॥ वाि पाश्वम िें - ॐ वािनाय निः
५. श्रीहररनाि के िाहात्म्य को अति-स्तुति ििझना ।
वाि भुजा िें - ॐ श्रीधराय निः
६. श्री भगवान के नाि को कत्वल्पि ििझना ।
पञ्चतत्त्व-प्रणाम मंत्र वाि स्कंध िें - ॐ ऋतषकेशाय निः
७. नाि के बल पर पाप करना ।
श्रीकृष्णचैिन्य प्रभु तनत्यानन्द। पीठ िें - ॐ पद्मनाभाय निः
८. दू िरे -दू िरे शुभ किों को श्रीनाि के बराबर ििझना एवं
श्रीअद्वै ि गदाधर श्रीवािातद गौरभिवृन्द ॥ कटी (किर) िें - ॐ दािोदराय निः
नाि ग्रहण करने िें आलस्य करना या अन्यिनस्क होना ।
तशखा िें - ॐ वािुदेवाय निः
९. श्रद्धा हीन एवं तविुख व्यत्वि को हरर नाि का उपदे श दे ना।
समन्निगत प्रणाम मंत्र १०. श्री नाि की ितहिा श्रवण करने पर भी 'िैं और िेरा' रूप
गुरवे गौरचंद्राय रातधकायै िदालये । दे हात्मबुत्वद्ध िे युि होकर हररनाि िें प्रति या अनुराग न
कृष्णाय कृष्ण भिाय िद्भिाय निो निः ॥ करना ।

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