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MALHAR
MALHAR
ववेक कुमार
ISBN : 978-93-87464-60-5
काशक :
ह द-यु म
201 बी, पॉकेट ए, मयूर वहार फ़ेस-2, द ली-110091
मो.- 9873734046, 9968755908
पहला सं करण : 2019
© ववेक कुमार
मृ युदंड
अथला वापसी
स ू और र वदास
द ान क योजना
रक और यौधेय
े ी ल वी
अ य षड् यं
लाल रह य
ापार ान
ापार-संघ क बैठक
मारंग और जाबाल
कालयवन
अनाथालय
कारागार
मुं ा का ठग
का - श पी बदा
मुं ा का राजकुमार
असुर-अ धकृत े
दो लड़ाके
जल-द यु सं ध
ऊसर
हा य नाटक
अ ात अट् टहास
पतामह ेता
मृ युदंड
अगल-बगल खड़े वृ के बीच से एक क चा माग गया था। माग क दशा दे खकर लगता
था, क कई दन से कोई वाहन नह गुजरा। माग पर वृ के प े गरकर सड़ने भी लगे
थे। कह -कह झा ड़याँ भी उग आई थ ।
यह थान कभी ापा रक माग क पहचान रखता था, कतु वष से योग न होने
के कारण अब वन का ही एक अंग बन गया था। मु य माग से आस-पास के गाँव तक
प ँचने के लए यह एक छोटा ापा रक माग था। शी ता के फेर म यदा-कदा कोई
ापारी इस माग का योग कर लया करता था। कतु द यु ने इस बीहड़ थान पर
ऐसा आतंक मचाया क अब कसी का इस ओर आने का साहस नह होता था।
डू बते सूय क ला लमा म एक -पु लंबा अपने माथे को ोध से सकोड़े
आ रहा था। वह अगल-बगल के वातावरण पर सू मता से डाल रहा था। इस
का गंजा सर इतना चकना था क मानो एक रोयाँ भी कभी न उगा हो।
गंजे का ोध बढ़ गया। जोर से च लाया, “यौधेय! भयभीत मूषक! हर बार
छलावा दे कर भाग नकलता है…कापु ष! थोड़ा भी पु ष व बचा हो, तो सामने आ…।”
रक जोर से च लाया था। आवाज र तक गई। वृ के कुछ प ी उड़ गए और
कुछ ऊपर से ही झाँके। रक क चकनी खोपड़ी उ ह भी आक षत कर रही थी।
इसी कार बड़बड़ाते ए वह आगे नकल गया। कुछ र चलने के प ात् एक
पोखरा दखा। माग छोड़कर पोखरे पर गया और झुककर जल पीने लगा। पीते समय उसे
कुछ लोग के आने का आभास आ। मुख के भाव नह बदले। चुपचाप पीता रहा।
पीकर उठा, तो पीछे दस-बारह लोग खड़े दखे। उनके शरीर पर कई परत वाले
मोटे व थे, जो मैल-े कुचैले और कह -कह से फटे भी थे। हाथ म वृ काटने वाले
कु हाड़े और बरछे थे। एक के कंधे पर मरा आ खरहा लटक रहा था। सभी क ललचाई
बार-बार रक के हाथ और पैर के कुंडल पर जा रही थी।
“आस-पास मेरे जैसे कसी को दे खा है?” रक ने जल पीने के बाद धोती से
हाथ प छते ए सहज भाव से पूछा।
सभी ने एक- सरे का मुँह दे खा। फर एक, जसके दोन हाथ म कु हाड़े थे, ने आगे
बढ़कर कु टल मु कान के साथ कहा, “हमारा भा य, जो तु हारे जैसा नह दे खा। कह
बाहर से आए हो?”
“सीमावत गाँव कतनी र है?” रक ने पुनः सहज भाव से कया।
“अपने हाथ-पैर के कुंडल हम स प दो…हम वयं तु ह छोड़ आएँग,े ” कु हाड़े पर
पकड़ मजबूत बनाते ए वही पुनः बोला।
रक उनके बीच से होता आ आगे बढ़ने लगा। शां त से बोला, “म वयं चला
जाऊँगा।”
सभी ने उसे घेर लया और बरछे क न क आगे कर द । बीच म खड़े रक ने एक
आह भरी। एक तर कारपूण सभी पर डाली। फर धीरे से बोला, “आज वा तव म
तु हारा भा य है।”
अभी तक शांत खड़े वृ के प े खड़खड़ाने लगे। लगा, एकाएक बयार चल पड़ी।
कुछ ही ण म बयार के झ क क बाढ़-सी आ गई। जैस,े आँधी आने वाली है। दोपहर
म ई रम झम वषा से भू म अभी तक नम थी। अतः अ धक धूल नह उड़ी। कतु भू म
पर गरे प े और तनके उड़ने लगे।
घेराबंद कए लोग ने एक- सरे का मुँह ताका। रक के ने म भया ांत कर दे ने
वाली ू रता जाग गई थी।
वृ पर बैठ एक गलहरी, जो यह सब दे ख रही थी, तेज बयार के झ क से
भयभीत होकर वह तने म बने अपने छ पी घर म घुसकर बक गई।
प य क खड़खड़ाहट ती होती चली गई। गलहरी अपने छ म बक रही।
कई धमाके ए, जो प य के शोर म अ प थे। कुछ टू टने और गरने क व न गलहरी
ने कई बार सुनी। फर धीरे-धीरे हवा शांत पड़ने लगी। कुछ दे र म जब पूरी तरह थर हो
गई, तब गलहरी ने साहस कर छ से बाहर झाँका। नीचे कई मनु य के त- व त मृत
शरीर पड़े थे। टू टे कु हाड़े और बरछे , शव से बह रहे र म सन गए थे। वीभ सता
दे खकर या कसी अ य कारण से गलहरी पुनः बक गई।
रक अब वहाँ उप थत नह था।
दोपहर होने वाली थी, कतु मेघ ने आकाश पर ऐसा अ धकार जमा रखा था क सूय
करण को अपना अ त व बचाने के लए संघष करना पड़ रहा था। काजी दे श के इस
पहाड़ी े म लगभग पूरे वष वषा होती रहती थी।
यह थान असुर राजधानी म हार से चार दन क री पर था। यहाँ के हरे-भरे ऊँचे-
नीचे पहाड़ पर असुर का सं ांत वग रहा करता था। सं ांत वग के वृ अपने जीवन के
अं तम ण को यहाँ के सुहाने मौसम म बताना अ धक पसंद करते थे।
इ ह पहाड़ म एक म यम ऊँचाई वाले पहाड़ क तलहट पर एक पथरीली सड़क
थी। इस सड़क पर चार रथ एक कतार म तेजी से भागे जा रहे थे। सभी रथ पर चार-चार
कवचधारी सै नक पूरे अ -श और चौक ी के साथ उप थत थे। रथ पर सं क
तथा भांड के प म ढे र सामान लदा आ था।
आगे से तीसरा रथ अपे ाकृत कुछ बड़ा था। इस पर चार सै नक के अ त र एक
अय भी उप थत था। अड़तीस वष क वय वाला यह अपनी वेशभूषा से
व श तीत होता था। हलते-डु लते रथ पर दोन हाथ पीछे बाँधकर जस सरलता से
यह संतु लत खड़ा था, वह कसी कलाकारी से कम नह थी।
य प अ य असुर सै नक क भाँ त इसके भी शरीर क संपूण वचा काले रंग से
पुती थी, तथा प उसके मुख पर एक सौ यता छायी ई थी। वह अ य सै नक क भाँ त
चौक ा नह था। सामने कह र टकाए वह कुछ सोच रहा था। काले मेघ क बार-
बार होने वाली गजना भी उसका यान नह तोड़ पा रही थी। कह र हो रही वषा से
नमी लेकर बह रही ठं डी पवन जब उसके मुख से टकराती, तो वह उसके चतन संसार
को और भी गहरा बना दे ती। आस-पास क व छ ह रयाली और भूरे रंग के पथरीले माग
के दोन ओर यूँ ही उग आए छोटे -छोटे सफेद पहाड़ी फूल को वह नह दे ख पा रहा था।
दौड़ते रथ शी ही पहाड़ी क चढ़ान सीमा तक प ँच गए। रथ क ग त एकाएक
कम होने पर का यान टू टा। आकाश क ओर उठ । मेघ का तांडव कभी भी
ारंभ हो सकता था। जस कार बज लयाँ मेघ के बीच उप व मचा रही थ ,
मूसलाधार वषा होने क बल संभावना थी। फर भी यहाँ के मेघ व सनीय नह थे।
कभी-कभी डरा-धमकाकर बना वषा कए ही चले जाते थे।
चार रथ चढ़ान पर आ गए। ग त पहले से धीमी हो गई। चाहकर भी वे घुमावदार
पहाड़ी माग पर तेज नह चल सकते थे। गंत र नह था। आशा थी, समय रहते प ँच
जाएँग।े
आधा माग पार करते ही बूँद गरनी ारंभ हो ग । व श का भाव सामा य
बना रहा, कतु सै नक को थोड़ी चता होने लगी। यह चता तब और बढ़ गई, जब आगे
का मोड़ मुड़ते ही रथ को क जाना पड़ा।
सामने माग पर छोटे -बड़े प थर का ऊँचा मलबा पड़ा आ था। सबसे बड़ा प थर
एक घोड़े जतना बड़ा था। संभवतः कसी ताजा भू खलन के कारण यह मलबा गरा
होगा— ऐसा सभी ने अनुमान लगाया। पहाड़ी माग पर यह होता ही रहता था।
एक तरफ पवत क ऊँची खड़ी चट् टान और सरी ओर खाई। मलबा हटाए बना
आगे जाना संभव नह था।
सै नक को कसी नदश क आव यकता नह थी। सारथी स हत सभी सै नक
अपने-अपने रथ से त काल उतरे और मलबा हटाने म जुट गए।
तीसरे रथ पर अकेला खड़ा व श अभी भी शांत था, कतु आँख म कुछ
सतकता आ गई थी।
यह पहाड़ी माग मा एक रथ जतना ही चौड़ा था। य द रथ पर खड़े-खड़े बा ओर
झाँका जाए, तो नीचे क खाई प दे खी जा सकती थी।
रथ क छत रय पर मेघ क बूँद ट प्-ट प् बजा रही थ । चार ओर अपनी सतक
दौड़ाते ए यह सोच रहा था क य द समय से अवरोध नह हटा और
मूसलाधार वषा ारंभ हो गई, तो कहाँ आड़ ली जाए।
‘पट् ट् ’
वश के रथ के दो सफेद घोड़ म से बाएँ घोड़े क पीठ पर, आकाश से
एक गे ँआ सप गरा। क भौह सकुड़ ग ।
‘पट् ट् ’…! ‘पट् ट् ’! ‘पट् ट् ’! ‘पट् ट् ’! ‘पट् ट् ’…!
इस बार तीन सप दाएँ घोड़े पर तथा दो सप छतरी पर गरे। फर तो मानो सप-वषा
ही ारंभ हो गई। आगे-पीछे सभी रथ पर सप गरने लगे।
सप रथ क छत रय से टपककर रथ के अंदर गरने लगे और भू म के सप ने
घोड़ के पैर से लपटना ारंभ कर दया।
शरीर पर रगते सप से भयभीत घोड़े हन हनाकर बदकने लगे। सै नक रथ से
साठ पग र मलबा हटा रहे थे। जब उ ह ने यह य दे खा, तो भय और आ य से मुँह
खुला रह गया।
ऊपर हवा म ह क धुँध टँ गी ई थी। अतः सप कहाँ से आ रहे, यह नह दखा। बस
ऐसा लगा क सप धुँध से गर रहे ह।
सप ने कई घोड़ पर अपने दाँत गड़ा दए। व श के बाएँ घोड़े पर भी तीन
सप ने अपने दाँत धँसा रखे थे। कनारे पर खड़ा वह घोड़ा इतनी जोर से बदक रहा था
क कसी भी ण रथ स हत खाई म चला जाता।
सै नक क उस हचकोले खाते रथ क ओर गई। सभी एक वर म चीखे—
“ े ी!”
जस व श को उन सभी ने ‘ े ी’ कहकर पुकारा था, वह कई बार रथ से
कूदने क सोच चुका था, कतु आगे-पीछे हर थान पर सप को रगता दे खकर रथ पर ही
का रहा। वह अपनी तलवार से रथ के अंदर गर आए सप को शी ता से उठाकर बाहर
फक रहा था।
एक सै नक ने वतमान थ त दे खकर व रत नणय लया। अपने बगल खड़े साथी
का भाला लया और बढ़कर सबसे आगे आया। फर पूरी श से भाला ख च मारा।
हवा को चीरता भाला आगे के दो रथ के बगल से होता आ े ी के बाएँ घोड़े के
सीने म उतर गया। भाले म चंड आवेग था। घोड़े के कई मह वपूण अंग बध गए। घोड़े
का बदकना णभर म क गया। दो ण न तेज-सा ठहरा रहा, फर ाणहीन हो गर
पड़ा।
घोड़े के गरते ही रथ असंतु लत हो कर बा ओर थोड़ा टे ढ़ा हो गया। े ी ने सरे
घोड़े क थ त दे खी। दस से अ धक सप ने पीठ और गरदन पर अपने दं श गड़ा रखे थे।
े ी ने रथ म रखा एक भाला उठाया और पूरी श से घोड़े क पीठ म धँसा
दया। सप वष से पहले ही अधमरा घोड़ा अब पूरी तरह मर गया। दो-तीन हन हनाहट के
प ात् वह भी पीड़ा मु हो गया। रथ अब पूरी तरह शांत और संतु लत था।
सप-वषा अं तम अव था म थी। इ का- का ही सप गर रहे थे। कुछ ण प ात्
पूरी तरह क गई। रथ के आगे-पीछे और नीचे सभी थान पर सप-सेना रग रही थी।
काले, भूर,े पीले, चतकबरे और प ट् टय वाले न जाने कतनी जा तय के सप वहाँ
उप थत थे। े ी पूरी फुत से अपने रथ पर चढ़ आए सप को तलवार से हटा रहा था।
सभी सप प प से ो धत लग रहे थे। कुछ बड़े सप ने छोटे सप को नगलना भी
ारंभ कर दया।
सै नक भी अपने भाल और तलवार क न क से सप को हटाते और मारते ए
आगे वाले रथ क ओर बढ़ रहे थे। वे रथ पर रख उ काएँ ा त करना चाहते थे। एक
बार उ काएँ जल जाएँ, तो सप को भगाना सरल हो जाएगा। े ी भी उ काएँ जलाना
चाहता था, कतु अवसर ही नह मल पा रहा था।
तभी भयंकर गजना के साथ बजली कड़क । एक बार नह , पाँच-छः बार कड़क ।
ऐसे ाकृ तक कोप से जीव-जंतु ब त घबराते ह। सप-सेना भी वच लत ई। शरण
पाने के लए अ धकांश सप खाई क ओर उगी झा ड़य क ओर जाने लगे।
बूँदा-बाँद तेज हो गई। े ी ने राहत क साँस ली। अ धकतर सप माग से हट चुके
थे। अ धक ण नह बीते ह गे क भा य ने एक नया दाँव खेल दया। े ी के पीछे खड़े
रथ के एक घोड़े के खुर से एक बड़े सप क पूँछ कुचल गई। त या व प ो धत
सप घोड़े के पैर से लपट कर दं श पर दं श मारने लगा।
घोड़ा बुरी तरह छटपटाया। आव न ताव दे ख पूरी श से दौड़ पड़ा। खचाव
मलने से रथ का सरा घोड़ा भी दौड़ पड़ा।
े ी उस समय रथ से उतरने ही जा रहा था। तभी पछले रथ को अपनी ओर आते
दे खा। घोड़े सर झटकते ए आए और कसी तूफान क भाँ त े ी के रथ से टकराए।
रथ भयंकर प से डगमगाया। े ी भी संतुलन खोकर पीछे गरा। आगे बढ़ने क
हड़बड़ाहट म दोन घोड़े े ी के रथ पर ही चढ़ने का यास करने लगे। रथ को डोलता
दे ख े ी ने नणय लेने म दे र नह क । रथ पर रखे एक सं क पर चढ़कर आगे क ओर
कूद गया। वह अपने रथ के मरे घोड़े के बा ओर मुँह के बल गरा। एक ओर मृत घोड़ा
और सरी ओर खाई। करवट तक क कोई जगह नह ।
रथ के डोलने से घोड़ क घबराहट चरम पर प ँच गई। बायाँ घोड़ा जब े ी के रथ
पर चढ़ने म असफल रहा, तो बा ओर कनारे से आगे बढ़ने का य न करने लगा। बूँदा-
बाँद से गीली हो चुक मट् ट पर खुर फसला और आगे के दोन पैर खाई म लटक गए।
घोड़ा णभर ही लटका होगा क पूरा शरीर पेट के बल खाई म सरकने लगा। इसी के
साथ पछला रथ भी खाई क ओर टे ढ़ा हो गया। सरे घोड़े क व गा े ी के रथ म कह
अटक गई थी। े ी का रथ भी खाई क ओर खचने लगा। यह य दे खकर सै नक पूरी
श से चीखे— “ े ी!”
े ी लगभग उठकर खड़ा हो चुका था। सै नक क चेतावनी सुनते ही पूरी श से
दौड़ पड़ा।
े ी के वह थान छोड़ते ही उसके बगल वाला मृत घोड़ा खचा और दो रथ खाई म
पलटते दखे। कुछ ण बाद खाई से दो ह के धमाके सुनाई पड़े।
वषा ती हो गई। अ धकाँश सप माग छोड़कर खाई के कनारे वाली वन प तय म
लु त हो चुके थे। बचे-खुचे सप से बचता आ े ी सै नक के पास प ँचा। इससे पहले
क सै नक कुछ बोलते, े ी ही बोला— “म ठ क ँ। शी ता से उ काएँ जलाओ और
सभी अ को रथ से अलग करो।”
सै नक थोड़े भयभीत थे, कतु े ी का शांत भाव दे खकर कुछ सामा य ए।
सै नक का यह दल पछले आठ वष से े ी के साथ था। इस कार क न जाने कतनी
ाणघातक घटना म उ ह ने े ी को वच लत होते कभी नह दे खा। संकट कैसा भी
हो, भय, उ ेजना, ोध, और घबराहट े ी को पश भी नह कर पाते थे।
वषा और भी ती हो गई। मेघ लगातार गरज रहे थे। एक सै नक रथ क छतरी
उतार लाया। छतरी के नीचे े ी अपने हाथ पीछे बाँधकर खड़ा आ। फर उ काएँ
जलाई ग । सै नक ने घोड़ को रथ से अलग कर दया। दो घोड़ पर वषदं त के च थे
और शेष दो सुर त थे।
“संकेत बाण छोड़ दो,” े ी ने संकेत दया।
सै नक ने तूरीण से सीट वाले बाण नकालकर धनुष पर चढ़ा लए। आकाश क
ओर छोड़ने ही वाले ही थे क े ी ने रोक दया, “ठहरो! मेघ क गजना समा त हो
जाए, तब छोड़ना।”
सै नक ने बाण उतार लया और मलबा हटाने म जुट गए।
वषा पूरे एक घड़ी तक चली, फर ह क फुहार के प म बची। अब तक इतना
अवरोध हट चुका था क घोड़े नकल सक।
सै नक ने आठ संकेत बाण एक साथ छोड़े। सी टय क तेज गूँज से पहाड़
त व नत हो उठे ।
एक घोड़े पर े ी बैठा और सरे पर एक अ य सै नक। मलबे के बीच से घोड़े
नकालते ए दोन आगे बढ़ गए। बाक बचे सै नक को सहायता क ती ा करनी थी।
माग पथरीला था। वषा के कारण माग के दलदली होने क सम या नह थी। अतः
घोड़े पूरी कुशलता से दौड़ रहे थे।
आध घड़ी चले ह गे क सामने से चालीस घुड़सवार का सहायता दल आता दखा।
जब सहायता दल समीप प ँचा, तब े ी के साथ वाला सै नक आगे आया और दल के
नायक को घटना से अवगत कराया।
बीस घुड़सवार े ी के बचे ए सै नक क सहायता के लए गए और दस सै नक
उस संभा वत थान क ओर भेजे गए, जहाँ से सप फके जा सकते थे। शेष दस सै नक
के साथ े ी अपने गंत क ओर चल दया। माग म े ी ने सहायता दल के नायक
को नदश दया क वह इस घटना के वषय म कसी को भी सू चत न करे और य द कोई
आरोपी पकड़ा जाय, तो सीधे म हार लाकर उसे ही स पा जाय। दलनायक ने सर
हलाकर हामी भरी।
चौथाई घड़ी क या ा के बाद वे पहाड़ क चोट पर प ँच।े यहाँ लकड़ी और बाँस
से बने पचास-साठ घर थे। सभी घर छतवाले ग लयार के मा यम से आपस म जुड़े थे।
इन सभी घर को एक साथ घेरते ए लकड़ी के लट् ठ से बनी छह हाथ ऊँची बाड़ थी
और अंदर वेश के लए इतना ही ऊँचा लकड़ी का एक मु य ार।
य प इस थान पर कसी श ु के आ मण का कोई भय नह था, तथा प व य
पशु से अपने पशुधन क र ा के लए बाड़ लगाना आव यक था।
े ी पूरे दल के साथ मु य ार से वेश कया। वह घोड़े से उतरा और सीधे
नानागार चला गया।
अगले दन क सुबह कोहरे से भरी थी। सूय दय ए काफ समय हो चुका था। पर सूय
का अता-पता नह था। मु य ार पर बीस रथ मारंग क ती ा म खड़े थे। कोहरा इतना
घना था क कतारब खड़े बीस रथ को एक साथ दे ख पाना संभव नह था।
कुछ दे र म मारंग कट आ। चलता आ दसव रथ क ओर गया। सभी रथ पर
आठ-आठ सै नक थे। दसव पर मा व जी खड़ा था।
व जी को दे खते ही मारंग ठठका। व जी ने बाल को रंगकर लाल जूड़ा बना रखा
था। दोन हाथ भी कोहनी तक लाल थे। बा कमर से दो तलवार लटक रही थ । ऐसी
पतली और लंबी तलवार असुर दे श तथा जंबू प म साधारणतः योग म नह आती थ ।
व जी का यह प दे खे दस वष से अ धक हो गया था। य द मारंग अपने युग का
सबसे स ापारी था, तो व जी भी अपने समय का सबसे रह यमय असुर था। वह
पूरे काजी दे श म लाल-रह य के नाम से व यात था।
मारंग क व जी से थम भट पतालीस वष पूव ई थी। व जी के अतीत के वषय
म कसी को कुछ ात नह था, मारंग को भी नह । मारंग ने एक बार जानना चाहा, तो
व जी ने चु पी साध ली थी। उसके प ात् मारंग ने दोबारा कभी नह पूछा।
मारंग बना कुछ बोले रथ पर चढ़ गया। बीस रथ का यह दल कोहरे को चीरता
आ राजधानी म हार के लए चल पड़ा।
पहाड़ से उतरते ही व जी ने रथ पर रखे सं क से म दरा क एक छोट सुराही
नकली और मुँह से लगा लया।
सरे दन दोपहर के दो घड़ी प ात् मारंग का दल एक बड़े सरोवर पर का। घोड़
को रथ से खोलकर जल पलाया गया। सरोवर के सरी ओर मह ष गा ध का आ म
था।
व जी को वनोद सूझा, मारंग क पीठ ठोककर बोला, “जाओ नवयुवक! जाओ!
जो शां त तुझे खुरपी चलाकर नह मली, वह उस आ म म अव य मलेगी। बुड्ढा गा ध
पूरे संसार म व -शां त के लए मण करता रहता है। उस व -शां त से कुछ शां त तुझे
भी मल जाएगी। जाओ! वलंब मत करो…कह शां त लकड़ी बीनने वन म न चली जाए,
फर तु ह वह नह ा त होगी।”
मारंग कुछ न बोला। बस थोड़ा-सा मु कुराया।
कुछ दे र म रथ चलने के लए पुनः तुत हो गए। कतु इस बार मारंग व जी के
साथ नह चढ़ा। वह सरे रथ पर अकेला ही वराजमान आ।
आगे माग दो भाग म वभ था। एक गण क ओर जाता था तथा सरा म हार
क ओर।
“दो रथ साथ लेकर जा,” मारंग बोला।
आव यकता नह ! मेरी ह ड् डयाँ बूढ़ ई ह, श नह ।” व जी पूण अहंकार से
बोला।
“ठ क है, जैसी तेरी इ छा, अगली चौक पर ती ा क ँ गा।” कहकर मारंग दल
स हत अपने माग पर चला गया। और व जी अकेला ही काकासुर गण क ओर।
काकासुर गण क ओर जाते ए व जी के मुख पर एक भयकारी गंभीरता छाने
लगी। यह वह भाव थे, ज ह मारंग भी दे खने से बचा करता था।
अगले दो दन तक मारंग के पास मलने वाल का ताँता लगा रहा। वह बस शरीर से बूढ़ा
था। गजना और ऊजा म आज भी उसम कोई कमी नह आई थी। उसक छाया का
व तार आज भी उतना ही था।
मारंग क ापार म अब कोई वशेष च नह बची थी। कतु अपने हाथ से खड़े
कए गए सा ा य के त एक वाभा वक मोह बना आ था। यदा-कदा जब भी उसके
सा ा य पर कसी कार क आँच आती, वह वचा लत ढं ग से ग त म आ जाता। य प
ल वी क ग त से वह स था, तथा प उसके ापार के तौर-तरीक से कभी-कभी
वच लत हो जाता था।
ल वी ने सारा ापार- ान अपने नाना से ा त कया था और यह ान मारंग के
ापार- ान के वपरीत था। मारंग लाभ के त पूरी तरह आ त होने के बाद ही
ापार का अगला पग धरता था, जब क ल वी नया ापार ारंभ कर बाद म लाभ
ा त करने का माग ढूँ ढ़ता था। मारंग ने ापार े म सदै व एका धकार क नी त
अपनाई थी जब क ल वी कई ापा रय को मलाकर संगठना मक ढाँचा बनाने का
यास करता था। ल वी क योजनाएँ द घकालीन तीत होती थ , जसका मारंग
अ य त नह था।
मारंग को कभी-कभी शंका होने लगती थी क ल वी क काय- णाली से उसके
धनकोष म छ बन गए ह, जहाँ से धन रसना ारंभ भी हो गया है। इस कारण से
सं यास लेने बाद भी यदा-कदा ापार जगत् के वतमान प र य पर अपनी डाल ही
लया करता था। वह जीते-जी अपने सा ा य क ऊँचाई कम होते नह दे ख सकता था।
मारंग के लए ल वी पहले उसके धन का संर क था, पु बाद म।
सरे दन साँझ ढलने पर ल वी अपनी एक शोधशाला का दौरा करके लौटा।
ह का जलपान कया, फर सीधा अपने पता के क क ओर चला गया।
मारंग का गत क उ ान पारकर सरे भाग म थत था। ल वी को आशा
थी क भट करने वाल का जमघट अभी भी लगा होगा, पर स ाटा दे खकर आ य आ।
उ ान म काय कर रहे एक सेवक से पूछा, तो ात आ क पछली दो घड़ी से कसी को
भी भट करने क मनाही है। ल वी को समझ नह आया। लंबे-लंबे डग भरता आ
उ ान पारकर क तक प ँचा। कुछ मारंग के साथ चचा करते दखे। ल वी जैसे
ही अंदर घुसा, कान को कुछ श द सुनाई पड़े…य तय के पा..स..।
ल वी को आता दे ख मारंग ने हाथ से चुप होने का संकेत कया। बोल रहा
बीच म ही क गया। क म पाँच वृ बैठे थे। पाँच राजधानी के े वै थे।
“… या? वा य ठ क नह ?” ल वी बैठता आ बोला।
“अं…हाँ!…कंठ म कुछ जलन हो रही थी,” मारंग ने टालने के लए बोल दया।
ल वी को अटपटा लगा। एक छोट सम या के लए पाँच वै ?
मारंग ने संकेत कया। पाँच वृ उठे और अ भवादन कर चले गए।
मारंग ने दो याल म काढ़ा नकाला। एक ल वी को पकड़ाया और सरा वयं
पीते ए पूछा, “अनाथालय कब जाएगा?”
ल वी को इस बार और अटपटा लगा। जस अनाथालय का नाम सुनकर उसका
पता भड़क उठता था, आज वह वयं पूछ रहा है।
“कल ातः नकलने क सोचा है,” ल वी अपना आ य दबाकर सहजता से
बोला।
“यह माग योजना या है? कल से कोई न कोई बताकर जा रहा है…और यह भी
बता रहे ह क इस नमाण से नकट भ व य म कोई लाभ नह मलने वाला।”
सुनकर ल वी ने काढ़ा पया। फर याला नीचे रखकर समझाने लगा। पूरा
नह बताया, ापा रय क भाँ त मा थम चरण बताया। मारंग चुपचाप सुनता रहा।
सुनकर कोई राय कट नह क ।
मारंग के पास बैठे-बैठे रा चढ़ गई। कुछ अ य वषय पर बातचीत कर ल वी
चला गया।
रा गहरा चुक थी। असुर राजधानी म हार क हाट म कान बंद होना ारंभ हो गई
थ । कलाकृ तय क कान और म दरालय अ रा के बाद भी खुले रहते थे, कतु
सामा य कान बंद होने का यही समय था। माग पर आम-जन क सं या धीरे-धीरे
घटती जा रही थी।
हाट के बाहरी छोर पर माँस क कान आवं टत थ । असुर दे श म भसा माँस क
सवा धक खपत थी। इसके बाद मछ लयाँ तथा अ य समु माँस।
इन माँस कान के पीछे बड़े-बड़े भंडारण गृह थे। इ ह म से एक भंडारण गृह के
ार पर एक ापारी खड़ा कसी क ती ा कर रहा था।
हाट के माग पर काश क समु चत व था थी, कतु भंडारण गृह के आस-पास
आव यकतानुसार ही उ काएँ जल रही थ । जहाँ ापारी खड़ा था, वहाँ ीण काश
था।
उसे अ धक ती ा नह करनी पड़ी। दो आकृ तयाँ आती दख । ापारी सतक
आ। अँधेरे म भी दोन आकृ तय क चाल म गव और नभ कता झलक रही थी।
क रया और जावा थे। दोन ापारी के समीप प ँच।े जावा, ापारी के पास
माहभर से था, क रया पहली बार आया था। ापारी ने क रया पर भरपूर डाली,
फर सर झुकाकर अ भवादन कया। क रया ने मु कान के साथ उसके कंधे पर हाथ
रखा।
ापारी दोन को अंदर ले गया। जावा ने कंधे पर लद गठरी उतारकर रख द ।
ापारी औपचा रक जलपान के लए सेवक को पुकारने वाला था क क रया ने संकेत से
रोक दया। वह पहले अपनी योजना के मह वपूण ब को दे खना चाहता था। ापारी
ने सर झुकाकर आ ा मानी और उ ह भंडारण गृह के पछले भाग म ले गया।
वहाँ दजन गड् ढ म भाँ त-भाँ त क छोट -बड़ी मछ लयाँ भरी ई थ । कुछ गड् ढ
म अ य समु जीव भी थे। सभी गड् ढ म जल भरा था। सारे जलीय जंतु जी वत थे।
वातावरण पूण प से गधयु था।
इस कार के पाँच हाथ चौड़े वगाकार गड् ढे येक समु -माँस ापारी के
भंडारण गृह म थे। राजधानी से समु क री अ धक थी। अतः मछ लय को ताजा रखने
के लए ब तक उनको जी वत रखना आव यक था।
ापारी, क रया को दाएँ कोने वाले गड् ढ क ओर ले गया। पाँच गड् ढ म काली
और सफेद धा रय वाले सह मेढ़क भरे थे। वे फुदक रहे थे, कतु टरा नह रहे थे।
उनके शरीर से लप लपा पारदश नकल रहा था।
“ कतने घड़े भर जाएँग? े ” क रया ने पूछा।
“दस से अ धक,” जावा ने उ र दया। वह इन मेढ़क को पछले एक माह से पाल
रहा था।
क रया को जो दे खना था, दे ख लया। वहाँ क गध सहन नह हो रही थी। शी ही
तीन क म लौट आए।
ापारी ने आवाज दे कर सेवक को जलपान लाने को कहा और एक मान च
फैलाकर क रया के सामने रख दया। मान च कसी कारागार का था, जहाँ अ न ेत का
आरोपी योगकता शु बंद था। मान च सरल था, कसी ब चे को भी मरण हो जाता।
“शु को संदेश दे दया है, कतु वह अपनी पु ी के लए च तत था,” ापारी ने
कहा।
“उसे समझाया नह , उसे छु ड़ाने के प ात् उसक पु ी को भी साथ लेकर जाएँग।े ”
क रया मान च दे खता आ बोला।
“समझाने का अवसर नह मला, मा एक बार कह दया था क उसक पु ी भी
सुर त साथ जाएगी।” ापारी बोला।
क रया बड़ी दे र तक मान च पर दौड़ाता रहा। फर कुछ लखी ई सं या
क ओर संकेत कर पूछा, “ रय क गणना म पूरी तरह आ त हो?”
“ न त रह। पछले बारह वष से कारागार म भोजन क आपू त कर रहा ँ। आँख
मूँदकर पूरा कारागार मण कर लौट सकता ँ,” ापारी ने जोर दे कर कहा।
तभी सेवक जलपान लेकर आ गया। जलपान या था, पूरा भोजन था।
क रया, जावा क ओर मुड़ा और पुछा, “गुलेल क या दशा है?”
“चार गुलेल बन गई ह। अपनी आव यकतानुसार समायो जत कर सकते हो,”
जावा ने उ र दया।
क रया कुछ दे र सोचता रहा, फर बोला, “अ य साम ी भी उठा लाओ। काय
नबटाने म रा बीत जाएगी।”
जावा सरे क से ढे र साम ी उठा लाया। व भ कार के तैल, चूण, घड़े,
खप चयाँ और लकड़ी के टु कड़े आ द।
पहले उ ह ने भोजन कया, फर काय म लग गए। ापारी ने पाँच अ त व सनीय
सेवक को भी सहायता के लए बुला लया था।
अगले दन अमाव या थी। इस दन असुर म परंपरागत प से भसा-माँस बाँटकर उ सव
मनाने क था थी। था म भसा-माँस था, कतु उ च वग भसा-माँस खा-खाकर ऊब
चुका था, अतः वे मँहगे समु जीव का उ सव मनाते थे।
योजना के अनुसार ापारी अगले दन दोपहर म आठ पैर वाली समु मछली दे ने
कारागार गया। कारागार के सै नक उ ला सत हो गए। सामा यतः हर बार उ ह भी भसा-
माँस ही मलता था, इस बार लभ समु जीव दे खकर स थे। उनक स ता के
ण म ापारी ने इधर-उधर के पूछकर कई नई सूचनाएँ ा त कर ल ।
वतमान थ त म मा यह प रवतन आ था क असुरा धप त कालयवन का
अंगर क थांबा बीस सै नक के साथ आज सं या कारावास आएगा। थांबा का कारावास
आना कोई नई बात नह थी। वह जब भी आता, पूछताछ के बहाने अगले दन भोर म
शु को लेकर राजक य योगशाला चला जाता। थांबा का आना पूण न त नह था,
य द वह आया, तो उसक उप थ त संकट उ प कर सकती थी। थांबा का पद
अंगर क का अव य था, कतु तर कसी सेनाप त जैसा था।
अमावस क काली रात। यूनतम आकाशीय काश क रात। तार म इतना साम य नह
था क चं मा क अनुप थ त म दो हाथ र खड़े का मुख पहचानने म सहायता
कर सक। पेड़-पौधे स हत येक व तु मा काली आकृ त के प म अपने अ त व का
बोध करा रही थी। बयार शांत थी, प ा भी नह हल रहा था।
कारागार से र एक वृ क मोट डाल पर सै नक वेशभूषा म क रया बैठा आ
था। उसने दोन पैर म उछाल-यं फँसा रखा था और पीठ पर बेलन-यं । कमर प ट् टका
मोट लग रही थी। उसम भी ब त कुछ भरा था।
वृ क डाल से कारागार क द वार भी काली आकृ त के प म दख रही थ ।
परकोटे क द वार अ धक ऊँची नह थ । आठ हाथ रही ह गी। परकोटे पर एक- सरे से
र तीन थान पर उ काएँ जल रही थ । उनके काश म पं ह सै नक दखे। ापारी क
पूव सूचना के अनुसार पाँच-पाँच के समूह म होने चा हए।
कारावास ऐसा कोई थान नह था, जहाँ कसी श ु-सेना के आ मण का भय हो।
अतः यहाँ सामा य तर क सुर ा मा कै दय को संभालने के लए रखी जाती थी।
चूँ क आज तक कारावास पर आ मण क घटना कसी ने नह सुनी थी, अतः यहाँ
उप थत सै नक क सतकता भी उसी अनुसार थी।
कारावास के अंदर से हो-ह ले क मंद व न आ रही थी। आज उ सव क रा थी।
माँस रसोई म नह , बाहर खुले म पकाया जाता था। काजी दे श क असाम यक वषा यह
अवसर कम ही दे ती थी। इस बार ा त आ था, तो सब पूरे उ लास म थे।
क रया को कारावास के ठ क ऊपर अ न क पीली करण क छटकन वाली धुँध
आध घड़ी से दख रही थी। पया त ती ा हो चुक थी। अब तक सब खाने-पीने म लग
चुके ह गे।
कारावास के बा ओर वृ के बीच खड़ा एक सेवक पूरे यान से क रया के वृ
क ओर गड़ाए ए था। उसके समीप लकड़ी के दो लट् ठ वाली एक गुलेल भू म म
गड़ी थी। गुलेल के पास कुछ घड़े भी रखे ए थे, जनका मुँह चमड़े से ढ़क कर बाँधा
गया था।
सेवक चौक ा था। मंद सरसराहट पर भी त काल उस दशा म घुमा दे ता। तभी
क रया के वृ के आस-पास कुछ जुगुनू उड़ते दखे। सेवक ने पु करने के लए आँख
गड़ाई। पु हो गई क संकेत है।
सेवक ने एक एक लंबी साँस ली और अपने काय म लग गया। उसने एक घड़ा
उठाया और गुलेल के पट् टे पर रखकर ख चा। गुलेल ख चने म उसे पूरी श लगानी
पड़ी। भू म पर कई रेखाएँ बनी थ । गुलेल को ख चकर पहली रेखा से पश कराना था।
सेवक क साँस छू टने लगी, तथा प रेखा को पश कराने म सफल रहा। रेखा से पश
कराते ही उसने गुलेल छोड़ दया। घड़ा उड़ता आ कारागार क ओर चला।
कारागार वष पूव यागे गए एक छोटे ग को प रव तत करके बनाया गया था।
अतः मूल संरचना ग क ही थी। बीच के खुले मैदान म पाँच थान पर अ न जलाकर
माँस भूना जा रहा था। अ धकांश सै नक अ न के चार ओर बैठकर म दरा पीते ए माँस
ख च रहे थे। कारागार म इस समय कसी भी कार का सै य अनुशासन नह द ख रहा
था। जब सारे कैद अपनी कोठ रय म बंद ह , तो उनके लए काय ही या है! वे पूण
न त थे।
कई सै नक म दरा पीकर भू म पर लेट गए। इ ह म से एक सै नक चुपचाप लेटा
आ आकाश क ओर ताक रहा था। वह म दरा के ब त भाव म नह था। दनभर खड़े
रहने क थकान थी, इस लए लेटा आ था।
उसे आकाश म एक काला ब दखा। ब ब त तेजी से बड़ा हो रहा था। कुछ
समझ म आने से पूव ही एक घड़ा उसके मुँह से टकराया। नाक क हड् डी टू ट , सर को
आघात लगा और दद के णक ती आवेग म त काल मू छत हो गया।
टकराते ही घड़ा कसी जल भरे मटके क भाँ त फूटा। अंदर का चप चपा
छपाके के साथ चार ओर फैल गया। छपाके क छ ट आस-पास के सै नक पर पड़ी।
कई सै नक को छ ट से ह क चोट भी लगी। घड़े म के साथ अ यंत छोटे -छोटे
गोल कंकड़ भी थे। कंकड़ आकार म अँगु लय के नख के आधे रहे ह गे। चप चपे
कंकड़ र खड़े सै नक को भी लगे और कई सै नक को कंकड़ चपक गए।
सभी सै नक भौच के थे। एक सै नक क बाँह म कंकड़ चपका था। उसने सरे
हाथ से कंकड़ हटाया। कंकड़ तो र हो गया, कतु चप चपे ने उसक बाँह और
कंकड़ के बीच एक महीन धागा बना दया। उस सै नक ने कंकड़ फक दया, उसके उस
हाथ और कंकड़ के बीच भी एक धागा खच गया। सै नक ने अपने हाथ को इधर-उधर
घुमाकर और झटक कर धागा छु ड़ाने का यास कया। उसे लगा, चप चपा धागा छू ट
गया। परंतु धागा छू टा नह था, बस ख च-तान से महीन होकर लंबा हो गया था।
जनके मुँह पर मा छ ट पड़ी थ , उनके साथ भी ऐसा ही आ। टू टे घड़े के फैले
ए और उनके शरीर के बीच एक धागा बन गया था। धागे इतने महीन थे क नंगी
आँख से दे ख पाना अ यंत कर था।
च कत सै नक यही सोच रहे थे क आकाश से यह या गरा है। उनक बु म यह
आया ही नह क यह आ मण भी हो सकता है।
तभी सरे थान पर एक और घड़ा गरा। उसने भी और कंकड़ भरे थे। फर
एक के बाद एक चार दशा से अलग-अलग थान पर घड़े छपाके के साथ फूटने
लगे।
सै नक को अभी भी नह सूझा क आ मण हो रहा है। कुछ म दरा के भाव म थे
और कुछ मत थे। मैदान म चार ओर झपाके ए।
परकोटे पर खड़े सै नक ऊपर से कारावास के अंदर झाँककर य समझने का
यास कर रहे थे। तभी एक छपाका उनके पीछे आ। कुछ कंकड़ सै नक से टकराए
और कुछ उछलकर धागा बनाते ए द वार से नीचे कारावास के अंदर गरे।
परकोटे पर कुल तीन छपाके ए। दो छपाके सै नक के पास ए, कतु एक
छपाका ल य चूक गया। वह घड़ा कारावास क बाहरी द वार से टकराकर बाहर ही रह
गया।
जब सारे घड़े फक लए गए, तब क रया वृ से कूदा। भू म पर कूदते ही उछाल-
यं क खप चयाँ दब । फर उछल गया। कारागार क दशा म वृ से भी ऊँचा उछला
था। लौटकर भू म पर आया, खप चयाँ और अ धक दब । इस बार और अ धक उछाल
मली।
कारागार के अंदर इधर-उधर क भाग-दौड़ म एक सै नक घड़े के पर
फसलकर गर गया। उठने का यास कर रहा था क उसके सामने दस पग र आकाश
से एक कूदा।
क रया के कारागार क भू म पर कूदते ही उछाल-यं क खप चयाँ अ धकतम
सीमा तक दब ग । यं क कई खप चय को इतना अ धक बल सहन करने म क ठनाई
होने लगी। इसी ण क रया ने कमर पर फँसी एक डोरी ख ची। डोरी उछाल-यं क एक
खप ची से जुड़ी थी। पहले ही अपनी अ धकतम सीमा तक तनाव त खप चय को
एक बा बल मला और वे झटके से टू ट ग । फर उसके भाव से कई और खप चयाँ
भी टू ट । बीच क कई खप चयाँ टू टने से, उछाल-यं म समाया बल कम हो गया। फर
भी क रया को पुनः छह हाथ ऊपर उछाल ही दया।
सै नक इतने च कत थे क उ ह अपने श उठाने क भी सुध नह थी। क रया पुनः
भू म पर आया और तीन-चार बार फुदककर एक टू टे घड़े के समीप क गया।
क रया ने एक उड़ती ई चार ओर डाली। फर आस-पास के वातावरण को
मह व न दे ते ए अपनी पीठ से बेलन-यं उतारा और फैले ए पर खड़ा करके रख
दया। बेलन म ऊपर से हाथ डाला और अँगुली से बल लगाकर एक पुजा खसका दया।
यं के अंदर उमेठ ई डोरी मु ई। डोरी क उमेठ म बसी या थ ऊजा से अंदर के
पुज चलने लगे।
“कट् ट…” बेलन-यं म व न ई।
दो ण प ात् पुनः “कट् ट…”, “कट् ट…।”
जैसे ही चौथा ‘कट् ट’…सुनाई पड़ा, क रया पैर से बल लगाकर उछल गया। आधे
टू ट चुके उछाल-यं ने मा तीन हाथ क उछाल द । जब वह हवा म अ धकतम ऊँचाई
पर था, पाँचवाँ ‘कट् ट’ सुनाई पड़ा। कोई मह वपूण पुजा घूमा, कोई अवरोध हटा और
बेलन-यं के अंदर दो प थर आपस म टकराए।
बेलन के नचले भाग, जहाँ प थर टकराए थे, से बजली कड़कने क तेज व न
आई और णांश म एक ती च ध के साथ व ुत-ऊजा नकली। ऊजा नचले प थर क
नचली सतह से नकलकर पर गरी। फर म फैलकर उससे जुड़े धाग क ओर
दौड़ी। धाग पर वह टे ढ़ -मेढ़ चमक ली रेखा के प म दौड़ती दखी। ण के सौव
ह से म धाग का चमक ला जाल यमान आ। एक जाल, अपने समीप गरे सरे
घड़े- के जाल से कसी-न- कसी कार उलझा आ था। ऊजा एक जाल से फैलकर,
सरे जाल, सरे से तीसरे। इस कार ण बीतने से पहले ही पूरे मैदान म असं य
चमक ले धाग का व तृत जाल कट आ। कुछ चमक ली रेखाएँ धाग पर चढ़ते ए
परकोटे क ओर भी बढ़ ।
धाग से जुड़े सै नक से व ुत टकराई। उनके रोएँ और केश आवे शत होकर खड़े
हो गए। व ुत शरीर म वेश कर दय से होकर गुजरी। ाणघातक झटके के साथ
सै नक के शरीर गरे।
क रया के उछाल-यं क नचली खप चय से भी कई धागे चपक गए थे। व ुत
उसक ओर भी दौड़ी। कतु शरीर से री अ धक होने के कारण कोई त नह ई। बस
धाग के संपक ब पर खप चयाँ काले ध बे के साथ थोड़ा जल ग ।
क रया भू म पर लौटा, तो कुछ खप चयाँ और टू ट । उसने उछाल-यं पैर से
नकालकर फक दया और बेलन-यं उठाकर पीठ पीछे फँसा लया।
व ुत-ऊजा के संपक म आकर सूखकर कड़ा हो गया था। इस व ुत- हार
से मैदान म न बे और परकोटे पर दस सै नक न य हो गए थे। शेष बचे तीस-पतीस
सै नक के लए यह य भयावह और अक पनीय था। सभी अपने थान पर जड़ जैसे
खड़े थे। घुसपै ठये क ओर कसी का यान ही नह था। वे अपने साथी सै नक क दशा
दे खकर काँप रहे थे।
क रया ने एक सामा य चार ओर डाली, फर बा ओर कोठ रय क ओर बढ़
गया। मैदान ब त बड़ा नह था। सौ पग म आर-पार कया जा सकता था। मान च के
अनुसार बा ओर सफेद रंग से पुती कोठ रय म पहली कोठरी होनी चा हए।
क रया दस पग चला होगा क एक बाण आकर सामने भू म म धँसा। बाण परकोटे
से चलाया गया था। परकोटे के चार अ य धनुधा रय ने भी बाण छोड़े। क रया के लए
इस तर क धनु व ा से बचना खेल समान था। उसके पग आगे बढ़ते रहे।
इधर धनुधारी तीसरी बार बाण छोड़ने वाले थे क एक बाण पीछे से आकर एक
धनुधारी क बाँह के पार हो गया। धनुधा रय ने क रया को छोड़कर कारावास के बाहर
झाँका। एक बाण और आया। कसी को लगा नह । उनके बगल से होकर नकल गया।
अँधेरे म बस इतना अनुमान लगा क वृ के बीच से कोई बाण चला रहा है। धनुधा रय
ने भी यु र म बाण चलाए, पर उ ह आ य आ क वे ऊँचाई पर थे, तब भी उनके
बाण नह प ँच रहे, जब क आ मणकारी नीचे से ही उन तक बाण मार दे रहा है।
वृ के बीच खड़ा जावा एक बड़े धनुष से नरंतर बाण चला रहा था। उसे क रया
के बाहर आने तक परकोटे क कसी भी ग त व ध को सँभालना था।
इधर कारागार के अंदर क रया अपने ल त कोठरी के सामने प ँचा। येक
कोठरी क भाँ त इस कोठरी का कैद भी भय से पीछे अँधेरे कोने म चला गया था।
क रया कोठरी क लौह सलाख के सामने खड़ा आ। अदं र अँधेरे से कैद क आवाज
आई, “शु काजी का नह , ऊसर का है।”
कैद क पहचान और इ छा दोन का स यापन हो गया।
“पीछे ही रह, ीमान् शु !” क रया मंद मु कान के साथ बोला। फर अपनी कमर
प ट् टका से कपड़े क गाँठ जैसा कुछ नकाला। जो कुछ नकाला, आकार- कार म
कपड़े क एक बड़ी अँगूठ जैसा था। उसने अँगूठ को दाएँ हाथ क चार अँगु लय म
एक साथ फँसाकर मुट्ठ बनाई। इस कार गाँठ म बँधे दोन प थर मुट्ठ के सामने आ
गए। सामने वाले भाग म कपड़े म कुछ छ थे, जनसे अंदर से पीला प थर झाँक रहा
था।
क रया ने मुट्ठ तानी, दाँत भ चे और पूरी श से सलाख के बगल वाली द वार
पर घूँसा मारा। अँगूठ क गाँठ सीधे द वार से टकराई। गाँठ के अंदर दो प थर भी आपस
म टकराए। और पीले प थर से अ त चंड आघात-ऊजा एक झ क म नकली। भयंकर
गजना के साथ सोलह अंगुल मोट प थर क द वार के परख चे उड़ गए। थोड़ी धूल उड़ी
और फर सलाख के बगल एक बड़ा छ सभी को दखा। गाँठ के अंदर पीले प थर का
रंग प रव तत होकर गाढ़ा भूरा हो गया। साहस बटोर रहे सै नक पुनः काँप गए।
क रया ने अँगूठ उतारकर कमर प ट् टका म वापस डाल लया और छ से र हो
गया। र हटा ही था क कान खड़े हो गए। ण गँवाए बना बगल हटा। एक भाला कमर
से दो अंगुल र से नकला।
क रया को थोड़ा अचंभा आ। भाला फकने वाला र था। इतनी र से, इस ती ता
से भाला फकना साधारण हाथ का काय नह था। अनुमान लगाया, कालयवन का
अंगर क थांबा होगा।
वह थांबा ही था। उसक जँघा के पास क धोती जली ई थी और गरदन पर भी
जले का काला ध बा था। दो थान पर व ुत का हार झेलने के प ात् भी थांबा अपनी
चेतना बनाए रखने म सफल आ था। उसने वयं को संभाला ही नह , श ु पर आ मण
भी कया। वह थोड़ा लँगड़ाते ए खड् ग लेकर क रया क ओर बढ़ रहा था। थांबा बीस
सै नक के साथ कारावास आया था। बारह मू छत थे, आठ बचे थे। वे आठ भी थांबा के
साथ खड् ग लेकर आगे बढ़ रहे थे।
क रया ने एक द घ ास छोड़ी और चार ओर भरपूर डाली। परकोटे के धनुधर
जावा के बाण से उलझे ए थे। कारागार म चार ओर मू छत सै नक बछे थे और बचे
ए सै नक भय से र ही बने ए थे। वे यु के लए श त सै नक नह थे, साधारण
हरी थे, ज ह ने वष से कसी बड़े संकट का सामना नह कया था। ऐसे लभ और
व च आ मण पर उनका ऐसा वहार सामा य था। पाँच थान पर जल रही अ न
पर माँस अभी भी भुन रहा था। सरी ओर थांबा के साथ आठ सै नक पूरी सतकता के
साथ उसक ओर बढ़ रहे थे।
क रया ने कोठरी के टू टे छ क ओर मुँह कर आदे श म त वर म कहा, “ ीमान्
शु ! आप अंदर ही बने रह।”
फर उसने अपनी कमर प ट् टका से एक अ य कपड़ क गाँठ वाली अँगूठ
नकाली। इस गाँठ म भी दो प थर बँधे थे। कतु आकार म थोड़े छोटे थे। उसने बाएँ हाथ
क चार अँगु लय म अँगूठ क भाँ त फँसाकर मुट्ठ बना ली और दाएँ हाथ म खड् ग
लेकर खड़ा हो गया।
थांबा रह-रहकर अपनी गरदन पर हाथ फेरता। व ुत ने वहाँ का थोड़ा माँस जला
दया था, जलन हो रही थी।
सै नक ने आते ही क रया के चार ओर घेरा बनाना ारंभ कर दया। कतु घेरा पूण
होने से पहले ही क रया एक सै नक क ओर लपका। सै नक को आशा नह थी। उसने
क रया क खड् ग को अपने सर के ऊपर रोका। क रया ने चपलता से बाएँ हाथ से
सै नक के पेट पर घूँसा मार दया। गाँठ के अंदर दो प थर आपस म टकराए। और सै नक
को लगा, उसके पेट पर भारी हथौड़ा चला दया गया हो। आघात से सै नक उड़ता आ
चार हाथ पीछे गरा। आंत रक अंग को चोट लगी थी। मुँह से र नकल आया। बना
उपचार पुनः उठने का ही नह था।
यह य दे खकर थांबा स हत अ य सै नक अपने थान पर ण भर के लए ठहर
से गए। क रया ने अवसर गँवाए बना अपनी खड् ग व च ढं ग से घुमाकर सरे सै नक
क ओर चलाई। सै नक ने कमर पर आ रहा हार रोका। कतु क रया का हार रोकते ही
उसक खड् ग हाथ से छू टकर गर गई। सै नक को संभलने का अवसर नह मला। क रया
का घूँसा पड़ा और वह भी उड़ते ए पीछे गरा।
इसके उपरांत क रया का नह । तीसरे सै नक पर भी त काल हार कया। उसक
भी खड् ग छू ट और घूँसा खाकर वह भी उड़ता आ गरा।
चौथे और पाँचव सै नक के साथ भी यही आ। थांबा क तेज और अनुभवी
को कुछ समझ आया। क रया एक व श कोण से खड् ग का हार कर रहा था। खड् ग
हाथ से य छू ट रही है, इसका सही कारण नह समझ पाया। कतु व श कोण और
खड् ग छू टने का संबंध नकाल लया।
थांबा ने त काल नणय लया। बचे-खुचे तीन सै नक को कुछ संकेत कया और
वयं बढ़कर क रया पर आ मण कर दया। अभी तक आ ामक रहे क रया को
सुर ा मक होना पड़ा। थांबा पूरी ग त से आ मण कर रहा था। क रया को व श कोण
बनाने का अवसर ही नह मल पाया।
भारी-भरकम शरीर वाले थांबा के हार म संवेग ब त अ धक था। क रया को
बीच-बीच म दोन हाथ लगाने पड़ रहे थे। जँघा पर घाव खाने के बाद भी थांबा क फुत
दे खने यो य थी।
नरंतर चल रहे आ मण और बचाव के बीच क रया को घूँसा मारने का एक
अवसर मल गया। पूरी श से चलाया घूँसा थांबा क छाती से टकराने ही वाला था क
क रया ने गुनी ती ता से हाथ वापस ख च लया। हाथ ख चने म ण भर भी वलंब
होता, तो बगल से चलाया भाला उसके हाथ को छे द डालता।
दो सै नक बा तथा एक सै नक दा ओर भाला लेकर इसी ती ा म थे।
क रया आठ पग पीछे होकर खड़ा आ। समझ गया क प र थ त अब उतनी
सरल नह रही। कारागार के संकट क सूचना संदेश वाहक प य के मा यम से भेज द
गई होगी। संभव है, समीपवत सै य छावनी से आध घड़ी म सहायता प ँच जाए। अ धक
समय नह था। शी ता करनी होगी।
क रया छ के समीप खड़ा था। द वार के टू टे प थर पैर के पास बखरे पड़े थे।
उसने दो हथेली ास का एक बड़ा प थर उठाया। सै नक भाले आगे कर तैयार हो गए।
सभी सोचे— प थर फककर मारेगा? या मूखता है।
क रया ने अपने मुँह के आगे प थर ऊपर उछाला। अ धकतम ऊँचाई ा त कर जब
प थर पुनः लौटकर मुँह के सामने आया, क रया ने कोण का अनुमान लगाते ए प थर
पर घूँसा चलाया।
भ म्…।
गाँठ के अंदर से आघात-ऊजा नकली और प थर छू टे तीर क भाँ त थांबा क
छाती क ओर बढ़ा। थांबा को आते ए प थर क झलक मा दखी। प थर उसक
छाती से टकराया। तेज आघात से पीछे उछलकर गरा। पस लय पर ऐसी भीषण चोट
लगी थी क साँस क गई। मुँह खोलकर साँस ख चने के लए छटपटा उठा।
एक सै नक दौड़कर थांबा को सँभालने लगा। अ य दो ने भाला फककर खड् ग
ख च ली। क रया उन पर लपका। चार-पाँच ण का संघष आ। दोन के खड् ग छू टे
और बारी-बारी से उनके शरीर उड़कर पीछे गरे। क रया से संघष करने वाला अब कोई
नह बचा।
क रया के पुकारने पर शु छ से बाहर नकला। अधेड़ आयु, आधे केश सफेद
और शरीर कृशकाय। शु थोड़ा भयभीत था। कारावास से नकलने क ती इ छा थी,
कतु पुनः पकड़े जाने का भय भी सता रहा था। य द पकड़ा गया, तो उसक और उसक
पु ी का जीवन, मृ यु समान बना दया जाएगा।
क रया और शु दोन एक- सरे को पहली बार दे ख रहे थे। अड़तीस वष य क रया
अपनी आयु से कम द खता था और शु अपनी उ से दस वष अ धक। क रया के मुख
पर न तता और आ म व ास दे खकर शु को कुछ बल मला।
क रया ने मुड़कर थांबा को दे खा। थांबा अभी भी क म था। य द उसने कवच
पहना होता, तो इतनी दयनीय अव था म नह होता।
क रया शु के साथ कारावास के मु य ार क ओर बढ़ा। मु य ार के कवाड़
ब त भारी थे। धातु के ढाँचे म मढ़े लकड़ी के इन मोटे और भारी कवाड़ को खोलने-बंद
करने के लए यां क व था थी।
मोटे र स , घर नय और उ ोलक के मेल से बनी यां क- णाली को ार के
ठ क बगल बने एक छोटे क से संचा लत कया जाता था। संचालन क के बाहर खड़े
हरी ने क रया को अपनी ओर आते दे खा, तो काँपते ए खड् ग नकालकर सामना करने
के लए तुत हो गया। मन-ही-मन जानता था, या प रणाम होगा। फर भी साहस
दखा रहा था।
क रया के समीप प ँचने पर हरी भागकर क म घुस गया और अंदर से ार बंद
कर लया।
भ म्…भ म्…भ म्…।
भ म्…भ म्…भ म्…। ार पर क रया का घूँसा नरंतर पड़ता रहा।
अँगूठ क गाँठ म बंधे प थर क आघात-ऊजा लकड़ी का ार कतनी दे र सहन
कर पाता, आठ-दस हार म टू ट गया।
क रया क म घुसा नह , ती ा करता रहा। कुछ दे र म भयभीत हरी बाहर
नकला कतु क रया ने उस पर आ मण करने का कोई भाव नह दखाया। तेज चल
रही साँस के साथ हरी कुछ ण क रया पर टकटक लगाए रखा और फर भाग खड़ा
आ।
क रया संचालन क म घुसा। अंदर दो उ का का काश था। क के म य म
रथ के प हये जैसा एक च था पत था। उसक धुरी से लपट मोट र सयाँ क म ही
कई लकड़ी क घर नय से होते ए एक छ म समाकर भू मगत हो गई थ ।
क रया ने श लगाकर च घुमाने का यास कया। च त नक-सा घूमा। अ धक
बल क आव यकता थी। जस च को चार मलकर घुमाते थे, उसे वह अकेले
घुमाने का यास कर रहा था।
क रया ने ंकार भर इस बार पूरी श लगाई। च और घूमा। शु ने भी सहायता
के लए च पर हाथ लगाया। दस-बारह बार के यास म च का एक च कर पूरा
आ। मु य ार के कपाट एक के आर-पार जाने यो य खुल गए थे।
क रया का, तब यान दया क थोड़े से शारी रक प र म से ही शु हाँफ गया
और मुँह से थोड़ा र भी नकल आया। क रया ने चता से शु क ओर दे खा।
“ च तत न हो, पुराना रोग है,” शु सामा य ढं ग से बोला।
दोन ने शी ता से संचालन क छोड़ा और मु य ार के थोड़े खुले कपाट से
बाहर नकल गए।
परकोटे पर जावा के बाण से बचने का यास कर रहे धनुधर ने दो काले साय को
कारावास से बाहर नकलते दे खा। वे उन पर बाण चलाना चाहते थे, कतु जावा के बाण
ने अवसर नह दया।
दोन साये कारावास से र अँधेरे म समाते चले गए। अब बाण भी क गए।
अगले दन ातः जब सूय क पीली करण वातावरण म काश भरना ारंभ कर रही थ ,
असुर दे श के एक वन म द ण क ओर मवार से वृ के प ी उड़ते जा रहे थे।
एक छोटा और पतला रथ त ू ग त से भागा जा रहा था। इतना छोटा और पतला
रथ साधारणतः दे खने म नह मलता। तीत होता था, सोच समझकर वशेष प से वन
म दौड़ाने के लए ही बनाया गया था। रथ के प हये भी चौड़े थे, ता क क चड़यु थान
पर सु वधा रहे।
पछले तीन घड़ी से नरंतर दौड़ रहे रथ के घोड़ के मुँह से झाग नकलने लगा था।
क रया रथ हाँक रहा था और शु रथ के दोन छोर को ढ़ता से पकड़कर संतु लत खड़े
होने का यास कर रहा था। पैर के पास बने खाँच म ढे र अ -श रखे ए थे।
थांबा के नेतृ व म बीस घुड़सवार उस रथ के पीछे लगे ए थे। इस कार भागना
क रया क योजना म नह था। वह कारागार से नकलने के प ात् एक नधा रत थान
पर रा बताने के बाद ातः दन के उजाले म आगे बढ़ता, य क अमाव या क रा
माग दे खना अ यंत कर था और य द काश के लए उ काएँ जलानी पड़ , तो खोजी-
दल को उ ह ढूँ ढ़ने म और अ धक सु वधा मल जाएगी।
क रया अपनी योजनानुसार, शु के साथ वन के एक नधा रत थान पर व ाम
कर रहा था। यहाँ तक का माग सीधा और सरल था। अँधेरे म भी कोई वशेष सम या
नह ई थी। इस थान तक प ँचने म रथ को तीन घड़ी लगा था। क रया सोच रहा था
क वह कारावास और सै य छाव नय से पया त सुर त री पर है। कतु व ाम करते
ए घड़ी भर भी नह आ था क खोजी-दल क उ काएँ द खना ारंभ हो ग । इतनी
व रत कायवाही क उसे आशा नह थी। उसके रथ- च को खोजते ए खोजी-दल
समीप आते जा रहे थे। क रया को अँधेरे म ही भागना पड़ा।
पछले तीन घड़ी से वह उ ह छकाता आ रहा था। अब जब ातः के काश म उसने
खोजी-दल के नायक का मुख दे खा, तो घोर आ य आ। उसका अनुमान था क घातक
हार खाने के बाद थांबा दस दन तक श या पर ही पड़ा रहेगा, कतु यहाँ वह अपने
घाव पर प ट् टयाँ बाँधकर और सै य कवच धारण कर रा से ही उसका पीछा कर रहा
है।
क रया क अगल-बगल के भू-भाग पर ब त सू मता से पड़ रही थी। उसे
शंका हो रही थी, छकाने के फेर म कह वह माग न भटक गया हो। सूय नकलने से दशा
बोध म कुछ सरलता ई। तभी दा ओर एक पोखरा दखा। रथ उसी दशा म मोड़ दया।
पूव नयो जत भू- च मल गया था। पोखरे के बगल से होता आ द ण क ओर बढ़ा।
वन अब सघन होता जा रहा था। वृ के ऊपरी सरे आपस म गुँथे ए-से थे। आगे
बा ओर चार वृ के तन के कुछ भाग से छाल उतार ली गई थ ।
क रया ने रथ क ग त थोड़ी धीमी कर ली। पीछा कर रहे सै नक का उ साह बढ़
गया। उ ह ने अपने घोड़े और तेज कर दए। थांबा कुछ शं कत आ। उसने ग त नह
बढ़ाई। उसके अगल-बगल से अ य घुड़सवार ग त बढ़ाते ए आगे नकल गए।
क रया ने कुछ वृ गने। आगे के एक वृ पर टक । फसलते ए तने के
ऊपरी भाग पर गई। फर नीचे से एक छोट कु हाड़ी उठाई और तैयार हो गया।
रथ जैसे ही उस वृ के समीप प ँचा, क रया ने ल य साधकर कु हाड़ी ऊपरी भाग
पर फक मारा। कु हाड़ी तने से लपट र सी को काटकर तने म ही धँस गई।
थांबा को कुछ सरसराहट सुनाई पड़ी। अगले ण बा ओर से एक कटे वृ का
तना, कसी लटके ए हथौड़े क भाँ त झूलता आ आया और आगे के चार सै नक के
बगल से टकराया। मोटे तने का ध का ब त तेज था। चार घुड़सवार घोड़े स हत
उछलकर दा ओर के वृ से टकराए।
“जाल…” थांबा जोर से च लाया और घोड़े क व गा ख चकर घोड़े को त काल
रोक लया। अ य सै नक ने भी घोड़े रोक लए।
हार खाए चार सै नक म से दो सै नक मृत हो गए। वृ से टकराकर उनक
खोप ड़याँ फट गई थ । अ य दो क भी फट थी, कतु जी वत थे।
भागते रथ और सै नक दल के बीच तना अभी भी झूल रहा था। चार-पाँच दोलन के
प ात् बीच म थर हो गया।
थांबा स हत शेष सोलह सै नक का र ोध से खौल उठा। इस खोजी-दल म
सभी राजक य सै नक थे। यु म पूण श त और ऊँचे दं भ वाले। एक सै नक ने आगे
बढ़कर तने को लटकाने वाली र सी काट द । तना गरकर भू म पर लुढ़क गया। खोजी-
दल पुनः पीछा करने लगा।
थांबा सतक था, कतु अ य सै नक ोध म अपश द बके जा रहे थे। क रया के रथ
और खोजी-दल के बीच क री बढ़ गई थी। सै नक ने घोड़ को ऐड़ लगा-लगाकर पूरी
ग त पर प ँचा दया। कुछ दे र बाद क रया के रथ क ग त पुनः कम होने लगी। इस बार
सै नक ने भी ग त कम कर द और सतकता से आस-पास के वृ पर दौड़ाने लगे।
क रया ने पुनः एक वृ पर कु हाड़ी फक कर मारी। र सी बँधे दो भारी प थर बा और
दा ओर के वृ से गरे। प थर और र सयाँ हरे रंग म पुती थ । सै नक ने त काल घोड़े
रोक लए। क रया ने भी रथ क ग त मंद कर द ।
दो प थर गरने के अ त र कह कोई प रवतन नह आ। क रया ने रथ पूरी तरह
रोक लया और पीछे मुड़कर इधर-उधर के वृ को दे खने लगा, जैस,े ढूँ ढ़ रहा हो क
जाल खुला य नह ।
उसक हड़बड़ाहट दे खकर एक सै नक ने च लाकर ंग कसा— “ या आ?
जाल बाँधने म कोई ु ट रह गई…हा!…हा!…हा!…”
क रया ने त काल रथ हाँक दया। रथ को ग त पकड़ने म समय लगता। सै नक के
लए यही अवसर था। अपने-अपने घोड़ को जोरदार ऐड़ लगाई और ंकार भरते ए रथ
क ओर दौड़ पड़े। कइय ने भाले भी तान लए। थांबा सबसे पीछे रह गया।
उसने भी जोरदार ऐड़ लगाई और घोड़े को दौड़ा दया, पर दस पग बढ़ते ही, जैसे
ही उसके घोड़े ने ग त पाई, आँख व मय से फट ग ।
आगे जा रहे सै नक न जाने कैसे खंड-खंड कटकर गरने लगे। उनके घोड़े तक कट
गए। पीछे वाले सै नक ने अपने घोड़ को रोकने का यास कया, कतु दे र हो चुक थी।
वे भी घोड़े स हत ै तज से खंड-खंड हो गए।
थांबा ने व गा ख चने म सारी श लगा द । घोड़े का मुँह खचकर पीछे मुड़ गया
और लड़खड़ाकर थांबा स हत गरा। फर चार पग तक घसटता चला गया।
कुछ भान होने से पूव ही सारे सै नक तीन ण म कटकर गर गए और भू म ऐसे
लाल ई, मानो र से भरा अ त वशाल गु बारा फटा हो।
र से सनी भू म पर असहाय से पड़े थांबा को हवा म अ यंत महीन लाल रेखाएँ
दखाई पड़ । छोट -बड़ी र रेखाएँ एक- सरे से बारह अंगुल क री पर थ । ब त
अ धक क त करने पर दो वृ के बीच पारदश महीन धागे खचे ए दखे।
उधर क रया का रथ र होता चला गया।
मुं ा का ठग
मुं ा क राजधानी से बीस कोस र एक बड़ा नगर था। व -प रधान तथा का -सामान
के ापार के लए स इस नगर म जंबू प के व भ रा य से आए ापा रय का
जमावड़ा लगा रहता था। कतु यु क आशंका को दे खते ए अथला क भाँ त यहाँ भी
य- व य मंदा हो गया था। बाहरी य क सं या भी कम दख रही थी।
यौधेय से मलने के पाँच दन प ात् रक यहाँ प ँचा था। दोपहर क दो घड़ी बीत
चुक थी। वह कान पर घूम-घूमकर का - श पय के वषय म पूछ रहा था। नगर के
जस उ री े म वह अभी उप थत था, वहाँ क अ धकांश कान अमाव या के
कारण बंद थ । कुछ ने उसे द णी भाग जाने क सलाह द ।
इधर-उधर दे खते ए वह द णी े जाने लगा, तभी एक ने पीछे से
पुकारा।
“ ीमान्!”
रक ठहरकर पीछे मुड़ा। पुकारने वाला अपने व -अलंकार से ापारी जान पड़ा।
अपनी पगड़ी ठ क करते ए वह रक के समीप प ँचा।
“ ीमान्! आप का श पी ढूँ ढ़ रहे ह?”
“हाँ! या तुम हो?”
“नह ीमान्! मेरे भाई-बंधु यह काय करते ह। लोग ने आपको द ण जाने का
सुझाव दया है, कतु वहाँ भी कान बंद ह। य द आपको अ त आव यक है, तो म अपने
बंधु का घर दखा सकता ँ। आप वहाँ चलकर य- व य कर सकते ह,” ापारी ने
पूण वन ता से बताया।
“ठ क है, ले चलो।” रक ने आभार करना नह सीखा था।
ापारी ने एक बार पुनः अपनी चोर रक के हाथ-पैर के वण-कुंडल पर
डाली। उसक आँख म एक चमक थी। रक को माग दखाते ए वह नगर के बाहर ले
जाने लगा। बीच-बीच म कुछ वातालाप भी कर रहा था।
“ ीमान् कह बाहर के जान पड़ते ह।”
“हाँ! र से आया ँ।”
“ कसी अ य काय से यहाँ आए ह? अथवा मा का साम ी के लए?”
“सुना था, मुं ा और काजी दे श म का - श पय क भरमार है। काजी दे श र
है, अतः मुं ा चला आया।”
“सुना तो ीमान् ने ठ क है, कतु यु के ास से अ धकांश असुर का - श पी
मुं ा छोड़कर अपने दे श लौट गए।”
“इसी नगर से पलायन आ है या पूरे मुं ा से?”
“ आ तो सभी नगर से है, कतु कुछ-न-कुछ बचे ही रहते ह। द ण म मका नाम
का एक गाँव है, जसके आस-पास का ब त बड़ा भाग, कुछ वष पूव स ाट ने पूण प
से असुर को स प दया था। वहाँ असुर क सं या खूब है और वहाँ का येक असुर
का - श पी है।”
“यह मका गाँव कतनी र है?”
“कभी गया नह । सुना है, घोड़ से पाँच-छह दन म प ँचा जा सकता है। कतु
ीमान् को उतनी र जाने क आव यकता नह पड़ेगी। आपका काय यह मेरे बंधु कर
दगे।”
ापारी बातूनी था। बात करते-करते नगर से र व य छोर तक ले गया। आगे वृ
के बीच कुछ झोपड़े दख रहे थे। वहाँ प ँचने पर झोपड़े के बाहर एक साथ बैठे ए दस-
बारह सै नक मले।
ापारी रक क ओर थोड़ा झुककर धीरे से बोला।
“ ीमान्! अपना ापार-प नका लए।”
“ ापार-प …?” रक ने आ य दखाया।
“आप यह ठह रए ीमान्!” कहकर ापारी सै नक के पास गया और अ यंत
मंद वर म कुछ बात क ।
घनी मूँछ वाला एक सै नक उठा और पूरे रौब म आदे श दया, “अपना ापार-प
तुत करो।”
रक खीझ गया। च लाकर पूछा, “कैसा ापार-प ?” फर ापारी को घूरा।
ापारी दौड़कर रक के पास प ँचा। समझाते ए बोला, “ ीमान्! रा य म आने
वाले येक वदे शी ापारी को सीमा- वेश के समय अ धकारी ारा ापार-प दान
कया जाता है। उसके बना वदे शी ापारी के लए रा य म ापार करना संभव नह ।”
“मेरे पास ऐसा कोई प नह ।” रक ने लापरवाह ढं ग से कहा।
“तुम अव य ही घुसपै ठए होगे।” मूँछ वाला सै नक च लाया और अपने सा थय
को संकेत कया।
अ य सै नक ने रक के चार ओर घेरा बना लया।
रक ने ापारी क ओर आँख तरेरी, “तुम मुझे अपने का - श पी बंधु के पास
ले जा रहे थे। यही तु हारे बंधु ह?”
“नह ीमान्! ापारी पुनः धीमे वर म बोला, “मेरे बंधु का गाँव तो आगे है। ये
नगर के राजक य सै नक ह। दै नक चौकसी के लए इधर आए ह गे। आप त नक
ठह रए। म कुछ थ त संभालता ँ।”
ापारी सै नक के पास पुनः गया और खुसर-फुसर करने लगा। उनक खुसर-कुसर
से रक को चढ़न होने लगी।
कुछ दे र म वह लौटा और रक के कान के पास धीरे से बताया, “ ीमान्! बड़ा ढ ठ
और लोभी सै नक है। कह रहा है, आपके हाथ-पैर के वण कुंडल चा हए, अ यथा
घुसपै ठए का आरोप लगाकर कारागार म डाल दे गा।”
रक क भौह पूरी तरह व । बोला, “पूरा जंबू प चोर और द यु से भरा
आ है।” इस बार रक ने जस से ापारी को दे खा था, वह अंदर तक सहम गया।
“कारागार म जाकर ही इस घुसपै ठए क हेकड़ी नकलेगी,” सै नक ने पुनः रौब
दखाने का यास कया। रक ने उसक ओर मोड़ी। उस पर भी ापारी जैसा भाव
पड़ा। ने म ू रता का यह भाव उस सै नक ने पहले कभी नह दे खा था।
वृ क प याँ खड़खड़ा उठ । घास-फूस, धूल, तनके सब उड़ने लगे। लगा छोटा-
सा बवंडर उ प हो गया।
रक का शरीर आगे क ओर थोड़ा तरछा आ। पैर के नीचे ह के व फोट क
व न ई और अगले ही पल दस पग र खड़े रौब वाले सै नक के ठ क सामने कट
आ। दोन के मुख के बीच मा आठ अंगुल क री थी। सै नक क आँख व मय और
भय से फट ग । शरीर म झुरझुरी दौड़ गई। दन के उजाले म अंधकार लगने लगा। ण
भर के लए लगा, समय ठहर गया। फर पेट म ती पीड़ा उठ । सर झुकाकर नीचे दे खा,
तो घुसपै ठए क हथेली कटार क भाँ त उसके पेट म घुसी ई थी।
रक ने पेट चीरते ए बा ओर से हथेली नकाल ली। सै नक पीठ के बल गरा।
ापारी स हत घेरा बनाए सै नक को जैसे प ाघात हो गया। भय से शरीर जहाँ
खड़ा था, वह जड़ हो गया।
धूल भरे वातावरण म रक के पैर के नीचे कई बार ह के धमाके ए। येक धमाके
के बाद एक शरीर गरता।
अं तम सै नक का पेट चीरकर रक धीरे-धीरे चलता आ ापारी के पास प ँचा।
ापारी का शरीर भयंकर प से काँप रहा था। रक के प ँचते ही लड़खड़ाकर गर
पड़ा। उठा नह । गरे ए ही घसट- घसटकर पीछे हटने का यास करने लगा।
“यह सारी योजना तु हारी थी?” रक ने पूछा। रक का वर शांत था, कतु ने म
वही हसकता बनी ई थी।
ठग ापारी के काँपते ह ठ से वर फूटना असंभव था। उसक फट नरंतर
रक क र -रं जत हथेली पर टक ई थी।
ठग ने दे खा, मृ यु बैठ रही है और वह लाल हथेली उसके दय का चुंबन करने आ
रही है। लाल हथेली चुंबन कर दय म ही समाती चली गई। पीड़ा का असहनीय वार
उठा। खुले ने के आगे अंधकार क स ा छा गई।
का - श पी बदा
पीठ पर सामान लादे रक मुं ा के एक बड़े नगर के बाहर प ँचा। अब तक पाँच नगर म
ठहरता आ यहाँ प ँचा था।
पीठ पर लदे सामान को दे खकर तीत होता था— लक ड़य के गट् ठर को कपड़े से
लपेटकर बाँधा गया हो।
वह एक क ची सड़क पर न तता के साथ चलता आ जा रहा था। यह क चा
माग जहाँ समा त आ वहाँ बीस-प चीस फूस क छत वाले घर थे। सभी घर आगे-पीछे ,
एक- सरे से अ नय मत री पर टे ढ़े-मेढ़े बसे ए थे। सबसे पहले पड़ने वाले घर के बाहर
एक ी बैठकर सरकंड से ड लया बना रही थी। रक ने उससे पूछा, “ बदा यह रहता
है?”
ी ने सर उठाकर दे खा। थोड़ा च क । कसी वदे शी को इस थान पर पहली बार
दे खा था। सोचा— ापारी होगा। कतु यहाँ या कर रहा है?…और इसका गंजा सर
कतना चमक रहा है!
ी कुछ बोली नह , बस ठु ड्डी से एक घर क ओर संकेत कया। जधर संकेत
कया था, उधर तीन घर थे। रक समझा नह । फर एक घर के ार पर लक ड़य का
कटा-छँ टा ढे र दखा। अब पूछने क आव यकता नह थी। उस घर क ओर चला गया।
ार पर खड़े होकर पुकारा— “ बदा!”
अंदर से ऊँ-आँ सुनाई पड़ा। लगा कोई पहरी क न द ले रहा है। इस बार रक ने
जोर से पुकारा। कुछ दे र म पतीस-चालीस वष य एक अधनंगा आँख मलता आ बाहर
नकला।
रक को दे खकर कुछ वशेष त या नह क । वह नगर म आता-जाता रहता था।
ऐसे कई वदे शी ापा रय को दे ख चुका था।
“काठ का कुछ काय करवाना है,” रक बोला।
“अं?…पहले ही ब त काय पड़ा है, पू णमा के बाद आना।” कहकर बदा घर म
वापस जाने को आ।
“ठहरो!” रक ने आदे शा मक वर म रोका। फर अपनी कमर-प ट् टका से वण के
कुछ टु कड़े नकालकर दखाए।
बदा के ने म चमक दौड़ गई। इतने वण से वष भर काय करने क आव यकता
नह पड़ेगी। नगर-नगर घूमो और म दरा पीकर पड़े रहो।
अपना उतावलापन दबाकर बोला, “काय तो ब त है मेरे पास… कतु सहायता के
लए कर रहा … ँ अंदर आओ।”
दोन घर के अंदर गए। अंदर क म, येक कोने पर लकड़ी क खुरचन का ढे र
लगा आ था।
“अ धकाँश काय अंदर ही करता ँ। थान कम पड़ता था, अतः खाट हटा द । भू म
पर ही बैठना पड़ेगा,” कहकर बदा सरे क म चला गया।
रक ने अपनी पीठ पर लदा सामान उतारा और भू म पर पालथी मारकर बैठ गया।
बदा अंदर से, मट् ट के एक लोटे म खाँड़ का मीठा रस ले आया। रक के सामने
रखा और वयं भी भू म पर बैठ गया। फर पूछा, “ या बनवाना है?”
रक ने कपड़ के कुछ टु कड़े नकाले। सभी टु कड़ को फैलाया। सभी म कल-पुज
के भ - भ च बने ए थे। दो च छाँटकर अलग कया और शेष लपेटकर अपने
पास रख लया। छाँटे ए दोन च बदा को पकड़ाया।
बदा ने यान से आँख गड़ाकर दे खा। छोट -बड़ी घर नयाँ एवं टे ढ़ -मेढ़ आकृ तयाँ
थ । आकार क माप भी लखी ई थी।
बदा ने च से हटाई और रक क ओर दे खते ए कया, “यं कार हो?”
रक ने बना सोचे-समझे हामी म सर हलाया।
“ कस यं के पुज ह?” बदा ने पुनः कया।
रक ने एक ण सोचा, फर जो मुँह म आया, बोल दया, “रथ का।”
“रथ का?” बदा को आ य आ। ऐसा कौन-सा रथ है, जसम इतने छोटे पुज
लगते ह। कतु पूछा नह । आँख म मलने वाले वण क चमक च ध रही थी।
“सू म और क ठन काय है,” बदा बुदबुदाया।
“नगर म मने पूछा था। सू म काय के लए सभी ने तु हारा ही नाम सुझाया,” रक ने
अपने भावहीन मुख से थोड़ी शंसा फक ।
बदा त काल फूल गया। गव से बोला, “मेरे अ त र यहाँ कर ही कौन सकता है!
दो वष पहले तक म भी नगर म ही रहता था, कतु मेरी ी इतना लेश करती थी, क
सब छोड़कर यहाँ आ गया। पर मेरे काय को लोग आज भी पूछते ह। मेरी सू मता क
बराबरी असुर का े श पी भी नह कर सकता। तीन दन म पूण करके दे ँ गा।”
“तुम बनाओ, म यह ठह ँ गा,” रक बोला।
बदा च का, “यहाँ कहाँ?…इसी घर म?”
“हाँ!”
बदा दो ण चुप रहा। फर सामा य ढं ग से बोला, “हाँ! हाँ! पूरा घर खाली पड़ा
रहता है। नःसंकोच ठहर सकते हो, कतु भोजन क व था वयं करनी पड़ेगी। म
म दरा और थोड़े-ब त फल से ही पेट भर लेता …
ँ और अभी तो म दरा भी समा त हो
रही है।”
“उसक चता मुझ पर छोड़ो, तुम काय पर यान लगाओ,” रक बोला।
लंबी और सुडौल अँगु लय वाले हाथ म थमी कूची, सामने च पर बड़ी सरलता
से फसल रही थी।
च एक युवती के मुख का था। बा ओर से बनाया गया था, जो आकाश क ओर
थोड़ा सर उठाकर सूय को दे ख रही थी। उसके खुले केश कसी झरने क भाँ त पीछे
लटक रहे थे। वे मा कहने के लए ही झरने समान नह थे, अ पतु कूची थामने वाले
हाथ ने वा तव म नीचे लटकते केश को जल- पात म प रव तत कर दया था। च के
केश काले नह , सफेद थे, जो नीचे गरकर धुँध म समा गए थे। उस धुँध से अ यंत छोटे
ेत कपोत का झुंड उड़ता आ बाहर आ रहा था।
“ठ क से बैठ, हल-डु ल मत। बस तेरे कान उतार लू।ँ ठु ड्डी म भी थोड़ा सुधार
करना है।” कूची से च कारी करने वाली मुं ा क राजकुमारी नमदा थी।
“गदन ःख रही, अब उठती ।ँ ”
“नह !” नमदा डाँटते ए जोर से बोली, “बैठ रह! अगली बार तुझे आसन से ही
बाँध ँ गी।”
“वाह! एक तो सहायता करो, ऊपर से धमक भी खाओ। अब तो उठ ही जाऊँगी।”
कहकर घड़ी भर से मू तवत् बैठ युवती उठने लगी।
“नह …!” नमदा दौड़कर आई। युवती को बठाते ए वनती क , “मेरी यारी
सखी, मीरा! ठहर जा। म तो प रहास कर रही थी। थोड़ा क और सहन कर ले। फर
तेरी सुंदरता इस च म अमर हो जाएगी।”
“ ँह!” मीरा ने मुँह बनाया, “चापलूसी का कोई भाव नह पड़ेगा मुझ पर। य द
मुझे स ही करना है, तो अपना कणफूल उपहार म दे दो।”
नमदा ने आँख फैलाकर मीरा को दे खा। उसक लंबी बरौ नयाँ भ ह को छू ग ।
आ य से बोली— “ ा! तेरी पहले से ही मेरे कणफूल पर थी।”
“दे रही हो? या उठकर जाऊँ?” मीरा ढठाई से बोली और सरी ओर मुँह फेर
लया।
नमदा ने मीरा के हाथ पर जोर से चकोट काट — “ठ क है, लो भनी! दे ँ गी। अब
चुपचाप बैठ जा,” कहकर नमदा च क ओर चली गई।
मीरा ने अपना हाथ रगड़ा— “ई.. कतनी नदयी हो तुम…लाल पड़ गया।”
मीरा पहले जैसी मु ा बनाकर बैठ गई। नमदा को मु ा पूरी तरह ठ क नह लगी।
थोड़ा सुधार करवाया, “मुँह त नक नीचे गराओ…और मु कराओ मत। लो भनी!
डा कनी!…अपनी ही सखी के आभूषण पर डाका डाल रही है।”
मीरा धीरे से खी! खी! करके हँसी।
इसके प ात् मीरा चुपचाप बैठ रही और नमदा बीच-बीच म कुछ-न-कुछ बोलते
ए उसका च उतारती रही।
कुछ दे र बाद ार पर कसी के कट होने क आहट ई। नमदा ने गरदन मोड़कर
दे खा और मीरा ने बस पुतली घुमाई। य था।
नमदा ने कोई त या नह द और पुनः च म लग गई। मीरा ने भी बस ह क
मु कान द ।
शांत च य धीरे-धीरे चलता आ मीरा के स मुख प ँचा। मीरा ने बना हले-डु ले
भ ह से संकेत कर पूछा।
य ने दायाँ हाथ उठाया और झटककर सीधा कया। मीरा को यह व च या
समझ नह आई। भ ह से पुनः कया।
य को वां छत सफलता नह मली थी। खाँसकर गला साफ कया, फर कंध को
थोड़ा हला-डु लाकर वही या पुनः करने के लए तुत हो गया।
हाथ उठाकर बारा झटका। हथेली पर पीला कनेर पु प कट आ। मीरा ने आँख
फैलाकर आ य कट कया। य ने पु प मीरा के बाएँ कान के ऊपर ख स दया। फर
बारा झटककर सरा पु प कट कया और उसे दाएँ कान के ऊपर लगा दया।
मीरा हली नह , कतु मु कान कान तक फैल गई।
नमदा भी यह सब दे ख रही थी। बोली, “पुनः कोई नई कलाकारी सीख कर आए
हो?”
य ने अपनी ब हन क ओर ेम से दे खा और हामी का सर हलाया।
नमदा क कूची पुनः चलने लगी। तरछ मु कान के साथ बोली, “चलो अ छा है।
यह डा कनी कणफूल माँग रही थी। अब जब तुमने ही उसे कणफूल दे दया, तो मेरा पड
छू टा।”
मीरा झट से खड़ी ई। ोध दखाते ए नमदा क ओर बढ़ , “झूठ ! अपने वचन
से पीछे हट रही है, इसने कब मुझे कणफूल दए?”
नमदा ने तापूण मु कान दखाई, “तेरे कान के ऊपर वण वण का फूल लगा है,
इसे कणफूल नह , तो और या कहगे?”
“ओहो! तो हमारी राजकुमारी जी अपनी ही सखी से श द का खेल खेलगी…।”
अब मीरा ने भी तापूण मु कान चढ़ाई, “कुछ दन ठहर, जैसे ही तेरी भाभी बनूँगी,
पछले कई वष का गन- गनकर तशोध लूँगी।”
“ओहो! महारानी जी को दे खो। अभी तक व लोक म जी रही ह। य ! कसी
दन इसे वन म ले जाकर छोड़ आ। इस वानरी को वह उ चत थान मलेगा।” नमदा
उठते ए बोली। च पूरा हो गया था।
इसके बाद दोन के बीच न क-झ क होती रही। दोन का झगड़ा य के लए नई
बात नह थी। वह यानपूवक च दे खने लगा।
तभी ार पर कसी के खाँसने क आवाज ई। मीरा क प रचा रका थी। अब तक
तीन बार बुलाने आ चुक थी।
“अभी जा रही ँ, कतु झगड़ा समा त नह आ है। लौटकर पूरा क ँ गी,” मीरा
जाते ए बोली।
“अरी वानरी! अपने कणफूल तो दे ती जा,” नमदा ने पीछे से ंग कया।
“चुप! इसे मेरे य ने दया है।” मीरा मुड़ी नह । कान से कनेर उतार कर हाथ म
रख लया और प रचा रका के साथ चली गई।
“ च सुंदर बना है।” य च पर आँख गड़ाकर शंसा मक वर म बोला।
“हाँ! मीरा का प अ तीय है। उसक पूरी सुंदरता उतार नह पाई।” कहकर
नमदा ने य का भाव जानने के लए उसक ओर दे खा।
“म मीरा क नह , च क बात कह रहा ँ।” च से हटाए बना य बोला।
“उसी का च है, तो सुंदर बनेगा ही।”
“मीरा तो सुंदरी है ही। कतु मुझे धुँध से नकलकर उड़ते ए कपोत का झुंड ब त
भा रहा है। ऐसी व छं दता, मु गगन..आ..हा! इसके अ त र च क पृ भू म पर
कुछ मेघ भी बना दो, जससे मीरा का मुख मेघ के बीच से उदय होता तीत हो। च
क भ ता बढ़ जाएगी।”
“अ छा सुझाव है। कल मीरा को पुनः बुलाकर बैठा ँ गी। फर तुम वयं ही उसके
च को भ ता दान करना। सुबह से कूची चलाते-चलाते हाथ ःख गए। अभी तो
त नक व ाम क ँ गी।”
“य द इतनी च कारी आती, तो म दन-रात वन म ही बैठकर, वहाँ का च
उतारता रहता।” य सहसा उ साही हो गया, “नमदा! या तूने नद म कल-कल बहते
जल क छोट लहर म पड़ने वाली सू म मरोड़ को दे खा है। वे ण भर म बनती ह और
अगले ही ण न हो जाती ह। कृ त नमाण और वनाश कतने सू म अंतराल पर
करती है! तीत होता है, दोन साथ-साथ चलते ह। प य के पंख का रंग-संयोजन
कतना उ कृ होता है! सब-कुछ दे खकर लगता है, जैसे यह संसार वधाता का बनाया
आ एक जी वत च हो।”
सुनकर नमदा को अ छा लगा।
“चाचा सेन जत ने अपना कला- ेमी दय तुझे भी स प दया।” कहते ए वह
पयक पर गई और कमर के पीछे त कये से टे क लेकर बैठ गई।
य भी पयक क ओर बढ़ा और नमदा क गोद म सर रखकर लेट गया।
नमदा ने नेह से य के गाल पर एक ह क चपत लगाई और हौले-हौले उसका
सर दबाने लगी।
“कल कहाँ था?” नमदा ने पूछा।
“चाचा ने द ण क ओर भेजा था, चार दन से वह था। कल रा लौटा ँ।”
“कल कुछ वशेष दन था?” नमदा ने मरण कराने का य न कया।
य सोचता रहा। नमदा सर दबाती रही। ब त दे र सोचने के बाद य को कुछ याद
आया। उठकर बैठ गया।
“सुभ ा बुआ क पु य त थ?”
“हाँ!” नमदा थोड़ी उदासी से बोली।
“तू उनका च बनाने वाली थी। बनाया?”
“हाँ! पीछे रखा है।” नमदा ने पीछे सं क क ओर संकेत कया।
य उठकर गया और सं क से च नकालकर दे खने लगा। बुआ सुभ ा कुछ-कुछ
नमदा जैसी द खती थ । य गवा के पास जाकर उजाले म अ छे से च दे खा।
“स ाट ने कोई आयोजन करवाया था?” य ने अनायास ही पूछ लया।
“नह ! उ ह तो अपनी ब हन क सुध भी नह रही होगी।” नमदा क भौह कुछ
सकुड़ ग ।
य ने एक ठं डी साँस छोड़ी। धीरे से च को समेट लया और गवा के बाहर
दे खने लगा। कुछ मरण करने का य न कया। कर नह पाया, तो पूछा, “बुआ के पु
का नाम म भूल रहा ँ, या नाम था?”
नमदा को य का इस कार नाम भूलना अ छा नह लगा। उदासी से उ र दया,
“धीरा।”
एक बड़ी चौक पर ढे र प पड़े ए थे। चौक के सामने रखे एकमा आसन पर जयभ
बैठा आ था। पछले एक घड़ी से वह इन प को यानपूवक बारा- तबारा पढ़ रहा
था। यह सभी प मुं ा ारा अ धकृत राजा के थे।
कुछ समय पूव जयभ ने सभी राजा को एक ज टल-सा प लखा था। थम
या, प पढ़ने म सामा य लगता, कतु थोड़ा यान दे ने पर श द का सही अथ
नकाला जा सकता था। प म अथला यु से संबं धत समयकाल और सहयोग क
सूचना थी। इस कार का प लखने क मंशा यह थी क प को सभी समझ लगे। कतु
जो प म ह गे, वे वा त वक अथ का सीधा उ र दगे और जो वमुख हो रहे ह गे, वे प
का अथ न समझने का ढ ग करके साधारण औपचा रक उ र दगे।
जयभ को अब तक तीन औपचा रक उ र मल चुके थे। उसने उन प को अलग
रख लया। प पढ़ते-पढ़ते जयभ क बीच-बीच म ार क ओर मुड़ जाती। उसने
वासुक को बुलावा भेजा था।
वासुक के पता व जी ने जयभ क कूटनी तक तर पर ब त सहायता क थी।
दोन के बीच घ न ता भी अ छ थी। कतु एक बात से जयभ सदै व रहता था। वह
थी व जी क त ा— जंबू प के कसी रा य के व श न उठाने क त ा।
व जी ने यह त ा य ली, यह कसी को नह ात। कतु जयभ को लगता था क
य द व जी यु म अपनी वा त वक श के साथ उतरता, तो वह वष पहले पृ वीप त
बन चुका होता। व जी के त यह रोष जयभ कभी-कभी वासुक पर उतार दे ता।
वासुक ने आने म दे र लगाई। जयभ को ोध आया, पर संयत रहा। वासुक भी
भाँप गया। जयभ के कुछ बोलने से पहले ही वयं बोला— “बाण और ढाल क नई
खेप आ गई है, स ाट! राजकुमार य ने अपनी टं कार वा हनी के लए, जन घूणन बाण
क वीकारो द थी, वे भी दस सह क सं या म आए ह। यु क रथ और सै नक
कवच का भी मू य कम कराने म, म सफल रहा..।”
वासुक ने एक ापार-प खोलकर जयभ के सामने रखा। प म नए प रव तत
मू य क व तारपूवक गणना लखी थी। सभी के मू य म पं ह से बीस ह से तक क
कटौती थी।
जयभ थोड़ा ठं डा आ। वासुक ने सरा प नकालकर तुत करना चाहा।
जयभ ने संकेत से मना कर दया। आसन पर अपनी बैठक बदलता आ बोला, “मने
तु ह व जी के वषय म बात करने के लए बुलाया है।”
वासुक को अचंभा आ। वष बाद सहसा उसके पता क बात कैसे उठ गई। पर
आ य का भाव मुख पर आने नह दया। सावधानी से बोला, “आ ा कर, स ाट!”
“एक क ठन काय स पना चाहता ँ। तु हारे अ त र कसी अ य के लए संभव
नह ।”
“आ ा कर, स ाट!” वासुक तोते क भाँ त दोहराया।
स ाट ने आँख गड़ाकर अपना मंत कट कया— “लाल-रह य को यु -भू म म
कट करो।”
सुनते ही वासुक को स ाटा मार गया। कई ण यूँ ही खड़ा रहा। फर पूण
कुशलता से भावहीन होने का अ भनय करते ए कहा, “पूण यास क ँ गा, स ाट!”
“मा यास ही करना होता, तो कसी अ य को भी भेज सकता था।”
वासुक जानता था, असंभव काय है। फर भी त काल श द-सुधार कया— “यह
काय मुझ पर छोड़ द।”
स ाट संतु नह आ। वह होता भी नह था। उसने वासुक से हटाई और
चौक पर रखे वण याले से म दरा का घूँट पया।
तभी ार पर य कट आ। स ाट ने वासुक को जाने का संकेत कया।
औपचा रक अ भवादन कर वासुक चला गया।
य के मुख पर सामा यतः एक महीन मु कान सदै व बनी रहती थी, जो दे खने वाले
के दय को शां त दान करती थी। कतु जयभ के सामने उसका मुख भावहीन होकर
सपाट हो जाता था।
आते ही बना कसी अ भवादन के एक प खोलकर जयभ के स मुख रख दया।
प दे खकर जयभ क भ ह चढ़ ग — असुर अ धकृत- े म वेश के लए
राजक य अनुम त-प था।
“स ाट के ह ता र और मुहर चा हए,” य बोला।
बोला गया वा य सामा य था। पर य के मुँह से स ाट श द सुनकर जयभ चढ़
गया। इस बार ही नह , हर बार चढ़ता था। चढ़ ई भ ह के साथ बोला, “राजसभा म
उप थत होना, तुम पाप समझते हो…इस कार के राजनै तक वषय म च कैसे जाग
गई?”
य ने एक द घ ास छोड़ी। बोला, “चाचा ने जाँच के लए भेजा था। वहाँ क जा
क म जान पड़ती है। एक बार असुर क शोधशाला तक जाकर दे खना चाहता ँ।”
“ जा का क म वयं र लूँगा। तु हारे ह त ेप क कोई आव यकता नह ,”
कहकर जयभ ने सामने रखा प हटा दया।
य क शां त अंदर से थोड़ी हल गई। अशांत वर म कहा, “ या स ाट वा तव
म वहाँ क थ त से अन भ ह…या कसी वशेष लाभ के लए आँख मूँद रहे ह?”
ऐसे धृ तापूण श द कसी और ने कहे होते, तो जयभ ने ण गँवाए बना उसक
गरदन काट द होती। कतु उसने आगे के श द को जैसे सुना ही नह । उसका म त क
‘स ाट’ श द सुनकर ही त त हो गया।
वह झटके से खड़ा आ। पीछे आसन डगमगाया। ऊँचे वर म पूरे रोष के साथ
बोला, “ पता बोलने म तु हारी ज ा चपक जाती है?”
य त नक भी उ े जत नह आ। लगा अंदर हली ई शां त अब कुछ थर हो
गई। वह कुछ बोला नह । चुपचाप खड़ा रहा।
जयभ वषय से पूरी तरह हट चुका था। ोध से छा तयाँ उठ-बैठ रही थ ।
उ माद म पुनः च लाया, “तुम दोन भाई-बहन अपना नाट् य बंद कर दो। मेरी
सहनशीलता अब और नह खचेगी।”
य अभी भी चुप रहा। पता क जलती आँख दे खने म असहज हो गया, तो
नीचे कर ली।
नीचे तो क , कतु कुछ दे खकर च क गया। जयभ क धोती थोड़ी उघड़ गई
थी। खुले ह से से पैर का कुछ भाग द ख रहा था। पैर काले चक े से भरा आ था।
तीत होता था मानो पैर पर सप क कचुली चढ़ हो।
य वच लत आ, मन म सोचा— या कोई रोग है? उठाकर पुनः पता का
मुख दे खा। जयभ का ोध उफान पर था। य ने क छोड़ दे ना ही उ चत समझा।
मुड़ा और चला गया।
स ाट ने चौक से याला उठाकर भू म पर पटक दया। क म याले क टन-
टनाहट गूँज उठ ।
आकाश व छ था। सूय क करण धरती को कुछ अ धक सकने लगी थ । धरती के साथ
रक का गंजा सर भी सक रहा था। धूप से बचने के लए वह घने वन वाला माग चुनता
था। कतु अभी जहाँ उप थत था, वहाँ वृ -कुंज क सघनता कम थी।
जब चकने सर को सूय ताप वच लत करने लगा, तो कमर से लटक चमड़े क
छोट मशक उतारकर खोली और बचा आ थोड़ा जल सर पर उड़ेल लया। कुछ सुख
मला। पीठ पर सामान लटकाए वह आगे बढ़ा।
चलते ए आध घड़ी बीता था क आगे बा ओर मृग का एक झुंड दखा। जल-
ोत यह कह समीप होगा, मानकर वह मृग क ओर बढ़ा।
रक को दे खते ही मृग चौकड़ी मारकर भाग खड़े ए। वह अनुमान के आधार पर
आगे बढ़ता रहा। तभी कसी कु े के भ कने क व न सुनाई पड़ी। उसने व न- ोत क
ओर उचककर दे खा। समीप प ँचा, तो एक ब चा बेसुध-सा भू म पर पड़ा आ था। और
भूरा झ बेदार कु ा उसका मुँह चाट-चाटकर भ क रहा था।
रक को दे खकर कु ा और जोर से भ कने लगा। कु े को मह व न दे ते ए रक ब चे
के एकदम समीप प ँचा और झुककर दे खने लगा। रक को ब चे के इतना समीप दे खकर
कु ा आ ामक हो गया। गुराते ए रक पर झपटा। रक ने घूमकर आँख दखा । कु ा
अंदर से हल गया। थोड़ा पीछे हटा। गुराहट त नक कम ई, पर बनी रही।
रक ने ब चे के गाल पर थपक मारकर सुध म लाने का यास कया। तीन-चार
थपक के प ात् ब चे के मुख से अ यंत मंद वर फूटा-कोबू…माई…।
रक ने अपनी मशक टटोली, खाली थी। कु ा अभी भी भ क रहा था। रक ने उस
पर यान नह दया। अगल-बगल एक सहज दौड़ाई और उठकर आगे बढ़ गया।
अप र चत के र जाते ही कु ा पुनः ब चे के सूखे ह ठ चाटने लगा।
कुछ र चलते ही रक को कल-कल सुनाई पड़ी। आगे नद थी। नद पर गया। जल
पया और मशक पूरी भर ली। कुछ जल अपने चकने सर पर भी उछाला। फर ब चे क
ओर लौटा।
रक को वापस आता दे ख कु ा पुनः गुराया। रक ने आकर मशक से थोड़ा जल
ब चे के मुँह पर गराया और गाल पर तीन-चार थपक लगाई। ब चे ने धीरे से आँख
खोल और मशक पकड़ ली। रक ने उसके सर को सहारा दे कर, उठाकर बैठाया। ब चे
ने पाँच-छः घूँट जल पया।
पीकर ब चा रोने लगा। वलाप कया— “माई!..माई!”
रक ने यथासंभव अपने वर को मृ बनाने का यास कया और ब चे का सर
सहलाते ए पुचकारा— “माई कहाँ है? तु ह घर छोड़ ँ ?”
ब चे ने बढ़कर रक क धोती पकड़ ली। अपना सर धोती म धँसाते ए रोया—
“माई को पकल ले गये…‘माई को पकल ल गए…”
ब चे के धोती पकड़कर सर धँसाने से रक एकदम तं भत हो गया। न जाने कस
लोक म प ँच गया। आँख क सतकता श थल हो गई। भ ह भी तनावमु होने लग ।
कु े ने प रव तत होते भाव प दे खे। वह रक पर एकटक गड़ाए ए था। गुराना
बंद कर दया। कुछ दे र प ात् पुनः जोर से भ का।
रक वतमान म लौटा। नेह दखाने का पुनः यास करते ए पूछा, “माई कहाँ चली
गई?…कौन पकड़ ले गया…?”
“कालू ले गया…” ब चे ने रोते ए उ र दया।
“कालू?” रक को यान आया; ारंभ म ब चा कोबू जैसा कुछ बुदबुदाया था। ेम
से पूछा, “कोबू…?”
ब चे ने नाह म सर हलाया। आँसू बहाते ए पुनः बोला— “कालू…”
“कहाँ है कालू, मुझे ले चलो। कालू को खूब पीटूँ गा और माई को छु ड़ा लाऊँगा,”
रक बोला।
ब चे को जैसे रक क बात पर व ास हो गया। एक ओर उँगली दखाकर संकेत
कया।
रक ने ब चे को उठाकर कंध पर बैठा लया। संतुलन बनाए रखने के लए ब चे ने
सहज ही रक का सर पकड़ने का यास कया। चकना सर छोट हथेली क पकड़ म
नह आ रहा था। ब चे ने सर छोड़कर दोन कान पकड़ लए।
रक, ब चे ारा नद शत दशा म आगे बढ़ा। कु ा भी भ कना बंद कर सूँघता आ
आगे-आगे चलने लगा।
जस माग से रक बढ़ रहा था, उधर नद क कल-कल प सुनाई पड़ रही थी।
ब चा वयं से रोता और वयं ही चुप हो जाता। जब आध घड़ी से भी अ धक हो गया,
रक को लगा— ‘ब चा सही माग बता रहा है? अथवा भटक गया है?’ शंका ई, कतु
आगे बढ़ता रहा।
कुछ दे र बाद एक बात खटक , बड़ी दे र से कोई पशु नह दखा। अ यथा वानर,
लोमड़ी, सयार, मृग, बलार कुछ-न-कुछ इस वन म द ख ही जाता था। एकाएक ब चे ने
रक के दोन कान जोर से ख चे। जैसे-घोड़ा रोकने के लए व गा ख ची जाती है।
रक क गया। ब चा तेजी से गरदन मोड़कर अगल-बगल दे खने लगा। कु ा भी
भू म सूँघते ए शी ता से च कर काट रहा था। ब चा पुनः आँसा आ— माई…
माई…।
वहाँ कुचली ई घास पर कई पद- च दखे। पतली र सी के दो-तीन छोटे टु कड़े
और कुछ टू ट लक ड़याँ भी थ । रक ने भू म पर यान से दौड़ाई। मा मनु य के
पद- च थे, घोड़े तथा कसी कार क गाड़ी के प हय के कोई च नह थे। अनुमान
लगाया— यहाँ कई लोग थे, जो पैदल ही यहाँ से गए।
कु ा सूँघता आ आगे बढ़ने लगा। आस-पास के च दे खकर रक क भी अटकल
उसी दशा म थी। अतः कु े के पीछे चला।
कुछ र चलने के प ात् रक ने आस-पास के च ढूँ ढ़ना छोड़ दया। कु े पर पूण
व ास हो गया था। जैसे-जैसे आगे बढ़ता, झाड़-झंखाड़ तथा सरपत कुछ अ धक मलने
लग । वृ क सघनता भी पहले से अ धक होती जा रही थी।
सहसा रक को कुछ आभास आ। ब चा धीरे-धीरे वलाप कर रहा था। रक ने हाथ
उठाकर ब चे के मुख पर रखा। ब चा चुप हो गया। कु ा भी भू म सूँघना छोड़कर दोन
कान खड़े कए आगे दे ख रहा था। सरपत से सामने का माग अव था। आगे बढ़ने के
लए घूमकर जाना पड़ता। रक चुपचाप खड़ा व न सुनने का य न कर रहा था। कराहने
के कई अ यंत मंद वर सुनाई पड़े।
रक सरपत के दा ओर से घूमकर आगे बढ़ा। आगे भी झाड़-झा ड़याँ थ , कतु
कम उँचाई के कारण र उप थत लोग का समूह दख गया।
रक क भ ह टे ढ़ । कुछ आगे बढ़ा, तो य प ता से समझ आया। कई लोग
पी ड़त क भाँ त भू म पर घुटने के बल सर झुकाकर बैठे थे और उनके सामने सर के
ऊपर से नीचे तक काला लबादा ओढ़े एक लंबा खड़ा था। लबादे के बगल, काले
रंग म पुता एक असुर सै नक सर झुकाए लोग को डरा-धमका रहा था और इन सभी को
कुछ अ य सश असुर सै नक ने घेर रखा था।
ब चे के मुँह से काँपते ए नकला— ‘कालू!’ और रक के दोन कान को जोर से
भ चा।
“भयभीत मत हो। माई मलने वाली है।” रक बोला।
ब चे पर कोई भाव नह पड़ा। मुट्ठ भ चे रहा।
रक मुख पर न त भाव लए झाड़-झंखाड़ से बचता आ टे ढ़े-मेढ़े माग से उनक
ओर बढ़ा। ऊँची सरपत तथा व य वन प तय के कारण असुर उसे दे ख नह पा रहे थे।
झा ड़य क आड़ से पूरी तरह बाहर नकलने पर रक उनके स मुख कट आ।
घेराबंद कए सै नक ने मुड़कर भाल क न क रक क ओर कर ली। जो काला
असुर लोग को डरा-धमका रहा था, उसने सै नक को आदे श दया— “भोजन चलकर
वयं आ रहा है। इसे भी पकड़कर बठाओ। यह भी महा भु क शरण म आएगा।”
दो सै नक भाले दखाते ए रक क ओर बढ़े । बगल से कोबू गुराने लगा। रक
अ वच लत बोला— “एक भी पग आगे बढ़ाया, तो तु हारे मुंड ं ड से अलग पड़े
मलगे।”
ऐसा सद वर उन असुर ने पहली बार सुना था। कसी अ ात भय से उनके बढ़ रहे
पग थम गए। भय तो आदे श दे ने वाले असुर को भी लगा था, कतु गरजकर बोला—
“अ छा अवसर मला है। अब तुम सब भी महा भु का वा त वक कोप दे ख लो।”
राजकुमार य मका से सटे चनार गाँव क ओर बढ़ रहा था। राजस ा को, जसम उसे
कोई वशेष च नह थी, कसी कार क राजनै तक असहजता से बचाने के लए उसने
अपना भेष प रव तत कर रखा था। एक यायावर लड़ाके का प धरे, घोड़ा दौड़ाते ए
वह अपने ल य क ओर बढ़ रहा था क चनार से थोड़ा पहले ही क जाना पड़ा।
पाँच पु ष को असुर सै नक बंद के प हाँकते ए द ण क ओर से ले जा रहे
थे। लोग के हाथ पीछे से बँधे और सर झुके ए थे। पाँच असुर आगे और पाँच असुर
पीछे भाले लेकर चल रहे थे।
टाप क आवाज सुनकर वे सतक ए। य का घोड़ा उस बंद समूह के दा ओर
का। उसने धनुष कंधे से उतारकर हाथ म ले लया। वर ककश बनाकर पूछा, “यहाँ
या चल रहा है? इ ह बंद य बनाया है?”
पीछे खड़ा एक असुर भाले क न क दखाता आ आ, “तुम कौन हो,
पूछने वाले?”
“म घुम कड़ ँ…मुझे छोड़ो। इ ह बंद य बनाया है? ऐसा कौन-सा अपराध आ
है, जो इनके हाथ बाँधने पड़े?”
“ओ घुम कड़!” आगे से एक सै नक, जसका बायाँ कान कटा आ था, ऊँचे वर
म पूरे दं भ के साथ बोला, “य द अपने ाण से त नक भी मोह है, तो अ वलंब यहाँ से र
चला जा। अ यथा तेरे शरीर म भाले घुसाने म हम त नक भी संकोच नह होगा।”
य ने एक बार बोलने वाले पर तरछ डाली और धनुष पर हाथ कस लए।
जानता था; असुर े के आस-पास लोग के लु त होने क घटनाएँ इसी कार ई
ह गी।
हाथ बँधे लोग भयभीत तीत हो रहे थे, कइय के शरीर पर प चोट थ ।
य ने जोर से घोषणा क , “य द इन असुर ने तु ह ता ड़त कया है, तो कोई भी
अपना सर ऊपर करे। व ास दलाता ँ, तुम लोग को क मु कए बना यहाँ से नह
जाऊँगा।”
“ओ दयावान्!” आगे वाला सै नक पुनः बोला। इस बार थ त संभालने के लए
उसने थोड़ी समझदारी दखाई। धीरता के साथ बोला, “झगड़ने क आव यकता नह है।
ये हमारी खान म काय करने वाले कमकार ह। दस दन पूव ये सभी चोरी करके भाग
नकले। हम इ ह पकड़कर दं डनायक के पास ले जा रहे ह…मा इतनी-सी बात है…अब
तुम हमारे काय म अनाव यक ह त ेप मत करो।”
तभी एक बंद सर उठाकर जोर से चीखा, “यह झूठ बोल रहा है। हम वन म
लकड़ी काटने गए थे…ये हम…” पीछे से एक असुर ने अपने भाले क न क उसक पीठ
म धँसा दया और दाँत पीसकर बोला, “चोर, तुझे यह दं ड दे ना पड़ेगा।”
एक ण के अंदर य ने कमर से लटकती तूरीण से बाण ख चा, धनुष पर चढ़ाया
और छोड़ दया।
बाण उस असुर के कंठ के आर-पार हो गया। वह भाला छोड़, अपने दोन हाथ से
कंठ पकड़कर तड़पते आ गरा। अ य असुर को इस धृ ता पर व ास नह आ।
दो असुर, समूह के आगे से और दो पीछे से पूरे ोध और उ ेजना से चीखते ए
य क ओर दौड़े।
“वु…श!…ठ क!”
“वु…श!…ठ क!”
असुर के तीन पग पूरा करने से पहले ही य के धनुष से छू टे दो बाण, दो असुर के
दय म उतर गए। बढ़ रहे अ य दो असुर के पग वयं ही ठठक गए।
इतना ती और सट क धनुष-संचालन उ ह ने पहले कभी नह दे खा था। उन दो
असुर ने अपने थान से ही भाले फक कर मारे। य को अपने लचीले शरीर को झुकाकर
और बगलकर बचने म कोई वशेष क नह आ।
झुकने-बचने क या के बीच एक बाण और छू टा। बाण एक असुर क हथेली के
पार हो गया। सरा असुर भागकर बं दय के पीछे जाना चाहता था, कतु य का एक
अ य बाण पीछे से उसक जंघा म जा धँसा। दोन असुर थोड़ी दे र के लए न य हो
गए।
य का दशन दे खकर बंद बनाए गए लोग म आशा का संचार आ। सभी ने एक
साथ गुहार लगाई— “हमारी र ा करो।”
असुर को भी समझ आ गया; वकट श ु है। कतु ऐसी कसी क ठन प र थ त के
बारे म सोचा नह था। पछले कई वष से वे अपनी मनमानी से काय संप करते आए थे,
अतः ऐसी थ त के लए तैयार नह थे।
जब तक वे अपने भाले उस पर फकेगे, न य ही इस घुम कड़ के बाण उनके
शरीर के पार ह गे।
समूह के आगे खड़ा असुर सै नक, जसका कान कटा था, बड़ी चपलता से एक
बंद को अपनी ओर ख चा और कमर से छु रा नकालकर उसक कंठ न लका पर रख
दया। अ य असुर ने भी झपट कर सरे बं दय के साथ यही कया।
कान कटा असुर चेतावनी दे ता आ बोला, “य द इन पर इतनी ही दया आ रही है,
तो अपना धनुष याग दो। अ यथा छु ड़ाने के लए एक भी जी वत नह बचेगा।”
असुर ने सोचा; य द श ु ने बाण चलाया, तो बंद क आड़ रहेगी, और य द अपना
धनुष फक दया, तो समीप जाकर सरलता से भाले घुसाए जा सकते ह।
य ने एक ठं डी साँस छोड़ी। मानो असुर के इस कृ य से त नक भी वच लत नह
आ हो। शांत कतु चेतावनी वाले वर म बोला, “अभी भी अवसर है। इ ह छोड़कर चले
जाओ…म पीठ पर बाण नह चलाऊँगा।”
य ने जस आ म व ास के साथ बोला था, असुर पर उसका त काल भाव
पड़ा। मन म वच लत करने वाला भय जागा। पर अ व ास और दं भ आगे आ गया।
कान कटे असुर का हाथ छु रे क मूठ पर कस गया। और बंद के कंठ पर धार को
थोड़ा रगड़ दया। गरदन पर लाल लक र कट ई। लक र से र क कई बूंद ने
सरककर कुछ अ य लक र भी ख च द ।
बंद क धड़धड़ाती दय ग त और मुख से भय के भाव प दे खे जा सकते थे।
य ने पूण शांत भाव से तूरीण क ओर हाथ बढ़ाया। इधर-उधर टटोला और एक
बाण, जसक पूँछ पर लगा पर अ यंत कड़ा था— को नकाला।
य ने तीर क न क पर गड़ाई। तीर क न क ठोस शं वाकार थी। शंकु पर
कसी लपटे सप क भाँ त गहरी नाली बनी थी। शंकु के ठ क नीचे एक महीन धागा
नकला था। य ने धागे के छोर को दाँत से दबाया और एक झटके से तीर को मुँह से र
कर दया। धागा खुलकर लंबा हो गया और तीर क शं वाकार न क अपनी धुरी पर लट् टू
क भाँ त ती घूणन करने लगी।
य ने असुर क ओर मोड़ी। धनुष पर तीर चढ़ाया और यंचा ख ची।
ती ग त से घूम रही बाण क न क को असुर पहचानते थे। यह असुर ापा रय
ारा ही बनाया गया उ त बाण था। य प इन असुर ने इस बाण का कभी वयं योग
नह कया था, कतु इतना अव य जानते थे क इस बाण क भेदन मता सामा य बाण
से आठ गुना अ धक थी।
य ने बाण का ल य कान कटे असुर के बा ओर खड़े असुर क ओर कया।
असुर ने बंद को सामने कर रखा था, फर भी भय से काँप गया। वह धनुधारी श ु
क योजना समझ गया, श ु उ त बाण चलाएगा, बाण बंद के शरीर को भेदकर उसके
शरीर म घुसेगा, कतु या इस धनुधारी को बंद क त नक भी चता नह ! इ ह के लए
तो हमसे लड़ रहा है!
असुर के पास सोचने का अ धक अवसर नह था। झट से छु रा हटाया और दो पग
पीछे आ, फर भाले क न क बंद क पीठ से पश कर द ।
य का साहस असुर स हत बं दय को भी समझ नह आया। जस बंद क
ओर उसके बाण का ल य था, उसके ने म याचना का भाव उमड़ा।
घोड़े पर थर बैठा य धनुष पर बाण चढ़ाकर कुछ ण के लए जड़ हो गया।
ने से ही री क गणना कर बाण के पथ का समीकरण बनाया। संयोग से पवन म वेग
नह था। अतः समीकरण सरलता से बन गया। फर यंचा ख चे हाथ का बल कुछ कम
कया और एक उँगली से बाण क पूँछ पर लगा कड़ा पर एक दशा म टे ढ़ा कर दया।
अ भाग पर शं वाकार न क अभी भी ती घूणन पर थी। बाण छू टा, धनुष क टं कार
ई। बंद ने याचना पूण ने बंद कर लए।
हवा को चीरता बाण बंद क ओर सीधा बढ़ा, कतु छाती से एक हाथ पहले ही दा
ओर घूम गया।
कान कटे असुर क आँख फैल , पर पूरी तरह फैलने से पहले ही घूणन करता
शं वाकार न क उसक कनपट को भेदता आ म त क म जा धँसा।
असुर के हाथ से छु रा छू टा और शरीर नज व माँस के ल दे क भाँ त गरा।
असुर स हत बं दय का भी मुँह खुला रह गया। याचना पूण ने बंद कए बंद ने
भी आँख खोल । वह मन म भय का भाव लए अपने शरीर पर बाण क चुभन क
ती ा कर रहा था। चुभन ई नह और बा ओर कुछ गरने क व न ई, तो ने वतः
खुल गए। मृत असुर क कनपट म धँसा बाण दे खकर भौच का रह गया। उसक पीठ
पर भाला धँसाकर खड़े असुर का भय अ धकतम सीमा पर प ँच गया। अ त ती ग त के
कारण बाण का प पथ उसे नह दखा था। कतु दशा-प रवतन क झलक दख गई
थी, मन म भय उठा; यह धनु व ा है या कोई माया। मृ यु पीछा करके ाण हर रही है।
अ य असुर क भी कुछ ऐसी ही मनोदशा थी। य ने बारा चेतावनी द — “पुनः
अवसर दे ता ँ…अ वलंब चले जाओ…पीठ पर बाण नह चलाऊँगा।”
असुर के लए यह चेतावनी नह कृपा थी। बं दय के गले से छु रे हटाए और द ण
क ओर भाग गए। न य पड़े अ य दो असुर भी यथासंभव श जुटाकर उनके पीछे
दौड़े।
बं दय ने वयं को भा यशाली समझा। य घोड़े से उतरा और जाकर उनके बंधन
खोले। फर ककश वर म पूछा— “इन असुर ने तु ह बंद य बनाया?”
एक अधेड़ बोला— “हम यहाँ काठ के लए वृ काटने आए थे। ये असुर न
जाने कहाँ से कट हो गए… कहने लगे, उनक खान म काय करने के लए मक क
आव यकता है। उ ह दे खकर हम सभी भयभीत हो गए थे। हमने अ वीकार कर दया।
उ ह ने बड़े-बड़े लोभ दखाए। हम लोग ने पुनः अ वीकार कया। फर वे हम मारने-
पीटने लगे और भाल क न क पर बंद बना लया। तुमने हमारे ाण क र ा क है…
हम सभी जीवन भर तु हारे ऋणी रहगे।” सभी ने सर झुकाकर आभार कया।
य का यान द ण क ओर था। बंधन मु ए लोग उसे अपने गाँव ले जाकर
उ चत स कार करना चाहते थे। कतु य शी ता म था। वह घोड़े पर बैठा और वन म
वलीन हो गया। लोग इस घुम कड़ र क के वषय म बात करते ए गाँव लौट पड़े।
उनके भी पग शी ता म थे।
क रया को रथ हाँकते ए चार दन बीत गया था। काजी दे श क असमय वषा ने उसके
रथ के च को बड़ी सरलता से धो दया था। खोजी दल को उसे ढूँ ढ़ पाना अब अ यंत
कर था। अपनी योजनानुसार क रया ने बीहड़ माग से काजी दे श क सीमा पार कर
मुं ा म वेश कया था। मका से सटे एक छोटे गाँव से शु क पु ी दे ानी को साथ
लेना था, त प ात् ऊषा खंड क सीमा से चपकते ए समु तट प ँचना था।
दे ानी को असुर स ा ने शु से र मका भेज दया था, जहाँ वह एक
योगकता के यहाँ गृहकैद म थी। पता-पु ी को एक- सरे से वलग करके तथा एक-
सरे क सुर ा का भय दखाकर असुर स ा दोन से अपना काय नकलवा रही थी।
योजनानुसार क रया के एक गु तचर ने मका म तैनात एक असुर सै नक को
उ कोच दया। उस असुर सै नक को दे ानी को गु त प से असुर-अ धकृत े के
बाहर एक गाँव म प ँचाना था।
अब जब क रया शु के साथ उस गाँव प ँचा, तो वहाँ दन और वलाप का
वातावरण मला।
क रया और शु ने अपने शरीर का काला रंग धोकर एक ापारी का भेष बना
रखा था। आँख म मोटे काजल क लक र थी और एक रंगीन प ट् टका से आधा मुँह
ढका आ था।
माग म यदा-कदा कोई पूछता, तो वयं को द ण का ापारी बताते, जो व य
जड़ी-बू टय क खोज कर रहे ह। वन म बसे गाँव वाल ने द ण के ापा रय को
कभी दे खा नह था। सभी सोचते— द ण के ापारी ऐसे ही होते ह गे।
वलाप कर रहे लोग से ात आ क कल साँझ ढले नद पर जल भरने ग तीन
याँ और साथ गए चार पु ष न जाने कहाँ लु त हो गए। पूरी रा उ काएँ जलाकर
चार ओर खोजने पर भी कोई नह मला।
घटना सुनकर क रया तो सहज रहा, कतु शु थोड़ा च तत हो गया।
पूव योजना के अनुसार क रया के गु तचर को दे ानी के साथ आज नद तट पर
उप थत रहना था। क रया पहले वह प ँचा था, कतु वहाँ नह मलने पर रथ को गाँव
के अंदर तक हाँक लाया।
क रया रथ से उतरकर एक वृ के पास प ँचा। वन ता से पूछा— “बाबा! या
पछले दन पड़ोसी गाँव से कोई आया था?”
बूढ़ा खाँसकर बोला, “यहाँ कौन आता है…ब चा!..ख ..ख …हाँ! कल दो पगड़ी
वाले आए थे। मुँह पर मट् ट और सर म धूल भरा आ था। द खने से रोगी लग रहे थे।
हमने गाँव म ठहरने नह दया। …ख ..ख …नद तट पर एक पुराना झोपड़ा है, वह भेज
दया था।…ख ..ख … या कर ब चा! अगल-बगल के गाव म महामारी सुनाई पड़ती
है… या पता? कौन-सा रोग लेकर आए थे…ख ..ख …।”
क रया को मरण आया; नद तट से यहाँ आते समय र एक टू टा झोपड़ा दखा
था। क रया रथ पर चढ़ा और तट क ओर चला गया। झोपड़ा र नह था। शी ही प ँच
गया।
झोपड़े का छ पर आधा टू टा आ था और कवाड़ का अ त व नह था। अंदर
घुसकर दे खा, तो एक भस कोने म बैठकर जुगाली कर रही थी।
क रया तट पर प ँचा और आस-पास च ढूँ ढ़ने लगा। शु अब अ धक च तत
होने लगा था। आध घड़ी के प र म के बाद तट से र प म क ओर कुछ च मले।
क रया रथ लेकर अनुमान के आधार पर बढ़ने लगा। आगे सरपत और झा ड़य क
अ धकता थी। रथ दौड़ाने म थोड़ी क ठनाई अव य थी, कतु अब घोड़ क लीद जैसे
प च मलने लगे थे। हटाई गई झा ड़याँ और खुले हाथ से काटे गए सरपत अनुमान
को पु कर रहे थे।
दो घड़ी प ात् एक बड़ा ाकृ तक गड् ढा मला। वहाँ क नम भू म पर कई लोग के
प पद- च थे। घोड़ के खुर और प हय के भी छाप दखे। अधजली लक ड़याँ भी
मल , ज ह समीप क झा ड़य म लापरवाही से फक दया गया था।
शु क आस और चता दोन बढ़ गई। एक घड़ी और चलने पर अ य धक ऊँची
सरपत मलने लग ।
रथ अभी एक पगडंडी पर मंद ग त से दौड़ रहा था। दा ओर सरपत क द वार थी
और बा ओर गड् ढे ।
चलते-चलते क रया को मानव वर सुनाई पड़ने का म आ। कान चौक े हो गए।
हवा म एक अबूझ-सी सरसराहट का भान आ। तभी दा ओर सरपत के बीच से एक
घूणन बाण आया और रथ के दोन घोड़ क गरदन छे दता आ पार नकल गया।
घोड़ ने ची कारपूण हन हनाहट क और लड़खड़ाकर एक साथ गर पड़े। पूरा रथ
जोर से डगमगाया और उलटते-पलटते बचा। क रया और शु ने समय रहते रथ के दोन
छोर हाथ से जकड़ लए थे।
क रया क सम त इं याँ सतक हो ग । ने ने ण गँवाए बना आस-पास के
वातावरण क जाँच कर ली। रथ के इस एकाएक झटके से शु के ण शरीर को च कर
आ गया। क रया ने सहायता दे कर उसे रथ से नीचे उतारा।
सरपत के उस पार से मंद धमाक और कराहने क व नयाँ आने लग ।
क रया ने शी ता से रथ से दो कु हाड़ी उठाई और पूण सतकता से सरपत के बीच
द ख रहे एक पतले थान म घुस गया।
सरपत क द वार क रया के अनुमान से अ धक मोट थी। बीच म महीन काँट वाली
झा ड़याँ भी मल । दोन कु हा ड़य से सरपत को हटाते ए वह आगे बढ़ता गया। उस
पार से हो-ह ला सुनाई पड़ रहा था।
कुछ ही दे र म क रया सरपत को पारकर संघष- थल पर कट आ। जैसे ही उसने
सरपत के बाहर पग रखा, एक काला लबादा ती ग त से बीस हाथ र बा ओर सरपत
क द वार म समाता दखा। क रया ने गरदन मोड़कर सीधी क । बीच म सर झुकाकर
दयनीय अव था म लोग बैठे थे और इधर-उधर कई असुर सै नक चीख-पुकार कर रहे थे।
र एक धनुधर एक गंजे को बाण मार रहा था और दे खते ही दे खते भू म पर
धँसे एक बाण पर उछलकर सरपत के बीच कूद गया। त प ात् एकाएक ती पवन के
झ क ने सरपत को लहरा दया। क रया के ने सकुड़े। आस-पास के वृ और
वन प तय पर डाली। सभी शांत थे, मा गंजे के आस-पास ही पवन के
झ के दख रहे थे।
यह झ का कुछ ण म ही वलीन हो गया और गंजे ने असुर क ओर मुँह
फेरा। पैर के नीचे से व फोट क व न ई और गंजा कसी छू टे बाण क भाँ त एक
असुर के ठ क सामने प ँच गया।
क रया के मुख पर एक ीण मु कान और ने म शकारी चमक आई। मन म
बुदबुदाया— ‘ स धारक…!’
क रया ने दोन हाथ क कु हा ड़याँ भू म पर गरा द ।
कमर प ट् टका म हाथ डालकर एक छोट पोटली नकाली। पोटली क गाँठ से एक
पतली डोरी प ट् टका के अंदर कह बँधी थी। पोटली क रया क कमर पर लटक गई।
क रया ने पुनः प ट् टका म हाथ डालकर दो चपटे काले प थर नकाले। प थर को
दोन हाथ म लेकर सहजता से आगे बढ़ने लगा।
रक एक के प ात् एक असुर को गराता जा रहा था। आदे श दे ने वाला -पु
असुर अं तम बचा।
रक उसके स मुख प ँचा। असुर भय से जड़वत् था। रक ने उसके मुख पर अपना
पंजा रखा। असुर के फेफड़े क वायु ास-न लका से होते ए रक क हथेली क ओर
खचने लगी। असुर छटपटाया। वायु हथेली क ओर खचकर अँगु लय के बीच से बाहर
नकल रही थी। ने फाड़े असुर पंजे क पकड़ छु ड़ाने का पूरा यास कर रहा था। छु ड़ाने
के उप म म उसका हाथ अपनी कमर पर खूँसे छु रे पर गया। छु रा नकालकर रक पर
हार करने जा रहा था क रक ने झटके से अपना पंजा पीछे हटा लया। फेफड़े क
सम त वायु भी एक झटके के साथ बाहर नकल गई। नवात बनने से दोन फेफड़े शरीर
के अदं र पचक गए। दो ण छटपटाकर असुर ढह गया। उसके ने अभी भी ऐसे खुले
थे, मानो उबलकर बाहर आ जाएँगे।
रक क बीस पग पीछे खड़े नये आगंतुक पर गई। यह भी धनुधर क भाँ त
संघष- थल पर सहसा कट आ था। आगंतुक जो भी हो, उसक आँख क नभ कता
ने रक को अ स कर दया। नभ कता के अ त र काजल लगी उन आँख म े ष भी
झलक रहा था।
असुर के समा त होते ही, सर झुकाकर बैठे पी ड़त लोग म पूण साहस आ गया।
बा ओर झा ड़याँ नग य थ । सभी बना व न कए उस ओर दौड़ पड़े। कनारे खड़ी
पजड़ेनुमा घोड़ागाड़ी म बैठे पाँच अ य पी ड़त भी धीरे से उतरकर भाग गए।
दस-बारह ण प ात् रक और क रया के अ त र वहाँ कोई नह बचा। ब चा
और कु ा भी वलु त था। रक ारा असुर के संहार के समय य कब सरपत से
नकलकर ब चे को ख च ले गया, कसी ने नह दे खा।
क रया और रक आमने-सामने थे। क रया के ने से जो े ष झलक रहा था, वह
रक का क रया को श ु समझने के लए पया त था।
क रया ने रक को घूरते ए कमर से लटक पोटली पर हाथ मारा। पोटली से धूल
उड़ी, मानो पूरी पोटली ही धूल से भरी हो। चार-पाँच बार नरंतर हाथ मारा। धूल का मंद
गुबार उसके चार ओर फैल गया।
क रया के घूरने ने रक को उ े जत कर दया। आगे बढ़ने के लए रक ने जैसे ही
शरीर को आगे झुकाया, क रया ने अपनी बाँह फैलाई और दोन हाथ म पकड़े प थर पूरी
श से आपस म टकरा दए।
एक तीखी व न नकली। अ य व न-तरंग रक से टकराई। रक के व ने तेज
झटका खाया।
वष प ात् रक ने आ य से ने फाड़े थे। एक हाथ से व को भ चकर पीड़ा सहते
ए पूछा— “कौन हो तुम?”
उ र म क रया ने बारा प थर टकराए। रक ने पुनः झटका खाया। घोर पीड़ा ई।
ह ठ को दाँत से दबा लया।
क रया ने तीसरी बार प थर टकराने के लए बाँह फैलाई। रक अब और अवसर नह
दे ना चाहता था। बना ण गँवाए तलव के नीचे व फोट कया और क रया के ठ क
सामने प ँचा। फर पूरी श से अपनी हथेली क रया के पेट म घुसाने के लए चलाई।
कतु हथेली व के नीचे पहने चमड़े के कवच से टकराकर क गई।
य क भाँ त रक के लए भी आज व मय भरा दन था। उसके शरीर के आस-
पास से व ुत क अ यंत मंद कड़कड़ाहट सुनाई पड़ रही थी। अपनी हथेली क ओर
दे खा। वहाँ भी व ुत क छोट -छोट सप रेखाएँ रगती दख ।
रक ने झट से उठाकर आस-पास उड़ रहे धूल के मंद गुबार पर गड़ाई।
बड़ी क ठनाई से द ख पड़ने वाले अ यंत महीन, भारहीन, पीले और नीले कण वातावरण
म तैर रहे थे। मन म अचंभा और अ व ास दोन आ— वण भ म!
रक ने क रया क ओर मोड़ी। उसी ण क रया ने अपना सर रक के मुँह पर
पटक दया। नाक पर जोरदार आघात आ था। रक बल बलाकर पीछे लड़खड़ाया।
थर होने से पहले ही उसक छाती पर क रया ने पाद- हार कया। रक दो पग और
लड़खड़ाया। ोध से उसके माथे क नस फूल ग ।
क रया ने अ वलंब पुनः प थर टकराए। इस बार तरंग ोत समीप था। रक के व
पर बलशाली आघात पड़ा। उछलकर पाँच पग पीछे पीठ के बल गरा और घसट गया।
रक के गरने से पीठ पर बँधी कपड़े क गठरी पर ती दबाव पड़ा और अंदर बँधे
काठ के कुछ पुज टू ट गए।
रक पर इतना ोध चढ़ गया क मुँह से गुराहट नकलने लगी। हाथ के बल उठकर
बैठा। गाँठ खोलकर पीठ से गठरी को उतारा और बगल भू म पर रख दया।
क रया बढ़कर रक के स मुख प ँचा। रक के उठने से पहले ही प थर पुनः बजा
दए। तरंग हार से रक क पीठ भू म से टकराई। आघात ती था। मुँह से र नकल
गया।
क रया नदयतापूवक पुनः प थर टकराने जा रहा था क रक क दा हथेली के
चार ओर हवा घूमने लगी और णांश म ती घूणन वाले अ य वायु-च म प रव तत
हो गई। रक ने बाएँ हाथ क हथेली भू म से चपकाकर ऊजा व फोट कया। उसका
शरीर व ुत क ग त से उठा और दा हथेली कसी खड् ग क भाँ त क रया क गरदन
पर चला दया।
व फोट क आवाज सुनते ही क रया सचेत हो गया था। रक क कटार पी हथेली
अपनी ओर आती दखी। इसी के साथ उसके घुटने मुड़ते चले गए और शरीर पीछे झुक
गया। रक क हथेली उसके ऊपर से नकल गई।
रक, क रया के पीछे तीन पग र का। क रया को अपनी असावधानी का त काल
भान हो गया— वह वण-भ म के गुबार के बाहर खड़ा था। पोटली पर ती ता से चार-
पाँच बार हाथ मारा। धूल का गुबार आस-पास पुनः फैल गया। उसके प ात्— ठ क्!
ठ क्!
एक के बाद एक, दो बार क रया ने प थर टकराए। रक का शरीर ध का खाकर
चार पग आगे तक लड़खड़ाया। मुँह से र उछला और अंधकार-सा छाने लगा।
… मशः