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(काव्य प्रवाह)

वर्तमान शासन : वीर शासन


—दर्
ु भल जैन
भूममका—
एक काव्य तव हृदय पटर् पर चित्रित मैं कर देता हूं।
महावीर की वाणी का कुछ सार समर्पलत करता हूं।।

सब मेरु र्ाूंघ शासन िर्ता, कूंटक एकाूंत ढहा देता।


फिर र्वजय पताका हाथ लर्ए,हम करे पततत उसको कैसे।।
भगवान महावीर स्वामी का जीवन
पररचय—
उस लसद्ध श्ूंख
र र्ा की गणना में, एक र्वभतत जतनत हुई।
कर प्राप्त आयु दो सत्तर की, इक मोती सम सम्ममलर्त हुई।।
उत्तरािाल्गन
ु ी की शभ
ु घडी में, त्रिशर्ा का उदर पर्वि हुआ।
तमु जहाूं गए उस भलम का, कण—कण भी तनत्य पन ु ीत हुआ।।
उत्सूंचगत हो ज्ञान वीयल से, यही तम
ु हारा पररिय प्रभ।ु
तत ् ज्ञान ददया र्वज्ञान ददया, सरणी पथ पर हम िर्ें र्वभ।ु ।
वीर शासन जयंर्ी : एक पररचय
तनश्शस्त्ि
भप उस शासन का, र्वस्त्तत र साम्राज्य तमु हारा है।
उस समवसरण के प्राूंगण में,होता उपदेश तम ु हारा है।।
पूंि साठ ददवस जब र्वर्य हुए, वाणी प्रकाश न उददत हुआ।
सौधमल इन्द्र व्याकुलर्त हुआ, जनता में हाहाकार हुआ।।
श्वददवस प्राम्प्त गौतम गणधर की,सहज ध्वतन प्रस्त्िुदटत हुई।
क्या कारण रहस्त्य कहें उसको, शास्त्ता के शासन में आयी।।
वीर शासन का प्राण सवोदय
र्ीर्त—
हो उदय सभी का इस जगती में,उदयेश्वर का प्राण यही।
हो उदय सदा उस वाणी का, म्जससे जग का समबन्द्ध नहीूं।।
हो उदय ‘आददहद कादव्वूं’ का,र्ेश जहाूं नहीूं ऋजतु ा का।
हो उदय अनवरत स्त्याद्वाद का, जहाूं नहीूं प्रयोजन सूंशय का।।
हो उदय अनवरत जन—जन का,अर्वरर् जनजन का होता
यह।
हो उदय सदा उस प्राणणमाि का, यही वीर का सवोदय।।
भगवान महावीर के समकालीन
पररस्स्र्तर्—

तीथंकर हो धमल तीथल के, सब दौरों में सदा अटर्।


होवे दौर राजसत्ता का, वगल धनाढ्य अर धालमलक रूप।।
फियाकाण्ड की अम्नन दहाती, धालमलक सत्ता को अर्वकर्।
अत्यािारों की ज्वार्ा में, जातत—पातत की बेडी भरम।।
वीर शासन जयंर्ी से ववमभन्न
मसद्ांर्ो की मसदध्—

िमबद्चधत पररणमन जगत का, िमबद्चधत तव ध्वतन हुई।


भर्व भागन अर विनयोग से, षट् साठ ददवस में उददत हुई।।
वीर शासन में संघ परं परा—
जब कार् नष्ट धीरे धीरे , अहलद्बलर् इक आिायल हुए।।
सूंघ भेद हुआ कार्ानस
ु ार,आभास सूंघ प्रस्त्िुदटत हुए।।
आगम और अध्यात्म की
स्र्ापना—
स्त्कूंध हुए श्तु के दो जब, आगम अध्यात्म भी पनप उठे ।
सम्र ष्ट का ताूंडव दे खो तम
ु ,जब विन लर्र्प में बद्ध हुए।।
वीर शासन में आचायों का
कर्त्तव्य—
र्वम्छछन्द्न
हुआ अब श्त ु का ज्ञान, लर्र्पबद्ध फकया आिायों ने।
िारों अनुयोगो में श्ुत— अमत र , पान कराया जन—जन को।।
आचायत परं परा से आ्तु नक काल
र्क का इतर्हास—
अब कार् उददत र्वद्वत्हूं सों का, नीर क्षीर को लभन्द्न फकया।
नप
र भी आए मूंिीगण भी, तन मन धन अर्पलत कर डार्ा।।
उस सत्ता की मधुशार्ा में, कल्की उपकल्की मत्त हुए।
र्वघदटत कर डार्ा जैन धमल को, र्वद्या सम वह ही हुआ।।
वीर शासन जयंर्ी में हमारा
कर्तव्य—
वधलमान के म्जनशासन की, वतलमान आवश्यकता।
वह र्वजय पताका हस्त्त हमारे ,अगर्ी पीढी को है दे ना।।
सछिा कतलव्य हमारा यह है , तव पदचिन्द्हों पर है िर्ना।
बस भाव यही ‘दर्
ु भ
ल ’ का है ,बस मोक्षमहर् में है िढना।।
(दोहा)
तनज समयसार को पढ प्रभु, समयसारमय आप।
तत ् समयसार के ज्ञान से, समयसार मम तत्व।।
जय—स्जनेन्र

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