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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्यत्ु थानमधर्मस्य तदात्मानं सज


ृ ाम्यहम ् ॥
परित्राणाय साधनू ां विनाशाय च दष्ु कृताम ् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि यग ु े यगु े॥

यह महाभारत की है कहानी जो वेदव्यास ने स्वयं बखानी


ये धर्म अधर्म और है रूहानी कृष्ण की गीता अनप
ु म है वाणी

जब अपने ही अधिकार हे तु अवसर बचे न कोई सेष


तब लड़ना पड़ता अधिकार हे तु धर के हां काल के भेष

एक और पत्र ु गांधारी के सौ पांच पांडव कंु ती के लाल


था कर्ण पांचो के जेष्ठ सबसे न मिली उसको अपनी पहचान

गरु
ु कुल से पा के हां शिक्षा, दीक्षा सब दे ने पहुंचे बल का प्रमाण
हस्तिनापरु के सभी वीर हर्षित थे कौरव पांडव खड़े बिच मैदान

हां गदा घम
ू ी फिर भीम की और लगे चलने अर्जुन के बाण
न कौरवो में कोई श्रेष्ठ ऐसा जो ज्ञान बल में उनके समान

तभी आया बीच एक योद्धा ऐसा अर्जुन के बाणों को दे ता मात


वो बना मित्र दर्यो
ु धन का फिर कर्ण चला कौरव के साथ

हां शकुनी के संग दर्यो


ु धन ने लाक्षागह
ृ निर्माण किया
जल के मर जाये ये पांडव ऐसा था अनम ु ान किया

पर कृपा कृष्ण की जो हां राज़ विदरु के जान लिया


साहयता पाके पांडवो ने माँ कंु ती संग प्रस्थान किया

हुआ स्वयंवर आयोजित जो मत्स्य चक्षु का भेद करे


हां पांचाली स्वयं इच्छा से उस वीर योद्धा का चयन करे

बड़े बड़े महाबली वहा पर अर्जुन के परचम फहराया


मधस ु ध
ु न की लीला दे खो पांचाली वर अर्जुन पाया

जीत स्वयंवर अर्जुन भ्राताओ संग घर को लौट चले बिन दे खे जो कहे शब्द…
कंु ती के ह्रदय को तोड़ चले मरु लीधर ने आकर के फिर पर्ण
ू जन्म का ज्ञान कहा
पांचो गण
ु ये पांचो पांडव शिव का वो वरदान कहा

द्वेष और सत्ता का लोभ दर्यो


ु धन का बढ़ता जाये
गलत कार्यों पर पर्दा डाले धतृ राष्ट्र वही कहलाये

दे ख प्रसन्न पांचो पांडव को क्रोध की अग्नि बढती जाये


चौसर का आमंत्रण दे फिर पंडू पत्र ु ो को लिया बल
ु ाए

शकुनी के पासों के जाल में पांडव चौसर हर गए


धर्मराज यद्
ु धिष्ठिर संग सब कौरवों के थे दास बने

धर्मराज के बद्
ु धि पे जए
ु ने ग्रहण लगा डाला
एक शकुनी के बहकावे में द्रौपदी को दांव लगा डाला

खींच के केशों से दःु शासनबीच सभा द्रौपदी को लाया


रजस्वला एक कपड़े में द्रौपदी कोई वीर कुछ कह न पाया

भीष्म पितामह, गुरु द्रोण को राज धरम ने मौन कराया


कोई न आया रक्षा को तो गोविंद ने था चिर बढ़ाया

भीम ने ली फिर प्रतिज्ञा दर्यो


ु धन जंघा तोरुं गा
चीर के छाती दःु शासन केशो पर रक्त निचोड़ूग ं ा

बारह वर्ष थे बीत गए आज्ञातवास था प्रारं भ हुआ


जो भेद खल ु ा उन पांचो का फिर महायद्
ु ध आरं भ हुआ

कृष्ण की सेना कौरव संग खद ु कृष्ण चले अर्जुन के साथ


कुरुक्षेत्र के भमि
ू पे रणधीर खड़े दे ने बलिदान

मोह वश अर्जुन की आँखों में अश्रु थे भर आये


हां केसे उन पर वर करूँ जिनके हाथों से फल खाए

पितामह हां भीष्म मझ ु को आपनी गोद खिलाते थे


गुरु द्रोण ही धनष
ु -बाण का सारा ज्ञान सिखाते थे

आपने ही भाइयों पे केशव घात नहीं कर सकता मैं


राज पाठ और धन हे तु संघार नहीं कर सकता मैं
रथ के ऊपर अर्जुन और अर्जुन के सारथी थे कान्हा
शेषनाग के फन से आपने रथ के पहियों को थमा

धवज के ऊपर बजरं गी जो राम नाम का जाप करें


हां त्रेता यग
ु ने रावन ने तो खद
ु इनका था बल माना

अर्जुन की व्याकुलता दे ख मधस


ु द
ू न मन में मस्
ु काए
रूप विराट बना के अपना गीता का फिर वचन सन ु ाए

कभी न मरती जीवात्मा मरता है शारीर यहीं


तम
ु जैसे वीरों का यद्
ु ध में विचलित होना ठीक नहीं

कर्म तम्
ु हारे वश में पार्थ पर फल तेरे अधीन नहीं
निष्काम होक तम ु काम करो यूँ रण में रोना ठीक नहीं

सार हां सन
ु के गीता का जो सत्य था अर्जुन जान गया
लीलाधर की लीला को पलभर में ही पहचान गया

सेना में अजरज हलचल गांडीव की काल सी थी कंपन


पर भीष्म के ताकत के आगे पांडवों की सेना थी निर्बल

हां रोकने हे तु भीष्म को कान्हा जी शस्त्र उठाते हैं


हाथ जोड़ फिर भीष्म जी खद ु मत्ृ यु मार्ग सझ
ु ाते हैं

सामने आई सख ृ ंदी भीष्म ने शस्त्र त्याग दिए हां केशव के कहने पे पार्थ ने
बहु बाण प्रहार किए

अर्जुन के प्रहार से भीष्म बाण शैया पे लेट गए


प्यास लगी थी भीष्म को तो अर्जुन से ही तप्ृ त हुए

तेर्वे दिन गुरु द्रोण ने दे खो चक्रव्यह


ू की थी रचना कर दी
तोड़ दिया अभिमन्यु ने तो मिलकर सबने हत्या कर दी

प्रतिशोध में अर्जुन ने जय्द्रत को रण में मार दिया


पांडवों के एक झूट ने फिर गुरु द्रोण का भी संधार किया
भीम ने दःु शासन वध कर है वक्ष रक्त का पान किया
दिया वचन जो पंचाली को प्राण अपना था सार्थ किया

दर्यो
ु धन की सेना पे जब काल के बदल घिर आए
तब सर्य
ु पत्र
ु ने आकर के था वीर का प्रमाण दिया

कर्ण आया प्रहार करते अर्जुन की सेना संहार करते


रथ का जो पहिया भमिू धंसा हां शीश जा गिरा था धड़ से हां कटके

मत्ृ यु का अब पांडव नाच करते कौरवो का अब काम तमाम करते


शल्य, शकुनी का भी नाश करके वो बढ़ रहे थे विजय के पथ पे…

चिंता में दर्यो


ु धन था की बचा कोई भी शेष नहीं
अब किसी तरह बस जीत मिले जीवन का है उद्दे श्य यही

वज्र सा उसका हुआ शरीर पर जंघा में कमजोरी थी


ये ममता थी एक माता की जो शिव के तप से जोड़ी थी

गदा यद्
ु ध के महारथी दोनों दे खो आपस में टकराए
एक शिष्य था बलदाऊ का कृष्ण भीम का साथ निभाएं

आखिर में कान्हा की लीला दर्यो


ु धन का नाश हुआ
उठ न पाया दोबारा जब जंघा पर प्रहार हुआ

अंत में धरम ही जीत गया था पापियों का संहार हुआ


है बीत गया द्वापर का यग
ु औउर कलयग ु का आगाज हुआ

जब जब इस श्रीसती पर दीप कोई घोर अँधेरा छाता है


ु केशव ही तो आता हैं ।
हां तब तब भीं भीं रूपों में खद

~ By Arik Khutia (XII Commerce)

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