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धतृ राष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे सर्वेता


युयुत्सवः ।
र्ार्काः पाण्डवाश्चैव ककर्कुवमत
सञ्जय ॥१॥
धतृ राष्ट्र: उवाच - राजा धतृ राष्ट्र ने
कहा; धर्म-क्षेत्रे - धर्मभमू र्
(तीर्मस्र्ल) र्ें; कुरु-क्षेत्रे -कुरुक्षेत्र
नार्क स्र्ान र्ें; सर्वेता: - एकत्र
; ययु त्ु सवः - यद्ध
ु करने की इच्छा
से; र्ार्काः -र्ेरे पक्ष
(पत्रु ों); पाण्डवा: - पाण्डु के पत्रु ों
ने; च - तर्ा; एव - मनश्चय
ही; मकर् - क्या;अकुवमत -
मकया; सञ्जय - हे संजय ।
Text
धतृ राष्ट्र ने कहा -- हे संजय!
धर्मभमू र् कुरुक्षेत्र र्ें यद्ध
ु की इच्छा से
एकत्र हुए र्ेरे तर्ा पाण्डु के पत्रु ों ने
क्या मकया ?
टीका
श्रील व्यासदेव भगवद गीता के प्रर्र्
अध्याय र्ें उन घटनाओ ं को प्रकट
कर रहे हैं मजनका सर्बन्ध भगवान
कृष्ट्ण और अजनमु के सवं ाद से है जो
यद्ध
ु के पहले हुआ |इस कर्ा का
उद्देश्य भगवान कृष्ट्ण और अजमनु के
संवाद का गणु गान करना है | २७
श्लोकों तक यह वणमन है |
यह जानते हुए की भगवान् कृष्ट्ण
अजमनु के सार् सारमर् रूप र्ें हैं
धतृ राष्ट्र को अपने पत्रु ों की मवजय के
सम्बन्ध र्ें संदहे हुआ इसमलए उसने
संजय से प्रश्न मकया |वस्ततु : ऋमि
वैशम्पायन जन्र्ेजय को यह सब
वतृ ातं सनु ा रहे हैं |
“यद्ध
ु के इच्छा से कुरुक्षेत्र र्ें एकमत्रत
हुए र्ेरे पत्रु ों और पाडं वों ने क्या मकया
?”
“आप पहले ही कह चक ु े हैं मक वे
यद्ध
ु करने के मलए इकट्ठे हुए र्े,
इसमलए वे मनमश्चत यद्ध ु करें ग।े
आपका यह पछू ने से क्या अमभप्राय
है मक उन्होंने क्या मकया? ”
“ क्योंमक यह यद्ध ु कुरुक्षेत्र र्ें होने जा
रहा है जो की एक धर्म क्षेत्र है |
श्रमु तओ ं र्ें ऐसा कहा गया है की : यद्
अनु कुरुक्षेत्रं देवानां
देव-यजनं सवेिां भतू ानां ब्रह्म-सदनर््
कुरुक्षेत्र ,देवताओ ं के मलए,देव तल्ु य
र्नष्ट्ु यों के द्वारा यज्ञों का स्र्ान है |
सभी जीवों के मलए यह ब्रहर् का
स्र्ान है |
जाबाल उपमनिद् १
तो इससे हर् सर्झ सकते हैं यह
स्र्ान धर्म की वमृ द्ध करने के मलए
प्रमसद्द हो गया र्ा |
तो क्या इस स्र्ान के प्रभाव से र्ेरे पत्रु
पाडं वों से अपनी शत्रतु ा को त्याग देंगे
और राज्य पाडं वों को दे देंगे ?
या हो सकता है की पाडं व जो सदा
ही धर्मपरायण हैं वह इस धर्मक्षत्रे र्ें
मवचार कर लें की वंश परम्परा को
यद्ध
ु के द्वारा ध्वँस करने के अधर्म से
तो से वन र्ें जाना ही श्रेयस्कर है ?
हे संजय! व्यास के कृपा से आपने
सब प्रकार के राग और द्वेि को मवनष्ट
कर मलया है इसमलए आप र्झु सत्य
बताएं |”
यह उल्लेख नहीं करके मक पाडं व भी
उनके सम्बन्धी र्े और के वल अपने
पत्रु ों को ही अपने सम्बन्धी के रूप र्ें
उल्लेख करके ,वह पाडं वों के प्रमत
अपने द्रोह को प्रकट कर रहे हैं |
“धान के खेत र्ें जो खरपतवार होती
है और जो धान के सर्ान तो लगती
है परन्तु धान के उगने र्ें प्रमतरोध ही
उत्पन्न करती है उसक अन्न्तोगत्वा
मनर्मल ू न कर मदया जाता है |उसी
प्रकार धर्म के इस खेत र्ें तम्ु हारे पत्रु
जो धर्ामभास र्ात्र हैं और धर्म
मवरोधी हैं उनका मनमश्चत ही मवनाश
हो जाएगा |”
यह धर्म क्षेत्र शब्द का सारास्वत
अर्म है मजसे धतृ राष्ट्र के द्वारा ही
बोला गया |

Purport
भगवद्गीता एक बहुपम त आमस्तक
मवज्ञान है जो गीता - र्हात्र्य र्ें
सार रूप र्ें मदया हुआ है । इसर्ें यह
उल्लेख है मक र्नष्ट्ु य को चामहए मक
वह श्रीकृष्ट्ण के भक्त की सहायता से
संवीक्षण करते हुए भगवद्गीता का
अध्ययन करे और स्वार्म प्रेररत
व्याख्याओ ं के मबना उसे सर्झने का
प्रयास करे । अजमनु ने मजस प्रकार से
साक्षात् भगवान् कृष्ट्ण से गीता सनु ी
और उसका उपदेश ग्रहण मकया, इस
प्रकार की स्पष्ट अनभु मू त का
उदाहरण भगवद्गीता र्ें ही है । यमद
उसी गरुु -परम्परा से, मनजी स्वार्म से
प्रेररत हुए मबना, मकसी को
भगवद्गीता सर्झने का सौभाग्य प्राप्त
हो तो वह सर्स्त वैमदक ज्ञान तर्ा
मवश्र्व के सर्स्त शास्त्रों के अध्ययन
को पीछे छोड़ देता है । पा क को
भगवद्गीता र्ें न के वल अन्य शास्त्रों
की सारी बातें मर्लेंगी अमपतु ऐसी
बातें भी मर्लेंगी जो अन्यत्र कहीं
उपलब्ध नहीं हैं । यही गीता का
मवमशष्ट र्ानदण्ड है । स्वयं भगवान्
श्रीकृष्ट्ण द्वारा साक्षात् उच्चररत होने
के कारण यह पणू म आमस्तक मवज्ञान
है ।
र्हाभारत र्ें वमणमत धतृ राष्ट्र तर्ा
संजय की वातामएँ इस र्हान दशमन के
र्लू मसद्धान्त का कायम करती हैं ।
र्ाना जाता है मक इस दशमन की
प्रस्तमु त कुरुक्षेत्र के यद्ध
ु स्र्ल र्ें हुई
जो वैमदक यगु से पमवत्र तीर्मस्र्ल
रहा है । इसका प्रवचन भगवान् द्वारा
र्ानव जामत के पर्-प्रदशमन हेतु तब
मकया गया जब वे इस लोक र्ें स्वयं
उपमस्र्त र्े ।
धर्मक्षत्रे शब्द सार्मक है, क्योंमक
कुरुक्षेत्र के यद्ध
ु स्र्ल र्ें अजमनु के
पक्ष र्ें श्री भगवान् स्वयं उपमस्र्त र्े
। कौरवों का मपता धतृ राष्ट्र अपने
पत्रु ों की मवजय की सम्भावना के
मविय र्ें अत्यमधक समं धग्ध र्ा ।
अतः इसी सन्देह के कारण उसने
अपने समचव से पछ ू ा, " उन्होंने क्या
मकया ?" वह आश्र्वस्र् र्ा मक
उसके पत्रु तर्ा उसके छोटे भाई
पाण्डु के पत्रु कुरुक्षेत्र की यद्ध ु भमू र्
र्ें मनणमयात्र्क संग्रार् के मलए एकत्र
हुए हैं । मिर भी उसकी मजज्ञासा
सार्मक है । वह नहीं चाहता र्ा की
भाइयों र्ें कोई सर्झौता हो, अतः
वह यद्ध ु भमू र् र्ें अपने पत्रु ों की
मनयमत (भाग्य, भावी) के मविय र्ें
आश्र्वस्र् होना चाह रहा र्ा । चमँू क
इस यद्धु को कुरुक्षेत्र र्ें लड़ा जाना
र्ा, मजसका उल्लेख वेदों र्ें स्वगम के
मनवामसयों के मलए भी तीर्मस्र्ल के
रूप र्ें हुआ है अतः धतृ राष्ट्र
अत्यन्त भयभीत र्ा मक इस पमवत्र
स्र्ल का यद्धु के पररणार् पर न
जाने कै सा प्रभाव पड़े । उसे भली
भाँमत ज्ञात र्ा मक इसका प्रभाव
अजमनु तर्ा पाण्डु के अन्य पत्रु ों पर
अत्यन्त अनक ु ू ल पड़ेगा क्योंमक
स्वभाव से वे सभी पण्ु यात्र्ा र्े ।
सजं य श्री व्यास का मशष्ट्य र्ा, अतः
उनकी कृपा से सजं य धतृ राष्ट्र ने
उससे यद्ध ु स्र्ल की मस्र्मत के मविय
र्ें पछू ा ।
पाण्डव तर्ा धतृ राष्ट्र के पत्रु , दोनों
ही एक वंश से सम्बमन्धत हैं, मकन्तु
यहाँ पर धतृ राष्ट्र के वाक्य से उसके
र्नोभाव प्रकट होते हैं । उसने जान-
बझू कर अपने पत्रु ों पर धतृ राष्ट्र के
वाक्य से उसके र्नोभाव प्रकट होते
हैं । उसने जान-बझू कर अपने पत्रु ों
को कुरु कहा और पाण्डु के पत्रु ों को
वंश के उत्तरामधकार से मवलग कर
मदया । इस तरह पाण्डु के पत्रु ों
अर्ामत् अपने भतीजों के सार्
धतृ राष्ट्र की मवमशष्ट र्नःमस्र्मत
सर्झी जा सकती है । मजस प्रकार
धान के खेत से अवामं छत पोधों को
उखाड़ मदया जाता है उसी प्रकार इस
कर्ा के आरम्भ से ही ऐसी आशा
की जाती है मक जहाँ धर्म के मपता
श्रीकृष्ट्ण उपमस्र्त हों वहाँ कुरुक्षेत्र
रूपी खेत र्ें दयु ोधन आमद धतृ राष्ट्र
के पत्रु रूपी अवामं छत पौधों को
सर्लू नष्ट करके यमु धमिर आमद
मनतान्त धामर्मक परुु िों की स्र्ापना
की जायेगी । यहाँ धर्मक्षत्रे े तर्ा
कुरुक्षेत्रे शब्दों की, उनकी
एमतहामसक तर्ा वैमदक र्हत्ता के
अमतररक्त, यही सार्मकता है ।

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