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कऺा - IX
यचनाकाय ऩरयचम
यसखान
यसखान एक कृष्ण बक्त भुस्लरभ
कवव थे। उनका जन्भ 1533 के
आसऩास उत्तय-प्रदेश के हयदोई स्जरे
भें हुआ था। उनकी भत्ृ मु सन 1628
के रगबग भानी जाती है । उनका
भूर नाभ सैमद इब्राहहभ था। कवव
यसखान बस्क्तकार की काव्मधाया के
प्रभख ु कववमों भें से एक हैं । इततहास
भें यसखान को ‘यस की खान’ कहा
गमा है । इनके काव्म भें बस्क्त व
श्ॊ ग
ृ ाय यस, दोनों प्रधानता से मभरते
हैं ।
• यसखान कृष्ण-बक्त हैं औय उनके सगण ु औय ननगुण
ननयाकाय रूऩ भें दे खते हैं। उनके काव्म भें श्रीकृष्ण के
प्रनत जो बक्क्त-बावना अथवा प्रेभ है , वह अत्मॊत दर ु ब ु
है। वह अऩनी यचनाओॊ भें कृष्ण को प्रेभ कयते हैं औय
ननयॊ तय उनके रूऩ-सौंदमु, याधा-कृष्ण प्रेभ, गोऩी-कृष्ण
प्रेभ, उनकी फाॉसयु ी, उनके कुण्डर, उनके नेत्रों का वणुन
कयने भें भग्न यहते हैं।
सज ु ान यसखान एवॊ प्रेभवाटिका उनकी भख् ु म कृनतमाॉ
हैं। उनकी यचनाओॊ का सॊग्रह ‘यसखान यचनावरी’ भें
मभरता है। कृष्ण-बक्त कववमों भें इनका स्थान प्रभख ु
है। इन्होंने ब्रज बाषा का कापी सयस औय भनोयभ
प्रमोग ककमा है , क्जसभे कहीॊ बी शब्दों मा ऻान का
टदखावा नहीॊ टदखता है ।
सवैमा – 1
भानष
ु हौं तो वही यसखानन फसौं ब्रज गोकुर गाॉव के ग्वायन।
जौ ऩसु हौं तो कहा फस भेयो चयौं ननत नॊद की धे नु भॉझायन॥
ऩाहन हौं तो वही गगरय को जो ककमो हरयछत्र ऩयु ॊ दय धायन।
जौ खग हौं तो फसेयो कयौं मभमर कामरॊदी कूर कदॊ फ की डायन।
बावाथु- 1
महाॉ ऩय यसखान ने ब्रज के प्रनत
अऩनी श्रद्धा का वणुन ककमा है ।
चाहे भनष्ु म का शयीय हो मा ऩशु
का; हय हार भें ब्रज भें ही ननवास
कयने की उनकी इच्छा है । मटद
भनुष्म हों तो गोकुर के ग्वारों के
रूऩ भें फसना चाटहए। मटद ऩशु हों
तो नॊद की गामों के साथ चयना
चाटहए। मटद ऩत्थय हों तो उस
गोवधुन ऩहाड़ ऩय होना चाटहए
क्जसे कृष्ण ने अऩनी उॊ गरी ऩय
उठा मरमा था। मटद ऩऺी हों तो
उन्हॊ मभन ु ा नदी के ककनाय कदम्फ
की डार ऩय फसेया कयना ऩसॊद हैं ।
सवैमा - 2
मा रकुटी अरु काभरयमा ऩय याज ततहूॉ ऩयु को तस्ज डायौं।
आठहुॉ मसवि नवौ तनधध के सख
ु नॊद की गाइ चयाइ बफसायौं॥
यसखान कफौं इन आॉखखन सौं, ब्रज के फन फाग तड़ाग तनहायौं।
कोहटक ए करधौत के धाभ कयीर के कॊ ु जन ऊऩय वायौं॥
बावाथथ :- प्रलततु ऩॊस्क्तमों भें कवव
यसखान का बगवान श्ी कृष्ण एवॊ
उनसे जुड़ी वलतुओॊ के प्रतत फड़ा गहया
रगाव दे खने को मभरता है । वे कृष्ण
की राठी औय कॊफर के मरए तीनों
रोकों का याज-ऩाठ तक छोड़ने के
मरए तैमाय हैं । अगय उन्हें नन्द की
गामों को चयाने का भौका मभरे, तो
इसके मरए वो आठों मसविमों एवॊ नौ
तनधधमों के सख ु को बी त्माग सकते
हैं। जफ से कवव ने ब्रज के वनों,
फगीचों, ताराफों इत्माहद को देखा है , वे
इनसे दयू नहीॊ यह ऩा यहे हैं । जफ से
कवव ने कयीर की झाड़ड़मों औय वन
को दे खा है , वो इनके ऊऩय कयोड़ों सोने
के भहर बी न्मोछावय कयने के मरए
तैमाय हैं ।
ऩद – 3
भोयऩखा मसय ऊऩय याखखहौं, गॊज
ु की भार गयें ऩहहयौंगी।
ओहि वऩतॊफय रै रकुटी फन गोधन ग्वायतन सॊग फपयौंगी॥
बावतो वोहह भेयो यसखातन सों तेये कहे सफ लवाॊग कयौंगी।
मा भयु री भयु रीधय की अधयान धयी अधया न धयौंगी॥
बावाथथ :- प्रलतत
ु ऩॊस्क्तमों भें यसखान ने
कृष्ण से अऩाय प्रेभ कयने वारी गोवऩमों की
दशा के फाये भें फतामा है | महाॉ गोऩी दस ू यी
गोऩी से कह यही हैं फक भैं अऩने मसय ऩय
श्ी कृष्ण की तयह भोयऩॊख से फना भुकुट
ऩहन रॉ ू गी। अऩने गरे भें कुॊज की भारा बी
ऩहन रॉ ू गी । उनके सभान ऩीरे वलर ऩहन
रें गी औय अऩने हाथों भें राठी रे कय वन भें
ग्वारों के सॊ ग गामें चयाएॊगी। कृष्ण भे ये
भन को फहुत बाते हैं इसमरए उनका अनुबव
ऩाने के मरए भैं साया लवाॉग धरॉगी | भगय,
भुझे कृष्ण के होठों ऩय यखी हुई भुयरी अऩने
होठों से रगाने के मरए भत कहना क्मोंफक
भैं इसे नहीॊ धायण करॉगी | इसी भुयरी की
वजह से कृष्ण हभसे दूय हुए हैं ।
गोवऩमों को रगता है फक श्ी कृष्ण भुयरी से
फहुत प्रेभ कयते हैं औय उसे हभे शा अऩने
होठों से रगाए यहते हैं , इसीमरए वे भुयरी को
अऩनी सौतन मा सौत की तयह दे खती हैं ।
ऩद – 4
काननन दै अॉगयु ी यटहफो जफहीॊ भयु री धुनन भॊद फजैहै।
भोहनी तानन सों यसखानन अिा चटि गोधन गैहै तौ गैहै॥
िे रय कहौं मसगये ब्रजरोगनन काक्हह कोऊ ककतनो सभुझैहै।
भाइ यी वा भख ु की भस ु कानन सम्हायी न जैहै , न जैहै, न जैहै॥
बावाथथ :- यसखान ने इन ऩॊस्क्तमों भें गोवऩमों
की वववशता का वणथन फकमा है |जफ
कृष्ण अऩनी भुयरी फजाएॉगे , तो वो उससे
तनकरने वारी भधुय ध्वतन को नहीॊ सुनेंगी। वे
अऩने कानों ऩय हाथ यख रें गी। उनका भानना
है फक बरे ही, कृष्ण फकसी अटायी ऩय चि
कय, अऩनी भुयरी की भधुय गोधन-तान क्मों
न फजाएॉ , वे तफ बी ध्मान नहीॊ दें गी | हे
गोकुरवामसमों ! भैं जोय-ज़ोय से ऩुकाय कय
कह यही हूॉ,चाहे तुभ कर को फकतना बी
सभझा रो,कृष्ण साभने होंगे औय उनकी
भनभोहक भुलकान के कायण हभ अऩने वश
भें नहीॊ यह ऩाएॉगी। । गोवऩमों के अनुसाय,
कृष्ण की भुलकान इतनी प्मायी रगती है फक
उसे दे ख कय कोई बी उनके वश भें आए
बफना नहीॊ यह सकता है । इसी कायणवश,
गोवऩमाॉ कह यही हैं फक श्ी कृष्ण का भोहक
भुख दे ख कय, उनसे ख़ुद को बफल्कुर बी
सॊ बारा नहीॊ जाएगा। वो सायी राज-शभथ
छोड़कय श्ी कृष्ण की ओय खखॊची चरी
जाएॉगी।
ऩाठाॊत प्रश्नोत्तय
1. ब्रजबूमभ के प्रतत कवव का प्रेभ फकन-फकन रऩों भें अमबव्मक्त हुआ है
?
उत्तय:- ब्रजबमू भ के प्रतत कवव का प्रेभ अनेक रऩों भें अमबव्मक्त हुआ है
एक ओय जहाॉ कवव को ब्रजबूमभ से गहया रगाव होने के कायण वे अगरे
जन्भ भें ब्रजबूमभ भें यहने के मरए उन्हें ऩश,ु ऩऺी औय ऩत्थय फनना
बी लवीकामथ है । ऩशु का जन्भ मभरे तो वे वासुदेव की गामों के फीच
घभ ू कय ब्रज का आनॊद प्राप्त कयना चाहते हैं, ऩऺी फने तो कदम्फ के ऩेड़
ऩय फैठकय कृष्ण की फार रीराओॊ का आनॊद उठाना चाहते हैं | महद
ऩत्थय बी फने तो गोवधथन ऩवथत का क्मोंफक उसे कृष्ण ने अऩनी उॉ गरी
ऩय उठामा था। इस प्रकाय हय एक रऩ भें वे ब्रजबूमभ भें ही यहना चाहते
हैं ।
2. कवव का ब्रज के वन, फाग औय ताराफ को तनहायने के ऩीछे क्मा
कायण हैं ?
उत्तय:- कवव कृष्ण से जुडी हय वलतु से अऩाय प्रेभ कयते हैं । स्जस वन
फाग, औय ताराफ भें कृष्ण ने अऩनी नाना प्रकाय की क्रीड़ाएॉ की है उन्हें
कवव तनयॊ तय तनहायना चाहते हैं क्मोंफक इससे उन्हें कृष्ण की सभीऩता की
हदव्म अनब ु तू त होती है ।
3. एक रकुटी औय काभरयमा ऩय कवव सफ कुछ न्मोछावय कयने को
क्मों तैमाय है ?
उत्तय:- कवव के मरए सफसे भहत्वऩण
ू थ है – कृष्ण। इसमरए कृष्ण की
एक-एक चीज़ उसके मरए भहत्वऩूण थ औय प्मायी है । कृष्ण गामों को
चयाते सभम रकुटी औय काभरयमा अऩने साथ यखते थे। मह कोई
साधायण वलतुएॉ न होकय कृष्ण से सम्फॊधधत वलतुएॉ है । मही कायण है
फक कृष्ण की राठी औय कॊफर के मरए कवव अऩना सवथलव न्मोछावय
कयने को तैमाय है ।
3. उऩमथक्
ु त प्रतीक धचरों भें से फकसी एक धचर को
आकषथक रऩ से कॉऩी भें फनाएॉ |