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Blue Green Watercolor Flower Creative Portfolio Presentation
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By Shaik Atika
2024
एकलव्य
एकलव्य महाभारत का एक पात्र है। वह राजा हिरण्य
धनु नामक निषाद के पुत्र थे।, एकलव्य का मूल नाम
अभिद्युम्न था।
एकलव्य को अप्रतिम लगन के साथ स्वयं सीखी गई
धनुर्विद्या और गुरुभक्ति के लिए जाने जाते है। पिता की
मृत्यु के बाद वह श्रृंगबेर राज्य के शासक बने। अमात्य
परिषद की मंत्रणा से उनहोने न के वल अपने राज्य का
संचालन किया ,बल्कि निषादों की एक सशक्त सेना
गठित कर के अपने राज्य की सीमाओँ का विस्तार
किया।
गुरु द्रोणाचार्य
द्रोणाचार्य संज्ञा पुं॰ [सं॰] महाभारत में प्रसिद्ध ब्राह्मण
वीर जिनसे कौरवों और पांडवों ने अस्त्रशिक्षा पाई थी ।
विशेष— इनकी कथा इस प्रकार है । गंगाद्वार (हरद्वार) के
पास भरद्वाज नाम के एक ऋषि रहते थे । वे एक दिन
गंगा- स्नान करने जाते थे, इसी बीच घृताची नाम की
अप्सरा नहाकर निकल रही थी । उसका वस्त्र छू टकर
गीर पड़ा । ऋषि उसे देखकर कामार्त हुए और उनका
वीर्यपात हो गया । ऋषि ने उस वीर्य को द्रोण नामक
यज्ञपात्र मे रख छोड़ा । उसी द्रोण से जो तेजस्वी पुत्र
उत्पन्न हुआ उसका नाम द्रोण पड़ा ।
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महाभारत में द्रोणाचार्य अर्जुन को धनुर्विद्या में सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहते थे। इस वजह से गुरु द्रोण ने एकलव्य को ज्ञान देने से मना कर दिया था। इसके बाद एकलव्य ने द्रोणाचार्य की
मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। लगातार अभ्यास करने से वह भी धनुर्विद्या सीख गया।
एक दिन पांडव और कौरव राजकु मार गुरु द्रोण के साथ शिकार के लिए पहुंचे। राजकु मारों का कु त्ता एकलव्य के आश्रम में जा पहुंचा और भौंकने लगा। कु त्ते के भौंकने से एकलव्य
को अभ्यास करने में परेशानी हो रही थी। तब उसने बाणों से कु त्ते का मुंह बंद कर दिया। एकलव्य ने इतनी कु शलता से बाण चलाए थे कि कु त्ते को बाणों से किसी प्रकार की चोट
नहीं लगी।
जब कु त्ता को गुरु द्रोण ने देखा तो वे धनुर्विद्या का ये कौशल देखकर दंग रह गए। तब बाण चलाने वाले की खोज करते हुए वे एकलव्य के पास पहुंच गए। गुरु द्रोण को लगा कि
एकलव्य अर्जुन से श्रेष्ठ बन सकता है। तब उन्होंने गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांग लिया था और एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर गुरु को दे भी दिया। अंगूठे बिना भी एकलव्य
धनुर्विद्या में दक्ष हो गया था।
एकलव्य हिरण्य धनु नामक निषाद का पुत्र था। उसके पिता श्रृंगवेर राज्य के राजा थे, उनकी मृत्यु के बाद एकलव्य राजा बना। उसने निषाद भीलों की सेना बनाई और अपने राज्य
का विस्तार किया। एक प्रचलित कथा के अनुसार एकलव्य श्रीकृ ष्ण को शत्रु मानने वाले जरासंध के साथ मिल गया था। जरासंध की सेना की तरफ से उसने मथुरा पर आक्रमण भी
किया। एकलव्य ने यादव सेना के अधिकतर योद्धाओं को मार दिया था।
श्रीकृ ष्ण जानते थे, अगर एकलव्य को नहीं मारा गया तो यह महाभारत युद्ध में वह कौरवों की ओर से लड़ेगा और पांडवों की परेशानियां बढ़ा सकता है। श्रीकृ ष्ण और एकलव्य के
बीच युद्ध हुआ, जिसमें एकलव्य मारा गया।
एकलव्य के बाद उसका पुत्र के तुमान राजा बना। महाभारत युद्ध में के तुमान कौरवों की सेना की ओर से पांडवों से लड़ा था। इसका वध भीम ने किया था।
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