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िवषक या
एक अनोखी ेम कहानी
पु तक-V
सूचना
इस पु तक को पढ़ने के िलए आपको इस ंखला क पूव पु तके पढ़ने क
आव यकता नह ह ले कन य द आप इस महागाथा को पूरा पढ़ना चाहते ह तो नीचे दी
गयी पु तक को भी अव य पढ़े । यह पु तक का पिनक ह और इसका कसी भी घटना से
कोई स ब ध नह ह ।
1. शौय एक यो ा
2. परा मी महादेव
3. शंकर ीप
4. वायुपु
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सभी ने उस सोते ए बूढ़े आदमी को घेर िलया । एक सैिनक ने अपनी तलवार को बूढ़े
आदमी के गले पर लगाया । बूढ़े आदमी क न द खुली । उसने वयं को चार तरफ से
सैिनको ारा िघरा आ पाया । बूढ़ा आदमी धीरे से खड़ा आ । सैिनक ने तलवार अभी
भी उसके गले पर रखी ई थी ।
“ये सब या है?” बूढ़े आदमी ने पूछा ।
“हम जानते ह क तुम कौन हो,” तलवार िलए सैिनक ने कहा ।
“अ छा...” बूढ़े आदमी ने कहा ।
“और तुम भी अ छी तरह से जानते हो क हम कौन ह और यहाँ य आए ह?” तलवार
िलए सैिनक ने कहा ।
“हाँ जानता ,ँ ” बूढ़े आदमी ने कहा ।
“तो तु हारे िलए अ छा यही होगा क तुम वो चीज हम दे दो और हम तु हे सुरि त छोड़
दगे,” सैिनक ने कहा ।
“ऐसा नह हो सकता,” बूढ़े आदमी ने कहा ।
“तो मरो...” सैिनक ने कहा और वार करने के िलए अपनी तलवार को पीछे खंचा ।
इससे पहले क वो सैिनक वार करता बूढ़ा आदमी एक प ी म बदल गया और
उड़ता आ वृ पर जा बैठा । सभी सैिनक वृ क तरफ देखने लगे । घनी पि य और
शाखाओ के कारण प ी को नीचे से ढू ंढना अ यंत क ठन था । अचानक एक प ी नीचे क
तरफ आया और जमीन पर आकर एक बाघ म प रव तत हो गया । सैिनको ने अब बाघ को
घेर िलया । सभी सैिनको ने अपनी तलवार को बाएँ हाथ म मजबूती से पकड़ रखा था
और च क े होकर बाघ को देख रहे थे ।
सभी साथ-साथ आगे बाघ क तरफ बढ़ने लगे । बाघ एक सैिनक क तरफ
उछला और अपने पंजो से उसके चेहरे पर वार कया । इसी बीच पीछे खड़े सैिनको ने
अपनी तलवार से बाघ पर वार कया । बाघ तुरंत पीछे मुड़ा और सैिनक पीछे हट गये ।
िजस सैिनक पर बाघ ने हमला कया था वह अब दद से कराह रहा था । उसके चेहरे पर
गहरी खंरोचे लगी ई थी िजनमे से खून िनकलकर उसके चेहरे पर फै ल रहा था ।
बाघ क पीठ पर भी चोटे लगी ई थी । बाघ गुराता आ सैिनको क तरफ
गु से से देख रहा था । सैिनक बाघ के गु से और भयानक दांत को देखकर सहम गए थे
ले कन उनके पास लड़ने के िसवा और कोई रा ता नह था । सैिनको ने अपने सामने खड़े
सैिनको से नजरे िमलाई और िवशेष इशारा कया । अब एक सैिनक तलवार लेकर तेजी से
पैरो को जमीन पर पटकते ए बाघ क तरफ बढ़ा । जैसे ही वो बाघ के नजदीक आया बाघ
ने उसक जांघ को मुँह म दबा िलया । बाघ के ल बे दांत उसक ह ीय तक घुस गये थे ।
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खड़ा था और राजकु मारी को देख रहा था । राजकु मारी उसके पास गई और प उसके
हाथ म थमा दया ।
“यह या है?” राजकु मार ने प को देखते ए पूछा ।
“िनमं ण प ह,” राजकु मारी ने कहा ।
“ कसका?” राजकु मार ने पूछा ।
“हमारे वयंवर का, और उसी दन वयंवर के बाद मेरे बड़े भैया का रा यिभषेक होगा,”
राजकु मारी ने शमाते ए कहा ।
राजकु मार प खोलकर उसे पढ़ने लगा ।
“आप आएंगे ना,” राजकु मारी ने पूछा ।
“अव य,” राजकु मारने कहा ।
“मुझे एक और बात पूछनी थी,” राजकु मारी ने कहा ।
“ या?” राजकु मार ने कहा ।
“आपका नाम या है?” राजकु मारी ने कहा ।
“ये तो आप वयंवर के दन जान ही जाएंगी,” राजकु मार ने कहा ।
राजकु मारी मु कु राते ए रथ क तरफ बढ़ी और अपने िपता के साथ माधवगढ़ क
ओर थान कया ।
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“कै से ना आता, आपको वापस सुजानगढ़ ले जाने का यह मौका म नह छोड़ सकता था,”
राजकु मार ने कहा ।
राजकु मार क बात सुनकर राजकु मारी अ यंत स ई।
“भगवान आपका साथ दे,” राजकु मारी ने कहा और वापस महल म चली गई ।
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।
“चाहे तो मुझे मार दो ले कन म कसी मिण के बारे म नह जानता ,ं ” िवषैना के हाथ को
अपने गले क तरफ ध ा देते ए राजकु मार ने कहा ।
राजकु मार के ध ा देने से खंजर और अंदर घुसा िजससे अब राजकु मार के गले पर
र एक रे खा के प म बह पड़ा । िवषैना समझ गई थी क राजकु मार को मिण के बारे म
कु छ भी पता नह है । िवषैना इस चंतन म थी क वह अब मिण तक कै से प च ं ेगी और
राजकु मार इस चंतन म था क यह क या कस मिण के बारे म बात कर रही है । कु छ
समय तक दोन उसी अव था म थे फर िवषैना ने वहां से जाने के िलए उठने का यास
कया, ले कन उसक कलाई अभी भी राजकु मार ने पकड़ रखी थी ।
िवषैना ने अपना हाथ ख चा । हाथ ख चने से वह खंजर राजकु मार के गले से थोड़ा
दूर हो गया ले कन उसका हाथ अभी भी राजकु मार ने पकड़ रखा था ।
“मेरा हाथ छोड़ो,” िवषैनाने आंखे दखाते ए राजकु मार से कहा ।
“हम एक बार कसी का हाथ पकड़ लेते ह तो इतनी आसानी से तो छोड़ते नह है,”
राजकु मार ने शायरी के अंदाज म कहा ।
िवषैनाने हाथ छु ड़ाने के िलए बल लगाया ले कन राजकु मार ने उसका हाथ मरोड़
दया िजससे वह खंजर िगर पड़ा और िवषैना भी िब तर पर िगर पड़ी । अब राजकु मार
खड़ा आ और उसने िब तर पर िबछी ई क बल लेकर िवषैना के हाथ और पैर बांध
दए।
“तुम य द राजकु मार हो तो तु हे ये जान लेना चािहए क म भी एक राजकु मारी ं और
मेरे बड़े भैया को य द इसे बारे म पता चला तो यह तु हारे और तु हारे पूरे रा य के िलए
अ छा नह होगा,” िवषैना ने कहा ।
“य द ऐसा है तो मुझे कोई आपि नह है य क म भी तु हारे भैया से िमलना चाहता ,ं
िववाह के िलए तु हारा हाथ जो मांगना है,” राजकु मार ने कहा और क का ार बंद
करके चला गया ।
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तु हारे राजा को यह दखाना था और हां अभी तो म यहां से राजकु मारी को िबना िलए
ही जा रहा ं य क मुझे उसक कभी चाह थी ही नह ले कन मब त शी वापस आऊंगा
वो लेने िजसक मुझे चाह है...तु हारा रा य ।”
अपनी बात पूरी करके युवराज अपने घोड़े क तरफ बढ़ने लगा ।
“ को...,” मारीच ने कहा ।
युवराज चलते-चलते क गया ।
मारीच चलकर उस कपड़े से बनी छत के पास गया और युवराज क िगरी ई धनुष
उठाकर युवराज राजे के पास गया ।
मारीच कहने लगा “मेरे ारा रिचत इस तृतीय चरण को पूण करना कसी
सामा य यो ा के बस क बात नह है । तुमने इस अ व थ अव था म भी इस चरण को
पूण कया है िजसके िलए तुम राजकु मारी को पाने के हकदार दो ले कन तुमने उसके िलए
मना कर दया । ऐसा महान काय करने के प ात् य द तुम यहां से खाली हाथ चले गए तो
यह इस रा य के िलए अपमान क बात होगी, इसिलए म चाहता ं क तुम इस शूलपाणी
धनुष को उपहार प म वीकार करो ।”
युवराज राजे ने िबना सोचे िसर झुकाकर उस धनुष को वीकार कर िलया और
कहने लगा “मुझे आपसे एक बात पूछनी थी ।”
“हां... िनःसंकोच पूछो,” मारीच ने कहा ।
“आपको कै से पता चला क मेरा बाण सही लगा ह?” युवराज ने पूछा ।
मारीच ने हंसते ए कहा “तु हारे बाण ने जैसे ही छत को पार कया उसी समय
घूंघ ओ क विन क गई ।”
युवराज भी हंसते ए अपने घोड़े पर सवार आ और राजधानी क तरफ थान
कया ।
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राजकु मार देवरथ तेजी से चलते ए सभा भवन म प चं ा । सभा भवन म जाकर
उसने अपने िपता को आवाज लगाई । ब त समय बाद भी कोई जवाब ना आने पर
राजकु मार वह पर बैठ गया। कु छ ही समय म मं ी जसवंत और राजकु मार क ब ड़ी बहन
राजकु मारी संयु ा दोन सभा भवन के अंदर आए।
“ या आ देवरथ?” संयु ा ने पूछा ।
“िपताजी कहां है?” राजकु मार ने पूछा ।
“वो तो देश मण के िलए िनकल चुके ह, अब वो कई दन बाद आएंगे,” संयु ा ने कहा ।
“आप यहां या कर रहे ह राजकु मार, या आप वयंवर म नह गए?” मं ी जसवंत ने
पूछा ।
“नह ,” राजकु मार ने जवाब दया ।
“पर तु आपको िपताजी से या काम था?” मं ी ने पूछा ।
“एक अ यंत मह वपूणकाय था,” देवरथ ने कहा ।
“ या रा य से जुड़ा कोई काय है या आपका कोई िनजी काय?” मं ी ने पूछा ।
“रा य से जुड़ा,” देवरथ ने कहा ।
“तब तो आप मुझसे कह सकते ह य क आपके िपता ने जाने से पूव राजकाय मुझे स पा
ह,” मं ी ने कहा ।
“मुझे नह लगता है क िजस िवषय म, म करना चाहता ं उसके बारे म आपको कु छ
ात होगा,” देवरथ ने कहा ।
“म आपका राजमं ी ,ं इस रा य के िवषय म िजतना आपके िपता को ात है उतना मुझे
भी ात है और इसी कारण वो अपनी अनुपि थित म यह काय मुझे स प कर गए ह,” मं ी
ने कहा ।
“ठीक है, पर तु यह बात हम अके ले म ही करनी चािहए,” राजकु मार ने कहा ।
राजकु मार क बात सुनते ही राजकु मारी संयु ा वहां से चली गई ।
“अब बताओ राजकु मार ऐसा कौनसा काय ह?” मं ी ने पूछा ।
“काय नह एक है,” राजकु मार ने कहा ।
“कौनसा ?” मं ी ने पूछा ।
“ या आप कसी मिण के बारे म जानते ह?” देवरथ ने पूछा ।
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राजकु मार क बात सुनकर मं ी के चेहरे पर चंता क रे खाएं दखने लगी । उसके
माथे पर पसीना आने लगा ।
“ या आप कसी मिण के बारे म जानते ह?” राजकु मार ने एक बार फर से पूछा ।
“कौनसी मिण?” मं ी ने चंितत मुख के साथ धीरे से कहा ।
“आप जानते ह मिण के बारे म आपके चेहरे पर चंता क रे खाएं प दखाई दे रही है क
आप इस बारे म कु छ िछपा रहे ह,” राजकु मार ने कहा।
“म कु छ भी नह िछपा रहा ,ं ” मं ी ने कहा ।
“तो फर ये या ह?” राजकु मार ने ार क तरफ इशारा करते ए कहा ।
ार पर दो सैिनक रि सय से बंधी ई िवषैना को लेकर आए ।
“ या आप जानते ह इसने कु छ समय पहले मेरी ह या करने का यास कया था?”
राजकु मार ने कहा ।
“हां... म जानता ं मिण के बारे म ले कन वो मेरी चंता का कारण नह है, मेरी चंता का
कारण तो यह है क या मुझे इस बारे म आपको बताना चािहए या नह ? इस बारे म
िसफ आपके िपता और मुझे ही पता है, य द मै आपको इस बारे म बता दूं तो पता नह
आपके िपता या कहगे?” मं ी ने कहा ।
“इस समय राजकाय का िज मा आप पर ह इसिलए अभी आप राजा ह और इस समय
येक िनणय लेना आपके हाथ म है,” राजकु मार ने कहा ।
“ठीक है...,” एक गहरी सांस लेते ए मं ी ने कहना ारं भ कया “ब त समय पहले क
बात है जब आप ब त छोटे थे । उस समय आपके िपता को िशकार का ब त शौक था ।
एक दन आपके िपता और म नागवन म िशकार खेलने गए ए थे। नागवन म एक बाघ का
पीछा करते ए ब त देर हो गई औरराि का समय हो गया। मने आपके िपता को वापस
महल म आने के िलए ब त कहा ले कन वो नह माने । अंधेरे म ब त थक जाने के बाद
उ ह ने रथ पर ही कु छ समय िव ाम करने का िनणय कया । जब हम दोन िव ाम कर
रहे थे तभी हम उस वन म ब त तेज रोशनी दखाई दी । वह रोशनी ब त दूर से आए रही
थी । हम दोन उस रोशनी क तरफ चल पड़े । रोशनी के ोत से कु छ ही दूरी पर हमने
रथ को रोक दया और हिथयार के साथ पैदल चलने लगे । एक वृ के पीछे िछपकर हमने
उस रोशनी के ोत को देखा । वो एक मिण थी िजससे यह अ यंत तेज काश फू ट रहा था
। उस मिण के पास एक ि बैठा आ था । वह ि मिण क शि से अपना प
बदल रहा था। यह देखकर हम चुपचाप वापस आ गए । वापस महल म आने के बाद मेरे
िलए तो सब कु छ सामा य ही था ले कन आपके िपता को उस मिण के ित गहरा लगाव
हो गया । उ ह ने उस मिण को पाने का िन य कर िलया । फर हमने नागवन म कु छ
गु चर लगाए । गु चर के ारा हम पता चला क नागवान म एक गु स यता रहती है ।
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युवराज राजे के राजकु मारी से िववाह पर मना करने के बाद सभी जा के लोग
और राजप रवार के सद य अभी भी मैदान म ही बैठे थे । राजा चं के तु के मुख पर ोध
अब भी था । जा के सभी लोग असमंजस म थे और आपस म बात कर रहे थे । सभी
वयंवर से जुड़े तक आपस म दे रहे थे । मं ी ग वन अपने हाथ म एक मोटी पु तक िलए
बैठा था और उसके प े तेजी से पलट रहा था । ब त समय तक ऐसा ही चलता रहा फर
ग वन उठ खड़ा आ ।
ग वन कहने लगा “मने राजपु तक िनयामवली म सभी िनयम का गहन अ ययन
कया और ब त ढू ंढा ले कन मुझे इस कार के धमसंकट क ि थित से िनपटने के िलए कु छ
भी नह िमला । अतःमने यह िनणय िलया है क वयंवर अब उसी कार आगे बढ़ेगा और
शेष दोन ितभािगय म से जो भी तृतीय चरण को पूण करे गा वो ही राजकु मारी से
िववाह करे गा ।”
मं ी ग वन के कहते ही मारीच मैदान म गया और एक चूहे क पूंछ पर पुनः धागा
बांधकर धागे के दूसरे छोर पर झुमके को बांध दया । अब झुमके के साथ बंधे ए चूहे को
वापस कपड़े से बनी छत पर रख दया । अब तृतीय चरण एक बार पुनः आरं भ कया गया
।
सुजानगढ़ का राजकु मार और सुरसेन दोन एक दूसरे को देखने लगे । कु छ ही समय
म सुरसेन खड़ा आ और कपड़े क छत के नीचे धनुष और बाण लेकर आ गया । उ सािहत
जा के लोग एक बार फर शांत हो गए । सुरसेन ने धनुष पर बाण चढ़ाया और धनुष को
आसमान क तरफ तान दया । अब उसने यंचा ख ची । अ यंत भार और यंचा के
अ यिधक तने होने के कारण सुरसेन के हाथो क मांसपेिशय म खंचाव होने लगा ।
सुरसेन छत से आ रही घूंघ ओ क विन पर यान क त करने का यास कर रहा
था ले कन चूहा इतनी तेजी से भाग रहा था क सुरसेन के िलए यान क त करना
अ यिधक क ठन होता जा रहा था । कु छ समय तक सुरसेन ने यान लगाने का यास
कया ले कन हाथो क मांसपेिशय पर पड़े बल के कारण उसके हाथो से बाण मु हो गया
। पलक झपकने से पहले ही बाण छत को चीरता आ आसमान म चला गया ।
जैसे ही बाण ने छत को पार कया उसी समय घूंघ ओ क विन क गई । सुरसेन
अ यंत स आ और अपनी जीत का ज मनाने लगा । मारीच ने कहना शु कया
“अंचलनगर ने युवराज सुरसेन तृतीय चरण म िवफल रहे अब सुजानगढ़ के राजकु मार क
बारी है ।”
यह सुनते ही सुरसेन को ोध आ गया और उसने तीखे वर म मारीच से कहा
“तुम यह कै से कह सकते हो क म िवफल हो गया?”
“यह तो तुम वयं ही देख लो,” मारीच ने छत क तरफ इशारा करते ए कहा ।
सुरसेन छत के ऊपर चढ़ा और वहां का दृ य देखकर तुरंत नीचे उतर गया । सभी
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दया ।”
“रजतगढ़ के राजकु मार देवरथ ने ऐसा कया,” गु चर ने जवाब दया ।
नागेश फर से अपने संहासन पर जाकर बैठ गया । नागेश ने सभी िवषक या
को अपने पास बुलाया ।
“अब तु हारे काय करने का समय आ गया है, तु हे उस राजकु मार देवरथ को यहां पर
लाना है और याद रहे क उस जीिवत लाना है, य क उसके ाण म लूंगा,” नागेश ने कहा
।
*****
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महाराज करगे ।”
राजा चं के तु अपने संहासन से खड़े ए । राजा के खड़े होते ही राजकु मार राघव
भी खड़ा हो गया । राजकु मार राघव इस समय ब त स दखाई पड़ रहा था । इसके
िवप रत राजा ब त िवचिलत दखाई पड़ रहे थे । ऐसा लग रहा था क मानो उ ह कोई
बलपूवक खड़ा कर रहा हो ।
राजा ने एक बार अि क तरफ देखा और फर सामने बैठी जा को संबोिधत
कया “आज राजकु मारी रोिहणी के वयंवर के इस शुभ अवसर पर म चं के तु इस रा य
और राज संहासन के बारे म ब त मह वपूण िनणय लेने वाला ं । राजगु अि के
आशीवाद से म यह घोषणा करता ं क राजकु मार राघव को अभी युवराज घोिषत नह
कया जाएगा ।”
यह सुनते ही पूरी जा दहल उठी । राजप रवार के सद य भी जा क भांित ही
दंग रह गए । राजकु मार राघव के मन म चल रहा सुनामी ब त िवशाल था ले कन उसे
देखना कसी के बस म ना था । सभी राजा चं के तु के मुख से िनकलने वाले अगले श द
को सुनने के िलए बैचैन थे ।
राजा ने कहना जारी रखा “िबना कसी ि को परखे इस संहासन पर बैठाना
इस रा य और रा य के लोग के साथ अ याय होगा। चाहे वो ि राजकु मार ही य ना
हो । इसिलए इसी समय से तीनो राजकु मार को इस रा य के अलग-अलग े म जाना
होगा और अपना जीवन सामा य ि क भांित तीत करना होगा । इस समय के
दौरान उनक पहचान भी उ ह गु रखनी होगी । इस परी ा के बाद इन तीन म से जो
इस रा य और रा य के लोगो के बारे म, उनक ि थित के बारे म और उनक
आव यकता के बारे म गहराई से जानकारी देगा और इस समय के दौरान जो जा के
लोगो से मै ीभाव बढ़ाएगा उसी को इस संहासन पर बैठाया जाएगा । इस दौरान तीनो
राजकु मार को अलग-अलग दशा म जाना होगा । दशा का चुनाव यादृिछक प से
कया जाएगा ।”
सभी लोग को राजा क बात सुनकर अपने कान पर िव ास नह हो रहा था ।
एक सैिनक हाथ म थाली िलए चबूतरे पर आया । थाली म तीन िच यां रखी ई थी ।
तीनो राजकु मार ने उसमे से एक-एक िच ी उठाई । राजा सबसे पहले राजकु मार राघव के
पास गए और उससे िच ी ले ली । राजा ने िच ी खोली और तेज वर म कहा “राजकु मार
राघव पूव दशा म जाएंगे।”
अब राजा मयूर वज के पास गए और उसके हाथ से िच ी लेकर कहा “राजकु मार
मयूर वज पि म क तरफ जाएंगे ।”
अब राजा भ के पास गए और िच ी लेकर कहा “राजकु मार भ दि ण दशा म
जाएंगे ।”
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सेवक हो, मेरा यहां तु हारे िसवा कोई और िम नह है अतः तुम मुझे देवरथ ही कहो,”
देवरथ ने कहा ।
“पर तु आप रजतगढ़ के राजकु मार ह आगे चलकर आप युवराज और फर राजा बनगे, म
ठहरा एक सामा य जंगल म रहने वाला ि आपने मुझे िम कह दया मेरे िलए यह
ब त ह पर तु मुझे अपनी जगह और पहचान नह भूलनी चािहए, म आपक िम ता के
यो य नह ,ं ” कुं दन ने कहा ।
“तुमने ये कै से कह दया क तुम मेरी िम ता के यो य नह हो, या िम ता दो ि य के
सामािजक और आ थक जीवन के आधार पर क जाती ह? मेरे गु ने मुझे यह िसखाया था
क िम ता और ेम म कोई छोटा या बड़ा नही होता ह,” देवरथ ने कहा ।
“स यवचन, आपने मुझे िम बनाकर बड़ा उपकार कया है मुझ पर, य द आपके िलए मुझे
अपने ाण भी देने पड़े तो म पीछे नह हटूंगा,” कुं दन ने कहा ।
“नह ... तुमने एक बार मेरे ाण क र ा क है, धम के अनुसार मेरे ाण तु हारे ही ह,”
देवरथ ने कहा ।
“पर तु ये तो बताओ क वो तु हे मारना य चाहते थे?” कुं दन ने पूछा ।
“अब या बताऊं तु हे कुं दन आज से पहले मेरे साथ ऐसा कु छ भी नह आ, एक मिण के
कारण कु छ दन पहले एक क या ने मेरे ाण लेने का यास कया और आज फर ऐसा
आ, जब से वह मिण मेरे जीवन म आई ह मेरे ाण पर संकट बढ़ गया है,”देवरथ ने कहा
।
“कौनसी मिण?” कुं दन ने पूछा ।
“मेरे साथ आओ,” कहकर देवरथ एक क क तरफ बढ़ा कुं दन ने भी उसका अनुसरण
कया । एक त भ के पीछे खड़ी िवषैना यह सब सुन रही थी ।
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रोते-रोते वह मयूर वज के सीने से िलपट गई । मयूर वजने उसक तरफ यान नह दया
वह उस फटे ए कपड़े क प ी बनाकर पैर पर बांध दया । कु छ ही समय म र का बहाव
क गया ।
अब दद भी कम पड़ गया । सािव ी ने वयं को संभाला और उस प थर का सहारा
लेकर बैठ गई । मयूर वज कु छ समय तक उसके पास बैठा रहा और फर उसे खड़ा करने
का यास कया । मयूर वज ने दोन हाथ से सािव ी के दोन कं धो को सहारा दया और
उसे खड़ा करने का यास कया। सािव ी खड़ी हो गई ले कन वह अपने बांए पैर के बल
पर ही खड़ी थी । दाएं पैर को जमीन पर टकाने का साहस वह नह जुटा पा रही थी ।
मयूर वज ने सािव ी को छोड़ दया और उससे अपना दांया पैर जमीन पर टकाने
को कहा । सािव ी ने पैर जमीन पर टकाया । पैर टकाते ही अ यंत दद के कारण उसका
संतुलन िबगड़ गया और वह नीचे िगरने लगी । पास खड़े मयूर वज ने उसे संभाला और
सािव ी उसक गोद म जा िगरी ।
मयूर वज ने उसे सहारा देकर वापस उसी प थर पर बैठा दया । सूया त हो गया
और अंधेरा जंगल म छाने लगा । कु छ देर तक िवचार करने के बाद मयूर वज ने कहा “म
तु हे उस अव था म यहां नह छोड़ सकता ,ं तु हारा घर कहां ह?”
“यह थोड़ी दूर ह,”सािव ी ने कहा ।
“तु हारे घर वाले भी परे शान ह गे, रात होने वाली है,” मयूर वजने कहा ।
“परे शान होने के िलए घर पर कोई नह है,” सािव ी ने कहा ।
“ य ?” मयूर वज ने पूछा ।
“एक दादी थी वो भी कु छ समय पहले वग िसधार गई,” सािव ी ने कहा ।
“तो इस हालत म घर पर तु हारा यान कौन रखेगा?” मयूर वज ने पूछा ।
“म वयं रख लूंगी,” सािव ी ने कहा ।
“तुम नह रख सकती,” मयूर वज ने जोर देकर कहा।
कु छ समय सोचने के बाद मयूर वज ने कहा “य द तुम चाहो तो मेरे साथ चल
सकती हो ।”
“पर तु म आपको जानती तक नह ,” सािव ी ने कहा ।
“म रजतगढ़ के राजकु मार देवरथ का िम ,ं मेरा नाम कुं दन ह, रजतगढ़ के महल म तुम
सुरि त रहोगी,” मयूर वज ने कहा ।
सािव ी खामोश रही । मयूर वज ने खामोशी म िछपे उ र को भांप िलया और
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ने कहा।
यह सुनते ही सािव ी बैठ गई और खड़ी होने लगी ।
“आपको अभी िव ाम करना चािहए,” सेिवका ने कहा ।
सािव ी ने उसको अनसुना करते ए खड़ी हो गई । खड़ी होते ही उसके पैर से र
वापस बहने लग गया । वह अपने ज मी पैरको घसीटते ए राजवै के क म प च ं गई ।
क के बाहर देवरथ उसे देख रहा था । सािव ी ने क म वेश करके ार को बंद कर
दया ।
ब त समय बाद वै वहां आया । क के ार को बंद देखकर उसने देवरथ से पूछा
“ ार कसने बंद कया?”
“वो एक लड़क अंदर गई है उसने बंद कया है,”देवरथ ने कहा ।
दोन ार के पास गए और ार खोलने का यास कया ले कन ार अंदर से बंद
था । कु छ देर यास करने के बाद उ ह ने ार को तोड़ दया । अंदर जाकर देखा तो
सािव ी, कुं दन के पास अचेत अव था म पड़ी ह ।
वै ने जाकर वापस परी ण कया ।
“ या आ?” देवरथ ने वै से पूछा ।
“आपका िम अब व थ ह, कु छ ही समय म इसे होश आ जाएगा, ले कन इस क या का
बचना क ठन है,” वै ने कहा ।
“ य ?” देवरथ ने पूछा ।
“ य क इसने आपके िम के शरीर से िवषको चूस िलया है,” वै ने कहा ।
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यह सुनकर कुं दन क आंखो से आंसू टपक पड़े उसे अपनी गलती का अहसास हो
गया और वो तुरंत अपने थान से उठ खड़ा आ और ार क तरफ बढ़ने लगा ।
“कहां जा रहे हो?” देवरथ ने पूछा ।
“सािव ी से िमलने,” कुं दन ने कहा ।
“नह ... वहां तु हे मार दगे, तुम आज शाम को उससे िमलने जा सकते हो म उसे भेज
दूग
ं ी,”मीना ी ने कहा ।
कुं दन वापस अपने थान पर आकर बैठ गया और कहा “य द उसे कु छ हो गया तो
म भी जी नह पाऊंगा ।”
“उसे कु छ नह होगा, म वादा करती ,ँ ” मीना ी ने कहा ।
कु छ समय तक क म शांित छाई रही फर देवरथ ने पूछा “वैसे तु हारी असली
पहचान है या?”
“मेरा नाम कुं दन नह ह, म मयूर वज ं माधवगढ़ का राजकु मार और युवराज बनने के
सफर पर िनकला आ ,ं ” मयूर वज ने कहा ।
यह सुनकर मीना ी और देवरथ क आंखे फटी क फटी रह गई ।
“तो तुमने हमसे ये बात िछपाई यो?” देवरथ ने पूछा ।
“यह इस परी ा क शत थी ले कन अब फक नह पड़ता मुझे ना संहासन चािहए और ना
ही रा य मुझे तो बस सािव ी चािहए,” मयूर वज ने कहा ।
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कहा ।
“तु हे मुझसे ये वादा करना ही होगा क तुम अपना जीवन मेरे पीछे थ नह करोगे,”
रं जना ने कहा ।
“ठीक है ले कन तु हे भी मुझसे एक वादा करना होगा,” भ ने कहा ।
“ या?” रं जना ने पूछा ।
“क तुम मुझसे िमलने आओगी,” भ ने कहा ।
“ठीक है, य द सब कु छ ठीक रहेगा तो म तुमसे िमलने आऊंगी, चाहे तुम कह भी रहो म
तु हे ढू ंढ़ लूंगी,” रं जना ने कहा ।
सूया त होने से कु छ समय पूव ही रं जना वापस चली गई । भ ने उसका वहां ब त
इं तजार कया ले कन वह फर कभी नह आई । भ उसी जंगल म पूरा दन और पूरी रात
उसे ढू ंढ़ता फरता ।
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सबकु छ कह दया । मयूर वज ने आगे िखसक कर उसे अपने सीने से लगा िलया । कु छ देर
रोने के बाद मयूर वज ने महसूस कया क उसके हाथ जो सािव ी क पीठ पर थे वो गीले
हो गए ह । उसने तुरंत अपने हाथो को ख चा और देखा तो उसके होश उड़ गए । उसक
आंखे फटी क फटी रह गई । उसके हाथ पूरे लाल हो गए थे । खून से सने हाथो को देखता
आ वह उठा और उसने सािव ी क पीठ को देखा । एक खंजर सािव ी क पीठ पर गड़ा
आ था ।
“चले जाओ यहां से,” सािव ी ने एक बार फर से कहा ।
मयूर वज के दमाग म हजार तरह क क ण भावना का बहाव एक साथ
िहलोरे मारने लगा । मयूर वज ने आसमान क तरफ चेहरा करके एक जोर से ची कार क
। उस ची कार क विन इतनी तेज थी क माधवगढ़ और रजतगढ़ म भी सुनाई दे रही थी
। मयूर वज को अब कु छ भी सुनाई नह दे रहा था । उसके दय क गित मानो थम सी गई
। आंखो के सामने अंधेरा छाने लगा । वह गहरे अंधकार म धंसता चला जा रहा था । फर
एक विन ने उसे इन सब से बाहर िनकाल दया । यह वह पायजेब क झनकार थी जब
उसने पहली बार सािव ी को गोद म उठाया था ।
उसका दय तो सामा य हो गया ले कन उसके हाथ पैर जम गए और वह वापस
बेहाल होकर उसी प थर पर सािव ी के पास बैठ गया । वह उससे ब त कु छ कहना चाह
रहा था ले कन उसक जुबान भी जम गई । ब त यास करने के बाद भी उससे एक श द
भी नह कहा गया । दोन एक दूसरे क पीड़ा को अनुभव कर रहे थे । उसी समय दूर पेड़
से नागेश क सेना ने उन दोन को घेर िलया और धीरे -धीरे उनके पास आने लगे ।
“चले जाओ यहां से,” सािव ी ने एक बार फर से कहा ।
मयूर वज समझ गया था क सािव ी उसक जान बचाने के िलए कह रही है
य क कु छ ही समय म नागेश क सेना उनके पास आ जाएगी । अब एकाएक मयूर वज
के शरीर म फु त आ गई । अब उसक जुबान और हाथ पैर भी सामा य हो गए ।
रोते ए मयूर वज कहने लगा “याद है जब तुम िवष के कारण बेहोश होकर उठी
थी और मुझसे पूछा था क य द म कभी नह उठती तो, और फर मने या कहा था, मने
कहा था क म भी तु हारे पास सो जाऊंगा हमेशा के िलए । और तुम ये भी जानती हो क
म एक राजकु मार ं और अपनी बात पर अड़ा र ग ं ा ।”
मयूर वज क बात सुन सािव ी फर से रो पड़ी । हालां क उसे रोने के कारण ब त
दद हो रहा था ले कन वह खुद को रोकने म असमथ थी । नागेश क सेना अब उनसे कु छ
ही दूरी पर थी । मयूर वज ने अपनी जेब से वो छोटी सी गद िनकाली जो अि ने उसे दी
थी ।
“हो सके तो मुझे माफ़ कर देना, पर तु तु हारे अंदर कु छ ह जो मेरा ह” कहकर मयूर वज
सािव ी के होठ पर चु बन लेने लगा ।
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पु तक-V
ज द आएगी...