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ASSIGNMENT SOLUTIONS GUIDE (2020-21)

MSO-04
Hkkjr esa lekt'kkL=k
MSO-04/ TMA/ 2020-21
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Hkkx&d
iz'u 1- Hkkjr esa lekt'kkL=k dh izkjaHkrk dh lkekftd i`"BHkwfe dk o.kZu dhft,A
mÙkjµ भारत म� समाजशास्त्र के उद्भव व �वकास का इ�तहास 4000 वषर् से भी अ�धक प्राचीन रहा है| इतना अवश्य है �क
वै�दक और उत्तर वै�दक काल म� सामािजक �वचारधारा का मल
ू स्रोत धमर् था और धा�मर्क आधार पर ह� समाज क�
�व�भन्न संस्थाओं व्यवस्थाओं का व्यविस्थत व क्रमबद्ध �ान प्राप्त �कया जाता था| भारत के प्राचीन ग्रंथ� म� समाज के
�व�भन्न पहलुओं का उल्लेख �व�वध प्रकार से �कया गया है |उदाहरण :- वै�दक सा�हत्य एवं �बंद ु शास्त्र� जैसे उप�नषद�,
महाभारत, रामायण एवं गीता आ�द ग्रंथ� म� वणर्न एवं जा�त व्यवस्था, संयुक्त प�रवार प्रणाल� ,आश्रम व्यवस्था �व�भन्न
संस्कार� ,वणर् व्यवस्था तथा ऋण व्यवस्था जैसे अनेक महत्वपूणर् सामू�हक सामािजक पहलुओं का �व�धवत �ववरण
�मलता है जो �क आज के समाजशास्त्रीय �वश्लेषण के �कसी भी मानदं ड से कम नह�ं है | ईसा से 300 वषर् पव
ू र् चाणक्य द्वारा
र�चत अथर्शास्त्र म� िजन राजनी�तक ,सामािजक व आ�थर्क नी�तय� का उल्लेख �कया गया है उनक� तुलना म� यूनानी
�वचार को का स्तर कह�ं नीचा है |
भारत म� समाजशास्त्र का एक संस्थागत �वषय के रूप म� �वकास 1919 ईस्वी म� हुआ जब�क प्रोफेसर पै�ट्रक नामक अंग्रेज
समाजशास्त्री क� अध्य�ता म� मुंबई �वश्व�वद्यालय म� स्नातकोत्तर स्तर पर समाजशास्त्र का अध्यापन कायर् प्रारं भ
हुआ| भारत म� समाजशास्त्र का �वकास उप�नवेशवाद ,आध�ु नक पंज ू ीवाद एवं औद्यो�गकरण, नगर�करण का प�रमाण
माना जाता है | अंग्रेज समाजशािस्त्रय� ने 19वीं शताब्द� के भारत म� यूरोपीय समाज का अतीत दे खा |यद्य�प यद्य�प भारत
म� औद्योगीकरण का प्रभाव उतना नह�ं था िजतना �क पिश्चम समाज� पर तथा�प पिश्चम समाज शािस्त्रय� ने पूंजीवाद
एवं आधु�नक समाज� को �लखे अपने लेख� को भारत म� हो रहे सामािजक प�रवतर्न� को समझने के �लए प्रसां�गक माना|
उनके एवं भारतीय समाजशास्त्र द्वारा आ�दम समह
ू , ग्रामीण एवं नगर�य �ेत्र� के अध्ययन� से भारत म� समाजशास्त्र क�
नींव मजबूत होती गई|
सन 1947 के बाद अपने दे श म� समाजशास्त्र का एक स्वतंत्र �वषय के रूप म� प्रग�त कर रहा है | आज मुंबई, आगरा ,लखनऊ
,कानपुर ,गुजरात ,कनार्टक ,मैसूर, नागपुर, पटना ,उस्मा�नया, जबलपुर, �बहार, रांची, राजस्थान ,बड़ौदा ,�दल्ल� ,पंजाब
,पूना ,�शमला, गोरखपुर, मेरठ एवं अन्य प्रमुख �वश्व�वद्यालय� व �श�ण संस्थाओं म� इसका अध्ययन सुचारू रूप से चल
रहा है जो इसक� बढ़ती हुई लोक�प्रयता का प�रचायक है |ह�रयाणा के मह�षर् दयानंद रोहतक एवं कुरु�ेत्र �वश्व�वद्यालय
कुरु�ेत्र म� इसका अध्ययन व्यविस्थत तौर पर चल रहा है |
समाजशास्त्र के महत्व व लोक�प्रयता को दे खते हुए अनेक शोध संस्थाओं क� भी स्थापना क� गई बढ़ते हुए समाजशास्त्री
�ान म� इन संस्थाओं का �वशेष स्थान है | भारतीय समाज शािस्त्रय� ने इस �व�ान को अपनी सेवाओं से अ�धक से अ�धक
समद्ध
ृ बनाने का प्रयास �कया| प्रमुख भारतीय समाज शािस्त्रय� के रूप म� प्रोफेसर गो�वंद सदा�शव ,डॉ राधाकमल मुखज�,
श्रीमती इरावती कव�, प्रोफेसर एमएन श्री�नवास ,डॉक्टर �ब्रज राज चौहान, डॉक्टर योगेश अटल, डॉक्टर योग� द्र �संह ,डॉक्टर
राज नारायण सक्सेना, प्रोफेसर ट�केएन, डॉक्टर डीएन मदन, प्रोफेसर दे साई, प्रोफेसर श्याम चरण दब
ु े, प्रोफेसर राजाराम
शास्त्री, प्रोफेसर अवध�कशोर, प्रोफेसर राधा कृष्ण मुखज�, प्रोफेसर कपा�ड़या, प्रोफेसर प्रभु ,प्रोफेसर सुशील चंद, प्रोफेसर
केएन शमार्, प्रोफेसर एसके श्रीवास्तव, डॉक्टर सत्य�द्र �त्रपाठ�, प्रोफेसर एसपी नग� द्र आ�द के नाम उल्लेखनीय है इन समाज
शािस्त्रय� का समाजशास्त्रीय योगदान मूल्यवान है तथा �व�भन्न �ेत्र� से संबं�धत है |
भारत म� समाजशास्त्र के �वचार� का �वकास/ development of sociology in India/Ras mains paper 1
भारत म� समाजशास्त्र के बारे म� प्राचीन वणर्न को�टल्य के अथर्शास्त्र ग्रंथ म� �मलता है ।
एक �वषय के रूप म� समाजशास्त्र का उद्भव फ्रांसीसी क्रां�त के बाद म� हुआ है ।
आगस्त काम्टे को समाज �व�ान का �पता माना जाता है । जमर्न मैक्स वेबर तथा कार्ल माक्सर् ने समाजशास्त्र के �वकास
म� अपना योगदान �दया।
भारत म� समाजशास्त्र के �वकास को मख्
ु यतः तीन काल खंड� म� बांटा जा सकता है भारत म� समाजशास्त्र के �वकास को
मुख्यतः तीन काल खंड� म� बांटा जा सकता है -
1769 से 1900-समाजशास्त्र क� स्थापना—�व�लयम ज�स द्वारा 1774 म� ए�शया�टक सोसाइट� ऑफ़ बंगाल क� स्थापना।
1871 म� पहल� अ�खल भारतीय जनगणना।
मैक्स मूलर द्वारा भारतीय ग्रंथ� का जमर्न भाषा म� अनुवाद।
1901 से 1950- �वश्व�वद्यालय म� �वषय के रूप म� अध्ययन।
1914 म� मुंबई �वश्व�वद्यालय म� प्रथम बार समाजशास्त्र �वभाग क� स्थापना क� गई।
• 1917 म� कोलकाता तथा 1921 म� लखनऊ म� समाजशास्त्र �वभाग स्था�पत हुए।
• लखनऊ म� राधाकमल मुखज� ने समाजशास्त्र का नेतत्ृ व �कया।
• 1928 म� मैसूर म� �डग्री स्तर पर से मान्यता द� गई।
• 1939 म� पण
ु े म� श्रीमती इरावती कव� क� अध्य�ता म� इसक� शुरुआत हुई।
1951 के बाद का समय- शोध म� व�ृ द्ध—स्वतंत्रता से पूवर् जा भारतीय �वद्वान केवल �ब्र�टश �वद्वान� के संपकर् म� थे वह�
स्वतंत्रता के पश्चात वे संयुक्त राज्य अमे�रका के अपने समक�� के साथ मेलजोल बढ़ाने लगे।
इसके फलस्वरुप प्रकाशन तथा �ेत्र म� शोध कायर् म� व�ृ द्ध हुई।
1969 म� इं�डयन काउं �सल ऑफ सोशल साइंस �रसचर् क� स्थापना हुई।
भारत म� योजनाबद्ध �वकास क� शुरुआत म� समाजशास्त्र को बढ़ावा �दया।
धीरे -धीरे समाज शािस्त्रय� को योजना तथा �वकास के काय� म� शा�मल �कया जाने लगा।
अब ग्रामीण जन जीवन से संबं�धत शोध कायर् म� होने लगे थे।
�नजी �ेत्र म� कई शोध संस्थान� क� स्थापना हुई िजनम� टाटा इंस्ट�ट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, इंस्ट�ट्यूट ऑफ सोशल
साइंसेज, आगरा तथा मुंबई JK इंिस्टट्यूट ऑफ़ सो�शयोलॉजी एंड सोशल वक्सर्, लखनऊ प्रमुख है ।
भारत म� समाजशास्त्र क� प्रविृ त्तयां
पिश्चमी �सद्धांत� के आधार पर �वकास—भारत के अ�धकतर �वद्वान पिश्चम म� �सद्धांत� के आधार पर ह� भारत म�
समाजशास्त्र का �वकास चाहते थे।
मजूमदार, इरावती कव� जैसे �वद्वान� ने भारत क� सामािजक संस्थाओं प�रवार, �ववाह, समाज वगर् आ�द का तुलनात्मक
अध्ययन पिश्चमी सभ्यता के साथ �कया है ।
डॉक्टर एस सी दब
ु े तथा मजम
ू दार आ�द ने गांव� के अध्ययन म� पिश्चमी �सद्धांत� को महत्व �दया है ।
अथर्शास्त्री �वद्वान राधाकमल मुखज� तथा DP मुखज� का सामािजक आ�थर्क� के संबंध म� �कया गया शोध प्रारं �भक रूप
से पिश्चमी �सद्धांत� पर ह� आधा�रत था।
भारतीय �सद्धांत� के आधार पर �वकास—भारतीय समाज पिश्चमी सभ्यता से काफ� �भन्न है अतः कई �वद्वान� ने
समाजशास्त्र का �वकास भारतीय पद्ध�त से करने के �लए जोर �दया जो �क पूणत
र् या भारतीय� पर क��द्रत हो। कुमार स्वामी
तथा भगवान दास ऐसे �वचारक� म� प्रमख
ु ह�। इन्ह�ने तकर् के आधार पर भारतीय �सद्धांत� के �वकास पर जोर �दया।
भारतीय तथा पिश्चमी �सद्धांत� के समन्वय के आधार पर �वकास—डॉ आर एल सक्सेना, प्रोफेसर योग� द्र �संह, डॉ
राधाकमल मुखज� आ�द ने भारत म� समाजशास्त्र के �वकास के �लए भारतीय तथा पिश्चमी दोन� �सद्धांत� के समन्वय के
आधार पर कायर् करने क� बात कह� है ।

iz'u 2- 1950 osQ n'kd esa Hkkjr esa xk¡o ksa osQ vè;;u dk egRo D;k Fkk\ ppkZ dhft,A
mÙkjµ भारत को गांव� का दे श कहा गया और कृ�ष को उसक� र�ढ़, जो आधी से ज्यादा आबाद� को आजी�वका महु ै या
कराती है । दे श के आधे से ज्यादा लुघ और कुट�र उद्योग क� जड़� भी गांव� म� ह�। महात्मा गांधी कहते थे �क भारत को
जानना है तो गांव� को जानना पड़ेगा और स्वराज का सपना इन्ह�ं गांव� से पूरा होगा।
ये गांव ह� थे, िजन्ह�ने आजाद� के बाद कई वष� तक आया�तत अनाज पर जीते दे श को आत्म�नभर्र बनाया। प्रधानमंत्री
नर� द्र मोद� ने भी जब आत्म�नभर्र होने का संकल्प �दया तो उन्ह�ने इसम� सबसे महत्वपूणर् भू�मका गांव� क� बताई।
वैश्वीकरण और औद्यो�गक�करण के चलते उपे��त हुई कृ�ष का आज भी दे श क� जीडीपी म� 18 फ�सद� योगदान है ।
दे श को अनाज म� आत्म�नभर्र बनाने से लेकर कोरोनाकाल तक गांव और खेती ने दे श को संकट� से बचाया है । माचर् म�
लॉकडाउन के बाद कारखाने और उद्योग बंद हो गए थे, तब खेती और गांव ने ह� लाख� श्र�मक� को राहत दे ने का रास्ता
खोला। कृ�ष �वशेष�� का कहना है �क मौजूदा संकट म� खेती दे श क� जीवनरे खा बनकर उभर� है तो गांव �फर से आ�थर्क
मॉडल के क�द्र म� ह�।
गांव� क� आजाद� दे खकर है रान थे अंग्रेज—अंग्रेजी शासन के दौरान गवनर्र जनरल सर चाल्सर् मेटकाफ ने अपने हुक्मरान
को भेजे खत म� �लखा था �क भारत के गांव अपने आप म� छोटे -छोटे गणराज्य ह�, जो अपनी जरूर� सामग्री क� व्यवस्था
खुद कर लेते ह�। ग्रामीण व्यवस्था दे खकर अंग्रेज वाकई है रान थे। असल म� गांव शहर� के �लए हमेशा अन्नदाता क� भू�मका
म� रहे , ले�कन आ�थर्क मॉडल� के तहत उन्ह� शहर� पर �नभर्र कर �दया गया। यह� कारण है �क ग्रामीण व्यवस्था क�
आत्म�नभर्रता कमजोर हुई।
कोरोनाकाल म� �फर क�द्र म� गांव—यह �फर सा�बत हुआ �क ग्रामीण� को शहर� म� लाने वाला आ�थर्क मॉडल ज्यादा
व्यावहा�रक नह�ं है । असल म� दे श क� भलाई ग्राम� को लघु उद्योग� और खेती आधा�रत आजी�वका से आत्म�नभर्र बनाने
म� �न�हत है । अब तक गांव के लोग� को कृ�ष से �नकालकर शहर� मजदरू बनाने पर जोर रहा।
कृ�ष �वशेष� दे �वंदर शमार् कहते ह� �क कोरोनाकाल म� नजर आ गया है �क अथर्व्यवस्था को कृ�ष ह� �टकाऊ और दबाव
मुक्त बना सकती है । सरकार को भी इस बात का अंदाजा हो गया है । इसी से कृ�ष और संबं�धत �ेत्र� को 1.65 लाख करोड़
रुपये क� राहत द� गई है ।
आठ करोड़ लोग� ने �कया अपनी माट� का रुख—1996 म� �वश्व ब�क ने कहा था �क भारत म� 20 साल म� गांव से शहर� क� ओर
आने वाले लोग� क� तादाद इंग्ल�ड, फ्रांस और जमर्नी क� आबाद� से भी दोगुनी होगी। इस �लहाज से भारत म� 40 करोड़ लोग� ने
शहर� का रुख �कया। तमाम सरकार� ने इस बात को नजरअंदाज �कया �क ये लोग कृ�ष अथर्व्यस्था के �लए पूंजी थे।
गांव� से आकर ये लोग शहर� म� मजदरू बन गए और जब अवसर खत्म हुए तो �फर गांव का ह� रुख करना पड़ा। लॉकडाउन
के दौरान भी यह� हुआ। अथर्शािस्त्रय� का अनुमान है �क कर�ब आठ करोड़ श्र�मक और कामगार� ने गांव� का रुख �कया है ।
खेती पर जीडीपी का 0.4 फ�सद� खचर्, �फर भी दे श क� र�ढ़
कृ�ष �वशेष�� के मुता�बक, आत्म�नभर्र अ�भयान गांव� से ह� प�रपूणर् हो सकता है । आज 60 करोड़ से ज्यादा लोग खेती
और ग्रामीण उद्योग से जुड़े ह�, ले�कन इसक� तुलना म� खेती पर सरकार� खचर् बहुत कम है । आरबीआई के अनुसार, 2011-
12 से 2017-18 के दौरान जीडीपी का 0.4 फ�सद� ह� कृ�ष पर खचर् हुआ है ।
अगर �कसान� के हाथ म� ज्यादा पैसा आएगा तो स्वतः मांग पैदा होगी, जो ग्रामीण� को शहर म� लाए �बना अथर्व्यवस्था को
संबल दे गी। जानकार� का कहना है �क दे श के 50 फ�सद� कुट�र उद्योग गांव� म� ह�। कॉटे ज और ह�डीक्राफ्ट उद्योग� को
राहत पैकेज� के ज�रए ग्रामीण अथर्व्यवस्था को �फर से खड़ा करने का अवसर है ।

iz'u 3- Hkkjr esa tkfr igpku vkSj nkos osQ izfr tux.kuk n`f"Vdks. k osQ egRo dh ppkZ dhft,A
mÙkjµ भारत के संभ्रांत वगर् म� - खास तौर पर उच्च वगर् के ब�ु द्धजी�वय� म� - भारत क� जनगणना 2011 म�
जा�त-आधा�रत गणना के सवाल पर इतना �वरोध और �चंता क्य� है ? मेरा उत्तर बहुत सरल-सा है : भारत
कानूनी तौर पर एक जा�तगत समाज बन जाएगा. अब तक जा�त को संवैधा�नक मान्यता अशक्तता
(जैसे, छुआछूत,अत्याचार और सामािजक �पछड़ेपन) के आकलन के �लए ह� �मल� हुई है .इस गणना से जा�त को
राष्ट्र�य वगर् के रूप म� औपचा�रक मान्यता �मल जाएगी. इसका अथर् यह होगा �क यह मान्यता संवैधा�नक
मान्यता से भी आगे बढ़ जाएगी. भारत का सं�वधान जा�त को अशक्तता या भेदभाव के स्रोत के रूप म� दे खता
है और असमानता क� इस रू�ढ़ को जड़ से �मटाने के �लए सं�वधान म� कुछ व्यवस्थाएँ भी क� गई ह�. यह
प�रकल्पना क� गई है �क भारत के सामािजक जीवन म� जा�त व्यवस्था एक अपवाद है , जो धीरे -धीरे समाप्त हो
जाएगी.दस
ू रे शब्द� म�, सं�वधान भारतीय नाग�रक को एक जा�त-�वह�न नाग�रक के रूप म� स्वीकार करता है
और �कसी भी प्रकार के जा�तसूचक संबंध� को स्वीकार नह�ं करता. यद्य�प सं�वधान म� जा�त के आधार पर
असमानता को �मटाने का संकल्प स्पष्ट है,ले�कन भारत के सामािजक जीवन म� जा�तगत समह
ू � क� है �सयत
के बारे म� सं�वधान म� िस्थ�त स्पष्ट नह�ं है . परं तु जा�त के आधार पर गणना के �नणर्य से जा�तगत समूह� –
�वशेषकर अन्य �पछड़े वग� (ओबीसी) जैसे �नम्न वग� को- कानूनी मान्यता �मल जाएगी और इससे कानूनी
तौर पर जा�तगत आधार पर राजनै�तक ग�त�व�धय� को बल �मलेगा. इसका अथर् यह होगा �क भारत कानूनी
तौर पर एक जा�तगत समाज बन जाएगा. भारत का संभ्रांत वगर् इस �न�हताथर् से सकते म� है और इसके
प�रणामस्वरूप होने वाले व्यापक सामािजक कायाकल्प और उससे कानन
ू ी तौर पर �मलने वाल� जा�तगत समाज
क� सामािजक स्वीकृ�त से बेहद आशं�कत है .
यह दृिष्ट भी नई नह�ं है �क भारतीय समाज एक जा�तगत समाज है . द�लत और अन्य जा�त-�वरोधी
सामािजक आंदोलन� क� यह मान्यता रह� है �क भारतीय समाज के मूल म� जा�तगत व्यवस्था है . �ब्र�टश काल
म� फुले और अम्बेडकर ने मुखर रूप म� यह �सद्ध करने का प्रयास �कया था �क भारतीय समाज म� जा�त के
आधार पर ह� है �सयत,सम्पित्त, �ान और शिक्त का �नधार्रण होता है . आपात ् काल के बाद नई पीढ़� के द�लत
लेखक�, आलोचक�, �वद्वान� और स�क्रय कायर्कतार्ओं ने न केवल इस बात पर ज़ोर �दया था �क भारत एक
जा�तमूलक समाज है , बिल्क जा�त क� नई अवधारणा भी क� थी. उन्ह�ने समाज म� �वभाजन करने वाल� संभ्रांत
वगर् क� एक इकाई वाल� जा�तमूलक अवधारणा क� न केवल आलोचना क�, बिल्क उसे �सरे से नकार भी �दया
और �हंसा के दै नं�दन के अनुभव� के स्रोत और ग�तशीलता क� पहचान के �लए जा�त क� नई अवधारणा को
जन्म �दया.वस्तत
ु ः जा�त को राष्ट्र�य वगर् के रूप म� मान्यता �दलाने के �लए जबदर् स्त दबाव क� शुरूआत उस
समय हुई जब 1970 और 1980 के दशक� म� द�लत� के सामू�हक नरसंहार के संदभर् म� समकाल�न द�लत
आंदोलन का उदय हुआ. द�लत� पर होने वाले अत्याचार� के संदभर् म� ह� कॉन्ग्रेस सरकार ने अनुसू�चत जा�त
और अनुसू�चत जनजा�त (अत्याचार� क� रोकथाम) अ�ध�नयम,1989 बनाए. इन अ�ध�नयम� से जा�त के
कानूनी दृिष्टकोण म� महत्वपूणर् प�रवतर्न हुआ. जहाँ एक ओर अस्पश्ृ यता (अपराध)
अ�ध�नयम, 1955 ने “अस्पश्ृ यता” को जा�तमल
ू क न मानकर अशक्तता का एक कारण माना, वह�ं अनस
ु �ू चत
जा�त / अनुसू�चत जनजा�त अ�ध�नयम,1989 ने “जा�त” को अत्याचार और जा�त संबंधी अत्याचार का मूल
कारण मानते हुए राष्ट्र�य अपराध माना. 1991 से 1993 के दौरान मंडल आंदोलन के समय जनता के दबाव म�
आकर उच्चतम न्यायालय ने भी जा�त को राष्ट्र�य इकाई (इंद्रा साहनी बनाम भारतीय संघ, 1992) के रूप म�
कानूनी मंजूर� दे द�. इस�लए जनगणना 2011 म� जा�त-आधा�रत गणना क� माँग द�लत� और अन्य �पछड़े
वग� (ओबीसी) ने क� है . ये वगर् समकाल�न समाज म� सामािजक समह
ू के रूप म� उभरकर संग�ठत हो गए ह�
और अब एक शिक्तशाल� वगर् के रूप म� काम कर रहे ह�.
भारत का संभ्रांत वगर् भारत को एक समरसता पूणर् और तटस्थ इकाई के रूप म� दे खने का आग्रह बनाए रखना
चाहता है िजसम� �कसी प्रकार का वगर्भेद न हो. भारतीय नाग�रक� (मेर� जा�त �हंदस्
ु तानी) का यह �वशेष वगर्
है . यह वगर् अंग्रेज़ी म� �श��त शहर� लोग� का एक छोटा-सा वगर् है, िजसम� मुख्यतः ऊँची जा�त के बु�द्धजीवी
और कुछ राजनी�त� शा�मल ह�. यह वगर् जा�त को �वभाजक तत्व और एक बरु ाई के रूप म� दे खता है .इस वगर्
म� कुछ उदार �वचारधारा के बु�द्धजी�वय� के साथ-साथ वामपंथी बु�द्धजीवी भी शा�मल ह� जो यह मानते ह� �क
जा�त के आधार पर जनगणना से भारत के साथर्क और पूणर् लोकतां�त्रक समाज के रूप म� �वक�सत होने म�
अवरोध उत्पन्न होगा. वे यह मानते ह� �क जा�त व्यवस्था पर क� जाने वाल� बहस अनुसू�चत जा�त / अनुसू�चत
जनजा�त / अन्य �पछड़े वग� (ओबीसी) के आर�ण या अन्य नी�तगत मामल� तक ह� सी�मत है .ये दोन� संभ्रांत
वगर् अपने-आपको जा�त�वह�न (अथार्त ् सच्चे भारतीय) और द�लत� और अन्य �पछड़े वगर् (ओबीसी) के लोग� को
जा�तपरक लोग ह� मानते ह�. वे यह नह�ं मानते �क �व�भन्न जा�तय� क� मान्यता और दे श म� �व�भन्न
सामािजक वग� का अिस्तत्व अपने-आप म� ह� एक महत्वपूणर् �नणर्य है .
हम� जा�त क� महत्वपूणर् अवधारणाओं के संबंध म� द�लत� क� आलोचना पर ध्यान दे ना चा�हए. द�लत� के
सा�हित्यक लेखक,कायर्कतार् और अकादमीय �वद्वान ् रोज़मर� के भेदभाव, �हंसा के �व�भन्न प्रकार के क्रूर रूप�
और अमानवीयता और असमानता को जा�त व्यवस्था का मल
ू स्रोत मानते ह�.
साथ ह� ये लेखक अपने अनुभव के आधार पर जा�त क� भू�मका को उजागर करते हुए कहते ह� �क
है �सयत,जा�तगत अहं कार,सामािजक मान-सम्मान और सत्ता का मूल आधार जा�त ह� है और इस धारणा को
�नरस्त कर दे ते ह� �क धमर्�नरपे� और आधु�नक भारत के नाग�रक जा�त�वह�न ह�. वे जा�त के इस ऐकां�तक और
प्रभावी दृिष्टकोण को भी चुनौती दे ते ह� �क सामािजक �वभाजन का एकमात्र साधन जा�त ह� है और नीची जा�त
के लोग� क� पहचान केवल जा�त से ह� है . अकादमीय पं�डत इस बात पर है रत म� पड़ जाते ह� �क सावर्ज�नक
जीवन म� और चुनावी मैदान म� जा�त क� पहचान को ज़ोर दे कर रे खां�कत �कया जाता है . जा�त के रे खांकन के
इन नए तर�क� से यह सवाल उठता है �क भारत म� सामािजक प�रवतर्न को समझने और उसका मूल्यांकन करने
के �लए कदा�चत ् जा�त क� अवधारणा ह� एकमात्र महत्वपूणर् साधन है और साथ ह� मूल �बंद ु भी है .
भारत क� जनगणना भारत क� पहचान को दशार्ने का मूलभूत साधन है .क�द्र सरकार का यह दावा है �क भारत
क� जनगणना से व्यापक जनसांिख्यक�य और सामािजक-आ�थर्क आँकड़े प्राप्त होते ह� और “यह गाँव, कस्बे और
वाडर् के स्तर पर प्राथ�मक आँकड़े प्राप्त करने का एकमात्र स्रोत है ”. ये आंकड़े संसद, �वधानसभा,पंचायत और
अन्य स्थानीय �नकाय� के स्तर पर चुनाव �ेत्र� के प�रसीमन / आर�ण के आधार ह�. परं तु1931 के बाद से इन
महत्वपूणर् आँकड़� म� जा�त का कोई �रकॉडर् नह�ं रखा जाता. जनगणना के वग� म� केवल धा�मर्क
समुदाय�,भा�षक समूह�,अनुसू�चत जा�त औरअनुसू�चत जनजा�त क� आबाद� और पुरुष-स्त्री अनुपात का ह�
समावेश है . अपवाद के रूप म� जा�त का �रकॉडर् अनस
ु �ू चत जा�त और अनस
ु �ू चत जनजा�त क� पहचान के �लए
रखा जाता है . जनता के अन्य वग� के संदभर् म� जा�त का कोई �रकॉडर् नह�ं रखा जाता. इस प्रकार भारतीय
जनगणना सच्चे अथ� म� “भारतीय” ह� रहती है .
राष्ट्र�य जनगणना के प्रतीकात्मक और राजनै�तक महत्व को दे खते हुए और राष्ट्र�य जनगणना म� जा�त के
आँकड़� के अभाव को दे खते हुए सन ् 2001 म� जा�त के समावेश क� माँग उठाई गई. तत्काल�न राष्ट्र�य
जनतां�त्रक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने इस माँग को अस्वीकार कर �दया. इस बार द�लत समाज के लोग
भारतीय जनगणना के समरसता पण
ू र् और एकप�ीय दृिष्टकोण को चन
ु ौती दे ने के �लए क�टबद्ध ह� और यह
तकर् दे ते ह� �क भारत म� �व�वध सामािजक वग� के अिस्तत्व को मान्यता द� जाए.जनगणना म� राष्ट्र�य वग� को
समग्र रूप म� दशार्या गया है और भारत को एक जा�तगत समाज के रूप म� �फर से प�रभा�षत करना
राजनै�तक दृिष्ट से महत्वपूणर् है . द�लत और अन्य कुचले हुए जा�तगत समूह भारत जैसे आधु�नक उदारवाद�
लोकतंत्र क� संस्थाओं से जुड़ने का महत्व अब समझने लगे ह�. इस�लए जा�त के आधार पर जनगणना क� माँग
का उनके �लए रणनी�तक महत्व है .वे �नश्चय ह� भ�ू म �वतरण कायर्क्रम के रूप म� या �फर जनगणना क� नई
रूपावल� के रूप म� क्रां�त के �लए भी सन्नद्ध ह�. ले�कन वे न तो अब व्यापक सामािजक कायाकल्प क�
प�रयोजनाओं क� प्रती�ा कर सकते ह� और न ह� ठ�क अभी संपूणर् जनगणना प्र�क्रया को पूर� तरह से
पुन�नर्�मर्त करने म� स�म ह�.
जनगणना म� न केवल अन्य �पछड़े वग� (ओबीसी) क� बिल्क “हर प�रवार के प्रत्येक सदस्य क� जा�त” क�
गणना से भारत जा�तगत समाज बन जाएगा और इससे अनेक नए सवाल उठ� गे.जनगणना से कुछ जा�तगत
समूह� क� �वशेषा�धकार क� है �सयत और उनक� संख्या का भी साफ़-साफ़ पता चल जाएगा. व्यापक जा�तगत
आँकड़� से अनुसू�चत जा�त और अनुसू�चत जनजा�त और अन्य �पछड़े वग� (ओबीसी) के प्रत्येक वगर् के �लए
आर�ण के प्र�तशत क� माँग भी बढ़ सकती है और आर�ण क� वतर्मान 50 प्र�तशत क� सीमा को भी चुनौती
द� जा सकती है .
नए जा�तगत समूह आर�ण और कल्याण योजनाओं से कह�ं अ�धक क� माँग कर सकते ह� और भ�ू म, संपित्त
और सत्ता के पुन�वर्तरण क� नई माँग कर सकते ह�. कई मायाव�तयाँ हो सकती ह� जो संख्या के खेल म�
�नपुण ह� और राष्ट्र�य चुनाव के दृश्य को पूर� तरह से बदलने म� स�म ह�. जा�त के आधार पर गणना से एक
ऐसी सबसे अ�धक महत्वपूणर् प्र�क्रया शुरू होगी िजससे अकादमीय �ेत्र से अलग साथर्क जन-संवाद के माध्यम
से जा�त का गैर-अ�नवाय�करण और राजनी�तकरण मथकर ऊपर आ जाएगा. इस प्र�क्रया से जा�तगत तनाव भी
बढ़ सकता है और नए शासक वगर् (अन्य �पछड़े वग� को �मलाकर) का उदय हो सकता है और भारत के संभ्रांत
वगर् से जुड़े वतर्मान शासक वगर् का पूर� तरह खात्मा हो सकता है . लोकतंत्रीकरण क� इस प्र�क्रया म� बहुत-से
अंत�वर्रोध और �वस्मयपूणर् बात� ह�गी और भारत का संभ्रांत वगर् अभी इस कायाकल्प के �लए तैयार नह�ं है .

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iz'u 5- Hkkjr esa tutkfr;ksa osQ laca/ esa osfj;j ,fYou ,oa th-,l-?kqjs osQ chp osQ roZQ&foroZQ fyf[k,A
mÙkjµ अनेकता म� एकता ह� भारतीय संस्कृ�त है और उस अनेकता के मूल म� �निश्चत रूप से भारत के �व�भन्न प्रदे श�
म� िस्थत जनजा�तयाँ ह�। भारत क� जनजा�तयाँ �व�भन्न �ेत्र� म� रहती हूए अपनी संस्कृ�त के माध्यम से भारतीय
संस्कृ�त को एक �व�शष्ट संस्कृ�त का रूप म� दे ने म� योगदान करती ह�। दे श क� संस्कृ�तय� पर एक दस
ू रे क� छाप पड़ी।
चूं�क जनजा�तयाँ अनेक थी स्वाभा�वक है �क उनक� संस्कृ�त म� भी �ववधता थी। अत: इनक� वै�वध्यमय संस्कृ�त ने
िजस भारतीय संस्कृ�त को उभरने म� योगदान �कया, वह भी �व�वधता को धारण करने वाल� हुई। भाषा के �ेत्र म� भी यह�
िस्थ�त हुई और आय� क� भाषा से द्र�वड़� तथा अनके भाषा – भा�षय� क� भाषाएँ प्रभा�वत हुई तथा दस
ू र� और इनक�
भाषाओ� से आय� क� भाषाएँ भी पयार्प्त मात्रा म� प्रभा�वत हुई।
जनजा�त क� प�रभाषा—उपयक्
ुर् त सन्दभर् म� एक प्रश्न उठता है �क आ�खर जनजा�त कह� गे �कसे। इस जनजा�त शब्द को
प�रभा�षत करने म� मानवशािस्त्रय� म� काफ� मतभेद पाया जाता है । मानवशािस्त्रय� ने जनजा�तय� को प�रभा�षत करने
म� मुख्य आधार – तत्व माना है संस्कृ�त को, परं तु कभी – कभी ऐसा दे खने म� �मलता है �क �कसी एक ह� �ेत्र म�
यद्य�प �व�वध जनजा�तयाँ रहती ह�, �फर भी उनक� संस्कृ�त म� एकरूपता दृिष्टगत होती है । अत: जनजा�तय� को
प�रभा�षत करने म� केवल संस्कृ�त को ह� आधार – तत्व मानना एकांगीपन कहा जायेगा। इसके �लए हम� संस्कृ�त के
अ�त�रक्त भौगो�लक, भा�षक तथा राज�न�तक अवस्थाओं को भी ध्यान म� रखना आवश्यक होगा।
�व�भन्न �वद्वान� ने जनजा�त शब्द के पयार्य के रूप म� आ�दम जा�त, वन्य – जा�त, आ�दवासी, वनवासी, असा�र,
�नर�र, प्रागै�तहा�सक, असभ्य जा�त आ�द नाम �दया है । परं तु इसम� से अ�धकांश एक ह� अथर् को घो�षत करने वाले ह�।
परं तु इन्ह� असभ्य, �नर�र या असा�र आ�द कहना आज पूणर्तया अनु�चत और अव्यवहा�रक है । यहाँ हमने जनजा�त
कहना �ह उपयुक्त माना है ।
भारतीय मानवशास्त्री प्रोफेसर धीरे न्द्र नाथ मजम
ु दार ने जनजा�त क� व्याख्या करते हुए कहा है �क जनजा�त प�रवार� या
प�रवार समूह� के समुदाय का नाम है । इन प�रवार� या प�रवार – समूह का एक सामान्य नाम होता है ये एक ह� भू – भाग
म� �नवास करते ह�, एक ह� भाषा बोलते ह� �ववाह, उद्योग – धंध� म� के ह� प्रकार क� बात� को �न�बद्ध मानते ह�। एक- दस
ू रे
के साथ व्यवहार के संबंध म� भी उन्ह�ने अपने पुराने अनुभव के आधार पर कुछ �निश्चत �नयम बना �लए होते ह�।
उक्त प�रभाषाओं को दे खने से स्पष्ट हो जाता है । �क �वद्वान� म� जनजा�त क� प�रभाषा को लेकर काफ� मतभेद है । �फर भी
व्यिक्तय� के ऐसे समूह को जो एक �निश्चत भू – भाग के ह� तथा एक �निश्चत भाषा बोलते ह� और अपने समह
ू म� ह� �ववाह
करते ह� को जनजा�त कहा जा सकता है । जब तक �व�भन्न दे श� म� सम्प्रभु सरकार क� स्थापना नह�ं हुई थी तब तक इन
जा�तय� का अपना राजनै�तक संगठन रहा होगा। परं तु आज जनजा�त क� प�रभाषा करने म� यह तत्व उपे�णीय है ।
जा�त और जनजा�त को पथ
ृ क कर पाना भी एक क�ठन प्रश्न है , परन्तु जहाँ तक भारत का संबंध है । हम जा�त उसे कह
सकते ह� िजसम� वणर् व्यवस्था नह�ं हो।
भारत क� जनजा�तय� का वग�करण
भौगो�लक वग�करण—भारत क� जनजा�तय� म� भौगो�लक �वभाजन करते हुए �व�भन्न �वद्वान� ने अपने - अपने
दृष्ट�कोण से �भन्न–�भन्न अ�भमत प्रकट �कए ह�। कुछे क �वद्वान इन्ह� दो �ेत्र� म� बांटते ह� तो कुछ तीन �ेत्र� म� और
कुछ �वद्वान� ने इन्ह� चार भौगो�लक �ेत्र� म� �वभािजत �कया है । परं तु भौगो�लक िस्थ�त को दे खते हुए भारत क�
जनजा�तय� को पांच भाग� म� �वभािजत करना उ�चत होगा।
1. पव
ू �त्तर �ेत्र
2. मध्य �ेत्र
3. द��ण �ेत्र
4. पिश्चम �ेत्र
5. द्वीप – समूह �ेत्र
1. ू �त्तर �ेत्र—पव
पव ू �त्तर �ेत्र म� कश्मीर, �शमला, लेह, �हमाचल प्रदे श, बंगाल, पिश्चमी उत्तर प्रदे श, लस
ू ाई क�
पहा�ड़यां, �मसमी असाम, नेचा तथा �सिक्कम का इलाका आता है । इस �ेत्र म� �लम्बू लेपचा, आका, दपला,
अवस्मीर� �मश्मी, रामा, कचार�, गोरो, खासी, नागा, कुक�, चकमा, लूसाई, गुरड आ�द प्रमुख जनजा�तयाँ होती है ।
2. मध्य–�ेत्र—�ेत्र म� बंगाल मध्य �ेत्र म� बंगाल, �बहार, द��णी उत्तर प्रदे श, मध्य प्रदे श, उत्तर प्रदे श, मध्य
प्रदे श तथा उड़ीसा का इलाका जा जाता है । सभी �ेत्र� म� जनजा�तय� क� संख्या और उनके महत्व क� दृिष्ट से
सबसे बड़ा है । इसके अंतगर्त, मध्य प्रदे श म� ग�ड, उड़ीसा के कांध और ख�ड़या, गंजाम के सावरा, गदब और
बाँदा, बस्तर के मू�रया और म�रया, �बहार के उराँव, मुंडा, संथाल, हो �वरहोर, सौ�रया पहा�ड़या, ख�ड़या, आ�द
जनजा�तयाँ ह�।
3. द��ण �ेत्र–इस �ेत्र म� द��णी आंध्र प्रदे श, कणार्टक, त�मलनाडु, केरल आ�द का �हस्सा आता है । इस �ेत्र म�
�नवास करने वाल� प्रमुख जनजा�तयाँ है है दराबाद म� चेचू, �नल�गर� के टोडा, वायनाड के प�रयां, ट्रावनकोर –
कोचीन के कादर, कणीदर तथा कुरावन आ�द।
4. पिश्चम �ेत्र–उपयक्
ुर् त तीन �ेत्र� के अ�त�रक्त पिश्चम �ेत्र म� भी कुछ जनजा�तयाँ है । उसम� राजस्थान के
भील प्रमुख ह�। कुछ जनजा�तयाँ ऐसी ह� जो खाना बदोस का जीवन व्यतीत करती ह�।
5. द्वीप समूह �ेत्र–अंडमान �नकोबार आ�द द्वीप� म� रहने वाल� जनजा�तय� को इसी �ेत्र� म� रखा जाएगा। 1955
के पहले तक इन्ह� जनजा�त के अंतगर्त नह�ं रखा जाता था परं तु उसके बाद �पछड़ी जा�तय� के आयोग क�
अनुशंसा पर इन्ह� भी जनजा�त माल �लया गया। वतर्मान अंडमान �नकोवार म� अंडमानी, जखा, सोयपेन एवं
आगे जनजा�त आ�द प्रमख
ु ह�।
भाषागत वग�करण—भारत म� हजार� बोल� जाती ह�, िजन्ह� चार भाषा प�रवार� के अंतगर्त रखा जाता है ।
ये भाषा प�रवार ह�–
१. इंडो योरो�पयन
२. द्र�वड़
३. ओिस्ट्रक (आनेय)
४. �तब्बती – चीनी
इंडो योरो�पयन प�रवार क� भाषाएँ आयर् मूल क� बो�लयाँ बोलती ह�। परं तु आज अनके जनजा�तयां भी आपस म� संपकर्
भाषा के रूप म� इन भाषाओ� का व्यवहार करने लगी ह�। इंडो योरो�पयन के बाद िजस भाषा प�रवार क� मुख्य भाषाओ� के
बोलने वाल� क� संख्या आती है , वह है द्र�वड़ प�रवार। इस प�रवार क� मूका भाषाएँ ह�। ता�मल, तेलुगु, कन्नड़ और
मलयालम। �बहार के उरांव लोग� क� कुडूख भाषा इसी प�रवार क� एक मख्
ु य भाषा ह�। मध्य प्रदे श के ग�ड, सावरा परजा,
कोया, प�नयान, च� चू, कदार, मालसर तथा मलरे यान आ�द भाषाएँ भी इसी प�रवार क� है ।
मुंडा, कोल, हो संथाल, ख�रया, कोरवा, भू�मज, कुरक�, खासी आ�द जनजा�तय� क� भाषाएँ आिस्ट्रक (आग्नेय) प�रवार
क� ह�।
यद्य�प �व�भन्न भाषाओ� का पा�रवा�रक वग�करण �कया जाता है । परं तु बहुत �निश्चततापूवक
र् यह नह�ं कहा जा सकता
है �क �कस जनजा�त क� भाषा पणू त
र् या �कस प�रवार म� आती है ।
�बहार क� उराँव जनजा�त क� भाषा द्र�वड़ प�रवार क� कुडूख है और वे भे�डरे रेयन (द्र�वड़) प्रजा�त है । परं तु प्राय: अन्य सभी
जनजा�तयाँ आिस्ट्रक भाषा प�रवार क� भाषाएँ बोलने वाल� ह� तथा वे प्रोटोआिस्ट्रलायक प्रजा�त के अंतगर्त आती है ।
सांस्कृ�तक दृिष्ट से �बहार क� जनजा�तय� म� काफ� अंतर पाया जाता है । इन म� उराँव, मुंडा तथा संथाल जनजा�तय� को
छोड़कर अन्य प्राय: सभी जन - जा�तयाँ अभी भी �पछड़ी हुई ह�। �बरहोर तथा पहाड़ी ख�ड़या जनजा�त के लोग अभी
जंगल� पशुओं तथा फल� के माध्यम से ह� अपना जीवन यापन करते ह�। असरु , कोरवा, सौ�रया पहा�ड़या आ�द झम
ू क�
खेती करते ह�। ये लोग बंजार� क� तरह कभी – कभी अपना स्थान बदलते ह�। परं तु मुंडा, उराँव, संथाल और हो आ�द
स्थायी तौर पर रहते हुए कृ�ष एवं पशुपालन म� लगे हुए ह�। इन लोग� के अच्छे मकान तथा गांव ह� इनके समाज म� अब हर
प्रकार के पेशा वाले लोग प्रयार्प्त मात्रा म� �वद्यमान ह�।
�बहार के �भन्न – �भन्न जनजा�तय� के अलग – अलग गांव है तथा अनेक गांव ऐसे भी है जहाँ अनेक जनजा�तयाँ एक
साथ �मलकर रहते ह� और उनके साथ आयर् जा�त के लोग भी �वद्यमान ह�। �व�भन्न जनजा�तय� के गांव �भन्न – �भन्न
प्रकार के ह�। कुछ जनजा�तयाँ ऐसी है जो �कसी अन्य जनजा�त के साथ अपने �म�श्रत नह�ं कर पाती है । अत: पूणत
र् या
अलग रहने म� ह� �वश्वास रखते ह�। ऐसी जनजा�तय� म� �वरहोर, �वरिजया, माल – पहा�ड़या आ�द प्रमुख ह�। सच पूछा
जाए तो ये जा�तयाँ अभी भी बंजारा जा�तयां ह� है और अपनी आवश्यकता के अनुरूप उन्ह� जहाँ जैसे सु�वधा प्राप्त हो
जाती है वहां अपना �नवास स्थान बना लेती है । इनके गांव झोप�ड़य� के बने होते ह� और उनम� केवल एक ह� कोठर� होती
है । यद्य�प आज सरकार ने इन्ह� स�ु वधा संपन्न करने के �लए बहुत ह� कल्याणकार� योजनाएं चला रखी ह�। �फर भी वे
अपने को अन्य जनजा�तय� के साथ �म�श्रत नह�ं कर पाते ह�। �बहार के छोटानागपुर के पठार� �ेत्र म� अनेक ऐसे �नवास
स्थान बनाए गये ह� िजनम� इनके �लए हर प्रकार क� सु�वधा प्रदान क� गई है �फर भी ये वहाँ नह�ं रहते ह�।
दस
ू र� ओर उराँव, मुंडा, संथाल, हो आ�द ऐसी जनजा�तयाँ ह� ओ स्थायी रूप से �नवास करती ह� और आज ये राष्ट्र क�
मुख्य धारा के साथ जुड़ कर �कसी भी अन्य जा�त से कम नह�ं है । इन जनजा�तय� के लोग प्रशासन, अध्यापन, राजनी�त,
इंजी�नयर�, डॉक्टर� आ�द सभी प्रमख
ु �ेत्र� म� अपने को योग्य �सद्ध कर रहे ह�। परं तु इनम� आयर् जा�तय� के ऊँच – नीच
वाला दग
ु ण
ूर् भी आने लगा है ।
इन उन्नत जनजा�तय� का रहन – सहन भी अब काफ� उन्नत हो गया है । गाँव� म� भी अनेक उन्नत जनजातीय लोग� के
माकन �ट आ�द के बने हुए ह�। परं तु अन्य लोग� के माकन �मट्टी के बने होने पर भी काफ� �वस्तत
ृ एवं हवादार है । इनका
गाँव दरू से दे ख कर ह� के पहचाना जा सकता है । इनके माकन के अगल – बगल कुछ क्यार� ऐसाहोता ह� िजसम� अपने
�लए सब्जी इत्या�द लगाते है और मवे�शय� के �लए भी अलग स्थान होता है । हो लोग� के मकान के कमरा म� पव
ू ज
र् � के
दे वी स्थान होते ह� िजन्ह� ये लोगो अपनी भाषा म� आ�दंग कहते ह�। सभी उन्नत जनजा�तय� के गाँव म� अखाड़ा होता ह�।
जहाँ लोग संध्या समय जा कर नाचते ह�। इसी प्रकार प्रत्येक गाँव क� अपनी अपनी सरना, जाह�रा और महादे व आ�द के
स्थान होते ह�। जहाँ अपने पूवज
र् � एवं दे वी दे वताओं क� पूजा, आराधना क� जाती है । प्रत्येक गाँव के अलग - अलग शासन
होते ह�, िजनम� मत
ृ ब्यिक्तय� को गाड़ा जाता है ।
�बहार क� जनज�तय� म� उरांव—�बहार क� जनजा�तय� म� उराँव जनजा�त एक प्रमख
ु जनजा�त है । �बहार म� 30 से भी
अ�धक जनजा�तयाँ �नवास करती ह�। िजनम� तीन - चार ह� आज उन्नत अवस्था म� ह�, उनम� संभवता: उराँव सवर्प्रथम
उल्लेखनीय है । �बहार क� जनजा�तय� म� संख्या के दृिष्टकोण से यद्य�प ये संथाल� के बाद द्�वतीय स्थान पर ह� परं तु
जीवन स्तर तथा जागरूकता के दृिष्ट से ये सव�प�र है । 1981 जनगणना अनुसार �बहार क� जनजा�तय� क� संख्या
5810867 है , उनम� उराँव जनजा�त क� संख्या 1048064 है ।
उराँव जनजा�त के लोग मख्
ु य रूप से छोटानागपरु के राँची, गम
ु ला, लोहरदगा और �संहभम
ू िजला म� �नवास करते ह�।
इनके अ�त�रक्त पू�णर्या, सासाराम, पलाम,ु हजार�बाग आ�द िजल� म� भी �छटपुट रूप म� उराँव लोग �नवास करते ह�।
यद्य�प उरांव� का मुख्य �नवास स्थान �बहार है परं तु मध्य प्रदे श तथा उड़ीसा के अ�त�रक्त भारत के कुछ अन्य प्रान्त� म�
भी ये �वद्यमान ह�। उराँव जनजा�त के लोग जहाँ कह�ं भी रहते है उनक� पहचान अलग से हो जाती है और वे लोग कुडूख
भाषा का ह� प्रयोग करते ह�। परं तु अब �व�भन्न प्रजा�तय� तथा जा�तय� के साथ ये लोग मनुष्य� क� तरह ह� लगते थे परं तु
जंगल� म� �नवास करते थे इस कारण इन्ह� आय� ने बानर कहा होगा। ये लोग द��ण भारत के पवर्तीय अंचल म� रहा
करते थे और जंगल� जानवर� को मारकर इससे अपना जीवन - यापन करते थे। �व�भन्न स्थान� पर �नवास करने के
कारण इनक� बोलचाल क� भाषा म� प�रवतर्न हो गया है और ये लोग वहां के �नवा�सय� क� अन्य भाषा को अपना भाषा के
साथ सिम्म�लत करके उसी का व्यवहार करते ह�। उदहारण के �लए पांचपरगना के अंतगर्त बुंडू, तमाड़, �सल्ल�, ईचागढ़
और अड़क� इन पांच परगन� म� �नवास करने वाले उराँव भी पंचपरग�नया भाषा का प्रयोग करते ह�। इस भाषा पर कुडूख
भाषा के अ�त�रक्त मंड
ु ार�, बंगला, उड़ीसा, और नागप�ु रया का पण
ू र् प्रभाव ह� परं तु राँची के पिश्चम भाग म� �नवास करने
वाले तथा गुमला एवं लोहरदगा के उराँव कुडूख भाषा का प्रयोग करते ह�। कुछ उराँव के गाँव� म� रहने वाले अन्य जा�त के
लोग भी संपकर् के कारण आपस म� कुडूख भाषा ह� बोलते ह�। एसे गांव� म� रहने वाले अनेक मुसलमान अपने प�रवार से भी
कुडूख भाषा म� ह� बोलते है उस प्रकार जे गांव� म� रहने वाले अनेक जा�त के लोग यद्य�प अपने प�रवार म� कुडूख नह�ं
बोलते है परं तु उरांव� के साथ वातार्लाप करने के समय कुडूख के प्रयोग करते ह�। गांव� म� घूमने वाले अनेक व्यवसायी
उरांव� के साथ कुडूख भाषा म� ह� बोलते ह�। सामान्यत: उराँव बहुल हाट� (बाजार�) म� कुडूख भाषा का ह� प्रयोग होता है ।
अनेक टाना भगत एसे ह� िजन्ह�ने अपने जीवन म� कभी भी कुडूख भाषा के अ�त�रक्त �कसी अन्य भाषा का प्रयोग नह�ं
�कया है ।
उराँव द्र�वड़ प्रजा�त (नस्ल) के ह� इसम� �कसी प्रकार क� शंका नह�ं होनी चा�हए। डॉ. गुहा ने अन्य जनजा�तय� क� तरह
उरांव� को भी प्रोटो – आस्ट्रे लायड प्रजा�त के अंतगर्त स्वीकार �कया है परं तु यह उ�चत नह�ं जान पड़ता है । डॉ. मजुमदार
तथा शरत चंद्र राय इन्ह� द्र�वड़ प्रजा�त का ह� मानते ह�।
उराँव जनजा�त का �बहार आ�द �नवास स्थान नह�ं माना जाता है । अनके �वद्वान� ने ऐस �सद्ध करने का प्रयास �कया है
�क ये लोग द��ण भारत म� रहा करते थे और जब रामचन्द्र ने रावण पर आक्रमण �कया तो ये लोग बानर सेना के रूप म�
रामचन्द्र के सहयोगी बने। आज अ�धकतर आलोचक यह स्वीकार करने लगे ह� �क बानर सेना पँछ
ू वाल� कोई प्रजा�त नह�ं
थी अ�पतु वे भी नर (मनुष्य) के तरह �ह थे और उन्ह� बानर अथवा नर कहा गया। ये लोग द��ण भारत के पवर्तीय अंचल
म� रहा करते थे और जंगल� जानवर� को मारकर उससे अपना जीवन – यापन करते थे। इनके पास पत्थर और लकड़ी के
ह�थयार होते थे, िजससे ये लोग �शकार खेलते थे और लड़ाई लड़ते थे बाद म� ये लोग यात्रा करते हुए सोन नद� क� तराई म�
आये और वहां स्थायी रूप म� बसकर खेती आ�द करने लगे। कुछ �दन� के बाद राज�न�तक उथल - पुथल होने के कारण ये
लोग रोहतास इत्या�द स्थान� से हटने लगे और कोयल नद� के �कनारे �कनारे ये लोग बढ़ते हुए छोटानागपुर म� आकार
बस गये। छोटानागपुर म� उन �दन� मुंडा जनजा�तय� का �नवास था परं तु अपने �ान रुपी सम�ृ द्ध से इन्ह�ने मुंडाओं को भी
खेती आ�द करने का तर�का �सखाया। उराँव जनजा�त सामािजक राज�न�तक दृिष्ट से समद्ध
ृ थी इस कारण मुंडा लोग� को
वहां से हटने पर मजबरू �कया और प�रणाम स्वरुप मंड
ु ा लोग छोटानागपरु म� भी एक और �समटते चले गए। उराँव
जनजा�त ने छोटे – छोटे गाँव बसाये और खेत� आ�द म� लग गए। आगे - आगे चलकर इन्ह�ने सामािजक तथा
राज�न�तक संस्था के रूप म� पाड़ह क� स्थापना क�। ये पाड़ह संस्थाएं एक राज्य क� तरह अपने – अपने �ेत्र म� प्रशासन
संबंधी कायर् करने लगी।
प्राचीनकाल म� भी उराँव जनजा�त �बहार क� अन्य जनजा�तय� क� अपे�ा हर दृिष्ट से उन्नत थी और वतर्मान काल म� भी
यह जनजा�त �बहार क� अन्य जनजा�तय� से उन्नत बनी हुई है । सांस्कृ�तक और सामािजक दृिष्ट से तो यह उन्नत है ह�
आ�थर्क, शै��णक तथा राजनै�तक दृिष्ट से भी अन्य जनजातीय क� तुलना म� श्रेष्ठ है । उराँव राजनी�त म� , प्रशासन म� ,
यां�त्रक� म� , �च�कत्सा, �व�ान म� तथा �श�ा के �ेत्र म� उच्च पद� पर �वद्यमान है ।
इस प्रकार हम दे खते ह� �क भारत म� जनजा�तयाँ प्रागै�तहा�सक काल से ह� �नवास करती है और यह कह पाना आज
असंभव से है �क कौन सी जनजा�त भारत क� आ�द जनजा�त है और कौन बाद म� आई है । पूरे भारत म� न्यूना�धक रूप से
जनजा�तयाँ �नवास करती ह� िजस म� �बहार का छोटानागपरु प्रमख
ु है । इसम� यद्य�प 30 से भी अ�धक जनजा�तयाँ
�नवास करती है परं तु उनम� आज कुछ ह� हर दृिष्ट से उन्नत हो पाई है । इन जनजा�तय� म� �न:संदेह उराँव जनजा�त
सव�प�र है ।

iz'u 6- Hkkjr esa /eZ osQ oqQN lalDr ,oa }a}kRed vk;keksa ij izdk'k Mkfy,A
mÙkjµ य�द कोई ऐसा संकल्प है जो धा�मर्क पहचान क� �चंता करने वाले सभी �हंदओ ु ं को इस नव वषर् पर लेना चा�हए तो
वह यह है �क उन्ह� बरु े �वचार� से दरू रहना चा�हए। ऐसा ह� एक बरु ा �वचार है �क धमा�तरण पर प्र�तबंध लगाकर वे भारत म�
�हंदओ
ु ं क� घटती जनसांिख्यक� को रोक पाएँगे।
ऐसा नह�ं होगा। य�द हम इस बुरे �वचार को त्याग द� तो इसका प�रणाम अ�धक महत्त्वपूणर् है - �हंद ू धमर् को अपनी शिक्त
पुनः अिजर्त करने के �लए एक बार �फर एक �मशनर� धमर् बनना होगा।
इससे पहले हम इसके क्य� और कैसे पर �वचार कर� , इसके पीछे �छपी मूल भावना को समझ�- स्थाई रहने वाले को प्रकृ�त
नह�ं स्वीकारती। ब्रह्मांड म� लगातार प�रवतर्न हो रहे ह�, जीवन का अथर् है िजतनी को�शकाएँ मर� , उनसे अ�धक जन्म ल� ,
बाज़ार म� �टकनो◌े वाले व्यापार को अपने उपभोक्ता बढ़ाने होते ह� और ऐसा ह� राजनी�तक दल� के �लए भी है ।
जो राजनी�तक दल यथािस्थ�त से संतुष्ट हो जाता है उसका पतन �निश्चत है । यह� वह वास्त�वकता थी िजसने महाराष्ट्र
म� �शवसेना को भारतीय जनता पाट� से अलग होने क� प्रेरणा द�।
�वचार एक ह� हा◌ै। य�द �कसी का �वकास और पोषण नह�ं हुआ तो वह �सकुड़कर अंततः मर जाएगा। धमर् एक ऐसा �वचार
है िजसके भौ�तक, भावनात्मक और मान�सक आयाम ह�। यद ु उनका �वस्तार नह�ं हुआ तो वे मर जाएँगे, भले ह� इस
प्रचलन को आप अपने जीवनकाल म� न दे ख सक�। य�द �हंद ू धमर् को इस दयनीय भ�वष्य से बचना है तो इसे �वस्तार पर
कायर् करना होगा।
पहले यह समझ� �क धमा�तरण पर रोक लगाकर क्य� �हंद ू धमर् क� �गरती जनसांिख्यक� को नह�ं रोका जा सकता है । कई
राज्य� म� धमा�तरण पर प्र�तबंध है ले�कन इसके बावजूद �कसी म� भी �हंद ू धमर् म� मानने वाल� क� घटती संख्या को नह�ं
रोका जा सका है ।
चीन ईसाइयत समेत कई आ�धका�रक धम� के प्र�त अ�मत्रवत व्यवहार करता है । इसके बावजूद भू�मगत रूप से ईसाई बढ़
रहे ह�। कुछ अनुमान बताते ह� �क 2030 तक चीन यूएस को पीछे छोड़कर सवार्�धक ईसाइय� का दे श बन जाएगा। इस दशक
के मध्य से 25 करोड़ ईसाइय� के साथ यूएस सबसे बड़ा ईसाई जनसंख्या वाला दे श था।
यए
ू स म� ईसाइयत पतन क� ओर है (यरू ोप क� बात न कर� ) क्य��क कई लग� ने इसम� मानना छोड़ �दया है । एक-चौथाई
अमे�रक� वयस्क� का कहना है �क वे �कसी धमर् म� नह�ं मानते ह�। पिश्चमी दे श� म� ईसाइयत का यह पतन भारत जैसे दे श�
म� धमा�तरण पर बल को प्रोत्सा�हत कर रहा है ।
यह� एक कारण है �क क्य� पोप दलाई लामा से नह�ं �मलते ह� क्य��क वै�टकन चीन म� �बशप� क� �नयुिक्त म� हस्त�ेप
चाहता है िजससे धमर् को फैलाया जा सके।
एक अन्य प्र�तबंध के उदाहरण से समझ� �क क्य� प्र�तबंध कारगर नह�ं होते। लगभग 20 राज्य� म� गौहत्या पर प्र�तबंध है
ले�कन इसके बावजूद गौमांस क� तस्कर� और गौहत्या पर कोई प्रभाव नह�ं पड़ा। इसके बीच गौ तस्कर� और गौ र�क� के
बीच तनाव और �हंसा क� घटनाएँ दे खने को �मल�ं। 19.2 करोड़ मवेशी जनसंख्या िजनम� से अ�धकांश मादा ह� क�
आवाजाह� व हत्या पर नज़र रखना क�ठन काम है ।
य�द यह मामला एक पशु के साथ है िजसे लाने, ले जाने के �लए एक मनुष्य क� आवश्यकता है तो सो�चए धमा�तरण पर
नज़र रखने म� हम �कतने सफल हो पाएँगे जब कोई व्यिक्त �बना नाम बदले अपनी घर क� चारद�वार� म� ह� धमर् प�रवतर्.न
कर ले? इस प्रकार के धमा�तरण को केवल दखल दे ने वाल� नज़रबंद� से जाना जा सकता है िजसका खुले समाज म� कोई
स्थान नह�ं है ।
धमा�तरण म� सहायता करने वाल� �वदे शी रा�श पर प्र�तबंध लगाना सह� है ले�कन इसके अलावा �कसी और चीज़ पर
प्र�तबंध �हंदओ
ु ं के �लए उल्टा प्रभाव डालेगा। इस प्रकार �हंद ू धमर् के पुनरोत्थान के �लए सबसे उ�चत �वकल्प �मशनर� का
ह� बचता है हमारे पास।
जो �हंद ू दावा करते ह� �क �हंद ू धमा�तरण करवाने वाला धमर् नह�ं है , वे गलत ह� क्य��क इस प्रकार �हंद ू धमर् भारतीय उप-
महाद्वीप पर नह�ं फैला होगा। प्रचार और प्रसार आवश्यक है । आ�द शंकराचायर् का उदाहरण ल� ।
आ�द शंकराचायर् पर अपनी पुस्तक म� पवन वमार् उन्ह� �हंद ू धमर् के सबसे बड़े �वचारक कहते ह� ले�कन वे न �सफर् �वचारक
थे बिल्क एक कतार् और �मशनर� भी थे। अन्यथा वे दे शभर म� घूमकर �वरोधी �वचार� से वाद-�ववाद क्य� करते और अपने
32 वषर् के लघु जीवन म� चार मठ� क� स्थापना क्य� करते?
य�द �हंद ू धमर् क� �मशन�रयाँ नह�ं थीं तो इसके �वचार� को द��ण-पूवर् ए�शया म� फैलाया नह�ं जा सकता था। यहाँ तक �क
इंडोने�शया जैसे मुिस्लम बहुल दे श के पास भी रामायण का अपना संस्करण है ।
ले�कन �हंद ू धमर् को �मशनर� धमर् क्य� बनना चा�हए इसका असल कारण है �क �वस्तार और धमा�तरण रणनी�तयाँ आपको
अपने �वचार�, रू�ढ़य�, संस्थाओं, संसाधन� आ�द पर �चंतन का अवसर दे ती ह�।
य�द �हंद ू संस्थान स्था�पत नह�ं कर� गे, उन्ह� �वत्तपो�षत कर उनक� स्थापना करने वाले व्यिक्तय� से बड़ा नह�ं बनाएँगे,
अपने धमर् को समझने योग्य सरल �वचार� म� नह�ं तोड़�गे, य�द उन �वचार� का कोई आ�थर्क आयाम नह�ं होगा जो
धमा�त�रत व्यिक्त को लाभ पहुँचाए तो यह �वश्व के �कसी �हस्से म� �समटा हुआ छोटा धमर् बनकर रह जाएगा।
वतर्मान म� , कई �हंद ू अपने बारे म� �नम्न�ल�खत बयान दे कर आलस्य और मूखत
र् ा का प�रचय दे ते ह�। म�ने इन सबका
प्र�तवाद दे कर इन तक� के खोखलेपन पर सवाल उठाया है ।
1. हम �पछले 1,000 वष� से बचे हुए ह�, इस�लए हम अगले 1,000 वषर् भी �टके रह� गे। बौद्ध धर्म भी भारत म� स�दय�
से एक प्रमुख धमर् था, भले ह� इसका प्रभुत्व नह�ं था। यह अचानक कैसे गायब हो गया? और कैसे इसने �हंद ू धमर्
को प्रबल �वश्वास बनने �दया य�द �हंद ू धमर् ने खुद को मजबूत नह�ं �कया होता और अपने �वचार� को �फर से
फैलाया नह�ं होता।
1940 के दशक म� , द��ण को�रया म� �सफर् 2 प्र�तशत ईसाई थे। 2014 म� , ईसाई धमर् को मानने वाल� क� संख्या
30 प्र�तशत से अ�धक हो गई यानी �क तीन पी�ढ़य� के अंतराल म� 15 गन
ु ा व�ृ द्ध। ले�कन अचानक, ईसाई धमर् का
�वकास फ�का पड़ गया, क्य��क युवाओं ने चचर् म� जाना बंद कर �दया है । जब धमर् लोग� क� अपे�ाओं से �मलते ह�
तो वे बढ़ते ह� और य�द नह�ं तो �सकुड़ जाते ह�।
�हंद ू धमर् तेज़ी से घट सकता है य�द यह जनसांिख्यक�य रुझान� का अध्ययन नह�ं करता और यह समझने म�
�वफल रहता है �क वह वह क्या है जो लोग� को धमर् के प्र�त �नष्ठावान या �वमुख बनाता है । भारत म� ईसाई धमर्
बढ़ रहा है क्य��क इस धमर् ने यह समझने म� �नवेश �कया है �क लोग �वश्वास से क्या चाहते ह�।
य�द �हंद ू जनसांिख्यक�य संकुचन को रोकना चाहते ह�, तो उन्ह� ईसाई और इस्लाम क� कमजो�रय� और ताकत
का अध्ययन करना होगा, और उनक� शिक्तय� को अपनाकर और उनक� कमजो�रय� पर हमला करके अपनी
रणनी�तयाँ तैयार करनी ह�गी।
धमा�तरण रणनी�तय� के �लए प्र�तबद्धता आपको स्वायत्त रूप से इन �वचार� पर सोचने के �लए मजबूर करे गी।
धमा�तरण पर प्र�तबंध का मतलब है �क आप आराम कर सकते ह� और सोने जा सकते ह� और इस प्रकार हम नींद
लेकर अपने दश्ु मन� को बढ़त बनाने म� स�म कर रहे ह�।
2. हम सभी लोग� को उनके �वश्वास पर उन्ह� स्वयं के �वचार� का पालन करने क� स्वतंत्रता दे ते ह�, िजसका अथर् है
�क हम खुले और उदार ह�। खुले �वचार� का होना एक बात है और धमर् क� चुनौ�तय� का सामना करने म� आलसी
होना और उन्ह� खा�रज करना दस
ू र�। पिश्चमी उत्तर प्रदे श, पिश्चम बंगाल, असम, केरल और मंगलोर के
आसपास यानी कनार्टक के तट�य इलाक� म� मुिस्लम आबाद� बढ़ रह� है , और ईसाई धमर् पूव�त्तर स�हत पूरे
द��णी और आ�दवासी भारत म� अपने पंख फैला रहा है । इन �ेत्र� म� �हंद ू धमर् पहले से ह� पीछे है ।
इस �गरावट को दरू करने का एकमात्र तर�का धमा�तरण से �वस्तार क� प्र�तबद्धता को �वक�सत करना है । एक
धमर् जो प�रभा�षत नह�ं करता है �क वह संभा�वत धमा�त�रत को क्या प्रदान करे गा तो वह �सकुड़ जाएगा और
अंततः �वफल होगा। अगर कोई भी अपनी शत� पर �हंद ू होने का दावा कर सकता है , तो �हंद ू बनने प्रयास क्य�
करे गा?
ले�कन साथ ह� साथ एक और बात भी है । हालाँ�क यह अच्छा है �क �हंद ू धमर् अपे�ाकृत हठध�मर्ता से है , ले�कन
�हंद ू धमर् इस बात को नह�ं मानता �क आपके पास खुद के मौ�लक मूल्य� और प्रस्ताव� क� सं�हता नह�ं होनी
चा�हए। य�द �हंद ू धमर् “कुछ भी चलता है ” का ह� रहे गा तो �कसी को भी इसे अपनाने क� ज़रूरत नह�ं रहे गी,
क्य��क यह �कसी के �लए स्पष्ट रूप से प�रभा�षत मूल्य प्रस्ता�वत नह�ं करता है ।
अगर �हंद ू धमर् “अपने आप करो“ वाला एक धमर् बना रहा तो वैसा ह� होगा जैसे एक �दन श�श थरूर ने अचानक
“द �हंद ू वे” पर एक �कताब �लख द� और कोई भी �हंद ू इसे “बकवास” नह�ं कह पाएगा। वे �हंद ू धमर् को इस तरह
से प�रभा�षत कर सकते ह� जो धमर् को आत्म-परािजत हो। यह अच्छा है �क �हंद ू धमर् मान्यताओं और प्रथाओं को
अपने अनुसार ढालने क� अनुम�त दे ता है , ले�कन अगर एक मूल �वक�सत नह�ं �कया गया तो यह खोखला गोला
बनकर रह जाएगा।
3. सभी धमर् एक समान ह� तो क्या समस्या है अगर कुछ �हंद ू दस
ू रे धम� म� प�रव�तर्त होते ह�? यह ऐसी बकवास है
िजसे हम� फैलने से रोकना चा�हए। सभी धमर् समान नह�ं ह�, और कभी नह�ं ह�गे, भले ह� कुछ �बंद ु उनके �लए
सामान्य ह�। य�द सभी धमर् समान ह�, तो �हंद ू भी ईसाई या इस्लाम या बौद्ध धमर् म� क्य� प�रव�तर्त होते ह�?
बाबासाहे ब अंबेडकर ने बौद्ध धमर् म� प�रव�तर्त होकर एक बड़ा मुद्दा क्य� बनाया?
भारत म� होने वाल� 2021 क� जनगणना लगभग पूरे भारत म� �हंद ू आबाद� म� और �गरावट तथा मुिस्लम
जनसांिख्यक� म� व�ृ द्ध का संकेत दे गी। ईसाइयत क� व�ृ द्ध छुपी रह सकती है क्य��क कई लोग नौकर� के आर�ण
के लाभ को खोने के डर से खल
ु े तौर पर अपने नए �वश्वास क� घोषणा नह�ं करते ह�।
�हंद ू धमर् का पतन हो रहा है क्य��क आलसी �हंद ू “सभी धमर् समान ह�” का दावा करके प्र�तबद्धता से बचना चाहते
ह� और इस प्रकार अपनी �निष्क्रयता और हार के �लए बौ�द्धक कारण दे ते ह�। ‘�दल्ल� दरू अस्त’, म� �वश्वास कभी
जीतने क� रणनी�त नह�ं हो सकती है ।
4. अगर �हंद ू धमर् �हंदत्ु व हो गया तो यह �हंद ू धमर् नह�ं रहे गा। म� �हंदत्ु व को या तो राजनी�तक �हंद ू धमर् के रूप म�
प�रभा�षत करता हूँ या �फर इसे सभी �हंद ू संप्रदाय� एवं वग� के बीच एकता क� मजबत
ू परत मानता हूँ। हालाँ�क
यह सच है �क �हंद ू धर्म म� �वचार� को एक�कृत करने के �कसी भी प्रयास से कुछ �व�वधताएँ कम हो जाएँगी,
हमार� वास्त�वक समस्या �व�वधता नह�ं है , बिल्क असमानता का म�हमामंडन है । कोई भी धमर् जो जी�वत रहना
चाहता है , उसे एकता क� परत� का �नमार्ण करना होगा जहाँ �व�वध इकाइयाँ अपने मतभेद� का जश्न मनाते हुए
भी अपने सामान्य �हत� के �लए लड़ सक�।
�सख धमर् के मामले पर �वचार कर� । पहले नौ गरु
ु सध
ु ार और प्र�तबद्धता के माध्यम से �वश्वास फैला रहे थे। नौव�
गुरु, तेग बहादरु ने तो धमर् के �लए अपना सर भी स�प �दया और मुगल शासन ने इसे प्रसन्नतापूवक
र् स्वीकार
�कया। अपना सर स�प दे ना आपको युद्ध म� �वजयी नह�ं बनाता है । गुरु तेग बहादरु का यह ब�लदान बहुत बड़ा था
ले�कन �नस्संदेह ह� उनका यह ब�लदान भारत के उत्तर-पिश्चम म� इस्लाम क� चुनौती से �नपटने के �लए
पयार्प्त नह�ं था
10व� गरु
ु थे गरु
ु गो�वंद �संह, िजन्ह�ने �सख धमर् को अं�तम रूप �दया और मल
ू �सद्धांत� को �हंद ू और इस्लाम
दोन� से �लया िजससे वे इस्लाम के हमले का सामना कर सक�। क्या इसके कारण �सख धमर् बदल गया? हाँ।
क्या इस बदलाव के �बना �सख धमर् बच सकता था? हम नह�ं कह सकते ले�कन एक बात स्पष्ट है , य�द आप खड़े
होकर लड़ना चुनते ह�, तो आप बदल जाते ह�। य�द आप नह�ं बदलते ह�, तो आप हार जाते ह�। �फर आपको
�वजेताओं द्वारा �नधार्�रत शत� पर प�रवतर्न करने के �लए मजबूर �कया जाता है । �कसी को क्या चुनना चा�हए?
खद
ु को बदल� और अपने भाग्य को �नयं�त्रत कर� , या उन लोग� द्वारा बदलने के �लए मजबरू �कया जाए जो
आपक� या आपक� �वरासत क� परवाह नह�ं करते।
5. वसुधैव कुटुम्बकम (द�ु नया एक प�रवार है )। यह बकवास है । द�ु नया कभी एक प�रवार नह�ं रह� है , और यहाँ तक
�क केवल एक धमर् से चलने वाल� द�ु नया भी कभी एक प�रवार नह�ं होगी। कौरव और पांडव मूलत: एक ह�
प�रवार के थे ले�कन वे अपने �हस्से क� पाट�दार� के �लए युद्ध म� गए थे। धमर् ने सौभाग्य से जीत हा�सल क�,
ले�कन य�द अजन
ुर् क� कमजोर� (वह भी वसध
ु ैव कुटुम्बकम म� �वश्वास करता है ) को श्रीकृष्ण द्वारा धमर् के �लए
लड़ने क� सलाह से दरू नह�ं �कया गया होता तो ऐसा नह�ं होता, जैसा �क गीता म� व�णर्त है ।
भारत म� �हंदू धमर् के प्र�तद्वंद्वी ईसाई धमर् और इस्लाम भी वसुधैव कुटुम्बकम क� अपनी खुद क� मान्यता म� �वश्वास करते
ह� और केवल अंतर यह है �क यह यीशु या अल्लाह के बैनर के तहत होना चा�हए। ले�कन न तो ईसाई धमर् और न ह� इस्लाम
ने एक ह� �वश्वास रखने वाले राज्य� और समाज� के बीच युद्ध को समाप्त कर पाया है , न ह� �हंदू धमर् ने ऐसा �कया है ।
वसध
ु ैव कुटुम्बकम एक सद्भाव का नारा है , रणनी�त नह�ं। प�रवार क� भावनाओं का अभ्यास करना ठ�क है जब संबं�धत
व्यिक्त प�रवार क� तरह व्यवहार करता है , न �क तब जब वह आपको लूटने क� योजना बना रहा हो।
द�ु नया को एक प�रवार बनाने का एकमात्र तर�का इस प�रवार क� प्रत्येक इकाई के �लए एक दस
ू रे को रोकने के �लए पयार्प्त
म़जबूत होना है , ता�क धम� और लोग� के बीच शां�त रहे । जब सभी धम� को पता चलेगा �क वे द�ु नया पर शासन नह�ं कर
सकते, तो वे शां�त और वसुधैव कुटुम्बकम क� �दशा म� जाएँगे। शां�त क� एकमात्र गारं ट� प्रभावी सशस्त्र �नरोध है ।
वसध
ु ैव कुटुम्बकम को प्राप्त करने के �लए, �हंद ू धमर् को एक बार �फर एक �मशनर� धमर् बनकर अपने आप को स्था�पत
करना होगा। जब तक यह धमा�तरण करने से इनकार करे गा, तब तक धमर् प�रवतर्न को अपनाकर �वश्व धमर् बन चुके दो
रे �गस्तानी पंथ इसे नष्ट कर द� गे।

iz'u 7- Hkkjr esa uxjhdj.k lekt dks oSQls izHkkfor djrk gS\ orZeku le; esa izo klh Jfedksa dh cngkyh dks
è;ku esa j[krs gq, o.kZu dhft,A
mÙkjµ
iz'u 8- lkekftd vkanksyuksa dks ifjHkkf"kr dhft, ,oa buosQ vFkZ dh ppkZ] mfpr mnkgj.k nsrs gq, dhft,A
mÙkjµ 1. सामािजक आन्दोलन क� प�रभाषा—सामािजक प्ररूप� म� एक मुख्य प्ररूप सामािजक आन्दोलन है । इसक�
प�रभाषा करते हुये हरबर्ट ब्लूमर ने �लखा है - ”सामािजक आन्दोलन जीवन क� एक नई व्यवस्था स्था�पत करने के �लए
एक सामू�हक प्रयास माने जा सकते ह�।”
स्पष्ट है �क सामािजक आन्दोलन� का उद्देश्य समाज के वतर्मान जीवन म� कोई न कोई प�रवतर्न लाना है । इस प्रकार
सामािजक आन्दोलन प�रवतर्न करने का साम�ू हक प्रयास है । आरनोल्ड एम. रोज के शब्द� म� ”सामािजक आन्दोलन
व्यिक्तय� क� एक बड़ी संख्या के एक अनौपचा�रक संगठन को कहते ह� जो सामािजक ल�य �लये होता है , अनेक व्यिक्तय�
का प्रभावशाल� संस्कृ�त संकुल� संस्थाओं अथवा �व�शष्ट वग� को समाज म� संशो�धत या स्थानान्त�रत करने का एक
सामू�हक प्रयास है ।”
इस प्रकार सामािजक आन्दोलन सामािजक ल�य को लेकर �कये जाते ह�। ये �कसी एक व्यिक्त द्वारा नह�ं बिल्क अनेक
व्यिक्तय� के साम�ू हक प्रयास का प�रणाम होते ह�। इनम� संस्कृ�त संकुल� संस्थाओं अथवा �व�शष्ट वग� को प�रव�तर्त
करने का प्रयास �कया जाता है ।
सामािजक आन्दोलन प्रारम्भ म� एक छोटे रूप म� शुरू होता है �कन्तु क्रमशः बढ़ते हुए वह समस्त समाज पर छा जाता है ,
उसक� अपनी प्रथाय� और परम्पराय� होती है उसम� एक संगठन होता है , उसम� नेता होते है और श्रम �वभाजन होता है तथा
उसम� कुछ सामािजक �नयम और मूल्य होते ह�।
इस प्रकार प्रत्येक सामािजक आन्दोलन क� एक अपनी संस्कृ�त एक सामािजक संगठन और जीवन क� एक योजना होती
है । इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए बेर� ने �लखा है - ”जैसे-जैसे एक सामािजक आन्दोलन �वक�सत होता है वह एक समाज
का रूप ग्रहण कर लेता है । उसम� संगठन और रूप प्रथाओं और परम्पराओं क� व्यवस्था स्था�पत नेतत्ृ व और स्थायी श्रम
�वभाजन सामािजक �नयम और सामािजक मूल्य सं�ेप म� एक संस्कृ�त एक सामािजक संगठन और जीवन क� एक नई
योजना बन जाती ह�।”
बरनाडर् �फ�लप्स के शब्द� म� - ”हम एक सामािजक आन्दोलन क� प�रभाषा एक समह
ू द्वारा वतर्मान सामािजक व्यवस्था
को प�रव�तर्त करने अथवा प्रभा�वत करने के स्पष्ट उद्देश्य से एक सामू�हक कायर् के रूप म� कर सकते ह�।”
2. सामािजक आन्दोलन क� �वशेषताय�—सामािजक आन्दोलन क� उपरोक्त प�रभाषाओं से उसक� �नम्न�ल�खत
�वशेषताय� स्पष्ट होती ह�—
(i) सामािजक ल�य—सामािजक आन्दोलन जैसा �क इनके नाम से स्पष्ट है , �कसी न �कसी सामािजक ल�य को
लेकर उत्पन्न होते ह� और इस ल�य को प्राप्त करने के �लए ह� कायर् करते ह�। सामािजक ल�य से तात्पयर्
सामािजक संरचना सामािजक संस्था अथवा सामािजक जीवन म� प�रवतर्न के ल�य से है । जोसेफ गसफ�ल्ड के
अनुसार- सामािजक आन्दोलन ”सामािजक व्यवस्था के �कसी पहलू म� प�रवतर्न क� माँग क� ओर �नद� �शत
सामािजक रूप से स्वीकृत �क्रयाय� और �वश्वास ह�।”
(ii) सामािजक प�रवतर्न—सामािजक आन्दोलन का उद्देश्य सामािजक प�रवतर्न लाना है । इस सामािजक प�रवतर्न
का प्रकार और मात्रा �भन्न-�भन्न सामािजक आन्दोलन� म� �भन्न-�भन्न होती है । हाटर् न और हन्ट के अनस
ु ार-
”समाजशास्त्री सामािजक आन्दोलन� का प�रवतर्न को आगे बढ़ाने या रोकने के प्रयास मानते है ।”
इसी बात को �भन्न शब्द� म� रखते हुए जेम्स मैक्क� ने �लखा है - “सामािजक आन्दोलन जनसमुदाय के सामू�हक
कायर् के द्वारा सामािजक संरचना म� जान-बूझकर प�रवतर्न लाने के चेतन प्रयास ह�। ” अचेतन रूप म�
सामािजक प�रवतर्न सदै व होता रहता है । सामािजक आन्दोलन� के द्वारा जान-बूझकर प�रवर्तन करने का
प्रयास �कया जाता है ।
(iii) �वरोधी प्रविृ त्त—प्रत्येक सामािजक आन्दोलन �कसी न �कसी वतर्मान िस्थ�त, सामािजक व्यवस्था अथवा
सामािजक संस्था के रूप, प्रथा या परम्परा के �वरोध म� उत्पन्न होता है और उसम� प�रवतर्न करना चाहता है । इस
प्रकार सामािजक आन्दोलन म� �वरोधी प्रविृ त्त होती है ।
(iv) संगठन—सामािजक आन्दोलन आरम्भ म� छोटे रूप म� शुरू होकर क्रमशः संग�ठत रूप ग्रहण कर लेते ह�। इस
संगठन के �बना वे अपने ल�य� को प्राप्त नह�ं कर सकते। इस तथ्य को स्पष्ट करते हुये हाइम्स ने �लखा है -
”एक सामािजक आन्दोलन साम�ू हक व्यवहार क� एक ज�टल ग�तशील व्यवस्था है िजसके सबसे अ�धक
�व�शष्ट घटक एक सामािजक समिष्ट, एक सामािजक �वचारधारा, और एक सामािजक संरचना होते है ।”
(v) प्रासं�गक—मूक सामािजक आन्दोलन �कसी न �कसी बात के �वरोध म� उत्पन्न होते ह� इस�लए ये प्रासं�गक होते
ह�। �वशेष प्रसंग के कारण ह� उनका जन्म होता है और यह प्रसंग बदल जाने पर ये समाज हो जाते ह�। अस्तु �कसी
भी सामािजक आन्दोलन को स्थायी नह�ं माना जाना चा�हये।
(vi) भौगो�लक �ेत्र—न्यन
ू ा�धक रूप से प्रत्येक सामािजक आन्दोलन �कसी न �कसी �व�शष्ट भौगो�लक �ेत्र म�
सी�मत होता है । उदाहरण के �लए भारतवषर् म� कुछ सामािजक आन्दोलन �कसी �वशेष राज्य और कुछ सम्पूणर्
दे श म� सी�मत रहे ह�। शायद ह� कोई सामािजक आन्दोलन समस्त �वश्व म� फैला हो।
(vii) कालाव�ध—सामािजक आन्दोलन क्रमश: �वक�सत होते ह�। इस प्रकार इनके �वकास क� एक कालाव�ध होती है ।
इस अव�ध के समाप्त हो जाने के पश्चात ् ये �दखायी नह�ं पड़ते।
(viii) ग�तशीलता—सामािजक आन्दोलन सामािजक ल�य� को लेकर उत्पन्न होते ह�। इन सामािजक ल�य� को प्राप्त
करने के �लए ये आन्दोलन सदै व ग�तशील रहते ह� और दे शकाल के प�रवतर्न के साथ-साथ बदलते जाते है । जो
आन्दोलन इस प्रकार ग�तशील नह�ं होते वे अपने सामािजक ल�य को प्राप्त करने म� असफल रहते है ।
(ix) नेता क� भू�मका—सामािजक आन्दोलन� का जन्म आरम्भ म� �कसी न �कसी नेता के �वचार म� होता है । बाद म�
प्रत्येक आन्दोलन म� छोटे -बड़े अनेक नेतागण �दखायी पड़ते ह�। सामािजक आन्दोलन� को �नद� शन दे ने के �लए
इन नेताओं क� भ�ू मका महत्वपूणर् होती है ।
(x) सा�हत्य—चूं�क सामािजक आन्दोलन �वशेष प्रकार क� सामािजक व्यवस्था स्था�पत करने के �लए उत्पन्न होते ह�
इस�लए वे अपने �वचार� को �कसी न �कसी प्रकार के सा�हत्य के माध्यम से फैलाने का प्रयास करते ह� इस सा�हत्य म�
जहां एक ओर वे अपना मत उपिस्थत करते ह� वहां दस
ू र� ओर वे �वरोधी मत� क� आलोचना भी करते ह�।
3. सामािजक आन्दोलन के तत्व—�व�भन्न समाजशािस्त्रय� ने सामािजक आन्दोलन के जो �व�भन्न तत्व बतलाये ह�
उनसे भी सामािजक आन्दोलन क� �वशेषताय� स्पष्ट होती ह�। वैन्डल �कं ग के अनस
ु ार सामािजक आन्दोलन म� 5 मख्
ु य
तत्व होते ह�- ल�य, �वचारधारा, सामू�हक संिश्लष्टता, संगठन और िस्थ�त व्यवस्था तथा कायर्�व�ध।
ब्रूल और सेल्ज�नक ने सामािजक आन्दोलन म� तीन तत्व माने ह�-एक �वशेष प�रप्रे�य और �वचारधारा संगठन और
आदशर्वाद क� तीव्र भावना तथा कायर् क� प्रविृ त्त। जेम्स गसफ�ल्ड सामािजक आन्दोलन� म� 5 तत्व मानता है - सामू�हक
प्रघटन �क्रयाय� और �वश्वास, माँग, प�रवतर्न और सामािजक व्यवस्था। इसी प्रकार अन्य समाजशािस्त्रय� ने भी सामािजक
आन्दोलन� म� �व�भन्न तत्व �दखलाये ह�।
प्रत्येक सामािजक आन्दोलन �कसी �वशेष िस्थ�त के �वरोध म� जन्म लेता है , क्रमशः संग�ठत रूप ग्रहण करता है , लम्बे
समय तक �नरन्तर ग�तशील रहता है , सामािजक ल�य� को प्राप्त करता है और इसके बाद समाप्त हो जाता है । इस प्रकार
सामािजक आन्दोलन के जीवन म� अनेक चरण अथवा अवस्थाय� पाई जाती है ।
हाईम्स ने सामािजक आन्दोलन के �वकास म� �नम्न�ल�खत चार अवस्थाय� मानी ह�:
(a) प्राथ�मक अवस्था—यह प्राथ�मक अवस्था जनप्र�त�क्रयाओं क� अवस्था होती है । इसम� बेरोजगार और असन्तष्ु ट
तथा पी�ड़त व्यिक्त अपने �वचार� और �शकायत� के द्वारा गम्भीर िस्थ�त का दृश्य उपिस्थत कर दे ते ह�।
(b) द्वैतीयक अवस्था—वह भीड़ व्यवहार क� अवस्था है । इसम� आन्दोलन फैल जाता है , उत्तेजना बढ़ती। जन
प्रदशर्न, जुलूस, सभाय� और हड़ताल� संग�ठत क� जाती ह� और कभी-कभी �हसांत्मक दं गे भी होते ह�।
(b) औपचा�रक आन्दोलन—यह लोक आचरण क� अवस्था है । इसम� सामू�हक असन्तोष के ल�य प�रभा�षत होकर
�वचारधारा का रूप ले लेते ह� और आन्दोलन औपचा�रक रूप से संग�ठत हो जाता है ।
(d) क्रािन्त—आन्दोलन क� अिन्तम अवस्था म� वह क्रािन्त का रूप ग्रहण कर लेता है िजसम� एक ओर केन्द्र�य ल�य
घो�षत �कए जाते ह� और दस
ू र� ओर साधन के रूप म� �हंसा के प्रयोग के �लए भी तैयार� होती है ।
4. सामािजक आन्दोलन क� अवस्थाय�—बैन्डल �कं ग ने सामािजक आन्दोलन के �वकास को दो अवस्थाओं म� �वभािजत
�कया है । आन्त�रक �वकास क� अवस्था म� तीन अवस्थाय� होती ह�-प्रारिम्भक अवस्था संगठनात्मक अवस्था और स्थायी
अवस्था। बाहर� �वकास क� अवस्था म� भी तीन सोपान होते ह�- अन्वेषण, चुनाव और एक�करण।
इसी प्रकार अन्य समाजशािस्त्रय� ने भी सामािजक आन्दोलन म� �व�भन्न चरण �दखलाये ह�। यहाँ पर यह ध्यान रखा जाना
चा�हए �क कोई भी दो आन्दोलन �बल्कुल एक से नह�ं होते और न समान अवस्थाओं से गुजरते ह�।
�फर भी सामान्य रूप से सामािजक आन्दोलन के �वकास म� �नम्न�ल�खत चरण अथवा अवस्थाय� �दखलायी जा सकती ह�:
(i) असन्तोष क� िस्थ�त—प्रत्येक सामािजक आन्दोलन �कसी न �कसी सामािजक असन्तोष के कारण उत्पन्न होता
है । जब लोग सामािजक संरचना, संस्था, प्रथा, परम्परा अथवा �नयम आ�द म� से �कसी से अत्य�धक असन्तुष्ट
हो जाते ह� तो �कसी सामािजक आन्दोलन के जन्म क� भ�ू मका तैयार होती है ।
(ii) सावर्ज�नक उत्तेजना—सामािजक आन्दोलन सामू�हक अथवा जन आन्दोलन होते ह�। अस्तु, आरिम्भक
अशािन्त क� िस्थ�त से वे शीघ्र ह� सावर्ज�नक उत्तेजना क� िस्थ�त म� आ जाते ह�। इसम� असन्तोष एक बड़े समूह
म� फैल जाता है , अनेक �वषय� पर बहस होने लगती है , उत्साह �दखलायी पड़ता है और लोग भड़के हुए होते ह�।
(iii) औपचा�रक संगठन—�कन्तु उत्तेिजत समूह सामािजक ल�य� को प्रान्त नह�ं कर सकता। अस्तु, सामािजक
आन्दोलन म� तीसर� अवस्था औपचा�रक संगठन क� अवस्था होती है । इसम� आन्दोलन कुछ नेताओं के नेतत्ृ व म�
एक औपचा�रक संगठन प्राप्त करता है । इस संगठन के माध्यम से आन्दोलन को दरू -दरू तक फैलाने का प्रयास
�कया जाता है ।
(iv) संस्थाकरण—औपचा�रक संगठन के पश्चात ् सामािजक आन्दोलन का संस्थाकरण होता है । अब वह एक स्थायी
संस्था अथवा तंत्र का रूप धारण कर लेता है और उसके ल�य� को सामािजक स्वीकृ�त प्राप्त हो जाती है ।
(v) समापन—ल�य� को प्राप्त करने के पश्चात ् सामािजक आन्दोलन समाप्त हो जाते ह�। इस िस्थ�त म� कुछ
आन्दोलन �कसी �वशेष मठ या सम्प्रदाय का रूप ग्रहण कर लेते ह� और उसी म� सी�मत होकर समाप्त हो जाते ह�।
कुछ अन्य औपचा�रक रूप से समाप्त कर �दए जाते ह�।
5. सामािजक आन्दोलन के कारण—सामािजक आन्दोलन� क� �वशेषताओं और प्रकार के �ववेचन से उनके कारण स्पष्ट
होते है । साधारणतया सामािजक आन्दोलन� के समाजशास्त्रीय, ऐ�तहा�सक और मनोवै�ा�नक स्पष्ट�करण �दये जाते ह�।
इन स्पष्ट�करण� म� सामािजक आन्दोलन� के सामाजशास्त्रीय, ऐ�तहा�सक और मनोवै�ा�नक कारण पर बल �दया गया है
इनक� व्याख्या से सामािजक आन्दोलन के कारण स्पष्ट ह�गे।
(i) समाजशास्त्रीय स्पष्ट�करण—समाजशािस्त्रय� ने सामािजक आन्दोलन� के कारण� म� �नम्न�ल�खत को
महत्त्वपूणर् माना है —
(अ) सामािजक �वघटन—सामािजक �वघटन समाज के �व�भन्न वग� क� िस्थ�तय� और काय� क�
अव्यवस्था को कहते ह�। इससे असन्तोष उत्पन्न होता है िजसके प�रणामस्वरूप सामािजक आन्दोलन
जन्म लेते ह�।
(ब) िस्थ�त क� �वषमता—जब समाज म� �व�भन्न व्यिक्तय� क� िस्थ�तय� म� अत्य�धक �वषमता
�दखलायी पड़ती है तो �नम्न िस्थ�त के लोग� म� असन्तोष उत्पन्न होता है और वामपंथी तथा
द��णपंथी आन्दोलन जन्म लेते ह�।
(स) वगर् चेतना—कालर् माक्सर् के अनस
ु ार सामािजक �वकास का इ�तहास वगर् संघषर् का इ�तहास है । वह
आन्दोलन को वगर् संघषर् कहता है जो �क वगर् चेतना का प�रणाम है । जब शो�षत वगर् म� वगर् चेतना तीव्र
हो जाती है तो वह शोषक वगर् के उन्मूलन के �लये क्रािन्तकार� आन्दोलन छे ड़ दे ता है ।
(द) सामािजक आदशर्—प्रत्येक सामािजक आन्दोलन कुछ सामािजक आदश� को स्था�पत करना चाहता है।
इस प्रकार सामािजक आदशर्, सामािजक आन्दोलन के महत्वपूणर् कारण ह�।
उपरोक्त समाजशास्त्रीय स्पष्ट�करण सामािजक आन्दोलन के समाजशास्त्रीय पहलू को स्पष्ट करता है �कन्तु
इससे अन्य पहलुओं क� व्याख्या नह�ं होती। अस्तु यह स्पष्ट�करण संसार के सभी दे श� म� सभी आन्दोलन� क�
व्याख्या नह�ं कर सकता।
(ii) ऐ�तहा�सक स्पष्ट�करण—इ�तहासकार सामािजक आन्दोलन� के मूल म� �कसी न �कसी ऐ�तहा�सक घटना को
कारण मानते ह�। इससे यह तो अवश्य पता चलता है �क कोई आन्दोलन �कस प्रकार जन्म लेता है �कन्तु इससे
यह पता नह�ं चलता �क एक सी प�रिस्थ�तय� म� �कसी समाज म� �व�भन्न प्रकार के आन्दोलन क्य� उत्पन्न होते
ह�। अस्तु ऐ�तहा�सक स्पष्ट�करण आन्दोलन के कारण� क� पयार्प्त व्याख्या नह�ं है ।
(iii) मनोवै�ा�नक स्पष्ट�करण—समाज मनोवै�ा�नक आन्दोलन� के मूल म� सामू�हक तनाव� जैसे मनोवै�ा�नक
कारण� क� ओर संकेत करते ह�। इसम� कोई सन्दे ह नह�ं �क मनोवै�ा�नक असन्तोष ह� प्रत्येक प्रकार के
आन्दोलन के जन ्म म� मुख्य कारण है �कन्तु इसे आन्दोलन का पयार्प्त कारण नह�ं कहा जा सकता।
वास्तव म� सामािजक आन्दोलन� के कारण� क� व्याख्या करने के �लये समाजशास्त्रीय, ऐ�तहा�सक अथवा मनोवै�ा�नक
स्पष्ट�करण� म� से कोई एक पयार्प्त नह�ं है , इन सभी को ध्यान म� रखने से सामािजक आन्दोलन के कारण अ�धक आसानी
से समझ म� आ सकते है ।
उदाहरण के �लये भारतवषर् म� भारतीय राष्ट्र�य कांग्रेस के रूप म� जो राष्ट्र�य आन्दोलन प्रारम्भ हुआ उसके कुछ ऐ�तहा�सक
कारण थे, उसके मूल म� भारतवा�सय� म� बढ़ता हुआ तनाव और �नराशा थी �कन्तु इनके अ�त�रक् त उसके अनेक
समाजशास्त्रीय कारण भी थे।

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