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ASSIGNMENT SOLUTIONS GUIDE (2020-21)

MPA-11
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MPA-11/ TMA/ 2020-21
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mÙkjµ महात्मा गांधी के �वचारो को गांधीवाद कहा जाता है । गांधीवाद के सम्बन्ध मे सवर्प्रथम प्रश्न यह है �क क्या गांधीवाद
नाम क� कोई वस्तु है तो �निश्चत रूप से गांधीवाद जैसी कोई वस्तु नह� हे । क्य��क गांधीजी ने राजनी�त सम्बन्धी क्रमबद्ध
�सद्धांत प्रस्तुत नह� �कया है और न �कसी वाद का संस्थापन ह� �कया। गांधी जी ने स्वयं कहा था। गांधीवाद नामक कोई
वस्तु नह� है और न मै अपने पीछे कोई सम्प्रदाय छोड़ना चाहता हँ◌ू। मेरा यह दावा भी नह� है �क मैने �कसी नये �सद्धांत का
अ�वष्कार �कया है । मैने तो �सफर् शाश्वत सत्यो को अपने �नत्य जीवन से और प्र�त�दन के प्रश्न� पर अपने ढं ग से उतारने
का प्रयास मात्र �कया है । गांधीजी के अनुया�ययो ने गांधीजी के �बखरे अव्यविस्थत �वचारो को संक�लत कर क्रमबद्धता
प्रदान कर गांधीवाद नाम �दया।
पट्ट�म सीता रमैया के अनुसार- ‘‘गांधीवाद कुछ �नयमो एवं �सध्दांतो का संकलन मात्र न होकर जीवन का दशर्न है यह
जीवन के प्र�त नया दृिष्टकोण प्रस्तुत करता है और आधु�नक जीवन क� समस्याओ को पा्र चीन भारतीय दशनर् के आधार
पर तल करने का प्रयास करता है ’’ गांधीजी के प्रमुख �वचार उनक� प्रमुख पुस्तक �हन्द स्वराज्य आत्मकथा (सत्य के
साथ मेरे प्रयोग) सत्याग्रह सव�दय शािन्त और यध्
ु द म� अ�हंसा आ�द मे �मलते हे । इसके अलावा साप्ता�हक पत्र द��ण
अफ्र�का म� इं�डयन ओ�प�नयन भारत म� ह�रजन नवजीवन ह�रजन सेवक आ�द मे �मलते है ।
गांधीवाद के प्रेरणास्त्रोत (गांधीजी के �वचारो का आधार) - गांधीवाद� �वचारधारा के प्रमुख प्रेरणा स्त्रोतो मे सवर्प्रथम उन पर
अपने माता �पता क� सादगी सदाचार व्यिक्तगत जीवन क� प�वत्रता �हन्द ू धमर् के संस्कारो का अ�मट प्रभाव पडा। गांधीजी
�वचारो व जीवन पर अन्य प्रभाव� मे भगवत गीता उप�नषद भारत के �व�भन्न साधु संतो के उपदे श तथा जैन व बौध्द धमर्
के सम्पकर् का उल्लेख �कया जा सकता है ।
गांधीवाद क� �वशेषताएं या प� मे तकर्
आध्यात्मवाद पर आधा�रत—गांधीजी के मतानुसार - ‘‘परमात्मा ह� सत्य है शुध्द अन्तरात्मा क� वाणी ह� सत्य है । लोक
सेवा ईश्वर प्रािप्त के साधन का आवश्यक अंग है । गांधीजी मानव समूह को भगवान का �वराट रूप मानते थे और उनक� सेवा
को भगवान क� सेवा।’’
एक व्यावहा�रक दशर्न- गांधीवाद वास्त�वकता पर आधा�रत है । गांधीजी कमर्योगी थे। कमर् मे �वश्वास करते थे। उनका
दशर्न उनके �नजी अनभ
ु वो सत्य के प्रयोगो आरै अ�हंसा पर आधा�रत है ।
सत्याग्रह- गांधीवाद का मूल आधार सत्याग्रह है । सत्याग्रह का अथर् सत्य को आरूढ़ करना। सत्याग्रह मे छलकपट धोखा का
प�रत्याग कर प्रेम एवं सत्य के नै�तक शास्त्र का प्रयोग करना पडता है । सत्याग्रह तो शिक्तशाल� और वीर मनुष्य का शस्त्र है ।
अ�हंसा पर आधा�रत- गांधीजी का मत था �क अ�हंसा के आधार पर ह� एक सव्ु यविस्थत स माज क� स्थापना और मानव
जीवन क� भावी उन्न�त हो सकती है । अ�हंसा का अथर् �कसी भी रूप मे अन्य �कसी व्यिक्त को कष्ट न पहुंचाना है । एवं
अत्याचार� क� इच्छा का आित्मक बल के आधार पर प्र�तरोध करना भी है । अ�हंसा आित्मक बल का प्रतीक है ।
आदशर् राज्य क� स्थापना- गांधीजी अ�हंसा पर आधा�रत ऐसे समाज का �नमार्ण करना चाहते थे। िजसमे समस्त मानव
सदगुणी एवं �ववेकशील हो । उसम� स्वाथर्मयी �हतो का कोई स्थान न हो। सभी सुखी संपन्न एव �निश्चत जीवन यापन
कर� गे।
सव�दय- गांधीजी सभी लोगो क� उन्न�त उदय एवं कल्याण मे �वश्वास करते थे। उनका �वश्वास था �क उपे��त गर�बो के
उत्थान से ह� समाज एवं राष्ट्र क� प्रग�त संभव है ।
छूआछूत �वरोधी- छूआछूत समाज का एक गम्भीर दोष रहा है । गांधीजी समाज म� व्याप्त छूआछूत को �मटाकर सामािजक
एकता स्था�पत करना चाहते थे समाज म� अछूतो के �वकास एवं कल्याण के �लए उन्होने उनको ‘‘ह�रजन’’ नाम �दया।
�वकेिन्द्रत अथर्व्यवस्था तथा न्यासधा�रता का �सध्दांत- गांधीवाद मे आ�थर्क �वकेन्द्र�करण के साथ साथ न्यासधा�रता के
�सध्दांत का भी उल्लेख �कया गया है उनका �वचार था �क पूंजीप�तयो को हृदय प�रवतर्न द्वारा सम्पित्त क� न्यासी (ट्रस्ट�)
बना �दया जाय और पूंजीप�त उस सम्पित्त का प्रयोग सम्पूणर् समाज के �हत के �लये कर� ।
साध्य तथा साधन- गांधीवाद पूणत
र् या एक नै�तक दशर्न है । साध्य के साथ साथ साधन भी नै�तक हो इस बात पर गांधीवाद
म� �वशेष जोर �दया गया है । उनका मत था �क य�द प�वत्र साधन नह� �मलते हो तो उस साध्य को ह� छोड़ दो।
�वश्व बन्धुत्व और अन्तरार्ष्ट्रवाद का समथर्न- गांधीजी मानव कल्याण के समथर्क थे। वे समस्त मानव का �हत �चंतन
करते थे। उनहोने सामा्रजयवाद का �वरोध �कया तथा �वश्व शां�त तथा अन्तरार्ष्ट्रवाद का समथर्न �कया।
गांधीवाद क� आलोचना—गांधीवाद� �वचारधारा के सैध्दांि◌ तक दृिष्टकोण से यद्य�प सभी व्यिक्त सहमत है �कन्तु उसके
व्यावहा�रक दृिष्टकोण से अनेक आधारो पर लागे असहम�त व्यक्त करते हे । गांधीवाद क� आलोचना के प्रमुख आधार है -
गांधीवाद काल्प�नक �वचारधारा है - आलोचको के द्वारा गांधीवाद� दशर्न के �वरूद्ध यह आ�ेप लगाया जाता है �क यह
वास्त�वकता से दरू कोरा काल्प�नक व भावनात्मक दशर्न है । वतर्मान म� प�रिस्थ�तय� मे आदशर् राज्य व अ�हंसात्मक राज्य
क� स्थापना करना वास्त�वकता से परे है । क्य��क पु�लस और सैन्य बल के अभाव म� राज्य म� न ता ◌े शां�त व्यवस्था रह
सकती है और न ह� वह राष्ट्र स्थायी रह सकता है ।
गांधीवाद म� मौ�लकता का अभाव- आलोचको ने गांधीवाद म� मौ�लकता का अभाव बता या हे । क्य��क गांधीजी ने गीता
बाइ�बल आरै टालस्टाय आ�द स ◌े �वचार उधार �लए है गांधीजी ने कोई नवीन �सध्दांत का प्र�तपादन नह� �कया है ।
अ�हंसा अव्यावहा�रक- गांधीजी ने अ�हंसा पर अत्य�धक बल दे कर उसे आध�ु नक समय म� अव्यावहा�रक बना �दया है ।
आलोचक� का मत है �क राष्ट्र�य व अन्तरार्ष्ट्र�य समस्याओ का समाधान सदै व अ�हंसा से करना असंभव है ।
न्यासधा�रता का �सध्दांत- अव्यावहा�रक गांधीजी का यह मत था �क ध�नको के पास जो धन है वह समाज क� धरोहर है
ध�नक उस धन को समाज कल्याण म ◌े◌ं खचर् करं ।◌े लेि◌ कन आलोचको का मत है �क जो व्यिक्त अथक प�रश्रम करके
धन कमाया हो उस पजूं ◌ी को त्यागने के �लए तैयार नह� होगा।
सत्याग्रह का �सध्दांत अव्यावहा�रक-गांधीजी हर जगह सत्याग्रह के �सध्दातं को लागू करना चाहते है परं तु हर जगह
सत्याग्रह सफल नह� हो सकता। गांधीजी का यह� अ�हंसात्मक साधन आज �हंसात्मक व तोड़फोड़ का रूप लेता जा रहा है ।
राजनी�तक दल अपने स्वाथ� क� पू�तर् हे तु अनु�चत साधना ◌े को अपनाकर सत्यागह्र का दरू
ु पयोग कर रहे है ।
�वरोधाभासी दशर्न- गांधी दशर्न एक �वरोधाभासी दशनर् है एक तरफ गांधीजी पूंजीवाद� क� बुराइर् करते है ता ◌े दस
ू र� ओर
न्यासधा�रता क� आड़ लेकर उसे बनाये रखना चाहते है ।
औद्योगीक�करण का �वरोध- गांधीजी आ�थर्क �ेत्र मे �वकेन्द्र�यकरण का प� लेत ◌े हएु कुट�र उद्योगो का समथर्न �कया
है । आलोचको का मत है �क कुट�र उद्योगा ◌े से भारत जैसे �वस्तत
ृ दे श क� जनसख ्ं या क� आवश्यकता क� पूि◌ तर् होना
असंभव है ।
गांधीवाद के प्रमुख �सद्धांत या �वचार—गांधीवाद के प्रमुख �वचार.�सद्धांत को सार रूप म� शीषर्को के अन्तगर्त प्रस्तुत �कया
जा सकता है —
सत्य और अ�हंसा के �वचार गांधीवाद� दशर्न मे सत्य एवं अ�हंसा के �वचारो को सव�च्च स्थान प्राप्त है सत्य एवं अ�हंसा
मानव के धा�मर्क भावो के �वकास के �लये अ�नवायर् है गांधीजी के अनुसार सत्य ह� ईश्वर है । �हंसा जीवन क� प�वत्रता तथा
एकता के �वपर�त है ।
साध्य तथा साधन क� प�वत्रता गांधीजी का मत है �क साध्य प�वत्र है तो उसे पा्रप्त करने का साधन भी प�वत्र होना चा�हए
इस�लए गांधीजी ने साध्य (स्वतंत्रता) प्राप्त करने के �लये प�वत्र साधन (सत्य और अ�हंसा) को अपनाया।
राजनी�त और धमर् गांधीजी राजनी�त और धमर् म� गहरा सम्बन्ध मानते थे।गांधीजी कहते थे धमर् से पथ
ृ क कोई राजनी�त
नह�ं हो सकती। राजनी�त तो मत्ृ यु जाल है क्य��क वह आत्मा का हनन करती है । वे कहते थे �क धमर् मानव जीवन के प्रत्येक
कायर् को नै�तकता का आधार प्रदान करता है ।
सत्ता का �वकेन्द्र�यकरण गांधीजी राजनी�तक और आ�थर्क �ेत्रो म� सत्ता के �वकेन्द्र�यकरण के प� म� थे-
राजनी�तक शिक्तयो का �वकेन्द्र�यकरण-सत्ता के �वकेन्द्र�यकरण से गांधीजी का अ�भप्राय यह है �क ग्राम पंचायतो को
अपने गांवो का प्रबंध और प्रशासन करने का सब अ�धकार दे �दये जाने चा�हए ग्राम का शासन ग्राम पंचायत द्वारा संचा�लत
हो और ग्राम पंचायत ह� व्यवस्था�पका कायर्पा�लका तथा न्यायपा�लका हो।

आ�थर्क शिक्तयो का �वकेन्द्र�यकरण- गांधीजी आ�थर्क �ेत्र मे �वकेन्द्र�यकरण के प� म� थे व ◌े बडे उद्योगो के स्थान पर
कुट�र उद्योगो क� स्थापना का प� लेते थे।
न्यायधा�रता का �सध्दांत- समाज मे व्याप्त आ�थर्क असमानता को गांधीजी अ�हंसात्मक तर�के से दरू करने के प� मे थे।
इस�लये गांधीजी ने न्यासधा�रता का �सध्दांत सझ
ु ाया। गांधीजी के अनस
ु ार ध�नको को चा�हए �क वे अपन ◌े धन को अपना
न समझकर समाज क� धरोहर समझे और आवश्यक्ता से अ�धक जो धन है उसे समाज �हत मे लगाये।
साम्राज्यवाद का �वरोधी - गांधीजी ने साम्राज्यवाद का �वरोध �कया। गांधीजी के अनुसार साम्राज्यवाद� दे श न केवल अधीन
दे श का आ�थर्क नै�तक शोषण करता है वरन �वश्व युध्दो का कारण भी यह� है । गांधीजी का मत था �क �न:शस्त्रीकरण और
अ�हंसक �वश्व समाज से साम्राज्यवाद का स्वयं अंत हो जायेगा।

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iz'u 5- Hkkjrh; jkT; osQ mn~Hko ,oa Hkwfedk dh ppkZ dhft;sA
mÙkjµ स्वतंत्रता के बाद राज्य� के पुनगर्ठन एवं �नमार्ण के आधार� क� खोज क� जाने लगी ता�क �व�भन्न प्रांतीय इकाईय�
का गठन प्रशास�नक स�ु वधाओं, राष्ट्र�य �वकास एवं �ेत्रीय �वकास के संदभर् म� �कया जा सके। इसी कारण प्रारं भ म� �ब्र�टश
शासन के अंतगर्त प्रांतीय व्यवस्था को बनाए रखा गया ता�क नवीन राज्य� के आधार� क� खोज क� जा सके तथा राज्य� का
पुनगर्ठन एवं �नमार्ण तक भारत संघ का प्रशासन सुचारू रूप से चलता रहे । इस व्यवस्था के अंतगर्त �ेत्रीय प्रशासन को चार
वग� म� �वभािजत �कया गया और प्रशास�नक इकाइय� को । A, B, C, D चार वग� म� रखा गया। । A वगर् म� 9 �ब्र�टश प्रांत, B
वगर् म� 8 बड़े �रयासत C वगर् म� 10 मध्यम तथा छोटे आकार के �रयासत तथा D वगर् म� कुगर् को रखा गया। ले�कन यह
व्यवस्था अस्थायी थी और राज्य पन
ु गर्ठन के आधार� के खोज के साथ ह� नवीन राज्य� का �नमार्ण एवं पन
ु गर्ठन �कया जाना
था। सरकार ने राज्य� के पुनगर्ठन के आधार� क� खोज के �लए 1948 म� ह� ‘धर स�म�त’ का गठन �कया िजन्ह�ने भाषाई
आधार पर राज्य� क� मांग का �वरोध �कया और प्रशास�नक सु�वधा के आधार पर राज्य पुनगर्ठन का सुझाव �दया। सरकार
द्वारा धर स�म�त के सुझाव के संदभर् म� भी कांग्रेस क� एक स�म�त का गठन �कया गया िजसने भी भाषाई राज्य� क� मांग
का समथर्न नह� �कया। इस स�म�त म� जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटे ल तथा पट्टा�भ सीतारमैया शा�मल थे। यह
जे.वी.पी. स�म�त कहलाती है । इस स�म�त द्वारा भाषाई राज्य� को मान्यता नह�ं �दए जाने के साथ ह� भाषाई राज्य� क�
मांग का आंदोलन तीव्र होने लगा। �वशेषकर तेलुगूभाषी लोग� का अलग राज्य क� मांग का आंदोलन उग्र होने लगा, ऐसे म�
आंध्र प्रदे श राज्य अ�ध�नयम 1983 द्वारा 11 तेलगु भाषी िजलो को �मलाकर आंध्र राज्य बनाया गया।
आंध्र राज्य को भाषाई आधार पर मान्यता दे ने के साथ ह� �व�भन्न �ेत्र� से भाषाई राज्य� क� मांग बढ़ने लगी। राज्य� के
पुनगर्ठन से संबं�धत ‘‘फजल अल� क�मट�’’ ने भाषाई राज्य� के प� म� तकर् �दया।
1) भाषाई प्रशास�नक �ेत्र का �नधार्रण �ब्र�टश शासन के अंतगर्त भी �कया जाता रहा है ।
2)1951 क� जनगणना के अनुसार दे श म� 844 भाषाएं बोल� जाती ह� ले�कन 91 प्र�तशत लोग मात्र 14 भाषाएं ह� बोलते ह�।
इस आधार पर 14 राज्य क� अनुशंसा क� गई।
3) 14 भाषाओं के भौगो�लक �वतरण म� एकरूपता है अतः एक �व�शष्ट भाषाई �ेत्र एक �व�शष्ट भौगो�लक �ेत्र भी है ।
4) स�म�त द्वारा प्रश्नावल� तैयार कर के राष्ट्र के �व�भन्न �ेत्र� म� जनमत सव��ण करवाया गया िजसम� 90 प्र�तशत लोग
भाषाई राज्य के प� म� थ�।
5) भाषाई राज्य� के �नमार्ण से राज्य� का प्रशासन अ�धक द�ता एवं कुशलता से �कया जा सकता है क्य��क सांस्कृ�तक
समरूपता क� िस्थ�त प्रशासन म� सहयोगी होती है ।
उपरोक्त आधार पर राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम 1956 पा�रत �कया गया िजससे भाषाई राज्य� का �नमार्ण सं�वधान प्र�क्रया
से �कया गया। यह माना गया �क भाषाई राज्य� के �नमार्ण से प्रशास�नक, भौगो�लक, सांस्कृ�तक एवं राजनी�तक सीमाओं
का भी �नधार्रण सहजता से �कया जा सकता है । इस प्रकार भाषाई आधारपर 14 राज्य� का �नमार्ण �कया गया, इसके
अ�त�रक्त 6 संघ राज्य �ेत्र का भी �नमार्ण �कया गया। संघ राज्य ऐसे राज्य �ेत्र थे िजनक� सांस्कृ�तक िस्थ�त आसपास के
�ेत्र� से �भन्न थी ले�कन संसाधन� के अभाव के कारण स्वतंत्र �वकास करने म� स�म नह�ं थे। अतः आ�थर्क, सांस्कृ�तक
आधार पर इनके प्रशासन एवं �वकास का दा�यत्व केन्द्र को स�पा गया। 14 राज्य� के पुनगर्ठन के बाद कई अन्य राज्य� का
�नमार्ण भी भाषाई एवं सांस्कृ�तक आधार पर �कया गया । गुजरात एवं मुम्बई राज्य को मुम्बई राज्य के अंतगर्त रखा गया।
अतः गज
ु राती और मराठ� भाषा म� �व�भन्नता के आधार पर गज
ु रा�तय� द्वारा गज
ु रात राज्य क� मांग तीव्र हो गई। इसी
संदभर् म� मुम्बई पुनगर्ठन अ�ध�नयम 1960 द्वारा मुम्बई को भाषाई आधार पर गुजरात एवं महाराष्ट्र म� �वभािजत कर
�दया गया। 1962 म� नागालैण्ड राज्य अ�ध�नयम द्वारा नागालैण्ड राज्य क� रचना क� गई। यह पहले असम राज्य का अंग
था। पुनः पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम 1966 द्वारा
भाषाई, सांस्कृ�तक एवं आ�थर्क आधार पर पंजाब राज्य को पंजाब, ह�रयाणा राज्य� म� और चंडीगढ़ संघ राज्य �ेत्र म� बांटा
गया। 1970 म� �हमाचल प्रदे श को संघ राज्य से राज्य म� प�रव�तर्त �कया गया। पव
ू �त्तर �ेत्र पन
ु गर्ठन अ�ध�नयम 1971
द्वारा मणीपुर, �त्रपुरा और मेघालय को राज्य का दजार् �दया गया और �मजोरम तथा अरूणाचल प्रदे श को संघ राज्य �ेत्र क�
सूची म� सिम्म�लत �कया गया। �मजोरम राज्य अ�ध�नयम 1986 द्वारा �मजोरम को, अरूणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम
1986 द्वारा अरूणाचल प्रदे श को राज्य का दजार् �दया गया। गोवा, दमन एवं द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम 1987 द्वारा गोवा
को राज्य का दजार् �दया गया। उपरोक्त राज्य� के �नमार्ण का आधार मुख्यतः सांस्कृ�तक, आ�थर्क एवं प्रशास�नक था। इन
राज्य� के �नमार्ण के बाद भी नवीन राज्य� क� मांग उठती रह� िजसका आधार आ�थर्क �पछड़ेपन, भौगो�लक िस्थ�त तथा
सांस्कृ�तक �भन्नता थी। इनमं◌े उत्तराखण्ड (उत्तरांचल), छत्तीसगढ़ एवं झारखण्ड राज्य से संबं�धत आंदोलन व्यापक
एवं प्रभावी रूप से चलाए जा रहे थे। इन �ेत्र� क� िस्थ�त आ�थर्क, सामािजक रूप से �पछड़ी थी और तत्काल�न राज्य� के
अंतगर्त इनक� �वकास क� प्र�क्रया अत्यंत धीमी थी। इसी संदभर् म� नवीन राज्य� के पुनगर्ठन क� मांग राजनी�तक एवं जनता
के स्तर पर भी तीव्र होने लगी। ऐसे म� सन ् 2000 ई. म� इन तीन� राज्य� का �नमार्ण �कया गया। फलस्वरूप वतर्मान म� 28
राज्य और 7 केन्द्रशा�सत प्रदे श �वद्यमान ह�। इन राज्य� के पन
ु गर्ठन व �नमार्ण के साथ यह उम्मीद क� जा रह� थी �क पव
ू र्
के कई छोटे राज्य� के समान इन राज्य� क� भी �वकास क� प्र�क्रया अत्यंत तीव्र होगी ले�कन ऐसा नह�ं हो पाया। उत्तराखंड
और छत्तीसगढ़ राज्य म� �वकास क� प्र�क्रया अपे�ाकृत तीव्र हुई। ले�कन गठन के लगभग 10 वष� के बाद भी यह भारत के
�पछड़े राज्य� म� ह� सिम्म�लत है । झारखण्ड एक ऐसे राज्य का उदाहरण है जहां पयार्प्त प्राकृ�तक संसाधन उपलब्ध ह�
ले�कन �वकास क� प्र�क्रया अत्यन्त धीमी है जब�क यह उम्मीद क� जा रह� थी �क �बहार से अलग होने के बाद ख�नज, वन,
जल संसाधन के उपयोग द्वारा तीव्र आ�थर्क �वकास कर सकेगा ले�कन ऐसा नह�ं हो सका। इसक� तल
ु ना म� उत्तरांचल एवं
छत्तीसगढ़ म� �वकास क� प्र�क्रया तीव्र है । इन तीन� राज्य� क� स्थापना एवं �वकास क� प्र�क्रया दे खने पर यह स्पष्ट होता है
�क केवल नवीन राज्य� क� स्थापना �वकास का मुख्य आधार नह� हो सकता। आवश्यकता उपलब्ध संसाधन� के उ�चत
�नयोजन एवं �वकास क� प्र�क्रया को सह� तर�के से लागू करने क� है । झारखण्ड जैसे राज्य क� अिस्थर राजनी�तक व्यवस्था,
अिस्थर सरकार, �व�ध व्यवस्था क� �वफलता, उग्रवाद� समस्याओं का समाधान न होना एवं राजनी�तक, प्रशास�नक
भ्रष्टाचार �वकास म� बाधक बना हुआ है । तुलनात्मक रूप से उत्तरांचल म� राजनी�तक िस्थरता एवं अनुकूल माहौल के
कारण �वदे शी �नवेश के साथ ह� पयर्टन उद्योग म� व�ृ द्ध �वकास को सह� �दशा म� ले जा रह� है । छत्तीसगढ़ म� भी उग्रवाद क�
समस्या �वकास म� प्रमुख बाधक है । संसाधन� क� प्रचुरता के बावजूद छत्तीसगढ़ एवं झारखण्ड जैसे राज्य� म� �वदे शी �नवेश
का स्तर नगण्य है । अब आवश्यकता न केवल राज्य� क� �व�ध व्यवस्था म� सुधार क� है , बिल्क िस्थर एवं सुर��त
राजनी�तक प्रशास�नक माहौल बनाए जाने क� है ता�क �वदे शी पं◌ूजी प्रवाह, तकनीक� �नवेश के स्तर म� सुधार हो। वतर्मान
म� इन राज्य� के अनुभव� से यह स्पष्ट होता है �क केवल नवीन राज्य� का �नमार्ण ह� �ेत्रीय �वकास का आधार नह�ं हो
सकता है । वतर्मान झारखण्ड सरकार क� िस्थरता एवं राजनी�तक दशर्न पर झारखण्ड का �वकास बहुत कुछ �नभर्र करता है ।
अतः राज्य� क� मांग� क� औ�चत्यता का पर��ण सू�मता से �कया जाना चा�हए और नवीन राज्य� के पुनगर्ठन व �नमार्ण के
साथ ह� �वकास प्र�क्रया पर प्रभावकार� �नयंत्रण केन्द्र द्वारा �कया जाना चा�हए। नए प्रस्ता�वत राज्य� के �वकास के मॉडल
पहले ह� तय �कया जाना आवश्यक है । इसके �लए राज्य के सभी राजनी�तक दल� से गंभीर �वचार �वमशर् �कया जाना
चा�हए।
वतर्मान म� भी कई राज्य� क� मांग आ�थर्क �पछड़ेपन एवं भौगो�लक सांस्कृ�तक आधार� पर क� जा रह� है जैसे तेलंगाना,
�वदभर्, बुंदेलखण्ड, गोरखालैण्ड जैसे राज्य क� मांग के आंदोलन हो रहे ह�। इन राज्य� क� मांग को केन्द्र सरकार अत्यंत
गंभीरता से ले रह� है । और इस संदभर् म� नवीन राज्य पुनगर्ठन आयोग क� स्थापना क� बात हो रह� है । ले�कन आवश्यकता है
�क इन राज्य� के �नमार्ण के �लए उठाया गया कोई भी कदम इस बात पर आधा�रत हो �क राज्य� के पुनगर्ठन के बाद
सामािजक, आ�थर्क, राजनी�तक स्तर� पर �वकास क� प्र�क्रया तीव्र हो और िजन समस्याओं के कारण इन राज्य� क� मांग
क� जा रह� है उसका समाधान हो सके।
तेलंगाना राज्य क� मांग को लेकर उग्र प्रदशर्न होते रह� है , और सरकार ने दबाव म� तेलंगाना राज्य क� मांग स्वीकार कर ल�
थी ले�कन आंध्र म� तीव्र राजनी�तक �वरोध के कारण सरकार ने फैसला वापस ले �लया। सरकार द्वारा इस संदभर् म� श्री
कृष्णा क�मट� का गठन �कया गया िजसने तेलंगाना को लेकर अपनी �रपोटर् एवं सुझाव �दया ह�। वतर्मान म� केन्द्र सरकार
इन सुझाव� पर �वचार कर रह� है । श्रीकृष्णा स�म�त क� �रपोटर् को गह
ृ मंत्रालय ने 6 जनवर� 2011 को सावर्ज�नक �कया।
450 से अ�धक पष्ृ ठ� वाल� इस �रपोटर् म� 6 �व�भन्न �वकल्प सझ
ु ाए गए ह�। सभी �वकल्प के सकारात्मक एवं ऋणात्मक
पहलुओं को बताया गया है । ये सभी �वकल्प इस प्रकार ह�—
1) यथािस्थ�त बनाए रखी जाए।
2) सीमांध्र एवं तेलंगाना के रूप म� राज्य के दो �हस्से �कए जाए। है दराबाद को केन्द्र शा�सत प्रदे श का दजार् �मले।
3) रायल-तेलंगाना और तट�य आंध्र�ेत्र के रूप म� राज्य को दो भाग� म� बांटा जाए। है दराबाद रायल-तेलंगाना का
अ�भन्न अंग है ।
4) राज्य को सीमांध्र और तेलंगाना म� बांटा जाए तथा वह
ृ द है दराबाद को केन्द्र शा�सत प्रदे श का दजार् �मले।
5) मौजूदा सीमाओं के साथ तेलंगाना और सीमांध्र म� बंटवारा िजसम� तेलंगाना क� राजधानी है दराबाद हो तथा सीमांध्र
के �लए कोई अन्य।
6) राज्य अ�वभािजत रहे तथा वैधा�नक शिक्तय� वाला तेलंगाना �ेत्रीय प�रषद का गठन �कया जाए।
ये सभी सझ
ु ाव तेलंगाना एवं अन्य नवीन राज्य� क� मांग को लेकर सरकार के रूख को पण
ू त
र् ः स्पष्ट नह�ं कर पाते। हालां�क
सरकार ने सुझाव� पर अपना �वचार अभी नह�ं �दया है ले�कन कृष्णा स�म�त के सुझाव भी असमंजस क� िस्थ�त ह� उत्पन्न
करते ह�। इससे यह स्पष्ट होता है �क तेलंगाना स�हत अन्य राज्य� क� मांग एवं सरकार क� नी�त ज�टल समस्या बनी हुई है ।
ऐसे म� स्पष्ट नी�त का �नधार्रण �कया जाना आवश्यक है ता�क राज्य� के �नमार्ण को लेकर �वरोधाभाषी िस्थ�त उत्पन्न न
हो सके। हाल ह� म� राजस्थान, गुजरात एवं मध्य प्रदे श के भील �ेत्र� को �मलाकर �भ�लस्तान राज्य क� मांग जोर पकड़ रह�
है । इसी तरह कई अन्य राज्य� क� मांग भी राजनी�त मद्द
ु ा बन सकती ह�।
उत्तर प्रदे श को भी �वभािजत कर पव
ू ा�चल राज्य, बंद
ु े लखण्ड राज्य तथा ह�रत प्रदे श राज्य म� �वभािजत करने क�
राजनी�तक मांग सामने आयी है । �बहार म� �म�थलांचल क� मांग भी सांस्कृ�तक-भाषायी आधार पर उठायी जाती रह� है । इस
तरह वतर्मान संघीय ढांचे के अन्तगर्त �व�भन्न राज्य� क� मांग �व�भन्न कारण� से हो रह� है इनम� सबसे प्रमुख कारण
आ�थर्क �वकास म� �वषमता एवं आ�थर्क-सामािजक �पछड़ापन है । तेलंगाना, बुंदेलखण्ड जैसे �ेत्र राज्य के अन्य �ेत्र� क�
तुलना म� �पछड़ी अवस्था म� ह�। आधारभूत संरचना का अभाव, गर�बी, बेरोजगार� एवं �पछड़ा हुआ सामािजक सूचकांक इन
�ेत्र� को नवीन राज्य के गठन के �लए आधार उपलब्ध कराते ह�। ले�कन नवीन राज्य का पन
ु गर्ठन ह� �वकास का मख्
ु य
आधार नह�ं हो सकता। ऐसे म� केन्द्र क� राज्य सरकार� को �पछड़े प्रदे श� तथा राज्य �नमार्ण के आंदोलन� पर अत्यंत गभीरता
से �वचार करना चा�हए। नवीन राज्य के �नमार्ण क� होड़ उत्पन्न न हो इसका ध्यान आवश्यक रूप से रखा जाना चा�हए।
वतर्मान म� भारत संघ क� आवश्यकता नवीन राज्य� के �नमार्ण प्र�क्रया म� शा�मल होना नह�ं है बिल्क राष्ट्र का समग्र एवं
संतु�लत �वकास है । अतः �पछड़े प्रदे श� म� आ�थर्क �वकास को त्व�रत करना और इसके �लए पूंजी �नवेश और बेहतर
�नयोजन प्र�क्रया अपनाया जाना आवश्यक है । सवर्प्रथम यह प्रयास होना चा�हए �क क्या वतर्मान राज्य के अन्तगर्त रह कर
ह� �वकास �कया जाना संभव है या नह�ं? और य�द संभव है तो �कस प्रकार क� �नयोजन प्र�क्रया अपनायी जाए अथार्त ्
�वकास का मॉडल तय �कया जाना चा�हए। �वकास का मॉडल �ेत्र क� समग्र �वकास प्र�क्रया पर आधा�रत होना चा�हए और
इसके �लए तंत्र उपागम का प्रयोग �कया जाए। य�द �वकास क� संभावना है तो नवीन राज्य� का पुनगर्ठन व �नमार्ण
आवश्यक नह�ं माना जा सकता ले�कन य�द �वकास का अ�नवायर् शतर् नवीन राज्य क� मान्यता प्रदान करना ह� है तो राज्य
के गठन क� संभावना पर �वचार �कया जाना अपे��त है । यहां यह बात स्पष्ट कर �दया जाना चा�हए �क राज्य� क� मांग
�वकास आधा�रत है तो �वकास क� संभावना पर �वचार �कया जाना आवश्यक है और नवीन राज्य का गठन ह� अ�नवायर् शतर्
प्रतीत होता है तो यह कदम उ�चत होगा। ले�कन �वशुद्ध राजनी�तक कारण� से राजनी�तक दबाव द्वारा राज्य के गठन क�
मांग क� जा रह� है तो ऐसी मांग� को खा�रज कर �दया जाना चा�हए। पुनः केन्द्र सरकार नवीन राज्य� क� संभावना को राज्य
पुनगर्ठन स�म�त या आयोग का गठन कर भी पर��ण कर सकती है ।
अतः वतर्मान िस्थ�त म� यह तय करना अत्यन्त आवश्यक है �क �कन राज्य� के �नमार्ण क� आवश्यकता है और �कन राज्य�
क� मांग अनावश्यक और राजनी�तक कारण� से उत्पन्न हो रह� है । इस संदभर् म� एक स्पष्ट राष्ट्र�य नी�त आवश्यक है ता�क
राज्य� के �नमार्ण को लेकर होने वाल� राजनी�त क� �दशा �ेत्रीय �हतो के साथ ह� राष्ट्र�य �हत� क� अ�नवायर्ता पर आधा�रत
ह�। अन्ततः राष्ट्र �हत ह� सव�प�र है और इसके �लए वतर्मान संघीय ढांचे के अन्तगर्त संवैधा�नक प्रावधान� के अनुरूप प्रांत�
या राज्य� का पुनगर्ठन व �नमार्ण �कया जा सकता है ले�कन नवीन राज्य� क� आवश्यकता एवं अ�नवायर्ता क�
यिु क्तयक्
ु तता का पर��ण अत्यंत वैचा�रक गंभीरता से �कया जाना चा�हए

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iz'u 6- uhfr fu/kZj.k esa ukSdj'kkgh dh Hkwfedk dh O;k[;k dhft;sA
mÙkjµ आज के लोकतन्त्रीय युग म� शासन को चलाने के �लए नौकरशाह� क� अहम ् भू�मका है । कल्याणकार� राज्य के रूप म�
आज सरकार के कायर् इतने अ�धक हो गए ह� �क नौकरशाह� क� मदद के �बना उन्ह� पूरा करना क�ठन ह� नह�ं, बिल्क
असम्भव सा भी है । जौसेफ चैम्बरलेन का कहना सत्य है �क लोकसेवक� के �बना सरकार का काम नह�ं चल सकता।
राजनी�तक कायर्पा�लका को इतना �ान नह�ं हो सकता �क वह कानन
ू बनाकर उन्ह� लागू भी कर दे । राजनी�तक
कायर्पा�लका को प्रशासन चलाने के �लए नौकरशाह� क� सहायता अवश्य लेनी पड़ती है । यह सत्य है �क नौकरशाह� के
�वकास के बाद प्रशासन अ�धक कायर्कुशल, �ववेकशील और संगत बना है । भारत जैसे संसद�य प्रजातन्त्रीय दे श म� तो
नौकरशाह� एक ऐसा मूल्य है िजसका अिस्तत्व म� रहना अप�रहायर् है । य�द कभी इस मूल्य का पतन हुआ तो नौकरशाह� भी
इस दोष से बच नह�ं सकेगी। वास्तव म� समाज म� व्यवस्था बनाए रखने, उसे एकता के सूत्र म� बाँधने और �वकास को ग�त
दे ने म� नौकरशाह� क� भ�ू मका महत्वपूणर् होती है । इसी कारण आज नौकरशाह� के प्रभाव से बच पाना मिु श्कल है । इसक�
भू�मका का �ववेचन �नम्न�ल�खत शीषर्क� के अन्तगर्त �कया जा सकता है —
1. नी�तय� के �नमार्ण म� परामशर्दाता के रूप म� भू�मका अदा करना—�वश्व के सभी प्रजातन्त्रीय दे श� म� नी�त-
�नमार्ण म� नौकरशाह� राजनी�त�� क� बहुत मदद करता है । राजनी�त�� को प्रशासन क� बार��कय� का कोई �ान
नह�ं होता। इसी कारण वे नौकरशाह� द्वारा मदद क� अपे�ा रखते ह�। नी�तय� के �नमार्ण हे तु आवश्यक सच
ू नाएं,
आंकड़े, तकनीक� शब्दावल�, प्र�क्रया प्रणाल� आ�द सम्बन्धी �ान लोकसेवक� द्वारा ह� राजनी�त�� तक पहुंचाया
जाता है । प्रदत्त-व्यवस्थापन क� शिक्त का प्रयोग करते हुए प्रशासक वगर् नी�त-�नमार्ण म� राजनी�तक
कायर्पा�लका क� परामशर्दाता के रूप म� मदद करता है ।
2. नी�तय� व �नणर्य� का �क्रयान्वयन करना—सरकार या राजनी�तक कायर्पा�लका द्वारा �नधार्�रत नी�तय�,
�नणर्य�, योजनाओं आ�द के �क्रयान्वयन का प्रमख
ु उत्तरदा�यत्व नौकरशाह� पर ह� है । यह भ�ू मका नौकरशाह� को
राजनी�त के अ�भकतार् �सद्ध करती है । नी�त चाहे प्रशासक-वगर् क� इच्छाओं के प्र�तकूल भी हो, ले�कन उसका
�क्रयान्वयन करना प्रशासक� का प्रमुख उत्तरदा�यत्व है । य�द नी�त को �क्रयािन्वत करते समय जरा सी भी
लापरवाह� क� जाती है तो नी�त-�नमार्ण का उद्देश्य ह� नष्ट हो सकता है । इस�लए उत्तरदायी ढं ग से प्रशासक वगर्
नी�तय� का �क्रयान्वयन करता है । भारत म� कल्याणकार� राज्य के रूप म� सरकार द्वारा चलाए जा रहे �व�भन्न
कायर्क्रम, योजनाएं, प�रयोजनाएं, नी�तयां आ�द भारतीय लोकसेवक� द्वारा �क्रयािन्वत क� जा रह� ह�। इस प्रकार
नी�तय� के प्रभावकार� �क्रयान्वयन म� नौकरशाह� क� भू�मका बहुत महत्वपूणर् है ।
3. �वकास अ�भकतार् के रूप म� —�वकासशील दे श� म� नौकरशाह� एक ऐसे योग्य एवं प्रबुद्ध वगर् का प्र�त�न�धत्व करती
है , जो प्राय: राजनी�त� स्तर से उच्च बौ�द्धक स्तर का होता है । बदलती सामािजक प�रिस्थ�तय�, सामािजक
मूल्य� और आ�थर्क एवं अन्य आवश्यकताओं को पहचान कर उसके अनुरूप आधु�नक समाज का �नमार्ण करना
नौकरशाह� का प्रमख
ु उत्तरदा�यत्व है । समाज के �व�भन्न वग� के बीच रहन-सहन का जो अन्तर पाया जाता है
उसे दरू करना तथा अन्य �वकास काय� को ग्रामीण स्तर तक �वकेिन्द्रत करना आज नौकरशाह� का ह�
उत्तरदा�यत्व है । इस�लए आज �वकासशील दे श� के सन्दभर् म� नौकरशाह� �वकास अ�भकतार् के रूप म� कायर् कर
रह� है ।
4. जनसेवक क� भू�मका—�वकासशील दे श� म� ◌ं सामािजक और राजनी�तक �ेत्र� म� आए प�रवतर्न� ने लोकसेवक�
क� जनसेवक� के रूप म� भ�ू मका को अप�रहायर् बना �दया है । उसक� �वकास अ�भकतार् के रूप म� आम जनता तक
पहुंच उसे जन सेवक के रूप म� कायर् करयर् करने को बाध्य करती है । जनता को परामशर् दे ना, जनता को �श��त
करना, जनता क� मदद करना, जन-सहयोग प्राप्त करना आ�द लोकसेवक� के प्रमुख कायर् बन गए ह�। �वकासशील
दे श� म� सरकार� क� भू�मका के �बना प्राप्त नह�ं �कया जा सकता। इसी कारण आज लोकसेवम� क� जनसेवक के
रूप म� भू�मका अ�धक लोक�प्रय हो रह� है ।
5. ू �करण—जनता क� �व�भन्न मांग� प्रशासन के माध्यम से ह� राजनी�तक� तक पहुंचती
�हत स्पष्ट�करण तथा समह
ह�। �हत� का स्पष्ट�करण करके सरकार तक जनता क� मांग� को सामू�हक रूप म� पहुंचाना आज प्रशासक� का ह�
काम हो गया है । परस्पर �वरोधी �हत� म� सामंजस्य स्था�पत करके संयुक्त मांग के रूप म� तैयार करना प्रशासन
का ह� कायर् है । इसी कारण नौकरशाह� आज �हत स्पष्ट�करण व समूह�करण क� प्रबल प्रवक्ता मानी जाती है । इस
दृिष्ट से प्रशासनक सरकार व जनता के बीच कड़ी का काम करते ह�।
6. �नयम� क� व्याख्या करना—प्रदत्त व्यवस्थापन क� शिक्त के अन्तगर्त आज नौकरशाह� �नयम �नमार्ण क�
व्यापक शिक्त का प्रयोग भी करती है । वह आवश्यकतानुसार �नयम� क� व्याख्या करके न्या�यक अ�भ�नणर्य� को
मूतरू
र् प दे ती है ।
7. प्र�तद्वन्द्वी �हत� म� समन्वय करना—�वकासशील दे श� म� ज�टल सामािजक व्यवस्थाओं के अन्तगर्त समाज के
�व�भन्न सम्प्रदाय�, जा�तय�, धम�, भाषाओं, र��तय�, परम्पराओं, राज्य�, प्रान्त� आ�द के रूप म� पाई जाने वाल�
�व�भन्नताओं म� �हत� का टकराव होना आम बात है । इस टकराव को रोकना और �वरोधी �हत� म� समन्वय कायम
करना प्रशासन का प्रमुख उत्तरदा�यत्व है । इसी पर सामािजक व्यवस्था व राजनी�तक व्यवस्था का कुशल
संचालन �नभर्र है ।
8. �नयोजन—�नयोजन का �कसी भी दे श के आ�थर्क �वकास म� महत्वपूणर् योगदान होता है । राजनी�तक
कायर्पा�लका को योजना बनाने के �लए आंकड़� क� आवश्यकता पड़ती है । इन आंकड़� को �व�भन्न �वभाग� के
प्रशास�नक अ�धकार� ह� उपलब्ध कराते ह�। इस प्रकार �नयोजन म� भी प्रशासन या नौकरशाह� क� बहुत महत्वपूणर्
भू�मका है ।
9. �वधेयक� का प्रारूप तैयार करना—आज सभी दे श� म� कानून �नमार्ण के �लए प्रारूप तैयार करते समय नौकरशाह�
क� मदद क� आवश्यकता पड़ती है । प्राय: राजनी�त�� के अनुभवह�न और अप�रपक्व होने के कारण कानून का
प्रारूप तैयार करने म� �व�ध �वभाग क� नौकरशाह� का ह� सहारा �लया जाता है । नौकरशाह� के सहयोग के �बना
कानन
ू का प्रारूप तैयार नह�ं हो सकता।
10. सं�वधा�नक आदश� का �क्रयान्वयन—प्रत्येक दे श के सं�वधान म� नाग�रक� को जो मौ�लक अ�धकार व स्वतंत्रताएं
प्रदान क� गई ह�, उनको कायम रखना नौकरशाहे ी का ह� प्रमुख उत्तरदा�यत्व है । सामािजक न्याय का आदशर् प्राप्त
करने म� सरकार क� मदद सं�वधा�नक आदश� को कायम रखकर नौकरशाह� ह� करती है ।
11. लोक सम्पकर् व संचार कायर्—आज के लोकतन्त्रीय युग म� नौकरशाह� जनता से �नरन्तर सम्पकर् बनाए रखती है ।
वह समाज म� होने वाल� घटनाओं और �वचारधाराओं से शासन-तन्त्र को अवगत कराती है । इस प्रकार कहा जा
सकता है �क नौकरशाह� एक ऐसी सामािजक साधन है जो राजनी�तक ल�य� को पूरा करने म� सरकार क� मदद
करता है , नी�त-�नधार्रण व उसके �क्रयान्वयन म� महत्वपूणर् भू�मका �नभाता है , �वरोधी �हत� म� सामंजस्य पैदा
करता है तथा �वकास अ�भकतार् के रूप म� आधु�नक�करण को सम्भव बनाता है । शासनतन्त्र क� सफलता कुशल
प्रशासन-तन्त्र पर ह� �नभर्र काती है । इस�लए आज आवश्यकता इस बात क� है �क नौकरशाह� को जनसेवक क�
भ�ू मका अ�धक से अ�धक अदा करनी चा�हए। उसे राजनी�तक तटस्थता को बरकरार रखकर ह� सं�वधा�नक
आदश� के प्र�त सम�पर्त होकर कायर् करने रहना चा�हए। इसी म� उसक� भू�मका का औ�चत्य है ।

iz'u 7- yksd 'kklu osQ varjkZ"Vªh;dj.k dh vo/kj.kk dk o.kZu dhft;sA


mÙkjµ
iz'u 8- lq'kklu osQ egÙo rFkk fo'ks"krkvksa dh ppkZ dhft;sA
mÙkjµ सुशासन का तात्पयर् अच्छ� शासन व्यवस्था से है । सुशासन (good governance ) का अथर् है न्याय पर आधा�रत
शासन। महाभारत के शिन्तपवर् म�व �लखा है �क सध
ु ासन क� नीव ह� धमर्�नष्ठ शासन। अलेक्ज�डर पोप के अनस
ु ार वह�
सरकार अच्छ� है िजसका प्रशासन अच्छा हो। व्यिक्तवाद� �वचारक फ्र�मैन के अनस
ु ार वह� सरकार अच्ची है जो कम से कम
शासन कर� । महात्मा गाँधी ने रामराज्य क� कल्पना क� थी। �वश्व वेक संकेतक� के अनुसार सुशासन म� शा�मल लोकतंत्र
पारद�शर्ता और जवाबदे ह� के अलावा यह कहा जा सकता है �क उत्तम अ�भशासन का समग्र आशय एक ऐसी
सहभा�गतापूणर् प्रणाल� से है िजसम� िजन लोग� को जनता क� और से शासन करने के �लए आमंिन्त्रत �कया जाता है वे ऐसे
ह� जो क� अपना सव�तम दे ने, लोग� क� सेवा और भलाई करने उनक� समस्याओं को हल केने और उनका जीवन जीने योग्य
संतोषपण
ू र् तथा उल्लासपण
ू र् बनाने क� इच्छा से अ�भप्र�रत ह�।
सुशासन का तात्पयर् अच्छ� शासन व्यवस्था से है । नाग�रक� को बु�नयाद� सु�वधा �मले। यातायात क� अच्छ� व्यवस्था हो।
स्वच्छ जल एवं भोजन को उपलब्धता हो। समाज म� अमन चैन हो। आ�मर-गर�ब के मध्य वमनस्य हो। �ेत्रीयता एवं
संक�णर्तावाद न हो। दं गा फसाद न हो धमर् के �लए अकारण अशािन्त न फैले। ये व्यवस्थाएँ ह� सुशासन कहलाती ह�। लोग�
को भयकुक्त माहौल से मिु क्त �मल� है ।
सुशासन क� �वशेषताएँ—
1. प्रभावी और कुशल प्रशासन,
2. नाग�रक� के जीवन-स्तर म� सुधार,
3. संस्थाओं क� वैधता एवं प�ट बनाना,
4. उत्तरदायी, मैत्रीपण
ू र् एवं नाग�रक� क� दे खभाल करने वाला प्रशासन,
5. जवाबदे ता स�ु निश्चत करने वाला प्रशासन
6. सुचना एवं अ�भव्यिक्त क� स्वतन्त्रता प्रदान करने वाला प्रशासन
7. �मतव्ययी प्रशासन
8. प�रणमोन्मुखी प्रशासन
9. लोकसेवाओं क� गण
ु वत्ता म� सध
ु ार केरने वाला प्रशासन
10. का�मर्क� क� उत्पादकता म� व�ृ द्ध केने वाला प्रशासन
11. भ्रष्टचार से रहत �दलाने वाला प्रशासन
12. सत्ता के प्रयोग म� स्वेच्छाचा�रता से मुक्त प्रशासन,
13. ई-गवन�स पर आध�रत नाग�रक और सरकसर को आमने-सामने लेन वाला प्रशासन।

iz'u 9- lw{e Lrj ij la?k"kZ izca/ u ij ,d fVIi.kh fyf[k;sA


mÙkjµ vkarfjd laxBu Lrj ij la?k"kZ lek/kuµ
iz'u 10- uSfrdrk osQ lanHkZ dk o.kZu dhft;s rFkk yksd iz'kklu esa mlosQ egÙo dks mtkxj dhft;sA
mÙkjµ नै�तकता मानव-मूल्य� क� वह व्यवस्था है जो अ�धक सुखमय जीवन के �लए हमारे व्यवहार को आकार दे ती है ।
नै�तकता क� सहायता से हम ईमानदार� से जीवन जीकर हमारे सम्पकर् म� आने वाले लोग� से �वश्वास और मैत्री स्था�पत
करते ह�। नै�तकता सख
ु क� कंु जी है |
कुछ लोग सोचते ह� �क सफल जीवन वह है िजसम� हमारे पास अकूत भौ�तक सम्पदा और अ�धकार प्राप्त ह�। यद्य�प हम�
ये सब �मल भी जाए, तब भी हम कभी संतुष्ट नह�ं हो पाते और सदा भयभीत रहते ह� �क कह�ं यह हमसे �छन न जाए। यह
सब हम िजतना जोड़ते ह� �वशेषतः जब दस
ू र� क� क�मत पर जुटाते ह�, उतने ह� हमारे शत्रु बन जाते ह�। अब यह तो कोई
नह�ं कहे गा �क सफल जीवन वह है जहां लोग हम� पसंद न करते ह�। सफल जीवन वह है िजसम� हमने बहुत से �मत्र बनाए
ह� और लोग हमार� संग�त म� रहकर सख ु का अनभ ु व करते ह�। �फर इससे कोई अंतर नह�ं पड़ता �क हमारे पास �कतना
धन अथवा बल है । हमारे पास भावात्मक सहारा होगा िजससे हम� यह बल प्राप्त होगा �क हम �कसी भी िस्थ�त का सामना
कर सक�।
नै�तकता के �दशा-�नद� श बताते ह� �क �कस प्रकार का व्यवहार सुख क� ओर ले जाएगा और �कससे समस्याएँ उत्पन्न
ह�गी। जब हम ईमानदार� से दस
ू र� को सुखी बनाना चाहते ह� तो उन्ह� भरोसा होता है �क हम उन्ह� छल� गे, सताएँगे या
शो�षत नह�ं कर� गे। यह प्रत्येक �मलने वाले व्यिक्त से हमार� मैत्री क� आधार-�शला का काम करता है । वे हमारे साथ
�निश्चन्त और खुश रहते ह� क्य��क वे जानते ह� �क डरने क� कोई बात नह� है । बदले म� , हम उनसे अ�धक सुख का अनुभव
करते ह�। यह कौन चाहे गा �क हम जब भी �कसी के पास जाएँ तो वे तुरंत सावधान हो जाएँ अथवा भय से कांपने लग� ? हर
�कसी को मुस्कराता चेहरा ह� स्वागत-योग्य लगता है ।
मनुष्य सामािजक प्राणी है ; हम� जी�वत रहने के �लए दस
ू र� का सहारा चा�हए। केवल तब नह�ं जब अवश �शशु अथवा
न�स�ग होम म� पड़े जजर्र वद्ध
ृ होते ह�, बिल्क आजीवन हम� और� क� सहायता और दे ख-भाल चा�हए होती है । प्रेमपण
ू र्
�मत्रता से जो भावात्मक सहारा �मलता है वह जीवन को प�रपूणर् बनाता है । नै�तकता क� गहर� समझ हम� हर �मलने वाले
से मैत्रीपूणर् सम्बन्ध स्था�पत करने म� सहायक होती है ।
लोक प्रशासन के �ेत्र संबंधी �वचार को दो भाग� म� बांटा जा सकता है —
(१) एक वगर् के �वचारक लोक प्रशासन क� व्याख्या इतने व्यापक अथर् म� करते ह� �क लोक प्रशासन क� सीमा के अन्दर
सरकार के सभी �वभाग तथा कायर्पा�लका, व्यवस्था�पका और न्यायपा�लका के �ेत्र आ जाते ह�। इस प�रभाषा को
स्वीकार करने पर प्रशासन के �ेत्र म� वे सभी कायर् शा�मल ह�गे जो सरकार क� सम्पण
ू र् सावर्ज�नक नी�तय� को
�नधार्�रत करने तथा उन नी�तय� को कायार्िन्वत करने के �लए �कए जाते ह� परन्तु इस प�रभाषा म� लोक प्रशासन
क� अपनी '�व�शष्टता' नह�ं रह जाएगी।
(२) लोक प्रशासन के संबंध म� दस
ू रा �व�शष्ट �वचार ह� अ�धक ग्राह्य है । इनके अन्तगर्त लोक प्रशासन का
अध्ययन कायर्पा�लका के उस प� से संबं�धत है जो व्यवस्था�पका के द्वारा �निश्चत क� गई नी�तय� का व्यवहार
म� लाने का उत्तरदा�यत्व ग्रहण करता है । इस�लए लोक प्रशासन कायर्पा�लका से ह� संबं�धत है और उसी के नेतत्ृ व
म� काम करता है । एफ माक्सर् के अनुसार लोक प्रशासन के अन्तगर्त वे समस्त �वषय आते ह� िजनका संबंध
सावर्ज�नक नी�त से है , स्थायी परम्पराओं के अनुसार, लोक प्रशासन के कायर् असै�नक संगठन, कमर्चा�रय� एवं
प्र�क्रयाओं से लगाये जाते ह�, जो प्रशासन को प्रभावशाल� बनाने के �लए कायर्पा�लका को �दए जाते ह�।
�वलोबी के अनस
ु ार, लोक प्रशासन के �ेत्र का संबंध इन बात� से है —
(१) सामान्य प्रशासन,
(२) संगठन,
(३) कमर्चार� वगर्,
(४) सामग्री, तथा
(५) �वत्त
उपयक्
ुर् त �वचार� के प्रकाश म� लोक प्रशासन के �ेत्र को हम �नम्न रूप म� व�णर्त कर सकते ह�—
(१) इसका संबंध सरकार के ‘क्य�’ और ‘कैसे’ से है : लोक प्रशासन का संबंध सरकार के ‘क्या’ से है िजनका अथर् उन
समस्त ल�य� क� उपिस्थ�त है िजनको हम सामग्री कहते ह� और िजनको पूणर् करने के �लए वह प्रयत्नशील रहती
है । ‘कैसे’ का संबंध उन साधन� से है िजनका प्रयोग सरकार उन ल�य� क� प्रािप्त के �लए करती है । �वत्त,
कमर्चा�रय� क� �नयुिक्त, �नद� शन, नेतत्ृ व इत्या�द इसके उदाहरण ह�। इसके अन्तगर्त प्रशासन के दोन� पहलू आ
जाते ह�- �सद्धान्त तथा व्यवहार।
(२) कायर्पा�लका क� �क्रयाशीलता का अध्ययन - लोक प्रशासन, प्रशासन का वह अंग है जो कायर्पा�लका के �क्रयाशील
तत्व� का अध्ययन करता है । लोक प्रशासन का संबंध कायर्पा�लका क� उन समस्त असै�नक �क्रयाओं से है िजनके
द्वारा वह राज्य के �निश्चत ल�य� को प्राप्त करने क� चेष्टा करता है । लोक प्रशासन का यह संक�णर् रूप है ।
प्रशासन का वास्त�वक उत्तरदा�यत्व कायर्पा�लका के ऊपर है , चाहे वह राष्ट्र�य, राजक�य अथवा स्थानीय स्तर क�
क्य� न हो।
(३) लोक प्रशासन का संबंध संगठन क� समस्याओं से है - लोक प्रशासन म� हम प्रशास�नक संगठन का अध्ययन करते
ह�। सरकार के �वभागीय संगठन का अध्ययन इसके अन्तगर्त �कया जाता है । लोक प्रशासन के �ेत्र म� नाग�रक
सेवाओं (असै�नक) के �व�भन्न सूत्र�, उसके संगठन� तथा �ेत्रीय संगठन� का व्यापक अध्ययन करते ह�।
(४) पदा�धका�रय� क� समस्याओं का अध्ययन - लोक प्रशासन के �ेत्र म� पदा�धका�रय� क� भत�, प्र�श�ण, सेवाओं
क� दशा, अनश
ु ासन तथा कमर्चार� संघ आ�द समस्याओं का व्यापक रूप से गहन अध्ययन �कया जाता है ।
(५) इसका संबंध सामान्य प्रशासन से है - ल�य �नधार्रण, व्यवस्था�पकाएवं प्रशासन संबंधी नी�तयां, सामान्य काय�
का �नद� शन, स्थान एवं �नयंत्रण आ�द लोक प्रशासन के �ेत्र म� सिम्म�लत ह�।
(६) सामग्री प्रदाय संबंधी समस्याय� - लोक प्रशासन के अन्तगर्त क्रय, स्टोर करना, वस्तु प्राप्त करने के साधन तथा
कायर् करने के यंत्र आ�द का भी �वस्तत
ृ अध्ययन �कया जाता है ।
(७) �वत्त संबंधी समस्याओं का अध्ययन - लोक प्रशासन म� बजट �वत्तीय आवश्यकताओं क� व्यवस्था तथा
करारोपण आ�द का अध्ययन �कया जाता है ।
(८) प्रशासक�य उत्तरदा�यत्व - लोक प्रशासन क� प�र�ध म� हम सरकार के �व�भन्न उत्तरदा�यत्व का �ववेचन करते
ह�। न्यायालय� के प्र�त उत्तरदा�यत्व, जनता तथा �वधान-मंडल आ�द के प्र�त प्रशासन के उत्तरदा�यत्व का
अध्ययन �कया जाता है ।
(९) मानव-तत्व का अध्ययन - लोक प्रशासन एक मानव शास्त्र है । मानवीय तत्त्व के अभाव म� वह अपूणर् है । अमे�रक�
लेखक साइमन तथा माक्सर् ने लोक प्रशासन के अध्ययन म� मानवीय तत्त्व के अध्ययन को �वशेष महत्त्व �दया
है । व्यिक्त ह� समस्त प्रशासक�य व्यवस्था का संचालक, स्रोत, आधार तथा मागर्�नद� शक होता है । मानव-
मनो�व�ान के अध्ययन के �बना लोक प्रशासन क� �व�वध समस्याओं को नह�ं समझाया जा सकता। प्रशासन पर
परम्पराओं, सभ्यता, संस्कृ�त एवं बाह्य वातावरण का प्रभाव पड़ता है । लोक प्रशासन क� �व�वध समस्याओं को
हम� मानवीय व्यवहार क� पष्ृ ठभ�ू म म� दे खना चा�हए। लोक प्रशासन एक साम�ू हक मानवीय �क्रया है ।
सामू�हक संबंध� का आधार क्या है तथा व्यिक्त उन आवश्यकताओं क� पू�तर् �कस प्रकार कर पाता है , यह �वचारणीय �वषय
लोक प्रशासन का है । प्रशासक�य �नणर्य� पर �कन-�कन तत्व� का व्यापक रूप से प्रभाव होता है , इसका अध्ययन हम लोक
प्रशासन म� करते ह�।
लोक प्रशासन के अध्ययन-�ेत्र के बारे म� �वचारक� म� बड़ा भेद है । मूलतः मतभेद इन प्रश्न� को लेकर है �क क्या लोक
प्रशासन शासक�य कामकाज का केवल प्रबन्धक�य अंश है अथवा सरकार के समस्त अंग� का समग्र अध्ययन? क्या लोक
प्रशासन सरकार� नी�तय� का �क्रयान्वयन है अथवा यह नी�त-�नधार्रण म� भी प्रभावी भू�मका अदा करता है ।

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