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बकरियाँ की प्रमुख बीमारियाँ व उनके निदान के उपाय
बकरियाँ की प्रमुख बीमारियाँ व उनके निदान के उपाय
यह रोग बकरी और भेडो में मोरिविली नामक वायरस से फैलने वाला खतरनाक जानलेवा रोग है ।
लक्षण
बचाव के उपाय
मंह
ु पका व खरु पका रोग
लक्षण
जिस समय बकरियों में यह बीमारी फेलती है , उस समय बीमार बकरियों को अन्य बकरियों से अलग
रखना चाहिऐ।
बीमार बकरियों के छाले व मँह
ु को लाल दवा या फिटकरी के पानी से धोना चाहिये तथा
बोरोग्लिसरीन का उपयोग करना चाहिये।
सभी बकरियों में खुरपका एवं मँुहपका का टीकाकरण साल में 6-6 महिनो के अंतराल में दो बार
लगाना चाहिऐ।
बकरी चेचक
लक्षण
बकरी के कान, नाक, थन आदि स्थानों पर छोटे -छोटे दानें / छाले उभर आते है ।
बकरी को हल्का बख
ु ार आता है ।
कभी-कभी यह छाले फूट जाते है तथा इनमें मवाद पड़ जाता है ।
अधिक छालो की वजह से बकरियों के थन भी खराब हो जाते है ।
छोटे बच्चों में यह छाले मँह
ु व नाक एवं अंदर तक फेल जाते है , जिसकी वजह से उनकी मत्ृ यु भी
हो जाती है ।
बचाव के उपाय
गलघोद ू
लक्षण
तेज बुखार आता है तथा सॉस लेने में परे शानी होती है ।
नाक से स्त्राव बहती है तथा सॉस तेज हो जाती है ।
रोगग्रस्त अधिकांश बकरी मर सकती है ।
बचाव के उपाय
एंथ्रेक्स
लक्षण
बचाव व उपाय
लक्षण
बचाव के उपाय
रोग के लक्षण
रोगग्रस्त पशुओं में इस बीमारी में गर्भपात हो जाता है तथा जेर भी रुक जाती है ।
कभी-कभी बच्चेदानी भी पक जाती है ।
नर बकरियों में अंडको पक जाते है तथा घुटने सज
ू व पक जाते है ।
उनमें बच्चें पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है ।
बचाव के उपाय
मेस्टाइटिस
रोग के लक्षण
रोगग्रस्त पशु के थन में सूजन हो जाता है तथा वह गर्म व सख्त हो जाता है थन को छूने से बकरी
दर्द महसुस करती है ।
इस बीमारी में बकरियों को तेज बुखार आ जाता है ।
दध
ू के साथ खुन आता है ।
दर्द के साथ दाँतो को चबाती है तथा उसकी सॉस तेज हो जाती है ।
इस बीमारी से प्रभावित थन छोटा हो जाता है ।
बचाव के उपाय
रोगग्रसित पशु के थन का दध
ू निकाल कर उसे इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। थन के अंदर किसी
एन्टीबायोटिक कीम का उपयोग करना चाहिये।
थनों को लाल दवा से धोकर और पोछ कर दध
ू निकालना चाहिये।
आक्सीटे ट्रासाइक्लिन लांग ऐक्टिं ग के दे ने से भी बीमारी का असर कम हो जाता है ।
बकरी को साफ और सूखे बाड़े में रखना चाहिये तथा अच्छी खुराक दे नी चाहिये।
सभी तरह की बकरियों को समय-समय पर डाक्टर की सहायता से परिक्षण करना चाहिये।
जिस बकरी की बिमारी पुरानी हो जाती है , उसे निकाल दे ना चाहिये।
लिवर प्लक
ू / पैरासाइटिक विन्टरडायरिया
रोग के लक्षण
बचाव के उपाय
रोग्रस्त बकरियों को उचित मात्रा में जैनिल एवं नीलजान 10 से 15 मि.ली. के हिसाब से दे ने पर काफी
लाभ होता है ।
समय-समय पर मल का परिक्षण करवाना चाहिये।
मरी हुई बकरी के पोस्टमार्टम के द्वारा बीमारी की जॉच कर लेना चाहिये।
डिस्टोडिन 20 मिलिग्राम प्रति किलो वजन के हिसाब से दे ना प्रभावकारी होता है ।
तालाब के किनारे घोघों को कम करने के लिये उचित प्रबंध करना चाहिये।
टे पवर्म
रोग के लक्षण
बचाव के उपाय
रोगग्रसित पशु को पैनाकुर 0 मि.ग्रा. प्रति किलो वजन के हिसाब से दे ने से काफी लाभ होता है ।
बकरियों के साथ कुत्ते आदि नहीं होने चाहिये।
रोग के लक्षण
शरीर में खज
ु लाहट का होना।
खन
ू की कमी हो जाना।
बकरियों का शरीर कमजोर हो जाना तथा अन्य बीमारियों का लग जाना।
बचाव के उपाय
नियमित रुप से तथा बकरियों को टिकिल, मैलाथियोन, सैविन और साइथियोन के घोल से महिने में
या जरुरत पर नहलाना चाहिये।
में ज या खज
ु ली
रोग के लक्षण
रोगग्रसित पशओ
ु ं की खाली मोटी व कटोर हो जाती है ।
इस रोग से बकरियों की खाल के बाल उड़ जाते है ।
खुजली हो जाती है तथा खाल सिकुड़ भी जाती है तथा बकरी कमजोर हो जाती है और कभी-कभी
मर जाती है ।
बचाव के उपाय
ब्लोट या अफारा
रोग के लक्षण
बचाव के उपाय
सावधानी से 5-10 ग्राम सोडा प्रति बकरी वजन के हिसाब से गर्म पानी में मिलाकर पिलाना चाहिये।
एक कप मिनरल आयल दे ने से काफी आराम होता है ।
अधिक गैस होने पर गैस को मोटी सुई से बाहार निकाल दे ना चाहियें।