You are on page 1of 7

बकरियाँ की प्रमख

ु बीमारियाँ व उनके निदान के उपाय

पैस्टी डैस पैटाइटिस रुमिनेंट्स (पीपीआर)

यह रोग बकरी और भेडो में मोरिविली नामक वायरस से फैलने वाला खतरनाक जानलेवा रोग है ।

लक्षण

 इस रोग में शरीर का तापमान 104 से 108 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है ।


 बकरियों में सॉस लेने में कठिनाई होती है और नाक से निकलने वाला स्त्राव पीले रं ग की मवाद में
बदल जाता है ।
 बकरी को दस्त होने लगता है , तथा शरीर में पानी की कमी से पशु सुस्त पड़ जाता है । एवं वनज
भी कम होने लगता है ।
 खासी और निमोनिया जैसे लक्षण रोग में दिखाई दे ते है । आँखे लाल व सुख जाती हो।
 मँह
ु में छाले तथा घाव हो जाते है । मसूड़ों, जीभ और जबड़ो के जोड़ के स्थान पर अधिक छाले हो
जाते है ।
 गाभिन बकरियों के बच्चे गिर जाते है ।

बचाव के उपाय

 रोगग्रस्त पशु को रहने एवं खाने-पीने की व्यवस्था अलग से करनी चाहिऐ।


 रोगग्रस्त पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें।
 स्वस्थ पशुओं में पी पी आर का टीकाकरण करना चाहिऐ।
 मत
ृ पशुओं गड्डा खोद कर जमीन में गाड़ दे और उसके रहने के स्थान पर चुना डाले।
 बीमार जानवरों को एनरोसिन एवं सिप्रोफ्लोक्ससिन एन्टीबायोटिक 3 से 5 दिन दे ने से मत्ृ यु दर कम
हो जाती है ।
 बीमार भेड़-बकरियों को हल्का चारा व दलिया आदि दे ना चाहिऐ।

मंह
ु पका व खरु पका रोग

लक्षण

 बकरियों में इस बीमारी से होठ, जीभ, गाल के अंदर का हिस्सा, मसढ़


ू ों तथा खरु ों के बीच की खाल में
फोले या छाले पड़ जाते है । यह फोले कभी-कभी इनके थन व स्तन पर भी हो जाते है ।
 बड़ी बकरियों मे यह बीमारी कम असर करती है ।
 इस रोग से बड़ी बकरियों में लंगडाहट भी हो सकती है ।
 छोटे बच्चों मे इस बीमारी के कारण उनकी मत्ृ यु दर 20 से 25 प्रतिशत हो जाती है ।
 छोटे बच्चे अचानक ही मर जाते है ।
बचाव के उपाय

 जिस समय बकरियों में यह बीमारी फेलती है , उस समय बीमार बकरियों को अन्य बकरियों से अलग
रखना चाहिऐ।
 बीमार बकरियों के छाले व मँह
ु को लाल दवा या फिटकरी के पानी से धोना चाहिये तथा
बोरोग्लिसरीन का उपयोग करना चाहिये।
 सभी बकरियों में खुरपका एवं मँुहपका का टीकाकरण साल में 6-6 महिनो के अंतराल में दो बार
लगाना चाहिऐ।

बकरी चेचक

लक्षण

 बकरी के कान, नाक, थन आदि स्थानों पर छोटे -छोटे दानें / छाले उभर आते है ।
 बकरी को हल्का बख
ु ार आता है ।
 कभी-कभी यह छाले फूट जाते है तथा इनमें मवाद पड़ जाता है ।
 अधिक छालो की वजह से बकरियों के थन भी खराब हो जाते है ।
 छोटे बच्चों में यह छाले मँह
ु व नाक एवं अंदर तक फेल जाते है , जिसकी वजह से उनकी मत्ृ यु भी
हो जाती है ।

बचाव के उपाय

 बीमार बकरी को समह


ू से अलग कर दे ना चाहिये।
 छालो पर किसी एंटीसेप्टिक कीम का उपयोग करना चाहिये।
 बीमार बकरी के छालों को गर्म पानी व हाइड्रोमज
ू नपाराक्साइड की समान मात्रा से धोना चाहिये।
 ग्वाले के हाथ आदि को लाल दवा से घल
ु वाकर ही दध
ू निकलवाना चाहिये।
 जिन बकरियों में छाले अधिक मात्रा में निकले हुये हो खासकर छोटे बच्चो में उनको 3 से 5 दिन तक
कोई एंटीबायोटिक दे ने से मत्ृ यु दर घटाई जा सकती है ।

गलघोद ू

लक्षण

 तेज बुखार आता है तथा सॉस लेने में परे शानी होती है ।
 नाक से स्त्राव बहती है तथा सॉस तेज हो जाती है ।
 रोगग्रस्त अधिकांश बकरी मर सकती है ।

बचाव के उपाय

 बीमार पशुओ को समुह से अलग कर दे ना चाहिये।


 बीमार बकरियों का एन्टीबायोटिक से इलाज करना चाहिये।
 बकरियों को एक जगह से दस
ू री जगह ले जाने से भी यह बीमारी होती है ।
 स्वस्थ बकरियों में समय पर टीकाकरण की व्यवस्था करनी चाहिये।

एंथ्रेक्स

लक्षण

 बकरी में इस रोग से 105-107 डिग्री फारे नहाइट तक बुखार आ जाता है ।


 बकरियाँ भोजन करना बंद कर दे ती है तथा अचानक मर जाती है ।
 खुनी दस्त होने लगते है ।
 इस बीमारी का ज्यादा असर होने पर बकरी एक दिन के लिये ही जीवित रह पाती है
 रोगग्रस्त पशुओं में नाक, मँह
ु व मैगनी के साथ खून आता है ।

बचाव व उपाय

 इस बीमारी से बचाव के लिये टीका लगवाना चाहिये।


 बीमार बकरी को समुह से अलग रखना चाहिये।
 इसमें पेन्सिलन इन्ट्रामस्कुलर तथा अन्य एन्टीबायोटिक दे ने से लाभ होता है ।
 यह बीमारी आदमियों में भी हो जाती है । अत: बीमार पशु के साथ सावधानी से रहना चाहिये।
 जरुरत पड़ने पर उचित डाक्टर की सलाह पर पोस्टमार्टम करवाकर उसे जमीन में दफनाने का भी
प्रबंध करना चाहिये।

इन्टे रोटॉक्सीमिया (ई.टी)

लक्षण

 रोगग्रस्त बकरी के पेट में तेज दर्द होता है ।


 दस्त के साथ खुन आता है और जानवर अतिशीघ्र मर जाता है ।
 रोग्रस्त पशु खाना-पीना बंद कर दे ता है एवं सस्
ु त खड़ा रहता है ।

बचाव के उपाय

 बकरियों को इन्टे रोटॉक्सीमिया का टीकाकरण करवाना चाहिये।


 बकरियों को अधिक चारा व दाना नहीं खिलाना चाहिये क्योकि अधिक चारा व दाना अंतडियों के
जहर वाली बीमारी को मदद करता है ।
 गाभिन बकरी को अंतिम समय में टीकाकरण नहीं कराना चाहिये।
 छोटे बच्चों को 3 माह की उम्र में टीकाकरण किया जा सकता है ।
 टीकाकरण हर साल दोहराना चाहिये।
 बीमार जानवरों को उचित एन्टीबॉयोटिक दे कर बचाया जा सकता है ।
ब्रुसेलोसिस

रोग के लक्षण

 रोगग्रस्त पशुओं में इस बीमारी में गर्भपात हो जाता है तथा जेर भी रुक जाती है ।
 कभी-कभी बच्चेदानी भी पक जाती है ।
 नर बकरियों में अंडको पक जाते है तथा घुटने सज
ू व पक जाते है ।
 उनमें बच्चें पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है ।

बचाव के उपाय

 बीमार बकरियों को समूह से अलग रखना चाहिये।


 इस बीमारी की जॉच के लिये नमूनों को प्रयोगशालाओं में परीक्षण के लिये भेजना चाहिये।
 अतः बीमार पशुओं की दे खभाल सावधानी के साथ करनी चाहिये क्‍योंकि यह बीमारी पशु पालको में
भी हो सकती है ।

मेस्टाइटिस

रोग के लक्षण

 रोगग्रस्त पशु के थन में सूजन हो जाता है तथा वह गर्म व सख्त हो जाता है थन को छूने से बकरी
दर्द महसुस करती है ।
 इस बीमारी में बकरियों को तेज बुखार आ जाता है ।
 दध
ू के साथ खुन आता है ।
 दर्द के साथ दाँतो को चबाती है तथा उसकी सॉस तेज हो जाती है ।
 इस बीमारी से प्रभावित थन छोटा हो जाता है ।

बचाव के उपाय

 रोगग्रसित पशु के थन का दध
ू निकाल कर उसे इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। थन के अंदर किसी
एन्टीबायोटिक कीम का उपयोग करना चाहिये।
 थनों को लाल दवा से धोकर और पोछ कर दध
ू निकालना चाहिये।
 आक्सीटे ट्रासाइक्लिन लांग ऐक्टिं ग के दे ने से भी बीमारी का असर कम हो जाता है ।
 बकरी को साफ और सूखे बाड़े में रखना चाहिये तथा अच्छी खुराक दे नी चाहिये।
 सभी तरह की बकरियों को समय-समय पर डाक्टर की सहायता से परिक्षण करना चाहिये।
 जिस बकरी की बिमारी पुरानी हो जाती है , उसे निकाल दे ना चाहिये।
लिवर प्लक
ू / पैरासाइटिक विन्टरडायरिया

रोग के लक्षण

 बकरी कमजोर हो जाती है और खाना पिना छोड़ दे ती है ।


 इस बीमारी में बकरियों को दस्त होता है ।
 बकरी के गले में पानी भर जाता है ।

बचाव के उपाय

 रोग्रस्त बकरियों को उचित मात्रा में जैनिल एवं नीलजान 10 से 15 मि.ली. के हिसाब से दे ने पर काफी
लाभ होता है ।
 समय-समय पर मल का परिक्षण करवाना चाहिये।
 मरी हुई बकरी के पोस्टमार्टम के द्वारा बीमारी की जॉच कर लेना चाहिये।
 डिस्टोडिन 20 मिलिग्राम प्रति किलो वजन के हिसाब से दे ना प्रभावकारी होता है ।
 तालाब के किनारे घोघों को कम करने के लिये उचित प्रबंध करना चाहिये।

टे पवर्म

रोग के लक्षण

 इस बीमारी से बकरिया धीरे -धीरे कमजोर हो जाती है ।


 रोगी पशुओं के परजीवी का कुछ भाग मींगनी के साथ बाहार आ जाना।
 दस्तो का और कभी-कभी मींगनी का न आना।

बचाव के उपाय

 रोगग्रसित पशु को पैनाकुर 0 मि.ग्रा. प्रति किलो वजन के हिसाब से दे ने से काफी लाभ होता है ।
 बकरियों के साथ कुत्ते आदि नहीं होने चाहिये।

जँू तथा किलनी

रोग के लक्षण

 शरीर में खज
ु लाहट का होना।
 खन
ू की कमी हो जाना।
 बकरियों का शरीर कमजोर हो जाना तथा अन्य बीमारियों का लग जाना।
बचाव के उपाय

 नियमित रुप से तथा बकरियों को टिकिल, मैलाथियोन, सैविन और साइथियोन के घोल से महिने में
या जरुरत पर नहलाना चाहिये।

में ज या खज
ु ली

रोग के लक्षण

 रोगग्रसित पशओ
ु ं की खाली मोटी व कटोर हो जाती है ।
 इस रोग से बकरियों की खाल के बाल उड़ जाते है ।
 खुजली हो जाती है तथा खाल सिकुड़ भी जाती है तथा बकरी कमजोर हो जाती है और कभी-कभी
मर जाती है ।

बचाव के उपाय

 बालो को काटकर बीमारी की जगह को गर्म पानी या साबुन से धोना चाहिये।


 मैलाथियोन सेविन और लिन्डेन को बीमारी वाली जगह पर छिड़कना चाहिये।
 बकरियों की खाल की उपरी सतह का परिक्षण करवाना चाहिये।
 बकरियों को सात दिन के अंतर पर तीन बार दवा से नहलाना चाहिये।
 डिप्टै क्स मरहम लगाने से भी लाभ प्राप्त होता है ।

ब्लोट या अफारा

रोग के लक्षण

 सॉस तेज चलने लगती हैं।


 पेट फूल जाता है तथा मुहँ से झाग आने लगता है ।
 बकरियाँ खाना कम खाती है और उनमें सुस्ती आ जाती है ।
 बकरी अतिशीघ्र मर जाती है ।

बचाव के उपाय

 सावधानी से 5-10 ग्राम सोडा प्रति बकरी वजन के हिसाब से गर्म पानी में मिलाकर पिलाना चाहिये।
 एक कप मिनरल आयल दे ने से काफी आराम होता है ।
 अधिक गैस होने पर गैस को मोटी सुई से बाहार निकाल दे ना चाहियें।

Source :- Krshi Vigyan Kendra, Bhilwara (Raj)

You might also like