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गुरु मं त्र | चेतना मं त्र | गायत्री मं त्र

ध्यानपूर्वक पढ़ें और समझे

| जय गुरुदेर् |

आध्यात्म के सूक्ष्म सं सार म़ें आप सभी का स्वागत है। प्रणाम है।

आज मैं कु छ अलग अलग वर्षय ं पर चचाव करूँगीं। यह वर्षय साधना के मागव


म़ें आने र्ाली र्े स्थिवतयाूँ हैं, जजसका सामना हर साधक क करना पड़ता है।
मैं अपने अनुभर् के आधार पर उनक बताना चाहूँगी।
वनजिल जिष्य सर्वप्रथम अपने हृदय म़ें यह वर्िेष तौर पर वबठा ल़ें, यह सभी
नए पुराने साधक ं के जलए है।
 आपने अपना सं बध एक 'पूणव ब्रह्म परमतत्व से ज ड़ा है।
 आप नए हैं त सबसे पहले स्वं य का, ग़ुर से जुड़ने का और दीक्षा, जप का
महत्व जान ल़ें।
 क् वं क इसका महत्व जान कर ही व्यवि पूणव रप से वनजिल पथ से जुड़
पाऐगा।
सीधी सरल भाषा म़ें कहना चाहती हूँ वक यह आध्यात्म का पथ है। इस पथ म़ें
यात्रा बाहर की ओर नहीं भीतर अन्तर की ह ती है।
बदलार् की प्रविया सबसे पहले भीतर ह ती है। ओर जब भीतर बदलार् आता है
त बाहर स्वमेर् ही बदलार् आने लगता है।
 दीक्षा क चमत्कार की तरह ना ल़ें। दीक्षा क्ा है यह समझ ल़ें।
 दीक्षा गुर का तपस्याअंि है। ज बीज रप म़ें गुरु जिष्य म़ें डालते हैं।
जजसे जिष्य क गुरुमं त्र, चेतनामं त्र, गायत्री मं त्र के द्वारा अंकुररत कर उस उजाव क
प वषत और र्ृवि स्वं य म़ें भीतर करनी ह ती है।

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यह प्रविया का प्रभार् कु छ समय बाद वदिता है। पर भीतर जप की प्रविया
पहले वदन से ह जाती है।
गुरु मं त्र का र् चेतना मं त्र, गायत्री मं त्र क् ं जपने चावहए? इससे क्ा लाभ ह ता
है !?
यह एक गूढ रहस्य है। ज साधक ं के लाभ के जलए, र् र्े इसका महत्व जान
कर और ज्यादा श्रिा ओर मन य ग से वनयवमत जप़ें, इसके जलए नए साधक ं क
बता रही हूँ। यह मेरा अनुभर् भी है।
गुरु मं त्र:
गुर मं त्र के वर्षय म़ें गुरु गीता कहती है वक…,
 गुरु मं त्र का वनमावण साधक ं के वहत के जलए वकया गया।
 कारण हजार ं लाि ं मं त्र और साधनाऐं हैं।
 सभी के वनयम अलग हैं।
 सभी मं त्र जप साधनाऐं सभी साधक कर सक़ें यह असं भर् है।
विर इसम़ें बाधा यह है वक, सभी साधक ं क र्ह अनुकूल ह जररी नहीं।
क् वं क हर वकसी जिष्य का िलदायी देर्ता अलग ह ता है।
गुर बताते हैं, वकसी के जलए िवि की साधना िलदायी है त वकसी क जिर्
या हनुमान जी की। त वकसी के जलए भैरर् हैं त वकसी के जलए वर्ष्णु जी।
त क ई तं त्र मागव से या मं त्र मागव से ही सिलता पा सकता है। यही नहीं इनके
वनयम, सं यम, आसन, वदिा भी अलग अलग हैं। क ई तीक्ष्ण है क ई सौम्य
साधना है।
तब जसिाश्रम म़ें वर्चार वकया गया की, जन मानस ज आम साधक हैं, गृहि
हैं, र्े इतनी साधनाऐं जप नहीं कर सकते त र्े इन सभी साधनाओं का लाभ
कै से ल़ें।

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क् वं क हर मानर् क साधना करने का अजधकार है। और उनके लाभ भी उनक
गृहि जिष्य ं क भी वमलने चावहए।
इस पर जचन्तन मनन ि धन हआ। और इसका उपाय वनकला जब सदगुरुदेर्
वनजिल ने जसद्वाश्रम म़ें अपना कदम रक्खा। और आकाि से मं त्र उच्चारण हआ।
|| ऊूँ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्य नमः ||
अथावत…
 ऊूँ ज ब्रहमांण्ड स्वरप हैं,
 परम तत्वाय अथावत ज परमतत्व हैं,
 नारायणाय अथावत ज नारायण स्वरप हैं,
यहाूँ गुरन्देर् ने नारायण भगर्ान वर्ष्णु क बताया है। अथावत…
सदगुरदेर् पूणव नारायण स्वरप हैं ज पूरी तरह अपने जिष्य ं का पालन प षण
करने म़ें समवथ हैं।
 गुरुभ्य ं नमः अथावत ज गुरओं के भी गुरु हैं। उन्ह़ें प्रणाम है र्ं दन हैं।
यह र्ं दन, जसिाश्रम ही नहीं सभी ऋवष, मुवन, देर्, देर्ी सभी तीन ं ल क ने
वकया।
जब यह ध्ववन गुं जररत हई ज ब्रहमांण्ड से स्वतःउच्चररत हई। और झ्सी क
गुरुमं त्र मान जलया गया।
इस मं त्र क साधारण समझने की भूल ना कऱें।
यह मं त्र सरल सहज है। ताकी आम साधक भी सहजता से याद करके उसे जप
सके । यह गुरु मं त्र है। गुर गीता कहती है वक गुर मं त्र सभी मं त्र ं का राजा है।
ज साधक बड़ी बड़ी साधनाऐं नहीं कर सकते र्े मात्र गुरु मं त्र जप करके सब
कु छ प्राप्त कर सकते हैं।

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मात्र गुर मं त्र ही ऐसा मं त्र है ज वकसी भी वदिा म़ें बैठ कर वकसी भी समय
वकया जा सकता है। र्ह हर तरह िजलत ह गा।
यात्रा म़ें अपनी माला साथ ले जाय़ें, या िाली समय ह जप वकया जा सकता
है।
यहीं नहीं साधक क क ई मं त्र दे र्ता क स्नान या र्स्तु अपवन का मं त्र ना आता
ह , या वदिा बं धन का मं त्र नहीं आता त मात्र गुरु मं त्र ब लकर ही यह सब
पूजन कर सकते हैं।
उदाहरण के जलए वदिा बं धन, पूजा से पहले जररी है। ताकी क ई वर्ध्न ना
आये। त बांय हाथ म़ें जल लेकर दाूँ ये हाथ से गुरमं त्र ब ल कर दस ं वदिाऐ
अजभमं वत्रत करते हए उस वदिा म़ें जल जछड़कते जाएूँ । इससे वदिा बं धन ह
जाता है।
मैं स्वं य ऐसा ही वनत्य करती हूँ। और उसकी उजाव और रक्षा चि मैं दे ि सकती
हूँ। स्वं य पर भी गुरुमं त्र ब लते हए जल जछड़के िुवद्व के जलए।
अब देर्ता क स्नान भ ग भी गुरुमं त्र ब ल कर करा सकते हैं। जहाूँ मं त्र नहीं आता
जचन्ता मत कऱें गुरुमं त्र क ब लकर हृदय से भार् ब लकर पूरे वर्श्वास के साथ
पूजन कऱें। यह स्वं य वनजिल गुरदेर् ने बताया है।
गुरु मं त्र क् ं महत्वपूणव है। यह रहस्य स्वं य वत्रजटा अघ री ने बताया था। ज
पुराने साधक हैं उन्ह नं े पवत्रका म़ें अर्श्य पढा ह गा।
गुरमं त्र म़ें तेतीस क टी देर्ताओं का र्ास है। हर अक्षर म़ें एक एक देर्ता का
र्ास है। ज सर्वस्व देने म़ें समथव है।
इस मं त्र के ज्यादा से ज्यादा अनुष्ठान से साधक गुर के प्राण ं से जुड़कर धीरे धीरे
अनेक जसविय ं का स्वामी बन जाता है।

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(वहमालय के जसदि य वगय )ं पुस्तक म़ें ज गुरुदे र् के आश्रम म़ें वमलती है।
उसम़ें एक ऐसी साजधका का र्णवन है ज मात्र गुरु यं त्र और गुर मं त्र से क ई भी
साधना ओर जसवि प्राप्त कर लेती है। र्ह गुरयं त्र और माला हमेिा साथ रिती
है। और जब चाहे जहाूँ चाहे साधना करके जसिी प्राप्त कर लेती है । और झ्सके
जसर्ा ओर कु छ भी जररत नहीं पड़ती उसे।
कारण, गुरयं त्र म़ें तेतीस क टी दे र्ताओं का र्ास है। र् गुर चरण पादुका म़ें
सारी जसविय ं का र्ास है।
गुरु का पूजन करने से…
 समस्त ल क ं का,
 दे र्ी दे र्ता, वपतर, कु ल दे र्ी दे र्ता र्ेद, पुराण, सारे नक्षत्र ब्रहमांण ओर
उसके समस्त ज्ञान का र्ास है।
 गुरुचरण के दावहने अंगठ
ू े म़ें सारी जसविय ं का र्ास है
 गुरु चरण ं म़ें सारे तीरथ , नवदय ,ं सागर ं का र्ास है।
 गुरु का र म र म पूणव चैतन्य ओर जसि है।
 उनके समक्ष मौन बैठने से, चरण स्पिव, आजिरर्ाद से साधक का सौभाग्य
उदय ह ता है।
 सर्व कायव जसि ह ते हैं।
 सर्व मन कामनाओं की पूवतव ह ती है।
चेतना मं त्र।
|| ऊूँ ह्री मम प्राण देह र म प्रवतर म चैतन्य जागृय ह्री ऊूँ नमः||
चेतना मं त्र के वर्षय म़ें गुरदे र् ने बताया है वक…
यह सबसे तीक्ष्ण ओर सटीक मं त्र है, र म, प्रवतर म, प्राण, देह क चैतन्य करने
के जलए।

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इससे क्ा ह ता है? इसके क्ा लाभ हैं?
 साधना मं त्र दीक्षा र् िविपात ज गुर देते हैं,
 झ्स मं त्र से उसक पूणत
व ा स्वं य म़ें जिष्य के ग्राहय क्षमता बढती है।
 अथावत इस मं त्र के जप के प्रभार् से जिष्य पूणव चैतन्य जागृत ह जाता है।
 इसके प्रभार् से सदबुवि तेजी से कायव करने लगती है।
 हर वपररस्थिवत म़ें साधक आत्मवर्श्वास के साथ स्वं य समाधान कर अपने सर्व
कायव सम्पं न्न कर लेता है।
 उसके प्राणतत्व जागृत ह कर तीव्रता से साधना म़ें उन्नवत और सिलता प्राप्त
करने लगता है। जब यह मं त्र जसि ह ने लगता है।
 र म प्रवतर म जब जागृत ह ते हैं, त साधक र म प्रवतर म म़ें चेतना प्राप्त करके
अनेक वदव्य अनुभूवतय ं क अनुभर् करता है।
 र्ह प्रत्येक र म प्रवतर म से हर पल हर क्षण गुर मं त्र जप करने लगता है।
यानी एक ही बार म़ें जब लाि र म प्रवतर म जप करते हैं त उस जप की जसिी
और महत्ता का र्णवन नहीं वकया जा सकता।
 साधक पूणव जागृत ह कर अपना ही नहीं दूसर ं का जीर्न सूँ र्ारने लगता है।
गायत्री मं त्र।
गायत्री मं त्र मूलतः कु ण्डजलनी जागरण का मं त्र है। गुरुदे र् कहते हैं वक…
इसम़ें,
 ऊूँ, भूर्,व भुर्ः, स्वः जनः, तपः, महः ये कुं डजलनी के सात द्वार हैं। ज प्रत्येक
द्वार क इस मं त्र के जाप से इन द्वार ं क ि ला जाता है। जजससे कु ण्डलनी
जागृत ह ती है।
 ओर जजसकी कुं ण्डजलनी जागृत ह ती है र्ही पूणव साधक बन सकता है।
कारण कु ण्डजलनी जागरण से समस्त पाप ताप कमव भस्मीभूत ह कर साधक
उध्ववगवत क प्राप्त करता है।

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और अनेक गुण , य ग्यता, जसंवियाूँ , क्षमताएं प्राप्त कर म क्ष की प्रावप्त कर सकता
है।
मूलतः यह सवर्ता मं त्र भी है। पर गूढ रहस्य इसका पूणव कु स्थण्डजलनी जागरण का
मं त्र है। यह स्वं य गुरुदे र् ने बताया है।
 इन तीन ं मं त्र ं और गुरु का मैंने अत्यं न्त सूक्ष्म र्णवन वकया है।
 इनक श्रिा पूर्वक जपने से साधक क लाभ अर्श्य ह ता ही ह ता है।
 मन म़ें िावि, िास्थन्त और साजत्वकता आती है।
 घर पररर्ार म़ें प्रेम, बरकत, सामं जस्य बढता है। आजथवक सिलता वमलती
है।
 र् भ ग ओर म क्ष की प्रावप्त ह ती है।
 सदगुर जैसे सच्चे िाश्वत साथी का अटू ट सं बध प्रेम और आजिवर्ाद वमलता
है।
ज आज के भौवतक, बदलते सं बध ं के दौर म़ें बहत जररी है वक एक ईश्वरीय
िवि प्रत्यक्ष आपकी सहायक, वमत्र, आजत्मय ह ।
भाई बहन ं माना टू वमनट मैगी का जमाना है। पर र् मैगी स्वास्थ्य के अच्छी
नहीं। माना सब कु छ इन्सटे न्ट और रेवडमेड आज के आधुवनक युग की माूँ ग बन
गई है।
पर ज बागर्ानी करते हैं उन्ह़ें इतना त पता है बीज ब या है त िूल और िल
अपने समय पर ही आऐगा। प्रकृ वत त अपने वनयम सं यम से चलती है। र्े विर
भी बड़े प्यार से बागर्ानी करते हैं। और सही समय का सहज इन्तज़ार करते हैं।
त आध्यात्म का अन्तर जगत भी ऐसा ही है। यहाूँ एकदम क ई चमत्कार की
आिा करना व्यथव है। प्रकृ वत और आध्यात्म एक ही हैं।

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समय आने पर ही बीज िलेगा िूलेगा ही .प्रेम श्रिा से झ्से सींचते रवहए।
आपका प्रयास अर्श्य समय पर रंग लाऐगा।
कु छ ओर वर्िेष बात़ें बताना चाहूँगी।
 आलस, बेमन से, या ब झ समझ कर जप ना कऱें। अगर आपके र्ि म़ें मन
नहीं है तब भी वनयवमत जप करते रह़ें। धीरे धीरे मन लग जाऐगा।
 याद रजिए गुरु ही एक ऐसी िवि है ज आपके हर क्षण हर पल काम आती
है। जब क ई साथ नहीं ह ता तब भी गुर साथ िड़े ह ते हैं। पर पहले तुम्ह़ें,
प्रेम, आजत्मयता और वनस्वाथव श्रद्घा भार् से सदगुर क अपना बनाना ह गा।
 अगर आपके पास समय नहीं है त जब समय वमले जप कीजजए। चाहे सुबह,
द पहर, िाम, रात ह । पर एक समय बना कर वनयवमत जप कीजजए।
 अपने मं वदर और उस जगह क साि रजिए। जाले धूल वमट्टी नहीं ह ने
चावहए।
 तस्वीर, र् सभी यं त्र मूवतव क वनत्य स्नान कराना चावहए। वतलक अक्षत पुष्प
नर्ैध अवपवत करने चावहए।
 नर्ैध म़ें वमश्री, बतािे, चीनी ज ह अर्श्य भ ग लगाऐ। पुष्प ना ह त
बेलपत्र या भार् से भी चढा सकते हैं।
 भार् से पुष्प चढाने का अथव आप कल्पना कऱें आपके हाथ म़ें पुषप है और
आप उसे चढा रहे हैं।
 दीपक जलाऐं, चाहे िुि धी का, बाजार से अच्छी कम्पनी का ला सकते हैं।
अन्यथा वतल के तेल का दीपक जला सकते हैं। तेल, घी इतना ही डाल़ें वक र्ह
पूरी साधना म़ें जलता रहे।
 यं त्र मूवतव के स्नान का जल स्वं य पर पररर्ार पर र् घर पर जछड़क़ें ।
 मं वदर म़ें गुर यं त्र और गुर चरण पादुका अर्श्य ह ।

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ज ज्यादातर यात्रा म़ें रहते हैं। र्े माला साथ ले जाएूँ और यात्रा म़ें जप कऱें।
जजनके पास समय का अभार् है उसके जलए गुरदे र् ने कहा है वक र्े चाहे द
माला कऱें नहीं त एक माला कऱें । पर कऱें जरर। और िाली समय मानजसक
जप कऱें।
इस लेि का उद्दे श्य सभी गुरु भाई बहन ं क गुरु ओर साधना से ज ड़ना है।
जजससे र्े गुरुदे र् से जुड़ कर भ ग और म क्ष की प्रावप्त कर सक़ें । मानर् से दे र्
बन सक़ें ।
हमारे अथाह आध्यात्म के सागर म़ें और गुर गं गा म़ें डु बकी लगा कर इस जीर्न
का, स्व का और सदगुर से जुड़ने का मू्य महत्व समझ सक़ें ।
समझे ही नहीं प्रत्यक्ष अनुभर् ओर उसे जीर्न म़ें उतार सक़ें ।

वदव्यानं द

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