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॥ॐ॥

।।ॐ श्री परमात्मने नम:।।


॥श्री गणेशाय नमः॥

रात्रि सूक्त

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त्रिषय-सूची

रात्रिसूक्त ............................................................... 3

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रात्रिसूक्त
[ऋग्वेद १०।१२७]

ऋग्वेद के दशम मण्डल का १२७िााँ सूक्त रात्रिसूक्त


कहलाता है , इसमें आठ ऋचाएाँ पत्रठत हैं , त्रजनमें रात्रिदे िी
की मत्रहमा का िणयन त्रकया गया है । इस सूक्त के कुत्रशक,
स र ऋत्रष, रात्रििाय ारद्वाजी दे िता और गायिी छन्द हैं :

ॐ रािी व्यख्यदायती पुरुिा दे व्यक्षत्र िः।


त्रिश्वा अत्रध त्रियोऽत्रधत ॥१॥

अनेक दे शोों पर त्रिस्तृत होकरआती हुई नक्षि रूप दे िी रात्रि


समस्त सोंसार को दे खतीों हैं तथा स ी प्रकार के शो ा स द
ों यय को
धारण करती हैं । ।। १ ।।

ओियप्रा अमत्र्यात्रनितो दे व्युद्वतिः।


ज्योत्रतषा बाधते तमिः ॥२॥

अत्रिनाशी दे िी रात्रि प्रथम अोंतररक्ष और उसके पश्च्यात समस्त


ऊोंचे तथा नीचे प्रदे शोों को आच्छात्रदत करती हैं । और त्रिर
ग्रहण नक्षि आत्रद तेज से अन्धकार को नष्ट करती हैं । ॥२॥

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त्रनरु स्वसारमस्कृतो षसों दे व्यायती।
अपेद् हासते तमिः ॥३॥

दे िी रात्रि अपनी त्रगनी उषा दे िी को प्रररग्रहीत करती हैं और


उषाकाल में अन्धकार स्वतिः ही नष्ट हो जाता है । ॥३॥

सा नो अद्य यस्या ियों त्रन ते यामन्नत्रिक्ष्मत्रह ।


िृक्षे न िसत्रतों व्रयिः ॥४॥

त्रजस प्रकार रात्रि काल में पक्षी िृक्ष पर त्रनिास करते हैं , िैसे ही
उनके आने पर हम सुखपूियक अपने गृह में आिय लेते हैं । िह
रात्रि दे िी हम पर प्रसन्न होों। ॥४॥

त्रन ग्रामासो अत्रिक्षत त्रन पद्वन्तो त्रन पत्रक्षणिः।


त्रन श्येनासत्रिदत्रशयनिः ॥५॥

उन करुणामयी रात्रिदे िी के अोंकमें सम्पूणय ग्रामिासी मनुष्य,


पैरोों से चलने िाले- गाय, घोडे आत्रद पशु , पोंखोों से उडनेिाले
पक्षी एिों पतों ग आत्रद, त्रकसी प्रयोजन से यािा करनेिाले पत्रथक
और बाज आत्रद ी सुखपूियक सोते हैं ॥५॥

यािया िृक्यों िृकों यिय स्तेनमूयें।


अथा निः सुतरा ि ॥६॥

हे रात्रिमयी इच्छा शक्तक्त! तु म कृपा करके िासनामयी िृको तथा


पापमय िृ कोों को हमसे अलग करो। काम आत्रद तस्कर समुदाय

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को ी दू र हटाओ। तदनन्तर हमारे त्रलये सु खदात्रयनी,
मोक्षदात्रयनी एिों कल्याणकाररणी बन जाओ॥६॥

उप मा पेत्रपशत तम: कृष्णों व्यक्तमक्तथथत।


उघ ऋणेि यातय॥७॥

हे उषा! हे रात्रि की अत्रधष्ठािी दे िी ! सब ओर िैला हुआ यह


अज्ञानमय काला अन्धकार मेरे त्रनकट आ पहुाँ चा है । तुम इसे
ऋणकी ााँ त्रत दू र करो-जैसे धन दे कर अपने क्तोों के ऋण दू र
करती हो, उसी प्रकार ज्ञान दे कर इस अज्ञान को ी दू र हटा
दो॥ ७ ॥

उप ते गा इिाकरों िृणीष्व दु त्रहतत्रदयििः।


रात्रि स्तोमों न त्रजग्युषे ॥८॥

हे रात्रिदे िी! तुम दू ध दे नेिाली ग के समान हो। मैं तु म्हारे समीप


आकर स्तुत्रत आत्रद से तुम्हें प्राप्त करूाँ । सूययपुिी ! तुम्हारी कृपा
से मैं काम आत्रद शिुओक ों ो जीत चुका हाँ , तुम स्तोम की ााँ त्रत
मेरे इस हत्रिष्य को ी ग्रहण करो ॥८॥

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संकलनकर्ाा:

श्री मनीष त्यागी

संस्थापक एिं अध्यक्ष

श्री त्रहंदू धमा िै त्रदक एजुकेशन फाउं डेशन

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।।ॐ नमो भगिर्े िासुदेिाय:।।

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