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मंगल सू

ेमचंद

साँई ईपि लके शंस


सवािधकार सुरि त। यह पु तक या इसका कोई भी भाग लेखक या काशक क िलिखत
अनुमित के िबना इलै ॉिनक या याि क (िजसमे फोटोकॉपी रका डग भी सि मिलत है)
िविध से या सूचना सं ह तथा पुनः ाि -प ित ( र वल) ारा कसी भी प म पुनः
कािशत अनू दत या संचा रत नह कया जा सकता।

— काशक

मंगल सू

ेमच द

© साँई ईपि लके शंस

काशक: साँई ईपि लके शंस

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— Publisher

Mangal Sutra

By Premchand

© Sai ePublications

Published by: Sai ePublications

Digital edition produced by Sai ePublications


अनु मिणका
शीषक पृ

सवािधकार और अनुमितयाँ

मंगल सू - अ याय १

मंगल सू - अ याय २

मंगल सू - अ याय ३

मंगल सू - अ याय ४

लेखक प रचय

( ेमचंद का आिखरी उप यास, िजसे वे पूरा न कर सके )

बड़े बेटे संतकु मार को वक ल बना कर, छोटे बेटे साधुकुमार को बी.ए. क िड ी दला कर
और छोटी लड़क पंकजा के िववाह के िलए ी के हाथ म पाँच हजार पए नकद रख कर
देवकु मार ने समझ िलया क वह जीवन के कत से मु हो गए और जीवन म जो कु छ
शेष रहा है, उसे ई र चंतन के अपण कर सकते ह। आज चाहे कोई उन पर अपनी
जायदाद को भोग-िवलास म उड़ा देने का इलजाम लगाए, चाहे सािह य के अनु ान म,
ले कन इससे कोई इनकार नह कर सकता क उनक आ मा िवशाल थी। यह असंभव था
क कोई उनसे मदद माँगे और िनराश हो। भोग-िवलास जवानी का नशा था। और जीवन
भर वह उस ित क पू त करते रहे, ले कन सािह य-सेवा के िसवा उ ह और कसी काम म
िच न ई और यहाँ धन कहाँ ? - यश िमला और उनके आ मसंतोष के िलए इतना काफ
था।संचय म उनका िव ास भी न था। संभव है, प रि थित ने इस िव ास को दृढ़ कया
हो, ले कन उ ह कभी संचय न कर सकने का दुख नह आ। स मान के साथ अपना िनबाह
होता जाए, इससे यादा वह और कु छ न चाहते थे। सािह य-रिसक म जो एक अकड़ होती
है,चाहे उसे शेखी ही य न कह लो, वह उनम भी थी। कतने ही रईस और राजे इ छु क थे
क वह उनके दरबार म जाएँ, अपनी रचनाएँ सुनाएँ उनको भट कर, ले कन देवकु मार ने
आ म-स मान को कभी हाथ से न जाने दया। कसी ने बुलाया भी तो ध यवाद दे कर टाल
गए। इतना ही नह , वह यह भी चाहते थे क राजे और रईस मेरे ार पर आएँ, मेरी
खुशामद कर, जो अनहोनी बात थी। अपने कई मंदबुि सहपा ठय को वकालत या दूसरे
स ग म धन के ढेर लगाते, जाएदाद खरीदते, नए-नए मकान बनवाते देख कर कभी-कभी
उ ह अपनी दशा पर खेद होता था, िवशेषकर जब उनक ज म-संिगनी शै ा गृह थी क
चंता से जल कर उ ह कटु वचन सुनाने लगती थी,पर अपने रचना-कु टीर म कलम हाथ
म ले कर बैठते ही वह सब कु छ भूल सािह य- वग म प च ँ जाते थे, आ म-गौरव जाग
उठता था। सारा अवसाद और िवषाद शांत हो जाता था।

मगर इधर कु छ दन से सािह य-रचना म उनका अनुराग कु छ ठं डा होता जाता था। उ ह


कु छ ऐसा जान पड़ने लगा था क सािह य- ेिमय को उनसे वह पहले क -सी भि नह
रही। इधर उ ह ने जो दो पु तक बड़े प र म से िलखी थ और िजनम उ ह ने अपने जीवन
के सारे अनुभव और कला क सारी ौढ़ता भर दी थी, उनका कु छ िवशेष आदर न आ
था। इसके पहले उनक दो रचनाएँ िनकली थ । उ ह ने सािह य-संसार म हलचल मचा दी
थी, हर एक प म उन पु तक क िव तृत आलोचनाएँ ई थ , सािह य-सं थान ने उ ह
बधाइयाँ दी थ , सािह य-मम ने गुण ाहकता से भरे प िलखे थे, य िप उन रचना
का देवकु मार क नजर म अब उतना आदर न था, उनके भाव उ ह भावुकता के दोष से पूण
लगते थे, शैली म भी कृ ि मता और भारीपन था। पर जनता क दृि म वही रचनाएँ अब
भी सवि य थ । इन नई कृ ितय से िबन बुलाए मेहमान का-सा आदर कया गया, मानो
सािह य-संसार संग ठत हो कर उनका अनादर कर रहा हो। कु छ तो य भी उनक इ छा
िव ाम करने क हो रही थी, इस शीतलता ने उस िवचार को और भी दृढ़ कर दया। उनके
दो-चार स े सािहि यक िम ने इस तक से उनको ढाढ़स देने क चे ा क क बड़ी भूख म
मामूली भोजन भी िजतना ि य लगता है, भूख कम हो जाने पर उससे कह िचकर पदाथ
भी उतने ि य नह लगते, पर इससे उ ह आ ासन न आ। उनके िवचार म कसी
सािह यकार क सजीवता का यही माण था क उसक रचना क भूख जनता म
बराबर बनी रहे; जब वह भूख न रहे तो उसको े से थान कर जाना चािहए। उ ह
के वल पंकजा के िववाह क चंता थी और जब उ ह एक काशक ने उनक िपछली दोन
कृ ितय के पाँच हजार दे दए तो उ ह ने इसे ई रीय ेरणा समझा और लेखनी उठा कर
सदैव के िलए रख दी। मगर इन छह महीन म उ ह बार-बार अनुभव आ क वे वान थ
ले कर भी अपने को बंधन से न छु ड़ा पाए। शै ा के दुरा ह क तो उ ह कु छ ऐसी परवाह
न थी। वह उन देिवय म थी िजनका मन संसार से कभी नह छू टता। उसे अब भी अपने
प रवार पर शासन करने क लालसा बनी ई थी, और जब तक हाथ म पैसे भी न ह , वह
लालसा पूरी न हो सकती थी। जब देवकु मार अपने चालीस वष के िववािहत जीवन म
उसक तृ णा न िमटा सके तो अब उसका य करना वह पानी पीटने से कम थ न
समझते थे। दुख उ ह होता था, संतकु मार के िवचार और वहार पर, जो उनको घर क
संपि लुटा देने के िलए इस दशा म भी मा न करना चाहता था। वह संपि जो पचास
साल पूव दस हजार म बेच दी गई, आज होती तो उससे दस हजार साल क िनकासी हो
सकती थी। उनक िजस आराजी म दन को िसयार लोटते थे,वहाँ अब नगर का सबसे
गुलजार बाजार था िजसक जमीन सौ पए वग फु ट पर िबक रही थी। संतकु मार का
मह वाकां ी मन रह-रह कर अपने िपता पर कु ढ़ता रहता था। िपता और पु के वभाव म
इतना अंतर कै से हो गया यह रह य था। देवकु मार के पास ज रत से हमेशा कम रहा, पर
उनके हाथ सदैव खुले रहे। उनका स दय भावना से जागा आ मन कभी कं चन क
उपासना को जीवन का ल य न बना सका। यह नह क वह धन का मू य जानते न ह
मगर उनके मन म यह धारणा जम गई थी क िजस रा म तीन चौथाई ाणी भूख मरते
ह , वहाँ कसी एक को ब त-सा धन कमाने का कोई नैितक अिधकार नह है, चाहे इसक
उसम साम य हो, मगर संतकु मार क िल सा ऐसे नैितक आदेश पर हँसती थी। कभी-कभी
तो िन संकोच हो कर वह यहाँ तक कह जाता था क जब आपको सािह य से ेम था तो
आपको गृह थ बनने का या हक था। आपने अपना जीवन तो चौपट कया ही, हमारा
जीवन भी िम ी म िमला दया और अब आप वान थ ले कर बैठे ह, मानो आपके जीवन
के सारे ऋण चुक गए।

जाड़ के दन थे। आठ बज गए थे, सारा घर ना ते के िलए जमा हो गया था। पंकजा त त


पर चाय और संतरे और सूखे मेवे त त रय म रख दोन भाइय को उनके कमर से बुलाने
गई और एक ण म आ कर साधुकुमार बैठ गया । ऊँचे कद का, सुग ठत, पवान, गोरा,
मीठे वचन बोलनेवाला, सौ य युवक था। िजसे के वल खाने और सैर-सपाटे से मतलब था।
जो कु छ िमल जाए भरपेट खा लेता था और यार-दो त म िनकल जाता था।

शै ा ने पूछा - संतू कहाँ रह गया? चाय ठं डी हो जाएगी तो कहेगा यह तो पानी है। बुला
ले तो साधु; इसे जैसे खाने-पीने क भी छु ी नह िमलती।

साधु िसर झुका कर रह गया। संतकु मार से बोलते उनक जान िनकलती थी।

शै ा ने एक ण बाद फर कहा - उसे भी य नह बुला लेता?

साधु ने दबी जबान से कहा - नह , िबगड़ जाएँगे सवेरे-सवेरे तो मेरा सारा दन खराब हो
जाएगा।

इतने म संत कु मार भी आ गया। श ल-सूरत म छोटे भाई से िमलता-जुलता, के वल शरीर


का गठन उतना अ छा न था। हाँ, मुख पर तेज और गव क झलक थी, और मुख पर एक
िशकायत-सी बैठी ई थी, जैसे कोई चीज उसे पसंद न आती हो।

त त पर बैठ कर चाय मुँह से लगाई और नाक िसकोड़ कर बोले - तू य नह आती,


पंकजा? और पु पा कहाँ है? म कतनी बार कह चुका क ना ता, खाना-पीना सबका एक
साथ होना चािहए।

शै ा ने आँख तरे र कर कहा - तुम लोग खा लो, यह सब पीछे खा लगी। कोई पंगत थोड़ी है
क सब एक साथ बैठ।

संत कु मार ने एक घूँट चाय पी कर कहा - वही पुराना लचर ढरा! कतनी बार कह चुका
क उस पुराने लचर संकोच का जमाना नह रहा।

शै ा ने मुँह बना कर कहा - सब एक साथ तो बैठ ले कन पकाए कौन और परसे कौन?


एक महाराज रखो पकाने के िलए, दूसरा परसने के िलए, तब वह ठाट िनभेगा।

- तो महा माजी उसका इं तजाम य नह करते या वान थ लेना ही जानते ह!

- उनको जो कु छ करना था कर चुके। अब तु ह जो कु छ करना हो तुम करो।

- जब पु षाथ नह था तो हम लोग को पढ़ाया-िलखाया य ? कसी देहात म ले जा कर


छोड़ देते। हम अपनी खेती करते या मजूरी करते और पड़े रहते। यह खटराग ही य
पाला?

- तुम उस व न थे, सलाह कससे पूछते?


संतकु मार ने कड़वा मुँह बनाए चाय पी, कु छ मेवे खाए, फर साधुकुमार से बोले - तु हारी
टीम कब बंबई जा रही है जी?

साधुकुमार ने गरदन झुकाए त वर म कहा - परस ।

- तुमने नया सूट बनवाया?

- मेरा पुराना सूट अभी अ छी तरह काम दे सकता है।

- काम तो सूट के न रहने पर भी चल सकता है। हम लोग तो नंगे पाँव, धोती चढ़ा कर
खेला करते थे। मगर जब एक आल इं िडया टीम म खेलने जा रहे हो तो वैसा ठाट भी तो
होना चािहए। फटेहाल जाने से तो कह अ छा है, न जाना। जब वहाँ लोग जानगे क तुम
महा मा देवकु मार जी के सुपु हो तो दल म या कहगे?

साधुकुमार ने कु छ जवाब न दया। चुपचाप ना ता करके चला गया । वह अपने िपता क


माली हालत जानता था और उ ह संकट म न डालना चाहता था। अगर संत कु मार नए सूट
क ज रत समझते ह तो बनवा य नह देते? िपता के उपर भार डालने के िलए उसे य
मजबूर करते ह?

साधु चला गया तो शै ा ने आहत कं ठ से कहा - जब उ ह ने साफ-साफ कह दया क अब


मेरा घर से कोई वा ता नह और सब कु छ तु हारे ऊपर छोड़ दया तो तुम य उन पर
गृह थी का भार डालते हो? अपने साम य और बुि के अनुसार जैसे हो सका उ ह ने
अपनी उ काट दी। जो कु छ वह नह कर सके या उनसे जो चूक उन पर फकरे कसना
तु हारे मुँह से अ छा नह लगता। अगर तुमने इस तरह उ ह सताया तो मुझे डर है वह घर
छोड़ कर कह अंतधान न हो जाएँ। वह धन न कमा सके , पर इतना तो तुम जानते ही हो
क वह जहाँ भी जाएँगे लोग उ ह िसर और आँख पर लगे।

शै ा ने अब तक सदैव पित क भ सना ही क थी। इस व उसे उनक वकालत करते देख


कर संत कु मार मु करा पड़ा।

बोला - अगर उ ह ने ऐसा इरादा कया तो उनसे पहले म अंतधान हो जाउँ गा। म यह भार
अपने िसर नह ले सकता। उ ह इसको सँभालने म मेरी मदद करनी होगी। उ ह अपनी
कमाई लुटाने का पूरा हक था, ले कन बाप-दाद क जायदाद को लुटाने का उ ह कोई
अिधकार न था। इसका उ ह ायि त करना पड़ेगा, वह जायदाद हम वापस करनी होगी।
म खुद भी कु छ कानून जानता ।ँ वक ल ,मैिज ेट से भी सलाह कर चुका ।ँ जायदाद
वापस ली जा सकती है। अब मुझे यही देखना है क इ ह अपनी संतान यारी है या अपना
महा मापन।
यह कहता आ संत कु मार पंकजा से पान ले कर अपने कमरे म चला गया ।

संत कु मार क ी पु पा िब कु ल फू ल-सी है, सुंदर, नाजुक, हलक -फु लक , लजाधुर,
ले कन एक नंबर क आ मािभमािननी है। एक-एक बात के िलए वह कई-कई दन ठी रह
सकती है। और उसका ठना भी सवथा नई िडजाइन का है। वह कसी से कु छ कहती
नह ,लड़ती नह , िबगड़ती नह , घर का सब काम-काज उसी त मयता से करती है बि क
और यादा एका ता से। बस िजससे नाराज होती है उसक ओर ताकती नह । वह जो कु छ
कहेगा, वह करे गी, वह जो कु छ पूछेगा, जवाब देगी, वह जो कु छ माँगेगा, उठा कर दे देगी,
मगर िबना उसक ओर ताके ए। इधर कई दन से वह संत कु मार से नाराज हो गई है और
अपनी फरी ई आँख से उसके सारे आघात का सामना कर रही है।

संत कु मार ने ेह के साथ कहा - आज शाम को चलना है न?

पु पा ने िसर नीचा करके कहा - जैसी तु हारी इ छा।

- चलोगी न?

- तुम कहते हो तो य न चलूँगी?

- तु हारी या इ छा है?

- मेरी कोई इ छा नह है।

- आिखर कस बात पर नाराज हो?

- कसी बात पर नह ।

- खैर, न बोलो, ले कन वह सम या य चु पी साधने से हल न होगी।

पु पा के इस िनरीह अ ने संत कु मार को बौखला डाला था। वह खूब झगड़ कर उस


िववाद को शांत कर देना चाहता था। मा माँगने पर तैयार था, वैसी बात अब फर मुँह से
न िनकालेगा, ले कन उसने जो कु छ कहा था। वह उसे िचढ़ाने के िलए नह , एक यथाथ
बात को पु करने के िलए ही कहा था। उसने कहा था जो ी पु ष पर अवलंिबत है, उसे
पु ष क कू मत माननी पड़ेगी। वह मानता था क उस अवसर पर यह बात उसे मुँह से न
िनकालनी चािहए थी। अगर कहना आव यक भी होता तो मुलायम श द म कहना
था,ले कन जब एक औरत अपने अिधकार के िलए पु ष से लड़ती है, उसक बराबरी का
दावा करती है तो उसे कठोर बात सुनने के िलए तैयार रहना चािहए। इस व भी वह
इसीिलए आया था क पु पा को कायल करे और समझाए क मुँह फे र लेने से ही कसी
बात का िनणय नह हो सकता। वह इस मैदान को जीत कर यहाँ एक झंडा गाड़ देना
चाहता था िजसम इस िवषय पर कभी िववाद न हो सके । तब से कतनी ही नई-नई
युि याँ उसके मन म आ गई थ , मगर जब श ु कले के बाहर िनकले ही नह तो उस पर
हमला कै से कया जाए।

एक उपाय है। श ु को बहला कर, उसे पर अपने संिध- ेम का िव ास जमा कर, कले से
िनकालना होगा।

उसने पु पा क ठु ी पकड़ कर अपनी ओर फे रते ए कहा - अगर यह बात तु ह इतनी लग


रही है तो म उसे वापस िलए लेता ।ँ उसके िलए तुमसे मा माँगता ।ँ तुमको ई र ने
वह शि दी है क तुम मुझसे दस-पाँच दन िबना बोले रह सकती हो, ले कन मुझे तो
उसने वह शि नह दी। तुम ठ जाती हो तो जैसे मेरी नािड़य म र का वाह बंद हो
जाता है। अगर वह शि तुम मुझे भी दान कर सको तो मेरी और तु हारी बराबर क
लड़ाई होगी और म तु ह छेड़ने न आउँ गा। ले कन अगर ऐसा नह कर सकती तो इस अ
का मुझ पर वार न करो।

पु पा मु करा पड़ी। उसने अपने अ से पित को परा त कर दया था। जब वह दीन बन


कर उससे मा माँग रहा है तो उसका दय य न िपघल जाए।

संिध-प पर ह ता र व प पान का एक बीड़ा लगा कर संत कु मार को देती ई बोली -


अब से कभी वह बात मुँह से न िनकालना। अगर म तु हारी आि ता ँ तो तुम भी मेरे
आि त हो। म तु हारे घर म िजतना काम करती ,ँ इतना ही काम दूसर के घर म क ँ तो
अपना िनबाह कर सकती ँ या नह , बोलो।

संत कु मार ने कड़ा जवाब देने क इ छा को रोक कर कहा - ब त अ छी तरह।

- तब म जो कु छ कमाउँ गी वह मेरा होगा। यहाँ म चाहे ाण भी दे दूँ पर मेरा कसी चीज


पर अिधकार नह । तुम जब चाहो मुझे घर से िनकाल सकते हो।

- कहती जाओ, मगर उसका जवाब सुनने के िलए तैयार रहो।

- तु हारे पास कोई जवाब नह है, के वल हठ-धम है। तुम कहोगे यहाँ तु हारा जो स मान
है वह वहाँ न रहेगा, वहाँ कोई तु हारी र ा करनेवाला न होगा, कोई तु हारे दु:ख-दद म
साथ देने वाला न होगा। इसी तरह क और भी कतनी ही दलील तुम दे सकते हो। मगर
मने िमस बटलर को आजीवन ाँरी रह कर, स मान के साथ जंदगी काटते देखा है। उनका
िनजी जीवन कै सा था,यह म नह जानती। संभव है वह हंद ू गृिहणी के आदश के अनुकूल न
रहा हो, मगर उनक इ त सभी करते थे, और उ ह अपनी र ा के िलए कसी पु ष का
आ य लेने क कभी ज रत नह ई।

संतकु मार िमस बटलर को जानता था। वह नगर क िस लेडी डॉ टर थी। पु पा के घर


से उसका घराव-सा हो गया था। पु पा के िपता डॉ टर थे, और एक पेशे के ि य म
कु छ घिन ता हो ही जाती है। पु पा ने जो सम या उसके सामने रख दी थी उस पर मीठे
और िनरीह श द म कु छ कहना उसके िलए क ठन हो रहा था। और चुप रहना उसक
पु षता के िलए उससे भी क ठन था।

दुिवधा म पड़ कर बोला - मगर सभी ि याँ िमस बटलर तो नह हो सकत ?

पु पा ने आवेश के साथ कहा - य ? अगर वह डॉ टरी पढ़ कर अपना वसाय कर सकती


ह तो म य नह कर सकती?

- उनके समाज म और हमारे समाज म बड़ा अंतर है।

- अथात उनके समाज के पु ष िश ह, शीलवान ह, और हमारे समाज के पु ष च र हीन


ह, लंपट ह, िवशेषकर जो पढ़े-िलखे ह।

- यह य नह कहती क उस समाज म ना रय म आ मबल है, अपनी र ा करने क


शि है और पु ष को काबू म रखने क कला है।

- हम भी तो वही आ मबल और शि और कला ा करना चाहती ह ले कन तुम लोग के


मारे जब कु छ चलने पाए। मयादा और आदश और जाने कन- कन बहान से हम दबाने क
और हमारे ऊपर अपनी कू मत जमाए रखने क कोिशश करते रहते हो।

संत कु मार ने देखा क बहस फर उसी माग पर चल पड़ी है जो अंत म पु पा को असहयोग


धारण करने पर तैयार कर देता है,औ3र इस समय वह उसे नाराज करने नह , उसे खुश
करने आया था।

बोला - अ छा साहब, सारा दोष पु ष का है, अब राजी ई। पु ष भी कू मत करते-करते


थक गया है, और अब कु छ दन िव ाम करना चाहता है। तु हारे अधीन रह कर अगर वह
इस संघष से बच जाए तो वह अपना संहासन छोड़ने को तैयार है।

पु पा ने मु करा कर कहा - अ छा, आज से घर म बैठो।

- बड़े शौक से बैठँू गा, मेरे िलए अ छे-अ छे कपड़े, अ छी-अ छी सवा रयाँ ला दो। जैसे
तुम कहोगी वैसा ही क ँ गा। तु हारी मज के िखलाफ एक श द भी न बोलूँगा।

- फर तो न कहोगे क ी पु ष क मुहताज है, इसिलए उसे पु ष क गुलामी करनी


चािहए?

- कभी नह , मगर एक शत पर।

- कौन-सी शत?

- तु हारे ेम पर मेरा ही अिधकार रहेगा।

- ि याँ तो पु ष से ऐसी शत कभी न मनवा सक ?

- यह उनक दुबलता थी। ई र ने तो उ ह पु ष पर शासन करने के िलए सभी अ दे


दए थे।

संिध हो जाने पर भी पु पा का मन आ त न आ। संतकु मार का वभाव वह जानती थी।


ी पर शासन करने का जो सं कार है वह इतनी ज द कै से बदल सकता है। ऊपर क बात
म संतकु मार उसे अपने बराबर का थान देते थे। ले कन इसम एक कार का एहसान
िछपा होता था। मह व क बात म वह लगाम अपने हाथ म रखते थे। ऐसा आदमी
एकाएक अपना अिधकार यागने पर तैयार हो जाए, इसम कोई रह य अव य है।

बोली - ना रय ने उन श से अपनी र ा नह क , पु ष ही क र ा करती रह । यहाँ


तक क उनम अपनी र ा करने क साम य ही नह रही।

संतकु मार ने मु ध भाव से कहा - यही भाव मेरे मन म कई बार आया है पु पा, और इसम
कोई संदहे नह क अगर ी ने पु ष क र ा न क होती तो आज दुिनया वीरान हो गई
होती। उसका सारा जीवन तप और साधना का जीवन है।

तब उसने उससे अपने मंसूबे कह सुनाए। वह उन महा मा से अपनी मौ सी जायदाद


वापस लेना चाहता है, अगर पु पा अपने िपता से िज करे और दस हजार पए भी दला
दे तो संतकु मार को दो लाख क जायदाद िमल सकती है। िसफ दस हजार। इतने पए के
बगैर उसके हाथ से दो लाख क जायदाद िनकली जाती है।

पु पा ने कहा - मगर वह जायदाद तो िबक चुक है।

संतकु मार ने िसर िहलाया - िबक नह चुक है, लुट चुक है। जो जमीन लाख-दो लाख म
भी स ती है, वह दस हजार म कू ड़ा हो गई। कोई भी समझदार आदमी ऐसा ग ा नह खा
सकता और अगर खा जाए तो वह अपने होश-हवास म नह है। दादा गृह थी म कु शल नह
रहे। वह तो क पना क दुिनया म रहते थे। बदमाश ने उ ह चकमा दया और जायदाद
िनकलवा दी। मेरा धम है क म वह जायदाद वापस लू,ँ और तुम चाहो तो सब कु छ हो
सकता है। डॉ टर साहब के िलए दस हजार का इं तजाम कर देना कोई क ठन बात नह है।
पु पा एक िमनट तक िवचार म डू बी रही, फर संदह
े भाव से बोली - मुझे तो आशा नह
क दादा के पास इतने पए फालतू ह ।

- जरा कहो तो।

- क ँ कै से - या म उनका हाल जानती नह ? उनक डॉ टरी अ छी चलती है, पर उनके


खच भी तो ह। बी के िलए हर महीने पाँच सौ पए इं गलड भेजने पड़ते ह। ितलो मा
क पढ़ाई का खच भी कु छ कम नह । संचय करने क उनक आदत नह है। म उ ह संकट म
नह डालना चाहती।

- म उधार माँगता ।ँ खैरात नह ।

- जहाँ इतना घिन संबंध है वहाँ उधार के माने खैरात के िसवा और कु छ नह । तुम पए
न दे सके तो वह तु हारा या बना लगे? अदालत जा नह सकते, दुिनया हँसेगी, पंचायत
कर नह सकते, लोग ताने दगे।

संतकु मार ने तीखेपन से कहा - तुमने यह कै से समझ िलया क म पए न दे सकूँ गा?

पु पा मुँह फे र कर बोली - तु हारी जीत होना िनि त नह है। और जीत भी हो जाए और


तु हारे हाथ म पए आ भी जाएँ तो यहाँ कतने जम दार ऐसे ह जो अपने कज चुका सकते
ह ? रोज ही तो रयासत कोट ऑफ वाड म आया करती ह। यह भी मान ल क तुम
कफायत से रहोगे और धन जमा कर लोगे, ले कन आदमी का वभाव है क वह िजस
पए को हजम कर सकता है उसे हजम कर जाता है। धम और नीित को भूल जाना उसक
एक आम कमजोरी है।

संतकु मार ने पु पा को कड़ी आँख से देखा। पु पा के कहने म जो स य था वह तीर क तरह


िनशाने पर जा बैठा। उसके मन म जो चोर िछपा बैठा था उसे पु पा ने पकड़ कर सामने
खड़ा कर दया था। ितलिमला कर बोला - आदमी को तुम इतना नीच समझती हो,तु हारी
इस मनोवृि पर मुझे अचरज भी है और दुख भी। इस गए-गुजरे जमाने म भी समाज पर
धम और नीित का ही शासन है। िजस दन संसार से धम और नीित का नाश हो जाएगा
उसी दन समाज का अंत हो जाएगा।

उसने धम और नीित क ापकता पर एक लंबा दाशिनक ा यान दे डाला - कभी कसी


घर म कोई चोरी हो जाती है तो कतनी हलचल मच जाती है। य ? इसीिलए क चोरी
एक गैर-मामूली बात है। अगर समाज चोर का होता तो कसी का साह होना उतनी ही
हलचल पैदा करता। रोग क आज ब त बढ़ती सुनने म आती है, ले कन गौर से देखो तो
सौ म एक आदमी से यादा बीमार न होगा। अगर बीमारी आम बात होती तो तंद ु त
क नुमाइश होती, आ द। पु पा िवर -सी सुनती रही। उसके पास जवाब तो थे, पर वह
इस बहस को तूल नह देना चाहती थी। उसने तय कर िलया था क वह अपने िपता से
पए के िलए न कहेगी और कसी तक या माण का उस पर कोई असर न हो सकता था।

संतकु मार ने भाषण समा करके जब उससे कोई जवाब न पाया तो एक ण के बाद बोला
- या सोच रही हो? म तुमसे सच कहता ,ँ म ब त ज द पए दे दूग
ँ ा

पु पा ने िन ल भाव से कहा - तु ह कहना हो जा कर खुद कहो, म तो नह िलख सकती।

संतकु मार ने ह ठ चबा कर कहा - जरा-सी बात तुम से नह िलखी जाती, उस पर दावा यह
है क घर पर मेरा भी अिधकार है।

पु पा ने जोश के साथ कहा - मेरा अिधकार तो उसी ण हो गया जब मेरी गाँठ तुमसे
बँधी।

संतकु मार ने गव के साथ कहा - ऐसा अिधकार िजतनी आसानी से िमल जाता है, उतनी ही
आसानी से िछन भी जाता है।

पु पा को जैसे कसी ने ध ा दे कर उस िवचारधारा म डाल दया िजसम पाँव रखते उसे


डर लगता था। उसने यहाँ आने के एक-दो महीने के बाद ही संत कु मार का वभाव पहचान
िलया था क उनके साथ िनबाह करने के िलए उसे उनके इशार क ल डी बन कर रहना
पड़ेगा। उसे अपने ि व को उनके अि त व म िमला देना पड़ेगा। वह वही सोचेगी जो
वह सोचगे, वही करे गी, जो वह करगे। अपनी आ मा के िवकास के िलए यहाँ कोई अवसर
न था। उनके िलए लोक या परलोक म जो कु छ था वह संपि थी। यह से उनके जीवन को
ेरणा िमलती थी। संपि के मुकाबले म ी या पु क भी उनक िनगाह म कोई हक कत
न थी। एक चीनी का लेट पु पा के हाथ से टू ट जाने पर उ ह ने उसके कान ठ िलए थे।
फश पर याही िगरा देने क सजा उ ह ने पंकजा से सारा फश धुलवा कर दी थी। पु पा
उनके रखे पय को कभी हाथ तक न लगाती थी। यह ठीक है क वह धन को महज जमा
करने क चीज न समझते थे। धन, भोग करने क व तु है, उनका यह िस ांत था।
फजूलखच या लापरवाही बदा त न करते थे। उ ह अपने िसवा कसी पर िव ास न था।
पु पा ने कठोर आ मसमपण के साथ इस जीवन के िलए अपने को तैयार कर िलया था। पर
बार-बार यह याद दलाया जाना क यहाँ उसका कोई अिधकार नह है, यहाँ वह के वल
एक ल डी क तरह है, उसे अस था। अभी उस दन इसी तरह क एक बात सुन कर
उसने कई दन खाना-पीना छोड़ दया था। और आज तक उसने कसी तरह मन को समझा
कर शांत कया था क यह दूसरा आघात आ। इसने उसके रहे-सहे धैय का भी गला घ ट
दया। संतकु मार तो उसे यह चुनौती दे कर चले गए। वह वह बैठी सोचने लगी अब उसको
या करना चािहए। इस दशा म तो वह अब नह रह सकती। वह जानती थी क िपता के
घर म भी उसके िलए शांित नह है। डॉ टर साहब भी संतकु मार को आदश युवक समझते
थे, और उ ह इस बात का िव ास दलाना क ठन था क संतकु मार क ओर से कोई बेजा
हरकत ई है। पु पा का िववाह करके उ ह ने जीवन क एक सम या हल कर ली थी। उस
पर फर िवचार करना उनके िलए असूझ था। उनक जंदगी क सबसे बड़ी अिभलाषा थी
क अब कह िन ंत हो कर दुिनया क सैर कर। यह समय अब िनकट आता जाता था।
य ही लड़का इं गलड से लौटा और छोटी लड़क क शादी ई क वह दुिनया के बंधन से
मु हो जाएँगे। पु पा फर उनके िसर पर पड़ कर उनके जीवन के सबसे बड़े अरमान म
बाधा न डालना चाहती थी। फर उसके िलए दूसरा कौन थान है? कोई नह । तो या इस
घर म रह कर जीवन-पयत अपमान सहते रहना पड़ेगा?

साधुकुमार आ कर बैठ गया। पु पा ने च क कर पूछा - तुम बंबई कब जा रहे हो?

साधु ने िहच कचाते ए कहा - जाना तो था कल, ले कन मेरी जाने क इ छा नह होती।


आने-जाने म सैकड़ का खच है। घर म पए नह ह, म कसी को सताना नह चाहता।
बंबई जाने क ऐसी ज रत ही या है! िजस मु क म दस म नौ आदमी रो टय को तरसते
ह , वहाँ दस-बीस आदिमय का के ट के सन म पड़े रहना मूखता है। म तो नह जाना
चाहता।

पु पा ने उ ेिजत कया - तु हारे भाई साहब तो पए दे रहे ह?

साधु ने मु करा कर कहा - भाई साहब पए नह दे रहे ह, मुझे दादा का गला दबाने को
कह रहे ह। म दादा को क नह देना चाहता। भाई साहब से कहना मत भाभी, तु हारे
हाथ जोड़ता ।ँ

पु पा उसक इस न सरलता पर हँस पड़ी। बाईस साल का गव ला युवक िजसने


स या ह-सं ाम म पढ़ना छोड़ दया, दो बार जेल हो आया, जेलर के कटु वचन सुन कर
उसक छाती पर सवार हो गया और इस उ ंडता क सजा म तीन महीने काल-कोठरी म
रहा, वह अपने भाई से इतना डरता है, मानो वह हौआ ह । बोली - म तो कह दूग
ँ ी।

- तुम नह कह सकत । इतनी िनदय नह हो।

पु पा स हो कर बोली - कै से जानते हो?

- चेहरे से।

- झूठे हो।

- तो फर इतना और कहे देता ँ क आज भाई साहब ने तु ह भी कु छ कहा है।

पु पा झपती ई बोली - िब कु ल गलत। वह भला मुझे या कहते?


- अ छा, मेरे िसर क कसम खाओ।

- कसम य खाऊँ - तुमने मुझे कभी कसम खाते देखा है?

- भैया ने कु छ कहा है ज र, नह तु हारा मुँह इतना उतरा आ य रहता? भाई साहब


से कहने क िह मत नह पड़ती वरना समझाता आप य गड़े मुद उखाड़ रहे ह। जो
जायदाद िबक गई उसके िलए अब दादा को कोसना और अदालत करना मुझे तो कु छ नह
जँचता। गरीब लोग भी तो दुिनया म ह ही, या सब मालदार ही ह। म तुमसे ईमान से
कहता ँ भाभी, म जब कभी धनी होने क क पना करता ँ तो मुझे शंका होने लगती है
क न जाने मेरा मन या हो जाए। इतने गरीब म धनी होना मुझे तो वाथाधता-सी
लगती है। मुझे तो इस दशा म भी अपने ऊपर ल ा आती है, जब देखता ँ क मेरे ही जैसे
लोग ठोकर खा रहे ह। हम तो दोनो व चुपड़ी ई रो टयाँ और दूध और सेब-संतरे उड़ाते
ह। मगर सौ म िन यानबे आदमी तो ऐसे भी है िज ह इन पदाथ के दशन भी नह होते।
आिखर हमम या सुखाब के पर लग गए ह?

पु पा इन िवचार क न होने पर भी साधु क िन कपट स ाई का आदर करती थी। बोली


- तुम इतना पढ़ते तो नह , ये िवचार तु हारे दमाग म कहाँ से आ जाते ह?

साधु ने उठ कर कहा - शायद उस ज म म िभखारी था।

पु पा ने उसका हाथ पकड़ कर बैठाते ए कहा - मेरी देवरानी बेचारी गहने-कपड़े को तरस
जाएगी।

- म अपना याह ही न क ँ गा।

- मन म तो मना रहे ह गे कह से संदस


े ा आए।

- नह भाभी, तुमसे झूठ नह कहता। शादी का तो मुझे खयाल भी नह आता। जंदगी इसी
के िलए है क कसी के काम आए। जहाँ सेवक क इतनी ज रत है वहाँ कु छ लोग को तो
ाँरे रहना ही चािहए। कभी शादी क ँ गा भी तो ऐसी लड़क से जो मेरे साथ गरीबी क
जंदगी बसर करने पर राजी हो और जो मेरे जीवन क स ी सहगािमनी बने।

पु पा ने इस ित ा को भी हँसी म उड़ा दया - पहले सभी युवक इसी तरह क क पना


कया करते ह। ले कन शादी म देर ई तो उप व मचाना शु कर देते ह।

साधुकुमार ने जोश के साथ कहा - म उन युवक म नह ,ँ भाभी। अगर कभी मन चंचल


आ तो जहर खा लूँगा।
पु पा ने फर कटा कया - तु हारे मन म तो बीबी (पंकजा) बसी ई ह।

- तुम से कोई बात कहो तो तुम बनाने लगती हो, इसी से म तु हारे पास नह आता।

- अ छा, सच कहना, पंकजा जैसी बीबी पाओ तो िववाह करो या नह ?

साधुकुमार उठ कर चला गया। पु पा रोकती रही पर वह हाथ छु ड़ा कर भाग गया। इस


आदशवादी, सरल- कृ ित, सुशील, सौ य युवक से िमल कर पु पा का मुरझाया आ मन
िखल उठता था। वह भीतर से िजतनी भरी थी, बाहर से उतनी ही हलक थी। संतकु मार से
तो उसे अपने अिधकार क ित ण र ा करनी पड़ती थी, चौक ा रहना पड़ता था क न
जाने कब उसका वार हो जाए। शै ा सदैव उस पर शासन करना चाहती थी, और एक
ण भी न भूलती थी क वह घर क वािमनी है और हरे क आदमी को उसका यह
अिधकार वीकार करना चािहए। देवकु मार ने सारा भार संतकु मार पर डाल कर वा तव
म शै ा क ग ी छीन ली थी। वह यह भूल जाती थी क देवकु मार के वामी रहने पर ही
वह घर क वािमनी रही। अब वह माने क देवी थी जो के वल अपने आशीवाद के बल पर
ही पुज सकती है। मन का यह संदह े िमटाने के िलए वह सदैव अपने अिधकार क परी ा
लेती रहती थी। यह चोर कसी बीमारी क तरह उसके अंदर जड़ पकड़ चुका था और
असली भोजन को न पचा सकने के कारण उसक कृ ित चटोरी होती जाती थी। पु पा
उनसे बोलते डरती थी, उनके पास जाने का साहस न होता था। रही पंकजा, उसे काम
करने का रोग था। उसका काम ही उसका िवनोद, मनोरं जन सब कु छ था। िशकायत करना
उसने सीखा ही न था। िब कु ल देवकु मार का-सा वभाव पाया था। कोई चार बात कह दे,
िसर झुका कर सुन लेगी। मन म कसी तरह का ष े या मलाल न आने देगी। सबेरे से दस-
यारह बजे रात तक उसे दम मारने क मोहलत न थी। अगर कसी के कु रते के बटन टू ट
जाते ह तो पंकजा टाँकेगी। कस के कपड़े कहाँ रखे ह यह रह य पंकजा के िसवा और कोई
न जानता था। और इतना काम करने पर भी वह पढ़ने और बेल-बूटे बनाने का समय भी न
जाने कै से िनकाल लेती थी। घर म िजतने त कए थे, सब पर पंकजा क कलाि यता के
िच न अं कत थे। मेज के मेजपोश, कु रिसय के ग े, संदक ू के िगलाफ सब उसक
कलाकृ ितय से रं िजत थे। रे शम और मखमल के तरह-तरह के पि य और फू ल के िच
बना कर उसने े म बना िलए थे, जो दीवानखाने क शोभा बढ़ा रहे थे, और उसे गाने-
बजाने का शौक भी था। िसतार बजा लेती थी, और हारमोिनयम तो उसके िलए खेल था।
हाँ, कसी के सामने गाते-बजाते शरमाती थी। इसके साथ ही वह कू ल भी जाती थी और
उसका शुमार अ छी लड़ कय म था। पं ह पया महीना उसे वजीफा िमलता था। उसके
पास इतनी फु सत न थी क पु पा के पास घड़ी-दो-घड़ी के िलए आ बैठे और हँसी-मजाक
करे । उसे हँसी-मजाक आता भी न था। न मजाक समझती थी, न उसका जवाब देती थी।
पु पा को अपने जीवन का भार हलका करने के िलए साधु ही िमल जाता था। पित ने तो
उलटे उस पर और अपना बोझ ही लाद दया था।

साधु चला गया तो पु पा फर उसी खयाल म डू बी - कै से अपना बोझ उठाए। इसीिलए तो


पितदेव उस पर यह रोब जमाते ह। जानते ह क इसे चाहे िजतना सताओ, कह जा नही
सकती, कु छ बोल नह सकती। हाँ, उनका खयाल ठीक है। उसे िवलास व तु से िच है।
वह अ छा खाना चाहती है, आराम से रहना चाहती है एक बार वह िवलास का मोह याग
दे और याग करना सीख ले, फर उस पर कौन रोब जमा सके गा, फर वह य कसी से
दबेगी।

शाम हो गई थी। पु पा िखड़क के सामने खड़ी बाहर क ओर देख रही थी। उसने देखा
बीस-प ीस लड़ कय और ि य का एक दल एक वर से एक गीत गाता चला जा रहा
था। कसी क देह पर सािबत कपड़े तक न थे, िसर और मुँह पर गद जमी ई थी।

बाल खे हो रहे थे, िजनम शायद महीन से तेल न पड़ा हो। यह मजूरनी थ जो दन भर
ट और गारा ढो कर घर लौट रही थ । सारे दन उ ह धूप म तपना पड़ा होगा, मािलक
क घुड़ कयाँ और गािलयाँ खानी पड़ी ह गी। शायद दोपहर को एक-एक मु ी चबेना खा
कर रह गई ह । फर भी कतनी स थ , कतनी वतं । इनक इस स ता का, इस
वतं ता का या रह य है?

िम. िस हा उन आदिमय म ह िजनका आदर इसिलए होता है क लोग उनसे डरते ह। उ ह
देख कर सभी आदमी आइए, आइए, करते ह,ले कन उनके पीठ फे रते ही कहते ह - बड़ा ही
मूजी आदमी है, इसके काटे का मं नह । उनका पेशा है मुकदमे बनाना। जैसे किव एक
क पना पर पूरा का िलख डालता है, उसी तरह िस हा साहब भी क पना पर मुकदम
क सृि कर डालते ह। न जाने वह किव य नह ए। मगर किव हो कर वह सािह य क
चाहे िजतनी वृि कर सकते, अपना कु छ उपकार न कर सकते। कानून क उपासना करके
उ ह सभी िसि याँ िमल गई थ । शानदार बँगले म रहते थे, बड़े-बड़े रईस और ाम से
दो ताना था, ित ा भी थी। रोब भी था। कलम म ऐसा जादू था क मुकदमे म जान डाल
देते। ऐसे-ऐसे संग सोच िनकालते, ऐसे-ऐसे च र क रचना करते क क पना सजीव हो
जाती थी। बड़े-बड़े घाघ जज भी उसक तह तक न प च ँ सकते। सब कु छ इतना
वाभािवक, इतना संब होता था क उस पर िम या का म तक न हो सकता था। वह
संतकु मार के साथ के पढ़े ए थे। दोन म गहरी दो ती थी। संतकु मार के मन म एक भावना
उठी और िस हा ने उसमे रं ग प भर कर जीता-जागता पुतला खड़ा कर दया और आज
मुकदमा दायर करने का िन य कया जा रहा है।

नौ बजे ह गे। वक ल और मुव ल कचहरी जाने क तैयारी कर रहे ह। िस हा अपने सजे


कमरे म मेज पर टाँग फै लाए लेटे ए ह। गोरे -िच े आदमी, ऊँचा कद, एकहरा बदन, बड़े-
बड़े बाल पीछे को कं घी से चे ए, मूँछ साफ, आँख पर ऐनक, ओठ पर िसगार,चेहरे पर
ितभा का काश, आँख म अिभमान, ऐसा जान पड़ता है कोई बड़ा रईस है। संतकु मार
नीची अचकन पहने, फे ट कै प लगाए कु छ चंितत-से बैठे ह।

िस हा ने आ ासन दया - तुम नाहक डरते हो। म कहता ँ हमारी फतेह है। ऐसी सैकड़
नजीर मौजूद ह िजसम बेट -पोत ने बैनामे मंसूख कराए ह। प शहादत चािहए और उसे
जमा करना बाएँ हाथ का खेल है।

संत कु मार ने दुिवधा म पड़ कर कहा - ले कन फादर को भी तो राजी करना होगा। उनक


इ छा के िबना तो कु छ न हो सके गा।

- उ ह सीधा करना तु हारा काम है।

- ले कन उनका सीधा होना मुि कल है।

- तो उ ह भी गोली मारो। हम सािबत करगे क उनके दमाग मे खलल है।


- यह सािबत करना आसान नह है। िजसने बड़ी-बड़ी कताब िलख डाल , जो स य समाज
का नेता समझा जाता है, िजसक अ लमंदी को सारा शहर मानता है, उसे दीवाना कै से
सािबत करोगे?

िस हा ने िव ासपूण भाव से कहा - यह सब म देख लूँगा। कताब िलखना और बात है,


होश-हवास का ठीक रहना और बात। म तो कहता ,ँ िजतने लेखक ह, सभी सनक ह - पूरे
पागल, जो महज वाह-वाह के िलए यह पेशा मोल लेते ह। अगर यह लोग अपने होश मे ह
तो कताब न िलख कर दलाली कर, या ख चे लगाएँ। यहाँ कु छ तो मेहनत का मुआवजा
िमलेगा। पु तक िलख कर तो बदहजमी,अिन ा, तपे दक ही हाथ लगता है। पए का
जुगाड़ तुम करते जाओ, बाक सारा काम मुझ पर छोड़ दो। और हाँ, आज शाम को लब म
ज र आना। अभी से कपेन (मुहािसरा) शु देना चािहए। ित बी पर डोरे डालना शु
करो। यह समझ लो, वह सब-जज साहब क अके ली लड़क है और उस पर अपना रं ग जमा
दो तो तु हारी गोटी लाल है। सब-जज साहब ित बी क बात कभी नह टाल सकते। म यह
मरहला करने म तुमसे यादा कु शल ।ँ मगर म एक खून के मुआमले म पैरवी कर रहा ँ
और िसिवल सजन िम टर कामत क वह पीले मुँहवाली छोकरी आजकल मेरी ेिमका है।
िसिवल सजन मेरी इतनी आवभगत करते ह क कु छ न पूछो। उस चुड़ल ै से शादी करने पर
आज तक कोई राजी न आ। इतने मोटे ओठ ह और सीना तो जैसे झुका आ सायबान हो।
फर भी आपको दावा है क मुझसे यादा पवती संसार म न होगी। औरत को अपने प
का घमंड कै से हो जाता है, यह म आज तक न समझ सका। जो पवान ह वह घमंड करे तो
वािजब है, ले कन िजसक सूरत देख कर कै आए, वह कै से अपने को अ सरा समझ लेती है।
उसके पीछे-पीछे घूमते और आिशक करते जी तो जलता है, मगर गहरी रकम हाथ
लगनेवाली है, कु छ तप या तो करनी ही पड़ेगी। ित बी तो सचमुच अ सरा है और चंचल
भी। जरा मुि कल से काबू म आएगी। अपनी सारी कला खच करनी पड़ेगी।

- यह कला म खूब सीख चुका ँ

- तो आज शाम को आना लब म।

- ज र आऊँगा।

- पए का बंध भी करना।

- वह तो करना ही पड़ेगा।

इस तरह संतकु मार और िस हा दोन ने मुहािसरा डालना शु कया। संतकु मार न लंपट
था, न रिसक, मगर अिभनय करना जानता था। पवान भी था, जबान का मीठा भी,
दोहरा शरीर, हँसमुख और जहीन चेहरा, गोरा-िच ा। जब सूट पहन कर छड़ी घुमाता आ
िनकलता तो आँख म खुब जाता था। टेिनस, ि ज आ द फै शनेबल खेल म िनपुण था ही,
ित बी से राह-र म पैदा करने म उसे देर न लगी। ित बी यूिनव सटी के पहले साल म थी,
ब त ही तेज, ब त ही मग र, बड़ी हािजरजवाब। उसे वा याय का शौक न था, ब त
थोड़ा पढ़ती थी, मगर संसार क गित से वा कफ थी, और अपनी ऊपरी जानकारी को
िव ा का प देना जानती थी। कोई िवषय उठाइए, चाहे वह घोर िव ान ही य न हो,
उस पर भी वह कु छ-न-कु छ आलोचना कर सकती थी। कोई मौिलक बात कहने का उसे
शौक था और ांजल भाषा म। िमजाज म नफासत इतनी थी क सलीके या तमीज क जरा
भी कमी उसे अस थी। उसके यहाँ कोई नौकर या नौकरानी न ठहरने पाती थी। दूसर
पर कड़ी आलोचना करने म उसे आनंद आता था, और उसक िनगाह इतनी तेज थी क
कसी ी या पु ष म जरा भी कु िच या भ डापन देख कर वह भ ह से या ओठ से अपना
मनोभाव कट कर देती थी। मिहला के समाज म उसक िनगाह उनके व ाभूषण पर
रहती थी और पु ष-समाज म उनक मनोवृि क ओर। उसे अपने अि तीय प-लाव य
का ान था और वह अ छे-से पहनावे से उसे और भी चमकाती थी। जेवर से उसे िवशेष
िच न थी, य िप अपने संगारदान म उ ह चमकते देख कर उसे हष होता था। दन म
कतनी ही बार वह नए-नए प धरती थी। कभी बैतािलय का भेस धारण कर लेती थी,
कभी गुज रय का,कभी कट और मोजे पहन लेती थी। मगर उसके मन म पु ष को
आक षत करने का जरा भी भाव न था। वह वयं अपने प म म थी।

मगर इसके साथ ही वह सरल न थी और युवक के मुख से अनुराग-भरी बात सुन कर वह


वैसी ही ठं डी ही रहती थी। इस ापार म साधारण प- शंसा के िसवा उसके िलए और
कोई मह व न था। और युवक कसी तरह ो साहन न पा कर िनराश हो जाते थे, मगर
संतकु मार क रिसकता म उसे अंतः ान से कु छ रह य, कु छ कु शलता का आभास िमला।
अ य युवक म उसने जो असंयम, जो उ ता,जो िव वलता देखी थी उसका यहाँ नाम भी न
था। संत कु मार के येक वहार म संयम था, िवधान था, सचेतता थी। इसिलए वह
उनसे सतक रहती थी और उनके मनोरह य को पढ़ने क चे ा करती थी। संतकु मार का
संयम और िवचारशीलता ही उसे अपनी ज टलता के कारण अपनी ओर ख चती थी।
संतकु मार ने उसके सामने अपने को अनमेल िववाह के एक िशकार के प म पेश कया था
और उसे उनसे कु छ हमदद हो गई थी। पु पा के रं ग- प क उ ह ने इतनी शंसा क थी,
िजतनी उनको अपने मतलब के िलए ज री मालूम ई,मगर िजसका ित बी से कोई
मुकाबला न था। उसने के वल पु पा के फू हड़पन, बेवकू फ , अस दयता और िन ु रता क
िशकायत क थी, और ित बी पर इतना भाव जमा िलया था क वह पु पा को देख पाती
तो संतकु मार का प ले कर उससे लड़ती

एक दन उसने संत कु मार से कहा - तुम उसे छोड़ य नह देत?े

संतकु मार ने हसरत के साथ कहा - छोड़ कै से दूँ िमस ि वेणी, समाज म रह कर समाज के
कानून तो मानने ही पड़गे। फर पु पा का इसम या कसूर है? उसने तो अपने आपको नह
बनाया। ई र ने या सं कार ने या प रि थितय ने जैसा बनाया वैसी बन गई।
- मुझे ऐसे आदिमय से जरा भी सहानुभूित नह जो ढोल को इसिलए पीट क वह गले पड
गई है। म चाहती ँ वह ढोल को गले से िनकाल कर कसी खंदक म फक द। मेरा बस चले
तो म खुद उसे िनकाल कर फक दू।ँ

संतकु मार ने अपना जादू चलते ए देख कर मन म स हो कर कहा - ले कन उसक या


हालत होगी, यह तो सोचो।

ित बी अधीर हो कर बोली - तु ह यह सोचने क ज रत ही या है? अपने घर चली


जाएगी, या कोई काम करने लगेगी या अपने वभाव के कसी आदमी से िववाह कर लेगी।

संत कु मार ने कहकहा मारा - ित बी यथाथ और क पना म भेद भी नह समझती, कतनी


भोली है।

फर उदारता के भाव से बोले - यह बड़ा टेढ़ा सवाल है, कु मारी जी। समाज क नीित
कहती है क चाहे पु पा को देख कर रोज मेरा खून ही य न जलता रहे और एक दन म
इसी शोक म अपना गला य न काट लूँ, ले कन उससे कु छ नह हो सकता, छोड़ना तो
असंभव है। के वल एक ही ऐसा आ ेप है िजस पर म उसे छोड़ सकता ,ँ यानी उसक
बेवफाई। ले कन पु पा म और चाहे िजतने दोष ह यह दोष नह है।

सं या हो गई थी। ित बी ने नौकर को बुला कर बाग म गोल चबूतरे पर कु रिसयाँ रखने को


कहा और बाहर िनकल आई। नौकर ने कु रिसयाँ िनकाल कर रख द , और मानो यह काम
समा करके जाने को आ।

ित बी ने डाँट कर कहा - कु रिसयाँ साफ य नह क ? देखता नह उन पर कतनी गद


पड़ी ई है? म तुझसे कतनी बार कह चुक , मगर तुझे याद ही नह रहती। िबना जुमाना
कए तुझे याद न आएगी।

नौकर ने कु रिसयाँ प छ-प छ कर साफ कर द और फर जाने को आ।

ित बी ने फर डाँटा - तू बार-बार भागता य है? मेज रख द ? टी-टेबल य नह लाया?


चाय या तेरे िसर पर िपएँगे?

उसने बूढ़े नौकर के दोन कान गमा दए और ध ा दे कर बोली - िबलकु ल गावदी है, िनरा
प गा, जैसे दमाग म गोबर भरा आ है।

बूढ़ा नौकर ब त दन का था। वािमनी उसे ब त मानती थ । उनके देहांत होने के बाद
उसे कोई िवशेष लोभन न था, य क इससे एक-दो पया यादा वेतन पर उसे नौकरी
िमल सकती थी, पर वािमनी के ित उसे जो ा थी वह उसे इस घर से बाँधे ए थी।
और यहाँ अनादर और अपमान सब कु छ सह कर भी वह िचपटा आ था। सब-जज साहब
भी उसे डाँटते रहते थे, पर उनके डाँटने का उसे दुख न होता था। वह उ म उसके जोड़ के
थे। ले कन ि वेणी को तो उसने गोद िखलाया था। अब वही ित बी उसे डाँटती थी और
मारती भी थी। इससे उसके शरीर को िजतनी चोट लगती थी उससे कह यादा उसके
आ मािभमान को लगती थी। उसने के वल दो घर म नौकरी क थी। दोन ही घर म
लड़ कयाँ भी थ , ब एँ भी थ । सब उसका आदर करती थ । ब एँ तो उससे लजाती थ ।
अगर उससे कोई बात िबगड़ भी जाती तो मन म रख लेती थ । उसक वािमनी तो आदश
मिहला थी। उसे कभी कु छ न कहा। बाबू जी कभी कु छ कहते तो उसका प ले कर उनसे
लड़ती थी। और यह लड़क बड़े-छोटे का जरा भी िलहाज नह करती। लोग कहते ह पढ़ने
से अ ल आती है। यही है वह अ ल। उसके मन म िव ोह का भाव उठा - य यह अपमान
सहे? जो लड़क उसक अपनी लड़क से भी छोटी हो,उसके हाथ य अपनी मूँछ
नुचवाए? अव था म भी अिभमान होता है जो संिचत धन के अिभमान से कम नह होता।
वह स मान और ित ा को अपना अिधकार समझता है, और उसक जगह अपमान पा
कर ममाहत हो जाता है।

घूरे ने टी-टेबल ला कर रख दी, पर आँख म िव ोह भरे ए था।

ित बी ने कहा - जा कर बैरा से कह दो, दो याले चाय दे जाए।

घूरे चला गया और बैरा को यह म सुना कर अपनी एकांत कु टी म जा कर खूब रोया


आज वािमनी होती तो उसका अनादर य होता।

बैरा ने चाय मेज पर रख दी। ित बी ने याली संतकु मार को दी और िवनोद भाव से बोली
- तो अब मालूम आ क औरत ही पित ता नह होत , मद भी प ी त वाले होते ह।

संतकु मार ने एक घूँट पी कर कहा - कम-से-कम इसका वाँग तो करते ही ह।

- म इसे नैितक दुबलता कहती ।ँ िजसे यारा कहो, दल से यारा कहो, नह कट हो


जाए। म िववाह को ेमबंधन के प म देख सकती ,ँ धमबंधन या रवाज बंधन तो मेरे
िलए अस हो जाए।

- उस पर भी तो पु ष पर आ ेप कए जाते ह।

ित बी च क । यह जाितगत आ जा रहा है।

अब उसे अपनी जाित का प लेना पड़ेगा - तो या आप मुझसे यह मनवाना चाहते ह क


सभी पु ष देवता होते ह? आप भी जो वफादारी कर रहे ह वह दल से नह , के वल
लोक नंदा के भय से। म इसे वफादारी नह कहती। िब छू के डंक तोड़ कर आप उसे
िबलकु ल िनरीह बना सकते ह, ले कन इससे िब छु का जहरीलापन तो नह जाता।

संतकु मार ने अपनी हार मानते ए कहा - अगर म भी यही क ँ क अिधकतर ना रय का


पित त भी लोक नंदा का भय है तो आप या कहगी?

ित बी ने याला मेज पर रखते ए कहा - म इसे कभी न वीकार क ँ गी।

य?

- इसिलए क मद ने ि य के िलए और कोई आ य छोड़ा ही नह । पित त उनके अंदर


इतना कू ट-कू ट कर भरा गया है क अब अपना ि व रहा ही नह । वह के वल पु ष के
आधार पर जी सकती है, उसका वतं कोई अि त व ही नह । िबन याहा पु ष चैन से
खाता है, िवहार करता है और मूँछ पर ताव देता है। िबन याही ी रोती है, कलपती है
और अपने को संसार का सबसे अभागा ाणी समझती है। यह सारा मद का अपराध है।
आप भी पु पा को नह छोड़ रहे ह, इसीिलए न क आप पु ष ह जो कै दी को आजाद नह
करना चाहता!

संतकु मार ने कातर वर म कहा - आप मेरे साथ बेइंसाफ करती ह। म पु पा को इसिलए


नह छोड़ रहा ँ क म उसका जीवन न नह करना चाहता। अगर म आज उसे छोड़ दूँ
तो शायद और के साथ आप भी मेरा ितर कार करगी।

ित बी मु कराई - मेरी तरफ से आप िन ंत रिहए। मगर एक ही ण के बाद उसने गंभीर


हो कर कहा - ले कन म आपक क ठनाइय का अनुमान कर सकती ।ँ

- मुझे आपके मुँह से ये श द सुन कर कतना संतोष आ। म वा तव म आपक दया का


पा ँ और शायद कभी मुझे इसक ज रत पड़े।

- आपके ऊपर मुझे सचमुच दया आती है। य न एक दन उनसे कसी तरह मेरी मुलाकात
करा दीिजए। शायद म उ ह रा ते पर ला सकूँ

संत कु मार ने ऐसा लंबा मुँह बनाया जैसे इस ताव से उसके मम पर चोट लगी है।

- उसका रा ते पर आना असंभव है, िमस ि वेणी। वह उलटे आप ही के ऊपर आ ेप करे गी


और आपके िवषय म न जाने कै सी दु क पनाएँ कर बैठेगी। और मेरा तो घर म रहना
मुि कल हो जाएगा।

ित बी का साहिसक मन गम हो उठा - तब तो म उससे ज र िमलूँगी।

- तो शायद आप यहाँ भी मेरे िलए दरवाजा बंद कर दगी।


- ऐसा य ?

- ब त मुम कन है वह आपक साहनुभूित पा जाए और आप उसक िहमायत करने लग।

- तो या आप चाहते ह म आपको एकतरफा िड ी दे दू?ँ

- म के वल आपक दया और हमदद चाहता ,ँ आपसे अपनी मनो था कह कर दल का


बोझ हलका करना चाहता ।ँ उसे मालूम हो जाए क म आपके यहाँ आता-जाता ँ तो
एक नया क सा खड़ा कर दे।

ित बी ने सीधे ं य कया - तो आप उससे इतना डरते य ह? डरना तो मुझे चािहए।

संत कु मार ने और गहरे म जा कर कहा - मै आपके िलए ही डरता ,ँ अपने िलए नह ।

ित बी िनभयता से बोली - जी नह , आप मेरे िलए न ड रए।

- मेरे जीते जी, मेरे पीछे, आप पर कोई शुबहा हो यह म नह देख सकता।

- आपको मालूम है मुझे भावुकता पसंद नह ?

- यह भावुकता नह , मन के स े भाव ह।

- मने स े भाववाले युवक ब त कम देख।े

- दुिनया म सभी तरह के लोग होते ह।

- अिधकतर िशकारी क म के । ि य म तो वे याएँ ही िशकारी होती ह, पु ष म तो िसरे


से सभी िशकारी होते ह।

- जी नह , उनम अपवाद भी ब त ह।

- ी प नह देखती। पु ष जब िगरे गा प पर। इसीिलए उस पर भरोसा नह कया जा


सकता। मेरे यहाँ कतने ही प के उपासक आते ह। शायद इस व भी कोई साहब आ रहे
ह । म पवती ,ँ इसम न ता का कोई नह । मगर म नह चाहती कोई मुझे के वल
प के िलए चाहे।

संत कु मार ने धड़कते ए मन से कहा - आप उनम मेरा तो शुमार नह करत ?

ित बी ने त परता के साथ कहा - आपको तो म अपने चाहनेवाल म समझती ही नह ।


संतकु मार ने माथा झुका कर कहा - यह मेरा दुभा य है।

- आप दल से नह कह रहे ह, मुझे कु छ ऐसा लगता है क आपका मन नह पाती। आप उन


आदिमय म ह जो हमेशा रह य रहते ह।

- यही तो म आपके िवषय म सोचा करता ँ

- म रह य नह ।ँ म तो साफ कहती ँ म ऐसे मनु य क खोज म ,ँ जो मेरे दय म सोये


ए ेम को जगा दे। हाँ, वह ब त नीचे गहराई म है, और उसी को िमलेगा जो गहरे पानी
म डू बना जानता हो। आपम मने कभी उसके िलए बैचेनी नह पाई। मने अब तक जीवन
का रोशन पहलू ही देखा है। और उससे ऊब गई ।ँ अब जीवन का अँधेरा पहलू देखना
चाहती ,ँ जहाँ याग है, दन है, उ सग है। संभव है उस जीवन से मुझे ब त ज द घृणा हो
जाए, ले कन मेरी आ मा यह नह वीकार करना चाहती क वह कसी ऊँचे ओहदे क
गुलामी या कानूनी धोखेधड़ी या ापार के नाम से क जानेवाली लूट को अपने जीवन का
आधार बनाए। म और याग का जीवन ही मुझे त य जान पड़ता है। आज जो समाज और
देश क दूिषत अव था है उससे असहयोग करना मेरे िलए जुनून से कम नह है। म कभी-
कभी अपने ही से घृणा करने लगती ।ँ बाबू जी को एक हजार पए अपने छोटे-से प रवार
के िलए लेने का या हक है और मुझे बे-काम-धंधे इतने आराम से रहने का या अिधकार
है? मगर यह सब समझ कर भी मुझ म कम करने क शि नह है। इस भोग-िवलास के
जीवन ने मुझे भी कमहीन बना डाला है। और मेरे िमजाज म अमीरी कतनी है यह भी
आपने देखा होगा। मेरे मुँह से बात िनकलते ही अगर पूरी न हो जाए तो म बावली हो
जाती ।ँ बुि का मन पर कोई िनयं ण नह है। जैसे शराबी बार-बार हराम करने पर
शराब नह छोड़ सकता वही दशा मेरी है। उसी क भाँित मेरी इ छाशि बेजान हो गई
है।

ित बी के ितभावान मुख-मंडल पर ाय: चंचलता झलकती रहती थी। उससे दल क


बात कहते संकोच होता था, य क शंका होती थी क वह सहानुभूित के साथ सुनने के
बदले फि तयाँ कसने लगेगी। पर इस व ऐसा जान पड़ा उसक आ मा बोल रही है।
उसक आँख आ हो गई थ । मुख पर एक िन ंत न ता और कोमलता िखल उठी थी।
संतकु मार ने देखा उनका संयम फसलता जा रहा है। जैसे कसी सायल ने ब त देर के बाद
दाता को मनगुर देख पाया हो और अपना मतलब कह सुनाने के िलए अधीर हो गया हो।

बोला - कतनी ही बार। िबलकु ल यही मेरे िवचार ह। म आपसे उससे ब त िनकट ,ँ
िजतना समझता था।

ित बी स हो कर बोली - आपने मुझे कभी बताया नह ।

- आप भी तो आज ही खुली ह।
- म डरती ँ क लोग यही कहगे आप इतनी शान से रहती ह, और बात ऐसी करती ह।
अगर कोई ऐसी तरक ब होती िजससे मेरी यह अमीराना आदत छू ट जात तो म उसे ज र
काम म लाती। इस िवषय क आपके पास कु छ पु तक ह तो मुझे दीिजए। मुझे आप अपनी
िश या बना लीिजए।

संतकु मार ने रिसक भाव से कहा - म तो आपका िश य होने जा रहा था। और उसक ओर
ममभरी आँख से देखा।

ित बी ने आँख नीची नह क । उनका हाथ पकड़ कर बोली - आप तो द लगी करते ह।


मुझे ऐसा बना दीिजए क म संकट का सामना कर सकूँ । मुझे बार-बार खटकता है अगर म
ी न होती तो मेरा मन इतना दुबल न होता।

और जैसे वह आज संतकु मार से कु छ भी िछपाना, कु छ भी बचाना नह चाहती। मानो वह


जो आ य ब त दन से ढू ँढ़ रही थी वह एकाएक िमल गया है।

संत कु मार ने खाई भरे वर म कहा - ि याँ पु ष से यादा दलेर होती ह, िमस
ि वेणी।

- अ छा, आपका मन नह चाहता क बस हो तो संसार क सारी व था बदल डाल?

इस िवशु मन से िनकले ए का बनावटी जवाब देते ए संतकु मार का दय काँप


उठा।

- कु छ न पूछो। बस आदमी एक आह ख च कर रह जाता है।

- म तो अ सर रात को यह सोचते-सोचते सो जाती ँ और वही व देखती ।ँ


देिखए दुिनयावाले कतने खुदगज ह। िजस व था से सारे समाज का उ ार हो सकता है
वह थोड़े-से आदिमय के वाथ के कारण दबी पड़ी ई है।

संतकु मार ने उतरे ए मुख से कहा - उसका समय आ रहा है और उठ खड़े ए। यहाँ क
वायु म उनका जैसे दम घुटने लगा था। उनका कपटी मन इस िन कपट, सरल वातावरण म
अपनी अधमता के ान से दबा जा रहा था जैसे कसी धमिन मन म अधम िवचार घुस
तो गया हो पर वह कोई आ य न पा रहा हो

ित बी ने आ ह कया - कु छ देर और बै ठए न?

- आज आ ा दीिजए, फर कभी आऊँगा

- कब आइएगा?
- ज द ही आऊँगा।

- काश, म आपका जीवन सुखी बना सकती।

संत कु मार बरामदे से कू द कर नीचे उतरे और तेजी से हाते के बाहर चले गए। ित बी
बरामदे म खड़ी उ ह अनुर ने से देखती रही। वह कठोर थी, चंचल थी, दुलभ थी,
पग वता थी, चतुर थी, कसी को कु छ समझती न थी, न कोई उसे ेम का वाँग भर कर
ठग सकता था, पर जैसे कतनी ही वे या म सारी आसि य के बीच म भि -भावना
िछपी रहती है, उसी तरह उसके मन म भी सारे अिव ास के बीच म कोमल, सहमा आ,
िव ास िछपा बैठा था और उसे पश करने क कला िजसे आती हो वह उसे बेवकू फ बना
सकता था। उस कोमल भाग का पश होते ही वह सीधी-सादी, सरल िव ासमयी, कातर
बािलका बन जाती थी। आज इ फाक से संतकु मार ने वह आसन पा िलया था और अब वह
िजस तरफ चाहे उसे ले जा सकता है, मानो वह मे मराइज हो गई थी। संतकु मार म उसे
कोई दोष नह नजर आता। अभािगनी पु पा इस स यपु ष का जीवन कै सा न कए
डालती है। इ ह तो ऐसी संिगनी चािहए जो इ ह ो सािहत करे , हमेशा इनके पीछे-पीछे
रहे। पु पा नह जानती वह इनके जीवन का रा बन कर समाज का कतना अिन कर
रही है और इतने पर भी संतकु मार का उसे गले बाँधे रखना देव व से कम नह । उनक वह
कौन-सी सेवा करे , कै से उनका जीवन सुखी करे ।

संतकु मार यहाँ से चले तो उनका दय आकाश म था। इतनी ज दी देवी से उ ह वरदान
िमलेगा इसक उ ह ने आशा न क थी। कु छ तकदीर ने ही जोर मारा, नह तो जो युवती
अ छे-अ छ को उँ गिलय पर नचाती है, उन पर य इतनी भि करती। अब उ ह िवलंब
न करना चािहए। कौन जाने कब ित बी िव हो जाए और यह दो ही चार मुलाकात म
होनेवाला है। ित बी उ ह काय- े म आगे बढ़ने क ेरणा करे गी और वह पीछे हटगे।
वह मतभेद हो जाएगा। यहाँ से वह सीधे िम. िस हा के घर प च
ँ ।े शाम हो गई थी। कु हरा
पड़ना शु हो गया था। िम. िस हा सजे-सजाए कह जाने को तैयार खड़े थे। इ ह देखते ही
पूछा -

- कधर से?

- वह से। आज तो रं ग जम गया।

- सच।

- हाँ जी। उस पर तो जैसे मने जादू क लकड़ी फे र दी हो।

- फर या, बाजी मार ली है। अपने फादर से आज ही िज छेड़ो।

- आपको भी मेरे साथ चलना पड़ेगा।

- हाँ, हाँ म तो चलूँगा ही मगर तुम तो बड़े खुशनसीब िनकले - यह िमस कामत तो मुझसे
सचमुच आिशक कराना चाहती है। म तो वाँग रचता ।ँ और वह समझती है, म उसका
स ा ेमी ।ँ जरा आजकल उसे देखो, मारे ग र के जमीन पर पाँव ही नह रखती। मगर
एक बात है, औरत समझदार है। उसे बराबर यह चंता रहती है म उसके हाथ से िनकल न
जाऊँ, इसिलए मेरी बड़ी खाितरदारी करती है, और बनाव- संगार से कु दरत क कमी
िजतनी पूरी हो सकती है उतनी करती है। और अगर कोई अ छी रकम िमल जाए तो शादी
कर लेने ही म या हरज है।

संतकु मार को आ य आ - तुम तो उसक सूरत से बेजार थे।

- हाँ, अब भी ,ँ ले कन पए क जो शत है। डॉ टर साहब बीस-प ीस हजार मेरी नजर


कर द, शादी कर लूँ। शादी कर लेने से म उसके हाथ म िबका तो नह जाता।

दूसरे दन दोन िम ने देवकु मार के सामने सारे मंसूबे रख दए। देवकु मार को एक ण
तक तो अपने कान पर िव ास न आ। उ ह ने व छंद, िनभ क, िन कपट जंदगी
तीत क थी। कलाकार म एक तरह का जो आ मािभमान होता है, उसने सदैव उनको
ढाढ़स दया था। उ ह ने तकलीफ उठाई थ , फाके भी कए थे, अपमान सहे थे, ले कन
कभी अपनी आ मा को कलुिषत न कया था। जंदगी म कभी अदालत के ार तक ही नह
गए। बोले - मुझे खेद होता है क तुम मुझसे यह ताव कै से कर सके और इससे यादा दुख
इस बात का है क ऐसी कु टल चाल तु हारे मन म आई य कर।

संत कु मार ने िन संकोच भाव से कहा - ज रत सब कु छ िसखा देती है। वर ा कृ ित का


पहला िनयम है। वह जायदाद जो आपने बीस हजार म दे दी, आज दो लाख से कम क
नह है।

- वह दो लाख क नह , दस लाख क हो, मेरे िलए वह आ मा को बेचने का है। म


थोड़े-से पय के िलए अपनी आ मा नह बेच सकता।

दोन िम ने एक-दूसरे क ओर देखा और मु कराए। कतनी पुरानी दलील है। और


कतनी लचर। आ मा जैसी चीज है कहाँ? और जब सारा संसार धोखेधड़ी पर चल रहा है
तो आ मा कहाँ रही? अगर सौ पए कज दे कर एक हजार वसूल करना अधम नह है,
अगर एक लाख नीमजान, फाके कश मजदूर क कमाई पर एक सेठ का चैन करना अधम
नह है तो एक पुरानी कागजी कारवाई को र कराने का य य अधम हो?

संतकु मार ने तीखे वर म कहा - अगर आप इसे आ मा का बेचना कहते ह तो बेचना


पड़ेगा। इसके िसवा दूसरा उपाय नह है। और आप इस दृि से इस मामले को देखते ही
य है? धम वह है िजससे समाज का िहत हो। अधम वह है िजससे समाज का अिहत हो।
इससे समाज का कौन-सा अिहत हो जाएगा, यह आप बता सकते ह?

देवकु मार ने सतक हो कर कहा - समाज अपनी मयादा पर टका आ है। उन मयादा
को तोड़ दो और समाज का अंत हो जाएगा।

दोन तरफ से शा ाथ होने लगे। देवकु मार मयादा और िस ांत और धम-बंधन क


आड़ ले रहे थे, पर इन दोन नौजवान क दलील के सामने उनक एक न चलती थी। वह
अपनी सफे द दाढ़ी पर हाथ फे र-फे र कर और ख वाट िसर खुजा-खुजा कर जो माण देते
थे, उसको यह दोन युवक चुटक बजाते धुन डालते थे, धुनक कर उड़ा देते थे।

िस हा ने िनदयता के साथ कहा - बाबूजी, आप न जाने कस जमाने क बात कर रहे ह।


कानून से हम िजतना फायदा उठा सक,हम उठाना चािहए। उन दफ का मंशा ही यह है क
उनसे फायदा उठाया जाए। अभी आपने देखा जम दार क जान महाजन से बचाने के
िलए सरकार ने कानून बना दया है। और कतनी िमि कयत जम दार को वापस िमल
ग । या आप इसे अधम कहगे? ावहा रकता का अथ यही है क हम इन कानूनी साधन
से अपना काम िनकाल। मुझे कु छ लेना-देना नह , न मेरा कोई वाथ है। संत कु मार मेरे
िम ह और इसी वा ते म आपसे यह िनवेदन कर रहा ।ँ मान या न मान, आपको
अि तयार है।

देवकु मार ने लाचार हो कर कहा - तो आिखर तुम लोग मुझे या करने को कहते हो?

- कु छ नह , के वल इतना ही क हम जो कु छ कर आप उसके िव कोई कारवाई न कर।

- म स य क ह या होते नह देख सकता।

संतकु मार ने आँख िनकाल कर उ ेिजत वर म कहा - तो फर आपको मेरी ह या देखनी


पड़ेगी।

िस हा ने संतकु मार को डाँटा - या फजूल क बात करते हो, संत कु मार! बाबू जी को दो-
चार दन सोचने का मौका दो। तुम अभी कसी ब े के बाप नह हो। तुम या जानो बाप
को बेटा कतना यारा होता है। वह अभी कतना ही िवरोध कर, ले कन जब नािलश
दायर हो जाएगी तो देखना वह या करते ह। हमारा दावा यही होगा क िजस व आपने
यह बैनामा िलखा, आपके होश-हवास ठीक न थे, और अब भी आपको कभी-कभी जुनून का
दौरा हो जाता है। हंद ु तान जैसे गम मु क म यह मरज ब त को होता है, और आपको भी
हो गया तो कोई आ य नह । हम िसिवल सजन से इसक तसदीक करा दगे।

देवकु मार ने िहकारत के साथ कहा - मेरे जीते-जी यह धाँधली नह हो सकती। हरिगज
नह । मने जो कु छ कया सोच-समझ कर और प रि थितय के दबाव से कया। मुझे उसका
िबलकु ल अफसोस नह है। अगर तुमने इस तरह का कोई दावा कया तो उसका सबसे बड़ा
िवरोध मेरी ओर से होगा, म कहे देता ।ँ

और वह आवेश म आ कर कमरे म टहलने लगे।

संतकु मार ने भी खड़े हो कर धमकाते ए कहा - तो मेरा भी आपको चैलज है - या तो आप


अपने धम ही क र ा करगे या मेरी। आप फर मेरी सूरत न देखगे।

- मुझे अपना धम, प ी और पु सबसे यारा है।

िस हा ने संत कु मार को आदेश कया - तुम आज दखा त दे दो क आपके होश-हवास म


फक आ गया और मालूम नह आप या कर बैठ। आपको िहरासत म ले िलया जाए।

देवकु मार ने मु ी तान कर ोध के आवेश म पूछा - म पागल ?ँ

- जी हाँ, आप पागल ह। आपके होश बजा नह ह। ऐसी बात पागल ही कया करते ह।
पागल वही नह है जो कसी को काटने दौड़े। आम आदमी जो वहार करते ह उसके
िव वहार करना भी पागलपन है।

- तुम दोन खुद पागल हो।

- इसका फै सला तो डॉ टर करे गा।

- मने बीस पु तक िलख डाल , हजार ा यान दे डाले, यह पागल का काम है?

- जी हाँ, यह प े िसर फर का काम है। कल ही आप इस घर म रि सय से बाँध िलए


जाएँगे।

- तुम मेरे घर से िनकल जाओ नह तो म गोली मार दूग


ँ ा।

- िबलकु ल पागल क -सी धमक । संतकु मार, उस दखा त म यह भी िलख देना क आपक
बंदक
ू छीन ली जाए, वरना जान का खतरा है।

और दोन िम उठ खड़े ए। देवकु मार कभी कानून के जाल म न फँ से थे। काशक और


बुकसेलर ने उ ह बारहा धोखे दए, मगर उ ह ने कभी कानून क शरण न ली। उनके
जीवन क नीित थी - आप भला तो जग भला, और उ ह ने हमेशा इस नीित का पालन
कया था, मगर वह द बू या डरपोक न थे। खासकर िस ांत के मुआमले म तो वह
समझौता करना जानते ही न थे। वह इस षडयं म कभी शरीक न ह गे, चाहे इधर क
दुिनया उधर हो जाए। मगर या यह सब सचमुच उ ह पागल सािबत कर दग? िजस
दृढ़ता से िस हा ने धमक दी थी वह उपे ा के यो य न थी। उसक विन से तो ऐसा मालूम
होता था क वह इस तरह के दाँव-पच म अ य त है, और शायद डॉ टर को िमला कर
सचमुच उ ह सनक सािबत कर दे। उनका आ मािभमान गरज उठा - नह , वह अस य क
शरण न लगे चाहे इसके िलए उ ह कु छ भी सहना पड़े। डॉ टर भी या अंधा है? उनसे कु छ
पूछेगा, कु छ बातचीत करे गा या य ही कलम उठा कर उ ह पागल िलख देगा। मगर कह
ऐसा तो नह है क उनके होश-हवास म फतूर पड़ गया हो। श। वह भी इन छोकर क
बात म आए जाते ह। उ ह अपने वहार म कोई अंतर नह दखाई देता। उनक बुि
सूय के काश क भाँित िनमल है। कभी नह । वह इन ल ड के ध स म न आएँगे।

ले कन यह िवचार उनके दय को मथ रहा था क संतकु मार क यह मनोवृि कै से हो गई।


उ ह अपने िपता क याद आती थी। वह कतने सौ य, कतने स यिन थे। उनके ससुर
वक ल ज र थे, पर कतने धमा मा पु ष थे। अके ले कमाते थे, और सारी गृह थी का
पालन करते थे। पाँच भाइय और उनके बाल-ब का बोझा खुद सँभाले ए थे। या
मजाल क अपने बेटे-बे टय के साथ उ ह ने कसी तरह का प पात कया हो। जब तक
बड़े भाई को भोजन न करा ल खुद न खाते थे। ऐसे खानदान म संतकु मार जैसा दगाबाज
कहाँ से धँस पड़ा? उ ह कभी ऐसी कोई बात याद न आती थी जब उ ह ने अपनी नीयत
िबगाड़ी हो।

ले कन यह बदनामी कै से सही जाएगी। वह अपने ही घर म जब जागृित न ला सके तो एक


कार से उनका सारा जीवन न हो गया। जो लोग उनके िनकटतम संसग म थे, जब उ ह
वह आदमी न बना सके तो जीवन-पयत क सािह य-सेवा से कसका क याण आ? और
जब यह मुकदमा दायर होगा उस व वह कसे मुँह दखा सकगे? उ ह ने धन न कमाया,
पर यश तो संचय कया ही। या वह भी उनके हाथ से िछन जाएगा? उनको अपने संतोष
के िलए इतना भी न िमलेगा? ऐसी आ मवेदना उ ह कभी न ई थी।

शै ा से कह कर वह उसे भी य दुखी कर? उसके कोमल दय को य चोट प च ँ ाएँ?


वह सब कु छ खुद झेल लगे। और दुखी होने क बात भी य हो? जीवन तो अनुभूितय का
नाम है। यह भी एक अनुभव होगा। जरा इसक भी सैर कर ल।

यह भाव आते ही उनका मन हलका हो गया। घर म जा कर पंकजा से चाय बनाने को


कहा।

शै ा ने पूछा - संतकु मार या कहता था?

उ ह ने सहज मु कान के साथ कहा - कु छ नह , वही पुराना ख त।

- तुमने तो हामी नह भरी न?

देवकु मार ी से एका मता का अनुभव करके बोले - कभी नह ।

- न जाने इसके िसर यह भूत कै से सवार हो गया।

- सामािजक सं कार ह और या?

- इसके यह सं कार य ऐसे हो गए? साधु भी तो है, पंकजा भी तो है, दुिनया म या धम


ही नह ?

- मगर कसरत ऐसे ही आदिमय क है, यह समझ लो।

उस दन से देवकु मार ने सैर करने जाना छोड़ दया। दन-रात घर म मुँह िछपाए बैठे
रहते। जैसे सारा कलंक उनके माथे पर लगा हो। नगर और ांत के सभी िति त,
िवचारवान आदिमय से उनका दो ताना था, सब उनक स नता का आदर करते थे।
मानो वह मुकदमा दायर होने पर भी शायद कु छ न कहगे। ले कन उनके अंतर म जैसे चोर-
सा बैठा आ था। वह अपने अहंकार म अपने को आ मीय क भलाई-बुराई का िज मेदार
समझते थे। िपछले दन जब सूय हण के अवसर पर साधुकुमार ने बढ़ी ई नदी म कू द
कर एक डू बते ए आदमी क जान बचाई थी, उस व उ ह उससे कह यादा खुशी ई
थी िजतनी खुद सारा यश पाने से होती। उनक आँख म आँसू भर आए थे, ऐसा लगा था
मानो उनका म तक कु छ ऊँचा हो गया है, मानो मुख पर तेज आ गया है। वही लोग जब
संत कु मार क िचतकबरी आलोचना करगे तो वह कै से सुनगे?

इस तरह एक महीना गुजर गया और संतकु मार ने मुकदमा दायर न कया।

उधर िसिवल सजन को गाँठना था, इधर िम. मिलक को। शहादत भी तैयार करनी थ ।
इ ह तैया रय म सारा दन गुजर जाता था। और पए का इं तजाम भी करना ही था।
देवकु मार सहयोग करते तो यह सबसे बड़ी बाधा हट जाती पर उनके िवरोध ने सम या को
और ज टल कर दया था। संतकु मार कभी-कभी िनराश हो जाता। कु छ समझ म न आता
या करे । दोन िम देवकु मार पर दाँत पीस-पीस कर रह जाते।

संतकु मार कहता - जी चाहता है इ ह गोली मार दू।ँ म इ ह अपना बाप नह , श ु समझता
।ँ

िस हा समझाता - मेरे दल म तो भई, उनक इ त होती है। अपने वाथ के िलए आदमी
नीचे से नीचा काम कर बैठता है, पर यािगय और स यवा दय का आदर तो दल म
होता ही है। न जाने तु ह उन पर कै से गु सा आता है। जो ि स य के िलए बड़े से बड़ा
क सहने को तैयार हो वह पूजने के लायक है।

- ऐसी बात से मेरा जी न जलाओ, िस हा। तुम चाहते तो वह हजरत अब तक पागलखाने


म होते। म न जानता था तुम इतने भावुक हो।

- उ ह पागलखाने भेजना इतना आसान नह िजतना तुम समझते हो। और इसक कोई
ज रत भी तो नह । हम यह सािबत करना चाहते ह क िजस व बैनामा आ वह अपने
होश-हवास म न थे। इसके िलए शहादत क ज रत है। वह अब भी उसी दशा म ह। इसे
सािबत करने के िलए डॉ टर चािहए और िम. कामत भी यह िलखने का साहस नह रखते।

पं देवकु मार को धम कय से झुकाना तो असंभव था, मगर तक के सामने उनक गदन आप-
ही-आप झुक जाती थी। इन दन वह यही सोचते रहते थे क संसार क कु व था य
ह? कम और सं कार का आ य ले कर वह कह न प च ँ पाते थे। सवा मवाद से भी उनक
गु थी न सुलझती थी। अगर सारा िव एका म है तो फर यह भेद य है? य एक
आदमी जंदगी-भर बड़ी-से-बड़ी मेहनत करके भी भूख मरता है, और दूसरा आदमी हाथ-
पाँव न िहलाने पर भी फू ल क सेज पर सोता है। यह सवा म है या घोर अना म? बुि
जवाब देती - यहाँ सभी वाधीन ह, सभी को अपनी शि और साधना के िहसाब से उ ित
करने का अवसर है मगर शंका पूछती -सबको समान अवसर कहाँ है? बाजार लगा आ है।
जो चाहे वहाँ से अपनी इ छा क चीज खरीद सकता है। मगर खरीदेगा तो वही िजसके
पास पैसे ह। और जब सबके पास पैसे नह ह तो सबका बराबर का अिधकार कै से माना
जाए? इस तरह का आ ममंथन उनके जीवन म कभी न आ था। उनक सािहि यक बुि
ऐसी व था से संतु तो हो ही न सकती थी, पर उनके सामने ऐसी कोई गु थी न पड़ी
थी। जो इस को वैयि क अंत तक ले जाती। इस व उनक दशा उस आदमी क -सी
थी जो रोज माग म ईट पड़े देखता है और बच कर िनकल जाता है। रात को कतने लोग
को ठोकर लगती होगी, कतन के हाथ-पैर टू टते ह गे, इसका यान उसे नह आता। मगर
एक दन जब वह खुद रात को ठोकर खा कर अपने घुटने फोड़ लेता है तो उसक िनवारण-
शि हठ करने लगती है। और वह उस सारे ढेर को माग से हटाने पर तैयार हो जाता है।
देवकु मार को वही ठोकर लगी थी। कहाँ है याय? कहाँ है? एक गरीब आदमी कसी खेत से
बाल नोच कर खा लेता है, कानून उसे सजा देता है। दूसरा अमीर आदमी दन-दहाड़े दूसर
को लूटता है और उसे पदवी िमलती है,स मान िमलता है। कु छ आदमी तरह-तरह के
हिथयार बाँध कर आते ह और िनरीह, दुबल मजदूर पर आतंक जमा कर अपना गुलाम
बना लेते ह। लगान और टै स और महसूल और कतने ही नाम से उसे लूटना शु करते
ह, और आप लंबा-लंबा वेतन उड़ाते ह,िशकार खेलते ह, नाचते ह, रं ग-रे िलयाँ मनाते ह।
यही है ई र का रचा आ संसार? यही याय है?

हाँ, देवता हमेशा रहगे और हमेशा रहे ह। उ ह अब भी संसार धम और नीित पर चलता


आ नजर आता है। वे अपने जीवन क आ ित दे कर संसार से िवदा हो जाते ह। ले कन
उ ह देवता य कहो? कायर कहो, वाथ कहो, आ मसेवी कहो। देवता वह है जो याय
क र ा करे और उसके िलए ाण दे दे। अगर वह जान कर अनजान बनता है तो धम से
फरता है, अगर उसक आँख म यह कु व था खटकती ही नह तो वह अंधा भी है और
मूख भी, देवता कसी तरह नह । और यहाँ देवता बनने क ज रत भी नह । देवता ने
ही भा य और ई र और भि क िम याएँ फै ला कर इस अनीित को अमर बनाया है।
मनु य ने अब तक इसका अंत कर दया होता या समाज का ही अंत कर दया होता जो इस
दशा म जंदा रहने से कह अ छा होता। नह , मनु य म मनु य बनना पड़ेगा। द रं द के
बीच म उनसे लड़ने के िलए हिथयार बाँधना पड़ेगा। उनके पंज का िशकार बनना
देवतापन नह , जड़ता है। आज जो इतने ता लुकेदार और राजे ह वह अपने पूवज क लूट
का ही आनंद तो उठा रहे ह। और या उ ह ने वह जायदाद बेच कर पागलपन नह कया?
िपतर को पंडा देने के िलए गया जा कर पंडा देना और यहाँ आ कर हजार पए खच
करना या ज री था? और रात को िम के साथ मुजरे सुनना, और नाटक-मंडली खोल
कर हजार पए उसम डु बाना अिनवाय था? वह अव य पागलपन था। उ ह य अपने
बाल-ब क चंता नह ई? अगर उ ह मु त क संपि िमली और उ ह ने उड़ाया तो
उनके लड़के य न मु त क संपि भोग? अगर वह जवानी क उमंग को नह रोक सके
तो उनके लड़के य तप या कर?

और अंत म उनक शंका को इस धारणा से त क न ई क इस अनीित भरे संसार म


धम-अधम का िवचार गलत है, आ मघात है और जुआ खेल कर या दूसर के लोभ और
आसि से फायदा उठा कर संपि खड़ी करना उतना ही बुरा या अ छा है िजतना कानूनी
दाँव-पच से। बेशक वह महाजन के बीस हजार के कजदार ह। नीित कहती है क उस
जायदाद को बेच कर उसके बीस हजार दे दए जाएँ, बाक उ ह िमल जाए। अगर कानून
कजदार के साथ इतना याय भी नह करता तो कजदार भी कानून म िजतनी ख चतान
हो सके करके महाजन से अपनी जायदाद वापस लेने क चे ा करने म कसी अधम का
दोषी नह ठहर सकता। इस िन कष पर उ ह ने शा और नीित के हरे क पहलू से िवचार
कया और वह उनके मन म जम गया। अब कसी तरह नह िहल सकता और य िप इससे
उनके िचर-संिचत सं कार को आघात लगता था, पर वह ऐसे स और फू ले ए थे,
मानो उ ह कोई नया जीवन मं िमल गया हो ।

एक दन उ ह ने सेठ िगरधर दास के पास जा कर साफ-साफ कह दया - अगर आप मेरी


जायदाद वापस न करगे तो मेरे लड़के आपके ऊपर दावा करगे।

िगरधर दास नए जमाने के आदमी थे, अं ेजी म कु शल, कानून म चतुर, राजनीित म भाग
लेनेवाले, कं पिनय म िह से लेते थे, और बाजार अ छा देख कर बेच देते थे। एक श र का
िमल खुद चलाते थे। सारा कारोबर अं ेजी ढंग से करते थे। उनके िपता सेठ म कूलाल भी
यही सब करते थे, पर पूजा-पाठ, दान-दि णा से ायि त करते रहते थे। िगरधर दास प े
जड़वादी थे, हरे क काम ापार के कायदे से करते थे। कमचा रय का वेतन पहली तारीख
को देते थे, मगर बीच म कसी को ज रत पड़े तो सूद पर पए देते थे। म कूलाल जी
साल-साल भर वेतन न देते थे, पर कमचा रय को बराबर पेशगी देते रहते थे।

िहसाब होने पर उनको कु छ देने के बदले कु छ िमल जाता था। म कूलाल साल म दो-चार
बार अफसर को सलाम करने जाते थे,डािलयाँ देते थे, जूते उतार कर कमरे म जाते थे,
और हाथ बाँधे खड़े रहते थे। चलते व आदिमय को दो-चार पए इनाम दे आते थे।
िगरधर दास युिनिसपल किम र थे, सूट-बूट पहन कर अफसर के पास जाते थे, और
बराबरी का वहार करते थे, और आदिमय के साथ के वल इतनी रयायत करते थे, क
योहार म योहारी दे देते थे, वह भी खूब खुशामद कराके । अपने हक के िलए लड़ना और
आंदोलन करना जानते थे, मगर उ ह ठगना असंभव था।

देवकु मार का यह कथन सुन कर चकरा गए। उनक बड़ी इ त करते थे। उनक कई पु तक
पढ़ी थ , और उनक रचना का पूरा सेट उनके पु तकालय म था। हंदी भाषा के ेमी थे,
और नागरी- चार सभा को कई बार अ छी रकम दान दे चुके थे। पंडा-पुजा रय के नाम
से िचढ़ते थे, दूिषत दान था पर एक पफलेट भी छपवाया था। िलबरल िवचार के िलए
नगर म उनक याित थी। म कूलाल मारे मोटापे के जगह से िहल न सकते थे, िगरधर
दास गठीले आदमी थे, और नगर- ायामशाला के धान ही न थे, अ छे शहसवार और
िनशानेबाज थे।
एक ण तो वह देवकु मार के मुँह क ओर देखते रहे। उनका आशय या है, यह समझ म ही
न आया। फर खयाल आया बेचारे आ थक संकट म ह गे, इससे बुि हो गई है। बेतुक
बात कर रहे ह। देवकु मार के मुख पर िवजय का गव देख कर उनका यह खयाल और
मजबूत हो गया।

सुनहरी ऐनक उतार कर मेज पर रख कर िवनोद भाव से बोले - किहए, घर म सब कु शल


तो है।

देवकु मार ने िव ोह के भाव से कहा - जी हाँ, सब आपक कृ पा है।

- बड़ा लड़का तो वकालत कर रहा है न?

- जी हाँ।

- मगर चलती न होगी और आप क पु तक भी आजकल कम िबकती ह गी। यह देश का


दुभा य है क आप जैसे सर वती के पु का यह अनादर। आप यूरोप म होते तो आज
लाख के वामी होते।

- आप जानते ह, म ल मी के उपासक म नह ।ँ

- धन-संकट म तो ह गे ही। मुझ से जो कु छ सेवा आप कह, उसके िलए तैयार ।ँ मुझे तो


गव है क आप जैसे ितभाशाली पु ष से मेरा प रचय है। आप क कु छ सेवा करना मेरे
िलए गौरव क बात होगी।

देवकु मार ऐसे अवसर पर न ता के पुतले बन जाते थे। भि और शंसा दे कर कोई


उनका सव व ले सकता था। एक लखपती आदमी और वह भी सािह य का ेमी जब उनका
इतना स मान करता है तो उससे जायदाद या लेन-देन क बात करना उ ह ल ाजनक
मालूम आ। बोले - आप क उदारता है जो मुझे इस यो य समझते ह।

- मने समझा नह आप कस जायदाद क बात कह रहे थे।

देवकु मार सकु चाते ए बोले - अजी वही, जो सेठ म कूलाल ने मुझसे िलखाई थी।

- अ छा तो उसके िवषय म कोई नई बात है?

- उसी मामले म लड़के आपके उपर कोई दावा करनेवाले ह। मने ब त समझाया, मगर
मानते नह । आपके पास इसीिलए आया था क कु छ ले-दे कर समझौता कर लीिजए,
मामला अदालत म य जाए? नाहक दोन जेरबार ह गे।
िगरधर दास का जहीन, मुरौवतदार चेहरा कठोर हो गया। िजन महाजनी नख को उ ह ने
भ ता क नम ग ी म िछपा रखा था, वह यह खटका पाते ही पैने और उ हो कर बाहर
िनकल आए।

ोध को दबाते ए बोले - आपको मुझे समझाने के िलए यहाँ आने क तकलीफ उठाने क
कोई ज रत न थी। उन लड़क ही को समझाना चािहए था।

- उ ह तो म समझा चुका।

- तो जा कर शांत बै ठए, म अपने हक के िलए लड़ना जानता ।ँ अगर उन लोग के


दमाग म कानून क गम का असर हो गया है तो उसक दवा मेरे पास है।

अब देवकु मार क सािहि यक न ता भी अिवचिलत न रह सक । जैसे लड़ाई का पैगाम


वीकार करते ए बोले - मगर आपको मालूम होना चािहए वह िमि कयत आज दो लाख
से कम क नह है।

- दो लाख नह , दस लाख क हो, आपसे सरोकार नह ।

- आपने मुझे बीस हजार ही तो दए थे।

- आपको इतना कानून तो मालूम ही होगा, हालाँ क कभी आप अदालत म नह गए, क


जो चीज िबक जाती है वह कानूनन कसी दाम पर भी वापस नह क जाती। अगर इस
नए कायदे को मान िलया जाए तो इस शहर म महाजन न नजर आएँ।

कु छ देर तक सवाल-जवाब होता रहा और लड़नेवाले कु क तरह दोन भले आदमी


गुराते, दाँत िनकालते, ख िखयाते रहे। आिखर दोन लड़ ही गए।

िगरधर दास ने चंड हो कर कहा - मुझे आपसे ऐसी आशा नह थी।

देवकु मार ने भी छड़ी उठा कर कहा - मुझे भी न मालूम था क आपके वाथ का पेट इतना
गहरा है।

- आप अपना सवनाश करने जा रहे ह।

- कु छ परवाह नह ।

देवकु मार वहाँ से चले तो माघ क उस अँधेरी रात क िनदय ठं ड म भी उ ह पसीना हो


रहा था। िवजय का ऐसा गव अपने जीवन म उ ह कभी न आ था। उ ह ने तक म तो
ब त पर िवजय पाई थी। यह िवजय थी। जीवन म एक नई ेरणा, एक नई शि का
उदय।

उसी रात को िस हा और संतकु मार ने एक बार फर देवकु मार पर जोर डालने का िन य


कया। दोन आ कर खड़े ही थे, क देवकु मार ने ो साहन भरे ए भाव से कहा - तुम
लोग ने अभी तक मुकदमा दायर नह कया। नाहक य देर कर रहे हो?

संतकु मार के सूखे ए िनराश मन म उ लास क आँधी-सी आ गई। या सचमुच कह ई र


है िजस पर उसे कभी िव ास नह आ? ज र कोई दैवी शि है। भीख माँगने आए थे,
वरदान िमल गया।

बोला - आप ही क अनुमित का इं तजार था।

- म बड़ी खुशी से अनुमित देता ।ँ मेरे आशीवाद तु हारे साथ ह।

उ ह ने िगरधर दास से जो बात ई वह कह सुनाई।

िस हा ने नाक फु ला कर कहा - जब आपक दुआ है तो हमारी फतह है। उ ह अपने धन का


घमंड होगा, मगर यहाँ भी क ी गोिलयाँ नह खेली ह।

संतकु मार ऐसा खुश था गोया आधी मंिजल तय हो गई। बोला - आपने खूब उिचत जवाब
दया।

िस हा ने तनी ई ढोल क -सी आवाज म चोट मारी - ऐसे-ऐसे सेठ को उँ गिलय पर


नचाते ह यहाँ।

संतकु मार व देखने लगे - यह हम दोनो के बँगले बनगे, दो त।

- यहाँ य , िसिवल लाइ स म बनवाएँगे।

- अंदाज से कतने दन म फै सला हो जाएगा?

- छह महीने के अंदर।

- बाबू जी के नाम से सर वती मं दर बनवाएँग।े

मगर सम या थी, पए कहाँ से आएँ। देवकु मार िन पृह आदमी थे। धन क कभी उपासना
नह क । कभी इतना यादा िमला ही नह क संचय करते। कसी महीने म पचास जमा
होते तो दूसरे महीने म खच हो जाते। अपनी सारी पु तक का कॉपीराइट बेच कर उ ह
पाँच हजार िमले थे। वह उ ह ने पंकजा के िववाह के िलए रख दए थे। अब ऐसी कोई
सूरत नह थी जहाँ से कोई बड़ी रकम िमलती। उ ह ने समझा था संतकु मार घर का खच
उठा लेगा। और वह कु छ दन आराम से बैठगे या घूमगे। ले कन इतना बड़ा मंसूबा बाँध कर
वह अब शांत कै से बैठ सकते ह? उनके भ क काफ तादाद थी। दो-चार राजे भी उनके
भ म थे िजनक यह पुरानी लालसा थी क देवकु मार जी उनके घर को अपने चरण से
पिव कर और वह अपनी ा उनके चरण म अपण कर। मगर देवकु मार थे क कभी
कसी दरबार म कदम नह रखा, अब अपने ेिमय और भ से आ थक संकट का रोना
रो रहे थे, और खुले श द म सहायता क याचना कर रहे थे। वह आ मगौरव जैसे कसी
क म सो गया हो।

और शी ही इसका प रणाम िनकला। एक भ ने ताव कया क देवकु मार जी क


साठव सालिगरह धूमधाम से मनाई जाए और उ ह सािह य- ेिमय क ओर से एक थैली
भट क जाए। या यह ल ा और दुख क बात नह है क िजस महारथी ने अपने जीवन के
चालीस वष सािह य-सेवा पर अपण कर दए, वह इस वृ ाव था म भी आ थक चंता
से मु न हो? सािह य य नह फल-फू ल सकता। जब तक हम अपने सािह य-सेिवय का
ठोस स कार करना न सीखगे, सािह य कभी उ ित न करे गा और दूसरे समाचारप ने
मु कं ठ से इसका समथन कया। अचरज क बात यह थी क वह महानुभाव भी िजनका
देवकु मार से पुराना सािहि यक वैमन य था, वे भी इस अवसर पर उदारता का प रचय
देने लगे। बात चल पड़ी। एक कमेटी बन गई। एक राजा साहब उसके धान बन गए। िम.
िस हा ने कभी देवकु मार क कोई पु तक न पढ़ी थी, पर वह इस आंदोलन म मुख भाग
लेते थे। िमस कामत और िमस मिलक क ओर से भी समथन हो गया। मिहला को पु ष
से पीछे न रहना चािहए। जेठ म ितिथ िनि त ई। नगर के इं टरमीिडएट कॉलेज म इस
उ सव क तैया रयाँ होने लग ।

आिखर वह ितिथ आ गई। आज शाम को वह उ सव होगा। दूर-दूर से सािह य- ेमी आए ह।


सोराँव के कुँ वर साहब वह थैली भट करगे। आशा से यादा स न जमा हो गए ह।
ा यान ह गे, गाना होगा, ामा खेला जाएगा, ीित-भोज होगा, किव-स मेलन होगा।
शहर म दीवार पर पो टर लगे ए ह। स य-समाज म अ छी हलचल है। राजा साहब
सभापित ह।

देवकु मार को तमाशा बनने से नफरत थी। पि लक जलस म भी कम आते-जाते थे। ले कन


आज तो बरात का दू हा बनना ही पड़ा। य - य सभा म जाने का समय समीप आता था
उनके मन पर एक तरह का अवसाद छाया जाता था। िजस व थैली उनको भट क
जाएगी और वह हाथ बढ़ा कर लगे वह दृ य कै सा ल ाजनक होगा। िजसने कभी धन के
िलए हाथ नह फै लाया वह इस आिखरी व म दूसर का दान ले? यह दान ही है, और
कु छ नह । एक ण के िलए उनका आ मस मान िव ोही बन गया। इस अवसर पर उनके
िलए शोभा यही देता है क वह थैली पाते ही उसी जगह कसी सावजिनक सं था को दे द।
उनके जीवन के आदश के िलए यही अनुकूल होगा,लोग उनसे यही आशा रखते ह, इसी म
उनका गौरव है। वह पंडाल म प चँ े तो उनके मुख पर उ लास क झलक न थी। वह कु छ
िखिसयाए-से लगते थे। नेकनामी क लालसा एक ओर ख चती थी, लोभ दूसरी ओर। मन
को कै से समझाएँ क यह दान दान नह , उनका हक है। लोग हँसगे, आिखर पैसे पर टू ट
पड़ा। उनका जीवन बौि क था, और बुि जो कु छ करती है नीित पर कस कर करती है।
नीित का सहारा िमल जाए तो फर वह दुिनया क परवाह नह करती। वह प च ँ े तो
वागत आ, मंगल-गान आ, ा यान होने लगे िजनम उनक क त गाई गई। मगर
उनक दशा उस आदमी क -सी हो रही थी िजसके िसर म दद हो रहा हो। उ ह इस व
इस दद क दवा चािहए। कु छ अ छा नह लग रहा है। सभी िव ान ह, मगर उनक
आलोचना कतनी उथली, ऊपरी है जैसे कोई उनके संदश े को समझा ही नह , जैसे यह
सारी वाह-वाह और सारा यशगान अंध-भि के िसवा और कु छ न था। कोई भी उ ह नह
समझा, कस ेरणा ने चालीस साल तक उ ह सँभाले रखा, वह कौन-सा काश था
िजसक योित कभी मंद नह ई।

सहसा उ ह एक आ य िमल गया और उनके िवचारशील, पीले मुख पर हलक -सी सुख
दौड़ गई। यह दान नह , ािवडट फं ड है जो आज तक उनक आमदनी से कटता रहा है।
या वह दान है? उ ह ने जनता क सेवा क है, तन-मन से क है, इस धुन से क है, जो
बड़े-से-बड़े वेतन से भी न आ सकती थी। पशन लेने म या लाज आए?

राजा साहब ने जब थैली भट क तो देवकु मार के मुँह पर गव था, हष था, िवजय थी।
लेखक प रचय
े च द का ज म ३१ जुलाई सन् १८८० को बनारस शहर से चार मील दूर समही गाँव म

आ था। आपके िपता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने म मामूली नौकर के तौर
पर काम करते थे। आपके िपता ने के वल १५ साल क आयू म आपका िववाह करा दया।
िववाह के एक साल बाद ही िपताजी का देहा त हो गया। अपनी गरीबी से लड़ते ए
ेमच द ने अपनी पढ़ाई मै क तक प च ं ाई। जीवन के आरं भ म आप अपने गाँव से दूर
बनारस पढ़ने के िलए नंगे पाँव जाया करते थे। तेरह वष क उ म से ही ेमच द ने
िलखना आरं भ कर दया था। शु म आपने कु छ नाटक िलखे फर बाद म उदू म उप यास
िलखना आरं भ कया। इस तरह आपका सािहि यक सफर शु आ जो मरते दम तक साथ
- साथ रहा। सन् १९३६ ई० म ेमच द बीमार रहने लगे। अपने इस बीमार काल म ही
आपने " गितशील लेखक संघ" क थापना म सहयोग दया। आ थक क तथा इलाज
ठीक से न कराये जाने के कारण ८ अ टू बर १९३६ म आपका देहा त हो गया। और इस
तरह वह दीप सदा के िलए बुझ गया िजसने अपनी जीवन क ब ी को कण-कण जलाकर
भारतीय का पथ आलो कत कया।
Mangal Sutra

Copyright © 2014 by Sai ePublications

Digital edition produced & published by


Sai ePublications

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