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ेमचंद
— काशक
मंगल सू
ेमच द
— Publisher
Mangal Sutra
By Premchand
© Sai ePublications
सवािधकार और अनुमितयाँ
मंगल सू - अ याय १
मंगल सू - अ याय २
मंगल सू - अ याय ३
मंगल सू - अ याय ४
लेखक प रचय
१
( ेमचंद का आिखरी उप यास, िजसे वे पूरा न कर सके )
बड़े बेटे संतकु मार को वक ल बना कर, छोटे बेटे साधुकुमार को बी.ए. क िड ी दला कर
और छोटी लड़क पंकजा के िववाह के िलए ी के हाथ म पाँच हजार पए नकद रख कर
देवकु मार ने समझ िलया क वह जीवन के कत से मु हो गए और जीवन म जो कु छ
शेष रहा है, उसे ई र चंतन के अपण कर सकते ह। आज चाहे कोई उन पर अपनी
जायदाद को भोग-िवलास म उड़ा देने का इलजाम लगाए, चाहे सािह य के अनु ान म,
ले कन इससे कोई इनकार नह कर सकता क उनक आ मा िवशाल थी। यह असंभव था
क कोई उनसे मदद माँगे और िनराश हो। भोग-िवलास जवानी का नशा था। और जीवन
भर वह उस ित क पू त करते रहे, ले कन सािह य-सेवा के िसवा उ ह और कसी काम म
िच न ई और यहाँ धन कहाँ ? - यश िमला और उनके आ मसंतोष के िलए इतना काफ
था।संचय म उनका िव ास भी न था। संभव है, प रि थित ने इस िव ास को दृढ़ कया
हो, ले कन उ ह कभी संचय न कर सकने का दुख नह आ। स मान के साथ अपना िनबाह
होता जाए, इससे यादा वह और कु छ न चाहते थे। सािह य-रिसक म जो एक अकड़ होती
है,चाहे उसे शेखी ही य न कह लो, वह उनम भी थी। कतने ही रईस और राजे इ छु क थे
क वह उनके दरबार म जाएँ, अपनी रचनाएँ सुनाएँ उनको भट कर, ले कन देवकु मार ने
आ म-स मान को कभी हाथ से न जाने दया। कसी ने बुलाया भी तो ध यवाद दे कर टाल
गए। इतना ही नह , वह यह भी चाहते थे क राजे और रईस मेरे ार पर आएँ, मेरी
खुशामद कर, जो अनहोनी बात थी। अपने कई मंदबुि सहपा ठय को वकालत या दूसरे
स ग म धन के ढेर लगाते, जाएदाद खरीदते, नए-नए मकान बनवाते देख कर कभी-कभी
उ ह अपनी दशा पर खेद होता था, िवशेषकर जब उनक ज म-संिगनी शै ा गृह थी क
चंता से जल कर उ ह कटु वचन सुनाने लगती थी,पर अपने रचना-कु टीर म कलम हाथ
म ले कर बैठते ही वह सब कु छ भूल सािह य- वग म प च ँ जाते थे, आ म-गौरव जाग
उठता था। सारा अवसाद और िवषाद शांत हो जाता था।
शै ा ने पूछा - संतू कहाँ रह गया? चाय ठं डी हो जाएगी तो कहेगा यह तो पानी है। बुला
ले तो साधु; इसे जैसे खाने-पीने क भी छु ी नह िमलती।
साधु िसर झुका कर रह गया। संतकु मार से बोलते उनक जान िनकलती थी।
साधु ने दबी जबान से कहा - नह , िबगड़ जाएँगे सवेरे-सवेरे तो मेरा सारा दन खराब हो
जाएगा।
शै ा ने आँख तरे र कर कहा - तुम लोग खा लो, यह सब पीछे खा लगी। कोई पंगत थोड़ी है
क सब एक साथ बैठ।
संत कु मार ने एक घूँट चाय पी कर कहा - वही पुराना लचर ढरा! कतनी बार कह चुका
क उस पुराने लचर संकोच का जमाना नह रहा।
- काम तो सूट के न रहने पर भी चल सकता है। हम लोग तो नंगे पाँव, धोती चढ़ा कर
खेला करते थे। मगर जब एक आल इं िडया टीम म खेलने जा रहे हो तो वैसा ठाट भी तो
होना चािहए। फटेहाल जाने से तो कह अ छा है, न जाना। जब वहाँ लोग जानगे क तुम
महा मा देवकु मार जी के सुपु हो तो दल म या कहगे?
बोला - अगर उ ह ने ऐसा इरादा कया तो उनसे पहले म अंतधान हो जाउँ गा। म यह भार
अपने िसर नह ले सकता। उ ह इसको सँभालने म मेरी मदद करनी होगी। उ ह अपनी
कमाई लुटाने का पूरा हक था, ले कन बाप-दाद क जायदाद को लुटाने का उ ह कोई
अिधकार न था। इसका उ ह ायि त करना पड़ेगा, वह जायदाद हम वापस करनी होगी।
म खुद भी कु छ कानून जानता ।ँ वक ल ,मैिज ेट से भी सलाह कर चुका ।ँ जायदाद
वापस ली जा सकती है। अब मुझे यही देखना है क इ ह अपनी संतान यारी है या अपना
महा मापन।
यह कहता आ संत कु मार पंकजा से पान ले कर अपने कमरे म चला गया ।
२
संत कु मार क ी पु पा िब कु ल फू ल-सी है, सुंदर, नाजुक, हलक -फु लक , लजाधुर,
ले कन एक नंबर क आ मािभमािननी है। एक-एक बात के िलए वह कई-कई दन ठी रह
सकती है। और उसका ठना भी सवथा नई िडजाइन का है। वह कसी से कु छ कहती
नह ,लड़ती नह , िबगड़ती नह , घर का सब काम-काज उसी त मयता से करती है बि क
और यादा एका ता से। बस िजससे नाराज होती है उसक ओर ताकती नह । वह जो कु छ
कहेगा, वह करे गी, वह जो कु छ पूछेगा, जवाब देगी, वह जो कु छ माँगेगा, उठा कर दे देगी,
मगर िबना उसक ओर ताके ए। इधर कई दन से वह संत कु मार से नाराज हो गई है और
अपनी फरी ई आँख से उसके सारे आघात का सामना कर रही है।
- चलोगी न?
- तु हारी या इ छा है?
- कसी बात पर नह ।
एक उपाय है। श ु को बहला कर, उसे पर अपने संिध- ेम का िव ास जमा कर, कले से
िनकालना होगा।
- तु हारे पास कोई जवाब नह है, के वल हठ-धम है। तुम कहोगे यहाँ तु हारा जो स मान
है वह वहाँ न रहेगा, वहाँ कोई तु हारी र ा करनेवाला न होगा, कोई तु हारे दु:ख-दद म
साथ देने वाला न होगा। इसी तरह क और भी कतनी ही दलील तुम दे सकते हो। मगर
मने िमस बटलर को आजीवन ाँरी रह कर, स मान के साथ जंदगी काटते देखा है। उनका
िनजी जीवन कै सा था,यह म नह जानती। संभव है वह हंद ू गृिहणी के आदश के अनुकूल न
रहा हो, मगर उनक इ त सभी करते थे, और उ ह अपनी र ा के िलए कसी पु ष का
आ य लेने क कभी ज रत नह ई।
- बड़े शौक से बैठँू गा, मेरे िलए अ छे-अ छे कपड़े, अ छी-अ छी सवा रयाँ ला दो। जैसे
तुम कहोगी वैसा ही क ँ गा। तु हारी मज के िखलाफ एक श द भी न बोलूँगा।
- कौन-सी शत?
संतकु मार ने मु ध भाव से कहा - यही भाव मेरे मन म कई बार आया है पु पा, और इसम
कोई संदहे नह क अगर ी ने पु ष क र ा न क होती तो आज दुिनया वीरान हो गई
होती। उसका सारा जीवन तप और साधना का जीवन है।
संतकु मार ने िसर िहलाया - िबक नह चुक है, लुट चुक है। जो जमीन लाख-दो लाख म
भी स ती है, वह दस हजार म कू ड़ा हो गई। कोई भी समझदार आदमी ऐसा ग ा नह खा
सकता और अगर खा जाए तो वह अपने होश-हवास म नह है। दादा गृह थी म कु शल नह
रहे। वह तो क पना क दुिनया म रहते थे। बदमाश ने उ ह चकमा दया और जायदाद
िनकलवा दी। मेरा धम है क म वह जायदाद वापस लू,ँ और तुम चाहो तो सब कु छ हो
सकता है। डॉ टर साहब के िलए दस हजार का इं तजाम कर देना कोई क ठन बात नह है।
पु पा एक िमनट तक िवचार म डू बी रही, फर संदह
े भाव से बोली - मुझे तो आशा नह
क दादा के पास इतने पए फालतू ह ।
- जहाँ इतना घिन संबंध है वहाँ उधार के माने खैरात के िसवा और कु छ नह । तुम पए
न दे सके तो वह तु हारा या बना लगे? अदालत जा नह सकते, दुिनया हँसेगी, पंचायत
कर नह सकते, लोग ताने दगे।
संतकु मार ने भाषण समा करके जब उससे कोई जवाब न पाया तो एक ण के बाद बोला
- या सोच रही हो? म तुमसे सच कहता ,ँ म ब त ज द पए दे दूग
ँ ा
संतकु मार ने ह ठ चबा कर कहा - जरा-सी बात तुम से नह िलखी जाती, उस पर दावा यह
है क घर पर मेरा भी अिधकार है।
पु पा ने जोश के साथ कहा - मेरा अिधकार तो उसी ण हो गया जब मेरी गाँठ तुमसे
बँधी।
संतकु मार ने गव के साथ कहा - ऐसा अिधकार िजतनी आसानी से िमल जाता है, उतनी ही
आसानी से िछन भी जाता है।
साधु ने मु करा कर कहा - भाई साहब पए नह दे रहे ह, मुझे दादा का गला दबाने को
कह रहे ह। म दादा को क नह देना चाहता। भाई साहब से कहना मत भाभी, तु हारे
हाथ जोड़ता ।ँ
- चेहरे से।
- झूठे हो।
पु पा ने उसका हाथ पकड़ कर बैठाते ए कहा - मेरी देवरानी बेचारी गहने-कपड़े को तरस
जाएगी।
- नह भाभी, तुमसे झूठ नह कहता। शादी का तो मुझे खयाल भी नह आता। जंदगी इसी
के िलए है क कसी के काम आए। जहाँ सेवक क इतनी ज रत है वहाँ कु छ लोग को तो
ाँरे रहना ही चािहए। कभी शादी क ँ गा भी तो ऐसी लड़क से जो मेरे साथ गरीबी क
जंदगी बसर करने पर राजी हो और जो मेरे जीवन क स ी सहगािमनी बने।
- तुम से कोई बात कहो तो तुम बनाने लगती हो, इसी से म तु हारे पास नह आता।
शाम हो गई थी। पु पा िखड़क के सामने खड़ी बाहर क ओर देख रही थी। उसने देखा
बीस-प ीस लड़ कय और ि य का एक दल एक वर से एक गीत गाता चला जा रहा
था। कसी क देह पर सािबत कपड़े तक न थे, िसर और मुँह पर गद जमी ई थी।
बाल खे हो रहे थे, िजनम शायद महीन से तेल न पड़ा हो। यह मजूरनी थ जो दन भर
ट और गारा ढो कर घर लौट रही थ । सारे दन उ ह धूप म तपना पड़ा होगा, मािलक
क घुड़ कयाँ और गािलयाँ खानी पड़ी ह गी। शायद दोपहर को एक-एक मु ी चबेना खा
कर रह गई ह । फर भी कतनी स थ , कतनी वतं । इनक इस स ता का, इस
वतं ता का या रह य है?
३
िम. िस हा उन आदिमय म ह िजनका आदर इसिलए होता है क लोग उनसे डरते ह। उ ह
देख कर सभी आदमी आइए, आइए, करते ह,ले कन उनके पीठ फे रते ही कहते ह - बड़ा ही
मूजी आदमी है, इसके काटे का मं नह । उनका पेशा है मुकदमे बनाना। जैसे किव एक
क पना पर पूरा का िलख डालता है, उसी तरह िस हा साहब भी क पना पर मुकदम
क सृि कर डालते ह। न जाने वह किव य नह ए। मगर किव हो कर वह सािह य क
चाहे िजतनी वृि कर सकते, अपना कु छ उपकार न कर सकते। कानून क उपासना करके
उ ह सभी िसि याँ िमल गई थ । शानदार बँगले म रहते थे, बड़े-बड़े रईस और ाम से
दो ताना था, ित ा भी थी। रोब भी था। कलम म ऐसा जादू था क मुकदमे म जान डाल
देते। ऐसे-ऐसे संग सोच िनकालते, ऐसे-ऐसे च र क रचना करते क क पना सजीव हो
जाती थी। बड़े-बड़े घाघ जज भी उसक तह तक न प च ँ सकते। सब कु छ इतना
वाभािवक, इतना संब होता था क उस पर िम या का म तक न हो सकता था। वह
संतकु मार के साथ के पढ़े ए थे। दोन म गहरी दो ती थी। संतकु मार के मन म एक भावना
उठी और िस हा ने उसमे रं ग प भर कर जीता-जागता पुतला खड़ा कर दया और आज
मुकदमा दायर करने का िन य कया जा रहा है।
िस हा ने आ ासन दया - तुम नाहक डरते हो। म कहता ँ हमारी फतेह है। ऐसी सैकड़
नजीर मौजूद ह िजसम बेट -पोत ने बैनामे मंसूख कराए ह। प शहादत चािहए और उसे
जमा करना बाएँ हाथ का खेल है।
- तो आज शाम को आना लब म।
- ज र आऊँगा।
- पए का बंध भी करना।
- वह तो करना ही पड़ेगा।
इस तरह संतकु मार और िस हा दोन ने मुहािसरा डालना शु कया। संतकु मार न लंपट
था, न रिसक, मगर अिभनय करना जानता था। पवान भी था, जबान का मीठा भी,
दोहरा शरीर, हँसमुख और जहीन चेहरा, गोरा-िच ा। जब सूट पहन कर छड़ी घुमाता आ
िनकलता तो आँख म खुब जाता था। टेिनस, ि ज आ द फै शनेबल खेल म िनपुण था ही,
ित बी से राह-र म पैदा करने म उसे देर न लगी। ित बी यूिनव सटी के पहले साल म थी,
ब त ही तेज, ब त ही मग र, बड़ी हािजरजवाब। उसे वा याय का शौक न था, ब त
थोड़ा पढ़ती थी, मगर संसार क गित से वा कफ थी, और अपनी ऊपरी जानकारी को
िव ा का प देना जानती थी। कोई िवषय उठाइए, चाहे वह घोर िव ान ही य न हो,
उस पर भी वह कु छ-न-कु छ आलोचना कर सकती थी। कोई मौिलक बात कहने का उसे
शौक था और ांजल भाषा म। िमजाज म नफासत इतनी थी क सलीके या तमीज क जरा
भी कमी उसे अस थी। उसके यहाँ कोई नौकर या नौकरानी न ठहरने पाती थी। दूसर
पर कड़ी आलोचना करने म उसे आनंद आता था, और उसक िनगाह इतनी तेज थी क
कसी ी या पु ष म जरा भी कु िच या भ डापन देख कर वह भ ह से या ओठ से अपना
मनोभाव कट कर देती थी। मिहला के समाज म उसक िनगाह उनके व ाभूषण पर
रहती थी और पु ष-समाज म उनक मनोवृि क ओर। उसे अपने अि तीय प-लाव य
का ान था और वह अ छे-से पहनावे से उसे और भी चमकाती थी। जेवर से उसे िवशेष
िच न थी, य िप अपने संगारदान म उ ह चमकते देख कर उसे हष होता था। दन म
कतनी ही बार वह नए-नए प धरती थी। कभी बैतािलय का भेस धारण कर लेती थी,
कभी गुज रय का,कभी कट और मोजे पहन लेती थी। मगर उसके मन म पु ष को
आक षत करने का जरा भी भाव न था। वह वयं अपने प म म थी।
संतकु मार ने हसरत के साथ कहा - छोड़ कै से दूँ िमस ि वेणी, समाज म रह कर समाज के
कानून तो मानने ही पड़गे। फर पु पा का इसम या कसूर है? उसने तो अपने आपको नह
बनाया। ई र ने या सं कार ने या प रि थितय ने जैसा बनाया वैसी बन गई।
- मुझे ऐसे आदिमय से जरा भी सहानुभूित नह जो ढोल को इसिलए पीट क वह गले पड
गई है। म चाहती ँ वह ढोल को गले से िनकाल कर कसी खंदक म फक द। मेरा बस चले
तो म खुद उसे िनकाल कर फक दू।ँ
फर उदारता के भाव से बोले - यह बड़ा टेढ़ा सवाल है, कु मारी जी। समाज क नीित
कहती है क चाहे पु पा को देख कर रोज मेरा खून ही य न जलता रहे और एक दन म
इसी शोक म अपना गला य न काट लूँ, ले कन उससे कु छ नह हो सकता, छोड़ना तो
असंभव है। के वल एक ही ऐसा आ ेप है िजस पर म उसे छोड़ सकता ,ँ यानी उसक
बेवफाई। ले कन पु पा म और चाहे िजतने दोष ह यह दोष नह है।
उसने बूढ़े नौकर के दोन कान गमा दए और ध ा दे कर बोली - िबलकु ल गावदी है, िनरा
प गा, जैसे दमाग म गोबर भरा आ है।
बूढ़ा नौकर ब त दन का था। वािमनी उसे ब त मानती थ । उनके देहांत होने के बाद
उसे कोई िवशेष लोभन न था, य क इससे एक-दो पया यादा वेतन पर उसे नौकरी
िमल सकती थी, पर वािमनी के ित उसे जो ा थी वह उसे इस घर से बाँधे ए थी।
और यहाँ अनादर और अपमान सब कु छ सह कर भी वह िचपटा आ था। सब-जज साहब
भी उसे डाँटते रहते थे, पर उनके डाँटने का उसे दुख न होता था। वह उ म उसके जोड़ के
थे। ले कन ि वेणी को तो उसने गोद िखलाया था। अब वही ित बी उसे डाँटती थी और
मारती भी थी। इससे उसके शरीर को िजतनी चोट लगती थी उससे कह यादा उसके
आ मािभमान को लगती थी। उसने के वल दो घर म नौकरी क थी। दोन ही घर म
लड़ कयाँ भी थ , ब एँ भी थ । सब उसका आदर करती थ । ब एँ तो उससे लजाती थ ।
अगर उससे कोई बात िबगड़ भी जाती तो मन म रख लेती थ । उसक वािमनी तो आदश
मिहला थी। उसे कभी कु छ न कहा। बाबू जी कभी कु छ कहते तो उसका प ले कर उनसे
लड़ती थी। और यह लड़क बड़े-छोटे का जरा भी िलहाज नह करती। लोग कहते ह पढ़ने
से अ ल आती है। यही है वह अ ल। उसके मन म िव ोह का भाव उठा - य यह अपमान
सहे? जो लड़क उसक अपनी लड़क से भी छोटी हो,उसके हाथ य अपनी मूँछ
नुचवाए? अव था म भी अिभमान होता है जो संिचत धन के अिभमान से कम नह होता।
वह स मान और ित ा को अपना अिधकार समझता है, और उसक जगह अपमान पा
कर ममाहत हो जाता है।
बैरा ने चाय मेज पर रख दी। ित बी ने याली संतकु मार को दी और िवनोद भाव से बोली
- तो अब मालूम आ क औरत ही पित ता नह होत , मद भी प ी त वाले होते ह।
- उस पर भी तो पु ष पर आ ेप कए जाते ह।
य?
- आपके ऊपर मुझे सचमुच दया आती है। य न एक दन उनसे कसी तरह मेरी मुलाकात
करा दीिजए। शायद म उ ह रा ते पर ला सकूँ
संत कु मार ने ऐसा लंबा मुँह बनाया जैसे इस ताव से उसके मम पर चोट लगी है।
- यह भावुकता नह , मन के स े भाव ह।
- जी नह , उनम अपवाद भी ब त ह।
बोला - कतनी ही बार। िबलकु ल यही मेरे िवचार ह। म आपसे उससे ब त िनकट ,ँ
िजतना समझता था।
- आप भी तो आज ही खुली ह।
- म डरती ँ क लोग यही कहगे आप इतनी शान से रहती ह, और बात ऐसी करती ह।
अगर कोई ऐसी तरक ब होती िजससे मेरी यह अमीराना आदत छू ट जात तो म उसे ज र
काम म लाती। इस िवषय क आपके पास कु छ पु तक ह तो मुझे दीिजए। मुझे आप अपनी
िश या बना लीिजए।
संतकु मार ने रिसक भाव से कहा - म तो आपका िश य होने जा रहा था। और उसक ओर
ममभरी आँख से देखा।
संत कु मार ने खाई भरे वर म कहा - ि याँ पु ष से यादा दलेर होती ह, िमस
ि वेणी।
संतकु मार ने उतरे ए मुख से कहा - उसका समय आ रहा है और उठ खड़े ए। यहाँ क
वायु म उनका जैसे दम घुटने लगा था। उनका कपटी मन इस िन कपट, सरल वातावरण म
अपनी अधमता के ान से दबा जा रहा था जैसे कसी धमिन मन म अधम िवचार घुस
तो गया हो पर वह कोई आ य न पा रहा हो
ित बी ने आ ह कया - कु छ देर और बै ठए न?
- कब आइएगा?
- ज द ही आऊँगा।
संत कु मार बरामदे से कू द कर नीचे उतरे और तेजी से हाते के बाहर चले गए। ित बी
बरामदे म खड़ी उ ह अनुर ने से देखती रही। वह कठोर थी, चंचल थी, दुलभ थी,
पग वता थी, चतुर थी, कसी को कु छ समझती न थी, न कोई उसे ेम का वाँग भर कर
ठग सकता था, पर जैसे कतनी ही वे या म सारी आसि य के बीच म भि -भावना
िछपी रहती है, उसी तरह उसके मन म भी सारे अिव ास के बीच म कोमल, सहमा आ,
िव ास िछपा बैठा था और उसे पश करने क कला िजसे आती हो वह उसे बेवकू फ बना
सकता था। उस कोमल भाग का पश होते ही वह सीधी-सादी, सरल िव ासमयी, कातर
बािलका बन जाती थी। आज इ फाक से संतकु मार ने वह आसन पा िलया था और अब वह
िजस तरफ चाहे उसे ले जा सकता है, मानो वह मे मराइज हो गई थी। संतकु मार म उसे
कोई दोष नह नजर आता। अभािगनी पु पा इस स यपु ष का जीवन कै सा न कए
डालती है। इ ह तो ऐसी संिगनी चािहए जो इ ह ो सािहत करे , हमेशा इनके पीछे-पीछे
रहे। पु पा नह जानती वह इनके जीवन का रा बन कर समाज का कतना अिन कर
रही है और इतने पर भी संतकु मार का उसे गले बाँधे रखना देव व से कम नह । उनक वह
कौन-सी सेवा करे , कै से उनका जीवन सुखी करे ।
४
संतकु मार यहाँ से चले तो उनका दय आकाश म था। इतनी ज दी देवी से उ ह वरदान
िमलेगा इसक उ ह ने आशा न क थी। कु छ तकदीर ने ही जोर मारा, नह तो जो युवती
अ छे-अ छ को उँ गिलय पर नचाती है, उन पर य इतनी भि करती। अब उ ह िवलंब
न करना चािहए। कौन जाने कब ित बी िव हो जाए और यह दो ही चार मुलाकात म
होनेवाला है। ित बी उ ह काय- े म आगे बढ़ने क ेरणा करे गी और वह पीछे हटगे।
वह मतभेद हो जाएगा। यहाँ से वह सीधे िम. िस हा के घर प च
ँ ।े शाम हो गई थी। कु हरा
पड़ना शु हो गया था। िम. िस हा सजे-सजाए कह जाने को तैयार खड़े थे। इ ह देखते ही
पूछा -
- कधर से?
- वह से। आज तो रं ग जम गया।
- सच।
- हाँ, हाँ म तो चलूँगा ही मगर तुम तो बड़े खुशनसीब िनकले - यह िमस कामत तो मुझसे
सचमुच आिशक कराना चाहती है। म तो वाँग रचता ।ँ और वह समझती है, म उसका
स ा ेमी ।ँ जरा आजकल उसे देखो, मारे ग र के जमीन पर पाँव ही नह रखती। मगर
एक बात है, औरत समझदार है। उसे बराबर यह चंता रहती है म उसके हाथ से िनकल न
जाऊँ, इसिलए मेरी बड़ी खाितरदारी करती है, और बनाव- संगार से कु दरत क कमी
िजतनी पूरी हो सकती है उतनी करती है। और अगर कोई अ छी रकम िमल जाए तो शादी
कर लेने ही म या हरज है।
दूसरे दन दोन िम ने देवकु मार के सामने सारे मंसूबे रख दए। देवकु मार को एक ण
तक तो अपने कान पर िव ास न आ। उ ह ने व छंद, िनभ क, िन कपट जंदगी
तीत क थी। कलाकार म एक तरह का जो आ मािभमान होता है, उसने सदैव उनको
ढाढ़स दया था। उ ह ने तकलीफ उठाई थ , फाके भी कए थे, अपमान सहे थे, ले कन
कभी अपनी आ मा को कलुिषत न कया था। जंदगी म कभी अदालत के ार तक ही नह
गए। बोले - मुझे खेद होता है क तुम मुझसे यह ताव कै से कर सके और इससे यादा दुख
इस बात का है क ऐसी कु टल चाल तु हारे मन म आई य कर।
देवकु मार ने सतक हो कर कहा - समाज अपनी मयादा पर टका आ है। उन मयादा
को तोड़ दो और समाज का अंत हो जाएगा।
देवकु मार ने लाचार हो कर कहा - तो आिखर तुम लोग मुझे या करने को कहते हो?
िस हा ने संतकु मार को डाँटा - या फजूल क बात करते हो, संत कु मार! बाबू जी को दो-
चार दन सोचने का मौका दो। तुम अभी कसी ब े के बाप नह हो। तुम या जानो बाप
को बेटा कतना यारा होता है। वह अभी कतना ही िवरोध कर, ले कन जब नािलश
दायर हो जाएगी तो देखना वह या करते ह। हमारा दावा यही होगा क िजस व आपने
यह बैनामा िलखा, आपके होश-हवास ठीक न थे, और अब भी आपको कभी-कभी जुनून का
दौरा हो जाता है। हंद ु तान जैसे गम मु क म यह मरज ब त को होता है, और आपको भी
हो गया तो कोई आ य नह । हम िसिवल सजन से इसक तसदीक करा दगे।
देवकु मार ने िहकारत के साथ कहा - मेरे जीते-जी यह धाँधली नह हो सकती। हरिगज
नह । मने जो कु छ कया सोच-समझ कर और प रि थितय के दबाव से कया। मुझे उसका
िबलकु ल अफसोस नह है। अगर तुमने इस तरह का कोई दावा कया तो उसका सबसे बड़ा
िवरोध मेरी ओर से होगा, म कहे देता ।ँ
- जी हाँ, आप पागल ह। आपके होश बजा नह ह। ऐसी बात पागल ही कया करते ह।
पागल वही नह है जो कसी को काटने दौड़े। आम आदमी जो वहार करते ह उसके
िव वहार करना भी पागलपन है।
- मने बीस पु तक िलख डाल , हजार ा यान दे डाले, यह पागल का काम है?
- िबलकु ल पागल क -सी धमक । संतकु मार, उस दखा त म यह भी िलख देना क आपक
बंदक
ू छीन ली जाए, वरना जान का खतरा है।
उस दन से देवकु मार ने सैर करने जाना छोड़ दया। दन-रात घर म मुँह िछपाए बैठे
रहते। जैसे सारा कलंक उनके माथे पर लगा हो। नगर और ांत के सभी िति त,
िवचारवान आदिमय से उनका दो ताना था, सब उनक स नता का आदर करते थे।
मानो वह मुकदमा दायर होने पर भी शायद कु छ न कहगे। ले कन उनके अंतर म जैसे चोर-
सा बैठा आ था। वह अपने अहंकार म अपने को आ मीय क भलाई-बुराई का िज मेदार
समझते थे। िपछले दन जब सूय हण के अवसर पर साधुकुमार ने बढ़ी ई नदी म कू द
कर एक डू बते ए आदमी क जान बचाई थी, उस व उ ह उससे कह यादा खुशी ई
थी िजतनी खुद सारा यश पाने से होती। उनक आँख म आँसू भर आए थे, ऐसा लगा था
मानो उनका म तक कु छ ऊँचा हो गया है, मानो मुख पर तेज आ गया है। वही लोग जब
संत कु मार क िचतकबरी आलोचना करगे तो वह कै से सुनगे?
उधर िसिवल सजन को गाँठना था, इधर िम. मिलक को। शहादत भी तैयार करनी थ ।
इ ह तैया रय म सारा दन गुजर जाता था। और पए का इं तजाम भी करना ही था।
देवकु मार सहयोग करते तो यह सबसे बड़ी बाधा हट जाती पर उनके िवरोध ने सम या को
और ज टल कर दया था। संतकु मार कभी-कभी िनराश हो जाता। कु छ समझ म न आता
या करे । दोन िम देवकु मार पर दाँत पीस-पीस कर रह जाते।
संतकु मार कहता - जी चाहता है इ ह गोली मार दू।ँ म इ ह अपना बाप नह , श ु समझता
।ँ
िस हा समझाता - मेरे दल म तो भई, उनक इ त होती है। अपने वाथ के िलए आदमी
नीचे से नीचा काम कर बैठता है, पर यािगय और स यवा दय का आदर तो दल म
होता ही है। न जाने तु ह उन पर कै से गु सा आता है। जो ि स य के िलए बड़े से बड़ा
क सहने को तैयार हो वह पूजने के लायक है।
- उ ह पागलखाने भेजना इतना आसान नह िजतना तुम समझते हो। और इसक कोई
ज रत भी तो नह । हम यह सािबत करना चाहते ह क िजस व बैनामा आ वह अपने
होश-हवास म न थे। इसके िलए शहादत क ज रत है। वह अब भी उसी दशा म ह। इसे
सािबत करने के िलए डॉ टर चािहए और िम. कामत भी यह िलखने का साहस नह रखते।
पं देवकु मार को धम कय से झुकाना तो असंभव था, मगर तक के सामने उनक गदन आप-
ही-आप झुक जाती थी। इन दन वह यही सोचते रहते थे क संसार क कु व था य
ह? कम और सं कार का आ य ले कर वह कह न प च ँ पाते थे। सवा मवाद से भी उनक
गु थी न सुलझती थी। अगर सारा िव एका म है तो फर यह भेद य है? य एक
आदमी जंदगी-भर बड़ी-से-बड़ी मेहनत करके भी भूख मरता है, और दूसरा आदमी हाथ-
पाँव न िहलाने पर भी फू ल क सेज पर सोता है। यह सवा म है या घोर अना म? बुि
जवाब देती - यहाँ सभी वाधीन ह, सभी को अपनी शि और साधना के िहसाब से उ ित
करने का अवसर है मगर शंका पूछती -सबको समान अवसर कहाँ है? बाजार लगा आ है।
जो चाहे वहाँ से अपनी इ छा क चीज खरीद सकता है। मगर खरीदेगा तो वही िजसके
पास पैसे ह। और जब सबके पास पैसे नह ह तो सबका बराबर का अिधकार कै से माना
जाए? इस तरह का आ ममंथन उनके जीवन म कभी न आ था। उनक सािहि यक बुि
ऐसी व था से संतु तो हो ही न सकती थी, पर उनके सामने ऐसी कोई गु थी न पड़ी
थी। जो इस को वैयि क अंत तक ले जाती। इस व उनक दशा उस आदमी क -सी
थी जो रोज माग म ईट पड़े देखता है और बच कर िनकल जाता है। रात को कतने लोग
को ठोकर लगती होगी, कतन के हाथ-पैर टू टते ह गे, इसका यान उसे नह आता। मगर
एक दन जब वह खुद रात को ठोकर खा कर अपने घुटने फोड़ लेता है तो उसक िनवारण-
शि हठ करने लगती है। और वह उस सारे ढेर को माग से हटाने पर तैयार हो जाता है।
देवकु मार को वही ठोकर लगी थी। कहाँ है याय? कहाँ है? एक गरीब आदमी कसी खेत से
बाल नोच कर खा लेता है, कानून उसे सजा देता है। दूसरा अमीर आदमी दन-दहाड़े दूसर
को लूटता है और उसे पदवी िमलती है,स मान िमलता है। कु छ आदमी तरह-तरह के
हिथयार बाँध कर आते ह और िनरीह, दुबल मजदूर पर आतंक जमा कर अपना गुलाम
बना लेते ह। लगान और टै स और महसूल और कतने ही नाम से उसे लूटना शु करते
ह, और आप लंबा-लंबा वेतन उड़ाते ह,िशकार खेलते ह, नाचते ह, रं ग-रे िलयाँ मनाते ह।
यही है ई र का रचा आ संसार? यही याय है?
िगरधर दास नए जमाने के आदमी थे, अं ेजी म कु शल, कानून म चतुर, राजनीित म भाग
लेनेवाले, कं पिनय म िह से लेते थे, और बाजार अ छा देख कर बेच देते थे। एक श र का
िमल खुद चलाते थे। सारा कारोबर अं ेजी ढंग से करते थे। उनके िपता सेठ म कूलाल भी
यही सब करते थे, पर पूजा-पाठ, दान-दि णा से ायि त करते रहते थे। िगरधर दास प े
जड़वादी थे, हरे क काम ापार के कायदे से करते थे। कमचा रय का वेतन पहली तारीख
को देते थे, मगर बीच म कसी को ज रत पड़े तो सूद पर पए देते थे। म कूलाल जी
साल-साल भर वेतन न देते थे, पर कमचा रय को बराबर पेशगी देते रहते थे।
िहसाब होने पर उनको कु छ देने के बदले कु छ िमल जाता था। म कूलाल साल म दो-चार
बार अफसर को सलाम करने जाते थे,डािलयाँ देते थे, जूते उतार कर कमरे म जाते थे,
और हाथ बाँधे खड़े रहते थे। चलते व आदिमय को दो-चार पए इनाम दे आते थे।
िगरधर दास युिनिसपल किम र थे, सूट-बूट पहन कर अफसर के पास जाते थे, और
बराबरी का वहार करते थे, और आदिमय के साथ के वल इतनी रयायत करते थे, क
योहार म योहारी दे देते थे, वह भी खूब खुशामद कराके । अपने हक के िलए लड़ना और
आंदोलन करना जानते थे, मगर उ ह ठगना असंभव था।
देवकु मार का यह कथन सुन कर चकरा गए। उनक बड़ी इ त करते थे। उनक कई पु तक
पढ़ी थ , और उनक रचना का पूरा सेट उनके पु तकालय म था। हंदी भाषा के ेमी थे,
और नागरी- चार सभा को कई बार अ छी रकम दान दे चुके थे। पंडा-पुजा रय के नाम
से िचढ़ते थे, दूिषत दान था पर एक पफलेट भी छपवाया था। िलबरल िवचार के िलए
नगर म उनक याित थी। म कूलाल मारे मोटापे के जगह से िहल न सकते थे, िगरधर
दास गठीले आदमी थे, और नगर- ायामशाला के धान ही न थे, अ छे शहसवार और
िनशानेबाज थे।
एक ण तो वह देवकु मार के मुँह क ओर देखते रहे। उनका आशय या है, यह समझ म ही
न आया। फर खयाल आया बेचारे आ थक संकट म ह गे, इससे बुि हो गई है। बेतुक
बात कर रहे ह। देवकु मार के मुख पर िवजय का गव देख कर उनका यह खयाल और
मजबूत हो गया।
- जी हाँ।
- आप जानते ह, म ल मी के उपासक म नह ।ँ
देवकु मार सकु चाते ए बोले - अजी वही, जो सेठ म कूलाल ने मुझसे िलखाई थी।
- उसी मामले म लड़के आपके उपर कोई दावा करनेवाले ह। मने ब त समझाया, मगर
मानते नह । आपके पास इसीिलए आया था क कु छ ले-दे कर समझौता कर लीिजए,
मामला अदालत म य जाए? नाहक दोन जेरबार ह गे।
िगरधर दास का जहीन, मुरौवतदार चेहरा कठोर हो गया। िजन महाजनी नख को उ ह ने
भ ता क नम ग ी म िछपा रखा था, वह यह खटका पाते ही पैने और उ हो कर बाहर
िनकल आए।
ोध को दबाते ए बोले - आपको मुझे समझाने के िलए यहाँ आने क तकलीफ उठाने क
कोई ज रत न थी। उन लड़क ही को समझाना चािहए था।
- उ ह तो म समझा चुका।
देवकु मार ने भी छड़ी उठा कर कहा - मुझे भी न मालूम था क आपके वाथ का पेट इतना
गहरा है।
- कु छ परवाह नह ।
संतकु मार ऐसा खुश था गोया आधी मंिजल तय हो गई। बोला - आपने खूब उिचत जवाब
दया।
- छह महीने के अंदर।
मगर सम या थी, पए कहाँ से आएँ। देवकु मार िन पृह आदमी थे। धन क कभी उपासना
नह क । कभी इतना यादा िमला ही नह क संचय करते। कसी महीने म पचास जमा
होते तो दूसरे महीने म खच हो जाते। अपनी सारी पु तक का कॉपीराइट बेच कर उ ह
पाँच हजार िमले थे। वह उ ह ने पंकजा के िववाह के िलए रख दए थे। अब ऐसी कोई
सूरत नह थी जहाँ से कोई बड़ी रकम िमलती। उ ह ने समझा था संतकु मार घर का खच
उठा लेगा। और वह कु छ दन आराम से बैठगे या घूमगे। ले कन इतना बड़ा मंसूबा बाँध कर
वह अब शांत कै से बैठ सकते ह? उनके भ क काफ तादाद थी। दो-चार राजे भी उनके
भ म थे िजनक यह पुरानी लालसा थी क देवकु मार जी उनके घर को अपने चरण से
पिव कर और वह अपनी ा उनके चरण म अपण कर। मगर देवकु मार थे क कभी
कसी दरबार म कदम नह रखा, अब अपने ेिमय और भ से आ थक संकट का रोना
रो रहे थे, और खुले श द म सहायता क याचना कर रहे थे। वह आ मगौरव जैसे कसी
क म सो गया हो।
सहसा उ ह एक आ य िमल गया और उनके िवचारशील, पीले मुख पर हलक -सी सुख
दौड़ गई। यह दान नह , ािवडट फं ड है जो आज तक उनक आमदनी से कटता रहा है।
या वह दान है? उ ह ने जनता क सेवा क है, तन-मन से क है, इस धुन से क है, जो
बड़े-से-बड़े वेतन से भी न आ सकती थी। पशन लेने म या लाज आए?
राजा साहब ने जब थैली भट क तो देवकु मार के मुँह पर गव था, हष था, िवजय थी।
लेखक प रचय
े च द का ज म ३१ जुलाई सन् १८८० को बनारस शहर से चार मील दूर समही गाँव म
म
आ था। आपके िपता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने म मामूली नौकर के तौर
पर काम करते थे। आपके िपता ने के वल १५ साल क आयू म आपका िववाह करा दया।
िववाह के एक साल बाद ही िपताजी का देहा त हो गया। अपनी गरीबी से लड़ते ए
ेमच द ने अपनी पढ़ाई मै क तक प च ं ाई। जीवन के आरं भ म आप अपने गाँव से दूर
बनारस पढ़ने के िलए नंगे पाँव जाया करते थे। तेरह वष क उ म से ही ेमच द ने
िलखना आरं भ कर दया था। शु म आपने कु छ नाटक िलखे फर बाद म उदू म उप यास
िलखना आरं भ कया। इस तरह आपका सािहि यक सफर शु आ जो मरते दम तक साथ
- साथ रहा। सन् १९३६ ई० म ेमच द बीमार रहने लगे। अपने इस बीमार काल म ही
आपने " गितशील लेखक संघ" क थापना म सहयोग दया। आ थक क तथा इलाज
ठीक से न कराये जाने के कारण ८ अ टू बर १९३६ म आपका देहा त हो गया। और इस
तरह वह दीप सदा के िलए बुझ गया िजसने अपनी जीवन क ब ी को कण-कण जलाकर
भारतीय का पथ आलो कत कया।
Mangal Sutra