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वं श: हे लो, नमस्कार, केम छो, काय कसं ?

हम वं श झा और [ऋतु जा कांबले ] आप सभी का


स्वागत करते हैं इस प्यारी सी, शानदार सी, झिलमिलाती सी सु बह में जिसे ख़ास हमारे
विद्यालय के विद्यार्थियों ने आप लोगों को रिझाने के लिए सजाया हैं .

ऋतु जा: सर्व प्रथम हम श्री ज.प. सर को धन्यवाद् दे ना चाहें गे की उन्होंने इस कार्यक् रम
के आयोजन तथा प्रदर्शनों के परिचय दे ने में हमारी सहायता की. यहां पर उपस्थित सभी
जनो को हमारी ओर से हिं दी दिवस की ढे र सारी शु भकामनाये . तो चलिए बिना और समय
बिताये हुए शु रू करते हैं इस अद्भुत कार्यक् रम को एक बार फिर.

वं श: एक किंवदं ती ने एक बार कहा था, "स्किट उस वास्तविकता का दर्पण है जिसका हम


लगातार सामना कर रहे हैं " इसे उद्धत
ृ करते हुए, मैं 10 वीं कक्षा के अपने छात्रों को
लोकप्रिय नाटक दीप दान से प्रेरित एक नाटक करने के लिए बु लाना चाहता हं ।ू उनका
इस मं च पर ज़ोरदार तालियों से स्वागत करिये .

क्या बात है , वाकई में इतनी शानदार pradarshan दे खने के बाद मु झे तो बस एक दी बात
बार-बार दिल में आ रही है , कि

वो खु द ही नाप ले ते हें बु लं दी आसमानों की,

परिं दों को नहीं तालीम दी जाती उड़ानों की…

महकना और महकाना तो काम है खु शबु का,

खु शबु नहीं मोहताज़ होती क़द्रदानों की…


ऋतु जा: अब, आज के हमारे मु ख्य अतिथि, श्री आनं द सिं ह के सं क्षिप्त भाषण का समय
है । मैं अब श्रीमान को मच पर आमं त्रित करना चाहं ग
ू ी.

मिलते तो बहुत लोग है ज़िन्दगी की राहों में , *२

ले किन हर किसी में आप जै सी बात नहीं होती….

धन्यवाद् सर आपके यह शब्द हमारे लिए ज़रूर सार्थक साबित होंगी.

वं श: अब मैं हमारे आज के विशिष्ट अतिथि, श्री उदय मौर्या सिं ह का मं च पर दो शब्द


कहने केलिए स्वागत करना चाहं ग ू ा. आपके इस प्रेरक भाषण से एक शे र याद आ गया . तो
कवी ने कुछ यु कहाँ हैं की.....

अपनी एक ज़मी, अपना एक आकाश पै दा कर,

तू अपने लिए एक नया इतिहास पै दा कर…

मां गने से कब मिली है ख़ु शी मे रे दोस्त,

तू अपने हर कदम पर विश्वास पै दा कर||

ऋतु जा: अब वह समय आ गया हैं जब हम हमारे विद्यालय के बच्चो में इनाम का वितरण
कर उन्हें प्रोत्साहित करे . तो चलिए एक सूं दर से शे र के साथ शु रुवात करते हैं पु रुस्कार
वितरण का:

क्या सफलता पाएं गे वो जो निर्भर रहते गै रों पर, सफलता तो वो पाते जो रहते अपने पै रो
पर. तो इसी के साथ हमारे कार्यक् रम के पहले भाग का समपान हुआ . इस बात से एक गाना
याद आ रहा है की

एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जायें गे प्यारे ते रे बोल... तो चलिए अब
शु रुवात करते अपने आजके इस शानदार कार्यक् रम के द्वितीय सत्र के साथ . इस
आनं दमय समय को जारी रखते हुए, मैं इस मं च पर अब बु लाना चाहं ग
ू ा
________________ एक कविता प्रस्तु त करने .

वं श: शानदार, आपकी इस कविता ने हम सब की आँ खें खोल दी. जी हाँ , गरीबी, यह हमारे


दे श की बहुत बड़ी सामाजिक बु राई हैं . स्वतं तर् ता के ७० साल बाद भी यह हमारे दे श से
पूर्ण तरह से विलु प्त नहीं हुई है . आज हम सब अपने दे ष के सं सद से मां गते हैं उत्तर... मैं
सभी भ्रष्टाचारियों के लिए एक शे र समर्पित करना चाहता हं ू अर्ज़ हैं के यहाँ तहज़ीब
बिकती हैं यहाँ फरमान बिकती हैं ,

ज़रा तु म दाम तो बोलो, यहाँ तो ईमान भी बिकते हैं ....

ऋतु जा: आगे बढ़ते हुए, आइये समझते हैं की एक विकसित दे श हमारे अपने दे श भारत से
किस प्रकार भिन्न हैं . तो अब मैं मं च पर आमं त्रित करना चाहं ग
ू ी गु रु तथा हरिराम को.

एक बार ज़ोरदार तालियां हो जाये हमारे गु रु तथा हरिराम केलिए!!

वं श: अब मैं श्री जप पांडेय सर को मं च पर आमं त्रित करना चाहं ग


ू ा ताकि वे अपने चं द
शब्दों से आज के इस कार्यक् रम का निष्कर्ष करे .

ऋतु जा: धन्यवाद् सर.

वं श: अब हम बु लाना चाहें गे हमारे अध्यक्ष श्री ____________ ताकि वे अपने कुछ


ू ा की कृपया इस मं च पर
शब्दों से हम सभी को प्रोत्साहित करे . मैं आपसे अनु रोध चाहँ ग
आए.

ऋतु जा: धन्यवाद् सर. आपके यह बोल हमारे लिए ज़रूर फायदे मंद साबित होंगे . एक बार
तालियों की आवाज आप सभी के नाम होनी चाहिए क्योंकि आपने इतने गं भीर कार्यक् रम
में इतनी ऊर्जा और उत्साह के साथ भाग लिया। शु क्रिया
वं श: आपके सहयोग से आज के कार्यक् रम में आ गया हैं बड़ा स्वाद, मे रे दिल के हर एक
धड़कन से निकलता है धन्यवाद् धन्यवाद् धन्यवाद्!

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