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सड़कों के गड्‌ढे

दशहरा और दिवाली जैसे त्योहार करीब है और इन सड़कों की बदहाली दरू होने के बजाए दिन ब दिन बढ़ते ही
जा रही है ।
सड़क पर गड्ढें है या गड्ढों में सड़कें ये कह पाना जरा मुश्किल सा है पर प्रशासन की नजर में सब बढ़िया है ।
लोगों को भी मानो आदत सी हो गई है उछलते कूदते अपनी मंजिल तक पहुंचने की। आखिर कब तक ये झेलना
पड़ेगा ये कह पाना आसान नहीं है इसलिए जनता ने आदत डाल ली है पर सवाल वही है की आखिर कब ये गड्ढें
भरें गे? जब सरकार अपने जेब भरना बंद करें और सड़कों की मरम्मत में पैसा लगाए।

इन गड्ढों की वजह से कितने हादसे होते है कभी कभी लोगों की जान तक चली जाती है पर फिर भी सरकार की
आंखें नहीं खुलती। कोरोना काल के बाद इस साल जितनी रौनक बाजारों में है उतनी ही चमक हर व्यक्ति के
चेहरों पर है त्योहारों का अलग ही उत्साह है सबके मन में पर इन गड्ढों की वजह से परे शानी बढ़ गई है मां काली
के स्वांग में हजारों की तादात में लोग सड़कों पर इक्कठा होते हैं और इतनी भीड़ में ये गड्ढें हादसे का कारण बन
सकते हैं अगर अज्ञातवश किसी का पैर अचानक से गड्ढे में चला गया तो व्यक्ति के पैरों में चोट आ सकती है
और यह गंभीर रूप भी ले सकता है
इतना ही नहीं बारिश होने पर इन गड्ढों में पानी भर जाता है और जलभराव की स्थिति बन जाती है जिससे
लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है वाहन भी इन्हीं रास्तों के गुजरते है स्कूल बस व ट्रॉली आदि
भी इन्ही गड्ढों भरी सड़कों से निकलते है यदि किसी वाहन का एक पहिया इन गड्ढों में घुस गया तो गाड़ी पलट
जाएगी और व्यक्ति घायल हो जाएगा। अगर दे खा जाए तो समस्या बड़ी है और सरकार भी इसका उपाय
निकालती है सड़कों की मरम्मत करा के परं तु सरकार और जनता के बीच में जो ईमानदार लोग है वो अपनी
जेबों की मरम्मत में व्यस्त हो जाते हैं, इन गड्ढों में गिट्टी और मिट्टी डाल कर उसे भर दे ते हैं और काम चलाऊ
काम कर के अपना पलड़ा झाड़ लेते है । जैसे ही कुछ गाड़ियां इन पर से गुजरती है सड़कें अपने असली रूप में
आना शुरू हो जाती हैं और दे खते ही दे खते नजारा बदल जाता है इन गड्ढों से फिर हमारी मुलाकात हो ही जाती है
हर चार कदम की दरू ी पर एक गड्ढा है सरकार द्वारा हर चीज पर टै क्स और जीएसटी लगाई गई है यदि जनता
को सुविधा नहीं तो जनता पर टै क्स और जीएसटी कैसी/कैसा ? कब दरू होगी आम नागरिक कि दवि
ु धा और
ु धा?
उन्हें मिलेगी उनके हक कि सवि
कब तक लोग अपनी जान पर खेल कर इन गड्ढों भरे रास्ते का सामना करें गें?
सरकार करोड़ों रुपए लगा कर सड़क बनवाती है और ये सड़कें महीने भर भी नही चल पाती। अब शास्त्री पुल को
ही दे ख लिजिए न जाने कितनी बार वहां की सड़कों में गड्ढा हुआ फिर उन गड्ढों को भरने में महीनों भर का
समय लगा और बस उसके हफ्ते भर बाद बहुत मशक्कत के बाद गड्ढों ने जंग जीती है और फिर से आ कर
सरकार को हरा दिया ये सिलसिला कब तक चलेगा यह कोई नहीं जानता पर इतना जरूर है कि प्रशासन जेबों की
मरम्मत की जगह सड़कों की मरम्मत पर ध्यान दें तो कुछ हो सकता है
आज के समय में भ्रष्ृ टाचार इतना बढ़ गया है की ईमानदारी की बात करने वाले को बेवकूफ और बेईमानी करने
वाले को होशियार घोषित कर दिया जाता है अपने काम के प्रति यदि लोग ईमानदार हो जाए तो हमारा दे श बहुत
आगे जा सकता है पर इस तरह की सड़क बना कर,अपने काम से पलड़ा झाड़ कर लोग अपने ही दे ख को खोखला
कर रहें हैं जिस डाल पर बैठें है उसी डाल को काट रहें हैं। आम जनता की जान को जोखिम में डाल रहें हैं ।
न जाने कब इनको होश आएगा और इस समस्या से निजात मिलेगा

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