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बिन पानी सब सून

आज मैं बिन पानी सब सुन पर अपने विचार प्रस्तुत करने जा रही हूँ।
 
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।
 
जल के अभाव में सृष्टि की कल्पना करना व्यर्थ है। आज के जीवन में बढ़ते जल संकट को लेकर रहीम जी का यह दोहा सच प्रतीत हो रहा है।
 
पर्यावरण के जाने माने विद्वान सुंदरलाल बहुगुणा का कहना कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर लड़ा जाए, भविष्य में पानी के भयावह संकट
की चेतावनी देते हैं।
 
अगर पानी नहीं तो सब बेकार, सब शुन्य! बिना पानी के खेतों में पैदावार कै से होगी? आपके शरीर, घर-आंगन और गली-मोहल्ले की सफाई
कै से होगी? आपकी और आपके जीवन-साथी ढोर पशुओं की प्यास कै से बुझेगी? सफाई नहीं होगी, प्यास नहीं बुझेगी, तो स्वास्थ्य कै से ठीक
रहेगा।
 
हम यह भी जानते हैं कि हमारे पास उस समय की तुलना में आज बहुत अधिक सुविधाएं हैं।आज कवि या साहित्यकार जल-संरक्षण के लिए
पुकार नहीं करते! लोग आकाश की ओर हाथ फै लाकर प्रकृ ति से पानी प्रदान करने के लिए प्रार्थना नहीं करते। क्या करते हैं – जगह-जगह
जुलूस निकालकर, नारे लगाकर पानी की कमी के लिए सरकार को कोसते हैं।
आज घर-घर में पानी के नल हैं। जगह-जगह बड़े-बड़े ट्यूबेल और पानी के टैंक हैं।
 
फिर भी फिर भी कठिनाई यह है कि हमारी आवश्यकताओं के अनुसार हमें पूरा पानी नहीं मिलता। कहते हैं – जल ही जीवन है। जब जल ही
नहीं तो जीवन का क्या होगा? सचमुच बड़ी सोचनीय स्थिति है!
 
अब सवाल यह है कि इस समस्या का समाधान कै से हो? हमने जुलूस निकाले, नारे लगाए, कु छ नहीं हुआ। अगर कु छ हुआ हो तो वह यह है
कि हमारी कारों, गाड़ियों, ट्रकों और बसों को चमकाने के लिए हजारों लीटर पानी बह गया, प्यासों का सूखा गला गीला करने को दो घूंट पानी
ना मिला। हमने दांत चमकाने के लिए टू थब्रश किया, एक गिलास पानी की जगह पूरी बाल्टी लगा दी। बाल्टी भरने के लिए नल खोला, पर टीवी
देखने में ऐसे मस्त हुए कि पानी में बह-बहकर गली-मोहल्ले की नालियां भर गई, लेकिन गागर और मटके खाली रह गए। लोटे या गिलास से
नहाने में क्या मजा? फव्वारे की टोटी घुमा दी-सिर पर पानी की सीधी धार पड़ी, मजा आ गया। मन हुआ, घंटा-दो घंटा ऐसे ही जल-धारा के
नीचे बैठे रहें – भले ही बाकी लोग बिन-नहाए और प्यासे ही रह जाएं।
 
तो क्या रहीम ने के वल सरकारी जल-अधिकारियों को ही ‘पानी राखिए’ का उपदेश दिया था? हमारा अधिकार क्या के वल पानी बर्बाद करने
का है? उसके दुरुपयोग से दूसरों को प्यासा मारने का है? पानी बचाकर अपने परिवार, समाज, गांव, नगर और देश के स्वास्थ्य की चिंता
करना क्या हमारा, कर्तव्य नहीं है?
 
साथियों! हमने तो यही सुना है कि हमारे पूर्वज मिल-जुलकर श्रमदान से तालाब और कु ए बनाते थे, ताकि वर्षा ऋतु में पानी सुरक्षित रहें और
आवश्यकता के समय काम आए। हमारी माताएं और बहनें तालाब और कु एं पर पूजा करके जल-देवता की आराधना करती थीं। और हम क्या
कर रहे हैं? तालाबों और कु ओं को पाटकर स्टील और सीमेंट की बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर रहे हैं।
 
धरती माता की जल धारा के उपकार का बदला निर्दयता से चुका रहे हैं! क्या जल सरंक्षण सिर्फ सरकार का कर्त्तव्य है ? क्या हमारा कर्तव्य
के वल आलोचना और भाषण, प्रदर्शन और नारे ही हैं?
 
मैं अधिक क्या कहूं? आप सब बुद्धिमान और विवेकशील है। सोचिए- कै से पानी बचाकर सुनेपन को दूर किया जा सकता है? अंत में मैं पुनः
वही पुरानी पंक्ति दोहरा कर अपना वक्तव्य समाप्त करूं गा- ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून’ धन्यवाद!

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