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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अध्याय 1
ज्योतिषशास्त्र का पतिचय, स्वरूप एवं क्षेत्र
तवनोदकुमाि पाण्डेय
ु उस प्रत्येक दृष्ट अथवा श्रिु , वस्त ु अथवा
तिज्ञासा एक सहि मानवीय प्रवृति है। मनष्य

घटना को िानने की अतिलाषा िखिा है, तिससे तक वह अनतिज्ञ है। मनष्यमात्र के मध्य समस्त
ु की इसी तिज्ञास ु प्रवृति का पतिणाम है। तिज्ञासा तकसी िी क्षेत्र से
ज्ञान-तवज्ञानों का प्राकट्य मनष्य
सम्बद्ध हो सकिी है; तकसी िी प्रकाि की हो सकिी है। यथा - क्यों ! सूय,य तनत्य पूव य तदशा से उतदि
होकि पतिम में अस्त हो िािा है? अस्त होकि सूय य िािा कहााँ है? सूय य की िााँति चन्द्रमा के
उदयास्त का तनतिि समय क्यों नहीं है? क्यों चन्द्रमा की आकृ ति प्रतितदन पतिवर्तिि होिी िहिी है?
पूर्तणमा को अपने पूण य आकाि एवं सम्पूण य गोलीय आकृ ति में द्रष्टव्य चन्द्र अमावास्या को क्यों
दृतष्टगोचि नहीं होिा? आकाशस्थ िािे िातत्र में ही क्यों तदखाई देि े हैं , तदन में क्यों नहीं? अतिकांश
िािे सदैव एक ही स्थान पि क्यों तदखाई नहीं देि?े कुछ िािे िीमे िथा कुछ िेि क्यों चलिे हैं ?
तटमतटमािे िािों के मध्य कुछ िािे तस्थि प्रकाश क्यों देि े हैं ? इत्यातद अनेक प्रकाि की तिज्ञासा हो
सकिी है।
प्राचीनकाल में कुछ ऐसी ही तिज्ञासाओ ं के समािान किने के उद्देश्य से ज्योतिर्तवज्ञान का
य मनीतषयों ने स्वकीय ऋिम्भिा प्रज्ञा के बल पि इस
उद्भव एवं तवकास हुआ होगा। हमािे पूवि
तवज्ञान को तनिन्ति समृद्ध कििे हुए शास्त्रीय रूप तदया।1
ज्योतिषशास्त्र की पतििाषा औि उसका तवकास
् व्यत्पति
ज्योतिषां सूयायतदग्रहाणां बोिकं शास्त्रम इस ु ु सूयायतद ग्रहों औि काल के
के अनसाि
अवबोिक शास्त्र को ज्योतिषशास्त्र कहा िािा है। इसमें प्रिानिः ग्रह, नक्षत्र, िूमके ि ु आतद ज्योतिः
पदाथों का स्वरूप, सञ्चाि, पतिभ्रमणकाल, ग्रहण औि तस्थति प्रिृति समस्त घटनाओ ं का तनरूपण
ु शिाश
एवं ग्रह-नक्षत्रों की गति, तस्थति औि सञ्चािानसाि ु िु फलों का कथन तकया िािा है। कुछ
मनीतषयों का अतिमि है तक निोमण्डल में तस्थि ज्योतिसम्बतिि तवतवितवषयक तवद्या को
ज्योतिर्तवद्या कहिे हैं ; तिस शास्त्र में इस तवद्या का साङ्गोपाङ्ग वणयन िहिा है, वह ज्योतिषशास्त्र है।2
आचयज्योतिषम (ऋक ् -् ज्योतिष) में ज्योतिष को कालतविानशास्त्र तनरूतपि तकया गया है।
िद्यथा - ् 3
िस्मातददं कालतविानशास्त्रं यो ज्यौतिषं वेद स वेद यज्ञान।।

1 ्
डॉ. शिु म शमाय - ब्लॉग - ज्योतिर्तवज्ञान का संतक्षप्त इतिहास
2
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 17
3
लगि - आचयज्योतिषम, ् श्लो. 36

1
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ज्योतिष शब्द की उत्पति भ्वातदगणीय द्यिु ् िाि ु से हुई है, तिसका अथय है - चमकना,
उिला होना, िगमगाना, प्रकाश किना, देदीप्यमान किना, स्पष्ट किना, व्याख्या किना, समझाना,
् ु से ज्योतिष शब्द व्यत्पन्न
अतिव्यक्त किना िथा अथय प्रकट किना।1 द्यिु िाि ु किने के तलए उणातद

इतसन प्रत्यय ु तितसन्नादेििः3 के अनसाि
का तविान हुआ है।2 द्यिे ् ु के आतद वणय दकाि
ु द्यिु िाि

को िकाि आदेश होिा है। पगन्तलघू ु होिा है। इस प्रकाि
पिस्य च4 सूत्र से उपिा के स्वि को गण

उत्पन्न ज्योतिस शब्द ु होिा है।5 अतन्तम सकाि का षकाि होने पि ज्योतिष ्
ं ु कतलङ्ग में प्रयक्त
नपस

शब्द व्यत्पन्न हुआ, तिसमें अत्यन्त स्वार्तथक अथय में अच ् प्रत्यय लगकि ज्योतिष शब्द तनष्पन्न

हुआ। अच प्रत्यय ु
लगने से यह ज्योतिष शब्द पतिङ्ग ु होिा है।6
में प्रयक्त
मेतदनीकोष के अनसाि ु ‘ज्योतिष’ सकािान्त नपस
ं ु कतलङ्ग में ‘नक्षत्र’ अथय में िथा पतिङ्ग
ु में
ु होिा है।7 हलायिकोश
अति औि प्रकाश अथय में प्रयक्त ु ु ज्योतिष में ठक ् प्रत्यय लगने
के अनसाि

पि ज्योतितषकः शब्द व्यत्पन्न होिा है। िो ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन कििा है अथवा उसका ज्ञािा

होिा है, वह ज्योतितषक, दैवज्ञ, ज्योतिषी या ज्योतिषशास्त्रज्ञ कहलािा है।8 शब्दकल्पद्रुम के अनसाि
‘ज्योतिष’ ज्योतिमयय सूयायतद ग्रहों की गति इत्यातद को लेकि तलखा गया वेदाङ्ग शास्त्रतवशेष है। ग्रहों
की गणना, ग्रहण इत्यातद प्रतिपाद्य तवषयों वाले शास्त्र को ‘ज्योतिष’ कहिे हैं ।9
‘वाचस्पत्यम’् के अनसाि ु सूयायतद ग्रहों की गति को िानने वाले िथा ज्योतिषशास्त्र का
य अध्ययन किने वाले व्यतक्त को ‘ज्योतिर्तवद’ कहा िािा है।10
तवतिपूवक
तवश्व के सवायतिक प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में ज्योतिवैज्ञातनक अविािणाओ ं का उिे ख ज्योतिष

की अतिप्राचीनिा को तसद्ध कििा है। वैतदक सातहत्य से लेकि पौिातणक िथा आितनक सातहत्य

1
वामन तशविाम आप्टे - संस्कृि - तहन्दी शब्दकोश, पृ. 488
2
डॉ. िोििाि तिवेदी - आचायय विाहतमतहि का ज्योतिष में योगदान, पृ. 17
3
मध्यतसद्धान्तकौमदु ी, पृ. 313
4
पातणतन - अष्टाध्यायी 7/3/86
5
वामन तशविाम आप्टे - संस्कृि - तहन्दी शब्दकोश, पृ. 424
6
डॉ. िोििाि तिवेदी - आचायय विाहतमतहि का ज्योतिष में योगदान, पृ. 18
7

ज्योतिषििौ तदवाकिे पमान्नप ं ु कदृष्टौ स्यान्नक्षत्रप्रकाशयोः - मेतदनीकोष, पृ. 536

8
ज्योतितषकः - (ज्योतिषं ज्योतिशास्त्रमिीिे वेद वा इति, ठक ् वृतद्धच) दैवज्ञः, ज्योतिषी, ज्योतिषशास्त्रज्ञ। - िट्ट हलायिु -
हलायिु कोश, पृ. 321
9
ज्योतिषं क्ली. (ज्योतिः सूर्य्ायदीनां ग्रहाणां गत्यातदकं प्रतिपाद्यिया अस्त्यस्येति अच।)् वेदाङ्गशास्त्र तवशेषः। िि ग्रहणातद


गणनशास्त्रम इत्यमिटीकायां िििः।’’ - िािा िािाकान्तदेव - शब्दकल्पद्रुम - तििीय खण्ड, पृ. 550
10
िािानाथ िट्ट - वाचस्पत्यम -् िाग - 4, पृ. 3162

2
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

का अध्ययन किने पि ज्योतिष के तवकास की िािा स्पष्ट रूप से पतिलतक्षि होिी है। पिन्त ु आययिट्ट
के पूव य के ज्योतिषीय इतिहास को तकसी तनतिि कालक्रम में वगीकृ ि किना वियमान समय में
अत्यन्त दुष्कि प्रिीि होिा है क्योंतक इस सङ्क्रमणकाल में न िो पािम्पतिक िाििीय कालवगीकिण
े िथा उनसे प्रिातवि इतिहासकािों के मिों को
को सवयमान्य तकया िा सकिा है औि न ही अंग्रि
मनसा मान्यिा दी िा सकिी है। िथातप ज्योतिष के तवकासक्रम के इतिहासलेखन के अनेक प्रयास
हुए हैं । इनमें सवयप्रथम प्रतसद्ध प्रयास श्री शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि का था। इन्होंने अपने ‘िाििीय
ज्योतिष’ ग्रन्थ में ज्योतिषीय इतिहास का अध्ययन िीन कालखण्डों में तकया है। ये हैं - वैतदककाल,
वेदाङ्गकाल िथा तसद्धान्तकाल। दीतक्षि िी वैतदककाल के प्रािम्भ के तवषय में अतनणयय की तस्थति
में िहे, पिन्त ु उनका इिना अवश्य मानना है तक वेद शकपूव य 6000 वषय से नवीन नहीं हैं । इन्होंने
वेदाङ्गकाल का प्रािम्भ शक 1500 से िथा तसद्धान्तकाल का प्रािम्भ शकपूव य 500 वषय से माना है।1
् तिक प्रतसद्ध कालवगीकिण श्री नेतमचन्द्र शास्त्री का िहा। इन्होंने अपनी
दीतक्षि िी के पिाि सवाय

पस्तक ‘िाििीय ज्योतिष’ में ज्योतिषशास्त्र के तवकास के तनम्नतलतखि 6 कालखण्ड माने हैं 2 -
1. अिकािकाल - ई.पूव य 10000 पूव य के पहले का समय
2. उदयकाल - ई.पूव य 10001 से ई.पूव य 500 िक
3. आतदकाल - ई.पूव य 501 से ईस्वी 500 िक
4. य ध्यकाल
पूवम - ईस्वी 501 से ईस्वी 1000 िक
5. उििमध्यकाल - ईस्वी 1001 से ईस्वी 1600 िक
6. ु
आितनककाल - ईस्वी 1601 से ईस्वी 1951 (ग्रन्थ तनमायणकाल) िक
पिन्त ु इस कालवगीकिण के अध्ययन से ज्ञाि होिा है तक शास्त्रीिी ने ि ैन ग्रन्थों को
अत्यतिक महत्त्व तदया है िथा ज्योतिष के इतिहास का प्रािम्भ ‘अिकािकाल’ से तकया है, िो तक

िाििीय सनािन पिम्पिा के तवरुद्ध है। काशी के सप्रतसद्ध आचायय श्री कामेश्वि उपाध्याय तकसी िी
प्रकाि के अिकाियगु को सवयथा नकाििे हैं ।3 श्री नेतमचन्द्र शास्त्री वेदाङ्गज्योतिष, कल्पसूत्र, तनरुक्त,
स्मृति एवं महािािि को ईसा पूव य 500 के पिाि का ् मानिे हैं , िबतक अतिकांश तविानों ने वेदाङ्ग
ज्योतिष को कम से कम 1400 ईसा पूव य का माना है।4 िाििीय सनािन पिम्पिा में महािािि को

1
शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि - िाििीय ज्योतिष, पृ. 192,209
2
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 42
3
डॉ. कामेश्वि उपाध्याय - ज्योतिषशास्त्र, पृ. III,VII
4
सिेु शचन्द्र तमश्र - वेदाङ्गज्योतिषम, ् पृ. 23

3
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

् मोहनगप्तु ने िी महािािि को 1952 ईसा पूव य


3000 ईसा पूव य माना िािा है।1 उज्ज ैन के तविान श्री
् इसी
का माना है।2 प्राचीन तसद्धान्त पञ्चक का काल शास्त्री िी ने ईसा पूव य 500 वषय के पिाि के
आतदकाल में माना है िो तक श्री दीतक्षि की मान्यिा से अत्यतिक मेल खािा है। पूवोक्त िथ्यों को
ध्यान में िखिे हुए यतद वैतदक एवं वेदाङ्गकाल की पूव य मयायदाओ ं पि तवचाि न कििे हुए वेदाङ्गकाल
की उिि मयायदा ईसा पूव य 500 मान ली िावे िो ज्योतिष के इतिहास को सिलिा से अध्ययन किने
हेि ु नवीन तवकासक्रम3 इस प्रकाि बन सकिा है -
1. वैतदककाल अनातदकाल से वेदाङ्गकाल के प्रािम्भ िक
2. वेदाङ्गकाल पूव य मयायदा तनतिि नहीं, उिि मयायदा ईसा पूव य 500
3. आतदकाल ईसा पूव य 499 से ईस्वी 500 िक
य ध्यकाल
4. पूवम ईस्वी 501 से ईस्वी 1000 िक
5. उििमध्यकाल ईस्वी 1001 से ईस्वी 1600 िक
6. आितु नककाल ईस्वी 1600 से वियमान काल िक
यु छहों कालखण्डों में ज्योतिषशास्त्र के तवकास की िािा अनविि बहिी िही।
उपयक्त
वैतदककाल - वैतदक सातहत्य में ऋग्वेद को सवायतिक प्राचीन माना िािा है। ऋग्वेद के कुछ मन्त्रों
ु के
के अध्ययन से ज्ञाि होिा है तक पूव य वैतदक काल में ज्योतिष एक स्विन्त्र तवषय न होकि मनष्य
सामान्य ज्ञान का एक िाग था। ऋग्वेद के मन्त्रों के अवलोकन से उस समय के ज्योतिष ज्ञान के
सम्बि में तनम्नातङ्कि िथ्य स्पष्ट होिे हैं -
सूय य - इस काल के आयों को यह ज्ञान था तक सूय य िातत्र में समद्रु में डूबा िहिा है औि प्रािः काल
में वही सूय य उतदि होकि आिा है। िद्यथा -

यद्देवा यियो यथा िवनान्यतपन्वि।
अत्रा समद्रु आगूळ्हमासूय यमििियन।।4
चन्द्रमा - चन्द्रमा की कलाओ ं के आिाि पि वे मास तनिायिण कििे थे। इसी कािण मास शब्द
चन्द्रमा का पयाययवाची हो गया। िद्यथा -
सूय यमासा तवचिन्ता तदतव।5

1
डॉ. कामेश्वि उपाध्याय - ज्योतिषशास्त्र, पृ. 37
2
डॉ. मोहन गप्तु - महािािि का कालतनणयय, पृ. 152
3 ्
डॉ शिु म शमाय - ब्लॉग - ज्योतिर्तवज्ञान का संतक्षप्त इतिहास
4
ऋग्वेद -10/72/7
5
ऋग्वेद- 10/92/12

4
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सूय यमासातमथ उच्चिािः।1


पृथ्वी - ित्कालीन आयों को यह ज्ञान था तक पृथ्वी गोल है। िद्यथा -

चक्राणासः पिीणहं पृतथव्या तहिण्येन मतणना शम्भमानाः।
् यण
न तहन्वानासतस्ततिरुस्त इन्द्रं पतिस्पशो अदिाि सू े ।।2

वषय के बािह िाग एवम अहोिात्र सञ्ज्ञा - उस समय आयों को यह ज्ञाि था तक वषय के बािह िाग
होिे हैं । वषय में 12 मास औि 360 तदनों िथा 720 तदन-िाि की कल्पनाएाँ बड़ी स्पष्ट थीं। िद्यथा -
िादशािं न तह िज्जिाय ववयर्ति चक्रं पतिद्यामृिस्य।
ु अिे तमथनासो
आ पत्रा ु ु 3
अत्र सप्त शिातन ववशतिच िस्थः।।
िादश प्रियचक्रमेकं त्रीतण नभ्यातन क उ ितच्चके ि।
ितस्मन्त्साकं तत्रशिा न शङ्कवोऽर्तपिाः षतष्टन य चलाचलासः।।4
तदनवृतद्ध - ऋग्वेद में एक स्थान पि सोम िािन से ् प्राथयना की गयी है तक हे सोम िािन !् हमािी
आय ु में उसी प्रकाि वृतद्ध कि दो तिस प्रकाि सूय य तदन की वृतद्ध कििा है। इससे स्पष्ट है तक उस काल
में आयों को यह ज्ञान था तक तदनमान न्यूनातिक होिा है। िद्यथा -
सोमिािन प्र् ण आयूतं ष िािीिहानीव सूयो वासिातण।।5
ऋिएाँु - ऋग्वेद में शिद, हेमन्त, वसन्त आतद शब्दों का प्रयोग अनेक बाि तमलिा है, तिससे स्पष्ट
ु ं का ज्ञान था। िद्यथा -
है तक उस काल के आयों को ऋिओ
शिञ्जीव शिदो वियमानः।

शिं हेमन्ताच्च्छिमवसन्तान ् 6
।।
ग्रह - इस काल के मन्त्रों में सूय,य चन्द्रमा के अतितिक्त बृहस्पति का स्पष्ट नामािे ख तमलिा है।
िद्यथा -
् 7
बृहस्पतिः प्रथमञ्जायमानो महो ज्योतिषः पिमे व्योमन।।

1
ऋग्वेद - 10/68/10
2
ऋग्वेद - 1/33/8
3
ऋग्वेद - 1/164/11
4
ऋग्वेद - 1/164/48
5
ऋग्वेद - 8/48/7
6
ऋग्वेद 10/161/4
7
ऋग्वेद - 4/50/4

5
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

नक्षत्र - इस काल में नक्षत्रों का सामान्य ज्ञान था। ऋग्वेद में सिी सिाईस नक्षत्रों के नाम िो नहीं
तमलिे, पिन्त ु कुछ नक्षत्रों का नामोिे ख हुआ है। यथा अघा (मघा), अिनयु ी (फाल्गनी),
ु तिष्य

(पष्य), तचत्रा िथा िेविी। िद्यथा -

सूयाययाः वहिःु प्रागाि सतविा यमवासृिि।्
अघास ु हन्यन्ते गावोऽिन्योः
यु यु ।।1
पयह्यिे

न यो यछति ् 2
तिष्यो यथा तदवोऽस्मे िािन्तः मरुिः सहतिणम।।
अस्थरुु तचत्रा उषसः पिस्तातििा
ु इव स्विवोऽध्विेष ु ।3
येना नवग्वे अतङ्गिे दशग्वे सप्तास्ये िेविी िेवदूष ।।4
ऋग्वेदोििकाल में ज्योतिषशास्त्र की प्रतिष्ठा एक स्विन्त्र तवषय के रूप में हो गयी थी।
वािसनेयी संतहिा िथा ि ैतििीय ब्राह्मण में नक्षत्रदशय िथा गणक शब्दों का उिे ख हुआ है। िद्यथा-
प्रज्ञानाय नक्षत्रदशयम 5्
यादसे गणकम 6्
ि ैतििीय ब्राह्मण, वािसनेयी संतहिा, ि ैतििीय संतहिा एवं शिपथ ब्राह्मण में ज्योतिषशास्त्र
के अनेक तसद्धान्त दृतष्टगोचि होिे हैं । इस काल में िातशचक्र, नक्षत्रचक्र िथा ग्रहों का पूण य प्रचाि
होने लगा था। ित्कालीन ज्योतिष ज्ञान तवषयक तनम्नातङ्कि िथ्य स्पष्ट होिे हैं -
तवश्व संस्था िथा संवत्सिातद कालमान - ि ैतििीय ब्राह्मण में एक स्थान पि तवश्व संस्था के अवयव
पृथ्वी, स्वगय, सूय,य चन्द्रमा, नक्षत्र िथा कालमान के अवयव संवत्सि, ऋि,ु मास, अद्धयमास,
अहोिात्र, पौणयमास आतद शब्दों का उिे ख तमलिा है। िद्यथा -
लोकोऽतस स्वगोऽतस। अनन्तोऽस्यपािोऽतस। अतक्षिोऽस्यक्षर्य्ोऽतस। िपसः प्रतिष्ठा।
ु िम।् तवश्वस्य ििाय तवश्वस्य िनतयिा। िं त्वोपदिे
त्वयीदमन्तः। तवश्वं यक्षं तवश्वं िूि ं तवश्व ूूूाँ सिू
कामदुघमतक्षिम।् प्रिापतिस्त्वा सादयि।ु िया देवियातग्रस्वद्ध्रुवा सीद। िपोऽतस लोके तश्रिम।्
िेिसः प्रतिष्ठा। त्वयीद...। िेिोऽतस िपतस तश्रिम।् समद्रस्य
ु ु
प्रतिष्ठा। त्वयीद....। समद्रोऽतस िेितस

तश्रिः। अपां प्रतिष्ठा। आपः स्थ समद्रेु तश्रिाः। पृतथव्याः प्रतिष्ठा यष्मास।ु ....। पृतथव्यस्यप्स ु तश्रिा।

1
ऋग्वेद - 10/85/13
2
ऋग्वेद - 5/54/13
3
ऋग्वेद - 4/51/2
4
ऋग्वेद - 4/51/4
5
वािसन ेयी संतहिा 30/10 िथा िैतििीय ब्राह्मण 3/4/1
6
वािसन ेयी संतहिा 30/20

6
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अङ्गनेः प्रतिष्ठा।......। अङ्गतनितस पृतथव्या ूूूाँ तश्रिः। अन्ततिक्षस्य प्रतिष्ठा।....। अन्ततिक्षमस्यिौ


तश्रिम।् वायोः प्रतिष्ठा।.....। वायिस्यन्ततिक्षे
ु तश्रिः। तदवः प्रतिष्ठा।.....। द्यौितस वायौ तश्रिा।
आतदत्यस्य प्रतिष्ठा।.....। आतदत्योऽतस तदतव तश्रिः। चन्द्रमसः प्रतिष्ठा। ....। चन्द्रमा अस्यातदत्ये

तश्रिः। नक्षत्राणां प्रतिष्ठा।.....। नक्षत्रातणस्थ चन्द्रमतस तश्रिातन। संवत्सिस्य प्रतिष्ठा यष्मास ु
।....।
संवत्सिोऽतस नक्षत्रेष ु तश्रिः। ऋिूनां प्रतिष्ठा। ....। ऋिवः स्थ संवत्सिे तश्रिाः। मासानां प्रतिष्ठा

यष्मास ु
।....। ु
मासाः स्थियष ु तश्रिाः। अद्धयमासानां प्रतिष्ठा यष्मास ु
।....। अद्धयमासाः स्थ माः स ु

तश्रिाः। अहोिात्रयोः प्रतिष्ठा यष्मास ु
।....। अहोिात्रे स्थोऽद्धयमासेष ु तश्रिे। िूिस्य प्रतिष्ठे िव्यस्य

प्रतिष्ठे। ....। पौणयमासास्यष्टकाऽमावास्या। अन्नादाः स्थान्नदघो ु
यष्मास।ु .....। िाडतस बृहिी
ु िा। ....। ओिोऽतस सहोऽतस। बलमतस भ्रािोऽतस। देवानां
श्रीिसीन्द्रपत्नी िमयपत्नी। तवश्वं िूिमनप्रिू
िामामृिम।् अमत्य यस्तोिाः।.......।1
पृथ्वी - उस समय यह िथ्य ज्ञाि था तक पृथ्वी गोल है िथा आकाश में तनिािाि तस्थि है। इसकी
ु ऐििेय ब्राह्मण के तनम्नतलतखि मन्त्र से होिी है -
पतष्ट
स वा एष न कदाचनास्तमेति नोदेति। िं यदस्तमेिीति मन्यन्तेह्न एव िदन्ततमत्वाथात्मानं
तवपययस्यिे। िातत्रमेवावस्ताि ् कुरुिेहः पिस्ताि।।
् अथ यदेन ं प्रािरुदेिीति मन्यन्ते िात्रेिव

िदन्ततमत्वाथात्मानं तवपययस्यिेऽहिेवावस्ताि ् कुरुिे िावत्र पिस्ताि।।
् स वा एष न कदाचन
तनम्रोचति।2
मास- बािह मासों िथा िेिहवें मलमास का उिे ख उस काल के मन्त्रों में तमलिा है, पिन्त ु मासों
की च ैत्रातद सञ्ज्ञाएाँ स्पष्ट रूप से प्राप्त नहीं होिीं। िद्यथा -
ु मािवि शक्रच
मिि ु ु
शतचि निि निस्यिेषचोियि सहि सहस्यि िपि
िपस्यिोपयामगृहीिोऽतस स ूूूाँ सपोऽस्य ूूूाँ हस्पत्याय त्वा।।3
ु ं का उिे ख ि ैतििीय संतहिा में तमलिा है। िद्यथा -
ऋिएाँु - दो-दो मास की छः ऋिओ
ु मािवि वासतन्तकावृि ू शक्रि
मिि ु ु
शतचि ग्र ैष्मावृि ू निि निस्यि वार्तषकावृि ू
इषिोियि शािदावृि ू सहि सहस्यि हैमतन्तकावृि ू िपि िपस्यि शैतशिावृि।ू 4

1
िैतििीय ब्राह्मण 3/11/1
2
ऐििेय ब्राह्मण 14/6
3
िैतििीय संतहिा 1/4/14
4
िैतििीय संतहिा 4/4/11

7
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

नक्षत्र - ि ैतििीय संतहिा में समस्त सिाईस नक्षत्रों के नाम उनके देविाओ ं सतहि तदये हुए हैं ।

अथवयवदे िथा ि ैतििीय ब्राह्मण में अतितिि सतहि सिी अट्ठाईस नक्षत्रों का नामोिे ख है। िद्यथा
ि ैतििीय संतहिा -
कृ तिका नक्षत्रमतिदेविाऽिे रुचः स्थ प्रिापिेिायिःु सोमस्यचे त्वा रुचे त्वा द्यिेु त्वा िासे त्वा
ज्योतिषे त्वा िोतहणी नक्षत्रं प्रिापतिदेविा मृगशीषं नक्षत्र ूूूाँ सोमो देविाऽऽद्रायनक्षत्र ूाँूू रुद्रो
ु स ू नक्षत्रमतदतिदेविा तिष्यो नक्षत्रं बृहस्पतिदेविाऽऽश्रेषा नक्षत्र ूाँूू सपाय देविा मघा नक्षत्रं
देविा पनवय
ु नक्षत्रमययमा देविा फल्गनी
तपििो देविा फल्गनी ु नक्षत्रं िगो देविा हस्तो नक्षत्र ूाँूू सतविा देविा
तचत्रानक्षत्रतमन्द्रो देविा स्वािी नक्षत्रं वायदेु विा तवशाखे नक्षत्रतमन्द्रािी देविाऽनूिािा नक्षत्रं तमत्रो
देविा िोतहणी नक्षत्रतमन्द्रो देविा तवचृिौ नक्षत्रं तपििो देविाऽषाढानक्षत्रमापो देविाऽषाढा नक्षत्रं तवश्वे
देवा देविा श्रोणा नक्षत्रं तवष्णदेु विा श्रतवष्ठा नक्षत्रं वसवो देविा शितिषङ्नक्षत्रतमन्द्रो देविा प्रोष्ठपदा
यु
नक्षत्रमि एकपाद्देविा प्रोष्ठपदा नक्षत्रमतहबतियो ु नक्षत्रमतश्वनौ
देविा िेविी नक्षत्रं पूषा देविाऽश्वयिौ
् देवा अदिः।।
देविाऽपििणीन यक्षत्रं यमो देविा पूणाय पिाद्यि िे ु 1
िथा च ि ैतििीय ब्राह्मण -
अिेः कृ तिकाः। शक्र ु ं पिस्ताज्ज्योतििवस्ताि।् प्रिापिे िोतहणी। आपः
पिस्तादोषियोऽवस्ताि।् सोमस्येन्वका। तवििातन पिस्ताियन्तोऽवस्ताि।् रुद्रस्य बाहू। मृगयवः
पिस्तातिक्षािोऽवस्ताि।् अतदत्य ै पनवय
ु स।ू वािः पिस्तादाद्रयमवस्ताि।् बृहस्पिेतस्तष्यः। िह्विः

पिस्ताद्यिमाना अवस्ताि।् सपायणामाश्रेषाः। अभ्यागछन्तः पिस्तादभ्यानृत्यन्तोऽवस्ताि।् तपिृणां
मघाः। रुदन्तः पिस्तादपभ्र ूाँूू शोऽवस्ताि।् अययम्णः पूवे फल्गनी।
ु िाया पिस्तादृषिोऽवस्ताि।्
िगस्योििे। वहिवः पिस्तािहमाना अवस्ताि।् देवस्य सतविहयु स्तः । प्रसवः पिस्तात्सतनिवस्ताि।्
इन्द्रस्य तचत्रा। ऋिं पिस्तात्सत्यमवस्ताि।् वायोर्तनष्ट्या। व्रितिः पिस्तादतसतद्धिवस्ताि।्
इन्द्रातियोर्तवशाखे। ु
यगातनपिस्ताि ् कृ षमाणा अवस्ताि।् तमत्रस्यानूिािाः।
अभ्यािोहत्पिस्तादभ्यारूढमवस्ताि।् इन्द्रस्य िोतहणी। शृणत्पिस्तात्प्रतिशृणदवस्ताि।् तनऋय त्य ै
मूलवहयणी। प्रतििञ्जन्तः पिस्तात्प्रतिशृणन्तोऽवस्ताि।् अपां पूवाय अषाढाः। वचयः
पिस्तात्सतमतििवस्ताि।् तवश्वेषां देवानामििाः।
ु अतिियत्पिस्तादतितििमवस्ताि।् तवष्णोः श्रोणा।
पृछमानाः पिस्तात्पन्था अवस्ताि।् वसूना ूाँूू श्रतवष्ठाः। िूि ं पिस्ताद्भूतििवस्ताि।् इन्द्रस्य
शितिषक।् तवश्वव्यचाः पिस्तातिश्वतक्षतििवस्ताि।् अिस्य ैकपदः पूवे प्रोष्ठपदाः। वैश्वानिं
पिस्तािैश्वावसवमवस्ताि।् अहेबतियस्योििे
यु ु
। अतितषञ्चन्तः पिस्तादतिषण्वन्तोऽवस्ताि।् पूष्णो

1
िैतििीय संतहिा - 4/4/10

8
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

िेविी। गावः पिस्ताित्सा अवस्ताि।् अतश्वनोिश्वयिौ। ु ग्रामः पिस्तात्सेनाऽवस्ताि।्


यमस्यापििणीः। अपकषयन्तः पिस्तादपहन्तोऽवस्ताि।् पूणाय पि आद्य िचिे देवा अदिः।।
ु 1
िथा च अथवयवदे -
ु िवातन। िर्तु मशं समतितमछमानो
तचत्राणी साकं तदतव िोचनातन सिीसृपातण िवने ु अहातन
गीर्तिः सपयायतम नाकम।। ् सहवमिे
ु कृ तिका िोतहणी चास्त ु िद्रं मृगतशिः शमाद्राय। पनवय
ु स ू सूनिृ ा
ु िानिाश्ले
चारु पष्यो ु षा अयनं मघा मे।। पण्यं ु पूवायफल्गन्यौु चात्र हस्ततचत्रा तशवा स्वाति सखो
ु मे
अस्त।ु िािे तवशाखे सहवान
ु ु
िािा ु
ज्येष्ठा सनक्षमतिष्टं ् अन्नं पूवाय िासन्तां मे आषाढा ऊिं
मूलम।।

देव्यििा आवहन्त।ु अतितििे िासिां पण्यमे
ु व श्रवणः श्रतवष्ठाः कुविय ां सपु तष्टम
ु ।। ् आ मे
ु िगं म आ मे िवय ििण्य आ
महछितिषग्विीय आ मे िया प्रोष्ठपदा स ु शमय। आ िेविी चाश्वयिौ
ु 2
वहन्त।।
ु का उिे ख इस काल में स्पष्ट रूप से ज्ञाि
ग्रह - सूय य औि चन्द्र के अतितिक्त बृहस्पति औि शक्र
होिा है। िद्यथा -
बृहस्पतिः प्रथमं िायमानः।
तिष्यं नक्षत्रमतिसम्बिूव।।3

वस्व्यतस रुद्राऽस्यतदतििस्यातदत्याऽतस शक्राऽतस ु िण्वि।।
चन्द्राऽतस बृहस्पतिस्त्वा सम्ने ु 4
वेदाङ्गकाल –
श्री शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि ने इस काल के ग्रन्थों में ज्योतिषीय ित्त्वों के अध्ययन हेि ु ग्रन्थों
के कालक्रम की अपेक्षा ग्रन्थों की प्रकृ ति को महत्त्व देि े हुए वेदाङ्गकाल का तितवि तविािन तकया
है। प्रथम वेदाङ्ग-प्रकिण में उन्होंने वेदाङ्ग-ज्योतिष, कल्पसूत्र, तनरुक्त िथा व्याकिण आतद वेदाङ्ग
ग्रन्थों का अध्ययन तकया है। तििीय प्रकिण में स्मृति, महािािि आतद ग्रन्थों का अध्ययन तकया
गया है। इस सम्पूण य कालावति का नाम वेदाङ्गकाल, वेदाङ्ग ज्योतिष के आिाि पि िखा गया है।
ु के छः अङ्ग माने िािे हैं ।5 डॉ.कामेश्वि
तशक्षा, कल्प, व्याकिण, तनरुक्त, छन्द औि ज्योतिष, वेदपरुष
उपाध्याय वैतदक ज्योतिष िथा वेदाङ्ग ज्योतिष में अन्ति स्पष्ट कििे हुए तलखिे हैं ऋतषयों के
अन्तःकिण में दृष्ट मन्त्र ज्योतिष के ित्त्व को िािण तकये हुए हैं िो उसे वैतदक ज्योतिष कहा िािा है,

1
िैतििीय ब्राह्मण 1/5/1
2
अथवयवदे 19/7
3
िैतििीय ब्राह्मण 3/1/1
4
िैतििीय संतहिा 1/2/5
5
पातणनीय तशक्षा, श्लो. 41-42

9
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

िबतक वेदाङ्ग ज्योतिष तवषयों को िाििम्यबद्ध ििीके से प्रस्तिु कििा है। वेदाङ्ग ज्योतिष का किाय
ु औि प्रयोग के अनिव
ऋतष बीि िो वेद से लेिा है पि उसका पिवन अपनी बतद्ध ु के आिाि पि
कििा है। यही कािण है तक वेदाङ्ग ज्योतिष में बहुि कुछ िाििम्यबद्ध तलखा तमलिा है। ऋचाएाँ ऋतष
ु से प्रायोतगक या अनिव
हृदय में अवितिि होिी हैं । अिः वेद अपौरुषेय हैं । वेदाङ्ग ऋतष बतद्ध ु के
स्ति पि ितचि होने के कािण पौरुषेय है।1 वेदाङ्ग ज्योतिष के ग्रन्थ िीन वेदों के नाम पि िीन हैं -

ऋक्ज्ज्यौतिष, यािषज्यौतिष िथा आथवयज्यौतिष। इनमें से ऋक्ज्ज्यौतिष तिसे आचयज्यौतिष िी कहिे
हैं , सबसे महत्त्वपूण य है। इस ग्रन्थ में कुल 36 श्लोक हैं । यािषज्यौतिष
ु का कलेवि लगिग
आचयज्यौतिष ि ैसा ही है। 30 श्लोक िो आचयज्यौतिष के ही हैं तिनमें 13 अन्य श्लोक अतिक िोड़े
गये हैं । ऋक ् िथा यािषज्यौतिष
ु ु
दोनों में ही पञ्चसंवत्सिात्मक यगव्यवस्था प्रतिपातदि की गयी है।
िद्यथा -

पञ्चसंवत्सिमयं यगाध्यक्षं प्रिापतिम।्

तदनत्र्वयनमासाङ्गं प्रणम्य तशिसा शतचः।।2


यािषज्यौतिष में सौि वषयमान 366 तदन का कहा गया है।3 तदन-िाि में अतिकिम 6 घटी
िक की हातनवृतद्ध सम्भव बिायी है।4
ु पिक है। इसमें सािों वािों के नाम तदये हुए हैं ।
आथवयज्यौतिष महूिय
ु हस्पिी।
आतदत्यः सोमो िौमि िथा बिबृ
िागयवः शन ैििि ैव एिे सप्ततदनातिपाः।।5
ु िु
आथवयज्यौतिष में सवायतिक महत्त्वपूण य िथ्य, नक्षत्रों को 9 िागों में वगीकृ ि किके शिाश
िािातवचाि, है।6 इसमें उत्पािों का िी उिे ख तमलिा है।7
ु नामों का उिे ख तमलिा है। यथा-
कल्पसूत्र - आश्वलायनगृह्यसूत्र में मासों के नक्षत्रप्रयक्त
श्रावण्यां पौणयमास्यां श्रवणकमय8
पािस्किसूत्र में नक्षत्र के चिर्तु वि चिण िेद का उिे ख तमलिा है -

1
डॉ. कामेश्वि उपाध्याय - ज्योतिषशास्त्र, पृ. 18-19
2
लगि - आचयज्यौतिषम, ् श्लो. 1 िथा यािषज्यौतिषम
ु , ् श्लो. 1
3

यािषज्यौतिषम, ् श्लो. 28
4

यािषज्यौतिषम -् श्लो. 8
5
आथवयज्यौतिषम, ् श्लो. 13
6
आथवयज्यौतिषम, ् श्लो. 103-108
7
आथवयज्यौतिषम -् श्लो. 122
8
आश्वलायनगृह्यसूत्र 2/1/1

10
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

मूलांश े प्रथमे तपिनेु ष्टो तििीये मािस्तृ


ु िीये िनिान्यस्यचिथे
ु कुलशोकावहः स्वयं पण्यिागी

स्याि।् 1
ु िथा क्षण नामक काल-पतिमाणों के नाम आये हैं ।2 एक स्थान पि सप्तर्तषयों
तनरुक्त में महूिय
का उिे ख है। िद्यथा -
सप्तऋषीणातन ज्योिींतष3
पातणनीय व्याकिण में वषय, हायन िथा च ैत्रातदमासों के नाम तमलिे हैं ।4 दीतक्षि िी ने
वेदाङ्गकाल के तििीय प्रकिण में सवयप्रथम स्मृतियों में ज्योतिषीय ित्त्वों के तवकास का अध्ययन
ु ति में चियु गयु ात्मक (कृ ि,त्रेिा,िापि,कतल) काल व्यवस्था का तवस्ताि से उिे ख
तकया है। मनस्मृ
तमलिा है।5 याज्ञवल्क्यस्मृति में ग्रहों के नाम वािक्रम में होने से उस समय में वाि प्रचाि का सङ्के ि
तमलिा है। िद्यथा-
ु सोमपत्रो
सूय यः सोमो महीपत्रः ु बृहस्पतिः।
ु शन ैििो िाहुः के िि
शक्रः ु ैिे ग्रहाः स्मृिाः।।6
इसी में प्रायतििाध्याय के ग्रहसंयोगि ैः फलैः7 श्लोकांश से प्रकट होिा है तक उस समय लोगों का
ु की ओि िा चका
ध्यान ग्रहयति ु था।
श्री दीतक्षि िी ने महािािि का अध्ययन िो तकया है, तकन्त ु िामायण िथा पिाणों
ु का
अध्ययन नहीं तकया, पिन्त ु इन ग्रन्थों में िी ज्योतिषीय ित्त्व िूयसी मात्रा में तमलिे हैं । श्री दीतक्षि

इसका कािण बिािे हुए िकय देि े हैं तक िामायण िथा पिाणों में प्रतक्षप्तांश अत्यतिक है, पिन्त ु प्रक्षेप
िो महािािि में िी तमलिे हैं िथा ग्रन्थ के मूलांश िथा प्रतक्षप्तांश को पृथक ् किना वियमानकाल में

सम्भव नहीं है। अिः महािािि के समान िामायण एवं पिाणों का अध्ययन िी तकया िा सकिा
ु इस सवयमान्य क्रम से इनका अध्ययन किने पि तनम्नतलतखि
है।8 िामायण, महािािि िथा पिाण
िथ्य प्राप्त होिे हैं -

1
पािस्किसूत्र 1/21
2
तनरुक्त 2/25
3
तनरुक्त - 10/26
4
पातणतन - अष्टाध्यायी - 4/1/27, 5/1/88,5/1/130 िथा 4/2/21
5
मन ु - मनस्मृ
ु ति 1/68-86
6
याज्ञवल्क्य - याज्ञवल्क्यस्मृति - आचािाध्याय, श्लो. 295
7
याज्ञवल्क्य - याज्ञवल्क्यस्मृति - प्रायतििाध्याय, श्लो. 171
8 ्
डॉ शिु म शमाय - ब्लॉग - ज्योतिर्तवज्ञान का संतक्षप्त इतिहास

11
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

िामायण में पञ्चिािाग्रहों का स्पष्ट उिे ख तमलिा है। इस काल में मासों की च ैत्रातद सञ्ज्ञा
ु था। िामायण के अयोध्याकाण्ड में एक कथा आिी है तक
िथा वािों का पयायप्त प्रचाि हो चका
महािाि दशिथ को उनके ज्योतितषयों ने यह बिाया तक उनके नक्षत्र को सूय,य मङ्गल िथा िाहु नामक
ियङ्कि ग्रहों ने आक्रान्त कि तलया है। ऐसी तस्थति में िािा बहुिा तवपति में पड़कि प्राणों से हाथ
िो ब ैठिे हैं । िद्यथा -
अवष्टब्धं च मे िाम नक्षत्रं दारुणग्रहैः।
आवेदयतन्त दैवज्ञाः सूयायङ्गािकिाहुतिः।।
ु ।
प्रायेण च तनतमिानामीदृशानां समद्भवे

िािा तह मृत्यमाप्नोति घोिां चापदमृछति।।1
िामायण में च ैत्रमास का उिे ख बालकाण्ड िथा अयोध्याकाण्ड में िथा आषाढ़, श्रावण
िथा प्रौष्ठपद (िाद्रपद) का उिे ख तकतष्किाकाण्ड में हुआ है। िद्यथा -
ििि िादशे मासे च ैत्रे नावतमके तिथौ2
च ैत्रः श्रीमानयं मासः3

आषाढीमभ्यपगिो4

पूवोऽयं वार्तषको मासः श्रावणः सतललागमः।5


मातस प्रौष्ठपदे ब्रह्म6
िामायण में अयोध्याकाण्ड में बृहस्पतिवाि का स्पष्ट उिे ख तमलिा है। िद्यथा -
अद्य बाहयस्पिः श्रीमान य् क्तः
ु पष्ये
ु ण िाघव।7
बालकाण्ड में एक श्लोक में ककय लि िथा ग्रहों की उच्च िातश के उिे ख से ज्ञाि होिा है तक
िब िक मेषातद िातशयों का प्रचाि िी होने लगा था। इसी प्रकाि कुण्डलीसािन िी तकया िाने लगा
ु का िी
था। ग्रहों की उच्च-नीचातद िातशयों का िी तवचाि िब होने लगा था। इसी श्लोक में ग्रहयति
स्पष्ट उिे ख तमलिा है। िद्यथा -

1
वाल्मीतक - िामायण - अयोध्याकाण्ड - 4/18-19
2
वाल्मीतक - िामायण - बालकाण्ड 18/8
3
वाल्मीतक - िामायण - अयोध्याकाण्ड 3/4
4
वाल्मीतक - िामायण - तकतष्किाकाण्ड 28/55
5
वाल्मीतक - िामायण - तकतष्किाकाण्ड 26/14
6
वाल्मीतक - िामायण - बालकाण्ड 28/54
7
वाल्मीतक - िामायण - अयोध्याकाण्ड 26/9

12
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

नक्षत्रेऽतदति दैवत्ये स्वोच्चसंस्थ ेष ु पञ्चस।ु


ग्रहेष ु ककय टे लिे वाक्पिातवन्दुना सह।।1
िामायण में नक्षत्रों का उिे ख स्विन्त्र रूप से िथा उपमा के रूप में अनेक बाि हुआ है।
ु स ु िथा पष्य
अयोध्याकाण्ड में पनवय ु का स्पष्ट उिे ख है। िद्यथा -

अद्य चन्द्रोऽभ्यपगमि प् ष्याि
ु पू् वं पनवय
ु समु ।्

श्वः पष्ययोगं तनयिं वक्ष्यन्ते दैवतचन्तकाः।।2

महािािि में यगमान ु ति सिीखे ही हैं ।3
मनस्मृ
श्रीमद्भगवद्गीिा में एक सहि चियु गयु ी का ब्रह्मा का एक तदन (कल्प) माना गया है। िद्यथा-

सहियगपययन्तमहययद्ब्रह्मणो तवदुः।

िावत्र यगसहिान्तां िेऽहोिात्रतवदो िनाः।।4
महािािि में वेदाङ्गज्योतिषपद्धति का उिे ख तमलिा है। उस समय वेदाङ्ग ज्योतिष पद्धति
के अनसाि ु
ु ही पञ्चसंवत्सिात्मक यगव्यवस्था प्रचतलि थी। िद्यथा -
ु व्यिािन्त पञ्चसंवत्सिा इव।।5
पाण्डुपत्रा
महािािि तविाट्पवय में िीष्मकथन में अतिमास गतणि का पिा चलिा है। िद्यथा -
पञ्चमे पञ्चमे वषे िौ मासावपु िायिः।।6

अनशासन पवय के अध्याय 106 िथा 109 में सिी 12 मासों के नाम बिाये गये हैं । उनमें
आिम्भमास मागयशीषय है।7 महािािि में सूय,य चन्द्र एवं पञ्चिािाग्रहों िथा िाहु (ग्रहण) का स्पष्ट

उिे ख तमलिा है। सूय य के अष्टोििशि नामों में चन्द्रमा िथा बिातद पञ्चिािाग्रहों के नाम आये हैं ।
िद्यथा -

सोमो बृहस्पतिः शक्रो ु बिोङ्गािक


ु एव च।।
् शःु शतचः
इन्द्रो तववस्वान दीप्तां ु शौतिः शन ैििः।8

1
वाल्मीतक - िामायण बालकाण्ड 18/9
2
वाल्मीतक - िामायण - अयोध्याकाण्ड 4/21
3
वेदव्यास - महािािि - वनपवय 188/22-29
4
वेदव्यास - श्रीमद्भगवद्गीिा 8/17
5
वेदव्यास - महािािि - आतदपवय 123/22
6
वेदव्यास - महािािि - तविाट्पवय 52/3
7

वेदव्यास - महािािि - अनशासनपवय 106/17-31 िथा 109/3-14
8
वेदव्यास - महािािि - वनपवय 3/17-18

13
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

इसी प्रकाि सप्तग्रह शब्द का प्रयोग दो बाि हुआ है। िद्यथा -



प्रिा संहिणे िािन सोमं सप्तग्रहा इव।।1
तनःसिन्तो व्यदृश्यन्त सूयायत्सप्त महाग्रहाः।।2
दो स्थलों पि िाहु का उिे ख उत्पाि रूप में हुआ है। िद्यथा -
िाहुिग्रसदातदत्यमपवयतण तवशांपिे।।3
िाहुचाग्रसदातदत्यमपवयतण तवशांपिे।।4
ु िथा ग्रहयद्धु का िी वणयन है। िद्यथा -
महािािि में ग्रहों के वक्रत्व, ग्रहयति
लोकत्रासकिावास्तां तवमागयस्थौ ग्रहातवव।।5 (वक्रत्व)
वक्रातिवक्रगमनादङ्गािक इव ग्रहः।। (वक्रत्व)
ु नििाप
िृगसू ु ु
ु शतशिेन समतन्विौ।।6(ग्रहयति)
त्रौ

ििः समिवद्यद्धंु शक्रातङ्गिसवचयसोः।

नक्षत्रमतििो व्योतम्न शक्रातङ्गिसयोतिव।।7

(ग्रहयद्ध)
महािािि में मेषातद िातश नाम कहीं नहीं तमलिे, पिन्त ु इनका अथय यह नहीं तक उस समय
िािि में िातशयों की कल्पना ही न थी। वनपवय में एक श्लोक तमलिा है -
अयने तवषवेु च ैव षडशीतिमखे
ु ष ु च।8
इस श्लोक में अयन शब्द से ककय िथा मकि, तवषवु शब्द से मेष िथा िल
ु ा एवं षडशीतिमख

ु कन्या, िन ु िथा मीन िातशयों की ओि सङ्के ि तमलिा है। तििीय िथ्य यह है तक महािािि
से तमथन,
में 13 तदन के पक्ष का वणयन है -
इमांि ु नातििानेऽहममावास्यां त्रयोदशीम।् 9
इस िथ्य को दृतष्टगि िखिे हुए श्री शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि स्पष्ट तलखिे हैं तक 13 तदन का
पक्ष स्पष्टमान से ही आ सकिा है, मध्यम मान से नहीं। इसका िात्पयय यह हुआ तक महािाििकाल

1
वेदव्यास - महािािि - द्रोणपवय 137/22
2
वेदव्यास - महािािि - कणयपवय 37/4
3
वेदव्यास - महािािि - सिापवय 80/29
4
वेदव्यास - महािािि - शल्यपवय 56/10
5
वेदव्यास - महािािि - कणयपवय 17/2
6
वेदव्यास - महािािि - शल्यपवय 11/18
7
वेदव्यास - महािािि - कणयपवय 18/1
8
वेदव्यास - महािािि - वनपवय 200/125
9
वेदव्यास - महािािि - िीष्मपवय 3/32

14
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

में िाििीयों को स्पष्ट तितथ गतणि का ज्ञान था िथा उन्हें सूय य औि चन्द्रमा की स्पष्ट गति-तस्थति का
ज्ञान था।1 ग्रहस्फुटीकिण की प्रतक्रया िातशज्ञान के तबना सम्भव नहीं है। इस िथ्य के आिाि पि
डॉ.मोहन गप्तु ने तसद्ध तकया है तक महािाििकाल में िातशतवषयक ज्ञान अवश्य था।2

लगिग समस्त पिाणों में ज्योतिषशास्त्र के सन्दिय िूयसी मात्रा में प्राप्त होिे हैं । यथा
ु के िेईसवें अध्याय में ग्रहकक्षा सतहि सम्पूण य िवनकोश
ब्रह्मपिाण ु का वणयन है।3 श्रीमद्भागवि के
पञ्चमस्कि के इक्कीसवें अध्याय में सूय य की तवतिन्न िातशयों में गति का वणयन है। बाईसवें अध्याय
में ग्रहकक्षाओ ं का वणयन है। िेईसवें अध्याय में तशशमािचक्रवणय
ु न में अनेक ज्योतिषशास्त्रीय
मान्यिाओ ं के दशयन होिे हैं ।4 िागवि में एक स्थान पि कहा गया है तक सूय य के िथ की ििी
ु का
एक तसिा मेरुपवयि पि िथा दूसिा मानसोिि पवयि पि है। िद्यथा -
िस्याक्षो मेिोमूिय यतन कृ िो मानसोििे कृ िेिििागो5
इस िथ्य से यह स्पष्ट होिा है तक पृथ्वी के सापेक्ष सूय य तस्थि है न तक चल ि ैसा तक हमें
प्रिीि होिा है। इसी प्रकाि के अनेक ज्योतिवैज्ञातनक िहस्यों की उपलतब्ध पौिातणक सातहत्य से
होिी है।6
आतदकाल-
इस काल में ज्योतिगयतणि के क्षेत्र में तसद्धान्तग्रन्थों का प्रणयन हुआ। तसद्धान्त ग्रन्थों में ग्रह,
पाि, मन्दोच्च के िगण, यगु के सावन तदन, अतिमास िथा क्षयतितथयााँ आतद तदये होिे हैं , तिनके

आिाि पि अहगयण तनकालकि ग्रहों की मध्यम गति तनकाली िािी है। ित्पिाि स्पष्टगति तनकाली
िािी है। प्राचीन पााँच तसद्धान्त प्रतसद्ध हैं - प ैिामह तसद्धान्त, वातसष्ठ तसद्धान्त, िोमक तसद्धान्त,
पौतलश तसद्धान्त िथा सौि (सूय)य तसद्धान्त। इन पााँचों तसद्धान्तों का कोई िी प्राचीन ग्रन्थ सम्प्रति
उपलब्ध नहीं है। इनका पतिचय हमें आचायय विाहतमतहि की पञ्चतसद्धातन्तका में तमलिा है।
पौतलशिोमकवातसष्ठसौिप ैिामहास्त ु पञ्चतसद्धान्ताः।7

1
शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि - िाििीय ज्योतिष, पृ. 163
2
डॉ. मोहन गप्तु - महािािि का कालतनणयय, पृ. 97
3
ु - अध्याय 23
वेदव्यास - ब्रह्मपिाण
4
वेदव्यास - िागवि - पञ्चम स्कि अध्याय 21,22,23
5
वेदव्यास - िागवि - 5/21/13
6 ्
डॉ शिु म शमाय - ब्लॉग - ज्योतिर्तवज्ञान का सतिप्त इतिहास
7
विाहतमतहि - पञ्चतसद्धातन्तका 1/3

15
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

इनके सम्बि में आचायय विाहतमतहि तलखिे हैं तक प ैिामह िथा वातसष्ठ तसद्धान्त उनके
समय में तवभ्रष्ट हो गये थे। पौतलश िथा िोमक कुछ स्पष्ट थे। पिन्त ु सौितसद्धान्त इन सबमें अतिक
स्पष्ट था।
पौतलशकृ िः स्फुटोऽसौ िस्यासन्नस्त ु िोमकप्रोक्तः।
स्पष्टििः सातवत्रः पतिशेषौ दूितवभ्रष्टौ।।1

सम्प्रति प्राप्त सूयतय सद्धान्त को अनेक तविान प्राचीन सौितसद्धान्त से तिन्न मानिे हैं ।
श्री नेतमचन्द्र शास्त्री आचायय पिाशि को आतदकाल का ही मानिे हैं ।2 आतदकाल के अतन्तम
िाग में आचायय आययिट्ट ने िचक्र को तस्थि3 िथा पृथ्वी को अपने अक्ष पि घूमने वाली बिाकि एक
प्राण (4 सेकण्ड) के समय में 1 कला िूभ्रम होना माना है4, िो तक उस समय एक बड़ी खोि थी।
य ध्यकाल –
पूवम
इस काल में ज्योतिषशास्त्र की उन्नति चिम सीमा पि थी। इस समय तसद्धान्त, संतहिा िथा
होिा िीनों स्कि स्पष्ट हुए। ग्रह-गतणि के क्षेत्र में तसद्धान्त, िन्त्र एवं किण िीनों िेदों का प्रचाि
हुआ। तसद्धान्त में ज्या िथा चाप के गतणि िािा ग्रहों का फल लाकि स्पष्टीकिण तकया िाने लगा।
अङ्कगतणि, बीिगतणि िथा िेखागतणि में नयी पद्धतियों का आतवष्काि हुआ। गतणि प्रतक्रया में
वेि िािा संशोिन तकये गये। ग्रीक, अिब िथा फािस से िाििीयों का सम्पकय होने से पिस्पि ज्ञान
का आदान प्रदान हुआ। इसी यगु में आचायय विाहतमतहि ि ैसे िििि
ु ज्योतिषी हुए तिन्होंने इस
तवज्ञान को क्रमबद्ध तकया िथा अनेक नवीन तवषयों का समावेश तकया। वे तत्रस्कि ज्योतिष के
िहस्यवेिा थे।5
उििमध्यकाल –
इस काल में ज्योतिष ग्रन्थों के अतितिक्त समालोचनात्मक ग्रन्थ िी तलखे गये। िास्किाचायय

ने पृथ्वी में गरुत्वाकषयण शतक्त होने का िहस्य प्रकट तकया।

आकृ तष्टशतक्तच मही िया यि खस्थं गरुु स्वातिमखं
ु स्वशक्त्या।

1
विाहतमतहि - पञ्चतसद्धातन्तका - 1/4
2
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 79,80
3

अनलोमगतिनौस्थः पश्यत्यचलं तवलोमगं यिि।्

अचलातनिातन ििि समपतिमगातन ्
लङ्कायाम।।
- आययिट्ट (प्रथम) - आययिटीयम -् गोलपाद, श्लो. 9
4
प्राणेन ैति कलां िूः (पाठिेद से प्राणेन ैति कलां िं)
5
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 88,95

16
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

आकृ ष्यिे ित्पििीव िाति समे समन्तात्क्व पितत्वयं खे।।1



इस काल में उदयान्ति, चिान्ति, ििान्ति संस्काि की व्यवस्था कि ग्रहगतणि में

सूक्ष्मिा का प्रचाि तकया गया। फतलि ज्योतिष में मतिम संस्कृति से सम्पकय होने के कािण िमल
ु शास्त्र के उिम ग्रन्थ महूिय
िथा िातिक (वषयफल) अङ्गों का उद्भव हुआ। महूिय ु तचन्तामतण,
ु ण्ड आतद िचे गये।2
महूियमािय

आितनक काल –
इस काल में आाँग्लदेशीय ज्ञान-तवज्ञान में वृतद्ध हुई िथा िाज्याश्रय समाप्त होने से िाििीय
ज्ञान-तवज्ञान अवनति को प्राप्त हुआ। ग्रह गतणि में वेि की प्रथा लगिग समाप्त हो गयी, तिसको
देखिे हुए महािाि ियवसह ने काशी, उज्ज ैन, इन्द्रप्रस्थ (तदिी), मथिा ु िथा ियपिु में वेिशालाओ ं

का तनमायण किाया।3 ईस्वी सन 1857 के पिाि ्अंग्रि े ी तवज्ञान का प्रिाव िाििीय ज्योतिष पि

पड़ा। श्री बापूदवे शास्त्री िथा श्री सिाकि तिवेदी ने पािात्य ज्योतिर्तवज्ञान के आिाि पि िाििीय
ज्योतिगयतणि में संशोिन तकये िथा वैज्ञातनक तववेचन तकया।4 श्री वेङ्कटे शबापू के िकि ने तचत्रापक्षीय
ग्रह-गतणि का प्रचाि तकया।5 िाििीय ज्योतिर्तवज्ञान के इतिहास को लेखनीबद्ध किने का कायय श्री
शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि, श्री नेतमचन्द्र शास्त्री, श्री लोकमतण दाहाल िथा डॉ.गोिखप्रसाद ने तकया।
तत्रस्कि ज्योतिष – होिा, तसद्धान्त औि संतहिा
समस्त ज्योतिषशास्त्र होिा, गतणि (तसद्धान्त) िथा संतहिा इन िीन िेदों के कािण िीन
तविागों में तविक्त है। ये िीन स्कि ही ज्योतिष के तत्रस्कि िेद कहलािे हैं ।
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्रम के् अनसाि
ु ज्योतिषशास्त्र पिम पण्य ु उिम वेदाङ्ग है, तिसमें
ु वाला िथा गह्य,
होिा, गतणि औि संतहिा िीन स्कि हैं । िद्यथा -

िगवन पिमं ु
पण्यं ु वेदाङ्गमिमम
गह्यं ु ।्
तत्रस्किज्योतिषं होिा, गतणिं संतहिेति च।।6
आचायय बृहस्पति तसद्धान्त को प्रथम, िािक (होिा) को तििीय िथा संतहिा को िृिीय
स्कि बिािे हैं । िद्यथा -

1

िास्किाचायय - तसद्धान्ततशिोमतण गोलाध्याय - िवनकोश, श्लो. 6
2
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 101-103
3
शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि - िाििीय ज्योतिष, पृ. 400-401
4
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 115-116
5
शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि - िाििीय ज्योतिष, पृ. 418
6 ्
पिाशि - बृहत्पिाशिहोिाशास्त्रम 1/2

17
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

स्कित्रयात्मकं शास्त्रमाद्यं तसद्धान्तसतञ्ज्ञिम।्


तििीयं िािकं स्किं िृिीयं संतहिानयम।। ् 1

आचायय नािद के अनसाि तसद्धान्त, संतहिा िथा होिारूप िीन स्किों वाला उिम
ज्योतिषशास्त्र ही वेदों का पतवत्र नेत्र है। िद्यथा -
तसद्धान्तसंतहिाहोिारूपं स्कित्रयात्मकम।्

वेदस्यतनमयलं चक्षज्योतिः ु
शास्त्रमनिमम ् 2
।।
आचायय विाहतमतहि इन िीनों स्किों को स्पष्ट पतििातषि कििे हुए कहिे हैं -
ज्योतिः शास्त्रमनेकिेदतवषयं स्कित्रयातितष्ठिं

ित्कार्त्स्योपनयस्य नाम मतनतिः सङ्कीत्य यिे संतहिा।

स्किेऽतस्मन गतणिे न या ग्रहगतिस्तन्त्रातििानस्त्वसौ
होिाऽन्योङ्गतवतनियि कतथिः स्किस्तृिीयोऽपिः।।3
अथायि ् अनेक िेदों से यिु ज्योतिषशास्त्र के िीन स्कि हैं । इनमें से तिसमें सम्पूण य
ज्योतिषशास्त्र के तवषयों का वणयन हो उसको संतहिा कहिे हैं । तिसमें गतणि िािा ग्रहगति ज्ञाि की
ु िु फलातद का
िािी है, उसे िन्त्र (गतणि) कहिे हैं । इनके अतितिक्त िािक का लिग्रहवश शिाश
तनणयय तिसमें हो उसे होिा स्कि कहिे हैं ।
होिा -

अहोिात्रस्य पूवायन्त्यालोपाद ् होिाऽवतशष्यिे4 अथायि अहोिात्र शब्द के आद्य अक्षि अ औि
अन्त्याक्षि त्र का लोप होने से होिा शब्द की तनर्तमति हुई। इसका दूसिा नाम िािकशास्त्र िी है।
ु व्यतक्त के तलए फलाफल का तनरूपण इसमें तकया िािा
ििकालीन ग्रहों की तस्थति के अनसाि
है। आाँग्लिाषा का एस्ट्रोलॉिी (Astrology) शब्द इसी का पयायय है। होिाशास्त्र में
ु य, दशान्तदयशा, अष्टकवगय, िाियोग, नक्षत्रफल,
िातशस्वरूपातद, होिातद वगय, ग्रहबल, आयदाय
ु िफल
लिािातिि शिाश ु आतद का तववेचन तकया िािा है।5
तसद्धान्त (गतणि) -

1
डॉ. िोििाि तिवेदी - आचायय विाहतमतहि का ज्योतिष में योगदान, पृ.23
2
नािद - नािदसंतहिा 1/4
3
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा - शास्त्रोपनयनाध्याय, श्लो. 9
4
पिाशि - बृहत्पिाशिहोिाशास्त्रम 4/1्
5
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा - सांवत्सिसूत्राध्याय, श्लो. 18

18
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

तसद्धः वातदप्रतिवातदभ्यां तनणीिः अन्तः अथयः यस्य1 अथायि ्वातद प्रतिवातद िािा तनणीि
सत्य ही तसद्धान्त कहलािा है। एक अन्य पतििाषानसाि ु पूवपय क्षं तनिस्य तसद्धपक्षस्थापनं तसद्धान्तः2
अथायि पू् वपय क्ष को अस्वीकाि किके तसद्धपक्ष के स्थापन का नाम तसद्धान्त है। चूताँ क गतणि में उपपति
िािा प्रमेयों की तसतद्ध की िािी है, अिः ग्रहगति के तनणाययक नवतवि ज्योतिषग्रन्थों को तसद्धान्त

कहिे हैं ।3 तसद्धान्त के अन्तगयि यगमान, वषय, अयन, ऋि,ु मास, अहोिात्र, प्रहि, महूिय
ु , घटी, पल,

प्राण, त्रट्यातद कालमान, िूभ्रम, ग्रहिगण, ग्रहिाश्यातद, सौि, सावन, नाक्षत्र एवं चान्द्रमान,
ु ग्रहसमागम, ग्रहणस्पशयमोक्षकाल, अक्षांश, लम्बांश,
अतिमास, क्षयमास, ग्रहगति, ग्रहयद्ध,

द्यज्याचापां ु वेि आतद तवषयों की तववेचना की िािी है।4 उििमध्यकाल में
श, चिखण्ड, िाश्यदय,
गतणि के तसद्धान्त, िन्त्र औि किण िीन िेद प्रकट हुए। तिसमें सृष्ट्यातद से इष्ट तदन पययन्त अहगयण

बनाकि ग्रह तसद्ध तकये िाएाँ वह तसद्धान्त, तिसमें यगातद से इष्ट तदन पययन्त अहगयण बनाकि
ग्रहगतणि तकया िाए वह िन्त्र िथा तिसमें कतल्पि इष्टवषय का यगु मानकि ग्रहानयन तकया िाए
उसे किण कहिे हैं ।5
संतहिा -

संतहि + टाप प्रत्यय ु होिा था।6
से बना ‘संतहिा’ शब्द वेदों के क्रमबद्ध मन्त्रपाठ के प्रयक्त
‘‘सम्यक ् तहिं प्रतिपाद्य यस्याः मन्वातदप्रणीििमयशास्त्रम -् संतहिा7 अथायि तिनमें
् सम्यक ् तहिों का
ु त्यातद) को िी संतहिा कहिे थे। आचायय
प्रतिपादन हो ऐसे मन्वातदप्रणीि िमयशास्त्रों (मनस्मृ
ु िूकम्प, ग्रहण, उत्पाि, तदग्दाह, ग्रहचाि आतद अवस्थाओ ं का फल तिसमें
विाहतमतहि के अनसाि
हो, ज्योतिष का वह िाग संतहिा कहलािा है।8 संतहिा का व्यावहातिक अथय है तनयमबद्ध श्लोकों का

संयोिन अथवा तकसी एक ही तवषय का सािगृहीि सङ्कलन। 9
ज्योतिष की सिी शाखाओ ं के तववेचन

1
िट्ट हलायिु - हलायिु कोश, पृ. 711
2
िट्ट हलायिु - हलायिु कोश, पृ. 711
3
िािबली पाण्डेय - तहन्दूिमयकोष, पृ. 672
4
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा - सांवत्सिसूत्राध्याय, श्लो. 8-12
5
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 19
6
वामन तशविाम आप्टे - संस्कृि-तहन्दी शब्दकोश, पृ. 1085
7
िािा िािाकान्त देव - शब्दकल्पद्रुम - पञ्चम खण्ड, पृ. 208
8
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा - सांवत्सिसूत्राध्याय, श्लो. 23
9
डॉ. िोििाि तिवेदी - आचायय विाहतमतहि का ज्योतिष में योगदान, पृ. 123

19
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु ग्रन्थ को प्राचीन काल में संतहिा कहिे थे। संतहिा ग्रन्थों में िाष्ट्रतवषयक शिाश
से यक्त ु िफल
ु िानने
की तवति तलखी िहिी है, व्यतक्त तवषयक नहीं।1
पञ्चस्कि ज्योतिष – होिा, तसद्धान्त, संतहिा, प्रश्न औि शकुन
प्राचीन िाििीय मनीतषयों ने ज्योतिष के पूवोक्त िीन स्कि ही स्वीकाि तकये थे। पिन्त ु
कालान्ति में तविानों के एक वगय िािा ज्योतिषशास्त्र को पञ्स्स्किात्मक माना िाने लगा। प्रश्नशास्त्र
िथा शकुन को संतहिा से पृथक ् मान लेन े पि ज्योतिष के पञ्स्स्कि िेद प्रकट होिे हैं - होिा,
तसद्धान्त, संतहिा, प्रश्न औि शकुन।
प्रश्नशास्त्र -
यह ित्काल फल बिलाने वाला शास्त्र है। पहले मात्र पृछक के उच्चातिि अक्षिों िािा
फलकथन ही प्रश्नशास्त्र के अन्तगयि था। पिन्त ु कालान्ति में इसकी िीन िािाएाँ हो गयीं -
1. प्रश्नाक्षि तसद्धान्त 2. प्रश्नलि तसद्धान्त 3. स्वि तवज्ञान तसद्धान्त। प्रश्नसम्बिी ि ैन ग्रन्थ प्रश्नाक्षि
तसद्धान्त को लेकि तनर्तमि हुए। विाहपत्रु पृथयशाकृ
ु ि षट्पञ्चातशका के बनने के बाद प्रश्नलि तसद्धान्त
का अतिक प्रचाि हुआ।2
शकुन -
यह तनतमिशास्त्र िी कहलािा है। पहले यह संतहिा का ही अङ्ग माना िािा था। पिन्त ु
ईसा की दसवीं शिाब्दी के बाद इस तवषय पि स्विन्त्र तवचाि होने से इसने पृथक ् शास्त्र का रूप प्राप्त
कि तलया। आगे चलकि इस शास्त्र की पतििाषा औि िी तवकतसि हुई औि इसकी तवषयसीमा में
ु िु ों का ज्ञान प्राप्त किना िी आ गया। वसन्तिािशाकुन,
प्रत्येक कायय के पूव य में होने वाले शिाश
अद्भिु सागि ि ैसे शकुनग्रन्थ इसी पतििाषा को दृतष्ट में िखकि िचे गये प्रिीि होिे हैं ।3

अध्ययन के पिाि ऋतषप्रणीि आषय तत्रस्कि व्यवस्था ही अतिक स्पष्ट, सिल िथा उतचि
प्रिीि होिी है।4

िाििीय ज्योतिष की प्राचीनिा

1
शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि - िाििीय ज्योतिष, पृ. 613
2
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 20
3
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 21
4 ्
डॉ शिु म शमाय - ब्लॉग - ज्योतिर्तवज्ञान का सतिप्त इतिहास

20
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ज्योतिषशास्त्र तकिना प्राचीन है, इसकी कोई तनतिि तितथ या सीमा स्थातपि नहीं की िा
सकिी, पिन्त ु एक िथ्य तनतिि है तक तििना प्राचीन वैतदक सातहत्य है, उिना ही प्राचीन
ु से मानी
ज्योतिषशास्त्र है। िाििीय पिम्पिा में वेदों की उत्पति सृष्ट्यािम्भकाल में ही ब्रह्मािी के मख
िािी है।1 तवक्रम संवि ् 2077 िक सृष्ट्यातदकाल से 1,95,58,85,1212 वषय व्यिीि हो गये हैं

अथायि िाििीय मि से वेद ईसा से एक अिब, तपच्यानवे किोड़, अट्ठावन लाख, िेिासी हिाि, एक

सौ एक वषय प्राचीन हैं , पिन्त ु आितनक ्
पािात्य वैज्ञातनक िथा उनसे प्रिातवि िाििीय तविान इसे
स्वीकाि नहीं किना चाहिे। वैतदक िथा वेदाङ्गकाल के तनिायिण हेि ु अनेक तविानों ने प्रयास तकये
हैं । स्वकीय शोिों िािा उन्होंने इनका कालतनिायिण तकया है। वैतदक सातहत्य में सवायतिक प्राचीन
ऋग्वेद संतहिा है। ऋग्वेद में ज्योतिष सम्बिी मान्यिाओ ं की प्रातप्त तनस्सन्देह िाििीय ज्योतिष की

प्राचीनिा को व्यक्त कििी है। लोकमान्य बालगङ्गािि तिलक ने अपनी आाँग्लिातषक पस्तक
‘ओिायन’ में मृगतशिा में हुए वसन्त सम्पाि तबन्दु के आिाि पि ऋग्वेद का काल ईसा पूव य 4000
ु स ु में िी सम्पाि तबन्दु िहा होगा ऐसा सङ्के ि पाकि तिलक िी ने
वषय बिाया। वैतदक काल में पनवय

वह काल 6000 ईसा पूव य माना है तिसे उन्होंने अतदतिकाल नाम तदया है।3 वहीं पं.िघनन्दन शमाय

ने अपनी पस्तक ‘वैतदक-सम्पति’ में मृगतशिा में हुए इसी सम्पाि तबन्दु को लेकि तिलक महोदय

की त्रतटयों य ऋग्वेदकाल ईसा से कम से कम 22,000 वषय प्राचीन
का आकलन कििे हुए प्रमाणपूवक
बिाया है।4 श्री शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि िी वैतदककाल की पूवम
य यायदा शकपूव य 6000 वषय से नवीन
ु 6 अङ्गों में प्रामातणक रूप से की
नहीं मानिे।5 पातणतनकाल से ही ज्योतिष की गणना वेद के प्रमख
िाने लगी थी।6
िाििीय ज्योतिगयतणि एवं वेि-तसद्धान्तों का क्रमबद्ध सबसे प्राचीन एवं प्रामातणक पतिचय
य ीमा शकपूव य
हमें ‘वेदाङ्ग ज्योतिष’ में तमलिा है। श्री शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि ने वेदाङ्गकाल की पूवस
ु लेले ने वेदाङ्गज्योतिष तनमायणकाल 28 सहि वषय पूव य माना
1500 वषय मानी है। श्री तवसािी िघनाथ

1
वेदव्यास - िागवि - 3/12/34
2
आनन्दशङ्कि व्यास - महाकाल पञ्चाङ्ग, पृ. 3
3
B.G. Tilsk - the Orion p. 206,218.
4

िघनन्दन शमाय - वैतदक सम्पति, पृ. 90 उद्धृि डॉ. िोििाि तिवेदी - आचायय विाहतमतहि का ज्योतिष में योगदान,पृ. 19
5
शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि - िाििीय ज्योतिष, पृ. 192
6
पातणनीय तशक्षा - श्लो. 41

21
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

है।1 श्री कामेश्वि उपाध्याय ने वेदाङ्गकाल 27,331 ईसा पूव य तसद्ध तकया है।2 वेदाङ्गकाल िो िी हो
पिन्त ु इिना तनतिि है तक िब से लेकि अब िक ज्योतिषशास्त्र की अक्षण्णिा
ु बनी हुई है।
िाििीय ज्योतिष को प्राचीन औि मौतलक मात्र िाििीय तविान ही ् तसद्ध नहीं कििे, अतपि ु
अनेक तवदेशी तविानों ने िी इसकी प्राचीनिा को स्वीकाि तकया है।
अलबेरुनी ने तलखा है ज्योतिषशास्त्र में तहन्दू लोग संसाि की सिी िातियों से बढ़कि हैं । मैंन े
अनेक िाषाओ ं के अङ्कों के नाम सीखे हैं, पि तकसी िाति में िी हिाि से आगे की सञ्ज्ञा के तलए मझे

कोई नाम नहीं तमला। तहन्दुओ ं में अठािह अङ्कों िक की सञ्ज्ञा के तलए नाम हैं , तिनमें अतन्तम सञ्ज्ञा
का नाम पिाद्धय बिाया गया है।3
प्रो. मैक्समूलि का मानना है वैतदक मन्त्रों में प्राप्त तहन्दुओ ं की प्राितम्भक ज्योतिषीय
मान्यिाओ ं का उद्गम तवदेश में मानने का कोई कािण नहीं बनिा।4 मैक्समूलि के इस कथन से तसद्ध
होिा है तक वे िाििीय ज्योतिर्तवज्ञान को मौतलक मानने को बाध्य हुए थे।
डब्ल्ल्य.ू डब्ल्ल्य.ू हण्टि ने तलखा है 9वीं शिाब्दी में अिबी तविानों ने िािि से ज्योतिष तवद्या
ु तकया। हम तहन्दुओ ं के ऋणी हैं िो
सीखी औि िाििीय ज्योतिष तसद्धान्तों का अिबी में अनवाद
उन्होंने दशमलव पद्धति के अङ्कप्रिीकों की खोि की। उनकी अङ्कपद्धति अिबों ने सीखी िहााँ से यह
यूिोप पहुाँची।5
ु िाििीय अपनी गणना िािा चन्द्रग्रहण औि
फ्ांसीसी पययटक फ्ाक्वीस वर्तनयि के अनसाि
सूय यग्रहण की तबल्कुल ठीक ितवष्यवाणी कििे हैं । इनका ज्योतिषज्ञान प्राचीन औि मौतलक है।6

1
शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि - िाििीय ज्योतिष, पृ. 132, 193
2
डॉ. कामेश्वि उपाध्याय - ज्योतिषशास्त्र, पृ. 27
3
Dr. Edward C. Sa chau- Alberunis idia, P. 174,177
4
No case has been made out in favour of a forieng origin of the elementary astronomical
nations of the Hindus as found or presupposed in the Vedic hymns. - F.Maxmuller -
Objections, P. 130
5
To them (Hindus) we are the invention of the numeral symbols on the decimal scale, the
indian figures 1 to being abbreviated forms of initial letters of the numeral themselves &
the zero or 0 representing the first letter of the Sanskrit word for empty 'Shunya'. The
Arabs borrowed them from the Hindus & transmitted them to Europe. - W.W.Hunter -
Imperial Gzetteer, P. 218,219
6
Fracvies Vernier - Travels in the Mughal Empire, P. 329

22
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

फ्ांसीसी यात्री टिवीतनयि का कथन है िाििीय ज्योतिष-ज्ञान में प्राचीनकाल से ही अति


ु हैं ।1
तनपण
प्रतसद्ध िमयन समालोचक शेलेगल का कहना है तहन्दुओ ं की दशमलव, शून्य की खोि
मानवीय आतवष्कािों में महत्त्वपूण य स्थान िखिी है, ऐतिहातसक िथ्य आम सहमति से इस ओि सङ्के ि
कििे है।2
एविंस्टोन का कहना है तहन्दुओ ं ने तत्रकोण के तवतिन्न गणिमों
ु (प्रमेयों) को तसद्ध तकया है

तिनमें िीन ििाओ ं िािा क्षेत्रफल ज्ञाि किने की तवति तवतशष्ट है। वृि की पतिति िथा तत्रज्या के मध्य
तनतिि अनपाि ु
ु का ज्ञान आितनक समय से पूव य मात्र िािि में था।3
े ी)
एन्साक्लोपीतडया ऑफ तब्रटैतनका में तलखा है इसमें कोई सन्देह नहीं तक हमािे (अाँग्रि
वियमान अङ्कक्रम की उत्पति िािि से है। सम्भविः खगोल-सम्बिी उन साितणयों के साथ, तिनको
एक िाििीय िािदूि सन 773 ् में बगदाद में लाया, इन अङ्कों का प्रवेश अिब में हुआ। तफि ईस्वी
् 9वीं शिाब्दी के प्राितम्भक काल में प्रतसद्ध अबिफ़ि
सन की ु मोहम्मद अल ्खातिज्मी ने अिबी में उक्त
क्रम का तववेचन तकया औि उसी समय से अिबों में उसका प्रचाि बढ़ने लगा। यूिोप में शून्य सतहि
् 12वीं सदी में अिबों से तलया गया औि इस क्रम से बना हुआ
यह सम्पूण य अङ्कक्रम ईस्वी सन की
अङ्कगतणि ‘अल गोतिट्मस’ नाम से प्रतसद्ध हुआ।4
कॉण्ट ब्जोन्सयटिन य ने अन्वेषण िािा तसद्ध तकया है तहन्दु-ज्योतिर्तवज्ञान, लगिग 5000 वषय
पहले, उनके कतलयगु के प्रािम्भ के समय िी, अत्यन्त उन्नि था।5

1
Turvenier - Turveniers travels in India, P.433
2
The decimal ciphers, the honour of wich next to letters, is the most important of human
discoveries, has, with the common consent of historical authorities, been ascribed to the
hindus. - Sclegel - Sclegel's History of Literature, P.123
3
They (Hindus) demonstrated various properties of triangles, specially one which
expresses the area in terms of the three sides & the Knowledge of the proportions of the
radius to the circumference of a circle by applying one measure & one unit to the radius &
circumference. This proportion was not known out of India until modern time. -
Elphinstone - Elphinstone's History of India, P.129-130
4
Encyclopedia of Britainica, Vol.17, P. 626
5
Hindu astronomy was far advanced even at the begining of the Kaliyug or iron age of
the Hindus, about 5000 years ago. - Bjornstjerna - Theogony of the Hindus, P.37

23
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

कन यल टॉड ने अपने िािस्थान नामक ग्रन्थ में तलखा है हम उन ज्योतितषयों को कहााँ पािे
हैं , तिनका ग्रहमण्डल सम्बिी ज्ञान अब िी यूिोप में आियय उत्पन्न कि िहा है।1
ु को ऊाँ चा
मातिया ग्राह्य की सम्मति है समस्त मानवीय पतिष्कृ ि तवज्ञानों में ज्योतिष मनष्य
उठा देिा है। इसके प्राितम्भक तवकास का इतिहास संसाि की मानविा के उत्थान का इतिहास है।
िािि में इसके आतदम अतस्तत्व के बहुि से प्रमाण वियमान हैं ।2
ु स्थानों के अक्षांश
सी.वी.क्लाकय एफ.िी.एफ. का कहना है अिी बहुि वषय पहले िक हम सदूि
के तवषय में तनियात्मक रूप से ज्ञान नहीं िखिे थे, तकन्त ु प्राचीन िाििीयों ने ग्रहणज्ञान के समय से
ही इन्हें िान तलया था। इनकी यह अक्षांश, िेखांश वाली प्रणाली वैज्ञातनक ही नहीं, अचूक है।3
प्रो. तवल्सन ने कहा है िाििीय ज्योतितषयों को प्राचीन खलीफों तवशेषकि हारुाँ िशीद औि
अलमायन ने िलीिााँति प्रोत्सातहि तकया। वे बगदाद आमतन्त्रि तकये गये औि वहााँ उनके ग्रन्थों का
ु हुआ।4 प्रो. तवल्सन का यह िी मानना है िाििीय ज्योतिषी चन्द्रमा के आिाि पि क्रातन्तवृि
अनवाद

के तविािन की प्रथा, तवषवचलन, पृथ्वी का अन्ततिक्ष में तनिािाि तस्थि होना, चन्द्रमा का अपने अक्ष
पि भ्रमण, चन्द्रमा की पृथ्वी से दूिी, ग्रहों की कक्षाओ ं की तवमाएाँ िथा ग्रहणगतणि को िानिे थे।5
ु औि वेबि तलखिे हैं िािि को ही सवयप्रथम चान्द्रनक्षत्रों का ज्ञान था। चीन
प्रो. कोलब्रक
औि अिब के ज्योतिष का तवकास िािि से ही हुआ है। उनका क्रातन्तमण्डल तहन्दुओ ं का ही है।
ु के अनसाि
तनस्सन्देह उन्हीं से अिब वालों ने इसे तलया था।6 प्रो. कोलब्रक ु एक िाििीय ज्योतिषी
खलीफा के दिबाि में सातितणयााँ लाया था। वहीं से अिब में इस तवद्या का प्रचाि हुआ। िाििीय

तशक्षक थे न तक तशष्य।7 वे तवषवचलन िथा पृथ्वी का अपने अक्ष पि दैतनक पतिभ्रमण के तवषय में

1
टॉड - िािस्थान (िूतमका), पृ. 5-11
2
William Buyers - letters on India, P. 109-111
3
Bjornstjerna - Theogony of the Hindus, P. 37
4
Prof. Wilson - Ancient and Mediaval India, Vol.-1, P. 114
5
The Hindu astronomers new about the practiced the division of the Ecliptic into lunar
mansions, the precession of the equinox, the earth's self support in space, the revolution of
the moon on her axix, her distance from the earth, the dimensions of the orbits of the
planet & the calculation of the eclipses.
- James Mill - History of India, P. 106
6
William Buyers - letters on India, P. 109-111
7
Colebrooke - Hindu Algebra, P. 64

24
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु िािि
िानिे थे तिसका तववेचन ब्राह्मणों ने 5वीं सदी ईसा पूव य कि तलया था।1 प्रो. वेबि के अनसाि
में ही ग्रहों का आतवष्काि हुआ होगा क्योंतक इनके नाम तवशेष रूप से िाििीय हैं ।2
तवख्याि चीनी तविान ्तलयान तचचाव के अनसाि ु वियमान सभ्य िातियों ने िब हाथ-प ैि
तहलाना िी प्रािम्भ नहीं तकया था, ििी हम दोनों िाईयों (िािि औि चीन) ने मानव सम्बिी
समस्याओ ं को ज्योतिष ि ैसे तवज्ञान िािा सलझाना
ु प्रािम्भ कि तदया था।3
डी. मोगयन की स्पष्ट स्वीकािोतक्त है िाििीयों का गतणि औि ज्योतिष यूनान के तकसी िी
गतणि या ज्योतिष के तसद्धान्त से महान है् । इनके ित्त्व प्राचीन औि मौतलक हैं ।4
डॉ. थीबो बहुि सोच-तवचाि औि समालोचना के अनन्ति इस तनष्कषय पि पहुाँच े हैं िािि ही

िेखागतणि के मूल तसद्धान्तों का आतवष्किाय है। इसने नक्षत्र-तवद्या में िी पिािन काल में ही प्रवीणिा
प्राप्त कि ली थी, यह िेखागतणि के तसद्धान्तों का उपयोग इस तवद्या को िानने के तलए कििा था।5
सि एम. मोतनयि तवतलयम का कहना है अिबों ने तहन्दुओ ं से न के वल उनकी बीिगतणि
तवश्लेषण की प्रथम सङ्कल्पनाओ ं को ग्रहण तकया, अतपि ु उनके अङ्क प्रिीकों िथा दशमलव तचह्नाङ्कनों
को िी ग्रहण तकया, िो तक वियमान में सिी िगह ज्ञाि हैं ।6
ु तवतिन्न शोिों ने इस िथ्य को प्रकातशि तकया है तक िािि में
प्रोफे सि वैलेस के अनसाि
ज्योतिषीय सातितणयों का तनमायण ज्यातमति के तसद्धान्तों िािा हुआ था। शोि यह िी दशायि े हैं तक ये
सातितणयााँ 3000 ईसा पूव य से प्राचीन हैं ।7
बिेस महोदय ने सूयतय सद्धान्त के अंग्रि ु के पतितशष्ट में तलखा है िाििीय ज्योतिष
े ी अनवाद
टॉलमी के तसद्धान्तों पि आिातिि नहीं है, तकन्त ु इसने (िािि ने) ईसा के बहुि पहले ही इस तवषय

1
They knew about the precession of the equinoxes & about the diurnal revolution of the
earth on it's axix which the priests (Brahmins) discussed in the 5th century B.C. - James
Mill - History of India, P. 132
2
Prof. Weber - History of Indian Literature, P. 251
3
William Buyers - letters on India, P. 109-111
4
Prof. Wilson - Ancient and Mediaval India, Vol.- I, P. 374
5
G. Thibault & M.M. Sudhakar Dvivedi - Pancha Sidhantika, P. LIII-LV
6
From them (Hindus), the Arabs recived not only their first conceptions of algebric
analysis, but also thp.se numerical symbols and decimal notations now current
everywhere. - M.Monier William - Indian Wisdom, P. 124
7
Researches have brought to light Astronomical tables in India which must have been
constructed by the principlesof geometry & are said to be older the 3000 B.C. - Prof.
Wallace - Edinburg Encyclopedia, Geometry, P.191

25
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

का पयायप्त ज्ञान प्राप्त कि तलया था। यह सच है तक ग्रीक लोगों ने इस शास्त्र में आगे िाकि बहुि से
ु तहन्दुओ ं के थे औि उन्हीं से ग्रीकों
ु तकये थे िथातप इसके मूल ित्त्व औि उसमें के अनेक सिाि
सिाि
ु स्पष्ट रूप से प्रिीि होिी है। तहन्दु मौतलक थे औि इस तवज्ञान
ने यह शास्त्र तलया था। यह बाि मझे
की उन्नति में वे अतिकिि मौतलक ही िहे।1
यु पािात्यों के मि इसतलए महत्त्वपूण य हैं क्योंतक अतिकांशिः पािात्यों का प्रयास
उपयक्त
प्राचीन घटनाओ ं को बाइतबल के अनसाि
ु अथवा ईसा के बाद तसद्ध किने का िहा है। ऐसे में इिने
पािात्य तविानों ने िाििीय ज्योतिष की प्राचीनिा िथा मौतलकिा तवषयक मि उसकी स्वयंतसद्ध
प्राचीनिा िथा मौतलकिा के कािण ही तदये।2
वेदाङ्गों में ज्योतिष का स्थान
तशक्षा, कल्प, व्याकिण, तनरुक्त, छन्द औि ज्योतिष ये छः वेदाङ्ग कहे गये हैं । पातणनीय
ु -
तशक्षा के अनसाि
छन्दः पादौ ि ु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यिे।
ु ।।
ज्योतिषामयनं चक्षर्तु नरुक्तं श्रोत्रमच्यिे
ु व्याकिणं स्मृिम।् 3
तशक्षा घ्राणं ि ु वेदस्य मखं
िथा च िास्किाचायय -
ु ज्यौतिषं चक्षषी
शब्दशास्त्रं मखं ु
ु ं तनरुक्तं च कल्पः किौ।
श्रोत्रमक्त
या ि ु तशक्षाऽस्य वेदस्य सा नातसका
पादपद्मियं छन्द आद्य ैबियु ैः।।4

अथायि छन्द ु के दोनों प ैि, कल्प दोनों हाथ, ज्योतिष दोनों नेत्र, तनरुक्त दोनों कान,
वेदपरुष
तशक्षा नातसका िथा व्याकिण मखु है। इनमें से ज्योतिषशास्त्र को वेद िगवान का ् पतवत्र नेत्र कहा
गया है तिसके तबना श्रौि-स्मािय कोई िी कमय तसतद्ध को प्राप्त नहीं होिा। िद्यथा-

वेदस्य तनमयलं चक्षःु ज्योतिःशास्त्रमनिमम ् 5
।।

1
बिेस - सूयतय सद्धान्त (अंग्रि
े ी टीका), पृ.284
2 ् - ब्लॉग- ज्योतिर्तवज्ञान का सतिप्त इतिहास
डॉ शिु म शमाय
3
पातणनीय तशक्षा - श्लो. 41-42
4
िास्किाचायय - तसद्धान्ततशिोमतण - गतणिाध्याय, श्लो. 10
5
नािद - नािदसंतहिा 1/4

26
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

तवन ैिदतखलं श्रौिस्माियकमय न तसद्ध्यति।।1


ु का नेत्र रूप होने के कािण ज्योतिषशास्त्र सिी अङ्गों में
िास्किाचायय तलखिे हैं तक वेदपरुष
उिम तगना िािा है, क्योंतक अन्य सिी अङ्गों से समतन्वि प्राणी िी नेत्रितहि होने पि कुछ नहीं कि
सकिा। िद्यथा -
वेदचक्षःु तकलेदं स्मृि ं ज्यौतिषं

मख्यिा चाङ्गमध्येऽस्य िेनोच्यिे।

संयिोऽपीििै
ः कणयनासातदतिः
ु न हीनो न तकतञ्चत्किः।।2
चक्षषाङ्गे
ु के ललाट पि तविािा ने िो तलतप (िाग्य)
सािावलीकाि कल्याण वमाय कहिे हैं तक मनष्य
तलखी है उसी को दैवज्ञ होिाशास्त्ररूपी नेत्रों से पढ़कि स्पष्ट बिािा है। िद्यथा -
तविािा तलतखिा याऽसौ ललाटे ऽक्षिमातलका।

दैवज्ञस्तां पठे द्व्यक्तं होिातनमयलचक्षषा।।3

गगायचायय ने िो यहााँ िक कहा है तक िो ज्योतिष को िानिा है वह पिमगति को प्राप्त होिा


है। िद्यथा -
ज्योतिचक्रे ि ु लोकस्य सवयस्योक्तं शिाश
ु िम ु ।्
् 4
ज्योतिज्ञायन ं च यो वेति स ि ु वेति पिां गतिम।।
इसी िथ्य का समथयन कििे हुए आचायय विाहतमतहि कहिे हैं तक ज्योतिष को पढ़ने-पढ़ाने
वाला मनष्य ्
ु निक में नहीं तगििा, अतपि ु ऐसा तविान ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त कििा है। िद्यथा -
न सांवत्सिपाठी च निके षूपपद्यिे।
ब्रह्मलोकप्रतिष्ठां च लििे दैवतचन्तकः।।5
आगे ज्योतिषशास्त्र की प्रशंसा कििे हुए आचायय कहिे हैं तक वन में िहने वाले, ममत्वहीन
ु की कौन कहे?)
एवं तनष्पतिग्रह सन्त िी दैवज्ञों से प्रश्न पूछिे हैं । (िो सािािण मनष्यों
वनं समातश्रिा येऽतप तनमयमा तनष्पपतिग्रहाः।

1
नािद - नािदसंतहिा - 1/7
2
िास्किाचायय - तसद्धान्ततशिोमतण - गतणिाध्याय, श्लो. 11
3
कल्याण वमाय - सािावली 2/1
4
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा (िट्टोपली टीका), पृ. 11
5
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा - सांवत्सिसूत्राध्याय, श्लो. 30

27
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

् 1
अतप िे पतिपृछतन्त ज्योतिषां गतिकोतवदम।।
दीपहीना िातत्र औि सूय यहीन आकाश की िााँति ज्योतिषी से हीन िािा शोतिि न होिा हुआ
अिे की िााँति मागय में घूमिा िहिा है। िद्यथा -
अप्रदीपा यथा िातत्रिनातदत्यं यथा निः।
िथाऽसांवत्सिो िािा भ्रमत्यि इवाध्वतन।।2
देशकाल को िानने वाला एक दैवज्ञ िो कायय कििा है, वह हिाि हाथी औि चाि हिाि
घोड़े िी नहीं कि सकिे -
यु ।्
न ित्सहिं कतिणां वातिनां च चिगु णम
किोति देशकालज्ञो यथ ैको दैवतचन्तकः।।3
अिः सब प्रकाि से अपनी कुशलिा की इछा िखने वाले मनष्य
ु को दैवज्ञहीन देश में
तनवास नहीं किना चातहए, क्योंतक िहााँ पि नेत्रस्वरूप दैवज्ञ तनवास कििे हैं , वहााँ पाप नहीं ठहििा-
नासांवत्सतिके देश े वस्तव्यं िूतितमछिा।
ु िो
चक्षिू य तह यत्रैष पापं ित्र न तवद्यिे।।4
यु समस्त प्रमाण ज्योतिष की श्रेष्ठिा को दशायि े हैं । इसीतलए कल्प5, तनरुक्त6 ि ैसे
उपयक्त
ु किके महर्तष
अन्य वेदाङ्गों में ज्योतिष के ित्त्व दृतष्टगोचि होिे हैं । ज्योतिष की श्रेष्ठिा को अनिव
लगि आचयज्यौतिषम में ् स्पष्ट तलखिे हैं तक ि ैसे मयूिों में तशखा औि नागों में मतण को उच्च स्थान
प्राप्त है, ठीक उसी प्रकाि से वेदाङ्गों में ज्योतिष सवयश्रष्ठे है। िद्यथा -
यथा तशखा मयूिाणां नागानां मणयो यथा।
् 7
िििेदाङ्गशास्त्राणां ज्यौतिषं मूि यतन तस्थिम।।

ज्योतिषशास्त्र की प्रासतङ्गकिा

1
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा - सांवत्सिसूत्राध्याय, श्लो. 25
2
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा - सांवत्सिसूत्राध्याय, श्लो. 26
3
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा - सांवत्सिसूत्राध्याय, श्लो. 38
4
विाहतमतहि - बृहत्संतहिा - सांवत्सिसूत्राध्याय, श्लो. 29
5
आश्वलायन गृह्यसूत्र - 2/1/1 िथा पािस्कि गृह्यसूत्र - 1/21
6
तनरुक्त 2/25, 10/26
7 ् 35
लगि - आचयज्योतिषम,श्लो.

28
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु व्यवहाि के िथा कालगणना के


ज्योतिषशास्त्र प्रत्येक काल में प्रासतङ्गक है। मनष्य
स्वािातवक मान तदन, मास औि वषय आकाशीय चमत्कािों पि ही अवलतम्बि हैं ।1 यतद मानव
ु के िितदन िथा अपनी
समाि को इसका ज्ञान न हो िो िार्तमक उत्सव, सामातिक पवय, महापरुषों
प्राचीन गौिवगाथा का इतिहास तकसी िी बाि का ठीक-ठीक पिा न लग सके गा औि न कोई उतचि
कृ त्य यथासमय सम्पन्न तकया िा सके गा।2 वेदाङ्ग ज्योतिष में ज्योतिष को कालतविान बिािे हुए
कहा गया है तक िो ज्योतिष को िानिा है वही यज्ञों को िानिा है।3 स्वयं सायणाचायय ने
ु प्रयोिन अनष्ठेु य यज्ञ के उतचि काल का
‘ऋग्वेदातदिाष्यिूतमका’ में तलखा है तक ज्योतिष का मख्य
संशोिन है।4 उदाहिणाथय - कृ तिका नक्षत्र में अति का आिान किें (कृ तिकास्वतिमािीि)5।
कृ तिका नक्षत्र का ज्ञान ज्योतिष के तबना सम्भव नहीं है। इसी प्रकाि एकाष्टका में दीतक्षि होवे,

फाल्गनु पूर्तणमा में दीतक्षि होवे (एकाष्टकायां दीक्षेिन फल्ग ु ण यमासे दीक्षेिन)6् आतद श्रतु िवाक्यों का
नीपू

समतचि पालन ज्योतिष के सम्यक ् ज्ञान तबना नहीं तकया िा सकिा। अिः वेद के अध्ययन के
साथ-साथ ज्योतिष को वेदाङ्ग बिाकि ऋतषयों ने ज्योतिषशास्त्र के अध्ययन पि पयायप्त बल तदया।
महर्तष वेदव्यास का वचन है तक काष्ठ के वसह िथा तचत्रमय िािा के समान वेदों का अध्ययन
ज्योतिषशास्त्र के तबना तनष्प्राण है। िद्यथा -
यथाकाष्ठमयः वसहो यथा तचत्रमयो नृपः।
िथा वेदाद्यिीिोऽतप ज्योतिषशास्त्रं तवना तििः।।7
तबना ज्योतिषज्ञान के उतचिकाल से तिन्नकाल में तकये गये दान, होम, िपातद कायय ऊसि
िूतम में बीि बोने के समान तनष्फल हो िािे हैं । िद्यथा -
अिीिानागिे काले, दानहोमिपातदकम।्
् 8
ऊषिे वातपिं बीिं, ििद्भवति तनष्फलम।।
अिः समस्त वैतदक एवं लौतकक व्यवहािों की साथयकिा, सफलिा के तलए ज्योतिष का ज्ञान
अतनवायय है। ज्योतिष ज्ञान की सवायतिक आवश्यकिा कृ षक को पड़िी है, अिः िाििीय अपढ़

1
शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि - िाििीय ज्योतिष, पृ. 6
2
न ेतमचन्द्र शास्त्री - िाििीय ज्योतिष, पृ. 36
3
लगि - आचयज्यौतिषम, ् श्लो. 36
4
सायणाचायय - ऋग्वेदातदिाष्यिूतमका, पृ. 195
5
िैतििीय ब्राह्मण - 1/1/2/1
6
िैतििीय संतहिा - 7/4/8/1
7
तशविाि - ज्योतिर्तनबि - ज्योतिषप्रशंसाध्यायः, श्लो. 20
8
तशविाि - ज्योतिर्तनबि - ज्योतिषप्रशंसाध्यायः, श्लो. 12

29
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु ं का ज्ञान अत्यावश्यक है
कृ षक िी व्यवहािोपयोगी ज्योतिष ज्ञान िखिे हैं । कृ तषकायय हेि ु ऋिओ

िथा ऋिज्ञान सूय य पि अवलतम्बि है। वषाय कब होगी? खेिों में बीिवपन कब किना चातहए? तकस

वषय कौन सा िान्य श्रेष्ठ होगा? इन सब बािों को कृ षक नक्षत्रज्ञान, वायपिीक्षणातद से िान लेि े हैं ।
यतद कृ षक ज्योतिषशास्त्र के उपयोगी ित्त्वों को न िानिा िो उसका अतिकांश श्रम तनष्फल हो
िािा।

पिाकाल में पोिवाहक ज्योतिष की सहायिा से ही समद्रु में अपनी तस्थति का पिा लगािे
थे। घड़ी के अिाव में तदन में सूय य िथा िातत्र में नक्षत्रमण्डल की सहायिा से सिलिा से समय का
पिा लगाया िा सकिा है। ऊाँ चे पवयि तशखिों की ऊाँ चाई तत्रकोणतमति से ज्ञाि की िािी है िो तक
ज्योतिष का अतिन्न एवं प्राचीन अङ्ग है। तवश्व के सबसे ऊाँ चे पवयितशखि ‘माउण्ट एविेस्ट’ की ऊाँ चाई
सि िॉिय एविेस्ट के दल के िाििीय सदस्य पं. िािानाथ तसकदि ने इसी तवति से ज्ञाि की थी।1
इतिहासज्ञान के पतिवद्धयन में ज्योतिष की महिी िूतमका है। ज्योतिषशास्त्र की सहायिा के
तबना वेदों की प्राचीनिा कदातप तसद्ध नहीं की िा सकिी थी। लोकमान्य बालगङ्गािि तिलक ने वेदों
में प्रतिपातदि नक्षत्र, अयन औि ऋि ु आतद के आिाि पि ही वेदों का समय तनिायतिि तकया था।
आयवेु द में िी ज्योतिष की बड़ी महिा है। अनेक औषतियााँ कालतवशेष में ही बलविी
िहिी हैं । पृथ्वी के सवायतिक तनकट होने से चन्द्रमा िूवातसयों को सवायतिक प्रिातवि कििा है।
समद्रु में होने वाले ज्वाि-िाटा का सीिा सम्बि चन्द्रमा से है।2 सवायतिक दुघयटनाएाँ पूर्तणमा के
आस-पास ही होिी हैं । अतिकांश पागलों में इस उिाद िोग के प्रािम्भ की तितथ पूर्तणमा के सतन्नकट
ही होिी है।3
ज्योतिषशास्त्र के साथ एक तबडम्वना यह है तक यह शास्त्र तििना अतिक प्रचतलि एवं प्रतसद्ध
होिा गया, अनतिकािी लोगों की सङ्गति से उिना ही अतिक तववादास्पद होिा चला गया।4 अनेक
कुिकी तविानों ने इसे तवज्ञान मानना िी नकाि तदया। िबतक सत्य यह है तक तवज्ञान किी असफल
नहीं होिा, वैज्ञातनक होिे हैं । तचतकत्सावैज्ञातनक िथा मौसमवैज्ञातनक अनेक बाि तमथ्यावादी तसद्ध
होिे हैं िथातप दोनों तवज्ञान समाि की दृतष्ट में अपने-अपने स्थान पि स्थातपि है।

आितनक काल में अिश्रद्धा, अितवश्वास ि ैसे शब्द मात्र ज्योतिष के साथ िोड़ तदये गये,
पिन्त ु अन्य ज्ञान-तवज्ञानों पि िी अिश्रद्धा क्यों हो? प्रतसद्ध वैज्ञातनक स्टीफन हॉवकग को कृ ष्णतववि

1 ्
डॉ शिु म शमाय - ब्लॉग - ज्योतिर्तवज्ञान का सतिप्त इतिहास
2
तिलकचन्द तिलक - फतलि ज्योतिष, पृ. 11
3
डॉ. तगििाशङ्कि शास्त्री - ज्योतिर्तवज्ञान तवमशय, पृ. 174, 188
4
डॉ. िोििाि तिवेदी - आचायय विाहतमतहि का ज्योतिष में योगदान, पृ.21

30
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


सम्बिी अपनी मान्यिा के तलए अत्यतिक प्रतसतद्ध तमली। उनकी पस्तक बािाि में आिे ही सबसे

अतिक तबकने वाली पस्तक ु थे उसमें नोबल पिस्काि
हो गयी औि िौतिकी के तिस तविा से वे िड़े ु

न होने के बाद िी उनका नाम नोबल पिस्काि के तलए कई बाि उठाया गया। अपनी तिस अविािणा
से वे प्रतसद्ध हुए उसके प्रकाशन के लगिग 30 वषय पचाि ् उन्होंने अपनी अविािणा को गलि
् उनका सम्मान िथा स्थान यथावि है। इसी प्रकाि
स्वीकाि तकया।1 इसके बाद िी तवज्ञान-िगि में
ज्योतिष के प्रति दुिाग्रह िखना िी उतचि नहीं है। साथ ही यह िी आवश्यक है तक अल्पज्ञों िािा
ज्योतिष के साथ तखलबाड़ न तकया िाए।2 ज्योतिष की मयायदा का िक्षण अत्यावश्यक है क्योंतक
िाििीय ज्योतिष तवज्ञान की श्रेणी से िी ऊपि शास्त्र की श्रेणी में है। तवज्ञान मात्र िौतिक पदाथों
औि तपण्डों का तवश्लेषण कििा है। वह ज्ञान का सािािणीकिण किके सावयितनक बनािा है; िबतक
शास्त्र दृश्य-अदृश्य एवं तपण्डातद के िीििी दैवि अंश को पहचानिा है। वह तपण्डातद िथा पदाथों
के उत्पतितनतमि को प्रकट कििा है। िाििीय तचन्तन में अदृश्य के प्रिाव को स्थायी मान कि
शास्त्र िािा तविान तकया गया है, िबतक तवज्ञान के कदम अदृश्य की ओि अिी बढ़े हैं ।3
ु सूचनाओ ं औि सम्भावनाओ ं का शास्त्र है। इसके उपयोग एवं महत्त्व को
ज्योतिष वस्तिः
सही पद्धति से समझने पि िीवन औि अतिक सफल एवं साथयक हो सकिा है। उदाहिणाथय मािक
समय में िीव्रगति से वाहन न चलाकि व्यतक्त बड़ी दुघयटना से बच सकिा है।
संसाि में तििने िी शास्त्र हैं वे के वल तववाद (शास्त्राथय) के तवषय हैं , अप्रत्यक्ष हैं , पिन्त ु
ज्योतिष प्रत्यक्षशास्त्र है, तिसके तक सूय य औि चन्द्रमा साक्षी हैं । िद्यथा -
अप्रत्यक्षातण शास्त्रातण तववादस्तेषकेु वलम।्
प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रं चन्द्राकौ यत्र सातक्षणौ।।4
सािावलीकाि कल्याण वमाय कहिे हैं तक ज्योतिषशास्त्र िनाियन में सहायक है, आपति रूपी
समद्रु में नौका का कायय कििा है िथा यात्राकाल में मन्त्री तसद्ध होिा है, अिः ज्योतिषशास्त्र के
समान कोई अन्य शास्त्र नहीं है। िद्यथा -

अथायि यने सहायः परुषाणामापदणयवे पोिः।
यात्रा समये मन्त्री िािकमपहाय नास्त्यपिः।।5

1
Jenny Hogan - New Scientist 19.00, 14, July, 2004
2 ्
डॉ शिु म शमाय - ब्लॉग - ज्योतिर्तवज्ञान का सतिप्त इतिहास
3
डॉ. कामेश्वि उपाध्याय - ज्योतिषशास्त्र, पृ. 10
4
तशविाि - ज्योतिर्तनबि - ज्योतिषप्रशंसाध्याय, श्लो. 21
5
कल्याण वमाय - सािावली - 2/5

31
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु के दैतनक िीवन व तदनचयाय से िड़ा


ज्योतिष का उपयोग मनष्य ु हुआ है। अिः मानव का
कोई िी व्यावहातिक कायय इस शास्त्र के तबना नहीं हो सकिा। वैतदककाल में उद्भूि यह िाििीय
तत्रस्कि ज्योतिष अपने ऋतषप्रणीि तसद्धान्तों के बल पि उििोिि तवकतसि होिा गया। िाििीय
ज्योतिष प्रत्येक देश, प्रत्येक काल िथा प्रत्येक पतितस्थति में प्रासतङ्गक िहा है औि सदैव िहेगा।
पञ्चाङ्ग
पञ्चाङ्ग के तितथ, वाि, नक्षत्र, योग औि किण ये पााँच अङ्ग ज्योतिष के मूलिूि अङ्ग हैं ।
तितथ
िनोति तवस्ताियति चन्द्रकलातमति। िन्यिे चन्द्रकलेति वा।1 अथायि ् िो चन्द्रकला का
तवस्ताि कििी है वह तितथ कहलािी है। सूय य की गति मध्यममान से प्रतितदन 59।-8।। है िबतक
ु है।2 आकाश में सूय य - चन्द्र के एकत्र होने
चन्द्रमा की दैतनक गति मध्यममान से 13010। के िल्य

पि अथायि इनकी िाश्यंशात्मक यति ्
ु होने पि अमावास्या समाप्त होिी है। इसके पचाि अतिक गति
होने के कािण चन्द्रमा, सूय य से आगे िाने लगिा है। दोनों में 12 अंश का अन्ति पड़ने में तििना
समय लगिा है उसे तितथ कहिे हैं । िद्यथा -
सूयायतन्नगयत्य यत्प्राचीं शशी याति तदने तदने।
े तिथ्यन्तेऽकांशकै तस्थतिः।।3
तलप्तातदसाम्ये सूयन्दु
अकायतितनसृिः प्राचीं यद्यात्यहिहः शशी।
िच्चान्द्रमानमंश ैस्त ु ज्ञेया िादशतितस्ततथः।।4
ु एकत्र होने िक अथायि एक
इस प्रकाि दोनों के पनः ् चान्द्रमास में (360/12 =) 30 तितथयााँ
होिी हैं ।
वाि

उदयादुदयं िानोिूतमसावनवासिाः5
- सावन मान अथायि ् िूतम के तदन के अनसाि
ु एक
सूयोदय से दूसिे सूयोदय िक के काल को वाि कहिे हैं । सूयतय सद्धान्त िथा पािात्यमि से वाि

एक अद्धयिातत्र से दूसिी अद्धयिातत्र िक होिा है। वाि साि हैं – ितववाि, सोमवाि, मङ्गलवाि, बिवाि,

गरुवाि, ु
शक्रवाि िथा शतनवाि। वािक्रम का तनिायिण होिाक्रम से हुआ है। सूयतय सद्धान्त में तनदेश

1
िािा िािाकान्तदेव -शब्दकल्पद्रुम - तििीयकाण्डम, ् पृ. 616
2
सिेु शचन्द्र तमश्र - ज्योतिष सवयस्व, पृ. 30
3
वतसष्ठसंतहिा
4
तशविाि - ज्योतिर्तनबि - तितथप्रकिणम, ् श्लो. 2
5
सूयतय सद्धान्त - मध्यमातिकाि, श्लो. 36

32
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

है तक शतन से नीचे की ओि (अथायि ् होिाक्रम से) तगनने पि प्रत्येक चौथा ग्रह अगले तदन का
अतिपति होिा है। िद्यथा –
ु थाय
मन्दादिः क्रमेण स्यिि ु तदवसातिपाः।1
इसका कािण यह है तक एक होिा 2.5 घटी (अथायि 1् घण्टा) की होिी है। अिः 60 घटी
(एक अहोिात्र) में कुछ 24 होिाएाँ हुईं। सूयोदय के समय िो पहली होिा होिी है वही वाि होिा है।
इसके बाद 21 घण्टों में सािों होिाओ ं की िीन आवृतियााँ पूिी हो िािी हैं । 22वााँ घण्टा उसी पहले
वाले ग्रह की होिा का होिा है। 25वााँ घण्टा प्रथम होिेश से चौथे ग्रह की होिा का होिा है, िो तक
अगले तदन की प्रथम होिा है। अिः सूयोदय के समय वह होिा होने से वही वाि होगा। उदाहिणाथय
शतनवाि को प्रथम होिा शतन की होगी। अगले वाि का तनिायिण चक्र से स्पष्ट है -
श गु मं सू शु बु चं (होिािीश)
1 2 3 4 5 6 7 (होिा क्रमाङ्क)
8 9 10 11 12 13 14
15 16 17 18 19 20 21
22 23 24 25 = अगला तदन ितववाि
नक्षत्र
नक्षति शोिां गछति स्थानान्तिं गछति। नक्षिति क्षीयिे वा2 - पतििाषाओ ं के अनसाि
ु िो
शोिा को प्राप्त हो अथवा स्थान बदलिा हो अथवा िो नष्ट नहीं होिा उसे नक्षत्र कहिे हैं । क्षिण न
ु ही उनका नक्षत्रत्व है।3 पृथ्वी के पतिक्रमा पथ (ज्योतिषीय िाषा में सूयभ्र
होने का गण य मणपथ) को
क्रातन्तवृि कहिे हैं । इसके उिि औि दतक्षण में 90-90 अंश िक एक पट्टी फै ली हुई है तिसे िचक्र
कहिे हैं । 3600 के इस चक्र को मेषािम्भ तबन्दु से प्रािम्भ किके प्रत्येक 130-20। (अथायि ् 800
कला) के अन्तिाल से कुल 27 िागों में बााँटा गया है, तिन्हें नक्षत्र कहिे हैं । यह तनिायिण गतणिीय
दृतष्टकोण से है। प्रािम्भ में इनका तनिायिण इनकी आकृ तियों के आिाि पि हुआ था। प्राचीनकाल में
नक्षत्र शब्द िािा अथवा िािापि ु होिा था। अिः प्राच्यग्रन्थों में लुब्धक, आपः आतद
ं ु ों के तलए प्रयक्त

नक्षत्रों के नाम तमलिे हैं िो तक वियमान 27 नक्षत्रों में नहीं हैं । वैतदक सातहत्य में अतितिि नक्षत्र
का िी उिे ख बहुलिा से तमलिा है। उस समय अट्ठाईस नक्षत्रों का उपयोग होिा था पिन्त ु बाद में

1
सूयतय सद्धान्त - िूगोलाध्याय, श्लो. 79
2
िट्ट हलायिु - हलायिु कोष, पृ. 378
3
िन्नक्षत्राणां नक्षत्रत्वम -् िैतििीय ब्राह्मण - 2/7/18/3

33
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अतितिि ् को उििाषाढा िथा श्रवण में अन्तर्तनतहि कि तलया गया। पञ्चाङ्गों में तिस नक्षत्र का
उिे ख होिा है, वह वास्तव में चान्द्रनक्षत्र होिा है।
नक्षत्रों के नाम तनम्नतलतखि हैं -
ु स,ु 8. पष्य,
1. अतश्वनी, 2. ििणी, 3. कृ तिका, 4. िोतहणी, 5. मृगतशिा, 6. आद्राय, 7. पनवय ु
ु 12. उििफाल्गनी,
9. आश्लेषा, 10. मघा, 11. पूवायफाल्गनी, ु 13. हस्त, 14. तचत्रा, 15. स्वािी,

16. तवशाखा, 17. अनिािा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूवायषाढा, 21. उििाषाढा, 22. श्रवण,
23. ितनष्ठा, 24. शितिषा, 25. पूवायिाद्रपद, 26. उििािाद्रपद, 27. िेविी
प्राचीन ग्रन्थों में अनेक स्थलों पि नक्षत्रािम्भ कृ तिका से है पिन्त ु वियमान में अतश्वन्यातद
नक्षत्रक्रम ही सवयमान्य है।
योग
सूय य िथा चन्द्रमा के स्पष्ट िाश्यातद के िोड़ को ‘योग’ कहिे हैं । 130-20। मान के कुल 27
योग होिे हैं । ये हैं 1 -

1. तवष्कम्भ, 2. प्रीति, 3. आयष्मान, ु , 8. िृति,
4. सौिाग्य, 5. शोिन, 6. अतिगण्ड, 7. सकमाय
9. शूल, 10. गण्ड, 11. वृतद्ध, 12. ध्रवु , 13. व्याघाि, 14. हषयण, 15. वज्र, 16. तसतद्ध, 17.
व्यिीपाि, 18. विीयान, ् 19. पतिघ, 20. तशव, 21. तसद्ध, 22. साध्य, 23. शिु , 24. शक्ल,
ु 25.
ब्रह्म, 26. ऐन्द्र, 27. वैितृ ि

किण

तिथ्यद्धयपतितमिबवाद्येकादशसंज्ञककालतवशेषः2 - अथायि तिथ्यद्धय को किण कहिे हैं । बवातद
कुल एकादश किण होिे हैं । इनके दो िेद हैं - चि एवं तस्थि। बव, बालव, कौलव, ि ैतिल, गि,

वतणि िथा तवतष्ट ये साि चि किण हैं । ये शक्लप्रतिपदा के उििाद्धय से कृ ष्णा चिदयु शी के पूवायद्ध य िक

1

तवष्कम्भः प्रीतििायष्मान ्
सौिाग्यः शोिनस्तथा।

अतिगण्डः सकमाय च िृतिः शूलस्तथ ैव च।।
गण्डोवृतद्धध्र्वुय ि ैव व्याघािो हषयणस्तथा ।
वज्रं तसतद्धर्व्रय यतिपािो विीयान ् पतिघः तशवः।।
ु शक्लो
तसद्धः साध्यः शिः ु ब्रह्म ऐन्द्रोऽथ वैितृ िः।

सप्तववशतििाख्यािा नामिल्यफलप्रदाः ।।
- कातशनाथ - शीघ्रबोि - तििीयप्रकिणम, ् श्लो. 31-33
2
िािा िािाकान्तदेव - शब्दकल्पद्रुम – तििीयकाण्डम, ् पृ.30

34
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

क्रमशः आवृि होिे हैं । कृ ष्णा चिदयु शी के उििाद्धय से शक्ल


ु प्रतिपदा के पूवायद्ध य िक शकुतन, चिष्पद,

नाग िथा वकस्तघ्नु ये चाि तस्थि किण होिे हैं ।1
िातश
िचक्र के 300-300 अंश के बािह िाग किने पि िातशयों की प्रातप्त होिी है। ये हैं –
ु 4. ककय , 5. वसह, 6. कन्या, 7. िला,
1. मेष, 2. वृषि, 3. तमथन, ु 8. वृतिक, 9. िन,ु 10. मकि,
11. कुम्भ, 12. मीन
िातशयों के स्वातमयों का तनिायिण ग्रह कक्षाक्रम से हुआ है। िाििीय ज्योतिष में वसह से
लेकि आगे की ओि 6 िातशयों पि मूल आतिपत्य सूय य का िथा ककय से तवपिीि क्रम में 6 िातशयों
पि चन्द्रमा का आतिपत्य माना गया है। िद्यथा -
िादशमण्डलिगणस्तस्यािे वसहिो ितवनायथः।
ककय टकाि ् प्रतिलोमं शशी िथान्येऽतप ित्स्थानाि।।
् 2
मूल आतिपत्य की प्रथम िातशयों वसह िथा ककय के स्वामी क्रमशः सूय य िथा चन्द्रमा ही
माने गये। शेष िातशयााँ नीचे से ऊपि की ओि (सूय य िथा चन्द्रमा को छोड़कि) की कक्षाओ ं वाले
ग्रहों को क्रमशः बााँट दी गयीं। ि ैसे वसह की अगली कन्या िथा ककय से तपछली तमथनु का स्वामी
बिु है। िातशस्वामी - तनिायिण - व्यवस्था को एक कतल्पि कथा िािा िी समझ सकिे हैं । ज्योतिष
की मान्यिा है -
तदनेशचन्द्रौ िािानौ सतचवौ िीविागयवौ।
कुमािोतवि ् कुिो नेिा प्रेष्यस्तपननन्दनः।।3

1
बविबालवि ैवकौलवस्तैतिलस्तथा ।
गििवतणिोतवतष्टः सप्त ैिे किणातनच।।
कृ ष्णपक्षे चिदु श्य यां शकुतनः पतिमे दले।

चिष्पदिनागि अमावास्यादलिये।।

शक्लप्रतिपदायां ु प्रथमे दले।
च वकस्तघ्नः
तस्थिाण्य ैिातन चत्वाति किणातन िगबु िाय
ु ः।।

शक्लप्रतिपदान्ते च बवाख्यः किणो िवेि।्
एकादशि तवज्ञेयाचितस्थि तविागिः।।
- कातशनाथ - शीघ्रबोि - तििीयप्रकिणम, ् श्लो. 35-38
2
कल्याण वमाय - सािावली - 3/9
3
वैद्यनाथ - िािकपातििाि - 2/2

35
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

् य य एवं चन्द्रमा िािा हैं , बृहस्पति एवं शक्र


अथायि सू ु मन्त्री, बिु िािकुमाि, मङ्गल सेनापति
िथा शतन दास है। चूताँ क चन्द्रमा को स्त्रीग्रह (स्त्रीणां चन्द्रतसिौ)1 माना गया है अिः हम उसे िानी

कह सकिे हैं । कथानसाि एक समय िािा-िानी ने अपने तनकट के छः-छः िवनों को अतिक
ु म के कािण दोनों ने प्रथम िवन िािकुमाि बिु
िानकि उन्हें बााँटने का तवचाि तकया। स्पष्टिः पत्रप्रे
को तदये। मायािाल आतद आसिी ु से यिु सतचव शक्र
ु गणों ु ने आगे होकि क्षेत्र मााँग तलए अिः
अगले िवन उन्हें तमले। िािा के तलए सेनापति तवशेष महत्त्व िखिा है अिः उसके अगले िवन

मङ्गल को तमल गये। ित्पिाि स्वातिमानातद ु से यक्त
देवोतचि गणों ु सतचव बृहस्पति की ओि िािा-
िानी का ध्यान आकृ ष्ट हुआ औि अगले िवन उन्हें तमल गये। अन्त में बचे एक-एक िवन िािा
िािा-िानी ने अपने दास शतन को उपकृ ि तकया।2
िाव
कुण्डली तनमायण किने पि उसमें लि से लेकि कुल 12 िाव होिे हैं । तकसी घटना के समय
उस स्थान के पूवी तक्षतिि पि उतदि िातश लि कहलािी है। इसी प्रकाि ित्समय खमध्य में तस्थि
िातश दशमिाव कहलािी है। इन दोनों के साहार्य् से िादशिाव स्पष्ट तकये िािे हैं । िादशिाव
फलकथन में उपयोगी तसद्ध होिे हैं ।
यु समस्त ित्त्व िाििीय ज्योतिष के आिाि स्तम्भ हैं ।
उपयक्त

1
कल्याण वमाय - सािावली - 4/4
2 डॉ. शि ् , ब्लॉग-िातशस्वामी तनिायिण
ु म शमाय

36
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अध्याय 2
िातश एवं ग्रह पतिचय, कालमान िथा सूयोदयास्त सािन

ु शमाय
डॉ. शिम
तवगि अध्याय में ज्योतिष के पतिचय औि उसके मूल पञ्चाङ्गों से हम पतितचि हुए। इस
अध्याय में फलादेश के आिाििूि ित्त्व िातश औि ग्रहों के स्वरूपातद से पतितचि होकि हम तवतवि
कालमानों िथा कालगणना के सूक्ष्मिम अंश त्रतट ु
ु से ब्रह्मा की आयपययन्त कालतवस्ताि को िानेंग।े

ित्पिाि हमािी यात्रा कुण्डली के गतणि में सहायक गतणिीय प्रतक्रयाओ ं को समझने की होगी।
य हम समझेंग।े
इष्टकाल, नाक्षत्रकाल, सूयोदयास्तसािन की तवतियों को उदाहिणपूवक
िातशसञ्ज्ञा औि स्वरूप तवचाि
संस्कृि िाषा में िातश शब्द का अथय है समूह या ढेि। चूताँ क आकाश में नक्षत्रों के िािों के
मध्य िातशयों की आकृ तियों की कल्पना की गयी है, अिः िािासमूहतवशेष का नाम िातश है।
िातशयों के तवतिन्न नाम, उनकी सञ्ज्ञाएाँ आतद िािकपातििाि ग्रन्थ के आिाि पि प्रस्तिु हैं -
मेषाितवश्वतक्रयिम्ब ु
ु िाद्या ु
वृषोक्षगोिाबरुगोकु लातन।
ु ििु मं
िन्द्वं नृयग्मं ु िृिीयं तमथनंु वदतन्त॥
ु यमं च यगं
कुलीिककायटकककय टाख्याः कण्ठीिवः वसहमृगन्द्र
े लेयाः।

पाथोनकन्यािमणीिरुण्यस्तौली वतणक्ज्िूकिलािटाि।।

अल्यष्टमं वृतिककौर्तपकीटाः िन्वी िनिापशिासनातन।
मृगो मृगास्यो मकििनक्रः कुम्भो घटस्तोयििातििानः।।

मीनान्त्यमर्त्स्यपृथिोमझषा ु तक्रयाद्याः।1
वदतन्त दािातदकक्षयनवपायिाः
यु श्लोक में उद्धृि अतिकांश नामों का सम्बि उनकी आकृ ति औि उनके क्रमाङ्क से
उपयक्त
है। कतिपय नाम ग्रीकमूल के हैं िो िाििीय औि ग्रीक ज्योतिष के सम्बि की ओि सङ्के ि कििे
े ी आतद िाषाओ ं में प्राप्त होिे हैं । मेष
हैं । अनेक नाम ऐसे हैं िो संस्कृिमूल के हैं िथा वियमान अंग्रि
ु रुु औि आद्य ये नाम हैं । वृषि को उक्ष (ऑक्स), गो, िाबिी
के अि, तवश्व, तक्रय, िम्ब ु (टोिस) औि
ु ( मनष्य
गोकुल कहा िािा है। तमथनु के नाम हैं - िन्द्व, नृयग्म ु यम, यगु औि
ु का िोड़ा), ििु म,
िृिीय। ककय के कुलीि, ककय ट औि ककायटक नाम हैं । वसह को कण्ठीिव, मृगन्द्र
े , लेय (तलयो) िी
ु को िौली (िलािि),
कहिे हैं । कन्या के पाथोन, िमणी, िरुणी ये नाम हैं । िला ु वतणक,् िूक औि
िट कहिे हैं । वृतिक को अतल, अष्टम, कौर्तप (स्कोर्तपयो) औि कीट कहिे हैं । िन ु के िन्वी, चाप

1
िािकपातििाि 1/4-7

37
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

औि शिासन नाम हैं । मकि को मृग, मृगास्य औि नक्र कहिे हैं । कुम्भ के घट औि िोयिि नाम
ु औि झष कहिे हैं । अतश्वनी आतद 27 नक्षत्रों के मध्य नौ - नौ चिण
हैं । मीन को अन्त्य, पृथिोम
की एक िातश होिी है।
ु के शिीि में िातशयााँ
कालपरुष
ु की कल्पना कि उसके शिीि में िातशयों को क्रमानसाि
आचायों ने एक कालपरुष ु उस
शिीि में बााँट तदया है। वास्तव में षष्ठेश की तस्थति तकस अङ्ग में तिल, व्रणातद तचह्न कििी है, शिीि

के तकस िाग में पतष्ट/कष्ट की सम्भावना है आतद प्रश्नों के समािान में यह मान्यिा समािानकािक
तसद्ध होिी है।
ु शवक्षोहृत्कुतक्षिागकतटबतस्तिहस्यदेशाः।
कालात्मकस्य च तशिोमखदे
ु पििस्त ु िङ्घे पादियं तक्रयमखावयवाः
ऊरू च िानयु गलं ु क्रमेण।।1
ु का तसि, वृषि मख,
मेष िातश कालपरुष ु तमथनु वक्षस्थल ( लघिािक
ु 1/4 आतद के
ु बाहु क्योंतक हाथ फै लाकि खड़े होने पि बाहु औि वक्षस्थल एक ही िाग में होिे हैं ), ककय
अनसाि
ु (मलमागायतद), िन ु उरुयगल
ु बतस्त ( मूत्रमागायतद), वृतिक गह्य
हृदय, वसह उदि, कन्या कतट, िला ु
ु (घटने
(िााँघ), मकि िानयु गल ु (तपडली) औि मीन चिणयगल
ु ), कुम्भ िङ्घायगल ु हैं । आचायय
ु इनका तवचाि िि समय में किना चातहए। तिन िातशयों में शिग्रह
विाहतमतहि के अनसाि ु ब ैठे हैं
ु (तवकल, दुबयल,
उनसे सम्बद्ध अङ्ग पष्टु िथा तिनमें पापग्रह ब ैठे हों उनसे सम्बद्ध अङ्ग उपद्रवयक्त
ु होिे हैं । िद्यथा -
कष्टयक्त)
कालनिस्यावयवान प् रुषाणां
ु तचन्तयेत्प्रसवकाले।
सदसद्ग्रहसंयोगाि प् ष्टाः
ु सोपद्रवास्ते च।। 2
िातशयों के स्वरूप

िािकों से तनर्तमि िातशयों की आकृ तियों में स्वरूप की कल्पना पूवायचायों ने की। िदनसाि

व्यत्यस्तोियपछमस्तकय ु मीनौ सकुम्भो नि-
िौ

स्तौली चापििस्तिङ्गिघनो ्
नक्रो मृगास्यो िवेि।।

वीणाढ्यं सगदं नृयग्ममबला नौस्था ससस्यानला

शेषाः स्वस्वगणातििानसदृशाः सवे स्वदेशाश्रयाः।।3

1
िािकपातििाि 1/8
2

लघिािक 1/5
3
िािकपातििाि 1/9

38
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


मीन िातश मर्त्स्ययगलाकाि ु औि दूसिे की पछ
है तिसमें एक का मख ु संलि है। सिल
शब्दों में कहें िो एक मछली सीिी औि दूसिी उल्टी है। कुम्भ की आकृ ति घटिि नि के समान है।

िलािाि ु की आकृ ति कतल्पि की गयी है। वास्तव में आकाश में मात्र िला
के समान िला ु ही तदखिी
ु नहीं तकन्त ु वह कतल्पि िलाकृ
है, मनष्य ु ति ऐसी है तिसमें दोनों पलड़ों के सूत्र सीिे तदखाई दे िहे

हैं । ऐसा ििी सम्भव है िबतक कोई ििािू को उठाए, अिएव िलािाि की िी कल्पना कि ली
गयी। िन ु की आकृ ति शिसिान तकये कमि से ऊपि िनियि
ु औि नीचे घोड़े के प ैि वाली है। मकि
मृग के समान मखु वाली है अथायि ्शेष शिीि मकि का ही है। तमथनु िातश गदािि परुष
ु औि
ु समान है। कन्या िातश की आकृ ति नौका में ब ैठी एक हाथ में अन्न औि
वीणािातिणी स्त्री के यगल
दूसिे में अति तलए हुई कन्या के समान है। शेष िातशयााँ (मेष, वृषि, ककय , वसह औि वृतिक) अपने
ु स्वरूप वाली हैं ।
नाम के अनसाि
नक्षत्रों के िािों एवं उनके आस-पास के िािों के मध्य िातशयों की कल्पना की गयी है।
अतश्वनी एवं ििणी के िािे तमलकि मेष िातश का तनमायण कििे हैं । िोतहणी के साथ उसके तनकट के
कुछ िािे वृषि िातश बनािे हैं । पनवय
ु स ु नक्षत्र के िािों प्रकृ ति (Costor) एवं परुष
ु (Pollux) का
आिाि लेकि तमथनु िातश की कल्पना की गयी है। इसी प्रकाि अन्य िातशयााँ िी आकाश में कतल्पि
की गयी हैं । अिः आकाश में इन आकृ तियों को समझने के तलए कल्पनाशीलिा की आवश्यकिा
होिी है। कतिपय िेखातचत्र पतितशष्ट में संलि हैं ।
िातशयों के स्थान
िातशयों के वासस्थलों को िानने से तप्रय स्थल, चोि कहााँ िागा, खोई वस्त ु कहााँ तमल
सकिी है आतद प्रश्नों के समािान में सिलिा होिी है।

मेषस्य िािकिित्नििािलं ्
स्याि उक्ष्णस्त ु सानकृु तषगोकुलकाननातन।

द्यूितक्रयाितितवहािमही यगस्य ु
वापीिटाकपतलनातन कुलीििाशेः।।

कण्ठीिवस्य घनशैलगहावनातन षष्ठस्य शािलविूितितशल्पिूतमः।

सवायथ यसािपिपण्यमही ु
िलायाः कीटस्य चाश्मतवषकीटतबलप्रदेशाः।।

चापस्य वातििथवािणवासिूतमः एणाननस्य सतिदम्बवनप्रदे
शाः।

कुम्भस्य िोयघटिाण्डगृहस्थलातन मीनातिवाससतिदम्बतििोयिातशः।। 1

् ष िातश के तनवास स्थान िािकि


अथायि मे ु ं की खान) औि ित्निूतम हैं । वृष के पवयि
ु (िािओ
की चोटी, कृ तषिूतम, गोशाला औि वनप्रान्त वासस्थान हैं । ब ैल िीन ही स्थल पि होिे थे, गोशाला,

1
िािकपातििाि 1/10-12

39
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

खेि या वन में (चिण कििे हुए)। तमथनु के स्थान िआ,


ु िति औि तवहाििूतम हैं । पति - पत्नी के
मध्य िएु की, चौपड़ की वािाय अनेक कथाओ ं में तमलिी है। ककय के बावली, पोखिा आतद के
ु औि वन
तकनािे वासस्थान हैं । कैं कड़ा इन्हीं स्थलों पि िो तमलिा है। वसह के सघन पवयि, गफा
ु ं की िूतम (अन्तःपि),
ये स्थान हैं । कन्या के स्थान दूवाय से ििा मैदान, विओ ु ु
स्त्री-परुषों की
क्रीडािूतम औि तशल्पिूतम है। यूाँ िी िाििीय कन्याओ ं में कलातप्रयिा स्वािातवक रूप से होिी है।
ु के स्थल हैं वह िूतम िहााँ सिी पदाथय तमल िाएाँ औि बािाि। इन्हीं स्थानों पि िो िल
िला ु ा की
साथयकिा है। वृतिक िातश पत्थि, तवष िथा कृ तमयों के तबल में तनवास कििी है। तबच्छू यहीं िो
तमलिा है। िन ु िहााँ घोड़े, िथ औि हाथी हों वहााँ अथायि य् द्धस्थल
ु अथवा तशतविों में तनवास कििी
है। मकि का नतदयों के िलमें िथा वन में (मकिका पूवायद्ध य वन में औि अपिाद्धय िलमें) वास होिा
है। कुम्भ का घड़े औि अन्य िलपात्र िखने की िूतम में वास है। मीन का मछतलयों के िहने के
स्थान, नदी, समद्रु औि िल िातश में वास होिा है।
िातशयों की अन्य सञ्ज्ञाएाँ
ु औि स्त्री कही गयी हैं । यही क्रम क्रूि औि शिु का है।
मेषातद िातशयााँ क्रम से परुष
अथायि ् तवषम िातशयााँ परुष
ु औि क्रूि िथा सम िातशयााँ स्त्री औि सौम्य कही गयी हैं । मेषातद िातशयााँ
ु पिस्पि कोणस्थ मेष, वसह औि
क्रम से पूव,य दतक्षण, पतिम औि उिि तदशा से सम्बद्ध हैं । िदनसाि
िन ु की तदशा पूव,य वृषि, कन्या औि मकि की तदशा दतक्षण, तमथन,
ु िला
ु औि कुम्भ की पतिम
िथा ककय , वृतिक औि मीन की तदशा उिि है। चोि तकस तदशा में िागा, िाग्योदय/ तववाह की
तदशा क्या है आतद प्रश्नों में तदशाओ ं की यह अविािणा समािानकािक है। इसी प्रकाि क्रम से चि,
ु औि मकि चि हैं , वृषि,
तस्थि िथा तिस्विाव होने से पिस्पि के न्द्रस्थ िातशयााँ मेष, ककय , िला
वसह, वृतिक औि कुम्भ तस्थि हैं िथा तमथन,
ु कन्या, िन ु औि मीन तिस्विाव हैं । कायय की प्रकृ ति
ु शास्त्र िथा प्रवासी की तस्थति से सम्बतिि प्रश्नों हेि ु ये सञ्ज्ञाएाँ समािानकािक
के आिाि पि महूिय
हैं ।
् न,
पूण-य निाकाि अथायि तमथ ु कन्या, िला
ु औि कुम्भ, साथ ही नि को घािक वसह औि वृतिक
शीषोदयी, मीन उियोदयी िथा शेष मेष, वृषि, ककय , िन ु औि मकि पृष्ठोदयी हैं । पृष्ठोदयी िातशयों
में तमथनु को तमलाने पि छह िातश िातत्रबली िथा शेष छह तदवाबली हैं । प्राथतमक दृतष्ट से तदन में
किणीय कायय हेि ु तदवाबली लि औि िातत्रकातलक कायय हेि ु तनशाबली लि अनकूु ल होंगी। इसी
प्रकाि शीषोदय लिों में तकये कायय शीघ्र तसद्ध होिे हैं , ठीक वैस े ही ि ैसे िब हम स्टे शन पि आिी
िेल देखिे हैं िो तिसका मखु इंिन की ओि है अथायि वह ् शीषोदयी है उसे आवाि देन े पि वह हमें

40
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


शीघ्र देख लेगा िबतक इंिन की ओि पीठ वाले को पहले मड़ना होगा। साइड सीट वाले को मात्र

चेहिा ही घमाना है पि वह दोनों ओि देख सकिा है।
मेषातदपयं ु ोतषिौ।।

प्रागातदतक्रयगोनृयक्कटकिान्ये
िातन कोणातन्विा -

ु चितस्थििििन्द्वातन िातन क्रमाि।।
न्याहुः क्रूिशिौ
ु कचापािनक्राः
वीयोपेिा तनतश वृषनृयक्कर्त
ु िवनमपिे पृष्ठपूवोदयाि।।
तहत्वा यग्मं
शेषाः शीषोदयतदनबलाः श्रेष्ठिा िाशयस्ते

मीनाकािियमियिः काललिं समेति।।1
ऊपि िो शीषोदयातद की चचाय है उसका सम्बि िातशयों की आकृ तियों से है। शीषोदय

िातश आकाश में इस प्रकाि कतल्पि हैं तक तनत्य पूवी तक्षतिि पि पहले उनके मखिाग के िािे उतदि
होिे हैं । पृष्ठोदयी में तवपिीि तस्थति है। मीन एक सीिी एक उल्टी मछली की आकृ ति की होने से
सदैव उियोदयी होगी। मेष िथा तमथनु िातश के तवषय में तवशेष द्रष्टव्य है तक इनकी िाििीय एवं
ु की कल्पना अतश्वनी की ओि
पािात्य आकृ तियों में तदशा का वैपिीत्य है। पािात्यों ने मेष के मख
की है। चूताँ क पूवी तक्षतिि पि पहले अतश्वनी का उदय होिा है, अिः यह िातश शीषोदयी होना
ु मानने पि
चातहए िबतक िाििीय आचायों ने इस िातश को पृष्ठोदयी कहा है, अिः ििणी को मख
मेष की सही आकृ ति िाििीय मि से होगी। इसी प्रकाि पािात्यों ने तमथनु िातश में प्रकृ ति िथा
ु िािा का स्त्री-परुष
परुष ु का रूप मानकि िो कल्पना की है, उससे यह िातश पृष्ठोदयी प्रिीि होिी
ु के हाथ में गदा
है, िबतक िाििीय मि में यह िातश शीषोदयी है िथा स्त्री के हाथ में वीणा एवं परुष
ु िािों को प ैि की ओि मानने पि यह आकृ ति पूण य रूप से कतल्पि हो िािी है।
है। प्रकृ ति परुष
िातशयों के तवप्रातद वणय
मीनातद िातशयााँ क्रम से ब्राह्मण, क्षतत्रय, वैश्य िथा शूद्र कही गयी हैं । इनका उपयोग तववाह
मेलापक में होिा है। िद्यथा -
तििा झषातलककय टास्तिो नृपा तवशोऽतििाः।
विस्य वणयिोऽतिका विून य शस्यिे बिु ैः।।2
चोि के वणय, िािक के स्विाव के आकलन में िी इस प्रतिष्ठा से सिलिा होिी है।

1
िािकपातििाि 1/13,14
2
ु तचन्तामतण 6/22
िामदैवज्ञ - महूिय

41
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

िातशयों के वणय (िङ्ग)



मेष का िक्त (तनि स्वामी मङ्गल के समान), वृषि का गौि (िाशीश शक्रसदृश), तमथनु का

शककातन्त अथायि ् िोिे सा हिा (िाशीश बिसमान),
ु ु
ककय का पाटल (गलाबी), वसह का पाण्डु
ु का नीला, वृतिक का काञ्चन
(पीलापन तलए सफे द), कन्या का तचत्ररुतच (िङ्गतबिङ्गा), िला

(सनहला), िन ु का तपङ्गल (पीला), मकि का शबल (श्वेिािपीि/हल्का पीला), कुम्भ का बभ्र ु
(नेवले सा िूिा) औि मीन का पाण्डु ( पीलापन तलए सफे द, इसी को अन्य ग्रन्थों में मतलन तलखा
गया है।)

िक्तगौिशककातन्तपाटलाः पाण्डुतचत्ररुतचनीलकाञ्चनाः।

तपङ्गलः शबलबभ्रपाण्ड ु िातदिवनेष
ुिास्तम्ब ु ु कतल्पिाः।।1
तकसे कौन सा िङ्ग अनकूु ल है, तिसे खोि िहे वह तकस वणय के वस्त्र पहना होगा, मन में क्या
िङ्ग है आतद प्रश्नों की समािान में ये मान्यिाएाँ सहायक हैं । फलादेश की दृतष्ट से ज्योतिषीय ग्रन्थों
में ऐसी अनेक मान्यिाओ ं का उिे ख तमलिा है।
ग्रह -
् ग्रहः2 अथायि िो
िाििीय ज्योतिष में गृह्णाति फलदािृत्वने िीवान इति ् िीवों को फल देन े
के तलए ग्रहण किे, वह ग्रह है, इस पतििाषा के आिाि पि 9 ग्रह माने गये हैं - सूय य, चन्द्रमा, मङ्गल,
बि, ु शक्र,
ु गरु, ु शतन, िाहु िथा के ि।ु सूय य औि चन्द्रमा को प्रकाशक िथा मङ्गल, बि, ु शक्र,
ु गरु, ु
शतन को प्रकातशि या िािाग्रह कहा िािा है3। िाििीय ज्योतिष का स्पष्ट मि है तक ग्रह सूय य िािा
प्रकातशि होिे हैं ।4 िाहु-के ि ु को िमोग्रह या छायाग्रह कहा गया है। वास्तव में ये क्रातन्तवृि िथा
चन्द्रपथ के दो कटान तबन्दु हैं ।
िाििीय ज्योतिष में िूकेतन्द्रि व्यवस्था में ग्रह कक्षा तवविण तमलिा है। हमािे प्राचीन
तसद्धान्तकािों का मानना है तक पृथ्वी आकाश में तनिािाि तस्थि है।5 आकाश में सबसे ऊपि अथायि ्

1
िािकपातििाि 1/23
2
िट्ट हलायिु - हलायिु कोश पृ. 278
3

प्रकाशकौ शीिकिप्रिाकिौ िािाग्रहाः पञ्च ििासिादयः।
ु ....।। वैद्यनाथ - िािकपातििाि 2/8
िमः स्वरूपौ तशतखवसतहकासिौ
4
िूग्रहिानां गोलाद्धायतन स्वछायया तववणायतन।

अद्धायतन यथासािं सूयायतिमखातन दीप्यन्ते।।
आययिट्ट (प्रथम) - आययिटीयम, ् गोलपाद श्लो. 5
5
ु नान्यािािा तिष्ठति गगन े स्वशक्त्य ैव।। आययिट्ट (तििीय) - महाआययिटीयम -् 16/4 उद्धृि शङ्कि बालकृ ष्ण दीतक्षि,
वसिा
िाििीय ज्योतिष, पृ. 427

42
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


पृथ्वी से सवायतिक दूि शतन की कक्षा है। उसके नीचे की ओि क्रमशः बृहस्पति, मङ्गल, सूय,य शक्र,

बिु िथा चन्द्रमा की कक्षाएाँ हैं ।1 प्रथमदृष्ट्या यह कक्षाक्रम ठीक नहीं िान पड़िा। आितनक खोिों

िािा ज्ञाि वास्ततवक कक्षाक्रमानसाि सौिमण्डल के मध्य में सूय य तस्थि है। समस्त ग्रह सूय य से

उत्पन्न हुए हैं एवम उसी की पतिक्रमा कििे हैं । सूय य के सवायतिक तनकट बिु की कक्षा है। ित्पिाि ्
ु पृथ्वी, मङ्गल, बृहस्पति िथा शतन की कक्षाएाँ हैं । चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। यह
क्रमशः शक्र,
य ों
सौि के तन्द्रि (Heliocentric) व्यवस्था कहलािी है। चूताँ क हम पृथ्वीवासी हैं , अिः हमािे पूवि

ने गतणि में सतविा की दृतष्ट से िूकेतन्द्रि (Geocentric) व्यवस्था स्वीकाि की। सापेक्ष दृतष्ट िािा
यतद पृथ्वी को सूय य के स्थान पि िथा सूय य को पृथ्वी के स्थान पि मानें िथा चन्द्रमा को पृथ्वी का
उपग्रह होने के कािण पृथ्वी के तनकट ही िखें िो िाििीय ज्योतिषीय कक्षाक्रम तनर्तमि हो िािा है।
ऊपि से नीचे की ओि यही कक्षाक्रम होिाक्रम हो िािा है। िद्यथा -
होिेशाः सूय यिनयादयोऽिः क्रमशस्तः2

अथायि शतन, ु बिु िथा चन्द्र यह होिाक्रम होिा है।
बृहस्पति, मङ्गल, सूय,य शक्र,
ु के शिीि में ग्रह
कालपरुष

कालस्यात्मा िास्कितचितमन्दुः सत्त्वं िौमः स्यािचिन्द्रसूनः।
ु दुःखमेवाकय सनू ः।।
देवाचाययः सौख्यतवज्ञानसािः कामः शक्रो ु 3

अथायि कालप ु के शिीि में सूय य आत्मा, चन्द्रमा तचि (मन), मङ्गल पिाक्रम, बिु वचन,
रुष
ु िथा तवज्ञान का साि, शक्र
बृहस्पति सख ु काम औि शतन दुःख है। ििकाल में बली ग्रह से सम्बद्ध
अङ्ग को पष्टु औि तनबयल से सम्बद्ध अङ्ग को तनबयल िानना चातहए। यथा मङ्गल के बली होने पि
िािक पिाक्रमी होगा िबतक तनबयल मङ्गल पिाक्रम में हीनिा को दशायिा है। शतन यहााँ अपवाद है।
ग्रहों के पद
तदनेशचन्द्रौ िािानौ सतचवौ िीविागयवौ।
कुमािो तवि क ् ु िो नेिा प्रेष्यस्तपननन्दनः ॥4

1
ब्रह्माण्डमध्ये पतितिव्योमकक्षातििीयिे।
ििध्ये भ्रमणं िानामिोऽिः क्रमशस्तथा।।
ु य यशुक्रे न्दुिेन्दवः। सूय य - सूयतय सद्धान्त - िूगोलाध्याय, श्लो. 30 - 31
मन्दामिेज्यिूपत्रसू
2
सूयतय सद्धान्त - िूगोलाध्याय, श्लो. 80
3
वैद्यनाथ - िािकपातििाि 2/1
4
िािकपातििाि 2/2

43
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अथायि ् सूय य औि चन्द्रमा िािा, बृहस्पति औि शक्र


ु मन्त्री, बिु िािकुमाि, मङ्गल नेिा
(सेनापति) औि शतन प्रेष्य ( दास/ दूि) हैं । ग्रहों के पद फलादेश में सहायक हैं यथा मङ्गल प्रिान
िािक का रुझान सेना अथवा पतलस ु ु
में देखने में आिा है, गरुप्रिान िािक सलाहकाि की िूतमका

में अथायि तशक्षक, सतचव, िमायचायय आतद में प्रायः देख े िािे हैं ।
ग्रहों के तवतवि नाम

ग्रहों के नाम उनके गणिमों के पतिचायक िी होने से फलादेश में बहु उपयोगी हैं । िातशयों
के समान ग्रहों के नामों में िी कतिपय तवदेशी मूल के शब्द देखने तमलिे हैं ।
हेतलः सूय यस्तपनतदनकृ द्भानपूु षारुणाकायः

सोमः शीिद्यतिरुडुपतिग्लौमृगाङ्के न्दुचन्द्राः।।
आिो वक्रतक्षतििरुतििाङ्गािकक्रूिनेत्राः

सौम्यस्तािािनयबितवद्बोिनािे ु
न्दुपत्रः।।
ु िाचाययदे
मन्त्री वाचस्पतिगरुस ु े िीवाः
वज्य
ु काव्यः तसििृगसु िाछास्फ
शक्रः ु ु तिद्दानवेज्याः।

छायासूनस्तितणिनयः कोणशन्यार्तकमन्दाः।।

िाहुः सपायसिफतणिमः सैंतहके यागवि।।

ध्विः तशखी के ितिति ..।।1
सूय य के हेतल (हीतलयो - ग्रीक), िपन, तदनकृ ि, िान,ु पूषा, अरुण औि अकय नाम हैं । चन्द्र
ु (शीिलतकिणों वाला), उडुपति (िािापति), ग्लौ, मृगाङ्क (मृग के समान तचह्न
के सोम, शीिद्यति
वाला, अपने िब्बों के कािण इसे शशाङ्क, शशलाञ्छन िी कहा गया है ) औि इन्दु नाम हैं । मङ्गल
ु िौम), रुतिि (िक्त, वणय के कािण), अङ्गािक औि क्रूिनेत्र नाम हैं ।
के आि, वक्र, तक्षतिि(िूतमपत्र,
बिु के सौम्य िािािनय, बिु (ज्ञानी,ज्ञ), तवि, ् बोिन औि इन्दुपत्रु नाम हैं । गरुु के मन्त्री, वाचस्पति

(वाणीपति), सिाचायय ु
(देवपिोतहि), े औि िीव नाम हैं । शक्र
देवज्य ु के काव्य (कतवपत्र),
ु तसि,
ु िु (िृगपौत्र),
िृगस ु ्
आस्फुतिि औि दानवेज्य नाम हैं । शतन के छायासून,ु िितणिनय, कोण, शतन,
ु फतण, िम (अिकाि), सैंतहके य
आर्तक औि मन्द (गति के कािण) नाम हैं । िाहु के सप य, असि,
ु औि अगःु (तकिणितहि) नाम हैं । के ि ु को ध्वि औि तशखी ( तशखा वाला) िी
(वसतहका का पत्र)
कहा िािा है।

1
िािकपातििाि 2/3,4,5

44
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ग्रहों के वणय
व्यतक्त की रुतच, चोिी सम्बिी प्रश्न में चोि के वस्त्रातद के वणय का तवचाि किने में सहायक
ु हैं -
ग्रहों के वणय तनम्नानसाि
िानःु श्यामललोतहिद्यतििन
ु ु
िन्द्रः ु
तसिाङ्गो यवा
दूवायश्यामलकातन्ततिन्दुिनयः, संिक्तगौिः कुिः।।
मन्त्री गौिकलेविः तसििनःु शक्रोऽतसिाङ्गः
ु शतनः
चानीलाकृ तिदेहवानतहपतिः के िर्तु वतचत्रद्यतिः।।
ु 1

् य य का श्याम औि लाल तमतश्रि वणय (मातणक्य सा कत्थई) है। चन्द्रमा श्वेि वणय
अथायि सू
ु है। बिु का दूवाय के सदृश श्यामल हतिि वणय है। लाल औि श्वेि तमला हुआ वणय (मूग
का यवा ाँ े सा
ु का श्वेि वणय है। शतन का कृ ष्ण वणय
हल्का लाल) मङ्गल का है। बृहस्पति गौि वणय वाला है। शक्र
है। नीले िङ्ग की देह वाला िाहु औि तवतचत्रवणय (िङ्गतबिङ्गा) के ि ु है।

ग्रहों का शिाऽश ु
ित्व
ु शतशज्ञामिवन्द्यिागयवाः।।
शिाः
क्षीणेन्दुमन्दितविाहुतशतखक्षमािाः
पापास्त ु पापयिचन्द्रस
ु ु पापः।।
िि
िेषामिीव शिदौ ु
ु गरुदानवे
ज्यौ

क्रूिौ तदवाकिसितक्षतििौ ् 2
िवेिाम।।
अथायि ् गरु,ु शक्र,
ु बिु औि चन्द्र (पूण)य शिु फल कििे हैं िो क्षीणचन्द्र, सूय,य मङ्गल, शतन,
िाहु औि के ि ु पाप फल कििे हैं । पापग्रह से यिु बिु िी पापफल किेगा (अथायि ् पाप के साथ

शिग्रह िी बिु के साथ में हो िो सम फल किेगा)। गरुु औि शक्र
ु सदैव शिकािक
ु होने से अतिशिु
कहे गये, साथ ही शतन औि मङ्गल की क्रूि सञ्ज्ञा है। स्वािातवक है तक सामान्य पापी से क्रूि पापी
अतिक घािक होगा।
ग्रहों की सञ्चाििूतम
िािक तकन स्थानों पि प्रसन्न िहिा है, चोि कहााँ छुपा, वस्त ु कहााँ तमलेगी, आतद प्रश्नों के
फलादेश में सहायक हैं ग्रहों के ये वासस्थान।

1
िािकपातििाि 2/7
2
िािक पातििाि 2/6

45
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


िलाशयौ चन्द्रसिातिवन्द्यौ ु
बिालयग्रामचिौ ु
गरुज्ञौ।
कुिातहमन्दध्विवासिेशा िवतन्त शैलाटतवसञ्चिन्ताः।।1
अथायि ् चन्द्रमा औि शक्र
ु िलचि हैं । बृहस्पति औि बिु तविानों के गृहों औि ग्राम में
तवचिण कििे हैं । सूय,य मङ्गल, शतन, िाहु औि के ि ु वन िथा पवयिों में तवचिण कििे हैं ।
ग्रहों की वय
चौिातदक की वय अथवा िाग्योदयकाल, घािकाल आतद के तनणयय में ग्रहों की वय सहायक
ु के समान मानकि िब हम तचन्तन कििे हैं िो फलादेश के
होिी है। वास्तव में ग्रहों को िी मनष्य

अनेक तनयम सहि बोिगम्य हो िािे हैं । िब पस्तकें िटने की िी आवश्यकिा नहीं िहिी।
बालो ििािो शतशिः कुमािकवस्त्रशद्गरुः
ु षोडशवत्सिः तसिः।

पञ्चाशदको तवििब्दसप्ततिः शिाब्दसङ्ख्ाः शतनिाहुके िवः।।2
मङ्गल को बालक कहा गया है। वास्तव में बालक से बड़ा पिाक्रमी कौन हो सकिा है। दस
ु दौड़िा है। बिु कुमाि कहा गया है। कुमािावस्था में बिु की प्रकृ ति यथा
बाि तगिकि िी वह पनः
ु आतद की ओि सहि आकषयण होिा है। शक्र
हास्य - तवनोद, कला, कौिक ु सोलह वषय का कहा
ु के अनरूप
गया है तिसमें शक्र ु ही शृङ्गाि औि ऐश्वययप्रदशयन की प्रवृति देखी िािी है। बृहस्पति िीस
वषय का कहा गया है। इस समय स्वािातवक रूप से गरुिा ्
ु अथायि गम्भीििा/पतिपक्विा आ िािी
ु यथा बाल कम हो िाना, क्रोि
है। सूय य पचास वषय का कहा गया है। इस अवस्था में सूय य के गण
बढ़ना, घि औि काययस्थल पि शासन की प्रवृति बढ़ना देख े िािे हैं । चन्द्रमा सिि वषय का कहा
ु श्वेि के श, कृ शिा, कफ आतद लक्षण देख े िािे हैं । शतन, िाहु,
गया है िब चन्द्र की प्रकृ ति अनसाि
के ि ु सौ वषय के कहे गये हैं । िब इनके अनरूप
ु ही लटकी खाल, दुबयलिा, क्रोिातिक्य औि नानातवि
िोगों का उदय देखा िािा है।
ग्रहों की दीप्तातद अवस्थाएाँ

दीप्तः प्रमतदिः स्वस्थः शान्तः शक्तः प्रपीतडिः।
दीनः खलस्त ु तवकलो िीिोऽवस्था दश क्रमाि।। ् 3

अथायि ग्रहों ु
की 1 दीप्त, 2 मतदि, 3 स्वस्थ, 4 शान्त, 5 शक्त, 6 प्रपीतडि, 7 दीन, 8 खल,
9 तवकल औि 10 िीि ये क्रम से दस अवस्थाएाँ होिी हैं ।

1
िािकपातििाि 2/10
2
िािकपातििाि 2/14
3
िािकपातििाि 2/16

46
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


स्वोच्चतत्रकोणोपगिः प्रदीप्तः स्वस्थः स्वहेग े मतदिः ु ।
सहृद्भे
शान्तस्त ु सौम्यग्रहवगययािः शक्तोऽतिशद्धः
ु स्फुटितश्मिालैः।।
ग्रहातििूिस्त्वतिपीतडिः स्यादिातििाश्यंशगिोऽतिदीनः।
खलस्त ु पापग्रहवगययोगान्नीचेऽतििीिो तवकलोऽस्तयािः।।1
् िातश में ग्रह दीप्त होिा है। उच्चपदस्थ का आिामण्डल बृहि होिा
अथायि उच्च ् है। स्विातश
में ग्रह स्वस्थ कहलािा है। अपने घि में सिी को अनकूु लिा होिी है। तमत्रक्षेत्री ग्रह मतदि
ु कहलािा
है। तमत्र के घि िाकि कौन मतदिु नहीं होिा? शिग्रहों
ु के िातश वगों में गया ग्रह सौम्य कहलािा

है। ससङ्गति ्
से कौन सज्जन नहीं बन िािा? स्पष्ट तकिणों वाला अतिशद्धु अथायि तकसी िी न्यूनिा
ु शक्त होगा ही। ग्रहयद्धु में पिातिि
से हीन ग्रह शक्त (शतक्तशाली) कहलािा है। सब बलों से यक्त
ु त्री ग्रह दीन कहलािा है। शत्र ु के घि में
ग्रह पीतडि कहलािा है। पिािय पीडा देिी ही है। शत्रक्षे
िो दीन ही होना पड़िा है चाहे, स्वयं को तछपाये या बन्दी हो। पापग्रह की िातश वगों में गया ग्रह
खल कहलािा है। कुसङ्ग दुष्टिा देिा ही है। नीचिातशस्थ ग्रह िीि कहलािा है। िन, बल औि
ु तनचले पायदान का व्यतक्त सदैव ियग्रस्त िहिा है। अस्त ग्रह की
सामातिक तस्थति के अनसाि
तवकल सञ्ज्ञा होिी है। सूय य ि ैसे के िेि से स्वयं तनस्तेि व्यतक्त तवकल ही िो होगा। कलाहीन िो
ग्रह हो ही िािा है।
ग्रहमैत्री
ग्रह मैत्री िीन प्रकाि की होिी है। पहली है न ैसर्तगक मैत्री, दूसिी िात्कातलक औि िीसिी
है पञ्चिा मैत्री।
न ैसर्तगक मैत्री -
तमत्रातण िानोः कुिचन्द्रिीवाः शत्रू तसिाकी शतशिः समानः।

चन्द्रस्य तमत्रे तदननायकज्ञौ समा गरुक्ष्माितसिातसिाः ु
स्यः।।
आिस्य तमत्रातण िवीन्दुिीवािान्द्री तिपःु शक्रशनी
ु समानौ।
सूयायसिेु ज्यौ सहृदौ
ु बिस्य
ु समाः शनीज्यावतनिास्त्विीन्दुः।।

सूयायिचन्द्राः सहृदस्त ु सूिःे शत्रू तसिज्ञौ ितविः समानः।
ु तन्द्वनाविी िीवकुिौ समानौ।।
तमत्रे शतनज्ञौ िृगन्दनस्ये
े कुिाि शत्रवः समः सिेु ज्यः सहृदौ
मन्दस्य सूयन्दु ु तसन्तेदुिौ।।2

1
िािकपातििाि 2/17,18
2
िािकपातििाि 1/42-45

47
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

् य य के मङ्गल, चन्द्र औि बृहस्पति तमत्र हैं , शक्र


अथायि सू ु औि शतन शत्र ु हैं , बिु सम है। चन्द्र
के सूय य औि बिु तमत्र हैं , बृहस्पति, मङ्गल,शक्र
ु औि शतन सम हैं । चन्द्रमा का कोई िी शत्र ु नहीं है।
मङ्गल के सूय,य चन्द्र औि बृहस्पति तमत्र हैं , बिु शत्र ु है, शक्र
ु औि शतन सम हैं । बिु के सूय य औि
ु तमत्र हैं , शतन, बृहस्पति औि मङ्गल सम हैं , चन्द्र शत्र ु है। बृहस्पति के सूय,य मङ्गल औि चन्द्र
शक्र
ु औि बिु शत्र ु हैं , शतन समान है। शक्र
तमत्र हैं , शक्र ु के शतन औि बिु तमत्र हैं , चन्द्र औि सूय य शत्र ु
हैं , बृहस्पति औि मङ्गल सम हैं । शतन के सूय,य चन्द्र औि मङ्गल शत्र ु हैं , बृहस्पति सम है, शक्र
ु औि
बिु तमत्र हैं । इसको न ैसर्तगक मैत्री कहिे हैं । न ैसर्तगक मैत्री सत्याचायय के मि पि आिातिि है।
ु तकसी ग्रह की मूलतत्रकोण िातश से 2, 12, 5, 9, 4, 8 वें स्थान की िातशयों के स्वामी औि
िदनसाि
उसकी उच्च िातश का स्वामी, ये उसके तमत्र होिे हैं । शेष ग्रह उसके शत्र ु होिे हैं । यतद कोई ग्रह एक
िातश से तमत्र औि दूसिी िातश से शत्र ु हो िो वह उस ग्रह का सम होगा। यथा सूय य की मूलतत्रकोण
िातश वसह है। चन्द्रमा इससे बािहवीं िातश ककय का स्वामी होने से सूय य का तमत्र है। मङ्गल, मेष
ु होने िथा सूय य की उच्च िातश मेष का स्वामी होने से सूय य
िातश वसह से नवम िथा वृतिक िातश चिथय
का तमत्र है। बिु की िातश तमथनु वसह से ग्यािहवें स्थान पि होने से उसे शत्र ु िथा कन्या िातश
तििीय स्थान में होने से तमत्र होना चातहए, अिः बिु सूय य का सम है। बृहस्पति की िातश िन ु वसह
ु की िातश वृषि वसह से दशम
से पञ्चम िथा मीन अष्टम स्थान में होने से वह सूय य का तमत्र है। शक्र
ु िृिीय स्थान में होने से वह सूय य का शत्र ु है। शतन की िातश मकि िथा कुम्भ वसह से
िथा िला
क्रमशः षष्ठ िथा सप्तम स्थान में होने से वह िी सूय य का शत्र ु है।
िात्कातलक मैत्री
अन्योन्यिः सोदिलािमानपािालतविव्ययिातशसंस्थाः।
ित्कालतमत्रातण खगा िवतन्त िदन्ययािा यतद शत्रवस्ते।।1
अथायि ्ग्रह तिस स्थान में हो उससे िृिीय, एकादश, दशम, चिथय,
ु तििीय, औि िादश
िातशस्थ ग्रह उसके िात्कातलक तमत्र होिे हैं , औि शेष स्थानों में तस्थि ग्रह उसके शत्र ु होिे हैं ।
इसको सिलिा से ऐसे स्मिण कि सकिे हैं तक ग्रह से िीन घि आगे औि िीन घि पीछे ब ैठे ग्रह
उसके िात्कातलक तमत्र होिे हैं ।

1
िािकपातििाि 2/41

48
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

पञ्चिा मैत्री
न ैसर्तगक िथा िात्कातलक मैत्री को तमलाकि तिस ग्रहमैत्री की कल्पना की गयी है वह पााँच
प्रकाि की होने से पञ्चिा कही गयी है।
ु प्रकल्प्यास्त्वतितमत्रशत्रवः।।
ित्कालन ैसर्तगकिि पञ्चिा पनः

ियोः सहृत्त्वं त्वतितमत्रिा िवेद ् तििाऽियस्ते ि ु सदाऽतिशत्रवः।

सहृत्समत्वं ु व के वलं तिपःु समातिस्त्वतितमत्रिा समः।।1
सहृदे
् दोनों ( न ैसर्तगक औि िात्कातलक) मैतत्रयों में ग्रह तमत्र हैं िो अतितमत्र/अतितमत्र
अथायि यतद
कहलाएाँग।े एक ओि से तमत्र दूसिी ओि से सम होने पि के वल तमत्र ही सञ्ज्ञा होगी। तमत्र - शत्र ु
होने पि सम, शत्र ु - सम होने पि शत्र ु औि शत्र ु - शत्र ु होने पि अतिशत्र/अतिशत्र
ु ु सञ्ज्ञा होिी है।
न ैसर्तगक मैत्री से िात्पयय ग्रहों की स्थाई मैत्री से है िो प्रत्येक कुण्डली में समान रूप से
तवचािणीय होगी। िात्कातलक मैत्री कुण्डलीतवशेष के तलए होिी है। वास्तव में इसका उद्देश्य पञ्चिा
मैत्री को िानना ही है। फतलिज्योतिष में अनेक ऐसे प्रश्न उठ िािे हैं िो तक तनयमों की प्राथतमक
प्रतिष्ठाओ ं से हल नहीं होिे। तमत्रक्षेत्री ग्रह शिु फल कििा है तकन्त ु न ैसर्तगक मैत्री से यह बाि
समस्त कुण्डतलयों में समान होने पि िी सबके तलए एक सा फल देखने में नहीं आिा। िब समािान
आिा है तक देखें कहीं पञ्चिा मैत्री में ग्रह सम िो नहीं हो गया। आपने देखा औि इसे सही पाया।
इन तमत्रिाओ ं को हम िेलयात्रा के उदाहिण से समझ सकिे हैं । ि ैसे िेल में हमािी वथय के
तनकट ब ैठे यात्री हमािे िात्कातलक तमत्र होिे हैं क्योंतक यात्रा में साथ में ब ैठे यातत्रयों से चचाय
स्वािातवक रूप से सिी कििे हैं । यतद तकसी भ्रम से आपकी वथय तकसी औि को िी अलॉट (Allot)
ु किने
गयी िो आप एक ही वथय पि ब ैठकि िी उसके प्रति िोष िखेंग,े ऐसे ही ग्रह एक िातश में यति
के बाद िी िात्कातलक शत्र ु होिे हैं । आपके कू पे की िैं ि में तििने यात्री दृश्य हैं वे ही आपके ित्काल
तमत्र हैं । इसी प्रकाि ग्रह िी िचक्राद्धय की मयायदा में ही ित्काल तमत्र बना िहे हैं । ि ैसे एक गेंद की
तसलाई को एक ओि से आिा ही देखा िा सकिा है वैस े ही ग्रह िी स्वयं से दोनों ओि िीन िीन
िातश अथायि ्लगिग खगोलाद्धय में तस्थि ग्रहों को ही ित्काल तमत्र बना िहे हैं । यतद उसी िेल में
आपका कोई पूवपय तितचि आपके कू पे में ब ैठा तमल िाए िो उससे आपकी चचाय अतिक होगी िो
यही हुआ अतितमत्र। किी किी ऐसा पूवपय तितचि तिससे आपका मेल नहीं, वह तमल िाए िो िी
सामान्य चचाय हो ही िािी है यह हुआ समत्व। यतद ऐसे ही तविोिी पूवपय तितचि औि आपकी वथय
ु पूिी िेल देखग
एक हो गयी िो अतिशत्रिा े ी।

1
िािकपातििाि 2/45,46

49
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

काल
सूय य तसद्धान्त में दो प्रकाि के कालों की चचाय है – पहला लोकों का अन्त किने वाला काल
िथा दूसिा कलनात्मक काल। कलनात्मक काल के िी स्थूलिा िथा सूक्ष्मिा के आिाि पि क्रमशः
ु से प्राण िक अमूि य काल िथा प्राण से ऊपि मूिक
मूि य िथा अमूि य दो िेद हैं । त्रतट य ाल कहा गया है
-

लोकानामन्तकृ ि कालः कालोऽन्यः कलनात्मकः।
स तििा स्थूलसूक्ष्मत्वािूि यिामूि य उच्यिे।।

प्राणातदः कतथिो मूि यस्त्रट्याद्योऽमू
ि यसञ्ज्ञकः।1


त्रतट
िेण ु = 60 त्रतट

लव = 60 िेण ु
लीक्षा = 60 लव
प्राण = 60 लीक्षा = 10 तवपल = 4 सेकण्ड

1 लीक्षा = 4 सेकण्ड = 1 से.


60 15
1 लव = 1 सेकण्ड = 1 से.
15x60 900
1 िेण ु = 1 सेकण्ड = 1 से.
900x60 54000
ु =
1 त्रतट 1 सेकण्ड = 1 से.
54000x60 32, 40, 000
6 प्राण = 60 तवपल = 1 पल (तवनाड़ी)
60 पल = 1 घटी (नाडी) = 24 तमनट
60 घटी = 1 अहोिात्र (नाक्षत्र)

1
सूयतय सद्धान्त मध्यमातिकाि श्लो.10-11

50
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

नवतवि कालमान -

ब्राह्मं तदव्यं िथा तपत्र्यं प्रािापत्यं गिोस्तथा।
सौिं च सावनं चान्द्रमाक्षं मानातन वै नव।।1
ब्राह्म, तदव्य, तपत्र्य, प्रािापत्य, बाहयस्पत्य, सौि, सावन, चान्द्र िथा नाक्षत्र ये 9 प्रकाि के
कालमान कहे गये हैं । इनमें से सौि, सावन, चान्द्र िथा नाक्षत्र अतिक व्यवहाि में लाये िािे हैं ।
ु के तलए अतिक उपयोगी नहीं
बाहयस्पत्य प्रिवातद सम्वत्सिों से सम्बद्ध है। शेष का व्यवहाि मनष्यों
है। सूय य तसद्धान्त में चाि प्रकाि के मानवीय तदनों की चचाय की गयी है -
नाडीषष्ट्या ि ु नाक्षत्रमहोिात्रं प्रकीर्तििम।्

िि वत्रशिा िवेिासः सावनोऽकोदय ैस्तथा।।

ऐन्दवतस्ततथतिस्तिि सङ्क्रान्त्या सौि उच्यिे।
मास ैिायदशतिवयषं तदव्यं िदह उच्यिे।।2
श्लोकाथय तवस्ताि से वर्तणि है -
नाक्षत्र अहोिात्र -
तकसी एक नक्षत्र (िािे) के दो उदयों का अन्ति नाक्षत्र अहोिात्र कहलािा है। चूताँ क पृथ्वी
अपने अक्ष पि 24 घण्टे (60 घटी) में 360° का पूिा चक्र घूम िािी है अिः प्राचीनों ने 60 घटी
का ही नाक्षत्र अहोिात्र कहा है। वियमान में वैज्ञातनकों ने सूक्ष्म प्रेक्षण िािा ज्ञाि तकया है तक चूताँ क
एक तदन में पृथ्वी अपनी कक्षा में लगिग एक अंश आगे बढ़ िािी है अिः वास्तव में उसके 359°
ु नक्षत्र का उदय हो िािा है। यह समय 23 घण्टे 56 तमनट 4 सेकण्ड होिा है न
घूणनय पि ही पनः
तक 24 घण्टा।
सावन तदन -
दो सूयोदयों के मध्य का काल सावन तदन कहलािा है। इसका वास्ततवक मान सदैव समान
नहीं िहिा पिन्त ु इसका औसि 24 घण्टे आिा है।
चान्द्र तदन/तितथ -
इसका सम्बि चन्द्र कलाओ ं से है। चूताँ क चन्द्रमा की औसि दैतनक गति 13° िथा सूय य की
1° है। अिः प्रत्येक तदन चन्द्रमा सूय य से लगिग 12° आगे बढ़िा िािा है। सूय य चन्द्र के इसी

1
सूयतय सद्धान्त मानाध्याय श्लो.1
2
सूयतय सद्धान्त मध्यमातिकाि श्लो.12-13

51
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

प्रत्येक 12° के अन्ति को तितथ कहिे हैं । अमावस्या की समातप्त पि सूय य चन्द्र का अन्ति 0° िहिा
है िथा पूर्तणमान्त में 180°।
तितथ का औसि मान 24 घण्टे से कुछ कम होिा है। यूाँ िो चन्द्रगति िब अतिक होिी है
िो औसि मान से कम समय में ही तितथ समाप्त हो िािी है अन्यथा अतिक समय लेिी है। पिन्त ु
व्यवहाि में तकसी तितथ का दो सूयोदयों को स्पशय किना तितथवृतद्ध िथा एक िी सूयोदय का स्पशय न
किना तितथक्षय कहा िािा है।
सौि तदन -
य ङ्क्रमण पि आिातिि है। सूय य के 1° के िोगकाल को सौि तदन कहिे हैं । इसका
यह सूयस
औसि मान 24 घण्टे से थोडा अतिक होिा है।
मास -
30 तदन का एक मास होिा है अिः
30 नाक्षत्र तदन = 1 नाक्षत्र मास
30 सावन तदन = 1 सावन मास
30 चान्द्र तदन/तितथयााँ = 1 चान्द्र मास = 1 तपिि तदन इसका औसि मान 29 तदन 12
घंटे 44 तमतनट के लगिग है।
् य य की दो सङ्क्रातन्तयों के
30 सौि तदन = 1 सौि मास = सूय य का एक िातश में िोग अथायि सू
मध्य का काल।
गतणि में सदैव अमान्त चान्द्र मास प्रयोग तकया िािा है, पिन्त ु व्यवहाि में सौिाष्ट्र, महािाष्ट्र
िथा दतक्षण िािि में अमान्त िथा उिििािि में पूर्तणमान्त रूप में प्रचतलि है।
वषय = 12 मास = 1 तदव्य तदन
अथवा = 360 तदन का 1 वषय
1 नाक्षत्र वषय = 365 तदन 6 घण्टे 9 तमतनट 9.8 सेकण्ड
1 सावन वषय = 360 तदन
1 चान्द्र वषय ≅ 354 तदन
1 सौि वषय = 365 तदन 5 घण्टे 48 तम. 42.2 सेकण्ड = 365.24219 तदन

52
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

तपत्र्य तदवस -
एक चान्द्रमास (= 30तितथयों) का तपििों का अहोिात्र होिा है। अमावास्यान्त में उनका
तदनाद्धय िथा पूर्तणमान्त में िात्र्यद्धय होिा है। अथायि ्कृ ष्णाष्टमी के मध्य से तदन िथा शक्लाष्टमी
ु के
मध्य से उनकी िातत्र प्रािम्भ होिी है।
तदव्य तदन/अहोिात्र -
एक मानवीय (सौि) वषय का देविाओ ं का एक अहोिात्र होिा है। सूय य के सायन मेषािम्भ से

तदन िथा सायन िलािम्भ ् य य के उिि गोल में िहने पि तदव्य तदन
से िातत्र प्रािम्भ होिी है अथायि सू
ु का इनके तवपिीि माना गया है।
िथा दतक्षण गोल में िहने पि तदव्य िातत्र होिी है। असिों
प्रािापत्य अहोिात्र -
एक मन्यन्ति का काल। इसमें तदन िाि का िेद नहीं होिा।
ब्राह्म अहोिात्र -
1 कल्प तदन + 1 कल्पिातत्र = 2 कल्प
ब्रह्मा की आय ु

सूयतय सद्धान्त के अनसाि सति सन्ध्यंश सतहि 1200 तदव्यवषय (100+ 1000+100)
ु (1200x360 = ) 4,32,000 मानवीय वषों का एक कतलयगु कहा गया है। कतलयगु का
िदनसाि
ु िापि, िीन गना
दोगना ु त्रेिा िथा चाि गनाु कृ ियगु होिा है। इन चािों यगों
ु के कुल मान को एक

चियु गयु ी या महायगु कहिे हैं , तिसका मान 12000 तदव्यवषय अथायि 43,20,000 मानवीय वषय है।

यगस्य ु कसङ्गण
दशमो िागिितस्त्रिे ु ः।
क्रमाि कृ् ियगादीनां
ु षष्ठांशः सन्ध्ययोः स्वकः।।

यगानां सप्ततिः स ैका मन्वन्तितमहोच्यिे।
कृ िाब्दसङ्ख्स्तस्यान्ते सतिः प्रोक्तो िलप्लवः।।
ससियस्ते मनवः कल्पे ज्ञेयाििदयु श।
कृ िप्रमाणः कल्पादौ सतिः पञ्चदशः स्मृिः।।1

1
सूयतय सद्धान्त मध्यमातिकाि श्लो.17,18,19

53
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

यगु सति शद्धु यगु मान सन्ध्यंश कुल यगु मान × 360 यगु मान
(तदव्य वषय) (तदव्य वषय) (तदव्य वषय) (तदव्य वषय) (सौि वषय)

कतल 100 1000 100 1200 × 360 432000

िापि (=कतल×2) 200 2000 200 2400 × 360 864000

त्रेिा (=कतल×3) 300 3000 300 3600 × 360 1296000

कृ ि (=कतल×4) 400 4000 400 4800 × 360 1728000


महायग ुय ी
चियु ग 12000 × 360 4320000

ऐसी इकहिि चियु तयु गयों का एक मन्वन्ति होिा है।


1 मन ु = 71 महायगु = 12000x71 = 852000 तदव्यवषय
कुल चौदह मन्वन्ति एक कल्प में होिे हैं िथा प्रत्येक के मध्य िथा कल्पािम्भ एवं अन्त
में कृ ियगु प्रमाण की (कुल 15) सतियााँ होिी हैं ।
85200×14=11928000 तदव्य वषय = चिदयु श मन्वन्ति
4800×15=72000 तदव्य वषय = 15 कृ िप्रमाण सतियााँ
1 कल्प = 14 मन ु + 15 कृ िप्रमाण सति
=> 11928000+72000=12,000,000

=12000×1000 = महायग×1000
सतियों सतहि कल्प का मान 1000 चियु तयु गयों के मान के समान होिा है। इसे ब्रह्मा का
एक तदन कहा गया है। इिने ही समय की ब्रह्मा की िातत्र िी होिी है। िद्यथा-

इत्थं यगसहिेणिू
िसंहािकािकः।
कल्पोब्राह्ममहः प्रोक्तं शवयिीिस्यिाविी।।1
् कल्प = 1000 x 43,20,000 मानवीय (सौि) वषय
अथायि एक
= 4,32,00,00,000 = 1 ब्राह्म तदन
ब्रह्मा का एक अहोिात्र = 2 कल्प
= 12000000×2 = 24000000 तदव्य वषय अथायि ्
4,32,00,00,000x2

1
सूयतय सद्धान्त - मध्यमातिकाि श्लोक 20

54
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

= 8,64,00,00,000 मानवीय (सौि) वषय (आठ अिब चौंसठ किोड़)


ब्रह्मा की िातत्र के समय प्रलयकाल माना गया है। ब्रह्मा की आय ु उनके अहोिात्रप्रमाण से 100 वषय
कही गयी है -
पिमायःु शिं िस्य ियाऽहोिात्रसङ्ख्या।1
ब्रह्मा का एक वषय = ब्राह्म अहोिात्र × 360
24000000×360=8,640,000,000 तदव्य वषय
8,640,000,000× 360 = 3,110,400,000,000 सौि वषय
ब्रह्माय ु = 100 ब्राह्म वषय
=> 8,640,000,000×100 = 8,64,00,00,00,000 तदव्य वषय
8,64,00,00,00,000×360=
31,10,40,00,00,000×100=
31,10,40,00,00,00,000 सौि वषय
् नील 10 खिब 40 अिब सौि वषय
अथायि 31
इष्टकाल
सूयोदय से घटना (िि/प्रश्न/तववाह आतद) के समय िक का घटीपलात्मक काल ही
इष्टकाल है।
इष्टकाल ज्ञाि किने हेि ु सवयप्रथम घटना के समय से सूयोदय को घटा लेि े हैं । यहााँ 24

घण्टे वाली िेल्व े घड़ी का प्रयोग किना उतचि है। सतविा हेि ु िातत्र 12 बिे बाद घटना समय में

पहले 24 िोड़िे हैं , तफि सूयोदय काल को घटािे हैं । ित्पिाि घण्टा-तमतनट में प्राप्त कालान्ति को
ु कििे हैं , क्योंतक 1 घण्टा = ढाई घटी।
ढाई गना
ु किने के स्थान पि सौकयय हेि ु घण्टा-तमतनटात्मक काल में एक बाि उसी
यहााँ 2.5 का गणा

को ित्पिाि उसके आिे को िोड़ने पि ढाई गनाु हो िािा है।
उदाहिण
यतद तकसी तदवस सूयोदय 6:30 am IST बिे हुआ िो क्रमशः (a) 09:15 am (b)
03:20 pm (c ) 02:10 am बिे का इष्टकाल ज्ञाि किें ।

1
सूयतय सद्धान्त मध्यमातिकाि श्लो.21

55
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

हल
(a)
09:15 am
(-)06:30
02:45
=> 2:45:00
(+)2:45:00
(+)1:22:30
6:52:30
इष्टकाल = 6 घटी 52 पल 30 तवपल
(b)
03:20 pm
(+)12:00
15:20
(-)06:30
08:50
=> 8:50
(+)8:50
(+)4:25
22:05
इष्टकाल = 22 घटी 05 पल
(c ) 02:10 am
(+)24:00
26:10
(-)06:30
19:40

56
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

=> 19:40
(+)19:40
(+)09:30
(+)00:20
49:10
इष्टकाल = 49 घटी 10 पल
पृथ्वी स्वकीय अक्ष पि एक चक्र (3600) घूणनय कििी है, िो एक अहोिात्र होिा है। पृथ्वी

का एक घूणनय 24 घण्टे अथायि 24×60 = 1440 तमतनट का होिा है।
3600 घूणनय में → 1440m
िो 10 घूणनय में → (1440/360) = 4m
चूताँ क अंश िथा कला एवं तमतनट िथा सेकण्ड में षातष्टक पद्धति ही चलिी है अिः
60।→4×60s
िो 1।→4s

दो तिन्न स्थानों की िलना के तलए मानक िेखांश पद्धति का प्रयोग कििे हैं । यथा िािि का मानक
िेखांश 820-30। (E) है। चूताँ क
(820-30।) ×4 = 328m/120s = 330m = 5h- 30m
चूताँ क िािि ग्रीनतवच िेखा से पूव य है अिः स्वािातवक रूप से िािि में उससे अतिक समय
होगा, अिः िाििीय मानक समय GMT+ 5h-30m कहा िािा है।
स्थानीय मध्यम समय (L.M.T.) से मानक समय बनाना
समय को िानने सवयप्रथम िूपघटी का आतवष्काि हुआ होगा। िूपघटी के आिाि पि मापा
गया समय स्थानीय िूपघटी काल (Local Apparent Time = L.A.T.) कहलािा है, क्योंतक
यही वास्ततवक समय है। िातत्र में सूय य होिा नहीं िो समय कै स े िानें, इसी तचन्तन ने िलघटी,
िेिघटी सदृश आतवष्काि किाए होंगे औि आगे मानवमतस्तष्क ने यातन्त्रक घटी का आतवष्काि
तकया। यह यातन्त्रक घटी 24 घण्टे की िही। िब िूपघटी के मध्याह्न से यातन्त्रक घटी (घड़ी) के
मध्याह्न को तमलाया गया िो ज्ञाि हुआ तक वास्ततवक मध्याह्न घड़ी के मध्याह्न से वषय में मात्र चाि
बाि मेल खािा है, शेष समय वह उसके आगे अथवा पीछे की ओि सिकिा िहिा है। दोनों मध्याह्नों
के अन्ति का तनिन्ति प्रेक्षण कि वैज्ञातनकों ने यह ज्ञाि कि तलया तक तकस तदनाङ्क को तकिना अन्ति
उनमें होिा है। यही अन्ति वेलान्ति कहलािा है। उसकी एक सातिणी ि ैयाि किी गयी। सातिणी

57
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु वेलान्ति को स्थानीय िूपघटी में िोड़ने या घटाने पि स्थानतवशेष का यातन्त्रक


में प्रदि तचह्नानसाि
ु समय ज्ञाि हो िािा है, तिसे स्थानीय मध्यम समय (Local Mean Time =
घटी के अनसाि
L.M.T.) कहिे हैं । चूताँ क देशों अथवा कालक्षेत्रों हेि ु एक मानक समय का प्रयोग तकया िािा है

िो मानक िेखांश से अपने िेखांश के अन्ति से प्राप्त समय को स्थानीय मध्यम समय में तनयमानसाि
िोड़ने या घटाने पि उस कालक्षेत्र का मानक समय (Zonal Standard Time = Z.S.T.) ि ैसे
िािि में िाििीय मानक समय (Indian Standard Time) ज्ञाि हो िािा है।
मानक समय से स्थानीय मध्यम समय बनाना
सम्प्रति घड़ी से मानक समय ज्ञाि होिा िहिा है। इसे स्थानीय मध्यम समय में बदलने
हेि ु िेखान्ति समय की आवश्यकिा है।
िेखान्ति समय
यतद हमें तकसी स्थान का स्थानीय मध्यम समय ज्ञाि किना है िो सवयप्रथम मानक िेखांश

से िि स्थानीय िेखांश का अन्ति प्राप्त किें ग।े ित्पिाि 4् से गणा
ु किने पि क्रमशः अंश से तमतनट
औि कला से सेकण्ड की प्रातप्त होगी।
यथा उज्ज ैन का िेखांश 750-46। (E)
820-30।
-750-46।
=060-44। (उज्ज ैन का िेखान्ति)
(060-44।)×4
= 24m-176s
+(2)(-)120
=(-)26m- 56s
यहााँ तनयम यह है तक पूव य में िन िथा पतिम में ऋण तचह्न का प्रयोग किना चातहए। ये तचह्न मानक
समय को स्थानीय मध्यम समय में बदलने में प्रयोग तकये िािे हैं । चूताँ क उज्ज ैन िाििीय मानक
िेखांश से पतिम में है, अिः यहााँ सूय य का आगमन प्रयाग की अपेक्षा तवलम्ब से होगा। यथा घड़ी
में यतद 12:00 (IST) बिे हैं िो उज्ज ैन में स्थानीय मध्यम घटी में
12:00:00
-26-56
=11:33:04(LMT ) होगा।

58
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

पलिा

इसे अक्षिा, तवषविा, ु
तवषवत्प्रिा आतद नामों से िी िाना िािा है। अक्षिा नाम से ही स्पष्ट
है, अक्षांश से सम्बतिि छाया। पलिा के तवषय में सूयतय सद्धान्त का कथन है -
ु छाया स्वदेश े या तदनाद्धयिा।।
एवं तवषविी

दतक्षणोिििेखायां सा ित्र तवषवत्प्रिा।1

अथायि ् स्वदेश में मध्याह्नकातलक दतक्षणोिि िेखा में पड़ने वाली तवषवछाया
ु पलिा
कहलािी है। सिल शब्दों में -
् ष सङ्क्रातन्त (21 माचय) अथवा सायन िला
सम्पाि के तदन अथायि मे ु सङ्क्रातन्त (23 तसिम्बि)
के तदन स्थानीय मध्याह्नकाल में िादश अङ्गल
ु शङ्कु की अङ्गल
ु -व्यङ्गल
ु ात्मक छाया पलिा कहलािी
है। इसका सम्बि अक्षांश से है। तनिक्ष देश में पलिा शून्य होिी है।
पलिा का प्रयोग अक्षांश सािन हेि ु तकया िािा था। आि िी.पी.एस. सतविा
ु के कािण
अक्षांश सहि ही ज्ञाि हो िािा है। ऐसे में हम अक्षांश की सहायिा से पलिा ज्ञाि कि सकिे हैं ।
तसद्धान्ततशिोमतण गोलाध्याय में िास्किाचायय यतष्ट िािा ध्रवु वेि किके पलिा ज्ञाि किने के तवषय
में तलखिे हैं -
ु लयोलयम्बौ।
यष्ट्यग्रमूलसंस्थ ं तवद्ध्वा ध्रवमू
य ोच्छ्रायान्तिं कोतटः।।
बाहुलयम्बान्तििूलम्ब

कोतटिायदशगतणिा बाहुतविक्ता पलप्रिा ज्ञेया।2
् छड़ी से ध्रवु का इस प्रकाि वेि किें तक छड़ी के मूल से देखने पि उसके अग्रिाग
अथायि एक
में ध्रवु िािा तमले। तफि छड़ी (यतष्ट) के मूल औि अग्र से लम्ब तगिाकि उनका िूतम पि अन्ति ज्ञाि

ु कहिे हैं । दोनों लम्बों की ऊाँ चाई का अन्ति कोतट होिा है। कोतट में 12 का गणा
कििे हैं , उसे िि
ु से िाग देन े पि पलिा ज्ञाि होिी है।
कि िि

1
तत्रप्रश्नातिकाि श्लोक 12,13
2
िास्किाचायय - गोलाध्याय - यन्त्राध्याय श्लोक 42,43

59
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


पलिा= कोतट/िि
ध्यािव्य है तक स्वतक्षतिि से ध्रवु के उन्निांश का नाम अक्षांश िथा स्वखमध्य से ध्रवु के
ु औि कोतट लम्बांश के सापेक्ष कहे हैं । चूताँ क अक्षांश =
निांश का नाम लम्बांश है। आचायय ने िि
90 - लम्बांश, अिः यहााँ अक्षांश हेि ु िि
ु औि कोतट पलट िाएाँग े औि सूत्र होगा -
ु कोतट = 12 स्पशयज्या
पलिा = 12× िि/
डॉ. मोहन गप्तु का पलिा सूत्र
महर्तष पातणतन संस्कृि एवं वैतदक तवश्वतवद्यालय के प्रथम कुलपति डॉ. मोहन गप्तु ने आितनक

तत्रकोणतमति िािा अक्षांश से पलिा ज्ञाि किने का सूत्र स्थातपि तकया है। सूत्र औि उसकी उपपति
डॉ. गप्तु के अनसाि
ु -
पलिा = 12tanΦ [Φ = अक्षांश]


प्रस्तिु तचत्र पलिा सािन के समय अथायि सम्पाि तदवस के मध्याह्न का है। चूताँ क सम्पाि के तदन
् वि
सूय य तनिक्ष देश अथायि तवष ु िे् खा पि लम्बवि होिा
् है, अिः उििी अक्षांश वाले स्थान के खमध्य से सूय य

60
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु दतक्षण में नि होगा। तचत्र में AB एक िादशाङ्गल


अक्षांश िल्य ु शङ्कु है। सूय य को D िथा स्वखमध्य को E
ु कोण होने से ∠ ABC
तचह्न िािा दशायया गया है। AC पलिा है। चूताँ क ∠ DBE = अक्षांश, अिः सम्मख
िी अक्षांश हुआ। ∠ ABC हेि ु AB = आिाि िथा AC = लम्ब
िो tanΦ = लम्ब/ आिाि = AC/AB = पलिा/12
∴ पलिा = 12tanΦ
उदाहिण क्रमाङ्क 1
उज्ज ैन की पलिा ज्ञाि किना, िबतक उज्ज ैन का अक्षांश = 230-11।(N)
पलिा = 12tanΦ
सूत्र में Φ का मान िखने पि
पलिा = 12tan230-11।
अब Natural Tengents की सातिणी में देखने पि -

tan230-12। = 0.4286

-1। -3

tan230-11। = 0.4283

(क्योंतक 1 का mean Difference = 3)


पलिा = 12×0.4283
= 5.1396 अङ्गल

= 5 अङ्गल
ु 8 व्यङ्गल
ु [.1396×60 = 8.376≈ 8]

टीप लघगणक िथा तत्रकोणतमिीय सातितणयााँ प्रायः 6। के अन्ति से बनी तमलिी हैं । हमें
हमािे अंश-कलात्मक मान का तनकटिम मान लेकि उसमें तििनी कला कम या अतिक का मान
तमला है, उिनी कला हेि ु िो मीन तडफिें स तलखा होिा है, उसे िोड़ना या घटाना चातहए। ि ैसे
यहााँ 1 कला अतिक (230-12।) का मान तमला था, अिः एक कला के तलए मीन तडफिें स 3 को
घटा तदया गया।
[व्यङ्गल
ु को कहीं-कहीं प्रतिअङ्गल
ु िी कहा िािा है।]
अक्षांश से प्राप्त पलिा का प्रायोतगक पिीक्षण
सूयतय सद्धान्त तत्रप्रश्नातिकाि में तदक ् सािन की तवति में तलखा है -

61
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु म।्
1
ििध्ये स्थापयेछङ्कं ु कल्पनािादशाङ्गल
् शङ्कु स्थातपि तकया िािा है, उसके 12 सम तविाग किके 12 अङ्गल
अथायि िो ु की कल्पना
ु का शङ्कु लें ग े िो व्यङ्गल
की िािी है। यतद वास्तव में 12 अङ्गल ु का मापन कै स े हो पाएगा (1 व्यङ्गल


ु /60)? अिएव स्पष्टिा के तलए तििना बड़ा शङ्कु लें ग,े पलिा का मान उिना ही सस्पष्ट
= 1 अङ्गल
होगा। उदाहणाथय यतद हम चाि फीट का शङ्कु लेि े हैं िो यह 48 इंच होने से इसका बािहवााँ िाग
् इंच का एक अङ्गल
चाि इंच होगा अथायि चाि ु कतल्पि हुआ। अब एक इंच के 16 िाग इंचीटैप पि
ु बनाने हेि ु हम इसको 60 के अनपाि
तमलिे हैं अिः 16×4 = 64 तविाग 4 इंच में तमलें ग।े व्यङ्गल ु
में लाएाँग।े
उज्ज ैन की पलिा = 5 अङ्गल
ु 8 व्यङ्गल

5अङ्गल
ु = 5×4इंच = 20 इंच
60 तविाग में → 8 व्यङ्गल

िो 64 तविाग में → (8×64)/60 = 8.53 ≈ 9
यतद सम्पाि के तदन स्थानीय मध्याह्न में 4 फीट के शङ्कु से पलिा ज्ञाि कििे हैं िो 20 इंच
9 षोडशांश तमलेगा िो तक 5 अङ्गल ु 8 व्यङ्गल
ु के िल्यु है। सिकय िा यह िखनी होगी तक िूतम
समिल हो था शङ्कु सटीक लम्बवि हो।् अन्यथा कतिपय अंशों का अन्ति हो सकिा है।
चि िथा चिखण्ड
िास्किाचायय गोलाध्याय में तलखिे हैं -
ु ि े चिखण्डकालः।।2
उिण्डलक्ष्मावलयान्तिाले द्यिात्रवृ
अथायि ्उिण्डल (तनिक्षदेशीय तक्षतिि) िथा स्वदेशीय तक्षतिि के मध्य अहोिात्रवृि के
खण्ड का नाम चिखण्ड है। सिल शब्दों में कहें िो स्वतनिक्षदेश िथा स्वदेश के उदयान्तिाल का
नाम ही चि है।
चूताँ क ग्रहगतणि में तत्रकोणतमति का प्रयोग तकया िािा है, अिः वृिपाद (900 = 3 िातश)
में गतणि सम्पन्न होिा है। चिखण्ड या चिाद्धय शब्द प्रथम, तििीय िथा िृिीय िातश के उदयान्ति
(चि) के तलए रूढ हो चकेु हैं । प्रथम िातश (300) का चि प्रथम चिखण्ड, तििीय िातश (दो िातश -
् 0 का चि - प्रथम चिखण्ड) का चि तििीय चिखण्ड िथा िृिीय िातश (िीन
प्रथम िातश अथायि 60
् 0 का चि - 600 का चि) के चि को िृिीय चिखण्ड कहिे हैं ।
िातश - तििीय िातश अथायि 90

1
सूयतय सद्धान्त -तत्रप्रश्नातिकाि - श्लोक 2
2
िास्किाचायय -गोलाध्याय - तत्रप्रश्नातिकाि श्लोक 1

62
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

चिखण्ड ज्ञाि किने की तवति ग्रहलाघव में इस प्रकाि दी गयी है -


मेषातदगे सायनिागसूर्य् े तदनाद्धयिािापलिा िवेत्सा।
तत्रष्ठाहिा स्यदयु शतिििङ्गै ु ि
यु र्तदतिििाद्धायतन गणोद्धृ ान्त्या।।
1

अथायि ् मेषातद में सायन सूय य होने पि अथायि ् वसन्त सम्पाि के तदन तदनाद्धयकातलक
(िादशाङ्गल
ु शङ्कु) छाया पलिा कहलािी है। इसे िीन स्थानों पि स्थातपि कि क्रमशः 10

ु ः) िथा 10 (तदतिः) से गणाकि
(दशतिः), 8 (ििङ्गै ु अथायि ्3 से िाग देन े पि
अतन्तम में गण
क्रमशः िीनों चिखण्ड ज्ञाि होिे हैं -

अथायि पलिा ु किने पि क्रमशः प्रथम, तििीय िथा िृिीय चिखण्ड
में क्रमशः 10,8,10/3 से गणा
प्राप्त होिे हैं । (िृिीय चिखण्ड = प्रथम चिखण्ड/3)
यथा उज्ज ैन के चिखण्ड


चिखण्ड क्रमाङ्क पलिा(अं-व्यं) गणक चिखण्ड मान (पल-तवपल में) पलात्मक मान

I (5-08) ×10 50-80 51-20 51

II (5-08) ×8 40-64 41-04 41

III (5-08) ×10/3 (51-20)/3 17-06 17

अयनांश
तस्थि मेषािम्भ तबन्दु िथा वसन्त सम्पाि तबन्दु के मध्य की कोणीय दूिी को अयनांश
कहिे हैं । वसन्त सम्पाि तबन्दु वेि िािा तसद्ध होिा है, तकन्त ु मेषािम्भ तबन्दु के तवषय में ज्योतिष
िगि ्में मििेद िहे हैं , क्योंतक ध्रवचलन
ु के कािण न के वल सम्पाितबन्दु अतपि ु िािों की क्रातन्त
औि शि िी अत्यल्प गति से पतिवर्तिि होने से दीघयकाल में उनका स्थान कुछ बदल िािा है।
अयनांश की वार्तषक गति िी सवयदा तस्थि न होने से तिनके समय ि ैसी िही, उन आचायों ने उसी
आिाि पि शून्य अयनांश वषय की कल्पना कि अयनांश ज्ञाि किने की तवति कही। अयनांश ज्ञाि
किने की अनेक तवतियााँ तनि तनि प्रेक्षणों के आिाि पि आचायों ने अपने-अपने काल में कही हैं ।
इनमें वियमान में प्रचतलि कतिपय अयनांशों के गतणि को प्रस्तिु तकया िा िहा है।

1
गणेश दैवज्ञ- ग्रहलाघव-ितवचन्द्रस्पष्टातिकाि श्लोक 3

63
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ग्रहलाघवीय अयनांश
ग्रहलाघवकाि गणेश ने शक 444 शून्य अयनांश वषय िथा 60 तवकला वार्तषक
ु अयनांश सूत्र हुआ -
अयनगति मानी, िदनसाि
शक संवि –् 444
60

उदा. शक संवि 1937 हेि ु
1937 - 444 = 1493

60 ) 1493 ( 24
120
293
240
53

240 - 53।
चूताँ क 60 तवकला वार्तषक अयनांश गति गणेश ने मानी है। अि: 60/12 = 5।।
प्रतिमास मान लेि े हैं । यथा शक 1937 के ज्येष्ठमास में अयनांश = 0 - 240 - 53। - 15।।
आि से लगिग 50 वषय पूव य िक अतिकांश पञ्चाङ्ग ग्रहलाघवीय अयनांश पि आिातिि
होिे थे। सम्प्रति उज्ज ैन के महाकाल, नािायण तविय, कुिक
ु ा तवक्रमातदत्य सदृश पञ्चाङ्ग
ग्रहलाघवीय ही हैं ।
मकिन्दीय
मकिन्द-सातिणी के प्रणेिा मकिन्द ने सूय यतसद्धान्त के गतणि पि आिातिि किणग्रन्थ
िचा। इनकी पद्धति का प्रचाि वािाणसी के क्षेत्र में व्यापक रूप से िहा। इनका अयनांश सूत्र इस
प्रकाि है –

शक - 421 = प्रथम फल

64
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

प्रथम फल
प्रथम फल - = तििीय फल
10

तििीय फल / 60 = अयनांश
उदा.
1937 - 421 = 1516
1516 - 151.6 = 1364.4
1364.4/60 = 220 - 44। - 24।।
के िकी तचत्रापक्षीय अयनांश
महािाष्ट्र के ज्योतिर्तवद ् वेङ्कटे श बापू के िकि इस के िनक हैं । सूयतय सद्धान्त के

नक्षत्रयत्यतिकाि में िेविी नक्षत्र के योगिािे का िोग मेषािम्भ से 10 कला पतिम में कहा गया है।
ु िेविी के योगिािे को िेवत्यन्त िािा कहकि इससे 10 कला पूव य में मेषािम्भ तबन्दु की
िदनसाि
मान्यिा को लेकि िेवत्पक्षीय गतणि प्रचलन में आया। स्वयं श्री के िकि इसी पक्ष को मान िहे थे।
इस मि के मानने वाले के िोपन्त आतद िीटातपतशयम िािे को िेवत्यन्त िािा मान िहे थे तकन्त ु यह
ग्रहलाघवीय शक 444 की तस्थति (िब शून्य अयनांश वषय में यह सम्पाि तबन्दु पि िहा होगा) से
ु होने िाने के कािण ग्रहलाघवीय िथा के िोपन्तीय तनियण सङ्क्रातन्तयों में 4 तदन का अन्ति
सदूि
आ िहा था, िो समाि में बड़ा भ्रम कििा। िब इस िथ्य को तवचाि कि तक ध्रवु चलन का प्रिाव
िेविी के िािों पि अतिक है िबतक तचत्रा के योगिािे पि अत्यल्प। एक हिाि वषय में उसमें एक
कला का ही अन्ति पड़िा। सूयतय सद्धान्त में तचत्रा के िािे का िोग ठीक 180 अंश पि कहा है। वहााँ
से 180 अंश पि मेषािम्भ तबन्दु होना चातहए। इन्होंने ऐसा ही तकया औि उस मेषािम्भ तबन्दु से 10
कला पतिम िो कोई िािा न तमला तकन्त ु 43 कला पतिम में इनको िेविीमण्डल का ही म्यतू पतशयम
िािा तमला। उसी को इन्होंने िेवत्यन्त िािा माना।1 तचत्रा से गतणि प्रािम्भ किने से इनका गतणि
तचत्रापक्षीय कहलाया। इन्होंने स्वयं के उपनाम के िकि के आिाि पि इसका के िकी नामकिण
तकया। इनके अयनांश की तवति प्रस्तिु है।
1800
खाष्टिूम्यनू शकात्खशैलै:70 50खपञ्चतििायगकलातदलब्ध्यो:।
ु ऽयनिाग सञ्ज्ञा:।।
यदन्तिं ित्सतहिा तिहस्ता22 अष्टौ8 33सिास्ते
(िाग = अंश)

1
वेङ्कटे श बापू के िकि - नक्षत्र तवज्ञान पृ.19

65
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

इष्टशक में से 1800 घटाकि उसमें 70 से िाग देन े पि अंशातद िथा 50 से िाग देन े
पि कलातद मान प्राप्त होंगे। अंशातद वाले मान से कलातद वाला घटा कि शक 1800 का क्षेपक
िोड़ने पि मेष सङ्क्रातन्तकातलक अयनांश बनिा है (इसमें 50.2।। प्रतिवषय के 12 वें िाग को
ु िोड़ सकिे हैं )
मासानसाि
के िकी उदाहिण
1937 - 1800 = 137
137 = 10 - 57। - 25. 714…।। ≈10 - 57। - 26।।
70
137 = 2।-44।।
50

10 - 57। - 26।।
(-) 0 - 02। - 44।।
10 - 54। - 4211
+ 220 - 08। - 33।।
240 - 03। - 15।।
उपपति
अयनगति = 50.2 तवकला = 50.2 अंश
60×60
=. 502 . = 1 .
36000 70 860
502

66
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सिलिा हेि ु
अयनांश =

1 - 1 + 502
70 70 36000

1 1 502
70
- ( 70 - 36000
)
=> .1. - 36000 -35140
70 70×36000
=>

अं अं अं कला
1 860 = 1 - 860 X 60
-
70 70 X 36000 70 70 X 36000
=
अं क अं क अं क
1 51600 1 1 1 1
= - = -
- 48.83
70 2520000 70 70 50
(≈50)

अिीष्ट वषय हेि ु


=>
अं कला
अिीष्ट शक अिीष्ट शक
-
70 50

67
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

वियमान में अतिकांश पञ्चाङ्ग तचत्रापक्षीय अयनांश पि आिातिि हैं । उदाहिणाथय तवश्वतविय,
तसद्धतविय, मानव (विि मनीिाम) पञ्चाङ्ग, ब्रििूतम आतद।

लहिी का तचत्रापक्षीय अयनांश मान


के िकि िी के उपिान्त नवीन शोिों से अयनांश की वार्तषक गति 50.2 तवकला के स्थान पि 50.3
तवकला पायी गयी। एन. सी. लहिी ने इसी आिाि पि तचत्रापक्षीय अयनांश को संशोतिि तकया।
् तचत्रापक्षीय अयनांश ज्ञाि किने डॉ. मोहन गप्तु का सूत्र
ईसवी सन से
(लहिी अयनांश के वार्तषक माध्य को ज्ञाि किना)

( )2
t
अयनांश = (49.9) t ± 1.11 तवकला
100

285 ् तचह्न किना चातहए।


AD के पूव य (-) िथा पिाि (+)

् 285 घटा कि तलया


चूताँ क 285 AD में शून्य अयनांश माना गया है। अि: t = ईसवी सन से
गया वषय।

उदाहिण सन 2015 का अयनांश ज्ञाि किना

2015 - 285 = 1730 = t


(49.9) 1730 + 1.11 (17.30)2
86327 + 332.2119 = 86659.212 तवकला

86659.212
= 240 - 4। - 19।।
3600
(3600 का िाग तवकला के अंश कला बनाने तदया, क्योंतक 1 अंश = 60 X 60 = 3600 तवकला)

68
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

24.072003
4.3201983
19.2119

तवश्वतविय, तसद्धतविय आतद पञ्चाङ्ग संशोतिि तचत्रापक्षीय (लहिी) हैं िबतक मानव पञ्चाङ्ग
पूणिय ः के िकी अयनांश पि आिातिि है।
उपयक्त यु सूत्र महर्तष पातणतन संस्कृि एवं वैतदक तवश्वतवद्यालय के प्रथम कुलपति डॉ. मोहन
गप्तु िािा तनर्तमि है। डॉ. गप्तु गतणि, ज्योतिष औि संस्कृि के ममयज्ञ तविान हैं् । आपने ज्योतिर्तवज्ञान

के तवद्यार्तथयों की सगमिा हेि ु इस सूत्र का प्रवियन तकया।
सूयोदय – सूयायस्त
सूयोदय सूयायस्त ज्ञाि किने हेि ु हम िीन तवतियों का प्रयोग किें ग।े ये हैं -
1. चि सातिणी तवति
2. चि सूत्र तवति
3. चि खण्ड तवति
तवतियों के नाम से ही स्पष्ट है तक इनसे चि ज्ञाि तकया िािा है। शेष तवति आगे समान ही
प्रयोग की िािी है। ध्यान िहे तक इन तवतियों से सूय य तबम्ब के के न्द्र के उदय/अस्त का समय ज्ञाि

होगा। अथायि गतणिागि सूयोदयास्त को व्यवहाि में अद्धोदय-अद्धायस्त कहा िािा है। व्यावहातिक
उदयास्त लोकव्यवहाि के तलए उपयोगी है, तकन्त ु ज्योतिष में िब िी इष्टकाल आतद का गतणि
तकया िािा है िो गतणिागि सूयोदयास्त ही तलया िािा है। पवोत्सवातद के तनणयय का आिाि िी
गतणिागि सूयोदयास्त ही है।
1.चि सातिणी तवति –
इस तवति से सूयोदयास्त का गतणि किने हेि ु हमें दो िथ्यों की आवश्यकिा पड़िी है,
प्रथम है अक्षांश (LATITUDE) तिसे हम Φ (फाई) से व्यक्त कििे हैं , तििीय है क्रातन्त
(DECLINATION) तिसे हम δ (डेल्टा) से व्यक्त कििे हैं । यहॉ ं क्रातन्त का अतिप्राय
य ातन्त से है। सवयप्रथम लहिी की चि सातिणी में अिीष्ट अक्षांश िथा क्रातन्त के तनकटिम मानों
सूयक्र
का अन्वेषण कििे हैं । चूताँ क अक्षांश औि क्रातन्त अंश कलात्मक तलये िािे हैं तकन्त ु सातिणी एक
एक अंश के अन्ति से मान प्रदर्तशि कििी है, अि: अक्षांश िथा क्रातन्त के कलात्मक मान हेि ु शद्धु
ु तकया िािा है। अक्षांश हेि ु चि शतद्ध
चि मान ज्ञाि किने अनपाि ु के तलए क्रातन्त के अंश वाले

69
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु विी अक्षांश के दोनों ओि के अंशों के चि का अन्ति ज्ञाि कि उससे अनपाि


मान के सम्मख ु किें ग े
् कला में इिने सेकण्ड का अन्ति, िो अिीष्ट कला हेि ु तकिना? इसी प्रकाि
तक 1 अंश अथायि 60
क्रातन्त हेि ु शतद्ध
ु में अक्षांश के अंश वाले मान के सम्मख
ु विी क्रातन्त मानों के चिान्ति से अिीष्ट
कलाओ ं हेि ु अनपाि
ु तकया िािा है। अब अक्षांश िथा क्रातन्त के अंश के अङ्कों से प्राप्त चि में दोनों

शतद्धफलों को िोड़ने पि अिीष्ट चि की प्रातप्त होिी है।
चि से सूयोदयास्त सािन की प्रतक्रया -
यतद अक्षांश िथा क्रातन्त समान तदशा के होिे हैं िो 6 घण्टों में चि को िोड़ने िथा दोनों
तवपिीि तदशाओ ं के होिे है िो 6 घण्टे में से चि को घटाने पि तदनाद्धय की प्रातप्त होिी है। तदनाद्धय
ु तदनमान होिा है।
का दोगना
यहॉ ं समान तदशा यथा उििी अक्षांश िथा उििा क्रातन्त होने से सूयोदय शीघ्र िथा सूयायस्त

तवलम्ब से होने से तदनमान अतिक होगा। स्वािातवक रूप से उसका आिा अथायि तदनाद्धय िी औसि
तदनाद्धय (6घण्टे ) से अतिक होगा, अिः यहााँ चि को 6 घण्टे में िोड़ा िाएगा, तकन्त ु अक्षांश िथा
क्रातन्त तिन्न तदशाओ ं के होने पि सूय य के अतिक कोणीय दूिी पि तस्थि होने से सूयोदय अपेक्षाकृ ि
अतिक तवलम्ब से िथा सूयायस्त शीघ्र होगा तिससे तदनमान कम होने के कािण तदनाद्धय िी 6 घण्टे
से कम होगा। अिः चि को 6 घण्टे में से घटाया िाएगा।
् बिे) में से घटाने पि सूयोदय िथा िोड़ने पि सूयायस्त के
तदनाद्धय को 12 घण्टे (अथायि 12
समय की प्रातप्त होगी। ये सूयोदयास्त स्थानीय िूपघड़ी (L.A.T.) में होंगे, तिनमें वेलान्ति संस्काि
किने अथायि ्वेलान्ति सातिणी में प्रदि मान उनके तचह्नानसाि
ु िोड़ने अथवा घटाने पि स्थानीय
मध्यम घटी (L.M.T.) में सूयोदयास्त प्राप्त होंगे। इनमें िेखान्ति संस्काि किने अथायि िे् खान्ति
समय के तमतनटातद को तचह्न के तवपिीि िोड़ने या घटाने (िन तचह्न है िो घटाने औि ऋण तचह्न है
िो िोड़ने) पि मानक समय में सूयोदयास्त काल ज्ञाि हो िािा है। िािि में िाििीय मानक समय
(I.S.T.), अन्य तकसी देश में वहााँ का िाष्ट्रीय मानक समय िथा िहााँ एकातिक टाइम िोन हैं , उन
देशों (अमेतिका, रूस आतद) में क्षेत्रीय मानक समय (Z.S.T.) ज्ञाि होगा।
L.A.T. => Local apprant time
L.M.T. => Local mean time
I.S.T. => Indian standard time
Z.S.T. => Zonal standard time

70
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

उदा. क्र. 1 तदनाङ्क 13/01/2020 को उज्ज ैन में सूयोदय–सूयायस्त ज्ञाि किना।

ज्ञाि है –
उज्ज ैन का अक्षांश → (+) 23° - 11।
13/01/2020 को क्रातन्त → (-) 21° - 37।
उज्ज ैन का िेखांश → (+) 75° - 46।
उज्ज ैन का िेखान्ति
(िाििीय मानक िेखांश से) → 6° - 44।
िेखान्ति समय → (-) 26m – 56s
13/01 को वेलान्ति → R (उदयकातलक) (+) 8m – 40s
13/01 को वेलान्ति → S (अस्तकातलक) (+) 8m –51s
ज्ञाि किना
तिन्हें ज्ञाि किना है गतणि के पूव य हल किने के उपिान्त प्राप्त मान

Ø corr. → ? 24s

δ corr.→ ? 73s

चि → ? 39m-08s

तदनाद्धय → ? 5h-20m-52s

तदनमान → ? 10h-41m-44s

घटी पलात्मक तदनमान → ? 26घ-44प-20तव

Step - (I) सातिणी में अक्षांश िथा क्रातन्त के तनकटविी चि देखना –

δ
21° 22°
Ø
h. m. s. h. m. s.
23°
0-37-31 0-39-30

24° 0-39-42 0-41-27

71
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

h m s
Step - (II) Corr. for Ø 24° → 00 39 42
(-) 23° → (-)00 - 37 - 31
1° 2 - 11
= 131s

1° = 60। → 131S

11। → 11 X 131s ‗ 24.01 ≅ 24s


60
Step – (III) Corr. for δ 22° → 00h- 39m- 30s
(-) 21° → (-) 00 - 37 -31
1° 01 - 59
= 119s
1° = 60। → 119s
1। → 119
60
=> 37। → 37 X 119 = 73.38333…. ≅ 73s
60

ु फलों को िोड़ने पि
Step (IV) - 23° अक्षांश िथा 21° क्रातन्त के मान में दोनों शतद्ध
00 - 37 - 31
+ 24
+ 73
37 - 128
(+)2(-)120
39 m – 08s => चि

72
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


Step - (V) – चूताँ क क्रातन्त िथा अक्षांश तवपिीि तदशाओ ं के हैं अथायि अक्षां
श उिि िथा क्रातन्त
दतक्षणा है अिः 6 घण्टे में से चि को घटाने पि तदनाद्धय की प्रातप्त होगी।

h m s
6 - 00 - 00
(-) 39 - 08
+ 5 - 20 - 52 तदनाद्धय
तदनमान = तदनाद्धय×2
→ 5 - 20 - 52
+5 - 20 - 52
10 - 41 - 44 (घण्टा-तमतनटात्मक तदनमान)
ु घटी-पलात्मक तदनमान होगा -
इसका ढाई गना
10 - 41 - 44
(+) 10 - 41 - 44
(+) 05 - 20 - 52
25 - 44 - 20
अथायि ् तदनमान = 25 घटी 44 पल 20 तवपल
Step - (V) – तदनाद्धय से सूयोदयास्त ज्ञाि किना
सूयोदय सूयायस्त
h m s h m s
12 - 00 - 00 12 - 00 - 00
(-) 5 - 20 – 52 (+) 5 - 20 - 52
6 - 39 - 08 L.A.T. 17 - 20 - 52 L.A.T.
(+) 08 – 40 (+) 08 - 51 (वेलान्ति संस्काि)
6 - 47 - 48 L.M.T. 17 - 29 - 43 L.M.T.
(+) 26 – 56 (+) 26 - 56
7 - 14 - 44 I.S.T. 17 - 56 - 39 I.S.T.
= 7h - 15m I.S.T. = 17h - 57m I.S.T.

73
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

चूताँ क दोनों स्थानों पि सेकण्ड का मान 30s = 0.5m से अतिक है अिः तमनट में एक िोड़
तदया है। यहॉ ं िेखान्ति संस्काि में तचह्न तवपिीि तलये िाने का कािण यह है, तक ये तचह्न मानक
समय को स्थानीय मध्यम समय में बदलने हेि ु तनिायतिि तकये गये हैं , तकन्त ु हम यहॉ ं स्थानीय
मध्यम समय को मानक समय में पतिवर्तिि कि िहे हैं । चूताँ क उज्ज ैन िाििीय मानक िेखांश से
य मानक िेखांश पि
पतिम में है अि: तिस समय उज्ज ैन में सूयोदय हो िहा होगा, उस समय पूवस्थ
तस्थि स्थान में समय, औि आगे बढ़ चका ु होगा। अि: िेखान्ति समय यहॉ ं िोड़ा गया है। यतद
हमािा स्थान मानक िेखांश से पूव य में होगा िो हम िेखान्ति समय को स्थानीय मध्यम समय से
घटा देंग।े
चि सूत्र तवति - चि ज्ञाि किने का तनम्नतलतखि सूत्र है -
log Sinc = log tanø + log tanδ
(यहॉ ं C = अंशकलात्मक चि)

सवयप्रथम लघगणकीय स्पशयज्या (Logarithmic Tangents) सातिणी से अक्षांश औि

क्रातन्त के मान ज्ञाि कि उनको िोड़ेंग।े इस सातिणी में प्राप्त मान 1–, 2– इत्यातद के पिाि दशमलव
में तदये गये हैं । 2– (टू बाि) शब्द का अथय है, तक दी गयी सङ्ख्ा वास्तव में ऋण थी, उसको िनात्मक
बनाने हेि ु एक पूणायङ्क से घटाया गया िो तक 2 है। चाँतक हमें दोनों मानों को िोड़ना है। अि: पहले
ु ऋणात्मक बनाकि िोड़ देंग े औि िब िी ऋणात्मक होने पि
इन्हें उन्हीं पूणायङ्कों से घटाकि पन:
ु ऐसे पूणायङ्क से घटाएाँग े तक दशमलव में प्राप्त सङ्ख्ा िनात्मक हो औि दशमलव के पूव य उसी
पन:
पूणायङ्क को 1–, 2– आतद की िॉतं ि तलख देंग।े तफि इस मान को लघगणकीयु ज्या (Logarithmic
Sines) की सातिणी में खोिेंग।े िो अंश कला मान अंश अङ्क पि तमलेगा वही C है। इसमें 4 का

गणाकि चिकाल ज्ञाि हो िािा है।
उदा. क्र. (1) 13/01/2020, उज्ज ैन
अक्षांश = 230 - 11।, क्रातन्त 210 - 37।
सूत्र में मान िखने पि
log Sinc = log tanø + log tanδ
log Sinc = log tan 230-11।+ log tan 210 - 37।
अब सातिणी में प्राप्त मान से अिीष्ट मान ज्ञाि किना है -
log tan 230 - 12। = 1–.6321
-1 -3

74
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

log tan 230 - 11। = 1–.6318


इसी प्रकाि
log tan 210 - 36। = 1–. 5976
+1 = +4
log tan 210 - 37। = 1–. 5980
log Sin c = 1–.6318 +1– .5980

1.0000 1.0000
(-)
( -0.6318 )+ (-)
-0.5980

0.3682 0.4020

=> - 0.3682 - 0.4020 = - 0.7702


= 1–.(1-0.7702)
1.0000
1–.
- 0.7702

1– .2298

=> log sin c =1–.2298


logarithmic Sines की सातिणी में देखने पि

log Sin 090 - 48। 1–. 2310


(-) 2 (-) 15
log Sin 090 – 46। 1– . 2295
≅ 1– . 2298
log Sinc = log Sin 90 - 46।

75
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

C = 90 - 46।
चि = C X 4 = (90 - 46। ) X 4
= 36m - 184s
+3 (-)180
39m - 04s (चि)
चूताँ क इस तवति में प्रतिकला 4 सेकण्ड की दि से सेकण्ड बनाये िािे हैं अि: 1 से 4 सेकेण्ड
िक का अन्ति पूवोक्त चि सातिणी तवति से होना सहि सम्भाव्य है, ि ैसे प्रकृ ि उदाहिण में िी
39m - 08s चिमान था। चिखण्ड तवति इस तवति में तिन दो िथ्यों की आवश्यकिा है, वे है,
सायन सूय य औि चिखण्ड। हमें ज्ञाि है, तक क्रातन्त का सम्बि सायन सूय य से है, उसी प्रकाि
चिखण्ड पलिा पि आिातिि है, तिसका तक सम्बि अक्षांश से है। अि: वे ही दोनों िथ्य तिन्न
रूप में प्रयोग तकये िा िहे हैं । ग्रहलाघव में चि ज्ञाि किने की तवति इस प्रकाि है –
योगो लव िोग्य घािाि।्
स्यात्सायनोष्णांशिु िक्षयसङ्खयचिाद्धय

1

खाग्न्यातप्तयक्तस्त ु चिं िनणं िलाि
ु षड्भे िपनेऽिथास्ते।।

अथायि सायन ु ज्ञाि कि उसकी िातश िल्य
सूय य का िि ु चिखण्डों (यथा 0 िातश पि कोई
नहीं, 1 िातश पि प्रथम, 2 िातश पि प्रथम एवं तििीय) को िोड़कि िो शेष अंशातद हैं , उन्हें िोग्य
ु कि िीस का िाग लगाने पि प्राप्त फल को पूवयय ोतिि फल में िोड़ने पि चि
चिखण्ड से गणा
ु ज्ञाि किने की िीति तसद्धान्त ग्रन्थों में औि ग्रहलाघवातद
(घटी-पलात्मक) प्राप्त होिा है। िि
ु वृि के 900 - 900 (3 - 3 िातश) के चाि िाग किने पि तवषम
किणग्रन्थों में दी हुई है। िदनसाि
ु औि गम्य से कोतट िथा सम पदान्त (II & IV) में गम्य
पदान्त (I & III) में गिकोण से िि
कोण से ु
िि िथा गि कोण से कोतट ज्ञाि की िािी है।

1
ग्रहलाघव 2/4

76
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु औि कोतट शब्दों का अतिप्राय िानें। वृि के तकन्हीं दो तबन्दुओ ं से काटा


सवयप्रथम िि
ु ति का बनिा है अिः उसे चाप कहिे हैं । उन दोनों तबन्दुओ ं को तमलाने
गया वृि खण्ड िनषाकृ
वाली सिल िेखा की आकृ ति िनषु की डोिी (ज्या) के समान होने से उसे ज्या कहिे हैं । िनषु के
ु हुए िाग को (ऊपिी/तनचला तसिा) कोतट कहिे हैं । चूताँ क तत्रकोणतमति में समकोण का ही
मड़े

महत्त्व है, अिः वृिपाद में बााँटने से अद्धयचाप औि अद्धयज्या ही काम आिे हैं । अिः इन्हें ही िि

औि ििज्या ु को घटाने पि शेष कोतट कहलाएगी औि उसकी
कहिे हैं । समकोण (90°) में से िि
ज्या कोतटज्या होगी। तचत्र में aLc पूण य चाप, abc पूणज्य ु Ma कोतट, Na = ob
य ा, aL िि,
कोतटज्या हैं । िि ् षु की ििा।
ु अथायि िन ु ु िथा गम्य कोण से
तचत्र से स्पष्ट है तक गि कोण से िि
ु ति दूसिी औि बनािे हैं (p q तबन्दु लेकि) िो िि
कोतट ज्ञाि होगी। िब िनषाकृ ु गम्य कोण औि
ु गम्य से कोतट िथा चिथय
कोतट गि कोण से होगी। इसी प्रकाि िृिीय में गि से िि ु पाद में
ु िथा गि कोण से कोतट प्राप्त होगी।
गम्यकोण से िि
ु →
सिल रूप में िि
यतद कोण = θ िो
ु = θ
I पाद में िि
ु = 180 - θ
II पाद में िि
ु = θ - 180
III पाद में िि
ु = 3600 - θ
IV पाद में िि
हमें ज्ञाि है, तक प्रथम चिखण्ड समकोण के प्रथम 300 हेि,ु तििीय अगले 300 (अथायि ्
् 0 से 900) हेि ु होिा है।
300 से 600) हेि ु िथा िृिीय चिखण्ड अतन्तम 300 (अथायि 60
ु 300 ( 1 िातश ) से कम है, िो
अि: यतद िि
300 → I चिखण्ड पलातद
ु 0 → I चिखण्ड पलातद X िि
िि ु = चि
30

ु 30 से 60 के मध्य का है, िो
यतद िि

चि= I चिखण्ड + II चिखण्ड X िि
30

77
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु 30 से 900 में है, िो,


यतद िि

चि= I + II+ III चिखण्ड X िि
30
उदा. क्र. 1- 13/01/2020, उज्ज ैन
ज्ञाि है - सायन सूय य = O9s - 230 - 13। - 29।।
उज्ज ैन के चिखण्ड
I = 51 पल - 20 तवपल
II = 41 पल - 04 तवपल
III = 17 पल - 06 तवपल

सायन सूय य को अंशात्मक बनाया ( 9 x 30 = 2700 )


=> 2700
+230 - 13। - 29।।
= 2930 - 13। - 29।।

् 0 से अतिक है अि: चिथय


चूताँ क सायन सूय य 9 िातश अथायि 270 ु पाद में होने से गम्यांश से
ु की प्रातप्त होगी।
िि
ु =
अिः िि
3600 - 00। - 00।।
(-) 2930 - 13। - 29।।
66° - 46। - 31।।
ु 600 से 900 के मध्य है अिः प्रथम दोनों चिखण्ड पूिे लें ग े िथा उसमें िीसिे
चूताँ क िि
चिखण्ड हेि ु प्राप्त आनपातिक
ु मान िोड़ने पि चि प्राप्त होगा।

66° - 46' - 31"


-60°- 00' - 00" ← (प्रथम+तििीय चिखण्डों के अंश)
6°- 46' - 31"
= 6.77527–

78
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

[31/60 = 0.516–+46
= 46.516–/60 = 0.77127–]

∵ III चिखण्ड = 17 पल 06 तवपल


= 17.1 पल (6/60= 0.1)
ु किने पि
अनपाि
30° हेि ु 17.1 पल
1° हेि ु 17.1 पल
30
=> 6.77527°→ 6.77527– X 17.1
30
= 3.8619 पल = 3 पल 52 तवपल
[ 0.8619×60 = 51.71≅ 52 ]

चि = 51पल 20 तवपल
+41 पल 04 तवपल
+ 3 पल 52 तवपल
96 पल 16 तवपल
तमनट स ैकण्ड में लाने हेि ु 2.5 से िाग लगाएाँग े
96.26– / 2.5 = 38.506–m
= 38m- 40s ← चि
इस प्राच्य तवति से प्राप्त मान चि सातिणी औि चि सूत्र तवति से 30- 40 स ैकण्ड िक का
अन्ति िह सकिा है।

ज्योतिवैज्ञातनक पतििाषाएाँ
ज्योतिगयतणि के प्रवेशाथी को इसे समझने हेि ु गोल पतििाषा िथा अन्य पातििातषक
ज्योतिषीय शब्दावतलयों से पतितचि होना आवश्यक है। अध्याय 2 िथा अगले अध्याय (क्र. 3) में

79
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु िहााँ तिस िथ्य की चचाय है वहीं तवस्ताि से उसे स्पष्ट तकया गया है, िथातप अन्य
आवश्यकिानसाि
पतििाषाओ ं के साथ सिेप में उन्हें िी यहााँ प्रस्तिु तकया गया है।
गोल
अद्धयवि ु
ृ को अपने व्यास पि पूणिय : घमाने से िो (गोलाकाि) आकृ ति बनिी है, उसे
गोल कहिे हैं ।
चूताँ क प्राचीन िाििीयों ने पृथ्वी, आकाश को गोल िथा ग्रह कक्षाओ ं को वृिाकाि माना
है, अि: िूगोल, खगोल िथा कक्षा गोल ि ैसे शब्द प्रचलन में िहे।
सूय य के तन्द्रि कक्षा क्रम

आितनक ु सौि मण्डल के के न्द्र में सूय य है िथा ग्रह उसकी
खगोल शास्त्र के अनसाि
पतिक्रमा कििे हैं । चन्द्रमा ग्रह न होकि पृथ्वी का उपग्रह है, क्योंतक वह उसकी पतिक्रमा कििा है।
ु है –
कक्षा क्रम तनम्नानसाि

सू ब ु श ु पृ (चं.) मं ग ु श

िूकेतन्द्रि कक्षा क्रम


िाििीय आचायों ने सिलिा की दृतष्ट से पृथ्वी को के न्द्र में माना। उन्होंने सापेक्ष दृतष्ट
से सूय य औि पृथ्वी की एक-दूसिे के स्थान पि कल्पना की। पृथ्वी का उपग्रह चन्द्रमा उसके तनकट
ही िहा। अि: िाििीय कक्षाक्रम है -

पृ चं ब ु श ु सू मं ग ु श

यही कक्षा क्रम शतन से चन्द्रमा की ओि होिाक्रम कहा िािा है।


ृ एवं लघवृु ि
महिि
तिन वृिों का ििािल गोल के न्द्र में गया हो वे महिि
ृ (ि ैसे क्रातन्तवृि, नाडीवृि)
कहलािे हैं । यह नवत्यंश (90अंश) चाप से तकये गये होिे हैं । शेष लघवृु ि कहलािे हैं । महिि
ृ ों
का के न्द्र गोल के न्द्र में होिा है।
उन्निांश
ग्रह या िािा तक्षतिि से तििना अंश ऊपि उठा िहिा है उसे उन्निांश कहिे हैं । दूसिे शब्दों
में तक्षतिि से ऊपि की ओि (खमध्य की तदशा में) मापी गयी कोणीय दूिी उन्निांश कहलािी है।
निांश
खमध्य से तक्षतिि की ओि नापी गयी कोणीय दूिी।

80
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

निांश + उन्निांश = 90°


∴ निांश = 90° - उन्निांश
िथा उन्निांश - 90°- निांश
अक्षांश
तनिक्षदेश से स्वदेश की अंशात्मक दूिी अक्षांश कहलािी है। दूसिे शब्दों में स्थानीय तक्षतिि
से ध्रवु का उन्निांश ही अक्षांश कहलािा है।
देशान्ति
िेखादेश िथा स्वदेश का अंशात्मक अन्ति
लम्बांश
स्वदेश से ध्रवु स्थान पययन्त अंशात्मक दूिी
= 90 – अक्षांश
= स्थानीय खमध्य से ध्रवु का निांश
दृग्वृि
खमध्य से ग्रह पि होिा गया वृि। निांश िथा उन्निांश दृग्वृिीय चापांश हैं । निांश की ज्या
दृग्ज्या िथा उन्निांश की शङ्कु कहलािी है।
शङ्कु
उन्निज्यारूप शङ्कु तक्षतिि ििािल पि सदैव लम्ब होिा है। ग्रह के याम्योिि वृि में होने पि
शङ्कु महाशङ्कु कहलािा है। कोणवृि में होने पि कोणशङ्कु िथा समवृि में िहने पि समशङ्कु कहलािा
है। अन्यत्र िहने पि इष्टशङ्कु कहलािा है।
तिस शङ्कु यन्त्र से पलिा का ज्ञान तकया िािा है उसे िादश अङ्गल
ु शङ्कु कहिे हैं ।
ऋि ु
दो सौि मास की एक ऋि ु होिी है। सायन मीन के सूय य से ऋिचक्र
ु प्रािम्भ मानिे हैं ।
सायन सूय य तस्थति ऋि ु
मीन + मेष वसन्त
वृषि + तमथनु ग्रीष्म
ककय + वसह वषाय
ु ा
कन्या + िल शिद
वृतिक + िन ु हेमन्त
मकि + कुम्भ तशतशि

81
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

पलिा / अक्षिा

सम्पाि के तदन अथायि सायन ु सङ्क्रातन्त (23
मेष सङ्क्रातन्त (21 माचय) अथवा सायन िला
तसिम्बि) के तदन स्थानीय मध्याह्नकाल में िादश अङ्गल
ु शङ्कु की अङ्गल
ु – व्यङ्गल
ु ात्मक छाया पलिा
कहलािी है। इसका सम्बि अक्षांश से है। तनिक्ष देश में पलिा शून्य होिी है।
पलिा सूत्र –
पलिा =12 tan ∅ िहााँ ∅ = अक्षांश

लि
तकसी घटना के समय पूवी तक्षतिि पि उतदि होिी िातश लि कहलािी है। दूसिे शब्दों में
क्रातन्तवृि का िो िाग पूवी तक्षतिि में लगा हो वह लि है।
सप्तम
तकसी घटना के समय पतिमी तक्षतिि पि अस्त होिी िातश।
दशमिाव
तकसी घटना के समय खमध्य में तस्थि िातश। क्रातन्तवृि का वह िाग िो याम्योिि वृि के
ऊध्वय िाग में लगा हो।
ु िाव
चिथय
तकसी घटना के समय पािाल मध्य में तस्थि िातश। क्रातन्तवृि का याम्योिि वृि के अिः
िाग में लगा हुआ िाग।
वृि
के न्द्र के चािों ओि समान दूिी पि की गई वक्रा (टे ड़ी) िेखा वृि कहलािी है।
व्यास

वृि के न्द्र से गिििी वृि के दो तबन्दुओ ं को तमलाने वाली सिल िेखा।
वृि के न्द्र
गोलीय वृिों के िीन के न्द्र होिे हैं – एक गिय के न्द्र औि दो पृष्ठीय के न्द्र। ि ैसे गिय के न्द्र =
गोल के न्द्र = िूकेन्द्र

82
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

पृष्ठीय के न्द्र
तिस तबन्दु ( गोलपृष्ठस्थ ) से अिीष्ट चापांश से गोलपृष्ठ पि वृि का तनमायण होिा है वह पृष्ठ
ु से 90° चाप पि नाडी वृि होिा है। नाडी वृि (तवषवि
के न्द्र होिा है। ध्रवों ु वृ् ि) के तलए दोनों ध्रवु ।
गियसूत्र
िूगिय से ग्रहतबम्ब िक गया हुआ सूत्र
पृष्ठीय सूत्र - पृष्ठस्थान से ग्रहतबम्ब िक गया सूत्र
खमध्य = खस्वतस्तक
िूगिय से पृष्ठस्थान में आये सूत्र को आकाश में बढ़ाने पि ग्रह कक्षाओ ं में िहााँ लगे। दूसिे
शब्दों में पूवायपि वृि िथा याम्योिि वृि के ऊध्वय सम्पाि को ऊध्वय सम्पाि िथा अिः सम्पाि को
अिःस्वतस्तक कहिे हैं ।
तक्षतििवृि
खमध्य को पृष्ठीय के न्द्र मानकि नवत्यंश (90°) चाप से तकया गया वृि।
तदगंश
दृग्वृि से पूवायपिवृि िक तक्षतिि वृिीय चाप। इसकी ज्या तदग्ज्या कहलािी है। दूसिे शब्दों
में तदगंश दृग्वृि से पूव य या पतिम स्वतस्तक की दूिी।
समस्थान
तक्षतििवृि एवं याम्योिि वृिों के दोनों सम्पाि उििी समस्थान (उिितदशामध्य) िथा
दतक्षणी समस्थान (दतक्षणतदशामध्य) कहलािे हैं ।
याम्योिि (दतक्षणोिि) वृि
दोनों ध्रवु स्थान िथा खमध्य में से गया हुआ वृि। दूसिे शब्दों में पूव य या पतिम स्वतस्तक से
नवत्यंश चाप से तकया गया वृि।
समवृि=पूवायपि (पूवपय तिम) वृि
समस्थान से 90°चाप से तकया गया वृि।
य तस्तक/पतिम स्वतस्तक
पूवस्व
पूवायपिवृि एवं तक्षतिि वृि के सम्पाि
उििी ध्रवु स्थान = समे
ु रु = देविालय
(सम्प्रति आकय तटक महासागि)
दतक्षणी ध्रवु स्थान = कुमरुे = िाक्षसालय

83
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

(सम्प्रति अन्टाकय तटका)


कोणवृि
पूव य िथा पतिम स्वतस्तक से 45° - 45° पि तक्षतिि वृि पि चाि कोणस्थान (ईशान आतद)
होिे हैं । खमध्य से कोणस्थान में गया वृि ही कोणवृि है। ये दो हैं ईशान & न ैऋत्य में गया हुआ िथा
आिेय & वायव्य में।
ु वृ् ि = कालवृि
नाडीवृि = तवषवि
ध्रवु स्थान से नवत्यंश चाप से तकया हुआ वृि नाडीवृि या तवषविु वृ् ि/मण्डल कहलािा है
ु वृ् ि कहलािा है।
सिल शब्दों में िूमध्य िेखा का आकाशीय प्रक्षेप ही तवषवि
ु िे् खा
तनिक्षदेश = शून्य अक्षांश िेखा = तवषवि
िूपष्ठृ ीय ध्रवु स्थान से 90° चाप से तकया गया वृि।
सिल शब्दों में पृथ्वी को उििी िथा दतक्षणी दो समान गोलाद्धों में बााँटने वाली कतल्पि िेखा
ु िे् खा कहलािी है। वियमान में इसका िूमध्य िेखा नाम अतिक प्रतसद्ध है। चूताँ क इस िेखा पि
तवषवि

अक्षांश शून्य होिा है अिः तिन-तिन स्थानों से यह गिििी है वे सब तनिक्षदेश कहे िािे हैं ।
तनिक्ष खमध्य
नाडीवृि (तवषवि ु वृ् ि) पि अपना याम्योिि वृि िहााँ स्पशय कििा है वह स्वतनिक्ष खमध्य
ु िे् खा को स्पशय कििी है वह
कहलािा है इसी प्रकाि िूमण्डल पि अपनी याम्योिि िेखा िहााँ तवषवि
स्वतनिक्ष देश कहलािा है।
एक ही िेखांश पि तस्थि स्थानों का स्वतनिक्ष देश समान होगा। यथा उज्ज ैन, कुरुक्षेत्र आतद
का स्वतनिक्ष देश लङ्का है।
उिण्डल
तनिक्ष देश का तक्षतिि वृि ही उिण्डल कहलािा है। अन्य स्थानों के तलए उिण्डल वह
वृि है िो दोनों ध्रवु स्थानों िथा पूव य – पतिम स्वतस्तकों से होकि गिििा
ु है।
क्रातन्त
ु िे् खा से उिि या दतक्षण में मापी गयी कोणीय दूिी।
तवषवि
क्रातन्तवृि
आकाश में सूय य के कतल्पि पतिक्रमा मागय को क्रातन्तवृि कहिे हैं , क्योंतक इसका सम्बि
सूय य की क्रातन्त से है। वास्तव में यह पृथ्वी की कक्षा (पतिक्रमा मागय) है। हम पृथ्वी से ठीक सामने
की ओि (180° पि) सूय य को देखिे हैं ।

84
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

िचक्र
यह िातशचक्र/नक्षत्रचक्र का ही दूसिा नाम है। क्योंतक प्राचीनों ने क्रातन्तवृि के आसपास
के िािों को लेकि 12 िातश/27 नक्षत्रों की कल्पना की है। िहााँ िाििीयों ने नक्षत्राकृ तियों पि तवशेष
ध्यान तदया है, वहीं पािात्यों ने क्रातन्तवृि से उिि िथा दतक्षण में 9° - 9° (कुल 18 अंश) चौड़ी पट्टी
को िचक्र (ZODIAC) कहा है।
िगण
तकसी ग्रह ने िचक्र को तकिनी बाि िोग तलया है उसी की गणना िगण कहलािी है।
भ्रमण/घूण यन
तकसी तपण्ड (ग्रहातद) का अपने अक्ष पि घूमना घूणनय या पतिभ्रमण कहलािा है। िहााँ अन्य
ु घूणनय तदशा है वहीं शक्र
ग्रहों की पूवायतिमख ु की पतिमातिमख।

िोग
िचक्र पि मेषािम्भ से क्रातन्तवृि के समानान्ति नापी गयी कोणीय दूिी िोग कहलािी है।
शि
क्रातन्तवृि से उिि या दतक्षण में नापी गयी कोणीय दूिी शि कहलािी है।

ध्रव/तवषवु
ु के उििी िथा दतक्षणी तबन्दु ध्रवु कहलािे हैं ।
पृथ्वी के अक्ष (ििी)
कदम्ब
क्रातन्तवृि के ध्रवु को कदम्ब कहिे हैं । प्राचीनों ने िवु से कदम्ब की दूिी 24° मानी है क्योंतक
वे सूय य की पिमक्रातन्त 24° मानिे थे (वियमान में 23° 26। ≅ 23°- 30।)। अिः ध्रवु से 24° के
चाप पि कदम्ब प्रोि वृि (कदम्ब भ्रमण वृि) माना गया है। इसे तिन वृि (क्योंतक 24 ि ैन िीथयङ्कि
हुए हैं ) िी कहिे हैं । खगोल के (पृष्ठीय) के न्द्र को कदम्ब कहिे हैं ।
उिि िथा दतक्षण गोल
ु िे् खा से उिि की ओि दृश्य होिा है िो वह समय उिि गोल िथा िब
िब सूय य तवषवि

दतक्षण में होिा है िो दतक्षण गोल कहलािा है। सूय य सायन मेषािम्भ से सायन िलािम्भ िक उििी

गोल िथा सायन िलािम्भ से सायन मेषािम्भ िक दतक्षणी गोल में तदखाई देिा है।
सम्पाि/गोल सति
नाड़ीवृि िथा क्रातन्त वृि के दोनों सम्पािों को गोल सति कहिे हैं । िब सूय य इन तबन्दुओ ं
पि तस्थि होिा है िो तदन-िाि बिाबि होिे हैं ।

85
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

वसन्त सम्पाि तबन्दु (Vernal Equinox)


् ि को काटिा है िो उस तबन्दु
ु वृ
िब सूय य दतक्षण से उिि की ओि गति कििे हुए तवषवि
को वसन्त सम्पाि तबन्दु कहिे हैं । इस सायन मेषािम्भ (21/22 माचय) के समय वसन्त ऋि ु का
होना इसके नामकिण का कािण है।
शिद सम्पाि तबन्दु (Atumnal Equinox)
िब सूय य उिि से दतक्षण की ओि िािे हुए तवषवि ् ि को पनः
ु वृ ु काटिा है िो यह तबन्दु

शिद सम्पाि तबन्दु कहलािा है यह सायन िलािम्भ 23 तसिम्बि को होिा है।
उििायण (Winter Solstice)
िब सूय य अपने पिम दतक्षण तबन्दु पि पहुाँचकि उिि की ओि गति प्रािम्भ कििा है िो इस
घटना को उििायण कहिे हैं । सायन मकिािम्भ की यह घटना 22 तदसम्बि को होिी है। व्यवहाि
में िब िक सूय य की गति उिि की ओि िहिी है वह छः मास का पूिा काल उििायण कहलािा है।
दतक्षणायन (Winter Solstice)
िब सूय य अपने पिम उिि तबन्दु से दतक्षण की ओि गति कििे हैं िो सायन ककायिम्भ
(सङ्क्रातन्त 21 िून) की यह घटना दतक्षणायन कहलािी है।
तवमण्डल
चन्द्र िथा मङ्गलातद िािाग्रहों की कक्षाओ ं (भ्रमण मागों) को तवमण्डल कहिे हैं ।
पाि
क्रातन्तवृि िथा तवमण्डल के दो सम्पाि (कटान तबन्दु)। चन्द्रमा के पािों के नाम िाहु िथा
के ि ु हैं ।
योगिािा
तकसी नक्षत्रमण्डल का वह िािा िो अपने बड़े आकाि िथा अतिक कातन्त के कािण मण्डल
के अन्य िािों की अपेक्षा सहििा से पहचाना िा सके योगिािा कहलािा है। यथा िोतहणी का
ु स ु का योगिािा पोलॉक्स (परुष)
योगिािा एतल्डब्ररान है िथा पनवय ु है।
खगोल
आकाश को िी िािि में गोलाकाि माना गया है क्योंतक एक बाि में दृश्य आकाश अद्धयगोल
की िााँति तदखाई देिा है।
य पाल िथा पतिम कपाल
पूवक
याम्योिि वृि िािा तकये गये खगोल के दो िाग

86
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ध्रवु प्रोि वृि


िवु स्थान औि ग्रह/नक्षत्र पि से तकया गया वृि। इसी प्रकाि कदम्ब से तकया गया कदम्ब
प्रोिवृि। दोनों क्रमशः नाडीवृि िथा क्रातन्तवृि पि लम्ब होिे हैं ।
अहोिात्र वृि
ु अन्ति पि याम्योिि वृि को काटिा, पूव-य पतिम सम स्थान से
नाडीवृि से क्रातन्तिल्य
िािा हुआ वृि। इस पि 60 घटी मानी गयी हैं । तिनमें 30 नि – 30 उन्नि हैं । निोन्नि के िी
पूव य – पतिम दो िेद हैं ।
चिखण्ड
तक्षतिि वृि िथा उिण्डल के बीच अहोिात्र वृिीय चापखण्ड। इसकी ज्या कुज्या
कहलािी है। कुज्या ही तत्रज्यावृि में चिज्या है।
सिल शब्दों में तनिक्षदेश िथा स्वदेश के मध्य उदयान्ति को चि कहिे हैं ।
गतणिागि सूयोदय
सूय य तबम्ब के के न्द्र का पूवी तक्षतिि पि आना।
गतणिागि सूयायस्त
सूय य तबम्ब के न्द्र का पतिमी तक्षतिि पि आना।
अतिकमास
तिस अमान्त चन्द्रमास में सूय य की सङ्क्रातन्त न पड़े िो वह अतिकमास कहलािा है। प्रायः
5 वषय में 2 अतिकमास होिे हैं ।
क्षयमास
दो सौि सङ्क्रातन्तयों से यिु अमान्त चन्द्रमास। तिस वषय क्षयमास होिा है उस वषय दो
अतिकमास होिे हैं ।
व्यवहातिक सूयोदयास्त
व्यवहाि में सूय य तबम्ब के प्रथम (ऊपिी) तबन्दु के उदय को सूयोदय िथा अतन्तम तबन्दु के
अस्त को सूयायस्त के नाम से िाना िािा है पिन्त ु ज्योतिष में गतणिागि सूयोदयास्त का ही महत्त्व
है।
इष्टकाल
तकसी घटना (िि/प्रश्न आतद) का स्थानीय सूयोदय (तबम्ब मध्योदय) से घटी पलात्मक
अन्ति इष्टकाल कहलािा है।

87
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

तदनमान
सूयोदय से सूयायस्त िक का मान। इसका आिा तदनाद्धय।
िातत्रमान
सूयायस्त से अगले सूयोदय िक का काल = 60 घटी – तदनमान
समय का मापन

प्रािम्भ में तदन में सूय य िथा िातत्र में नक्षत्रों की तस्थति िािा समय का अनमान तकया िािा
होगा। ित्पिाि िू ् प घटी, िल घटी, िेि घटी आतद का आतवष्काि समय मापन हेि ु हुआ होगा।
(L.A.T.) स्थानीय िूप घटी/सूय यघटी समय (लोकल एप्रेन्ट टाइम)
िूप घटी (ि ैसे सम्राट यन्त्र) िािा मापा गया समय
वेलान्ति
िब समय को िल घटी, यन्त्र घटी आतद िािा सहििा से मापा िाने लगा िो पाया गया
तक 24 घण्टे वाली यातन्त्रक घटी का मध्याह्न सूयघय टी के (L.A.T.) के मध्याह्नकाल से वषय में मात्र
चाि तिन्न तदन साम्य िखिा है अन्य तदनों में दोनों में कुछ अन्ति पाया िािा है तिसे वेलान्ति कहिे

हैं . अनेक वषों के प्रेक्षण के पिाि पािात्यों ने िोमन कै लेण्डि की तदनाङ्कों के आिाि पि एक सातिणी
िी ि ैयाि की तिसे वेलान्ति सातिणी कहिे हैं ।
(L.M.T.) स्थानीय मध्यम समय (लोकल मीन टाइम)
L.A.T. में वेलान्ति संस्काि किके प्राप्त समय। तकसी स्थान की स्थानीय मध्यम घटी में
बािह बिने पि वहााँ मध्याह्नकाल होिा है।
G.M.T./U.S.T. (ग्रीनतवच मीन टाइम/यूतनवस यल स्टैण्डडय टाइम)
लं दन के तनकट ग्रीनतवच नामक स्थान के िेखांश को शून्य िेखांश मानकि वहााँ के स्थानीय
मध्यम समय को सम्पूण य पृथ्वी (तवश्व) का मानक समय माना गया है।
Z.S.T. (िोनल स्टैण्डडय टाइम)

ग्रीनतवच मीन टाइम को मख्यािाि लेकि तवतिन्न देशों अथवा बड़े देशों के दो – िीन बड़े
िूिागों (क्षेत्रों) के तलए एक मानक समय िय तकया िािा है िातक उस देश/िाग में एक सी ही
घटी का सब व्यवहाि में प्रयोग किें ।
I.S.T. (िाििीय मानक समय)

ग्रीनतवच से +5h – 30m अथायि 82° - 30। पूवी िेखांश को िािि का मानक िेखांश माना
गया है। यह िेखांश प्रयागिाि के तनकट है। यहााँ का स्थानीय मध्यम समय सम्पूण य िािि में एक

88
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

साथ समस्त घतटयों में प्रयोग तकया िािा है। ि ैसे िब उज्ज ैन का स्थानीय मध्याह्न L.M.T. में
होगा िब I.S.T. तसद्ध घड़ी में 12 बिकि 27 तमनट हो चकेु होंगे।
तििा
मकि िथा ककय िेखा के मध्य (उष्णकतटबि में) िहने वालों की मध्याह्नकातलक छाया किी
उिि िथा किी दतक्षण में पड़िी है अिः वे तििा कहलािे हैं ।
तनिाय
इन्ही लोगों की छाया वषय में दो बाि शून्य हो िािी है िो उन तदनों वे तनिाय कहलािे हैं ।
एकिा
मकि िेखा से दतक्षण िथा ककय िेखा से उिि में 66° िक के लगिग के क्षेत्र (शीिोष्ण
कतटबि) में मध्याह्नकातलक छाया सदैव एक ही ओि तदखाई देिी है।
सवयिा
66° से अतिक अक्षांश वाले (शीिकतटबि) स्थानों पि 6-6 मास के तदन िातत्र होिे हैं औि
सूय य चािों ओि घूमिे िहने से सवयत्र छाया घूमिी िािी है, अिः वे सवयिा कहलािे हैं ।
स्पष्ट ग्रह
िूकेन्द्र से ग्रहों का िचक्र में स्थान
मन्दस्पष्ट ग्रह
य े न्द्र से देखने पि ग्रहों का िचक्र में स्थान।
सूयक
इस अध्याय में िातश िथा ग्रहों से पतिचयोपिान्त गतणि में प्रवेश तकया गया। कुण्डली
तनमायण के गतणि की पूवपय ीतठका रूप इस अध्याय के अध्ययन से अतग्रम अध्याय में गम्भीि
कुण्डलीगतणि को समझने औि किने में सौकयय होगा।

89
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अध्याय 3
लिातदसािन

ु शमाय
डॉ. शिम
तवगि अध्याय में आप न के वल िातश औि ग्रहों के स्वरूपातद से पतितचि हुए, अतपि ु
कुण्डली तनमायण के गतणि की प्रासतङ्गकिा िानने हेि ु तवतविकालमानों से पतितचि हुए। ित्पिाि ्
इष्टकाल, नाक्षत्रकाल, पलिा, सूयोदयास्त आतद के गतणि को आपने समझा। कुण्डली का आिाि
है लि, अिः इस अध्याय का प्रािम्भ लिसािन के गतणि से ही होगा। आगे दशमिावसािन,
षड्वगयसािन, िादशिावस्पष्टीकिण, ियाि-ििोग िथा ववशोििी दशा के गतणि से हमें पतितचि
ु गतणिीय प्रतक्रयाओ ं का
होना है। तवगि अध्याय के अध्य्र्य्न से आप समझ ही चकेु होंगे तक शष्क
वणयन किना मात्र हमािा उद्देश्य नहीं है। उदाहिण िािा स्वयं गतणि का अभ्यास किके गति बढ़ाना
ु यतक्तयों,
िो उद्देश्य है ही, साथ ही सूत्रातद की उपपतियों को िी पूवायचायों के ग्रन्थों में प्रयक्त ु
सामतयक-सिल उदाहिणों औि यथोतचि तचत्रों िािा समझना- समझाना िी हमािा उद्देश्य है िातक
प्रतक्रया का कािण ज्ञाि होने से उसे स्मिण िखना सहि होगा।
लि
सूयतय सद्धान्त के ज्योतिषोपतनषदध्याय में पतििाषा है-
उदयतक्षतििे लिमस्तं गछच्च ििशाि।। ्
लङ्कोदय ैययथातसद्धं खमध्योपति मध्यमम।् 1
अथायि ् क्रातन्तवृि का िो िाग उदयतक्षतिि से लगा होिा है, वह लि कहलािा है।
अस्ततक्षतिि से लगा िाग सप्तम िाव होगा िथा तनिक्ष खमध्य में लगा िाग दशम िाव कहलािा
है। िास्किाचायय गोलाध्याय में यही बाि इस प्रकाि तलखिे हैं -
यत्र लिमपमण्डलं कुि े िद्गहाद्यतमह
ृ ु ।
लिमच्यिे
प्रातच पतिमकुिऽे स्तलिकं मध्यलितमति दतक्षणोििे।।2
यहााँ आचायय ने उदयास्त के स्थान पि पूवी औि पतिमी तक्षतिि शब्दों का प्रयोग तकया है।

साथ ही आचायय के शब्दों में मध्यलि अथायि दशमिाव क्रातन्तवृि का वह िाव है, िो याम्योिि
वृि से लगा होिा है।
् ि िो
लगति इति लिम अथाय ् स्पशय किे वह लि है, यह लि के नामकिण का कािण है।

1
सूयतय सद्धान्त - ज्योतिषोपतनषदाध्याय - श्लोक 13,14
2
िास्किाचायय - गोलाध्याय - तत्रप्रश्नवासना श्लोक 26

90
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सिल शब्दों में तकसी िी घटना के समय पूवी तक्षतिि पि उतदि िातश लि कहलािी है।
् य य के कतल्पि पतिक्रमामागय (वास्तव में पृथ्वी की कक्षा) के तनकटस्थ िािापञ्जों
क्रातन्तवृि अथायि सू ु
में 27 नक्षत्रों िथा 12 िातशयों की कल्पना की गयी है।
पृथ्वी के अपने अक्ष पि घूणनय की पतिति िूमध्यिेखा अथायि ् तवषविु ् िेखा है। इसी को
ु वृ् ि कहिे हैं । इसी पतिति (नाडीवृि) पि पृथ्वी
आकाश में देखने पि हम नाडीवृि अथवा तवषवि
के घूणनय से तदन-िाि होिे हैं अिः इसे कालवृि िी कहिे हैं ।
ु हुई है, अिः क्रातन्तवृि एवं
चूताँ क पृथ्वी अपनी कक्षा में अपने अक्ष पि 230-26। झकी
नाडीवृि पिस्पि एक दूसिे को काटिे हुए अतिकिम 230-26। का कोण बनािे हैं । इनके दो कटान
तबन्दु क्रमशः वसन्त सम्पाि तबन्दु िथा शिद सम्पाि तबन्दु कहलािे हैं । वसन्त सम्पाि तबन्दु ही
सायन मेषािम्भ तबन्दु िी कहलािा है। यहााँ से छह िातशयााँ (सायन) नाडीवृि से उिि िथा छह
िातशयााँ उससे दतक्षण में तस्थि हैं । सायन मेष, वृषि िथा तमथनु उििोिि उिि तदशा में वद्धयमान

होिी हैं । तमथनान्त ् तद पि नाडीवृि िथा क्रातन्तवृि के मध्य उिि तदशा में अतिकिम
अथायि ककाय
् 0-26। होिी है। ित्पिाि ककय
कोणीय दूिी अथायि 23 ् , वसह िथा कन्या ये िीन िातशयााँ नाडीवृि
ु वृतिक िथा िन ु दतक्षण तदशा में बढ़िे क्रम में औि
से उिि में ही घटिे क्रम में होिी हैं । िला,
मकि, कुम्भ िथा मीन घटिे क्रम में तस्थि हैं ।
उदयमान
तकसी िातश के गतणिीय तविाग के आतद तबन्दु के उदय से लेकि अतन्तम तबन्दु के उदय

(अथायि अतग्रम िातश के उदयािम्भ) िक का काल उसका उदयमान कहलािा है। ये दो प्रकाि से
देख े िािे हैं -
(1) लङ्कोदयमान (2) देशोदयमान
लङ्कोदयमान

लङ्का अथायि तनिक्ष देश में िातशयों के उदयमान लङ्कोदयमान कहलािे हैं ।

िास्किाचायय के ग्रन्थ तसद्धान्ततशिोमतण के मिीतचटीकाकाि मनीश्वि कहिे हैं तक यतद

क्रातन्तवृि नाडीवृि की िााँति होिा अथायि दोनों एक ही होिे िो समस्त िातशयों के उदयमान समान
रूप से 5-5 घटी (2-2 घण्टे ) ही होिे, क्योंतक अहोिात्र 60 घटी (24) घण्टे का होिा है औि लि
बािह हैं । तकन्त ु ऐसा है नहीं। िातशयों के उदयमान तिन्न होने के सम्बि में िास्किाचायय का कथन
है -
ु िथास्तम।्
यो तह प्रदेशोऽपमण्डलस्य तिययतििो यात्यदयं

91
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सोऽल्पेन कालेन य ऊद्ध्वयसस्थ ु


ं ोऽनल्पेनसोस्मादुदया न िल्या।।1


अथायि अपमण्डल ्
(क्रातन्तवृि) का िो िाग (िातश) िो िाग तििछापन अथायि वक्रिा तलए
तस्थि है वह अल्पकाल में ही उतदि औि अस्त होिा है। उससे ऊपि तस्थि िातश कम वक्रिा के
कािण उदय होने में अतिक समय लेिी है, अिः तनिक्ष देश में िी िातशयों के उदयमान समान नहीं
होिे। ि ैसे मेष िातश अपनी क्रातन्त अतिक होने के कािण तििछी उतदि होने से अल्प समय लेिी
है, वृषि उससे कम क्रातन्त होने से कम तििछी है अिः मेष से अतिक समय लेिी है, िबतक तमथनु
उससे िी कम क्रातन्त होने से सबसे कम वक्रिा तलए होिी है, तिससे वह उतदि होने में सबसे
अतिक समय लेिी है। उदाहिणाथय तकसी बााँस की छड़ी को एक तनतिि गति् से चल िही ट्रे डतमल
पि सीिा िखें िो वह एक तनतिि ् दूिी तनतिि ् समय में पूिी किेगी। उसके प्रथम तसिे के हमािे
तनिायतिि तचह्न को पाि किने से उसके अतन्तम तसिे को पाि किने िक के समय को तलख लेवें। अब
ु ति में मोड़ लें िो दोनों तसिों के बीच लम्बाई कम
यतद उस छड़ी के दोनों तसिों में सूत्र बााँि िनषाकृ
होने से कम समय लगेगा। इसे औि अतिक मोड़ दें िो लम्बाई औि िी कम होने से औि कम समय
में उसके दोनों तसिे क्रमशः तनिायतिि तचह्न का लङ्घन किें ग।े
् तवषवि
चूताँ क ु वृ् ि से उिि या दतक्षण में मापी गयी कोणीय दूिी ही क्रातन्त है, अिः मेषािम्भ
ु ािम्भ तबन्दुओ ं पि क्रातन्त शून्य िथा इनसे िीन िातश (900) की दूिी पि तस्थि ककायतद िथा
िथा िल
मकिातद में क्रमशः उिि िथा दतक्षण में सवायतिक क्रातन्त (230-26।) होगी। प्राचीन ग्रन्थों में
ु गतणि किने पि -
पिमक्रातन्त 240 कही गयी है। िदनसाि
मेष की कुल क्रातन्त (प्रथम 300 के तलए) = 110-44।
वृषि की कुल क्रातन्त (तििीय 300 के तलए) = 080-54।
तमथनु की कुल क्रातन्त (िृिीय 300 के तलए) = 030-22।
अगली िीन िातशयों के तलए तवपिीि क्रम में यही मान होंगे िथा शेष शेष छह िातशयों के
तलए दतक्षणा क्रातन्त में यही मान दोहिाए िाएाँग।े
सूय यतसद्धान्त िथा तसद्धान्ततशिोमतण आतद ग्रन्थों में लङ्कोदयमान अस ु अथायि ् प्राण
(10तवपल=4सेकेण्ड) में तदये गये हैं , तकन्त ु वियमान में ग्रहलाघव ग्रन्थ में कतथि मान पलात्मक
होने से अतिक प्रचतलि हैं । िद्यथा -
लङ्कोदया तवघतटका गििातन गोऽङ्कदिातस्त्रपक्षदहनाः क्रमगोत्क्रमस्थाः।

1
िास्किाचायय - गोलाध्याय- तत्रप्रश्नवासना श्लोक 16

92
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु 1
हीनातन्विाििदलैः क्रमगोत्क्रमस्थ ैमेषातदिो िटि उत्क्रमितस्त्वमे स्यः।।
श्लोक के पूवायद्ध य में लङ्कोदय मान कहे गये हैं िथा उििाद्धय में उनसे देशोदय बनाने की तवति
कही गयी है।
िातशयों के लङ्कोदय पल (तवघतटका)
गि िातन (नक्षत्र) 278 मेष ु
कन्या िला मीन
(अष्ट तदग्गि)

8← 27← =

गो (ग्रह) अङ्क दि 299 वृषि वसह वृतिक कुम्भ


(अतश्वनीकुमाि)

9← 9← 2← =

तत्र पक्ष (मासाद्धय) दहन (अतित्रयी) 323 तमथनु ककय िन ु मकि

3← 2← 3← =
अथायि ्278, 299, 323 क्रमशः क्रम औि उत्क्रम (तवपिीि क्रम) से मेषातद िातशयों के
लङ्कोदय पल होिे हैं ।
देशोदय (स्वोदय) मान
मेषातद सायन िातशयों के स्वदेश में उदयमान को देशोदय मान कहिे हैं । ग्रहलाघव के

पूवोक्त श्लोक के उििाद्धय में लङ्कोदय से देशोदय बनाने की तवति कही गयी है। िदनसाि- लङ्कोदय
मानों में क्रम औि उत्क्रम से स्थानीय चिखण्डों को हीन (घटाने) िथा अतन्वि (िोड़ने) पि मेषातद

छह िातशयों के देशोदय प्राप्त होिे हैं , इन्हें ही उत्क्रम में लेन े पि िलातद छह िातशयों के देशोदय
मान प्राप्त हो िािे हैं ।
देशोदय प्रातप्त हेि ु सूत्र
लङ्कोदय मान +/- चिखण्ड क्रमाङ्क देशोदयमान

278 - I मेष मीन

1
गणेश दैवज्ञ - ग्रहलाघव - तत्रप्रश्नातिकाि श्लोक 1

93
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

299 - II वृषि कुम्भ

323 - III तमथनु मकि

323 + III ककय िन ु

299 + II वसह वृतिक

278 + I ु ा
कन्या िल

उज्ज ैन के देशोदय मान


लङ्कोदय पल +/- चिखण्ड मान = देशोदय पल सायन िातशयााँ

278 - 51 = 227 मेष मीन

299 - 41 = 258 वृषि कुम्भ

323 - 17 = 306 तमथनु मकि

323 + 17 = 340 ककय िन ु

299 + 41 = 340 वसह वृतिक

278 + 51 = 329 कन्या ु ा


िल

यहााँ एक प्रश्न उपतस्थि होिा है तक लङ्कोदय मानों में क्रमोत्क्रम से चिखण्डों को घटाने औि
िोड़ने का कािण क्या है? हमें यह ध्यान िखना चातहए तक सायन मेषािम्भ सम्पाि तबन्दु पि है।
ु िे् खा से उिि में िथा िलातद
यहााँ से छह िातशयााँ तवषवि ु छह िातशयााँ उससे दतक्षण में हैं । साथ ही
उिि तदशा में हमािा (अथायि ् उििगोलाद्धयवातसयों के तलए) स्थानीय तक्षतिि उिण्डल अथायि ्
तनिक्षदेशीय तक्षतिि से नीचे िहिा है। यहााँ यह िी ध्यान िखना होगा तक तक्षतििवृि का के न्द्र सदैव
गोलके न्द्र (िूकेन्द्र) से होकि िािा है, ठीक वैस े ही ि ैसे तकसी बड़ी गेंद को आकाश की ओि ऊाँ चा
िख उसके तकसी एक तबन्दु को पृष्ठ के न्द्र बनाकि देखने पि उस गेंद की पतिति पि आकाश उससे
तमला हुआ तदखाई देगा। यही तक्षतििवृि हुआ। गेंद यतद आाँखों के तनकट किें ग े िो आकाश एक
छोटी पतिति पि लगा तदखाई देगा, ि ैसे हमें अपना तक्षतििवृि छोटा तदखाई देिा है, अपने लघ ु
आकाि औि पृथ्वी की तवशालिा के कािण।

94
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

तनिक्ष देश का तक्षतििवृि दोनों ध्रवु स्थानों से होकि िािा है, िबतक उििी अक्षांश वाले
तकसी स्थान का तक्षतििवृि उििी ध्रवु से अक्षांश िल्य
ु नीचा िहेगा। इसके तवपिीि दतक्षणी
ध्रवु स्थान से यह अक्षांशिल्य
ु ऊाँ चाई पि िहेगा। इसतलए उिि में तस्थि िातशयों का उदय, हमािा
तक्षतिि नीचा होने से, पहले उस पि हो िाएगा, बाद में तनिक्ष देश में होगा। िबतक दतक्षण में तस्थि

िातशयों का उदय, तनिक्ष तक्षतिि नीचे िहने से, पहले उस पि ित्पिाि स्वतक्षतिि पि होगा।
तसद्धान्ततशिोमतण-गतणिाध्याय के स्पष्टातिकाि में श्लोक 58 की टीका में उपपति बिािे हुए
िास्किाचायय तलखिे हैं -
तनिक्षस्वदेशाकोदययोिन्तिं चिम।् तनिक्षे स्वदेश े च मेषातदः सममदेु ति। मेषान्त आदौ
स्वतक्षतििे िि उिण्डले लगति। अिििखण्डोनो मेषोदयः स्वदेशोदयः िवति। एवं

वृषतमथनयोितप। कक्यायदौ ि ु चिखण्डानामपचीयमानत्वाद्धनं िातन पतिणमतन्त। िलादौ

िूिण्डलस्यािः तस्थित्वाच्चिखण्डातन िनं िवतन्त। मकिादौ ि ु चिखण्डानामपचीयमानत्वादृणं
पतिणमतन्त।
अथायि ्तनिक्षदेश औि स्वदेश के सूयोदय का अन्ति ही चि होिा है। मेषािम्भ का उदय
ु िे् खा) के
तनिक्ष देश औि स्वदेश पि समान होिा है, क्योंतक पृथ्वी का घूणनय अपनी पतिति (तवषवि
पतििः होिा है िथा मेषािम्भ की क्रातन्त शून्य होिी है औि यहााँ तनिक्ष तक्षतिि िथा स्वतक्षतिि का
सम्पाि िी होिा है।
मेषान्त (वृषातद) स्वतक्षतिि के नीचे होने के कािण पहले स्वतक्षतिि में लगेगी (स्वतक्षतिि
पि मेषान्तोदय पहले होगा) िथा बाद में उिण्डल में। इसतलए प्रथम चिखण्ड (प्रथम िातश हेि)ु
् श में मेषान्ततबन्दु का प्रथम चिखण्ड
को लङ्कोदय से हीन किने पि देशोदय प्राप्त होगा। अथायि स्वदे
ु समय पूव य ही उदय हो िाएगा, िबतक लङ्कोदय में उिने समय का औि तवलम्ब िहेगा। इसी
िल्य

प्रकाि वृषिान्त औि तमथनान्त ु काल पूव य ही
का िी क्रमशः तििीय िथा िृिीय चिखण्ड िल्य
स्वदेश में उदय हो िाने से उन्हें लङ्कोदय में से घटाने पि देशोदय बनेंग।े

95
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ककायतद िीन िातशयों के मान घटिे क्रम में होने से स्वदेश के उपिान्त लङ्कोदय होने पि प्राप्त
ु घट चका
मान िृिीय चिखण्डिल्य ु होने से लङ्कोदय में िृिीय चिखण्ड िोड़ने पि देशोदय की
प्रातप्त होिी है। ऐसा ही अन्य दो िातशयों हेि ु होगा। िलातद
ु िीन िातशयााँ उिण्डल के नीचे होने से
इनका उदय पहले लङ्का में होगा, ित्पिाि स्वदे ् श में होने से क्रमशः चिखण्ड िोड़ने पि देशोदय
बनेंग,े िबतक मकिातद में चिखण्ड घटने के कािण ऋण कििे हैं ।

देशोदय मान से लि आनयन


देशोदय मानों से लिायन की दो तवतियॉ ं हैं , िक्त
ु प्रकाि औि िोग्य प्रकाि। क्रम से गतणि
ु होिी है। ग्रहलाघव में आचायय गणेश ने लिानयन की
होने के कािण िोग्य तवति अतिक प्रयक्त
तवति इस प्रकाि कही है –
ित्कालाकय : सायन: स्वोदयघ्ना –
िोग्यांशा: खत्र्यद्धु ृिा िोग्यकाल:।
(एवं यािांश ैियवेद ् यािकालो )
िोग्यः शोध्योऽिीष्यनाडीपलेभ्य:।।
ं शेष ं
िदन ु िहीतह ग्रहोदयॉि

गगनगणघ्नमश ु
द्धहृिवाद्यम।्
ु वै –
सतहिमिातदगृहिै शद्धपू
् 1
ियवति तवलिमदोऽयनांशहीनम।।

1
गणेशदैवज्ञ - ग्रहलाघव - तत्रप्रश्नातिकाि श्लोक 2-3

96
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

् प्रथम िात्कातलक (घटना के समय का) सूयस्प


अथायि सवय ु
य ष्ट ज्ञाि कि उसमें अयनांश यक्त
कििे हैं । इस िात्कातलक सायन सूय य के िोग्यांशों को सायन सूय य िातश के स्वोदय(देशोदय) मान
ु कि 30 से िाग देन े पि िोग्यकाल के पल ज्ञाि होिे हैं । इष्टकाल के पल बनाकि उनसे
से गणा
िोग्य पलों को घटािे हैं । शेष में आगे की िातशयों के देशोदय पलों को िब िक घटािे हैं , िब िक

तक वे घट सकें । तिस िातश के उदयमान नहीं घटिे उसे अशद्धु कहिे हैं । शेष पलों में 30 का गणा
कि अशद्धु िातश के स्वोदय मान से िाग देन े पि प्राप्त अंशातद में अशद्धु िातश के पूव य मेषातद से
तििनी िातशयॉ ं गयीं वे िोड़ देि े हैं । सिल शब्दों में कहें िो अशद्धु िातश से पूव य की िातश का क्रमाङ्क
िातश स्थान पि प्राप्त अंशातद के पूव य तलख लेि े हैं । यह सायन लि कहलािी है। इसमें से अयनांश
को हीन किने पि लि स्पष्ट होिी है।
इस तवति में िोग्यांश का उिे ख है। चूताँ क एक िातश में कुल 30 अंश होिे हैं , अि: िीस में
ु श को घटाने पि उस िातश के िोग्यांश प्राप्त होिा है।
से िक्तां
य ष्ट ही लि स्पष्ट होिा है। इष्टकाल िक
तवति से ज्ञाि होिा है तक सूयोदय के समय सूयस्प
यहॉ ं से तकिनी औि लिें िोगी िाऍंगी यह ज्ञाि किने हेि ु (सायन) सूय य का प्रयोग तकया िािा है।
तकन्त ु प्रश्न उठिा है तक यहॉ ं सूय य उदयकातलक न लेकि िात्कातलक क्यों स्वीकाि तकया गया। इसका
कािण बिािे हुए िास्किाचायय तलखिे हैं तक लिसािन में यतद इष्ट घतटका सावन मान की हों िो
सूय य के िात्कातलकीकिण से वे नाक्षत्रमान की हो िािी हैं ।
िद्यथा
लिाथय तमष्टघतटका यतद सावनास्ता–

स्तात्कातलकाकय किणेन िवेयिाक्ष्ययः। 1

चूताँ क लिों के उदयमान नाक्षत्र हैं अि: इष्ट घटी िी नाक्षत्र मान में होना आवश्यक है क्योंतक
योग औि तवयोग सदा सिातियों का ही होिा है। चूताँ क 1 तदन में सावन औि नाक्षत्र मानों में उिना
ही अन्ति होिा है तििनी सूय य की दैतनक गति है, अि: सूय य को िात्कातलक तकया िािा है।
उदाहिण क्र. (1)
तदनाङ्क 13/01/2020 उज्ज ैन में 04:45 AM (IST)
तदनाङ्क 13/01/2020 को सूयोदय – 07:14 AM
य ष्ट 08s-280-06।-22।।
13/01/2020 को प्राि: 05:30 पि सूयस्प
सूय य गति 61। - 07।।

1
िास्किाचायय- गोलाध्याय तत्रप्रश्नवासना श्लो 27

97
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अयनांश (तचत्रापक्षीय)
240 – 07। -55।।
यहॉ ं अयनांश पञ्चाङ्ग से प्राप्त तकया है। लि सािन हेि ु हमें इष्टकाल, देशोदय िथा
िात्कातलक सूय य की आवश्यकिा है।
सवयप्रथम इष्टकाल ज्ञाि किें ग े –
घटना का समय 28 45

सूयोदय (-) 07 14

अन्ति 21h 31m

ु कि इष्टकाल बनाएाँग े -
इस अन्ति को ढाई गना

21 31 00

+ 21 31 00

+ 10 30 00

+ 00 15 30

इष्टकाल 53 घटी 47 पल 30 तवपल

घटी- पल में इष्टकाल - 53 घटी 48 पल



पलीकिण हेि ु साठ से गणा 53×60


गणनफल 3180

य ाि पल िोड़े
पूवज्ञ + 48

इष्टपल 3228

िात्कातलक सूय य –
28:45
- 05:30

98
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

23:15 = 23.25h
सूयगय ति = 61।-07।।= 61.11666..।
24h. → 61.116...।
23.25h → (61.116...। x 23.25)/ 24 = 59.206 –
= 59।-12।।
यह मान प्राि: 05:30 के मान में िोड़ने पि
08s-280-06।-22।।
+59।-12।
=08s-290-05।-34।। िात्कातलक सूय य
उज्ज ैन के उदयमान
पल
मे 227 मी
वृ 258 कु
तम 306 म
क 340 ि
वस 340 िृ
क 329 िु
step - I सायन सूय य बनाना
08s-290-05।-34।।
+ 00s-240-07।-55।
= 09s-230-13।-29।। िात्कातलक सायन सूय य
Step – II िोग्यांश तनकालना
300-00।-00।।
- 230-13।-29।
060-46।-31।। =6.775...0
Step - III िोग्य पल ज्ञाि किना
चूताँ क सायन सूय य की िातश मकि है, तिसका उदयमान 306 पल है
ु किने पि –
अनपाि

99
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

300 → 306 पल
10 → 306/30 पल
िो 6.775...0 → (6.775...0x306)/30 = 69.10...0
= 69 पल (िोग्य)
Step - IV इष्ट पल से उदयमानों को घटाना –
3228
- 69 (मकि समाप्त)
3159
- 258 (कुम्भ समाप्त)
2901
- 227 (मीन समाप्त )
2674
- 227 (मेष समाप्त)
2447
- 258 (वृषि समाप्त)
2189
- 306 (तमथनु समाप्त)
1883
- 340 (ककय समाप्त)
1543
- 340 (वसह समाप्त)
1203
- 329 (कन्या समाप्त)
874
- 329 ु समाप्त)
(िला
545
- 340 (वृतिक समाप्त)
205

100
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

िन ु नहीं घटी अिः सायन लि िन ु है।


Step - V सायन लि के अंशातद ज्ञाि किना –
340 पल → 300
205 पल → (30x205)/340 =18.088….0
= 180-05।-17.64...।।

सायन लि 08s-180-05।-18।।
(-) 00s-240-07।-55।। (अयनांश घटाने पि)
07s-230-57।-23।। (लि स्पष्ट)

लङ्कोदय से दशमिावानयन
दशम िाव आनयन के तवषय में आचायय नीलकण्ठ तलखिे हैं -
यु ं िोग्यं शोध्यं पलीकृ िाि।्
एवं लङ्कोदय ैिक्त
् 1
पूवपय िान्निादन्यत्प्राग्विदशमं िवेि।।

अथायि तिस प्रकाि लि ज्ञाि की गयी थी उसी प्रतक्रया से दशमिाव ज्ञाि तकया िािा है,
बस यहााँ देशोदय के स्थान पि िातशयों के लङ्कोदय मान तलए िािे हैं । साथ ही इष्टपल के स्थान पि
ु प्रकाि िथा पतिम नि लेन े पि
पूव य या पतिम नि पलों को तलया िाि है। पूवनय ि लेन े पि िक्त
िोग्य प्रकाि से दशम िाव का सािन तकया िािा है।
यहााँ देशोदय के स्थान पि लङ्कोदय मान लेन े का कािण यह है तक याम्योिि वृि के ऊपिी
िाग में स्पशय किने वाली िातश दशमिाव कहलािी है। चूताँ क एक ही िेखांश पि तस्थि स्थानों का
याम्योिि वृि समान होगा अिः सिी का दशमिाव एक साथ प्रािम्भ औि समाप्त होगा। वास्तव
में िेखांश याम्योिि वृि का ऊपिी िाग ही िो है। िातशयों के िो मान तनिक्ष देश के तलए हैं वही
ु होंगे। िबतक लि का सम्बि उदय तक्षतिि से है औि समान िेखांश वाले
स्वदेश के तलए िी प्रयक्त
स्थानों में िी अक्षांश के अन्ति से उदय तक्षतिि तिन्न होने से मान तिन्न हो िािे हैं ।
निकाल
निकाल की अविािणा सूय य के निांश पि आिातिि है। मध्याह्नकातलक सूय य सवायतिक
ऊाँ चाई पि होने से इसका निांश शून्य होिा है, अिः मध्याह्न में निकाल िी शून्य होगा। खमध्य

1
िातिक नीलकण्ठी 1/23-24

101
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

से पािाल मध्य के सूयायन्ति को यहााँ आिाि तलया गया है। हम िानिे हैं तक याम्योिि वृि के
दोनों ओि खगोल को दो िागों में बााँटा गया है। वे हैं – पूव य कपाल औि पतिम कपाल। सूय य के पूव य
कपाल में होने पि पूवनय ि िथा पतिम कपाल में होने पि पतिम नि प्राप्त होिा है। चूताँ क एक अहोिात्र
में 60 घटी होिी हैं , अिः मध्याह्न से पूव य औि पतिम में मापने पि अद्धयिातत्र िक 30-30 घटी होंगी।
अथायि ् अतिकिम निकाल 30 घटी होगा। यतद उन्निकाल ज्ञाि किना हो िो 30 घटी में से
निकाल को घटा देि े हैं ।
निकाल सािन के तलए िातिक नीलकण्ठी आतद ग्रन्थों में िो तवतियााँ कही गयी हैं वे
अहोिात्र के चािों खण्डों में तिन्न गतणि के कािण भ्रम उत्पन्न कि सकिी हैं ।

सिल शब्दों में निकाल की पतििाषा है स्थानीय मध्याह्न से पूव य या पिाि मापा गया घटी-
पलात्मक समय।
साम्पातिक काल आनयन की तवति में स्थानीय मध्यम मध्याह्न से घटना के समय का िो
अन्तिाल यातन्त्रक घटी में प्राप्त होिा है वही निकाल है। मध्याह्न से पूव य होने पि पूवनय ि िथा मध्याह्न
् पि पतिम नि कहलाएगा।
के पिाि होने
सवयप्रथम घटना समय को िेखान्ति संस्काि िािा स्थानीय मध्यम समय में पतिवर्तिि कि लें ।
यतद घटना अद्धयिातत्र से मध्याह्न के मध्य हुई है िो 12 घण्टे (अथायि 12 बिे) में से घटना समय को
् गना
घटा लें । ित्पिाि 2.5 ु किने पि प्राप्त घटी पलात्मक मान पूवनय ि होगा।
यतद घटना मध्याह्न के पिाि ् की है िो p.m. में दि समय ही अन्तिाल है, इसे घटी-
पलात्मक बनाने से पतिम नि प्राप्त होगा।
िोग्य प्रकाि से दशमिाव सािन में पतिम नि आगे की ओि होने से इसे प्रयोग किने में
कोई समस्या नहीं, तकन्त ु पूवनय ि पीछे की ओि होने से िोग्य प्रकाि में उपयोगी नहीं। इससे
िोग्यतवति िािा दशमिाव सािन किना हो िो 30 घटी में से पूवनय ि घटाकि पूव य उन्नि बनािे हैं
औि पूवोन्नि पलों में लङ्कोदय मान घटािे हैं । साथ ही सूय य में िी 6 िातश िोड़ लेि े हैं ।
उदा. क्र. 1 तदनाङ्क 13/01/2020 उज्ज ैन 04:45 am IST
पूव य ज्ञाि सायन सूय य = 095 – 23० – 13'-29''
स्थानीय मध्यम समय में घटना का समय
04 :45 : 00
(-) 26 :56
04h:18m:04s L.M.T.

102
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

Step - 1
निकाल सािन
चूताँ क घटना मध्याह्न के पूव य की है, अि: स्थानीय मध्यम घटी में प्राप्त घटना के समय को 12 घण्टे
में से घटाएाँग।े
h m s
12 : 00 : 00
(-) 04 : 18 : 04
07 : 41 : 04 ≈ 07h-42m

इसे घटी पलात्मक तकया


07 - 42
+ 07 - 42
+ 03 - 30
+ 21
19 - 15

पूवनय ि = 19 घटी 15 पल
पूवोन्नि =>
30 - 00
(-) 19 - 15
10 - 45

10 X 60 = 600
+ 45
पूवोन्नि पल= 645

103
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

Step - II सायन सूय य से िोग्यांश ज्ञाि किना


09s - 230 - 13। - 29।। सायन सूय य
+ 06s -000 - 00। - 00।।क्योंतक पूवोन्नि पल ले िहे
03s - 230 - 13। - 29।।
िोग्यांश
300 - 00। - 00।।
(-) 230 - 13। - 29।।
60 - 46। - 31।। = 6.775...0

लङ्कोदय मान
मेष कन्या ु ा
278 िल मीन
वृष वसह 299 वृतिक कुम्भ
तमथनु ककय 323 िनु मकि
Step - III िोग्यपल ज्ञाि किना
चूताँ क सायन सूय य की िातश ककय है, तिसका लङ्कोदय मान 323 पल है।
ु किने पि -
अनपाि
300 → 323 पल
6.775 ....0 → 6.775...0 X 323 = 72.94...≈ 73 पल (िोग्य)
30

Step IV पूवोन्नि पल से उदयमानों को घटाना -


645

-73 (ककय समाप्त)

572

- 299 (वसह समाप्त)

273 ्
कन्या नहीं घटी अथायि सायन दशम कन्या है।

104
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

Step - V सायन दशम के अंशातद ज्ञाि किना


278 पल → 300
273 पल → 30 X 273 = 29.460 .....0 = 290-27।-37.53।।≈ 290-27।-38।।
278
सायन दशम =>
5s - 290 - 27। - 38।।
(-) 0s - 240 - 07। - 55।। अयनांश
5s - 050 - 19। - 43।। दशम िाव स्पष्ट

अथायि दशम िाव में कन्या लि है।
साम्पातिक/नाक्षत्र काल (SIDEREAL TIME)
तकसी नक्षत्र के पूवी तक्षतिि पि उदय के पिाि ्अगले उदय िक का काल नाक्षत्र काल
कहलािा है। सिल शब्दों में कहें िो तकसी नक्षत्र के आकाश में एक पूण य भ्रमण में लगा समय

नाक्षत्रकाल होिा है। एक नाक्षत्र तदन 23 घण्टे 56 तमनट औि 4 सेकण्ड का होिा है। अथायि यतद
ु अतग्रम िातत्र में
हम अपने स्थानीय तक्षतिि से तकसी नक्षत्र (योगिािा) का उन्निांश माप कि पनः
् ग।े
उिने ही उन्निांश पि नक्षत्र को 23h56m04s के पिाि पाएाँ
चूताँ क पृथ्वी के सम्पाि तबन्दुओ ं के स्थानीय खमध्य से एक चक्र में, इिना ही समय लगिा
है, अिः इसे साम्पातिक तदन िी कहा िा सकिा है। वसन्त सम्पाि तबन्दु िब स्थानीय मध्याकाश
में होिा है िब साम्पातिक काल शून्य होिा है। ि ैसे-ि ैसे वसन्त सम्पाि तबन्दु मध्याकाश से पतिम
की ओि बढ़िा िाएगा वैस-े वैस े साम्पातिक काल िी बढ़िा िाएगा।
अिीष्ट स्थान पि अिीष्ट समय का साम्पातिक काल ज्ञाि किना -
िािि में इस हेि ु लहिी की सातितणयों का प्रयोग सवायतिक तकया िािा है। सातिणी क्रमाङ्क
01 में सन ् 1900 A.D. में प्रत्येक तदनाङ्क को िाििीय मानक िेखांश पि स्थानीय मध्यम
मध्याह्नकातलक साम्पातिक काल तदया होिा है।
ु (Year Correction) िथा स्थान शतद्ध
इसमें दो संस्काि – वषय शतद्ध ु (Place Correction)
किके अिीष्ट सन औि् अिीष्ट स्थान के स्थानीय मध्यम मध्याह्न कातलक साम्पातिक काल को ज्ञाि
तकया िािा है। ित्पिाि ् स्थानीय मध्यम मध्याह्न से अिीष्ट समय के साम्पातिक घटी में
समयान्तिाल को िोड़ या घटाकि अिीष्ट साम्पातिक काल की प्रातप्त होिी है।

वषय शतद्ध

105
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


चूताँ क लहिी की सातिणी सन 1900 ् 1900
के तलए बनी है अथायि सन ् में िाििीय मानक
िेखांश पि स्थानीय मध्याह्न काल से 1m 10s (साम्पातिक घटी) पूव य वसन्त सम्पाि तबन्दु लम्बवि ्
था। अन्य वषों में स्वािातवक रूप से अन्ति आयेगा क्योंतक एक वषय में लगिग 6 घण्टे का अन्ति
बन ही िािा है िो तक लीप इयि में पूिा होिा है। क्योंतक सायन सौि वषय 365.24 तदन का होिा
है। प्रत्येक वषय कुछ अन्ति बनेगा िो तक लीप इयि व्यवस्था के कािण चौथे-चौथे वषय लगिग
समान होगा, तकन्त ु वियमान ग्रेगोतियन कै लेण्डि में सूक्ष्मिम मान लेन े का प्रयास है िथातप 3320
वषय में ग्रेगोतियन कै लेण्डि औि सायन सौि वषय में 1 तदन का अन्ति आ िाएगा। इस प्रकाि प्रत्येक
वषय कतिपय सेकण्ड का अन्ति िो बना ही िहेगा। इस हेि ु लहिी ने िातलका क्र. 2 में तवतिन्न वषों
हेि ु संशोिन तमतनट-सेकण्ड में प्रस्तिु कि तदया है। यहााँ ध्यान देन े योग्य िथ्य यह है तक िो वषय
लीप इयि अथायि ् 29 फिविी वाले हैं उनमें िनविी-फिविी हेि ु तिन्न संस्काि है औि माचय से
तदसम्बि िक के तलए तिन्न।

स्थान शतद्ध
हमें ज्ञाि है तक नाक्षत्र घटी 23h – 56m – 04s की है िबतक हमािी यातन्त्रक घटी िो तक

मध्यम सूय य पि आिातिि है, 24 घण्टे की है। अथायि दोनों घतटयों में 3m 56s का अन्ति है िो तक
प्रतितदन बढेे़गा। यह अन्ति एक ही िेखांश के तलए है। यतद अन्य तकसी िेखांश हेि ु अन्ति िानना है
िो –
360° हेि ु 3m 56s = 236 s
1° हेि ु 236s = 0.65– ≅ 0.66 सेकण्ड
360
यहााँ िाििीय मानक िेखांश 82° - 30। (E) हेि ु साम्पातिक काल तदया गया है। िो स्थान
यहााँ से पूव य तदशा में होंगे वहााँ के मध्याकाश से वसन्त सम्पाि तबन्दु पूव य काल में ही तनकला होगा

अथायि अन्ति उिना नहीं होगा तििना तक िाििीय मानक िेखांश पि है अिः 66s प्रति अंश की
दि से पूव य तदशा में घटाने का तनदेश है।
पतिमविी स्थानों के तलए सम्पाि तबन्दु बाद में उनके मध्याकाश में पहुाँचने से अन्ति औि
बढ़ िायेगा अिः .66s प्रति अंश की दि से िोड़ने का तनदेश है।
स्थानीय मध्यम मध्याह्न से अन्तिाल िथा अिीष्ट साम्पातिक काल प्रातप्त -
ु िथा स्थान शतद्ध
वषय शतद्ध ु के उपिान्त अिीष्ट स्थान का स्थानीय मध्यम मध्याह्न कातलक
साम्पातिक काल प्राप्त हो िािा है। अब हमें अिीष्ट समय का साम्पातिक काल ज्ञाि किना है।

106
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

इसके तलए मात्र इिना किना है तक स्थानीय मध्यम मध्याह्न से साम्पातिक घटी में िो अन्तिाल

प्राप्त होिा है उसे मध्याह्न कातलक साम्पातिक काल में मध्याह्न के पूव य होने पि ऋण िथा पिाि होने
पि िन कििे हैं ।
चूताँ क हम स्थानीय मध्यम मध्याह्न का प्रयोग कि िहे हैं अिः अपने अिीष्ट समय को स्थानीय
मध्यम घटी (L.M.T.) में बदलना होगा। ित्पिाि यतद ् समय मध्याह्न के पूव य का है िो 12 घण्टे
् समय है िो P.M. में िो समय होगा वही अन्तिाल
में से घटाएाँगें औि यतद मध्याह्न के पिाि का
होगा। इस अन्तिाल को साम्पातिक घटी में पतिवर्तिि किने हेि ु प्रति घण्टे 10s अथायि 6् m हेि ु 1
सेकण्ड की दि से िोड़ देंग।े
यातन्त्रक घटी िथा साम्पातिक घटी में अन्ति
हमें ज्ञाि है तक सूय य के सापेक्ष पृथ्वी की दो गतियााँ हैं – 1. अपने अक्ष पि घूणनय । 2. सूय य
की पतिक्रमा।
पृथ्वी अपने अक्ष पि सूय य के सापेक्ष 24 घण्टे में 360० का एक घूणनय चक्र पूण य कििी है।
यही समय मध्यम सौि अहोिात्र कहलािा है। हमािी यातन्त्रक घटी इसी कािण 24 घण्टे के चक्र में
तविातिि है।
् ० का एक पतिक्रमण चक्र पूण य किने में एक वषय
पृथ्वी सूय य की पतिक्रमा किने में अथायि 360

अथायि 365.25 ् िौि पि पृथ्वी एक तदन में अपनी कक्षा में एक अंश आगे
तदन लेिी है। अथायि मोटे
बढ़ िािी है। िब सूय य औि वसन्त सम्पाि एक ही तदशा में हैं िब प्रेक्षण किने पि हम पािे हैं तक
सूय य सापेक्ष पृथ्वी 359० ही घूणनय कििी है औि सम्पाि तबन्दु अपने तवगि तदवस की तस्थति पि आ
गया है। इसका कािण यह है तक पृथ्वी चूताँ क उक्त अवति में अपनी कक्षा में िी लगिग एक अंश
ु होिी है अिः उसके लगिग 359० घूणनय पि ही एक साम्पातिक अहोिात्र पूिा हो
आगे बढ़ चकी
िािा है। चूताँ क पृथ्वी को एक िेखांश घूणनय में 4m का समय लगिा है अिः साम्पातिक घटी, यातन्त्रक
घटी से लगिग 4 तमनट छोटी होिी है।
चूताँ क 1 अहोिात्र = 24h में → 4m = 240s
1 घंटे में → 240 = 10s
24
∵ 60m → 10s
∴ 6m → 1s

107
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

चूताँ क 24 घण्टे की घटी की अपेक्षा 23h 56m 04s की घटी अतिक वेग की है, अि:
यातन्त्रक घटी को साम्पातिक घटी में बदलने हेि ु प्रति घण्टा 10s की दि से प्राप्त सेकण्ड यातन्त्रक
घटी के समय में िोड़ने पि साम्पातिक घटी में समय ज्ञाि हो िािा है।
साम्पातिक काल ज्ञाि किने का उदाहिण
उदा. क्र. (1) तदनाङ्क 13/01/2020 उज्ज ैन में 04:45 am IST,
िबतक उज्ज ैन का िेखांश 750 - 46। (E)
हल - सवयप्रथम घटना-समय को स्थानीय मध्यम समय में पतिवर्तिि कििे हैं -
िाििीय मानक िेखांश
(-) स्थानीय िेखांश
=> 820 - 30।
(-) 75 - 46
60 - 44। िेखान्ति

(60 - 44। )
X4
= (-) 26m - 56s (िेखान्ति समय)
चूताँ क उज्ज ैन िाििीय मानक िेखांश से पतिम में है, अि: िेखान्ति समय को िाििीय
मानक समय में से घटाने पि उज्ज ैन का स्थानीय मध्यम घटी में समय ज्ञाि हो िाएगा।
h m s
04 : 45 : 00
(-) 26 : 56
04h : 18m : 04s LMT उज्ज ैन

Step - I अिीष्ट तदनाङ्क का स्थानीय मध्यम मध्याह्न में साम्पातिक काल ज्ञाि किना
लहिी की सातिणी क्र. I से तदनाङ्क 13/01 का साम्पातिक काल
h m s
19 : 29 : 07 (for 82-1/20 E Longitude & for 1900 A.D.)
(12 noon LMT )

108
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


सातिणी क्रमाङ्क II में सन 2020 हेि ु संस्काि = (-) 0m 14s
(For January & February only)

वषय शतद्ध
19 : 29 : 07
(-) 00 : 14
19 : 28 : 53 (for 82-1/20 E Longitude & for 13/01/2020)
(12 noon LMT )

ु हेि ु आवश्यक िेखान्ति = 60 - 44।


स्थान शतद्ध
44 में 60 का िाग लगाने पि दशमलव में मान प्राप्त होगा-
=> 44/60 = 0.73–
अब 6.73–0 X 0.66 4.444s ≈ 4s
चूताँ क उज्ज ैन िाििीय मानक िेखांश से पतिम में है अि: 4s पूववय िी मान में िोड़ देंग।े

स्थान शतद्ध
19 : 28 : 53
(+) 04
19 : 28 : 57 → (A) (S.T. for 12 noon LMT, 13/01/2020, उज्ज ैन)

Step II स्थानीय मध्यम मध्याह्न से अन्तिाल


चूताँ क घटना मध्याह्न के पूव य की है, अि: स्थानीय मध्यम घटी में प्राप्त घटना के समय
को 12 घण्टे में से घटाएाँग।े
h m s
12 : 00 : 00
- 04 : 18 : 04
07 : 41 : 56 ≈ 07h-42m

Step III अन्तिाल को साम्पातिक घटी में पतिवर्तिि किना

109
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

07 घण्टे हेि ु 70s


+ 42 तमतनट हेि ु 7 (42/6=7)
77s
इस मान को पूव य प्राप्त अन्तिाल में िोड़ने पि

07 : 41 : 56
+ 77
07 : 41 : 133
+ 02 (-)120
07 : 43m : 13s → (B)

Step IV अिीष्ट साम्पातिक काल ज्ञान किना


चूताँ क घटना मध्याह्न के पूव य की है, अि: मध्याह्नकातलक साम्पातिक काल (LMT में ) में से
साम्पातिक घटी में प्राप्त अन्तिाल को घटाएाँग े -
h m s

19 : 28 : 57
(-) 07 : 43 : 13
11 : 45 : 44 अिीष्ट साम्पातिक काल

साम्पातिक काल से लि ज्ञाि किना


इस हेि ु सवयप्रथम हमें अिीष्ट स्थान का अक्षांश ज्ञाि होना चातहए। तकसी स्थान तवशेष
पि कौन सी लि (सायन) तकिने समय िक पूवी तक्षतिि पि िहिी है (देशोदय) उसका सम्बि

अक्षांश से है। लहिी की पस्तक Tables of Ascendants में लगिग आिा-आिा अंश अक्षांश
के अन्ति से लि सातिणयॉ ं दी हुई हैं । हमें यहााँ तनकटिम सातिणी का प्रयोग किना चातहए िातक
उिि सूक्ष्म अथवा सूक्ष्मासन्न हो। उज्ज ैन का अक्षांश 230 - 11। (N) है। अि: हमािे उदाहिण
क्रमाङ्क 1 हेि ु 230 अक्षांश (उििी) की सातिणी समतचि
ु होगी।
सातिणी में साम्पातिक काल में 4 - 4 तमतनट के अन्ति से लि मान तदये हुए हैं । हमािा अिीष्ट
साम्पातिक काल है - 11h 45m 44s

110
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सातिणी में →
11h 48m 7s - 240 - 45।
(-) 11h 44m (-)7s - 230 - 51।
4m 54।

4m 54।
1m 54 = 13.5। = 13। - 30।।
4
∴ 1s 13.5।।
44s 13.5 X 44 = 594।।

∴ 1m - 44s हेि ु =>


13। - 30।।
+ 594।।
= 13। - 624।।
(+)10 (-)600
23। - 24।।
इसे 11h - 44m के मान में िोड़ने पि
11h - 44m - 00s → 7s - 230 - 51। - 00।।
(+) 1m - 44s + 23।- 24।।
11h - 45s - 44s → ्
7s - 240 - 14। - 24।। (सन 1938)
ु है, तकन्त ु
चूताँ क लहिी की लि सातिणयों में 230 अयनांश पहले ही संस्कृि हो चका
वियमान में अयनांश औि बढ़ चका ु है। अि: अयनांश किेक्शन की सातिणी से सन 2020् हेि ु िो
मान प्राप्त होिा है वह संस्कृि कि देंग।े
यह है → (-) 010 – 09।
पूववय िी अशद्धु लि

111
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

7s - 240 - 14। - 24।।


(-) 010 - 09। - 00।।
7s - 230 - 05। - 24।। (लि स्पष्ट)

अथायि तदनाङ्क 13/01/2020 को उज्ज ैन में 04:45 am पि वृतिक लि उतदि थी।
इसी साम्पातिक काल से दशम िाव की सातिणी िािा दशम िाव िी ज्ञाि हो िािा है।
Tenth House की सातिणी में →

11h - 48m 5s - 030 - 44।


11h - 44m 5s - 010 - 38।
(-) (-)
4m 010 - 06। = 66।

∵ 4m → 66।
∴ 1m → 66 = 16.5।= 16। - 30।।
∴ 1s → 16.5।।
44s → 16.5 X 44 - 726।।

1m - 44s 16 - 30
+ 726
16 - 756
+12 (-)720
28। - 36।।

यह मान 11h - 44m के मान में िोड़ने पि -


11h : 44m : 00s 5s - 020 - 38। - 00।।
+ 1m : 44s + 28। - 36।।

112
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

11h - 45m - 44s 5s - 030 - 06। - 36।।


(-) 010 - 09। - 00।।
5s - 010 - 57। - 36।। दशम लि स्पष्ट

अथायि 13/01/2020 को उज्ज ैन में 04 : 45 am पि कन्या लि खमध्य में थी।
दतक्षणी अक्षांश में लि
हमें ज्ञाि है, तक चिखण्डों को लङ्कोदय मानों में पहले क्रम से ऋण िथा उत्क्रम से

िन किने की प्रतक्रया उििी अक्षांश हेि ु है। दतक्षणी अक्षांश हेि ु पहले िन िथा पिाि ऋण किने
् ं देशोदय तनमायण का सूत्र होगा -
पि देशोदय बनेंग।े अथायि वहॉ
लङ्कोदय चिखण्ड देशोदय
278 + I = मेष मीन
299 + II = वृषि कुम्भ
323 + III = तमथनु मकि
323 - III = ककय िन ु
299 - II = वसह वृतिक
278 - I = कन्या ु ा
िल
यहॉ ं यह स्पष्ट होिा है, तक उििी अक्षांश पि िो मान मेष का है, दतक्षणी अक्षांश में वह
कन्या का है। ऐसे ही अन्य िातशयों के उििी अक्षांश के देशोदय मान दतक्षणी अक्षांशों हेि ु छठी-
छठी िातशयों के मानों के समान हैं । ऐसे में यतद उििी अक्षांश के उदयमानों से ही दतक्षणी अक्षांश
स्थान की लि ज्ञाि किना हो िो सिल उपाय है, तक पहले घटना के समय में 12 घण्टे िोड़ या
् लि में से 6 िातश घटा लेवें।
घटा लि ज्ञाि किें । ित्पिाि प्राप्त
ऐसे ही साम्पातिक काल तवति में िी सातितणयॉ ं उििी अक्षांशों पि आिातिि होने से पहले
साम्पातिक काल में 12h िोड़िे या घटािे हैं िथा प्राप्त लि स्पष्ट में से छह िातश घटाने पि वहॉ ं की
लि स्पष्ट होिी है।
ससति िादशिाव स्पष्टीकिण
ु लिोनिययि:।।
सषड्भे लिखे िायाियौ ु
ु :ु सतििग्रे षष्ठांश योिनाि।्
षष्ठांऽशयक्तन
ु खाि
त्रय: ससियो िावा षष्ठांशोन ैकयक्स ्
ु ।।
ु पिेऽतप षट ्। 1
अग्रे त्रय: षडेवं िे िाद्धय यक्ता:

1
िातिक नीलकण्ठी - 1/24-26

113
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


अथायि लि ु िाव
में 6 िातश िोड़ने पि सप्तम िथा दशमिाव में 6 िातश िोड़ने पि चिथय
ु िाव में से लि को घटाकि 6 का िाग देन े पि षष्ठांश (िसांश) की प्रातप्त
की प्रातप्त होिी है। चिथय
होिी है। (चूताँ क िीन िातश में िीन िाव औि िीन सति ज्ञाि किनी थीं अि: 6 का िाग लगाया)
ु पन:
इस षष्ठांश को लि में िोड़ने से प्रथम िाव सति प्राप्त होिी है। इस प्रकाि पन: ु षष्ठांश
िोड़िे िाने से सति सतहि िीन िाव प्राप्त हो िािे हैं ।
अतग्रम िीन िातश ज्ञाि किने हेि ु षष्ठांश को एक िातश में से घटाकि प्राप्त सङ्ख्ा (पूिक
ु िाव में िोड़ तफि क्रमश: पन:
षष्ठांश) को चिथय ु पन:
ु िोड़ने पि अगले िीन िाव सति सतहि स्पष्ट
ु विी िाव िी स्पष्ट िो िाएाँग।े
हो िािे हैं । इन 6 िाव, 6 सतियों में 6 िातश िोड़ने पि इनके सम्मख
वैस े पूिक िसांश (षष्ठांश) बनाये तबना िी िाव स्पष्टीकिण सहि ही हो िािा है। इसके सूत्र
हैं -
िृिीय सति + 1 = चिथु य सति
िृिीय िाव + 2 = पञ्चम िाव
तििीय सति + 3 = पञ्चम सति
तििीय िाव + 4 = षष्ठ िाव
प्रथम सति + 5 = षष्ठ सति
इन सूत्रों को हम एक तचत्र की सहायिा से समझ सकिे हैं । इस तचत्र में िावों को िोमन
अङ्कों िथा सतियों को िोमन अङ्क पि खड़ी पाई लगा कि दशायया गया है। तचत्र से स्पष्ट है तक लि
िथा चिथु य िाव के मध्य 900 से कम अन्ति है। अि: षष्ठांश 150 से कम िहेगा, िबतक चिथय

औि सप्तम के मध्य 900 से अतिक अन्ति होने से पूिक षष्ठांश 150 से अतिक होगा। इसका कािण
ु का अन्ति 900
है लि का देशोदय िथा दशमिाव का लङ्कोदय मानों से सम्बि। िब लि चिथय

से अतिक होगा िो चिथय-सप्तम का 900 से कम होगा।
ु िाव के एक ओि षष्ठांश है औि दूसिी ओि पूिक षष्ठांश, तिनका
तचत्र में स्पष्ट है, तक चिथय
योग एक िातश है। अथायि III' ् + 1 = IV''
इसी प्रकाि िृिीय िाव औि पञ्चम िाव के मध्य दो षष्ठांश औि दो पूिक षष्ठांश हैं अथायि ्
दोनों का अन्ति दो िातश का है। इसी प्रकाि अन्य िाव औि सतियों का सम्बि िी िाना िा
सकिा है।
उदा. क्र. 1
लि स्पष्ट = 07s - 230 - 53। - 23।।
दशम िाव स्पष्ट = 05s - 050 - 19। - 43।।

114
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

+ 6
ु िाव
चिथय = 11s - 050 - 19। - 43।।

ु िाव से लि घटाने पि
चिथय
11s - 050 - 19। - 43।।
- 07s - 230 - 53। - 23।।
03s - 110 - 26। - 20।। = 1010 - 26। - 20।।

= 1010 - 26। - 20।। = 101.438–0


20/60
= 0.33
+ 26
26.3/60
= 0.438
101.438–0
इसमें 6 का िाग लगाने पि
160 - 54। - 23।। षष्ठांश

16.9064.......
-16 = 0.9064....
X 60 = 54.38– - 54 = 0.38
X 60 = 23.3–

षष्ठांश को लिातद में क्रमश: िोड़ने पि -


लि
7s - 230 - 53। - 23।।
+ 0s - 160 - 54। - 23।।
8s - 100 - 47। - 46।। प्रथम सति

115
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

+ 0s - 160 - 54। - 22।।

8s - 270 - 42। - 09।। तििीय िाव

+ 0s - 160 - 54। - 23।।

9s - 140 - 36। - 32।। तििीय सति

+ 0s - 160 - 54। - 23।।

10s - 010 - 30। - 55।। िृिीय िाव

+ 0s - 160 - 54। - 23।।

10s - 180 - 25। - 18।। िृिीय सति

+ 0s - 160 - 54। - 23।।

11s - 050 - 19। - 41।। चिथु य िाव

ु िाव में पूवज्ञ


षष्ठांश से प्राप्त चिथय ु िाव से कतिपय तवकला का ही अन्ति सम्भव है। यतद
य ाि चिथय
ु है। यहॉ ं मात्र
अतिक अन्ति आ िहा है िो इसका अथय है, तक षष्ठांश अशद्धु है अथवा योग में कहीं कोई त्रतट
ु िाव में है।
2 तवकला का ही अन्ति चिथय

116
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ससति िादशिाव स्पष्टीकिण बोिक चक्र


िाव I I। II II। III III। IV IV। V V। VI VI।
िा 07 08 08 09 10 10 11 11 00 00 00 01
अं 23 10 27 14 01 18 05 18 01 14 27 10
क 53 47 42 36 30 25 19 25 30 36 42 47
तव 23 46 09 32 55 18 43 18 35 32 09 46
िाव VII VII। VIII VIII। IX IX। X X। XI XI। XII XII।
िा 01 02 02 03 04 04 05 05 06 06 06 07
अं 23 10 27 14 01 18 05 18 01 14 27 10
कं 53 47 42 36 30 25 19 25 30 36 42 47
तव 23 46 09 32 35 18 43 18 35 32 09 46

ग्रहस्पष्टीकिण
ु तसद्धान्त अथवा किण ग्रन्थों में कतथि ग्रहस्पष्टीकिण प्रतक्रयाऍं
पञ्चाङ्ग तनमायण में प्रयक्त
सवयसािािण के तलए ितटल प्रिीि होिी हैं , तकन्त ु कुण्डली तनमायण आतद में िो िात्कातलक ग्रह
स्पष्ट तकये िािे हैं , वे पञ्चाङ्ग में तदये गये ग्रहों के िातश - अंशातद मानों के सहयोग से ज्ञाि तकये िािे
हैं । सामान्यि: पञ्चाङ्गों में एक सप्ताह के अन्ति से तकसी एक तदन, तकसी तनयि इष्टकाल के ग्रह स्पष्ट
तलखे होिे हैं । इस ग्रह स्पष्ट -िातलका को पति अथवा प्रस्ताि कहिे हैं । सवयप्रथम हम अपने अिीष्ट
समय से तनकटविी प्रस्ताि का चयन कि चालन बनािे हैं । चालन तनमायण का तनयम है -
प्रस्तािस्त ु यदाऽग्रे स्यातदष्टं संशोियेदृणम।्
् 249
इष्टकालो यदाऽग्रे स्यात्प्रस्तािं शोियेद्धनम।।
अथायि ्यतद प्रस्ताि आगे (ितवष्यत्कालीन) हो िो उसमें से इष्ट पति को घटाने पि ऋण

चालन बनिा है। औि यतद इष्टकाल आगे हो (अथायि प्रस्ताि िूिकातलक हो) िो उसमें से प्रस्ताि
को घटाने पि िन चालन बनिा है।

249
स्व. पं सर्
ू प्र
य साद शर्ाय, ज्र्ोतिषाचार्य, ससरोंज की हस्िसिखिि पस्ु स्िका से

117
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

आगे, इस तवति से चालनावति में ग्रह के िो अंशातद प्राप्त होिे हैं , यतद ऋण चालन हो िो उन्हें
प्रस्तािस्थ ग्रह से घटा देि े हैं िथा िन चालन में प्रस्तािस्थ ग्रह में िोड़ देि े हैं ।
ग्रह यतद वक्री हो िो िन चालन में घटािे िथा ऋण चालन में िोड़िे हैं । िाहु-के ि ु सदैव
वक्री होने से उन्हें सदा चालन के तवपिीि ही िोड़ा - घटाया िािा है।
ग्रह स्पष्टीकिण को प्रतक्रया बिाने हुए आचायय नीलकण्ठ तलखिे हैं -
गि ैष्यतदवसाद्येन गतिर्तनघ्नी खषड ् हृिा।
लब्धमंशातदकं शोध्यं योज्यं स्पष्टो िवेद्ग्रह:।।250
् या िावी तदवसातद (अथायि चालन)
अथायि गि ् ु किके 60 का िाग
को ग्रहगति से गणा

देन े पि िो अंशातद प्राप्त होिे हैं , उन्हें (चालनानसाि) घटाने या िोड़ने पि ग्रह स्पष्ट होिा है।
ु तवति ही है। ग्रह गति का अथय है 60
ग्रह स्पष्टीकिण की यह प्रतक्रया वास्तव में अनपाि
ु कलातद।
घटी (1 अहोिात्र = 24 घण्टा) में ग्रह िािा िक्त
60 घटी में→ ग्रह गति िोग
=> 1 घटी में → ग्रहगति िोग
60

अिीष्ट घटी में → ग्रहगति X अिीष्ट घटी िोग


60

ु किने के कािण पल
इस प्रतक्रया में ग्रह गति के कला औि तवकला से चालन के अङ्कों का गणा

स्थानीय कला गतणि ु
मान, घटी स्थातनक तवकला गतणि मान का सिािीय होने से दोनों के योग के पिाि ्

साठ से िाग लगाया िािा है। यही तस्थति घटीस्थानीय कलागतणि ु
िथा तदन स्थानीय तवकला गतणि मानों
की िी होने से, तिययक ् योग की तस्थति बनने से एक तिग ि ैग (z) संिचना दृतष्टगोचि होिी है। अि: इसे
गोमूतत्रका िीति िी कहिे हैं ।

250
िास्जकनीिकण्ठी 1/18

118
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

उदाहिण- तदनाङ्क 18/04/2020, शतनवाि को प्राि: 10:11 बिे सूय य स्पष्ट कीतिए, िबतक
सूयोदय प्राि: 06:09 बिे है। सूय य गति 58। - 27।।

हल - सवयप्रथम इष्टकाल ज्ञाि कििे हैं -


10 : 11
(-) 06 : 09
04 : 02
(+)04 : 02
(+)02 : 01
= 10 : 05 इष्टकाल

चूताँ क शतनवाि का क्रमाङ्क 7 है अि: इष्ट पति →

तदन घटी पल
7 - 10 - 05

ु 40 घटी
पञ्चाङ्ग में देखने पि तदनाङ्क 20/04/2020, सोमवाि को 22/28 बिे िदनसाि
52 पल इष्ट की पति तनकटस्थ है। चूताँ क प्रस्ताि आगे है अि: इसमें से इष्ट पति को घटाने पि ऋण
ु ् सोमवािाङ्क
चालन प्राप्त होगा। यहााँ सोमवाि का अङ्क 2 शतनवाि के अङ्क 7 से कम है अि: सप्तयक
से घटाने का कायय तकया -

तद घ प
9 - 40 - 52 प्रस्ताि
(-) 7 - 10 - 05 इष्ट
2 - 30 - 47 ऋणचालन

119
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


अब चालन के िीनों अङ्कों में ग्रहगति का गणाकि 60 से िाग देना है -

2 30 47
X 58/27 X 58/27 X 58/27
116 1740 2726
54 810 1269

सिािीय सिािीय


पल स्थानीय तवकलागतणि मान से प्रािम्भ कि लतब्ध आगे प्रयोग किके शेष क्रमश: तलख लें ग।े

60 ) 1269 ( 21
120
69
60
9

2726
+ 810
+ 21
60 ) 3557 ( 59
300
557
540
17

120
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

1740
+ 54
+ 59
60 )1853 ( 30
180
53

116
+ 30
60 ) 146 ( 2
120
26

शेष 26/53/17/09

उपति तलतखि शेष पति में से अतन्तम दो त्याज्य हैं । अि: प्राप्त अंशातद हैं -

20 - 26। - 53।।
ऋण चालन होने के कािण पतिस्थ सूय य में से यह मान घटाया -
0s - 060 - 50। - 07।।
(-) 020 - 26। - 53।।
0s - 040 - 23। - 14।। सूय य स्पष्ट

121
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु का ज्ञान कै लकुलेटि िािा दशमलव पद्धति में िी तकया िा सकिा


चालन से ग्रह ितक्त
है। हमािा चालन है -
तदन घटी पल
2- 30 - 47
ु कि 30 में िोड़िे हैं , क्योंतक 2 तदन में 120
इसे घट्यात्मक बनाने हेि ु 2 में 60 का गणा
घटी ही होंगी। 47 पल षातष्टक पद्धति में है, िबतक कै लकुलेटि दशमलव पद्धति पि कायय कििा
है। तकसी अन्य पद्धति को दशमलव पद्धति में लाने हेि ु उस सङ्ख्ा से िाग दे देि े हैं । इसके तवपिीि
ु किने पि मान अिीष्ट पद्धति
दशमलव पद्धति के दशमलवोिि अङ्कों में उस पद्धति की सङ्ख्ा से गणा
में पतिवर्तिि हो िािा है।
यथा
2घ 30पल को दशमलव पद्धति में लाना है, िो → (30/60 = 0.5) + 2 = 2.5 घटी।
घटी
ऐसे ही 2.5 - 2 = 0.5 × 60 = 30 पल

हमािे उदाहिण में


47/60 = 0.783333 = 0.783–
िो चालन = 30.783–
+ 120
150.783– घटी

ग्रह गति (सूय य की) = 58। - 27।।


27
= 45
60

अिः सूयगय ति = 58. 45।

122
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु कििे हैं -
अब अनपाि
60 घटी में → 58.45।

िो 1 घटी में → 54.45।


60

150.783– घटी में → 150.783– X 58.45


कला
60

= 146.8880…. कला
- 146
0.8880….
X 60
53.28…. ≈ 53।।

60 ) 146।( 20
120
26।


चालन काल में ग्रहितक्त= 20 - 26। - 53।।
यही मान गोमूतत्रका िीति से आया था।
चन्द्रमा को छोड़, ग्रह स्पष्टीकिण की यह तवति अन्य समस्त ग्रहों के तलए उपयोगी है। चूताँ क चन्द्र
ु लेन े पि अशतद्ध
गति अतिक होिी है, अि: 3 - 4 तदन का अनपाि ु की सम्भावना बढ़ िािी है।
अि: पािम्पतिक ज्योतिषी चन्द्रमा को ियाि - ििोग की सहायिा से ज्ञाि कििे थे। हॉ ं वियमान में
ु तवति से
दैतनक ग्रहस्पष्टीकिण प्राय: प्रत्येक पञ्चाङ्ग में तमल िािा है, ऐसे में चन्द्रमा को िी अनपाि
ु की सम्भावना न्यून है।
ज्ञाि किने में अशतद्ध

123
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

वियमान में पञ्चाङ्गों में 5:30 am के ग्रह स्पष्ट तदये होिे हैं । वास्तव में ग्रीनतवच वेिशाला
से प्राप्त सायन ग्रहमानो में से अयनांश घटाकि तनियण ग्रह तलखे िािे हैं । ग्रीनतवच वेिशाला से
प्रकातशि ग्रहमान वहॉ ं अद्धयिातत्र के समय के होिे हैं औि िािि वहॉ ं से पूव य में होने से िाििीय
मानक िेखांश पि 05:30 am होने से इस समय के ग्रह स्पष्ट तमलिे हैं । अनेक पञ्चाङ्गों में ग्रहगति
नहीं दी होिी। ऐसे में तिस तदन ग्रह स्पष्टीकिण किना है, उसके अगले तदन के ग्रहमान में से वियमान
तदन का मान घटाने पि ग्रह गति ज्ञाि हो िाएगी। घटी पल के स्थान पि हम सीिे घण्टा - तमनट
से िी ग्रह स्पष्ट कि सकिे हैं । यथा
तदनाङ्क 03/07/2019 को सूय य स्पष्ट 02s - 160 - 41। - 15।।
02/07/2019 को सूय य स्पष्ट 02s - 150 - 44। - 02।।
घटाने पि 57। - 13।। सूय य गति

यतद तदनाङ्क 02/07 को अपिाह्ण 03:51 पि िात्कातलक सूय य ज्ञाि कििा है िो -

3 : 51
+ 12 : 00
15 : 51
- 5 : 30
10h : 21m
= 10.35h
सूय य गति = 57। - 13।।
= 57.216।

24h → 57.216–

िो 10.35h में → 57.216–×10.35


24

124
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

= 24.67….
= 24। -40।।

02/07 के मान में िोड़ने पि

02s - 150 - 44। - 02।।


+ 24। - 40।।
02s - 160 - 08। - 42।। सूय य स्पष्ट

ियाि औि ििोग
ि का अथय है नक्षत्र। ि-िोग अथायि ्सम्पूण य नक्षत्र का सम्पूण य घटी-पलात्मक िोग। इसे

सवयक्ष य (सवय+ऋक्ष) िी कहिे हैं । ि-याि अथायि इष्टकाल िक बीिा हुआ घटी-पलात्मक नक्षत्र मान।
इसे गिक्षय (गि+ऋक्ष) िी कहिे हैं । सामान्यिः एक नक्षत्र दो अहोिात्रों को स्पशय कििा है अथवा
कहें तक एक नक्षत्र को दो अहोिात्र स्पशय कििे हैं । सवयप्रथम इष्टकाल में कौन सा नक्षत्र वियमान है,
् घटी में से गि नक्षत्र के मान को घटाने पि वियमान नक्षत्र का प्रथम
यह ज्ञाि कििे हैं । ित्पिाि 60
तदवस का मान ज्ञाि होिा है। इसमें तििीय तदवस का वियमान नक्षत्र मान िोड़ने पि ििोग की
प्रातप्त होिी है। यतद इष्टकाल नक्षत्र के प्रथम तदवस खण्ड में है िो उसमें से गिनक्षत्र को घटाने पि
ियाि का मान ज्ञाि होिा है। यतद इष्टकाल नक्षत्र के तििीय तदवसखण्ड में है िो उसमें प्रथम तदवस
खण्ड (60 - गिनक्षत्र) मान को िोड़ने पि ियाि प्राप्त होिा है।
उदाहिणाथय पञ्चाङ्ग में नक्षत्र मान इस प्रकाि हैं -
उदाहिण क्र.1
ितववाि → कृ तिका 35-05 (घटी-पल)
सोमवाि → िोतहणी 39-15 (घटी-पल)
ितववाि इष्ट 45-49 िथा सोमवाि इष्ट 11-51 होने पि दोनों ही समय िोतहणी वियमान है।
पञ्चाङ्ग में िोतहणी 39-15 का अथय है सूयोदय से इिने घटी-पल िक िोतहणी नक्षत्र िहा।

125
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ििोग ज्ञाि किना


घटी पल
60 - 00
(-) 35 – 05 ( गि नक्षत्र कृ तिका का मान)
24 - 55 ्
(िोतहणी का प्रथम तदन अथायि ितववाि का मान)

24 - 55

+ 39 - 15 ( िोतहणी का तििीय तदवस अथायि सोमवाि का मान )

64 - 10 (ििोग-सवयक्ष य = िोतहणी का कुल मान)

ितववािीय इष्ट 45 - 49 िो ियाि =>


घटी पल
45 - 49
( -) 35 – 05 ( गि नक्षत्र कृ तिका का मान)
10 - 44 ियाि (1.1)

सोमवािीय इष्ट 11 - 51 िो ियाि =>

24 - 55 ( िोतहणी का ितववाि को बीिा मान)


(-) 11 – 51 (िोतहणी का सोमवाि इष्टकाल िक बीिा समय)
36 - 46 ियाि (1.2)
यतद नक्षत्र वृतद्ध अथवा क्षय हो िो ियाि - ििोग तनकालने में साविानी िखनी चातहए। िब एक
नक्षत्र िीन अद्धयिात्रों को स्पशय किे िो उसे नक्षत्रवृतद्ध औि िब एक अहोिात्र में िीन नक्षत्र स्पशय किें िो उसे
नक्षत्र क्षय के नाम से सिलिा हेि ु पकािा
ु गया है।

126
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

उदाहिण क्र. 2

ितव - कृ 58 – 05
सोम - िो 60 – 00 इष्ट सोमवाि को 35 - 55
मङ्गल - िो 02 – 15 मङ्गलवाि को 01 - 10
िब ििोग 60 - 00
(-) 58 - 05 (गि नक्षत्र कृ तिका का मान)
01 - 55 ( ितववािीय िोतहणी मान)

01 – 55 (ितववािीय िोतहणी मान)


+ 60 – 00 सोमवािीय िोतहणी मान)
+ 02 - 15 (मङ्गलवािीय िोतहणी मान)
64 – 10 ििोग - ( 2.1)

सोमवािीय इष्ट हेि ु ियाि


01 - 55 (ितववािीय िोतहणी मान)
+ 35 - 55 (इष्टकाल िक सोमवािीय िोतहणी मान)
37 - 50 ियाि - ( 2.1)

मङ्गलवािीय इष्ट हेि ु


01 – 55 (ितववािीय िोतहणी मान)
+ 60 – 00 सोमवािीय िोतहणी मान)
+ 01 - 10 (मङ्गलवाि को इष्टकाल िक िोतहणी मान)
63 – 05 ियाि - ( 2.2)

उदाहिण क्र. 3

ितववाि कृ तिका → 01-50 इष्ट ितववािीय


ितववाि िोतहणी → 58-05 (1) 39-51

127
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सोमवाि मृगतशिा → 57-10 (2) 58-55

ििोग
58-05 क्योंतक िोतहणी का मान 01-50 से 58-05
(-) 01-50 िक था, उसके ऊपि मृगतशिा नक्षत्र है।
56-15 ििोग (3)

ियाि
इष्ट (1) → 39-51
(-) 01-50
38-01 ियाि (3.1)

इष्ट (2) → 58-55


(-) 58-05. (गिनक्षत्र िोतहणी का मान)
00-50 ियाि (4.1) मृगतशिा

ििोग (4) → 60-00


(-) 58-05 (गि नक्षत्र का मान)
01-55 (प्रथम तदवस मृगतशिा का मान)

01-55
(+) 57-10 (तििीय तदवस मृगतशिा मान )
59-05 ििोग (4)

ु श तनकाल तिस चिथां


चिण ज्ञान - ििोग का चिथां ु श में ियाि होिा है वही नक्षत्र चिण होिा
है।
ियाि - ििोग िािा चन्द्रस्पष्टीकिण
आचायय नीलकण्ठ के शब्दों में तवति इस प्रकाि है -

128
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ृ ं िि ्
खषड्घ्घ्नं ियािं ििोगोद्धि
ु ं तितनघ्ननम।्
खिकय घ्नतिष्ण्येष ु यक्त
य ु ितक्तः
नवाप्तं शशी िागपूवस्त ु
खखाभ्राष्टवेदा ि िोगेन िक्त:।।251

अथायि ियाि ् 60 का गणा
में ु कि ििोग से िाग दें। िो लतब्ध आये उसमें अतश्वन्यातद गि

नक्षत्र सङ्ख्ा के 60 गतणि ु
मान में िोड़ें। सम्पूण य मान में 2 का गणाकि 9 का िाग देन े पि चन्द्रमा
के अंशातद प्राप्त होिे हैं । अंशों में 30 का िाग लगाकि िातश बना लेनी चातहए। 48000 में ििोग
का िाग लगाने पि चन्द्रगति प्राप्त होिी है।
यहॉ ं षतष्ट गतणि
ु ियाि में ििोग का िाग लगाना अथायि ् ियाि को 60 के अनपाि
ु में
ु तकया गया
लाना, क्योंतक गि नक्षत्र िी 60 घटी के ही माने हैं , ििी िो नक्षत्र सङ्ख्ा में 60 का गणा
है।
ििोग घटी में → ियाि घटी
1 घटी में ियाि
→ घटी
ििोग

60 घटी में (ििोग ) में 60 X ियाि


घटी
ििोग

चन्द्र के मेषातद से = [गि नक्षत्र सङ्ख्ा×60+(ियाि/ििोग)×60] ×2


ु अंश
िक्त 9

251
िातिक नीलकण्ठी 1/9

129
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अब यह 2/9 क्यों आया? इसे देखिे हैं । चन्द्रमा एक अहोिात्र अथायि ्60 घटी में
मध्यम मान से एक नक्षत्र चलिा है।
60 घटी में पल = 60 X 60=3600 पल
एक नक्षत्र में कला
=> 13×60 (क्योंतक एक नक्षत्र 130-20। का होिा है)
780
(+) 20
800 कला

3600 पल में -> 800 कला


1 पल में -> 800 2 2 कला
3600 9 = 9

इसी प्रकाि एक घटी में → 2 अंश


9
(क्योंतक घटी-पल औि अंश-कला में 60 की ही पद्धति है।)

∵ 1 घटी में → 2 अंश


9

िो अिीष्ट घटी में → 2 X अिीष्ट घटी


9

यहॉ ं अिीष्ट घटी 60 के अनपाि


ु में मेषातद से गि घतटयॉ ं ही हैं ।
चन्द्रगति सूत्र की उपपति
् एक
हमें ज्ञाि है, तक एक नक्षत्र का मान 130-20। = 800। है। ििोग अथायि उस
नक्षत्र को 800। िोगने में चन्द्रमा को लगा घटी पलात्मक समय। िब चन्द्रमा की गति िीमी होिी

130
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

है, िो यह 800। चलने में कुछ अतिक समय लेिा है, अि: ििोग मान औसि 60 घटी से अतिक
आिा है, िबतक चन्द्र गति अपेक्षाकृ ि िीव्र होने पि 800। िोगने में उसे कम समय लगिा है औि
ििोग मान 60 घटी से कम होिा है।
गति िानने हेि ु हम 60 घटी के अनपाि ् घटी
ु में देखिे हैं क्योंतक एक अहोिात्र अथायि 60
ु का नाम ही ग्रहगति है।
में हुई ग्रहितक्त
ििोग घटी में 800 कला
800
1 घटी में कला
ििोग घटी

800 X 60 = 48000
60 घटी में ििोग
ििोग

↑गतिसूत्र

उदा. (1) तदनाङ्क 13/01/2020, उज्ज ैन में 04:45 am IST


पूव य में ज्ञाि िथ्य -
इष्टकाल = 53 घटी 48 पल
सोमवाि 13/01/2020 आश्लेषा 6 घटी 45 पल
मङ्गलवाि 14/01/2020 मघा 1 घटी 43 पल
चूताँ क इष्टकाल आश्लेषा समातप्त के मान से अतिक है अि: घटना के समय मघा नक्षत्र वियमान
है।

ििोग

60-00
(-) 06-45 (गि नक्षत्र मान)
53-15 (सोमवाि को मघा का मान)
=> 53-15

131
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

(+) 01-43 (मङ्गलवाि को मघा का मान)


54-48 ििोग (सवयक्ष)य

ियाि
53-48
(-) 06-45
47-03 ियाि (गिक्षय)

54 - 58 का आिा → 27-29
27 - 29 का आिा → 13-30-00
(+) 14-30
13-44-30 ु श)
(ििोग का चिथां
13-44-30
(+) 27-29-00
41-13-30 (ििोग का तत्रपादमान)

00-00-00 → 13-44-30 िक I चिण


13-44-30 → 27-29-00 िक II चिण
27-29-00 → 41-13-30 िक III चिण
41-13-30 → 54-58-00 िक IV चिण

ु चिण वियमान है।


अि: ियाि 47 घटी 03 पल होने से मघा का चिथय
चन्द्रस्पष्टीकिण उदाहिण
इस तवति में ियाि औि ििोग पलात्मक लेन े पि गतणि सहि हो िािा है। अि:
ििोग = 54 घटी 58 पल ियाि = 47 घटी 03 पल

132
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

54 X 60 47 X 60
32040 2820
+ 58 + 03
3298 ििोग पल 2823 ियाि पल

ु में लाना
Step - I ियाि को 60 घटी के अनपाि

60 घटी अथायि 3600 पल
3298 पल ििोग में - 2823 पल ियाि
3600 पल ििोग में - 3600 X 2823
3298
= 3081.50….. पल
= 3081 पल 30 तवपल

60) 3081 ( 51
(-)300
81
(-) 60
21 ु में )
∴ पक्का गिक्षय (60 के अनपाि
= 51 घटी 21 पल 30 तवपल

ु में मान
Step - II तवगि नक्षत्रों का 60 घटी के अनपाि
चूताँ क आश्लेषा िक अतश्वन्यातद गणना में 9 नक्षत्र िा चकेु हैं अि:
9 X 60 = 540 अतश्वन्यातद से गि घतटयॉ ं ( 60 के अनपाि ु में)

ु किना
Step - III वियमान नक्षत्र औि ग्रह नक्षत्र िक की घतटयों को िोड़ दोगना
घटी - पल - तवपल
540 - 00 - 00
(+) 51 - 21 - 30
(591 - 21 - 30)×2

133
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

1182 - 42 - 60
( +)01 (-)60
1182 - 43 - 00
9 का िाग लगाने पि (ध्यान िखें तक िाग सदैव बड़ी इकाई की औि से प्रािम्भ किें )
9)1182(131 अंश
9
28
27
12
9
3×60 (पल बनाये)
180
(+) 43 (पूव य के पल िोड़े)
9) 223 (24 कला
18
43
36
7×60 (तवपल बनाये, चूताँ क पूव य के कोई तवपल न थे अिः िोड़ने की आवश्यकिा न हुई)
9) 420 (46 तवकला
36
60
54
6
अब चूताँ क अंश 30 से अतिक, अिः 30 का िाग देकि िातश बनाएाँग े

30) 131 (4 िातश


120
11 अंश

134
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अिः 4s - 110 - 24। - 46।। चन्द्रस्पष्ट

चन्द्रगति सािन

48000
सूत्र =
ििोग


सतविा ु किें ग।े
की दृतष्ट से यह गतणि िी पल में किना उतचि है अि: 48000 में िी 60 का गणा
48000 X 60 = 2880000

2880000
चन्द्रगति =
3298

= 873.256….– =873'-15''

चूताँ क चन्द्रमा अपनी मध्यम गति 800' से अतिक गति से चल िहा है, अि: 800'
के नक्षत्र मान को िोगने में उसे 60 घटी से कम 54 घटी 58 पल लगे।
ववशोििी दशा
ु दंश िाि ु से तनष्पन्न है िो तक िीवन की
दशा शब्द काटने, डंक मािने के अथय में प्रयक्त
ु होिी है। ज्योतिष में गोचि फल िो िातश आिातिि
दशा, काल िथा पतितस्थति के अथय में प्रयक्त
होने से एक िातश के समस्त िािकों पि समान प्रिाव प्रदर्तशि कििा है, तकन्त ु संसाि में सिी की
पतितस्थतियााँ एक सी नहीं होिीं, अिः व्यतक्त तवशेष के िीवन में ििकातलक लि औि ग्रहों से
ु िु योगों का फल कब-कब तमलेगा, इस सूक्ष्म अध्ययन हेि ु तवतवि दशा पद्धतियााँ
बनने वाले शिाश
प्रकाश में आयीं, तकन्त ु उन सब में ववशोििी दशा महत्त्वपूण य है ऐसा स्वयं पिाशि का मि है–
दशाः बहुतविास्तास ु मख्या
ु ववशोििी मिा।।252

252
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्र 45/2

135
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ववशोििी दशा कतलयगु में मख्य


ु रूप से मान्य है क्योंतक कतलयगु में यही (120 वषय) मनष्य

की पिमाय ु है। ऐसा स्वयं आचायय पिाशि का मि है;-
कलौ ववशोििी ज्ञेया दशा मख्याु तििोिम।।
ववशोििशिं पूणमय ायःु पूवम ु
य दाहृिम।् 253
ु एक नक्षत्र आिातिि दशा पद्धति है। इसमें नवग्रहों की दशाएाँ होिी
ववशोििी दशा वस्तिः
हैं । उनके क्रम औि वियमान के तवषय में पिाशि तलखिे हैं –
कृ तिकािः समािभ्य तत्रिावृत्य दशातिपाः।
सूयन्दु ु िमो वाक्पति मन्दगौ।।
े िूतमपत्रि
ु िू कतवि ैिे क्रमाज्ज्ञेयादशातिपाः।
बिके
दशा समाः क्रमादेषां षड्दशाश्वागिेन्दवः।
िूपतिन यवचन्द्राि नगचन्द्रा नगा नखाः।।254
अथायि कृ् तिका से प्रािम्भ कि 9-9 नक्षत्रों की िीन आवृतियों में क्रमशः सूय,य चन्द्र, मङ्गल,
ु शतन, बि,
िाहु, गरु, ु के ि,ु शक्र,
ु ये दशा स्वामी होिे हैं । इनके दशावषय क्रमशः 06 (षट ्),10 (दश),
7 (अश्व), 18 (गिेन्दु ← गि 8, इन्दु 1), 16 (िूपति), 19 (नवचन्द्र), 17 (नगचन्द्र), 7 (नग),
20 (नख) होिे हैं ।आगे सािणी प्रस्तिु है–
दशास्वामी सूय य चन्द्र मङ्गल िाहु गरुु शतन बिु के ि ु ु
शक्र योग
दशावष य 06 10 07 18 16 19 17 07 20 120
नक्षत्र कृ तिका िोतहणी मृगतशिा आद्राय ु सु
पनवय ु
पष्य आश्लेषा मघा पू.फा.
- उ.फा. हस्त तचत्रा स्वािी ु
तवशाखा अनिािा ज्येष्ठा मूल पू.षा.
- उ.षा. श्रवण ितनष्ठा शितिषा पू.िा. उ.िा. िेविी अतश्वनी ििणी

अन्तदयशा –
प्रत्येक दशा के अन्तगयि दशािीश से प्रािम्भ कि पूवोक्त क्रम से अन्तदयशाएाँ होिी हैं । इनकी
ु िािा तनिायतिि की िािी हैं । अनपाि
अवतियााँ अनपाि ु का तनयम इस प्रकाि है-

दशादशाहिा कायाय तवहिा पिमायषा।

253
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्र 45/12,13
254
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्र 45/11,12,13

136
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


अन्तदयशाक्रमादेवं तवदशाऽप्यनपाििः।।255


अथायि तिस ग्रह की दशा में अन्तदयशा ज्ञाि किनी हो उसके औि अन्तदयशश े के दशावषों

का गणाकि पिमाय ु अथायि 120् ु
से िाग देन े पि अन्तदयशा वषायतद प्राप्त होिे हैं । इसी प्रकाि अनपाि

से तवदशा अथायि प्रत्यन्ति दशावति ज्ञाि किनी चातहए। वहााँ अन्तदयशा मानों का गणा ु कि दशावषय
(ग्रह की) से िाग देन े पि प्रत्यन्तदयशा की अवति ज्ञाि होिी है।
यथा सूय य में सूयायतद की अन्तदयशा ज्ञाि किना है िो
120 वषय में →6 वषय
⇨ 6 वषय में →6 X 6 = 36_= 0.3 वषय
120 120
ु किें ग े क्योंतक 1 वषय में 12 मास
मास बनाने 12 का गणा
⇨ 0.3 X 12
3.6 मास
-3.0 (मात्र दशमलव वाला मान लेन े पि)
0.6 X 30 (क्योंतक 1 मास में 30 तदन)
=18 तदन
सूय य में सूय य का अन्ति 0 वषय 3 मास 18 तदन
पािम्पतिक तवति से इसी को ज्ञाि कििे हैं ।
120) 36 (0 वषय
शेष 36 X 12 (मास बनाये)
120)432(3 मास
360
72 X 30 (तदन बनाये)
120) 2160 (18 तदन
120
960
960
xxx

255
िीवनाथ-िावकुिूहल 16/04

137
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सूय य महादशा में चन्द्र की अन्तदयशा


120→10
6→6 x 10 = 60 = 0.5 वषय
120 120
0.5 x 12 = 6 मास
0 वषय 6 मास 0 तदन
इसी प्रकाि अन्य अन्तदयशा मान िी ज्ञाि तकये िािे हैं ।
सूयायतद ग्रहों के अन्तदयशा मान प्रस्तिु हैं –
सूय य अन्तदयशा चक्र
ग्रह सू. चं. मं. िा. ग.ु श. ब.ु के . श.ु
वषय 00 00 00 00 00 00 00 00 01
मास 03 06 04 10 09 11 10 04 00
तदन 18 00 06 24 18 12 06 06 00
चन्द्र अन्तदयशा चक्र
ग्रह चं. मं. िा. ग.ु श. ब.ु के . श.ु सू.
वषय 00 00 01 01 01 01 00 01 00
मास 10 07 06 04 07 05 07 08 06
तदन 00 00 00 00 00 00 00 00 00
मङ्गल अन्तदयशा चक्र
ग्रह मं. िा. ग.ु श. ब.ु के . श.ु सू. चं.
वषय 00 01 00 01 00 00 01 00 00
मास 04 00 11 01 11 04 02 04 07
तदन 27 18 06 09 27 27 00 06 00

िाहु अन्तदयशा चक्र


ग्रह िा. ग.ु श. ब.ु के . श.ु सू. चं. मं.
वषय 02 02 02 02 01 03 00 01 01
मास 08 04 10 06 00 00 10 06 00

138
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

तदन 12 24 06 18 18 00 24 00 18
गरुु अन्तदयशा चक्र
ग्रह ग.ु श. ब.ु के . श.ु सू. चं. मं. िा.
वषय 02 02 02 00 02 00 01 00 02
मास 01 06 03 11 08 09 04 11 04
तदन 18 12 06 06 00 18 00 06 24
शतन अन्तदयशा चक्र
ग्रह श. ब.ु के . श.ु सू. चं. मं. िा. ग.ु
वषय 03 02 01 03 00 01 01 02 02
मास 00 08 01 02 11 07 01 10 06
तदन 03 09 09 00 12 00 09 06 12
बिु अन्तदयशा चक्र
ग्रह ब.ु के . श.ु सू. चं. मं. िा. ग.ु श.
वषय 02 00 02 00 01 00 02 02 02
मास 04 11 10 10 05 11 06 03 08
तदन 27 27 00 06 00 27 18 06 09
के ि ु अन्तदयशा चक्र
ग्रह के . श.ु सू. चं. मं. िा. ग.ु श. ब.ु
वषय 00 01 00 00 00 01 00 01 00
मास 04 02 04 07 04 00 11 01 11
तदन 27 00 06 00 27 18 06 09 27
ु अन्तदयशा चक्र
शक्र
ग्रह श.ु सू चं. मं. िा. ग.ु श. ब.ु के .
वषय 03 01 01 01 03 02 03 02 01
मास 04 00 08 02 00 08 02 10 02
तदन 00 00 00 00 00 00 00 00 00

139
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


दशा-िक्त-िोग्य
हमें ज्ञाि है तक ववशोििी दशा नक्षत्रािातिि है। दशा स्वातमयों के िो वषयमान कहे
गये हैं वे पूिे नक्षत्र अथायि ्ििोग के तलए होिे हैं । ििनक्षत्र का तििना िाग बीि गया अथायि ्
ु मानी िािी है, िबतक शेष नक्षत्रमान के अनपाि
य ि आतद में िक्त
ियाि, वहााँ िक दशा पूवि ु में
दशा के िोग्य वषायतद होिे हैं । इन्हें ज्ञाि किने हेि ु आचायय पिाशि का कथन है –
दशामानं ियािघ्नं ििोगेन हृिं फलम।्
ु ् 256
तद िोग्यं मानाद ् तवशोतििम।।
दशाया िक्तवषाय
अथायि ्दशामान में ियाि का गणा
ु किके ििोग से िाग देन े पि प्राप्त फल दशा के िक्त

वषायतद का मान होिा है। दशामान में से इसे घटाने पि िोग्य दशा के वषयमासातद ज्ञाि होिे हैं ।

ु ही है –
यहााँ िी अनपाि
ििोग घटी में → दशामान
ियाि घटी में →ियाि घटी X दशामान
ििोग घटी

उदा. क्र. 1 दशा – अन्तदयशा ज्ञाि किना


तद. 13/01/2020, उज्ज ैन 04:45 am IST
ियाि = 47 घटी 03 पल = 47.05 घटी [∵ 3/60=0.05]
ििोग = 54 घटी 58 पल = 54.96– घटी [∵ 58/60=0.96–]

िि नक्षत्र मघा होने से के ि ु महादशा में िि हुआ तिसका मान 7 वषय है।
ु किने पि
अनपाि
54.96 घटी → 07 वषय 0.9918 --- x 12
=> 47.05 घटी → 07 X 47.05 = 329.35 11.9017 मास
54.96– 54.96– 0.9017.... x 30
=5.9918.....वषय = 27.052

256 बृहत्पिाशिहोिाशास्त्र 45/14

140
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

=5 वषय 11 मास 27 तदन 3 घटी 10 पल 0.052... x 60


= 3.1655….
ु दशा 5/11/27/03/10
अिः िक्त 0.1655 - - x 60
9.93 ≅ 10


िोग्य दशा = दशामान – िक्तदशा
=> वषय मास तदन घटी पल
07 - 00 - 00 - 00 - 00
(-) 05 - 11 - 27 - 03 - 10
01 - 00 - 02 - 56 - 50 िोग्य दशा
अथायि ् िि के पिाि ् के ि ु महादशा 01 वषय 00 मास, 02 तदन 56 घटी 50 पल िक
तवद्यमान िहेगी।

पािम्पतिक तवति से िक्तदशा मान ज्ञाि किने हेि ु ियाि औि ििोग के पलात्मक मान तलये िािे
हैं । हमें ज्ञाि है ियाि पल = 2823, ििोग पल = 3298

3298 → 07 वषय
=> 2823 → 07 x 2823 = 19761
3298 3298

3298) 19761 ( 5 वषय


16490
3271 x 12 (मास बनाये)
3298) 39252 ( 11 मास
3298
6272
3298
2974 x 30 (तदन बनाये)
3298) 89220 ( 27 तदन

141
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

6596
23260
23086
174 x 60 (घटी बनायीं)
3298) 10440 ( 3 घटी
9894
546 x 60 (पल बनाये)
3298) 32760 ( 9.93 ≅ 10 पल
29682
3078

चन्द्र स्पष्ट (चन्द्रमा के अंशों) से िक्तदशा ज्ञाि किना =>

चूताँ क एक नक्षत्र का गतणिीय मान


13° 20। अथायि 13.3 ् –
° है अिः
13.3–° → दशावषय
अिीष्ट अंश हेि ु → अिीष्ट अंश x दशावषय
13.3–
ि ैसे यतद चन्द्र स्पष्ट = 1s - 15° - 11।-05।।
अथायि ्वृषि िातश। चूताँ क वृषि िातश में प्रथम िीन चिण अथायि ्10° कृ तिका नक्षत्र के होिे हैं
अिः

15° -11।- 05।।


( -) 10°- 00। - 00।।
5°- 11। - 05।।

िोतहणी के अंशातद हैं , तिनसे दशा िक्तकाल सहि ज्ञाि तकया िा सकिा है।

उदा. क्र. 1 में चन्द्रस्पष्ट = 04s - 110- 24। - 46।।


चूताँ क मघा नक्षत्र वसह िातश के आिम्भ में ही है अिः

142
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु श = 11° - 24। - 46।।


मघा के िक्तां [ 46/60 = 00.76–
= 11.4127–° +24
24.76–/60
=0.4127–]
=>
13.3–→ 7 वषय
11.4127– → 11.4127–x 7 = 79.8894–
13.3– 13.3–
= 5.99170….
= 5 वषय 11 मास 27 तदन

महादशा का तनमायण =>



आितनक कम्प्यूटि कुण्डतलयों में दशा समातप्त का काल गृह के सम्मख
ु तलखा िािा है
तकन्त ु पािम्पतिक पद्धति में सामान्यिः दशा प्रवेश सातिणी बनाई िािी थी। ग्रह के सम्मख

दशावषायतद तलखकि आगे/नीचे िि संवि ्िथा ििकातलक सूय य के िाश्यातद को तलखिे थे।
ु में
चूताँ क एक वषय में सूय य 360 अंश = 12 िातश के िचक्र को िोगिा है अिः 360 तदन के अनपाि
बने वषय, मासातद मान को िोड़ना उतचि ही है। यहााँ सूय य की िातश से मास, अंश से तदन, कला से
घटी औि तवकला से पल को िोड़ा िािा है। योग किने पि 60 पल से एक घटी, 60 घटी का एक
तदन, इस प्रकाि मासातद को सीमाबद्ध तकया िािा है। महादशा प्रवेश सातिणी में िि दशा के
य ष्ट संवत्सिातद के योग से अतग्रम दशाप्रवेश काल आ िािा है। ित्कालीन संवि ्
िोग्य िाग में सूयस्प
में उिना सूय यस्पष्ट होने पि दशा का आिम्भ होिा है। िात्पयय सूय य के मासातद से है। अन्तदयशा में प्रत्येक
य ष्टातद में िोड़िे हैं ।
ग्रह के िाग को सूयस्प
उदा.क्र (1)
महादशा सातिणी
ग्रह क. शु. सू. चं. मं. िा. ग.ु श. बू.
वष य 01 20 06 10 07 18 16 19 17

िि दशा के मास 00 00 00 00 00 00 00 00 00

िोग्य वषायतद तदन 02 00 00 00 00 00 00 00 00


तलखे हैं घटी 56 00 00 00 00 00 00 00 00
पल 50 00 00 00 00 00 00 00 00
तवक्रम 2076 2077 2097 2103 2113 2120 2138 2154 2173 2190

143
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

संवि ्

सूय य िातश 08 09 09 09 09 09 09 09 09 09
अंश 29 02 02 02 02 02 02 02 02 02
कला 05 02 02 02 02 02 02 02 02 02
तवकला 34 24 24 24 24 24 24 24 24 24

इसे ऐसे समझें

34+50 = 84
(-)60
↓24
05+56+01 = 62
(-)60
↓02
29+02+01 = 32
(-)30
↓02
00+08+01 = 09
2076+01 = 2077


संवि 2077 ु
में सूय य स्पष्ट 09s - 02° - 02। - 24।। होने पि शक्रदशा ्
प्रवेश, संवि 2097
में यही सूय य स्पष्ट होने पि सूयदय शा प्रवेश, इसी प्रकाि अन्य दशा प्रवेशों को िानेंग।े
उदा.क्र (1)
ु महादशा में अन्तदयशा चक्र
शक्र

ग्र शु सू चं मं िा गु श बु के ु दशा समाप्त


शक्र
व 03 01 01 01 03 02 03 02 01 सूय य दशा का
मा 04 00 08 02 00 08 02 10 02 आिम्भ
तद 00 00 00 00 00 00 00 00 00
संव. 2077 2081 2082 2083 2084 2087 2090 2093 2096 2097

144
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सूय य िा. 09 01 01 09 11 11 07 09 07 09
अं 02 02 02 02 02 02 02 02 02 02

षड्वगय तवचाि

ज्योतिषां ग्रहनक्षत्राणां शिाऽश ु
िफलबोिकानां शास्त्रतमति ज्योतिषशास्त्रम।् शास्त्र में ग्रह
कुण्डली के िािा स्थूल से सूक्ष्म फल ज्ञान हेि ु वगय का तवचाि तकया िािा है। वगय तवचाि में षोडश
ु श, सप्तमांश,नवमांश, दशमांश, िादशांश, षोडशांश, ववशांश,
वगय (गृह, होिा, द्रेष्काण, चिथां
चिर्वु वशांश, सप्तववशांश, वत्रशांश, खवेदांश, अक्षवेदांश, षष्ट्यंश) का तवचाि तकया िािा है। तिसमें
ु रूप से तवचािणीय हैं ।
षड्वगय (गृह, होिा, द्रेष्काण, नवमांश, िादशांश एवं वत्रशांश) मख्य
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्र में इन वगों के तविागों के स्थाई स्वातमयों का िी उिे ख तकया है, ग्रह िो तनि
िातशयों के आिाि पि होिे ही हैं तकन्त ु वे तिन्न कुण्डतलयों में तिन्न प्रकाि से तस्थि होिे हैं ।
षड्वगय
तवलिहोिाद्रेष्काणनवांशिादशांशकाः।।
ु स ु सस्यिे।257
वत्रशांशकि षड्वगयः शिकमय

गृह, होिा, द्रेष्काण, नवमांश, िादशांश एवं वत्रशांश ये षड्वगय हैं , तिनका तवचाि शिकमों में
तकया िािा है। प्रत्येक वगय से तवचािणीय तवषयों को आचायय पिाशि ने इस प्रकाि कहा है -
लिे देहस्य तवज्ञानं
होिायां सम्पदातदकम।्
द्रेष्काणे भ्रािृि ं सौख्यं...।
नवमांश े कलत्राणां ...।
िादशांश े िथा तपत्रोतिन्तनं...।
वत्रशांशके ऽतिष्टफलं….।258
अथायि ् लि से शिीि का तवचाि, होिा से सम्पति, द्रेष्काण से िाई, नवांश से पत्नी
(िीवनसाथी), िादशांश से मािा-तपिा िथा वत्रशांश से अतनष्ट का तवचाि किना चातहए।
गृह (लि) तवचाि
ित्क्षेत्र ं िस्य खेटस्य िाशेयो यस्य नायकः।

257
िािकपातििाि - 1/47-48
258
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्रम -् वगयतववेचनाध्याय, श्लो. 1,2,3,5

145
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सूयन्द्व ्
े ोर्तवषमे िाशौ समे ितिपिीिकम।।
तपिििन्द्रहोिेशा देवाः सूय यस्य कीर्तििाः।
िाशेद्धं िवेद्धोिा िाििर्वु वशतिः स्मृिा।
् 259
मेषातद िासां होिाणां पतिवृतिियं िवेि।।
िो ग्रह तिस िातश का स्वामी होिा है, वह िातश उस ग्रह का गृह कहलािी है। िातशयों के
स्वामी तनम्न हैं -
ु के शक्र,
मेष-वृतिक के मङ्गल, वृष-िला ु तमथन-कन्या
ु ु ककय के चन्द्रमा, वसह के सूय,य
के बि,

िन-मीन के गरु, ्
ु मकि एवं कुम्भ के शतन स्वामी हैं । अथायि मङ्गल के मेष औि वृतिक िातश, शक्र ु
ु बिु के तमथनु एवं कन्या, चन्द्र का ककय , सूय य का वसह, शतन के मकि एवं कुम्भ
के वृष एवं िला,
गृह हैं ।
ु है। अन्य वगों की कुण्डतलयों के
लिसािन िथा िादशिावसािन की तवति कही िा चकी
तनमायण हेि ु सवयप्रथम उस वगय के तलए कही तवति से उसकी लि ज्ञाि कि लिक्रम से िातशयों के
अङ्क कुण्डतलयों में तलख तलये िािे हैं । अब ग्रहों को ििगीय तनयम से प्राप्त ग्रहों िातशयों में िख
तदया िािा है। होिा के अतितिक्त समस्त वगों की कुण्डली लिकुण्डली की िााँति बािह िावों की
बनिी है। प्रचतलि होिा कुण्डली में मात्र दो िाव होिे हैं । ऊपि के िाव को होिालि कहा िािा
है।
होिा
िाशेद्धं िवेद्धोिा इस वाक्य के आिाि पि िातश के अद्धय िाग को होिा कहा िािा है। िातश

अथायि 30º अंश,का आिा िाग 30º/2 =15º एक होिा का मान प्राप्त होिा है। अथायि 15º-15º्
अंश की एक होिा होगी। एक िातश में 2 होिा िो 12 िातशयों में 24 होिाएाँ प्राप्त होंगीं। सूयन्द्व
े ोर्तवषमे
् आिाि पि तवषम िातश की प्रथम होिा (01º-15º िक) के स्वामी सूय य
िाशौ समे ितिपिीिकम के
िथा तििीय होिा (16º-30º) के स्वामी चन्द्र होंगे। इसी ििह सम िातश में इससे तवपिीि अथायि ्
प्रथम होिा (01º-15º िक) के स्वामी चन्द्र िथा तििीय होिा के स्वामी सूय य होंगे। यही मि
ु तचन्तामतण में कुछ सिल शब्दों में कहा गया है -
महूिय
समगृहमध्ये शतशितवहोिा।
तवषमिमध्ये ितवशतशनोः सा।।260

259
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्रम-् षोडशवगायध्याय, श्लो.05-06
260
महूु ियतचन्तामतण 6/40

146
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सिलिा में समझने ध्यान िखें तक सूय य की िातश वसह तवषम (5) िबतक चन्द्रिातश ककय सम
(4) है। अिः सम िातश में पहली होिा सम अथायि ्चन्द्र की औि तवषम में पहली तवषम अथायि ्
सूय य की होगी।
होिा चक्र
होिा अंश मेष वृष तमथनु ककय ु ा वृतिक िन ु मकि कुम्भ न
वसह कन्या िल
प्रथम 1º-15º 5 4 5 4 5 4 5 4 5 4 5 4
तििीय 16º-30º 4 5 4 5 4 5 4 5 4 5 4 5

उदाहिण-
यतद लि एवं ग्रहस्पष्ट इस प्रकाि हैं िो होिातद कुण्डतलयों का क्रमशः सािन किें ग े -
िा अं क तव
ल - 01-15-18-22
सू - 06-26-41-26
चं - 08-02-49-55
मं - 07-13-20-01
ब ु - 07-11-27-54
ग ु - 11-29-20-11
श ु - 05-25-11-09
श - 03-16-12-38
िा - 02-11-34-48
के - 08-11-34-48
ु को दशायि े हैं ,
यहााँ ध्यािव्य है तक उक्त िाश्यंशातद िचक्र (िातशमण्डल) में ग्रहातद की ितक्त

अथायि तकस ग्रह ने अब िक तकिनी िातश, तकिने अंश, तकिनी कला औि तकिनी तवकला अब िक
िोग ली हैं , इसे सङ्के तिि कििे हैं । अिः गतणिागि स्पष्ट ग्रह/लि में तिस िातश का अङ्क तदया
होिा है, उससे अगली िातश वियमान होिी है। यथा लि ने एक िातश (प्रथम िातश मेष), उसके
ऊपि 15 अंश, िदुपति 18 कला औि उसके ऊपि 23 तवकला िोग ली हैं अिः वृषि लि होगी।

चूताँ क लि की िातश वृषि सम है, अिः प्रथम होिा सम अथायि चन्द्र की होगी। यहााँ 15 अंश से 18
ु हैं , अिः दूसिी होिा होगी। सम िातश में तििीय होिा होने से
कला 22 तवकला अतिक हो चकी

147
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


होिा लि सूयिय ातश अथायि वसह है। सूय य िला ्
ु िातश में 26 अंश अथायि तवषम िातश की दूसिी होिा
में हैं , इसतलए सूय य चन्द्र की होिा में होंगे। इसी प्रकाि शेष ग्रहों को देखग
ें ।े
होिाकुण्डली
िा श चं 5 ग ु श ु के

सू 4 मं ब ु

द्रेष्काण
िातश का िृिीय िाग द्रेष्काण होिा है। 30º/3 =10º अंश का एक द्रेष्काण हुआ। इस प्रकाि एक
िातश के िीन ( 1º- 10º िक प्रथम, 11º- 20º िक तििीय, 21º- 30º िक िृिीय) द्रेष्काण होिे हैं । प्रथम
द्रेष्काण उसी िातश का, दूसिा द्रेष्काण उससे पााँचवााँ िथा िृिीय द्रेष्काण उससे (ग्रह की िातश से) नवम
िातश का होिा है। इनके स्वामी क्रमशः नािद- अगतस्त िथा दुवायसा होिे हैं ।
स्वपञ्चनवमानां च िातशनां क्रमशि िे।
ु 261
नािदागतस्त दुवायसा द्रेष्काणेशाििातदष।।
द्रेष्काण चक्र
अंश मेष वृष तमथनु ककय वसह कन्या ु
िला वृतिक िन ु मकि कुम्भ मीन
1º-10º मेष वृष तमथनु ककय वसह कन्या ु ा
िल वृतिक िन ु मकि कुम्भ मीन
11º-20º वसह ु
कन्या िला वृतिक िन ु मकि कुम्भ मीन मेष वृष तमथनु ककय
21º-30º िन ु मकि कुम्भ मीन मेष वृष तमथनु ककय वसह कन्या ु ा
िल वृतिक

उदाहिण
लि वृषि िातश में 15 अंश 18 कला अथायि ्तििीय द्रेष्काण में होने से वृषि से पञ्चम

अथायि कन्या ् िीय द्रेष्काण
ु ा में 26 अंश 41 कला अथायि िृ
िातश की द्रेष्काण लि होगी। सूय य िल
में होने से द्रेष्काण कुण्डली में मकि िातश में होगा।

261
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्रम -् षोडशवगायध्याय, श्लो.08

148
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

नवमांश
िाशेः नवमो िागः नवमांशः। िातश का नवााँ िाग नवमांश होिा है। 30º/9 =3º।20'
अंश कला नवमांश के एक खण्ड का मान होिा है। इस प्रकाि एक िातश में नौ खण्ड प्राप्त होिे हैं ।
िातश के अंशों के आिाि पि नवमांश खण्ड का तवचाि तकया िािा है। चि िातशयों में उसी िातश
से क्रम से 9 िातशयों के , तस्थि िातशयों में उससे नवम िातश से 9 िातशयों के िथा तिस्विाव में

उससे पञ्चमिातश से आिम्भ किके 9 िातशयों के नवमांश होिे हैं । उनके नाम देव-मनष्य-िाक्षस-

देव-मनष्य-िाक्षस- ु
देव-मनष्य-िाक्षस ु
क्रम से होिे हैं । चि में देव-मनष्य-िाक्षस, ु
तस्थि में मनष्य-
ु इत्यातद िीन आवृति से समझना चातहए।
िाक्षस-देव िथा तिस्विाव में िाक्षस- देव-मनष्य
नवमांश चक्र
खण्ड अंश मेष वृष तमथनु ककय वसह कन्या ु
िला वृतिक िन ु मकि कुम्भ मीन
प्रथम 03º।20' 1 10 7 4 1 10 7 4 1 10 7 4
तििीय 06º।40' 2 11 8 5 2 11 8 5 2 11 8 5
िृिीय 10º।00' 3 12 9 6 3 2 9 6 3 12 9 6
चिथु य 13º।20' 4 1 0 7 4 1 10 7 4 1 10 7
पञ्चम 16º।40' 5 2 1 8 5 2 11 8 5 2 11 8
षष्ठ 20º।00' 6 3 2 9 6 3 12 9 6 3 12 9
सप्तम 23º।20' 7 4 1 10 7 4 1 10 7 4 1 0
अष्टम 26º।40' 8 5 2 11 8 5 2 11 8 5 2 1
नवम 30º।00' 9 6 3 12 9 6 3 12 9 6 3 12
चक्र से स्पष्ट है तक प्रथम चाि िातशयों में िो तस्थति है वही अगली चाि औि अतन्तम चाि

में िी है। प्रथम नवमांश सदैव चि िातश का है। अिः सतविा हेि ु िातशयों के चाि समूह बना लेि े
हैं । प्रत्येक समूह की चि िातश उस समूह की िीनों िातशयों का प्रथम नवमांश होगी।
1 2 3 4

149
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

5 6 7 8

9 10 11 12


प्रथम नव. मेष प्रथम नव. मकि प्रथम नव. िला प्रथम नव. ककय

उदाहिण
नवमांश का क्रमाङ्क िानने अंश कला िथा प्रथम नवमांश िहााँ से गणना प्रािम्भ हो िही
है, उसे िातश से िानेंग।े प्रस्तिु उदाहिण में लि के 15 अंश 18 कला 3-20 के पहाड़े में पााँचवें

क्रम पि हैं अथायि पञ्चम नवमांश है। िातश वृषि का समूह 2,6,10 है, इसकी चि िातश मकि का
प्रथम नवांश होगा। अिः मकि से पााँचवीं िातश वृषि की नवमांश लि होगी। सूय य 26 अंश 41

कला अथायि अतन्तम ु स्वयं चि है अिः गणना वहीं से प्रािम्भ किने पि नवमांश
नवमांश में है। िला
कुण्डली में िला
ु से नवीं तमथनु में सूय य होगा।

िादशांश
िातश के िादश िाग को िादशांश कहिे हैं । 30º/12=2º।30' (2 अंश 30 कला) एक
खण्ड का मान प्राप्त होिा है। िादशांश में उसी िातश से आिम्भ किके बािह िातशयों के िादशांश
होिे हैं । गणेश- अतश्वनी कुमाि- यम औि सप य क्रमशः इनके स्वामी होिे हैं ।
िादशांशस्य गणना िित्क्षेत्रातितनर्तदशेि।्
िेषामिीशाः क्रमशो गणेशाऽतश्व-यमाहयः।।262
स्वामी अंश मेष वृष तमथनु ककय वसह कन्या ु
िला वृतिक िन ु मकि कुम्भ मीन

गणेश 020-30' 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 1 12

अतश्व. 050-00' 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 2 1

262
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्रम -् षोडशवगायध्याय, श्लो.15

150
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

यम 070-30' 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 1 2

सप य 100-00' 4 5 6 7 8 9 10 11 12 1 2 3

गणेश 120-30' 5 6 7 8 9 0 11 12 1 2 3 4

अतश्व. 150-00' 6 7 8 9 10 11 2 1 2 3 4 5

यम 170-30' 7 8 9 10 11 12 1 2 3 4 5 6

सप य 200-00' 8 9 10 11 12 1 2 3 4 5 6 7

गणेश 220-30' 9 10 11 12 1 2 3 4 5 6 7 8

अतश्व. 250-00' 10 11 12 1 2 3 4 5 6 7 8 9

यम 270-30' 11 12 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10

सप य 300-00' 12 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11

उदाहिण

प्रस्तिु उदाहिण में लि वृषि िातश के 15 अंश 18 कला पि है अथायि सािवााँ िादशांश
चल िहा है। अिः िादशांश कुण्डली में वृषि से सप्तम वृतिक लि होगी। सूय य िला
ु में 26 अंश
41 कला होने से ग्यािहवााँ िादशांश हुआ। अिः िादशांश कुण्डली में िल
ु ा से ग्यािहवीं, वसह िातश
में सूय य िहेगा।

वत्रशांश
वत्रशांशशे ाि तवषमे कुिाकीज्यज्ञिागयवाः।
् ।।
पञ्चपञ्चाष्टसप्ताक्षिागानां व्यत्ययाि समे
वतह्नः समीिशक्रौ च िनदो िलदस्तथा।

151
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

् 263
तवषमेष ु क्रमाज्ज्ञेयाः समिाशौ तवपयययाि।।
् अंश का होिा होगा यह
इस चक्र का नाम वत्रशांश होने से यह िातश का िीसवााँ अथायि एक
भ्रम होिा है। तकन्त ु ऐसा है नहीं। सम िथा तवषम िातश के आिाि पि पञ्चिािाग्रहों के िाग इसमें
हैं , तकन्त ु वे समान िी न हैं तिससे इसे पञ्चमांश कहा िािा। तवषम िातशयों में 5।5।8।7।5 अंश
ु ि-
क्रम से िौम-शतन-गरु-ब ु औि शक्र ु के िथा सम िातशयों में 5।7।8।5।5 अंश क्रम से शक्र- ु
बि-ग ु
ु रु-शतन-िौम ्
के वत्रशांश होिे हैं । तवषम वत्रशांश में ििि ग्रहों की तवषम िातशयों िथा सम
वत्रशांश में उनकी सम िातशयों में ग्रह िािे हैं । तवषम िातशयों में स्वामी क्रमशः अति, वाय,ु इन्द्र.
कुबेि, वरुण होिे हैं । सम िातशयों में क्रमशः उल्टे क्रम में स्वामी िानने चातहए।
तवषम वत्रशांश चक्र
स्वामी ग्रह अंश मेष तमथनु वसह िला
ु िन ु कुम्भ
अति मङ्गल 5 1 1 1 1 1 1
वाय ु शतन 10 11 11 11 11 11 11
इन्द्र गरुु 18 9 9 9 9 9 9
कुबेि बिु 25 3 3 3 3 3 3
वरुण ु
शक्र 30 7 7 7 7 7 7

सम वत्रशांश चक्र
स्वामी ग्रह अंश वृष ककय कन्या वृतिक मकि मीन
वरुण ु
शक्र 05 2 2 2 2 2 2
कुबेि बिु 12 6 6 6 6 6 6
इन्द्र गरुु 20 12 12 12 12 12 12
वाय ु शतन 25 10 10 10 10 10 10
अति मङ्गल 30 8 8 8 8 8 8
उदाहिण
लि वृषि िातश होने से सम है। इसके 15 अंश 18 कला मान सम वत्रशांश चक्र में गरुु के
िाग में आने से गरुु की सम िातश मीन की वत्रशांश लि होगी। सूय य िल ्
ु ा अथायि तवषम िातश में
ु के िाग में होने से शक्र
है। इसके 26 अंश 41 कला तवषमवत्रशांश चक्र में शक्र ु की तवषम िातश
ु में वत्रशांश कुण्डली में सूय य िहें ग।े
िला

263
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्रम -् षोडशवगायध्याय श्लो.25-26

152
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

इस अध्याय िक हम कुण्डली के गतणि से िलीिााँति पतितचि हो चकेु हैं । कुण्डली का


तनमायण गतणि का तवषय है तकन्त ु इसका उद्देश्य फलादेश किना है। अगले अध्याय में हम फलादेश
के आवश्यक ज्ञान से पतितचि होंगे।

153
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अध्याय - 4
िादश िाव पतिचय- तवचािणीय तवषय एवं सञ्ज्ञाएाँ
डॉ.मनीषशमाय
तवगि अध्यायों में कुण्डली के गतणि को िथा फलादेश हेि ु उपयोगी िातश िथा ग्रहों की
सञ्ज्ञाओ ं की चचाय की गयी। इस अध्याय में ग्रहों के उच्च-नीचातद, िातश िथा ग्रहों के बल, ग्रहों के
िावफल के साथ ही पिाशिपद्धति से फलादेश हेि ु तवशेष सञ्ज्ञाओ ं को स्पष्ट तकया िा िहा है।

तत्रस्किात्मक ज्योतिष शास्त्र में िािकों के पूव य िि में अर्तिि शि-अशिु कमों का ज्ञान
लि आतद िादश िावों के माध्यम से होिा है यथा नून ं लि बलातश्रि:264 इत्यातद वचनों से स्पष्ट
होिा है तक शिु अशिु फलों का तविान िादश िाव पि ही आतश्रि है। यथा
िावा िादश ित्र सौख्यशिणं देहं मिं देतहनां
ु िाख्यफलि:
िस्मादेव शिाश ु कायो बिु ैर्तनणयय:।।265
फतलि ज्योतिष में इन िादश िाव एवं ग्रह संयोग के िािा िािक के िििाि वािाविण
से उत्पन्न कमय एवं कियव्य पथ का तवचाि तकया िािा है। लिातद िाव िािक के िूि, ितवष्य एवं
ु िु फल के द्योिक हैं । तसद्धान्त की दृतष्ट से िि लि उस िातश को कहिे हैं िो िि
वियमान शिाश
के समय तक्षतिि के पूव य िाग में उतदि होिी है िातशनामदयोु लिम।् 266 लि स्पष्ट तबन्दु के 15 अंश
् का क्षेत्र लगिग होिा है, िािक शास्त्र में लि िाव को प्रथम िाव कहा
पूव य से 15 अंश पिाि िक
गया है। इसी प्रकाि िादश िाव िन,ु िन, सहि, सहृि ु , ् सि,
ु तिप,ु िाया, मृत्य,ु िमय, कमय, आय
औि व्यय के नाम से प्रतसद्ध हैं । ििकुण्डली वास्तव में तकसी व्यतक्त के िि के समय उस स्थान
तवशेष के तलए आकाश का मानतचत्र (नक्शा) होिी है, ििाङ्ग चक्र में िादश िाव होिे हैं तिनका
तवस्ताि 360 अंश होिा है। इस प्रकाि प्रत्येक िाव औसि 30 अंश का होिा है। लिातद िादश
ु िु फलों का प्रतिपादन किने से पूव य यह िानना अत्यावश्यक है तक तकस िाव से
िाव िन्य शिाश
तकन तवषयों का तवचाि तकया िािा है अिः प्रत्येक िाव से तवचािणीय तवषयों का साङ्गोपाङ्ग वणयन

बृहत्पिाशिहोिाशास्त्र, िातिकनीलकण्ठी, बृहज्जािक, सािावली आतद ज्योतिष ग्रन्थों के अनसाि
प्रस्तिु है -

प्रथम िाव से तवचािणीय तवषय

264
तसद्धान्ततशिोमतण - गोलाध्याय - गोलप्रशंसातिकाि श्लोक 6
265
िािकालङ्काि 1/5
266 ्
बृहत्पिाशिहोिाशास्त्रम 3/6

154
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु स्थान, सख,
शािीतिक गठन, वणय, तचह्न, रूप, िाति, स्विाव, आकृ ति, लक्षण,यश,गण, ु

प्रवास, िेितस्विा, दौबयल्य, शीषय, आत्मा, सख-दुःख, िोगिोिक क्षमिा आतद।
तििीय िाव से तवचािणीय तवषय
ु वाणी, वाक-् शतक्त, कुटुम्ब, पतिवाि, मािक तवचाि, िोिन, दृतष्ट,
तवि, दायााँ नेत्र, मख,
गला, कण्ठ, गदयन, िन संग्रह, चलसम्पदा, स्वणय, ित्न आतद।
िृिीय िाव से तवचािणीय तवषय
ु उद्यम, ििा,
पिाक्रम, साहस, शौयय, दुष्ट बतद्ध, ु हाथ, छोटे िाई बहन का सख,
ु नौकि,
चाचा, सेवक, स्वि, श्रवण इतन्द्रय,आिूषण, वस्त्र, ि ैयय, बल, मूल, फल महत्वाकािा, श्रम आतद।
ु िाव से तवचािणीय तवषय
चिथय

मािा, िूतम, इष्ट तमत्र, स्थाई सम्पति, वापी, कू प, िड़ाग, चिष्पद, औषति, हृदय, श्वसन
ु सगि,
अङ्ग, स्कि, वक्ष स्थल, सख, ु गोिन, पश ु पालन, कृ तष कमय, मनोवृति, न ैतिक चतित्र, बि,ु
मन, वाहन, िू - सम्पति, िवन आतद।
पञ्चम िाव से तवचािणीय तवषय
ु बतद्ध,
इष्ट देविा, पत्र, ु तववेक, गिय िािण, तवद्या,यातन्त्रक ज्ञान, स्मिण शतक्त, नीति प्रबि,
मन्त्रणा, गोपनीयिा, चाियु ,य पठन-पाठन, देवितक्त, मन्त्र, यन्त्र, लॉटिी, सट्टा, प्रेम-सम्बि, उदि
एवं आमाशय आतद।
षष्ठ िाव से तवचािणीय तवषय
िोग, शत्र,ु व्यसन, क्षति, चोट, अतिष्ट, तवघ्न, दुघयटना, तचन्ता, ऋण, मामा, सौिेली मााँ,
चोििय, नाति, कमि, अशिु कमय आतद तवचाि।
सप्तम िाव से तवचािणीय तवषय
ु काम क्रीड़ा, तपिामह, ििीिा, वाद तववाद, अदालिी झगड़े,
यात्रा, स्त्री, तववाह सख,
यात्रा, व्यापाि, साझेदािी, यद्धु क्षेत्र, स्विन्त्र कायय, व्यतिचाि, िननेतन्द्रय, मूत्र कृ छ आतद तवचाि।
अष्टम िाव से तवचािणीय तवषय
आय,ु मृत्य,ु मनोव्यथा, पूवि
य ि, तपिृ-ऋण, प ैिृक सम्पति, तिश्वि, िूतमगि द्रव्य, बिन,
ु िोग आतद।
दण्ड, अपमान, िय पिािय, पद हातन, गह्य
नवम िाव तवचािणीय तवषय
ु िमय, िप, यश, ित्त्वज्ञान उदाििा,
ु प्रािब्ध, ऐश्वयय, िीथय यात्रा, प्रिाव, गरु,
िाग्य, पण्य,
दीक्षा, नेित्व
ृ , कानून, न्याय आतद।

155
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

दशम िाव से तवचािणीय तवषय


तपिा, आज्ञा, मान, सम्मान, वैिव, वस्त्र,व्यापाि, तनद्रा, कृ तष, प्रवज्या, आगम, कमय िीवन
व्यवस्था, यश, कीर्ति, िाज्य, प्रतिष्ठा, िाियोग, पदोन्नति, आिीतवका,िान ु आतद।
एकादश िाव से तवचािणीय तवषय
ु , ऐश्वयय, तक्रया कुशलिा,
िन प्रातप्त, दोनों प ैि, बायााँ कान, के श, ज्येष्ठ भ्रािा, दामाद, पत्रविू
आकतस्मक लाि, प्रतशक्षण, वपडतलयााँ, टखना आतद।
िादश िाव से तवचािणीय तवषय
ु िन हातन, प्रवास, वृद्धावस्था, बायााँ नेत्र,
तवदेश, यात्रा, कष्ट, अपयश, कलह, शयनातद सख,
गप्तु तवद्या, मोक्ष, षड्यन्त्र, पाखण्ड, हठ, दण्ड आतद।
िादश िाव की सञ्ज्ञाएाँ
िावों की के न्द्रातद सञ्ज्ञाएाँ िािकपातििाि के िातशशीलाध्याय से प्रस्तिु हैं -
मेषिू णोदयकलत्रिसािलातन स्यःु के न्द्रकण्टकचिष्टयसं
ु तज्ञिातन।

लिातिकोणिवनं नवपञ्चमं च स्यातत्रतत्रकोणमदयान्नवमं वदतन्त।।53।।
िनसु खमदनाज्ञा
ु िाशयः के न्द्रसंज्ञाः

पणफििवनातन स्वायपत्राष्टमातन।

व्ययतिपगु रुदुतिक्यातन चापोतक्लमातन
ु मृत्यबि
प्रिवति चिििं ु च।।54।।
ु ियं

दुतिक्यायातिमानान्यपचयिवनान्याहुिाचाययम ु
ख्याः
शेषाः पीडक्षयसञ्ज्ञा नविनिलिीकामिन्ध्रान्त्यहोिाः..।।55।।

के न्द्र-चिष्टय-कण्टक-सञ्ज्ञक ु सप्तम, दशम िाव
िाव प्रथम, चिथय,
तत्रकोण सञ्ज्ञक िाव पञ्चम एवं नवम िाव को तत्रकोण कहिे हैं । वास्तव में लि सतहि
पञ्चम औि नवम तत्रकोण हैं , तकन्त ु लि के न्द्र िी होने से अनेक आचायय उसको प्रत्यक्षिः तत्रकोण
में कहिे नहीं।
तत्रतत्रकोण सञ्ज्ञक िाव नवम िाव को तत्रतत्रकोण संज्ञक िाव कहिे हैं । तत्रतत्रकोण अथायि ्
िीसिे क्रमाङ्क का तत्रकोण।
तत्रकसञ्ज्ञक िाव षष्ठ, अष्टम, िादश िाव तत्रक िथा दुःस्थान कहलािे हैं ।
पणफिसञ्ज्ञकिाव तििीय, पञ्चम, अष्टम, एकादश िाव
आपोतक्लमसञ्ज्ञक िाव िृिीय, षष्ठम, नवम, िादश िाव

156
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु सञ्ज्ञक िाव
चििि चिथु य िथा अष्टम
उपचय सञ्ज्ञक िाव िृिीय, षष्ठ, दशम, एकादश िाव

अनपचय सञ्ज्ञक िाव
ु पञ्चम, सप्तम,अष्टम, नवम िथा िादशिाव अनपचय
प्रथम,तििीय, चिथय, ु अथवा पीडक्षय कहलािे
हैं ।
िादश िावों की अन्य सञ्ज्ञाएाँ
िािकपातििाि के िातशशीलाध्याय में िावों की सञ्ज्ञाएाँ इस प्रकाि वर्तणि हैं -

कल्पोदयाद्यिनिितवलिहोिा ु
वागथयितक्तनयनस्वकु टुम्बिातन।।
दुतिक्यतवक्रमसहोदिवीययि ैययकणायस्तिृ ीयिवनस्य िवतन्त संज्ञाः।।49।।

पािालवृतद्धतहबकतक्षतिमािृ ु हसखबि
तवद्यायानाम्बगे ु ु ष्टयातन।
चि ु

िीदेविाितपिृनन्दनपञ्चकातन िोगाङ्गशस्त्रियषष्ठतिपक्षिातन।।50।।
िातमत्रकामगमनातन कलत्रसम्पद्द्यूनास्तसप्तमगृहातण वदतन्त चायायः।

िन्ध्रायिष्टिणमृ ु
त्यतवनाशनातन ु शििपोनविाग्यिातन।।51।।
िमो गरुः ु
व्यापािमेषिू णमध्यमानं ज्ञानं च िािास्पदकमयसञ्ज्ञाः।
एकादशोपान्त्यिवायलािा तिःफव्ययिादशकान्त्यिातन।।52।।
ु सञ्ज्ञाओ ं के साथ अिोतलतखि सातिणी में प्रस्तिु हैं -
यु सञ्ज्ञाएाँ अन्य ग्रन्थों में प्रयक्त
उपयक्त
िाव सञ्ज्ञाएाँ
प्रथम िाव कल्प, उदय, आद्य, िन,ु िि, लि, तवलि, होिा, देह, मूर्ति, वप ु
तििीय िाव वाक,् अथ य, ितु क्त, नयन, स्व, कुटुम्ब, िन
िृिीय िाव दुतिक्य, तवक्रम, सहोदि, वीयय, ि ैयय, कणय, सहि
चिथु य िाव ु तक्षति, मािृ, वाहन,गृह, सख,
पािाल, वृतद्ध, तहबक, ु ष्टु य,अम्ब ु
ु बि,चि
पंचम िाव ु
तवद्या, िनि,िी, पञ्चक, देविाि, तपिृ, नन्दन, सिु
षष्ठ िाव तिप,ु िेषी, क्षि, शस्त्र, िय, वैिी, िोग
सप्तम िाव िातमत्र, अस्त, स्मि, मदन, मद, द्यून, द्यनु , कलत्र,काम, गमन, तचिोत्थ
अष्टम िाव िन्ध्र, तछद्र, याम्य, तनिन, लयपद, मृत्य,ु िण, तवनाश
नवम िाव ु िप, शिु , िाग्य
िमय, गरु,
दशम िाव मेषिू ण, मध्य, ज्ञान, िाज्य, आस्पद, कमय, मान, आज्ञा, िाि, गगन, नि, व्योम,व्यापाि
एकादशिाव लाि, आय, प्रातप्त, आगम, उपान्त्य,िव
िादशिाव अन्त्य, व्यय, तिष्फ, तिःफ, प्रान्त्य

157
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ग्रहों के उच्चनीच, ग्रह एवं िातश बल


होिाशास्त्र में ग्रहों के उच्च नीच िातशयों की कल्पना तसद्धान्त ग्रन्थों के आिाि पि की गई है,
स्पष्टग्रह शीघ्रनीचोच्च प्रतिमण्डल में भ्रमण कििा है। यथा

यः स्यात्प्रदेशः प्रतिमण्डलस्य दूिे िवस्तस्य कृ िोच्चसञ्ज्ञा। 267
अथायि ् पृथ्वी से प्रतिमण्डल वृि में दूििम तबन्दु की उच्च सञ्ज्ञा होिी है िथा उच्च से छः
िातश के अन्ति पि नीच प्रदेश होिा है -

उच्चाद्भषट्कान्ततििं च नीचम268
सिल रूप से कहा िाए िो पृथ्वी से ग्रह की सवायतिक दूिी की उच्च सञ्ज्ञा होिी है िथा सवय
तनकटस्थ दूिी की नीच सञ्ज्ञा। यथा
ु िङ्गतमह
कुमध्यिो दूिििे प्रदेश े िेखायिे ु प्रक्लप्यम।् नीचं िथाऽऽसन्नििे..।।269
िािकशास्त्र में ग्रहों की उच्च नीच िातशयों का उिे ख इसतलए तकया गया है क्योंतक उच्चस्थ
ग्रह अपनी ितश्मयों के कािण शिु फलप्रद होिा है, िबतक नीचस्थ ग्रह हातनकािक होिा है। ग्रहों
की उच्च-नीच िातशयााँ औि उनके पिमोच्च-पिमनीचांश अिोतलतखि हैं -
अिवृषिमृगाङ्गनाकुलीिा झषवतणिौ च ु
तदवाकिातदिङ्गा।

दशतशतखमनयु तक्तथीतन्द्रयां
श ैतस्त्रनवकववशतितिि िेऽस्तनीचाः।।270
अथायि ् मेष िातश के 10 में सूय,य वृष िातश के 3 अंश में चन्द्रमा, मकि िातश के 28 अंश

में मङ्गल, कन्या िातश के 15 अंश में बि,ककय ु मीन िातश के 27 अंश में
िातश के 5 अंश में गरु,
ु एवं िला
शक्र ु िातश के 20 अंश में शतन का पिमोच्च स्थान होिा है। तिस ग्रह की तििने अंश से
िो उच्च िातश है उससे सप्तम िातश उिने ही अंश पि उस ग्रह का पिमनीच स्थान समझना चातहए।
ग्रहों का उच्च नीच बोिक चक्र
ग्रह उच्चस्थान पिमोच्च नीचस्थान पिमनीच
सूय य मेष 0 |10 ु ा
िल 6 |10
चन्द्रमा वृष 1 |03 वृतिक 7 |03
मङ्गल मकि 9 |28 ककय 3|28

267
तसद्धान्ततशिोमतण - गोलाध्याय - छेद्यकातिकाि श्लोक 20
268
तसद्धान्ततशिोमतण - गोलाध्याय - छेद्यकातिकाि श्लोक 21
269
तसद्धान्ततशिोमतण - गोलाध्याय - छेद्यकातिकाि श्लोक 25
270
बृहज्जािक - 1/13

158
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

बिु कन्या 5|15 मीन 11 |15


बृहस्पति ककय 3|5 मकि 9 |05

शक्र मीन 11 |27 कन्या 5 |27
शतन ु
िला 6 |20 मेष 0 |20
िातशबल
िो िातश अपने स्वामी से यिु एवं दृष्ट हो अथवा बिु औि बृहस्पति से यिु एवं दृष्ट हो िथा
अन्य शेष ग्रहों से न िो यिु हो न दृष्ट हो वह िातश बली होिी है। िो िातश अपने स्वामी, बिु एवं
बृहस्पति िीनों से ही यिु एवं दृष्ट हो औि शेष ग्रहों से यिु दृष्ट न हो िो पूण य बली होिी है,अन्य ग्रहों
से िी यिु - दृष्ट होने से मध्यबली औि यतद अपने स्वामी अथवा बि,
ु गरुु तकसी से िी यिु दृष्ट न
हो िो बलहीन समझना चातहए|
ु दृष्टो वा बििीवय
अतिपयिो ु ु तक्षिि यो िातश:।
िे
ु दृष्टोऽतप वा शेष ै:।।271
स िवति बलवान्न यदा यक्तो
िातशयों का तदशाबल एवं कालबल -:
् व य तदशा में तिपद िातशयााँ कन्या, तमथन,
पूवायतद तदशाओ ं में अथायि पू ु कुम्भ, िला,
ु िन ु का
ु िातशयााँ िन ु का पिाद्धय, वसह, वृष, मकि का पूवायद्ध,य मेष, पतिम में
पूवायद्ध,य दतक्षणतदशा में चिष्पद
वृतिक िातश िथा उिि में िलचि मकि का पिाद्धय, मीन, ककय िातशयााँ बली होिी हैं ।

कालबल --: िातत्र में चिष्पद, तदन में तिपद, सन्ध्या में मकि,वृतिक, ककय , मीन िातशयााँ बली होिी
हैं ।
निपशवृु तिकिलिा यथाक्रमं प्रातग्दगातदगा बतलन:।
ु मृगातलकर्तकझषा:।।272
तनतश तदवसे सन्ध्यायां पशव: परुषो
ग्रहों के बल
सूयायतद ग्रहों के स्थानबल, तदग्बल, कालबल, न ैसर्तगकबल, चेष्टाबल, औि दृतष्टबल यह छ:
प्रकाि के बल होिे हैं । फतलि ज्ञान हेि ु उक्त बलों को िानना आवश्यक है।
1. स्थानबल
िो ग्रह उच्च, स्वगृही, तमत्रगृही, मूलतत्रकोणस्थ, स्वनवांशस्थ अथवा द्रेष्काण तस्थि होिा है
ु समिातश में औि अन्य ग्रह तवषम िातश में बली होिे
वह स्थानबली कहलािा है। चन्द्रमा एवं शक्र
हैं ।

271

लघिािक 1/14
272
सािावली - 3/23

159
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

् होच्चांश े तमत्रक्षे वीतक्षि: शिु ैिातप।


बलवान स्वगृ
ु त्रोपगा: शेषा:।।273
चन्द्रतसिौ स्त्रीक्षेत्र े परुषक्षे
2. तदग्बल
बिु एवं गरुु लि में िहने से, शक्र
ु एवं चन्द्रमा चिथय
ु िाव में तस्थि होने पि, शतन सप्तम
िाव में, िथा सूय य औि मङ्गल दशम िाव में िहने से तदग्बली होिे हैं । अिः लि पूव,य दशमिाव
ु िाव उिि तदशा में समझना चातहए। इसी कािण इन स्थानों
दतक्षण, सप्तमिाव पतिम, औि चिथय
में ग्रहों की तस्थति तदग्बल बोिक है। यथा प्राच्यातदष ु िीवबिौ
ु सूयायिौ िास्कति: शशाङ्कतसिौ।।274
2. कालबल
ु सूय य एवं गरुु
िातत्र में िि होने पि चन्द्रमा, शतन एवं मङ्गल अथवा तदन में िि होने पि शक्र,
कालबली होिे हैं । बिु सवयदा कालबली माना िािा है। सिी ग्रह अपने अपने तदन, होिा, मास
् हैं । पापग्रह कृ ष्णपक्ष में औि शिग्रह
एवं वषय में बलवान होिे ु ु
शक्लपक्ष में बली होिे हैं । यथा
अहतन तसिाकय सिेु ज्या द्यतनशं
ु ज्ञो नक्ततमन्दुकुिसौिा:।
ु िा
स्वतदनातदष्वशिश ु बहुलोििपक्षयोबयतलन।।275
4. न ैसर्तगक बल
शतन, मङ्गल, बि, ु शक्र
ु गरु, ु , चंद्र एवं सूय य उििोिि बली होिे हैं । यह ग्रहों का न ैसर्तगक
स्वािातवक बल है। यतद ग्रहों में पूव य कतथि स्थान बलातद में समानिा हो िो तिसका न ैसर्तगक बल
अतिक हो वह ग्रह बली माना िािा है। यथा
मन्दािसौम्यवाक्पतितसिचन्द्राकाय यथोििं बतलन:।

न ैसर्तगकबलमेिि बलसाम्येऽस्माद ् बलातिकिा।।276
5. चेष्टाबल

मकि से तमथनु पयंन्त तकसी िातश में िहने से अथायि उििायण में सूय य औि चन्द्रमा िथा
शेष ग्रह मङ्गल, बि, ु शक्र,
ु गरु, ु औि शतन वक्रगति होने से िथा आकाश में तनमयल औि बृहद ् तबम्ब
दृश्यमान हों िो चेष्टाबली होिे हैं । यथा

273
सािावली 2/7
274
सािावली 2/8
275
सािावली 2/9
276

लघिािक 2/10

160
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


उदगयने शतशसूयौ वक्रेऽन्ये तिग्ितवपलाि।।277

6. दृतष्टबल
शिु ग्रहों से दृष्ट ग्रह दृग्बली होिे हैं । ग्रहों की दृतष्टयााँ इस प्रकाि हैं -
ु ऽतखलखेचिाणाम।्
पादेक्षणं िवति सोदिमानिाश्योिद्धं तत्रकोणयगले

पादोनदृतष्टतनचयििििय ु सम्पूण यदृग्बलमनङ्गगृहे वदतन्त।।
ग्मे
ु स्याि।्
ु ु लपतिमन्त्री कोणदृष्टौ शिः
शतनितिबलशाली पाददृग्वीयययोगे सिक
तत्रियचिणदृष्ट्या िूकुमािः समथयः सकलगगनवासाः सप्तमे दृग्बलाढ्याः।।278
िावाथय यह है तक प्रत्येक ग्रह स्वयं से िृिीय िथा दशम स्थान को एकपाददृतष्ट (25%) से,

पञ्चम-नवम को अद्धय (50%) से, चिथय-दशम को तत्रपाद (75%) से िथा सप्तम स्थान को पूण य
(100%) दृतष्ट से देखिा है। शतन की 3-10 स्थानों में िी पूणदृय तष्ट होिी है, गरुु की 5-9 में िथा
मङ्गल की 4-8 वें स्थान में िी पूणदृय तष्ट होिी है।
दृतष्ट के तवषय में एक अन्यपक्ष फलादेश हेि ु उपयोगी है। िदनसाि
ु सूय-य मङ्गल की ऊध्वयदृतष्ट,
ु िु की कटाक्ष, चन्द्र-गरुु की सम िथा शतन-िाहु की अिोदृतष्ट होिी है -
शक्र-ब
अथोऽद्ध्वयदृष्टी तदननाथिौमौ दृतष्टः कटाक्षेण कवीन्दुसून्वोः।
ु समिागदृतष्टििोऽतक्षपािस्त्वतहनाथशन्योः।।279
शशाऽङ्कगवोः
ग्रह िाव फल तनरूपण
ु आिाि है ग्रहों का िावफल। कौन सा ग्रह सामान्यिः तकस िाव में क्या
फलादेश का प्रमख
ु प्रस्तिु है।
फल कििा है यह सािावली ग्रन्थ के िीसवें अध्याय िावफलाध्याय के अनसाि

पापा तनघ्नतन्त मूत्यायदीन िावान प् ष्णतन्त
ु शोिनाः।

तवपिीिं तिपूिन्ध्रव्ययेष ु सदसत्फलम।।86।।

योगा ये बलयोगाः सौम्यसहृतद्रप ु
तनिीक्षणाच्च ैव।
उच्चातदिवनसंस्थ ैग्र यहैि फलमन्यथा िवति।।87।।
यतद लिातद िावों में शिु ग्रह हों िो उस िाव की वृतद्ध कििे हैं , पाप ग्रह होने पि उस िाव
के फल का नाश कििे हैं । 6, 8, 12 िावों के शिु - अशिु फल तवपिीि होिे हैं अथायि तत्रक ् में
तस्थि शिु ग्रह अशिु फल औि पापग्रह शिु फल कििा है। शिु ग्रह से दृष्ट योग बली होिे हैं ,
िथा उच्चस्थ ग्रहों से दृष्ट योग का फल तवपिीि होिा है।

277

लघिािक 2/8
278
िािकपातििाि - 1/30,31
279
िािकपातििाि - 1/32

161
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सूय य का िावफल
लिेकेऽल्पकचः तक्रयालसमतिः क्रोिी प्रचण्डोन्निो
मानी लोचनरूक्षककय शिनःु शूिोऽक्षमो तनघृणः।


स्फोटाक्षः शतशिे तक्रये सतितमिः वसहे तनशािः पमान ्

दातिद्र्योपहिो तवनष्टिनयो िािस्तलायां निः।।2।।
ु बतद्ध
यतद कुण्डली में लिस्थ सूय य हो िो अल्प के श वाला, कायों में आलस्य यक्त ु वाला,
ु देहिािी, वीि, क्षमाहीन एवं तनदययी
क्रोिी, उग्र, ऊाँ ची देहवाला, अहङ्कािी, रूक्ष दृतष्ट वाला, सदृढ़
होिा है।
ु नेत्रवाला, मेष िातशस्थ सूय य लि में हो िो
यतद लि में ककय िातशस्थ सूय य हो िो फुली यक्त
ु िातशस्थ सूय य लि में
मन्द दृतष्टवाला, वसह िातशस्थ लि में हो िो ििोंिी िोग से पीतड़ि, यतद िला
हो िो दतिद्री औि नष्ट पत्रु वाला होिा है।

तिपदचिष्पदिागी ु
मखिोगी नष्टतविवसौख्यि।

नृपचोिमतषिसािः कुटुम्बगे स्याद्रवौ परुषः।।3।।

यतद कुण्डली में तििीय िाव में सूय य हो िो िािक - नौकिएवंगाय, ि ैस ब ैलातद के चिष्पद

सख ु मख
ु को िोगने वाला या इनसे यक्त, ु का िोगी, ऐश्वयय एवं सख
ु से ितहि, िािा या चोि से अपहृि
िन वाला होिा है।
ु तवनष्टसहिस्तृिीयके सूय।े
तवक्रान्तो बलयक्तो
लोके मिोऽतििामः प्राज्ञो तििदुष्टपक्षि।।4।।
यतद कुण्डली में िृिीय िाव में सूय य हो िो िािक - पिाक्रमी, बलवान, ् िाइयों से ितहि,
ु ं को िीिनेवाला होिा है।
संसाि में मान्य या संसाि में श्रेष्ठ, पतण्डि िथा शत्रओ

वाहनबितवहीनः ु सूय।े
पीतडिहृदयििथयके
तपिृगहृ िननाशकिा िवति निः कुनपृ सेवी च।।5।।
यतद कुण्डली में चिथय ु ं से ितहि, पीतड़ि
ु िाव में सूय य हो िो िािक – सवािी एवं बिओ
हृदयवाला, अथायि ्उतिि तचिवाला, तपिा - घि - िन का नाशक िथा कुतत्सि िािा का सेवक
होिा है।
ु ितवितवहीनः
सखस ु कषयणतगतिदुगयसेवकिपलः।
मेिावी िनितहिः स्वल्पायःु पञ्चमे िपने।।6।।

162
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

यतद कुण्डली में पञ्चमिाव में सूय य हो िो िािक - सख ु - पत्रु - िन से ितहि, खेिी, पवयि -

तकले का सेवी, चञ्चल, बतद्धमान , ् तनियन िथा अल्पाय ु होिा है।
् समातश्रिे िानौ।
प्रबलमदनोदिातिबयलवान षष्ठं

श्रीमान तवख्यािग ु नृपतिवाय दण्डनेिा वा।।7।।
णो
यतद कुण्डली में छठे िाव में सूय य हो िो िािक अतिक कामी, प्रबलिठिाति वाला,िनवान, ्
ु िािा या न्यायािीश होिा है।
प्रतसद्ध, गणी,
तनःश्रीकः पतििूिः कुशिीिो व्यातििः पमान ् न े।
ु द्यू

नृपबिनसन्तप्तोऽमागयििो यवतितविे
षी।।8।।
यतद कुण्डली में सप्तमिाव में सूय य हो िो िािक - तनियन या चेष्टाहीन, तििस्कृ ि, कुरूपवान, ्
िोगी, िािा के बिन से पीतड़ि, दुःखी, कुमागय पि चलने वाला िथा स्त्री से शत्रिा
ु िखने वाला
होिा है।

तवकलनयनोऽष्टमस्थे िनसखहीनोऽल्पिीतविः ु
परुषः।
िवति सहिमयूख े स्वतिमििनतविहसन्तप्तः।।9।।
यतद कुण्डली में अष्टमिाव में सूय य हो िो िािक - चञ्चल नेत्र वाला अथवा हीन दृतष्ट वाला,
ु से ितहि, अल्पाय ु िथा अपने इष्ट िनों के तवयोग से दुःखी होिा है।
िन एवं सख

िनपत्रतमत्रिागी तििदैविपूिनेऽतििक्ति।

ु स्याि।।10।।
तपिृयोतषतििेषी नवमे िपने सिप्तः
ु ब्राह्मण एवं देव
यतद कुण्डली में नवम िाव में सूय य हो िो िािक िन - पत्रु - तमत्र से यक्त,
ु किने वाला िथा दुःखी होिा है।
पूिक, तपिा एवं स्त्री से शत्रिा
अतिमतिितितविवबलो िनवाहनबिपु त्रवान
ु ् य।े
सू
तसद्धािम्भः शूिो दशमेऽिृष्यः प्रशस्यि।।11।।
यतद कुण्डली में दशम िावस्थ सूय य हो िो िािक - अतिक बतद्धमान
ु , ् अतिक ऐश्वययवान, ्
अतिक बली, िनवान, ् सवािी का सख ु कायय तसतद्ध किने वाला,
ु पाने वाला, बािव एवं पत्रु से यक्त,
वीि, अतिि एवं उिम होिा है।
सञ्चयतनििो बलवान ् िेष्यः प्रेष्यो तविेयिृत्यि।
एकादशे तविेयः तप्रयितहिः तसद्धकमाय च।।12।।
यतद एकादश िाव में सूय य हो िो िािक - सङ्ग्रहकिाय, बली, द्रोही, सेवकों से ितहि, प्रेमहीन
िथा काययसािक होिा है।

163
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


तवकलशिीिः काणः पतििो वन्ध्यापतिः तपिितमत्रः।

िादशसंस्थ े सूय े बलितहिो िायिे क्षद्रः।।13।।
यतद कुण्डली में बािहवें िाव में सूय य हो िो िािक - चञ्चल देहिािी, काना, पतिि अथायि ्
ु बन्ध्या स्त्री का पति, तपिा का शत्र,ु बलहीन एवं नीच होिा है।
अपने कमय से च्यि,
चन्द्रमा का िावफल
ु ैः प्रिानिन्द्रे कुलीिवृषिािगिे तवलिे।
दातक्षण्यरूपिनिोगगण

उििनीचबतििो तवकलि मूकः शेष े निो िवति कृ ष्णिनर्तु वशेषाि।।14।।
यतद कुण्डली में मेष - वृष - ककय िातश का चन्द्रमा लि में हो िो िािक चिििा
ु स्वरूप,
ु में प्रिान होिा है। अवतशष्ट िातशयों में तस्थि होकि चन्द्र लि में हो िो पागल,
िन - िोग गणों
दुष्ट, बतहिा, अशान्त, गूग
ाँ ा एवं तवशेषकि काली देह वाला होिा है।

अितलिस ु
खतमत्रय ु िन ैि चन्द्रे तििीयिातशगिे।
िो
सम्पूणऽे तििनेशो िवति निोऽल्पप्रलापकिः।।15।।
यतद कुण्डली में तििीय िाव में चन्द्रमा हो िो िािक - अपतितमि सख
ु - िन - तमत्रों से
ु सम्पूण य चन्द्रमा होने पि अतिक िन का स्वामी िथा अल्प बोलने वाला होिा है।
यक्त,

भ्रािृिनाश्रयणीयो मदातन्विः सहिगे बतलतन।
चन्द्रे िवति च शूिो तवद्यावस्त्रान्नसङ्ग्रहणशीलः।।16।।
यतद कुण्डली में िृिीय िाव में बली चन्द्रमा तस्थि हो िो िािक- िाई वगय का आश्रय

अथायि सहािा, ु वीि एवं तवद्या - वस्त्र - अन्न के सङ्ग्रह में ित्पि होिा है।
हषय से यक्त,

बिपतिछदवाहनसतहिो ु चन्द्रे।।
दािा चिथयगे
ु सखास
िलसञ्चािानििः ु खोत्कषयपतिम
ु ु
क्तः।।17।।
ु िाव में चन्द्रमा हो िो िािक बि ु - आछादन (वस्त्र), सेवा से यि,
यतद कुण्डली में चिथय ु
ु एवं सख
दानी, िलीय स्थानों में अनिक्त ु दुःख के उत्कषय से मक्त
ु होिा है।
चन्द्रे िवति न शूिो तवद्यावस्त्रान्नसङ्ग्रहणशीलः।
बहुिनयसौम्यतमत्रो मेिावी पञ्चमे िीक्ष्णः।।18।।
यतद कुण्डली में पञ्चम िाव में चन्द्रमा हो िो िािक - वीित्व से हीन, तवद्या – वस्त्र, अन्न
का सङ्ग्रहकिाय, अतिक पत्रु एवं सशील
ु ु बतद्धमान
तमत्रों से यि, ु ्
एवम ् प्रकृ ति का होिा है।
उग्र

प्रचिातमत्रस्तीव्रमृ
दुकायातिमदालसिन्द्रे।
षष्ठे नि उदििवै िोग ैः सम्पीतडिो िवति।

164
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

िितनकिे स्वल्पायःु षष्ठगिे िवति सिीणे।।19।।


यतद कुण्डली में शत्रिाव
ु में चन्द्रमा हो िो िािक - अतिक शत्र ु वाला, िीक्ष्ण, कोमल शिीि
वाला, कोिी, नशे में चूि, उदििन्य िोगों से दुःखी, क्षीण चन्द्रमा षष्ठ िाव में होने पि अल्पाय ु होिा
है।

सौम्यो िृष्यः सतखिः ु
सशिीिः ु द्यून े।
कामसंयिो
दैन्यरुगर्तदिदेहः कृ ष्णे सञ्जायिे शतशतन।।20।।
यतद कुण्डली में सप्तम िाव में चन्द्रमा हो िो िािक - सशील,
ु घषयण योग्य ( दमनीय ),
ु सन्दि
सखी, ु देहिािी, कामी, कृ ष्ण पक्ष का तनबयल चन्द्रमा हो िो दीन एवं िोग से पीतड़ि देह वाला
होिा है।
अतिमतिितििेिस्वी व्यातितवबिक्षतपिदेहः।

तनिनस्थे िितनकिे स्वल्पायिवति सिीणे।।21।।
यतद कुण्डली में अष्टम िाव में चन्द्रमा हो िो िािक - अतिक बतद्धमान
ु , ् िेिवान, ् िोग -
बिन से कृ श देहिािी, क्षीण चन्द्रमा होने पि अल्पाय ु होिा है।

दैवितपिृकाययपिः सखिनमतिप ु पन्नः।
त्रसं

यवतििननयनकान्तो नवमे शतशतन तप्रयिमोद्योिः।।22।।
यतद कुण्डली में नवम िाव में चन्द्रमा हो िो िािक - देव एवं तपिृकायय में ित्पि, सख
ु -
ु स्त्रीिन के नेत्रों का िमणीय िथा तप्रय,कायों में उद्योगी होिा है।
ु - पत्रु से यक्त,
िन - बतद्ध
अतवषादी कमयपिः तसद्धािम्भि िनसमृद्धि।

शतचितिबलोऽथ दशमे शूिो दािा िवेछतशतन।।23।।
यतद कुण्डली के दशम िाव में चन्द्रमा हो िो िािक - खेद से ितहि, कायय में ित्पि, कायय
कुशल, िन से सम्पन्न, पतवत्र, अतिक बली, वीि एवं दानी होिा है।
् ििागी
िनवान बहुस ु बह्वायःु तस्वष्टिृत्यवगयि।
इन्द्वौ िवेिनस्वी िीक्ष्णः शिः प्रकाशि।।24।।
यतद कुण्डली में एकादश िाव में चन्द्रमा हो िो िािक िनी, अतिक पत्रवान
ु , ् दीघायय,ु सन्दि


इतछि नौकि वाला, मनस्वी, उग्र, वीि एवं कातन्तमान होिा है।
ु नयनरुगािोऽलसो िवेतत्कलः।
िेष्यः पतििः क्षद्रो
चन्द्रे िथान्यिािो िादशगे तनत्यपतििूिः।।25।।

165
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

यतद कुण्डली में बािहवें िाव में चन्द्रमा हो िो िािक - िेषी, पतिि, नीच, नेत्रिोगी,
आलसी, अशान्त, दूसिे से उत्पन्न (पििाि) एवं सदा दुःखी होिा है।
मङ्गल का िावफल
क्रूिः साहसतनििः स्तब्धोऽल्पायःु स्वमानशौयययिः।


क्षिगात्रः सशिीिो वक्रे लिातश्रिे चपलः।।26।।
यतद कुण्डली में लिस्थ िौम हो िो िािक - कठोि, पिाक्रमी, आिययचतकि, अल्पाय,ु
ु ििदेही, सन्दि
सम्मान एवं िीििा से यि, ु देहिािी एवं चञ्चल होिा है।
ु परुषो
अिनः कदशनिष्टः ु तवकृ िाननो िनस्थाने।
कुिनाश्रयि रुतििे िवति निो तवद्यया ितहिः।।27।।
यतद कुण्डली में तििीय िाव में िौम हो िो िािक - तनियन, कुतत्सि िोिन से प्रसन्न, तवकृ ि
ु वाला, दूतषि मनष्यों
मख ु का आश्रय एवं तवद्याहीन होिा है।
ु मदातन्विः
शूिो िवत्यिृष्यो भ्रािृतवयक्तो ु ु
परुषः।

िूपत्रेु सहिस्थे समस्तगणिािनं ख्यािः।।28।।

यतद कुण्डली में िृिीय िाव में िौम हो िो िािक - वीि, अदमनीय, िाई से ितहि, हषययक्त,
समस्त गणों ्
ु का पात्र अथायि सकल गण ु तनिान एवं प्रतसद्ध होिा है।

बिपतिछदितहिो ु ऽथ वाहनतवहीनः।
िवति चिथे
अतिदुःख ैः सन्तप्तः पिगृहवासी कुि े परुषः।।29।।

यतद कुण्डली में चौथे िाव में िौम हो िो िािक - बि ु एवं वस्त्र से हीन, सवािी ितहि,
अतिक दुःखों से पीतड़ि िथा दूसिों के घि में िहने वाला होिा है।

सौम्याथयपत्रतमत्रिपलमतिितप पञ्चमे कुि े िवति।

तपशनोऽनथयप्रायः खलि तवकलो निो नीचः।।30।।
ु अतस्थि
यतद कुण्डली में पञ्चम िाव में िौम हो िो िािक - मृदु, िन - पत्रु - तमत्र से यि,
ु वाला, चगलखोि,
बतद्ध ु अनथी, पापी, अशान्त एवं दुष्ट होिा है।

प्रबलमदनोदिाति सशिीिो व्यायिो बली षष्ठे।

रुतििे सम्भवति निः स्वबितवियी प्रिानि।।31।।
यतद कुण्डली में छठे िाव में िौम हो िो िािक - अतिक कामी, प्रबल िठिाति वाला,
ु चौकोि देहिािी, बलवान, ् अपने बिओ
सन्दि ु ं को िीिने वाला िथा प्रिान होिा है।
मृिदािो िोगािोमागयििो िवति दुःतखिः पापः।

166
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


श्रीितहिः सन्तप्तः शष्किन ु
ियवति सप्तमे िौमे।।32।।
यतद कुण्डली में सप्तम िाव मे िौम हो िो िािक - मृि पत्नी वाला, िोग से दुःखी, कुकमी

अथायि असि ्
मागय में लीन, दुःखी, पापी, लक्ष्मी से हीन, सन्तप्त एवं नीिस देहिािी होिा है।
व्यातिप्रायोऽल्पायःु कुशिीिो नीचकमयकिाय च।
तनिनस्थे तक्षतििनये िवति पमान ्
ु शोकसन्तप्तः।।33।।
यतद कुण्डली में अष्टम िाव में िौम हो िो िािक िोगी, अल्पाय,ु कुतत्सि देहिािी, दूतषि
काययकिाय िथा शोक से दुखी होिा है।
अकुशलकमाय िेष्यः प्रातणविपिो िवेन्नवमसंस्थ े।
िमयितहिोऽतिपापो निेन्द्रकृ िगौिवो रुतििे।।34।।
यतद कुण्डली में नवम िाव में िौम हो िो िािक - अचिि,
ु काययकािी, द्रोही, औि
िीववहसा में ित्पि, अिमी, अतिक पापी, िािा से सम्मान पाने वाला होिा है।
ु दशमे शूिो िृष्यः प्रिानिनसेवी।
कमोद्यक्तो

सिसौख्यय ु रुतििे प्रिापबहुलः पमान
िो ्
ु िवति।।35।।
यतद कुण्डली में दशम िाव में िौम हो िो िािक - कायों में उद्यि, दमनीय, प्रिान िनसेवी,
पत्रु एवं सख ु िथा अतिक प्रिापी होिा है।
ु मे यक्त

एकादशगे िनवान तप्रयस ु
खिागी िथा िवेच्छूिः।
िनिान्यसिु ै: सतहिः तक्षतििनये तवगिशोकि।।36।।
यतद कुण्डली में आय िाव में िौम हो िो िािक - िनी, अिीष्ट सख
ु िोक्ता, वीि, िन -
िान्य (अन्नातद) पत्रु से यिु िथा शोक से ितहि होिा है।
नयनतवकािी पतििो िायाघ्नः सूचकि िौद्रि।
िादशगे पतििूिो बिनिाक ् िवति िूपत्रेु ।।37।।
यतद कुण्डली में बािहवें िाव में िौम हो िो िािक - नेत्र िोगी, पतिि, स्त्रीहन्ता, चगलखोि,

ियंकि, पीतड़ि िथा िेल िोगने वाला होिा है।
बिु का िावफल

अनपहिदे ु शकलाज्ञानकाव्यगतणिज्ञः।
हबतद्धदे
ु िवाक्यो
अतिमििचि ु दीघाययःु स्यािबिे
ु लिे।।38।।
यतद कुण्डली में लि में बिु हो िो िािक - अक्षि देह एवं बतद्ध
ु वाला, देश - कला - ज्ञान
- काव्य - गतणि का ज्ञािा, मृदु एवं कुशल वचन बोलने वाला एवं दीघायय ु होिा है।

167
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


बद्ध्योपार्तिितविवो िनिवनगिेऽन्नपानिोगी च।

शोिनवाक्यः सनयः शतशिनये मानवो िवति।।39।।
यतद कुण्डली में तििीय िाव में बिु हो िो िािक - बतद्ध
ु से ऐश्वयय अर्तिि किने, अन्न एवं
ु वाणी वाला एवं न्याय का प्रेमी होिा है।
पान का िोक्ता, सन्दि
ु िवति िािः।
श्रमतनििः पतिदीनस्तृिीयिाशौ बिे
ु सहिसमेिो मायाबहुलो निितलिः।।40।।
तनपणः
यतद कुण्डली में िृिीय िाव में बिु हो िो िािक-पतिश्रमी, पीतडि, कायय कुशल, िाइयों से
ु अतिक मायावी िथा चञ्चल होिा है।
यि,

पतण्डिबाहुः सिगो ु बिे
वाहनयक्तो ु तहबकसं
ु स्थ े।

सपतिछदः ु
ु ियवति
सबि ्
निः पतण्डिो तनत्यम।।41।।
यतद कुण्डली में चिथय
ु िाव में बिु हो िो िािक - ििबल ु से तविान, ् सौिाग्यवान, ् सवािी
ु सन्दि
से यि, ु वस्त्रिािी िथा अछे बिओ ्
ु ं से यिु एवं तविान होिा है।
मन्त्रातिचािकुशलो बहुिनयः पञ्चमे सौम्ये।

तवद्यासखप्रिावै ु
ः समतन्विो हषयसंयक्तः।।42।।
यतद कुण्डली में पञ्चमिाव में बिु हो िो िािक - मन्त्र वेिा, मािण तक्रया में चिि,
ु अतिक
ु - प्रिाव से यिु एवं प्रसन्निा से यिु होिा है।
पत्रु वाला, तवद्या - सख
ु षष्ठे।
वादतववादे कलहे तनत्यतििो व्यातििो बिे
अलसो तवनष्टकोपो तनष्ठुिवाक्योऽतिपतििूिः।।43।।
यतद कुण्डली में शत्रिाव
ु में बिु हो िो िािक - वाद तववाद एवं कलह में तनत्य तवियी,
िोगी, आलसी, क्रोिहीन, कटुिाषी एवम अति ् पीतड़ि होिा है।
ु षां नातिकुलीनां च कलहशीलां च।
प्रज्ञां सचारुवे
िायायमनेकतविां द्यून े लििे महत्त्वं च।।44।।
यतद कुण्डली में सप्तमिाव में बिु हो िो िािक तविान, ् सन्दिु वेष वाली, उत्कृ ष्ट कुल से

हीन एवं कलही, अनेक िनों से यिु स्त्री को प्राप्त किने वाला िथा महान होिा है।
तवख्यािनामसाितिििीवी कुलििो तनिनसंस्थ े।
शतशिनये िवति निो नृपतिसमो दण्डनायको वाऽतप।।45।।
यतद कुण्डली में अष्टम िाव में बिु हो िो िािक - प्रतसद्ध नाम वाला, दीघायय,ु िािा के
समान या न्यायािीश होिा है।

168
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


नवमगिे िवति पमानतििनतवद्याय ु शिाचािः।
िः ु
ु िर्तमष्ठः सोमपत्रेु तह।।46।।
वागीश्विोऽतितनपणो
यतद कुण्डली में नवमिाव में बिु हो िो िािक - अतिक िन एवं तवद्यासम्पन्न, सदाचािी,
वाक्पटु, अत्यन्त चििु एवं िमायत्मा होिा है।
प्रविमतिकमयचष्टे ः सफलािम्भो तवशािदो दशमे।
घोिः सत्त्वसमेिो तवतविालङ्कािसत्विाक ् सौम्ये।।47।।
ु कायय तसतद्ध किाय, श्रेष्ठ, ि ैययवान, ्
यतद कुण्डली में दशमिाव में बिु हो िो िािक श्रेष्ठ बतद्ध,
बलवान, ् सत्यवान एवम
् ् क आिूषणों के सख
अने ु का िोगी होिा है।

िनवान तविेयिृ ु
त्यः प्रायः सौख्यातन्विो तवपलिोगी।
ु स्थाद ् बह्वायःु ख्यातिमान प् रुष:।।48।।
एकादशे बिे ु
ु सखी,
यतद कुण्डली में एकादश िाव में बिु हो िो िनी, िृत्ययक्त, ु अतिक िोगी, दीघायय ु
एवं प्रतसतद्ध प्राप्त किने वाला होिा है।
ु हीिवाक्यमलसं पतििूि ं वातग्मनं िथा प्राज्ञम।्
सगृ
ु दीनं नृशस
व्ययगः किोति सौम्यः परुषं ं ं च।।49।।
यतद कुण्डली में बािहवें िाव में बिु हो िो िािक श्रेष्ठ श्रोिा, आलसी, पीतड़ि, वाग्मी,
पतण्डि, दीन एवं तनतन्दि होिा है।
बृहस्पति का िावफल

होिासंस्थ े िीवे सशिीिः ् दीघाय
प्राणवान स ु यः। ु

ससमीतक्षिकाययकिः प्राज्ञो िीिस्तथाययि।।50।।
यतद कुण्डली में लि में गरुु हो िो िािक - सन्दि ु देहिािी, बली, दीघायय,ु समदृतष्ट,
प्रज्ञावान, ् ि ैययवान ् िथा श्रेष्ठ होिा है।

िनवान िोिनसािो वाग्मी सवप ु ् सवस्त्रि।
ु :ु सवाक ु

कल्याणवपस्त्यागी समु खो
ु िीवे िवेद्धनगे।।51।।
यतद कुण्डली में तििीयिाव में गरुु हो िो िािक – िनी, िोिनाथी, वाग्मी, सन्दि
ु शिीि
ु वस्त्रवाला एवं त्यागी होिा है।
एवं वाणी वाला, पिोपकािी, सन्दि
अतिपतििूिः कृ पणः सदातििो मानवो िवति िीवे।
मन्दातिस्त्रीतवतििो दुतिक्ये पापकमाय च।।52।।

169
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

यतद कुण्डली में िृिीय िाव में गरुु हो िो िािक - अतिक दुःखी, लोिी, सदा तवियी,
मन्दाति (अल्प पाचनशतक्त) वाला, स्त्री से पिातिि एवं पापी होिा है।

स्विनपतिछदवाहनसखमतििोगाथयसं ु िवति।
यिो

श्रेष्ठः शत्रतवषादी ु स्थ े सदा िीवे।।53।।
चिथयसं
ु िाव में गरुु हो िो िािक - स्विन - वस्त्र - सवािी - सख
यतद कुण्डली में चिथय ु - बतद्ध
ु -
ु श्रेष्ठ एवं शत्र ु को दुःख देन े वाला होिा है।
िोग- िन से यक्त,
ु ितमत्रसमृ
सखस ु द्धः प्राज्ञो िृतिमांस्तथा तविवसािः।
ु िवति िािः।।54।।
पञ्चमिवने िीवे सवयत्र सखी
यतद कुण्डली में पञ्चमिाव में गरुु हो िो िािक - सख
ु - पत्रु - तमत्र से सम्पन्न, पतण्डि,
ि ैययवान, ् ऐश्वययवान िथा
् ु होिा है।
सवयत्र सखी
ं ु ः पतििूिो दुबयलोऽलसः षष्ठे।
सन्नोदिातिपस्त्व

स्त्रीतवतििो तिपहन्ता ु
िीवे परुषोऽतितवख्यािः।।55।।
यतद कुण्डली में शत्र ु िाव में गरुु हो िो िािक - दूतषि िठिाति वाला, पीतड़ि, तनबयल,
ु िा िथा अतिक प्रतसद्ध होिा है।
आलसी, स्त्री से पिातिि, शत्रिे

सिगः ु
सरुतचिदािः ु
तपिितिकः सप्तमे िवति िािः।

वक्ता कतवः प्रिानः प्राज्ञो िीवे सतवख्यािः।।56।।
यतद कुण्डली में सप्तम िाव में गरुु हो िो िािक - िाग्यवान, ् सन्दि
ु स्त्री का पति, वक्ता,
कतव, प्रिान, पतण्डि एवं तवख्याि होिा है।
पतििूिो दीघाययिृ ु िको
य दासोऽथवा तनिनसंस्थ े।
् ।।57।।
स्विनप्रेष्यो दीनो मतलनस्त्रीिोगवान िीवे
यतद कुण्डली में अष्टम िाव में गरुु हो िो िािक - पीतड़ि, दीघायय,ु वेिन िोगी, दास
(सेवक ), अपने िनों का िृत्य, दीन, मतलन (दूतषि ) िथा स्त्री िोगी होिा है।
दैवितपिृकाययििो तविान स् िगो
ु िवेिथा नवमे।
नृपमन्त्री नेिा वा िीवे िािः प्रिानि।।58।।
यतद कुण्डली में नवमिाव में गरुु हो िो िािक - देव एवं तपिृ कायों में लीन, तविान, ् सन्दि,

िाग्यवान, ् िािा का मन्त्री, नेिा िथा प्रिान होिा है।
तसद्धािम्भो मान्यः सवोपायः कुशलसमृद्धि।
ु सखिनिनवाहनयशोिाक
दशमस्ये तत्रदशगिौ ु ्
।।59।।

170
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

यतद कुण्डली में दशमिाव में गरुु हो िो िािक – कायों में कुशल, सम्मातनि, समस्त
ु से सम्पन्न, सख
उपायों का ज्ञािा, चिििा ु - िन - िन-सवािी एवं यश का िोगी होिा है।

अपतितमिायिीिो बहुवाहनिृत्यसंयिु सािः।


एकादशिे िीवे न चातितवद्यो न चातिसिः।।60।।
यतद कुण्डली में एकादशिाव में गरुु हो िो िािक - दीघायय,ु ि ैययवान, ् अतिक सवािी एवं
नौकिों से यि, ्
ु सज्जन एवं अतिक तवद्यावान एवम ्
अतिक ु
पत्रवान ् होिा है।
नहीं
अलसो लोकिेष्यो ह्यपगिवाग्दैवपक्षििो वा।
ु िवति।।60।।
पतििः सेवातनििो िादशसंस्थ े गिौ
यतद कुण्डली में बािहवें िाव में गरुु हो िो िािक - आलसी, संसाि िेषी, अतस्थि वाणी
वाला अथवा वाणीहीन, देवपक्ष से नष्ट एवं सवयत्र सेवा में लीन होिा है।
ु का िावफल
शक्र

सनयनवदनशिीिं ु
सतखिं दीघाययषंु िथा िीरुम।्

यवतििननयनकान्तं ु
िनयति होिागिः शक्रः।।62।।
यतद कुण्डली में लिगि शक्र
ु हो िो िािक - सन्दि ु से यिु शिीि – िािी,
ु नेत्र एवं मख
ु दीघायय,ु कायि एवं स्त्री समदाय
सखी, ु का तप्रय होिा है।

प्रचिान्नपानतविवं ु
श्रेष्ठतवलासं िथा सवाक्यं च।
कुरुिे तििीयिाशौ बहुिनसतहिं तसिः परुषम ्
ु ।।63।।
यतद कुण्डली में तििीय िाव में शक्र ु
ु हो िो िािक - अतिक अन्न - पेय एवं ऐश्वयय से यि,

उिम िोगी, सन्दििाषी िथा अतिक िनवान ् होिा है।

सखिनसतहिं ु दुतिक्ये स्त्रीतििं िथा कृ पणम।्
शक्रो
िनयति मन्दोत्साहं सौिाग्यपतिछदािीिम।।64।। ्
यतद कुण्डली में िृिीय िाव में शक्र ु हो िो िािक - सखी,
ु िनी, स्त्री से पिातिि, लोिी,
् वस्त्रों से यिु होिा है।
अल्पोत्साही, सौिाग्यवान एवं
ु हृत्स
बिस ु
ु खसतहिं कान्तं वाहनपतिछदसमृद्धम।्
ु िनयति तहबकेु निं शक्रः।।65।।
लतलिमदीनं सिगं ु
यतद कुण्डली में चिथय ु िाव में शक्र
ु हो िो िािक - बािव - तमत्र - सख ु सन्दि,
ु से यि, ु

वाहन एवं वस्त्रों से सम्पन्न, मनोहि, अदीन (दीनिा से ितहि) एवं सौिाग्यवान होिा है।
ु ितमत्रोपतचिं
सखस ु ु
ितिपिमतििनमखतण्डिं शक्रः।

171
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


कुरुिे पञ्चमिाशौ मतन्त्रणमथ दण्डनेिािम।।66।।
यतद कुण्डली में पञ्चम िाव में शक्र
ु हो िो िािक - सख ु कामी, अतिक
ु - पत्रु - तमत्र से यि,
िनी, अखतण्डि, सतचव एवं न्यायािीश होिा है।

अतिकमतनष्टं स्त्रीणां प्रचिातमत्रं तनिाकृ िं तविवैः।
तवकलमिीव नीचं कुरुिे षष्ठे िृगोस्तनयः।।67।।
यतद कुण्डली में शत्र ु िाव में शक्रु हो िो िािक - अतिक अशिकािी,
ु तस्त्रयों का शत्र,ु

ऐश्वययहीन, तवकल एवम अतिक दुष्ट होिा है।
ु ।्
अतिरूपदािसौख्यं बहुरूपं कलहवर्तििं परुषम

िनयति सप्तमिामतन सौिाग्यसमतन्विं शक्रः।।68।।
यतद कुण्डली में सप्तम िाव में शक्र
ु हो िो िािक - अतिक रूपविी स्त्री के सख
ु का िोगी,
अतिक ऐश्वययवान, ् कलह से ितहि िथा सन्दि
ु िाग्य से यिु होिा है।
ु पमस
दीघाययिन ु ु शक्र
खः ु े तनिनातश्रिे िनसमृद्धः।
् पतिसमः क्षणे क्षणे लब्धपतििोषः।।69।।
ु नृ
िवति पमान
ु हो िो िािक - दीघायय,ु अतििीय सखी,
यतद कुण्डली में अष्टम िाव में शक्र ु िन से सम्पन्न,
िािा के समान एवं क्षण-क्षण में सन्तोष प्राप्त किने वाला होिा है।

सममायििनतविोदािय ु
वतिस खसु ह्रज्जनोपेिः।


िृगिनये ु
नवमस्थे सिातितथग ु
रुप्रसक्तः ्
स्याि।।70।।
यतद कुण्डली में नवम िाव में शक्र
ु हो िो िािक - समान लम्बी-चौंड़ी देहवाला, िनी,
ु देविा - अतितथ एवं गरुु का िक्त होिा है।
ु तमत्रों से यक्त,
उदाि स्त्री वाला, सखी,

उद्यानसतविवा ु
तहिसखितिमानाथयकीिययो यस्य।

सा दशमस्थे िृगिनये िवति पमान ्
ु बहुमतिः ख्यािः।।71।।
तिसकी कुण्डली में दशम िाव में शक्र ु सखी,
ु हो िो िािक - ऐश्वययवाला, तमत्रों से यि, ु
ितिमान, ् मानी, िनी, यशस्वी, अतिक बतद्धमान
ु ् प्रतसद्ध होिा है।
एवं
प्रतिरूपदासिृत्य ं बह्वायं सवयशोकसन्त्यक्तम।्

िनयति िविवनगिो िृगिनयः ्
ु ।।72।।
सवयदा परुषम
यतद कुण्डली में एकादश िाव में शक्र
ु हो िो िािक – तनिसदृश सेवकों से (अनकूु ल
ु अतिक लािवान एवं
सेवकों) यि, ् समस्त दुःखों से ितहि होिा है।

अलसं सतखनं स्थूलं पतििं मृष्टातशनं िृगोस्तनयः।

172
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


शयनोपचािकुशलं िादशगः स्त्रीतििं िनयेि।।73।।
यतद कुण्डली में बािहवें िाव में शक्र
ु हो िो िािक – आलसी, सखी,
ु मोटा, पतिि, उिम
िोिन किने वाला, शर्य्ा के उपचाि में चििु िथा स्त्री से पिातिि होिा है।
शतन का िावफल
ु लिेऽकय ि े िवति देशपिातिनाथः।
स्वोच्चस्वकीयिवने तक्षतिपालिल्यो ु
शेषषे ु दुःखगदपीतडि एव बाल्ये दातिद्र्य कमयवशगो मतलनोऽलसि।।74।।
यतद कुण्डली में लिस्थ शतन, िला
ु वा मकि वा कुम्भ िातश का हो िो िािक देश या नगि
का स्वामी, िािा के सम्मातनि होिा है। अवतशष्ट िातशयों में लिस्थ शतन हो िो िािक - दुःखी एवं
बाल्यावस्था में िोग से पीतड़ि, दतिद्री, कायों के वश में, दूतषि िथा आलसी होिा है।
तवकृ िवदनोऽथयिोक्ता िनितहिो न्यायकृ त्कुटुम्बगिे।
पिात्पिदेशगिो िनवाहनिोगवान सौिे ् ।।75।।
यतद कुण्डली में तििीय िाव में शतन हो िो िािक - तवकृ ि मखवाला,
ु ु
िन िोगी, मनष्यों
ु एवं सवािी का सख
से हीन, न्यायकिाय, पिदेशगामी िथा मनष्य ु िोगने वाला होिा है।
मतलनः संस्कृिदेहो नीचोऽलसपतििनो िवति सौिे।
ु दुतिक्यगिे तवपलब
शूिो दानानििो ु तद्धः।।76।।

यतद कुण्डली में िृिीय िाव में शतन हो िो िािक - दूतषि, संस्काि से यिु देह वाला, दुष्ट,
आलसी मनष्यों ु वीि, दानी िथा बड़ा बतद्धमान
ु से यक्त, ु होिा है।
पीतडिहृदयो तहबकेु तनबायिववाहनाथयमतिसौख्यः।
् ।।77।।
बाल्ये व्यातििदेहो नखिोमििो िवेि सौिे
यतद कुण्डली में चिथयिाव
ु ु
में शतन हो िो िािक - दुःतखि हृदयवाला, बिहीन, वाहन से
ु िनी, बतद्धमान
यि, ु , ् सखी,
ु बाल्यावस्था में िोगी, नाखून एवं लोम को िािण किने वाला होिा है।
ु ितमत्रतवहीनं
सखस ु मतिितहिचेिसं तत्रकोणस्थः।

ु सदा दीनम।।78।।
सोिादं ितविनयः किोति परुषं
यतद कुण्डली में पञ्चमिाव में शतन हो िो िािक - सख
ु - पत्रु - तमत्र से ितहि, बतद्धहीन

तचिवाला, पागल िथा दीन होिा है।
प्रबलमदनं सदेु हं शूिं बह्वातशनं तवषमशीलम।्

बहुतिपपक्षक्षतपिं ु
तिपिवनगिोऽकय िः कुरुिे।।79।।

173
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

यतद कुण्डली में शत्रिाव


ु ु शिीििािी, वीि,
में शतन हो िो िािक - प्रबल कामी, सन्दि
अतिक खानेवाला, तवपिीि स्विावी िथा अतिक शत्र ु से पीतड़ि होिा है।
सििमनािोग्यिन ं ु मृिदािं िनतववर्तििं िनयेि।्

द्यून ेऽकय िः कुवषे ं पापं बहुनीचकमायणम।।80।।
यतद कुण्डली में सप्तम िाव में शतन हो िो िािक - तनिन्ति िोगी, मृि पत्नी वाला, तनियन,

दूतषि वेषिािी, पापी एवम अतिक घृतणि कायय किने वाला होिा है।
कुष्ठिगन्दििोगितििप्तं ह्रस्विीतविं तनिने।

ु ।।81।।
सवायिम्भतवहीनं िनयति ितविः सदा परुषम
यतद कुण्डली में अष्टम िाव में शतन हो िो िािक कोढ़ एवं िगन्दि िोग से दुखी, अल्पाय ु
एवं समस्त कायों से ितहि होिा है।

िमयितहिोऽल्पितनकः सहिसितववर्तििो नवमसंस्थ े।

ितविे सौख्यतवहीनः पिोपिापी च िायिे मनिः।।82।।
यतद कुण्डली में नवम िाव में शतन हो िो िािक - अिमी, अल्पिनी, िाई एवं पत्रु से हीन,
ु से ितहि िथा दूसिों को पीड़ा देन े वाला होिा है।
सख

िनवान प्राज्ञः शूिो मन्त्री वा दण्डनायको वाऽतप।

दशमस्थे ितविनये वृन्दपिग्रामनेिा च।।83।।
यतद कुण्डली में दशम िाव में शतन हो िो िािक - िनी, पतण्डि, वीि, सतचव, न्यायािीश,
ु - नगि - ग्राम का प्रिान होिा है।
समदाय
बह्वायःु तस्थितविवः शूिः तशल्पाश्रयो तवगििोगः।
आयस्थे िानसु िेु िनिनसम्पद्यिो
ु िवति।।84।।
यतद कुण्डली में एकादशिाव में शतन हो िािक - दीघायय,ु तस्थि ऐश्वयय वाला, वीि, नीिोग
ु - सम्पति से यिु होिा है।
िथा िन - मनष्य
ु तवषमाक्षो तनघृणो तवगिलज्जः।
तवकलः पतििो मखिो
् पतििू
व्ययिवनगिे सौिे बहुव्ययः स्याि स ु िः।।85।।
यतद कुण्डली में बािहवें िाव में शतन हो िो िािक - अशान्त तचि, पतिि, अग्रगामी अथवा
प्रिान, तवषम दृतष्ट वाला, घृणा से हीन, तनलयज्ज, अतिक व्ययकिाय िथा पीतड़ि होिा है।


लघपािाशिी

174
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सञ्ज्ञाध्याय

पिाशि की पद्धति के मानने वालों ने कतिपय श्लोक बृहत्पिाशि होिाशास्त्र से चनकि िथा
कुछ उसके साि को बिाने वाले श्लोक लेकि उडदु ायप्रदीप नामक ग्रन्थ में सङ्कतलि तकये। यही ग्रन्थ
पिाशिपद्धति की कुञ्जी होने से लघपािाशिी
ु कहलाया।

तसद्धान्तमौपतनषदं शद्धान्तं पिमेतष्ठनः।

शोणाििं महः तकतञ्चद ् वीणाििमपास्महे
।।1।।
हम श्रतु ि ( वेदाङ्गातद ) प्रतिपातदि, वाद - प्रतिवाद से तनष्पातदि ब्रह्मा के नािीस्वरूप वीणा
को िािण तकये, िक्त ( गौि ) वणय के अिि ( ओष्ठ ) वाले तकसी अतनवयचनीय िेि की अथायि श्री ्
सिस्विी िी की उपासना कििे हैं । बृहत्पािाशिहोिाशास्त्र िािक स्कि का मूलािाि एवं

तवशालकाय ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ का महत्त्व इसी बाि से प्रकट होिा है तक लोग इसे वेदवि आदि
देि े हैं । होिाशास्त्र के प्रवियक महर्तष पािाशि हैं । प्रिीि होिा है। इसी से इस ग्रन्थ को पािाशिी के
नाम से िाना िाने लगा होगा, िो आि िी उसी ििह प्रचतलि है। इस ग्रन्थ में िािकशास्त्र के
मूलिूि एवं तवतशष्ट तसद्धान्तों का प्रतिपादन तवस्ताि से तकया गया है। वे तसद्धान्त सम्प्रति िी
'फतलिज्योतिष ' के मौतलक, तवतशष्ट एवं अकाट्य तसद्धान्तों में अपना तवतशष्ट स्थान िखिे हैं । उन्हीं

मूलिूि एवं अकाट्य पािाशिी तसद्धान्तों का अनसिण कि उसके साि - संक्षपे उडुदायप्रदीप ' नामक

लघकातयक प्रस्तिु ग्रन्थ के रूप में प्रकट तकया, िो ' लघपािाशिी
ु ' नाम से िी सम्प्रति िगत्प्रतसद्ध
है।
ु त्य यथामतिः।
वयं पािाशिीं होिामनसृ
उडदु ायप्रदीपाख्यं कुमों दैवतवदां मदेु ।।2।।

हम पािाशिी होिाशास्त्र का अनसिण कि अपनी बतद्ध ु के अनसाि
ु ज्योतितषयों के प्रसन्निा
के तलए उडुदायप्रदीप नामक ग्रन्थ को कििे हैं । प्रस्तिु ग्रन्थ का नाम वस्तिः
ु ' उडुदाय प्रदीप ' ही
है। ि ैसा इस ग्रन्थ में उडु नक्षत्र औि दाय ( दशा ) के आिाि पि तवतशष्ट, मौतलक एवं अकाट्य
फतलि तवज्ञान के तसद्धान्तों की तववेचना प्रस्तिु की गई है। प्रायः सिी दैवज्ञ इस िथ्य से सहमि
िी हैं । ग्रन्थकिाय ने ग्रन्थािम्भ में ही प्रतिपाद्य तवषय, उसका सम्बि एवं प्रयोिन स्पष्ट कि अपनी
ु प्रयोिन यह स्पष्ट
कियव्य पालन की योग्यिा को िी िेखातङ्कि कि तदया है। यहााँ ग्रन्थकिाय का प्रमख

होिा है तक तिज्ञासिनों य हो सके , सटीक
को पािाशिी के तसद्धान्तों का पतिज्ञान सिलिा पूवक
फलादेश किने से प्रसन्निा औि उनका उत्साह बढ़ सके तिससे पािाशिी होिाशास्त्र के ममय को
िानने में सफलिा िी प्राप्त हो।

175
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

फलातन नक्षत्रदशाप्रकािेण तववृण्महे।


दशाववशोििी चात्र ग्राह्या नाष्टोििी मिा।।3।।
ु ही िािक के शिाश
हम इस ग्रन्थ में नक्षत्र दशा के अनसाि ु िु फलों का तववेचन बिािे हैं ।
यहााँ के वल ववशोििी दशा ही ग्रहण किना, न तक अष्टोििी दशा को ग्रहण किना चातहए।
बृहत्पािाशि होिाशास्त्र आतद में अनेकतवि दशाओ ं का उिे ख तमलिा है, उनमें प्रमख
ु दशाएाँ हैं -
(1) ववशोििी (2) अष्टोििी (3) षोडशोििी (4) िादशोििी (5) योतगनी दशा (6) न ैसर्तगकदशा।
इन दशा िेदों में ववशोििी, अष्टोििी, योतगनी आतद का व्यवहाि सम्प्रति प्रायः सिी ज्योतिषीगण
कििे हैं । तफि िी यहााँ ग्रन्थकाि ने ववशोििी औि अष्टोििी दशा का ही नामोिे ख तकया है,
तवशेषकि ववशोििी दशा को ही ग्रहण किने का तनदेश है। अि: प्रिीि होिा है तक समस्त दशाओ ं
में ववशोििी दशा की ही प्रिानिा है। तिस कािण दशा के प्रयोग का औतचत्य तनिायिण गौण
मानकि हि िगह, हि िािक के तलए ववशोििी का उपयोग किना सही है, तवचािणीय िथ्य है,
क्योंतक आचायय का ववशोििी दशा ग्रहण किने का तनदेश तकस प्रयोिन से है, इसे िानना आवश्यक
यु श्लोक से ग्रन्थकिाय सम्भवि: यह बिलाना या सङ्के ि किना चाहिा
ही नहीं अतनवायय िी है। उपयक्त
हो तक इस ग्रन्थ में िो तसद्धान्त दशाफल के प्रसङ्ग में कहे िा िहे हैं , वे के वल ववशोििी दशा के तलए
ु हैं। इस सम्बि में एक बाि ही अति महत्त्वपूण य प्रिीि होिी है तक ववशोििी दशा प्रयोग
ही उपयक्त
के तलए तकसी प्रकाि का प्रतिबिक शिय नहीं उपलब्ध होिी है। अष्टोििी दशा के प्रयोग में
अिोतलतखि प्रतिबिों को दृतष्ट में िखना आवश्यक है-
( 1 ) ििाङ्ग चक्र में लि को छोड़कि लिेश, तिस िातश में हो, उस िातश से के न्द्र औि
तत्रकोण में िाहु के तस्थि होने पि अष्टोििी दशा ग्रहण किनी चातहए अन्यथा नहीं।

गििाि, कछ, कातठयावाड (सौिाष्ट्र), पाञ्चाल (पंिाब) िथा तसि ु पवयि में अष्टोििी दशा

ग्रहण किनी चातहए। अन्यत्र ववशोििी दशा ग्रहण किना समतचि है।
बृहत्पािाशि होिाशास्त्र में पािाशि महर्तष ने ववशोििी दशा के व्यवहाि में तकसी प्रकाि के

शिय या प्रतिबि का उिे ख नहीं तकया है। अि: ग्रन्थकिाय पािाशिीमि का अनसिण कििे हुए
ग्रन्थिचना का सङ्कल्प व्यक्त कििे हैं औि ववशोििी दशा को ही सवयिनीन मानकि प्रयोग का तनदेश
देि े है। दशा के पााँच प्रकाि होिे है दशा, अन्तदयशा, प्रत्यन्तदयशा, तवदशा, उपदशा |

ववशोििी दशा कृ तिकातद क्रम


ििक्षय कृ . िो. मृ. आ. ु
पन. प.ु श्ले. ज्ये. मघा मू. पू.िा. पू.षा. ि.
उ.फा. ह. तच. ि. स्वा. श. तव. अन.ु .िा. िे. अ.

176
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

उ.षा श्र. पू.िा.


दशेश सू. चं. मं. िा. ग.ु श. ब.ु के . श.ु
दशावषय 6 10 7 18 16 19 17 7 20
बिु ैिायवादयः सवे ज्ञेयाःसामान्यशाििः।
ु ण संज्ञां ब्रूमो तवशेषिः।।4।।
एिछास्त्रानसािे
तविज्जनों को प्रचतलि एवं मान्य ग्रन्थों से िादश िाव िातश, लि, ग्रह औि अन्यान्य
सम्बतिि सामान्य तवषयों की िानकािी किके इस उडुदाय - प्रदीप नामक ग्रन्थ तवशेष का अध्ययन
ु िफल
एवं मनन किना चातहए, क्योंतक यहााँ के वल बृहत्पािाशि होिाशास्त्र के िावातदक शिाश ु ज्ञान
के गूढ़ एवं तवतशष्ट तसद्धान्तों को सहि एवं सिल प्रकाि से कहिे हैं । यहााँ उडुदायप्रदीप नामक इस
ग्रन्थ को समझने समझाने की योग्यिा की ओि ग्रन्थकाि ने बिु ैतिति कहकि स्पष्ट संकेि तकया है।
अि : इस ग्रन्थ के अध्येिा के तलए यह आवश्यक है तक वह तविान हो, ् तत्रस्कि तसद्धान्त - संतहिा
- होिा शास्त्र में उनकी गति हो िथा िादश िाव - िातश – लि के साथ नव ग्रहों के अन्ति - सम्बि
औि उनके तवश्वब्रह्माण्डस्थ चिाचि पि पड़ने वाले प्रिावों के तवश्लेषण की क्षमिा वाला हो। ऐसी
ु िावातदकों के शिाश
योग्यिा वाला अध्येिा ही इस ग्रन्थ के अनसाि ु िु फलों का सही तवश्लेषण कि
सकिा है। होिाशास्त्र में िि या प्रश्न के समय के आिाि पि तनरूतपि आकाशीय मानतचत्र अथायि ्
ु िु फल को प्रस्तिु तकया िािा है। उस कुण्डली में िादश
कुण्डली से िािक के या पृछक के शिाश
िाव बने होिे हैं । इस प्रकाि िादश िाव, िादश उदय लि औि िादश िातशयााँ ग्रहों के योग से
चिाचि िगि को ् प्रिातवि कििे हैं ।
पश्यतन्त सप्तमं सवे शतनिीवकुिा: पनः।


तवशेषिि तत्रदशतत्रकोणचििष्टमान ्
।।।5।।
सप्तम ( िाया ) िाव को सिी ग्रह पूण य दृतष्ट से देखिे हैं । शतन, गरुु औि मङ्गल सप्तम के
अतितिक्त स्थान ि ैसे शतन िृिीय - दशम स्थानों, गरुु नवम एवं पञ्चम स्थानों औि मङ्गल चिथय ु

एवम अष्टम स्थानों को िी पूण य दृतष्ट से देखिे हैं । इस ग्रन्थ में पूण य दृतष्ट ही महत्त्वपूण य मानी गयी है।
तवतिन्न िािक ग्रन्थों में ग्रहों की पूण य दृतष्ट के अतितिक्त दृतष्ट िी मानी गयी हैं । ि ैसे - पूण य दृतष्ट, एक
पाद दृतष्ट, तिपाद दृतष्ट औि तत्रपाद दृतष्ट। वहीं सिी ग्रह िाया स्थान को पूण य दृतष्ट से देखिे हैं । िबतक
शतन 7, 3, 10 को, गरुु 7, 9, 5 को मङ्गल 7, 4, 8 को पूण य दृतष्ट से ही देखिे हैं । यहााँ अतिप्राय यही
है तक पािाशि मि पूण य दृतष्ट को ही मानिा है।
ु ित्व
पिाशिमि से ग्रहों का शिाश ु

सवे तत्रकोणनेिािो ग्रहाः शिफलप्रदाः।

177
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

पियतस्त्रषडायानां यतद पापफलप्रदाः।।6।।



सिी ग्रह तत्रकोण ( 9 एवं 5 िावों ) के स्वामी होकि शिफलदायक औि तत्रषडाय (3,6,11
िावों) के स्वामी होकि अशिु फलदायक होिे हैं । तत्रकोण िावों के स्वामी सिी ग्रह सदैव

शिफलदायक होिे हैं , चाहे वे न ैसर्तगक शिु ग्रह हों, या पापग्रह। यह कहा िा सकिा है तक शिु
ग्रह अतिशिु औि पापग्रह शिद
ु होिे हैं । इसी प्रकाि तत्रषडाय के स्वामी ग्रह पाप फलद होिे हैं ।
शिु ग्रह अशिद
ु औि पापग्रह अति अशिद
ु होिे हैं । यहााँ तनष्कषय यही तनकलिा है तक शिु एवं
ु औि तत्रषडायेश हो, िो अशिद
पाप ग्रह यतद तत्रकोणेश हों िो शिद ु ही होंगे। यहााँ इस बाि की
ओि ध्यान देना चातहए तक यतद दो िातशयों के स्वामी ग्रह तत्रषडायेश औि तत्रकोणेश िी हों, िो वह
पाप फलद ही माने िािे हैं ।
के न्द्रातिपति दोष
न तदशतन्त शिं ु नृणां सौम्याः के न्द्रातिपा यतद।
क्रूिािेदशिु ह्येि े प्रबलािोििोििम।।7।। ्
शिु ग्रह यतद के न्द्रेश हों, िो वे शिु फल नहीं देि।े पापग्रह यतद के न्द्रेश हो िो अशिु फल
नहीं देि।े इस प्रकाि सिी उििोिि क्रम से बली होिे हैं । ि ैसे - पञ्चमेश से नवमेश बली, िृिीयेश
ु श, चिथे
से षष्ठेश, षष्ठेश से एकादशेश, औि लिेश से चिथे ु श से सप्तमेश, सप्तमेश से दशमेश
बली होिे हैं । अि: बलवान ्ग्रह के अनसाि
ु फलकथन किना समीचीन है,उपयक्त यु कथनों से यह
स्पष्ट हुआ तक यतद ग्रह ( न ैसर्तगक शिु एवं पाप ) तत्रकोणेश है, िो शि,
ु तत्रषडायेश है, िो अशिु
ु फल को स्थतगि िखिे हैं।
औि के न्द्रेश होने पि ग्रह स्विावानसाि
तििीयेश िथा िादशेश का फलतवचाि
लिाद्व्ययतििीयेशौ पिेषां साहचययिः।
ु न िविः फलदायकौ।।8।।
स्थानान्तिानगु ण्ये
ु औि
लि से व्ययेश औि िनेश ( 12 एवं 2 िावों के स्वामी ) अपने दूसिे स्थान के अनरूप
यु कथन से यह िो
ु फल देि े हैं , उपयक्त
अन्य तिस प्रकाि के ग्रह के साथ सम्बि कििे हों, िदनरूप
ु शिाश
स्पष्ट ही है तक िादशेश औि तििीयेश स्विावानसाि ु िु फल नहीं देि।े तिस स्थान या तिस
ु िु िाव में हो, उसी के
प्रकाि के ग्रह के साथ िहिे हैं अथवा उनकी अपनी दूसिी िातश ि ैसी शिाश
अनसािु शिु या अशिु फल कििे हैं । अथायि ्वे दोनों तिस ग्रह के साथ िहिे हैं , वह ग्रह अपने
ु फल देिा है। यतद बहुि ग्रह साथ हों, िो बलीग्रह अपने अनसाि
अनसाि ु फल को देिा है। यतद
ु िु फल को कििे हैं । यतद
कोई ग्रह साथ न हो, िो वे अपने दूसिे स्थान के स्वामी होने का शिाश

178
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सूय य या चन्द्र ग्रह तवहीन तििीयेश या िादशेश हो, िो अपने उसी िाव का फल कििा है, िहााँ वह
ब ैठा होिा है। यतद सूय य एवं चन्द्र स्वगृही होकि तििीय या िादश में ब ैठा हो, अन्य तकसी का योग
ु फल को कििे हैं ।
न हो, िो अपने अनसाि
अष्टमेश से फलतवचाि

िाग्यव्ययातिपत्येन िन्ध्रेशो न शिप्रदः।

स एव शिु सिािा लिािीशोतप चेत्स्वयम।।9।।

अष्टमिाव िाग्यिाव का व्ययस्थान है। उस व्ययस्थान के स्वामी होने से अष्टमेश शिफलद
नहीं होिा है तकन्त ु यतद वह स्वयं लिेश िी हो, िो शिफलद
ु होिा है। यहााँ यह िी स्पष्ट है तक
ु होिा है। इन समस्त व्ययेशों में िाग्य का
प्रत्येक िाव का व्ययिाव उस उस िाव के तलए अशिद
ु है।
व्ययेश होना अतिकिि अशिद
दोषों में तवशेष तनयम
के न्द्रातिपत्यदोषस्त ु बलवान्गरुश
ु क्रयोः।

मािकत्वेऽतप च ियोमायिकस्थानसंतस्थतिः।।10।।

बिस्तदन ु चन्द्रोऽतप िवेिदन ु ितििः।

न िन्ध्रेशत्वदोषस्त ु सूयायचन्द्रमसोियवेि।।11।।
ु का के न्द्रातिपतित्व दोष बलवान होिा
बृहस्पति औि शक्र ् है। यतद वे के न्द्रेश होकि मािक

स्थान में तस्थि हों, िो वे अन्य की अपेक्षा अतिक मािक होिे हैं । इस प्रकाि बृहस्पति औि शक्र
सप्तमेश होने से प्रबल मािके श होिे हैं । औि इनसे अल्प बिु औि बिु से अल्प चन्द्रमा मािके श
होिे हैं , यतद वे सप्तमेश हैं । सूय य एवं चन्द्रमा अष्टम स्थान में िी यतद हों, िो उनको अष्टमेश होने का
दोष नहीं होिा क्योंतक एक िातश के स्वामी होने के कािण अष्टमेश होकि वे तत्रकोणेश नहीं हो सकिे।
गरुु एवं शक्र
ु के न्द्र के स्वामी िी हों औि मािक िाव में तस्थि िी हों, िो वे प्रबल दोष कािक होिे
हैं । के न्द्र के दो िावों का स्वामी होकि गरुु प्रायः पिम दोष कािक होिा है, ि ैसा कन्या, तमथन,

िन,ु मीन लि में होिा है। वहीं उसकी सप्तम स्थान में तस्थति प्रबल दोषावह है। शक्र
ु की एक िातश
अतिकिि लि से के न्द्र में पड़िी है। उसकी दूसिी िातश प्राय: 2, 6, 8, 12 या अन्य िावों में पड़िी
है। गरुु औि शक्र
ु सदा न ैसर्तगक शिु होने से इन्हें के न्द्रातिपतिदोष अतिक होिा है। वहीं बिु की
ु कन्या, िन ु औि मीन। बिु के न्द्रेश होकि मािक िाव
दो िातशयााँ के न्द्र में पड़िी हैं , ि ैसे - तमथन,
में पड़ िाय, िो वह मािक होगा। तफि िी गरुु एवं शक्र
ु की अपेक्षा उसमें मािक िाव कम होगा।
ु एवं दशम में न्यूनिम अशिु
इसी प्रकाि चन्द्र की एक िातश होिी है। वह के न्द्रेश होकि िी चिथय

179
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

होगा, वहीं लि, सप्तम में होकि अतिक अशिु होगा। वह िी सप्तम में ककय िातश का होकि मािक
होिा है। तफि िी वह बिु की अपेक्षा अल्प अशिु होगा। तनष्कषय यह है तक के न्द्रेश होकि के न्द्रतस्थि
होने पि गरुु एवं शक्र
ु को उसके बाद बिु औि तफि चन्द्रमा को मािकत्व प्राप्त होिा है।
पापग्रहों के के न्द्रातिपत्य में तवशेष
ु शिकातििा।
कुिस्य कमयन ेिृत्वप्रयक्ता ु
तत्रकोणस्यातप नेिृत्व े न कमेशत्वमात्रिः।।12।।

कुि अथायि मङ्गल (यहााँ मङ्गल पापग्रह का प्रतितनति है) के के न्द्रातिपति होने से सामान्यरूप
से िो शिु फल दािृत्व कहा गया है, वह उसके तत्रकोणेश हुए तबना सम्भव नहीं है। अथायि पापग्रह ्

यतद के न्द्र तत्रकोणतिपति दोनों हो, ििी शिफलप्रद होिा है। पाप ग्रह के के न्द्रेश होने से, िो

शिप्रदिा ु उसके तत्रकोणेश होने पि ही समझना चातहए। पापी ग्रह के के न्द्रेश
बिायी गई है, वस्तिः
होने मात्र से वह पापी ग्रह पापफल को स्थतगि कििा है। लेतकन उसका पापत्व ििी पूणिय : नष्ट
ु हुई तक के न्द्रेश होकि
होिा है, िब वह तत्रकोणेश िी हो िािा है। इस प्रकाि इसमें इस बाि की पतष्ट
यतद पापी ग्रह तत्रषडायेश िी हो िाय, िो वह प्रबल पाप कािक हो िाएगा।
इस श्लोक में कुि शब्द से पापग्रह औि कमय शब्द का अथय यहााँ के न्द्र तकया िािा है।

यद्यद्धावगिौ वाऽतप यद्यद्भावेशसंयिौ।
िित्फलातन प्रबलौ प्रतदशेिां िमोग्रहौ।।13।।
िाहु औि के ि ु तिस िाव में, तिस िावेश के साथ होकि तस्थि हों, उनके फलों को देि े हैं ।
इससे यह िी समझना चातहए तक अके ले िाहु एवं के ि ु तिस िाव में होिे हैं , उस िाव का अतनष्ट
फल ही कििे हैं । िाहु एवं के ि ु को छाया ग्रह माना गया है, आकाश में इनका अपना स्विन्त्र स्वरूप
ु फल प्रदान कििे हैं । तिस िाव में ये ब ैठिे हैं , उस
नहीं है। अि: वे अपने साथी ग्रहों के अनरूप
िाव के स्वामी ग्रह की फलप्रदिा में िी वृतद्ध हो िािी है। वे यतद के न्द्र या तत्रकोण में के न्द्रेश या
ु किें िो वे योग कािक िी हो िािे हैं । इस प्रकाि िाहु औि के ि ु कािक ग्रह
तत्रकोणेश के साथ यति
के साथ पिमकािक औि मािक के साथ पिम मािक का प्रिाव प्रदर्तशि कििे हैं । अिः िाहु एवं के ि ु
ु ग्रह दृतष्ट के अनसाि
स्थान, यति, ु
ु उस ग्रह के गणिमाय ु शिाश
नसाि ु िु फल देि े हैं ।

180
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

अध्याय 5
तवतवियोग तनरूपण
डॉ. तवियकुमाि
तवगि चाि अध्यायों में हम कुण्डली के गतणि िथा फलादेश के आवश्यक तनयमों की चचाय
कि चकेु हैं । इस अध्याय में तवतिन्न शिाश
ु िु योगों की चचाय की िा िही है। लघिािक
ु ग्रन्थ से
अतिष्ट, अतिष्टिङ्ग, नािसयोगातद को अध्ययन हेि ु ग्रहण तकया गया है। लघिािक
ु के अध्याय
क्रमाङ्क 7, 8,12 िथा 13 क्रमशः प्रस्तिु हैं । अतिष्टातद योगों की उदाहिण कुण्डतलयााँ पतितशष्ट में
संलि हैं ।
अतिष्टाध्याय
अतिष्ट शब्द का अथय िीवन की हातन किने वाले अतनष्ट योगों से है। इन योगों का तवचाि
बाल्यावस्था में होने से इन्हें कहीं कहीं बालातिष्ट िी कहा गया है।
षष्ठेऽष्टमेऽतप चन्द्रः सद्यो मिणाय पापसन्दृष्टः।

अष्टातिः शिदृष्टो वषैर्तमश्र ैस्तदद्धेन।।1।।
ििसमय षष्ठ अथवा अष्टम िाव में तस्थि चन्द्र पि पापग्रह की दृतष्ट हो िो वह शीघ्र

मृत्यकािक ु
होिा है। शिग्रह ु
की दृतष्ट होने पि िी आठ वषय में मृत्यकािक ु
होिा है, शिग्रह िथा

पापग्रह दोनों से दृष्ट होने पि चाि वषय में मृत्यकािक होिा है। शिु िथा पापग्रहों की सङ्ख्ा समान न
होने पि अनपाि ु
ु से आयष्यतवचाि किना चातहए। चूताँ क षष्ठ स्थान िोग िथा अष्टम मृत्य ु स्थान है,
ु में बािक बनिी है।
िहााँ चन्द्र ि ैसे शीघ्रगतिक ग्रह की तस्थति आयष्य

शतशवत्सौम्याः पाप ैवयतक्रतििवलोतकिा न शिदृष्टाः।
मासेन मिणदाः स्यःु पापतििो लिपिास्ते।।2।।
यतद शिु ग्रह चन्द्रमा के समान (लि से 6/8 में) तस्थि हो औि वक्री पापग्रह से दृष्ट हो

साथ ही शिग्रह की उस पि दृतष्ट न हो िो एक मास में मिण होिा है। पापग्रह से पिातिि लिेश
सप्तम स्थान में हो िो िी एक मास में मिण िानना चातहए।
िाश्यन्तस्थ ैः पाप ैः सन्ध्यायां तहममयूखहोिायाम।्
मृत्यःु प्रत्येकस्थ ैः के न्द्रेष ु शशाङ्कपाप ैि।।3।।
सम्पूण य पापग्रह िातश के अतन्तम नवांश में हों औि सन्ध्या के समय में लिस्थ चन्द्रमा की

होिा हो िो िािक की मृत्य ु होिी है। यतद प्रत्येक के न्द्र में चन्द्रमा औि पापग्रह हों (अथायि चािों
के न्द्र ििे हों, एक में चन्द्रमा िथा शेष िीन में पापग्रह हों) िो िी िािक की मृत्य ु होिी है।

181
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

चक्रप्राक्पिाद्धे पापशिु ैः कीटिोदये मृत्यः।




तनिनचिष्टयग ु ।।4।।
ैवाय क्रूिः क्षीणे शतशन्यदये

िि समय में चक्र के पूवायद्ध य में पापग्रह औि पतिमाद्धय में शिग्रह हों िथा लि कीटिातश
(ककय या वृतिक) की हो िो िािक की मृत्य ु होिी है। क्रूिग्रह अष्टम अथवा के न्द्र स्थानों में हों
औि क्षीण चन्द्रमा लि में हो िो िी िािक की मृत्य ु होिी है।
ु को पािाल कहा िािा है, अिः
(लि को उदय, दशम को आकाश, सप्तम को अस्त िथा चिथय
ु स्पष्ट िक पूवायद्ध य िथा चिथय
दशम स्पष्ट से चिथय ु स्पष्ट से दशम स्पष्ट िक पतिमाद्धय होिा है।)

सप्ताष्टान्त्योदयगे शतशतन सपापे शिेक्षणतवय ु ।
क्ते
ु श्यः।।5।।
न च कण्टके ऽतस्त कतिच्छुिस्तदा मृत्यिादे
ु चन्द्रमा 1/7/8/12 िावों में कहीं हो, शिु ग्रह से
यतद िि समय में पापग्रह से यक्त
अदृष्ट हो साथ ही कोई िी शिु ग्रह के न्द्र में नहीं हो िो िािक की मृत्य ु होिी है।
ु सप्तमगः पापान्तस्थः शशी मिणदािा।
चिििे
उदयगिो वा चन्द्रः सप्तमिातशतस्थि ैः पाप ैः।।6।।

यतद दो पाप ग्रहों के मध्य तस्थि चन्द्रमा लि से 4/8/7 वें िाव में हो िो मृत्यकािक होिा

है। लि में चन्द्रमा औि सप्तम स्थान में पापग्रह हों िो िी मृत्यकािक होिे हैं ।
क्षीणेन्दौ िादशगे लिाष्टमिातशसंतस्थि ैः पाप ैः।
सौम्यितहिे च के न्द्रे सद्यो मृत्यर्तु वतनदेश्यः।।7।।
के न्द्रिाव शिु ग्रहों से ितहि हों, क्षीण चन्द्रमा िादश िाव में औि पाप ग्रह लि िथा अष्टम
स्थान में हों िो शीघ्र ही मृत्य ु कहना चातहए।
सोपप्लवे शशाङ्के सक्रूिे लिगे कुिऽे ष्टमगे।
ु त्रा साद्धं चन्द्रवदके च शस्त्रेण।।8।।
मृत्यमाय
यतद िाहु से ग्रस्त चन्द्रमा पापग्रह के साथ लि में हो औि अष्टम िाव में मङ्गल हो िो मािा
के साथ िािक की मृत्य ु होिी है। चन्द्र के स्थान पि ग्रस्त सूय य पापग्रह के साथ लि में हो औि
अष्टम िाव में मङ्गल हो िो मािा के सतहि िािक की मृत्य ु शस्त्र से होिी है।
लि-िादश-नवमाऽष्टमसंस्थ ैिन्द्र-सौति-सूयायऽऽिैः।
िािस्य िवति मिणं यतद न बलयिः ु पतिवयचसाम।।9।।्
यतद लि में चन्द्रमा, िादश िाव में शतन, नवम में सूय य औि अष्टम में मङ्गल हो िथा बृहस्पति
ु बृहस्पति के िहने पि मृत्य ु नहीं होिी।
बलितहि हो िो िािक की मृत्य ु होिी है। बलयक्त

182
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


सिमदननवान्त्यलििन्ध्रे ु मिणाय शीिितश्मः।
ु िो
ष्वशिय
िृगसु िशतशप
ु ु
ु वपूज्य ैययतद बतलतिन य यिोऽवलोतकिो
त्रदे वा।।10।।
यतद पापग्रह से यिु चन्द्रमा 5/7/9/12/1/8 िावों में हो औि बलवान श ् क्र,
ु बि,ु गरुु
् क्र,
से यिु अथवा दृष्ट नहीं हो िो िािक की मृत्य ु होिी है। यतद बलवान श ु बिु औि गरुु से यिु
अथवा दृष्ट हो िो मृत्य ु नहीं होिी है।
योगे स्थानं गिवति बतलनिन्द्रे स्वं वा िनगृु हमथवा।

पाप ैदृयष्ट े बलवति मिणं वषयस्यान्तः तकल मतनगतदिम ्
।।11।।
तिन अतिष्ट योगों में मृत्य ु का समय नहीं बिाया गया है, उन योगों में तनतिि रूप से मािक
(मिण) को कहिे हैं । िि समय सबसे बलवान िो ् ग्रह हो उस ग्रह के स्थान में या अपने स्थान में

अथायि िि ् पापग्रह से
समय तिस स्थान में चन्द्रमा हो उस स्थान में या लि िातश में बलवान एवं
दृष्ट चन्द्रमा प्रवेश कििा है, उसी समय िािक की मृत्य ु तनतिि रूप से एक वषय की अवति में ही

होिी है, ऐसा मतनयों ने तनदेश तकया है।
अतिष्टिङ्गाध्याय
अनेक बाि कुण्डली में अतिष्ट योग होने पि िी िािक अतिष्टों के दुष्फल से बच िािा है
ु अतिष्टिङ्ग योग प्रस्तिु हैं
क्योंतक उसकी कुण्डली में अतिष्टिङ्ग योग बने होिे हैं । ग्रन्थानसाि
बृहस्पति से अतिष्टिङ्ग
सवायतनमानतिबलः स्फुिदंशिालो

् ििािमन्त्री।
लितस्थिः प्रशमयेि स ु

एको बहूतन दुतििातन सदुस्तिातण
ु इव शूलििप्रणामः।।1।।
िक्त्या प्रयक्त
बलवान, ् देदीप्यमान तकिणों से यक्त ्
ु अथायि अस्तातद दोषों से ितहि एक अके ला बृहस्पति
लि में हो िो सम्पूण य अतिष्टों का वैस े ही नाश कि देिा है, ि ैसे ितक्तपूवक
य तशविी के प्रति तकया

गया एक प्रणाम सिी पापों को नष्ट कि देिा है। चूताँ क बृहस्पति सवायतिक शिग्रह माना गया है,
इसतलए उसकी लि में तनदोष तस्थति अतिष्टनाशक होगी। अनेक तविान तकसी ् िी के न्द्र में बृहस्पति
की तस्थति को अतिष्टनाशक मानिे हैं ।
लिेश से अतिष्टिङ्ग
लिातिपोऽतिबलवानशिु ैिदृष्टः

के न्द्रतस्थि ैः शिखग ैिवलोक्यमानः।

183
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

मृत्य ं ु तविूय तवदिाति सदीघयमाय


ु ःु
ु ैबयहुतिरूर्तििया च लक्ष्म्या।।2।।
साद्धं गण
बली लिेश के न्द्र-तस्थि शिु ग्रहों से दृष्ट हो, पापग्रहों से अदृष्ट हो िो सम्पूण य अतिष्टों को
ु औि उििोिि वृतद्ध कि सम्पति सतहि दीघायय ु प्रदान कििा है। अतिष्ट
नाश कि सिी प्रकाि के गण
का सवायतिक दुष्प्रिाव िन पि ही होिा है, चाहे वह िोग हो, दुघयटना हो या मृत्य।ु लि अथवा लिेश
ु िन का सख
की हीनिा में ये तस्थतियााँ बनिी हैं । अिः स्वािातवकिः लिेश की पतष्ट ु औि िीवन
प्रदान किेगी।
शिु द्रेष्काण से अतिष्टिङ्ग
लिादष्टमवत्य यतप बिग ु
ु रुिागयवदृकाणगिन्द्रः।

मृत्य ं ु प्राप्तमतप निं पतििक्षत्येव तनव्यायिम।।3।।
ु रुु या शक्र
िि लि से अष्टम स्थान में िहने पि िी चन्द्रमा यतद बि,ग ु के द्रेष्काण में हो
िो अनेक अतिष्टों के िहने पि िी िािक की सिी प्रकाि से िक्षा कििा है।
पूण यचन्द्र से अतिष्टिङ्ग
चन्द्रः सम्पूणिय नःु सौम्यक्षयगिः तस्थिः शिस्यान्तः।


प्रकिोति तिष्टिङ्गं तवशेषिः शक्रसन्दृष्टः।।4।।
पूण य चन्द्रमा यतद शिु ग्रह की िातश में तस्थि होकि दो शिु ग्रहों के मध्य में हो िो अतिष्ट
ु से दृष्ट हो िो तवशेष रूप से अतिष्ट को दूि कििा है।
का नाश कििा है औि यतद वही चन्द्रमा शक्र
यहााँ द्रष्टव्य यह है तक यह योग पूणिय ः तनर्तमि नहीं हो सकिा, क्योंतक चन्द्रमा िब पूण य होगा िो सूय य
उससे दूि होगा, िो िला बिु औि शक्र
ु ि ैसे सूय य से अतिक दूि न िहने वाल शिग्रह
ु चन्द्रमा के
तनकट कै स े होंगे? यही समस्या आगे सािवें श्लोक के योग में िी है। अद्धायतिक चन्द्रमा को पूण य
मानने पि समािान हो सकिा है।

शिग्रहों की के न्द्रस्थति से अतिष्टिङ्ग
ु किमः के न्द्रमागिो बलवान।्
बििागयविीवानामे
क्रूिसहायो यद्यतप सद्यो तिष्टस्य िङ्गाय।।5।।
ु शक्र
बि, ्
ु औि बृहस्पति इनमें से कोई िी एक ग्रह बलवान होकि के न्द्र में तस्थि हो औि
अशिु ग्रह से दृष्ट-यिु न हो िो शीघ्र ही अतिष्ट का नाश कििा है।

तिपिवनगिोऽतप ु
शशीगरुतसिचन्द्रात्मिदृकाणस्थः।

गरुड इव िोतगदष्टं पतििक्षत्येव तनव्यायिम।।6।।

184
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु गरुु या शक्र
लि से षष्ठस्थ चन्द्रमा यतद बि, ु के द्रेष्काण में हो िो िािक की िक्षा कििा
है। ि ैसे सप य से ियिीि की गरुड़ िक्षा कििा है।
सौम्यियमध्यगिः सम्पूणःय तिग्िमण्डलः शशिृि।्

तनःशेषातिष्टहन्ता ििङ्गलोकस्य गरुड इव।।7।।
शिु ग्रहों के मध्य में यतद पूण य चन्द्रमा हो िो सम्पूण य अतिष्टों का नाश कििा है। ि ैसे-सप य
समूहों का नाश गरुड़ कििा है।
ु े पक्षे तनशािवे काले।
य िीिे शक्ल
शशिृति पूणश

तिपतनिनस्थे तिष्टं प्रिवति न ैवात्र िािस्य।।8।।

यतद तकसी का िि शक्लपक्ष की िातत्र में हो औि पूण य चन्द्रमा लि से षष्ठ अथवा अष्टम
स्थान में तस्थि हो िो िी िािक को अतिष्ट नहीं होिा है।। ८॥
प्रस्फुतिितकिणिाले तिग्िामलमण्डले बलोपेिे।

सिमतन्त्रतण के न्द्रगिे सवायतिष्टं शमं याति।।9।।
यतद िि समय में बलवान ्बृहस्पति के न्द्र में हो िो सम्पूण य अतिष्टों का नाश कििा है,
् अतिष्ट िी समाप्त हो िािा है।
अथायि प्राप्त
सौम्यिवनोपयािाः सौम्यांशकगाः सौम्यदृकाणस्थाः।

गरुचन्द्रकाव्यशतशिाः सवेऽतिष्टस्य हन्तािः।।10।।
ु औि बिु यतद शिु िातश में तस्थि हों औि ये ग्रह शिु िातश के
बृहस्पति, चन्द्रमा, शक्र
नवांश िथा द्रेष्काण में हों िो सम्पूण य अतिष्टों को दूि कििे हैं ।
िाशीश से अतिष्टिङ्ग

चन्द्राध्यातसििाशेितिपः के न्द्रे शिग्रहो वाऽतप।
प्रशमयति तिष्टयोगं पापातन यथा हतिस्मिणम।।11।। ्
ु िातशस्वामी के न्द्र में हो िो अतिष्ट योग का नाश कििा है।
एक िी शिु ग्रह या चन्द्र से यक्त
् स्मिण पापों का नाश कििा है।
ि ैसे तवष्ण ु िगवान का

पापाः यतद शिवगे ु शवगयस्थ ैः।
सौम्य ैदृयष्टाः शिे

तनघ्नतन्त िदा तिष्टं पति तविक्ता यथा यवतिः।।12।।
यतद अतिष्टकािक पापग्रह शिु ग्रह के वगय (षड ् वगय ) में हों औि शिु वगय में तस्थि शिु ग्रह
से दृष्ट हों िो अतिष्ट का नाश कििे हैं । ि ैसे तविक्त स्त्री अपने पति का नाश कि देिी है।

185
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

िाहु से अतिष्टिङ्ग

िाहुतत्रषष्ठलािे लिाि सौम्यतनिीतक्षिः सद्यः।
नाशयति सवयदुतििं मारुि इव िूलसङ्घािम।।13।।्

लि से 3,6,11 स्थान में यतद िाहु हो औि शिग्रह से दृष्ट हो िो यह सम्पूण य अतिष्टों को उसी
प्रकाि नष्ट कििा है ि ैसे रुई के समूह को अति नष्ट कििी है।
शीषोदय िातशयों में ग्रह होने से अतिष्टनाश
शीषोदयेष ु िातशष ु सवे गगनातिवातसनः सूिौ।

प्रकृ तिस्थञ्चातिष्टं तवलीयिे घृितमवातिस्थम।।14।।
िि समय यतद सम्पूण य ग्रह शीषोदय िातशयों में हों िो ग्रहिन्य अतिष्ट का नाश उसी ििह
होिा है, ि ैसे अति घृि का नाश कि देिी है।

ित्काले यतद तवियी शिग्रहः ु
शितनिीतक्षिोऽवश्यम।्

नाशयति सवायतिष्टं मारुि इव पादपान प्रबलः।।15।।
िि समय में एक िी ग्रह यतद ग्रहों के साथ यद्धु में तवियी हो औि शिग्रह
ु से दृष्ट हो िो
सम्पूण य अतिष्टों का नाश कििा है। ि ैसे प्रबल वाय ु लिा-पादपों का नाश कि देिा है।
पक्षे तसिे िवति िि यतद क्षपायां
ु िऽदृश्यमानः।
कृ ष्णे िथाऽहतन शिाश ु

िं चन्द्रमा तिपतवनाशगिोऽतप यत्ना-
दापत्स ु िक्षति तपिेव तशश ं ु न हतन्त।।16।।

यतद तकसी का िि शक्लपक्ष ु
की िातत्र में हो औि चन्द्रमा शिग्रह से दृष्ट हो अथवा यतद
तकसी का िि कृ ष्णपक्ष के तदन में हो औि चन्द्रमा पाप ग्रह से दृष्ट हो िो षष्ठस्थ, अष्टमस्थ होने पि

िी चन्द्रमा िािक की तपिा के समान िक्षा कििा है अथायि अतिष्ट का नाश कििा है िथा मिने नहीं
देिा है।
प्रकीणायध्याय
ु िु योगों की चचाय इस अध्याय में आचायय विाहतमतहि ने इसे
अनेक प्रकाि के शिाश
प्रकीणायध्याय नाम तदया। प्रस्तिु अध्याय में प्रयक्त
ु योग इस प्रकाि हैं
अनफातद योग

ितववज्यं िादशग ैिनफा चन्द्राद तििीयग ैः सनफा।
उियतस्थि ैदुयरुििा के मद्रुमसञ्ज्ञकोऽिोऽन्यः।।1।।

186
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सूय य को छोड़कि यतद कोई िी ग्रह चन्द्रमा से िादश स्थान में हो िो अनफा योग, तििीय

स्थान में हो िो सनफा योग औि यतद तििीय एवं िादश दोनों स्थानों में हो िो दुरुििा योग एवं
तििीय औि िादश स्थान ग्रह से ितहि हों िो के मद्रुम योग होिा है। इन योगों के नाम तवदेशी मूल
ु आि िी होिा है। अिः अनफा अथायि ् लाि का
के हैं । नफा शब्द लाि के तलए उदूय में प्रयक्त

तवपिीि = व्यय, सनफा से िन िाव स्मिण िख सकिे हैं । ये योग वास्तव में चन्द्रमा के दोनों ओि
पञ्चिािाग्रहों के होने अथवा न होने से तनिायतिि होिे हैं । सूय य न इनको बनािा औि न ही उसके होने
से तकसी बने योग का नाश होिा हैं ।280
अनफातद चािों योगों के फल

सछीलं तवषयसखातन्विं ु
प्रि ं ु ख्यातियक्तमनफायाम ।्

सनफायां ु
िीिनकीर्तियक्तमात्मार्त ्
िि ैश्वययम।।2।।
बहुिृत्यकुटुम्बािम्भं सखिोगातन्विं
ु च दौियतिके ।

िृिकं दुःतखिमिनं िािं के मद्रुम े तवद्याि।।3।।

अनफा योग में उत्पन्न िािक सशील ु सामथ्ययवान ्एवं कीर्तिवाला
ु से यक्त,
सम्पूण य सखों

होिा है। सनफा ु
योग में उत्पन्न िािक बतद्धमान , ् िनवान, ् यशस्वी एवं अपने बाहुबल से िनाियन
ु अतिक पतिवाि वाला,
किने वाला होिा है। दुरुििा योग में उत्पन्न िािक अनेक सेवकों से यक्त,
ु होिा है। के मद्रुम योग में उत्पन्न िािक नौकिी किने
कायों को आिम्भ किने वाला िथा सखी
वाला, दुःखी एवं िनहीन (तनियन) होिा है।
अनफातद योग कािक ग्रहों के फल
िौमः शूििण्डो महािनो ज्ञानवान ब् िो
ु तनपणः।

ु सतखिो
ऋद्धः शक्रः ु ु णाढ्यो
गरुग यु नृपतिपूज्यः।।4।।
ु ैर्तवद्धः।
बह्वािम्भः सौतिबयहुिृत्याः पूतििो गण
ु ैः समगणा
एषां गण ु ज्ञेया योगोद्भवाः परुषाः।।5।।

् है। बिु ज्ञानी एवं कायय-सम्पादन में तनपण
िौम वीि, साहसी औि महािनवान ग्रह ु है। शक्र


समृतद्धवान औि ु है। गरुु गणवान
सखी ु ् िािा से पूतिि है। शतन अनेक सेवकों से यक्त,
एवं ु अनेक
ु से पूतिि एवं वृद्ध है। िो ग्रह (पूवोक्त ग्रह) अनफातद
कायों को आिम्भ किने वाला, स्वगण
ु रूप
योगकािक हैं , उन ग्रहों के गणान ु होिे हैं ।
ु िािक में िी गण
सूय य से तििीय स्थान का महत्त्व

280 ् - ब्लॉग- अनफातद योग


डॉ. शुिम शमाय

187
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

सूयायद ् तििीयमृक्ष ं वेतशस्थानं प्रकीर्तििं यवन ैः।


ु ं िितन चेष्टास ु च तवलिम।।6।।
िच्चेष्टग्रहयक्त ्
यवनाचायों ने सूय य से तििीय िातश को वेतशस्थान कहा है। यतद वेतशस्थान िि समय में

शिग्रह एवं स्वामी से यिु दृष्ट हो िो शिु कािक होिा है िथा यात्रा में लि तस्थि होने पि शिकािक

ु होिा है (यथा कमीवेशी)।281 ग्रन्थान्ति
होिा है। वेशी शब्द उदूय में अद्यातप वृतद्ध के अथय में प्रयक्त
में सूय य से िादश िाव में िािाग्रह होने पि वातस िथा दोनों ओि िािाग्रह होने पि उियचतिक योग
कहलािा है।
तिग्रह योगफल
ु क्रूिं च शस्त्रवृवि च।
यन्त्रज्ञं पापििं तनपणं
ु च क्रमशिन्द्रातदतिितन्विः सूय यः।।7।।
िाििं
िि-समय में सूय य यतद चन्द्रमा से यिु हो िो िािक यातन्त्रक (यन्त्र, मशीन आतद कमय को
िानने वाला), मङ्गल से यिु हो िो पापी, बिु से यिु हो िो कायय-कुशल, गरुु से यिु हो िो उग्र
ु ं
ु से यिु हो िो शस्त्र से आिीतवका चलाने वाला औि शतन से यिु हो िो िािओ
स्विाव वाला, शक्र
को िानने वाला होिा है।
चन्द्रोऽङ्गािकपूवःै कू टनं प्रतश्रिं कुलाभ्यतिकम।्
वस्त्रव्यवहाि क्रमेण पौनियवं चातप।।8।।
िि-समय में यतद चन्द्रमा मङ्गल से यिु हो िो िािक मायावी, बिु से यिु हो िो
तवनयशील, बृहस्पति से यिु हो िो पतिवाि में श्रेष्ठ, शक्र
ु से यिु हो िो वस्त्र-व्यापाि-कुशल औि
शतन से यिु हो िो पनिू
ु य (दूसिा तववाह किने वाली) स्त्री का पत्रु होिा है।
मिो िक्षोऽन्यस्त्रीसक्तो दुःखातन्विः कुिो ज्ञाद्य ैः।

ज्ञो िीवाद्य ैगीिज्ञं वातग्मनं महेन्द्रिालज्ञम।।9।।
िि-समय में यतद मङ्गल बिु से यिु हो िो िािक शूि-वीि, बृहस्पति से यिु हो िो दूसिों
ु से यिु हो िो व्यतिचािी औि शतन से यिु हो िो दुःख िोगने वाला होिा
की िक्षा किने वाला, शक्र
ु बृहस्पति से यिु हो िो सङ्गीिज्ञ, शक्र
है। बि, ु से यिु हो िो वक्ता िथा शतन से यिु हो िो इन्द्रिालज्ञ
होिा है।
िीवः तसिेन बहुगणमतसिे ु न समतन्विोऽत्र घटकािम।्

स्त्रीस्वं मन्देन तसितस्त्रतििप्येवं फलातन वदेि।।10।।

281 ् - ब्लॉग- अनफातद योग


डॉ. शुिम शमाय

188
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु से यिु हो िो िािक अत्यन्त गणवान


िि-समय में यतद बृहस्पति शक्र ु , ् शतन से यिु हो
ु यतद शतन से यिु हो िो स्त्री के माध्यम से िनोपाियन किने वाला होिा
िो कुम्भकाि होिा है। शक्र
है। इसी प्रकाि िीन ग्रहों के योग से िी फलादेश कहना चातहए।
प्रव्रज्या योग
् न्यास योग इस प्रकाि बनिा है -
प्रव्रज्या अथायि सं

चििातदतििे
कस्थः प्रव्रज्यां स्वां ग्रहः किोति बली।
बहुवीययस्तावत्यः प्रथमा वीयायतिकस्य ैव।।11।।
यतद एक िातश में चाि से अतिक ग्रह हों िो प्रव्रज्या योग होिा है। योगकािक ग्रहों में िो

बलवान होिा ् िो अनेक प्रकाि
है, वह अपने से सम्बद्ध प्रव्रज्या कििा है। यतद अनेक ग्रह बलवान हों

की प्रव्रज्याएाँ होिी हैं । अनेक प्रव्रज्याओ ं में प्रथम प्रव्रज्या अतिक बली ग्रह की, ित्पिाि बलान ु
साि
अन्य ग्रह-सम्बिी प्रव्रज्या समझनी चातहए।
सूयायतद ग्रहों से प्रव्रज्या योग
िापसवृद्धश्रावकिक्तपटािीतवतिक्षचिकाणामु ।्

तनग्र यन्थानां चाकायि पिातिि ु
ैः प्रच्यतिबयतलतिः।।12।।
प्रव्रज्यायोग-कािक ग्रहों में यतद सूय य बली हो िो वानप्रस्थ, चन्द्रमा बली हो िो कापातलक,

िौम बली हो िो िक्तपट (शाक्त), अथायि शतक्त की उपासना किने वाला, बिु बली हो िो एकदण्डी,
गरुु बली हो िो तत्रदण्डी, शक्र
ु बली हो िो चक्रिािी योगी औि शतन बली हो िो तदगम्बि होिा है।
प्रव्रज्याकािक ग्रह यतद यद्धु में पिातिि हो िो प्राप्त प्रव्रज्या को छोड़ कि तवियी ग्रह की प्रव्रज्या को

िािण कििा है अथायि सम्प्रदाय पतिवर्तिि कििा है।
तवशेष – दो िािा ग्रहों में िातश, अंश, कला, तवकला का समान होना यद्धु माना िािा है। उिि
तदशा तस्थि ग्रह तवियी एवं दतक्षणस्थ ग्रह को पिातिि समझना चातहए। तविय के अन्य आिाि
ग्रह का दृश्य आकाि, चमक आतद हैं ।
प्रव्रज्या योग में तवशेषिा
तदनकिलुप्तमयूख ैिदीतक्षिा ितक्तवातदनस्तेषाम।्
यातचिदीक्षा बतलतिः पिातिि ैिन्यदृष्ट ैवाय।।13।।
प्रव्रज्यायोगकािक ग्रह यतद सूय य के सातन्नध्य से अस्त हो िो दीक्षा से ितहि होकि प्रव्रज्या
िमय में िहिा है। अथायि ् मन से संन्यासी होिा है। उसकी श्रद्धा संन्यातसयों में होिी है। यतद
योगकािक ग्रह बलवान ग्रह ् से पिातिि हो अथवा अन्य ग्रह से दृष्ट हो िो मात्र दीक्षा की याचना

189
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

कििा है, दीतक्षि नहीं हो पािा है। वह हि संन्यासी से कहिा है तक उसे तशष्य बनाएाँ किी, औि
वह किी, किी नहीं आिी नहीं।282

िातशफल तनरूपण
अतस्थितविूतितमत्रं चलनमटनं स्खतलितनयममतप चििे।
तस्थििे ितिपिीिं क्षमातन्विं दीघयसूत्र ं च।।14।।
तिशिीिे त्यागयिंु कृ िज्ञमत्सातहिं
ु ्
तवतविचेष्टम।।

ग्राम्यािण्यिलोद्भविातशष ु तवद्याच्च िछीलान।।15।।
िि के समय यतद चन्द्रमा चि िातश में हो िो क्षतणक ऐश्वयय, क्षतणक मैत्री, चञ्चल प्रकृ ति,
ु िहने वाला होिा है। चििातश में िि होने से सदा वह
भ्रमणशील एवं अपनी प्रतिज्ञा से तवमख
अतस्थिमति होने से ये फल होंगे। यतद चन्द्रमा तस्थि िातश में हो िो चि िातशस्थ फल के तवपिीि

फल देिा है, अथायि अचल सम्पति वाला, तस्थि मैत्री वाला, तस्थि स्विाव, अपने तनयम पि चलने
वाला, क्षमाशील एवं िीिे-िीिे कायय किने वाला होिा है। तिःस्विाव िातश में चन्द्रमा हो िो दानी,
उत्साही औि उद्योगी होिा है।
ु िातशगि
तिपद िातश में चन्द्रमा हो िो िािक ग्रामीण िीवन-यापन किने वाला, चिष्पद
चन्द्रमा हो िो िंगली (िंगल में िहने वाला) िथा िलचिस्थ िातशगि चन्द्रमा हो िो िलतप्रय होिा
है िथा कीटिातश वृतिक में उत्पन्न िािक को ग्राम औि िंगल दोनों तप्रय होिे हैं ।
चन्द्रमा पि दृतष्ट का फल

क्षेत्रातिपसन्दृष्टे शतशतन नृपस्तत्सहृतद्भितप िनवान।्
ु नाऽन्य ैः।।16।।
द्रेष्काणांशकप ैवाय प्रायः सौम्य ैः शिं
िि-समय तिस िातश में चन्द्रमा तस्थि हो उस पि यतद उसके स्वामी की दृतष्ट हो िो

िािक िािा होिा है। यतद चन्द्रमा पि िातश-स्वामी के तमत्र की िी दृतष्ट हो िो िनवान होिा है।
तिस द्रेष्काण, नवांश, िादशांश या वत्रशांश में चन्द्रमा हो औि उसके स्वामी शिु ग्रह हों िो दृतष्ट
मात्र से शिु औि पापग्रह हों िो सामान्य होिा है।
ु ित्व
िावों का शिाश ु

पष्णतन्त शिा ्
ु िावािूत्यायदीन घ्नतन्त संतस्थिाः पापाः।
सौम्याः षष्ठेऽतिघ्नाः सवेऽतिष्टा व्ययाष्टमगाः।।17।।

282 ् - ब्लॉग- अनफातद योग


डॉ. शुिम शमाय

190
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


तिस िाव में शिग्रह ु
िहिा है, उस िाव (िन्वातद िाव) के तलये वृतद्धकािक (शिकािक )

एवं तिस िाव में पापग्रह िहिा है वह िाव अशिकािक ु
होिा है। षष्ठिावस्थ शिग्रह िी शत्र ु का

नाश ही कििा है। िादशस्थ औि अष्टमस्थ ग्रह (शिग्रह-पापग्रह) अतनष्टकािक ही होिा है।

लिगि चन्द्र-फल

ककय वषृ ािोपगिे चन्द्रे लिे िनी सरूपि।
तवकलाङ्गिडदतिद्राः शेषषे ु तवशेषिः कृ ष्णे।।18।।
िि-समय ककय , वृष या मेष िातशगि चन्द्रमा यतद लि में हो िो िािक िनवान ्औि

सरूपवान ्
होिा है। इससे तिन्न िातशस्थ चन्द्रमा लि में हो िो िािक तवकलाङ्ग, मूख य एवं िनहीन
(दतिद्र) होिा है। कृ ष्णपक्ष हो िो तवशेषरूपेण तवकलाङ्ग, मूख य औि िनहीन होिा है।
लिगि सूय य औि िादशस्थ ितव-चन्द्र फल
तवकलेक्षणोऽकय लिे ि ैतमतिकोऽिे स्विे ि ु िात्र्यिः।
बद्बु द्दृु तष्टः कर्तकतण काणो व्ययगे शशाङ्के वा।।19।।
िि-समय सूय य यतद लिस्थ हो िो िािक आाँख से कमिोि (क्षीणदृतष्ट), लिस्थ सूय य मेष
ु वसह िातश में हो िो िाि में अिा, ककय में हो िो फू ली
िातश में हो िो तितमि (ििौंिी) िोग से यक्त,
सतहि आाँखों वाला होिा है एवं िादशस्थ सूय य या चन्द्रमा हो िो िािक एक आाँख का काना होिा
है। तवशेष-सूय य िादश िाव में हो िो दतक्षण नेत्रहीन एवं चन्द्रमा हो िो वाम नेत्रहीन समझना
चातहए।
ििकातलक ग्रहों के िावफल में न्यूनातिकिा
इष्टं पादतववृद्ध्या तमत्रस्वगृहतत्रकोणिङ्गेु ष।ु
ु ऽल्पं फलमकोपगिस्य पापं शिं
तिपिे ु न ैव।।20।।

तमत्र, स्वगृह, तत्रकोण औि उच्च में तस्थि ग्रह का इष्टिावगि शिफल क्रमशः पाद वृतद्ध से
होिा है। अथायि यतद् ग्रह तमत्र-गृह में हो िो शिु िाव फल एक चिण (25%), स्वगृह में दो चिण
(50%), मूलतत्रकोण में िीन चिण(75%) औि उच्च में चाि चिण (100%) होिा है। शत्र ु की
िातश में हो िो एक चिण से कम, अस्तग्रह का शिु फलािाव होिा है। पाप फल पूण य होिा है अथायि ्
िावि अशिु फल शिु से तवपिीि समझें।
मेषातद नवांश िािफल
ं ु काऽियदतिद्राः।
िस्कििोक्तृतवचक्षणितननृपतिनपस

191
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

खलपापोग्रोत्कृ ष्टा मेषादीनां नवांशिवाः।।21।।


िि-समय तकसी िी लि में मेष नवांश हो िो िािक चोि, वृष नवांश में िोग किने वाला,
तमथनु नवांश में बतद्धमान
ु , ् ककय नवांश में िनवान, ् वसह नवांश में िािा, कन्या नवांश में नपस
ं ु क,
ु नवांश में तनियय, वृतिक नवांश में तनियन, िन ु नवांश में दुष्ट, मकि नवांश में पापकमय-पिायण,
िला
कुम्भ नवांश में क्रूि औि मीन नवांश में उत्कृ ष्ट (श्रेष्ठ) होिा है।
स्विातशगि ग्रहों के फल
कुलिल्यक ु
ु ु लातिकबिमान्यितनिोतगनृ
पसमनिेन्द्राः।
ु हग
स्वक्षयगि ैकतववृद्धया तकतचन्न्यूना सहृद्ग ृ ैः।।22।।
यतद िि के समय स्विातश में एक ग्रह हो िो अपने कुल (तपिा, तपिामहातद) के सदृश, दो
ु ं में मान्य, चाि ग्रह हों िो िनवान, ् पााँच ग्रह हों िो
ग्रह हों िो कुल में श्रेष्ठ, िीन ग्रह हों िो बिओ
ु औि साि ग्रह स्वगृही हों िो श्रेष्ठ िािा (निेन्द्र, महािािा) होिा
िोगी, छः ग्रह हों िो िािा के िल्य
ु में कुछ कम गण
है। ऐसे ही एकातद ग्रह तमत्रिातशगि हों िो पूव य कतथि गणों ु वाला िािक होिा है।
स्वोच्चगि ग्रहों के फल
य शिवा िवतन्त िािानः।
तत्रप्रिृतितिरुच्चस्थ ैनृपवं
पञ्चातदतििन्यकुलोद्भवाि िितिकोणगि ैः।।23।।
िि-समय यतद िीन या चाि ग्रह उच्च के हों िो िािकुल में उत्पन्न िािक िािा होिा है
औि पााँच से अतिक ग्रह उच्च के हों िो अन्य कुल में उत्पन्न िािक िी िािा होिा है। सूयायतद साि
ग्रहों में अतिकिम छह ग्रह ही एक साथ उच्च हो सकिे हैं क्योंतक बिु िथा शक्र
ु की िातशयााँ पिस्पि
सप्तम हैं औि ये दोनों ही ग्रह सूय य से अतिक दूि नहीं िािे। बिु सूय य से अतिकिम एक घि आगे-
ु अतिकिम दो घि। ऐसे में दोनों पिस्पि सप्तम किी हो ही नहीं सकिे।
पीछे हो सकिा है, िो शक्र
ऐसा ही फल मूलतत्रकोणस्थ ग्रहों का होिा है।

नीच एवं शत्रिातशगि ग्रहों के फल
तनियनदुःतखि मूढव्यातििबिातििप्तवििािः।
ु हग ैवाय।।24।।
एकोििपतिवृद्ध्या नीचगि ैः शत्रगृ
यतद िि-समय एकोिि वृतद्ध से अथायि एक, दो, िीन, चाि, पााँच, छः अथवा साि ग्रह
अपने नीच (यहााँ िी अतिकिम छह ही हो सकिे हैं ।) अथवा शत्र ु गृह में हों िो िािक क्रमानसाि

तनियन, दुःखी, मूख,य िोगी, बिन का िागी (कािागाि िोगने वाला), िाप से पीतड़ि औि वि योग्य

192
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु ह में हो िो िािक तनियन, दो ग्रह हो िो दुःखी आतद होिा


होिा है। ि ैसे एक ग्रह, नीच या शत्रगृ
है।
िाियोग
ु ष्टः।
एकोऽतप नृपतिििप्रदो ग्रहः स्वोच्चगः सहृद्दृ
बतलतिः के न्द्रोपगि ैतस्त्रप्रिृतितििवतनपालिवः।।25।।
िि-समय यतद स्व-उच्चगि एक िी ग्रह अपने तमत्र से दृष्ट हो िो िािक िािा होिा है।
िीन या चाि बलवान ग्रह के न्द्र में हों िो िािकुलोद्भव िािक िािा होिा है। इससे पतिलतक्षि होिा
है तक पााँच से अतिक तनबयल ग्रह िी के न्द्र में हों िो िािकुलोत्पन्न िािक िािा होिा है िथा पााँच
से अतिक बलवान ग्रह् के न्द्र में हों िो अन्य कुलोत्पन्न िािक िी िािा होिा है।
अन्य िाियोग
ु ैवीतक्षिे तवलिे वा।
वगोिमगे चन्द्रे चििाद्य

नृपिि िवति िाज्यं नृपयोगे बलयिदशायाम ्
।।26।।
िि-समय यतद चन्द्रमा या लि वगोिम नवमांश में हो औि अन्य चाि, पााँच या छः ग्रहों

से (चन्द्रमा को छोड़कि) दृष्ट हो िो िािा का िि होिा है अथायि िािक िािा होिा है। योगकािक
ग्रहों में िो ग्रह बली (अतिक बलवान)् हो उसकी दशा आतद (दशा, अन्तदयशा) में िाज्यलाि होिा
है।
लिकुण्डली में तिस िातश में ग्रह हो औि नवमांश कुण्डली में िी उसी िातश में हो िो ग्रह
वगोिम कहलािा है।
नािसयोगाध्याय
नािस योगों के अन्तगयि 32 तवशेष योगों का अध्ययन तकया िािा है तिन्हें चाि प्रकािों में
वगीकृ ि तकया गया है। ये हैं - आश्रय योग, दल योग, आकृ ति योग िथा सङ्ख्ा योग। इन योगों में
सूयायतद साि ग्रहों का ही तवचाि तकया गया है। िाहु-के ि ु की यहााँ चचाय नहीं है अिः समस्त ग्रह
शब्द का अथय पूवोक्त सािों ग्रहों से है। नािस योगों की कल्पना तकस प्रकाि की गयी है उसका तचत्र
िािा वणयन प्रस्तिु है। इन आकृ तियों में ग्रहों को दशायन े हेि ु तबन्दुओ ं का प्रयोग तकया गया है। इन
तचत्रों का आकल्पन िथा िेखाङ्कन डॉ. शिम ु शमाय् िािा तकया गया।
आश्रय योग
ग्रह चिातद तकन िातशयों का आश्रय लेि े हैं , इस आिाि पि इन योगों की कल्पना की गयी
है।

193
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

चििवनातदष ु सवैिाश्रयिा िज्जमु सलनलयोगाः।



ईष्यमाय ् ण कुलतवश्रिाः
यु नी िनवान क्रमे ु सवे।।1।।
समस्त ग्रह चि िातशयों में हों िो िज्ज,ु तस्थि िातशयों में हों िो मसल
ु एवं तिस्विाव िातशयों

में हों िो नल नामक योग की तनर्तमति होिी है। िज्जयोग ु
में उत्पन्न िािक ईष्यायलु, मसलयोग में
उत्पन्न िािक मानी ( स्वातिमानी, प्रतितष्ठि) औि नलयोग में उत्पन्न िािक िनवान होिा है। ये
सिी अपने कुल में तवख्याि होिे हैं ।
दल योग
के न्द्रत्रयग ैः पाप ैः शिु ैदयलाख्यावतहि माला च।

सपेऽतिदुःतखिानां मालायां िि सतखनां च।।2।।
तकन्हीं िी िीन के न्द्र स्थानों में समस्त पाप ग्रह हों िो सप य नामक दलयोग होिा है िथा

तकन्हीं िी िीन के न्द्र स्थानों में समस्त शिग्रह हों िो माला नामक दल योग होिा है। माला अथवा
तशविी का सप यहाि िी िीन िाग ही तदखिे हैं । एक िाग गिदन के पीछे छुपा होिा यही कािण इन
योगों के नामकिण का है क्योंतक एक साथ चािों के न्द्रों में मात्र शिु या पापग्रह नहीं िह सकिे।

शिग्रह ु शक्र,
गरु, ु बिु औि चन्द्र हैं , तकन्त ु बिु औि शक्र
ु सूय य से अतिक दूि न होने के कािण

पिस्पि चिथय-दशम हों ऐसी स्थति प्रायः बनिी नहीं है। पापग्रह िीन ही हैं सूय,य मङ्गल औि शतन।
यतद चन्द्र पापी बिाना है, िो वह सूय य के साथ ही हो सकिा, ििी िो क्षीण होगा। ऐसे में घि िीन
ही ििे। बिु िो पापी के साथ ब ैठकि ही पापी होिा है, िो ऐसे में िी िीन ही के न्द्र उपयोग में
ु होिा है।283
आएाँग।े सप य योग में उत्पन्न िािक दुःखी एवं माला योग में उत्पन्न िािक सखी

283 ् - ब्लॉग- नािस योगों का नामकिण कै स?े


डॉ. शुिम शमाय

194
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

आकृ ति योग
ग्रहों के कुण्डली में तवतिन्न िावों में ब ैठने पि 20 आकृ तियों की कल्पना की गयी। आकृ तियों
पि आिातिि होने से इन्हें आकृ ति योग कहा गया।
तििनन्तिके न्द्रस्थ ैगयदा तवलिास्तसंतस्थि ैः शकटम।्
ु वहङ्गः शृङ्गाटकमदयस
खचिथययोर्त ु ु
िनवग ैः।।3।।
िि-समय यतद तकसी िी समीपविी दो के न्द्रस्थानों में सम्पूण य ग्रह हों िो गदा योग, लि
औि सप्तम स्थान में सम्पूण य ग्रह हों िो शकट योग, चिथु य औि दशम स्थान में सम्पूण य ग्रह तस्थि हों
िो तवहङ्ग योग िथा लि, पञ्चम औि नवम (1/5/9) इन िीनों स्थानों में सम्पूण य ग्रह हों िो शृङ्गाटक

(वसघाड़ा अथायि तत्रकोण) योग होिा है। तचत्र िािा इन आकृ तियों की कल्पना को स्पष्ट तकया िा
िहा है।

य मेिषे ां क्रमाि फलोपनयः।
शृङ्गाटकिोऽन्यगिेहल

यज्वा शकटािीवोदूितििसौख्यिाक्कृतषकृ ि।।4।।

लि से तत्रकोण में शृङ्गाटक योग कहा गया है। इससे तिन्न अथायि तििीय, ु
िृिीय या चिथय
स्थान से तत्रकोण में सिी ग्रह हों हल नामक योग होिा है। गदा योग में उत्पन्न िािक यातज्ञक (यज्ञ
किने वाला), शकट योग में उत्पन्न िािक शकट (गाड़ी) से िीवकोपाियन किने वाला, तवहङ्ग योग
ु औि हल योग में उत्पन्न िािक
में उत्पन्न िािक दूि, शृङ्गाटक योग में उत्पन्न िािक सवयदा सखी
कृ षक (कृ तष-कमय किने वाला) होिा है।

195
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

196
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु स्थ ैः सौम्य ैरुदयास्तसंतस्थि ैवयज्रम।्


क्रूिैः सखकमय
यव इति ितिपिीितमश्र ैः कमलं च्यिु ैवायपी।।5।।
ु औि दशम में सिी पापग्रह ( ितव, मङ्गल, शतन ) हों अथवा लि
यतद िि-समय चिथय
औि सप्तम िाव में सिी शिु ग्रह (बि, ु क्र
ु गरु,श ु ) हों िो वज्रयोग होिा है। इससे तवपिीि अथायि ्
ु औि दशम में सिी शिग्रह
चिथय ु अथवा लि औि सप्तम में सिी पापग्रह हों िो यवयोग होिा है।
ु सूय य से दो घि से अतिक दूि हो ही नहीं सकिा औि शक्र
ये योग बनने सम्भव ही नहीं क्योंतक शक्र ु
शिु िथा सूय य पापी ग्रह है। यतद के न्द्र में पापग्रह औि शिग्रह
ु साथ-साथ तस्थि हों िो कमल योग
ु ि)
िथा के न्द्र को छोड़कि सिी (शिाश ु ग्रह पणफि या आपोक्लीम में हों िो वापीयोग होिा है।

197
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

लिातदकण्टके भ्यििगृ ु हावतस्थि


य ैग्र यहैयोगाः।

यूप ेषशतक्तदण्डा वज्रादीनां फलान्यस्माि।।6।। ्
ु िक इन चाि स्थानों में सिी ग्रह हों िो यूप योग, चिथय
लि से चिथय ु से सप्तम िक चाि
स्थानों में सिी ग्रह हों िो इष ु (बाण) योग, सप्तम से दशम िक चाि स्थानों में सिी ग्रह हों िो

198
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

शतक्तयोग िथा दशम से लि िक चाि स्थानों में सिी ग्रह हों िो दण्डयोग होिा है। वज्रातद आठ
योगों के फल आगे के श्लोक में कहे गये हैं ।

ु िः
आद्यन्तयोः सखय ु सखिाङ्मध्ये
ु ु
िनातन्विोऽल्पसखः।
् ैर्तवयक्ति।।7।।
ु तप्रय
त्यागी वहिो िनवर्तििः पमान ु

वज्रयोग में उत्पन्न िािक बाल्यावस्था एवं वृद्धावस्था में सखी, यवयोग में उत्पन्न

मध्यावस्था (यवावस्था) ु कमलयोग में िनवान, ् वापी योग में अल्प सखी,
में सखी, ु यूप योग में
ु ं से ितहि
दानी, इष ु (शि) योग में वहसा किने वाला, शतक्तयोग में दतिद्र एवं दण्डयोग में बिओ
होिा है।

199
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


ििि सप्तमसं ु
यु ातण स्यः।
स्थ ैनौकू टछत्रकामक
नावाद्य ैिप्येवं कण्टकान्यस्थ ैः स्मृिोऽियशशी।।8।।
तिस प्रकाि यूप आतद योग कहे गये हैं , उसी प्रकाि लिातद साि गृहों में सिी ग्रह हों िो
ु तद सप्त गृहों में सिी ग्रह हों िो कू टयोग, सप्तमातद साि गृहों में सिी ग्रह हों िो
नौकायोग, चिथाय
यु ) योग होिा है। इसी ििह पणफि या
छत्रयोग, दशमातद साि गृहों में सिी ग्रह हों िो चाप (कामक
आपोक्लीम से लगािाि साि गृहों में सिी ग्रह हों िो अद्धयचन्द्र योग होिा है। ये ग्रह ऐसे होंगे तक
प्रत्येक ग्रह एक एक घि में हो।
ु को पािाल कहा गया है औि वहााँ िल की स्थति मानी िािी है। अिः लि से
चूताँ क चिथय
सप्तम िक तस्थि ग्रह एक नौका की िााँति प्रिीि होंगे। यही आकृ ति आकाश (दशम को के न्द्र में
िख) में छत्र के समान आकृ ति दशायिी है।

200
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


एकान्तिैर्तवलिाि षड्भवनावतस्थि ैग्र यहैिक्रम।्
अथायच्च ििदुदतिनौप्रिृतिफलान्यथो क्रमशः।।9।।
यतद लि से एकान्ति अथायि क् ु ण्डली के तवषम िावों में सिी ग्रह हों िो चक्रयोग एवं तििीय
िाव से लेकि छ: सम िावों में सिी ग्रह हों िो समद्रु नामक योग होिा है। नौकातद साि योगों के
फल अतग्रम श्लोक में कहे गये हैं ।

201
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

ु िवाक ् स्विनतहिः शूिसिगिनीिू


कीत्याय यक्तोऽनृ ु पाः।
ु ैस्तेष ु नन्दन्ते।।10।।
इत्याकृ तििा योगा ववशतििात्मगण
नौकायोग में उत्पन्न िािक यशस्वी, कू टयोग में तमथ्यािाषी (झ ूठ बोलने वाला), छत्रयोग

में अपने पतिवाि का ििण-पोषण किने वाला, चाप में योद्धा (वीि), अद्धयचन्द्र योग में सरूपवान ,्

चक्रयोग में िनवान औि ु
समद्रयोग में उत्पन्न िािक िािा होिा है। गदा आतद 20 आकृ तियोग
ु से आनतन्दि िहिे हैं । अथायि ् अपने बल से
हैं । इन आकृ तियोगों में उत्पन्न िािक अपने गणों
ु िोगिे हैं ।
अतिि तविव को प्राप्त कििे हैं औि सख
सङ्ख्ा योग

एकातदगृहोपगि ैरुक्तान योगान ्
तवहाय सङ्ख्ाने।
ु ल-के दाि पाश-दामाख्य-वीणाः स्यः।।11।।
गोल-यग-शू ु
पूव य कतथि आकृ ति योगों को छोड़कि यतद सिी ग्रह एक िातश (एक स्थान ) में हों िो

गोलयोग, दो िातश में सिी ग्रह हों िो यगयोग, िीन िातशयों में सिी ग्रह हों िो शूलयोग, चाि
िातशयों में सिी ग्रह हों िो के दाियोग, पााँच िातशयों में सिी ग्रह हों िो पाशयोग, छ: िातशयों में
सिी ग्रह हों िो दामयोग (ग्रन्थान्ति से दातमनी) औि साि िातशयों में सिी ग्रह हों िो वीणायोग
होिा है।
ये सािों सङ्ख्ा-वाचक योग हैं ।

दुःतखिदतिद्रघािककृ तषकिदुःशीलपशपतितनप ु
णानाम।्

िि क्रमेण सतखनः पििाग्य ैस्सवय एवैि।े ।12।।

202
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।


गोल आतद योगों के फल क्रमशः इस प्रकाि हैं -यतद तकसी का स्विाव वाला, दामयोग में पश-पालन

किने वाला, औि वीणायोग में उत्पन्न िि गोलयोग में हो िो िािक दुःखी, यगयोग में उत्पन्न
दतिद्र, शूलयोग में घािक, के दाियोग में कृ षक (कृ तष किने वाला) पाशयोग में उत्पन्न िािक

दुःशील िथा पशपालक, ु (कायय किने में कुशल) होिा है िथा
दामयोग में उत्पन्न िािक तनपण

सङ्ख्ायोग में िािक दूसिे के िाग्य से िीिे (सखातद ु कििे) हैं ।
का अनिव
तवशेष-आकृ ति आतद योगों के लक्षण यतद सङ्ख्ायोग में घतटि हों िो सङ्ख्ायोग नहीं समझना
चातहए, आकृ ति योग ही समझना चातहए। चिातद िातशयों के आश्रय होने से आश्रययोग, ग्रहों के
ु िु िेद होने से दल योग, ग्रह योग से आकृ त्यनसाि
शिाश ु ु
आकृ तियोग िथा स्थान-सङ्ख्ानसाि
सङ्ख्ा-योग, इस प्रकाि नामकिण तकया गया है।

203
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

।। पतितशष्ट ।।

204
।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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।। जन्मपत्री रचना विज्ञान ।।

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