Professional Documents
Culture Documents
Mercator's Projection
Mercator's Projection
मर्केटर प्रक्षेप
Mercator’s Projection
बोलें द्र कुमार अगम,
सहायक प्राध्यापक भूगोल,
राजा ससिंह कॉलेज ससवान
इस प्रक्षेप को सववप्रथम 1569 में गिरारडस मर्केटर नामक एक डच मानचचत्रकार ने बनाया था जजसकी वजह से यह
मकेटर प्रक्षेप के नाम से पुकारा जाता है I यह एक यथाकृततक प्रक्षेप है जजसका नौसिंचालन चाटों की रचना में
सवावचिक प्रयोग होता है I इसके अततररक्त मकेटर प्रक्षेप पर बने सिंसार के दीवारी मानचचत्र बहुत उपयोगी होते हैं I
मकेटर प्रक्षेप के महत्व को इस बात से भली-भािंतत समझा जा सकता है कक लगभग प्रत्येक मानचचत्रावली में सिंसार
के यथाकृततक मानचचत्र इस प्रक्षेप पर बने होते हैं I
मकेटर प्रक्षेप में ववसभन्न अक्षािंश वत्त
ृ ों की भूमध्यरे खा से दरू रयों को एक सारणी की सहायता से ज्ञात ककया जाता है I
प्रक्षेप में दे शािंतर रे खाएिं बनाने की ववचि अन्य बेलनाकार प्रक्षेप में प्रयुक्त ववचि के समान होती है I
पहचान (Identification)
1. अक्षािंश वत्त
ृ सरल, परस्पर बराबर एविं समािंतर रे खाओिं की तरह होते हैं I
2. दे शािंतर रे खाएिं भी सरल, परस्पर बराबर एविं समािंतर होती हैं I
3. अक्षािंश वत्त
ृ तथा दे शािंतर रे खाएिं एक दस
ू रे को समकोण पर काटती हैं I
4. दे शािंतर रे खाएिं समान दरू ी के अिंतर पर बनी होती हैं परिं तु अक्षािंश वत्त
ृ ों के बीच की दरू ी भूमध्यरे खा से ध्रव
ु ों
की ओर को तनरिं तर बढ़ती जाती है I
िुणधमम (Properties)
उपयोि (Use)
ग्लोब पर ककन्ही दो बबिंदओ
ु िं के बीच की न्यन
ू तम दरू ी को उन बबिंदओ
ु िं से होकर जाने वाले वह
ृ त वत
ृ के सहारे
मापकर ज्ञात ककया जाता है I मकेटर प्रक्षेप पर वह
ृ त वत
ृ ों की आकृतत वक्राकार होती है I ये वक्र उत्तरी
गोलािव में उत्तर की ओर तथा दक्षक्षणी गोलािव में दक्षक्षण की ओर झक
ु े होते हैं I अतः स्पष्ट है कक प्रक्षेप पर
अिंककत यदद कोई बह
ृ त वत्त
ृ ककसी दे शािंतर रे खा अथवा भूमध्यरे खा का भाग नहीिं है तो उसके सहारे -सहारे
नौसिंचालन के सलए ककसी नाववक को प्रततक्षण अपने पोत की ददशा में पररवतवन करना होगा, जो एक अत्यिंत
कदठन कायव है I इस कदठनाई को दरू करने के सलए मकेटर प्रक्षेप पर अिंककत ककसी वत्त
ृ की आवचयक सिंख्या
में जजवाएिं (Chords) खीिंच दी जाती हैं I सरल रे खाओिं के रूप में होने के कारण मकेटर प्रक्षेप पर बह
ृ त ् वत्त
ृ
की प्रत्येक जीवा एक तनयत ददक्मान वाली रे खा या एकददश नौपथ बन जाती है I अतः इन जीवाओिं के
सहारे नौसिंचालन करने में नाववकों को केवल उन्हीिं बबिंदओ
ु िं पर अपने पोत की ददशा में पररवतवन करने की
आवचयकता होती है जहािं दो जीवाए एक दस
ू रे को समलती हैं I यद्यवप नौसिंचालन में जीवाओिं के अनुसरण
से वह
ृ त वत
ृ की तुलना में थोडी अचिक दरू ी तय करनी पडती है तथावप तनरिं तर ददशा बदलते रहने की
समस्या दरू हो जाने से नाव सिंचालन कायव तनजचचत रूप से सरल हो जाता है I
नौसिंचालन के अततररक्त पवनों की ददशा तथा महासागरीय िाराओिं को प्रदसशवत करने के सलए भी यह प्रक्षेप
परम उपयोगी है I सिंक्षेप में , शुद्ि आकृतत एविं शुद्ि ददशा प्रदसशवत करने के उद्दे चय से बनाए जाने वाले
लगभग समस्त मानचचत्रों के सलए मकेटर प्रक्षेप का उपयोग ककया जाता है I
उच्च अक्षािंशों में क्षेत्रफल बहुत अचिक बढ़ जाने के कारण भूमध्यरे खीय क्षेत्रों के अततररक्त स्थलीय भागों के
ववतरण मानचचत्रों के सलए यह प्रक्षेप अनप ु युक्त होता है I यद्यवप इस प्रक्षेप पर सिंसार के राजनीततक
मानचचत्र बनाए जाते हैं, परिं तु उन मानचचत्रों के बनाने का मूल उद्दे चय यूरोप महाद्वीप के छोटे -छोटे दे शों को
बडा करके ददखलाना है I
सन्दभव: प्रायोचगक भग
ू ोल, रस्तोगी प्रकाशन, जे० पी० शमाव