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ू क
1. हण य लगता है
2. हण का भाव
3. सतू क का भाव
4. हण का वै ा नक एवं यो तषीय मह व
5. सय ू व पात का अ तर अमाव या / पू णमा
6. राहु प ट का हण उपयोग हण के सू म समय को साधना
7. सूतक और हण म यान रखने वाले नयम
1. जब सय ू , चं मा और प ृ वी अपण
ू प से दखते ह तो इसे आं शक हण के प म जाना जाता है। आं शक हण के दौरान,
चं मा पर एक छाया तब तक बढ़ती रहे गी जब तक क यह चरम पर न पहुंच जाए।
2. पणू चं हण क ि थ त म हण के दौरान सय ू , प ृ वी और चं मा एक बंद ु पर होते ह। यह आं शक हण क तरह शु
होता है ले कन अपने चरम पर प ृ वी क छाया पूरे चं मा को ढक लेती है ।
3. हण के भाव क अव ध पर बात करते हुए वराह म हर या या करते ह य द एक ह मह ने म दो हण पड़े एक सय ू हण
और दस ू रा च हण तो राजा का वनाश होगा िजसके फल व प सै य ोह क ि थ त तथा खन ू ी सं ाम का वातावरण
होगा।
4. पुनः वराहम हर कहते ह :- य द च हण के बाद प के अ त म सूय हण पड़े तो जनता उप वी और अनु चत यवहार
करने वाल बनेगी तथा द प य म अनबन क ि थ त होगी।
5. बहृ सं हता म यह भी लखा है क वायु त व तथा ि थर रा शय म घ टत हण च वात तथा अ य रा य के साथ मतभेद
क ि थ त घो षत करता है । वायु त व रा शय म हण आकाशीय वपदाएँ, परे शा नयाँ भी दखाता है जैसे वमान दघ ु टनाएँ।
वपाद (मानव) रा शय म घ टत हण लोग व जानवर पर तकूल भाव डालते ह।
6. य द पूण हण हो और हण के भा वत व ृ पर पाप भाव भी हो तो यह ि थ त पूरे दे श म भुखमर , अकाल, महामार क
सच ू क है ।
हण
दो कार के हण होते ह सय
ू हण और च हण।
हण का बहुत मह व है , य क:-
2. सय
ू हण क अव ध िजतने घ टे होती है उसी सम तु य वष तक सय
ू हण का भाव रहता है।
अमाव या के समय य द सूय व पात म से कसी का भी अ तर 15 अंश के भीतर हो तो सूय हण अव य होता है। य द 15°
से 18° के भीतर अ तर हो तो हण लगने क स भावना होती है । हण लगेगा के नह ं ? इसका न चय तब अमाव या के
अ त समय के सूय, च के ल बन व प ट ग त आ द से न चय कया जाएगा। 18° अंश से अ धक अ तर रहने पर हण
नह ं लगेगा।
2. ले कन अ धकमास म पहले सय
ू हण और बाद म च हण होना भी स भव है। ऐसी ि थ त म यापक कु भाव होता है।
3. िजस न म पणू सय
ू अथवा च हण होता है उस न को अगले छः मास तक कसी भी मंगलकार काय के चयन म
यागना चा हए।
4. इसी कार िजस न म अध सूय अथवा च हण होता है उस न को अगले तीन मास तक।
1. Before Lunar Eclipse, Rahu/ Ketu is moving ahead (i.e. Direct Motion)
2. Near Lunar Eclipse, Rahu/ Ketu stagnant
3. After Lunar Eclipse, Rahu/ Ketu move retro (as their normal Motion)
सय
ू हण (2023)
1. Before Solar Eclipse, Rahu/ Ketu is move Retro (as their normal Motion) as above its going 45 mins to 42 min
2. Near Solar Eclipse, Rahu/ Ketu stagnant as above its stagnant at 42 min
3. After Solar Eclipse, Rahu/ Ketu move in
a) Little normal from 42 mins to 41
b) Then Direct motion for few days from 41 mins to 42 (up till Oct 20, 2023)
c) Post which normal retro motion) from 42 to 41 (up till Oct 23rd , 2023)
Note:- in this example exactly after solar eclipse the lunar eclipse done therefore again variation noted in the
movement of rahu as stated in lunar eclipse slide
चं मा मन का कारक
चं हण का समय और सूतक काल (in example of Latest Lunar Eclipse) चं हण 28 और 29 अ टूबर क म यरा म
हुआ। ये हण 28 अ टूबर को रात को 01:05 बजे से लगा और रात 02:24 पर समा त हुआ. ये हण मेष रा श और
अि वनी न म लगा। साल का आ खर चं हण भारत म लगा, इस लए यहां सूतक के नयम भी लागू ह गे। चं हण से 9
घंटे पहले सूतक लग जाते ह। इस हसाब से सूतक काल 28 अ टूबर क शाम 04:05 बजे शु हुआ। इसी के साथ सूतक के
नयम भी लग जाएंगे।
1. जल मु य प से च मा से स ब ध रखता है | चं मा लगातार प ृ वी के पानी को अपनी ओर खींचता रहता है , िजससे समु
म बड़ी-बड़ी लहर उठती रहती ह| धरती और सरू ज के बीच गु वाकषण….… प ृ वी-चं मा के बीच के गु वाकषण....
1. चै - लेखक, च कार, गायक, कलाकार, बॉडी ब डर, दाश नक, सोने के यापार , वे यावग को पीड़ा, कह ं खूब व कह ं नाम मा वषा।
2. वैशाख- दलहन व कपास क हा न, पठानी दे श म उप व या वप , य व शासक को क ट।
3. ये ठ राजा, ा मण, राज प रवार के सद य, बड़े राजनै तक दल म हलचल व क ट। स ध लोग क बदनामी।
4. आषाढ़ - न दय , बांध , पानी के थान पर अशाि त, फल व सि जय क हा न, अफगान, चीन, क मीर म उप व।
5. ावण - भारत के उ र पूव व उ र पूव के दे श म अ यव था, मुसलमानी दे श म उप व, पशुओं म रोग, सद म तैयार फसल क हा न ।
6. भा पद- बहार, बंगाल, उड़ीसा म व इस दशा म क ट, ि य क अ धक अपराधी व ृ ।
7. आि वन - श य च क सक को परे शानी, स धु नद के तटवत दे श , चीन, अफगा न तान, पा क तान म अशाि त ।
8. का तक- अि नजीवी लोग को क ट, मगध, पूव भारत, अयो या, मथुरा, काशी आ द म अशाि त, मि य व स चव को क ट ायः सभी
शासक क मुसीबत ।
9. मागशीष- सीमा त दे श म अशाि त, अ छ वषा, धा मक नेताओं को क ट।
10. पौष- कम वषा, द ु भ , बहार व उ र दे श के भोजपुर इलाके व स ध ा त म उप व।
11. माघ - व या थय म हलचल, अ छ वषा, सदाचार लोग को क ट, उड़ीसा म अकाल।
12. फा गुन - नतक, अ भनेता, नाटककार, फ म उ योग, सै नक व स जन ि य म भय ।
वषा व कृ ष उपज के लए भा पद, आि वन, का तक, माघ मास के हण ह तथा शेष मास के हण सामा यतया वषा म कमी
व द ु भ को यो तत शुभ करते ह। इस तरह हम कह सकते ह क हण व या धक मास का फल यापक होता है और
अ यथा ा त फल म फेरबदल करने म समथ है। वराह म हर ने कहा है:
अ वयु माघका तकभा पदे वागतः सु भ करः ।
राहुरव श टमासे वशभ
ु करो विृ टधा यानाम ् ॥
सत
ू क काल
1. या होता है हण सूतक काल? सूतक काल के समय को को द ू षत काल माना जाता है
य क इस दौरान वातावरण म कई नकारा मक त व मौजद
ू रहते हl इस समय को अशभ ु
माना गया है l सय
ू हण से 12 घंटे पहले सत
ू क काल शु होता है , वह ं चं हण से 9 घंटे
पहले. सत
ू क काल का धा मक ि ट से काफ मह व है l
2. हंद ू धम म सत ू क या है ? शा के अनस
ु ार, जब हण से पहले सत
ू क काल लग जाता है ,
िजसम कई शुभ और मांग लक काय विजत होते ह हण लगने से पहले सूतक काल म मं दर
के कपाट बंद कर दए जाते हl इ ह हण समा त होने के बाद ह खोला जाता है l ऐसा कहा
जाता है क इस अव ध म भगवान क मू तय को पश करने से बचना चा हए. हण काल म
दे वी-दे वताओं क पूजा विजत होती है l
3. सत
ू क म या या नह ं करना चा हए? सूतक काल म भगवान के पूजन क मनाह है ,
इस लए ह इस दौरान मं दर के कपाट तक बंद कर दए जाते हl सूतक काल म कोई भी
मांग लक काय कभी नह ं करना चा हएl नह ं तो शभ
ु क जगह अशुभ प रणाम मलगे. सूतक
अशुभ काल होता है , इस लए म हलाओं को ंगार से भी दरू बनानी ह बेहतर है l
नणय स ध-ु हण न पण
लोक- 1
अथ हणं नण यते । त च हणे यि मन ् यामे हणं त मा पूव हर यं न भु जीत सूय हे तु हरचतु टयं न भु जीत ।
च हण म िजस हर म हण लगे उससे पव
ू तीन हर म भोजन न करे । सय
ू हण म तो (िजस हर म हण लगे उससे
पूव चार हर म भोजन न करे ।
लोक- 2
सूय हे तु ना नीया पूव यामचतु टयम ्। च हे तु यामां ीन ् बालव ृ धातरु ै वना ।। इ त माधवीये व ृ धगौतमो तेः।
माधवीय म व ृ धगौतम ने कहा है — सय
ू हण म चार हर पव
ू तथा च हण म तीन हर पूव बालक, व ृ ध और आतरु —
रोगी को छोड़कर कोई भोजन न करे ।
लोक- 3
हणं तु भवे द दोः थमाद ध यामतः भु जीतावतना पूव थमे थमादयः । इ त माक डेयोलेश अ ध] ऊ वम ्। न तु च महे
यामचतु टय नषेध उ चतो न तु सूय हे सूय दया ाक् भोजना ा तेः । मैवम ्। वचन य थमयामे सूय हे स त पव
ू यःु पव
ू रा े
भोजन नषेधपर वात ् ।
माक डेयपरु ाण म कहा है - जो च मा का हण रा के वतीय हर म हो तो म या न से पूव भोजन करे । रा के थम हर
म हण हो तो थम याम के म य म भोजन करे ।
हण म भोजन वचार
लोक- 4
च हे वशेषमाह माधवीये व ृ धव श ट - तोदये वधोः पव
ू नाहभोजनमाचरे त ्। इ त । इयो ता ते तु माधव यासः
अमु तयोर तगयोरा वा परे ऽह न । इ त
च हण म वशेष माधवीय म व ृ धव स ठ ने कहा है क य द च मा त होकर उदय हो तो पूव दन भोजन न करे । सूय-
च दोन के ता त म तो माधवीय म यास ने कहा है -य द च दमा तथा सूय त हुए अ त हो जाय तो दसू रे दन
च मा तथा सूय को दे खकर भोजन करे ।
लोक- 5
व णध
ु मऽ प- अहोरा ं न भो त यं च सय
ू हो यदा मिु तं वा तु भो त यं वानं कृ वा ततः परम ् । अहोरा नषेधः
सय
ू ता ते ।
व णधु म म भी लखा है — जब च या सूय हण हो तो 'अहोरा 'भोजन न करे , क तु राहु से मु त दे खकर नान करके
भोजन करे । इस वचन म अहोरा का नषेध ता त सय
ू म जानना चा हये।
लोक- 6
मदनर ने गा य:- स याकाले यदाराहु सते श शभा करौ। तदहनव भु जीत रा ाव प कदाचन।।
ता त होने पर मदनर न म गा य ने कहा है क—जब राहु च मा तथा सूय को स या के समय से तो उस दन रा म
भी भोजन न करे ।
हण म भोजन वचार
लोक- 7
सायंस यायां सूय ता ते पूवऽि न रा ी च न भो त यम ् । ातः स यायां च य अ ता ते पूवरा ाव ृ रे ऽि न च न भो त य म यथः ।
च ता ते उ र दने स याहोमाद न दोषः ।
सायंकाल क स या म सूय के ता त होने पर उस दन तथा उस रात म भोजन न करे । ातःकाल क स या म च मा के ता त
होने पर तो पूवरा तथा दस
ू रे दन भोजन न करे । च मा के ता त हो जाने पर दस
ू रे दन म स या होमा द करने म दोष नह ं है।
लोक- 8
साया ने हणं चेत ् यादपरा णे न भोजनम ्। अपराहे न म या ने, म या ने न तु स गये। भु जीत स गवे वे या न पूव भोजन या ।। इ त
इदं च बाला द वषयम ्। 'बालव ृ धातरु ै वना' इ त पव
ू तः वेधकाले हणे वा प वमनं या यम ् ।
माक डेय ने कहा है — साया न म हण हो तो अपरा न म, अपरा न म हो तो म या न म, म या न म हो तो संगव म तथा संगव म हो
तो उससे पूव हर म भोजन न करे । यह बालक के लये है । य क पहले बाल-व ृ ध-आतुर के बना कह आये ह। वेधकाल या हण-समय म
पकाये हुए अ न का याग करे ।
लोक- 9
सवषामेव वणानां सूतकं राहुदशने। ना वा कमा ण कुव त मत
ृ म ं ववजयेत ् ।। इ त हे मा ष श
ं मतात ्। मत
ृ मत
तद त रत योपल णम ्। नव ा धेषु बि छ टं प तं च यत ् इ त। मता राचां वचनात ् ।
हे मा म ष श ं त ् का मत है -राहु के दशन म सभी वण को सूतक है , नान करके कम को करे तथा हण म पकाये अ न का याग
करे । ुत (पहले का पकाया हुआ) हण के म य म पकाये हुए का उपल ण है । य क मता रा म यह वचन है क-नव ा ध का शेष तथा
हण का वासी अ न न खाये।
हण म भोजन वचार
लोक- 10
भावाचनद पकायां यो त नब धे मेधा त थ-
'आरनालं पय तकं द धनेहा यपा चतम ्। म णक योदकं चैव न द ु ये ाहुसूतके ।।
भागवाचनद पका एवं यो त नब ध म मेधा त थ ने कहा है क-आरनाल (काि जक), दध ू , मठा, द ध, तेल तथा घी
म पकाया हुआ अ न, म णक (जलकलश) का जल-ये राहु के सूतक म द ू षत नह ं होते ह।
लोक- 11
म वथमु ताव याम ्- अ नं प य मह या यं नानं सवसनं हे वा र त ारनाला द तलदभनं द ु य त।।'
म वथमु तावल म लखा है क- हण म पका अ न तथा घर म सचैल (वसन स हत) नान को याग दे । जल,
माठा (त ), कांजी, तल तथा कुशा से द ू षत नह ं होते ह।
हण म सत
ू का द वचार
लोक- 12
सवषामेव वणानां सूतकं राहुदशने। सचैलं च भवे नानं सूतका नं च वजयेत ् ।।
इ त व ृ धव स ठो ते च । सचैल वं मिु त नानपर म त मदनरले उ तम ् ।
व ृ धव स ठ ने भी कहा है – राहु के दशन म सभी वण का सूतक और सचैल नान होता है तथा सूतक म अ न ( हणकाले
ततः ा वा प वम नम ् ) का याग करे । सचैल नान मिु त नान वषयक है। यह मदनर न म कहा है ।
हण म नान वचार
लोक- 13
भागवाचनद पकायां चतु वश तमते-
'मु तौ य तु न कुव त नानं हणसत
ू के । स सत
ू क भवे ावत ् याव यादपरो हः।। इदं च नानमम कं काय म त म ृ तर नाव याम ् '
भागवाचनद पका म चतु वश त का मत है — जो मनु य हण के सत ू क तथा मिु त म नान नह ं करता, वह तब तक सत
ू क होता है
जब तक दसू रा हण नह ं आता है । इस नान को म र हत ह करे , ऐसा म ृ तर नावल म लखा है ।
लोक- 14
त तीथ वशेषो भारते-
'ग गा नानं तु कुव त हणे च सूययोः । महानद षु चाऽ यासु नानं कुया यथा व ध । । '
हण- नान के लए तीथ वशेष भारत म लखा है -च -सूय के हण म गंगा म नान करे , गंडक आ द महान दय म शा ो त वध
से नान करे ।
लोक- 15
महानद व प मास वशेषे काि च े ठाः- यागं दे वका रे वा सि नह या च वारणम ् । सर वती च भागा कौ शक ता पक तथा ।
स धग ु ड कका चैव सरयःू का तका दतः ।। मूलं हे मा ौ प टम ् ।
महान दय म भी मास वशेष म कोई-कोई े ठ कह गयी है । याग, दे वका, रे वा, सि नह या, व णा, सर वती, च भागा, कौ शक ,
तापी, संध,ु ग डक तथा सरय;ू ये का तक' आ द मास म म से हण नान के लए उ म है । इसका मूल हे मा म प ट है ।
हणफल म तारत य कथन
लोक- 16
यास:-'इ दोल गण
ु ं पु यं रवेदशगण
ु ं ततः । ग गातोये तु स ा ते इ दोः कोट रवेदश ।। गवां को टसह य य फलं लभते नरः
। त फलं लभते म य हणे च सय ू योः ।।’
यास ने कहा है – च हण म लाख गण ु ा तथा सूय हण म उससे दशगण ु ा नान का पु य होता है । च हण म गंगाजल (सव
भू मसमं दानं सव मसमा वजाः । सव ग गासमं तोयं राहु ते दवाकरे ।।) मल जाय तो करोड़ गण ु ा तथा सूय हण म दस
करोड़ गणु ा पु य होता है। मनु य को हजार करोड़ गौओं के दान से जो फल मलता है, वह फल च -सूय हण म गंगा नान से
मल जाता है ।
लोक- 17
त व
ै सौरपरु ाणेऽ बु ध नानमप
ु य-
'दाना न या न लोकेषु व याता न मनी ष भः। तेषां फलमवा नो त हणे च सूययोः ।
वह ं सौरपुराण म समु नान का उप म करके लखा है -मनी षय ने संसार म िजतने दान स ध कये ह, उन सबका फल
च -सय ू हण म नान करके मनु य ा त करता है।
लोक- 18
दे वीपरु ाणे- 'ग गा कनखलं पु यं यागे पु करं तथा। कु े ं महापु यं राहु ते दवाकरे ।।'
दे वीपरु ाण म लखा है-सूय ह म गंगा, कनखल, याग और पु कर प व ह तथा कु े महाप व है।
हणफल म तारत य कथन
लोक- 19
नानास भवे मरणं कायम ्।
' म ृ वा शत तफ
ु लं वा सवाघनाशनम ्। प ृ वा गोमेधपु यं तु पी वा सौ ामणेलभेत ्।। ना वा वािजमखं पु यं
ा नुयाद वचारतः। र वच ोपरागे च अयने चो रे तथा ।।' इ त माक डेयो तेः।
नान के अस भव म तो तीथ- मरण करे । माक डेयपरु ाण म कहा है-सय
ू , च हण तथा उ रायण के सय
ू म तीथ मरण से
सौ य का फल, दे खने से सब पाप का नाश, पश से 'गोमेधय ' का फल, पीने से 'सौ ाम ण' य ■ फल एवं नान से
'अ वमेध' का फल मनु य को बना वचारे ा त हो जाता है ।
ज मरा श म हण के न ष ध व का कथन
लोक- 20
हणं च ज मरा यादौ न ष धम ्। तद ु तं यो तषे - ' ष दशाऽऽ योपगतं नराणां शुभ दं या हणं रवी वोः । वस तन दे षु
च म यमं या छे षे व न टं क थतं मन ु ी ै ः ।।' इ त । आयः = एकादश। न दाः नव। इषःु प च।
हण ज मरा श आ द म न ष ध है । ऐसा यो तष म कहा है -ज मरा श से तीसरे , छठ, दशव, यारहव तथा पाँचव सूय या
च हण हो तो मनु य को शभ
ु दायक है । दस
ू रे , सातव, और नव म यम ह। शेष रा शय म े ठमु नय ने अ न टदायक कहा है ।
लोक- 21
मदनर ने गगः
'ज मस ता ट रः फा कदशम थे नशाकरे । टोऽ र ट दो राहुज मध नधनेऽ प च।। रःफं वादश, य काः = नव। नधनं =
स तमतारा।
मदनर न म गग ने कहा है -ज म से सातवीं, आठवीं, बारहवीं, नवीं और दशवीं रा श पर च हण ( दवाकरोऽ प ा यः) हो।
ज मन या ज मन से आठवे न पर हो तो अशुभकारक है ।
लोक- 22
प ृ वीच ोदये व णुधम –
'य न गतो राहुभसते श शभा करौ । त जातानां भवे पीडा ये नराः शाि तविजताः ।।'
प ृ वीच ोदय के व णुधम म कहा है क िजस न म गया राहु च तथा सूय को सता है उस न म उ प न मनु य को
पीड़ा होती है । य द वे शाि त को नह ं करते ह।
ज मरा श म हण के न ष ध व का कथन
लोक- 23
त ैव पुराणा तरे -
'सय
ू य सं मो वाऽ प हणं च सूययोः । य य ज मन े त य रोगोऽथ वा म ृ तः ।। त य दानं च होमं च दे वाचनजपौ तथा । उपरागा भषेकं
च कुया छाि तभ व य त ।। वणन वाऽथ प टे न कृ वा सप य चाकृ तम ्। ा मणाय ददे य न रोगा द च त कृतः ।।' ज मन ं त पूव रे च
ज मन म यु यते। ज मदशमैकोन वंश ततारा इ त के चत ्। सप य=तदाकार य राहो र यथः ।
वह ं पुराणा तर म कहा है -सूय क सं ाि त या सूय-च हण िजसके ज मन म या ज मन से पूव तथा उ र के न म हो तो उसे रोग
या मरण होता है । उसके लए दान, होम, ( वभवे दानहोमौ तदभावे एकैकं, चकार वयात ्) दे वाचन, जप तथा हण म म से अ भषेक करे तो
उसक शि त हो जायगी। सप के तु य सुवण या आटा से न मत राहु क तमा ा मण को दे , इससे उसे रोग आ द नह ं होते ह। ज मन
और ज म के पूव तथा उ र के न ' ज म न ' कहे जाते ह। कोई कहते ह-ज म का दसवाँ तथा उ नीसवाँ तारा न ष ध है ।
लोक- 24
अ भुतसागरे भागवः 'य य राज य न े वभानु पर यते। रा यभ ग सु नाशं मरणं चा न दशेत ्।।' रा य य न म ् अ भषेकन म त त ैव
या यातम ्।
अ भुतसागर म भागव ने कहा है क-िजसके रा या भषेक के न म हण हो उसका रा यभंग, म का नाश या मरण होता है ।
हणदशन- वचार
लोक- 25
भागवाचनद पकायां म स धा ते-
'सवः पटि थतं वी यं ख थं तैला बद
ु पणैः। हणं गु वणी जातु न प येत पटं वना ।।
भागवाचनद पका म म स धा त का वचन है क सब लोग आकाश (ख थ) ि थत कपड़े क ओट म हण को तेल, जल तथा
दपण के वारा दे ख। गभवती ी कपड़ के ओट कये बना कभी भी न दे खे।
लोक- 26
म गलकृ य म व ध वशेष-कथन
तथा म गलकृ येषु व ध वशेषो हे मा ौ-
' योद या दतो व य दनानां नवकं ु म ्। मा ग येषु सम तेषु
व हणे च सूययोः ।।
इसी कार मंगल काय म व ध वशेष हे मा म कहा है- च हण म योदशी से लेकर नव दन तक न चय सब मंगल काय
का याग करे ।
हण का पु य काल :- जहाँ हण दखाई पड़े, वह ं पु यकाल होता है तथा उसम नान दान जपा द करने का वधान है । य द
हण होता हुआ भी िजस थान पर ल त न हो, वहाँ उसका कुछ फल नह ं होता है।
सत
ू क और हण काल के नयम
1. “When the Sun or Moon are eclipsed, all waters become as sanctified as the Ganga for bathing and
religious purposes”- Parāśara ("जब सयू या चं मा को हण लगता है , तो सभी जल नान और धा मक
उ दे य के लए गंगा के समान प व हो जाते ह“- पराशर)
2. “During an eclipse all waters become like the Ganga and all Brahmins like sage Vasistha”- Arya
Dharma Upatēcańka! (" हण के दौरान सभी जल गंगा के समान हो जाते ह और सभी ा मण ऋ ष व स ठ
के समान हो जाते ह“- आय धम उपदे शक)
3. “When the Moon is eclipsed by Rāhu (lunar eclipse), all charity made is equal to the gift of land; all
brahmanas are like Vyāsa, and all water becomes like the Ganga” - Padma Purāņa (“जब चं मा पर राहु
(चं हण) का हण होता है, तो कया गया सारा दान भू म के दान के बराबर होता है ; सभी ा मण यास के
समान ह, और सारा जल गंगा के समान हो गया है “- प म पुराण)
4. “A bath in the Ganges during a solar eclipse yields 10 times the benefit of a bath during a Lunar
eclipse” Devi Bhagavatapurăņa ("सय
ू हण के दौरान गंगा म नान करने से चं हण के दौरान नान का
10 गुना लाभ मलता है “- दे वी भागवतपुराण)
सत
ू क और हण काल के नयम
5. “Bathing, offering gifts, austerities, and burnt offerings may be made at night if an eclipse occurs” –
Parāśara (“य द हण होता है तो रात म नान, उपहार, तप या और होमब ल द जा सकती है“- पराशर)
6. “Those who live on the sea shore can take a ritual bath in the sea (samudra snāna) when the eclipse
begins, but one should not take a ritual bath in the ocean after the eclipse is over. This is because we
are not supposed to take ocean baths during Prathama (first day after the New Moon)” - Arya
Dharma Upatēcańka! (“जो लोग समु के कनारे रहते ह वे हण शु होने पर समु म नान (समु नान)
कर सकते ह, ले कन हण समा त होने के बाद कसी को समु म नान नह ं करना चा हए। ऐसा इस लए है
य क हम थमा (अमाव या के बाद पहला दन) के दौरान समु म नान नह ं करना चा हए।”- आय धम
उपदे शक!)
7. “Bathing in the day is an auspicious form of bathing. Bathing at night is not approved unless there is
an eclipse of the Moon”- Parāśara (“ दन म नान करना नान का एक शभ ु प है । जब तक चं मा का
हण न हो तब तक रा म नान करना विजत है” - पराशर)
8. “The Sun and Moon are the lords of plants and so when the eclipse comes, our stomach should be
empty”. - Ārya Dharma Upatēcarńka! ("सयू और चं मा पौध के वामी ह और इस लए जब हण आता है,
तो हमारा पेट खाल होना चा हए"। - आय धम उपतचणक!)
सत
ू क और हण काल के नयम
9. “Brahma siddhānta recommends looking at an eclipse through a curtain, cloth or through the
reflection in a dish of oil or water. A pregnant women should not witness such views unless viewed
through a curtain or cloth” - Śikşāpātrī Bhāşya (“ म स धांत हण को पद, कपड़े या तेल या पानी के
बतन म त बंब के मा यम से दे खने क सलाह दे ता है । गभवती म हलाओं को ऐसे य तब तक नह ं दे खने
चा हए जब तक क उ ह पद या कपड़े से न दे खा जाए।‘’- श ाप ी भा य)
10.“One must not eat food during the eclipse of the Sun or the Moon” - Vişnu Smrti (सय
ू या चं मा के
हण के दौरान भोजन नह ं करना चा हए- व णु म ृ त)
11.“In the Madhaviya, Gautama recommends that no food may be tonsumed in the period beginning
four praharas (12 hours) prior to solar eclipse, or three praharas (9 hours) prior to a lunge eclipse.
This restriction excludes children, older ones and those who are suffering from illness” - Śikṣāpātrī
Bhāşya (माधवीय म, गौतम अनश ु स
ं ा करते ह क सयू हण से चार हर (12 घंटे) पहले, या हण हण से
तीन हर (9 घंटे) पहले क अव ध म कोई भी भोजन नह ं खाया जाना चा हए। इस तबंध म ब चे, बढ़
ू े और
वे लोग शा मल नह ं ह जो बीमार से पी ड़त ह" - श ाप ी भा य)
सत
ू क और हण काल के नयम
1. हण के दौरान करण अशु ध हो जाती है l
2. सत ू क काल के दौरान गभवती म हलाओं को वशेष यान रखना चा हएl इस दौरान सलाई-कढ़ाई का कोई काम नह ं करना
चा हएl
3. गभवती म हलाएं सूतक काल म खाना न बनाएं और चाकू, कची, सुई आ द कसी भी नुक ल चीज का भी इ तेमाल न करl
4. सूतक काल के दौरान गभवती म हलाओं को बाहर नह ं नकलना चा हए और पेट पर सूतक लगने के पहले ह गे लगा लेना
चा हएl
5. सूतक काल के दौरान वातावरण म नकारा मकता होने के कारण सभी के लए खाना बनाने और खाने क मनाह है , ले कन
लि वड डाइट ले सकते हl
6. गभवती म हलाओं, बुजुग के लए खाना न खाने वाला नयम लागू नह ं हैl वे अपनी ज रत के हसाब से खा सकते हl
7. हण के दौरान खाने क चीज म तल ु सी का प ा डाल दे ना चा हएl इसे सत ू क काल के पहले तोड़कर सभी चीज म डाल
लेना चा हएl तल ु सी का प ता डालने से वो चीज द ू षत नह ं होतीl खानपान क तमाम चीज म तल ु सी के प ते डालने क
सलाह द जाती है l तल ु सी का प ता सतू क शु होने से पहले ह डाल दे ना चा हए और सामान को ढक कर रख दे ना चा हएl
8. सूतक काल म मं दर म पूजा न कर. न ह घर म पूजा करनी चा हएls ले कन मान सक जाप कर सकते हl इसे शुभ माना
जाता है l
9. ास बनने के बाद सूय और चं , दोन ह संकट म रहते हl चूं क राहु का धड़ न होने के कारण कुछ समय बाद सूय ह या
चं उसके चंगल ु से छूट जाते ह और हण समा त हो जाता है l ले कन ास के समय हमारे दे व क ट म होते हl इस कारण
इस घटना को अशभ ु माना जाता है और दे वो क पजू ा करने क बजाय मान सक प से जाप करके उनक शि त बढ़ाई जाती
है , ता क वो ज द ह इस संकट से मु त ह l
Reference taken from various books
1. मे दनी यो तष (By :- एम.एस. मेहता ए. रा धका राव - माग दशक ी के०एन० राव)
2. संव सर सं हता (By :- डॉ. सुरेश च म )
3. सं हता यो तष (By :- महे नाथ केदार)
4. ीकमलाकरभ ट णीत नणय स धु (By :- ी पं. व याधरजी गौड आ हताि न पु )
5. यो तष सव व (By :- डॉ. सुरेश च म )
6. Timing of events using Eclipcis (Prabodhchandra Madhukar)
7. के. के. जोशी ( ह द अनुवाद By:- पवन ब लभ थप लयाल)- द दशनः ी के. एन. राव
8. यो तष गहरे पानी पैठ Charting the Astrological Ocean (By :- डॉ. सरु े श च म )
Presentation by:-
1. Vaishali Lilaramani
2. Dr. Asmita Ojha