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अनुवाद (Translation)

अनव
ु ाद की परिभाषा

अनुवाद शब्द संस्कृत का है जिसके मूल में 'वद्' धातु है। 'अनु' उपसर्ग लर्ने से 'अनुवाद' शब्द बना
है। अनुवाद का मूल अर्ग है "ककसी के कहने के पश्चात कहना" अर्वा पुन: कर्न । शब्दकोश के
अनुसाि अनुवाद का अर्ग है -- " पहले कहे र्ये अर्ग को किि से कहना ।" अंग्रेिी में अनुवाद के ललए
(Translation) शब्द का प्रयोर् होता है। 'Translation' शब्द लैटिन शब्द 'Trans'(पाि) तर्ा
'Lation'(ले िाना) शब्दों के योर् से बना है । जिसका अर्ग एक भाषा के पाि दस
ू िी भाषा में ले िाना।
या एक भाषा से दस
ू िी भाषा में बदलना।

(अ) ए.एच. जस्मर् के अनस


ु ाि- " अर्ग को बनाये िखते हुए अन्य भाषा में अंतिण किना अनुवाद है ।"

(आ) डा. भोलानार् ततवािी के अनुसाि- "एक भाषा में व्यक्त ववचािों को, यर्ासम्भव समान औि सहि
अलभव्यजक्त द्वािा दस
ू िी भाषा में व्यक्त किने का प्रयास अनुवाद है ।"

व्यत्पविमूलक अर्ग

'अनुवाद' का व्युत्पविमूलक अर्ग है - पुनः कर्न; एक बाि कही हुई बात को दोबािा कहना। इसमें
'अर्ग की पुनिाववृ ि होती हैं, शब्द (शब्द रूप) की नहीं। 'ट्ांसलेशन' शब्द का व्युत्पविमूलक अर्ग है
'पािवहन' अर्ागत ् एक स्र्ान-बबन्द ु से दस
ू िे स्र्ान-बबन्द ु पि ले िाना। यह स्र्ान-बबन्द ु भावषक पाठ
है। इसमें भी ले िाई िाने वाली वस्तु अर्ग होता है , शब्द नहीं। उपयक्
ुग त दोनों शब्दों में अन्ति
व्युत्पविमूलक अर्ग की दृजटि से है , अतः सतही है। वास्तववक व्यवहाि में दोनों की समानता स्पटि
है। अर्ग की पुनिाववृ ि को ही दस
ू िे शब्दों में औि प्रकािान्ति से, अर्ग का भाषान्तिण कहा िाता है ,
जिसमें कई बाि मूल भाषा की रूपात्मक-र्ठनात्मक ववशेषताएँ लक्ष्यभाषा में संक्रान्त हो िाती है।

वस्तुतः 'अनुवाद' शब्द का भाितीय पिम्पिा वाला अर्ग आधुतनक सन्दभग में भी मान्य है औि इसी
को केन्र बबन्द ु बनाकि अनुवाद की प्रकृतत को अंशशः समझा िाता है । तदनुसाि, अनुवाद कार्य के
तीन सन्दर्य हैं - समर्ाषिक, अन्र्र्ाषिक और अन्तरसंकेतपरक।

समर्ाषिक अनव
ु ाद

समभावषक सन्दभग में अर्ग की पुनिाववृ ि एक ही भाषा की सीमा के अन्तर्गत होती है , पिन्तु इसके
आयाम लभन्न-लभन्न हो िाते हैं। मुख्य आयाम दो हैं -कालक्रममक और समकामलक। कालक्रलमक
आयाम पि समभावषक अनुवाद एक ही भाषा के ऐततहालसक ववकास की दो तनकिस्र् अवस्र्ाओं में
होता है, िैस,े पुिानी टहन्दी से आधुतनक टहन्दी में अनुवाद। समकाललक आयाम पि समभावषक अनुवाद
मुख्य रूप से तीन स्तिों पि होता है - बोली, शैली और माध्र्म।
बोली स्ति पि समभावषक अनुवाद के चाि उपस्ति हो सकते हैं :

(क) एक भौर्ोललक बोली से दस


ू िी भौर्ोललक बोली में ; िैसे ब्रि से अवधी में।

(ख) अमानक बोली से मानक बोली में ; िैसे र्ंिाम ओड़िया से पिु ी की ओड़िया में अर्वा नार्पिु
मिाठी से पण
ु े मिाठी में।

(र्) बोली रूप से भाषा रूप में , िैसे ब्रि या अवधी से टहन्दी में

(घ) एक सामाजिक बोली से दस


ू िी सामाजिक बोली में , िैसे अलशक्षितों या अल्पलशक्षितों की भाषा
से लशक्षितों की भाषा में या एक धमग में दीक्षित लोर्ों की भाषा से अन्य धमग में दीक्षित लोर्ों की
भाषा में।

शैली स्ति पि समभावषक अनुवाद को शैली-ववकल्पन के रूप में भी दे खा िा सकता है। इसका एक
अच्छा उदाहिण है औपचारिक शैली से अनौपचारिक शैली में अनुवाद; िैसे ‘धूम्रपान वजिगत है '
(औपचारिक शैली) → ‘बी़िी लसर्िे ि पीना मना है ' (अनौपचारिक शैली)। इसी प्रकाि ‘ट्यूबीय वायु
आधान में समलमतत नहीं िह र्ई। है ' (तकनीकी शैली) -> 'िायि की हवा तनकल र्ई है ' (र्ैि-तकनीकी
शैली)।

माध्यम की दृजटि से समभावषक अनुवाद की जस्र्तत वहाँ होती है िहाँ मौखखक माध्यम में प्रस्तुत
सन्दे श की ललखखत माध्यम में या इसके ववपिीत पुनिाववृ ि की िाए; िैस,े मौखखक माध्यम का एक
वाक्य है : "समय की सीमा के कािण मैं अपने श्रोताओं को अधधक ववस्ताि से इस ववषय में नहीं
बता पाऊँर्ा।" इसी वाक्य को ललखखत माध्यम में इस प्रकाि से कहना सम्भवतः उधचत माना िाता
है : "स्र्ान की सीमा के कािण मैं अपने पाठकों को अधधक ववस्ताि से इस ववषय का स्पटिीकिण
नहीं कि सकूँर्ा ।" ('समय' → 'स्र्ान', 'श्रोता' → 'पाठक'; 'ववषय में बता पाना' > 'का स्पटिीकिण
कि सकना')।

समभावषक अनुवाद के उपयक्


ुग त उदाहिणों से दो बातें स्पटि होती हैं।

एक- भाषा में प्रकि ककये र्ये ववचािों को दस


ू िी भाषा में रूपान्तरित किने को अनुवाद कहते हैं।
अनुवाद किने वाले को अनुवादक औि अनुवाद की हुई िचना को अनूटदत कहते हैं। अनुवाद की श्रेटठता
अनुवादक की योग्यता पि तनभगि है। अनूटदत िचना तभी तनदोष समझी िाएर्ी िब मूल लेखों के
भावों की पूणग ििा की िाय औि अनूटदत िचना में वही शजक्त हो िो मूल िचना में विगमान है । यह
काम आसान नहीं है। वास्तव में अनुवादक का कायग स्वतंत्र लेखक से कहीं अधधक कटठन है।
मूल लेखक तो स्वतंत्र हो कि सोचता-ववचािता हुआ अपने ववचािों को उन्मुक्त भाव से प्रकि किता
चलता है लेककन अनुवादक को इतनी स्वतंत्रता नहीं िहती। उसकी शजक्त औि दृजटि बँधी िहती है।
मूल लेखक के ववचािों से असहमत होते हुए भी अनव
ु ादक को उसी के ववचािों को प्रकि किना प़िता
हैं। अतः अनुवादक को तभी सिलता लमलती है वह दोनों भाषाओं के शब्दों, मुहाविों, कहावतों औि
शजक्तयों का ठीक-ठीक ज्ञान िखता है।
ककसी भी भाषा में अनुवाद के अनेक प्रयोिन होते हैं। इसके बबना कोई भी भाषा ववकलसत नहीं होती।
जिस तीव्रता के सार् अँग्रेिी में अनूटदत ग्रन्र्ों का प्रकाशन हि वषग होता है , उतना हमािी भाषा में
नहीं होता। यद्यवप वपछले सौ वषों में दस
ू िी-दस
ू िी भाषाओं से, जिनमें अँग्रेिी, बँर्ला, मिाठी, र्ुििाती,
उदग ,ू िािसी इत्याटद मख्
ु य हैं, टहन्दी में अनेक ग्रंर्ों के अनव
ु ाद हुए तर्ावप अभी बहुत-सािे काम प़िे
हैं।
अनव
ु ाद की आवश्र्कता के ननम्नमलखित कारण हैं :-

(1) टहन्दी भाषा को औि अधधक सम्पन्न बनाने के ललए यह आवश्यक है कक संसाि की अन्य समद्
ृ ध
भाषाओं में ललखखत महान ् ग्रन्र्ों का भी अनुवाद ककया िाए । अब तक हमािी दृजटि अँग्रेिी तक ही
सीलमत िही, लेककन अब हम चीनी, िापानी, रूसी, िमगन, फ्रेंच इत्याटद भाषाओं से भी अनुवाद की
सामधग्रयाँ लेने लर्े हैं। यह आवश्यक है । कोई भी भाषा अनुवादों से परिपुटि औि समद्
ृ ध होती है।
शब्दों का भंडाि बढ़ता है , नये प्रयोर् सामने आते हैं औि नयी-नयी शैललयों का ववकास होता है।
(2) अनुवाद पाठकों के ज्ञान को भी समद्
ृ ध किता है। इनसे एक ओि हमािा ज्ञान बढ़ता है औि दस
ू िी
ओि हमािी ववचािधािा में नये मो़ि िन्म लेते हैं। इन्हीं अनुवादों के द्वािा हम दस
ू िे दे शों की सभ्यता,
संस्कृतत, ववचाि-दृजटि औि साटहत्य से परिधचत होते हैं औि किि हम भी उनके धिातल पि पहुँचने
की चेटिा किते हैं।
अनुवादों से दे शों में नव-िार्िण आया है , इसके कई प्रमाण हैं। वेदों औि उपतनषदों के अनुवादों से
िमगनी िर्ी; रूसी, बाल्िे यि आटद फ्रांसीसी साटहत्यकािों के ग्रंर्ानुवाद से रूस, इंर्लैंड इत्याटद दे शों
में नवचेतना की लहि आयी औि किि हमािा दे श पजश्चमी साटहत्य के सम्पकग में आ कि िार्तृ हुआ।
अनुवादों से एक ओि दे श में िाटट्ीयता की उमंर् आयी औि दस
ू िी ओि िाटट्ीय एकता का िन्म हुआ।
अतः अनुवाद के प्रयोिन या महत्त्व को हम ककसी भी अवस्र्ा में र्ौण नहीं मान सकते। इससे हमािा
प्रत्यि कल्याण हुआ है ।
इन्हीं प्रयोिनों या उद्दे श्यों को ध्यान में िख कि भाितीय ववश्वववद्यालयों में अनुवाद सम्बन्धी प्रश्न
आि भी पहले की तिह टदये िाते हैं। अनव
ु ाद-कला का अभ्यास हमािे ललए बहुत आवश्यक है।
अनुवाद की षवशेिता

प्रत्येक भाषा की एक स्वतन्त्र प्रकृतत होती है औि उसमें भाव-व्यंिन की कुछ ववलशटि प्रणाललयाँ होती
हैं। इसके अततरिक्त लभन्न-लभन्न ववषयों के ग्रन्र्ों में कुछ ववलशटि प्रकाि के भाव तर्ा शब्द भी होते
हैं। िब हम दस ू िी भाषाओं के अवतिण या ग्रन्र्ों के अनुवाद किते हैं, तब प्रायः हमें बहुत से नये
शब्द र्ढ़ने प़िते हैं औि बहुत-से पद-प्रकाि भी लेने प़िते हैं। इस प्रकाि के अनुवादों में वे ही अनुवाद
श्रेटठ समझे िाते हैं िो भाव तर्ा ववचाि को ज्यों-का-त्यों प्रकि किने के अततरिक्त अपनी भाषा की
ववलशटि प्रकृतत का भी ध्यान िख कि ककये िाते हैं। अन्यर्ा वे सदोष औि अग्राह्य होते हैं।
तनदोष अनुवाद के ललए यह आवश्यक है कक अनुवादक में दो भाषाओं का सम्यक् ज्ञान हो। उसी का
अनुवाद अच्छा कहा िायेर्ा जिसका दोनों भाषाओं पि समान अधधकाि होर्ा औि िो उनकी
अलभव्यंिना-प्रणाली से भलीभाँतत परिधचत होर्ा। यटद ऐसा नहीं होर्ा तो अनुवाद में त्रुटियाँ िह िायँर्ी।
अँग्रेिी से टहन्दी में अनव
ु ाद किते समय अँग्रेिी औि टहन्दी व्याकिण की लभन्न-लभन्न ववशेषताओं
को ध्यान में िखना चाटहए।
अनव
ु ाद के प्रकार

अनुवाद के तीन प्रकाि हैं।


(1) शब्दानुवाद र्ा अषवकल अनुवाद (Literal translation)
(2) र्ावानुवाद (Faithful translation)
(3) स्वतंत्रानुवाद (Free translation)
(1) शब्दानुवाद (Literal translation)- यह मूल भाषा का शाजब्दक अनुवाद हैं।
उदाहरणार्य- He first went to school in his own village, but while he was yet very young
he went to Calcutta इसका शब्दानुवाद इस प्रकाि होर्ा- 'पहले वह अपने ही र्ाँव की पाठशाला
में पढ़ने र्या। बाद में, िब वह बहुत छोिा ही र्ा, तभी उसे कलकिा पढ़ने िाना प़िा।' यहाँ 'He
went to Calcutta का सीधा-सादा अनुवाद 'वह कलकिा र्या' कि दे ना ठीक नहीं िँचता क्योंकक
यहाँ चचाग लशिा की हो िही हैं। यहाँ इसका अनुवाद 'पढ़ने िाना प़िा' ललखना ठीक होर्ा।
इसी प्रकाि अँग्रेिी का एक पद है 'To be patient with' जिसका अर्ग होता है- ककसी उद्धत या
अनुधचत व्यवहाि पि भी शान्त िहना, र्म खाना आटद। अँग्रेिी के एक वाक्य में इसका प्रयोर् 'being
patient with' के रूप में हुआ र्ा। टहन्दी के एक पत्रकाि ने बबना समझे-बूझे उस वाक्य का इस प्रकाि
शब्दानुवाद किके िख टदया र्ा- 'िाटट्पतत रूिबेल्ि श्री ववन्स्िे न चधचगल के मिीि हैं।' 'Patient' शब्द
टदखाई प़िा औि उसका सीधा-साधा अर्ग 'मिीि' किके िख टदया। ...... एक बाि िब बंर्ाल के एक
प्रधान मंत्री ढाका का दं र्ा शान्त किाने के ललए वहाँ र्ये र्े, तब उनकी उस 'flying visit' के सम्बन्ध
में एक पत्र में ललखा टदया र्ा- 'वे हवाई िहाि से ढाका र्ये र्े।''
इन उदाहिणों से यह स्पटि है कक शब्दों पि ध्यान िख कि अनुवाद किना अनुधचत है । इससे अर्ग
का अनर्ग हो सकता है औि मूल अर्ग ही ववकृत हो िायेर्ा। अतः शब्दानुवाद एक खतिा है , जिससे
छात्रों को भिसक बचना चाटहए। यह स्मिण िखना चाटहए कक अनुवाद शब्दों का नहीं अर्ों का होता
है।
(2) र्ावानुवाद (Faithful translation)- लेखक के मूल भावों या अर्ों को अपनी भाषा में प्रकि कि
दे ना 'भावानुवाद' है। अँग्रेिी में इसे 'Faithful translation' कहते हैं। इसमें यह दे खना प़िता है कक
मल
ू भाषा का एक भी भाव छूिने न पाये। इसकी सिलता इस बात में है कक मल
ू भाषा के सभी भाव
दस
ू िी भाषा में रूपान्तरित हो िायँ। यहाँ अनव
ु ादक का ध्यान शब्दों पि न िा कि ववशेष रूप से मल

भाव पि िहता हैं।
''भावानुवाद में हम मूल भाषा के शब्दों को तो़ि-मिो़ि सकते हैं, वाक्यों को आर्े-पीछे कि सकते हैं,
मह
ु ाविों को अपने साँचे में ढाल सकते हैं, लेककन वाक्यों को अपने इच्छानस
ु ाि घिा-बढ़ा नहीं सकते।
भावानव
ु ाद तात्पयग में, आकाि-प्रकाि में , मल
ू भाषा से बबल्कुल लमलता-िल
ु ता हैं। इसमें न अपनी ओि
से तनमक-लमचग लर्ा सकते हैं, न लम्बी-चौ़िी भलू मका बाँध सकते हैं। िो बात जिस उद्दे श्य को ले
कि जिस ढं र् से कही र्यी हैं, उस बात को, उसी उद्दे श्य से औि िहाँ तक हो उसी ढं र् से कहना
प़िता हैं।''
उदाहरणार्य- 'Man must earn his bread by the sweat of his brow' का शाजब्दक अनव
ु ाद होर्ा-
आदमी को अपनी भौंह के पसीने से िोिी कमानी चाटहए।' लेककन यह अनव
ु ाद अच्छा नहीं समझा
िायेर्ा क्योंकक मल
ू भाषा के भावों का टहन्दी-रूपान्ति ठीक नहीं हुआ औि न टहन्दी भाषा की प्रकृतत
की ही ििा की र्यी है। इसका भावानुवाद इस प्रकाि होर्ा- 'मनुटय को अपने पसीने की कमाई खानी
चाटहए।' छात्रों को इसी प्रकाि अनुवाद किना चाटहए। लेककन ऐसा अनुवाद तनिन्ति अभ्यास के बाद
ही सम्भव हैं। भावानुवाद में अपनी शब्दयोिना, वाक्य-योिना, मुहाविा इत्याटद के प्रयोर् में कािी
सावधान िहने की आवश्यकता होती हैं।

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