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किसी भरे हुए पात्र को धोनी की कोशिश करने की अपेक्षा उसे अधजल ही श्रेयस्कर है । आप तलवार की धार को बार बार महसूस करते रहे तो दीर्घ
अवधि तक उसकी क्षमता नहीं टिक सकती । सोने और हीरे से जब भवन भर जाता है, तब मालिक उसकी रक्षा नहीं कर सकता है । जब समृद्धि और
सम्मान से घमंड उत्पन्न होता है तो वह स्वयं के लिए अमंगल का कारण बन जाता है । कार्य की सफल निष्पत्ति के अनंतर जब करता का यश फै लने
लगे तब उसका अपने को ओझल बना बना लेना ही स्वर्ग का रास्ता है । जीवन एक गणित नहीं, गणेश से ज्यादा एक पहेली और ना ही जीवन एक
तर्क व्यवस्था है । तर्क व्यवस्था से ज्यादा एक रहस्य । गणित का मार्ग सीधा साफ है । पहेली सीधी साफ नहीं होती और सीधी साफ हो तो पहेली नहीं
हो पाती । सत्तर की निष्पत्ति बीच में ही छु पी रहती हैं । तर्क किसी नई चीज को कभी उपलब्ध नहीं होता । रहस्य सादा ही आपने पार चला जाता है
। अलग से इन सूत्रों में जीवन के इस रहस्य की विवेचना कर रहा है । इससे हम दो तरह से समझे एक तो हम कल्पना करेंगे । एक व्यक्ति एक सीधी
रेखा पर ही चलता चला जाए तो अपनी जगह कभी वापस नहीं लौटेगा । जिस जगह से यात्रा शुरू होगी वहाँ कभी वापस नहीं आएगा । अगर रेखा उस
की यात्रा की सीधी लेकिन अगर वर्तुलाकार है तो वो जहाँ से चला है वही वापस लौट आए । अगर हम यात्रा सीधी कर रहे हैं तो हम जिस जगह से
चले हैं वहां हम कभी भी नहीं आएँगे । लेकिन अगर यात्रा का पथ वर्तुल है सर्क्यूलर है तो हम जहाँ से चले हैं वही वापस लौट आएँगे । तर्क मानता है
कि जीवन सीधी रेखा की भांति है । रहस्य मानता है कि जीवन वर्तुलाकार है सर्क्युलर इसलिए पश्चिम जहाँ की तर्क ने मनुष्य की चेतना को गहरे से
गहरा प्रभावित किया है । जीवन को वर्तुल के आकार में नहीं देखता और पूरव जहाँ जीवन के रहस्य को समझने की कोशिश की गई है चाहे लाओ से
चाहे कृ ष्ण चाहे बुद्ध, वहाँ हम ने जीवन को एक वर्तुल में देखा है । वर्तुल का अर्थ है कि हम जहाँ से चलेंगे वही वापिस पहुँच जायेंगे । इसलिए संसार
को हमने एक चक्र कहा है । व्हील संसार का अर्थ ही चक्र होता है । यहाँ कोई भी चीज सीधी नहीं चलती । चाहे मौसम हो, चाहे आदमी का जीवन
हो, जहाँ से बच्चा यात्रा शुरू करता है जीवन की वही जीवन का अंत होता है । बच्चा पैदा होता है तो पहला जीवन का जो चरण है वो है स्वास्थ्य ।
बच्चा स्वास्थ लेता पैदा नहीं होता है । पैदा होने के बाद स्वांस लेता है । कोई आदमी स्वस्थ लेता हुआ नहीं मारता, स्वस्थ मारता है । जिस बिंदु से
जन्म शुरू होता है, जीवन की यात्रा शुरू होती है वही मृत्यु उपलब्ध होती है । जीवन एक वर्तुल है इसका अगर ठीक और समझे तो लाओ से भी बात
समझ में आ सके गी । लाओ से कहता है सफलता को पूरी सीमा तक मत ले जाना अन्यथा वो असफलता हो जाएगी । अगर सफलता को तुम पूरा ले
गए तो तुम अपने ही हाथों से असफलता बना लोगे और अगर यश के बर्तन को तुमने पूरा खींचा तो यश अपयश बन जायेगा । यदि जीवन एक रेखा की
भांति है तो लव से गलत है । और अगर जीवन एक वर्तुल है तो लव से सही है, इस बात पर निर्भर करेगा कि जीवन क्या है । एक सीधी रेखा
इसलिए पूरब ने इतिहास नहीं लिखा । पश्चिम ने इतिहास लिखा है क्योंकि पश्चिम मानता है कि जो घटना एक बार घटी है वो दोबारा नहीं घटेगी रिपीट
डबल है । प्रत्येक घटना अद्वितीय है इसलिए फॅ स का जन्म भगवती है, दोबारा नहीं होगा और जीसस पुनरुक्ति नहीं होंगे इसलिए सारा इतिहास ऍसे हिसाब
रखता है । इसके पहले और इसके बाद सारी दुनिया में इतिहास को हम नापते । ऐसा हम राम के साथ नहीं नाप सकते । हम ऐसा नहीं कह सकते कि
राम के पूर्व और राम के बाद क्योंकि पहली तो बात ये है कि हमें ये भी पक्का नहीं राम कब पैदा हो गए । इसका ये अर्थ नहीं है कि हम जो राम का
पूरा जीवन बचा सकते थे वो उनके जन्म की तिथि नहीं बचा सकते थे । ये बहुत समझने ऐसी बात है । पूरब ने कभी इतिहास लिखना नहीं चाहा क्योंकि
पूरब की दृष्टि यह है कि कोई भी चीज पद्वति नहीं है । सभी चीजें वर्तुल में वापिस वापिस लौट आती है । राम हर युग में होते रहे और हर युग में
होते रहेंगे । नाम बदल जाए रुक बदल जाए लेकिन वो जो मौलिक घटना है वो नहीं बदलती । वो पुनरुक्ति होती रहती है इसलिए बहुत मीठी खता है
और वो ये कि वाल्मीकि ने राम के जन्म के पहले खता लिखी पीछे राम हो गए । ऐसा दुनिया में कहीं भी सोचा भी नहीं जा सकता । राम हुए बाद में
बाल्मीकि कथा लिखी पहले क्योंकि राम का होना पूरब की दृष्टि में एक वर्तुलाकार घटना है । जैसे एक चाट घूमता है तो उस उस चाक में जो हिस्सा
अभी ऊपर था । अभी नीचे चला गया फिर ऊपर आ जाएगा फिर ऊपर आता रहेगा । जैन कहते हैं कि हर हर कल्प में उनके चौबीस तीर्थंकर होते रहेंगे
। नाम बदलेगा, रूप बदलेगा लेकिन तीर्थंकर के होने की घटना पुनरुक्ति होती रहेगी । इसलिए पूरब ने इतिहास नहीं लिखा । पूरम ने पुराण लिखा । पुराण
का अर्थ है वो जो सारभूत है जो सदा होता रहेगा, बार बार होता रहेगा । इतिहास का अर्थ है कि जो दोबारा कभी नहीं होगा । अगर जीवन एक वर्तुल
में घूम रहा है तो फिर ये बार बार हिसाब रखने की जरूरत नहीं के नाम कब पैदा होते है और कब मर जाते हैं । राम का होने का क्या अर्थ है?
इतना ही याद रखना काफी है । राम का सारभूत व्यक्तित्व क्या है? इतना ही याद रखना काफी । फिर ये बात अंक कौन है कि शरीर कब स्वांस लेना
शुरू करता है और कब बंद कर देता है ये बातें अर्थपूर्ण नहीं । हम उन्हीं चीजों को याद रखने की कोशिश करते हैं जो दोबारा नहीं दौडती जो रोज ही
दोहरने वाली हूँ । उनको याद रखने की कोई जरूरत नहीं रह जाती है । पूरब की समझ जीवन को एक वर्तुलाकार देखने की है और ये समझ महत्वपूर्ण
भी है क्योंकि इस जगत में जितनी गतियां है सभी वर्तुलाकार गति मात्र वर्तुल में है । चाहे चांद तारे घूम रहे हो, चाहे पृथ्वी घूम रही हो, चाहे मौसम
घूम रहा हो, चाहे व्यक्ति का जीवन घूम रहा हो । इस जगत में ऐसी कोई भी गति नहीं है जो सीधी हो । इस जगत में जहाँ भी गति है वहाँ वर्तुल
अनिवार्य है तो अके ला जीवन के संबंध में अपवाद नहीं होगा । लेकिन वर्तुल का अपना तर्क है और वर्तुल का अपना रहस्य और वो ये है कि जहाँ से
हम शुरू करते हैं वही हम वापस पहुँच जाते हैं । और जब हमारा मन होता है एक हम और जोर से आगे बढे चले जाए तो हमें पता नहीं होता कि
हमारे आगे बढे जाने में एक जगह से हमने पीछे लौटना शुरू कर दिया । एक लिहाज से जवानी बुढापे से बहुत विपरीत है लेकिन एक अर्थ में बहुत
विपरीत नहीं है क्योंकि जवानी बुढापे में ही पहुँचती और कहीं पहुँचती नहीं तो जितना आदमी जवान होता जा रहा है उतना बुरा होता जा रहा है । और
ये ये बात से कहता है किसी भरे हुए पात्र को धोनी की कोशिश करने की बजाय उसे अद भरा ही छोड देना श्रेयस्कर क्योंकि जब भी कोई चीज भर
जाती है तो अंत आ जाता है । वो कु छ भी हो, अके ला पातरी नहीं पात्र तो के वल विचार के लिए कोई भी चीज जब भर जाती है तो अंत आ जाता
है । अगर प्रेम भी भर जाए तो प्रेम का अंत आ जाता है । जो चीज भी भर जाती है वो मर जाती है । असल में भर जाना मर जाने का लक्षण पक
जाना, गिर जाने की सूचना फल जब पक जाएगा तो गिरेगा ही तो जब भी हम किसी चीज को पूरा कर लेते हैं तभी समाप्त हो जाती है । तो ऍसे
कहता है कि जीवन के सत्य को अगर समझना हो तो ध्यान रखना, किसी पात्र को भरने की बजाय अद भरा रखना ही श्रेयस्कर । लेकिन बडा कठिन है
अपनी कठिन क्योंकि जीवन की सभी प्रक्रियाएं भरने के लिए आतुर जब आप अपनी तिजोरी भरना शुरू करते हैं तो आधे पर रुकना मुश्किल है तो जो भी
तो दूर है जब आप अपने पेट में भोजन डालना शुरू करते हैं तब भी आधे पर रुकना मुश्किल है । जब आप किसी को प्रेम करना शुरू करते हैं तो
आधे पर रुकना मुश्किल है । जब आप सफल होना शुरू करते हैं तो आधे पर रुकना मुश्किल है । महत्वकांक्षा आधे पर कै से रुक सकती? सच तो यह
है जब महत्वकांक्षा आधे पर पहुँचती है तभी प्राणवान होती है और तभी आशा बंधती है कि अब जल्दी ही सब पूरा हो जाए । और जितनी तीव्रता से हम
पूरा करना शुरू करते हैं, उतनी ही तीव्रता से नष्ट होना शुरू हो जाता है । तो जिस बात को भी पूरा कर लेंगे वो नष्ट हो जाएगी । लव से कहता है
आधे पर रुक जाना आधे पर रुक जाना संयम आप संयम अति कठिन जीवन के समस्त नियमों पर आधे पर रुक जाना । संयम पर आधे पर रुकना
बहुत कठिन, बडा तब क्योंकि जब हम आधे पर होते हैं तभी पहली दफा आश्वासन आता है मन में कि अब पूरा हो सकता है । अब रुकने की कोई
जरूरत नहीं है जब आप बिल्कु ल सिंहासन पर पैर रखने के करीब पहुंच गए हो । सारी सुनिये पार करके सिवइयों के नीचे रुक जाना बहुत आसान था ।
पहला कदम ही ना उठाना बहुत आसान था क्योंकि आदमी अपने मन में समझा ले सकता है कि अंगूर खट्टे हैं और लंबी यात्रा का कष्ट उठाने से भी बच
सकता है । आलस्य भी सहयोगी हो सकता है । प्रमाद भी रोक सकता है । संघर्ष की संभावना और संघर्ष के साहस की कमी भी रूकावट बन सकती है
। आदमी पहला कदम उठाने से रोक सकता है, लेकिन जब सिंहासन पर आधा कदम उठ जाए और पूरी आशा बन जाए कि आप सिंहासन पर पैर रख
सकता हूँ, तब लाओ । उससे कहता है पैर को रोक लेना क्योंकि सिंहासन पर पहुँचना सिंहासन से गिरने के अतिरिक्त और कहीं नहीं ले जाता । सिंहासन
पर पहुँचने के बाद करियेगा भी क्या? फल पक जाएगा और गिरे सफलता पूरी होगी और असफलता बन जाएगी । प्रेम पूरा होगा और मृत्यु कट जाएगी ।
जवानी पूरी होगी और बुढापा उतर आएगा । जैसे ही कोई चीज पूरी होती है, वर्तुल पुरानी जगह वापस लौट आता है । हम वही आ जाते हैं जहाँ से
हम ने शुरू किया था । बुरा आदमी उतना ही असहाय हो जाता है जितना असहाय । पहले दिन का बच्चा होता है और जीवनभर की सफलता की यात्रा
पुन बच्चे की असफलता में जाती है । एक अर्थ में सैड बच्चे से भी ज्यादा असहाय होता है क्योंकि बच्चे को तो संभालने को उसके माँ बाप भी होते हैं
और बच्चे को असहाय होने का पता भी नहीं होता लेकिन बूढे के लिए सहारा भी नहीं रह जाता है और असहाय होने का बहुत भारी हो जाता है और ये
सारे जीवन की सफलता है और सारे जीवन आदमी यही कोशिश कर रहा है कि मैं किसी तरह अपने को सुरक्षित कै से करूँ । सारे जीवन की सिर्फ सुरक्षा
का उपाय और अंत में आदमी इतना सुरक्षित हो जाता है जितना कि बच्चा भी नहीं है तो जरूर हम किसी वर्तुल में घूमते हैं । जिसका हमें नहीं तलवार
की धार को बार बार महसूस करते रहे तो ज्यादा समय तक उसकी क्षमता नहीं टिक सकती । ये भी उसी पहले का दूसरा हिस्सा है । पहली बात कि
किसी भी चीज को उसकी पूर्णता पर मत ले जाना । अन्यथा आप उसी बात की हत्या कर रहे हैं जिसको आप पूर्ण करना चाहते हैं । आप उसके हत्यारे
हैं, रुक जाना है । आधे में रुक जाना इसके पहले की चाक वापस लौटने लगे । ठहर जाना उसी पहेली का दूसरा हिस्सा लाव से कहता है कि किसी
चीज को बार बार महसूस करने से उसकी तीक्ष्णता मर जाती है । अगर तलवार पर धार रखी है और बार बार उसकी धारको महसूस करते रहे की धार
है या नहीं तो धार मार जाएगी । रही भी हो तो भी ये बार बार परीक्षा करने से मर जाएगी । लेकिन जिंदगी में हम ये भी करते हैं अगर मेरा किसी से
प्रेम हो तो दिन में मैं चार बार पता लगा लेना चाहता हूँ की प्रेम है या नहीं पूछ लेना चाहता हूँ । उपाय करता हूँ कि कह दिया जाए कि हाँ प्रेम है
लेकिन जिस चीज को बार बार महसूस किया जाता है उसकी धार मार जाती है । प्रेमी ही एक दूसरे के प्रेम की हत्या का डाल दो और ये प्रेम के लिए
नहीं । जीवन के समस्त तत्वों के लिए लागू अगर आपको बार बार ख्याल आता रहे कि आप ज्ञानी है, आप अपनी धार अपने हाथ से ही मार लेंगे ।
अगर आपको बार बार ये स्मरण होता रहे कि मैं श्रेष्ठ हूँ तो आपकी श्रेष्ठता आप ही अपने हाथ से पहुँच डालेंगे । जिस चीज को भी हम बार बार
एहसास करते हैं वो क्यों इतनी जल्दी मिट जाती है, उसके कारण हैं । पहला कारण तो यह है कि हम उसी चीज को बार बार अहसास
कराना चाहते हैं जिसका हमें भरोसा नहीं होता । भीतर हम जानते ही हैं कि वो नहीं वो जो भीतर भरोसा नहीं है उसी को पूरा करने के लिए हम
जांच करते हैं । लेकिन जाँच करने की कोई भी चेष्ठा निरंतर जिसकी हम जांच करते हैं उसकी तीक्ष्णता को भी नष्ट करेगी । क्योंकि तीक्ष्णता होती है
तीव्र, पहले अनुभव में और जितनी पुनरुक्ति होती अनुभव कि उतनी क्षमता कम हो जाएगा । मेरे पास लोग आते हैं । वो कहते हैं ध्यान में हमें बहुत
गहरा अनुभव पहली बार हुआ, लेकिन अब वैसा नहीं हो रहा है । अब वैसे अनुभव को वो रोज रोज लाने की कोशिश में लगे हैं । तलवार की धार भी
तीक्ष्णता खो देती ध्यान की धारवी तीक्ष्णता खो देगी । असल में जिस अनुभव को हम पुनरुत् करना चाहते हैं, पुनरुक्ति करने के कारण ही वो अनुभव
भाषा हो जाता है । हाँ होने के कारण उसकी संवेदनाशील हो जाती है । अगर आप एक ही इत्र का उपयोग करते हैं, रोज तो सारी दुनिया को भला
पता चलता हो । आपके इधर की सुगंध का आपको पता चलना बंद हो जाता है, तीक्ष्णता मर जाती है, रोज की पुनरुक्ति और आपके नासापुट संवेदना
खो देते हैं । सुन्दरतम रंग भी अगर आप रोज रोज देखते रहे तो रंगहीन हो जाते हैं । इसलिए नहीं कि वे रंग खो देते हैं बल्कि इसलिए की आँखें
उनके साथ संवेदना का संबंध छोड देंगे । इसलिए जो हमें मिल जाता है उसे हम धीरे धीरे भूल जाते हैं । इसका ये अर्थ हुआ कि जीवन उतना ही भाषा
हो जाएगा जितना हम पुनरुक्ति की कोशिश करेंगे और एक ही चीज को बार बार एहसास करने की चेष्ठा करेंगे । जीवन धीरे धीरे मृत और भाषा हो जाए
और हम सब का जीवन भाषा और मृत हो जाता है । फिर नहीं जीवन में कहीं कोई सुबह मालूम नहीं पडती ना कोई सूरज की नई किरण फू टती है,
ना कोई नया फू ल खिलता है, ना कोई नए गीत का जन्म होता है, ना कोई नए पक्षी आकाश में पर फै लाकर उडते सब भाषा हो जाता है । इस बात
का कारण क्या है? इस भाषा अपन का कारण है कि हम जो भी हमें अनुभव होता है उसे हम बार बार अनुभव करने की कोशिश करके उसकी तीक्ष्णता
को मार डालते हैं । अगर मैंने आज प्रेम से आपका हाथ अपने हाथ में लिया, कल फिर आप प्रतीक्षा करेंगे कि वो हाथ में अपने हाथ में आपका लूट
और अगर मुझे भी लगा कि बहुत सुखद प्रतिदिन थी तो मैं भी कल कोशिश करूँ गा कि वहाँ फिर अपने हाथ में लूँ और हम दोनों मिल कर ही उस
सुख की अनुभूति को भाषा कर देंगे । कल हाथ हाथ में आएगा और तब लगेगा कि कहीं कु छ धोखा हो गया क्योंकि वैसा सुख जो पूर्व में जाना था अब
नहीं मिलता है । तब हम और पागल की तरह हाथों को पकडेंगे और ज्यादा पकडेंगे और कोशिश करेंगे कि उस सुख हो जाए, वो सुख खो जाएगा ।
हमारी जस्ट आए सुख का अंत बन जाएगी । हम सभी सुख को नष्ट करते रहते हैं क्योंकि जो हमें मिलता है हम उसे पागल की तरह पानी की कोशिश
करते हैं । उसमें ही वो खो जाता है जिनकी बहुत अद्भुत अद्भुत अर्थों में है कि यहाँ उल्टी घटनाएं घटती । जो आदमी पाए सुख को पाने की दोबारा
कोशिश नहीं करता उसे वो सुख रोज रोज मिल जाता है । और जो आपने धार की तीक्ष्णता की नहीं करता बार बार जांच करने की उसकी दार उसकी
तलवार की धार सादा ही तीक्ष्ण बनी रहती है । मैंने सुना है उसके थिएटर में एक दिन बडी मुश्किल हुई थी । बडा नाटक चल रहा था और उस नाटक
में एक हकलाने वाले आदमी का काम था । वो हकलाने वाला आदमी अचानक बीमार पड गया जो हकलाने का अभिनय करता था और एक वक्त पर खबर
आई और पर्दा उठने के करीब था और मैनेजर और मालिक घबरा है क्योंकि उसके बिना तो सारी बात हो जाती है । वही हास्यकथा । उस पूरे नाटक में
उसी की वजह से रंग था । कोई उपाय नहीं था और किसी आदमी को इतनी जल्दी हकलाने का अभ्यास करवाना भी मुश्किल था । लेकिन तभी किसी ने
कहा कि गाँव में एक हकलाने वाला आदमी है हमारे हम उसे ले आते हैं, उसे सिखाने की कोई जरूरत नहीं है आप उस से कु छ भी कहो तो चलता
ही है और सब तरह के इलाज हो चुके हैं । बडे चिकित्सक उसको देख चुके हैं । उसका कोई इलाज अब तक सफल नहीं हुआ । वो धनपति का है ।
उसे ले आया गया और बडा चमत्कार हुआ । उस दिन वो नहीं ला सका । पहली बार जिंदगी में नाटक के मंच पर खडा होकर वो युवक नहीं हकला
सुखा क्या हुआ? मनोवैज्ञानिक कहते हैं की अगर इतना सचित्र कोई हो जाए तो कोई भी चीज खो जाती है, कोई भी चीज हो जाती है । मैं एक नगर
में था और एक युवक को मेरे पास लाया गया । युवक विश्वविद्यालय का स्नातक है और बडी तकलीफ में है । तकलीफ उसकी ये है कि चलते चलते
अचानक वो स्त्रियों जैसा चलने लगता है । मनोचिकित्सा हो चुकी है, मनोविश्लेषण हो चुका है, दवाइयाँ हो चुकी है । सब तरह के उपाय किए जा चुके
है लेकिन दिन में दो चार बार वो भूल ही जाता है और अब एक कॉलेज में अध्यापक का काम करता है तो बडी कष्टपूर्ण बात हो गई । मैं उस युवक
को कहा कि मैं एक ही इलाज समझता हूँ और वो ये कि जब भी तुम्हें ख्याल आ जाए तब तुम जान के स्त्रियों जैसा चलना शुरू कर दो । रोको मत ।
अब तक तुमने रोकने की कोशिश की है और गैर जाने में तुम्हें स्त्रियों जैसा चलने लगते हो और जान के पुरुष जैसे चलते हो । अब तुम्हें से उल्टा तो
अब तुम्हें जब भी ख्याल आए तुम जान के हस्तियों जैसा चलो । उसने कहा आप क्या कह रहे हैं? मैं वैसे ही मुसीबत में पढा हूँ । बिना जाने में
मुसीबत में पढा हूँ और अब जान के भी चलूँगा तो चौबीस घंटे इसकी वजह से ही चलता रहूँगा । मैंने उसे कहा तुम मेरे सामने ही चल के बता दो ।
उसने बहुत कोशिश की वो नहीं चल पाया । चेतना का एक नियम है । जिस चीज की आप बहुत कोशिश करते हैं उसकी धार्मिक जाते हैं, उसकी धारको
पाना मुश्किल है । हम सभी दुख सुख की धार को मार लेते हैं और बडे मजे की बात है कि दुःख में हमारे धार बनी रहती है । हम इतना दुःख जो
पाते है इसका कारण जगत में बहुत दुख है । ऐसा नहीं हमारे जीने के ढंग में बुनियादी भूल है । दुख को हम कभी छू ना नहीं चाहते हैं इसलिए उसमें
धार बनी रहती है और सुख को हम छू ते छू ते रहते हैं । निरंतर उसकी धार मार जाती है । आखिर में हम बातें दुःख दुःख रह गया हाथ में और सुख
की कोई खबर नहीं रही । तब हम कहते हैं कि सुख तो मुश्किल से कभी मिला हो मिला हो, सपना मालूम पडता है । सारा जीवन दुख है लेकिन दुख
की ये धार हमारे ही कारण है । इससे उल्टा जो कर लेता है उसका नाम तब है वो दुख की धारको छु टा रहता है और सुख की छोड देता है । धीरे
धीरे दुख की धार्मिक जाति और सारा जीवन सुख हो जाता है । जिस चीज को आप छु एंगे वो मिट जाएगा । जिस चीज को आप मांगेंगे वो खो जाएगी ।
जिसके पीछे आप दौडेंगे उसे आप कभी नहीं पा सकें गे । इसलिए जीवन गणित नहीं । एक पहली और जो गणित की तरह समझता है वो मुश्किल में पड
जाता है जो उसे एक रहस्य और एक पहेली की तरह समझता है । वो उसके सार राज्य को समझकर जीवन की पर ममता को उपलब्ध हो जाता है ।
लाव से कहता है सोने और हीरे से जब भवन भर जाए तब मालिक उसकी रक्षा नहीं कर सकता है । ये उल्टी बातें मालूम पडती है कौन ट्राॅफी मालूम
पडती है, विरोधाभाषी मालूम पडती है से कहता है जब सोने और हीरे से भवन भर जाए तो मालिक उसकी रक्षा नहीं कर सकता है । असल में मालिक
तभी तक रक्षा कर सकता है अपनी संपत्ति की जब तक गरीब हो । जब तक इतनी संपत्ति हो कि जिसकी रक्षा वो स्वयं ही कर सके , गरीब ही कर
सकता है । जिस दिन संपत्ति की रक्षा के लिए दूसरों की जरुरत पडनी शुरू हो जाती है उसी दिन तो आदमी अमीर होता है और जिस दिन से दूसरों
के द्वारा सुरक्षा की जरूरत आ जाती है उसी दिन से भय प्रवेश कर जाता है क्योंकि दूसरे के हाथ में संपत्ति कहीं सुरक्षित हो सकती है । इसलिए इस
जमीन पर एक अनूठी घटना घटती कि गरीब यहाँ कभी कभी अमीर जैसा सोया देखा जाता है और आमिर यहाँ सादा ही गरीब जैसा परेशान देखा जाता है
। भिखारी यहाँ कभी कभी सम्राट की शान से जी लेते हैं । सम्राट यहाँ भिखारियों से भी बदतर जीते क्योंकि जो हमारे पास है उसकी रक्षा का उपाय भी
दूसरे के हाथ में देना पडता है । चंगेज खान की मृत्यु हुई वो मृत्यु महत्वपूर्ण चंगेज खान जिस आदमी स्वभाव का मृत्यु से भयभीत हो जायेगा और अपनी
मृत्यु ना आए इसलिए उसने लाखों लोगों को मारा लेकिन जितने लोगों को मारता गया उतना ही भयभीत होता गया कि अब कोई ना कोई उसे मार डालेगा
। अपनी रक्षा के लिए उसने जितने लोगों की हत्या की उसने शत्रु पैदा कर लिए । रात वो सो नहीं सकता था क्योंकि रात अंधेरे में कु छ भी हो सकता
है और संदेह उसके इतने घने हो गए कि आपने पहरेदारों पर भी भरोसा नहीं कर सकता था । तो पहरेदारों पर पहरेदार और पहरेदारों तो पहरेदार ऐसी
उसने सात परतें बना रखी । उसके तंबू के बाहर सात घेरों में एक दूसरे पर पहरा देने वाले लोग थे और जब किसी पहरेदार पर इतना भी भरोसा नहीं
किया जा सके और उसके ऊपर भी बंदूक रखे हुए दूसरा आदमी खडा हो और उस दूसरे आदमी पर भी तीसरा आदमी खडा हो तो ये पहरेदार मित्र तो
नहीं हो सकते हैं ये चंगेज खान को भी समझ में आता था । लेकिन तर्क जो करता है वो ये है कि वो पहरेदारों की संख्या बढाया चले जाता था की
अगर इतने से नहीं हो सकता तो और बता दो और एक रात दिनभर का थका मांदा उसे झपकी लग गई । रात सोता नहीं था अपनी तलवार हाथ में
लिए बैठा रहता था कभी भी खतरा हो सकता है चंगी सिर्फ दिन में सोता था भरी दोपहर में जब रोशनी होती चारों तरफ तब सो पाता था उस दिन
जब की लग गई पास में बंधे हुए घोडा घोडा में से कोई घोडा छू ट गया । रात भगदड मची, लोग चिल्लाए घबडा के चंगेज उठा अंधेरे में उसने समझाया
की दुश्मन ने हमला कर दिया । तंबू के बाहर भागा तंबू की खूटी पैर फं स के गिरा तम्बू की खोटी अब उसके पेट में धंस गई । ये तंबू सुरक्षा के लिए
था । ये खूंटी रक्षा के लिए थी । ये पहरेदार ये ये सब इंतजाम था । व्यवस्था थी कोई मारे नहीं आया था किसी ने मारा भी नहीं इसको चंगेज मारा
अपने ही भैंस सुरक्षा के उपाय के लिए भागा था । पूरे जीवन में ऐसी घटना घटती है आदमी मकान बनाता है फिर मकान पर पहरेदार बिठाने हैं, धन
इकट्ठा करता है फिर धन की सुरक्षा करनी और ये जाल बढता चला जाता है और यह बात ही भूल जाती है कि मैंने जिस आदमी के लिए ये सब
इंतजाम किया था वो अब एक पहरेदार रह गया और कु छ नहीं । अमरीका के अरबपति एंडू कार्नेगी ने अपने आत्म संस्मरण में लिखवाया है । मरने के दो
दिन पहले उसने अपनी फॅ मिली को पूछा की मैं तुझसे ये पूछना चाहता हूँ कि अगर दोबारा हम दोनों को जन्म मिले तो तू मेरा साॅस होना चाहेगा या तू
ऍम करनी होना चाहेगा और मुझे अपना सॉरी बनाना चाहिए । इंडो करने की मारा तो दस अरब रुपए छोडकर मारा उसके स्टॅाफ करिए । आपको मैं इतना
जानता हूँ कि कभी भी परमात्मा से ऐसी प्रार्थना नहीं कर सकता कि मैं करने की होना चाहूँ काश आपका मैं ॅ होता तो शायद इस कामना से भी मार
सकता था कि भगवान मुझे भी ऍम जो करने की बनाते खाने के लिए पूछा तेरा क्या मतलब? तो ने कहा कि मैं देखता हूँ रोज जो हो रहा है आप
सबसे ज्यादा गरीब आदमी ना ठीक से सो सकते हैं ना ठीक से बैठ सकते हैं । ना आप ठीक से बात कर सकते हैं ना आपको अपनी पत्नी से मिलने
की फु र्सत है ना अपने बच्चों के साथ बात करने की । फु र्सत और देखता हूँ कि दफ्तर में आप सुबह साढे आठ बजे पहुँच जाते हैं । चपरासी भी साढे
नौ बजे आते हैं । किलर साढे दस बजे आते हैं । मैनेजर बारह बजे आता है । डाॅक्टर्स एक बजे पहुँचते डाॅक्टर तीन बजे चले जाते हैं । मैनेजर चार
बजे चला जाता है । साढे चार बजे किलर भी चले जाते हैं । पाँच बजे चपरासी भी चला जाता है । मैंने आपको सात बजे से पहले कभी घर लौटते
नहीं देखा । चपरासी भी पहले चले जाते हैं क्योंकि चपरासी दुसरे की सुरक्षा कर रहे हैं । अपनी नहीं ऍम करने की अपनी ही सुरक्षा कर रहा है । ये से
कहता है कि जब सोने और हीरे से भवन भर जाता है तब मालिक उसकी रक्षा नहीं कर सकता है और जब मालिक रक्षा नहीं कर सकता तो मालिक
मालिक नहीं रह जाता है । वो सोने और हीरो का गुलाम हो जाए ।
हम अपनी संपत्ति के कब गुलाम हो जाते हैं हमें पता ही नहीं चलता । मालिक होने के लिए ही कोशिश करते हैं । भूल ही जाते हैं कि जिसके हमने
मालिक होना चाहता । हम बहुत पहले उसके गुलाम हो चुके हैं । असल में इस दुनिया में कोई भी आदमी यदि मालिक बनने की कोशिश करेगा तो गुलाम
हो जायेगा । असल में हम जिस के भी मालिक बनना चाहेंगे उसके हमें गुलाम होना ही बिना गुलाम बने मानिक बनने का कोई उपाय नहीं है । इसीलिए
जीवन एक रहस्य यहाँ मालिक तो के वल वही लोग बन पाते हैं । सच्चे मालिक जो किसी के मालिक ही नहीं बनते जो किसी पर अपनी मालकियत ही
स्थापित नहीं करते । आदमी की तो हम बात छोड दें, चीजों पर भी अगर आपने मालकिन स्थापित की तो चीजें आपकी मालिक हो जाती है । जब
आपको एक मकान छोडना तो मकान नहीं रोता आपके लिए क्या आप जा रहे हैं? आप रोते आपसे कमीज भी छीन ली जाए तो कमी जरा भी परेशान
नहीं होती । आप परेशान होते हैं, वस्तुएँ भी मालिक हो जाते हैं । फॅ स वो जो मालिक है वो गुलाम हो जाता है और जिसका मालिक है उसी का
गुलाम हो जाता है । जब समृद्धि और सम्मान से घमंड उत्पन्न होता है तो वो स्वयं के लिए अमंगल का कारण और कार्य की सफल निष्पत्ति के अंतर
जब करता था, यश फै लने लगे तब उसका अपने को ओझल कर लेना ही स्वर्ग का रास्ता है और जब कोई काम सफल हो जाए तो इसके पहले की
अहंकार का जन्म हो करता को ओझल हो जाना चाहिए । अन्यथा सफलता से बडी असफलता नहीं अन्यथा सफलता से बडा नर्क नहीं अन्यथा अपनी ही
सफलता अपने लिए जहर बन जाती है । जैसे अपने ही भीतर से जाने को निकालकर बनती है, वैसे ही हम भी अपने चारों तरफ अपने जीवन का
उलझाव बोल लेते हैं । खुद ही और कई बार ऐसा हो जाता है कि उस जाले में फं सकर हमें हम ही चिल्लाते हैं कि कै से मुक्ति हो, कै से छु टकारा मिले,
कै से स्वतंत्रता संभव हो, ये गुलामी कै से टू टे और ये सारी गुलामी हमारा ही निर्माण । लेकिन निर्माण कु छ ऐसे ढंग से होता है कि जब तक हो ही ना
जाए, हमें पता नहीं चलता है तो उस सूत्र को हमें समझ लेना चाहिए कि ये अनजानी गुलामी कै से निर्मित हो जाती है और हम स्वयं ही कै से निर्मित
कर लेते है । पहली बात इस पृथ्वी पर एक ही मालकियत संभव है, ऐसा स्वभाव है ऐसा नियम और वो मालकियत अपनी अपने अतिरिक्त और किसी की
मालकियत संभव नहीं । और जब भी कोई अपने सिवाय किसी और पर माल कित करने जायेगा तो गुलाम हो जायेगा अगर महावीर यह बुद्ध अपने राजमहल
को और अपने राज्य को निकल जाते हैं । आप आप सादा यही सोचते होंगे कि कितना महान त्याग है कि राज्य को धन को, संपदा को इतने राजमहलों
को निकल जाते हैं । तो आप गलती में महावीर बुद्ध सिर्फ अपनी गुलामी को निकल जाते हैं । ये बात उन्हें साफ हो जाती है कि आपने सिवाय और
सभी तरह की मालकिन गुलामी तो फिर जितनी बडी ये मालके त होगी उतनी बडी गुलामी हो जाती है । इसलिए ये मजे की बात है । आपने कभी सुना
अब तक इतिहास में की कोई भिखारी आपने भिखमंगे अपन को और त्यागी हो गया । किसी भिखारी अपना भिक्षापात्र छोड दिया हो और त्यागी हो गया ।
क्या बात है कि भिखारी भिक्षापात्र नहीं पाता और कभी कोई सम्राट अपना साम्राज्य देता है । सम्राट तो बहुत हुए है साम्राज्य को छोड देने वाले । लेकिन
बेकारी अब तक इतने साहस का नहीं हो सका कि अपना भिक्षापात्र बात क्या है? असल में भिखारी की गुलामी ही इतनी छोटी होती है तो उसे पता ही
नहीं चलता कि मैं गुलाम भी हूँ । सम्राट की गुलामी इतनी हो जाती है और इतनी आत्मघाती हो जाती है तो उसे पता चलता है कि मैं गुलाम सम्राट के
पास साम्राज्य एक काराग्रह की तरह खडा हो जाता है । भिखारी का भिक्षापात्र काराग्रह मालूम नहीं पडता है क्योंकि अभी भी भिखारी आपने भिक्षापात्र को
लेकर कहीं भी चल पडता है । अभी काराग्रह इतना छोटा है कि हाथ में टंगा जा सकता है लेकिन एक सम्राट आपने काराग्रह को लेकर कहीं भी नहीं जा
सकता । काराग्रह में ही उसे होना पडता है । सम्राट सके क्योंकि गुलामी इतनी हो गई कि अपनी मालकियत का भ्रम छू ट गया । भिखारी नहीं पाता ।
गुलामी इतनी छोटी है कि मालके त का भ्रम कायम बना रहता है इसलिए मैं जानता हूँ जैसा वो ऐसा है कि जब तक आपको भ्रम बना रहे हैं आप अपनी
चीजों के मालिक हैं । तब तक आप समझना की आप गरीब आदमी है । चीजें इतनी कम है कि अभी आपको पता नहीं चल रहा है जिस दिन आप को
पता चलना शुरू हो जाए कि अब चीजें मालिक है उस दिन आप समझना की आप अमीर होगए । अमीर का एक ही लक्षण है कि पता चलने लगे की
चीजों का गुलाम हो गए और गरीब का एक ही लक्षण है उसे अभी पता नहीं चलता है की चीजें उसके मालिक है । अभी भी मालकिन का भ्रम उसे
कायम रहता है । लाउं गहरा है कि अगर सच में ही तुम मालिक होना चाहो तो इस तरह के मालिक मत बन जाना कि तुम्हारी चीजों की रक्षा की भी
जरूरत पड जाए क्योंकि तब तुम पहरेदार हो जाओगे । अल्लाह से कह रहा है कि जब तुम्हारी सफलता किसी भी काम में तुम सफल हो जाओ तो इसके
पहले की करता का भाव सघन हो । तुम ओझल हो जाना कोई जान भी ना पाए की तुमने क्या लास्ट का? स्वयं का नाम जब चीन में पहुँच गया गांव
गांव, घर घर में और लोग लाओ को खोजते हुए आने लगे और रास्ता पूछने लगे कि लव से कहाँ है? और हजारों मील की यात्रा करके लोगों की लोगों
का आना शुरू हो गया तो लाओ से एक दिन वो जान हो गया । फिर लाओ से का कोई पता नहीं चला । उस दिन के बाद लाओ से कब मारा और
कहाँ मारा इसकी कोई खबर नहीं है । बस एक दिन वो जल हो गए वही सलाह वो दूसरों को भी दे रहा है । वो कह रहा है जब तुम्हारा कार्यपूर्ण हो
जाये, सफलता हाथ आ जाए तो तुम चुपचाप सरक जाना लेकिन बडी कठिन होगी । बात हम भी सर रखते हैं । कभी आँख से हम भी ओझल होते
हैं, लेकिन सफलता की छत में नहीं । असफलता के छह में आँख से हो जाए । जब हार जाते हैं, टू ट जाते हैं, पराजित हो जाए तब हम भी ओजन
होते दुख में हम भी भाग जाना चाहते हैं, छिप जाना चाहते हैं, विशाद में संताप में आत्मघात भी कर लेते हैं । आत्मघात का मतलब इतना है, कभी
बुरी तरह ओझल हो जाना चाहते हैं कि नाम रेखा भी पीछे ना रह जाएगा । लेकिन अगर कोई आदमी सफलता के छोडो जल हो जाए तो उसके जीवन
में क्रांति गठित हो जाती । असफलता के क्षण में ओ चल हो जाना तो बिल्कु ल ही स्वाभाविक है । मन का मन की चेष्टा ही यही है कि भाग जाओ,
अभी छिप जाओ, किसी को पता ना चले की तुम असफल हो गए हो । क्योंकि असफलता अहंकार को पीडा देती है और सफलता अहंकार को तृप्ति देती
है और पोषण देती है । तो जब आदमी सफल होता है तब तो सीना निकाल के चारों तरफ घूमना चाहता है । तब तो जिनसे वो कभी नहीं मिला था,
उन से भी मिलना चाहता है, जिन्होंने उसे कभी नहीं जाना चाहता जाना था । उन्हें भी चाहता है कि वे भी जान ले तब वो सारे जन मिंट ढिंढोरा पीट
देना चाहता है कि मैं सफल हो गया हूँ । ये सफलता की खबर के लिए ही तो इतना चेष्ठा इतनी प्रयास था और ये लाओ उससे पागल मालूम पडता है
। वो कहता है जब सफल हो जाओ तो वहाँ से ओझल हो जाए क्योंकि सफलता के छह में अगर अहंकार निर्मित हो जाए तो वही तुम्हारा नर्क बन
जायेगा । और सफलता के क्षण में अगर तुम ओझल हो सको तो लाओ से कहता यही स्वर्ग का द्वार कार्य की सफल निष्पत्ति के अनंतर जब करता का
यश फै लने लगे तब उसका अपने को ओजन बना लेना ही स्वर्ग का रास्ता है । तो मार्ग का अर्थ हुआ अहंकार और स्वर्ग का अर्थ हुआ अहंकार । सुनने
का कोई और स्वर्ग नहीं है । कोई और नर्क भी नहीं । एक ही नर्क है । मैं जितना सघन हूँ, उतने गहन नर्क । मैं जितना विरुद्ध हूँ, जितना करन हूँ
उतना स्वर्ग हो । मैं जितना हूं उतना नर्क में हूँ । मैं जितना नहीं हूँ उतना स्वर्ग में मेरा होना ही मेरी पीडा । मेरा नाम होना ही मेरा आनंद है, इसे
थोडा समझे । जब भी आपने दुःख पाया है, संताप झेला है और नरक की आग में अपने को तरफ दे पाया है तब कभी आपने ख्याल क्या की? पीडा
क्या है? इतना क्यों हो रही है? इस का मौलिक आधार कहाँ है? ये कौन और मुझे पीडा दे रहा है या मेरे जीने का ढंग या मेरे अहंकार की सघन
करने की चेष्टा वही मेरे पिता का कारण बन गई या जब भी आपने कभी आनंद के क्षण भर को भी बुला पाई हो तो कभी भीतर झांककर देखा हो तो
पता चला होगा कि वहाँ आप मौजूद नहीं होंगे । जब भी आनंद की पुलक होती है तो भीतर मैं मौजूद नहीं होता और जब भी नर्क की पीडा होती है
तभी भीतर सदन में मौजूद होता है मैं कि छाया ही पी रहा है । लेकिन हमारी सबकी जस्ट है कि मैं को बचा के मैं स्वर्ग में प्रवेश कर जाऊँ । मैं बस
जाऊँ और आनंद उपलब्ध हो जाए । मैं हूँ तो आनंद उपलब्ध नहीं होगा क्योंकि मैं ही दुखी तो जीवन की जो साधारण व्यवस्था है उसे कहीं से तोड
देना और कहीं से उसमें जाग जाने की जरूरत लाओ से कहता है सफलता के छु ट्टी में ओ चल हो जाओ । इससे दूसरी बात भी हम समझ सकते हैं
कि जब असफलता का हो तब वो जल मत हो । जब हारे रहो जब पराजित हो जाओ तब राजधानी की सडकों को मत छोडना और जब जीत जाओ तब
हट जाने की कोई देखने को भी ना हो । विजय के क्षण में जो हट सकता है उसका अहंकार तत्क्षण तिरोहित हो जाता ऍफ हो जाता है । पराजय के
क्षण में जो टिक सकता है उसका भी अहंकार तिरोहित हो जाता है । इससे विपरीत दो स्थितियां पराजय के क्षण में छु प जाओ और विजय के क्षण में
प्रकट हो जाओ तो अहंकार मजबूत होता है । अहंकार के कारण ही हम छु पना चाहते हैं । हारी हुई हालत में और अहंकार के कारण ही हम प्रकट होना
चाहते हैं । जीती हुई हालत, इस अहंकार की व्यवस्था और इस अहंकार के निर्माण होने के ढंग को जो ठीक से समझ ले वो अहंकार के साथ भी खेल
खेल सकता है । अभी तो अहंकार हमारे साथ खेल खेलता है और जो व्यक्ति अहंकार के साथ खेल खेलने को राजी हो जाये, समर्थ हो जाए, वो
आदमी अहंकार से मुक्त हो जाता है । गाॅव न्यूयॉर्क में था और बडी प्रकार सफलता गुरु जी एफ के विचारों को मिल रही थी । उसके एक शिष्य ने
लिखा है कि हम गुरूजी को कभी नहीं समझ पाए कि वो आदमी कै सा था क्योंकि जब कोई चीज सफल होने के पूरे करीब पहुँच जाए तभी वो कु छ ऐसा
करता था कि सब चीजें असफल हो जाए । ठीक मौके पर वो कभी नहीं चुकता था । चीजों को खिलाने और बनाने के लिए इतना श्रम करता था जिसका
कोई हिसाब नहीं । उसमें बहुत साधना आश्रम निर्मित किए । एक साधना ॅ निर्मित क्या वर्षों मेहनत की अथक श्रम उठाया, सैकडों लोगों को साधना के
लिए तैयार किया और फिर एक दिन सब विसर्जित कर दिया है जिन्होंने इतनी मेहनत उठाई थी । उन्होंने कहा तुम पागल मालूम पडते हो क्योंकि अब तो
मौका आया कि अब कु छ हो सकता है । इसी दिन के लिए तो हमने वर्षों तक मेहनत की थी । तो गुरजीत ने कहा कि हम भी इसी दिन के लिए वर्षों
तक मेहनत किए थे । अब हम विसर्जित करेंगे इसी विसर्जन के लिए न्यूयार्क मच्छर दुबारा एक बडी व्यवस्था और एक बडी संस्था निर्मित होने के करीब
पहुँचने को आयी । वर्षों मेहनत की शिष्या और जेब में और एक दिन सारी चीज मुँह पे वो चलता है । निकटतम साथी उसे छोड के चले गए क्योंकि
धीरे धीरे लोगों का हुआ कि ये आदमी निपट पागल है । सफलता का क्षण जब करीब होता है, हाथ के करीब होता है की फल हाथ में आ जाए तब
ये आदमी पीठ बोल लेता है । और जब फल आकाश की तरह दूर होता है तब ये इतना काम करता है जिसका कोई हिसाब निश्चित ये पागल आदमी
का लक्ष्य लेकिन लाओ से इस पागल आदमी को ज्ञानी कहता है लास्ट से कहता है कि जब सफलता हाथ में आ जाए तब तुम चुप चाप ओझल हो
जाए । इसे अगर भीतर से समझे तो जो ऍम एशिन जो क्रांति घटित होगी वो ख्याल में आ जाएगी । इससे कभी प्रयोग कर के देखें सफलता तो बहुत
दूर की बात है अगर रास्ते तो कोई आदमी चलता और उसका छाता गिर जाए । हम उसे उठा के खडे रह के दुश्मन प्रतीक्षा करते हैं वो धन्यवाद दें
और अगर वो धन्यवाद ना दे तो चित्त को बडी निराशा, बडी उदासी होती एक धन्यवाद भी हम छोड कर नहीं हट सकते । एक धन्यवाद भी हम ले
लेना चाहते हैं लॉस से जो कह रहा है कि जब काम बिल्कु ल
सफल हो जाए और जीवन सिद्धि के करीब पहुँच जाए और मंजिल सामने आ जाए तब तुम पीठ मोड लेना और चुपचाप रोहित हो जाए । बडे इंटेग्रेशन
बडे भीतर सदन आत्मा की जरूरत पडेगी । वो जो सघनता है भीतर की वो सघनता का जो परिणाम होता है वो बहुत अलौकिक । जो व्यक्ति मंजिल के
पास पीठ मोड लेता है, मंजिल उसके पीछे चलनी शुरू हो जाती है और जो व्यक्ति सफलता के बीच से ओझल हो जाता है उसके लिए असफलता का
जगत में नाम निशान मिट जाता है । वो आदमी फिर असफल हो ही नहीं सकता । असम में उस आदमी ने वो पाली वो काला पाली जिससे वो आदमी
आदमी नहीं रह जाता, परमात्मा ही हो जाता है क्योंकि सफलता को जो सके मंजिल के सामने पीठ बोल सके वो आदमी नहीं रह गए । आदमी की
सारी कमजोरी क्या है? हाथ में की सारी कमजोरी अहंकार की वो कमजोरी नहीं आ रही है । लाॅक रोहित हो गया उसका ॅ उसे दूर तक गाँव तक
पीछा किया । शिष्य को बहुत कहा कि तू मेरे पीछे मत, क्योंकि अब मैं तिरोहित होने जा रहा हूँ और तू पीछे रुक क्योंकि वहाँ सफलता बडी संभावना
है । सफलता वहाँ लोग हजारों आ रहे हैं । पूछने मुझे उस शिष्य को भी समझ में आया और आदमी कै से राजन करता है और आदमी कै से अपने को
तरफ दे देता है । आखिर में उसने ऍसे कहा कि आपके ही काम के निरमित्र में वापिस जाता हूँ । आप वहाँ नहीं होंगे और इतने लोग आएँगे आपको
पूछते तो नहीं उतना तो मैं नहीं समझा सकूँ गा जो आप समझा सकते थे लेकिन फिर भी कु छ तो समझा सकूं आपके ही नियमित मैं वापस जाता हूँ
उसके मन में भी मुँह पकडना शुरू हुआ अब इस लाव से किसान भटकना बेमानी । इसे अब कोई जानकारी नहीं जिन गाँव से गुजर रहा है इससे कोई
पहचानता भी नहीं और अभी कहाँ जाके समाप्त होगा पता नहीं और इस टिफिन के भर की मेहनत इसमें जिंदगी भर तो वहाँ सुगंध फै लाई । अब लोग
आने शुरू हुए है सुगंध के कारण और ये भाग गया कोशिश एक रात लौट गया वापिस से जिस दिन चीन की सीमा छोडके चीन के बाहर निकला ।
आखरी बार और सीमा पर सीमा अधिकारी ने उसे देखा उसके बाद उसका कोई पता नहीं चल सका की वो कहाँ गया । परंपरा चीन में कहती है कि
लव से जिंदा है क्योंकि ऐसा आदमी मर कै से सकता है । मारता तो सिर्फ अहंकार और जिस आदमी ने अहंकार इकट्ठा ही ना किया हो और जब सम्राट
उसके चरणों में आके सिर रखने को आते हो रहे थे तब अपने झोपडे से भाग गया हो । ऐसा आदमी मर कै से सकता है? लाल से दिसंबर में दो अनूठी
बातें कही जाती है । एक तो ये कि वो बासठ साल की उम्र में पैदा हुआ है । माँ के पेट में बासठ साल वो था बूढा पैदा हुआ है और लाल को प्रेम
करने वाले लोग कहते हैं कि ऐसे लोग ही पैदा होते हैं । हम में से अधिक लोग मर्दन तब भी बच का नहीं रहते । अगर हम अपनी तरफ देखे तो की
बात बहुत उल्टी नहीं मालूम पडेगी । अस्सी साल के आदमी को भी अगर देखे तो खिलोनों से खेलता हुआ मालूम पडेगा । खिलोने बदल जाते हैं, बाकी
खिलौने जारी रहते हैं । एक बच्चा है वो अपनी दूध की बोतल मुँह में भी ये जूस रायॅल अपना चुरुट पी रहा है । मनोवैज्ञानिक कहते हैं दोनों एक ही
काम कर सके लेकिन पूरा अगर आपने दूध की बोतल में दे तो बेहूदा मालूम पडेगा इसलिए उसने लडकी में इजाद कर ली । इसीलिए सिगरेट से या चुप
से जो धुआं आपके भीतर जाता है वो ठीक वैसे ही गर्म धारा भीतर ले जाता है जैसा माँ का दूध और वो जाने की धारा का ढंग ठीक वैसा ही है और
वो सुखद मालूम होता है वो गर्मी सुखद मालूम होती है । उसमें सुखद मालूम होता है उसमें ताकि धार भीतर जा रही है वो सुखद मालूम होती है । इस
बूढे और बच्चे में बहुत फर्क नहीं है और अगर फर्क है तो और ज्यादा ना समझी का फर्क है । बच्चा कम से कम दूध पी रहा है, ठीक ही कर रहा है
। अगर हम की भी जिंदगी को देखे सामान्य गया तो हमें पता चलेगा कि वो कहाँ बचपन नहीं बदल पाता । बदल जाते हैं, ढंग बदल जाते हैं । बचपन
जारी रहता है, उन्हें छोटी बातों पर क्रोध आता है । उन्हें छोटी बातों पर अहंकार धना होता है । उन्हें छोटी बातों का लोग लगता है उतना ही है,
उतनी ही वासना है । सब उतना ही जारी रहता है । कहीं कोई अंतर नहीं है । तो अगर हम ऍसे समझे तो उसका मतलब हुआ कि हम में से अधिक
लोग बच्चे ही मारते से बूढा पैदा होता है । बासठ वर्ष का पैदा होता है, ऐसी कथा है । कथा मीठी है और पूरा नाम मीठी मीठी कथाएं पैदा की है ।
जो बडी अर्थपूर्ण क्योंकि लाल से तब तक पैदा ही नहीं होता तब तक प्रॉब्लम नहीं हो जाता है । जब हो जाता है तभी पैदा होता है और दूसरी बात
गाँव से के बाबत है कि वो उसका पता नहीं तो कभी मारा मारा ही नहीं । ऐसा आदमी मरता थी नहीं क्योंकि हमारे भीतर मरने वाली जो चीज है वो
हमारे अहंकार के अलावा और कु छ भी नहीं । हम नहीं मारते और हमारा निरमित्र अहंकार पडता है । जब हम मारते हैं तभी हमारा अहंकार ही मारता है
। हम नहीं मारते । अब हमें जो पीडा होती है वो हमारे मरने की पीडा नहीं । वो हमारे अहंकार के मरने की मारते । वहाँ जो जो हमने इकट्ठा किया है
वो छिनता है । जो जो हम ने बनाया है वो छू टता है । जो जो हमने पाया है वो छिना जाता है । एक बात तो है कि हमने अपने को नहीं बनाया
और एक बात है कि हम मरने में भी नहीं छीने जाते हैं । आपको याद है कि आप जन्म के पहले थे, नहीं है यार क्योंकि हमें अहंकार के अतिरिक्त
और कोई चीज याद ही नहीं और अहंकार तो जन्म के बाद सदन होता है । इसलिए हमारी जो याददाश्त है मनस्विद कहते हैं वो तीन साल की उम्र के
पहले नहीं जाती । ज्यादा से ज्यादा तीन साल की हमें याद आती है । पहले से पहले जो याद है वो करीब तीन पाँच साल के बीच की होती । क्यों
हम तीन साल भी तो थे, कोई याद नहीं बनती क्योंकि तीन साल हमारे अहंकार को निर्मित होने में लग जाते हैं । इसलिए बहुत मजे की बात है कि
बच्चे अकसर झूठ बोलने में और चोरी करने में जरा भी तकलीफ अनुभव नहीं करते । उसका कु ल कारण उसका कारण ही नहीं, वो चोर है और झूठे है
। उसका कु ल कारण इतना है कि अभी वो अहंकार निर्मित नहीं हुआ जो मेरे और मेरे का फै सला कर पाए । इसलिए जिसको हम चोरी समझ रहे हैं बच्चे
के लिए शुद्ध समाजवाद अभी फै सला नहीं है कि ये मेरा और ये तेरा है । अभी मैं निर्मित नहीं हुआ है इसलिए हम जैसे चोरी कह रहे हैं, वो हमारे
अहंकार के कारण कह रहे है और बच्चे के लिए भी सभी चीजें जो उसकी पसंद पड जाए, उसकी अभी पसंद सबकु छ है । अभी वो अहंकार निर्णय करने
वाला नहीं बना की जो कहे ये मेरा और ये तेरा बच्चे को झूठ और सच में भी फर्क नहीं है । क्योंकि बच्चे को सपने में और सच्चाई में फर्क नहीं तो
अक्सर बच्चे सुबह उठते हैं और राज सपने में जो खिलौना उनका टू ट गया उसके सुबह होते मिल जाते । खिलौने में जो सपना खो गया उसके लिए वो
सुबह हो सकते हैं और तरफ सकते हैं । वो खिलौना कहाँ गया? क्योंकि अभी स्वप्न सपने में भी फै सला नहीं । असल में रात के सपने में और दिन
की सच्चाई में फर्क करने के लिए भी अहंकार की जरूरत है । इसलिए एक मजे की घटना घटती है । बच्चे को सपने में और सुबह की सच्चाई में फर्क
नहीं होता । और जब लाओ से जैसा आदमी अहंकार को छोडकर जगत को देखता है, तब उसको सपने में और सच्चाई में कोई फर्क नहीं होता । फिर
दोबारा इसलिए शंकर जैसा आदमी कर पाता है । जगत माया है उसका और कोई मतलब नहीं । उसका कु छ मतलब इतना है कि अब एक दूसरे अर्थ में
जगत भी सपने जैसा हो गया । एक दिन सपना भी जगत जैसा था । अहंकार के पूर्व फिर अहंकार आया और जगत और सपने में फासला मालूम पडने
लगा । वो फै सला मेरे मैं के ही कारण फिर मैं दोबारा गिर गया । अब जगह भी सब जैसा हो जाएगा । मृत्यु के छह हमारा निर्मित टू टता है, बिखरता है
एक एक जगह से उसकी छु ट्टियाँ उखडने लगती है । वे उगलती खुलते ही हमारी उं । लेकिन काश हमें याद आ सके कि जब मैं नहीं था हमारे भीतर
तब भी मेरा होना था तो मृत्यु में भी हम उतने ही आनंद से प्रवेश कर सकते हैं जितने आनंद से हम जीवन में प्रवेश करते हैं और जितने आनंद से
रात हम निद्रा में प्रवेश करते हैं उतने ही आनंद से हम मृत्यु की महानता प्रवेश कर सकते क्या? और मृत्यु के क्षण में अचानक ये बात घट नहीं सकती
जिसमें पूरे जीवन सफलता को संजोया हो, असफलता को त्यागा हो जिसमे पूरे जीवन अहंकार निर्मित करने का एक भी मौका नहीं चुका हो, झूठा भी
निर्मित होता हो तो भी ना चुका हूँ इसलिए इतनी हमें प्रीति पर मालूम होती है और करने वाला जानता है कि झूठ है और सुनने वाला भी जानता है कि
झूठ है । फिर भी स्थिति कोई कर रहा हो तो मना करने की हिम्मत नहीं होती । कोई आपकी कर रहा है और आपसे कह रहा हूँ आपसे सुन्दर मैंने
व्यक्ति नहीं देखा । आपको भी आईने के सामने कभी ऐसा ख्याल नहीं आया । लेकिन फिर भी उस स्थिति के क्षण मान लेने का मन होता है, दूसरे की
निंदा मान लेने का मन होता है । स्वयं की स्तुति मान लेने का मन होता है दूसरे की निंदा को हम कभी इंकार नहीं करते । वो कितनी बेबूझ मालूम
पडे तो भी इंकार नहीं करते और अपनी स्थिति को हम कभी इंकार नहीं करते । वो भी कितनी ही असंगत मालूम पडे, स्वयं स्थित स्वीकृ त मालूम पाती
। स्वयं की स्थिति में कभी भी ऐसा नहीं मालूम पडता की कोई चीज सीमा के बाहर जा रही है । सभी चीजें सीमा के भीतर हो । दूसरे की निंदा में
सभी चीजें सीमा के भीतर होगी । सभी कु छ माननीय योग होता है तो दूसरे की निंदा में रस लिया हो । स्वयं की प्रशंसा में आनंद पाया हो । सफलता
के क्षण में पैर जमा के खडे हो गए हो । बीच चौराहे पर असफलता के छू टने, अंधेरे में छिप गए हो, सम्मान को खोजा हो, तलाशा हो असम्मान की
तरफ पीठ किए हुए भागते रहे हो तो मारते चाँद एक एकदम से कोई को नहीं छोड सकता लेकिन जिसने इससे उल्टा किया हो, दूसरे की निंदा संदेह
पैदा किया हो, अविश्वास पैदा किया हो, अनास्था दिखाई हो, स्वयं की स्तुति में संदेह पैदा किया हो । स्वयं की स्थिति में अनास्था दिखाई हो, स्वयं
की स्थिति को मान लिया हो । सम्मान जब कोई देने आया हो तो हजार बार सोचा हो असम्मानजक कोई देने आया हो । चुपचाप स्वीकार कर लिया
हो, असफलता में प्रकट हो गया हो, सफलता में छिप गया हो । ऐसा व्यक्तित्व अगर चलता रहे तो मृत्यु के छू टने मुक्ति संभव हो पाती है और ऐसे
व्यक्ति के लिए के द्वारा तो बंद ही हो गए क्योंकि चाबी ही खो गई जिसमें नर्क के द्वार खोले जा सकते थे और ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग का द्वार खुल
गया । स्वर्ग कार्ड है ऐसे व्यक्ति के लिए सतत सुख का द्वार खुल गया । ऐसा व्यक्ति कहीं भी हो कै सा भी हो, सुख पा ही लेता है । ऐसे व्यक्ति से
सुख छीनने का उपाय ही नहीं । ऐसा व्यक्ति हमेशा ही पहलू को खोज लेगा और दुखद पहलू को उस की आँख पकड ही नहीं पाएगी । ऐसा व्यक्ति
पत्थरों में भी हीरे देख लेगा और ऐसे व्यक्ति को कांटो में भी फू ल खिल जाते हैं और ऐसे व्यक्ति के लिए अंधेरा भी प्रकाश हो जाता है और मृत्यु
परमजीत इसलिए मैंने कहा कि जीवन गणित नहीं एक पहेली । ऍम इसलिए कि दो दो चार होते हैं । पहेली में फॅ मिली होता है । बरेली में गणित नहीं
चलता है । परिणाम कु छ होते हैं । पहली में परिणाम विपरीत हो जाते हैं लेकिन पहेली का भी अपना सूक्ष्म गणित है । लाओ से उसी की बात कर रहा
है और जो इस पहेली को समझना चाहिए उसमें सूक्ष्म गणित को समझ लेना चाहिए । ऐसे समझे कि अगर कोई शिकारी पक्षियों को तीर मारने की कला
सीख रहा है तो पक्षियों को आकाश में उडते हुए पक्षियों को तीर मारने में एक सुक्ष्म गन का उपयोग करना पडता है । क्योंकि पक्षी जहाँ है अगर आपने
वहाँ फिर मारा तो आपका सिर कभी भी नहीं लगेगा । बक्शी जहाँ होगा कु छ दिन बाद वहाँ आपको फिर मारना पडेगा । पक्षी अभी आकाश में मेरे आँखों
के सामने है । अगर मैं सीधा वहीं मारूँ तो पक्षी तो तब तक हट चुका होगा जब तक मेरा पहुँचेगा । मुझे तीर वहाँ मारना पडेगा जहाँ पक्षी अभी नहीं है
और मेरे तीर पहुँचने पर होगा । इसलिए धनुर्विद्या की कला ये कहेगी कि अगर चलते हुए जीवन उडते हुए पक्षी को तीन मारना हो तो वहाँ मारना जहाँ
पक्षी
हो अगर वहाँ हमारा जहाँ पक्षी है तो तो फिर चला जाए । ये उसकी पहली हुई अगर मृत पक्षी बांध के रखा हो लक्ष्य में तो वही फिर मारना जहाँ
पक्षी है मत । गणित सीधा चलता है, जीवन का सीधा नहीं चल सकता । लाल से कहता है अगर सफलता चाहिए हो तो सफलता से बच्चे असफलता
चाहिए हो तो सफलता को आवेदन कर ले । फॅ से कहता है, अगर मिटना हो, मरना हो तो जीवन को जोर से पकडना । अगर जीना हो तो जीवन को
छोड देना । पकडना ही मत । और इस जगत में अगर सुख पाना हो, उत्सुक की तरह ही मत करो और सब कु छ पेट्रोल के मतलब अगर ऐसा किया
तो भी मिलेगा । अगर सुख पाना हो तो दुख को टटोलना और दुख को खोजना । जो सबको खोजेगा वो सबको खो देता है । जो दुःख को खोजता है
वो दुख खो खो देता है । जो सबको खोजता है वो दुख को बुला लेता है और जो दुःख को खोजने निकल पाता है उसे दुख कभी मिलता ही नहीं ।
इसे हम ऐसा देख पा रहे हैं । हमारे जीवन का पूरा रास्ता और हो जाएगी और हमारे कदम और ढंग से होते हमारे देखने की, सोचने की हमारा पूरा
दर्शन हमारी पूरी दृष्टि और हो जायेगा । ऐसी दृष्टि जब किसी की हो जाए तो उसे मैं संन्यासी कहता हूँ, लेकिन हम तो जिससे सन्यासी कहते हैं वो भी
संसारी के गणेश से सोच रहे हैं । वो भी परमात्मा को खोजने निकलता है । ध्यान रहे जो परमात्मा को खोजने निकला जितनी ताकत से खोजने निकलेगा
उतना ही पाना मुश्किल है । ये गणेश तार धन के लिए लागू नहीं होता । धर्म के लिए भी लागू वर्मा को कोई ऐसी चीज नहीं है कि आप उठाए लकडी
रखे । कं धे पर निकल पडे आप यहाँ लकडी ही रह जाने वाली परमात्मा नहीं मिलेगा । परमात्मा कोई वस्तु नहीं है । क्या आप खोजने निकल पडे ।
परमात्मा एक अनुभव है । जब आप नहीं होते खोजने वाला नहीं होता तो जो खोजने निकला है वो मुश्किल हो जाएगा क्योंकि खोजने में तो खोजने वाला
मौजूद ही रहता है । इसलिए सन्यासी का हम कम हो जाएगा । ऍम और महात्मा खो खो जाए । अगर आप उससे कहेंगे तो वो कहेगा तुम क्या हो?
कु छ संसार की चीजे खोज रहे हो । हम अमोलक रतन खोज रहे हैं और तुम छह मंगल सुखों में पडे हुए पापी हो । हम मोक्ष खोज रहे तो स्वाभाविक
उसकी अगर तेज हो जाए वो आपके साथ में बैठ सके । उसे सिंहासन बिठाना पडेगा । कु छ सभा देखिए ये स्वाभाविक है । इसलिए कि संसार का ही
गणित काम कर रहा है । अभी अभी भी वही काम होगा नहीं । जापानी ताका सुसु के जीवन को पकडता है । ढाका ससुर को आके अगर कोई उसकी
स्थिति करे तो टाका सुसु सुन ले । सारी बात ऑफिस पे मालूम होता है तो किसी और आदमी के पास आते हैं क्योंकि तुमने जितनी बातें बताई इनमें
से कोई भी बात सोचना नहीं मालूम होता है । तो किसी और से मिलने निकले थे और किसी और के पास मैं तो आता ही नहीं और वो इतनी निष्ठा
से करता है । कई बार अपरिचित आदमी तो ही लेते हैं कि माफ करिए तो आप वो नहीं टका शिशु आप नहीं हम तो ताकत सोच समझ के ही आप
तो कहाँ हो जाता है । नहीं तो तुम्हें किसी ने गलत रास्ता बदल अगर टका ससुर की कोई निंदा करते आता और ऐसी बातें भी कहता जिनसे उसका
कोई संबंध तो ताकत स्वीकार कर लेता हूँ । काका ससुर के मरने के बाद ही पता चला कि उसने मालूम कितनी झूठी चिंताओं में हाँ भर दी थी और ये
भी पता चला की वो निंदा करने वालों को कहीं ऐसा ना लगे की इसने झूठी यहाँ पर दी है तो सब तरह के उपाय भी करता था की निंदा करने वाला
होकर जाए की निंदा उसने की तो ठीक कीजिए । एकांत में आया है मुँह के पास और वो कहता है कि मैंने सुना है कि तुम बहुत क्रोधी आदमी तो के
पास में एक डंडा पडा । वो डंडा उठा लेता है और आप बबूला हो जाता है और उसकी आँखों से आग निकलने लगती है । उसके साथी शिष्यों ने
संघियों ने कभी उसे जिंदगी में क्राॅस वो भी हो गए और साथ मैंने कहा तो बिल्कु ल ठीक ही है और प्रमाण की क्या जरूरत है । बिलकु ल ठीक है ।
तुम आदमी चला गया । उस दिन हमने कभी आपको क्रोध में नहीं देखा । तुमने कभी मुझे मौका ही नहीं दिया । तुम अगर आके मुझे कहते तो सामान
छोटा देता है क्योंकि अकारण वाद में इतने दूर से चल के आया ये बात कहने के लिए तुम ही हो तो उसके लिए इतना सरकार ने भी किया है । वो
संतुष्ट हो कर दे और अब उसे दोबारा तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं पडी । प्रमाण भी हाथ में चुनाव से इस तरह के व्यक्ति की बात कर रहा हूँ ।
इस तरह के व्यक्ति ही सन्यासी है तो दूसरा आया हमको कु छ नहीं है । पता नहीं पांच मिनट बैठेंगे कितना

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