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एक मित्र ने पूछा है श्रद्धा अंधविश्वास ना बने इसके लिए क्या करें? पहली बात श्रद्धा के परिणामों से निर्णित होता है कि श्रद्धा श्रद्धा है या अंधविश्वास ।
आप किसी पर श्रद्धा करते हैं, वो आदमी गलत भी हो सकता है । वो श्रद्धा का पात्र ही हो ये भी हो सकता है । अगर ऐसे आदमी पाप श्रद्धा करते
हैं तो लोग कहेंगे ये अंधश्रद्धा है, आप अंधे है, आपको दिखाई नहीं पडता कि वो आदमी गलत है । अगर आप ऐसे किसी सिद्धांत पर श्रद्धा करते हैं
जिसके लिए वैज्ञानिक कोई प्रमाण नहीं तो लोग कहेंगे ये अंधश्रद्धा है । मेरी परिभाषा अलग है । कोई सिद्धांत वैज्ञानिक है या नहीं ये बहुत अगर उस
सिद्धांत पर श्रद्धा के कारण आपका जीवन वैज्ञानिक खोता जाता हो । अगर उस श्रद्धा के कारण आप रूपांतरित होते होंगे अगर वो श्रद्धा आपको शुभ और
सत्य की दिशा में गतिमान करती हो तो श्रद्धा है और वो सिद्धांत कितना ही वैज्ञानिक हो लेकिन उस पर भरोसा रखने से आपका जीवन और हो नीचे
गिरता हो तो उस रखता है । जिस व्यक्ति से आप श्रद्धा करते हैं वो ठीक हो या गलत हो ये असंगत ऍम वो गलत ही हो और उस पर श्रद्धा आपको
ठीक ही बनाती हो उस पर श्रद्धा आप के जीवन को आनंद से, संगीत से सौन्दर्य से भरती हो तो मैं इसे श्रद्धा कहूँगा और बाद में बिल्कु ल ठीक हो
और आपकी श्रद्धा उस पर आपको नीचे गिराती हो । दुख में पीडा में नर्क या आप की गति को अवरुद्ध करती हो उस श्रद्धा के कारण आप बढते ना
रुक चाहते हो तो मैं कहूँगा । अंधश्रद्धा इसका अर्थ यह हुआ कि श्रद्धा कै सी है ये श्रद्धा करने वाले पर निर्भर । श्रद्धा ॅ वस्तुगत नहीं विषय गत नहीं
विसी गत है, सब्जेक्ट है । एक पत्थर की मूर्ति में आप श्रद्धा करते हैं । अगर ये श्रद्धा आपके भीतर नए फू लों को खेलने में सहयोगी होती है तो मैं
कहूँगा सम्यक् श्रद्धा है और खुद भगवान ही आपके सामने खडे हो और आप उनमें श्रद्धा रखते हो लेकिन वो आपको अंधेरे की तरफ ले जाती हो तो मैं
कहूँगा वो अंधविश्वास मेरा फर्क समझने किस पर आपका विश्वास है, ये महत्वपूर्ण नहीं है, निर्णायक नहीं । आपका विश्वास आपके लिए क्या करता है?
यही महत्वपूर्ण और निर्णायक तब हर आदमी तौल सकता है । उसकी श्रद्धा श्रद्धा है या अंधविश्वास? अगर आपके विश्वास आपको कहीं भी नहीं ले जाते
और आप जहाँ पे वही सडते रहते हैं तो वे अंधविश्वास है क्योंकि श्रद्धा तो एक आग है । वो आपको जला देगी और बदल डालेगी आग में हम डालते
हैं सोने को तो जो कचरा है वो जल जाता है, सोना बच जाता है । आप सच्ची है, झूठी इसका और क्या सवाल सोना पूछ सकता है । सोना यही
देख लेंगे । उसके भीतर जो कचरा था वो जल गया वो निखर के स्वर्ण होकर बाहर आ गया । तो आज सच्ची थी आपको जानने का, सोने के लिए
और उपाय भी किया है । और अगर कचरा सब बचा हुआ साथ रह गया है तो आप झूठी थी । आप इसकी मत करना कि किस आपकी श्रद्धा, आप
इसकी करना कि आपको जो श्रद्धा है वो आग है या नहीं । वो आपको बदलती है या नहीं बदलती है । ये बडे मजे की बात है और इसलिए कई बार
ऐसा होता है कि श्रद्धा जिस पर आप की है वो शायद पात्र नाथी हो । लेकिन आप पात्र हो जाते हैं श्रद्धा के कारण और रोज ऐसा होता है कि जिस
आपकी श्रद्धा है वो पूरा पात्र है लेकिन आपकी जिंदगी में कोई अंतर नहीं पडता । कोई क्रांति घटित नहीं होती, आप अपात्र ही रह जाते हैं । मगर हम
सब यही सोचते हैं कि जिसमें हमारी श्रद्धा है वो ठीक है या नहीं । आप सोचे दूसरे छोर से जिसकी श्रद्धा है वो ठीक है या नहीं । आपकी श्रद्धा
आपको भयभीत करती हो । अंधविश्वास आपकी श्रद्धा आपको अभय करती हूँ । श्रद्धा है आपकी श्रद्धा आपको घृणा, क्रोध और ऍम इससे भर्ती हो ।
अंधविश्वास है आपकी श्रद्धा करुणा बन जाती हो । श्रद्धा है अपने से तौलना और कोई दूसरा हो पाये नहीं । जो दुसरे से तौलने चलेगा उसे कभी भी
कोई पात्र मिलने वाला नहीं है जिसपे वो श्रद्धा कर सके । कभी भी कोई पात्र मिलने वाला नहीं जिसपे वो श्रद्धा कर सके और जो अपने से सोचना शुरू
करेगा उसे चारों तरफ पात्र ही पात्र मिल जाएंगे । दिन पर श्रद्धा की जा सके , श्रद्धा ही चुकाती है । किस पर की है ये महत्वपूर्ण नहीं की है इसलिए
क्रांति घटित होती है । सुना है मैंने सन फ्रांसिस् परम श्रद्धालु व्यक्ति थे और किसी पर भी भरोसा करते थे । उनका शिष्य थलियों दोनों एक यात्रा पर थे
। कोई भी साथ हो जाता फ्रांसिस के तो उसे साथ रख लेते हैं । अक्सर तो कोई भी साथ होगा उन का सामान भी चुरा के ले जाता है । एक रात
टिकता रात उनका बिस्तर, उनकी झोली जो कु छ थोडा बहुत होता लेके चला जाएगा । लियो बहुत परेशान था उनका शिष्य वो कहता कि कम से कम
जाँच पर तो कर लेनी चाहिए । हर किसी को साथ ले लेते हैं और फिर तकलीफ उठाते हैं ये आदमी पर भरोसा छोडो इतने आदमी धोखा दे दे फिर
भी तुम्हारा आदमी पर भरोसा नहीं छू टता तो संत फ्रांसिस कहता वे सब मेरी श्रद्धा की परीक्षा ले रहे हैं । दो उपाय एक आदमी रात रुका है और चोरी
करके चला गया तो एक तो उपाय यह है कि सामान तो गया ही जिसकी कोई कीमत नहीं सांस श्रद्धा भी चली जाए जिसकी बडी कीमत तो संत फ्रांसिस
ने लियो से कहा कि लियो तुझे वो लोग ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं सामान की तो बडी कीमत नहीं लेकिन तेरी श्रद्धा भी नष्ट होती जा रही है । और
संत फ्रांसिस ने कहा कि अगर ऐसे लोग मेरे साथ ठहरे जो भले हैं तो मेरी श्रद्धा के लिए कोई कसौटी भी होगी । मैं आदमी पर भरोसा किए ही चला
जाऊँ गा क्योंकि सवाल आदमी का नहीं । सवाल मेरे भरोसे का सवाल यह नहीं है कि आदमी पर मेरी श्रद्धा हो । सवाल यह है कि मेरी श्रद्धा हो और
अगर मैं आदमी पर भरोसा नहीं कर सकता तो फिर मैं किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकता । इसको अगर इस तरह से देखेंगे तो सारा सारी दृष्टि और
श्रद्धा मूल्यवान है । पत्थर पर है या परमात्मा पर यहाँ पत्थर पर भी हो सकती है और पत्थर भी परमात्मा का काम देने लगता है । अंधविश्वास नपुंसक
रखा है, उस से कु छ भी नहीं होता है । उसे हम रखे रहते हैं मस्त इसके कोने में वो किसी काम की नहीं है । उसका कोई उपयोग नहीं । इतने लोग
ईश्वर में भरोसा करते हैं । ये भरोसा झूठा होना चाहिए क्योंकि अगर इतने लोग सच में ही इस पर भरोसा करते हैं तो ये जगत इतना कु रूप नहीं हो
सकता जितना कु रूप है । अगर इतने लोग सच में ही ईश्वर में भरोसा करते हैं तो इनकी जिंदगी में जो सुगंध जो सुभाष आनी चाहिए उसका तो कहीं
कोई पता नहीं चलता है । सिर्फ दुर्गंध आती है । ये भरोसा झूठा है । ये भरोसा ऊपरी है, ये भरोसा दिखाओ है तो इससे मैं कहूँगा अंधविश्वास जो
क्रांति ले आये आपके जीवन में उस रखता है और जो आपकी जिंदगी में एक स्थिरता लगा दे, स्टिग लिन्सी पैदा कर दे और आप एक ही जगह बंद
तालाब की तरह सडते रहे । वो अंधविश्वास जो मुल्क अंधविश्वासी है वो बंद डबरे में सडते रहते हैं । श्रद्धा तो एक बाहर एक तीव्र गति है । श्रद्धालु
होना आसान नहीं क्योंकि श्रद्धा का अर्थ है अपने को बदलने की तैयारी । बुद्ध के पास अनेक लोग आते हैं, बुद्ध के पास आते हैं तो मैं कहते हैं बुद्धम्
शरणम् गच्छामि । हम बुद्ध की शरण जाते हैं । एक युवक वैशाली में बुद्ध के पास आया और उसने कहा कि मैं आपकी शरण होता हूँ तो बुद्ध ने पूछा
तुम मेरी शरण आते हो? ये अपना उत्तरदायित्व टालने के लिए तो नहीं । ऐसा तो नहीं है कि अब से तुम समझो । अब से तुम्हारी कृ पा से कु छ हो तो
ठीक है । अगर ये शरण में आना सिर्फ दायित्व हो तो तुम शरण नहीं आती । मेरे सिर पढते हो और अगर ये शरण में आना सिर्फ एक आंतरिक क्रांति
की शुरुआत हो तो ही सार्थक है । मेरे पास भी लोग आते हैं । वहाँ के कहते हैं कि हम तो कमजोर है, हम से तो कु छ हो नहीं सकता । अब आप
संभालो । एक सज्जन अभी भी आया वो दस वर्ष से मुझे जानते हैं । दस वर्ष से मैं भी उन्हें जानता हूँ । बस इस जानने के अतिरिक्त और कोई संबंध
नहीं है । अभी आए और वो मुझ से बोले कि दस वर्ष हो गए और अभी तक कु छ हुआ नहीं । मैंने पूछा तो मैं समझा नहीं । उन्होंने कहा, दस वर्ष
से आपको जानता हूँ अभी तक कु छ हुआ नहीं । कु छ करके दिखाइए । अपराधी मैं हूँ और उन्होंने काम किया कि दस वर्ष से मुझे जानते हैं । वो भी
कह सकते हैं । उनकी मुझे श्रद्धा है और श्रद्धा नहीं वन धविश्वास और वह अंधविश्वास आत्मघाती है क्योंकि उसमें मेरा कोई नुकसान नहीं हो रहा है ।
अगर वो इस भरोसे बैठे हैं कि मैं कु छ करूँ और होगा तो कभी भी नहीं होगा । उन्हें ही कु छ करना पडेगा । हाँ, कोई करने को तैयार होते है । सारा
जगत उसको साथ देने को तैयार है । कोई बैठने को तैयार हो तो ये सारा वजन उसको बैठने को भी तैयार अस्तित्व सहयोगी है । आप नरक जा रहे हैं
तो अस्तित्व आपको नरक की तरफ ले जाता है । आप स्वर्ग जा रहे हैं तो स्थित आपको स्वर्ग की तरफ ले जाते हैं । लेकिन जाते सादा आप निर्णय
आपका दायित्व आपका आपकी श्रद्धा आपको रूपांतरित करने कि कीनिया बने तो समझना कि सम्यक् श्रद्धा है । एक मित्र ने पूछा है कि और एक नहीं
बहुत मित्रों ने कोई बीस मित्रों ने वही सवाल पूछा पूछा है कि आप ने कहा कि प्रत्येक कर्म का फल तत्काल मिल जाता है । अगर प्रत्येक कर्म का फल
तत्काल मिल जाता है तो फिर एक आदमी अंधा और एक आदमी गरीब और एक आदमी अमीर क्यों पैदा होते? अगर तत्काल फल मिल जाता है तो फिर
जन्म जन्म भेद क्यों पता है ये ऍम का कारण समझ ले । फल तो तत्काल मिलता है फिर भी बेस्ट पडता है और भेद इसलिए पडता है कि तत्काल
मिले हुए फल का जो इकट्ठा जोड है वो आप है उसका जो कहीं किसी ईश्वर के हाथ में नहीं । वो जो आप है । आप जो भी एक जिंदगी में करते हैं
उस सब का परिणाम है । आपने एक जिंदगी में हजार बार क्रोध क्या तो आप वही आदमी नहीं हो सकते जिसमें एक भी बार क्रोध नहीं किया । हजार
बार क्रोध क्या हजार बार आपने फल पाया? जिस आदमी ने एक भी बार क्रोध नहीं किया उसने एक भी बार फल नहीं पाया । आपके हजार छोटे हैं
क्रोध करने की ओर । फल पानी की आपका व्यक्तित्व हजार गाँव से भर गया । माना कि वे घाव सुख गए लेकिन उन के निशान रह जाएंगे । उन
निशानों का नाम संस्कार कर्म करते है हम फल तत्काल मिल जाता है लेकिन संस्कार रह जाता है । संस्कार को समझ लेना जरूरी सूक्ष् हम इस कमरे में
पानी का गिलास लडका दे पानी बह जाएगा । सुबह धूप आएगी, पानी और जाएगा लेकिन एक सुखी रेखा कमरे में छू ट जाएगी । वो सुखी रेखा पानी की
है । पानी बिलकु ल नहीं इसलिए उसको पानी का कहना ठीक नहीं मालूम पडता है । क्योंकि पानी की एक बूंद भी नहीं रह गई । वहाँ सब भूल गई ।
वो सूखी रेखा पानी की है ये कहना उचित नहीं लेकिन फिर भी पानी की ही है क्योंकि पानी के बहने से ही बन गई थी इस कमरे की धूल पर वो
संस्कार है सुख गया सब पानी बिलकु ल नहीं बचा फिर भी रेखा रह गई । अब आप दोबारा पानी डाले तो बहुत संभावना ये है की सूखी रेखा को पकड
के वो पानी रहे । संस्कार का मतलब होता ऍम । अब उस सुखी रेखा कि ये वृत्ति होगी कि पानी मिले तो उससे बह जाए क्योंकि लिस्ट उं इसके कारण
अगर और कहीं से पानी को बहना पडे तो फिर से रास्ता बनाना पडेगा । धूल काटनी पडेगी, उतनी झंझट पानी भी नहीं लेना चाहते । जहाँ धूल कटी
है और रास्ता बना है उसी से बह जाता है । जिस आदमी ने कल दिनभर क्रोध क्या आज सुबह वो उठेगा क्रोध की रूखी रेखा के साथ सुखी रेखा के
साथ वो ऍम सी है फल तो उसे कल ही मिल गया । जब क्रोध किया तभी फल मिल गया लेकिन क्रोध उसने किया और फल मिला तो उसके व्यक्तित्व
में एक सुखी रेखा क्रोध की बन गई । आज सुबह जब वो उठेगा तो वो जो सुखी रेखा है वो तत्पर जरा सा भी मौका मिला । कोई भी वेब उठा वो
सुखी रेखा उसको बहा देगी आपने मुझसे क्रोध पुनः प्रकट हो जाता है । जब हम एक जन्म के बाद पैदा होते हैं तो हम संस्कार लेके पैदा होते हैं । वो
जो हमने पिछले जन्म में क्या है और जन्मों जन्मों में क्या है? वही हमारा व्यक्तित्व है । वो सब सुखी रेखाएं लेकर हम पैदा होते हैं इसलिए दो बच्चों में
भेद होता है इसलिए
नहीं उनके पिछले जन्मो का कर्मों का फल उनको अभी भोगना । फल तो वे भोग चुके हैं लेकिन फल भोगने के बाद भी जो वृत्तियां रह गई जो वृत्तियों
का प्रभाव से रह गया, जो जो उन्होंने क्या उसकी जो जो पंक्तिबद्ध उनके ऊपर रेखाएं रह गयी वो जो आते रह गई उन को लेकर बच्चा जन्म रहा है
इसलिए दो बच्चे अलग अलग है । जिन मित्रों ने भी सवाल पूछा है उनके सवाल में यही ध्वनि है कि अगर ऐसा है तब तो फिर कर्मफल का सिद्धांत
समाप्त हो गया क्योंकि तत्काल हमें फल मिल जाता है तो मरते वक्त सब लेखाजोखा पूरा हो जाता है । तब तो सब व्यक्ति सामान पैदा होने चाहिए क्योंकि
लेखाजोखा पूरा हो गया । लेखा जोखा जरूर पूरा हो गया लेकिन हर आदमी ने लेखा जोखा अलग अलग ढंग से पूरा किया और हर आदमी के लेखे जोखे
में अलग अलग घटनाएं घटी और हर आदमी ने अलग अलग संस्कार अर्जित कर लिए । उन संस्कारों को लेकर वो पैदा होता है । एक मित्र ने पूछा है,
कोई आदमी अंधा पैदा हो जाता है, कोई आदमी गरीब पैदा हो जाता है । क्या कारण है कि कोई सोने की चम्मच लेकर पैदा होता है? थोडा जटिल है
और जटिल हो गया? इस सदी के कारण इतना जटिल नहीं था । इतना जटिल नहीं था क्योंकि गरीबी अमीरी बहुत सीधी सीधी बात थी और था कि
गरीब गरीब है । अपने कर्मों के कारण आमिर आमिर हैं । अपने कर्मों के कारण इसमें सच्चाई है । इसमें सच्चाई है क्योंकि हम गरीब होने का संस्कार भी
अर्जित करते हैं । लेकिन गरीब होने का संस्कार बडी बात है । धन से उसका संबंध नहीं और बहुत सी चीजों से संबंध । जटिलता इसलिए है की अब
तक जब जब भी हम गरीब आदमी के बाबा सोचते थे तो अतीत में गरीब आदमी का मतलब था जिसके पास धन नहीं एक ही मतलब था । लेकिन अब
जमीन पर विज्ञान ने बहुत धन पैदा कर लिया । सौ पचास वर्षों में निर्धन आदमी जमीन पर कोई भी नहीं होगा । तब गरीब के नए अर्थ शुरू हो जाएगी
। गरीब नहीं मिटेगा सिर्फ उस धन का जो जो था वो मिल जायेगा । गरीब के नया शुरू हो जाएँगे । कोई आदमी बुद्धि में गरीब होगा, कोई आदमी
स्वास्थ्य में गरीब होगा । कोई आदमी सौंदर्य में गरीब होगा । ध्यान रखें धन तो मनुष्य जाति का इतने दिनों का जो श्रम है उसके परिणाम में सबको
उपलब्ध हो जाएगा । लेकिन तब सूक्ष्मतम दरिद्रता प्रकट होनी शुरू हो जाएगी । जब स्थूल दरिद्रता में मिट्टी है तो सूक्ष्म दरिद्रता शुरू हो जाएगी । जब
सबके पास धन बराबर होता है तो धान की तो बात समाप्त हो गई लेकिन तब बुद्धि प्रतिभा गोल्ड उन की चिंता करने लगती है । दरिद्रता बडा शब्द है,
उसकी अभिव्यक्तियां बहुत हो सकती है । अब तक जो बडी से बडी अभिव्यक्ति थी वो धन की थी । भविष्य में जो बडी अभिव्यक्ति है वो गुण की होगी
लेकिन ये सारी रहेगा क्योंकि हम अलग अलग कर्म से अलग अलग संस्कार अर्जित करते हैं । कु छ लोग दरिद्र होने की आदत लेके पैदा होती है । कु छ
लोग समृद्ध होने की आदत लेके पैदा होते हैं । जो लोग समृद्ध होने की आदत लेकर पैदा होते हैं उनको भिखारी भी बना के रास्ते पे खडा कर दो तो
भी उनकी चाल में सम्राट की रौनक होगी । जो लोग दरिद्र होने की आदत लेके पैदा होते हैं देखो बडे बडे महलों में भी बैठ के उनसे ज्यादा दरिद्र
आदमी खोजना मुश्किल हो जाये । कं जूस आदमी वो है जो दरिद्र होने की आदत लेके पैदा हुआ है । धन भी उसके पास आ जाए तो उसको खर्च नहीं
कर पाता । धान तो मिल भी सकता है समाज की व्यवस्था से लेकिन खर्च करने की जो आदत है उसे धन को भोग लेने की जो आदत है वो बहुत
गहरा संस्कार । एक आदमी को आप धनी बनाते हैं और आप अचानक पाएंगे कितना दरिद्र को पहले नहीं था जितना हो गया । अक्सर ऐसा होता है कि
गरीब आदमी कं जूस नहीं होते हैं क्योंकि जब बचाने को भी कु छ नहीं होता तो क्या बचाना एक गरीब आदमी को थोडे रुपए दे दे और जिसको भारत में
हम बहुत दिन से जानते हैं । हम कहते रहे निन्यानवे का चक्कर एक आदमी को निन्यानवे रुपए दे दे । अब उस की एक ही इच्छा होगी कि कै से सौ हो
जाए । ये छह बडी स्वाभाविक है और उसको आज जो एक रुपए मिलेगा वो आज भूखा सो जाना चाहेगा । सौ कर लेना चाहिए । लेकिन जब एक दफा
मन को निन्यानवे से सौ करने का रस लग जाता है तो फिर सौ से एक करने का, फिर एक से दो करने का वो रस बढता चला जाता है । पुरानी
खता है पंचतंत्र में एक सम्राट सादा आपने नाई से पूछता था कि तू इतना प्रसन्न कै से हैं? तेरे पास कु छ भी नहीं नहीं कहता है कि मुझे जो आप दे
देते हैं उतना बहुत है । सांझ गुजर जाती है दिन गुजर जाता है दूसरे दिन फिर सुबह आपकी सेवा कर जाता हूँ । मालिश कर जाता हूँ बाल बना जाता
हूँ । जो मिल जाता है वो दिन भर के लिए । फिर अचानक एक दिन सम्राट देखा की नई उदास और ना ही बडा बेचे है और लगता है रात भर सोया
नहीं । सम्राट ने पूछा कि आज तेरे हाथों में ताकत नहीं मालूम पाती और रात को सोया नहीं । ऐसा लगता है तेरी आँखों में नींद है, कहीं तू भी
निन्यानवे के चक्कर में तो नहीं पढते हैं । उस नई कु छ आपको कै से पता चला? उसने कहा कि पागल तू झंझट में मत पडना, ये मेरे वजीर की करतूत
थे । कल उससे मेरा विवाद हो गया और मैंने कहा कि ना ही बडा संत संयमी आदमी । उसने कहा कि कु छ मामला नहीं, सिर्फ निन्यानवे उसके पास
नहीं है तो उसने मुझसे कहा था आज रात जाके मैं निन्यानवे की एक थैली उसके घर में फें क आऊं गा । सुबह देख लेना तू पड गया तो रात भर क्या
सोचता था । वो बोला कि मैं रात भर यही सोचता था कि सौ कै से हो जाये । रात तो मैं सोच नहीं सकता । पहली रात में नहीं सोच सकता और
कभी मेरे पास कु छ नहीं होता था । मैं सोचता था ये निन्यानवे ने ठीक सौ का ख्याल दे दिया, वैसे ही जैसे दांत टू ट जाए और जी वही वही जाने
लगे । वो जो है वो खाली गड्ढा है जी वही वही जाने लगी । रात भर सो नहीं सका । सम्राट ने कहा अगर तू समझ तो निन्यानवे की थैली फें क देने
तो मरे दुख में हम मर ही रहे । पहले से हमारी तरफ देख सो होने से कु छ भी नहीं होगा । निन्यानवे होना खतरा है, सोने से कु छ भी ना होगा ।
फिर एक दफा यात्रा शुरू हो गई तो तुम मुश्किल में पड जाए । लेकिन उसने नाइन का हमारा एक दफा तो जीवन में मौका मिला सौ तो कर लेने दो
लेकिन उस दिन के बाद ना ही कभी सुखी नहीं हो सका । कोई भी नहीं हो सकता होता क्या है लोग आदत लेके पैदा होते हैं । परिस्थिति परिस्थिति
मौका बनती उस आदत के प्रकट होने का या रुक जाने का धन अब तक परिस्थिति में काम था इसलिए कु छ लोग गरीब थे । कु छ लोग अमीर थे ।
धन के लिहाज और इस वजह से दूसरी गरीबी दिखाई ही नहीं पडती थी । अब दुनिया मुसीबत में पडेगी क्योंकि धान की गरीबी परिस्थिति से मिट्टी जा
रही मिट जाएगी और तब आपको पहली तब पता चलेगा कि और भी गरीब इयां जो धन से बहुत गहरी वैज्ञानिक कहते हैं कि पाँच प्रतिशत लोग ही के वल
प्रतिभाशाली होते के वल पाँच प्रतिशत और ये प्रयोग हजारों तरह से किया गया और ये प्रतिशत पाँच से ज्यादा कभी नहीं होता । इससे थोडा आप समझे
ये के वल मनुष्यों तक सीमित नहीं है । जानवरों में भी पाँच परिस्थित जानवर कु शल होते हैं । पंचानबे प्रतिशत जो कबूतर चिट्ठी पत्री पहुँचा देते हैं वो पाँच
प्रतिशत कबूतर हैं, पंचानबे प्रतिशत नहीं पहुँचा सकते हैं और अनेक अनेक प्रयोग से ये बडी हैरानी की बात हुई की पाँच प्रतिशत मालूम होता है । कोई
वैज्ञानिक नियम है प्रकृ ति में जैसे कि सौ डिग्री पे पानी गरम होता है । ऐसे पाँच प्रतिशत प्रतिभा होती है । पिछले वर्षों में चीन में उन्होंने माइंड वास के
लिए, ब्रेनवास के लिए, बहुत से प्रयोग के लोगों के मस्ती बदल देने के लिए । कोरियाई युद्ध के बाद चीन के हाथ में जो अमेरिकन सैनिक पड गए थे
उन्होंने लौट के जो खबरें दी उसमें एक खबर ये भी है उन्होंने ये खबरें दी कि चीनियों ने सबसे पहले तो इसकी की कि हम में प्रतिभाशाली कौन कौन
है और तब उन्होंने पाँच प्रतिशत लोगों को अलग कर लिया । अगर सौ कै दी पकडे तो उन्होंने पहले पाँच प्रतिभाशाली लोगों को अलग कर लिया और
चीनियों का कहना है कि पाँच प्रतिभाशाली लोगों को अलग कर लो । पंचान नवे को बदलने में कोई दिक्कत ही नहीं होती । पाँच को अलग कर लो ।
फिर पंचानवे कभी गडबड नहीं करते । कोई उपद्रव, कोई बगावत, भागना कु छ नहीं । पाँच को अलग कर लो । पंचानवे के ऊपर पहरेदार रखने की भी
कोई जरूरत नहीं है । वो पाँच छः असली उपद्रवी । अगर वो पाँच वहाँ रहे तो झंझट जारी रहेंगी । भागने की चेष्टा होगी, बगावत होगी, कु छ उपद्रव
होगा और अगर वो पाँच मौजूद रहे तो वो पाँच जो है । लीडर उं वो नेतृत्व उनके पास, उनकी मौजूदगी आप बाकी को भी नहीं बदल सकते । बाकी
सजा उनके पीछे चलेंगे । उनके पाँच प्रतिशत को अलग कर लो । वो पंचानबे प्रतिशत बिलकु ल ही हो जाता है । उनकी जगह किसी को भी रख दो, वो
उनका नेतृत्व स्वीकार कर लेंगे । ये के वल आदमियों में होता तो हम सोचते हैं शायद आदमी की समाज व्यवस्था का परिणाम वैज्ञानिकों ने चूहों पर प्रयोग
किए हैं । खरगोशों प्रयोग किए हैं । बेटों पर प्रयोग किए हैं वो पाँच प्रतिशत । हमने सुना ना बेटे कतार बांध के चलती है, लेकिन किसी के तो पीछे
चलती है । पाँच प्रतिशत भेज आगे भी चलती है । सभी भी पीछे नहीं चलती । पाँच प्रतिशत भी आगे भी चलती है । वो पाँच प्रतिशत भेडो को अलग
कर लो । बाकी झुंड एकदम हाँ ठीक हो जाता है । उसकी कु छ समझ में नहीं आता क्या होगा जो लोग मुँह में काम करते हैं, घरों में काम करते हैं ।
जहाँ बडे बडे लंदन या मास्क में जहाँ बडे बडे अजायब घर है, उन को अजाब । घरों में काम करने वाले लोगों को पता है कि जब भी नए बंदर आते
हैं तो उन में से पाँच प्रतिशत तत्काल अलग कर लेने होते हैं । वो लीडर उं वो उपद्रव मचा देंगे । उन को अलग कर लेने के बाद बाकी शब्दों शायद
बिलकु ल अनुशासन मान लेते हैं । इससे भी बडी मजे की बात जो है वो ये पता चली है कि जेल खानों में जो अपराधी है राजधानियों में जो राजनीतिज्ञ
हैं मंदिरों में, चर्चों में गिर घरों में जो परोहित थे यूनिवर्सिटी इसमें विश्वविद्यालयों में, कॉलेजों में जो पंडित है ये पांच प्रतिशत है । सब मिला के इधर
डिजिटल बात क्योंकि एक लंदन के मुँह में प्रयोग किया जा रहा था कि अगर बंदरों को ठीक से भोजन ठीक से सुविधा उनको कोई अडचन न दी जाए,
जगह दी जाए तो वो जो पाँच प्रतिशत प्रतिभाशाली लोग हैं वो बाकी शेष बंदरों को अनुशासित रखने में सहयोगी होते हैं, उनको गडबड नहीं करने देते हैं
। वो पाँच प्रतिशत नेतृत्व ग्रहण कर लेते हैं । अगर तकलीफ दी जाए । भोजन कम हो, सुविधा कम हो, अर्चन हो तो वो पाँच परिस्थित क्रिमिनल हो
जाते हैं । अपराधी हो जाते हैं और वो पाँच प्रतिशत बाकी को उपद्रव, करवा के हडताल या कु छ ना कु छ कु छ ना कु छ करवाते । वैज्ञानिकों का ये
कहना है कि अपराधी और राजनीतिक एक ही सिक्के के दो पहलु । इसलिए आप कभी देखें जब तक राजनीतिक ताकत में नहीं होता तब तक वो हडताल
करवाता है । जब वो ताकत हो जाता तब वो हडताल तुडवा आता है । ये वही बंदर वाला नहीं है, उसमें कु छ फर्क नहीं है । जब तक राजनीतिक
ताकत के बाहर है तब तक वो सब तरह के उपद्रव को क्रांति कहता है । जब वो ताकत ना आ जाता । सब तरह की क्रांति को उपद्रव कहता है ।
जब वो ताकत होता है तब वो कहता है कि लोग अपराधी जो उपद्रव कर रहे हैं जब वो ताकत के बाहर होता तो वो कहता है कि लोग बगावती है ।
विद्रोही उसकी भाषा बदल जाती है । ताकत में आते से वो अनुशासन की बात करता है और वो कहता है अगर अनुशासन रहेगा तो सुख शांति सब आ
जाएगी । ताकत के बाहर कर दो कि वो कहता है बगावत चाहिए, क्रांति चाहिए बिना क्रांति के कु छ भी नहीं हो सकता । क्रांति से ही सुख आएगा
लेकिन चाहे अपराधी हो, चाहे राजनीतिक हो ये पाँच प्रतिशत ही है । मनुष्य के पास आदमियों को छोड दें, पशुओं को छोड दे । जिन लोगों ने
वनस्पति पर बहुत जीवन भर प्रयोग किए हैं वो कहते हैं कि अफ्रीका के जंगल में भी जो वृक्ष सारे परेशानी संघर्ष को पार करके जंगल के ऊपर उठकर
सूरज तक पहुँच जाते हैं उनकी संख्या पाँच प्रतिशत । अगर एक
पानी का सरोवर हो और उसमें मछलियों और आप जहर डाल दे तो पाँच प्रतिशत मछलियां ही है जो जहर से बचने की चेष्टा करती है । बाकी तो
राजी हो जाए । आपके शरीर में जब कोई बीमारी प्रवेश करती है तो आपके शरीर ऍफ में भी पाँच प्रतिशत ही है । जो उसको रिस्ट करते हैं उसको
लडते । अगर वो पाँच प्रतिशत अलग कर दिए गए आपके शरीर में फिर कोई रेसिस्टेंस कोई अवरोधक सकती नहीं रह जाती तब कोई भी बीमारी प्रवेश कर
सकते हैं । गरीबी मिटानी बडी मुश्किल बात वो पाँच प्रतिशत किसी ना किसी अर्थ में अमीर होंगे ही अर्थ बदल सकते हैं । कभी उनकी अमीरी मकान की
होगी, कभी उनकी अमीरी ताकत की होगी । कबीर उनकी अमीरी ज्ञान की होगी । कभी उनकी अमीरी काव्य की कला की होगी लेकिन एक हिस्सा अमीर
होगा । एक हिस्सा गरीब होगा । गरीबी और अमीरी का ये संदर्भ अगर ख्याल में रहे तो समाजवादी या साम्यवाद से संस्कार और कर्म के सिद्धांत में कोई
अंतर नहीं पडता है । हम बदल सकते हैं, परिस्थिति बदल सकते हैं । लेकिन व्यक्ति के भीतर की जो क्षमताएं उन्हें बदलना आसान नहीं, उन्हें व्यक्ति ही
जब बदलना चाहे तब बदल सकता है । पूछा है कि जब हम पुनर्जन् लेते हैं तो हिसाब किताब कहाँ रहता है, क्या रहता है? आप है हिसाब किताब
आप के अलावा कहीं हिसाब किताब नहीं रहता, कोई जरूरत नहीं है, आती हैं करने वाले आप ही है भोगने वाले आपके हिसाब किताब आप खाता बही
है पूरा अपना । जो जो आप कर रहे हैं वो प्रतिपल आपको बदल रहा है । हर कृ त्य आपकी बदलाहट है और हर कृ त्य आपका जन्म है । और हर
कृ त्य के साथ आप नया आदमी अपने भीतर निर्मित कर रहे हैं, वही है । हिसाब किताब अलग रखने की कोई जरूरत नहीं है । कोई प्रयोजन भी नहीं ।
आपको जान के ही आपका पूरा हिसाब किताब जाना जा सकता है । आपका एक एक कृ त्य बताता है कि आपकी आती क्या है? गहरे संस्कार किया है ।
अब जैसे मैंने संत फ्रांसिस की बात कही ये आदमी कहता है कि मुझे कोई धोखा दे जाए तो भी मैं भरोसा ही करूँ गा । ये इसके गहरे संस्कार की खबर
इसने भरोसे का संस्कार बनाया है तो कोई आदमी धोखा दे के इतनी आसानी से तोड नहीं सकता । बहुत मुश्किल है इसके संस्कार को तो और जब
इसका संस्कार टू टता नहीं, धोखा देने से तो और मजबूत हो जाता है । प्रत्येक चीज मजबूत होती है । पुनरुक्ति से आपको कोई धोखा नहीं भी दे ।
कोई आदमी आपके कमरे में ऐसे ही चला है तो ये जो पहला ख्याल उठता है वो भरोसे का नहीं होता । अभी इस ने कु छ किया नहीं । ना आपका
गर्दन दबाई, न कोई आप का सामान ले भागा । लेकिन जो पहला ख्याल आपके भीतर उठता है वो ये उठता है कि पुलिस को आवाज दे, क्या करें ये
अभी इसमें कु छ भी तो नहीं किया । अभी इसके संबंध में कोई भी निर्णय उचित नहीं लेना लेकिन आपने निर्णय गहरे में ले ही लिया । ऐसा है कु छ की
। हमें कोई आदमी बुरा है इसके लिए प्रमाण की जरूरत नहीं होती । वो तो हमारे संस्कार से मिल जाती है । खबरों में कोई आदमी भला है तो हमें
प्रमाण की जरूरत होती है । गैर भरोसा हमारी आदत है । भरोसा हमारी मजबूरी है । कोई मानते ही नहीं और ऐसा व्यवहार किया जाता है कि हमें
भरोसा करना पडता है । लेकिन गैर भरोसा हमारी आदत आपको लगता है कि आप कभी कभी ग्रोथ करते हैं, गलती है आपकी आप क्रोध आपकी आदत
है । आप कभी कभी ऐसा होता है जब क्रोध में नहीं होते लेकिन इतना काम होता है ये आपको पता ही नहीं चलता । इसलिए आप सोचते हैं कि कि
कभी कभी आपको होते हैं । बस आपका क्रोध ऐसा है कि कभी कभी सौ डिग्री उबलता हुआ होता । कभी लूक वॉर कु नकु ना कु नकु ना क्रोध आपको पता
ही नहीं चलता क्योंकि वो आपकी आदत है । वहाँ आप जिंदगी से वैसे ही है कभी कभी जब ये कु नकु ना क्रोध भी नहीं होता आपने तब क्षण भर को
आपको झलक मिलती है, प्रेम था नहीं मिलती है । फिर कठिनाई यह है कि जितना आपका क्रोध का संस्कार है उतना ज्यादा आप ग्रोथ करते हैं ।
जितना ज्यादा क्रोध करते हैं उतना संस्कार मजबूत होता चला जाता है । हम अपने ही कारागृहों में बंद होते चले जाते इसे कहीं से तोडना पडे दो बाते
ख्याल रखें एक । अगर मैं कहता कि आपका कर्म का फल आप भोग रहे हैं तब तो तोडने का कोई उपाय नहीं था । समझे फर्क अगर मैंने कोई कर्म
किया है और उसके कारण मैं आज क्रोधित हो रहा हूँ तो मुझे होना ही पडेगा । कोई उपाय नहीं है लेकिन मैं कहता हूँ कर्म का फल तो तत्काल मिल
जाता है, सिर्फ संस्कार रह जाते हैं । संस्कार का अर्थ के वल एक ढंग का काम करने की वृत्ति मजबूरी नहीं । इसलिए आप चाहे तत्काल अपने को बदल
सकते हैं चाहे तो तत्काल बदल सकते हैं क्योंकि ये के वल एक आदत है । कभी आपने ख्याल क्या की? कु छ बातें आप के वल आदत के कारण किये
चले जाते हैं । के वल आदत के कारण कु छ और वजह नहीं होती । आदत को तोडना कठिन है लेकिन असंभव नहीं और कभी कभी जरा सी बात आदत
को देती है । जरा सी बात अभी अमेरिका के कु छ मनोवैज्ञानिक जो रील ॅ पी के प्रतिपादक वो कहते हैं एक यथार्थ मनोचिकित्सा वो बडे अनूठे प्रयोग कर
रहे हैं और बडे काम के प्रयोग वो कहते हैं एक आदमी को जिंदगी भर समझाओ मत पियो, मत पियो, पच्चीस छोडता है फिर शुरू कर देता है शराब
पिता है छोडता है फिर शुरू कर देता है कोई उपाय नहीं होता । वो कहते हैं, आपकी टाॅफी रील नहीं, यथार्थ नहीं क्योंकि शराब है वास्तविक चीज
और आपका समझाना है । के वल सब शराब है । एक यथा और सब है । सिर्फ सिद्धांत ये नहीं तोड पाएंगे तो वो कहते हैं कु छ और क्या जाना जरूरी
है । वो क्या करते हैं । अब उन्होंने एक इंजेक्शन इजाद किया है । शराबी को वो इंजेक्शन रात में दे दिया जाता है । उसे पता भी नहीं चलता है या
उन्होंने गोलियाँ भी इजाद की है । वो उस को खिला दी जाती है । उन गोलियों के बाद जब भी वो शराब पीता है तो नासिक पैदा होता है । बडी
बेचनी पैदा होती है । वो होती है और सारा शरीर झरझर । आपने लगता है और रोज रोज इतनी पीडा से भर जाता है कि नर्क उपस्थित हो गया । वो
जो इंजेक्शन है उसके और शराब के मिलने से परिणाम होता है । वो आदमी दोबारा हाथ में शराब नहीं रह सकता जैसे वो शराब हाथ में लेता सब उसे
याद आ जाता है । जो हुआ हजारों साल समझाने से नहीं होता वो एक इंजेक्शन से क्यों हो जाता है । क्या हो गया वो आदत थी सिर्फ एक लेकिन
अब आदत के विपरीत एक बडा दुख खडा हो गया । वो आदत इतनी बडी नहीं थी कि इस दुख के बावजूद भी आम तौर से हम सोचते हैं कि लोग
शराब दुःख के बावजूद भी पीते हैं । हम गलत सोचते हैं । लोग कहते हैं एक आदमी शराब पी रहा है, उसकी पत्नी दुख में पडी, उसके बच्चे दुख में
पडे फिर भी शराब पीने चला जा रहा है इतना दुःख हो रहा है फिर भी आप गलती नहीं हो सकता है । ये दुख देना भी शराब पीने की एक हिस्सा
हो । शायद वो और किसी तरह से दुख देने में समर्थ ना हो या उतना आक्रमक ना हो । इस बार तरकीब से वो दुख भी दे लेता है, अपना दुख भी
बुला लेता है, दूसरों को दुःख भी दे देता है । दोनों काम कर लेते नहीं इससे कोई अंतर नहीं पडेगा । बल्कि ये भी हो सकता है की पत्नी दुखी
दिखाई ना पडे और बच्चे प्रसन्न दिखाई पडे और सब कहे की पिताजी आप मजे से पिये चले जाओ आप चौबीस घंटे पियो तो शायद वो चौक के भी हो
जाए कि मामला क्या कोई दुखी नहीं हो रहा और मैं शराब किये चला जा रहा हूँ । शायद शराब का रस ही चला जाए । जिंदगी बडी जटिल है लेकिन
ये ऍम पीके लोग कहते हैं कि अगर किसी भी आदत को तोडना है तो उस आदत को इतने बडे दुख के साथ जोड देना जरूरी है की वो जो पुरानी
वृत्ति की वजह से आदमी बह जाता था वो दुख बीच में खडा हो जाए और उसको चुन के जाना पडे कि अगर मैं जाता हूँ आदत में तो ये दुख झेलना
पडेगा । बडी हैरानी की बात है आते आसानी से बदल जाती पच पश्चिम के उसके वैज्ञानिक तो कहते हैं कि री कं डिशनिंग की जरूरत है । वो कहते हैं
पुनर्संस्करण की जरूरत है सिर्फ संस्कार बंधे हुए हैं । उनको नया संस्कार से जोड देने की जरूरत है । यात्रा बदल जाती है । मैं मानता हूँ उन की बात
में थोडी सच्चाई है । कोई आदमी कर्मों का फल नहीं भोग रहा है । कर्मों के फलों के संस्कार से बंधा जी रहा है, संस्कार मजबूत है अगर आप उसके
साथ बहते हैं, कमजोर है । अगर आप निर्णय करते हो और रुक जाते हैं इसलिए ऐसा कोई भी कृ त्य नहीं है जिससे आप न रोक सकते हो और अगर
आप कर रहे हैं तो आप ही जिम्मेदार है और अपने मन को ऐसा मत समझाना की क्या करें । जन्मों जन्मों का कर्मफल है भोगना ही पडेगा ये भी
होशियार है । ये भी जो आप करना चाहते हैं उसको करते रहने की नियत और कु छ भी नहीं । ये भी जस्टिफिके शन यदि आप अपने को नया उचित
ठहरा रहे बडे मजे की बात है कि कर्म का सिद्धांत तो धर्म का अंग था और हमने कर्म के सिद्धांत से अपने सब धर्म के लिए सहारा खोज लिया । क्या
कर सकते हैं हाथ के बाहर है बात जो हो चुका वो हो चुका वो बोलना ही पडेगा । जो हो चुका है वो आप भोग चुके । अगर आप उन्हें उसे दोहरा
रहे हैं तो ये के वल एक बार बार दोहराई गई आदत थी किसी कर्म का फल नहीं । हर बार दौरा के फल पाएंगे और हर बार आदत मजबूत होती चली
जाएगी । धीरे धीरे आदमी आदतों का एक पुंज ही रह जाता है । हम सब बातों के पुंज इन आदतों को बदलना हो तो संकल्प की जरूरत है और
संकल्प की शुरुआत इससे होती है कि आपको ये ख्याल में आ जाए कि ये बदली जा सकती है । अगर आपको ये ख्याल है कि ये बदली ही नहीं जा
सकती, आपका संकल्प बिल्कु ल मर जायेगा । एक जर्मन यहूदी फ्रैं क कल पिछले महायुद्ध के जर्मनी के एक बडे काराग्रह में बंद था । उसने लिखा है,
बडी हैरानी की बातें लिखी । उसने अपने संस्मरणों में लिखा है क्योंकि वो एक मनस्विद है । वो निरीक्षणकर्ता क्या हो रहा है? दिसंबर करी बारात त्यौहार
के दिन करीब आ रहे थे और सभी कै दियों को यह आशा थी कि कम से कम क्रिसमस के करीब छु टकारा हो जाएगा । क्रिसमस के करीब हिटलर दया
करेगा और लोग छोड दिए जाएंगे । अंकल ने लिखा है कि क्रिसमस तक कितनी ही तकलीफ दी गई, कै दियों को कोई नहीं मारा । लोग बीमार रहे
लेकिन एक आशा थी । क्रिसमस करीब आ रहा है । उस आशा के साथ प्राण में बंद उसने लिखा है जिस दिन क्रिसमस निकल गया उसके पंद्रह दिनों में
अनेक लोग मारे । क्रिसमस के बाद और उसका कहना कु ल कारण इतना था । उस पंद्रह दिन में मरने वालों का की सब आशा टू ट गई । क्रिसमस पर
भी छु टकारा नहीं मिला । आप कोई आसान नहीं । जब आशा नहीं रह जाती तो जीवन ऊर्जा छीन हो जाता है । जिस काराग्रह में प्रिंकल बंद था उसमें
एक अटोमिक भट्टी थी जिसमें हजारों कै दियों को इकट्ठा रखके क्षण भर में रह किया जा सकता था । रोज हजारों कै दी राख होते थे । रोज उस बत्ती की
चिमनी से धुआँ निकलता था फिर उनको काराग्रह बदला गया । कोई पाँच सौ के साथ दूसरे काराग्रह में भेजे गए । दो दिन पैदल उन्हें चलाया गया ।
ठंडी रातें नंगे पैर, बिना कपडों के भूखे प्यासे उन्हें चलाया बिल्कु ल थके हुए मुर्दा मरे हुए वो किसी तरह पहुँचे । आधी रात में जब वो पहुँचे काराग्रह में
तो उनकी जाँच पडताल होने में पूरी रात लग गई । एक एक आदमी को अंदर करने में जाँच पडताल कर के अंदर किया गया । फिर अंकल ने लिखा है
इतनी यातना, इतनी यात्रा, इतनी थकान, भूख परेशानी और रात जब हम खडे थे बारह बजे मैदान में क्यों लगा के तो ओले पढने लगे । बर्फ पडने
लगी लेकिन फिर भी सब गीत गा रहे थे, गुनगुना रहे थे । मजाक चल रही थी । लोग हंसी कर रहे थे और कु ल कारण इतना था कि उस जेल खाने
में चिमनी नहीं दिखाई पड रही थी । वो जो चिमनी थी पिछले जल खाने में वो नहीं थी । सब दुख भूल गया । ये दो दिन की यात्रा है । ये वर्षों की
तकलीफ सब भूल गई । ये बर्फ पड रही है । ये भूल गया । लोकगीत को मनाने लगे । फें कने लिखा है मैंने पहली दफा मेरे साथी कै दियों को गीत
गुनगुनाते । पुरानी मजाक दोहराते एक दूसरे से कहानियां कहते पहली दफा सुना तो मैं बहुत हैरान हुआ की बात क्या है । तब थोडी देर में पता चला की
वो चिमनी नहीं दिखाई पड रही वहाँ आश्वस्त कितनी तकलीफ होगी । मौत अभी करीब नहीं ।
अगर ऐसा हो कि रात के अंदर हमें चिमनी ना दिखाई पड रही हो और सुबह रोशनी और चिमनी दिखाई पड जाए तो अनेक तो वही गिर पडेंगे । दो
दिन की थकान एक दम पैर जवाब दे देंगे । आदमी आपने भरोसों से जीता है, अपनी आसानी से जीता है आपने अभिप्रायों से जीता है । अगर आपको
ख्याल है कि आप अपने को बदल सकते हैं । ये ख्याल ही बदलाव की पहली बुनियाद बन जाती है । आपको ख्याल है कि बदलाहट हो नहीं सकते,
हाथ भी पड जाता है । आप जमीन पर गिर जाता है । जिंदगी की ऊर्जा आपके छालों से उठती और गिरती है । मैं आपसे कहता हूँ संस्कार है आपके
पास लेकिन संस्कार पानी की सूखी रेखाओं की तरह अगर पानी को कु छ नहीं किया गया तो उनसे बह जाएगा । लेकिन अगर जरा सी चेष्ठा की गई तो
पानी नहीं रेखा बना लेगा । पुरानी रेखा कोई कोई नियत ही नहीं है कि पानी उसी से बहुत कु छ किया गया । फॅ मिली पानी छोड दिया गया तो पुरानी
रेखा से बहेगा । लेकिन अगर जरा सी भी चेष्टा की गई तो पुरानी देखा मजबूर नहीं कर सकती पानी को बहने के लिए बस इतना ही संस्कार है आदमी
पर अतीत से हम बंधे लेकिन भविष्य के प्रति हम मुक्त इससे थोडा ठीक से समझने अतीत से हम बनेंगे लेकिन बंधे हैं अपने ही भाव के कारण । भविष्य
के प्रति हम मुक्त थे और हम चाहे तो एक झटके में अतीत की सारी रस्सियों को तोड दे । वे रस्सियां वास्तविक नहीं जली हुई रस्सियां रह की रस्सियां
रस्सियों जैसी दिखाई पडती है । एक रस्सी को जलाएं, जल जाए रह हो जाए फिर भी बिल्कु ल रस्सी मालूम पडती है सारे सा और छू के ना देखे तो
ये भी हो सकता है कि हाथ में बंधी हो तो सोचे कि कै से भाग सकते छू के जला देखे जली हुई है टू ट सकती है अभी गिर सकती है । संस्कार का
अर्थ है जली हुई रस्सियां लेकिन अगर आप उनको रस्सियां मान के चलते हैं तो आप उनको प्राण देते हैं । मनुष्य अपने कर्म का फल भोगता है और
प्रतिपल नए कर्म करने को मुक्त हो जाता है । सिर्फ आदत के कारण पुराने को दोहराया बात दूसरी लेकिन पुराने को दोहराना अनिवार्य नहीं । इसलिए कोई
आदमी अगर ठीक संकल्प का आदमी हो तो एक क्षण में पूरी जिंदगी बदल ले सकता है । एक क्षण में इस तरफ एक जिंदगी और दूसरी तरफ दूसरी
जिंदगी शुरू हो सकती है । इस बदलाहट को मैं संन्यास कहता हूँ । इस संकल्प को मैं संन्यास करता हूँ । जब कोई आदमी तय करता है कि अब मैं
पुराना नहीं रहूँगा । मैंने नए होने का तय कर लिया । एक क्षण में भी ये हो सकता है और जन्म जन्म में भी ना हो हम पर निर्भर है । एक मित्र ने
पूछा है कि हर प्रवचन के अंत में आप कीर्तन पर क्यों जोर देते हैं? कीर्तन के संबंध में थोडा सा समझाई । कीर्तन के संबंध में समझाना जरा मुश्किल
है क्योंकि समझ के जो परे है उसी को कीर्तन कहते हैं और जोर इसलिए देता हूँ कि आपकी समझ बहुत थक गई होगी । अब थोडा ना समझे का काम
पीछे कर लेंगे । जो मैं बोल रहा हूँ वो तो आपकी बुद्धि पर आघात करता है । अगर आप इस तरह सुन रहे हो कि बुद्धि को हटा दे तो आपके हृदय
तक जाता है लेकिन ऐसा सुनना कठिन है । बुद्धि बीच में खडी रहती है । द्वार पर खडी रहती है । भीतर जाने देने से पहले वो जांच परीक्षा करती है
कि आपने मत की बात है । आपने शास्त्र की बात है आपने वेद में कही है कि नहीं कही है तो भीतर जाने दे । वैज्ञानिक कहते हैं की आपकी इंद्रियां
और आपकी बुड्ढी जैसा हम आम तौर से सोचते हैं । बाहर की संवेदनाओं को भीतर ले जाने के उपाय है । ये ही दूर तक सच है । के वल दो प्रतिशत
चीजों को भीतर जाने दिया जाता । अट्ठानबे प्रतिशत चीजों को बाहर रोक दिया जाता है । ये जरूरी भी है । आप रास्ते से गुजर रहे हैं । अगर सौ
प्रतिशत घट रहा है रास्ते पे वो आपके भीतर चला जाए तो आप घर ना पहुँच सके । आप घर पहुँच जाते हैं इसलिए आपका मस्तिष्क पूरे समय चुनाव
कर रहा है । किसको भीतर जाने देना, किसको बाहर लोग अगर सभी चीजें जो घटना है आपके मस्तिष्क में घुस जाये तो आप घर ना पहुँच पाएंगे या
किसी दूसरे के घर पहुँच जाएँगे या आपने भी घर पहुँच गए तो आप पहचानना पाएंगे कि आपका घर आप पागल हो जाएगी । इस वजह से बुड्ढी पूरे वक्त
सुरक्षा करती है कि बिल्कु ल जाँच पडताल कर के भीतर किसी चीज को प्रवेश करने दो । आप सभी चीजें नहीं सुनते । सभी आवाज ही नहीं सुनते ।
आप और आप के भीतर क्षमता है इस बात की की आप जो सुनना चाहे सुने, जो ना सुनना चाहे ना सुने, कान पर आवाज पड जाए तो भी आपकी
बुद्धि चूक शक्ति उसको लगे नहीं सुनना तो कान सुन लेगा । बुद्धि अपना संबंध भीतर तोड लेगी । अभी एक वैज्ञानिक साल पर प्रयोग कर रहा था । एक
छोटी सी बिल्ली पर प्रयोग कर रहा है तो दिल्ली के कान के पास जोर से आवाज की जाती हैं । आवाज होते से बिल्ली चौक जाती है । आवाज इतनी
तेज है उसके चौंकने का उसके कान में आवाज गयी । उसका ग्राॅस यंत्र पर बन जाता है की बहुत जोर का आघात हुआ और बिजली का पूरा मस्ती तंत्र
झनझना गया । तब अचानक दूसरे कोने से चूहे को प्रवेश किया जाता । बिल्ली चूहे को देखती है और उसकी सारी आत्मा उसकी आँखों से चूहे की तरफ
लग जाता है । फिर आवाज की जाती है दिल्ली को सुनाई नहीं पडती वो ऍफ भी नहीं बनता जो पहले बना था । आवाज अब भी हो रही है । कान पर
चोट पड रही है लेकिन वो जो ग्राहक बनता था उसका मस्तिष्क का तंत्र झनझना गया वो बिल्कु ल नहीं बनता क्या हो गया? बिल्ली ने अपनी बुद्धि का
कान का संबंध तोड दिया । अब बुद्धि चूहे की तरह मुँह हम पूरे वक्त सक्षम हैं भीतर अपने संबंध तोडने और जोडने में क्योंकि ये बचाओ की अनिवार्य
शर्त है आदमी की इसलिए बुद्धि की आदत हो गई बहुत चुन चुन के भीतर जाने देने की तो जब आप मुझे सुन रहे हैं तब भी बुद्धि उस आदत का
उपयोग करती है जो उस आदत को सुनता है । उसको हमने कल शिष्य कहा वो जो सीखने के लिए इतना तैयार है की बुद्धि के सब डिफरेंस मेजर
सुरक्षा के उपाय अलग कर देता है, द्वार खुला छोड देता है । यही श्रद्धा का अर्थ है । श्रद्धा का अर्थ है जिस तरफ श्रद्धा है उस तरफ हम अपनी
सुरक्षा के सब उपाय छोड देते हैं तो तो आपके हृदय तक बात पहुँच जाएगी । तब तो आपके हृदय के तंत्र भी झिंझना जाएंगे । तब आपको कठिनाई नहीं
होगी, समझने में कीर्तन किया है । आप खुद भी करना चाहेंगे । तब मैं जो बोल रहा हूँ, आपकी बुद्धि का भोजन नहीं बनेगा, आपके हृदय का रस हो
जाए और वो रस प्रकट होना चाहिए और वो रस मग्न होना चाहिए और वो रस डू बना चाहेगा तो जो हृदय से सुन रहे हैं उनके तो पैर थिरकने लगेंगे ।
उनका तो सिर्फ बोलने लगेगा । उनके तो हाथों में कोई नाचने लगेगा । चाहे वो संभाल के अपनी कु र्सी पर बैठे रहे भला पास पडोस के डर से लेकिन
कोई उनके भीतर नाचने की तैयारी करने लगेगा जो कहाँ है । अगर वो ह्रदय को छू जाये तो आप जरूर ही नाचना चाहेंगे क्योंकि हृदय नाचना ही जानता
है । हृदय पर जब कोई आघात गहरा हो जाता है, जब कोई बीज गहरे में उतर जाता है तो हृदय एक ही तरह से अपने को प्रकट करना जानता है
कि सारा रोना रोना चुटे तो जिनको ह्रदय तक बात पहुंच जाती है वो नाचना चाहते हैं और उन्हें बिना नाचे सडक पर छोड देना खतरे से खाली नहीं ।
एक दस मिनिट नाच के वो हल्के हो सकें गे । वो जो भीतर घना हुआ वो प्रकट हो जाएगा । जो बादल आकाश में आया वो बस लेगा, वे हलके हो
कर जाएँगे और एक सम्बन्ध भी जोड कर जाएंगे । फिर बुद्धि और हृदय में विरोध नहीं, विरोध हमारा खडा किया हुआ है । लेकिन जिनकी समझ में नहीं
आया, जिनकी समझ द्वार पर पहरा बनकर खडी हो गई और जिन्होंने हृदय तक नहीं पहुंचने दिया, उनको जरूर सवाल उठेगा कि कीर्तन की क्या जरूरत
है । ना के वल सवाल उठेगा बाल को ऐसा भी लगेगा कि ये तो बडा विपरीत है । जो मैं कहता हूँ उससे ये कीर्तन विपरीत मालूम पडता है । ये तो
बडी ना समझो जैसी बात है । ग्राम में ये लोग नाचे कुं दे ध्यान रखें मेरे लिए सभी विपरीत जैसा लाव सिंह ने कहा है परिपूरक जब मैं एक घंटे डेढ घंटे
तक आपसे बुद्धि की बात करता हूँ तो आपका बाॅस झुक जाता है । एक तरफ जरूरी है कि इससे विपरीत हम कु छ करके विदा हो । आप ज्यादा ऍप्स
ज्यादा संतुलित हो कर जाएँगे । कु छ हृदय का हम कर ले और भी कारण है जो मैंने कहा है वो आपके गहरे उतर जाएगा । अगर आप उसको सुनके
नाच के लौटे जो मैंने कहा है अगर आप सोचते ही लौटे आप उसको कर देंगे । मैंने कु छ कहा है आपके ऊपर वो हावी है सिर पर आप उसको सोचते
लौटेंगे, आप करेंगे क्या आप सोच के उस को विकृ त कर देंगे? उचित है कि एक दस पंद्रह मिनट के लिए खाली ऍफ मिल जाए । आपको मौका ना
मिले कु छ करने का और वो जो आपके ऊपर है । धीरे धीरे रस रस के भीतर चला जाए । एक पंद्रह मिनट जरूरी है कि आपको मौका ना मिले ।
आपको मौका मिला तो आप उस को अस्त व्यस्त कर देंगे । इसलिए अगर आप एक पंद्रह मिनट नाच के भूल के बुद्धि को हृदयपूर्वक जी के लौट जाते
हैं तो जो मैंने आपसे कहा है आप उसको विकृ त ना कर पाएंगे । वो आपके विकृ त करने के पहले आपके हृदय तक कोई थोडी सी धाराएं उसकी पहुँच
गयी होगी । वही धाराएं वस्तुतः काम की है । फिर जो भी मैं कह रहा हूँ वो कितना ही बौद्धिक मालूम पडे । वो बौद्धिक नहीं कहना । अभिव्यक्ति बौद्धिक
है और मैं उसे इस भांति समझाने की आपको कोशिश करता हूँ कि आपके तर्क को भी समझ में आ जाए । लेकिन जो मैं कह रहा हूँ वो तार्कि क नहीं
। तर्क के वल माध्यम है । सब के वल उपाय है । जो मैं कह रहा हूँ वो बिल्कु ल अतर्क है । जो मैं कह रहा हूँ वो विचार के अतीत है । अगर मैं कहने
पर ही आपको छोड दूँ तो आप बहुत जल्दी तो तो की तरह पंडित बन जाएगी या पंडितों की तरह तोते बन जाएगी । आपको सब बातें काॅस्ट हो जाएगी
और आप भी दूसरों को कह सकें गे । बस इतना ही होगा । इसका कोई बहुत अर्थ नहीं होने वाला । है मेरा आपको कोई तोते बनाने का चेहरा भी
प्रयोजन नहीं । आपको पता नहीं होगा । अगर आप एक दस मिनिट नाच लिए गीत गा लिए आनंदित हो लिए तो आप तोते नहीं बन पाएंगे । आप हल्के
हो गए । आप पर जो भार पडा था, बुद्धि पर जो तनाव पडा था वो हल्का हो गया और अब जो सारभूत है वो आपके भीतर रह जायेगा । जो शब्द
है वो तिरोहित हो जाएगी । ये कीर्तन इसलिए कि जो मैंने आपसे कहा है उस शब्द भूल जाये और उसका सत्य आपके साथ रह जाएगा । ये कीर्तन
इसलिए कि जो मैंने आपसे कहा है उसका माध्यम ना पाक जाए, कं टेनर ना पाक जाए कं टेंट उसकी सार वस्तु आपने रह जाए तो मैं नहीं कहता आपसे
की जो मैं कहता हूँ उसे आप याद रखें । मैं कहता हूँ आप कृ पा करके भूल जाएँ आप उसे ये आप मत रखिए । जो सार्थक है वो भीतर रह जाएगा ।
वो आपकी जिंदगी में जगह जगह से कभी कभी प्रकट होगा । जो गैर सार्थक है उसे याद रखना पडता है । इमर्सन ने कहीं शिक्षा की परिभाषा करते वक्त
कहा है कि शिक्षा वो है जो स्कू ल छोडने पर भूल जाती है, सब भूल जाते हैं लेकिन फिर भी एक शिक्षित और अशिक्षित आदमी में फर्क रह जाता है ।
वो फर्क क्या है? वो फर्क क्या है? वो जो सार्थक था, अगर डू ब गया तो वही फर्क है । वही संस्कार है, वही संस्कृ ति है, शिक्षा तो भूल जाती है
। आज कितनी आपको ज्यामिती की तरम याद है । अंग्रेज लेखक मामने लिखा है कि मैं लाख उपाय करूँ और उसकी बात मुझे समझ में क्योंकि मैं भी
उसी परेशानी में रहा हूँ । लिखा कि लाख उपाय करूँ ऐसे लेके ॅ तक पूरी वर्णमाला याद नहीं आती । मुझे भी नहीं आती उसको फिर फिर गिनना
पडता है । डिक्शनरी देखो तो फिर से देखना पडता है कि एच किसके आगे और किसके पीछे? मान ने लिखा है कि कितने उपाय करो वर्णमाला याद
नहीं आती । वनमाला याद आने के लिए है ही नहीं, भूली जानी चाहिए क्योंकि जिनको वर्णमाला ही याद आती है उनको फिर कु छ और याद नहीं आया
। वरमाला याद रखने की चीज नहीं भूल जाने की चीज है । उसका काम रह जाता है । उसका उपयोग रह जाता है । वही उपयोग शास्त्रों के साथ
कठिनाई है । सिद्धांतों के साथ कठिनाई ये सब याद रह जाते हैं । उपयोग बिल्कु ल याद नहीं रहता तो मैं जो कहता हूँ आपके मस्तिष् पर बोझ ना बन
जाए । आप उस बोझ से हल्के होकर लौटे भूली जाए । उत्तर
ही जाए तो जो साफ है, जो बीच है वो आपके भीतर पडा रह जाए और किसी दिन अचानक आप पाएंगे कि उसमें अंकु र आ गए । उसमें फू ल आ
गए । वे फू ल जो मैंने कहा है उसके सत्य की खबर देंगे । और जो मैंने कहा अगर वही आपको याद है तो के वल शब्द आपने दोहरते रहेंगे और सत्य
से आप वंचित हो जाएंगे । इसलिए भी और इसलिए भी कि मेरा मानना है कि बुद्धि से कोई कभी परमात्मा तक नहीं पहुँचता है । सोच सोच कर कोई
कभी सत्य तक नहीं पहुँचता है । नाच के तो कभी कभी कु छ लोग पहुँच गए । हिसाब कर के कभी कोई नहीं पहुँचा । कु छ पागल तो कभी कभी पहुँच
गए, लेकिन होशियार लोग नहीं पहुँच पाते । उनकी होशियारी ही बाधा बन जाते हैं । लेकिन एक अडचन है । जो लोग पागलपन की बात करते हैं वो
होशियारी की बात नहीं करते । इसलिए होशियार आदमी उनके पास फटकते ही नहीं । जो लोग तैयारी की बात करते हैं वो पागलपन से बिल्कु ल दूर साफ
सुथरे रहते हैं । वो पागलपन को बिलकु ल अछू त मानते हैं । उनके पास पागल नहीं भटकते । लेकिन ध्यान रहे समझ और पागलपन का एक गहरा तालमेल
जब निर्मित होता है तो जीवन में श्रेष्ठ संक्रांति घटित होती है । बुद्धि मानेगी अगर हसना सके तो थोडी कम बुद्धिमानी बुद्धिमान अगर नाचना सके तो थोडा
कम बुद्धिमान । अगर बुद्धि हल्की होकर उठना सके तो पत्थर है मेरी दृष्टि में जीवन इन विरोधों का एक संगम है सोचे खूब लेकिन सोचने पर रुकना
चाहिए कहीं एक्शन सोचने को एक तरफ रख दे वस्त्रों की तरह न हो जाये सोचने से नाचे कुं दे छोटे बच्चों की तरह हो जाए अगर आप छोटे बच्चे में तो
और बुद्धिमान में दोनों के बीच कोई सेतु बना लेते हैं । आपने वो गोल्डन ब्रिज स्वर्ण सेतु बना लिया जिस पर से होकर ही सभी को जाना पडता है ।
अगर आप वो नहीं बना पाते हैं आप अधूरे रह जाएंगे । अगर आप सिर्फ नाच ही खून सकते आप पागल अगर आप सिर्फ सोच ही सकते हैं तो आप
दूसरे ढंग के पागल है । अगर आप ये दोनों एक साथ आप में संभव है तो इन दोनों का मिलन एक नए तत्व को जन्म दे जाता है जिसको प्रज्ञा कहते
हैं जिसको सिस्टम कहते हैं । इसलिए एक और मित्र ने पूछा है कि हमने बहुत कीर्तन देखे लेकिन कीर्तन में एक व्यवस्था होती है, ढंग होता है । यहाँ
जो होता है बिल्कु ल बेढंगा है । इसमें कोई व्यवस्था नहीं । कोई कै सा ही नाश्ता खुलता है, कोई कै सा ही चिल्लाता है उनका उनका ख्याल ठीक ही है ।
जानके ही ये अव्यवस्था ऐसा कहिए कि व्यवस्थित व्यवस्था से ही ये अवस्था है । ये कोई अकारण नहीं हो रहा है क्योंकि मेरा मानना है कि जब कोई
व्यवस्था से नाचता है तो नर्तक हो सकता है, कीर्तन नहीं । व्यवस्था एक बात जब कोई व्यवस्था से गाता है तो गायब हो सकता है, वो दूसरी बात है
। लेकिन जब कोई भाव से हृदय की उमंग से, सहजता से नाश्ता और गाता है, तब कीर्तन का जन्म होता । कीर्तन की कोई व्यवस्था नहीं हो सकती ।
नृत्य एक बात है और कीर्तन में नाचना बिलकु ल और बात स्पंज जीनियस सहज फु र्त होना चाहिए । जो अंतर में उदित हो रहा हो, वही होना चाहिए ।
फिर हाथ पर जैसे भी मुद्राओं में होना चाहे उन्हें होने की स्वतंत्र होनी चाहिए । आपको शायद पता नहीं कि जब हम शरीर को पूरी मुक्ति दे देते हैं और
भाव के साथ शरीर को भी पूरा छोड देते हैं । अगर ये पूरा हो जाए तो आपको समाधि की पहली झलक इससे ही मिलेगी, क्योंकि जब शरीर कोई बंधन
नहीं होता क्योंकि नियम तो बंधन है । व्यवस्था एक बंधन है और जब आप व्यवस्था रखते हैं तो चेतन रहना पडता है । पूरे होश रखना पडता है कि
कु छ गलती तो नहीं हो रही कोई तालमेल पद में कहीं कोई भूल तो नहीं हो रही तो फिर बुद्धि काम जारी रखती है । व्यवस्था का अर्थ है बुद्धि मौजूद
है । हृदय को मौका नहीं मिला । ये हृदयपूर्वक है तो आप अगर यहाँ कौन कै सा भूल चूक करना है ये देख रहे हैं आप गलती जगह आ गए आपको
किसी नर्तकी को किसी नर्तक को देखना चाहिए, वहाँ भूल चूक नहीं हो । यहाँ आपको देखना चाहिए कौन कितना स्वाभाविक हो गया और स्वाभाविक कोई
हो गया है या नहीं हो गया । इससे बाहर से देखना बडा मुश्किल है । ये तो खुद ही हो तो ही समझना आता है । तो बेहतर ये है कि खुद हो के
देखिए एक स्वाभाविकता भी है । तब हम कु छ भी नहीं रोकते । पैर जैसा नाचना चाहते हैं, नाचने देते हैं । कोई नियम, कोई अनुशासन नहीं । मन
जैसा उछलना चाहता उछलने देते हैं । एक दस मिनिट अपने शरीर अपने इस मन को सहज देखी । उस सहज में डू बते ही आपको पहली दफे स्वतंत्र
अनुभव होगी जो आप छोटे से बच्चे रहे होंगे तब कभी शायद आपने उसकी झलक जानी हो । लेकिन अब तो बहुत समय हो गया उसे भूले हुए जब कभी
छोटे बच्चे आप किसी फू ल के पास किसी तितली को पकडने के लिए होंगे तब जैसी सहजता भीतर रही होगी वैसी सहजता एक बार फिर से पकड उसके
पकडते ही बीच की सारी की सारी बाधाएं गिर जाती है । और जब कोई फिर से अपनी बुद्धिमानी में बच्चों जैसा हो जाता है तो स्वर्ग की चाबी उसके
हाथ में छोटे छोटे दो चार सवाल एक मित्र ने पूछा है डू यू क्ले म टोमॅटो । क्या आप का कोई दावा है? क्या आप किसी के शिष्य होने का भी दावा
होता है और शिष्य होना बताया जा सकता है । अगर कोई एक आपका शिष्य हो, पूरी जिंदगी की गुरु हैं और जिसकी आँखें खुली है वो एक छु ट्टी बिना
सीखे नहीं रह सकता । रास्ते के पत्थरों से भी सीख लेगा, फू लों से भी सीखेगा, आकाश के तारों से भी सीख लेगा, जब गाली देंगे, उनसे भी सीख
लेगा । जब फू ल चढाएंगे उनसे भी सीख ले । अगर सीखने की कला आ गई हो तो आप शिष्य होते हैं और ये सारा जगत गुरु होता है । सीखने की
कला नहीं आती । इसलिए हम एक आपको गुरु बना लेते हैं । ऐसा समझे कि आप अपने घर में छिपे और एक छोटा सा छेद कर लेते हैं । उसमें से
आकाश को देखते हैं कोई आदमी आकाश के नीचे खडा है घर ही छोड दिया । जब एक छोटे से छोटे से इतना आकाश दिखता था तो सोचा कि आप
सब दीवार को गिरा ही तो बाहर ही खडे हो जाओ । स्वभाव होता है आप अपने घर के भीतर से पूछेंगे कि मैं इस नंबर एक के क्षेत्र से देख रहा हूँ
आपने किस क्षेत्र से आकाश को देख वो जो आदमी आकाश के नीचे खडा है वो आपको क्या कहे? क्या दावा करे कि किस क्षेत्र से उसने आकाश को
देखा? उसकी बडी मुसीबत हो गयी । वो कहेगा छेद तो कहीं दिखाई नहीं पडता । अक्षय आकाश जब सीखने की क्षमता पूरी होती है तो गुरु कहीं भी
नहीं दिखाई पडता क्योंकि गुरु गुरु है । अक्षय अक्षय तो मेरा कोई दावा नहीं । अब ध्यान रहे शिष्य होने का कोई दावा नहीं होता और गुरु होने का तो
दावा हो ही नहीं सकता क्योंकि जो आदमी दावा करता हूँ मैं गुरु अभी वो इतना भी नहीं सीख पाया । इतना भी नहीं सीख पाया कि गुरु होकर सत्य में
कोई भी प्रवेश नहीं । इसलिए जो गुरु के दावेदार है कि हम गुरु है । जानना कि गुरु नहीं हो सकते हैं । गुरु दावेदार नहीं होता । दावा कर सकता है
कि फलां व्यक्ति मेरा गुरु है । गुरु दावा नहीं कर सकता है और शिष्य भी तभी तक दावा कर सकता है जब तक अभी पूरी तरह शिक्षक उसमें खिला
नहीं । नहीं तो फिर सारा जगत गुरु हो जाए । सारी दिशाएं गुरु हो जाएगी । शिष्यत्व का अर्थ है सीखने की क्षमता । गुरु को पकडने की आदत नहीं
सीखने की क्षमता एक नदी बहती है । कितने किनारों को छु ट्टी हुई, कितने पहाडों को पार करती हुई । उससे कोई पूछे कि किस घाट तुम्हारा दावा है?
नदी कहेगी, बहुत घट थे, घाटी घट थे । अब उन का नाम लेना भी मुश्किल है । अगर आप जिए है, ठीक से जाकर जिए है तो आपने सब से
सीखा है । असंभव हो गई है कि आप किसी बात से सीखे बिना बच जाए । लेकिन हम मंदिर लोग हैं इसलिए हम गुरु को भी बनाते । गुरु बनाने का
मतलब ये है कि आपको शिष्य होने की कला अभी नहीं आई । नहीं तो गुरु क्या बनाना । शिष्य हो जाना है । गुरु नहीं बनाना है । शिष्ट हो जाना है
। लेकिन हम गुरु बनाते हैं । हम गुरु इसलिए बनाते हैं ताकि दूसरों से सीखने से बच्चे हमारा डर यह है कि सबसे सीखेंगे तो डू बे एक को पकड ले
सहारा पक्का सब तरफ द्वार दरवाजे बंद कर ले । हम ऐसे लोग हैं कि हम सोचते हैं कि हम तो एक खिडकी पर खडे होकर साँस ले लेंगे और बाकी
सब खिडकियों पर सांस बंद रखेंगे । मर जाएंगे जगह चारों तरफ से दे रहा है इस से लेने में इतनी कं जूसी क्या है सब तरफ से साँस ले शिष्य हो जाये
गुरु कि छोटे और जब आप हो जाएंगे तो कदम कदम पर गुरु उपलब्ध हमें लगेगा जब मैं कहता हूँ कदम कदम गुरु उपलब्ध होने लगेगा इसका ये मतलब
नहीं है कोई एक बुड्ढा आपको या कोई एक महावीर आपको पक जाएगा और फिर आपके साथ बना रहेगा जिंदगी अनंत बुद्ध का अंतिम दिन था और
आनंद छाती पीटकर होने लगा और उसने कहा कि आपके रहते मुझे ज्ञान नहीं हुआ और अब आप जा रहे हैं तो मेरा क्या होगा? तो बुद्ध ने कहा
आनंद पागल मत बंद मुझसे पहले हजारों बुद्ध हुए मुसीबत हजारों बुद्ध होते रहेंगे और अगर तू सीखने में कु शल है तो तुझे हर कदम तो बुद्ध मिल जाएंगे
और अगर तू सीखने में कु शल नहीं तो चालीस साल से तू मेरे साथ ही था । इससे भी तूने क्या सीख लिया है? बडे मजे की बात है कि चालीस
साल तू मेरे साथ था और तू कहता है कि तुझे ज्ञान नहीं हुआ और अब जब मैं मर रहा हूँ तो रो रहा है कि आप छू ट जाएंगे । तब ज्ञान कै सा
होगा? मेरे साथ चालीस साल में नहीं हुआ । तब मेरे मरने से रोने की क्या जरूरत है? चालीस साल में नहीं हुआ, चालीस जन्मों भी नहीं होगा बुद्ध
ने आखिरी बार जवान से कहीं बडी महत्वपूर्ण है बुद्ध का शायद ये भी हो सकता है मेरे कारण तू संकीर्ण हो गए । मुझे तूने पकड लिया, तेरी सीखने
की क्षमता हो गई । तूने समझा कि गुरु तो मिल गए । अब क्या सीखने की क्षमता की जरूरत है । एक दफा हो गए शिष्य बात हो गयी । शिष्य हो
जाना कोई हो जाने वाली बात नहीं है । ये सिर्फ प्रारंभ होती है, कभी नहीं होता । तो बुद्ध ने कहा मैं मर जाऊं गा तो शायद तेरे सीखने की क्षमता
फिर उन मुक्त हो जाए । फिर तो खुल जाए और ऐसा ही हुआ । आनंद बुद्ध के मरने के बाद ही ज्ञान को उपलब्ध हो । एक मित्र ने कहा कि हाइट
यू कॉल ऍम भगवान और बडे हिम्मत बारात में है क्योंकि उन्होंने ये भी लिखा है यू री अली बोल्ड यू मस्ट रिप्लाइ महाकश्यप कु छ आप अपने को भगवान
क्यों कहते हैं? मैंने तो कभी कहा नहीं लेकिन अब आप कहते हैं तो मैं कहता हूँ कि मैं भगवान हूं और ये इसलिए कहता हूँ कि भगवान के सिवाय और
कु छ होने का उपाय ही नहीं । आप भी भगवान है । भगवान के सिवाय इस जगना और कु छ भी नहीं । तो अगर कोई दावा करता हूँ कि मैं भगवान हूँ
और आप भगवान नहीं है तब ये दावा अपराधपूर्ण । मैंने कभी कोई दावा नहीं किया । मैंने कभी कहा भी नहीं पर इससे उल्टी बात भी मैं नहीं कह
सकता हूँ कि मैं भगवान नहीं क्योंकि वो तो सरासर असत्य होगा । इतना ही कह सकता हूँ कि भगवान के सिवा या कु छ भी नहीं है और अब मैं क्या
कर सकता हूँ क्योंकि भगवान के सिवाय कु छ भी नहीं है । आप भी भगवान है इसका पता ना हो ये हो सकता है । इसका पता हो ये हो सकता है ।
जिसको पता नहीं है उसे पता करने की कोशिश करनी चाहिए । भगवान का अर्थ है अस्तित्व, शुद्धतम अस्तित्व । वो जो हम हैं, अपने मौलिक सभाओं
में उसका नाम ही भगवत्ता है । लेकिन हमारे मन में भगवान की ना मालूम क्या क्या धारणाएं उससे तकलीफ होती है । कोई सोचता है भगवान हो जिसने
दुनिया को बनाया तो स्वभाव मैंने दुनिया को नहीं बनाया इसलिए झंझट तो मुश्किल नहीं है । कोई सोचता है की अगर भगवान है मेरे पास पत्रा कहते
अगर आप भगवान है तो मैं गरीब मेरी गरीबी मिटा कर दिखाइए । अगर आप भगवान है तो मेरी आँखें आँखें ठीक करके बताई नहीं भगवान से वैसा मेरा
कोई प्रमोशन नहीं । आपकी आँखें खराब है इसके लिए आपके भीतर का ही भगवान जिम्मेवार उसमें थोडे फर्क करिए आप गरीब आपके भीतर का भगवान
ही जिम्मेवार है । उसमें कु छ फर्क करिए और किसी बाहर के भगवान की तरफ मत देखिए क्योंकि जिससे भीतर का भगवान ही नहीं दिखाई पड रहा उसे
बाहर का भगवान दिखाई नहीं पड सकता है । नहीं, मैं कोई ताबिज प्रकट करने वाला भगवान भी नहीं कि कोई चमत्कार दिखाइए ।
अगर भगवान ऐसे तो मदारियों में भी भगवान होते हैं लेकिन भगवान मदारी होने में बहुत रस लेते दिखाई नहीं पडते । भगवान से मेरा अर्थ है कि वो
जो आपकी शुद्धतम सकता है । जहाँ सब सब कचरा जहाँ सब व्यर्थ आसार अलग करके आपने अपने को देख लिया तो आप भगवान है, कोई दुनिया
बनाने की जरूरत नहीं है आपके भगवान होने के लिए? नहीं तो फिर आप भगवान कभी होना पाएंगे । पक्का समझ लेना किसी की आँखें ठीक करना जरुरी
नहीं है आपके भगवान होने के लिए? नहीं तो फिर आप भगवान कभी होना पाएँगे और या फिर कोई डॉक्टर भगवन हो जाए । भगवान होने का अर्थ ही
ये है कि वो जो हमारे भीतर छिपा स्वभाव है, जो ताव है वो जो हमारे भीतर का स्थित है उस अस्तित्व की प्रति उस अस्तित्व में प्रवेश तो ये झंझट
भी आपकी अलग कर दूँ । नहीं आपको लगता है कि मैंने क्यों अपने को भगवान कहा अभी तक कहाँ नहीं था । आज मैं आपको कह देता हूँ मैं भगवान
हूँ, उस से अडचन मिटेगी, उससे सुविधा हो जाएगी । लेकिन इसका ये मतलब आप मत समझ लेना कि आप कु छ और आप भी वही है । देर अबेर
होगी आप को पहचानने में लेकिन चेष्ठा करे तो पहचान दे सकते हैं । भगवान होना कोई दावा नहीं है । भगवान होना तुम्हारा साहस, स्वभाव प्रश्न तो
पुनरुक्ति नहीं, दो बातें अंत में प्रश्न पूछ लेना कठिन नहीं है । जवाब देना भी कठिन नहीं है । जो प्रश्न पूछा जा सकता है उसका जवाब भी दिया जा
सकता है । लेकिन सच में ऐसे प्रश्न पूछना जो आपके कम पढे बहुत कठिन है और वैसे प्रश्नों का जवाब देना भी आसान नहीं है । लेकिन आप वैसे
प्रश्न पूछते ही नहीं । हाँ ऐसा लगता है कि ऐसा कोई प्रश्न नहीं है आपके पास जो आपकी जिंदगी में काम आने वाला आपके प्रश्न व्यर्थ के प्रश्न मालूम
पर थे । ऐसा लगता है की बुद्धि में खुजली होती है । उस से आपके प्रश्न, कोई आत्मा में कोई प्यास कि कोई पुकार की कोई खोज ऐसा नहीं ।
खुजली थोडा खुजा लिया । फिर खुजाने से खून निकल आया तो जुम्मा मेरा नहीं फिर पीछे हो तो जुम्मा मेरा नहीं अपनी तरफ हमारा ध्यान नहीं है ।
शायद हमें ख्याल ही नहीं है कि हम कु छ और भी हो सकते हैं । जो हमें जहाँ खडे हैं वहाँ से कहीं और पहुँचना भी हो सकता है । हमारा जीवन भी
यात्रा बन सकता है । उसको हमें कोई ख्याल नहीं । हम पूछे चले जाते हैं कु तूहल बस बिना इसकी किए कि अगर इसका उत्तर मिल जाएगा तो फिर
क्या करना है? एक मित्र ने पूछ लिया, आप अपने को भगवान क्यों करवाते हैं? क्या कहते हैं कोई भी उत्तर हो इससे उस मित्र को क्या होगा? कोई
भी उत्तर हो, मैं कह दूँ मैं भगवान हूं । मैं कह दूँ मैं भगवान इस उस मित्र को क्या होगा? मेरे संबंध में दिया गया कोई भी वक्तव्य उस मित्र को क्या
लाने वाला है? खुजली थोडी खरोच लग जाएगी । तकलीफ होगी जिसमें तूने पूछा है वो परेशान घर लौटे अगर जवाब ना दूँ तो वो समझेगा की मैं
हिम्मतवर नहीं हूँ । जवाब दूँ तो उसकी खुजली में खून निकलेगा । वो भी मुझे पता है । प्रश्न से उसे कोई हाल नहीं होने वाला है । कोई राहत नहीं
मिलने वाली है । फिर इसलिए पूछा है हमें ख्याल ही नहीं हम क्यों पूछ रहे हैं । इसलिए हम बहुत से प्रश्न पूछते हैं, बहुत से उत्तर इकट्ठे कर लेते हैं
और हम वैसे के वैसे ही रह जाते हैं जैसे थे आगे के लिए आपसे कहता हूँ थोडा सोचकर पूछे और सोचने के लिए एक कसौटी रख ले कि इसका जो
उत्तर मिलेगा उससे मैं क्या कर सकता हूँ । एक गांव में था तो मेरे पास आएकॅानिक हिंदू था दोनों उन्होंने दोनों ने मुझसे कहा कि हमारा पचास साल
का विवाद है । दोनों साथ पढे दोनों बडे साथ यह हिंदू है, मैं हूँ मैं जैन हूँ । मैं मानता हूँ कि किसी ईश्वर ने जगत को नहीं बनाया । यह हिंदू है ।
ये मानता है कि जगत को ईश्वर ने बनाया । इसमें कु छ निर्णय नहीं हो पाता । विवाद होता रहता है । अब तक कोई हल नहीं हुआ । आप आए आप
हाल कर दे । मैंने उनसे कहा कि अगर मैं हाल भी कर दूँ तो फिर तुम क्या करोगे अगर ये पक्का हो जायेगी । जगत ईश्वर ने बनाया फिर तुम्हारे क्या
इरादे? अगर ये पक्का हो जाए की जगह तीस पर नहीं बनाया तो तुम्हारे क्या इरादा है? उन्होंने कहा, इरादे का क्या सवाल नहीं, कु छ करना नहीं है
मगर तो हो जाए जिससे कु छ करना नहीं है । उसको ते किस लिए करना है । ध्यान रहे और जिस चीज से हमें कु छ करना नहीं है हम उसे कभी ते
ना कर पाएंगे । क्योंकि तय ही हम तब करते हैं जब हमें कु छ करना होता है । तय करने का मतलब ये होता है की जिंदगी दांव पर है । इसलिए तय
करके कु छ करना है । जिस चीज के तय होने से कु छ करना ही नहीं वो कभी तय नहीं हो पाती । इसलिए लोग जिंदगी भर विवाद करते रहते हैं और
जहाँ झूलन होने पाया था, कब इंचभर दूर नहीं पाती, वही पाती है । मत पूछिए ऐसे सवालों का कोई प्रयोजन नहीं । ऐसा सवाल पूछे जो आपकी
जिंदगी को बदलता हो । जिसका उत्तर आपको कु छ करने में नहीं जाए । जो सवाल आपके लिए क्रांति बने, जो सवाल रुपांतरण का इशारा बने आज
इतना ही रुके , पांच मिनट कीर्तन करे और फिर जाएंगे ।

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