You are on page 1of 6

transcript

मनुष्य का और आया हूँ स्त्री और पुरुष के चित्र को समझ लेना । साधना की अनिवार्य भूमिका जिससे मैंने कल कहा स्त्री है अनाक्रमण आमंत्रण थे,
आक्रमण नहीं पुरुष है आक्रमक हमलावर इसलिए पुरुष का चित्र सादा यात्रा पर है । दूसरे की सक्रिय खोज और आक्रमक है चित्र इसलिए पुरुष चाहता है
कि जाना जाए पहचान । ऍम लोग जाने प्रतिष्ठा हो हो, यह की आकांक्षा आक्रमण का है और जिस दिन यह की आकांक्षा नहीं होती किसी उस दिन ही
आक्रमण शून्य हो जाता है । आक्रमण के रूप अनेक हो सकते हैं । कोई तलवार लेकर आक्रमण पर निकलता है । दूसरे को जीतने । कोई यही काम
त्याग से भी कर सकते हैं । कोई यही काम ज्ञान से भी कर सकते हैं । कोई चित्र बना सकता है, कोई संगीत सीख सकता है, कोई तलवार चला
सकता है, लेकिन आकांक्षा एक है कि दूसरे मुझे जाने । मैं जानना चाहूँगा पैसा ना जाऊँ , सम्मानित हो इसका अर्थ हुआ पुरुष का कें द्र है अहंकार ।
अहंकार अगर जाना ना जाए तो निर्मित ही नहीं होता । जितने ज्यादा लोग मुझे जाने उतना अहंकार निर्मित होता है । जितने ज्यादा लोगों तक मेरा
प्रभाव, जितनी बडी सीमा उस प्रभाव की, उतना मेरा अहंकार होता है । स्त्री है अनाक्रमण अर्थात समर्पण थोडा ठीक से समझ लें । अगर आक्रमण
चाहता है कि जाना जाऊँ तो समर्पण चाहेगा की जाना ना जाऊँ , पहचान होना जाऊँ करोगे तो भी ये पता ना चले की मैंने किया समर्पण कितना चाहता
है । समर्पण अज्ञात रहना चाहता है । समर्पण अनाम की खोज करता है । समर्पण की गहरी से गहरी आकांशा आक्रमण के विपरीत है । अगर समर्पण भी
जाना जाना चाहे तो यह है । खबर क्या है कि लोग जाने की मैंने समर्पण किया तो जानना कि समर्पण के वल सब ठीक है । भीतर आक्रमण, दूसरे के
चित्र पर मेरा प्रभाव हो ये हिंसा है आक्रमण किसी को मेरा पता भी ना हो । ऐसे गिने का जो ढंग है वही समर्पण । स्त्री का प्रेम अगर वस्तुतः स्त्री का
प्रेम है तो अज्ञात होगा । इसलिए कोई स्त्री पहल नहीं कर पाती । अगर उसका किसी से प्रेम भी हो तो यह नहीं कह सकती कि मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ
। प्रतीक्षा करेगी कि पुरुष ही उसे किसी दिन कहेगा कि मैं तुझे प्रेम करता हूँ । पहले इनिशेटिव आक्रमण का ही हिस्सा है । स्त्री घोषणा नहीं करेगी ।
उसके सारे अस्तित्व घोषणा के स्वर सुनाई पडेंगे । उसकी आँखों से उसके वोटों से उसके होने से उसकी माँ से होगी । लेकिन वो घोषणा अब प्रकट
होगी उसे वही समझ पाएगा जो उतने सुख में उतने प्रेम में लिखा हुआ है अन्यथा वो दिखाई भी नहीं पडेगी । ये स्त्री चित्र का आयाम ख्याल में रख ले
तो फिर इस सूत्र में प्रवेश हो जाएगा जो सम्मान और गौरव से परिचित है लेकिन अज्ञात की तरह रहता है । वो संसार के लिए घाटी बन जाता है और
संसार की घाटी होकर उसको वह सनातन शक्ति प्राप्त होती है जो स्वयं में पर्याप्त लाल की दृष्टि बडी उल्टी है । आम तौर से हम समझते हैं कि शक्ति
होती है, आक्रमण में लाल से कहता है शक्ति होती है समर्पण में और आक्रमण की शक्ति को तो थोडा भी जा सकता है । वो काटा भी जा सकता है
क्योंकि आक्रमण से बडा भी आक्रमण हो सकता है लेकिन समर्पण से बडा कोई समर्पण नहीं । समर्पण का अर्थ ही आखिरी होता है, उससे बडा कु छ
होता है । तो आप ऐसा नहीं कह सकते कि यह समर्पण थोडा छोटा और ये समर्पण थोडा बडा समर्पण का पूरा है । जैसे कि आप ये नहीं कह सकते
कि यह वर्तुल अधूरा, ये सर्क ल अधूरा और ये सर्क ल पूरा सर्क ल का अर्थ ही होता है तो वो होगा तो पूरा होगा नहीं तो नहीं होगा । कोई अधूरा वर्तुल
नहीं होता । नहीं तो वर्तुल ही नहीं, वर्तन पूरा होगा । ऐसे ही कोई प्रेम अधूरा नहीं होता । या तो होता है या नहीं होता । कम ज्यादा भी नहीं होता
या तो होता है या नहीं होता है । कोई मात्राएं नहीं होती । समर्पण पूरा है । आप ये नहीं कह सकते किसी से की मैं आधा समर्पण करता हूँ । आधा
समर्पण का क्या होगा? आधे समर्पण का कोई अर्थ ही नहीं होता । असल में आप समझ नहीं पा रहे हैं । आप समर्पण कर ही नहीं रहे । इसलिए आप
कहते हैं आधा समर्पण आप अपने को पीछे बचा ले रहे हैं । वो जो बचा हुआ है वही तो समर्पण में बाधा है । समर्पण का अर्थ है पूरा समर्पण होता ही
पूरा है । इसलिए आक्रमण से बडा हो सकता है । आक्रमण पराजित किया जा सकता है । समर्पण से बडा कोई समर्पण नहीं होता इसलिए समर्पण की
कोई पराजय नहीं । लेकिन हम सोचते हैं आक्रमण में है । शक्ति पुरुष का कितना ऐसा नहीं सोचता है । कहता है समर्पण में रह सकते हैं । कहने के
बहुत कारण पहला तो ये कि समर्पण से बडा कोई समर्पण नहीं । दूसरा शक्ति अगर वस्तुत का हो तो आक्रमक नहीं हो सकती । कमजोर ही आक्रमण
करता है । असल में कमजोरी ही शक्ति पे भरोसा रखती है । शक्ति शाली आक्रमण नहीं करता है । महावीर ने कहा है शक्तिशाली हो जाता कमजोर कभी
अहिंसक नहीं सकता । कमजोर हो तो सादा ही आक्रमण पर भरोसा रखना । फॅ मिली जोकि आक्रमण के विज्ञान में गहरा गया है वो कहता है कि आक्रमण
वस्तुत सुरक्षा का उपाय वो ठीक करना है । वो कहता है कि अगर अपनी सुरक्षा चाहिए हो तो इसके पहले भी कोई आक्रमण करे, तुम आक्रमण कर देना
। इसकी प्रतीक्षा मत करना कि जब कोई आक्रमण करेगा तब हम सुरक्षा कर लेंगे क्योंकि तब तुम पीछे पड गए तो एक कदम पीछे पड गए और आक्रमण
करने वाले की संभावना बढ जाएगी । जितने तो कहता है सुरक्षा का एकमात्र उपाय है आक्रमण । लेकिन सुरक्षा कौन चाहता है? कमजोर सुरक्षा चाहता है
असली कमजोर आक्रमक होता है अगर हम अपनी जिंदगी में भी देखें अगर आप अपने भीतर भी देखें तो जिन शब्दों में आप कमजोर होते उन क्षणों में
आप क्रोधी होते हैं जिन चलो आप कमजोर नहीं होते । आप रोती नहीं । जिन थानों में आप भयभीत होते हैं उन स्थानों में भय प्रकट ना हो जाए
इसलिए आप बडी अकर दिखलाने की कोशिश करते हैं वो अकर आपकी व्यवस्था है कि आपका बेहतर घटना हो जाए । जो भी नहीं होता वो खडा हुआ
भी नहीं होता । जो कमजोर नहीं होता वो क्रोध ही भी नहीं होता । शक्तिशाली मन कभी भी क्रोधी नहीं देखे गए । जितना कमजोर आदमी होगा उतना
रोती होता है । लोग आम तौर से कहते है फला आदमी कमजोर है क्योंकि ग्रोथ करता है । उल्टी बात कह रहे हैं । क्रोध से कोई कमजोर नहीं होता ।
कमजोर की वजह ही लोग रोती हो, लेकिन स्वभाव का परिणाम होगा । जब क्रोध करेगा तो और कमजोर होता जाए । क्योंकि सकती हो रही है और
जितना कमजोर होता जायेगा उतना ज्यादा क्रोध करता चला जाए । ग्रोथ जो है वो प्याली में आ गया । तूफान बिल्कु ल नहीं । जितनी थोडी बहुत है,
उसको दिखाए बिना कोई उपाय नहीं । उसे दिखा के कोई रास्ता बन जाए, कोई भयभीत हो जाए और हमारी शक्ति का वास्तविक कसौटी का मौका ना
क्रोध । उसका आयोजन लाल से घटा है, समर्पण है । शक्ति कहता है शक्ति जब होती है तो दूसरे पर आक्रमण करके उसके सामने सिद्ध नहीं करना
पडता हैं । शक्ति स्वयं सिद्ध है । दूसरे का दूसरे को सिद्ध करने की आकांक्षा भी अपने में अविश्वास है । आम तौर से ये होता है । आप किसी बात में
विचार किसी धारणा श्रद्धा रखते हैं । आप की कोई मान्यता है अगर कोई व्यक्ति उस मान्यता का खानदान करें, आप क्रोधित हो जाता है । वो क्रोध
बताता है कि आपको डर है कि कहीं मान्यता का खानदान वस्तुतः आपके मन की जो धारणा उसे तोडना उस दर से क्रोध आता है । अगर ये धारणा
आपका अनुभव है तो क्रोध नहीं आएगा क्योंकि आपको भरोसा ही है कै से तोडने का कोई उपाय नहीं है आपका । जब भी आप अपने किसी विचार के
लिए दूसरे को ताकत लगा के समझाने लगते हैं, आप ध्यान रखना आप दूसरे को नहीं समझा रहे हैं । आप दूसरे के बहाने अपने को ही समझा रहे ।
आपको भय डर है । आपको खुद ही भरोसा नहीं कि जो आप मानते हैं वो ठीक है । इसलिए तथाकथित विश्वासी लोग दूसरे की बात सुनने को राजी ही
नहीं होता । उनके गुरु ने उनको समझाया है कि कान बंद कर ले । अगर कोई विपरीत बात करता हूँ क्योंकि खुद भी भरोसा नहीं विपरीत बात भरोसे
को उखाड दे सकती है । आप दूसरे को कन्विंस करने की, दूसरे को राज्य करने की जितनी तीव्रता से चेष्ठा करते उतनी ही तीव्रता से खबर देते हैं ।
आपको अपने ऊपर भरोसा नहीं जिसे आपने तो भरोसा है वो वो दूसरे को प्रभावित करने के लिए वो सुख नहीं होगा और जिसको आपने भरोसा है उससे
दूसरे प्रभावित होते हैं, प्रभावित करना नहीं पडता, वे प्रभावित होते हैं और जिसको आपने भरोसा नहीं है उससे बहुत प्रभावित करने की चेष्टा करनी
पडती है । फिर भी कोई उससे प्रभावित नहीं होता । आदमी श्रद्धा तुम बक है अपना अनुभव अगर गहरा और फू ल है तो परम शक्तिशाली, दूसरे उसकी
तरफ खिंचे चले आए । दूसरे को आकर्षित करने का प्रयास । भीतर कमजोरी का लक्ष्य लाख से कहता है समर्पण सकती है आक्रमण कमजोरी एक और
कारण से भी कहता है । समर्पण वही कर सकता है जिसे अपने पर भरोसा है । आक्रमण तो कोई भी कर सकता है । सच तो यह है आक्रमण वही
करता है जैसे आपने पर भरोसा नहीं, समर्पण वही कर सकता है जिसे अपने ऊपर भरोसा है । पूरा अपने को दे देने का सवाल कौन अपने को पूरा दे
सकता है, वही अपने को पूरा दे सकता है जिसका आपने पर पूरा भरोसा है । मेरे पास लोग आते हैं । वो कहते हैं हम समर्पण करना चाहते हैं लेकिन
हमें अपने कोई भरोसा ही नहीं है । तब समर्पण कै से होगा जिससे अपने पे भरोसा नहीं है । उसे ये भी तो भरोसा नहीं है कि जो समर्पण उसने इस
क्षण में क्या है वो दूसरे चरण में भी टिकिट उसे कल का भी भरोसा नहीं है । अभी भी उसे पक्का नहीं है कि वो सच में करना चाहता है कि नहीं
करना चाहता । समर्पण की घटना इस बात की खबर है कि व्यक्ति को अपने पर पूरी आस्था है । वो अपने को पूरा दे सकता है । पूरे का मालिक
आक्रमण तो अधूरे से भी हो जाता है । आपको पूरा होने की जरूरत नहीं है । आक्रमण और अक्सर आकरम में आप पूरे नहीं होते । जब आप क्रोध
कर रहे होते तब भी आपके भीतर कोई हिस्सा कह रहा होता है । क्या कर रहे हो? नहीं किए होते तो अच्छा था । ग्रोथ करते ही आप पछताते, वो
हिस्सा जो क्रोध में साँस नहीं था वही पछताता है कि क्या क्या नहीं करना था । आक्रमण में कभी भी आप पूरे नहीं होते । बडे मजे की बात है कि
बडे से बडा योद्धा भी होता है । बडे से बडा योद्धा की । इंग्लैंड में कहा जाता है कि लाॅ कभी जीवन में बह नहीं जाना । बडा सेनापति ठाणे नेपोलियन
को हराया, कभी भी नहीं जाना । लेकिन एक मनुष्य कितने नितिन की भी मनोदशा का विश्लेषण करते हुए बडी कीमती बात लिखी है । उसने लिखा है
कि ये असंभव है फॅ स क्योंकि बिना रहके तो आक्रमक आदमी हो ही नहीं सकता । जिसको भयभीत नहीं किया जा सकता उसको क्रोधित भी नहीं किया
जा सकता भी नहीं किया जा सकता । उसको लडने के लिए राज्य भी नहीं किया जा सकता । जो भयभीत नहीं होता वो दूसरे को भी भयभीत करने
नहीं जायेगा । असल में अपने भय से बचने के लिए हम दूसरे को वैदिक करते हैं । जब दूसरा वैदिक हो जाता है तो हमें लगता है हमारा समाप्त हुआ
अगर दूसरा भयभीत ना हो तो हमारा भय बढता है । उस मनस्विद ने ये भी लिखा है कि अगर ये बात सच है कि नेल्सन ने कभी बाहर नहीं जाना तो
नेल्सन की प्रति हमारी जो धारणा है उसके एक महान योद्धा होने की वो भी समाप्त हो जाती है क्योंकि जिसने भय जाना ही नहीं उसके महान योद्धा होने
का क्या है । महान योद्धा होने का तो यही अर्थ है कि हमारे जैसा ही वैदिक आदमी नेल्सन भी था और युद्ध के मैदान पर ऐसे खडा रहा जैसे कि
बिलकु ल बहन हो । तभी तो कोई अर्थ है एक आदमी सडक पर खडा है और बस आ जाए और वो डरे नहीं खडा रहे । उसे बहुत ही ना हो और बस
के नीचे कु चल के मर जाए तो हम उसको कोई बहादुर आदमी नहीं कहेंगे । सिर्फ मूल कहेंगे । बहादुरी तो भय के अनुपात नहीं होती है । अगर ही नहीं
तो बहादुरी समाप्त हो गई । तब तो आदमी मूड हो जाए और यह परमज्ञानी हो जाए । जहाँ अभय लेकिन जो अभय को उपलब्ध हुआ है, कभी कोई
महावीर, कोई बुद्ध, वो युद्ध पर युद्ध में उसकी उत्सुकता नहीं रह गई । युद्ध का मतलब ये है कि दूसरे को वैदिक करने
की और जो खुद यह नहीं जानता उससे दूसरे को वैदिक करने में कोई रस नहीं रह जाता । दूसरे को भयभीत करना अपने वैसे ही बचने की व्यवस्था
जितना ज्यादा होता है । अक्सर आदमी उतना बाहर बहादुरी दिखाता है । वो बहादुरी भीतर के भय को संतुलित करती है । वो संतुलित करती है तो
आप रहे वो उसका जो है बख्तर उसकी सुरक्षा भीतर बह है । इसलिए बाहर सुरक्षा है । भीतर बहन नहीं है तो बहादुरी दिखाने का कोई कारण भी नहीं
। लाख से कहता है समर्पण है सकती क्योंकि दिखाने का वहाँ कोई कोई इरादा नहीं आक्रमण है कमजोरी क्योंकि आक्रमण दिखावे पर निर्भर है जो सम्मान
और गौरव से परिचित ध्यान रहे ये बात जानना जरुरी है । एक छोटा बच्चा है उसके सम्मान और गौरव का कोई अनुभव नहीं । अगर अभी वो अज्ञात में
रहा है तो इसमें कु छ गौरव नहीं । इसमें कु छ गुण नहीं । सम्मान और गौरव से जो परिस्थिति वो अज्ञात में रहे तो बोले तो गौरव तो गरिमा अनुभवों के
बिना जो भी घटे वो अज्ञान में घटता है अनुभव के साथ जो बातें वो ज्ञान में बैठ गया । सम्मान और गौरव से जो वर्क इत और अज्ञात की तरह रहता
है जैसे पता है की गौरव का रस क्या है जैसे पता है गौरव का अनुभव किया है जिससे पता है कि लोग जाने यह हो प्रतिष्ठा हो, सम्मान हो तो प्रति
क्या है उसका एहसास किया है इसका जिससे पता है तो अज्ञात में रहे इसे हम समझ ले दो । एक तो जो बिना अनुभव के अज्ञात में रहे उसका
अज्ञात अज्ञात नहीं । उसे अभी ज्ञात होने का पता ही नहीं इसलिए अज्ञात होने का कोई पता नहीं । हमारे अनुभव द्वंद के जिसने सुख में जाना हो उसे
दुख का कोई अनुभव नहीं हो सकता । इसलिए बडी मजे की घटना घटती है । अक्सर जिनमें सुख जाना है ये सोचते हैं कि दूसरे लोग जिनको वैसा
सुख नहीं मिल रहा है, बहुत दुःखी, वो भ्रान्ति, वो बिल्कु ल भ्रांति । आप अगर एक महल में रह रहे हैं तो झोपडे में रहने वाला आदमी बहुत दुख पा
रहा है । रहकर ऐसा आपको लगेगा आपका लगना ठीक है । अगर आपको झोपडे में रहना तो आपको दुख होगा ये भी । लेकिन झोपडे में जो रह रहा है
जो महल में नहीं रहा है वो दुख पा रहा है महल में ना रहने का । इस भ्रांति में आप मत पढो, वो नहीं पा सकता है । दुख सुख के अनुभव के
बाद ही पाया जा सकता है । जिस चीज का सुख अनुभव हो जाता है फिर उसका अभाव दुःख देता है । इसलिए दुनिया में दुख बढता जा रहा है
क्योंकि चीजें और उनके अनुभव बढते जा रहे हैं । आज से दस साल पहले दुनिया में दुख कम था । ये मत सोचना कि आप लोग सुखी थे क्योंकि
अगर लोग सुखी होते तो दुख होता है । दो काम था क्यों कि काम था । दुख अनुभव से ही दुख बनता है । अब कोई दस हजार साल पहले किसी
आदमी को कार के न होने का दुख नहीं हो सकता था । यहाँ होता था आज होगा कार के ना होने का दुख आज एक वास्तविकता हैं क्योंकि कारके
होने का सुख एक वास्तविकता हैं । दस हजार साल पहले कहाँ के ना होने के दुःख का कोई उपाय ही नहीं क्योंकि कहाँ होने के सुख का कोई उपाय
नहीं । दुःख पहले आता है । दुख पीछे दुख छाया है । हंबर प्रत्येक ॅ आदर, गौरव कहाँ हो तो ही अज्ञात क्या अनुभव में उतरा जा सकता । अनेक
लोग अनुज जीते इससे आप ये मत सोचना की वो परम स्थिति को उपलब्ध है जिसकी लव से बात करता हूँ । अनेक लोग नाम जीते लेकिन ध्यान रहे
उनका अनाम होना आर्थक नहीं । जब तक उन्हें नाम का अनुभव नाम के अनुभव के बाद जब बिना नाम के जीने को तैयार है, उस ने बंद को जाना
है और उसने द्वंद को काटा । तुम जब कट जाता है तो निर्बंध परम आनंद को उपलब्ध होता है । लेकिन बंदो को काटने के लिए द्वंद से गुजरना जरूरी
है । इसलिए लाओ से संसार के विरोध में नहीं और नाव से नाम के भी विरोध में नहीं, सम्मान के भी विरोध में नहीं । वो इतना ही कह रहा है की
सम्मान के अनुभव के साथ अनुभव का अनुभव अज्ञात अनुभव भी जुड जाए तो तुम संसार के पार जैसे मुख्य कहे मुक्ति कहे उसमें प्रवेश कर जाते हैं ।
दूसरी बात भी ध्यान रखने जैसी है और वो ये कि जिसने ठीक से सम्मान का अनुभव जाना है वो निश्चित ही अज्ञात के अनुभव के लिए उसको हो जाए
और जिसने सम्मान का अनुभव नहीं जाना वो कितना ही अज्ञात के अनुभव की चेष्टा करें उस की चेष्टा व्यस्त जाएगा । उसका कारण उसका कारण बहुत
से लोग उन महलों का त्याग कर देते हैं जिनमें वो कभी रहेगी नहीं । बहुत से लोग उन पदों को लात मार देते हैं जिन पर वो कभी पहुँचेगी नहीं ।
आप लात कै से मारियेगा उसकी हासन पर, जिस पर आप कभी बैठे नहीं । आप कु छ और नहीं कर रहे है । अंगूर खट्टे आपकी पहुँच के बाहर आप
अपने को समझा रहे हैं, शांत बना दे रहे हैं और तब ऐसा आदमी एक संत्वना को भी नाम बनाने का आधार बनाएगा । ये बडे मजे की बात है । ऐसा
आदमी जो कहेगा कि मुझे सम्मान की कोई जरूरत नहीं । नाम की कोई जरूरत नहीं । पद की कोई जरूरत नहीं है । वो पद की सम्मान की, प्रतिष्ठा
की जरूरत नहीं, इसको भी प्रतिष्ठा का कारण बनाया । इसको भी जिनको हम त्यागी कहते हैं वो क्या कर रहे हैं । वो त्याग को भी धान की तरह
उपयोग कर रहे हैं । त्याग भी उनके लिए प्रतिष्ठा का कारण । अब ये बडे मजे की बात है कि त्याग का मतलब ये होता है की प्रतिष्ठा छोड दी लेकिन
अगर त्याग की भी प्रतिष्ठा बनाये हो तो सब हो गए । लेकिन हालत ऐसी मैं साधू के आश्रम में गया । वो सब कु छ छोड के चले गए । सब कु छ का
मतलब जो उनके पास बहुत ज्यादा नहीं । मगर जो भी था सब कु छ छोड के चले गए । उनके आश्रम में दीवारों पर मैंने जो वचन लिखे थे थे वो बडे
जिस कमरे में बैठे थे उसके दीवान पे लिखा हुआ था त्याग रिश्ता क्योंकि सम्राट त्यागी के चरणों में सिर झुका । मैंने उनको पूछा कि एक सूत्र का क्या
मतलब हुआ? त्याग की श्रेष्ठता भी इसीलिए हुई कि सम्राट भी सिर झुकाता । इसका अर्थवा की त्याग करने योग है क्योंकि सम्राट को भी जो प्रतिष्ठा नहीं
मिलती वो त्यागी को मिलती है । अगर त्याग प्रतीक्षा बन जाए तो त्याग नहीं रहा । त्याग का मतलब ही एक होता है की प्रतिष्ठा का अब कोई अर्थ नहीं
है । लेकिन आप त्यागी को देखो वो प्रतिष्ठा में इतना रख लेता है जितना भोगी नहीं । लेता । त्यागी का सारा काम चौबीस घंटे एक है की प्रतिष्ठा बोगी
कभी कभी प्रतिष्ठा में रख लेता और भी काम है उसे त्यागी को । दूसरा काम ही नहीं उसको सुबह से शाम तक एक ही काम प्रतिष्ठा और अगर वो
त्याग भी करता है इस प्रतिष्ठा के लिए तो त्याग व्यर्थ हो गए । असल बात ये है कि अगर सम्मान का अनुभव ना हो तो सम्मान की पेडा का भी
अनुभव नहीं होता । अगर सम्मान का अनुभव ना हो तो सम्मान की व्यर्थता का भी अनुभव नहीं होता । अगर सम्मान का अनुभव ना हो तो सम्मान की
मुंडा का भी अनुभव नहीं होता है । पूरे अनुभव के बाद जो व्यक्ति अज्ञात में डू ब जाता है वो फिर अज्ञात में डू बने को सम्मान का कारण नहीं बनाता है
। ये अज्ञात अब सम्मान से विपरीत आया । बहुत हम अपने को धोखा दे सकते हैं । ऐसा समझे कि आपको धन का अनुभव ना हो और आप त्यागी हो
जाए तो पे अच्छे तन मन धन की आकांक्षा काम करती रहेगी, बिलकु ल काम करती रहेगी । उसमें कोई भेद नहीं पडेगा और वो नए रास्ते निकालेगी और
नए सिक्के करेगी । बेसिक के बडे धोखे के होंगे । संसार के सिक्के उतने धोखे के नहीं, सीधे संसारी बोलो की है, लेकिन संसार के बिना परिपक्क अनुभव
के सन्यासी हो जाना । बडे उपद्रवों की बात क्योंकि तब आदमी विकृ त मार्गोसे संसारी ही होता है । सिर्फ मार्ग बदल गया होते, ज्यादा धोखे के और
ज्यादा चालाकी के हो गए होते हैं, लेकिन संसार से कोई छु टकारा नहीं । अगर आपको धन का अनुभव नहीं है तो आप निर्धन होने का मजा नहीं ले
सकते । सिर्फ दुख पा सकते, निर्धन होने का या निर्धन के नाम पर प्रतिष्ठा बना के सुख पा सकते हैं । लेकिन तब आप निर्धनता का उपयोग धन की
तरह कर रहे हैं तो कु छ लोग धन का उपयोग कर रहे हैं । प्रतिष्ठा के लिए आप निर्धनता का उपयोग कर रहे प्रतिष्ठा के लिए आपके मार्ग अलग हो गए
। लेकिन आपका लक्ष्य धन के अनुभव के बाद जब कोई निर्धन होता है तो इस निर्धनता का कोई भी उपयोग नहीं करते । ये निर्धन था, सिर्फ उसका
आंतरिक अनुभव होती है बाहर के जगत से । इसके कारण वो कोई प्रतिष्ठा इकट्ठे नहीं करता । ये उसके लिए फिर कभी धन नहीं बनती, क्योंकि धन
उसके लिए व्यर्थ हो गया । इसलिए से कहता है सम्मान और गौरव से जो परिचित है, लेकिन अज्ञात की तरह रहता है । सम्मान और गौरव से परिचित
होना पूरा नहीं । सम्मान और गौरव में यात्रा करना भी बुरा नहीं है लेकिन वो मंजिल नहीं है ये ध्यान रखना चाहिए और उस दिन की उस की प्रतीक्षा
करनी जरूरी है जिस दिन वो घर पहुँचा है । इसलिए मैं आपसे कहता हूँ कि धान की यात्रा बुरी नहीं है लेकिन उस दिन की प्रतीक्षा करनी, प्रार्थना,
करनी और साधना भी साथ करनी है । जिस दिन धन व्यर्थ हो जाएगा छोड कर भाग गया । ऐसा आवश्यक नहीं, व्यर्थ हो जाए वो आपका आंतरिक
अनुभव बन जाए । हम उल्टा कर रहे हैं । मैं घर में ठहरा हुआ था जिनके घर ठहरा था उनका लडका थोडा उद्दंड था जैसे कि लडके होते हैं ।
अविनीत तो बाप को अच्छा मौका मिला कि मेरे सामने वो उसको लताडे सताएं अकसर अक्सर बाप दूसरों के सामने लडकों को सताने में रख ले तो मेरे
सामने उनके पुत्र को हाजिर किया गया । पिता बोलेंगे ये सुपुत्र मतलब था कु पुत्र विनय बिल्कु ल नहीं । फिर उन्होंने उपदेश दिया । पत्र को की विनय वान
को ही सम्मान मिलता है । तो मैंने उनको पूछा आप क्या कह रहे हैं? आप इस लडके को पाखंडी बनाने की कोशिश कर रहे हैं । क्या कर रहे हैं
आप कह रहे हैं विनय वान को सम्मान मिलता है । आप रस जग रहे हैं सम्मान में और विनय उपकरण बना रहे हैं । सम्मान आप इसको ॅ पाखंडी
बना रहे हैं ये होगा और प्रतीक्षा करेगा । सम्मान मिले ये दिखायेगा कि मैं विनम्र हूँ और आशा करेगा लोग मेरे पैर छू ये कहेगा नहीं नहीं मेरे पैर मच्छी
और इसकी पूरी आत्मा से लास्ट तक देगी की जल्दी छु ट्टी आप इसको क्या सिखा रहे? उन्होंने कहा कि आप क्या कह रहे हैं इसके सामने ये वैसे उदल
। मैंने कहा इसकी उद्दंड तक फिर थी साहब आप जिस विनय की बात कर रहे हैं वो ज्यादा चालाक की और की बात उद्दंड है तो उद्दंड रहने दे ।
उद्दंड का दुःख मिलेगा । सहायता करे और उद्दंड हो जायेगा कि अनुभव से गुजर जाए और दुख उठाने दे उद्दंड का क्योंकि दुनिया में कोई किसी को
अनुभव नहीं दे सकता है, शब्द दे सकता है, अनुभव नहीं दे सकता है । इसको उद्यन होने का दुख उठाने दे । ये सोचता है कि उदयन होने में सुख
है । इसको सुख उठाने दे और आप सोचते है उद्यम होने में दुख पाएगा दुःख उठाने देना । इसके अनुभव से जिस दिन इसको दिखाई पड जाए की
उद्दंडता मूलता है उस दिन जो विनम्रता आएगी वो आपकी विनम्रता नहीं होगी कि सम्मान के लिए और मैं समझता हूँ कि आपने उत्पन्न होने का दुख नहीं
उठाया । इसलिए सम्मान की इच्छा पीछा कर रही है । और तब विनम्र होने में भी सम्मान की आकांक्षा और तब त्याग में भी सम्मान की आकांक्षा,
सम्मान की आकांक्षा भोग है तो त्याग में सम्मान की आकांक्षा क्या होगी? तो फिर निर्धन होने में भी धन ही कमाया जा रहा है । आदमी ऐसा उपद्रव
अपने साथ कर सकता है । उसी का नाम पाखंड हम हमारे सारे जीवन पापा से भर गए भर गए हैं । इसलिए कि लक्ष्य कु छ और और साधन विपरीत
अच्छा यही है । मेरा अहंकार भरे और आवरण ऐसा है कि मैं तो निरहंकारी अगर कोई कह दे कि आप से भी बडा निरहंकारी कोई है तो दुख पहुँचता है
। निरहंकारी को इस बात से कै से दुख पहुँचेगा तो उससे बडा भी कोई निरहंकारी अहंकारी को पहुँचेगा । अगर मेरे पास कोई आया और मैं हूँ बिल्कु ल
निरहंकारी और वो कहे कि आप क्या नहीं रहेगा? हमारे पडोस में एक आदमी रहता है जो आप से भी ज्यादा निरहंकार तो मुझे चोट पहुँचा क्यों? हाँ मैं
अगर अहंकारी हूँ और उससे ज्यादा कोई अहंकारी में चोट पहुँचनी चाहिए । मेरे अहंकारी को भी चोट पहुँचती है । उस से बडा कोई नहीं रख त्यागी से
कहिए आपका त्याग क्या आपसे बडा त्यागी देखिए चेहरे पर काली त्यागी
को भी इसमें दुख होता है तो फिर कहीं धोखा हो रहा है । निरहंकारी तो आनंदित होगा की बडी अच्छी बात है । मुझ से बडा कोई निरहंकारी तो
बहुत ही आनंद की बात त्यागी को होगी । मुझ से बडा कोई त्यागी तो मुँह की बात है कि दुनिया में और बडा त्याग भी है लेकिन त्यागी भी दुखी होगा
। ग्यानी भी दुखी होता है उससे कहोगे आपसे बडा ज्ञानी कोई ज्ञान होता अज्ञानी दुखी होता है । मम्मी तो ज्ञानी दुखी होता है तो फिर अज्ञानी अज्ञानी
में फर्क कहाँ? बडे से जब तक आप दुखी होते हैं तब तक जानना के नाम कु छ भी हो । अहंकार भीतर आप बहाने कु छ भी खोज रहे हो अहंकार को
भरने के लिए भोजन कु छ भी दे रहे हैं । दूध पर ही रखा हो । शुद्ध दूध पर अहंकार तो भी कोई फर्क नहीं पडता । मांसाहार करवाया होगी दूध दिया
हो कि साग सब्जी खिलाई हो, खिला अहंकार को ही रहे हैं । क्या खिलाया हो की प्रतिष्ठा खिलाई हो? अहंकारी निरहंकारी कौन यात्रा करवाई हो लेकिन
अहंकार ही यात्रा कर रहा है । लाओ से जीवन के प्रति बहुत सम्यक, बेहतर अनुभव और अनुभव के साथ अज्ञात की तरह रहता है । वो संसार के
लिए घाटी बन जाता है और उस सनातन शक्ति को प्राप्त होता है जो स्वयं में पर्याप्त इससे थोडा समझ ले । कौन की शक्ति स्वयं में पर्याप्त होती है ।
ऐसा समझे कि अर्जुन बहुत बडा योद्धा लेकिन दुनिया में कोई भी ना हो । अर्जुन का सब योद्धा पन खत्म हो जाए क्योंकि अर्जुन के योद्धा होने के लिए
किसी का हारना जरूरी है । किसी का मरना जरूरी है । किसी की पराजय आवश्यक । अर्जुन की विजय के लिए किसी की पराजय आवश्यक है । उसकी
विजय भी किसी की पराजय पर निर्भर । ये बहुत मजे की बात है कि आप की विजय भी किसी की पराजय पे निर्भर है, उसके बिना जीत भी नहीं
सकते । उसके बिना जीत भी नहीं सकते । क्या हुई है जो दुसरे पे निर्भर है वो विजय हुई, आपकी अमीरी गरीबी पे निर्भर है । अगर आस पास गरीब
हूँ, अमेरीका मजा चला जाता है । आपको कोई सारी दुनिया का सम्राट बना दे लेकिन दुनिया में कोई और ना हो आप अके ले आप कहेंगे बाहर में शायद
ये साम्राज्य मन ही चला गया क्योंकि मजा दूसरे पे निर्भर था । आप कितने ही बडे महल में रहे । जब तक पडोस में झोपडा ना हो तब तक महल का
मजा नहीं आता । महलका मचा झोपडे में नहीं, किसी पर है उसका मजा इसी पर है कि किसी पर नहीं । ये बडे उल्टी बनाते हैं आप । आपका सारा
एक दूसरे पर निर्भर है । आपका सारा व्यक्तित्व दूसरे पे निर्भर है । आप पंडित है, कु छ मूल आपको चाहिए नहीं तो आप पंडित नहीं मतलब पांडित्य
मूलता पर निर्भर है । दुनिया में मुल्लू पंडित हो गए अज्ञानी ना हो ज्ञानी दो कोडी के हो गए ग्रुप लोग हो सुंदर लोगों की कोई पूछना रहे तो जो सौन्दर्य
कु रूपता पर टिका होगा वो कितना सुंदर होगा और जो धन निर्धन की छाती पर खडा हो वो कितना धन होगा और जो पुण्य पापा के बीच निर्मित होता
हो उसमें कितनी पुण्य वत्ता हो सकती है । इसका मतलब ये हुआ कि सुंदर जाने अनजाने चाहता है कि दूसरे लोग कु रुप रहे जाने या न जाने दूसरी
बात है । लेकिन जो चीज निर्भर दूसरों की कु रूपता पर है वो चाहेगी ही । दूसरे लोग ग्रुप अंदर ही अगर गुरु कोई चाहता है कितना सुंदर है । लाभ से
कहता है कि जो व्यक्ति बन्दों के बीच क्षमता को उपलब्ध हो जाता है चुनाव नहीं करता है । डोल्टन गुंडों को जोड के काट देता है और दोनों के बाहर
हो जाए वो उस शक्ति को उपलब्ध होता है जो स्वयं में पर्याप्त बुद्ध शांत थे । उनकी शांति अशांत लोगों पर निर्भर नहीं समझ ले अगर दुनिया में एक भी
आदमी अशांत ना हो तो भी बुद्धि की शांति में कोई फर्क नहीं पडेगा या पडेगा बुद्ध आपने बोधि वृक्ष के नीचे बैठे ये शांति लोगों की अशांति के कारण
शांति है । अगर बुद्ध तो आँख बंद किये बैठे सारी दुनिया बलीन पहुँचा है । बहुत आँख खोल के देखेंगे । कोई आसान यहाँ दिखाई नहीं पड रहा है तो
उनको भीतर की शांति समाप्त हो जाएगी । नहीं कोई कारण नहीं ये शांति किसी की अशांति पर निर्भर ही ना । अगर ये किसी की अशांति पर निर्भर थी
तो बुद्ध को लोगों को अशांत होने के लिए समझाना चाहिए होने के लिए नहीं क्योंकि लोग अगर शांत हो जाएंगे तो बुद्ध का क्या होगा? आत्महत्या में लगे
लोगों को समझा रहे शांत हो जाओ । पुत्र की शांति आत्म निर्भर है । ये किसी को अशांत करके शांत होने का उपाय नहीं है । स्वयं को शांत करके
होने का उपाय है । बुद्ध का ज्ञान अज्ञानी पर निर्भर है इससे कटौती समझे । अगर आपका ज्ञान अज्ञानी पर निर्भर हो तो वो जानकारी है ज्ञान नहीं ।
अगर आपका ज्ञान आप पर ही निर्भर और दुनिया में एक भी अज्ञानी ना रहे तो भी आपके ज्ञान में कोई फर्क ना पडे । तो ही समझना की वो अनुभव
अनुभव सादा ही स्वयं पर्याप्त । बुद्ध ने जो जाना है उसका आपके ना जाने से कोई संबंध नहीं । कोई देना हो इस पृथ्वी पर तो भी वो जानना ऐसे ही
गठित हो जायेगा । लेकिन एक फिल्म अभिनेत्री है वो सुंदर है और कोई भी नहीं । इस पृथ्वी पर वो सुंदर नहीं रह जाएगी । उसका सुंदर होना दूसरों
की आँखों पे निर्भर है । एक राजनेता इस पृथ्वी पर कोई ना हो राजनेता नहीं रह जाए । उसका नेता होना, अनुयायियों परनिर्भरता एक बुड्ढा बुड्ढी होंगे ।
उससे कोई फर्क नहीं पडता कि पृथ्वी बचती खो जाती है । सारा संसार खो जाए । कु छ भी ना हो तो भी रखती भर फर्क नहीं पडेगा । वही स्थिति
जो दूसरे पर निर्भर नहीं है । आत्म स्थिति है जो स्थिति दूसरे पर निर्भर है वो परिस्थिति है वो आत्म स्थिति नहीं ध्यान रखना, अपने भीतर खोज करते
रहना आपके पास ऐसा भी कु छ है जो किसी पर निर्भर नहीं है । अगर है तो समझना आपके पास आत्मा है और अगर नहीं है तो समझना की आत्मा
का आपको कोई भी पता नहीं । आत्मा का अर्थ ही ये है कि जो स्वयं पर्याप्त हो । ये सूत्र कीमती लाल से कहता है । उस व्यक्ति को वह सनातन
शक्ति प्राप्त होती है जो स्वयं में पर्याप्त और वह पुनः लकडी की भांति ॅ समग्रता में वापस लौट जाता है । अनगढ लकडी की भांति ॅ समग्रता में वापस
लौट जाता है । हम सब खडी हुई लकडियाँ कल्टीवेटर ऐसा समझे एक बच्चा पैदा हुआ आपके घर में वो अनगढ लकडी अभी वो बच्चा हिंदू नहीं आई नहीं
है जैन नहीं है । बौद्ध नहीं अभी अनगढ लकडी आप करना शुरू कर दिए अगर आप जैन है तो आप ने उस लडके को तलाशना शुरू कर दिया । जैन
बनाने की कोशिश शुरू हो गई । बुला लाए किसी मुनि महाराज को आशीर्वाद देना कि ले गए चर्च में बत्तीस ना के लिए आप ने उस लडके को काटना
छाट ना शुरू कर दिया । यात्रा शुरू हो गई । लकडी अनगढ नहीं अब फर्निचर बनेगा आप उसकी कु र्सी टेबल कु छ बनेंगे । लकडी स्वीकृ त नहीं अनगढ
मुँह नहीं है । आप कु छ बनाएंगे तभी काम के नहीं तो बे काम का साबित हो जाएगा । आप काम का बना के रहेंगे । फिर ये लडका पचास साल का
हो गया । अब ये सोचता है मैं हिंदू, ईसाई, जैन झूठ ये थोपा हुआ आरोपण ये बनावट यह ऊपर दिया गया ख्याल ये संस्कार ये जानता है मैं
इंजिनियर हूँ, डॉक्टर हूँ । दुकानदार की किलर क्यूँकि मास्टर हूँ ये भी संस्कार ये जानता है । मेरा नाम राम है । कृ ष्ण है कि मोहम्मद है । ये भी
संस्कार ये जानता है कि मैं सफल हूं । असफल हूँ ये भी संस्कार ये सब दूसरों ने दिए । ध्यान रहे संस्कार मिलते हैं, दूसरों स्वभाव आता है स्वयं
इसलिए संस्कार से मुक्त हो जाना ही मुक्ति है । सभाओं में गिर जाना ही मुक्ति । सभा तो अनगढ है । अनबन संस्कार गडा हुआ है । संस्कार ही बन
रही है । हिन्दू होना बंधन है । जेल होना बंधन है मुसलमान होना, बंधन राम होना, होना होना बंधन ना बंधन, धंधा, व्यवसाय, पद, उपाधि बंधन
लेकिन वो सब जरूरी है क्योंकि उसके बिना तो जीवन चल नहीं सकता । आवश्यक बुराई हो तो भी आवश्यक है । बच्चे को माँ बाप कु छ तो देंगे ही ।
अगर न देने की कोशिश करें तो उस कोशिश में भी कु छ देंगे । कोई उपाय नहीं । ऐसा हुआ के सम्राट एक को ख्याल आया कि जो भी हम बच्चों को
भाषा सिखाते हैं वो दी हुई है तो उसने बच्चे को जन्म के बाद महल में रखवा दिया और उपाय क्या कि उसको कोई भाषा सुनने का मौका ना मिले
ताकि पता चल जाए कि मनुष्य की निसर्ग भाषा क्या है? वो बच्चा सिर्फ गूंगा साबित हुआ । वो बोला ही नहीं क्योंकि कोई निसर्ग भाषा नहीं । सब भाषा
संस्कार फर्क तो मौज है । ध्यान रहे भाषा संस्कार उसको कोई भाषा नहीं दी गई तो वो गूंगा ही रह गए । लेकिन ध्यान रहे उसका गूंगापन महावीर का
मौन नहीं क्योंकि उसने वाणी नहीं जानी । जिसने वाणी नहीं जानी वो मौन से कै से परिचित होगा । वो सिर्फ गूंगा है । सिर्फ गूंगा, गूंगा होना मोहन नहीं
वन जितने जानी और वाणी को जान के उसने व्यर्थ पाया और चुप हो गया । तब मोन वो लडका सिर्फ गूंगा रह गया । उस की कोई भाषा नहीं, भाषा
तो सिखानी, हमें सभी को सिखाना पडेगा । लेकिन अगर ये बात भी ख्याल में बनी रहे कि जो भी सिखाया जा रहा है वो बाहर से जरूरी है । आपके
अंतिक नहीं आवश्यक है, उपयोगी है छक्के नहीं सत्य तो वो अनगढ स्वभाव है अच्छा होगा । हाँ आइस पर से दूसरा जहाँ तक पहुँचा ही नहीं कभी वही
मेरी आत्मा है । लाल से कहता है ऐसा व्यक्ति जो बंद के बाहर हो गया वो पुनः अनगढ लकडी की भांति समग्रता में वापस लौट जाता है । वो फिर
अंदर लकडी हो जाता । टेबल कु र्सी नहीं रह जाता । हिन्दू मुसलमान नहीं रह जाता है, डू ब जाता है । उस स्थल पर जहाँ कोई संस्कार नहीं वो पुनः
असंस्कृ त फॅ मिली स्वाभाविक हो जाता है । उस स्वभाव का नाम ताव् । उस स्वभाव का नाम दाव । उस स्वभाव को वेद मेरी कहा है । उस स्वभाव को
महावीर आत्मा कहते । बुद्ध उस स्वभाव को निर्माण कहते हैं । ये शब्दों का फासला है । लेकिन ये बात ठीक है । समझ ले कि एक आपका रूप है
नाम ढांचा जो दिया गया और एक आप जो किसी ने आपको दिया नहीं । आप जो काम दिया है आपके भीतर । इसलिए महावीरो बुद्ध जिन्होंने ज्ञान की
परम स्थिति में प्रवेश किया, उन्होंने इस पर कोई इंकार कर दिया और करने का कारण क्या था? करने का कारण ये था कि अगर इस पर बनाने वाला
है तब तो हमारे भीतर स्वभाव बचा ही नहीं, क्योंकि उसका तो मतलब ये हुआ की कु छ ऑफर बनाता है । कु छ माँ बाप बनाते हैं, कु छ स्कू ल का
शिक्षक बनाता है, कु छ समाज बनाता है, सभी बना हुआ है तो फिर भीतर स्वभाव का । इसलिए महावीर ने कहा कि जगत का कोई रिश्ता नहीं, ये
बडी महत्व की बात है । ये साधारण नास्तिकता नहीं ये परम आस्तिकता है क्योंकि महावीर की दृष्टि ये है की अगर मेरा स्वभाव किसी ने बनाया तो वो
भी मेरा स्वभाव नहीं रहा । इससे क्या फर्क पडता है कि बाप ने बनाया कि बडे बाप में जो आकाश में है उसने बनाया उससे क्या फर्क पडता है ।
किसी ने बनाया तो फिर मैं ही झूठ है फिर कोई सत्य नहीं । फिर सभी बाहर से आया तो भीतर क्या है । इसलिए महावीर ने कहा कि धर्म को सुरक्षा
को अस्वीकार करना ही होगा, कोई सुरक्षा नहीं । लेकिन फिर भी महावीर कहते हैं व्यक्ति भगवान हो सकता है और भगवान कोई नहीं तो बडी जटिलता
हो जाए । महावीर कहते हैं भगवान कोई भी नहीं है । स्वच्छता के अर्थ में जिसने दुनिया बनाई जिसने आदमी बनाया जिसने आत्मा बनाई क्योंकि अगर
आत्मा भी बनाई जाती है तो चाहे कितने ही वर्ग कारखाने में बनाई जाती है वो वस्तु हो गयी । वो आत्मा नहीं रही । महावीर कहते हैं जो बनाया ही
नहीं जा सकता । अन बना और है वही आत्मा है इसलिए ऍसे भी ईश्वर की बात बिल्कु ल नहीं करता सुरक्षा की तरह । लेकिन महावीर कहते हैं जिस
दिन कोई इस अनबन को जान लेता है वो भगवान हो जाता है । इसलिए महावीर के भगवान ने और और लोगों के भगवान में बुनियादी अंतर है । बडा
कीमती अंतर है और लोगों का भगवान सिर्फ एक बडा संचालक है बडे दार खाने का और आप वस्तुओं की तरह बनाए और मिटाए जा रहे हैं । महावीर
कहते हैं कि अगर कोई बनाने वाला भगवान है तो फिर जगत में धर्म का कोई उपाय ही ना रहा क्योंकि फिर आत्मा की कोई संभावना । इसलिए महावीर
की दृष्टि में सुरक्षा के रूप में भगवान का होना धर्म के लिए नष्ट कर देने का कारण फिर धर्म का कोई उपाय नहीं । फिर
सब व्यर्थ है । अगर मेरा कोई स्वभाव है, अन बना बिना किसी का बनाया हुआ है तो ही इस जगत में स्वतंत्रता मुक्त आर्थक शब्द है । गाँव से भी
इस पर की बिल्कु ल बात नहीं करता । हालांकि वो जो बात कर रहा है उससे आप इस पर हो जाएगी इसलिए एक और मजे की बात ध्यान रख ले ।
इसलिए महावीर कहते हैं जितनी आत्माएँ उतने भगवान हो सकते हैं क्योंकि हर आत्मा जिस दिन अपने स्वभाव को जान ले उस दिन भगवत्ता को उपलब्ध
हो जाए । भगवान होना आप के भीतर स्वभाव के अनुभव का नाम लकडे की भांति आप तत्काल नीचे सरक जाते हैं अपने निसर्ग वो आपके भीतर है
मौजूद अभी इसी वक्त भी पर आप जोर से पकडे हुए हैं । अपने ढांचे जैसे कोई आदमी नदी में हो और किनारे से लटकती जड को वृक्ष की पकडे मुँह
ऐसे आप अपने नाम को, रूप को, पद को, प्रतीक्षा को, धर्म को जाती को जोर से पकडे हुए और वही पकड आपको सभाओं में नहीं गिरने देती ।
और आश्चर्य तो यह है कि साधारण आदमी पकडे हो तो भी ठीक है । जिनको आप महात्मा कहते हैं वो भी हिंदू वो भी जेल वो भी मुसलमान है वो
भी इसाई जिनको आप महात्मा कहते हैं उनकी भी जाती है, उनका भी पाँच है उनका भी संस्कार वो भी अभी संस्कार को पकडे हुए । तब इसका अर्थ
यह हुआ कि हम भूल ही गए हैं । स्वभाव नहीं गिरने की प्रक्रिया क्या है? स्वभाव में गिरने की प्रक्रिया लाख से कहता है धुंध के बीच कोई चुनाव
नहीं, दोनों स्वीकार हम मान मिले तो ना तो उसे पकडने की आकांक्षा ना उसे छोड देने की । अक्षय सम्मान मिले तो पक मुँह दोनों की आकांक्षा नहीं
सम्मान मिलता रहे और भीतर व्यक्ति अज्ञात में खडा रहे जैसा ऍम तो गाँव से कहता है निसर्ग में गिर जायेगा क्यों? क्योंकि ढांचे को पकडने की व्यवस्था
द्वंद किए हम एक आदमी को कहते हैं की सफल हो असफल रहे तो जीवन देखा तो सफलता को पकडता है फिर वो असफलता को छोडता है, सफलता
को पकाते हैं । फिर ऐसे लोग भी है जगत में जो असफलता को पकडते हैं उसका भी काबिल क्योंकि सफलता से उन्हें लगता है और सफलता में
संघर्ष, उपद्रव और भी एक मजा है की सफलता की कोशिश करने में असफल होने का भी डर है इसलिए वो असफलता को पकड लेते हैं । वो कहते
हैं की तबियत ठीक नहीं रहती, सफल क्या हुआ? वो कहते हैं, घर में ऐसे जान में जहाँ कौन नहीं है सफल कै से हो तो कहते हैं शिक्षा ही नहीं
मिली ठीक से सफल कै से वो कोई बहाने खोज लेते असफलता को पकड लेंगे । फिर उनको आप सफल करने की भी कोशिश ॅ नहीं होंगे वो हटेंगे नहीं
क्योंकि ये उनका प्राण और डर क्या है । वो बातें इतनी असफलता की कर रहे हैं । लेकिन डर के वल एक अगर सफल होने कि जस्ट है और असफल
हो गए तो इसलिए बहाने खोज के यहीं खडे रहना उचित कि आपने हो नहीं सकता । एक सज्जन मेरे पास आया । वो कहते हैं कि मैं सब जानता हूँ,
सब समझता हूँ । ठीक सुशिक्षित है लेकिन इंटरव्यू देने वो कहीं किसी नौकरी में जाने । मुझे नहीं मालूम है तो कोई नौकरी नहीं लगती क्योंकि बिना
इंटरव्यू नौकरी कै से लगे और वो कहते हैं कि सब मुझे मालूम है जो भी पूछा जाता है कोई ऐसी बात नहीं जो मुझे मालूम है । छह साल से वो भटक
रहे लेकिन इंटर्व्यू तो मैंने उनको पूछा कि तुमने असफलता को जोर से पकड लिया है । अब तुम्हें डर इंटर्व्यू का डर क्या नौकरी नहीं मिलेगी? छह साल
से नौकरी है ही नहीं और क्या इससे बुरा होने वाला है? लेकिन एक लाभ है इसमें अभी तक वो किसी इंटर्व्यू में असफल नहीं हुए दिया ही असफल
होने का कोई कारण ही नहीं तो अभी एक कर अब वो अकल उनको दिक्कत दे रही है और कहीं असफल हो जाए । अब ऐसे वो जिंदगी भर असफलता
को पकडे रहेंगे । बहुत लोग है जो असफलता को पकड ले बहुत लोग है जो सफलता को पकड लेते ये द्वंद कु छ लोग नाम को पकड लेते हैं । कु छ
लोग बदनामी को पकड लेते हैं क्योंकि बदनाम भी हुए तो क्या कु छ नाम तो होगा ही तो कोई फर्क नहीं पडता है । अगर आप जेलखाने में जाए और
लोगों की बातें सुने तो एक दूसरे को बताते हैं किस की बदनामी जाकर तेरी क्या कु छ भी नहीं । वहाँ भी पुराने घाग और नए घाग और पुराने अपराधी
और नया अपराधी नया अपराधी की कोई दिक्कत नहीं होती । जेलखाने पहली दफा आया हूँ, कितनी बार आ चुके हो आदमी बंद में से कु छ भी पकड
लेता है लेकिन बिना पकडे कोई उपाय नहीं नहीं तो नीचे डू ब जाये । लाल से कहता है धुंध में कु छ भी मत पुँछ बंद ही मत पकडना, नाम को पकडना
नाम को पकडना, न संसार को पकडना न सन्यास को पकडना पकडना । इसी का नाम सन्यास पकडना मत और धीरे धीरे द्वंद के बीच चुनाव छोड
देना, जॉॅब हो जाना विकल्प मत बनाना । ये मत कहना कि मैं बुरे को पकडूंगा भले को पकड दूँगा कि पुण्य पकडूंगा की आप पकडूंगा की भोग पकडूंगा
की त्याग पकडूंगा सब बंद को समझ लेना पकडना तो तथ्य व्यक्ति स्वयं में गिर जाता है और वो जो स्वयं में गिर जाना है वही परम अनुभव । अगर
लकडी को खंडित करें या तरह से तो वही पात्र बन जाता है । बडे मजे की बात से कहता है जो परम अध्यात्म में प्रवेश करता है वो बिल्कु ल अपात्र
हो जाता है । संसार के लिए अपन अब जरा अच्छा नहीं अपात्र । सुन के भीतर मन में भय लगता है । व्यापार कु छ ना कु छ तो पात्रता कहीं ना कहीं
होनी चाहिए । लाल से कहता है कि वह अनगढ लकडी की भांति अपात्र होता है । वो जो परमिट होता है उसका कोई भी दो उपयोग नहीं लाओ से का
क्या उपयोग करियेगा बताइए किसी काम के नहीं कोई उपयोग नहीं, कोई उपयोग है महावीर का कोई उपयोग है क्या उपयोग करिए, किसी काम में ना
पडेगी, बिल्कु ल देगा मगर यही उनका उपयोग क्योंकि ये जो बिलकु ल ही उपयोग के बाहर खडा व्यक्ति है, ये परम शक्ति को उपलब्ध हो जाता है । ये
फिर जाता नहीं । आक्रमण करने उपयोग के लिए इसके पास जो आ जाते हैं इसके पास जो खिचाते हैं चुंबक की भांति उनको हजारों हजारों उपयोग मिल
जाते हैं । लेकिन ये अपनी तरफ से नहीं चाहता ये कु छ करता नहीं । ये तो बिल्कु ल निष्क्रिय हो जाता लेकिन इसकी निष्क्रियता में बडी क्रांतियां घटित
होती है । इसके पास आके मालूम कितने चिराग जल जाते हैं और ये उन्हें जलता नहीं और इसके आग चिराग पास भी आ जाए तो पक जाता है ।
इसके पास आके नाम मालूम कितने लोग अनंत सुंदरी को उपलब्ध हो जाता है लेकिन ये उन्हें तराशता नहीं, उन्हें सुंदर बनाता नहीं । इसकी सामने थी
इसका संपर्क । इस की हवा बस इसका होना इसका होना उन्हें बात करते हैं से गुजर रहा है । पाँच सारा जंगल काटा जा रहा बडी प्रीतिकर करता है ।
बहुत बार मैंने कही सिर्फ एक लक्ष नहीं काटा जा रहा है । लाओ से अपने शिष्यों को कहता है कि जाओ जरा पूछो इन काटने वालों इस लक्ष्य को क्यों
नहीं काटते हो तो वो गए । उन्होंने पूछा उन्होंने का ये वृक्ष बिलकु ल बेकार है इसकी सब शाखाएं तेरी मेरी तो कु छ बन नहीं, दरवाजे नहीं बन सकते,
मेक नहीं बन सकती । कु र्सी नहीं बन सकते और ये व्रत ऐसा है कि अगर इसे जलाओ तो धुँआ धुँआ होता है । आप जानती इसके पत्ते किसी काम के
नहीं कोई जानवर खाने को राजी नहीं । इसलिए ऐसे कै से काटेंगे? सारा जंगल कट रहा है ये बच रहा है लाओ के पास जब शिक्षा है तो लाओ सेना
का इस वृक्ष की भांति हो जाता है । राव को उपलब्ध व्यक्ति देखो ये काट नहीं सकता क्योंकि वस्तुत आई सम्मान पानी को सुख नहीं । एक लकडी
सीधी नहीं । सम्मान की आकांक्षा होती तो कु छ तो सीधा रखता है । सब अच्छा है । एक को दूसरों को प्रभावित करने की उत्सुकता नहीं । नहीं तो
धुँआ इस प्रकाश को जानवरों तक को अनुयायी बनाने का रस नहीं । नहीं तो कम से कम पत्तों में कु छ तो स्वाद भरता है लेकिन देखो यही भर नहीं
कट रहा है । बाकी सब काट रहे हैं । सीधा होने की कोशिश करोगे, काटे जाओगे, तुम्हारा फर्निचर बनेगा, सिंहासन पर लगते हो कि साधारण किलर
की कु र्सी में लगते हैं और बात लेकिन फर्निचर तुम्हारा बनेगा और जो तुम्हें फर्निचर बनाने को सुख है वो तुमको समझाएँगे की सीधे रहो नहीं तो बेकार
साबित हो जाओ । अगर तुम ने उनकी मानी तो तुम कहीं ईंधन बन के चलोगे । सब ईंधन बन के चल रहे हैं । लोगों से पूछो क्या कर रहे हो? वो
कह रहे हैं बच्चों के लिए जी रहे हैं, उनके बाप उनके लिए जी रहे हैं । उनके बच्चे उनके बच्चों के लिए जियेंगे, तुम हो तुम किसी और के लिए चल
रहे हो लास्ट मैंने कहा छोडो ईंधन मत बंद और लाल ने कहा कि देखो इस पक्ष के नीचे एक हजार बैलगाडियां ढह सकती । ये वृक्ष किसी को बुलाता
नहीं लेकिन इसकी घनी चाय हजारों लोग उसके नीचे रुकते, बिलकु ल बेकार पर हजारों थके हुए विश्राम काले ये भ्रष्ट कोई उन्हें खाया देना चाहता है ।
ऐसा भी नहीं इस वृक्ष तो ये कि नियम बना रखा है । मालूम होता है कि जो नए सर्विस है उसमें ही रहूँगा । कु छ गडबड नहीं करूँ गा । हाँ को उपलब्ध
व्यक्ति ऐसा ही हो जाता है । हजारों लोग उसके नीचे छाया पाव वो छाया देता नहीं खाया उसके नीचे होती है लकडी को काटा । छाटे तो पात्र बन जाते
हैं । ज्ञानी के हाथों में पढकर लोग भी पात्र बन जाते हैं । अभिजात को उपलब्ध होते हैं शासन करने वाले बन जाते हैं । फॅ से बिकम डाॅॅ अगर आप
ज्ञानियों के हाथ में पड जाए, शिक्षकों के हाथ में पड जाए तो आपको डॉक्टर, ॅ मिनिस्टर, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बन जाने का मौका मिलेगा । वो
आपको पात्र बना देंगे । योग पात्र बना देंगे जो किसी काम आ सके लेकिन लॉस में कहता है किन्तु महान शासक खानदान नहीं करता । बट ग्रेट रूलर
कटप् लेकिन महान शास्ता महावीर बुद्ध, कृ ष्ण जैसा महान शास्ता वस्तु का जो शासक है, राजा से मतलब नहीं । रास्ता से मतलब है वस्तुत जिसकी
छाया मैं शासन हो जाता है, जो कु छ करता नहीं, जिसकी मौजूदगी शासन बन जाती है, जो आदेश नहीं देता । लेकिन जिसका होना जिसका ढंग आदेश
बन जाता है, जिसकी मुद्रा जिसका हिलना डु लना, आदेश बन जाना, ऐसा महान सस्ता किसी को काटता पिटता नहीं खंडित नहीं करता । तराशता नहीं
वस्तु ऐसा महान रास्ता आपके तरासे पन को छीन लेता है, आपके खानदान को अलग कर देता है और आपको अखंड में गिरने की सुविधा जुटा देता है
। अखंड का मतलब गैर तरासा हुआ अनरिफाइंड बडी उल्टी बातें लगेंगी ऍसे रिफाइंड के खिलाफ अनरिफाइंड विपक्ष तरासने के खिलाफ के पक्ष में संस्कार
के खिलाफ संस्कार शून्यता के पक्ष लेकिन संस्कारशून्य तक तभी आती है जब संस्कार घटित हो जाता है । इसलिए इस दुनिया में दो तरह के हमने उनके
लिए अलग अलग नाम दिए । एक को हम शिक्षक कहते हैं, दूसरे को हम गुरु कहते हैं । शिक्षक का रास्ता है, गुरु फिर अंतरराष् में भेज देता है ।
पश्चिम के पास दो शब्द नहीं क्योंकि पश्चिम के पास टीचर शिक्षक ही सब तलाश सुशील कार करना पात्र बनाना । बस यही शिक्षा है । हमने पूर्व में एक
और शिक्षा भी जानी जो परम शिक्षा है । जो जब सब शिक्षकों का काम पूरा हो जाता है तो परम शिक्षक का काम गुरु का काम शुरू होता है, वो फिर
अंतरराष् फिर फिर जो है टू टे को फिर इकट्ठा करता है बनाने को फिर मिटाता पात्र को फिर मुँह में डाल देता है और सारे संस्कार सारे समाज को
छीनकर वापस फिर निसर्ग में डू बा देते हैं । उस निसर्ग में डू ब जाना निर्माण आज इतना पांच माॅडल करें ।

You might also like

  • Tao 77
    Tao 77
    Document7 pages
    Tao 77
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 57
    Tao 57
    Document8 pages
    Tao 57
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 46
    Tao 46
    Document7 pages
    Tao 46
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 50
    Tao 50
    Document4 pages
    Tao 50
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 40
    Tao 40
    Document7 pages
    Tao 40
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 38
    Tao 38
    Document7 pages
    Tao 38
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 33
    Tao 33
    Document6 pages
    Tao 33
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 8
    Tao 8
    Document7 pages
    Tao 8
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 31
    Tao 31
    Document6 pages
    Tao 31
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 23
    Tao 23
    Document6 pages
    Tao 23
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 27
    Tao 27
    Document6 pages
    Tao 27
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet
  • Tao 24
    Tao 24
    Document7 pages
    Tao 24
    AstroGuide Astrology
    No ratings yet