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अभत

ृ के घॉट
श्री मोग वेदान्त सेवा समभतत
सॊत श्री आसायाभजी आश्रभ, अभदावाद

अनक्र
ु म
वसॊत ऋतु (अप्रैर-भई) चैत्र-वैशाख् ........................................................................................................ 9
ग्रीष्भ ऋतु (जन-जर
ु ाई) ज्मेष्ठ-आषाढ्.................................................................................................. 10
वषाा ऋतु (अगस्त-मसतम्फय) श्रावण-बाद्रऩद्.......................................................................................... 10
शयद ऋतु (अक्तफय-नवम्फय) आश्विन-कातताक् ........................................................................................ 10
हे भन्त ऋतु (ददसम्फय-जनवयी) भागाशीषा-ऩौष व मशमशय ऋतु (पयवयी-भाचा) भाघ-पाल्गुन्.......................... 11
सयरता, स्नेह, साहस,
धैम,ा उत्साह एवॊ तत्ऩयता
जैसे गुणों से सुसश्वज्जत तथा
दृष्टि को 'फहुजनदहताम....
फहुजनसुखाम....' फनाकय सफभें
सवेिय को तनहायने से ही आऩ
भहान फन सकोगे।
ॐॐॐॐॐ

दहरनेवारी, मभटनेवारी
कुमसामों के मरए छटऩटाना
एक साभान्म फात है , जफकक
ऩयभात्भप्राति के मरए छटऩटाकय
अचर आत्भदे व भें श्वस्थत होना
तनयारी ही फात है ।
मह फुष्टिभानों का काभ है ।
ॐॐॐॐॐ

भन को
परों की तयह
सुॊदय यखो ताकक
बगवान की
ऩजा भें रग सके।
ॐॐॐॐॐ

हे वत्स !
उठ.... ऊऩय उठ।
प्रगतत के सोऩान एक के फाद एक
तम कयता जा।
दृढ तनश्चम कय कक
'अफ अऩना जीवन
ददव्मता की तयप राऊॉगा।
ॐॐॐॐॐ
तन्स्वाथाता, रोबयदहत एवॊ
तनष्काभता भनुष्म को
दे वत्व प्रदान कयती हैं। जफकक
स्वाथा औय रोब भनुष्म को
भनुष्मता से हटाकय
दानवता जैसी द्ु खदामी
मोतनमों भें बटकाते हैं।
जहाॉ स्वाथा है वहाॉ आदभी
असुय हो जाता है । जफकक
तन्स्वाथाता औय तनष्काभता से
उसभें सुयत्व जाग उठता है ।
ॐॐॐॐॐ

कताव्मऩयामणता की
याह ऩय आगे फढो।
ष्टवषम-ष्टवरास, ष्टवकायों से दय
यहकय, उभॊग से कदभ फढाओ।
जऩ, ध्मान कयो।
सदगुरु के सहमोग से
सुषुि शक्तक्तमों की जगाओ।
कफ तक दीन-हीन, अशाॊत
होकय तनाव भें तरते यहोगे?
ॐॐॐॐॐ

दो औषधधमों का भेर
आमव
ु ेद का मोग है । दो अॊकों
का भेर गणणत का मोग है ।
धचत्तवष्टृ त्त का तनयोध
मह ऩातॊजमर का मोग है ऩयॊ तु
सफ ऩरयश्वस्थततमों भें सभ यहना
बगवान श्रीकृष्ण की गीता का
'सभत्व मोग' है ।
ॐॐॐॐॐ

ऩहरे अभत
ृ जैसा ऩय
फाद भें ष्टवष से बी फदतय हो,
वह ष्टवकायों का सुख है ।
प्रायॊ ब भें कदठन रगे,
द्ु खद रगे, फाद भें
अभत
ृ से बी फढकय हो,
वह बक्तक्त का सुख है ।
ॐॐॐॐॐ

जैसे ककसी सेठ मा


फडे साहफ से मभरने जाने ऩय
अच्छे कऩडे ऩहनकय
जाना ऩडता है ,
वैसे ही फडे-भें -फडा जो
ऩयभात्भा है , उससे मभरने के
मरए अॊत्कयण इच्छा, वासना से
यदहत, तनभार होना चादहए।
ॐॐॐॐॐ

श्वजसके जीवन भें


सभम का भल्म नहीॊ,
कोई उच्च रक्ष्म नहीॊ, उसका
जीवन बफना श्वस्टमयीॊग की गाडी
जैसा होता है । साधक अऩने
एक-एक िास की कीभत
सभझता है , अऩनी हय चेिा का
मथोधचत भल्माॊकन कयता है ।
ॐॐॐॐॐ

क्मा तुभने
आज ककसी की कुछ सेवा की है ?
मदद नहीॊ तो आज का ददन
तुभने व्मथा खो ददमा। मदद
ककसी की कुछ सेवा की है तो
सावधान यहो, भन भें कहीॊ
अहॊ काय न आ जाम।
ॐॐॐॐॐ

कबी बी कोई बी कामा


आवेश भें आकय न कयो।
ष्टवचाय कयना चादहए कक
इसका ऩरयणाभ क्मा होगा?
गुरुदे व अगय सुनें मा जानें तो
क्मा होगा? ष्टववेकरूऩी चौकीदाय
जागता यहे गा तो फहुत सायी
ष्टवऩदाओॊ से, ऩतन के प्रसॊगों से
ऐसे ही फच जाओगे।
ॐॐॐॐॐ

अतीत का शोक औय
बष्टवष्म की धचॊता
क्मों कयते हो?
हे ष्टप्रम !
वताभान भें साऺी, तटस्थ औय
प्रसन्नात्भा होकय जीमो....
ॐॐॐॐॐ

हे ऩयभ ऩावन प्रबु !


अॊत्कयण को
भमरन कयनेवारी स्वाथा व
सॊकीणाता की
सफ ऺुद्र बावनाओॊ से
हभ सबी ऊऩय उठें ।
ॐॐॐॐॐ
जैसे फीज की साधना
वऺ
ृ होने के मसवाम औय
कुछ नहीॊ,
उसी प्रकाय जीव की साधना
आत्भस्वरूऩ को जानने के मसवाम
औय कुछ नहीॊ।
ॐॐॐॐॐ

तुम्हाये जीवन भें


श्वजतना सॊमभ औय वाणी भें
श्वजतनी सच्चाई होगी, उतनी ही
तम्
ु हायी औय तभ
ु श्वजससे
फात कयते हो उसकी
आध्माश्वत्भक उन्नतत होगी।
ॐॐॐॐॐ

अऩने दोषों को खोजो।


जो अऩने दोष दे ख सकता है ,वह
कबी-न-कबी उन दोषों को
दय कयने के मरए बी
प्रमत्नशीर होगा ही।
ऐसे भनुष्म की
उन्नतत तनश्वश्चत है ।
ॐॐॐॐॐ

आऩ भहाऩुरुषों के
आबाभॊडर भें आते हो तो
आऩभें उच्च ष्टवचायों का प्रवाह
शुरू हो जाता है औय
सॊस्कायहीन रोगों के आबाभॊडर भें
जाते हो तो आऩभें
तुच्छ ष्टवचायों का प्रवाह
शुरू हो जाता है ।
ॐॐॐॐॐ

श्वजस भनुष्म ने बगवत्प्रेभी


सॊतो के चयणों की धर
कबी मसय ऩय नहीॊ चढामी, वह
जीता हुआ बी भुदाा है ।
वह रृदम नहीॊ, रोहा है ,
जो बगवान के
भॊगरभम नाभों का
श्रवण-कीतान कयने ऩय बी
ष्टऩघरकय उन्हीॊ की ओय
फह नहीॊ जाता।
- श्रीभदबागवत
ॐॐॐॐॐ

जो दसयों का
द्ु ख नहीॊ हयता, उसका
अऩना द्ु ख नहीॊ मभटता औय
जो दसयों के
द्ु ख हयने भें रग जाता है ,
उसका अऩना द्ु ख दटकता नहीॊ।
ॐॐॐॐॐ

कऩट का आश्रम रेने से


अॊत्कयण भमरन होता है औय
सत्म का आश्रम रेने से
अॊत्कयण भें
मसॊह जैसा फर आ जाता है ।
अत् कभा भें ऩरु
ु षाथा औय
ष्टववेक के साथ सच्चाई को
सदै व साथ यखो।
ॐॐॐॐॐ
फहते सॊसाय के
सुख-द्ु ख,
आकषाण-ष्टवकषाण भें
चट्टान की नाईं
सभ,तनमराि यहना ही फहादयु ी है ।
ॐॐॐॐॐ

आऩ अन्म रोगों से
जैसा व्मवहाय कयते हैं
वैसा ही घभ-कपयकय
आऩके ऩास आता है । इसमरए
दसयों से बराई का व्मवहाय कयो।
वह बराई कई गन
ु ी होकय
वाऩस रौटे गी।
ॐॐॐॐॐ

ईिय को ऩाने के मरए


कोई भजदयी नहीॊ कयनी ऩडती,
मसपा करा सभझनी ऩडती है ।
भुक्तक्त के मरए
कोई ज्मादा भेहनत नहीॊ है ।
निय का सदऩ
ु मोग औय
शाित भें प्रीतत – मे दो ही
छोटे से काभ हैं।
ॐॐॐॐॐ

फैर ककसान की फात भानता है ।


घोडा घुडसवाय की
फात भानता है ।
कुत्ता मा गधा बी अऩने
भामरक की फात भानता है । ऩयॊ तु
जो भनुष्म ककन्हीॊ
ब्रह्मवेत्ता को अऩने सदगुरु के रूऩ
भें तो भानता है रेककन
उनकी फात नहीॊ भानता
वह तो इन प्राणणमों से बी
गमा-फीता है ।
ॐॐॐॐॐ

ककतने बी पैशन फदरो, ककतने बी


भकान फदरो, ककतने बी तनमभ
फदरो रेककन द्ु खों का अॊत
होने वारा नहीॊ। द्ु खों का अॊत
होता है फुष्टि को फदरने से। जो
फुष्टि शयीय को भैं भानती है औय
सॊसाय भें सुख ढॉ ढती है , उसी फुष्टि
को ऩयभात्भा को भेया भानने भें औय
ऩयभात्भ-सुख रेने भें रगाओ तो
आनॊद-ही-आनॊद है ,
भाधम
ु -ा ही-भाधम
ु ा है ...
ॐॐॐॐॐ

गुरु की
सीख भाने वह मशष्म है ।
अऩने भन भें जो आता है , वह तो
अऻानी, ऩाभय, कुत्ता, गधा बी
मुगों से कयता आमा है । आऩ तो
गुरुभुख फतनमे,
मशष्म फतनमे।
ॐॐॐॐॐ

वसॊत ऋतु (अप्रैर-भई) चैत्र-वैशाख्


खाने मोग्म् गेहॉ , भॉग, चावर, ऩुयाने जौ, ततर का तेर, ऩयवर, सयन, सहजन, सुआ,
भेथी, फैंगन, ताजी नयभ भरी, अदयक आदद।
न खाने मोग्म् ऩचने भें बायी, शीत, अम्र, श्वस्नग्ध व भधयु द्रव्म जैसे – गुड, दही,
टभाटय, ऩारक, ऩेठा, ककडी, खीया, खयफजा, तयफज, केरा, फेय, खजय, नारयमर, कटहर, अॊजीय,
फेरपर, गन्ने का यस, सखे भेवे, मभठाई, दध से फने ऩदाथा आदद।

ग्रीष्भ ऋतु (जन-जुराई) ज्मेष्ठ-आषाढ्


खाने मोग्म् भधयु , सुऩाच्म, जरीम, ताजा, श्वस्नग्ध व शीत गुणमुक्ता गेहॉ , चावर, सत्त,
दध, घी, रौकी, ऩेठा, धगल्की, ऩयवर, कये रा, चौराई, ऩारक, धतनमा, ऩुदीना, ककडी, नीॊफ,
अॊगय, खयफजा, नारयमर, अनाय, केरा, आभ आदद।
न खाने मोग्म् नभकीन, खट्टा, रूखा, मभचा-भसारेदाय, तरा। दही, अभचय, अचाय, इभरी,
आर, फैंगन, भटय, चना, टभाटय, गोबी, मबॊडी आदद बायी, वामुकायक सश्वजजमाॉ। गयभ भसारा,
हयी मा रार मभचा व अदयक अधधक नहीॊ। छाछ (जीया, धतनमा, सौंप व मभश्री मभरामी हुई ताजी
छाछ रे सकते हैं)।

वषाा ऋतु (अगस्त-मसतम्फय) श्रावण-बाद्रऩद्


खाने मोग्म् हल्का, ताजा, श्वस्नग्ध, अम्र यसमुक्त। गेहॉ , भॉग, ऩुयाने जौ, सहजन, ऩयवर,
दधी, सयन, तोयई, धगल्की, फथआ
ु , भेथी, ऩारक, जाभुन, अनाय, कारी द्राऺ (सखी), अदयक,
रहसुन, हल्दी, सोंठ, ऩीऩयाभर, अजवाईन, इरामची, जीया, स्माहजीया, रौंग, ततर का तेर
आदद। रघु बोजन, उऩवास दहतकया।
न खाने मोग्म् गरयष्ठ बोजन, उडद, चना, अयहय, चौराई, आर, केरा, आभ, अॊकुरयत
अनाज, भैदा, मभठाई, भट्ठा, शीतऩेम, आइसक्रीभ आदद।

शयद ऋतु (अक्तफय-नवम्फय) आश्विन-कातताक्


खाने मोग्म् शीत गुणमुक्त, हरके, कसैरे, कडवे, भीठे ऩदाथा। साठी के चावर, गेहॉ , जौ,
भॉग, ऩयवर, ऩेठा, रौकी (घीमा), तेयई, चौराई, ऩारक, गाजय, आॉवरा, अनाय, ऩके केरे, जाभुन,
भौसम्भी, सेफ, अॊजीय, गन्ना, नारयमर, जीया, धतनमा, सौंप। ष्टवशेष- गाम का दध, घी, चावर
की खीय, भक्खन-मभश्री व ककशमभश, कारी द्राऺा।
न खाने मोग्म् तरे, तीखे, खट्टे – दही, खट्टी छाछ (ग्रीष्भानुसाय), नभकीन, गभा तासीय
वारे व गरयष्ठ ऩदाथा, हीॊग, रार मभचा, ततर व सयसों का तेर, फाजया, भक्का, उडद की दार,
भॉगपरी, अदयक, रहसुन, प्माज, इभरी, ऩुदीना, ककडी, भेथी, मबॊडी, फैंगन आदद। बयऩेट बोजन
वश्वजात।
हे भन्त ऋतु (ददसम्फय-जनवयी) भागाशीषा-ऩौष व मशमशय ऋतु (पयवयी-भाचा) भाघ-
पाल्गुन्
खाने मोग्म् भौसभी पर व शाक, दध, यफडी, घी, भक्खन, भट्ठा, शहद, उडद, खजय,
ततर, खोऩया, भेथी, ऩीऩय, सखे भेवे, कच्चे चने (चफा-चफाकय), भॉगपरी, गुड, गाजय, केरा,
शकयकॊद, मसॊघाडा, आॉवरा आदद। ष्टवशेष- उडदऩाक, सोंठऩाक, च्मवनप्राश आदद।
न खाने मोग्म् रूऺ, कसैरे, तीखे व कडवे यसप्रधान द्रव्म, वातकायक व फासी ऩदाथा एवॊ
हरका बोजन आदद।
ॐॐॐॐॐ
आहायशुिो सत्त्वशुष्टि् सत्त्व शुिो ध्रुवा स्भतृ त्
स्भतृ तरम्बे सवाग्रन्थीनाॊ ष्टवप्रभोऺ्।
'आहाय की शुष्टि से सत्त्व की शुष्टि होती है , सत्त्वशुष्टि से फुष्टि तनभार औय तनश्चमी फन
जाती है । कपय ऩष्टवत्र एवॊ तनश्चमी फुष्टि से भुक्तक्त बी सुगभता से प्राि होती है ।'
(छान्दोग्मोऩतनषद् 7.26.2)
दादहने स्वय बोजन कये , फाॉमे ऩीवै नीय।
ऐसा सॊमभ जफ कयै , सुखी यहे शयीय।।
फाॉमें स्वय बोजन कये , दादहने ऩीवे नीय।
दस ददन बखा मों कयै , ऩावै योग शयीय।।
शीतर जर भें डारकय सौंप गराओ आऩ।
मभश्री के सॉग ऩान कय मभटे दाह-सॊताऩ।।
सौंप इरामची गभी भें , रौंग सदी भें खाम।
बत्रपरा सदाफहाय है , योग सदै व हय जाम।।
वात-ष्टऩत्त जफ-जफ फढे , ऩहुॉचावे अतत कि।
सोंठ, आॉवरा, द्राऺ सॊग खावे ऩीडा नि।।
नीॊफ के तछरके सख
ु ा, फना रीश्वजमे याख।
मभटै वभन भधु सॊग रे, फढै वैद्य की साख।।
स्माह नौन हयडे मभरा, इसे खाइमे योज।
कजज गैस ऺण भें मभटै , सीधी-सी है खोज।।
खाॉसी जफ-जफ बी कये , तुभको अतत फैचन
े ।
मसॊकी हीॊग अरु रौंग से मभरे सहज ही चैन।।
छर प्रऩॊच से दय हो, जन-भङ्गर की चाह।
आत्भतनयोगी जन वही गहे सत्म की याह।।
ॐॐॐॐॐ
सॊसाय को
ऩारो
औय
बगवान को
ऩा
रो।
ॐॐॐॐॐ

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