Professional Documents
Culture Documents
2015.427387.megasthanij Ka Text
2015.427387.megasthanij Ka Text
के फंहीं
ही कर
5. की
|५ है
४९ कक, ४
्िप
है
५, कि ही ही, 0 00500, ही शी,#५ +
के
हल
जा
पी
की
है
री
5
हे
हि
फ
शा
सेवा मन्दर
रा
वार
जप
5च#न
आओ
कि
दिल्ली 0
जय की
5कई
छा
पक्की
3५झ-
जो
हक लए
रह
हक
(४
पु चल
*
।।
हे ५४ । +
ही कोपक] सपके
न | श ह छ ध+
पा ४ ॥)
री हाथ परी
है ही
हे
|
(20 जि. 2 हम न्
है ६
कं
मेन ली जी कि, # | #
मेगास्थनीजः
फा
भारत विवरण
अनुवादक
६. >>
ला
आरा नागरोी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित
१६१६०
सज्ठाविलास-प्रेस बांकीपुर में चराडीप्रसाद सिंह द्वारा मुद्रित।
प्रथम चार ५०० | मल्य--#)८
भूमिका
हि १4०++००००० पीके" पार35 रा» जॉली
प्रथम पत्रस्गाद !
घधया भें स्ान|ज - द्वतान्त का सावांग |
फांसी कै |
[ 9४ ।]
जि
पी हि ्सह
आधजक है.
श्र॥॒की हा हि
का
हक
है. श्रोर टन
| ह9 |
छपयोगो वस्तुए' और गछने बनते हैं एवम् अस्त्र शस्त्र तथा युद्ध
को सामग्रो प्रम्तत को जाती है ।
खाद्य अन्नों केअतिरिक्न, समस्त देश में बाजरा, कोदो,
मंडा बहुत होता है जो नदियों को अधिकता के कारण भलो
भांति पटता है। भिन्न २ प्रकार के अर्क दाल चावल और
बौसपोरम् ( ,.5070॥॥ ) होते हैं और यहुतस अन्य खाने
योग्य पौध हात हैं जिन में स अधिक स्वथम् उपजते हैं। इन
के अतिरिक्त कितन पशओं के खाने योग्य उड्डिद उत्पन्न होते हैं
लिन के विषय में लिखने से विस्तार हो जायगा | इसो से कहा
जाता है कि भारतवष में अकाल कभो नहीं पष्ठा और पोषक
खाद पदार्थों का एकदस अभाव कभो नहों हुआ । यहां
प्रतिवर्ष दो वार वर्षा ह्ोतो है, एक वार जाह के दिनों में
जिस समय अन्य देशों के समान यहां भो गे बाया जाता है
गौर फिर जब सथ उत्तरागग ड्ोकर अत्यन्त हरस्यथ स्थान को
पहुंचते हैं उस मप्य | यही अवसर घान बौसपोरम् सरसी और
वाजरा आदिक बाने का है। इस प्रकार भारसवासों सदा वष
में दो फसिल काटते हैं। ओर यदि एक फसिल नभो हो
तो भो दूसरों अवश्य होती है। अनेक ग्रकार के फन ओर
भिन्न २ प्रकार के खान योग्य कन्द काई कम कोई अधिक
मभोठे तरो में हत हैं। ये मन॒ष्य का जोवन घारण करने में
बड़ो सहायता पहुंचाते हूं | इस देश के सभी खराह में जन को
बड़ सुविधा है, चाहे वह्च नदोस सिले शप्रथवा ग्रोपझ्काल में
ब्षा से प्राप्त डो ! यहां वर्षा ऐसे नियमित समय पर ग्रातों है
जिसे देख कर आध्य होता है। कड़ो गरमो पड़ने से तरो में
हपजने वाले पीधों को जड़ पकज़ातो है, विशेष कर के उन
उद्विदों कोजिन को डांट लम्बो होतों है।
[| ४ |
इन सभा के अतिरिक्ष भारतवासियों में ऐसो चाल है
जिस में दु्मिक्त पड़ना बइत रुकता है। अन्य जातियों में
युव॒ के समय हरे भरे खेत भो उजाड़ कर दिये जाते हैं किन्सु
भारतवासा किसान को जाति को पज्य दृष्टि से देखते हैं।
घोर जिस ससय मसमोप में संग्राम होता रहता है उस समय
भो हम छोतने वाले निर्भोक भाव से अपना काम करते रहते
हैं का कि दोनों दल के योदा आपस हो में रक्तपात करते हैं
चोर इन किसानों को नहीं छेड़ते। और वे शत्र के देश में न
शाग हो लगाते हैं और न दत्त हो काटने हैं |
( ३७ ) भारसवष में बहुत से, नदियां हैं छो बड़ों और
सललजयान चन््नाने के योग्य हैं। ये उत्तरोय सोसास्थित पवतों थे
निकल कर समभुमि पर बह्सो हुई आपस में मिल कर गड़ा
जो में गिरतो हैं। यह नदो जड़ में तोस सेंडियम चौडो है,
और उत्तर से दक्तिण बहती हुई महासमुद्र में गिरो है। यहो
नदो गज रिदाए ( जिल्लातीता। पत्ता ) जाति क। पृर्वीय सोमा है।
७ पत्रखणड (१) क
[ हायोडोरस ढतोय खरा ६३ ]
ढायान्युसस् के विपय में ।
खसा सर कद भाया हूंकिसो किसो का प्रमुसान है कि इस
नास के सतोम बव्यकज्षि थे जो भिम्र भिनश्र काल में हुए झौर
भिग्र २ कार्यों को सम्पादित किया। हसन भें सब से प्राचोन
पूमडोस ( ]॥008 ) था। इस टेश मेंसोहाबनो ऋतु रहने के
कारण झष्आर स्रयम् बहुत उत्पन्न च्ोता था| इनडोस ने पहले
पच्ुल भ्रज्भ रगारमा ओर उस के सद्य का उचित ब्यवद्ार करना
खिल्लाया | उस ने यह सो निर्धारित किया कि गूलर तथा चन्ध
[| ७ ])
रुस ने समस्त देश पर विजय प्राप्त किया कॉकि रुस
के बिरोध करने के योग्य कोई बढ़ा गगर नहों था।
किन्तु अधिक गरमों पड़ने से उस के समभिक रोगगर््
हो गये। अतएव उन का नेता जो वुह्िमत्ता के लिये प्रसिद्य था,
छन को पहाछ् पर ले गया । शोतल वायु और करनों के स्तच्छ
ऊलल का सेंवभम करने स समा नोरोग हो गयो। जह
उम्र में
समुद् तथा पलों को दुष्ट जन्तुझों सेरडिल कर दिया ।
अ्मेक खियों सेविवाह करने पर छस बहुत पुत्त हुए किन्मु
कन्या एक हो हुई | जब उस के पुत्र युवा हुए तब उस ने
भारतवष को त॒ल्य भागों में विभक्त करके प्रपन पुत्रों को भिन्नर
भागों का राजप्र दे दिया। उसो प्रकार उस न अपनो कन्या के
लिये भो प्रबन्ध किया और उस रानो बनाया । छस ने कहुत
स् नगर्र को स्थापित किया जिस में पालोबीथा ( !॥॥0०ा)।7& )
सब से बड़ा आ6 प्रसिद्ध है; उस नगर भें उस ने बड़े विशाल
एवम् मुल्यवान् राजप्रासाद बनवाये भौर बहुत मनुष्यों को
बसाया। नगर की सुरतक्तित करन के लिये उस मे चारो ओर बह २
गत खा- 2 येजों नंद के जल से भरे जाते थे । हरेक्तलोज को सरणा
के उपरान्त स्थायों यश प्राप्त हआआ । सम के वंशज कई पोट़ो तक
राज्य करते रहे ओर बड़ बड़ कार्य करके उनमत्नां न ख्याति लाभ
को, किन्तु न तो वे भारत के बाहर चढ़ाई करन गये न उन््हों ने
दुसरे देश में उपनिवेश हो स्थापित किया। अन्त में बच्चन दिन
बोल जान पर अनक नगरों न प्रजातंच प्रणानो स्थापित की |
सिकन्दर को चढ़ाई के सस्यय भारतवासियों को प्रचलित
प्रधाओं में एक विष ध्यान टेने योग्य है । इसे उन के प्राचोन
दाशनिका न निकाला | आर यह नियय प्रशंसा योग्य है। वहां
का नियम यह है कि उन में थे कई किसे धअवस्था में गुलाम
नहों इ! सकेगा, किन्तु खलंतता का सुख लुटते हुए सभी दूसरों
के स्वत्वां को रक्षा कररगे, क्योंकि जो टूसरों पर प्रभुत्त करना
नहों जानते अथवा जि दूसरों का दासस्व करना नहों आता
वेहो ऐसा स्वन्ाव प्राप्त करसकते हैं और यह स्वधा रुचित
एक्म् युक्तिसद्गषत हेकि नियस का बन्धन सब किसो पर सम्मान
हो किन्तु धन को न्यूनता अप्रवा अधिकता लोगों में रहे ।
(४०) भागतवधष के निवासों सात जातियां में विभन्ष हैं।
छले जाति दाशनिका का है ज्ञा अन्य जातियों को अपेक्ता
मंख्या में कम » किनन्म् मोरव भे सत्र मे उच्च हैं। इन्ह कोई
सावजनिक काम नहीं करना पहला और यन किसी के स्वाम्! हैं
आय,न मवक । साथारण टसानुप्य जावन के घामिक कन्षव्य तथा
के लिश न, सम्ह नियत करते ह#
क्र
तझनुप्य [ पी |
टन
$
! क्र ह
न हा वी अप या । पक पक | केक 2
सेससी जाति ब्याल झौर गर।उया, सदा परशे पोसनवार
अनब्ध सबुष्या को हा भा मे गाल हा के सजालत #ई न नगरहा मे.
में है। शेष दो खर्च यफ्र टोज भोर इन्हस (सिख ) नदों के
हम फनिजजपरधकनकल रतनसीनजाकिरमेक
फल न लक चली केअल छल अल नल“ंअ नल न जी मम अल 7फपरपीली पी फल अष आब भत ओम लु॒ुुभशलुध
मी मम मम
अ 2 मी आज मद मानव मना ााां॥४७७७४७७७४७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७ए७एएए।ा।
तृतीय पत्रखरड ।
एरियन-भमारतवषे--भारतवषे की सीमा के विषय में ।
( पएरियन का अन॒वाद देखो )
चतुर्थ पत्रखण्ड ।
स्टरो--भारत की सीमा अर विस्तार # पर |
भारतवष उत्तर को श्रोर टारस पवतलों के अन्सभाग से घिरा
है। भोर अरियाना ( 305 ) से लेकर पूर्वीय समद्र तक
छन पवतों ये बंधा है जिन्हे वहां के निवासो परपमिसोस
( 20 []00805 ) छहिसोइस ( [00।00५ ) और हिसमापोस
तथा आअन्यनामों से पुकारत हैं। इसे मसमसिशन ( १॥०८त०७ )
के रइनेवाले काक्रग्रस (| जा । मे कहते हैं। पश्चिम
को सोसा इगड़पत नदों है किन्तु दक्षिण और पूर्व के भाग लो
बहुत विस्तत हैं, वेऐटलाडिक महासागर में छस गये हैं।
भारतवप का झाकार विषम चतुभेज के ऐसा है क्योंकि इस के
बढ़े वाद अपने सामने को भुज़ान्ो से २००० में डियसम अधिक
हैं| दृतनो हो लम्बाई उस भमि फो है जो समद्र में चलो गयो है |
(2०।0-+/४५०३ त/रैम्यपेक(
डरक०७५६-०० ०५-७७७०४
तंब३७ कमानाकक 9५००पता+े-+अके
+०
फ;५» (हकैक - कनसल “>। २३० *«. '+++ न 5७के फिजमन--9 ७० 3.३० ७. अब... ३43 -4%७७०-4+५५७५-०५८५ >जला+लन+ कौ. +कर के+-+०ततक+ वनधिविन
अल5
पच्मम पत्रखणद्ध ।
स्टर्बो।
कोहा किर
किग्गारा! सेसे इनसे
उस मैंमे गरम)
गरम पहुचतलों
पुचतों हैके जिस
जिम
रू२ इन इन में
हे सउछ
उदास
पड़ता है। एन्ढीस्थनोज यहां एक विचित्र
करता ४। जिस को एसरे फल अथवा पांधां का पक्ष होना
कहते हैंउसे भारतवामी उबाल पड़ना ((१८४०७) कहते हैं
क्योंकि उस से ऐसा उत्तस स्वाद फलीं में भा जाता है जेसा
झाग पर उबाल देन से ।बड़ो लेखक कहता इ्व कि द्वक्षों को
शाखाओं में नम्त्रता जल को गरमो सेहोतो है। उन के पहिये
बनाये जाते हैं। यहां ऐसे भो दस्त हैंजिन पर ऊन उत्पनम्र
फोता है| |
एरेटोस्थ नोज और स्त वोऐसो बड़ो २ नदियों के वाघ्य से
सथा इटोसिया से आये हुए (जल युक्ष ) आंधियों से, णरेटोस्ा-
नोज कचता ह कि भारतवर्ष में ग्रोष्प कालोन वर्षा होतो हं जिस
सवचद्दा को सरातल सूमि भर जातो ह। इसो व्ाकाल में सन
[ १५३१ |
घाजरा, कोदोी, सरसो, धान, और बोस मोरस बोया जाता हैझोर
शोतकाल में गेहूं, यव, दाल तथा अन्य खाद्यफल बोये जाते हैं
जो इम लोगों को ज्ञात नहीं हैं।
द्वादश पत्रसणठ ।
स्ट्वो, भारतवष के कुछ बन्य जन्तुओं के विषय में । मेगा*«
सथेनोज के अनुसार सव से बड़े २ व्यात्र प्रस्चिश्वई ( ८४आ )
देश में पाये जाते हैं। ये भाकार में सिंद्र केदूना होते हैं और
बड़े बलिप्ट द्ोते हैं। एक पोमए व्याप्र को चार मनुष्य लिये
जाते थे, उस ने अपने पिछले पत्च स एक खच्चर को पकष्ठ कर
ओर उसे विवश कर के अपने पाम खोंच लिया ।
बन्दर कुत्तों स बड़ होते हैं। वे उजले होते हैं किन्तु उन
का संंह काला होता है, यद्यपि टूसरी जगहों में इस के प्रतिकूल
भो पाया जाता है । इन को पंछ दो हाथ से अधिक लम्बो
छोतो है। ये बड़ मांधे होते हैं और इन का स्वभाव दुष्ट नहीं
हु थे मनुष्या पर आक्रप्तण नहों करते न चोरो हो करने हैं।
॥ गहन" '_कन+ फ विवश ० (20400 9-०७' '4?००5०५पका ०५>सक3 ३2;निला#क परत सहीकक/ १-२०कुधककक+यमे#०याकन++परम
५4 कह
०-०# ३५%कक ०१
श्र डे
॥
बे ०]
हि
| २६ |
एक जाति ह। रस के देश में बड़े २ कुत्तों केवरावर वनसागुष
जोते हैं। रुग को पंद्धें पांच हाथ लग्बो होतो हैं, शत्ताट पर
हैं| मुख एकदम श्लेस तथा अन्य भाग शरोर का काला होता
ह। वे पोसने योप्य एवम् मनुष्यों स प्रोति करन वाले होते हैं
भोर अन्यदेशोय वनसानुषों के ऐसा उन का खभाव दुष्ट नह्नों होता ।
चतुर्देश पत्र खण्ड
देकशियम--इतिहास !
पत्च॒युत विष्क झोर सर्पा के विषय में।
मैगेख मोज कइता छू कि भारतवष में बड़े २ पांख वाले
बिच्छ, होते हैं जो यूरोपोय मनुष्यों तथा वहां के निवासियों
को भो छू मारते हैं | वहां सप भो ऐसे हैं निन््हें पांछ हैं। ये
दिन में वाइर नहों निकलते, किन्तु रात को बाइर होते हैं
ओर ये मृत गिराते हैं, जिस के चमद्ू पर गिरने से उसो अणण
गुरै जाब निकल आते हैं।
पथद्श पत्र खा ।
स्ट्र्खो ।
भारतठप के पशु और खम्ब द्च्ों के विषय में ।
मैगेख मनोज कइता है कि कितने बन्दर ऐसे हैं लो चट्टाम
गिराते हैं। येएक दम दढालुए ख्लों पर भी चढ़ जाते हैं झौर
वहां सं अपने पोछा करनेवाशों पर पत्थर बरसाने खूगते हैं।
वह कहता है कि वषुत से खम्तु जो हसमलोगों के यहां घरेले
हैं वेभारतवष में जश्नलो हैं। बह ऐसे घोड़ों का वर्शन करता
हे जि एक सौंभ होता ह और शिर इरिण के समान होता है।
।8 २३ !।
सोलिनस ।
अजगर इतने बड २ होते हैं किहरिणझ तथा घन्य रस के
तुच्य जन्तुआं को एकदम निगल जाते हैं ।
अष्टादर पत्रसएद ।
क््िनो---तपप्रो
बेन # ( पु५]7०>8॥९८ ) के विषय में ।
मैगाख नोज कहता है जि एक नदो तप्रोबेब को भारतवष
से प्रथक करतो है| वहां के निवास्रों पेलायो गोमाय |(7%ा0-
४000] ) कचइलात हैं और दस देण में सुबण झोर सोतो भारत-
सॉलिनस '
भारतवर्ष में सब से बड़ो नदियां गड़गा ओर सिन्धु हैं कक
लोगों का कथन ह कि गद्ना अच्चात स्थान ४8निकलतो हू ओर
माइल के सटश भपने तटस्थ स्थलों को घोतो है। किन्तु क॒छ
सतोग सोचते हैं कियह स्कोदिया के पवर्तों संनिकरूतों है।
भारतवष में एक बड़ो नंद छपनिस '' ( 9४6 ) भो है
जहाँ तक घिकन्दर चढ़ कर गया धा। इस के किनारे जो स्त॒प
बन थे हसो से यह प्रात होता है। गंगा को चौड़ाई कम पे
कम आठ मोल और अधिक से अधिक बस मोल €। इस को
गऋइरापन जहां सब से कम ह वहां सो फोट हई ।
पत्रचण्ड ।
कक लोग कहते £ कि कस से कम (गड्ा को ) चोहा
लोस रू डियम है ओर अन्य केवल तोन हो स्ट डियम बताते हु ।
मेग स्थे नोज कहता हू कि सब मिला कर ओसत घोडाई सौ
से डियस हू भोर कस से कम बोस ओगिया यह गहरो है ।
|नाइंगनमक '
कक +५वकक गाु '३#+कक »०-१-+ ++770७%-कन्की-++>पत
“००४००«०+ २०२०क० ५ ८.०. ,
सबक >ककपकी५
“तन०-क०फक.:००७५५०
»#७२०७७० ७५ ००५०५ >>२३७8-०८) ००-34५ ०4७) ५ +०+५+क५-++की नन की यो हजक कक ७०९०३७-२र ०-काकनका- पक१२... डर हर १
नपदरामिह ००१७-७० ०४०
कक ०२०
एकविशत पत्रखण्ड ।
एरियन--सिलास नदी के विषय में
| आगे एरियन का प्रनुवाद देखो ]
द्वाविशत पत्रखण्ड ।
बोआस्सनेड--खिलास नदो के विषय में ।
भारतवष में सिलास नामक एफ गदों है। जिस भोल से
यह लिकलो है उसो है मास के झ्रनुसार इस का नास पढ़ा है |
जो कुछ इस में फेंकां जाता है वह खउतराता नहों, किन्तु प्राक्ष-
लिक नियम के प्रतिकूल नोचे बंठ जाता है ।
त्रयाविशत पत्ेखरणड ।
सर बो--घिलास नदो के विषय में ।
( स्ेगास्थनोज कहता है कि) पहाड़ो प्रदेश में सिन््तास
नामक एक नदो है जिस पर कुछ महीों रलबाता। छिसो क्रोटस,
जिस ने एशिया के अधिकांश भागों पर भ्वमण कियाशा, इस
बात का भ्विश्वास करता है और एरिस्लाटल भो इसे नहीं
सामता ।
चतुर्विशत पत्रखण्ड ।
एशियम--भा रतवर्षोय नदियों को संख्या के विषय में ।
[ एरियन का पनुवाद देखो |]
[| ३४ ।
द्विताया भाग ।
पश्चविशत पत्रखण्ड |
स्ट बो-पॉटलोपुत्र नगर के विषय में ।
मेगास्थनीज के अनुसार गड्ठा को भौसत चौडाई सो मे छियस
और इस का गहिरापन कस से कम बोस फेदम है। जहां इस
नदों से एक्क दूसरे नगदो का सड्डसम हुआ है वहीं पालोवोधा
स्थित है। यहनगर अस्सो में डियम लम्बा भर पम्द्रह्न चीड़ा है!
इस का आकार चतुभज है ओर काठ को भोत से घिरा इचआ है,
जिस में तोर छड़ने के लिये छिद्र बने हुए हें। इस के सामने
इस को रसता के लिये एक गत है, जिस में मगर के मालियों का
लल गिरता है। जिस जाति के देश में यह नगर स्थित है वह
भारतवर्ष में सव से विख्यात है। यह प्रसिश्राई कछलाते है
राजा को पालोबोधा का उपनाम घारण करना पड़ता हैं, जखा
सम्ट्रकोट्म ने किया था, जिस के यहां मेगास्थनोक्ष राकदूत
बना कर भेजा गया था [ यह प्रथा पाथियन लोगों में भो प्रच-
लिस है, क्योंकि वहां के सभो नरेश अरसाका ( /35985 ) कह
नाते हैं, यदापि सभों का अपना२ विशेष नाम है। यथा झआरोडोस,
फ्राटोस, इतयादि | ]
अनम्तर यह लिखा है '--
इपानिस नदो के बाद का सब देश समझा जाता है कि
बहुत डबर है, किन्तु पूर्ण रूप से इस के विषय में कुछ अत
गहों है. दूर तथा अज्ञात होने केकारण इस देश के विषय में
सब बात बढ़ा कर अथवा विचित्न बनाकर कहझछो जातो है।
[ ४३४ ।
कथाएं कझछो जातो हैं कि चींटियां खोना खोद कर निकालतो
हैं, सनुष्य तथा पशु विचित्र स्वरूप के होते हैं और अड्भ तगुण
घादइगा करते हैं. सोरेस नह ( ५6९५ ) दो दो सो् वर्ष लक को ले हें ।
पष्टविंशत पत्रखणड ।
एरियन इणिटिका |
पाटनोपुत्र और भारसवासियो के स्वश्ाव के विषय में ।
और भो यह कहछा जाता है कि भारतवासोी झत मनुष्यो'
को स्मति के लिये स्तृुप आदि निर्माण नहों करते और समभते
न््कि मनुष्यों के सट्गुण जो उन्हों ने अपने जोवन में दिखलाये
हैं, और गोले, जिन में उन का यश वग्ित है, गे मरण के उप:
सतावशत पत्रखण्ड ।
रे बो--भार तवासियो के स्वभाव के विषय में |
भारतवासो रचित व्यय के साथ रहते हैं, विशेष करके जब
वे शिविर में निवास करते हैं। वे अशिन्तित समृष्यों' को भोड
[ ३७ |)
पसन्द नहीं करते, इस लिये सथम नियमों का भक्तो भांति
पालन करते हैं। चारो भत्यन्त कम होतो है। मेगास्थेगोज़
कहता है कि सनन््द्रकोट्स के शिदघिर में चार लक्ष मनुष्य थे, किन्तु
शिविर में रहनवाले किसो दिन दो सो ड्राका से अधिक को
चोरो नहीं सुनते थे। यह भो ऐसे मनुष्या' में है, जिन्हं कोई
लिपिवड नियम नहों है ओर जे लिखने नहों लानते, जिस
कारण से उन्हें स्मश्णशक्ति पर अधिक निर्भर करना पड़ता है।
तथापि वे पूण सुख से रहते हैं, क्योंलि उन के स्वभाष सरल होते
हैं ओर वे व्यय कम करते हैं| वेयज्ञ कासमय छोड़ का और
कभो सद्य नहों पोते | वे अपने पोने के लिये चावश् थे सद्य बनाते
हैं, यव मे नहों। उन के खाने का पदाथ भात और दाल्तहै।
न के कानून तथा प्रतिन्नापत्र को सरलता इसो बात से प्रमाणित
होतो है कि वे अत्यन्त कम न्यायालय को शरण लेते हैं |छन के
यहां जमानत शअ्रधवा जमा रुपये के लब्बन्ध में कोई धअभयोग
महों होता, न उन्ह सुद्रा या साक्षियों को भावश्यकता होतो है।
वे योंह्ों रुपये जमा करते ओर एक टूसरे में विश्वास रखते हैं।
वे अपने घन तथा ग्टहों कोसाधारणत: अरक्षित छोड़ जाते हैं।
दल सभों से विदित होता है कि थे शान्सिप्रिय ओर उच्तम
बुद्धिवाले डोते हैं। किन्तु कितने काम वे करते हैं जोसमधथन
करने यंग्य नहों हैं ।जेंम्ते वेसदा अकेले भोजन करते हैं; उन के
लिये कोई खसय निश्चित नहों है लिस समय सब कोई भोजन
करें; लिस को जब इच्छा होतो है तभो वह खाता है| सामाजिक
तथा ज्ञातोय जीवन के लिये इस ह# प्रतिकून प्रथा प्रचलित करना
झधिक श्ेय होगा ।
पत्रखण्ड सप्तावेंशत( क )।
देजियन |
पत्रखण्ड सप्तविशत ( ग )
निकोलास डससकस |
को समृष्य किसो शिल्पत्ञार को आंख फोड देता है अथवा
छाथ काट सेता है उसे प्राणट्पह दिया जाता है। जो मनुष्य
घोर टुष्क्स करता है उस का शिर मंझुवा देने को राजा भाजञा
देते हैं। इस प्रकार का दराड़ सव से जड़ा निकार समझा
छाता है ।
अष्टाविशत पत्रखणड ।
ए्थेन ।
भारतवास्तियों के खाने के विषय में ।
मेगास्थनोज अपमे इण्डिका के द्वितोय खण्ड में कक्ता कि
भारतवासियों के खामे के समय उन के सब्यख एक लिपाइ के
ऐसा टेबुल रखा जाता है। उस पर सोना का एक कटोरा
[ ४२ ]
रखा जाता है। इस में वे पहले चावल देते हैं। जिस प्रकार
छस लोग यव इसमते हैं उसो प्रकार यह छसना रहता है।
बूस को उपरान्त गाना प्रकार के व्यत्ज़म भारतवष को चाल के
बने हुए परोसे जाते हैं ।
एकोनविंशत पत्रखयह । ७
स््बो।
काल्यनिक जातियों के विषय में |
सकाका्रपाताआपाात ऑकीर०अ०रमनगपसा शक
नुलो [ चि। ) पयत प्र 77
के निकट ऐडे सनष्य रहते हैं णिन
लृ पा अल ; हटा
क्र कँ है ्ि् कक
कक घर बस रे का छा. । न४
के पर पोछ को और
!नम फू परम! स्ञ ४ दारण ४58 रल पे कट टकव दडे ६30: भें
.रबलत हे में;
छू |(३ हर, प्रंगुलिय ह है | 94॥ पे हप ४] नि हट 8 हर |५१. कई एबलेलफए में
/
पक ५ महू
हा आ
।
फलजथ
जबडा होता
“रे अजनका
है
५०
९«+ न पं
६2फू हैः
| ]
प्ररूषा
कप बनतह
इ/5हः
| पर 6
हुआदे पप
७0 हा
के
हि
2 करे८75]
आती
पा: रे/ ऋशप्स्ा
५ *ए५
हार
4४).
छह 02 कर जः
५, शिी.....ै$फैफ «४ “ फ्
एकतिशत पं्रझदढ ।
प्लुगाक,। ।
मवज्ोन
्े
मनुष्यों खो जाति के विषय में |
तृत।य खंगड़
दजशव प्रख/ा6 |
पएरियन आर स्विनों ।
| पजयन का अनुवाद दंखोी
4 44209
( ४८ ) छाटों हासि
५ हिल नश्य
के पा पे ४ हर
फ्््नित
६
अनार.
ञ
कक
६
के है)
हा
का
न! ५बे। ५8 है अ जा टजल-ह। क 00 को खाए
है शो प्र स्डजद्ूर
१४ ए |! /
बा + खत 0 ४5 छा, धर पक 5 # ५८
हब्कलाए ५ ४४है जह है हैं हब ं है है
है आशी"१५, ६ हक म्क्ना रेन्का
लि| थे!
हई 8 अदाक 0 ॥ ही है फ धचकपेक 40 ४0३ ४५७ कै ॥ हु
नबी हे 0 ड़ कै. १ ५, हे आर । हु 5 [०5] $ । हू " | ३९ हि. १ (4 के) | 7 है|| 2१7
78 (५
एव
कट तहत 4०काट |7०८१
हू
न्प
| का
आन हैक
बा लााजह कानुप्य दल पद पर रुख जात हू
चतुःत्रिशत पत्रखण्ड ।
स्ट्बो |
राज्य काय दलाने के विषय में
पोद्ध आए हाथियों के व्यवहार के विपय में |
| पल्चण्ड २१३ इस के पइले दिया है । |
(५: ; राय की बे २ पदाधिकारियों में से किसो
क झपघकार में बाज्ञार दिया जाता है दूसरे मगर ओझोर अन्य
भंनिकी को देखते हैं| कुछ जोग नदियों को निरोज्ञा करते हैं,
भत्ति नाएते हैं जसा घिय | 70,000 )। देश में किया जाता है
झार क्रिया को जावचत हे जिन के द्वारा मढी मकहर से छस को
गाखुाश! अाद प्रति भाखाा मे जन जाता है जिस में सब को
श़ुग्माम हस्त गले । इनुर्जशा सनमुष्यां के प्रधिक्षार में व्याघे रहते हैं
गौर उस ये दास के अनुसार पादितायिक अधवा दण्ड देने का
नं स्व थ॑ कर सहसोाखत हैं घोर भमि सब्बन्धों
विकाओं का निरोक्षण करते हैं जंसे लकड़ड्ोरे, बढ़ई, लोक्ार
अर खाग ये आम जोवियोंँ को जोविकाधों का।ये सडक
बलाते हैं झौर प्रति दश छ डियम ( एक कोस ) पर टूरो झोर
उसपपथां को दिखाने के लिये एक स्सप बनाते हैं। जिन के
झधिकार में नगर दिया जाता है छत का कः विभाग है। प्रत्थक
(वद्ाग में पांच मनुृष्व होते हैं। प्रथम विभाग के पदाधिफारो
४४ |
शिक्प सम्बंधो सव विषयों को टेखते हैं। टूसरे विभाग के समृष्य
विदे शिया का खागत करते हैं | इनह वे रहने का स्थान देते हैं
भोर लिन भसमुष्या को छन को भेवा में नियुक्ष करते हैं उनहों
के हारा इत के रहने का! रोति पर दृष्टि रखते हैं। जब ये देग
क्ाडने लगते हैं तब वे इनचें पहुंचा देते हैं ओर इन को झूृत्य
हो जानें पर इन को सम्पत्ति इन के सस्ब न्धियों के पास भेज देते
हैं। जब ये सन होते हैं तत वे इस को रक्ता करते हैं सार मर
छाते एर इनईं गाडु देते हैं। तासरे विभाग के कमचारो निश्चय
करते हैं कि कमे ग्रोर कब किसो का जन्म या सत्य हुई ।
ऐपा केवल करहो लगाने के सखिये नहीं किया जाता किन्तु इस
लिये भो कि जिस में राज्य को इष्टि से बड़ अथवा छोटे कः
समन्म भोर सत्य गुप नरहे | चतुय विभाग बागिफ्य आर व्यापार
का निराक्षण करता है। इस विभाग के कम्रचारियों के द्रधिकार
में नापन और जाखन के बटखर हैं और थे देखते ह कि प्रत्यक
ऋतु का उपज सब साधारण को सूचना देकर देचा लाता है | कोई
ममुष्य दो बसु का व्यापार नहों कर सकता जब तक वह दूना
कर महों देता | पांचवा विभाग वहां के बने हुए बच! का
देख भाग करता है। इनहें सव॑ साधारण को खूबना शैकर ये
बंचते हैं| मया वस्तु पुराने स एथक विकज्वतों हैऔर टोन को
एक में मिलाने से भथ दण्ड होता है | छठा या भख्लिस विभाग
उन कसंचारियों का है जो बिके बलों के म॒स्य का टदशमांश
तहमालते हैं। इस कर के देने में घाखा देने से सत्य दशक दिया
जाता है|
| 9४ 3
इन विभागों के येह्री कसंव्य हैं जिये वें भ्रलग २ सम्पन्न
करते हैं, सोर सब मिलवार अपने २ विभागों पर अधिकार
खत हैंएवम् सव साधारण के सुभाते को बालों को भो देखते
है जसे सावजनिक गहों का उत्तम भवस्था में रखना, वस्तुओं!
के मुब्य का निर्धारण करमा, बाज़ार बन्द्रगाड़ भोर मन्द्री को
रक्ता करने । नेगर के भअध्यक्षा के बाद एक तोसरो शासक
मगड़ल! है जो युद्ध सम्बन्धा कार्मा को देखतो है। इस के भो छः:
विशाग हैं. हार प्रत्यक्ष में पांच सस्य होते हैं। एक विभाग
जद्याजं के मना पति को सहायता करने के लिये नियक्ञ किया
ला है । दूसरा बंका गाडिया का निरोक्षण करता है जिन पर
का, पत्चम विज्ञाग रथा रोही सना का एवम पष्ठ शजाराोही रूना
का निरोक्षण करते हैं | घाड़ ग्रोर ह्ञाधियां के लिये राजकाय
अखशालाएं तथा इस्तियालाएं हूं झ्योर भसम्वगस्त रखने के
लिये राजकोय गम्झ्नागार भा हैं क्ाकि सनिक्तों को सस्त गर्म
| (६३ ।,|
शस्त्रागार भें तथ। घोक़ु हाधियां को अगश्व एवम् हस्ति शालाई
में लीटा देना पड़ता है। हाथियों को वे लगाम नहाँ लगाते ।
रथां को राह में वल ब्वॉचते हैंचोर घोड़ केवल बाग पकड़ कद
मजे जाते हैं जिस में उन केपर रगड़ खाकर फलन जांय घइ
रन का साहस रथ खींचने से शान्तन छो जाय । सारधि के अति
रिश्र दो रथा रय पर बठते हैं। युद के इस्तियां पर चार मनुष्य
बंठव हैं, तान तार छोड़ने वाले और एक हाथांवान ।
भा
"अकाा
पष्ठ/।त्रशत प्रखर ।
मद्बी ।
४!&
चार पूण शिक्षित हथ्चिनियां छोड़ो ज्ञातों हैं। मनुष्य प्रक्ृत्र
भोपड़ों में घात लगाये बठे रहते हैं। जड़ली हाथो दिन के
समय दस जाल भें नहों आते किन््स् रात्ि के मम्य एक एक
करके इस में प्रवश करते हैं। जब मब प्रवश कर जाते हैं तब
मनुष्य गुप्त रूप से इसे बन्द कर देते हैं। अनन्तर बड़ वलिश्ठ
पोसुए हाथियों को इस में प्रवशा कराते हैं। थे जड़ ना हाथियों
से लहते हैं जिन्हे भरे रख कर भा ये द्वल बना देते हैं। जब
जड़ालोी हाथा सब थकावट के मार शान्त हा जाते हैं तब अत्यन्त
साहसी हाथावान अपने २ हाथियों के नाते उसरते है और
शनः २ जड़ली हाथियों केपेट के नोचे चले जाते हैं। अ्रनन्तर में
उन मे पर मिला कर ऊांघत हैं। सब्र वे जड़ालोी हाथियों का
सार कर गिरा देने के लिये पोमुएण हाथियों को ललकारते हैं !
उन के गिर जान प्र जड़ानो और पोसए हाथियों को गदन
एक में बन के कच्च चमड म वांघत फिर जिस भे जड़नो
छाथोी अपने ऊपर चखठनवालों को शोर हिला कर गिरा न दे
डूस लिये वे मनृष्य इन को गदन भें चारों ओर मे गठ़ा करके
समोटो पहना देत हैं। इस कष्ट से व शान्त रहते हैं। इन
हाथियों में जोबच्त बट या बचत बच्च रहत हैं उन को कोड
कर अवशिष्ट को वे हस्तिशालाओं में ले जात है। यहां वें उन
के पर एक दसर के पर के आर उन को गदन एक हदृट खन्म से
बांघत है । यहा भी उन भरत रख कर पोसुआ वनात हं। इम के
उपरान्त उन््ह हरी हरी दब और हर पौँध खिला कर थे पुनः
बॉलिप्ठ करते हैं। तब वे उनन््हं चुचकार कर तथा मधर शब्द संगील
एयमस वाद्य से आज्ञाकारों हाना मिखाते है ।
अचल कम उन में से पास नकठों मानते क्योंकि वें स्वयम
तले मसंध गोर मात्र स्वभाव के छत हैं कि बृदिमान जोवा
. ४४८ !
अष्टन्रशत पत्रखण्ड ।
दे लियन-- इतिहास २३
पत्रखगड द्विचवारिशत ( क ) ।
यूसेब० प्रोप० ८६ शष्ट ४१० ।
क्रोमना अलेक्म० ।
ठुस के अतिरित्ञा फिर वह आरगी लिखता है--“ प्गाग्यनोक
नामक लेखक जो सेल्युकस नाइकेटर के साथ रहता था,
दूस विषय पर स्पष्ट रोति से लिखता है-- छा कुक्त प्रक्षति
के विषय में प्राचोन समय के मनुष्यों नेकहा है, ' इत्यादि ।
पत्रखण्ठ द्वित्वारिशत (ख )
साइरिल--कोन्द्रा जुलियन ४ '
क्रोमन्स अलेक्स ० | *६
एरिस्ट्रोब्यलस पेरिपटेटिक कहीं निम्न भांति से लिखता है ।
“ जो कुछ प्रकति० ” इत्यादि ।
२0 ३-३/-कन
पटल व्फर
लक१ + »९ ७ 4 श «औत०।---० ९४:+२५ पका: ५४७ ५ म | जन जा 8००५हर जब «०७ ० का १०
डक ब७>
*+ |. ह। >४०ा।+ +।+ मे +3कलनकलका७५ ५ ००१
५५५ 8७
७५ २० “>- मनन ज्क बन बन 2 हहऊे २ “छबक
3+७ हे०- न जननबन
+ैया डिकमल८ नम 3-5 *म 5 केजनजाजजकं (जलाने जता"शखत- 3+बक-++
>-कातक 7प७ हब ५७-०. +अन्कन--ण “2 7 + ५ १7 20हकुटर समचत--- बम मेक“केजकाअप » + >नन्न्क- '२4बकल
ननरीजन नजकना 07 * पका वच७ १ वहन
चतुचतलवारिंशत पत्रखण्ड ।
सद्ेबी १४५-१-६ ८--प्ृष्ठ ७१८॥।
कलेनस और मण्डनिस के विषय में ।
मेगास्थनोज कहता है कि आत्मघात करना दाशंनिकों का
सिद्दान्त नहों है; किन्तु जो ऐसा करत हैं वे निरे सूख समभे
जात हैं। स्भावतः कठोर इहदयवाले अपने शरगोर में कुरा
भोंकत हैं, अथवा ऊचे स्थानों सेगिर कर प्राण देते हैं, कष्ट
को उपकज्ञा करनेवाले डुब मरते हैं, कष्ट सहने में सक्तम फांमो
लगाते हे ओर उत्साह पूणंसनुष्य आग में कृदत हैं । कलंनस न
पज्चचत्वारशत्त प्रसगड़ !।
हे [हक ९ हद ॥ ६ ब्बे
उश्ह राज
पष्ठचत्ारिशत पतच्रख्गड़ ।
ध्कड बहोत
कफ न कै
४०० 8०५
को अंक
४84+ 53 | २-७,
५
४ रूझा
*
पत्र रुजूझ कार गा ।
मी आदमी का 0802 शा आफ न टे> न न थ््ःः 3 अमर न
4 / $ सा 4 ५्+ है ्ल | ः 5 «५३ ५ ह $ | । हब ह ॒ ६ | सत कु हि ष्ष् पु कु ५ च ःबप श् नरम | ् ! |||]4 । हई ४४४४
/, 5) का ४
अछाहर हि
5 थे चार साजातत का शिलाआा ह्ष लस़्
रु किस 2 ह न न कलह ः जा ४० अं] रस्म गण >> बल से
* है हे अय) ई अप “अत १ |2 ० | रु को
रो.
आओ जा पुल 6
ले७
हो कदर
(७5% -
पे के हर है "5 के ६2 न ०
मा
80 रु कप / 5 हो +े है
न््क्
बहुत
किक के
॥। इस प्रत्नार «४ बरश
हहः
डे अंक एथ ००१
तल
छापा
ज्+
ऊू न् ।
फार्म
घनु
77. आ
* “72%: २ कक हे१ »
है
बे द हैन्
न्
४ ४ त हम हे. ँ
का
के अन्य जातया
७५ "न 7 कप हे ७).
में
*] 5 जा"
भा
2 द्यृ (7००
"।
4पे
शिर जत
दा # बन
पे हट
ढ्श् 2, सा
६7
ते श््' ह] ज्जत पं है ६ है
बन ल्ज्त ध्भ जया ह ध्क्ज पल कक हब
का 9
०३०" / पे
मद
डरन
से आर
वगृक ७के है भें
नस
ड़ गे
' 0०7.,,.:
रे हक पा
)एयल
॥, क नि ; ह
८५
आऋ० |
दि;
5 रभुक
जज
रत] ।
जया
हर सब चुत नहर न + पु भर
ं |
स्तेय) बी 9 हे 7) 2 तक
ऐ
) 0 5 कन
झामक: भ्
भ्फ् * कं. + 'टवऔ ८ फूलस द्ा्न्त 2*धढ परहै|न हे |» अर ञ १ कप हे
रु
ें४ हर हर य डा ।
नसहां हुआ <:। तप फ जोक पे 5 #
व यह . वकहत हू कक कल
साता|] "५ जा मी होई-
क्ाज़ के अनुयायियां के वंशज हैं
| थे अपन व॑थश का चिकन घारण
त हैं, क्यांकि ये हईैनक्ज # शसा खाल पहन
ा
ते #, गदा ले
48.
घाट का भग्गाव-
शिष्ट दुग प्राचीन आयोनंस का प्रह्मडी
गठट़ है। रानोघाट
ओहिन्द सेसोलह मोल पश्चिम है |
कुड़ाने आया था ओर यह ॒वास्तव में काकेशस था, जिसे ग्रोक
लोग कहते हैं कि प्रोश/धियस हो बंधा था १
१५
#
4600 है। 4
/
केऋ
र 8. औक हेर। पत्रभ्नराडु |
| लि के ॥ह+ त | 3 2 १३8४६ रा 2 है |
९ ५्< सा,
कक ९ |
कप 7 ४, | हज! फल ः | 4 न है ;. की ही । था
/ ई ५ ह$ ४. है ४
|
/ पी ३ 5 ४ '
2८ वर | ७: ४७!०... ४-३ । ने विषय सम ।
( 6 उप पझ' 0६
2 ४५ / '
पपनो इगिउका के चलुध खगठ में मेगास्थनोज़ भो यही विचार
५ ह ता, “ हे हर 2०५ कम हि प्पश मं ही ह इट |वि पी जज (5, रे है ॥
एकोनपञ्चाशत पत्रखण्ड ।
एबिडेन |
नब॒चंडोसर के विषय में ।
मेगास्थनीज़ कहता है कि नवबुचंड्रोसर ने जो हरेक्कोज़ से भी
अधिक प्रतापो था, लोबिया तथा भाइवेरिया पर आक्रमण किया
| ७६ |
पञ्चाशत पत्रखण्ड !
एरियन--इगण्टिका 3 ८ ।
[|एरियन का अनुवाद देखो | | ०
पत्रखणड पच्चाशत ( के ) !
पिनसो - इतिह्वास ८-५५ ।
मोतियों के विषय में ।
कुछ लेखक कहते हू कि सोप के कुणड़ में मधुक्खियों केसमान
बड़े २ ओर अधिक सुन्दर सोप उन के नेता होते है, ये पकड़े
जाने सेअपन को बचाने में बड़े चतुर होते हं। इन्हें डबो
मारनंवाले उत्कगठा संखोजतें हैं। यदि ये पकड़ जाते हैं तो
अन्य सोप सहज हो में जालबड हो जात हैं, क्योंकि वे चारों
ओर घूमते रहते हैं। तब ये मिट्टी के घड़ों में रखे जाते हैं
जिस में वेनमक के नोच गाड दिये जात हैं। इस रोति से
मांस सब गल जाता है ओर जमा हुआ कड़ा पदाथ नोचे बैठ
जाता है ।
एक पञवाशत पत्रखणड ४
पूं गल० सिरब--३३ ।
पंच्डयन ( गीहतिता। ) इस के विप्य से |
पक, ण्हे ै ]औ पर |गा * ॥ है ले प्र कह हा
बष्रर प्र
( पृत्रस्यृएदु ३०-९६ )
मेगास्थनोज कहता है कि पेंग्डेयन देश की स्थियां छः हों
वबष में प्रसव करतो है ।
. आहईः
पत्रखणड पच्चाशत ( ख )।
प्लिनो--इतिहास ६-२१-४-४ ।
भारतवासियों के प्राचोन इतिहाम के विषय में |
सब जातियों में भारतवासो हो केदल अपना टेश छोड़ कर
टूसरे देश में नहों जा कर बसे हें। «कस पिता से ले कर
सिकन्दर लक एक सो चोवन राजा हुए, जिन्हों न ६४५१ वष
तोन महोने तक राज्य किया ।
सोलिनस ४२-४५ ।
पिता बंक़स हो ने पहले पहल भारतवष पर आक्रमण
किया था और वे हो सब से प्रथम भारतवामियों पर विजयो
हुए थे।उन स लेकर सिकन्दर तक ६४४१ वष तोन मास गिने
जाते हैं। इम के बोच में एक सी तिरपन राजाओं ने राज्य
किया । इन्हों कि संख्या से वह समय निधारित किया
जाता है।
सन्टिग्ध प्रखयह ।
द्विपन्माशुत पत्रखण्ड ।
इलियन--इडतिहास -१ २-- ८.
छाथियों के विषय में ।
जअपर्चाशत पत्रचर ३
दु लियन -इलिक्ञास - "३-४६ ।
एक शत हम्ति के विषय में |
चतुपञ्चाशत पत्रखण्ड ।
ब्राह्मण ओर उन के दशन के विषय में ।
]
छा 4
पत्रखण्डठ पञ्चपचाशत ( के )
ऐम्बा|सियस ( ॥॥0/0जल्05 )
पष्ठपज्चबाशत पत्रखणड ।
पन््लनो-- इतिहास
भारतोय जातियों को सचो |
हिफेसिस ([ए]0॥/४४ ) से सेल्थुकसमाइकेटर के लिये निम्न
यात्राए क् को गयों ।--छ्े सिड़स ( [८४४८प४ ) तक १८ मोल
और उतने हो मोल जोमानेस ( 3०॥०॥7०८४ ) नदो, तक ( कुछ
प्रतियां ५मोल अधिक जोड़तो हैं )। वहां से गड़गा तक ११२
मोल । गरहोडोफा ( [०५७७७ ) तक ११८ मोल ( दूसरे
३२५ देते हैं)। कलिनिपक्स नगर तक १६७ सोल--४०० ।
अन्य लोग २६५ मोल लिखते हैं। वहां से जोमानेस और गद्भग
के सड़म तक ६२५ मोल ( बहुत लोग ११५ मोल ओर जोडते
हैं), ओर पालोबोधा तक ४२४ मोल । गड्ा के सुख तक
७३८ सील । #
>७+ ७७०७-३५ १९ 3५+५--० >०#७०४७५५ २ ५
गिरती है ।
अहा ॥]
जिन में जो कछ्टे जा चुके हैं उन के अतिरिक्ष कोण्ष्टोचेटेस
( (०07000)9.(८5 ) ण्स्न्नो बोआस, ( दा (//) 45 ) कौसोएगस
कि पक कक आकर जल पर रब |
ता लस 444:35 "5 + धश॑ हो हा हे | डे | अर का लाश ट्र कक
हि
रखा करते # |
रे हि] 4 ४.
3 पी # यो ग्वः स
० हल व ा/ 5 02% हक दा ० ०
सौख गये | का २ कछहत # झकियरू नाम ग्र के लावा क।
भ्डे
2 ह।॒ है? « कै कि बी. का
के >++० ॥ ७ - | 0७ के ऐ ५ ५
। | । कं ”्श“का ५ 4१ नि न्क्
मै ५। 4 कर ॥/४ | 0 2 हा १३६०७ पृ हाफ] का म्फ़ा *'
|| दूत ० व. क नि मे ह्ः
५
४ हैहै|पे १ । ्क ५ $ कं हे ५ न है] ५ रच के
५७ | (३ ५ ब्र ५ | वह १.8 ५ ईज्ृ
मात ५ कह 4 का पा हु क्र 40
एज
यो के हाँकी कक शासये एकल
गा कोर
कि
हओे लिल्यूए ०५ वाइयणा कोते
मे
चआाक्न: 3
08 जि कै जाल गवाप
हट] जल
कई
था कक धंधा] रू कक कक
कक पक्औ ३
०५, ०७४१.
है] ४)३७७-8३६ ५ हि५
हैं, | $5३
॥ | अब ५
प् +॥५ बल.
पी5
५ मम
#ा 87075!
के 0 हे
कप | 3 ही, आग व
%/न््थ; न्पु
(४ “( भवऋ(ट + जब न रथ
शव “आफजन 2
> है
हे
0, मन]
|
।
कक म्म्
०. . >ब(हिल
र्फ काए अैका
ष्टा ले
(हम
या न
द्
पल आज
साय
कक ५ कह पर
हत
लगाए + ५
शक
,ककृया०० (२५७००
शान्दर मगरथी न्दू
हे दि
है, गलमोडोड़स
/ ४0 जल सो
६ कक 7 हे 8 । , ५ । “»') ) का ल्षरा!।(
| | न्] है ४ हु ४ हर हर ह
६०४४
७ ॥,/.. ई |
) ससुरो
हे . ) कि 25 ्त्स श ै ड़ ह
| «७ कई ॥ इाडएील 2 आम |, )]
ये हू कल हर शा रु | ५० +५७ ह थे ॥॒
नह,
ध
| १०० |
चार सहस अश्यारोहों तथा चार सो इस्ति शर्तों थे स्ज्जित
अए पत्माशत पत्रखरद |
बधलोज ओझर पैण्डिया के विषय में हरेक्त़ोज को भारतवष
में एक कन्या हुई लिख का सस ने पणि/डया नाम रखा।। उस
की उस नें भारतवष का वह भाग दिया जो दक्षिश को श्रोर
समद्र तक विस्तत है। उम्र का प्रजाओों को उस ने तोन सो
शसठ ग्राश। ॥$7 विलत्ा कर दिया भौर यह आज्ञा दिया कि
प्रत्यक ग्राम प्रत्यक्ष दिन राजकोष में राजकोौय कर ले झआवे
जिन में राना को उन मसन॒ष्यां को रुकह्चायता सदा मिछतो रहे
खिल की वाबो कर देने को हो जिस से वह कर गहीों देनंवालोां
(4 बछ प्रयाग कर सके !
पफ्ानयाठे प्रखंगठ
भारतदघ के जन्तुअं के विपय मे
इलियन ।
(२ मुझे सात इुआा है कि भारतवर्ष में म॒सग होते हैं
धो सदा ण से छन का नाम पहले से चुका ऋ तथापि जो
४ हज, समझा नण्यों दाह्ठाथा वह यहां लिख टरेना उपयुक्त
हरा । में ने पना है कि रस को तोन जातियां होतो हैं
धार इन सभा का बालकों के एसा यदि बाॉलने सिखाया जाय
तो ये बालकां के समाम अधिक बोलने वाले हो जाते है झोौर
मनुष्य के स्वर से बालन लगते हैं। किन्तु जड़लीं भें येपक्तियों
के एस्ा चिल्लाते हैं नकोई सरोला स्पष्ट बोलो हो बोलते है
झोर न जहनलो होने केकारण अभिज्ञित बात हो करते है।
भारतवष में सयूर भो होते हैं लिन का भाकार सब देशों के
मयूरां से बड़ा होता है। वहां इेंषत हरित कब॒तर भो पाये
जाते हैं। जो मनुष्य पत्षियों से पृणरूप से अभिन्न नहीं है
| श१८ |
वे इन पहले पहल टेख कर कब॒तर नहीों किन्तु मग्गा समफेगे।
ठोठ और चरण में वेस्ोस के तोलर के समान होते हैं। वहा
असाधारण आकार के ककूट होते हैं जिन को चोटो अन्यदेशों
के समाम कम से कम इसमारे देश के समा साल गहों ड्ोता
किन्तु पृष्पकिरोंट के ऐसा विचित रड़ का होता है। उन को
पूंछ के पर न टेढ़े होते हैं और म गोल किन्तु उन को चौहाई
अधिक होतो है ओर जिस प्रकार सयर अपनी पृकत खूसि में
बहारते हैं उसो प्रकार वे भो करते हैं, लब॒ वे उन्हें सोधा या
खड़ा नहों करते । इन भारतीय कक्टों का पर सोने के व
का होता है झोर मरकत को नाई गठा नोशा भो होता है।
(३ ) भारतवर्ष में एक झौर पच्योों पायो जातो है। यह
पा आकार में दस
भरतपत्ति के बराबर उछचातों है और रफूः
का विचित्र होता है। इसे सनुप्य के समान ग्रव्ट सचारण करने
को ग्रिच्षा दो जाती है! यहद्ध मर मे भा अधिक वाकापएट आर
स्वभावत:ः अधिक चतुर हाती है। यह सन॒पष्य हारा भाजन प्राप्त
करने में सुख नहों ग्रनुभव करतो किन्तु ब्वलंतजला के किय
इतना व्याकुश ओर अपने साथिया को सद्गति में स्वच्छन्द गत
गाने के लिये इतना आतुर रइतो है कि उत्तम भोजन के
साथ दासत्व को अपेज्षा भूखे रहना हो पसन्द करता है।
भारतवर्ष में फिलिप के पुत्र सिकन्दर दारा निर्मित ब॒क़ेफेला
तथा इस के समोपवर्तों करोपोलिस एक्म् अन्यान्य लगरों में
बसे हुए मंकिडोनियन इसे करकियोंग कहते हैं। सेरा विश्वास
है कि इस नाम को उत्पत्ति इस बात से चुई कि यह परक्ति
उसो प्रकार पंछ हिलालों है जसे छलकोर ।
( 8 )यह भो मुझे ज्ञात पृधा है कि भारतवण में केलस नाम
की एक पच्चो होतो है जो बरसूड (7ए57प + बड़ा पेछ वा ्
| £औ १8 ।ै
7
जल-सप होते हैंजिन आहकप अर अल 0.%॥ छ भा
को पक्त चोडो झोतो
के | आज में लहइल भशिर वाले सप होने हैं (न्तू् थे जलसप
श3, ५ सम 2,५।
कम ८० हक,
५ कक लू कल गा
कक है हे क सो
अप
४
हेशाहस्नचकंटा 54। हु
ई
छल कप ।
पका द्रव मी. ऋण
खड़ा पका फए ॥?..
ऋषातल कई
के लि "७ फतह
पाडहतशाा आहरओ
गधे: ” हुए
80 0०328: | (9
छ्ष्फा
6:
५ कक रा
न # > +७ ५ लक *
"कराए 7५४१ ५५४ ६58 ३ तप | ॥/॥४ हल हाछु ल्कै। श हि श्न्कः ४, का 5 होका है हाल के 3] ४ कक है न हाभी आयी आओ) फ हमकी के का |] के ् रु_ः
#0५
४७५ हे ४] ७, ५ रु, | थी |; कर ५ (५५,
६, र् +$, पर मे है"ना $ केजज कं हे ही ॥ फिर : ५ (४३ षृ क हर हि | हे | रच हर! |]
है ै श
ग
बा 2 लि कल 8, 2 लत (भय ०
। फ 4५% 06 4 रु (७० का. है
५ अं डा (हा $ £ हे ५ | की
है 8। शाह
गह “५० ०० न्फ रीमे ४ | १! १ पे * मंध अभयहै व ता कप है| बे ख्प ।4४; /४५" “«१ पे क्ञॉँ
| के 0 । | १: हि
५. मैं ० :9 ६ है. हु... _]| ही
5 १०२ री है| थक || | हू
९४$
/! गे दे क
कह कि है. ० का बज ए बट ५ पड कक ४४०५७ * ) स् ५/१९/ कम | पु ४ ॥ हे
# हु है] 30, की! है कर हा १४७ हा 8 + है| ध हर ५ ५५१० रे
आज
/' ॥0 ' % हु हक
) 4 हैमं ॥ + हि रूहै! कम ॥। पे ० (॥ ५७१
न्क | + न ;7ञ हर 7५ 4 हि
5०30 कक,
हैपे पं), नह /0 न है: है| १ ५ 0022६ पा |
ही 0... पका 0 कब त एड. धनु अन्त पु... हु कर (०१९०५ ५ ४3; १ का कक हक है!का नरनन्हहू हम 48४]
० ग्फ न रे
कह,
छा आओ पोह्सद आला ४ । इ्छया पके खुल एउकम्मनह करल।)। ४ |
8 कर कर रा ह्प्प ध्र् न प घटाभरभ््शक, औक के बा य््
रट फ हे
पका छा यी आशय आएली ध्रा।व्क् एटा के हण फर वे
।&#]| यक
भा,
रे ॥॒
हर
कक क]
पी हु६+ ३
्च्छ
।
5 2 300 नह है ;
हल दादा भी खिल बे नेप्र! |
में एक
;
में
छेश
घी
) के
+ के ३3 फे
हवत॥:4
छ ४० ँ रम की रे
ाााइटलाए
5४, 5७ कर 'क्र ५५८५ डलनू
(९4: काबिलाद
+ा
््ं पक १ +5 का अल आई
8 ५"
कला है ईरझे आाहस कर देला है। बिना पानी भें उबे हुए यह
ससुद्र का लक्र के सपर तेरता # और इस को गति बचुत तोन्र
४श। १० खोडजिन अल पेलेना
एस सछजझ्ज्शात तक
इ४/२७७,
हि
कक
शक पा हा
रे हा एक
कि आओका हा
थे हो जाए
आर! की ॥
कालाका 7...
9
रे
हा
छः *
इक
जो ५
हे
हर, हक हु
शेदए) रण
पापा |
“(३।.
स्प्
त्घ
४४९५
/क, ")
न आप दि
पा |
77) दशा हछोतों है जसा विपेले सप 00,को फ्ः
छूनेककसे ||दा
किन्तु मल
उस होप
हे क्षिनारं एक अडो छोतो है जो सब को ज्ञात है। एस
थे झा बहाशा छातों है सस को वहा प्रीष घि है। रूचिएल पुरुष
हू नाक ईं छ सुघ पक से आओ हे शनि ।
कई नाक गे उसे सुचातं हूं क्रौर वछ शीघ्र चतलन्ध ह्षोीके" आवक
जाता पक
है।
बह (4 है ।! गा #। | रू कट] रे $५ ् | श्र पे
छः[शशि * 7] ॥।
0 का...
हु ले थे
ही ४ रे
(सं हें
निसायोएह ( 'ए5६४०0] ) भारतवंध को जाति नषों है| वे डायो-
शक, ( श्् उे द्े | न््ज
ह कीट के
ढ़ प्र ४०. है|
नियेग सापि।
| कफ ५१ है
/! /भ ः
हा है]
है #। १७!
हझछझा उस श्छु
पु
का
जाओ विद ६४] ह'
माइसाः
रूपका ५७ भ्प्का7 ह
पदल के६०
का कल
मान्नानया' (! |
$ विदा में थे मप्र कथाएं कवियों व्यो कल्पना मात्र हैं भौर से ५%८
् है ०0
न
2 के कं 2 हु
8थी
| ॥ हा ऑ । का
रे
जे
गण हे है
| 28 रू॥2 है;
५ ॥ द्ं !
छ (0
9 पा यू च् ४
हक पे १० को
।] ६2]
पा धा पर ६ हुए आन शा
दि ञ्
४ थे “कल अकसर जब 2 हद कम ीक कप के हब लक प5 वि क अीररनक० न ५ चतिनणक फज न.783 बाज ह0 4१4 4 ९०५७७ 3७५ 8337/ 33०००३०००७५-३४- #०+५२०५५
4०क»०७>क-७----+ #कलफनककोत- "० (कर "3 2७ जान
फेक ५७क- +७३९०5०ल्ानकन+०
33४१८कक छा ५ 8-8, ५ 20७२३०->५॥२
३७ ९ +-३कज७, ५७०५९५०० कक थक पताटक४जाकर ५०३३५: के
१३2५५३५४७
+है. ४ 2०+-कल) कपतैत-+न कैनकनतीककी६४०५ फ७3४:८०-&बैडकब(लक,