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मेगास्थनीजः
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भारत विवरण

<-..प अ्वकहिंकरो शरोए यु" ए|बी एल

आरा तागरसप्रचारिणो सभा द्व


ारा प्रकाशित ।
मेगास्थनीज का भारतविवरण
अर्थात्‌

मिस्टर मेकक्रिन्डल कत्तेक भेगास्थनीज के आइ्भल


अनुवाद का भाषानुवाद ।

अनुवादक

बाबू अवधावेहारो शरण एम. ए. बी. एल.

६. >>
ला
आरा नागरोी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित
१६१६०
सज्ठाविलास-प्रेस बांकीपुर में चराडीप्रसाद सिंह द्वारा मुद्रित।
प्रथम चार ५०० | मल्य--#)८
भूमिका
हि १4०++००००० पीके" पार35 रा» जॉली

सन १६११ # ग्रीष्मावकाश में यह पुस्तक लिखने की इच्छा


मुझे हुई ओर एक सप्ताह केभीतर इस को में ने सम्पन्न कर
दिया | फिर मुझे इसे दोहरारे का अवसर नहीं आया। प्रफ
संशोधन के समय कुछ अंश तो मेरे सम्मुग्तन आया परन्तु अब-
काश नहीं रहने के कारण मुझे प्रफरीडर ही पर अधिक निभर
रहना पड़ा जिन की कृपा से पुस्तक में अनेक प्रकार की भूलें और
त्रटियां रद गयों हैं ।इस वार पाठक क्षमा करें। यदि शअ्रन्य
संस्करण का अवसर आया तो वे बटियां अवश्य दर कर दी
ज्ञायंगी ।
विनीत
खवबध चिहारी शरण |
मेगास्थर्नाज़ का भारतविवरण ।
| श (पा
४ । मु ३. है
साहय के अंग्रजो अनुवाद का भाषानुबाद | |
झा ५ उ27 झ्लृ सा क ध. कक प्र न | ३ 'अुमकीम-न चल,
न ल्‍ है ह!

प्रथम पत्रस्गाद !
घधया भें स्ान|ज - द्वतान्त का सावांग |

| डायोडोरस-- दिलांय खराड, ३५ ---८४२ ।


' ३५ ) भारततपघ का आकार चत्‌ भज है। इस के एव
झोौद प्रथम % का सोसा महाससुद् से बह है। उत्तर के
आर खिहमाशुस | .00:. 5 ) पवत स्कीडिया ६ आप
उस प्रान्त से इसे इथऊ फरता है अह्'ं पाकाड़़ ( ्फिआ )
निवास करते हैं । आर चतर्थ अथवा पश्चिम दिशा इन्ड्स (|)../«)
नटो से बंचो है जी नाइल ( ७! ) के ग्रतिरिक्ष संसार | सब
नदियों से बड़ो है ।समस्त देश का विस्तार एवं में पश्चिम २८०००
सं डियम | और उत्तर में दक्ति/ ३२,००० के डियम है ।
भारसतबप का विस्तार इलना होने के कारगा यह पृथ्वो के
लगभग समस्त उत्तगोय ग्राप्ममण्डल ( पाते ४७०) में छाया
रुशा है। वम्ततः इस के स्तासान्त स्थाना में श'इ्ट का छाया प्राय:
पड़लोी हो नही ।
सप्तषिसश्हल रात को दोख नहों पहले और ग्रत्यन्त दरवर्नों

४ प्रकरण देखने मे ज्ञात हाला हैं कि दक्षिण के स्थान में


पश्चिम लिखा गया ४ ।
पी सेडियम (फतवा )- ६०३ फोट ८ इचच। इस कं
घनुसार ३२१८ सांज चाडापड सादे २४८४७ खोमस्त नवम्याद

फांसी कै |
[ 9४ ।]

प्रान्सों में भ्राकट्यूरस ( 8/0/४77५ ) भो दृष्टिगोचर नहीं होता


इस के साथ साथ यह भो कहा जाता है कि वहां कराया दक्षिण
को आर पड़तो है।
भारतवष में अनेक विशाल पवत हैं जिन पर प्रत्यक प्रकार
के फल देने वाले दत्त बहुत पाये आते हैं। यहां ग्रनंक विस्तोण
समतल भूसिहँ जो पत्वन्त उबर हैं। इन भें सं कोई कसम
कोई अधिक सुन्दर हैं, किन्तु सभो नदियों के सथूह से विभक्त
8 | अधिकांश भमृमि पटायो जातो है असणएव यहां वष मे दो
फसिल होता है! सभा प्रकार के जन्तु यहां अधिकता स पाये
जाते हैं। खंतों में चस्न वाले पर ऑर आकाश में लड़नेवाल्े
पक्षों, भित्र २ आकार एवम्‌ बल वाले मिलते हैं। हाथियों का
तो यहां ठिकाना नहों जो बड़ वबेडाल हाते हैं। इन का खाद्य
पदाथ यहां बहुल उपजता है जिस मे इन का बल लोबिया
( [.:)॥% ) के हाथियों स कहाँ अधिक होता है। भारतवासो
एक बार में बहुत हाथो बक्काते है ओर इनन्‍्ह युद्ध करने को
शिक्षा देते हैं क्योंकि विजयप्राप्त करन में ये बड़ काम के
होते हैं ।
( ३६ ) जोवननिवाह करने को सामग्रो परिपूण होन
के कारण यहां के निवासो साधारण मनुष्यां को लम्बाई सं
अधिक ऊंचे और आत्मगोरव से भग होते हैं। वे कलाओआं में
निपण हैं जँसा खतच्छ वायु ओर अत्यूत्तम जल के व्यवहार
करनेवालों को हाना चाहिये। भूमि पर सभा प्रकार के ज्ञात
मल फलते हैं और भगभ में नाना प्रत्मार के धातुओं क॑ खान
हैं । सोना झोर चांदो बहुत
228
४. तामा और लोहा भो कम नहों

जि
पी हि ्सह

आधजक है.
श्र॥॒की हा हि

का
हक

वाया प्रन्याब्य चघालु


अन्‍्माकर7रकत कही...पलरीव॑नमक् पल
हक ] |

है. श्रोर टन
| ह9 |

छपयोगो वस्तुए' और गछने बनते हैं एवम्‌ अस्त्र शस्त्र तथा युद्ध
को सामग्रो प्रम्तत को जाती है ।
खाद्य अन्नों केअतिरिक्न, समस्त देश में बाजरा, कोदो,
मंडा बहुत होता है जो नदियों को अधिकता के कारण भलो
भांति पटता है। भिन्न २ प्रकार के अर्क दाल चावल और
बौसपोरम्‌ ( ,.5070॥॥ ) होते हैं और यहुतस अन्य खाने
योग्य पौध हात हैं जिन में स अधिक स्वथम्‌ उपजते हैं। इन
के अतिरिक्त कितन पशओं के खाने योग्य उड्डिद उत्पन्न होते हैं
लिन के विषय में लिखने से विस्तार हो जायगा | इसो से कहा
जाता है कि भारतवष में अकाल कभो नहीं पष्ठा और पोषक
खाद पदार्थों का एकदस अभाव कभो नहों हुआ । यहां
प्रतिवर्ष दो वार वर्षा ह्ोतो है, एक वार जाह के दिनों में
जिस समय अन्य देशों के समान यहां भो गे बाया जाता है
गौर फिर जब सथ उत्तरागग ड्ोकर अत्यन्त हरस्यथ स्थान को
पहुंचते हैं उस मप्य | यही अवसर घान बौसपोरम्‌ सरसी और
वाजरा आदिक बाने का है। इस प्रकार भारसवासों सदा वष
में दो फसिल काटते हैं। ओर यदि एक फसिल नभो हो
तो भो दूसरों अवश्य होती है। अनेक ग्रकार के फन ओर
भिन्न २ प्रकार के खान योग्य कन्‍द काई कम कोई अधिक
मभोठे तरो में हत हैं। ये मन॒ष्य का जोवन घारण करने में
बड़ो सहायता पहुंचाते हूं | इस देश के सभी खराह में जन को
बड़ सुविधा है, चाहे वह्च नदोस सिले शप्रथवा ग्रोपझ्काल में
ब्षा से प्राप्त डो ! यहां वर्षा ऐसे नियमित समय पर ग्रातों है
जिसे देख कर आध्य होता है। कड़ो गरमो पड़ने से तरो में
हपजने वाले पीधों को जड़ पकज़ातो है, विशेष कर के उन
उद्विदों कोजिन को डांट लम्बो होतों है।
[| ४ |
इन सभा के अतिरिक्ष भारतवासियों में ऐसो चाल है
जिस में दु्मिक्त पड़ना बइत रुकता है। अन्य जातियों में
युव॒ के समय हरे भरे खेत भो उजाड़ कर दिये जाते हैं किन्सु
भारतवासा किसान को जाति को पज्य दृष्टि से देखते हैं।
घोर जिस ससय मसमोप में संग्राम होता रहता है उस समय
भो हम छोतने वाले निर्भोक भाव से अपना काम करते रहते
हैं का कि दोनों दल के योदा आपस हो में रक्तपात करते हैं
चोर इन किसानों को नहीं छेड़ते। और वे शत्र के देश में न
शाग हो लगाते हैं और न दत्त हो काटने हैं |
( ३७ ) भारसवष में बहुत से, नदियां हैं छो बड़ों और
सललजयान चन्‍्नाने के योग्य हैं। ये उत्तरोय सोसास्थित पवतों थे
निकल कर समभुमि पर बह्सो हुई आपस में मिल कर गड़ा
जो में गिरतो हैं। यह नदो जड़ में तोस सेंडियम चौडो है,
और उत्तर से दक्तिण बहती हुई महासमुद्र में गिरो है। यहो
नदो गज रिदाए ( जिल्लातीता। पत्ता ) जाति क। पृर्वीय सोमा है।

दूस जासि का हस्तिबल असोस है! इसो कारण इन का टेश


किसो विदेश राजा से नहों विजित हुआ ' क्योंकि अन्य सभो
साति इन विकटाकार जनन्‍्तुग्नोँ को संख्या और बल से भय
खाते हैं । |इसो प्रकार सक्रोडन का अलेकाजन्डर (६ 26इ३॥-
तेश रु सिकन्दर) ने समस्त एशिया जा|सन के उपरान्त गड़ारिदाई
ये लड़ाई नहों ठानो। क्यांकि जब वच्च अपनो सारो सेना के
माथ गएफ़त के किनारे पहुंचा और यह सुना कि गद्गारिदाई के
पास युद्ध विद्या में निपण ओर रण के लिये सुसज्जित चार

विजय को अभिलाषा छोड़ दो । | दूसरो नदो जो विस्तार में


[ $४ ।

शा के अरातर श्ट्टओर फूस्ह्स ( [एतेध॥् ) के नाम से विद््यात

है वच्ध भी अपने प्रतिधन्दी के सप्तान उत्तर से मिकलतो है


ओर भारत को सोसा ७। सांधती चुई मझासागर में गिरतो
है। राह में 78 बड़े विस्तुत समरभूमि खण्ठ पर बहतो हुई
कई नदियों का जल मे जाती है! ये सब नदियां जखलयान के
चलाने के योग्य हैं इन में से अधिक विख्यात हुपानिस
( [0|'8008 ) हुडासपाॉस (६ [4088 |८४ ) ओर अकेखिनोस
( 0 इ€काटक ) रहें |

इन के अतिरिज्ञा अनेक प्रकार को बहुत सो नदियां हैं जो


सारे देश में फेली चुई है जिम से रुद्याम शाकादि और अस्त पटते
है। यहां के दार्शनिक एवम्‌ विज्ञानवेसता नदियों को अधिकता
सथा जलन को टेरो के निम्र कारण बताते हैं। वे कहते है कि
भाग्तवर्ष के चारो ओर के देश, जहां स्कोदियन, ( ४॥६।॥/ं४7॥ )
बकियन ( 4$॥८।]॥४॥) ) ओर झाय ( 6 १ 8)) ) रहते हुये सब
यहाँ को भूसि से ऊंचे हूं, अतएव वेज्ञानिक नियम के झमुसार
वहां का जल सब नोचे चला झाता है ओर जब भ्रूमि में जत्त
झधिक नहों रह सकता है तथ नदियों के स्तरूप में विगत
छोता है ।
भारत में सिलास ( 878 ) माम को एक मनदों है जो
रूसो सास वाले कोल से निकलती है। इस में और नदियों से
विशेषता यह है कि जो कुछ इस में फंका जाता है वचन उतलराता
नहों किन्तु नोचे वेठ जाता है।
( १८ ) यह्ष कहा जाता है कि भारतवष जो पझ्राकार में
बहुत बड़ा है नाना प्रकार के भ्िश् २ जातियों का निवासश्थान
है। इन में से सब इसो देश के झादिकाल से रहने वाले हैं,
| ॥ ।ै

टूसर देश से एक भो गहों आये हैं। यज्ञ भो कहते हैं कि दूसरे


देश से भारत में कोई उुपनिवेश नहीं स्थापित चुआ और न
भारत हो ने प्रन्यदिय में किसो छपनिषेश को स्थापना को।
दन्तकथा से च्ात चोता है कि प्रायोन काल में यहां के निवासो
ऐसे फलों कोखा कर जोवमनिर्वाह् करते थे जो स्वयम्‌ उपजते
थे, भोर देशो पशह्ो के चर्म को पचनमते थे, जसो ग्रीस निवासियों
को प्रथा थो | ग्रोस की गाइड यहां भी मानवजोवन को छम्नत
करनेवाले यंत्र गौर कलाएं क्रमश: आधिष्कत हुष्ड |आवश्यकता
ने इन कलाओं को एसे जोयों को सिखलाया जो सभ्य, अभ्यास
करने योग्य, हाथ स युक्च, श्ानो भोर तदिसान थे ।
भारतवासियों मे बेर विद्दान कई कथाप्रा को कहते हैं जिम
का सारांश देदेना छचित है। थे कहते है कि प्रादोनकाल्ष में शिस
घम्य यहां के निवास ग्रार्मों मे'रहते थे, डायोन्यूसस (॥)ए-
800 ) # बड़ी सेना के साथ पच्चिम के देश से निकला ।

७ पत्रखणड (१) क
[ हायोडोरस ढतोय खरा ६३ ]
ढायान्युसस्‌ के विपय में ।
खसा सर कद भाया हूंकिसो किसो का प्रमुसान है कि इस
नास के सतोम बव्यकज्षि थे जो भिम्र भिनश्र काल में हुए झौर
भिग्र २ कार्यों को सम्पादित किया। हसन भें सब से प्राचोन
पूमडोस ( ]॥008 ) था। इस टेश मेंसोहाबनो ऋतु रहने के
कारण झष्आर स्रयम्‌ बहुत उत्पन्न च्ोता था| इनडोस ने पहले
पच्ुल भ्रज्भ रगारमा ओर उस के सद्य का उचित ब्यवद्ार करना
खिल्लाया | उस ने यह सो निर्धारित किया कि गूलर तथा चन्ध
[| ७ ])
रुस ने समस्त देश पर विजय प्राप्त किया कॉकि रुस
के बिरोध करने के योग्य कोई बढ़ा गगर नहों था।
किन्तु अधिक गरमों पड़ने से उस के समभिक रोगगर््
हो गये। अतएव उन का नेता जो वुह्िमत्ता के लिये प्रसिद्य था,
छन को पहाछ् पर ले गया । शोतल वायु और करनों के स्तच्छ
ऊलल का सेंवभम करने स समा नोरोग हो गयो। जह

फलों के दक्ष किस प्रकार बोये भार बड़ किये जाते है और

ने निश्चय किया कि ये फल किस प्रकार तोह जाते हैं। इसो


लिये पह ज्तोनायोस ( !.00008 ) भी कचनइलाता था । इसो
डायोन्यसस॒ की कटपोगोन ( ०5] ४४७ ) भो कहते हैं
क्योंकि भारतवासों मरणपयन्त अपनो दाठढ़ो बढ़ यत्न. स रखते
बईभ. 3,
हि

हैं। डायोब्यूसम ने एक बड़ों सेना लेकर संसार के सभो


प्रदेशों का विजय किया | उस ने ममुष्यों को अफप्जभार
बोला और गारना सिखलाया जिस से स्तोमायोस
उस का नाम पद्ठा । इस प्रकार अपने सब आविष्कारों
को सिखान के कारण मरगा के उपरान्त उस ने अमर प्रतिष्ठा
उन लोगों से प्राप्त कोजिम्हँ उस के श्रम से लाभ हुआ था | यह
भो कहते हैं किआज सक उस देवता का वासस्थास भारतवष
में दिखलाया जाता है। ओर स्थानिक भाषाओं मं नगरों का
नास उस के नास के पग्रनसमार पकारा जाता है | इस के भतिरिक्ष
कितने बड़ २ प्रमाया हैं जिन से घ्विद्ध छोत। है कि वद्ध भारत-
बष हो में उत्पन्न हुआ था किन्तु इन के विषय में लिखना त्म्म
छगा! ।
्ब्ब
| ८ ]
डायोन्यसत्स॒को सेना ने पग्रारोग्यता शाभ्ष को वह
मोरस ( ॥॥७ ) कइलाता था। निःसम्देह इसतो घटना ये
गोज्ष लोगों को यह कथा निकलों है कि डायोन्युसम्‌
अपन पिता को जांघ में परत था। प्रनसर उपयोग। हर्चा को
छत्रिस ? नउपजाना साख कर उस में भाग्तवामियों को
म् बनाने का शार अन्य नाभकारों विद्याओ्रां को श्ि्चा दो।
लग ने ढट २ गा्मा को उत्ित स्थानां में हटा कर बड़े २ सगरों
को स्थापना को | एस ने भमुष्यों को इशर को पज्ा करने को
विधि सिखायो घोर कानन तथा न्यायालय स्थापित किया। एस
प्रकार अनक द्वड़तू तथा उत्तम कार्यो को करन के कारण वह
देवता समरक्ता जाने क्षमा भार पिशशातयों प्रतिष्ठ का भाजन
हुआ | यह भो कझ्ा जाता है कि उस के साथ एक स्त्रियों को
सेना थो भीर सनिकी को युह्द केसमय सख्चित करने के लिये
दोल तथा काल का व्यवशार किया जाता था क्योंकि त्रहो सम
दिनों लोग को पन्नात नहों थो। बावन वष भारत में राज्य
करने के उपरान्त हद्दावश्या में अपने पत्रों को राष्य छोड़ कर
उस ने शगोर त्याग किया । इन के वंशज घट्ट परम्परा से राज्य
करते भाये किन्तु बहुत दिनों केबाद राजा का पद तोड़ दिया
गया भोर नगरों में प्रजातन्त्र प्रणालो स्थापित होगयो ।
( ३८ ) यहो हत्त डायोन्युसस तथा उस के वंशर्जों का है
झो भारतवष के पहाड़ों प्रदेश में प्रचलित है। वे यह भो कहते
हैं कि दंरक्कोजु ( [००० ) का जब्म उछों लोगों में हा
था ग्रांक लोगों हे समान वे उस गंदा तथ। व्याप्र चमघारो
बताते ₹ । बल शोर वांय्य उस सब सनुर्णा से अधिय या भौर
जे कम
£ हि

उम्र में
समुद्‌ तथा पलों को दुष्ट जन्तुझों सेरडिल कर दिया ।
अ्मेक खियों सेविवाह करने पर छस बहुत पुत्त हुए किन्मु
कन्या एक हो हुई | जब उस के पुत्र युवा हुए तब उस ने
भारतवष को त॒ल्य भागों में विभक्त करके प्रपन पुत्रों को भिन्नर
भागों का राजप्र दे दिया। उसो प्रकार उस न अपनो कन्या के
लिये भो प्रबन्ध किया और उस रानो बनाया । छस ने कहुत
स्‌ नगर्र को स्थापित किया जिस में पालोबीथा ( !॥॥0०ा)।7& )
सब से बड़ा आ6 प्रसिद्ध है; उस नगर भें उस ने बड़े विशाल
एवम्‌ मुल्यवान्‌ राजप्रासाद बनवाये भौर बहुत मनुष्यों को
बसाया। नगर की सुरतक्तित करन के लिये उस मे चारो ओर बह २
गत खा- 2 येजों नंद के जल से भरे जाते थे । हरेक्तलोज को सरणा
के उपरान्त स्थायों यश प्राप्त हआआ । सम के वंशज कई पोट़ो तक
राज्य करते रहे ओर बड़ बड़ कार्य करके उनमत्नां न ख्याति लाभ
को, किन्तु न तो वे भारत के बाहर चढ़ाई करन गये न उन्‍्हों ने
दुसरे देश में उपनिवेश हो स्थापित किया। अन्त में बच्चन दिन
बोल जान पर अनक नगरों न प्रजातंच प्रणानो स्थापित की |
सिकन्दर को चढ़ाई के सस्यय भारतवासियों को प्रचलित
प्रधाओं में एक विष ध्यान टेने योग्य है । इसे उन के प्राचोन
दाशनिका न निकाला | आर यह नियय प्रशंसा योग्य है। वहां
का नियम यह है कि उन में थे कई किसे धअवस्था में गुलाम
नहों इ! सकेगा, किन्तु खलंतता का सुख लुटते हुए सभी दूसरों
के स्वत्वां को रक्षा कररगे, क्योंकि जो टूसरों पर प्रभुत्त करना
नहों जानते अथवा जि दूसरों का दासस्व करना नहों आता
वेहो ऐसा स्वन्ाव प्राप्त करसकते हैं और यह स्वधा रुचित
एक्म्‌ युक्तिसद्गषत हेकि नियस का बन्धन सब किसो पर सम्मान
हो किन्तु धन को न्यूनता अप्रवा अधिकता लोगों में रहे ।
(४०) भागतवधष के निवासों सात जातियां में विभन्ष हैं।
छले जाति दाशनिका का है ज्ञा अन्य जातियों को अपेक्ता
मंख्या में कम » किनन्‍म्‌ मोरव भे सत्र मे उच्च हैं। इन्ह कोई
सावजनिक काम नहीं करना पहला और यन किसी के स्वाम्! हैं
आय,न मवक । साथारण टसानुप्य जावन के घामिक कन्षव्य तथा
के लिश न, सम्ह नियत करते ह#
क्र

तझनुप्य [ पी |
टन
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आर उन का विश्वास है किये देवताओं रू बह प्रिय हैं आर


परला|क का सत्र बानां से प्शिज्ञ हे । दन कार्या केकराते के
उपनकज्त ते इक कषहाओआा
हम
प्रदाष और किलल अधिकार मिलते
हें | भारतवज के सवयाधाइग का थे बडा सपकार करते हके।
जब व आरन्स इन एक अत झगृष्य एकल इहात हैं लघ मे अना-
बष्टि, अलिज्ञा्टा अन्‍नुऊ जवाय, गम तथा आर! दिपयां पर
धपनी भावध्यहाएओं कश्त | जिस सु के ऊागा का जाल
हु]) | इस प्रकाव यहा के गाजा तथा हइ जा। भविष्य झक। पहले हछू|
जान कर उहज्ा के अनुसार हूयादा करत हूं | थे लाॉनन प्रबन्ध
वाइस ढ का नह बल अस मे आव् कला पहन पर उन्‍हें
् क्र ५ री आर ही ५

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हे एस नि सी 8 शतक का सुगठ ना इखलता अर वृष

जावन के > पार के सूप रहता ८ !


5 550 2 9 ० हैन 5 भ् और पट घ्म
टूर | जाति किसानो का 3 अिस का संख्या डुसरों ज्ञासियों
2] | रा दर 3 पक 2 तल
हर रच // सनक मा अथथ 5 2४3: | 5 न््
न्‍ कक | 8
का! आअपल्ताा पता हू। इच्ह पु अधना अबू, सादइआनक स्
नहा करना पतला अतएछय थे आपना कन सम्मथ छाप हा मे
हेहै कक बल न है,
+ फू 40६ 4 कक पुहट 5ये रख जा ।अ शकक ५ बट । अन्‍कब- जन नमन समन न य्यं छ बन र्न्कि 23 कली

यताल करत हू। शज भा अपन नर


खत से कार ऋरनवाल क्पक
के निकट घधत््च कर उस पर धार जद्ा करत क्यांक्रि इस
खाल के सनुय सदमाच रख के शयऋता साफ जात ४ । और
ञ्छ
अनसममार
नराच+
जे+सा ल्‍ॉचडञिो बच्ची

अत्यायार मे रक्षित रहते हैं। दस प्रकार अश्रूत्ि उजञ्जाह नहों


की जातो और अन्न शत्यन्त अधिक उपजता है जिस से ज।वन
की पृणा सुखसय बनानंवालो सी आवश्यकताओं को पूर्ति
होतो है। क़पकगगा सपुत्न कलच गातांम सहते हैं ग्लरर जगर
मं कभो जाना नहों चाहते । इन्हे गाजा को भूमिकर देना
पड़ता है क्याँकि ससस्त शारतवण्ठ राजा का घन है और कोई
टूमरा मनुष्य शुतति का स्तासो नहाँ हो सकता | #मसिकर के अति
के

गिक्न इुन्द गाजकाय कोौप में उपज्त का चलधा आझ टंना पछला है ।


+ वकक०

न हा वी अप या । पक पक | केक 2
सेससी जाति ब्याल झौर गर।उया, सदा परशे पोसनवार
अनब्ध सबुष्या को हा भा मे गाल हा के सजालत #ई न नगरहा मे.

कार के आअपवा बेमकाा करा सग जी शान करत प्र/क्तया आर ऊ छू न्‍नी


उल्तुआ। से गाहुलत सर टत ह। बदन कार के बे उद्याग एवम
छत्कराठा के झाग्र कस्त ए श्रोग दस्त प्रशार भारत को उन विधा

खसुतते कऋर्त छ जा यह्ञा करुनत हातक्न यथा नाना प्रकार क


बनल पएश थआब पत्ता जा किसानां के तौज का चर शात हैं ,
( ४१ ) चोधों जाति गिल्यक्षातं का है। इस मे से कुछ भप्रस्ध
घस्त्र चनात ४ योर कुछ कृषि तथा अन्य जाविका रबम्बन्धो हथि-
या का प्रस्त्त कर त*,। इन्हें कु कर नहा द ।॥ पडता वरन

राजकांय कोष से इन्हं आशिक सहायता मिलतो है।


पांचवों जाति याद्दात्रां का है। ये रण के लिये भलो भांसि
शितज्षित आर सुमज्जित होते हैँं। संख्या में 4 दितोय ऊाति हैं
आर शान्ति रहने पर आलसो तथा विलासो हो जाते हू ।
सम्पण सेना अथात्‌ योडा, शुद्ध के बाड़, हस्ति तथा अन्य सब
सासभी राजा के व्यय से बरध जात |
छढठीं जाति निरीोच्षकों को है। तन का कतंव्य भारत में
भो कुछ होता है उन सबा का नोरोच्ण करना तथा उसे राजा
स निवेदन करना है। जहां राजा नहों है वहां पदाधिकारियों
से कहना पड़ता है|
सातवीं जाति मंत्रियों तथा उपदेशकों को है जो सावंजनिक
विषय पर विचार करते हैं। इस जाति को संख्या सब से कम
है किन्तु यह सब से ध्षिक प्रतिष्ठित है क्योंकि इस जाति के
सा

लोग बड़े सघरित्र ओर बुद्धिमान होते हैं। इसो जाति के


मनुष्य राजा के मन्तों कोषाध्यक्ष और कगड़ा निबटाने के लिये
पच्चु नियत किये जाते हैं। खेनापति और प्रधान पदाधिकारो
प्राय: इसो जाति के होते हैं ।
येही विभाग हैं जिन में भारत के सवुष्य विभक्न हैं। अपनो
जाति के बाहर कोई विवाह नहों कर सकता और न अपनो
जीोविका छोड़ कर अन्ध जोजिका ग्रद्यण कर सकता है। यथा योदा
क़षक नहीों ह। सकता, भोर शिल्पकार दाशनिक नहों हो सकता ।
(४२) भारतवष में बड़ विशाल ह्राथियां को संख्या बचुत
है। इस का आकार और बल अन्य देशोय हाथियों मे कानों
अ्रधिक है। ये हथिनियां के साथ किसो विशेष रात उस नहीों
सड्स करते ज्षसा कि कुछ लोगों का कथन है, किन्तु घोड़े
अथवा भनन्‍्य चतुष्पदों को नाई ये भो मंथन करते हैं। कम से
कस सोलह सास और अधिक सं अधिक अठारहइ मास में ये
बच्चा देते हैं। घोड़ो के सहथ साधारणत: इन्ह' भी एक हो बच्चा
होता है जिसे उस को सा छः मास तक दूध पिलातो है।
किसने हाथो धर मनुष्य को अवस्था तक जोते हैं। उन में जो
अत्यस्त दोधजोवो हैं थेदो सौ वर्ष तक जोवित रहते हैं!
[| (१३ |
भारतवासियों में विदेशों सन॒ष्यों के लिये भो कमचारो
नियत किये जाते हैं, जिन का कतंव्य यह देखना है कि किसो
विदेशों पर अत्याचार न हो। किसो का स्वास्थ्य विगह जाता
है तो वे वेद की उस को ओषधि करने के लिये भेजते हैं ओर
अन्य भांति सभो उस को रखा करते हैं। यदि कोई उन में से
मर जाता है तो उसे गाइड देते हैंऔर उस का घन उस के
सम्बन्धियों को दे देते हैं। विचारकतों भो ऐसे झगड़ों को
बड़ी सावधानों से देखते हैं जिस मे विदेशों सिशथित रहते हैं
झोर जी उन के साथ झनुचित व्यवह्षार करता है उस पर
बड़ो कहाई करते हैं |
अथम भाग ।
ट्रेतीय प्रखणर ।
| एरियन--सिकन्दर को चढ़ाई |
भारतवष को सोमा, साधारण वर्णन भौर इस को
मदियाँ के विषय में ।
मेगेल्थनोज्‌ झारकोशिया के राजप्रतिनिधि सिवर्टियश्त
( 800/॥08 ) के साथ रचइता था और वह स्तयम्‌ कइता है कि
वह भारत के राजा सम्ट्रकोद्रस # (६,07४:०:७७) थे बरावर भेंट
किया करता था । उस का कथन है ओर एराटोस्थनोज़ भो
वाहता है कि दक्षिण एशिया चार खय्टों में विभत्ा है, जिन में
भारतवष सब से वहा है। भोर सब से छोटा वह खण्ड है लो
युफ्र टोज ( 0,0]0078[९8 ) नदो झ्रोर इम लोगों के समुद्र के बोच

में है। शेष दो खर्च यफ्र टोज भोर इन्हस (सिख ) नदों के
हम फनिजजपरधकनकल रतनसीनजाकिरमेक
फल न लक चली केअल छल अल नल“ंअ नल न जी मम अल 7फपरपीली पी फल अष आब भत ओम लु॒ुुभशलुध
मी मम मम
अ 2 मी आज मद मानव मना ााां॥४७७७४७७७४७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७ए७एएए।ा।

# चम्द्रगुप्त को ग्रोक लोग सम्द्रकोह्स, अन्ट्रकोह्स ओर


सम्ट्कुस्स भझादि काले थे |
[ १४ ।
बेच में है.और जिसे येही नदियां अन्य छण्डों में एथक
करती है। ये टोनों खण्ड सिल कर के भी सारतवष को तुलना
नहों कर सकते। येहो लेग्वक कहते हैंकि भारत को सोमा
पूय को झोर महासागर से बंधों है, जो नोचे दक्तिण तक चला
जाता है। उत्तरोय मांसा टारस पवत लक्क कार्केशस पष्ठाषड़
बांधता है और पश्चिम तथा पश्चिमोत्तर को सोमा इन्‍्डस रुदो
में बब होतो है। भारतवप का बहुत बढ़ा ख़राड समभ्ृमि है,
आर लीग अनुमान करते हैं कि यह नदियों में बद्द कर जाने
वाले सक्‍िट्ट। केजमजान मे बना है। दस बात से लोग ऐसा
सोचते हैं कि अन्य देशों में समतल भूसि अधिक नदियों हो से
+यो हैं। पइसाो कारण प्राचौन समय में काई देश उन को नदों
| नाप थे भो पुकारा जाता था। इस्त का उदाहरण देखिये ।
अशिया ( माइनर ) में एक ग्राग्स है जी इ.साख लत )
दा मंदाम कहलाता है। आर हरसीस एक नदी का नास है
जी डिस्डिसानो पवल ( 00) 0 40 6४ 3)]00 ५१४४ )
सें निकल कर इथोलिया। ( _. 3७ ) का लगर स्थिना
( 0)।॥ ) के निकट समुद्र में गरता है| लाडिया का मसंदान
कास्योस ( ५७४) / है झा उसलस मास को नदा के अशुसार
विश्यात है। ठप्तो प्रकार सोसिया ( 0.८ ) में के कोंस का
मंदान ऋझू। झौर मायान्दहौस ( १४७१:!. (७ ) नामक करिया

( (७७ ) में एक मंदान है जो यवर्मा # के नगर माइलेटस


( ५5५ ) तक विस्तत है, इजिए मिश्र , के दोनों
इतिदासवेत्ता हिरोडाट्स ( ०७७४७ ५) और हिकेटायोख
०७२१७ १.»
सकन्‍इक कक “३०३७ ८७%; ७०
#७००७४-७७ नर >लनध्बकक केसन+ लत ८अिनजी थीबाकन
के के7रताकजिच्नर- ("33 जक ++क/ “क-मण-3करा अक)क3०५4९ ७७५७7५4५०५++०३००५++नपीकाजक३ 3.५५+०९५००७- ५ ४०३---०+२#०कन+नन अमायाक.५०-+-०- "का४2० कथा ७७७७॥४५ ०००
(५३-3० ॥ नल
हत आाए। 2७७० - ०-७०२-७ ७७४३-३३ +-०५०-०००कर ५० ,७००३५०/ से मल --००१--कमककाज 34-५०» ०० # +अकक-“म०० आनाजी७००९ सह +कन्‍्कडी

# पहले केवल ग्रोक लोगों को यवम कहते थे | यह शब्द


40॥80 से निकला है।
| १४ :
( 60 ४ांतत ) | और यदि मिश्र पर ग्रम्थ लिखनेवाजा
हिकेटायोघ के अतिरिक्त दूसरा कोई हो तो वो | इस विष्य
में सम्मत हैं किमिश्रदेश माइल नदों से बना है; ओर सम्भवत:
इूसदेश का मास उसो नदो के अनुसार पह्ा है व्यांकि प्राचोन
समय में उस नदो का नाम ऐजिप्ृस्त ( 3४७४६ ) था जिसे
आजकल, इजिए्ृदेशवासों सयम्‌ और अन्य जातिवाले भो
माइजल ( ,६४।|८ /) कहते | । इस का प्रमाण हौसर ( [७०॥॥९/ )

के उन वाक्यों सेसिलता है जिन में वह कहता है कि सिनि-


( 3 ०४५७४४+५ ) ने एऐ श्रपृप्त नदी के संह पर अपने
ह।
सायोस

जहाऊकों को ठछुराया | | सब यदि प्रत्यझ ब्दान में एक हो


है”...

नदो, हहतू ते होने पर भा ऐपोी है कि अपने बहाव के साथ


अपनो जड़ में सि्ट ले जाकर मयो भूमि वनातों है तो
भारतवष के विषय में समभुसिछ्॑ण्ष्रा को स्थिति अथवा नदियों
हारा उन को बनावट लों सानना एकदम युक्तिबज्छिद्त छझोगा।
क्योकि इरसोस, कोसद्रीस, केकोौम ओर मयान्डेस तथा
एशिया के अन्य सभा नदियां जो सेडिटरंनियन समुद्र भ॑ गिरतो
हैं ये कुल मिलवार जल के परिमाण में भ्ार्तव्ष को एक
साधारण नदं। को समता नहों कर सकतों और सब से बड़ो
नदों गग्ना से तुलना कौन करे जिस के सामन इजिए को नाइक
और यूरोप को डन्युव सुच्छ हैं। और यदि ये सब मिला दो
आये तो भो ये छ्िन्धु मदो को बराबरो नहीं कर सकतीं ज्रो
जड़हो में बहुत चौडो है श्रौर एशिया को नदियाँ से भी बड़ो २
पन्द्रह्व नदियों का जल लेकर उन से देश का मासकरण का
गौरव छोनतो हुई समुद्र में जाकर गिरतो है ।
श्र.
है] >> जाडि <.॥ _ कै2: ९५ छा
| १६ |;

तृतीय पत्रखरड ।
एरियन-भमारतवषे--भारतवषे की सीमा के विषय में ।
( पएरियन का अन॒वाद देखो )
चतुर्थ पत्रखण्ड ।
स्टरो--भारत की सीमा अर विस्तार # पर |
भारतवष उत्तर को श्रोर टारस पवतलों के अन्सभाग से घिरा
है। भोर अरियाना ( 305 ) से लेकर पूर्वीय समद्र तक
छन पवतों ये बंधा है जिन्हे वहां के निवासो परपमिसोस
( 20 []00805 ) छहिसोइस ( [00।00५ ) और हिसमापोस
तथा आअन्यनामों से पुकारत हैं। इसे मसमसिशन ( १॥०८त०७ )
के रइनेवाले काक्रग्रस (| जा । मे कहते हैं। पश्चिम
को सोसा इगड़पत नदों है किन्तु दक्षिण और पूर्व के भाग लो
बहुत विस्तत हैं, वेऐटलाडिक महासागर में छस गये हैं।
भारतवप का झाकार विषम चतुभेज के ऐसा है क्योंकि इस के
बढ़े वाद अपने सामने को भुज़ान्ो से २००० में डियसम अधिक
हैं| दृतनो हो लम्बाई उस भमि फो है जो समद्र में चलो गयो है |
(2०।0-+/४५०३ त/रैम्यपेक(
डरक०७५६-०० ०५-७७७०४
तंब३७ कमानाकक 9५००पता+े-+अके
+०
फ;५» (हकैक - कनसल “>। २३० *«. '+++ न 5७के फिजमन--9 ७० 3.३० ७. अब... ३43 -4%७७०-4+५५७५-०५८५ >जला+लन+ कौ. +कर के+-+०ततक+ वनधिविन
अल5

# भारतवष के विस्तार की विषय में प्राचवोन लेखकों में मत-


मेद है। उत्तर से दखिन सेगस्थनोदा के घनुस्तार १६००० रे डि-
यम है, परीनो के अनुसार २२८०० स्टडियम, डायोडोरस के
अगुसार २८००० झऊं डियस, छोयाइमेकस के भ्रमुसार कहों
२०००० घोर कहाँ ३०००० रू डियमस और टोलेमो के अनुसार
१६८०० स्टेडियम है। इस का निणय करने के समय यह ध्यान
में रखना चादिये कि उत्त सम्रप भारतवप्त काबुल और गाखस्ार
से कन्या छभारों तक समझता जाता था ।
[ १७ |]
मेगस्थनीज पश्चिम को सोमा काकेशस पव॑तों से लेकर
समुद्र सिन्धु नदी के किनारे २ दक्षियणात्थय॒ तक १३०००
सं डियम है। अतएव पूर्वोय सोसा समुद्र में निकलो दुई
२००० झूेंडियम्‌ भूसि को मिला कर १६००० रटेडियम्‌
के लगभग छोगो। इसनो हो भारतवष की चोड़ाई है।
पश्चिम से पुव पालो बोधा तक भारत का विस्तार अधिक निश्रय
के साथ कष्टा जासकता है क्योंकि राजकोय सड़क जो उसो
नगर को जाता है, शोएनो ( 54००वथां ) # से नाप लिया गया
हैं। यह लम्बई में (०००० रूडियम्‌ है। समुद्र सेपालो दोथा
तक गछ्डता द्वारा जलयात्रा कर के आने में जितना समय लगता
है उसो से उत्त केआगे का विस्तार निर्धारित किया जा सकता
है। यह भो ६००० रे डियसम्‌ केलगभग होगा। अतएव पूरो
लग्बाई कस से कम १६००० रूडियस है। यहो विचार एरे.-
स्ोस्थेनोज ( .785/९90९८7९8 ) का है, जिसे वच्त कहता है कि
उस ने राजकोय सड़क के संजिलों को प्रामाणिक वहियों से
निश्रय किया था । इस विषय में मेगेस्थनोज भो उस से सम्भत
है। [किन्तु पद्रोक्तोज लस्बाई १००० सरडियम कस रखता है। |

पच्मम पत्रखणद्ध ।
स्टर्बो।

भारतवर्ष के विस्तार के विषय में ।


फिर हिप्पाकंस ( ॥79])७7/"८४०४ ) अपनो टोका के द्वितोय
(>> कलर." पककजन-काक- 33533
४७ ४,०२५ ७३+ सर सम क>का+-3+-4:34- +:॥+/न्‍क-नट न००.कलम कालत770
8-५केफेकपान:५
३ १०
कैफ ।ननक 'कैनत-न्‍या
५3र
क “बनना नपे
कलनिगचकजत-ज-. 33५“अ-- .3५कलपरीकेभला पल+०+ 7०२०-५3 ५-3 3383४ ३०३०-33 ५५५4१ लन्ड ललकलल टाल अलना ल्जिलताकार |
+"-+9२०२-+०२६ ++न्‍कक 2-3०
3क्‍+ ०० जन 4जी लक--लमक-
2 ---के “जराफमबक्‍ल»

& शोएनो एक योजन के बराबर होता है भोर दस रू डियस


रूगभग एक क्रोस के बराबर है|

अंडे

भाग में परेस्टोस्थेनेज पर यह दोषारोपण करता है कि उस ने


पेड्रोक्कोज़ का अविश्वास किया क्यांकि पेट्रोक्ोज भारतवष को
लब्बार के विषय में मेगेस्थ नोज से असस्मत है। मेगेस्थ मोज
इप्नें (६००० स्ढेंडियम लम्बा कहता है पर पेट्रोक्तोज उस दे
१००० रू डियम कम हो ठहराता है ।
१8 पत्रखरइ ।
स्ठ्र्वी।
भारतवष के विस्तार के विषय में ।
| इसो से मनुष्य मलोभांति सम सकता है कि सब
लेखकों का उत्तान्त एक दूसरे से कितना भिन्र है। टोशियस
( (८०७४४ ) कचता है कि भारतवष एशिया के अवशिष्ट
भागों से छोटा. नहों है। प्रोनेक्राइट्स ( ()०४०7४७० ) इसे
निवासधोरय संसार के द॒तीयांग के तुल्य समझता है। और
नियारकर ( उलट: ) का कघन है कि [ केवल सम
भूमिखणणषेो को पार करने में चार मास लगजाते हैं । ]
मेगेस्थ नोज झोर डिआइसेकस ( 0७8 ९०059 ) के अनुसार

दक्षिण सागर से काकैशस पर्वत पयनन्‍्त २०००० रूडियम्‌


है। | किन्तु डिप्राइमिक्स यह मानता है कि कहों २
लमग्बाई ३०००० से डियस से भो अधिक है। इन सक्षों केविषय
में पुस्तक के पृवभाग में लिखा जा चुका है। |
. सप्तम प्मसणड ।
स्त्र्बो।
भारत वर्ष के विस्तार के विषय में |
हिप्पाकस इस विचार का विरोध करता है वन कहता है
कि इन के प्रमाण मानने योग्य नहों हैं। उस के अनुसार पेढ़ो-
| १८ ।]
ह।

जक्ोज विशस्त नहों है क्योंकि उस से ओर डिआइमेकस तथा


मेगास्थ नोज ऐसे योग्य एवम्‌ सान्य प्ररुषों सेविरोध पड़ता
है। ये दोनों कइते हैं किभारत को लम्बाई दक्षिण सागर से
कहों २०००० झऊं डियम्‌ शोर कहीं ३०००० रूेडियम है।
हिप्पाकस कहता है कि इन का वर्णन उस्त देश के प्राचोन नकशों
स॑ मिलता है।
आअष्टम पत्रेखराड ।
एरियन ।
भारतवष के विस्तार पर ।
मगास्थ नाज के अनुसार भारतवष की चौड़ाई पव से प्रश्चिम
है यद्यपि दूसरे इसे लग्बाइ ऋचते हैं। सेगास्थ नोज कद्ठता है
कि इस देश को चोड़ाई जहां बहुत कम है वहां १६०००
स्डियम है, ओर इस को रूस्ताई उत्तर स दक्षिण जहां सत से
कम है वहां २२३०० ह॑डियम है।

सप्षिसण्डल के अस्त होने तथा छाया विपगोत दिशा


मे पहने के विषय में ।
फिर उस ( एन्रूस्थ नोज ) ने डिआइसेकस को अनभिन्ञता
ओर व्यवदारिक ज्ञान का अभाव दिखाने को चेष्टा को। इस
का प्रमाण उस की निम्नबातों से मिलता था। वच्द भारतवर्ष को
पृथिवों केसध्यभाग %# से दक्षिण समकता था। और मेगास्थ नोज
ल्‍६०५-९०५-०३-००५०५०-:५०-+-+०० जनक जान 3ऑनन्‍+बतलमाजरव जब न डल-+3/2०७००७०००-+०००२०४०५+-न नल नननजननीअल परर »५४५००००+कक+
»ब +नन-।१०७3० 3५०2५-० न
मधु?भा»५-५
लकल्‍का न

# अंग्र जी में यहां निम्नरूप से दिया है। पाक |॥५ फैल


च९ए॥ ९ दप्रवाव॥] €तुतनां॥0-5 कापे छाए (70]00, इस का
अथ में यहो निकाल खका जी ऊपर लिखा है |
[ २० ]
के उस कथन का विरोध करता था जिस में वच कहता है कि
भारतवर्ष दाचियात्य प्रास्तों में सप्तपिंमण्डहल के नचत्र नहीं दोख
पहते भोर छाया विपरोत दिशा # में पढ़ती है। वह विश्वास
दिलाता है कि ऐसो वात भारत में कभो नहीं होतो जिस से
उस त्ती निरो अन्ञानता प्रकट च्षोतो है । एरेक्‍्ट्रोस्थेतोज उस को
थात नहीं मानता ओर डिक्ााइमेकस पर अनलभिशज्नता का दोष
झारोपण करता है क्योंकि वह मेगास्थ नोज के ऐसा यह नहीं
मानला कि भारतवष में कच्ों सप्तषिमण्डश का कशोप होता हे
झथवा छाया विपरोत भोर पड़तो ह ।
दरशम पत्रसलणर्ड ।
प्लिनो-इसिहास |
सप्ततिमण्छल के अस्त होने के विषय में।
देश के भोतर प्रासिशाइ ([2/06॥) के बाद सोनेडेस (/०7-
९१९४) ओर सुआरो (5067 ) जाति ॥' रहते हैं जिन का
सेलियस पवत ( ॥(५॥४५ ) पर अधिकार ह। इस पर बारो से
+क७००क9०७>५५+ पज4पक ३म जन जजकक>+ जा 34 कहेकटरफेललबन उन »ककलला' /3७ ९९५००३५०-५--५ “+०7%०७+- ०७४ /3 ककपक कह सील
० नननन5"जमकक» (2
---3+न-४०५-क ७संलमनरम»भ ०-७८ ब९०)>-+कल०>काजजज | अरन++न ७जाएक००8/(००५०-५०पकछल रे/७०४०
उि॥५०
(2१

*£ सिकनन्‍दर के समय के लेखक नियारकस ओनेसिक्राइटस


झोर बोटो भो ऐसा हो कहते हैं । [डायोडोरस २, ३२५४५, ओर
प्ञिनो-डतिहास, ६, २२, ६, ।
१ कनिइ्नहम साहव लिखते हैं कि प्विनो केमोनेडस ओर
पुग्रारो जाति पालोबोथा के दक्षिण रहते थे। 'नौर आधुनिक
सुर्डझाु तथा सुप्रारो जाति का वह्ो निवासस्थान है। इस से
निश्चय ड्ोता है कि ये वहो प्राचोन सोनेंडेघ ओर सुआरो हैं ।
प्विन। दूपरो जगह सरिष्ठ प्राइ ( ७70५८ ) धो मंलो ( /:। )
का वणत करता है | ये कलिह घोर गड्ा के बोच में रइते थे ।
| २१ |
क्वः मास जोड़ के दिनों में उत्तर काया पड़सो हई भौर गर मो
में छ सास दक्षिण को झोर। बोटन ( 3उक्लाठा ) का
कथन है कि सप्तप्रिमण्हल ( 209" ) रुस प्रान्त में वर्ष में केवल
एक वार दिखाई पहढ़ला है , वह भो पम्ट्रह्न दिनों सेअधिक
नहीं | मेगास्थेनोज कहता है कि ऐसा भारतवष के कई प्रान्तों
में डोता है ।
सालिनस ।

पालोबोथा से आगे मेलियस पल है जिसपर छाया जाड़े


के दिनों में छ मास उत्तर को ओर पड़तो € ओर गरमो के
दिनों में छः मास दक्षिण को भोर वष में एकवार उस प्रदेश में
उपत्तरोय भव इृष्टिगोचर होता है। किन्तु पन्द्रह्न दिनों सेअधिक
भहों जसा, बोटन कहता है, कि कई प्राग्तों में छोता हइ ।
जन
जक-लनाके ५-हकलम “पक--+
“डे निनललका कण- वचन मे "५>न “53२७ 8:0७ ४+५०४क०रे30 ८“
-77+फरफेनाओ)-का+ कम५>७० जज अओ--#
डक अंक 2 केअर+पका किटकक 7०+ +०००२०३४ ७+ककेनक ++-०नना+ 0२०५८- %३५५-००-५-०-३४८ ९००००-०१०००४४६ ००७ ०००+
५> लटक नल ' बन्‍क गजजननी ते मजा तफ्टफटााकी के2०7७-7 %/
“5+०७+-े ९-+७०००+क०क8 +-क+-०- ७०७++७००परकक्‍७-पक 3.७९३बोर २७०+-ीनण+ 3 +क-तवरिरीटजक-०-कर---०++ *+५५भक-न्:कक० क३क। ०व्योजक पक,

मलो के देश में एक पवत मलस ( )५)]४४ )था जो मोनेडेस


तथा सुआरो का मेलियस पवेत समभा ला सकता है। कनिद्न-
चइस साइय का अनुमान है कि ये दोनों मम्दर पवतल के लिये
लिखेगये हैं जो भागलपुर के दक्तिण है। मण्ष्टिआद सम्भवत:
महानदो के तट पर रहने वाले हैं । टोलेसो इस नदो को मनद
कहता है | इस प्रकार मेलो अथवा मेलिआराइ ओर ”टोलेमो के
मण्ड लो (१:॥049०) एक हो हू क्योंकि ये भो गड्ाा के द्षिण
कि तट पर पालोबोधा के दक्खिन रघइते थे। या मेलो राजमहल
के पहाड़िया होंगे जो मेलर ( ४०" ) कहलाते हैं। प्वलिगो के
सुआरो ओर टोलेसो के सबरी ( १४/०7/००7० ) आजकल के
जड्जलो शवर हें जिन का कोई निश्चित घर नहीं रहता। थे
जड़सों में रहते हैं और लकड़ो काटनो इन को जोविका है।
एकादश प्रखर
साउलहत ही का छ्यरत्व के विषय में ]

मेगास्थनोज शार्तवप को उप्जगक्ति वर्णन करता है। वहच्त


कट्टता है कि यह हि ४ दो घार फल और अन्न उत्पसत्त होते
हैं। | एग्टोस्थ नाज | यहा। लिखता है। वत्ष कच्नता है कि
जाड और गरमसा दाना ऋतुगां में वा होता है आर बात
बोया जाता है। किस। वर्षऐसा नहों होता कि दोनों ऋतुओं
में जल न बरस । इस से अत्यधिक्ष उपज हांतो है
क्योंकि भूसि बहुल उम्दरा ४ हक्षों | भा बुल फल निकलता
है। ओर पोध को जड़, विशेष कर के लम्बी डांट वाले
उड्टिदां का खमावतलः तथा लाल पहने पर सभुर हॉते हैं
वबणषा अथवा नदा के अब रे पूने का पट होता हैं और सूझी
शिव घ्‌ | ० नेथा 2 2 अल

कोहा किर
किग्गारा! सेसे इनसे
उस मैंमे गरम)
गरम पहुचतलों
पुचतों हैके जिस
जिम
रू२ इन इन में
हे सउछ
उदास
पड़ता है। एन्ढीस्थनोज यहां एक विचित्र
करता ४। जिस को एसरे फल अथवा पांधां का पक्ष होना
कहते हैंउसे भारतवामी उबाल पड़ना ((१८४०७) कहते हैं
क्योंकि उस से ऐसा उत्तस स्वाद फलीं में भा जाता है जेसा
झाग पर उबाल देन से ।बड़ो लेखक कहता इ्व कि द्वक्षों को
शाखाओं में नम्त्रता जल को गरमो सेहोतो है। उन के पहिये
बनाये जाते हैं। यहां ऐसे भो दस्त हैंजिन पर ऊन उत्पनम्र
फोता है| |
एरेटोस्थ नोज और स्त वोऐसो बड़ो २ नदियों के वाघ्य से
सथा इटोसिया से आये हुए (जल युक्ष ) आंधियों से, णरेटोस्ा-
नोज कचता ह कि भारतवर्ष में ग्रोष्प कालोन वर्षा होतो हं जिस
सवचद्दा को सरातल सूमि भर जातो ह। इसो व्ाकाल में सन
[ १५३१ |
घाजरा, कोदोी, सरसो, धान, और बोस मोरस बोया जाता हैझोर
शोतकाल में गेहूं, यव, दाल तथा अन्य खाद्यफल बोये जाते हैं
जो इम लोगों को ज्ञात नहीं हैं।
द्वादश पत्रसणठ ।
स्ट्वो, भारतवष के कुछ बन्य जन्तुओं के विषय में । मेगा*«
सथेनोज के अनुसार सव से बड़े २ व्यात्र प्रस्चिश्वई ( ८४आ )
देश में पाये जाते हैं। ये भाकार में सिंद्र केदूना होते हैं और
बड़े बलिप्ट द्ोते हैं। एक पोमए व्याप्र को चार मनुष्य लिये
जाते थे, उस ने अपने पिछले पत्च स एक खच्चर को पकष्ठ कर
ओर उसे विवश कर के अपने पाम खोंच लिया ।
बन्दर कुत्तों स बड़ होते हैं। वे उजले होते हैं किन्तु उन
का संंह काला होता है, यद्यपि टूसरी जगहों में इस के प्रतिकूल
भो पाया जाता है । इन को पंछ दो हाथ से अधिक लम्बो
छोतो है। ये बड़ मांधे होते हैं और इन का स्वभाव दुष्ट नहीं
हु थे मनुष्या पर आक्रप्तण नहों करते न चोरो हो करने हैं।

छोते हैंओर जिन में अच्लोर अधवा मध सं भो अधिक मधघुरता


कछोतो ह। इस देश के किसो २ शार्सा में दो हाथ लम्ब॑ सांप
हैं जिन चमगोदड़ों को ऐसा चमसमहू वो समान पतले पाणख
होते हैं । वेरात केसमय चारो ओर उड़ते हैं सौर मूत्र अथवा
पसोने के विज्द्‌ गिराते हैं जिस स पग्रनवधान मनृष्यों के चमड़
पर फफोले पड़ कर बुरे घाव निकल गाते हैं। पक्त युत
बिच्छ भो भप्रसाधारण आकार वाले यहां होते हैं। प्राबनुस
यहां उत्पन्न होता है | कुत्त भो यहां बड़ माहलो और बलशालो
छोते हैं ओर बिना नाक में जल डाले वे अपनों प्र नहीं
[ २४ |

कछोड़ते। वे इतने उत्साह से काटते हैं कि किसो को भांखें


विगड़्ू जातो हैं झौर कितनों को झांखें निकल पह़तो हैं। एक
कुत्त नेएक सांढ़ तथा एक सिंह को पकड़ रखा था ।
कुस्ते ने सांठ का मंह पकड़ा था और उस प्र छुड़ाने के
पहले है सांदू मर गया ।
| श५ ।
अयोदश पत्र खण्ठ # |.
इलियन-- इतिहास
भारतवर्षोय वनमानुष के विषय में ।
मेग्स्नोज कछता हू कि प्रक्थिआइद +* भारत को
७. 73५७७ 304 4९७७:७०४०- /४%+- ५-7*्कअन्‍क हक लाजकलान+. रकम
कह ०४१ » १2२७ ४ -१-+ । '#अं५-
कक, |५कोक॥/३-१2े्क तक ५

% पत्र खणद तजरयादश ( के ) *


इूवल्ियन-- इतिहास ।
भारतवर्णाय बनसमामुष के विषय में ,
भारतवष में प्रसिआनाइ जाति के देश में एक प्रकार के
बनमानपष 'होते हैं जिन्‍हू मन्प्यां केसमान बद्धि छतो है शोर छो
ढेखन में हरकेनिया के कुत्तों केवराबर होते हैं। प्रकृति न इक
जट दिया है जिसे सत्यवात गड्ीं जानने वाला जिस समझ
सकता है । उन की ठद सेटर ' ५॥।५। # ) के समान ऊपर को
झोर फिरो रहतो है और लाए नल सिद्ध को बलिश के के पेसा
छाता च। छन का समस्त शोर श्वत हझ्ाता ए. कंवल सुद्द
झोर यंस को नाक साल इझोता हूं । व बद्ध वृद्धिसान ओर सभाव
सपास साननंवाले 5ते ह। वे जफूला में पाले जते हैं, जहां
वे थम को रहऋुत हैं ॥!र पहाड़ पर के अंगनतो छफनों दो खा
कर जाते हैं। वे बहुत से एकत्र हो भारतवर्षोय लेटेज (,.08/०)
नासक नगर के निकट जाते हुं यहां राजा को गआज्ास उन के
लक्षिये चावल रखा रहता है। वस्तुत: प्रत्येक दिन संस्कृत भोजन
सन के लिये रखा जाता है । लोग कहते हैं कि वेभोजन कर
लेने के उपरान्त शिक्चित रोति मेंजंगलों में जाते हैंभौर राह में
किपो वस्तु को हानि नहों करते ।
| प्रत्य को सद्रेबी, एरियन और प़्लिनो प्रसिआद कहते
हैं, पूयक भोर इलियन फ्राक्यिभाईदर +े कहते हैं ।
जल अब अजन--अक कस अन्‍कयकर पशाक+क-, (५ «रेल पाकर&2०-
3पुारकारवपपन०-. +--२०-तसकमभककफक करन2जकननट..
७०

॥ गहन" '_कन+ फ विवश ० (20400 9-०७' '4?००5०५पका ०५>सक3 ३2;निला#क परत सहीकक/ १-२०कुधककक+यमे#०याकन++परम
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०-०# ३५%कक ०१

# मेंटर ( (0४५४7 ) एक ८े हूं लिफझ; का >अआधा शरोर


सनष्य ग्राधा खस्मो का है |५ 5 १्‌एन०ा 2
2.2]
का] जी |

श्र डे

बे ०]
हि
| २६ |
एक जाति ह। रस के देश में बड़े २ कुत्तों केवरावर वनसागुष
जोते हैं। रुग को पंद्धें पांच हाथ लग्बो होतो हैं, शत्ताट पर

हैं| मुख एकदम श्लेस तथा अन्य भाग शरोर का काला होता
ह। वे पोसने योप्य एवम्‌ मनुष्यों स प्रोति करन वाले होते हैं
भोर अन्यदेशोय वनसानुषों के ऐसा उन का खभाव दुष्ट नह्नों होता ।
चतुर्देश पत्र खण्ड
देकशियम--इतिहास !
पत्च॒युत विष्क झोर सर्पा के विषय में।
मैगेख मोज कइता छू कि भारतवष में बड़े २ पांख वाले
बिच्छ, होते हैं जो यूरोपोय मनुष्यों तथा वहां के निवासियों
को भो छू मारते हैं | वहां सप भो ऐसे हैं निन्‍्हें पांछ हैं। ये
दिन में वाइर नहों निकलते, किन्तु रात को बाइर होते हैं
ओर ये मृत गिराते हैं, जिस के चमद्ू पर गिरने से उसो अणण
गुरै जाब निकल आते हैं।

पथद्श पत्र खा ।
स्ट्र्खो ।
भारतठप के पशु और खम्ब द्च्ों के विषय में ।
मैगेख मनोज कइता है कि कितने बन्दर ऐसे हैं लो चट्टाम
गिराते हैं। येएक दम दढालुए ख्लों पर भी चढ़ जाते हैं झौर
वहां सं अपने पोछा करनेवाशों पर पत्थर बरसाने खूगते हैं।
वह कहता है कि वषुत से खम्तु जो हसमलोगों के यहां घरेले
हैं वेभारतवष में जश्नलो हैं। बह ऐसे घोड़ों का वर्शन करता
हे जि एक सौंभ होता ह और शिर इरिण के समान होता है।
।8 २३ !।

वह कहता है कि कुछ रूस्बे इच्च सोधे लोख झोगिया #


तक उपर जाते हैं झोर दूसरे भूमि पर पड़े हुए पचास भौगिया
तक बढ़ते हैं। ये तोन से रू हाथ तक मोटे होदे हैं।

पद्रदश ( के ) पत्र खण्ड


देलियन--भारतबष के कुछ पशघक्नों के विषय में
गे कहते हैं किभारतबष के मध्यवत्तों मण्डलों मेंकितने
भरगम्य पवत हैं जिम पर वन्ध पश विचरते हैं । वहां इमारे देश
के पशप्नों के सम्रान जन्तु भो जाते हैंपर थे जइ्नलो हैं। कहा
खाता है कि भेड़ो कुतें बकरे भर बंसल स्व स्छामनुप्तार सड़लो के
शेसा घूमते फिरते हैं क्योंकि वे खतन्त हैं झोर गड्रियेभादिकों
के वश में महों हैं। भारतवर्ष के दत्तान्‍न्स लिखने वाले इस बात
को स्तोकार करते हैं कि वे असंख्य हैं। ओर येहो नहों किन्तु
उस दृश के विद्वान्‌ पुरुष भो जिन में ब्राचमन १९ 878८॥0॥878 )
मान्य है, यहो वात सिद्ध करते हैं। यह भो कह्दा खाता है कि
भारत में एक सोॉंग वाले जन्तु होते हैं जिन भारतवासों कट-
सोम कहते हैं। यह पूर्ण युवा घोड़े के भझाकार का होता है ।
इसे चीटो होतो है और इस का बाल पोला तथा सम के ऐसा
कोमल होता है। इस के पर बड़े सुन्दर चोर वेगवाले होने
हैं। इन में गांठ नहों होता और इस्ति के पेर के समान इस
का गढ़न होता है। इस को पंछ शकर को पंछ के सट्टश
इोतो है। इस के भोप्रों के बोच सेएक सींग निकलता है।
०8.३० 2इवाव-क-45९कम्डक+क, ७७ ४ >न्‍मना-क अमल '
कर फतवा.
आफ +-रा#अमन ३ब० 8० ३ औ७-.>-- 4०-+-+०--> जल
जजकी + फकिग-नतीे- करटननिसकक फन+क+कत+ नेज०-भ०>> -+३७-३०००-०१००-- कलनननाओ (लकसरजन्‍अकरत/ "करन पल
'(७+हयक ४4-७ ०6१०३//१५ »:३०००७ ५व्होन३०१३७, (७५५ ५4७७ -रकर

# एक ओगि या चार झ्ञाथ के तु्य झोता है ।


* सम्भवतः ये ब्राह्मण है
| रुप |
हि

यह सोधा नहों होसा किन्तु खाभाविक रुप मे ऐएंठा रहता


है। यह रंग में काला ओर भघत्यम्त तोक्षा होता है। ऊंसा


हार में घुना हे इस हुन्तु को बोलो अत्यस्त ककंश ओर स्व
फूल है! घशत्य हन्तु्धा को यआ अपने निकट झाने मेला है
कद उछन थे अच्छा र्ाइछार करता है. किन्‍सत लोग कहते
कि अपनी जाति में यह कगहता है| इस जाति के नगः हऊनन्‍्तुओआं
को नहने को स्वाभाविक दच्छा हंतलाो है। ये केवल मर हो
से नहों किन्तु माटे से भो सोंग भा कर लड़ते हैं ओर लय
तक पराजित प्रतिधन्दी मगर नहों जाता तब तक नहीं छोड़ते ।
दस का सारा शगोर देसा बलवान नहों होता पर इस के सोंग
में इसमनो शक्ति रहतों हैकि कुछ भो उसे रोक नहीं सकता।
एकाम्स स्थान में चरसा आग घसना इसे रुचिकर है। परन्तु
सुपयुकझ्ष ऋतु मे यह सदियों का संग खोफाण है पग्रार प्रति
पूलकछ उन से व्यवहार करता है । दशा २ दोगों पक साथ
चूरत जा है! यह चहतु ज।त ऊाड पर जब स्थिर्या गभवता हो
खाता हे लब तद़ भा कऋरण़ डो लाता है और निञज्ञन स्थान
खसाजन लगता है। इस के वच्ष प्रसिशझार के राझा के पार
हाये जाते हैं औत सावजलनिम लताशां से लखाये जाते हैं।
एक हल राणा का सात सर 5 काली पका नद्धों गया है |
(०१ ) यह काहा जाता है कि ज। यात्रो उन पवतलोीं को
्ांवता है, ऊछो ससुढ़ से बहुल दर भारतवर्ष को सोसा पर है
सम कोरूडा ( !:./7 मण्उज् भे॑ घने जड्ल से दढंके शब्फ
नाल मिलते हैं । यहां एक विचित्र प्रकार के जन्तु शाते हैं । जिन
की ग्राक्नत संटर (४५५७ ) के समान होतो है। इन का
सारा शरोर बड़े २ वालों से छित्रा रहता है भोर घोड़े के ऐसा
| २८ |
डू्हें पक छोतो है। जब तक इन्हे छेडा गझों खाता तब तक
ये काडियों मेंफल खाकर रहते हैं। किन्तु जब ये आपिटकों
का हल्ला ओर कुत्तों का भूंकना सनते हैं सब बहू वेग मे
डालुए पर चढ़ जाते हैं, क्योंञ्रि उन्‍्हं पवत पर चढ़ने का
अभ्यास है। वहां से वे अपने शत्रुओं पर चट्टान गिरा कर
अपनो रक्षा करते हैं इस से जिन को चोट रगतो है ये मर
भो जाते हैं | जो जन्‍्तु पत्थल गिराते हैं उन का पकडुना सद मे
कठिन है। नोंग कहते हैं कि कुछ छान्तु बड्ो कठिनता ये
झोर गहुत दिनों के बाद पकड़ कर प्रसिश्ादइ के निकट लाये
गये थे, किन्तु येसब गरोगग्रस्त थे अधवा गभवतों मादाथों।
शगणा जन्तु टुब्ल होने के कारण भागने में अससथ थे झभौर
गभयुक्न जन्तु पेट के बोक से दोड़ महों सकते थे ।

पष्दटरश पत्र खण्ड ।


प्ञिनो--अजगर के विषय में ।
मंगास्थ मोज के अनुसार भाग्तवष में अजगर इतने बढ़ २
हाते हैं कि वे इरिण और सांढ़ को सम्मणा निगख जाते हैं।

सोलिनस ।
अजगर इतने बड २ होते हैं किहरिणझ तथा घन्य रस के
तुच्य जन्तुआं को एकदम निगल जाते हैं ।

संददश पत्र खण्ड |


इलियन--विदायत्‌युक्ष मझछलो के विषय में ।
मुझे मेगास्थ नोज णे ज्ञात इच्मा हैकि भारतवर्षोय समुद्र
भें एक प्रकार को छोटो समकृलियां होतो हैं जो लोवित कभो
| ३० ।
गहों देखो जातो हैं, स्थॉकि वेसदा अधिक जमख में तेरतो
हैं सोर जब सरतो हैं तभों जल के ऊपर उतरातो हैं। यदि
कोई ममुष्य उन्हे छता है तो वह संज्ञाशम्ध दो जाता है ओर
अन्त में मर भो जाता ह |

अष्टादर पत्रसएद ।
क्‍्िनो---तपप्रो
बेन # ( पु५]7०>8॥९८ ) के विषय में ।
मैगाख नोज कहता है जि एक नदो तप्रोबेब को भारतवष
से प्रथक करतो है| वहां के निवास्रों पेलायो गोमाय |(7%ा0-
४000] ) कचइलात हैं और दस देण में सुबण झोर सोतो भारत-

बष से अधिक इोता है।

#* यह बोप अनेक नास मे पुकारा गया ह।


( १ ) लक्षा--संस्कत ग्रय्थों मेंयद्द मास प्रसिइ ह किम्तु
ग्रोक तथा रोमन लोगों को यह एकदम जात महों शा ।
(२) सिमण्छ (070 पते) या पले सिमण्छ (24९80॥0 0७ )
बम्धवत: पामो सोसम्त का अपभ्नंश हू । टौलेमो के समय के
पूव हो यह व्यवहार से छठ गया था ।
(३ ) सप्रोबेग--संस्कत ताम्त्रप्शों का भपब्दंधग समभका
जाता है। पालो में यह ताम्य पत्तोंकहलाता है झोर अशोक
के गिरमार वाले शिलाशेख में यह खिला है ।
( ४ ) सेसाइस, सशाइन, सरेबोस, सिरलेडोवा, खेरेमडोब,
जखोखन ,सोखोन ये सब सिंहलख के अपभ्यंश हें। छिय द्ोप से
निकला ह।
+' पालोजना: का अपस्श प्रतोत होता ह।
[| ३१ |
सोलिनस ।
तप्रोबेब ओर भारतवर्ष के मध्य एक गदो बहतों है जो
दोनों को एथक करतो है। इस के एक भाग में भारतवर्ष से भो
बड़ २ इस्ति भोर अन्य जद लो पशु रहते हैं झोर दूसरे भाग
पर ममुष्य का झाधिपत्य है ।
हि |
बी. ४
एकानावरशात प्रखर ।
ऐस्टिगोसर---जलदठचों के विषय में ।
इशिहुका ( ]70॥:9 ) का प्रणिता मेगारगोख कइता है कि
भारतवष के रुमुद्र में दल रुपजत हैं।
विंशत पत्रखण्ड ।
एरियन---सिन्धु और गह्ना के विषय में ।
[ परियन का अनुवाद देखो | ]
विशत ( क ) पत्रखण्ड ।
प्लिनी ।
प्रोमस ( 7705 ) और कनस ( (४8 ) [ गज़प को एक
सपशाणा | दोनों मदियां जलयाम चलाने योग्य हैं। गष्ठत के
निकट रहने वाले समुद्र के समोप कलिड्नी #([ (४१6 )
खाति हैं। कुछ ओर ऊपर मरणिष्ठआाइ गोर सलो निवास करते
हैं लिन के देश में मलस पवतल है। इन सव प्रान्तों को सोमा
गड़गा है । कुछ लोगों ने कद्ा है कि यह नंदो भो नाइल के
सप्तान अज्ञात स्थान से निकलतो हू और सो प्रकार जिधर से
झो कर वह बहलो है छघर समस्त देश को बढ़ातो हैं। किन्तु
कक शोगों का विचार हू कि यह स्क्रदिया के पव॑तों सेनिकलो
हैं। इस में सम्नोस नदियां गिरतो हैं जिन में ठपयज्ञ के
न जनकन फलनधोयीत-पा
भषमनाथ जप बनगाकतालीजननीपलिकएन
अभीगलक ततिनिनिभलाएफ कल ०क २॥३४- २०२२«+
*++कमल०००० ४५«०+२०२०करर +०१>पकम ७३७०4 #“कक 2>%4.करकनक4 >-+-«-त०कैती-पमपपक+>-अलकननन
3०3०६ कंसमपक के!कक ५पक ।7 ».:वा-+की>जक। अर रन“नजननी कक बनायी पा आना "जन किन ललित फलनिननपनकेलक+-+ पी *क-नया पिलननायकम न 342५तलफकपक्रा। »न>ज जप. (०जन कमर ७-0फननेरनकर०कककर-०-०करनी पैक केकक.

# ये गोदाबरों ओर महानदों के बोच में बसते थे ।


| 8२

अतिरिक्त कोम्डीयटोल, एरेखोनी भास, कोसोएगस, भोर सोमस


झलयाम चलाने याग्य हैं। अन्य सनुष्यां का कथन है कि यह
गजतो हुई एफ्ापएक करने थेसनिकलतों है भोौर एक दालुए
पहाड़! स्त्रात भ गिगत।| हुई उ्योक्षो समभभि पर पहुंचता है
वंस छो एक माल में प्रवेश कर जातो है। वच्चलां सयरकूु धासे
प्रवाह + दहल। है भौद किसो स्थान में श्राठ मोल से करू चोट!
नहों है। सव सिला कर देखने से इस को चौड़ाई सो रू शियम्ल
होतो है ओर कम से कम इस को गइराई बोस फंदम # है ।

सॉलिनस '
भारतवर्ष में सब से बड़ो नदियां गड़गा ओर सिन्धु हैं कक
लोगों का कथन ह कि गद्ना अच्चात स्थान ४8निकलतो हू ओर
माइल के सटश भपने तटस्थ स्थलों को घोतो है। किन्तु क॒छ
सतोग सोचते हैं कियह स्कोदिया के पवर्तों संनिकरूतों है।
भारतवष में एक बड़ो नंद छपनिस '' ( 9४6 ) भो है
जहाँ तक घिकन्दर चढ़ कर गया धा। इस के किनारे जो स्त॒प
बन थे हसो से यह प्रात होता है। गंगा को चौड़ाई कम पे
कम आठ मोल और अधिक से अधिक बस मोल €। इस को
गऋइरापन जहां सब से कम ह वहां सो फोट हई ।
पत्रचण्ड ।
कक लोग कहते £ कि कस से कम (गड्ा को ) चोहा
लोस रू डियम है ओर अन्य केवल तोन हो स्ट डियम बताते हु ।
मेग स्थे नोज कहता हू कि सब मिला कर ओसत घोडाई सौ
से डियस हू भोर कस से कम बोस ओगिया यह गहरो है ।
|नाइंगनमक '
कक +५वकक गाु '३#+कक »०-१-+ ++770७%-कन्‍की-++>पत
“००४००«०+ २०२०क० ५ ८.०. ,
सबक >ककपकी५
“तन०-क०फक.:००७५५०
»#७२०७७० ७५ ००५०५ >>२३७8-०८) ००-34५ ०4७) ५ +०+५+क५-++की नन की यो हजक कक ७०९०३७-२र ०-काकनका- पक१२... डर हर १
नपदरामिह ००१७-७० ०४०
कक ०२०

*€ एक फदम कः फोट के बरावर होता ६ ।


+ रुफसिस अथवा सतलखण भो |
[ ३१९ ]

एकविशत पत्रखण्ड ।
एरियन--सिलास नदी के विषय में
| आगे एरियन का प्रनुवाद देखो ]

द्वाविशत पत्रखण्ड ।
बोआस्सनेड--खिलास नदो के विषय में ।
भारतवष में सिलास नामक एफ गदों है। जिस भोल से
यह लिकलो है उसो है मास के झ्रनुसार इस का नास पढ़ा है |
जो कुछ इस में फेंकां जाता है वह खउतराता नहों, किन्तु प्राक्ष-
लिक नियम के प्रतिकूल नोचे बंठ जाता है ।

त्रयाविशत पत्ेखरणड ।
सर बो--घिलास नदो के विषय में ।
( स्ेगास्थनोज कहता है कि) पहाड़ो प्रदेश में सिन्‍्तास
नामक एक नदो है जिस पर कुछ महीों रलबाता। छिसो क्रोटस,
जिस ने एशिया के अधिकांश भागों पर भ्वमण कियाशा, इस
बात का भ्विश्वास करता है और एरिस्लाटल भो इसे नहीं
सामता ।
चतुर्विशत पत्रखण्ड ।
एशियम--भा रतवर्षोय नदियों को संख्या के विषय में ।
[ एरियन का पनुवाद देखो |]
[| ३४ ।

द्विताया भाग ।
पश्चविशत पत्रखण्ड |
स्ट बो-पॉटलोपुत्र नगर के विषय में ।
मेगास्थनीज के अनुसार गड्ठा को भौसत चौडाई सो मे छियस
और इस का गहिरापन कस से कम बोस फेदम है। जहां इस
नदों से एक्क दूसरे नगदो का सड्डसम हुआ है वहीं पालोवोधा
स्थित है। यहनगर अस्सो में डियम लम्बा भर पम्द्रह्न चीड़ा है!
इस का आकार चतुभज है ओर काठ को भोत से घिरा इचआ है,
जिस में तोर छड़ने के लिये छिद्र बने हुए हें। इस के सामने
इस को रसता के लिये एक गत है, जिस में मगर के मालियों का
लल गिरता है। जिस जाति के देश में यह नगर स्थित है वह
भारतवर्ष में सव से विख्यात है। यह प्रसिश्राई कछलाते है
राजा को पालोबोधा का उपनाम घारण करना पड़ता हैं, जखा
सम्ट्रकोट्म ने किया था, जिस के यहां मेगास्थनोक्ष राकदूत
बना कर भेजा गया था [ यह प्रथा पाथियन लोगों में भो प्रच-
लिस है, क्योंकि वहां के सभो नरेश अरसाका ( /35985 ) कह
नाते हैं, यदापि सभों का अपना२ विशेष नाम है। यथा झआरोडोस,
फ्राटोस, इतयादि | ]
अनम्तर यह लिखा है '--
इपानिस नदो के बाद का सब देश समझा जाता है कि
बहुत डबर है, किन्तु पूर्ण रूप से इस के विषय में कुछ अत
गहों है. दूर तथा अज्ञात होने केकारण इस देश के विषय में
सब बात बढ़ा कर अथवा विचित्न बनाकर कहझछो जातो है।
[ ४३४ ।
कथाएं कझछो जातो हैं कि चींटियां खोना खोद कर निकालतो
हैं, सनुष्य तथा पशु विचित्र स्वरूप के होते हैं और अड्भ तगुण
घादइगा करते हैं. सोरेस नह ( ५6९५ ) दो दो सो्‌ वर्ष लक को ले हें ।

वे उच्च जातितंत्र-राज्य-प्रणानो का वर्गग करने हैं, जिस में


पांच सहसत्र विचारकर्ता हैं। उन में से प्रत्यक्ष राज्य को एक
ऋाधो देता है|
मेगास्थनोज कहता है कि सब से बड़ व्याप्र प्रसिआई के
देश में पाये जाते हैं इत्धादि | (दादश पत्रखण्क देखो ) |

पष्टविंशत पत्रखणड ।
एरियन इणिटिका |
पाटनोपुत्र और भारसवासियो के स्वश्ाव के विषय में ।
और भो यह कहछा जाता है कि भारतवासोी झत मनुष्यो'
को स्मति के लिये स्तृुप आदि निर्माण नहों करते और समभते
न्‍्कि मनुष्यों के सट्गुण जो उन्हों ने अपने जोवन में दिखलाये
हैं, और गोले, जिन में उन का यश वग्ित है, गे मरण के उप:

राग्स उन को कोर्ति स्थायो करने के निये अलसम हैं। किन्‍्स


जन के नगर इतने अधिक हैं कि लोग कहते हैं लग को संख्या
मिथित रुप से नहों कछो जा भकतो।! जो नगर नदों अथवा
ससुद्र केकिनारे बच्चे हैं वें ईंट के बदले काठ के बने होते हैं ।
ये थोड़े को दिनो' तक ठहुरने के तात्यय मे बनाये जाते हैं,
ज्योकि घोर वष्टि तथा पाखवर्तों समभूमि को डबा देने वाले
२९०४० 4... ०७--००नक& कल७3४ +>व००मगाक.9-५क
७००५० +५-4 धन “57:4० जन ता नल न+ तेअशिनिननीनन
लेकिन न+ >पििननललिकमन जीन नलहल हच- " 7 7 ्ल््ल् 'बल+३० ५०५»... ५-7:०+क+ ५५७७५२५५०मक३->ल्‍ कसा५ननकक. कक+-3+ अमनकन+5 ' 4 ५. है रे 2,

# क्षिसों जाति विशेष का नाम नहों है; किन्तु रस देश के


निवाशियो' के लिये झाया है, जहा रेशम होता था। मोर ८ रेशस |
[ १६ ]
बाढ़ से बड़ो डइामि छहोतो ह। और जो नगर सुरक्षित एवम्‌
ऊ ये स्थानों पर बसते हैं वेईंट तथा सिट्टो के निर्मित होते
है। सव से बड़ा नगर भारतद्र्ष में पालोबोधा हूँ! यह
प्रसियन लोगो के राज्य में हं। यजह्ष गड़ा तथा एरामक्रोवोशास
के सद्धस पर स्थित ₹। गड्ा सब नदियों से बड़ो हे यौर
एराश्नोबोग्रासम ( [.3/7]0!0035 ) भारतवष के सब ने बड़ी
नदिया में ढतोय है तथापि भनन्‍्य देश के बड़ो से बडो नदियों
शा

गिरतो है। मेमास्थनोज कहता है किइस नगर को बस्तो बड़ों


लस्बो थी | दोनों भोर अस्सो से डियम तक यह फलो हुई थो।
इस को चोडाई पन्द्रह् रुडियमस थो झोर जो गत इस के
चतुदिक था वह छः सो फोट चोडा भोर तोस हाथ गहरा था।
झोर इस को भोत पर पांच सो सत्तर ट्ग थेओर उस में चोलठ
हार बने थ। वह्चों लेखक यह ध्यानयोग्य बात कहमा है कि
सभो भारतवासो स्॒तत्र हैं ओर उन में एक भो दास ( गुलाम )
गकों है। यहां सक लेकिडिमोनियन और भारसवासो में
सभ्यता है, किन्तु लेकिडोमन हेलट ( 0)0: ) को दास बना
कर रखते हैं, जोउन के तुल्य कामो' को किया करते हैं। पर
भाग्तवासो विदेशों से भो गलास के ऐसा व्यवच्नार नहों करते,
ब्रपने टेशवासो के साथ कहां सक करेंगे ।

सतावशत पत्रखण्ड ।
रे बो--भार तवासियो के स्वभाव के विषय में |
भारतवासो रचित व्यय के साथ रहते हैं, विशेष करके जब
वे शिविर में निवास करते हैं। वे अशिन्तित समृष्यों' को भोड
[ ३७ |)
पसन्द नहीं करते, इस लिये सथम नियमों का भक्तो भांति
पालन करते हैं। चारो भत्यन्त कम होतो है। मेगास्थेगोज़
कहता है कि सनन्‍्द्रकोट्स के शिदघिर में चार लक्ष मनुष्य थे, किन्तु
शिविर में रहनवाले किसो दिन दो सो ड्राका से अधिक को
चोरो नहीं सुनते थे। यह भो ऐसे मनुष्या' में है, जिन्हं कोई
लिपिवड नियम नहों है ओर जे लिखने नहों लानते, जिस
कारण से उन्हें स्मश्णशक्ति पर अधिक निर्भर करना पड़ता है।
तथापि वे पूण सुख से रहते हैं, क्योंलि उन के स्वभाष सरल होते
हैं ओर वे व्यय कम करते हैं| वेयज्ञ कासमय छोड़ का और
कभो सद्य नहों पोते | वे अपने पोने के लिये चावश् थे सद्य बनाते
हैं, यव मे नहों। उन के खाने का पदाथ भात और दाल्तहै।
न के कानून तथा प्रतिन्नापत्र को सरलता इसो बात से प्रमाणित
होतो है कि वे अत्यन्त कम न्यायालय को शरण लेते हैं |छन के
यहां जमानत शअ्रधवा जमा रुपये के लब्बन्ध में कोई धअभयोग
महों होता, न उन्‌ह सुद्रा या साक्षियों को भावश्यकता होतो है।
वे योंह्ों रुपये जमा करते ओर एक टूसरे में विश्वास रखते हैं।
वे अपने घन तथा ग्टहों कोसाधारणत: अरक्षित छोड़ जाते हैं।
दल सभों से विदित होता है कि थे शान्सिप्रिय ओर उच्तम
बुद्धिवाले डोते हैं। किन्तु कितने काम वे करते हैं जोसमधथन
करने यंग्य नहों हैं ।जेंम्ते वेसदा अकेले भोजन करते हैं; उन के
लिये कोई खसय निश्चित नहों है लिस समय सब कोई भोजन
करें; लिस को जब इच्छा होतो है तभो वह खाता है| सामाजिक
तथा ज्ञातोय जीवन के लिये इस ह# प्रतिकून प्रथा प्रचलित करना
झधिक श्ेय होगा ।

शरोर में धक्का लगा कर व्यायाम करने को प्रथा शन को बहुत


प्रिय है। यह कई प्रकार से ढोता है, पर विशेषतः आवनस के
[ शृष ]
चिकर कुन्दे शगोर पर चला कर ये कसरत करते हैं।इन को
समाधि ( क॒त्र )सादो होतो है ओर झलकों के ऊपर चबूतरा छंचा
महों डठाया जाता है| अपने छौोवन को सरखता के विसद्य वे
ग्राभूषण और चमक दसमकवाले पदाथ पसन्द करते हैं। छन के
कपड़ों पर सोना का काम किया रहता हे ओर उन में बचुसूल्य
पत्थर जड़ रहते हैं ) वे अत्यन्त कोने मलमल के फशदार वस्छ्
भें! धारण करते हैं । उन के अनुगामो सेवक छनहें छत्नो लगागे
चणते हैं। सोन्दय्य का वेभधिक विचाद रखते हैं ओर प्रत्य क
प्रकार से अपनो शोभा बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं। सत्य ओर
सटगुण का वे समान आदर करले हैं। अतप्व वे हह्नों कोविशेष
झधिकार नहों ट्रेते, जब तक उन के पास अधिक वुद्धिमत्ता नहीों
पायो जातो ड्रै। वे भनेक स्त्रियों सेविवाइ करते हैं |इन के माला
पिता को दो बेल देकर वे इन्‌डे क्रय करते हैं। कुछ खियों को
योग्य सहायक समक्त कर वे उन से क्वाइ करते हैं ओर दूसरों
की पुत्रेत्यादन एवम्‌ आनन्द करने के लिये ग्रहण करते हैं |
स्त्रियों कीसतोत्व रक्चा करने के लिये लाचार नहों करने पर वे
कुलटा हो जातो हैं! बलिदान अथवा मद्य चटाने के समय राई
मुकुट नहों घारण करता । जिस को वज्षि देते हैं उसे करे आदि
से भोंकते नहों, किन्तु गला दबा कर प्राण लेते हैं, लिस मैं देवता
को कोई विदोण वस्तु नहीं अर्पत हो |
मठ गवाहो देने के लिये. अभियोग प्रमाणित होने पर
अभियुक्ष के हाथ और पर काट लिये जाते थे। # जो मनुष्य
कर १ बकफा कलन जज+ पु कलर जम लक हलक चीन.

* अंगरेजं) में 5०पर्तटटाड 7पा!4070 छा ॥5$ रा €६


लिखा है। इस का अनुवाद यह्ो ठोक जंचता है !
[ ३८ ]
किसो का कोई अड्ड काट लेता है उस का भो दप्ड्स्तरूप से
वहो अड्ः भोर हाथ भो काट लिये जाते हैं।यदि कोई किसो
शिल्प झार को हाथ अथवा आंख विह्ोग करता है तो उप्ते प्राण-
दण्ड दिया जाता है। वहो लेखक कहता है कि भाग्तवासो दास
नहों नियुक्त करते ! [ किन्तु आनेसिक्राइटस का कधन है कि यह
विशेषता छश्ष प्रान्त में थोजहां सुसिकेनस राज्य करता था | १' ]
राजा के शरोर को रक्षा का भार स्त्रियों पर रहता है। इन
के माता पिता से ये क्रय को जातो हैं। राजा के सनिक रक्षक
झर अवशिष्ट सारो सेना फाटक के बाइर राजा का अनुगसन
करती है। जो स्त्रो सद्य से मतवाले राजा का प्राणघात करतो है
उस भे राज्य पानेवाला विवाह करता है | पुत्न पिता को सम्पत्ति
प्राप्त करते हैं । राजा दिन के समय रहां सो सकता भौर रात
को उसे समय समय पर शय्या बदछनों पड़ते हैं, जिस में उस के
प्रणापह्रण करने के लिये पडयन्त विफल ही ।
राजा केवल युद्ध हो कें समय नहों किन्तु न्याय करने के
लिये भो महल छोड़ कर बाइहर जाता है | तब वच्ध न्यायालय
में दन भर रहता है और विचार के कारय में क्षातर नहों हा।न
दला, यद्यपि उच्च के शारोरिक कृत्य का भी समय हा जाता है।
इस समय वह काठ के खोखले डन्ड से अपना शरोर मर्दन
कराता है। वह अभियोग सुमता रहता है जिस समय चार
इनुचर उस का शरोर दबाते रहते हैं । दूसरे यज्ञ करने के
लिये भो वह्च महल छोड़ता है | तोसरे आखेट करने के
समय भो जब वह बक्क नेलियन के दड्ढ स्ले प्रस्थान करता है
के. 2५-५० “सीकाका अन्-»+ममकारन ५०3०० ००+३३००००मन>काक-2न/व
जहनव॒२८०५०केकिटकी है५ज?मज-प--#
कमान ल्‍00/७५ “० डिलललनिजन ललितगा
+*" "ततजिकलनन» ककनिनक-कल कन+रीनकनकम लाएजलन + “777
ऑल ल-नि-
०.५५- (०अेकक ५।०५-०+# « उो्माक+83
.))/३५+नव
* न
लजककशक
कं की

)' इस का राज्य सिन्धु नदो के किनारे था ।


| हे०

स्त्रियों केसमुद्र समवच्द घिरा रहता है। इस के बाद बक्धारों


संनिक रहते हैं | सड़क रम्स से घिरा रहता है और रस्स के
भोलर जाने से मनुष्य और स्थो दानों के प्राण लेलिये जाते हैं।
ठोल और घरगरट के साथ मनुष्य आरे २ चलते हैं। घिरे स्थानों
मे राजा ग्राखेट करता है और मचान पर से तोर छोड़ता है!
उस के समोप दी तोन शस्तधारिणों स्क्ियां खड़ो गरहतो हैं।
जब वह खुले स्थान भें सूगया खेशता है तब हाथो पर चढ़ कर
तोर चलाता है। स्त्रियां कुछ रछ, कुछ घोड़े और कुछ हाथियां
पर भो रहता हैं| वे प्रत्य रू प्रकार के अखशस्त्र सेसुसज्जित रहता
हैं, मानों लड़ने के खिये जातो हों । *
| थे सब भ्राचार हमारे देश के आचारों को मिलान से अद्जत्‌
खास हाते हैं. किन्तु निम्न प्रथाएं लो श्रोौर भी आश्रय जनक हैं। ]
मेगास्थनो ककहता है कि काक्रेशसम + ९७७८७००५ । के निवासो
सब के सामन स्थियों के साथ सच्चर्ठ करते हैं ओर अपने सम्म न्धियों
का मांस खाते हैं + । वहां ऐ५ बन्दर हैं जो पत्यर गिराते हैं
इत्यादि. (इस के बाद प्चदश और पएरकोनचजिंशल परचखर्ट
लिसाहे।!

पत्रखण्ड सप्तावेंशत( क )।
देजियन |

भारतवासो न सूद पर रुपये देते हैं आर न कज लेना

# अभिज्ञान शाकुन्तन नाटक में राज़ा ट्ष्यन्स यवनस्त्रियों


के माथ झाशजिेट करने गया है ओर जड़लो पुष्पा को माला घारण
किये हुए टिखलाया गया है |
इज दोनों प्रथा का हरो डाटप ने भो लिखां है ।
[ ४१ ॥
जामते हैं। किसो को खति करनो या शति सद्मो भारतवर्ष
के आचार के विरद्द है ग्रतएय वे म किसो से पण करते है झोर
न जम्तानत मांगते हैं |
० प
पत्रखण्ठ सप्रावेशत (ख )
निकोलास उससकस ।
भारतवासियों में जो मनुष्य जमा किया इचा अथवा के
दिया इुच्ा रुपया फर नहों ले सकता उस के लिये कानन के
प्रमुसार कोई छपाय नहों है। रुपयाबवाला अपना दोष देगे
के भतिरिक्त कुछ कर नहों सकता ।

पत्रखण्ड सप्तविशत ( ग )
निकोलास डससकस |
को समृष्य किसो शिल्पत्ञार को आंख फोड देता है अथवा
छाथ काट सेता है उसे प्राणट्पह दिया जाता है। जो मनुष्य
घोर टुष्क्स करता है उस का शिर मंझुवा देने को राजा भाजञा
देते हैं। इस प्रकार का दराड़ सव से जड़ा निकार समझा
छाता है ।

अष्टाविशत पत्रखणड ।
ए्थेन ।
भारतवास्तियों के खाने के विषय में ।
मेगास्थनोज अपमे इण्डिका के द्वितोय खण्ड में कक्ता कि
भारतवासियों के खामे के समय उन के सब्यख एक लिपाइ के
ऐसा टेबुल रखा जाता है। उस पर सोना का एक कटोरा
[ ४२ ]
रखा जाता है। इस में वे पहले चावल देते हैं। जिस प्रकार
छस लोग यव इसमते हैं उसो प्रकार यह छसना रहता है।
बूस को उपरान्त गाना प्रकार के व्यत्ज़म भारतवष को चाल के
बने हुए परोसे जाते हैं ।

एकोनविंशत पत्रखयह । ७
स््बो।
काल्यनिक जातियों के विषय में |

किन्तु काल्पनिक बातों को कहते छुए वच्च वणन करता


है कि वहां सनृष्य पांच योता और तोन बोता ऊंचे भो हैं। इन
में संकुछ सनमुष्या को नाक नहोँ है केवल मुख के ऊपर स्वांस
लेने के लिये दा छिट्र हैं। झोसर कवि ने अपम काव्य में
७५ *2/टाकलनण आड़ ॥3नलेन्‍बढपक ०5१३ जब आन |, - के अं पक+ हजकआ० | २० >> १7० उतने

# स्ट्रवो :-- डिब्राइशिकस और मेगास्थनोज विशेष कर


के विश्वास करने योग्य नहों हैं। ये हो कधाए' कहते हैं कि
मनुष्य अपन कानों में सोते हैं, मनुष्यों केमुख नहों होते,
मनुष्यों को नाक नहों होतो, मनुष्यों को एक हो आंख होतो
है मनुष्यों केबद्डे छम्ब पर होते हैं अथवा मनुष्यों के अंगूठे
पोछे को भोर फिरे रहते हैं। इम्हों नहोसर को कल्पित कथा
फिर से निकालो कि ख्ारस ओर पिगमो, को केवल तोम हो
श्ित्त के होते वे उन में युद औतो है। इम्छोंने सोना खोद
कर निकालने वालो चोटियों के विषय सें का है। ये कहते
हैं किमन देवताओं के शिर नोकोले होते हैं, और सर्प बेल
तथा इरिण को सींग के साथ निगल जाते हैं। एरटोस्थनोज
कहता है कि य दोनों एक टूसरे को झूठा भो बनाते हैं।
[ ४३ |
शिखा है कि सतोन विफत्ता के मनुच्यों मंसाथ सारस झोर
तोतर युद्द करते हैं। ये तोतर हंस के वरावर होते हैं। इस
जाति के मनुष्य # सारसों केअछ्छ एकत्र कर के उन्‍ह फोड़ देते
हैं। इन्हों केदेश में सारस अण्डा पारते हैं इसो से श्वारस के
अण्ह झोर बच्च दूसरे देशों मे' महों पाये जाते। प्रायः सारस
बच घायल ड्ो कर असर को पोतल वाली नोक लिये इुए भाग
जाते हैं । उसो प्रकार असंभव कथा एनोटोकोइटे शर (4.0[:0॥0-

(5 ) लकूलोी समनुष्य भोर अन्य विकटाकार उऋान्तुत्नों को है।


७०५५५७२ग-०«भी» /सतन्‍
3१:04५+-फजफेआीक३४-५७५
५-०७ 3)3०००५ "नी पवनानना.2 बोध 5हारी ऑनजडपन अपन +दर १०७ ५७७. १५कथ७
७3०० जे
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+क-3-40-४७+५७-+- अनतफननानक>५न ५७>े५७अन++
७० 3 «५१४०-++ ५ ५०४६.

#टोशियस अपनो इश्छिका नामक पस्तक मे लिखता है कि


पिगसो जाति भारतवष मे रहते हैं। भारतवासो ख्रयम उन्हें
किरातो (70९ ) जासि के समभते थे। ये एक जंगज्ो
जाति थे। जो बन झोर पवतों मे' रहते थे भौर आखेट कर के
जोते थे! ये इतने छोटे होते थे किइन का नाम योना का
पय्थाय वाचक हो गया। लोग समभते थे कि ये गोघ और
चोलहों स लड़ते हैं। उन के मफ़ील जाति के होने क॑ कारण
भारतवासो उस लाति के सखरूप को विशेषताभो को अधिक
छणित बना कर वन करने ये। इसो से मेगास्थनोज पमुक्‌-
टोरेस ( 80परो-५००८४ ) के विषय में लिखता है कि उन को
नाक के बदले केवल दो छिंद होते थे। ये किराता झोर
पक्‍लिनस का स्काइरिटेस ( 50777005 ) भा पेरिप्नस ( ?८१७।प४-
0०६ 0॥6 उंएक्‍8॥ ७९७ ) का किहडाय ५ विन धाीढपत्तां )
समान हैं ।
' ये संस्कृत में कण प्रावसा: कहखाते हैं ( जेसे सहाभारत
२, ११७०, १८७५ ) इस के अतिरिज्ष कर्णिका: लम्बकर्णा:,
सहाकणा:, उष्टकर्णा, ओोष्ठकर्णा, पाणिकणणों: जज़लो
| ४४]
मगुण समन्द्रकोहणए के निकट नहों लाये जा सकते
थे क्योकि वेपकड़े जाने पर खाना छोड़ देते थेइस से सर
खाते थे। इम को एडो आगे होतो है ओर इम का पर तथा
अगूठा पोछे को भोर फिरा रहता है। # कुछ पकड़ कर लाये
20%
कप १०७५५
3३५ 4०५९/७,७ 3:कलकआकनथ&-
१ ० ४के अप
च७(3४ ;४७७०। >बकपबकाक
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शब्द भो प्रयुक्ष हुए हैं। छोलर साहब कहते हैं कि “सलारत


वर्षस जो मनुष्य परिचित है वह्ू इन कथाओं को एत्पत्ति
का हाल सहज हो में सम्क सकता है। घींटियां लोमड़ो
के बराबर तो नहों झहोतों किन्तु असाधारण छोदनेवालो
होतो हैं। हक्त उाढ़ कर उन का गदा के ऐसा व्यवइह्वार
करना भोस को कथाओं में पायः जाता है | मनुष्यों के
कान तो बहुत बड़े नहों छडोते पर एरुपष और स्टतो टोनों
कानों में गहने पद्म कर उन्हँ बढ़ाते हैं। स्तवी यह पढ़ कर
अत्यन्त क्रुध इुआ था कि मनुष्यों के कास पर तक लग्ब॑ होते
हैं किन्तु वावू जोहरो दास का कहा है कि एक बुढ़िया उन
से कचहतो थो कि उस के पति ने, जो एक पिपाही था, एक
देश में मनुष्यों कोएक कान विक्ा कर और दूसरा ओठ़ कर
सोते इुए देखा था।” फिच (0:०)) जिस ने सन्‌ १४८५ है«
में भारत का भ्रमण किया था, कहता है कि “भूद्ान में एक
जाति को एक बोता लम्बा कान होता है।” स्तस्बा काम को
कथा सम्भवतः पहाड़ो देशों को है।
# टोशियस भोर बोटो ने भो इन का वर्णन किया है।
ये विचित्र ठंग के पर होने के कारण ऐन्टोपोडोज ( 4॥09006७)
कहलाते थे। इन फा नास पशाइलजा संस्कृत ग्रत्थों में
लिशण्या है |
| ४५४ |]
गये थे जो सोधे थे ओर जिन मुझ नक्नोंथा। ये गफ़ा को
जड़ के निकट रहते हैं झोर उसने हुए मांख को गन्ध तथा
फश एवम्‌ फूलों को सुगन्धि से जोवित रहते हैं। मुख के
समान में इन्हें संघने के लिये छिद्र होता है। दुगन्ध से इम को
कष्ट होता है अतएव वे कठिनता सं जीवन घारण करते हैं
विशेष कर के शिविर में । अन्य असम्भव बातों के विषय में
दाशंनिकों ने छस से कहा है कि आकुपेडोस # ( ()६ए७८०८७ )
एक जाति के ममुष्य होते हैं जो दोड़ने में घोड़े संभो भागे
निकल छाते हैं। झौर एनोटोक्टाय जाति के मनुष्यों केकान,
पर लक लम्ब होते हैं जिन में वेसो सकते हैं। वे इतने
बलवान होते हैं कि तक्षों कोउखाड़ डालते हैं कौर धनुष को
स्या तोड़ देते है। सौनो स्मेटाय ( 070077)800] ) के कान
कत्त के समान होते हैं, उन को एक आंख खलल्ताट के बोच
में दोतो है, उन के बाख खड़े होते हैं ग्रोर कातो बालों से भरा
छोता है (। अमुकरेस ( 6.7॥ ६2"९६ ) को नाक के छिदि
नहों होते, वेसब वस्तु भक्षण करते हैं, कच्चा मांस खाते हैं,
अल्पायु होते हैं ओर दृद्दावस्था के पूव मर जाते हैं। इन का
झोष्ठ शधर के बहुत मोचे खटकता रहता है। हाइपरबोरियन 4
( तए०००८४ ) लो सहस्त वर्ष जोते हैं उन का बणन भो
(-3०4७७०५५५९७०६ -"७--“+अीनलननना
५५० कैबडक५+-कन्‍ग+ अत जा. ५०५+७+०-१७ ५»॑क- 'घल्>- जलती
न खिल लिलकील 3४० +३७>०+नन चलन कक केपन-तान-- समर ५५+«मनी "पाकर "५
सकान+त-
/-तन पकाने चीन
मननललित भव हनल्‍सकना +ेअलकण। अक्कट लक *
स्थाक
2 +दफकुला>->/का
की
““--4कककक (#टखनतन-लकननआप
०सनक लत

# एकपदोी का अपन्यंग है। किरातो को एक छपजाति


थो जो तोब्रगामो झोने के लिये प्रसिद्ध णो ।
न! संस्कतग्रन्यों में एकाचः, उऊउध्व केश: ललाटाच्: भादि
शब्द प्रयुक्ष चुए हैं।
4 इाइपरवोरियन संस्कृत के उत्तरकुरु देश के समान
व्णित होता है |
| ४६ ।
वे वेसा कह्लो करते हैं जेसा सिमोमाइडोव ( 88० 7रं१०४ )
पिल्छारस ( ]0072738 ) तथा अन्ध काल्यमिक कथाओं के
लेखकों ने शिखा है ! टाइमेजिनोज ( 782068 ) को कथा

कि वहां तासा को वर्षा ह्ोतो है जो बह्ाारा जाता है, कल्पना


मात्र है। मेगास्थनोज कऋइता है कि अधिक विश्तासयोग्य
निम्न बात है क्योंकि आाइवेरिया % । ९०१४) में भो यह देखा
जाता है। वहां नदियां सोने का चुण बातो हुई ले जातो हैं
भोर इस का एक अंश राजा को कर स्वरूप से देती हैं।
४7५ प्‌
ब्ररात पत्रखणइड ।
प्लिनो-इति हास !
वकाब्यलिक ऊझातियों के विषय में।

मेनास्थनोज के भामुसार नुलो | 2४४०७ ) नामक पवत पर


ऐसे मनुष्य रहते हैं जिन के पंर पाके को ओर फिरे रहते हैं
और जिन झाठ अंगुलियां प्रत्यक पर में हांतो हैं। और कई
पवतों पर मनुष्यों को एक जाति रहतो है जिरू कुत्ता के ऐसा
थिर होता है, वे बन्ध पशुआं को खाल पहनते हैं। उन को
वोलो भुका है। उर्हूं चंगुल छोता है ओर वें पशनओं तथा
पत्चियों को सार कर खाते हैं। ।** | टगियश्न बताता है कि
इन मनुष्यों को संख्या १२०००० से अधिक है झौर कहता है
कि भारतवष में एक जाति होतो है जिस को स्त्रियां जोवम
न लबन ज-32बअ
नमनकनन फल >पक » विद लक] ज>->०_+कन्‍्क>- हर जे हल>अनल के >लन>कान अमर + >मनोत नफसानाता बेहेहटना ०-३ बके जनजता“मन ट+ ००5 बसे ७८-०० ८८३४६ 3४७४०६२४:४ ४४

£ यंग गहों, किन्तु बंकसो गोर कंस्पियनसो के बोयपाला


देश को झाज कल च्योजिया ( 2८णाप्टां3 ) कहलाता है ।
।' संस्क्रत में येशनमुचा अथवा श्वमृुचा कहलाते हैं ।
| ४७ ।
भर में एक हो बार पत्र रत्यन्न करतो हैं भोर उन को सम्तान
जग्सते हो भ्यत केशवालो हो जातो है । |
>< >< > 2९ >>... २६ > 2 2५

मेगख्यनोज कहता है कि पयटन करने वाले भार्तवास्यों


में एक जाति होतो है जिन्‌डें नाक केबदले केवल छिद होता
है। इन के पर सांप के ऐसा ऐटे हुए होते हैं। ये स्थाइरिटो
( 00ए7(8९ ) कचलाते हैं । वह एक जाति के विषय में कछता
है मो भारतवर्ष के पूव को छोर पर गड्ग के जड़ के निशट
रहते हैं। इन का नास ऐस्कोसो ( #5०7 ) है। इन्हे सुख
नहों होता । इन का शरोर बालों से भरा होता है। ये अपने
शरोर को कोसल भूए मे टंकते हैं लो छत्चों को पतियों पर पाया
जाता है। ये कैवल स्वांस लेकर धोर नाकों से सुगनश्धि संघ कर
जोते हैं। वे कुछ खाते पोते नहीं हैं । उ्क कन्द फल और जंगलों
सेब की भांति गख्य को आवश्यकता होती है | जब
ये दूर जाते हैं तब सेवों को अपने साथ लिये जाते हैं जिस में
उस सदा कोई पदाथ भूचने के लिये मिले। अत्यन्त कहो
गख् से उन को शीघ्र रुत्यु औ जातो है ।

एसोमो के देश के ग्रागे पवत के दूरास्तिक प्रदेशों में


द्ि्मिधामों (7"]0॥७ए। ) और पिम्मो ( (5(ए४ ) रहते हैं ।
ये दोनों तोम बोता अथात्‌ सताइस ऊंचे होते हैं। वर्तां को
आवहवा स्वास्थयूकर है ओर बहां सदा बसत्त ऋतु रहतो है ।
उसर को ओर ऊ'चे २ पवल उन को रज्षा करते हैं। यह वहो
छाति हू जिस के विषय में छहोसर लिखता है कि सारस उन
पर चटाई करके उन्‍हें हरान करते थे। उन को कथा | कि छ
[| ४८ |
बकरे ओर भेडों पर चटू कर तोर धनुष से सब्कित हो बसत्त
ऋतु में सन सिल कर समुदु के किनारे जाते हैं ओर इन पत्तियों
के अगड़े तथा बच्चा का नाश कर देते हैं। प्रति वर्ष उन्हें यह
काम करने में तोन मास लग जाते हैं भोर यदि वे ऐसा नहों
कर तो झागामो वर्षों में सारस इतने बढ़ जाय॑ कि जिन से
अपनो रक्षा करमो कठिन हो जाय। इन को भॉपडो सिश्टे,
पर भोर अग्ह के छिलकों को बनतो है। [ एरिस्ौटल कहता
है कि वे गुफाओों में रहले हु पर और सब बातें दुसरे लेखकों
के ऐसा कहता ह )।

[ टोगियस से हम लोगों को विदित होता है कि इस


जाति को एक सपजाति है जो पशहोरो ( [7007० ) कचऋछातो
है।यह पहाड़ों को तराष्यों में बसो है। इस जाति के ममृष्य
दो सो वष जोलते हैं । युवावस्था में इन के बाल श्य त होते हैं
किन्तु हब डोने पर ये काले हो जाते हैं। ठूसरे चालोस वर्षों"
से सधिक नहीं जोवित रहते । इन का मेक्रोबि ( 0०7 )
से घनिष्त सम्बन्ध है जिन को स्त्रियां जोवन भर में एक हो
बार सन्‍्तान उत्पन्न करतो हैं। भअगधरचाइडोज (/ ०६॥७४८))त€४5)

रहते हैं ओर तोब वेगवाले होते हैं |क्लिटाकस ( (७०0५७ )


और मेगास्नोज उन्‍हं रण्हो ( 0१) ) कहते हैं झोर उनके
ग्रा्सा को संख्या तोन सौ बताते हैं। खियां सात वर्ष को अवशस्या
में बचा जनतो हैं और चालसोस वर्ष में द्रदा हो जातो हैं।

सकाका्रपाताआपाात ऑकीर०अ०रमनगपसा शक
नुलो [ चि। ) पयत प्र 77
के निकट ऐडे सनष्य रहते हैं णिन
लृ पा अल ; हटा
क्र कँ है ्ि्‌ कक

कक घर बस रे का छा. । न४

एम की टोनों पर्गा में


३ मा र शक: रा द्च

फिर रहते हैँ।


कक हे 5५ कक,

के पर पोछ को और
!नम फू परम! स्ञ ४ दारण ४58 रल पे कट टकव दडे ६30: भें
.रबलत हे में;
छू |(३ हर, प्रंगुलिय ह है | 94॥ पे हप ४] नि हट 8 हर |५१. कई एबलेलफए में

एस पवता पर सनुष्य € जिन का भर कु के धमा है। इृम्ध


चहानप्ज होता है। श बल्क कम नह] ;
गई
/४<.,५

५ छुता है। य बल्कल पहनते €। ये रालदा केला


घोलते केबल भंकते हैं । इन्हीं
रत ऊँ
कक ख्ृ
| भर
ु उ्क3

/
पक ५ महू
हा आ

मापा ऊ5ठा हुआ


४ जरा के 22 कक पक ५ पोडसअरजिकल 5


फलजथ
जबडा होता
“रे अजनका

है
५०

छः |], [इक कं किला हुए छू ॥३5 शाइत! बाशाम ४६


पर ४ |
ह |! ॥ १ 0 05४ स्झ्
हि रु ॥ हा ७ आओ का भ्ग्ा ई :8 ३ ध 4 (१४ रन ए पृ ५ [

एउयय धक्क हा याइ स्तन उत्प्स करत) है आब बेचा वा काश


अदा है मे सात छत हूं इत्यादि ||
हे कक पं पल हे

९«+ न पं
६2फू हैः
| ]
प्ररूषा
कप बनतह
इ/5हः
| पर 6
हुआदे पप
७0 हा
के
हि
2 करे८75]
आती
पा: रे/ ऋशप्स्ा
५ *ए५

हार
4४).
छह 02 कर जः

पा ऋश्ल का आआयवश्ाकला भक्ष। सालो)! वेतन

कई श्८ ४४ ऊऋब !फात


हैपक#ऋ |४ ऊऋार
ककना. लब
अपर तप कमाई हि दहन.
फू एर रुशा का।हि। यात्रा
77 का न्यू

गतफू रत 57 2 पृ। ८:$ शकमे जो ब्वृ . इस श्र 560 ॥ ९5 । ह्ण्प हब


करत का लेप ने फैल जान इचा कू वा खाद नद सात
साल श्र

को कि ये दस को सुगन्धि से प्रा) घाहण कह सकने हैं। गादि


वे अन्यन्त दुगन्ध युज्ष वायु सांस के साथ पा दे तो शा आवपइश-
हि (अक , है

५, शिी.....ै$फैफ «४ “ फ्

एकतिशत पं्रझदढ ।
प्लुगाक,। ।
मवज्ोन
्े
मनुष्यों खो जाति के विषय में |

ऊध शक चम्द््सा हसे जलम्रत्‌ नहोंदेऐ प्राप्त


प्र ३
हा सदा8 पर
तथा 2 2
भारतवय
[| ४९% !,

का बष्द (|सुगमस्ध ) कत्द वहाँ कस सपज सकता है जिसे, (भेगा-


सखनताज कहता है कि) एक जाति के मे नुष्य धप के ऐसा जला हि

है। ये कुछ खाते पात नहीं हैं न इनक सख हो है । ग्रतदव


( थे इस जलाते हैं ) जिस में इस को सुगमख्ध सेजोवन धरवयणा

तृत।य खंगड़
दजशव प्रख/ा6 |
पएरियन आर स्विनों ।
| पजयन का अनुवाद दंखोी
4 44209

सा बी->भमारत वामियाँ का सात जातियों के विषय मे


(१८ मैमास्थेन|ज के अनुसार भारतवष॒ को ऋनसंख्या सात भागों

थे से कम है। साधारण रोलि से सनुप्य ठन्‍्ह बाल शधथवा अन्य


सम्बन्धी कय कराने के लिये नियुक्ष करत हैं झोर राजा भी
सावजनिक झाय की निये उन्‍हें हल सभा में वुलाते हैं जिस में
वष के प्रारश्ष में सलो दाशनिक्त गाज़ा के सम्प्रख फाटक पर
एकत्र होत हैं। यदि कोई दाशनिक लाभ दायक उपदेश लिपि
सह किये रहुता है अथवा अन्न एयम पशज्ञां का छर्मात का
उपाय निकाले रहता है या सवस्ताधारण के छित को बात सोचे
रहता है तो सब के सम्मस्व प्रकट करता है| यदि कोई दाश
हम

निके तोम बार मिध्या सूचना देते पकड़ा जाता है ती कासन


उसे अवशिष्ट ज!वन भर सुप रहने का दण्ड देता है। किन्तु जो
हिलक्षर सपदेग देता है उस से कर धघथवा चम्दा नहों लिया
|. जे |
ण्दू

| ४० ) दूघरोी जाति किसानों को है। जनसंख्या के अधि-


5

आंश येहो हैं। इन का स्वभाव सद्ल क्रोर सरल होता है


इन्ह युत्च नह्ों करना पड़ता। ये निर्भोक भाव से झपनो अभि
जोतते हैं । ये नगरों में किसो काम के लिये नही जाते न वहां
के इलचल में सम्यघिलित होते हैं। ऐसा प्रारः छ्ोता हैकि जिस
समय देश के एक प्रास्त में मनृष्य युद्ध के लिये व्यूक़् बना कर खड़े
रहते है आथवा अपने प्राण एर खेल कर लड़ते है उप्तो समय
दूमरे सनृष्य निभय हल जोतते ओर भरमसि कोड़ते रहते हैं
क्याकि ये योदा उन के रक्षक सतरूप से वहां बतमान रहते हैं ।
स्ते भूसि राजा का पन है और किसान उपज का चसुर्थाश
ले के लिये जानने हैं |
कह तापतरी लाति खाने कोर व्याधों को है। केवल ये हो
दारेश कर सकते हैं भौर प्रगओआं को पास सकते है एव स्‌ बॉस
दे।म वाल पशु का बंचन अयया माह़ा पर देने का इनन्‍्हों को
अधिकार है |सज़लो पगझों खथा हानिकारक पशलियों मे देश
को रचित कर देने के छफ्लच में इन्‍्हां राजा के यहांस कुछ
इस मिलता है काकि थे जम्तु खेत मे बोए की खा छलाते है |
ये पयटन करते रचते हैं झ्ोर शिविर! में नियास करते है |
पष्ठ घिशत पत्र खप्ठ यहां दिया हसा है ।
[ यह फुद्मा जड़लोी जनन्‍्तुओं के पिषय में अरब चइपम गेंगार्थ-
नोज को बात करूंगे जहां से हम लीग हट गये थे !
( ४६ ) ग्वाले और व्याधों के बाद, चतृुथ जासि बिक
टूकानदार भोर थ्रमजोवियों को हैं। कुछ इस में में कर देने
हैं गौर राष्य के कई निश्चित कासों को करते हैं। किन्तु शस्त्र
कार और लाद्दाज़ दमाने वाले राजा स भोजन शी देसन पाले 5
| परू३ |]

डर क्यॉँकि केवल सनरीं के लिये येकाम करते हैं। सेनापति


सन निकों को अस्त्रदेता है ओर जहाजो सेनापति ममुष्य सथा वाणि-
डाक

ज्य के पदार्थों, को टाने के लिये जहाजों को भाड़े पर देता ह ।


( ४७ ) पांचवीं जाति योद्ापों को है। जब ये संग्राम नहीं
करते तब भालस्य और मसद्यपान में येअपना समय बिलाते हैं ।
राजा मे व्यय मे थे रखे जाते हैं पअरतएय जब समय पडता है
सब ये दद्ध करने के लिये प्रसुत रहते हैं क्योंकि अपले शरोर
का का/ ७०० हम. पा । हक 2 ] देहा कक एस ४ धर
ह | ह

के आतिविक्न इनए अपना कोई बस्त नहों ले जानो पश्चतोी


निरोचाकी को है । इन का यालंब्य जो!
बी 8 अमल 8 ह 49.

( ४८ ) छाटों हासि
५ हिल नश्य
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साएउया का ले गा जया ला उप स्शकां की है । य॑ हो राज्य

के शपान पर्दा सदा जिचारका के सथाम को भरत हूं गौर गाध्य

के खापाबया काय। को चलात॑ हें पैड छपनोीं जाति के


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से हिला कर शबते झल को हूं। वे मंतियों को प्राह्म्णों ये
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.

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हाएप विवाक्ष नमहों कर सफता झोौर न अपनो जोविका को
वि क्|। बदल सकता । किन्तु दागनिकों की उन के सदृगुणों
के बदले में यह अधिकार दिया गया है।
ध्ा

चतुःत्रिशत पत्रखण्ड ।
स्ट्बो |
राज्य काय दलाने के विषय में
पोद्ध आए हाथियों के व्यवहार के विपय में |
| पल्चण्ड २१३ इस के पइले दिया है । |
(५: ; राय की बे २ पदाधिकारियों में से किसो
क झपघकार में बाज्ञार दिया जाता है दूसरे मगर ओझोर अन्य
भंनिकी को देखते हैं| कुछ जोग नदियों को निरोज्ञा करते हैं,
भत्ति नाएते हैं जसा घिय | 70,000 )। देश में किया जाता है
झार क्रिया को जावचत हे जिन के द्वारा मढी मकहर से छस को
गाखुाश! अाद प्रति भाखाा मे जन जाता है जिस में सब को
श़ुग्माम हस्त गले । इनुर्जशा सनमुष्यां के प्रधिक्षार में व्याघे रहते हैं
गौर उस ये दास के अनुसार पादितायिक अधवा दण्ड देने का
नं स्व थ॑ कर सहसोाखत हैं घोर भमि सब्बन्धों
विकाओं का निरोक्षण करते हैं जंसे लकड़ड्ोरे, बढ़ई, लोक्ार
अर खाग ये आम जोवियोंँ को जोविकाधों का।ये सडक
बलाते हैं झौर प्रति दश छ डियम ( एक कोस ) पर टूरो झोर
उसपपथां को दिखाने के लिये एक स्सप बनाते हैं। जिन के
झधिकार में नगर दिया जाता है छत का कः विभाग है। प्रत्थक
(वद्ाग में पांच मनुृष्व होते हैं। प्रथम विभाग के पदाधिफारो
४४ |
शिक्प सम्बंधो सव विषयों को टेखते हैं। टूसरे विभाग के समृष्य
विदे शिया का खागत करते हैं | इनह वे रहने का स्थान देते हैं
भोर लिन भसमुष्या को छन को भेवा में नियुक्ष करते हैं उनहों
के हारा इत के रहने का! रोति पर दृष्टि रखते हैं। जब ये देग
क्ाडने लगते हैं तब वे इनचें पहुंचा देते हैं ओर इन को झूृत्य
हो जानें पर इन को सम्पत्ति इन के सस्ब न्धियों के पास भेज देते
हैं। जब ये सन होते हैं तत वे इस को रक्ता करते हैं सार मर
छाते एर इनईं गाडु देते हैं। तासरे विभाग के कमचारो निश्चय
करते हैं कि कमे ग्रोर कब किसो का जन्म या सत्य हुई ।
ऐपा केवल करहो लगाने के सखिये नहीं किया जाता किन्तु इस
लिये भो कि जिस में राज्य को इष्टि से बड़ अथवा छोटे कः
समन्म भोर सत्य गुप नरहे | चतुय विभाग बागिफ्य आर व्यापार
का निराक्षण करता है। इस विभाग के कम्रचारियों के द्रधिकार
में नापन और जाखन के बटखर हैं और थे देखते ह कि प्रत्यक
ऋतु का उपज सब साधारण को सूचना देकर देचा लाता है | कोई
ममुष्य दो बसु का व्यापार नहों कर सकता जब तक वह दूना
कर महों देता | पांचवा विभाग वहां के बने हुए बच! का
देख भाग करता है। इनहें सव॑ साधारण को खूबना शैकर ये
बंचते हैं| मया वस्तु पुराने स एथक विकज्वतों हैऔर टोन को
एक में मिलाने से भथ दण्ड होता है | छठा या भख्लिस विभाग
उन कसंचारियों का है जो बिके बलों के म॒स्य का टदशमांश
तहमालते हैं। इस कर के देने में घाखा देने से सत्य दशक दिया
जाता है|
| 9४ 3
इन विभागों के येह्री कसंव्य हैं जिये वें भ्रलग २ सम्पन्न
करते हैं, सोर सब मिलवार अपने २ विभागों पर अधिकार
खत हैंएवम्‌ सव साधारण के सुभाते को बालों को भो देखते
है जसे सावजनिक गहों का उत्तम भवस्था में रखना, वस्तुओं!
के मुब्य का निर्धारण करमा, बाज़ार बन्द्रगाड़ भोर मन्द्री को
रक्ता करने । नेगर के भअध्यक्षा के बाद एक तोसरो शासक
मगड़ल! है जो युद्ध सम्बन्धा कार्मा को देखतो है। इस के भो छः:
विशाग हैं. हार प्रत्यक्ष में पांच सस्य होते हैं। एक विभाग
जद्याजं के मना पति को सहायता करने के लिये नियक्ञ किया
ला है । दूसरा बंका गाडिया का निरोक्षण करता है जिन पर

अन्य युद्ध को सामप्रों भेजी जाता है। ये दोल झोर घणटा


जानवाल सबका को, घोड़ा के साईसीं को, एवम्‌ यन्त्रवार
तथा छन के सहायका को नियुक्ष करते हैं झोौर छचित स्थान
बे सज्त हे | छययटा की ध्वनि स ये घसगरढां को घास ले थाने

के लिये भजत हैं और परारितोपिक तथा दशड दृूकर यह्ु काय


शोप्रता तथा नियय की साथ कराते हैं |छताय विधाग पदाति
सनक का टंख भाल कर्त हं। चलृथध विभाग भश्वाशोही सेना
के

का, पत्चम विज्ञाग रथा रोही सना का एवम पष्ठ शजाराोही रूना
का निरोक्षण करते हैं | घाड़ ग्रोर ह्ञाधियां के लिये राजकाय
अखशालाएं तथा इस्तियालाएं हूं झ्योर भसम्वगस्त रखने के
लिये राजकोय गम्झ्नागार भा हैं क्ाकि सनिक्तों को सस्त गर्म
| (६३ ।,|
शस्त्रागार भें तथ। घोक़ु हाधियां को अगश्व एवम्‌ हस्ति शालाई
में लीटा देना पड़ता है। हाथियों को वे लगाम नहाँ लगाते ।
रथां को राह में वल ब्वॉचते हैंचोर घोड़ केवल बाग पकड़ कद
मजे जाते हैं जिस में उन केपर रगड़ खाकर फलन जांय घइ
रन का साहस रथ खींचने से शान्तन छो जाय । सारधि के अति
रिश्र दो रथा रय पर बठते हैं। युद के इस्तियां पर चार मनुष्य
बंठव हैं, तान तार छोड़ने वाले और एक हाथांवान ।
भा

पर ल्िशत पचेखग ढ़।


देलियल---इतिक्ास !

अप्ठ भार इस्ति के व्यवहार के विषय से ।

[ पा्रख्सछएह 8४। १३-१५ |!


यह करा जाता है कि भारतवासा घोड़े के ग्रार कद कार
उस्त को गति रोक देते हैं झोर भागे नहों बटने देते विन्‍्त संव
भारतवामी एंसा नहछों कर सकते । केवल | कार सकते «
जिम्हीं न बाल्यकाल से घोड़ा फेरने मांखा है क्योतिक उन के
यहां लगाम से घोड़ा रोकने को शोर बराबर चाल मे सोधे घोड़ा
चलाने को प्रथा है। न ये नोकोले जाबव से घोह को छंम में
दा गहाते हैंश्रौर न उस के तालु हो को कष्ट देते हैं । घोड़ा
सिखाने को जोविका करने वाले चक्कर भं बार बार दोहा कर
घोड़े कोसिखात हैं | विश्पतः घोड़ा जब बदमाश रहता है
। ४० ।ै
सब वे ऐसा करते हैं। जओ इस प्रकार घोड़ा सिखाते हैं उन्हें
बलिश भुजा ओर घोड़ों के पूण ज्ञान को आवश्यकता होतो है ।
घोडों से पूण अभिज्ञता रखनेवाले इन को परोक्षा लेने के लिये
दूल्हे रथ को चक्कर में चलाने के लिये कहते हैं। वास्तव भें चार
साहसाो शोर वेगवाले घोड़ों को चक्कर भें दोड़ने के समय सम्हा-
लना कठिन है। रथ पर दो मनुष्य चटतें हैं जोसारथि के समोप
बेठते हैं| युद्ध के इम्ति पर, होंदा में या खुला पोठ, तोन योद्दा
बटते हैं। दो बगल में तोर चलाते हैं ओर सोसगा पोछे को
ओर से । उस पर चौथा मनुष्य रहता है जो हाथ में अद्गश ल्ने
चलता है | जिम प्रकार मांकों या जह्लाज का कप्तान पत्रवार स
जड़ाज़ चलाता है उमो प्रकार यह उसे अइश से चलाता है।

"अकाा
पष्ठ/।त्रशत प्रखर ।

मद्बी ।

हाथियों के विषय में ।

य पल्षखराद़्ध ३२६३--६ इस के पूव दिया हे) ।

साधारण मनुष्य घोड़ा या हाथों नहों रख सकता | ये जन्त्‌


राजा को विशेष भम्पत्ति हैं ओर इन को रक्षा करने के लिये
पुरुष नियुक्त किये जाते हैं। हाथो बक्काने को निम्न विधि है।
किसी खुले मैदाम के चारों ओर एक गठ़ा पांच या कृः रू डियम
का ग्वोदा जाता है। इस पर एक बहुत पतला पुल बांध दिया
जाता है जा मदान सके प्रहचता है। इम सदान भें मौन या
् ०५ ६० न हे
भर रे
मो कट द्

४!&
चार पूण शिक्षित हथ्चिनियां छोड़ो ज्ञातों हैं। मनुष्य प्रक्ृत्र
भोपड़ों में घात लगाये बठे रहते हैं। जड़ली हाथो दिन के
समय दस जाल भें नहों आते किन्‍्स्‌ रात्ि के मम्य एक एक
करके इस में प्रवश करते हैं। जब मब प्रवश कर जाते हैं तब
मनुष्य गुप्त रूप से इसे बन्द कर देते हैं। अनन्तर बड़ वलिश्ठ
पोसुए हाथियों को इस में प्रवशा कराते हैं। थे जड़ ना हाथियों
से लहते हैं जिन्हे भरे रख कर भा ये द्वल बना देते हैं। जब
जड़ालोी हाथा सब थकावट के मार शान्त हा जाते हैं तब अत्यन्त
साहसी हाथावान अपने २ हाथियों के नाते उसरते है और
शनः २ जड़ली हाथियों केपेट के नोचे चले जाते हैं। अ्रनन्तर में
उन मे पर मिला कर ऊांघत हैं। सब्र वे जड़ालोी हाथियों का
सार कर गिरा देने के लिये पोमुएण हाथियों को ललकारते हैं !
उन के गिर जान प्र जड़ानो और पोसए हाथियों को गदन
एक में बन के कच्च चमड म वांघत फिर जिस भे जड़नो
छाथोी अपने ऊपर चखठनवालों को शोर हिला कर गिरा न दे
डूस लिये वे मनृष्य इन को गदन भें चारों ओर मे गठ़ा करके
समोटो पहना देत हैं। इस कष्ट से व शान्त रहते हैं। इन
हाथियों में जोबच्त बट या बचत बच्च रहत हैं उन को कोड
कर अवशिष्ट को वे हस्तिशालाओं में ले जात है। यहां वें उन
के पर एक दसर के पर के आर उन को गदन एक हदृट खन्म से
बांघत है । यहा भी उन भरत रख कर पोसुआ वनात हं। इम के
उपरान्त उन्‍्ह हरी हरी दब और हर पौँध खिला कर थे पुनः
बॉलिप्ठ करते हैं। तब वे उनन्‍्हं चुचकार कर तथा मधर शब्द संगील
एयमस वाद्य से आज्ञाकारों हाना मिखाते है ।
अचल कम उन में से पास नकठों मानते क्योंकि वें स्वयम
तले मसंध गोर मात्र स्वभाव के छत हैं कि बृदिमान जोवा
. ४४८ !

का समता करते हैं। छन में मंकितने युद्ध मे गिर हाथोवानों


को ग्गक्तत्र सेउठा कर कुशलपूवक बाहर ले जाते हैं। और
किलन जब उन के अधोणश्वर लन के चरणों के बांच में शरण
लेते हैं तब उ््हं बचाने के लिये लड़ते हैं और उन को प्राणरत्षा
करते कैं। यदि क्रीधवश हा कर वे अपने शिक्षक या अन्नदाता
का मार देते हैं ते। उमर के लिये ये इतना शांच करते हैं कि
भाजन करना छाड देते हु आर कभी २ भूखे प्राण भो त्याग

व घोर के ममान हथ्िनियां सम मद्रम करते हैं जो बसन्‍्त


ऋतु में गझ घारण करतो हक्रैं। इस ममग्र क्राथां समस्त हो
आन हैं । गण्ड्य्य्लन केनिकट इन को एक क़िढ़ होता है जिस
भे मे च्बां के सप्नान कोई पदाथ निकलता हैं। इसो अवसर
घर हाथनियां के गभाधान को राह खुल जानो है | ये
मसालह मास में ले कर अठटारह मास तक बच्ची को पेट में
रखता हैं । बच्चों को छः व लक ये दूध पिलातो हैं। बहुत
से हाथा अति ड़ मनुष्यां को अवस्था तदा जावित रहते हैं आर
कुछ दा मा वर्षा' सेक्रा अधिक जोत हं। इन कई रोग हइात
हू आर शोप्र नोरोग नहों होत। आंख के रोग को ऑपधि
गाय का दृध लगाना है। बहुत से अन्य रोगों में उर्हं काला
मद्य टिया जाता है। उन के घावों की अच्छा करन के निये
सनन्‍्ह सकवन खिन्‍लाया जाता है क्यांकि यह नाहे को बाहर फक
टता ह# | शूक्रर के मांस से उन के घाव स्चक जात हैं।
| ६० |
आज ।
मप्रात्रशत पत्रखरड॒|
एग्यिन - इशणिडका अध्याय १३--१४ ।

| एरियन का अनुवाद देखी : ।

पत्रखगढ़ मप्तात्रशत (क) ।


देलियन-डतिह्लास ।
ह्ाथियां के विषय में ।

( प््र्बगड़ ३६--२--१० और ३७--८--१५


भारतवष भें पुणयुवा डाथी] पकड़ा जाय तो उसे पोसना
कठिन हैं क्यांकि श्वाघोनता के लिये वह गत्ता का प्यासा बना
गहता है| यदि वह सोकहड में बांघा जाय तो वह ओर भो
क्रड होता हैओर किसो का स्वामों नहीं मानता, किन्तु
भारतवासी भोजन देकर उसे फसलाते हैं ओर जिन २ पदार्थों
को उसे रूचि होतो है उन सो को देकर उसे शान्‍्त
करत हैं। सम का शहद श्य उस का पट भरना और उस के क्रोध
को ठण्टा करना रहता है। तथापि यह छन से क्रदइ रहता है
आर उन को एक नहों सुनता | तब वे क्या करत है ? वे देशों
घन में गात हैं ओर एक साधारण बाज के स्वर से इस शान्‍्त
करते हूँ । इस बाजें में चार डोरो रहतो है ओर यह स्किनडे-
पूसस्‌ ( ०४9] ४४७ ) कहलाता है। तब यह जन्तु अपने
कानों को खड्डा कर के मधुर ध्वनि सुनता है जिस में इस का
क्रोध ठण्ठा पड़ता है। इस के उपरान्त यद्यपि कभो कभी
उस को दबो हुई क्रोघारिन भड़क उठतो है, तथापि वह्ठ क्रमशः
खान पान लगता है। अनन्तर यह वच्धन से स॒ुक्त किया जाता
| “है?
है किन्तु भागता नहीं काांकि मड्ात से यह वशोभूत किया
रहता है। यह भोजन उत्कय्टा क साथ करता है और विनास
प्रिय अतिथि क ऐसा भोजनागार से सड्गगेत के माधुय्य को छोड़
कर जाने को इच्छा नहछों करता ।

अष्टन्रशत पत्रखण्ड ।
दे लियन-- इतिहास २३

हाथियों के रागां केविषय मे ।


| प्रतर॒खशड ३६--१५४ और ३७-१५ !
भारतवामोी बक्काये हुए हाथियां के घावों को निम्गरोति
से आरोग्य करत हूँ । वे उसी प्रकार इन के साथ व्यवक्लार करत
हैं जंसा होसर ने लिखा है कि पेटोक्कस ( ।0ऐ०४ ) में
यरिपाइलस ( 7॥)।४४४७ ) के साथ किया था। वे सुसुम
( देपट्प्ण |जल से उन के घावों को संकत हैं। इस के बाद
वे उस पर मकबन लगाते हैं। यदि घाव गहरे होत हैंतो थे
गरम आर रुधिर से भरे शूकर के मांस के टुकड़ों को उस भें
भर कर सखूज को कम करत हैं। गाय के दृध से वे आंख
का फलना अच्छा करत हैं। पहले इस से आंख को सेंकत है
तदनन्तर इसे आंख में लगातं हैं। जब ये जन्तु आंखें खोलत हैं
सब इनन्‍्हं इस बात को बड़ो प्रसब्नता होतो है कि थे पहल से
अधिक देखत हैं और वे अपना लाभ ममुष्यों को भांति समभत
हैं। जेसे २ इन का अशन्चयापन घटता है वसे २ इन को
प्रसवता बढठतो है। यहो पहचान इन के आरोग्य होने का है ।
अन्य रोगों कोओषधि काला मद्य है आर यटि इम से वे नोरोग
नहों हुए तो ओर क॒क्त उन्हें बचा नहीं मकता ।
प्रकानचला। सशत पत्रखरद ।
स्ट्र्बो ।
सोन[ स्वाीट कर निकालने वालो चोटियां केविषय में ।%
मगास्थन|ज न इन चोटियोां का व््तान्त निम्लरूप से दिया
हैं। भारतवए में डरडाय १ । ०४४) नामक एक बड़ो जासि है
जा पृथ सोमा के पवतों पर रहती हैं। यहां एक उच्च मेंदान २
है आओ गोलाई में सान महस्त्र र्डियम #। इस भ्रूमि के नोच
सान को खाने हैं आर यहाँ पर वे चोंटियां होतो हैं जा सम
धातु के लिये भूमि खोटल! हैं। ये जंगली लोमडियों में छाट
नहों हातों | वे आश्रयजमक वेग से दीडतो हैं और आरट कर
के जोवन घारण करता हैं। वे जाड़ के दिनां में भमि कोष्टले
हैं। ककुन्दा के ऐसा ये खाना के मह पर समिट्टो को दरों
लगा देते हैं। सानायुत् मिट्नी को थोड़ा उब्ालना पड़ला है।
पड़ोस के मन॒ष्य बीका टोनवाले परशपन्ा के साथ प्रच्छन्न रूप से
ग्राकर इस उठा ले जात हैं। यदि खुली रॉोति से आये ता

£ इूणिडयन ऐरिटक्करों ( [00॥ /। न इस बात


का प्रमाण दिया है किसोना खोद कर निकालनवालो चोंटियां
तिब्बत के खान में काम करनवाले हैं |
प्रिनो डारडो ([0:00) और टोलेमो डारडाय (2:/"॥
कहता है कि संस्कृत में दरदा: |।)0० )इन का नाम है। य
अनबन लक पाये जाते हैं ।
४ चोजों टाल ( ०॥)४६४ ) के संदान ।
ठोक जालंग ( ।!!« |) ५४ ) के खानवाले जाड के.
दिनां में खादना पसन्द करते हैं फ्यांकि बरफ से जम जान के
कारण भोतर खान गिरने का डर नहीं रहता ।
| ६३१ ।ै
चौंटियां धन से युद्ध करतो हैं ओर भागने से उन का पोकछा
करतो हैं। इस प्रकार उन को और उन के पशओं को मार
छालतो हैं| इस से बिना दिखाई दिये चीरो करने के लिये वे
बन्यपशओं का मांस भिन्न स्थानां में रख टेले हैं और इस प्रकार
जब चौंटियां किलर बितर हो जातो हैं तब वे स्वणमिश्वित
मिद्रो छठा ले जाते हैं। जो मींदटागर झसिलता है उसो के हाथ
ये इम कच्च हो बच देते हैं क्ॉकि उन का धातु गलाने नहीं
आता!
चल्वारिशत पत्रखंणद ।
एरियन दणिडका १५-५७ -०।
| एरियन का अनुवाद टेखा | |

पत्रखगर चला सशन ( के )


डायी क्राइमसत ३१४ एपश्ट ४३८ मोरेल ।
उन चोंटियों के विषय में जो सोना खंदतो हैं ।
( प्रखणदड ३४ और ४० ) |
उन चोंटियों म॒ साना मिलता है। य जन्तु लोमडियां में
खंड हात हैं किन्तु अन्य विषयां में इसो टेश को चोंटियों के
समान हैं। थे ट्सरो चोंटियों केसमान भूमि भें बिल बनातो
शो

हैं। मिट्टी को जो टेर वे लगातो हैं उस में अत्यन्त चमकोना


ओर सच्चा साना रहता है। य सब ढेरों निकट हो पंक्तियों में वे
लगातो हैं जा मौन के टाले प्रतोत होते हैं ओर जिन में सारा
मंदान चमक उठता है। इस लिय सूयथ को ओर टेखना कठिन हा
जाता है ओर बहलत से मनुष्यों नऐसा करके अपनो आंखों को
ज्योति वो दो है, जो मनुष्य पड़ाम भें रहत ४ वे मोना को
लूटने के लिये तोतब्र वेंगवाले घोड़ी से जुते गाड़ियां पर चत कऋर
[ ६४ |
बोच के २गिस्ताम को पार करके आते हैं। यह बालुकाभूमि

चोंटियां भूमि के नोचे इइतो हैं। वे शोप्र अभोष्ट वस्तु को ले


कर पूणा वेग से भागते हैं। चोंटियां यह बात जान करके उन
का पोका करतो हैं और उन्हें पकड़ लेने पष्ठ उन से युद्ध करतो
हैं जब सक विजय अथवा मरणा न हो; क्योंकि सब जन्तओं भें ये
अधिक साहसो होते हैं। इस से ज्ञात होता है कि वे सवण
का सूुल्य समझतो हैं ओर वे इस के लिये जोवन भो विसजन
कर देसो हैं ।
पकच वार रात प्रेस
सद्वा १५४१-४८ ६० -एछ ७११-१४ |
भारतवर्षोय दाशनिकों के विषय में |
( पत्रखण्ड़ २८ इस के पहले दिया ह ) |
( धूद | दाशनिकों के विषय में मेगास्थनोज कहता है कि
जो द|गनिक पवतों पर रहत हं वे डायोनाइसस के पृजक है ।
जडूलो अंगूर जो उसो देश में होता है, इशकपचा, मेंहटो,
देवदार और अन्य सदा इरित रहनेवाले हक्लक जो एकआधभ
उद्यानों केअतिरिक्त यफ्र टांज ( 7.0]॥॥४४९६७ ) के बाद कहां
नहों पाये जाते, ये सब इस बात को प्रमाणित करत हैं कि
वह् इसो देश में हुआ था। उन को कुछ रोतियां बेकनल
(3/८८ीआा४धज) को रोतियों के समान हैं। ऊँसे वेमलसल पह-
नते हैं, पगड़ो बांघत हैं, सुगन्धि लगाते हैं, चम्कोले रहते में
कपड़े रंगा कर धारण करत हैं, ओर उन के राजा जब
८,
ऋफ

सवमाधारण में निकलते हैं तब उन के पोछ्े टोल ओर घण्टा


बजता चलता है। किन्तु जो दाशनिक सेटानों में रहते हैं ते
| ६५ |
हरक्नोज़ को पूजा करते हैं। [ ये दत्तान्स काल्पनिक हैं और
कई लेखक इस का विरोध करते हैं, विशष कर के उस भाग का
जिस में अड्डा र घोर मद्य के विषय में लिखा है, क्योंकि
अर्म निया [ &पालात ) का अधिकांश और सम्पूण मेसोपोटेमिया

( ह5 एछात + लथा मेडिया ( ला ! पशिया ( पर; )

ओर केनिया ( ६.१0": ) तक ये सब युफ्र टोज के बाद हैं,


किन्तु इन सब स्थानों के अधिक भाग में उत्तम अद्ग[र होता है
शोर अच्छा मद बनाया जाता है| |
( क्ूट ) सेगास्थनोज़ दाशनिकों का भिन्न रोति से विभाग
कर्ता हे । वह कहता है कि दाशनिक दो प्रकार के होत हैं ।
एक का वहच्द बाचमैनस ( जाता | कहता है और ट्स रॉ

की समनेस 5६ (5५०१४॥०-) । बाचमेनस सब से अधिक प्रतिष्ठित


हैँ. क्योंकि उन के विचार अधिक युक्तिसड्रत होते हैं। गभ में
आने के समय से वे विद्ान मनुष्यों को सुरक्तकत्व में रहते हैं।

शिश को भलाई करने के बहाने जाते हैं और वास्तव में उत्तम


उपदेश देते हैं। जो स्त्रियां ध्यानपूवक इस मुनतो हैं वे सन्‍्तान
के विपय में अत्यन्त भाग्यगानो समझो जातो हैं । जन्‍म के बाद
शिशु, एक के बाद दूसरे सनुष्य को रक्षकत्व में रहता है और
जसे २ वह् बटता है वेसे वेसे उस के शिक्षक अधिक योग्य

& प्रमाणणों मे उन के बीच क्लोन को सम्भावना अधिक


डालो है ।
[ ६६ ;
नियत किये जाते हैं। दाशंनिकों का ग्टह नगर के सामने एक
कुच््न में सामान्य हाते केभोतर होता है। वे बह सरल रोखि
से रहत हैं ओर कुश या चस के आसन पर सोते हैं। बे मांस
भक्तण नहों करते और सम्भोग सुख से अपने को बच्चित रखते
हैं। वे गूढ़ विषयों पप कथनोपकथन करने में ओर यआताओं
को ज्ञान प्रदान करने में अपना समय व्यतोत करते हैं। जीता
बोलने या खांसन नहीों पाता, थुक कच्चा तक फेक सकता है।
आर यदि वह ऐसा करता है तो उसी दिन मंयमो नहों होने
क कारण जाति के बाहर कर दिया जाना है। इस प्रकार
संतोस वर्षों तक रह कर प्रत्यक मनुष्य अपने घर चला आता है,
जहां वचद्द सुत और शान्ति के साथ अवशिश्ट जोवन ब्यतोतत
करता है % | सब वे उत्तम मलमल धारण करत हैं | सोने को
अंगूठी तथा बालो अड्जलो ओर कानों में पहनते हैं। व मांस
खात हूं, किन्तु काम करनंवाल जन्तुओं के नहों | वे गरस तथा
प्रत्यन्त पक पदा् भीजन नहों करते । व जितनो इच्छा होतो
है उसने विवाह करत हू जिस भें उन्हें पृत्र अधिक हां । और
बहुत सझ्तियां के होन से मनुष्यां कोलाभ अधिक होता है।
उन के यहां दास ( गुलाम । नहों होत , अतएव उन्हें आवश्यक -
कताओं को पूण करन के लिये अधिक सनन्‍्तति का प्रयोजन
छोता है।
ऋ- « क्‍नततरधन पजणह॥ अरनिडनिक। | ७ >बकी९१११जलब-ज.. «- अध्काओ 23430%क | के आ+.. >« 28 ७६ ७३७- >कक फन्‍ तनपटए नं. पोजनर पान जतामिकनक अंडर अजगर ॥अ-िन 245 नजर »- -+ ने रकम: कर -अगि३
2 ही. 2+काऊ. अर दिए". ल्‍मम३ नम फ अननक बच4०३६० ५५. बकअन
बी>बनबनाने 7ज का री अमन मा न अर

£ ग्रोस के लेखक वश और आयम मे भूल करते ह।


इसो स वे लिखत हैं कि मनुष्य जो पहले छउपदेशक थे पोछे
स्टश्स्थ षो गये। सम्भवत: वे बच्मचयग्राथम के विषय मे
लिखत हू !
| ६७ |
ब्राचमम स्थियों को दर्शम महों सिखाते, $स डर से कि
कह्ठीं सस के गुप्त तत्वा के वे पतितों को न बता दें अथवा दशन
में पूणता प्राप्त करके शन्हं छोड़ न [कि जो मनुष्य सुस्त
दुःख को अपेक्ता नहों करता और जीवन खरत्यु को तुच्छ सम-
भता है वह दूसर के आधिपत्य में रहना नहों चाहता। किन्तु
उत्तम पुरुष और स्तो दोनों का यहो प्रधान गुग है।
ये सत्य के विषय में बहुचा कधनोपकथन करत॑ हैं।दशन के
अनुयायियाँ के लिये इस जोवन को वे गर्भाशय में जोने के तुल्ध मानते
हूँ आर सरण की सत्य तथा आनन्दमय लोक में जम्म के समान
प्रमकरते हैं। इसो कारण झूत्यु का सासना करने के लिये वे अनेक
प्रकार का अभ्यास करते हैं । वे समझते हैं कि मन॒ष्यों पर जो
लता है वह ब्रा था भला कुछ नह्*ों होता ।एसा ससमभना खप्न
के समान केवल साया का स्व्रम है, नहों तो कंसे एक हो वस्तु से
एक की दुःख आर दूसरे को सुख होता और एक हो वस्तु एक
कट की । - / ० , ८ / लक , नि आन फ्ै- कब ७०" 6 बा

हऋ। मनुष्य भें इन विपरोत भावों को उत्पन्त करतों ?


बच्चा लक कहना है कि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में
डन के विचार बड़ बेठड़' हैं। वे काय करने में जितना दक्त हैं
विचार करन में उतना नहों हैं,क्यांकि उन का विश्वास अधिक
कन्पित कथाओं पर निभर है। सथापि कई बालों में उन लोगों
के विचार ग्रोक लोगों से मिल जाता है। इन्हों लोगों के एस!
वे कहते हैं कि संसार का आटटि था और इस का अन्स होगा।
दूस का स्वरूप गोला है ओर जिस देवता न इसे बनाया है तथा
इस का शासन करता है वद्द इस की प्रत्येक अंश में व्याप्त है |
वे मानते हैंकि ब्रह्माण्ड में अनेक तत्व अपना फल दिखाते हैं
आर कहते हैं किजल-तत्व से एथ्वो बनो । चार तत्वीं के भ्रतिरिक्त
| इंए |
एक पायवां कारण है, जिस से आकाश ओर नक्षत्र उत्पस रुए ।
यह प्रथ्वो ब्रह्माण्ड के बाच में स्थित है। उत्पत्ति ऑर आत्मा के
गण लथा अनेक अन्य विषयों पर वे ग्रौक लोगों केसमान
विचार प्रकट करतें हैं । वे अमरत्व, भावो न्याय और इसी प्रकार
के अन्य सिद्धान्तां को प्रटों ( 7० ) को नाई आलड्डारिक
कथाओं द्वारा कहते हैं.यहो उस का दत्त है ब्राचमन लोगों के
विषय में ।

( ६० ) समनस 5 के विषय भें वहत्ष कचद्चता है कि


इन में जो सब से अधिक प्रतिप्तित हैं थे कह्राइलॉबिओइड़
((.).।४७) कहलाते हैं। ये जड़लों में रहते हैं, जहां ये हक्तों
को पत्तियां नथा जड्रलों फल खाते हैं ओर द्क्ता को काल
पहनते हैं| ये स्त्रो प्रमड़' नहों कग्त आर सद्य नहों पोते | ये
राजाओं से पत्रव्यवह्ार करतें #ै, जो द्र्तों हारा किसो बात का!
इन से कारण पूछते हैं | राजा लोग इन्हों लोगों के द्वारा देवता
की पजा आर प्राथना करते हैं। हाइलोविभइ के बाद चिकि-
व्मक प्रतिष्ठित हांते हैं: क्योंकि वे मनुष्य को प्रति को शिक्षा
ग्रहण करत हैं पर वे मंटानों भें नहीं रहते । इन का खाद्य पदाथ
चावन आर यव के बनाये हुए पदाथ हैं। यह सवदा एक वार
मांगन हो से उन्हें सिल सकता हैया जा उन्हें अतिथि बनाते
हैं उनन्‍हों से प्राप्त ह! मकता ह | ओषधियां के ज्ञान से थे अनक
सन्‍्तान उत्पन्न करा सकते हैं और पुत्र होगा या पुत्रो होगो इस
का निणय कर सकते हैं। ये भोजन का संयम करा के अधिक
आरोग्य करत हैं, आपषधि के प्रयोग से कम | मरहम और पट्टो
'अस 33 “माय 0 कारक ५+७० | 30७५५,
०नड886.५७तकफऋ६ ॥3०5०एकरनकब पक आह भा न कक ००-मरका न मम 2 8/)००य७७ ७३४२७ ६आन ७७ का/जभयाफटतर व2+परककममशककलर ५

£ बी भिन्न क खप्रकप्मण के इलात थं।


। ६८ ।
लोग अधिक पसन्द करते हैं | ग्रन्य औषधियों को वे समभककत हैं कि
उन को प्रकृति के विरड हैं। यह जाति ओर पहली जाति भो
परियम करके और कष्ट सह कर पैय का अनुशोलन करतो हैं
यहां लक कि इन जातियां के मनुष्य दिन दिन भर एक आसन
निश्वल रह जाते है | #
इन के अतिरित्ञ भविष्यदक्ता, जादूगर और झत मनुष्यों
के सम्बन्धी रोॉलि और व्यवहारी के जाननवाले होत थ य्राम्रों
आर नगरां में मित्षा मांगत फिरत हैं ।
उन भें से अधिक शिक्तित और उत्तम बुद्धि वाले मनुष्य भो
नरक के विषय में ऐसा मिध्या विश्वास रखत हैं जिस से छन के
घम और घम में सहायता मिलतों हैं! उन मर कुछ लोगों के
साथ स्थियां दशन का सनन करतो हैं, किन्तु मंथन नहों
करतों
न अं
चलता रत पत्रखसणदध ।
क्ोम० अलेक्स० एप्ठ ३०४ ।
अनक प्रमाणां सेफाईलो पिश्रगोरियन ( 7७ ["५॥-
८४१४७ + दिखलाता है कि यहदो जाति इन जातियां में सब सं
प्राचान है आर उन का दशशन जो लिपिबद हुआ है. ग्रोस के
दश्शन के पुृबस हैं। यह बात एरिस्रोबलस परिप्टंटिक
| 25] 00 ता एप] (+0 ) लथा बहुत स अन्य लखकां ने
अरब नर 48-५७ ।:७ १९--
के जे जनमभ कान जी डा न्‍+नन

४ झायय का विषय है कि ग्रोकलेखकों ने बोदां केविषय


में नहों लिखा है, यद्यपि सिकन्दर के झाने के दो शताब्दि एव
से यह मत प्रचलिस था। सम्धवत: बोदों के रूप में कोई विश-
पता नहीं होने के कारण ये उन्हें पहचान नहीं सके ।
भी लिखों है, जिन का वणन करना समय नष्ट करना होगा !
भारतवष के ऊपर एक ग्रन्थ का प्रगोता संगास्थनोज जो सेल्थुकस
नाएइकटर ( 5 प७ ५ धत,07 ) के साथ रचइता था, इस विषय

पर स्पष्ट गति मे लिखता है--उस के शब्द निम्त्र हैं जो


कुछ प्रकृति के विषय में प्राचौन समय के मनुष्यों ने कहा है
उसे ग्रीस केबाहर के भी दाशनिक कहते हैं। भारतवष में
ब्रचमिनस और सोरिया के निवासो यहुदों इसे मानते हैं। ”

पत्रखगड द्विचवारिशत ( क ) ।
यूसेब० प्रोप० ८६ शष्ट ४१० ।
क्रोमना अलेक्म० ।
ठुस के अतिरित्ञा फिर वह आरगी लिखता है--“ प्गाग्यनोक
नामक लेखक जो सेल्युकस नाइकेटर के साथ रहता था,
दूस विषय पर स्पष्ट रोति से लिखता है-- छा कुक्त प्रक्षति
के विषय में प्राचोन समय के मनुष्यों नेकहा है, ' इत्यादि ।

पत्रखण्ठ द्वित्वारिशत (ख )
साइरिल--कोन्‌द्रा जुलियन ४ '
क्रोमन्स अलेक्स ० | *६
एरिस्ट्रोब्यलस पेरिपटेटिक कहीं निम्न भांति से लिखता है ।
“ जो कुछ प्रकति० ” इत्यादि ।
२0 ३-३/-कन
पटल व्फर
लक१ + »९ ७ 4 श «औत०।---० ९४:+२५ पका: ५४७ ५ म | जन जा 8००५हर जब «०७ ० का १०
डक ब७>
*+ |. ह। >४०ा।+ +।+ मे +3कलनकलका७५ ५ ००१
५५५ 8७
७५ २० “>- मनन ज्क बन बन 2 हहऊे २ “छबक
3+७ हे०- न जननबन
+ैया डिकमल८ नम 3-5 *म 5 केजनजाजजकं (जलाने जता"शखत- 3+बक-++
>-कातक 7प७ हब ५७-०. +अन्कन--ण “2 7 + ५ १7 20हकुटर समचत--- बम मेक“केजकाअप » + >नन्‍न्‍क- '२4बकल
ननरीजन नजकना 07 * पका वच७ १ वहन

% साइरिल भूल से सेगास्थनोज के बदले एरिस्रोव्यूनस


परिपटेटिक लिखता है।
मिनी
अचलार रात प्रखर ।

क्रोमेग्स पलेक्य ० सद्ोस० १ पृष्ठ ३०५ ।

भारतवष के दाशनिकों के विषय में ।


| दृशन मनुष्यों कोसखप्रद लाभ पहचाते हुए, बहुस कान
पृ विदेशियों में प्रचलित था। अपनो ज्योति जनाइल ( 0९-
(० ; लोगों में क्िटकाते हुए यह अन्त में ग्रोस में पहंचा । इस
की बलानेवाले मिश्र देशवासियों में उन के पंगमस्बर, ऐसोरियन
लागा से चेलडियन ह ततएलात ) गाल ( (४७ ) लोगों मे
ड़ दस । (305 | डे । ब्वकि यन | (30[॥:00)5 ॥ आर केला (। धर

भर भमनोयन | »७६१४३॥8॥5(58॥]5 ) जो टाशनिक धे, फारस ट््पा

के निवासियों में मागो (कशए) «५ भारतवासियों में जिमोसोफिस


(' ट ३000000%» ; और ग्रन्य वि द्शों जातियों मभ॑ छलन के दा प्रा

निक थं। सुम जानते हो कि मागो ने जोसम के जन्म के विषय


भे पहले हो कह दिया था और एक नक्षत्न का पोका करते २
यं जडिया ।;॒पित्त । देश में प् चे। ।

भाग्तवर्षीय दाशनिकों को दो जातियां हैं--एक मसनाय


ओर टूसरो बव्राचमेनाय । सममनाय से मम्बन्ध रखनंवाले हाइ-
नोबिशोइ ( [5०४१० ) दाशनमिक हैं, जो न नगरों में रहते हैं
ओर न ग्यहों में। ये ह॒क्षों को काल पहनते हैं। ये बलस
का बाज खा कर रहते हैं ओर हाथों से जल पोन हैं।
येन विवाह करते हैं न इन्हें सम्ताम ह्ोतो है। | हमारे
ममय के उछन तपस्वियों के ऐसा जो एनक्रटोटाय
( /प्रा0७ ) कइनातें हैं| भागतवासियों में ऐसे दाशशानक
[ ७२ |
हैं जो बुद्टा (300: ) % के अनुयायो हैं, जिस का वे असा'-
धारण पवित्रता केकारण देवता के तुल्य आदर करते हैं। ]

चतुचतलवारिंशत पत्रखण्ड ।
सद्ेबी १४५-१-६ ८--प्ृष्ठ ७१८॥।
कलेनस और मण्डनिस के विषय में ।
मेगास्थनोज कहता है कि आत्मघात करना दाशंनिकों का
सिद्दान्त नहों है; किन्तु जो ऐसा करत हैं वे निरे सूख समभे
जात हैं। स्भावतः कठोर इहदयवाले अपने शरगोर में कुरा
भोंकत हैं, अथवा ऊचे स्थानों सेगिर कर प्राण देते हैं, कष्ट
को उपकज्ञा करनेवाले डुब मरते हैं, कष्ट सहने में सक्तम फांमो
लगाते हे ओर उत्साह पूणंसनुष्य आग में कृदत हैं । कलंनस न

( (४४05 ) भौ इसो प्रक्तति का सनुष्य था। वह्ष अपने कुठ-


त्तियों के वश में थाओर सिकन्टर का दास हो गया । इसो लिये
वह निन्‍्दास्पद समभा जाता है। किन्तु मण्डनिस को प्रसंसा को
जातो है, क्योंकि जब सिकनन्‍्दर के टूतों ने ज्यस ( #ला& ) के पुत्र
के निकट जाने के लिये उसे निमंत्रण दिया तब वह नहों गया,
यद्यपि दूतों नेजाने पर पारितोषिक देने कोओर नहों जाने
पर दण्ड दने को प्रतिज्ञा को थो । उस ने कच्चा कि सिकन्दर
ज्यम का पुत्र नक्ों है, क्योंकि वह अआधो प्रथ्वो काभो अधिपति
(पक>१०>९०२५क--पकाजके कल पसव७+ 030७७335%9-3०/४णआ७ ककक्‍-कइथक>क +की-+०९००-९३ ७०३७५भा मीकपा ०कना+ककभ 4-3५ +के
+-नत++१०५५५०७ 3»
कगएवनपक 3 27०
कक कक काने ७५3
>कनर+2>सा2-38०0७५५०-न«+-मन+
+
का4फे०न+»कन- 3१५०७. +करपाककअ०--34*कपलक अत» कक (++०५+»-न« वबा>मफनन >०:»-8डिनन+-- न७प०क 3 «जल १०“
अ»+> 38००७ /बह५०व+ताकतताकण के ५
कन्कननर-नन १०१३५०७ -नलक०>जकता
पट ५०९५१०म-

# इस वाक्य का दूसरा अथ यह होगा- ये (हाइलोबिओड)


भारतवष के मनुष्यों में वेलोग थे जो बुद्ध कामत मानत थे ।
]' कलेनस तविसला से सिकन्दर को सेमा के साथ हुआ

क्रश के चिता पर अपने को जला दिय्रा।


नहों है। अपने लिये उस ने कह्डा कि मेंऐसे ममुष्य का दान
नहों लेना चाहता, जिस का इच्छा किसो वस्तु से पूण नहों
होती ओर उस को घमकों का मुर्के डर नहीं है, क्योंकि
यदि में जोवित रहा तो भारतवष मेरे भोजन के लिये बहुत
देगा ओर यद्दि में मर गया तो धड्ावस्या से क्लिष्ट इस अस्थि चम
के शरोर से मुक्त हो कर में उत्तम आर अधिक पवित्र जोवन
प्राप करूगा। सिकन्दर ने आश्वर्यान्विल होकर उस को
प्रशांप्ता कोऑर उमर को इच्छानुसार उसे छोड दिया।

पज्चचत्वारशत्त प्रसगड़ !।
हे [हक ९ हद ॥ ६ ब्बे

| धरियन के इशिटका का अनुवाद देखो । |

उश्ह राज
पष्ठचत्ारिशत पतच्रख्गड़ ।
ध्कड बहोत

पुर जा (३-४ £ ८ एस हपण्ट --६प्प् |


कं '0+ 8४० ् 7७ भय ऐ।]ु थे ए हू (872६ ६ हट र्ट / ७६.

कफ न कै

भारतवा लिया एड हाहय आ हायाओल ने का चदा।१पे हि


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४०० 8०५
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*
पत्र रुजूझ कार गा ।
मी आदमी का 0802 शा आफ न टे> न न थ््ःः 3 अमर न
4 / $ सा 4 ५्+ है ्ल | ः 5 «५३ ५ ह $ | । हब ह ॒ ६ | सत कु हि ष्ष्‌ पु कु ५ च ःबप श् नरम | ्‌ ! |||]4 । हई ४४४४

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5 थे चार साजातत का शिलाआा ह्ष लस्‍़
रु किस 2 ह न न कलह ः जा ४० अं] रस्म गण >> बल से
* है हे अय) ई अप “अत १ |2 ० | रु को

हा 24 बी के हर । ०७० भ+न+ फहुआ अाच5३० है


शू२ररा कि थ ः के

कं [ 48 3 | ४ ॥ है| की आर |! ४ व्क्थ | नी सर ब्वीरनसें 4

८६:२३ उस « भाग सता हसात्ल दाक नहाों दिया जिस से घट-

साथ अलत्य प्रतत होता 6 । यह चढ़ाई यदि उुद्रथोता


| ४४ |]
पर कितना विश्वास किया जा सकता है ? भैगास्थनोज भो
इस घविषय में सम्मत है ओर अपने पाठकों को भारतवष के
प्राचोन इतिहास का अविश्वास करने को उपदेश टेता है। वह
कहता है कि यहां के निवासियों ने कभो देश के बाहर चटाई
नहों को ओर न उन के देश पर, हरेक्कोज़ और डायोनोसस के
अतिरिक्त कोई टूसरा चढ़ कर आया या विजय प्राप्त किया। हां,
आधुनिक समय में सेंकिडोनियन चढ़ कर आये थ। तथापि
सेसोसट्रिस % सिश्र देश का भौर टियकन ( [ाफै्पत ) धथि-
योपिया का यूरोप तक बढ़ कर गये थ। जितना हंरक्नोज
ग्रोक लोगों में विख्यात हैउससे भी अधिक न बुकोीट्रीसर
( “3 0007७थ" ) चलडियन लोगों में प्रसिद्ध है। यह उन
स्तपीं 4 तक अपनो सेना ले गया था जहां टियकन भो पहुंचा ।
न हा

रो.

ओर सेसोसट्रिस आइबरिया से थंस | //४०० | ओर पाोलठ्स


उकक बलनसलन

आठवीं शताब्दि ईसामसोह के पूव हुई थी । ई० सन के पृव


कठों शताब्दि में काइरस सिन्धु नदो तक गया था । जब वह
लोटा तब उस को सारो सेना जिड़ोसिया में नष्ट हो गयो । वहच्
फारस का विख्यात राजा था। इस में कोई सन्दहू नहों कि
इून का विजय ज्षणिक था ।
ल्‍# सम्भवतः यह मनथो ( »७॥(१॥० ) के उद्नोसते रष्ज्यवंश
का तोसरा राजा ग्मसंस ( हध565
। था । दस के पिता का
नाम सेटो ( 5९४ ) ओर पुत्र का मेनिफयाह ( भला गाफेण। )
शा जो एगजोडस ( ४०७५४ | का फारादओी / ||5७) ) शा ।
१! ठालमो इन स्तृपों को “सिकन्दर का स्तप' कहता है।
अनन्‍्तवे निया शो आइवेरिया के ऊपर एशियाटिक मरमंटा के
किनारे |
[| ७9५ |

( 7०/७8 ) में भो घुस गया । इम के अतिरिक्ष आइडेनथसस


(६ 0.॥॥[/॥ ए805 ) स्को दिया का मिश्र द्श लक एशिया का

विजय किया । किन्तु इन में से एक भो भारतवष के निकट


नहीं गये ओर से सिरेमिस, जिसे इस पर चटाई करने को इच्छा
थो, आवश्यक प्रयन्त करने के पूव हो मर गयो। फारसदेश-
वबासियाँ जे शारतवष से हाइड्रेकाय (॥0व/त!द) #% को वेतन
लेयार पद कश्त के लिये वुलाया था, किन्तु वे उस देश में कोई
सना लेजर नहों गये श्रोर जब काइरस मसगेटाय (४४४९९८९८६४ं)
के विद्द जा चुका सब वे उस देश के निकट पहुंचे ।
ट,यनिसस ओर दरकक्‍्लीज के विषय में ।
के न्‍ण ५ कर, १ बकिश 2

हस्क्रीज और डायोनिसस विषयकह्तत्तान्त भेगास्थनोज


४२ कक्त थांड़े अन्य लेखक विश्वासयोग्य मानते हैं। [ किन्तु
एबं टोस्थन!।ज और अधिकांश लेखकों में से इस काल्पनिक तथा
विश्वास मे अयोग्य समभते हैं, जिस प्रकार ग्रोस को प्रचलित
कप्ाएं अमत्य हैं ... ।
( ८ । इन्हीं कारणां से वे एक विशेष जाति को नाइसायम
( ९,

। ४६०-४५७॥ ! और उन के नगर को नाइसा ( ४४७४ ) कहते


हें । इस नगर की डायोनिसस न बसाया था । नगर के ऊपर जो
पवन खड़ा है उसे वे मौरन ( 0४०४ ) कहते हैं । इन का इस
प्रकार नामकरण करन के कारण वे बताते हैं कि वहां डद्णक पेचा
उत्पन्न होता है और अड्रर भी फलता है, यद्यपि इस के फल
पृणता को नहीं प्राप्त होते, क्लॉंकि अधिक वर्षा होने से गुच्छ
रकबाइतीत्तमक-
तलकतीअलडकी तीन. थ ही बम ५ 7४ + 3 निनलजल -असजन ४० जर्मन +७०.२२०० ०++ 3५०२० ०4 +७.६+ ८
न /फनक-की--++क-+-4रन
मनन. +--नकाली 324०4 कामकत ॥ न पलाओ हा+क का बिनलटर अभज-- ०»2०%०७-७--७: अन्‍्कन ५ अलरललक सनीजलन 5 8४०००» *--। ना+--"+०- * २ कह #पब्4शकपक किए, 3 अत ५ का

#इन्हं ओक्यड काइ ( ()४४पाजोप्ता )भो कहते हैं। रैसेन


के अनुसार मंस्क॒त सें य क्षुद्गक होंगे ।
पक होने के पूव हो गिर पड़ते हैं। वे ओोक्सईंकाइ को
डायो।नसस का वंशज करते हैं. काॉकि उन के देश में अड्डार
होता है आर वे बड़
छू,
धृमधघास के साथ जलस निक तहेँ।
उन के राजा भा रण मे जा। के सझय अथया
बरी

नये शापरा। एरए


दर सा | |),हा (५ । ् >+ हः
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चलत और बल तथा खन्चरों पर छड़ो का दाग देत


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कथा का सम्रथन करन के लिय ये कार्कश


स र॒प्रोमोधयिय
को कथात्रां को सहायता लेते । पीलम ( )'...0- ) ञझे व ब्न्छ
*त सासान्य बहाने पर यहां लेआते है कि
उन्हीं परापमासड!
( [?:]५ '0॥॥:40400: ) के देश में एक पा।यत्र गुफा हखा धो |
इसे थेप्रोमोधियस का बंदोग्टह कह
का जाई

ते हैं. जहां हब क्वाज उसे


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# कन्निड्नहम साहब का मत है कि रानी


"कमान. ०५५१४२कक्मनाकछल. जलन पल (१०३७-२३७
१.क्कलकन्‍्क७
+० ०-५.

घाट का भग्गाव-
शिष्ट दुग प्राचीन आयोनंस का प्रह्मडी
गठट़ है। रानोघाट
ओहिन्द सेसोलह मोल पश्चिम है |
कुड़ाने आया था ओर यह ॒वास्तव में काकेशस था, जिसे ग्रोक
लोग कहते हैं कि प्रोश/धियस हो बंधा था १

१५
#
4600 है। 4
/
केऋ
र 8. औक हेर। पत्रभ्नराडु |

वाह... दाण ६-४-१२।


.. 5. 3 * (वाद देखो । |
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2४, है। 5 दा करध | ध्ं


रे है।
पत्नच्॒शद १ रू २ कमी

| लि के ॥ह+ त | 3 2 १३8४६ रा 2 है |
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/ ई ५ ह$ ४. है ४
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/ पी ३ 5 ४ '
2८ वर | ७: ४७!०... ४-३ । ने विषय सम ।

( 6 उप पझ' 0६
2 ४५ / '
पपनो इगिउका के चलुध खगठ में मेगास्थनोज़ भो यही विचार
५ ह ता, “ हे हर 2०५ कम हि प्पश मं ही ह इट |वि पी जज (5, रे है ॥

प्रकट करना हे कि जहा वह दच टिखलान को चेष्टा करता


है के28 अविलानिया
8 |पे स्ल

टशवामियां
द्भःघ़ू सन लक 48 मय 4
काअल उन उत्त
जल
राजा ; (नल नवचटरोनूसोर
लंरट
कर न 5 अमर
|
3.

( जि पीता वा 5 | ) ऋब्क्लीज से अधिक प्रताप और वोर


था,
गा.
क्योंकि अर्थउस्त अर न नाआइवॉगया
क्यकि क्र० त्ः थेहल
का भा विजय
आया “ 7 आग
किया
| थ
था ।
श्र्ग्व चत्वा ९" (कक)
पत्रवगद अज्यलारशत ( क )।
जासेफस---? ०-२-१ ।
| यहां पर नज॒चदानसर ने टहलने के लिये पत्थर के ऊच
स्थान बनवाये जो देखने में पवत प्रतोत होते थे आर वे इम
शत में तने थे कि प्रत्यक प्रकार के व्नत्ष भो उम्र पर
आर

£ आक नाग जारसव- के दयलाआ का सब्यततलः अपना


हो देवता समक्तते थे | यदि यह सत्य हे तो शिव जां को बक्षस
आर ओोकछष्ण को इरक्ोज़ समझते होंगे ।
| #४प८ ।
लगाथे जा सके थे ।उस को स्त्री मोडिया ( १८० ) दैश में
पलो थो, अतएव वह अपने बाख्यकाल के समान स्थानों
नि

में रहना पसन्द करतो थो | अपनो इण्डिका के चतुथ खण्ड में


मेगास्थनोज भी इन बातां का नाम लेता है आर इस; प्रकार
आय

यह दिखलाने को चेशा करता है कि यह गाजा हरेक्वीज़ा से भो


अधिक साहसो अर प्रताणं था, क्योंकि उस ने लोबदिया
( !,७७४ )और अधिकांश आउ वस्या का भो विजय किया था ।

पत्रखण्ड अगप्रस्तारिेशत (खू )


जाकर: |
८ ।क्‍ हे 9. रो से तर
कई प्राचोन इतिहादइजेसाकां में से जोनबचदोनसोर का
वणन करते हैं, जोसफस ( 4४७०]॥० ) बोरोसम ( [7505 )
मेगास्थनोज और डायोज्लोज का नाम लेता है।

पत्रखण्ड अटबताररूत (ग)।


जी० सिनन्‍्मेल ।
अपनो इण्डिका के चतुथ खण्ड भें मेगास्थनोज नवृच-नसोर
को हरेक्नोज़ से भो अधिक प्रतापों प्रदशित करता हैं, क्योंकि
बड़े साहस ओर निभयता से उप्त नेलोबिया तथा आइबेरिया
के अधिकांश पर विजय प्राप्त किया था।

एकोनपञ्चाशत पत्रखण्ड ।
एबिडेन |
नब॒चंडोसर के विषय में ।
मेगास्थनीज़ कहता है कि नवबुचंड्रोसर ने जो हरेक्कोज़ से भी
अधिक प्रतापो था, लोबिया तथा भाइवेरिया पर आक्रमण किया
| ७६ |

ओर उन्हें जोत कर उन के मनुष्यों काएक उपनिषेश पौदस


( ।'०॥४४७ ) के दाहिनो ओर स्थापित किया ।

पञ्चाशत पत्रखण्ड !
एरियन--इगण्टिका 3 ८ ।
[|एरियन का अनुवाद देखो | | ०

पत्रखणड पच्चाशत ( के ) !
पिनसो - इतिह्वास ८-५५ ।
मोतियों के विषय में ।
कुछ लेखक कहते हू कि सोप के कुणड़ में मधुक्खियों केसमान
बड़े २ ओर अधिक सुन्दर सोप उन के नेता होते है, ये पकड़े
जाने सेअपन को बचाने में बड़े चतुर होते हं। इन्हें डबो
मारनंवाले उत्कगठा संखोजतें हैं। यदि ये पकड़ जाते हैं तो
अन्य सोप सहज हो में जालबड हो जात हैं, क्योंकि वे चारों
ओर घूमते रहते हैं। तब ये मिट्टी के घड़ों में रखे जाते हैं
जिस में वेनमक के नोच गाड दिये जात हैं। इस रोति से
मांस सब गल जाता है ओर जमा हुआ कड़ा पदाथ नोचे बैठ
जाता है ।

एक पञवाशत पत्रखणड ४
पूं गल० सिरब--३३ ।
पंच्डयन ( गीहतिता। ) इस के विप्य से |
पक, ण्हे ै ]औ पर |गा * ॥ है ले प्र कह हा
बष्रर प्र

( पृत्रस्यृएदु ३०-९६ )
मेगास्थनोज कहता है कि पेंग्डेयन देश की स्थियां छः हों
वबष में प्रसव करतो है ।
. आहईः
पत्रखणड पच्चाशत ( ख )।
प्लिनो--इतिहास ६-२१-४-४ ।
भारतवासियों के प्राचोन इतिहाम के विषय में |
सब जातियों में भारतवासो हो केदल अपना टेश छोड़ कर
टूसरे देश में नहों जा कर बसे हें। «कस पिता से ले कर
सिकन्दर लक एक सो चोवन राजा हुए, जिन्हों न ६४५१ वष
तोन महोने तक राज्य किया ।
सोलिनस ४२-४५ ।
पिता बंक़स हो ने पहले पहल भारतवष पर आक्रमण
किया था और वे हो सब से प्रथम भारतवामियों पर विजयो
हुए थे।उन स लेकर सिकन्दर तक ६४४१ वष तोन मास गिने
जाते हैं। इम के बोच में एक सी तिरपन राजाओं ने राज्य
किया । इन्हों कि संख्या से वह समय निधारित किया
जाता है।

पञ्वचलारिशत पत्रखण्ड । &


एरियन ७-२-३--८
कलेनस ओर सण्डनिस के विधए में |
विदित होता है कि यर्गया रत गण प्राप्त करने
को घोर इच्छा के वशोभूत था तथाए ०ए हाथ परार्ता' को
परखमे को शक्ति से सवथा रहच्चित नह। अह शत 5 कालो
पहचा और टिगस्बरटाए निक क | &;गाए शक पाए, हू 5 णए्ख्य
संच्ड
अरब नल '>कक ५ जनक का. ५3 (हक बतजमे +%$०+-“क बेफज०-७ 5 औजधकज >+- है. अजओ सहकज- - आट8क न अनतब०4 ५4 नकन 7. 7 िख्थाएर

एरियन के “सिकन्दर को चढ़ाई” न <व ूएरझऋूाक से एश


खण्ड लिया गया है उस को “ इण्डिका ' महा ऊजंसा कि ऊपर
कहा गया है।
४ हा |
को अपने सम्मुख बुलाने को उसे इच्छा हुई, क्योंकि उन को
सहिष्णुता का वह झादर करता था। डंण्ड मिस इन में सब
से बडा था ओर सब उस के शिष्य के समान रहते थे। उस ने
केवल अपने हो जाने से अस्वोकार नहों किया किन्तु दूमरों
को भो नहों जाने दिया । कह्टा जाता है कि उस ने यह उत्तर
दिया था ।-में भो ज्यस का वेध्षा डो पत्र हूं जेसा कि सि-
कन्दर है ओर में सिकन्दर का कुछ लेना नहीों चाहता ( क्योंकि
में वतमान अवस्था में भलो भांति छू) क्योंकि में देखता हूंकि
जो लोग सिकन्दर के साथ इतने समुद्र ओर पृथ्वी पर घूमते हैं
उन्‍हें कुछ लाभ नहों होता और न उन के पयंटन हो का अन्त
फूपता । इस लिये सिकन्दर जो कुछ दे सकता है उन सबों को
में इच्छा नहों करता और न मुझे इस बात का डर है कि
मु दबा कर वहच्द मेरा कुछ कर सकता है। यदि में जोवित
रहा तो भारतभूमसि ऋतुआं के अनुकूल फल देकर भेरों प्राण-
रक्ता में समथ है आर यदि मं मर गया तो इस दूषित शरोर
के सड़ से मुझ हो जाऊगा। उसे स्वतन्त्र प्रकति का मनुष्य
जान कर सिकन्‍्दर ने बलप्रयोग नहों किया। यह कहा जाता
है कि उस ने कलेनस मामक, उस स्थान के एक दाशनिक को
अपने निकट रखा था; किन्तु मेगास्थनोज़ कहता है कि वह
आत्मसंयसम एकदम नहों जानता ओर दाशनिक लोग स्वयम
कलेनस को बड़ो निन्‍दा करते हैं, क्योंकि वच्द उन लोगों के सुख
को छोड़ कर ईश्वर के अतिरिक्ष दमरे प्रभु का सेवन करने
चला गया |
३ 7

सन्टिग्ध प्रखयह ।
द्विपन्माशुत पत्रखण्ड ।
इलियन--इडतिहास -१ २-- ८.
छाथियों के विषय में ।

(पत्रखशड ३६. १०, ३७. १० । )


हाथी जब खुल चरता है तब साधारणतः जल पोता है:
किन्तु जब युद्ध कोधकावट उस सहइनो पड़तो है तब उस मसद्य
मिलता है। किन्तु उस प्रका७छ का मद्य नहों जो अइ्गर सं
निकलता है, पर टूमरा जो चावल से बनाया जाता है। उन के
संवक उन से आगे भो बढ़ जाते हैं ओर ठन के लिये फल तोड़
लात हैं क्योंकि उन्हें मधुर गख्ध बहुत प्रिय लगता है। इस लिये
लोग उन्हें मंदान में ले जाते हैं ओर वहीं अत्यन्त मोठो सुगन्धि
के प्रभुख में रख कर उन्हें सिखात॑ हैं। हाथो के सब्मुख शिक्तक
फुलों को टोकरो लिये रहता है ओर हाथो फलों को उन को
गन के अनुसार चुन कर उस टोकरो में रखता है । जब एकत
करना सम्राप्त हो जाता है ओर टोकरो भर जातो है तब वह
स्नान करता है ओर पूण रसिक के समान स्नान का सुख लटता
है। स्नान स लाट कर थाने पर अपने फूलों को प्राप्त करने के
लिये वह उत्मुक रहता है ओर उनके ले आने में कुछ देरो
होतो है तो चिक्वरनें लगता है ओर एक ग्रास भो नहीं खाता,
जब तक उस के एकत्रित किये हुए सब फल उस के स्यर
नहीं रखे जाते हैं । इस के उपरान्त अपनो संड़ से फलों को
टोकरो में सेले कर अपने भोजन के पात्र के चतूदिक क्चिसरा
| ८३ |
देता है और इस प्रकार इन को गन्ध को मानी अपने भोजन
का स्वाद बनाता है। बहुत से फूलों को अपने बिक्कीने के ऊपर
पुआल के ऐसा बिछा देता है, क्योंकि अपनो नोंद को वह
सुखप्रद और मधुर बनाना पसन्द करता है ।
भारतवष की हाथियां नव हाथ लम्बे और पांच हाथ
चौड़ होते हैं। देश भर में प्रेसियन ( [:757॥ ) हाथी सब से
बड़ होते हैं, उन के बाद तक्यमिना के होते हैं ।

जअपर्चाशत पत्रचर ३
दु लियन -इलिक्ञास - "३-४६ ।
एक शत हम्ति के विषय में |

( पत्रखगंड ३६-११, ३७-११ ॥ )


एक हाथों के शिक्षक को एक उजला हाथो का दचा
मिला जिसे वह घर ले आया । वहां उसे पांस कर और क्रमशः
अत्यन्त पोसुआ बना कर उस पर चढ़ता फिरता था । उस हाथो
को वह बहुल प्यार करता था और वचह्च इस्ति भी उस के प्रति
प्रेस करता था, एवस अपन अनुराग से क्रीजन देने का बदला
टेला धा। भारतवासियों के राज़ा ने इस हस्ति के विषय में
सुन कर उसे लेने को इच्छा को; किन्तु उस के स्वामों ने हस्ति के
प्रेम को देख कर और निश्चय इस बात में दुखों हो कर कि
ड्स का स्वासों अन्य पुरुष ड्ोोगा उसे देना अस्वोकार किया
और अपने प्रिय इहस्ति पर चढ़ कर गेगिस्तान में एक पवत पर
चला गया । राजा ने क्रद हो करके उस का पोछका करने के
लिये मनुष्यों को यह आज्ञा देकर मैज्ञा कि वे हाथो को पकड़
लें ओर उस मनुष्य को भो टण्ड देन के लिये ले आवें | भागन
वाले के निकट पहुंच कर उन लोगों ने अपना अभोष्ट करना
चाकछा किन्तु उस मनुष्य नेआक्रमण करने वालों का विरोध
किया और हाथो को पीठ पर में उन्‍हें रोका। हाथो भो अपने
स्वामो की ओर से लछ्ठन॑ लगा। पहले तो यहो अवस्था थो
किन्तु जब वह भारतवासोी आइत हो कर नोचे गिरा तब वह्ष
हाथो , नमक का सच्चा, उस के आगे खड़ा हो कर उस को
रक्ता करने लगा, जिस प्रकार कोई योदा अपने आहत
साथो को ढाल से छिपा कर ओर उस के आगे खड़ा हो कर
उस को रक्षा करता है। उस ने बहत से आक्रमणकारियों को
मार डाला ओर अवशिष्ट को भगा दिया | तब अपने पोषक को
मंड से लपेट कर और पोठ पर बिठा घर अपने हइस्तिशाला में
लेझ्ाया ओर सच्च मित्र केसमान उस के साथ रछ् कर उस को
प्रद्येक प्रकार से रक्ता करता रहा ।
ऐ मनुष्यो | कंसे नोच तुम हो । सदा प्रसन्नता से नाचते रह ते
हो जब तक कड़ाहो के छनकछनाने को मधुर ध्वनि तुम सुनते
रहते हो और सदा तवाजों में धुम मचाये रहते हो, किन्तु
विपत्‌ के समय घोखा देत हो और व्यर्थ मित्रता के पवित्न नाम
को कलद्चित करत हो । 5
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०»००नातंमक जमनातप-मकम व हा

४ प्टाक॑ लिखित सिकन्दर को जोवनो में पोरस के हाथो


का वणन मिलाओ ।..... जब तक युद्ध होता रहा इस हाथो
ने असाधारण प्रमाण अपनो बुद्धिमत्ता और राजा के शरोर के
रसखकल का दिया | जब तक राजा लड़ सका तब तक वह बड़े
साहस से उस को रक्षा करता रहा और आक्रमण करनेवालों को
हटाता रहा; किन्तु जब उस ने देखा कि भालाओं के बाइल्‍थ
[| द4 |

चतुपञ्चाशत पत्रखण्ड ।
ब्राह्मण ओर उन के दशन के विषय में ।

( पत्रखच॑णगठ ४१, ४९, ४५, )


भारतवपष्त के ब्राचमनों के विषय में ।
भारतवष के ब्राचमनों में एक प्रकार के दाशनिक होते हैं
जो स्वतन्त॒ जोवन घाग्ण करते हैं और मांस तथा आग से
पकाये हुए पदार्थ भोजन नहीों करते, फल हो खाकर सन्‍्तोष
करते हैं। वे इन फलों को हक्ष से तोड़ते भो नहों, किन्तु जब ये
गिर पड़ते हैं | तब उन्हें चुन कर खाते हैं। वे टगवेना ([॥9ए८ा॥)

कहते हैं कि यह शरोर आत्मा को आच्छादित करने के लिये


इेश्र से दिया गया है। वे मानते हैं कि ईश्वर ज्योतिखरूप है
किन्तु आंखों से जो हम लोग देखते हैं वेसो ज्योति वह नहीं
है, न सूथ अथवा अग्नि के ऐसा । ईश्वर को वे शब्दस्वरूप कहते
हैं। इस शब्द से वे स्पष्ट वाक्य नहों समभते, किन्तु इसे विवेक का
कथन जानते हैं, जिस से ज्ञान का गुप्त तत्न बुद्दिमान्‌ लोगों को
स़ात होता है। यह ज्योति, जिसे वे शब्द कहते हैं ओर ईश्वर
मानते हैं, केवल ब्राचमनों हो को विदित होतो है, क्योंकि रुन्हों
लोगों ने अचहड्भरार का त्याग किया है, जो आत्मा का सब से
पलक पक्का%क. ०५ >>पजलथ- अब
कमल “०५ जलन जजबिक अिननी तपनअलजन>+ ननजललक- ना+ ५कर 3०+लमन-सत रु क०-+- क्त

आर आधातों की अधिकता से वह्ठल गिरा चाहता है तब वष्च


धोरे से घुटने बंठ गया, बड़ी कोमलता सं उस के शरोर से प्रत्थक
शूल को निकाल लिया ” ।
]* सम्भवतः यह संस्कत तुड्रवेणा का अपभ्वेश है, जो आज
कल तुद्गभद्रा कहलाती है ।
|. को 7

वाह्य आच्छादन है.। इस प्रकार के मनुष्य रूत्य का हणा के


साथ उपेक्षा करतें हैं ओर ईश्वर का नाम विशेष आदर की
ध्वनि से लेते हैं एवम्‌ गोतों सेउन को पूजा करते हैं। उन्हें
ख्रियां नहों होतीं ओर वे सनन्‍्तान उत्पादन नहों करते । जो
मनुष्य उन के ऐसा जीवन व्यतोत करना चाहते हैं वे सदा के
लिये नदो को उस पार से उल्लघ्नन कर के चले आते हैं और

यद्यपि उस प्रकार से ये जोवन नहढों धारण करते, क्यांकि इस देश


में स्त्रियां रहती हैं जिन से उस स्थान के निवासों उत्पन्न हुए हैं
ओर जिन से ये सन्‍्तान उत्पादन करते हैं। छस शब्द के विषय
में जिसे ये ईश्वर कहते हैं, ये मानतें हैं कि इसे शरोर होता है
आर जिस प्रकार मनुष्य उन का वस्त धारण करता है उसो
प्रकार इस का शरोर वाह्मआच्छादन है। जब यह शरोर को
परित्याग करता है तब आंखों ये टोख पड़ता है। ब्राचमन
लोग कहते हैं किजो शरोर उन लोगों को आच्छादित करता
है उस में युदद होता रहता है। वे शरोर को युद्दों का जड़
मानते हैं ओर उस के विरुद्ध इस प्रकार लड़ते हैं जंसे योद्धा
शत्रु के प्रतकूल लड़ते हों। वे यद्ध भी समभते हैं कि सभो
मनुष्य युद्ध केबन्दो के समान बद्द हैं, उन के शत्रु आन्‍न्तरिक हैं |
यथा काम, अति भोजन सें आसक्ति, क्रोध, हव, दुःस्त, उत्कट
इच्छा इत्यादि । जो मनुष्य इन सभी की जोतता है वहो ईण्चर के
निकट जाता है| इसो कारण डण्डमसिस को, जिस का सिक-
न्द्र मंकीडन ने दशन किया था, ब्राचइसन लोग देवता मानते
हैं, क्योंकि उस ने शगोर को युद्ध में जोत लिया था,
किन्तु कलेनस को निनन्‍दा किया करते हैं. क्योंकि यह उन के
| ८७ ]
दशन से विसुख हो गया था | इस लिये दाह्मण जब शरोर को
भाड कर फेंक देते हैं तब वे स्वच्छ ज्योति को देखते हैं, जिस
प्रकार मक्लियां जल के ऊपर आकर सये को ज्योति को
टेखती #£ ।
प्चपताशत पतद्मखरद *

अत! च्म

]
छा 4

कलेनस आर अण्ड निस के विषय में ।

, पत्रर्छण्ड ४१५ १८, ४४, ४४ )


क्षास्सन सोग जो फल मिल जाता है वष्ों खाते हैं
नम कि ध्यक का हे

आर उस जंगलो जड़ियों मे प्रागरक्षा करते हैं जिल्‍्हेँ पृथ्वी


बहुन उत्पन्न करतो हैं, ये केकक्‍ल जल पाते हैं । जड़लों में ये
0

फिरते रहते हैंऔर रालि यो समय दत्त के पत्तां की शब्या पर


प्र वन ९
९३ ।
आल कर हर] ्े | बी & $ ४ ७ के # 9 के

“४ तलब लुम्हारे कपटो मित्र कलेनस का यह्ट विचार है, किन्तु


उम्त स हम लोग छणा करते ४ आर उस चरण तले रखते हैं ।
यहापि उच्च लेतुस लोग को बहुत हानि को, तुम उस का
आदर और पूजा करते हो, किन्तु हम लोगों को सड्राति से वह
घृणा के साथ निकस्मा सम कर निकाल दिया गया है। और
ऐसा क्यों न हं। ? जब मुद्राप्रमो कलेनस उन्हीं वस्तत्ों का
ग्रादर करता है, जिसे हम लोग पर से कुचलते हैं। वच्द तुम्हारा
अयोग्य मित्र हेऋस सीगी का सित्र न निश्चय वच्दच इत-
भाग्य लोब अत्यन्त ट.खो क़षर में भओ अधिक छशायुक्ष दया
| ध्द् "नर
|

का पात्र है, क्योंकि धन के प्रम में उस ने आत्मा का सत्यानाश


किया | अतएव न हसो लोगों के योग्य था न ईश्वर हो के साथ
मेत्रो करने योग्य था। इसो से न तो वहच्द जड्गलों में रह कर सोच
आदिकों से रहित जोवन व्यतोत करने में सनन्‍्तुष्ट इचआ और न
वह परकाल में सुखो ड्ोने को आशा से सुखो हुआ, क्योंकि
धन के लोभ से उस ने अपनो भागहोन आत्मा का जोवन हो
नष्ट कर दिया।
“ किन्तु हम लोगों मेंएक ऋषि डण्ड्सिस हैं जिन का
घर जड़ज है, जहां वह पत्तियों को शब्या पर शयन करता
है ओर जहां निकट हो शान्ति का स्त्रोत है जिसे वच्च पान
करता है मानों अपनी साता का दूध वह पी रहा हो । ”?
राजा सिकन्दर यह सब सन कर उस जाति के मनुष्यों का
सिद्धान्त मुनने के लिये इच्छुक इुआ ओर उन क गुरु ड्यड्रमिस
को बुला भेजा । *** सा शा
उसे बुलाने के लिये ोनेसिक्रेटीस ( (०४०९८ ) भेजा
गया । जब उस ने महषि को पाया तब कहा “ए ब्राआणों के
गरु तुम्हारो जय हो । महाबलो देव ज्यूप का पत्र शिकन्दर,
सब मनुष्यों काअधिपति तुम को बुला रहा है। और यदि तुम
उस को बात मानो तो वहच् तुम्हें बड़ो २ ओर अत्युत्तम वस्त
पारितोषिक देगा, किन्तु यदि तुम अस्थवोकार करोगे तो वह
तुम्हारा शिर काट लेगा ।
डण्डेमिस प्रसन्नतापुवक मुस्कुराते हुए अन्त तक यह
सुनता रहा, किन्तु अपनो पत्तों को शब्या स शिर भो नहों
उठाया और उसो प्रकार पढ़े २ यह धइणागशुक्त उत्तर दिया :--
“ दूश्वर जो सब का राजा है किसी को हानि नहीं पहुचाता.
| ८८ |
किन्तु ज्योति, शान्ति, सजोवता, जल भझोर मनग॒ष्म के शरोर तथा
आत्मा का कत्ता हैओर बुरों वासनाओं से निलिप्त होने के
कारण इन्हें वह स्वोकार कर लेता है, जब ख्त्यु इन्हें मुझ करती
है। वहो एक ईश्वर मेरे पूजा करने का पात्र है जो हत्या से
छणा करता है ओर कोई युद्ध नहों ठानता । किन्तु सिकन्दर
इंखर नहीों हैं, क्योंकि उसे मरणटु;ःख अनुभव करना पड़ेगा ।
अर कंस उस के समान कोई पुरुष संसार का अधिपति हो
सकता है, जो अभी तक टाइबरोबोआस ( ||८"००४७ ) छस
किनारे भो नहों पहुंचा है ओर समस्त संसार के राज्यसिंहा-
सन पर नहीं बंठा है? इस के अतिरिक्त सिकन्दर नरक में
जोवित नहों गया है, न वह पृथ्वी के मध्यभागवर्ती उन देशों
को जानता जिस ओर सं सूथ का पथ गया है। यहां को जातियों
ने सिकन्दर का नाम तक नहों सुना है । यदि उस का वतंमान
राज्य उस को इच्छा के अनुकूल विस्तत नहों है तो गड़ग नदो
के पार उस जान दो | वहां उस मनुर्ष्यां करखन योग्य भूमि
मिलेगो, यदि इधर के देश में वह नहों अंट सकता । किम्तु यह
जान रखो कि जो सिकन्दर मु्े दता है ओर जिन वस्तुओं को
देने को प्रतिज्ञा करता है वे सब मेरे एक भो काम को
नहों हैं। किन्तु जिन वस्तुओं को में बहुमुल्थ समझता हूं
ग्योर वास्तविक काम का समभता हूं वे ये हो पत्र हैं जो
मेरे घर हैं । ये इरे भरे पोधे हैं, जिन से मुर्के उत्तम भोजन
मिलता है ओर यहो जल है जिसे में पोता हूं। अन्य सब धन
और वस्तु जो बड़े दःख से एकत्र किये जाते हैं वेएकत्र करने
वाले को विपत्‌ पचुचाते हैं ओर दुःख तथा कष्ट के कारण होते
हैं, जिम से प्रत्यक समुष्य का जोवन भरा रहता है। घर में
[| €० |
जड़लो पत्तों पर पड़ा रहता घट ओर मेरे पास रक्षा करन
योग्य कोई वस्त नहीं रहने के कारण में सुख को नोंद सोता
हूं। यदि मुझे सुवणरक्षा करने को रहता तो वह्द नोंद आने
नहीं देता | एथ्वो मुझे सब कुछ देती है जिस प्रकार माता बच्चे
को दूध देतो है। जहां इच्छा होतो है वहां में जाता हूं और
मुर्मे किसो बात को चिन्ता नहों है जिस से सें इच्छा के विरुद्
अपने को टुःखो करू । यदि सिकन्दर मेरा शिर काट लेगा
तो बच्ठ मेरी आत्मा कानाश नहों कर सकता। केवल मेरा
नि:ःशब्द शिर रह जायगा, किन्तु आत्मा अपने प्रभु के पास चलो
अआायगो ओर इस शरोर को फटे वस्त्र केसमान पथ्वो पर छोड़
दंगा जहां से यह बना था। तब में जोवात्मा हो कर उस इंश्वर
के निकट पहंचंगा जिस ने इस लोगों को शरोर में नियद्ध करके
इस एथश्वो पर यह देखने के लिये छोड दिया है कि यहां हम
लोग उस को आज्ञा का पालन करते हैं या नहों । और जब
हम लोग यहां से उस के सम्मुख जायंगे लब वष्ठ हम लोगों के
जीवन का व्योरा पूकछ्ैगा, क्योंकि वह सब पापों का विचारपति
है ओर पोड़ित मनुष्यों कोआह पोड़कों का दण्ड है।
“ अतएण्व सिकन्दर इन धमकियों से उन लोगों को डरावे
जो खग़ ओर घन चाइते हों और जो खरुत्यु सेभय खाते हों।
हम लोगों के विरुद्ध ये अस्त्र तुल्य रूप से अशक्त हैं, क्योंकि
ब्रास्सन लोगों को न सोना प्रिय हैऔर न वे झरुवत्यु से डरते हैं।
इस से तुम जाओ ओर सिकन्दर से यह्ठ कद्दो कि जो कुछ
तुम्हें हैउस से डण्डेमिस को कोई आवश्यकता नहीं है, अतएव
वह तुम्हारे निकट नहों आवेगा, किन्तु यदि तुम डणसण्डेसिस से
कुछ चाइलते हो लो उस के निकट जाओी।”
| ८१ |
ग्रोनेस्तिक्रेटोस सेइस बातोलाप का विवरण सुन करके सिक-
न्द्र को डण्डेमिस के देखने को ओर भी अधिक उत्कण्ठा हुई
झर यद्यपि वह बूढ़ा भर नड्ठा| था तथापि अनेक जातियों का
विजेता सिकन्दर उसो को अपने से सबल पाया इत्यादि ।

पत्रखण्डठ पञ्चपचाशत ( के )
ऐम्बा|सियस ( ॥॥0/0जल्‍05 )

कलेनस ओर मण्डेनिस के विषय में ।


ब्राचमन लोग पशुओं के ऐसा जो भूमि पर मिलता है उसो
को खाते हैं; जेस द््षों को पत्तियां और जड़लो जहो आादि।
“कलनस तुम्हारा मित्र है किन्तु हम लोग उस से घणा
करते हैं शोर उसे लात मारते हैं। जिस ने तुम लोगों को बड़ों
हानि को वहो तुम से आहत और पूजित होता है, किन्तु हम
लोग उस निकाल बाहर करते हैं क्योंकि वह किसो महत्त्व का
नहों है | जिन वस्त॒ुग्नों कोहम लोग नहीों चाहते वे हो कलेनस
को धन के लोभ के कारण प्रसन्न करते हैं। किन्तु वह हम
लोगों का नहों था। उस ने अपनों आत्मा को बड़ो क्षति को
अर उस का नाश हो कर दिया जिस कारण स वह ईश्वर
ओर हइस लोगों का पसित्र होने योग्य नहों है। बच इस संसार
में जड़लों को गान्ति के योग्य नहों था श्र न वह परकाल
हो में यश प्राप्त करने को आशा कर सकता है ।”
जब सिकन्दर जड़ल में आया तब राह में उस मे डनडेसिस
को नहीं देखा...
ग्रतएव उक्त टूत मे डनडेसिस के निकट पहुंच कर इस
प्रकार उस से सम्बोधन किया |
| ८२ |
“जुपिटर के पुत्र ओर मानव जासि के राजा सिकन्दर ने
आज्ञा दो है कि तुम शोप्र उस के निकट जाओ, क्योंकि यदि
तुम जाओभ्ोगे तो वह लुम्हं बहुत दान देगा, किन्तु यदि तुम
जाने से अस्वोकार करोगे तो इस अवज्ञा के लिये वहच्द तुम्हारा
शिरघ्छ दन करेगा ।”
जब ये शब्द डनडेम्रिस के कानों में पड़े तब वच्च अपने पत्र-
शय्या पर से उठा नहों जिस पर वह सोया था, किन्तु पड़े हो
पड़े भोर मुस्क्राते हुए यों उत्तर दिया--“सवशक्तिमान्‌ ईश्वर
किसो को हानि नहों करता, किन्तु जो मर जाता हैउसे जोवन-
च्योति पुन: प्रदान करता है। इस लिये वहक्षो एक भैेरा प्रभु
है छो इत्या करने का प्रतिषिध करता है और युद्ध नहीं
उभाडता । पर सिकन्दर इंश्वर नहों है, क्योंकि उसे मरना
होगा | सब वह्ु॒ केसे सब का प्रभु हो सकता है ? अभो तक
टाइबरोबोीआस ( /'१०८/०॥०४६ ) नदों के पार नहीं गया है,
न सारे संसार को जिस ने अपना घर बनाया है, न गेडस
( (४0९५ ) का उल्नड्नन किया है भोर न एथ्वो के मध्य में सूय का
पथ देखा है। इस से बहुत सो जातियां उस का नाम भो नहोंं
लानतों । यदि उस का अधिक्षत देश उस को नहों धारण कर
सकता तो वह नदो को उत्तोण कर जाय, उस ऐसो भूमि मिलेगो
जो उसे रख सकेगो। मेरा घर पत्ते हैं, निकटस्थ बनस्पतियां खा
कर में रहता हूं भोर जल पोता हूं। मैं उन वस्तुओं से छणा
करता हूंजो परिय्रम से मिलतो हैं, जोनाशमान हैं ओर जो
उन के चाहनवालों तथा रखनंवालों को दुःख के अतिरिज्ञ
कुछ नहीं देते। इस से में मिभय सुख करता हूं भोर आंखें
बन्द किये हुए किसो बात को चिन्ता नहीं करता । यदि में
[| ८३१ ।|

सुवण रखने को इच्छा करू तो अपनो नॉद का में नाश


करू गा। जिस प्रकार माता अपने बच्च को सब पदाथ देतो है
उसो प्रकार प्रथ्वों मुझे देतो है। जब मेरो इच्छा होतो है तब सें
चलता हूंओर जब में नहों चाइता तब कोई चिन्ता रूपो
आवश्यकता मुर्क नहों चला सकतो | यदि वनत्ष मेरा शिर काटने
को इच्छा करे तो मेरो आत्मा नहों ले सकता । वन केवल पड़ा
हुआ शिर लेगा, किन्तु मेरो आत्मा शिर को वस्त्त के टुकड़ के
समान छोड़ कर प्रस्थान कर जायगो और इसे एथ्वों पर छोड़
जायगो जहां से यह्ु बनाथा। किन्तु जब में जोवात्मा हो
जाऊ'गा तब उसो ईशर के निकट ऊपर चला जाऊ'गा जिस ने
शरोर के भोतर निवड्ध किया था । ऐसा करने के समय उस ने
हम लोगों को परोक्षा लेनो चाहो कि उसे छोड़ने के बाद इस
संसार में हम लोग कंसे रहते हैं। ओर जब हम लोग उस के
निकट उपस्थित होंगे तब वह हम लोगों केइस जोवन का व्यीरा
पूछेगा। उस के निकट खड़ा हो कर में अपनो हानि देखुंगा
आर उस का विचार उन लोगों पर सुनंगा जिन्‍्हों ने मुझे क्षति
पहुंचायो, क्योंकि पोड़ित मनुष्यों कोआइ उस के पोड़कों के
दण्ड होते हैं ।
४ डूस प्रकार सिकन्दर उन लोगों को धमकावे जो धन
चाइते हैं अथवा खत्यु से डरते हैं, जिन दोनों से में छणा करता
हूं। क्योंकि ब्राचमन न सोना को प्यार करते हैं ओर न झत्यु
हो से भय खाते |अतएव जाओ और सिकन्‍न्दर से यह कहो :---
“डरण्डमसिस तुम्हारा कुछ नहों चाहता” किन्तु यदि उस का सुख
कुछ चाइते हो तो उस के निकट जाने से छणा मत करो । ?”
जब सिकन्दर ने दिभाषो के द्वारा ये बातें सुनों रुसे ऐसे
[ ८४ 7]
-

मनुष्य को देखने को भोर भो उत्कयठा हुई, क्योंकि जिस ने भनेक


जातियों को परास्त किया था वह एक हद नग्न मनुष्य से
परास्त डा गया ।

पष्ठपज्चबाशत पत्रखणड ।
पन्‍्लनो-- इतिहास
भारतोय जातियों को सचो |
हिफेसिस ([ए]0॥/४४ ) से सेल्थुकसमाइकेटर के लिये निम्न
यात्राए क्‍ को गयों ।--छ्े सिड़स ( [८४४८प४ ) तक १८ मोल
और उतने हो मोल जोमानेस ( 3०॥०॥7०८४ ) नदो, तक ( कुछ
प्रतियां ५मोल अधिक जोड़तो हैं )। वहां से गड़गा तक ११२
मोल । गरहोडोफा ( [०५७७७ ) तक ११८ मोल ( दूसरे
३२५ देते हैं)। कलिनिपक्स नगर तक १६७ सोल--४०० ।
अन्य लोग २६५ मोल लिखते हैं। वहां से जोमानेस और गद्भग
के सड़म तक ६२५ मोल ( बहुत लोग ११५ मोल ओर जोडते
हैं), ओर पालोबोधा तक ४२४ मोल । गड्ा के सुख तक
७३८ सील । #
>७+ ७७०७-३५ १९ 3५+५--० >०#७०४७५५ २ ५

४ ऋस्तलिखित पुस्तकों केअनुसार &औ८्या €३२७ मोल ।


ये सब स्थान राजपथ पर थे जो सिन्ध से पालोनोथा तक गया

के थोड़ नोचे प्रस्थान का स्थान था। वहां से राह् सोधे जोमा-


नेस के किनारे आधुनिक वरिया के निकट जातो थी । जोसा-
नेस यमुना यहां से गइहग के किनारे ११२ मोल हस्तिनापुर के
निकट होता है। रहोडोफा आधुनिक दभाई (428/)0४४) समका
जाता है जो अनूप शहर से १२ मोल दक्षिश है। कलिनोयक्य
को मैश्नट ओर लैस्सन साहब कमस्रोज कहते हैं, किन्तु सेणट
| ९५ ।
त्ज्कीँ

दूसाघस ( [7/0075 ) पवत ( जिस का अथ देशोय भाषा में


ऐ;
# के)3० कलरजनकक्‍टकीओक2+जन्‍र%2०-+94,
/+---हक- »-+५+० ३३१५ ००३, ७ केक
००-५० कल ५१ तक» >-जा
३४::७०-- कर +:5:9७,%/7२०४९०७४१०१७०५१००४०कर: चल३"पालनप्यग९०-५५००९"कानाऔगनक 32४0 ४प५-मत कजर 38“काले ना।००७--३०)०७३/
६शक अल
नमहतीननकेन तड नलनशी पनीक

साटिन साहब इ्क्तुमतो के किनारे एक स्थान बताते हैं। यह


नदो काली नदो कच्लातो होगो, क्योंकि अब भो यह्ष कालिनो
ओर कालिन्द्रो नाम से पकारो जातो है। “पकक्‍म' पत्त का अप-
भत्रश है जिस से ज्ञात होता हैकि यह नगर कालिनो नदो
के निकट स्थित होगा । |
यहां जो दूरो दो गयो है उस में लोगों का मतभेद है। कुछ
इस में से वास्तविक दूरो से नहों मिलतो | सेण्ट मार्टिन साहब
ने यह सिद्ध किया डे कि वे अधिकांश सत्य हैं। उन का विचार
निम्त है :--
मोल र् डियम
झसिड़स से जोमानस सक १6६८ १9३४४
जोमानेस से गड़ग तक श्श्र प८६
वहां से रहोडोफा ११८ ८५२
हेमिड्रस से रहोडोफा (सोधो राह से! १२४५ मोल २६००
गहाडोफा से कलिनिपक्स तक १६७ १३३१६
उंसिड्स से कलिनोंपक्स ४६५ ४४२०
कलिनिपक्स से गड़ाा ओ आओोमानेस
के सड्रम तक (२२७) (१८१६)
जीमानेंस से गड़ा और जोसानेस
के सड्न्‍म तक ६२५ धू०००
प्लिनो के अनुसार नदियों के सट्न्‍जम से पालोबोधा ४२५
मोल है, किन्तु वसुतः यह २४८ मोल है, इस से ज्ञात होता है
कि २४५ अथवा २५४ के अड्टू उलट कर ४२४ हो गये हैं । पालो-
बोधा से गंगा के मुख तक वह्न ६१८ मोल लिखता है। पटने से
लामल॒क ४८० रोमन सोल है। नदो से जाने से अधिक पडेगा।
[| ९६ |
वफोला होता है )एमोडस ( 7)70075 ) # का एक अंश है।
एमोडस परत श्रणो से जातियों का नाम लेना तूल नहाँ होगा।
पहले इसरो ( !:0॥५ )कीसिरो ( (एफ ) और इजगो ([227)
है उस के बाद पवर्तो परचिसिओओेटोसागी | ( (फांझंगठश४ष्टां )
ओर ब्राचमनों हैं। ब्राचमतां के कई उपजातियां हैं जिन में
एक मक्को कलिड्री ( ४6०८७ :४ ) है है। प्रिनास (78%)
और वीनास ( (४४४ ) | जो गड्ग हें गिरता है ) दोनों नदियां
१७४ णााओ जे
>रककनक
“ननरकीजलन बन» नल५“शनिलभनी नमेअपना लिनि पान डिलाई स्‍७2++* कजजक्आ &3 क>जन “नजर, कक + सन्‍न्‍ल 2०४. +क०++-- 6
किलर अमक+.+०३५३++-3७+क जय भकोका

# हिमवत्‌ या हेमाद्रि से निकला है।


| ये चारों जातियां काश्मोर भें या उस के आस पास
निवास करतो थों ; दूसरो का कुछ पता नहीों है। कोसिरो का
महाभारत भें खसोरा लिखा है। सम्भवतः ये गुजरात के काठियों
को खाचर उपजाति हैं। चिसिश्रोटोसागो अथवा चिरिओ्ोटो-
सागो झोर चिकोनो एक हो होंगे। सागो का अथ्थ शक सम्बन्धो
हो सकता है। शक लोग भारत में आर्यों सेपहले आये थे।
मनु भो उन का नाम लेते हैं ( १०-४४ ) यदि चिरोटोखागो
शद्द पाठ है तो वे निश्वय किरात होंगे ।
४ प्लिनो काश्मोर के बाद गड्ढा के मुख के निकट स्थित
देशों में चला जाता है। यहां बाचमनो को वह सर्वोच्च जाति
महों कझता, किन्तु उन्हें शक्षिमान्‌ बताता है ओर उन के कई
उपजातियों का नाम लेता है। मेकोकलिड़ी उन में एक है।
बकूस के अतिरिक्ष गड्गरिदो कलिडए्नगे ( (802 877(]९-॥9९॥8:0 )
ओर मोडोगलिड्ने ( )0०१०८७४॥72:० )भो कलिड्गोे जाति के
विभाग हैं। कलिएफ्ी जाति गए के मुख से लेकर समुद्र के
किमारे बहुत दूर तक फलो हुई थो, किन्तु पोछे उड़ोसा से
आगे इस का विस्तार महों था। महाभारत में लिखा है कि
। 6७ :।

शजराता करने योग्य हैं :: । कशिड्ी जाति समुद्र के जत्मन्त


निकट है और ऊछ ऊपर सण्छिआाई ( ४॥.॥तटं ) और सेलो
( +(प ) है जिम के हश में ग्रमस (४.४ ) पर्वत है | इस

जिले को सोसा राहा है ।


| ५२ यह महँ। साइल सके समान अज्ाल स्थान शे
फिपमलत है और उसी के गेसा जिन हेशों से हो कर बहतो है
४ ऋत्ज्नरम करतो है। कुछ लोग कहते हैं कि यह स्करोदियनम
कट डा की मर 49,
एसी शा जलिकनतरा। है छह इस भें सशह्लोस्त माटियाँ गिरतो है

थे लीप अद्ढ सशा लौस अन्य लालतियाँ केसाथ सगथ और समृट


के बोथ के गक्षस 72 । रकाकलिफ्यो कलिड्रो जाति को सर
छाजानि है | बेलसाटिन खाछूब पाहइत हैं कि संघ अनाय भे जो
बिलार खारकन आमाय नपाग् उलासा भें फले हुए थ्र |

व भी सड़ौसा में थे सगोशा पाहलाते हैं, ये छो मंक्ोकन्निफ्नत


ऋर्छे जा सकते हैं | स्ोडोगलिहा सम्येवतः सन के सद छपिबेशों
।. अ

»। मन आयायत के स्कतच्छी भें इम को गयाना करते हैं।


सुड्र के तास््र पत्र में भो य भोच जाति लिखे गय हैं [(#-
क्‍5, ०, ।. 7 50 (ला 477४] प्रिमो कऋमा है कि य

ग़जड़तग के एक बड़े टापू में गहतें थ। गशिडरते माम में रहने से


ज्ञात झोता है कि यह समुद के तट पर होगा ।
४ प्रियास सम्भवत्: समझा सदी है जी पुराणों में एणाशा
कष्लात।! हैं । कमास कमे ( (09४ / नंद ऐ छगं। जो पम्ना

गिरती है ।
अहा ॥]
जिन में जो कछ्टे जा चुके हैं उन के अतिरिक्ष कोण्ष्टोचेटेस
( (०07000)9.(८5 ) ण्स्न्नो बोआस, ( दा (//) 45 ) कौसोएगस

( (/(0६/)।०॥१५ ) गज र सोनस | णाएड ) ऊझलपान चलजान योग्य


वय
कहते लि
ह। अन्यअन्य लोग
हैं। लोग सीत सेदे अजगर
है कि यह अपनेडक अर गजतो हुई क

नि:खत होता है आग ठासुण सता पह्ाढ। घारे से गिर कर


गंदान में एक कील में प्रतेश करतो #। वर्छां से यह धोमे
सोल से बाहर होता है। यह जाम से कम्त ग्ाठ सोल चाड़ो हे
आर ऑसल घठान एर बांस छवडियम इस को चाडाडइ होतो ।
झाज्स कम दस का गहराएन छाोडा एम | शक सी पढे ) सर कम
हि. रा कप पर ० आ9- ४ 7
नए्टीं हू जहा गहूतवार दृप 45 हहछले हू । काबड्तग को राजबान!
42 |॒ शहर ०७ 2 है]५०१ + का 04 *९ * 309० 4 ले कक | नस (कर. 7.श्रकौ०४५०कर न:

कि पक कक आकर जल पर रब |
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७ ८ कर जि ि ध ।(् हो की । है;
ब्ध मी । बह शक.हु] 8 8 हल हर 5 हि व हम क्रहै सरकक वाह! फेल आई |२ भलज 5 जऊामओ ४०३/४०५ 0 ग ऐध हा] श्र ०

० हल व ा/ 5 02% हक दा ० ०
सौख गये | का २ कछहत # झकियरू नाम ग्र के लावा क।

दिया इआ है, किस एन दा सका सर प्रधालित अवश्य था।


सिकन्दर के पूछन पर उने उत्तर जिला था छा गड़त को सटवतती
दो जातियां हं--एक प्रसिश्न॑ई आर दस गद्ञाब्टो । म्ाटिन
साहब उन को राजघानों पलिस और बशैभान मानते हैं । टूसरे
लोग उसे महानदी के तट पर बताते हैं। टालिमा ने सम को
राजधानो गड्ढे ( (८० ) लिखा है जो कलकच्या के सिकट
स्थित होगा । वजिल कवि भो इस जाति का नाम लेने हैं चुलाकर,
अपन

# साधारशलः यहू हदान्िश्श कलिझ) शंण शमम्भा आासा


है । सिकलिएते शब्द का प्रयोग कई शिक्ला लेस्ठीं में सिलतसा है |
कि तल हर जे 5६ 2 हैभू |
| ८. ।ै

भारतवष को अधिक शबभ्य राज्यों में मनुष्य अनेक प्रकार को


फीविका ठउत्तियोंदारा जोवन व्यतोत करते हैं । कुछ भूमि जोतते
हैं, कुछ योदडा हैं,कुछ वणिक हैं । बढ२कुलोन और धघनो राज्य-
काय में थीग देते है, न्याय करते हैं और राजा के साथ सभा में
बेठते है | पांचय विशज्वाग के सजृष्य प्रचलित दर्शन का सनन करते
हैं, जी घस का स्वचप धारण झर लेता है आोर इस प्रकार के
सनृध्य जलत हुए घिला भे प्रदेश कर के पग्राणान्त कर देने हैं।
दुल छातलियां के असिरिक्ष एक आए जडालो जाति है जो सदा

वशनातोल
“मिली किए
कंझ पॉस्णम्
कर का ्रि
में५० ब्धव्यस्त सुतलोहै है। यह आखेट करतो९:
मम है
/ लगा हाथ! शकम्क
का पॉसतो5
४ | इम
इस ऊना कम
जनन्‍तुझाय को ये ऋबलल कला यमन की
जोलने
रे " प्य 7 श्र टू को की, ले | से
हर चटम के व्यवद्ञाद # लाने हँ घार शपन पण्शों भें उसे
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नह शक पा
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आग उ्यचलों (५८... अशर्ला (0) , टेलक्टो | फिट 'कऋ


आलियां रचचला हैं। इस झा राया पथास साझा पटालि सेना,
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है ० थे >०९ * हर कपिल कक।

नह,

## प्रधाणा: ४२ छारतवां गहव एर शहिमाजएण की मध्य इहतोी


हु %, ५ कब हक. ककनन व

था। गरूऊका 5 के | । हा कांएछसाः। », सेव, आर आग ही


चज्यल।
त कि, अकल्‍्मव
(कूल ० _ान ४ "है है!
४7६ था | पं >> २ सिह ह हे
है सा ध लिकश श्र
|) हर है , ९ ध््े


| १०० |
चार सहस अश्यारोहों तथा चार सो इस्ति शर्तों थे स्ज्जित

के विषय मैं कुछ 'तज्ात गहों है, न उन के नास हो संस्कृत ग्रन्थों


में पाये गये हैं । मोझबो मौतिब जाति के लिये झाया है
लिस का माम ऐतरेय ब्राह्मण में गड्गा के उत्तर तटवर्त्ती
भ्रमाय खातियों के मास के साथ लिया गया है। मोलसिनडो
पुराणों कामाखदा है। युवरो भार जाति ह्ोगो। यह जाति
गाखाम तक फंलो हुई है। भिम्र २ स्थानों भें इस भिनत्र २ नास
से पुकारते हैं। यथा वोर, भोर, भोरो, बरया, भाटिया, बरेया,
बावरो, भरई इत्यादि | यद्यपि यह शाति पछइले शक्तिमतो थो
किन्तु अय आअत्यम्स नोच है। पस्म लो पाप्चाल देशवासों हैं।
कोख्युवी कौलुत या कोलुत ह्लो सकते हैं। रामायण के चौथे
काणए मैं पायात्य जातियों के साथ इस के नाम को भो गणना
की गयो है। वाराइसंहिता ओर म॒द्गाराक्ष नाटक सें भो इन
का नाम आया है। ये उत्तरोय यम॒ना के निकट निवास
करते थे, सातवों शताब्दि में चोगो यात्रौ हिवेनसड्रः इन के
देश में आया था । रुस मे इस का मास किडउस्यतो (॥॥-४-/0)
लिखा है। किन्तु युल ( )५|८ ) श्ाहेव पर्ससखीका निवास-
स्थान ट्लिद्ष पश्चिम तिइुत झोर कोल्य॒वी का निवासस्यान
कोनडोचेटोस ( (०प०टोए+०- ) [|गण्डको ) के किनारे गोरख-
पुर से एवेक्तर और सारन से पश्चिमोत्तर बताते हैं ।अबलो
रम्धवत: दक्षिण विह्वार के स्वाशा या छलवाई हैं। ८णलकक्‍्टो
ताम्त्रक्षिप के समप्य हैं जोसहाभारत में भो दिया है। लछू। के
बोदसेखकोी मे समक्षित्तो लिखा है। ये सव आधुनिक ताम-
लुक थी माम़ान्तर हैं।
| १०१ |
रखता था। फिर अनडो # ( १7ता१८ ) जाति है झोर भो
अधिक शक्ति रखतो है । इस के पास बहुत से ग्राम ओर तौस
मगर दोवाल तथा दुर्गों सेसुरक्षित हैं। इस के राजा को एक
सत्य पदाति, दोसहस अश्वारोहों ओर सहस्त्र इस्तिवक्ष है।
डाडी ( !)/96 ) के देश में सोमा अधिक होता है झोर
सेटो ]* ( ऐटॉ॥८ ) के देश में चांदी ।
किन्त्‌ प्रसिझाई जाति शक्ति और ख्याति में खब जातियों
से बढ़ चढ़ हैं, केवल इसो प्रान्त में महीीं किन्तु खमस्त भारतवष
में ।उन को राजधानो पालोबोधा है।यह नगर बहुत बड़ा
ओर सम्ददिशालो है। कुछ लोग इसोौ के नाम के अम॒ुसार
यहां के निवासियों को तथा गड़ग के क्िमारे समस्त देश को
पालोबोधो कइते हैं। उन के यहां सदा वैतनिक क: लाख
पदाति सेना, तोस सहस अश्वारोहीं ओर नवसहत्त इस्तिबल
रहता है। इसो से उस के विभव को विपुस्तता का कुछ ध्यान
दो सकता है । |
इन के बाद किन्तु समुद्र से टूर मोनेड्स (७०००७) और
८०० _हटरवनकरन १प्लान 3 ५ ५ हकननजिनन नाते "५१6 »3 अेडकक ४0 ४। हज ५५4 लक जनक लतिकफक
जम०७क 3 480" न्‍े लाजिन #०>ह-+०
० जज ५ * जे (५० -> +-+* 5 डजीड-++ +जतक ++»>अेक+
तक 52०>कक>७क/ ०१०८०-जननी सेनटनकीनपकाकैनपीकर
कक १ कु५००५०३००

इन्हे संस्कत में झान्थ कहने हैं। रोदायरो और कृष्णा

के समरूय में दम्नडा तक ज॑ बढ़ आये थे ।


+ सेटो रंस्कत खूमोल के झाट था साठक हैं; ये दरदा
के पड़ोस में रहत थे ।
यूल साहब कहते हैं कि ये संस्कत के सेका हैं ओर इन
का वासस्थान बनास नदो के किनारे क्राजपुर के मिकट अजमेर
से पूवद्षिण था। ( [एता&) 7007५ )
| १०२ |
सुभरि (६४४7 )* रहते हैं इन्हों केदेश में मेलियस पव॑त है
जिस पर क्रम से छः सास जाड़ के दिनों में छाया छत्तर को
ओझोर पड़तो है ओर ग्रोप्मकाल में छः मास दक्षिण को झोर
पड़तो है १! | बोटन कहता है कि इन प्रदेशों में उत्तर ध्र्‌व वर्ष
में केवल एक वार हृष्टिगोचर होता है, सो भो कंवल पन्द्रह
दिनों के शिये । मेगास्थनोज़ कहता है कि ऐसा भारतवर्ष के कई
स्थानों मेंहोता है। दख्षिणप्रव को भारतवासोी दमसस
([)/877882) कचते हैं। शोमानेस मदो मेथोरा () ८(॥] 07४) आझोर
करिसोबोरा ((७४४४०0007 ) के बोच में पामोबोथी ४ से झोलो
कूदे बचतों है। गड़ग के दक्षिणवत्ती प्रदेशों केनिवासों सांवले
होते हैं और सूथ को गरमो से उन पर गाटा रफ्' चढ़े जाता
है. यद्यपि वे एपियोपियन (00000) लोगों को माई कोयले
के ऐसा काले नहों होते |जिलमा हो वे सिमख्धु नदो के मिकट
हल8०2॥
७०० १73गाल॥33/क4कक, १५ न&अककाा५आओ.अफ५५७ 7 ५५7५ जन ७ छत । क.. 3५ ५५ ५४४ >२२०७०५३७+-० 4-० “७ ५४५ (“7०३०8 ।७ +कवारकारक 3३2» 2००३ #ककक रे अधिकतम ० न्‍न्‍ज>क >ऋजल४ न बह ० # नेनडननीजिनज>० १ह> अत ज८७. ५१३४ :७३०३९७३७०४.४५५/
ज-4 ७। ४4 ७७७५८ + ५»... ५५ ३७०५४ ३ “तारकव्यकका-ताकक
का प्र००० 2नकिर6, +.2]।चेक88.2 हक +०कह७-६५का>०4३०४ फकके,ट-# - बम फैल३३४०४५०,

# यल साइय के अनुसार थे गड़पपर के निकट ब्राह्मणों के

साहब के अनुसार ये महानदो के दल्लिण सोनपर के निकट


निवास करते घे, जहां यल साहव सुझआरि था सबरो (+काॉलापाए
झधवा खंस्कत शवरों का निवासस्यथान बताते हैं। लेन साइव
इम्हें सोनपुर और सिंहभम के बोच में रखते हैं ।
|! ऐसा केवल एथिवो के मध्य भाग में इक॒ुणटर के मिकट
झोता है जो भारतवर्ष को दक्षिगसोमा से ५०० मोल टर है ।
| पालोबोधो से यहां देश कहने का तात्यय है, न कि पालो-
बोथा नगर, जेसा कि रेनेल साहब तथा अन्य लोगों ने समझा है ।
मेथोरामथुरा नगरो है, करिसोबोरा को क्राइसोवन (()7)5०००१)
[ १०३ |
पहुंचते हैं उतना हो स॒य का प्रभाव उन के रक् से अधिक
स्यष्ट होता है। सिन्धु मदो प्रसिआद के राज्य को सोमा पर
बहतो है । कहा जाता है कि इस देश के पवलों में पिर्सा
मिवास करते हैं। अटमसिडोरस # ( $7८ापंतं कप ) के अनुसार
दोनों नदियों के बोच भें एक सौ इकोस मोल को दूरो है ।
( २३ ) इगहस जिसे यहां केनिवासो सिनडस कहते हैं
काकेशस पवतश णो के प्रोपमिसस ( "०४४४४ ) मामक
पष्ठाड़ सेनिकलतो है। इस के जड़ | के सामने सू्य उदय लेते
हैं! इस भें भो सम्रोस नदियां गिरता हैं, जिस में सब से विख्याल
हिदेस्पंस (५-७५) है। हिडेस्प स में चार नदियां गिरतो
हैं, कल्ाब्रा (07) में तौोम । अकेसिनेस | ( /०८४॥0& )
आर फियसिस दोन! जलयाला योग्य हैं,किन्तु अधिक जल मध्तों
मिलने के कारण यत्॒ पवास झ डियम से अधिक कहीं चौड़ो नहों
मत
ष्

2 झार न पम्टड़ ढेगे थेअधिक गहछरों है। इस से एक बहुत

क्राइसोबीगका, क्राइसोबोरास भो लेखकों ने लिखा है।


कविजाहमस साहझ्य कहते हैं कियह हन्दावबन होगा जिस का
दूसरा नाम कालिकावच था | यूल साइब इसे वटेशर झौर लेसेग
आगरा सानते हैँ जिस का नामान्तर वे कष्णपुर देते है जिस
से करिसोबीरा बना होगा। विल्किन्स साइय कहते हैं कि
इस नगर को अब मुसलसान सुगुनगर ओर हिन्दू कलखिसपुर
ऋच्चते हें ।
& ग्रोस का एक भूमीलवेच्ला |
। यह नदों दलास के उत्तर मे निकलती है |
£ चम्दशागा या अकेसिनेस, आधुनिक देनाव |
[| १०४ !

बड़ा होप वमता है लो प्रसिएन ( 8897९ ) # कहलाता है


ओर एक क्लोटा बनता है जिस का नाम पटेल ( उवा०6 ) है।
यह कसम ये कय १२४० सोल तक जलयाता करने योग्य है।
इस को धारा पश्चिम को ओर घूम जातो है, मानों सुयय के पथ
का अनुसगए करतो ह्षो औद तब समुद्र में गिरतो है। गड़त के
सुख से लेकर इस नदों तक समुद्र के कल को लम्बाई
साधारणतः जो दिया ऊझाता है बड़ा मं टंगा यद्यपि सब का
विचार मिलता नहीं हे | गज़ा फे समख से केप कलिड्नन | और
डन्‌डगुल नगव तक ६२५ मोल है। टोपिना तक १२५२५ #
मोल । कैप पेडिस॒दए ६ लक ७३५० सोल । यहां वाणिज्य का
भारतवष में सब से बड़ा स्थान है। उक्त द्ोप पाटल के मगर
तक ६२० सोल |
60५०-७4: ५०७०७३३कल-+६०+०६०५५७ ३७७३ ५९००९३५३५०५५१०५५५३९//५ के
किपाकामिकग
कप कप अकजक ७ ५ 0५००-३५ 3००५४ ५१-३२ काक३०ा ७ उ०+
जनम ५०७०५ ५५०कजरापकक जप पता. ५५०३३कक ५०८५3 जताकजकनीप-+ अपनक-डव७७-अभ४ तक» :ककाफामातक. २2०५० तार "कम तो ७4 ३5326 हतालअककरढकबथ बल। >तणमम+ 8. . हलके >हकिलमफाकमाफनक२८०४० २ ++-क4 भे०. ०० ।3. ५ दान 2ककायालवकक ५ ५५३३००७४३५ हकी। ९१ ७५
कवरमत जब कमकम०५५० ०-३५ :०+००»ऊ क2०-९५ -

# यल साहब कहते छहकि रोइहरो के ऊपर से हेटराबाद


तक जिस भूमिखण्ड़ को नर घेरतो है वह सिन्धु नदो के डेल्टा
के साथ इस दोप का स्थान होगा ।
१! युल साहब केप कलिप्ल्‍नन को पोआइन् गोदावरो मानते
हैं। कोरिड्रनन कप में कोरिड्र एक विख्यात बन्दर था। निश्चय
यहां उसो से तात्पय है। डनडगुल सम्भवतः दनन्‍्तपुर है जो
कोरिड्र से तोस मोल को टूरो पर है और बुद्ध का दन्त प्रतिष्ठित
ऋुआ था ।
४ गड्गा क मुख से ।
$ पेरिमुला दोप जिसे अब सलसेट ( 00550 » का दोए
कहते हैं उसो का यह एक कंप है|
[ १०३ | |
.. सिख नदों और योमानिस के बोच में पद्ाड़ो जातियां थे
हैं :---केसो, केट्रोबोनो जो जएसलों में रहतो हैं, भेगेल्लो
( (८४०)४७ ) जिस का राजा पांच सौ हाथो तथा भनज्ञात
पदाति एवम्‌ अरशखबल का सामो है, क्राइसो (0)758० ), पर-
सफ़गे ( 788७7 2४2 ) झोर असफज़ने ( 2 8987288 क्‍ ) खर्चा
रक्नपियासु व्याप्त बचुत होते हैं। शास्त्सज्जित बल उछबम को
तोस सहस्‌ पदाति, तोन सो हस्ति भोर आठ सो घोड़ का है।
ये सितस्धु नदी से बन्द हैं ओर ६२४ मोल के पर्वतों तथा
रेगिस्तानों के दत्त से घिरे हैं #। रेगिस्तानों सेनोचे डरो (0&7)
ओर सुरो (८४४) + रहते हैं। १८७ मोल तक फिर रेगिस्तान
है जो उपजाऊ मूमिभ्रों को घेरे चुऐ हैंजिस प्रकार समुद्र दोपों
को घेरे रहता है। इन रेगिस्तानों से नोचे मालो कोरो
( )॥[४।.४८०७ ), सिंघो ( 972॥:0 ), मरोहो ( 2(0]॥8 ),
40०० ककाभाण कक ।चया3कक

# ये जातियां यमुना के किनार से ले कर नमंदा थे शुर्व


तक फैलो थीं । सम्भवतः केघो खोशा या खासिया जाति हैं।
यह जाति गुजरात और यमुना के बोच में पर्यटन करती रहती
है। केट्रोबोनो के त्रिवनो भौर चेत्रवेशोय से निकलो है।
यह ज्त्रो (खत्रो )जाति को एक उपशखा हछोगी। भैगैलो
संस्कृतग्रत्थों केमवेल हो सकते हैं जो यमुना के पश्चिम बसे थे।
क्राइसो को पुराण का करोच्य ( बिष्शुप्राण )मान सकते हेुं।
ये तथा परसड्गे और असड्री रान के उत्तर भोर सिन्धु तथा
अरावलो के बोच में रहत होंगे ।
१ सुरो संस्क्तत के शूर आधुनिक और जो सिन्धनदी के
निकट हैं। हरिवंश के सोरभोर येहो हैं।
[ १०६ ]
श्ण्की ( फिएएणाए् ) ओर मोरनी ( थरणापगां ) रहते

हैं ॥। ये उस पवतों पर निवास करवे हैं जोअछित्र यणों से


समुद्र के कूल के समतल चले गये हैं। ये खतन्त्र हैं और इन्हें
कोई राजा नहों है। पवत को चोटियों पर ये रहते हैं जिन पर
कई गगर इम्हों नेबसा लिये हैं। इन के बाद नरई ( ४४८४७ )
हैं छो भारतवर्ष के सब से ऊ'चे प्रवत केपिटेलिया १*
(00७४५४ ) से घिरे चुए हैं। पर्वत के उस पार के
निवासों सोना तथा चांदो के बड़ो २ खानों में काम
करते हैं। अमगनन्‍्तर झोर टुरो ५+ ( ()।'४ पा ४७ ) हैं जिन के
शाजा को केवल दश इहझ्ाथियां हैं किन्तु जिसे पदातिबल अधिक
है। फिर उस के बाद बरेततो ( ४५7९ ४४७४४ ) हैं, जिन का
दाजा एक भो हाथो नहीं रखता केवल अश्वारोहो और पदाति
सेना पर भरोसा करता है। तब उदुम्बोरों (000॥॥0600४४ )
!क-७+>०२७-का कक७ह?-००० ५ वककफर्क ++कमक<++३९७-#-पव (वकपबबाकक, प जन (०२
कंपभरा2७
2.३0७०७-३०७१७३७ ।९३॥004347७/०इ३७ककभी-
न सका0
(नसब००]।७ 3९७: ॥५७७०७३/९०५- ॥दश७१३-बनी क४५०००५७ (0:42कननक३७.3५.७७ ७० संपके,

# अमुसान है कि ये जातियां कच्छ में रहतो थीं। खसंघी


अमरकोट के आधुनिक सांघो हैं जो सिंघार जाति के राजपूतों के
वंशज हैं। मरीहो सम्भवतः बाराहसंहिता के मरुहा हैं।
रसहे रोंधो या रहड़न के पूर्वज होंगे जोदिइलो के सतलेज के
किनारे मिलते हैं।
१! कैपिटोलिया निसय पवित्न अब॒दा या झाबू पर्वत है जो
३६४०० फूट ज'चा है|
$ यह् राठोर के लिये आया। ये अजमेर को भपना
प्राचोन निवासस्थान मानते हैं ।
[ १०७ ]
सलवस्तो (300008758 ) तथा होरेटी (099 ) हैं | #
होरेटो को एक सुन्दर नगर है। यह दलदल से सुरखित है जो
गठ़े का कास करता है। इस भें सगर रखे जाते है जिन्हें सानव-
मांस को बड्ठो रुचि है, जिस से पुल के अतिरिक्त दूसरो राह थे
मनुष्य नगर में पहुंच हो नहों सकता। उन के झोर एक नगर
को बड़ो प्रशंसा होतो है। श्ोटोमेशा ( ह०८०७०) ) पांच
नदियों के सडह्टल पर स्थित है झोर वाणिज्य का प्रधान स्थान है ।
इस का राजा सोलह सदस्त हाथियां, डेढ़ लक पदाति और पांच
सहस्त्र प्रश्वारोहो सेना का स्वामो है। उस से छोटा शाला
च्मा ((७४700 ) का है जिसे केवल साठ हाथियां हैं झोर
अन्यबल भो धोड़ हैं। उस के बाद पण्छो (72/50: ) हैं ।
भारत में यक्तो एक देश है जहां स्त्रियां राज्य करतो हैं। शोग
कहते हैं इक लोज ( [67 एप्ोए४ ) को एक हो कन्या थी जिले
वह बहुत प्यार करता था । उस ने उसे एक बड़ राज्य पर
प्रलेछित किया । उस के वंशज तोन सौ मगरों पर राज्य करते
है ओर छंद लाख पदटालि सथा पांच सो इस्तियों पर अधिकार
रखते हैं। फिर निम्न जातियां है, जिन्हें सोन सो नगर है।
तन जनसललमनाज- टरनीामभमा
किनबटन:"बक्न+ नना अलननओ, स्‍७००७.० $2#००७क किनकाने ह के हननल्‍मक नीता, 2 ++ नम लत -+ह + पर! 32०9 १०७००७ल +ेफेललककक++क८+-% न
किगान+र+जात---व9
न 4 के.१9-33 कक “"20००"पक“जन--+
+कमन
रननजकती “ननी-
५ “लक न5म॥अपकरककन नफरत जबाब कक लक ०+तनस्व,

# पाणिनि लिखते हैं कि उदुम्बरो के देश में सलु (8५]ए8)


रहते थे जो सम्भवत;: प्लिनो के सलवस्तो हैं। यह प्राम्स कच्छ में
था [ लेसेन साइवब कहते हैं कि सलवस्त्रो, जोधपुर झोर सरखती
फे मुख के बोच में बसे थे। ओर होरेटो खत्भात ( 78708 )
को खाढ़ो पर। खश्भात के निकट वे ओटोमैला का स्थान
बताते हैं। |भ्रूल से सोरठ के लिये होरेटो लिखा गया है।
सोरठ सौराष्ट्र सेनिकला है। ये गुजरात में रहते थे। सेदृसा्टिंग
साइव का अनुमान है कि ओटोमेला प्रसिद्ध वश्चभो होगा।
| १०८ ]
सिराइनो ( 80ए॥४७॥ ), डरड्रंगे ( िधाक्रा2 0: ), पोसिष्ठी (?0ज-
(8) ), बुज्ी ( 8927० ), गोगियेराइ ( 66४[४फशे ), अमृद्री
( [770 हे मेरेईू ( ४टाएपए ९ ब् हुगेसो ( जिदयाट08] ), मोबुन्दो
( पं ७)१)09 हा को को णड़ ( (३७/] (8: ),नेसाडइ़ ( ५ ९५८] ), पेडे-

ड्राइरो (2 [पाप ), सोलोभशियेसो (50|0! ११8 5:0.| आर ओ लो स्टो


( (050४० )ह, जो पटेलदोप वो निकट रहते हैं #। इस होप के
उस छोर से कश्यियन के फाटकों तक १८२५ मोल है + |
'_ "बरमवाबबन (५ 3 0+४33+-३ "बैक
-+े-€&/कबक
|७४ “३ न --+कत७-3
वन.के
3।--+3%क अंवमकाहमकक तय * कमान३०नक+सम+कन+१3कक 'ाथा++पाना
नआ3क ;४+4ाक33,3७3 #ा33..९५393.43तारक...-.89क4॥4%0-१३०4 $++-+५५०४४+५“७, ० कक पी. पक-त+न९५ आि3५>माधीवामबकात च&
संध३१७७83 3682५ 23..५5 हु

& चर्सी चम मण्डल के रहने वाले माने जाते हैं। यह


झछिला पश्चिम देश में है। सहाभारत और विश्णुपुराण में यह
चमखण्ड लिखा गया है। ये ब॒न्द लसण्ड तथा गड़ग के
तटबत्तों देश। दी आधुनिक चम्तोर था चमार हैं। पन्‍डो जो छन
के पड़ोमो थे घब्बल नदों के निकट रहते इथणि । इस नदो को
संस्कूत भें चम्रावतों कहने हैं। ये पर के वंशज धे। इन के
बाद जो नामावलो जातियों को दी गयो है वे सिम्ध नदों और
अवलो पथत यो मध्य सेकत प्रदेश में रहते थे। सिराइनो
सुरियानो थे जो सिन्धु नदो के निकट वक्कर के समोप में रहते
धे। छरफ़ूते भाडज़ा मामक् राजपूत है जो आज कल कच्छ में
रहते हैं । बुजो काडजा को प्राचोन शाखा बुडा हैं। गोगिये
रा घारा या लोभर सतलज के तटवत्तों कोकरों हैं। अस्तो
उम्बनो हैं ओर नेराई सम्भवत: बलुदिस्तान के ऋहरोनो हैं।
सिन्ध के मुबोटेइ नोबुब्ये होंगे ओर कोकोन्डो निथय सहा-
भारत के कीकनद हैं ।
+ एूस मास के दो राह थे | एक अल्‌वेनिया में और दूसरो
जिम औ विषय » पस्‍्लिन्ति कहता हैं, पश्चिमोत्तर एशिया को

पूर्वोस्तर फारस से मिलातो है ।


[ १०८ |
इन के बाद सिद्धु नदो को पझोर क्रम से निम्न जातियां हैं,
जिन जान लेना सहज है। अमटो ( ०७:८० ), कीलिएने
( 077९ गलोटेलुटो (8 7070 डिसुरी ()]49 # ९

मेगरो (१९८४४), झौडवो (07४) ) ओऔर मेसी (»॥६४ )#


अनम्तर उरो ( [। ) ओर सिलेनि ( ४० )। बाद हो इन के
२५० मील तक वालुकासय सून्ति विस्तत है। इन के भागे
झा गला ( ६0/3४/2४७5 ) प्रवश्नीर्टी ( / 074" ), सिधिरों
( का: ) खुचटों ( >तश!7ए /, है ओझोर गुमः इन के सम्धण्श

पुवबत डिम्तत रेगिस्तान सिलता है। लब सरोफेजोस, (9॥/0/-


एप ), सोीर्गी (६०7४४ ), बराशोमेटो (/)0/7007॥940' ) ओर
अस्यिद्री ( ॥000|!/ ) हैं जिन को बार जातियां हैं। उन
में प्रत्यक को दो नगर ह ओर असेनि ( / 5४०४ ) को तोन न* ।
है.

सम्‌ को राजपघानां ब॒केफेला है। यह उसो स्थान पर बसा है


जहां छस माम वाला सिकन्दर का विख्यात घोड़ा गाह्ा गया

& प्रागिनि ने लिखा है कि सोलिड्गो देश में शालव रचछले


घ। इम। से माटिन साधय ने वोलिषंगे जाति को अवछो पवत
को पश्चिमोय तराई में रखा है। वे गलिटेलुटो को गह॒लत या
गहलोत मानते हैं। डिसुटों को डुमरा, भेगरो को मोकर
( सिमश्ध के आधुनिक सेहर और पृथ बलुथिस्तान के मंघारो )
मेसो को सज्ारो (लो सिन्ध के पश्चिम किनारे शिकासपुर और
मोतन कोट के बोच में रहते हैं ) युरो को हाए ( राजपूत
वंशाग्सी के होरिया ओर सिलेनो को सुलल बताते हैं ।
५ ये जातियां सिश्धु नदो ओर पच्छाब को नदियों के सद्धम
से जपर रहतो हांगे | इन का नाम भलो भांति निश्चित नहीं
8 ॥|
का # | तदम्तर सोशिएडी ( 50 0०070 ) भोर सोनड़ी (80704)
नाम को पहाहो जातियां हैं जो फाकेशस परवत के जड़ में
निवास करतो हैं ।ओर यदि इस लोग सिम्ुनदों केउस पार
ला कर इस के धाराप्रवाह के साथ चलें तो एस लोगों को समर-
ज़ाबू (08॥॥078)7०8), संन्न॒ब॒क्षे नो ( हि्॥िपाव्टां ), बिसम्याइटो
( #&श४7979०८ ), झोश्वचित्राइ ( ()७॥ ), अडिजैनोी ( ॥॥|४४०८॥ )
अर तक्यिलो ( .[५५!]/९ ) मिछेंगे । तक्तिल्ों को एक विख्यात
मगर है |, इस के उपरान्त असन्द ( 3४ ०१॥ ) नाम को
पलक नता3ं-ललनन
जन जे. ५ ५५. ->कननमीी4/ जनम
नानाफऊ+- "जे नकिकक >५4७५ फल३०१७ ३०#१-३) "नरक ज-१०की-०१५०५- करके क०क++०कक,"की
शककल + कन+-क-
उलटपक + फीलजजक ना ६२
पीयन“न०ेकफनटी+-3++-१४५ ००५+०२७०कलकक+)
5५ जन 7 3०३७०५७० अभनचीलाक- ७७+3७९७०३३-९ह
०)बाजनन ० 64नभीयनिननन बपनीि- सीजन 2 बनने ५० 7०४१+१४ाे
७ कनीननन >> भा
जाके
५+प न७+ ३ ०८५ ७०७०३>>»+५०४ज»>सरिता ">०-+ ५.4०५१7०३५७ ८५दहीजभ-कक ,ननक

किया जा सकता । सिबेरों सो सहाभारत के सोबोर हैं ।


स्वतः झवप्योर्टा चोर सरोफेजिस शझफगानिस्थान यो भअफ-
रोदी ओर सरभान ( खरयनो ) हैं ! वे असख्बिद्रो ओर असेनो नदो
कि पूव रहते थे। सिकन्दर के इतिहासलेखर्को का अस्बस्तो
( 8॥ ०78३० ) संस्कत के ऋज्यठ ) ओर अस्वष्ट] एक हो हो
सकते हैं। ये शशेसघिनोस के निताट रहते थे ।
# बुकफेशा सिफम्दर का छाओऊा घा। सिकनन्‍्दर मे उम्यो
के नाम से एक सलगर दइसाया , प्रटाक और प्वलिनो का रत है
क्षियहु मगर छिड्स्पस नदों के वाथ तट पर बसा था, फकिम्त
स्तवी भोर एरियन दक्तिथ तट पर कहते हैं। एबियन के अमुसार
यह शिविर के स्थान पर बना था, किन्तु स्ट्रं बीमानता है कि
जिस स्थान से वच्च नदो के पार हुआ वहां इस को मोब पडो।
]* इन जातियों का कुछ पता नहों चलता ) केवज सक्यिला
मगर ज्ञात है। प्लिनो कहता है कि यह सिनश्धुनदो से दो मंजिल है,
किन्तु चोनो यात्रो कहते हैं कि यह तोन मंजिल है। तोन हो
मंजिल भझर्थात्‌ ७8मोल पर इस के खण्डहर स्त॒प सन्दिर आर
मठों से भरा मिलता है।
[ १११ |
समतल भूमि सिलतो है लिस में चार जातिर्या रहतो हैं। प्युकी-
लेटो ( शाएए2 (8€ ) असंगलिटो ( 3 758
78 8७ हो गरेटो
( ए'आंतए ) और असोई ( 0507 ) # ।
कर लेखक सिम्धन॒दी को भारतवष को सोमा नहों सानते
किस्तु इस में जेड़ो साई ( हृल्वा'कका ) अझरकोीटो ( ॥॥700 [0६९ )

अराइ ( 577 ) परोपेमोसेडो ४४0 07४ )मास को चार


सत्पो भो जोड़ते हैं 4 और कोफोस ( (७४८४ ) बदी को इस
की सोमा सानते हैं, यद्यपि दूसरे इम सभों को एराद के अम्सगत
सममत हैं ।
अच्दुहै से लेखक भारतवत् भें नाइसा नगर और मेरस पवत
की भा जोड़ते है, जो पिला बंकस के कारण पवित्र हैओर जहां

#असन्‍्द नास कहीं नहों मिलता |साटिन साहब कहनले हैं


कियह मान्यादर देग है कारन गाज्यार का भो बड़ी स्थान है जड़
यह बताया जाता ४ | अन्य लेख का से ज्ञाल होता है कि प्य को-
लाइटो मासतार | देश मे इचले थे एरियन के गोरिआाद
हैं। असोद अस्यमाई | /॥-७ां ) हरी सकते हैं, जिसे स्ट्रीबो
हिप्पयाद या पाई कछता है। ग्रसमगलिटो का नाम क्षेवल
पिनो लेता है| सम्भवलः यह दो जातियां का नाम है। एक
अस जिस का वश्न टैलँसा करता है और दूसरा घिलित या
विलघिट जो संस्कत का गछलत है।
|) सम्भवतः अड़ोखिया का विस्तार उसना हो था जितना
आधुनिक मेकरान का है। आरकोसिया झुलेमान पवत से जेड़्रो-
सिया तक फंला था | इस को राजघधानो आक्षिेटिस काश्धार के
निकट था । आरिया सैरोद आर हूरात के बोच का देश सूचित
करता है ।
[ ११२ |]
से यह कथा निकलो कि वह कुपिटर की जांघ से उत्पन्न हुआ |
वे ऐस कंनी ( +5४०८०४०५ ) # को भो इस में मिलाते हैं जिम
के देश में भड़र अधिक होता है भोर लरेल, बव्यवच तथा
सभी प्रकार के फरा जो ग्रोस में मिलते हैं वहां पाये जाते हैं।
इस टेश को डवरता, फल और द्ज्ञों को प्रकति, पछ, प्षो
सपा अन्य जम्तुआओं के विषय में जो असाधारण ओर अत्यन्त
आश्येजनकफ ततान्त प्रचलित है वह यथास्थान पुस्तक के
अन्य भागों भें लिखा जायगा । कुछ आगे सें सचयो ये सम्बन्ध
में कइंगा, किन्तु तप्रोबन दोप के विषय में वही कइ्दना छचित
सममकता हूं। किन्तु इस दोप के पुव अन्य दोप हैं। एक पेटल
है जो सितु सदो के मुख पर है। इस का ञझाकार त्िकोण है
आर यह २२० मोल चोडा है। शिन्धु नदो के मुख से आगे
क्राइलो ( ०४६४८ ) और झागोयर ( ४५४४ ने ) है, जहां
सुझे विश्वास है कि घातु अधिक होता है। में सहज हो नहों
विश्वास कर सकता कि वहां को भूमि सण तथा रजतसय है
जेसा कि कुछ लेखक कहते हैं| इन से बोस मोल दूर क्रोकल
(०००७३ ) ६ है जहां से बारह मोल को दूरो पर विबग
(3929७) है। यहां केंकहा और घोंघा बहुत ड्ोता है| यहां से
नव मोल के उपरान्त तोरजन्लिव ( [(0॥:४/०७५ ) 'है। इन के
अतिरिज्ञ अनेक दोप हैं जो उश्ञ ख के ग्रयोग्य हैं।
का हर नो4-कल)_झ८२4७अध्लानबन»0
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भाभी मा2४४ ४४४७एएएंशा ७७००८ 2-न्‍० 5८):

£ अधश्वक से निकला है। श्रोस के लेखकों ने अस्पकन


( 8 8४४/४४0 लिखा है। यह गाखार देश का टूसरा नाम है।
१* युल साइब के घनमुसार क्राइसो वर्मा है ओर आर्गायर
अषाकन प्रदेश है ।
$ क्रोकल कराचो को खाटों में घा।
पत्र्रयट ५६ (स्व)
सालिनसम्त !
भाश्तवष को जातियों को खूचो ।
भारतवष को सब से बड़ो नदियां गदड्ना और सिन्धु ह
दल के विषय में कुछ लोग कहते हैं कि गड़ा अज्रात स्थास ४
[का 5! हे आर माल के ऐसा लिन देशों हारा होकर तह
के हग्ह फबामब्ल करतो हे | किन्त्‌ दूसरे यक्ष समझते हैं कि ?
स्कादिया के पवलों से निकलतो है । | छिपमिस भो वहां
यह बली मटां है |मसिकम्दर को यात्रा को सोमा है. जुसा 57
हूस के [कलार लाल स्त्प सिद्ु करत है । | सड़ग को ४। कल
कम से कम आठ मोल है और अधिक से अधिक बोस | हू:
जर बुत कम्म है वहां इस को गहराई सो फट है । जी ४ £
हुवा म्लिक प्रदेश में रहते हैं छस का नाम महरि टेस (0...
0-५ है । स के राजा को सक्ष(््र घीद्ध सात सा हस्ति ४४५
साठ सहस्त पदढाति युद्ध के लिये प्रस्तत रहते हैं |
भारतवासियों में कुछ सूति जोतते हैं, बहुत अधिक रू:
युह् का व्यवन्ाय करते हैं और झआन्य लोग वाणिज्य करते #
सब से अधिक धनां शोर सानो राज्यकाय चलाते, विचार व. ८:
अोर राजा के साथ सभा में बेठते है। उन में एक पांचवों का:
कै लो बुद्धि केलिये बड़ विख्यात मनुष्यों सेगठित है | जि ५
भी मर जाने पर ये जलते इए चिता पर झारोह्रण करके रूत्य
को आलिड्रन करते हैं। किन्तु जो अधिक कठोर सम्पदाय क;
अनुसरगा करते हैं वे लड़ला में अपना जोवन व्यतोत फरह
हैं ओर हाथियों को बक्ाते हैं | खलब ये पोमए और सौधे ४:
[ ११४ |]|
जाने हैं तत्न उन्हें हल जोतने और चटने के व्यवहार में
जाते हैं ।
गड़ा। में एक दीप है जो अत्यन्त जनाकोणं है। यह बह
प्रबल जाति के अधिकार में है। इस का राजा शखधारों पचास
सहस्त्र पदाति, चार सहस्तर अध्वाराहोीं रखला है। वस्तुत: कोई
मनुष्य राजपद पर प्रतिछिस ऐसी सेना नहठों रखला जिम में
छुस्त पटाति ओर अश्वारोो अधिक नहों हा !
प्रशियन जाति अत्यन्त शक्तिशाज्रों है। यह पालोबोाया
नगर में रहतो है; इसो से कोई २ इसे पालोबोीधोी भी कइले
हैं | इस का राजा सदा वेलसन देकर ६०००० पदालि, ३००००
अश्वाराहो झर ८००० कुम्तिवल रखते हैं ।
पाजीदीयथा के शागे मेलियम पथ्त है, जिम पर कस मे कक
महोने जाड़ में छाया उप्तर को झोर पलों है आर गरसी #
दक््षिथ को और | इस देश भन॑ सप्तापष मण्छस वध मे एक हो बाउ
छशिीचर होता है, से भो केवल पमन्द्रह् दिनों सके अंसा कि
बाठनम सूचित करता है । वह कट्ता है कि ऐसा भारतद८ के
अनेक प्रान्तों में होता है। जो लोग सिम्ध नदों के लिकट छर
प्रदेश में रहते हैं जोदक्षिण को ओर हैं वे अन्य जातियों को
झप्तला गरमसों से प्रधिक विवण हते है | स्थ के प्रबल आलप
का वहां के निवासियों के दण पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता
का

है | पवतों में पिगर्मा रहते हैं ।


समुद्रलटवासियों में कोई राजा नहों है। पेनडियन आति
में स्थियां राज्य करतो हैं। कहा जाता है उन को प्रथम रानी
हकक्‍्य जोज को पुत्रों थो ! प्रचलित मत यहो है कि नाइसा
( 0७8७ ) नगर और मोरस (0००५७) पदत ईसा देश में हैं। यह
पवल जुपिटर के कारण पवित्र समक्रा जाता है। प्तार्तवासों
कहते हैं कि इस के ऊपर एक गुफा म॑ पिता बक़स पले थे |
इसो नास से यह अइ्त कया मसिकलो है कि बेंकस अपने पिला
को आंघ से उत्पल चुआ था ! मिन्धु नदों के मुख के आगे दो
होप हैं क्राईंमा और हग्रार्गायर जिन में से इतने अधिक धातु
मकजलते हैं कि प्रतक शैेख्थक इस के भूमि को स्व तथा रजल-
मय बलाले हैं |

पते $ज>नारात परत्रत्एड


हाय मसस के वणय में

आरलयालिंए पर आझक्कााण कब्न के समय डायोशिसस हे


हाणन अगणा यू के उस्ता का लिय से ये ससश्जित थे छिपा
स्या जिस में नगर मे सब हच्छापयक छत्ह' यह्षण करे । छलस ने
छन्‍ की कोमल वच्ध फोर सगचम पहुनाया। जर्क दशकपेया थे
झास्का दल कर रास आर धमरुस 7 की नाका सचछछा धो | सऋ
छू क्रम का इजिल नया के बल माल छोर ट्रोल ये टेता
था शोर गले का ऋदा इर विदल कर के उन का ध्यास युत्र से
छुूटा का दृत्य में लगा बला घा। यह तथा अन्य वेक्ृस सम्बन्धां
साणय युद्ध में प्रयुक्त इत थे जिस थे उस न भाग्लवप॒लथा
सम्नस्त एशिया का इस्तगत कर लिया ।
भारतवष की चढाई में यह टेख कर कि उम्र कौ गेना
वायु को प्रवण्ड गर्मों नहीँ महू सकतो ह दड्ायोनिसम मे
भारतवर्ष के लौन चोटोवदाल पर्वत को बरूपूलथक अधिछ,त
किया । इन चाटियों म॑ एक का सास कोरे।सबादड ((07०-!।॥७)
4० पे
जनमकशी--अकब+--का लात कण्ताहगा आह 7

« थस्छ--ड्रग क पेवा थे भाच्यादित एक प्रकार हू ऋद! !


| श्६ |
है। दूसरा कोनडेस्कौ ( [०00/०४० ) कहलाता है झोर
# ग्रे का मास मोरस अपने जन्म का स्ाारक उस ने रच्चा है।
“गा इनक भरने थे लिम का जस पोने में मोठा था।
आट यभ्य अनक जनन्‍्तु और दक्षों केफल अत्यधिक थे। वहां
४ शा जिस से शरोर में गयो शरछ्कि का सच्तचार डु्आ। | वहां
| श्वाव गग्ये थे वे मेंदान के अख्भ्य जातियों पर अकस्मा त्‌्‌

एछ। उन को इन्हों नेसहज हो में छितर बिलर कर दिया


» के पथत के ऊपर अनुकूल स्थान से उन पर शसर्षॉदारा आक्र-
“ब किया था।

| भारतवा सियों को लोत कर झायोनिसस ने भारतवासियों


| अर#जन ( 8॥0०02/४४ ) लोगों को सशह्वायक ऋसवरूप से
- कर बंक्धिया पर भाक्रमण किया। सखसर देश को सोमा
ड्रस नदो है। बेकटियन लोग! में उस पतठत को इस्तगल
७ ये) छो सो पर कृका इता था जिस मे पार होने के समय
"७ निलम पर अनुकूल स्थान स आक्रमण करें। किन्‍्सु रस
| हड्ी की किमारें उतर कद के अमेखन ओऔर बकवई
3. पा धयाने जा आदेश किया लछिस में बेकटिया के रोग
/ “_्न को तुच्छ सम कर पवत पर ये नये आ जायं। सशथ
० धार होने का प्रयज्ञष करने लगों छिस के शत्र पदत के
थे चले आय और नदो लक बठ कर ना भसगान का सपाय
करने झगे। तब डायोनिसस अपन मनुष्यों के पस्ाथ सनम को
वा के लिये आ कर बेकूट्यन लोगों को मार डाला, लो
८|7 से युद्ध वार्ज में प्रतिरुद् थेभोर इस प्रकार सकुशल नदो
आर हो गया ।
[| ११७ |

अए पत्माशत पत्रखरद |
बधलोज ओझर पैण्डिया के विषय में हरेक्त़ोज को भारतवष
में एक कन्या हुई लिख का सस ने पणि/डया नाम रखा।। उस
की उस नें भारतवष का वह भाग दिया जो दक्षिश को श्रोर
समद्र तक विस्तत है। उम्र का प्रजाओों को उस ने तोन सो
शसठ ग्राश। ॥$7 विलत्ा कर दिया भौर यह आज्ञा दिया कि
प्रत्यक ग्राम प्रत्यक्ष दिन राजकोष में राजकोौय कर ले झआवे
जिन में राना को उन मसन॒ष्यां को रुकह्चायता सदा मिछतो रहे
खिल की वाबो कर देने को हो जिस से वह कर गहीों देनंवालोां
(4 बछ प्रयाग कर सके !

पफ्ानयाठे प्रखंगठ
भारतदघ के जन्तुअं के विपय मे
इलियन ।
(२ मुझे सात इुआा है कि भारतवर्ष में म॒सग होते हैं
धो सदा ण से छन का नाम पहले से चुका ऋ तथापि जो
४ हज, समझा नण्यों दाह्ठाथा वह यहां लिख टरेना उपयुक्त
हरा । में ने पना है कि रस को तोन जातियां होतो हैं
धार इन सभा का बालकों के एसा यदि बाॉलने सिखाया जाय
तो ये बालकां के समाम अधिक बोलने वाले हो जाते है झोौर
मनुष्य के स्वर से बालन लगते हैं। किन्तु जड़लीं भें येपक्तियों
के एस्ा चिल्लाते हैं नकोई सरोला स्पष्ट बोलो हो बोलते है
झोर न जहनलो होने केकारण अभिज्ञित बात हो करते है।
भारतवष में सयूर भो होते हैं लिन का भाकार सब देशों के
मयूरां से बड़ा होता है। वहां इेंषत हरित कब॒तर भो पाये
जाते हैं। जो मनुष्य पत्षियों से पृणरूप से अभिन्न नहीं है
| श१८ |
वे इन पहले पहल टेख कर कब॒तर नहीों किन्तु मग्गा समफेगे।
ठोठ और चरण में वेस्ोस के तोलर के समान होते हैं। वहा
असाधारण आकार के ककूट होते हैं जिन को चोटो अन्यदेशों
के समाम कम से कम इसमारे देश के समा साल गहों ड्ोता
किन्तु पृष्पकिरोंट के ऐसा विचित रड़ का होता है। उन को
पूंछ के पर न टेढ़े होते हैं और म गोल किन्तु उन को चौहाई
अधिक होतो है ओर जिस प्रकार सयर अपनी पृकत खूसि में
बहारते हैं उसो प्रकार वे भो करते हैं, लब॒ वे उन्हें सोधा या
खड़ा नहों करते । इन भारतीय कक्टों का पर सोने के व
का होता है झोर मरकत को नाई गठा नोशा भो होता है।
(३ ) भारतवर्ष में एक झौर पच्योों पायो जातो है। यह
पा आकार में दस
भरतपत्ति के बराबर उछचातों है और रफूः
का विचित्र होता है। इसे सनुप्य के समान ग्रव्ट सचारण करने
को ग्रिच्षा दो जाती है! यहद्ध मर मे भा अधिक वाकापएट आर
स्वभावत:ः अधिक चतुर हाती है। यह सन॒पष्य हारा भाजन प्राप्त
करने में सुख नहों ग्रनुभव करतो किन्तु ब्वलंतजला के किय
इतना व्याकुश ओर अपने साथिया को सद्गति में स्वच्छन्द गत
गाने के लिये इतना आतुर रइतो है कि उत्तम भोजन के
साथ दासत्व को अपेज्षा भूखे रहना हो पसन्द करता है।
भारतवर्ष में फिलिप के पुत्र सिकन्दर दारा निर्मित ब॒क़ेफेला
तथा इस के समोपवर्तों करोपोलिस एक्म्‌ अन्यान्य लगरों में
बसे हुए मंकिडोनियन इसे करकियोंग कहते हैं। सेरा विश्वास
है कि इस नाम को उत्पत्ति इस बात से चुई कि यह परक्ति
उसो प्रकार पंछ हिलालों है जसे छलकोर ।
( 8 )यह भो मुझे ज्ञात पृधा है कि भारतवण में केलस नाम
की एक पच्चो होतो है जो बरसूड (7ए57प + बड़ा पेछ वा ्
| £औ १8 ।ै

कागहादड़ थे तोन ग्रूना बढ़ा होती है। इस की चोंच हच्त्‌ ओर


पर लमब्ब होते हैं। चमड़ा के थल के समाम इसे विशाल कोक
छोता है| इस का गव बड़ा ककंश होता है। पर इस के खाको
रंग के हाते हैं: केवल किनारे पर फॉका पोलापन रहता है
( थू ) से सनता हई कि भारतयर्पीय हृपू ((.०७००) यहां के
शाप से दगुना बहू है छोग टेसने भें भो अधिक सन्दर छोत हैं,
मर करला है कि जसे यदन मरपतिझभण चोड़ के लगाम
कै कक.

आर साज के दिलासों हैंउसे प्रकार भारतीय नरेशों का इपू


व्रिय खिल्ीना है । थे इसे हाथ पर लिय पफिरत हैं इस से खेल
काल है आर प्रजाति ने जिस अपार शोभा ये इसे भूषित
किया हे उस भें रुग्य हु कार हल रहने भें कभो महां

यहत ; अाहायोा मे इस पररि दविरशेष के यिषय में भो एक कथा


जमा डाल! कर 2॥] या हू आऋाइडालपयासया के राजा का पक

एुत्र लत्पक्ष झुआ | उस बालक के बदरुू भाई भोथे। सयाने


छुपल पर ये वह अच्यायग्रन आदर हफए निक ले। वे अपने भाई से

धूगा करते थ स्वकि व लव से छोटा था आर अपन पिता


साता का भा निरादर करते थे क्योकि उन्‍हें बहुत बृढ़ा समझ
कर छनमे से छूगा करत थे। अनः वच्ध ला|खक तार सस के साता
घपिसा उन टुएी के साथ में गईं सक आऋर अन्त में सोनों घर
कह कर भाग चले | उन जाग यो जो लब्बोा सफर करनो
पढ़ाइप से दोगों वयोगस जन मारुयस थक सरणापत्र छो गये।
बालक ने छन का यर्थेष्ट सद्यान किया अरोर खड्दारा अपना
शिर्म्कटन कर अपने शरोर डो में उन को समाधि बनायो।
ब्राष्यणा जझौग चुत हैं कि तब मबंदरा सू० ने इस असाधारण
पिलद्मति थे आयययुक्ष आग ४रात्र द्वीकर उस बालक को एक
पत्ष। बना दिया जो देखने में बहुत हो मसन्दर झोता है भोर
हक
बहुत दिनों तक जोता है। उस के शिर पर लाल चोटो निकल
आयो सार्ना भागने पर उस ने जो कार्य किया था उस का यह
स्मारक छो। एथेननिवासों चोटो दाजक्षो रावा के विषय सें ठोक
ऐसो हो आश्वयेजनक कथा कचुते हैं। क्ास्यरसिक कवि झरि-
रूफिनोज इसो कथा का अनसगरण करला जम वच 'पत्तो' मामक

महों किया करता था और न ईसए हो को किताब सदा छलछ-


टता रहता था जिस ने चौटो दाझरोी जाता के विषय में करा है
कि यह पत्तियों में यह सब से प्रथम है, एपघ्वो को झट्टि मे कभी
पूव इस का जन्म हुआ । अनन्तर जब उस का पिता रुग्न ड्ोकर
मर गया तब एपुँथ्वो वतमान मड़ों छल के कारण व्‌ छु गा
नहों जासका | पांच दिनां लक वद्ठ एमें छो पका रहा | एस को
पुत्री का कह्चषों ममाधिस्थज म छत टला , लछे रझा थे आपश। बाद

सखोद छ स्लो में उसे स्थाए टिप |” हा की हतयजर सच्यावता

है कि यह कथा यदयाए मिन २ के विशं्वाएा # कहो एस है


तथापि यह भारतवा सियां क्षो से निकल कर वनों लक फर्म
है | क्योंकि ब्राह्मण लोग कहते हु कि जब से हूपू ने, लो उस
खसय बालक तथा मागवशय में था, ऐसा पिहलक्लि का काय
किया तब से आज तक दोघ कारू व्यतोत हो गया ।
( ६ ) भारतवर्ष में एक पशु होता है को देखने में ठोक
स्थलघड़ियाल के समान झोर उचाई में मालटा के कु
के बराबर होता है। समस्त भरोर इस का चंंडटे से ठका
रहता है जो इतना रुखडा ओर भरा रहता है कि चमड़ा ढुड़ाने
पर भारतवासोी इस से आरा का काम लेते हैं। यह पोतस<£
काट देता है ओर लोहे को भो छेद देता है। वे इसे फ़्टग
बाइते हैं ।
“च््छ
आखिलट

7
जल-सप होते हैंजिन आहकप अर अल 0.%॥ छ भा
को पक्त चोडो झोतो
के | आज में लहइल भशिर वाले सप होने हैं (न्तू्‌ थे जलसप
श3, ५ सम 2,५।
कम ८० हक,
५ कक लू कल गा
कक है हे क सो

प्ले महों हांते जितना तोच्या इन का दंशन ब्ोता है।


भारतवज $ सथा गये क्ुणहढ के भग्ड
ई$न्‍ श्र $

अप

हेशाहस्नचकंटा 54। हु

हम 5 रे आम, 0 ५ रद २०० हे हल. ढ 6080. (०

छल कप ।
पका द्रव मी. ऋण
खड़ा पका फए ॥?..
ऋषातल कई
के लि "७ फतह
पाडहतशाा आहरओ
गधे: ” हुए
80 0०328: | (9
छ्ष्फा
6:
५ कक रा
न # > +७ ५ लक *
"कराए 7५४१ ५५४ ६58 ३ तप | ॥/॥४ हल हाछु ल्कै। श हि श्न्कः ४, का 5 होका है हाल के 3] ४ कक है न हाभी आयी आओ) फ हमकी के का |] के ् रु_ः
#0५
४७५ हे ४] ७, ५ रु, | थी |; कर ५ (५५,
६, र्‌ +$, पर मे है"ना $ केजज कं हे ही ॥ फिर : ५ (४३ षृ क हर हि | हे | रच हर! |]
है ै श

ह ५३ * पा पंत डरा ५; / " ०४, का कि क कॉम हरा


५0 की 7, 0. + काका वापाको! रहा मकान न 0 हक 2245. अैलहत ७ आकार चाह चिता, हभापट३ (० हर है
आओ 0 0 * * |!' (ता पँ५ 0श७-०:१9 अऋ-न) कं लें थ्यूः नस

कल ई भ औ। १० ढाई या हा पर एक: ६ डचर ३ ई) की कह पाउडर पोषर ४ ।


(६ कर ४ मे ॥ई " क+ ५४ ) १०४४ कै. "हा 2 पक ० ै# हु ३५ न ,ँ कक 44 । ध / * डे

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्‌ ४ शाहटलडइप मे ग्राकाह्ारों एक सम्त होलाओह जो


धादार के चाह भू दाना बला हालत; है।इस का गहरे में
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इस की शलि से इंह के बल शा उत्काहझा अधिक उलवनों प्र)ली


क्त्फा शक. घर पर ह हद कल
[| १२५२ !]
है। तंज घोड़े तथा कुष्तों सेइस का शिकार किया जाता है।
जब यह देखता है कि झब यह पकड़ा जायगा तब यह अपनी
पूंछ किसो निकटवरत्तों काष्डो में छिपा देता है भोर खयम्‌
पौछा करने वालों को ओर मुह फेर कर सावधानो से उन को
देखने लगता है | एक प्रकार से यह साइस भो करता है पभोर
सोचता है कि इस को पूंछ छिपे रहने से आखेटक इसे पकड़ने
का विचार छोड़ देंगे क्योंकि यद् समभता है कि पूंछ हो इस
का चित्ताकपंक है। पर यह सब उस का व्यममात्र ठह्रता
है। कोई इसे विपषले अस्त थे आइत करता है ओर तब उस
का सम्रूचा चमड़ा छुड्ा लेता है ( क्योंकि यह घखुल्यवान्‌ होता
है )और झत शरोर को फंक देता है क्योंकि इस के मांस के
किसो अंश को किसी व्यवद्दार में नही लाते ।
(१४) और भो, भारत समुद्र में हल मछलियां पायो जातो
हैं जो बड़ २ छाथियों सेभो पचगुना बड़ो झोतों हैं। एक
पसली इस दचह्टत मछलो का बोस हाथ के बराबर होता है
आर इस का होंठ पन्ट्ड ऋाथ का होता है। उस को नाक के
निकट जो पर होते हैंव प्रत्यफक सात २ हाथ चोढ होत हैं।
यहां केरसकेस नामक खोपडो वालो मछलो छोतो ९,
रहा वण को सछलो भो इातो है जो गिलन के नपने में अंट
लाय एवस ऐसा भे मछलियां हैं जी गिलन के मपने को टंक
से | भारतवध में मछलियां बहुत बड़ों २ छहोतो हैं विशेषतः
(5७४ ए०ए७४, ची)वापांर०, (0 पा ९०९७७४०७७,) यह्ष भो सुमता
$ कि नदियों के बढ़ने का जब समय आता है तब वे अपने
भजते चुए प्रवाह सेभुसि को डुबा देतो हैं । इस से मछलियां
खेतों में चक्तो जातो हैं ओर थोड़े पानो में भो घुमा करतो हैं ।
| £१२३ |
नदियों को बढ़ाने वाला वर्षाकाल रब बोत जाता है सौर जज
खेलना सेहट कर फिर प्रकल नालाओं से बहने लगते हैं सब
नोचोी तथा समतलत भृम्ति में एवम्‌ तरो में जहां कुछ न कुछ
खल अवश्य रुक कर रह्ष जाता है आठ भाठ हाथ को मकलियां
पायो जाता हैं, इस स्वथस्त किसान लोग पकडते हैं क्योंकि ये
ऊल के ऊपर घारे २ तंरता फिरतो हैं। इन्हें पुरा जल नहीं
मिलता कि ये स्वच्छन्द विचर सक॑ बरन जल इतना कम रहता
है कि बहुत कठिनसता से ये सस में प्राण घारण कर सकतो हैं ।
(१३) निस्र सकृलियां ली भारतवष में पायो जातो हैं।
( का ए लाल | जागो गलिस के सर्पो' तेकिसो प्रकार
कोटो नप्ठों छोतों, और ( ०7578 ) जो भारतवष में केक से
भो बड़ी होतो हैं थे समुद्र से गंगा को धारा दारा ऊपर चढ़

सालुस होता है। भें ने निश्चय कराया है कि जो ( ५४7४7] )


फारस की खाड़ी से सिख नदों में चलो जातो हैँ उन का कांटा
खिक्कना छोता है अर (८९९०७ ) उन का लब्बा और ऐटा
छूम्या होता है किन्तु उन्हें पंजा नहों होता ।
(१४) भारतवष में ककुआ पाया जाता है। वहां यह नदियों
में रहता है । यह बचुत बड़ा होता है और इस को खोषड़ोी
बही डंगी से छोटो नहों होतो जिस में दस मेडिम्नी ( १२०
गिलन ) दाल अंट सके | स्थल ककुए भा होते हूं । जहां हम्त
मेचे गड़ लाता है और बहुत सुगमता से चल कर ढेलों को
ढरो लगा देता ऐसी उबर भुभि के बड़ २ ठलों के बराबर
यह ड्ोता है । कहा जाता है कि ये अपनो खोपडो छोडते हु ।
कितान और खेत में कास करने वाले अपने हथियार से इस
|208
के) १२४ |

को क्षोपडो कहा लेते हैं जेसे कोड़ा से खाये चुए हच मेंसे


कोड को | ये कछये बहुत गोटे होते हैं, सांस इनका स्वादिष्ट
छोता है। ओर समुद्र केककछए वे ससाबम सोखा सहों हझाता।
(१५) इमसारे धहां भो ब॒ुद्धिसान पशु पाशे जाते हैं किन्सु
यहां वे धाड़ हैं गौर साइतवत्र ऐसा भधषिक नहीं हैं, वहां हाथो
आता है जिसे तडि रइतो है। सुरगा, वमसामगृए, सेटर भो पाये
लाते हैं। झमम भारतोय चॉटियां को भो नड्ों मूलना चाहिये णो
ऋऊऋपनो 6डिमक्षा के सिये इसनो प्रसद हैं | मारे देश को लो
पोटियां नि:पसन्‍्दह अपन लिये छोट कर एष्नी के नये लि
बनाता है ओर द्िपन का स्थान ठोक्ष कर हेनों है नथा एक
प्रकार से स्षान के कारों में श्रपना यल लगा दे ५ | बयाकि पु
भें सो वगनालाोल परियम पहसा है छौर किए दा खाम किए

जाता है किन्तु कारतबध को चॉटिया छाट २ सकान। के ससूव


बनालोी ह जो ढठालुए और समलरझ भ्ि पर नहीां होते अफूुए
बात मे म॑ सहज हा प्ञावित हो जात पर उच्च लगा खाल पवल!
पर छुते हूं । इन सभा में बडे चालुप ये छेद कब वे पेजाला
रात बनातो हूं (अस से इजिए निवासियां के समाधिसण्फुप तथा!
प्रोट के घप्नघृथ।वे राफु वाले ब्इडांकास्मस्ण छा आता हे |
घापन ग्टछ का वे ऐसा बनाती ४ कि फोर भो रेखा साथ! मए।ों
छोला आर किया राम का सन मे पु्त आना वा पछ्च कर चक्का
आगा कांठय है, छद और घुमाव इससे 2पए हें | बाहर अपने
जाने के लिये सथा असर रुण्डार में लें जान के लिये वे एक हु
छिट़ रखतो # | छची अंमगहछ पर सकान बनाने के श्य
निश्चय नादयाँ के बाट से बचनाह। है |अ्पनों दरदशिता सेवचये
यह लाभ छउठातो है कि कब चारो झोर कोल के समान सच
4 प्‌
॒ रे ४। )
गा ! 8 ै।

हो आता है तब वे दुग भधतवा द्ोपा के समान अपन घरा मे


रहुतों है झोग भी जिस घरों? वे रहता हू वे सब निकट
रछुने पर भो बाढ़ से अलग नध्ों हा लाते यरन्‌ भौर भो दृढ़
हू। जाते हैं विशेषत: प्रात: कानोन सोत से | क्योंकि इस सोल
के जम जाने से बर्फ का एक टंकमा उावर मे यह जाता है जो
पतला झ्ोन॑ पर भी सजबत डाला है इन का जड़ मम दी में
[हुले हुए पास आर प्रजा को गाश जग खाने से ये और भो
छू जाते पे | जा कक गज ले पुव मे कद्दा था वह «से
जा

हर
कक क]
पी हु६+ ३
्च्छ

5 2 300 नह है ;
हल दादा भी खिल बे नेप्र! |

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चुडक शंका केक शाएय।


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५0०४ "था 2] रु

फू (झशे 3 काश अंकार, प्रच्छला गारसस ऐश


रा दमन
कस +0१०५,"५ न छ
्‌ कम

धत गाए हर पूछ शाम गत


पता 2० था
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जब्त छः
पए न भय
ना डे
|;
आम | र्ड्‌ आए
४ + ७7५ 90/%90॥ / ४४ + रुलूलटप क्ष्फ
हि]

है | कस ते बने, जिस ने समा सादा भारततासों कुछ नहीं


हहतले कार + मे इनुसख्याल का महा किया। भारतवासो यहां
वास सहस्य । मो अधिक शक्ष + पश--भंड बकरे, बेल और
घाड ले आते हू । प्रत्यक सनृघ जो य॒र स्वप्न, अथवा भविष्यदाणों
रा सयभात गइनते ह ग्रधवा जा अगदुनमचक पत्तियों को देखे
रहते छ वे शपन जावन के बटने में गद में ऐस पशु बलिदेत #£
जो उन के विश के अनऊणश हु कम में उन को जान का
कटकावा छहो। ये बलि के पशु गांध कर अथवा बलात नहों
पढ़
एत बने व्वच्छागद क् हार्मी किसो अज्ञासल गब्ध के वश्य हो
कर व्वयम्‌ सड़कों स॑ जाते हैं। गढ़ के किनाई पहचते हो
उस में कद पड़त हैं जाग उस पघ्नज्ञात घ्रष्टश्य गढ़ भें गिरते हो
मनुष्य को दृष्टि स सदा केलिय लुभ हो जातेकिन्तु ऊपर
जल का इकरना, घोड़ी काहिमहिनाना, भढ़ीं का मेमसिझाना
| १५६ !
तथा बकरों के टु:खपूण शब्द सुने जाते हैं। यदि कोई निकट
जा कर कान लगा कर सुने तो यक सब सुना जायगा। यह
शब्द कभो बन्द नहों होता क्योंकि प्रतिदिन मनुष्य अपने बदले
में गये २ यलि के लिय पशु ले भाते हैं। जो अन्त में एशु आते
हैं उनन्‍्हों के शब्द सुने जाते हैं अथवा जो पहले आये थे उन के
भो सुने जाते हैं यह से कछ् नहों सकता--वेवज यहो में जानता
हूंकि शब्द सुने जाते हैं ।
(१७) जिस समुद्र काऊपर जिक्र आ चुका है रस में लोग
कच्त हैं कि ए बहुत ब्ठा होप हैं जिम का मास तप्रोबेन है ।
जो कुछ में ने सुना है उस से यह बहुत बड़ा झोर पहद्दाडो
होप # ज्ञात होता है जिस की लम्बाई ७००० ऊरूडियम नर
चौड़ाई ५००० स्डियस होगो। इस में कोई नगर नषघों है
केवल ग्राम हैं जिन को संख्या ७9५० होगो | यहां के निवासो
जिन मकानों में रहते हैं वेकाठ के बनें होत हैं और कोई २
बांस के भो होते हैं ।
(१८) द्योप के चारो ओर जो समुद्र हैउस से कछुए इतने
बड़े २ होत हैं किछन को खोपड़ी घरके छत बनाये जाते हैं।
एक खोपड़ी १५ हाथ लब्बा होता है। बहुत मनुष्य इस के
नोचे तोक्षए धुप सेबच कर रह सकते हैं तथा साया का सुख ले
सकते हैं। किन्तु इस से भो कग्रधिक यह वर्षा के प्रवाह खपड़ों
से भो बढ़ कर रोकता है। जो इस के नोचे ग्राश्रय लेते हैं
कथन न>मपकनभ न)
मी १कम्माक- 4 #+-कीनब
एनरा- बन 3५ ब्ण्जन (2अबमन नलन्‍०-+>-% 4० #०अक-०५ ५
प>क ५-+--3५+4०१०७:०३७७४ "४० ०-+००३७
०कल, कम दन्‍न्‍क (2 न जमक-न++५०

# प्राचौम ग्रन्थों मंइस का श्ाकार प्राय: बहुत बढ़ा कर


लिखा गया है। उत्तर ये द्तिण इस को लस्बाई २७१॥ मोल
ओर पूव से पश्चिम इस को चोडाई १३२७॥ मोल है। घेराव में
यह ६४० मोल के लगभग है ।
| ९२७ ।
बे हष्टिपात का शब्द जेसा छत पर होता है वेसा सुनते हैं
किसो हालत में जिन लोगों का खप्डा फूट जाता है उन के
समान उन्‍हें घर छोड़ना नहष्टों पड़ता है क्रोंकि खोपडो कष्टो
एकम्‌ खोखले चट्टान अथवा प्रकुत गुफा के छत के समान
छल! है।
मझासम॒द्र भें प है जिस लोग तप्रोबेण कहते हैं उस
में तालद्च हैं | यहां झाश्यंजनक नियमपृदक एक हो
अणो में तक्ष लगाये जाते हैं जिस प्रकार व्म्य फूलवारियों सें
कह वाले ध्र्त चुने २ स्थना मे लगाये जाते हैं। यहां हाथियों
के कुगड़ भो हांते हैं जिन को संख्या बइल है और जो बहुत
बहू बक्ध छोते ह। ये दबीपयासा। हाथी भारतवप के हाथियों ये
बलिए एंखन के बछ आर यह भो कहा छा सकता है कि
टेखन में जतिआ बछिमान हाते से । दइॉपवासो वहां थे लद्ली
लकएछी को विशेष प्रकार को राव बना कर उन्‍हें सम पर ले
जाते हैंप्रीर कल्लिज्री के गाजा के हाथ जंचते हैं। द्वीप बहा
हने के कारण किलारे से टूर दहनेवारू। में कभो सुसद् गधों
देखा है असलएव वे देश में निवास करणे बालो को माई' खोवन
व्ययोल करते हैं। यव्यपि यह वे निःसम्द छु जानते हैं कि रन
के चारों घोर समुद्ध है। तरवासों खबस्‌ हाथो बकरामा नहों
लानते केवल सुन कर के जानते हैं। उम को सब शक्ल मछली
लथा समुद्र के जन्तुत्नों केबक्ताने में लग जातो है। कहा लाता
है कि दोप के चारोओर जो समुद्र हैंउस में छोटे थे लेकर
बड़ २ तक प्नन्‍त मछलियां हैं। वड्छो मकलियों में किसखो को
सिंद का शिर है किसो को छोते एवम अन्य बन्यपशुआं का।
कोई कोई सड़ के समान शिरवाले हैं । सब से बह्चा
शुफ़
5 आज
फे
कै
जा

आयप्र तो यह है कि सेटर को आक्ृति के भो जअलजन्तु हैं।


दूसरों का स्क्रिय| के समान मुख है किन्तु बाल के बदले उन
कांटा है। यह्ष भो गसक्षोरताएवक ऋष्ा जाता है कि सखुद्र
में विचित्र जाव हैं जिस कर तस्वार बना देना उस टेश के चित्न- द
कारों के कशल से पर है, य्थप वे कुतलहल बढ़ाने के लिये
ऐसे चित को चि|ल्त कण्त हूं उसे में मिस्र २ ऋतु के
स्िश्न २ भड्ा सिख गहते | । इन का पड४] न | न्लग्कू
न्श हि 04) हद “न

अवयव बचुत ऋब्ब पाते हैं आर उसे पद के बदले पंजा था डेना


आता है। ये जल आर स्थत ठाता मे रच सकते हैं। गाल को
सेंदानो में चघर्ते है अर साय बेल एक्स दाना चुगनवाणो पक्तियों
के समान घास खाते हैं। थे ्वजर सकुत पसन्द करते हैं ऋर
लब पक कर पेड़ से यए उतने लगाता है तब ये झअपनो कोसल
पक को जो बहुत बड़ा हातो है एक के चारो भर लपेंट कर
डुतने झोर से हिलाते हैं हर गिर घड़तें हैं झ्यौर उस
के स्वादिष्ट भोजन होते हैं। जब गास का शनः: २ भवसानस हाम
लगता है ओर दिन का पश प्रकाश नहों हुआ रहता है तव
ऊषा के प्रधम आगमन में अंग्रेछ्षो प्रश्चतातलल कुछ उजला होता
है बसेडहो ने सब ससुद्ध में धन्‍तहित डी जाते हैं। लाग कहते हैं
कि ज्वेल मकत्तोभोी इस ससद्ग में घातो है यद्यपि यह्त सत्य नहीं
है कि ये किनार के निकट छाटी सकल! को खाल में आतो
हैं। डलफिन ([).]/) मछला दी प्रकार को होती! हैं--एक
भोषण, तोखेदांतवाली होतो है जा मछशंॉको बहुत कष्ट देतो हैं
झोर निदय एवम्‌ निशुर हत॑ टुसरो स्तभावतः सूथी हाोतो
हैं, खेलते हुए कुत्त के सम्मान इघर उधर कोतुकएक्क लंर्तों
फिरता है कोई इस ठोकता है तो भागतां नह्ों ओर जो कुछ
खाने को दिया जाता है वह प्रश्नन्नवापृवक खाती है |
| 2 ०. मी का खाऔ। अ
कप दम ह खरहे से रू | क्योक अन्य ससुद्रो वी खरडदश के
किश्ग्र
,
में 5हें #&॥..खिखहा हूं)
के
से
प्रद्यक बात में स्थछररह स्व
लो
जिलने उुरते हैं. केवल राग स्थलखरडछे का बहुल चिकना
सटा हुआ उाता है, छूने पर गड़ता नहीं पर समुद्र के खरहे का
खम्नकता हुघा रॉभा कांटा के सम्मान होता है और जो कोई
न्‍

कला है ईरझे आाहस कर देला है। बिना पानी भें उबे हुए यह
ससुद्र का लक्र के सपर तेरता # और इस को गति बचुत तोन्र
४श। १० खोडजिन अल पेलेना
एस सछजझ्ज्शात तक
इ४/२७७,

प्रकाश दान नहछों है. क्योंकि यर


अं ( कक पं पा मम रच के. ज्यों कक
हा | ० प

खझी शाल भभे महा एहछला और न जया के नकट जाता हे |


॥१४ट्रनिशक ० मं
्हं ५! ४ शा
) कम ३8 श्
है हा कं५ ४. हा है 7५ 88] ;हर ४ कप #!दर ॥ | था (0 है इ> ( व सह कर १ रै 0232! ) है अपन ४ कि ९७४८ ६ सु हि
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हे क्षिनारं एक अडो छोतो है जो सब को ज्ञात है। एस
थे झा बहाशा छातों है सस को वहा प्रीष घि है। रूचिएल पुरुष
हू नाक ईं छ सुघ पक से आओ हे शनि ।
कई नाक गे उसे सुचातं हूं क्रौर वछ शीघ्र चतलन्ध ह्षोीके" आवक
जाता पक
है।

खाले एसना झोपगा इस को गरक्षि छोतो है।


यहां पत्रख्ण्ष पद्चदय ख दिया हुआ है ) +
की *बेतलकटनजी बल १४८... 3ए:ब७ ७० +ऋनपाधाए-+ ५ फत्कनक+3 8 कन7३ ७५ जाणे २७० अ>तन्नवीकिलर अनबन ब्नकी. बटन बने नी +ण#. “०० ल0 कल के अल्‍जिए का # +-०-7८>।.. _ #ण्० पी - बन 3-१. निकले पे. ५ --" «४ +"5 ४» हे ००

# इस पत्रणण्ड में कटजन नामक सॉगवाले पण के विषय


में ईलियन ने लिखा है। रोजनसूलर जिस हे सारलवर्णेय गंहेों
के विषय में “क्या है. शमकता है. कि इक्ियम मे यह तफ्त
| १३० |
( १२ ) भारतवर्ष के बाहर स्किरेटे 4 निवास करते हैं;
सन को नाक चिपटो होतो है । बाजपन हो में उन को नासिका
दवा दो जातो है जिस से जावन पर्यन्त ऐसी हो रह जातो है
अथवा स्वभावत: उस अवयव का वैसा हो स्तरूप है | उन के देश
में बड़े २सप होते है जी चरते हुए पशुभों को पकष्ट कर
निगक्ष जाते हैं। दूसरे प्रकार के सप खन चसते हैं; जैसे ग्रोस
के एगायेले करते हैं और जिन के विषय में उच्चित स्थान पर
कहश् थाया हइ ।
एशियन का भारत-पिवरणु ।
| १) सिख सदी से आगे पच्छिम कोफन नदी तक. एप्ती
भारतवष को दी जादिधाो ४ बसी ए--अस्केनोई (35४००
श आरा किलो ( 2 हह॥ ९० ) ] थ॑ पिन नटी ता सह एप

रइनवाले भारतवासियां के समान बहु डोलवाले घथदा साइसी


महशों झ्ोत और न प्रन्धथ साग्तवादियों ॥ समान शाम व दोहे
कै | प्रायोन समय में ये प्रस्तो रिया की झाधोन दिन सोडशिया
के भ्रपान रह कर फिर छब्ह मे फास्सनिवासियों के शासन को
साकार किया | कक! 5 ९३थे ५७% अएे अकिएइरसा का र्य कप ट्तं छू

बह (4 है ।! गा #। | रू कट] रे $५ ्‌ | श्र पे
छः[शशि * 7] ॥।

विषय में छल ने छुना होगा |


० हु " ।०० दल पकतल पक ।क्‍
पद्धण्त़ण्छ् शव के हि
रा ये ् ली जअ। हवाई हर ( पत्चलफ् शत । | लशन

साहब ने लिखा है कि रामायण में लिखा है कि झूछ किरासल


हे की
झब्दर पते पर रहते हू, कुछ श््छु
कक
हे कक ै
अपने ध्वानों छो को प्रोटर
ते |
है
पे अत्यन्त माप, काले, एश पंगवाले, किन्तु बहुत तोबगामो
/

0 का...

हु ले थे
ही ४ रे

है हू। सकते । साइसो लथा मागवक्षप्छी


* पल
हि ह पर | *]
फूल
ही

(सं हें
निसायोएह ( 'ए5६४०0] ) भारतवंध को जाति नषों है| वे डायो-
शक, ( श्् उे द्‌े | न्‍्ज
ह कीट के
ढ़ प्र ४०. है|

निश के साथ जो भारतवण भें शाये धे उन्हों के दशलज हैं । शन


में क्षेवल ग्राक
हक के«०2 | मिनी
अं
कक
नष्ों हि
हेथे जो डायोनिसस के साथ भारत-
हक मा यो हि

वासियां के विरुद्ध यु करने # झआाइल हा कर लड़ने थे असमय


जी कक हर की |] हे
+. ्‌ >औक बहिन, पा,

गये ४ गा डश हिपा ८ ४ हशायोामिसम मे


हर गये ४, पर उस डेश वी नियामसी ४ (जनन्‍ह हायानसप्श्न म
९.०५, कक हर हे के ३१०४५ कम कै

उन को सग्ग्रलि थे रा! इगा दिया घा । जिस दर में यह छप-


हहरतीधक गर३ १३ ) ॒ पुहै! (आह>> है शा ४ प्‌
&३ ४० पक हि 20० ० ५७/३४/९७५० |(.जज स्ब्कुकत | * कु गन ढ् ल्‍ हक«3 |] ब्क- हक ३ शा हैहे 4००९ छः ॥क किन

नियेग सापि।
| कफ ५१ है
/! /भ ः
हा है]
है #। १७!

हझछझा उस श्छु
पु

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माइसाः
रूपका ५७ भ्प्का7 ह

पदल के६०
का कल

मान्नानया' (! |

नियेया सलाम पका ओर प्रधान गा का सास नाइसा हो रक्या


गया | *% सरा |ूुय आज ऊजडा के वा के ॥प्व डा एक घटना हो गयो

अन जे हा शाह आह है. झोरण परा। ग्रव 20 28 ॥।लिमताः

$ विदा में थे मप्र कथाएं कवियों व्यो कल्पना मात्र हैं भौर से ५%८

५३. ढता/क >2तःतक्रतवत


ऑनक७७ ०० ॥ पण- डी. (जाके >तक>प ३०४२ ७) बऊ७

४६ माइसा मदिरा के देव का जखासश्ान


0 अब अमल हे िल धर 5 अं
है,

अलएव जहां

के के पा पी अआा | न पृ स्थान बताये


इजारा घर पाशिक ताएा जा की ! सका इस का स्थान बताया
जाला है । फामाश | आज | नटां के फकनार पर करा यु
(2४.४ "कुक ७ कु | प्रोकिः > 3 न 4/7/ ॥४ ४ के 2को कु "2703 ० है शी किक य्ड कि(आंधी क्रहे | प्र [#&॥
५ ४४.३४ अयककशहि सा षूट्ं

नगर था ; लाशन लाइव की दम नास का कोई मगर वास्तव


पल का सबदश दा । पर सेठ साटिन को अधिक सनन्‍्देह नहीं
है। ये कइते है जि यह आधुिक ग्रास निम्चद्ट ( ४३४४७ )
है।यह मास हशननगगम न नाच क्ाबुत्ल नो की उत्तर किनारे भे
दो कोस पर है | घी इतिहास का नाइसा हो सकता है यश

इस का नास ईरानो है। नाइसा अथवा निम्ाया जन्‍्दबवेस्ता


में को मिलता है झौर प्रायोन झमय में इरान के प्रान्तों में बुत
फेला था | इपध्त विषय पर वे इस्बोलड साहब को मध्य एशिया
6 (शाप तै&89॥ * नामक पुम्तक देखन को कहले हैं ।
[| १३१२ |

ग्रोक अधवा विदेशौय विद्दानों को इस का अथ लगाने के


लिये छोड़ देता ह। इस्स किनोइ के २ष्य में सस्या का # ((४६६॥४४)
मासक बड़ा नगर है जहां राजा का निवाण्स्थान है, जो समस्त
रात्य का शासन करता है| एक और बहुत ढड्ठा हगर पिएके-
जायटिय नै ( 0 लआााार ) है जो सिन्ध नटो ये टूर नहों है ।
ये छपनिवेश सिख नदों के उस पार स्थापित है &र पश्चिम
कोकेन गदी तक विस्तृत है ।
( २) जो देश सिन्ध नदी के पूय है एसे हो में भावतवष्
६054 हन्‍-हिकलक >ज--रपे, आह के.

« सस्याका (इस्मगा और मजणगा भरी) संस्कत-मशक ।


सौरो के निकट एक मगर । कटियस कछता है कि पूष को
ओझोर एक तोब्रगासोी गदों मे यह रचित था। सिकन्दर ने लव
आक्रमण किया तब चाद दिन तक इस नें सब प्रकार से ऋपनो
र्ताकों।
|! पिषकेलाटाटस ( पिछवेज्षायटोी )। पराछो--४कजावतो ।
संस्कृत-- पुष्कलावतो । एशियन इसे पिछकेलस भो कहता है और
हायोनोसस पेरिगेटिस यहां के निवासियों को पिर्केलो कछसा
”ै । टोनों पाली पुकल से निकरछा है। एरियम के परिप्नस तथा
टालेमो के भूगोल में प्रोक्केस ग्राया है। रुखवत: इसे छिन्यो को
पोखर से सम्बन्ध है। इशतनगर पथवा झाठह नगरों मेंसेदो
नगर परड़ झोर चारसद निकट हो स्वात नदो के एवं को ग्रोर
बसे है। यहाँ पर इस का प्राचोन स्थान है। पेशावर से यह
सयवहए सोल पूर्वोतर पछुगा । यह कनिज्चह्म साहब का मत
है । बिलसम साहब कहते हैं कि पृष्कल पेशावर के निकट
आधुनिक पेखलो अधवा पखोलो है |
[| (१३३ |]
प्रधानल: समझता हूं। वहां केनिवासो भारतव'सो हैं। ३:इस
प्रकार जार्सवष को छत्तरोय समा टार्र पर्वत से बच्द है, यद्यपि
इन प्रास्ती | उस पवत का नाम दसरा है । टारस पवत उस ससुद्ध
से प्रास्म्ण छोता है जो पम्फोलियालाकिया भौर किश्ोकिया के
किनाईी को धोतला है, झोर समस्त एशिया महाप्रदेश
वो वमता कब्ता इचचा पूृथं समुद्र सके चला जाता है।
जिन २ प्रदेश। में हो कर यह जाता है उन २ भें इस का
साझ मिश्ञष २ है। एक लग इस का नास परमसोसस +
$, दूसरे स्थान भें इमोड्स और तोमरे में इमापझरोस। सम्भवत:
डर नास भो हैं। मिकन्दर के साथ जो सकोछन-
लनिवासों का ऊरने थे दे इसे का्केशस कहते ध। यह कावेशस
स्कशिया के कार्केगस से मिश्र है |इसो से यह कथा कहो जातो
$ कि मिकन्दर काकेशस से भो आगे बढ़ गया था।

४ प्राचान समय में भाग्तवप को पूर्वीय सोमा श्ीग सिन्ध


उठी लक बलाते थे। हिन्द लोग स्वयमस इस बात को मानते थे
क्या कि प्राजेन प्रधा के अनुसार इस के पार जाना छन के लिये
भरा है| आरतवष हिन्टकुश तथा पर्पसिसस पल की जड़
तक विद्धाल है| इस के ससदन | # बुत कुछ कहा जा सकता
है| यथा नि नदों तथा इन प्रवर्तों के बाँच भें बहुत से स्थान
हैं झोर थे जिन का नाम स॑सकते से निकला है। यह विषय
एलॉफनछन साई के 'भारतवप का इतिशास' भें भ्लों भांति
दिया हुआ है।
# परप्मौसस ( परमोस्मस, परपनोसस )। अजब इसे हिन्ट-
कुग कडइते हैं | ग्रोक लोग चाहे सिकन्दर को प्रसन्न करने के
[ १३४ ;
पश्चिम को झोर भारतवर्ष को सोमा समद्र तक लगातार
निकलतालन अमकेप9७०33५१७।५५>आना
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लिये, अथवा इसे काकेशस को का विस्तार सम कर, इसे


इनडकिस काकेशस' कहते थे। अनुमान है कि हिन्टूकृुथ इसी
का अपम्त्रंग है। एरियन तथा झरों ने इसे टारस पव॑त का
विस्तार बताया है। ये पव॑ंत काबुश नदो के उत्तर निषाद
कहलाते हैं (लासेन साहेव के अगुसार )। यह्द संस्कृत से
निकला है। टाशेसो का परपम्तोसस इसो से सम्भवतः सम्बन्ध
रखता है| प्लोनो कहता है कि स्क्रोथियन लोग इसे कावोशस
प्रोकशिस कहते थे जो हिन्दुस्तानो में ग्रवलस होगा | कनिद्हस
के अमृसार जन्दअवेस्ता का परेश और अ्परसिन ग्रोक रोगों
का परप्सोसस है। सेल साटिन साइदय कहते हैं कि पर
परु -- परुत ( दिद्वातो ) [ जेन्द का परौत ) जिस का अथ
पवतल होता है। पर निषाद और परु के बोच में 'प' का अधथ
वे नहों लगा सकते | इस पवत के विषय में पष्चला ग्रोक लेखक
अरिस्टाटल है जो इसे परमेस्सस कहता है। इस पवेत का अय
पूर्वभाग हिन्टुकुश और पश्चिम भाग परपसोसस कच॒चइलाता है।
वर्नत साहब कहते हैं कि डिन्ट्कुश मास अफग्रा्मों को
जात नहों है, पर अफगानिस्तान और तुकिस्तान के बोल में
एक शिखर और एक पह्ञाड़ो राह है, जिस का नाम इसोड्स
( इसोडा, इसमोडन, दिसोड्स ) है; डिमाक्षय के उस भाग का
यह नाम है, जो तिब्बत और खूटान मे समद्र तक फेशा इुभा है।
लासन साहय का कथन है कि यह संस्कुत डिसवत्‌ स॑निकला
है । प्रकत हिमोत होगा। इस का अधिक शुद्ध नाम तब
हिसोडस हो होगा। कुछ लोग इसे ईऔरमाढ़ि! का अपभ्यंश
कहते हैं ।
| १३१४ ।

सिन्ध नदों से वद्द है। इसो समुद में यह नदी दो मुहाने से


इपना जल गिरातों है। इस्तर ( छान्युव )नदो के पांचों मुख के
समान ये एक दूसरे के निकट नहीं हैं, किन्तु नाइल गदों
के समान, जिस के महानों से छेला बनता है अलग २ हैं।
सिम्ख नदों भो उसो प्रकार से एक डेल्टा बनातो है, जो इजिए
के रूल्ा से कोट! नहों सै |यह पहल १ कहलाता है।

दक्षिण परशिम तथा दक्षिण को झोर भारतवष उपरोक्त


महासागर से बंधा है, जो इस को पूर्वी सोसा भो है। सिन्ध
नदी लथा पहुछ के निकट इस के दर्क्षिण भागों का सिककन्दुर
तथा अन्धान्ध बचुत से ग्रौस निवासियों ने देखा, पर पृव को औझोर
पिकनन्‍दर छिफासिस नदों से आरे नहीं गया | तथापि कुछ ग्रस्थ-

पालिसखेधा नगर का जो भारत में सब से बहा है, वणन


किया $ |
मे किक क॥0 -0 ००4१) 2. . ०० ७ ४ #*।> ० * ०६ 4 है ४६४ १३०९७. व + ७ कल पी ० ५ कर. ००६० करें... हों हं7+»>फाकबरल। डा. . फं+ नकल क ००% अं ८० कप कर न फोर कर. 3. 3. ७ जरुर: पे्क्क८- बओजहिबंसा। ६ पंकककॉसअंक छब- बह०अ: हे ह.. #ज्कक - ++7 #.२ 6 अत

प इस हलटा का नास पाटक्नोन था राजधानों पाट्ल



पु

थी | छिकटा $ शोष पर लहां से सिख्च की दो भाराए' हो गयो


>्रचह
7पथ इ यह था। प्रायः लोग इसे आजकल का ठठा (]]00फ0) बताते
है गद कॉनिड्हुम साहब प्राय: नलियय के साथ इसे निरफ्ोलया
हैदराबाद कहझते हैं, लिस का प्राचीन नाम पाटलपर या पाट-
शिक्षा था। उन के अनुसार इस का नास पाटनपुष्य से पह्धा
झोगा। भोर डेलटा का भाकार भो पाटलप॒ष्य के पैसा है |
परियन ने इश्च केआकार को कुछ बढ़ा कद दिया है क्योंकि इस
विभुझ का अझाधार पित्ति से कोरो तक १००० रू डियस था
छोर शिखदा आ। १३४०० सर डियम था
[| ११६ |]
(३ ) अब में भारतवर्ष केआकार # का वर्णन कझूगा।
डूस विषय में में काइरोन के एण्टोस्पेनोज़ का अमुसरण करू गा,
जिस में इस विषय का विशेष अनुसन्धान किया है। वह कछता
है कि यदि एक रेखा टारस पव॑त से झोंबी जाय, जए से सिम्ध
गदी नसिकलतों है, और वह रेखा ठस नदों के साथ ५ उस के
सुझाने तक और समुद्र तक बढ़ाई जाय तो रस का साप
११००० रू डियस होगा। किन्तु उस के प्रतिकूल भुजा को
लम्बाई, जो टारस के उसो स्थजल्ल से परवोय समुद्र के साथ साथ
चलता है, कुछ और हो होगो, क्योंकि एक केप ससुद्र में दूर
सक ३००० रे छियस चला गया है। छस के माप के अनुसार
पुव का भुजा १६००० सतेंडियम होगा प्लोर हतना हो वह
भारत को चौहाए कहता है। फिर वह कहता है कि पव से
पश्चिम को लम्बाई पालिस्वोधा तक १०,००० झू डियमस है,
क्योकि एक राखकाय पथ था, जो शिय मिस 4* से नापा गया था !
किन्तु पालिग्बीधा से झागे भलो भांति नहों पाया गया था ।
लो केवल दन्‍तकथा से सुन कर लिखते ६ सन का कथन ४ कि
भारतवष को चोदाई रुस केपस ले कर हो शरर में गया है
१०,००० स् डियम है और उस्र को शब्याई कमाई से नापने
से २०,००० रू डियम है।
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ककलकतकन णथ

# सृ वी का साप एरियय स अधिक टोंक $ तथापि दे


झधिक शुद्ध नहों है। कनिप्राइस साएछण ऊकछषय है कि यु
धायय को बात है कि भारत का आकार भरे शांति विद्धिः 5 हर
अर:

न हो, नियय भारतवासो उस समय भो अपने देश का आझाकार


जानते थे ।
|! १ शियनिस + ६०? छडियमस ।
| (१३७ |

मोड्स काटोशियस कच्ता है कि भारतवर्ष आकार में


समस्त एशिया के बरावर है। पर यह असमाव है। झोनेसिक्ाइ-
टस भो असमस्भव बात कहता ह॥ कि यह समस्त संसार का
हृतोयांश है । नियारकस कहता है कि केवज्ञ भारत की मदानों
को प्रार करने में धार सास लग जाते हैं। शोर भमैगास्थनोज
कहता है कि भारत पृव से पश्चिम चौड़ा है जहां अन्य लेखक
कहते हैं कि यह इस को लम्याई ह। उस के अनुसार जहां
सब से कस इस को चोहाई है वहां यक्ष १६००० से छियम है।
छोर इस को लम्बाई अधोत उत्तर से दक्षिण जहां बहुत कम है
यहां १३००० सत शियम है। किज्तु लो कुछ इस का आकार
हूए लिखय भार्तवध को नटियां परशिया भर में सब से बछी हैं ।
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वारण सट। ॥। ाइिल शक यह भा मापन शाशतवा एस से


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बड़ है काश सर शान पर सका ३२०० कं हटा चाहा #।


5 »4झट
४ “औ ५ फू४१"॥॒ है|7 एफ आाल पा 4 पं नहीपर 9 पु ही
| पृ| * 2] 5 सर
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पा धा पर ६ हुए आन शा

यह सो समान मे किठणछा अन्य बहल सा और की बढ्धां२


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॥। |
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निश्य क्ष0. के क्र
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ल कर है:
है. ४४ श्ट््प कक 45ट हेशक
९] नै कल से
रस| ।१४॥ 7

दि ञ्

माया अ जा सारतवप म्‌ हो कब बचहुतो €। ७ दम प्रजपम्ा लय £ दम कह 22 रे

8४--किन्तु हिफासिस मदो के आगे का जो भेरा ज्ञान है उस


को शुद्धता के विषय में म॑ एरण विश्वास नहीं दिला सकता,
क्योंकि सिकन्दर को गति ठस नदों के रुक गयो। पर गज़ग
ओर सिन्ध--दो सब से बड्लो २ नदियों के विषय में, मेगास्थमोञ
कहता है कि दोनों में मज़ा बड़ो हैं। अन्य लेखक जो गड़ग
| शैशंए ]
के विषय में लिखते हैंवे भो इसे स्वोकार करते हैं। जड़ पर
बड़ो होने पर भो इस में कलस, एराद्रोबोआस और कौस्सोनस
गिरतो हैं। ये सब नोका चलाने योग्य हैं। इस के अतिरिक्त
घूस से सोमस, सिद्दोकटिस झभोर सोलोमटिस सड्म करतो हैं
खो सब नोका चलाने योग्य हैं। इस में कण्होचेटिस, शम्बस,
मेगन, अगोरनिस और पग्रोमलिस भो मिलो हैं। ओर इस में
एक बड़ी मदों कम्मनासंस, झोर ककधिस तथा पहनडोमटिस
जो सद्ानडिनोड जाति के राज्य से हो कर चातो हैं, गिरतो
हैं।फिर अभमििस जो कटडुप मगर से हो कर बहतो है,
अख्ििमेगिस लो पजलई जाति के राज्य से छो कदर बहतो है
ओर एरेनिसिस जो मथई जाति के देश से ड्रोतो हुई जातो है
व गड़ा # में गिरतो हैं। इन सब नदियों के विषय में
'अरिमाजकनय३०३
लत7फमे+"हिना३ा+ '००७,82८ ५०७५७ +>के -3०3० बनज+- ५०-५५ ५५/०- ॥7* ९७
>५(९०फाराका७( चुड॥---- कक ००००४ '>रयकजलकप कलर उन ललित,

# एरियनम यहां १७ नदियों का नास लेता है जो गड्ता में


गिरतो हैं। प्रोनो १८ मास गिनाता है और उन में प्रिनस ओर
जोमानेस को जोड़ता है। अन्यस्थल में एरियन भो जोबारैस
कचछ कर इसे लिखता है बदढ्ध २ विद्दान यथा रेने विलफो
गेल, लासेन, शानवेक आदिकों ने अनुप्तन्धान कर के इन
सब मासों का पहचान कर लिया है। सखेन्माटिन ने उन
सम्दिग्ध विषय लथा भूलों को संशोधन कर स्यष्ट कर दिया है।
व सें उन का पहचान मोचे लिखता ह :--
कमास--कन अथवा केन नदों जो यमुना भें गिरतो है।
संस्कृत सेन ( श्वानवेक के अनसार )भथवा कायन [ सेन माटिन
के अनुसार )।
एरानोबीआझास--एरियन लिखता है कि पालिस्वोधा इसो
गदो और गड्ढा के सम्जम पर स्थित था। निश्चय यह सोन होगा
सेगास्थनोज कछता है कि मयानडस में जल माव चलतो है
७००१५

की पछले वांकोपर से आरी घटना के पच्छिस गिरता था, पर


झव यह बहडां से १६ मोल झौर ऊपर गिरता है। संस्कृत-
हिस्सावाहा, दिरणायवाहु। भेगास्थ नोज ओर एरियन सोन
तथा एरानोीबीआस को दो जटों बलाते हैं। अतएव कुछ लोग
एरानावबाशधास का! मडक बलखाते है सम साह्षव भो करते
हैं कि बॉँइ। के अनसार गंडक का नाम छिरणथावतेी था।!
पर यह इतनों क्ीटों नदों $ै कि यह गड़ा झौर सिन्धु के बाद

मीन भगाय्य मनोज के समय में दो धारा मंहो कर गड्ा मंंगिरता


कुपा जिस से उस ले होना धाराध्रों को दो छखतनन्‍्ध नदियां
संमकक सिद्मा |
कश्य ोनस--प्िअं लीपशलिकिघ+ 35इक
567 न भरा
कोसोग
आह
स लिखत
*.;
ा है अतएव ५ यह
ण्द्वूहल

कोशो कचते हैं। श्हानवेक के अनसार यह कोषवाह्ा का


आपब्धश और सोन का मासान्तर है। पएरियनम एरानोबोोाश्र
घोर सीन के कोच में इस का नाम लेता है इस से इस अनुमाम
का कुछ सम्मथन होला है ।
सानस--सोल, जी दानापुर संदस सोल ऊपर गएष़ा में
झिला है सुवंण से बना क्रोमा। इस का यह नाम बालु

सिदंकटिस--यहु कीन नदों है अभो तक निश्चित नहन्षों


कुछ है सेगत्साटिन साहब कहते हैं कि महाभारत में सदा
कानन्‍्ता, कौप घारा ( कोसो )सदानोंर € करतोया ) झौर धप्रोतच
( अत या |इन नदियों का नाम साथ ५ भाया है। सि्टोकटिस
[| १४० |
वहां थे पिलाने से क्रो ये सबनटियां छोटो नहों ह्ोंगो | गंगा की
७3०७ «
"कक न सती
4 करत -*0०
नकल >+ (टककपन-लमक-क/++, जफ्लनलकशान लिनाकशनन ७ 5 ल्‍७०२३७३ 7० कनकाबकम तन न कोन्पुमककी ५3७४७४७७-७७४४ ७ या

सदाकान्ता हो सकतो है। प्रकरण से ज्ञात होता है कि अन्य


तोन मदियों के समान यह भो बह्न्‍नाल में कष्ों होगो।
सोलोमटिस--इस का भो ठोक पता महों लगता है ।
कनिष्ग हम साहेव अपने भ्रूगोल में इसे सरत्छू भ्रथवा सरयु,
घाघरा को एक शाखा बताते हैं। वेनफो साहेब कहते हैं कि
यह्ष प्रस्द्ध सखतो है जो पौराणिक कथा के प्रनुसार नोचे
लुप्त हो कर इलाहाबाद में गड़ा में भरा सिलो । लासेन साहँब
का मल है कि यह साशवतो का अपभ्यश है जो कोशल देश
का प्रधान नगर था। इस के विषय में कालिदास तथा पुराणों
में भोलिखा है। वे प्रायः इसे शावस्तो लिखते हैं |जिस नटो
पर यकह्षठ मगर था छस का भाम कहों नहों लिखा है। नियय
पूस का भो साम सारायतो हो होगा, काकि अब छस देश में
नदो का माम रापतो है |
कणडोचेटिस--गंडक । संस्कत--भंडकों शथवा गंडकावतों
क्योंकि इस में बोच बहुत होते ह#। कोशर देश को पवोट
सोसा थो | पालोबोथा के सामने गद्स्‍ा में गिरतों है |
सस्बस--समब्भवतलः यह्तय सोमतो नद है, जिस का कुछ अंश
लखनऊ से कुछ नोचे शब्ब कद्दलाता है |
मभेगन--संनट साहेब के अनुसार यह रासगंगा है, किन्तु अधिक
सम्भव है कि यह मझानद है। श्राजकल इस को महदोन कहते
हैं जो मगध को प्रधान नदो है ओर पटना से थोड़ो दूर आगे
गिरतो है।
अगोरनिस--रेनेल के झमुसार घाघरा--संस्कत घघरा।
सेशटमाटिन के अनुसार अनेक गोरो नामक नटियों में से यह
एक है। ग्रामोण भाषा में यत्र गौरन कच्चछाता है।
[ १४१ |]
चोडाई जहां सत से कम है वहां १०० सं डियस है स्ीर कई
(#जन '#-++ '३+००» टरयन्‍कव करह-+>०कना-+३+
का <"०
पंपहन०-५५०५५५१४०००++>भमय/+कामपेकिकाि-0५+९५५
+कमाककनाल ५५७ ७७५५५ ;क॥नकेकक ०भॉफैक१७७३५१०१००-#मबल। ५ाआभा

झोमलिस--नहों ज्ञात हुआ है।


कम्मनासेस--रेनेल और लासेन इसे कमनाशा बताते हैं, जो
खकार से जपर गंगा में मिलतो है |
ककूथिस--मे नट भूल कर इसे गोमतो कइता है। खासन
कहता है कि यह बोद ग्रस्थों का काकुस है। चतएव बच
वाडमती / अथवा भ्रगवती )नामक नदों हई
अराहासटिस--संस्कत--अनम्धम ति। । लाखंन के अमृसार यक्ष
तेससा नदी हर जिस आजकल टोग्सा करते हैं, क्योंकि दोनों का
7ध एक हूत हो | पर यह संडाशिडनों अथवा माध्यन्दिनः के देश
छहाकर आाकि! था जा दक्षिण देश के नियासी थे। विलफ्ो्ड साइब
का अनुमान है कि यह वरमान को निकटवर्त्ती दस्मदा मदों हो
क युक्त जचता है ।
अभिखिन->्यह नटो कटट्प हो कर जातो थो । भव रखे
कटवा | दक्षिण बजुगल | कहते हैं जो पगअछणों /भौर गज़ग के
सड़स पर है । कटवा का संस्कृत कटदोप होगा | इस थे साटिन
साहब दस मत के पत्च में हैं। अम्रिद्धिस तव अडजो अथवा

अखिमेगिस--पजलइ अथवा पसखलचनह् जाति (संस्क्रत पहल)


दोआब में रहते थे। यहाँ से अथवा इसो के निकट से इचमतों
बहतो थी । ग्रोकभाषा में 'ग”ः और 'त' एक हो समान लिखा
जाता है। सेगास्थनोज़ ने अच्तिमेतिस लिखा होगा।
एरेनिसिस--वाराणसों से मिक्षता है जो वरुणा और असो
के मिलने से छोता है। ये नदियां बनारस के जिकट मंगा में
मिलतो हैं। मधड़ समघ के लोग हो सकते हैं। सेण्टसार्टिन
[ ४२ ।ै

स्थानों में इस के फेलने से कोल बन जाते हैं। इस से जब कोई


प्रान्‍्ल समततल रहता है झोर ऊँचा नहों रहता तब दोनों कूल
नहा दोख पड़ते | सिख को भी वहो वात है 4 । हिडायोटिस नदो
अस्ट्रोवे सेहोतो हुई हिफासिस को लेकर, केकियन से स*छ्नडस को
तथा अड्टकिनोई से निउड्स को लेकर अकेसिनेस में गिरतो है ।
काई के राज्य सेनिकल कर भर अरिस्प्र के र।उ्य
हिडासपेस अक्मिंडे
से सिनारस को लेतो हुई अकेसिनेस में गिरतो है और अकेसि-

उन्हें गंगा और गोसतो के मुंह के बोच के निवासी मानते हैं।


हिवेनसंड़ के त््त के अमुसार उन की राजधानों गंगाद्दार
( हरिद्वार ) केनिकट सतिपुर थो । उस समय तक उन लोगों
ने उन के नाम को दूरव्यापो कर दिया होगा। पएरियन ने
प्रियन का उल्लेख नहों किया है। यह तमसा नदों है जिस
प्रणाशा भो कछते हैं। फैनस जिस प्रान्त में है उसों प्रान्त की
यह भो नदो है। प्लोनो टोनों का साथ २ नाम लेता है।
|' अब सिन्धु नदो में जो नदियां गिरतो हैं उन का नाम
दिया जाता है। यहां एरियन केवल १३ नाम गिनाता है, किन्तु
अपनो दूसरो किताब मेंवह कहता है कि इन को संख्या १४ थो ।
रू,वो भो इतना हो कहता है, पर प्लोनों १८ का नाम लेता है।
हिडु योटिस--नामसान्तर रुएडिस आअशवा हछिराश्रोटिस | अब
यह रावो कहलातो है, जी घंस्कृत ऐरावतो स बनो है। कथा
है कि ऐरावत हस्ति ने दांतों से पवत फोड कर नदो को
निकाला था। कम्बिछ्ोलों कामाम और कहीं नहीं मिलता |
श्वामबवेक साहेव कहते हैं कि यह कपिस्यल हो सकता है।
बोच में एक 'म' चला आया है, जेंसे पालिब्बोधा में चला आया
है। विलसम साहेब के इस झमुसाव को कि वे लोग काम्बोज
[| (४३ ]
नस सक्षों केराज्य में सिख नदों से सिलतो है। पर इस के शूज
थे, येख्मसूलक बताते हैं। एरियन भूल से लिखता है कि
झिफेंसिस हिडायोटिस में गिरतों है, क्योंकि वास्तव में यह
अकेसिनेस में गिर्ली है।
हिफ़ सिस-- नामसान्तर- विवासिस, हियासिस, हियामिस)
संस्कूल विष्याशा: आधुनिक व्यास अथवा बिज्यञास । शतद्र मे मिल
आम पड शुस का नाम जछ कं आला हो । टालेमो खतद्र को

अआाउल्स कछता है जिम अब सतजज कहते हैं |


सब्हस--अ्रसाल । केकियम जिस के देश से होकर यह
हछुलो थो ये लामन माश अ्गमार शाक्य लोग हरी ।
(जायहाश -आप्तास | अड किनो इ--छज्ाम | प्रस्मक्तिनोद का
ऋपानमर हो लो हू। झकता है।
खिलास्पयस--टानेमों के अनुसार बिडास्पेस जो संब्कम
टटिमघ्तला से आधिक सिखला है। शय इस बेहस दझाथवा मेलमस
करते है | रस के लोॉजवासों इस वेदस्ता कहने हैं। होरेस और
जि + मय) बेंध हे विधय में लिखा है। पोरस के राज्य को
हक पक ि४ 5 (० महा 6 । तट

(८ फू एडिआार मादा शे) । ९,

झके सलिल--अआाधानिक चेनाव। संस्कत अभिक्री वेदों म्रें


आया है | पाछे चन्द्रभागा इस का नाम पड़ा | ग्रोक # संडोफेगस
छोगा | टालेसोी इस सनन्‍्दवागा कहता है| प्वोनो ने इस कलृब्रा-
कर दिया। सल्नो जिन शे देश में यह नदो सिन्धु से सिलतो है
संस्कृत मे सालव है।
टुटापस--सम्धवस:ः शतद्र| के नोचे का भाग ।
. कोफेन--छवो तथा प्लोनो ने इस कोफंश अथवा कोफेटिस
भो खिखा है। अब इस काबुल नदो कहते हैं। तोन नदियां
[ १४४ ]

एक ओर भदी टूटापस का जल सम्धिलित कर लेतो है। इन


सब नदियों के मिलने से अकेसिनस बष्डो होजातो है और वे सब
नदियां सिख नदों में जहां गिरतो हैं वहां, तक इसो के नाम से
पुकारो जातो हैं। कोफेन नदो भो पिछकेलापटिस से निकल
-अीहएस-+-म:भाउ:पकरीटपआन 4वीकसम+न.ससननरपीनकताप नापलक, -+०#५# «अप ३५५3कनक>भ->० 2०नम ;49००: अ्रनननानने चनेबन तन तक 3अतिनिनफलीक+ससा जमनतलाक चसरलनाराण- की
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३०
सात) ५३७१५ -२०ए-७०३कु:+उ०कहीपंनकर "काका ३०नाान-पक

लो इस में गिरतो हैं वें सुबसु, गीरो और कम्पन है जो


महाभारत के छठ पव में दो हुई हैं। सोप्रार्स निश्चय सुवस्त
है और गरिया भो गोरो है। सोआसर्स को कटियस ओर रूवो
चोभास्पस कहते हैं । मंनट साहव के अनुमार सोआरूस ओऔर
गरिया पक हो हैं। लासेन साहेब का सत है कि सोआरझूस
आधुनिक सुआद अथवा स्वात नदों हैओर गरिया नदी उसो
में गिरनेवालो पक्तकोरा है। कणिद्वाहस साहब भो यहो सानते
हैं। मदमरटस को कुछ लोग खोएस बल! लिशे एरियन
ने अपने भनावसिस नामक ग्रन्य में लिखा है। अब बड़ कर्म
या खोनर कछहलातो है अर काजुल नदों में गिरनेवाल्तं सद्द
नदियों में बड़ो है | दूसरे इसो को पत्ञकोरा कहने नड्ग-
चुमस का विचार है कि यह्द बारा नटो है, जो दल्तिण से आकर
काबुल में गिरतो है। काबुल का नाम वेदों में कुभ आया है।
पर यह संस्कृत का शब्द नहों है, इस से शात होता है कि
आझायों के भाने के पहिले सेइस का यह नास चला आता है ।
प्राचोन लेखक लिखते हैं कि खोएस, कोकेस और स्ोशास्पस
सिम नदों के पश्चिम हैं | आजकल कुनार, क्रम, गोमल पश्चिम
हैं। कहोनार सितन्सु से प्रव है। ये सब स्कीथिया का शब्द क॒ष्छल
से बना है। असिरिया कादु, तुर्की सु, तिब्बतो चु सब का अथ
जल है। टालेसतशो खिखता है कि काफेन के किनारे काबुर
भमालक एक नगर है वहां के निवारो कावलिटे हैं।
[ १४५४ |]
कर सलनस, सोआासरस, भीर गरोंया को लेतो हुई सिन्धु
नदो में गिरतो है। इन से कुछ परेनस तथा सपनेस एक दूघ्रे
के निकट हो सिन्धु नटों में गिरतो हैं। उसो प्रकार सोआनस
जी अविसरियन के पहाड़ो प्रदेश मे आता है उस में गिरला
है । मंगास्थनाओज क। अनुझार प्रायः इन सब नदियों में नाव
चलता है | लब छइमस लागां को अविश्वास नहीं करना चाहिये
कि गड्ा शोर सित्ध इस्र तथा नाइल से कहों बड़ी हैं।
नमाइल म॑ काई नगद नहों गिरती वरत इस का ऊल नहरां
का! भरने के झखिये सोचा जाता है। इसछूर जड़ में बचत छाटो
नदी है। यदापि इस मे बज्षत सो नदियां गिरतों हैं लथायि न
ता थ॑ खिन्यु और गड़ग मे मिरनेवाला नदियों को संख्या
मज्लानता कर समकतो हैं और न थे उन के समान नौका हो
बलाल सोग्य ऐए-- कंबल दो एक हैं, यथा इत्र और संव जिन मे
का चल सकती है ओर जिरझे मं ने स्वयम टेखा है। जहां
जोरिकल रकेटियम के साथ आरीे / बठते है वच्टों इन्च इस्टर में
गिरती है। शोर सव परकंनियन के राज्य हें टासनम के
अभा+

४ थे “कल अकसर जब 2 हद कम ीक कप के हब लक प5 वि क अीररनक० न ५ चतिनणक फज न.783 बाज ह0 4१4 4 ९०५७७ 3७५ 8337/ 33०००३०००७५-३४- #०+५२०५५
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+है. ४ 2०+-कल) कपतैत-+न कैनकनतीककी६४०५ फ७3४:८०-&बैडकब(लक,

परनस--सम्भवतः आधुनिक बुरिन्द ।


सपनस-- सम्भवतः आअब्बसिन ।
सोआनस--संस्कुत शुवन आधुनिक स्थान। अविस्मरोयन,
जिस के देश से हो कर यह आतो है वह्च संस्त का अभिसार
हू सकता है। एरियन ने अपने ग्रन्य में अविसरेस राजा का
वन किया है । ग्रोक लोगों नेजो राजाओं के नाम दिये हैं
छन में लथा जातियों के नाम बहुत कमर अन्तर है ।
मै: यद्नम--आपधु निक सेसलिन !
[| १४६
निकट गिरतो है। कुछ और नीका चलाने योग्य नदियां इस्सर
में गिरतो होंगो जो दूसरों को ज्ञात हो पर उन. को संख्या
अधिक नहों हो सकतो |

( ५ ) यदि कोई भारतवर्ष को नदियों के वेपुल्थ एवम


विथालता का कारण बतलाना चाहे तो कह । में इस विषय में
अन्य विषयों के &#सम्रान जो कुछ सुना है लिख चुका हां।
मेगास्थनोज़ ने सिन्धु ओर गड़गप सेआगे को अन्य नदियों का
नाम दिया है जो पृव महासमुद्र ओर दक्षिण महाससुद्र में
गिरतों हें ।सब मिला कर ४८ ऐसो नदियां होंगी जो जलयाचा
योग्य हैं ।पर मेगास्थ नोज़ ने भो भारत के अधिकांश प्रान्त
में नहों खमण किया था । तथापि फिलोप के पृत्न सिकन्दर के साथ
लो गये थे उन से उस ने अधिक टेखा था क्यकि वच्च कचता
है कि भारतवर्ष के सन से बड़ नरपति सण्डककोहस को राज-
सभा में तथा उस से भो बड़ राजा पोरस को राजसभा में वहच्
रहता था। वहों मैगास्थनोज कहता है कि भारतवासो न तो
टूसरे पर आक्रमण करते हैं और न टूसरे हो इस पर आक्रमण
करते हैं। क्योंकि मिय्देशों सेसोस्खिस एशिया का अधिकांश
विजय कर अपनो सेना के साथ यूरोप तक गया और फिर घर
लीट गया । और स्कोथियानिवासों इडान्यिरस ने स्क्रोधिया से

अपना विजयो सेंन्यवल मित्र केकिनारे तक ले गया ।और फिर


सेसिरसिस असोरिया को रानों नेभारत पर आक्रमण करने
की नेयारो को, पर इस के पूर्व हो वह मर गयो | शिकन्दर हो
एक विजेता हुआ जिस सकारत का विजय किया। बहुत सो
कथाए' प्रचलित हैं किसिकनूर के पच्चले डायोनिसस ने भारत
[ १४७ |
पर प्लाक़रम्ण किया था ओर भारतवासियों को दमन किया था।
पर हेगाक्तोज़ केविषय में कथा भो अधिक नहों है। बखो के
अझाक़रमण का नाइसा का नगर साधारण स्मारक नहों है। प्ोर
सोरस पव॑त दूसरा स्मारक उदाहरण है जहां इशकपेचा फलतो
है आर जहां भारतवासियों को प्रथा है कि डायोनिरुस के
बक्ानल लोगीं के समान बृटेदार कपड़ पहन कर ठोल भौर
भाल के साथ वे युद करने जाते हैं। हराक्तोज के स्मारक बहुत
कस हैं और इन को सत्यता में भो सन्दह है। यह कथन कि
हेराक्कीज़ अयोनस का पवत टुर्ग नहीं ले सका था जिसे सिक-
न्द्र्ने बलपव के हस्तगत कर लिया केवल सकोडन लोगों का
डोंग मालूम होता है, जिस प्रकार वे परपमोसस को काकेशस
कहते हैं, यद्यपि इस से ओर ककेशस से कोई सम्बन्ध नहीं है।
बहा डींग हांकने के लिये जब परपसोसदय के राज्य भें जब
एक बड़ी गुफा मिलो तब उन ने उसे प्रमोथियस # टाइटन की
गुफा ठहराया जिस में आग चुराने के लिये वह रूटकाया गया
था। फिर जब थे भारतजाति शिवई के देश में आये तब उन्हें
चमड़ा पहनते देख कर कह दिया किये हराक्तीज के अनु-
गामी जो पोछे छुट गये थे एन्‍्हों के वंशज हैं। सिबाई खाल
परिधान करने के अतिरिक्त एक छड़ी भो ले चलते हैं
झोर बलों को पोठ पर एक गदा का दाग देते हैं। इसे
मकोड़नों न हराक्कोज़ को गदा का स्मारक मान लिया।
यदि यह सब विश्वास भो कोई करे तब यह हेराक्तोज़ धोव
का नहों कोई टूसरा हो हराक्तोज़ होगा। चाह वह मिश्र का
कर 32 "नमकननम3ञक 3५935 व>१नक।७34५3. +>० अामाभ३-अऊ-
५३३; अ्कात <3.का०-५फका १७०५ फअ#-भ4००ब/३>+
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£ बेसान के निकट बड़ो २ गुफाए' हैं उन्हों में स कोई


छोगा।
[ शृष्ट८ध ।
हो अथवा टायर का हो, या किसो छत्तर देश का बड़ा राजा
होगा जो भारतवष से टूर नहीं है।
( ६ ) विषयान्तर लेकर तथा जिन लेखकों ने द्िफासिस के
आगे का उत्तान्त दिया है उन को प्रप्रमाणित करने के लिये
यड् कड्ा जा सकता है। सिकन्दर के साथ जो लेखक थे थे
एकदम अविश्वास योग्य नहों हैं जहां वेहिफासिस तक भारतवष
का विवरण देते हैं। उस के आगे हम लोगों को देश का यथाथ
झ्ान नहों है। निम्न तत्त सेगास्यनोंज सिलास नदो के विषय
ता है ।--इस का नाम सिलास है। ऊउसों नाम के कोल ये
निकल कर यह सोलियन लोगों के राज्य से हो कर बहलतो है।
इस जाति का नास उसो कोल तथा नर्दों वो नाप्मानसार पड़ा
है । इस नदो के जल में एक विशेषता है। इस में ऐसो कोई
तु नहों हैजिस से ये लीका चलाने को राह निरूपण करें।
टूस में काई पदटाथ महों उतराता न तंर सकता | सब चोज नचे
बढ जाती है। अतएवं प्रथ्वों भर में इस के जल के ऐसा कोई
पतला ओर सच्छ पदाय नहों है। अस्त ।भारतवष में वर्षा ग्रोक्म
भें छालो है विशपतः परफ्सोसस, इसोड्स और इमाओस पवत
एव ओर जा नदियां इन मे निकलतो हैंवे बड़ो और गदको
छुनी हैं। उसी ऋतु से भारत के सेदानों में सो वर्षा होती है
जिस से अधिकांश देश झलाएपरत हो जाता है। और वस्तृतः
सध्ययोष्य ४ सिकन्दश को झरना को बअकेासनस के किनाईं से
प्राज्ञ इट जाना पड़ा क्याक्षि इस के अल से निकटव्साी भर
गयी थो | तुलना दार्धी इन दालों से हम लोग यह अनुसान
कर ग्रकते हैंकि नादल नदी जो इसो प्रकार बड़तो है छस का
कारण यह है कि एथियोपिया के प्रवतां पर भोग्रोष्म में दर्षा
[ १४८ |]

झोली है भर छसो वर्षा के जल से उस के दोनों कूल प्लावित


छो जाते हैं ओर समस्त मिश्र मंबाठ आ जाता है। हम लोग
देखते हैं कि यह नदी अन्यो केसमान उसो ऋतु में गदला हो
कर बहतो है | यदि दिस के गलने से यह्ट बढ़तों तो ऐसा नहों
छोता ओर यदि इटेशिया से कड बहने के कारण ( जो गरमो
भर बहते हैं )इस का जल इस के सृहाने से हो कर चढ़ आता
है लव भी ऐसा नहों होता । छिम गल कर आना तो असम्भव
है, क्योंकि तोज्ा धूप रहने के कारण एथियोपिया के पर्वत पर
बर्फ जम नहों सकता, पर »रलवंप के समान वहां भो वष्टि
हो यह असब्भव नहों है, क्योंकि भारतवष अन्य विषयों में
एथियोपिया से भिज् नडों है।ऊसे एथियोपिया और मिश्र सें नाइल
में मगर ड्लोता है उमो प्रकार भारतवष को नदियों में भो सगर
छोता है। आर जंगे इन से सकलियां सथा बड़े २ जन्तु हांते हैं
उपो प्रकार नाइल ह भो डरते हं। केवल हिपोपटेसस इन में
नहों हाता यद्यपि आन सिक्राइटस कहता है कि यह भो यहां
छाला हैं। भआार्लबध आर शाधियापिया के निवासियों के टांचे
में अधिक अब्सर नहों &। जो सारत के दक्षिण-पश्चिम भाग के
निवास! हैंउन से एथियोप लोगों सअधिक समानता है, क्योंकि
बे कशवण ओर काले बाजवाले होते हैं तथापि छन को
नासिका चिएटो नह्तों छातो, न छन के बाल हो होते हैं। और
ली भारतवासो उत्तर स्ाग मं रचहुत हैं व॑ मिश्र देशवासियों को
झाऊति
के हाते # |

( ७ ) मेगास्थनोज़ कद्दता है कि भारत को जातियां संख्या


में ११८। हैं [ मं उस के साथ इस बात में सचसत हूंकि उन
को संख्या अधिक होगो। परन्तु जब वह इस प्रकार निश्चित
[ १४० ]
संख्या बतलाता उ तब में नहों सम सकता कि वह्ठ किस
प्रकार इस जान सका; क्योंकि भारत के अधिकांश भाग में वष्द
कभो नहीं गया और वहां को सब जातियां एक दूसरे के साथ
सम्बन्ध नहों रखतों ।) इस के अतिरिक्त वह्ट कहता है कि
भारतवासो प्राचोन समय में स्कोदिया के उन लोगों के
समान भ्रम्मण करनेवाले मनुष्य थे, जो कृषि नहों करते थे, जो
अपनो गाड़ियों मेंऋतुपरिवतंन के अनुसार स्कीदिया के एफ
भाग से दूसरे भाग सें घूमा करते थे ओर जो न नगरों में निवास
करते थे झोर न मन्दिरों में देवाचा करते थे । भारतवासियों को
भो न नगर थे न सन्दिर थे। वे ऐसे असभ्य थे कि वे ऐसे जन्तुओओं
को चम परिधान करते थे, जिन्हे वे मार सकते थे और दत्तों का
काल भोजन करते थे। भारतोय भाषा मे इन ठक्नों को 'टल'
कहते हैं ओर तार के द्वक्तों के सम्नान उन के गंदे को नांई इन
पर भो फल लगता है ।और कम से कम डायोनोसस के आने
के पहले वे जिन बनले पशुद्यों कोपक पातें थ उन का मांस
कच्चे हो खाया करते थे। जब डायोनिसस आया और उन पर
विजय प्राप्त को तब उस ने नगरों को बसाया, उन नगरों में
नियम का प्रचार किया, भारतवासियों में सद्य का व्यवहार
आरम्भ कराया जेसा ग्रोक लोगों में कराया था, और उन्हें भूमि
बोने सिखलाया और खयम्‌ इस काय के लिये बोज उस ने
दिया। सम्भवतः द्विपटालेमस जब डिम्ोटर द्वारा समस्त एथ्वो
को बोने के लिये भेजा गया था तब इन प्रान्तों में नहों आया
था; भ्रधवा यह कोई डायोनोसस होगा जिस ने टिप्रटालेमस के
अने के पहले आकर भारतवासियों को कृषि योग्य उद्धिदों के
बोज को दिया होगा। यह भो कहा जाता है कि डायोनिसस
[| १५४१ ै
में पहले पहल बेलों सेहइल चलाया था ओर बहुत से भ्रमण
करनेवाले भारतवासियों को किसान बनाया था और कृषि के
यंत्रों कोउन्हें दिया। भारतवासो अन्य देवताओं को उपासना
करते हैं ओर विशेष कर मरांक और रूदड़' केसाथ डायोनोसस

नाचना भो सिखलाया था, ओर उसने भारतवासियों को लम्बा


आल रखने ओर पगड़ो पहनने सिखलाया। झऔर उस ने उन्हें
मनैलमदन करने बताया । सिकन्दर के समय तक भारतवासो
कांक और रूदड़' हो द्वारा युद्र के लिये सह्जित किये
जाते थे।
( ८ ) जब वह भारतवर्ष में नुतन संस्थाएं स्थापित करके
जाने लगा तब, कहा जाता है कि उस ने अपने एक साथो स्पटेम्बस
को जो बंकस के विषयों मे पूर्णतः अभिन्न था देश का राजा
नियत कर गया | जब ग्यटेस्बस को खत्यु हुई तब उस का पुत्र
बूडियस राजा हुआ । पिता का राज्य ५२ वर्ष तक हुआ और
पुत्र का २० वष तक | उस के बाद बृूडियस के पुत्र क्रेंडियुस को
राज्य हुआ ओर तदनन्तर राज्य का अधिकार वंशानुक्रम से
लोगों को प्राप्त होने लगा, परन्तु जब राजबंश में कोई नहीं
रहा तब भारतवासियों ने योग्यता देखकर राजा निर्वाचित
किया। हेरक्नोज़ जोइस समय समझता जाता है कि सस देश
में विदेशो बनकर गया था, वह्ठ वास्तव में भारत ही का
निवासो था। हेरेक्नोज़ को विशेष प्रतिष्ठा शोौरघेनी लोग करते
हैं, जिन्हें मेधोर भर क्लसोबोरा दो बढ़े नगर हैं शरीर जिन के
देश स हो कर जलयात्रा योग्य जो बारस नामक नदी
बचहतो है। मेगास्थनोज कहता है भौर इसे भारतवासी भी मानते
हैं कि हेराक्तोज़ जोभूषण धारण करता था वह थोबस के हेरा-
क्ोज़ से मिलता था | यह भो कहा जाता है कि उसे भारतवर्ष
में बचत से पुत्र उत्पन्न हुए थे ( क्योकि थधोवस के हइेराक्ताज़ के
सम्तान उस को अनेक स्थियां थों ) पर उसे धक हो कन्या थो ।
इस सन्‍्तान का नाम परणि्डया था ओर जिस देश भें उम्र का
जन्म हआ था और जिस के शासन का मार उस को मिला था वष्ध
उसी के नाम के अनुसार पण्खिया कचद्चनाता था। उस के पिता
से उसे ५०० हस्त, चार सहस्द अश्शेना ओर १३०,००० पद-
चर सेना मिलो थो । कुछ सारल कहते ं जि जब हब्क्कोजञ
संसार भर श्रस्ण कर के एप्वों आर समुद्ध के दुष्ट जन्चुआ को
नष्ट कर रहा था उस समय उसे समुद्र मभें। एक झूुपण
मिला । इसे आज भो भारताय वणिक जी अपनो बलुए' इसारे
यहां ले आते हैं, बढ़ चाव से क्रव कर के दूसरे देशां मे ले जाते
हैं आर जिसे दून चाव ये आधुनिक घनिक रोसन लाग लेतें है
आर जिसे पहले सम्पत्ति शालो ग्रोक लोग लेते धथ। इस
का नाम समुद्र का मोतों है, जिसे भारताय भाषा भें सर-
गरित कहते हैं। इस को शांभा भूपणाोपयागां ससक कर
हरक्कीज़ ने अपनों पुत्री को आभूषित करने के लिये रूब ससुद्रीं
से भारतवष में मोतो मंगाया ।
मेगास्थतोज़ कच्दता है कि जिस सोध & यह सोली निक-
लता है वच्द जाल से बक्काया जाता है। इन प्रदेशा में सोप सध
मखणखियों के समान भुण्ड के कुण्ड समुद्र में गहतो हैं। मधघ॒सक्खियों
के समान इनन्‍ह भो राजा या रानो होते हैं| यदि भाग्य से कोई
दून के राजा या रानो को पकड पाला है तो अन्य सन्न सहज
हो में बक जाते हैं । मकुये इस के मांस को सड़ा देते हैं और
इुडडो रखते हैं जिन के गइने बनते हैं। भारतवर्ष में मोतो का
[ शृ४३ )।
दास उतने छो स्वच्छ सोने के तिगुना होता है। सोना भो
भारत का खानों स निकलता है।

( ८ ) जिस प्रान्त में हरेक्नीज़ को दुहिता राज्य करतो थो


वहां ऋहले हैंकि खियां सात हो वष में विवाह योग्य हो जातो
हैं और सनुष्य अधिक से अधिक चालोस वष तक जोते हैं।
भारतवासियों में इस विषय में एक कथा प्रचलित है कि
करक़ोज को पुत्री उस के जोवन के अन्तभाग में उत्पन्न हुई थो ।
जब उस ने देखा कि उस को झत्य निकट है और उस का
ससकस कोई नहों है जिसे वच् अपनो दछ्िता को प्रदान करे;
लब उस ने स्रथम्‌ अपनो सात वष को पत्रों से प्रसड़ा किया,
जिस में उन से उत्पन्न राजवंश भारत में राज्य कर सके | इस
प्रकार पव्क्ीज ने अपनो पुत्दो को विवाहुयोग्य बना दिया
ओर इसो कारण उस समस्त जाति को, जिस पर पण्डिया का
राज्य था, यह अधिदार उस के पिता से प्राप्त हुआ | मुझ को
यह्ु ज्ञात होता ह कि यदि हक्क्नलोज यह कर सकता तो वह
झपनी आयु भो बढ़ा सकता था जिस में अपनो पुत्रो के सयाने
छहोनें पर उस से सम्भोग करता | परन्तु यदि यह्ु सत्य है कि
वहां खियां इसो अवस्या में विवाह्ष योग्य हो जातो हैं तो मनुष्या
को आयु के विषय में जो कडद्ा गया है कि उन में सब से
दोधांयु चालोस को अवस्था तक जोते हैं, यह भो उस के
घनुकूल हो जान पड़ता है। क्योंकि जी मनुष्य इतना शांघ्र बूढ़े
धिशंशा

उतने हो शोपघ्र होते होंगे जितने शोप्र वे मरते है। इस से


विदित होता है कि तोस वर्ष के मनुष्य अधबृढ़ होते होंगे, २०
को अवस्था में अतोत चौवन होते इंगि और १५ वज में पूर्ण
[| १५४४ )
युवा होते होंगे । इसो के अनुकूल खियां भो सात वर्ष को
अवस्था में विवाह योग्य हो जातो होंगो। और ऐसा क्यों न हो
क्योंकि मेगास्थनोज़ कहता है कि उस देश के फल भो अन्य देशों
को भ्रपेज्ञा गोप्रता थे पकते हैं और नष्ट होते हैं ।
डायोनिसस से सन्द्रकोट्टस तक भारतवासो १४३ राजाओं
को गणना करतें हैं ओर &०४२ वष का काल मानते हैं। परन्तु
इस बोच में लोन वार प्रजासक्तक राज्य स्थापित हुआ » : ४
और दुसरो वार ३०० वष के लिये ओर तौसरो बार १२० वर्ष
के लिये । वे यह भो कहते हैं किडायोनिसस हैरेक्तोज़ से १५
पोढो पहले हुआ था हर उस के अतिरिक्त किसो ने भारत के
विरद आक्रमण नहों किया--कस्बोसस के पत्न काइरस ने भो
नडों किया | यद्यपि उस ने सस्‍्क्रीदियन लोगीं पर आक्ररुण किया
था ओर अन्धय प्रकार से भो अपने को एशिया का प्रोत्साहो
राजा सिद्ध किया था। पर सिकन्दर ने अवश्य युद्ध मेंजिस पर
आक्रमण किया उस्लो को पराभव किया। और समस्त संसार
की पराजित कर लेता यदि उस को सेना उस का अनुसरन
करने पर उद्यत हॉतो। और वे यह भो कहते हैं कि
भारतोय राजाओं ने व्यायट्रश्ट से सारतवप को सोमा के बाहर
कभो विजय करने का उद्योग नहों किया ।
( १० )और कहा जाता कि भसारतवासो झत लोगीं का
स्मारक नहीं बनाते ओर झरमसकते हैं कि जिन गुणों को उन
लोगों ने अपने जोवनकाल में प्रदशिन किया और जिन कवि-
ताओं में उनका यश वरणित है वेह्ी उन को स्मृति जोवन्त रखने
के लिये अलम होंगे। कच्चा जाता है कि उन के नगर इतने
अधिक हैं कि उन को संख्या निश्चित रूप से नहों कहो जा
[ १४४ |
सकती । जो नगर नदियों के अथवा समुद्र के किनागे बसे हैं
दे काट्टनिभित हैं क्योंकि यदि वे ईंट वी बनते तो अधिक
दिन तक नहीं ठद्दते--इतनो घोर वर्षा वहां को होतो है
झोर इतनी हानिकारक नदियां वहां को होतो हैं जो बढ़ कर
उपकछ की प्लावित कर देती हैं। ऊचे स्थलों पर ईंट और सिट्टो
के नगर बनते हैं । भारत का सब से बड़ा नगर पालोबोधा है
जी प्रसियन # लीगों के राज्य में है। वह्ो गड़एना और एरानो
बीमस मिलतो हैं, गंगा सब नदियां मे बड़ो हैं ओर एरानों
बोगअ्स छतोय बड़ो नदो है। यद्यपि अन्य देशों को बड़ी से बड़ो
नदियों सेभो बड़ो है पर यह गएड्ढा में छोटो है, जिस में
गिरतो है | इस नगर के विषय में मेगास्थनोज कहछला है कि इस
को बस्तो दोनों ओर अस्सी रू डियम तक विस्टत थो और इस
को चोहाई १५४५ सर डियम थो । इस के चतु्दिक एक खाई
थी, जो कः प्रथा चौड़ो ओर ३० हाथ गछहरों धो। दोवाल
के ऊपर ४७० टुग ओर ६४ दार थे (*। वहों लेखक
यह भो विशेष बाल कच्ला है कि मारतवासो सस्नो स्वतंच रे
ता 7 ७४-- -ा हंवपाजणातानशी हब ऑषलण
50२

४ प्रस््यन--इस विपय में पहले कहा जा चुका है कि


है १ के

सम्भवतः यह प्रात शब्ट्‌ का अपस्वेश है। पर कनिज्गइम का


मत है कि यह पलाश” अथवा 'पराश शब्द से निकला जो
मसगध का नासानन्‍्तर है, क्योंकि वहां पलास के धक्त बहुत
होते हैं। क्‍
(4 पलोबोधा--जिसे बोलचाल को भाषा में पालोपुत्र और
साधु भाषा में पाटलोपुत्र कइहते हैं । यह मगध की प्राचोन राज-
घानो है, जोआज भो पटना के लिये प्रयुक्त होता है। इस का
अथ पाटलपुष्य का पुत्र है। क्ेचसमास नामक एक संस्कृत के
[ १६४६ ।

कोई किसो का दास ( गुलाम ) नहों है। इस विषय में लेको-


डिसोनियन भारतवासियों से मिरूते हैं । परन्तु लकोडिसोनियन
हेलेट लोगों का दास हो मानते हैं ओर उन से दास त्ति
कराते हैं, और भारतवासी विदेशोय के साथ भी दास के ऐसा
व्यवहार नहीं करते, अपने देशवासोी के साथ कहां तक करेंगे।
( ११) पुनः भारतवष में मनुष्य सात जातियों में विशक्त
हैं। इन में एक दाशनिक हैं जिन को संख्या अन्यान्यों को
अपेसला अधिक नहीं है पर ये प्रतछ्ठा ओर कक्षा में सब से छच्च
हैं, क्योंकि इन को कोई शारोरिक काय नहीं करना पड़ता, न
इन को अपनो कमाई में सेकुछ सावजनिक कोष में देना पहला
आर न ये राज्य को ओर से यज्ञ आदि करने के अतिरिक्त कोई
काय हो करने के लिये बाध्य हैं। यदि किसो साधारण व्यत्ति
को यज्ञ कराना होता है तो ये हो विधि बताते हैं सानों उन
के बिना इन का यज्ष देवता को स्थोकार हो नहों होता।
भारतवाधियों में इसो जालि में इश्वरविषयक ज्ञान प्रिप्तित है
७०० कल०>०न्‍ाअ०मनज 8820-: २
बम+>+ ५ लत» +क
मना फतन्‍कनक--3००+८ पटल 5 लक ना3०" रा] >> “जन “+ 4 ् तक, --ब्सकका-क ३ ७५५३४७७५३५५०-.५६०७५८५.३५७.७०५३०फ- ७५823०० सइन:पपनान्ाकवाक
सन.
अप गन,
उ्कछ ७ जनक 340: ॥84%

आधुनिक भूगोल में इस का नाम पालो भह आया है जो पाल!


बोधा से अधिक मिलता है । लंका के लेखों तथा गिरिनारवाले
आशोक के शिन्षालेख में पाटलोपतल शब्द व्यवचह्नत छुआ है
रामायण के अनुनार इस का सब से प्राचोन नाम कोशास्वी था
लो विश्वामित्र जो केपिता कुश के नास सं पष्ठा था। कवि
लोग इसे पुष्पपुर अथवा क्ुसुमपुर कहते थे। गड्जा-तटस्यथ पअऋन्य
नगरों से कम प्राचोन होने पर भो यह सब से अधिक विख्यात
हुआ । वायु पुराण के अनुसार उदय अथवा उदयाश्व ने इस
नगर को ईसा के ५१८ वष पुव॑बसाया [ २४ वर्ष निर्वाण के
बाद! ।
[ १४७ |
टूसरा कोई इस विद्या का अभ्यास करने नहों पाता ; ये वर्ष
को ऋतुआओं के विषय में तथा राज्य पर पानेवालो भापत्ति के
विषय में भविष्यदाणो कहते हैं, पर साधारण व्यक्षियों का
भविष्य कच्दने को परवा नहों करते; क्योंकि साधारण बातों से
सन को विद्या से कोई लगाव नहों रहता अथवा ऐसो बातों के
लिये कष्ट करना वे अयोग्य समझते हैं। पर यदि तोन वाश
किसो को भविष्यदाणो झसत्य हो जातो है उसे शेष जोवन भर
मोन रहना पड़ता है और पएथ्बो पर कोई शक्ति नहों, जो ऐसे
मनुष्य को बीलासके जिस मीन रहने का दण्ड़ मिला है। ये ऋषि
लोग नग्न फिरते हैं। जाड़ में ये धृपष खाने के लिये खुले
मंदान में रहते हैं और ग्रोषप्म में जब गरमो अधिक पहतो है
ये नांची भर में हक्षों केनोचे रहते है, जिन को छाया के
विषय में नियारकस कहता है कि पांच प्लथा गोल होतो है
आर जिन के नोचे दस सहस्त्र मनुष्य अट सकते हैं। ये फलाइार
करके रहते हैं जो प्रत्यक ऋतुप्नों मे होत हैं और काल भो
खात हैं--ये काल खजुर के फल से कम मोठा भोर गुणकारो
नहों इंते ।
इन के बाद दूसरों जाति किसानों को है जिम को संख्या सब
से अधिक है। न उन्हें अस्त्र अस्त्र मिलता है ओर न उन्हें युद्
हो में सखिथलित होना पड़ता है। वे भुम्ति जोतते हैं झौर कर
राजा तथा खाधोन नगरों को देत हैं। आपस के युद्ध मेंयोदाको का
किसानों को छेड़ने तथा उन को भुत्रि को नष्ट करने नहीं दिया
जाता । इसो प्रकार जब कि योद्दा लड़ते और मरते रहत हैं,
किसाम पास हो शान्तिपुवक अपना काय करते रहते हैं। कभो
छल चलाते, फसिल काटते चझथवा हक्षों को काटछांट कर
ठोक करते रहते हैं ।
[ १५४८ |
तोसरो जाति भारतवासियों को गड़रिये और बेल पोसने
वाले हैं। ये नगर या ग्राममों में नहों रहते, पर पवतों पर भ्रमण
करते हैं। इन्हें भीकर देना पड़ता है, जिन के बदले ये पशु देते
हैं| पक्तो तथा बन्यपशओं का पोकछा करने भें ये सारा देश घूम
आते हैं।
( १२ ) चतुध जाति शिल्पकार तथा छोटे वर्णिकों को है ।
इन्हें बिना पुरस्कार के कई सावजनिक काय करना पड़ता है
ओर अपनो बनाई हुई वस््रों में सेकर देना पडता है। अस्त-
कारों को यह क्षमा है--इतना हो नहों, उन्हें राज्य से पुरस्कार
भो सिलता है। इसो जाति के अन्तगत जहाज बनानेवाले और
नदियों में नोका चलानेवाले नाविक हैं । क्‍
भारतवासियों में पांचवों जाति योद्याओं को है जिन को
संख्या किसानों केबाद सब से अधिक है, पर ये अत्यन्त सच्छन्द
ओर सुखमय जीवन व्यतीत करतें हैं। इन्हें केवल सेना सम्बन्धी
कार्य करना पड़ता है। दूसरे लोग उन के शस्त्र बनाते हैं; दूसरे
लोग उन्हें घोड़े देते हैं और दूसरे हो लोग शिविरों भें उन को
सेवा करते हैं, घोड़ों को देखते हैं, उन के शस्त्र साफ करते हैं,
ऋछाधो हांकते हैं, रथ सज्जित करते हैं ओर सारथो का काम करते
हैं। जब तक युद्ध करने को आवश्यकता होतो है लब तक वे
युद्ध करते हैं ओर जब शान्ति स्थापित हो जातो है तब वे
सुखोपभोग करने में निमग्न हो जाते हैं। उन्हें इतना अधिक
राज्य से वेतन मिलता है कि वे सुख्पूवक अपना तथा दूसरों
का भो निर्वाह कर सकते हुं ।
छठों जाति निरोच्षकों को है। वे देखते रहते हैं कि देश
अथवा नगरों में क्या होता जाता है ओर सब कुछ राजा के प्रति
[ ९१४८ ]
निवेदन करते हैं--यदि देश में राजा रहता है; भौर जहां प्रजा
सत्तक राज्य है वहां राज्यशासकों से निदेदन करते हैं। मिथ्या-
कथन इन को प्रथा के विरुद्ध है--सचमुच भारतवासो पर भकुठ
बोलने का दोष आरोपण नहों होता ।
सातवों जाति राज्य के मन्त्रकारों को है, जो राजा' को
अथवा स्वतन्त्र नगरों में शासकी को सावजनिक कार्यों के प्रबन्धमें
मंदरणा देते हैं। संख्या में यह जाति छोटो है पर अधिक बुद्धिमत्ता
आर न्यायथपरता के लिये यह प्रसिद्ध है। इस से इस को अधि-
कार है कि प्रधान शासक, प्रादेशिक, उपप्रादेशिक, कोषाध्यक्ष,
स्लेनानायक, नो मेनानायथक निरोक्षक, क्षिविभाग के निरोक्षक
अादि को चुन सके ।
इस देश को प्रथा से अन्य जाति में विवाह करना वजित
है--यथा किसान शिल्यकार जाति को स्तो से विवाह नहों कर
सकता, न शिल्पकार किसान जाति को स्लो से सम्बन्ध कर
सकता है | प्रथा के अनुसार दो प्रकार का व्यवसाय करना ओर
जालि का बदल्लनना निषिडद है। यथा गड़रिया किसान नहीं
हो सकता था शिव्पकर गड़ेरिया नहों हो सकता। केवल
दाशनिक किसो जाति का मनुष्य डो सकता है, क्योंकि दा्शनिक
का जोवन सहज नहों है, वरन सब स कठिन है|
(१३) भारतवासी सब जंगलो जन्तुओं का उसो प्रकार आरखेट
करते हैं, जिस प्रकार ग्रोस निवासो; परन्तु हाथो के आखेट
करने का प्रकार विचित्र है क्योंकि ये जन्तु अन्य पशुओं के
समान नहों होते | इस का धत्त निम्न है--आखेट करनेवाले
सूखो समतल भूमि चुन कर उस के चारो ओर गठढ़ा खोदते हैं
जिस के बोच भें बड़ो सेना अंट सके । यह गठ़ा पांच पोरसा
![ १६० |
घोड़ा ओर चार पोरसा गहरा डोता है। गठा खोदने से जो
मिट्ठटो मिकलतो है उसे गठ के दोनों ओर टेर लगा देते हैं ओर
दोवाल का काम इस से लेते हैं। गठ़े के बाइरवाले दोवाल को
खोद कर वे अपने लिये क्वीठरो बनाते हैं। इस में प्रकाश आने
के लिये और हाथियों को निकट आते ओर भोतर घुसते हुए
देखने के लिये वे छिटद्ध छोड़ देने हैं! लब वे तोन या चार
सिख्ाये हुए इधिनियां झो सोतर छोड देते हैं ओर भ्ोतर जाने
का केवल एक गास्ता पुल भे हा कर जाने का रहता है। इस
पुल को वे मिट्टो ओर परुआल से छिपा देते हैं, जिस में वे जन्तु
घोखा का सन्देदह्द न करें। आखेट करनेवाले तब सासने से इट
कर अपनी दोवाल को कोठ रियों में चले जाते हैं । हाथो सब बस्तो
के निकट दिन के समय नक्ठों जाते पर राल की वे सब स्थानों
में घूमते हैं भोर भुण्ड सुगड़ एक बड़ हाथो के पोछे २ चरने
मिकलते है, जिस प्रकार गोए सांढ़ के पोछे २ चलतो हैं ।
जेंसे हो वे गढ़ केनिकट पहुचत हैं श्रोर हृश्चिनियों के शब्द
सुनते हैं वेसे हो वे पृण वेग से उस ओर दौड़ते हैं और गढ़ा
देख कर छठस को चारों ओर पृमते हैं ओर जब पुल मिलता
है तो उसो के दारा बलात्‌ भोतर चले जाते हैं। आखेट करने
वाले उन को भोतर जाते देख कर कुछ तो पुल चइटाने के लिये
दौड़ते हैं और कुछ ग्राम में समाचार पहुंचाने के लिये जाते
हैं। यह समाचार पाकर गांववाले सब से साहसो ओर शित्तित
हाथियों परचढ़ कर आते हैं। धर थे तुरत सुद्ध नहों करते,
कुछ ठररने के बाद जब ये भूख आर प्यास से व्याकुल हो जाते
हैं सोर जब वे समभत हैं कि ये पृण रूप से निवल हो गये तब
५,
| १६१ ।ै
उतर कर उन के पर बंडियों स जकड़ देते हैं। तब पोसुये
हाथियों को उन्हें मारने का इड़ित करते हैं जिस से वे भूमि
पर गिर पड़ते हैं। आखेटक जो निकटहो खड़ रहते हैं, उम

तभी उन पर आरोचह्रण करते हैं। और जिस में वे कोई हानि


नडों कर सकें या हिला कर गिरा न दें इस लिये एक तोक्षण
कुरो सेउन के गले को चारा आग काट कर गद्ा कर दिया
लाता है ओर छसो गठे में रस्सयो लगा दिया जाता है। इस
घाव के कारण वे झपनो गदन आर सिर सोधा रखते हैं। क्यों
कि यदि थे इसर उचर फिर ता रस्पो से छन के घाव में चोट
प्रस्चतोी है । इसलिय वे अ्रधिक नहीं इिलते और यह सममा कर
कि वे प्रराखत हुए हैं पासुए डायियों का अनुसरण करते हैं ।
लो बहुत बच ह।लते हैं था दुबल चने के कारण पोसने
योग्य नहीं होते छम्हं लोग भाग जाने देते हैं। जो रख लिये
जाते हैं उ््हें लोग ग्राम में ले जाते हैं आर उन्हें खाने को अन
क॑ हरो डंटो तथा घास देत हैं। इन जन्‍्तुशन्नों केबल का 'हास
हो जाने के कारण भोजन भष्छा नहों लगता, परन्तु भारत-
वास! इन को चारो ओर खड़ा चोकर टोल भोौर मान बजा कर
झोर गोत गाकर इन्हें शान्त ओर प्रसमश्न करना चाइते हैं। हाथो
सब जन्तुओं में अधिक चलुर होते हैं । कुछ हाथो अपने सवार के
युद्ध में मारे जाने पर उन अख्योष्टि क्रिया करने के लिये छठा
ले गये हैं, कुछ ने अपने सवार को भूमि पर देश्ष ढाल से छिपा
रखा है झोर कुछ हाथियों नेउन के गिर पड़ने पर युद्द में
चझघात सु कर बचाया है। एक हाथो ने क्रोध में अपने सवार
[ १६२ |
को मार डाला था पर उसे इतनों ब्लानि हुई कि उस ने प्राण
त्याग दिया। में ने स्ूयमू एक हाथो को काल बजाते देखा
है जब कि दूसरे हाथो उस के अनुसार नाचते थे। उस के झागे-
वाले दोनों पेरों में काल बांध दिया गया था झौर एक भ्राल
उस के सूढ़ भें भो। वच्दध उचित समय पर दोनों परों में सूड के
माल से मारता था जब तक नाघचनेवाले छाथियां गोलाकार हो
कर नाचते थे और पारो ये आगे वाले पर ठोक समय पर
सठा कर टेढा करते थेओर बजानेवाले हाथो का चनुसरण
करते ते ।
घोड़ और सांड़ के समाम हाथो बसन्त सें सड्गम करते हैं ।
उसो समय हथिनियां गण्ड्स्थक्ष केनोचे वाले छिट्र सेछो उस
समय खुल जाता है सांस छोड़तों है। कम से कस गे का समय
१६ माख और अधिक से अधिक १८ मास होता है। घोड़ो के
समान ये एक थी बच्चा जनतो हैं और आठ वर्ष तक दूध
पिलातो है। दोघणोवी इाधिया २०० वष जोते हैं पर उन में
बहुत से रुग्न छो कर अकाल हो मर जाते हैं। यदि वे बूढ़ हो
कर मरते हैं तो वे उक्त काल तक जोतें हैं। उन को आंख
के रोग गो के दूध लगाने से अच्छ होते हैं और अन्यरोग काला-
मठा पिलाने से । उन के घाव शूक्ररमांस उसिन कर छगाने से
अच्छ होते हैं। ये हो आपधि भारतवासो करते थे ।
पर भारतवासो व्याप्र को धो ये अधिक बलो समभते हैं ।
नियारकस कचता है कि उस ने व्याप्र काखाल टेखा था पर
ब्य!प्र नहों देखा । भारतवासियों ने उस से कहा कि व्याप्र
बड़ बड़े घोड़े के वराबर होते हैं परबल शोर फुतीं में इन
की कोई पशु समता नहों कर सकता। व्याप्त सेकलषव हाथो
[ १६३ |
का सामना होता है तम वह उस के सिर पर कूद कर चढ़
खाता है और सहज हो गला दवा कर मार डालता है। पर
जिन पशुआं को हमलोग व्याप्र कहते हैं वे केवल चिन्हयुत्षा
चमवाले झरगाल हैं जो साधारण झगालों से बह होते हैं। उुसो
प्रकार नियारकस चोंटियीं के विषय में लच्षलला है कि जिन के
विषय में दूसरे लेखशश लिख गये हैं उन्‍्हंं' उस ले सत्रयम कभो
नहों देखा है, पर भेकोडन लोगों के शिविर में छन की खाख
लाये गये थे जिल्‍्ह उस ने देखा 8 । पर भैेगारःनीछझा काछत! ऐै
कि चीटियों के विषय में जो कुक कहा गया है वच्ठ पूर्णलः सत्य
है । यह सत्य है कि वे सोना खोद कर निकालती है-- सोमा
के लिय नहों, पर अपने रहने के लिय भूमि में छिद्र बनाना
उन का स्वभाव है जिस प्रकार हमारे देश भें छोटो चोटियां
झपने लिय छोटे छिद्र बनातो हैं। केवल भाव्स को चोटियां जो
सलोमसछियों थे बड़ी होतो हैं वे अपने अनुकूल बड़े छिद्र बनाते
हैं। पर सूमि सवण से स्रा है जड्ां से भारतवासो सोना पाते
हैं। मेगास्थनोज कचछला है कि उस नें सनो हुई बात लिखी है
ओर मुझे कोई निश्चि बात ज्ञात नहों है अतएवं में चोंटो का
3७०5५

पर तीताओं के विषय में नियारकस कहता है कि वे एक


#

नये आशय की पत्तो हैं। वे भारत के जोव हैं ओर मनुष्य क्षे


ससान बोलते हैं। पर म॑ ने सयम्‌ अनेक तोताओं को देखा है
आर अन्य लोग को जानता हऋ जो उस से परिचित हैं इस से
छत थो विषय में कुछ नहों कहंगा। ओर न म॑ बनमनुष्य के
आकार झ्थवा सन्दरता के विष य म॑ कुछ कहंगा, जिस के लय
वे भारत मे प्रसिद हैं और न में यह कहंगा कि उनका
बाखेट किस प्रकार किया लाता है, क्योंकि यह सब झच्छो
सरह स ज्ञात है केबल यहो अज्ञात होगा कि वे सन्दर होते हैं।
सपों के विषय में भी लियारकस कश्ता है कि वे उस देश में
पकड़ जावे हैं वन्‍हयुत्न और फ़त्तिले होते हैं
जिनिस के पुत्र पोठढोी ने जिसे पकड़ा था वह १६ हाथ का था
शोर बड़ २ अजगर उस से भो बह होते हैं। पर पधभो तक
ग्रोस के वद्यों नेंभारतोय सप॑ के काटने को अौषधि कोई नहों
निकालो है यद्याप यद् निश्चित है क्षिभारतवासो सांप के याटे
मनुष्यां को अच्छा कर सकते हैं। शिकन्दर अपने निकट बहुल
भारतवासियां को जो इस विद्या में नियंग थ रखा था झोर
समस्स शिविर में कहला दिया था कि जिसे सांप काटे वहच्ध
उस के भिविर में झआवे। ये लोग प्रन्य रोग और कष्ट भो दूर
कर सकते थे , भारलवासियों को इनक प्रकार के रोग शोक
नहों ड्ोते जोकि उन के देश में ऋतुए छन के अनुकल न तो

ये उन कष्टों को दुर करते हैं जा ईशरो सद्ायता के बिना दुर


नहीों हो सकते | क्‍
१६ । नियारकस कच्षता है कि आगतवासी रूइ के कपड़
पहनते हैं । यह सड सन तज्ञ से उसपयर होते हैं जिन के विषय
में ऊपर कड्ा गया है। +६ रूई घन्य टेंश को सुई से अधिक
4४०५.
|

सच्छ होतो हैं अथवा धारतवासियां के छष्णवण होने से वे


अधिक खच्छ मालमस होते हैं। वे नोचे एक कपड़ा पहनते हैं
लो ठेहुना ओर घुट्टो केबोच तक लटकता रहता हैओर वे ऊपर
से एक कपड़ा पहनते हैं जिसे वेकम्ध पर डाल कर शसिर में
अंडर
४-७॥2फडकिनक"लता महा कट जन जन्‍-- ७४ ५लक हक - िननज--मत “कक चमक ।3०9०- न+सीकर कु*->कनपन्‍्ककमन-
728 काके.

# एरियन ने पहले कह्ों रुई के विषय भें नहीं कहा है


[ १६५४ ।
लपेट लेते हैं।* | भारतवासो ह्ाथोदांत को बालो पहनते हैं । पर
जो घनो हैं वे हो ऐसा करते हैं । नियारकस कच्ता है कि के
अपनो दाढ़ो अपनो रुचि के अनुसार रहुतें से रंगते ६ | कुछ
लोग अपनो शत दाढ़ोको झीर क्रो शत करने के खिये रंगते
हैं ओद कुछ लोग नोजा रंगते हैं; कुछ गुलाबी पसन्द करते
हैं कोई लाल भौर कोई चइरा | पसे सारतवासो जो गय्य मान्य
हैं वेघप से बचने के लिये कृत्र धारण करत हैं। वे उजले
चसड़ का जता पच्चनत हैं। ये बड़ी रुन्द्रता से बने रहते हैं
आर तल्ता भिन्न प्रकार का झर बहुत सोटा होता है जिस में
पहनने बाला बच्चत ऊंचा ज्ञात हो ।
में अब यह वन करता हु कि भारतवासो युद्ध किस
प्रकार करत हैं पर पहले हो कच्च देता हू कि यह्ो एक प्रकार
प्रचलित नहों है | पदालि एक घमृष ने चलता है जो लस्बाए
में उस के बराबर होला है| इसे दे श्रूमि पर रख कर बांश पर
से नवात हैं और जया स्वॉच कर लोग छोडत हैं। इन के तोर
सतर्र 22० कक७ भ००/४-भ कब कीतहै
कक) ७"५
फपफटल-4कक तरकलरा हनी (तरल शिं ध्लो बा ७००, ० ०2 ४: कमान+--
जापटना
कना१6काल4०१०५
ऋ४ /" न हट०४१९३३००३५५५४५०. कील+क ५;३८०४० ४९६५००९३७:

* कऋषणास मे कपड़ा बनाने को विद्या बहल प्राचॉोन समय


से भारतवासियों को ज्ञात है। ऋग्वेद में इस का वन आया
है | सिकनदर के साथ झाने वाले प्रोक लोगों के लिये यह एक
नया पदाथ था । उन्‍्हों नेलिखा ह॑ कि इडिन्ट्र लोग ऐसे ऊन
का कपड़ा पद्चदनत हैं जो छत्त पर होता है। वे लिखत हैं कि
भारतवासो एक कपड़ा ठेहना की नोचे तक्ष पइलनतें हैं और
टूछरा कन्ध में लपेट लेते हैं। अजन्त के गुफा में इस वेष के
चित्र हैं। आज़ के और ३००० वर्ष पहले के कपछ में यह्ो
अन्तर है कि अब घोतो कुछ बड़ो होतो
$ ऐसी प्रथा स्तर वो ने भो लखिखो है ।
[ १६६ ।
तोन गण से कुछ छोटे डोत ह्ोंगे। भारतवासो के तोर को कुछ
भो रोक महीं सकता-न ठाल न कोलस वबखतर न कोई दूसरा
पदाथ कमा हछ मजबूत क्यों न हो । बाएं चइ्ाथ में वे बल के
चसड़ का ढाल ले चलते हैं जो उतना चीड़ा तो नहों होता
जिलना व होते हैं पर उन के बराबर लंबा ड्ोता है! कुछ
लोगों केपास धनुष के बदले बरक्ती रहता है पर सभी को
सल्लवार रचहलो है जिस का फक्ष चोड़ा होता है पर यह
सोन ऋाध से अधिक लम्यो नहों छ्षोतो ।ओर छझब वे निकट
आ। कर संग्रास करत हैं (पर व ऐसा इच्छा से नह्ठों करते )
तब दोनों क्षाथ संसलवार चलाते हैं ज्षिस में चोट पूरो लगे।
अशारोहो को दो भाले होते हैं झोर पदाति से छोटा एक
ढाल होता है। पर घोड़ पर वे जिन नह्ों कसते आर न ग्रोक
ओर केल्टलोगों केसमान स॒ह मे लगाम देतें हैं पर वे घोड़ के
मुच को चारो झोर बल के चमड़ा बांचत हैं जिस में भोतर को
झोर लोहे या पोतल के कांटे करी रहठत हैं, पर ये बहुत चोणे
नहों होते। जो बहुत घनो होत हैं वे हाथो दांत के कांटे
व्यवध्ार में लाते है। घोट के सुख्त में एक लोहछ्ा रहता है
जिसमें लगाम शा रहता है। उब अध्दयारोह्दी लगाम खोंचते
हैं सब वजच्षो छोत्ा शोए को बड़ा में करता ह कोकि उस में
कांटे लगी रहते हैं जो गांश में गछुते है जिस ये छीड़ को खगास
के भमुसार चलना पछना है ।
( १७ )। भारतवासोी पतले और लब्ब होते हैं और अन्य
मनुष्यों सेकहो इलके होत ऐं । साधारण सरुपसे घटने के लिये
ऊंट, घोड़ और गधे होते है पर घनो लोग चध्ाथो पर चढ़पे
हैं। राणा भो हाथो छ्षो पर चदढते हैं। इस के बाद रथ का
[ १६७ |
प्रादर होता है, तत्‌ पध्ात ऊ'ट का और एक घोड से चलना
कोई गोरव को बाल नहों समको जातो। बिना दायज लिये या
दिये विवाच्त करते हैं। स्त्रियां जेसे छो विवाह योग्य हो जातो हैं
बेस छो सवसाधारण के सरमख लायो जाती है और जो कुश्तो
करने में, लड़ने में यादौड़ने मेंया ओर किसो शारोरिक
कसरत में जोतता है छस को दो जातो है। भारतवासो अन्न
खाकर जीते हैं चोर मृम्ति जोतते हैं पर पहद्षाड्रो लोग आखेट
कर के मांस खाले हुं।
भारतवासियों के विषय में इसना कह देना मेरे लिये अलख
है इस नियारकस और मेगास्थनोज दो पझ्ाध्य चरित्र के मनुष्यों
ने लिखा है, ओर मेरा तात्यय्थ भारतवासियों के खभाव एवल
प्रथा वशन करने का नह्ठों था, पर यह था कि सिकन्दर फारण
से हिन्द में किम प्रकार अपनों सेना ले गया अतएव यह
कथा मात्र समको जाय !
९ की की दी)की हीही पी है)60 788 है?है)४ है?हट ही! कैहै6 ह। हो है हह हो.हुँ है हीहेही गौ: सौ,कौ;हरेहै है हैहै:हर हीहर के£
४ +
५; बिक्री की पुस्तकें । क्‍
हि १ मेथिलको
किल विद्यापति *** न्न्ल १] ।
: २ सिकल गुरुओं की जीवनी * ५० **० ;
३ हिन्दी सिद्धान्त प्रकाश डे न है ः
४ गएप कस मावली हो का 202 ॥) ४

४ ५४ रसायन शास्त्र ((ठाहा।णए ) * *२० ॥#) ४


६ भधंशारत्र ([१0॥6०३] :एणाठा0) ४
| / ७ तकशारस्त्र ( |,0720 ) ३४० ९००

।€ ८ भारतयर्ष के इतिहास की समालोचन! ९९०


द ३ £ खगोलविशान ( सचिश्र )
है१० सृप्ट्रितत्व "फेक न ्ज
# ५ ११ बाबू रामदोन सिंह को जीवनों
क्‍५ १२ बाबू शाधाकृष्णदास की जीवनी 8५
$ १३ परिडुत यलदेय प्रसाद की जीवनी
क्‍ २ :४ पेडलर साहब की जीयनी ९ करे
$ १५ शी तारकेश्वर यशोगान ४ ८*-
।6
)9६ सिद्धनाथ कुसमा श्षल्ि «५० ;३६
अपराज़िता उपन्यास "२ द्
आरा पुरातत्व कल
कलवार की उत्पत्ति (समालोचना ) गो
राजेन्द्रमालती उपन्यास र हो
भुतप्रायश्चिस उपन्यास पर ५० *
विचित्रसंग्रह काव्य डे हे
मिलने का पता--
मन्त्री--नागरीप्रधारिणो सभा
शारा।

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