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UNIT-II

राग का समय स ांत


राग के समय स ांत का वणन सव थम नारद मु न ने अपने ारा र चत थ ं संगीत मकरंद म कया । भारतीय
संगीत क यह नजी वशेषता है क उसके रागो को गाने - बजाने का न त समय होता है।
येक राग न त समय पर गाने पर ही आन द दान करता है। चाहे अपवाद भले ही मले पर नयम यही रहा है ।
राग को समय क से नधा रत करने के लए न न ल खत स ात माने गए है।

1. वर संयोग समय नधारण - इस वग म राग म लगने वाले कोमल व शु वर के अनुसार राग का समय
नधारण कया जाता है । इनके तीन वग है।

(क) कोमल रे, ध वाले राग (ख) शु रे ध वाले राग (ग) कोमल ग न वाले राग

(क) कोमल रे, ध वाले राग: इस वग के राग - सुबह 4 से 7 बजे तक व शाम को 4 से 7 बजे तक गाये व
बजाये जाते ह । यह समय दन व रात का सं धकाल होता है । इस लए इस समय गाये जाने वाले राग को सं ध -
काश राग कहते है । सुबह के सं ध - काश राग म शु म यम लगता है, जैसे राग भैरव। सांयकाल के सं ध -
काश राग म ती म यम लगता है, जैसे- राग मारवा और पूव । इस वग के राग गोधू ल म हमारे मनोभाव क
अभ अपे ाकृ त अ धक भावपूण ढं ग से कर सकते है।

(ख) शु रे, ध वाले राग - यह सुबह- शाम 7 से 10 बजे तक गाया- बजाया जाता है । सुबह 7 से 10 बजे तक गाये
जाने वाले रग मे अ हया बलवाल आ द राग आते है। इनम शु रे, ध के साथ शु म यम लगता है तथा रात के 7
से 10 बजे तक के रागो म ती म यम लगता है जैसे - यमन और बहाग |

(ग). कोमल ग, नी वाले राग - शु रे, ध - इनका समय ातः 10 बजे से अपराहन 4 बजे तक होता है और
रा काल म भी 10 बजे से ातः 4 बजे तक होता है। इस वग म रागो क सं या अ धक है य क इस वग का
समय भी अ धक है । ये राग इस समय क मनोदशा क ब त सुंदर अ भ करते है। दन के राग म जौनपुरी,
तोड़ी आ द राग आते है और सायंकालीन राग म भैरवी, काफ आ द राग आते है।

2. म यम के योग से समय नधारण - राग के समय नधारण व व के नमाण म म यम (म) वर का


ब त मह व है यह स तक के म य का वर है । ातः कालीन रागो म शु म यम लगता है, जैसे भैरव राग और
रा कालीन रागो म ती म यम लगता है , जैसे- राग यमन ।

3. वाद - संवाद से समय नधारण - जन राग के वाद वर स तक के पूवाग म होते है उ ह पूवाग वाद राग
कहते है, तथा उनका गायन समय पूवाध अथात दन के 12 बजे से 12 बजे तक होता है। जन राग का वाद वर
स तक के उ रांग म होता है, उनका गायन समय दन का उ राध होता है । उ राध रा के 12 बजे से दन के 12
बजे तक होता है ।
4. पूवाग और उ रांग बल राग - जन राग का पूव अंग बल है या जो स तक के पूव अंग म यादा गाये
जाते है । ये दन के पूवाध म गाये - बजाये जाते है। जन राग का उ रांग यादा बल होता है, वे दन के उ राध म
गाए जाते ह । पूवाग बल राग भीमपलासी, के दार और उ रांग बल राग जौनपूरी, बसंत आ द ।

5. ऋतु के अनुसार समय नधारण - कु छ राग व श ऋतु म गाने से अ यंत आनंद दान करते है ।
ऋतुकालीन राग होने के कारण इ ह 24 घ टे गाया बजाया जा सकता है, जैसे बसंत ऋतु म बसंत राग और वषा
ऋतु म मेघराग । इन राग के वर च स हत भी मलते है । इसका धान कारण यह है क इन राग क कृ त
गायन व श द च म ब त समानता होती है ।

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