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सुप्रभात मित्रों ... ॐ नमः शिवाय !

आज का दिन आपके लिए मंगलमय हो।


यम दीप दान
किसी समय एक राजा हुए थे - हिम।
उनके यहां एक पुत्र हुआ, तो उसकी जन्म कुं डली बनाई गई।
ज्योतिषियों ने कहा कि राजकु मार अपने विवाह के चौथे दिन सर्पदंश मर जाएगा।
इस बात से राजा चिंतित रहने लगे।
जब राजकु मार की उम्र 16 साल की हुई, तो उसका विवाह एक सुंदर, सुशील और समझदार राजकु मारी से कर दिया गया।
राजकु मारी माँ लक्ष्मी की बड़ी भक्त थीं।
राजकु मारी को भी अपने पति पर आने वाली विपत्ति के विषय मे पता चल गया।
राजकु मारी काफी दृढ़ इच्छाशक्ति वाली थीं।
उसने चौथे दिन की प्रतीक्षा पूरी तैयारी के साथ की।
जिस मार्ग से सांप के आने की आशंका थी, वहां सोने-चांदी के सिक्के और हीरे-जवाहरात आदि बिछा दिए गए।
पूरे घर को रोशनी से जगमगा दिया गया।
कोई भी कोना खाली नहीं छोड़ा गया अर्थात सांप के आने के लिए कमरे मे कोई रास्ता अंधेरा नहीं छोड़ा गया।
राजकु मारी ने अपने पति को जगाये रखने के लिए उसे पहले कोई कहानी सुनाई और फिर गीत गाने लगी।
इसी दौरान जब मृत्यु के देवता यमराज ने सर्प का रूप धारण करके कमरे मे प्रवेश करने का प्रयास किया तो रोशनी की वजह से उनकी आंखें
चुंधिया गईं।
इस कारण सर्प दूसरा रास्ता खोजने लगा और रेंगते हुए उस जगह पहुंच गया, जहां सोने तथा चांदी के सिक्के रखे हुए थे।
डसने का मौका न मिलता देख, विषधर भी वहीं कुं डली लगाकर बैठ गया और राजकु मारी के गाने सुनने लगा।
इसी बीच सुबह हो गई।
मृत्यु का समय बीत जाने के कारण यम देवता वापस जा चुके थे।
इस प्रकार राजकु मारी ने अपनी पति को मृत्यु के मुख मे पहुंचने से पहले ही छु ड़ा लिया।
यह घटना जिस दिन घटी थी, वह "धनतेरस" का दिन था,
इसलिए इस दिन को ‘यम दीपदान दिवस’ भी कहते हैं।
भक्तजन इसी कारण धनतेरस की पूरी रात रोशनी करते हैं।
धनत्रयोदशी को यम के निमित्त दीपदान करना उत्तम होता है।
स्कन्द पुराण के अनुसार कार्तिक कृ ष्ण त्रयोदशी को घर से बाहर प्रदोष के समय यम के निमित्त दीपदान करने से अकालमृत्यु का भय दूर
होता है।
यम दीपदान प्रदोषकाल मे ही करना श्रेष्ठ है।
जब दिन और रात के मिलन का समय होता है ...
उसे प्रदोषकाल कहते हैं।
मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें ।
तदुपरान्त स्वच्छ रुई से दो लम्बी बत्तियाँ बना लें ।
उन्हें दीपक मे एक दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियोँ के चार मुँह दिखाई दें।
दीपक को तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कु छ काले तिल भी डाल दें ।
दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें।
उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है।
दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर , इस मन्त्र का उच्चारण करते हुए चौ मुंहे दीपक को खील आदि
की ढेरी के ऊपर रख दें -

“ मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह


त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति !
अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों।
!! ॐ सुरभ्यै नमः !!

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