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Study For Civil Services RO ARO 2022-23 SCSGYAN PAID MODULE @studyforcivilservices

HINDI MEDIUM - UPPSC RO ARO 2022 MODULE DAY- 95 BY SCSGYAN


Note:- इस Module पर आधाररत Most Important Top 25 Questions PAID QUIZ में Daily करवाए जा रहे हैं
उनको जरूर Follow करते रहहए (PAID QUIZ के सारे Questions को जरूर से जरूर लगाइए और लगातार PAID
QUIZ के सभी Questios, Important Pics, Voice Lectures और Important Updates/Latest Trends, Pattern
जरूर Follow करते रहहए)। अगर आपने PAID QUIZ को अच्छे से Follow कर हलया तो आराम से Selection हो
सकता है। PAID QUIZ को हकसी भी हालत में IGNORE न करें । Module पर आधाररत Questions के अलावा भी
परीक्षा संबंधी अहत संभाहवत प्रश्न कराए जाते हैं ।

हवज्ञान (जीव हवज्ञान)

महत्वपूर्ण वनलाइनर तथ्य (पार्ण - 2)

हवरं चक चूर्ण का उपयोगः -

➢ वस्त्र उद्योग में सूती एवं लिनेन के लवरं जन के लिए कागज़ की फैक्ट्र ी में िकडी के मज्जा एवं िाउं ड्री में साफ़ कपडों के
लवरं जन के लिए
➢ कई रासायलनक उद्योगों में एक उपचायक के रूप में , एवं
➢ पीने वािे जि को जीवाणुओं से मुक्त करने के लिए।

बेहकंग सोडा का उपयोग:-

➢ बेलकंग पाउड्र बनाने में , जो बेलकंग सोड्ा (सोलड्यम हाइड्रोजनकाबोनेट) एवं टाटट ररक अम्ल जैसा एक मंद खाद्य अम्ल का
लमश्रण है ।
➢ सोलड्यम हाइड्रोजनकाबोनेट भी ऐन्टै लसड् का एक संघटक है । क्षारीय होने के कारण यह पेट में अम्ल की अलिकता को
उदासीन करके राहत पहुँ चाता है ।
➢ इसका उपयोग सोड्ा-अम्ल अलिशामक में भी लकया जाता है ।

धोने के सोडे के उपयोग:-

➢ सोलड्यम काबोनेट का उपयोग काुँ च, साबुन एवं कागज़ उद्योगों में होता है ।
➢ इसका उपयोग बोरे क्स जैसे सोलड्यम यौलगक के उत्पादन में होता है ।
➢ सोलड्यम काबोनेट का उपयोग घरों में साफ़-सफाई के लिए होता है ।
➢ जि की स्थायी कठोरता को हटाने के लिए इसका उपयोग होता है । SCSGYAN
• ऐक्वा रे लजया – Aqua regia (रॉयि जि का िैलटन शब्द) 3:1 के अनुपात में सां द्र हाइड्रोक्लोररक अम्ल एवं सां द्र नाइलटर क
अम्ल का ताज़ा लमश्रण होता है । यह गोल्ड को गिा सकता है जबलक दोनों में से लकसी अम्ल में अकेिे यह क्षमता नहीं होती
है । ऐक्वा रे लजया भभकता द्रव होने के साथ प्रबि संक्षारक है । यह उन अलभकमटकों में से एक है जो गोल्ड एवं प्लैलटनम को
गिाने में समथट होता है ।
• गोल्ड (सोना), लसल्वर (चाुँ दी), प्लैलटनम एवं कॉपर (ताुँ बा) स्वतंत्र अवस्था में पाए जाते हैं । कॉपर एवं लसल्वर, अपने सल्फाइड्
या ऑक्साइड् के अयस्क के रूप में संयुक्त अवस्था में भी पाए जाते हैं ।
• सलियता श्रेणी के मध्य में स्थस्थत िातुएुँ; जैसे-आयरन, लजंक, िेड्, कॉपर की अलभलियाशीिता मध्यम होती है । प्रकृलत में यह
प्रायः सल्फाइड् या काबोनेट के रूप में पाई जाती हैं ।
• अत्यलिक अलभलियाशीि िातुएुँ: जैसे-सोलड्यम, कैस्थियम, ऐिुलमलनयम आलद को अपचायक के रूप में उपयोग लकया जा
सकता है क्ोंलक ये लनम्न अलभलियाशीिता वािे िातु ओं को उनके यौलगकों से लवस्थालपत कर सकते हैं ।
• शुद्ध सोने को 24 कैरट कहते हैं तथा यह काफ़ी नमट होता है । इसलिए आभूषण बनाने के लिए यह उपयुक्त नहीं होता है ।
इसे कठोर बनाने के लिए इसमे चाुँ दी या ताुँ बा लमिाया जाता है । भारत में अलिकां शतः आभूषण बनाने के लिए 22 कैरट
सोने का उपयोग होता है । इसका तात्पयट यह है लक 22 भाग शुद्ध सोने में 2 भाग ताुँ बा या चाुँ दी का लमिाया जाना।

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• सीसा एवं लटन (Pb एवं Sn) की लमश्रातु सोल्डर है लजसका गिनां क बहत कम होता है । इसका उपयोग लवद् युत तारों की
परस्पर वेस्थल्डंग के लिए लकया जाता है । SCSGYAN - For Paid Group Call /WhatsApp 7523864455 or
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• एथेनॉइक अम्ल के गुणिमट- एथेनॉइक अम्ल को सामान्यतः ऐसीलटक अम्ल कहा जाता है तथा यह काबोस्थक्सलिक अम्ल
समूह से संबंलित है । ऐसीलटक अम्ल के 3-4% लवियन को लसरका कहा जाता है एवं इसे अचार में परररक्षक के रूप में
इस्तेमाि लकया जाता है । शुद्ध एथनॉइक अम्ल का गिनां क 290 K होता है और इसलिए ठं ड्ी जिवायु में शीत के लदनों में
यह जम जाता है । इस कारण इसे ग्लैशि ऐसीलटक अम्ल कहते हैं । काबोस्थक्सलिक अम्ल कहा जाने वािा काबटलनक यौलगकों
के समूह का अलभिक्षण इसकी अम्लीयता होती है । हािाुँ लक खलनज अम्लों के लवपरीत काबोस्थक्सलिक अम्ल दु बटि अम्ल होते
हैं । खलनज अम्ल जैसे हाइड्रोक्लोररक अम्ल, पूरी तरह आयनीकृत हो जाते हैं ।
• साबुन के अणु िंबी श्रृंखिा वािे काबोस्थक्सलिक अम्लों के सोलड्यम एवं पोटै लशयम िवण होते हैं ।
• काबटन एक सवटतोमुखी तत्व है जो सभी जीवों एवं हमारे उपयोग में आने वािी वस्तुओं का आिार है ।
• काबटन अपने या दू सरे तत्वों; जैसे-हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, सल्फर, नाइटर ोजन एवं क्लोरीन के साथ सहसंयोजक आबंि बनाता
है ।
• ऐल्कोहॉि, ऐस्थल्डहाइड्, कीटोन एवं काबोस्थक्सलिक अम्ल जैसे समूह काबटन यौलगकों का अलभिाक्षलणक गुण प्रदान करते हैं ।
• कोलशकीय श्वसन द्वारा मोलचत ऊजाट तत्काि ही ए.टी.पी. (ATP) नामक अणु के संश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है जो कोलशका
की अन्य लियाओं के लिए ईंिन की तरह प्रयुक्त होता है । ए.टी.पी. के लवखंड्न से एक लनलित मात्रा में ऊजाट मोलचत होती है
जो कोलशका के अंदर होने वािी आं तरोस्थि (endothermic) लियाओं का पररचािन करती है । SCSGYAN
• मानव में श्वसन वणटक हीमोग्लोलबन है जो ऑक्सीजन के लिए उच्च बंिुता रखता है । यह वणटक िाि रुलिर कलणकाओं में
उपस्थस्थत होता है । काबटन ड्ाइऑक्साइड् जि में अलिक लविेय है और इसलिए इसका पररवहन हमारे रुलिर में लविेय
अवस्था में होता है ।
• अलिवृक्क ग्रंलथ से स्रालवत एड्रीनिीन हॉमोन द्वारा मनुष्य सलहत अनेक जंतुओं में यह लकया जाता है ।
• आइजक न्यूटन ने सवटप्रथम सूयट का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए कॉंच के लप्रज्म का उपयोग लकया ।
• िाि वणट के प्रकाश की तरं गदै र्घ्ट नीिे प्रकाश की अपेक्षा िगभग 1.8 गुनी है ।
• जैव गैस एक उत्तम ईंिन है क्ोंलक इसमें 75 प्रलतशत तक मेथेन गैस होती है । यह िुआुँ उत्पन्न लकए लबना जिती है ।
• एड्रीनिीन सीिा रुलिर में स्रालवत हो जाता है और शरीर के लवलभन्न भागों तक पहुँ चा लदया जाता है । हृदय सलहत यह िक्ष्य
अंगों या लवलशष्ट ऊतकों पर कायट करता है । पररणामस्वरूप हृदय की िडकन बढ़ जाती है तालक हमारी पेलशयों को अलिक
ऑक्सीजन की आपूलतट हो सके।

क्र.सं. हामोन अंत:स्त्रावी ग्रंहि कायण


1. वृस्थद्ध हामोन पीयूष ग्रंलथ (पीट्यूटरी) सभी अंगों में वृस्थद्ध प्रेररत करता है ।
2. थायरॉइड् ग्रंलथ शरीर की वृस्थद्ध के लिए उपापचय का लनयमन करता है ।
3. इं सुलिन - रक्त में शकटरा स्तर का लनयमन करता है ।
4. टे स्टेस्टेरॉन वृषण -
5. - अण्डाशय मादा िैंलगक अंगों का लवकास व मालसक चि का लनयमन करता
है ।
6. एड्रीनिीन एड्रीनि ग्रंलथ -
7. मोचक हामोन - पीट्यूटरी ग्रंलथ से हामोन के स्त्राव को प्रेररत करता है ।

• प्रलसद्ध बोटे लनकि गाड्ट न क्ू (इं गिैंड्), इं लड्यन बोटे लनकि गाड्ट न हावडा (भारत) में तथा नेशनि बोटे लनकि ररसचट
इं स्टीट्यूट िखनऊ (भारत) में हैं ।
• सन् 1969 में आर.एच. स्थिटे कर द्वारा एक पाुँ च जगत वगीकरण की पद्धलत प्रस्तालवत की गई थी। इस पद्धलत के अंतगटत
सस्थिलित लकए जाने वािे जगतों के नाम मॉनेरा, प्रोलटस्टा, फंजाई, प्लां टी एवं एलनमैलिया हैं ।

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• सभी प्रोकैररयोलटक जीविाररयों के साथ 'मॉनेरा' तथा एककोलशक जीविाररयों को प्रोलटस्टा जगत के अंतगटत रखा गया है ।
प्रोलटस्टा जगत के अंतगटत कोलशका लभलत्तयुक्त क्लैमाइड्ोमोनास एवं क्लोरे िा (लजन्हें पहिे पादपों के अंतगटत शैवाि में रखा
गया था) पैरामीलशयम एवं अमीबा (लजन्हें पहिे प्रालण जगत में रखा गया था) के साथ रखा गया है , लजनमें कोलशका लभलत्त नहीं
पाई जाती है ।
• लड्लमत्री इबानोवस्की (1892) ने तंबाकू के मोजैक रोग के रोगाणुओं को पहचाना था, लजन्हें वाइरस नाम लदया गया।
• वाइरस में प्रोटीन के अलतररक्त आनुवंलशक पदाथट भी होता है , जो आरएनए (RNA) अथवा ड्ीएनए (DNA) हो सकता है ।
लकसी भी वाइरस में आरएनए तथा ड्ीएनए दोनों नहीं होते।
• सन् 1971 में टी.ओ. ड्ाइनर ने एक नया संिामक कारक खोजा जो वाइरस से भी छोटा तथा लजसके कारण 'पोटे टो
स्थस्पंड्ि ट्यूबर' नामक रोग होता था। SCSGYAN - For Paid Group Call /WhatsApp 7523864455 or 8564880530
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• शैवाि क्लोरोलफियुक्त, सरि, थैिॉयड्, स्वपोषी तथा मुख्यतः जिीय (अिवणीय जि तथा समुद्री दोनों का) जीव है । वे अन्य
आवास जैसे नमयुक्त पत्थरों, लमट्टी तथा िकडी में भी पाए जाते हैं । उनमें से कुछ कवक (िाइकेन में) तथा प्रालणयों के
संगठन में भी पाए जाते हैं (जैसे स्लाथ रीछ)।
• शैवाि के माप तथा आकार में बहत लवलभन्नता होती है । ये कॉिोलनय जैसे वॉल्वॉक्स तथा तंतुमयी जैसे यूिोलिक्स,
स्पाइरोगायरा तक हो सकते हैं । इनमें से कुछ, शैवाि जैसे केल्प, बहत लवशािकाय होते हैं ।
• शैवाि कालयक, अिैंलगक तथा िैंलगक जनन करते हैं । कालयक जनन लवखंड्न लवलि द्वारा होता है । इसके प्रत्येक खंड् से
थैिस बन जाता है । अिैंलगक जनन लवलभन्न प्रकार के बीजाणुओं द्वारा होता है । सामान्यतः ये बीजाणु जूस्पोर होते हैं । इनमें
कशालभक (फ्लैलजिा) होता है और ये चिायमान होते हैं । अंकुरण के बाद इनसे पौिे बन जाते हैं । िैंलगक जनन में दो युग्मक
संगलित होते हैं । ये युग्मक कशालभक युक्त (फ्लैलजिा युक्त) तथा माप में समान हो सकते हैं (जैसे यूिोलिक्स) अथवा
फ्लैलजिा लवहीन िेलकन समान माप वािे हो सकते हैं (जैसे स्पाइरोगायरा)। ऐसे जनन को समयुग्मकी कहते हैं । जब लवलभन्न
माप वािे दो युग्मक संगलित होते हैं तब उसे असमयुग्मकी कहते हैं (जैसे यूड्ोराइना) की कुछ स्पीशीज लवषमयुग्मकी
िैंलगक जनन में एक बडे अचि (स्थैलनक) मादा युग्मक से एक छोटा चिायमान नरयुग्मक संमलित होता है । जैसे वॉिवॉक्स,
फ्यूक्स। SCSGYAN
• क्लोरै िा तथा स्थस्पिाइना एक कोलशक शैवाि हैं । इनमें प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है । यहाुँ तक लक इसका उपयोग अंतररक्ष
यात्री भी भोजन के रूप में करते हैं । शैवाि तीन प्रमुख भागों में लवभक्त लकया जाता है : क्लोरोफाइसी, फीयोफाइसी तथा
रोड्ोफाइसी।
• लजम्नोस्पमट (लजम्नोस - अनावृत, स्पमट - बीज) ऐसे पौिे हैं , लजनमें बीजां ड् अंड्ाशय लभलत्त से ढके हए नहीं होते और ये लनषेचन
से पूवट तथा बाद में भी अनावृत ही रहते हैं । लजम्नोस्पमट में मध्यम अथवा िंबे वृक्ष तथा झालडयाुँ होती हैं । लजम्नोस्पमट का
लसकुआ वृक्ष सबसे िंबा है ।
• पादप जगत में शैवाि, ब्रायोफाइट, टै ररड्ोफाइट, लजम्नोस्पमट तथा एं लजयोस्पमट आते हैं । शैवाि में क्लोरोलफि होता है । वे
सरि, थैिासाभ, स्वपोषी तथा मुख्यतः जिीय जीव हैं । वणटक के प्रकार तथा भोजन संग्रह के प्रकार के आिार पर शैवाि को
तीन वगों (क्लास) में लवभक्त लकए गए हैं , ये हैं - क्लोरोफाइसी, फीयोफाइसी तथा रोड्ोफाइसी। शैवाि प्रायः लवखंड्न द्वारा
कालयक प्रविटन करते हैं ।
• ब्रायोफाइट ऐसे पौिे हैं जो लमट्टी में उगते हैं िेलकन उनका िैंलगक जनन पानी पर लनभटर करता है ।
• केलमिो गॉल्जी (1898) ने पहिी बार केंद्रक के पास घनी रं लजत जालिकावत संरचना तंलत्रका कोलशका में दे खी। लजन्हें बाद
में उनके नाम पर गॉल्जीकाय कहा गया ।
• राइबोसोम- जाजट पैिेड् (1953) ने इिेक्ट्रॉन सूक्ष्मदशी द्वारा सघन कलणकामय संरचना राइबोसोम को सवटप्रथम दे खा था। ये
राइबोन्यूस्थक्लक अम्ल व प्रोटीन के बने और लकसी भी लझल्ली से लघरे नहीं रहते।
• कोलशकीय अंगक केंद्रक की खोज सवटप्रथम राबटट ब्राउन ने 1831 से पूवट की थी। बाद में फ्लेलमंग ने केंद्रक में लमिने वािे
पदाथट जो क्षारीय रं ग से रं लजत हो जाता है उसे िोमोटीन का नाम लदया।

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• जूलियस सैकस् (1860) एक प्रमुख जमटन पादपलवद् ने सवटप्रथम यह प्रदलशटत लकया लक पादपों को मृदा की अनुपस्थस्थलत में,
पोषक लवियन के घोि में वयस्क अवस्था तक उगाया जा सकता है । पादपों को पोषक लवियन के घोि में उगाने की यह
तकनीक जि-संविटन (Hydroponics) के नाम से जानी जाती है ।
• औसतन एक स्वस्थ मनुष्य प्रलत लमनट 12-16 बार श्वसन करता है । श्वसन गलतलवलि यों में सस्थिलित वायु के आयतन का
आकिन स्पाइरोमीटर की सहायता से लकया जा सकता है जो फुप्फुसी कायटकिापों का नैदालनक मूल्ां कन करने में
सहायक होता है ।
• मनुष्यों में उत्सजी तंत्र एक जोडी वृक्क, एक जोडी मूत्र नलिका, एक मूत्राशय और एक मूत्र मागट का बना होता है । वृक्क
सेम के बीज की आकृलत के गहरे भूरे िाि रं ग के होते हैं तथा ये अंलतम वक्षीय और तीसरी कलट कशेरुका के समीप उदर
गुहा में आं तररक पृष्ठ सतह पर स्थस्थत होते हैं । वयस्क मनुष्य के प्रत्येक वृक्क की िम्बाई 10-12 सेमी., चौडाई 5-7 सेमी.,
मोटाई 2-3 सेमी. तथा भार िगभग 120-170 ग्राम होता है । वृक्क के केंद्रीय भाग की भीतरी अवति (कॉन्केव) सतह के
मध्य में एक खां च होती है , लजसे हाइिम कहते हैं । इसे होकर मूत्र-नलिका, रक्त वालहलनयाुँ और तंलत्रकाएं प्रवेश करती हैं ।
हाइिम के भीतरी ओर कीप के आकार का रचना होती है लजसे वृक्कीय श्रोलण (पेस्थल्वस) कहते हैं तथा इससे लनकिने वािे
प्रक्षेपों (प्रोजेक्शन) को चषक (कैलिक्स) कहते हैं ।
• एक वयस्क मनुष्य प्रलतलदन औसतन 1-1.5 िीटर मूत्र उत्सलजटत करता है । मूत्र एक लवशेष गंि युक्त जिीव तरि है , जो रं ग
में हल्का पीिा तथा थोडा अम्लीय (pH-6) होता है (pH-6)। औसतन प्रलतलदन 25-30 ग्राम यूररया का उत्सजटन होता है ।
• हमारे फेफडे प्रलतलदन भारी मात्रा में CO2 (िगभग 200ml/लमनट) और जि की पयाट प्त मात्रा का लनष्कासन करते हैं । हमारे
शरीर की सबसे बडी ग्रंलथ यकृत 'लपत्त' का स्राव करती है लजसमें लबलिरूलबन, लबिीलवरलड्न, कॉिेस्टरॉि, लनम्नीकृत स्टीरॉयड्
हामोन, लवटालमन तथा औषि आलद होते हैं । SCSGYAN - For Paid Group Call /WhatsApp 7523864455 or
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• मानव का तंलत्रकीय तंत्र- मानव का तंलत्रका तंत्र दो भागों में लवभालजत होता है (क) केंद्रीय तंलत्रका तंत्र तथा (ख) पररिीय
तंलत्रका तंत्र। केंद्रीय तंलत्रका तंत्र में मस्थस्तष्क तथा मेरूरज्जु सस्थिलित है , जहाुँ सूचनाओं का संसािन एवं लनयंत्रण होता है ।
मस्थस्तष्क एवं पररिीय तंलत्रका तंत्र सभी तंलत्रकाओं से लमिकर बनता है , जो केंद्रीय तंलत्रका तंत्र (मस्थस्तष्क व मेरूरज्जू) से जुडी
होती हैं । पररिीय तंलत्रका तंत्र में दो प्रकार की तंलत्रकाएं होती हैं - (अ) संवेदी या अलभवाही एवं (ब) चािक/प्रेरक या
अपवाही। संवेदी या अलभवाही तंलत्रकाएं उद्दीपनों को ऊतकों/अंगों से केंद्रीय तंलत्रका तंत्र तक तथा चािक/अलभवाही
तंलत्रकाएं लनयामक उद्दीपनों को केंद्रीय तंलत्रका तंत्र से संबंलित पररिीय ऊतक/अंगों तक पहुँ चाती हैं ।
• िैंस के सामने आइररस से लघरा हआ एक लछद्र होता है , लजसे प्यूलपि कहते हैं । प्यूलपि के घेरे का लनयंत्रण आइररस के पेशी
तंतु करते हैं ।
• कणट को बाह्य कणट, मध्य कणट व अंत:कणट में लवभालजत लकया जा सकता है । बाह्य कणट लपन्ना तथा बाह्य श्रवण गुहा से बना
होता है । मध्य कणट तीन अस्थस्थकाओं मैलियस, इं कस और स्टे प्सीज से बना होता है ।
• मानव अंतः स्रावी तंत्र- अंतः स्रावी ग्रंलथयां और शरीर के लवलभन्न भागों में स्थस्थत हामोन स्रलवत करने वािे ऊतक/कोलशकाएं
लमिकर अंत:स्रावी तंत्र का लनमाट ण करते हैं । पीयूष ग्रंलथ, लपलनयि ग्रंलथ, थाइरॉयड्, एड्रीनि, अिाशय, पैराथायरॉइड्, थाइमस
और जनन ग्रंलथयां (नर में वृषण और मादा में अंड्ाशय) हमारे शरीर के सुलनयोलजत अंतः स्रावी अंग हैं । इनके अलतररक्त
कुछ अन्य अंग जैसे लक जठर-आं त्रीय मागट, यकृत, वृक्क, हृदय आलद भी हामोन का उत्पादन करते SCSGYAN
• पीयूष ग्रंलथ- पीयूष ग्रंलथ एक सेिा टलसटका नामक अस्थस्थि गुहा में स्थस्थत होती है और एक वृंत द्वारा हाइपोथैिेमस से जुडी
होती है । आं तररकी के अनुसार पीयूष ग्रंलथ एलड्नोहाइपोफाइलसस और न्यूरोहाइपोफाइलसस नामक दो भागों में लवभालजत
होती है । एलड्नोहाइपोफाईलसस दो भागों का बना होता है - पासट लड्स्टे लिस और पासट इं टरमीलड्या। पासट लड्स्टे लिस को
सािारणतया अग्र पीयूष ग्रंलथ कहते हैं , लजससे वृस्थद्ध हामोन या सोमेटोटर ोलपन (GH), प्रोिैस्थक्ट्न (PRL) या मेमोटर ोलपन,
थाइरॉइड् प्रेरक हामोन (TSH) एलड्नोकालटट कोटर ॉलफक हामोन (ACTH) या कॉलटट कोटर ोलफन, ल्ूटीनाइलजंग हामोन (LH) और
पुलटका प्रेरक हामोन का स्राव करता है । पासट इं टरमीलड्या एक मात्र हामोन िेनोसाइट प्रेरक हामोन (MSH) या
मेिेनोटर ोलफन का स्राव करता है । यद्यलप मानव में पासट इं टरमीलड्या (मध्यलपंड्) पासट लड्स्टे लिस (दू रस्थ लपंड्) में िगभग जुडा
होता है । न्यूरोहाइपोफाइलसस (पासट नवोसा) या पि पीयूष ग्रंलथ, यह हाइपोथैिेमस द्वारा उत्पालदत लकए जाने वािे हामोन

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ऑक्सीटॉलसन और वेसोप्रेलसन का संग्रह और स्राव करती है । ये हामोन वास्तव में हाइपोथैिेमस द्वारा संश्लेलषत होते हैं और
तंलत्रकाक्ष होते हए पि पीयूष ग्रंलथ में पहुँ चा लदए जाते हैं ।
• थाइरॉइड् ग्रंलथ- थाइरॉइड् ग्रंलथ श्वास निी के दोनों ओर स्थस्थत दो पालियों से बनी होती है । दोनों पालियाुँ संयोजी ऊतक के
पतिी पल्लीनुमा इस्थमस से जुडी होती हैं । प्रत्येक थाइरॉइड् ग्रंलथ पुटकों और भरण ऊतकों की बनी होती हैं । प्रत्येक
थाइरॉइड् पुटक एक गुहा को घेरे पुटक कोलशकाओं से लनलमटत होता है । ये पुटक कोलशकाएं दो हामोन
टे टराआयड्ोथाइरोनीनस (T4) अथवा थायरोक्सीन तथा टर ाईआइड्ोथायरोनीन (T3) का संश्लेषण करती हैं । थाइरॉइड् हामोन
के सामान्य दर से संश्लेषण के लिए आयोड्ीन आवश्यक है । हमारे भोजन में आयोड्ीन की कमी से अवथाइरॉइड्ता एवं
थाइरॉइड् ग्रंलथ की वृस्थद्ध हो जाती है , लजसे सािारणतया गिगंड् कहते हैं ।
• पैराथाइरॉइड् ग्रंलथ- मानव में चार पैराथाइरॉइड् ग्रंलथयाुँ , थाइरॉइड् ग्रंलथ की पि सतह पर स्थस्थत होती है । थाइरॉइड् ग्रंलथ की
दो पालियों पर प्रत्येक में एक जोडी पैराथाइरॉइड् ग्रंलथयाुँ पाई जाती हैं जो पैराथाइरॉइड् हामोन (PTH) नामक एक पेप्टाइड्
हामोन का स्राव करती हैं । पीटीएच का स्राव रक्त के साथ पररसंचाररत कैस्थियम आयन के द्वारा लनयलमत होता है ।
• थाइमस ग्रंलथ- थाइमस ग्रंलथ महािमनी के उदर पक्ष पर उरोस्थस्थ के पीछे फेफडों के बीच स्थस्थत एक पािीयुक्त संरचना है ।
थाइमस ग्रंलथ प्रलतरक्षा तंत्र के लवकास में महत्वपूणट भूलमका लनभाती है । यह ग्रंलथ थाइमोलसन नामक पेप्टाइड् हामोन का स्राव
करती है । थाइमोलसन टी-लिंफोसाइट् स के लवभेदीकरण में मुख्य भूलमका लनभाते हैं जो कोलशका माध्य प्रलतरक्षा के लिए
महत्वपूणट है । इसके अलतररक्त थाइमोलसन तरि प्रलतरक्षा (humoral immunity) के लिए प्रलतजैलवक के उत्पादन को भी
प्रेररत करते हैं । बढ़ती उम्र के साथ थाइमस का अपघटन होने िगता है , फिस्वरूप थाइमोलसन का उत्पादन घट जाता है ।
इसी के पररणामस्वरूप वृद्धों में प्रलतरक्षा प्रलतलिया कमजोर पड जाती है ।
• अलिवृक्क मध्यां श दो प्रकार के हामोन का स्राव करता है लजन्हें एलड्रनिीन या एलपनेफ्रीन और नॉरएं लड्रनिीन या
नारएलपनेफ्रीन कहते हैं । इन्हें सस्थिलित रूप में कैटे कॉिमीनस कहते हैं । एलड्रनिीन और नॉरएलड्रनिीन लकसी भी प्रकार के
दबाव या आपातकािीन स्थस्थलत में अलिकता में तेजी से स्रालवत होते हैं , इसी कारण ये आपातकािीन हामोन या युद्ध हामोन
या फ्लाइट हामोन कहिाते हैं । ये हामोन सलियता (तेजी), आुँ खों की पुतलियों के फैिाव, रोंगटे खडे होना, पसीना आलद को
बढ़ाते हैं । दोनों हामोन हृदय की िडकन, हृदय संकुचन की क्षमता और श्वसन दर को बढ़ाते हैं ।
• वृक्क की जक्स्टाग्लोमेरूिर कोलशकाएं , इररिोपोईलटन नामक हामोन का उत्पादन करती हैं जो रक्ताणु उत्पलत्त (आरबीसी
के लनमाट ण) को प्रेररत करता है । जठर आं त्रीय पथ के लवलभन्न भागों में उपस्थस्थत अंतः स्रावी कोलशकाएं चार मुख्य पेप्टाइड्
हामोन का स्राव करती हैं ; गैस्थस्टरन, सेिेलटन, कोलिलसस्टोकाइलनन - और जठर अवरोिी पेप्टाइड् (जी आई पी)। गैस्थस्टरन, जठर
ग्रंलथयों पर कायट कर हाइड्रोक्लोररक अम्ल और पेस्थप्सनोजेन के स्राव को प्रेररत करता है ।

रासायलनक प्रकृलत के आिार पर हामोन को समूहों में लवभालजत लकया जा सकता है : -

➢ पेप्टाइड्, पॉिीपेप्टाइड्, प्रोटीन हामोन (जैसे इं सुलिन, ग्लूकागॉन, पीयूष ग्रंलथ हामोन, हाइपोथैिेलमक हामोन इत्यालद)
➢ स्टीरॉइड् (उदाहरण के लिए कोटीसोि, टे स्टोस्टे रोन, एस्टर ाड्ायोि और प्रोजेस्टरॉन)
➢ आयोड्ोथाइरोलनन (थायराइड् हामोन)
➢ अमीनो अम्लों के व्युत्पन्न (उदाहरण के लिए एपीनेफ्रीन)।
• अंतः स्रावी तंत्र का लनमाट ण हाइपोथैिेमस, पीयूष, पीलनयि, थायरॉइड्, अलिवृक्क, अिाशय, पैराथायरॉइड्, थाइमस और
जनन (वृषण एवं अंड्ाशय) द्वारा होता है । इनके साथ ही कुछ अन्य अंग जैसे जठर आं त्रीय पथ, वृक्क हाइपोथैिेमस, हृदय
आलद भी हामोन का उत्पादन करते हैं । हाइपोथैिेमस द्वारा 7 मुक्तकारी हामोन और 3 लनरोिी हामोन का उत्पादन होता है
जो पीयूष ग्रंलथ पर कायट कर उससे उत्सलजटत होने वािे हामोन के संश्लेषण और स्रवण का लनयंत्रण करते हैं । पीयूष ग्रंलथ तीन
मुख्य भागों में लवभक्त होती है - पासट लड्स्टे लिस, पासट इं टरमीलड्या, पासट नवोसा। पासट लड्स्टे लिस द्वारा 6 टर ॉलफक हामोन का
स्रवण होता है ।
• प्रोकेररऔट तथा एककोशीय जीव जनक कोलशका के कोलशका लवभाजन अथवा लद्वखंड्न युग्मन से उत्पन्न होते हैं । अनेक
जिीय जीवों, पुष्पीय पादपों की स्थिीय प्रजालतयों की संरचनाएुँ जैसे उपररभूस्तारी, प्रकंदों, अंत:भूस्तारी कंदों एवं भूस्तररका
आलद में नयी संतानों को पैदा करने की क्षमता होती है । इस प्रकार के अिैंलगक जनन की लवलि को कालयक प्रविटन कहते
हैं ।
• आनुवंलशकी या आनुवंलशक लवज्ञान, जीव लवज्ञान की वह शाखा है जो वंशागलत के व्यवहार और लसद्धां तों का अध्ययन करती
है । यह तथ्य लक, संतलत अपने जनकों से आकृलतक और शरीर लियात्मक िक्षणों में लमिती जुिती है अनेक जीव लवज्ञालनयों

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का ध्यान आकृष्ट करता रहा। इस घटना का िमबद्ध अध्ययन करने वािा सवटप्रथम वैज्ञालनक मेंड् ि था। मटर के पौिों में
लवपरीत िक्षणों की वंशागलत के प्रलतरूपों का अध्ययन करते हए मेंड्ि ने उन लसद्धां तों को प्रस्तालवत लकया जो आज
वंशागलत के 'मेंड्ि के लनयम' के नाम से जाने जाते हैं । उसने प्रस्ताव लकया लक िक्षणों के लनयामक 'कारक' (बाद में जीन
नाम वािे) जोडे में पाए जाते हैं । लजन्हें अिीि कहा गया। उसने दे खा लक संतलत में िक्षणों की अलभव्यस्थक्त लभन्न प्रथम
पीढ़ी(F1), लद्वतीय पीढ़ी (F2) तथा अगिी पीलढ़यों में एक लनलित प्रकार से होती है । कुछ िक्षण दू सरे के ऊपर प्रभावी होते
हैं । प्रभावी िक्षणों की अलभव्यस्थक्त तभी होती है जब कारक लवषम युग्मजी अवस्था में भी लवद्यमान रहते हैं ('प्रभालवता
लनयम')।
• िोमोसोम में स्थस्थत कारक (अब जीन) जो िक्षणों का लनयमन करते हैं 'जीनोटाइप' कहे जाते हैं और शारीररक रूप से व्यक्त
िक्षणों को फीनोटाइप कहा जाता है । SCSGYAN - For Paid Group Call /WhatsApp 7523864455 or
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• सामान्य नारी में 22 जोडे अलिंग िोमोसोम के और एक जोडा सेक्स िोमोसोम (XX) का होता है । नर में अलिंग सूत्र के 22
जोडे तो होते ही हैं , एक जोडा लिंग सूत्रों का (XY) भी होता है । नर कुक्कुट में लिंग सूत्र ZZ तथा मादा में ZW होते हैं ।
• आनुवंलशक द्रव्य के पररवतटन को म्यूटेशन (उत्पररवतटन) कहते हैं । ड्ी एन ए के एकि क्षारक युग्म का पररवतटन 'लबन्दु -
उत्पररवतटन' कहिाता है । दात्र कोलशका अरक्तता रोग का कारण हीमोग्लोलबन की बीटा-श्रृंखिा का संकेतन (कोलड्ं ग) करने
वािी जीन के एक क्षारक में पररवतटन है । वंशागत उत्पररवतटनों का अध्ययन वंशवृक्ष बनाकर लकया जा सकता है । कुछ
उत्पररवतटन पूरे िोमोसोम समुच्चय के पररवतटन से बहगुलणता या अपूणट समुच्चय से (असुगुलणतता) संबद्ध हो सकता है ।
आनुवंलशक लवकारों के उत्पररवतटनी आिार को समझने में इससे सहायता लमिती है । ड्ाउन लसंड्रोम का कारण िोमोसोम
21 की लत्रसूत्रता अथाट त् एक अलतररक्त 21 िोमोसोम का पाया जाना है , लजसके फिस्वरूप कुि िोमोसोम संख्या 47 हो
जाती है । टनटर लसंड्रोम में एक X िोमोसोम गायब हो जाता है और लिंग िोमोसोम XO हो जाते हैं , क्लाइन फेल्टर लसंड्रोम में
अवस्था XXY प्रदलशटत होती है । ये केंद्रक-प्ररूपों (कैररयोटाइपों) के अध्ययन से आसानी से समझा जा सकता है ।
• आरएनए पहिा आनुवंलशक पदाथट था। अब बहत पयाट प्त प्रमाण है लक जीवन के आवश्यक प्रिमों (जैसे-उपापचयी,
स्थानां तरण, संबंिन आलद) का लवकास आरएनए से हआ। आरएनए आनुवंलशक पदाथट के साथ एक उत्प्रेरक (जैलवक तंत्र में
कुछ ऐसी महत्त्वपूणट जैव रासायलनक अलभलियाएुँ हैं जो आरएनए उत्प्रेरक द्वारा उत्प्रेररत की जाती है प्रोटीन एं जाइम का
इसमें कोई योगदान नहीं है ।) आरएनए उत्प्रेरक के रूप में लियाशीि िेलकन अस्थायी है ।
• न्यूस्थक्लक अम्ल न्यूस्थक्लयोटाइड्् स का एक िंबा बहिक है । ड्ीएनए आनुवंलशक सूचनाओं को संग्रलहत करने जबलक
आरएनए मुख्यतया सूचनाओं के स्थानां तरण व अलभव्यस्थक्त में सहायता करते हैं । ड्ीएनए व आरएनए दो आनुवंलशक पदाथट
के रूप में कायट करते हैं , िेलकन ड्ीएनए रासायलनक व संरचनात्मक अलिक स्थस्थर होने से उपयुक्त आनुवंलशक पदाथट है ।
लफर भी आरएनए सबसे पहिे लवकलसत हआ जबलक ड्ीएनए आरएनए से प्राप्त हआ। ड्ीएनए के लद्वशंखिा कुंड्लित
संरचना की लवलशष्टता उसके लवपरीत रज्जुकों के बीच उपस्थस्थत हाइड्रोजन बंि है । लनयम के अनुसार एड्े लनन थाइलमन से दो
हाइड्रोजन बंि द्वारा जुडा होता है जबलक ग्वालनन व साइटोसीन तीन हाइड्रोजन बंि द्वारा जुडे होते हैं ।
• साल्मोनेिा टाइफी एक रोगजनक जीवाणु है लजससे मानव में टाइफॉइड् ज्वर होता है । यह रोगजनक आमतौर से संदूलषत
(कंटालमनेटेड्) भोजन और पानी द्वारा छोटी आुँ त में घुस जाता है और वहाुँ से रक्त द्वारा शरीर के अन्य अंगों में पहुँ च जाता
है । इस रोग के कुछ सामान्य िक्षण हैं - िगातार उच्च ज्वर (39° से 40° सेंटी.), कमजोरी, आमाशय में पीडा, कब्ज, लसरददट
और भूख न िगना आलद।
• स्टर े प्टोकोकस न्युमोनी और हीमोलफि इं फ्लुऍंजी जैसे जीवाणु मानव में न्युमोलनया रोग के लिए उत्तरदायी हैं । इस रोग में
फुप्फुस (िंग्स) के वायुकोष्ठ (एिव्यूिाई) संिलमत हो जाते हैं । संिमण के फिस्वरूप वायुकोष्ठों में तरि भर जाता है
लजसके कारण सां स िेने में गंभीर समस्याएुँ पैदा हो जाती हैं । SCSGYAN
• प्लैज्मोलड्या की लवलभन्न जालतयाुँ (प्लै.वाइवैक्स, प्लै. मेलिररआई और प्लै.फैिीपेरम) लवलभन्न प्रकार के मिेररया के लिए
उत्तरदायी हैं । इनमें से प्लैज्मोलड्यम फैिीपेरम द्वारा होने वािा दु दटम (मेलिगनेंट) सबसे गंभीर है और यह घातक भी हो
सकता है ।
• माइिोस्पोरम, टर ाइकोफाइटॉन और एलपड्मोफाइटॉन आलद वंश (जेनरा) के अनेक कवक, दाद (ररं गवमट) के लिए उत्तरदायी
हैं ।

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• कोका ऐल्कोिॉइड् या कोलकन कोका पादप ऐररिोज़ाइिम कोका से प्राप्त लकया जाता है जो लक मूिरूप से दलक्षण
अमेररका का पौिा है । यह तंलत्रकाप्रेषक (न्यूरोटर ां समीटर) ड्ोपेमीन के पररवहन में बािा ड्ािती है । कोकेन, लजसे आमतौर से
कोक या क्रैक कहा जाता है , प्रायः जोर से साुँ स द्वारा अंदर खींची जाती है । इसका केंद्रीय तंलत्रका तंत्र पर जोरदार उद्दीपक
(स्टीमुिेलटं ग) असर पडता है लजससे सुखाभास (यूफोररया) और ऊजाट में वृस्थद्ध की अनुभूलत होती है । कोकेन की अत्यलिक
मात्रा से लवभ्रम (है िुलसनेसन) हो जाता है । अन्य प्रलसद्ध पादप, लजनमें लवभ्रम पैदा करने का गुण है , ऐटर ोफा बेिेड्ोना और
ितूरा हैं । आजकि कुछ स्थखिाडी भी कैनोलबनॉइड्ों का दु रुपयोग करते हैं ।
• सायनोबैक्ट्ीररया स्वपोलषत सूक्ष्मजीव हैं जो जिीय तथा स्थिीय वायुमंड्ि में लवस्तृत रूप से पाए जाते हैं । इनमें बहत से
वायुमंड्िीय नाइटर ोजन को स्थस्थरीकृत कर सकते हैं जैसे- ऐनाबीना, नॉसटॉक, ऑलसिेटोररया आलद। िान के खेत में
सायनोबैक्ट्ीररया महत्त्वपूणट जैव उवटरक की भूलमका लनभाते हैं । नीि हररत शैवाि भी मृदा में काबटलनक पदाथट बढ़ा दे ते हैं ।
लजससे उसकी उवटरता बढ़ जाती है ।
• लकसी तरि अपररवती प्रवाह में लजस पथ का कण गमन करता है उसे िारारे खा कहते हैं । लकसी लबंदु पर तरि कण का वेग
सदै व ही िारारे खा के उसी लबंदु पर खींची हई स्पशट रे खा के अनुलदश होता है जो िारारे खा प्रवाह को पररभालषत करता है ।
• मोटर वाहन अथवा स्वचालित वाहन में काबूट रेटर में वैंटुरीवालहका (नोजि) होती है लजसमे तीव्र गलत से वायु प्रवालहत होती है ।
• लकसी रोगी का रक्त चाप प्रकुंचन दाब तथा अनुलशलथिन दाब के अनुपात के रूप में प्रस्तुत लकया जाता है । लकसी शां त
स्वस्थ वयस्क के लिए यह प्ररुपी मान 120/80 mm(Hg) या (120/80 टॉर) होते हैं । यलद रक्त चाप 140/90 mm (Hg) से
अलिक है तो उसे ड्ॉक्ट्री दे खरे ख तथा परामशट चालहए। रक्त चाप हृदय, गुदो (वृक्क) तथा शरीर के अन्य अंगो को गंभीर
क्षलत पहुँ चा सकता है अतः इसे लनयंलत्रत लकया जाना आवश्यक होता है । SCSGYAN - For Paid Group Call
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• ऊिागलतकी का शून्यवाुँ लनयम यह अलभव्यक्त करता है लक “दो लनकाय जो लकसी तीसरे लनकाय के साथ स्वतंत्र रूप से
तापीय साम्य में है , वे एक-दू सरे के साथ भी साम्य में होते हैं ”। शून्यवाुँ लनयम ताप की अविारणा का सूत्रपात करता है ।
• कोई स्थैलतककल्प प्रिम अत्यंत िीमी गलत से संपन्न होने वािा प्रिम है लजसमें लनकाय पररवेश के साथ पूरे समय तापीय व
यां लत्रक साम्य में रहता है । स्थैलतककल्प प्रिम में पररवेश के दाब व ताप तथ लनकाय के दाब व ताप में अनंत सूक्ष्म अंतर हो
सकता है ।

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