Professional Documents
Culture Documents
Ch3 (Poem) Swarg Bana Sakte Hai
Ch3 (Poem) Swarg Bana Sakte Hai
न क-i:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
धमराज यह भू म कसी क , नह ं त है दासी,
ह ज मना समान पर पर, इसके सभी नवासी।
सबको मु त काश चा हए, सबको मु त समीरण,
बाधा-र हत वकास, मु त आशंकाओं से जीवन।
ले कन व न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए ह,
मानवता क राह रोककर पवत अड़े हुए ह।
यायो चत सख ु सलु भ नह ं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शां त कहाँ इस भव को।
क व ने भू म के लए कस श द का योग कया ह और य ?
उ तर:
क व ने भू म के लए ‘ त दासी’ श द का योग कया ह य क कसी क त (खर द हुई) दासी नह ं है । इस पर सबका
समान प से अ धकार है ।
न क-ii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
धमराज यह भू म कसी क , नह ं त है दासी,
ह ज मना समान पर पर, इसके सभी नवासी।
सबको मु त काश चा हए, सबको मु त समीरण,
बाधा-र हत वकास, मु त आशंकाओं से जीवन।
ले कन व न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए ह,
मानवता क राह रोककर पवत अड़े हुए ह।
यायो चत सख ु सलु भ नह ं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शां त कहाँ इस भव को।
धरती पर शां त के लए या आव यक है ?
उ तर :
धरती पर शां त के लए सभी मनु य को समान प से सख
ु -सु वधाएँ मलनी आव यक है ।
न क-iii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
धमराज यह भू म कसी क , नह ं त है दासी,
ह ज मना समान पर पर, इसके सभी नवासी।
सबको मु त काश चा हए, सबको मु त समीरण,
बाधा-र हत वकास, मु त आशंकाओं से जीवन।
ले कन व न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए ह,
मानवता क राह रोककर पवत अड़े हुए ह।
यायो चत सख ु सलु भ नह ं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शां त कहाँ इस भव को।
भी म पतामह यु धि ठर को कस नाम से बल ु ाते है ? य ?
उ तर:
भी म पतामह यु धि ठर को ‘धमराज’ नाम से बल
ु ाते है य क वह सदै व याय का प लेता है और कभी कसी के साथ
अ याय नह ं होने दे ता।
न क-iv:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
धमराज यह भू म कसी क , नह ं त है दासी,
ह ज मना समान पर पर, इसके सभी नवासी।
सबको मु त काश चा हए, सबको मु त समीरण,
बाधा-र हत वकास, मु त आशंकाओं से जीवन।
ले कन व न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए ह,
मानवता क राह रोककर पवत अड़े हुए ह।
यायो चत सखु सल ु भ नह ं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शां त कहाँ इस भव को।
श दाथ ल खए – त, ज मना, समीरण, भव, मु त, सल ु भ।
उ तर:
श द अथ
त खर द हुई
ज मना ज म से
समीरण वायु
भव संसार
मु त वतं
सल
ु भ आसानी से ा त
न ख-i:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
जब तक मनज ु -मनजु का यह सखु भाग नह ं सम होगा,
श मत न होगा कोलाहल, संघष नह ं कम होगा।
उसे भल ू वह फँसा पर पर ह शंका म भय म,
लगा हुआ केवल अपने म और भोग-संचय म।
भु के दए हुए सख
ु इतने ह वक ण धरती पर,
भोग सक जो उ ह जगत म कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तु ट, एक-सा सख ु पर सकते ह;
चाह तो पल म धरती को वग बना सकते ह,
‘ भु के दए हुए सखु इतने ह वक ण धरती पर’ – पंि त का आशय प ट क िजए।
उ तर:
तत
ु पंि त का आशय यह है क ई वर ने हमारे लए धरती पर सख
ु -साधन का वशाल भंडार दया हुआ है । सभी मनु य
इसका उ चत उपयोग कर तो यह साधन कभी भी कम नह ं पड़ सकते।
न ख-ii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
जब तक मनजु -मनज
ु का यह सख
ु भाग नह ं सम होगा,
श मत न होगा कोलाहल, संघष नह ं कम होगा।
उसे भलू वह फँसा पर पर ह शंका म भय म,
लगा हुआ केवल अपने म और भोग-संचय म।
भु के दए हुए सख
ु इतने ह वक ण धरती पर,
भोग सक जो उ ह जगत म कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तु ट, एक-सा सख
ु पर सकते ह;
चाह तो पल म धरती को वग बना सकते ह,
मानव का वकास कब संभव होगा?
उ तर:
कमानव के वकास के पथ पर अनेक कार क मस ु ीबत उसक राह रोके खड़ी रहती है तथा वशाल पवत भी राह रोके खड़े
रहता है । मनु य जब इन सब वपि तय को पार कर आगे बढ़े गा तभी उसका वकास संभव होगा।
न ख-iii:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
जब तक मनज ु -मनजु का यह सखु भाग नह ं सम होगा,
श मत न होगा कोलाहल, संघष नह ं कम होगा।
उसे भलू वह फँसा पर पर ह शंका म भय म,
लगा हुआ केवल अपने म और भोग-संचय म।
भु के दए हुए सख
ु इतने ह वक ण धरती पर,
भोग सक जो उ ह जगत म कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तु ट, एक-सा सखु पर सकते ह;
चाह तो पल म धरती को वग बना सकते ह,
कस कार पल म धरती को वग बना सकते है ?
उ तर:
ई वर ने हमारे लए धरती पर सख
ु -साधन का वशाल भंडार दया हुआ है । सभी मनु य इसका उ चत उपयोग कर तो यह
साधन कभी भी कम नह ं पड़ सकते। सभी लोग सख
ु ी
ह गे। इस कार पल म धरती को वग बना सकते है ।
न ख-iv:
न न ल खत प यांश को पढ़कर नीचे दए गए न के उ तर ल खए :
जब तक मनज ु -मनजु का यह सखु भाग नह ं सम होगा,
श मत न होगा कोलाहल, संघष नह ं कम होगा।
उसे भलू वह फँसा पर पर ह शंका म भय म,
लगा हुआ केवल अपने म और भोग-संचय म।
भु के दए हुए सख
ु इतने ह वक ण धरती पर,
भोग सक जो उ ह जगत म कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तु ट, एक-सा सखु पर सकते ह;
चाह तो पल म धरती को वग बना सकते ह,
श दाथ ल खए – श मत, वक ण, कोलाहल, व न, चैन, पल।
उ तर:
श द अथ
श मत शांत
वक ण बखरे हुए
कोलाहल शोर
व न कावट
चैन शां त
पल ण