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अच्छे लोगों की कृष्ण परीक्षा बहुत लेता है परं तु

साथ नहीं छोड़ता और बुरे लोगों को कृष्ण बहुत


कुछ दे ता है परं तु साथ नहीं दे ता।

जजंदगी में दो लोगों का होना बहुत जरूरी है एक


कृष्ण जो ना लड़े फिर भी जीत पक्की कर दे
दस
ू रा कणण जो हार सामने हो फिर भी साथ ना
छोड़े।

तू करता वही है जो तू चाहता है , होता वही है जो


मैं चाहता हूं, तू कर वही जो मैं चाहता हूं फिर
होगा वही जो तू चाहता है।

रोते हुए कृष्ण ने कहा मैं तो सब की सुनता हूं


पर मेरी कौन सुनता है , इंसान गलत कार्ण करते
समर् दाएं-बाएं, आगे- पीछे , चारों तरि दे खता है
बस ऊपर दे खना भल
ू जाता है ।

श्री कृष्ण कहते हैं जन्म लेने वाले की मत्ृ र्ु उतनी
ही ननजचचत होती है जजतने की मत्ृ र्ु होने वाले के
ललए जन्म लेना इसललए जो अपररहार्ण है उस पर
शोक मत करो।

भरोसा अगर खद
ु पर रखो तो ताकत बन जाता है
और दस
ू रों पर रखो तो कमजोरी।

आप कब सही थे इसे कोई र्ाद नहीं रखता है


लेफकन आप कब गलत थे इसे सब लोग र्ाद
रखते हैं।

मैं फकसी के भाग्र् का ननमाणण नहीं करता और ना


ही फकसी को कमों का िल दे ता हूं।

मनुष्र् फकतना भी गोरा क्र्ों ना हो परं तु उसकी


परछाई सदै व काली होती है । मैं श्रेष्ठ हूं, र्ह
आत्मववचवास है लेफकन “लसिण मैं ही श्रेष्ठ हूं” र्ह
अहं कार है ।

श्री कृष्ण कहते हैं तुम्हारा क्र्ा है जो तुम रोते


हो, तम
ु क्र्ा लाए थे जो तम
ु ने खो ददर्ा, तम
ु ने
क्र्ा पैदा फकर्ा था जजसका नाश हो गर्ा। ना तम

कुछ लेकर आए थे ना कुछ लेकर जाओगे, जो
ललर्ा र्हीं से ललर्ा, जो ददर्ा र्हीं पर ददर्ा।

र्दद आप फकसी के साथ लमत्रता नहीं कर सकते


तो उसके साथ शत्रत
ु ा भी नहीं करनी चादहए।

जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा


है, जो होगा वह भी अच्छा होगा। तुम भूत का
पचचाताप न करो, भववष्र् की चचंता ना करो
वतणमान चल रहा है इसी का आनंद लो।

राधा ने श्री कृष्ण से पूछा ‘प्रेम’ का असली


मतलब क्र्ा होता है श्री कृष्ण ने हं सकर कहा
“जहां मतलब होता है वहां प्रेम कहां होता है ।”

प्रेम एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्र् को कभी


परास्त नहीं होने दे ता और घण
ृ ा एक ऐसा अनुभव
है जो मनुष्र् को कभी जीतने नहीं दे ता।
श्री कृष्ण कहते हैं जजस व्र्जक्त को आप की कद्र
नहीं उसके साथ रहने से अच्छा है आप अकेले ही
रहे ।

हर कीमती चीज़ उठाने के ललए झक


ु ना ही पड़ता
है मां बाप का प्र्ार इनमें से एक है ।

अगर व्र्जक्त लशक्षा से पहले संस्कार, व्र्ापार से


पहले व्र्वहार और भगवान से पहले माता-वपता
को पहचान ले तो जजंदगी में कभी कोई कदठनाई
नहीं आएगी।

स्वाथण से ररचते बनाने की फकतनी भी कोलशश करो


वो कभी नहीं बनते और प्रेम से ररचतो को फकतना
भी तोड़ने की कोलशश करो वो कभी नहीं टूटते।

हर फकसी के अंदर अपनी ताकत और कमजोरी


होती है । मछली जंगल में नहीं दौड़ सकती और
शेर पानी का राजा नहीं बन सकता इसललए
अहलमर्त सभी को दे नी चादहए।
कभी भी स्वर्ं पर घमंड मत करना क्र्ोंफक
पत्थर भी भारी होकर पानी में अपना वजूद खो
दे ता है ।

हद से ज्र्ादा सीधा होना ठीक नहीं क्र्ोंफक जंगल


में सबसे पहले सीधे पेड़ों को ही काटा जाता है ।

अच्छी फकस्मत के लोग थोड़ा भी बरु ा होने पर


भगवान को कोसते हैं और बुरी फकस्मत के लोग
थोड़ा भी अच्छा होने पर भगवान का धन्र्वाद
करते हैं।

श्री कृष्ण कहते हैं फकसी को कुछ दे कर अहं कार


मत करना, क्र्ा पता तू जो दे रहा है उससे अपने
वपछले जन्म का कजाण चक
ु ा रहा हो।
जजंदगी के इस रण में स्वर्ं ही कृष्ण और स्वर्ं
ही अजुन
ण बनना पड़ता है , रोज अपना ही सारथी
बनकर जीवन की महाभारत को लड़ना पड़ता है ।

सदा मौन रहना उचचत नहीं है क्र्ोंफक इनतहास


साक्षी है संसार में अचधकतर ववपदाएं इसललए आई
क्र्ोंफक समर् पर मनुष्र् उनका ववरोध नहीं कर
पार्ा।

जब मनुष्र् को अपने धमण पर अहं कार हो जाता है


तब उसके हाथों अधमण होने लगता है ।

इच्छाओं का त्र्ाग करना ही खश


ु ी का सबसे बड़ा
कारण है ।

श्री कृष्ण कहते हैं जब आप दस


ू रों के ललए अच्छा
चाहते हो तो वही अच्छी चीजें आपके जीवन में
वापस आती है र्ही प्रकृनत का ननर्म है ।
जजस प्रकार तेल समाप्त होने पर दीपक बझ

जाता है उसी प्रकार कमण क्षीण होने पर भाग्र् भी
नष्ट हो जाता है ।

कोई अपना साथ ना दे तो ननराश मत होना


क्र्ोंफक प्रभु से बड़ा हमसफ़र कोई नहीं है ।

जजसे तम
ु अपना समझ कर प्रसन्न हो रहे हो बस
र्ही प्रसन्नता तम्
ु हारे दख
ु ो का कारण है ।

क्रोध हो र्ा आंधी जब दोनों शांत हो जाते हैं तभी


पता चलता है फक फकतना नक
ु सान हुआ है ।

परोपकार सबसे बड़ा पुण्र् है और दस


ू रों को कष्ट
दे ना सबसे बड़ा पाप है ।

मनष्ु र् अपने ववचवास से ननलमणत होता है जैसा वो


ववचवास करता है वैसा ही बन जाता है ।
संदेह करने वाले लोगों को प्रसन्नता ना इस लोक
में लमलती है और ना ही फकसी अन्र् लोक में ।

परमात्मा कहते हैं भाग्र् से जजतनी ज्र्ादा उम्मीद


करोगे वह उतना ही ज्र्ादा ननराश करे गा और
कमण पर जजतना जोर दोगे वह हमेशा उम्मीद से
ज्र्ादा दे गा।

मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-परार्ा मन से लमटा दो


फिर सब तुम्हारा है और तम
ु सबके हो।

इनतहास कहता है फक कल सख
ु था, ववज्ञान कहता
है फक कल सख
ु होगा लेफकन धमण कहता है फक
अगर मन सच्चा और ददल अच्छा है तो हर रोज
सुख होगा।

जब तम्
ु हें ववचवास है फक तम्
ु हारा ईचवर तम्
ु हारे
साथ है तो क्र्ा िकण पड़ता है फक कौन तुम्हारे
खखलाि है ।
जजंदगी को हमेशा मुस्कुराकर जजर्ो क्र्ोंफक आप
नहीं जानते फक र्ह फकतनी बाकी है ।

मैं ववधाता होकर ववचध के ववधान को नहीं डाल


सका, मेरी चाह राधा थी और चाहती मझ
ु को मीरा
थी पर मैं रुकमणी का हो गर्ा।

जो सत्र् की राह पर चलते हैं उनकी जीत का


शंखनाद स्वर्ं प्रभु करते हैं, उनकी तकलीिों का
समाधान भी वही ननकालते हैं।

जब समस्र्ाओं पर ध्र्ान लगाओगे तो लक्ष्र्


ददखना बंद हो जाएगा और जब लक्ष्र् पर ध्र्ान
लगाओगे तो समस्र्ाएं ददखने बंद हो जाएंगी।

आपके कमण ही आपकी पहचान है वरना एक नाम


के हजारों इंसान हैं।
प्रहलाद जैसा ववचवास हो, भीलनी जैसी आस हो,
द्रोपदी जैसी पुकार हो और मीरा जैसा इंतजार हो
तो श्रीकृष्ण को आना ही पड़ता है ।

जब बरु े ददन आते हैं तो बद्


ु चध भी घास चरने
चली जाती है, इंसान चाह कर भी सही ननणणर्
नहीं ले पाता इसललए कहा जाता है फक इंसान बुरा
नहीं होता उसका वक्त बरु ा होता है ।

श्री कृष्ण कहते हैं दनु नर्ा के सारे खेल खेल लेना
पर भूलकर फकसी की भावनाओं के साथ मत
खेलना क्र्ोंफक र्े वो गन
ु ाह है जजन्हें मैं कभी
माि नहीं करूंगा।

घमंड बता दे ता है फक फकतना पैसा है , संस्कार


बता दे ते हैं फक पररवार कैसा है और बोली बता
दे ती है इंसान कैसा है ?

दो तरह के लोग आपको बताएंगे फक आप कोई


पररवतणन नहीं ला सकते, एक वो जो कोलशश
करने से डरते हैं और दस
ू रे वो जो आपकी
कामर्ाबी से डरते हैं।

ऊपर वाले की न्र्ार् की चक्की धीमी जरूर चलती


है लेफकन र्ाद रखना र्ह पीसती बहुत अच्छे से
है ।

आत्मा परु ाने शरीर को वैसे ही छोड़ दे ती है जैसे


मनष्ु र् परु ाने कपड़ों को उतारकर नए कपड़े धारण
कर लेता है ।

जीवन की संद
ु रता इस बात पर ननभणर नहीं करती
फक आप फकतने खश
ु हैं परं तु इस बात पर ननभणर
करती है फक आप के कारण दस
ू रे फकतना खुश है ।

श्री कृष्ण गीता में कहते हैं जब धरती पर पाप,


अहंकार और अधमण बढे गा तो उसका ववनाश
करने, पुनः धमण की स्थापना करने हे तु मैं अवचर्
आऊंगा।
जब कोई आप से घण
ृ ा करने लग जाए तो समझ
लेना वह आपका मुकाबला नहीं कर सकता।

कमणिल व्र्जक्त को उसी तरह ढूंढ लेता है जैसे


एक बछड़ा सैकड़ों गार्ों के बीच अपनी मां को ढूंढ
लेता है ।

क्रोध से भ्रम पैदा होता है , भ्रम से बद्


ु चध व्र्ग्र
होती है जब बुद्चध व्र्ग्र होती है तब तकण नष्ट हो
जाता है और जब तकण नष्ट हो जाता है तब
व्र्जक्त का पतन हो जाता है ।

दोस्तो मैं आशा करता हूं फक मेरी आवाज आपको


पसंद आई होगी, धन्र्वाद!

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