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अखंड भारत संकल्प दिवस 2023 (निश्चय)
अखंड भारत संकल्प दिवस 2023 (निश्चय)
उज्जैन ववभाग
अखण्ड भारत संकल्प विवस ववषय व ंिु २०२३
एस्जजया ना भारत –
वैज्ञाहनकोां की माने तो लगभग १९ करोड़ साल पिले सभी द्वीपराष्ट्र एक र्े और चारोां
ओर समुद्र र्ा ये सारे द्वीप आपस में जुड़े हुए र्े अर्ाथ त धरती का हसफथ एक टु कड़ा िी
समुद्र से उभरा हुआ र्ा इस इकठ्ठे द्वीप के चारोां ओर समुद्र र्ा और इसे वैज्ञाहनकोां ने
नाम हदया ‘एम्मन्जया’।
विमालयं समारभ्य यावत् इं िु सरे ावरम् |
तं िे ववनवमशतं िे र्ं विं िुथथानं प्चिते ।। ( ृिस्पवत आगम)
हिमालय पवथत से प्रारम्भ िोकर इां दु सरोवर (हिन्द मिासागर) तक फैला हुआ इश्वर
हनहमथत दे श िै "हिां दुथर्ान", यिी वि दे श िै जिाूँ ईश्वर समय - समय पर जन्म लेते िैं
और सामाहजक सभ्यता की थर्ापना करते िैं । हिन्दु थर्ान चन्द्रगुप्त मौयथ काल में र्ा
लेहकन आज िम हजसे हिन्दु थर्ान किते िै वि मात्र उसका एक हिस्सा िै
प्राचीन काल में सम्पूणथ जम्बू द्वीप पर िी आयथ हवचारधारा के लोग रिते र्े जम्बू द्वीप
धरती के मध्य में ६ द्वीपोां से हघरा हुआ र्ा इसके मध्य में इलावृत नामक दे श र्ा तर्ा
इसके मध्य में सुमेरु नामक पवथत र्ा
इलावृत के दहिण में कैलाश पवथत के पास भारतविथ , पहिम में केतुमाल (ईरान के तेिरान
से
रूस के मास्को तक ) पूवथ में िररविथ (जावा से चीन तक का िेत्र ) और भाद्रािविथ(रूस),
उत्तर में रम्यकविथ (रूस), हिरन्यमयविथ(रूस) और उत्तकुरुविथ(रूस) नामक दे श र्े I
ववष्णु पुराण के अनुसार –
जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थथत:, भारतं प्थमं वषं तत: वकंपुरुषं स्मृतम् ,
िररवषं तथैवान्यन् मेरोिश विणतो वद्वज, रम्यकं चोत्तरं वषं तस्यैवानुविरण्यम् ।
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा, नव सािस्त्रमेकैकमेतेषां वद्वजसत्तम् ।
इलावृतं च तन्मध्ये सौवणो मेरुरुस्ित:,भद्राश्चं पूवशतो मेरो: केतुमालं च पवश्चमे।
एकािर् र्तायामा: पािपावगररकेतव:,जं ूद्वीपस्य सांज ूनाशम िेतुमशिामुने।
िरती के सात द्वीप : पुराणोां और वेदोां के अनुसार धरती के सात द्वीप र्े – जम्बूद्वीप,
प्लिद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्ौांचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप, इनमे से जम्बूद्वीप
सभी के बीचोां बीच म्मथर्त िै I
जम्बू द्वीप को बािर से लाखोां योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चरोां ओर से
घेरा हुआ िै जम्बू द्वीप का हवस्तार एक लाख योजन िै जम्बू (जामुन) नामक वृि की इस
द्वीप पर अहधकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया र्ा
जम्बू द्वीप के ९ खंि थे – इलावृत, भद्राश्व, हकांपुरुि, भारत, िरर, केतुमाल, रम्यक, कुरु,
हिरण्यमय
जम्बू द्वीप में मुख्या रूप से ६ पवशत थे – हिमवान, िे मकूट, हनिध, नील, श्वेत, श्रांगावान
I जांबूद्वीप की प्रमुख नहदयाां - भरतिेत्र की गांगा-हसांधु, िै मवतिेत्र की रोहित-रोहितास्या,
िररिेत्र की िररत् -िररकाां ता, हवदे ििेत्र की सीता-सीतोदा, हवभांगा नदी, बत्तीस हवदे ि
दे शोां की गांगा-हसांधु, रम्यकिेत्र की नारी-नरकाां ता, िै रण्यवत िेत्र की सुवणथकूला, ऐरावत
िेत्र की रक्ता-रक्तोदा
चौंतीस कमशभूवम - भरतिेत्र के आयथखांड की एक कमथभूहम, वैसे िी ऐरावत िेत्र के
आयथखांड की एक कमथभूहम तर्ा बत्तीस हवदे िोां के आयथखांड की ३२ कमथभूहम ऐसे चौांतीस
कमथभूहम िैं । इनमें से भरत-ऐरावत में िट् काल पररवतथन िोने से ये दो अशाश्वत कमथभूहम
िैं एवां हवदे िोां में सदा िी कमथभूहम व्यवथर्ा िोने से वे शाश्वत कमथभूहम िैं ।
वायु पुराण के अनुसार त्रेता युग के प्रारां भ में स्वांयभू मनु के पौत्र और हप्रयव्रत के पुत्र ने
भरत खांड को बसाया र्ा। लेहकन राजा हप्रयव्रत के कोई भी पुत्र निीां र्ा हलिाजा उन्होांने
अपनी पुत्री के पुत्र अग्ीांध्र को गोद ले हलया र्ा हजसका लड़का नाहभ र्ा।
नाहभ की एक पत्नी मेरू दे वी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋिभ र्ा और ऋिभ के
पुत्र का नाम भरत र्ा और भरत के नाम पर िी दे श का नाम भारतविथ पड़ा र्ा। उस
वक्त राजा हप्रयव्रत ने अपनी कन्या के दस पुत्रोां में से सात पुत्रोां को पूरी धरती के सातोां
मिाद्वीपोां का अलग-अलग राजा हनयुक्त हकया र्ा।
आपको बता दें हक पुराणोां में राजा का अर्थ उस समय धमथ , और न्यायशील राज् के
सांथर्ापक के रूप में हलया जाता र्ा। इस तरि राजा हप्रयव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक
अग्ीांध्र को बनाया र्ा। इसके बाद राजा भरत ने जो अपना राज् अपने पुत्र को हदया विी
भारतविथ किलाया। आपको बता दें हक भारतविथ का अर्थ िोता िै राजा भरत का िेत्र
और राजा भरत के पुत्र का नाम सुमहत र्ा।
आयाशवतश –
कई लोगोां में यि भ्रम िै हक भारत को पिले आयाथ वतथ किते र्े या भारत दे श का एक
नाम आयाथ वतथ भी िै , परां तु यि सच निीां िै । बहुत से लोग भारतविथ को िी आयाथ वतथ
मानते िैं जबहक यि भारत का एक हिस्सा मात्र र्ा। वेदोां में उत्तरी भारत को आयाथ वतथ
किा गया िै । आयाथ वतथ का अर्थ आयों का हनवास थर्ान। आयथभूहम का हवस्तार काबुल
की कुांभा नदी से भारत की गांगा नदी तक र्ा।
ऋग्वेद में आयों के हनवास थर्ान को 'सप्तहसांधु' प्रदे श किा गया िै । ऋग्वेद के नदीसूक्त
(10/75) में आयथहनवास में प्रवाहित िोने वाली नहदयोां का वणथन हमलता िै , जो मुख्य िैं :-
कुभा (काबुल नदी), क्ुगु (कुरथ म), गोमती (गोमल), हसांधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज),
हवतस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तर्ा गांगा। उक्त सांपूणथ नहदयोां के आसपास और इसके
हवस्तार िेत्र तक आयथ रिते र्े।
ॐ ववष्णुववशष्णुववश ष्णुिः श्रीमि् भगवतोमिापु रुषस्य ववष्णोराज्ञया प्वत्तशमानस्य अद्य
ब्रह्मणोस्ि वद्ववतय परािे श्रीश्वेतवारािकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्ट्ाववं र्वत
तमे कवलयुगे कवलप्थमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवषे आयाशवतैकिे र्े
ववक्रमनाम संवतरे मासोत्तमे मासे , अमुक मासे अमुक पिे , अमुक वतथौ, अमुक
वासरे श्रुवतस्मृवतपुराणोक्त फलप्ास्प्तकाम: अमुकगोत्रोत्पनोsिममुक नामे,
सकलिु ररतोपर्मनं सवाशपिास्न्त पूवशक अमुक मनोरथ वसद्धयथश यथासपावित
सावमग्रया श्री अमुक िे वता पूजनं कररष्यये।।
उपरोक्त श्लोक यि किता िै हक जम्बूद्वीप के भारतखण्ड के अांतगथत भारतविथ और
भारतविथ के अांतगथत आयावथत दे श िै । इस तरि के कुछ श्लोकोां में आयाथ वतथ दे श के
अांतगथत ब्रह्मावतथक दे श का भी वणथन हमलता िै । यि सांकल्प लेने वाले जातक के थर्ान
को प्रदहशथत करता िै । भारतखांड में आयाथ वतथ मुख्य रूप से आयो के रिने के थर्ान र्ा।
यि बात इस सांकल्प श्लोक से हसि की जा सकती िै जो प्रत्येक पूजा हवहध की पुस्तकोां
में हमलता िै ।
अखण्ड भारत भारत के प्राचीन समय के अहवभाहजत स्वरूप को किा जाता िै । प्राचीन
काल में भारत बहुत हवस्तृत र्ा हजसमें अफगाहनस्तान, पाहकस्तान, बाां ग्लादे श, श्रीलांका,
बमाथ , र्ाइलैंड शाहमल र्े। कुछ दे श जिाूँ बहुत पिले के समय में अलग िो चुके र्े विीां
पाहकस्तान, बाां ग्लादे श आहद अांग्रेजोां से स्वतन्त्रता के काल में अलग हुये।
आज तक हकसी भी इहतिास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख निीां हमलता की बीते
2500 सालोां में हिां दुस्तान पर जो आक्मण हुए उनमें हकसी भी आक्मणकारी ने
अफगाहनस्तान, म्याां मार, श्रीलांका, नेपाल, हतब्बत, भूटान, पाहकस्तान, मालद्वीप या
बाां ग्लादे श पर आक्मण हकया िो। अब यिाां एक प्रश्न खड़ा िोता िै हक यि दे श कैसे
गुलाम और आजाद हुए। पाहकस्तान व बाां ग्लादे श हनमाथ ण का इहतिास तो सभी जानते
िैं । बाकी दे शोां के इहतिास की चचाथ निीां िोती। िकीकत में अांखड भारत की सीमाएां
हवश्व के बहुत बड़े भू -भाग तक फैली हुई र्ीां।
पृथ्वी का जब जल और र्ल इन दो तत्ोां में वगीकरण करते िैं , तब सात द्वीप एवां सात
मिासमुद्र माने जाते िैं । िम इसमें से प्राचीन नाम जम्बूद्वीप हजसे आज एहशया द्वीप किते
िैं तर्ा इन्दू सरोवरम् हजसे आज हिन्दू मिासागर किते िैं , के हनवासी िैं । इस जम्बूद्वीप
(एहशया) के लगभग मध्य में हिमालय पवथत म्मथर्त िै । हिमालय पवथत में हवश्व की सवाथ हधक
ऊांची चोटी सागरमार्ा, गौरीशांकर िैं , हजसे 1835 में अांग्रेज शासकोां ने एवरे स्ट नाम
दे कर इसकी प्राचीनता व पिचान को बदल हदया।
अखांड भारत इहतिास की हकताबोां में हिां दुस्तान की सीमाओां का उत्तर में हिमालय व
दहिण में हिां द मिासागर का वणथन िै , परां तु पूवथ व पहिम का वणथन निीां िै । परां तु जब
श्लोकोां की गिराई में जाएां और भूगोल की पुस्तकोां और एटलस का अध्ययन करें तभी
ध्यान में आ जाता िै हक श्लोक में पूवथ व पहिम हदशा का वणथन िै । कैलाश मानसरोवर’
से पूवथ की ओर जाएां तो वतथमान का इां डोनेहशया और पहिम की ओर जाएां तो वतथमान में
ईरान दे श या आयाथ न प्रदे श हिमालय के अांहतम छोर पर िैं ।
एटलस के अनुसार जब िम श्रीलांका या कन्याकुमारी से पूवथ व पहिम की ओर दे खेंगे तो
हिां द मिासागर इां डोनेहशया व आयाथ न (ईरान) तक िी िै । इन हमलन हबांदुओां के बाद िी
दोनोां ओर मिासागर का नाम बदलता िै । इस प्रकार से हिमालय, हिां द मिासागर,
आयाथ न (ईरान) व इां डोनेहशया के बीच का पूरे भू -भाग को आयाथ वतथ अर्वा भारतविथ या
हिां दुस्तान किा जाता िै ।
यि कैसी हवडां बना िै हक हजस लांका पर पुरुिोत्तम श्री राम ने हवजय प्राप्त की ,उसी
लांका को हवदे शी बना हदया। रचते िैं िर विथ रामलीला। वास्तव में दोिी िै िमारा
इहतिासकार समाज ,हजसने वोट-बैंक के भूखे नेताओां से मालपुए खाने के लालच में
भारत के वास्तहवक इहतिास को इतना धूहमल कर हदया िै , उसकी धूल साफ करने में
इन इहतिासकारोां और इनके आकाओां को साम्प्रदाहयकता हदखने लगती िै । यहद इन
तर्ाकहर्त इहतिासकारोां ने अपने आकाओां ने वोट-बैंक राजनीहत खेलने वालोां का सार्
निी छोड़ा, दे श को पुनः हवभाजन की ओर धकेल हदया जायेगा। इन तर्ाकहर्त
इहतिासकारो ने कभी वास्तहवक भूगोल एवां इहतिास से दे शवाहसओां को अवगत करवाने
का सािस निी हकया।
अखांड भारत की पररकल्पना कोई नई निीां िै । िर दे शभक्त अखांड भारत का स्वप्न
सांजोये हुए िै । राष्ट्रीय स्वयां सेवक सां घ के प्रमुख श्री मोिन भागवत के 15 विों में अखांड
भारत का स्वप्न साकार िोने और रास्ते में बाधाएां खड़ी करने वालोां के िट जाने सांबांधी
बयान पर हसयासत गमथ िो गई िै लेहकन सांघ प्रमुख ने ऐसा बयान कोई पिली बार निीां
हदया िै । अखांड भारत की चचाथ राष्ट्रीय स्वयां सेवक सां घ की थर्ापना के सार् िी शु रू िो
गई र्ी। सांघ के भगवा झांडे के सार्-सार् भारत मिाद्वीपीय िेत्र का एक भगवा मानहचत्र
भी प्रस्तुत हकया जाता िै । आज न जम्बूद्वीप िै , न आयाथ वतथ। आज केवल भारत िै ।
अखांड भारत के स्वप्न दृष्ट्ा र्े वीर सावरकर। वीरसावरकर दू रदशी राजनीहतज्ञोां में र्े , जो
समय से पिले िी समय के प्रवाि को अच्छी तरि समझ जाते र्े। हिन्दू मिासभा के नेता
के रूप में उन्होांने अपने भािणोां और अपनी लेखनी के माध्यम से दे श को सावधान
हकया हक भारत हवभाजन का पररणाम हकस रूप में दे श को भुगतना पड़े गा। वीर
सावरकर ने भारत-पाहकस्तान हवभाजन का खुलकर हवरोध हकया र्ा। स्वामी हववेकानांद
और मिहिथ अरहवन्द भी अखांड भारत की पररकल्पना के प्रबल समर्थक रिे । इन सभी
ने 700 विों तक गुलामी में रिे हिन्दू समाज में चेतना उत्पन्न की। सांघ प्रमुख पिले भी
कई बार स्पष्ट् कर चुके िैं हक दु हनया के कल्याण के हलए गौरवशाली अखांड भारत की
जरूरत िै । अखांड भारत का स्वप्न बल से निीां बम्मि हिन्दू धमथ से िी सम्भव िै । भारत
से अलग हुए सभी हिस्सोां, जो स्वयां को अब भारत का हिस्सा निीां मानते , उन्हें भारत से
जुड़ने की आवश्यकता िै ।
अखांड भारत मिज एक सपना निीां हनष्ठा िै
यि राष्ट्र के प्रहत श्रिा िै
िमने आजादी के हलए स्वतांत्रता सांग्राम लड़ा। राजनीहतक स्वतांत्रता तो हमली लेहकन यि
स्वतांत्रता साां स्कृहतक अम्मस्मता पर िावी िो गई।
इसमें कोई सांदेि निीां हक भारत आज शम्मक्तशाली दे श िै और उसके पास सैन्य सामर्थ्थ
िै । िमारा लक्ष्य हकसी दे श पर िमला करके उसे अपने सार् हमलाना निीां िै ।
जब लोगोां का हमलन िोता िै , तभी राष्ट्र बनता िै । अखां डता का मागथ साां स्कृहतक िै न हक
सैन्य कारथ वाई।
अखांड भारत करोड़ोां दे शवाहसयोां की भावना िै और भारत की अखांडता का आधार
भूगोल से ज्ादा साां स्कृहतक और धाहमथक िै ।
अखांड भारत केवल शब्द निीां बम्मि यि िमारी दे शभम्मक्त और सांकल्पोां की भावना िै ।
ऐसी भावना रखना गलत कैसे िो सकता िै । सांघ प्रमुख के वक्तव्य का अर्थ यि निीां हक
भारत अलग हुए दे शोां पर आक्मण करे गा और उनकी सीमाओां को हमलाकर उन पर
शासन करे गा। वैहश्वक पररम्मथर्हतयोां के चलते ऐसा सम्भव िी निीां िै लेहकन मैं उनके
वक्तव्य को हजतना समझ सका हूां , उसके अनुसार उसका अर्थ यिी िै हक भारत
आहर्थक, व्यापाररक, साां स्कृहतक और धाहमथक तौर पर इतना हवकास करे गा हक अखांड
भारत के टु कड़ोां-टु कड़ोां में बांटे अफगाहनस्तान, पाहकस्तान, नेपाल, श्रीलांका, म्याां मार
सहित अन्य दे शोां को भारत की जरूरत पड़े गी। वतथमान में ऐसा िो भी रिा िै । सांकट
की घड़ी में भारत ने अफगाहनस्तान, नेपाल, श्रीलांका, म्याां मार और भूटान की िमेशा
उदार हृदय से सिायता की िै । जिाां तक पाहकस्तान का सांबांध िै , दे श का हवभाजन
धाहमथक आधार पर हुआ र्ा। सीमाएां विाां के हुकमरानोां ने खड़ी की। आतांकवाद और
भारत हवरोध की हसयासत विाां के हुकमरानोां ने खड़ी की िै । पाहकस्तान का क्या िाल
िै , यि सारी दु हनया जानती िै । दीवारें सरकारोां ने खड़ी की िैं । उिीद िै हक यि म्मथर्हत
भी बदल जाएगी। इसहलए िम सबको सशक्त भारत, तेजस्वी भारत के हलए सांकल्पबि
िोकर प्रयास करने िोांगे। जब खांड-खांड हुए दे श भारत से मधुर सांबांध कायम कर लेंगे,
एक सूत्र में हपरो हदए जाएां गे , उसी हदन भारत अखांड बन जाएगा।
क्या अखंि भारत संभव िै ?
भारत का पीर से अखांड िोना असांभव िै (फुल स्टॉप) । इसमें एक
grammaticallyगलती िै पूणथहवराम के थर्ान पर अल्पहवराम िोना चाहिए, उसके बाद
हलखना िै “मेरे जीवन तक.”
व्यम्मक्त के हलए ३०-४० विथ बहुत बड़ा समय िै लगभग आधा जीवन, परन्तु दे श के हलए
३०-४० विथ बहुत छोटा िै । राष्ट्र जीवन तो मेरे जीवन के बाद भी चलता रिे गा । १००-
२०० विो बाद क्या िोगा यहद मई मेरे जीवन में कुछ कुछ करता रहूूँ ।
१८५७ स्वतांत्रता सांग्राम को अांग्रेजो ने पूरी तरि कुचल हदया । कोई सोच भी निीां सकता
र्ा भारत स्वतांत्र िोगा । लोग किते र्े भूल जाओ अब आजादी ! परन्तु तब भी प्रयाश
करने वाले र्े वासुदेव बलबांत खड् गे जानते र्े की मेरे जीते जी तो स्वतांत्रता निीां हमल
सकती परन्तु जान की बाजी लगा दी । चािे हकतनी भी पीहड़याूँ लगे , वे लगे रिे । ऐसे
िी लोगो से इहतिास बनता िै
“अखांड भारत िोगा ऐसे मानने वाले लोगो की सांख्या बिे । करोडो लोगो को इस हवचार
धारा वाला बनायें इस मनो म्मथर्हत में आने पर िी वे आगे सुनने की म्मथर्हत में आयेंगें
(अन्यर्ा वे किें गे – यि सांभव निीां िै और जो सांभव निीां उस पर हवचार करना व्यर्थ िै
३०-३५ करोड़ सांभल निीां रिे २०-२५ करोड़े और आ गए तो)
➢ क्योां न िम यहूहदयोां से सीख ले उनका प्रेरक प्रसांग िमारे सामने िै उन्हें उनके घर से
खदे ड़ हदया गया। 1800 विों तक भी इधर - उधर भटकते रिे । सांसार भर में वे
अकर्नीय दमन के हशकार हुए। हकांतु अांततोगत्ा। वे सफल हुए। उन्होांने अपनी
प्राचीन मातृभूहम में अपना स्वाधीन और स्वतांत्र राष्ट्र थर्ाहपत हकया। पीिी – अनु – पीिी,
सदी – अनु - सदी उनके मन मांहदर में आशा का ये अखण्ड दीप जलता रिा। हक वे
तभी शाां हत से बै ठेंगे जब इजराइल में अपने राष्ट्र की प्रहतमा को पुन थर्ाहपत कर लें गे।
प्रत्येक यहूदी के घर में टां गा येरुशलम की ‘हवहलांग वॉल’ का हचत्र और प्रत्येक हवश्राम -
हदवस पर उनकी प्रार्थना अगले विथ येरुशलम में उन्हें सदा उनकी पहवत्र सांकल्प का
स्मरण हदलाते रिे िैं , भले िी वे सांसार भर में फैले हुए र्े। इस प्रकार 100 पीहियोां का
उनका स्वप्न साकार िो सका। सांसार ने तो उन्हें अपने मन से हनकाल कर इहतिास की
कूड़े दानी में फेंक हदया र्ा, पर वि राष्ट्र पु नः जीहवत िो उठा मानो हचता में से उठकर
खड़ा िो गया िो। क्या भारत के पुनः एकीकरण का स्वप्न इससे भी दु ष्कर िै ?
क्या करें –
धैयथ रखें, अधीर न िोां। यि १०-२०-५०- विथ का भी काम निीां िैं । इसराइल को दे खे ।
पिला प्रयास -अखांड भारत सांभव िै , १०० प्रहतशत ऐसी िमारी सोच बने ।
ऐसी सोच वालोां की सांख्या में उतरोत्तर वृम्मि िो-करोडो में ।
धमथ से मुम्मस्लम, सांस्कृहत से हिन्दू – ऐसी सोच वाले मुसलमानोांकी सांख्या बिाना।
िमारी अगली पीिी भी ऐसी सोच वाली बने (इसराइल से प्रेरणा ) ।निीां तो सब एक दो
पीिी बाद सब समाप्त िो जायेगा ।वेदना /टीस/पीड़ा को बनाये रखना िमारा दाहयत्
िै
अखांड भारत पर िमारे कायथक्म और उन कायथक्मोां में भागीदार बिना चाहिए ।
छोटे बड़े प्रयोगोां / कायथक्मोां (अखांड भारत मानहचत्र, हनबांध, चचाथ , वाद-हववाद ....) से
हवचार को हजांदा रखें ।
िमारे जीवन, िमारे नाती-पोतोां के बच्ो के जीवन में न सिी परन्तु िमारी आने
वाली पीहियाां अखांड भारत का दृश्य दे खेंगीां ।
• मैं स्पष्ट् रूप से हचत्र दे ख रिा हूां हक भारत माता अखांड िोकर हवश्वगुरु के
हसांिासन पर हफर से आरूि िैं . – अरव ंिो घोष
• आइए, िम प्राप्त स्वतांत्रता को सुदृि नीव पर खड़ा करें और अखण्ड भारत
के हलए प्रहतज्ञाबि िोां. -वीर ववनायक िामोिर सावरकर
• अखांड भारत मात्र एक हवचार न िोकर हवचारपूवथक हकया हुआ एक सांकल्प
िै । कुछ लोग हवभाजन को एक पत्थर का स्तांभ मानते िै , उनका ऐसा
दृहष्ट्कोण सवथर्ा अनुहचत िै । ऐसे हवचार केवल मातृभूहम के प्रहत उत्कट
भम्मक्त की कमी का पररचायक िैं . -पंवित िीनियाल उपाध्याय
• िम सब अर्ाथ त भारत पाहकस्तान और बाां ग्लादे श इन तीनोां दे शोां में रिने वाले
लोग वस्तुतः एक िी राष्ट्र भारत के वासी िैं , िमारी राजनीहतक इकाइयाां भले
िी हभन्न िोां परां तु िमारी राष्ट्रीयता एक रिी िै और वि िै भारतीय –
लोकनायक जयप्कार् नारायण
• चाणक्य ने एक “अखांड भारत” के हवचार को प्रहतपाहदत हकया , हजसका
अर्थ िै हक इस िेत्र के सभी राज् एक िी प्राहधकरण, शासन और प्रशासन
के अधीन िैं ।
➢ हिां दू मांहदर वास्तुकला की शैली का उपयोग दहिण पूवथ एहशया में कई प्राचीन
मांहदरोां में हकया गया र्ा, हजसमें अांगकोर वाट भी शाहमल िै , जो हिां दू भगवान
हवष्णु को समहपथत िै और कांबोहडया के ध्वज पर हदखाया गया िै ; मध्य जावा में
प्रम्बानन, इां डोनेहशया में सबसे बड़ा हिां दू मांहदर, हत्रमूहतथ – हशव, हवष्णु और ब्रह्मा
को समहपथत िै ।
➢ मध्य जावा, इां डोनेहशया में बोरोबुदुर, दु हनया का सबसे बड़ा बौि स्मारक िै ।
इसने स्तूपोां के मुकुट वाले एक हवशाल पत्थर को मानवीय स्तूप का आकार
हदया गया िै और माना जाता िै हक यि भारतीय मूल के बौि हवचारोां का
सांयोजन िै , जो मूल ऑस्टर ोनेहशयन चरण हपराहमड की हपछली मिापािाण
परां परा के समतुल्य िै ।
➢ इां डोनेहशया में 15 वीां से 16 वीां शताब्दी की मम्मिदें , जैसे हक डे माक और
कुद् दु स मम्मिद की बड़ी मम्मिदें मजापाहित हिां दू मांहदरोां से हमलती जुलती िैं ।
माजापहिट इां डोनेहशया और दहिण पूवथ एहशया के इहतिास में अांहतम प्रमुख
साम्राज्ोां में से एक र्ा।
➢ मलेहशया में बाटू गुफाएूँ भारत के बािर सबसे लोकहप्रय हिां दू तीर्थथर्लोां में से
एक िैं । यि मलेहशया में वाहिथक हर्पुसम उत्सव का केंद्र हबांदु िै और 1.5
हमहलयन से अहधक तीर्थयाहत्रयोां को आकहिथत करता िै , जो इसे दु हनया के सबसे
बड़े धाहमथक समारोिोां में से एक बनाता िै ।
➢ ब्रह्मा को समहपथत इरावन मठ, र्ाईलैंड के सबसे लोकहप्रय धाहमथक मांहदरोां में
से एक िै ।
हजस हदन दे श अखांहडत िोगा
िवा बिे गी जब पुरवाई, उस हदन झुमके गाऊांगा मैं
उस हदन खुशी मनाऊांगा मैं… हजस हदन दे श अखांहडत िोगा
मन तो करता िै मै गाऊां सावन ओर भादो के गीत
राधा गाऊां काना गाऊां और गाऊां अपना मनमीत
हकन्तु माूँ के खांहडत बाजु मुजको बहुत रुलाते िै
आूँ खोां में रक्त उतर आता िै अांगारे िि जाते िै
हजस हदन इन अांगारोां से िर हदल आग लगाऊांगा मैं
उस हदन झुमके गाऊांगा मै उस हदन खु शी मनाऊांगा मैं
हजस हदन दे श अखांहडत िोगा
पास निीां िै वो ननकाना वो लवपुर लािोर निीां
हिां गलाज माता का मांहदर वो परसन की डोर निीां
बरसोां हजसने ज्ञान हबखेरा तिहशला भी हुआ पराया
हुई परायी धरती हजस पर नलवाने पौरुि चमकाया
हजस हदन सारे मानहबांदु ये लौटाकर ले आऊांगा मैं
उस हदन झुमके गाऊांगा मै उस हदन खु शी मनाऊांगा मैं
हजस हदन दे श अखांहडत िोगा
रावी का तट बार बार क्यु हफर आवाज लगाता िै
बोल सके तो बोल जवािर शपर् याद हदलाता िै
मेरी लाश पर िोांगे टु कडे बापू ये तेरी वाणी िै
सत्य तुम्हारा हुआ रे झुठा और अहिां सा पानी
हजस हदन रावी अपनी िोगी उस हदन खुशी मनाऊांगा मैं
उस हदन झुमके गाऊांगा मै उस हदन खु शी मनाऊांगा मैं.... हजस हदन दे श अखांहडत
िोगा
राष्ट्र की जय चे तना का गान वांदे मातरम्
राष्ट्रभम्मक्त प्रेरणा का गान वांदे मातरम्