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श्लेष अलंकार के उदाहरण
श्लेष अलंकार के उदाहरण
श्लेष’ का अर्थ चिपकना। जिस शब्द में एकाचिक अर्थ हों, उसे ही जश्लष्ट शब्द कहते हैं। श्लेष
के दो भेद होते हैं–शब्द-श्लेष और अर्थ-श्लेष
िैसे-
1.रहहमन पानी राखिए, बिन पानी सि सून।
पानी गए न ऊिरे , मोती, मानुस, िन
ू ।।
यहााँ दस
ू री पंजक्त में ‘पानी’ जश्लष्ट शब्द है, िो प्रसंग के अनुसार तीन अर्थ दे । रहा है -
मोती के अर्थ में – िमक
मनष्ु य के अर्थ में – प्रततष्ठा और
िन
ू े के अर्थ में – िल
इस एक शब्द के द्वारा अनेक अर्ों का िोि कराए िाने के कारण यहााँ श्लेष अलंकार है।
िैसे-
उक्त उदाहरण की दस
ू री पंजक्त में ‘नीिो हवै िले’ और ऊाँिो होय’ शब्द सामान्यतः एक ही अर्थ
का िोि कराते हैं, लेककन ‘नर’ और ‘नलनीर’ के प्रसंग में दो भभन्नार्ों की प्रतीतत कराते हैं।
इस उदाहरण में हरर शब्द एक िार प्रयुक्त हुआ है लेककन उसके दो अर्थ तनकलते हैं।
पहला अर्थ है िन्दर एवं दस
ू रा अर्थ है भगवानजो
10.जो चाहो चटक ि घटे , मैलो होय ि ममत्त राज राजस ि छुिाइये िेह चीकिे चचत्त।।
इस उदाहरण में दे ि सकते हैं कक रि शब्द से डो अर्थ तनकल रहे हैं पहला है अहं कार
तर्ा दस
ू रा िुल।
11.गि
ु ते लेत रहीम जि, समलल कूप ते काढ़ि।
कूपहुं से कहूं होत है, मि काहू को बाढ़ि॥
यहााँ ‘ततरगुन’ शब्द में शब्द श्लेष की योिना हुई है। इसके दो अर्थ है - तीन गुण-सत्त्व,
रिस ्, तमस ्। दसू रा अर्थ है- तीन िागोंवाली रस्सी।
ये दोनों अर्थ प्रकरण के अनस
ु ार ठीक िैठते है, क्योंकक इनकी अर्थसंगतत ‘महाठचगतन
माया’ से िैठायी गयी है।.
ऊपर हदए गए काव्यांश में कवव द्वारा हररत शब्द का प्रयोग दो अर्थ प्रकट करने के भलए
ककया है। यहााँ हररत शब्द के अर्थ हैं- हवषथत (प्रसन्न होना) और हरे रं ग का होना। अतः
यह उदाहरण श्लेष के अंतगथत आएगा क्योंकक एक ही शब्द के दो अर्थ प्रकट हो रहे हैं।