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संस्कृत व्याकरण

वचन

(क) एकवचन- जो केवल एक व्यक्ति या एक वस्तु का ज्ञान कराए, उसे कौन कहते हैं ।

(ख) द्विवचन- जो केवल दो व्यक्तियोों अथवा दो वस्तुओों का ज्ञान कराए, से द्विवचन


कहते हैं ।

(ग) बहुवचन- दो से अद्विक वस्तुओों का बोि कराने के द्वलए बहुवचन का योग होता है ।

पुरुष:-
सोंस्कृत में तीन पुरुष होते हैं ।

प्रथम पुरुष (Third Person) -द्वजस व्यक्ति के बारे में बात की जाए, वह प्रथम पुरुष
कहलाता है । जैसे- वह, वे दो, वे सब।

मध्यम पुरुष (Second Person) द्वजस व्यक्ति से बात की जाती है ,वह मध्यम पुरुष
कहलाता है । जैसे-तू, तु म, तुम सब।

उत्तम पुरुष (First Person)-जो पु रुष बात करने वाला होता है , उसे उत्तम पुरुष कहते
हैं । जैसे-मैं, हम, हम सब।

द्व ंग :- सोंस्कृत में पु क्तिग, स्त्रीद्वलोंग तथा नपुोंसकद्वलोंग-ये तीन द्वलोंग होते है ।

द्विया: - ऐसे शब्द जो हमें द्वकसी काम के करने या होने का बोि कराते हैं , वे शब्द
द्विया कहलाते हैं ।

जैसे: पढ़ना, द्वलखना, खाना, पीना, खेलना, सोना आद्वद।


कारक:

वाक्ोों में सोंज्ञा और द्विया इन दो शब्दोों की ही प्रमुखता रहती है । इन दोनोों में द्वकसी न
द्वकसी प्रकार का सम्बन्ध अवश्य होता है । यह सम्बन्ध कारकोों के रूप में होता है । अतः
द्विया के साथ द्वजस शब्द का सम्बन्ध होता है , उसे कारक कहते हैं । कारक आठ हैं ,
परन्तु सों स्कृत भाषा में सात द्ववभक्तियााँ मानी गई है ।

द्ववभक्ति: द्विया के साथ सों ज्ञा शब्दोों के सम्बन्ध को प्रकट करने के द्वलए जो प्रत्यय
लगाया जाता है , उसे द्ववभक्ति कहते हैं ।

कारक द्ववभक्ति
द्ववभक्ति का शाक्तब्दक अथथ है - ' द्ववभि होने की द्विया या भाव' या 'द्ववभाग'
या 'बााँट'
व्याकरण में शब्द (सोंज्ञा, सवथनाम तथा द्ववशेषण) के आगे लगा हुआ वह प्रत्यय
या द्वचह्न द्ववभक्ति कहलाता है द्वजससे पता लगता है द्वक उस शब्द का
द्वियापद से क्ा सोंबोंि है। सोंस्कृत व्याकरण के अनुसार नाम या सोंज्ञा शब्दोों
के बाद लगने वाले वे प्रत्यय 'द्ववभक्ति' कहलाते हैं जो नाम या सोंज्ञा शब्दोों को
पद (वाक् प्रयोगाथथ) बनाते हैं और कारक पररणद्वत के िारा द्विया के साथ
सोंबोंि सूद्वचत करते हैं। प्रथमा, द्वितीया, तृतीया आद्वद द्ववभक्तियााँ हैं द्वजनमें
एकवचन, द्विवचन, बहुवचन—तीन वचन होते है।
पाद्वणनीय व्याकरण में इन्हें 'सुप' आद्वद २७ द्ववभक्ति के रूप में द्वगनाया गया
है। सोंस्कृत व्याकरण में द्वजसे 'द्ववभक्ति' कहते है, वह वास्तव में शब्द का
रूपाोंतररत अोंग होता है। जैसे,—रामेण, रामाय इत्याद्वद।
व्याकरण के सन्दभथ में, द्वकसी वाक्, मुहावरा या वाक्ाोंश में सोंज्ञा या सवथनाम
का द्विया के साथ सम्बन्ध कारक कहलाता है।
कारक द्ववभक्ति वह द्ववभक्ति जो सोंस्कृत में सदा 'शब्दोों के साथ जुड़ती है,
कारक द्ववभक्ति कहलाती है। जैसे-रामाय (राम के द्वलए), मोहनम् मोहन को),
इत्याद्वद।
1. कताा कारक (प्रथमा द्ववभक्ति) - सोंज्ञा के द्वजस रूप से कतथत्व प्रकट हो,
वह कताथ कारक कहलाता है। जैसे-मोहनः पठद्वत, बाले पठतः, पत्राद्वण
पतक्तन्त।
2. कमा कारक (द्वितीया द्ववभक्ति)- द्वजसमें कताथ के कमथ का द्वविान द्वकया
गया हो, वह कमथ कारक कहलाता है। जैसे अहों लेखों द्वलखाद्वम। ते व्याकरणों
द्वलखक्तन्त।
3. करण कारक (तृतीया द्ववभक्ति)- सोंज्ञा के द्वजस रूप से द्विया के सािन
का बोि होता है, वह करण कारक है। जैसे सः कलमेन द्वलखद्वत। रामः
चरणाभ्याम् चलद्वत।
4. सम्प्रदान कारक (चतुथी द्ववभक्ति)-द्विया का व्यवहार द्वजसके द्वलए
द्वकया जाए या द्वजसे कुछ दान आद्वद द्वदया जाए, वह सम्प्रदान कारक
कहलाता है। यथा- जनकः पुत्राय कन्दु कम् यच्छद्वत। गुरुः द्वशष्याय पुस्तकों
ददाद्वत।
5. अपादान कारक (पंचमी द्ववभक्ति)-जहााँ सोंज्ञा से पृथक् होना पाया जाए,
उसे अपादान कारक कहते हैं। जैसे बालकः द्ववद्यालयात् गच्छद्वत। सैद्वनकः
अश्वात् पतद्वत।
6. संबंध कारक (षष्ठी द्ववभक्ति)-द्वजस रूप िारा सोंज्ञा शब्दोों का पारस्पररक
सोंबोंि जाना जाए, उसे सोंबोंि कारक कहते हैं। यथा एतत् कूपस्य जलम्। इयों
वृक्षस्य शाखा। एतत् बालकस्य पुस्तकम्।
7. अद्वधकरण कारक (सप्तमी द्ववभक्ति)- अद्विकरण या आिार में सप्तमी
द्ववभक्ति होती है। तथा- जनाः गृहे वसक्तन्त।सरोवरे मीनाः तरक्तन्त।
8. संबोधन- द्वकस रूप िारा द्वकसी को पुकारा या सोंबोद्वित द्वकया जाता है,
उसे सोंबोिन कहते हैं। जैसे हे राम! भो बालकाः!

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