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मनुस्मृति

प्रथम अध्याय

सृति िथा धमम उत्पति

एक बार सब महर्षि र्मलकर मनु महाराज के पास गए और उनका यथोर्ित सत्कार करके बोले -"हे
भगवान ! आप सब वणों तथा जो अन्य जार्त के मनुष्य हैं उन सबके धमि और कति व्ोों को ठीक-ठीक रूप
से बतलाने में समथि हैं। क्ोोंर्क आप अर्वज्ञ जगत के तत्त्व को जानने वाले हैं और आप ही जो र्वधान रूप
वेद हैं , र्जनका र्क र्िन्तन से पार नहीों पाया जा सकता, जो अपररर्मत सत्य र्वद्याओों का र्वधान है उनके
अथों को जानने वाले भी केवल आप ही हैं ।" उन महात्माओों के इस प्रकार कहने पर मनु महाराज ने भी
उनका उसी प्रकार आदर सत्कार र्कया और र्िर उनसे कहा, "सुर्नए। यह सब जगत सृर्ि से पहले प्रलय
में , अन्धकार में आवृत्त था। उस समय न र्कसी के जानने , न तकि और न प्रर्सद्ध र्िह्ोों से युक्त इों न्द्रियोों से
जानने योग्य था, वह सब जगत खोये हुए के समान ही था।

सब अपने कायि में स्वयों समथि अथाित् स्वयों भू त और स्थूल में प्रकट न होने वाला अथाि त् अव्क्त इस
महाभू त आकाशार्द को प्रकार्शत करने वाला परमात्मा इस सोंसार को प्रकटावस्था में लाते हुए प्रकट
हुआ। और र्िर उस परमात्मा ने अपने आश्रम से ही महत नामक तत्त्व को और महतत्त्व से "मैं हों" ऐसा
अर्भमान करने वाले सामर्थ्िशाली अहों कार नामक तत्त्व को और र्िर उनसे सब र्िगुणात्मक
पोंितन्मािाओों तथा आत्मोपकारक मन इन्द्रिय को और र्वषयोों को ग्रहण करने वाली पााँ ि ज्ञानेन्द्रियोों और
पााँ ि कमे न्द्रियोों को यथाक्रम से उत्पन्न कर प्रकट र्कया। उन तत्त्वोों में से अनन्त शन्द्रक्त वाले छहोों तत्त्वोों के
सूक्ष्म अवयवोों को उनके आत्मभू त तत्त्वोों के कारणोों में र्मलाकर सारे पााँ ि महाभू तोों की सृर्ि की।

उस परमात्मा के सब पदाथों के नाम, जैसे ‘गौ’, ‘अश्व’ आर्द और उनके र्भन्न-र्भन्न कमि जैसे ब्राह्मण का वेद
पढ़ना, क्षर्िय का रक्षा करना आर्द-आर्द कायि र्नधाि ररत र्कए तथा पृथक-पृथक र्वभाग या व्वस्थायें सृर्ि
के आरम्भ में वेद के शब्ोों के आधार पर ही बनाए। इस प्रकार उस परमात्मा ने कमाि त्मना सूयि , अर्ि, वायु
आर्द दे वोों, मनुष्य पशु-पक्षी आर्द सामान्य प्रार्णयोों के और साधक कोर्ट के र्वशेष र्वद्वानोों के समु दायोों को
तथा सृर्िकाल से प्रलय काल तक र्नरन्तर िले आ रहे सूक्ष्म सोंसार को रिा।

उस परमात्मा ने जगत के सब रूपोों के ज्ञान के र्लए अर्ि, वायु और रर्व से ऋक् यजुुः साम रूप र्िर्वध
ज्ञान वाले र्नत्य वेदोों को दु हकर प्रकट र्कया। र्िर काल और मास, ऋतु अयन आर्द काल र्वभागोों को
कृर्त्तका आर्द नक्षिोों, सूयि आर्द ग्रहोों को और नदी समुद्र पवित तथा ऊोंिे नीिे स्थानोों को बनाया। र्िर इन
प्रजाओों की सृर्ि के इच्छायुक्त उस ब्रह्मा ने तपोों को, वाणी को, रर्त को, इच्छा को, क्रोध को रिा, और र्िर
कमों के र्ववेिन के र्लए धमि अधमि का र्वभाजन र्कया। इन प्रजाओों को सुख-दु ुःख आर्द द्वन्दद्वोों से जोडा।

समाज की समृ न्द्रद्ध के र्लए मु ख बाहु जोंघा और पैर की तु लना के अनुसार क्रमशुः ब्राह्मण, क्षर्िय, वैश्य और
शूद्रवणि को र्नर्मि त र्कया। र्िर उस र्वराट् पुरुष ने तप करके इस जगत की सृर्ि करने वाले मु झको
उत्पन्न र्कया और र्िर मैं ने प्रजा की सृर्ि करने की इच्छा से कर्ठन तप करके पहले दश प्रजापर्त महर्षियोों
को उत्पन्न र्कया। इन दश महर्षियोों ने मे री आज्ञा से बडा तप र्कया और र्िर र्जसका जैसा कमि
है ,तदनुरूप दे व, मनुष्य तथा पशु-पक्षी आर्द योर्नयोों को उत्पन्न र्कया। इस सोंसार में र्जन मनुष्योों का जैसा
कमि वेदोों में कहा गया है उसे वैसे ही और उत्पन्न होने में जीवोों का एक र्नर्ित प्रकार रहता है । पशु, मृ ग,
व्ाघ्र, दोनोों ओर दााँ त वाले राक्षस, र्पशाि और मनुष्य, ये सब जरायुज अथाि त् र्झल्ली से उत्पन्न होने वाले
हैं । पक्षी, साों प, मगर, मछली तथा कछु ए और अन्य जो इस प्रकार के स्थल में उत्पन्न होने वाले और जल में
उत्पन्न होने वाले जीव हैं , वे अण्डज अथाि त् अण्डे में से उत्पन्न होते हैं । मच्छर, जुों , मक्खी, खटमल और जो
भी इस प्रकार के कोई जीव होों जैसे भु नगे आर्द वे सब सीलन और गमी से उत्पन्न होते हैं , उनको ‘स्वे दज’
अथाि त् पसीने से उत्पन्न होने वाले कहा जाता है । बीज के बोने तथा डार्लयोों के लगाने से उत्पन्न होने वाले
सब स्थावर जीव वृक्ष आर्द अन्द्रिज भू र्म को िाडकर उगने वाले कहलाते हैं । इनमें िलोों के पकने पर
सूख जाने वाले और र्जन पर बहुत िल िूल लगते हैं । ‘औषर्ध’ कहलाते हैं । र्जन पर र्बना िूल आये ही
िल लगते हैं वे बड, पीपल आर्द वनस्पर्त कहलाते हैं और िूल तथा उसके बाद िल लगने वाले जीव
‘वृक्ष’ कहलाते हैं ।

अनेक प्रकार के जड से ही गुच्छे के रूप में बनने वाले झाड आर्द, एक जड से अनेक भागोों में िूटने वालोों
ईख आर्द तथा उसी प्रकार घास की सब जार्तयाों बीज और शाखा से उत्पन्न होने वाले उगकर िैलने वाले
‘दू ब’ आर्द और बेलें से सब भी ‘उन्द्रिज’ ही कहलाते हैं। पुनजिन्मोों के कारण बहुत प्रकार के तमोगुण से
आवेर्ित ये स्थावर जीवन जब वह परमात्मा जागकर सृर्ि उत्पर्त्त आर्द की इच्छा करता है तब यह समस्त
सोंसार िे िायुक्त होता है और जब यह शान्त आत्मावाला सभी कायों से शान्त होकर सोता है , अथाि त्
इच्छारर्हत होता है , तब यह समस्त सोंसार प्रलय को प्राप्त होता है। सृर्ि से र्नवृत्त हुए उस परमात्मा के
सोने पर, श्वास प्रश्वास िलना र्िरना आर्द को करने का र्जनका स्वभाव है , वे दे हधारी जीवन अपने -अपने
कमों से र्नवृत्त हो जाते हैं और सब इों र्द्रयोों समे त मन भी ग्लार्न की अवस्था को प्राप्त करता है ।

उस सविव्ापक परमात्मा के आश्रम में जब एक साथ ही सब प्राणी िे िाहीन होकर लीन हो जाते हैं तब यह
सब प्रार्णयोों का आश्रय स्थान परमात्मा की सृर्ि सोंिालन के कायों से र्नवृत्त हुआ सुखपूविक सोता है । इस
प्रकार वह अर्वनाशी परमात्मा जागने और सोने की अवस्थाओों द्वारा इस जड और िे तन रूप जगत को
र्नरन्तर र्जलाता और मारता है ।

मनुस्मृति के अनुसार सृ ति - रचना , पृत्वी पर जीव ों की उत्पति िथा उनकी प्रकृति का अोंकन

मनुस्मृर्त के प्रथम अध्याय में सृर्ि की रिना, पृ थ्वी पर जीवोों के जन्म तथा उन की प्रकृर्त के बारे में र्वस्तररत र्ववरण
इस प्रकार अों र्कत उप्लब्द्द्ध है -

आसीर्दतों तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम् ।

अप्रतक्मर्वज्ञेयों प्रसुप्तर्मव सवितुः ।।

ततुः स्वयों भूभगि वानव्क्तो व्ञ्जयर्न्नदम्।

महाभूतार्द वृत्तौजाुः प्रादु रासीत्तमोनुदुः।। (मनु स्मृ र्त 1 – 5-6)


अथाि त – पहले यह सोंसार तम (अन्धकार) प्रकृर्त से र्घरा था, र्जस से कुछ भी ज्ञात नहीों होता था। अनुमान करने
योग्य कोई रूप नहीों था र्जस से तकि दू ारा लक्षण न्द्रस्थर कर सके। सभी ओर अज्ञान और शून्य की अवस्था थी। इस
के बाद प्रलयावस्था के नाश करने वाले लक्षण सृर्ि के सामर्थ्ि से यु क्त, स्वयों भु भगवान महाभूतार्द (पृ थ्वी, जल, अर्ि,
आकाश और वायु ) पों ि तत्ोों का प्रकाश करते हुए प्रकट हुए। (यहााँ यह स्पिीकरण भी जरूरी है र्क ‘तम’ का
अपना कोई अस्तीत् नहीों होता। ‘रौशनी का अभाव’ ही तम की अवस्था है ।)

पृ थ्वी, जल, अर्ि, आकाश और वायु का प्रगट होना आधुर्नक भौर्तक र्वज्ञान का जन्म है क्ोों र्क उन्ीों महाभूतोों के
र्मश्रण से ही सृिी के अन्य पदाथि र्वकर्सत हुये या मानव दू ारा र्वकर्सत र्कये गये हैं । प्रािीन शास्त्ोों के अनुसार
प्रथम जीवन जल और गमी से उत्पन्न हुआ। जल सूयाि र्ि की तपश और वायु के कारण आकाश में उडता है तथा र्िर
वषाि के रूप में पु नुः पृ थ्वी पर आता है र्जस से पै ड-पौधे जन्म लेते हैं, जीव उत्पन्न होते हैं और पिात मानव का जन्म
होता है। यही आस्थायें मानवी र्वज्ञान का आधार हैं र्जन्ें सरलता के साथ समझाने के र्लये हम दे वी दे वता का रूप
में र्ििण भी कर सकते हैं और उन्ीों तर्थ्ोों को आधार बना कर रौिक कथायें भी र्लख सकते हैं। समस्त वेदोों,
उपर्नषदोों, पु राणोों में मनुस्मृर्त की तरह ही सृर्ि की उत्पर्त्त का बखान र्कया गया है और कहीों भी र्वरोधाभास नहीों
है ।

जीव-तवज्ञान :- हमारे पू विजोों को सभी प्रकार के जीवोों से ले कर मानव के जन्म तक का पू णि ज्ञान था। बृ हत र्वष्णु
पु राण के अनुसार सब से पहले जल में सृर्ि हुई र्िर वानर जो र्क मानवोों के अग्रज हैं । यही र्विारधारा कालान्तर
डारर्वन नें अपने नाम से पों जीकृत करवा कर ‘एवोलुशन र्थयोरी ’ के नाम से प्रिाररत कर ली। आर्दकाल से पशु-
पक्षी अपने जैसे जीवोों को ही उत्पन्न करते िले आ रहै हैं। पशु पर्क्षयोों ने अपनी सोंतानोों को पररर्शक्षण दे ने के र्लये
कोई र्वद्यालय नहीों बनाये । र्िर भी उन के नवजात अपनी जार्त के रहन-सहन को अपने आप ही सीख जाते हैं।
र्डस्कवरी तथा नेशनल ज्योग्रार्िक टी वी िैनलोों पर इन सभी तर्थ्ोों को अब प्रत्यक्ष दे खा जा सकता है । प्राणी-र्वज्ञान
के इसी तर्थ् को डारर्वन से सैंकडोों वषि पूवि मनुसमृर्त में इस प्रकार उजागर र्कया गया थाुः-

यों तु कमिर्ण यन्द्रस्मन्स न्ययुड्क्त प्रथमों प्रभुुः।

स तदे व स्वयों भेजे सृज्यमानुः पु नुः पु नुः ।। (मनु स्मृ र्त1- 28)

अथाि त- पहले ब्रह्मा ने र्जस जीव को र्जस कायि में र्नयु क्त र्कया, वह बारम्बार उत्पन्न हो कर भी अपने पू वि-कमि को
करने लगा।

र्वष्णु के दस अवतार भी सृर्ि सजिन की कहानी को कलान्द्रत्मक ढों ग से उजागर करते हैं । सृर्ि की उत्पर्त्त से ही
समस्त जीवोों में आत्मा बार बार उसी परमात्मा की ही पु नवृिर्त करती है। इसी र्विार को छन्दोग्य उपर्नषद ने भी
व्क्त र्कया है । पौरार्णक कथाओों तथा लोक कथाओों में पशु-पर्क्षयोों और पैड-पौधोों का मानवी भाषा में बात करना
इस वैज्ञार्नक तर्थ् को प्रमार्णत करता है र्क ना केवल पशु-पर्क्षयोों में बन्द्रि पै ड-पौधोों में भी जीवन के साथ साथ
सोंवेदनायें भी र्वद्यमान है । इसी तर्थ् की पु नवृिर्त करने के र्लये र्वश्व के आधुर्नक वैर्ज्ञार्नकोों और तकि शान्द्रस्त्योों ने
सर जगदीशिि बोस को नोबल पु रस्कार से सम्मार्नत र्कया था।

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