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मंत्र क्या है?

मंत्र मतलब शब्दों का संचय , जिससे भवििन इष्ट को प्राप्त कर


सकते हैं और अननष्ट बाधाओं को दरू कर सकते हैं ।
मंत्र :
‘मन ्’ का तात्पयय मन अर्ायत मनन से है |
‘त्र’ का तात्पयय है शजतत - रक्षा ।

मंत्र अर्ायत जिसके मनन से व्यजतत का हर प्रकार से विकास हो।


व्यंिन और स्िरों से ममलकर बनता है मंत्र बीि | बीि, मंत्र के दे िता
की शजतत को िागत
ृ करता है ।

सिद्धि क्या होती है ?

कोई काम या बात मसद्ध करने या होने की अिस्र्ा या भाि।

कोई ऐसा उद्दे श्य पूरा होना अर्िा ककसी ऐसे लक्ष्य तक पहुँचना
जिसके मलए विशेष पररश्रम और प्रयत्न ककया गया हो।

ददव्य उिाय की अनभूनत एक ऐसी विमशष्ट क्षमता योग्यता िो के


पररश्रम या प्रयत्न के फल स्िरूप प्राप्त हई हो।

एिं उसके फल के रूप में होने िाली प्राजप्त, लाभ या सफलता =


मसद्धध

ऋ: ऋद्धध-मसद्धध को दे ने िाला, शभ कायों में उपयोगी मंत्रबीि ।


बीिभूत इस अक्षर द्िारा, हर मनोिांनित शभकायय की मसद्धध
ननजश्चत ही है |
:Self-Healing Practical:

िंकल्प
दोनोों हाथो को जोड़कर तीन बार नवकार मोंत्र गीने और अपने हाथो मे
शोंत्रुजय तीथथ और शोंत्रुजय ततथाथ तिपतत आदीनाथ भगवान की उजाथ का श्री
भक्तामर स्तोत्र के मोंत्रोों की शक्तक्त के प्रभाव से जीवन शक्तक्त के साथ आहवान
करे |

“ श्री भक्तामर स्तोत्र के सभी श्लोक की भक्तक्त की शक्तक्त से जीवन शक्तक्त,


शंत्रुजय तीर्थ और शंत्रुजय ततर्ाथतिपतत आदीनार् भगवान की उजाथ मेरे सहस्त्रािर
चक्र से प्रवेश करके हर एक चक्र में से पसार होते हुए मुजे शुद्ध बना रही है |”
Karuna Prarthna:

िर्वथा िहु िख ु ी थाओ , पाप न कोई आचरो ,


राग-द्र्ेष थी मुक्त थई , मक्ु क्त िख
ु िहु जग र्रो |

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