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श्री आदिनाथाय नमो नम: | श्री चक्रेश्वरी िै व्ये नम : |

श्री जैन भक्तामर महास्तोत्र हील ग


िं कोर्स
DAY : 06
मन्त्त्र लर्द्धि के क्षण :

जब मंत्र के साधक अपने आज्ञा-चक्र में मंत्र या बीजमंत्र अग्नन-अक्षरों में


लिखा दिखाई िे , तो मंत्र-लसद्ध हुआ समझना चादहए |

शुद्धता ,पवित्रता और चेतना का उर्ध्गमन का अनुभि करे , तो मंत्र-लसद्ध


हुआ जानें |

मंत्र लसद्धध के पश्च्यात साधक की शारीररक,मानलसक और अर्धयाग्ममक


इ्छाओं की पूर्तग अपने आप ही होनें ि् जाती हैं |

मंत्र का हमेशा शुद्ध उ्चारण ही करना चादहए |

मंत्रो का शद्
ु ध उ्चारण – पाठन- मनन कररये, िही काफी है | इसका का
कोई भी नकाराममक प्रभाि कभी भी नहीं होता है ककन्तु आपको इसको
शुद्ि उच्चारण एविं ववशुद्ि भावों से ध्नना है |

इसे प्रेम र्े दि र्े जविये, डर र्े नहीिं । मंत्र शब्िों का संचय होता है ,
ग्जससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अर्नष्ट बाधाओं को नष्ट कर
सकते हैं ।

मन्त्त्र शक्क्त वह ता बद्ि, र्मयबद्ि, क्रमबद्ि, अनश


ु ार्न बद्ि
और वविानबद्ि ध्वनन-ववज्ञान है जो प्रकृनत को, वस्तुओिं को,
िररक्स्थयों को , वातावरण को और ब्रह्माण्ड को प्रभाववत रखने
की िूणस क्षमता रखता है |

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स्वर अक्षरों की अद्भुत शक्क्त (वणस मातक
ृ ा – भाग – 1)

अ अव्यय सच
ू क, शग्तत प्रिायक, प्रणि बीज का कताग।
आ सारस्ित का जनक यही है , शग्तत बुद्धध पररचायक।
माया बीज सदहत होता है , यह धन-कीर्तग प्रिायक।
इ ्र्त का सूचक, अग्नन-बीज का, जनक िक्ष्मी का साधक।
ई अमत
ृ -बीज यह स्तम्भक है , कायग साधने िािा। ‘‘ई‘‘ ज्ञान
बढाने िािा।
उ मंत्र-बीज यह, बहुत शग्ततशािी है ।
ऊ उ्चारण के मार्धयम से बहुत शग्तत लमिती है , यह
विघ्िंसक कायग तंत्र है ।
ऋ ऋद्धध-लसद्धध को िे ने िािा, शुभ कायों में उपयो्ी। कायग
लसद्धध र्नग्श्चचत हो्ी।
ृ िाणी का संहारक है यह, ककन्तु समय का संचारक। आमम-
लसद्धध एिं िक्ष्मी बीज यही कारक।।
ए पण
ू ग अटिता िाने िािा, पोषन संिद्गधन करता। ‘ए‘
बीजाक्षर शग्तत युतत हो, सभी अररष्ट हरण करता |
ऐ िशीकरण का जनक बीज यह, ऋण विद्यत
ु ् का उमपािक।
ककतना भी कदठन काम इससे हो जाता है एकिम आसान।
ओ िक्ष्मी पोषक, माया बीजक, सुष्ठु िस्तुएँ करे प्रिान।
औ र्नरपेक्षी है स्ियं बीज यह, कई बीजों का मूि प्रधान।
अिं ‘‘अं‘‘ अभाि का सूचक है , शून्याकाश बीज परतंत्र।
कमागभािी है यह मंत्र।।
अः शाग्न्त-बीज में प्रमुख बीज यह, रहता नहीं स्ियं र्नरपेक्ष।

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