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करण तुम कहां हो??ℍⓡयाणा आले)
करण तुम कहां हो??ℍⓡयाणा आले)
आभार
वआवत’मान म™ लंदन िनवासी िस मनोिचिक सक डॉ टर पाथ l चौधरी क`
यक मनोिचिक सा संबंिधत परामश’ क` िलए म उनका शुe गुजार । इस
उप यास म™ उनका परामश’ मेर` िलए अ यंत मह वपूण’ रहा। अतः उ ह™ हािद’क ध
यवाद! वाराणसी से कािशत समाचार-प आज क` सामािजक पृ पर यह उप यास
धारावािहक v प म™ कािशत होते
समय पि का क` सामा य बंधक eी अिमताभ चeवतf, सह संपादक eी रामजी
राजीवनजी एवं िविश प कार eी अिमताभ भ?ाचाय’ से ाw सहयोग क`
िलए म अपना आभार य करता । इस प रविध’त एवं संशोिधत सं करण ‘कण’ तुम
कहाँ हो’ क पांड¸िलिप क` संशोधन क` साथ-साथ संपादन का दािय व िनवा’ह करने
क` िलए म ‘आज’ पि का क` उपसंपादक eी
िशवमूरत यादवजी क` ित आभारी ।
कण’ तुम कहाँ हो
‘‘लं च अवर’ क` बाद अपने च™बर म™ प चते ही अचानक फोन बज उठा।
फोन उठाते ही रसे शिन ट िमस च ा ने कहा, ‘‘सर, परचेज िडपाट’म™ट क`
िम टर अ राय ‘ना य सदन’ से र ग कर रह` ह । आपसे बात करना चाहते ह ।’’
लाइन जोड़ देने क` िलए म ने कहा।
अ हमार` टाफ रिe एशन ब क` सेe`टरी क` अित र ना य िनद´शक भी ह । वे ब
त ही चतुर एवं बु मान नौजवान ह ।
आज हमार` ‘ड`नहम एंड क पार’ क पनी का एनुअल ड` ह`। शाम को अ राय क` िनद´शन
म™
टाफ रिe एशन ब क` म™बर ारा एक नाटक खेला जाएगा।
दो िदन पहले ही अ सभी अफसर को अलग-अलग िनमं ण-प खुद आकर प चा
गया ह`। चूँिक इस साल म रिe एशन ब का अ य e , अ ने मुझे सप नीक नाटक
देखने क`
िलए िवशेष v प से िनमंि त िकया ह`।
एक-आध बार मुझे रहस’ल देखने क` िलए अ बुला भी ले गया था, लेिकन पूरा
रहस’ल देखने का मौका मुझे कभी भी नह िमला। िफर भी म समझ गया था िक अ
म™ िनद´शन क कािबिलयत और क¸शलता ह`।
लेिकन आज अचानक ‘ना य सदन’ से फोन करने का कारण नह समझ म™ आया।
‘‘सर, म अ बोल रहा । सर आपको, खयाल ह` न, आज हमार` टाफ रिe एशन ब
ारा ‘एक और कण’’ नाटक खेला जाएगा। आपक मेज पर शीशे क` नीचे बाई ओर
काड’ रखा आ ह`। आप आएँगे न?’’ अ ने बड़ी िवन ता से पूछा।
‘‘हाँ भाई, याद ह`। लेिकन साढ़` तीन बजे से एम.डी. ने एक मीिट ग बुलाई ह`। मालूम
नह कब तक मीिट ग चलेगी—िफर भी उ t मीद करता िक तुt हारा शो शुv होने से पहले
हॉल म™ प च जाऊ गा।’’
‘‘एम.डी. भी आने क सtमित दे चुक` ह । सर, म आपक` िलए िवशेष vप से इ
तजार क v गा, य िक हम लोग ने िन w य िकया ह` िक अ य e क` प चने से
पहले हम नाटक शुv नह कर™गे।’’
म ने कहा था—‘‘अर` नह -नह । ऐसा मत करना। लेिकन जब एम.डी. भी जाएँगे, तब
मीिट ग ज v र तुt हारा नाटक शुv होने से पहले ही ख म हो जाएगी।’’
अ ने कहा था—‘‘काइ डली आप िमसेज सेन को भी लेते आइएगा। नए ि
कोण से महाभारत क` कण’ और यूनानी कण’ को देखकर उ ह™ खुशी होगी।’’
‘‘ठीक ह`, लेता आऊ गा।’’
‘‘फोन रख रहा सर। िसफ’ आपको याद िदलाने क` इरादे से ही ना य सदन से
म ने आपको फोन िकया।’’
अ ने लाइन काट दी थी।
तब से लेकर शाम क` पाँच बजकर पचास िमनट तक थोड़ी सी भी फ¸रसत नह
िमली। व पर एम.डी. क` कमर` म™ हम सभी अफसर को बुलाया गया। से स
मैनेजर, परचेज मैनेजर, प &लक रलेशंस अफसर क` v प म™ मेर` और सभी
िडपाट’म™टलह` स क` साथ एम.डी. ने एक फॉर`न असाइनम™ट पर जोरदार मीिट ग क ।
मीिट ग क` बाद घर प चते-प चते छह बजकर चालीस िमनट हो गए। एक मामूली
`िफक जाम म™ फ स जाने से मुझे िचंता हो रही थी िक म अ से िकया आ वादा
िनभा पाऊ गा या नह ।
घर लौटकर ज दी-ज दी w`श होकर, एक कप चाय पी। िफर िततली क` साथ जब ‘ना
य सदन’ म™ म प चा, तब ितरछी नजर से कलाई घड़ी म™ देखा िक ठीक साढ़` सात
बजे ह ।
हमारी गाड़ी क` ठीक सामने ही एम.डी. क गाड़ी ने भी ‘ना य सदन’ क` अहाते म™ वेश
िकया।
अ और कई लोग हम™ रसीव करने क` इ तजार म™ थे। वे एम.डी., मुझे और
िततली को लेकर हॉल क ओर बढ़`। दूसर` अफसर भी धीर`-धीर` आ गए। अफसर क प
नय से आँख
िमलते ही िततली ने िकसी को ‘नॉ ’ िकया, िकसी को ‘उईश’ िकया और िकसी
क` साथ बात™ करते ए वह भी हॉल क ओर बढ़ने लगी।
अ ने एम.डी. एवं िमसेज एम.डी को फ ट’ रो क` बाई ओर िबठाया। मुझे, ि ततली
परचेज मैनेजर शांत और उसक प नी तथा चीफ एकाउ ट™ट उनक अधा िगनी को फ ट’
रो क` दाई ओर िबठाया।
अपनी सीट पर बैठने से पहले म ने एक नजर म™ देखा िक हमार` टाफ और उनक` प
रवार क` लोग तथा अ य िनमंि त सwन क भीड़ से पूरा ऑिडटो रयम खचाखच
भरा ह`।
उ ोषक अ राय ने घोषणा क —‘‘स w नो, हमारी सं था, ‘ड`िनयल एंड क पार’
क` इस आनंद उ सव यानी िक ‘एनुअल ड`’ क` अवसर पर हम सब आपका वागत
करते ह ।’’ नाटक शुv होने से पहले उ ह ने आदरणीय एम.डी. इ जीिनयर डॉ. गुलाटी
एवं सं था क`
रिe एशन ब क` अ य e क` नाते मुझे मंच पर आमंि त िकया। िफर ोिसिनयम क`
सामने ही एम. डी. एवं मुझे माला पहनाई गई, िफर अ राय क` कहने पर डॉ. गुलाटी ने
बड़` सुलझे ढ ग से कहा,‘‘उप थत स w नो एवं सहयोिगयो, आज का िदन ‘ड`िनयल एंड
क पार’ क` िलए एक हष’ का िदन ह`, य िक उप थत दश’क को यह जानकर स ता
होगी िक हमारी सं था क` कम’चारी यावसाियक काय क` अित र य कला म™
अ vुत क¸शलता रखते ए नाटक का भी मंचन कर सकते ह । अतः म सभी
कलाकार को हािद’क ध यवाद देता । साथ ही, उप थत दश’क को भी उनक सहायता
एवं सहयोग क` िलए आंत रक ध यवाद देता ।’’
म ने भी उप थत दश’क एवं कलाकार को ध यवाद देने क` बाद कहा िक ऐसे अवसर पर
नीरस भाषण सुनना िनरथ’क तीत होता ह`, लेिकन िनद´शक एवं मंच संचालक ने मुझे दो
श&द कहने क` िलए आमंि त िकया, िजसक` िलए वेबधाई क` पा ह । ‘एक
और कण’’ नाटक क अिभनव िवषयव तु, नाटक क` लेखक एवं िनद´शन म™ िनद
´शक ने जो प रeम
िकया ह`—उन सभी काय क` िलए उ ह™ एवं अ य कलाकार को म िवशेष v प से बधाई
देता
। म दावे क` साथ कह सकता िक ‘एक और कण’’ क तुलना मक िवषयव तु
आपक उ सुकता को अव य ही बनाए रखेगी एवं नाटक का अंत देखने क` िलए आप भी
मेरी तरह साँस रोककर इ तजार करने क` िलए बा य हो जाएँगे।
अंत म™ अ राय ने सबको ध यवाद िदया और िफर डॉ. गुलाटी और म जैसे ही
दश’क- दीघा’ म™ अपने-अपने थान पर बैठ`, नाटक शुv हो गया।
परदा हटते ही देखने म™ आया िक यूनानी भवन िनमा’ण कला क` अनुसार मंच को
सजाया गया ह`। समझ गया िक अ पहले यूनान क पौरािणक कथा से ही नाटक का ार
भ कर`गा।
धीर`-धीर` यूनानी मंच संपूण’ आलोिकत हो गया। राजा इर`किथयस क इकलौतीबेटी राजा क
आँख का तारा िकशोरी e सा एक चंचल िहरणी क तरह महल म™ दौड़धूप मचा रही
ह`। मंच पर उसे एक िततली क` पीछ` दौड़ते ए देखा गया। कभी वह उछल-क द मचा
रही ह`, कभी
िखलिखलाकर ह स रही ह`। वा तव म™ e सा का स f दय’ च f कानेवाला ह`। अचानक
संगीत, कला क` देवता सूय’, यूनानी अपोलो मंच पर वेश करते ह । e सा
आwय’चिकत होकर क जाती ह` और कहती ह`—‘‘देवता अपोलो! भु आप क`से आ
गए!’’
मुसकराते ए अपोलो ने कहा, ‘‘न, न, भु मत कहो ि ये। तुt हारा स f दय’,
तुt हारी सजीवता ने मुझे इतना आकिष’त िकया िक म अिलंपस म™ एकाक रह
नह पाया। िववश होकर मुझे अपना थान छोड़कर राजा इर`किथयस क बेटी e सा क`
पास आना ही पड़ा।’’ अपोलो दोन हाथ से e सा क` हाथ को पकड़ लेते ह ।
अपोलो क` पश’ से िकशोरी e सा क` मन म™ एक हलचल मच गई। िलहाजा उसक`
चेहर` पर शम’, आनंद एवं यार क अिभ य याँ एक क` बाद एक देखने को िमल ।
बड़ी मीठी आवाज म™ e सा ने अपोलो से कहा, ‘‘आप मुझे पश’ न करो। म
सार` बदन म™ एक अना वािदत रोमांच महसूस कर रही ।’’
अपोलो ने कहा, ‘‘वसंत ऋतु क मंद-मंद हवाएँ जब फ ल पर से गुजरती ह , तो फ ल भी
हवा से इसी तरह िशकायत करते ए अपने को बचाने क कोिशश करते ह ।’’
अपोलो को एकटक देखते ए e सा कहती ह`, ‘‘म ने इतना v पवान पु ष पहले कभी
नह देखा ह`। आपक मुसकराहट मेर` मन म™ यह क`सी हलचल उ प कर दे रही ह`,
अपोलो। मुझे यह दुिनया आज इतनी खूबसूरत य लगने लगी ह`? एक मादकता उ प
करनेवाली खुशबू मुझे इतना रोमांिचत य कर रही ह`?’’
अपोलो क मीठी मुसकान देखकर और उनक यार भरी बात™ सुनकर e सा को ऐसा
आनंद महसूस होने लगा, िजसे उसने पहले कभी भी अनुभव नह िकया था। उसे इस दुिनया
का v प, रस और खुशबू क¸छ नई जैसी महसूस होने लगे।
धीर`-धीर` मंच क रोशनी कम होती गई और िफर क¸छ eण क` िलए मंच पर
अँधेरा छा गया।
थोड़ी देर बाद जब मंच पर उषाकाल क रोशनी छाने लगी तो हमने देखा िक राजा
इर`किथयस क` महल और यूनानी भवन िनमा’ण कला क` थान पर एक भारतीय वातावरण
बन चुका ह`।
राजा क¸ तीभोज क` महल म™ अचानक महिष’ दुवा’सा हािजर ए ह । िसर पर बाल
क एक जटा समेट` ऊ चे कद क` महिष’ दुवा’सा एक बेहद आकष’क तप वी ह ।
महिष’ दुवा’सा ने राजा क¸ तीभोज से कहा, ‘‘राजन, िभ eा माँगकर आपक` महल म™
क¸छ िदन ठहरने क इ छा मेर` मन म™ ह`। लेिकन महाराज, जब तक म आपक` घर पर र
, कोई भी मेरी इ छा क` िवपरीत काम न कर` और मेरी सेवा म™ भी आपसे कोई ुिट
न हो।’’
महिष’ दुवा’सा को देखते ही राजा क¸ तीभोज काफ पर`शान हो उठ`, य िक दुवा’सा क`
eोध क` बार` म™ वह अनजान नह थे। उनक वािहश सुनकर भयभीत होते ए भी,
बड़ी िवन ता से महिष’ से उ ह ने कहा, ‘‘ह` तप वी, यह तो मेरा सौभा य ह` िक आपने
मेर` इस गरीबखाने म™ रहने क इ छा य क ह`। आपक देखभाल म™ भी कोई
कसर नह छोड़ी जाएगी। मेरी पु ी पृथा आपक सेवा करती रह`गी। मुझे पूण’ िव
ास ह` िक पृथा क सेवा से आप स ह गे।’’
अंतःपुर म™ आकर राजा क¸ तीभोज ने पृथा से कहा, ‘‘मेरी यारी बेटी पृथा, एक ब त
बड़` तप वी मेर` घर म™ क¸छ िदन ठहरना चाहते ह । तुtह™ सारा यान लगाकर महिष’
क सेवा करनी होगी।’’
पृथा को साथ लेकर राजा क¸ तीभोज दुवा’सा क` पास प चे। बड़` आदर क` साथ उ
ह ने उनसे कहा, ‘‘ह` महिष’, आपक आ ानुसार मेरी ाण से भी यारी पु ी पृथा
आपक सेवा करती रह`गी।’’
बेहद खूबसूरत क¸ ती को देखकर महिष’ दुवा’सा शायद अपना eोध भी भूल गए।
िव मत आँख से वह क¸ ती को देखने लगे। उनक` ठ पर हलक -सी मुसकान देखने
को िमली। राजा क¸ तीभोज भी िन wंत हो गए।
करीब एक साल तक महिष’ दुवा’सा राजा क¸ तीभोज क` महल म™ ठहर`। क¸ ती क
सेवा ने महिष’ को काफ स िकया। महल छोड़कर जाने से पहले महिष’ ने क¸ ती
को एक मं
िसखाकर कहा, ‘‘ह` क याणी, इस मं क` बल पर तुम अपनी इ छानुसार िकसी भी
देवता को आमंि त कर सकोगी।’’
महिष’ दुवा’सा राजा क¸ तीभोज क` महल को छोड़कर चले गए ।
िकशोरी क¸ ती ने एक िदन अपने िब तर पर बैठ`-बैठ` सूय’ क ओर देखा। कवच-क¸
डलयु सूय’देव को देखते ही अचानक उसे याद आ जाती ह`- महिष’ दुवा’सा ारा
िसखाए ए मं क बात। मं क` भाव को जाँचने क इ छा से क¸ ती ने सूय’देव को
आमंि त िकया।
पलभर म™ सूय’देव क¸ ती क` िब तर से सटकर खड़` हो गए।
सूय’ को उप थत देखकर िकशोरी क¸ ती बेचैन हो उठी। शम’ और सक¸चाहट से वह
आँख™ उठाकर सूय’देव क ओर देख तक नह सक ।
सूय’देव ने क¸ ती से ेम िनवेदन िकया। उनक मीठी मुसकान और यार भरी बात™
सुनकर क¸ ती एक ऐसा रोमांच महसूस करती ह`, िजसे उसने उससे पहले कभी भी महसूस
नह िकया था।
धीर`-धीर` मंच क रोशनी कम होती गई और िफर एकदम अँधेरा हो गया।
ना य-िनद´शक िफर हम™ यूनानी पुराण क` जोन म™ वापस ले गए। संपूण’ हॉल क`
लोग
िन त&ध होकर ‘एक और कण’’ नाटक का रस अनुभव कर रह` थे। यूनानी एवं
भारतीय च र क पोशाक, मेक-अप एवं मंचस wा ब त ही सटीक ह`। वा तव म™ ना
य-िनद´शक क` v प म™ अ राय क यो यता बेजोड़ मालूम पड़ रही ह`। सभी लोग
महाभारत क घटनाएँ थोड़ी-ब त जानते ह , लेिकन यूनानी पुराण क` साथ सामंज य
रखते ए अ ने िजस तरह से नाटक को िनयोिजत िकया ह`, उससे जानी ई घटना भी
क¸छ नई-सी लग रही ह`। दश’क मंच क ओर से िनगाह हटाने म™ अपने को असमथ’
पा रह` ह ।
एक झलक म ने िततली क ओर देखा। वह भी अपना सारा यान नाटक पर क` ि त करक`
िभ -िभ िकरदार क` अिभनय देख रही ह`। बाएँ हाथ से िततली क बाँह पर एक
हलका- सा दाँव देते ही वह मुसकराकर मेरी तरफ देखी। आँख से इशारा करक` मुझे
उसने समझा
िदया िक उसे नाटक ब त ही अ छा लग रहा ह`।
यूनानी पुराण क` जोन पर अपोलो और e सा क` यार का अिभनय होने लगा। अपोलो क`
यार से िव ल होकर e सा अपने को सँभाल नह पाती ह`। अप रप बु e सा
िनिष फल खाने क` लालच म™ फ स जाती ह`- अपोलो क` यार भर` आिलंगन म™।
अपोलो क चौड़ी छाती पर e सा अपना िसर िटका देती ह`।
काश यव था िनद´शक ने मंच क रोशनी घटाते ए संपूण’ मंच पर एक गुलाबी रोशनी
िबखेर दी। िफर कई सेक` ड तक मंच पर अँधेरा करने क` बाद, जब उ ह ने मंच को
हलक` नीले र ग क रोशनी से भर िदया, तो देखा िक e सा क गोद म™ एक मासूम ब
ा ह`।
मंच पर अपोलो नह िदखाई पड़`।
असहाय ढ ग से e सा िवलाप कर रही थी, ‘‘देवता अपोलो, आपक मीठी बात से
भािवत होकर म ने आपक` पास तक प चने क इ छा क , लेिकन आपने मेर` सtमान
को इस कार से न कर िदया। अब म अपने िपता इर`किथयस से, अपने प रजन क`
सम e क`से अपना स t मान बनाए रखूँगी! नह , नह , अपोलो, म आपक` इस आशीवा’द
को अपने पास नह रख सकती । समाज क नजर म™िकसी नारी क` िलए िववाह
से पूव’ ही मातृ व ाw करना अनुिचत ह`, यह अिभशाप ह`, आशीवा’द नह ।’’
वह रोने लगती ह`। उसक` रोने क आवाज सुनकर उसक खास दासी क` अंदर आते ही वह
उसे कहती ह`, ‘‘नीरी, अपोलो क` आशीवा’द से मुझे एक बेटा िमला, लेिकन म लोकलाज
से इसे अपने पास नह रख सकती । जाओ नीरी, इस ब े को ले जाकर एथ™स क
िकसी पहाड़ी गुफा म™ िलटा दो। इसक` ज म क` बार` म™ िकसी को भी पता नह
लगना चािहए। िकसी
को मेर` ब े क` माँ-बाप क` बार` म™ कभी जानकारी न होने पाए। हमेशा-हमेशा क` िलए
इसका प रचय धुंध म™ िछपा रहने देना।’’
e सा अपने ब े को अपने हाथ से िसले ए व v से ढककर एक टोकरी म™ सुला
देती ह` और िफर टोकरी दासी नीरी को स f पती ई आँसी आवाज म™ कहती ह`, ‘‘जा
बेटा, तेर` जैसे बदनसीब को एक अभािगन माँ अपना लाड़- यार दे नह सक । e मा
करना बेटा अपनी माँ को, देवता अपोलो तेरी र eा कर™।’’
यार से ब े को चूमने क` बाद e सा ने उसे नीरी को स f प िदया।
दासी टोकरी लेकर िनकल जाती ह`। e सा दुःखी होकर रोती रहती ह`। क¸छ देर बाद
दासी जब खाली हाथ वापस आती ह` तो e सा उससे पूछती ह`, ‘‘नीरी, मेर` ब े को
एथ™स क गुफा म™ िलटा िदया ह` न! उसे कोई खतरा तो नही ह`?’’
नीरी ने e सा को आ त िकया।
e सा क` श&द थे—‘‘देवता अपोलो उसक र eा
कर™’’ धीर`-धीर` यूनानी जोन पर अँधेरा छा गया।
e सा क च र ािभने ी ने बड़ी ही क¸शलता से एक माँ क` दय क पीड़ा, अपनी संतान को
िवसिज’त करने क वेदना को अपने अिभनय से उजागर िकया। म ने अंदाज लगाया
िक अिभने ी एक पेशेवर मंच-नाियका ह` और अपने को च र क` साथ िमला लेने म™
भी मािहर ह`। यिद वह मािहर नह होती, तो ऐसा अिभनय िकसी शौक न अिभने ी से
संभव नह हो पाता।
उधर िफर काश यव थापक ने िडमर क मदद से भारतीय पुराण क` जोन म™
हलक -सी रोशनी ला दी।
िकशोरी क¸ ती सूय’देव क` णय संभाषण से िपघल गई। सूय’देव ने कहा, ‘‘ह`
सुvिपनी मं क` भाव से म तुt हार` वश म™ आ गया । बोलो, मुझे या करना ह`?’’
िकशोरी क¸ ती बेचैन हो उठी। वह तो िसफ’ महिष’ दुवा’सा क` मं क श क जाँच
करना चाहती थी। सूय’देव से क¸ ती ने यह बात कही, लेिकन क¸ ती क बात को कोई मह व
न देकर सूय’देव ने कहा, ‘‘मुझे मालूम ह` िक मेर` जैसा ही कवच-क¸ डल यु एक पु
ाw करने क`
िलए तुम उ सुक हो। ह` क याणी, तुt हारी अनुमित िमलते ही म ऐसा एक पु तुtह™ दे
सकता
।’’
भयभीत िकशोरी क¸ ती ने कहा, ‘‘आय’, आप से शादी िकए बगैर, माता-िपता से अनुमित
िलये िबना म क`से आपक संतान क जननी बन सकती । आप मुझे e मा कर™। ह`
सूय’देव, म अपनी क यकाव था न नह कर सकती ।’’
लेिकन सूय’देव िकशोरी क¸ ती क` आमं ण पर ही उसक श*या क` पास आए ह । उ
ह ने क¸ ती को सां वना दी, ‘‘म तुt हारी क यकाव था को िबना न िकए ही
तुtह™ कवच- क¸ डलयु एक वीर पु दान कर सकता ।’’
क¸ ती अपने को और सँभाल नह पाई। वह भी सूय’देव को अपने आगोश म™ पाना
चाहती थी। वह राजी हो गई।
सूय’देव क` क¸ ती क` नािभदेश पश’ करते ही, सूय’देव क` खर तेज से भािवत होकर क¸ ती
अचेत हो गई। वह सूय’देव क` िवशालव e से िसमट गई।
काश यव थापक ने िफर उसी यूनानी जोन क तरह धीर`-धीर` मंच पर रोशनी कम
क और सार` मंच पर एक गुलाबी रोशनी छा गई। िफर चंद ल t ह तक मंच को अंधकार
म™ ड¸बो देने क` बाद धीर`-धीर` मंच को जब नीली रोशनी से उ a ल िकया तो क¸ ती
क गोद म™ एक छोटा सा ब ा देखा गया।
सूय’देव मंच पर िदखाई नह पड़`।
पर`शान िकशोरी क¸ ती क आँख से आँसू क धारा अनवरत बह रही थी।
लोकल wा से बचने क` िलए िकशोरी क¸ ती धा ी से सलाह-मशिवरा करने लगी। अंत
म™ धा ी क सलाह क` अनुसार ब े को ढ`र सार` व v से ढककर, एक लकड़ी क` ब
से म™ उसे िलटाकर अ नदी म™ ब से को बहा िदया।
क¸ ती क` च र को िनभानेवाली अिभने ी ने गजब का अिभनय िकया। e सा और क¸
ती क` च र को िनभानेवाली अिभनेि य क क¸शलता क तुलना करने पर िकसी
को कम नह कहा जा सकता ह`। दोन ने ब त ही यथाथ’ अिभनय िकया।
परदा िगरा। दस िमनट क` िलए म यांतर घोिषत आ। इतनी देर तक नाटक देखने
म™ म इतना मशगूल रहा िक िततली क तरफ िनगाह तक नह डाल सका। ऑिडटो
रयम क ब vी जलते ही देखा िक िततली क दोन आँख से आँसू टपक रह` ह । सारा बदन
पसीने से लथपथ हो गया ह`।
मुझे लगा िक नाटक क` पा क` अिभनय ने िततली पर ब त असर डाला होगा।
एयर- क डीशंड हॉल म™ भी िततली को आराम नह िमल रहा ह`।
म ने पूछा, ‘‘ य जी, तुt ह™ काफ तकलीफ हो रही ह` या? एयर-क डीशंड हॉल म™ भी
तुtह™ इतना पसीना य हो रहा ह`?’’
िततली क` जवाब देने से पहले ही ऑिफस बेयरा रामजी पांड`य को ड ि स लेकर
हमार` सामने हािजर हो गया। िततली को पसीने से तर देखकर उसने बड़` अदब से
मुझसे कहा, ‘‘साब, कसूर माफ क िजएगा। आप मेमसाब को बाहर खुली हवा म™ ले
जाएँ। शायद उ ह™ तकलीफ हो रही ह`।’’
म भी यही सोच रहा था। बगल म™ बैठ` परचेज मैनेजर शांत बोस से िततली क
अनइजी फ िलंग क` बार` म™ कहकर थोड़ी देर क` िलए म िततली को हॉल से बाहर
ले आया।
ए टा &लशम™ट क` क¸छ नौजवान बाहर खड़`-खड़` िसगर`ट पी रह` थे। िततली क` साथ
मुझे बाहर आते ए देखकर मलय क¸ ड˛ आगे बढ़ आया। पूछा, ‘‘क¸छ चािहए सर?’’
म ने कहा, ‘‘नह भाई। लग रहा ह` िक हॉल क` टफ एटमॉसिफयर म™ िमसेज
को क¸छ तकलीफ हो रही ह`। इसीिलए, थोड़ी देर क` िलए खुली हवा म™ िनकल
आया।’’
मलय ने कहा, ‘‘आइए सर, इधर एक कमरा िबलक¸ल खाली ह`। दस िमनट पंखे क` नीचे
बैठना शायद मैडम को अ छा लगे।’’
ीन v म क` बगल म™ फ¸ल पीड म™ चलते ए पंखे क` नीचे बैठकर, एक िच ड
को ड
ि क पीने क` बाद िततली को क¸छ राहत िमली।
िततली को क¸छ व थ देखकर म क¸छ िन wंत आ।
म ने पूछा, ‘‘डािल ग, तुt ह™ ऐसा य हो गया? ेशर चढ़ गया ह`? घर चलोगी?’’
िततली ने कहा, ‘‘नह , नह , आप िफकर मत कर™। e सा और क¸ ती का अिभनय
इतना सुपब’ हो रहा ह` िक वा तव म™ िदल को छ गया। आप िफकर मत कर™
—अभी ठीक हो जाएगा।’’ आँख™ मूँदकर िततली ने क¸रसी से पीठ सटा दी।
िततली को आराम करने का मौका देकर म कमर` से बाहर िनकल
आया। बाहर आते ही म ने एक िसगर`ट जलाई।
जब म जवान था, ब त से नाटक म™ म ने अिभनय िकया था। शायद इसीिलए
आज भी नाटक मेरी कमजोरी ह`।
िक मत क वजह से ही—संयोग से आज म ब त बड़ा आदमी बन गया—चाहते ए भी
ट डड’ क` कारण काफ चीज से अपने को दूर रखना पड़ता ह`। लेिकन हमेशा तो ऐसा नह
रहा।
प ीस-छ&बीस साल तक म ने मनमानी क ह`। म यमवग’ का आदमी रहा। जीवन का
ार भ बनारस म™ बीता। बाबूजी काशी िह दू िव िव ालय क` इ जीिनय र ग कॉलेज
म™ क`िम ी क` रीडर थे। अ ययन-अ यापन क` अलावा बाबूजी का एकमा शौक
था— योितष चचा’। अपने प रिचतजन क भा य गणना करक` वे आनंद अनुभव करते
थे।
जब म प ीस साल का था, बाबूजी ने माँ से कहा था, ‘‘अजी सुनती हो, तुt हार` बेट`
क` नसीब म™ vी-भा य से धन ह`, लेिकन क¸छ काँट` भीरह™गे।’’
माँ ने कहा था, ‘‘ऐसे धन क जvरत नह ह`। लेिकन जब काँट` ह —आप कह रह` ह
— य नह उसे हटाने का कोई इ तजाम आप करते ह ?’
बाबूजी ने कहा था, ‘‘नह जी, नह । नसीब बदला नह जा सकता ह`।’’
लेिकन म ने आज तक िकसी भी काँट` क चुभन महसूस नह क । िततली और म ब
त सुखी ह । ऐसी बात नह िक हम™ कोई दुःख नह ह`। मेर` िदल म™ एक दद’ ह`,
शायद िततली क`
िदल म™ भी ह`। हमार` पास कोई संतान नह ह`। हालाँिक हमारी शादी ए चौदह साल
बीत गए, लेिकन आज तक िततली ने कभी भी संतान क` ज म का थोड़ा सा भी संक`त नह
पाया ह`।
एक बार म िततली को िबना बताए ही डॉ टर से िमला था। मेर` डॉ टर दो त ने मेरी
जाँच करने क` बाद मजाक म™ कहा था—‘‘अर`, बलीबद’ जैसा तेरा तेज ह`-एक नह ,
जुड़वाँ ब ा तू पैदा कर सकता ह`। अपनी प नी क जाँच िकसी गाइनोकोलॉिज ट से
एक बार करवा ले।’’
लेिकन म िततली क जाँच नह करवा सका। कई बार म िततली को गाइनोकोलॉिज ट
क` पास ले जाना चाहा—वह कभी भी जाने क` िलए तैयार नह ई। उसका कहना ह`,
‘‘अगर नसीब म™ ब ा नह ह` तो डॉ टर या कर`गा?’’
िसफ’ इस दुःख क` िसवाय, हम काफ स रहते ह । म रहा म यवग’ का—
लेिकन आज धनी सुमन सेन क` v प म™ काफ ऐश-ओ-आराम क` िदन गुजार रहा
। म कभी नह भूल सकता िक मेर` धनी होने क` पीछ` िततली और मेर` सुरजी ने
िकतनी अहम भूिमका िनभाई ह`।
रईस बाप क इकलौती बेटी थी िततली। बचपन म™ ही माँ क` वग’वास हो जाने क` कारण
िततली ससुरजी क आँख का तारा थी। उनक` देहांत क` बाद उनक चल-अचल सारी संपिv
हम™ िमली।
देहांत होने से पहले ही उ ह ने िततली क` नाम से ब क म™ करीब दो लाख पए जमा कर
िदए थे और िफर उनक` देहांत क` बाद उनका सारा पया हमार` खाते म™ ही जमा
होता गया। आज हम™ पैसे क` िलए सोचना नह पड़ता ह`, कोई िफ e भी नह ह`।
लेिकन हमारा साउथ-एवे यू का ढाई हजार ायर फ ट eे फल का लैट हमेशा
सूना- सा लगता ह`। एक चंचल गोल-मटोल ब ा या एक फ¸रतीला िकशोर अगर
रहता…
म यांतर समाw होने क घंटी बजी। िततली भी कमर` से बाहर िनकल आई ह`।
उसने कहा, ‘‘चिलए, नाटक देखने चल™। आपक` टाफ क` लोग ब त बि़ढया नाटक खेल
रह` ह ।’’
म ने कहा, ‘‘मिहलाएँ हमार` द तर क नह ह । लगता ह` वे ोफ`शनल ह , लेिकन वा तव
म™ e सा और क¸ ती दोन का अिभनय बेजोड़ ह`।’’
ऑिडटो रयम म™ लौटकर अपनी-अपनी सीट पर बैठते ही िथएटर हॉल अँधेरा हो गया।
शांत ने पूछा, ‘‘िम टर सेन, िमसेज सेन इस व क`सी ह ? इज़ शी वेल
नाऊ?’’ म ने कहा, ‘‘थोड़ी सी राहत िमली ह`।’’
सामने क ओर िनगाह पड़ते ही देखा धीर`-धीर` मंच का परदा खुल रहा ह`।
म यांतर समाw होने क घंटी बजते ही म ने देखा िक िततली कमर` से बाहर आ गई। य
िप
िततली ने कहा िक वह ठीक ह`, िफर भी उसक हालत देखकर मुझे लगा िक पूरी तरह से
वह
व थ नह हो पाई ह`।
शायद मेर` बार` म™ सोचकर ही िततली हॉल म™ चलने क` िलए िनकल आई
ह`। मेर` ही ऑिफस क` रिe एशन ब का नाटक। इस साल म ही ब का अ य e भी
—इसिलए नाटक क` अंत तक रहना मेरा फज’ समझकर ही िततली हॉल म™ जाना
चाहती होगी।
िफर भी जाते-जाते म ने िततली से कहा, ‘‘चलो घर चल™। म ने नाटक का रहस’ल देखा
ह`, घर जाते-जाते नाटक का कथानक म तुtह™ बता दूँगा। हालाँिक पूरा रहस’ल म ने
कभी देखा नह ह`, िफर भी कथानक क` बार` म™ अंदाज तो मुझे ह` ही।’’
लेिकन िततली ने जोर डालते ए कहा, ‘‘नह जी, नह । आप य इतना पर`शान हो
रह` ह ? अब म िबलक¸ल ठीक , कोई तकलीफ नह ह`। शायद हॉल क टफ
एटमॉसिफयर म™ मुझे थोड़ी सी पर`शानी हो रही थी। आिखर तक नाटक को देखकर
ही घर जाऊ गी—आपक`
टाफ क` लोग और अिभनेि याँ हर िकरदार का अिभनय बेहद खूबसूरती से कर रह` ह ।’’
म ने भी बात मान ली। वा तव म™ सभी ब त सुंदर अिभनय कर रह` ह ।
सोचा था, िततली जब आिखर तक देखना चाहती ह` तो देख™। घर लौटकर फ`िमली
िफजीिशयन डॉ टर चौधरी को एक बार र ग करक` बुला लूँगा। रात को अगर वह नह आ
सकते तो कम-से-कम कल सवेर` आकर वह िततली का चेक-अप करक` पता लगा ही सक` गे
िक िततली को ऐसा य हो गया था। या उसका &लड ेशर बढ़ गया ह`? डॉ टर
चौधरी ही इसे बता सकते ह ।
हॉल म™ लौटकर अपनी-अपनी सीट पर बैठते ही परदा उठने लगा। बिv याँ बुझते ही
िततली ने हलक` हाथ से मेर` बाएँ हाथ को थामकर मेर` चेहर` क ओर देखा।
मुझे लगा िक वह क¸छ कहना चाहती ह`।
लेिकन उसने क¸छ नह कहा। थोड़ी देर तक मेरी तरफ देखने क` बाद उसने मंच क ओर
देखा। जोर से मेर` हाथ पर उसने दबाव डाला, मुझे लगा िक वह मुझे इशार` से भरोसा
देना चाहती थी िक अब वह व थ हो गई ह`।
मुसकराकर उसक ओर एक झलक देखकर म ने भी मंच पर िनगाह डाली।
नाटक िफर से शुv हो गया ह`। यूनानी पुराण क` जोन म™ धीर`-धीर` िडमर क
सहायता से रोशनी बढ़ाई गई।
मंच पर e सा अपनी संतान को खोकर मायूस बैठी ह`। अगर देवता अपोलो का यार और
सहानुभूित उसे िमली होती तो शायद उसक मायूसी समाw हो जाती, लेिकन ब े क`
पैदा होने क` बाद से अपोलो िफर कभी नह आए।
e सा ने तह`िदल से अपोलो से यार िकया था, लेिकन अपोलो ने उस यार को
मया’िदत नह िकया।
आँसे वर म™ e सा अपने यार क तौहीनी क` बार` म™ अपनी दासी से बात™ कर
रही थी। बेचारी e सा ने सोचा था िक सही व पर अपोलो उसे प नी का दरजा देकर
स t मािनत कर™गे।
लेिकन e सा अिलंपस क` देवता अपोलो को अपने पित क` v प म™ ाw नह कर
सक । बदले म™ उसे िमला धोखेबाजी और वंचना, य िक अपोलो e सा को
छोड़कर अक`ले ही अिलंपस म™ लौट गए।
मंच पर राजा इर`किथयस हािजर ए। e सा राजा क आँख क पुतली ह`, कारण उनक
कई पुि य म™ से अक`ले e सा ही समु देवता पिसडन क` हाथ से बच पाई थी।
िजस िदन से राजा इर`किथयस ने देवी ऐथेना को एथ™स नगरी क र eा देवी क` v प
म™
वीकार कर िलया था, उसी िदन से वह समु देवता पिसडन क` दु मन बन गए थे।
पिसडन एथ™स नगरी क` र e देवता बनना चाहते थे, लेिकन राजा इर`किथयसने उनक इ
छा को नकारते ए देवी ऐथेना को वीकार कर िलया था।
पिसडन इस बेइ w ती को बरदा त नह कर पाए। इस बेइ w ती का बदला लेने क`
िलए राजा इर`किथयस क सभी बेिटय क पिसडन ने इ w त लूट ली। ब त छोटी होने
क` कारण
िसफ’ e सा बच गई थी। राजपुि य को अपिव करक` पिसडन ने राजा
इर`किथयस को सबक िसखाना चाहा। बेसहारा राजा उस व पिसडन क` िखलाफ क¸छ
नह कर पाए थे।
धीर`-धीर` e सा िकशोराव था म™ प ची, लेिकन अपने राजकाय म™ बुरी तरह से
फ से रहने क` कारण राजा इर`किथयस ने कभी इस पर गौर नह फरमाया। अपोलो क
मेहरबानी से e सा क¸मारी माता बन गई ह`— यह भी राजा को मालूम नह ।
क¸छ सािललाक टाइल से, क¸छ नेप e य भाषण क` मा यम से ना यकार ने राजा
इर`किथयस क` बार` म™ सारी बात™ दश’क को समझा िदया।
मंच पर राजा ने जैसे ही e सा को देखा, उनक आँख म™ वा स य छा गया। अपनी
ही लाडली बेटी को बड़ी होते ए देखकर, वह फ ले नह समाए। अब तो बेटी क` हाथ
पीले करने पड़™गे।
राजा ने अपनी इ छा क` बार` म™ बेटी को जानकारी दी। उ ह ने कहा, ‘‘पड़ोस क` रा
य क` युथास क` साथ म तुt हारा र ता तय क v गा।’’
आगे उ ह ने कहा िक काफ पहले से ही उ ह ने इस र ते क` बार` म™ सोच रखा ह`,
य िक एक बार एथ™स क` संकटकाल म™ युथास ने राजा इर`किथयस क काफ मदद
क थी। उसी व से युथास क वीरता से स होकर, उ ह ने युथास को अपने दामाद क`
v प म™ पाने क क पना क थी, िजसे अब साकार करना ह`।
बेचारी e सा अपने िपता को न तो अपोलो क` बार` म™ और न अपने कानीनपु क`
बार` म™ क¸छ कह सक । राजा क इ छानुसार ही युथास क` साथ e सा क शादी हो गई।
युथास क` साथ e सा क` चले जाते ही मंच क रोशनी धीर`-धीर` कम होती गई और
िफर क¸छ e ण क` िलए मंच पर अंधकार हो गया।
दूसर` ही e ण भारतीय पुराण क` जोन म™ ब vी जल उठती ह`। देखा िक क¸ तीभोज
क पु ी बेहद खूबसूरत क¸ ती, अपने कानीन पु क` िवरह म™ रोती ई िवलाप कर रही
ह`।
महिष’ दुवा’सा क` िसखाए ए मं ने कवच-क¸ डलधारी एक पु ाw करने म™
उसे मदद जvर क , लेिकन मातृ व सुख पूरी तरह से अनुभव करने का मौका तो उसे
नह िमला।
अतः क¸ ती िबलखती ई कहने लगी—‘‘ह` सूय’देव, यह क`सा उपहार मुझे आपने िदया,
िजसे म अपने पास रख तक नह सक । एक जननी क` दय क यथा आप पु षगण
कभी समझ नह सकते ह । पु से िबछ¸ड़ने का दद’ मुझे भी अब तक ात नह था।
लेिकन आज मेरा िदल चकनाचूर होता जा रहा ह`, य िक मेर` ही अनैितक यार क` प
रणाम व v प पु को नदी म™ बहा देने क` िलए िववश होना पड़ा।’’
मन-ही-मन क¸ ती ाथ’ना करने लगी। िनद´शक ने ामैिटक मोनोलॉग से दश’क को बतलाई।
‘‘ह` पु , तुt हारी या ा मंगलमय हो। वग’, म य’ एवं अंत र e क` सभी ाणी तेरा भला
कर™। तेर` िपता अंशुमान, परमवीर सूय’देव हमेशा तुझे बचाएँ। मेर` यार`, तेर` कवच-क¸
डल देखकर ही म भिव e य म™ तुझे पहचानूँगी। तुझे अपना बेटा कहकर पुकारने का
सौभा य िजस मिहला को िमलेगा, न जाने वह िकतनी सौभा यवती होगी।’’
क¸ ती क च र ािभने ी रोते-रोते बैठ जाती ह` और िफर अपने को कोसती ई कहती ह`
—‘‘म तो अपनी िक मत को कोस रही —महिष’ दुवा’सा क` िसखाए गए मं ने
कवच क¸ डलधारी एक पु ाw करने म™ अव य ही मेरी मदद क , लेिकन म मातृ व
सुख पूरी तरह से अनुभव नह कर पाई, वयं सूय’देव को अपने पु क` जनक क` v प म™
तो म ने पाया, लेिकन उ ह™ अपने पित क` v प म™ तो म नह पा सक । बचपन म™ भी
इसी कार क` दुःख म ने झेले। िपता को पाकर भी िपतृeेह से मुझे वंिचत होना पड़ा,
य िक उ ह ने मुझे िनःसंतान राजा क¸ तीभोज को दान दे िदया। अपने िपता क`
ारा िदया गया नाम पृथा को भी राजा क¸ तीभोज ने बदलकर द v कपु ी क` v प म™
मेरा नाम क¸ ती कर िदया। जीवनभर मुझे वंचना ही
िमली—यह दुःख म क`से भूल सकती ।’’
लेिकन िकशोरी क¸ ती को अपना दुःख य करने क भी फ¸रसत नह दी गई, य िक
राजा क¸ तीभोज मंच पर वेश कर जाते ह और क¸ ती आँसू सँभालकर बनावटी ढ ग से
मुसकराते ए राजा क` सामने प चती ह`।
अपनी आँसु को लीलकर क¸ ती अपने िपता से कहती ह`, ‘‘तात, आपने य क
िकया? मुझे बुला िलया होता।’’ क¸ तीभोज अपनी सम या से मु पाने क` िलए क¸
ती से कहते ह , ‘‘बेटी म एक असमंजस म™ फ स गया । िभ -िभ रा य क`
राजा तुम से शादी रचाने क` िलए िनर तर मेर` पास ताव भेज रह` ह । मेर` िलए
िकसी फ`सले पर प चना संभव नह हो रहा ह`। ऐसी थित म™ तुtहार` सभी गु जन
एवं दरबार क` अमा य क` साथ परामश’ करने क` बाद म ने तुtहारी शादी क` िलए
एक वयंवर सभा बुलाई ह`। अब तुम वयं िनण’य लेने क` यो य बन गई हो—सभी क`
बार` म™ जानकारी ाw करने क` बाद तुtह™ ही अपने पित को चुनना ह`। इस
िवशेष बात क` िलए ही मुझे तुt हार` क e म™ आना पड़ा।’’
कानीन पु क माता क¸ ती अपने दुःख को िछपाने क कोिशश करते ए िपता से
क¸छ कहने म™ संकोच क मु ा म™ अपने चेहर` पर शम’, भय, सक¸चाहट इ
यािद क अिभ य
कट करने लगती ह`, िजसे राजा क¸ तीभोज नारी क वाभािवक ल wा समझकर कहते ह
—‘म समझ रहा बेटी, एक अकारण भय, लाज तुझे क¸छ बोलने से रोक रहा ह`। क
मुझे भी ह` िक मेरी आँख क पुतली अब हमेशा मेरी आँख क` सामने नह रह`गी।
िफर भी सामािजक िनयम यही ह` ि क लड़क सयानी होने पर उसे अपने घर म™
भेज िदया जाए। एक बाप होना इतना तकलीफदेह होता ह`, मुझे पहले मालूम नह था,
लेिकन अब अनुभव हो रहा ह` ि क मेर` शरीर क` एक अंग को काटकर दूसर` क` साथ
जोड़ना िकतना क कारी होता ह` बेटी। वह बेटी क¸ ती को अपनी छाती से लगाकर उसक`
ललाट को चूमते ह । भारतीय जोन म™ धीर`-धीर` अंधकार हो जाता ह`। अंधकार होने से
पहले वयंवर-सभा क` य म™ क¸ ती v पवान पांड¸ क` गले म™ जयमाला डाल देती ह`।
अचानक िन त&ध हॉल तािलय क गड़गड़ाहट से गूँज उठा। वा तव म™ अ राय का
िनद´शन बेजोड़ ह`, दश’क भाविवभोर हो चुक` थे। वे समझ रह` थे िक नाटकको िलखने
म™ अ ने काफ मश त क ह`। यूनानी पुराण और भारतीय पुराण पर जबरद त पकड़
अगर नह होती तो दोन देश क घटना को इस कार समानांतर ढ ग से पेश करना
नामुमिकन था।
िसफ’ ना य-लेखन म™ ही नह , संगीत, िनद´शन, काश यव था, मंचस wा,
डायलॉग और टीमवक’ का इतना सुंदर सम वय आ ह` िक दश’क मं मु ध होकर
नाटक देखे जा रह` ह । कोई भी मंच क ओर से अपनी िनगाह हटाने म™ अपने को
असमथ’ पा रहा ह`। वा तव म™ अ म™ नर ह` और वह काफ मेहनती भी ह`।
म ने मन म™ ठान िलया िक मौका पाते ही एम.डी. से अ का नाम मोशन क`
िलए ज v र र`कम™ड क v गा।
म ने िततली क ओर देखा। अँधेर` क वजह से ठीक समझ नह पाया, लेिकन लगा
िक वह अपने बट¸ए से मेिलंग सॉ ट क शीशी िनकालकर सूँघ रही ह`। थोड़ा
आ w य’ आ— अचानक उसक हालत इतनी िबगड़ य गई?
म ने पूछा, ‘‘ य जी, िफर तकलीफ हो रही ह`? चलो, घर चल™। घर लौटकर डॉ टर
चौधरी को र ग करने पर वह आ जाएँगे।’’
लेिकन िततली ने कहा, ‘‘नह , नह , म घर नह जाऊ गी। बस अभी आराम हो
जाएगा। ब त सुंदर नाटक ह`। अंत तक देखे िबना म घर नह जाऊ गी। आप िबलक¸ल
बेिफ e रहो।’’
समझ गया िक िततली को तकलीफ हो रही ह`। आिखर य ? सबेर` तक तो वह व
थ थी। हॉल म™ आने से पहले भी कोई िशकायत नह थी। नाटक शुv होने से पहले
भी वह काफ ठीक थी। तो या, नाटक क` कथानक ने उस पर असर डाला?
लेिकन क¸ ती और कण’ क` बार` म™ तो वह अनजान नह ह`; हो सकता ह`, e सा और
उसक` ब े क` बार` म™ िततली को न मालूम हो। िफर भी इतनी बेचैन होने क वजह
या ह`?
ना य-िनद´शक ने पूरी तौर से दश’क को अपनी िगर त म™ ले िलया ह`। मंच पर
जैसे ही रोशनी िबखरनी शुv ई, दश’क िफर से शांत हो गए और बड़ी उ सुकता से
मंच क ओर देखने लगे।
भारतीय पुराण जोन अँधेरा हो गया ह`। िडमर क मदद से काश िनयं क मंच पर
एक हलक -सी रोशनी छाने लगी।
नेप e य से घोषणा ई—‘स ह साल बाद।’
िततली क ओर से यान हटाकर म ने e सा पर िनगाह डाली। क¸मारी e सा अब
क¸मारी नह ह`-वह राजा युथास क प नी रानी e सा बन गई ह`। मंच पर दोन ही हािजर ह ।
क ई बार म ने सुमन से अपने िदल क बात™ कहनी चाह । सुमन क तरह म ने भी अपने
िदल क` सभी िखड़क -दरवाजे खोलकर िदल क गहराई म™ िछपी ई सारी बात™
िनकाल देने क कोिशश क । कई बार म ने चाहा िक आज तक िजसे हम सुमन से
िछपाने क कोिशश करती आ रही —उनका खुलासा कर दूँ।
िपछले चौदह साल से ही लगातार म सोच रही िक अब शायद व आ चुका ह`।
सुमन जैसे पित से मेरी अपनी बात™ िछपाना अनुिचत होगा। सबक¸छ कह देना ही ठीक
होगा। कम- से-कम मुझे तो चौबीस घंट` झेलनेवाले मानिसक ेश से छ¸टकारा िमल
जाएगा।
मुझे यक न ह` िक सुमन म™ एक पोिट ग प रट ह`—वा तिवकता को मानने म™
वह कभी पीछ` नह हट सकता ह`। इतना तो म समझ ही चुक िक सुमन का िदल
जाड़` क` आकाश जैसा िनम´घ, साफ-सुथरा ह`। कोई भी कलंक या शक का बादल
उसक` िदल पर अपनी परछाई तक नह डाल सकता ह`। िफर भी आज तक म सुमन से
क¸छ कह न सक ।
म यांतर क` बाद हॉल म™ आकर मुझे ऐसा लगा था िक शायद मेरी बात™ कहने का
इससे बेहतर मौका और कभी मुझे नह िमलेगा।
म ने हलक` हाथ से सुमन का बायाँ हाथ थाम िलया था। र ले स ए शन क तरह तुर
त सुमन ने मेरी ओर मुड़कर देखा था। एकटक उसक` चेहर` क ओर देखकर म ने उसक`
मन को पढ़ना चाहा था।
िक तु उसक आँख म™ मेर` िलए उसक पर`शानी से भरी ई ि , मेर` ित उसक
वफादारी और eेहभरी िनगाह ने अपनी बात™ करने से मुझे रोक िदया। आशंका ई
िक अपनी बात™ कहने पर कह मुझे इस अपािथ’व यार से हमेशा क` िलए हाथ न धोना
पड़`।
मुझे लगा िक ऐसी थित होने पर म इस दुिनया म™ िबलक¸ल अक`ली हो जाऊ
गी। मुझे मालूम ह` िक पैसे क कमी मुझे कभी भी नह होगी, य िक बाबूजी ने अक`ले
मेर` िलए भी
िजतना छोड़ा ह`, उतना िसफ’ पया’w ही नह , काफ भी ह`।
लेिकन या अथ’ ही दुिनया म™ सबसे अनमोल चीज ह`? कम-से-कम इतने िदन
म™ यह स ाई तो मुझे मालूम हो ही गई ह` िक औरत क` िलए अथ’ से भी बढ़कर
पित का यार- आिलंगन और बेट` का मातृ संबोधन होता ह`।
मेरी बदिक मती ह` िक दूसरा सुख मुझे नह िमला। लेिकन पहले सुख को पाकर भी अगर
खोना पड़`—इस भय से भयभीत होकर सुमन क` हाथ थामने क` बावजूद भी म उससे क¸छ
कह नह सक । मंच क ओर इशारा करते ए शायद म ने यह कहना चाहा था, ‘‘ि
यतम,
या तुम e सा या क¸ ती को माफ कर सकते हो?’’
अ छा ही आ िक सुमन ने मेरा इशारा नह समझा। म ने भी उसक` हाथ पर थोड़ा सा
दबाव देकर हाथ छोड़ िदया था। उसने शायद सोचा िक म ने अपनी व थता क` िलए
उसे भरोसा िदया। सोचने दो। बेिफ e होकर उसने मंच क ओर िनगाह डाली।
म ने भी मंच क ओर िनगाह डाली। नाटक म देखूँ क`से? िजस e म म™ कथाकार और ना
य
िनद´शक घटनाएँ पेश कर रह` ह , उ ह™ देखते-देखते मेरी एक अ य स vा म™, मेरी अंतरा
मा म™ एक पीड़ा महसूस हो रही ।
e सा क असहाय हालत, उसक इ छा क` अपघा , िपता क` आदेश पर युथास
से उसक शादी देखते ए मुझे लगा िक साँस लेने क` िलए हॉल म™ जरा सी भी हवा
नह ह`। लंबी साँस™ लेने क कोिशश म ने क थी, लेिकन आराम नह िमला।
ितरछी नजर से म ने उस व सुमन क ओर देखा भी था। यान लगाकर वह नाटक
का अिभनय देख रहा था।
सुमन को मालूम नह हो सका था िक मुझे साँस लेने म™ िकतनी तकलीफ हो रही
थी। अगर पल भर क` िलए भी सुमन मेरी ओर देखता तो मेरी तकलीफ को देखकर िन w य
ही वह मुझे हॉल से बाहर ले जाता और ज v र घर ले गया होता।
लेिकन ऐसी थित म™ तो म नाटक का अंत देख नह सकती थी। e सा क` ब े का या
आ? अभी तक ना य-िनद´शक ने उस घटना को रह य बना रखा ह`।
भारतीय जोन म™ जब क¸ ती िवलाप करने लगी थी, मेरी साँस क तकलीफ क¸छ कम
हो गई थी, िक तु िफर जब वह कण’ क` िलए हाहाकार करने लगी और वयंवर
सभा म™ राजा क¸ तीभोज क` आदेश पर जब उसे हािजर होना पड़ा, मेरी तकलीफ
िफर से बढ़ गई।
राजा पांड¸ क` गले म™ क¸ ती ने य ही जयमाला डाल दी, म मेिलंग सॉ ट क शीशी िबना
िनकाले रह नह पाई। मेरा तो दम ही घुट रहा था!
सुमन क िनगाह उसी व मुझ पर पड़ी। तािलय क गड़गड़ाहट से हॉल गूँज
उठा, लेिकन म तो अिभनय क जी खोलकर शंसा नह कर सक ? यह तो नाटक नह ह`,
यह तो जीवन क ित छाया ह`। यह तो—उसी व सुमन ने मुझसे पूछ िलया था िक म
घर जाऊ गी या नह ।
म ने कहा था, ‘‘जी नह , अंत तक िबना देखे म नह जाऊ गी।’’ म ने उ ह™ भरोसा िदया
था
िक ब त ज दी मुझे आराम हो जाएगा।
यूनानी पुराण क` जोन म™ िफर से रोशनी छाने लगी। नेप e य से घोषणा भी ई—‘स
ह साल बाद’।
या e सा को अब अपना बेटा िमल जाएगा? ना य-िनद´शक अब या दिश’त कर™गे?
मंच पर राजा युथास और रानी e सा दोन ही हािजर ह । दोन क बातचीत से मालूम आ
िक महल म™ कोई िशशु न होने क` कारण दोन का दम घुट रहा ह`। इसीिलए दोन ने तय
िकया िक देलिफ क` मंिदर म™ जाकर देवता अपोलो से वे एक संतान पाने क उ t मीद से
ाथ’ना कर™गे। अगर देववाणी होती ह` तो शायद उ ह™ संतान ाw करने क` उपाय क`
बार` म™ जानकारी हो सकती ह`।
अपने अनुयाियय क` साथ राजा युथास और रानी e सा देलिफ क` मंिदर क` अहाते म™
प च गए।
e सा मंिदर क` अंदर नह गई। अहाते म™ खड़ी होकर मंिदर क` कामकाज म™ मदद
करनेवाले एक िकशोर क` साथ वह बात™ करने लगती ह`। रानी e सा ने िकशोर का
नाम पूछा। िकशोर ने अपना नाम आयन बतलाया।
लेिकन आयन क बड़ी-बड़ी आँख™ और उसक मधुर आवाज रानी e सा को इतना
िवचिलत य कर रही ह ? कौन ह` यह मासूम िकशोर? इस मंिदर म™ सेवा करने क` िलए
आयन कहाँ से आया? एक क` बाद एक सवाल रानी e सा क` िदल म™ उमड़ने लगे। इन
सारी बात को आयन से िबना पूछ` वह रह नह पाई।
रानी क` न क` जवाब म™ आयन ने कहा, ‘‘माफ क िजएगा, य िक मेर`
उ v र शायद आपक` मनमािफक नह ह गे। जब से म ने होश सँभाला, तब से म इसी
मंिदर म™ ही । इस मंिदर क पुजा रन ही मेरी माँ ह`। म ने तो व न म™ भी नह सोचा
िक वह मेरी माँ नह ह । आप इस तरह फालतू शक य कर रही ह िक पुजा रन मेरी
माँ नह ह ?’’
रानी e सा आयन क` न का जवाब नह दे पाती ह`। उ ह ने अपने से ही पूछा, ‘‘इस
िकशोर को देखकर म इतनी उतावली य हो उठी?’’
वह अपने से भी यह बात िछपा नह सक िक आयन को छाती से लगाकर एक बार
उसका म तक चूमने क` िलए वह याक¸ल हो उठी ह`। वह समझ नह पा रही ह` िक
आिखर इस अनजान िकशोर को देखकर उनक` ि दल म™ इतनी उथल-पुथल य मच
गई?
अपना प रचय देते समय आयन ने अपने कामकाज क` बार` म™ भी रानी e सा को
बताया था।
बचपन से ही मंिदर क` अहाते म™ पानी िछड़कना, लार`ल वृe क डाल से बने
झा से अहाते को साफ करना, देवता क` भोग चुगने क` िलए जो िचि़डयाँ आती ह , उ
ह™ उड़ाना इ यािद मामूली काम वह करता चला आ रहा ह`। उसक लगन और देवता
अपोलो क` ित उसका लगाव देखकर उसक माँ उससे काफ स रहती ह`।
रानी e सा िजतनी ही आयन क मधुर आवाज सुनती ह`, उतनी ही वह अपने िदल
क गहराई म™ एक अना वािदत रोमांच महसूस करती ह`। उसका जी चाहता ह` िक
वह एक बार आयन को अपनी छाती से लगा ले, लेिकन शम’ क` कारण वह क जाती
ह`।
ोसीिनयम क ओर बढ़कर रानी e सा वागत भाषण क` मा यम से अपने
मानिसक ं को दश’क तक प चाती ह`।
आयन क` पास जाकर बड़` यार से वह उसक` बदन और िसर पर हाथ फ`रने लगती ह`।
उसक` ित रानी क` इस यार को देखकर आयन भी अचंिभत हो जाता ह`।
मंिदर क` अहाते म™ हलक नीली रोशनी भर गई। e सा और आयन िw ज हो गए।
ना य, िनद´शक ने मंिदर क` अंदर राजा युथास पर रोशनी डाली। राजा युथास ने
दैवश क अिधका रणी मंिदर क पुजा रन से अपनी सम या क` बार` म™ बतलाया।
युथास क बात को सुनकर पुजा रन ने देवता अपोलो से ाथ’ना क । देववाणी ई
—‘‘युथास, मंिदर क` बाहर जाते ही अहाते म™ िजस िकशोर से तुt हारी मुलाकात होगी,
उसे ही तुम अपना बेटा, मेरा वरदान समझकर वीकार कर लो।’’
पूर` यूनानी जोन म™ रोशनी भर गई। आयन क` िसर पर हाथ फ`रते-फ`रते रानी e सा
िw ज हो गई थी, रोशनी फ`लते ही उ ह ने हाथ नीचे िकया।
मंिदर से राजा युथास बाहर आ गए। उनक िनगाह रानी e सा और आयन पर पड़ी।
खुशी से राजा युथास झूम उठ`, य िक उनक ग ी क` कािबल हकदार को ही देवता
अपोलो ने उ ह™ दान िदया ह`। दोन हाथ को जोड़कर उ ह ने देवता अपोलो को णाम
िकया और िफर आयन को ख चकर अपनी छाती से लगा िलया।
मुझे नह मालूम िक इन सभी य को एक क` बाद एक देखकर मेरा िदल य शांत
सा हो गया। रानी e सा िजस तरह से आयन से यार करने लगी ह`, उसे देखकर िजस
तरह से वह िवचिलत हो उठी ह`—लग रहा ह` िक आयन ही ज मल न से िबछ¸ड़ा आ
उनका बेटा ह`, हालाँिक ना य-िनद´शक ने अभी तक स प™स बना रखा ह`। राजा युथास
को भी आयन को गले लगाते ए देखकर मुझे लगा िक—
लेिकन यह या! आयन को युथास ने जैसे ही अपनी छाती से लगाया, रानी e सा
िछटककर दूर य हट गई? वह इतनी e र िनगाह से आयन और राजा युथास को
घूरने य लगी?
सुनने म™ आ रहा ह`, यूनानी सिललाक शैली म™ वह कह रही ह`, ‘‘समझ म™
आया राजा युथास—म सबक¸छ समझ गई। तुt हारी ही अवैध संतान अब तक इस मंिदर
म™ पल रही थी। पुजा रन क` साथ ष यं रचकर, उस अवैध ब े को देवता क`
आशीवा’द से ाw करने का नाटक रचकर अपनी ग ी का हकदार बनाने का ढ ग तुम
रच रह` हो।’’
िजस िकशोर को देखकर थोड़ी देर पहले ही उसक` अतृw मातृ दय म™ लाड़-
यार क बाढ़ आ गई थी, अब उसे ही युथास क` सीने से िलपट` ए देखकर उसक` िदल
म™ नफरत क आग धधक उठी।
धीर`-धीर` यूनानी पुराण क` जाने म™ अँधेरा छा गया। कई सेक` ड तक मंच पर अंधकार
बना रहा।
लेिकन मुझे लगा िक सारी दुिनया मेर` िलए अंधकारमय हो गई। रानी e सा
िकतनी बड़ी अभािगन ह` िक अपने बेट` को पाकर भी पहचान नह पा रही ह`। यथ’ म™
राजा युथास पर वह शक कर रही ह`।
म अपने को और सँभाल नह पाई। म ने अपने मन म™ ही कहा, ‘‘e सा, य तुम
अपनी तकलीफ बढ़ा रही हो? इससे तेरा या फायदा होगा? e सा मेरी बात मान ले,
िफजूल म™ शक मत कर। अगर तेरी जगह पर म होती—’’
भारतीय पुराण क` जोन म™ रोशनी छाने लगी। नेप e य से उ ोषक ने घोषणा क
, ‘‘पंच पांडव क` शv िशeा क` समाw होने पर।’’
ह तनापुर म™ श v परीeा क` िलए पंच पांडव एवं धृतरा क` सभी पु गण इक
` ए ह । राजक¸मार का श v चालन देखने क` िलए र गभूिम क` बाहर गांधारी क` बगल म™
क¸ ती भी बैठी ह`। धृतरा क` बगल म™ िवदुर बैठ` ह ।
एक क` बाद युिधि र वगैरह भी र गभूिम म™ आ रह` ह । जब अजु’न ने र गभूिम म™
असाधारण क¸शलता का दश’न िकया तो जनता एवं सभी राजपु ष ने शोर मचाकर उसक
शंसा क ।
िवदुर ने िव तार से सारी घटनाएँ धृतरा को समझाई । क¸ ती भी गांधारी को िव तृत
िववरण सुनाती रही।
अजु’न क` श v नैपु य को देखकर और जनता का उ wास सुनकर पु क` गौरव से
क¸ ती क खुशी का िठकाना नह रहा।
ना य-िनद´शक ने मंच पर श v चालन न िदखाकर और जनता को उप थत न
करक`, नेप e य से ही कोलाहल पैदा करक` दश’क को समझा िदया िक श v परीe ण
जारी ह`। मंच पर िसफ’ िभ -िभ च र को िदखाया गया।
अजु’न क` श v नैपु य समाw होते ही िफर से र गभूिम से एक शोर उठा। करीब प
ीस साल क` एक नौजवान ने र गभूिम म™ कदम रखा ह`। उगते ए सूय’ जैसा उसका
स f दय’ देखकर अजु’न क शान से गिव’त क¸ ती चंचल हो उठी।
मजबूत मांसपेिशय वाले उ aल, िनभfक एवं गौरवण’ क` इस नौजवान को
देखकर अजु’न-जननी का िदल िवचिलत य हो उठा ह`? इस नौजवान क` िलए वह
अपने िदल म™ एक अजीब सा यार य महसूस कर रही ह`?
यार भरी िनगाह से क¸ ती ने उस नौजवान को िसर से पैर तक देखा। अचानक उसक
िनगाह उस नौजवान क` कवच पर पड़ी। तुर त ही वह अपनी थम संतान को पहचान गई।
एक अ य वेदना से वह छटपटाने लगी।
एक अजीब से आकष’ण से क¸ ती का दय नाच उठा। उसका सारा बदन थरथर काँपने
लगा।
क¸ ती क` च र को िनभानेवाली अिभने ी ने एक अ vुत ‘फ`िसयल ए स ेसन’
दिश’त
िकया। एक ही साथ उसक` चेहर` पर सुख, दुःख, ह सी, आँसू, रोना सबक¸छ घुलिमलकर
एक अजीब सी हरकत देखने को िमली। आवेश म™ उसक आँख™ बंद हो गई । ऐसा
तीत आ िक ब त बड़` भय से उनका शरीर काँप उठा।
र गभूिम म™ आकर कण’ ने भी अजु’न जैसी करामात िदखाई। अजु’न क अपेeा
उसक कािबिलयत िकसी भी माने म™ कम नह ह`। अपनी eे ता मािणत करने क`
िलए उ ह ने अजु’न से यु करना चाहा।
क˛प ने कण’ से उसका िपतृ-प रचय पूछा। कण’ क` िपता का नाम सूत अिधरथ
सुनकर उ ह ने मुसकराकर कण’ से कहा, ‘‘िजसका ज म राजघराने म™ नह आ ह`,
अजु’न क` साथ यु करने का उसे कोई हक नह ह`।’’
िसर झुकाकर शम’ से लाल हो गया कण’। कण’ क इस ल wा, इस तौहीनी को
देखकर क¸ ती क` दय म™ गहरा ध ा लगा। कण’ का अपमान होने का मतलब
उसक` मातृ व का अपमान ह`।
अचानक कण’ क िनगाह अजु’न-जननी क¸ ती क eेहभरी आँख पर आ िटक ।
झील जैसी शांत गहरी स t मोहनी ि से कण’ म म™ पड़ गया। अजु’न जननी को
देखकर उसक ऐसी
ितिe या य हो रही ह`?
अ प श&द म™ कण’ ने कहा, ‘‘अजु’न जननी क` साथ मेरा ऐसा सा य य ह`?
अजु’न जननी का चेहरा जैसा मेरा चेहरा, यहाँ तक िक मेर` पैर का आकार भी उनक` जैसा
ही ह`। हम दोन माता-पु नह ह ? वा तव म™ म या िकसी राजघराने म™ पैदा
आ था? नह , नह … मुझे यह यक न नह होता।’’
e र मुसकान क` साथ पाँच पांडव जब कण’ को िध ारने लगे, क¸ ती से सहा नह
गया। वह बेहोश होकर िगर पड़ी।
कोई समझ नह सका, अचानक क¸ ती बेहोश क`से हो गई। िसफ’ िवदुर ने च f ककर
दािसय को आदेश िदया, ‘‘ठ ड` पानी क` छ ट` देकर महारानी को होश म™ लाने क
कोिशश करो।’’
वा तव म™ क¸ ती का अिभनय, उसका मू छ’त हो जाना, मुझे ब त ही जीवंत मालूम
पड़ा, लेिकन आयन को देखकर e सा का िवचिलत होना और कण’ को देखकर क¸ ती का
िवचिलत होना, मुझे य िवचिलत कर रहा ह`? मेर` िदल क गहराई म™ लगी
चोट™ धीर`-धीर` मेरी सहनशीलता से पर` चली जा रही ह । या इस नाटक को अंत
तक म नह देख सक गी? नाटक ख म होने से पहले ही या मुझे सुमन क` साथ घर वापस
चले जाना पड़`गा? म समझ नह पा रही िक ‘एक और कण’’ मुझे िकधर बहा ले जा
रहा ह`।
धीर`-धीर` मंच पर अंधकार होने लगा। मुझे लगा िक मेरी दुिनया म™ भी धीर`-धीर`
अंधकार होता जा रहा ह`। िफर से म ने अपने बट¸ए म™ से मेिलंग सॉ ट क शीशी
िनकाल ली।
मं च पर अंधकार हो जाते ही हर बार क तरह तािलय क गड़गड़ाहट से हॉल गूँज रहा ह`।
ये तािलयाँ िनरथ’क नह ह`, य िक जब अिभनय चल रहा ह`, संपूण’ ऑिडटो रयम
एकदम
िन त&ध-सा हो रहा ह`। लग रहा ह` िक यहाँ एक भी आदमी बैठा नह ह`।
अ राय का e`िडट ह` िक हॉल म™ टी.वी. क` परदे पर महाभारत देखने और कण’-
क¸ ती क` बार` म™ जानने क` बावजूद नाटक क` अंत को देखने क` िलए लोग उ
सुकता से बैठ` ए ह । आयन और e सा क अनजान कहानी और उसी क` साथ कण’ और
क¸ ती क जीवनगाथा क` साथ उसक` सामंज य ने ही लोग को उ सुक बना िदया ह`।
अपनी ितिe या से ही समझ रहा
िक नाटक क` पा का अिभनय, काश यव था, मेक-अप, पोशाक वगैरह ने लोग को
िकतना आकिष’त कर रखा ह`।
ना य-िनद´शक जैसे-जैसे हम™ एक बार ाचीन यूनान म™ और एक बार महाभारत
क` समय म™ ले जा रहा ह`—लग रहा ह` िक उन ाचीन काल क` उन मानव-
मानिवय क` साथ हम एका म होते जा रह` ह । हम™ याद ही नह रह रहा ह` िक हम ना
य सदन म™ बैठकर ‘एक और कण’’ नाटक का रसा वादन कर रह` ह ।
जैसे ही मंच पर अंधकार आ, िततली क ओर नजर पड़ते ही देखा िक वह मेिलंग
सॉ ट क शीशी सूँघ रही ह`। या उसे साँस क तकलीफ िनर तर हो रही ह`? पहले तो
कभी ऐसा
नह आ था? कई बार तो हम िसनेमा-नाटक वगैरह देखने एक साथ जा चुक` ह ,
लेिकन ऐसा तो कभी भी नह देखा।
सही कहा जाए तो िततली क` बट¸ए म™ मेिलंग सॉ ट क शीशी भी ह`—मुझे
मालूम नह था।
पर`शान होकर म ने िततली से पूछा, ‘‘िततली हॉल से बाहर, चलोगी? खुली हवा म™
जाने से शायद तुt ह™ क¸छ आराम िमले।’’
लेिकन िततली िकसी भी क मत पर बाहर जाना नह चाही। उसने कहा, ‘‘नह जी,
नह । इस नाटक का अंत िबना देखे, आिखर तक आयन का या आ िबना जाने, म
यहाँ से िहल तक नह सकती । लीज, तुम मेर` बार` म™ सोचना बंद करो। पता
नह य आज हॉल क भीड़ मुझे बरदा त नह हो रही ह`। और कोई बात नह ह`।’’
म चुप हो गया। और िफर तुर त ही यूनानी पुराण क` जोन म™ धीर`-धीर` रोशनी फ`लने
लगी। म ने भी िततली क ओर से अपनी िनगाह हटाकर मंच पर डाली। िपछला
य ब त ही नाटक य रहा। मंच पर इस समय भी रानी e सा, राजा युथास, आयन क` साथ
क¸छ और लोग ह ।
ले ट स™टर एंट`˛र स क` पास मंिदर क` सामने खड़` होकर राजा युथास और आयन
बात™ कर रह` ह ।
राजा युथास ने जब अचानक आयन को अपनी छाती से लगा िलया था, तो वह
आ w य’ चिकत हो गया था। लेिकन अब राजा युथास से उसे मालूम हो चुका ह` िक
अब वह राजक¸मार बन गया ह`। देवता अपोलो क` आदेश से राजा ने उसे गोद ले िलया ह`।
थोड़ी देर म™ गोद लेने का धािम’क अनु ान मंिदर म™ संप होगा और उसी क`
बाद मंिदर क` अहाते म™ एक दावत दी जाएगी।
राजा युथास बार-बार वीकार कर रह` ह िक आयन जैसे एक खूबसूरत िकशोर को पु
क` v प म™ ाw करक` वह ब त ही खुश ह । लेिकन रानी e सा क ितिe या
क¸छ िभ ह`।
ोसीिनयम क` दािहनी ओर मंच क` सामने आकर वह कहती ह`, ‘‘म ने पहले ही कहा ह`
िक तुt हारी योजना म पूरी नह होने दूँगी। आज अपनी ही अवैध संतान को तुम वैध
बनाने क`
िलए जो योजना बनाए हो—बेकार हो जाएगी। िकसी हालत म™ वह िसंहासन पर
बैठने का अिधकारी नह बनेगा। लीपीडस जरा इधर सुनो तो।’’ एक बूढ़ा से नौकर क`
पास आते ही e सा कहती ह`, ‘‘लीपीडस, तुt हारी वफादारी पर म ने कभी संदेह नह
िकया ह`। आज एक बार िफर तुt हारी वफादारी क परीeा ह`। अभी थोड़ी देर म™ ही जो
राजक य दावत होगी उसम™ आयन को मिदरा का याला िदया जाएगा। यह लो मेरी अँगूठी।
इस अँगूठी क` ऊपरवाले भाग को खोला जा सकता ह`। इसे खोलते ही एक ती िवष
िमलेगा, िजसे तुम आयन को परोसी जानेवाली मिदरा क` याले म™ िमला दोगे।
लेिकन इस बार` म™ िकसी को भी मालूम नह होना चािहए।’’
लीपीडस e सा क` आ ापालन करने क` िलए वचन देता ह`।
हॉल इतना त&ध हो गया िक लग रहा ह`, अगर जमीन पर एक सूई भी िगर` तो उसक
आवाज भी ब त जोरदार होगी। हर आदमी एकटक मंच क ओर देख रहा ह`। समझ रहा
िक मेर` जैसा ही हर आदमी का िदल गले तक आ प चा ह`।
आयन को साथ लेकर राजा युथास मंिदर क` अंदर चले गए। राजा क` नौकर-चाकर
मंिदर क` अहाते म™ दावत क यव था करने म™ जुट गए।
थोड़ी देर बाद नए प रधान म™ सज-धजकर आयन राजा युथास क` साथ मंिदर से बाहर
िनकल आया। शुv आ शाही-दावत का काय’eम।
नौकर राजा युथास तथा अ य लोग क` हाथ म™ मिदरा का याला प चाने लगे। आयन क`
ित िवशेष स t मान दश’न करने क` छल म™ रानी क ˛रसा का िव त सेवक एक थाली पर
िसफ’ एक ही याला रखकर बाअदब हािजर आ। याले क मिदरा म™ रानी e सा क
दी ई, जहर घुली ई ह`।
अपनी आदत क` अनुसार धािम’क आयन ने अपने र e देवता क` नाम से मिदरा का भोग
लगाया और िफर थोड़ी सी मिदरा मंिदर क` अहाते म™ िगरा िदया।
देवता अपोलो को िनवेिदत कबूतर म™ से एक कबूतर झट से आकर उस मिदरा म™
अपनी च च ड बो गया।
लेिकन च च भीगने से पहले ही वह कबूतर पीड़ा से छटपटाते ए, अपनी पंख को
फड़फड़ाकर अचानक त&ध हो गया।
मुझे मालूम ह` िक इस य को मंच पर िदखाने क` िलए अ को काफ सोचना पड़ा था।
अंत म™ राजा बाजार इलाक` म™ मकबूल िमयाँ नाम क` एक ब त बड़` कबूतरबाज
का पता उसे िमला था। उसी को काफ समझा-बुझाकर, क¸छ पए एडवांस देने क`
बाद करीब एक महीने तक उसक` कबूतर से अ यास करवाकर अ ठीक चीज को
िनकाल पाया। एक भी दश’क को समझ म™ नह आ रहा ह` िक कबूतर भी नाटक
खेल रहा ह`।
कबूतर को िन तेज, िन त&ध होते देखकर, आयन ने तुर त अपना याला फ` क िदया।
eोध से िच wाते ए राजा युथास ारा पहनाई गई पोशाक को फाड़कर वह मंच क`
सामने आकर खड़ा हो गया।
‘‘म जानना चाहता िक मुझे मारने क` िलए िकसने यह सािजश रची ह`?’’
िजस बूढ़` सेवक ने आयन क` हाथ म™ मिदरा का याला स f पा था, आयन ने बड़`
eोध से उससे ही पूछा।
अ य अितिथय और राजपु ष ारा दबाव डालते ही उसने वीकार िकया, ‘‘रानी e
सा ने ही राजक¸मार आयन क` पेय म™ जहर िमलाने क` िलए मुझे आदेश िदया था।
उ ह ने अपनी अँगूठी मुझे देते ए कहा था िक अँगूठी म™ िछपा आ जहर म
ज v र आयन क मिदरा म™
िमला दूँ।’’
सभी एक साथ कड़` श&द म™ रानी e सा क िनंदा करने लगे। देलिफ क` मंिदर क`
बुजुग ने कहा, ‘‘चूँिक रानी e सा ने मंिदर क` सेवक इस मासूम क ह या करने क
सािजश रची थी,
िलहाजा सब लोग प थर मार-मारकर रानी क ह या करक` इस पाप का ाय w त कर™गे।’’
घटना क` ार भ म™ रानी मंच पर ही िदखाई पड़ी थी, लेिकन कब वह मंच से गायब हो
गई,
िकसी ने देखा नह था। रानी क तलाश क जाने लगी और इसी क` साथ-साथ मंच क
रोशनी धीर`-धीर` कम होने लगी।
तािलय क गड़गड़ाहट बंद होने क` आसार ही नह िदखाई पड़`। गजब क टीमवक’
और गजब का िनद´शन। काशन िनयं क ने भी बेहद खूबसूरत करामात िदखाई।
म ने िततली क ओर देखा। मुझे लगा वह क¸छ िगड़िगड़ा रही ह`। म ने पूछा, ‘‘ या
कह रही हो िततली, म समझा नह ।’’
कोई जवाब नह िमला। वह मंच क ओर ही देख रही ह`। म ने भी मंच क ओर देखा।
भारतीय पुराण क` जाने म™ धीर`-धीर` रोशनी छाने लगी। नेप e य से घोषणा ई, ‘‘क¸ eे
क` मैदान म™ कण’ क` सेनापित व क पूव’ सं या।’’
मंच पर सूया’ त क रोशनी छाई ई ह`। महावीर कण’ अ त होते ए सूय’ का वंदन कर रह`
ह।
गंभीरता से कण’ सं क˛त म™ wोक पाठ करते ए ड बते ए सूय’ का वंदन करते ह —
च eुन l देवः सिवता च eुन’ उत
पव’तः। च eुधा’ता दधातु नः॥
आिद याय िवदमह` सह v िकरणाय
धीमिह। त सूय’ः चोदया ॥
सिवता पुर ता सिवता
प wाता सिवतोतराता सिवता
ऽधराvा ॥
सिवता नः सुवतु
सव’तांित सिवता नो
रासतां दीघ’मायुः॥
कण’ भगवा सूय’ को जैसे ही णाम करते ह , मंच पर धीर`-धीर` क¸ ती
वेश करती ह`। अचानक क¸ ती को देखकर बड़ी िवन ता से कण’ पूछते ह ,
‘‘राधा क` गभ’ म™ पली सूत अिधरथ का पु म कण’ , माता आप कौन ह ?’’
अपना प रचय देते ए क¸ ती ने कहा, ‘‘बेटा, जो तुt हार` जीवन म™ पहली
बार इस िव को तुt ह™ िदखाने म™, इस िव से प रचय कराने म™ सहायक ई थी,
वही औरत आज सारी लाज को यागकर अपना प रचय देने क` िलए तुtहार` पास
यहाँ आई ह`।’’
िवचिलत कण’ अपनी अ थरता य करते ए कहते ह , ‘‘देवी, आपक
eेह भरी ि मुझे इस तरह से िवचिलत य कर रही ह`? आपक आवाज सुनकर ऐसा
तीत होता ह` िक पूव’ज म से म यह वर सुनता आ रहा । आप क` साथ मेरा ज
म रह य क`से जुड़ा ह` देवी?’’
िझझकते ए क¸ ती ने कहा, ‘‘यह बताने क` िलए ही म सूया’ त क`
अँधेर`पन को चुना ह` बेटा। म क¸ ती ।’’
‘क¸ ती’ का नाम सुनते ही कण’ च f क जाते ह और कहते ह , ‘‘आप क¸ ती ह ।
अजु’न जननी क¸ ती? लेिकन मेर` पास आप य आई ह ?’’
अवाक˛ होकर क¸ ती क ओर देखते ए कण’ ने कहा, ‘‘आप मेरा स e
णाम वीकार कर™। लेिकन माँ, आप इस रण eे म™ अक`ले य आई ह ? म
ठहरा कौरव का सेनापित, मेर` पास आने का क आपने य िकया?’’
क¸ ती ने कहा, ‘‘अजु’न जननी सोचकर मन म™ ेष न करो बेटा। अ v परीe ण
क` िदन जब एक उ a ल सूय’ क तरह तुमने ह तनानगर क` परीe ण- थल पर
वेश िकया था, उस समय दूर आड़ म™ बैठी सभी औरत म™ एक म ही तो एक
अतृw मातृ व क भूख लेकर तुtह™ अपलक देख रही थी। अपनी eेही ि से तुtह™
चूम रही थी। िफर जब क˛प ने तुमसे तुtहार`
िपतृ प रचय क` बार` म™ पूछकर तुt ह™ ताना मारते ए कहा था, ‘‘िजसका ज म िकसी
राजक¸ल म™ नह आ ह`, अजु’न क` साथ उसे यु करने का कोई अिधकार नह
ह`’’ और तुम ल wा से अपना िसर झुकाकर थान छोड़ने क` िलए बा य हो गए थे
—उस समय िजसक` िदल म™ आग भभक उठी थी, वह म ही तो बेटा। अ य पांडव
ने जब तुtह™ िध ारते ए परीeण-
थल से बाहर कर िदया, उस समय होश खोनेवाली और कोई नह थी बेटा—वह म क¸
ती ही थी।
क¸ ती क वीकारो सुनकर कण’ ने क¸ ती से कहा, ‘‘देवी आपक क˛पा क` िलए
आपको म शत-शत बार नमन करता , णाम करता —लेिकन ह` अजु’नजननी, इस
रणभूिम म™, क¸ सेनापित क` पास आप सं या क` इस समय अक`ली य आई ह ?’’
हाथ जोड़कर क¸ ती कण’ से कहती ह`, ‘‘बेटा म तुमसे एक भीख माँगने आई ।
बोलो बेटा, मेरी मंशा पूरी करोगे?’’
कण’ को आwय’ होता ह`। अजु’नजननी, पंच पांडव क माता भीख माँगने
शाम क` व कण’ क` पास आई ई ह । अचानक इस बात पर िव ास नह होता ह`। उ ह
ने क¸ ती से पूछा, ‘‘भीख माँगने आई ह`? और वह भी मुझसे, ठीक ह`, मेर` पौ
ष एवं धम’ क` अित र जो चाह™ आप माँग ल™।’
आँसू िगराते ए क¸ ती ने कहा, ‘‘बेटा, म तुtह™ लेने आई । एक यासी माँ
क ममता भरी गोद म™ तुt ह™ लेने आई ।’’
महाभारत क कहानी लगभग सभी को मालूम ह`, लेिकन मंच पर कण’ एवं क¸
ती का अिभनय इतना वाभािवक एवं वा तिवक v प म™ हो रहा ह` िक सभी दश’क
मूक होकर अिभनय का आनंद ले रह` ह । क¸छ वृ ाएँ क¸ ती क` दय क यथा
को महसूस कर अपने प wू से आँख™ भी प छ रही थ ।
क¸ ती क बात को सुनकर कण’ ने कहा, ‘‘देवी, आपक वाणी मुझे एक व न क
दुिनया म™ ले जा रही ह`। म आपक बात से धीर`-धीर` मोिहत होता जा रहा ।
चाह` आप क बात™ स य ह या क पना, ह` राजमाता थोड़ी देर क` िलए आप अपने
ममता से भर` कोमल हाथ मेर`
िसर पर रख द™। लोग से सुना था िक मेरी माँ ने मुझे पैदा होते ही याग िदया
था। िकतनी बार म ने रात म™ व न देखा िक घूँघट काढ़ी ई मेरी माँ मेर` पास
आई ह`, लेिकन जब भी रोते-
िबलखते ए म ने उनसे घूँघट हटाकर ममतामयी चेहर` को िदखाने क` िलए
िवनती क , वह अ य हो गई। या वही व न आज पांडव जननी क` v प म™ साकार
होकर मेर` सामने हािजर ह`? लेिकन य ? कल ातः काल महारण शुv होगा और
आज अजु’न जननी क` क ठ से यह अभूतपूव’ मातृ वर य ? अचानक पंच पांडव
को अपना भाई जानकर म य याक¸ल हो रहा ? देवी िफर से आप कहो िक म
आपका बेटा —अब बेट` को माँ िमलेगी, माँ को अपना पु ।’’
कण’ क` िसर पर हाथ फ`रती ई क¸ ती बड़` यार से कहने लगती ह`, ‘‘मेरा बेटा,
मेरा ब ा मेर` लाडले।’’
अचानक ाw इस लाड़- यार से कण’ क ितिe या क¸छ अलग सी होती ह`। कण’
क` च र ािभनेता का वा तिवक अिभनय देखने लायक था। िजस मातृeेह क` िलए
उसने जीवन भर हाहाकार िकया, आज िबना माँगे ही वह eेह ाw करने क`
बाद भी अपने मानिसक
ं को उसने ब त ही सुंदर ढ ग से य करते ए कहा, ‘‘अगर म आपका
बेटा ही तो आपने य क¸लकलंक समझकर मातृ-eेह से वंिचत कर मुझे याग
िदया था? ज मल न से म ने अपनी जननी से अनादर ही य पाया? आपने मुझे
हमार` सगे भाइय से हमेशा क`
िलए य दूर हटा िदया? या इसिलए अनजाने म™ अजु’न से मेरा अ य लगाव
िह सा- ेष म™ बदल गया? लेिकन आज अचानक आप मुझे वापस लेने य आई
ह —यह तो बताएँ?’’
कण’ क फटकार सुनकर क¸ ती रोती ई कहने लगी, ‘‘बेटा, मेरी यह फटकार
मुझे अव य ही ा य था। लेिकन सच क िक पाँच पांडव को छाती से लगाकर
भी मेरा कलेजा ठ डा नह होता था बेटा। िजस ब े को म ने मातृeेह से
वंिचत कर रखा था, उसी क` िलए मेरा
िदल हमेशा कराहता रहता था। बेटा जनम क` बाद म ने तेरी मधुरवाणी सुनने से
अपने को
वंिचत िकया था, आज बेटा उसी जुबान से कह दे िक तूने अपनी माँ को e मा
िकया। तेरी फटकार से तेरा e मादान ही मुझे, मेर` िदल को अिधक द ध
कर`गा।’’
क¸ ती क` मातृ व का हाहाकार, कण’ क भ स’ना दोन का अपूव’ अिभनय दश’क को
जैसे महाभारत क` युग म™ ले गया। अपने पा रपा ’क भूलकर येक दश’क
मंच पर अपनी िनगाह इस कार जमाए ह`, जैसे िक वा तव म™ वे क¸ ती एवं कण’
क` संवाद सुनने क` िलए कई हजार साल पीछ` लौट गए ह ।
कण’ क` ठ िहलते ही दश’क उ कष’ हो उठ`। कण’ ने कहा, ‘‘माँ, आप मुझे
लाएँ,
िजतना चाह` लाएँ, लेिकन आपक चरणरज मेर` िसर माथे हमेशा रह`गी।’’
अपना उ े य य करते ए क¸ ती कण’ से कहती ह`, ‘‘बेटा, तुझे अपना
अिधकार
िदलाकर, सार` अपमान भुलाकर अपने पाँच भाइय क` अ ज क` v प म™ िसंहासन
पर बैठाने क` िलए आज म तेर` पास आई । अपने बा बल से र न िसंहासन पर
आसीन होकर अखंड
ताप से रा य शासन करने क` िलए ही म तुt ह™ बुलाने आई ।’’
क¸ ती क बात को सुनने क` बाद कण’ क अvुत ितिeया उसक` चेहर` पर
झलक उठी! कण’ क` च र िनभानेवाले अिभनेता अपनी अिभ य एवं अिभनय
से दश’क को अपनी मानिसकता क` बार` म™ प करते ए कहते ह , ‘‘मातः,
म एक सूत पु , राधा मेरी माता ह`—इसी म™ म अिधक गौरवा वत ।’’ पांडव
एवं कौरव अपने-अपने थान पर बने रह™— मुझे िकसी से ईeया’ नह ह`।
आपने तो मेर` ज म ल न से ही मेरी माँ क` साथ, भाई क` साथ, राजक¸ल क`
साथ सार` नात को हमेशा क` िलए समाw कर िदया था। उस समय सूत प नी राधा
ने मुझे अपनी छाती से लगाकर मातृeेह से पाल-पोसकर सार` लाड़- यार से
मुझे बड़ा
िकया। आज अगर राजमाता अजु’न जननी को म अपनी माता कहकर वीकार क v —
िध ार ह` मुझे! िध ार मेरी िववेक-बु को। क¸ राज क` पास म वचनब ,
राज
िसंहासन क` लालच म™ उनसे नाता तोड़ना भी एक वीर का अपने कत’ य से
युत होना ह`। इस तरह क` ि वचार मन म™ उ प करना भी एक वीर क` िलए
अपमानजनक ह देवी।
कण’ क ढ़ता देखकर क¸ ती अपने को कोसती ई कहती ह`, ‘‘बेटा तुम ध य हो।
लेिकन धम’ का यह इतना कठोर िनद´श! िकसे मालूम था िक एक अभािगन जननी
को अपने प र य पु से भी ऐसी कठोर धम’ क बात™ सुननी पड़™गी।’’
लेिकन अजु’न जननी क` उ े य समझकर वह वीर, उ ह™ आ त करते ए
कह उठा, ‘‘माँ, आपको डरने क कोई आव यकता नह ह`। म आपको वचन देता
िक पांडव क जीत होगी। म रात क` तार से सजे आकाश म™ यु -प रणाम को
य e देख चुका , कौरव क हार तो होनी ही ह`, लेिकन आप मुझे उनका साथ
छोड़ने क` िलए न बुलाएँ माता।’’
एक लंबी साँस छोड़कर कण’ क` च र ािभनेता ने उदास आँख से राजमाता
क¸ ती से कहा, ‘‘म आपसे ढ़तापूव’क कहता िक पंच पांडव िवजयी बन™, राजा
बन™—म तो परािजत कौरव का ही साथ देता र गा। जैसे मेर` ज म ल न म™
आपने मुझे याग िदया था, आज भी मुझे उसी तरह याग द™, लेिकन आशीवा’द
द™ िक िवजयी बनने क` िलए, रा य एवं यश ाw करने क` िलए म एक वीर क` कत’
य से कभी भी पीछ` न हट ।’’
कण’ क¸ ती को णाम करते ह और क¸ ती आँसू बहाते ए कण’ को आशीवा’द
देती ह । िफर क¸छ देर क` िलए मंच पर अंधकार होते ही तािलय क गड़गड़ाहट
शुv हो जाती ह`, जो थमने का नाम ही नह लेती।
वा तव म™ अ राय ने तो करामात ही कर िदया। एक साधारण िलिपक क` पद
पर काम करनेवाले य ने ना य अिभनय, ना य िनद´शन, विन-संयोजन एवं
काश यव था पर
िनयं ण करक` एक ऐसा माहौल तैयार कर िदया ह` ि क जानी ई घटना भी हम
दश’क को साँस बंद करक` नाटक देखने क` िलए बा य कर रही ह`। पुनः मंच पर
रोशनी होते ही नेप e य से उ ोषक घोषणा करते ह , ‘‘क¸ eे क` मैदान म™
कण’ क` िनधन क` बाद।’’
हमने देखा िक मंच पर धृतरा , गांधारी, िवदुर, युिधि र, क¸ ती एवं क¸छ
और लोग उप थत ह । सभी शोकाक¸ल ह , लेिकन कत’ य क` ित वे उदासीन नह ह
।
प र थित को वाभािवक बनाने क` िलए ना य-िनद´शक ने महाभारत से क¸छ संवाद
तुत
िकए। परदा हटते ही धृतरा युिधि र से क¸ eे क` इस यु म™ परमगित
ाw ए वीर क सं या एवं सौभा यशाली जीिवत वीर क सं या पूछते ह ।
युिधि र ने धृतरा से कहा, ‘‘ह` कौरवनाथ, इस यु म™ एक सौ िछयासठ
करोड़ बीस हजार वीर ने परमगित ाw क एवं चौबीस हजार एक सौ प सठ यो ा
पलायन कर गए।
तदनंतर धृतरा ने युिधि र से उन अनाथ, िनवा धन वीर क` अंितम सं कार करवाने
क
यव था करने क` िलए कहा। पुरोिहत धौt य, महा मा िवदुर, महामित संजय इ यािद
परम धािम’क लोग युिधि र क` कहने पर दाहकाय’ संप कराकर गंगातट पर जब
उदक काय’ संप करते ह तो युिधि र क¸छ मं पढ़कर एक अंजिल जल फ` कते
ह —‘उदक काय’ क र e यािम’।अचानक क¸ ती पंच पांडव से कहती ह , ‘‘ऐ मेर`
पाँच पु ो! वह वीर िजसका महावीर अजु’न ने यु म™ संहार िकया, िजसे तुम
राधा गभ’जात सूतपु क` नाम से जानते थे, जो कौरव सेना क` बीच योित e मान
सूय’ क तरह हमेशा देदी यमान रहा करता था, इस धरती पर िजसक` समान बलशाली
कोई दूसरा पैदा नह आ ह`, िजसे यश, रा य का कोई लोभ नह था, उस महा वीर
कण’ क` िलए तुम सब जलांजिल दान करो। वह कवच- क¸ डलधारी महावीर कण’
तुt हार` ये सहोदर थे। देवता सूय’ से ाw कण’ को म ने अपनी कोख म™ ही
पाला था।’’
मंच यव थापक ने टोव लाइट जला-बुझाकर एक अजीब-सी गित मंच पर पैदा क
और सभी च र पागल जैसे दौड़ते ए, भागते ए eण भर क` िलए िदखाई पड़`
—बvी बुझते ही एक जगह खड़` होकर युिधि र ने कहा, ‘‘मातः आपक बात ने
हम™ अ थर कर िदया। आप यह या कह रही ह ? महावीर कण’ हमार` ये ाता थे?
आपने सूय’ देवता से क`से महावीर को ाw िकया था? िजनक` बल ताप को
अजु’न क` अित र और कोई ितहत नह कर सका, ऐसे अ vुत तेज वी महावीर
को आपने-अपने आँचल म™ क`से िछपा रखा था। उिचत
िव e म महावीर कण’ हमार` ये ाता क` बार` म™ आपने यिद कभी भी हम™
संक`त िदया होता तो इस भयंकर यु म™ हम™ यह दुःख नह भोगना पड़ता।
उनक मृ यु का कारण बनने क` कारण हमारा दय आग जैसा धधक रहा ह`। पहले
ात होने पर पांडव एवं कौरव को यु
म™ इतनी हािन नह होती। ह` कण’, आप हमारी अ ानता को e मा कर™। हमार` ये
ाता, हम™ e मा कर™।’’
िकसका अिभनय देखूँ। हर च र िनभानेवाला य इतना सुंदर अिभनय कर
रहा ह` िक लग रहा ह`— ‘ड`िनयल एंड क पर’ कोई इ जीिनय र ग सं था नह , ब क
एक उ कोिट क ना य-सं था ह`। युिधि र क` च र ािभनेता ने एक ही डायलॉग म™
तािलयाँ बटोर ल ।
रोते ए युिधि र जलांजिल दान करते ह । िफर क¸ ती से युिधि र कहते ह ,
‘‘यह मेरा अिभशाप रह`गा िक आज से औरत™ एक भी बात िछपाकर अपने मन म™
नह रख सक` गी। उनक बात™ िछपाकर रखने क आदत क` कारण ही यह पा रवा रक
सव’नाश हो गया। ह` हमार`
ये ाता, आपक` िनधन क` िलए हम सब बराबर क` दोषी ह । हम™ eमा
कर™।’’ इ ह डायलॉग क` साथ भारतीय जोन म™ धीर`-धीर` अंधकार हो
जाता ह`।
अचानक फ ट-फ टकर रोने क आवाज सुनकर म ने अपने बगल म™ देखा।
देखा िक िततली फफक-फफककर रो रही ह`। दोन आँख से आँसू क धारा बह रही
ह`।
वा तव म™ क¸ ती क` च र को िनभानेवाली अिभने ी ने गजब का अिभनय करक`
एक माता क` दय क वेदना को मूत’vप िदया ह`। बेशक वह पेशेवर ही होगी,
लेिकन बेजोड़ अिभनय
िकया ह`।
म ने िततली को समझाने क कोिशश क । म ने कहा, ‘‘कण’ और क¸ ती क कहानी
तुtहार`
िलए अनजान नह ह`, थोड़` िदन पहले टी.वी. क` परदे पर भी देख चुक हो। िफर
इतनी
िवचिलत य हो रही हो?’’
लेिकन मेरी बात का जवाब िदए बगैर िततली लगातार फफकने लगी। समझ
रहा , वह अपने को सँभालने क कोिशश कर रही ह`। बीच-बीच म™ वह क¸छ बुदबुदा
भी रही ह`। दश’क क` कोलाहल, अिभनय क तारीफ और ब त सार` क ठ वर क
िमिeत आवाज क` कारण म
िततली क बात को समझ नह पाया।
अपने बाएँ हाथ से िततली क दािहनी भुजा पर हलका सा दबाव देकर म उसे सां
वना देने क कोिशश करने लगा।
यूनानी पुराण का िपछला य दश’क क` मन म™ एक अजीब उ क ठा पैदा कर रहा
ह`। इसी वजह से सभी लोग अगला य देखने क` िलए बेहद उ सुक ह ।
दो िदन तक लगातार सोचने क` बाद पटना जाने क` िलए म ने एक तरक ब सोच ली।
बगैर इसक` और कोई रा ता भी नह था। मेरी मानिसक पीड़ा ने ही मुझे एक ऐसा
काम करने क`
िलए मजबूर कर िदया, िजसे म ने अब तक कभी नह िकया था, न करने क आव
यकता ही कभी पड़ी थी।
बचपन से लेकर आज तक म ने कभी माँ से या बाबूजी से झूठ नह बोला ह`।
लेिकन आज माँ से बेिझझक म ने एक झूठ कह िदया। आिखर झूठ बोलने म™
हज’ या ह`? मेरी िजंदगी क बुिनयाद ही तो एक झूठ ह`।
पैदा होने क` बाद अपनी ज मदा ी क` eेह से वंिचत होकर म दूसर` क गोद म™
पला। एक अनजान औरत को अपनी माँ क` v प म™ पहचाना। आज भी उ ह™ ही
माँ कहकर पुकार रहा
। या यह झूठ नह ह`।
मुझे अपने िपता का प रचय मालूम नह ह`। िफर भी मेरी झूठी माँ क` प रचय क`
बतौर उ ह क` पित को बाबूजी कहकर संबोधन करने क` िलए मुझे बचपन से
िसखाया गया ह`। जब बचपन से ही मुझे झूठ बोलने क िश eा दी गई ह` तो आज
माँ से िजस बात को कहकर म ने पटना जाना चाहा, वह झूठ य होगा?
शायद इसिलए ही जानबूझकर माँ से झूठ कहने पर भी मुझे कोई अफसोस नह हो
रहा ह`। मेर` जीवन क` इस स य को जानने क` िलए न मालूम मुझे और िकतने झूठ
बोलने पड़™गे।
क ल म™ पढ़ते समय फादर पीटर कहते थे, ‘‘स य क` रा ते पर चलकर
ही ब ो, उस परम स य को ाw करोगे।’’
शायद यह बात मेर` िलए नह ह`। िजसक िजंदगी ही गलत रा ते पर, गलत प रचय
से चल रही ह`, झूठ क` मा यम से ही वह परम स य को ाw कर`गा। मेरी िजंदगी
का एकमा परम स य ह`—ज मदा ी माँ का प रचय जानना।
उसी स य तक प चने क` उ े य से म ने माँ से कहा, ‘‘माँ, दो-चार िदन क`
िलए मुझे एक बार पटना जाना ह`, य िक मुझे लग रहा ह` िक वहाँ से चलते व
जो क ल लीिवंग सिट’िफक`ट म ने िलया था, वह पटना म™ ही छ ट गया ह`। पटना
क` दो त क` पास मेरी ब त सारी िकताब™ पड़ी ह । हो सकता ह` उनम™ से िकसी
िकताब म™ ही सिट’िफक`ट छ ट गया हो।’’
वाभािवक v प से मेरी गैर-िज t मेदारी क` िलए माँ ने मुझे खूब फटकारा।
बाबूजी क` घर लौटते ही उ ह ने मेरी िशकायत भी क ।
बाबूजी ने कहा, ‘‘ऐसा ह` िक तू अपने दो त का अता-पता बता दे। म अपने
पटना क` द तर म™ कल फोन िकए देता । कोई तेर` दो त से तेरा क ल लीिवंग
सिट’िफक`ट लाकर मुझे भेज देगा।’’
लेिकन मुझे तो मालूम ह` िक बात क¸छ और ही ह`। बेिझझक म ने बाबूजी
से कहा, ‘‘मेर` सार` दो त तो पटना म™ ही ह । कई दो त क` पास मेरी िकताब™
पड़ी ई ह । वा तव म™ िकस
िकताब क` अंदर म ने सिट’िफक`ट रख िदया था—मुझे खयाल ही नह आ रहा
ह`। पटना चलकर उन सभी दो त से िमलना होगा, सबसे िकताब™ माँगकर प े
पलटने पड़™गे, तब शायद उसका पता चले। अगर नह िमलता ह` तो क ल क` द
तर से ड¸ लीक`ट ांसफर सिट’िफक`ट इ यू करवाना होगा।’’
मेरी बात™ समझकर बाबूजी ने मुझे पटना जाने क इजाजत दे दी। परम स य को
जानने क`
िलए मेरा पहला कदम ही झूठ क` रा ते पर पड़ा।
लेिकन मेरा क ल लीिवंग सिट’िफक`ट पटना म™ नह , कलक vे म™ ही
पड़ा आ ह`। कलक vा छोड़ने से पहले म ने उसे अपनी िकताब क अलमारी म™
एकदम नीचेवाली टाँड़ पर
िबछ` अखबार क` नीचे िछपाकर रख िदया। कोई इसक` बार` म™ भाँप भी नह सक`गा।
माँ और बाबूजी ने कहा िक पटना प चकर म पुराने लैट क` बगलवाले लैट
म™ रमेश अंकल क` पास ठह v , लेिकन वहाँ ठहरने का मतलब उनक इ
छानुसार मुझे चलना होगा। शायद रमेश अंकल या उनका बेटा अजीत हमेशा
मेर` साथ-साथ रह`गा। जब हम पटना म™ रहते थे, तब उन लोग क` साथ हमारी
खूब पटती थी। वे मुझे ब त चाहते भी ह ।
लेिकन उन दोन म™ से िकसी का भी मेर` साथ िचपकना, मेर` िलए िद त
पैदा कर`गा। उनक उप थित म™ म िमंती गुwा या काश गुwा को तलाश नह कर
सक गा। उनक` सामने म िकसी भी हालत म™ उस परम स य क` बार` म™ पता नह
लगा सक गा।
इन सारी बात को सोचकर ही म पटना प चकर ट`शन क` अहाते से बाहर एक
छोट` से होटल म™ ड`रा डाले । होटल म™ अपना सामान रखकर w`श हो िलया,
िफर खाना खाने क` बाद म काश गुwा क तलाश म™ िनकल पड़ा ।
मुझे शक हो रहा ह` िक स ह साल पहले क` पते पर वे इस समय िमल™गे
या नह । दोन नाम बंगािलय और अबंगभािषय म™ पाए जाते ह , िलहाजा म समझ
भी नह पा रहा िक वे बंगाली ही ह या नह ।
कदमक¸आँ क ओर र शा जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा ह`, म मन-ही-मन चंचल होता जा
रहा
। रा ता बाएँ घूमकर जैसे ही कदमक¸आँ क` करीब प चा, दािहनी ओर बँगला
िमठाई क जानी-पहचानी दुकान भी म ने देखी। स&जी मंडी तक प चकर म ने र शा
कवा िदया।
एक परचूनवाले से काश गुwा का नाम और पता बताने पर, उसने मुझे बाई
ओर क एक गली म™ जाने क` िलए कहा।
गली म™ थोड़ी दूर चलकर ही मुझे 306/ए नंबर मकान िदखाई पड़ा। मामूली सा
दो मंिजला मकान। गली क ओर खुलनेवाली सभी िखड़िकयाँ और दरवाजे बंद
िदखाई पड़`। समझ नह
पाया िक मकान म™ कोई ह` या नह । गनीमत िक दरवाजे पर कोई ताला नह लटक रहा ह`।
म ने िसकड़ी को ब त जोर से िहलाया। अंदर से कोई आवाज नह आई। थोड़ी
देर इ तजार करने क` बाद म ने िफर से िसकड़ी िहलाकर आवाज दी। तुर त दूसरी
मंिजल क एक िखड़क खोलकर एक बंगाली मिहला ने िह दी म™ पूछा, ‘‘कौन
ह`?’’
उस मिहला क` साड़ी पहनने क` ढ ग और भाल पर िसंदूर का टीका देखकर म ने
बँगला म™ ही पूछा, ‘‘ या यह eी काश गुwाजी का मकान ह`?’’
िसर िहलाकर उसक` हामी भरते ही म ने कहा, ‘‘क˛पया उ ह™ जरा बुला दीिजए।’’
िखड़क बंद हो गई। थोड़ी देर बाद दरवाजे क ओर िकसी क` बढ़ते ए
कदम क आहट मुझे सुनाई पड़ी। मुझे लगा िक कोई दरवाजा खोलने आ रहा ह`।
मेर` िदल क` अंदर तूफान मच गया। या मेरी ज मदा ी माँ क` बार` म™ ये
लोग क¸छ बता सक` गे? अब वह कहाँ रहती ह`? उनसे मेरी मुलाकात हो सक`गी?
िखड़क से िजस मिहला ने बात™ क थ , उसने खुद आकर दरवाजा खोल
िदया। बँगला म™ ही उसने बड़` यार भर` श&द म™ कहा, ‘‘अंदर आओ बेटा।’’
उसने िजस कमर` म™ लाकर मुझे बैठने क` िलए कहा, मुझे लगा िक यह
उनका बैठक का कमरा ह`। एक मामूली सोफा-कम-बेड पर उसने मुझसे बैठने
क` िलए कहा।
म ने गौर िकया िक कमर` म™ एक साधारण सी मेज और दो क¸रिसयाँ ह । मेज
पर साधारण सी दो-चार चीज™ और दो-एक िकताब को देखकर मुझे िव ास हो
गया िक यह एक म यवग f य प रवार ह`। कमर` क` दरवाजे पर एक मामूली सा परदा
लटका आ ह`। दीवार पर एक बँगला क`ल™डर ह`, िजस पर रामक˛e ण परमह स क
तसवीर ह`।
मिहला ने मुझसे पूछा, ‘‘तुt हारा नाम या ह` बेटा? उनसे तुम य िमलना चाहते हो?’’
म ने कहा, ‘‘आप हम™ नह पहचान™गी, य िक आपने मुझे कभी देखा नह
ह`। मुझे भी आपका नाम-पता मालूम नह था, लेिकन अचानक यह ट प पेपर मेर`
हाथ म™ पड़ जाने क वजह से मुझे आपका नाम-पता मालूम हो गया ह`। इसी
िसलिसले म™ काशजी से म क¸छ बात™ करना चाहता ।’’
ट प पेपर पर जहाँ eीमती िमंती गुwा और eी काश गुwा का ह ताe र था, म
ने िसफ’ उतना ही िनकालकर उ ह™ िदखाया।
म ने गौर िकया िक ट प पेपर पर उन दोन ह ताe र को देखते ही उस मिहला का
चेहरा
िबलक¸ल फ का पड़ गया।
उ ह ने िफर पूछा, ‘‘तुम कौन हो बेटा? तुt हारा नाम या ह`? अपने िपताजी का
नाम बोलो, शायद म पहचान सक ।’’
म ने कहा, ‘‘मेरा नाम अयन बैनज f ह`। मेर` िपताजी का नाम eी शु ांशु बैनज f
ह`। या आप उ ह™ जानती ह`?’’
अपनी हथेली से मुँह दबाकर एक चीख लगाते ए उ ह ने कहा, ‘‘जानती बेटा,
जानती
। तुt ह™ भी पहचाना, लेिकन वह तो दो साल से िब तर पकड़` ए ह । तुtह™ जो
क¸छ कहना ह`, मुझसे ही कहो बेटा।’’
म ने कहा, ‘‘देिखए, मेर` पास समय ब त कम ह`। िजस बात को म जानना चाहता
, अगर आप उन सारी बात को मुझे बता देती ह तो मुझे काशजी को पर`शान करने
क ज v रत नह पड़`गी।’’
‘‘बोलो बेटा, तुम या जानना चाहते हो?’’
‘‘इस ट प पेपर पर अ प ढ ग से िलखे ए ह ताe र म पढ़ नह सका।
लेिकन अ प अ e र से िलखे इस ए ीम™ट क` क¸छ अंश पढ़कर, क¸छ अंदाज
लगाकर मुझे िव ास हो गया ह` िक िज ह ने इस पर ह ताeर िकया ह`, वह मेरी
जननी ह । आप समझ गई ह गी िक मेरा ज म रह य अब मेर` िलए अनजान नह
ह`। इसिलए म यह जानना चाहता िक उ ह ने मुझे मेर` वत’मान क` माँ-बाप
क` हाथ म™ य दान कर िदया था? और मेरा आिखरी सवाल ह`, ‘‘मेर` िपता
कौन ह ?’’
मेर` प न को सुनकर उनक` चेहर` का र ग हर पल बदलता रहा। मेर`
आिखरी सवाल को सुनकर शायद वह अपने को सँभाल नह पाई। अचानक वह धप
से फश’ पर बैठ गई।
म भी चुपचाप उनक ओर देखने लगा।
न िस ग होम म™ मेर` प चने क` थोड़ी देर बाद डॉ टर चौधरी मेर` च™बर म™ आकर
अपने नए पेश™ट िमसेज सेन क` बार` म™ मुझसे कहा था। म ने िमसेज सेन क अ व
थता क` बार` म™
िव तार से सुना। डॉ टर चौधरी ने अपनी राय भी मुझे बता दी थी। उ ह ने कहा था िक
शायद अचानक िमसेज सेन क एडज टम™ट िडस ऑड’र हो जाने क` कारण उनक
वा श लुw हो गई ह`।
इसिलए डॉ टर चौधरी ने मुझसे अनुरोध िकया ह` िक म िमसेज सेन क अ छी तरह
जाँच करक` अपनी रपोट’ उनक` पास पेश कर दूँ। वह समझते ह िक मानिसक
िचिक सा क` ारा ही िमसेज सेन को उनक लुw वा श वापस हो सकती ह`, य
िक उनक शारी रक अ व थता बल नह ह`।
डॉ टर चौधरी क` अनुसार िजस हालत म™ िमसेज सेन बेहोश हो गई थ , उस प र
थित क` बार` म™ और िव तृत िववरण ाw करने क` इरादे से म ने डॉ टर चौधरी
से कहा था िक इस मामले म™ िम टर सेन क` सहयोग क अपेeा रखना िनहायत
ज v री ह`। इसक` उपरांत िमसेज सेन ने अपनी बेहोशी क हालत म™ िजन लोग क`
बार` म™ िज e िकया ह`, उनक` बार` म™ भी
िम टर सेन से बात™ करनी ह । इन सभी पूछताछ क` बाद ही िमसेज सेन क जाँच
क जा सकती ह` अ यथा सब िनरथ’क हो जाएगा।
डॉ टर चौधरी थोड़ी ही देर म™ िम टर सेन को बुला लाए थे। िम टर सेन क` साथ
बात™ करने क` बाद म समझ गया िक ‘एक और कण’’ नाटक क` कथानक, भारतीय एवं
यूनानी घटना
का तुलना मक अिभनय और उसी क` साथ िमसेज सेन क बेचैनी क e मवार बढ़ोतरी
एवं उनक बेहोशी क हालत म™ कही गई बात क` बीच एक रोचक सामंज य ह`। शायद
इसीिलए डॉ टर चौधरी को लगा िक िमसेज सेन क` अचेतन म™ कोई एडज टम™ट
िडसआड’र हो चुका ह`, िजसक` पीछ` कोई अवांिछत दुःख का कारण भी हो सकता
ह`।
लेिकन िमसेज सेन ने बेहोशी क हालत म™ िजन य य क` नाम का उ ारण िकया
था,
िम टर सेन इस िसलिसले म™ कोई काश नह डाल सक`। उन नाम से उनक` िम -
र तेदार म™ से कोई भी नह ह`। िम टर सेन को मालूम नह ह` िक वे िमसेज सेन
क` प रिचत ह या नह ।
म ने डॉ टर चौधरी से अनुरोध िकया था िक िमसेज सेन को वह मेर` च™बर म™
भेज द™। दो- चार िमनट क` अंदर ही दो नस िमसेज सेन को मेर` पास ले आई ।
नस को एवं िम टर सेन को िवदा करक` म िमसेज सेन को अपने इ टर यू-v म म™ ले
आया।
म ने गौर िकया िक िमसेज सेन बात™ कर नह पा रही ह , िफर भी मेरी बात™ वह
समझ रही ह ।
एक सोफ` पर म ने उ ह™ बैठने क` िलए कहा। वह बैठ गई । िफर म ने मुसकराकर
कहा, ‘‘िमसेज सेन, अचानक आपक जुबान बंद हो जाने से आपको काफ तकलीफ हो
रही ह` न!’’
िसर िहलाकर िमसेज सेन ने मेरी बात को मान िलया।
हमदद f िदखाने क` लहजे म™ म ने कहा, ‘‘आपका यह जुबान बंद हो जाना, वा
तव म™ आपका कोई रोग नह ह`। बात करने क इ छा म™ आपक कमी आ जाने से
यह िद त पैदा हो गई ह`। अगर आप कोिशश कर™ तो आप ज v र बात™ कर सक` गी।
िमसेज सेन, आप थोड़ी सी इ छा-श को बढ़ाकर कोिशश क िजए न।’’
िमसेज सेन ने कोिशश क , लेिकन उनक` गले से आवाज नह िनकली। इशार` से उ
ह ने मुझे समझाया िक उनक आवाज बंद हो गई ह`।
म ने कहा, ‘‘नह , िमसेज सेन, आपक आवाज बंद नह ई ह`। आप म™ इ छा क
कमी हो गई ह`। आप अपनी पूरी इ छा-श को एक जगह इक ी करक`, अपने
मनोबल को बढ़ाकर सोिचए िक आपको कोई तकलीफ नह ह`। सोिचए—‘‘म बात™
क v गी, अव य क v गी।’’
थोड़ी देर कोिशश करने क` बाद िमसेज सेन ने िसर िहलाकर मुझे समझा िदया िक
कोिशश क` बावजूद भी वह बोल नह पा रही ह । जब काफ यास क` बाद भी म
िमसेज सेन का ‘िवलपावर’ वापस लाने म™ स e म नह आ तो म ने कहा, ‘‘जब
आप कह रही ह िक आपक इ छाश से काम नह बन रहा ह`, तो अब मेरी इ छाश
क मदद लेकर देिखए—शायद आप बात™ कर सक` गी।’’
िमसेज सेन को एक इ ावेनस सोिडयम प™टोथाल इ जे शन देकर और एक क` बाद
एक च™बर क बिv याँ बुझाकर, एक हलक सी रोशनी कर देने क` बाद म ने कहा,
‘‘िमसेज सेन,
आप मुझे देख रही ह न? मेरी ओर आप एकटक देखती रिहए। सोिचए, म आपक वा श
आपको वापस कर रहा । मेरी ताकत से अब आप अपनी वा श वापस पा रही ह । अब
बोलने क ताकत आपम™ आ गई। अब आप मुझसे बात™ कर सकती ह`।’’
थोड़ी ही देर म™ िमसेज सेन िह नोटाइ ड हो गई । म ने उनसे पूछा, ‘‘िमसेज सेन,
आप मेरी बात™ सुन रही ह न! िमसेज सेन, मेरी बात™ आपको सुनाई पड़ रही ह`?’’
ब त ही कमजोर आवाज म™ िमसेज सेन ने कहा, ‘‘जी हाँ, म सुन
रही ।’’ ‘‘और थोड़ी ऊ ची आवाज म™ किहए।’’
‘‘ठीक ह`, कोिशश क v गी।’’
म ने पूछा, ‘‘िमसेज सेन, या बात™ करने म™ आपको तकलीफ हो
रही ह`?’’ ‘‘जी, नह ।’’
‘‘िमसेज सेन, या आपको याद ह`, दो िदन पहले िम टर सेन क` साथ आप ना यसदन
म™
य गई थ ?’’
‘‘जी हाँ, याद ह`। नाटक देखने गई थी।’’
‘‘ या नाटक का नाम आपको याद ह`? या नाम था नाटक का?’’
‘‘जी हाँ, अ छी तरह याद ह`। हम ‘एक और कण’’ नाटक देखने गए थे।’’
म ने पूछा, ‘‘आपको नाटक क`सा लगा था? या नाटक का कथानक आपको याद ह`?’’
‘‘जी डॉ टर साहब, सब याद ह`। क`से म नाटक का कथानक भूल सकती । वह तो
मेर` ही जीवन क ित छाया थी।’’
काफ उ सुकता क` साथ म एक क` बाद एक न पूछता जा रहा था। म ने उ t मीद नह
क थी िक इतनी ज दी ही िमसेज सेन मुझसे सहयोग कर™गी। डॉ टर चौधरी ने कहा
था िक
िपछले दो िदन म™ िमसेज सेन अपने होश म™ एक भी श&द उ ारण नह
कर सक थ , लेिकन अब स t मोिहत होकर उनक` ठ क` ताले खुल गए।
उनक` मन क` दरवाज को खोलने क` इरादे से म ने उनसे पूछा, ‘िमसेज सेन, वह
नाटक आपक` जीवन क ित छाया क`से बना? वह तो महाभारत क` कण’ और क¸ ती
क कहानी थी।’’
िमसेज सेन ने कहा, ‘‘कण’ और क¸ ती क` साथ e सा और आयन भी तो थे। कभी म e
सा बनकर आयन को एक पहाड़ी गुफा म™ छोड़ आने क` िलए िकसी क` हाथ म™
स f पती, तो कभी उसे खोकर म ने क¸ ती क तरह िवलाप िकया।’’
म ने कहा, ‘‘िमसेज सेन, आपक बात™ सुनने म™ मुझे काफ आनंद िमल रहा ह`।
आप चुप मत रिहए, आप बोलती जाइए।’’
उ ह ने कहा, ‘‘नह , अब म और चुप नह र गी। स ह साल तक म चुप थी, लेिकन अब
म बोलूँगी।’’
क- ककर िमसेज सेन कहने लग , ‘‘e सा क खूबसूरती का दीवाना होकर
सुनील सा याल उसे अपने आगोश म™ पाना चाहता था। दो साल तक उसक यार भरी
मीठी-मीठी बात™ सुनते-सुनते e सा अपने को खो बैठी थी। अंत तक e सा अपने साथ
और लड़ाई नह कर सक । खुद अपने को सfप िदया था सिन क` हाथ म™।’’
म ने पूछा, ‘‘िमसेज सेन, सिन कौन ह`?’’
एक लंबी साँस छोड़कर अधजगे वर म™ उ ह ने कहा, ‘‘सिन e सा का अपोलो था, क¸
ती का सूय’। सुनील सा याल सिन संबोधन सुनकर ब त खुश हो जाता था।’’
म ने पूछा, ‘‘िफर? आगे या आ? e सा अपोलो क` पास क`से प च गई?’’
धीर`-धीर` िमसेज सेन ने कहा, ‘‘बड़`-िदन क छ¸?ी क` दौरान e सा अपने दो त क` साथ
िपकिनक मनाने ब सी का तालाब गई ई थी। उस िवशाल आम क` बगीचे म™ िकतने
बरगद क` पेड़ थे, e सा को मालूम नह था। एक-एक बरगद पर एक-एक पराe यी िलपटकर
गायब हो गई। e सा भी सिन को अपने आगोश म™ लेकर माली क` कमर` म™ खो गई।
बरगद क` पेड़ ने माली को िपकिनक क` िलए सामान लाने बाजार भेज िदया था।’’
मुझे लगा िक िमसेज सेन न द क` साथ लड़ाई करते-करते अब थक गई ह । काफ थक` ए
वर म™ उ ह ने कहा, ‘e सा का जी काफ भर गया था, लेिकन बर…बरगद…
म™… क ड़ा…लगा…’
उनक जुबान बंद हो गई। धीर`-धीर` वह गाढ़ी नीद म™ चली गई ।
च™बर से बाहर आकर म ने नस को बुला भेजा, वे िमसेस सेन को उनक` बेड पर वापस
ले गई ।
रात को म ने डॉ टर चौधरी से कहा, ‘‘पहली ही सीिट ग म™ िमसेज सेन ने मेर` साथ
काफ सहयोग िकया ह`। मुझे और कई इ टर यू लेने ह गे। उनम™ आ मिव ास क
भावना भर देने क`
िलए और कई सीिट ग क ज v रत ह`। िफर म आपको अपनी रपोट’ पेश क v गा।’’
नाटक क` दौरान िततली क हालत िबगड़ने क बात मुझे याद आई। िजतनी बार e सा
या अयन मंच पर हािजर ए, िततली यादा बेचैन हो उठी थी। या यही सब कारण
रहा?
डॉ. बसु म w क क¸रसी छोड़कर मेर` पास आ गए थे। मेर` हाथ को अपने हाथ म™
लेकर उ ह ने कहा था, ‘‘िम टर सेन, नाउ इ स अप ट यू’ हाऊ यू वुड ट`क इट। लेिकन
ऐज ए साइिकयाि क, म समझता िक यिद आप सपोिट गली इस बात को मान लेते ह ,
भिव e य म™ और कोई सम या पैदा नह होगी।’
उ ह ने कहा था, ‘‘आ टर ऑल, अयन क रिजिडटी देखकर मुझे लगा िक वह
िमसेज सेन क` पास लौटकर नह आएगा और न तो वह उ ह™ माँ कहकर संबोिधत ही
कर`गा। िसफ’ अपनी ज मदा ी माँ को देखने क जो लेट™ट िडजायर उसम™ थी, वह
पूरी हो गई ह`। सो अयन इज नॉट गोइ ग ट िe एट एनी ॉ&लम फॉर यू। िमसेज
सेन को भी उनक वा श वापस
िमल गई ह`। आप अगर चाहते ह तो दो-चार रोज उ ह™ ऑ&जव´शन म™ रखने क` बाद
हम उ ह™ निस ग होम से िड चाज’ कर द™गे।’’
हम दोन क पसंद से खरीदे गए लैट क` बेड v म म™ लेट`-लेट` बेड टी पीते ए म
यही सारी बात™ सोच रहा था। िततली और म ने दोन ने एक साथ इस लैट क` िलए
हर चीज™ एक साथ पसंद करक` खरीदी थ । दोन ने एक साथ लैट को मनमािफक
सजाया था। कभी भी
िततली क` साथ िकसी भी बात पर मेरा िवरोध नह आ ह`। ाइ ग v म क` म टलपीस पर
रखी
ई िसर िहलानेवाली बूढ़`-बूढ़ी क तरह हम दोन ने हमेशा एक-दूसर` क बात पर िसर
िहलाते रह`, लेिकन आज म या क v ?
बाबूजी ने कहा था, ‘‘क¸छ काँट` भी रह™गे।’’
या अयन ही वह काँटा ह`—जो िजंदगी भर हम™ क चता रह`गा?
‘‘नो, नो, नेवर।’’ म एक झटक` म™ िब तर छोड़ कर खड़ा हो गया। सीधे
बाथ v म चला गया। बाथ v म से w`श होकर बाहर िनकलने क` बाद भी मेर` कान म™
बाबूजी क ही बात™ गूँज रही थ ।
मेर` सवाल क` जवाब म™ बाबूजी ने कहा था, ‘‘मुझे यक न ह` िक वा तिवकता को
इनकार करने वाले बेवक फ तुम नह हो। प र थितय क` साथ अपने को िनयोिजत कर
लोगे।’’
आज वह िवकट प र थित दरवाजे पर द तक दे रही ह`। अगर म अपने को एडज ट
नह कर लेता तो शायद िततली क जुबान हमेशा क` िलए बंद हो जाएगी। शायद म भी
िततली को हमेशा क` िलए खो दूँगा।
ेकफा ट लेते व म ने मन-ही-मन तय कर िलया, ‘‘बीई ग ए पो स’मैन ऑल
एलॉग, आई म ट ए से ट िदस चैल™ज। िततली क` बगैर म जी नह सक गा, िततली
क बात™, ह सी, गीत सुने बगैर म इस लैट म™ िकसी भी हालत म™ रह नह सक
गा। इसीिलए काँट` क चुभन क म परवाह नह करता —आई क`यर ए िफग।’’
अपने साथ ही काफ तक’ करने क` बाद म ने काफ राहत महसूस क । मन हलका हो गया।
ज दी से म गैर`ज से गाड़ी िनकालकर निस ग होम क` िलए रवाना हो गया। काफ देर हो
गई ह` िक म ने िततली क` चेहर` को नह देखा ह`।