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√दुआओं में याद रखना _

आभार
वआवत’मान म™ लंदन िनवासी िस मनोिचिक सक डॉ टर पाथ l चौधरी क`
यक मनोिचिक सा संबंिधत परामश’ क` िलए म उनका शुe गुजार । इस
उप यास म™ उनका परामश’ मेर` िलए अ यंत मह वपूण’ रहा। अतः उ ह™ हािद’क ध
यवाद! वाराणसी से कािशत समाचार-प आज क` सामािजक पृ पर यह उप यास
धारावािहक v प म™ कािशत होते
समय पि का क` सामा य बंधक eी अिमताभ चeवतf, सह संपादक eी रामजी
राजीवनजी एवं िविश प कार eी अिमताभ भ?ाचाय’ से ाw सहयोग क`
िलए म अपना आभार य करता । इस प रविध’त एवं संशोिधत सं करण ‘कण’ तुम
कहाँ हो’ क पांड¸िलिप क` संशोधन क` साथ-साथ संपादन का दािय व िनवा’ह करने
क` िलए म ‘आज’ पि का क` उपसंपादक eी
िशवमूरत यादवजी क` ित आभारी ।
कण’ तुम कहाँ हो
‘‘लं च अवर’ क` बाद अपने च™बर म™ प चते ही अचानक फोन बज उठा।
फोन उठाते ही रसे शिन ट िमस च ा ने कहा, ‘‘सर, परचेज िडपाट’म™ट क`
िम टर अ राय ‘ना य सदन’ से र ग कर रह` ह । आपसे बात करना चाहते ह ।’’
लाइन जोड़ देने क` िलए म ने कहा।
अ हमार` टाफ रिe एशन ब क` सेe`टरी क` अित र ना य िनद´शक भी ह । वे ब
त ही चतुर एवं बु मान नौजवान ह ।
आज हमार` ‘ड`नहम एंड क पार’ क पनी का एनुअल ड` ह`। शाम को अ राय क` िनद´शन
म™
टाफ रिe एशन ब क` म™बर ारा एक नाटक खेला जाएगा।
दो िदन पहले ही अ सभी अफसर को अलग-अलग िनमं ण-प खुद आकर प चा
गया ह`। चूँिक इस साल म रिe एशन ब का अ य e , अ ने मुझे सप नीक नाटक
देखने क`
िलए िवशेष v प से िनमंि त िकया ह`।
एक-आध बार मुझे रहस’ल देखने क` िलए अ बुला भी ले गया था, लेिकन पूरा
रहस’ल देखने का मौका मुझे कभी भी नह िमला। िफर भी म समझ गया था िक अ
म™ िनद´शन क कािबिलयत और क¸शलता ह`।
लेिकन आज अचानक ‘ना य सदन’ से फोन करने का कारण नह समझ म™ आया।
‘‘सर, म अ बोल रहा । सर आपको, खयाल ह` न, आज हमार` टाफ रिe एशन ब
ारा ‘एक और कण’’ नाटक खेला जाएगा। आपक मेज पर शीशे क` नीचे बाई ओर
काड’ रखा आ ह`। आप आएँगे न?’’ अ ने बड़ी िवन ता से पूछा।
‘‘हाँ भाई, याद ह`। लेिकन साढ़` तीन बजे से एम.डी. ने एक मीिट ग बुलाई ह`। मालूम
नह कब तक मीिट ग चलेगी—िफर भी उ t मीद करता िक तुt हारा शो शुv होने से पहले
हॉल म™ प च जाऊ गा।’’
‘‘एम.डी. भी आने क सtमित दे चुक` ह । सर, म आपक` िलए िवशेष vप से इ
तजार क v गा, य िक हम लोग ने िन w य िकया ह` िक अ य e क` प चने से
पहले हम नाटक शुv नह कर™गे।’’
म ने कहा था—‘‘अर` नह -नह । ऐसा मत करना। लेिकन जब एम.डी. भी जाएँगे, तब
मीिट ग ज v र तुt हारा नाटक शुv होने से पहले ही ख म हो जाएगी।’’
अ ने कहा था—‘‘काइ डली आप िमसेज सेन को भी लेते आइएगा। नए ि
कोण से महाभारत क` कण’ और यूनानी कण’ को देखकर उ ह™ खुशी होगी।’’
‘‘ठीक ह`, लेता आऊ गा।’’
‘‘फोन रख रहा सर। िसफ’ आपको याद िदलाने क` इरादे से ही ना य सदन से
म ने आपको फोन िकया।’’
अ ने लाइन काट दी थी।
तब से लेकर शाम क` पाँच बजकर पचास िमनट तक थोड़ी सी भी फ¸रसत नह
िमली। व पर एम.डी. क` कमर` म™ हम सभी अफसर को बुलाया गया। से स
मैनेजर, परचेज मैनेजर, प &लक रलेशंस अफसर क` v प म™ मेर` और सभी
िडपाट’म™टलह` स क` साथ एम.डी. ने एक फॉर`न असाइनम™ट पर जोरदार मीिट ग क ।
मीिट ग क` बाद घर प चते-प चते छह बजकर चालीस िमनट हो गए। एक मामूली
`िफक जाम म™ फ स जाने से मुझे िचंता हो रही थी िक म अ से िकया आ वादा
िनभा पाऊ गा या नह ।
घर लौटकर ज दी-ज दी w`श होकर, एक कप चाय पी। िफर िततली क` साथ जब ‘ना
य सदन’ म™ म प चा, तब ितरछी नजर से कलाई घड़ी म™ देखा िक ठीक साढ़` सात
बजे ह ।
हमारी गाड़ी क` ठीक सामने ही एम.डी. क गाड़ी ने भी ‘ना य सदन’ क` अहाते म™ वेश
िकया।
अ और कई लोग हम™ रसीव करने क` इ तजार म™ थे। वे एम.डी., मुझे और
िततली को लेकर हॉल क ओर बढ़`। दूसर` अफसर भी धीर`-धीर` आ गए। अफसर क प
नय से आँख
िमलते ही िततली ने िकसी को ‘नॉ ’ िकया, िकसी को ‘उईश’ िकया और िकसी
क` साथ बात™ करते ए वह भी हॉल क ओर बढ़ने लगी।
अ ने एम.डी. एवं िमसेज एम.डी को फ ट’ रो क` बाई ओर िबठाया। मुझे, ि ततली
परचेज मैनेजर शांत और उसक प नी तथा चीफ एकाउ ट™ट उनक अधा िगनी को फ ट’
रो क` दाई ओर िबठाया।
अपनी सीट पर बैठने से पहले म ने एक नजर म™ देखा िक हमार` टाफ और उनक` प
रवार क` लोग तथा अ य िनमंि त सwन क भीड़ से पूरा ऑिडटो रयम खचाखच
भरा ह`।
उ ोषक अ राय ने घोषणा क —‘‘स w नो, हमारी सं था, ‘ड`िनयल एंड क पार’
क` इस आनंद उ सव यानी िक ‘एनुअल ड`’ क` अवसर पर हम सब आपका वागत
करते ह ।’’ नाटक शुv होने से पहले उ ह ने आदरणीय एम.डी. इ जीिनयर डॉ. गुलाटी
एवं सं था क`
रिe एशन ब क` अ य e क` नाते मुझे मंच पर आमंि त िकया। िफर ोिसिनयम क`
सामने ही एम. डी. एवं मुझे माला पहनाई गई, िफर अ राय क` कहने पर डॉ. गुलाटी ने
बड़` सुलझे ढ ग से कहा,‘‘उप थत स w नो एवं सहयोिगयो, आज का िदन ‘ड`िनयल एंड
क पार’ क` िलए एक हष’ का िदन ह`, य िक उप थत दश’क को यह जानकर स ता
होगी िक हमारी सं था क` कम’चारी यावसाियक काय क` अित र य कला म™
अ vुत क¸शलता रखते ए नाटक का भी मंचन कर सकते ह । अतः म सभी
कलाकार को हािद’क ध यवाद देता । साथ ही, उप थत दश’क को भी उनक सहायता
एवं सहयोग क` िलए आंत रक ध यवाद देता ।’’
म ने भी उप थत दश’क एवं कलाकार को ध यवाद देने क` बाद कहा िक ऐसे अवसर पर
नीरस भाषण सुनना िनरथ’क तीत होता ह`, लेिकन िनद´शक एवं मंच संचालक ने मुझे दो
श&द कहने क` िलए आमंि त िकया, िजसक` िलए वेबधाई क` पा ह । ‘एक
और कण’’ नाटक क अिभनव िवषयव तु, नाटक क` लेखक एवं िनद´शन म™ िनद
´शक ने जो प रeम
िकया ह`—उन सभी काय क` िलए उ ह™ एवं अ य कलाकार को म िवशेष v प से बधाई
देता
। म दावे क` साथ कह सकता िक ‘एक और कण’’ क तुलना मक िवषयव तु
आपक उ सुकता को अव य ही बनाए रखेगी एवं नाटक का अंत देखने क` िलए आप भी
मेरी तरह साँस रोककर इ तजार करने क` िलए बा य हो जाएँगे।
अंत म™ अ राय ने सबको ध यवाद िदया और िफर डॉ. गुलाटी और म जैसे ही
दश’क- दीघा’ म™ अपने-अपने थान पर बैठ`, नाटक शुv हो गया।
परदा हटते ही देखने म™ आया िक यूनानी भवन िनमा’ण कला क` अनुसार मंच को
सजाया गया ह`। समझ गया िक अ पहले यूनान क पौरािणक कथा से ही नाटक का ार
भ कर`गा।
धीर`-धीर` यूनानी मंच संपूण’ आलोिकत हो गया। राजा इर`किथयस क इकलौतीबेटी राजा क
आँख का तारा िकशोरी e सा एक चंचल िहरणी क तरह महल म™ दौड़धूप मचा रही
ह`। मंच पर उसे एक िततली क` पीछ` दौड़ते ए देखा गया। कभी वह उछल-क द मचा
रही ह`, कभी
िखलिखलाकर ह स रही ह`। वा तव म™ e सा का स f दय’ च f कानेवाला ह`। अचानक
संगीत, कला क` देवता सूय’, यूनानी अपोलो मंच पर वेश करते ह । e सा
आwय’चिकत होकर क जाती ह` और कहती ह`—‘‘देवता अपोलो! भु आप क`से आ
गए!’’
मुसकराते ए अपोलो ने कहा, ‘‘न, न, भु मत कहो ि ये। तुt हारा स f दय’,
तुt हारी सजीवता ने मुझे इतना आकिष’त िकया िक म अिलंपस म™ एकाक रह
नह पाया। िववश होकर मुझे अपना थान छोड़कर राजा इर`किथयस क बेटी e सा क`
पास आना ही पड़ा।’’ अपोलो दोन हाथ से e सा क` हाथ को पकड़ लेते ह ।
अपोलो क` पश’ से िकशोरी e सा क` मन म™ एक हलचल मच गई। िलहाजा उसक`
चेहर` पर शम’, आनंद एवं यार क अिभ य याँ एक क` बाद एक देखने को िमल ।
बड़ी मीठी आवाज म™ e सा ने अपोलो से कहा, ‘‘आप मुझे पश’ न करो। म
सार` बदन म™ एक अना वािदत रोमांच महसूस कर रही ।’’
अपोलो ने कहा, ‘‘वसंत ऋतु क मंद-मंद हवाएँ जब फ ल पर से गुजरती ह , तो फ ल भी
हवा से इसी तरह िशकायत करते ए अपने को बचाने क कोिशश करते ह ।’’
अपोलो को एकटक देखते ए e सा कहती ह`, ‘‘म ने इतना v पवान पु ष पहले कभी
नह देखा ह`। आपक मुसकराहट मेर` मन म™ यह क`सी हलचल उ प कर दे रही ह`,
अपोलो। मुझे यह दुिनया आज इतनी खूबसूरत य लगने लगी ह`? एक मादकता उ प
करनेवाली खुशबू मुझे इतना रोमांिचत य कर रही ह`?’’
अपोलो क मीठी मुसकान देखकर और उनक यार भरी बात™ सुनकर e सा को ऐसा
आनंद महसूस होने लगा, िजसे उसने पहले कभी भी अनुभव नह िकया था। उसे इस दुिनया
का v प, रस और खुशबू क¸छ नई जैसी महसूस होने लगे।
धीर`-धीर` मंच क रोशनी कम होती गई और िफर क¸छ eण क` िलए मंच पर
अँधेरा छा गया।
थोड़ी देर बाद जब मंच पर उषाकाल क रोशनी छाने लगी तो हमने देखा िक राजा
इर`किथयस क` महल और यूनानी भवन िनमा’ण कला क` थान पर एक भारतीय वातावरण
बन चुका ह`।
राजा क¸ तीभोज क` महल म™ अचानक महिष’ दुवा’सा हािजर ए ह । िसर पर बाल
क एक जटा समेट` ऊ चे कद क` महिष’ दुवा’सा एक बेहद आकष’क तप वी ह ।
महिष’ दुवा’सा ने राजा क¸ तीभोज से कहा, ‘‘राजन, िभ eा माँगकर आपक` महल म™
क¸छ िदन ठहरने क इ छा मेर` मन म™ ह`। लेिकन महाराज, जब तक म आपक` घर पर र
, कोई भी मेरी इ छा क` िवपरीत काम न कर` और मेरी सेवा म™ भी आपसे कोई ुिट
न हो।’’
महिष’ दुवा’सा को देखते ही राजा क¸ तीभोज काफ पर`शान हो उठ`, य िक दुवा’सा क`
eोध क` बार` म™ वह अनजान नह थे। उनक वािहश सुनकर भयभीत होते ए भी,
बड़ी िवन ता से महिष’ से उ ह ने कहा, ‘‘ह` तप वी, यह तो मेरा सौभा य ह` िक आपने
मेर` इस गरीबखाने म™ रहने क इ छा य क ह`। आपक देखभाल म™ भी कोई
कसर नह छोड़ी जाएगी। मेरी पु ी पृथा आपक सेवा करती रह`गी। मुझे पूण’ िव
ास ह` िक पृथा क सेवा से आप स ह गे।’’
अंतःपुर म™ आकर राजा क¸ तीभोज ने पृथा से कहा, ‘‘मेरी यारी बेटी पृथा, एक ब त
बड़` तप वी मेर` घर म™ क¸छ िदन ठहरना चाहते ह । तुtह™ सारा यान लगाकर महिष’
क सेवा करनी होगी।’’
पृथा को साथ लेकर राजा क¸ तीभोज दुवा’सा क` पास प चे। बड़` आदर क` साथ उ
ह ने उनसे कहा, ‘‘ह` महिष’, आपक आ ानुसार मेरी ाण से भी यारी पु ी पृथा
आपक सेवा करती रह`गी।’’
बेहद खूबसूरत क¸ ती को देखकर महिष’ दुवा’सा शायद अपना eोध भी भूल गए।
िव मत आँख से वह क¸ ती को देखने लगे। उनक` ठ पर हलक -सी मुसकान देखने
को िमली। राजा क¸ तीभोज भी िन wंत हो गए।
करीब एक साल तक महिष’ दुवा’सा राजा क¸ तीभोज क` महल म™ ठहर`। क¸ ती क
सेवा ने महिष’ को काफ स िकया। महल छोड़कर जाने से पहले महिष’ ने क¸ ती
को एक मं
िसखाकर कहा, ‘‘ह` क याणी, इस मं क` बल पर तुम अपनी इ छानुसार िकसी भी
देवता को आमंि त कर सकोगी।’’
महिष’ दुवा’सा राजा क¸ तीभोज क` महल को छोड़कर चले गए ।
िकशोरी क¸ ती ने एक िदन अपने िब तर पर बैठ`-बैठ` सूय’ क ओर देखा। कवच-क¸
डलयु सूय’देव को देखते ही अचानक उसे याद आ जाती ह`- महिष’ दुवा’सा ारा
िसखाए ए मं क बात। मं क` भाव को जाँचने क इ छा से क¸ ती ने सूय’देव को
आमंि त िकया।
पलभर म™ सूय’देव क¸ ती क` िब तर से सटकर खड़` हो गए।
सूय’ को उप थत देखकर िकशोरी क¸ ती बेचैन हो उठी। शम’ और सक¸चाहट से वह
आँख™ उठाकर सूय’देव क ओर देख तक नह सक ।
सूय’देव ने क¸ ती से ेम िनवेदन िकया। उनक मीठी मुसकान और यार भरी बात™
सुनकर क¸ ती एक ऐसा रोमांच महसूस करती ह`, िजसे उसने उससे पहले कभी भी महसूस
नह िकया था।
धीर`-धीर` मंच क रोशनी कम होती गई और िफर एकदम अँधेरा हो गया।
ना य-िनद´शक िफर हम™ यूनानी पुराण क` जोन म™ वापस ले गए। संपूण’ हॉल क`
लोग
िन त&ध होकर ‘एक और कण’’ नाटक का रस अनुभव कर रह` थे। यूनानी एवं
भारतीय च र क पोशाक, मेक-अप एवं मंचस wा ब त ही सटीक ह`। वा तव म™ ना
य-िनद´शक क` v प म™ अ राय क यो यता बेजोड़ मालूम पड़ रही ह`। सभी लोग
महाभारत क घटनाएँ थोड़ी-ब त जानते ह , लेिकन यूनानी पुराण क` साथ सामंज य
रखते ए अ ने िजस तरह से नाटक को िनयोिजत िकया ह`, उससे जानी ई घटना भी
क¸छ नई-सी लग रही ह`। दश’क मंच क ओर से िनगाह हटाने म™ अपने को असमथ’
पा रह` ह ।
एक झलक म ने िततली क ओर देखा। वह भी अपना सारा यान नाटक पर क` ि त करक`
िभ -िभ िकरदार क` अिभनय देख रही ह`। बाएँ हाथ से िततली क बाँह पर एक
हलका- सा दाँव देते ही वह मुसकराकर मेरी तरफ देखी। आँख से इशारा करक` मुझे
उसने समझा
िदया िक उसे नाटक ब त ही अ छा लग रहा ह`।
यूनानी पुराण क` जोन पर अपोलो और e सा क` यार का अिभनय होने लगा। अपोलो क`
यार से िव ल होकर e सा अपने को सँभाल नह पाती ह`। अप रप बु e सा
िनिष फल खाने क` लालच म™ फ स जाती ह`- अपोलो क` यार भर` आिलंगन म™।
अपोलो क चौड़ी छाती पर e सा अपना िसर िटका देती ह`।
काश यव था िनद´शक ने मंच क रोशनी घटाते ए संपूण’ मंच पर एक गुलाबी रोशनी
िबखेर दी। िफर कई सेक` ड तक मंच पर अँधेरा करने क` बाद, जब उ ह ने मंच को
हलक` नीले र ग क रोशनी से भर िदया, तो देखा िक e सा क गोद म™ एक मासूम ब
ा ह`।
मंच पर अपोलो नह िदखाई पड़`।
असहाय ढ ग से e सा िवलाप कर रही थी, ‘‘देवता अपोलो, आपक मीठी बात से
भािवत होकर म ने आपक` पास तक प चने क इ छा क , लेिकन आपने मेर` सtमान
को इस कार से न कर िदया। अब म अपने िपता इर`किथयस से, अपने प रजन क`
सम e क`से अपना स t मान बनाए रखूँगी! नह , नह , अपोलो, म आपक` इस आशीवा’द
को अपने पास नह रख सकती । समाज क नजर म™िकसी नारी क` िलए िववाह
से पूव’ ही मातृ व ाw करना अनुिचत ह`, यह अिभशाप ह`, आशीवा’द नह ।’’
वह रोने लगती ह`। उसक` रोने क आवाज सुनकर उसक खास दासी क` अंदर आते ही वह
उसे कहती ह`, ‘‘नीरी, अपोलो क` आशीवा’द से मुझे एक बेटा िमला, लेिकन म लोकलाज
से इसे अपने पास नह रख सकती । जाओ नीरी, इस ब े को ले जाकर एथ™स क
िकसी पहाड़ी गुफा म™ िलटा दो। इसक` ज म क` बार` म™ िकसी को भी पता नह
लगना चािहए। िकसी
को मेर` ब े क` माँ-बाप क` बार` म™ कभी जानकारी न होने पाए। हमेशा-हमेशा क` िलए
इसका प रचय धुंध म™ िछपा रहने देना।’’
e सा अपने ब े को अपने हाथ से िसले ए व v से ढककर एक टोकरी म™ सुला
देती ह` और िफर टोकरी दासी नीरी को स f पती ई आँसी आवाज म™ कहती ह`, ‘‘जा
बेटा, तेर` जैसे बदनसीब को एक अभािगन माँ अपना लाड़- यार दे नह सक । e मा
करना बेटा अपनी माँ को, देवता अपोलो तेरी र eा कर™।’’
यार से ब े को चूमने क` बाद e सा ने उसे नीरी को स f प िदया।
दासी टोकरी लेकर िनकल जाती ह`। e सा दुःखी होकर रोती रहती ह`। क¸छ देर बाद
दासी जब खाली हाथ वापस आती ह` तो e सा उससे पूछती ह`, ‘‘नीरी, मेर` ब े को
एथ™स क गुफा म™ िलटा िदया ह` न! उसे कोई खतरा तो नही ह`?’’
नीरी ने e सा को आ त िकया।
e सा क` श&द थे—‘‘देवता अपोलो उसक र eा
कर™’’ धीर`-धीर` यूनानी जोन पर अँधेरा छा गया।
e सा क च र ािभने ी ने बड़ी ही क¸शलता से एक माँ क` दय क पीड़ा, अपनी संतान को
िवसिज’त करने क वेदना को अपने अिभनय से उजागर िकया। म ने अंदाज लगाया
िक अिभने ी एक पेशेवर मंच-नाियका ह` और अपने को च र क` साथ िमला लेने म™
भी मािहर ह`। यिद वह मािहर नह होती, तो ऐसा अिभनय िकसी शौक न अिभने ी से
संभव नह हो पाता।
उधर िफर काश यव थापक ने िडमर क मदद से भारतीय पुराण क` जोन म™
हलक -सी रोशनी ला दी।
िकशोरी क¸ ती सूय’देव क` णय संभाषण से िपघल गई। सूय’देव ने कहा, ‘‘ह`
सुvिपनी मं क` भाव से म तुt हार` वश म™ आ गया । बोलो, मुझे या करना ह`?’’
िकशोरी क¸ ती बेचैन हो उठी। वह तो िसफ’ महिष’ दुवा’सा क` मं क श क जाँच
करना चाहती थी। सूय’देव से क¸ ती ने यह बात कही, लेिकन क¸ ती क बात को कोई मह व
न देकर सूय’देव ने कहा, ‘‘मुझे मालूम ह` िक मेर` जैसा ही कवच-क¸ डल यु एक पु
ाw करने क`
िलए तुम उ सुक हो। ह` क याणी, तुt हारी अनुमित िमलते ही म ऐसा एक पु तुtह™ दे
सकता
।’’
भयभीत िकशोरी क¸ ती ने कहा, ‘‘आय’, आप से शादी िकए बगैर, माता-िपता से अनुमित
िलये िबना म क`से आपक संतान क जननी बन सकती । आप मुझे e मा कर™। ह`
सूय’देव, म अपनी क यकाव था न नह कर सकती ।’’
लेिकन सूय’देव िकशोरी क¸ ती क` आमं ण पर ही उसक श*या क` पास आए ह । उ
ह ने क¸ ती को सां वना दी, ‘‘म तुt हारी क यकाव था को िबना न िकए ही
तुtह™ कवच- क¸ डलयु एक वीर पु दान कर सकता ।’’
क¸ ती अपने को और सँभाल नह पाई। वह भी सूय’देव को अपने आगोश म™ पाना
चाहती थी। वह राजी हो गई।
सूय’देव क` क¸ ती क` नािभदेश पश’ करते ही, सूय’देव क` खर तेज से भािवत होकर क¸ ती
अचेत हो गई। वह सूय’देव क` िवशालव e से िसमट गई।
काश यव थापक ने िफर उसी यूनानी जोन क तरह धीर`-धीर` मंच पर रोशनी कम
क और सार` मंच पर एक गुलाबी रोशनी छा गई। िफर चंद ल t ह तक मंच को अंधकार
म™ ड¸बो देने क` बाद धीर`-धीर` मंच को जब नीली रोशनी से उ a ल िकया तो क¸ ती
क गोद म™ एक छोटा सा ब ा देखा गया।
सूय’देव मंच पर िदखाई नह पड़`।
पर`शान िकशोरी क¸ ती क आँख से आँसू क धारा अनवरत बह रही थी।
लोकल wा से बचने क` िलए िकशोरी क¸ ती धा ी से सलाह-मशिवरा करने लगी। अंत
म™ धा ी क सलाह क` अनुसार ब े को ढ`र सार` व v से ढककर, एक लकड़ी क` ब
से म™ उसे िलटाकर अ नदी म™ ब से को बहा िदया।
क¸ ती क` च र को िनभानेवाली अिभने ी ने गजब का अिभनय िकया। e सा और क¸
ती क` च र को िनभानेवाली अिभनेि य क क¸शलता क तुलना करने पर िकसी
को कम नह कहा जा सकता ह`। दोन ने ब त ही यथाथ’ अिभनय िकया।
परदा िगरा। दस िमनट क` िलए म यांतर घोिषत आ। इतनी देर तक नाटक देखने
म™ म इतना मशगूल रहा िक िततली क तरफ िनगाह तक नह डाल सका। ऑिडटो
रयम क ब vी जलते ही देखा िक िततली क दोन आँख से आँसू टपक रह` ह । सारा बदन
पसीने से लथपथ हो गया ह`।
मुझे लगा िक नाटक क` पा क` अिभनय ने िततली पर ब त असर डाला होगा।
एयर- क डीशंड हॉल म™ भी िततली को आराम नह िमल रहा ह`।
म ने पूछा, ‘‘ य जी, तुt ह™ काफ तकलीफ हो रही ह` या? एयर-क डीशंड हॉल म™ भी
तुtह™ इतना पसीना य हो रहा ह`?’’
िततली क` जवाब देने से पहले ही ऑिफस बेयरा रामजी पांड`य को ड ि स लेकर
हमार` सामने हािजर हो गया। िततली को पसीने से तर देखकर उसने बड़` अदब से
मुझसे कहा, ‘‘साब, कसूर माफ क िजएगा। आप मेमसाब को बाहर खुली हवा म™ ले
जाएँ। शायद उ ह™ तकलीफ हो रही ह`।’’
म भी यही सोच रहा था। बगल म™ बैठ` परचेज मैनेजर शांत बोस से िततली क
अनइजी फ िलंग क` बार` म™ कहकर थोड़ी देर क` िलए म िततली को हॉल से बाहर
ले आया।
ए टा &लशम™ट क` क¸छ नौजवान बाहर खड़`-खड़` िसगर`ट पी रह` थे। िततली क` साथ
मुझे बाहर आते ए देखकर मलय क¸ ड˛ आगे बढ़ आया। पूछा, ‘‘क¸छ चािहए सर?’’
म ने कहा, ‘‘नह भाई। लग रहा ह` िक हॉल क` टफ एटमॉसिफयर म™ िमसेज
को क¸छ तकलीफ हो रही ह`। इसीिलए, थोड़ी देर क` िलए खुली हवा म™ िनकल
आया।’’
मलय ने कहा, ‘‘आइए सर, इधर एक कमरा िबलक¸ल खाली ह`। दस िमनट पंखे क` नीचे
बैठना शायद मैडम को अ छा लगे।’’
ीन v म क` बगल म™ फ¸ल पीड म™ चलते ए पंखे क` नीचे बैठकर, एक िच ड
को ड
ि क पीने क` बाद िततली को क¸छ राहत िमली।
िततली को क¸छ व थ देखकर म क¸छ िन wंत आ।
म ने पूछा, ‘‘डािल ग, तुt ह™ ऐसा य हो गया? ेशर चढ़ गया ह`? घर चलोगी?’’
िततली ने कहा, ‘‘नह , नह , आप िफकर मत कर™। e सा और क¸ ती का अिभनय
इतना सुपब’ हो रहा ह` िक वा तव म™ िदल को छ गया। आप िफकर मत कर™
—अभी ठीक हो जाएगा।’’ आँख™ मूँदकर िततली ने क¸रसी से पीठ सटा दी।
िततली को आराम करने का मौका देकर म कमर` से बाहर िनकल
आया। बाहर आते ही म ने एक िसगर`ट जलाई।
जब म जवान था, ब त से नाटक म™ म ने अिभनय िकया था। शायद इसीिलए
आज भी नाटक मेरी कमजोरी ह`।
िक मत क वजह से ही—संयोग से आज म ब त बड़ा आदमी बन गया—चाहते ए भी
ट डड’ क` कारण काफ चीज से अपने को दूर रखना पड़ता ह`। लेिकन हमेशा तो ऐसा नह
रहा।
प ीस-छ&बीस साल तक म ने मनमानी क ह`। म यमवग’ का आदमी रहा। जीवन का
ार भ बनारस म™ बीता। बाबूजी काशी िह दू िव िव ालय क` इ जीिनय र ग कॉलेज
म™ क`िम ी क` रीडर थे। अ ययन-अ यापन क` अलावा बाबूजी का एकमा शौक
था— योितष चचा’। अपने प रिचतजन क भा य गणना करक` वे आनंद अनुभव करते
थे।
जब म प ीस साल का था, बाबूजी ने माँ से कहा था, ‘‘अजी सुनती हो, तुt हार` बेट`
क` नसीब म™ vी-भा य से धन ह`, लेिकन क¸छ काँट` भीरह™गे।’’
माँ ने कहा था, ‘‘ऐसे धन क जvरत नह ह`। लेिकन जब काँट` ह —आप कह रह` ह
— य नह उसे हटाने का कोई इ तजाम आप करते ह ?’
बाबूजी ने कहा था, ‘‘नह जी, नह । नसीब बदला नह जा सकता ह`।’’
लेिकन म ने आज तक िकसी भी काँट` क चुभन महसूस नह क । िततली और म ब
त सुखी ह । ऐसी बात नह िक हम™ कोई दुःख नह ह`। मेर` िदल म™ एक दद’ ह`,
शायद िततली क`
िदल म™ भी ह`। हमार` पास कोई संतान नह ह`। हालाँिक हमारी शादी ए चौदह साल
बीत गए, लेिकन आज तक िततली ने कभी भी संतान क` ज म का थोड़ा सा भी संक`त नह
पाया ह`।
एक बार म िततली को िबना बताए ही डॉ टर से िमला था। मेर` डॉ टर दो त ने मेरी
जाँच करने क` बाद मजाक म™ कहा था—‘‘अर`, बलीबद’ जैसा तेरा तेज ह`-एक नह ,
जुड़वाँ ब ा तू पैदा कर सकता ह`। अपनी प नी क जाँच िकसी गाइनोकोलॉिज ट से
एक बार करवा ले।’’
लेिकन म िततली क जाँच नह करवा सका। कई बार म िततली को गाइनोकोलॉिज ट
क` पास ले जाना चाहा—वह कभी भी जाने क` िलए तैयार नह ई। उसका कहना ह`,
‘‘अगर नसीब म™ ब ा नह ह` तो डॉ टर या कर`गा?’’
िसफ’ इस दुःख क` िसवाय, हम काफ स रहते ह । म रहा म यवग’ का—
लेिकन आज धनी सुमन सेन क` v प म™ काफ ऐश-ओ-आराम क` िदन गुजार रहा
। म कभी नह भूल सकता िक मेर` धनी होने क` पीछ` िततली और मेर` सुरजी ने
िकतनी अहम भूिमका िनभाई ह`।
रईस बाप क इकलौती बेटी थी िततली। बचपन म™ ही माँ क` वग’वास हो जाने क` कारण
िततली ससुरजी क आँख का तारा थी। उनक` देहांत क` बाद उनक चल-अचल सारी संपिv
हम™ िमली।
देहांत होने से पहले ही उ ह ने िततली क` नाम से ब क म™ करीब दो लाख पए जमा कर
िदए थे और िफर उनक` देहांत क` बाद उनका सारा पया हमार` खाते म™ ही जमा
होता गया। आज हम™ पैसे क` िलए सोचना नह पड़ता ह`, कोई िफ e भी नह ह`।
लेिकन हमारा साउथ-एवे यू का ढाई हजार ायर फ ट eे फल का लैट हमेशा
सूना- सा लगता ह`। एक चंचल गोल-मटोल ब ा या एक फ¸रतीला िकशोर अगर
रहता…
म यांतर समाw होने क घंटी बजी। िततली भी कमर` से बाहर िनकल आई ह`।
उसने कहा, ‘‘चिलए, नाटक देखने चल™। आपक` टाफ क` लोग ब त बि़ढया नाटक खेल
रह` ह ।’’
म ने कहा, ‘‘मिहलाएँ हमार` द तर क नह ह । लगता ह` वे ोफ`शनल ह , लेिकन वा तव
म™ e सा और क¸ ती दोन का अिभनय बेजोड़ ह`।’’
ऑिडटो रयम म™ लौटकर अपनी-अपनी सीट पर बैठते ही िथएटर हॉल अँधेरा हो गया।
शांत ने पूछा, ‘‘िम टर सेन, िमसेज सेन इस व क`सी ह ? इज़ शी वेल
नाऊ?’’ म ने कहा, ‘‘थोड़ी सी राहत िमली ह`।’’
सामने क ओर िनगाह पड़ते ही देखा धीर`-धीर` मंच का परदा खुल रहा ह`।

मु झे याद नह ह` िक िपछले चौदह साल म™


सुमन क` साथ म िकतने नाटक और िफ
म™ देख चुक , पर आज जैसी मानिसक ितिe या कभी नह ई।
आज अचानक ऐसा य हो गया? अवचेतन क गहराई म™ जो बात गायब हो चुक
थी, अचानक अनजाने म™ वहाँ चुभन लग जाने से ही या मेरी तबीयत िबगड़ने लगी
थी?
पित क` v प म™ सुमन लाजवाब ह`। हमेशा स , एक स w न आदमी। उनका
कहना ह`, ‘‘जीवन म™ सुख-दुःख, रोग-शोक, तकलीफ` हमेशा आती रहती ह और आती
रह™गी भी। लेिकन उन सब बात क` बार` म™ सोचकर िजंदगी को अस बना लेना
ही या बु मानी ह`? अपना काम ईमानदारी से करो—िफजूल क सोच से अपने िदमाग
पर बोझ मत बढ़ाओ। खाओ-पीयो, म त रहो। ह सी-मुसकान से अपनी िजंदगी भर दो।
िकसी ने कहा था न, ‘ह स लो बेटा, दो ही िदन तो ह सना ह`।’ समझी िततली, म भी
वैसे ही िस ांत पर यक न करता
।’’
सही म™, सुमन िजतना देर घर म™ रहते ह , खुशी से सुगबुगाते रहते ह`, ह सी-मजाक
से मन बहलाते रहते ह । घर म™ िसफ’ हम दो ही ाणी ह , लेिकन जब तक सुमन घर
पर रहते ह , म महसूस नह कर पाती िक हम िसफ’ दो ही ह ।
सुमन मुझे िजतना यार करते ह , उतनी ही मेरी बात को मह व देते ह । आज तक कभी
भी मेरी मरजी क` िखलाफ उसने क¸छ भी नह िकया ह`।
कभी-कभी एक बुरी बात भी मेर` िदमाग म™ आती ह`। या बाबूजी क तमाम जायदाद जो
िमली ह` या मेर` खाते म™ जो पए जमा ह , उसी लालच म™ सुमन मेर` आ ाकारी
तो नह बने रहते ह ?
जानती , ऐसी बात™ मुझे सोचनी भी नह चािहए, य िक यह झूठ ह`। िफर भी मन और
मन क सोच तो बेलगाम ही ह`। मुझे पूरा यक न ह` िक सुमन मुझे हद से यादा यार
करता ह` और शायद इसीिलए वह मेरा आ ाकारी भी ह`।
एक म टी-नेशनल क पनी क` ए स यूिटव क` v प म™ सुमन का गजब का य
व ह`। द तर म™ उसक काफ चलती ह`। उसक` मधुर यवहार क` चलते सब लोग उनसे
ब त यार करते ह ।
िसफ’ इस मधुर यवहार क वजह से ही तो म भी सुमन से यार िकए िबना रह नह
पाई। सच क तो शादी क` व या उसक` बाद भी थोड़` िदन तक सुमन से मेरा कोई
लगाव या
यार क¸छ नह था। म बाबूजी क मरजी क` िखलाफ जा नह सक थी, िलहाजा सुमन
से शादी करने क` िलए म मजबूर हो गई।
लेिकन थोड़` ही समय बाद मुझे एहसास हो गया था िक बाबूजी आदमी पहचानने म™
ब त मािहर थे। मासूम ब े जैसे सुमन को सँभालते-सँभालते मुझे खुद मालूम नह
आ िक म कब सुमन से यार करने लगी थी। उसे यार िकए बगैर म रह न सक ।
िफर भी सुमन क` सामने अपने िदल को आज तक म य नह खोल सक ?
हजार कोिशश क` बावजूद सुमन क तरह अपने िदल क` सभी िखड़क -दरवाजे य
नह म खोल पाती ?
म यांतर क` समय मेरी आँख म™ आँसू देखकर, मुझे पसीने से लथपथ देखकर
सुमन क` चेहर` पर जो घबराहट म ने देखी थी, उसम™ कोई कपट नह था। मेर` ित सुमन
का यार अगर यथाथ’ नह होता तो मेरी इस मामूली अ व थता को देखकर सुमन इतना
पर`शान नह होता। वा तव म™ बड़ी िक मत से मुझे सुमन जैसा पित िमला ह`।
इस व इस छोट` से कमर` म™ पंखे क` नीचे बैठकर, को ड-ि क पीने क` बाद मुझे
काफ राहत िमली ह`, लेिकन अपनी इस पर`शानी क वजह म क`से सुमन से क ? मेरी
शम’, मेरी
िहचिकचाहट हमेशा-हमेशा मेरा गला घ टकर रख देती ह`। सुमन क तरह म तो कभी
भी अपने बचपन से लेकर शादी क पहली रात तक क सारी बात™ िदल खोलकर सुमन
को सुना नह पाती ।
सुमन ने अपनी िजंदगी क कोई भी घटना मुझसे नह िछपाई। अपने क ल एवं
कॉलेज लाइफ म™ िकस दो त क` साथ उसक सबसे गहरी दो ती रही, फ¸टबॉल क`
मैदान म™ मार- पीटकर िकसका िसर फोड़ डाला था, स ह साल क उ म™
िकराएदार क लड़क क` साथ उसका ‘कफ लव’ िकस मुकाम तक प च चुका था—
सुमन ने सारी बात™ मुझसे कही थ ।
सुहाग रात म™ ही पहली बार चुंबन करते समय सुमन अचानक कह उठा था,
‘‘यह ई तीसरी बार।’’
म च f क उठी थी। मुझे नह मालूम सुमन ने गौर िकया था या नह , लेिकन म फ क
पड़ गई थी। अपनी हालत म खुद समझ रही थी—मेर` तो होश ही उड़ गए थे।
लेिकन थोड़ी ही देर म™ मेरी सारी आशंका को दूर हटाते ए सुमन ने कहा था, ‘‘स
ह साल क उ म™ छत पर जानेवाली सीढ़ी क` स ाट` म™ खड़` होकर िकराएदार
क लड़क को पहला चुंबन िकया था। उसक` बाद इ सव™ साल म™ दूसरी और
आज प ीस साल क उ म™ तीसरी बार तुt ह™ चूमा। पहले दो बार गैर कानूनी काम
िकया था, इसिलए र ते ट ट गए। लेिकन आज तीसरी बार अपनी लीगल वाइफ को
चूमा, ज v र यह र ता प ा बन जाएगा।’’
ऐसे ही अजीब आदमी ह मेर` पित सुमन। कोई लुकािछपी नह । कोई शम l-हया नह ।
हर बात म™ सुमन क पोिट ग प रट मुझे देखने को िमलती ह`। अगर पसंद नह
आती ह`, तो कहते ह —‘‘सॉरी, मैडम, आई.एम. ह` पलेस। आई कांट बी िग टी ट माई
कॉनसाइ स।’
इतना w और w` क होने क वजह से ही तो दमयंती नाम क एक पंजाबी लड़क से अपने
यार का सारा वण’न सुमन ने खुलकर मेर` सामने रख िदया था।
बात उस समय क थी, जब सुमन बनारस िह दू िव िव ालय म™ अथ’शाv से
एम.ए. कर रहा था। उस व सुमन फाइनल म™ था। फाइनल क` छा -छा ा
ारा ीिवयस क` छा - छा ा को एक रसे शन दी जा रही थी। वह पर सुमन ने
दमयंती को देखा। उसका गीत सुनकर सुमन उस पर िफदा हो गया।
सुमन ने कहा था—‘‘जानती हो िततली, दमयंती को म ने देखा और एकदम चार खाने
िचत। उन िदन , तुt ह™ मालूम ह` न, एक अं ेजी िफ म लगी थी ‘कम से ट™बर’। उस
िफ म म™ एक ब त ही ए साइिट ग t यूिजक था। मुझे लगता था िक हर पल उसी
t यूिजक का रद ę मेर`
िदल म™ बज रहा ह`। तुमने सुना ह` न? करीब-करीब ऐसा ही था—‘ट…र…र…र…
ट… र…र…र…ट…र…र…ट’, क द फाँदकर नाचने लगा था सुमन।
उसक हरकत™ देखकर म ह सते-ह सते लोटपोट हो गई थी। एकदम छोट` ब जैसा मासूम।
िफर वह और िव तार म™ गया।
‘‘उस समय मेर` िदमाग म™ िसफ’ एक ही बात थी—हर हालत म™ मुझे दमयंती
चािहए। अगर दमयंती क िजंदगी म™ राजा नल कभी भी आते ह तो मेर` िसवाय वह और
कोई नह होगा।
खुद ही जाकर दमयंती से प रचय िकया। खैर, उन िदन देखने म™ भी म कोई बुरा
नह था। यूिनविस’टी &लू रहा। िe क`ट, फ¸टबॉल, ट`िनस— हर खेल का म एक जबरद त
िखलाड़ी। सोशल गैद र ग म™ नाटक खेलता रहा, गीत गाता रहा।
‘‘इसिलए तुम समझ ही सकती हो िक दमयंती को अपने क&जे म™ लाने क`
िलए मुझे अिधक मेहनत नह करनी पड़ी। दो त क` बीच हम दोन काफ चचा’ क`
िवषय बन चुक` थे।’’
‘‘सबसे मजे क बात या थी जानती हो? अगर म या दमयंती एक िदन अनुप थत
रहते…, तो सभी दो त दूसर` को तलाश िकया करते थे।’’
‘‘उसी दमयंती को साथ लेकर फाइनल परीeा से पहले एक िदन म सारनाथ घूमने गया।
जब शाम ढलने लगी थी, ध t मेक ट प क` िपछवाड़` स ाट` म™ खड़` होकर
गौतम बु को साeी मानकर दमयंती को आिलंगन करक` म ने पहली बार- आई मीन,
िजंदगी म™ दूसरी बार
िकसी लड़क को चूमा था।’’
‘‘लेिकन जानती हो िततली, मेर` क`लक¸लेशन म™ ब त बड़ी गलती हो गई। मैने एक
ऐसे आदमी को गवाह रखा था, जो गृह थी छोड़कर चले गए थे। अपने यार से
यशोधरा ही
िस ाथ’ को घर पर बाँधकर नह रख सक —वही य गौतम बु बनकर मेर`
िलए या कर सकते थे?’’
‘‘सारी बात™ मेर` िलए उलट गई । दमयंती से शादी करक` म नल क` पो ट पर प चना
चाहता था, लेिकन पंजाब क शेरनी ने मेर` सीने पर लात मारकर पंजाब क` गु वचन का
हाथ थामकर एक ह ते क` अंदर अमृतसर चली गई। मुझे जरा सा समझने तक नह िदया था
िक उसक शादी पहले से ही तय हो चुक थी। मुझे बंदर नाच नचाकर मेरी ‘व स
अपॉन ए टाइम’ क िवलवेड दमयंती हमेशा क` िलए चली गई।’’
या ऐसे आदमी से यार िकए बगैर रहा जा सकता ह`, जो अपनी िजंदगी क` पहले यार
का वण’न इस तरह यं या मक ढ ग से अपनी प नी को सुना सकता ह`? या उसक ईमानदारी
पर कभी भी शक िकया जा सकता ह` ?
लेिकन म ?
सुमन क इस ईमानदारी का गवाह होते ए भी म य नह ईमानदार बन सकती?
नह , और सोचना नह ह`। शायद म यांतर समाw होनेवाला ह`। एहसास हो रहा ह`
िक सुमन बाहर खड़`-खड़` िसगर`ट पी रह` ह । िकसी से बात™ भी कर रहा ह`। शायद
मुझे व थ होने क` िलए वह क¸छ समय दे रहा ह`। शरीर से म व थ हो चुक , लेिकन
अपने अशांत मन को क`से शांत क v गी—समझ म™ नह आ रहा ह`।
अगर मुझे मालूम होता िक सुमन क` ऑिफस क` रिe एशन ब का नाटक इस तरह
से मुझे िवचिलत कर सकता ह`, तो शायद ही म यह देखने आती।
लेिकन म यांतर से पहले तक इतना सुंदर अिभनय आ िक अंत तक देखे िबना चले
जाने का जी भी नह करता ह`। लग रहा ह` िक e सा क` ब े का हाल जाने बगैर म
यहाँ से जा नह सकती। क¸ ती और कण’ क` बार` म™ तो मालूम ह`, लेिकन e सा का
ब ा? अंत तक उसका या आ? यह मानो मेरी ही सम या ह`।
e सा और क¸ ती का अिभनय वाकई बेजोड़ ह`। माँ क` िदल क छटपटाहट, पूत पाने
क` बाद भी उसे खोने क पीड़ा—दोन ही ने गजब ढ ग से पेश क ह`। िकतना यथाथ’
अिभनय ह`— शायद मुझसे यादा कोई महसूस नह कर सकता।
म यांतर समाw होने क घंटी बजी। अब हॉल म™ जाना ही उिचत होगा। मुझे नाटक
का अंत देखना ही ह`।

म यांतर समाw होने क घंटी बजते ही म ने देखा िक िततली कमर` से बाहर आ गई। य
िप
िततली ने कहा िक वह ठीक ह`, िफर भी उसक हालत देखकर मुझे लगा िक पूरी तरह से
वह
व थ नह हो पाई ह`।
शायद मेर` बार` म™ सोचकर ही िततली हॉल म™ चलने क` िलए िनकल आई
ह`। मेर` ही ऑिफस क` रिe एशन ब का नाटक। इस साल म ही ब का अ य e भी
—इसिलए नाटक क` अंत तक रहना मेरा फज’ समझकर ही िततली हॉल म™ जाना
चाहती होगी।
िफर भी जाते-जाते म ने िततली से कहा, ‘‘चलो घर चल™। म ने नाटक का रहस’ल देखा
ह`, घर जाते-जाते नाटक का कथानक म तुtह™ बता दूँगा। हालाँिक पूरा रहस’ल म ने
कभी देखा नह ह`, िफर भी कथानक क` बार` म™ अंदाज तो मुझे ह` ही।’’
लेिकन िततली ने जोर डालते ए कहा, ‘‘नह जी, नह । आप य इतना पर`शान हो
रह` ह ? अब म िबलक¸ल ठीक , कोई तकलीफ नह ह`। शायद हॉल क टफ
एटमॉसिफयर म™ मुझे थोड़ी सी पर`शानी हो रही थी। आिखर तक नाटक को देखकर
ही घर जाऊ गी—आपक`
टाफ क` लोग और अिभनेि याँ हर िकरदार का अिभनय बेहद खूबसूरती से कर रह` ह ।’’
म ने भी बात मान ली। वा तव म™ सभी ब त सुंदर अिभनय कर रह` ह ।
सोचा था, िततली जब आिखर तक देखना चाहती ह` तो देख™। घर लौटकर फ`िमली
िफजीिशयन डॉ टर चौधरी को एक बार र ग करक` बुला लूँगा। रात को अगर वह नह आ
सकते तो कम-से-कम कल सवेर` आकर वह िततली का चेक-अप करक` पता लगा ही सक` गे
िक िततली को ऐसा य हो गया था। या उसका &लड ेशर बढ़ गया ह`? डॉ टर
चौधरी ही इसे बता सकते ह ।
हॉल म™ लौटकर अपनी-अपनी सीट पर बैठते ही परदा उठने लगा। बिv याँ बुझते ही
िततली ने हलक` हाथ से मेर` बाएँ हाथ को थामकर मेर` चेहर` क ओर देखा।
मुझे लगा िक वह क¸छ कहना चाहती ह`।
लेिकन उसने क¸छ नह कहा। थोड़ी देर तक मेरी तरफ देखने क` बाद उसने मंच क ओर
देखा। जोर से मेर` हाथ पर उसने दबाव डाला, मुझे लगा िक वह मुझे इशार` से भरोसा
देना चाहती थी िक अब वह व थ हो गई ह`।
मुसकराकर उसक ओर एक झलक देखकर म ने भी मंच पर िनगाह डाली।
नाटक िफर से शुv हो गया ह`। यूनानी पुराण क` जोन म™ धीर`-धीर` िडमर क
सहायता से रोशनी बढ़ाई गई।
मंच पर e सा अपनी संतान को खोकर मायूस बैठी ह`। अगर देवता अपोलो का यार और
सहानुभूित उसे िमली होती तो शायद उसक मायूसी समाw हो जाती, लेिकन ब े क`
पैदा होने क` बाद से अपोलो िफर कभी नह आए।
e सा ने तह`िदल से अपोलो से यार िकया था, लेिकन अपोलो ने उस यार को
मया’िदत नह िकया।
आँसे वर म™ e सा अपने यार क तौहीनी क` बार` म™ अपनी दासी से बात™ कर
रही थी। बेचारी e सा ने सोचा था िक सही व पर अपोलो उसे प नी का दरजा देकर
स t मािनत कर™गे।
लेिकन e सा अिलंपस क` देवता अपोलो को अपने पित क` v प म™ ाw नह कर
सक । बदले म™ उसे िमला धोखेबाजी और वंचना, य िक अपोलो e सा को
छोड़कर अक`ले ही अिलंपस म™ लौट गए।
मंच पर राजा इर`किथयस हािजर ए। e सा राजा क आँख क पुतली ह`, कारण उनक
कई पुि य म™ से अक`ले e सा ही समु देवता पिसडन क` हाथ से बच पाई थी।
िजस िदन से राजा इर`किथयस ने देवी ऐथेना को एथ™स नगरी क र eा देवी क` v प
म™
वीकार कर िलया था, उसी िदन से वह समु देवता पिसडन क` दु मन बन गए थे।
पिसडन एथ™स नगरी क` र e देवता बनना चाहते थे, लेिकन राजा इर`किथयसने उनक इ
छा को नकारते ए देवी ऐथेना को वीकार कर िलया था।
पिसडन इस बेइ w ती को बरदा त नह कर पाए। इस बेइ w ती का बदला लेने क`
िलए राजा इर`किथयस क सभी बेिटय क पिसडन ने इ w त लूट ली। ब त छोटी होने
क` कारण
िसफ’ e सा बच गई थी। राजपुि य को अपिव करक` पिसडन ने राजा
इर`किथयस को सबक िसखाना चाहा। बेसहारा राजा उस व पिसडन क` िखलाफ क¸छ
नह कर पाए थे।
धीर`-धीर` e सा िकशोराव था म™ प ची, लेिकन अपने राजकाय म™ बुरी तरह से
फ से रहने क` कारण राजा इर`किथयस ने कभी इस पर गौर नह फरमाया। अपोलो क
मेहरबानी से e सा क¸मारी माता बन गई ह`— यह भी राजा को मालूम नह ।
क¸छ सािललाक टाइल से, क¸छ नेप e य भाषण क` मा यम से ना यकार ने राजा
इर`किथयस क` बार` म™ सारी बात™ दश’क को समझा िदया।
मंच पर राजा ने जैसे ही e सा को देखा, उनक आँख म™ वा स य छा गया। अपनी
ही लाडली बेटी को बड़ी होते ए देखकर, वह फ ले नह समाए। अब तो बेटी क` हाथ
पीले करने पड़™गे।
राजा ने अपनी इ छा क` बार` म™ बेटी को जानकारी दी। उ ह ने कहा, ‘‘पड़ोस क` रा
य क` युथास क` साथ म तुt हारा र ता तय क v गा।’’
आगे उ ह ने कहा िक काफ पहले से ही उ ह ने इस र ते क` बार` म™ सोच रखा ह`,
य िक एक बार एथ™स क` संकटकाल म™ युथास ने राजा इर`किथयस क काफ मदद
क थी। उसी व से युथास क वीरता से स होकर, उ ह ने युथास को अपने दामाद क`
v प म™ पाने क क पना क थी, िजसे अब साकार करना ह`।
बेचारी e सा अपने िपता को न तो अपोलो क` बार` म™ और न अपने कानीनपु क`
बार` म™ क¸छ कह सक । राजा क इ छानुसार ही युथास क` साथ e सा क शादी हो गई।
युथास क` साथ e सा क` चले जाते ही मंच क रोशनी धीर`-धीर` कम होती गई और
िफर क¸छ e ण क` िलए मंच पर अंधकार हो गया।
दूसर` ही e ण भारतीय पुराण क` जोन म™ ब vी जल उठती ह`। देखा िक क¸ तीभोज
क पु ी बेहद खूबसूरत क¸ ती, अपने कानीन पु क` िवरह म™ रोती ई िवलाप कर रही
ह`।
महिष’ दुवा’सा क` िसखाए ए मं ने कवच-क¸ डलधारी एक पु ाw करने म™
उसे मदद जvर क , लेिकन मातृ व सुख पूरी तरह से अनुभव करने का मौका तो उसे
नह िमला।
अतः क¸ ती िबलखती ई कहने लगी—‘‘ह` सूय’देव, यह क`सा उपहार मुझे आपने िदया,
िजसे म अपने पास रख तक नह सक । एक जननी क` दय क यथा आप पु षगण
कभी समझ नह सकते ह । पु से िबछ¸ड़ने का दद’ मुझे भी अब तक ात नह था।
लेिकन आज मेरा िदल चकनाचूर होता जा रहा ह`, य िक मेर` ही अनैितक यार क` प
रणाम व v प पु को नदी म™ बहा देने क` िलए िववश होना पड़ा।’’
मन-ही-मन क¸ ती ाथ’ना करने लगी। िनद´शक ने ामैिटक मोनोलॉग से दश’क को बतलाई।
‘‘ह` पु , तुt हारी या ा मंगलमय हो। वग’, म य’ एवं अंत र e क` सभी ाणी तेरा भला
कर™। तेर` िपता अंशुमान, परमवीर सूय’देव हमेशा तुझे बचाएँ। मेर` यार`, तेर` कवच-क¸
डल देखकर ही म भिव e य म™ तुझे पहचानूँगी। तुझे अपना बेटा कहकर पुकारने का
सौभा य िजस मिहला को िमलेगा, न जाने वह िकतनी सौभा यवती होगी।’’
क¸ ती क च र ािभने ी रोते-रोते बैठ जाती ह` और िफर अपने को कोसती ई कहती ह`
—‘‘म तो अपनी िक मत को कोस रही —महिष’ दुवा’सा क` िसखाए गए मं ने
कवच क¸ डलधारी एक पु ाw करने म™ अव य ही मेरी मदद क , लेिकन म मातृ व
सुख पूरी तरह से अनुभव नह कर पाई, वयं सूय’देव को अपने पु क` जनक क` v प म™
तो म ने पाया, लेिकन उ ह™ अपने पित क` v प म™ तो म नह पा सक । बचपन म™ भी
इसी कार क` दुःख म ने झेले। िपता को पाकर भी िपतृeेह से मुझे वंिचत होना पड़ा,
य िक उ ह ने मुझे िनःसंतान राजा क¸ तीभोज को दान दे िदया। अपने िपता क`
ारा िदया गया नाम पृथा को भी राजा क¸ तीभोज ने बदलकर द v कपु ी क` v प म™
मेरा नाम क¸ ती कर िदया। जीवनभर मुझे वंचना ही
िमली—यह दुःख म क`से भूल सकती ।’’
लेिकन िकशोरी क¸ ती को अपना दुःख य करने क भी फ¸रसत नह दी गई, य िक
राजा क¸ तीभोज मंच पर वेश कर जाते ह और क¸ ती आँसू सँभालकर बनावटी ढ ग से
मुसकराते ए राजा क` सामने प चती ह`।
अपनी आँसु को लीलकर क¸ ती अपने िपता से कहती ह`, ‘‘तात, आपने य क
िकया? मुझे बुला िलया होता।’’ क¸ तीभोज अपनी सम या से मु पाने क` िलए क¸
ती से कहते ह , ‘‘बेटी म एक असमंजस म™ फ स गया । िभ -िभ रा य क`
राजा तुम से शादी रचाने क` िलए िनर तर मेर` पास ताव भेज रह` ह । मेर` िलए
िकसी फ`सले पर प चना संभव नह हो रहा ह`। ऐसी थित म™ तुtहार` सभी गु जन
एवं दरबार क` अमा य क` साथ परामश’ करने क` बाद म ने तुtहारी शादी क` िलए
एक वयंवर सभा बुलाई ह`। अब तुम वयं िनण’य लेने क` यो य बन गई हो—सभी क`
बार` म™ जानकारी ाw करने क` बाद तुtह™ ही अपने पित को चुनना ह`। इस
िवशेष बात क` िलए ही मुझे तुt हार` क e म™ आना पड़ा।’’
कानीन पु क माता क¸ ती अपने दुःख को िछपाने क कोिशश करते ए िपता से
क¸छ कहने म™ संकोच क मु ा म™ अपने चेहर` पर शम’, भय, सक¸चाहट इ
यािद क अिभ य
कट करने लगती ह`, िजसे राजा क¸ तीभोज नारी क वाभािवक ल wा समझकर कहते ह
—‘म समझ रहा बेटी, एक अकारण भय, लाज तुझे क¸छ बोलने से रोक रहा ह`। क
मुझे भी ह` िक मेरी आँख क पुतली अब हमेशा मेरी आँख क` सामने नह रह`गी।
िफर भी सामािजक िनयम यही ह` ि क लड़क सयानी होने पर उसे अपने घर म™
भेज िदया जाए। एक बाप होना इतना तकलीफदेह होता ह`, मुझे पहले मालूम नह था,
लेिकन अब अनुभव हो रहा ह` ि क मेर` शरीर क` एक अंग को काटकर दूसर` क` साथ
जोड़ना िकतना क कारी होता ह` बेटी। वह बेटी क¸ ती को अपनी छाती से लगाकर उसक`
ललाट को चूमते ह । भारतीय जोन म™ धीर`-धीर` अंधकार हो जाता ह`। अंधकार होने से
पहले वयंवर-सभा क` य म™ क¸ ती v पवान पांड¸ क` गले म™ जयमाला डाल देती ह`।
अचानक िन त&ध हॉल तािलय क गड़गड़ाहट से गूँज उठा। वा तव म™ अ राय का
िनद´शन बेजोड़ ह`, दश’क भाविवभोर हो चुक` थे। वे समझ रह` थे िक नाटकको िलखने
म™ अ ने काफ मश त क ह`। यूनानी पुराण और भारतीय पुराण पर जबरद त पकड़
अगर नह होती तो दोन देश क घटना को इस कार समानांतर ढ ग से पेश करना
नामुमिकन था।
िसफ’ ना य-लेखन म™ ही नह , संगीत, िनद´शन, काश यव था, मंचस wा,
डायलॉग और टीमवक’ का इतना सुंदर सम वय आ ह` िक दश’क मं मु ध होकर
नाटक देखे जा रह` ह । कोई भी मंच क ओर से अपनी िनगाह हटाने म™ अपने को
असमथ’ पा रहा ह`। वा तव म™ अ म™ नर ह` और वह काफ मेहनती भी ह`।
म ने मन म™ ठान िलया िक मौका पाते ही एम.डी. से अ का नाम मोशन क`
िलए ज v र र`कम™ड क v गा।
म ने िततली क ओर देखा। अँधेर` क वजह से ठीक समझ नह पाया, लेिकन लगा
िक वह अपने बट¸ए से मेिलंग सॉ ट क शीशी िनकालकर सूँघ रही ह`। थोड़ा
आ w य’ आ— अचानक उसक हालत इतनी िबगड़ य गई?
म ने पूछा, ‘‘ य जी, िफर तकलीफ हो रही ह`? चलो, घर चल™। घर लौटकर डॉ टर
चौधरी को र ग करने पर वह आ जाएँगे।’’
लेिकन िततली ने कहा, ‘‘नह , नह , म घर नह जाऊ गी। बस अभी आराम हो
जाएगा। ब त सुंदर नाटक ह`। अंत तक देखे िबना म घर नह जाऊ गी। आप िबलक¸ल
बेिफ e रहो।’’
समझ गया िक िततली को तकलीफ हो रही ह`। आिखर य ? सबेर` तक तो वह व
थ थी। हॉल म™ आने से पहले भी कोई िशकायत नह थी। नाटक शुv होने से पहले
भी वह काफ ठीक थी। तो या, नाटक क` कथानक ने उस पर असर डाला?
लेिकन क¸ ती और कण’ क` बार` म™ तो वह अनजान नह ह`; हो सकता ह`, e सा और
उसक` ब े क` बार` म™ िततली को न मालूम हो। िफर भी इतनी बेचैन होने क वजह
या ह`?
ना य-िनद´शक ने पूरी तौर से दश’क को अपनी िगर त म™ ले िलया ह`। मंच पर
जैसे ही रोशनी िबखरनी शुv ई, दश’क िफर से शांत हो गए और बड़ी उ सुकता से
मंच क ओर देखने लगे।
भारतीय पुराण जोन अँधेरा हो गया ह`। िडमर क मदद से काश िनयं क मंच पर
एक हलक -सी रोशनी छाने लगी।
नेप e य से घोषणा ई—‘स ह साल बाद।’
िततली क ओर से यान हटाकर म ने e सा पर िनगाह डाली। क¸मारी e सा अब
क¸मारी नह ह`-वह राजा युथास क प नी रानी e सा बन गई ह`। मंच पर दोन ही हािजर ह ।

क ई बार म ने सुमन से अपने िदल क बात™ कहनी चाह । सुमन क तरह म ने भी अपने
िदल क` सभी िखड़क -दरवाजे खोलकर िदल क गहराई म™ िछपी ई सारी बात™
िनकाल देने क कोिशश क । कई बार म ने चाहा िक आज तक िजसे हम सुमन से
िछपाने क कोिशश करती आ रही —उनका खुलासा कर दूँ।
िपछले चौदह साल से ही लगातार म सोच रही िक अब शायद व आ चुका ह`।
सुमन जैसे पित से मेरी अपनी बात™ िछपाना अनुिचत होगा। सबक¸छ कह देना ही ठीक
होगा। कम- से-कम मुझे तो चौबीस घंट` झेलनेवाले मानिसक ेश से छ¸टकारा िमल
जाएगा।
मुझे यक न ह` िक सुमन म™ एक पोिट ग प रट ह`—वा तिवकता को मानने म™
वह कभी पीछ` नह हट सकता ह`। इतना तो म समझ ही चुक िक सुमन का िदल
जाड़` क` आकाश जैसा िनम´घ, साफ-सुथरा ह`। कोई भी कलंक या शक का बादल
उसक` िदल पर अपनी परछाई तक नह डाल सकता ह`। िफर भी आज तक म सुमन से
क¸छ कह न सक ।
म यांतर क` बाद हॉल म™ आकर मुझे ऐसा लगा था िक शायद मेरी बात™ कहने का
इससे बेहतर मौका और कभी मुझे नह िमलेगा।
म ने हलक` हाथ से सुमन का बायाँ हाथ थाम िलया था। र ले स ए शन क तरह तुर
त सुमन ने मेरी ओर मुड़कर देखा था। एकटक उसक` चेहर` क ओर देखकर म ने उसक`
मन को पढ़ना चाहा था।
िक तु उसक आँख म™ मेर` िलए उसक पर`शानी से भरी ई ि , मेर` ित उसक
वफादारी और eेहभरी िनगाह ने अपनी बात™ करने से मुझे रोक िदया। आशंका ई
िक अपनी बात™ कहने पर कह मुझे इस अपािथ’व यार से हमेशा क` िलए हाथ न धोना
पड़`।
मुझे लगा िक ऐसी थित होने पर म इस दुिनया म™ िबलक¸ल अक`ली हो जाऊ
गी। मुझे मालूम ह` िक पैसे क कमी मुझे कभी भी नह होगी, य िक बाबूजी ने अक`ले
मेर` िलए भी
िजतना छोड़ा ह`, उतना िसफ’ पया’w ही नह , काफ भी ह`।
लेिकन या अथ’ ही दुिनया म™ सबसे अनमोल चीज ह`? कम-से-कम इतने िदन
म™ यह स ाई तो मुझे मालूम हो ही गई ह` िक औरत क` िलए अथ’ से भी बढ़कर
पित का यार- आिलंगन और बेट` का मातृ संबोधन होता ह`।
मेरी बदिक मती ह` िक दूसरा सुख मुझे नह िमला। लेिकन पहले सुख को पाकर भी अगर
खोना पड़`—इस भय से भयभीत होकर सुमन क` हाथ थामने क` बावजूद भी म उससे क¸छ
कह नह सक । मंच क ओर इशारा करते ए शायद म ने यह कहना चाहा था, ‘‘ि
यतम,
या तुम e सा या क¸ ती को माफ कर सकते हो?’’
अ छा ही आ िक सुमन ने मेरा इशारा नह समझा। म ने भी उसक` हाथ पर थोड़ा सा
दबाव देकर हाथ छोड़ िदया था। उसने शायद सोचा िक म ने अपनी व थता क` िलए
उसे भरोसा िदया। सोचने दो। बेिफ e होकर उसने मंच क ओर िनगाह डाली।
म ने भी मंच क ओर िनगाह डाली। नाटक म देखूँ क`से? िजस e म म™ कथाकार और ना

िनद´शक घटनाएँ पेश कर रह` ह , उ ह™ देखते-देखते मेरी एक अ य स vा म™, मेरी अंतरा
मा म™ एक पीड़ा महसूस हो रही ।
e सा क असहाय हालत, उसक इ छा क` अपघा , िपता क` आदेश पर युथास
से उसक शादी देखते ए मुझे लगा िक साँस लेने क` िलए हॉल म™ जरा सी भी हवा
नह ह`। लंबी साँस™ लेने क कोिशश म ने क थी, लेिकन आराम नह िमला।
ितरछी नजर से म ने उस व सुमन क ओर देखा भी था। यान लगाकर वह नाटक
का अिभनय देख रहा था।
सुमन को मालूम नह हो सका था िक मुझे साँस लेने म™ िकतनी तकलीफ हो रही
थी। अगर पल भर क` िलए भी सुमन मेरी ओर देखता तो मेरी तकलीफ को देखकर िन w य
ही वह मुझे हॉल से बाहर ले जाता और ज v र घर ले गया होता।
लेिकन ऐसी थित म™ तो म नाटक का अंत देख नह सकती थी। e सा क` ब े का या
आ? अभी तक ना य-िनद´शक ने उस घटना को रह य बना रखा ह`।
भारतीय जोन म™ जब क¸ ती िवलाप करने लगी थी, मेरी साँस क तकलीफ क¸छ कम
हो गई थी, िक तु िफर जब वह कण’ क` िलए हाहाकार करने लगी और वयंवर
सभा म™ राजा क¸ तीभोज क` आदेश पर जब उसे हािजर होना पड़ा, मेरी तकलीफ
िफर से बढ़ गई।
राजा पांड¸ क` गले म™ क¸ ती ने य ही जयमाला डाल दी, म मेिलंग सॉ ट क शीशी िबना
िनकाले रह नह पाई। मेरा तो दम ही घुट रहा था!
सुमन क िनगाह उसी व मुझ पर पड़ी। तािलय क गड़गड़ाहट से हॉल गूँज
उठा, लेिकन म तो अिभनय क जी खोलकर शंसा नह कर सक ? यह तो नाटक नह ह`,
यह तो जीवन क ित छाया ह`। यह तो—उसी व सुमन ने मुझसे पूछ िलया था िक म
घर जाऊ गी या नह ।
म ने कहा था, ‘‘जी नह , अंत तक िबना देखे म नह जाऊ गी।’’ म ने उ ह™ भरोसा िदया
था
िक ब त ज दी मुझे आराम हो जाएगा।
यूनानी पुराण क` जोन म™ िफर से रोशनी छाने लगी। नेप e य से घोषणा भी ई—‘स
ह साल बाद’।
या e सा को अब अपना बेटा िमल जाएगा? ना य-िनद´शक अब या दिश’त कर™गे?
मंच पर राजा युथास और रानी e सा दोन ही हािजर ह । दोन क बातचीत से मालूम आ
िक महल म™ कोई िशशु न होने क` कारण दोन का दम घुट रहा ह`। इसीिलए दोन ने तय
िकया िक देलिफ क` मंिदर म™ जाकर देवता अपोलो से वे एक संतान पाने क उ t मीद से
ाथ’ना कर™गे। अगर देववाणी होती ह` तो शायद उ ह™ संतान ाw करने क` उपाय क`
बार` म™ जानकारी हो सकती ह`।
अपने अनुयाियय क` साथ राजा युथास और रानी e सा देलिफ क` मंिदर क` अहाते म™
प च गए।
e सा मंिदर क` अंदर नह गई। अहाते म™ खड़ी होकर मंिदर क` कामकाज म™ मदद
करनेवाले एक िकशोर क` साथ वह बात™ करने लगती ह`। रानी e सा ने िकशोर का
नाम पूछा। िकशोर ने अपना नाम आयन बतलाया।
लेिकन आयन क बड़ी-बड़ी आँख™ और उसक मधुर आवाज रानी e सा को इतना
िवचिलत य कर रही ह ? कौन ह` यह मासूम िकशोर? इस मंिदर म™ सेवा करने क` िलए
आयन कहाँ से आया? एक क` बाद एक सवाल रानी e सा क` िदल म™ उमड़ने लगे। इन
सारी बात को आयन से िबना पूछ` वह रह नह पाई।
रानी क` न क` जवाब म™ आयन ने कहा, ‘‘माफ क िजएगा, य िक मेर`
उ v र शायद आपक` मनमािफक नह ह गे। जब से म ने होश सँभाला, तब से म इसी
मंिदर म™ ही । इस मंिदर क पुजा रन ही मेरी माँ ह`। म ने तो व न म™ भी नह सोचा
िक वह मेरी माँ नह ह । आप इस तरह फालतू शक य कर रही ह िक पुजा रन मेरी
माँ नह ह ?’’
रानी e सा आयन क` न का जवाब नह दे पाती ह`। उ ह ने अपने से ही पूछा, ‘‘इस
िकशोर को देखकर म इतनी उतावली य हो उठी?’’
वह अपने से भी यह बात िछपा नह सक िक आयन को छाती से लगाकर एक बार
उसका म तक चूमने क` िलए वह याक¸ल हो उठी ह`। वह समझ नह पा रही ह` िक
आिखर इस अनजान िकशोर को देखकर उनक` ि दल म™ इतनी उथल-पुथल य मच
गई?
अपना प रचय देते समय आयन ने अपने कामकाज क` बार` म™ भी रानी e सा को
बताया था।
बचपन से ही मंिदर क` अहाते म™ पानी िछड़कना, लार`ल वृe क डाल से बने
झा से अहाते को साफ करना, देवता क` भोग चुगने क` िलए जो िचि़डयाँ आती ह , उ
ह™ उड़ाना इ यािद मामूली काम वह करता चला आ रहा ह`। उसक लगन और देवता
अपोलो क` ित उसका लगाव देखकर उसक माँ उससे काफ स रहती ह`।
रानी e सा िजतनी ही आयन क मधुर आवाज सुनती ह`, उतनी ही वह अपने िदल
क गहराई म™ एक अना वािदत रोमांच महसूस करती ह`। उसका जी चाहता ह` िक
वह एक बार आयन को अपनी छाती से लगा ले, लेिकन शम’ क` कारण वह क जाती
ह`।
ोसीिनयम क ओर बढ़कर रानी e सा वागत भाषण क` मा यम से अपने
मानिसक ं को दश’क तक प चाती ह`।
आयन क` पास जाकर बड़` यार से वह उसक` बदन और िसर पर हाथ फ`रने लगती ह`।
उसक` ित रानी क` इस यार को देखकर आयन भी अचंिभत हो जाता ह`।
मंिदर क` अहाते म™ हलक नीली रोशनी भर गई। e सा और आयन िw ज हो गए।
ना य, िनद´शक ने मंिदर क` अंदर राजा युथास पर रोशनी डाली। राजा युथास ने
दैवश क अिधका रणी मंिदर क पुजा रन से अपनी सम या क` बार` म™ बतलाया।
युथास क बात को सुनकर पुजा रन ने देवता अपोलो से ाथ’ना क । देववाणी ई
—‘‘युथास, मंिदर क` बाहर जाते ही अहाते म™ िजस िकशोर से तुt हारी मुलाकात होगी,
उसे ही तुम अपना बेटा, मेरा वरदान समझकर वीकार कर लो।’’
पूर` यूनानी जोन म™ रोशनी भर गई। आयन क` िसर पर हाथ फ`रते-फ`रते रानी e सा
िw ज हो गई थी, रोशनी फ`लते ही उ ह ने हाथ नीचे िकया।
मंिदर से राजा युथास बाहर आ गए। उनक िनगाह रानी e सा और आयन पर पड़ी।
खुशी से राजा युथास झूम उठ`, य िक उनक ग ी क` कािबल हकदार को ही देवता
अपोलो ने उ ह™ दान िदया ह`। दोन हाथ को जोड़कर उ ह ने देवता अपोलो को णाम
िकया और िफर आयन को ख चकर अपनी छाती से लगा िलया।
मुझे नह मालूम िक इन सभी य को एक क` बाद एक देखकर मेरा िदल य शांत
सा हो गया। रानी e सा िजस तरह से आयन से यार करने लगी ह`, उसे देखकर िजस
तरह से वह िवचिलत हो उठी ह`—लग रहा ह` िक आयन ही ज मल न से िबछ¸ड़ा आ
उनका बेटा ह`, हालाँिक ना य-िनद´शक ने अभी तक स प™स बना रखा ह`। राजा युथास
को भी आयन को गले लगाते ए देखकर मुझे लगा िक—
लेिकन यह या! आयन को युथास ने जैसे ही अपनी छाती से लगाया, रानी e सा
िछटककर दूर य हट गई? वह इतनी e र िनगाह से आयन और राजा युथास को
घूरने य लगी?
सुनने म™ आ रहा ह`, यूनानी सिललाक शैली म™ वह कह रही ह`, ‘‘समझ म™
आया राजा युथास—म सबक¸छ समझ गई। तुt हारी ही अवैध संतान अब तक इस मंिदर
म™ पल रही थी। पुजा रन क` साथ ष यं रचकर, उस अवैध ब े को देवता क`
आशीवा’द से ाw करने का नाटक रचकर अपनी ग ी का हकदार बनाने का ढ ग तुम
रच रह` हो।’’
िजस िकशोर को देखकर थोड़ी देर पहले ही उसक` अतृw मातृ दय म™ लाड़-
यार क बाढ़ आ गई थी, अब उसे ही युथास क` सीने से िलपट` ए देखकर उसक` िदल
म™ नफरत क आग धधक उठी।
धीर`-धीर` यूनानी पुराण क` जाने म™ अँधेरा छा गया। कई सेक` ड तक मंच पर अंधकार
बना रहा।
लेिकन मुझे लगा िक सारी दुिनया मेर` िलए अंधकारमय हो गई। रानी e सा
िकतनी बड़ी अभािगन ह` िक अपने बेट` को पाकर भी पहचान नह पा रही ह`। यथ’ म™
राजा युथास पर वह शक कर रही ह`।
म अपने को और सँभाल नह पाई। म ने अपने मन म™ ही कहा, ‘‘e सा, य तुम
अपनी तकलीफ बढ़ा रही हो? इससे तेरा या फायदा होगा? e सा मेरी बात मान ले,
िफजूल म™ शक मत कर। अगर तेरी जगह पर म होती—’’
भारतीय पुराण क` जोन म™ रोशनी छाने लगी। नेप e य से उ ोषक ने घोषणा क
, ‘‘पंच पांडव क` शv िशeा क` समाw होने पर।’’
ह तनापुर म™ श v परीeा क` िलए पंच पांडव एवं धृतरा क` सभी पु गण इक
` ए ह । राजक¸मार का श v चालन देखने क` िलए र गभूिम क` बाहर गांधारी क` बगल म™
क¸ ती भी बैठी ह`। धृतरा क` बगल म™ िवदुर बैठ` ह ।
एक क` बाद युिधि र वगैरह भी र गभूिम म™ आ रह` ह । जब अजु’न ने र गभूिम म™
असाधारण क¸शलता का दश’न िकया तो जनता एवं सभी राजपु ष ने शोर मचाकर उसक
शंसा क ।
िवदुर ने िव तार से सारी घटनाएँ धृतरा को समझाई । क¸ ती भी गांधारी को िव तृत
िववरण सुनाती रही।
अजु’न क` श v नैपु य को देखकर और जनता का उ wास सुनकर पु क` गौरव से
क¸ ती क खुशी का िठकाना नह रहा।
ना य-िनद´शक ने मंच पर श v चालन न िदखाकर और जनता को उप थत न
करक`, नेप e य से ही कोलाहल पैदा करक` दश’क को समझा िदया िक श v परीe ण
जारी ह`। मंच पर िसफ’ िभ -िभ च र को िदखाया गया।
अजु’न क` श v नैपु य समाw होते ही िफर से र गभूिम से एक शोर उठा। करीब प
ीस साल क` एक नौजवान ने र गभूिम म™ कदम रखा ह`। उगते ए सूय’ जैसा उसका
स f दय’ देखकर अजु’न क शान से गिव’त क¸ ती चंचल हो उठी।
मजबूत मांसपेिशय वाले उ aल, िनभfक एवं गौरवण’ क` इस नौजवान को
देखकर अजु’न-जननी का िदल िवचिलत य हो उठा ह`? इस नौजवान क` िलए वह
अपने िदल म™ एक अजीब सा यार य महसूस कर रही ह`?
यार भरी िनगाह से क¸ ती ने उस नौजवान को िसर से पैर तक देखा। अचानक उसक
िनगाह उस नौजवान क` कवच पर पड़ी। तुर त ही वह अपनी थम संतान को पहचान गई।
एक अ य वेदना से वह छटपटाने लगी।
एक अजीब से आकष’ण से क¸ ती का दय नाच उठा। उसका सारा बदन थरथर काँपने
लगा।
क¸ ती क` च र को िनभानेवाली अिभने ी ने एक अ vुत ‘फ`िसयल ए स ेसन’
दिश’त
िकया। एक ही साथ उसक` चेहर` पर सुख, दुःख, ह सी, आँसू, रोना सबक¸छ घुलिमलकर
एक अजीब सी हरकत देखने को िमली। आवेश म™ उसक आँख™ बंद हो गई । ऐसा
तीत आ िक ब त बड़` भय से उनका शरीर काँप उठा।
र गभूिम म™ आकर कण’ ने भी अजु’न जैसी करामात िदखाई। अजु’न क अपेeा
उसक कािबिलयत िकसी भी माने म™ कम नह ह`। अपनी eे ता मािणत करने क`
िलए उ ह ने अजु’न से यु करना चाहा।
क˛प ने कण’ से उसका िपतृ-प रचय पूछा। कण’ क` िपता का नाम सूत अिधरथ
सुनकर उ ह ने मुसकराकर कण’ से कहा, ‘‘िजसका ज म राजघराने म™ नह आ ह`,
अजु’न क` साथ यु करने का उसे कोई हक नह ह`।’’
िसर झुकाकर शम’ से लाल हो गया कण’। कण’ क इस ल wा, इस तौहीनी को
देखकर क¸ ती क` दय म™ गहरा ध ा लगा। कण’ का अपमान होने का मतलब
उसक` मातृ व का अपमान ह`।
अचानक कण’ क िनगाह अजु’न-जननी क¸ ती क eेहभरी आँख पर आ िटक ।
झील जैसी शांत गहरी स t मोहनी ि से कण’ म म™ पड़ गया। अजु’न जननी को
देखकर उसक ऐसी
ितिe या य हो रही ह`?
अ प श&द म™ कण’ ने कहा, ‘‘अजु’न जननी क` साथ मेरा ऐसा सा य य ह`?
अजु’न जननी का चेहरा जैसा मेरा चेहरा, यहाँ तक िक मेर` पैर का आकार भी उनक` जैसा
ही ह`। हम दोन माता-पु नह ह ? वा तव म™ म या िकसी राजघराने म™ पैदा
आ था? नह , नह … मुझे यह यक न नह होता।’’
e र मुसकान क` साथ पाँच पांडव जब कण’ को िध ारने लगे, क¸ ती से सहा नह
गया। वह बेहोश होकर िगर पड़ी।
कोई समझ नह सका, अचानक क¸ ती बेहोश क`से हो गई। िसफ’ िवदुर ने च f ककर
दािसय को आदेश िदया, ‘‘ठ ड` पानी क` छ ट` देकर महारानी को होश म™ लाने क
कोिशश करो।’’
वा तव म™ क¸ ती का अिभनय, उसका मू छ’त हो जाना, मुझे ब त ही जीवंत मालूम
पड़ा, लेिकन आयन को देखकर e सा का िवचिलत होना और कण’ को देखकर क¸ ती का
िवचिलत होना, मुझे य िवचिलत कर रहा ह`? मेर` िदल क गहराई म™ लगी
चोट™ धीर`-धीर` मेरी सहनशीलता से पर` चली जा रही ह । या इस नाटक को अंत
तक म नह देख सक गी? नाटक ख म होने से पहले ही या मुझे सुमन क` साथ घर वापस
चले जाना पड़`गा? म समझ नह पा रही िक ‘एक और कण’’ मुझे िकधर बहा ले जा
रहा ह`।
धीर`-धीर` मंच पर अंधकार होने लगा। मुझे लगा िक मेरी दुिनया म™ भी धीर`-धीर`
अंधकार होता जा रहा ह`। िफर से म ने अपने बट¸ए म™ से मेिलंग सॉ ट क शीशी
िनकाल ली।

मं च पर अंधकार हो जाते ही हर बार क तरह तािलय क गड़गड़ाहट से हॉल गूँज रहा ह`।
ये तािलयाँ िनरथ’क नह ह`, य िक जब अिभनय चल रहा ह`, संपूण’ ऑिडटो रयम
एकदम
िन त&ध-सा हो रहा ह`। लग रहा ह` िक यहाँ एक भी आदमी बैठा नह ह`।
अ राय का e`िडट ह` िक हॉल म™ टी.वी. क` परदे पर महाभारत देखने और कण’-
क¸ ती क` बार` म™ जानने क` बावजूद नाटक क` अंत को देखने क` िलए लोग उ
सुकता से बैठ` ए ह । आयन और e सा क अनजान कहानी और उसी क` साथ कण’ और
क¸ ती क जीवनगाथा क` साथ उसक` सामंज य ने ही लोग को उ सुक बना िदया ह`।
अपनी ितिe या से ही समझ रहा
िक नाटक क` पा का अिभनय, काश यव था, मेक-अप, पोशाक वगैरह ने लोग को
िकतना आकिष’त कर रखा ह`।
ना य-िनद´शक जैसे-जैसे हम™ एक बार ाचीन यूनान म™ और एक बार महाभारत
क` समय म™ ले जा रहा ह`—लग रहा ह` िक उन ाचीन काल क` उन मानव-
मानिवय क` साथ हम एका म होते जा रह` ह । हम™ याद ही नह रह रहा ह` िक हम ना
य सदन म™ बैठकर ‘एक और कण’’ नाटक का रसा वादन कर रह` ह ।
जैसे ही मंच पर अंधकार आ, िततली क ओर नजर पड़ते ही देखा िक वह मेिलंग
सॉ ट क शीशी सूँघ रही ह`। या उसे साँस क तकलीफ िनर तर हो रही ह`? पहले तो
कभी ऐसा
नह आ था? कई बार तो हम िसनेमा-नाटक वगैरह देखने एक साथ जा चुक` ह ,
लेिकन ऐसा तो कभी भी नह देखा।
सही कहा जाए तो िततली क` बट¸ए म™ मेिलंग सॉ ट क शीशी भी ह`—मुझे
मालूम नह था।
पर`शान होकर म ने िततली से पूछा, ‘‘िततली हॉल से बाहर, चलोगी? खुली हवा म™
जाने से शायद तुt ह™ क¸छ आराम िमले।’’
लेिकन िततली िकसी भी क मत पर बाहर जाना नह चाही। उसने कहा, ‘‘नह जी,
नह । इस नाटक का अंत िबना देखे, आिखर तक आयन का या आ िबना जाने, म
यहाँ से िहल तक नह सकती । लीज, तुम मेर` बार` म™ सोचना बंद करो। पता
नह य आज हॉल क भीड़ मुझे बरदा त नह हो रही ह`। और कोई बात नह ह`।’’
म चुप हो गया। और िफर तुर त ही यूनानी पुराण क` जोन म™ धीर`-धीर` रोशनी फ`लने
लगी। म ने भी िततली क ओर से अपनी िनगाह हटाकर मंच पर डाली। िपछला
य ब त ही नाटक य रहा। मंच पर इस समय भी रानी e सा, राजा युथास, आयन क` साथ
क¸छ और लोग ह ।
ले ट स™टर एंट`˛र स क` पास मंिदर क` सामने खड़` होकर राजा युथास और आयन
बात™ कर रह` ह ।
राजा युथास ने जब अचानक आयन को अपनी छाती से लगा िलया था, तो वह
आ w य’ चिकत हो गया था। लेिकन अब राजा युथास से उसे मालूम हो चुका ह` िक
अब वह राजक¸मार बन गया ह`। देवता अपोलो क` आदेश से राजा ने उसे गोद ले िलया ह`।
थोड़ी देर म™ गोद लेने का धािम’क अनु ान मंिदर म™ संप होगा और उसी क`
बाद मंिदर क` अहाते म™ एक दावत दी जाएगी।
राजा युथास बार-बार वीकार कर रह` ह िक आयन जैसे एक खूबसूरत िकशोर को पु
क` v प म™ ाw करक` वह ब त ही खुश ह । लेिकन रानी e सा क ितिe या
क¸छ िभ ह`।
ोसीिनयम क` दािहनी ओर मंच क` सामने आकर वह कहती ह`, ‘‘म ने पहले ही कहा ह`
िक तुt हारी योजना म पूरी नह होने दूँगी। आज अपनी ही अवैध संतान को तुम वैध
बनाने क`
िलए जो योजना बनाए हो—बेकार हो जाएगी। िकसी हालत म™ वह िसंहासन पर
बैठने का अिधकारी नह बनेगा। लीपीडस जरा इधर सुनो तो।’’ एक बूढ़ा से नौकर क`
पास आते ही e सा कहती ह`, ‘‘लीपीडस, तुt हारी वफादारी पर म ने कभी संदेह नह
िकया ह`। आज एक बार िफर तुt हारी वफादारी क परीeा ह`। अभी थोड़ी देर म™ ही जो
राजक य दावत होगी उसम™ आयन को मिदरा का याला िदया जाएगा। यह लो मेरी अँगूठी।
इस अँगूठी क` ऊपरवाले भाग को खोला जा सकता ह`। इसे खोलते ही एक ती िवष
िमलेगा, िजसे तुम आयन को परोसी जानेवाली मिदरा क` याले म™ िमला दोगे।
लेिकन इस बार` म™ िकसी को भी मालूम नह होना चािहए।’’
लीपीडस e सा क` आ ापालन करने क` िलए वचन देता ह`।
हॉल इतना त&ध हो गया िक लग रहा ह`, अगर जमीन पर एक सूई भी िगर` तो उसक
आवाज भी ब त जोरदार होगी। हर आदमी एकटक मंच क ओर देख रहा ह`। समझ रहा
िक मेर` जैसा ही हर आदमी का िदल गले तक आ प चा ह`।
आयन को साथ लेकर राजा युथास मंिदर क` अंदर चले गए। राजा क` नौकर-चाकर
मंिदर क` अहाते म™ दावत क यव था करने म™ जुट गए।
थोड़ी देर बाद नए प रधान म™ सज-धजकर आयन राजा युथास क` साथ मंिदर से बाहर
िनकल आया। शुv आ शाही-दावत का काय’eम।
नौकर राजा युथास तथा अ य लोग क` हाथ म™ मिदरा का याला प चाने लगे। आयन क`
ित िवशेष स t मान दश’न करने क` छल म™ रानी क ˛रसा का िव त सेवक एक थाली पर
िसफ’ एक ही याला रखकर बाअदब हािजर आ। याले क मिदरा म™ रानी e सा क
दी ई, जहर घुली ई ह`।
अपनी आदत क` अनुसार धािम’क आयन ने अपने र e देवता क` नाम से मिदरा का भोग
लगाया और िफर थोड़ी सी मिदरा मंिदर क` अहाते म™ िगरा िदया।
देवता अपोलो को िनवेिदत कबूतर म™ से एक कबूतर झट से आकर उस मिदरा म™
अपनी च च ड बो गया।
लेिकन च च भीगने से पहले ही वह कबूतर पीड़ा से छटपटाते ए, अपनी पंख को
फड़फड़ाकर अचानक त&ध हो गया।
मुझे मालूम ह` िक इस य को मंच पर िदखाने क` िलए अ को काफ सोचना पड़ा था।
अंत म™ राजा बाजार इलाक` म™ मकबूल िमयाँ नाम क` एक ब त बड़` कबूतरबाज
का पता उसे िमला था। उसी को काफ समझा-बुझाकर, क¸छ पए एडवांस देने क`
बाद करीब एक महीने तक उसक` कबूतर से अ यास करवाकर अ ठीक चीज को
िनकाल पाया। एक भी दश’क को समझ म™ नह आ रहा ह` िक कबूतर भी नाटक
खेल रहा ह`।
कबूतर को िन तेज, िन त&ध होते देखकर, आयन ने तुर त अपना याला फ` क िदया।
eोध से िच wाते ए राजा युथास ारा पहनाई गई पोशाक को फाड़कर वह मंच क`
सामने आकर खड़ा हो गया।
‘‘म जानना चाहता िक मुझे मारने क` िलए िकसने यह सािजश रची ह`?’’
िजस बूढ़` सेवक ने आयन क` हाथ म™ मिदरा का याला स f पा था, आयन ने बड़`
eोध से उससे ही पूछा।
अ य अितिथय और राजपु ष ारा दबाव डालते ही उसने वीकार िकया, ‘‘रानी e
सा ने ही राजक¸मार आयन क` पेय म™ जहर िमलाने क` िलए मुझे आदेश िदया था।
उ ह ने अपनी अँगूठी मुझे देते ए कहा था िक अँगूठी म™ िछपा आ जहर म
ज v र आयन क मिदरा म™
िमला दूँ।’’
सभी एक साथ कड़` श&द म™ रानी e सा क िनंदा करने लगे। देलिफ क` मंिदर क`
बुजुग ने कहा, ‘‘चूँिक रानी e सा ने मंिदर क` सेवक इस मासूम क ह या करने क
सािजश रची थी,
िलहाजा सब लोग प थर मार-मारकर रानी क ह या करक` इस पाप का ाय w त कर™गे।’’
घटना क` ार भ म™ रानी मंच पर ही िदखाई पड़ी थी, लेिकन कब वह मंच से गायब हो
गई,
िकसी ने देखा नह था। रानी क तलाश क जाने लगी और इसी क` साथ-साथ मंच क
रोशनी धीर`-धीर` कम होने लगी।
तािलय क गड़गड़ाहट बंद होने क` आसार ही नह िदखाई पड़`। गजब क टीमवक’
और गजब का िनद´शन। काशन िनयं क ने भी बेहद खूबसूरत करामात िदखाई।
म ने िततली क ओर देखा। मुझे लगा वह क¸छ िगड़िगड़ा रही ह`। म ने पूछा, ‘‘ या
कह रही हो िततली, म समझा नह ।’’
कोई जवाब नह िमला। वह मंच क ओर ही देख रही ह`। म ने भी मंच क ओर देखा।
भारतीय पुराण क` जाने म™ धीर`-धीर` रोशनी छाने लगी। नेप e य से घोषणा ई, ‘‘क¸ eे
क` मैदान म™ कण’ क` सेनापित व क पूव’ सं या।’’
मंच पर सूया’ त क रोशनी छाई ई ह`। महावीर कण’ अ त होते ए सूय’ का वंदन कर रह`
ह।
गंभीरता से कण’ सं क˛त म™ wोक पाठ करते ए ड बते ए सूय’ का वंदन करते ह —
च eुन l देवः सिवता च eुन’ उत
पव’तः। च eुधा’ता दधातु नः॥
आिद याय िवदमह` सह v िकरणाय
धीमिह। त सूय’ः चोदया ॥
सिवता पुर ता सिवता
प wाता सिवतोतराता सिवता
ऽधराvा ॥
सिवता नः सुवतु
सव’तांित सिवता नो
रासतां दीघ’मायुः॥
कण’ भगवा सूय’ को जैसे ही णाम करते ह , मंच पर धीर`-धीर` क¸ ती
वेश करती ह`। अचानक क¸ ती को देखकर बड़ी िवन ता से कण’ पूछते ह ,
‘‘राधा क` गभ’ म™ पली सूत अिधरथ का पु म कण’ , माता आप कौन ह ?’’
अपना प रचय देते ए क¸ ती ने कहा, ‘‘बेटा, जो तुt हार` जीवन म™ पहली
बार इस िव को तुt ह™ िदखाने म™, इस िव से प रचय कराने म™ सहायक ई थी,
वही औरत आज सारी लाज को यागकर अपना प रचय देने क` िलए तुtहार` पास
यहाँ आई ह`।’’
िवचिलत कण’ अपनी अ थरता य करते ए कहते ह , ‘‘देवी, आपक
eेह भरी ि मुझे इस तरह से िवचिलत य कर रही ह`? आपक आवाज सुनकर ऐसा
तीत होता ह` िक पूव’ज म से म यह वर सुनता आ रहा । आप क` साथ मेरा ज
म रह य क`से जुड़ा ह` देवी?’’
िझझकते ए क¸ ती ने कहा, ‘‘यह बताने क` िलए ही म सूया’ त क`
अँधेर`पन को चुना ह` बेटा। म क¸ ती ।’’
‘क¸ ती’ का नाम सुनते ही कण’ च f क जाते ह और कहते ह , ‘‘आप क¸ ती ह ।
अजु’न जननी क¸ ती? लेिकन मेर` पास आप य आई ह ?’’
अवाक˛ होकर क¸ ती क ओर देखते ए कण’ ने कहा, ‘‘आप मेरा स e
णाम वीकार कर™। लेिकन माँ, आप इस रण eे म™ अक`ले य आई ह ? म
ठहरा कौरव का सेनापित, मेर` पास आने का क आपने य िकया?’’
क¸ ती ने कहा, ‘‘अजु’न जननी सोचकर मन म™ ेष न करो बेटा। अ v परीe ण
क` िदन जब एक उ a ल सूय’ क तरह तुमने ह तनानगर क` परीe ण- थल पर
वेश िकया था, उस समय दूर आड़ म™ बैठी सभी औरत म™ एक म ही तो एक
अतृw मातृ व क भूख लेकर तुtह™ अपलक देख रही थी। अपनी eेही ि से तुtह™
चूम रही थी। िफर जब क˛प ने तुमसे तुtहार`
िपतृ प रचय क` बार` म™ पूछकर तुt ह™ ताना मारते ए कहा था, ‘‘िजसका ज म िकसी
राजक¸ल म™ नह आ ह`, अजु’न क` साथ उसे यु करने का कोई अिधकार नह
ह`’’ और तुम ल wा से अपना िसर झुकाकर थान छोड़ने क` िलए बा य हो गए थे
—उस समय िजसक` िदल म™ आग भभक उठी थी, वह म ही तो बेटा। अ य पांडव
ने जब तुtह™ िध ारते ए परीeण-
थल से बाहर कर िदया, उस समय होश खोनेवाली और कोई नह थी बेटा—वह म क¸
ती ही थी।
क¸ ती क वीकारो सुनकर कण’ ने क¸ ती से कहा, ‘‘देवी आपक क˛पा क` िलए
आपको म शत-शत बार नमन करता , णाम करता —लेिकन ह` अजु’नजननी, इस
रणभूिम म™, क¸ सेनापित क` पास आप सं या क` इस समय अक`ली य आई ह ?’’
हाथ जोड़कर क¸ ती कण’ से कहती ह`, ‘‘बेटा म तुमसे एक भीख माँगने आई ।
बोलो बेटा, मेरी मंशा पूरी करोगे?’’
कण’ को आwय’ होता ह`। अजु’नजननी, पंच पांडव क माता भीख माँगने
शाम क` व कण’ क` पास आई ई ह । अचानक इस बात पर िव ास नह होता ह`। उ ह
ने क¸ ती से पूछा, ‘‘भीख माँगने आई ह`? और वह भी मुझसे, ठीक ह`, मेर` पौ
ष एवं धम’ क` अित र जो चाह™ आप माँग ल™।’
आँसू िगराते ए क¸ ती ने कहा, ‘‘बेटा, म तुtह™ लेने आई । एक यासी माँ
क ममता भरी गोद म™ तुt ह™ लेने आई ।’’
महाभारत क कहानी लगभग सभी को मालूम ह`, लेिकन मंच पर कण’ एवं क¸
ती का अिभनय इतना वाभािवक एवं वा तिवक v प म™ हो रहा ह` िक सभी दश’क
मूक होकर अिभनय का आनंद ले रह` ह । क¸छ वृ ाएँ क¸ ती क` दय क यथा
को महसूस कर अपने प wू से आँख™ भी प छ रही थ ।
क¸ ती क बात को सुनकर कण’ ने कहा, ‘‘देवी, आपक वाणी मुझे एक व न क
दुिनया म™ ले जा रही ह`। म आपक बात से धीर`-धीर` मोिहत होता जा रहा ।
चाह` आप क बात™ स य ह या क पना, ह` राजमाता थोड़ी देर क` िलए आप अपने
ममता से भर` कोमल हाथ मेर`
िसर पर रख द™। लोग से सुना था िक मेरी माँ ने मुझे पैदा होते ही याग िदया
था। िकतनी बार म ने रात म™ व न देखा िक घूँघट काढ़ी ई मेरी माँ मेर` पास
आई ह`, लेिकन जब भी रोते-
िबलखते ए म ने उनसे घूँघट हटाकर ममतामयी चेहर` को िदखाने क` िलए
िवनती क , वह अ य हो गई। या वही व न आज पांडव जननी क` v प म™ साकार
होकर मेर` सामने हािजर ह`? लेिकन य ? कल ातः काल महारण शुv होगा और
आज अजु’न जननी क` क ठ से यह अभूतपूव’ मातृ वर य ? अचानक पंच पांडव
को अपना भाई जानकर म य याक¸ल हो रहा ? देवी िफर से आप कहो िक म
आपका बेटा —अब बेट` को माँ िमलेगी, माँ को अपना पु ।’’
कण’ क` िसर पर हाथ फ`रती ई क¸ ती बड़` यार से कहने लगती ह`, ‘‘मेरा बेटा,
मेरा ब ा मेर` लाडले।’’
अचानक ाw इस लाड़- यार से कण’ क ितिe या क¸छ अलग सी होती ह`। कण’
क` च र ािभनेता का वा तिवक अिभनय देखने लायक था। िजस मातृeेह क` िलए
उसने जीवन भर हाहाकार िकया, आज िबना माँगे ही वह eेह ाw करने क`
बाद भी अपने मानिसक
ं को उसने ब त ही सुंदर ढ ग से य करते ए कहा, ‘‘अगर म आपका
बेटा ही तो आपने य क¸लकलंक समझकर मातृ-eेह से वंिचत कर मुझे याग
िदया था? ज मल न से म ने अपनी जननी से अनादर ही य पाया? आपने मुझे
हमार` सगे भाइय से हमेशा क`
िलए य दूर हटा िदया? या इसिलए अनजाने म™ अजु’न से मेरा अ य लगाव
िह सा- ेष म™ बदल गया? लेिकन आज अचानक आप मुझे वापस लेने य आई
ह —यह तो बताएँ?’’
कण’ क फटकार सुनकर क¸ ती रोती ई कहने लगी, ‘‘बेटा, मेरी यह फटकार
मुझे अव य ही ा य था। लेिकन सच क िक पाँच पांडव को छाती से लगाकर
भी मेरा कलेजा ठ डा नह होता था बेटा। िजस ब े को म ने मातृeेह से
वंिचत कर रखा था, उसी क` िलए मेरा
िदल हमेशा कराहता रहता था। बेटा जनम क` बाद म ने तेरी मधुरवाणी सुनने से
अपने को
वंिचत िकया था, आज बेटा उसी जुबान से कह दे िक तूने अपनी माँ को e मा
िकया। तेरी फटकार से तेरा e मादान ही मुझे, मेर` िदल को अिधक द ध
कर`गा।’’
क¸ ती क` मातृ व का हाहाकार, कण’ क भ स’ना दोन का अपूव’ अिभनय दश’क को
जैसे महाभारत क` युग म™ ले गया। अपने पा रपा ’क भूलकर येक दश’क
मंच पर अपनी िनगाह इस कार जमाए ह`, जैसे िक वा तव म™ वे क¸ ती एवं कण’
क` संवाद सुनने क` िलए कई हजार साल पीछ` लौट गए ह ।
कण’ क` ठ िहलते ही दश’क उ कष’ हो उठ`। कण’ ने कहा, ‘‘माँ, आप मुझे
लाएँ,
िजतना चाह` लाएँ, लेिकन आपक चरणरज मेर` िसर माथे हमेशा रह`गी।’’
अपना उ े य य करते ए क¸ ती कण’ से कहती ह`, ‘‘बेटा, तुझे अपना
अिधकार
िदलाकर, सार` अपमान भुलाकर अपने पाँच भाइय क` अ ज क` v प म™ िसंहासन
पर बैठाने क` िलए आज म तेर` पास आई । अपने बा बल से र न िसंहासन पर
आसीन होकर अखंड
ताप से रा य शासन करने क` िलए ही म तुt ह™ बुलाने आई ।’’
क¸ ती क बात को सुनने क` बाद कण’ क अvुत ितिeया उसक` चेहर` पर
झलक उठी! कण’ क` च र िनभानेवाले अिभनेता अपनी अिभ य एवं अिभनय
से दश’क को अपनी मानिसकता क` बार` म™ प करते ए कहते ह , ‘‘मातः,
म एक सूत पु , राधा मेरी माता ह`—इसी म™ म अिधक गौरवा वत ।’’ पांडव
एवं कौरव अपने-अपने थान पर बने रह™— मुझे िकसी से ईeया’ नह ह`।
आपने तो मेर` ज म ल न से ही मेरी माँ क` साथ, भाई क` साथ, राजक¸ल क`
साथ सार` नात को हमेशा क` िलए समाw कर िदया था। उस समय सूत प नी राधा
ने मुझे अपनी छाती से लगाकर मातृeेह से पाल-पोसकर सार` लाड़- यार से
मुझे बड़ा
िकया। आज अगर राजमाता अजु’न जननी को म अपनी माता कहकर वीकार क v —
िध ार ह` मुझे! िध ार मेरी िववेक-बु को। क¸ राज क` पास म वचनब ,
राज
िसंहासन क` लालच म™ उनसे नाता तोड़ना भी एक वीर का अपने कत’ य से
युत होना ह`। इस तरह क` ि वचार मन म™ उ प करना भी एक वीर क` िलए
अपमानजनक ह देवी।
कण’ क ढ़ता देखकर क¸ ती अपने को कोसती ई कहती ह`, ‘‘बेटा तुम ध य हो।
लेिकन धम’ का यह इतना कठोर िनद´श! िकसे मालूम था िक एक अभािगन जननी
को अपने प र य पु से भी ऐसी कठोर धम’ क बात™ सुननी पड़™गी।’’
लेिकन अजु’न जननी क` उ े य समझकर वह वीर, उ ह™ आ त करते ए
कह उठा, ‘‘माँ, आपको डरने क कोई आव यकता नह ह`। म आपको वचन देता
िक पांडव क जीत होगी। म रात क` तार से सजे आकाश म™ यु -प रणाम को
य e देख चुका , कौरव क हार तो होनी ही ह`, लेिकन आप मुझे उनका साथ
छोड़ने क` िलए न बुलाएँ माता।’’
एक लंबी साँस छोड़कर कण’ क` च र ािभनेता ने उदास आँख से राजमाता
क¸ ती से कहा, ‘‘म आपसे ढ़तापूव’क कहता िक पंच पांडव िवजयी बन™, राजा
बन™—म तो परािजत कौरव का ही साथ देता र गा। जैसे मेर` ज म ल न म™
आपने मुझे याग िदया था, आज भी मुझे उसी तरह याग द™, लेिकन आशीवा’द
द™ िक िवजयी बनने क` िलए, रा य एवं यश ाw करने क` िलए म एक वीर क` कत’
य से कभी भी पीछ` न हट ।’’
कण’ क¸ ती को णाम करते ह और क¸ ती आँसू बहाते ए कण’ को आशीवा’द
देती ह । िफर क¸छ देर क` िलए मंच पर अंधकार होते ही तािलय क गड़गड़ाहट
शुv हो जाती ह`, जो थमने का नाम ही नह लेती।
वा तव म™ अ राय ने तो करामात ही कर िदया। एक साधारण िलिपक क` पद
पर काम करनेवाले य ने ना य अिभनय, ना य िनद´शन, विन-संयोजन एवं
काश यव था पर
िनयं ण करक` एक ऐसा माहौल तैयार कर िदया ह` ि क जानी ई घटना भी हम
दश’क को साँस बंद करक` नाटक देखने क` िलए बा य कर रही ह`। पुनः मंच पर
रोशनी होते ही नेप e य से उ ोषक घोषणा करते ह , ‘‘क¸ eे क` मैदान म™
कण’ क` िनधन क` बाद।’’
हमने देखा िक मंच पर धृतरा , गांधारी, िवदुर, युिधि र, क¸ ती एवं क¸छ
और लोग उप थत ह । सभी शोकाक¸ल ह , लेिकन कत’ य क` ित वे उदासीन नह ह

प र थित को वाभािवक बनाने क` िलए ना य-िनद´शक ने महाभारत से क¸छ संवाद
तुत
िकए। परदा हटते ही धृतरा युिधि र से क¸ eे क` इस यु म™ परमगित
ाw ए वीर क सं या एवं सौभा यशाली जीिवत वीर क सं या पूछते ह ।
युिधि र ने धृतरा से कहा, ‘‘ह` कौरवनाथ, इस यु म™ एक सौ िछयासठ
करोड़ बीस हजार वीर ने परमगित ाw क एवं चौबीस हजार एक सौ प सठ यो ा
पलायन कर गए।
तदनंतर धृतरा ने युिधि र से उन अनाथ, िनवा धन वीर क` अंितम सं कार करवाने

यव था करने क` िलए कहा। पुरोिहत धौt य, महा मा िवदुर, महामित संजय इ यािद
परम धािम’क लोग युिधि र क` कहने पर दाहकाय’ संप कराकर गंगातट पर जब
उदक काय’ संप करते ह तो युिधि र क¸छ मं पढ़कर एक अंजिल जल फ` कते
ह —‘उदक काय’ क र e यािम’।अचानक क¸ ती पंच पांडव से कहती ह , ‘‘ऐ मेर`
पाँच पु ो! वह वीर िजसका महावीर अजु’न ने यु म™ संहार िकया, िजसे तुम
राधा गभ’जात सूतपु क` नाम से जानते थे, जो कौरव सेना क` बीच योित e मान
सूय’ क तरह हमेशा देदी यमान रहा करता था, इस धरती पर िजसक` समान बलशाली
कोई दूसरा पैदा नह आ ह`, िजसे यश, रा य का कोई लोभ नह था, उस महा वीर
कण’ क` िलए तुम सब जलांजिल दान करो। वह कवच- क¸ डलधारी महावीर कण’
तुt हार` ये सहोदर थे। देवता सूय’ से ाw कण’ को म ने अपनी कोख म™ ही
पाला था।’’
मंच यव थापक ने टोव लाइट जला-बुझाकर एक अजीब-सी गित मंच पर पैदा क
और सभी च र पागल जैसे दौड़ते ए, भागते ए eण भर क` िलए िदखाई पड़`
—बvी बुझते ही एक जगह खड़` होकर युिधि र ने कहा, ‘‘मातः आपक बात ने
हम™ अ थर कर िदया। आप यह या कह रही ह ? महावीर कण’ हमार` ये ाता थे?
आपने सूय’ देवता से क`से महावीर को ाw िकया था? िजनक` बल ताप को
अजु’न क` अित र और कोई ितहत नह कर सका, ऐसे अ vुत तेज वी महावीर
को आपने-अपने आँचल म™ क`से िछपा रखा था। उिचत
िव e म महावीर कण’ हमार` ये ाता क` बार` म™ आपने यिद कभी भी हम™
संक`त िदया होता तो इस भयंकर यु म™ हम™ यह दुःख नह भोगना पड़ता।
उनक मृ यु का कारण बनने क` कारण हमारा दय आग जैसा धधक रहा ह`। पहले
ात होने पर पांडव एवं कौरव को यु
म™ इतनी हािन नह होती। ह` कण’, आप हमारी अ ानता को e मा कर™। हमार` ये
ाता, हम™ e मा कर™।’’
िकसका अिभनय देखूँ। हर च र िनभानेवाला य इतना सुंदर अिभनय कर
रहा ह` िक लग रहा ह`— ‘ड`िनयल एंड क पर’ कोई इ जीिनय र ग सं था नह , ब क
एक उ कोिट क ना य-सं था ह`। युिधि र क` च र ािभनेता ने एक ही डायलॉग म™
तािलयाँ बटोर ल ।
रोते ए युिधि र जलांजिल दान करते ह । िफर क¸ ती से युिधि र कहते ह ,
‘‘यह मेरा अिभशाप रह`गा िक आज से औरत™ एक भी बात िछपाकर अपने मन म™
नह रख सक` गी। उनक बात™ िछपाकर रखने क आदत क` कारण ही यह पा रवा रक
सव’नाश हो गया। ह` हमार`
ये ाता, आपक` िनधन क` िलए हम सब बराबर क` दोषी ह । हम™ eमा
कर™।’’ इ ह डायलॉग क` साथ भारतीय जोन म™ धीर`-धीर` अंधकार हो
जाता ह`।
अचानक फ ट-फ टकर रोने क आवाज सुनकर म ने अपने बगल म™ देखा।
देखा िक िततली फफक-फफककर रो रही ह`। दोन आँख से आँसू क धारा बह रही
ह`।
वा तव म™ क¸ ती क` च र को िनभानेवाली अिभने ी ने गजब का अिभनय करक`
एक माता क` दय क वेदना को मूत’vप िदया ह`। बेशक वह पेशेवर ही होगी,
लेिकन बेजोड़ अिभनय
िकया ह`।
म ने िततली को समझाने क कोिशश क । म ने कहा, ‘‘कण’ और क¸ ती क कहानी
तुtहार`
िलए अनजान नह ह`, थोड़` िदन पहले टी.वी. क` परदे पर भी देख चुक हो। िफर
इतनी
िवचिलत य हो रही हो?’’
लेिकन मेरी बात का जवाब िदए बगैर िततली लगातार फफकने लगी। समझ
रहा , वह अपने को सँभालने क कोिशश कर रही ह`। बीच-बीच म™ वह क¸छ बुदबुदा
भी रही ह`। दश’क क` कोलाहल, अिभनय क तारीफ और ब त सार` क ठ वर क
िमिeत आवाज क` कारण म
िततली क बात को समझ नह पाया।
अपने बाएँ हाथ से िततली क दािहनी भुजा पर हलका सा दबाव देकर म उसे सां
वना देने क कोिशश करने लगा।
यूनानी पुराण का िपछला य दश’क क` मन म™ एक अजीब उ क ठा पैदा कर रहा
ह`। इसी वजह से सभी लोग अगला य देखने क` िलए बेहद उ सुक ह ।

न ह -नह , मुझसे और सहा नह जा रहा ह`। ऐसा लग रहा ह` िक स ह साल से


रोका गया आँसू बाढ़ क तरह मेरी आँख से अभी बह आएगा। आयन और e सा,
कण’ एवं क¸ ती एक साथ मेर` िदल को जला रह` ह ।
e सा का यह क`सा शक ह`? िजस िकशोर को देखते ही उसक` मातृeेह क अतृw
कामना जाग उठी, िजसे अपनी छाती से लगाने क` िलए वह तरस रही थी—उसी
आयन को राजा
युथास क अवैध संतान समझकर वह शक कर रही ह`? अपने सेवक क` साथ सािजश
रचकर उसी को जहर िपलाकर मारने का ष यं रच रही ह`?
म अपने मन म™ कह उठी थी, ‘‘नह , नह , e सा ऐसा काम मत कर। अपने ही
बेट` को, अपने ही खून-म wा से तैयार अपने जीवन क` पहले फल को
पहचानकर भी तू अनजान य बन रही ह`?’’
मुझे समझ म™ आ रहा था िक मेर` िदल को क¸र`दनेवाले िवचार अ प श&द म™
जुबान से
िनकल रह` थे—‘‘अब ठीक आ न? तेर` ही वफादार सेवक ने तेरा ष यं
सबको बता
िदया। सभी लोग तुझे जब प थर फ` क-फ` ककर मार डाल™गे, तू अपने को क`से
बचाएगी? राजा युथास को तो अभी तक मालूम नह ह` िक आयन, शादी से पहले पैदा
ई तेरी ही संतान ह`। तब? आिखर यह शम’ य ? अपनी शम’ यागकर आयन को
अपनी छाती से लगा ले— कलेजा ठ डा हो जाएगा।’’
ओफ हो! शायद मेरा िदमागी संतुलन ही िबगड़ गया ह`। e सा का अिभनय देखते-
देखते बार-बार गलती य हो रही ह`, मुझे समझ म™ नह आ रहा ह`। शुv से ही e
सा क` साथ अपने को िमला लेने क वजह से ही शायद यूनानी जोन म™ अिभनय
समाw होते ही म मानिसक उलझन म™ फ सती जा रही । आयन का अंत जानने
क` िलए आिखर म इतनी याक¸ल य हो रही ?
मुझे लगा था िक मंच पर अंधकार होते ही शायद सुमन ने मुझसे क¸छ पूछा था।
तािलय क गड़गड़ाहट क` बीच म e सा क` बार` म™ सोच रही थी, िलहाजा सुमन क
बात™ मेर` कान म™ नह प ची।
e सा क` बार` म™ सोचते-सोचते कब से म अपने बार` म™ सोचने लगी
—मुझे खुद नह मालूम ह`। सोचा, िपछले चौदह साल से सुमन को अपनी बात™
बताने क हजार कोिशश क` बावजूद म य कह नह पा रही ?
मेरी शम’, मेरी िहचिकचाहट, पित ाw करने क` बाद भी उसे खोने का डर—
यही सारी चीज™ मुझे िनर तर रोक रही ह । इसी वजह से शायद म सुमन को अपनी
बात™ नह बता पा रही
—यही बात™ मेरी छाती पर बोझ बनी ई ह ।
मंच पर बिv याँ जल उठी ह । भारतीय पुराण क` जोन म™ क¸ ती कण’ को अपना प रचय
देकर उसे अपनी छाती से लगाना चाहती थी, लेिकन कण’ तो क¸ ती क` िनकट आए
नह । उ ह ने क¸ ती को दु कार कर, अपनी कानीन माता क भ स’ना क ।
दूसर` ही य म™ कण’ क मृ यु पर क¸ ती का हाहाकार, उसक` मातृ दय क बेचैनी,
अपने
थम पु क मृ यु को य e कर अ e म माता क मानिसक पीड़ा—अिभने ी ने
इतने यथाथ’ ढ ग से उजागर क िक मेर` िदल क` तने ए तार पर भयानक चोट
लगी, िजसने मुझे बेकाबू कर िदया।
युिधि र ने अिभशाप िदया था, ‘‘आज से औरत™ एक भी बात िछपाकर रखने म™
असमथ’ ह गी।’’ लेिकन म ने तो आज भी अपनी बात™ सुमन से िछपा रखी ह । कई
बार कोिशश करने
क` बावजूद भी म आज तक अपनी बात™ सुमन से नह कह सक । म सुमन से कह नह
पाई
िकिजसे तुम अना ात पुe प समझते हो, वह अना ात नह ह`।
य सुमन, य तुम ‘एक और कण’’ नाटक िदखाने क` िलए मुझे ले आए? e सा
और क¸ ती ने मुझे काफ असहाय बना िदया ह`। नह , नह —e सा और क¸ ती नह
, आयन और कण’ ने मेरी सुw मातृ व क भावना को जगाकर मेरी अंतरा मा को
चकनाचूर करक` मुझे बेबस कर िदया ह`।
म अपने आँसु को और रोक नह पा रही । नाटक क` एक क` बाद एक य को
देख रही और मेर` िदल क` घाव उभरते जा रह` ह । आँख क` सामने सब क¸छ
धुँधला बनता जा रहा ह`। समझ रही िक आँसु से मेरी छाती गीली होती जा रही
ह`। स ह साल पहले क` सार` य मेर` मन क` परदे पर उ a ल होकर, पता नह
कहाँ, मुझे बहा ले जा रह` ह ।
समझ म™ आ रहा ह` िक सुमन मेर` दाएँ बाजू पर हलका सा दाब डालकर मुझे
ढांढ़स बँधाने क कोिशश कर रहा ह`। क`से वह मुझे सां वना दे सकता ह`? उसे
तो मेर` मन क पीड़ा क` बार` म™ क¸छ भी नह मालूम ह`।
शायद सुमन सोच रहा ह` िक नाटक क` अिभनय ने ही मुझे िवचिलत कर िदया ह`, नाटक
क`
भाव से ही म अपने आपको सँभाल नह पा रही । बात क¸छ हद तक तो सही
ज v र ह`। नाटक क` ाईमै स जानने क` िलए सभी उतावले ह ।

अ छा, िततली तब से या िगड़िगड़ा रही ह`? या वह नाटक क` डायलॉग याद कर


रही ह`? हाऊ फनी! िपछले चौदह साल म™ हम दोन ने ब त से नाटक और िप र
देखे ह —ऐसा तो कभी भी नह देखा। आज क` नाटक ने उसे िजतना िवचिलत
कर िदया ह`, पहले कभी
िकसी नाटक ने तो ऐसा नह िकया।
आिखर, इसक वजह या ह`? अचानक िततली इस ढ ग से बदल य गई? घर लौटकर
इस बार` म™ उससे बात™ करनी होगी।
भारतीय पुराण क` जोन पर अँधेरा छा गया। लगता ह` िक कण’ क मृ यु और क¸
ती क` अफसाने क` बाद ना य-िनद´शक ने इस जोन पर परदा िगरा िदया। वाकई इस
जोन पर कण’ क मृ यु क` बाद, कण’ से संबंिधत क¸छ िदखाने को रहा भी नह ।
यूनानी पुराण क` जोन पर हलक रोशनी फ`ल रही ह`। शायद इधर भी अब ाईमै स
ही होगा। िपछले य क` बाद से ही ना य-िनद´शक ने eम आगे बढ़ाया ह`।
जब रानी e सा को मालूम आ िक उ ह™ मार डालने क` िलए सब तैयार ह , तो
चुपक` से वह अपोलो मंिदर क` अंदर चली गई थी। हम देख रह` ह िक अपोलो क
िवशाल मूित’ क` पायदान क` पीछ` गठरी बनकर चुपचाप िछपी वह अपने खून क` यास
क` हाथ से अपने को बचाने क कोिशश कर रही ह`।
जब रानी e सा क तलाश म™ सभी मंिदर क` अंदर गए तो अचानक आयन क
िनगाह उस पर पड़ी।
ना य-िनद´शक ने संपूण’ यूनानी जोन को ही मंिदर क` अंदरवाले िह से म™
बदल िदया ह`। स™ ल एं ™स क` पास ऊ चे एक पायदान पर देवता अपोलो का
एक ब त सुंदर कटआउट खड़ा करवाकर मंिदर क` अंदर क` भाग सजे ट कर रह`
ह । काश यव था और संगीत क` इफ` ट क वजह से सारा मंच एक मंिदर का
अंद v नी भाग जैसा तीत हो रहा ह`।
रानी e सा को देखते ही आयन उ ह™ फटकारने लगा। रानी e सा से उसने पूछा,
‘‘आप
िसफ’ मेर` एक न का जवाब दीिजए। आप बताइए िक म ने आपको कौन सा
नुकसान प चाया िक आपने मुझे मार डालने क` ि लए ष यं रचा था? य आप
मुझे मारना चाहती थ ।’’
रानी e सा चुप बैठी ह`। वह वीकार नह कर सकती ह` िक राजा युथास पर
संदेह हो जाने क वजह से वह आयन को मारना चाहती थी। उसक` पु -eेह
और शक क यु म अिभ यंजना को अिभने ी ने बड़ी क¸शलता से अिभ य
िकया।
अचानक देलिफ क` मंिदर क पुजा रन ने कहा, ‘‘देलिफ क` मंिदर क सीढ़ी
पर लेट` उस मासूम ब े को म ने अपने सार` लाड़- यार से इतना बड़ा िकया।
अचानक यह या हो गया? आज तक आयन को खुद नह मालूम ह` िक वह क`से इस
मंिदर म™ आया ह`। पता नह कौन अभािगन अपनी इ w त बचाने क` िलए उस
मासूम ब े को इस मंिदर क सीढ़ी पर िलटाकर चली गई थी। िकसी क` साथ आयन क
कोई दु मनी नह ह`—तब भी उसक ह या करने क`
िलए य यह सािजश रची गई थी?’’
पुजा रन क बात™ सुनकर रानी e सा को ऐसा लगा मानो उसक` शरीर म™ कर™ट लग
गया हो। उसक साँस करीब-करीब बंद हो रही थी। मजबूत हाथ से अपोलो क` पायदान
को पकड़कर उसने अपने को िगरने से बचा िलया। आयन ने अपनी माँ से
पूछा, ‘‘आप सच कह रही ह ?’’ पुजा रन ने कहा, ‘‘हाँ बेटा, सच कह रही , म
अभी आई।’’
मंिदर क` िकसी कोने से पुजा रन एक टोकरी और क¸छ पुराने प रधान िनकालकर
ले आई और उस टोकरी तथा कपड़ को देखकर रानी e सा ब त जोर से चीख
पड़ी।’’
सारी जनता और राजा युथास क भी परवाह िकए बगैर वह िच wा उठी, ‘‘इ ह कपड़
से ढककर तो म ने अपने लाड़ले को टोकरी म™ सुलाया था। दासी से म ने उसे
एथ™स क गुफा म™ छोड़ आने क` िलए कहा था। म ने तो उसे इसी टोकरी म™ ही
सुला िदया था। कपड़ पर ये
िसलाई भी तो मेर` ही हाथ क ह`। यह तो मेरा ही बेटा ह`।’’
रानी e सा का िवलाप सुनकर िकशोर आयन आ w य’-चिकत होकर उसक ओर
देखने लगा। यक न नह होता। उसे खुद जानकारी ही नह ह` िक बचपन म™ ही
उसे अपनी माँ से अलग होना पड़ा था। भँवर म™ फ से आयन को समझ म™
नह आ रहा ह` िक वह या कर`। पागल जैसी िनगाह से वह एक बार e सा क
ओर और एक बार पुजा रन क ओर देखने लगा। रानी e सा का यह िवलाप
िकतना वा तिवक ह`, उसे शक होने लगा। उसने कहा, ‘‘यह सब हो या रहा ह`?
यह सच ह` या म कोई व न देख रहा ?’’
अचानक देवी एथेने का मंिदर म™ आिवभा’व आ। देवी ने कहा, ‘‘बेटा
आयन तुम e सा और अपोलो क` ही बेट` हो।’’ उ ह ने कहा, ‘‘शम’ से पीि़डत
होकर अपोलो इस बात को
वीकार करने क` िलए खुद मंिदर म™ नह आ सक`, लेिकन जब e सा ने
अपनी दासी से आयन को एथ™स क गुफा म™ िभजवा िदया था, तब से अपोलो ही
आयन क देखभाल कर रह` ह ।’’
देवी एथेन ने रानी e सा और सारी जनता से कहा, ‘‘गुफा क` पास आयन क` प
चते ही अपोलो खुद वहाँ प च गए थे। उ ह ने दूत हरमेस को आदेश िदया था िक
वह टोकरी सिहत उस ब े को उठाकर देलिफ क` इस मंिदर क सीढ़ी पर लाकर उसे
रख द™।’’
‘रात क` अँधेर` म™ सीढ़ी पर टोकरी छोड़ जाने क` कारण दूसर` िदन सबेर`
पुजा रन को लगा था िक िकसी क¸मारी माता ने देवता क क˛पा ाw करने क` िलए
अपने अनचाह` ब े को वहाँ छोड़ िदया ह`। उ ह ने क¸मारी e सा क िन e कािसत
संतान को अपनी छाती से लगा िलया था।’’
पागल क तरह दौड़ती ई रानी e सा ने आयन को अपनी छाती से िचपका िलया।
आयन का म तक चूमकर, उसक` सार` बदन पर हाथ फ`रकर, बार-बार उसे अपनी छाती
से लगाकर अपनी अतृw कामना को वह तृw करने लगी। बार-बार कहने लगी,
‘‘मेरा बेटा, मेरा ब ा।’’
अपनी ज मदा ी माँ को पाकर आयन ने भी राहत क साँस ली। अपनी माँ को पाकर
िव ल आयन ने भी कहा, ‘‘माँ, माँ, मेरी माँ’’ इतनी जोर से तािलयाँ
बजने लग िक मानो कान क` परदे ही फट जाएँगे। धीर`-धीर` मंच पर परदा
िगरने लगा।
ऑिडटो रयम क बिv याँ जलते ही म च f क उठा। इतनी देर तक मेरा सारा
यान मंच पर रहा, इसिलए म ने िततली क ओर देखा नह था। अब िततली क ओर
मुड़कर उससे य ही बात™ करनी चाह तो देखा िक वह अपनी दोन बाँह को
फ`लाए मंच क ओर दस कदम बढ़ चुक ह`, मानो िकसी को अपनी छाती से लगाना
चाहती हो। उसक दोन आँख से आँसू क धारा टपक रही ह`।
अपनी सीट छोड़कर िततली क` पास मेर` प चने से पहले ही अचानक िततली
धाँय से फश’ पर मुँह क` बल िगर पड़ी। दौड़ते ए उसक` पास प चकर म ने देखा
िक िततली बेहोश हो गई ह`।
उधर दश’क क` बाहर िनकलने क होड़ मच गई। हर आदमी अिभनय वगैरह क भू र-भू र
शंसा कर रहा ह`। कई तो अिभनेता-अिभनेि य को बधाई देने क` िलए
ीन v म क ओर दौड़ पड़`।
म िततली क अचेत देह को देखता बेवक फ क तरह खड़ा रहा। ऐसी प र
थित का सामना म ने कभी नह िकया ह`, िलहाजा पल भर क` िलए म हतबु -सा हो
गया।
िफर िततली को गोद म™ उठाकर हॉल से बाहर लाने क` िलए म फश’ क ओर झुका।
क ल म™ फादर पीटर वयं हम™ अं ेजी पढ़ाते थे। पटना क` िजस क ल म™
म ने नस’री क eा से पढ़ाई शुv क थी, फादर पीटर वहाँ क` अ य eथे।

सीिनयर क ल सिट’िफक`ट परीeा से पहले अं ेजी याकरण पढ़ाते समय उ
ह ने एक अं ेजी मुहावरा पढ़ाया था—‘ए बो ट wॉम द &लू।’ चमकते ए नीले
आकाश से अचानक
िबजली का िगरना। उस िदन म सोच तक नह पाया था, िकस कार से चमकते ए
आकाश से िबन बादल िबजली िगर सकती ह`। लेिकन कल उस मुहावर` का अथ’
अ e रशः मुझे समझ म™ आ गया।
बात मुझे इतनी भयंकर उलझन म™ डाल गई िक उसका मतलब माँ से पूछने का
साहस तक म इक ा नह कर पा रहा । समझ म™ नह आ रहा ह` िक यथाथ’ता क
जाँच िकससे कराऊ , माताजी से या बाबूजी से? मेरा कोई सगा भाई या बहन नह
ह`। यिद होता तो शायद शक करने क कोई ज v रत ही नह रहती, लेिकन मेर` अलावा
मेर` प रवार म™ मेरा हमउ और कोई न रहने क` कारण ही यह बात मेर` िदमाग
म™ एक गाँठ क तरह पड़ गई ह`।
हाल ही म™ हम कलक vा म™ आए ए ह । बाबूजी का ांसफर कलक vे म™
अचानक हो गया ह`। अब तक हम पटना म™ ही रहते थे। राज™ नगर क` एक बड़`
लैट म™ हम रह रह` थे। जब से म ने होश सँभाला, म ने अपने को उसी लैट
म™ पाया। बचपन म™ उसे अपना ही समझता था, लेिकन बाद म™ मुझे मालूम
आ था िक वह िकराए का ह`।
बाबूजी अब तक पटना म™ ही पो ट`ड थे, लेिकन बीच म™ कई साल तक वह
पटना से बाहर रह`। महीने-दो महीने म™ दो-चार िदन क` िलए वह पटना आ जाते
थे। उसी व माँ ने कहा था
िक करीब चौबीस साल पहले बाबूजी क पहली पो ट ग पटना म™ ही ई थी। म ने जोड़ा
था
िक मेरी पैदाइश क` करीब सात साल पहले से उ ह ने नौकरी शुv क थी।
िफर उसक` बाद बाबूजी का दो-तीन बार तबादला आ। बचपन म™ म ने देखा था
िक बीच- बीच म™ बाबूजी घर से गायब हो जाते थे। अचानक दो-चार िदन वह
िदखाई देते थे। माँ कहती थी—‘‘तेर` बाबूजी काम पर गए ह ।’’
जब म क eा पाँच म™ था, तभी से मुझे मालूम हो गया था िक बार-बार जगह
बदलने से मेरी पढ़ाई म™ कावट उ प हो सकती ह`, यह सोचकर ही माँ कह
जाना नह चाहती थी। बाबूजी क` तबादला होने पर, वह अक`ले ही अपनी नई
जगह पर चले जाते थे। माँ और म पटना म™ ही रह जाते थे। खैर! कलक vे
म™ आने से पहले बाबूजी का तबादला पटना म™ दोबारा हो गया था।
इसी साल म ने पटना से सीिनयर क ल सिट’िफक`ट क परीeा दी ह`। स ह साल म
ने पटना म™ ही िबताए, लेिकन इस बार, बाबूजी को एक मोशन िमल जाने क`
कारण और वहाँ रहा नह जा सका। अब तक उनक मोशिनंग पो ट खाली न रहने क`
कारण पो ट ग हो नह रही थी।
अचानक इ टन’ जोन म™ बाबूजी क मोशिनंग पो ट खाली हो जाने से उनक पो ट
ग कलक vे म™ ही हो गई। करीब दस िदन ए बाबूजी ने इनकमट` स किम नर
का पदभार सँभाला ह`। माँ भी कलक vे क ही िनवासी ह`, िलहाजा बाबूजी क`
तबादले पर माँ सबसे
यादा खुश ह`, य िक अब िनयिमत ढ ग से अ सी साल क मेरी नानी से उसक
मुलाकात हो सक`गी।
पटना म™ िजस िमशनरी क ल म™ म पढ़ता था, वहाँ फादरपीटर से लेकर सभी
अ यापक- अ यािपकाएँ मुझे ब त चाहते थे, य िक हर साल पढ़ाई, पो स’,
िडबेट, र`िसट`सन वगैरह हर क पीटीशन म™ मुझे ही पहला इनाम िमलता रहा। मुझे
यह साफ एहसास ह` िक मेर` िपता- माता को मुझ पर नाज ह`। उनक` यार का तो कोई
सवाल ही नह ह`।
घर पर माँ ने मुझे बँगला िसखाई ह`। िसखाते समय माँ कहती थी, िकतनी शम’
क बात होगी िक अगर तू बंगाली प रवार का होकर भी बँगला बोलने, िलखने और
समझने म™ अ e म होगा।
िलहाजा म ने बँगला सीख ली और शायद अब यह कहना भी अनुिचत नह होगा
िक म अपने बंगाली दो त और उनक` माता-िपता से भी बेहतर ढ ग से
बँगला बोल सकता ,
िलखते व भी म एक भी गलती नह करता । माँ चाहती ह िक सेक` ी क ल
परीeा क` बाद म बँगला म™ भी कोई परीeा पास क v ।
लेिकन आज मुझे लग रहा ह` िक अगर म ने बँगला नह सीखा होता, तो शायद अ
छा होता। न सीखने पर कम-से-कम मुझे अपनी ‘मृ युबाण’ पढ़ने का मौका नह
िमला होता और न म इस तरह एक भँवर म™ फ स गया होता। समझ गया—यह और
िकसी क नह मेरी ही िक मत ह`। िक मत नह —यह मेरी ही बदिक मती ह`।
दो िदन पहले पटना से हमारा सारा सामान क से लदकर हमार` सदन’ एवे यू
क` लैट पर आ प चा ह`। पटना म™ रहते ही बाबूजी ने इस लैट को बुक िकया
था। शायद तब से ही बाबूजी का इरादा कलक vे म™ बसने का था। साल भर पहले
बाबूजी अक`ले आकर लैट का पजेशन लेकर ताला लगाकर चले गए थे।
बीच-बीच म™ कलक vा आकर वह इसक रखवाली भी कर जाते थे।
कलक vे म™ तबादला िमलते ही वह हम™ लेकर यहाँ चले आए ह । पटना से आकर
सीधे इस
लैट म™ हमने कदम नह रखा था, य िक यहाँ क¸छ भी नह था। बाबूजी
ऑिफिशयल अकोमोड`शन लेना नह चाहते थे, य िक हमार` सार` सामान आ
जाते ही हम अपने लैट म™ ही रह पाएँगे। नए पद पर ‘जॉइन’ करने क` इरादे
से हमार` पटना छोड़ने से चार िदन पहले ही वह कलक vा आ गए थे। मेरी
निनहाल म™ ही ठहर` थे।
पटना से सारा सामान भेजने का इ तजाम करक` माँ और म चार-पाँच िदन
पहले कलक vा आए ह । नानाजी क` घर म™ ही ठहर` ए थे। दो िदन पहले बाबूजी
ने कहा िक हमारा सारा सामान प च चुका ह` और उसी िदन अपने लैट म™ हम
आ गए।
सारा सामान ॉइ ग-कम-डाइिनंग v म म™ पड़ा था। कल माँ, म और पटना से
हमार` साथ आया आ हमारा नौकर रामहरख उन सार` सामान को ठीक ढ ग से
रखने क कोेिशश कर
रह` थे। अभी तक कोई और नौकर नह िमला ह`, इसिलए हम™ ही सब काम करने पड़ रह`
थे।
ब त सार` कागज का एक पुिलंदा मेर` हाथ म™ थमाते ए माँ ने कहा था, ‘‘जा
बेटा अयन, इसे मेर` बेड v म क अलमारी क` लॉकर म™ रख दे। सँभालकर
रखना, य िक इसी म™ तेर` बाबूजी का सबक¸छ ह`।’’
म उस पुिलंदे को सँभालकर ही ले जा रहा था। माँ क` बेड v म म™ जाकर
बाएँ हाथ म™ उसे लेकर दािहने हाथ से अलमारी का ह िडल घुमाया। अलमारी
नह खुली। म ने सोचा था िक शायद अलमारी बंद ह`। वह से म िच wाया था, ‘‘माँ
अलमारी तो बंद ह`। चाबी कहाँ ह`?’’
माँ ने कहा था, ‘‘खुली ह` र` बेटा। शायद ांसपोट´शन क` व क¸छ गड़बड़
आ ह`। अलमारी क` प wे म™ नीचे क ओर पैर से दबाकर ह िडल घुमा द™—
खुल जाएगी।’’
म ने भी उसी तरह से अलमारी खोलने क कोिशश क अलमारी तो खुल गई,
लेिकन साथ ही म™ प डोरास बॉ स भी खुल गया। शायद अलमारी खोलते समय बाएँ
हाथ क मु ी ढीली पड़ गई थी, िलहाजा सार` कागजात उस पुिलंदे से िनकलकर फश’
पर फ`ल गए।
म ने सार` कागज को ज दी से उठा िलया। उठाते व म ने देखा िक मेर`
बाबूजी क` ‘सब क¸छ’ और क¸छ नह , ब क क¸छ नेशनल सेिवं स सिट’िफक` स,
क¸छ शेयर क` कागजात और एक कोट’ ट प पेपर।
ट प पेपर क तह खुल गई थी। उसे ठीक ढ ग से रखते समय देखा िक उस पेपर
पर बँगला म™ क¸छ िलखा आ ह`। ब त ही अ प ह ताe र म™ िलखा आ क¸छ
लगा।
बँगला म™ िलखे ए ट प पेपर देखकर मुझे ब त आ w य’ आ था। बड़ी उ
सुकता से म ने उसे पढ़ना शुv िकया था।
पेपर क` नीचे ब त ही अ प एक ह ताe र देखा, लेिकन पढ़ नह पाया। पहचान
भी नह पाया िक वह िकसका ह`, लेिकन ठीक उसी क` बगल म™ माँ और बाबूजी
क` साफ-साफ ह ताe र ह । ट प पेपर क` बाई ओर प अ e र म™ गवाह िलखकर
eीमती िमंती गुwा और
काश गुwा क` ह ताe र ह । उनक` नाम क` नीचे पटना का एक पता िलखा ह`।
काफ मेहनत करक` अ प ह ताe र म™ िलखे ए उस कागज का क¸छ अंश
पढ़कर, क¸छ अंदाज लगाकर म ने महसूस िकया िक अगर म उसे न पढ़ता तो अ छा
ही होता। ट प पेपर म™
िलखे गए ए ीम™ट को पढ़कर मुझे च र आने लगा था। दोन हाथ थर-थर काँपने
लगे थे।
पाँच पए का ट प पेपर दुबारा मेर` हाथ से नीचे िगर गया, य िक एक ही सवाल
मेर`
िदमाग को क¸र`दने लगा था—‘ या ट प पेपर म™ िलखा आ यह पु म ?’
मेरा कोई भाई या बहन नह ह`। िफर मेर` अलावा यह और कौन हो सकता ह`?
यह क`से संभव हो सकता ह`? िज ह™ म अपने माता-िपता क` v प म™ जानता -
या वे मेर` अपने नह ह ? िज ह ने इस तरह का ए ीम™ट िलखकर मुझे दान दे
िदया ह`, या वह ही मेरी माँ ह ? य उ ह ने मुझे दान दे िदया था?
एक क` बाद एक सवाल ने मेर` िदमाग को उलझन म™ डाल िदया। अगर पटना
म™ रहते ही यह ट प पेपर मेर` हाथ म™ लग गया होता तो म िमंती गुwा और
काश गुwा से इस त e य क स ाई क` बार` म™ पता लगा सकता था।
कल ही म ने िन w य कर िलया ह` िक मुझे इस बात क जड़ तक प चना ह`।
मुझे हर क मत पर मेर` ज म रह य क` बार` म™ पता लगाना ही ह`।
आज मुझे अपने नाम क` रह य का भी मतलब प हो गया ह`। बाबूजी मुझे
‘आयन’ कहकर पुकारते ह , लेिकन माँ कलक vे क ठ`ठ बंगाली होने क`
नाते बाबूजी क` ‘आयन’ पुकार सुनते ही झ wा उठती ह । कहती ह`, ‘‘हजार बार
आपसे म कह चुक िक सही श&द ‘आयन’ नह ‘अयन’ ह`। िकसी भी क मत पर या
आप सही उ ारण नह कर सकते ह ?’’
आज म समझ गया िक बाबूजी जान-बूझकर ही ऐसा कहते ह । क¸छ िदन पहले म ने
एक पुरानी िकताब म™ यूनानी पुराण क एक कहानी पढ़ी थी। रानी e सा क` एक
अवैध लड़क` को देलिफ क` अपोलो मंिदर क पुजा रन ने पाल-पोसकर बड़ा िकया
था। उसने उस ब े का नाम आयन रखा था।
या म भी वैसा ही एक अवैध ब ा ? या इसीिलए ही मेरी ज मदा ी माँ ने
मुझे इन माँ- बाप क` हवाले कर िदया था?
यही सवाल िनर तर साँप क तरह मेर` िदल-िदमाग म™ र™ग रहा ह`। िकससे इस
सवाल का जवाब पूछ —माँ से या बाबूजी से?
नह , ऐसे ही म चुप नह र गा। िजस िकसी भी तरीक` से हो मुझे एक बार पटना
जाना ही होगा। शायद माँ और बाबूजी मुझे अक`ले जाने नह द™गे, लेिकन मुझे
िकसी भी बहाने, छल- कपट से ज v र पटना जाना होगा। िमंती गुwा और काश गुwा
क तलाश करनी होगी। मुझे पता लगाना ह` िक मेरी ज मदा ी माँ ने मुझे
मातृeेह से वंिचत य कर रखा ह`? िपछले स ह साल से म ने िकसे अपने
माँ-बाप क` v प म™ पहचाना? या ये दोन भी मुझे देलिफ क` मंिदर क पुजा
रन क तरह पाल-पोस रह` ह ?
म ने अपने से ही पूछा, ‘‘इज इट एन एिन मा आर ए बो ट wोम द &लू्?’

ना टक समाw होते ही हॉल से दश’क क` बाहर िनकलने क ज दबाजी म™ शुv


म™ हमार` ऑिफस क` ब त लोग को मालूम ही नह हो पाया िक बेहोश िततली फश’
पर पड़ी ह`।
िततली को दश’क क` पैर से क¸चलने से बचाने क` ि लए मुझे कोिशश
करते ए देखकर सबसे पहले शांत ही मेर` पास बढ़ आया। उसने मुझसे
पूछा ही था िक म वहाँ खड़ा य
िक अचानक उसक िनगाह बेहोश पड़ी िततली पर पड़ी। तुर त उसने आवाज
देकर अपने क¸छ सबोिड’नेट को पुकारा और उ ह ने िततली क िनथर देह को
उठाकर हॉल से बाहर लाकर एक ब™च पर सुला िदया।
उ ह लोग म™ से कोई कह से एक िगलास पानी भी ले आया। हलक` हाथ से
वह िततली क` चेहर` पर पानी िछड़कने लग गया था। क¸छ लोग अपने हाथ म™
िलये नाटक क` मरिणका को पंखे जैसा िहलाकर हवा करने का यथ’ यास भी कर
रह` थे, लेिकन िततली क बेहोशी ख म नह ई।
जब काफ देर तक िततली को होश म™ नह लाया जा सका, तो द तर क` क¸छ और
लोग क मदद से उसे ब™च से उठाकर म ने उसे अपनी गाड़ी क बैक सीट पर
सुला िदया। घुटने मोड़कर करवट लेने क दशा म™ िकसी तरह उसे सुलाया गया
था।
अचानक इस दुघ’टना से म काफ उलझन म™ फ स गया था। इसक` अलावा उ
साही सहयोिगय एवं परामश’दाता क` ब त बड़` जूम ने मुझे और पर`शान कर
िदया था। द तर का करीब हर आदमी बारी-बारी से आकर मुझे ढाढ़स बँधाता जा
रहा था, िजससे म और अिधक शिम दा महसूस कर रहा था।
थोड़ी ही देर म™ म डॉ टर चौधरी क` निस ग होम म™ आ गया था। एडिमन
का अमू य पुरकाय थ मेर` साथ आया था।
िततली और मेरा सौभा य रहा िक डॉ टर चौधरी घर वापस जाने क` िलए सीढ़ी
से नीचे उतर ही रह` थे िक हम वहाँ प च गए। पोिट’को म™ उनका ाइवर गाड़ी
का इ जन चालू करक` डॉ टर चौधरी का इ तजार कर रहा था।
मुझे अपनी गाड़ी से उतरते देखकर डा टर चौधरी आ w य’चिकत हो गए। इससे
पहले कभी डॉ टर क` निस ग होम म™ आने क आव यकता मुझे नह पड़ी थी। जब
भी ज v रत होती ह`, म उनसे संबंध थािपत कर लेता । व िमलते ही वह
हमार` घर पर प च जाते ह । काफ पुराना प रचय होने क वजह से यह िवशेष
सुिवधा हम™ िमलती ह`, हालाँिक आजकल उ ह ने घर पर जाकर आमतौर से मरीज
देखने बंद कर िदए ह ।
मेरी गाड़ी क` पास आकर उ ह ने मुसकराकर पूछा, ‘‘ या बात ह` सेन साहब?
अचानक निस ग होम का मुआयना करने क`से आ गए और वह भी इस ऑड आवर
म™?’’
म ने उनक` न का जवाब िदए बगैर ही गाड़ी क बैकसीट पर लेटी िततली क`
बेहोश शरीर क ओर इशार` से संक`त िकया।
िततली को वहाँ पड़ा देख ही हालत क गंभीरता उ ह ने महसूस क । तुर त
इमरज™सी से
`चर मँगवाकर सहयोिगय क मदद से वह िततली को निस ग होम क` अंदर ले गए।
निस ग होम म™ डॉ टर क` सामने िततली को पाकर म ने काफ राहत महसूस क ।
नाटक क` अंत म™ िततली क` बेहोश हो जाने क` समय से निस ग होम प चने
क` समय तक म काफ तनाव म™ था। अब डॉ टर क उप थित से और िततली क`
सार` खतर` टल जाएँगे, ऐसा सोचकर म ने काफ रीिलव फ ल िकया। गाड़़ी लॉक
करक` म ने एक िसगर`ट सुलगाई।
अमू य से म ने कहा, ‘‘आपका ब त-ब त शुिe या। आप अब घर जाएँ।’
उसने कहा, ‘‘लेिकन सर, मेर` चले जाने से आपको तकलीफ तो नह होगी?
अगर िफर
िकसी कारणवश मेरी मदद क ज v रत हो?’’
म ने कहा, ‘‘डॉ टर चौधरी हमार` फ`िमली िफिजिशयन ह । उनक` निस ग होम म™
सभी इ तजाम ह , इसिलए शायद आपक मदद क ज v रत िफर नह पड़`गी। आगे
ज v रत होगी तो ज v र क गा।’’ एक बार िफर से शुिe या अदा करक` म ने अमू य
को िवदा िकया।
निस ग होम क` अंदर प चते ही एक नस’ ने कहा डॉ टर चौधरी मरीज क` साथ
इमरज™सी म™ ह`। मरीज को होश म™ लाने क` िलए तमाम इ जे शन िदए जा रह` ह
, लेिकन अभी तक होश नह आया ह`।
म भी इमरज™सी क ओर बढ़ा। एक नस’ को ट ड पर लूकोज का बोतल लगाने क
कोिशश करते देखकर समझ गया िक िततली को ि प िदया जाएगा।
करीब आधे घंट` तक कोिशश करने क` बावजूद डॉ टर चौधरी िततली को होश म™
नह ला सक`। िततली क` हाट’बीिट ग, ेशर, प सर`ट क जाँच करने क` बाद उ ह
ने मुझसे कहा, ‘‘ए ीिथंग नॉम’ल। निथंग ट वरी। म िमसेज सेन को क`िबन
म™ िश ट करवा दे रहा ।
िफलहाल दो-तीन बोतल लूकोज सेलाइन चलने दीिजए, िफर देखा जाएगा। आप
अगर चाह™ तो क`िबन म™ ठहर सकते ह या घर से च र लगाकर भी आ सकते
ह ।’’ थोड़ी ही देर म™
िततली को एक डील स क`िबन म™ भेज िदया गया।
म ने सोचा िक म घर लौटकर या क v गा? निस ग होम म™ िततली को छोड़कर घर पर

िकसक` पास जाऊ गा? म ने निस ग होम से ही घर पर फोन िमलाकर अपने क बाइ ड ह
ड गणेश को इिv ला दे िदया िक हम रात को घर नह लौट™गे। वह हमार` िलए इ
तजार न कर` और मेन गेट पर ताला लगाकर सो जाए।
िततली क` इलाज क` िलए सारा इ तजाम करने क` बाद डॉ टर चौधरी ने मुझसे कहा,
‘‘अब
िव तार से मुझे सारी बात™ आप बताएँ। या नाटक देखने क` िलए आने से
पहले ही िमसेज सेन क तबीयत िबगड़ी ई थी?’’
म ने सारी बात™ डॉ टर चौधरी को िव तार से बतलाई । सबेर` म समझ ही नह पाया था
िक
िततली को िकसी कार क तकलीफ ह`, य िक हर रोज क तरह हमने ह सी-मजाक
िकया था। द तर से घर लौटकर म ने िततली को नाटक देखने जाने क` िलए
तैयार पाया था। हॉल म™ जाने क` बाद भी उसने हमार` सहयोगी अफसर क पं य
म™ एवं अफसर क` साथ साधारण बात™ क थ , ह सी-मजाक भी िकया था। जब
खेल शुv आ था, तब भी उसने मुसकराकर मुझसे कहा था िक उसे खेल अ छा
लग रहा था। िफर उसक` बाद से ही उसे तकलीफ होने लगी। वह पसीने से तर हो
गई थी, उसे साँस क तकलीफ होने लगी और अंत म™ इस बेहोशी म™ जाकर
समाw ई।
डॉ टर चौधरी ने यान से मेरी बात को सुना। उ ह ने कहा, ‘‘लगता ह`,
नाटक क` कथानक ने िमसेज सेन को काफ िवचिलत कर िदया ह`। लेिकन य ?
जैसा िक आपने कहा
—कण’ क¸ ती क घटना तो सबको मालूम ह`। उस घटना से तो िमसेज सेन इतना अिधक
िवचिलत नह हो सकती ह । यूनान क पौरािणक घटना या थी?’’
म ने संeेप म™ यूनानी कहानी डॉ टर चौधरी को सुनाई। कहानी सुनने क` बाद डॉ
टर चौधरी ने कहा, ‘‘यह भी तो क¸ ती और कण’ क कहानी जैसी ह`। इस कहानी
का ना यvप देखकर
िमसेज सेन य िवचिलत ह गी? ठीक ह`, िमसेज सेन को होश आ जाने पर इस
बार` म™ सोचा जाएगा।’
नस’ को क¸छ सलाह देकर ‘नाइट िश ट’ क` डॉ टर दास को अपने साथ लेकर
डॉ टर चौधरी क`िबन से बाहर िनकल गए।
तब से लेकर करीब-करीब सारी रात म छटपटाता रहा। कभी िततली क` पास बैठा, तो
कभी
लूकोज क बोतल पर िनगाह डाली। कभी बरामदे म™ खड`़-खड़` िसगर`ट पी, तो
कभी नस’ या डॉ टर दास से बात™ क Ė। रात भर ि प चलता रहा—लेिकन िततली को
होश नह आया।
भोर म™ जब न द से मेरी आँख™ करीब-करीब बंद हो रही थ , अचानक मुझे
लगा िक िततली ब त धीर`-धीर` क¸छ बोल रही ह`। उसक दोन आँख™ बंद ह ,
लेिकन लगा िक वह क¸छ बड़बड़ा रही ह`।
म ने ज दी से अपने कान को िततली क` ठ क` पास ले जाकर उसक बात
को सुनने क कोिशश क । मुझे लगा िक वह बड़बड़ाते ए कह रही
ह`—‘‘सिन… म ….और….सह….नह ….सकती।’
थोड़ा सा ककर वह िफर बड़बड़ाई—‘‘क¸छ… करो… सिन।’’
िफर एकदम शांत हो गई। थोड़ी देर बाद िफर अ प श&द म™ कहा, ‘‘बाबूजी
को….।’’ उसक जुबान इतनी अ प हो गईिक म उसक बात™ और नह समझ पाया।
म च f क उठा। यह जनाब सिन कौन ह`? िततली उसे या करने क` िलए कह रही ह`?
उसक` अधूर` वा य ‘‘बाबूजी को….’’ का या मतलब ह`?
मुझे लगा िक उसक` ठ िफर िहल रह` ह । म ने तपाक से अपने कान को
करीब-करीब उसक` ठ से सटा िदया। काफ देर तक कोई आवाज नह िमली।
िफर क ककर
िततली बड़बड़ाई, ‘‘िमंतीदी… मुझे… बचा लो।’’
िततली क बात को सुनकर म ह`रान हो गया। िततली या कह रही ह`? ये सब तो
‘एक और कण’’ नाटक क` अिभनय क` दौरान भी िततली क¸छ बुदबुदा रही थी। या यह
सब बात™ ही वह कर रही थी?
िफर म ने काफ कोिशश क , लेिकन िततली का एक श&द भी मेरी समझ म™ नह
आया। थोड़ी देर म™ उसक` ठ का क पन भी त&ध हो गया। गौर िकया िक
िततली िफर से अचेतनता क गहराई म™ ड ब गई।
िततली क` अ प श&द ने मेर` िदमाग को झकझोर िदया था। इन सारी बात का मतलब
या ह`? अचानक उसक अचेतन सी ये बात™ य उभर आई ? ‘सिन’ कौन ह`?
और यह ‘िमंतीदी’? या करने क` िलए िततली कह रही थी?
एक भी सवाल का जवाब मुझे नह िमला। याद नह कर सका िक मेरी पढ़ी ई िकसी
िकताब म™ भी इस तरह क` च र क` बार` म™ म ने पढ़ा ह` या नह । काफ
सोचकर भी मुझे याद नह आया िक मेर` प रिचत य य म™ से िकसी का नाम
‘सिन’ या ‘िमंती’ ह` या नह ।
इन सारी बात को लगातार सोचते-सोचते पता नह कब मेरी आँख™ बंद हो गई थ
। िदन भर ऑिफस म™ मेहनत, नाटक देखने क उ vेजना, िततली को लेकर
मानिसक उलझन और रात भर जगे रहने क थकान से म अपनी आँख™ और
खोल रखने म™ असमथ’ था। िततली क`
िब तर क बगल म™ ईजीचेयर पर अधलेट` ही म गहरी न द म™ सो गया। पता नह ,
कब अपना दािहना हाथ म ने िततली क` िब तर पर रख िदया था।

म कहाँ लेटी ई ? यह तो मेरा िब तर नह ह`। पलंग, िब तर और सभीसामान तो


मेर` नह ह । म अपने दािहने हाथ को िहला नह पा रही ? मुझे हो या गया ह`?
धीर`-धीर` दािहनी ओर िसर को घुमाते ही म ने पाया िक ट ड से एक बोतल लटक
रही ह`। उसी बोतल से एक पाइप जैसी नली िनकलकर मेर` दािहने हाथ म™
लगी सुई क` अंदर से बोतल का तरल पदाथ’ मेर` शरीर म™ वेश कर रहा ह`।
मेरा दायाँ हाथ ट`प से िब तर क` साथ फ से होने क वजह से ही म अपना हाथ
िहला नह पा रही ।
इसका मतलब म िकसी अ पताल या निस ग होम क` िब तर पर लेटी ई ।
मुझे नह मालूम िक इस व घड़ी म™ िकतना बजा ह`, लेिकन िखड़क से अंदर
आती ई सूय’ क
िकरण से लगता ह` िक सबेर` का व ह`। सुमन? सुमन कहाँ ह`?
काफ कोिशश से बाई ओर अपने िसर को मोड़ते ही देखा िक सुमन मेर`
ही िब तर क` बगल म™ एक ईजीचेयर पर दािहने करवट म™ आँख™ बंद करक`
पड़ा आ ह`। बेचार` का दािहना हाथ िब तर पर ह`। शायद सारी रात मेर` िलए सोच-
सोचकर सो नह पाया होगा। लगता ह` भोर म™ अनजाने म™ ही उसक आँख™ लग गई
ह । बेचारा, काफ असहाय जैसा लग रहा ह`।
लेिकन म अ पताल म™ य पड़ी ? सुमन ने भी ईजीचेयर पर पड़`-पड़` रात य
िबताई?
हाँ…हाँ, धीर`-धीर` सब मुझे याद आ रहा ह`। म खुद ही नह समझ पाई थी िक
अचानक मुझे हो या गया था। ‘एक और कण’’ नाटक क` अंितम य म™ रानी e सा
को अपने बेट` आयन को आिलंगन करने क` िलए हाथ फ`लाकर उसे ख चते ए
देखकर म भी शायद िबना क¸छ सोचे-समझे हाथ फ`लाकर खड़ी हो गई थी। याद आ
रहा ह` िक दस कदम मंच क ओर म बढ़ भी गई थी। िफर क¸छ याद नह ह`—सब क¸छ
&ल क ह`।
नह …नह , याद आया। मुझे ऐसा लगा था िक मंच एवं सारा िथएटर हॉल ल? क
तरह मेरी आँख क` सामने च र लगाने लगा था। आयन एक बार मेर` हाथ
क` पास और एक बार ब त दूर चला जा रहा था।
मेरी आँख™ खुल जाते ही एक नस’ दौड़कर मेर` पास आ गई। पता नह वह कहाँ
बैठी थी,
य िक अब तक म उसे देखी नह थी।
म ने थोड़ा सा पानी माँगा। मुझे लगा िक म ने माँगा, लेिकन नस’ को सुनाई नह
पड़ा। वह मेर` चेहर` पर झुक गई। पूछा—‘‘क`सी ह िमसेज सेन?’’
म ने िफर से पानी माँगा, लेिकन नस’ को सुनाई य नह पड़ रहा ह`? ऊ चा सुनती ह`
या?
बाएँ हाथ से म ने इशारा करते ए उसे पानी देने क` िलए कहा। झट से वह
मेर` िसरहाने क` फ िड ग कप म™ पानी भरकर मेर` ठ क` पास ले आई। दो-एक
घूँट पानी पीने क` बाद मुझे काफ आराम िमला।
मुझे पानी िपलाकर ही नस’ बड़ी ज दी कमरा छोड़कर चली गई। शायद डॉ टर को
सूचना देने गई होगी।
म ने अपने बाएँ हाथ से सुमन को छ ने क कोिशश क । मेरा हाथ उसक`
दािहने हाथ तक प च नह पाया। काफ कोिशश क` बाद म उसक` दािहने हाथ पर
एक हलका सा ध ा लगा सक । इतनी सी हरकत से ही म थक गई। अचानक म इतनी
कमजोर क`से हो गई?
उस हलक` ध ` से ही सुमन क न द ट ट गई। कई सेक ड तक उदास िनगाह से
मेरी तरफ देखने क` बाद सुमन तड़फड़ा उठा।
काफ याक¸ल होकर सुमन ने पूछा, ‘‘क`सी हो िततली? क¸छ आराम िमला
ह`?’’ म ने भी मुसकराकर जवाब िदया, ‘‘ठीक । िफकर मत करो सुमन।’’
लेिकन सुमन को भी मेरी बात™ य नही सुनाई पड़ रही ह ? दुबारा वह एक ही
सवाल य पूछ रहा ह`? मेर` िब तर पर हाथ िटकाकर, मेर` चेहर` पर झुक` ए भी
सुमन मेरी बात™ नह सुन सका! या सुमन भी आजकल ऊ चा सुनने लगा ह`?
म िच wाई, ‘‘तुम मेरी बात™ य नह समझ रह` हो, सुमन? म ने कहा न म ठीक ।’’
लेिकन तब भी सुमन मेरी बात™ सुन नह सका। ऐसा लगा िक उ क ठा से
उसक दोन आँख क पुतिलयाँ बाहर िनकल रही ह । मेर` बाल पर अपने यार भर`
हाथ को फ`रते ए सुमन ने पूछा, ‘‘िततली, तुझे काफ तकलीफ हो रही ह` न?’’
मुझे समझ म™ नह आ रहा था िक सुमन इस ढ ग से य पेश आ रहा ह`। उसक
हर बात का जवाब म दे रही , िफर भी सुमन मेरी बात को य नह सुन रहा ह`?
म समझ रही
िक मेर` ठ िहल रह` ह —िफर? या मेरी आवाज बंद हो गई ह`?
सुमन क बात का उ v र देने क` िलए म ने अपनी जुबान खोली। वा तव म™, मेर`
क ठ से जरा सी भी आवाज िनकल नह रही ह`। म ने तो इस पर गौर ही नह िकया था।
या इसी वजह से नस’ को मेरी बात™ सुनाई नह पड़ी थ ? या इसिलए ही सुमन मेरी
बात™ समझ नह पा रहा ह`?
मेरी असहाय हालत क` बार` म™ वािकफहाल होते ही मेरी आँख से आँसू क
धारा िनकलकर मेर` गाल को गीला करने लगी।
या म िफर कभी बात™ नह कर सक गी? अगर मेर` गले से आवाज ही नह
िनकलेगी तो म सुमन से सारी बात™ क`से क v गी? मुझे तो सुमन से ब त सारी
बात™ करनी ह ।
यह बात िदमाग म™ आते ही म अपने को सँभाल नह पाई। मेरी दोन आँख
से आँसू क अिवरल धारा बहने लगी।
सुमन अपनी जेब से v माल िनकालकर मेरी आँख को प छते ए मुझे ढाढ़स
देने लगा
—‘‘रोओ मत िततली, मत रोओ। सब ठीक हो जाएगा।’’
म ने देखा िक क`िबन क` अंदर डॉ टर चौधरी आ गए। उनक` ठीक पीछ` नस’ भी
हािजर हो गई। अब मुझे समझ म™ आ गया िक म डॉ टर चौधरी क` निस ग होम म™
लेटी ई ।

दो िदन तक लगातार सोचने क` बाद पटना जाने क` िलए म ने एक तरक ब सोच ली।
बगैर इसक` और कोई रा ता भी नह था। मेरी मानिसक पीड़ा ने ही मुझे एक ऐसा
काम करने क`
िलए मजबूर कर िदया, िजसे म ने अब तक कभी नह िकया था, न करने क आव
यकता ही कभी पड़ी थी।
बचपन से लेकर आज तक म ने कभी माँ से या बाबूजी से झूठ नह बोला ह`।
लेिकन आज माँ से बेिझझक म ने एक झूठ कह िदया। आिखर झूठ बोलने म™
हज’ या ह`? मेरी िजंदगी क बुिनयाद ही तो एक झूठ ह`।
पैदा होने क` बाद अपनी ज मदा ी क` eेह से वंिचत होकर म दूसर` क गोद म™
पला। एक अनजान औरत को अपनी माँ क` v प म™ पहचाना। आज भी उ ह™ ही
माँ कहकर पुकार रहा
। या यह झूठ नह ह`।
मुझे अपने िपता का प रचय मालूम नह ह`। िफर भी मेरी झूठी माँ क` प रचय क`
बतौर उ ह क` पित को बाबूजी कहकर संबोधन करने क` िलए मुझे बचपन से
िसखाया गया ह`। जब बचपन से ही मुझे झूठ बोलने क िश eा दी गई ह` तो आज
माँ से िजस बात को कहकर म ने पटना जाना चाहा, वह झूठ य होगा?
शायद इसिलए ही जानबूझकर माँ से झूठ कहने पर भी मुझे कोई अफसोस नह हो
रहा ह`। मेर` जीवन क` इस स य को जानने क` िलए न मालूम मुझे और िकतने झूठ
बोलने पड़™गे।
क ल म™ पढ़ते समय फादर पीटर कहते थे, ‘‘स य क` रा ते पर चलकर
ही ब ो, उस परम स य को ाw करोगे।’’
शायद यह बात मेर` िलए नह ह`। िजसक िजंदगी ही गलत रा ते पर, गलत प रचय
से चल रही ह`, झूठ क` मा यम से ही वह परम स य को ाw कर`गा। मेरी िजंदगी
का एकमा परम स य ह`—ज मदा ी माँ का प रचय जानना।
उसी स य तक प चने क` उ े य से म ने माँ से कहा, ‘‘माँ, दो-चार िदन क`
िलए मुझे एक बार पटना जाना ह`, य िक मुझे लग रहा ह` िक वहाँ से चलते व
जो क ल लीिवंग सिट’िफक`ट म ने िलया था, वह पटना म™ ही छ ट गया ह`। पटना
क` दो त क` पास मेरी ब त सारी िकताब™ पड़ी ह । हो सकता ह` उनम™ से िकसी
िकताब म™ ही सिट’िफक`ट छ ट गया हो।’’
वाभािवक v प से मेरी गैर-िज t मेदारी क` िलए माँ ने मुझे खूब फटकारा।
बाबूजी क` घर लौटते ही उ ह ने मेरी िशकायत भी क ।
बाबूजी ने कहा, ‘‘ऐसा ह` िक तू अपने दो त का अता-पता बता दे। म अपने
पटना क` द तर म™ कल फोन िकए देता । कोई तेर` दो त से तेरा क ल लीिवंग
सिट’िफक`ट लाकर मुझे भेज देगा।’’
लेिकन मुझे तो मालूम ह` िक बात क¸छ और ही ह`। बेिझझक म ने बाबूजी
से कहा, ‘‘मेर` सार` दो त तो पटना म™ ही ह । कई दो त क` पास मेरी िकताब™
पड़ी ई ह । वा तव म™ िकस
िकताब क` अंदर म ने सिट’िफक`ट रख िदया था—मुझे खयाल ही नह आ रहा
ह`। पटना चलकर उन सभी दो त से िमलना होगा, सबसे िकताब™ माँगकर प े
पलटने पड़™गे, तब शायद उसका पता चले। अगर नह िमलता ह` तो क ल क` द
तर से ड¸ लीक`ट ांसफर सिट’िफक`ट इ यू करवाना होगा।’’
मेरी बात™ समझकर बाबूजी ने मुझे पटना जाने क इजाजत दे दी। परम स य को
जानने क`
िलए मेरा पहला कदम ही झूठ क` रा ते पर पड़ा।
लेिकन मेरा क ल लीिवंग सिट’िफक`ट पटना म™ नह , कलक vे म™ ही
पड़ा आ ह`। कलक vा छोड़ने से पहले म ने उसे अपनी िकताब क अलमारी म™
एकदम नीचेवाली टाँड़ पर
िबछ` अखबार क` नीचे िछपाकर रख िदया। कोई इसक` बार` म™ भाँप भी नह सक`गा।
माँ और बाबूजी ने कहा िक पटना प चकर म पुराने लैट क` बगलवाले लैट
म™ रमेश अंकल क` पास ठह v , लेिकन वहाँ ठहरने का मतलब उनक इ
छानुसार मुझे चलना होगा। शायद रमेश अंकल या उनका बेटा अजीत हमेशा
मेर` साथ-साथ रह`गा। जब हम पटना म™ रहते थे, तब उन लोग क` साथ हमारी
खूब पटती थी। वे मुझे ब त चाहते भी ह ।
लेिकन उन दोन म™ से िकसी का भी मेर` साथ िचपकना, मेर` िलए िद त
पैदा कर`गा। उनक उप थित म™ म िमंती गुwा या काश गुwा को तलाश नह कर
सक गा। उनक` सामने म िकसी भी हालत म™ उस परम स य क` बार` म™ पता नह
लगा सक गा।
इन सारी बात को सोचकर ही म पटना प चकर ट`शन क` अहाते से बाहर एक
छोट` से होटल म™ ड`रा डाले । होटल म™ अपना सामान रखकर w`श हो िलया,
िफर खाना खाने क` बाद म काश गुwा क तलाश म™ िनकल पड़ा ।
मुझे शक हो रहा ह` िक स ह साल पहले क` पते पर वे इस समय िमल™गे
या नह । दोन नाम बंगािलय और अबंगभािषय म™ पाए जाते ह , िलहाजा म समझ
भी नह पा रहा िक वे बंगाली ही ह या नह ।
कदमक¸आँ क ओर र शा जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा ह`, म मन-ही-मन चंचल होता जा
रहा
। रा ता बाएँ घूमकर जैसे ही कदमक¸आँ क` करीब प चा, दािहनी ओर बँगला
िमठाई क जानी-पहचानी दुकान भी म ने देखी। स&जी मंडी तक प चकर म ने र शा
कवा िदया।
एक परचूनवाले से काश गुwा का नाम और पता बताने पर, उसने मुझे बाई
ओर क एक गली म™ जाने क` िलए कहा।
गली म™ थोड़ी दूर चलकर ही मुझे 306/ए नंबर मकान िदखाई पड़ा। मामूली सा
दो मंिजला मकान। गली क ओर खुलनेवाली सभी िखड़िकयाँ और दरवाजे बंद
िदखाई पड़`। समझ नह
पाया िक मकान म™ कोई ह` या नह । गनीमत िक दरवाजे पर कोई ताला नह लटक रहा ह`।
म ने िसकड़ी को ब त जोर से िहलाया। अंदर से कोई आवाज नह आई। थोड़ी
देर इ तजार करने क` बाद म ने िफर से िसकड़ी िहलाकर आवाज दी। तुर त दूसरी
मंिजल क एक िखड़क खोलकर एक बंगाली मिहला ने िह दी म™ पूछा, ‘‘कौन
ह`?’’
उस मिहला क` साड़ी पहनने क` ढ ग और भाल पर िसंदूर का टीका देखकर म ने
बँगला म™ ही पूछा, ‘‘ या यह eी काश गुwाजी का मकान ह`?’’
िसर िहलाकर उसक` हामी भरते ही म ने कहा, ‘‘क˛पया उ ह™ जरा बुला दीिजए।’’
िखड़क बंद हो गई। थोड़ी देर बाद दरवाजे क ओर िकसी क` बढ़ते ए
कदम क आहट मुझे सुनाई पड़ी। मुझे लगा िक कोई दरवाजा खोलने आ रहा ह`।
मेर` िदल क` अंदर तूफान मच गया। या मेरी ज मदा ी माँ क` बार` म™ ये
लोग क¸छ बता सक` गे? अब वह कहाँ रहती ह`? उनसे मेरी मुलाकात हो सक`गी?
िखड़क से िजस मिहला ने बात™ क थ , उसने खुद आकर दरवाजा खोल
िदया। बँगला म™ ही उसने बड़` यार भर` श&द म™ कहा, ‘‘अंदर आओ बेटा।’’
उसने िजस कमर` म™ लाकर मुझे बैठने क` िलए कहा, मुझे लगा िक यह
उनका बैठक का कमरा ह`। एक मामूली सोफा-कम-बेड पर उसने मुझसे बैठने
क` िलए कहा।
म ने गौर िकया िक कमर` म™ एक साधारण सी मेज और दो क¸रिसयाँ ह । मेज
पर साधारण सी दो-चार चीज™ और दो-एक िकताब को देखकर मुझे िव ास हो
गया िक यह एक म यवग f य प रवार ह`। कमर` क` दरवाजे पर एक मामूली सा परदा
लटका आ ह`। दीवार पर एक बँगला क`ल™डर ह`, िजस पर रामक˛e ण परमह स क
तसवीर ह`।
मिहला ने मुझसे पूछा, ‘‘तुt हारा नाम या ह` बेटा? उनसे तुम य िमलना चाहते हो?’’
म ने कहा, ‘‘आप हम™ नह पहचान™गी, य िक आपने मुझे कभी देखा नह
ह`। मुझे भी आपका नाम-पता मालूम नह था, लेिकन अचानक यह ट प पेपर मेर`
हाथ म™ पड़ जाने क वजह से मुझे आपका नाम-पता मालूम हो गया ह`। इसी
िसलिसले म™ काशजी से म क¸छ बात™ करना चाहता ।’’
ट प पेपर पर जहाँ eीमती िमंती गुwा और eी काश गुwा का ह ताe र था, म
ने िसफ’ उतना ही िनकालकर उ ह™ िदखाया।
म ने गौर िकया िक ट प पेपर पर उन दोन ह ताe र को देखते ही उस मिहला का
चेहरा
िबलक¸ल फ का पड़ गया।
उ ह ने िफर पूछा, ‘‘तुम कौन हो बेटा? तुt हारा नाम या ह`? अपने िपताजी का
नाम बोलो, शायद म पहचान सक ।’’
म ने कहा, ‘‘मेरा नाम अयन बैनज f ह`। मेर` िपताजी का नाम eी शु ांशु बैनज f
ह`। या आप उ ह™ जानती ह`?’’
अपनी हथेली से मुँह दबाकर एक चीख लगाते ए उ ह ने कहा, ‘‘जानती बेटा,
जानती
। तुt ह™ भी पहचाना, लेिकन वह तो दो साल से िब तर पकड़` ए ह । तुtह™ जो
क¸छ कहना ह`, मुझसे ही कहो बेटा।’’
म ने कहा, ‘‘देिखए, मेर` पास समय ब त कम ह`। िजस बात को म जानना चाहता
, अगर आप उन सारी बात को मुझे बता देती ह तो मुझे काशजी को पर`शान करने
क ज v रत नह पड़`गी।’’
‘‘बोलो बेटा, तुम या जानना चाहते हो?’’
‘‘इस ट प पेपर पर अ प ढ ग से िलखे ए ह ताe र म पढ़ नह सका।
लेिकन अ प अ e र से िलखे इस ए ीम™ट क` क¸छ अंश पढ़कर, क¸छ अंदाज
लगाकर मुझे िव ास हो गया ह` िक िज ह ने इस पर ह ताeर िकया ह`, वह मेरी
जननी ह । आप समझ गई ह गी िक मेरा ज म रह य अब मेर` िलए अनजान नह
ह`। इसिलए म यह जानना चाहता िक उ ह ने मुझे मेर` वत’मान क` माँ-बाप
क` हाथ म™ य दान कर िदया था? और मेरा आिखरी सवाल ह`, ‘‘मेर` िपता
कौन ह ?’’
मेर` प न को सुनकर उनक` चेहर` का र ग हर पल बदलता रहा। मेर`
आिखरी सवाल को सुनकर शायद वह अपने को सँभाल नह पाई। अचानक वह धप
से फश’ पर बैठ गई।
म भी चुपचाप उनक ओर देखने लगा।

रा त भर म िततली क` िलए ब त पर`शान था। ईजीचेयर पर बैठ`-बैठ` पता नह कब


भोर क` समय सो गया था। िततली क` हाथ क` पश’ से न द खुल जाते ही
तड़फड़ाकर म जाग उठा।
उतावला होकर म ने िततली से पूछा, ‘‘क`सी हो िततली?’’
िततली ने जवाब देने क कोिशश क । उसक` ठ िहले, लेिकन कोई आवाज
नह
िनकली। कई बार कोिशश करने क` बावजूद भी जब वह आवाज िनकाल नह सक ,
उसक दोन आँख से आँसू क धारा बहने गली।
जब म िततली को ढाढ़स दे रहा था, डॉ टर चौधरी क`िबन म™ आए। िततली को होश
म™ देखकर खुशी क` साथ उ ह ने पूछा, ‘‘क`सी ह आप िमसेज सेन?’’
लेिकन िततली क` क ठ वरहीन ह । म ने देखा िक वह काफ कोिशश कर रही ह`, उसक`
ठ लगातार िहल रह` ह —लेिकन कोई आवाज नह ह`। बात करने क` िन e फल यास
से उसक आँख से िफर से आँसू बहने लगे।
शायद नस’ से डॉ टर चौधरी को पहले ही मालूम हो चुका था िक िततली क जुबान
बंद हो गई ह`। उ ह™ ब त यादा आ w य’चिकत होते ए म ने नह देखा। सही म™,
वह डॉ टर जो ह
न! अपनी ितिe या डॉ टर मरीज क` सामने कभी भी कट नह करते ह । वे खुद भी
िनराश नह होते ह और न दूसर को िनराश करते ह ।
िततली को साहस देते ए उ ह ने कहा, ‘‘िमसेज सेन, आप िफकर मत क
िजए। कोई पर`शानी क बात नह ह`। कल रात अचानक आपक` िगर जाने से
आपक` शरीर पर जो ध ा लगा, उससे आप शारी रक v प से क¸छ कमजोर हो गई ह ।
उसी वजह से आप बात नह कर पा रही ह । शायद िकसी वजह से आपक मानिसक
उ vेजना भी बढ़ गई होगी—इसिलए आप को आज भी तकलीफ हो रही ह`। म क¸छ
दवाएँ िलख देता । बस, दो-चार िदन म™ ही आप ठीक हो जाएँगी।’
नस’ ने झट से ि सिe शन िलखने क` िलए फाइल बढ़ा दी। दो-एक दवाएँ
िलखकर डॉ टर चौधरी ने नस’ को दवा देने क` बार` म™ क¸छ िनद´श िदया।
जब डॉ टर चौधरी िततली से बात™ कर रह` थे, ि सिe सन िलख रह` थे, म
लगातार सोचता जा रहा था िक िततली ने राि क` अंितम हर म™ बड़बड़ाते ए
जो क¸छ भी कहा ह`, डॉ टर चौधरी से कहना उिचत होगा या नह ।
अंत तक म ने फ`सला कर िलया था िक डॉ टर चौधरी से सारी बात™ कहना मेर`
िलए उिचत ही होगा, य िक हो सकता ह` डॉ टरी शाv म™ ऐसा कोई मज’ हो जब
मरीज जा म™ बात™ नह कर सकता ह`, लेिकन गाढ़ी न द म™ बात™ करता
रहता ह`। अगर सही ढ ग से इलाज हो जाए तो हो सकता ह`, िततली िबलक¸ल व थ
हो जाए।
डॉ टर चौधरी क` साथ आगे बढ़ते ए म ने सारी बात™ उनसे कह द ।
मेरी बात™ सुनते ही डॉ टर चौधरी क गए। च f ककर उ ह ने मुझसे कहा,
‘‘आप या कह रह` ह िम टर सेन? भोर क` समय िमसेज सेन ने गाढ़ी न द म™
बात™ क Ė और इस व वह बात™ नह कर पा रही ह ? आwय’ क बात!’’
थोड़ी देर बाद सोचकर डॉ टर चौधरी ने मुझसे कहा, ‘‘ या आप सिन या
िमंतीदी को पहचानते ह ?’’
मेरा नकारा मक जवाब सुनकर डॉ टर चौधरी काफ िचंितत िदखाई पड़`। उ ह ने
कहा, ‘‘िम टर सेन, आप बुरा मत मािनए, म आपसे िनतांत य गत एक न
पूछना चाहता ।
या आप थोड़ी देर क` िलए मेर` च™बर म™ आ सकते ह`?’’
म ने िसर िहलाकर अपनी स t मित दी और उनक` साथ उनक` च™बर क ओर चला।
अपने च™बर म™ आकर डॉ टर चौधरी ने अपने िनजी बेयरा से कहा,
‘‘िनताई, दरवाजे क` बाहर बैठ` रहो। इस व िकसी को भी अंदर मत आने
देना।’’
िनताई क` चले जाने क` बाद डॉ टर चौधरी ने अपनी क¸रसी पर बैठकर मुझसे भी
बैठने क`
िलए कहा। जेब से एक खूबसूरत िसगर`ट-क`स िनकालकर उ ह ने मुझे एक
िसगर`ट दी और अपने ठ क` बीच म™ भी एक रखी।
म ने अपनी जेब से लाइटर िनकालकर दोन क िसगर`ट जला दी।
डॉ टर चौधरी ने कहा, ‘‘िम टर सेन, िनतांत य गत एक सवाल पूछ रहा । आप
बुरा मत मािनएगा। आपको मालूम ही होगा िक मरीज क` बार` म™ जब तक डॉ टर से सब
बात™ नह कही जाती ह , तब तक सही इलाज नह हो पाता ह`। जैसे वक ल से िकसी
बात को िछपाने का मतलब मुकदमे म™ हार अिनवाय’ होती ह`।’’
म थोड़ा सा मुसकराया।
‘‘अब आप यह मुझे बताइए, या आप लोग को संतान कभी ई ही नह या आप
खुद संतान चाहते नह थे? जहाँ तक मुझे याद ह`, आपने एक बार शायद कहा था
िक आप लोग क शादी बारह-तेरह साल पहले ई ह`।’’
म थोड़ा सा मुसकराया।
म ने कहा, ‘‘ बारह-तेरह नह डॉ टर साहब, चौदह साल पहले हमारी शादी ई ह`।
हमने एक संतान चाही, हमारी बदिक मती ही समिझए िक आज तक हम™ वह संतान
नह िमली।’’
‘‘ या आपने कभी मेिडकल चेकअप करवाया ह`?’’
‘‘सच क तो, िततली से िछपाकर एक बार अपने एक दो त डॉ टर से अपनी
जाँच करवाई थी। मुझम™ कोई कमी नह ह`, लेिकन म ि ततली को कभी भी
गाइनोकोलॉिज ट क` पास नह ले जा सका। वह कभी भी चेकअप नह कराना चाहती
ह`। मुझे नह मालूम वह य नह चाहती, लेिकन म ने कभी दबाव नह डाला। वह कहती
ह`—िक मत म™ जब ब ा नह ह` तो डॉ टर या कर सकता ह`?’’
डॉ टर चौधरी ने कहा, ‘‘मेर` निस ग होम म™ लेडी डॉ टर ह`। यिद म
िमसेज सेन का चेकअप करवाता तो या आपको आपिv होगी?’’
म ने कहा, मुझे कोई आपिv नह ह`। िकसी भी कार से म िततली को व थ
कराकर घर ले जाना चाहता ।
मुझे समझ म™ नह आ रहा था िक िततली को निस ग होम म™ छोड़कर क`से
म मानिसक उलझन क` साथ घर म™ िटक पाऊ गा या द तर म™ काम कर सक गा।
इसिलए िततली को आराम िदलाने क` िलए िकसी भी तरह क जाँच-पड़ताल करने
क छ ट म ने डॉ टर चौधरी को दे दी।
मेज पर रखे शीशे क` पेपरवेट को हाथ से नचाते ए डॉ टर चौधरी ने कहा,
‘‘मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा ह` िक िमसेज सेन ने भोर क` समय बड़बड़ाते
ए बात™ क Ė, लेिकन इस व वह बात™ करने म™ असमथ’ ह । कल साईिकयाि
क डॉ टर बसु म w क का निस ग होम अट ड करने का िदन ह`। इस िवषय क` बार`
म™ म उनसे चचा’ करक` आपको बाद म™ बताऊ गा।’’
डॉ टर चौधरी क` च™बर से म चला आया। िततली क इस अचानक अ व थता ने वा
तव म™ मुझे काफ िवचिलत कर िदया ह`। िपछले चौदह साल म™ म ने कभी भी
िततली को अ व थ होते नह देखा ह`। निस ग होम म™ भत f होने का सवाल तो
पैदा ही नह आ ह`। ब क म साल म™ दो-चार बार बीमार पड़ जाता । इसी
िसलिसले म™ डॉ टर चौधरी से घिन ता हो गई ह`।
िततली मेरी िजंदगी म™ सबक¸छ ह`। िततली क` िबना आज मेरी िजंदगी का कोई अ
त व नह ह`। इसी वजह से िततली क बीमारी ने मुझे ब त यादा िवचिलत कर िदया
ह`।
मुझे नह मालूम ह` िक िततली क इ छा क` िवपरीत लेडी डॉ टर से उसक जाँच
कराना उसे पसंद होगा या नह । लेिकन मुझे लगता ह`—हमार` कोई संतान न
होने क` कारण ही
िततली को यह मानिसक ेश झेलना पड़ा।
याद नह आ रहा ह` िक िकस िकताब म™ म ने पढ़ा था—संतान ही नारी को
मातृ व क` अना वािदत सुख से पुलिकत कर नारी व क मया’दा दान करता ह`, पूण’ता
दान करता ह`। इतने िदन से िततली क` उस सुख से वंिचत होने क वजह
से ही शायद कल ‘एक और कण’’ नाटक देखते समय उसक सुw मानिसक यातना
अचानक उभर आई। या इसी वजह से ही िततली अ व थ हो गई ह`?
अगर लेडी डॉ टर संतान पाने क` िलए कोई तरक ब बता सकती ह`, मुझे िव ास ह`
िक
िततली मुझसे भी यादा स होगी। कल ‘एक और कण’’ नाटक क` दौरान िततली
म™ जो बेचैनी म ने देखी ह`—मुझे यक न ह` अपनी संतान को पाते ही िततली
हमेशा क` िलए मानिसक शांित पा सक`गी। उसे संपूण’ आराम िमलेगा।

मु झे यह या हो गया ह`? मेरी जुबान य बंद हो गई? लग रहा ह` िक अपनी


सारी ताकत जुटाकर भी म एक भी श&द का उ ारण नह कर पा रही । मानो मेर`
अंदर से कोई मेरी जीभ को ख च रहा हो।
या यह मेर` पाप क सजा ह`? च र वान, सदा स पित क` साथ िम e याचार
करने क` प रणाम म™ ई र ने मुझे यह दंड िदया ह`?
नह , नह —म ने कभी भी ई र-भगवा , देवी-देवता, पाप-पु य पर यक न नह
िकया। अपनी बु -िववेक पर ही मुझे काफ भरोसा रहा, अभी भी ह`। लेिकन…
लेिकन…आज मुझे य यह एहसास हो रहा ह` िक मेरी जुबान बंद होना मेर` ही
पाप क सजा ह`?
नस’ ने ि प उतार दी ह`। शायद डॉ टर चौधरी ने उसे िनद´श िदया होगा। दािहना
हाथ काफ भारी लग रहा ह`। िहलाने म™ भी दद’ महसूस हो रहा ह`।
म सब क¸छ देख रही , सुन रही एवं समझ भी रही । सोचने म™ भी कोई
तकलीफ नह हो रही ह`। डॉ टर चौधरी ने जो क¸छ कहा, म ने सारी बात™ सुनी,
समझ भी गई। उनक बात का जवाब देने क म ने भरसक कोिशश क -लेिकन एक
भी बात म नह कर सक । अपनी अ e म चे ा क` प रणाम म™ ही मेरी आँख से
आँसू क धारा बह चली।
डॉ टर चौधरी ने कहा िक िकसी वजह से मेरी मानिसक उ vेजना कल बढ़ जाने
क` वजह से ही बात™ करने म™ मुझे तकलीफ हो रही ह`। मुझसे यादा और
िकसे मालूम होगा िक कल ‘एक और कण’’ नाटक देखते समय मेरी मानिसक
उ vेजना िकस ऊ चाई तक बढ़ गई थी।
मुझे नह मालूम, रानी e सा क` बेट` का अिभनय करनेवाले लड़क` को
देखकर म इतना बेचैन य हो उठी थी। जब रानी e सा अपने बेट` आयन को
अपनी छाती से लगाकर उसक` सार` बदन पर हाथ फ`रकर अपने यार भर` हाथ
का पश’ उसे दे रही थी, मेरा भी ब त जी चाह रहा था िक म भी उसे अपनी छाती
से लगा लूँ। आयन क` ललाट पर अपने ठ का eेह पश’ लगाने क` िलए म भी
बेचैन हो उठी थी।
देखो, सारी बात™ िकतनी साफ-साफ मुझे याद आ रही ह िफर भी म बात™ य
नह कर पा रही ? आज सबेर` आँख™ खोलने क` बाद जैसे ही म अंदाज
लगा सक थी िक म िकसी अ पताल या निस ग होम क` िब तर पर लेटी ई , तुर त
मुझे याद आ गया था िक कल रात को नाटक समाw होते ही म िथएटर हॉल म™
बेहोश हो गई थी।
सारी बात™ मुझे याद आ रही ह , िफर भी बात™ य नह कर पा रही ? या इस
संसार म™ इससे बड़ी और कोई तकलीफ ह`? कोिशश करने क` बावजूद भी
बात™ न कर सकने क तकलीफ से लगातार मेरी आँख™ गीली होती जा रही ह ।
अ छा, रानी e सा को आयन वापस िमला था, रानी क¸ ती कण’ को पहचान सक थी
एवं क¸ eे क` यु म™ कण’ क` िनधन पर िवलाप करती ई सभी क` सम e उ ह
ने वीकार भी
िकया था िक कण’ उनक ही क यकाव था क संतान ह`, उनक िजंदगी का पहला फल
— सूय’देव का दान….
नह म और सोच नह सकती । िफर तबीयत िबगड़ रही ह`। नस’….नस’, थोड़ा सा
पानी। थोड़ा सा पानी िपला दो मुझे।
गले से आवाज ही नह िनकल रही ह`। यास से मेरा कलेजा फटता
जा रहा ह`। सुमन? मेरा सुमन कहाँ ह`? या वह भी डॉ टर क` साथ
बाहर िनकल गया?
या नस’ मुझे पानी िपला रही ह`? ब त न द लग रही ह`। नस’….िस टर….
पानी….सुमन….थोड़ा सा पानी….आयन…e सा…कण’…।

ह` मधुसूदन, म यह क`सी फजीहत म™ फ स गई ? स ह साल पहले क क को


खोदकर यह िकशोर या िनकालना चाहता ह`? शु ांशुजी और मिणमाला ने तो हम™
वचन िदया था िक ब े को उसका प रचय कभी भी मालूम नह हो पाएगा।
िफर इस ब े को हमारा द तखत िकया आ ट प पेपर क`से िमल गया? या
वे दोन भगवा क` यार` हो गए ह`? ह` भगवा , म क`से अयन नाम क` इस
लड़क` को उसक ज मदा ी माँ क` बार` म™ बतलाऊ गी? ह` मधुसूदन, यह क`से
अजीब इ t तहान म™ तुमने मुझे डाल िदया? अगर अयन को उसक` न क`
जवाब नह िमलते ह , तो भगवा जाने, इस उ क` भाव म™ वह या कर बैठ`?
वे भी व थ नह ह । इस अजीबोगरीब थित म™ म उनक सलाह माँगू, इसका भी
कोई चारा नह ह`। दो साल से उनक` िब तर पर पड़` रहने और उनक` मानिसक िवपय’
त क हालत म™ रहने क` बावजूद या इस बार` म™ उनसे सलाह लेना उिचत होगा?
उनसे िबना पूछ` म क v भी या? िसवाय उनक`, मकान म™ तीसरा ाणी नह ह`,
िजससे सलाह-मशिवरा िकया जा सक`। इकलौती जो लड़क थी, उसक भी शादी इस
लड़क` क` पैदा होने से पहले ही हो चुक ह`।
मेर` मन क` अंदर सवाल का तूफान मच गया। म अयन क बात™ तो सुनती जा
रही , लेिकन िदमाग म™ ब त सारी बात™ च र काट रही ह ।
मेरी उ भी तो ब त हो चुक ह`। आिखर िकतना म सोचूँगी? कई साल पहले ही
मेरी उ साठ क कोठरी पार कर गई। मेर` पित मुझसे चार साल बड़` ह । इस समय
उनका तो बह v र चल रहा ह`। इस उ म™ सोचकर हम या िनण’य ले सकते ह ?
अयन क बात™ समाw होते ही म ने कहा, ‘‘बेटा, दो बज रह` ह । तुमने भोजन-
ओजन िकया ह`? अगर नह िकया हो तो पहले इस गरीब क` घर दो कौर खा लो,
िफर तुt हार` न का जवाब दूँगी।’’
उसने कहा, ‘‘मुझे नह मालूम मेरी ज मदा ी से आपका या र ता ह`,
लेिकन मेर` इस समय क माँ जैसी आपने जो eेह िदखाया, म इतने म™
ही स । आप मेर` िलए िफ e न कर™। `न से उतरने क` बाद म eान-भोजन
करक` ही आपक` पास आया । मेर` न का जवाब िमलते ही म यहाँ से चला जाऊ
गा। िफर म सोचूँगा क`से अपनी जननी से म मुलाकात क v और आगे या क v
।’’
म ने अयन से पूछा, ‘‘ `न से उतरने का मतलब या ह` बेटा? या आजकल
तुम लोग यहाँ पटना म™ नह रहते हो? आजकल तुम कहाँ रहते हो?’’
अयन ने कहा, ‘‘बाबूजी का तबादला कलक vे हो गया ह`, लेिकन उन सब बात को
जाने दीिजए। आप िसफ’ मुझे बताइए िक इस ट प पेपर पर जो क¸छ भी िलखा
ह`, या वह सही ह`?’’
पेपर क` नीचे क ओर अपनी तज’नी रखकर अयन ने पूछा, ‘‘अगर यह मेरी
जननी ह` तो मेर` िपता कौन ह ? वे इस व कहाँ ह ? उ ह ने मुझे दान य कर
िदया था?’’
थोड़ी देर चुप रहकर आयन ने कहा, ‘‘आपसे म झूठ नह बोलूँगा, य िक
आपक` साथ बात™ करने म™ मुझे अ छा लग रहा ह`। मेरी माँ और बाबूजी को
मालूम नह ह` िक म पटना
य आया । म उनसे झूठ कहकर पटना चला आया , य िक अचानक यह कागज
मेर` हाथ लग जाने से मेरा िदमाग चकरा गया। मेरी सारी समझ उथल-पुथल हो
गई।’’
म चुपचाप अयन क बात™ सुन रही थी। उसक` साथ बात™ करने म™ मुझे भी
आनंद िमल रहा था। पता नह य म उसक` िलए एक ममता अनुभव कर रही थी।
बेचारा इतने िदन तक
िज ह™ अपना माँ-बाप समझ रहा था, अचानक उसे मालूम आ िक उनसे उसका कोई
र ता नह ह`।
वाभािवक v प से उसक` मन म™ एक ऊहापोह क थित उ प हो गई? होगी।
इसिलए ही बेचारा स ाई जानने क` इरादे से िबना क¸छ सोचे-समझे पटना चला
आया।
अयन कहता जा रहा था, ‘‘बाबूजी क` तबादला होने क` बाद क पर हमारा सारा
सामान पटना से कलक vा प च गया। सामान प चने से पहले ही हम लोग
अपने रोजमर´ क` क¸छ सामान को लेकर कलक vा चले गए थे। क से
हमारी अलमारी वगैरह कलक vे क` लैट पर प चने क` बाद माँ, हमारा
नौकर और म सभी सामान को ढ ग से उठा रह` थे।’’
अचानक बीच म™ ककर अयन ने कहा—‘अगर तकलीफ न हो तो मुझे एक िगलास
पानी
िपलाएँगी?’
शम’ से जीभ िनकालकर म ने कहा, ‘‘िछह िछह, िकतनी बड़ी शम’ क बात ह`।
दोपहर क धूप म™ जलते ए तुम हमार` घर आ प चे और म तुtह™ पानी तक क`
िलए नह पूछी। माफ करना बेटा, िदमाग अब सिठया गया ह`। बैठो बेटा, म
अभी दूसरी मंिजल से पानी लेकर आई।’
म झट से कमर` से िनकल आई। वा तव म™ िकतनी शम’ क बात ह`। मामूली सौज
य भी म भूल चुक ।
दूसरी मंिजल म™ चढ़ते समय ही म ने सोच िलया िक उनसे अयन क` बार` म™
बताकर उनक राय भी जान लूँगी।
वह सोए नह थे। अयन क` िलए शरबत बनाते समय म ने दबी आवाज म™ उनसे
सारी बात™ कहकर उनका िवचार जानना चाहा, लेिकन उ ह ने क¸छ नह कहा।
मुझे दोबारा पूछने का साहस नह आ, य िक आजकल कोई भी बात एक बार से
अिधक पूछने पर वह ब त नाराज हो जाते ह , झ wाने लगते ह ।
म समझ नह सक िक वह मेरी बात™ समझ पाए िक नह ।
जब शरबत और पानी लेकर म कमर` से िनकल रही थी, उ ह ने कहा, ‘‘उस
लड़क` को उसक माँ का प रचय और पता बता दो-जैसा वह उिचत समझेगा वैसा
कर`गा। इस उ म™ हम और कोई झंझट-झमेले म™ फ सना नह चाहते ह ।’’
कमर` से बाहर िनकलते ही उ ह ने पुकारा, ‘‘सुनती हो, तुम ही अपने िदमाग से
काम करना।’’
शरबत का पूरा िगलास एक ही घूँट म™ पीकर और िफर थोड़ा सा पानी पीने क` बाद
शायद अयन को थोड़ा सा आराम िमला।
िफर वह कहने लगा, ‘‘माँ ने मेर` हाथ म™ कागज का एक पुिलंदा थमाकर अलमारी
म™ रख देने क` िलए कहा। लेिकन अलमारी म™ रखते समय वे सार` कागजात हाथ से
िफसलकर फश’ पर िगर पड़`। उ ह™ उठाते समय ही मेरी िनगाह इस ट प पेपर पर
पड़ी। बँगला म™ िलखा द तावेज देखकर मेरी उ सुकता ई। काफ कोिशश क` बाद
इतने अ प लेखन को पढ़कर म ि जतना समझ सका, उतना ही मेर` ि दमाग को
असंतुिलत करने क` िलए काफ था।’’
शायद अपने को सँभालने क` िलए ही अयन थोड़ी देर क गया।
एक लंबी साँस छोड़कर अयन ने िफर कहा, ‘‘म नह जानता िक माँ से या बाबूजी
से इस बार` म™ पूछने पर वे मुझे या जवाब देते। आपसे ही स ाई मालूम होगी, यह
सोचकर म माँ को और बाबूजी को झूठी कहानी सुनाकर पटना चला आया।’’
मेरी ओर देखकर अयन ने बड़` ही कातर वर म™ पूछा, ‘‘ या आप अब मेर` न
का जवाब दे सक` गी?’’
बड़ी उ सुकता से अयन ने अपनी िनगाह मेर` चेहर` पर िटका दी।
म ने उसक` चेहर` से अनुमान लगाया िक बेचार` क मानिसक उलझन उसे िकतना
पीि़डत कर रही ह`।
लेिकन म या कv ? म िबलक¸ल नह चाहती िक मेरी वजह से अयन क ज मदा
ी क` इस समय क गृह थी आग से झुलस जाए। शादी क` बाद वह िफर कभी पटना म™
नह आई, लेिकन नए साल एवं दुगा’पूजा क` अवसर पर वह िच याँ िलखा करती ह`।
शादी क` बाद उसक` पित से हमारी कभी मुलाकात नह ई। उनक` िमजाज क` बार`
म™ म क¸छ नह जानती
, हालाँिक अयन क अभािगन माँ जब भी िच ी िलखती ह`, उनक ब त शंसा करक`
ही
िलखती ह`। म सोच नह सक िक यिद अयन को उनक` पास भेज देती , तो या
ितिe या होगी।
यही सारी बात™ मेर` िदमाग को क¸र`द रही थी, िलहाजा म थोड़ी देर चुप रही।
िफर म ने अयन से कहा, ‘‘बेटा, यिद तुt ह™ मालूम हो जाए िक तुt हारी जननी और
जनक कौन थे और उ ह ने तुt ह™ य दान कर िदए थे तो या तुtह™ तस wी हो
जाएगी? सारी बात™ जानने क` बाद या उनसे िमलने क` िलए तुम उतावले नह
होगे?’
मेरी बात™ सुनकर अयन उदास िनगाह से मेरी तरफ देखता ही रह गया।
अपनी बात™ िबना बंद िकए म कहती गई—‘‘यिद उस व तुम इसी ट प पेपर क`
साथ तुt हार` ज मदा ी माँ से मुलाकात करने जाओगे, तो या उसक इस समय क
गृह थी म™
आग भभक नह उठ`गी? तुम तो काफ होिशयार लगते हो, या तुमने इस बार` म™ भी
कभी सोचा ह`?’’
मेरी बात™ ख म होते ही अयन उछलकर सोफा पर से खड़ा हो गया। मेरी उप थित
को भूलकर बुदबुदाते ए वह िखड़क तक गया। कमर` क` अंदर उसने क¸छ देर
चहलकदमी क ।
िफर सोफ` पर आकर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद आयन िफर सोफा छोड़कर िखड़क क` पास गया। थोड़` समय तक
िखड़क से आकाश क तरफ देखता रहा। क¸छ बुदबुदाते ए लौटकर वह क¸रसी पर बैठा।
अचानक दोन हाथ से वह अपने बाल को न चने लगा।
म चुपचाप अयन क सारी अ थरता को देख रही थी। लग रहा था िक उसने इस
ि कोण से सोचा नह था।
थोड़ी देर चुपचाप क¸रसी पर बैठ` रहने क` बाद एक मािम’क और असहाय मुसकान क`
साथ अयन ने कहा, ‘‘शायद आप ठीक ही कह रही ह । म ने सोचा नह था िक बात
ऐसी भी हो सकती ह`। म ने सोचा था िक शायद वह नई गृह थी बसा ही नह पाई ह
गी।’’
मुँह लटकाकर अयन चुपचाप बैठा रहा।
अचानक वह कह उठा, ‘‘अ छा, या म अपनी ज मदा ी माँ को िसफ’ एक बार देख
भी नह सकता ? म आपसे वादा करता िक म यह ट प पेपर उ ह™ नह िदखाऊ
गा।’’
बड़ी कोिशश से अपने आँसु पर रोक लगाते ए उसने कहा, ‘‘अगर वह मेर` बार`
म™ पूछ™गी तो म अपना वत’मान समय का प रचय ही दूँगा। उनक` साथ मेर` र ते का
िज e तक नह क v गा।’’
उसक आँख से मोती जैसे दो बूँद आँसू उसक गोद पर िगर`।
मुझसे और रहा नह गया। उसक` िसर को अपनी छाती से लगाकर उसक` आँसु
को अपने प wू से प छते ए म ने कहा, ‘‘रोते नह बेट`, पागल कह क`।’
मुझे याद ही नह रहा िक चंद िमनट पहले ही उससे मेरा प रचय आ ह`। थोड़ी सी
मेरी ममता देखकर, मेरा eेह अनुभव कर उसक` आँसु क` बाँध ट ट गए। उसक` आँसू
से मेरी छाती गीली हो गई। मुझे लगा िक वह अपने को सँभालने क भरसक कोिशश कर
रहा ह`।
उसे ढाढ़स देते ए म ने कहा, ‘‘बेटा, तेरी ज मदा ी माँ क बदिक मती ह`िक तेर` जैसे
इतने मधुर वभाववाले बेट` को वह अपनी छाती से लगा न सक । काश, तुझे वह पा
लेती तो शायद उसका कलेजा ठ डा हो जाता।’’
अयन ने अपने को सँभाल िलया। आँख™ प छते ए उसने कहा, ‘‘आप मेरी माँ क`
बार` म™ बताएँ। अचानक मुझे काफ दुःख महसूस आ, इसिलए म बेकाबू हो गया
था।’’
म ने उसक माँ क` बार` म™ कहना शुv िकया। बेचार` क इतनी याक¸लता मुझे भी
काफ सता रही थी। अपनी माँ क` बार` म™ सुनने क` िलए याक¸ल होकर जब कलक vे
से इतना दूर आया, म सारी बात™ उससे कह` बगैर चुप रह सकती ?
स बेर` जब म ने डॉ टर चौधरी से कहा था िक िततली भोर क` समय गाढ़ी न द म™
बड़बड़ाई तो वह काफ िचंितत िदखाई पड़` थे। हमारी वत’मान प र थितय क` साथ उन
बात का कोई तालमेल न बैठा पाने क` कारण म भी ब त पर`शान ।
डॉ टर चौधरी क तरह मेर` मन म™ भी सवाल का तूफान मचा आ ह`। सिन कौन ह`?
और यह िमंतीदी? िततली िकस चीज क यव था करने क` िलए कह रही थी?
सारी बात™ जैसे जासूसी कहानी क ह`। एक-आध ू िमल चुका ह`, लेिकन सारी
बात को जोड़कर िकसी घटना क जड़ तक प चा नह जा सकता ह`, य िक अभी
तक असली ू ही नदारद ह`। िलहाजा म िदशाहीन । शायद डॉ टर चौधरी भी
इसीिलए िचंितत ह । अगर उ ह™ क¸छ समझ म™ आया भी होगा तो उ ह ने मुझसे
क¸छ कहा नह ह`।
सवेर` ही डॉ टर चौधरी ने कहा था िक निस ग होम क` गाइनोकोलॉिज ट डॉ टर िमसेज
राय से िततली क जाँच करवाएँगे। शायद डॉ टर चौधरी को शक ह` िक मातृ व ाw
करने क सुw इ छा क` चलते ही िततली को यह मानिसक ेश ह`।
करीब यारह बजे डॉ टर चौधरी डॉ टर िमसेज राय क` साथ िततली को देखने क`
िलए क`िबन म™ आए। उ ह ने िततली से कहा था िक कभी-कभी ब त से vी रोग
क वजह से इस तरह क` िह ट क अट`क आ करते ह । इसिलए वह निस ग होम क`
गाइनोकोलॉिज ट डॉ टर
िमसेज राय से िततली क जाँच करवाकर आ त होना चाहते ह ।
डॉ टर चौधरी क बात को सुनकर िततली अचानक ब त चंचल हो उठी। बात™ करने
क काफ कोिशश करने क` बाद भी जब वह क¸छ समझा नह सक , तब उसने इशार से डॉ
टर चौधरी को समझाने क कोिशश क िक उसे कोई vीरोग नह ह`।
उस व ऐसा लग रहा था जैसे िततली क आँख क पुतिलयाँ आँख क` ग से बाहर
िनकल आएगी। गाइनोकोलॉिज ट का नाम सुनते ही िततली क इस अकारण उ vेजना
को देखकर मुझे भी थोड़ा सा आ w य’ आ था।
लेिकन डॉ टर चौधरी ने िततली क` इशार पर कोई गौर नह िकया। उ ह ने नस’ से डॉ टर
िमसेज राय को मदद करने क` िलए कहा। िफर डॉ टर राय से जाँच से
संबंिधत क¸छ ट` कल श&द कहकर मुझे बुलाकर वह बाहर िनकल आए। नस’ ने
अंदर से क`िबन क` दरवाजे बंद कर िदए थे।
कल शाम से िततली क हालत ने मुझे गहरी सोच म™ डाल िदया ह`। हमारी छोटी
गृह थी म™ हम एक दूसर` क` पूरक ह । तीसरा ऐसा कोई हमार` प रवार म™ नह ह`, जो
लगाम पकड़कर रख सक`।
िपछले चौदह साल म™ म ने पहले कभी ऐसी प र थित का सामना नह िकया,
िलहाजा मुझे अपने कत’ य क` बार` म™ भी समझ म™ नह आ रहा ह`। गृह थी क`
मामले म™ म िकतना
अनिभ , िकतना स™टीम™टल , पग-पग पर म यह महसूस कर रहा ।
कल शाम से म अपनी पोशाक तक नह बदल सका। कल से लेकर अब तक िसफ’
कई कप चाय क` अलावा म ने और क¸छ नह िलया ह`। इसिलए म ने सोचा िक जब
तक डॉ टर
िमसेज राय िततली क जाँच कर™गी। म घर से w`श होकर चला आऊ गा। ऑिफस
म™ भी इिv ला देनी ह`।
डॉ टर चौधरी से इन सारी बात को कहकर पािक ग लॉट से म अपनी गाड़ी
िनकाल ले आया।
लैट म™ लौटकर नहा-धोकर w`श हो िलया। द तर से फोन िमलाकर एम.डी. से
सारी बात™ कहकर म ने क¸छ रोज क छ¸?ी माँग ली।
एम.डी. ने कहा िक द तर म™ सभी िमसेज सेन क` िलए िचंितत ह । िजस
िकसी तरह क भी मदद क ज v रत हो, बेिझझक क । लेिकन म ने कहा िक
िफलहाल सब ठीक चल रहा ह`। सभी सहयोिगय को उनक सहानुभूित क` ि लए ध
यवाद देकर म ने फोन रख िदया।
हमार` क बाइ ड ह ड गणेश को क¸छ ज v री आदेश देने क` बाद क¸छ पए लेकर म
िफर निस ग होम लौट आया। जैसे ही मेरी गाड़ी ने निस ग होम क` अहाते म™ वेश
िकया, म ने देखा
िक डॉ टर िमसेज राय सीढ़ी से नीचे उतर रही ह`।
मुझे गाड़ी से उतरते देखकर डॉ टर िमसेज राय ने एक पल मेरी तरफ एकटक देखा और
िफर अपनी गाड़ी म™ बैठ गई । उनक गाड़ी क तरफ मेर` बढ़ने से पहले ही अचानक
वह गाड़ी टाट’ करक` तेजी से निस ग होम से िनकल गई ।
म समझ नह पाया िक डॉ टर िमसेज राय इस तरह से य पेश आई । या वह मुझे
िततली क` पित क` v प म™ पहचान नह सक Ė?
जब िततली क` पास डॉ टर चौधरी डॉ टर िमसेज राय को ले गए थे, तब तो म वहाँ
हािजर था। डॉ टर चौधरी ने उनसे मेरा प रचय भी करवा िदया था। तब?
या िततली को वा तव म™ कोई जिटल vी रोग ह`? इसी कारण डॉ टर िमसेज राय ब

िचंितत ह ? इतनी ज दी मुझे वह क¸छ कहना नह चाहती ह , इसीिलए उ ह ने मेरा
सामना नह करना चाहा? डॉ टर चौधरी से पूछना होगा िक माजरा या ह`?
क`िबन म™ आते ही देखा िक िततली आधी बेहोशी क हालत म™ सोई ई ह`।
नस’ ने कहा िक मरीज क हालत काफ िबगड़ जाने क` कारण डॉ टर चौधरी ने एक इ जे
शन लगा िदया ह`। तब से िततली सोई ई ह ।
िततली को िबना जगाए ईजीचेयर उसक बेड क` बगल म™ ख चकर म चुपचाप बैठ
गया। म जानना नह चाहता डॉ टर चौधरी ने िततली क बीमारी क` बार` म™ या डाय
नोिसस िकया ह`। म िसफ’ चाहता िक िततली ज द-से-ज द व थ होकर बात™
कर™ और हम™ िफर अपना
वाभािवक जीवन वापस िमले।
िपछले चौदह साल से मेर` िचंतन, सुख-दुःख, आराम-शांित हर बात पर िततली छाई ई
ह`।
िततली को छोड़कर मेरी िजंदगी क`सी होगी, म यह सोच तक नह सकता ।
िकतनी आ w य’ क बात ह`! चौदह साल पहले म िततली का नाम तक नह
जानता था। लेिकन बाबूजी क बात™ सही िनकल । वह कहते थे, ‘‘नसीब बदला नह
जा सकता ह`।’’
िबलक¸ल सही बात ह`। अगर मेर` नसीब म™ नह होता तो अचानक िततली क` िपता
से मेरा प रचय भी नह होता और न िततली क` साथ मेरी शादी होती।
िजस साल हमारी शादी ई थी, ठीक उसक` दो साल पहले िशवराि क` ि दन
गंगाeान करने और क`दारजी और िव नाथजी पर फ ल-माला चढ़ाने िततली क`
िपताजी बनारस आए थे। मेर` साथ उनका कोई प रचय नह था।
गंगाeान करने क आदत मेरी ब त पुरानी ह`। िशवराि क` िदन सबेर` नहाने से
पहले क`दारघाट म™ एक बुज’ पर बैठकर दो त क` साथ म ग प लड़ा रहा था। सोचा था
िक घाट पर भीड़ थोड़ी हलक हो जाने पर हम पानी म™ क द पड़™गे।
अचानक ‘बचाओ-बचाओ’ का शोर सुनकर हम लोग ने देखा िक करीब पचास साल का
एक ौढ़ पानी म™ ड ब रहा ह`। म ने अपना ओढ़ना और च पल बुज’ पर छोड़कर
पानी म™ छलाँग लगाकर उ ह™ पानी से बाहर िनकाला।
इतनी देर म™ उ ह ने काफ पानी पी िलया था। िकनार` लाने क` बाद सीढ़ी पर उ ह™
िलटाकर थोड़ी सी कोिशश करते ही उ ह ने काफ पानी उगल िदया। थोड़ी देर बाद
थोड़ा सा आराम पाते ही उ ह ने मेर` दोन हाथ को पकड़कर कहा, ‘‘बेटा तुमने आज
मुझे जीवन-दान िदया ह`। म तुt हारा कज’ कभी नह उतार पाऊ गा।’’
उस व म चौबीस-पचीस साल का एक फ¸त f ला नौजवान था। उनक बात क` जवाब
म™ कहा था, ‘‘नह , ऐसी कोई िवशेष बात नह ह`। इस घाट पर अकसर ऐसा होता ही
रहता ह`। क`दारघाट क सीि़ढयाँ ब त ही िफसलनदार ह । तैरना न जानने पर कभी भी
दुघ’टना घट सकती ह`। आपको ड बते ए देखकर म ने बचा िलया, यह कोई ब त बड़ा
काम नह ह`।’’
लेिकन वह यथाथ’ v प से स w न आदमी थे। म उ ह™ जानता नह था।
मेरी बात™ सुनकर उ ह ने कहा था, ‘‘तुम मेर` बेट` जैसे हो। अगर तुम बुरा न मानो तो
एक बात क । म तुt हार` माता-िपता से एक बार िमलना चा गा। िज ह ने तुt हार`
जैसे यो य पु को ज म िदया ह`, उनका दश’न करना िव नाथ-अ पूणा’ दश’न क
अपेeा कम पु य का काम नह होगा। एक बार तुम मुझे उनसे िमला दो।’’
उनक बात™ सुनकर मेर` आ w य’ का िठकाना नह रहा। सोचा था—ऐसी बात™तो म
ने कभी नह सुनी। म ने उ ह™ उनका िवचार यागने क` िलए काफ मनाया, लेिकन वह
अड़` ए थे। जबरद ती ही मेर` साथ मेर` घर आ गए।
बाबूजी घर पर ही थे। घर प चते ही बाबूजी को देखकर उ ह™ ब त आ w य’ आ।
उ ह ने बाबूजी क` पैर छ कर कहा, ‘‘सर, मेरा सौभा य था िक काशी िह दू िव
िव ालय म™
इ जीिनय र ग पढ़ते व क¸छ िदन म आपका छा रहा। यह मेरी खुशिक मती ह` िक अस´
बाद आज िफर से आपक` दश’न ए।’’
उन िदन बाबूजी क काफ उ हो चुक थी। करीब दस साल पहले उ ह ने अवकाश ले
िलया था। उस स w न क बात को सुनकर उनक ओर थोड़ी देर तक वह देखते रह`,
िफर उ ह ने पूछा था, ‘‘िकस साल म™ आप पढ़` थे?’’
वह स w न तीस साल पहले क` इितहास म™ लौट गए। उ ह ने कहा था, ‘‘नाइनटीन
िस सटी क` बैच म™। म हॉ टल म™ रहता था। मनुज™ दास गुwा।’’
अचानक बाबूजी क` चेहर` पर म ने एक खुशी क झलक देखी। उ ह ने कहा, ‘‘हाँ, हाँ,
अब याद आया। तुt हारा नाम मुझे बड़ा अजीब सा लगा था, शायद इसिलए आज भी म भूल
नह सका। अर`, उस साल तुt ह को गो ड मेडल िमला था न!’’
एक बार िफर से बाबूजी क` पैर छ कर उ ह ने आwय’ से कहा था, ‘‘जी हाँ।
लेिकन सर, तीस साल पहले क बात आपको अभी भी याद ह`? बड़ी ताwुब क बात
ह`।’’
िफर ब त सारी बात™ करने क` बाद उ ह ने बाबूजी से कहा था, ‘‘आज इस नौजवान
ने मुझे जीवनदान िदया। अगर वह आज मुझे नह बचाता तो शायद आपसे मेरी
मुलाकात नह हो पाती। म तो इस नौजवान क` माता-िपता क` दश’न करक` अपना
आभार य करने और कहने आया था िक वा तव म™ ऐसे पु पर उ ह™ नाज होना
चािहए।’’
माँ और बाबूजी चिकत हो गए थे। वे समझ नह पा रह` थे िक म ने कौन सा ऐसा नेक काम
िकया िक दासगुwाजी मेरी इतनी शंसा कर रह` ह ।
उनक जान म ने क`से बचाई, यह िव तार से वण’न करने क` बाद उ ह ने बाबूजी से
कहा था, ‘‘आजकल ऐसे परोपकार करनेवाले लड़क` िमलते कहाँ ह ? सर, म क पना
तक नह कर सका था िक सुमन आप ही का बेटा ह`। रएली ही इज दी वदf स
ऑफ ए वदf फादर।’’
वह थमना ही नह चाहते थे। काफ देर तक उ ह ने बाबूजी से बात™ क Ė। उसी व
मुझे मालूम आ था िक इ जीिनयर बनने क` बाद वह अपने घर लखनऊ वापस चले गए थे।
िफर वह पर उ ह ने एक छोटा फ`न का कारखाना थािपत िकया था।
धीर`-धीर` कारखाना बढ़ता गया। काफ धन वह कमा चुक` ह , लेिकन अब वह धन-
दौलत से छ¸टकारा पाना चाहते ह । छ¸टकारा चाहने पर भी, उ ह™ छ¸टकारा िमल नह
रहा ह`, कारण उनका एकमा बंधन ह`—एकलौती बेटी िततली। बेटी क शादी होते ही
वह सारा बंधन
यागकर शांित से आिखरी िदन िबता सकते ह ।
शु आत ऐसी ही ई। िफर दूसर` साल से ही अपनी बेटी क` साथ मेरा र ता तय करने क`
िलए वह बाबूजी से िम त करने लगे।
शुv म™ बाबूजी ने इनकार कर िदया था। िततली क ज मक¸ डली से मेरी ज मक¸ डली
का
िमलान उ ह ने िकया था और इनकार कर िदया था।
उ ह िदन बाबूजी ने माँ से कहा था, ‘‘तुt हार` बेट` क` नसीब म™ प नी क
िकसमत से ही धन ह`। मेर` हजार बार इनकार करने क` बावजूद यह शादी होकर रह`गी य
िक नसीब बदला नह जा सकता ह`, लेिकन क¸छ काँट` ज v र रह™गे।’’
अंत म™ िततली क` िपताजी ने मेर` बाबूजी को िपघला िलया था। उस व म
बनारस क` ही एक कॉलेज म™ इकनॉिम स पढ़ाता था। बेहतर नौकरी क तलाश म™
म िभ -िभ जगह पर दर वा त डालता रहा।
अ यापन का पेशा मुझे पसंद नह था। िसफ’ बेकार बैठ` रहने से अ यापन करना बेहतर
ह`, यह सोचकर ही म एक कॉलेज म™ पढ़ाता था।
मेर` सुरजी से प रचय होने क` दो साल क` अंदर मेरी शादी ई। दूसर` ही साल
‘ड`नहम एंड क पार’ क नौकरी पाते ही म कलक vा चला आया था।
मेरी तर शुv ई। इसी िसलिसले म™ आज इस म टीनेशनल क पनी क` प &लक
रलेशंस ऑिफसर क` पद तक म प च गया। वा तव म™ प नी क िक मत से ही
मुझे धन-दौलत
िमली।
िसफ’ नौकरी क बदौलत नह , दूसर` रा ते से भी मुझे काफ धन िमलता गया। शादी
क` थोड़` िदन बाद ही सुरजी िदल क` दौर` क वजह से गुजर गए। गुजरने से पहले ही
उ ह ने गौतम बु माग’ का िवशाल भवन, ब क का क¸ल िफ ड िडपॉिजट,
क`शवगैरह सब हमार` नाम से वसीयत कर िदया था। उनक` गुजरने क` बाद वसीयत
का ोबेट िमलते ही हम दोन क` खाते म™ कई लाख पए जमा हो गए। इसक`
अलावा शादी क` व िततली क` नाम से उ ह ने दो लाख पए जमा कर िदए थे।
िलहाजा बाबूजी क भिव e यवाणी, िक प नी क िक मत से धन-लाभ होगा, एकदम सही
िनकली। अभी तक काँट` का पता तो नह चला, लेिकन बाबूजी क गणना कभी गलत नह
ई ह`। मुझे नह मालूम क`से काँट` क चुभन मेर` नसीब म™ ह`।
जैसा भी हो मुझे परवाह नह ह`। म हमेशा एक पो स’मैन रहा—अभी भी पो स’मैन
प रट बनी ई ह`, भले ही उ चालीस पार कर गई ह`। म जानता , हर तरह क` काँट`
क चुभन बरदा त करने क ताकत मेर` पास ह` और हमेशा ही रह`गी।
कई बार म ने बाबूजी से पूछा भी था िक क`सा काँटा मेर` नसीब म™ ह`। उ ह ने मुझे
कभी नह कहा। ब क वह कहते थे, ‘‘जो ह` सो ह`। मुझे यक न ह` िक वा तिवकता को
इनकार करने वाले बेवक फ तुम नह हो।’’
आज बाबूजी नह ह । माँ भी कई साल ए वग’ िसधार गई । मुझसे करीब दस साल
बड़ी एक दीदी अपने पित और ब क` साथ मुंबई म™ ह । जीजाजी एयरफोस’ म™ थे
—हाल ही म™
रटायर ए ह । अब मुंबई ही उन लोग का िनवास थान ह`। कभी-कभार मुलाकात
होती रहती ह`।
बनारस क` साथ भी अब मेरा कोई संबंध नह ह`। लखनऊ का मकान बेचकर दो
साल पहले हम दोन ने सदान’ एवे यू का लैट पसंद करक` खरीदा।
लेिकन िततली क जुबान अगर हमेशा क` िलए बंद हो जाती ह`, मेरी िजंदगी तो
एकदम सूनी सी हो जाएगी। तब तो मुझे भी एक गूँगे जैसे िदन गुजारने पड़™गे। अक`ले म
िकतनी बात™ क v गा?
मुझे याद नह ह` िक िकतनी देर तक बैठ`-बैठ` म यह सारी बात™ सोचता रहा।
िततली क ओर भी म ने गौर नह िकया था। अचानक उसक ओर िनगाह पड़ते ही
देखा िक वह मेरी ओर एकटक देख रही ह`।
ईजीचेयर से उठकर म उसक` पास प चा। पूछा, ‘‘क`सी हो िततली?’’
एक मायूस मुसकान क` साथ िततली ने मेर` दोन हाथ को अपनी हथेिलय म™ ले
िलया। अचानक उसक मुसकान रोने म™ बदल गई। वह फ ट-फ टकर रोने लगी।
िततली क` इस मानिसक बदलाव को देखकर म अवाक˛ रह गया। अचानक िततली म™
ऐसा प रवत’न य हो गया? मेर` हाथ को पकड़कर वह या कहना चाहती ह`?

ल गातार दो िदन से निस ग होम क` ि ब तर पर पड़`-पड़` और डॉ टर चौधरी क`


इलाज से मुझे आराम तो काफ िमला ह`, िफर भी मुझे समझ म™ नह आ रहा ह`
िक म बात™ य नह कर पा रही । डॉ टर साहब का कहना ह`, ‘‘मनोबल बढ़ाइए।
बोलने क कोिशश क रए, देिखएगा िक आप बात™ कर पा रही ह ।’’ म तो जी-तोड़
मेहनत कर रही , लेिकन िफर भी गले से वर नह िनकल रहा ह`।
आिखर ऐसा य आ? सुमन से ब त सारी बात™ करने का जी चाह रहा ह`। देख रही
िक मेर` ठ िहल रह` ह , लेिकन गूँगे भी तो ठ िहला सकते ह । िजस कार वे हजार
यास क` बावजूद भी बात™ नह कर पाते, मेरी भी हालत वैसी ही हो गई ह`।
करीब यारह बजे जब डॉ टर चौधरी गाइनोकोलॉिज ट डॉ टर िमसेज राय को लेकर आए
ए थे, म ने उ ह™ समझाने क िकतनी कोिशश क िक मुझे कोई vी रोग नह ह`,
लेिकन वे समझ नह सक`। डॉ टर चौधरी ने कहा िक कभी-कभी जिटल vी रोग
क वजह से
िहसट रक अट`क होने क` बाद ब त सी औरत™ बेहोश हो जाती ह ।
िकतनी मेहनत म ने क थी, डॉ टर चौधरी को यह समझाने क` िलए िक मुझे ऐसा क¸छ नह
आ ह`। म उनसे कहना चाहती थी िक मेरी मानिसक थरता न होने का मूल कारण
‘एक और कण’’ नाटक म™ e सा क असहाय दशा और आयन क` ित उनका वा स य
दश’न ही रहा। लेिकन मेर` क ठ से एक भी वर न िनकलने क वजह से उ ह™ मेरी बात
समझ म™ नह आई। डॉ टर िमसेज राय क` साथ मुझे छोड़कर वे सुमन क` साथ बाहर
चले गए।
डॉ टर राय नस’ क मदद से मेरी जाँच करने क` िलए मेर` पास प च गई थ । म ने िब
तर से उतरकर भाग जाने क कोिशश क थी, य िक मुझे िन w त िव ास हो
गया था िक अब सुमन से म क¸छ िछपा नह सक गी।
म समझ गई थी िक डॉ टर राय मेरी हरकत से काफ िव मत हो गई थ । लेिकन वह
और नस’ मुझे पकड़कर िब तर पर जबरन सुला रही थ । नस’ क` हाथ से बचकर, िब
तर छोड़कर
िफर से म ने भागने क कोिशश क थी, लेिकन कमजोरी क` चलते म उसक` साथ काफ देर
तक जूझ नह पाई थी। डॉ टर राय ने मेर` दोन घुटन को दबाकर जबरन मुझे िलटा
िदया था।
अंत म™ म ने हार मान ली थी। थककर म ने अपना यास छोड़ िदया था। जब डॉ
टर राय हाथ म™ ल&स पहनकर मेरी ओर बढ़ आई थी, मुझे लगा था िक वह एक डॉ
टर नह खूनी ह`। मेरी गृह थी क सुख-शांित क ह या करने क` िलए वह धीर`-धीर` मेरी
ओर बढ़ रही ह`।
मुझे नह मालूम करीब दस िमनट तक मुझे तकलीफ देकर उ ह ने िकस तरह क जाँच
क थी। जाँच करने क` बाद ल स खोलकर, बाथ v म से हाथ धोकर मेरी ओर एक
अजीब
िनगाह से देखती ई उ ह ने पूछा था, ‘‘ या बात ह` िमसेज सेन, जाँच करवाने म™
आपको इतनी अिन छा, इतना एतराज य था?’’
म एकटक डॉ टर राय क ओर देख रही थी। या उ ह™ क¸छ समझ म™ नह आया? या म
िनरथ’क भयभीत थी? अगर म सुमन से क¸छ नह कहती , तो या सुमन को कभी पता
नह चल पाएगा? मुझे काफ राहत िमली थी।
लेिकन िकतनी देर क` िलए वह राहत थी? डॉ टर राय क अगली बात से ही मुझे
मालूम हो गया था िक उनक` िलए अब अनजान क¸छ भी नह ह`।
डॉ टर राय ने मुझसे पूछा, ‘‘िकतने साल पहले आपको संतान िमली थी िमसेज सेन?
अगर उस व आप कायदे से इलाज करवा लेत तो अब तक आपक` कई और ब
े हो गए होते।’’
एक ध ` से नस’ को दूर हटाकर म िब तर से क द पड़ी। डॉ टर राय क` हाथ
को पकड़कर म पागल क तरह िच wा उठी, ‘‘ टॉप इट! टॉप इट।’’
लेिकन मेर` गले से आवाज न िनकलने क` कारण डॉ टर राय मेरी बात™ समझ न
सक Ė। ब क मेरी पागल क तरह श -सूरत और यवहार देखकर नस’ झट से
क`िबन से
िनकलकर डॉ टर चौधरी को बुला ले आई।
म अपनी आँख™ लाल करक` उस व भी डॉ टर राय को धमक दे रही थी।मुझे याद
नह ह` िक म उस व उनसे क`से पेश आई थी, य िक डॉ टर चौधरी और दो तीन
नस ने
िमलकर मुझे जबरन िब तर पर सुला िदया था।
डॉ टर चौधरी ने मुझे एक सुई लगा दी, िफर मुझे और क¸छ याद नह , म सो गई थी।
जब मेरी न द खुली, म ने देखा िक सुमन ईजीचेयर पर बैठ`-बैठ` सीिलंग क ओर
ताककर गहर` सोच म™ ड बा आ ह`। म ने उसे बुलाने क कोिशश क , लेिकन बुला न
सक । जैसे ही उसक िनगाह मुझ पर पड़ी, ज दी से वह मेर` पास आ गया।
म ने उसक` दोन हाथ को पकड़कर अपनी ओर भ च िलया था। म ने कहना चाहा,
‘‘मुझे माफ कर देना सुमन, मुझे माफ कर देना। कई बार म ने तुमसे सारी बात™ कहनी चाह
, लेिकन शम’ से मेर` ठ बंद हो जाते थे। सुमन, तुम अपनी यारी िततली को e मा
करना।’’
म ने कहना चाहा, ‘‘आयन क` बार` म™ जानने क` बाद राजा युथास ने रानी e सा को
माफ कर िदया था। सुमन, या तुम वैसा नह कर सकते हो? तुम तो एक पो
स’मैन थे।
पो स’मैन तो काफ उदार होते ह । तुम तो िततली से यार करते हो—उसे माफ नह
कर सकोगे?’’
इतनी सारी बात म™ से एक भी म कह नह सक । गूँगी औरत क तरह ठ िहलाते-ि
हलाते थककर म फफक-फफककर रो पड़ी। सुमन मेर` इस मानिसक प रवत’न को नह
समझ सका। वह ह ाब ा-सा मेरी ओर देखता ही रह गया।
इसक` बाद सुमन मेर` बाल पर काफ देर तक हाथ फ`रता रहा। फल का रस िनकालकर
खुद उसने मुझे िपलाया। मेर` िब तर क` बगल म™ बैठकर लगातार वह बात™ करता
गया, मुझे ढाढ़स देता गया, लेिकन इसक` बदले म™ म सुमन को क¸छ भी नह दे पाई,
यहाँ तक िक एक बात भी नह कर सक ।
सुमन क` यार क` बदले म™ म उसे क¸छ भी नह दे सक । अगर म बात™ कर सकती
थी, तो शायद उसे मानिसक पीड़ा म दे सकती थी। शायद मेरी बात™ सुनकर सुमन
पीड़ा से छटपटाता, लेिकन मुझे यक न ह` िक उसक` ठ पर मुसकान हमेशा क तरह
बनी रहती।
िदन भर सुमन निस ग होम म™ ही रहा। िकतनी बार म नेपूछना चाहा, ‘‘सुमन, िपछले
दो िदन से तुम ने ठीक से भोजन तो िकया ह`? या आज तुमने छ¸?ी ली ह`? डॉ टर
चौधरी मुझे कब छ¸?ी द™गे?’’ हजार सवाल म पूछना चाहती थी, लेिकन एक भी म कर
नह सक । इशार से बात™ करने म™ या कोई आनंद भी ह`?
जब भी म ने इशार` से क¸छ कहने क कोिशश क सुमन या तो पानी का िगलास या
फल का रस या और क¸छ लेकर हािजर हो गया। हर पल वह एक ही धुन म™ ह` िक क`से
मुझे थोड़ा सा आराम िमले। क`से म सुमन को अपनी बात™ समझाऊ ?
शाम क` व डॉ टर चौधरी ने नस क मदद से मुझे एक और कमर` म™ िभजवा
िदया। सुमन भी वह था। सुमन ने कहा, ‘‘डॉ टर बसु म w क तुt हारी बोलने क श
को वापस लाने क` िलए तुt हारा इलाज कर™गे। उनक बात™ मान कर चलना—तुम
बात™ कर सकोगी।’’
डॉ टर बसु म w क ने सुमन एवं नस को िवदा कर िदया। उनक` साथ अंदर क
एक कोठरी म™ प चकर उनक` िनद´श क` अनुसार बात™ करने क म ने ब त
कोिशश क , लेिकन नह कह सक । िफर डॉ टर बसु म w क ने कहा, ‘अब मुझसे
ताकत लेकर आप बात™ कर™।’’
उ ह ने मुझे एक सुई लगाई। डॉ टर क बात™ सुनते-सुनते मुझे न द लग रही थी, मुझे
नह याद ह` िक िफर म ने बात™ क ह या नह ।
इस व लगता ह` आधी रात का समय ह`। चार ओर शांत ह`। क`िबन म™ एक बेडल प
जल रहा ह`। सुमन ईजीचेयर पर ही सो गया ह`। पता नह य िब तर पर वह नह सोया ह`?
म तो अपने िब तर पर ही लेटी ई , लेिकन डॉ टर बसु म w क क` कमर` से म यहाँ
आई क`से?
म ने अयन से कहा, ‘‘तुम अपने माँ-बाप क` बार` म™
जानना चाहते हो! म तुtह™ वचन
भी दे चुक िक म तुtह™ सारी बात™ बताऊ गी, लेिकन कहाँ से शुv क v समझ
म™ नह आ रहा ह`।’’
ब त होिशयार लड़का ह`— अयन। उसने कहा, ‘‘आपक पर`शानी म महसूस कर सकता
। ट प पेपर पढ़कर म ने अंदाज लगा िलया ह` िक मेरा ज म भी कण’ क` ज म जैसा धुंध म™
िछपा ह`।’’
संकोच से दबकर म ने कहा, ‘‘चूँिक तुt हारी माँ क यह ल wाजनक कहानी हम दोन
और तुt हार` इस समय क` माँ-बाप क` अलावा और कोई नह जानता, इसिलए तुमसे सारी
बात™ क`से क ?’’
िखड़क से बाहर क ओर उसने थोड़ी देर देखा। अचानक उसने आगे कहा, ‘‘क¸ ती ने
हमेशा कण’ क` बार` म™ िचंतन िकया, अ v परीe ण क` िदन अचानक कण’ को
देखकर वह बेचैन हो उठी थी और अंत म™ कण’ क` िनधन क` बाद उसने सारा भेद
खोलकर िवलाप भी
िकया था। महाभारत म™ म ने पढ़ा था िक क¸ ती ने वयं कण’ क` पास प चकर अजु’न क
ाण
िभ eा माँगी थी, लेिकन कण’ क` मन म™ जो अतृw आकांeा और हमेशा मातृeेह
से वंिचत रहने क जो वेदना रही, उसका कोई खास वण’न कह नह िमला।’’
‘‘माँ ने मुझे महाभारत बड़` गौर से पढ़ने क` िलए कहा था, हालाँिक उनक` उ े य क`
बार` म™ मुझे मालूम नह ह`। चाह` जो भी रहा हो, कण’ क` च र ने मुझे काफ
भािवत िकया। उसक` च र क िवन ता, उसक` य व क` साथ िमली ई अह कार
क झलक, उसक` पौ ष ने वाकई मेरा मन मोह िलया ह`।’’
म चुपचाप अयन क बात™ सुन रही थी। उसक उ सोलह-स ह से अिधक नह
होगी, लेिकन उसक बुजुग’ जैसी बात™ और भावुकता ने उसे और अिधक आयु का बना
िदया ह`।
एक मायूस मुसकान क` साथ अयन ने कहा, ‘‘कागज मेर` हाथ तक प चने से पहले म
कभी क पना तक नह कर सका था िक कण’ जैसा म भी अपनी पैदाइश क` समय से अपनी
माँ से िबछ¸ड़ा आ । अब मुझे जब सारी बात™ मालूम हो चुक ह , मेरी माँ क` बार` म™
िजतना भी कड़वा-सच य न हो, म सुनने क` िलए तैयार । शायद म अपने नसीब
को कोसता र गा, िफर भी आप मुझे सारी बात™ किहए, म सुनूँगा।’’
काफ िहचिकचाहट क` साथ म ने कहा, ‘‘बेटा, तुt हारी ज मितिथ तो अब तुtह™
मालूम हो ही गई ह`। अब समझो, तुt हार` ज म क` करीब तीन साल बाद तुt हारी माँ क
शादी ई ह`, लेिकन वह शादी तुtहार` ज मदाता िपता क` साथ नह ई ह`। िकसी दूसर`
क` साथ शादी ई।’’
‘चूँिक तुt हारी माँ क यह ल wाजनक कहानी, तुt हार` पैदाइश क बात™ िसवाय
हम दोन और तुt हार` इस समय क` माँ-बाप क` अलावा और िकसी को मालूम नह थी,
इसिलए तुमसे सारी बात™ करने म™ शम’ क` मार` म िझझक रही थी। लेिकन तुमने
कण’ और क¸ ती का िजe
करक` इस बात को एक-दूसर` तर तक प चा िदया। तुtहार` इस िवwेषण ने ही मुझे
अपनी शम’ यागने क` िलए िववश कर िदया बेटा।’’
िसर झुकाकर अयन मेरी बात™ सुन रहा था। मेर` चुप होते ही उसने िसर नीचा
िकए ए ही कहा, ‘‘आप बेिझझक सारी बात™ किहए।’’
म ने कहा, ‘‘तुtहार` ज म क` बाद ही तुtहारी माँ अपने मायक` चली गई थी। तुtहार`
नानाजी तुt हार` बार` म™ क¸छ भी नह जानते थे। वह तुt हारी माँ क शादी क` इ तजाम
करने म™ जुट गए और तुtहार` ज म क` करीब तीन साल बाद उ ह ने उसक` हाथ
पीले कर िदए। बेटी क` ससुराल भेजने क` क¸छ िदन बाद वह गुजर गए, लेिकन मरते व
तक उ ह ने तुt हार` बार` म™ नह जाना। अगर उ ह™ तुt हार` बार` म™ मालूम होता तो
वह कभी भी अपनी बेटी क शादी नह करते, य िक उनक` जैसे ईमानदार लोग शायद ही
पैदा होते ह ।’’
अयन मेरी बात™ चुपचाप सुनता जा रहा था। मेर` कते ही वह कह उठा, ‘‘इसक` बाद या
आ मौसीजी? आप मेर` िपता क` बार` म™ किहए।’’
म च f क उठी। म तुर त समझ गई िक उसक` माँ क` िपता को मामा कहने से वह समझ
गया
िक उसक माँ मेरी, ममेरी बहन ह`।
म ने आगे कहा, ‘‘बेटी क शादी से पहले मामाजी काफ अ व थहो गए थे। हम
दोन पटना से उ ह™ देखने गए। तुt हारी माँ ने हम™ पहले ही सावधान कर रखा था, तािक
हम तुt हार` बार` म™ मामाजी को क¸छ न बताएँ। चूँिक मामाजी को एक हलका सा िदल
का दौरा पड़ चुका था, िलहाजा तुt हारी माँ को आशंका थी िक तुt हार` बार` म™ अगर
उ ह™ जानकारी हो जाए तो शायद वह चल बस™गे।’’
‘‘हम भी तुt हार` बार` म™ कहना नह चाहते थे, य िक हम™ यक न था िक हमने
तुtह™ िजनक` हाथ स f प िदया ह`, वे तुt ह™ अपनी संतान जैसा ही यार कर™गे,
तुt हार` बार` म™ सोच™गे। य बेटा, हमने गलत तो नह सोचा था?’’
अयन ने िसर िहलाकर कहा, ‘‘जी नह , इस बार` म™ मेरी कोई िशकायत नह
ह`, य िक तीन िदन पहले तक म भाँप ही नह सकता था िक वे मेर` सगे माँ-बाप नह ह ।
अगर यह ट प पेपर मुझे नह िमला होता तो शायद िजंदगी भर मुझे इसका एहसास भी नह
होता और न इस स य क` बार` म™ मुझे जानकारी होती।’’
एक लंबी साँस छोड़कर म ने कहा, ‘‘म ने बार-बार शु ांशुजी और मिणमाला से कहा था—
िलखा-पढ़ी करने क या ज v रत ह`? मेरी बहन कभी भी अपने बेट` को माँगने नह
आएँगी, लेिकन उनका कहना था, ‘‘हम आपक बात पर यक न करते ह , लेिकन मान
लीिजए, अगर वह कभी वापस चाह`गी तो या होगा? िलखा- पढ़ी हो जाने से वह िफर
कभी दावा तो कह कर पाएगी?’’
‘‘म इस तक’ का जवाब नह दे पाई थी। मिणमाला ने कहा था, ‘‘िमंती दीदी, म ब े
को यक नन दूध नह िपला सक गी, लेिकन तह`िदल से eेह और लाड़- यार से इसे
बड़ा तो क v गी न। अगर इसक माँ उस व दावा कर`गी तो म क`से अपने जोड़` ए
कलेजे को उसक` हाथ दे दूँगी? तुtह कहो न दीदी?’’
त&ध होकर अयन मेरी बात™ सुन रहा था। मेरी आिखरी बात को सुनकर, पता नह
य , वह जोर से काँप उठा।
म ने कहा, ‘‘मुझे तुt हार` माता-िपता ने वचन िदया था िक वे इस ट प पेपर को तुमसे
िछपा कर रख™गे। तुt ह™ कभी भी इसक` बार` म™ मालूम नह हो पाएगा। जैसे ही तुम इ
स साल क` हो जाओगे, वे इस कागज को जला डाल™गे।’’
आयन चीख उठा। उसने कहा, ‘‘म ब त ही खुशिक मत िक यह कागज मुझे यह
िमल गया। चार साल बाद मुझे मालूम ही नह हो पाता िक कौन मेरी माँ ह` और म
कौन ? हम दोन का र ता हमेशा ही अनजान रह जाता। कण’ क` कवच जैसा यह ट प
पेपर ही मेरा अिभ ान ह`।’’
थोड़ा सा ककर अयन ने पूछा, ‘‘मौसीजी, आपको मेर` िपता क` बार` म™ या
मालूम ह`, मुझे बताइए।’’
अचानक दूसरी मंिजल पर अयन क` मौसाजी पुकार उठ`, ‘‘सुनती हो, तुम लोग ऊपर क
मंिजल म™ चले आओ। उस ब े को भी बुला लो।’’
म अयन क` साथ ऊपर क मंिजल म™ चली आई।

न िस ग होम म™ मेर` प चने क` थोड़ी देर बाद डॉ टर चौधरी मेर` च™बर म™ आकर
अपने नए पेश™ट िमसेज सेन क` बार` म™ मुझसे कहा था। म ने िमसेज सेन क अ व
थता क` बार` म™
िव तार से सुना। डॉ टर चौधरी ने अपनी राय भी मुझे बता दी थी। उ ह ने कहा था िक
शायद अचानक िमसेज सेन क एडज टम™ट िडस ऑड’र हो जाने क` कारण उनक
वा श लुw हो गई ह`।
इसिलए डॉ टर चौधरी ने मुझसे अनुरोध िकया ह` िक म िमसेज सेन क अ छी तरह
जाँच करक` अपनी रपोट’ उनक` पास पेश कर दूँ। वह समझते ह िक मानिसक
िचिक सा क` ारा ही िमसेज सेन को उनक लुw वा श वापस हो सकती ह`, य
िक उनक शारी रक अ व थता बल नह ह`।
डॉ टर चौधरी क` अनुसार िजस हालत म™ िमसेज सेन बेहोश हो गई थ , उस प र
थित क` बार` म™ और िव तृत िववरण ाw करने क` इरादे से म ने डॉ टर चौधरी
से कहा था िक इस मामले म™ िम टर सेन क` सहयोग क अपेeा रखना िनहायत
ज v री ह`। इसक` उपरांत िमसेज सेन ने अपनी बेहोशी क हालत म™ िजन लोग क`
बार` म™ िज e िकया ह`, उनक` बार` म™ भी
िम टर सेन से बात™ करनी ह । इन सभी पूछताछ क` बाद ही िमसेज सेन क जाँच
क जा सकती ह` अ यथा सब िनरथ’क हो जाएगा।
डॉ टर चौधरी थोड़ी ही देर म™ िम टर सेन को बुला लाए थे। िम टर सेन क` साथ
बात™ करने क` बाद म समझ गया िक ‘एक और कण’’ नाटक क` कथानक, भारतीय एवं
यूनानी घटना
का तुलना मक अिभनय और उसी क` साथ िमसेज सेन क बेचैनी क e मवार बढ़ोतरी
एवं उनक बेहोशी क हालत म™ कही गई बात क` बीच एक रोचक सामंज य ह`। शायद
इसीिलए डॉ टर चौधरी को लगा िक िमसेज सेन क` अचेतन म™ कोई एडज टम™ट
िडसआड’र हो चुका ह`, िजसक` पीछ` कोई अवांिछत दुःख का कारण भी हो सकता
ह`।
लेिकन िमसेज सेन ने बेहोशी क हालत म™ िजन य य क` नाम का उ ारण िकया
था,
िम टर सेन इस िसलिसले म™ कोई काश नह डाल सक`। उन नाम से उनक` िम -
र तेदार म™ से कोई भी नह ह`। िम टर सेन को मालूम नह ह` िक वे िमसेज सेन
क` प रिचत ह या नह ।
म ने डॉ टर चौधरी से अनुरोध िकया था िक िमसेज सेन को वह मेर` च™बर म™
भेज द™। दो- चार िमनट क` अंदर ही दो नस िमसेज सेन को मेर` पास ले आई ।
नस को एवं िम टर सेन को िवदा करक` म िमसेज सेन को अपने इ टर यू-v म म™ ले
आया।
म ने गौर िकया िक िमसेज सेन बात™ कर नह पा रही ह , िफर भी मेरी बात™ वह
समझ रही ह ।
एक सोफ` पर म ने उ ह™ बैठने क` िलए कहा। वह बैठ गई । िफर म ने मुसकराकर
कहा, ‘‘िमसेज सेन, अचानक आपक जुबान बंद हो जाने से आपको काफ तकलीफ हो
रही ह` न!’’
िसर िहलाकर िमसेज सेन ने मेरी बात को मान िलया।
हमदद f िदखाने क` लहजे म™ म ने कहा, ‘‘आपका यह जुबान बंद हो जाना, वा
तव म™ आपका कोई रोग नह ह`। बात करने क इ छा म™ आपक कमी आ जाने से
यह िद त पैदा हो गई ह`। अगर आप कोिशश कर™ तो आप ज v र बात™ कर सक` गी।
िमसेज सेन, आप थोड़ी सी इ छा-श को बढ़ाकर कोिशश क िजए न।’’
िमसेज सेन ने कोिशश क , लेिकन उनक` गले से आवाज नह िनकली। इशार` से उ
ह ने मुझे समझाया िक उनक आवाज बंद हो गई ह`।
म ने कहा, ‘‘नह , िमसेज सेन, आपक आवाज बंद नह ई ह`। आप म™ इ छा क
कमी हो गई ह`। आप अपनी पूरी इ छा-श को एक जगह इक ी करक`, अपने
मनोबल को बढ़ाकर सोिचए िक आपको कोई तकलीफ नह ह`। सोिचए—‘‘म बात™
क v गी, अव य क v गी।’’
थोड़ी देर कोिशश करने क` बाद िमसेज सेन ने िसर िहलाकर मुझे समझा िदया िक
कोिशश क` बावजूद भी वह बोल नह पा रही ह । जब काफ यास क` बाद भी म
िमसेज सेन का ‘िवलपावर’ वापस लाने म™ स e म नह आ तो म ने कहा, ‘‘जब
आप कह रही ह िक आपक इ छाश से काम नह बन रहा ह`, तो अब मेरी इ छाश
क मदद लेकर देिखए—शायद आप बात™ कर सक` गी।’’
िमसेज सेन को एक इ ावेनस सोिडयम प™टोथाल इ जे शन देकर और एक क` बाद
एक च™बर क बिv याँ बुझाकर, एक हलक सी रोशनी कर देने क` बाद म ने कहा,
‘‘िमसेज सेन,
आप मुझे देख रही ह न? मेरी ओर आप एकटक देखती रिहए। सोिचए, म आपक वा श
आपको वापस कर रहा । मेरी ताकत से अब आप अपनी वा श वापस पा रही ह । अब
बोलने क ताकत आपम™ आ गई। अब आप मुझसे बात™ कर सकती ह`।’’
थोड़ी ही देर म™ िमसेज सेन िह नोटाइ ड हो गई । म ने उनसे पूछा, ‘‘िमसेज सेन,
आप मेरी बात™ सुन रही ह न! िमसेज सेन, मेरी बात™ आपको सुनाई पड़ रही ह`?’’
ब त ही कमजोर आवाज म™ िमसेज सेन ने कहा, ‘‘जी हाँ, म सुन
रही ।’’ ‘‘और थोड़ी ऊ ची आवाज म™ किहए।’’
‘‘ठीक ह`, कोिशश क v गी।’’
म ने पूछा, ‘‘िमसेज सेन, या बात™ करने म™ आपको तकलीफ हो
रही ह`?’’ ‘‘जी, नह ।’’
‘‘िमसेज सेन, या आपको याद ह`, दो िदन पहले िम टर सेन क` साथ आप ना यसदन
म™
य गई थ ?’’
‘‘जी हाँ, याद ह`। नाटक देखने गई थी।’’
‘‘ या नाटक का नाम आपको याद ह`? या नाम था नाटक का?’’
‘‘जी हाँ, अ छी तरह याद ह`। हम ‘एक और कण’’ नाटक देखने गए थे।’’
म ने पूछा, ‘‘आपको नाटक क`सा लगा था? या नाटक का कथानक आपको याद ह`?’’
‘‘जी डॉ टर साहब, सब याद ह`। क`से म नाटक का कथानक भूल सकती । वह तो
मेर` ही जीवन क ित छाया थी।’’
काफ उ सुकता क` साथ म एक क` बाद एक न पूछता जा रहा था। म ने उ t मीद नह
क थी िक इतनी ज दी ही िमसेज सेन मुझसे सहयोग कर™गी। डॉ टर चौधरी ने कहा
था िक
िपछले दो िदन म™ िमसेज सेन अपने होश म™ एक भी श&द उ ारण नह
कर सक थ , लेिकन अब स t मोिहत होकर उनक` ठ क` ताले खुल गए।
उनक` मन क` दरवाज को खोलने क` इरादे से म ने उनसे पूछा, ‘िमसेज सेन, वह
नाटक आपक` जीवन क ित छाया क`से बना? वह तो महाभारत क` कण’ और क¸ ती
क कहानी थी।’’
िमसेज सेन ने कहा, ‘‘कण’ और क¸ ती क` साथ e सा और आयन भी तो थे। कभी म e
सा बनकर आयन को एक पहाड़ी गुफा म™ छोड़ आने क` िलए िकसी क` हाथ म™
स f पती, तो कभी उसे खोकर म ने क¸ ती क तरह िवलाप िकया।’’
म ने कहा, ‘‘िमसेज सेन, आपक बात™ सुनने म™ मुझे काफ आनंद िमल रहा ह`।
आप चुप मत रिहए, आप बोलती जाइए।’’
उ ह ने कहा, ‘‘नह , अब म और चुप नह र गी। स ह साल तक म चुप थी, लेिकन अब
म बोलूँगी।’’
क- ककर िमसेज सेन कहने लग , ‘‘e सा क खूबसूरती का दीवाना होकर
सुनील सा याल उसे अपने आगोश म™ पाना चाहता था। दो साल तक उसक यार भरी
मीठी-मीठी बात™ सुनते-सुनते e सा अपने को खो बैठी थी। अंत तक e सा अपने साथ
और लड़ाई नह कर सक । खुद अपने को सfप िदया था सिन क` हाथ म™।’’
म ने पूछा, ‘‘िमसेज सेन, सिन कौन ह`?’’
एक लंबी साँस छोड़कर अधजगे वर म™ उ ह ने कहा, ‘‘सिन e सा का अपोलो था, क¸
ती का सूय’। सुनील सा याल सिन संबोधन सुनकर ब त खुश हो जाता था।’’
म ने पूछा, ‘‘िफर? आगे या आ? e सा अपोलो क` पास क`से प च गई?’’
धीर`-धीर` िमसेज सेन ने कहा, ‘‘बड़`-िदन क छ¸?ी क` दौरान e सा अपने दो त क` साथ
िपकिनक मनाने ब सी का तालाब गई ई थी। उस िवशाल आम क` बगीचे म™ िकतने
बरगद क` पेड़ थे, e सा को मालूम नह था। एक-एक बरगद पर एक-एक पराe यी िलपटकर
गायब हो गई। e सा भी सिन को अपने आगोश म™ लेकर माली क` कमर` म™ खो गई।
बरगद क` पेड़ ने माली को िपकिनक क` िलए सामान लाने बाजार भेज िदया था।’’
मुझे लगा िक िमसेज सेन न द क` साथ लड़ाई करते-करते अब थक गई ह । काफ थक` ए
वर म™ उ ह ने कहा, ‘e सा का जी काफ भर गया था, लेिकन बर…बरगद…
म™… क ड़ा…लगा…’
उनक जुबान बंद हो गई। धीर`-धीर` वह गाढ़ी नीद म™ चली गई ।
च™बर से बाहर आकर म ने नस को बुला भेजा, वे िमसेस सेन को उनक` बेड पर वापस
ले गई ।
रात को म ने डॉ टर चौधरी से कहा, ‘‘पहली ही सीिट ग म™ िमसेज सेन ने मेर` साथ
काफ सहयोग िकया ह`। मुझे और कई इ टर यू लेने ह गे। उनम™ आ मिव ास क
भावना भर देने क`
िलए और कई सीिट ग क ज v रत ह`। िफर म आपको अपनी रपोट’ पेश क v गा।’’

क लक vा वापस लौटने क इ छा मेरी नह थी, लेिकन मुझे खुद यक न नह हो रहा ह` िक


िकस अजीब आकष’ण से म लौट आया। माँ और बाबूजी क` यार क` आकष’ण से भी मजबूत
एक चाह मुझे यहाँ ख च लाई ह`।
पटना म™ िमंती मौसी से मेर` ज म रह य और मेरी जननी क` बार` म™ पता लगने
क` बाद म ने सोच िलया था िक म अब िफर कलक vे म™ नह लौट गा। िकसी
भी तरीक` से मुझे अपने ज मदाता िपता क तलाश करनी ही होगी और उनसे पूछना
होगा िक उ ह ने इस खूबसूरत दुिनया म™ इस तरह बगैर प रचय जीने क` िलए मुझे
मजबूर य िकया ह`। सोचा था उनसे
मुलाकात होने पर म उनसे पूछ गा िक मेरी माँ क` और मेर` ललाट पर ऐसा एक कलंक
का टीका लगाकर उ ह ने य हमारा जीना दूभर कर िदया ह`?
इ ह सारी बात को सोचकर ही म ने मौसी से अपने िपता क` बार` म™ जानना चाहा
था, लेिकन उनक जुबान खुलने से पहले ही दूसरी मंिजल से मौसाजी ने आवाज दी थी।
मौसीजी मुझे दूसरी मंिजल म™ ले गई । मौसाजी िब तर पर अ ’शयन क मु ा म™
थे। कमर` म™ प चकर उ ह™ देखने क` बाद अचानक मुझे भीe म िपतामह क याद
आ गई। टी.वी. सी रयल म™ देखे गए िपतामह भीe म जैसे ही बड़`-बड़` सफ`द बाल,
लंबी सफ`द दाढ़ी और सफ`द धोती म™ उ ह™ देखकर मुझे लगा िपतामह भीe म शरश*या
पर लेट` ए ह ।
उ ह ने अपने िब तर क` पास मुझे बुलाया। म उनक ओर धीर`-धीर` बढ़ गया।
अपने िब तर पर बैठाकर बड़` यार से मेर` बाल पर हाथ फ`रते ए उ ह ने कहा,
‘‘तुt हारी मौसी से मुझे पता चला िक तुम अपनी माँ क तलाश म™ यहाँ आए ए हो।
इतनी देर तक उनसे बात™ करने क` बाद ज v र तुt ह™ मालूम हो गया होगा िक वह
तुt हारी मौसी लगती ह`।’’
िसर िहलाकर म ने हामी भरी। मौसीजी िब तर क` बगल म™ एक क¸रसी पर बैठकर
मेरी ओर देख रही थी। मुझे िसर िहलाते ए देखकर वह मुसकराई।
मौसाजी ने मुझसे मेरा नाम पूछा। नाम बताते ही उ ह ने कहा, ‘‘बेटा अयन, म
तुt हारी मानिसक चंचलता समझ रहा , लेिकन या तुtह™ अपने जनक-जननी क` बार`
म™ जानकर कोई खास फायदा होगा? अब तक िजस िम?ी म™ तुमने अपनी जड़
जमा िलया ह`, या वहाँ से तुम अपने को उखाड़ सकोगे?’’
थोड़ी देर ककर उ ह ने कहा, ‘‘इसक` अलावा तुt हारी जननी इस व िकसी
और क प नी ह`। अगर उ ह™ तुt हारा प रचय मालूम हो जाए तो या वह एक ऊहापोह
क थित म™ नह फ स जाएगी? शिम दा नह होगी? तुt हार` ज मदाता क` बार` म™ हम™
कोई जानकारी नह ह`। तुt हारी जननी क शादी क` व ही हमने सुना था िक वह भारत से
बाहर िकसी देश म™ चला गया ह`। िफर? या उनका नाम-प रचय क` बार` म™
जानकारी िमलने पर तुtह™ क¸छ फायदा होगा?’’
इतने सार` सवाल का जवाब देने क e मता मुझम™ नह थी। म मौसाजी क` एक भी तक’
को काट नह सका।
िसर झुकाकर म ने कहा, ‘‘आपका कहना सही ह`, लेिकन मेरी मानिसक अ थरता मेर`
िनयं ण क` बाहर चली गई ह`। इसी वजह से म कलक vे से इतनी दूरी तक चला आया।’’
मौसाजी ने िफर से मेर` माथे पर हाथ फ`रकर सां वना देनी चाही।
म ने कहा, ‘‘म जानता माँ और बाबूजी को छोड़कर चले जाना असंभव ह`, य िक
म कभी भी यह समझ नह पाया िक वे मेर` अपने माँ-बाप नह ह । स ाई इतनी
तकलीफदेह हो सकती ह`, यह मुझे नह मालूम था।’’
मौसीजी और मौसाजी ने मुझे काफ सां वना देने क कोिशश क । िजतनी बात™ उन लोग
ने क Ė, उसका िन e कष’ था िक यिद वा तिवकता को वीकार कर म उसे ही मह व
दूँ तो म सुखी होऊ गा। मुझे शांित भी िमलेगी। मौसाजी का कहना था िक अतीत क क
को खोदकर भूली-िबसरी घटना को वत’मान काल म™ ख चकर िजंदगी को दूभर न
बनाना ही eेय कर होगा।
दोन का ही कहना था िक अतीत और वत’मान काल को एक साथ िमला लेने पर दोन
युग से जुड़` य य क मानिसक यातना बढ़ जाएगी—िकसी को भी शांित नह
िमलेगी।
मौसीजी से म ने पहले ही वादा िकया था िक म िसफ’ एक बार अपनी ज मदा ी
माँ को देखना चाहता । अपना प रचय म कदािप उ ह™ नह दूँगा। मौसाजी से भी म
ने वही बात™ दोहराई ।
मेरी बात को सुनकर वह थोड़ी देर तक चुप रह`। काफ उ सुकता से म उनक ओर देखता
रहा। म समझ गया िक वह एक दोराह` पर खड़` ह । मेरी िवचिलत थित देखकर शायद वह
सोच रह` ह िक मेरी माँ का नाम, पता वगैरह वह मुझे द™ और िफर इस काय’ क` प
रणाम म™ हो सकता ह`— मेरी ज मदा ी माँ क` घर म™ अशांित न फ`ल जाए। शायद
यही सोचकर वह
क रह` ह ।
काफ समय बाद एक लंबी साँस छोड़कर मौसाजी ने कहा, ‘‘मुझे नह मालूम िक यह
उिचत होगा या नह । िफर भी म तुt ह™ तुt हारी जननी का पता वगैरह दे देता । मुझे िव
ास ह` िक िजनक मरजी क` िबना एक प vा भी नह िहलता, जो इस दुिनया
क` हर य को अपनी मरजी क` अनुसार िनयंि त करते ह , उनक ही मरजी से तुtह™
अपनी जननी का िलखा
आ द तावेज, वह ट प पेपर तुt ह™ िमल चुका ह`।’’
परािजत मु ा म™ मौसाजी ने कहा, ‘‘जब परमिपता परमे र खुद ही तुtह™ तुt हार`
ज म रह य क` बार` म™ बताना चाहते ह तो हम या कर सकते ह । वयं भगवा
eीक˛e ण ने कण’ को उनक` ज म क` बार` म™ बताया था। उनक बात™ सुनकर कण’
एक िनम’म श&दहीन यातना से छटपटाया। इसिलए तुt ह™ तुt हारी जननी का पता दे देने
म™ मेरा कोई अपराध नह होगा, य िक तुt ह™ तुt हार` ज म रह य क` बार` म™ ट प
पेपर क` मा यम से वयं eी मधुसूदन ने कहा ह`। हम तो उनक` इशार` पर नाचनेवाले
कठपुतले ह ।’’
अपनी स ह साल क` िजंदगी म™ इस तरह क बात™ म ने कभी नह सुन । िलहाजा
उनक बात™ सुनकर मुझे बड़ा अ vुत सा लग रहा था। मौसाजी क` हमउ क` कोई
वृ हमार` घर म™ नह ह । माँ क` साथ म निनहाल म™ कई बार जा चुका , लेिकन
वहाँ भी नानीजी क` अलावा इतने उ दराज और कोई नह ह , इसिलए मौसाजी क बात™
सुनकर मुझे िफर से िपतामह भीe म क बात™ याद आई । मुझे लगा मानो म टी.वी.
सी रयल म™ भीe म क` डायलॉग सुन रहा

मौसाजी ने मौसीजी से कहा, ‘‘मेरा पता िलखनेवाली डायरी जरा ले आओ तो! उन लोग
क` नए मकान का पता मुझे याद नह रहता ह`।’’
मौसीजी ने पहले मेज पर से एक सादा कागज और कलम मुझे िदया। िफर डायरी लाकर
मौसाजी को देते ही, मौसाजी ने प े पलटकर कहा, ‘‘िलख लो बेटा। आकाश- दीप…’
‘आकाश- दीप’ सुनकर म च f क उठा। िकतनी अजीब बात। हम िजस हाई राइज िब
ड ग म™ रहते ह , उसका नाम भी तो ‘आकाश- दीप’ ह`।
मेरी ओर िबना देखे ही मौसाजी डायरी से पढ़ रह` थे, ‘‘ लैट नंबर-102सी,
21/32ए सदान’ एवे यू , कलक vा 700028।’’
अगर मेर` िसर पर गाज भी िगरती, तो भी म इतना आ w य’चिकत नह होता। मकान
का नाम, पता, लैट नंबर भी मुझे िलख लेने क जvरत नह पड़ी, य िक हमार`
मकान का नाम और पता भी वही ह`। िसफ’ लैट नंबर दूसरा ह`। हमारा लैट नंबर ह`—
102 डी।
कलम बंद करक` म चिकत होकर सोच रहा था— या मौसाजी क` eी मधुसूदन ने यह भी
पहले िन w त कर रखा था।
म ने जो पता नह िलखा, मौसीजी ने गौर िकया था। चिकत होकर उ ह ने पूछा, ‘‘ य
बेटा, तुमने पता नह िलखा?’’
म ने मुसकराकर जवाब िदया, ‘‘ज v रत नह ह` मौसीजी।’’
िव ल ि से मुझे घूरते ए पता नह उ ह ने या सोचा। शायद उ ह ने सोचा,
‘‘पता नह क`सा पागल लड़का ह`। पता लेने क` िलए कलकvे से पटना चला आया,
लेिकन पता बताने पर भी नह िलखा।’’
मौसाजी क` िब तर से उतरकर म ने मौसाजी और मौसीजी क` पैर छ कर कहा, ‘‘अब
मुझे लग रहा ह` िक अगर म आपको पर`शान करने क` िलए पटना नह आया होता
तो शायद अ छा ही होता। आपने मेरी ज मदा ी का जो पता बताया, वह हमार` बगल
क` लैट का ही नंबर ह`।’’
दोन ही चिकत होकर एक साथ िच wा उठ`, ‘‘अर`! यह या कह रह` हो बेटा?’’
म ने कहा, ‘‘िसफ’ चार िदन ए हमने अपने लैट म™ िश ट िकया ह`। उससे
पहले क¸छ रोज हम नानीजी क` घर पर ही ठहर` ए थे। अभी तक हमार` अड़ोस-पड़ोस क`
लोग क` साथ हमारा प रचय नह हो पाया ह`। इसिलए अभी तक हम अपने बगलवाले
लैट क` लोग को भी नह पहचानते ह । अपने लैट म™ आते-जाते अगल-बगल क`
लैट का दरवाजा हम™ हमेशा बंद ही देखने को िमलता ह`। अभी तक चूँिक हमने
िकसी भी लैट म™ िकसी को जाते
ए नह देखा ह`, िलहाजा प रचय भी नह हो पाया।’’
मौसाजी ने कहा, ‘‘तुtह™ तुtहारी जननी का पता दे देने क` िलए, मुझे अपने को
अपराधी समझने क कोई िज t मेदारी अब रह नह गई। वयं नारायण ने ही तुtह™ तुt हारी
जननी क` पास तक प चा िदया ह`।’’
थोड़ा ककर शायद उ ह ने मुझे अपनी आिखरी बात कही, ‘‘जो भी हो बेटा अयन, तुम
मेरी संतान से भी उ म™ छोट` हो। तुमसे बस, मेरा एक ही अनुरोध ह` बेटा, अतीत

घटना को लेकर तुम उतावले मत होना।’’
मौसाजी या मौसीजी िकसी ने मुझे मेरी जननी का नाम नह बताया। म ने भी उ ह™ बताने
क`
िलए दबाव नह डाला, य िक म ने सोचा, जब पता मालूम हो चुका ह` तो उनका
नाम भी मुझे एक-न-एक िदन मालूम हो ही जाएगा।
मुझे पटना म™ और दो िदन रहना पड़ा। अपने बचपन क` दो त म™ एक
आकष’ण अनुभव करने क` कारण म उनसे भी िमला था। जैसे ही रमेश अंकल को मालूम
आ िक म होटल म™ ठहरा आ , उ ह ने मुझे काफ फटकारा। अजीत को मेर` साथ
भेजकर मेर` सूटक`स वगैरह क` साथ वह अपने लैट म™ मुझे ख च ले आए। दो िदन
उन लोग क` साथ आनंद से बीता।
कलक vा लौटते समय म ने अनुभव िकया िक माँ और बाबूजी क` पास लौटने क`
आकष’ण से यादा बगल क` लैट म™ अपनी जननी से िमलने का आकष’ण महसूस
कर रहा ।
घर लौटते ही माँ और बाबूजी दोन ने पूछा िक मुझे अपना क ल लीिवंग सिट’िफक`ट
िमला ह` या नह । म िबलक¸ल भूल ही गया था िक म उ ह™ या कहकर पटना गया
आ था।
उनक बात™ सुनकर मुझे झट से याद आ गया। म ने कहा, ‘‘जी हाँ, िमल गया ह`।’’
ज दी से अपनी अट`ची लेकर म अपने कमर` म™ चला आया। िफर अपनी अलमारी क`
नीचे क टाँड़ क` अखबार क` नीचे से सिट’िफक`ट िनकालकर बाबूजी को िदखा िदया।
खाने-पीने क` बाद यह सोचकर म छटपटा रहा था िक कब बगल क` लैट का डोरबेल म
बजाऊ गा। माँ और बाबूजी से म बात™ तो कर रहा था, लेिकन मेरा मन काफ चंचल
रहा।
माँ ने एक-आध बार पूछा भी, ‘‘ य र` अयन, तू इतना छटपटा रहा ह` य ? लगता ह`
िकसी वजह से तेरा मन काफ चंचल ह`। या बात ह` र`?’’
जवाब बाबूजी ने िदया, ‘‘होने को या ह`? पटना म™ अपने बचपन क` दो त क` साथ
िमलकर आने क` बाद सोच रहा होगा काश, म वह रह जाता। यही बात ह` न अयन?’’
म ने मुसकराकर जवाब िदया, ‘‘आप तो िबलक¸ल ठीक समझ गए, बाबूजी।’’
शाम छह बजे क` बाद म अपने को और रोक नह सका। म ने लैट नंबर 102 सी
क` डोरबेल क` िपयानो वच पर अपनी उ गली रखी।

डॉ टर चौधरी ने इलाज क` िलए िततली को डॉ टर बसु म w क क` हवालेकर


िदया ह`। डॉ टर चौधरी अब िततली को अपने जैसे एक जनरल िफजीिशयन का मरीज
नह समझते ह , इसीिलए साइिकयाि ट डॉ टर बसु म w क ने साइको-सजेशन क` मा
यम से िततली का इलाज शुv कर िदया ह`।
डॉ टर बसु म w क उ t मीद करते ह िक िततली को अपनी आवाज वापस िमल
जाएगी। सामा यतः वह डॉ टर चौधरी क` निस ग होम म™ तीन िदन आते ह । अपने
निस ग होम म™ हर
तरह क` इलाज क सुिवधा क` िलए डॉ टर चौधरी ने यह इ तजाम िकया ह`, लेिकन
िवशेष प र थितय म™ आव यकतानुसार िदन क सं या बढ़ भी जाती ह`। शायद उन
लोग म™ कोई अंडर ट िड ग होगी।
वैसे ही िवशेष प र थित का मरीज िततली क` होने क` नाते डॉ टर बसु म wक
ने उसक` कई इ टर यू ले िलये ह । उ ह ने िव तार से मुझे क¸छ बताया तो नह , लेिकन
भरोसा िदया ह`
िक िततली िजस कार से सहयोग कर रही ह`, शायद ब त शी ही अपनी वा श
वापस पा जाएगी।
आज जब डॉ टर चौधरी ने िततली को साढ़` पाँच बजे डॉ टर बसु म w क क`
च™बर म™ भेजा, म घर चला आया।
िपछले तीन चार िदन से देख रहा िक िततली िजस व डॉ टर बसु म w क
क` पास से लौटती ह`, एक हलक न द जैसी नशीली हालत म™ वह रहती ह`। मुझे नह
मालूम डॉ टर बसु म w क उसे कोई िसड`िटव ग या इ जे शन देते ह या नह । अपने
िब तर पर वापस आते ही
िततली गाढ़ी न द म™ सो जाती ह`।
आज भी यह सोचकर म करीब छह बजे घर चला आया , य िक डॉ टर बसु म
w क क` पास से लौटने क` बाद िततली क` संग मेरा रहना, न रहना बराबर होता ह`। मेरी
बात™ सुनने क` िलए वह अपनी आँख™ तक खुली नह रख सकती ह`।
लैट म™ लौटकर गणेश को एक क बनाने का िनद´श देकर िबना जूता उतार` ही म
िब तर पर लेट गया था।
सोच रहा था िक िततली कब लैट म™ वापस आएगी। उसक अनुप थित म™ क¸छ घंट`
भी
लैट म™ िबताना मेर` िलए असंभव हो जाता ह`। बात करने क` िलए एक आदमी
लैट म™ नह ह`। रात को िब तर सूना सा लगता ह`। जब तक न द नह आती ह`,
ाइ ग v म म™ बैठकर
िकताब™, मैगजीन पढ़ता रहता । आजकल ब म™ भी जाने का जी नह करता ह`।
इ ह सब बात को लेट`-लेट` सोच रहा था िक अचानक डोरबेल बज उठी। लेट`-
लेट` ही समझ गया िक गणेश दरवाजा खोलने गया ह`।
म सोचने लगा िक इस व कौन मुझसे िमलने आया ह`। या द तर से ही कोई य
िततली क` बार` म™ जानकारी लेने आया ह`? इसी बीच एक िदन दो घंट` क` िलए
म द तर म™ गया था। ब त ने िततली क` बार` म™ पूछा भी था। शांतने कहा था
िक एक िदन आऊ गा,
या वही तो नह आया ह`?
अचानक बेड v म क` परदे को िखसकाकर गणेश ने कहा, ‘‘साब, एक लड़का आपसे
िमलना चाहता ह`।’’
आ w य’चिकत होकर म ने कहा, ‘‘एक लड़क` का मतलब? ि कतना बड़ा? देख,
शायद चंदा-वंदा लेने आया होगा।’’
‘‘जी नह साब। चंदा माँगने नह आया ह`। आपसे ही िमलना चाहता ह`। कह रहा ह`
िक बगलवाले लैट म™ रहता ह`।’’
म ने कहा—‘ठीक ह`, ाइ ग v म म™ बैठने क` िलए कह दे। आ रहा ।’’
िब तर छोड़कर म बाथ v म म™ चला गया। हाथ-मुँह धोकर, बाल म™ क घी करक`
थोड़ा सा w`श होकर ाइ ग v म म™ आते ही देखा िक करीब सोलह-स ह साल का
खूबसूरत चेहर` का एक िकशोर बैठा आ ह`।
मुझे देखते ही खड़` होकर ‘गुड ईविनंग अंकल’ कहकर उसने मुझे िवश िकया।
‘ईविनंग’ कहकर म उसक तरफ बढ़ आया। लड़क` से िमलकर खुशी ई। ह डसम चेहरा,
अ छा वा e य भी ह` और अ छ` खानदान का लगता ह`। ब त ही अ छ` िश ाचार म™
पला- बड़ा स w न लड़का मालूम आ।
सोफ` पर बैठकर म ने उससे कहा, ‘‘बैठो भाई, तुम खड़` य रह गए? उसने
मुसकराकर ब त शमा’ते ए कहा, ‘‘आपने तो अंकल मेरा प रचय नह पूछा?’’
म ने भी मुसकराकर कहा, ‘‘गणेश से सुना िक तुम बगलवाले लैट म™ रहते हो। िकस
लैट म™—बी या डी?’’
‘‘हम डी म™ रहते ह । मेरा नाम अयन बैनज f और मेर` िपताजी—’’
‘‘िम टर शु ांशु बैनज f इ कम ट` स किम नर ह न! छह सात िदन ए तुम सब
आए ए हो। यही न?’’
च f ककर उसने कहा, ‘‘अंकल, आप बाबूजी को जानते ह`?’’
उसे च f कते ए देखकर मुझे बड़ा मजा आया। म ने कहा, ‘‘काफ िदन पहले तुtहार`
िपताजी क` साथ मेरा प रचय हो चुका ह`। जब तुt हारा लैट बंद रहता था, वह बीच-बीच
म™ आते रहते थे। उसी व एक बार प रचय हो चुका था।’’
‘‘मुझे नह मालूम था िक आप बाबूजी को जानते ह । म ने सोचा िक हम लोग नए
ह , पड़ोिसय से प रचय करना हमारा फज’ ह`। इसीिलए म आपसे िमलने आया था।
इसक` अलावा एक दूसरा भी उ े य रहा। लेिकन अंकल, म आपका समय तो न
नह कर रहा
न?’’
म ने कहा, ‘‘नह जी, ठीक ह`, तुम बैठो। तुमसे बात™ करने म™ मुझे आनंद िमल रहा
ह`। लैट म™ िसवाय क बाइ ड ह ड गणेश क` और कोई न होने क वजह से मुझे तो चुप
ही रहना पड़ता ह`। जाने दो यह सब बात™, तुमने कहा न िक तुt हारा या एक उ े य
ह`?’’
म ने गौर िकया िक लैट म™ और िकसी क` न होने क खबर से उसका चेहरा
क¸छ फ का पड़ गया। उसने पूछा, ‘‘कोई नह ह` का मतलब? या आंटीजी कह गई ह
?’’
अयन से बात™ करने का मौका पाकर म भी काफ रलै सड फ ल कर रहा था।
कहा, ‘‘नह जी, तुt हारी आंटीजी कह गई नह ह । इनफ` ट, शी इज इल।एट ेज™ट
शी इज अंडरगोइ ग सम ि टम™ट इन ए निस ग होम।’’
अयन दोबारा च f क उठा। उसको च f कते ए देखकर मुझे काफ आ w य’ आ।
लेिकन मुझे और िकतना आ w य’ होना होगा, उस व मुझे मालूम नह था।
अयन ने पूछा, ‘‘आंटीजी को या हो गया ह`? अंकल, या म आपको िकसी तरह
क मदद कर सकता ? एनी काइ ड ऑफ ह` प?’’
मुसकराकर म ने कहा, ‘‘थ क यू माई &वॉय। थ क यू फॉर योर कनिसडर`टनेस। मदद क
ज v रत नह ह` बेटा। ऑल ऑफ ए सडन, शी ह`ज लॉ ट हर वायस।’’
मानिसक तनाव से म करीब-करीब ट ट चुका था। लेिकन अयन क` साथ बात™ करते ए
म समझ गया िक म ने अपना धैय’ या सहनशीलता नह खोई ह`। अचानक िततली
क आवाज बंद हो जाने से िचंितत तो ज v र हो उठा, लेिकन समझ गया चकनाचूर
नह आ । अयन जैसे एक िकशोर क` मदद क` िलए आगे आने से और उसक सहानुभूित
से मेरा मनोबल और भी ऊ चा उठ गया।
गणेश से फाम´िलिटज क बात™ करने क ज v रत नह पड़ती ह`। मेर` िलए क
और अयन क` िलए क¸छ नमक न, मीठा और चाय लाकर वह स™टर ट`बल पर रख गया।
म ने अयन से कहा, ‘‘अयन, चाय पी लो। िफर कहो, तुम अपने उ े य क` बार`
म™ या कह रह` थे?’’
कप हाथ म™ उठाते ए अयन ने कहा, ‘‘िमंती मौसी आंटीजी क` बार` म™ पूछ रही थी।’’
अयन क` मुँह से ‘िमंती मौसी’ सुनकर म बुरी तरह च f क उठा। असावधान रहने क`
कारण मेर` हाथ क` िगलास से थोड़ी सी क छलककर फश’ पर िगर गई।
िततली ने कहा था
िमंतीदी बचाओ और आज िफर अयन ने कहा ‘िमंती मौसी आंटीजी क` बार` म™ पूछ रही
थी।’
म ने अनजाने म™ ही मन-ही-मन इन दोन म™ एक घिन संबंध क` बार` म™ सोच िलया।
हो सकता ह` ‘िमंतीदी’ और ‘िमंती’ दो अलग-अलग य ह , लेिकन मेर` अचेतन म™
दोन एक ही हो गई ।
अपने को सँभालकर म ने कहा, ‘‘सॉरी माई बॉय। लेिकन या तुt हारी िमंती मौसी मेरी प
नी को जानती ह`? वह कहाँ रहती ह`?’’
चाय पीते ए अयन ने कहा, ‘‘ या आप उ ह™ नह जानते ह ? िमंती मौसी और
काश मौसा। पटना म™ रहते ह । आंटी का नाम तो….।’’ अयन चुप हो गया।
अपना धीरज खोकर म कह उठा, ‘‘हाँ, हाँ, तुt हारी आंटीजी का नाम ह` िततली सेन।
शादी से पहले नाम था िततली दासगुwा। लेिकन तुtह™ क`से मालूम आ?’’
अयन ने कहा, ‘‘हाल ही म™ म पटना म™ मौसीजी क` पास गया था। यूँ ही बात -बात
म™ म ने उनसे कहा िक बाबूजी का तबादला कलक vे हो गया ह`। हमारा नया पता
तुम िलख लो। डायरी म™ हमारा पता नोट करते समय ही मौसाजी ने कहा, ‘‘िकतने
आ w य’ क बात ह`— बेटा अयन, तुt हार` बगलवाला लैट ही तो िततली का ह`, लेिकन
अभी तक तू उससे िमला ही नह ?’’
म चुपचाप अयन क बात™ सुनता जा रहा था। मुझे लग रहा था िक िततली क न द म™
कही
ई बात क उलझन अब सुलझ जाएगी। डॉ टर चौधरी या डॉ टर बसु म w क को
अगर यह खबर दे दी जाए तो शायद वे िततली क` इलाज क` ि लए कोई रा ता ढ ढ़
िनकाल™।
अयन कहता जा रहा था, ‘‘म ने मौसाजी से कहा था िक बगल क` लैट म™ िम टर
एस.सेन
िलखी नेम लेट म ने देखी ह`। लेिकन मुझे या मालूम वे ही अंकल ह ? आंटी भी वह ह ,
म क`से जानूँ! बाबूजी क डायरी म™ उनका पता भी नह िलखा ह`। मौसीजी से म ने
कहा था, ठीक ह`। कलक vे लौटते ही म उनसे िमलूँगा। इसी उ े य को लेकर आज म
आपसे िमलने आया था।’’
अयन चाय पी चुका था। म इतना अिधक उ vेिजत हो गया था िक म ने अपना
िगलास मेज पर रख िदया।
अयन क बात™ सुनते-सुनते मेर` िदमाग म™ एक बात आ गई। म ने सोचा िक यिद
अयन से मेर` बदले म™ डॉ टर चौधरी या डॉ टर बसु म w क से पूछताछ करवाई जाए,
हो सकता ह`,
िततली को यादा फायदा हो।
अयन क बात™ सुनकर क` युअली एक िसगर`ट दागते ए म ने उससे कहा,‘‘म इस
व तुt हारी आंटीजी क` पास ही जा रहा । उनसे तुt हारी िमंती मौसी क` बार` म™
बताऊ गा।’’
वा तव म™, आज रात को निस ग होम म™ जाने क मेरी इ छा नह थी। इस व
िततली न द क` भाव म™ ही रह`गी। क`िबन म™ एक नस’ रहती ह`, िलहाजा मेर` रहने
क कोई ज v रत नह ह`।
म अयन से जो सुनना चाहता था, उसने वही कहा। उसने कहा, ‘‘अंकल, अगर आपको
िद त न हो तो म भी आपक` साथ निस ग होम चल सकता । लेिकन िसफ’ दो िमनट क`
िलए, म आप से इजाजत लूँगा। माँ से कह आता ।’’ म ने कहा, ‘‘ठीक ह`, तुम उनसे
कह आओ। घंट` भर क` अंदर ही हम वापस आ जाएँगे।’’
अयन अपने लैट म™ चला गया।
म ने ज दी से निस ग होम म™ फोन िमलाकर डॉ टर चौधरी से कहा, ‘‘डॉ टर
चौधरी, आप काइ डली डॉ टर बसु म w क को रोक` रिखए। म िकसी को अपने साथ
लेकर निस ग होम म™ तुर त आ रहा , हो सकता ह` िततली क` इलाज क` िलए उससे
बात™ करक` उ ह™ कोई रा ता नजर आ जाए।’’
एक घूँट म™ म ने क का िगलास खाली कर िदया। इस व मेर` नव’स ट`डी
रखने क ज v रत ह`।
अयन क` लौटते ही म ने गैराज से गाड़ी िनकालकर िफर से निस ग होम क ओर
ाइव करना शुv िकया।
डॉ टर चौधरी अपने च™बर म™ नह थे। बेयरा िनताई ने कहा िक वह िततली क`
क`िबन म™ ही गए ए ह ।
अयन को साथ लेकर म िततली क` क`िबन क ओर बढ़ा। वह मेर` पीछ`-पीछ` आ रहा था।
दरवाजे क` पास से ही म ने देखा िक िततली अपने िब तर पर लेटी ई ह`, लेिकन आज
वह बेहोशी या न द क` नशे म™ नह ह`। उसक` िब तर क` पास उसक ओर मुँह िकए
डॉ टर चौधरी और डॉ टर बसु म w क आपस म™ क¸छ बात™ कर रह` ह ।
मुझसे िततली क िनगाह िमलते ही वह मुसकराई।
मेर` पीछ` अयन से िनगाह िमलते ही िततली एक बार मेरी ओर ताककर अयन क
ओर एकटक देखने लगी। अचानक उसक` ठ थरथरा उठ`। आँख म™ एक चमक भी
देखने को
िमली। िब तर से नीचे उतरने क कोिशश करते ए, िततली बड़ी जोर से चीख उठी
—‘‘व…व…वह कौन ह`?’’
डॉ टर चौधरी या डॉ टर बसु म w क ने अब तक मुझे देखा नह था। अचानक
िततली क चीख सुनकर ह `-ब ` से दोन आदमी पीछ` मुड़कर अयन को और
मुझे देखकर चिकत हो गए।
दोन ने एक ही साथ िततली क ओर देखा। िततली िब तर से नीचे उतर नह
सक थी। चीखने क` बाद िततली िब तर पर बेहोश होकर िगर पड़ी ह`।
डॉ टर बसु म w क क आँख म™ म ने खुशी क झलक देखी। उ ह ने डॉ टर
चौधरी से मुसकराकर कहा, ‘‘ड ट वरी। नाऊ शी िवल र यूप सून। आई ह`व गाट दी
र`मेडी।’’
डॉ टर चौधरी को िततली को होश म™ लाने क कोिशश करने क सलाह देकर डॉ
टर बसु म w क अयन क` पास आ गए।
उ ह ने अयन से कहा, ‘‘कम ऑन माई चाइ ड। लेट हर कम ट हर स™सेस। चलो,
तब तक हम बगल क` कमर` म™ बैठकर थोड़ी सी बात™ कर™।’’
ह `-ब ` अयन का हाथ पकड़कर डॉ टर बसु म w क क`िबन से बाहर चले गए।
अचानक ऐसी प र थित म™ फ स जाने से थोड़ी देर क` िलए म समझ नह पाया िक
मुझे करना या चािहए?
डॉ टर चौधरी नस’ क` क¸छ कहने क` बाद िततली क` बेड क` पास प चकर उसक
नाड़ी देखने क` िलए उसका बायाँ हाथ उठा िलया। काफ गौर से उसक नाड़ी क धड़कन
महसूस करते ए उ ह ने घड़ी क ओर िनगाह डाली।
डॉ टर चौधरी ने जैसे ही िततली का हाथ नीचे उतारकर रखा, नस’ ने एक ` पर
क¸छ दवाएँ, िस र ज वगैरह लाकर बेड क` पास मेज पर रख द । िफर उसने गीले तौिलए
से िततली क आँख™ और चेहरा धीर`-धीर` प छ िदया।
डॉ टर चौधरी ने िस र ज म™ दवा भरकर िततली को एक सुई
लगा दी। थोड़ा सा समय बीता। धीर`-धीर` िततली क` ठ िफर से
काँपने लगे।
शायद डॉ टर चौधरी ने भी गौर िकया था, य िक म ने देखा वह िततली क` ठ क`
पास अपना कान ले गए।
म भी िततली क ओर थोड़ा बढ़ गया।
उसक आँख™ बंद ह , लेिकन वह बुदबुदा रही ह`, ‘‘वह कौन आया ह`? कौन ह`?’’ क
ककर वह कह रही ह`, ‘‘िबलक¸ल सिन जैसी शकल-सूरत। सुमन…. मेर` सुमन ने
उसे कहाँ पाया?’’
िततली क बात™ बंद हो गई ।
नस’ िततली को होश म™ लाने क कोिशश कर रही थी।
थोड़ी देर बाद िततली क आँख™ खुल गई । बड़ी-बड़ी उदास आँख से उसने एक
बार डॉ टर चौधरी को और एक बार मुझे देखा। िफर उसने आँख™ बंद कर ल ।
थोड़ी देर बाद उसने आँख™ खोलकर मेरी ओर अपना दािहना हाथ बढ़ा िदया।
िततली को होश म™ आते देखकर ही डॉ टर चौधरी क`िबन से िनकल गए। शायद
डॉ टर बसु म w क को सूिचत करने गए।
जैसे ही म ने िततली का हाथ थामा, वह रो पड़ी।
‘‘िततली, मत रोओ। इस कमजोरी म™ अगर तुt हार` ऊपर और भी `न पड़ जाए, तो
तुt हारी तकलीफ बढ़ जाएगी। अर`, तुमने तो बात™ क ह , ‘‘थोड़ी देर पहले ही तुमने
बात™ क Ė। फालतू म™ य तुम पर`शान हो रही हो।’’ म ने िततली को सां वना देनी
चाही।’’
नस’ भी क`िबन से चली गई।
रोना बंद करक` िततली ने मुझसे क¸छ कहना चाहा। उसक` ठ नाचने लगे। ब त धीर`-धीर`
िततली ने पूछा, ‘‘लड़का कौन ह`?’’
मानो क¸छ भी घिटत नह आ, इस कार का बहाना बनाते ए िततली क` िसर पर
हलक` से हाथ फ`रते ए म ने कहा, ‘‘तुमने पहले उसे कभी नह देखा ह`। छह-सात िदन
पहले हमार` बगल वाले लैट म™ वे आए ह । अर` वही लैट—जो करीब साल भर से बंद
रहता ह`। बीच- बीच म™ एक स w न आते रह`, क¸छ िदन क` िलए िकराएदार
भी रखे थे। उ ह का बेटा ह`। आज ही मेर` साथ प रचय आ। ब त अ छा लड़का ह`।
जानती हो, वे छा से वह तुमसे
िमलने आ गया।’’
िततली त&ध होकर सुन रही थी, मानो मेरी बात™ पचा रही थी। उसक` चेहर` पर एक
अजीब सी चमक म ने देखी। म समझ गया िक उसक` मन म™ कोई हरकत हो रही ह`।
मेर` कते ही
िततली ने पूछा, ‘‘वह कहाँ गया?’’
िसफ’ तीन-तीन श&द िततली उ ारण कर रही ह`, लेिकन म इतने म™ ही खुश ।
म अयन का एहसानमंद । उसक` आने क वजह से ही आज सात िदन बाद अचानक
िततली क बंद जुबान खुल गई। डॉ टर बसु म w क को यह खबर देने क` िलए म
छटपटा रहा था।
िततली से म ने नह कहा िक डॉ टर बसु म w क उसे बुला ले गए ह । ब क म ने
कहा, ‘‘बाहर ही खड़ा होगा। उसे देखकर अचानक तुम बेहोश हो गई । शायद इसीिलए वह
घबरा गया होगा। बुला लाऊ ?’’
िसर िहलाकर िततली ने अयन को बुला लाने क` िलए कहा।
क`िबन से बाहर आते ही म ने देखा िक डॉ टर चौधरी और डॉ टर बसु म w क अयन
को लेकर िततली क` क`िबन क ओर ही आ रह` ह ।
समझ गया िक िततली क` बार` म™ डॉ टर बसु म w क को बताने क` िलए डॉ
टर चौधरी उनक` पास गए ए थे। शायद वह अयन क` साथ भी बात™ करना चाहते थे।
डॉ टर बसु म w क ने मुझसे कहा, ‘‘िम टर सेन, आपक` सहयोग क वजह से ही
िमसेज सेन को इतनी ज दी उनक वा श वापस िमल गई। इ स ए िमर`िकल।
सात-आठ िदन क` अंदर ही उनक बंद जुबान खुल गई। लेिकन अगर आप अयन को
अपने साथ नह तो लाए होते, तो शायद उनक आवाज वापस िमलने म™ और देर होती।
बाई द वे, या आपको अयन का प रचय मालूम ह`?’’
डॉ टर क` इस सवाल पर अयन को म ने िसक¸ड़ते ए देखा। आँख™ उठाकर वह मेरी
ओर ताक तक नह सका। उसने अपना िसर झुका िलया।
आ w य’चिकत होकर म ने कहा, ‘‘जी हाँ, मुझे मालूम ह`। ही इज माई ने सट डोर
नेबर। वह इ कम ट` स किम नर िम टर शु ांशु बैनज f का बेटा ह`।’’
डॉ टर बसु म w क ने कहा, ‘‘पूअर चैप।’’ य कहा?
लेिकन म िमटने म™ देर नह लगी। उ ह ने मुझे नह कहा ह`। अयन क पीठ
पर हाथ रखकर उ ह ने दोबारा कहा, ‘‘पूअर चैप।’’
उ ह ने मुझसे कहा, ‘‘आई िवल लेट यू नो एव रिथंग इन टाइम। यू आ ट नो
इट।’’ म डॉ टर बसु म w क क बात™ समझ नह पाया। मुझे या जानना
चािहए। अचानक उ ह ने मुझसे कहा, ‘‘ या िमसेज सेन ने और क¸छ कहा ह`?’’
‘‘जी हाँ’’ अयन क ओर इशारा करते ए म ने कहा, ‘‘उसे बुला ले आने क` िलए
कहा ह`।’’
डॉ टर चौधरी और डॉ टर बसु म w क ने एक-दूसर` को देखा। ऐसा लगा िक उ ह
ने आँख -आँख म™ ही कोई बात कर ली हो।
डॉ टर बसु म w क ने कहा, ‘‘िम टर सेन, लीज ड नॉट माइ ड। इस व आप
िमसेज सेन क` क`िबन म™ न जाएँ। हम अयन को िलवा ले जा रह` ह । िमसेज सेन क`
इलाज क` कारण ही म आप से इस व अंदर न जाने क` िलए र े ट कर रहा ।
मुझे उtमीद ह` िक आप बात को समझ™गे।’’
डॉ टर चौधरी ने कहा, ‘‘काइ डली आप मेर` च™बर म™ जाकर इ तजार कर™। थोड़ी ही
देर म™ हम आपको बुला ल™गे। लीज, आप थोड़ा स रख™—सारी बात™ आप से हम कह
द™गे।’’
दोन डॉ टर क एक जैसी रह य से भरी बात™ सुनकर म काफ आ w य’चिकत हो
गया। बात या ह`? ये मुझसे या कहना चाहते ह ?
थोड़ा सा मुसकराकर म ने कहा, ‘‘ऑलराइट। आई िवल वेट पेस™टली इन योर ऑिफस।’’
िततली क` क`िबन क` दरवाजे क` सामने से म डॉ टर चौधरी क` च™बर म™ चला आया।
एक िसगर`ट जलाकर म इस समय डॉ टर चौधरी क` च™बर म™ बैठ`-बैठ` इ तजार कर
रहा । दोन ने अयन से या पूछा? िततली से वे दोन अयन क` सामने या बात™ कर™गे?

घ र पर ठहरने का मौका मुझे िमलता कहाँ ह`? िनर तर िकसी-न-िकसी शहर म™


अपनी नौकरी क` िसलिसले म™ दौड़ते रहते ह । लेिकन घर पर रहने से भी शांित कहाँ
ह`? कभी द तर क सम याएँ, कभी अयन क तो कभी मिणमाला क सम याएँ हमेशा
उलझाए रखती ह ।
जो भी हो आज रात को इस व कोई भी सम या मेर` सामने नह ह` और क का
िगलास एक हाथ म™ और दूसर` हाथ से एक अं ेजी उप यास पकड़कर बड़ी शांित
से समय गुजारने म™ म लगा आ ।
अब तक तो मिणमाला सोफ` पर बैठकर एक पि का पढ़ रही थी, लेिकन उनम™
एक अ थरता अब देखने को िमली। मुझसे रहा नह गया। म ने मिणमाला से पूछा, ‘‘ या बात
ह`। तब से देख रहा , कभी िकताब पढ़ रही हो, कभी क¸छ सोच रही हो, कभी कमर`
म™ टहल रही हो—बात या ह` भाई? यह अ थरता य ?’’
मिण ने प ढ ग से कहा िक उसे क¸छ अ छा नह लग रहा ह`। पूछा भी, अचानक
यह प रवत’न य ह`? मुझे लगा ब त िदन बाद मुझे शराब पीते ए देखकर वह नाराज
हो गई। म ने झ wाकर कहा, ‘‘क`सा प रवत’न? या आपको अ छा नह लग रहा ह`—
साफ-साफ
य नह कहती ह ? म ने शराब का िगलास उसे िदखाते ए पूछा, या मेरा यह पीना
आपको अ छा नह लग रहा ह`?’’
मिण ने कहा, ‘‘छोि़डए यह सब िफजूल क बात™। आज पहली बार आपको पीते ए
नह देख रही । मुझे अयन का यह प रवत’न अ छा नह लग रहा ह`।’’
उनक बात™ सुनकर म आ w य’ म™ पड़ गया। अयन का प रवत’न ? वह क`सा? म ने
मिण से कहा, ‘‘अर` आज ही तो थोड़ी देर पहले वह पटना से लौटा। िफर आप से ही
कहकर तो सामनेवाले लैट म™ पड़ोसी से िमलने गया। इसम™ नई बात या ह`? प
रवत’न कहाँ?’’
मिणमाला ने कहा, ‘‘िमलने तो गया था, लेिकन थोड़ी ही देर म™ लौटकर आया
भी था। कहा िक उस लैट क आंटीजी बीमार ह और उस समय वह निस ग होम म™ ह ।
उ ह™ देखने और अंकलजी को मदद करने वह उनक` साथ निस ग होम गया ह`।’’
मुझे eोध आ गया। म ने कहा, ‘‘तो इसम™ प रवत’न क बात कहाँ ह`।’’ ऊ ची
आवाज म™ म ने मिण से कहा था—‘ऊल-जलूल सोच-सोचकर तुम अपना िदमाग
खराब करती रहती हो
—मेरा भी िदमाग खराब करती हो। शांत होकर िकताब पढ़ो या कोई काम-धाम करो—
सब अ छा लगेगा।’’
मिणमाला शांत नह हो पाई। उसने भी ऊ ची आवाज म™ मुझसे कहा, ‘‘आप भी न।
सभी पु ष या ऐसे ही बने रहते ह —उसे आप जैसे लोग समझ नह सकते ह । जब से इस
लैट म™ हम लोग आए और िजस समय सामान ठीक से लगा रह` थे—तब से ही म गौर
कर रही
िक अयन क¸छ उदास-उदास, क¸छ पर`शान सा लग रहा ह`।’’
मिणमाला ब त यादा सोचती रहती ह`। अयन एक फ¸रतीला िकशोर—अपने
बचपन क` सािथय और पुराने प रवेश को छोड़कर एक नए थान पर आ जाने से वह
क¸छ उदास सा ह`। समय क` साथ-साथ सब ठीक हो जाएगा। मिणमाला यह न सोचकर
अयन का प रवत’न देख रही ह`। गजब क औरत!
लेिकन मेरी सोच और मिणमाला क सोच म™ आसमान-जमीन का फक’ ह`। उसने
िफर कहा, ‘‘मेरी आँख म™ कोई धूल नह झ क सकता। अयन इन िदन क¸छ
खोया-खोया सा लगता ह`। पटना जाने से पहले भी था—और आज पटना से लौटने क`
बाद वह उससे भी
यादा पर`शान लग रहा था। मुझे वा तव म™ एक डर लग रहा ह`।
मिणमाला ने जैसे ही ‘डर’ श&द का योग िकया, म च f क उठा। पूछा, ‘‘डर? क`सा
डर? निस ग होम म™ गया ह`, इसम™ डर क`सा? अगर अयन उनक मदद क` िलए गया
ह` तो ब त ही अ छा काम िकया ह`, इसम™ डरने क या बात ह`?’’
मिण ने अपनी शंका का खुलासा करते ए कहा, ‘‘आप जो कह रह` ह —सब सही ह`।
लिकन आप और हम तो जानते ह न, अयन क` साथ मेरा नाि़डय का बंधन नह ह`। हालाँिक
eेह का बंधन इतना गहरा और मजबूत हो गया ह` िक म िव ास करती , हमारा
बंधन अब नाड़ी क` बंधन से भी अिधक मजबूत बन गया ह`। िफर भी डर इस बात का
ह` िक अयन को अपने ज म क` पीछ` जो रह य ह`, उसक जानकारी तो नह हो गई ह`?
उसी वजह से वह बदला-बदला नजर तो नह आ रहा ह`?’’
मिणमाला क बात™ सुनकर थोड़ी देर क` िलए म भी हकचका गया। पल भर म™
अपना
िव ास ाw कर म ने डपटकर मिण से कहा, ‘‘यह तुम या कह रही हो? क`से अयन
को यह सब मालूम हो पाएगा, जब तक हम पटना म™ थे—तब तक तुम उसे प रिचत से
दूर रखते थे—जानकारी ाw करने क गुंजाइश ही नह थी। और अब इतने दूर कलक vे
म™ इसक कोई संभावना ही नह ह`। फालतू चीज™ मत सोचो मिण। पागल हो
जाओगी।’’
दोन हथेिलय को जोड़कर ई र को णाम करते ए मिण ने कहा, ‘‘भगवा
कर` आपक बात™ सही ह । मेरा सोचना ही गलत हो—म तह` िदल से यही चा गी।
देिखए, रात तो काफ हो चुक ह`—अयन अभी तक वापस य नह आया?’’
म ने कहा, ‘‘आता ही होगा। रा ते म™ जाम म™ फ स गया होगा। िम टर सेन क` साथ गया
ह`
—िफकर मत करो।’’
क रीब सात िदन पहले जब िम टर सेन रात क` व अपनी अचेत प नी को लेकर
निस ग होम म™ हािजर ए थे, म अंदाज नह कर पाया था िक िमसेज सेन क
बीमारी क जड़ कहाँ तक प च गई थी। एक िचिक सक क ह`िसयत से िमसेज सेन को
होश म™ लाने क` िलए जो क¸छ मुझे करना चािहए था, म ने कोई कसर बाक नह रखी
थी।
लेिकन दूसर` ि दन सबेर` जब िम टर सेन ने उनक प नी क बेहोशी क हालत म™
बड़बड़ाने क बात™ क थ , म ने अपने िचिक सा शाv क` ान और िस सथ स™स
क` मा यम से महसूस
िकया था िक िसफ’ कोई मामूली शारी रक तकलीफ क वजह से िमसेज सेन
नाटक देखते समय अपना होश नह खो बैठी थ ।
िम टर सेन ने कहा िक वे हालाँिक ब ा चाहते थे, िफर भी उ ह™ कोई ब ा
पैदा नह आ ह`। उ ह ने कहा िक वह अपने को िकसी पेशिल ट से जाँच करवाकर पता
लगा चुक` ह िक उनम™ कोई कमी नह ह`। लेिकन अपनी िमसेज को कभी िकसी
गाइनोकोलॉिज ट क` पास जाँच करवाने क` िलए वह ले नह जा सक`। वह जाँच करवाना ही
नह चाहती ह ।
म ने निस ग होम क` गाइनोकोलॉिज ट से िमसेज सेन क जाँच करवाई। डॉ. िमसेज राय ने
िशकायत क ह` िक िमसेज सेन से उ ह™ एक ऐसा बरताव िमला, जो उ ह ने अपने
पेशे म™ कभी भी अनुभव नह िकया ह`।
डॉ. राय से िमसेज सेन क बात™ सुनकर म ताwुब म™ पड़ गया। उनका कहना ह`
िक िमसेज सेन एक बार संतान क` ज म देने का सौभा य ाw कर चुक ह । जब म ने
डॉ. राय से पूछा
िकतने वष’ पहले वह माँ बन चुक ह तो डॉ. राय ने कहा िक सही समय बताना तो
संभव नह ह`, लेिकन उनका अनुमान ह` िक िमसेज सेन दस-बारह साल पहले माँ बन
चुक ह ।
उ ह ने आगे क¸छ ट`किनकल श&द का इ तेमाल करक` कहा था िक जाँच से उ ह™ मालूम
आ ह` िक िपछली बार सव क` समय ही िकसी कार क लापरवाही या गलत इलाज से
िमसेज सेन अपनी जनन श खो बैठी ह ।
थोड़ी देर चुप रहने क` बाद म ने डॉ.िमसेज राय से कहा था, ‘‘िम टर सेन ने कहा
चौदह साल ए उनक शादी ई ह`। उनका कहना ह` िक उनको आज तक ब ा पैदा
नह आ ह`।
या िमसेज सेन ने कोई इ wेिजटमेट चाइ ड क`री क थी?’’
मेरा सवाल सुनकर डॉ. िमसेज राय क¸छ देर तक मुझे देखती रह । िफर उ ह ने
कहा, ‘‘मो ट बैबली इट इज सो। जब म ने उनसे पूछा, ‘‘िकतने साल पहले आप क
संतान ई थी? अगर उस व आप इलाज करवात तो अब तक आप और कई ब क
माँ बन सकती थी।’’ उसने नस’ से हाथ छ¸ड़वाकर िब तर से उछलकर मेर` हाथ को
मरोड़ते ए उ vेिजत ढ ग से ब त क¸छ कहना चाहा।
‘‘अभी भी मुझे याद ह` डॉ. चौधरी, उस व उनका चेहरा eोध से तमतमा रहा था।
यह संभव हो सकता ह` िम टर सेन उस ब े क` िलए िज t मेदार न ह । शायद
इसीिलए िमसेज सेन
उ vेिजत होकर पागल जैसा बता’व कर रही थ । लगता ह`, उ ह ने यह सोचा था िक यिद
िम टर सेन को यह बात मालूम हो जाए तो इसका प रणाम ब त बुरा हो सकता ह`।’’
िमसेज सेन क` इस ‘सडन िड ेशन’ क` कारण का अनुमान हमने लगा िलया था।
डॉ. बसु म w क क` साथ िमसेज सेन क` बार` म™ चचा’ करने क` बाद म और िन
w त हो गया िक वह एक साइकोलॉिजकल ट˘˛रमा क पेश™ट ह`। उनक क यकाव था का
कलंक ही उनक िहड`न कनिफल ट का कारण ह`।
कल डॉ. बसु म w क क` साथ िमसेज सेन क` इलाज क` संबंध म™ िव तार से म ने
चचा’ क ह`। उ ह ने िमसेज सेन क` कई इ टर यू िलये ह । आ w य’ क बाततो यह ह`
िक िपछले सात
िदन म™ िमसेज सेन जा दशा म™ एक भी बात नह कर सक ह , जब िक डॉ.
बसु म w क ने उनसे एक क` बाद एक न पूछकर सारी बात™ पता कर ली ह । उ ह
ने अपनी िलिखत
रपोट’ भी मुझे दे दी ह`। रपोट’ म™ भी उ ह ने यही कारण दरशाया ह`।
िमसेज सेन से जानकारी हािसल करने क` िलए डॉ. बसु म w क ने पेशल ट`कनीक
क मदद से, कभी िह नोटाइज कर सजेशन िहपनोिसस क` मा यम से, तो कभी इन ावेनस
लीप इनिडडिसंग दवा क मदद से आधी न द, आधी जगी हालत म™ उनका इ टर यू
िलया ह`।
उनका कहना ह` िक इमोशनली िड ट&ड’ होेने क वजह से िमसेज सेन क बीती ई
िजंदगी ने उनक वत’मान िजंदगी को बेहद भािवत कर िदया ह`। इसी क` प रणाम
म™ उनका यह सडन अट`क ऑफ अनकनससनेस और लॉस ऑफ वॉयस आ ह`।
डॉ. बसु म w क ने िव तृत v प से िमसेज सेन क` बार` म™ िलखा ह`, ‘‘मानव
म त e क से जिटल एवं अ vुत कोई दूसरी व तु इस दुिनया म™ नह ह`। समय क` साथ-
साथ हमार` जीवन क ब त सी घटनाएँ हमार` अचेतन म™ या म त e क क` गहर`-से-
गहर` कौने म™ सुw रहती ह । ब त िदन क` बाद अगर एक ही प र थित का उ v व हो
जाता ह` तो अचेतन से वही पुरानी बात™ चेतन म™ आकर हम™ उ ांत कर देती ह
। उस व इमोशनल आउटव ट’ हमार` िनयं ण से बाहर चला जाता ह`।’’
िमसेज सेन क` जीवन म™ भी ठीक ऐसी ही बात™ हो चुक ह । कई बार िमसेज सेन क`
इ टर यू लेने क` बाद जो त e य हमार` सामने आए, िमसेज सेन क अ थरता को बढ़ाकर उ
ह™ बेकाबू कर देने क` िलए वे काफ ह ।
‘एक और कण’’ नाटक देखते समय अचानक िमसेज सेन ने e सा क` च र म™ अपनी
िजंदगी क ही तसवीर देखी। e सा जैसी ही िमसेज सेन अपने को असहाय और िक
मत क मारी समझने लगी।
िजस तरह से अपोलो e सा क` साथ यार का नाटक रचकर, उसक क यकाव था म™
ही उसक कोख म™ एक संतान छोड़कर अिलंपस म™ भाग गए थे, िमसेज सेन क
िजंदगी म™ भी
ब एक वैसी घटना घटी थी।
िव िव ालय म™ पढ़ते समय िमसेज सेन, छा ाव था म™ िजनका नाम
क¸मारी िततली दासगुwा रहा, सुनील सा याल उफ’ सिन क` यार म™ अपने को
खो बैठी थी। बड़` िदन क छ¸?ी म™ अपने साथी और सह`िलय क` साथ िपकिनक
म™ जाकर अपने को वह खो बैठी थी।
उ ह™ आदम जैसा िनिष फल िखलाने क` बाद सिन ने भरोसा िदया था िक बी.ए.
परीeा क` बाद उनसे शादी रचाकर सिन उ ह™ प नी क मया’दा दान कर`गा।
लेिकन िततली e सा जैसी ही बदनसीब ह`। अपोलो e सा को संतान उपहार देकर
अिलंपस म™ भाग गए थे और िततली क कोख म™ संतान छोड़कर सिन सागर पार
करक` िकसी दूसर` देश म™ भाग गया था।
e सा अपोलो क तलाश करती रही, लेिकन उसे पा नह सक । िततली भी सिन को ढ
ढ़ती रही, लेिकन उसे वह पा नह सक । बदले म™ िततली को सिन क` माँ-बाप से
अमानिवक
यवहार और न कह` जानेवाली गंदी गािलयाँ िमली थ ।
रईस बाप क इकलौती मातृहीन खूबसूरत िततली तथाकिथत ‘मॉडन’ गल’’ ने अपने
को बचाने क हर कोिशश क , लेिकन बचा नह सक , य िक कोख म™ पले संतान से
छ¸टकारा पाने क समय-सीमा बीत चुकने क` कारण कोई भी िचिक सक उसे मु
िदलाने क` िलए राजी नह आ।
अपने िपता क` सामािजक सtमान और उनक मया’दा बचाने क` िलए और अपने कलंक को
िछपाने क इ छा क` कारण दूसरा कोई और तरीका उ ह™ िदखाई नह पड़ा था। झूठा
बहाना बनाकर वह पटना म™ अपनी फ¸फ`री बहन क` पास जाकर रो पड़ी थी—‘‘िमंतीदी,
मुझे बचा लो।’’
िततली क दीदी काफ होिशयार औरत थी। अपने पित क` साथ सलाह-मशिवरा
करने क` बाद उ ह ने िततली क` िपताजी को िलखा िक अपनी अ यिधक अ व
थता क` चलते वह गृह थी क` सार` काम ठीक ढ ग से िनबटा नह पा रही ह`।ऐन व
पर िततली क` पटना आ जाने से उ ह™ एक सहारा िमल गया। चूँिक िततली क
बी.ए. परीeा क` प रणाम िनकलने म™ और एम.ए. म™ भरती होने क` िलए समय ब
त ह`, िलहाजा वह तब तक िततली को अपने पास रख लेना चाहती ह`।
िततली क` िपताजी ने कोई आपिv नह क थी। िततली क` इस कलंक क` बार`
म™ उ ह™ भनक तक नह लगी थी, य िक लखनऊ छोड़ने से पहले वह करीब चार
महीने से ेगन™ट थी। कोई भी िपता अपनी क¸ वारी बेटी क` गभ’ ठहरने क बात क
क पना तक नह कर सकता ह`, िलहाजा वह भी शक नह कर सक` थे।
उिचत समय से पहले ही एक पु को ज म देकर िततली अपने बोझ से राहत पाई थी।
िजस तरह से e सा ने अपने बेट` को ज ममु त’ म™ ही दासी क` हाथ म™ स f प
िदया था, इस इरादे क` साथ िक वह उस ब े को एथ™स क पहाड़ी गुफा म™ उसे
छोड़ आए, िततली ने भी उसी कार से अपने बेट` को स f प िदया था अपने काश जीजा
और िमंतीदी क` हाथ म™।
उ ह ने अपने पूव’ प रिचत िकसी िनःसंतान दंपती को िततली क` ब े को दान कर
िदया था। लेिकन िमसेज सेन ने कहा िक उस िनःसंतान दंपती ने कोट’ ट प पेपर पर
िततली से िलखवा
िलया था िक उस ब े पर भिव e य म™ िततली का कोई अिधकार नह रह`गा।
‘एक और कण’’ नाटक देखते समय यही सारी घटनाएँ एक क` बाद एक िमसेज सेन
क` अवचेतन से चेतन म™ उभर आई । इसी वजह से वह अपने को e सा क` थान
पर सोचकर
बेहद िवचिलत हो उठी थी।
जब नाटक क` अंितम य म™ e सा अपने छोड़` ए पु को देखकर उ vेिजत और
िवचिलत हो उठती ह` एवं उसका प रचय पाने क` बाद उसे बड़` eेह से अपनी छाती से
लगाकर यार करने लगती ह`, िमसेज सेन भी आयन को अपना छोड़ा आ बेटा समझकर
अपनी छाती से लगाकर क¸छ शांित पाने क उ t मीद से मंच क ओर बढ़ गई थी। शायद रा
ते म™ िकसी व तु से ठोकर खाने क` कारण वह िगर गई थी और िफर बेहोश हो गई
थी।
उस ब े क` बार` म™ िमसेज सेन क गहरी िचंता और इन चौदह साल तक
अपने पित से यह बात िछपाए रखने क मानिसक पीड़ा ने ही उनक मानिसक ढ़ता
एवं वा श को अ थाई v प से न कर िदया ह`।
इस समय भी िमसेज सेन एक मानिसक ं म™ फ सी ई ह`। वह िन w य नह
कर पा रही ह` िक उस बेट` क` बार` म™ अपने पित से कह™ या नह । य िप वह िव
ास करती ह` िक उनक` पित िम टर सेन काफ उदार िवचार क` ह और ‘ए पो स’मैन
इन स™स।’’
िमसेज सेन क अ व थता क` कारण का िव wेषण करने क` बाद डॉ. बसु म w क
ने उनक` इलाज क` िलए क¸छ एंटी ए साइटी और एंटी िड ेिसव स सजे ट िकया
ह`। वह समझते ह िक िमसेज सेन का क`स एक अजीब सा साइकोलॉिजकल क`स ह`।
अपनी रपोट’ म™ उ ह ने िलखा ह` िक िमसेज सेन क आवाज वापस लाने क` िलए
वह अभी भी अपना यास जारी रखे ह ।
इस बार` म™ भी उनक राय ह` िक यिद ‘एक और कण’’ नाटक का दोबारा मंचन
िमसेज सेन क` सामने दिश’त िकया जाए या उस नाटक का पूरा ट`प अगर उ ह™
सुनवाया जाए, तो शायद उनक बंद आवाज िफर से खुल सकती ह`।
इसक` बावजूद डॉ. बसु म w क ने अपनी रपोट’ म™ एक और असंभव सुझाव
िदया ह`। उ ह ने िलखा ह`, ‘‘कई बार देखा गया ह` िक ऐसी घटनाएँ जब घट जाती ह ,
उस भँवर म™ फ से मरीज को वाभािवक बनाने क` िलए उस घटना क` मूल कारण को
उनक` सामने हािजर कर िदए जाने पर वह ब त ज दी व थ हो जाता ह`। अगर
िमसेज सेन क` पास उस प र य ब े को हािजर कर िदया जाए तो ब त संभव ह`
िक उ ह™ तुर त उनक आवाज वापस िमल जाएगी।’’
‘‘एवसड’।’’ कहकर म ने डॉ. बसु म w क क रपोट’ को मेरी दराज म™ रख िदया था।
िजस ब े का नाम, प रचय, पता वगैरा ही मालूम नह ह`—उस ब े को िमसेज
सेन क` सामने हािजर करने क बात से असंभव और या हो सकता ह`?
म सोच रहा था िक िम टर सेन से म या क गा? ि मसेज सेन क` ित उनक
वफादारी और यार को य e करने क` बाद उनक प नी क बीमारी का कारण उ ह™
बताना िबलक¸ल असंभव ह`। इसक` अलावा िम टर सेन से मेरा य गत संबंध भी ब
त पुराना ह`। वह मेर` दो त म™ से एक ह`। उ ह™ उनक प नी क अवैध संतान क` बार`
म™ म क`से क¸छ कह सकता
?
सोचा था ‘वेट एंड सी’ वाली पॉिलसी ही मेर` िलए बेहतर होगी। अगर डॉ. बसु म w क
क` इलाज से िमसेज सेन िफर से बात™ करना शुv कर देती ह` तो मुझे कट¸ स य
नह कहना पड़`गा।
लेिकन वा तिवक घटना म™एक ऐसा मोड़ आ गया ,िजसक क पना तक म नह
कर सका था।
आज शाम क` व िम टर सेन ने जैसे ही एक िकशोर को लेकर िमसेज सेन क` कमर`
म™
वेश िकया, िमसेज सेन ‘वह कौन ह`’? कहकर एक चीख लगाते ए बेहोश हो गई ।
डॉ. बसु म w क उस व िमसेज सेन क` कमर` म™ हािजर थे। िमसेज सेन
क चीख सुनकर वह ब त खुश हो गए। उस िकशोर को अपने साथ लेकर वह अपने
च™बर म™ चले गए।
िमसेज सेन को होश म™ लाने क` िलए म ने उिचत यास िकया। उनको होश आते
ही, िम टर सेन और नस’ को उनक` क`िबन म™ छोड़कर म डॉ. बसु म w क क`
च™बर म™ चला गया।
उस िकशोर का नाम अयन बैनज f ह`। डॉ. बसु म w क अपने बेजोड़ तरीक` से न
पूछ- पूछकर िमसेज सेन क` साथ उसक` र ते का पता लगा िलया।
उसने िव तार से अपनी मानिसक उलझन, पटना क` िमसेज सेन क` पते को मालूम करना,
िम टर सेन से प रचय क` बाद वे छा से निस ग होम आने तक क सारी बात™ डॉ.
बसु म w क क` न क` जवाब म™ बता िदया। काफ यास क` बावजूद भी वह डॉ
टर से क¸छ
िछपा नह सका।
इ टर यू क` व िमसेज सेन क` डॉ. बसु म wक से हाहाकार करते ए कहा था, ‘‘e
सा तो आयन को वापस पा गई थी, लेिकन मुझे तो मेरा आयन नह िमला।’’
अजीब को-इ सीड™ट! िमसेज सेन क` बेट` का नाम आयन नह , अयन ह`।
हमने िम टर सेन से र े ट कर उ ह™ अपने च™बर म™ भेज िदया।
जब अयन को लेकर हम दूसरी बार िमसेज सेन क` क`िबन म™ प चे, वह िब तर पर
बैठी
ई थ । अयन को देखते ही उनक` आँख से eेह बरसने लगा।
िब तर से उतरकर वह अयन क` सामने आकर खड़ी हो गई । उसक` चेहर` क ओर
एकटक देखती ई, दबी आवाज म™ वह बुदबुदाने लगी, ‘‘िबलक¸ल सिन जैसा चेहरा।
िबलक¸ल सिन जैसी नजा-नजाकत।’’
डॉ. बसु म w क ने िमसेज सेन से पूछा, ‘‘िमसेज सेन, इस ब े को आप पहचानती ह ?’’
एक अजीब मोहजाल म™ फ से य क तरह िमसेज सेन ने ब त धीर`-धीर` कहा,
‘‘जी नह डॉ. साहब, िबलक¸ल नह पहचानती। पर अब लग रहा ह`, e सा आयन को
वापस पा जाएगी, य िक e सा क` मन म™ एक भयानक हलचल पैदा हो गई ह`। डॉ.
साहब, इस ब े को मेरी छाती से लगाकर इसक` गाल को चूमने का जी य कर रहा
ह`? म इतनी उतावली
य हो रही , डॉ. साहब।’’
सात-आठ िदन बाद इतनी बात™ कर िमसेज सेन एकाएक हाँफने लगती ह`। वह अ
थर हो उठी।
िमसेज सेन को पकड़ने क` िलए नस’ क` बढ़ने से पहले ही अयन ने उ ह™ पकड़
िलया। अगर अयन ने उ ह™ नह पकड़ िलया होता तो वह िन w त मुँह क` बल फश’
पर िगर जात ।
अयन क` पश’ से ही मानो िमसेज सेन क` शरीर म™ िव ु धारा वािहत हो गई।
पल भर इ तजार िकए बगैर उ ह ने अयन हो अपनी छाती म™ िसमेटकर उसक` दोन
गाल और ललाट पर बीस चुंबन अंिकत कर िदए।
िमसेज सेन क इस अचानक हरकत से अयन िबलक¸ल ह ा-ब ा सा हो
गया। उ ह™ अपने िब तर क ओर ले जाते ए अयन कहता गया, ‘‘आप शांत हो जाएँ
िमसेज सेन। आप शांत हो जाएँ। मेरा नाम आयन नह , ब क अयन बैनज f ह`। म
आपक बगल क` लैट म™ रहता ।’’
िब तर पर बैठकर भी िमसेज सेन ने अयन को बाँह से अलग नह िकया। हमारी उप
थित क परवाह िकए बगैर वह लगातार अयन क` िसर, गाल और सार` बदन पर हाथ
फ`रते ए, चूमते ए उसे पर`शान कर िदया।
सोलह-स ह साल का एक िकशोर एक अनजान मिहला क` इस पागल जैसे बरताव
से काफ पर`शानी महसूस कर रहा था, लेिकन हम समझ रह` थे िक अयन क` िलए भी
ितरोध बनाए रखना मु कल हो रहा था। लग रहा था िक िकसी भी व उसक
आँख क` आँसु पर लगा बाँध ट ट जाएगा।
डॉ. बसु म w क ने िमसेज सेन क` आिलंगन से अयन को छ¸ड़वा िलया। उ ह ने
िमसेज सेन से कहा, ‘‘अयन क` िपता शु ांशु बैनज f आपक` ने सट डोर नेबर ह ।
िमसेज सेन, या आप उ ह™ पहचानती ह ? कभी उ ह™ आपने देखा ह`?’’
आँसू, ह सी, उ साह, खुशी वगैरह िभ -िभ भावना से िमली ई एक अजीब
आवाज म™ िमसेज सेन िच wा उठी, ‘‘अयन, मेरा बेटा, एक बार, िसफ’ एक
बार मुझे माँ कहकर पुकार दे बेटा। िसफ’ एक बार मुझे माँ कहकर पुकार दे बेटा।
एक बार िसफ’…’’
अिभमान से भरी आँख से िमसेज सेन क ओर अयन देखता ही रहा। अपनी ज मदा ी
क` बार-बार कहने पर भी अयन ने उ ह™ ‘माँ’ कहकर संबोिधत नह िकया।
पीछ` लौटकर क`िबन से बाहर जाते व उसने धीमी आवाज म™ कहा, ‘‘आप
गलतफहमी म™ ह । बार-बार आप भूल कर रही ह । मेरी माँ का नाम मिणमाला बैनज f
और िपता का नाम शु ांशु बैनज f ह`।’’
ऐसा लगा िक अपने आँसु को िछपाने क कोिशश करते ए अयन क`िबन छोड़कर
चला गया।
म समझ नह पा रही िक अयन को अचानक हो या गया ह`? दस-बारह िदन ए
हम कलक vे म™ आए ह । हमार` सामान क` यहाँ प चने से पहले तीन-चार िदन तक
हम माँ क` पास थे। िफर इस लैट म™ आए ह । श्◌ुv-शुv म™ तो अयन काफ
खुश नजर आ रहा था। बचपन म™ जब हमार` साथ वह बाहर घूमने जाता था, उस
व िजस तरह से शोर-शराबा मचाता रहता था—िबलक¸ल ऐसी ही फ¸रती हमने अयन
म™ यहाँ आने पर देखी थी।
लेिकन करीब सात-िदन पहले जब हम इस लैट म™ सामान क` ढ`र को सही
जगह पर रखने क कोिशश कर रह` थे, पता नह उस व अयन को या हो गया। लगता
ह`, अब वह इस दुिनया म™ नह ह`। हमेशा खोया आ सा लग रहा ह`।
यहाँ आने क` दो िदन बाद अयन अचानक पटना चला गया था। कहा था िक अपना क ल
लीिवंग सिट’िफक`ट अपने दो त को दी ई िकसी िकताब म™ वह रख छोड़ा ह`।
अगर खुद नह जाएगा तो िमलना मु कल ह`। म ने कोई िवशेष आपिv नह क थी।
बचपन से लेकर स ह साल तक पटना म™ ही उसक` तमाम दो त ह । सोचा था िक
उनसे िबछ¸ड़कर अयन मायूस हो गया होगा, अगर दो िदन क` िलए पटना घूम आए तो
हज’ या ह`?
तीन-चार िदन क` अंदर ही वह वापस तो आ गया, लेिकन हम™ लग रहा ह` िक पटना
म™ जाने और लौटने म™ अयन का ब त बड़ा प रवत’न हो गया ह`। वहाँ पर ऐसी
कौन सी बात हो गई, मेरी समझ म™ नह आ रही ह`।
अयन क` िपताजी का कहना ह` िक बचपन क` दो त से िबछ¸ड़ जाने क` कारण ही
उसक` मन म™ मायूसी छा गई ह`।
लेिकन मुझे यह िव ास नह हो रहा ह`। बचपन से जो इतना चंचल, ह समुख और
मजािकया था, रातोरात उसम™ इतना प रवत’न क`से आ गया। आज सबेर`, जब से वह पटना
से वापस आया, हम लोग से दो ट क अ छी तरह से बात™ तक नह क ह । दोपहर म™
खाने क मेज पर बैठा, लेिकन ढ ग से खाया नह । जब भी म उसक` वा e य क` बार`
म™ पूछ रही , कर रहा ह`, सब ठीक ह`।
खाना-खाने क` बाद वह अपने कमर` म™ चला गया था। म सोची थी िक `न जन f से
शायद थक गया ह`, इसिलए म ने उसे पर`शान नह िकया।
शाम को चाय पीने क` बाद कहा, ‘‘चलूँ, बगल क` लैट म™ अंकलजी से प रचय
कर आऊ ।’’
मुझे थोड़ी सी राहत िमली थी। पटना म™ भी म ने उसक` वभाव म™ यह चीज देखी
थी। आज इसक` घर पर, तो कल उसक` घर घूम-घूमकर ग प लड़ाया करता था।
थोड़ी देर म™ ही वह लौटकर आया। कहा िक बगल क आंटीजी बीमार ह ।
िफलहाल वह निस ग होम म™ ह`। उ ह™ देखने और अंकलजी को क¸छ मदद करने वह
भी अंकलजी क` साथ निस ग होम जा रहा ह`।
म उसे रोक नह । अगर पड़ोसी क आफत म™ वह उ ह™ मदद करना चाहता ह` तो
म य उसे रोक ? कोई बुरा काम तो नह ह`। आफत क` िदन म™ ही तो लोग पड़ोिसय
से मदद क
उ t मीद करते ह । इसक` अलावा सोची थी, चलो अयन को कम-से-कम एक काम तो
िमला। अब शायद वह अपनी मायूसी से छ¸टकारा पाएगा।
जब अयन क` िपताजी द तर से वापस आए, तो म ने उनसे बगल क` लैट क` स w न
क` बार` म™ कहा था। उ ह ने कहा िक िम टर सेन से उनका प रचय हो चुका ह`।
वह िकसी म टी नेशनल क पनी क` ए ज यूिटव ह । िनहायत स w न और बड़`
िमलनसार आदमी ह । िसवाय उनक प नी उनक` प रवार म™ और कोई नह ह`। उ
ह` कोई ब ा भी नह ह`। अगर अयन उनक मदद क` िलए गया ह` तो ब त ही नेक
काम क` िलए गया ह`।
लेिकन रात को जब अयन निस ग होम से वापस आया तो हमार` आ w य’ का िठकाना
नह रहा। बेल बजते ही रामहरख ने दरवाजा खोल िदया। ाइ ग v म म™ बैठकर अयन
क` िपताजी एक ि स हाथ म™ िलये बड़` यानपूव’क लुडलाम क ‘दी कारलेट इनह`
रट™स’ उप यास पढ़ रह` थे। म भी ‘मिहला’ पि का म™ ‘आपक संतान क सम या
म™ आपक भूिमका’ नाम का एक लेख पढ़ रही थी।
दरवाजा खुलते ही म ने देखा िक अयन पर`शानी से भरा, थक` कदम से, अपने पैर को
बोझ जैसा ख चते ए अपने कमर` म™ चला गया। ऐसा तीत आ िक उसे चलने
म™ काफ तकलीफ हो रही ह`। हमारी तरफ उसने देखा भी नह ।
आज तक बाहर से लौटकर मुझसे एक भी बात िकए बगैर अयन कभी भी अपने कमर`
म™ नह गया ह`, लेिकन आज ऐसा लगा िक मानो अपना िसर झुकाए ट ट` ए आदमी
जैसा वह चला गया।
िकताब से आँख™ उठाकर हम दोन ने अयन को देखा। अयन म™ यह प रवत’न
देखकर म अवाक˛ रह गई। शायद मुझे एक झटका भी लगा था, लेिकन पल भर म™
ही अपना दुःख भुलाकर म अयन क` िलए िचंितत हो उठी। या अचानक अयन क
तबीयत तो नह िबगड़ गई?
लेिकन दूसर` ही e ण मुझे याद आया िक थोड़ी सी भी हरारत अयन को महसूस होते
ही, मुझसे कह` बगैर वह रह नह सकता ह`। मुझसे िजतना ही नाखुश हो, अपनी अ व
थता क` समय अगर म उसक बगल म™ न बैठी र , तो शोर मचाकर मुझे आज भी
पागल बना देता ह`। िलहाजा उसक तबीयत म™ कोई त&दीली नह आई ह`। तो
िफर? या हो गया ह` अयन को?
इसी सोच म™ म याक¸ल हो उठी। कभी भी अयन क` यवहार म™ ऐसा प रवत’न
म ने नह देखा ह`। इसी वजह से मेर` मन म™ एक शंका भी पैदा हो रही ह`। हो सकता
ह` मेरी शंका
िनराधार हो, हो सकता ह` मेरी शंका अवा तिवक हो—लेिकन िफर भी मन से म इसे
दूर हटाकर िन wंत नह हो पा रही ।
अयन क` साथ मेरा नाि़डय का बंधन नह ह`, लेिकन eेह का बंधन इतना गहरा ह`, मजबूत
ह` िक मुझे यक न ह` िक eेह और यार का बंधन नाड़ी क` बंधन क अपेeा अिधक
मजबूत बन गया ह`।
लेिकन अयन को तो यह बात मालूम नह ह`। मेरी या अयन क` िपता क` बरताव,
यार, उसक` िलए िचंता, सगे माता-िपता से िकसी मा ा म™ कम नह ह`। हमार`
eेह या यार म™ कोई
िमलावट नह ह`। हम दोन क` िदल म™ अयन क` अलावा और िकसी का थान भी
नह ह`। हमार` बरताव म™ भी कोई प रवत’न नह आया ह`।
अचानक मेर` िदमाग म™ आया, या अयन को अपने ज म क` पीछ` जो रह य ह`,
उसक जानकारी तो उसे नह हो गई ह`? या उसी वजह से वह व त जैसा नजर आ रहा
ह`? या इसीिलए घर लौटकर हमसे एक श&द कह` बगैर वह चुपचाप अपने कमर` म™
चला गया? आिखर कौन सी ऐसी घटना घट गई, जो अयन मुझे भी नह बता सकता ह`?
एक क` बाद एक सवाल मेर` िदमाग म™ गूँजने लगे। सोचा, आज तक अयन ने मुझसे
एक भी बात नह िछपाई ह`, लेिकन आज वह मुझे टाल य गया? अब तक घर लौटकर
अगर वह मुझे देखता नह था तो ‘माँ, ऐ माँ कहाँ हो’ कहकर गला फाड़-फाड़कर िच wाने
लगता था, तो िफर आज मुझे अनदेखा कर गूँगा जैसा अपने कमर` म™ वह चुपचाप य
चला गया?
इतनी छोटी-मोटी चीज पर अयन क` िपताजी कभी गौर नह करते ह —िलहाजा आज भी
उ ह ने गौर नह िकया। िफर से वह अपने उप यास क` प म™ ड ब गए ह ।
लेिकन म या क v ? अयन क इस िवचिलत और िव म क हालत म™ म िकस
माँ क ह`िसयत से उसक` पास जाऊ ? िसफ’ eेह क` दावे क` साथ जाऊ ? जहाँ खून का
कोई दावा नह ह`, िसफ’ यार क` दावे से ही अयन क` पास जाकर या मेरा यह पूछना
उिचत होगा िक बेटा अचानक तू इतना मायूस य हो गया? अचानक तेर` यवहार म™
इतना प रवत’न क`से आया?
लेिकन अयन अगर अपने ज म क` बार` म™ मुझसे पूछ बैठा तो? अगर वह अपनी ज
मदा ी माँ क` बार` म™ जानना चाहा तो? म या जवाब दूँगी? सही या झूठ?
मेर` मन म™ हर पल यह शंका बनी रहती ह`। जब तक पटना म™ थी, हमेशा म
भयभीत रहा करती थी िक कब घर लौटकर अयन अपने ज मदा ी क` बार` म™ मुझसे
पूछ बैठ`। हमेशा म यह सोचकर काँट` क चुभन महसूस करती थी िक यिद कोई
पड़ोसी या अयन क` िकसी सहपाठी—उससे बात -बात म™ सही बात बता दी,
तो म या क v गी, अयन को या समझाऊ गी? मासूम ब े क` मन म™ बेवजह एक
तूफान मच जाएगा। हो सकता ह`, िजंदगी भर क` िलए उसक िवचारधारा ही गलत
रा ते को पकड़ ले।
अयन को गोद लेने क` बाद इसी डर से हम पटना शहर क` पूरब से प wम क ओर
चले गए थे। हालाँिक पूरब क` पड़ोसी प w म म™ हमसे िमलने आते थे, लेिकन वे
अयन से कभी क¸छ नह कहते और न तो उसक` सामने उसक` ज म को लेकर कोई बात
हमसे ही वे कहते।
लेिकन अब? पटना छोड़कर कलक vे म™ चले आने क` बाद भी मेर` मन म™ ये
सार` न य पैदा हो रह` ह ? म इतनी डरती य ?
मेरी इस शंका का कारण शायद िसफ’ एक ही ह`। िकसी भी य को उसक` ज म क`
बार` म™ सही या झूठ क¸छ भी कहकर उसक` मन म™ बड़ी आसानी से गलतफहमी भर
दी जा सकती ह`। अगर िकसी क` मन म™ यह शक एक बार पैदा हो गया तो िजंदगी
क` आिखरी िदन तक
उसे इससे छ¸टकारा नह िमल सकता ह`। य िप हर आदमी जानता ह` िक उसक` ज म
क` बार` म™ िसवाय उसक` माता-िपता और िकसी को जानकारी रह ही नह सकती
ह`, िफर भी अगर एक बार संदेह का बीज िदमाग म™ बोया गया तो वह उसे क¸र`द-
क¸र`द खा डालेगा। लेिकन माता-िपता से, वा तव म™, इस दुिनया म™ बड़ा और स य,
कौन हो सकता ह`?
म अपने से ही पूछ बैठी, ‘‘ या गोद िलये ब े या पले ए ब े क` िलए भी
यह तक’ जायज ह`?’’ पालनेवाले माता-िपता तो ज म देने वाले नह होते ह । वैसी थित
म™ अगर पाले
ए पु अचानक कह से स ाई क` बार` म™ जानकर अपने पालन-पोषण करनेवाले माता-
िपता से अपने ज म क` बार` म™ पूछ बैठ`, तो वे या जवाब द™गे? या वे सच
कह™गे? या पु क` मानिसक वा e य को यान म™ रखकर स ाई को िछपाकर,
िम e या का मायाजाल रचकर अपने eेह, अपने लाड़- यार क` दावे क मया’दा रख™गे?
म समझ नह पा रही िक मेरा कत’ य या ह`? शायद मेर` इस ढ ग से िचंितत होना ही
िनराधार ह`। हो सकता ह` िकसी दूसरी वजह से अयन पर`शान नजर आ रहा ह`। लेिकन य ?
सोफा से उठकर म ने अयन क` कमर` क ओर जाने का िन w य कर िलया।

पं ह-सोलह साल पहले बाबूजी ने कहा था, ‘‘नसीब बदला नह जा सकता।’’


आज अचानक बाबूजी क बात™ मुझे याद आ गई ।
उस व बाबूजी नह चाहते थे िक िततली से मेरी शादी तय हो। िततली क ज मक¸
डली देखकर वह काफ सी रयस हो गए थे, लेिकन मेरी क¸ डली क` साथ योजक िवचारकर
उ ह ने माँ से कहा था, ‘‘मेरी हजार आपिv क` बावजूद यह शादी होकर रह`गी। तुtहार`
बेट` क` नसीब म™ vी भा य से धन ह`, लेिकन क¸छ काँट` भी रह™गे।’’
माँ ने कहा था, ‘‘जब आप कह रह` ह — काँट` ह , तो य नह उसे हटाने का कोई इ तजाम
करते ह ?’’
बाबूजी ने माँ से कहा था, ‘‘नसीब बदला नह जा सकता ह`।’’
कल रात को निस ग होम से एक अजीब मानिसक हालत म™ घर लौट आया था। लैट म™
लौटकर िकतने पेग क म ने ली ह`, मुझे याद नह ह`।
गणेश ने पहले कभी मुझे इस तरह बेिहसाब शराब पीते देखा नह था। काफ िदन से
वह हमार` घर पर ह`। शायद उसी ह`िसयत से गणेश ने कहा था, ‘‘साहब, और मत पीिजए।’’
म ने गणेश क बात™ अनसुनी कर दी थ । डाँटकर उसक जबान म ने बंद करवा दी थी।
मुझे याद नह िक िफर कब म सो गया था।
आज सुबह आँख™ खोलने क` बाद काफ देर तक स सा म लेटा था। समझ रहा था
िक अभी तक ‘ह ग ओवर’ समाw नह आ ह`। उसी समय माँ और बाबूजी क बात™
मुझे याद
आई ।
कल रात को डॉ. चौधरी क` च™बर म™ बैठकर डॉ. चौधरी और डॉ. बसु म w क ने
काफ देर तक बात™ क Ė।
िततली क` क`िबन से अयन क` िनकलते ही उसक` पीछ`-पीछ` डॉ. चौधरी भी िनकल
आए थे। बाहर आते ही उ ह ने अयन को देखा था। अयन ने जब मुझे कह नह देखा
तो डॉ. चौधरी से उसने पूछा था, ‘‘ या सेन अंकल चले गए ह ।’’
डॉ. चौधरी ने उससे कहा था िक म उनक` च™बर म™ इ तजार कर रहा ।
लेिकन अयन उनक` साथ च™बर म™ नह आया। ब क उसने डॉ. चौधरी से कहा
था, ‘‘ लीज डॉ टर, आप अंकल से कह दीिजएगा िक म घर जा रहा ।’’
मुझसे िमले बगैर ही अयन चला आया था। म ने डॉ. चौधरी से ही ये बात™ सुन ।
थोड़ी देर बाद डॉ. बसु म w क भी डॉ. चौधरी क` च™बर म™ आ गए थे। दोन आदमी
थोड़ी देर तक चुपचाप क¸रसी पर बैठ` रह`। उ ह™ चुप देखकर म सोच रहा था—‘‘ या
िततली क हालत िफर से िबगड़ गई ह`? या उसक आवाज िफर से बंद हो गई?’’
म ने दोन डॉ टर से यह पूछा भी था, लेिकन डॉ टर चौधरी ने कहा था िक िततली
ठीक ह`।
डॉ. बसु म w क ने मुझसे पूछा था, ‘‘िम टर सेन, अयन क` साथ आपका प रचय
आ, आपने उससे बात™ भी क ह`। क`सा लगा वह आपको?’’
म ने कहा था, ‘‘मुझे तो वह बड़ा स w न और मधुर वभाववाला लगा। आप ऐसा य
पूछ रह` ह ? या उसने िततली क` साथ कोई बदसलूक क ह`?’’
िसर िहलाते ए डॉ. बसु म w क ने कहा था, ‘‘जी नह , ऐसी बात नह ह`। उसने
िमसेज सेन से कोई बुरा यवहार नह िकया ह`, ब क म अयन का र`स ™ड और
सोवर बरताव देखकर दंग रह गया। म ने तो उ t मीद क थी िक उसका जबरद त
इमोशनल आउटव ट’ होगा। म अयन क` म™टल िडफ` स क दाद देता ।’’
म ने चिकत होकर पूछा था, ‘‘आपने ऐसा य सोचा था िक अयन का इमोशनल
आउटव ट’ होगा?’’
डॉ. बसु म w क ने कहा था, ‘‘अयन को देखते ही सात िदन क` बाद िमसेज सेन क
बंद आवाज खुल जाते ही म समझ गया था, ही इज दी पार र`मेडी। आप ने गौर िकया था
न, म अयन को उसी व अपने च™बर म™ ले गया था?’’
‘‘जी हाँ, जी हाँ, लेिकन उससे आपने या पता लगाया डॉ. बसु म w क?’’
काफ उ सुक होकर म ने उनसे पूछा था।
डॉ. बसु म w क ने कहा था, ‘‘िमसटर सेन, या आपको मालूम ह`, हम जैसे
साइिकयाि स का काम या ह`?’
जवाब िदए बगैर म उनक` चेहर` क ओर देखता रहा।
मुसकराकर डॉ टर ने कहा था, ‘‘ प श&द म™ गंदगी छानना। मन क हर परत म™
गंदगी इक ा होते-होते मन को गंदा बना देती ह`। हम लोग अपनी हमदद f क`
हौजपाइप से इस पंिकल मन को साफ करक` पेश™ट का कॉ फड™स पाने क उ t मीद
करते ह । धीर`-धीर` मरीज क` िव ासपा बनकर बात -बात म™ उसक` मन क सारी
गंदिगय को बाहर िनकालकर मन को शीशे क तरह साफ करने क कोिशश करते ह ।’’
थोड़ा सा ककर डॉ. बसु म w क अपनी जेब से काफ खूबसूरत एक िसगर`ट क`स
िनकालकर मुझे और डॉ. चौधरी को एक-एक िसगर`ट दी और अपने ठ पर भी एक
लगा ली।
म ने अपने लाइटर से सबक िसगर`ट सुलगा दी थी।
डॉ. बसु म w क ने कहा था, ‘‘अ छा िम टर सेन, या कभी आप बाउल मेले म™
गए ह` या बाउल का गीत सुना ह`?’’
अचानक उनक` िवषय बदलने से और बाउल क बात™ पूछने से मुझे बड़ा
आ w य’ आ था। म ने चिकत होकर कहा था, ‘‘जी नह , ऐसा मौका मुझे कभी नह
िमला।’’
डॉ. बसु म w क ने कहा, ‘‘ या अपने क` दुली क` बाउल मेले क` बार` म™ सुना ह`?
जब म मेिडकल कॉलेज म™ पढ़ता था, उस व दो त क` साथ एक दफा म उस मेले
म™ गया था। पता नह िकतने तरह क` बाउल सं दाय को म ने वहाँ देखा था, िकतने
िक म क` बाउल गीत को म ने सुना था। हर गीत क` श&द तो याद नह ह , लेिकन एक
गीत म आज तक नह भूल सका।’’
डॉ. बसु म w क संगीत क` भी इतने शौक न ह , मुझे मालूम नह था। लेिकन मेरी मानिसक
थित उस व गीत सुनने लायक नह थी। तब भी िश ाचार क` खाितर म ने पूछा था,
‘‘वह गीत या था?’’
मुसकराकर उ ह ने कहा था, ‘‘गाकर तो म सुना नह सकता, लेिकन उस गीत का
सारांश ह`—‘आसमान क` आईने म™ मुझे अपने मन क परछाई देखने को िमलती ह`।
अर` ओ भले आदमी, िकस बंधन म™ फ सकर तू घर क` अंदर बँधा पड़ा ह`? अपने मन
को खोल दे, तुझे भी अपने मन क परछाई आसमान क` आईने म™ िदखाई पड़`गी?’’
इतनी देर बाद म डॉ टर क बात का मम’ समझ पाया।
‘‘जानते ह िम टर सेन, मन अगर साफ ह` तो उसका परावत’न आकाश क` आईने म™
होता रहता ह`। हमारा काम ही ह`, मन को साफ करना। िमसेज सेन क` मन क गाँठ को
खोलकर उसे चमकाते समय हम™ भी काफ गंदगी छाननी पड़ी।’’
काफ शंका क` साथ म ने डॉ. बसु म w क क ओर देखा था। िततली क` मन क
गाँठ खोलते व डॉ टर ने कौन से त e य का आिव e कार िकया?
‘‘अयन से िमलने से पहले ही म ने िमसेज सेन क गाँठ को करीब-करीब खोल ही
िलया था। िसफ’ म इ तजार कर रहा था िक कब उ ह™ उनक आवाज वापस िमले। इस
बार` म™ म ने अपनी राय डॉ. चौधरी को भी दे चुका था।’’
डॉ. बसु म w क कहते गए, ‘‘लेिकन आज जब आप अयन को साथ लेकर आए, तो
मुझे लगा िक म जो चाह रहा था, आप वही ले आए। म ने अयन को ‘गॉ स™ट’ समझा
था।’’
म ने कहा था, ‘‘ या अयन को देखते ही िततली सात िदन बाद बात™ कर सक थी,
इसिलए ही आपने उसे गॉ स™ट समझा था।’’
‘‘इ जै टली सो। इसक` अलावा अयन को अपने च™बर म™ ले जाकर साइको सजेसन
क` मा यम से उसक सोच-समझ का भी थोड़ा सा पता लगाने क म ने कोिशश क
थी। मानिसक v प से अयन को थोड़ा सा उकसाने क` बाद उसने िजतना उगल िदया—ि
मसेज सेन क` बयान क` साथ उसका कोई अंतर नह था।’’
म ने अँधेर` म™ टटोलने जैसे समझने क कोिशश क थी डॉ. बसु म w क कहना या
चाहते ह ? िततली और अयन क` बयान म™ समानता क`से हो सकती ह`?
डॉ. बसु म wक क` कते ही डॉ. चौधरी ने िनताई को बुलाकर तीन कप कॉफ लाने क`
िलए कहा।
कॉफ पीते ए डॉ. चौधरी ने कहा, ‘‘िम टर सेन, हमारी िजंदगी म™ ऐसी ब त सी
घटनाएँ घट जाती ह , िजसे हम सोच तक नह सकते ह । या आप इस िवचार से सहमत
ह`?’’
डॉ. चौधरी क` न क` जवाब म™ म ने कहा था, ‘‘यस डॉ टर, इट समटाइ t स ह`प
स। म अिव ास नह करता ।’’
डॉ टर बसु म w क ने डॉ टर चौधरी क बात को आगे बढ़ाते ए कहा, ‘‘िमसेज सेन
क` साथ भी एक ऐसी ही घटना घट चुक ह` िम टर सेन। उस रात को उ ह™ ‘एक
और कण’’ नाटक म™ ले जाकर आपने अनजाने म™ ही एक अिव सनीय घटना क`
मोिटवेटर का काम कर िदया था।’’
म डॉ टर बसु म w क क बात को समझ नह पाया था। चिकत होकर म उनक
तरफ देखता ही रह गया था।
लेिकन उ ह ने मुझसे सारी बात™ कह दी थ । उ ह ने कहा था, ‘‘मरीज क अपनी बात™
िकसी और से कह देना वािजब नह ह`। हमारा वह ोफ`शनल एिथ स होता ह`, लेिकन
इस मामले म™ अगर म न क तो मरीज का ही नुकसान हो जाएगा। इसिलए, म सारी
बात™ आपसे
िव तार से ज v र बताऊ गा।’’
इसक` बाद उ ह ने िततली क िजंदगी क सारी बात™ बड़` िव तार से कह दी थ
। अयन क` साथ िततली का र ता, मुझसे यह बात िछपाकर रखने क` िलए िततली क
जी-तोड़ कोिशश, ‘एक और कण’’ नाटक देखते व इमोशनली िड ट ड’ होकर अचानक
म™टल िडफ` स खो बैठने पर उसका बेहोश हो जाना और अंत म™ अयन को देखकर
िततली क ितिe या—सारी बात™ िव तार से डॉ टर बसु म w क ने मुझसे कह
िदया था।
अिव सनीय बात™! ह`मलेट जैसा मेरा भी जी चाहा िक म कह उठ — “There are
more things in heaven and earth, Horatio, Than are dreamt of in our
philosophy.”

नाटक क` दौरान िततली क हालत िबगड़ने क बात मुझे याद आई। िजतनी बार e सा
या अयन मंच पर हािजर ए, िततली यादा बेचैन हो उठी थी। या यही सब कारण
रहा?
डॉ. बसु म w क क¸रसी छोड़कर मेर` पास आ गए थे। मेर` हाथ को अपने हाथ म™
लेकर उ ह ने कहा था, ‘‘िम टर सेन, नाउ इ स अप ट यू’ हाऊ यू वुड ट`क इट। लेिकन
ऐज ए साइिकयाि क, म समझता िक यिद आप सपोिट गली इस बात को मान लेते ह ,
भिव e य म™ और कोई सम या पैदा नह होगी।’
उ ह ने कहा था, ‘‘आ टर ऑल, अयन क रिजिडटी देखकर मुझे लगा िक वह
िमसेज सेन क` पास लौटकर नह आएगा और न तो वह उ ह™ माँ कहकर संबोिधत ही
कर`गा। िसफ’ अपनी ज मदा ी माँ को देखने क जो लेट™ट िडजायर उसम™ थी, वह
पूरी हो गई ह`। सो अयन इज नॉट गोइ ग ट िe एट एनी ॉ&लम फॉर यू। िमसेज
सेन को भी उनक वा श वापस
िमल गई ह`। आप अगर चाहते ह तो दो-चार रोज उ ह™ ऑ&जव´शन म™ रखने क` बाद
हम उ ह™ निस ग होम से िड चाज’ कर द™गे।’’
हम दोन क पसंद से खरीदे गए लैट क` बेड v म म™ लेट`-लेट` बेड टी पीते ए म
यही सारी बात™ सोच रहा था। िततली और म ने दोन ने एक साथ इस लैट क` िलए
हर चीज™ एक साथ पसंद करक` खरीदी थ । दोन ने एक साथ लैट को मनमािफक
सजाया था। कभी भी
िततली क` साथ िकसी भी बात पर मेरा िवरोध नह आ ह`। ाइ ग v म क` म टलपीस पर
रखी
ई िसर िहलानेवाली बूढ़`-बूढ़ी क तरह हम दोन ने हमेशा एक-दूसर` क बात पर िसर
िहलाते रह`, लेिकन आज म या क v ?
बाबूजी ने कहा था, ‘‘क¸छ काँट` भी रह™गे।’’
या अयन ही वह काँटा ह`—जो िजंदगी भर हम™ क चता रह`गा?
‘‘नो, नो, नेवर।’’ म एक झटक` म™ िब तर छोड़ कर खड़ा हो गया। सीधे
बाथ v म चला गया। बाथ v म से w`श होकर बाहर िनकलने क` बाद भी मेर` कान म™
बाबूजी क ही बात™ गूँज रही थ ।
मेर` सवाल क` जवाब म™ बाबूजी ने कहा था, ‘‘मुझे यक न ह` िक वा तिवकता को
इनकार करने वाले बेवक फ तुम नह हो। प र थितय क` साथ अपने को िनयोिजत कर
लोगे।’’
आज वह िवकट प र थित दरवाजे पर द तक दे रही ह`। अगर म अपने को एडज ट
नह कर लेता तो शायद िततली क जुबान हमेशा क` िलए बंद हो जाएगी। शायद म भी
िततली को हमेशा क` िलए खो दूँगा।
ेकफा ट लेते व म ने मन-ही-मन तय कर िलया, ‘‘बीई ग ए पो स’मैन ऑल
एलॉग, आई म ट ए से ट िदस चैल™ज। िततली क` बगैर म जी नह सक गा, िततली
क बात™, ह सी, गीत सुने बगैर म इस लैट म™ िकसी भी हालत म™ रह नह सक
गा। इसीिलए काँट` क चुभन क म परवाह नह करता —आई क`यर ए िफग।’’
अपने साथ ही काफ तक’ करने क` बाद म ने काफ राहत महसूस क । मन हलका हो गया।
ज दी से म गैर`ज से गाड़ी िनकालकर निस ग होम क` िलए रवाना हो गया। काफ देर हो
गई ह` िक म ने िततली क` चेहर` को नह देखा ह`।

न ह कहवा सक , िकसी भी हालत म™ म अयन से एक बार ‘माँ’ नह कहवा सक ।


िजस तरह से ‘एक और कण’’ नाटक म™ क¸ ती तमाम कोिशश और अपने प रचय देने
क` बावजूद कण’ से ‘माँ, संबोधन नह करा पाई थी, म भी अपनी सारी बात™ अयन से
बताकर भी उससे ‘माँ’ संबोधन एक बार भी नह करा पाई। म ने याक¸ल होकर उससे
ाथ’ना क थी िक वह
िसफ’ एक बार मुझे ‘माँ’ कहकर पुकार`, लेिकन वह मुझे ‘माँ’ क` v प म™ वीकार
करना नह चाहा।
िसफ’ इसी संबोधन को सुनने क` िलए म िपछले स ह साल से उतावली । एक ऐसी
पीड़ा, एक ऐसी यातना म भोगती आ रही िक इस दद’ क` बार` म™ म सुमन से कभी
न कह सक और न कहना मेर` िलए संभव था।
मेरा नसीब भी अजीब ह`। िजससे म सारी बात™ िछपाना चाहती थी, अयन को साथ
लेकर वह ही निस ग-होम म™ आया। म ने कभी भी िक मत, भा य, कम’फल, िनयित
या नसीब म™
िव ास नह िकया ह`। मुझे िसफ’ इनसान पर िव ास था, इनसािनयत पर िव
ास था। उसी इ सान से मुझे चरम मानिसक चोट िमली और उसी इनसान से मुझे अपार
ेम भी िमला।
सिन से जो चोट मुझे िमली ह`, उसी चोट क वजह से आज भी मुझे चैन नह ह`,
जबिक सुमन क` यार म™ कोई िमलावट नह ह`, मुझसे यादा कौन इसे समझ सकती
ह`?
कल अयन से िमलकर मुझे सिन क बात याद आ गई थी। िबलक¸ल सिन जैसी
अयन क नाज-नजाकत। लगता ह` अयन का मुखड़ा सिन का ही ह`। या इसी वजह से ही
थोड़ी देर क`
िलए अयन को अपनी छाती से लगाकर मुझे क¸छ शांित िमली थी?
लेिकन अयन तो मुझे ‘माँ’ कहकर संबोिधत ही नह करना चाहता। या उसे वा
तिवकता क` बार` म™ मालूम ह`? या मुझ पर अिभमान क` कारण ही उसने मुझे
‘माँ’ कहकर नह पुकारा?
अगर वह मुझसे नाराज नह होगा तो मेर` eेह पश’ से उसक आँख म™ आँसू य आ
गए थे? या अपने आँसु को िछपाने क कोिशश म™ वह मुझे v खे वर म™
इनकार करते ए कमर` से चला गया?
उसक` पैदा होने क` तीन िदन क` अंदर दूसर` क` हाथ म™ उसे स f पने क` बाद से म
तो उसे पल भर क` िलए भूल न सक । मुझे याद भी नह रहा िक िमंटीदी और
काश जीजाजी ने
िकस क` पास उसे दे िदया था।
ब े क` पैदा होने क` तीसर` ही िदन िमंटीदी एक स w न और उनक प नी को घर
ले आए थे। वह स w न तो दूसरी मंिजल म™ आए नह थे—शायद वह बैठक क` कमर`
म™ ही बैठ` ए थे। उनक प नी को ऊपर मेर` कमर` म™ लाकर िमंटीदी मुझसे एक
ट प पेपर पर पता नह या
िलखवाकर, ब े को उनक गोद म™ देती ई दोन नीचे चले गए थे।
आ w य’ क बात ह` िक मुझे याद ही नह रहा िक म ने ट प पेपर पर उस
स w न और उनक प नी का या नाम िलखा था। कल अचानक डॉ टर बसु म
w क से उनका नाम सुनते ही मुझे तुर त याद आ गया था।
म ने िकतनी बार सुमन से अपनी बात™ कहनी चाह , लेिकन कभी भी अपनी शम’ को
यागकर म उसे अपने कलंक क कहानी कह नह सक । लेिकन आज?
डॉ टर बसु म w क, डॉ टर चौधरी और डॉ टर िमसेज राय को तो सारी बात™
मालूम हो गई ह`। या वे सुमन से सारी बात™ कह द™गे? और अयन? या सुमन ने
अयन से भी क¸छ सुना ह`?
सुमन क` ऑिफस से रिeएशन ब का ‘एक और कण’’ नाटक देखते व मेर` इतने
िदन क` भूखे िदल म™ मानो समु क लहर उ प हो गई थी। काफ देर तक अपने
को रोक` रखने क` बावजूद अंितम e ण म™ जब e सा आयन को अपनी छाती से
लगाकर यार करने लगी थी, म अपने को और रोक नह पाई थी। मुझे खुद ही नह
मालूम ह` िक आयन को अपनी छाती से लगाकर उसक` िसर, गाल और सार`
बदन पर अपनी ममता का eेह- पश’ देने क ती कामना से कब म खड़ी हो गई थी।
उस व बगल म™ बैठ` सुमन क` बार` म™ भी म भूल चुक थी। क¸ ती और e सा क`
अिभनय देखते-देखते हर पल म सोच रही थी—मेर` भा य म™ या ह`? जब e सा को
आयन को मार डालने क` िलए म ने ष यं रचते ए देखा था, म अपनी छाती म™
एक जबरद त वेदना महसूस करने लगी थी। िफर जब क¸ eे क` यु म™ कण’ क`
सेनापित व क पूव’सं या पर कण’ क` िशिवर म™ जाकर क¸ ती को अपना प रचय
कण’ से देते ए म ने देखा था, म ने सोचा था, या म भी अपनी गरज से िकसी िदन
अपना प रचय अपने बेट` से दे सक गी?
उस व म ने सोचा था िक अगर एक बार भी मुझे अपना बेटा देखने को िमल जाता तो
मेर`
िदल को तस wी हो जाती। आयन और कण’ दोन ने िमलकर उस िदन मेर` िदल
को तोड़ डाला था। दोन एक साथ मेर` स ह साल पहले क बात को याद िदलाकर मुझे
बेचैन कर
िदया था; पागल कर िदया था।
वा तव म™, उस िदन सुमन क` कहने पर ‘एक और कण’’ नाटक देखने जाना ही मेरी
सबसे बड़ी गलती थी। म सोच तक नह पाई थी िक मेर` मन पर इस तरह दो-तरफा
आ e मण, चोट क` बाद चोट से, मुझे अपना अ त व भी वे दोन भुला द™गे।
िकतनी अजीब बात! e सा क` बेट` का नाम आयन था, और मेर` बेट` का नाम
अयन ह`। समझ म™ नह आ रहा ह` िक यह संभव क`से आ? या शु ांशुजी ने सोच
समझकर ही मेर` बेट` का नाम अयन रखा ह`?
लेिकन अब म या क v गी? िजस बात को चौदह साल तक म ने सुमन से िछपा
रखा ह`, आज तो वे िदन क` उजाले जैसे सुमन क` सामने प हो गए ह । सुमन एक ब
े को पाने क`
िलए िकतना हाहाकार करता रहा, लेिकन िफर भी म कभी उसे कह न सक , उसक
इस आशा को म कभी भी पूरा नह कर पाऊ गी!
मेरी संतान क` पैदा होने क` समय ही िमंटीदी क लाई ई िमडवाइफ ने कहा था
—‘‘दीदीजी आपक छटपटाहट ब त अिधक ह`। ब े को बचाने क कोिशश म™ शायद म
ने आपका एक ब त बड़ा नुकसान कर िदया।’’ उस व म समझी नह थी िक उसने
मेरा या नुकसान कर
िदया था। सुमन से शादी क` चौदह साल बाद भी जब मुझे संतान धारण करने क` ल e ण नह
िदखाई िदए तो म समझ गई थी िक उस िमडवाइफ ने मेरा या नुकसान कर िदया था।
लेिकन मेर` पास भी तो कोई चारा नह था। म सुमन से यह बात कह नह सकती
थी। घिन ता क` चरम e ण पर भी म शम’ से अपनी जुबान खोल नह सक । िकतनी
बार सुमन मुझे गाइनोकोलॉिज ट क` पास इलाज क` ि लए ले जाना चाहा, लेिकन मुझे
साहस नह आ। सोचती थी, गाइनोकोलॉिज ट क` पास जाने पर सुमन को सारी बात™
मालूम हो जाएँगी।
पर अब या होगा? निस ग होम क` सभी डॉ टर या सुमन से क¸छ भी नह कह™गे? और
अयन? अब क¸छ भी सुमन से िछपा नह रह`गा।
अ छा, सबक¸छ जानने क` बाद भी या सुमन मुझे पहले जैसा यार कर सक`गा?
िजस तरह युथास को सारी बात™ मालूम हो जाने पर भी उ ह ने e सा से नफरत नह क
थी— या सुमन भी मुझसे नफरत िकए बगैर मुझे यार कर पाएगा? सुमन क` िबना म
तो अपनी िजंदगी
िबताने क बात अब सोच तक नह सकती । चौदह साल तक सुमन से यार पाकर,
इस उ म™ भी ब े जैसा उसका मासूम वभाव देखकर, उसक सपोिट ग प रट
देखकर—म भी तो उससे यार िकए बगैर रह नह पाई। या कल क` तूफान म™
हमारी सुख-शांित से भरी गृह थी मिटयामेट हो जाएगी?
नह , िजसे म पा नह सकती , उसे पाने क` िलए हाथ फ`लाना मेरी ब त बड़ी
गलती होगी। अयन को पाने क कोिशश करने पर शायद सुमन को खो देना पड़` और अयन
पर भी मेरा अिधकार हो नह पाएगा। वाकई, अयन तो आज जीिवत होते ए भी मेर`
िलए मृतक क` समान ह`। आज उसक` साथ मेरा कोई र ता नह ह`। म ने तो िलखा-पढ़ी
करक` उसे दूसर` क` हाथ म™ स f प िदया ह`। उसपर अब तो मेरा कोई अिधकार नह
ह`, कानूनन रह भी नह सकता ह` ।
लेिकन िक मत का यह क`सा मजाक! अयन अपने पालक माता-िपता क` साथ मेरा
ही पड़ोसी बनकर रह`गा! दोन एक-दूसर` क` आसपास रह™गे, लेिकन माता-पु क` प रचय
से नह रह पाएँगे। अपनी मानिसक शांित, वाथ’ एवं कानून क` बंधन क र eा करने क`
िलए दोन एक ही साथ सहाव थान कर™गे, लेिकन दो ह क तरह हम™ हमेशा अपनी
दूरी बनाए रखनी पड़`गी। अगर अयन का या मेरा िदल ट ट भी जाए, तो हम™ चुपचाप उस
दद’ को सहना पड़`गा।
वा तव म™, मनुe य क चाह या ह`, वह खुद भी नह जानता ह`। इतने िदन तक म
अपनी संतान को चाहती थी, लेिकन आज इसे यागकर म सुमन को चाह रही । अब
तक अपने
िदल क गहराई म™ कौन सी धारा बह रही थी, मुझे मालूम नह था। आज चौदह साल
बाद म समझ रही िक अयन को पाने क` लालच म™ म सुमन को खो बैठने क बात
सोच तक नह सकती ।
अ छा, अब तो मुझे अपनी बोलने क श वापस िमल गई ह`। या सुमन आज मुझे
निस ग होम से घर वापस ले जाएगा? हमार` यार-मुह&बत से बनाए गए उस सुख-शांित से
भर` बसेर` म™ लौटकर सुमन क िवशाल छाती म™ अपना चेहरा िछपाकर चैन क
साँस म कब ले सक गी?
‘‘िततली, आज क`सी हो मेरी डािल ग?’’
अचानक दरवाजे क` पास सुमन क आवाज सुनकर म च f क उठी। अपने िदल क` आईने
म™ e मवार से जो तसवीर™ म देख रही थी, सब अचानक धुँधली हो गई ।
िब तर पर बैठकर म आँख™ फाड़-फाड़कर सुमन को देखती गई। या उसे क¸छ
मालूम ह`? उसे मालूम हो या न हो, आज मेरा इ t तहान का िदन ह`। आज म खुद सारी
बात™ सुमन से क गी। जब मुझे वा श वापस िमली ह` तो सबसे पहले म अपना
ाय w त क v गी।
िब तर से उतर एक-एक कदम आगे बढ़ते ए सुमन क` पास प ची। अपने दोन हाथ
से सुमन क` दोन हाथ अपनी आँख पर रखती ई म ने कहा, ‘‘सुनो, आज म तुमसे ब त
सी बात™ बताऊ गी। तुम ही मेरी लाज-शरम हो, तुम ही मेर` सब क¸छ हो। म जानती , तुम
ही मेरी र eा भी करोगे। चूँिक म आँख™ खोलकर तुमसे अपनी बात™ कर नह सकती ,
इसिलए तुt हार` हाथ से ही अपनी आँख को ढककर म तुt ह™ एक लड़क` क` बार` म™
बताऊ गी।’’
अचानक मुझे इतनी सारी बात™ करते ए सुनकर सुमन खुशी से फ ला न समाया। कह
उठा, ‘‘ए सील™ट। अर`, तुt ह™ तो अपनी वा श वापस िमल गई ह`। िकसक बात™
करोगी—अयन न!’’
चfककर म ने अपनी आँख पर से सुमन क` हाथ को हटाकर उसक` चेहर` क ओर
देखा। शरारत भरी आँख से मानो ह सी टपक रही हो।
तो या? सुमन ने युथास क तरह मुझे माफ कर िदया ह`?
तज’नी और वृ ागु से मेरी नाक क चोटी को पकड़कर िहलाते ए उसने यार
भर` ल ज म™ कहा, ‘‘आपको क¸छ भी नह कहना ह`, समझी री मेरी सखी, म स…ब
जानता , स….ब सुन चुका ।’’
िबलक¸ल िन wंत होकर सुमन क िवशाल छाती पर अपना माथा िटकाते ए म समझ
गई
िक मेरा थान पहले जहाँ था, आज भी वह ह`। आज सुमन क छाती पर अपना िसर
रखकर मुझे िजतनी शांित िमल रही ह`, मुझे याद नह आ रहा ह` िक िपछले चौदह
साल म™ कभी म ने यह शांित महसूस क थी या नह ।
बा बूजी अकसर कहा करते ह , ‘‘कोई भा य क` साथ पैदा नह होता ह`। आदमी जैसा काम
करता ह`, उसका भा य वैसा ही बनता ह`। आदमी खुद ही अपने भा य का िनमा’ता ह`।’’
लेिकन या अपनी िक मत म ने बनाई ह`? िपछले कई रोज से मेर` मन से जो तूफान
उठता चला जा रहा ह`, या म उसक` िलए िज t मेदार ? अब भी मेर` कान म™ कल
रात िमसेज सेन क याक¸लता से भरी ाथ’ना, ‘‘िसफ’ एक बार मुझे माँ कहकर पुकार दे
बेटा’’, गूँज रही ह`। क`से मुझे इस यातना से मु िमलेगी?
कल रात को करीब दस बजे निस ग होम से म अक`ला ही वापस आ गया था। माँ और
बाबूजी दोन ही ाइ ग v म म™ बैठ` थे, लेिकन म िकसी से आँख™ िमला नह सका
था। निस ग होम से लौटते व िसफ’ एक बात मेर` िदमाग म™ घूम रही थी—रसातल
क` अंधकार से एक भयानक दानव मेरा सुख-चैन छीनने क` इरादे से िनर तर मेरी ओर
बढ़ता चला आ रहा ह`।
आिखर म पैदा य आ? मेर` पैदा होने क ज v रत या थी? अगर म पैदा नह होता तो
दुिनया का या नुकसान हो जाता? अगर म पैदा नह होता तो शायद आज मुझे यह
मानिसक
ेश सहना नह पड़ता। मानता क˛ित क` िनयमानुसार ही आदमी का ज म होता ह`
— लेिकन क˛ित हर व िनयम क` अनुसार ही चलती ह`, ऐसी बात तो नह ह`।
पटना म™ मौसाजी ने कहा था, ‘‘अतीत क क को खोदकर भूली-िबसरी घटना
को वत’मानकाल म™ ख चकर िजंदगी को दूभर न बनाना ही eेय कर होगा।’’ उ ह ने
बार-बार कहा था िक वा तिवकता को वीकार कर म उसे ही मह व दूँ, तो म सुखी र
गा और मुझे शांित भी िमलेगी।
उस व म ने उनक बात का मह व महसूस नह िकया था—िजतना िक कल निस ग
होम म™ िमसेज सेन को देखने क` बाद म ने महसूस िकया ह`।
सेन अंकल क` साथ निस ग होम म™ िमसेज सेन क` क`िबन म™ प चते ही जब वह
मेरी तरफ एकटक देख रही थी, अनजान म™ ही पता नह य मेरा सारा बदन िसहर
उठा था। उनक eेह भरी िनगाह™ मेर` सार` बदन पर एक eेह- पश’ का लेप लगाकर
मुझे थोड़ी देर क` िलए एकदम स कर गई थ ।
म ने महसूस िकया था िक उनक आँख क मोहक िनगाह से अपनी िनगाह हटाने म™ म
िबलक¸ल असमथ’ था। उनक आँख म™ म ने जो वा स य और तकलीफ देखी थी, मेरी माँ क
िनगाह से कोई अलग वह नह थी। जब म बीमार पड़ जाता , म उनक िनगाह म™
भी यही रोशनी देखता । माँ क हमदद f, eेह क कोमल िनगाह म™ और िमसेज
सेन क िनगाह म™ म ने कोई अंतर नह देखा था।
इसी क` बाद जब वह काँपते ए वर म™ पहला श&द ‘वह कौन ह`?’ कहा था, मेर`
कान म™ ब त-ब त दूर से सुनी ई एक अ vुत सुरीली आवाज प ची थी। शायद
यही मधुर आवाज सुनने क तम ा मेर` िदल म™ िछपी ई थी।
अगर उस िदन लैट का सामान ठीक ढ ग से रखते व मेर` हाथ म™ यह ट प
पेपर नह आया होता तो शायद मेरी ज मदा ी माँ को देखने क या उनक मधुर
आवाज सुनने क
इ छा मेर` िदल म™ उ प ही नह ई होती। शायद अतीत क क को खोदकर भूली-ि
बसरी घटना को वत’मान काल म™ ख चकर िजंदगी को दूभर बनाने क भी ज v रत
नह पड़ती।
कल रात भर म सो नह पाया। निस ग होम से लौटने क` काफ देर बाद माँ मेरी तलाश
म™ मेर` कमर` म™ आई थी। म ने माँ से क¸छ भी नह कहा। माँ और बाबूजी क` साथ
खाने क मेज पर भी बैठा था। इधर-उधर क बात™ करक` म अपने को वाभािवक िदखाने
का यास करता रहा—लेिकन मुझे यक न ह` िक म माँ को धोखा नह दे पाया। हालाँिक माँ
ने मुझसे क¸छ पूछा नह था।
आज सबेर` भी समय से म कमर` से बाहर िनकला था। माँ और बाबूजी क` साथ बैठकर म
ने
ेकफा ट भी िकया, य िप कल रात से ही मेर` गले से कोई भी खा -पदाथ’ नीचे
उतर नह रहा ह`।
ेकफा ट क` बाद म अपने कमर` म™ आ गया । िदमाग म™ िसफ’ एक ही बात
च र काट रही ह` िक अब मेरा कत’ य या ह`? लगता ह` िक िपछले आठ-दस िदन
म™ मेरी उ दस- पं ह साल बढ़ चुक ह`। अपनी आदत भूलकर बुजुग जैसा म गहरी
सोच म™ ड बता जा रहा
। मुझे इससे छ¸टकारा पाना ही ह`।
अपने कत’ य को िन w त करने क` इरादे से आिखरी बार ट प पेपर को पढ़ने क` िलए
म ने उसे मेज पर रखा।
िसफ’ पाँच पए का ट प पेपर। रिज ी नह क गई थी। िसफ’ दो गवाह क` द
तखत, माँ और बाबूजी क` द तखत और काफ अ प अ e र म™ िततली दास
गुwा क` ह ताe र क` अलावा अदालत क मोहर या रिज ी नंबर वगैरह क¸छ भी
िलखा नह ह`। अ प बँगला अ e र म™ ट प पेपर पर िलखा ह`—
‘म संपूण’ होशोहवास म™ और वे छा से अपने पु िजसक उ दो िदन क¸छ
घंट` ए ह , eी शु ांशु बैनज f एवं eीमित मिणमाला बैनज f को दान कर रही ।
भिव e य म™ इस पु क`
िलए मेरी कोई िज t मेदारी नह रह`गी। पु क` बािलग हो जाने पर भी म इस पर कभी
दावा नह क v गी।’
कागज क` दािहनी ओर काफ अ प अ e र म™ एक द तखत ह`। उस िदन म
पढ़ नह पाया था, लेिकन आज म जानता , वहाँ िततली दासगुwा िलखा आ ह`।
उनक` द तखत क` नीचे माँ और बाबूजी क` तथा बाई ओर गवाह eीमित िमंती
गुwा और eी काश गुw क`
प अ e र म™ िकए द तखत ह । उनका पता 306/ए कदमक¸आँ, पटना। नीचे
तारीख पड़ी ह`, स ह साल पहले क 29 जुलाई।
यही कागज मेर` मानिसक िवचलन का कारण ह`। यही कागज मेरा प रचय ह`। कण’
क` कवच जैसा यह ट प पेपर ही मेरा अिभ ान ह`। जब तक म इसक` बार` म™ जानता
नह था, म ब त सुखी था। कभी भी मुझे माँ क` eेह, बाबूजी क` यार पर शक नह आ
था, लेिकन अब वा तिवकता क` बार` म™ जानकारी हो जाने क` बाद माँ क` वा स
य एवं मातृ व तथा बाबूजी क` लाड़- यार पर मेरी आ था ट ट य रही ह`? उनक` बरताव
म™ तो कोई बदलाव नह
आया ह`। अगर म उनक` eेह पर शक क v तो उनक` यार क` बंधन पर, उनक` ित
मेरी e ा और लगाव क अपने हाथ से ह या करनी होगी।
अब तक िजस ज म-रह य क` बार` म™ मुझे मालूम नह था, आज उसे मालूम करने
क` बाद मेरा या फायदा आ? शम’ और सक¸चाहट से तो म माँ और बाबूजीक` सामने सीना
तानकर खड़` होने क िह t मत पूरी तौर पर खो बैठा ।
सबसे अजीब बात तो यह ह` िक माँ-बाबूजी और मेर` बीच म™ िजस दरार का
कोई नामोिनशान तक नह था—आज वहाँ एक खाई बन चुक ह`। क`से इसे पाट िदया
जाए?
म िसफ’ एक बात सोचकर चिकत हो रहा िक क`से वह घटना घट गई, िजसक
म ने कभी क पना तक नह क थी। सोचने क बात तो ब त दूर क ह`।
कलक vे क` लैट म™ अगर न आते, अलमारी म™ कागजात रखने क` िलए अगर माँ
मुझे नह देती और हाथ से िफसलकर वे फश’ पर िगर नह गए होते—तो उसक` बादवाली
घटनाएँ घट ही नह सकती थ । या इसे ही नसीब कहा जाता ह`?
हो सकता था िक अस´ तक अगल-बगल क` लैट म™ रहने क` बावजूद भी मुझे
मालूम ही नह हो पाता िक बगल क` लैट म™ ही मेरी ज मदा ी रहती ह । शायद उ ह™
भी नह मालूम हो पाता िक उनक` बगलवाले लैट म™ ही उनका बेटा रहता ह`।
अचानक सामना हो जाने पर शायद वह उतावली हो जात , िजस तरह कल निस ग होम
म™ वह रो उठी थ ।
पटना म™ मौसीजी ने कहा था िक उ ह ने वे छा से मुझे दान नह िदया था। अपनी
इ छा क` िवपरीत, समाज क` अनुशासन क` भय से उ ह™ इस अि य दयहीन तकलीफ
को उठाना पड़ा था। कल उनक हर बात से एवं बरताव म™ मुझे अपने पास पाने क
याक¸लता उनम™ म ने देखी थी।
म समझ गया था िक वह अपने इस अपराध क` िलए आज भी प wाताप एवं िचंता
क` दाह से जलती जा रही ह`। अगर अचानक उनसे कभी मेरी मुलाकात हो जाती, शायद
उनक हालत भी वैसी ही होती, जैसी देलिफ क` मंिदर म™ आयन को देखने क` बाद e सा
क ई थी। शायद उस व वह भी यार भरी िनगाह से मेर` बदन को िस करक`
क¸छ तस wी ाw करने क कोिशश करती।
काफ देर तक हर पहलू से सोचने क` बाद म इस िन e कष’ पर प चा िक यह मेरा अ
ह`।
िक मत क लक र कोई िमटा नह सकता ह`। बाबूजी चाह` ि जतना ही य न कह™,
‘‘आदमी अपना भा य खुद ही बनाता ह`,’’ आज मुझे इस बात पर तिनक भी िव ास
नह ह`। अगर बाबूजी को सारी बात™ मालूम हो जाएँ तो वह ज v र कह™गे—‘‘तुमने अपना
भा य वयं बनाया ह`। अगर ट प पेपर पाकर भी तुम उसे नह पढ़ते तो तुtह™ यह
तकलीफ उठानी नह पड़ती।’’
आज म यह िव ास नह करता। लगता ह` भा य आदमी को अपने अनुसार ही अपनी
राह पर ख च ले जाता ह`। अ या िक मत को इनकार करने क कोिशश करने पर
अकारण ही तकलीफ उठानी पड़ती ह`, दूसर को तकलीफ देनी पड़ती ह`।
माँ क` कहने पर काफ यान लगाकर म ने महाभारत पढ़ा था। मुझे नह मालूम माँ ने
िकस उ े य से मुझे महाभारत पढ़ने क` िलए कहा था, लेिकन मुझे अ छा लगता था।
कण’ क` च र ने मुझे काफ भािवत िकया था। लेिकन उस व मुझे या मालूम था
िक मुझे भी कण’ जैसे एक मानिसक ं का िशकार होना पड़`गा।
ोण ने कण’ से कहा था, ‘‘पु ष को ट टना नह चािहए। हर ितक ल प र थित म™ पु ष
को
िवजय ाw करनी चािहए।’’
अब शायद कण’ जैसा मुझे भी िह t मत से आगे बढ़ने का अवसर आ गया ह`।
‘‘ य बेटा अयन, तुझे हो या गया ह`? कई रोज से तुtह™ बड़ा बेचैन देख रही । कल
रात से तो लग रहा ह` िक तू हम™ पहचानता ही नह । या बात ह` र`?’’
ट प पेपर मेज पर खुला पड़ा रहा। माँ क आवाज सुनते ही उसे हटाने क कोिशश
िकए बगैर म ने उ ह™ पुकारा—‘‘माँ, जरा इधर आओ तो। देखो तो यह या ह`?’’
मेज क ओर बढ़ती ई माँ ने पूछा, ‘‘कौन सी चीज र`?’’
मेज क` पास प चकर खुले ए ट प पेपर को देखकर आतंक से माँ का चेहरा फ का
पड़ गया। मुँह पर हाथ लगाकर उसने एक चीख लगाई। उ vेजना से उनक आवाज
क गई
—‘‘यह…यह…तुझे…तुझे कहाँ िमला?’’
माँ का सारा बदन थर-थर काँप उठा।
उसक` हाथ को पकड़कर अपने िब तर पर बैठाते ए म ने कहा, ‘‘तुtह™ सारी बात™
बतलाने क` िलए ही तो म ने तुt ह™ पास बुलाया। िजस िदन से मुझे ट प पेपर िमला
ह`, उस िदन से आज तक क सारी बात™ म तुt ह™ बतलाऊ गा। इतने िदन तक म तय
नह कर पा रहा था िक इस बार` म™ तुमसे बात™ करनी िकतनी उिचत होगी, लेिकन
आज म ने तय कर िलया ह`। म ने इसका फ`सला कर डाला ह`।’’
माँ क दोन आँख से आँसू क धारा बहते ए देखकर म अपने को रोक नह सका।
माँ क गोद म™ अपना चेहरा िछपाए म ने अपने आँसू सँभालने क कोिशश क ।
म ने महसूस िकया िक माँ क` दोन हाथ बुरी तरह काँप रह` ह । उसी हालत म™ अपना
दािहना हाथ मेर` िसर, चेहर` और बदन पर फ`रते ए काँपते ए वर म™ उ ह ने पूछा,
‘‘तू ने या तय कर िदया ह` र`, अयन?’’
माँ क गोद म™ लेट`-लेट` उनक ओर देखकर म ने कहा, ‘‘सात िदन से म अपने
साथ लड़ता आ रहा माँ, अब मुझसे और लड़ा नह जाता। सच िकतना कड़वा होता
ह`, मुझे पहले मालूम नह था माँ। आज सच क गहराई से म जो उठाकर ले आया, वह
मोती नह ह` माँ, वह ह` क¸छ क चड़। वह ही मुझे सता रहा ह` माँ।’’
म अभी भी महसूस कर रहा िक माँ क` काँपते ए हाथ मेर` सार` बदन पर र™ग रह` ह
। ऐसा लगा िक वह लंबी साँस छोड़कर क¸छ बुदबुदाई। म उनक बात™ समझ नह पाया।
ट प पेपर पाने क` बाद से म ने सारी बात™ िव तार से माँ को बतलाई । अंत म™
जब माँ से कहा िक बगल क` लैट क िमसेज सेन ही मेरी जननी ह , चfककर वह
िचwा उठ —‘‘तू
या कह रहा ह` र` अयन?’’ या उ ह™ देखने क` िलए ही कल तू निस ग होम म™ गया था?’’
बैठकर म ने सारी बात™ माँ से कह डाली उनसे िमलने क` बाद से लेकर आज सबेर`
तक जो भी बात™ मेर` मन म™ उमड़ रही थ , सारी बात™ माँ से कहने क` बाद मुझे लगा
िक मेर` िदल का सारा बोझ अब उतर गया ह`।
आँसू भरी आवाज म™ माँ ने पूछा, ‘‘अब तू ने या करने का िन w य िकया ह` र`
अयन?’’ दो बूँद-आँसू टप से माँ क गोद पर िगर`।
म और रह न सका। माँ को आिलंगन म™ लेते ए म ने कहा, ‘‘माँ, तुt हार` eेह
का अिधकार मेरी ज मदा ी माँ से ब त यादा ह` माँ। ज म क` बाद ही िजनसे मुझे
उपेeा, अवह`लना िमली, ज म लेते ही िज ह ने मुझे िन e कािसत कर िदया—चाह`
अपनी इ छा क`
िखलाफ ही वह ऐसा य न कर चुक हो, मेरी आ मा का अनादर िज ह ने िकया ह`—वह
िकसी क मत पर मेरी माँ नह हो सकती। वह मेरी सबसे बड़ी दु मन ह`। हो सकता ह` उनक`
साथ मेरा र ता अ छा हो, लेिकन वह र ता भी इतने िदन म™ फ का पड़ गया ह`।
इस व
िसवाय एक सं वगर क` वह र ता और क¸छ रह नह गया ह`।’’
माँ ने मेर` िसर को ख चकर थोड़ी देर तक अपनी छाती से लगा रखा। म ने भी माँ को
हाथ से घेरते ए कहा, ‘‘मुझे मालूम ह` माँ िक यह र ता िजंदगी भर मुझे सताता
रह`गा। िजनक` साथ मेरा कोई संबंध नह ह`, िजनको जानता-पहचानता नह , वह ज
मदा ी ही मेरी सबसे
िनकट क होगी, मेरी माँ क` आसन पर बैठ`गी, आज म यह क पना तक नह कर
सक गा, माँ। यक न मानो माँ, उनक` ित म कोई झुकाव नह महसूस कर रहा । एक बार
उ ह™ देखने क इ छा ई थी, देखा भी, बात™ भी क ह । अब वह हमार` एक पड़ोसी से
यादा और क¸छ नह ह ।’’
िफर से माँ क` हाथ मेर` बदन पर र™गने लगा। म ने कहा, ‘‘और तुम? तुम मेरी
eेहमयी माँ हो। िशशुकाल से लेकर िदल खोलकर तुमने जो यार िकया, eेह से, ममता
से तुमने मुझे बड़ा िकया, तुt हार` साथ मेरा कोई नाता नह ह`, नाता नह रह`गा, िजंदगी
क` आिखरी िदन तक, ई र कर™, ऐसी बात™ मेर` िदमाग म™ भी न आएँ। माँ, आप
यह तो सही-सही बताएँ िक आप ने बचपन म™ मुझे बार-बार महाभारत पढ़ने क`
िलए य कहा था? या कोई िवशेष कारण तो नह था?’’
माँ ने उ v र नह िदया—लेिकन उनक` चेहर` पर एक मुसकान म ने देखी। म ने आगे
कहा, ‘‘कण’ का च र मुझे भािवत करता रहा, लेिकन म ने अपने को कभी कण’
जैसा एक मानिसक ं का िशकार नह समझा था। आज जब कण’ जैसी ही मेरी
थित ह` तो म भी कण’ क तरह हर ितक ल पर थित म™ िवजय ाw क v गा
ऐसा वचन आपको देता ।’’
अचानक मेरी ढ़ता को देखकर माँ मेर` इरादे को समझ नह पाती ह`। य होकर वह
मुझसे पूछती, ह` क`से तू इस प र थित पर िवजय ाw कर`गा बेटा?
माँ क छाती से िलपटकर म ने कहा, ‘‘माँ, तुम मेरी eेहमयी माँ हो। िशशुकाल से
लेकर आज तक िदल खोलकर तुमने मुझे जो यार िदया, eेह से, यार से तुमने मुझे
बड़ा िकया, मेर` िलए उसका मह व ब त यादा ह`। तुt हार` साथ मेरा कोई नाता नह
ह`, नाता नह रह`गा
—ई र कर` िजंदगी क` आिखरी िदन तक ऐसी बात™ मेर` िदमाग म™ न आए।’’
दोन हाथ से माँ को लपेटकर उनक छाती म™ अपना चेहरा िछपाते ए म ने कहा,
‘‘माँ, म तुt हारा अयन रहा, आज भी तुt हारा ही , आगे भी म तुt हारा ही र गा।
िपछले सात-आठ
िदन क बात™ व न क तरह भूल जाने क कोिशश क v गा।’’
माँ क गोद से उठकर म ने मेज पर से ट पपेपर उठाए और उ ह™ ट¸कड़`-ट¸कड़` करक`
माँ क` चरण पर अंजिल देते ए म ने कसम खाई िक िजस य ने मेर` जीवन को
कलंिकत कर
िदया, भिव e य म™ म अव य ही उसे कभी-न-कभी ढ ढ़कर िनकालूँगा एवं उससे मेर`
ज मदा ी एवं मुझसे बदसलूक करने का दंड दूँगा।
माँ ने दोन हाथ से मुझे आिलंगन कर मेर` ललाट पर, गरदन पर, गाल पर चुंबन क
बौछार करते ए कहा, ‘‘बेटा कण’ जैसा ढ़ ित एवं च र वान बनो—यह मेरा
आशीवा’द ह`। वा तव म™ अयन, म ने तुझे पैदा नह िकया—तेर` साथ मेर` नाड़ी का
बंधन नह ह , लेिकन आज तूने जो इ w त और सुख मुझे िदया ह`, शायद मेरा सगा
बेटा भी नह िदया होता र`।’’ बार-बार मुझे चूमते ए वह कहने लगी, ‘‘शायद इतना
सुख मुझे कभी भी नह िमला होता बेटा।’’
मेरी आँख से भी िनर तर आँसु क धारा टपक रही थी। माँ क छाती म™ अपना मुँह
िछपाते ए म ने कहा, ‘‘माँ मेरी यारी माँ।’’
आह! िकतनी शांित, िकतना सुख! तेरी छाती म™ इतना सुख माँ! लगता ह` िक कई
िदन क` सार` दुःख म भूल चुका !
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