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(गीता-37) क्या गीता जातिवाद का समर्थन करती है?

|| आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2024)


[00:00:00]: जब हम कहते हैं कि जाति प्रथा के लिए भी कृ ष्ण जिम्मेदार है, तो हम ऐसे कह रहे हैं जैसे पूरा समाज गीता पर चलता हो।
अगर समाज गीता पर चलता होता और कृ ष्ण के कहने पर जातिवादी होता तो फिर कृ ष्ण के कहने पर निष्काम कर्म, योगी भी तो होता। समाज
में जो जाति चलती है वो पूरे तरीके से इसी पर चलती है कि तुम घर में पैदा हुए हो। समाज की जाति का गीता से कोई लेना देना आ गया। कादर
खान का डायलॉग देखो बहन आगे बढ़ना ठीक है, पर इतना भी आगे नहीं बढ़ जाना चाहिए की अपनी संस्कृ ति को पीछे छोड़। 2 तुम्हारी इसी
संस्कृ ति के खिलाफ गीता 1 गर्जना है। और इसको तुम कहते हो संस्कृ त गीता का, संस्कृ त का समर्थन करेगी। समाज ने, गीता की सुनी भी
कृ ष्ण के नाम पर भी समाज के पास क्या है। बस किससे कहानी तो अगर समाज गिरा हुआ है तो उसका इल्जाम, फिर गीता आरोप क्यों लगा
रहे किससे कहानियों आरोप लगाओ। आज श्रम भगवत गीता का जो श्लोक हमारे सामने है, चौथा देह तेरहवां श्लोक। ये भगवत गीता के सबसे
विवादास्पद श्लोकों में से 1 है। और बहुतों ने तो इस 1 श्लोक को लेकर, और ऐसे ही कु छ अन्य श्लोक हैं इस 1 श्लोक को लेकर, पूरी गीता
को ही न सिर्फ स्वीकार कर दिया है, बल्कि गीता की घोर निंदा भी करी है। और ये तक कहा गया है कि गीता ही वो आधार देती है जिस पर
जातिवाद और उससे सम्बंधित शोषण की पूरी इमारत खड़ी हुई।

[00:02:05]: तो कह रहे हैं कि जो उस शोषण को पूरी वैधता मिली है, वो गीता से मिली है। क्योंकि प्रस्तुत लोक कहता है, लोगों के
अनुसार, आलोचकों के अनुसार, आलोचक भी नहीं, निंदकों के अनुसार। क्योंकि प्रस्तुत श्लोक कहता है कि वर्ण व्यवस्था की रचना तो स्वयं
कृ ष्ण ने करी है। तो कहते हैं अगर वर्णव्यवस्था की रचना के उत्तरदायी कृ ष्ण हैं। तो वर्ण व्यवस्था से फिर जितना शोषण हुआ और उत्पीड़न
हुआ, उसके भी उत्तरदायी कृ ष्ण ही हुए। जब आप नहीं रची है तो आप ही जिम्मेदार हो। फिर आगे जो कु छ भी हुआ, उससे तो खूब निंदा हुई है।
2 बहुत महत्वपूर्ण बातें हम समझेंगे। 1 थोड़ी सामाजिक दिशा में भी है, और दूसरी पूरी ही आध्यात्मिक दिशा में। और फिर हमें जो वास्तविक
बात है, जो कृ ष्ण कह रहे हैं, वो दिखाई देगी। वही बात जब दिखाई नहीं देती। जब वेदांत के मूल सिद्धांतों से हम परिचित नहीं होते, तो अर्थ का
अनर्थ कर डालते हैं। मैंने बहुत बार बोला है कि गीता हो, उपनिषद हों, वेदान सम्बंधित अन्य ग्रंथ हों। बहुत सारे। जिनको कइयों को तो पाठ्यक्रम
की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कु छ प्रकरण ग्रंथ भी होते हैं और अनेक उनमें। किसी भी श्लोक का, मंत्र का, अंश का, उदाहरण का, अर्थ
करने के लिए जो मूल दर्शन है, वेदांतिक उसकी स्पष्टता होनी चाहिए। क्योंकि श्लोक अर्थ करने वाले तो हम ही हैं न।

[00:04:25]: अगर हम ही नहीं जानते कि श्लोक किस तल पर हमसे बात कर रहा है। तुम अपने तल पर बैठे बैठे अपने अनुसार ही अपने
स्तर के अनुसार, अपने पूर्वग्रहों के अनुसार, अपनी मान्यताओं के अनुसार कृ ष्ण की बात का अर्थ निकाल देंगे। तो फिर ये हो जाता है कि बात
कृ ष्ण की है। और अर्थ हमारा है। बात कृ ष्ण की हो जाती है, अर्थ हमारा हो जाता है। क्योंकि अर्थ कार तो हमी है, सीख कृ ष्ण की और मान्यता,
हमारी तो कृ ष्ण की सीख को भी हम अपनी मान्यता के अनुसार अनुदित कर लेते हैं। मामला फं स जाता है। और यहाँ खूब फं सा है। आप बस
थोड़ा कोई जानकार, आदमी उनसे कह दीजिए, चौथा अध्याय 13 श्लोक, और तुरंत बात शुरू हो जाएगी। और बहुत दूर तक जाएगी। और वैसे
अगर कोई जानकार आदमी आपके दायरे में न हो, तो गूगल तो है, सबसे जानकार, उससे ज्यादा विद्वान, आज कौन है तो आप गूगल पर अगर
लिखेंगे। भगवत गीता 4, 13 तो उसमें आपको जितना अर्थ मिलेगा, उतनी आलोचना भी मिलेगी। ठीक है। तो हम समझेंगे। क्योंकि न समझने के
कारण क्या हुआ है कि 1 वर्ग है हमारे भाइयों का, बंधुओं का। और उनके मन में गलत फै मी आ गई है कि उनके साथ जो सामाजिक बर्ताव हुआ,
उसको कृ ष्ण की भी सहमति सम्मति हासिल थी। नहीं, ऐसा नहीं है। साहब। जहाँ बात ऊँ चाइयों की, चेतना की, प्रेम की, करुणा की, बोध की हो
रही हो, वह शोषण कहाँ से आ जाएगा

[00:06:27]: जहाँ कहा जा रहा है कि अपने धर्म के लिए मर जाओ, वहाँ दूसरे का क्या शोषण करोगे। यहाँ तो बात यह हो रही है कि वो जो
सही है, उसके लिए अपने को भी जितने दुख, झेलने, पड़े, झेल जाओ या दूसरे को दुख देने की बात कै से हो जाएगी। दूसरे के शोषण का सवाल
ही नहीं पैदा होता। पर खूब ऐसा भ्रम रहा है। तो कु छ बातें समझेंगे देखिये, क्या कह रहे है। कृ ष्ण जिसे हम जीव कहते हैं, उसके पास कु छ होता
है। जो उसमें चेतना विकसित होने से पहले से मौजूद होता है। वो क्या है उसकी जैविक सामग्री, वो मसाला जिससे देह खड़ी होती है। ठीक है,
पुराने, सब संस्कार माँ से, मिले, बाप से, मिले, माँ बाप को, उनके माँ बाप से, मिले, उनके माँ बाप से, और पीछे जाओगे, और पीछे जाओगे।
बिल्कु ल एकदम प्रजातियों के आरंभ में पहुँच जाओगे, जंगल में घुस जाओगे। वहाँ से संस्कारों की श्रृंखला चल रही है। ये तो ये शरीर है, ये 2
दिन में नहीं बन गया है। ये जो आपकी शक्ल है, ये कोई कल परसों में नहीं विकसित हो गयी है। कि मेरे बब्बा ऐसी ही शक्ल के थे। तो मैं भी ऐसे ही
शक्ल का हूँ। ये जो हमारी शक्ल है, यह बब्बा तक बनते बनते पहुँची है। बाप रे वाह। कितना लंबा समय लगा है। हम जितनी छोटी अवधि जीते हैं,
उसकी तुलना में। तो अगर हम कहते हैं कि अनंत काल लगा है। ऐसी शक्ल पाने में, तो तो सयुक्त नहीं होगी, अनंत नहीं लगा है तो भी आप
जाओगे।

[00:08:07]: तो आपको विद्वान लोग, वैज्ञानिक लोग, लगभग ठीक ठीक समय भी बता देंगे की अभी से इतने लाख साल पहले तुम्हारी ऐसी
शक्ल थी, उससे ऐसा था, तुम्हारा कद ऐसा था फिर तुम्हारी 1 सहोदर प्रजाति हुआ करती थी, नियांडरथल सोते थे। ये सब आपने थोडा पीछे
पढ़ा होगा। कभी तो ऐसे होते होते होते होते आप यहाँ आ पहुँचे। आज भी जहाँ पहुँच गए हो, आप, वहाँ पर कोई अटक नहीं गए हो। आप जैसे हो।
अगर किसी चमत्कार से आपकी प्रजाति बची रह गयी, बची रहने वाली है नहीं। पर अगर किसी तरह बची रह गई तो आज से ज्यादा नहीं। 20,
50 हजार साल के बाद के ही मनुष्य हमारे जैसे नहीं दिखेंगे। ये नहीं कि उनके 24 हाथ और आ जायेंगे। पर यह माना जाता है कि इतना तो होने
वाला है कि चूंकि आप अपने मासपेशियों का कम इस्तेमाल करते है इसलिए आपका शरीर सुकड़ेगाऔरआपये इसका ज्यादा इस्तेमाल करते हो।
अपने खोपड़े और अपनी इंद्रियों का, तो ये बड़ा हो जाएगा। ये सब जो है। जैसे जैसे जैसे ऐसे होगा तो ये सर ज्यादा बड़ा होता है और छोटा होता।
और भी बदलाव आने होंगे। तो गुण क्या गुण, गुण माने प्रकृ ति। तीनों गुणों की बड़ी। अम्मा ने गुण सुनते ही क्या बोलना है त्रिगुणात्मक प्रकृ ति।
और ये सिद्धांत हमें किसने दिया ये वेदांत का भी नहीं है। किसका है। यह सांख योग का है। यह सांख योग वहां से वेदांत में। इसी लिए श्रीकृ ष्ण
ज्ञान योग को सीधे सीधे सांख योग बोलते है।

[00:10:05]: क्योंकि ज्ञान का अर्थ ही होता है अज्ञान को काटना, अज्ञान को काटना। हम प्रकृ ति को आत्मा समझते है। अब आत्मा का तो
कोई ज्ञान हो नहीं सकता। तो प्रकृ ति और आत्मा में हम जो 1 को स्थापित कर देते है वो टू टता है। प्रकृ ति को जानने से और प्रकृ ति के योग को
ही सांख्य योग कहते है। सांख्य योग नहीं। बहुत बात करता की आप कौन हैं सांख्य योग बात करता है कि प्रकृ ति क्या है आपको तो बस पुरुष
हो। पुरुष पुरुष को लेकर के बहुत गणना है ही नहीं। सांख्यों साख माने संख्या से सम्बंधित सारी गणनाएं। वह सारी जो संख्याएं गिनी गई है। 3
की 1 संख्या, वहाँ 5 की 1 संख्या, वहाँ 24 की 1 संख्या है। 1 सत्र में मैंने पूरा विस्तार से संख्योग समझाया था। 446 महीने पहले किस सत्र
में समझाया था, कब समझाया था 6 महीने हुए होंगे। शायद पूरा विस्तार से समझाया था। है। तो आज का पहला काम है सांख्य योग की जो मूल
बातें हैं, उनको आप दोहराएंगे और कम्युनिटी पर लिखेंगे। ठीक है, उसके बिना शुरुआत ही नहीं हो पाएगी। श्री कृ ष्ण कह रहे हैं गुण कर्म, गुण ही
नहीं समझोगे सांख्य योग नहीं पता। तो ज्ञान योग में जो बाहरी ज्ञान वाला हिस्सा होता है, अविद्या उसका सर्वश्रेष्ठ जो निष्पादन है वो कहाँ
मिलता है में सांख्य समझ री बात आत्मा तो जानी जाती नहीं।

[00:11:54]: जब भी जाना जाता है क्या जाना जाता है, प्रकृ ति ही जानी जाती है। कभी बाहर की प्रकृ ति जो आँखों के सामने है और कभी
भीतर की प्रकृ ति जो आंखों के पीछे, उन सब की जानकारी कहाँ मिलती है। सांख्य योग में तो ज्ञान योग होगी। आप बोलते है की ज्ञान योग और
शंखयोग 1 ही बात कु छ गलत नहीं कह दी है। आपने तो गुण कर्म तो कु छ होता है। हमारे पास जो बहुत पीछे से आ रहा होता है, वो क्या है गुण
और चूंकि वो बहुत पीछे से आ रहे हैं तो उनको लेकर के हम विवश होते हैं। उनका हम कु छ बदल नहीं सकते, कु छ नहीं कर सकते। वो है बस है
तो है। 1 नाक की जगह 3 नाक कौन कर सकता है। बताओ मेरी नाक टेढ़ी है, मैं सीधी कर सकता हूँ। कोई सम्भावना नहीं है। 2 आक की, 3
कर सकते हो। कु छ हो सकता है। बच्चा पैदा होता ह। बचपन से ही क्रोधी है कितने लोग हैं जिनके , 2 बच्चे हैं, शर्मा नहीं। 2 या 2 से ज्यादा थोड़ा
पूरा हम पूरा हाथ उठाए, कै मरा लगा। 2 जब बच्चे पैदा हुए थे, छोटे थे बिलकु ल, तो क्या दोनों का बिल्कु ल आप। 1 सा व्यवहार पाते थे, एकदम
छोटे हैं। अभी माँ बाप ने नी संस्कारित किया, मान लीजिए महीने 2 महीने 4 महीने के हैं, तो भी क्या उनका दोनों का 1 सा स्वभाव था 1 सा
था क्या भले लिंग भी करा, हो सकता है दोनो लड़किया दोनो लड़के क्या

[00:13:38]: वो। 1 सा ही अपना व्यवहार करते थे। ऐसा नहीं होता तो व्यवहार में अंतर कहाँ से आया, कहाँ से आ या उसे गुण बोलते है वो
गुण कहाँ से आते हैं। अरे समय की धारा पता नहीं कहाँ से आ रहे है। लाखों साल पहले से बहता हुआ वही चीज जो पीछे से बहती आ रही है,
उसी पर अवलंबित है। पुनर जन्म की। अधारणा। तो पुनर जन्म की बात बिल्कु ल ठीक है। बहुत लोगों को लगता है कि मैं पुनर्जन्म नही मानता।
बात बिल्कु ल ठीक है पर उस तरीके से ठीक नहीं है जिस तरीके से आम आदमी मानता है, उसको लोग सत्य बना दिया है। आम आदमी कै से
मानता है आम आदमी मानता है की हाँ यह अभी सफे द कपड़े पहन के बैठी है। फिर भी मर गई मान लो रात में, तो फिर कहीं पैदा होंगी। और
20 1 साल बाद फिर यहीं आ कर बैठी होंगी। काले कपड़े पहन के समझ मे आ रही है बात। और वो जो काले कपड़े पहन के बैठी होंगी, वो
अगर जोर देंगी और उनका जादू टोना, वगैरह हो जायेगा तो उनको याद भी हो जायेगा की पिछले जन्म में मैं सफ़े द कपड़े वाली थी और इसी
कु र्सी पर बैठी थी। और ये जो कु र्सी खास इस कु र्सी पर बैठ कर के पुरानी जो जो स्मृतियां हैं है, वो फिर से सक्रिय हो जाती है, एक्टिवेट हो
जाती है। यह सब चलता है। वैसे तो अपना घूम रही थी वो काले कपड़ो वाली, लेकिन फिर वो 1 दिन आई।

[00:15:02]: 1 गाना भी था जिसमें पुनर्जनम का आया है। तो 20 साल बाद पिक्चर ही बनी थी। उसका यह था 20 साल बाद तो 20
साल बाद वो यहाँ आकर बैठी। और यह कु र्सी है। इसमे बैठते ही याद आ गया। 20 साल पहले भी मैं इसी मे बैठी थी, उसी रात मर गयी थी। ये
हमारी पुनर जन्म की बिल्कु ल बचकानी मान्यता है। एकदम 2 कौड़ी की। पुनर जन्म तो निश्चित रूप से है, व्यक्ति का नहीं होता, पुनर्जन्म वृति
का होता है। पुनर्जन्म की बात तो बिल्कु ल ठीक है, पर आपका नहीं होगा। आप क्या हो आप तो व्यक्ति हो, लेकिन व्यक्ति अपने डर के मारे और
अपने लालच के मारे यह मानना चाहता है कि मेरा ही तो पुनर्जन्म हो जाएगा। मैं थोड़ी मरूँ गा, मैं तो अमर हूँ। क्योंकि अहंकार की सबसे ज्यादा
रुचि क्या मानने में होती है की वो आत्मा है और आत्मा क्या होती है। अमर तो अहंकार कहता है, मैं भी मर, मैं भी नहीं मरता, देह, मरेगी मैं नहीं
मरूँ गा, देह मरेगी मैं नहीं मरूँ गा। अभी मेरा क्या नाम, धनिया धनिया मरेगी, मैं नहीं मरूँ गा। मैं अगले जन्म में क्या कु छ और बनके पैदा हो
जाऊं गी, सानिया सानिया बनके पैदा हो जाऊं गी। धनिया तो मरेगी और धनिया लौट के नहीं आएगी। कु छ और है। जो बार बार लौट के आता है,
उसका आपकी व्यक्तिगत सत्ता से कोई लेना देना नहीं है। आप तो 1 बार आये हो, पानी के बुलबुले आप तो मिल जाओगे। आप सागर की 1
लहर आप 1 बार उठे, आप गिर जाओगे।
[00:16:35]: हाँ सागर बार बार लहराता रहेगा। उसको पुनर्जनम बोलते हैं। आरोप। कोई व्यक्तिगत लहर, कोई विशिष्ट लहर दोबारा लौट कर
नहीं आती। तो ये समझना बहुत जरुरी है। तो गुण गुण बहुत पीछे से आ रहे हैं, उनपर हमारा बस नहीं चलने वाला, नहीं चलता। तो कल जब हम
बात कर रहे थे बोध प्रत्यूषा में संस्कारों की, याद संस्कार कितने महत्वपूर्ण होते है, तो महापरिनिर्वाण सूत्र में महात्मा बुद्ध का आखिरी निर्देश भी
क्या था अपने शिष्यों को जो कु छ भी संस्कारित है, वो विनष्ट होगा। तुम इन चक्करों में मत पड़ो। बेटा तुम ध्यान किस पर 2 निर्माण पर ये बहुत
पीछे वाली बात है। वो आर आर तो जिसे हम जीव बोलते हैं। 1 छोर पर, तो बिल्कु ल बेबस है। किससे बेबस है। वो चील की तरह उड़ नहीं
सकता। प्रकृ ति गुण प्रकृ ति ने उसे ऐसा बनाया है कि वो चील की तरह उड़ नहीं सकता। 1 सीमा के आगे वो सोच नहीं सकता। और मैं अभी बात
चित कर रहा हूँ। गणित का ही 1 बहुत कड़ा सवाल है। हम कितने लोग हल कर पाएंगे और उसमें बात ये नहीं है कि हम ईमानदार नहीं हैं, यह
हमने श्रम नहीं किया, जो मस्तिष्क है। इसकी रचना ही इस तरह की नहीं है की सवाल अगर बहुत पेचीदा हो जाए, हम तो भी उसे हल कर ले।

[00:18:14]: छप्पर फाड़ के थोड़ी निकाल जाएगा। क्यू साधारण आदमी हो तो सौ 110 होगा, 100 पंद्रह होगा। थोड़ी प्रतिभा ज्यादा है।
ये सब गुणों में आता है। क्योंकि वो आपके हाथ की बात नहीं थोड़ा बहुत विकसित हो जाता है अभ्यास से, पर वो तो जन्म से निर्धारित होता है
थोड़ा ज्यादा जबरदस्त आदमी हो तो 120, 125 होगा। एकदम ही तुम अद्भुत प्रतिभा के धनी हो तो 140, 150 पहुँचा दोगे, ढाई सौ थोड़ी
कर दोगे कर लोगे। तो 1 छोर पर जी बिल्कु ल विवश होता है। न चील की तरह उड़ सकता है, है न मछली की तरह तैर सकता है, न 200 साल
जी सकता, कछु ए की तरह जितनी उम्र है, उतने तो जीओगे कछु ए, कितना जी जाते हैं। पेड कितनी कितनी पुरानी, कब कब से खड़े होते है।
400 साल पुराना। देखो, ये बरगद कोई 400 साल पुराना आदमी देखा है। उस आदमी की गलती थी, वो गलत जीवन जीता था, इसलिए
जल्दी मर गया। और वर्ग ज्यादा स्वस्थ जीवन जीता है। इसलिए भी तक खड़ा है। गुण की बात है। पेड़ जी जाते हैं। कु छ पेड़, सब नहीं, कु छ पेड़
आपको। 5, 500 साल पुराने मिलेंगे, मनुष्य नहीं मिलता, मनुष्य नहीं मिलता। ये गुण हैं। वहाँ हम बेबस है। और दूसरे छोर पर जीव पूरी तरह
मुक्त है। दूसरा छोर संभावना है। पहला छोर तथ्य है, गुण का छोर हमारा तथ्य है।

[00:19:50]: जो गुणों का छोर है, जो हमारी बेबसी का छोर है, वो हमारा तथ्य है। लिखो बेटा, ये सारी बातें नहीं। फिर कोई आ कर के बता
देगा कि गीता तो जातिवादी है। और तुम्हें शक हो जाएगा कि सचमुच जीव 2 छोरों पर है और 1 छोर पे बिल्कु ल बेबस है। वो कौन सा छोर है। वो
गुड़ों का छोर है, हम नहीं बदल पाएंगे। अरे हम हिंदुस्तानी लोग हैं। भाई देसी, भूरे ही रहेंगे। न एकदम काले हो सकते, न एकदम गोरे हो सकते,
कु छ अपवाद छोड। 2 ठीक बदल सकते हो। इसको कु छ नहीं कर सकता। यहाँ कितने लोगों की आँखों का रंग नीला या हरा है। जर्मनी चले
जाओ, वहाँ पर क्या पाओगे। वहाँ इतना नहीं पूछा जाता कि आपका कद कितना वजन कितना है। वहाँ साथ में लिखवाते हैं कलर ऑफ द
आइज। भारत में ये लिखवाना बेतुकी बात होगी, क्योंकि यहाँ सबकी आँखें काली होती। यहाँ कोई नहीं लिखवाता। कलर ऑफ द आइज। इसी
तरह वहाँ कलर ऑफ हेयर भी लिखवाते हैं। क्योकि वहाँ कई तरंगों के बाल हो जाते हैं। यहाँ लिखवाना बेतुका होगा, कलर फे यर क्योंकि यहाँ
सबके बाल, ये गुण की बात है। नहीं तो ऐसा थोड़ी है कि जर्मन पैदा होते ही ज्यादा रंगीन था। तो इसीलिए उसके शरीर में भी उसकी आंतरिक
रंगीनियत उभर के आ गई। क्या हरी हरी आँखें हैं गजब। व पैदा ही ऐसा हुआ है। और जर्मन हो या स्वीट हो या डच हो, उसकी लम्बाई 1
हिंदुस्तानी नहीं पाएगा। ये गुणों की बात है।

[00:21:44]: वो फिनलैंड चले जा। पूरा खड़ा हुआ है। आम आदमी 6 फिट का है, वहाँ पे। और यहाँ कोई 5, 10 का हो जाय। तो कहते हैं
लम्बा है तो लम्बा है। यह क्या है, हम बेबस है, हम नहीं करते। इस छोर पर कु छ करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। पड़ा रहने। 2 ये है तो है।
तथ्यों से लड़ा और तथ्यों से लड़ोगे। तो हारोगे, हारने में मालूम है। क्या हो जाते हो पाखंडी बोलते हो। मैं जीत गया। उदाहरण बताता हूँ।
ज्यादातर जवान लोग अपना कद झूठ बताते हैं। अभी कल मैंने किसी से पूछा, यही पर तेरा कद कितना बोलता है 5, 11 मैं अच्छे से जानता
हूँ, है ही नहीं, क्योंकि मुझे अपना पता और मुझे उसका पता, वो मुझसे हद से हद। आधा इंच नहीं तो 1 इंच ऊपर होगा। तो 5, 11 नहीं हो
सकता। पर से बोल गया। ये पाखंड है। ये प्रकृ ति से लड़ने की कोशिश है। क्यूँकी तुम उसको बदल तो सकते नहीं। तुम अगर 59 हो तो तुम 5
साढ़े 9 भी नहीं कर सकते। अपने आप को। पर तुम पाखंड कर सकते हो। तुम झूठ बोल सकते हो। मैं 5, 11 हूँ। अच्छा लगता है बोलना मैं 5,
11 हूँ। और उसमें नैतिकता भी बाधित नहीं होती। कू की 6 फु ट बोल दोगे तो एकदम खुल्ला झूठो जाएगा। सफ़े द झूठ। तो 6 नहीं बोलेंगे।

[00:23:12]: 5, 11 बोलेंगे 5, 11 बोलने में शालीनता का पर्दा भी पड़ा रहता है, नैतिकता की आड़ भी बची रहती है, और भीतर ही
भीतर, रजनीकांत भी बन जाते हैं। ऐसा थोड़ी लम्बे नहीं है। 5, 11 हैं। ये पाखंड है। जो लड़ाई लड़ी नहीं जा सकती, उसमें उतरना क्या कोई
आ जाता है। मेरा कद बहुत छोटा है। मैं कहता हूँ तो क्या करेगा तू क्या करूँ खींचू तुझे अरे भाई। जो लड़ाई लड़ी नहीं जा सकती, उसको छोड़
देना। यह ऐसी ही बात है। क्या समस्या है मैं स्त्री हूँ तो क्या करूँ उसको बदल सकते है। क्या समस्या मैं पुरुष हूँ तो क्या करूँ उसको बदल
सकते हैं। मैं क्या करूँ मैं 55 साल का हो गया हूँ। तो क्या करूँ आप 35 का कर सकते है। ये कोई बात है। इसी तरीके से मेरा अतीत मुझे बहुत
परेशान करता है। तो क्या करें अतीत को बदल दे। ये सब प्रकृ ति की धारा की बूंदें हैं। इनपे हमारा बस और मैंने आपको बार बार बोला। हमारा तो
छोड़। 2 प्रकृ ति पर। तो अगर कोई सर्वनियमक शक्ति होती है। जिसको आप परमात्मा कह कर सम्बोधित करना चाहते हो, उसका भी बस नहीं
चलता। प्रकृ ति को कोई नहीं छेड़ता। वास्तव में जब आप ईश्वर या भगवान कहते हो तो प्रकृ ति को ही ईश्वर या भगवान कहा जाता है। चूँकि
प्रकृ ति सर्व शक्तिशाली है, कोई उसके नियमों के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता। इसलिए हमने इस बात को समझते हुए प्रकृ ति के आगे सर ही
झुका दिया।
[00:24:53]: उसको कहते हैं देवी आराधना। प्रकृ ति के आगे सर झुका। 2 उसे माँ बोलो, उसे देवी बोलो, उससे लड़ो नहीं। उसको पूजो तो
पूरी जो, दुर्गा सब्तशतीहैवो उनके हाल का किस्सा है, जिन्होंने प्रकृ ति से लड़ने की कोशिश करी, उनका क्या नाम, चंड, मुंड, शुम्भ, निशुम्भ, ये
सब जितने आ गए थे महिषासुर, ये कौन थे, ये वो थे जो अपना कद 5, 11 बताते थे। समझो बात को, ये प्रकृ ति को बदलना चाहते हैं। जो तुम्हे
मिला हुआ है, जिससे नहीं बदला, उस से भिड़ गए जा के । तो आज मिलेगा थोड़ी सड़क पे घूम रहा है की मैं शुम्भ हूँ। ऐसा मिलेगा और देवी का
सिंह आरा और अपने गर्दन के बाल हिला हिला के जैसा की सब्तशतिमावरणनआता है। और सारे असरों के सर चबा रहा और अपने मसूड़े से
उनके हड्डियाँ तोड़ रहा है। ऐसा अब मिलेगा क्या कहीं नहीं। वो प्रतीक बात वो बात प्रतीकात्मक है। जो कोई प्रकृ ति से भिड़ने की कोशिश करे।
वही कौन है, वही राक्षस है। तो अगर कोई अपना कद 59 होते हुए 5, 11 बता रहा है तो वही राक्षस है। कोई मिला जो अपनी उम्र सही बताए
देवियों में खासकर न उम्र सही। बतानी न वजन सही बताना 65 की है, धडल्ले से 58 चला रखा है। हमें आँखों सी स्कै न करके बता दे रहे हैं की
58 तो आप आधे में ही हो नहीं है। 58 तो आपके आधे में ही पूरा हो गया। बाकी का क्या हिसाब है। धड़ल्ले से झूठ चल रहा है। पिछले 6 साल
से 28 की है।

[00:26:43]: गजब कालातीत हो गया। मामला हम काल के प्रवाह से बाहर आ चुके हैं। साल बीतते रहते, उम्र नहीं बढती। यही राक्षसी बर्ताव
है। तुम प्रकृ ति से लड़ने की कोशिश कर रहे हो। वो जिससे स्वयं शिव भी नहीं उलझते। तुम उस शक्ति से उलझ रहे हो, उससे उलझा नहीं जाता,
उसका कु छ नहीं कर सकते। है तो है है। तो अब उम्र। 34 हो गयी तो हो गयी, उम्र, चौवन हो गई तो हो गई। कैं सर हो गया तो पाखंड करने से
कु छ मिलेगा मुझे। नहीं है। मुझे कैं सर हो गया अब मैं क्या बोल रहा हूँ नहीं है तो क्या होगा उल्टे मुझे क्या कहना चाहिए है है और कु छ हो सकता
हो तो कर 2 और जो इलाज होगा न, वो भी प्रकृ ति की सम्मति से ही होगा। इसलिए कोई रोगी बचता है और कोई रोगी नहीं बचता। आपको
चिकित्सक भी दवाई देता है। तो कहता है लेट मी सी वेदर पेशेंट रिस्पोंड। कई बार बोलता है गुड न्यूज, द पेशेंट इस और कई बार बोलता है द
पेशेंट इस। नोट रेस्पोंडिंग। हमने जो कर लिया तो कर लिया, लेकिन बात किसके हाथ में है। प्रकृ ति प्रकृ ति माने उस मरीज की देह के हाथ में है।
अब हमने दवाई दे दी, पर दवाई को लेकर के देह, रिस्पोंस देगी कि नहीं देगी। यह किसी चिकित्सक के हाथ में नहीं है। वही दवाई 1 मरीज पर
काम करती है। दुसरे पर कोई रिस्पांस नहीं, उस पर किसी का बस नहीं चलता।

[00:28:19]: प्रकृ ति के आगे सब बेबस है। ये 1 छोर है जीव की हस्ती का, जहाँ वो पूरी तरह विवश गुलाम है। वो हमारे जन्म का तथ्य है।
इसलिए बहुत रोते हैं। कई बार ज्ञानी बोलते हैं। जन्म क्यों हुआ क्योंकि जन्म होने का अर्थ ही होता है बेबसी में जन्म लेना क्या करें इस शरीर का
क्या करें। जन्म दे दिया। तुमने। 1 बहुत प्रसिद्ध संत हैं। उनकी वाणी है आप गाइएगा। आज वो कहती है मुझे सबसे ज्यादा शिकायत राम से
उलाहना देती है। तुमने तो ये शरीर दे दिया था। बस। तुमने तो शरीर दे दिया था। और शरीर दे कर के तुमने मुझे बस बंधन तो दे दिए थे। ये जो
तुमने मुझे नारी देह दे दी थी। यह क्या है बंधन बंधन है जो तुमने देह दे दिए। तो कहती है राम, तजु गुरु को न बिसारो। तुमने तो बंधन दिए है,
देह दे कर के । गुरु ने चेतना दी है। तुमने बंधन दिए, गुरु ने मुक्ति दी। तो कहती हैं राम। तजु गुरु को न बिसारू। हमारी हस्ती का 1 छोर है जिस
पर हम पूरी तरह बेबस है, विवश है, गुलाम है, उसे कहते हैं गुणों का छोर। गुणों का छोर, वहाँ कु छ नहीं कर सकते। गरीब घर में पैदा हुआ,
उसको ठीक से खाने को नहीं मिला, उसके मस्तिष्क का विकास ही नहीं हो पाया। संयोग किस के क्षेत्र में आते हैं। प्रकृ ति के आप क्या करोगे

[00:30:08]: बहुत सारे ऐसे तत्व होते हैं, रसायन होते हैं, खनिज मिनरल्स होते हैं। जो बचपन में बच्चे के , मस्तिष्क के विकास के लिए
चाहिए, उसको मिले ही नहीं। और 57 साल की उम्र तक अगर वो न मिले कमी हो जाए तो उसका बौद्धिक विकास ही नहीं होने पाता। अब आगे
तुम उससे जिंदगी की दौड़ में कहाँ दौडाओगे कौन सी प्रतिस्पर्धा करेगा, क्या जीतेगा, क्या करेगा, बुद्धू बनेगा, जीवन भर भोंदू बनके घूमेगा। ऐसी
जगह पैदा हुआ, बंगाल में पैदा हुआ, दुर्भिक्ष दुर्भिक्ष पड़ रहे थे। 1940 का बंगाल, 1770 का बंगाल। और तुमने वहाँ किसी पैदा हुए बच्चे को जा
के खड़ा कर दिया पहलवानी के अखाड़े में। कि जा तू अब गामा को हरा के दिखा क्या करेगा वो भारत आज भी ओलंपिक में कु छ नहीं जीत
पाता। बहुत सारी बात व्यवस्था की है। पर कु छ बात इस बेबसी की भी तो है। फु टबॉल में कै से मुकाबला करे उनसे वो हमसे इतने ज्यादा चौड़े हैं,
बास्के टबॉल में कै से मुकाबला करे उनसे वहाँ पर कद 6 फु ट 5 इंच से शुरू होता है एनबीए में, उनके सामने हम खड़े हो जाते हैं। बास्के ट बॉल
ऊपर ऊपर खेलते रहते है, नीचे से ऐसे देखते हैं, ऊपर ऊपर चल रही है। बास्के ट बॉल इतनी बुरी हालत नहीं है। इतना बड़ा देश है हमारा डेढ़
सौ करोड़ लोगों का, तो हमारे पास भी अब काबिल खिलाड़ी पैदा होने लगे हैं। ज्यादा पदक अब हम भी जीतने लगे हैं। लेकिन फिर भी 1 गुणगत
विशेषता व्यवस्था तो रही है, कम से कम अतीत में तो रही है।

[00:31:56]: स्पिनर हम इतने अच्छे पैदा करते थे। सारी पिचे हमारी ऐसी होती थी की स्पिन में सहायता दे पिच, आसमान से उतरे यानि
पिच हम ऐसी बनाते थे। क्यूँ क्योंकि तेज गेंदबाजी लायक तो हमारी कद काठी नहीं थी। जो हमारे पहले अच्छे तेज गेंदबाज हुए, वो वास्तव में 1
स्विंग बॉलर थे, कपिल देव उन्हें गति पर विके ट नहीं मिलते थे। आउट स्विंग स्विंग से विके ट लेते थे। गति से विके ट मिलने तो अब शुरू हुए है।
बता रही है समझ में, उसका कु छ नहीं कर सकता। उसका तो यही कर सकते हो। फिर के जिस खेल में गति की या कद की बहुत जरूरत नहीं
है, वो खेल खेल लो तो वैसे खेलों में हम अच्छा करते है। उदाहरण के लिए बैडमिंटन बैडमिंटन में भारत पिछले 40, 50 साल से अच्छा कर
रहा है। क्योंकि उसमें इतना फर्क नहीं पड़ता की आपका कद कितना है। छोटे छोटे कद के चीनी भी बैडमिंटन में आगे रहे। पीछे से चीन के ,
मलेशिया के , इंडोनेशिया के , सिंगापुर के , ताइवान के ये लोग बैडमिन्टर में आगे रहे हैं। खूब पर टेनिस में भारतीय बहुत आगे नहीं निकाल पाते है।
क्योंकि टेनिस में क्या करनी पड़ती है। सर्विस और सर्विस करने के लिए वहीं पर फं स जाता है। मामला सर्विस करने के लिए कद चाहिए सर्विस
ऊपर से नीचे आती है कर सकते हो, कम कद पर भी कर सकते हो। रमेश कृ ष्णन करते थे, जीतते भी थे, मैट सिलेंडर नंबर 1 थे दुनिया के ,
उनको हराया था रमेश कृ ष्णन ने। पर वो बीच बीच में लगातार मुश्किल हो जाता है।

[00:33:46]: क्योंकि बात किसकी है, गुण की है। गुण पर आकर मामला फं स गया। और गुण प्रकृ ति है। उससे लड़ा नहीं जा सकता। हॉकी में
हम खेलने जाते थे। क्योंकि हॉकी में फिर भी ज्यादा क्या लगती थी। कला। तो एस्टोटर्फ से पहले का जब जमाना था। जब ड्रि लिंग से काम चल
जाता था। हम हॉकी में कितने गोल्ड लेकर आते थे। 1980 तक लाए हैं। 1980 के बाद कौन सी हॉकी आ गई। पॉवर हॉकी, फिजिकल हॉकी,
रफ हॉकी, क्योंकी एस्ट्रो टर्फ आ गया। अब कं ट्रोल आसान हो गया। एस्ट्रोटर्फ का मतलब सतह। अब कै सी हो गयी है, सपाट हो गई है। पहले
सतह सपाट नहीं थी। तो उस पर गेंद को नियंत्रण करने के लिए, नियंत्रित करने के लिए बड़ी कला चाहिए थी। तो ड्रि ब्लिंग का महत्व होता था।
लोंग पासेज। अब चल रहे है। और पॉवर हॉकी आ गई है। पॉवर हॉकी के आते ही भारत पिछड़ गया। बात किसकी थी, गुड़ की समझ में आ रही है
बात, उसका कु छ करा नहीं जा सकता। अब और समझो गुड़ कितनी दूर तक जाते हैं। शरीर को। जब खाने की कमी होती है न, तो शरीर भोजन
की, ऊर्जा की, अपने सब संसाधनों की राशनिंग करता है। शरीर को भी पता है कि क्या बचाना है, क्या नहीं। जब खाने की कमी होती है तो
शरीर कहता है कि जितना कु छ भी मिला है, उसमें पहला हक किसका है आखिरी हक किसका है

[00:35:28]: मासपेशियों का कथा मासपेशियां उतनी ही बचानी है जितने में वो हड्डियों को चला लें, शरीर को ढो लें। तो अगर आपको 1
बहुत लंबे समय तक खाने की कमी रही हो तो भी 1 चीज शरीर बचा लिया जाता है। क्या ब्रेन वो भारतीयों को बचा रह गया। और उसकी वजह
से आज आप वो प्रगति पाते हो जो सर्विस सेक्टर में है कि कोड लिखना हो। तो भारतीय लिख देगा। क्योंकि भारतीय ने ये बचा लिया था। अपना
सोच लेते हैं। विज्ञान में अच्छे हैं, रिसर्चर अच्छे निकलते हैं। भारत में ही अच्छी रिसर्च कर पाते है, पर बाहर जा के कर लेते हैं, कोडिंग अच्छी
कर लेते हैं। क्योंकि उसमें कम दिमाग का है। दिमाग बच गया, मास्पेशिया नहीं बची, कद नहीं बचा। पर दिमाग हम बचा ले गए। तो दिमाग में हम
दुनिया से अभी भी आगे टक्कर ले लेते हैं। आगे पीछे तो पता नहीं कह नहीं सकते। पर हाँ, दिमाग में हम दुनिया से पीछे नहीं है। तो जब भी कोई
नॉलेज बेस्ड काम होता है, उसमें दुनिया भारत को याद करती है। वहाँ भी बात किसकी है गुण की। ये जो हमारा मस्तिष्क बचा दिया, किसने बचा
दिया, प्रकृ ति नहीं बचा दिया। क्योंकी प्रकृ ति कहती है तुम्हारा और कु छ अगर खाने की कमी से नष्ट भी हो गया तो चल जाएगा। लेकिन अगर ये
खराब हो गया तो नहीं चलेगा तो प्रकृ ति के पास कु छ न हो। तो भी सबसे पहले इसको देती है। जैसे घर में जो सबसे सबसे कीमती चीज होती है,
उसे आप सबसे ज्यादा बचाते हो, न

[00:37:11]: तो वैसे ही प्रकृ ति। सबसे ज्यादा इसको बचाती है। इसको आखिरी समय तक ब्लड सप्लाई दी जाती है, किसी भी तरह से ब्लड
और न्यूटंस को दिए जाते। और इसलिए जब इसको ही मिलना बंद हो जाए तो डॉक्टर क्या देते हैं। बाप। तो डेथ का भी प्रमाण क्या होता है ब्रेन
डेथ कहते है, अब इसको भी नहीं मिल रहा, कु छ नहीं बचा, थोड़ा भी अगर बचा होता तो शरीर इसको दे रहा होता, अब कु छ नहीं गया। ये गुण
और हमारी हस्ती का 1 दूसरा छोर है, जहाँ पर हमने थोड़ी देर। पहले कहा था, संभवतः पूर्ण मुक्ति है। लेकिन जो दूसरा छोर है, ये 1 तरह से
बस 1 यूटोपिया है, 1 आदर्श है। मोटे तौर पर कहें, तो कल्पना है, कल्पना नहीं है, पर जमीनी भाषा में कह 2, तो बस 1 आदर्शों की बात
आइडिया है, पूर्ण मुक्ति, उसे क्या बोलते हैं। आत्मा और हम इन दोनो के बीच में डोलते रहते हैं। ये याद है, ये, यह इतना पुराना होगा कि भूल
गए। इसको 1 छोर पर पूर्ण व्यवस्ता है, और 1 छोर पर पूर्ण मुक्ति है। और हम इन दोनों के बीच डोलते रहते हैं। यह क्या है यह क्या है यह क्या
है और इसलिए जो हमारा कर्म होता है, वो न तो पूरे तरीके से बद्ध होता, न पूरे तरीके से मुक्त होता है। और वो जैसा भी होता होता। हमारे हाथ
में मुक्त न होता हो। पर मुक्त होने की संभावना थी। उस सम्भावना को साकार कितना किया यह निर्भर किस पे करता है

[00:39:11]: तुम पर, तुम पर, आप पर, हम पर, ये इधर पाया गया किस पर निर्भर करता है। इस पर, इस पर, तुमने चुना की। तुम यहाँ
मिलोगे, ये यहाँ पाया गया, ये किसने तय किया इसने, ये इसने तय किया की यहाँ मिलेगा। तो जड और चेतन के बीच आप कहाँ अवस्थित हो ये
आपका चुनाव है। श्री कृ ष्ण कह रहे हैं, मैं कु छ नहीं करता, मैं कु छ नहीं करता, आज श्लोक है, उसमे कह रहे हैं, जो करते हो, तुम करते हो, मैं
करता हूँ। क्यूंकि चुनाव तुम करते हो तो मैं कहा कु छ करता हूँ। तुम जिंदगी में कहाँ, खड़े हो, तुमने चुना है। मैं कहाँ कु छ करता हूँ। तुम जिंदगी में
कहाँ, खड़े हो, यही वर्ण हैं, तुम्हारा, तो तुम्हारा, वर्ण तुम निर्धारित करते हो। मैंने निर्धारित किया। श्री कृ ष्ण कह रहे हैं कि ये जो चतुर, वर्ण है, ये
चल भले ही मेरे क्षेत्र के निचे राय, पर इसमें तुम कहाँ, खड़े हो तुम करते हो। तो इसलिए मैं करता हो, के भी अकड़ता हूँ, मैं करता हो, के भी
करता हूँ। क्यूंकी तुम्हारा वर्ण मैं नहीं निर्धारित करता तुम निर्धारित करते हो, तुम्हारा जन्म प्रकृ ति निर्धारित करती है, पर तुम्हारा वर्ण तुम
निर्धारित करते, जन्म प्रकृ ति निर्धारित करती है। वर्ण तुम निर्धारित करते हो। क्योंकि वर्ण तुम्हारा चुनाव है। तो तुम जानो कर्म, तुम्हारे हाथ में है,
बंधनों में पैदा हुए, इसमें कोई शक नहीं। प्रत्येक व्यक्ति बंधन में पैदा हो रहा है। बंधन अलग अलग तरीके के । सबके अपने अपने बंधन है। उन
बंधनों के बावजूद तुमने किया।

[00:40:50]: क्या यह तुम्हारा चुनाव है भैया कृ ष्ण साफ अलग हो गये। हमने हमने कु छ नहीं किया। 1 बार जन्म लेने के बाद तुम्हारा जीवन
किस दिशा चलता है, किस गति से चलता है। रुक रुक के गिर, गिर के चलता है, लड़खड़ा के चलता, उड़ के चलता, तुम जानो तुम्हारा काम है।
मैंने कु छ नहीं किया। ये सब तुमने किया है। मैंने कु छ नहीं किया। ये ऐसी सी बात है कि जैसे विडियो गेम की कोडिंग की किसी ने पर आप विडियो
गेम खेल रहे हो। तो आप उसमें कितने आगे तक पहुँचोगे, ये उसने तय कराया क्या उसने तो गेम बना दिया और उस गेम में कितनी आगे जाना
है। तुम जानो। उसने गेम बना दिया और उसके नियम बना दिए। अब उन नियमों में तुम कितने आगे जा सकते हो तुम जानो तो वर्ण आपका
आपके हाथ में है। जन्म आपका प्रकृ ति के हाथ में है। तो माने वर्ण जन्म से नहीं होता। लिख, लो, साफ, साफ, वर्ण जन्म से बिल्कु ल नहीं होता।
श्रीकृ ष्ण कह रहे हैं तुम जानो, तुम्हारा काम जाने और काम माने कर्म। गुण प्रकृ ति ने दिए। पर कर्म। तुम्हारे हाथ में था। वर्ण कर्म से बनेगा। गुण
पीछे से आ रहा है। इस लिए कहा गुण कर्म गुण पहले से है। कर्म तो तुम्हारे हाथ में है। और गुणों का कोई क्या कर सकता है।

[00:42:29]: जो स्त्री पैदा हुई है, स्त्री ही रहेगी। वो कितने भी कर्म कर ले, वो पुरुष तो नहीं हो जाएगी। लेकिन जो कु छ बदला जा सकता है,
जो कु छ अच्छे से अच्छा और ऊँ चे से ऊँ चा करा जा सकता है। तुमने किया क्या जो ऊँ चे से ऊँ चा कर ले, वो वर्णों में ऊँ चा हो गया। जो
संभावना को अपनी साकार न करे, जो जीवन को अपने सार्थक न करे, व वर्ण में निचे हो गया। नहीं फर्क पड़ता कि उसने जन्म कहाँ लिया था।
तो जन्म की बात नहीं है। हां, समाज में जरूर जाति प्रथा जैसे चली है, वो जन्म पर आधारित चली है। लेकिन उस जाति प्रथा का कृ ष्ण की
देशना से कोई लेना देना नहीं है। समाज ने कृ ष्णों की सुनी ही कब है। जब हम कहते हैं कि जाति प्रथा के लिए भी कृ ष्ण जिम्मेदार है, तो हम ऐसे
कह रहे हैं जैसे पूरा समाज गीता पर चलता हो। अगर समाज गीता पर चलता होता और कृ ष्ण के कहने पर जातिवादी होता, तो फिर कृ ष्ण के
कहने पर निष्काम कर्म। योगी भी तो होता। क्योंकी कृ ष्ण बस वर्ण की तो नहीं बात कर रहे हैं। कृ ष्ण तो निष्काम कर्म की बात कर रहे हैं। निष्काम
कर्मी होगी तो कोई नहीं दिखता। अगर कृ ष्ण की हम सुनते ही होते तो पहले तो निष्काम कर्मी होगी होते। पर नहीं, हम कहते नहीं, जातिवाद
जितना आया। न। कृ ष्ण ने फै लाया। क्योंकि कृ ष्ण ने इस श्लोक में कह दिया है कि यह वर्णों की रचना तो मैंने करी है।

[00:43:49]: भाई। वो ये भी तो कह रहे हैं कि वर्णों की रचना गुण कर्म के आधार पर और आगे क्या बोल रहे हैं कि रचनाकार होते हुए भी
इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। तुम्हारा जीवन तुम जानो, तुम्हारा जीवन तुम जानो। सोच समझ के होशियारी से, बोध से, जीओगे तो ऊँ चे वर्ण के
ओ तुम। और सब सम्भावना होते हुए भी तुम चुनाव करो की तुम को प्रमाद में रहना है, आलस में रहना है, भोग में रहना है, तमसा में रहना है।
ज्यादा मौज मारनी है तो तुम किसी नीचे वर्ण के हो, उसका जन्म से कोई लेना देना नहीं नहीं फर्क पड़ता किस घर में पैदा हुए है। समाज में जो
जाति चलती है, वो पूरे तरीके से इसी पर चलती है। तुम किस घर में पैदा हुए हो समाज की जाति का गीता से कोई लेना देना। गीता तो पूरे तरीके
से हमने इतनी बार बोला कि तुम्हारे भीतर की वृत्ति और तुम्हारे बाहर की संस्कृ ति के खिलाफ। 1 क्रांति है गीता समाज की संस्कृ ति को चुनौती
देती है और इंसान की वृत्ति को चुनौती देती है। गीता तो ये कहना कि समाज की संस्कृ ति गीता से आ रही है। बिल्कु ल झूठी बात है। हमारी
संस्कृ ति तो हमारे आडम्बर से, खंड से, हमारी प्रथा और परम्परा से आती है।

[00:45:11]: हमारी संस्कृ ति गीता से थोड़ी जा रही है, जो गीता का हो जाता है, जिससे कृ ष्ण से प्रेम हो जाता है। वो तो संस्कृ त को पीछे
छोड़ देता है। बहुत अभी कम्युनिटी, पर हमारी बहन है कोई। उन्होंने लिखा कि मैं गई, शवदाह हो रहा था, मैंने वहाँ खड़े होकर देखा। आमतौर
पर महिलाएं जाती नही है। मैं गई, वहाँ खड़ी हुई, उस पर किसी ने प्रतिक्रिया कर दी। हमें इतना आगे भी नहीं बढ़ जाना चाहिए की हम अपनी
संस्कृ ति को पीछे छोड़ दे। लोक सत्य आ गया कादर खान का डायलॉग देखो, बहन आगे बढ़ना। ठीक है, पर इतना भी आगे नहीं बढ़ जाना
चाहिए कि अपनी संस्कृ ति को पीछे छोड़। 2 तुम्हारी इसी संस्कृ ति के खिलाफ गीता 1 गर्जना है, क्या बात है, ये क्या डायलॉग रील बना। 2
इसकी चल जाएगा। 40 मिलियन ऐसे आते है। हमें इतना आगे नहीं बढ़ जाना चाहिए कि हम अपनी संस्कृ ति को पीछे छोड़ दे। जब कह दिया कि
महिलाओं को जीवन के तथ्य नहीं देखने चाहिए तो नहीं देखे। क्योंकि देख लिया की कै से हार जलेजयूलाकड़ी के श जलेजयुघास तो अगले दिन
ऐसे के श विन्यास कै से करेगी वो और के श विन्यास नहीं करेगी तो पुरुष की फिर कामुकता को उत्तेजना कै से मिलेगी पहुँच गई स्त्री शमशान में,
और देख लिया की के श जलेजू अगले दिन कै से करेगी के श विन्यास। और जब वो अपने बाल सजा के नहीं आएगी तो पुरुष की कामुकता
उतेजना नहीं पाएगी। तो पुरुष ने कहा इसको देखने ही न। 2 की हार जलेजू लकड़ी के स जलेजू खास नहीं देखेगी। तू तू घर में रह, तू।

[00:47:06]: 1 शीश महल में रह, तू सपनों के संसार में रह। तू रोमांस के पालने में झूल और बच्चे पैदा कर मत देख जिंदगी की हकीकत
को। और इसको तुम कहते हो संस्कृ ति गीता क्या ऐसी संस्कृ ति का समर्थन करेगी तो क्यों जातिवादी बता देते हो तुम गीता को और कृ ष्ण को
उसमें कृ ष्ण का क्या काम है। जातिवादी तो इसलिए है क्योंकि हमने कृ ष्ण बुद्धों की कभी सुनी ही नहीं। हमारा तर्क लगभग वैसे ही है। शहर में
कल सौ मौतें हुई, कोई बड़ा शहर इतनी तो होंगी सौ मौतें और उसमे से 90 अस्पतालों में हुई है। यह अस्पताल नहीं है। ये लोगों के अस्पताल
जाने पर प्रतिबंध लगाओ। क्योंकि हमने पता कराया है कि सौ मौतें हुई हैं, जिसमे से 90 तो अच्छा नहीं। लेकिन और पता कर जहाँ भी मौतें हो
रही हैं, सौ में से 90 तो अस्पतालों में ही होती है। तो निष्कर्ष साफ है। ये अस्पताल ही मर रहे हैं लोगों को। ठीक वैसे जैसे गीता लोगों को जाती
वादी बना रही है, वैसे अस्पताल लोगो को मार रहे है। अस्पताल ने इलाज की पूरी कोशिश की, उसके बावजूद तुम मरे हो। गीता ने तुम्हें जाति से
छु ड़ाने की पूरी कोशिश की। उसके बावजूद तुम जातिवादी हो। तुम तर्क को बिलकु ल उल्टा कर रहे। एकदम उल्टी गंगा बहा रहे हो। कल को ये भी
बोल देना कि सौ में से 99 जो मरते हैं, वो बिस्तरों पर मरते हैं। तो बिस्तरों पर प्रतिबंध लगाया जाए। ये बिस्तर ही लोगो को मार रहे हैं। जितने
मरे थे। हमने पता करा 99 बिस्तर पर थे।

[00:48:51]: जब मरे इसका मतलब बिस्तर जो है, ये हत्यारे हैं। क्या तर्क है। गीता को बोल दिया गीता जातिवादी है। और बड़े बड़े लोगों ने,
बोला गीता जातिवादी है। क्या आज तक चल रही वो बात हमारे भाइयों बहनों का। 1 बड़ा तबका है जो गीता से ही मुंह फे रे बैठा है। दूर हो गया
है। बोल रहा। गीता जातिवादी है। कै से गीता जातिवादी है जहाँ कहा जा रहा है कि देह मिथ्या है, वहाँ देह के आधार पर तुम्हारी जाति कै से
निर्धारित हो जाएगी। बता 2 जहाँ कहा रहा है कि तुम्हारी सच्चाई आत्मा है और आत्मा का न वर्ण होता, न लिंग होता, न जन्म होता, न मृत्यु
होती, वह जाती कहाँ से आ जाएगी। बताओ तुम्हारी जात कहाँ से आ जाएगी जब गीता घोषित कर रही है कि तुम स्वयं अजात हो। अजात माने,
जिसका जन्मी नहीं हो सकता। तुम्हारी जात कहाँ से आएगी जब तुम्हें गीता ने आजाद घोषित कर दिया, पर लगा दिया। इलजाम गीता पर, वी
गीता जातीवादी है। समझ में आ रही है बात और मनुष्य। अके ला ऐसा होता है जिसकी चेतना बहुत गिरी हुई भी हो सकती है और बहुत उठी हुई
भी। क्योंकि हमने कहा हमारे 2 छोर है, दोनों छोरों के बीच में, बड़ा फासला है। तो यहाँ से वहाँ तक हमारी कितनी भी हो सकती है। चेतना
कितना फर्ष से हर्ष तक, तो कोई यहाँ पर है, कोई यहाँ पर।

[00:50:42]: जो लोग अलग अलग स्तर पर हैं, तो उनके अलग अलग स्तरों को दर्शाने के लिए कह दिया ये इस वर्ण का, ये इस वर्ण का, ये
इस वर्ण का, यह इस वर्ण का। पशुओं में वर्ण व्यवस्था नहीं चलने वाली। बताओ क्यों वो सब 1 ही तल की चेतना के हैं, सब 1 तल की चेतना के
हैं। अगर देह से चलती होती। वर्णव्यवस्था तो पशु में भी चलते ओह भेड़ ब्राहमण है, उच्च कु ल की भेड़। और ये भेड़ हर समय दूसरों से अपनी
घास छु पाती रहती है और खुद ही अपने उन की दलाली करती है। जरूर ये बनिया भेड़ है। ये सब होता कभी कु छ नही होता। और सबकी चेतना
का 1 स्तर है। तो हाँ कोई वर्ण नहीं चलना है। जात वहाँ भी चलती है। आप कहते हो न यह ब्रीड, ये बढ़िया बीड ब्रीड का मवेशी है। ये तुम्हारा
कु त्ता किस ब्रीड का है। देसी शु शु। जात शरीर की होती है, वर्ण चेतना का होता है। जात शरीर के वर्ण चेतना और चूँकि शरीर सबके 1 होते हैं।
इसी लिए जात मूर्खता है। पर चेतना में मनुष्य की चेतना में अंतर होता है। और हमें इसको स्वीकार ना पड़ेगा। ये है वर्ण का अर्थ की मनुष्य की
चेतना बहुत नीचे की भी हो सकती है, बहुत ऊपर की भी हो सकती है।

[00:52:25]: 1 ही मनुष्य अपने जीवन काल में 1 वर्ण का भी हो सकता है, दूसरे वर्ण का भी। ऊँ चे वर्ण का हो के नीचे गिर सकता है वर्ण में
और नीचे वर्ण का के ऊपर उठ सकता है। पूरी सम्भावना सब खुली हुई है। है। समाज में ऐसे उदाहरण देखने को नहीं मिलते। पर समाज में ऐसे
उदाहरण देखने को नहीं मिलते। तो दोषी कौन है समाज या गीता पर हमने तो गीता को दोषी बना दिया। लगभग ऐसी ही बात है कि मैं यहाँ गीता
पढ़ा रहा हूँ। वो वहाँ बैठे हुए बहुत सारे अभी भी होंगे। कम से कम 50 परसेंट होंगे। जो सत्रों में बैठी नहीं रहे, उन्हें कु छ समझ में नहीं आया। तो
अब कल 1 तारीख लगेगी। उनसे बात होगी। साहब सत्र रहा है। अरे बेकार है, बेकार है। कु छ हमें लाभ नहीं हुआ। अच्छा लाभ नहीं हुआ कितने
सत्र सुने थे। नहीं सुन तो हम नहीं पाये। पर लाभ नहीं हुआ। तो गलती तुम्हारी है या गीता की है जिसने सुना नहीं गलती। न सुनने वाले की। यह
गलती गीता की है। लाभ नहीं हुआ तो न सुनने वाले की गलती है। गीता। समाज ने गीता को नहीं सुना है। भाई बात समझो समाज ने किससे
कहानियाँ सुनी हैं। कृ ष्ण के नाम पर भी समाज को क्या पता है किससे कहानियाँ किसी भी आम आदमी को पकड़ लो। वो कृ ष्ण के जीवन के 10
किससे सुना देगा। उससे को। अब 10 लोग भी सुना।

[00:53:41]: 10 तू लम्बी लम्बी। कहानियाँ सुनाते का पूरा रस ले ले। कर के बैठो। अभी कथा सुनाते है। और ये कथा इतनी दूर जा रही है।
यह हो रहा है फलाना पेड़ फलाना। ये वो पूरे विस्तार के साथ 11 बिंदु में रंग भर भर के सुनाएगा कथाएं हो। अब 10 लोग बता। अच्छा 10
लोक नहीं पता चल। 10 मंत्र बता दे लोगों के अंश बता दे है। नहीं कु छ नहीं पता। हाँ कहानी 1 और याद आ गई समाज ने गीता की सुनी। कभी
कृ ष्ण के नाम पर भी समाज के पास क्या है बस किससे कहानिया तो अगर समाज गिरा हुआ है तो उसका इल्जाम। फिर गीता आरोप क्यों लगा
रहे हो उन किससे कहानियों पर लगाओ न। समाज चल रहा है किससे कहानियों के पीछे, समाज गीता के पीछे तो चल नहीं रहा। तो अगर समाज
की दुर्दशा है। समाज में जातिवाद है, समाज में हर तरीके की बुराइयाँ है। तो फिर उसका इल्जाम भी किस पर जाना चाहिए। उन किससे कहानियों
पर जिनका अनुकरण समाज ने आज तक का है। पर इलजाम किस पर लगा देते हो गीता पर। तो गीता छीछीयेकोई तरीका है, तरीका है। और ये
कह कर के गीता में जो बोध है, जो अमृत है। इससे हमने समाज को वंचित कर दिया। और जब गीता से आप समाज को वंचित कर दोगे तो
किससे कहानियां और फै ल जाएंगे। और बहुत लोग कहीं, हमें किससे कहानियां भी नहीं चाहिए। उनके अपने अलग इरादे अलग कल्पनाएं हैं,
अलग।

[00:55:14]: उनके मनसूबे हैं, लक्ष्य हैं, टार्गेट हैं, उनके अलग आदर्श हैं। वो और तरीके से कहीं जा कर के उड़ना शुरू कर देते हैं। सारी
बात समझ वर्ण कै से बदलता है। ध्यान में हो तो ब्राह्मण हो, सतोगुड़ी हो तो ब्राह्मण, साहस के साथ रजो, गुणी हो, सौदे के साथ रजोगुणी हूँ,
तमोगुणी हो, सुबह, सुबह रजाई से बाहर निकलने को नहीं तैयार। अभी तुम क्या हो बस। फिर किसी ने आके डंडा लगाया बैठा दिया। गीता पढने
लगे, चेतना, थोड़ी साफ हो गयी। इस क्षण में क्या हो वर्ण ऐसे चलता है। और जाति वो घटिया चीज है। वो ऐसा है कि फलाने घर में पैदा हुए थे,
जिंदगी भर के लिए ठप्पा लग गया। जाति कभी नहीं बदल सकती। कहते हैं जो कभी नहीं जाती, उसको बोलते हैं। जाती जाती बहुत घटिया चीज
है। वर्ण हमारे हाथ में है। जाति हमारे हाथ में नहीं है। तो जाति व्यवस्था की निंदा होनी चाहिए। निंदा। क्या होनी चाहिए। वो अतीत का कचरा उठा
के फे को बार पर। वर्ण तो याद रखना पड़ेगा न। वर्ण तो मेरे भीतर की बात है। मुझे अपना वर्ण किसी और घोषित भी नहीं करना। पर मुझे तो पता
होना चाहिए। मेरे भीतर ईमानदारी की बात है कि मेरी चेतना अभी के तल पर है। यह याद रखो के न रखूँ। बस। यही वर्ण है। याद रखो की तुम
भीतर से भी तल पर बैठे हो। ये वर्ण है। यह बात समाज की परिभाषा से मेल नहीं खाएगी। पर समाज ने विकृ त परिभाषा बना रखी है। तो मैं क्या
करूँ
[00:57:18]: लोग कहेंगे नहीं। ये थोड़ी है। आप तो काल्पनिक बता। मैं काल्पनिक नहीं बता रहा। मैं असली बता रहा हूँ। समाज जिस पर
चल रहा है, वो काल्पनिक है। भाई। उसको हटाओ मुझ पर आक्रमण क्यों कर रहे हो रामतजूपगुरु नबशारूगुरु के सम हरी कु नान हारु, राम त
जो पै गुरु नबशारू गुरु के सम महरी को नान हारु, राम तजो गुरु नवसारो गुरु के सम्हारी को नानेहारु, राम जो, गुरु नब, शारु गुरु के सम हरी
को नान हारू, हरि ने जनम दियो, जग माही, हरी ने जनम दियो, जग माही गुरु ने आवागमन छु ट, आही गुरु ने आवागमन छू ट रही। राम कजु
गुरु न सारू गुरु के संहार को नान हारु, रामतजोपगुरु नब सारु गुरु के संहार को नान, आरू हरी ने 5 चोर दि। सा था, हर पाच चोर देता था।
गुरु ने ले लूटा ना था गुरु ने ले लूटा ना था, राम तजूपेगुरुनबसारु गुरु के संहार को ना ने हारु, राम तजुपैगुरु न, शारू गुरु के समहर को ना ने
हारू, हरि ने को टुंब जाल, मे गेरी हरी ने को, तुम जाल में गेरी गुरु ने काटी ममता, मेरी गुरु ने काटी ममता, मेरी राम तजो गुरु नवसारो गुरु के
सम हरी को न निहारु, राम तजोपगुरुनबेशारू गुरु के सम हरी को ना ने हारू, नमस्कार मैं और मेरी वाइफ की थी। हम दोनों लगभग 6 महीने से
सभी सत्रों के साथ जुड़े हैं।

[01:01:10]: हम दोनों बेंगलुरु में रहते हैं। हर में यूएस बेस बैंक उसमें काम करते हैं। फाइनेंस डिपार्टमेंट में अचार जी को यू ट्यूब पर कु छ
देर से सुन रहे थे। 89 महीने से और कु छ लगभग 6 महीने से चारों सत्रों में लाइट जुड़े हैं। दोनों ही साथ में सुनते हैं। तो आज हमने अष्टवक्र गीता
लोग 10 प्वाइंट 5 में यह जाना कि जो अहंकार होता है उसके लिए उसकी खाल के अन्दर अहम होता है और खाल के बाहर विश्व होता है और
ये सिद्धांत तो है ही कि संसार जड़ है और जो अन्दर है वो चेतना है। तो अहंकार को लगता है कि अन्दर चेतना बट जो ज्ञानी इंसान होता है वो ये
सच में समझता है कि बिना किसी भेद के , बिना किसी डिस्ट्रिक्शन के , जो खाल के अन्दर है वो भी जड़ है और जो बाहर है वो भी जड़ है और
जब किसी इंसान को यह समझ आता है तो उसके अंदर उसकी चेतना का जन्म होता है और यही असली अंग का जन्म होता है। राज्य के सी के
में 2 गाना चाहूंगा मैं बुरा जो देखन मैं चला बुरा, ना मेले को, जो दिल खो जा, अपना मुझसे बुरा न कोई, साधू मुझसे बुरा न कोई।

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