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के न्द्रीय विद्यालय संगठन चेन्नई सम्भाग

KENDRIYA VIDYALAYA SANGATHAN CHENNAI REGION

अध्ययन सामग्री 2022 – 23

कक्षा - XII
STUDY MATERIAL 2022 – 23
CLASS - XII

विन्द्दी/ HINDI

1
मुख्य संरक्षक

सुश्री टी. रुक्मवि, प्रभारी उपायुक्त के .वि.सं.चेन्नई संभाग


संरक्षक

श्री पी.आई.टी.राजा, सिायक उपायुक्त के .वि.सं.चेन्नई संभाग

अध्ययन-सामग्री-निदेशक

श्री विजय कु मार, प्राचायय के .वि.क्र.-02, पोटय ब्लेयर

संपादक एिं संकलनकर्त्ाय – श्री के शरी नंदन विपाठी

(स्नातकोर्त्र वशक्षक-विन्द्दी, के .वि.क्र.-02, पोटय ब्लेयर


2
प्राचायय संदश

के न्द्रीय विद्यालय संगठन के अनुभिी वशक्षकों के साथ बारििीं कक्षा के छािों िेतु विन्द्दी विषय
की यि अध्ययन सामग्री तैयार कर मैं अत्यंत प्रसन्नता का अनुभि कर रिा हूँ। मुझे पूरा विश्वास िै कक यि
अध्ययन सामग्री िमारे सम्भाग के प्रत्येक छाि की आिश्यकता को पूिय करे गी और िे CBSE बोर्य परीक्षा
की तैयारी सिजता से करें ग।े िमारे वशक्षक दल ने न के िल बारििीं कक्षा के छािों की सिायता के वलए,
बवकक विन्द्दी भाषा के अध्यापकों की सुगमता के वलए भी अध्ययन सामग्री वनमायि में विशेष ध्यान रखने
का प्रयास ककया िै।

यि अध्ययन सामग्री CBSE के निीनतम प्रश्नपि प्रारूप के अनुसार तैयार की गई िै। इस पुस्तक के अन्द्त
में सभी छािों के स्तरानुकूल आदशय प्रश्नपि भी कदया गया िै। यि अध्ययन सामग्री तैयार करने के वलए
मुझे अिसर, मागयदशयन ि प्रेरिा प्रदािी सम्माननीया उपायुक्त मिोदया सुश्री टी रुवक्मवि जी एिं माननीय
सिायक आयुक्त मिोदय श्री पी आई टी राजा जी को मैं कोटटशः धन्द्यिाद देता हूँ।

मैं आशा करता हूँ कक यि अध्ययन सामग्री छािों को अवधकावधक अंक प्राप्त करने के वलए ि
अध्यापकों को अध्यापन कायय की सुगमता के वलए अत्यन्द्त उपयोगी सावबत िोगी। इस उर्त्म प्रयत्न के
सफल सम्पादन में सम्पादक एिं सिायक-अध्ययन-सामग्री-वनमायि-सवमवत के सदस्यों का मैं हृदय की
गिराई से धन्द्यिाद देता हूँ।

शुभकामनाओं के साथ........

विजय कु मार

प्राचायय, के न्द्रीय विद्यालय क्रमांक – 02

पोटय ब्लेयर

3
के न्द्रीय विद्यालय संगठन – चेन्नई संभाग
संस्थापक सदस्य
सिायक अध्ययन सामग्री वनमायि सवमवत
क्र॰ स॰ वशक्षक का नाम के न्द्रीय विद्यालय का नाम सदस्य
1 सुश्री िाइन्द्स नीलम अरक्कोिम सदस्य
2 श्रीमती कु मारी अरक्कोनम क्र॰ 2 सदस्य
3 श्रीमती शामा र्ाबरे अरुिनकार्ु सदस्य
4 श्रीमान पी जयराजन चेन्नई एएफएस आिड़ी सदस्य
5 श्रीमती प्रवतमा गुप्ता चेन्नई सीएलआरआई सदस्य
6 श्रीमती रीना शमाय चेन्नई सीआरपीएफ आिड़ी सदस्य
7 र्ॉ बी उमापवत जैन चेन्नई र्ीजीक्यूए सदस्य
8 श्रीमती आर कविता चेन्नई वगल नगर सदस्य
9 श्रीमती ममता ससंि चेन्नई एचिीएफ आिड़ी सदस्य
10 श्रीमती रावजया सुकताना चेन्नई आईआईटी सदस्य
11 र्ॉ विनोद कु मार चेन्नई आईलैण्र् ग्राउण््स सदस्य
12 श्रीमती विद्या चेन्नई वमनंबक्कम सदस्य
13 श्रीमती सुधा शमाय चेन्नई ओसीएफ आिड़ी सदस्य
14 सुजाता सरािनन चेन्नई तांबरम क्र॰ 1 सदस्य
15 श्रीमती एस पद्मश्री चेन्नई तांबरम क्र॰ 2 सदस्य
16 श्रीमती लीला बैरिा कोयंबटू र सदस्य
17 श्रीमती विशाखा सर्ंर्ीगुल सदस्य
18 श्रीमती अकका मिािर कलपक्कम क्र॰ 1 सदस्य
19 श्रीमती सुिेगा कराइकु र्ी सदस्य
20 मिेश्वरी मदुरै क्र॰ 2 सदस्य
21 श्री प्रदीप कु मार के शरिानी मंर्पम सदस्य
22 श्रीमती अकफोंसा के नागरकोइल सदस्य
23 र्ॉ गोसिंद प्रसाद शमाय पेरम्बलूर सदस्य
24 श्रीमती सुनीता कु शिािा सुलुरु सदस्य
25 श्रीमती िंदना पांर्े तंजािुर सदस्य
26 श्रीमती रोजरमवि वथरुिन्नमलाई सदस्य
27 श्रीमती र्ी भुिनेश्वरी वतरुिरुर सदस्य
28 र्ॉ इ॰ औराधा विची क्र॰ 2 सदस्य
29 श्री जीतेंर कु मार िमाय विजयनारायिम सदस्य
30 ज्योवत विरुधुनगर सदस्य
31 श्रीमती प्रीवत विपाठी िेसलंग्टन सदस्य
32 श्री िरे कृ ष्िा यादि कराईक्कल सदस्य
33 सुनीता चौिान पांवर्चेरी क्र॰ 1 सदस्य
34 ए रावधका पांवर्चेरी क्र॰ 2 सदस्य
35 श्री अशोक कु माित पोटय ब्लेयर क्र॰ 1 सदस्य

4
अनुक्रमविका
क्र॰ स॰ विषय/वबन्द्द/ु प्रकरि पृष्ठ संख्या
1 अपटठत अिबोध
1. अपटठत गद्यांश 7-25

2. अपटठत पद्यांश 27-44

2 आरोि (पद्य-भाग
पाठ-1 आत्मपटरचय, एक गीत 42-51

पाठ-2 पतंग 52-57

पाठ-3 कविता के बिाने, बात सीधी थी पर 58-64

पाठ-4 कै मरे में बंद अपाविज 5-70


पाठ-6 उषा 70-74
पाठ-7 बादल राग 74-84

पाठ-8 कवितािली, लक्ष्मि मूर्चछाय और राम का विलाप 85-100

पाठ-9 रुबाइयाूँ 100-107

पाठ-10 छोटा मेरा खेत, बगुलों के पंख 108-119

3 आरोि ( गद्य-भाग
पाठ-1 भवक्तन 121-146
पाठ-2 बाजार दशयन 146-154
पाठ-3 काले मेघा पानी दे 154-164
पाठ-4 पिलिान की ढोलक 165-173
पाठ-7 वशरीष के फू ल 174-180

पाठ-8 मेरी ककपना का आदशय समाज, श्रम विभाजन एिं जावतप्रथा 182-187

4 वितान
पाठ-1 वसकिर िैसर्ंग 189-199
पाठ-2 जूझ 200-210
पाठ-3 अतीत में दबे पांि 211-220
5 अवभव्यवक्त और माध्यम पाठ्य पुस्तक
पाठ-3 विवभन्न माध्यमों के वलए लेखन 222-234
पाठ-4 पिकारीय लेखन के विवभन्न रूप और लेखन प्रकक्रया 234-252
पाठ-5 विशेष लेखन- स्िरुप और प्रकार 253-258
पाठ-11 कै से करें किानी का नाट्यरूपांतरि 258-260
पाठ-12 कै से बनता िै रे वर्यो नाटक 260-266
पाठ-13 नए और अप्रत्यावशत विषयों पर लेखन 266-275
6 आदशय प्रश्न पि एिं अंक-प्रारुप 277-296

5
6
अपटठत गद्यांश-01
“सच्चा उत्साि ििी िोता िै जो मनुष्य को कायय करने के वलए प्रेरिा देता िै I मनुष्य ककसी भी कारििश जब ककसी के कष्ट
को दूर करने का संककप करता िै तब वजस सुख को िि अनुभि करता िै, िि सुख विशेष रूप से प्रेरिा देने िाला िोता िैI
वजस भी कायय को करने के वलए मनुष्य में कष्ट या दु:ख को सिन करने की ताकत आती िै, उन सबसे उत्पन्न िी उत्साि
किलाता िै I उदािरि के वलए दान देने िाला व्यवक्त वनश्चय िी अपने भीतर एक विशेष सािस रखता िै और िि िै धन
त्याग का सािस I यिी त्याग यकद मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता िै तो उसे उत्साि से ककया गया दान किा जाएगा I उत्साि
आनंद और सािस का वमला-जुला रूप िै I उत्साि में ककसी ना ककसी िस्तु पर ध्यान अिश्य के वन्द्रत िोता िै I िि चािे कमय
पर,चािे कमय के फल पर और चािे व्यवक्त या िस्तु पर िोI इन्द्िीं के आधार पर कमय करने में आनंद वमलता िै I कमय भािना
से उत्पन्न आनंद का अनुभि के िल सच्चे िीर िी कर सकते िैं क्योंकक उनमें सािस की अवधकता िोती िैI सामान्द्य व्यवक्त कायय
पूरा िो जाने पर वजस आनंद को अनुभि करता िै, सच्चा िीर कायय प्रारम्भ िोने पर िी उसका अनुभि कर लेता िै I आलस्य
उत्साि का सबसे बड़ा शिु िै I जो व्यवक्त आलस्य से भरा िोगा, उसमें काम करने के प्रवत उत्साि कभी उत्पन्न निीं िो
सकता I उत्सािी व्यवक्त असफल िोने पर भी कायय करता िै I उत्सािी व्यवक्त सदा दृढ़वनश्चयी िोता िैI
(क) उत्साि का प्रमुख लक्षि िै –
(i) जोश (ii) सािस
(iii) आनंद (iv) आनंद और उत्साि
(ख) सच्चे िीर िो िोते िैं –
(i) जो फल पाने के वलए उत्साि कदखाते िैं (ii) जो कमय भािना से उत्साि कदखाते िैं
(iii) जो वनष्काम भाि से उत्साि कदखाते िैं (iv) जो आनंद-विनोद के वलए उत्साि कदखाते िैं
(ग) उत्साि के मागय में सबसे बड़ी रुकािट िै –
(i) दु:ख (ii) वनराशा
(iii) िैराग्य (iv) आलस्य
(घ)’सच्चा उत्साि ििी िोता िै जो मनुष्य को कायय करने के वलए प्रेरिा देता िै- रे खांककत उपिाक्य का प्रकार िै–
(i) प्रधान उपिाक्य (ii) विशेषि उपिाक्य
(iii) कक्रया-विशेषि उपिाक्य (iv) संज्ञा उपिाक्य
(ङ) ‘के करत’ और ‘अवधकता’ में क्रमश: प्रत्यय इस प्रकार िैं –
(i) करत, ता (ii) ईत, आ
(iii) इत, ता (iv) ईत, ता
(च) कमय भािना से उत्पन्न आनंद का अनुभि के िल कौन कर सकता िै -
(i) सच्चे िीर (II) कायर पुरुष
(iii) सेनानी (iv) उपरोक्त सभी
(छ) कौन सा सुख प्रेरिा देने का कायय करता िै –
7
(i) दुःख में र्ू बे रिना (ii) वसफय बातें करते रिना
(iii) कष्ट को दूर करने का संककप (iv) इनमें से कोई निीं
(ज) आलसी व्यवक्त की प्रिृवत कै सी िोती िै –
(i) कामचोरी की (ii) काम करते रिने की
(iii) संघषय करने की (iv) दुःख सिन करने की
(झ) उत्सािी व्यवक्त की वनम्न में से कौन सी विशेषता निीं िै –
(i) सािसी (ii) पटरश्रमी
(iii) आलसी (iv) कमयशील
(ञ) गद्यांश का उपयुक्त शीषयक क्या िोगा –
(i) भािुक व्यवक्त (ii) आलसी व्यवक्त
(iii) प्रसन्नवचर्त् व्यवक्त (iv) उत्सािी व्यवक्त
अपटठत गद्यांश-02
पटरश्रम को सफलता की कुं जी माना गया िै । जीिन में सफलता पुरुषाथय से िी प्राप्त िोती िै । किा भी गया िै - उद्योगी
को सब कु छ वमलता िै और भाग्यिादी को कु छ भी निीं वमलता, अिसर उनके िाथ से वनकल जाता िै। कटठन पटरश्रम का
िी दूसरा नाम भाग्य िै । प्रकृ वत को िी देवखए; सारे जड़ चेतन अपने काम में लगे रिते िैं, चींटी को पलभर चैन निीं,
मधुमक्खी जाने ककतनी लंबी यािा कर बूूँद- बूूँद मधु जुटाती िै। मुगे को सुबि बांग लगानी िोती िै ,कफर मनुष्य को बुवि
और वििेक वमला िै िि वसफय सफलता की कामना करता क्यों बैठा रिे ? विश्व में जो देश आगे बढ़े िैं उनकी सफलता का
रिस्य कटठन पटरश्रम िी िै। जापान को दूसरे विश्वयुि में वमट्टी में वमला कदया गया था । उसकी अथयव्यिस्था वछन्न-वभन्न
िो गई थी लेककन कदन-रात पटरश्रम करके आज िि विश्व का प्रमुख औद्योवगक और विकवसत देश बन गया िै । चीन भी
अपने पटरश्रम के बल पर आगे बढ़ा िै । जमयनी ने भी युि की विभीवषका झेली पर पटरश्रम के बल पर िी संभल गया।
पटरश्रम का मित्ि िे जानते िैं जो स्ियं अपने बल पर आगे बढ़े िैं । संसार के इवतिास में अनेक चमकते वसतारे के िल
पटरश्रम के िी प्रमाि िैं । िमारे पूिय राष्ट्रपवत श्री अब्दुल कलाम पटरश्रम और मनोबल से िी देश के सिोच्च पद पर आसीन
हुए उनका किना था- “भाग्य के भरोसे बैठने िाले को उतना िी वमलता िै वजतना मेिनत करने िाले छोड़ देते िैं”। िमारे
बड़े-बड़े धनकु बेर व्यापारी टाटा ,वबरला, अंबानी यि सब पटरश्रम के िी उदािरि िै वनरं तर पटरश्रम और दृढ़ संककप िमारे
लक्ष्य को िमारे करीब लाता िै । गरीब पटरश्रम करके अमीर िो जाता िै और अमीर वशवथल बनकर असफल िो जाता िै।
भारतीय कृ षक के पटरश्रम का िी फल िै कक देश में िटरत क्रांवत हुई। अमेटरका के सड़े गेहूँ से पेट भरने िाला भारत आज
मजबूरी निीं, बवकक मजबूती से खड़ा िै तो इसके पीछे कठोर पटरश्रम और धैयय िी िै । िमारे कारखाने कदन रात उत्पादन
कर रिे िैं, विकासशील देशों में वपछड़े माने जाने िाले िम भारतिासी आज विकवसत देशों से प्रवतस्पधाय कर रिे िैं । अगर
िम किीं वपछड़े िैं तो उसका कारि पटरश्रम का अभाि िी िोगा । पटरश्रम के वबना जीिन में कु छ निीं वमलता | ककसी ने
सिी किा िै- “सकल पदारथ िै जग मािीं, कमयिीन नर पाित नािीं”| यकद विद्याथी जीिन से िी पटरश्रम की आदत पड़
जाएगी तो िम जीिन में कभी असफल निीं िो सकते । विद्याथी जीिन तो पटरश्रम की पिली पाठशाला िै तो न वसफय
िमारी वशक्षा बवकक िमारा भविष्य भी सुरवक्षत और मजबूत िो जाता िै।

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(I) उपयुयक्त गद्यांश का उवचत शीषयक िोगा –
(क) भाग्य बलिान िोता िै (ख) आलसी जीिन
(ग) पटरश्रम का मित्ि (घ) इनमें से कोई निीं
(II) जीिन में सफलता पाने का सबसे बड़ा माध्यम क्या िै?
(क) पैसा (ख) विद्वर्त्ा
(ग) चालाकी (घ) पुरुषाथय
(III) जापान, जमयनी,चीन जैसे देश विपरीत पटरवस्थवतयों से बािर कै से वनकले?
(क) युि से (ख) व्यापार से
(ग) विदेश नीवत से (घ) पटरश्रम से
(IV) िमारे लक्ष्य को िमारे करीब कौन लाता िै?
(क) पटरश्रम और दृढसंककप (ख) पैसा और वशक्षा
(ग) वसफय पैसा (घ) राजनीवत
(V) आज िमारा देश बड़े-बड़े देशों के सामने ककस रूप में खड़ा िै?
(क) याचक के रूप में (ख) प्रवतस्पधी के रूप में
(ग) शिु के रूप में (घ) इनमें से कोई निीं
(VI) पटरश्रम की पिली पाठशाला किाूँ वमलती िै?
(क) जन्द्म से (ख) घर में
(ग) विद्याथी जीिन में (घ) नौकरी करने पर
(VII) िमारे ककसानों के पटरश्रम से देश में कौन सी क्रांवत आयी?
(क) िटरत क्रांवत (ख) श्वेत क्रांवत
(ग) लाल क्रांवत (घ) सभी सिी िैं
(VIII) वनम्नवलवखत में से कौन सी पंवक्त पुरुषाथय या पटरश्रम के मित्त्ि पर सटीक बैठती िै?
(क) करमगवत टारे नािीं टरे
(ख) पुरुष बली निीं िोता िै समय िोत बलिान
(ग) सबके दाता राम
(घ) सकल पदारथ िै जग मािीं, कमयिीन नर पाित नािीं
(IX) इनमें से कौन सा शब्द ‘विभीवषका’ का समानाथी िोगा-
(क) दुष्प्रभाि (ख) िासदी
(ग) िावन (घ) कोई निीं
(X) ‘पटरश्रम’ शब्द में उपसगय िै-
(क) पर (ख) परा
(ग) पटर (घ) परी

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अपटठत गद्यांश-03
दबाि में काम करना व्यवक्त के वलए अर्चछा िै या निीं इस बात पर प्रायः बिस िोती िै| किा जाता िै कक व्यवक्त अत्यवधक
दबाि में नकारात्मक भािों को अपने ऊपर िािी कर लेता िै, वजससे उसे अक्सर कायय में असफलता प्राप्त िोती िै| िि
अपना मानवसक और शारीटरक स्िास््य भी खो बैठता िै| दबाि को यकद ताकत बना वलया जाए तो न वसफय सफलता प्राप्त
िोती िै, बवकक व्यवक्त कामयाबी के नए मापदंर् रचता िै| ऐसे बहुत सारे उदािरि िै जब लोगों ने अपने काम के दबाि
को अिरुि निीं, बवकक ताकत बना वलया| सुख-दुख, सफलता-असफलता शांवत-क्रोध और कक्रया-कमय िमारे दृवष्टकोि पर
िी वनभयर करता िै| जोस वसकिा इस बात से सिमत िोते हुए अपनी पुस्तक ‘यू द िीलर’ में वलखते िैं कक मन मवस्तष्क को
चलाता िै और मवस्तष्क शरीर को| इस तरि शरीर मन के आदेश का पालन करता हुआ काम करता िै| दबाि में व्यवक्त यकद
सकारात्मक िोकर काम करें तो िि अपना सियश्रष्ठ
े प्रदशयन करने में कामयाब िोता िै |दबाि के समय मौजूद समस्या पर
ध्यान कें करत करने और बोझ मिसूस करने की बजाय यकद यि सोचा जाए कक िम अत्यंत सौभाग्यशाली िै जो एक कटठन
चुनौती को पूरा करने के वलए तत्पर िै तो िमारी बेितरीन क्षमताएूँ स्ियं जागृत िो उठती िै| िमारा कदमाग वजस चीज
पर भी अपना ध्यान कें करत करने लगता िै िि िमें बढ़ती प्रतीत िोती िै| यकद िम अपनी समस्याओं के बारे में सोचेंगे तो
िि भी बड़ी मिसूस िोगी |इस बात को िमेशा ध्यान में रखना चाविए कक “जीतना एक आदत िै, पर अफसोस ! िारना
भी आदत िी िै”|
क) दबाि में काम करने से व्यवक्त:-
1) को कायय में सफलता निीं वमलती 2) अपना मानवसक स्िास््य खो देता िै
3) अपना शारीटरक स्िास््य खो देता िै 4) उपयुयक्त सभी
ख) दबाि िमारी सफलता का कारि बनता िै, जब व्यवक्त-
1) दबाि को ताकत बना लेता िै 2) दबाि में नकारात्मक रूप से काम करता िै
3) घबरा जाता िै 4) उसी भाषा में जिाब देता िै
ग) दबाि में सकारात्मक सोच िै :-
1) समस्या पर ध्यान कें करत करना 2) कायय को बोझ न समझना
3) कटठन से कटठन चुनौती के वलए तत्पर रिना 4) उपरोक्त सभी
घ) सफलता सुख-दुख शांवत क्रोध सब ककस पर वनभयर करता िै?
1) मनुष्य के व्यवक्तत्ि पर 2) मनुष्य के दृवष्टकोि पर
3) मनुष्य की काययशैली पर 4) उपरोक्त सभी पर
र्.) कायय में असफलता प्राप्त िोती िै जब व्यवक्त :-
1) नकारात्मक भािों को अपने ऊपर िािी िोने देता िै
2) कायय के प्रवत जागरूक िोता िै
3) संघषय के साथ आगे बढ़ता िै
4) सािस के साथ काम करते िैं
च) ‘यू द िीलर’ िै :-

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1) एक व्यवक्त 2) एक पुस्तक
3) एक भिन 4) एक संस्थान
छ) गद्यांश के अनुसार मवस्तष्क को कौन चलाता िै?
1) व्यवक्त 2) मन
3) तन 4) दृवष्टकोि
ज) व्यवक्त अपना सियश्रष्ठ
े प्रदशयन कब करता िै?
1) सकारात्मक िो कर 2) दबाि में सकारात्मक िोकर
3) अत्यवधक पूंजी लगाकर 4) तनाि में आकार
झ) अपनी क्षमताओं को जगाने में मित्िपूिय भूवमका ककसकी िोती िै?
1) पूंजी की 2) अवभव्यवक्त की
3) सोच की 4) मागयदशयन की
ञ) ‘शारीटरक स्िास््य’ शब्द में ‘ शारीटरक’ िै :-
1) संज्ञा 2) सियनाम
3 विशेषि 4) कक्रया
अपटठत गद्यांश-04
विज्ञान आज के मानि जीिन का अविभाज्य एिं घवनष्ठ अंग बन गया िै मानि जीिन का कोई भी क्षेि विज्ञान के अभूतपूिय
आविष्कारों से अछू ता निीं रिा । इसी कारि से आधुवनक युग विज्ञान का युग किलाता िै। आज विज्ञान ने पुरुष और
नारी,सावित्यकार और राजनीवतज्ञ ,उद्योगपवत और कृ षक ,वचककत्सक और सैवनक, पूूँजीपवत और श्रवमक,अवभयंता,वशक्षक
और धमयज्ञ सभी को और सभी क्षेिों में ककसी न ककसी रूप में अपने अप्रवतम प्रदेय से अनुग्रिीत ककया िै आज समूचा पटरिेश
विज्ञानमय िो गया िै। विज्ञान के प्रभाि ककसी गृवििी के रसोईघर से लेकर बर्ी बर्ी प्राचीरों िाले भिनों और अट्टावलकाओं
में िी दृवष्तगत निीं िोते ,अवपतु िे जल थल की सीमाओं को लांघकर अंतटरक्ष में भी विद्यमान िैं। िस्तुत: विज्ञान अद्यतन
मानि की सबसे बर्ी शवक्त बन गया िै। इसके बल से मनुष्य प्रकृ वत और प्रावि जगत का वशरोमवि बन सका िै। विज्ञान के
अनुग्रि से िि सभी प्रकार की सुविधाओं एिं संपदाओं का स्िावमत्ि प्राप्त कर चुका िै। अब िि मौसम और ऋतुओं के प्रकोप
से भयाक्रांत एिं संिस्त निीं िै। विद्युत ने उसे आलोककत ककया िै, उष्िता एिं शीतलता दी िै , बटन दबाकर ककसी भी
कायय को संपन्न करने की ताकत भी दी िै। मनोरं जन के विविध साधन उसे सुलभ िैं। यातायात एिं संचार के साधनों के
विकवसत एिं उन्नत िोने से समय और दूटरयां बहुत कम िो गयी िै और समूचा विश्व एक कु टुंब सा लगने लगा िै । कृ वष एिं
उद्योग के क्षेि में उत्पादकता बढने के कारि आज दुवनया पिले से अवधक धन धान्द्य संपन्न िै। वशक्षा एिं वचककत्सा के क्षेि
में विज्ञान की देन अवभनंदनीय िै। विज्ञान के सियोग से मनुष्य धरती और समुर के अनेक रिस्य िस्तामलक करके अब
अंतटरक्ष लोक में प्रिेश कर चुका िै। सिोपटर विज्ञान ने मनुष्य को बौविक विकास प्रदान ककया िै और िैज्ञावनक सचंतन
पिवत दी िै। िैज्ञावनक सचंतन पिवत से मनुष्य अंधविश्वासों ,रूकढिादी परम्पराओं से मुक्त िोकर स्िस्थ एिं संतवु लत ढंग
से सोच विचार कर सकता िै और यथाथय एिं सम्यक जीिन जी सकता िै। इससे मनुष्य के मन को युगों के अंधविश्वासों,
भ्रमपूिय और दककयानूसी विचारों, भय और अज्ञानता से मुवक्त वमली िै। विज्ञान की यि देन स्तुत्य िै। मानि को चाविए कक
िि विज्ञान की इस समग्र देन को रचनात्मक कायों में सुवनयोवजत करे ।
1. आज विज्ञान को मनुष्य के जीिन का अवभन्न अंग क्यों माना जाता िै?
अ) विज्ञान के आविष्कार अभूतपूिय िैं ।
11
आ) विज्ञान ने सभी क्षेिों में मानि को प्रभावित ककया िै।
इ) विज्ञान ने आर्थयक उन्नवत प्रदान की िै।
ई) आधुवनक युग विज्ञान का युगा िै।
2. ककसके बल पर मनुष्य प्रकृ वत और प्राविजगत का वशरोमवि बन सका िै?
अ) स्ियं के आ) साधनों के
इ) विज्ञान के ई) सर्त्ा के
3. िैज्ञावनक सचंतन पिवत ने मनुष्य को सबसे पिले ककससे मुवक्त कदलाई –
अ) संतुवलत अनुसचंतन आ) प्राचीन सांस्कृ वतक परं पराओं
इ)औपचाटरकताओं ई) भ्रमपूिय रूकढिादी विचार
4. विज्ञान के चरि गवतशील क्यों किे जा सकते िैं –
अ) विज्ञान की तीव्र गवत के कारि
आ) यातायात के साधन आविष्कृ त करने के कारि
इ) विज्ञान के उर्त्रोर्त्र विवभन्न कदशाओं में उन्द्मुख िोने के कारि
ई) प्रगवतशील िोने के कारि
5. समूचा विश्व एक पटरिार के समान लगने का क्या कारि िै –
अ) विज्ञान की गवतशील शवक्त आ) विज्ञान और जीिन में घवनष्ठता
इ) यातायात और संचार के साधनों का विकास ई) विश्वबंधुत्ि की भािना का विकास
6. विज्ञान के सियोग से मनुष्य ने किाूँ प्रिेश कर वलया िै –
अ) मनुष्य के हृदय में आ) अंतटरक्ष में
इ) विदेशों में ई) समुर में
7. िैज्ञावनक सचंतन पिवत के प्रभाि से मनुष्य कै सा जीिन जी सकता िै –
अ) यथाथय आ) सम्यक
इ) उपरोक्त दोनों ई) बनािटी
8. मानि से विज्ञान की देन को ककन कायों में वनयोवजत करने की अपेक्षा िै –
अ) लाभप्रद आ) सियोगप्रद
इ) रचनात्मक ई) विध्िंसात्मक
9. लेखक की दृवष्ट में विज्ञान की सबसे बर्ी देन क्या िै –
अ) संचार सुविधाएूँ आ) विद्युत का आविष्कार
इ) िैज्ञावनक सचंतन पिवत ई) वचककत्सा और वशक्षा की सुविधाएूँ
10. प्रस्तुत गद्यांश ककस विषयिस्तु पर आधाटरत िै –
अ) विज्ञान का मानि जीिन पर प्रभाि आ) िैज्ञावनक सचंतन और मानि
इ) विज्ञान के गवतशील चरि ई) विज्ञान के आविष्कार

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अपटठत गद्यांश-05
सिंदी अपना भविष्य ककसी से दान में निीं चािती। िि तो उसकी गवत का स्िाभाविक पटरिाम िोना चाविए। वजस वनयम
से नदी–नदी की गवत रोकने के वलए वशला निीं बन सकती, उसी वनयम से सिंदी भी ककसी सियोवगनी का पथ अिरुध्द
निीं कर सकती। यि आकवस्मक सियोग न िोकर भारतीय आत्मा की सिज चेतना िी िै, वजसके कारि सिंदी के भािी
कर्त्यव्य को वजन्द्िोंने पिले पिचाना, िे सिंदी भाषी निीं थे। राजा राम मोिन राय से मिात्मा गाूँधी तक प्रत्येक सुधारक,
सावित्यकार, धमय संस्थापक,साधक और सचंतक सिंदी के वजस उर्त्रदावयत्ि की ओर संकेत करता आ रिा िै, उसे नतवशर
स्िीकार कर लेने पर िी सिंदी लक्ष्य तक निीं पहुूँच जाएगी, क्योंकक स्िीकृ वतमाि न गवत िै, न गंतव्य। िस्तुत: संपि
ू य भारत
संघ को एकता के सूि में बाूँधने के वलए उसे दोिरे संबल की आिश्यकता िै। एक तो आंतटरक, जो मन के द्वारों को उन्द्मक्त

कर सके और दूसरा बाह्य, जो आकार को सबल और पटरवचत बना सके । अन्द्य प्रदेशों के लोकहृदय के वलए तो िि अपटरवचत
निीं िै, क्योंकक दीघय काल से संत साधकों की ममयबानी बनकर िी निीं, िाट बाजार की व्यििार बोली के रूप में भी देश
का कोना-कोना घूम चुकी िै।
यकद आज उसे अन्द्य प्रदेशों से अविश्वास वमले,तो उसका ितयमान खंवर्त और अतीत वम्या िो जाएगा। उसकी वलवप का
स्िरूप भी मतभेदों का कें र बना हुआ िै। सुदरू अतीत की ब्राह्मी से नागरी वलवप तक आते आते उसके बाह्य रूप को समय
के प्रिाि ने इतना माूँजा और खरादा िै कक उसे ककसी बड़ी शकय वचककत्सा की आिश्यकता निीं िै। नाममाि के पटरितयन
से िी िि आधुवनक युग के मुरि लेखन यंिों के साथ अपनी संगवत बैठा लेगी, परं तु तत्संबध
ं ी वििादों से उसका पथ प्रशस्त
न करके उसके नैसर्गयक सौष्ठि को भी कुं टठत कर कदया िै। यकद चीनी जैसी वचिमयी दुरूि वलवप अपने राष्ट्र जीिन का संदश

ििन करने में समथय िै, तो िमारी वलवप के मागय की बाधाएूँ दुलंघ्य कै से मानी जा सकती िै।
स्ितंिता ने िमें राजनीवतक मुवक्त देकर भी न मानवसक मुवक्त दी िै और न िमारी दृवष्ट को नया वक्षवतज। नया शासन तंि
और उसके संचालक भी उसके अपिाद निीं िो सकते, परं तु िमारे पथ की सबसे बर्ी बाधा यि िमारी स्ितंि कायय क्षमता
राज्यमुखापेक्षी िोती जा रिी िै। पर अंधकार आलोक का त्योिार भी तो िोता िै। दीपक की लौ के हृदय में बैठ सके ऐसा
कोई बाि अूँधरे े के तूिीर में निीं िोता िै। यकद िमारी आत्मा में विश्वास की लौ िै, तो मागय उज्ज्िल रिेगा िी।
भाषा सीखना उसके सावित्य को जानना िै, और सावित्य को जानना मानि एकता की स्िानुभवू त िै। िम जब सावित्य
के स्िर में बोलते िैं तब िे स्िर दुस्तर समुरों पर सेतु बाूँधकर,दुलघ्ं य पियतों को राजपथ बनाकर मनुष्य की सुख-दु:ख की
कथा मनुष्य तक अनायास पहुूँचा देते िैं।
अस्त्रों की छाया में चलने िाले अवभयान वनष्फल हुए िैं, चक्रिर्तययों के स्िप्न टूटे िैं, पर मानि एकता के पथ पर खर्ा
कोई चरि वचह्न अब तक निीं वमटा िै। मनुष्य को मनुष्य के वनकट लाने का कोई स्िप्न अब तक भंग निीं हुआ िै।
भारत के लोक हृदय और चेतना ने अनंत युगों में जो मातृभवू म गढी िै, िि अथिय के पृ्िी सूक्त के िंदे मातरम् तक
एक,अखंर् और अक्षत रिी िै। उस पर कोई खरोंच िमारे अपने अवस्तत्ि पर चोट िै।
1.सिंदी का भविष्य कै सा िोना चाविए?
(अ) सिंदी का भविष्य उसकी गवत का स्िाभाविक पटरिाम िोना चाविए
(आ) सिंदी का भविष्य उसकी गवत का अस्िाभाविक पटरिाम िोना चाविए
(इ) उपरोक्त दोनों
(ई) इनमें से कोई निीं
2. सिंदी की भारतीय आत्मा को ककसने पिचाना था?
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अ) सिंदी भाषी मिापुरुषों ने आ)असिंदी भाषी मिापुरुषों ने
इ) संतों ने ई)अंग्रेजों ने
3. स्ितंिता प्रावप्त के बाद भी िमें क्या प्राप्त निीं हुआ?
अ) िमें अपनी भाषा पूरी तरि से प्राप्त निीं हुई आ) मानवसक मुवक्त प्राप्त निीं हुई
इ) िमारी दृवष्ट को नया वक्षवतज निीं वमला ई) ये सभी सिी िै
4. अब तक पूरी तरि से क्या निीं वमटा िै?
अ) मानि एकता के पथ पर पर्ा कोई चरि वचह्न निीं वमटा िै।
आ) एकता और अखंर्ता
इ) संस्कृ वत और सभ्यता
ई) मानिीय मूकय और ज्ञान
5.चीन की वलवप क्या िै?
अ) वचिमयी आ) देिनागरी
इ) ब्राह्मी ई) इनमें से कोई निीं
6. मानि एकता की स्िानुभवू त क्या िै?
अ) संस्कृ वत को जानना आ) सभ्यता को जानना
इ) सावित्य को जानना ई) इनमें से कोई निीं
7. पृ्िी सूक्त ककसमें वमलता िै?
अ) ऋग्िेद में आ) यजुिेद में
इ) सामिेद में ई) अथियिेद में
8. सिंदी अपनी सियोवगवनयों के साथ क्या निीं कर सकती िै?
अ) सिंदी अपनी सियोवगनी भाषाओं का मागय अिरुि निीं कर सकती
आ) सिंदी अपनी सियोवगनी भाषाओं का मागय प्रशस्त निीं कर सकती
इ) सिंदी अपनी सियोवगनी भाषा का सियोग निीं कर सकती
ई) उपरोक्त में से कोई निीं
9. सिंदी का कौंन सा स्िरूप मतभेदों का कें र बना हुआ िै?
अ) सिंदी की वलवप का स्िरूप आ) सिंदी का मानक स्िरूप
इ) सिंदी का प्राचीन स्िरूप ई) ये सभी
10. ‘अविश्वास’ में प्रयुक्त उपसगय वलखए –
अ) ‘अवि’ उपसगय आ) ‘अ’ उपसगय
इ) ‘अविश्’ उपसगय ई) ‘अस्’ उपसगय

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उर्त्रमाला
गद्यांशों पर आधाटरत प्रश्न
उर्त्र 1 (क) (iv) (ख) (ii) (ग) (iv) (घ) (ii) (ङ) (iii) (च) (i) (छ) (iii) (ज) (i) (झ) (iii) (ञ) (iv)
उर्त्र 2 :- I. ग II.घ III.घ IV.क V.ख VI.ग VII.क VIII.घ IX. ख X.ग
उर्त्र 3 :- .क. (4) ख.(1) ग. (4) घ. (2) ङ. (1) च (2) छ (2) ज. (2) झ. (3) ञ. (3)
उर्त्र 4 :- 1.(आ) 2.(इ) 3.(ई) 4.(इ) 5.(इ) 6.(आ) 7.(इ) 8.(इ) 9.(ई) 10.(आ)
उर्त्र –5 1.(अ) 2.(आ) 3. (ई) 4. (अ) 5. (अ) 6. (इ) 7. (ई) 8. (अ) 9. (अ) 10. (आ)
अपटठत गद्यांश-06
बड़ी चीजें संकटों में विकास पाती िै ,बड़ी िवस्तयों बड़ी ,मुसीबतों में पलकर दुवनया पर कब्जा करती िै | अकबर ने तेरि
साल की उम्र में अपने वपता के दुश्मन को परास्त कर कदया था ,वजसका एकमाि कारि यि था कक अकबर का जन्द्म
रे वगस्तान में हुआ था और िि भी उस समय ,जब उसके वपता के पास एक कस्तूरी को छोड़कर और कोई दौलत निीं थी |
मिाभारत में देश के प्राय: अवधकांश िीर कौरिों के पक्ष में थे ,मगर कफर भी जीत पांर्िों कक हुई ,क्योंकक उन्द्िोंने लाक्षागृि
की मुसीबत झेली थी ,क्योंकक उन्द्िोंने िनिास के जोवखम को पार ककया था | विस्टन चर्चयल ने किा िै कक वजन्द्दगी कक
सबसे बड़ी वसफत विम्मत िै | आदमी के और सारे गुि उसके विम्मती िोने से पैदा िोते िै | वजन्द्दगी की दो िी सूरते िै |
एक तो आदमी की रोशनी के साथ बड़े -से बड़े मकसद के वलए कोवशश करे ,जगमगाती हुई जीत पर पंजा र्ालने के वलए
िाथ बढाए और अगर असफलताएूँ कदम-कदम पर जोश अंवधयाली या जाल बुन रिी िो,तब भी िि पीछे को पाूँि न
िटाए -दूसरी सूरत यि िै कक उन गरीब आत्माओं का िमजोली बन जाए ,जो न तो बहुत अवधक सुख पाती िै और न वजन्द्िें
बहुत अवधक दुःख पाने का िी संयोग िै,क्योंकक िे आत्माएूँ ऐसी गोधूवल में बसती िै,जिाूँ न तो जीत िूँसती िै और न कभी
िार के रोने की आिाज सुनाई देती िै | इस गोधूवल िाली दुवनया के लोग बंधे हुए घाट का पानी पीते िै िे सजंदगी के साथ
जुआ निी खेल सकते और कौन किता िै कक पूरी सजंदगी को दाूँि पर लगा देने में कोई आनंद निीं िै ? अगर रास्ता आगे
िी वनकल रिा िो,तो कफर असली मजा तो पाूँि बढ़ाते जाने में िी िै | सािस की सजंदगी सबसे बड़ी सजंदगी िोती िै | ऐसी
सजंदगी की सबसे बड़ी पिचान यि िै कक िि वबलकु ल बैखौफ िोती िै |सािसी मनुष्य की पिली पिचान यि िै कक िि इस
बात की सचंता निी करता कक तमाशा देखने िाले लोग उसके बारे में क्या सोच रिे िै | जनमत की उपेक्षा करके जीने िाला
आदमी दुवनया की असली ताकत िोता िै और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से वमलता िै | अर्ोस-पर्ोस को देखकर
चलना ,यि साधारि जीि का काम िै | क्रांवत करने िाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते िै
और न अपनी चाल को िी पड़ोसी की चाल देखकर मविम बनाते िै |
1.बड़ी चीजें कै से विकवसत िोती िैं?
(क) सुख में (ख) संकटों में
(ग) मजे में (घ) दुःख में
उर्त्र: (ख) संकटों में
2. अकबर ने ककस उम्र में अपने वपता के दुश्मन को परास्त कर कदया?
(क) तेरि (ख) चार

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(ग) बीस (घ) तीन
उर्त्र: (क) तेरि
3. अकबर का जन्द्म किाूँ हुआ था?
(क) जंगल में हुआ था (ख) घर में हुआ था
(ग) रे वगस्तान में हुआ था (घ) अस्पताल में हुआ था
उर्त्र: (ग) रे वगस्तान में हुआ था
4. कै सी सजंदगी सबसे बड़ी सजंदगी िोती िै?
(क) कमजोर की सजंदगी िोती िै | (ख) सािस की सजंदगी िोती िै |
(ग) वनर्र की सजंदगी िोती िै | (घ) सचंता की सजंदगी िोती िै |
उर्त्र: (ख) सािस की सजंदगी िोती िै |
5. ककसको देखकर चलना,यि साधारि जीि का काम िै?
(क) अर्ोस-पर्ोस को देखकर (ख) अर्चछे-बुरे को देखकर
(ग) ऊूँच-नीच को देखकर (घ) अमीर-गरीब को देखकर
उर्त्र: (क) अर्ोस-पर्ोस को देखकर
6. इन्द्सान ककि गरीब आत्माओं का िमजोली बन जाए-
(क) न वजन्द्िें बहुत अवधक दुःख पाने का िी संयोग िै
(ख) जो न तो बहुत अवधक सुख पाती िै
(ग) वजन्द्िें बहुत अवधक दुःख पाने का िी संयोग िै
(घ) उपयुक्त (क) और (ख) सिी
उर्त्र: (घ) उपयुक्त (क) और (ख) सिी
7. सािसी मनुष्य की पिली पिचान क्या िै?
(क) कक िि इस बात की सचंता निी करता कक तमाशा देखने िाले लोग उसके बारे में क्या सोच रिे िै |
(ख) कक िि इस बात की सचंता करता िै कक तमाशा देखने िाले लोग उसके बारे में क्या सोच रिे िै |
(ग) कक तमाशा देखने िाले लोग उसके बारे में क्या सोच रिे िै |
(घ) उपयुक्त कोई निी
उर्त्र: (क) कक िि इस बात की सचंता निी करता कक तमाशा देखने िाले लोग उसके बारे में क्या सोच रिे िै |
8. सजंदगी की सबसे बड़ी पिचान यि िै कक –
(क) कक िि वबलकु ल वनर्र िोती िै | (ख) कक िि वबलकु ल सचंताजनक िोती िै |
(ग) कक िि वबलकु ल कायर िोती िै | (घ) कक िि वबलकु ल बैखौफ िोती िै |
उर्त्र: (घ) कक िि वबलकु ल बैखौफ िोती िै |
9. गद्यांश में लेखक ने ककसका उदिारि कदया िै?
(क) बीरबल का (ख) हुमायूूँ का

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(ग) अकबर का (घ) शािजिाूँ का
उर्त्र: (ग) अकबर का
10. गद्यांश के वलए उपयुक्त शीषयक वलवखए -
(क) सािस और सजंदगी (ख) कायर और कमजोर
(ग) वनर्र और सजंदगी (घ) मौत और सजंदगी
उर्त्र: (क) सािस और सजंदगी
अपटठत गद्यांश-07
ककसी देश,राष्ट्र अथिा जावत को देश के भौवतक संसधान तब तक समृवि निी बना सकते जब तक कक ििाूँ के वनिासी
संसाधनों का दोिन करने के वलए अथक पटरश्रम निीं करते | ककसी भूभाग की वमट्टी ककतनी भी उपजाऊ क्यों न िो , गुर्ाई
–वनराई ,ससंचाई ,बुआई जब तक विवधित पटरश्रम पूिक
य उसमे जुताई निीं िोगी | अर्चछी फसल प्राप्त निी िो सकती |
ककसी ककसान को कृ वष संबध
ं ी अत्याधुवनक ककतनी िी सुविधाएूँ उपलब्ध करा दीवजए | यकद उसके उपयोग में लाने के वलए
समुवचत श्रम निीं िोगा | उत्पादन क्षमता में िृकद्द संभि निीं िै |
पटरश्रम से रे वगस्तान में भी अन्न उगलने लगते िै िमारे देश की स्ितन्द्िता के पश्चात िमारी प्रगवत की रुतगवत भी िमारे
श्रम का िी फल िै | भाखड़ा नांगल का विशाल बाूँध िो या युबा श्री िटरकोटा के रोके ट प्रक्षेपि कें र की रोकथाम के वलए
19 िटरत क्रांवत की सफलता िो या कोविर् टीका तैयार करना प्रत्येक सफलता िमारे श्रम का पटरिाम िै तथा प्रमाि भी
िै |जीिन में सुख की अवभलाषा सभी को रिती िै | वबना श्रम ककए भौवतक साधनों को जुटाकर जो सुख प्राप्त करने के फे र
में िै, िि अंधकार में िै |उसे िास्तविक और स्थायी शांवत निीं वमलती | गांधीजी तो किते थे कक जो वबना श्रम ककए भोजन
ग्रिि करता िै िि चोरी का अन्न खता िै |ऐसी सफलता मन को शांवत देने के बजाए उसे व्यवथत करे गी | पटरश्रम से दूर
रिकर और सुखमय जीिन व्यतीत करने िाले विद्याथी को ज्ञान से प्राप्त िोगा ? ििाई ककले तो सिज िी बन जाते िै ,
लेककन िे ििा के िकके झोंके से ढि जाते िै | मन में मधुर ककपनाओं के संजोने माि से ककसी कायय की वसवि के वलए उद्यम
और सतत उद्यम आिश्यक िै | तुलसीदास ने सत्य िी किा िै –सकल पदाथय िै जग मािी करमिीन पाित नािी | अथायत
इस दुवनया में सारी चीजें िावसल की जा सकती िै लेककन िे कमयिीन व्यवक्त को कभी निीं वमलती िै | अगर आप भविष्य
की सफलता की फसल काटना चािते िै तो आपको उसके वलए बीज आज िी बोने िोंगे ,आज बीज निीं बोयेंगे तो भविष्य
में फसल काटने की उम्मीद कै से कर सकते िै ? पूरा संसार कमय और फल के वसिांत पर चलता िै इसवलए कमय की तरफ
आगे बढना िोगा | यिी सिी मायनों में सफल िोना चािते िै तो कमय में जुट जाए और तब तक जुटे रिे जब तक की सफल
न िो जाएूँ | अपना एक-एक वमनट अपने लक्ष्य को समर्पयत कर दें | काम में जुटने से आपको िर िस्तु वमलेगी जो आप पाना
चािते िै – सफलता, सम्मान, धन, सुख या जो भी आप चािते िो |
1. गद्यांश में पटरश्रम को ककपिृक्ष के समान बताया गया िै क्योंकक इससे –
(क) भौवतक संसाधन जुटाए जात
(ख) पटरश्रमी व्यवक्त िृक्ष के समान परोपकारी िोता िै
(ग) इर्चछा दमन करने का बल प्राप्त िोता िै
(घ) व्यवक्त की इर्चछाओ की पूिय पूर्तय संभि िै

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उर्त्र: (घ) व्यवक्त की इर्चछाओ की पूिय पूर्तय संभि िै
2. गद्यांश में अर्चछी फसल प्राप्त करने के वलए किे गए कथन से स्पष्ट िोता िै कक –
(क) भौवतक संसाधनो का दोिन करना आिश्यक िै
(ख) संसाधनो की तुलना में पटरश्रम की भूवमका अवधक िै
(ग) ज्ञान प्राप्त करने के वलए पटरश्रम आिश्यक िै
(घ) कष्ट करने से िी कृ ष्ि वमलते िै
उर्त्र: (ख) संसाधनो की तुलना में पटरश्रम की भूवमका अवधक िै
3.भारत के पटरश्रम के प्रमाि क्या-क्या बताए गए िैं?
(क) बाूँध, कोविर् 19 की रोकथाम का टीका, प्रक्षेपि कें र
(ख) कोविर् 19 की रोकथाम का टीका, प्रक्षेपि कें र, रे वगस्तान
(ग) बाूँध, कोविर् 19 की रोकथाम का टीका, प्रक्षेपि कें र, ििाई पटट्टयों का वनमायि
(घ) िृक्षारोपि, कोविर् 19 की रोकथाम का टीका, प्रक्षेपि कें र
उर्त्र: (क) बाूँध , कोविर् 19 की रोकथाम का टीका, प्रक्षेपि कें र
4. कै से व्यवक्त को अंधकार में बताया िै?
(क) श्रमिीन व्यवक्त (ख) विश्रामिीन व्यवक्त
(ग) नेििीन व्यवक्त (घ) प्रकाशिीन व्यवक्त
उर्त्र: (क) श्रमिीन व्यवक्त
5. ििाई ककसे तो सिज िी बन जाते िै, लेककन ये ििा के िकके झोंके से दि जाते िैं | इस कथन के द्वारा लेखक किना
चािता िै कक-
(क) तेज चक्रिती ििाओं से आिासीय पटरसर नष्ट िो जाते िै
(ख) ििा का रुख अपने पक्ष में पटरश्रम से ककया जा सकता िै
(ग) िाई ककपनाओं को सि दैि संजोकर रखना असंभि िै
(घ) पटरश्रमिीनता से िैयवक्तक उपलवब्ध वनतांत असंभि
उर्त्र: (घ)पटरश्रमिीनता से िैयवक्तक उपलवब्ध वनतांत असंभि
6. सतत उद्यम से क्या तात्पयय िै –
(क) वनरं तर तपता हुआ उद्यम (ख) वनरंतर पटरश्रम करना
(ग) सतत उठते जाना (घ) ज्ञान का सतत उद्यम
उर्त्र: (ख) वनरं तर पटरश्रम करना
7. ककस अिस्था में प्राप्त सफलता मन को व्यवथत करे गी?
(क) सकल पदाथय द्वारा प्राप्त करने पर (ख) भौवतक संसाधनों द्वारा प्राप्त करने पर
(ग) दूसरों द्वारा ककए गए अथक प्रयासों स (घ) आसान ि श्रमिीन तरीके से प्राप्त करने पर
उर्त्र: (घ) आसान ि श्रमिीन तरीके से प्राप्त करने पर

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8. स्ितन्द्िता शब्द में उपसगय प्रत्यय अलग करने पर िोगा –
(क) स्ि+तंि+ता (ख) सु+तंि+ता
(ग) स+ितंि+ता (घ) स+ित+ता
उर्त्र:(क) स्ि+तंि+ता
9. समुवचत शब्द का अथय िै –
(क) उपयुक्तय (ख) उपयुक्त
(ग) उपभोक्ता (घ) उपक्रम
उर्त्र: (ख) उपयुक्त
10. गद्यांश के वलए उपयुक्त शीषयक िै –
(क) पटरश्रम और स्ितन्द्िता (ख) पटरश्रम और सफल जीिन का आधार
(ग) पटरश्रम और ककपना (घ) पटरश्रम ककपना की उड़ान
उर्त्र : (ख) पटरश्रम और सफल जीिन का आधार
अपटठत गद्यांश-08
विज्ञान प्रकृ वत को जानने का मित्िपूिय साधन िै। भौवतकता आज आधुवनक िैज्ञावनक और तकनीकी प्रगवत का स्तर वनधायटरत
करती िै। विज्ञान के िल सत्य, अथय और प्रकृ वत के बारे में उपयोग िी निीं बवकक प्रकृ वत की खोज का एक क्रम िै। विज्ञान
प्रकृ वत को जानने का एक मित्िपूिय साधन िै। यि प्रकृ वत को जानने के विषय में िमें मित्िपूिय और विश्वसनीय ज्ञान देता
िै। व्यवक्त वजस बात पर विश्वास करता िै ििी उसका ज्ञान बन जाता िै। कु छ लोगों के पास अनुवचत ज्ञान िोता िै और िि
उसी ज्ञान को सत्य मानकर उसके अनुसार काम करते िैं। िैज्ञावनकता और आलोचनात्मक विचार उस समय जरूरी िोते िैं
जब िि विश्वसनीय ज्ञान पर आधाटरत िों। िैज्ञावनक और आलोचक अक्सर तकय संगत विचारों का प्रयोग करते िैं। तकय िमें
उवचत सोचने पर प्रेटरत करते िैं। कु छ लोग तकय संगत विचारधारा निीं रखते क्योंकक उन्द्िोंने कभी तकय करना जीिन में
सीखा िी निीं िोता। प्रकृ वत िैज्ञावनक और कवि दोनों की उपास्या िै | दोनों िी उससे वनकटतम संबध
ं स्थावपत करने की
चेष्टा करते िै ,ककन्द्तु दोनों के रवष्टकोिमें अंतर िै | िैज्ञावनक प्रकृ वत के बाकय रूप का अिलोकन करता िै और सत्य की खोज
करता िै परन्द्तु कवि बाह्य रु पर मुग्ध िोकर उससे भािों का तादात्म्य स्थावपत करता िै | िैज्ञावनक प्रकृ वत की वजस िस्तु
का अिलोकन करता िै ,उसका सूक्ष्म वनरीक्षि भी करता िै | चंर को देखकर उसके मवस्तक में अनेक विचार उठते िै उसका
तापक्रम क्या िै – ज्िार ककतने िषो में िि पूित
य :शीतल िो जाएगा , भाटे पर उसका क्या प्रभाि िोता िै | ककस प्रकार और
ककस गवत से िि सौर मंर्ल में पटरक्रमा करता िै और ककन तत्िों से उसका वनमायि हुआ िै |िि अपने सूक्ष्म वनरीक्षि और
अनिरत सचंतन से उसको एक लोक ठिरता िैं और उस लोक में वस्थत ज्िालामुखी पियतों तथा जीिन धाटरयों की खोज
करता िै | इसी प्रकार िि एक प्रफु वकलत पुष्प को देखकर उसके प्रत्येक अंग का विश्लेषि करने को तैयार िो जाता िै | उसका
प्रकृ वत विषयक अध्ययन िस्तुगत िोता िै | उसकी रवष्ट में विश्लेषि और िगय विभाजन की प्रधानता रिती िै | िि सत्य
और िास्तविकता का पुजारी िोता िै | कवि की कविता भी प्रत्यक्षािलोकन से प्रस्फु टटत िोती िै िि प्रकृ वत के साथ अपने
भािों का संबध
ं स्थावपत करता िै | िि उसमें मानि चेतना का अनुभि करके उसके साथ अपनी आंतटरक भािनाओं का
समन्द्िय करता िै | िि त्य और भािना के संबध
ं पर बल देता िै | उसका िस्तु िियन ह्रदय की प्रेरिा का पटरिाम िोता
िै | िैज्ञावनक की भाूँती मवस्तक की यांविक प्रककया निीं | कवियों द्वारा प्रकृ वतवचिि का एक प्रकार ऐसा भी िै वजसमें

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प्रकृ वत का मानिीकरि कर वलया जाता िै – अथायत प्रकृ वत के तत्िों को मानि िी मान वलया जाता िै | प्रकृ वत में मानिीय
कक्रयाओं का आरोपि ककया जाता िै | सिंदी में इस प्रकार का प्रकृ वत वचिि छायािादी कवियों में पाया जाता िै | इस प्रकार
प्रकृ वत वचिि में प्रकृ वत सियथा गौि िो जाती िै | इसमे प्राकृ वतक –िस्तुओं के नाम तो रिते िैं परन्द्तु झंकृत वचिि मानिीय
भािनाओ का िी िोता िै |कवि लिलिाते पौधें का वचिि न कर ख़ुशी से झूमते हुए बच्चे का वचिि करने लगता िै |
1. विज्ञानं प्रकृ वत को जानने का एक मित्िपूिय साधन िै क्योंकक यि –
(क) समय ज्ञान के साथ तादात्म्प स्थावपत करता िै
(ख) प्रकृ वत आधुवनक विज्ञान की उपास्या िै
(ग) मित्िपूिय और विश्वसनीय ज्ञान प्रदान करता िै
(घ) आधुवनक िैज्ञावनक का स्तर वनधायटरत करता िै
उर्त्र: (ग) मित्िपूिय और विश्वसनीय ज्ञान प्रदान करता िै
2. िैज्ञावनक प्रकृ वत के बाह्य रूप का अिलोकन करते िैं यि कथन दशायता िैं कक िे-
(क) कवियों की तुलना में अवधक श्रेष्ठ िैं
(ख) ज्िार भाटे के पटरिाम से बचना चािते िै
(ग) िगय विभाजन के पक्षधर बने रिना चािते िैं
(घ) प्रकृ वत से अविदूर रिने का प्रयास करते िै
उर्त्र: (घ) प्रकृ वत से अविदूर रिने का प्रयास करते िै
3. सूक्ष्म वनटरक्षि और अनिरत सचंतन से तात्पयय िै –
(क) सौर मंर्ल को एक लोक और परलोक ठिरना
(ख) छोटी-छोटी सी बातों पर सचंता करना
(ग) बारीकी से सोचना ि वनरं तर देखना
(घ) बारीकी से देखना ि वनरंतर सोचना
उर्त्र: (घ) बारीकी से देखना ि वनरं तर सोचना
4. कौन अनिरत सचंतन करता िै?
(क) सूक्ष्मचारी (ख) विज्ञानोंपासक
(ग) ध्यानविलीन योगी (घ) अिसादग्रस्त व्यवक्त
उर्त्र : ख) विज्ञानोंपासक
5. कौन िास्तविकता का पुजारी िोता िै?
(क) यथायथिादी (ख) काव्यिादी
(ग) प्रकृ वतिादी (घ) विज्ञानिादी
उर्त्र: (घ) विज्ञानिादी
6.कवि की कविता ककससे प्रस्फु टटत िोती िैं?
(क) विचारों के मंथन से (ख) प्रकृ वत के साक्षात दशयन से

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(ग) भािनाओं की उिापोि से (घ) प्रेम की तीव्र इर्चछा से
उर्त्र: (ख) प्रकृ वत के साक्षात दशयन से
7. कवि के संबध
ं में इनमे से सिी त्य िैं –
(क) ज्िालामुखी के रिस्य जानता िै (ख) जीि धाटरयों की खोज करता िै
(ग) सत्य का उपासक निीं िोता (घ) प्रफु वकलत पुष्प का अध्ययन कताय
उर्त्र: (घ) प्रफु वकलत पुष्प का अध्ययनकताय
8. ‘इत’प्रत्यय युक्त शब्द कौन-सा िै?
(क) झंकृत (ख) वनत
(ग) लवलत (घ) उवचत
उर्त्र: (ख) वनत
9. उपयुयक्त गद्यांश का उपयुक्त शीषयक िैं –
(क) कवि का सोच और िैज्ञावनकता (ख) प्रकृ वत की उपासक –कवि और िैज्ञावनक
(ग) िैज्ञावनक उन्नवत और काव्य जगत (घ) िैज्ञावनक रवष्टकोि –अतुलनीय
उर्त्र: (क) कवि का सोच और िैज्ञावनकता
10. प्रकृ वत का मानिीकरि दशायता िै कक –
(क) ककपना प्रधान ि भािोन्द्मेशयुक्त कविता रची जा रिी िै
(ख) मानिी करि अलंकार का दुरुपयोग िो रिा िै
(ग) प्रकृ वत ि मानि के सामंजस्य से उकदत दीवप्त फ़ै ल रिी िै
(घ) मानि द्वारा प्रकृ वत का संरक्षि िो रिा िै
उर्त्र: (ख) मानिी करि अलंकार का दुरुपयोग िो रिा िै
अपटठत गद्यांश-09
वमिता को वनभाना भी मुवश्कल कायय िैं | इसे ईष्र्या द्वेष,अपमान ,वतरस्कार,उपिास मानवसक ि िार्दयक संकीियता तथा
संदि
े से बचाना जरूरी िैं | दोस्ती की सौंधी-सी सुगध
ं से जीिन सराबोर रखना िैं ,तो कु छ बातों को ध्यान में रखना िोगा
| वमि ऐसा िो जो सिी मागयदशयन कर सके ,आपके वलए सिी अथों में िमददय बन सके जो आपको नेक सलाि दे और आपके
दुख ददय में सवम्मवलत िो सकें | जो आपको वनराशा और िताशा का वशकार ना बनने दें, बवकक आशािाद और उजायिान
बनाने में सिायता करें | सच्चाई,ईमानदारी परस्पर साझीदारी प्रेम,विश्वास,वनस्िाथय भािना एक दूसरे के वलए िर पल सियस्ि
त्याग की भािना वमिता को सफलता के उच्चतम पायदान पर पहुूँचा देते िै | अत: इनको ध्यान में रखें वमिता में धन को
कभी ना आने दें,ऐसा िक्त आने पर सभी संबध
ं ों को तोड़ने में अिम भूवमका अदा करता िैं |दोस्ती में कभी भी झूठ निीं
बोलना चाविए ,दोस्ती जिाूँ तक संभि िो अपनी बराबरी िालों से िी करनी चाविए | अन्द्यथा कभी-कभी बातों में ककसी
प्रकार अिम को जार-जार कर सकता िै | सच्ची वमिता में एिसान और मेिरबानी का कोई स्थान निी िोता,वसफय वमिता
िोती िै | ऐसी-िैसी कोई बात घटटत िो जाए तो उसका वजक्र तीसरे के सामने निीं करें संदि
े ि अविश्वास को कभी पनपने
िी ना दें | वमिता ककतनी भी अटूट िि घवनष्ठ क्यों ना िो कभी भी वमि को ककसी गलत कायय के वलए प्रेटरत या उत्सावित
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ना करें | यकद ककसी पटरवस्थवतिश या अन्द्य कारि विशेष से िि कोई अनैवतक ककया गलत राि पर जा रिा िो तो तत्काल
मागय प्रशस्त करें ि नेक सलाि ि उवचत मागयदशयन दें |सच्चा वमि ििी िोता िै जो जीिन के िर मोड़ पर आपके साथ खड़ा
वमलें | जीिन के िर सुख-दुःख में आपके साथ िो और अपने वमि की िर परे शानी में उसका साथ दें ििी सच्चा वमि िोता िै
| दोस्ती खून का निीं बवकक कदल से बनाया हुआ टरश्ता िोता िै | आजकल लोगों सच्चा वमि पाने के वलए तरस जाते िै
|समाज में जीने के वलए मनुष्य को आस-पास के लोगो से भी वमिता रखनी पर्ती िै | चािे व्यवक्त दूसरे धमय या जावत का
िो ,दोस्ती िर चीज से ऊपर िोती िै | सच्चे दोस्तों को इन सब से कोई फकय निीं पड़ता की दोस्त की जावत ि धमय क्या िै |
वजनके पास सच्चे वमि िोते िै उनकी सजंदगी सरलता से कट जाती िैं | वजनके पास सच्चे वमि िोते िै िे व्यवक्त कभी भी
उदास निीं रिते िैं | मनुष्य को कोवशश करनी चाविए कक िि ज्यादा –से –ज्यादा अपने वमि की सिायता कर सके | एक
झूठा वमि िमेशा अपने स्िाथय के वलए वमिता करता िै |लेककन ऐसी वमिता ज्यादा कदनों तक निीं टटकती | ऐसे झूठे वमिों
से िमें सािधान रिना चाविए |
1. मुवश्कल कायय क्या िै?
(क) वमिता को वनभाना (ख) वमिता करना
(ग) उपरोक्त दोनों (घ) उपरोक्त में से कोई निीं
उर्त्र : (क) वमिता को वनभाना
2. वमिता को ककससे बचाना आिश्यक िै?
(क) ईष्याय द्वेष से (ख) अपमान वतरस्कार
(ग) मानवसक उपिास संकीियता (घ) उपरोक्त सभी
उर्त्र : (घ) उपरोक्त सभी
3. वमि कै सा िोना चाविए?
(क) जो सिी मागयदशयन कर सके (ख) िमददय िो नेक सलाि दे
(ग) िताशा ि वनराशा से बचाए (घ) उपरोक्त सभी
उर्त्र : (घ) उपरोक्त सभी
4. वमिता के मध्य ककसे निीं आने देना चाविए?
(क) धन (ख) विश्वास
(ग) त्याग की भािना (घ) उपरोक्त में से कोई निीं
उर्त्र : (घ) उपरोक्त में से कोई निीं
5. सच्चा वमि कौन िै?
(क) जो सिी गलत िर कायय में साथ दें (ख) जो अपने वमि को सिी कायय करने की प्रेरिा दें
(ग) जो वमि को उसकी कवमयाूँ बताएूँ (घ) ‘ख’ और ‘ग’ दोनों
उर्त्र : (घ) ‘ख’ और ‘ग’ दोनों
6. वमिता को सफल बनाने िाले गुि कौन से िैं?
(क) प्रवतस्पधाय की भािना (ख) सच्चाई, ईमानदारी, त्याग की भािना

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(ग) संदि
े की भािना (घ) उपरोक्त में से कोई निीं
उर्त्र : (ख) सच्चाई ,ईमानदारी ,त्याग की भािना
7. पटरवस्थवत शब्द में उपसगय िै?
(क) पर (ख) पटर
(ग) प्र (घ) प्र
उर्त्र : (ख) पटर
8. वनम्नवलवखत विलोम शब्द के युग्म में गलत युग्म का चयन कीवजए?
(क) सुगंध –खुशबू (ख) नैवतक – अनैवतक
(ग) अविश्वास – विश्वास (घ) वमिता – शिुता
उर्त्र : (क) सुगध
ं –खुशबू
9. वमिता शब्द िै?
(क) विशेषि (ख) भाििाचक संज्ञा
(ग) कक्रया (घ) कक्रया विशेषि
उर्त्र : (ख) भाििाचक संज्ञा
10. गद्यांश के वलए उपयुक्त शीषयक का चयन कीवजए?
(क) वमि (ख) वमि का त्याग
(ग) वमिता (घ) उपरोक्त में से कोई निीं
उर्त्र : (ग) वमिता
अपटठत गद्यांश-10
अन्द्य प्रावियों की तुलना में मनुष्य में सोचने की शवक्त अवधक िोती िै | िि अपने िी निीं दूसरों के सुख-दुःख का भी ख्याल
रखता िै और दूसरों के वलए कु छ करने में समथय िोता िैं | जानिर जब चरागाि में जाते िैं तो के िल अपने वलए चर कर
आते िैं,परन्द्तु मनुष्य ऐसा निीं िैं | िि जो कु छ भी कमाता िैं जो कु छ भी बनता िै , िि दूसरों के वलए भी करता िै और
दूसरों की सिायता से भी करता िै |लोग अपनों के सुख-दुःख की सचंता करने िालों को मनुष्य तो मानता िै परन्द्तु यि मानने
को तैयार निीं िै कक उन मनुष्यों में मनुष्यता के सारे गुि िोते िैं | लोग उन मनुष्यों में ऐसे गुि चािता िै वजसके कारि
कोई भी मनुष्य इस मृत्युलोक से चले जाने के बाद भी सकदयों तक दूसरों की यादों में रिता िै | अथायत िि मृत्यु के बाद भी
अमर रिता िै | आवखर क्या िै िे गुि ? कु छ लोग मनुष्यता का सिी अथय समझने का प्रयास कर रिा िै | कभी भी िम मृत्यु
से निीं र्रना चाविए क्योंकक मृत्यु तो वनवश्चत िै पर िमें ऐसा कु छ करना चाविए कक लोग मृत्यु के बाद भी याद रखे |
असली मनुष्य ििी िै जो दूसरों के वलए जीना ि मरना सीख ले | िमारे अंदर उदार का गुि िोना चाविए क्योंकक उदार
मनुष्यों का िर जगि गुि गान िोता िै | मनुष्य ििी किलाता िै जो दूसरों की सचंता करे | ककतने कवियों ने किा िै कक
पुरािों में उन लोगों के बहुत उदािरि िैं वजन्द्िें उनकी त्याग भाि के वलए आज भी याद ककया जाता िैं | सच्चा मनुष्य ििी
िै जो त्याग भाि जान ले |मनुष्यों के मन में दया और करुिा का भाि िोना चाविए ,मनुष्य ििी किलाता िै जो दूसरों के
वलए मरता और जीता िै | इस दुवनया में िम कोई अनाथ निीं िै क्योंकक िम सब उस एक ईश्वर की संतान िैं | िमें भेदभाि
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से ऊपर उठ कर सोचना चाविए | िमें दयालु बनना चाविए क्योंकक दयालु और परोपकारी मनुष्यों का देिता भी स्िागत
करता िै | अत: िमें दूसरों का परोपकार ि ककयाि करना चाविए | मनुष्यों की बािरी कमय अलग-अलग िो परन्द्तु िमारे
िेद साक्षी िै की सभी की आत्मा एक िैं,िम सब एक िी ईश्वर की संतान िै अत:सभी मनुष्य भाई-बन्द्धु िै और मनुष्य ििी
िै जो दुःख में दूसरे मनुष्यों के काम आये | विपवर्त् और विघ्न को िटाते हुए मनुष्य को अपने चुने हुए रास्तों पर ख़ुशी से
चलना चाविए ,आपसी समझ को बनाये रखना चाविए और भेदभाि को निीं बढ़ाना चाविए ऐसी सोच िाला मनुष्य िी
अपना और दूसरों का ककयाि और उिार कर सकता िै |
1. मनुष्य को अपने चुने हुए मागय पर ककस तरि चलना चाविए?
(क) मजबूती से (ख) दुखी ह्दय से
(ग) मन से (घ) ख़ुशी से
उर्त्र : (घ) ख़ुशी से
2.असली मनुष्य ककसे किा जाता िै?
(क) जो संसार को भाईचारे के भाि में बांधता िै
(ख) जो दूसरों की सचंता िै
(ग) जो दया और परोपकारी भाि रखता िै
(घ) उपयुक्त सभी
उर्त्र : (घ) उपयुक्त सभी
3. “मनुष्य माि बंधू िै” से कौन –सा भाि प्रकट िोता िै?
(क) िम सब एक ईश्वर की संतान भाई बंधू िै
(ख) िम सब एक िै
(ग) ईश्वर एक िै
(घ) उपयुक्त सभी
उर्त्र : (क) िम सब एक ईश्वर की संतान भाई बंधू िै
4.उदार व्यवक्त को कौन पूजता िै?
(क) उदार व्यवक्त को घरिाले पूजते िै (ख) उदार व्यवक्त को भगिान पूजते िै
(ग) उदार व्यवक्त को सृवष्ट पूजती िै (घ) इनमें से कोई निीं
उर्त्र : (ग) उदार व्यवक्त को सृवष्ट पूजती िै
5. कै से मनुष्यों का देिता भी स्िागत करता िै?
(क) अिगुि और उदार (ख) दयालु और परोपकारी
(ग) कपटी और परोपकारी (घ) इनमें से कोई निीं
उर्त्र : (ख) दयालु और परोपकारी
6. इस दुवनया में कोई भी अनाथ निीं िै यि कै से कि सकते िो?
(क) सभी का जन्द्म माता-वपता से िोता िै (ख) सभी लोग िैभि से पूिय िै

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(ग) क्योंकक परमवपता परमात्मा सबका वपता िै (घ) क्योंकक सभी सनाथ िोते िै
उर्त्र : (ग) क्योंकक परमवपता परमात्मा सबका वपता िै
7. कै सा व्यवक्त कभी निीं मरता?
(क) जो मिान िोता िै (ख) जो धनिान िोता िै
(ग) जो वशवक्षत समाज से जुड़ा िै (घ) जो दूसरों के वलए जीता िै
उर्त्र : (घ) जो दूसरों के वलए जीता िै
8. ‘मनुष्य’ शब्द िै-
(क) विशेषि (ख) जावत िाचक संज्ञा
(ग) व्यवक्तिाचक संज्ञा (घ) भाििाचक संज्ञा
उर्त्र : (ख) जावत िाचक संज्ञा
9. गद्यांश में से विलोम शब्द का चयन कीवजए -
(क) मनुष्य- मनुष्यता (ख) विपवर्त् –संकट
(ग) गुि –अिगुि (घ) इनमें से कोई निीं
उर्त्र : (ग) गुि –अिगुि
10. ‘मनुष्यता’ का प्रत्यय अलग करने पर िोगा -
(क) मनु (ख) यता
(ग) त (घ) ता
उर्त्र : (घ) ता

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(अपटठत काव्यांश-01)
कफर से निीं आता समय, जो एक बार चला गया।
जग में किो बाधा रवित कब कौन काम हुआ भला।
बिती नदी सूखे अगर उस पार मैं इसके चलू।ं
इस सोच में बैठा पुवलन पर, पार जा सकता भला?
ककस रीवत से काम, कब करना बनाकर योजना,
मन में वलए आशा प्रबल दृढ़ जो ििी बढ़ जाएगा।
उसको वमलेगा तेज बल अनुकूलता सब और से
कब कमययोगी, िीर, अनुपम सािसी सुख पायेगा।
यि िीर भोग्या, जो हृदय तल में बनी िसुधा सदा,
करती रिी आह्िान िै, युग िीर का पुरुषत्ि का।
कटठनाइयों में खोज का पथ, ज्योवत पूटरत जो करें ,
विजय ििी िोता धरवि-सुत िरि अमरत्ि का।
(i) एक बार जाने के बाद क्या िापस लौटकर निीं आता िै?
क) धन ख) राज्य
ग) समय घ) स्िास््य
(ii) बिती नदी के माध्यम से कवि क्या वसि करना चािता िै?
क) जल का मित्ि ख) नदी का मित्ि
ग) बाधाओं से युक्त जीिन घ) समय का अभाि
(iii) जीिन में कै से व्यवक्त प्रगवत करते िैं?
क) जो योजना बनाकर कायय करते िैं ख) वजसके मन में आशा का प्रबल भाि िोता िै
ग) उपयुयक्त दोनों घ) दोनों में से कोई निीं
(iv) िसुध
ं रा ककसका आह्िान करती िै?
क) कमययोगी और िीर पुरुषों का ख) भयभीत और का पुरुषों का
ग) भाग्यिादी व्यवक्त का घ) उपयुयक्त में से कोई निीं
(v) ‘िसुधा’ शब्द का समानाथयक शब्द –
क) सुत ख) रावधका
ग) िीरता घ) पृ्िी
(अपटठत काव्यांश-02)
निीन कं ठ दो कक मैं निीन गा सकूं ,
स्ितंि देश की निीन आरती सजा सकूं ।
निीन दृवष्ट का नया विधान आज िो रिा,
निीन आसमान में वििान आज िो रिा,
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खुली दसों कदशाएं खुले कपाट ज्योवत द्वार के -
विमुक्त राष्ट्र सूयय भासमान आज िो रिा ।
युगांत की व्यथा वलए अतीत आज रो रिा।
कदगंत में िसंत का भविष्य बीज बो रिा,
कु लीन जो उसे निीं गुमान या गुरूर िै,
समथय शवक्त पूिय जो ककसान या मजूर िै।
भविष्य द्वार मुक्त से स्ितंि भाि से चलो,
मनुष्य बन मनुष्य से गले वमले चले चलो,
समान भाि के प्रकाशिान सूयय के तले
समान रूप गंध फू ल फू ल से वखले चलो।
सुदीघय क्रांवत झेल खेल की ज्िलंत आग से
स्िदेश बल संजो रिा कड़ी थकान खो रिा।
प्रबुि राष्ट्र की निीन िंदना सुना सकूं
निीन बीन दो कक मैं अगीत गान गा सकूं
नए समाज के वलए निीन नींि पड़ चुकी
नए मकान के वलए निीन ईंट गढ़ चुकी
सभी कु टुंब एक कौन पास कौन दूर िै
नए समाज का िर एक व्यवक्त एक नूर िै।
(i) कवि नई आिाज की आिश्यकता क्यों मिसूस कर रिा िै?
(क) ताकक िि स्ितंि देश के वलए नए गीत गा सके
(ख) ताकक िि निीन आरती सजा सके
(ग) ताकक िि लोगों के अंदर निीन जागरूकता ला सके
(घ) उपयुयक्त सभी
(ii) नए समाज का िर एक व्यवक्त एक नूर िै – पंवक्त में नूर का अथय बताइए |
(क) नूर मिल िै (ख) प्रकाश के गुिों से युक्त िै
(ग) चंरमा िै (घ) निीन िै
(iii) कवि मनुष्य को क्या परामशय देता िै?
(क) आजादी के बाद िमें वमलकर आगे बढ़ना िै
(ख) सूयय ि फू लों के समान समानता का भाि अपनाना िै
(ग) एक नए समाज की रचना करनी िै
(घ) उपयुक्त सभी
(iv) कवि के अनुसार कु लीन की क्या विशेषता िै?
(क) जो घमंर् निीं कदखाता िै (ख) जो धनी िो
(ग) जो देश की आजादी में योगदान दें (ग) इनमें से कोई निीं
(v) मनुष्य बन मनुष्य से गले वमलो चले चलो- पंवक्त का अथय िै-

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(क) आगे बढ़ना (ख) गले वमलना
(ग) वमलकर देश की उन्नवत के विषय में सोचना (घ) समाज को आगे बढ़ाना
(अपटठत काव्यांश-03)
कोई खंवर्त, कोई कुं टठत,
कृ ष बाहु, पसवलयां रे खांककत,
टिनी से टांग,े बढ़ा पेट,
टेढ़े मेढ़े, विकलांग घृवित!
विज्ञान वचककत्सा से िंवचत,
ये निीं धावियों से रवक्षत,
ज्यों स्िास््य सेज िो, ये सुख से,
लौटते धूल में वचर पटरवचत!
पशुओं सी भीत मुक्त वचतिन,
प्राकृ वतक स्फू र्तय से प्रेटरत मन,
तृि तरुओं से उग-बढ़, झर-वगर,
ये ढोते जीिन क्रम के क्षि!
कु ल मान ना करना इन्द्िें ििन,
चेतना ज्ञान से निीं गिन,
जगजीिन धारा में बिते ये मूखय पंगु बालू के कि!
(i) काव्यांश आपके अनुसार ककस विषय पर वलखा गया िै?
(क) गांि के बच्चों में कु पोषि की समस्या
(ख) गांि के बच्चों में चेतना ज्ञान का अभाि
(ग) गांिों में वचककत्सा सुविधाओं का अभाि
(घ) गांि के बच्चों की दयनीय दशा का िियन
(ii) दूसरे पद में कवि कि रिा िै कक-
(क) गांि में विज्ञान की वशक्षा निीं दी जा रिी िै
(ख) गांि में वशशु जन्द्म िेतु पयायप्त दाइयां निीं िै
(ग) गांि में बच्चे स्िास््य के प्रवत सजग रिकर शारीटरक व्यायाम कर रिे िैं
(घ) गांि में बच्चे अपने वमिों के साथ धूल में कु श्ती जैसे खेल खेल रिे िैं
(iii) गाूँि के बच्चों की वस्थवत कै सी िै-
(क) कु पोवषत, वखन्न तथा अवशवक्षत िैं।
(ख) क्षीिकाय, ककं तु कु ल कु ल के मान का ध्यान करने िाले िैं।
(ग) पशुओं की तरि प्राकृ वतक िातािरि में रिते हुए पूर्तय से भरे हुए िैं।
29
(घ) पशुओं की तरि बवलष्ठ परं तु असिाय ि मूखय िै।
(iv) काव्यांश में कवि का रिैया कै सा प्रतीत िोता िै?
(क ) िे बच्चों की दशा के विषय में व्यंग्य कर मनोरं जन करना चाि रिे िैं।
(ख) िि बच्चों की दशा की ओर लोगों का ध्यान आकर्षयत करना चािते िैं।
(ग) िि तटस्थ रिकर बच्चों की शारीटरक ि मानवसक दशा का िियन कर रिे िैं।
(घ) िे बच्चों की शारीटरक ि मानवसक दशा से संतुष्ट प्रतीत िोते िैं।
(v) “तृि तरुओं से उग-बढ़” इस पंवक्त का अथय िै?
(क) घास फू स की तरि िकके िैं इसवलए वतनकों की तरि उड़ रिे िैं।
(ख) पौधों तथा घास की तरि वबना कु छ खाए वपए बढ़ रिे िैं ।
(ग) घास तथा पौधों की तरि पैदा िो रिे िैं तथा मर रिे िैं।
(घ) प्राकृ वतक िातािरि में घास ि पौधों की तरि फल फू ल रिे िैं।
(अपटठत काव्यांश-04)
सच िै विपवर्त् जब आती िै
कायर को िी दिलाती िै
सूरमा निीं विचवलत िोते
क्षि एक निीं धीरज खोते
विघ्नों को गले लगाते िैं
कांटों में राि बनाते िैं
मुि ं से ना कभी उफ किते िैं
संकट का चरम ना गिते िैं
जो आ पड़ता सब सिते िैं
शूलों का मूल नसाते िैं
बढ़ खुद विपवर्त् पर छाते िैं
िै कौन विघ्न ऐसा जग में
टटक सके आदमी के पग में
ललकार जब ठोक ठे लता िै जब नर
पियतों के जाते पांि उखड़
मानि जब जोर लगाता िै
पत्थर पानी बन जाता िै
गुि बड़े एक से एक प्रखर िै
वछपे मानिों के भीतर
मेिद ं ी में जैसे लाली िो
बर्त्ी िर्तयका बीच उवजयारी िो
बर्त्ी जो निीं जलाता िै
रोशनी निीं िि पाता िै
(i) उपयुयक्त काव्यांश की मूल रचना ककस भाि पर की गई िै?
(क) मानि की िीरता पर (ख) मानि की धार्मयक भािना पर

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(ग) मानि की सिनशील भािना पर (घ) मानिीय संचेतनता के भाि पर
(ii) विपवर्त् आने पर िीर पुरुष विचवलत क्यों निीं िोते?
(क) दूर दृवष्टगामी िोते िैं (ख) िे अपना धैयय निीं खोते
(ग) िीर पुरुष सदा संघषय करते िैं (घ) उन्द्िें अपनी िीरता पर विश्वास िोता िै
(iii) शूलों का मूल नसाते िैं – पंवक्त का तात्पयय िै –
(क) काूँटों की जड़ को उखाड़ देते िैं (ख) काूँटों से निी घबराते िैं
(ग) मुसीबतों के मूल कारि को नष्ट कर देते िैं (घ) सदा वनर्ियघ्न रिते िैं
(iv) ‘पत्थर पानी बन जाता िै‘काव्य पंवक्त के माध्यम से कवि ने क्या सन्द्दश
े कदया िै?
(क) रगर्ने से पत्थर भी वघस जाता िै
(ख) पटरश्रम से असंभि काम भी संभि िो जाता िै
(ग) पत्थर पानी में बि जाता िै
(घ) वनरं तर अभ्यास करने से सफलता वमलती िै
(v) मानि ह्रदय में छु पे प्रखर गुिों की तुलना ककससे की गई िै?
(क) दीपक और बाती से (ख) अूँधेरे और रोशनी से
(ग) मेिद
ं ी में छु पी लाली से (घ) बादल और पानी से
(अपटठत काव्यांश-05)
ओ मिमूदा मेरी कदल वजगरी
तेरे साथ मैं भी छत पर खड़ी हूँ
तुम्िारी रसोई तुम्िारी बैठक और गाय
घर में पानी घुस आया
उसमें तैर रिा िै घर का सामान
तेरे बािर के बाग का सेब का दरख्त
टू ट कर पानी के साथ बि रिा िै।
अगले साल इसमें पिली बार सेब लगने थे
तेरी बल खाकर जाती कश्मीरी कढ़ाई िाली चप्पल
हुसैन की पेशािरी जूती
बि रिे िैं गंदले पानी के साथ
तेरी ढलिाूँ छत पर बैठा िै।
घर के सपंजरे का तोता
िि कफर सपंजरे में आना चािता िै।
मिमूदा मेरी बिन
इसी पानी में बि रिी िै तेरी लार्ली गऊ
इसका बछड़ा पता निीं किाूँ िै।
तेरी गऊ के दूध भरे थन ।
अकड़ कर लोिा िो गए िैं।
जम गया िै दूध
सब तरफ पानी िी पानी
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पूरा शिर र्ल झील िो गया िै।
मिमूदा, मेरी मिमूदा
मैं तेरे साथ खड़ी हूँ।
मुझे यकीन िै छत पर जरूर
कोई पानी की बोतल वगरे गी
कोई खाने का सामान या दूध की थैली
मैं कु रबान उन बच्चों की माूँओं पर
जो बाढ़ में से वनकलकर ।
बच्चों की तरि पीवड़तों को
सुरवक्षत स्थान पर पहुूँचा रिी िैं।
मिमूदा िम दोनों कफर खड़े िोंगे
मैं तुम्िारी कमवलनी अपनी धरती पर…
उसे चूम लेंगे अपने सूखे िोठों से
पानी की इसे तबािी से कफर वनकल आएगा
मेरा चाूँद जैसा जम्मू
मेरा फू ल जैसा कश्मीर।
(i) घर में पानी घुसने का कारि िै-
(क) नल और नाली की खराबी
(ख) बाूँध का टूटना
(ग) प्राकृ वतक आपदा
(घ) नदी में रुकािट
(ii) मिमूदा की बिन को विश्वास निीं िै-
(क) छत पर पानी की बोतल वगरे गी
(ख) कु छ खाने-पीने की सिायता पहुूँचेगी
(ग) कोई िैलीकॉप्टर उन्द्िें बचाने छत पर आएगा
(घ) इस मुसीबत से वनकल जाएूँगे
(iii) “मेरा चाूँद जैसा जम्मू,मेरा फू ल जैसा कश्मीर’ का भािाथय िै-
(क) जम्मू और कश्मीर में कफर से चाूँद कदखने लगेगा
(ख) जम्मू और कश्मीर का सौंदयय िावपस लौटेगा
(ग) जम्मू और कश्मीर स्िगय िै
(घ) जम्मू और कश्मीर चाूँद और फू ल जैसा सुंदर िै
(iv) किवयिी माताओं पर क्यों न्द्यौछािर िोना चािती िै?
(क) बच्चों को सुरवक्षत स्थान पर पहुूँचा रिी िैं
(ख) दूसरों को बचाने के कायय में जुटी िैं
(ग) स्ियं भूखी रिकर बच्चों की देखभाल करती िैं

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(घ) रसद पहुूँचाने का कायय कर रिी िैं
(v) पूरा शिर र्ल झील जैसा लग रिा िै, क्योंकक-
(क) र्ल झील का फै लाि बढ़ गया िै।
(ख) पूरे शिर में वशकारे चलने लगे िैं।
(ग) पूरे शिर में पानी भर गया िै।
(घ) झील में नगर का प्रवतसबंब झलक रिा िै।
उर्त्रमाला-
1. (i) ग) समय
(ii) ग) बाधाओं से युक्त जीिन
(iii) ग) उपयुक्त
य दोनों
(iv) क) कमययोगी और िीर पुरुषों का
(v) घ) पृ्िी

2. (i) (घ) उपयुयक्त सभी


(ii) (ख) प्रकाश के गुिों से युक्त िै
(iii) (घ) उपयुक्त सभी
(iv) (क) जो घमंर् निीं कदखाता िै
(v) (ग) वमलकर देश की उन्नवत के विषय में सोचना

3. (i) (घ) गांि के बच्चों की दयनीय दशा का िियन


(ii) (ख) गांि में वशशु जन्द्म िेतु पयायप्त दाइयां निीं िै
(iii) (क) कु पोवषत, वखन्न तथा अवशवक्षत िैं।
(iv) (ख) िि बच्चों की दशा की ओर लोगों का ध्यान आकर्षयत करना चािते िैं।
(v) (ग) घास तथा पौधों की तरि पैदा िो रिे िैं तथा मर रिे िैं।

4. (i) क) मानि की िीरता पर


(ii) ख) िे अपना धैयय निीं खोते
(iii) ग) मुसीबतों के मूल कारि को नष्ट कर देते िैं
(iv) ख) पटरश्रम से असंभि काम भी संभि िो जाता िै
(v) ग) मेिद
ं ी में छु पी लाली से

5. (i) (ग) प्राकृ वतक आपदा

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(ii) (घ) इस मुसीबत से वनकल जाएूँगे
(iii) (ख) जम्मू और कश्मीर का सौंदयय िावपस लौटेगा
(iv) (क) बच्चों को सुरवक्षत स्थान पर पहुूँचा रिी िैं
(v) (ग) पूरे शिर में पानी भर गया िै
(अपटठत काव्यांश-06)
कातरता, चुप्पी या चीखें,
या िारे हुओं की खीज
जिाूँ भी वमलेगी
उन्द्िें प्यार से वसतार पर बजाऊूँगा
जीिन ने कई बार उकसाकर
मुझे अनुकलंघ्य सागरों में फें का िै
अगन-भटियों में झोंका िै,
मैंने ििाूँ भी
ज्योवत की मशाल प्राप्त करने के यत्न ककए
बचने के निीं,
तो क्या इन टटकी बन्द्दक
ू ों से र्र जाऊूँगा ?
तुम मुझको दोषी ठिराओ
मैंने तुम्िारे सुनसान का गला घोंटा िै
पर मैं गाऊूँगा
चािे इस प्राथयना सभा में
तुम सब मुझ पर गोवलयाूँ चलाओ
मैं मर जाऊूँगा
लेककन मैं कल कफर जन्द्म लूग
ूँ ा
कल कफर आऊूँगा।
(i) कवि ने ककस मिापुरुषों के भािों का उकलेख ककया िै?
(क) मिात्मा बुि
(ख) मिािीर स्िामी
(ग) मिात्मा गाूँधी
(घ) दयानन्द्द सरस्िती।।
(ii) मैं मर जाऊूँगा, लेककन मैं कल कफर जन्द्म लूूँगा, कल कफर आऊूँगा। पद्यांश की उक्त अवन्द्तम तीन पंवक्तयों में कवि क्या
किना चािता िै?
(क) मैं मरने के बाद कल कफर जन्द्म लूूँगा
(ख) कवि बार-बार मरना और जन्द्म लेना चािता िै
(ग) देश-सेिा करने िाले बार-बार जन्द्म लेते िैं और मरते िैं।
(घ) मानिता के रक्षक िर जन्द्म में मानिता की सेिा की चाि रखते िैं।

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(iii) ‘सुनसान का गला घोंटा िै’ का तात्पयय बताइए-
(क) सुनसान रूपी व्यवक्त की गदयन दबा दी
(ख) सुनसान में ले जाकर व्यवक्त का गला घोंट कदया
(ग) सूने मानि-मन में आशा की उमंगें भर दी
(घ) सुनसान-स्थल पर सुन्द्दर गीत गाया।
(iv) ककसी रचना को वलखने की कई शैवलयाूँ िोती िैं। शैली भेद के अनुसार उपयुयक्त पद्यांश की लेखन शैली िै-
(क) आत्मकथा शैली (ख) िियनात्मक शैली
(ग) संिाद शैली (घ) प्रश्न शैली।
(v) उपयुयक्त पद्यांश का उपयुक्त शीषयक नीचे वलखे विककपों में से छाूँटटए-
(क) ज्योवत की मशाल (ख) अग्रदूत
(ग) मानिता के मसीिा मिात्मा गाूँधी (घ) मिािीर स्िामी।
****************************************************************************************************
(i) उर्त्र: (ग) मिात्मा गाूँधी
(ii) उर्त्र: (घ) मानिता के रक्षक िर जन्द्म में मानिता की सेिा की चाि रखते िैं।
(iii) उर्त्र: (ग) सूने मानि-मन में आशा की उमंगें भर दी
(iv) उर्त्र: (क) आत्मकथा शैली
(v) उर्त्र: (ग) मानिता के मसीिा मिात्मा गाूँधी
(अपटठत काव्यांश-07)
मन-दीपक वनष्कं प जलो रे !
सागर की उर्त्ाल तरं ग,ें
आसमान को छू -छू जाएूँ
र्ोल उठे र्गमग भूमण्र्ल
अविमुखी ज्िाला बरसाए
धूमके तु वबजली की द्युवत से,
धरती का अन्द्तर विल जाए।
कफर भी तुम जिरीले फन को
कालजयी बन उसे दलो रे !
कदम-कदम पर पत्थर, काूँटे
पैरों को छलनी कर जाएूँ
श्रांत-क्लांत करने को आतुर
क्षि-क्षि में जग की बाधाएूँ
मरि-गीत आकर गा जाएूँ
कदिस-रात आपद-विपदाएूँ।

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कफर भी तुम विमपात-तपन में
वबना आि चुपचाप चलो रे ।
कालकू ट वजतना िो पी लो
ददय, दंश दािों को जी लो
जीिन की जजयर चादर को
अटल नेि सािस से सी लो
आज रात िै तो कल वनश्चय
अरुि िूँसग
े ा, खुवशयाूँ ले लो
आकु ल पाषािी अन्द्तर से
वनझयर-सा अविराम ढलो रे !
जन-विताय कदन-रात गलो रे !
(i) ‘वनझयर-सा अविराम ढलो रे ’ पंवक्त का आशय स्पष्ट कीवजए-
(क) झरना वनरन्द्तर बिता रिता िै
(ख) अविराम ढलना िी झरने की आदत िै
(ग) झरने के समान वनरन्द्तर जनवित के वलए प्रयत्नशील रिो
(घ) झरने के समान िमें भी अविराम बिना चाविए।
(ii) वनरन्द्तर चलने की प्रेरिा कवि ककस उद्देश्य से दे रिा िै?
(क) संघषय करने के वलए (ख) आत्मसन्द्तोष के वलए
(ग) समाज के वित के वलए (घ) बाधाओं को िटाने के वलए।
(iii) अमृत का विपरीताथयक पद्यांश में आया िै-
(क) कालकू ट (ख) विष
(ग) अमी (घ) िलािल
(iv) ‘जीिन की जजयर चादर को पंवक्त में वनवित अलंकार िै-
(क) उत्प्रेक्षा (ख) यमक
(ग) श्लेष (घ) रूपक।
(v) उपयुयक्त पद्यांश का उपयुक्त शीषयक िै-
(क) वनझयर (ख) भूमण्र्ल
(ग) अविराम बिना (घ) जग-वित को समर्पयत जीिन।
****************************************************************************************************
(i) उर्त्र: (ख) अविराम ढलना िी झरने की आदत िै
(ii) उर्त्र: (ग) समाज के वित के वलए
(iii) उर्त्र: (क) कालकू ट
(iv) उर्त्र: (घ) रूपक।

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(v) उर्त्र: (घ) जग-वित को समर्पयत जीिन।
(अपटठत काव्यांश-08)
जो बीत गई सो बात गई
जीिन में एक वसतारा था,
माना, िि बेिद प्यारा था,
िि र्ू ब गया तो र्ू ब गया।
अंबर के आनन को देखो,
ककतने इसके तारे टू टे
ककतने इसके प्यारे छू टे
जो छू ट गये कफर किाूँ वमले;
पर बोलो टू टे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता िै।
जो बीत गई सो बात गई।
जीिन में िि था एक कु सुम,
थे उस पर वनत्य वनछािर तुम,
िि सूख गया तो सूख गया;
मधुिन की छाती को देखो,
सूखीं ककतनी इसकी कवलयाूँ
मुरझाई ककतनी िकलटरयाूँ जो
मुरझाईं कफर किाूँ वखली
पर बोलो सूखे फू लों पर,
कब मधुिन शोर मचाता िै?
जो बीत गई सो बात गई।
(i) ‘जो बीत गई सो बात गई’ कवि का उक्त कथन से क्या आशय िै?
(क) जो बीत चुका उसे बीत जाने दो
(ख) जो बात बीत गई, िि चली गई
(ग) बीती बातों को ध्यान में रखो
(घ) बीती बातों पर वचवन्द्तत ि दुःखी न िोकर भविष्य का विचार करना।
(ii) आकाश से टूटते तारों को देखकर क्या प्रेरिा वमलती िै?
(क) रात में टूटते वसतारे बहुत सुन्द्दर लगते िैं।
(ख) आकाश से टूटते वसतारे िमें दुःखी और वनराश करते िैं
(ग) तारे टूटने का आकाश शोक निीं करता िै, उसी प्रकार वप्रयजन के विछोि का िमें शोक निीं करना
चाविए।
(घ) आकाश में बहुत से तारे िैं, एक-दो तारे टूटने से िि शोक निीं मनाता।
(iii) ‘जीिन में िि था एक कु सुम’ यिाूँ ‘कु सुम’ शब्द ककसके वलए प्रयोग ककया िै?
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(क) फू ल के वलए (ख) वप्रयजन के वलए
(ग) मधुिन के वलए (घ) िकलटरयों के वलए।
(iv) ‘कु सुम’ शब्द का पयाययिाचक वनम्न विककपों में से चुवनए-
(क) कानन (ख) सुमन
(ग) पराग (घ) कवलयाूँ।
(v) उपयुयक्त पद्यांश का उवचत शीषयक िै-
(क) जो बीत गई सो बात गई (ख) अंबर का आनन
(ग) मधुिन (घ) सन्द्तोष।
****************************************************************************************************
(i) उर्त्र: (घ) बीती बातों पर वचवन्द्तत ि दुःखी न िोकर भविष्य का विचार करना।
(ii) उर्त्र: (ग) तारे टू टने का आकाश शोक निीं करता िै, उसी प्रकार वप्रयजन के विछोि का िमें शोक निीं करना चाविए।
(iii) उर्त्र: (ख) वप्रयजन के वलए
(iv) उर्त्र: (ख) सुमन
(v) उर्त्र: (घ) सन्द्तोष।
(अपटठत काव्यांश-09)
िूँस लो दो क्षि खुशी वमली पर
आसमान को छू ने िाली,
िरना जीिन-भर क्रंदन िै।
बे ऊंची-ऊंची मीनारें । ककसका
जीिन िैंसी-खुशी में
वमट्टी में वमल जाती िैं ये
इस दुवनया में रिकर बीता?
वछन जाते िैं, सभी सिारे ।
सदा-सियदा संघषों को
दूर तलक धरती की गाथा
दुवनया में ककसने जीता?
मौन मुखर किता कि-कि िै।
वखलता फू ल म्लान िो जाता
यकद तुमको मुसकान वमली तो
िूँसता-रोता चमन-चमन िै।
मुसकाओ सबके संग जाकर।
ककतने रोज चमकते तारे
यकद तुमको साम्यय वमला तो
ककतने रि-रि वगर जाते िैं
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धामो सबको िाथ बढ़ाकर
झोको अपने मन-दपयि में
जब सािन घन वघर आते िैं।
प्रवतसबंवबत सबका आनन िै।
उगता-ढलता रिता सूरज
िैस तो दो क्षि खुशी वमली पर
वजसका साक्षी नील गगन िै।
िरना जीिन-भर कं दन िै।
(i) कवि के अनुसार जीिन में ककसकी अवधकता िै?
(क) आनन्द्द की (ख) सुख-सुविधाओं की
(ग) दु:ख ि कष्टों को (घ) शावन्द्त की।
(ii) ऊूँची-ऊंची इमारतें वमट्टी में वमलकर संकेत करती िै-
(क) उन्नवत पर घमण्र् करना व्यथय िै (ख) सुख-दुख आते-जाते िैं
(ग) नष्ट िोना सत्य िै (घ) वनमायि में विनाश वछपा िै।
(iii) साम्यय की साथयकता वसि िोती िै-
(क) अवभमान करने में। (ख) जीिन-जीने में
(ग) सबको सिारा देने में (घ) स्ियं का उिार करने में।
(iv) ‘प्रवतसबंवबत’ शब्द,मूल शब्द और प्रत्यय के योग से बना िै, दोनों का सिी क्रम िै-
(क) प्रवतसबंब + इत (ख) प्रवत + सबंवबत
(ग) प्रवतवबम् + वक्त (घ) इनमें से कोई निीं।
(v) उपयुयक्त पद्यांश का उवचत शीषयक दीवजए-
(क) वखलता फू ल (ख) रोता चमन
(ग) व्यथय न गिार खुवशयों के क्षि (घ) पुसकान।
****************************************************************************************************
(i) उर्त्र: (ग) दु:ख ि कष्टों को
(ii) उर्त्र: (घ) वनमायि में विनाश वछपा िै।
(iii) उर्त्र: (ग) सबको सिारा देने में
(iv) उर्त्र: (क) पवतसबंब + इत
(v) उर्त्र: (ग) व्यथय न गिार खुवशयों के क्षि
(अपटठत काव्यांश-10)
आओ वमलें सब देश बांधि िार बनकर देश के
साधक बनें सब प्रेम से सुख शांवतमय उद्देश्य के ।
क्या साम्प्रदावयक भेद से िै ऐक्य वमट सकता अिो?
बनती निीं क्या एक माला विविध सुमनों की किो।
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रक्खो परस्पर मेल, मन से छोड़कर अवििेकता,
मन का वमलन िी वमलन िै, िोती उसी से एकता।
सब बैर और विरोध का बल-बोध से िारि करो।
िै वभन्नता में वखन्नता िी, एकता धारि करो।
िै कायय ऐसा कौन-सा साधे न वजसको एकता,
देती निीं अद्भुत अलौककक शवक्त ककसको एकता।
दो एक एकादश हुए ककसने निीं देखे सुन,े
िाूँ, शून्द्य के भी योग से िैं अंक िोते दश गुन।े
(i) कवि ककस प्रकार देशिावसयों से वमलने की बात कि रिा िै?
(क) विविध पुष्पों के िार के रूप में (ख) सुख-शावन्द्त प्राप्त करने के वलए
(ग) संगटठत िो जाने के वलए (घ) फू लों का िार भेंट करके ।
(ii) देशिावसयों के वलए एकता िी िरे ण्य िै, क्योंकक-
(क) एकता से अलौककक शवक्त प्राप्त िोती िै (ख) एकता से सभी कायय वसि िो जाते िैं
(ग) देश में एकता स्थायी निीं रि सकती (घ) (क) ि (ख) दोनों िी।
(iii) साम्प्रदावयक विविधता की तुलना की िै-
(क) देश में अनेक सम्प्रदाय फै ले िैं। (ख) अनेक प्रकार के फू लों से बनी माला से
(ग) धमय-सम्प्रदाय सुन्द्दर फू लों जैसे िैं (घ) इनमें से कोई निीं।
(iv) ‘दो एक एकादश हुए’ पंवक्त मुिािरे का काव्यात्मक प्रयोग िै, िि मुिािरा िै-
(क) दो और दो चार िोते िैं (ख) एक और एक ग्यारि िोते िै,
(ग) दो और एक एकादश िोते िैं (घ) संगठन से ताकत आती िै।
(v) उपयुयक्त गद्यांश का उपयुक्त शीषयक नीचे वलखे विककपों से छाूँटटए-
(क) फू लों का िार (ख) अनेकता में एकता
(ग) देश-बांधि (घ) साम्प्रदावयक सदभाि।
****************************************************************************************************
(i) उर्त्र: क) विविध पुष्पों के िार के रूप में
(ii) उर्त्र: (घ) (क) ि (ख) दोनों िी।
(iii) उर्त्र: (ख) अनेक प्रकार के फू लों से बनी माला से
(iv) उर्त्र: (ख) एक और एक ग्यारि िोते िै,
(v) उर्त्र: (ख) अनेकता में एकता
****************************************************************************************************

40
41
पाठ सं- 1
आत्मपटरचय (कविता
कव िः हरि ंशिाय बच्चन
कविता का सार- 'आत्मपटरचय कविता प्रवसि िालािादी कवि िटरिंश राय बच्चन के द्वारा वलखी गई िै। इस कविता में
कवि ने अपने और समाज-दुवनया के द्वंद्वात्मक संबध
ं का वचिि ककया िै। कवि ने किा िै कक स्ियं को जानना इस दुवनया
को जानने से ज्यादा कटठन िै। मनुष्य समाज में रिते हुए विवभन्न खट्टे-मीठे अनुभिों से गुजरता अपने पटरिेश से पूरी तरि
वनरपेक्ष निीं रि सकता। िि समाज से कटकर निीं रि सकता। दुवनया अपने व्यंग्य बाि तथा शासन-प्रशासन से चािे
वजतना कष्ट दें, पर दुवनया से कटकर मनुष्य रि भी निीं पाता, क्योंकक उसका अपना अवस्तत्ि िै, पिचान िै और उसका
अपना पटरिेश िै। कवि पूरी कविता का सार एक पंवक्त में कि देता िै कक दुवनया से मेरा संबध
ं प्रीवत कलि का िै, मेरा
जीिन विरुिों का सामंजस्य िै । कवि सुख-दुख, यश-अपयश, िावन-लाभ आकद द्वंद्वात्मक पटरवस्थवतयों में एक समान रिता
िै। कवि मानता िै कक यि संसार वम्या िै। यि संसार उन्द्िीं को मित्त्ि देता िै जो इसे मित्त्ि देते िैं। इन सबसे परे कवि
दुवनया से प्राप्त दुख और पीड़ा को दरककनार कर सबसे प्रेमपूिय व्यििार करता िै।
'आत्मपटरचय' कविता के मुख्य सबंद ु :
 कवि का मानना िै कक स्ियं को जानना दुवनया को जानने से ज्यादा कटठन िै। संसार से पूरी तरि वनरपेक्ष रिना
संभि निीं िै।
 यि दुवनया अपनी मौज में रिने िाले और सदैि प्रेम लुटाने िाले दीिानों का मित्त्ि निीं समझ पाती ।
 कवि ककसी वप्रय की मधुर यादों से झंकृत हृदय में प्रेम लेकर घूमते िैं।
 संसार प्रेम के अभाि के कारि अपूिय िै और स्िाथय से भरा िै। संसार का स्िाथयपूिय रिैया कवि को अर्चछा निीं
लगता
 सांसाटरक जीिन की कड़िािट, विषमता आकद समस्याओं के बािजूद भी कवि के हृदय में सबके वलए प्रेम िै ।
 कवि संसार के आकषयि से दूर िै। िि अपनी िी दुवनया में मस्त रिते िैं ।
 कवि आज भी यौिन के उत्साि से भरपूर िै।
 कवि संसाटरक ज्ञान को भूलना चािता िै। भौवतक िैभि तुर्चछ िै। कवि जीिन में आने िाले सुख-दुख दोनों को िी
समान भाि से सिते िैं और मि रिते िैं।
'आत्मपटरचय' का वशकप सौंदयय
 भाषा सरल, सरस प्रिाि से युक्त साविवत्यक खड़ी बोली िै।
 मुक्त छंद गीत, शृंगार रस का प्रयोग हुआ िै।
 कविता आत्मकथात्मक एिं गेयात्मक शैली में वलवखत िै।
 'जग-जीिन' और 'स्नेि-सुरा' क्यों, कवि किकर और जग झूम झुके' में अनुप्रास अलंकार िै ।
 'भि-सागर' एिं 'भि मौजों में रूपक अलंकार िै ।
 मैं और, और जग और में यमक अलंकार तथा बना-बना में पुनरुवक्तप्रकाश अलंकार िै ।
 'उन्द्मादों में अिसाद और बािर िूँसा, रुलाती भीतर रोदन में राग और 'शीतल िािी में आग पंवक्तयों में विरोधाभास
अलंकार का प्रयोग हुआ िै।
 कवि के अन्द्तमयन की अवभव्यवक्त हुई िै।
 कवि के व्यवक्तत्ि के विवभन्न पिलुओं का उद्घाटन हुआ िै।
 सूकफयाना भाि-भूवम िै और इस कविता में संसार की अपूियता का िियन ककया गया िै।
 कवि को मन के फक्कड़पन के दशयन हुए िैं।
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पटठत काव्यांश-01
मैं जग-जीिन का भार वलए कफरता हूँ,
कफर भी जीिन में प्यार वलए कफरता िै;
कर कदया ककसी ने झंकृत वजनको
छू कर मैं साूँसों के दो तार वलए कफरता हूँ।
मैं स्नेि-सुरा का पान ककया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान ककया करता हूँ,
जग पूछ रिा िै उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान ककया करता हूँ।
मैं वनज उर के उद्गार वलए कफरता िै,
मैं वनज उर के उपिार वलए कफरता हूँ;
िै यि अपूिय संसार न मुझको भाता
मैं स्िप्नों का संसार वलए कफरता हूँ।
1. 'आत्मपटरचय' कविता के रचनाकार िैं -
(क जयशंकर प्रसाद (ख िटरिंशराय बच्चन
(ग रामधारी ससंि कदनकर (घ सूययकांत विपाठी 'वनराला'
2. कवि ककस का भार वलए कफरता िै?
(क घर-बार का (ख कायायलय का
(ग जग-जीिन का (घ आस-पास का
3.कवि जीिन में क्या वलए कफरता िै?
(क प्यास (ख आस
(ग उकलास (घ प्यार
4. कवि ककस सुरा का पान करता िै?
(क स्नेि-सुरा (ख उमंग
(ग उत्साि (घ द्वेष
5. कवि कै सा संसार वलए कफरता िै?
(क यथाथय (ख आदशय
(ग स्िवप्रल (घ सुखी
6. कवि संसार को अपूिय क्यों मानता िै?
(क उसमें प्रेम निीं िै (ख िि बनािटी ि झूठा िै
(ग यि स्िाथय से पटरपूिय िै (घ उपयुयक्त सभी कारिों से
7. मैं स्नेि-सुरा का पान ककया करता हूँ, प्रस्तुत पंवक्त में कौनसा अलंकार िै?
(क यमक (ख उपमा

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(ग श्लेष (घ रूपक
उर्त्रमाला : पटठत काव्यांश -01
1. ख 2. ग 3. घ 4. क 5. ग 6. घ 7. घ
पटठत काव्यांश-02
मैं जला हृदय में अवि, दिा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मि रिा करता हूँ।
जग भि-सागर तरने को नाि बनाए,
मैं भि मौजों पर मस्त बिा करता हूँ।
मैं यौिन का उन्द्माद वलए कफरता हूँ,
उन्द्मादों में अिसाद वलए कफरता हूँ.
जो मुझको बािर िूँसा, रुलाती भीतर,
मैं, िाय, ककसी की याद वलए कफरता हूँ!
कर यत्न वमटे सब सत्य ककसी ने जाना?
नादान ििाूँ िैं, िाय, जिाूँ पर दाना।
कफर मूढ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे ?
मैं सीख रिा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना ।
1. कवि यौिन के उन्द्माद में क्या वलए कफरता िै?
(क अिसाद (ख अिसास
(ग अिसान (घ अिसर
2. कवि हृदय में क्या जला कर दिा करता िै?
(क स्मृवतयों (ख प्रेमावि
(ग ककपनाएूँ (घ ईष्याय
3. कवि ककस अिस्था का उन्द्माद वलए कफरता िै?
(क िृिािस्था का (ख प्रौढािस्था का
(ग युिािस्था का (घ ककशोरािस्था का
4. कवि ककसकी याद वलए कफरता िै?
(क अपनी माूँ की (ख अपनी वप्रयतमा की
(ग अपनी बिन की (घ उपयुयक्त में से ककसी की निीं
5. संसार के बारे में कवि क्या कि रिा िै?
(क यिाूँ लोग जीिन-सत्य जानने के वलए प्रयास करते िैं.
(ख यिाूँ लोग जीिन-सत्य जानने में कभी सफल निीं हुए,
(ग यिाूँ लोग सांसाटरक मायाजाल में उलझे हुए िैं
(घ उपयुयक्त सभी सिी िैं

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6. कवि सीखे ज्ञान को क्यों भुलाना चािता िै?
(क क्योंकक उससे जीिन-सत्य की प्रावप्त निीं िोती
(ख ताकक िि अपने मन के किे अनुसार चल सके ,
(ग िि सांसाटरकता से मुक्त िोना चािता िै,
(घ उपयुयक्त सभी कारिों से
7. उन्द्मादों में अिसाद वलए कफरता हूँ, प्रस्तुत पंवक्त में कौनसा अलंकार िै?
(क यमक (ख उपमा
(ग विरोधाभास (घ रूपक
उर्त्रमाला : पटठत काव्यांश -02
1. क 2. ख 3. ग 4. ख 5. घ 6. घ 7. ग
पटठत काव्यांश-03
मैं और, और जग और, किाूँ का नाता,
मैं बना-बना ककतने जग रोज वमटाता;
जग वजस पृ्िी पर जोड़ा करता िैभि,
मैं प्रवत पग से उस पृ्िी को ठु कराता !
मैं वनज रोदन में राग वलए कफरता हूँ,
शीतल िािी में आग वलए कफरता हूँ,
िों वजस पर भूपों के प्रासाद वनछािर
मैं िि खंर्िर का भाग वलए कफरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम किते िो गाना,
मैं फू ट पड़ा, तुम किते, छंद बनाना,
क्यों कवि किकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुवनया का हूँ एक नया दीिाना|
मैं दीिानों का िेश वलए कफरता हूँ
मैं मादकता वनःशेष वलए कफरता हूँ;
वजसको सुनकर जग झूम, झुके, लिराए,
मैं मस्ती का संदश
े वलए कफरता हूँ।
1.कवि कै से संसार को ठु कराता िै?
(क ईमानदार (ख सत्यवनष्ठ
(ग कमयशील (घ िैभिशाली
2. कवि के फू ट पड़ने को समाज ने क्या किा?
(क छंद बनाना (ख बिाने बनाना
(ग अवभनय करना (घ आूँसू बिाना

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3. कवि की िािी कै सी िै?
(क मृदल
ु (ख कठोर
(ग उग्र (घ शीतल
4.कवि कै सा संदश
े वलए कफरता िै?
(क सांत्िना का (ख बवलदान का
(ग मस्ती का (घ समपयि का
5. मैं और, और जग और, किाूँ का नाता, प्रस्तुत पंवक्त में कौन-सा अलंकार िै?
(क यमक (ख उपमा
(ग विरोधाभास (घ रूपक
6.कवि के पास ऐसा क्या िैं वजस पर बड़े-बड़े राजाओं के मिल न्द्योछािर िो जाते िैं?
(क प्रेमरूपी मिल के खंर्िर या अिशेष (ख दीिानापन
(ग अतीत की स्मृवतयाूँ (घ साविवत्यक कौशल
7. कवि की मनोदशा कै सी िैं?
(क दीिानों जैसी (ख मस्ती में चूर
(ग प्रेम के नशे में र्ू बे हुए (घ उपयुयक्त सभी सिी िैं
8. कवि स्ियं को दुवनया का एक नया क्या मानता िै?
(क प्रेमी (ख दीिाना
(ग परिाना (घ रक्षक
उर्त्रमाला : पटठत काव्यांश -03
1. घ 2. क 3. घ 4. ग 5. क 6. क 7. घ 8. ख
'कदन जकदी-जकदी ढलता िै।
कविता का सार
कविता में कवि जीिन की व्याख्या करते हुए किता िै कक जीिन गवतशील िै। समय ककसी के वलए निीं रुकता। शाम िोते
देख यािी तेजी से चलता िै कक किीं रास्ते में रात न िो जाए। उसकी मंवजल समीप िी िोती िै, इस कारि िि थकान िोने
के बािजूद भी जकदी-जकदी चलता िै। लक्ष्य प्रावप्त के वलए उसे कदन जकदी ढलता प्रतीत िोता िै। थके शरीर के बािजूद भी
उसका उकलास, आशा और तरं ग भाि से युक्त मन उसके पैरों की गवत कम निीं िोने देता िै। कवि प्रकृ वत के माध्यम से
उदािरि देता िै कक वचवड़या भी कदन ढलने पर चंचल िो उठती िै। िि जकदी से जकदी अपने घोसले में पहुंचना चािती िै।
उसे ध्यान आता िै कक उसके बच्चे दाने/ भोजन की आशा में घोंसलों से बािर झांक रिे िोंगे। यि ध्यान आते िी उनके पंखों
में व्यग्रता/ तेजी आ जाती िै। कवि एकाकी िै। उसे लगता िै कक उससे वमलने को कोई व्याकु ल निीं िोगा, इसवलए भला
िि ककसके वलए जकदी घर जाए। कवि के मन में यि प्रश्न आते िी पैर वशवथल िोने लगते िैं, लेककन हृदय में यि व्याकु लता
भर जाती िै कक कदन ढल रिा िै। रात िोने िाली िै। इससे कवि का हृदय पीड़ा से बेचन
ै िो उठता िै और िि जकदी-जकदी
चलने लगता िै।
'कदन जकदी-जकदी ढलता िै' कविता के मुख्य सबंद ु :
 कदन जकदी जकदी ढलता िै कविता जीिन की वनरं तरता को पटरभावषत करती िै।
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 समय सतत प्रिािमान िै, िि ककसी की प्रतीक्षा निीं करता ।
 पवथक को थकान िोने के बािजूद भी वनरंतर अपनी मंवजल की ओर अग्रसर रिना चाविए।
 समय की गवतशीलता को दशायने के वलए कवि ने वचवड़या और पवथक का उदािरि वलया िै।
 मंवजल दूर न िोने पर भी पवथक यि सोचकर जकदी-जकदी चलता िै कक किीं रात न िो जाए।
 वचवड़या कदन ढलते देख और अपने बच्चों की भूख-प्यास तथा आशा को ध्यान कर जकदी-जकदी अपने घोंसले में
पहुंचने के वलए व्याकु ल िो उठती िै।
 मंवजल / घर की ओर बढ़ते आकद के पाूँि यि सोचकर वशवथल पड़ जाते िैं कक उसकी प्रतीक्षा के वलए कोई निीं
िै,लेककन मंवजल पर पहुूँचने की आतुरता उसे व्याकु ल करती िै।
" कदन जकदी-जकदी ढलता िै' का वशकप सौंदयय:
 भाषा सरल भािानुकूल साविवत्यक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ िै।
 गेयात्मक शैली िै। संगीतात्मकता िै।
 जकदी-जकदी में पुनरुवक्तप्रकाश अलंकार, मुझसे वमलने में अनुप्रास अलंकार तथा मैं िोऊूँ ककसके वित चंचल?" में
प्रश्नालंकार का प्रयोग हुआ िै।
 नीड़ों से झाूँक रिे िोंगे पंवक्त में दृश्य सबंब दशयनीय िै।
 कविता में वियोग शृंगार रस की अनुभूवत िोती िै।
 जीिन की क्षिभंगुरता ि प्रेम की व्यग्रता को व्यक्त ककया िै।
 एकाकी जीिन की मनोदशा का यथाथय वचिि हुआ िै।
पटठत काव्यांश- 04
कदन जकदी-जकदी ढलता िै।
िो जाए न पथ में रात किीं.
मंवजल भी तो िै दूर निीं
यि सोच थका कदन का पंथी भी जकदी-जकदी चलता िै।
कदन जकदी-जकदी ढलता िै।
बच्चे प्रत्याशा में िोंगे,
नीड़ों से झाूँक रिे िोंगे
यि ध्यान परों में वचवड़यों के भरता ककतनी चंचलता िै।
कदन जकदी-जकदी ढलता िै।
मुझसे वमलने को कौन विकल?
मैं िोऊूँ ककसके वित चंचल ?
यि प्रश्न वशवथल करता पद को, भरता उर में विह्िलता िै।
कदन जकदी-जकदी ढलता िै!
1. 'एक गीत' कविता में कवि ने समय को कै सा माना िै?
(क वस्थर (ख पटरितयनशील
(ग तीव्र (घ चंचल
2. पवथक के तेज चलने का क्या कारि िैं?
(क शाम िोने िाली िै। (ख लक्ष्य समीप िै
(ग रात न िो जाए (घ उपयुयक्त सभी

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3.कदन ढलने के साथ िी बच्चे किाूँ से झाूँकने लगे िोंगे?
(क वखड़की से (ख छत से
(ग दरिाजे से (घ नीड़ों से
4. कवि के हृदय में कै से भाि भरे हुए िैं?
(क प्रसन्नता के (ख जोश एिं उत्साि
(ग विह्िलता के (घ ईष्याय एिं घृिा के
5. नीड़ों से झाूँक रिे बच्चों का ध्यान वचवड़यों के परों में क्या भरता िै?
(क वशवथलता (ख विकलता
(ग चंचलता (घ वबह्िलता
6. घर जाते हुए कवि के पग वशवथल क्यों िो जाते िैं?
(क घर पर उसका कोई इंतजार निीं कर रिा
(ख घर जाकर िि क्या करेगा?
(ग उसे अपने घर जाने की जकदी निीं िै।
(घ उसे अपना घर अर्चछा निीं लगता
7. `कदन जकदी जकदी ढलता िै’ कविता में कवि की िताशा और वनराशा का कारि िै-
(क बच्चे की मृत्यु (ख पत्नी से तलाक
(ग पटरिार से वबछड़ना (घ भाई की मृत्यु
8. पथ में िोने िाली रात की आशंका से कौन भयभीत रिता िै?
(क कारीगर (ख प्रेमी
(ग तपस्िी (घ थका पंथी
9. बच्चों की याद आते िी वचवड़या क्या करती िै?
(क चीं-चीं करती िै (ख तेजी से उड़ती िै
(ग दाना चुगती िै (घ पंख फै लाती िै
10. 'मुझसे वमलने को कौन विकल'- 'कदन जकदी-जकदी र्लता िै।' गीत का यि प्रश्न कवि के हृदय में क्या भरता िै?
(क वशवथलता (ख चंचलता
(ग विह्िलता (घ उपयुयक्त सभी
उर्त्रमाला पटठत काव्यांश -04
उर्त्र 1. ख 2.घ 3. घ. 4.ग 5.ग 6.क 7. ग 8. घ 9.ख 10. ग
परीक्षा में पूछे जाने िाले संभावित प्रश्न (2 अंक िाले
1. यौिन में उन्द्माद वलए घूमने से क्या तात्पयय िै?
उर्त्र- यिाूँ उन्द्माद शब्द का अथय उत्साि और प्रेम की तीव्रता िै। कवि प्रेम के प्रवत पूरी तरि समर्पयत व्यवक्त िै। िि संसार
में प्रेम का फै लाि / प्रसार करना चािता िै। इस कायय के वलए जिानी की मस्ती और जोश उत्साि की आिश्यकता िै ।
इसवलए िि अपने हृदय में उत्साि संजोकर जी रिा िै।
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2. कवि िटरिंश राय बच्चन का संसार के प्रवत दृवष्टकोि कै सा िै?
उर्त्र- कवि संसार को स्िाथय से युक्त और अपूिय मानता िै। कवि के अनुसार यि संसार उन्द्िीं का गुिगान करता िै जो इसके
झूठ का समथयन करते िैं। कवि ऐसे संसार की परिाि निीं करता। िि इसी संसार में रिते हुए, इसका भार ढोते हुए अपने
सपनों का संसार बनाकर जीिन यापन करता िै।
3. कवि संसार से ककस मायने में अलग िै?
अथिा
कवि ने स्ियं को संसार से अलग क्यों माना िै?
अथिा
मैं और, और जग और, किाूँ का नाता आशय स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र- कवि किता िै कक यि संसार धन और िैभि के पीछे दौड़ता िै। जबकक कवि इन्द्िें व्यथय मानता िै। यि वसफय उन्द्िीं
लोगों को मित्त्ि देता िै जो इसकी िाूँ में िाूँ वमलाते िैं। इसवलए कवि अपनी अलग दुवनया बनाकर जीता िै, वजसमें वसफय
प्रेम िी प्रेम िै।
4. शीतल िािी में आग वलए घूमने से क्या आशय िै?
उर्त्र- शीतल िािी में आग वलए घूमना एक विरोधाभासी वस्थवत िै। लेककन कवि सामावजक पटरितयन के वलए इसे मित्त्िपूिय
मानता िै। समाज में पटरितयन फ्ांवत और शोर से िी निीं, शांत भाि से युक्त मीठी िािी से भी संभि िै। शीतल िािी का
प्रिार व्यंग्यात्मक िोता िै और सबसे अवधक कारगर भी कवि मानता िै कक शीतल िािी आग के समान िै। िि पटरितयन
में सक्षम िै।
5. जिाूँ पर दाना रिते िैं, ििाूँ नादान भी िोते िैं कवि ने ऐसा क्यों किा िोगा?
उर्त्र - दाना शब्द का अथय िै- बुविमान, ज्ञानी। संसार में ज्ञानी और अज्ञानी / नादान दोनों तरि के लोग रिते िैं। इनकी
अपनी-अपनी विचारधारा िोती िै। दाना लोग सीखे हुए ज्ञान को वनरंतर पटरमार्जयत करते रिते िैं जबकक नादान लोगएक
बार सीखे ज्ञान को िी अंवतम मान लेते िैं। ऐसे लोग संसार को कु छ नया देने में असमथय िोते िैं।
6. 'कदन जकदी-जकदी ढलता िै’ में वचवड़या अपने घरोंदों की ओर लौटने को विकल क्यों िैं?
अथिा
वचवड़या के परों में चंचलता आने का क्या कारि िै ? स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र- वचवड़या कदन को जकदी-जकदी र्लते देखती िै तो उसे अपने बच्चों का स्मरि िो आता िै। उसे ध्यान आता िै कक उसके
बच्चे दाने और माूँ के लौटने की प्रतीक्षा में िोंगे और विकल िोकर बार-बार घोसले से झाूँक रिे िोंगे। इसी कारि वचवर्या
के परों में चंचलता आ जाती िै और िि अपने घोंसले की ओर लौटने को विकल िो उठती िै।
7. कवि अपने घर जाने के वलए व्याकु ल और उत्सावित क्यों निीं िै?
उर्त्र - कवि एकाकी िै। कदन अपनी गवत से ढल रिा िै ककन्द्तु कवि का इंतजार करने िाला और कवि से वमलने के वलए
व्याकु ल कोई निीं िै। कवि को लगता िै कक िि ककसके वलए शीघ्रता करे ? यि भाि उसके पैरों को वशवथल/ धीमा कर देता
िै। इसी कारि उसके मन में घर जाने का न उत्साि िै और न िी उत्कं ठा। लेककन कदन जकदी-जकदी ढलता देख कवि में हृदय
लक्ष्य तक पहुूँचने की व्याकु लता भर जाती िै।
8. वचवड़या के बच्चे ककस आशा में नीड़ों से झाूँक रिे िोंगे?
उर्त्र - वचवड़या के बच्चे समय पर दाना पाने और अपनी माूँ के शीघ्र लौटने की प्रतीक्षा कर रिे िैं। इसी आशा में िे
नीड़ों/घोंसलों से बार-बार झाूँक रिे िोंगे।

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परीक्षा में पूछे जाने िाले संभावित प्रश्न (3 अंक िाले
1. 'आत्मपटरचय' कविता का प्रवतपाद्य अपने शब्दों में वलवखए।
उर्त्र- 'आत्मपटरचय' कविता में कवि ने अपने और समाज-दुवनया के द्वंद्वात्मक संबंध का वचिि ककया िै। मनुष्य समाज में
रिते हुए विवभन्न खट्टे-मीठे अनुभिों से गुजरता अपने पटरिेश से पूरी तरि वनरपेक्ष निीं रि सकता। िि समाज से कटकर
निीं रि सकता। दुवनया अपने व्यंग्य बाि तथा शासन-प्रशासन से चािे वजतना कष्ट दे पर दुवनया से कटकर मनुष्य रि भी
निीं पाता, क्योंकक उसका अपना अवस्तत्ि िै, पिचान िै और उसका अपना पटरिेश िै। कवि पूरी कविता का सार एक पंवक्त
में कि देता िै कक दुवनया से मेरा संबंध प्रीवत कलि का िै. मेरा जीिन विरूिों का सामंजस्य िै। कवि सुख-दुख, यश अपयश,
िावन-लाभ आकद द्वंद्वात्मक पटरवस्थवतयों में एक समान रिता िै।
2. 'आत्मपटरचय' कविता के शीषयक की साथयकता स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र- इस कविता में कवि ने स्ियं के अवस्तत्ि को मुखटरत करने का प्रयास ककया िै। िि किता िै कक उसके हृदय में दूसरों
के वलए प्रेम रखता िै और ििी बांटता िै। िि संसार के स्िाथयपूिय रिैये के बािजूद भी इस संसार में रिकर अपनी मादकता
वलए कफर रिा िै। उसकी िािी शीतल िै ककन्द्तु उसमें संसार को बदलने की ताकत रूपी आग िै। कवि सुख-दुख, यश-
अपयश, िावन-लाभ आकद द्वंद्वात्मक पटरवस्थवतयों में एक समान रिता िै। इस प्रकार यि कविता कवि के व्यवक्तत्ि के विवभन्न
पक्षों का पटरचय देती िै और शीषयक को साथयक बनाती िै।
3. 'आत्मपटरचय' कविता में कवि ने अपने जीिन में ककन परस्पर विरोधी बातों का सामंजस्य वबठाने की बात की िै?
उर्त्र- इस कविता में कवि ने अपने जीिन की अनेक विरोधी बातों का सामंजस्य वबठाने की बात की िै। कवि संसार को
अपूिय और स्िाथय से युक्त मानता िै लेककन इसी संसार में रिते हुए जीिन जीना पड़ रिा िै। िि दुख, अिसाद, पीर्ा,
सांसाटरक कटठनाइयों से वनरं तर जुझ रिा िै, कफर भी जीिन से प्यार करता िै और दूसरों के वलए प्यार वलए कफरता िै।
िि संसार के स्िाथयपूिय व्यििार की तवनक भी परिाि निीं करता, क्योंकक िि जानता िै कक संसार उन्द्िीं का गुिगान करता
िै जो उसका गुिगान करते िैं। उसे यि संसार अपूिय लगता िै। िि इस संसार में रिते हुए अपने एक प्रेम और उकलास से
भरा सपनों का संसार वलए कफरता िै। िि यौिन का उन्द्माद और अिसाद दोनों साथ वलए कफरता िै। िि शीतल िािी में
आग वलए कफरता िै। ये सभी बातें कवि के जीिन में परस्पर विरोधी वस्थवतयों तथा बातों में सामंजस्य को उजागर करती
िैं।
4.'कदन जकदी-जकदी ढलता िै' कविता का प्रवतपाद्य स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र - यि कविता समय की गवतशीलता के सत्य के साथ-साथ प्रेम की व्याकु लता को भी अवभव्यवक्त देती िै। पवथक अपने
घर जकदी पहुंचने की चाित में समय के साथ चलने का प्रयास करता िै। कवि हृदय की व्यग्रता को समझाने के वलए वचवड़या
का उदािरि देते हुए किते िैं कक जकदी-जकदी बीतता समय वचवड़या को व्यग्र कर देता िै। उसे याद आता िै कक घोंसले में
उसके बच्चे उसका और दाने का इंतजार करते हुए झाूँक रिे िोंगे। इसके कारि उसके परों में चंचलता आ जाती िैं। कवि घर
जकदी पहुूँचना चािता िै लेककन यि सोचकर उसके पैर वशवथल पड़ जाते िैं कक उसका कोई इंतजार करने बाला निीं िै।
कफर भी िि मंवजल तक पहुंचने की चाि में व्याकु ल िोता िै और इस व्याकु लता के पीछे प्रेम का अिसास िी िै।
5.'कदन जकदी-जकदी ढलता िै' कविता िमें क्या प्रेरिा देती िै?
उर्त्र- कदन ढलना एक प्रेरिादायी प्राकृ वतक प्रकक्रया िै। समय गवतमान िै। िि ककसी की प्रतीक्षा निीं करता। अपनी गवत
से िलता कदन मनुष्य को गवतशीलता की सीख देता िै। व्यवक्त सजगता और स्फू र्तय के साथ अपनी मंवजल की ओर वनरंतर
अग्रसर रिता िै। इससे कायय में वबलम्ब िोने की गुंजाइश निीं रिती िै। सफ़र ककतना भी थकान भरा िो लेककन मंवजल तक
पहुूँचने की चाि प्रत्येक व्यवक्त के मन में िोती िै। यि कविता बताती िै कक प्रत्येक मनुष्य को अपने कायय को समय और
उसकी पूियता की आिश्यकता के अनुसार करना चाविए। कायय में तीव्रता लानी चाविए। समय का ध्यान रखते हुए तो पक्षी
भी अपनी गवत बढ़ा देते िैं। मन में ककतना भी एकाकीपन िो, चािे कोई िमारी प्रतीक्षा कर रिा िो या निीं.

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िमें वनरंतर मंवजल की ओर अग्रसर रिना चाविए।
6 'आत्मपटरचय' कविता के आधार पर कवि िटरिंश राय बच्चन के व्यवक्तत्ि के विवभन्न पिलुओं पक्षों को स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र- 'आत्मपटरचय' कविता में कवि िटरिंश राय बच्चन के व्यवक्तत्ि के वनम्नवलवखत पिलुओं पक्षों को उभारा गया िै
1. कवि संसार में रिते हुए संसार का भार लेकर कफरता िै। उसका जीिन प्रेम से पटरपूिय िै।
2. कवि अपनी धुन में मस्त रिने िाला व्यवक्त िै। इससे उसका फड़पन मुखटरत िोता िै।
3. कवि सुख-दुख, यश-अपयश, िावन-लाभ आकद द्वंद्वात्मक पटरवस्थवतयों में एक समान रिता िै।
4. कवि संसार को स्िाथी और अपूिय मानता िै।
5. कवि संतोष रखता िै। िि अपना आक्रोश भी मीठी िािी में व्यक्त करता िै। इससे स्पष्ट िोता िै कक कवि का मकसद
िंगामा खड़ा करने का निीं बवकक काम करने का िै।
6. कवि एक ऐसा दीिाना िै वजसका हृदय मस्ती से सरोबार िै और नि सृजन के वलए उत्सावित िै।
7. कदन जकदी-जकदी ढलता िै' कविता में कवि अपने घर की और लौटने में वशवथल तथा अनुत्सावित क्यों िै?
अथिा
'कदन जकदी-जकदी ढलता िै' कविता के आधार पर स्पष्ट कीवजए कक कवि की गवत में वशवथलता और हृदय में विह्िलता का
क्या कारि िै?
उर्त्र- कवि जानता िै कक समय ककसी की प्रतीक्षा निीं करता। िि गवतशील िै और उसकी अपनी गवत िै। कवि को यि
जानकारी िै कक घर पर उसकी प्रतीक्षा करने िाला कोई निीं िोगा। उससे वमलने के वलए कोई व्याकु ल निीं िोगा । इसवलए
िि ककसके वलए शीघ्रता करे । यि बात कवि के पैरों को वशवथल कर देती िै लेककन मंवजल पर पहुूँचने की जलक उसके हृदय
में बेचनी भर देती िै। उसे लगता िै कक किीं रास्ते में रात न िो जाए। ककसी अनजानी जगि पर वप्रय की यादों के साथ रात
वबताना अत्यंत कष्टकर िोगा। उसे कफर नए वसरे से सफर करना िोगा। जकदी-जकदी ढलते कदन का ध्यान आते िी उसके पैरों
में चंचलता आ जाती िै। इस तरि कवि अपने घर की ओर लौटने में वशवथल तथा अनुत्सावित भी िै।

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पाठ सं-02

पतंग

कवि :आलोक धन्द्िा

श्री आलोक धन्द्िा दिारा रवचत ‘पतंग’ कविता उनके काव्य-संग्रि ‘दुवनया रोज बनती िै’ में संकवलत िै। इस कविता में
कवि ने बाल-सुलभ इर्चछाओं एिं उमंगों का सुद
ं र एिं मनोिारी वचिि ककया िै। कवि ने बाल कक्रयाकलापों तथा प्रकृ वत में
आए पटरितयन को अवभव्यक्त करने के वलए अनेक सुद
ं र सबंबों का समायोजन ककया िै। पतंग बच्चों की उमंगों का रं ग-
वबरं गा सपना िै, वजसमें िे खो जाना चािते िैं। आकाश में उड़ती हुई पतंग ऊूँचाइयों की िे िदें िैं, वजन्द्िें बाल-मन छू ना
चािता िै और उसके पार जाना चािता िै।

कविता का सार

*कविता एक ऐसी नई दुवनया की सैर कराती िै, जिाूँ शरद ऋतु का चमकीला सौंदयय िै; वततवलयों की रं गीन दुवनया िै;
कदशाओं के नगाड़े – बजते िैं, छतों के खतरनाक कोने से वगरने का भय िै तो दूसरी ओर इसी भय पर विजय का ध्िज
लिराते बच्चे िैं।
* ये बच्चे वगर-वगरकर संभलते िैं तथा पृ्िी का िर कोना इनके पास आ जाता िै।
*िे िर बार नई पतंग को सबसे ऊूँचा उड़ाने का िौसला वलए भादो के बाद शरद की प्रतीक्षा कर रिे िैं|
* कवि के अनुसार सबसे तेज बौछारों के समय का अंधरे ा व्यतीत िो गया िै और खरगोश की आूँख के समान लावलमा – से
युक्त सौंदययमयी प्रकाशयुक्त सिेरा िो गया िै। शरद अनेक झावड़यों को पार करते हुए तथा नई चमकदार साइककल तेज गवत
से चलाते हुए जोरों से घंटी बजाते आ गया िै। िि अपने सौंदयय से युक्त चमकीले इशारों से पतंग उड़ाने िाले बच्चों के समूि
को बुलाता िै।िि आकाश को इतना सुद
ं र तथा मुलायम बना देता िै कक पतंग ऊपर उठ सके |
* पतंग वजसे दुवनया की सबसे िककी और रं गीन िस्तु माना जाता िै, िि इस असीम आकाश में उड़ सके । इस िसीन दुवनया
का सबसे पिला कागज और बाूँस की पतली कमानी आकाश में उड़ सके और इनके उड़ने : के साथ िी चारों ओर का
िातािरि बच्चों की सीटटयों, ककलकाटरयों और वततवलयों की मधुर ध्िवन से गूज
ं उठे ।
* कोमल बच्चे अपने जन्द्म से िी कपास के समान कोमलता लेकर आते िैं। ये पृ्िी भी उनके बेचन
ै पाूँिों के साथ घूमने लगती
िै। जब ये बच्चे मकानों की छतों पर बेसध
ु िोकर दौड़ते िैं तो छतों को नरम बना देते िैं। जब ये बच्चे झूला-झूलते हुए आते िैं
तो कदशाओं के नगाड़े बजने लगते िैं। प्राय: बच्चे छतों पर तेज गवत से बेसध
ु िोकर दौड़ते िैं तो उस समय उनके रोमांवचत
शरीर का संगीत िी उन्द्िें वगरने से बचाता िै। उस समय माि धागे के सिारे उर्ती पतंगों की ऊूँचाइयाूँ उन्द्िें सिारा देकर
थाम लेती िैं।

52
कवि का मानना िै कक अगर बच्चे छतों के खतरनाक ककनारों से वगरकर बच जाते िैं तो उसके बाद िे पिले से ज्यादा वनर्र
िोकर स्िर्ियम सूयय के सामने आते िैं। तब उनके इस सािस, धैयय और वनर्रता को देखकर यि पृ्िी भी उनके पैरों के पास
अवधक तेजी से घूमती िै।
'पतंग' कविता के मुख्य सबंद-ु

इस कविता के माध्यम से कवि आलोक धन्द्िा ने बाल सुलभ इर्चछाओं, क्रीर्ाओं तथा उमंगों के कोमल संसार का सुन्द्दर
वचिि ककया िै।कवि ने शरद का मानिीकरि ककया िै।

 भादो की अूँधेरी रात का समय बीत चुका िै और शरद आ गया िै।


 शरद अूँधेरी रातों िाले भादो माि के पुलों को पार करता हुआ आ गया िै।
 शरद अपनी चमकीली साइककल अथायत चमकीली ककरिों रूपी साइककल को तेज चलाते हुए, घंटी बजाकर बच्चों
के झुंर् को बुलाता िै।
 शरद ऋतु का सिेरा खरगोश की लाल आूँखों जैसा प्रतीत िोता िै।
 आसमान साफ़-मुलायम कदखाई देने लगा िै। पतंग उड़ाने के वलए उपयुक्त िै।
 पतले कागज और बाूँस की पतली कमानी से बनी पतंग बालकों की बालसुलभ इर्चछाओं का प्रतीक िै।
 बच्चे जन्द्म से कपास के समान कोमल भािनाएूँ एिं लचीला शरीर लेकर आते िैं ।
 पतंगों के वलए दौड़ते बच्चे सभी कदशाओं को मृदग
ं की तरि बजाते हुए प्रतीत िोते िैं ।
 बच्चे अपनी धुन में पतंग उड़ाते समय छतों के खतरनाक कोनों तक आ जाते िैं तो उन्द्िें उनके शरीर का रोमांच
वगरने से बचाता िै। उड़ती पतंगें मानो उन्द्िें थामे हुए रिती िैं।
वशकप सौंदयय-

 भाषा सरल, भािानुकूल साविवत्यक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ िै।


 मुक्त छंद िै विवभन्न प्रतीकों और सबंबों का सुंदर प्रयोग हुआ िै ।
 प्राकृ वतक ऋतु पटरितयन का सजीि वचिि, वजसके कारि मानिीकरि अलंकार की उपवस्थवत िै ।

 नरम, बेचैन, मिज, खतरनाक आकद उदूय शब्दों का प्रयोग हुआ िै।

 'मृदग
ं की तरि कदशाओं को बजाना' में श्रव्य सबंब, 'बेचैन पैरों में गवत सबंब और पतंगों की धड़कती ऊूँचाइयाूँ' में
दृश्य सबंब का उत्कृ ष्ट प्रयोग हुआ िै।
 'खरगोश की आूँखों जैसा लाल सिेरा में उपमा अलंकार, जोर-जोर में पुनरुवक्तप्रकाश अलंकार, वगरते िैं-बच जाते

िैं' में विरोधाभास अलंकार, सुनिले सूरज' में अनुप्रास अलंकार तथा पृ्िी और तेज चूमती हुई आती िै में
मानिीकरि अलंकार का प्रयोग दशयनीय िै।
 छोटे-छोटे बच्चों की उमंग, आशा और बाल सुलभ चेष्टाओं का मनोिारी वचिि हुआ िै। साथ िी बालकों के सािवसक
कायों का िियन भी वमलता िै।

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पटठत काव्यांश-01

सबसे तेज बौछारें गयीं भादो गया


सिेरा हुआ
खरगोश की आूँखों जैसा लाल सिेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइककल तेज चलाते हुए
घंटी बजाते हुए जोर जोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने िाले बच्चों के झुर्
ं को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कक पतंग ऊपर उठ सके
दुवनया की सबसे िककी और रं गीन चीज उड़ सके दुवनया का सबसे िकका कागज उड़ सके
बाूँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके
कक शुरू िो सके सीटटयों, ककलकाटरयों और
वततवलयों की इतनी नाजुक दुवनया
1. 'पतंग' कविता के कवि िैं-
(क कुं िर नारायि (ख उमाशंकर जोशी
(ग आलोक धन्द्िा (घ रघुिीर सिाय
2. कवि ने तेज बौछारों के जाने के साथ िी ककस मिीने के भी चले जाने की बात किी िै?
(क सािन (ख आषाढ
(ग अवश्वन (घ भादो
3. कविता में खरगोश की आूँखों जैसा बताया गया िै?
(क सिेरे को (ख साईककल को
(ग पतंग को (घ आसमान को
4. पुलों को पार करते हुए कौन-सी ऋतु आई?
(क शरद (ख िसंत
(ग पािस (घ ग्रीष्म
5. शरद आया पुलों को पार करते हुए में अलंकार िै-
(क उपमा (ख रूपक
(ग अवतशयोवक्त (घ मानिीकरि।
6. कवि के अनुसार दुवनया की सबसे िककी और रं गीन उड़ने िाली चीज िै-
(क वततली (ख फू ल
(ग पतंग (घ कपास

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7. शरद बच्चों के झुर्
ं को कै से इशारों से बुलाता िै?
(क वतरछे (ख सीधे
(ग तीखे (घ चमकीले
8.कौन-सी ऋतु आकाश को मुलायम बना देती िै?
(क शरद (ख िसंत
(ग पािस (घ ग्रीष्म
उर्त्रमाला पटठत काव्यांश - 01
1. ग 2. घ 3. क 4. क 5. घ 6. ग 7. घ 8. क
पटठत काव्यांश-02
जन्द्म से िी िे अपने साथ लाते िैं कपास
पृ्िी घूमती हुई आती िै उनके बैचन ै पैरों के पास
जब िे दौड़ते िैं बेसधु
छतों को भी नरम बनाते हुए
कदशाओं को मृदग ं की तरि बजाते हुए
जब िे पेंग भरते हुए चले आते िैं।
र्ाल की तरि लचीले िेग से अकसर
छतों के खतरनाक ककनारों तक
उस समय वगरने से बचाता िै उन्द्िें
वसफ़य उनके िी रोमांवचत शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊूँचाइयाूँ उन्द्िें थाम लेती िै मिज एक धागे के सिारे
पतंगों के साथ साथ िे भी उड़ रिे िैं।
अपने रन्द्रों के सिारे
अगर िे वगरते िैं छतों के खतरनाक ककनारों से
और बच जाते िैं तब तो
और भी वनर्र िोकर सुनिले सूरज के सामने आते िैं
पृ्िी और भी तेज घूमती हुई आती िै।
उनके बैचन ै पैरों के पास ।
1. 'कपास' प्रतीक िै-
(क प्रकाश का (ख अंधकार का
(ग कोमलता का (घ शांवत का
2. पतंग के साथ बच्चे कै से दौड़ते िैं?
(क र्रकर (ख संभलकर
(ग रुक-रुक कर (घ बेसध
ु िोकर
3. दौड़ते भागते बच्चे कदशाओं को बजाते िैं-
(क सारं गी की तरि (ख वसतार की तरि
(ग मृदगं की तरि (घ िारमोवनयम की तरि
4. छत से वगरने और बच जाने के बाद बच्चे क्या बन जाते िैं?
(क र्रपोक (ख ईष्यायलु
(ग वनर्र (घ सिनशील।

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5.पतंग उड़ाते समय बच्चों के रोमांवचत शरीर का संगीत क्या करता िै?
(क उन्द्िें वगरने से बचाता िै। (ख उन्द्िें नचाता िै
(ग सब बच्चों को बुलाता िै (घ उन्द्िें र्राता िै
6.'पतंगों के साथ-साथ िे भी उड़ रिे िै' से आशय िै-
(क उड़ान भरना (ख स्िप्न देखना
(ग आकाश छू लेने का अिसास िोना (घ पतंग उड़ने पर प्रसन्न िोना
7. बच्चे ककन के साथ-साथ उड़ रिे िैं?
(क पवक्षयों के (ख पतंगों के
(ग बादलों के (घ वचवड़यों के
8. बचे पतंगों के साथ-साथ और ककनके के सिारे उड़ रिे िैं?
(क रं रों के (ख तंतुओं के
(ग धागे के (घ ककपना के
9.पृ्िी ककनके बेचन
ै पैरों के पास घूमती हुई आती िै?
(क वततवलयों के (ख खरगोश के
(ग बच्चों के (घ पतंगों के
10. पतंगों की धड़कती ऊूँचाइयाूँ क्या करती िै?
(क बच्चों को र्राती िै (ख बच्चों को थाम लेती िैं
(ग बच्चों को आकाश छू लेने का अिसास कराती िैं (घ बच्चों को बुलाती िै
उर्त्रमाला पटठत काव्यांश -02

उर्त्र 1. गं 2. घ 3. ग 4. ग 5. क 6. ग 7.ख 8. क 9.ग 10.ख

लघूर्त्रात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:‘पतंग’ कविता का प्रवतपाद्य बताइए।
उर्त्र –इस कविता में कवि ने बालसुलभ इर्चछाओं ि उमंगों का सुंदर िियन ककया िै। पतंग बच्चों की उमंग ि उकलास का
रं गवबरं गा सपना िै। शरद ऋतु में मौसम साफ़ िो जाता िै। चमकीली धूप बच्चों को आकर्षयत करती िै। िे इस अर्चछे मौसम
में पतंगें उड़ाते िैं। आसमान में उड़ती हुई पतंगों को उनका बालमन छू ना चािता िै। िे भय पर विजय पाकर वगर-वगर कर
भी सूँभलते रिते िैं। उनकी ककपनाएूँ पतंगों के सिारे आसमान को पार करना चािती िैं। प्रकृ वत भी उनका सियोग करती
िै, वततवलयाूँ उनके सपनों की रं गीनी को बढ़ाती िैं।
प्रश्न 2: शरद ऋतु और भादों में अंतर स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र –भादों के मिीने में काले-काले बादल घुमड़ते िैं और तेज बाटरश िोती िै। बादलों के कारि अूँधेरा-सा छाया रिता
िै। इस मौसम में जीिन रुक-सा जाता िै। इसके विपरीत, शरद ऋतु में रोशनी बढ़ जाती िै। मौसम साफ़ िोता िै, धूप
चमकीली िोती िै और चारों तरफ उमंग का मािौल िोता िै।
प्रश्न 3: शरद का आगमन ककस वलए िोता िै?
उर्त्र –शरद का आगमन बच्चों की खुवशयों के वलए िोता िै। िे पतंग उड़ाते िैं। िे दुवनया की सबसे पतली कमानी के साथ
सबसे िलकी िस्तु को उड़ाना शुरू करते िैं।
56
प्रश्न 4: बच्चों के बारे में कवि ने क्या-क्या बताया िै?
उर्त्र –बच्चों के बारे में कवि बताता िै कक िे कपास की तरि नरम ि लचीले िोते िैं। िे पतंग उड़ाते िैं तथा झुंर् में रिकर
सीटटयाूँ बजाते िैं। िे छतों पर बेसुध िोकर दौड़ते िैं तथा वगरने पर भयभीत निीं िोते। िे पतंग के साथ मानो स्ियं भी
उड़ने लगते िैं।
प्रश्न 5: प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने ‘सबसे’ शब्द का प्रयोग कइ बार ककया िैं, क्या यि साथयक िैं?
उर्त्र –कवि ने िलकी, रं गीन चीज, कागज, पतली कमानी के वलए ‘सबसे’ शब्द का प्रयोग साथयक ढंग से ककया िै। कवि ने
यि बताने की कोवशश की िै कक पतंग के वनमायि में िर चीज िलकी िोती िै क्योंकक िि तभी उड़ सकती िै। इसके अवतटरक्त
िि पतंग को विवशष्ट दजाय भी देना चािता िै।
प्रश्न 6: ककन-ककन शब्दों का प्रयोग करके कवि ने इस कविता को जीित बना कदया िैं?
उर्त्र –
– तेज बौछारें गई – भादों गया
– नयी चमकीली तेज साइककल – चमकीले इशारे
– अपने साथ लाते िैं कपास – छतों को भी नरम बनाते हुए
प्रश्न 7: ‘ककशोर और युिा िगय समाज के मागयदशयक िैं।’ –‘पतंग’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र –कवि ने ‘पतंग’ कविता में बच्चों के उकलास ि वनभीकता को प्रकट ककया िै। यि बात सिी िै कक ककशोर और युिा िगय
उत्साि से पटरपूिय िोते िैं। ककसी कायय को िे एक धुन से करते िैं। उनके मन में अनेक ककपनाएूँ िोती िैं। िे इन ककपनाओं
को साकार करने के वलए मेिनत करते िैं। समाज में विकास के वलए भी इसी एकाग्रता की जरूरत िै। अत: ककशोर ि युिा
िगय समाज के मागयदशयक िैं।
स्ियं करें
1. उन पटरितयनों का उकलेख कीवजए जो भादों बीतने के बाद प्रकृ वत में दृवष्टगोचर िोते िैं।
2. शरद ऋतु के आगमन के प्रवत कवि की ककपना अनूठी िै, स्पष्ट कीवजए।
3. शरद ऋतु का आकाश पर क्या प्रभाि पड़ता िै, और कै से?
4. पृ्िी का प्रत्येक कोना बच्चों के पास अपने-आप कै से आ जाता िै?
5. भागते बच्चों के पदचाप कदशाओं को ककस तरि सजीि बना देते िैं?
6. िककी, रं गीन पतंगों और बालमन की समानताएूँ स्पष्ट कीवजए।

57
पाठ सं-03

(क कविता के बिाने
कुूँ िर नारायि
प्रवतपादय-‘कविता के बिाने’ कविता कवि के कविता-संग्रि ‘इन कदनों’ से ली गई िै। आज के समय में कविता के अवस्तत्ि
के बारे में संशय िो रिा िै। यि आशंका जताई जा रिी िै कक यांविकता के दबाि से कविता का अवस्तत्ि निीं रिेगा। ऐसे
में यि कविता-कविता की अपार संभािनाओं को टटोलने का एक अिसर देती िै।
सार-यि कविता एक यािा िै जो वचवड़या, फू ल से लेकर बच्चे तक की िै। एक ओर प्रकृ वत िै दूसरी ओर भविष्य की ओर
कदम बढ़ाता बच्चा। कवि किता िै कक वचवड़या की उड़ान की सीमा िै, फू ल के वखलने के साथ उसकी पटरिवत वनवश्चत िै,
लेककन बच्चे के सपने असीम िैं। बच्चों के खेल में ककसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान निीं िोता। कविता भी शब्दों का खेल
िै और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, ितयमान और भविष्य-सभी उपकरि माि िैं। इसीवलए जिाूँ किीं रचनात्मक
ऊजाय िोगी, ििाूँ सीमाओं के बंधन खुद-ब-खुद टूट जाते िैं। िि सीमा चािे घर की िो, भाषा की िो या समय की िी क्यों
न िो।
वशकप सौंदयय-
1 सिज सरल खड़ी बोली का इस्तेमाल हुआ िै।
2 कविता का मानिीकरि ककया गया िै।
3 रचनात्मक ऊजाय पर सीमा के बंधन न िोने की िकालत की गई िै।
4 इस घर उस पर में अनुप्रास अलंकार िै।
5 वचवड़या क्या जाने? में प्रश्न अलंकार िै।
6 वबना मुरझाए मिकने के माने में अनुप्रास अलंकार िै ।
7 मुक्तक छंद िै।
8 कविता के रसास्िादन का आनंद अनंतकाल तक शाश्वत िोने की िकालत की गई िै। बच्चों के बिाने में उपमा अलंकार िै।
बाल मन की सरलता की अवभव्यवक्त हुई िै।
पटठत काव्यांश-01
कविता एक उड़ान िैं वचवड़या के बिाने
कविता की उड़ान भला वचवड़या क्या जाने
बािर भीतर
इस घर उस पर कविता के पंख लगा उड़ने के माने
वचवर्या क्या जाने?
कविता एक वखलना िै फू लों के बिाने
कविता का वखलना भला फू ल क्या जाने!
बािर भीतर
इस घर उस घर
वबना मुरझाए मिकने के माने
फू ल क्या जाने?
कविता एक खेल िै बच्चों के बिाने

58
बािर भीतर
यि घर, िि घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा िी जाने।
1. 'कविता के बिाने' कविता के कवि िैं-
(क कुं िर नारायि (ख उमाशंकर जोशी
(ग आलोक धन्द्िा (घ रघुिीर सिाय
2. "कविता के बिाने "कविता में ककसके अवस्तत्ि पर विचार ककया गया िै?
(क वचवड़याूँ के (ख कविता के
(ग फू ल के (घ इन सभी के
3. कविता और बच्चों में समानता रखने का क्या कारि िै?
(क दोनों िी ककसी सीमा को निीं मानते (ख दोनों िी अपने-पराये का भेद निीं करते
(ग दोनों में िी सृजनात्मक शवक्त िोती िै। (घ उपयुयक्त तीनों िी कारि सिी िैं।
4.कविता के पंख लगा उड़ने से क्या तात्पयय िै?
(क उड़ना (ख ककपना करना
(ग चलना (घ इनमें से कोई निीं
5. कवि के अनुसार कविता की उड़ान को कौन निीं जान सकता?
(क वचवड़या (ख फू ल
(ग बच्चा (घ कवि
6. ककसकी उड़ान देश, काल और पटरवस्थवत से बािर संभि िै?
(क वचवड़या की (ख बच्चे की
(ग फू ल की (घ कविता की
7. फू ल की अंवतम पटरिवत क्या िोगी?
(क मुरझाना (ख ताजगी भरना
(ग वखलना (घ मिकना
8. वचवड़या अपने पंखों के सिारे उड़ती िै और कविता ककसके सिारे उड़ती िै?
(क ििा के (ख पंख के
(ग शब्द के (घ ककपना के
9.कविता वबना मुरझाए सकदयों तक मिकती रिती िै इसका क्या आशय िै?
(क कविता कालजयी िोती िै (ख कविता का प्रभाि सकदयों तक बना रिता िै।
(ग कविता का सौन्द्दयय कभी समाप्त निीं िोता (घ उपयुयक्त सभी
10.कविता पढ़ते और वलखते समय काल के बंधन टूट जाते िैं और बच्चों के खेलते समय-
(क धमय के बंधन टूट जाते िैं। (ख भेदभाि के बंधन टूट जाते िैं
(ग संकीियता के बंधन टूट जाते िैं (घ उपयुयक्त सभी

59
उर्त्रमाला : पटठत काव्यांश - 01
उर्त्र 1. क 2. ख 3. घ 4. ख 5. क 6. घ 7. क 8. घ 9. घ 10. घ
लघूर्त्रात्मक प्रश्न
(क कविता के बिाने
प्रश्न 1:‘कविता के बिाने’ कविता का प्रवतपाद्य बताइए।
उर्त्र –कविता एक यािा िै जो वचवड़या, फू ल से लेकर बच्चे तक की िै। एक ओर प्रकृ वत िै दूसरी ओर भविष्य की ओर कदम
बढ़ाता बच्चा। कवि किता िै कक वचवड़या की उड़ान की सीमा िै, फू ल के वखलने के साथ उसकी पटरिवत वनवश्चत िै, लेककन
बच्चे के सपने असीम िैं। बच्चों के खेल में ककसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान निीं िोता। कविता भी शब्दों का खेल िै और
शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, ितयमान और भविष्य-सभी उपकरि माि िैं। इसीवलए जिाूँ किीं रचनात्मक ऊजाय
िोगी, ििाूँ सीमाओं के बंधन खुद-ब-खुद टूट जाएूँगे। िि सीमा चािे घर की िो, भाषा की िो या समय की िी क्यों न िो।
प्रश्न 2:“कविता के बिाने’ कविता में कवि की क्या आशंका िै और क्यों?
उर्त्र –इस कविता में कवि को कविता के अवस्तत्ि के बारे में संदि
े िै। उसे आशंका िै कक औद्योगीकरि के कारि मनुष्य
यांविक िोता जा रिा िै। उसके पास भािनाएूँ व्यक्त करने या सुनने का समय निीं िै। प्रगवत की अंधी दौड़ से मानि की
कोमल भािनाएूँ समाप्त िोती जा रिी िैं। अत: कवि को कविता का अवस्तत्ि खतरे में कदखाई दे रिा िै।
प्रश्न 3:फू ल और वचवड़या को कविता की क्या-क्या जानकाटरयाूँ निीं िैं? ‘कविता के बिाने’ कविता के आधार पर बताइए।
उर्त्र –फू ल और वचवड़या को कविता की वनम्नवलवखत जानकाटरयाूँ निीं िैं-
1.फू ल को कविता के वखलने का पता निीं िै। फू ल एक समयािवध में मुरझा जाते िैं, परं तु कविता के भाि सदा खुशबू
वबखेरते रिते िैं।
2.वचवड़या को कविता के उड़ान की सीमा का पता निीं अथायत कविता के विकास की यािा असीवमत िै ।
प्रश्न 4:‘कविता के बिाने’ के आधार पर कविता के असीवमत अवस्तत्ि को स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र –‘कविता के बिाने’ में कविता का असीवमत अवस्तत्ि प्रकट करने के वलए कवि ने वचवड़या की उड़ान का उदािरि
कदया िै। िि किता िै कक वचवड़या की उड़ान सीवमत िोती िै ककं तु कविता की ककपना का दायरा असीवमत िोता िै। वचवड़या
घर के अंदर-बािर या एक घर से दूसरे घर तक उड़ती िै, परं तु कविता की उड़ान व्यापक िोती िै। कवि के भािों की कोई
सीमा निीं िै। कविता घर-घर की किानी किती िै। िि पंख लगाकर िर जगि उड़ सकती िै। उसकी उड़ान वचवड़या की
उड़ान से किीं आगे िै।
(ख बात सीधी थी पर
प्रवतपादय-यि कविता ‘कोई दूसरा निीं’ कविता-संग्रि से संकवलत िै। इसमें क्य के द्वंद्व उके रते हुए भाषा की सिजता की
बात की गई िै। िर बात के वलए कु छ खास शब्द वनयत िोते िैं, ठीक िैसे िी जैसे िर पेंच के वलए एक वनवश्चत खाूँचा िोता
िै। अब तक वजन शब्दों को िम एक-दूसरे के पयायय के रूप में जानते रिे िैं, उन सबके भी अपने अथय िोते िैं। अर्चछी बात
या अर्चछी कविता का बनना सिी बात का सिी शब्द से जुड़ना िोता िै और जब ऐसा िोता िै तो ककसी दबाि या अवतटरक्त
मेिनत की जरूरत निीं िोती, िि सहवलयत के साथ िो जाता िै। सिी बात को सिी शब्दों के माध्यम से किने से िी रचना
प्रभािशाली बनती िै।
सार-कवि का मानना िै कक बात और भाषा स्िाभाविक रूप से जुड़े िोते िैं। ककं तु कभी-कभी भाषा के मोि में सीधी बात
भी टेढ़ी िो जाती िै। मनुष्य अपनी भाषा को टेढ़ी तब बना देता िै जब िि आर्ंबरपूिय तथा चमत्कारपूिय शब्दों के माध्यम
से क्य को प्रस्तुत करने का प्रयास करता िै। अंतत: शब्दों के चक्कर में पड़कर िे क्य अपना अथय खो बैठते िैं। अत: अपनी
बात सिज एिं व्याििाटरक भाषा में किना चाविए ताकक आम लोग क्य को भलीभाूँवत समझ सकें ।
60
वशकप सौन्द्दयय-
1. भाषा की जटटलता पर कटाक्ष ककया गया िै।
2. खड़ी बोली विन्द्दी का इस्तेमाल हुआ िै।
3. मुक्तक छंद का प्रयोग हुआ ि।
4. जरा टेड़ी फं स गई, बात और भी पेंचीदा िोती चली गई में मुिािरों का इस्तेमाल हुआ िै।
5. साथ-साथ में पुनरुवक्त प्रकाश अलंकार िै। िाि-िाि में पुनरुवक्त प्रकाश अलंकार िै।
6. पेंच कसने में चाक्षुष सबंब प्रभािी िै।
7. बेितर िै जैसे सटीक विशेषि का इस्तेमाल हुआ िै।
8. करतब शब्द में व्यंजना िै।
9. उदूय शब्दािली का सटीक इस्तेमाल हुआ िै। जैसे बेितर, करतब, तमाशबीन, साफ।
10. आर्ंबरपूिय भाषा शैली पर कटाक्ष ककया गया िै।
11. बात का मानिीकरि ककया गया िै।
12. कील की तरि, बच्चे की तरि मैं उपमा अलंकार िैं।
13. बात की चूड़ी मर गई में रूपक अलंकार िै।
14. मुक्तक छंद िै एिं खड़ी बोली का इस्तेमाल हुआ िै।
पटठत काव्यांश-01
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढी फूँ स गई।
उसे पाने की कोवशश में भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया कफराया
कक बात या तो बने
या कफर भाषा से बािर आए
लेककन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा िोती चली गई।
सारी मुवश्कल को धैयय से समझे वबना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरि कसता चला जा रिा था
क्यों कक इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रिी थी
तमाशबीनों की शाबाशी और िाि िाि!
1. 'बात सीधी थी पर कविता के कवि का नाम िै-
(क कुूँ िर नारायि (ख उमाशंकर जोशी
(ग आलोक धन्द्िा (घ रघुिीर सिाय
2. सीधी बात ककस के चक्कर में टेढी फूँ स गई?

61
(क तकय शास्त्र के (ख विज्ञान के
(ग भाषा के (घ उपयुयक्त सभी के
3. भाषा के क्या करने से बात और अवधक पेचीदा िो गई?
(क उलटने पलटने (ख तोड़ने-मरोड़ने
(ग घुमाने कफराने से (घ उपयुयक्त सभी कारिों से
4.भाषा को उलटने पलटने तोड़ने-मरोड़ने और घुमाने कफराने से बात कै सी िो जाती िै?
(क सरल (ख स्पष्ट
(ग पेचीदा (घ प्रभािकारी
5. कवि क्या करतब कर रिा था?
(क दीिार में कील ठोक रिा था (ख दीिार में पेंच कस रिा था
(ग बात सुलझाने की कोवशश कर रिा था (घ काव्य रचना कर रिा था
6. कवि के करतबों (कविता में बनािटी भाषा का प्रयोग को देख कर तमाशबीनों ने क्या ककया?
(क उसकी झूठी तारीफ (ख शाबाशी दी
(ग िाि िािी की (घ उपयुयक्त सभी सिी िैं
उर्त्रमाला : पटठत काव्यांश -01
1.क 2. ग 3. घ 4. ग 5. ग 6. घ
पटठत काव्यांश-02
आवखरकार ििी हुआ वजसका मुझे र्र था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और िि भाषा में बेकार घूमने लगी!
िार कर मैंने उसे कील की तरि
उसी जगि ठोंक कदया।
ऊपर से ठीक ठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाि था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरि
मुझसे खेल रिी थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
"क्या तुमने भाषा को
सहवलयत से बरतना कभी निीं सीखा ?"
1. बात कवि के साथ ककसके समान खेल रिी थी?
(क पेंच के समान (ख कील के समान
(ग बच्चे के समान (घ वखलोने के समान
2. 'बात की चूड़ी मर जाना' से कवि का तात्पयय िै-
62
(क बात का प्रभाििीन िो जाना (ख बात का सिज और स्पष्ट िो जाना
(ग बात में कसािट आ जाना (घ उपयुयक्त में से कोई निीं
3. कविता में ककसकी सिजता की बात किी गई िै?
(क अलंकार की (ख छंद की
(ग व्याकरि की (घ भाषा की
4. बनािटी एिं आर्ंबरयुक्त भाषा के प्रयोग से बात कै सी िो गई?
(क प्रभाििीन (ख उद्देश्यिीन
(ग अथयिीन (घ उपयुयक्त सभी
5. भाषा को सहवलयत से बरतने से क्या तात्पयय िै?
(क भाि के अनुरूप सिज एिं सरल शब्दों का प्रयोग करना
(ख भािावभव्यवक्त के वलए अनािश्यक आर्ंबरयुक्त शब्दों के प्रयोग से बचना
(ग अनािश्यक पांवर्त्य प्रदशयन से बचना
(घ उपयुयक्त सभी
उर्त्रमाला : पटठत काव्यांश -02
1. ग 2. क 3. घ 4. घ 5. घ
अन्द्य मित्िपूिय प्रश्न
प्रश्न 1:‘बात सीधी थी पर ’…… कविता का प्रवतपाद्य स्पष्ट कीवजए।
अथिा
‘बात सीधी थी पर ’…… कविता का संदश
े स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र –इस कविता में कवि ने क्य और माध्यम के द्वंद्व को उके रा िै तथा भाषा की सिजता की बात किी िै। िर बात के
वलए कु छ खास शब्द वनयत िोते िैं, ठीक िैसे िी जैसे िर पेंच के वलए एक वनवश्चत खाूँचा िोता िै। अब तक िम वजन शब्दों
को एक-दूसरे के पयायय के रूप में जानते रिे िैं, उन सबके भी अपने विशेष अथय िोते िैं। अर्चछी बात या अर्चछी कविता का
बनना सिी बात का सिी शब्द से जुड़ना िोता िै और जब ऐसा िोता िै तो ककसी दबाि या मेिनत की जरूरत निीं िोती,
िि सहवलयत के साथ िो जाता िै।
प्रश्न 2: कवि के अनुसार कोई बात पेचीदा कै से िो जाती िैं?
उर्त्र –कवि किता िै कक जब अपनी बात को सिज रूप से न किकर तोड़-मरोड़कर या घुमा-कफराकर किने का प्रयास
ककया जाता िै तो बात उलझती चली जाती िै। ऐसी बातों के अथय श्रोता या पाठक समझ निीं पाता। िि मनोरं जन तो पा
सकता िै, परं तु कवि के भािों को समझने में असमथय िोता िै। इस तरीके से बात पेचीदा िो जाती िै।
प्रश्न 3:प्रशंसा का व्यवक्त पर क्या प्रभाि पड़ता िैं? ‘बात सीधी थी पर’ ‘कविता के आधार पर बताइए।
उर्त्र –प्रशंसा से व्यवक्त स्ियं को सिी ि उच्च कोटट का मानने लगता िै। िि गलत-सिी का वनियय निीं कर पाता। उसका
वििेक कुं टठत िो जाता िै। कविता में प्रशंसा वमलने के कारि कवि अपनी सिज बात को शब्दों के जाल में उलझा देता िै।
फलत: उसके भाि जनता तक निीं पहुूँच पाते।
प्रश्न 4:कवि को पसीना आने का क्या कारि था?

63
उर्त्र –कवि अपनी बात को प्रभािशाली भाषा में किना चािता था। इस चक्कर में िि अपने लक्ष्य से भटककर शब्दों के
आर्ंबर में उलझ गया। भाषा के चक्कर से िि अपनी बात को वनकालने की कोवशश करता िै, परं तु िि नाकाम रिता िै।
बार-बार कोवशश करने के कारि उसे पसीना आ जाता िै।
प्रश्न 5:कवि ने क्य को मित्ि कदया िै अथिा भाषा को-‘बात सीधी थी पर ’ ‘ के आधार पर तकय -सम्मत उर्त्र दीवजए।
उर्त्र -‘बात सीधी थी पर ’’ कविता में कवि ने क्य को मित्ि कदया िै। इसका कारि यि िै कक सीधी और सरल बात को
किने के वलए जब कवि ने चमत्काटरक भाषा में किना चािा तो भाषा के चक्कर में भािों की सुंदरता नष्ट िो गई। भाषा के
उलट-फे र में पड़ने के कारि उसका क्य भी जटटल िोता गया।
प्रश्न 6:‘बात सीधी थी पर’ कविता में भाषा के विषय में व्यंग्य करके कवि क्या वसि करना चािता िै?
उर्त्र –‘बात सीधी थी पर ’’ कविता में कवि ने भाषा के विषय में व्यंग्य करके यि वसि करना चािा िै कक लोग ककसी बात
को किने के क्रम में भाषा को सीधे, सरल और सिज शब्दों में न किकर तोड़-मरोड़कर, उलटपलटकर, शब्दों को घुमा-
कफराकर किते िैं, वजससे भाषा वक्लष्ट िोती जाती िै और बात बनने की बजाय वबगड़ती और उलझली चली जाती िै। इससे
िमारा क्य और भी जटटल िोता जाता िै क्योंकक बात सरल बनने की जगि पेचीदी बन जाती िै।
स्ियं करें
1. आप ‘वचवड़या की उड़ान’ और ‘कविता की उड़ान’ में क्या अंतर देखते िैं?’कविता के बिाने’ पाठ के आधार पर स्पष्ट
कीवजए।
2. फू लों के वखलने और कविता पढ़ने दोनों से िी मन प्रसन्न िो उठता िै। कविता के आधार पर दोनों की साम्यता स्पष्ट
कीवजए।
3. कवि जो कु छ किना चािता था, िि किाूँ उलझकर रि गया? क्या उसे अपने प्रयास में सफलता वमली ?
4. कवि ने बात की तुलना ककससे की िै और क्यों? -‘बात सीधी थी पर ’’ कविता के आधार पर उर्त्र दीवजए।

64
पाठ सं-04
कै मरे में बंद अपाविज
रघुिीर सिाय

कविता का प्रवतपादय एिं सार

प्रवतपादय-कै मरे में बंद अपाविज’ कविता को ‘लोग भूल गए िैं’ काव्य-संग्रि से वलया गया िै। इस कविता में कवि ने शारीटरक
चुनौती को झेल रिे व्यवक्त की पीड़ा के साथ-साथ दूर-संचार माध्यमों के चटरि को भी रे खांककत ककया िै। ककसी की पीड़ा
को दशयक िगय तक पहुूँचाने िाले व्यवक्त को उस पीड़ा के प्रवत स्ियं संिदे नशील िोने और दूसरों को संिदे नशील बनाने का
दािेदार िोना चाविए। आज विर्ंबना यि िै कक जब पीड़ा को परदे पर उभारने का प्रयास ककया जाता िै तो कारोबारी
दबाि के तित प्रस्तुतकताय का रिैया संिदे निीन िो जाता िै। यि कविता टेलीविजन स्टूवर्यो के भीतर की दुवनया को समाज
के सामने प्रकट करती िै। साथ िी उन सभी व्यवक्तयों की तरफ इशारा करती िै जो दुख-ददय, यातना-िेदना आकद को बेचना
चािते िैं।
सार-इस कविता में दूरदशयन के संचालक स्ियं को शवक्तशाली बताते िैं तथा दूसरे को कमजोर मानते िैं। िे विकलांग से
पूछते िैं कक क्या आप अपाविज िैं? आप अपाविज क्यों िैं? आपको इससे क्या दुख िोता िै? ऊपर से िि दुख भी जकदी
बताइए क्योंकक समय निीं िै। प्रश्नकताय इन सभी प्रश्नों के उर्त्र अपने विसाब से चािता िै। इतने प्रश्नों से विकलांग घबरा
जाता िै। प्रश्नकताय अपने काययक्रम को रोचक बनाने के वलए उसे रुलाने की कोवशश करता िै ताकक दशयकों में करुिा का भाि
जाग सके । इसी से उसका उद्देश्य पूरा िोगा। िि इसे सामावजक उद्देश्य किता िै, परं तु ‘परदे पर िक्त की कीमत िै’ िाक्य
से उसके व्यापार की पोल खुल जाती िै।
पटठत काव्यांश-01
िम दूरदशयन पर बोलेंगे
िम समथय शवक्तिान
िम एक दुबल
य को लाएूँगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाविज िै ?
तो आप क्यों अपाविज िै ?
आपका अपाविजपन आपको दुःख देता िै ?
िाूँ तो बताइए आपका दुःख क्या िै
जकदी बताइए िि दुःख बताइए
बता निीं पाएगा |
प्रश्न 1-िम दूरदशयन पर क्या बोलेंग?

(क समथय िै (ख असमथय िै
(ग कायर (घ सभी
प्रश्न 2-काव्यांश में कौन सी बोली का प्रयोग ककया िै?
(क ब्रज (ख खड़ीबोली
(ग अिधी (घ सभी
प्रश्न 3- आपका अपाविजपन आपको में कौन सा अलंकार िै?

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(क यमक (ख अनुप्रास
(ग उत्प्रेक्षा (घ उपमा
प्रश्न 4-िम अपाविज से क्या पूछेंग?

(क क्यों अपाविज िै? (ख अपाविज िै
(ग आपको अर्चछा लगता िै (घ कब लगता िै
प्रश्न 5- अपाविजपन का क्या अथय िै?
(क मजबूत (ख शारीटरक रूप से कमजोर
(ग अर्चछा व्यवक्त (घ सभी
पटठत काव्यांश-02
सोवचये
बताइए
आपको अपाविज िोकर कै सा लगता िै
कै सा
यानी कै सा लगता िै
(िम खुद इशारों से बताएूँगे की क्या ऐसा?)
सोवचए
बताइए
थोड़ी कोवशश कटरए
(यि अिसर खो देंगे ?
आप जानते िै कक काययक्रम रोचक बनाने के िास्ते
िम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते िै आप भी उसके रो पड़ने का
करते िैं ?
प्रश्न 1-िम अपाविज व्यवक्त को क्यों रुला देते िै ?
(क काययक्रम रोचक बने (ख काययक्रम रोचक निीं बने
(ग बोर लगे (घ सभी
प्रश्न 2 -इस काव्यांश के कवि का नाम बताइए -
(क माखनलाल चतुिेदी (ख रघुिीर सिाय
(ग सुवमिानंदन पन्द्त (घ सभी
प्रश्न 3 -इस काव्यांश का नाम बताइए -
(क आत्मपटरचय (ख पतंग
(ग कै मरे में बंद अपाविज (घ उषा
प्रश्न 4 -िम काययक्रम को रोचक बनाने के वलए क्या करते िै?
(क अपाविज को रुलाते िै (ख अपाविज को िसाते िैं
(ग गुस्सा करते िै (घ वखलाते िै
प्रश्न 5 -रोते हुए अपाविज क्या निीं बता पायेगा?

66
(क अपने सुख को (ख अपने दुःख को
(ग गुस्से को (घ गिय को
पटठत काव्यांश-03
कफर िम परदे पर कदखलाएूँगे
फू ली हुई आूँख की एक बड़ी तस्िीर
बहुत बड़ी तस्िीर
और उनकी िोंठो पर एक कसमसािट भी
(आशा िै आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेगे
प्रश्न 1 -कै मरे में क्या कदखायेंग?

(क सोई आूँखों (ख फू ली हुई आूँखे
(ग गुस्से िाले आूँखे (घ सभी
प्रश्न 2 - कै मरे िाले दशयको से क्या अपेक्षा करते िै?
(क अपाविज के ददय को निीं समझेंगे (ख अपाविज के ददय को समझेंगे
(ग भाषा को समझेंगे (घ सभी
प्रश्न 3 - कसमसािट का क्या अथय िै?
(क ख़ुशी (ख बेचन
ै ी
(ग गुस्से को (घ दुःख
प्रश्न 4 –“ फू ली हुई आूँख “ क्या िै?
(क मुिािरा (ख पयाययिाची
(ग अथय (घ विलोम
प्रश्न 5 -इस काव्यांश की भाषा कै सी िै?
(क सरल (ख कटठन
(ग जटटल (घ सभी
पटठत काव्यांश-04
एक और कोवशश
दशयक
धीरज रवखए
देवखए
िमें दोनों एक संग रुलाने िैं
आप और िि दोनों
(कै मरा बस करो
निीं हुआ
रिने दो
परदे पर िक्त की कीमत िै
अब मुस्कु राएंगे िम
अब आप देख रिे िै सामावजक उद्देश्य से युक्त काययक्रम
(बस थोड़ी िी कसर रि गई
67
धन्द्यिाद |
प्रश्न 1 -कै मरे िाला एक और कोवशश क्यों करना चािता िै?
(क काययक्रम सिेदनशील िो (ख काययक्रम सिेदनशील निीं िो
(ग जटटल िो (घ सभी
प्रश्न 2 -कै मरा एक साथ क्या करना चािता िै?
(क दशयको को रुलाना (ख दशयको को िसाना
(ग बोर करना (घ दुखी करना
प्रश्न 3 -परदे पर ककसकी कीमत िै?
(क िक्त की कीमत (ख दशयको की कीमत
(ग मेिमानों की कीमत (घ सभी
प्रश्न 4 – धीरज का क्या अथय िै?
(क दुःख (ख धैयय
(ग बुरा (घ कोमल
प्रश्न 5 -काव्यांश में कौन सी शब्दािली का प्रयोग ककया गया िै -
(क देशी (ख विदेशी
(ग अरबी (घ फ़ारसी
लघुर्त्रात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:‘कै मरे में बंद अपाविज’ कविता के व्यंग्य पर टटप्पिी कीवजए।
उर्त्र –इस कविता में कवि ने मीवर्या की ताकत के बारे में बताया िै। मीवर्या अपने काययक्रम के प्रचार ि धन कमाने के
वलए ककसी की करुिा को भी बेच सकता िै। िि ऐसे काययक्रमों का वनमायि समाज-सेिा के नाम पर करता िै परंतु उसे इस
काययव्यापार में न तो अपाविजों से सिानुभूवत िोती िै और न िी उनके मान-सम्मान की सचंता। िि वसफ़य अपने काययक्रम को
रोचक बनाना जानता िै। रोचक बनाने के वलए िि ऊट-पटांग प्रश्न पूछता िै और पीवड़त की पीड़ा को बढ़ा-चढ़ाकर बताता
िै।
प्रश्न 2:‘कै मरे में बद अपाविज’ कविता को आप करुिा की कविता मानते िैं या क्रूरता की? तकय सम्मत उर्त्र दीवजए।
उर्त्र -इस कविता को िम क्रूरता की कविता मानते िैं। यि कविता मीवर्या के व्यापार ि काययशैली पर व्यंग्य करती िै।
दूरदशयन कमजोर ि अशक्त िगय के दुख को बढ़ा-चढ़ाकर समाज के सामने प्रस्तुत करता िै। िि कमजोर िगय की सिायता
निीं करता, अवपतु अपने काययक्रम के जटरये िि स्ियं को समाज-वितैषी वसि करना चािता िै। अत: यि कविता पूियत:
मीवर्या की क्रूर मानवसकता को दशायती िै।
प्रश्न 3:काययक्रम को सफल बनाने के वलए प्रश्नकतf की मानवसकता कै सी िोती िैं?
उर्त्र –काययक्रम को सफल बनाने के वलए प्रश्नकताय की मानवसकता अपाविज को रुलाने की िोती िै। िि सोचता िै कक अपंग
के साथ-साथ यकद दशयक भी रोने लगेंगे तो उनकी सिानुभूवत चैनल को वमल जाएगी। इससे उसे धन ि प्रवसवि का लाभ
वमलेगा।
प्रश्न 4:‘यि अिसर खो देंग?
े ’ पंवक्त का क्या तात्पयय िै ?
उर्त्र -प्रश्नकताय विकलांग से तरि-तरि के प्रश्न करता िै। िि उससे पूछता िै कक आपको अपाविज िोकर कै सा लगता िै?
ऐसे प्रश्नों के उर्त्र प्रश्नकताय को तुरंत चाविए। यि कदव्यांग के वलए सुनिरा अिसर िै कक िि अपनी पीड़ा को समाज के

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समक्ष व्यक्त करे । ऐसा करने से उसे लोगों की सिानुभूवत ि सिायता वमल सकती िै। यि पंवक्त मीवर्या की कायय-शैली ि
व्यापाटरक मानवसकता पर करारा व्यंग्य िै।
प्रश्न 5:दूरदशयन िाले कै मरे के सामने कमजोर को िी क्यों लाते िैं?
उर्त्र –दूरदशयन िाले जानते िैं कक समाज में कमजोर ि अशक्त लोगों के प्रवत करुिा का भाि िोता िै। लोग दूसरे के दुख के
बारे में जानना चािते िैं। दूरदशयन िाले इसी भािना का फ़ायदा उठाना चािते िैं तथा अपने लाभ के वलए ऐसे काययक्रम
बनाते िैं।
प्रश्न 6:अपाविज अपने दुख के बारे में क्यों निीं बता पाता?
उर्त्र –प्रश्नकताय अपाविज से उसके विकलांगपन ि उससे संबंवधत कष्टों के बारे में बार-बार पूछता िै, परं तु अपाविज उनके
उर्त्र निीं दे पाता। िास्तविकता यि िै कक उसे अपाविजपन से उतना कष्ट निीं िै वजतना उसके कष्ट को बढ़ाचढ़ाकर बताया
जाता िै। प्रश्नकताय के प्रश्न भी अस्पष्ट िोते िैं तथा वजतनी शीघ्रता से प्रश्नकताय जिाब चािता िै, उतनी तीव्र मानवसकता
अपाविज की निीं िै। उसने इस कमी को स्िीकार कर वलया िै लेककन िि अपना प्रदशयन निीं करना चािता।
प्रश्न 7:‘कै मरे में बंद अपाविज ‘ शीषयक की उपयुक्तता वसि कीवजए।
उर्त्र –यि शीषयक कै मरे में बंद यानी कै मरे के सामने लाचार ि बेबस अपाविज की मनोदशा का साथयक प्रवतवनवधत्ि करता
िै। िस्तुत: यि दूरदशयन के काययक्रम-संचालकों की मानवसकता पर व्यंग्य िै। काययक्रम बनाने िाले अपने लाभ के वलए
अपाविज को भी प्रदशयन की िस्तु बना देते िैं। िे दूसरे की पीड़ा बेचकर धन कमाते िैं। अत: यि शीषयक सियथा उपयुक्त िै।
प्रश्न 8:‘कै मरे में बद अपाविज’ कविता के प्रवतपाद्य के विषय में अपनी प्रवतकक्रया प्रस्तुत कीवजए।
उर्त्र –‘कै मरे में बंद अपाविज’ कविता में शारीटरक अक्षमता की पीड़ा झेल रिे व्यवक्त की पीड़ा को वजस अमानिीय ढंग से
दशयकों तक पहुूँचाया जाता िै िि काययक्रम के वनमायता और प्रस्तोता की संिदेनिीनता की पराकाष्ठा िै। िे पीवड़त व्यवक्त की
भािनाओं को ठे स पहुूँचाते हुए उसे बेचने का प्रयास करते हुए कदखाई देते िैं। यिाूँ भी उनकी पैसा कमाने की सोच कदखती
िै, जो उनकी मानिता के ऊपर िािी िो चुकी िै।
प्रश्न 9:प्रश्नकताय अपाविज की कू ली हुई आूँखों की तसिीर बड़ी क्यों कदखाना चािता िैं?
उर्त्र –प्रश्नकताय अपाविज की फू ली हुई आूँखों की तस्िीर इसवलए कदखाना चािता िै ताकक दशयक उसके दुख से दुखी िों।
दशयकों के मन में उसके प्रवत सिानुभूवत उत्पन्न िो सके । ऐसे में शायद दशयकों की आूँखों में आूँसू भी आ जाएूँ वजससे उसका
काययक्रम लोकवप्रय िो जाए। अत: िि कदव्यांग के दुख को बढ़ा-चढ़ाकर कदखाना चािता िै।
प्रश्न 10:‘कै मरे में बद अपाविज’ कविता कु छ लोगों की सिेदनिीनता प्रकट करती िैं, कै से?
उर्त्र –‘कै मरे में बंद अपाविज’ कविता कु छ लोगों की संिेदनिीनता इसवलए प्रकट करती िै क्योंकक ऐसे लोग धन कमाने
एिं अपने काययक्रम के प्रचार-प्रसार के वलए दूसरों की भािनाओं को ठे स पहुूँचाते िैं और ककसी की करुिा बेचकर अपनी
आय बढ़ाना चािते िैं। ऐसे लोग अपाविजों से सिानुभूवत निीं रखते बवकक िे अपने काययक्रम को रोचक बनाने के वलए उलटे-
सीधे प्रश्न पूछते िैं।
स्ियं करें
1. ‘कै मरे में बंद अपाविज’ कविता में संचार माध्यमों की संिेदनिीनता को उजागर ककया गया िै। कविता के आधार पर
स्पष्ट कीवजए।
2. दूरदशयन के काययक्रम-वनमायताओं और संचालकों के व्यििार में उनकी व्यािसावयक प्रिृवर्त् के दशयन कै से िोते िैं? उदािरि
सवित वलवखए।
3. अपाविज व्यवक्त काययक्रम-प्रस्तोता को अपना दुख क्यों निीं बता पाता?
4. अपने काययक्रम को सफल बनाने के वलए काययक्रम वनमायता ककस सीमा तक वगर जाते िैं?’कै मरे में बंद अपाविज’ कविता
के आधार पर स्पष्ट कीवजए।

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5. काययक्रम-प्रस्तोता द्वारा अपाविज के साथ वजस तरि का व्यििार ककया गया उसे आप ककतना उवचत मानते िैं?
6. काययक्रम-संचालक अपाविज की आूँखें परदे पर कदखाना चािता िै। इसके क्या कारि िो सकते िैं? कविता के आधार पर
उर्त्र दीवजए।
7. अपाविज व्यवक्त का दूरदशयन पर साक्षात्कार प्रस्तुत करने का क्या उद्देश्य िै? आप संचालक को इस उद्देश्य की प्रावप्त में
ककतना सफल पाते िैं?
पाठ सं-06
‘उषा’
शमशेर बिादुर ससंि
कविता का प्रवतपादय एिं सार
प्रवतपाद्य- प्रस्तुत कविता ‘उषा’ में कवि शमशेर बिादुर ससंि ने सूयोदय से ठीक पिले के पल-पल पटरिर्तयत िोने िाली
प्रकृ वत का शब्द-वचि उके रा िै। कवि ने प्रकृ वत की गवत को शब्दों में बाूँधने का अद्भुत प्रयास ककया िै। कवि भोर की
आसमानी गवत की धरती के िलचल भरे जीिन से तुलना कर रिा िै। इसवलए िि सूयोदय के साथ एक जीिंत पटरिेश की
ककपना करता िै जो गाूँि की सुबि से जुड़ता िै-ििाूँ वसल िै, राख से लीपा हुआ चौका िै और स्लेट की कावलमा पर चाक
से रं ग मलते अदृश्य बच्चों के नन्द्िे िाथ िैं। कवि ने नए सबंब, नए उपमान, नए प्रतीकों का प्रयोग ककया िै।
सार- कवि किता िै कक सूयोदय से पिले आकाश का रं ग गिरे नीले रं ग का िोता िै तथा िि सफे द शंख-सा कदखाई देता िै।
आकाश का रं ग ऐसा लगता िै मानो ककसी गृवििी ने राख से चौका लीप कदया िो। सूयय के ऊपर उठने पर लाली फै लती िै
तो ऐसा लगता िै जैसे काली वसल को ककसी ने धो कदया िो या उस पर लाल खवड़या वमट्टी मल कदया िो। नीले आकाश में
सूयय ऐसा लगता िै मानो नीले जल में गोरी युिती का शरीर वझलवमला रिा िै। सूयोदय िोते िी उषा का यि जादुई प्रभाि
समाप्त िो जाता िै।
मुख्य सबंद ु :
 'उषा' शीषयक कविता शमशेर बिादुर ससंि द्वारा रवचत प्रकृ वत- सौंदयय को दशायने िाली कविता िै।
 प्रस्तुत कविता में कवि ने सूयोदय से ठीक पिले के पल-पल पटरिर्तयत प्रकृ वत का शब्द वचि उके रा िै।
 कवि ने प्रकृ वत की गवत को शब्दों में बाूँधने का अद्भुत प्रयास ककया िै।
 कवि ने नए वबम्ब, नए उपमान, नए प्रतीकों का प्रयोग ककया िै।
 ग्रामीि पटरिेश का सिज शब्दों में वचिि ककया गया िै।
काव्य सौन्द्दयय स्पष्ट कीवजए-
प्रात नम था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से वलपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा िै
भाि सौंदयय-:
 इस कविता में भोर कालीन सौंदयय के रं ग रूप और िातािरि का सूक्ष्म वचिि ककया गया िै।
 भोर के समय िातािरि न तो काला िोता िै न उजला। उसका रं ग कभी नीले शंख जैसा कभी राख से लीपे चौके
जैसा तथा कभी लाल के सर से धुली वसल जैसा बताकर कवि ने उषा के पल प्रवत-पल बदलते सौंदयय का िियन ककया
िै।
वशकप-सौंदयय-:
 सिेरे के समय िातािरि में गिरे नीले रं ग की उपमा शंख से की िै।
 'भाषा विन्द्दी बड़ी बोली, सिज, सरल ि प्रभािशाली िै।

70
 "राख से वलखा हुआ गीला चौका" यि चाक्षुप ि स्पशय वबम्ब भोर कालीन गिरे रं ग और नमी को ि प्रातःकालीन
पवििता को साकार करता िै
 शंख जैसे, राख पड़ा िै में उपमा अलंकार िै।
 कवि की ककपना मौवलक िै और निीन उपमानों का प्रयोग ककया गया िै।
 िियन में वचिात्मकता िै।
 अत्यंत सरल और लघु शब्दों का प्रयोग ककया गया िै।

बहुत काली वसल जरा से लाल के सर से


कक जैसे धुल गई िो
स्लेट पर या लाल खवड़या चाक
मल दी िो ककसी ने ।
भाि सौंदयय-:
 प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने उषाकाल के दृश्य का गवतशील सुंदर वचिि प्रस्तुत ककया िै।
 प्रयोग धमी कवि ने नए-नए उप मानि के माध्यम से अंधरे े को िटाकर लावलमा के फै लने के अद्भुत दृश्य
को उके रा िै।
वशकप सौंदयय-:
 इस काव्यांश में रात की कावलमा, ओस का गीलापन और सूरज की लावलमा के वचिि से बहुत िी सुंदर
वचि दशायए गए िैं।
 कवि ने ककपना की िै कक मानो रसोई में माूँ ने वसलबट्टे को के सर से धो कदया िो या बच्चों ने अपने स्लेट
पर लाल रं ग की खवड़या चाक मल दी िो।
 "बहुत काली वसल जरा से लाल के सर से कक जैसे धुल गई िो" तथा "स्लेट पर लाल खवड़या चाक मल दी
िो ककसी ने" आकद में उत्प्रेक्षा अलंकार िै।
 अनुप्रास अलंकार का सुंदर उदािरि िै।
 भाषा विन्द्दी खड़ी बोली अत्यंत सरल, प्रिािपूिय और सबंबात्मक िै।
नील जल में या ककसी की
गौर वझलवमल देि जैसे विल रिी िो।
और...
जादू टू टता िै इस उषा का अब
सूयोदय िो रिा िै।
भाि सौंदयय-:
 कवि ने सूयोदय की बेला में उभरने िाले प्राकृ वतक शोभा को बहुत सूक्ष्मता से अनुभि ककया िै। उसके रं गों
को दशायने में और सुंदरता को कि पाने में कवि पूियतः सफल रिा िै।
वशकप सौंदयय-

 "नीले जल में वझलवमलाती गोरी देि के उपमान से िमारी आंखों के सामने प्रातः कालीन सौंदयय साकार िो
उठता िै। यि ककपना निीन और ताजा िै।
 उषा का जादू टूटना भी पाठक की आूँखों के सामने अनेकानेक काकपवनक वचिि को साकार करता िै। नील
जल .... विल रिी िो मैं उत्प्रेक्षा अलंकार िै।
 नील जल, नीले आकाश का सूचक िै तथा गौर वझलवमल देि, उगते हुए सूरज के प्रकाश का सूचक िै। 'नील
जल' 'िो रिा िै' में अनुप्रास अलंकार िै।
71
 भाषा वचिात्मक िै।
 पाठकों की आंखों के सामने वचि उभर आता िै।
 अत्यंत सरल और लघु शब्दों का प्रयोग ककया गया िै।
पटठत काव्यांश-01
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी वगला पड़ा िै
बहुत काली वसल जरा से लाल के सर से
कक जैसे धुल गई िो
स्लेट पर या लाल खवड़या चाक
मल दी िो ककसी ने
नील जल में या ककसी की
गौर वझलवमल देि
जैसे विल रिी िो।
और......
जादू टू टता िै इस उषा का अब
सूयोदय िो रिा िै।
1. 'उषा' कविता के रचनाकार का नाम िै -
(क कुं िर नारायि (ख उमाशंकर जोशी
(ग शमशेर बिादुर ससंि (घ रघुिीर सिाय
2. उषा का जादू कब टूट जाता िै?
(क सूयोदय िोने पर (ख दोपिर िोने पर
(ग अंधरे ा िोने पर (घ वचवड़यों के कलरि करने पर
3. 'उषा' कविता में प्रातः काल को बताया गया िै -
(क लाल कमल के समान (ख नीले शंख के समान
(ग नीली चादर के समान (घ नीले सागर के समान
4.भोर के नभ और राख से लीपे चौके में समानता िै -
(क दोनों िी गिरी स्लेटी रंग के िैं (ख दोनों िी पविि िैं
(ग दोनों िी नमी से युक्त िैं (घ उपयुयक्त सभी
5.प्रस्तुत कविता में ककस रचना शैली का प्रयोग ककया गया िै?
(क मनोिैज्ञावनक (ख िियनात्मक
(ग वचिात्मक (घ संबोधन
6. उषा कविता में िियन ककया गया िै-
(क शिर की सुबि का (ख मिानगर की सुबि का
(ग गाूँि की सुबि का (घ िन की सुबि का
7. राख से लीपा हुआ चौका ककस भाि को व्यक्त कर रिा िै?
(क पवििता (ख ताजगी
(ग विशालता (घ गंभीरता

72
8."नील जल में या ककसी की गौर वझलवमल देि जैसे विल रिी िो" में कौन-सा अलंकार िै?
(क उपमा (ख मानिीकरि
(ग अनुप्रास (घ यमक
9. "नील जल में या ककसी की, गौर वझलवमल देि, जैसे विल रिी िो" इस पंवक्त में 'सूरज की ककरिों की तुलना ककससे की
िै?
(क गौरििाय युिती से (ख प्रातः कालीन आसमान से
(ग लाल खवड़या चाक से (घ उपयुयक्त में से ककसी से निीं
10. भोर के नम की तुलना की गई िै-
(क नीले शंख से (ख राख से लीपे चौके से
(ग लाल के सर से धुली काली वसल से (घ उपयुक्त
य सभी से
उर्त्रमाला :- पटठत पद्यांश- 01
1. ग 2. क 3. ख 4 घ 5. ग 6. ग 7 क 8. ख 9.क 10.घ
लघूर्त्रात्मक प्रश्न
1.सूयोदय से पिले आकाश में क्या-क्या पटरितयन िोते िैं? ‘उषा’ कविता के आधार पर बताइए।
अथिा
‘उषा’ कविता के आधार पर सूयोदय से ठीक पिले के प्राकृ वतक दूश्यों का वचिि कीवजए।
उर्त्र- सूयोदय से पिले आकाश का रं ग शंख जैसा नीला था, उसके बाद आकाश राख से लीपे चौके जैसा िो गया। सुबि की
नमी के कारि िि गीला प्रतीत िोता िै। सूयय की प्रारं वभक ककरिों से आकाश ऐसा लगा मानो काली वसल पर थोड़ा लाल
के सर र्ालकर उसे धो कदया गया िो या कफर काली स्लेट पर लाल खवड़या वमट्टी मल दी गई िो। सूयोदय के समय सूयय का
प्रवतसबंब ऐसा लगता िै जैसे नीले स्िर्चछ जल में ककसी गोरी युिती का प्रवतसबंब वझलवमला रिा िो।
2.‘उषा’ कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीवजए जो सूयोदय के साथ टूट जाता िै।
उर्त्र-सूयोदय से पूिय उषा का दृश्य अत्यंत आकषयक िोता िै। भोर के समय सूयय की ककरिें जादू के समान लगती िैं। इस
समय आकाश का सौंदयय क्षि-क्षि में पटरिर्तयत िोता रिता िै। यि उषा का जादू िै। नीले आकाश का शंख-सा पविि िोना,
काली वसल पर के सर र्ालकर धोना, काली स्लेट पर लाल खवड़या मल देना, नीले जल में गोरी नावयका का वझलवमलाता
प्रवतसबंब आकद दृश्य उषा के जादू के समान लगते िैं। सूयोदय िोने के साथ िी ये दृश्य समाप्त िो जाते िैं।
3.‘स्लेट पर या लाल खवड़या चाक मल दी िो ककसी ने। ‘ -इसका आशय स्पष्ट कीवजए।
उर्त्र-कवि किता िै कक सुबि के समय अूँधेरा िोने के कारि आकाश स्लेट के समान लगता िै। उस समय सूयय की लावलमा-
युक्त ककरिों से ऐसा लगता िै जैसे ककसी ने काली स्लेट पर लाल खवड़या वमट्टी मल कदया िो। कवि आकाश में उभरे लाल-
लाल धब्बों के बारे में बताना चािता िै।
4.भोर के नभ को ‘ राख से लीपा, गीला चौका ‘ की संज्ञा दी गई िै। क्यों ?
उर्त्र-कवि किता िै कक भोर के समय ओस के कारि आकाश नमीयुक्त ि धुंधला िोता िै। राख से वलपा हुआ चौका भी
मटमैले रं ग का िोता िै। दोनों का रं ग लगभग एक जैसा िोने के कारि कवि ने भोर के नभ को ‘राख से लीपा, गीला चौका’
की संज्ञा दी िै। दूसरे , चौके को लीपे जाने से िि स्िर्चछ िो जाता िै। इसी तरि भोर का नभ भी पविि िोता िै।
5.‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवििता, वनमयलता ि उज्ज्िलता से संबवं धत पंवक्तयों को बताइए।
उर्त्र-पवििता- राख से लीपा हुआ चौका।
वनमयलता- बहुत काली वसल जरा से के सर से/कक जैसे धुल गई िो।
उज्ज्िलता-नीले जल में या ककसी की
73
गौर वझलवमल देि
जैसे विल रिी िो।
6.वसल और स्लेट का उदािारि देकर कवि ने आकाश के रं ग के बारे में क्या किा िै ?
उर्त्र- कवि ने वसल और स्लेट के रं ग की समानता आकाश के रं ग से की िै। भोर के समय आकाश का रं ग गिरा नीला-काला
िोता िै और उसमें थोड़ी-थोड़ी सूयोदय की लावलमा वमली हुई िोती िै।
7.‘उषा’ कविता में भोर के नभ की तुलना ककससे की गई िैं और क्यों?
उर्त्र-‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन नभ की तुलना राख से लीपे गए गीले चौके से की गई िै। इस समय आकाश नम एिं
धुंधला िोता िै। इसका रं ग राख से वलपे चूकिे जैसा मटमैला िोता िै। वजस प्रकार चूकिा-चौका सूखकर साफ़ िो जाता िै
उसी प्रकार कु छ देर बाद आकाश भी स्िर्चछ एिं वनमयल िो जाता िै।
स्ियं करें
1. ‘उषा’ कविता में कवि ने आसमान के वलए सियथा निीन उपमानों का प्रयोग ककया िै। कविता के आधार पर स्पष्ट कीवजए।
2. कवि ने प्रात:कालीन प्रकृ वत का मनोिारी वचिि ककया िै। पाठ के आधार पर उदािरि सवित वलवखए।
3. ‘उषा के टूटते जादू’ का िियन अपने शब्दों में कीवजए।
अथिा
‘जादू टूटता िै इस उषा का अब।’ उषा का जादू क्या िै? िि कै से टूटता िै?

पाठ सं-07
बादल राग
सूर्क
य ांत निपाठी 'निराला'
कनिता का प्रनतपादर् एिं सार
प्रनतपादर्- ‘बादल राग’ कनिता ‘अिानिका’ काव्य से ली गई है। निराला को िर्ाय ऋतु अनिक आकृ ष्ट करती है, क्र्ोंकक
बादल के भीतर सृजि और ध्िंस की ताकत एक साथ सिानहत है। बादल ककसाि के नलए उल्लास और नििायण का अग्रदूत
है तो िजदूर के संदभय िें क्ांनत और बदलाि। ‘बादल राग’ निराला जी की प्रनसद्ध कनिता है। िे बादलों को क्ांनतदूत िािते
हैं। बादल शोनर्त िगय के नहतैर्ी हैं, नजन्हें देखकर पूज
ूँ ीपनत िगय भर्भीत होता है। बादलों की क्ांनत का लाभ दबे-कु चले
लोगों को निलता है, इसनलए ककसाि और उसके खेतों िें बडे-छोटे पौिे बादलों को हाथ नहला-नहलाकर बुलाते हैं। िास्ति
िें सिाज िें क्ांनत की आिश्र्कता है, नजससे आर्थयक निर्िता निटे। कनि िे बादलों को क्ांनत का प्रतीक िािा है।
सार- कनि बादलों को देखकर कल्पिा करता है कक बादल हिारूपी सिुद्र िें तैरते हुए क्षनणक सुखों पर दुख की छार्ा हैं जो
संसार र्ा िरती की जलती हुई छाती पर िािी छार्ा करके उसे शांनत प्रदाि करिे के नलए आए हैं। बाढ़ की नििाश-लीला
रूपी र्ुद्ध-भूनि िें िे िौका के सिाि लगते हैं। बादल की गजयिा को सुिकर िरती के अंदर सोए हुए बीज र्ा अंकुर िए
जीिि की आशा से अपिा नसर ऊूँचा उठाकर देखिे लगते हैं। उििें भी िरती से बाहर आिे की आशा जागती है। बादलों
की भर्ंकर गजयिा से संसार हृदर् थाि लेता है। आकाश िें तैरते बादल ऐसे लगते हैं िािो िज्रपात से सैकडों िीर िराशार्ी
हो गए हों और उिके शरीर क्षत-निक्षत हैं।
कनि कहता है कक छोटे ि हलके पौिे नहल-डु लकर हाथ नहलाते हुए बादलों को बुलाते प्रतीत होते हैं। कनि बादलों को क्ांनत-
दूत की संज्ञा देता है। बादलों का गजयि ककसािों ि िजदूरों को ििनििायण की प्रेरणा देता है। क्ांनत से सदा आि आदिी को
ही फार्दा होता है। बादल आतंक के भिि जैसे हैं जो कीचड पर कहर बरसाते हैं। बुराईरूपी कीचड के सफाए के नलए
74
बादल प्रलर्कारी होते हैं। छोटे-से तालाब िें उगिे िाले किल सदैि उसके पािी को स्िच्छ ि निियल बिाते हैं। आि व्यनि
हर नस्थनत िें प्रसन्न ि सुखी रहते हैं। अिीर अत्र्निक संपनि इकट्ठी करके भी असंतष्ट
ु रहते हैं और अपिी नप्रर्तिाओं से
नलपटिे के बािजूद क्ांनत की आशंका से काूँपते हैं। कनि कहता है कक किजोर शरीर िाले कृ र्क बादलों को अिीर होकर
बुलाते हैं क्र्ोंकक पूूँजीपनत िगय िे उिका अत्र्निक शोर्ण ककर्ा है। िे नसफय नजदा हैं। बादल ही क्ांनत करके शोर्ण को
सिाप्त कर सकता है।
िुख्र् बबंद:ु
 बादलों को क्ांनतदूत के रूप िें नचनित ककर्ा गर्ा है।
 प्रस्तुत कनिता िें निराला की प्रगनतिादी चेतिा देखिे को निलती है।
 प्रस्तुत कनिता िें प्रकृ नत का िाििीकरण ककर्ा गर्ा है।
 कनि िे पूूँजीपनतर्ों के निलासी जीिि पर कटाक्ष ककर्ा है।
 तत्सि शब्दािली र्ुि खडी बोली का प्रर्ोग ककर्ा गर्ा है।
पठठत काव्यांश-01
नतरती है सिीर-सागर पर
अनस्थर सुख पर दुख की छार्ा-
जग के दग्ि हृदर् पर
निदयर् निप्लि की प्लानित िार्ा-
र्ह तेरी रण-तरी,
भरी आकांक्षाओं से,
घि,भेरी-गजयि से सजग, सुप्त अंकुर
उर िें पृथ्िी के , आशाओं से,
ििजीिि की,ऊूँचा कर नसर,
ताक रहे हैं, ऐ निप्लि के बादल!
किर किर!
बार-बार गजयि,
िर्यण है िूसलिार,
हृदर् थाि लेता संसार,
सुि-सुि घोर बज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शानपत उन्नत शत-शत-िीर,
क्षत-निक्षत-हत अचल-शरीर,
गगि-स्पशी स्पिाय िीर।
1. प्रस्तुत कनिता 'बादल राग' के रचिाकार का िाि है-
(क) राििारी बसंह कदिकर' (ख) उिाशंकर जोशी
75
(ग) सूर्यकांत निपाठी 'निराला' (घ) रघुिीर सहार्
2. प्रस्तुत कनिता िें 'बादल' ककस का प्रतीक है?
(क) शोर्क का (ख) शांनत का
(ग) क्ांनत का (घ) शोनर्त का
3. कनिता िें 'रण तरी ककस से भरी होिे की बात कही है?
(क) आकांक्षाओं से (ख) गजयिा से
(ग) िि-दौलत से (घ) अस्त्र-शस्त्र से
4. "र्ह तेरी रण तरी” र्हाूँ 'रण- तरी' शब्द का अथय है-
(क) िि से भरी िौका (ख) सुंदर िौका
(ग) र्ुद्ध की िौका (घ) उपर्ुयि िें से कोई िहीं
5. "बादल राग' कनिता िें सुख को कै सा बतार्ा गर्ा है?
(क) नस्थर (ख) चंचल
(ग) अनस्थर (घ) अदृश्र्
6.`निदयर् निप्लि की प्लानित िार्ा' र्हाूँ 'निप्लि' शब्द का अथय है-
(क) बादल (ख) िौका
(ग) शोर्ण (घ) क्ांनत
7.संसार भर्भीत क्र्ों हो जाता है?
(क) घिघोर बाठरश को देखकर (ख) क्ांनत रूपी बादलों की िज्ररूपी हुूँकार को सुिकर
(ग) निप्लि के बादलों को देखकर (घ) रण-तरी को देखकर
उिरिाला:- पठठत पद्ांश- 01
उिर 1. ग 2 ग 3. क 4 ग 5. ग 6.घ 7. ख
पठठत काव्यांश-02
हूँसते हैं छोटे पौिे लघु भार-
शस्र् अपार,
नहल-नहल,
नखल-नखल
हाथ नहलाते,
तुझे बुलाते,
निप्लि-रि से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टानलका का िहीं है रे
आतंक-भिि
सदा पंक पर ही होता जल- निप्लि-प्लािि,
76
क्षुद्र प्रिु ल्ल जलज से सदा छलकता िीर,
रोग-शोक िें भी हूँसता है
शैशि का सुकुिार शरीर।
रुद्ध कोर् है, क्षुब्ि तोर्,
अंगिा-अंग से नलपटे भी
आतंक-अंक पर कॉप रहे हैं।
ििी,िज्र-गजयि से बादल।
िस्त िर्ि िुख ढाूँप रहे हैं।
जीणय बाहु, है शीणय शरीर,
तुझे बुलाता कृ र्क अिीर,
ऐ निप्लि के िीर!
चूस नलर्ा है उसका सार,
हाड-िाि ही है आिार,
ऐ जीिि के पारािार!
1. 'निप्लि-रि से छोटे ही हैं शोभा पाते।' र्हाूँ 'छोटे' शब्द प्रर्ुि हुआ है-
(क) शोनर्त िगय के नलए (ख) शोर्क िगय के नलए
(ग) िाध्र्ि िगय के नलए (घ) उच्च िगय के नलए
2. 'जल - निप्लि प्लािि' ककस पर होता है?
(क) जलज पर (ख) िौका पर
(ग) कीचड पर (घ) िभ पर
3. कनि िे अट्टानलकाओं को क्र्ा कहा है?
(क) राजिहल
(ख) सभा भिि शैशि का सुकुिार शरीर ककसिें हूँसता रहता है?
(ग) व्यार्ािशाला
(घ) आतंक भिि
4.शैशि का सुकुिार शरीर ककसिे हूँसता रहता है?
(क) रोग-शोक िें (ख) आिंद िें
(ग) दुुःख िें (घ) उपर्ुयि सभी िें
5. ििी िगय के लोग क्र्ों काूँप रहे हैं?
(क) सिा के डर से (ख) शोर्ण के डर से
(ग) घिघोर बाठरश के डर से (घ) क्ांनत एिं निद्रोह के डर से
6. निप्लि का िीर कौि है और उसे कौि बुलाता है?

77
(क) बादल, और उसे व्याकु ल िजदूर बुलाता है (ख) क्ांनतकारी, और उसे व्याकु ल कृ र्क बुलाता है
(ग) बादल, और उसे व्याकु ल कृ र्क बुलाता है (घ) उपर्ुयि िें से कोई िहीं
7. ििी िगय क्ांनत के डरकर क्र्ा कर रहे हैं?
(क) प्रेनिकाओं के अंगों से नलपटे रहते हैं (ख) अपिे आूँख और िुूँह को ढक लेते हैं
(ग) भर्भीत हो रहे हैं (घ) उपर्ुयि सभी
8. ककसकी भुजाएूँ पूज
ूँ ीपनत िगय के शोर्ण के कारण जजयर हो चुकी हैं-
(क) िजदूर की (ख) ककसाि की
(ग) िौकरीपेशा लोगों की (घ) उपर्ुयि सभी की
उिरिाला :- पठठत पद्ांश- 02
1. क 2. ग 3. घ 4. क 5. घ 6. ग 7 घ 8. ख
पठठत काव्यांश-03

हूँसते हैं छोटे पौिे लघुभार-


शस्र् अपार,
नहल-नहल
नखल-नखल,
हाथ नहलाते,
तुझे बुलाते,
निप्लि-रि से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टानलका िहीं है रे
आतंक-भिि
सदा पंक पर ही होता
जल-निप्लि-प्लािि,
क्षुद्र प्रिु ल्ल जलज से
सदा छलकता िीर,
रोग-शोक िें भी हूँसता है
शैशि का सुकुिार शरीर।
1.काव्यांश िें छोटे पौिे ककन्हें कहा गर्ा है?
a) छोटे बच्चों को
b) निम्न िगय को
c) उच्च िगय को
d) िध्र् िगय को
78
2.निप्लि-रि से छोटे ही हैं शोभा पाते पंनि का क्र्ा अनभप्रार् है?
a) बादलों से हुई िर्ाय से छोटे पौिों को अनिक जल निलता है
b) सािानजक क्ांनत सभी िगों के नलए नहतकर होती है
c) सािानजक क्ांनत का निम्न िगय को ही लाभ निलता है
d) निम्न िगय क्ांनत के प्रभाि से िंनचत रहता है
3.जल-निप्लि-प्लािि हिेशा ककस पर होता है?
a) िार्ु पर
b) िरती पर
c) कीचड पर
d) आकाश पर
4.कनि के अिुसार आतंक भिि कौि है?
a) िध्र् िगय के नििास स्थाि
b) सभी निकल्प सही हैं
c) शोनर्त िगय के नििास स्थाि
d) शोर्क िगय के नििास स्थाि
5.काव्यांश िें पंक ककसका प्रतीक है?
a) पनििता का
b) गंदगी का
c) उच्च िगय का
d) शोर्क िगय का
6.'हृदर् थाि लेता संसार' पंनि के आिार पर संसार अपिा हृदर् क्र्ों थाि लेता है?
a) बादलों की घोर गजयिा से
b) सिुद्र िें आर्ी नहलोरो से
c) पृथ्िी पर आर्ी बाढ़ से
d) इििे से कोई िहीं
7.बादल राग कनिता िें कनि बादल का आह्िाि ककस रूप िें करता है?
a) क्ांनत
b) िर्ाय
c) िजबूरी
d) शांनत
8.सूर्क
य ांत निपाठी 'निराला' के निम्ननलनखत िें से कौि सा कनिता संग्रह िहीं है?
a) िीरजा

79
b) अिानिका
c) िए पिे
d) पठरिल
9.बादल राग कनिता के आिार पर निराला िे अट्टानलकाओं को क्र्ा कहा है?
a) र्ोग भिि
b) व्यार्ािशाला
c) अजार्बघर
d) आतंक भिि
उिरिाला :- पठठत पद्ांश- 03
1.(b) निम्न िगय को
2. (c) सािानजक क्ांनत का निम्न िगय को ही लाभ निलता है
3. (c) कीचड पर
4. (c) शोनर्त िगय के नििास स्थाि
5. (d) शोर्क िगय का
6. (a) बादलों की घोर गजयिा से
व्याख्र्ा: बादल राग कनिता िें कनि सूर्क
य ांत निपाठी निराला िे हृदर् थाि लेता संसार का अथय बादलों की गजयिा को
सुिकर संसार अपिा हृदर् को थाि लेता है क्र्ोंकक उन्हें पता चल जाता है कक अब तो बाठरश आिे िाली है।
7.(a) क्ांनत
व्याख्र्ा:कनि िे बादल को निप्लि ि क्ांनत का प्रतीक िािकर उसका आह्िाि ककर्ा है।
8.(a) िीरजा
व्याख्र्ा:सूर्क
य ांत निपाठी 'निराला' के पठरिल, िए पिे, तुलसीदास, कु कु रिुिा, गीनतका, बेला, अिानिका, अनणिा,
कनिता संग्रह है ।
9.(d) आतंक भिि

िहत्िपूणय प्रश्नोिर
1. ‘बादल राग’ कनिता के आिार पर भाि स्पष्ट कीनजए –
निप्लि-रि से छोटे ही हैं शोभा पाते |
अथिा
‘बादल राग’ कनिता िें कनि िे बादलों के बहािे क्ांनत का आह्िाि ककर्ा है | इस कथि की सिीक्षा कीनजए |
उिर- ‘निप्लि-रि’ से तात्पर्य है – क्ांनत का स्िर | क्ांनत का सिायनिक लाभ शोनर्त िगय को ही निलता है क्र्ोंकक उसी के
अनिकार नछिे गए हैं | शोर्क िगय के निशेर्ानिकार खत्ि होते हैं | आि व्यनि को जीिे के अनिकार निलते हैं | उिकी
दठरद्रता दूर होती है | अतुः क्ांनत की गजयिा से शोनर्त िगय प्रसन्न होता है |

80
2. क्ांनत की गजयिा का शोर्क िगय पर क्र्ा प्रभाि पडता है? उिका िुख ढाूँपिा ककस िािनसकता का द्ोतक है? ‘बादल
राग’ कनिता के आिार पर उिर दीनजए |
उिर- शोर्क िगय िे आर्थयक साििों पर एकानिकार जिा नलर्ा है, परन्तु क्ांनत की गजयिा सुिकर िह अपिी सिा को
खत्ि होते देखता है | िह बुरी तरह भर्भीत हो जाता है | उसकी शांनत सिाप्त हो जाती है | शोर्क िगय का िुख ढाूँपिा
उिकी किज़ोर नस्थनत को दशायता है | क्ांनत के पठरणािों से िे भर्भीत हैं |
3. ‘बादल राग जीिि-नििायण के िए राग का सूचक है |’ स्पष्ट कीनजए |
उिर- इस कनिता िें कनि िे लघु-िािि की खुशहाली का राग गार्ा है | िह आि व्यनि के नलए बादल का आह्िाि क्ांनत
के रूप िें करता है | ककसाि िज़दूर की आकांक्षाएूँ बादल को ििनििायण के राग के रूप िें पुकार रही हैं | क्ांनत हिेशा
िंनचतों का प्रनतनिनित्ि करती है | बादलों के अंग-अंग िें नबजनलर्ाूँ सोई हैं, िज्रपात से शरीर आहत होिे पर भी िे नहम्ित
िहीं हारते | गरिी से हर तरि सब कु छ रुखा-सुखा और िुरझार्ा-सा है | िरती के भीतर सोए अंकुर ििजीिि की आशा
िें नसर ऊूँचा करके बादल की उपनस्थनत दजय कर रहे हैं | क्ांनत जो हठरर्ाली लाएगी, उससे सबसे उत्िु ल्ल िए पौिे, छोटे
बच्चे ही होंगे |
4. ‘बादल राग’ कनिता िें ‘ऐ निप्लि के िीर!’ ककसे कहा गर्ा है और क्र्ों?
उिर- इस कनिता िें ‘ऐ निप्लि के िीर!’ बादल को कहा गर्ा है | बादल घिघोर िर्ाय करता है तथा नबजनलर्ाूँ नगराता है
| इससे सारा जिजीिि अस्त-व्यस्त हो जाता है | बादल क्ांनत का प्रतीक है | क्ानन्त आिे से बुराई रूपी कीचड सिाप्त हो
जाता है तथा आि व्यनि को जीिे र्ोग्र् नस्थनत निलती है |
5. ‘बादल राग’ शीर्यक की साथयकता नसद्ध कीनजए |
उिर-‘बादल राग’ क्ांनत की आिाज़ का पठरचार्क है | र्ह कनिता जिक्ांनत की प्रेरणा देती है | कनिता िें बादलों के आिे
से िए पौिे हर्र्यत होते हैं,उसी प्रकार क्ांनत होिे से आि आदिी को निकास के िए अिसर निलते हैं | कनि बादलों को
बाठरश करिे र्ा क्ांनत करिे के नलए आह्िाि करता है | र्ह शीर्यक उद्देश्र् के अिुरूप है | अतुः र्ह शीर्यक सियथा उनचत
है|
6. निप्लिी बादल की र्ुद्ध-िौका की कौि-कौि-सी निशेर्ताएूँ बताई गई हैं?
उिर- कनि िे निप्लिी बादल की र्ुद्ध-िौका की निम्ननलनखत निशेर्ताएूँ बताई हैं-
(i) र्ह सिीर-सागर िें तैरती है |
(ii) र्ह भेरी-गजयि से सजग है |
(iii) इसिें ऊूँची आकांक्षाएूँ भरी हुई हैं |
7. ‘बादल राग’ कनिता िें कनि निराला की ककस क्ांनतकारी निचारिारा का पता चलता है?
उिर- बादल राग कनिता िें कनि की क्ांनतकारी निचारािार का ज्ञाि होता है | िह सिाज िें व्याप्त पूूँजीिाद का घोर
निरोि करता हुआ दनलत-शोनर्त िगय के कल्र्ाण की काििा करता हुआ, उन्हें सिाज िें उनचत स्थाि कदलािा चाहता है |
कनि िे बादलों की गजयिा, नबजली की कडक को जिक्ांनत का रूप बतार्ा है | इस जिक्ांनत िें ििीिगय का पति होता हो
और छोटे िगय-िजदूर गरीब, शोनर्त आकद उन्ननत करते हैं |
8. ‘बादल राग’ कनिता िें अट्टानलकाओं को आतंक भिि क्र्ों कहा गर्ा है?

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उिर- ‘बादल राग’ कनिता िें अट्टानलकाओं को आतंक भिि इसनलए कहा गर्ा है क्र्ोंकक इि भििों िें शोर्ण के िए-िए
तरीके खोजे जाते हैं | र्े ऊूँचे-ऊूँचे भिि शोर्ण से लुटी गई संपनि के कें द्र होते हैं |
निर्र्-िस्तु पर आिाठरत प्रश्नोिर
1. पूंजीपनतर्ों की अट्टानलकाओं को आतंक भिि क्र्ों कहा गर्ा है?
उिर- बादलों की गजयिा और िूसलािार िर्ाय िें बडे बडे-पियत िृक्ष घबरा जाते हैं। उिको उखडकर नगर जािे का भर् होता
है| उसी प्रकार क्ानत की हुंकार से पूूँजीपनत घबरा उठते हैं, िे कदल थाि कर रह जाते हैं। उन्हें अपिी संपनि एिं सिा के
नछि जािे का भर् होता है। उिकी अट्टानलकाएूँ िजबूती का भ्रि उत्पन्न करती हैं पर िास्ति िें िे अपिे भििों िें आतंककत
होकर रहते हैं।
2. कनि िे ककसाि का जो शब्द-नचि कदर्ा है उसे अपिे शब्दों िें नलनखए।
उिर- ककसाि के जीिि का रस शोर्कों िे चूस नलर्ा है, आशा और उत्साह की संजीििी सिाप्त हो चुकी है। शरीर से भी
िह दुबयल एिं खोखला हो चुका है। क्ांनत का नबगुल उसके हृदर् िें आशा का संचार करता है िह नखलनखला कर बादल
रूपी क्ांनत का स्िागत करता है|
3. अशनि पात क्र्ा है?
उिर- बादल की गजयिा के साथ नबजली नगरिे से बडे-बडे िृक्ष जल कर राख हो जाते हैं। उसी प्रकार क्ांनत की आंिी आिे
से शोर्क, ििी िगय की सिा सिाप्त हो जाती है और िे खत्ि हो जाते हैं।
4. पृथ्िी िें सोर्े अंकुर ककस आशा से ताक रहे हैं?
उिर- बादल के बरसिे से बीज अंकुठरत हो लहलहिे लगते हैं। अतुः बादल की गजयि उििें आशाएूँ उत्पन्न करती है। िे नसर
ऊूँचा कर बादल के आिे की राह निहारते हैं। ठीक उसी प्रकार निियि व्यनि शोर्क के अत्र्ाचार से िुनत पािे और अपिे
जीिि की खुशहाली की आशा िें क्ांनत रूपी बादल की प्रतीक्षा करते हैं।
5. रुद्ध कोर् है, क्षुब्द्ध तोर् ककसके नलए कहा गर्ा है और क्र्ों?
उिर- क्ांनत होिे पर पूजीपनत िगय का िि नछि जाता है, कोर् ठरि हो जाता है| उसके िि की आिद सिाप्त हो जाती है|
उसका संतोर् भी अब ‘बीते कदिों की बात’ हो जाता है|
6. अनस्थर सुख पर दुख की छार्ा का भाि स्पष्ट कीनजए।
उिर- िािि-जीिि िें सुख सदा बिा िहीं रहता है, उस पर दुख की छार्ा सदा िंडराती रहती है।
7. बादल ककस का प्रतीक है?
उिर- बादल इस कनिता िें क्ांनत का प्रतीक है। नजस प्रकार बादल प्रकृ नत ककसाि और आि आदिी के जीिि िें आिंद का
उपहार ले कर आता है उसी प्रकार क्ांनत निियि शोनर्त िगय के जीिि िें सिािता का अनिकार ि संपन्नता लेकर आता है।
8. बादल को जीिि का पारािार क्र्ों कहा गर्ा है?
उिर- क्ांनत रूपी बादल का आगिि जीििदार्ी, सुखद होता है -पारािार अथायत सागर। िह जीिि िें खुनशर्ों का खजािा
लेकर आता है। निियि िगय को सिािता का अनिकार देता है सुख सिृनद्ध का कारक बिकर अत्र्ाचार की अनि से िुि करता
है।

82
लघूिरात्िक प्रश्न

1. ‘बादल राग’ कनिता के आिार पर भाि स्पष्ट कीनजए-


निप्लि-रि से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अथिा
‘बादल राग’ कनिता िें कनि िे बादलों के बहािे क्ांत का आहिाि ककर्ा है। इस कथि की सिीक्षा कीनजए।
उिर-‘निप्लि-रि’ से तात्पर्य है-क्ांनत का स्िर। क्ांनत का सिायनिक लाभ शोनर्त िगय को ही निलता है क्र्ोंकक उसी के
अनिकार छीिे गए होते हैं। क्ांनत शोर्क िगय के निशेर्ानिकार खत्ि होते हैं। आि व्यनि को जीिे के अनिकार निलते हैं।
उिकी दठरद्रता दूर होती है। अत: क्ांनत की गजयिा से शोनर्त िगय प्रसन्न होता है।
2. क्ांनत की गजयिा का शोर्क िगय पर क्र्ा प्रभाि पडता है ? उिका िुख ढूँकिा ककस िािनसकता का द्ोतक है? ‘बादल
राग‘ कनिता के आिार पर उिर दीनजए।
उिर-शोर्क िगय िे आर्थयक साििों पर एकानिकार जिा नलर्ा है, परं तु क्ांनत की गजयिा सुिकर िह अपिी सिा को खत्ि
होते देखता है। िह बुरी तरह भर्भीत हो जाता है। उसकी शांनत सिाप्त हो जाती है। शोर्क िगय का िुख ढाूँकिा उसकी
किजोर नस्थनत को दशायता है। क्ांनत के पठरणािों से शोर्क िगय भर्भीत है।
3. ‘बादल राग ‘ जीिि-नििायण के िए राग का सूचक है। ” स्पष्ट कीनजए।
उिर-‘बादल राग’ कनिता िें कनि िे लघु-िािि की खुशहाली का राग गार्ा है। िह आि व्यनि के नलए बादल का आहिाि
क्ांनत के रूप िें करता है। ककसािों तथा िजदूरों की आकांक्षाएूँ बादल को ििनििायण के राग के रूप िें पुकार रही हैं। क्ांनत
हिेशा िंनचतों का प्रनतनिनित्ि करती है। बादलों के अंग-अंग िें नबजनलर्ाूँ सोई हैं, िज्रपात से शरीर आहत होिे पर भी िे
नहम्ित िहीं हारते। गरिी से हर तरि सब कु छ रूखा-सूखा और िुरझार्ा-सा है। िरती के भीतर सोए अंकुर ििजीिि की
आशा िें नसर ऊूँचा करके बादल की ओर देख रहे हैं। क्ांनत जो हठरर्ाली लाएगी, उससे सबसे अनिक उत्िु ल्ल िए पौिे,
छोटे बच्चे ही होंगे।
4. ‘बादल राग ‘ कनिता िें ‘ऐ निप्लि के िीर!’ककसे कहा गर्ा हैं और क्र्ों?
उिर-‘बादल राग’ कनिता िें ‘ऐ निप्लि के िीर!’ बादल को कहा गर्ा है। बादल घिघोर िर्ाय करता है तथा नबजनलर्ाूँ
नगराता है। इससे सारा जिजीिि अस्त-व्यस्त हो जाता है। बादल क्ांनत का प्रतीक है। क्ांनत आिे से बुराई रूपी कीचड
सिाप्त हो जाता है तथा आि व्यनि को जीिे र्ोग्र् नस्थनत निलती है।
5. ‘बादल राग’ शीर्र्यक की साथयकता नसद्ध कीनजए।
उिर-‘बादल राग’ क्ांनत की आिाज का पठरचार्क है। र्ह कनिता जिक्ांनत की प्रेरणा देती है। कनिता िें बादलों के आिे
से िए पौिे हर्र्यत होते हैं, उसी प्रकार क्ांनत होिे से आि आदिी को निकास के िए अिसर निलते हैं। कनि बादलों का
बाठरश करिे र्ा क्ांनत करिे के नलए करता है। र्ह शीर्यक उद्देश्र् के अिुरूप है। अत: र्ह शीर्यक सियथा उनचत है।
6. निप्लिी बादल कीर्ुद्ध-िौका कीकौि-कौि-सी निशेर्ताएूँ बताई गाए है?
उिर-कनि िे निप्लिी बादल की र्ुद्ध-िौका की निम्ननलनखत निशेर्ताएूँ बताई हैं-
(i) र्ह सिीर-सागर िें तैरती है।

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(ii) र्ह भेरी-गजयि से सजग है।
(iii) इसिें ऊूँची आकांक्षाएूँ भरी हुई हैं।
7.‘बादल राग ‘ कनिता िें कनि निराला की ककस क्ांनतकारी निचारिारा का पता चलता हैं?
उिर-‘बादल राग’ कनिता िें कनि की क्ांनतकारी निचारिारा का ज्ञाि होता है। िह सिाज िें व्याप्त पूूँजीिाद का घोर
निरोि करता हुआ दनलत-शोनर्त िगय के कल्र्ाण की काििा करता हुआ, उन्हें सिाज िें उनचत स्थाि कदलािा चाहता है।
कनि िे बादलों की गजयिा, नबजली की कडक को जिक्ांनत का रूप बतार्ा है। इस जिक्ांनत िें ििी िगय का पति होता है
और छोटे िगय-िजदूर, गरीब, शोनर्त आकद-उन्ननत करते हैं।
8. ‘बादल राग’ कनिता िें अट्टानलकाओं को आतंक-भिि क्र्ों कहा गर्ा है?
उिर-‘बादल राग’ कनिता िें अट्टानलकाओं को आतंक-भिि इसनलए कहा गर्ा है क्र्ोंकक इि भििों िें शोर्ण के िए-िए
तरीके खोजे जाते हैं। र्े ऊूँचे-ऊूँचे भिि शोर्ण से लूटी गई संपनि के कें द्र होते हैं।
स्िर्ं करें
1.बादलों का गजयि सुिकर पृथ्िी के उर िें सुप्त अंकुर िें ककस तरह आशा का संचरण हो उठता है?’बादल राग’ कनिता के
आिार पर नलनखए।
2. ‘अशनि-पात से शानपत उन्नत शत-शत िीर’ के िाध्र्ि से कनि क्र्ा कहिा चाहता है? स्पष्ट कीनजए।
3.निप्लि के बादल ककिके -ककिके िीत हैं और क्र्ों?
4. ‘बादल राग’ कनिता िें ककिका कोर् रुद्ध होिे की बात कही गई है? इससे कौि आक्ोनशत है और क्र्ों?
5. ‘निप्लि के िीर’ को अिीर कृ र्क आशाभरी निगाहों से क्र्ों देखता है?
6.निप्लि के बादल देखकर सिाज का संपन्न िगय अपिी प्रनतकक्र्ा कै से व्यि करता है? ‘बादल राग’ कनिता के आिार पर
नलनखए।
7.स्पष्ट कीनजए कक कनि निराला शोनर्त िगय एिं ककसािों के सच्चे नहतैर्ी थे।
8.नसद्ध कीनजए कक ‘बादल राग’ कनिता का प्रिुख स्िर ििनििायण है।

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पाठ सं-08
‘कनितािली’, ‘लक्ष्िण-िूच्छाय और राि का निलाप’
कनि- तुलसीदास
पाठ का सारांश
कनितािली
1. प्रथम कविर्त्-यिाूँ कवििर तुलसीदास राम-नाम की मविमा का गान करते हुए किते िैं कक मजदूर, ककसान, व्यापारी,
वभखारी, चाकर, नौकर, नट, चोर, दूत और िाजीगर सभी अपना पेट भरने के वलए िी ऊूँचे-नीचे कमय करते िैं, गुि गढ़ते
िैं, पिाड़ों पर चढ़ते िैं और घने जंगलों में वशकार करते हुए भटकते रिते िैं। यिी निीं, िे अर्चछे-बुरे कमय करके धमय अथिा
अधमय का पालन करते हुए अपना पेट भरने के वलए बेटे-बेटटयों को भी बेच देते िैं। यि पेट की आग िड़िानल से भी अवधक
भयंकर िै। इसे तो के िल राम-नाम के कृ पा रूपी बादल िी बुझा सकते िैं।
2. वद्वतीय कविर्त्-इस कविर्त् में कवि अपने युग की गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी का िियन करते हुए वलखता िै कक
ककसान के वलए खेती निीं िै और वभखारी को भीख निीं वमलती। व्यापारी के वलए व्यापार निीं िै और नौकर को नौकरी
निीं वमलती। आजीविका-वििीन लोग दुखी िोकर आपस में किते िैं कक किाूँ जाएूँ और क्या करें । िेदों और पुरािों में यिी
बात किी गई िै और संसार में भी देखा जा सकता िै कक संकट के समय राम जी आप िी कृ पा करते िैं। िे दीनबंधु राम! इस
समय दटररता रूपी रािि ने संसार को कु चला हुआ िै। अतः पापों का नाश करने के वलए मैं आपसे प्राथयना करता हूँ।
3. सिैया-यिाूँ तुलसीदास लोगों के द्वारा की जा रिी सनंदा और आलोचना की परिाि न करते हुए किते िैं कक चािे मुझे
कोई धूतय किे, योगी किे, राजपूत या जुलािा किे, इससे मुझे कोई फकय निीं पड़ता। मुझे ककसी की बेटी से अपने बेटे का
वििाि निीं करना, वजससे ककसी की जावत में वबगाड़ िो जाए। मैं तुलसीदास तो राम का दास हूँ। इसीवलए मेरे बारे में
वजसको जो अर्चछा लगता िै, िि किो मुझे कोई फकय निीं पड़ता। मैं माूँगकर खाता हूँ। मवस्जद में जाकर सो जाता हूँ। मुझे
दुवनया से न कु छ लेना िै और न देना िै अथायत् मुझे ककसी की परिाि निीं िै।
लक्ष्िण-िूच्छाय और राि का निलाप
यि प्रसंग उस समय का िै जब राम-रािि युि के समय लक्ष्मि मेघनाद की शवक्त लगने से बेिोश िो गए और िनुमान
जड़ी-बूटी लेने के वलए गए। परं तु िनुमान द्वारा की गई देरी के कारि राम अपने भाई लक्ष्मि के वलए सचंता करने लगे। जब
िनुमान संजीिनी बूटी को न पिचानने के कारि पियत को उठाकर ले जा रिे थे तो भरत के मन में अनथय की आशंका हुई।
इसवलए भरत ने िनुमान को नीचे उतार वलया। परं तु जब उसे िास्तविकता का पता चला तो उसने िनुमान को अपने बाि
पर वबठाकर शीघ्र भेज कदया। इधर राम आधी रात बीत जाने पर सचंता करने लगे। िे लक्ष्मि को बेिोश देखकर एक मानि
के समान किने लगे कक आधी रात बीत गई िै, लेककन िनुमान निीं आया।
यि किकर राम ने अनुज लक्ष्मि को उठाकर अपनी छाती से लगा वलया और विलाप करते हुए किने लगे कक लक्ष्मि
तुम्िारा ऐसा स्िभाि िै कक तुम मुझे कभी दुखी निीं देख सकते थे। मेरे वलए तुमने माता-वपता को त्याग कदया और िन में
सदी-गमी को सिन ककया। िे भाई! तुम्िारा िि प्रेम किाूँ चला गया। मेरे व्याकु ल िचनों को सुनकर तुम क्यों निीं उठते।
यकद मुझे पता िोता कक िन में भाई से वियोग िोगा तो मैं अपने वपता के िचनों को कभी निीं मानता। पुि , धन, पत्नी,
भिन और पटरिार, ये सब संसार में बार-बार प्राप्त िो सकते िैं, लेककन सगा भाई संसार में कफर निीं वमलता। यि विचार
करके तुम जाग जाओ। वजस प्रकार पंख के वबना पक्षी, मवि के वबना साूँप और सूंर् के वबना िाथी दीन-िीन िो जाते िैं,
उसी प्रकार तुम्िारे वबना मेरा जीिन अधूरा िै। मैं क्या मुूँि लेकर अयोध्या जाऊूँगा। लोग मेरे बारे में किेंगे कक मैंने पत्नी के

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वलए वप्रय भाई को खो कदया। भले िी मुझे संसार में अपयश सिन करना पड़ता। पत्नी की िावन भी कोई विशेष िावन निीं
िै। परं तु िे लक्ष्मि! अब तो मुझे अपयश और भाई दोनों शोक सिन करने पड़ेगे।
िे भ्राता! तुम अपनी माता के एक िी पुि िो और उसके प्रािों के आधार िो। तुम्िारी माूँ ने मुझे िर प्रकार से वितैषी समझकर
तुम्िारा िाथ मुझे सौंपा था। अब मैं जाकर उसे क्या उर्त्र दूग
ं ा। इस प्रकार संसार को सचंतामुक्त करने िाले भगिान राम
स्ियं अनेक प्रकार की सचंताओं में र्ू ब गए और उनकी आूँखों से आूँसू बिने लगे। ति वशिजी ने पाियती से किा कक देखो! िे
राम स्ियं अखंर् और अनंत िैं, परं तु अपने भक्तों पर कृ पा करके नि लीला कदखा रिे िैं। प्रभु के विलाप को सुनकर समूची
िानर सेना व्याकु ल िो गई। परं तु उस समय ििाूँ िनुमान इस प्रकार प्रकट िो गए जैसे करुि रस में िीर रस प्रकट िो जाता
िै। श्रीराम ने प्रसन्न िोकर िनुमान से भेंट की और िे िनुमान के प्रवत कृ तज्ञ िो गए। उसके बाद िैद्य ने तत्काल उपाय ककया
और लक्ष्मि प्रसन्न िोकर उठ खड़े हुए। राम ने प्रसन्न िोकर भाई को गले लगाया और सभी िानर और भालू प्रसन्न िो गए।
इसके बाद िनुमान ने िैद्य को लंका िापस पहुूँचा कदया।
जब रािि ने यि सारा प्रस्ताि सुना तो िि दुखी िोकर पछताने लगा और व्याकु ल िोकर कुं भकरि के पास गया। उसने
अनेक प्रयत्न करके कुं भकरि को जगाया। जागने पर कुं भकरि ऐसा लग रिा था कक मानों काल स्ियं शरीर धारि करके
बैठा िो। कुं भकरि ने रािि से पूछा कक तुम्िारा मुख घबराया हुआ क्यों िै, तब अवभमानी रािि ने सारी कथा सुनाई कक
ककस प्रकार िि सीता को उठाकर लाया था। िि अपने भाई से किने लगा कक िे भ्राता! राम की िानर सेना ने राक्षसी सेना
के बड़े-बड़े योिाओं का संिार कर कदया िै। रािि के िचनों को सुनकर कुं भकरि ने दुखी िोकर किा, तुमने जगत-जननी
सीता का िरि ककया िै, अब तू अपना ककयाि चािता िै। यि तो ककसी प्रकार से संभि निीं िै।
पद्ांशों की व्याख्र्ा
कवितािली
ककसबी, ककसान-कु ल, िवनक, वभखारी, भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त वगटर,
अटत गिन-गन अिन अखेटकी ॥
ऊूँचे-नीचे करम, धरम-अधरम कटर,
पेट िी को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
'तुलसी' बुझाइ एक राम घनस्याम िी तें,
आवग बड़िावगतें बड़ी िै आवग पेटकी॥
शब्दाथय:-
ककसबी = िंिा करिे िाले। बनिक = व्यापारी। भाट = चारण। चाकर = िौकर । चपल िट = उछलिे-कू दिे िाले कलाकार।
चार = दूत। चेटकी = बाजीगर । गुि गढ़त = कलाओं और निद्ाओं को सीखते हैं। नगठर = पियत। अटत = घूििा । गहि-
गि = बिा जंगल । अहि = नभन्न । अखेटकी = नशकारी । अिरि = पाप। घिस्र्ाि = काला बादल । बडिागी = जंगल की
आग।
व्याख्या:-
मेिनत करने िाले मजदूर, ककसान, व्यापारी, वभखारी, चारि, नौकर, कु शल, नट, चोर, दूत तथा बाजीगर आकद पेट भरने
के वलए तरि-तरि के गुि गढ़ते िैं, ऊूँचे पियतों पर चढ़ते िैं और कदन भर घने जंगलों में वशकार करते हुए घूमते रिते िैं।
भाि यि िै कक अपना पेट भरने के वलए लोग कलाएूँ और विद्याएूँ सीख रिे िैं। पिाड़ों पर चढ़कर आजीविका खोज रिे िैं

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अथिा जंगलों में वशकार करके अपना पेट भरना चािते िैं। कवि पुनः किता िै कक लोग अपना पेट भरने के वलए ऊूँचे-नीचे
कमय करते िैं और धमय-अधमय की परिाि न करके अर्चछे-बुरे काम करते िैं। यिाूँ तक कक लोग अपने पेट के वलए बेटा-बेटी को
बेचने के वलए मजबूर िो गए िैं। यि कटु सत्य िै कक पेट की आग समुर की आग से भी अवधक शवक्तशाली िोती िै। तुलसीदास
किते िैं कक यि भूख राम रूपी घनश्याम की कृ पा से िी दूर िो सकती िै। भाि यि िै कक उसने अपने दयालु राम की कृ पा
से िी भूख को वमटा कदया िै, परं तु देश के अन्द्य लोग भूख और बेरोजगारी के कारि बड़े िी व्याकु ल िैं।
विशेष:-
(1) यिाूँ कवि ने अपने युग की यथाथयता का प्रभािशाली िियन ककया िै।
(2) कवि का कथन िै कक पेट की आग सिायवधक प्रबल आग िै जो मनुष्य को िेटा-बेटी तक बेचने को मजबूर कर देती िै।
(3) संपूिय पद में अनुप्रास अलंकार की छटा दशयनीय िै।
(4) राम घनस्याम' में रूपक अलंकार का प्रयोग िै। 'आगी-बड़िावगते बड़ी िै आवग पेटकी' में गवतरे क अलंकार का प्रयोग िै।
(5) यिाूँ सिज एिं सरल साविवत्यक ब्रजािवध भाषा का सफल प्रयोग हुआ िै।
(6) शब्द-चयन उवचत और भािावभव्यवक्त में सिायक िै।
(7) कविर्त् छंद का प्रयोग िै।
खेती न ककसान को, वभखारी को न भीख, बवल,
बवनक को बवनज, न चाकर को चाकरी।
जीविका वबिीन लोग सीद्यमान सोच बस,
किैं एक एकन सों 'किाूँ जाई, का करी?'
बेदहूँ पुरान किी, लोकहूँ वबलोककअत,
साूँकरे सबै पै, राम! रािरें कृ पा
दाटरद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु ।
दुटरत-दिन देवख तुलसी ििा करी ॥
शब्दाथय:-
बवनज = व्यापार। सीद्यमान = परे शान, दुखी । बेदहूँ = िेद में भी। लोकहूँ = लोक में भी। साूँकरे = संकट । रािरें =
आपने। दाटरद = दटररता । दबाई = दबाया। दुटरत = पाप। ििा करी = दुखी िोना।
व्याख्या:-
कवि का कथन िै कक ऐसा बुरा समय आ गया िै कक देश में ककसान के पास खेती करने के साधन निीं िैं और वभखारी को
भीख निीं वमलती। व्यापारी को व्यापार निीं वमलता और नौकर को नौकरी निीं वमलती। भाि यि िै कक न ककसान के
पास खेती िै, न व्यापारी को व्यापार वमल रिा िै और न िी नौकर को कोई अर्चछी नौकरी वमल रिी िै। सभी लोग
आजीविका न िोने के कारि दुखी िोकर एक-दूसरे से किते िैं कक किाूँ जाएूँ और क्या करें । कोई रास्ता कदखाई निीं देता
अथायत् काम-धंधा न िोने के कारि लोग व्याकु ल और परे शान िैं। कवि प्रभु राम में अपनी आस्था प्रकट करता हुआ किता
िै िे राम! िेदों और पुरािों में यि बात वलखी हुई िै और संसार में भी अकसर ऐसा िी देखा जाता िै कक संकट के समय में
आपकी कृ पा से िी संकट दूर िोता िै। िे दीनबंधु राम! दटररता रूपी रािि ने सारी दुवनया को दबा रखा िै अथायत् सभी
लोग गरीबी के वशकार बने हुए िैं। चारों ओर पाप का जाल वबछा हुआ िै। सभी लोग िावि-िावि कर रिे िैं। िे प्रभु! इस
संकट के समय आप िी सिायता कर सकते िैं।

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विशेष:-
(1) इस कविर्त् में कवि ने अपने समय की बेरोजगारी की समस्या का यथाथय िियन ककया िै।
(2) कवि ने श्रीराम को दीनबंधु और कृ पालु किकर अपनी दास्य भािना की अवभव्यवक्त को व्यक्त ककया िै।
(3) संपूिय पद में अनुप्रास अलंकार की छटा दशयनीय िै।
(4) 'दाटरद-दसानन' तथा 'दुटरत-दिन' में रूपक अलंकार का सफल प्रयोग हुआ िै।
(5) सिज एिं सरल साविवत्यक तथा ब्रजािवध भाषा का सफल प्रयोग हुआ िै।
(6) शब्द-चयन उवचत और भािावभव्यवक्त में सिायक िै।
(7) कविर्त् छंद का सफल प्रयोग हुआ िै।
धूत किौ, अिधूत किौ, रजपूतु किौ, जोलिा किौ कोऊ।
काह की बेटीसों बेटा न ब्यािब, काहकी जावत वबगार न सोऊ।
तुलसी सरनाम गुलामु िै राम को, जाको रुचै सो किै कछु ओऊ ॥
माूँवग के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबको एकु न दैबको दोऊ।
शब्दाथय:-
कोऊ = कोई। काह = ककसी की। धूत = धूतय। अिधूत = िीतरागी (संन्द्यासी । रजपूतु = क्षविय। ब्यािब = वििाि
करना। वबगार = वबगाड़ना। सरनाम = प्रवसि । गुलामु = दास। रुचै = अर्चछा लगे। ओऊ = और। खैबो = खाना। मसीत =
मवस्जद। लैबको = लेना। दैबको = देना।
व्याख्या:-
यिाूँ गोस्िामी तुलसीदास दुवनया के लोगों को स्पष्ट किते िैं कक यकद आप मुझे धूतय और मक्कार किें या संन्द्यासी किें तो मुझे
कोई फकय निीं पड़ता। चािे मुझे राजपूत अथायत् क्षविय किें या जुलािा किें, इन नामों की भी मुझे कोई परिाि निीं िै। मुझे
ककसी की बेटी के साथ अपने बेटे का वििाि निीं करना वजससे ककसी की जावत वबगड़ जाए। मैं तुलसीदास तो संसार में
राम के दास के रूप में प्रवसि हूँ, अतः मुझे ककसी की कोई सचंता निीं िै। वजसको भी मेरे बारे में जो अर्चछा लगता िै िि
बड़े शौक से कि सकता िै। मुझे लोगों के द्वारा की गई प्रशंसा या सनंदा से कु छ लेना-देना निीं। मैं माूँगकर रोटी खाता हूँ
और मवस्जद में जाकर सो जाता हूँ। न मैं ककसी से एक लेता हूँ और न ककसी को दो देता हूँ। मैं िमेशा अपनी धुन में मस्त
रिता हूँ।
विशेष:-
(1) इस पद से पता चलता िै कक तुलसीदास को अपने जीिन में अनेक अपिादों और विरोधों का सामना करना पड़ा था।
परं तु कवि ने अपने विरोवधयों की परिाि न करके राम-भवक्त में मस्त िोकर अपना जीिन गुजार कदया।
(2) संपूिय पद में दास्य भवक्तभाि की अवभव्यवक्त हुई िै।
(3) संपूिय पद में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग देखा जा सकता िै।
(4) लेना एक न देना दो' मुिािरे का प्रभािशाली प्रयोग देखा जा सकता िै।
(5) सिज एिं सरल साविवत्यक तथा ब्रजािवध भाषा का सफल प्रयोग हुआ िै।
(6) सिैया छंद का सफल प्रयोग हुआ िै।

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लक्ष्मि-मूर्चछाय और राम का विलाप
ति प्रताप उर रावख प्रभु जैिऊूँ नाथ तुरंत।
अस कवि आयसु पाइ पद बंकद चलेउ िनुमंत॥
भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीवत अपार।
मन महुूँ जात सराित पुवन पुवन पिनकु मार।
शब्दाथय:-
ति = तुम्िारा। प्रताप = यश। उर = हृदय। रावख = रखकर । जिऊ = जाऊूँगा। अस = इस प्रकार। आयसु = आज्ञा। पद =
चरि । बंकद = िंदना करके । बाहु = भुजा। सील = सद्व्यििार। प्रीवत = प्रेम । महुूँ = में। अपार = अत्यवधक। सराित =
प्रशंसा करना। पुवन पुवन = बार-बार । पिनकु मार = िनुमान।
व्याख्या:-
िनुमान ने भरत से किा िे प्रभु! आप बड़े प्रतापी और यशस्िी िैं। इस बात को मन में धारि करके मैं आपके बाि पर बैठकर
तत्काल चला जाऊूँगा। यि किकर िनुमान ने भरत के चरिों की िंदना की और उनकी आज्ञा पाकर लं का के वलए प्रस्थान
कर कदया। िनुमान भरत के बाहु-बल (िीरता , उनके सद्व्यििार, विविध गुिों तथा राम के चरिों से अपार प्रेम देखकर
मन-िी-मन उनकी बार-बार सरािना करते हुए चले जा रिे थे।
विशेष:-
(1) इन दोिों में कवि ने भरत की िीरता, प्रताप तथा उनके शील का सुंदर िियन ककया िै।
(2) अनुप्रास तथा पुनरुवक्त प्रकाश अलंकारों का सफल प्रयोग ककया गया िै।
(3) सिज एिं सरल साविवत्यक अिधी भाषा का प्रयोग ककया गया िै।
(4) शब्द-चयन उवचत और भािावभव्यवक्त में सिायक िै।
(5) यिाूँ कवि ने संिादात्मक और कथात्मक शैवलयों का प्रयोग ककया िै तथा दोिा छंद िै।
उिाूँ राम लवछमनवि वनिारी। बोले बचन मनुज अनुसारी॥
अधय रावत गइ कवप नसिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायऊ।।
सकहु न दुवखत देवख मोवि काऊ। बंधु सदा ति मूदल ु सुभाऊ॥
मम वित लावग तजेहु वपतु माता। सिेहु विवपन विम आतप िाता॥
सो अनुराग किाूँ अब भाई। उठहु न सुवन मम बच विकलाई।
जौं जनतेउूँ बन बंधु विछोह। वपतु बचन मनतेउूँ नसिं ओह।।
शब्दाथय:-
उहाूँ = िहाूँ। निहारी = देखकर। ििुज = िािि। अिय = आिी। कनप = िािर/हिुिाि। आर्उ = आर्ा। अिुज = छोटा भाई।
उर = हृदर्। सकहु = सकते। ति = तुम्हारा। िृदल
ु = कोिल। िि नहत = िेरे नलए। निनपि = जंगल। नहि = ठं ड। आतप =
गिी। बाता = िार्ु/आंकी। अिुराग = प्रेि। िि = िेरे। िच = िचि। नबकलाई = व्याकु ल। जितेउूँ = जािता। नबछोहू =
निर्ोग। िितेउूँ = िािता। ओहू = उसे।
व्याख्या:-
ििाूँ जब राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मि को मूर्र्चछयत देखा तो िे एक सामान्द्य मानि के समान विलाप करने लगे। भाि यि
िै कक लक्ष्मि की मूछाय के कारि राम अत्यवधक व्याकु ल िो चुके थे। इसवलए िे एक साधारि मानि के समान रोने लगे।
विलाप करते हुए िे किते िैं कक आधी रात व्यतीत िो चुकी िै, परं तु िनुमान अभी तक निीं आया। राम ने अपने छोटे भाई

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लक्ष्मि को अपनी छाती से लगा वलया और विलाप करते हुए किने लगे कक तुम्िारा स्िभाि तो इतना कोमल था कक तुम
मेरे दुख को देख निीं सकते थे, तुमने िमेशा दुख में मेरा साथ कदया। मेरे वलए ने अपने माता-वपता का त्याग ककया और िन
में रिते हुए सदी, गमी और तूफान को सिन ककया। भाि यि िै कक लक्ष्मि ने अयोध्या नगरी का सुविधापूिय जीिन
त्यागकर िनिास में राम का साथ कदया। श्रीराम किते िैं िे भाई! मेरे प्रवत तुम्िारा िि स्नेि किाूँ चला गया। तुम मेरे व्याकु ल
िचनों को सुनकर क्यों निीं उठ खड़े िोते। यकद मुझे पता िोता कक िेरा अपने भाई से वियोग िोगा तो मैं वपता की आज्ञा
कभी निीं मानता। भाि यि िै कक राम लक्ष्मि का वियोग एक क्षि के वलए भी सिन निीं कर सकते।
विशेष:-
(1) यिाूँ राम के द्वारा बोले गए करुि िचन एक सामान्द्य मानि के समान िैं। राम के यि िचन भाि पूिय िोने के साथ-
साथ लक्ष्मि के आदशय आदशय चटरि पर भी प्रकाश र्ालते िैं।
(2) अनुप्रास, पद-मैिी तथा स्िर-मैिी अलंकारों का स्िाभाविक प्रयोग हुआ िै।
(3) तत्सम् प्रधान साविवत्यक अिधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ िै।
(4) शब्द-चयन सियथा उवचत और सटीक िै।
(5) प्रस्तुत पद में चौपाई छंद का कु शल वनिायि हुआ िै तथा सबंब-योजना भी सुंदर बन पड़ी िै।
सुत वित नाटर भिन पटरिारा। िोसिं जासिं जग िारसिं बारा॥
अस विचाटर वजयें जागहु ताता। वमलइ न जगत सिोदर भ्राता ॥
जथा पंख वबनु खग अवत दीना। मवन विनु फवन कटरबर कर िीना।।
अस मम वजिन बंधु विनु तोिी। जौं जड़ दैि वजआिै मोिी॥
जैिउूँ अिध किन मुहुूँ लाई। नाटर िेतु वप्रय भाइ गिाई।
बरु अपजस सितेउूँ जग मािीं। नाटर िावन वबसेष छवत नािीं।।
शब्दाथय:-
सुत = पुि। वित = धन। िोसिं जासिं = िो जाते िैं। िारसिं बारा - बार-बार। विचाटर = विचार करके । वजयूँ = मन में। जागहु =
जागो । ताता = वप्रय भाई। सिोदर = सगा भाई। जथा = वजस प्रकार। दीना = दुखी। फवन == साूँप कटरबर = िाथी। िीना =
से रवित। तोिी = तेरे। जौं = यकद। जड़ = कठोर। देि = भाग्य। वजआिे = जीवित रखे। जैिउूँ = जाऊूँगा। मुहुूँ लाई = मुूँि
लेकर। अपजस = कलंक। सितेउूँ = सिता रहूँगा। मािीं = में। छवत = नुकसान, िावन।
व्याख्या:-
इस संसार में पुि, धन, पत्नी, भिन और पटरिार बार बार प्राप्त िोते रिते िैं और नष्ट िोते रिते िैं अथायत ये जीिन में आते
िैं और चले भी जाते िैं, परं तु िे भाई! तुम अपने मन में यि विचार कर जाग जाओ कक सगा भाई पुनः प्राप्त निीं िोता। िे
भाई लक्ष्मि! वजस प्रकार पखों के वबना पक्षी दीन िो जाता िै और मवि के वबना साूँप तथा सूंर् के वबना िाथी दीन-िीन
िो जाता िै। यकद विधाता मुझे तुम्िारे वबना जीवित रखता िै तो तुम्िारे वबना मेरी भी िालत ऐसी िी िोगी।
िे वप्रय भाई! मैं अयोध्या में क्या मुूँि लेकर जाऊंगा। मेरे बारे में लोग किेंगे कक मैंने अपनी नारी के वलए वप्रय भाई को खो
कदया। मैं नारी को खोने का अपयश तो सिन कर लूंगा क्योंकक लोग मुझे कायर किेंगे , लेककन मैं भाई को खोने का दुख
बदायश्त निीं कर पाऊूँगा। मेरे वलए पत्नी की िावन कोई बहुत बड़ी बात निीं िै, परं तु भाई की िावन बहुत बड़ी बात िै।
विशेष:-
(1) यिाूँ कवि ने राम को मानि के रूप में प्रस्तुत करते हुए उनकी कथा और पीड़ा का मार्मयक िियन ककया िै।
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(2) राम का भ्रातृ-प्रेम अवधक प्रशंसनीय िै। ये पत्नी, पुि, धन, भिन आकद की तुलना में अपने भाई लक्ष्मि को अवधक मित्त्ि
देते िैं।
(3) राम ने अनेक दृष्टांत देकर अपने भ्रातृ-भाि पर प्रकाश र्ाला िै।
(4) 'जो पंख वबनु' में उदािरि अलंकार िै।
(5) संपूिय पद में अनुप्रास अलंकार की छटा दशयनीय िै।
(6) सिज एिं सरल साविवत्यक अिधी भाषा का सफल प्रयोग िै। शब्द-चयन सियथा सटीक और उवचत िै।
(7) चौपाई छंद तथा करुि रस का सुंदर पटरपाक िै।
अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सविवि वनठु र कठोर उर मोरा॥
वनज जननी के एक कु मारा । तात तासु तुम्ि प्रान अधारा।।
सौंपेवस मोवि तुम्िवि गवि पानी। सब विवध सुखद परम वित जानी।
उतरु काि दैिउूँ तेवि जाई। उटठ ककन मोवि वसखािहु भाई॥
बहु विवध सोचत सोच विमोचन। स्रित सवलल रावजि दल लोचन॥
उमा एक अखंर् रघुराई। नर गवत भगत कृ पाल देखाई॥
सोरठा
प्रभु प्रलाप सुवन कान वबकल भए िानर वनकर
आइ गयउ िनुमान वजवम करुना मूँि िीर रस॥
शब्दाथय:-
अपलोकु = अपयश । सोकु = दुख। तोरा = तेरा। उर = हृदय । मोरा = मेरा। कु मारा = पुि । तासु = उसके वलए। प्रान
अधारा = प्रािों के आधार। सौपेवस = सौंपा था। गवि = पकड़कर। पानी = िाथ। सब वबवध = िर तरि से। परम वित =
सच्चा वितैषी। उतरु = उर्त्र। तेवि = ििाूँ। ककन = क्यों निीं। बहु विवध = अनेक प्रकार से।विमोचन = शोक से मुवक्त देने
िाले राम। स्रित = बिता। रावजि दल लोचन = कमल के समान वखले हुए नेि। उमा = पाियती। रघुराई = रघुकुल के राजा
राम। कृ पाल = कृ पालु । प्रलाप = विलाप । विकल = व्याकु ल । बानर वनकर = िानरों का समूि। वजवम = जैसे। मैंि = में।
व्याख्या:-
र्हाूँ निलाप करते हुए राि अपिे िूर्छयत भाई लक्ष्िण को संबोनित करते हुए पुिुः कहते हैं-हे पुि लक्ष्मि! अब तो मेरे कठोर
हृदय को पत्नी खोने का अपयश और तुम्िारा शोक ये दोनों दुख सिन करने पड़ेगे। भाि यि िै कक तुम्िारे वबना मैं अपनी
पत्नी सीता को भी निीं पा सकता। िे भाई! तुम अपनी माता के एक िी पुि िो और उसके प्रािों के आधार िो। तुम्िारी
माता सुवमिा ने सब प्रकार से तुम्िारा सुख और ककयाि समझकर तुम्िारा िाथ मेरे िाथ में सौंपा था। अब तुम िी बताओ
मैं लौटकर उन्द्िें क्या उर्त्र दूग
ं ा। िे भाई! तुम उठकर मुझे समझाते क्यों निीं। इस प्रकार सांसाटरक प्रावियों की सचंताओं को
दूर करने िाले राम स्ियं अनेक सचंताओं में र्ू ब गए। कमल के समान उनके विशाल नेिों से आूँसू टपकने लगे। इस प्रकार
कथािाचक वशिजी ने पाियती से किा जो राम स्ियं पटरपूिय और अनंत िैं, िे िी अपने भक्तों को कृ पा करके नर लीला कदखा
रिे िैं। भले िी िे विष्िु के अितार िैं, लेककन इस समय िे सामान्द्य मानि के समान आचरि कर रिे िैं। प्रभु श्रीराम के
विलाप को सुनकर िानरों का समूि दुख से अत्यवधक व्याकु ल िो गया। उसी समय िनुमान जी अचानक ऐसे प्रकट िो गए
जैसे करुि रस में िीर रस प्रकट िो जाता िै। भाि यि िै कक िनुमान के आते िी शोक का िातािरि िीरता में बदल गया।
विशेष:-
(1) यिाूँ मयायदा पुरुषोर्त्म राम एक सामान्द्य मानि के रूप में करुिापूिय विलाप करते हुए भािपूिय िचन कि रिे िैं।

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(2) यिाूँ कवि ने राम के वलए तीन विशेषिों का प्रयोग ककया िै-सोच वबमोचन, रावजि दल लोचन तथा रघुराई।
(3) 'सोच वबमोचन' में यमक अलंकार तथा 'स्रित सवलल' में अनुप्रास अलंकार िै।
(4) अन्द्यि संपूिय पद में अनुप्रास अलंकार की छटा देखी जा सकती िै।
(5) सिज एिं सरल साविवत्यक अिधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ िै।
(6) प्रसाद गुि िै तथा करुि रस का पटरपाक िै।
(7) चौपाई छंद तथा संिादात्मक शैली का प्रयोग हुआ िै।
िरवष राम भेटेउ िनुमाना। अवत कृ तग्य प्रभु परम सुजाना।।
तुरत बैद ति कीवन्द्ि उपाई। उटठ बैठे लवछमन िरषाई॥
हृदयूँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। िरषे सकल भालु कवप िाता।।
कवप पुवन बैद तिाूँ पहुूँचािा। जेवि विवध तबसिं तावि लइ आिा॥
यि िृतांत दसानन सुनेऊ। अवत विषाद पुवन पुवन वसर धुनेऊ॥
व्याकु ल कुं भकरन पसिं आिा। विविध जतन कटर तावि जगािा॥
शब्दाथय-
िरवष = प्रसन्न िोकर। भेटेउ = भेंट की। कृ तग्य = आभारी। सुजाना = ज्ञानी। बैद = िैद्य। उपाई = उपाय । िरषाई = प्रसन्न
िोकर। सकल = सारे । भालु = भालू जावत के िनिासी। व्राता = समूि। कवप = िानर जावत के िनिासी। जेवि वबवध = वजस
ढंग से। लइ आिा = ले आया था। िृतांत = िियन। सुनेऊ = सुना। विषाद = दुख। वसर धुनेऊ = पछताया। पसिं = के
पास। विविध = अनेक प्रकार के । जतन = प्रयत्न। जगािा = जगाया।
व्याख्या-
प्रसन्न िोकर श्रीराम ने िनुमान से भेंट की। परम ज्ञानी िोते हुए भी राम ने िनुमान के प्रवत अपनी कृ तज्ञता व्यक्त की अथायत्
उन्द्िोंने िनुमान का उपकार माना। संजीिनी प्राप्त िोते िी िैद्य ने लक्ष्मि का उपचार ककया और िे प्रसन्न िोकर उठ बैठे।
उन्द्िें िोश आ गया। तब प्रभु राम ने लक्ष्मि को अपने हृदय से लगा वलया। वजसे देखकर सभी भालू और िानर समूि
अत्यवधक प्रसन्न हुए। इसके पश्चात् िनुमान ने िैद्य को ििाूँ पहुूँचाया, जिाूँ से िि उन्द्िें सम्मानपूियक लाया था। रािि ने यि
सारा िृर्त्ांत सुना। िि अत्यवधक दुखी िोकर अपना वसर धुन -धुन कर पछताने लगा। इसके बाद िि व्याकु ल िोकर अपने
भाई कुं भकरि के पास आया और उसने अनेक प्रकार के प्रयत्न करके उसे गिरी नींद से जगाया।
विशेष-
(1) इस पद में कवि ने जिाूँ एक ओर राम, लक्ष्मि, भालू तथा िानर सेना की प्रसन्नता का िियन ककया िै, ििीं दूसरी ओर
रािि के विषाद का भी सजीि िियन ककया िै।
(2) मयायदा पुरुषोर्त्म िोते हुए भी राम ने िनुमान के प्रवत अपनी कृ तज्ञता व्यक्त की िै।
(3) संपूिय पद्य में अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ िै।
(4) सिज एिं सरल साविवत्यक अिधी भाषा का सफल प्रयोग हुआ िै।
(5) चौपाई छंद का प्रयोग िै तथा िियनात्मक शैली िै।
जागा वनवसचर देवखअ कै सा। मानहुूँ कालु देि धटर िैसा॥
कुं भकरन बूझा कहु भाई। कािे ति मुख रिे सुखाई।
कथा किी सब तेसिं अवभमानी। जेवि प्रकार सीता िटर आनी॥
तात कवपन्द्ि सब वनवसचर मारे । मिा मिा जोधा संघारे ॥
दुमुयख सुरटरपु मनुज अिारी। भट अवतकाय अकं पन भारी॥
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अपर मिोदर आकदक बीरा। परे समर मवि सब रनधीरा।।
शब्दाथय-
वनवसचर = राक्षस। कालु = काला। देि धटर = शरीर धारि करके । कहु = किी। ति = तुम्िारा। तेसिं = तैसा। जेवि =
जैसा। तात = भाई। कवपन्द्ि = िानरों ने। संघारे = मारे । जोधा = योिा । सुरटरपु = देिशिु। मनुज अिारी = मानि खाने
िाले। अवतकाय = भारी शरीर िाले। अपर = दूसरा। मिोदर = एक राक्षस का नाम। समर = युि। मवि = पृ्िी।
व्याख्या-
नींद से जागने पर िि राक्षस कुं भकरि ऐसा लग रिा था मानों मृत्यु देि धारि करके बैठी िो अथायत् कुं भकरि देखने में
बहुत िी भयंकर था। तब कुं भकरि ने रािि से पूछा िे भाई! मुझे बताओ ककस कारि से तुम्िारे मुख सूख गए िैं अथायत् तुम
घबराए हुए क्यों िो? तब उस अवभमानी रािि ने िि सारी कथा कि सुनाई वजस प्रकार िि सीता का िरि करके लाया
था। रािि ने किा-िे भाई! िानर सेना ने सारे राक्षसों को मार कदया िै और मेरे बड़े-बड़े योिाओं का िध कर कदया िै।
दुमुयख, देिशिु, मनुष्य भक्षक, मिायोिा, अवतकाय, अकं पन, मिोदर आकद मेरे असंख्य िीर योिा युि-क्षेि में मारे गए िैं।
भाि यि िै कक मेरी सेना के बड़े-बड़े योिा िानर सेना ने मार वगराए िैं।
विशेष-
(1) यिाूँ कुं भकरि ने वनभीक िोकर अवभमानी रािि पर टटप्पिी की िै।
(2) रािि ने अपने भाई कुं भकरि के सामने अपनी पराजय का यथाथय िियन ककया िै।
(3) अनुप्रास तथा पुनरुवक्त प्रकाश अलंकारों का स्िाभाविक प्रयोग हुआ िै।
(4) संपूिय पद्य में साविवत्यक अिधी भाषा का प्रयोग देखा जा सकता िै।
(5) चौपाई छंद का प्रयोग िै तथा संिादात्मक शैली िै।
सुवन दसकं धर बचन तब कुं भकरन वबलखान।
जगदंबा िटर आवन अब सठ चाित ककयान।।
शब्दाथय-
दसकं धर = रािि। वबलखान = दुखी िोकर। जगदंबा = जगत जननी सीता। िटर = िरि करके । सठ = दुष्ट।
व्याख्या-
रािि के िचनों को सुनकर कुं भकरि ने दुखी िोकर किा-िे दुष्ट रािि! तू जगत-माता सीता का िरि करके अब अपना
ककयाि चािता िै। ऐसा कदावप निीं िो सकता। अतः तेरा विनाश तो वनवश्चत िी िै।
विशेष-
(1) यिाूँ कवि ने कुं भकरि के मुख से रािि के प्रवत घृिा-भाि का िियन ककया िै।
(2) अनुप्रास अलंकार का सफल प्रयोग हुआ िै।
(3) साविवत्यक अिधी भाषा का प्रयोग िै। शब्द-चयन उवचत तथा भािानुकूल िै।
(4) दोिा छंद का प्रयोग िै।
काव्यांशों पर आधाटरत बहुविककपीय प्रश्न
ककसबी, ककसान- कु ल, बवनक, वभखारी, भाट,
चाकर, चपल, नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त वगटर,

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अटत गिन-गन अिन अखेटकी ॥
ऊूँचे-नीचे करम, धरम-अधरम कटर,
पेट िी को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
'तुलसी' बुझाई एक राम घनस्याम िी तें,
आवग बर्िावगतें बड़ी िै आवग पेटकी ।।
1. तुलसीदासजी के समय समाज की वस्थवत कै सी थी ?
(क लोग बहुत वनधयन थे। (ख लोगों के पास काम-धंधे निीं थे।
(ग भूख वमटाने के वलए कोई भी अनुवचत कायय करने को तैयार थे। (घ उपयुयक्त सभी।
उर्त्र - विककप (घ सिी िै।
2. पेट की अवि की तुलना ककससे की गई िै ?
(क चूकिे की अवि से । (ख बड़िावि से ।
(ग दािानल से। (घ यज्ञ की अवि से ।
उर्त्र - विककप (ख सिी िै।
3. कवि को इस समस्या के समाधान के वलए ककस पर भरोसा िै -
(क श्रीराम की भवक्त पर (ख श्रीकृ ष्ि की भवक्त पर
(ग राजा की कृ पा पर (घ कड़े पटरश्रम पर।
उर्त्र-विककप (क सिी िै।
4. अनुप्रास अलंकार का उदािरि निीं िै -
(क ककसबी, ककसान-कु ल (ख बेचत बेटा बेटकी
(ग बड़ी िै आवग पेट की (घ चोर, चार, चेटकी ।
उर्त्र - विककप (ग सिी िै।
खेती न ककसान को, वभखारी को न भीख, बवल,
बवनक को बवनज न चाकर को चाकरी।
जीविका वििीन लोग सीद्यमान सोच बस,
किैं एक एकन सों' किाूँ जाई, का करी ?"
बेद पुरान किी, लोकहूँ वबलोककअत,
सौकरे सिय पै, राम रािरें कृ पा करी।
दाटरद दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु ।
दुटरत दिन देवख तुलसी ििा करी|
1. प्रकृ वत और शासन की विषमता का क्या कारि िै?
(क दैिीय कोप से ग्रस्त िै. (ख उनमें देशभवक्त की भािना निीं िै।
(ग लोग आजीविका वििीन िैं। (घ लोगों में आलस्य भरा िै।
उर्त्र - विककप (ग सिी िै।
2. कवि ने दटररता की तुलना ककससे की िै ?
(क मृत्यु से (ख रािि से
(ग अंधकार से (घ श्रीराम से।
उर्त्र-विककप (ख सिी िै।
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3. कवि को इस दुव्ययिस्था में ककसका भरोसा िै ?
(क श्रीराम का (ख शासन का
(ग इंर का (घ भाग्य का ।
उर्त्र - विककप (क सिी िै।
4. कवि ने िेद, पुराि आकद ग्रंथों का उकलेख ककया िै-
(क ज्ञान-प्रावप्त को प्रेटरत करने के वलए (ख अपनी बात को सिी बताने के वलए
(ग श्रीराम की भवक्त का प्रमाि देने के वलए (घ गरीबी की भयाििता दशायने के वलए।
उर्त्र-विककप (ग सिी िै।
5. उपयुयक्त काव्यांश ककस पाठ से वलया गया िै ?
(क कवितािली (ख गीतािली
(ग रामचटरतमानस (घ रचनािाली
उर्त्र-विककप (क सिी िै।
ति प्रताप उर रावख प्रभु जैि नाथ तुरंत
अस कवि आयसु पाइ पद बंकद चलेठ िनुमत।।
भरत बाहुबल सील गुन प्रभु पद प्रीवत अपार
मन महुूँ जात सराित पुवन-पुवन पिनकु मार
1. काव्यांश में िनुमान जी ने ककससे चलने की आज्ञा माूँगी ?
(क श्री राम जी से (ख भरत जी में
(ग लक्ष्मि जी से (घ सुग्रीि जी मे
उर्त्र-विककप (ग सिी िै।
2. िनुमान ने भरत जी को आश्वासन कदया कक-
(क का प्रताप हृदय में रख समय पर पहुूँच जाऊंगा
(ख आपकी आिभगत से मन ह्रदय प्रफु वकलत िै।
(ग मैं प्रभु से आपकी प्रशंसा करूूँगा।
(घ शीघ्र िी प्रभु को आपसे वमलने के वलए राजी कर लूंगा
उर्त्र-विककप (क सिी िै।
3. िनुमान जी कक भेंट भरत जी से किाूँ पर हुई थी ?
(क पंचिटी में (ख अयोध्या में
(ग वचिकू ट में (घ लंका में
उर्त्र-विककप (ख सिी िै।
प्रभु प्रलाप सुनी कान वबकम भए बानर वनकर
आई गयऊ िनुमान, वजवम करुना मिूँ बीर रस
िरवष राम भेटेउ िनुमाना, अवत कृ तज्ञ प्रभु परम सुजाना
तुरत बैद तब कीवन्द्ि उपाई, उटठ बैठे लवछमन िषायई
ह्रदयं लाई प्रभु भेंटेउ भ्राता िषे सकल भालु कवप भ्राता
कवप पुवन बैंद तिां पहुूँचािा जेवि वबवध तबसिं तावि लई आिा
1. प्रभु राम के विलाप का कारि क्या था ?
(क भरत से वियोग (ख सीता का िरि
(ग वपता की मृत्यु (घ लक्ष्मि कक मूछाय
उर्त्र-विककप (घ सिी िै।
2. िनुमान जी के आगमन से करूि रस के बीच ककस रस की उत्पवर्त् िो गयी ?

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(क रौर रस (ख भयानक रस
(ग िीर रस (घ अद्भुत रस
उर्त्र-विककप (ग सिी िै।
3. लक्ष्मि की मूछाय समाप्त िोने पर सुषेि िैध के प्रवत कै सा व्यििार ककया गया ?
(क प्रतावड़त ककया गया (ख उनके घर पहुूँचाया गया
(ग बंदी बना वलया गया (घ अपना राज्िैदय वनयुक्त ककया गया
उर्त्र-विककप (ख सिी िै।
जौं जनतेऊूँ बन बंधु वबछोह ।वपता बचन मनतेऊूँ नसिं ओह ।।
सुत वबत नाटर भिन पटरिारा।िोसिं जासिं जग बारसिं बारा ।।
अस वबचाटर वजयूँ जागहु ताता।वमलइ न जगत सिोदर भ्राता ।।
जथा पंख वबनु खग अवत दीना। मवन वबनु फवन कटरबर कर िीना ।।
अस मम वजिन बंधु वबनु तोिी ।जौं जड़ दैि वजआिै मोिी
जैिउूँ अिध किन मुहुूँ लाई । नाटर िेतु वप्रय भाई गूँिाई ।।
बरु अपजस सिते जग मािीं।नाटर िावन वबसेष छवत नािीं ।।
1. यि संभि निीं था की श्री राम जी वपता के िचन निीं मानें,कफर िे ऐसा क्यों कर रिे थे ?
(क लक्ष्मि के मूर्छयत िोने के कारि (ख सीता का अपिरि िो जाने के कारि
(ग अयोध्या की याद आने के कारि (घ अितार िोने पर मानि लीला िोने के कारि
उर्त्र-विककप (घ सिी िै।
2. पक्षी और िाथी के माध्यम से श्री राम क्या बताना चािते िैं ?
(क पक्षी पंख के वबना निीं उड़ सकता िै (ख सूंर् के वबना िाथी का कोई अवस्तत्ि निीं िै
(ग लक्ष्मि के वबना मेरा जीिन व्यथय िै (घ पक्षी और िाथी के समान िे भी दर दर भटक रिे िैं
उर्त्र-विककप (ग सिी िै।
3. यिाूँ ककसकी क्षवत को मित्ििीन बताया गया िै ?
(क भाई की (ख नारी की
(ग पटरिार की (घ स्िास््य की
उर्त्र-विककप (क सिी िै।
लघु उर्त्रीय प्रश्न
प्रश्न 1. 'कवितािली' के अनुसार िेदों और पुरािों में क्या किा गया िै?
उर्त्र- 'कवितािली' के अनुसार िेदों और पुरािों में बताया गया। िै कक धरती पर जब-जब संकट उत्पन्न िोता िै तब प्रभु
श्रीराम अितार लेकर सबके कष्ट ि संकट दूर करते िैं।
प्रश्न 2. कवितािली' कविता के आधार पर बताइए कक तुलसीदास जी समाज से क्या किना चािते िैं ?
उर्त्र-‘कवितािली' के माध्यम से तुलसीदास किना चािते िैं कक समाज उनके बारे में जो कु छ किना चािता िै किे, उन पर
इसका कोई प्रभाि निीं पड़ने िाला। िि समाज के लोगों से कोई मतलब निीं रखना चािते।
प्रश्न 3. कवि अपने जीिन-वनिायि िेतु क्या करने को तत्पर िै?
उर्त्र- कवि तुलसीदासजी किते िैं कक िे वभक्षा माूँग कर अपना जीिन-वनिायि कर लेंगे, परं तु अपने लक्ष्य से पीछे निीं िटने
िाले। उन्द्िें कोई कु छ किता िै किे, इसकी परिाि उन्द्िें निीं िै। जीिन-वनिायि िेतु वभक्षा लेने को तत्पर िैं। िे के िल अपने
प्रभु श्रीराम पर िी आवश्रत िैं। उन्द्िें ककसी अन्द्य से कोई लेना-देना निीं िै। िे वनसश्चंत िोकर मवस्जद में सोते िैं।
प्रश्न 4. तुलसीदास के समय तत्कालीन समाज कै सा था ?

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उर्त्र-तुलसीदास के समय में सामावजक मान्द्यताएं ि परम्पराएं - नष्ट िो रिी थीं। समाज में धार्मयक अंधविश्वास फै ल रिा
था वजनमें पूरा समाज फूँ सता जा रिा था। समाज में नारी की वस्थवत शोचनीय थी
प्रश्न 5. भरत को िीर िनुमान ने क्या भरोसा कदलाया ?
उर्त्र- भरत को िीर िनुमान ने भरोसा कदलाया कक, िे नाथ! मैं आपके प्रताप को हृदय में रखकर शीघ्र िी संजीिनी बूटी
लेकर लंका में श्रीराम के पास पहुूँच जाऊूँगा। आप वबककु ल भी सचंता न करें
प्रश्न 6. तुलसीदास के अनुसार पेट की आग का शमन कौन कर सकता िै ?
उर्त्र- तुलसीदास के अनुसार पेट की आग का शमन ईश्वर-कृ पा द्वारा िी िो सकता िै। प्रभु कृ पा और संतोष-भािना से िी
भूख शांत िो सकती िै।
प्रश्न 7. कवि श्रीराम से क्या चािता िै और क्यों ?
उर्त्र- कवि श्रीराम से यि किना चािता िै कक संकट के समय में प्रभु श्रीराम कृ पा करें क्योंकक िे दीनबंधु िैं और संकट पड़ने
पर सबकी सिायता िे िी कर सकते िैं ।
प्रश्न 8. लक्ष्मि के िोश में न आने पर राम के हृदय को कौन-कौन से कष्ट व्यवथत कर रिे थे?
उर्त्र- लक्ष्मि के िोश में न आने पर राम के हृदय को यि कष्ट सता रिा था कक िि अपनी माता को ककस प्रकार समझा
पाएूँगे कक मैं अपनी स्त्री को बचाने के वलए अपने भाई को गूँिा आया।
प्रश्न 9. कुं भकरि गिरी नींद में कै सा लग रिा था ? उसे कै से उठाया गया ?
उर्त्र- कुं भकरि का आकार विशाल ि भयंकर था। गिरी नींद में सोता हुआ िि ऐसे लग रिा था मानो स्ियं काल सोया
हुआ
प्रश्न 10. रािि की बात पर कुं भकिय की क्या प्रवतकक्रया था ?
उर्त्र- रािि की बात सुनकर कुं भकिय वबलखने लगा। उसने रािि से किा कक तुम मूखय िो। जगत जननी सीता का िरि
करके ककयाि की बात सोचना मूखयता िी िै। अब ककसी भी प्रकार तुम्िारा भला निीं िो सकता
दीघय उर्त्रीय प्रश्न
प्रश्न 1. पेट की आग राम भवक्त के मेघ से िी शांत िो सकती िै— तुलसी की रचना की पृष्ठभूवम में तत्कालीन सामावजक
दशा पर टटप्पिी कीवजए ।
उर्त्र- कवितािली की इस पंवक्त में तुलसी ने यि बताया िै कक समाज में लोगों को रोजगार उपलब्ध निीं िै। न ककसान को
खेती िै, न व्यापारी को व्यापार और न चाकर को नौकरी । सब लोग पेट की आग (भूख से िस्त िैं। यि आग राम भवक्त
रूपी जल (रामकृ पा से िी शांत िो सकती िै। समाज की दशा अत्यंत दयनीय थी
प्रश्न 2. “माूँवग के खैबो, मसीत को सोइबो" - तुलसी के इस कथन के ममय पर अपने विचार वलवखए ।
उर्त्र -तुलसीदास स्िावभमान और वनर्रता का पटरचय देते हुए किते िैं। मुझे अपने संसार वबगड़ने का कोई भय निीं िै।
आराध्य के प्रवत िमेशा पूिय समपयि का भाि िोना चाविए। अपनी भवक्त पर अवभमान निीं िोना चाविए। तुलसीदास की
तरि भीख माूँगकर खाने में या मवस्जद में सोने में कोई िजय निीं परंतु आत्मसम्मान से कोई समझौता निीं करना चाविए।
सामावजक कदखािे या यश- सनंदा की परिाि निीं करनी चाविए।
प्रश्न 3. 'धूत किौ', अिधूत किौ.......' सिैये में तुलसीदास का स्िावभमान प्रवतसबंवबत िोता िै' इस कथन की पुवष्ट कीवजए।
उर्त्र- तुलसीदास जी ने राम को ईश्वर के साथ-साथ देशकाल के आदशों के अनुरूप मानिीय धरातल पर भी िर्ियत ककया
िै। िे ग्रामीि एिं कृ षक संस्कृ वत, रक्त संबंध की मयायदा के आदशय रूप के वचतेरे कवि िैं। उन्द्िें श्रीराम की भवक्त पर पूिय
विश्वास िै। िे श्रीराम को भि-सागर से पार कराने का माध्यम मानकर उनकी उपासना करते िैं। तुलसी दास के अनुसार
राम शरिागत भक्त को आश्रय प्रदान करते िैं। भक्त उन्द्िें अपनी रुवच, भािना के अनुसार पूजता और उपासना करता िै।
प्रश्न 4 'कवितािली के छंदों में अपने युग की आर्थयक एिं सामावजक विषमता की अवभव्यवक्त िै'-कथन की पुवष्ट कीवजए ।

97
उर्त्र—तुलसी राम भक्त कवि थे। िि अपने युग के सजग प्रिरी थे और अपनी खुली आूँखों से अपने युग की कटठनाइयों को
देख रिे थे। उन्द्िोंने देखा कक उनके समय में भयंकर बेरोजगारी और भुखमरी थी। मजदूर , ककसान, व्यापारी, वभखारी,
कलाकार, नौकर, आकद सभी काम की कमी के कारि परे शान थे। काम न वमलने के कारि चारों ओर भुखमरी और वििशता
थी। सब यिी किते थे कक किाूँ जाएूँ और क्या करें ? अत: किा जा सकता िै कक तुलसीदास ने अपने युग की आर्थयक ि
सामावजक विषमता को भली भाूँवत समझा और अपनी रचनाओं में अवभव्यक्त ककया िै।
प्रश्न 5. कवितािली के आधार पर पुवष्ट कीवजए कक तुलसी को अपने समय की आर्थयक -सामावजक समस्याओं की जानकारी
थी ।
उर्त्र तुलसीदास ने अपने काव्य में सामावजक एिं आर्थयक वस्थवत का विशद िियन ककया िै। जब सभी श्रमजीिी, ककसान
िगय, बवनया, वभखारी, भाट, नौकर, नटिगय, चोर तथा जादूगर अपनी भूख वमटाने के वलए जीविकोपाजयन िेतु पढ़ते-वलखते
थे तथा कु शलता अर्जयत करते थे। पिाड़ पर चढ़ने जैसे कटठन कायय को करते थे। ये सब पेट की खावतर यिाूँ-ििाूँ भटकते थे।
वशकारी गिरे िन में कदन भर मारे -मारे भटकते थे। पेट की भूख वमटाने के वलये अत्याचार, अन्द्याय, ऊूँच-नीच, अनैवतक,
धमय-अधमय के कायय करके पेट भरते थे। पेट की खावतर अपने बेटे-बेटटयों को भी बेचने का नीच कायय भी करते थे
प्रश्न 6.“लक्ष्मि मूर्चछाय पर राम का विलाप' में तुलसीदास नारी के प्रवत तत्कालीन समाज की मान्द्यताओं के प्रभाि से बच
निीं पाए।" - सोदािरि इस कथन की पुवष्ट कीवजए ।
उर्त्र- समाज में नारी को सिज उपलब्ध माना जाता था। तुलसी दास ने भी राम के शब्दों में किलाया िै । कक सुत,वबत,
नारी, भिन और पटरिार संसार में सिज सुलभ नारी की वस्थवत एक िस्तु माि, तुलसीदास ने नारी की तुलना धन और
भिन से की िै जोकक स्थूल िस्तुएूँ िैं नारी को पुरुष के बराबर निीं समझा जाता था। उसे समुवचत सम्मान निीं कदया जाता
था। तभी तुलसी ने किा कक की कोई विशेष क्षवत निीं िै
अन्र् हल प्रश्न
लघूिरात्िक प्रश्न
1. ‘लक्ष्िण-िूछाय और राि का निलाप’ काव्या’श के आिार पर आव्रशायक िें बेचि
ै रार् कौ दशा को अपिे शब्दों िें प्रस्तुत
काूँनजए ।
अथिा
‘लक्ष्िण-िूच्छा और राि का निलाप’ कनिता का प्रनतपाद् स्पष्ट कीनजए।
उिर-लक्ष्िण को िूर्चयछत देखकर राि भाि-निहिल हो उठते हैं। िे आि व्यनि की तरह निलाप करिे लगते हैं। िे लक्ष्िण
को अपिे साथ लािे के निणयर् पर भी पछताते हैं। िे लक्ष्िण के गुणों को र्ाद करके रोते हैं। िे कहते हैं कक पुि, िारी, िि,
पठरिार आकद तो संसार िें बार-बार निल जाते हैं, ककं तु लक्ष्िण जैसा भाई दुबारा िहीं निल सकता। लक्ष्िण के नबिा िे
स्िर्ं को पंख कटे पक्षी के सिाि असहार्, िनणरनहत साूँप के सिाि तेजरनहत तथा सूँडरनहत हाथी के सिाि असक्षि िािते
हैं। िे इस बचंता िें थे कक अर्ोध्र्ा िें सुनििा िाूँ को क्र्ा जिाब देंगे तथा लोगों का उपहास कै से सुिेंगे कक पत्नी के नलए
भाई को खो कदर्ा।
2. बेकारी की सिस्र्ा तुलसी के जिािे िें भी थी, उस बेकारी का िणयि तुलसी के कनिि के आिार पर कीनजए।
अथिा
तुलसी िे अपिे र्ुग की नजस दुदश
य ा का नचिण ककर्ा हैं, उसका िणयि अपिे शब्दों िें कीनजए।

98
उिर-तुलसीदास के र्ुग िें जिसािान्र् के पास आजीनिका के सािि िहीं थे। ककसाि की खेती चौपट रहती थी। नभखारी
को भीख िहीं निलती थी। दाि-कार्य भी बंद ही था। व्यापारी का व्यापार ठप था। िौकरी भी लोगों को िहीं निलती थी।
चारों तरि बेरोजगारी थी। लोगों को सिझ िें िहीं आता था कक िे कहाूँ जाएूँ क्र्ा करें ?
3. तुलसी के सिर् के सिाज के बारे िें बताइए।
उिर-तुलसीदास के सिर् का सिाज िध्र्र्ुगीि निचारिारा का था। उस सिर् बेरोजगारी थी तथा आि व्यनि की हालत
दर्िीर् थी। सिाज िें कोई निर्ि-कािूि िहीं था। व्यनि अपिी भूख शांत करिे के नलए गलत कार्य भी करते थे। िार्ियक
कट्टरता व्याप्त थी। जानत ि संप्रदार् के बंिि कठोर थे। िारी की दशा हीि थी। उसकी हानि को निशेर् िहीं िािा जाता
था।
4. तुलसी के र्ुग की आर्थयक नस्थनत का अपिे शब्दों िें िणयि कायनजए।
उिर-तुलसी के सिर् आर्थयक दशा खराब थी। ककसाि के पास खेती ि थी, व्यापारी के पास व्यापार िहीं था। र्हाूँ तक कक
नभखारी को भीख भी िहीं निलती थी। लोग र्ही सोचते रहते थे कक क्र्ा करें , कहाूँ जाएूँ? िे िि-प्रानप्त के उपार्ों के बारे
िें सोचते थे। िे अपिी संतािों तक को बेच देते थे। भुखिरी का साम्राज्र् िै ला हुआ था।
5. लक्ष्िण के िूर्चयछत होिे पर राि क्र्ा सोचिे लगे?
उिर-लक्ष्िण शनिबाण लगिे से िूर्चयछत हो गए। र्ह देखकर राि भािुक हो गए तथा सोचिे लगे कक पत्नी के बाद अब
भाई को खोिे जा रहे हैं। के िल एक स्त्री के कारण िेरा भाई आज िृत्र्ु की गोद िें जा रहा है। र्कद स्त्री खो जाए तो कोई
बडी हानि िहीं होगी, परं तु भाई के खो जािे का कलंक जीििभर िेरे िाथे पर रहेगा। िे सािानजक अपर्श से घबरा रहे
थे।
6. क्र्ा तुलसी र्ुग की सिस्र्ाएूँ ितिाि िें सिाज िें भी निद्िाि हैं? अपिे शब्दों िें नलनखए।
उिर-तुलसी िे लगभग 500 िर्य पहले जो कु छ कहा था, िह आज भी प्रासंनगक है। उन्होंिे अपिे सिर् की िूल्र्हीिता,
िारी की नस्थनत, आर्थयक दुरिस्था का नचिण ककर्ा है। इििें अनिकतर सिस्र्ाएूँ आज भी निद्िाि हैं। आज भी लोग
जीिि-नििायह के नलए गलत-सही कार्य करते हैं। िारी के प्रनत िकारात्िक सोच आज भी निद्िाि है। अभी भी जानत ि
ििय के िाि पर भेदभाि होता है। इसके निपरीत, कृ नर्, िानणज्र्, रोजगार की नस्थनत आकद िें बहुत बदलाि आर्ा है। इसके
बाद भी तुलसी र्ुग की अिेक सिस्र्ाएूँ आज भी हिारे सिाज िें निद्िाि हैं।
7. कुं भकरण िे रािण को ककस सच्चाई का आइिा कदखार्ा?
उिर-कुं भकरण रािण का भाई था। िह लंबे सिर् तक सोता रहता था। उसका शरीर निशाल था। देखिे िें ऐसा लगता था
िािो काल आकर बैठ गर्ा हो। िह िुूँहिट तथा स्पष्ट ििा था। िह रािण से पूछता है कक तुम्हारे िुूँह क्र्ों सूखे हुए हैं?
रािण की बात सुििे पर िह रािण को िटकार लगाता है तथा उसे कहता है कक अब तुम्हें कोई िहीं बचा सकता। इस
प्रकार उसिे रािण को उसके नििाश संबंिी सच्चाई का आईिा कदखार्ा।
8. कुं भकरण के द्वारा पूछे जािे पर रािण िे अपिी व्याकु लता के बारे िें क्र्ा कहा और कुं भकरण से क्र्ा सुििा पडा?
उिर-कुं भकरण के पूछिे पर रािण िे उसे अपिी व्याकु लता के बारे िें निस्तारपूियक बतार्ा कक ककस तरह उसिे िाता
संकण ककर्ा कक उसे बतार्ा कक हािुिाि िे सिागस िारडले हैं औ िहाि र्थाओं का साहार कर कदर्ा है।

99
उसकी ऐसी बातें सुिकर कुं भकरण िे उससे कहा कक अरे िूख!य जगत-जििी को चुराकर अब तू कल्र्ाण चाहता है। र्ह संभि
िहीं है।
स्िर्ं करें
1.आप कनि तुलसीदास के िारी संबंिी सािानजक दृनष्टकोण को ितयिाि िें ककतिा प्रासंनगक सिझते हैं? नलनखए।
2.‘निलइ ि जगत सहोदर भ्राता”-र्कद लोगों द्वारा इसे अपिे जीिि िें उतार नलर्ा जाए तो सािानजक सिरसता पर क्र्ा
असर पडेगा?
3.तुलसी के सिर् िें आर्थयक निर्िता का बोलबाला था-कनितािली (उिरकांड से) के आिार पर स्पष्ट कीनजए।
4.तुलसीदास िे िेद-पुराण के ककस कथि की ओर संकेत ककर्ा है और क्र्ों?
5.‘राि-लक्ष्िण का परस्पर प्रेि भ्रातृ-प्रेि का अिूठा उदाहरण है।’ इस कथि की पुनष्ट उदाहरण सनहत कीनजए।
पाठ सं-09
रुबाइर्ाूँ
कफराक गोरखपुरी
प्रनतपादर् एिं सार
रुबाइर्ाूँ
कफराक की रुबाइर्ाूँ उिकी रचिा ‘गुले-िग्िा’ से उद्िृत हैं। रुबाई उदूय और फारसी का एक छंद र्ा लेखि शैली है। इसकी
पहली, दूसरी और चौथी पंनि िें तुक निलार्ा जाता है और तीसरी पंनि स्ितंि होती है। इि रुबाइर्ों िें बहंदी का एक
घरे लू रूप कदखता है। इन्हें पढ़िे से सूरदास के िात्सल्र् िणयि की र्ाद आती है। सार-इस रचिा िें कनि िे िात्सल्र् िणयि
ककर्ा है। िाूँ अपिे बच्चे को आूँगि िें खडी होकर अपिे हाथों िें प्र्ार से झुला रही है। िह उसे बार-बार हिा िें उछाल देती
है नजसके कारण बच्चा नखलनखलाकर हूँस उठता है। िह उसे साफ पािी से िहलाती है तथा उसके उलझे हुए बालों िें कं घी
करती है।
बच्चा भी उसे प्र्ार से देखता है जब िह उसे कपडे पहिाती है। दीिाली के अिसर पर शाि होते ही पुते ि सजे हुए घर सुंदर
लगते हैं। चीिी-निट्टी के नखलौिे बच्चों को खुश कर देते हैं। िह बच्चों के छोटे घर िें दीपक जलाती है नजससे बच्चों के सुंदर
चेहरों पर दिक आ जाती है। आसिाि िें चाूँद देखकर बच्चा उसे लेिे की नजद पकड लेता है। िाूँ उसे दपयण िें चाूँद का
प्रनतबबंब कदखाती है और उसे कहती है कक दपयण िें चाूँद उतर आर्ा है। रक्षाबंिि एक िीठा बंिि है। रक्षाबंिि के कच्चे
िागों पर नबजली के लच्छे हैं। सािि िें रक्षाबंिि आता है। सािि का जो संबंि झीिी घटा से है, घटा का जो संबंि नबजली
से है िहीं संबंि भाई का बहि से है।
पद्ांशों की व्याख्र्ा
आंगि िें नलए चाूँद के टु कडे को खडी
हाथों पे झुलाती हैं उसे गोद-भरी
रह-रह के हिा िें जो लोका देती है
गूज
ूँ उठती हैं नखलनखलाते बच्चे की हूँसी।
शब्दाथय-

100
चाूँद का टुकडा-बहुत प्र्ारा। गोद-भरी-गोद िें भरकर, आूँचल िें लेकर। लोका देती हैं-उछाल देती है।
व्याख्र्ा-शार्र कहता है कक एक िाूँ चाूँद के टुकडे अथायत अपिे बेटे को अपिे घर के आूँगि िें नलए खडी है। िहीं अपिे चाूँद
के टुकडे को अपिे हाथों पर झुलािे लगती है। बीच-बीच िें िह उसे हिा िें उछाल भी देती है। इस प्रकक्र्ा से बच्चा प्रसन्न
हो उठता है तथा बच्चे की नखलनखलाहट-भरी हूँसी गूूँजिे लगती है।
निशेर्–
 िाूँ द्वारा बच्चे को झुलािा, बच्चे का हूँसिा आकद स्िाभानिक कक्र्ाएूँ हैं। स्िभािोनि अलंकार है।
 िात्सल्र् रस है।
 दृश्र् बबंब है-‘आूँगि िें नलए चाूँद के टुकडे को खडी’, ‘गोद-भरी’, ‘हाथों पे झुलाती’, ‘हिा िें जो लोका देती है’।
 अंनति पंनि िें श्रव्य बबंब है।
 ‘चाूँद के टुकडे’ िुहािरे का सुद
ं र प्रर्ोग है।
 ‘रह-रह’ िें पुिरुनि प्रकाश अलंकार है।
 ‘लोका देिा’ देशज भार्ा का प्रर्ोग है।
 उदू-य बहंदी निनश्रत शब्दािली है।
िहला के छलके -छलके निियल जल से
उलझे हुए गेसओं
ु िें कं घी
ककस प्र्ार से देखता हैं बच्चा िुह
ूँ को
करके जब घुटनिर्ों िें ले के हैं नपन्हाती कपडे।
शब्दाथय-
छलके -नहलते-डु लते। नििल-स्िच्छ, साफ। गेसुओं-बालों। घुटनिर्ों-घुटिों। नपन्हाती-पहिाती।
व्याख्र्ा-शार्र कहता है कक िाूँ अपिे बच्चे को स्िच्छ जल से िहलाती है। उसके उलझे हुए बालों से पािी छलक रहा है। िाूँ
क्र्ों के िल की कत है जब िाहउसे अप्ने पुटों िें लेक कहे नपहिात हैत बच्था अर्ंता िे सेि के िुिक निहारता रहता है।
निशेर्–
 िाूँ के स्नेह का स्िाभानिक िणयि है। अत: स्िभािोनि अलंकार है।
 िात्सल्र् रस की सहज अनभव्यनि है।
 ‘छलके -छलके ’ िें पुिरुनि प्रकाश एिं ‘कं घी करके ’ िें अिुप्रास अलंकार है।
 ‘जब घुटनिर्ों िें ले के है नपन्हाती कपडे’ िें लोकभार्ा का प्रर्ोग है।
 उदू-य बहंदी भार्ा का निनश्रत रूप है।
 दृश्र् बबंब है।
 रुबाई छंद है।
दीिाली की शाि घर पुते और सजे
चीिी के नखलौिे जगिगाते लािे
िो रूपिती िुखडे पैं इक िि दिक

101
बच्चे के घरौंदे िें जलाती हैं कदए।
शब्दाथय-
शाि-संध्र्ा। र्ुते-साफ-सुथरे , रैं गे। लािे-लाए। रूपिती-सुंदरी। िुखडे-िुख। हुक-एक। दिक-चिक। घरोंदे-निट्टी के घर। कदए-
दीपक।
व्याख्र्ा-शार्र कहता है कक आज दीिाली की शाि है। इस अिसर पर घर रं ग-रोगि से पुता हुआ तथा सजा हुआ है। घरों
िें निठाई के िाि पर चीिी के बिे हुए नखलौिे आते हैं। रोशिी भी की जाती है। िाूँ के सुंदर िुूँह पर हलकी चिक-सी आ
जाती है। िह बच्चे के छोटे-से घर िें कदर्ा जलाती है।
निशेर्-
 आि व्यनि के घर िें दीिाली के अिसर पर हुई रौिक का स्िाभानिक नचिण है।
 िाूँ की ििता का सुंदर नचिण है।
 दृश्र् बबंब है-
‘रं ग-रोगि से पुते और सजे घर’, ‘चीिी के नखलौिे जगिगाते’, ‘रूपिती िुखडे पै इक िियदिक’, ‘घरौदे िें जलाती है कदए’।
 ‘रूपिती िुखडा’ ि ‘ििय दिक’ निलक्षण प्रर्ोग है।
 रुबाई छंद तथा भार्ा का निनश्रत रूप है।
आूँगि िें ठु िक रहा हैं नजदर्ार् है
बालक तो हई चाूँद िें ललचार्ा है
दपयण उसे दे के कह रही हैं िाूँ
देख आईिे िें चाूँद उतर आर्ा है
शब्दाथय-
ठु िक-िचलिा, बिािटी रोिा। नजदर्ार्ा-नजद के कारण िचला हुआ। हड-है ही। दर्ण-शीशा। आडिा-दपयण।
व्याख्र्ा-शार्र कहता है कक छोटा बच्चा आूँगि िें िचल रहा है। िह नजद लगाए हुए है कक उसे आकाश का चाूँद चानहए।
उसका िि उस चाूँद पर ललचा गर्ा है। िाूँ उसे दपयण िें चाूँद कदखाते हुए कहती है कक देख बेटा, दपयण िें चाूँद उतर आर्ा
है। इस तरह िह बच्चे की नजद पूरी करती है।
निशेर्-
 बच्चे की नजद तथा िाूँ द्वारा उसके सिािाि का स्िाभानिक िणयि हुआ है। अत: स्िभािोनि अलंकार है।
 ‘नजदर्ार्ा’ और ‘हई’ शब्द का प्रर्ोग निशेर् है। इससे कोिलता िें िृनद्ध हुई है।
 िात्सल्र् रस घिीभूत है।
 नचिात्िक शैली है।
 उदू-य बहंदी निनश्रत भार्ा है।
 ‘आईिे िें चाूँद उतर आर्ा’-सुंदर कल्पिा है।
 ‘ठु िक’ शब्द िें बच्चे के बाल-ििोनिज्ञाि का सहज िणयि है।
रक्षाबंदि की सुबह रस की पुतली

102
छार्ी है घटा गगि की हलकी-हलकी
नबजली की तरह चिक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाूँिती चिकती राखी
शब्दाथय-
रस की पुतली-आिंद की सौगात, िीठा बंिि। घटा-बादल। गगि-आकाश। लच्छा-राखी के चिकदार लच्छा।
व्याख्र्ा-कनि कहता है कक रक्षाबंिि की सुबह आिंद ि निठास की सौगात है। र्ह कदि िीठे बंिि का कदि है। सािि का
िहीिा है। आकाश िें काले-काले बादलों की हल्की घटाएूँ छाई हुई हैं। इि बादलों िें नबजली चिक रही है। इसी तरह राखी
के लच्छे भी नबजली की तरह चिकते हैं। बनहि अपिे भाई की कलाई पर चिकीली राखी बाूँिती है।
निशेर्–
 रक्षाबंिि के त्र्ोहार का प्रभािी नचिण है।
 उदू-य बहंदी निनश्रत भार्ा है।
 ‘हलकी-हलकी’ िें पुिरुनि प्रकाश तथा ‘नबजली की तरह चिक रहे हैं लच्छे’ िें उपिा अलंकार है।
 प्रसन्न बानलका को ‘रस की पुतली’ की संज्ञा दी गई है।
 रुबाई छंद का प्रर्ोग है।
िुख्र् बबंद:ु -
1) कफराक की रुबाइर्ों उिकी रचिा ' गुले िग्िा से उद्िृत हैं।
2) रुबाई उदूय और िारसी का एक छंद र्ा लेखि शैली है। इसकी पहली दूसरी और चौथी पंनि िें तुक निलार्ा जाता है।
और तीसरी पंनि स्ितंि होती है।
3) किराक गोरखपुरी की इि दिाइर्ों िें नहन्दी का एक घरे लू रूप कदखता है। इन्हें पढ़िे से सुरदास के िात्सल्र् िणयि का
स्िरण हो आता है।
4) र्हाूँ पर कनि द्वारा बच्चे के प्रनत िां के िात्सल्र्, दीपािली के पिय की रौिक और आत्िीर्तापूणय िातािरण तथा राखी
और भाई बनहि के पनिि बंिि की निठास का सुन्दर नचिण हुआ।
नशल्प-सौन्दर्य :
 रुिाई छंद का प्रर्ोग ।
 बबंबों का िए रूप िें प्रर्ोग
 दृश्र् नबम्ब-आूँगि िें नलए
 श्रव्य नबम्ि गूंज उठती है...
 देशज भार्ा का प्रर्ोग (लोका देिा ...)
 िुहािरों िाली भार्ा (चाूँद का टुकडा..)
पठठत काव्यांश-01
आंगि िें नलए चाूँद के टु कडे को खडी
हाथों पे झुलाती हैं उसे गोद भरी
103
रह-रह के हिा िें जो लोका देती है
गूज
ूँ उठती हैं नखलनखलाते बच्चे की हूँसी
िहला के छल-छलके निियल जल से
उलझे हुए गेसओं
ु िें कं घी करके
ककस प्र्ार से देखता है बच्चा िुह
ूँ को
जब घुटनिर्ों िें ले के हैं नपन्हाती कपडे
1. प्रस्तुत काव्यांश िें 'चाूँद का टुकडा' ककसे कहा गर्ा है?
(क) िन्हें बच्चे को (ख) िाूँ को
(ग) चाूँद को (घ) चांदिी को
2. 'आंगि िें नलए चाूँद के टुकडे को खडी’ प्रस्तुत काव्यांश िें 'चाूँद का टुकडा' िाक्र्ांश है-
(क) अलंकार (ख) सिास
(ग) िुहािरा (घ) लोकोनि
3. रह-रह के हिा िें जो लोका देती है प्रस्तुत पंनि िें कौिसा अलंकार है?
(क) पुिरुनतप्रकाश (ख) रूपक
(ग) अिुप्रास (घ) र्िक
4. िन्हा बच्चा िाूँ को प्र्ार से कब देखता है?
(क) जब िाूँ उसको िहलाती है। (ख) जब िाूँ उसके गेसुओं िें कं िी करती है
(ग) जब िाूँ उसको कपडे पहिाती है। (घ) जब िाूँ उसकी प्र्ार से बािा नखलाती है
5.नखलनखलाते बच्चे की हूँसी कब गूज
ं उठती है?
(क) जब िाूँ उसको प्र्ार से हिा िें उछालती है (ख) जब िाूँ उसके गेसुओं िें कं िी करती है।
(ग) जब िाूँ उसको कपडे पहिाती है (घ) जब िाूँ उसको खेलिे के नलए नखलौिे देती है
6.प्रस्तुत काव्यांश िें ककस रस की अनभव्यनि हुई है?
(क) शांत रस (ख) िात्सल्र् रस
(ग) श्रृंगार रस (घ) उपर्ुयि िें से कोई िहीं
उिरिाला :- पठठत पद्ांश- 01
1. क 2. ग 3. क 4. ग 5. क 6. ख
पठठत काव्यांश-02
दीिाली की शाि घर पुते और सजे
चीिी के नखलौिे जगिगाते लािे
िो रूपिती िुख इक ििय दिक
बच्चे के घरौंदे िें जलाती है कदए
आूँगि िें उिक रहा है नजदर्ार्ा है
104
बालक तो हई चाूँद पे ललचार्ा है
दपयण उसे दे के कह रही है िाूँ
देख आईिे िें चाूँद उतर आर्ा है
रक्षाबंिि की सुबह रस की पुतली
छार्ी है घटा गगि की हलकी - हलकी
नबजली की तरह चिक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाूँिती चिकती राखी
1. दीिाली पर लोग क्र्ा करते हैं?
(क) चीिी निट्टी के नखलौिों से घरों को सजाते-संिारते हैं (ख) घरों िें दीर्े जलाते हैं
(ग) अपिे घरों िें रं गाई-पुताई करते हैं (घ) उपर्ुयि सभी
2. दीिाली की शाि िाूँ बच्चे के नलए क्र्ा निशेर् करती है?
(क) बच्चे को िए कपडे पहिाती है (ख) बच्चे को घुिािे बाहर ले जाती है।
(ग) बच्चे के घरोंदे िें दीर्े जलाती है। (घ) बच्चे को आनतशबाजी करिे देती है
3.बालक ककस पर ललचार्ा है?
(क) नखलौिों पर (ख) िए कपडों पर
(ग) स्िाकदष्ट निठाईर्ों पर (घ) चाूँद पर
4. िाूँ दपयण ककसे देती है तथा उसे क्र्ा कहती है?
(क) िा दपयण अपिे पुि को देती है तथा उसे कहती है कक देखो, चाूँद ककतिा सुंदर कदखाई दे रहा है।
(ख) िाूँ दपयण अपिे पुि को देती है तथा उसे कहती है कक देखो, दपयण िें चाूँद उिर आर्ा है।
(ग) िाूँ दपयण अपिी पुिी को देती है तथा उसे कहती है कक देखो, दपयण िें चाूँद उिर आर्ा है दे रहा है
(घ) िाूँ दपयण अपिे पुिी को देती है तथा उसे कहती है कक देखो, चाूँद ककतिा सुंदर कदखाई
5. रक्षाबंिि की सुबह आसिाि कै सा है?
(क) आसिाि साि है (ख) आसिाि िें गहरे काले बादल छाए हुए हैं
(ग) आसिाि िें हलके -हलके बादल छाए हुए हैं। (घ) आसिाि िें इन्द्रििुर् कदखाई दे रहा है
6. राखी के लच्छे ककस तरह चिक रहे हैं?
(क) चाूँद की चांदिी की तरह (ख) सूरज की चिकती ककरणों की तरह
(ग) इन्द्रििुर् की तरह (घ) आसिाि िें चिकती नबजली की तरह
उिरिाला :- पठठत पद्ांश- 02
उिर 1. घ 2 ग 3.घ 4.ख 5.ग 6. घ
अन्र् हल प्रश्न
लघूिरात्िक प्रश्न
प्रश्न 1:‘रुबाइर्ाूँ” के आिार पर घर-आूँगि िें दीिाली और राखी के द्वश्र्-बबंब को अपिे शब्दों िें सिझाइए।
105
उिर –कनि दीपािली के त्र्ोहार के बारे िें बताते हुए कहता है कक इस अिसर पर घर िें पुताई की जाती है तथा उसे
सजार्ा जाता है। घरों िें निठाई के िाि पर चीिी के बिे नखलौिे आते हैं। रोशिी भी की जाती है। बच्चे के छोटे-से घर िें
कदए के जलािे से िाूँ के िुखडे की चिक िें िर्ी आभा आ जाती है। रक्षाबंिि का त्र्ोहार सािि के िहीिे िें आता है। इस
त्र्ोहार पर आकाश िें हल्की घटाएूँ छाई होती हैं। राखी के लच्छे भी नबजली की तरह चिकते हुए प्रतीत होते हैं।
प्रश्न 2:‘किराक’ की रुबाइर्ों िें उभरे घरे लू जीिि के नबबों का सौंदर्य स्पष्ट कीनजए।
उिर –‘किराक’ की रुबाइर्ों िें घरे लू जीिि का नचिण हुआ है। इन्होंिे कई बबंब उके रे हैं। एक बबंब िें िाूँ छोटे बच्चे को
अपिे हाथ िें झुला रही है। बच्चे की तुलिा चाूँद से की गई है। दूसरे बबंब िें िाूँ बच्चे को िहलाकर कपडे पहिाती है तथा
बच्चा उसे प्र्ार से देखता है। तीसरे बबंब िें बच्चे द्वारा चाूँद लेिे की नजद करिा तथा िाूँ द्वारा दपयण िें चाूँद कनि दिाक बचेक
बहािेक कनशक बतार्ा गर्ा है। र्े साथ बबंबालभागह घेलूजििािें पाए जाते हैं।
प्रश्न 3:किराक की रुबाई िें भार्ा के निलक्षण प्रर्ोग ककए गए हैं-स्पष्ट करें ।
उिर –कनि की भार्ा उदूय है, परं तु उन्होंिे बहंदी ि लोकभार्ा का भी प्रर्ोग ककर्ा है। उिकी रचिाओं िें बहंदी, उदूय ि
लोकभार्ा के अिूठे गठबंिि के निलक्षण प्रर्ोग हैं नजसे गाूँिी जी बहंदस्ु तािी के रूप िें पल्लनित करिा चाहते थे। र्े निलक्षण
प्रर्ोग हैं-लोका देिा, घुटनिर्ों िें लेकर कपडे नपन्हािा, गेसुओं िें कं घी करिा, रूपिती िुखडा, ििय दिक, नजदर्ार्ा बालक,
रस की पुतली। िाूँ हाथ िें आईिा देकर बच्चे को बहला रही है
देख आईिे िें चाूँद उतर आर्ा है।
चाूँद की परछाई भी चाूँद ही है।
अन्र् हल प्रश्न
प्रश्न 1.बच्चे की हूँसी सबसे ज्र्ादा कब गूूँजती है?
उिर:-जब िाूँ अपिे बच्चे को उछाल-उछाल कर प्र्ार करती है तो बच्चे की हूँसी सबसे ज्र्ादा गूज
ूँ ती है। बच्चा खुले िातािरण
िें आकर बहुत खुशी िहसूस करता है। जब िह ऊपर की ओर बार-बार उछलता है तो िह रोिांनचत हो उठता है।
प्रश्न 2.िाूँ बच्चे को ककस प्रकार तैर्ार करती है?
उिर:िाूँ बच्चे को छलकते हुए निियल और स्िच्छ पािी से िहलाती है। उसके बालों िें प्र्ार से कं घी करती है। उसे कपडे
पहिाती है। र्ह सारे कार्य देखकर बच्चा बहुत खुश होता है। िह ठं डे पािी से िहाकर ताजा िहसूस करता है। अपिी िाूँ को
प्र्ार से देखता है।
प्रश्न 3.बच्चा ककस िस्तु के कारण लालची बि जाता है?
उिर:बच्चा जब चाूँद को देखता है तो उसका िि लालची हो जाता है। िह चाूँद को पकडिे की नजद करता है। िह िाूँ से
कहता है कक िुझे र्ही िस्तु चानहए। चाूँद को देखते ही उसका िि लालच से भर जाता है।
प्रश्न 6.किराक गोरखपुरी की भार्ा-शैली पर निचार करें ।
उिर:किराक गोरखपुरी िूलत: शार्र हैं। रुबाइर्ाूँ भी उन्होंिे नलखी हैं। इि सबके नलए उन्होंिे प्रिुख रूप से उदूय भार्ा का
प्रर्ोग ककर्ा है। खास बात र्ह है कक इिकी भार्ा िें कठठिाई िहीं है। हाूँ, कु छ शब्द उलझाि पैदा करते हैं, लेककि िे पाठक
को कठठि िहीं लगते।
प्रश्न 8.गोरखपुरी की रुबाइर्ों के कला पक्ष के बारे िें बताएूँ।
106
उिर:गोरखपुरी की रूबाइर्ाूँ कलापक्ष की दृनष्ट से बेहतरीि बि पडी हैं। भार्ा सहज, सरल और प्रभािी हैं। भािािुकूल
शैली का प्रर्ोग हुआ है। उदूय शब्दािली के साथ-साथ शार्र िे देशज संस्कृ त के शब्दों का प्रर्ोग भी स्िाभानिक ढंग से ककर्ा
है। लोका, नपन्हाती, पुते, लािे आकद शब्दों के प्रर्ोग से उिकी रुबाइर्ाूँ अनिक प्रभािी बि पडी हैं।
प्रश्न 9.रक्षाबंिि की सुबह रस की पुतली छार्ी है घटा गगि की हलकी-हलकी नबजली की तरह चिक रहे हैं लच्छे भाई के
हैं बाूँिती चिकती राखी”-इस रुबाई का कला सौंदर्य स्पष्ट करें ।
उिर:भार्ा सहज, सरल और प्रभािशाली है। शार्र िे उदूय शब्दों के साथ-साथ देशज शब्दों का भािािुकूल प्रर्ोग ककर्ा है।
अिुप्रास, पुिरुनि प्रकाश और रूपक अलंकारों का सुंदर प्रर्ोग हुआ है।
प्रश्न 10.काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें -
आूँगि िें नलए चाूँद के टु कडे को खडीं
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हिा िें जो लोका देती है
गूज
ं उठती है नखलनखलाते बच्चे की हूँसी।
उिर:कनि बताता है कक िाूँ अपिे चाूँद जैसे बच्चे को आूँगि िें नलए खडी है। िह हाथों के झूले िें झुला रही है। िह उसे हिा
िें िीरे -िीरे उछाल रही है। इस काि से बच्चे की हूँसी गूंज उठती है। ‘चाूँद के टुकडे’ िें उपिा अलंकार है। ‘रह रह’ िें पुिरुनि
प्रकाश अलंकार है। बालसुलभ चेष्टाओं का िणयि है। उदूय निनश्रत शब्दािली है। गेर्ता है। दृश्र् बबंब है। भार्ा सहज ि सरल
है। उदूय भार्ा है।
प्रश्न 11.किराक की रुबाइर्ों िें उभरे घरे लू जीिि के बबंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीनजए।
अथिा
‘किराक गोरखपुरी की रुबाइर्ों िें ग्रािीण अंचल के घरे लू रूप की स्िाभानिकता और सानत्िकता के अिूठे नचि नचनित हुए
हैं’ – पाठ्यपुस्तक िें संग्रहीत रुबाइर्ों के आिार पर उिर दीनजए।
उिर:किराक की रुबाइर्ों िें ग्रािीण अंचल के घरे लू रूप का स्िाभानिक नचिण निलता है। िाूँ अपिे नशशु को आूँगि िें
नलए खडी है। िह उसे झुलाती है। बच्चे को िहलािे का दृश्र् कदल को छू िे िाला है। दीिाली ि रक्षाबंिि पर नजस िाहौल
को नचनित ककर्ा गर्ा है। िह आि जीिि से जुडा हुआ है। बच्चे का ककसी िस्तु के नलए नजद करिा तथा उसे ककसी तरह
बहलािे के दृश्र् सभी पठरिारों िें पाए जाते हैं।
प्रश्न 12.रुबाइर्ाूँ के आिार पर घर आूँगि िें दीिाली और राखी के दृश्र् बबंब को अपिे शब्दों िें सिझाइए।
उिर:दीिाली के त्र्ोहार पर पूरा घर रं गरोगि से पुता हुआ है। िाूँ अपिे िन्हें बेटे को प्रसन्न करिे के नलए चीिी निट्टी के
जगिगाते नखलौिे लेकर आती है। िह बच्चों के घर िें दीर्ा जलाती है। इसी तरह राखी के सिर् आकाश िें काले-काले
बादलों की हल्की घटा छाई हुई है। छोटी बहि िे पाूँिों िें पाजेब पहिी हुई है जो नबजली की तरह चिक रही है।

107
पाठ – 10
छोटा िेरा खेत
उिाशंकर जोशी
पाठ के सार:-
खेती के रूपक द्वारा काव्य रचिा- प्रकक्र्ा को स्पष्ट ककर्ा गर्ा हे। काव्य कृ नत की रचिा बीज- िपि से लेकर पौिे के पुनपपत
होिे के निनभन्न चरणों से गुजरती है। अंतर के िल इतिा है कक कनि किय की िसल कालजर्ी, शाश्वत होती है। उसका रस-
क्षरण अक्षर् होता है। कागज का पन्ना, नजस पर रचिा शब्दबद्ध होती है, कनि को एक चौकोर खेत की तरह लगता है। इस
खेत िें ककसी अूँिड (आशर् भाििात्िक आूँिी से होगा) के प्रभाि से ककसी क्षण एक बीज बोर्ा जाता है। र्ह बीज -रचिा
निचार और अनभव्यनि का हो सकता है। र्ह िूल रूप कल्पिा का सहारा लेकर निकनसत होता है और प्रकक्र्ा िें स्िर्ं
निगनलत हो जाता है। उससे शब्दों के अंकुर निकलते हैं और अंतत: कृ नत एक पूणय स्िरूप ग्रहण करती है, जो कृ नर्-किय के
नलहाज से पल्लनित -पुनपपत होिे की नस्थनत है। सानहनत्र्क कृ नत से जो अलौककक रस -िारा िू टती है, िह क्षण िें होिे
िाली रोपाई का ही पठरणाि है पर र्ह रस-िारा अिंत काल तक चलिे िाली कटाई है।
बगुलों के पंख
पाठ के सार –
बगुलों के पंख कनिता एक चाक्षुर् बबंब की कनिता है। सौंदर्य का अपेनक्षत प्रभाि उत्पन्न करिे के नलए कनिर्ों िे कई र्ुनिर्ाूँ
अपिाई हैं, नजसिें से सबसे प्रचनलत र्ुनि है-सौंदर्य के व्यौरों के नचिात्िक िणयि के साथ अपिे िि पर पडिे िाले उसके
प्रभाि का िणयि और आत्िगत के संर्ोग की र्ह र्ुनि पाठक को उस िूल सौंदर्य के कािी निकट ले जाती है। जोशी जी को
इस कनिता िें ऐसा ही है। कनि काले बादलों से भरे आकाश िें पंनि बिाकर उडते सिे द बगुलों को देखता है। िे कजरारे
बादलों िें अटका -सा रह जाता है। िह इस िार्ा से अपिे को बचािे की गुहार लगाता हैं। क्र्ा र्ह सौंदर्य से बाूँििे और
बिंििे की चरि नस्थनत को व्यि करिे का एक तरीका है। प्रकृ नत का स्ितंि (आलंबि गत) नचिण आिुनिक कनिता की
निशेर्ता है।नचिात्िक िणयि द्वारा कनि िे एक ओर काले बादलों पर उडती बगुलों की श्वेत पंनि का नचि अंककत ककर्ा है
तो दूसरी ओर इस अप्रनति दृश्र् के हृदर् पर पडिे िाले प्रभाि को नचनित ककर्ा है। िंि भुग्ि कनि इस दृश्र् के प्रभाि से
आत्ि निस्िृनत की नस्थनत तक पहुूँच जाता है। निर्र् एिं निर्र्ीगत सौन्दर्य के दोिों रूप कनिता िें उद्धाठटत हुए हैं।
पठठत काव्यांश-01
झूििे लगे िल,
रस अलौककक,
अिृत िाराएूँ िू टतीं
रोपाई क्षण की,
कटाई अिंतता की
लुटते रहिे से जरा भी िहीं कि होती।
रस का अक्षर् पाि सदा का
छोटा िेरा खेत चौकोिा।
108
1.काव्यांश िें कनि िे ककसके झूििे की बात कही है?
a)पेड-पौिे के b)सानहत्र्कार के
c)भाि और निचार के d)िल के
2.कनिता िें कनि िे ककसकी कटाई की बात की है?
a)िसल की b)अंकुर की
c)क्षण की d) अिंतता की
3.कनि िे ककस रस की अिृत िारा को अक्षर् बतार्ा है?
a) श्रृंगार की b) सानहत्र् की
c)हास्र् की d)करुणा की
4.कनि के खेत िें पैदा होिे िाले कनिता रूपी िल ककस निशेर्ता से र्ुि हैं?
a)अलौककक रस b)िात्सल्र् रस
c)नक्लष्टता d)श्रृंगाठरकता
5.छोटा िेरा खेत चौकोिा उपिाि का प्रर्ोग ककसके नलए ककर्ा गर्ा है?
a)िगायकार रूप के नलए b)पल्लि के नलए
c)कागज के पन्ने के नलए d)िसल के नलए
6.हौले-हौले जाती िुझे बाूँि निज िार्ा से - पंनि िें रे खांककत पद िें प्रर्ुि अलंकार है -
a)पुिरुनिप्रकाश अलंकार b)िाििीकरण अलंकार
c)र्िक अलंकार d)श्लेर् अलंकार
7.छोटा िेरा खेत काव्य के आिार पर कनि िे अनभव्यनि रूपी बीज ककस पर बोर्ा था?
a)छत पर b)कागज के पृष्ठ पर
c)आूँगि िें d)खेत िें
8.कनि के िि प्राणों को ककसिे अपिी आकर्यक िार्ा िें बाूँि नलर्ा है?
a)आकाश िें छाए हुए काले बादलों िे
b)काले बादलों की छार्ा िें उडते सफे द बगुलों की पंनि िे
c)आकाश िें छाए हुए सफे द बादलों िे
d)सफे द बगुलों की छार्ा िें उडते हुए काले बगुलों की पंनि िे
9.बगुलों के पूँख काव्य के आिार पर िि िें पंनिबद्ध बगुलों के पंखों िे कनि की कौि-सी इंकद्रर्ों को चुरार्ा?
a)रसिा b)काि
c)आूँख d)िानसका
उिरिाला :- पठठत पद्ांश- 01
1.(d) िल के

109
2. (d) अिंतता की
3. (b) सानहत्र् की
4. (a) अलौककक रस
5. (c) कागज के पन्ने के नलए
6. (a) पुिरुनिप्रकाश अलंकार
व्याख्या: जहाूँ एक शब्द की आिृनि हो और उिका अथय पठरिर्तयत ि होता है िहाूँ पुिरुनिप्रकाश अलंकार होता है। र्हाूँ
'हौले-हौले' पद का अथय दोिों बार ही 'िीरे ' है इसनलए र्हाूँ पुिरुनिप्रकाश अलंकार है।
7. (b) कागज के पृष्ठ पर
व्याख्या: कनि कहिा चाहता है कक जब िह छोटे खेतरूपी कागज के पन्ने पर निचार और अनभव्यनि का बीज बोता है तो
िह कल्पिा के सहारे उगता है।
8.(b) काले बादलों की छार्ा िें उडते सफे द बगुलों की पंनि िे
व्याख्या: कनि के िि प्राणों को आकाश िें छाए हुए काले-काले बादलों के बीच उडते हुए सफे द बगुलों की पंनि िे बाूँि
नलर्ा है। िह चाह कर भी अपिे िज़रें िहाूँ से हटा िहीं पा रहा है।
9.(c) आूँख
पठठत काव्यांश-02
छोटा िेरा खेत चौकोिा
कागज का एक पन्ना,
कोई अंिड कहीं से आर्ा
क्षण का बीज िहाूँ बोर्ा गर्ा।
1.प्रस्तुत काव्यांश िें कनि िे ककस खेत की बात की है?
a)प्रेिरूपी खेत b)हठरर्ालीरूपी खेत
c)ििरूपी खेत d)कागजरूपी खेत
2.कनि िे अपिे खेत िें कै सा बीज बोर्ा था?
a)शब्द रूपी बीज b)िाि रूपी बीज
c)सभी निकल्प सही हैं d)प्रेिरूपी बीज
3.कनि िे अनभव्यनि रूपी बीज कहाूँ बोर्ा था?
a)कागज के पृष्ठ पर b)खेत िें
c)छत पर d)घर के आूँगि िें
4.कोई अंिड कहीं से आर्ा पंनि िें अंिड शब्द ककसके नलए प्रर्ुि हुआ है?
a)अिजाि व्यनि के नलए b)आूँिी के नलए
c)निरोिी व्यनि के नलए d)कनि के िि के भािों के नलए
5.कनि िे अपिे रचिा कार्य की तुलिा ककससे की है?
110
a)श्रेष्ठ काव्य कृ नत से b)िहाि सानहत्र्कार से
c)अपिे सहर्ोगी से d)खेती के कार्य से
6.'बगुलों के पंख' कनिता िें कनि ककस को रोक रखिे की बात कहता है?
a)बादलों की छार्ा b)आकाश की छार्ा
c)आकाश िें उडती हुई बगुलों की पंनि d)कजरारे बादलों
7.उिाशंकर जोशी का जन्ि कब और कहाूँ हुआ?
a)सि् 1914, राजस्थाि b)सि् 1911, गुजरात
c)सि् 1912, उिर प्रदेश d)सि् 1913, िध्र् प्रदेश
8.छोटा िेरा खेत काव्य के आिार पर लुटते रहिे से जरा भी कि क्र्ा िहीं होती?
a)संपनि b)और्नि का पाि
c)रस का पाि d)पुस्तक का पाि
9.बगुलों के पंख कनिता िें कनि ककस दृश्र् पर िुग्ि है?
a)सुबह का दृश्र् b)शाि का दृश्र्
c)आकाश िें छाए हुए बादल d)सफे द बगुलों का पंनि बिाकर उडिा
उिरिाला :- पठठत पद्ांश- 02
1. (d) कागजरूपी खेत
2. (a) शब्द रूपी बीज
3. (a) कागज के पृष्ठ पर
4. (d) कनि के िि के भािों के नलए
5. (d) खेती के कार्य से
6. (c) आकाश िें उडती हुई बगुलों की पंनि
व्याख्र्ा: बगुलों के पंख कनिता िें कनि आकाश िें उडती हुई बगुलों की पंनि को रोक कर रखिा चाहता है क्र्ोंकक िे बगुले
आकाश िें उडते हुए बहुत ही सुिहरी पंनि बिाए हुए थे।
7.(b) सि् 1911, गुजरात
व्याख्र्ा: उिाशंकर जोशी का जन्ि सि् 1911 को गुजरात िें हुआ था।
8.(c) रस का पाि
व्याख्र्ा: कनि इस रस को नजतिा लुटाता है, उतिा ही र्ह बढ़ता जाता है। कनिता के रस का पाि कभी सिाप्त िहीं होता।
कनि कहता है कक उसका कनिता रूपी खेत छोटा-सा है, उसिें रस कभी सिाप्त िहीं होता।
9. (d) सफे द बगुलों का पंनि बिाकर उडिा
व्याख्र्ा: कनि उस सिर् के दृश्र् पर िुग्ि है जब आकाश िें छार्े काले बादलों के बीच सफे द बगुलों की पंनि बिाकर उड
रहे हैं। र्े बगुलें कनि को बादलों के ऊपर तैरती सांझ की श्वेत कार्ा की तरह प्रतीत हो रहे हैं।

111
पठठत काव्यांश-03
कल्पिा के रसार्िों को पी
बीज गल गर्ा निुःशेर्;
शब्द के अंकुर िू टे,
पल्लि-पुपपों से िनित हुआ निशेर्।
1.कनि िे रसार्ि ककसे कहा है?
a)शब्द को b)सानहत्र् को
c)कल्पिा को d)खाद को
2.बीज के गल जािे के बाद उसका क्र्ा हुआ?
a)उससे िर्ापि आर्ा b)उससे शब्द रूपी अंकुर िू टे
c)बीज िष्ट हो गर्ा d)उससे िसल तैर्ार हुई
3.खेत िें अंकुर के निकनसत होिे का क्र्ा पठरणाि होता है?
a)खेत िष्ट हो जाता है b)खेत पिों और िू लों से भर जाता है
c)खेत की उपजाऊ क्षिता घट जाती है d)सभी निकल्प सही हैं
4.कनि के शब्दरूपी अंकुर निकनसत होिे पर क्र्ा करते हैं?
a)कृ नत का रूप िारण करते हैं b)गरीबी को दूर करते हैं
c)प्रनतस्पद्धाय की भाििा निकनसत करते हैं d)सिाज को भोजि प्रदाि करते हैं
5.काव्यांश िें प्रर्ुि िनित शब्द से क्र्ा तात्पर्य है?
a)अिरोिी b)ििी र्ुि
c)अििेल d)झुका हुआ
6.'बगुलों के पंख' कनिता िें ककसका िणयि है?
a)संध्र्ा b)बगुलों
c)काले बादलों d)प्रकृ नत की सुंदरता
7.कनि िे कनिता के रस को क्र्ा कहा है? (उिाशंकर जोशी)
a)अक्षर् पाि b)िू ल की सुगंि
c)िू ल का रस d)िल की सुगंि
8.छोटा िेरा खेत काव्य के आिार पर कनि िे अपिे खेत िें कौि-सा बीज बोर्ा?
a)िाि रूपी बीज b)प्रेि रूपी बीज
c)शब्द रूपी बीज d)बादल रूपी बीज
9.खेत की तुलिा ककससे की गई है?
a)भािों की रचिा से b)कागज़ के पन्ने से
c)बीजों से d)लहलहाती िसल से
112
उिरिाला:- पठठत पद्ांश- 03
1. (c) कल्पिा को
2. (b) उससे शब्द रूपी अंकुर िू टे
3. (b) खेत पिों और िू लों से भर जाता है
4. (a) कृ नत का रूप िारण करते हैं
5. (d) झुका हुआ
6. (d) प्रकृ नत की सुद
ं रता
व्याख्र्ा:कनि उिाशंकर जोशी िे बगुलों के पंख कनिता िें प्रकृ नत की सुद
ं रता का एक अद्भुत िणयि ककर्ा गर्ा है।
7. (a) अक्षर् पाि
व्याख्र्ा:कनि िे कनिता के रस को अक्षर् पाि इसनलए कहा है क्र्ोंकक नजस प्रकार अक्षर् पाि कभी ठरि िहीं होता उसी
प्रकार कनिता को ककसी भी र्ुग िें पढो उसका आिंद हिेशा बिा ही रहता है।
8. (c) शब्द रूपी बीज
9. (b) कागज़ के पन्ने से
व्याख्र्ा:खेत की तुलिा कागज़ के पन्ने से की गई है क्र्ोंकक नजस प्रकार खेत िें बीज बोर्े जाते हैं उसी प्रकार कागज़ के पन्ने
पर अपिे िि के भाि रखे जाते हैं।
पठठत काव्यांश-04
िभ िें पाूँती-बूँिे बगुलों के पंख,
चुराए नलए जातीं िे िेरी आूँख।ें
कजरारे बादलों की छाई िभ छार्ा,
तैरती साूँझ की सतेज श्वेत कार्ा।
हौले हौले जाती िुझे बाूँि निज िार्ा से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
िह तो चुराए नलए जाती िेरी आूँखें
िभ िें पाूँती-बूँिी बगुलों की पाूँख।ें
1.काव्यांश िें बगुलों के पंखों द्वारा आूँखें चुरािे से क्र्ा आशर् है?
a)चोरी करिा b)न्र्ौछािर होिा
c)ध्र्ाि भंग करिा d)सुंदर कदखाई देिा
2.साूँझ की सतेज श्वेत कार्ा क्र्ा कर रही है?
a)भाग रही है b)िहा रही है
c)तैर रही है d)उड रही है
3.कनि के अिुसार आकाश िें कै से बादलों की छार्ा छाई है?
a)काले b)सुिहरे
113
c)गहरे िीले d)श्वेत
4.कनि को बगुलों का कौि-सा सौंदर्य अपिे आकर्यण िें बाूँि रहा है?
a)िार्ा रूपी सौंदर्य b)कार्ा रूपी सौंदर्य
c)शांनत रूपी सौंदर्य d)पंनिबद्ध रूपी सौंदर्य
5.बगुलों के पंख बादलों के ऊपर तैरते हुए ककसके सिाि प्रतीत होते हैं?
a)गोिूनल बेला की पीली कार्ा b)रानि की काली कार्ा
c)साूँझ की श्वेत कार्ा d)प्रातुःकाल की संदरु ी कार्ा
6.बगुलों के पंख कनिता के कनि कौि हैं?
a)आलोक िन्िा b)गजािि िािि िुनिबोि
c)उिाशंकर जोशी d)कफराक गोरखपुरी
7.कनि िे खेत की तुलिा ककससे की है?
a)िलों के निकलिे से b)िू लों के नखलिे से
c)िसल के उगिे से d)कागज़ के चौकोर पन्ने से
8.पल्लि-पुपप को ककसका प्रतीक िािा गर्ा है?
a)बीज का b)कनिता का
c)िू लों का d)िए पिों का
9.कनिता किय का पहला चरण कौिसा है? (उिाशंकर जोशी)
a)निचाररूपी बीज का पडिा b)िसल का लहलहािा
c)खेत िें बीज डालिा d)कनिता का नलखिा
उिरिाला:- पठठत पद्ांश- 04
1.(d) सुद
ं र कदखाई देिा
2. (c) तैर रही है
3. (a) काले
4. (a) िार्ा रूपी सौंदर्य
5. (c) साूँझ की श्वेत कार्ा
6. (c) उिाशंकर जोशी
व्याख्र्ा:'बगुलों के पंख' कनिता के रचनर्ता उिाशंकर जोशी जी हैं। र्ह कनिता प्रकृ नत सौन्दर्य से सम्बंनित है। आकाश िें
उडते हुए सफे द बगुलों की पंनिर्ाूँ कनि को िुग्ि कर रही हैं।
7.(d) कागज़ के चौकोर पन्ने से
व्याख्र्ा:कागज़ रुपी खेत पर कनि िे अपिे भािों - निचारों के बीज बोर्े थे। िे िसल की भांनत ही उगकर कनि को आिंद
प्रदाि करते हैं इसनलए कनि िे खेत की तुलिा कागज़ के चौकोर पन्ने से की है।
8.(b) कनिता का

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व्याख्र्ा:खेत अगर कागज़ है तो बीज क्षण का निचार और उस कागज़ पर पल्लि-पुपप कनिता है। र्ह भािरूपी कनिता
पिों ि पुपपों से लदकर झुक जाती है।
9. (a) निचाररूपी बीज का पडिा
व्याख्र्ा:कनिता किय का पहला चरण है निचाररूपी बीज का पडिा। निचाररूपी बीज के पडिे पर शब्द रूपी अंकुर िू टिे
लगते हैं और इसके बाद ही रचिा अपिा स्िरूप ग्रहण करती है।
िहत्िपूणय प्रश्नोिर
1. ‘छोटा िेरा खेत’ कनिता िें कनि िे खेत को रस का अक्षर्पाि क्र्ों कहा है?
उिर- कनि िे खेत को रस का अक्षर्पाि कहा है | अक्षर्पाि िें रस कभी खत्ि िहीं होता | रस को नजतिा बाूँटा जाता है,
उतिा ही िह भरता जाता है | खेत की िसल कट जाती है, परं तु िह हर िर्य किर उग आती है| कनिता का रस भी नचरकाल
तक आिंद देता है | र्ह सृजि किय की शाश्वतता को दशायता है |
2. ‘छोटा िेरा खेत’ कनिता का रूपक स्पष्ट कीनजए |
उिर- इस कनिता िें कनि िे कनि-कर्ि को कृ नर् के कार्य के सिाि बतार्ा है | नजस तरह कृ र्क खेत िें बीज बोता है, किर
िह बीज अंकुठरत, पल्लनित होकर पौिा बिता है तथा किर िह पठरपक्व होकर जिता का पेट भरता है | इस प्रकार
भाििात्िक आूँिी के कणय ककसी क्षण एक रचिा, निचार तथा अनभव्यनि का बीज बोर्ा जाता है | र्ह निचार कल्पिा का
सहारा लेकर निकनसत होता है तथा रचिा का रूप ग्रहण क् लेता है | इस रचिा के रस का आस्िादि अिंतकाल तक नलर्ा
जा सकता है | सानहत्र् का रस कभी सिाप्त िहीं होता |
3. कनि को खेत का रूपक अपिािे की जरूरत क्र्ों पडी?
उिर- कनि का उद्देश्र् कनि-किय को िहिा देिा है | िह कहता है कक काव्य रचिा बेहद कठठि कार्य है | बचंति के बाद कोई
निचार उत्पन्न होता हा तथा कल्पिा के सहारे उसे निकनसत ककर्ा जाता है | इसी प्रकार खेती िें बीज बोिे से लेकर िसल
कटाई तक बहुत पठरश्रि ककर्ा जाता है | इसनलए कनि को खेत का रूपक अपिािे की जरूरत पडी|
4. ‘छोटा िेरा खेत’ कनिता का उद्देश्र् बताइए |
उिर- कनि िे रूपक के िाध्र्ि से कनि-किय को कृ र्क के सिाि बतार्ा है | ककसाि अपिे खेत िें बीज बोता है, िह बीज
अंकुरती होकर पौिा बिता है तथा पकिे पर उससे िल निलता है नजससे लोगों की भूख निटती है | इसी तरह कनि िे
कागज को अपिा खेत िािा है | इस खेत िें भािों की आूँिी से कोई बीज बोर्ा जाता है | किर िह कल्पिा के सहारे निकनसत
होता है | शब्दों के अंकुर निकलते ही रचिा स्िरूप ग्रहण करिे लगती है तथा इससे अलौककक रस उत्पन्न होता है | र्ह रस
अिंतकाल तक पाठकों को अपिे िें डु बोए रखता है | कनि िे कनि-किय को कृ नर्-किय से िहाि बतार्ा है क्र्ोंकक कृ नर्-किय
का उत्पाद निनित सिर् तक रस देता है, परं तु कनि-किय का उत्पाद अिंतकाल तक रस प्रदाि करता है |
5. शब्द रूपी अंकुर िू टिे से कनि का क्र्ा तात्पर्य है?
उिर- कनि कहता है कक नजस प्रकार खेत िें बीज पडकर कु छ कदिों के बाद सिें अंकुर िू टिे लगते हैं, उसी प्रकार निचार
रूपी बीज पडते ही शब्द रूपी अंकुर िू टिे लगते हैं | र्ह कनिता किय का पहला चरण है | इसके बाद ही रचिा अपिा स्िरूप
ग्रहण करती है |
6. कनिता लुटिे पर भी क्र्ों िहीं निटती र्ा खत्ि होती?

115
उिर- र्हाूँ ‘लुटिे से’ आशर् बाूँटिे से है | कनिता का आस्िादि अिेक पाठक करते हैं | इसके बािजूद र्ह खत्ि िहीं होती
क्र्ोंकक कनिता नजतिे अनिक लोगों तक पहुूँचती है उतिे ही उस पर बचंति ककर्ा जाता है | िह शाश्वत हो जाती है |
7. ‘अंिड’ से क्र्ा तात्पर्य है?
उत्तर- ‘अंिड’ भाििात्िक आिेग है | काव्य-रचिा अचािक ककसी प्रेरणा से होती है | कनि के िि िें भाििाएूँ होती हैं |
नजस भी निचार का आिेग अनिक होता है, उसी निचार की रचिा अपिा स्िरूप ग्रहण करती है |
8. ‘बीज गल गर्ा निुःशेर्’ से क्र्ा तात्पर्य है?
उिर- इसका अथय है कक जब तक कनि के िि िें कनिता का िूल भाि पूणयतर्ा सिा िहीं जाता, तब तक निजता से िुि
िहीं हो सकता | कनिता तभी सिल िािी जाती है, जब िह सिग्र िािि जानत की भाििा को व्यि करती है | कनिता को
साियजनिक बिािे के नलए कनि का अहं िष्ट होिा आिश्र्क है |
अथय-ग्रहण संबि
ं ी प्रश्नोिर
“छोटा िेरा खेत चौकोिा
कागज़ का एक पन्ना, कोई अंिड कहां से आर्ा
क्षण का बीज िहाूँ बोर्ा गर्ा।
कल्पिा के रसार्िों को पी
बीज गल गर्ा निुःशेर् शब्द के अंकुर िू टे,
पल्लि-पुपपों से िनित हुआ निशेर्।”
1. ‘छोटा िेरा खेत’ ककसका प्रतीक है और क्र्ों?
उिर- ‘छोटा िेरा खेत’ काग़ज के उस पन्ने का प्रतीक है नजस पर कनि अपिी कनिता नलखता है।
2. कनि खेत िें कौि-सा बीज बोता है?
उिर- कनि खेत िें अपिी कल्पिा का बीज बोता है?
3. कनि की कल्पिा से कौि से पल्लि अंकुठरत होते हैं?
उिर- कनि की कल्पिा से शब्द के पल्लि अंकुठरत होते हैं।
4. उपर्ुयि पद का भाि-सौंदर्य स्पष्ट कीनजए।
उिर- खेती के रूपक द्वारा काव्य-रचिा-प्रकक्र्ा को स्पष्ट ककर्ा गर्ा है। काव्य कृ नत की रचिा बीज-िपि से लेकर पौिे के
पुनपपत होिे के निनभन्न चरणों से गुजरती है। अंतर के िल इतिा है कक कनि किय की िसल कालजर्ी, शाश्वत होती है। उसका
रस-क्षरण अक्षर् होता है।
सौंदर्य-बोि संबि
ं ी प्रश्नोिर
“झुििे लगे िल,
रस अलौककक,
अिृत िाराएूँ िू टतीं
रोपाई क्षण की,
कटाई अिंतता की

116
लुटते रहिे से जरा भी कि िहीं होती।
रस का अक्षर् पाि सदा का
छोटा िेरा खेत चौकोिा।”
1. इस कनिता की भार्ा संबि
ं ी निशेर्ताओं पर प्रकाश डानलए।
उिर - 1. प्रतीकात्िकता
2. लाक्षनणकता-
रूपक अलंकार- रस का अक्षर् पाि सदा का छोटा िेरा खेत चोंकोिा।
2. रस अलौककक , अिृत िाराएूँ रोपाई - कटाई-प्रतीकों के अथय स्पष्ट कीनजए।
उिर- रस अलौककक – काव्य रस निपपनत
अिृत िाराएूँ - काव्यािंद
रोपाई – अिुभूनत को शब्दबद्ध करिा
कटाई – रसास्िादि
निर्र्-िस्तु पर आिाठरत प्रश्नोिर
1. उिाशंकर जोशी िे ककस भार्ा िें कनिताएूँ नलखी हैं?
उिर- गुजराती भार्ा
2. कृ नर् -किय एिं कनि-किय िें क्र्ा क्र्ा सिािताएूँ हैं?
उिर- कृ नर् किय एिं कनि-किय िें निम्ननलनखत सिािताएूँ हैं-
काव्य कृ नत की रचिा बीज-िपि से लेकर पौिे के पुनपपत होिे के निनभन्न चरणों से गुजरती है।
कृ नर्-किय एिं कनि-किय िें सिािताएूँ:-
 कागज का पन्ना, नजस पर रचिा शब्दबद्ध होती है, कनि को एक चौकोर खेत लगता है।
 इस खेत िें ककसी अूँिड (आशर् भाििात्िक आूँिी से होगा) के प्रभाि से ककसी क्षण एक बीज बोर्ा जाता है। र्ह
बीज-रचिा निचार और अनभव्यनत का हो सकता है।
 र्ह िूल रूप कल्पिा का सहारा लेकर निकनसत होता है और प्रकक्र्ा िें स्िर्ं निगनलत हो जाता है। इसी प्रकार
बीज भी खाद, पािी, सूर्य की रोशिी हिा आकद लेकर निकनसत होता है।
 काव्य-रचिा से शब्दों के अंकुर निकलते हैं और अंततुः कृ नत एक पूणय स्िरूप ग्रहण करती है, जो कृ नर्-किय के नलहाज
से पल्लनित-पुनपपत और िनलत होिे की नस्थनत है।
उिाशंकर जोशी (बगुलों के पंख)
िहत्िपूणय प्रश्नोिर
1. ‘बगुलों के पंख’ कनिता का प्रनतपाद् बताइए।
उिर- र्ह सुंदर दृश्र् कनिता है। कनि आकाश िें उडते हुए बगलों की पंनि को देखकर तरह-तरह की कल्पिाएूँ करता है।
र्े बगुले कजरारे बादलों के ऊपर तैरती साूँझ की सिे द कार्ा के सिाि लगते हैं। कनि को र्ह दृश्र् अत्र्ंत सुंदर लगता है।

117
िह इस दृश्र् िें अटककर रह जाता है। एक तरि िह इस सौंदर्य से बचिा चाहता है तथा दूसरी तरि िह इसिें बूँिकर
रहिा चाहता है।
2. ‘पाूँती बूँिी’ से कनि का आशर् स्पष्ट कीनजए –
उिर- इसका अथय है – एकता। नजस प्रकार ऊूँचे आकाश िें बगुले पंनि बाूँिकर एक साथ चलते हैं। उसी प्रकार ििुपर्ों को
एकता के साथ रहिा चानहए। एक होकर चलिे से ििुपर् अद्भुत निकास करे गा तथा उसे ककसी का भी भी िहीं रहेगा।
अथय-ग्रहण संबि
ं ी प्रश्नोिर
िभ िें पाूँती-बूँिे बगुलों के पंख,
चुराए नलए जातीं िें िेरी आूँख।ें
कजरारे बादलों की छाई िभ छार्ा,
हौले-हौले जाती िुझे बाूँि निज िार्ा से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
िह तो चुराए नलए जाती िेरी आूँखें
िभ िें पाूँती-बूँिे बगुलों की पाूँख।ें
तैरती साूँझ की सतेज श्वेत कार्ा।
1. इस कनिता िें कनि िे ककसका नचिण ककर्ा है?
उिर- कनि िे काले बादलों पर उडती बगुलों की श्वेत पंनि का नचिण ककर्ा है।
2. आूँखें चुरािे का क्र्ा अथय है?
उिर- आूँखे चुरािे का आशर् है- ध्र्ाि पूरी तरह खांच्र्ा लेिा, एकटक देखिा, िंििुग्ि कर देिा
3. “कजरारे बादलों की छाई िभ छार्ा,
होले-हौले जाती िुझे बाूँि निज िार्ा से।” -आशर् स्पष्ट कीनजए।
उिर- काले बादलों के बीच साूँझ का सुरिई िातािरण बहुत सुंदर कदखता है। ऐसा अप्रनति सौंदर्य अपिे आकर्यण िें कनि
को बाूँि लेता है।
4. ‘उसे कोई तनिक रोक रक्खो।’ - से कनि का क्र्ा अनभप्रार् है?
उिर- बगुलों की पंनि आकाश िें दूर तक उडती जा रही है कनि की िंििुग्ि आूँखें उिका पीछा कर रही हैं। कनि उि बगुलों
को रोक कर रखिे की गुहार लगा रहा है कक कहीं िे उसकी आूँखें ही अपिे साथ ि ले जाएूँ।
सौंदर्य-बोि संबि
ं ी प्रश्नोिर
1. कनिता की भार्ा संबि
ं ी दो निशेर्ताएूँ नलनखए।
उिर- 1. नचिात्िक भार्ा
2. बोलचाल के शब्दों का प्रर्ोग- हौले-हौले, पाूँती, कजरारे , साूँझ
2. कनिता िें प्रर्ुि अलंकार चुि कर नलनखए।
उिर- अिुप्रास अलंकार- बूँिे बगुलों के पंख,

118
िाििीकरण अलंकार- चुराए नलए जातीं िे िेरी आूँखें।
3. ‘निज िार्ा’ के लाक्षनणक अथय को स्पष्ट कीनजए।
उिर- प्रकृ नत का अप्रनति सौंदर्य िह िार्ा है जो कनि को आत्िनिभोर कर देती है। र्ह पंनि भी प्रशंसात्िक उनि है।
निर्र्-िस्तु पर आिाठरत प्रश्नोिर
1. ‘चुराए नलए जाती िे िेरी आूँख’ें से कनि का क्ण तात्पर्य है?
उिर- नचिात्िक िणयि द्वारा कनि िे एक ओर काले बादलों पर उडती बगुलों की श्वेत पंनि का नचि अंककत ककर्ा है तथा
इस अप्रनति दृश्र् के हृदर् पर पडिे िाले प्रभाि को नचनित ककर्ा है। कनि के अिुसार र्ह दृश्र् उिकी आूँखें चुराए नलए
जा रहा है। िंि िुग्ि कनि इस दृश्र् के प्रभाि से आत्ि निस्िृनत की नस्थनत तक पहुूँच जाता है।
2. कनि ककस िार्ा से बचिे की बात कहता है?
उिर- िार्ा निश्व को अपिे आकर्यण िें बाूँि लेिे के नलए प्रनसद्ध है। कबीर िे भी ‘िार्ा िहा ठनगिी हि जािी’ कहकर
िार्ा की शनि को प्रनतपाकदत ककर्ा है। काले बादलों िें बगुलों की सुंदरता अपिा िार्ा जाल िै ला कर कनि को अपिे िश
िें कर रही है।

119
120
पाठ सं-11
भनिि
िहादेिी ििाय
पाठ का सार:-
इस पाठ िें भनिि लेनखका िहादेिी ििाय की सेनिका है, नजसका िूल िाि लछनिि र्ा लक्ष्िी था। भनिि के जीिि को
िुख्र् रूप से चार पठरच्छेदों िें बाूँटा गर्ा है-
पहला पठरच्छेद:-इस पठरच्छेद िें भनिि के जन्ि से लेकर ससुराल आिे तक का िणयि है। बचपि िें ही भनिि की िाूँ का
नििि हो गर्ा था और सौतेली िाूँ िे पांच िर्य की छोटी-सी आर्ु िें ही उसका नििाह करिा कदर्ा था | िौ िर्य की उम्र िें
गौिा करके ससुराल भी भेज कदर्ा था। इस पठरच्छेद िें भनिि को िाता का सुख ि निलकर नििाता की ईपर्ाय ही निलती
है।
दूसरा पठरच्छेद:-इस पठरच्छेद िें भनिि के ससुराल आिे से लेकर पनत की िृत्र्ु तक का िणयि है। ससुराल िें तीि बेठटर्ों
को जन्ि देिे के कारण उसे सास और नजठानिर्ों की उपेक्षा का नशकार होिा पडता है। भनिि और बेठटर्ाूँ कदि भर काि
करती थीं और नजठानिर्ाूँ ि उिके बेटे आराि करते थे। नजठानिर्ों के बेटों को दूि-िक्खि निलता था जबकक भनिि की
बेठटर्ाूँ सािारण-सा भोजि पाती थी। भनिि पनत की सहिनत से अलगौझा कर लेती है। खेतों िें सारा काि भनिि ही
करती थी, नजससे अच्छे-अच्छे खेतों ि जाििरों के बारे िें उसका ही ज्ञाि अनिक था अतुः ऊपर से असंतोर् और अंदर से
प्रसन्न होती हुई सभी अच्छी चीजें प्राप्त करिे िें िह कािर्ाब हो जाती है। अलगौझा करिे के बाद िेहिती दंपनत अपिी
बेठटर्ों के साथ सुखपूियक रहिे लगते हैं ककं तु भनिि का भाग्र् भी उससे कि हठी ि था और बडी लडकी का नििाह करिे
के बाद पनत िे दो कन्र्ाओं और कच्ची गृहस्थी का भार 29 िर्ीर् पत्नी पर छोडकर इस संसार से निदा ले ली।भनिि के
हरे -भरे खेतों, गाूँर्-भैसों तथा िलों से लदे पेडों को देखकर जेठ-नजठानिर्ों के िुूँह िें पािी भर आर्ा और उन्हें हडपिे के
नलए भनिि की दूसरी शादी करिे की सोचिे लगे। भनिि िे भी गुरु से काि िु किाकर, कं ठी बांिकर ि के शों को पनत के
िाि पर सिर्पयत कर कभी ि नििाह करिे की घोर्णा कर दी और दोिों छोटी लडककर्ों की शादी कर बडे दािाद को अपिे
घर िें साथ रहिे को कहा ।
तीसरा पठरच्छेद:-भनिि के दुभायग्र् से बडी लडकी निििा हो गई। भनिि की सम्पनि हडपिे के इरादे से नजठौत िे निििा
बहि का नििाह करिािे के नलए अपिे तीतर लडािे िाले आिारा साले को बुला नलर्ा, लेककि भनिि की बेटी िे उसे
अस्िीकार कर कदर्ा। नजठौत हर तरीके से र्ह गठबंिि करिािा चाहते थे और एक कदि िो इस चाल िें कािर्ाब भी हो
जाते हैं। पंचार्त िे अपीलहीि िै सला करते हुए भनिि की बडी बेटी का नििाह उस तीतरबाज साले से करिा कदर्ा। गले
पडा दािाद भनिि और इसकी बेटी के नलए दुभायग्र् ही था, नजसके कारण दोिों को अिेक कष्ट झेलिे पडे। दािाद कु छ भी
काि िहीं करता था तथा सारी संपनि िष्ट हो गई और लगाि ि देिे के कारण जिींदार िे भनिि को कदि भर कडीिूप िें
खडा करके उसे दण्ड देकर अपिानित भी ककर्ा। स्िानभिािी और िेहिती भनिि र्ह अपिाि सहि ि कर सकी और
अपिा घर-बार सब कु छ छोडकर काि की तलाश िें शहर िें लेनखका के पास आ गई और इसी के साथ उसके जीिि का
तीसरा पठरच्छेद सिाप्त हो जाता है।

121
चौथा और अंनति पठरच्छेद:-जब भनिि शहर आती है तो िह अपिा िास्तनिक िाि नछपाती है क्र्ोंकक उसके िाि और
भाग्र् िें बहुत ज्र्ादा निरोिाभास था। उसकी िेशभूर्ा आकद देखकर लेनखका िे उसका िर्ा िािकरण (भनिि) ककर्ा ।
भनिि एक सिर्पयत सेनिका है और सेिक ििय िें हिुिाि जी से स्पद्धाय तक करती है। भनिि के आ जािे के बाद लेनखका
की कदिचर्ाय िें अिेक बदलाि आए और लेनखका िीरे -िीरे भनिि के साथ रहते हुए ग्रािीण भोजि आकद करते हुए
देहानति-सी होिे लगी। भनिि जीिि के अंत तक लेनखका का साथ छोडिे को तैर्ार ि थी | र्ुद्ध के कारण भनिि लेनखका
को गाूँि चलिे का अिुरोि करती है तथा रूपए ि होिे का बहािा बिािे पर कु छ रुपए गडे होिे की बात बताती है । सिग्र
रूप से देखे तो इस पाठ िें भनिि और लेनखका के बीच सेिक-स्िािी का सम्बंि बतािा कठठि है। भनिि को िौकर कहिा
भी असंगत है। लोग लेनखका के जेल जािे की बात कहकर भनिि को नचढ़ाते थे और र्ह सच भी है कक िह लेनखका के नलए
बडे लाट तक से लडिे को तैर्ार हो जाती थी। लेनखका भी भनिि को बहुत ज्र्ादा चाहती थी और सोचती थी कक जब
र्िराज का बुलािा आएगा तब र्ह देहानति िृद्धा और स्िर्ं िह क्र्ा करे गी। भनिि और लेनखका दोिों ही एक दूसरे को
िहीं छोडिा चाहती थीं।
शब्दाथय-
संकल्प – नििर्। निनचि-आिर्यजिक। नजज्ञासु – उत्सुक। बचंति – निचार। िुद्रा-अंग-निन्र्ास। ठु ड्डी- होठों के िीचे का
भाग। कं ठ-गला ।स्पद्धाय – िुकाबला। रिी भर-थोडा। अंजिा – हिुिाि की िाता। दुिह
य – नजसे ढोिा िुनश्कल हो। कपाल
– िाथा। संकुनचत – नसकु डी हुई। शेर् इनतिृि – पूरी कथा /इनतहास। अंशत: – थोडा-सा।नििाता – सौतेली िाता। ककं िदंती
– जिता िें प्रचनलत बातें। िर् – आर्ु। गौिा – नििाह के बाद पनत का अपिे ससुराल से अपिी पत्नी को पहली बार अपिे
घर ले आिा। अगाि – अनिक, गहरा । िरणान्तक – जािलेिा। िैहर – िार्का। अप्रत्र्ानशत – नजसकी आशा ि हो। अिुग्रह
– कृ पा। पुिरािृनिर्ाूँ – बार-बार कहिा। ठे ल ले जािा –पहुूँचािा। लेश – तनिक। नचर नबछोह – स्थार्ी निर्ोग। िियव्यथा
– हृदर् को कष्ट देिे िाली पीडा। पठरच्छेद – अध्र्ार्। नििािी – जन्ि देिे िाली। िनचर्ा – खाट की तरह बुिी हुई छोटी
चौकी (बैठकी) । निराजिाि – बैठिा। पुरनखि – बडी-बूढ़ी। अनभनर्ि – नजसका अनभर्ेक हुआ हो, काकभुशड
ं ी – राि
का एक भि जो शापिश एक कौआ बिा। सृनष्ट – रचिा, संसार। लीक छोडिा – परं परा को तोडिा। राब – खाूँड, गाढ़ा
सीरा। औटिा – ताप से गाढ़ा करिा। टकसाल – िह स्थाि जहाूँ नसक्के ढाले जाते हैं। चुगली-चबाड – बिंदा। पठरणनत –
निपकर्य।अलगौझा – बूँटिारा। खनलहाि – कटी िसल को रखिे का स्थाि। निरं तर – लगातार। कु कु री – कु नतर्ा। नबलारी
– नबल्ली। होरहा – होला, आग पर भुिा हरे चिे का रूप। अनजर्ा ससुर – पनत का बाबा। कै – ककतिे ही। उपार्जयत –
किाई। कठटबद्ध – तैर्ार। नजठौत – पनत के बडे भाई का पुि। गठबंिि – नििाह, शादी।पठरिाजयि – शुद्ध करिा, सुिार
करिा। कियठता – िेहित। दीनक्षत – नजसिे दीक्षा ग्रहण की हो। अथ – प्रारं भ। अनभिंदि – स्िागत।नितांत – पूणत
य :।
िीतराग – आसनिरनहत। आसीि – बैठा। निर्दयष्ट – निनित। नपनतर्ा ससुर – पनत का चाचा। िौनखक – ज़बािी। नििारण
– दूर करिा। उपचार – इलाज। जागृत – सचेत।िकई – िक्का। लपसी-पतला –सा हलुिा। कक्र्ात्िक – व्यािहाठरक।
पोपला – दाूँतरनहत िुह
ूँ । दंत-कथाएूँ – परं परा से चले आ रहे ककस्से। कं ठस्थ – र्ाद। िरो िा कुं जरो िा – ििुपर् र्ा हाथी।
नसर घुटािा – जड से बाल कटिािा। असंकुनचत भाि – नबिा संकोच के । चूडाकिय – नसर के बाल को कटिािा। िानपत –
िाई। निपपन्न – पूण।य अपिाि – निरादर। िंथरता – िीिी गनत। पटु – चतुर। बपंड छु डार्ा – छु टकारा पार्ा।अनतशर्ोनिर्ाूँ
– बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातें। अिरबेल – जडरनहत बेल जो दूसरे िृक्षों से जीििरस लेकर िै लती है। आभा – प्रकाश।

122
उद्भानसत – आलोककत। पागुर –जुगाली। निस्तब्िता – शांनत। प्रशांत – पूरी तरह शांत।आतंककत – भर्भीत। िाती – बेटी
का पुि। नििीत – नििम्र। िचाि – बाूँस आकद की सहार्ता से बिार्ा गर्ा ऊूँचा आसि। स्नेह – प्रेि। सम्िाि – आदर।
अपभ्रंश – नबगडा हुआ। कारागार – जेल। िाई– िाूँ। बडे लाट – िार्सरार्। निर्ि – निपरीत। दुलभ
य – कठठि।
पाठ के िहत्त्िपूणय नबन्दु-
भनिि - (भाग-1)
1.पाठ की लेनखका का िाि - िहादेिी ििाय
2.पाठ िें लेनखका िे अपिी सेनिका भनिि के बारे िें नलखा है ।
3.भनिि िें सबसे कहती थी कक िह लेनखका के साथ 50 साल से रह रही है क्र्ोंकक उसके लेनखका के साथ अपिा
लंबा संबंि बतािे िें बहुत संतोर् निलता है।
4.अपिे सेिक ििय के कारण लेनखका िे भनिि की तुलिा राि भि हिुिाि जी से की है ।
5. भनिि का असली िाि लक्ष्िी र्ा लछनिि था ।
6. लेनखका िे भनिि के गले िें कं ठी िाला देखकर उसका िाि भनिि रखा ।
7. भनिि शब्द का अथय भनि करिे िाली है ।
8. भनिि का नििाह नपता िे एक संपन्न गोपालक के सबसे छोटे बेटे से ककर्ा ।
9.भनिि की ससुराल िें उसके पनत के अलािा उसकी सास, दो जेठ-जेठानिर्ाूँ और उिके बेटे थे ।
10.ससुराल िाले भनिि से ििरत करते थे क्र्ोंकक उसकी 3 बेठटर्ाूँ थी और कोई बेटा िहीं था।
भनिि (भाग-2)
1. नििाता िे भनिि को नपता के रोग की सूचिा िहीं दी क्र्ोंकक भनिि के नपता उससे बहुत स्नेह करते थे । उसको
डर था कक कहीं नपता भनिि को संपनि ि दे दे ।
2.िैहर जाकर भनिि िे पार्ा उसके नपता िर चुके थे ।
3.भनिि सास से िाराज़ थी क्र्ोंकक सास िे उसे नपता की िौत की खबर िहीं दी थी ।
4.भनिि और उसकी बेठटर्ों के साथ पक्षपातपूणय व्यिहार होता था । भनिि से खूब काि नलर्ा जाता था और
उन्हें खािे को भी रूखा-सूखा निलता था ।
5.जेठानिर्ाूँ भनिि से जलती थीं क्र्ोंकक भनिि का पनत उससे स्नेह करता था और उसे कभी िारता ि था ।
6.अलगौझा र्ा बूँटिारे के बाद भनिि का जीिि खुशहाली भरा था क्र्ोंकक िह िेहिती थी ।
7.भनिि के पनत की िृत्र्ु बडी बेटी के नििाह के बाद हुई जब भनिि 29 साल की थी ।
8.भनिि की संपनि छीििे के नलए भनिि के ससुरालिाले उसका दूसरा नििाह करिा चाहते थे।
9.अपिा दूसरा नििाह रोकिे के नलए भनिि िे कं ठी िाला पहिकर के श हटा कदए ।
10.भनिि िे अपिी और बेठटर्ों की रक्षा के नलए दोिों का नििाह कर कदर्ा और एक दािाद को अपिे घर िें रहिे
को कहा ।
भनिि (भाग-3)
1.पाठ िें ‘भइर्हू’ भनिि को कहा गर्ा है । िह नजठौतों की भाभी थी ।

123
2.नजठौत भनिि की बेठटर्ों के चचेरे भाई थे अथायत् भनिि के नजठौतों के बेटे थे ।
3. भनिि की बडी बेटी के निििा होिे पर एक नजठौत िे उिकी संपनि हडपिे की र्ोजिा बिाई और अपिे
निकम्िे साले से उसका जबरि नििाह करिे की सानज़श की ।
4.भनिि की बडी बेटी को ि चाहकर भी नजठौत के निकम्िे साले से नििाह करिा पडा । उसे पंचार्त के अन्र्ार्पूणय
िै सले को िाििा पडा।
5.भनिि के निकम्िे दािाद िे सारी जिा-पूंजी अपिी बुरी आदतों िें िष्ट कर दी।
6.जिींदार िे भनिि को दण्ड कदर्ा क्र्ोंकक भनिि लगाि िहीं दे पाई ।
7.दण्ड के अपिाि के कारण भनिि किाई के नलए अपिे गाूँि से दूर शहर आ गई और लेनखका की सेनिका बि
गई ।
भनिि (भाग-4)
1.छू त –पाक िाििे के कारण भनिि लेनखका को रसोई िें आिे-जािे िहीं देती थी ।
2.भनिि लेनखका को नबलकु ल देहाती भोजि नखलाती थी ।
3.लेनखका के नगरते स्िास्थ और पठरिारिालों की बचंता के कारण उिको भोजि पकािे के नलए सेनिका रखिी
पडी थी ।
4.भनिि के स्िभाि की सबसे बडी निशेर्ता र्ह थी कक िह दूसरों को अपिे अिुसार बिा लेिा चाहती है पर स्िर्ं
ककसी के अिुसार बदलिा िहीं चाहती ।
5.लेनखका के घर िें इिर-उिर पडे पैसों को िह अपिी िटकी िें डाल लेती थी और कहती थी कक उसिे तो अपिे
घर का सािाि संभाल कर रखा है । िह लेनखका की िाराज़गी से बचिे के नलए झूठ भी बोलती थी।
6.हर बृहस्पनतिार को भनिि एक िाई से अपिे के श निकलिाती थी ।
7.र्ह कहकर भनिि पढ़ाई-नलखाई से बचती थी कक उसकी िालककि (लेनखका) तो सब सिर् पढ़िे नलखिे िें
व्यस्त रहती हैं अगर िह भी पढ़ेगी तो घर का काि कौि करे गा ।
8.लेनखका जब देर रात तक जग कर काि करती थी तब भनिि भी जागा करती थी और लेनखका की िदद करिे
को तत्पर रहती थी ।
9.भनिि र्ुद्ध के हालात िें भी घरिालों के बुलािे पर भी अपिे गाूँि िहीं जाती थी क्र्ोंकक िह लेनखका की सेिा
को छोडकर िहीं जािा चाहती थी ।
10.र्ुद्ध के हालात िें भनिि िे लेनखका को अपिे साथ अपिे गाूँि चलिे को कहा ।
11.भनिि लेनखका के पठरनचतों को उतिा ही सम्िाि देती थी नजतिा लेनखका उन्हें देती थी।
12.स्ितंिता आंदोलि िें भाग लेिे के कारण जब लेनखका के जेल जािे की संभाििा बिी तब जेल से डरिे पर भी
भनिि लेनखका के साथ जेल जािे को तैर्ार थी ।

124
गद्ांश पर आिाठरत बहुनिकल्पीर् प्रश्न
पठठत गद्ांश-01
सेिक-ििय िें हिुिाि जी से स्पिाय करिे िाली भनिि ककसी अंजिा की पुिी ि होकर एक अिाििन्र्ा गोपानलका की कन्र्ा
है-िाि है लछनिि अथायत लक्ष्िी। पर जैसे िेरे िाि की निशालता िेरे नलए दुिह
य है, िैसे ही लक्ष्िी की सिृनद्ध भनिि के
कपाल की कुं नचत रे खाओं िें िहीं बूँि सकी। िैसे तो जीिि िें प्रार्: सभी को अपिे-अपिे िाि का निरोिाभास लेकर जीिा
पडता है; पर भनिि बहुत सिझदार है, क्र्ोंकक िह अपिा सिृनद्धसूचक िाि ककसी को बताती िहीं।
(i) लेनखका के नलए क्र्ा दुिह
य है?
(क) भनिि का सिृनद्ध सूचक िाि (ख) खुद के िाि की निशालता
(ग) भनिि की सिझदारी (घ) जीिि का निरोिाभास
(ii)र्हाूँ भनिि के कौि-से गुणों का उल्लेख है ?
(क)सेिा भाि,सिझदारी (ख)सुंदरता,ईिािदारी
(ग)पाक शास्त्री,सेिाभाि (घ)चतुर,िेहिती
(iii) इििें से ककस शब्द का अथय है-‘प्रनतर्ोनगता’-
(क)सिृनद्ध (ख)स्पिाय
(ग)अिािििाय (घ)निरोिाभास
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)-भनिि हिुिाि से स्पिाय करती थी ।
कारण (R)-हिुिाि की तरह भनिि एक सिर्पयत सेनिका थी।

(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।

(v)गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-


(I)भनिि सािारण गोपालक की पुिी थी ।
(II) भनिि भाग्र्शाली थी ।
(III) भनिि गिय से सबको अपिा असली िाि बताती थी।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं ?
(क)(I) और (II) (ख) (II) और (III)
(ग) के िल (I) (घ) के िल (III)
125
उिर –
(i) (ख)खुद के िाि की निशालता
(ii) (क)सेिा भाि,सिझदारी
(iii) (ख)स्पिाय
(iv) (क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(v) (ग) के िल (I)
पठठत गद्ांश-02
नपता का उस पर अगाि प्रेि होिे के कारण स्िभाित: ईपर्ालु और संपनि की रक्षा िें सतकय नििाता िे उिके िरणांतक
रोग का सिाचार तब भेजा, जब िह िृत्र्ु की सूचिा भी बि चुका था। रोिे-पीटिे के अपशकु ि से बचिे के नलए सास िे भी
उसे कु छ ि बतार्ा। बहुत कदि से िैहर िहीं गई, सो जाकर देख आिे, र्ही कहकर और पहिा-उढ़ाकर सास िे उसे निदा
कर कदर्ा। इस अप्रत्र्ानशत अिुग्रह िे उसके पैरों िें जो पंख लगा कदए थे, िे गाूँि की सीिा िें पहुूँचते ही झड गए। ‘हार्
लछनिि अब आई’ की अस्पष्ट पुिरािृनिर्ाूँ और स्पष्ट सहािुभनू तपूणय दृनष्टर्ाूँ उसे घर तक ठे ल ले गई। पर िहाूँ ि नपता का
नचन्ह शेर् था, ि नििाता के व्यिहार िें नशष्टाचार का लेश था। दुख से नशनथल और अपिाि से जलती हुई िह उस घर िें
पािी भी नबिा नपए उलटे पैरों ससुराल लौट पडी। सास को खरी-खोटी सुिाकर उसिे नििाता पर आर्ा हुआ क्ोि शांत
ककर्ा और पनत के ऊपर गहिे िें क-िें ककर उसिे नपता के नचर निछोह की िियव्यथा व्यि की।
(i)सास िे क्र्ा कहकर भनिि को िार्के भेजा ?
(क) नपता को भर्ािक रोग है (ख) नपता िर चुके हैं
(ग)बहुत कदिों से िार्के िहीं गई (घ)नििाता िे र्ाद ककर्ा है
(ii) िार्के के लोगों को भनिि से सहािुभनू त थी क्र्ोंकक-
(क) नपता के िरिे के बाद भनिि आई (ख) बहुत कदिों बाद िह आई
(ग) भनिि को संपनि िहीं निली (घ)नििाता का व्यिहार कठोर था
(iii)’अप्रत्र्ानशत’ िें निनहत उपसगय और प्रत्र्र् है-
(क)अप्र ,त (ख)आ,नशत
(ग)अ,इत (घ)प्रनत,ईत

(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक


य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)-सास िे भनिि को उसके नपता की िृत्र्ु की खबर िहीं दी ।
कारण (R)- सास घर िें रोिे-पीटिे को अपशकु ि िािती थी ।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
126
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v)गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I) नपता भनिि से बहुत स्नेह करते थे ।
(II) नपता के रोगग्रस्त होते ही भनिि को सिाचार निला ।
(III) नििाता संपनि की रक्षा करिा चाहती थी ।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं ?
(क)(I) और (II) (ख) (I) और (III)
(ग) के िल (I) (घ) के िल (III)
उिर –
(i) (ग) बहुत कदिों से िार्के िहीं गई
(ii) (क) नपता के िरिे के बाद भनिि आई
(iii) (ग) अ, इत
(iv) (क) कथि (A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(v) (ख) (I) और (III)
पठठत गद्ांश-03
जीिि के दूसरे पठरच्छेद िें भी सुख की अपेक्षा दुख ही अनिक है। जब उसिे गेहुए
ूँ रं ग और बठटर्ा जैसे िुख िाली पहली
कन्र्ा के दो संस्करण और कर डाले तब सास और नजठानिर्ों िे ओंठ नबचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उनचत भी था, क्र्ोंकक
सास तीि-तीि किाऊ िीरों की नििािी बिकर िनचर्ा के ऊपर निराजिाि पुरनखि के पद पर अनभनर्ि हो चुकी थी
और दोिों नजठानिर्ाूँ काक-भुशंडी जैसे काले लालों की क्िबद्ध सृनष्ट करके इस पद के नलए उम्िीदिार थीं। छोटी बहू के
लीक छोडकर चलिे के कारण उसे दंड निलिा आिश्र्क हो गर्ा।
(i)’दो संस्करण ‘ से र्हाूँ क्र्ा आशर् है?
(क) दो पुस्तकें (ख) दो पुि
(ग) दो पुनिर्ाूँ (घ) दो बहुएूँ

(ii) भनिि ककस प्रकार लीक छोडकर चल पडी थी?


(क)गोपानलका की कन्र्ा थी (ख)पनत का स्नेह पाती थी
(ग)उसिे के िल पुनिर्ों को जन्ि कदर्ा (घ)उसकी संताि िहीं थी
(iii)’ काले लालों’ का अथय है-
(क)काले और लाल रं ग (ख) क्ोि से लाल-काला होिा
(ग)काले िणय के बेटे (घ)लाल-काले बादल
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
127
कथि(A)-भनिि को पुनिर्ों को जन्ि देिे के कारण दंड निला ।
कारण (R)- पुनिर्ों को पठरिार िें सम्िािपूिक
य तथा स्नेह से स्िीकारा जाता है।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v) गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I) भनिि िे तीि बेठटर्ों को जन्ि कदर्ा
(II) भनिि के जीिि का र्ह सिर् सुखपूणय था
(III) नजठानिर्ों िे पुिों को जन्ि कदर्ा
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं?
(क)(I) और (II) (ख) (I) और (III)
(ग) के िल (I) (घ) के िल (III)
उिर –
(i) (ग) दो पुनिर्ाूँ
(ii) (ग)उसिे के िल पुनिर्ों को जन्ि कदर्ा
(iii) (ग)काले िणय के बेटे
(iv) (घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v) (ख) (I) और (III)
पठठत गद्ांश-04
इस दंड-नििाि के भीतर कोई ऐसी िारा िहीं थी, नजसके अिुसार खोटे नसक्कों की टकसाल-जैसी पत्नी से पनत को निरि
ककर्ा जा सकता। सारी चुगली-चबाई की पठरणनत उसके पत्नी-प्रेि को बढ़ाकर ही होती थी। नजठानिर्ाूँ बात-बात पर
ििािि पीटी-कू टी जातीं, पर उसके पनत िे उसे कभी उूँ गली भी िहीं छु आई। िह बडे बाप की बडी बात िाली बेटी को
पहचािता था। इसके अनतठरि पठरश्रिी, तेजनस्ििी और पनत के प्रनत रोि-रोि से सच्ची पत्नी को िह चाहता भी बहुत रहा
होगा, क्र्ोंकक उसके प्रेि के बल पर ही पत्नी िे अलगोझा करके सबको अूँगूठा कदखा कदर्ा। काि िही करती थी, इसनलए
गार्-भैंस, खेत-खनलहाि, अिराई के पेड आकद के संबि
ं िें उसी का ज्ञाि बहुत बढ़ा-चढ़ा था। उसिे छाूँट-छाूँट कर, ऊपर से
असंतोर् की िुद्रा के साथ और भीतर से पुलककत होते हुए जो कु छ नलर्ा, िह सबसे अच्छा भी रहा, साथ ही पठरश्रिी दंपनत
के निरंतर प्रर्ास से उसका सोिा बि जािा भी स्िाभानिक हो गर्ा।
(i)भनिि को खोटे नसक्कों की टकसाल कहा गर्ा है क्र्ोंकक-
(क) िह कोई काि ठीक से िहीं जािती थी । (ख) िह कटुभार्ी थी ।
(ग) िह गररीब पठरिार की थी। (घ) िह तीि बेठटर्ों की िाता थी ।
(ii)संपनि के बूँटिारे के सिर् भनिि िे असंतोर् की िुद्रा क्र्ों कदखाई ?
128
(क)िह िास्ति िें दुखी थी । (ख)िह असंतुष्ट थी ।
(ग)िह अपिी संतुष्टी को नछपािा चाहती थी । (घ)िह बूँटिारा िहीं चाहती थी ।
(iii)इििें से कौि-सा शब्द निशेर्ण िहीं है-
(क) पठरश्रिी (ख) चुगली-चबाई
(ग) तेजनस्ििी (घ)सच्ची
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)- सारी चुगली-चबाई की पठरणनत उसके पत्नी-प्रेि को बढ़ाकर ही होती थी।
कारण (R)- भनिि पठरश्रिी, तेजनस्ििी और पनत के प्रनत सिर्पयत सच्ची पत्नी थी।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v)गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I)चुगली के कारण भनिि को पनत से दंड निलता था ।
(II)बूँटिारे के बाद भनिि की उन्ननत हुई ।
(III)पनत भनिि के गुणों को पहचािता था ।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं ?
(क) (I) और (II) (ख)(II) और (III)
(ग)के िल (II) (घ)के िल (III)
उिर –
(i) (घ) िह तीि बेठटर्ों की िाता थी ।
(ii) (ग)िह अपिी संतष्ट
ु ी को नछपािा चाहती थी ।
(iii) (ख) चुगली-चबाई
(iv) (क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(v) (ख)(II) और (III)
पठठत गद्ांश-05
भनिि का दुभायग्र् भी उससे कि हठी िहीं था, इसी से ककशोरी से र्ुिती होते ही बडी लडकी भी निििा हो गई। भइर्हू
से पार ि पा सकिे िाले जेठों और काकी को परास्त करिे के नलए कठटबद्ध नजठौतों िे आशा की एक ककरण देख पाई।
निििा बनहि के गठबंिि के नलए बडा नजठौत अपिे तीतर लडािे िाले साले को बुला लार्ा, क्र्ोंकक उसका गठबंिि हो
जािे पर सब कु छ उन्हीं के अनिकार िें रहता। भनिि की लडकी भी िाूँ से कि सिझदार िहीं थी, इसी से उसिे िर को
िापसंद कर कदर्ा। बाहर के बहिोई का आिा चचेरे भाइर्ों के नलए सुनििाजिक िहीं था, अत: र्ह प्रस्ताि जहाूँ-का-तहाूँ
129
रह गर्ा। तब िे दोिों िाूँ-बेटी खूब िि लगाकर अपिी संपनि की देख-भाल करिे लगीं और ‘िाि ि िाि िैं तेरा िेहिाि’
की कहाित चठरताथय करिे िाले िर के सिथयक उसे ककसी-ि-ककसी प्रकार पनत की पदिी पर अनभनर्ि करिे का उपार्
सोचिे लगे।
(i)’भइर्हू’ और ‘काकी’ शब्द ककसके नलए प्रर्ुि है?
(क)नजठािी (ख)बडी बेटी
(ग)भनिि (घ)सास
(ii) ‘नजठौत’ कौि थे?
(क)जेठ के भाई (ख) जेठ के साले
(ग) जेठ के पुि (घ) जेठ के पौि
(iii)’दुभायग्र्’ एि कौि-सा उपसगय है?
(क)दूभ ख)दू
(ग)दुर् (घ)दु
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)-नजठौत अपिे साले से निििा बहि का नििाह करिा चाहते थे ।
कारण (R)- नजठौत अपिी निििा बहि का नहत चाहते थे।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v)गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I)भनिि की बडी बेटी कि सिझदार थी ।
(II)िर के सिथयक भनिि के नहतैर्ी थे।
(III)भनिि और उसकी बेटी दोिों निििा थीं ।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं ?
(क) (I) और (II) (ख)(II) और (III)
(ग)के िल (II) (घ)के िल (III)
उिर –
(i) (ग)भनिि
(ii) (ग) जेठ के पुि
(iii) (ग)दुर्
(iv) (घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।

130
(v) (घ)के िल (III)
पठठत गद्ांश-06
तीतरबाज र्ुिक कहता था, िह नििंिण पाकर भीतर गर्ा और र्ुिती उसके िुख पर अपिी पाूँचों उूँ गनलर्ों के उभार िें
इस नििंिण के अक्षर पढ़िे का अिुरोि करती थी। अंत िें दूि-का-दूि पािी-का-पािी करिे के नलए पंचार्त बैठी और सबिे
नसर नहला-नहलाकर इस सिस्र्ा का िूल कारण कनलर्ुग को स्िीकार ककर्ा। अपीलहीि िै सला हुआ कक चाहे उि दोिों िें
एक सच्चा हो चाहे दोिों झूठे; जब िे एक कोठरी से निकले, तब उिका पनत-पत्नी के रूप िें रहिा ही कनलर्ुग के दोर् का
पठरिाजयि कर सकता है। अपिानित बानलका िे होंठ काटकर लहू निकाल नलर्ा और िाूँ िे आिेर् िेिों से गले पडे दािाद
को देखा। संबि
ं कु छ सुखकर िहीं हुआ, क्र्ोंकक दािाद अब निनित होकर तीतर लडाता था और बेटी नििश क्ोि से जलती
रहती थी। इतिे र्त्न से सूँभाले हुए गार्-ढोर, खेती-बारी जब पाठरिाठरक द्वेर् िें ऐसे झुलस गए कक लगाि अदा करिा भी
भारी हो गर्ा, सुख से रहिे की कौि कहे। अंत िें एक बार लगाि ि पहुूँचिे पर जिींदार िे भनिि को बुलाकर कदि भर
कडी िूप िें खडा रखा। र्ह अपिाि तो उसकी कियठता िें सबसे बडा कलंक बि गर्ा, अत: दूसरे ही कदि भनिि किाई के
निचार से शहर आ पहुूँची।
(i)पंचों के िै सले का भनिि के जीिि पर क्र्ा प्रभाि पडा?
(क)उसे एक र्ोग्र् दािाद निला (ख)उसकी उन्ननत हुई
(ग)उसकी संपनि िष्ट हुई (घ)इििें से कोई िहीं
(ii) ‘आिेर् िेिों से देखिे’का क्र्ा अथय है?
(क)सिािपूियक देखिा (ख)निनस्ित होकर देखिा
(ग)क्ोनित होकर देखिा (घ)ईपर्ाय से देखिा
(iii)’दूि-का-दूि पािी-का-पािी करिे’ का क्र्ा अथय है?
(क)दूि और पािी को अलग करिा (ख)अन्र्ार्पूणय निणयर् करिा
(ग)पक्षपात करिा (घ) उनचत निणयर् करिा ।
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)- भनिि किाई के निचार से शहर आ पहुूँची।
कारण (R)-भनिि शहरी जीिि को पसंद करती थी ।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v)गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I) पंचार्त का िै सला न्र्ार्पूणय था।
(II) पाठरिाठरक द्वेर् िे भनिि को निियि बिा कदर्ा ।
131
(III)भनिि को पंचार्त िे दंड कदर्ा ।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं ?
(क) (I) और (II) (ख)(II) और (III)
(ग)के िल (I) (घ)के िल (II)
उिर –
(i) (ग)उसकी संपनि िष्ट हुई
(ii) (ग)क्ोनित होकर देखिा
(iii) (घ) उनचत निणयर् करिा ।
(iv) (घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v) (ख)(II) और (III)
पठठत गद्ांश-07
दूसरे कदि तडके ही नसर पर कई लोटे औंिाकर उसिे िेरी िुली िोती जल के छींटों से पनिि कर पहिी और पूिय के अंिकार
और िेरी दीिार से िू टते हुए सूर्य और पीपल का दो लोटे जल से अनभिंदि ककर्ा। दो नििट िाक दबाकर जप करिे के
उपरांत जब िह कोर्ले की िोटी रे खा से अपिे साम्राज्र् की सीिा निनित कर चौके िें प्रनतनष्ठत हुई, तब िैंिे सिझ नलर्ा
कक इस सेिक का साथ टेढ़ी खीर है। अपिे भोजि के संबि
ं िें नितांत िीतराग होिे पर भी िैं पाक-निद्ा के नलए पठरिार
िें प्रख्र्ात हूूँ और कोई भी पाक-कु शल दूसरे के काि िें िुिाचीिी नबिा ककए रह िहीं सकता। पर जब छू त-पाक पर प्राण
देिे िाले व्यनिर्ों का बात-बात पर भूखा िरिा स्िरण हो आर्ा और भनिि की शंकाकु ल दृनष्ट िें नछपे हुए निर्ेि का
अिुभि ककर्ा, तब कोर्ले की रे खा िेरे नलए लक्ष्िण के ििुर् से खींची हुई रे खा के साििे दुलघ्ं र् हो उठी। निरुपार् अपिे
किरे िें नबछौिे िें पडकर िाक के ऊपर खुली हुई पुस्तक स्थानपत कर िैं चौके िें पीढ़े पर आसीि अिानिकारी को भूलिे
का प्रर्ास करिे लगी। ।
(i)भनिि के बारे िें कौि-सा कथि असत्र् है?
(क)िह छू त -पाक िािती थी । (ख)उसे लेखका का चौके िें जािा स्िीकार था ।
(ग)िह बडी हठी थी । (घ)उसिे चौके पर अनिकार कर नलर्ा ।
(ii)’िुिाचीिी’ का क्र्ा अथय है?
(क) िुिा और चीिी (ख)प्रशंसा करिा
(ग)काि िें किी निकालिा (घ) कु शलता से काि करिा
(iii)’टेढ़ी खीर’ होिे का क्र्ा अथय है?
(क)आसाि कार्य (ख) कठठि कार्य
(ग)ििुर अिुभि (घ)कटु अिुभि
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)-लेनखका का चौके िें प्रिेश-निर्ेि हो गर्ा ।
132
कारण (R)-भनिि छू त-पाक िािती थी ।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v)गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I)लेनखका पाककला िें निपुण थी ।
(II)भनिि िे चौके पर अनिकार कर नलर्ा ।
(III)लेनखका और भनिि का साथ बडा सरल था ।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं ?
(क) (I) और (II) (ख)(II) और (III)
(ग)के िल (I) (घ)के िल (III)
उिर –
(i) (ख)उसे लेखका का चौके िें जािा स्िीकार था ।
(ii) (ग)काि िें किी निकालिा
(iii) (ख) कठठि कार्य
(iv) (क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(v) (क) (I) और (II)
पठठत गद्ांश-08
िेरे इिर-उिर पडे पैस-े रुपर्े, भंडार-घर की ककसी िटकी िें कै से अंतरनहत हो जाते हैं, र्ह रहस्र् भी भनिि जािती है।
पर, उस संबि
ं िें ककसी के संकेत करते ही िह उसे शास्त्राथय के नलए चुिौती दे डालती है, नजसको स्िीकार कर लेिा ककसी
तकय -नशरोिनण के नलए संभि िहीं र्ह उसका अपिा घर ठहरा, पैसा-रुपर्ा जो इिर-उिर पडा देखा, सूँभालकर रख नलर्ा।
र्ह क्र्ा चोरी है! उसके जीिि का परि कतयव्य िुझे प्रसन्न रखिा है-नजस बात से िुझे क्ोि आ सकता है, उसे बदलकर
इिर-उिर करके बतािा, क्र्ा झूठ है! इतिी चोरी और इतिा झूठ तो िियराज िहाराज िें भी होगा।
(i)इििें से सत्र् कथि कौि-सा है?
(क)भनिि िें कोई बुरा गुण िहीं था । (ख) भनिि िें कु छ बुराइर्ाूँ थीं।
(ग) भनिि झूठ ि बोलती और ि चोरी करती थी। (घ) भनिि से बहस िें कोई भी जीत सकता था।
(ii)’िियराज िहाराज कौि हैं?
(क)हठरिंद्र (ख)राि
(ग)र्ुनिनष्ठर (घ)कृ पण
(iii)’शास्त्राथय’ का क्र्ा अथय है?
(क)चचाय (ख)लडाई
133
(ग)शस्त्र निद्ा (घ)उपदेश
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)-भनिि लेनखका से झूठ िहीं बोलती थी ।
कारण (R)-भनिि लेनखका को क्ोनित िहीं करिा चाहती थी ।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v) गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I) भनिि बहस करिे िें कु शल थी ।
(II) भनिि अपिी गलती िाि लेती थी ।
(III) भनिि िें कोई बुरा गुण िहीं था ।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं?
(क) (I) और (II) (ख) (II) और (III)
(ग)के िल (I) (घ)के िल (III)
उिर –
(i) (ख) भनिि िें कु छ बुराइर्ाूँ थीं।
(ii) (ग)र्ुनिनष्ठर
(iii) (क)चचाय
(iv) (ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(v) (ग)के िल (I)
पठठत गद्ांश-09
पर िह स्िर्ं कोई सहार्ता िहीं दे सकती, इसे िाििा अपिी हीिता स्िीकार करिा है-इसी से िह द्वार पर बैठकर बार-
बार कु छ काि बतािे का आग्रह करती है। कभी उिर-पुस्तकों को बाूँिकर, कभी अिूरे नचि को कोिे िें रखकर, कभी रं ग
की प्र्ाली िोकर और कभी चटाई को आूँचल से झाडकर िह जैसी सहार्ता पहुूँचाती है, उससे भनिि का अन्र् व्यनिर्ों
से अनिक बुनद्धिाि होिा प्रिानणत हो जाता है। िह जािती है कक जब दूसरे िेरा हाथ बूँटािे की कल्पिा तक िहीं कर
सकते, तब िह सहार्ता की इच्छा को कक्र्ात्िक रूप देती है। इसी से िेरी ककसी पुस्तक के प्रकानशत होिे पर उसके िुख
पर प्रसन्नता की आभा िैसे ही उद्भानसत हो उठती है जैसे नस्िच दबािे से बल्ब िें नछपा आलोक। िह सूिे िें उसे बार-बार
छू कर, आूँखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुिा-किराकर िािो अपिी सहार्ता का अंश खोजती है और उसकी दृनष्ट िें
व्यि आत्िघोर् कहता है कक उसे निराश िहीं होिा पडता। र्ह स्िाभानिक भी है। ककसी नचि को पूरा करिे िें व्यस्त, िैं

134
जब बार-बार कहिे पर भी भोजि के नलए िहीं उठती, तब िह कभी दही का शबयत, कभी तुलसी की चार् िहीं देकर भूख
का कष्ट िहीं सहिे देती।
(i)भनिि का सेिा भाि ककस बात से नसद्ध होता है?
(क)बार-बार कहिे पर भी उसका भोजि के नलए ि उठिा।
(ख)अपिी हीिता ि स्िीकार करिा ।
(ग)खुद को अनिक बुनद्धिाि नसद्ध करिा।
(घ)लेनखका की उपलनब्ि पर प्रसन्न होिा।
(ii)भनिि लेनखका के कािों िें संलि होते हुए क्र्ा करती थी?
(क)अपिी इच्छा को कक्र्ानन्ित करिा। (ख)दूसरों से खुद को अनिक बुनद्धिाि जतािा ।
(ग)प्रसन्नता ि संतुष्टी का अिुभि करिा (घ)उपर्ुयि सभी ।
(iii)’हाथ बटािे’ का क्र्ा अथय है?
(क)हाथ बांििा (ख)साथ छोडिा
(ग)सहर्ोग देिा (घ)हाथों से बाूँटिा
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)- भनिि लेनखका के द्वार पर बैठकर बार-बार कु छ काि बतािे का आग्रह करती है।
कारण (R)- भनिि स्िर्ं कोई सहार्ता िहीं दे सकिे की अपिी हीिता स्िीकार करिा िहीं चाहती है।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v) गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I) भनिि लेनखका के हर कार्य िें सहर्ोग देती थी।
(II) भनिि लेनखका की प्रकानशत पुस्तकों िें अपिा र्ोगदाि खोजती थी।
(III) भनिि लेनखका के कार्ों िें खलल डालती थी ।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं?
(क) (I) और (II) (ख)(II) और (III)
(ग)के िल (I) (घ)के िल (III)
उिर –
(i) (क)बार-बार कहिे पर भी उसका भोजि के नलए ि उठिा।
(ii) (घ)उपर्ुयि सभी ।
(iii) (ग)सहर्ोग देिा

135
(iv) (क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(v) (क) (I) और (II)
पठठत गद्ांश-10
िेरे भ्रिण की भी एकांत सानथि भनिि ही रही है। बदरी-के दार आकद के ऊूँचे-िीचे और तंग पहाडी रास्ते िें जैसे िह हठ
करके िेरे आगे चलती रही है, िैसे ही गाूँि की िूलभरी पगडंडी पर िेरे पीछे रहिा िहीं भूलती। ककसी भी सिर्, कहीं भी
जािे के नलए प्रस्तुत होते ही िैं भनिि को छार्ा के सिाि साथ पाती हूूँ। देश की सीिा िें र्ुद्ध को बढ़ते देखकर जब लोग
आतंककत हो उठे , तब भनिि के बेटी-दािाद उसके िाती को लेकर बुलािे आ पहुूँच;े पर बहुत सिझािे-बुझािे पर भी िह
उिके साथ िहीं जा सकी। सबको िह देख आती है; रुपर्ा भेज देती है; पर उिके साथ रहिे के नलए िेरा साथ छोडिा
आिश्र्क है; जो संभित: भनिि को जीिि के अंत तक स्िीकार ि होगा। गत िर्य जब र्ुद्ध के भूत िे िीरता के स्थाि िें
पलार्ि-िृनि जगा दी थी, तब भनिि पहली ही बार सेिक की नििीत िुद्रा के साथ िुझसे गाूँि चलिे का अिुरोि करिे
आई। िह लकडी रखिे के िचाि पर अपिी िर्ी िोती नबछाकर िेरे कपडे रख देगी, दीिाल िें कीलें गाडकर और उि पर
तख्ते रखकर िेरी ककताबें सजा देगी, िाि के पुआल का गोंदरा बििाकर और उस पर अपिा कं बल नबछाकर िह िेरे सोिे
का प्रबंि करे गी। िेरे रं ग, स्र्ाही आकद को िर्ी हैंनडर्ों िें सूँजोकर रख देगी और कागज-पिों को छींके िें र्थानिनि एकि
कर देगी।
(i)भनिि को क्र्ा कदानप स्िीकार ि था?
(क)अपिे गाूँि जािा (ख)अपिे घर रुपर्े भेजिा
(ग)लेनखका के साथ जेल जािा (घ)लेनखका का साथ छोडिा
(ii)’पलार्ि िृनि’ का क्र्ा अथय है?
(क)पालि करिा (ख)साहस दशायिा
(ग)डरकर भागिा (घ)िैर्य रखिा
(iii)लेखका िे भनिि के साथ को ________ के सिाि बतार्ा है।
(क)बादल (ख)संगीत
(ग)सूरज (घ)छार्ा

(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक


य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)- भनिि के बेटी-दािाद बुलािे आ पहुूँचे पर बहुत सिझािे-बुझािे पर भी िह उिके साथ िहीं जा सकी।
कारण (R)- उिके साथ रहिे के नलए लेनखका का साथ छोडिा भनिि को जीिि के अंत तक स्िीकार ि होगा।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
136
(v)गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I)हर र्ािा िें भनिि लेनखका की सानथि थी ।
(II)भनिि को अपिे पठरिार से कोई लगाि ि था ।
(III)भनिि लेनखका को भी अपिे गाूँि ले जािा चाहती थी ।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं?
(क) (I) और (II) (ख)(I) और (III)
(ग)के िल (I) (घ)के िल (III)
उिर –
(i) (घ)लेनखका का साथ छोडिा
(ii) (ग)डरकर भागिा
(iii) (घ)छार्ा
(iv(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है । )
(v) (ख)(I) और (III)
पठठत गद्ांश-11
भनिि और िेरे बीच िें सेिक-स्िािी का संबि
ं है, र्ह कहिा कठठि है; क्र्ोंकक ऐसा कोई स्िािी िहीं हो सकता, जो इच्छा
होिे पर भी सेिक को अपिी सेिा से हटा ि सके और ऐसा कोई सेिक भी िहीं सुिा गर्ा, जो स्िािी के चले जािे का आदेश
पाकर अिज्ञा से हूँस दे। भनिि को िौकर कहिा उतिा ही असंगत है, नजतिा अपिे घर िें बारी-बारी से आिे-जािे िाले
अूँिरे े -उजाले और आूँगि िें िू लिे िाले गुलाब और आि को सेिक िाििा। िे नजस प्रकार एक अनस्तत्ि रखते हैं, नजसे
साथयकता देिे के नलए ही हिें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भनिि का स्ितंि व्यनित्ि अपिे निकास के पठरचर् के नलए ही
िेरे जीिि को घेरे हुए है।
(i)गद्ांश िें भनिि के जीिि का कौि-सा भाग िर्णयत है?
(क)पहला (ख)दूसरा
(ग)तीसरा (घ)चौथा
(ii) गद्ांश का िूल निर्र् है-
(क)भनिि का दुखिर् अतीत (ख)भनिि की कार्य कु शलता
(ग)लेनखका और भनिि का संबंि (घ)लेनखका की कदिचर्ाय
(iii)कौि-से शब्द-र्ुग्ि निलोि िहीं हैं?
(क)सेिक-स्िािी (ख)सुख-दुख
(ग)अंिेरे-उजाले (घ)अनस्तत्ि-व्यनित्ि
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)- भनिि और लेनखका बीच िें सेिक-स्िािी का संबि
ं है।
137
कारण (R)-भनिि लेनखका के जीिि का अनभन्न अंग बि गई।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v)गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I)भनिि लेनखका की सेनिका िाि थी ।
(II) भनिि को िौकर कहिा असंगत है।
(III)भनिि लेनखका के हर आदेश की अिज्ञा करती थी।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं?
(क) (I) और (II) (ख)(I) और (III)
(ग)के िल (I) (घ)के िल (II)
उिर –
(i) (घ)चौथा
(ii) (ग)लेनखका और भनिि का संबि

(iii) (घ)अनस्तत्ि-व्यनित्ि
(iv) (ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(v) (घ)के िल (II)
पठठत गद्ांश-12
भनिि के संस्कार ऐसे हैं कक िह कारागार से िैसे ही डरती है, जैसे र्िलोक से। ऊूँची दीिार देखते ही, िह आूँख िूूँदकर
बेहोश हो जािा चाहती है। उसकी र्ह किजोरी इतिी प्रनसद्ध पा चुकी है कक लोग िेरे जेल जािे की संभाििा बता-बताकर
उसे नचढ़ाते रहते हैं। िह डरती िहीं, र्ह कहिा असत्र् होगा; पर डर से भी अनिक िहत्ि िेरे साथ का ठहरता है। चुपचाप
िुझसे पूछिे लगती है कक िह अपिी कै िोती साबुि से साफ कर ले, नजससे िुझे िहाूँ उसके नलए लनित ि होिा पडे। क्र्ा-
क्र्ा सािाि बाूँि ले, नजससे िुझे िहाूँ ककसी प्रकार की असुनििा ि हो सके । ऐसी र्ािा िें ककसी को ककसी के साथ जािे
का अनिकार िहीं, र्ह आश्वासि भनिि के नलए कोई िूल्र् िहीं रखता। िह िेरे ि जािे की कल्पिा से इतिी प्रसन्न िहीं
होती, नजतिी अपिे साथ ि जा सकिे की संभाििा से अपिानित। भला ऐसा अंिरे हो सकता है। जहाूँ िानलक िहाूँ िौकर-
िानलक को ले जाकर बंद कर देिे िें इतिा अन्र्ार् िहीं, पर िौकर को अके ले िुि छोड देिे िें पहाड के बराबर अन्र्ार् है।
ऐसा अन्र्ार् होिे पर भनिि को बडे लाट तक लडिा पडेगा। ककसी की िाई र्कद बडे लाट तक िहीं लडी, तो िहीं लडी;
पर भनिि का तो नबिा लडे काि ही िहीं चल सकता। ऐसे निर्ि प्रनतद्वंनद्वर्ों की नस्थनत कल्पिा िें भी दुलभ
य है। िैं प्रार्:
सोचती हूूँ कक जब ऐसा बुलािा आ पहुूँचग
े ा, नजसिें ि िोती साफ करिे का अिकाश रहेगा, ि सािाि बाूँििे का, ि भनिि
को रुकिे का अनिकार होगा, ि िुझे रोकिे का, तब नचर निदा के अंनति क्षणों िें र्ह देहानति िृद्धा क्र्ा करे गी और िैं क्र्ा
करूंगी।
138
(i)भनिि को कब लडिा होगा ?
(क)भनिि को लेनखका ले साथ जेल ि जािे देिे पर (ख) लेनखका को जेल भेजिे पर
(ग) लोगों द्वारा नचढ़ाए जािे पर (घ)गाूँि ि जािे देिे पर
(ii)र्हाूँ ‘निर्ि प्रनतद्वंद्वी’ कौि हैं?
(क)लेनखका-भनिि (ख)बडे लाट-लेनखका
(ग) बडे लाट-भनिि (घ) िौकर-िानलक
(iii) इििें से कौि-सा शब्द का निर्ेिाथयक िहीं है-
(क)असत्र् (ख)असुनििा
(ग)अन्र्ार् (घ)अिकाश
(iv)निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए । उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से कोई एक सही निकल्प चुिकर
नलनखए ।
कथि(A)- नचर निदा के अंनति क्षणों िें र्ह देहानति िृद्धा क्र्ा करे गी और िैं क्र्ा करूंगी।
कारण (R)-लेनखका को बंदी बिार्ा जाएगा तब भनिि और लेनखका क्र्ा करें गी।
(क) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण कथि की सही व्याख्र्ा करता है ।
(ख) कथि(A) गलत है लेककि कारण (R)सही है ।
(ग) कथि(A) तथा कारण (R) दोिों गलत हैं ।
(घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v)गद्ांश के आिार पर निम्ननलनखत कथिों पर निचार कीनजए-
(I)भनिि कारागार को र्िलोक िािती थी ।
(II)नचर निदा का अथय िृत्र्ु है।
(III)भनिि लेनखका के साथ जेल जािे की बात से बहुत डरती थी ।
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा/कौि-से सही है/हैं ?
(क) (I) और (II) (ख)(I) और (III)
(ग)के िल (I) (घ)के िल (II)
उिर –
(i) (क)भनिि को लेनखका ले साथ जेल ि जािे देिे पर
(ii) (ग) बडे लाट-भनिि
(iii) (घ)अिकाश
(iv) (घ) कथि(A) सही है लेककि कारण (R) उसकी गलत व्याख्र्ा करता है ।
(v) (क) (I) और (II)
िणयिात्िक प्रश्न
प्रश्न 1.भनिि पाठ के अिार पर भनिि का चठरि – नचिण कीनजए।
139
उिर –‘भनिि’ लेनखका की सेनिका है। लेनखका िे उसके जीिि-संघर्य का िणयि ककर्ा है। उसके चठरि की निम्ननलनखत
निशेर्ताएूँ हैं-
1.व्यनित्ि-भनिि अिेड उम्र की िनहला है। उसका कद छोटा ि शरीर दुबला-पतला है। उसके होंठ पतले हैं तथा आूँखें
छोटी हैं।
2.पठरश्रिी-भनिि कियठ िनहला है। ससुराल िें िह बहुत िेहित करती है। िह घर, खेत, पशुओं आकद का सारा कार्य अके ले
करती है। लेनखका के घर िें भी िह उसके सारे कािकाज को पूरी कियठता से करती है। िह लेनखका के हर कार्य िें सहार्ता
करती है।
3.स्िानभिानििी-भनिि बेहद स्िानभिानििी है। नपता की िृत्र्ु पर नििाता के कठोर व्यिहार से उसिे िार्के जािा छोड
कदर्ा। पनत की िृत्र्ु के बाद उसिे स्िर्ं िेहित करके घर चलार्ा। जिींदार द्वारा अपिानित ककए जािे पर िह गाूँि छोडकर
शहर आ गई।
4.िहाि सेनिका-भनिि िें सच्चे सेिक के सभी गुण हैं। लेनखका िे उसे हिुिाि जी से स्पिाय करिे िाली बतार्ा है। िह छार्ा
की तरह लेनखका के साथ रहती है तथा उसका गुणगाि करती है। िह उसके साथ जेल जािे के नलए भी तैर्ार है। िह र्ुद्ध,
र्ािा आकद िें हर सिर् उसके साथ रहिा चाहती है।
प्रश्न 2.भनिि की पाठरिाठरक पृष्ठभूनि पर प्रकाश डानलए ।
उिर –भनिि झूस
ूँ ी गाूँि के एक गोपालक की इकलौती संताि थी। इसकी िाता का देहांत हो गर्ा था। िलत: भनिि की
देखभाल नििाता िे ककर्ा। नपता का उस पर अगाि स्नेह था। पाूँच िर्य की आर्ु िें ही उसका नििाह गाूँि के एक ग्िाले के
सबसे छोटे पुि के साथ कर कदर्ा गर्ा। िौ िर्य की आर्ु िें उसका गौिा हो गर्ा। नििाता उससे ईपर्ाय रखती थी। उसिे
उसके नपता की बीिारी का सिाचार तक उसके पास िहीं भेजा।
प्रश्न 3.भनिि के ससुराल िालों का व्यिहार कै सा था?
उिर –भनिि के ससुराल िालों का व्यिहार उसके प्रनत अच्छा िहीं था। घर की िनहलाएूँ चाहती थीं कक भनिि का पनत
उसकी नपटाई करे । िे उस पर रौब जिािा चाहती थीं। इसके अनतठरि, भनिि िे तीि कन्र्ाओं को जन्ि कदर्ा, जबकक
उसकी सास ि जेठानिर्ों िे लडके पैदा ककए थे। इस कारण उसे सदैि प्रतानडत ककर्ा जाता था। पनत की िृत्र्ु के बाद उन्होंिे
भनिि पर पुिर्ियिाह के नलए दबाि डाला। उसकी निििा लडकी का नििाह र्डर्ंि से करिा कदर्ा गर्ा नजससे उसकी
संपनि िष्ट हो गई । अंत िें, भनिि को गाूँि छोडिा पडा ।
प्रश्न 4.भनिि का जीिि सदैि दुखों से भरा रहा। स्पष्ट कीनजए ।
उिर –भनिि का जीिि प्रारं भ से ही दुखिर् रहा। बचपि िें ही िाूँ िर गई । नििाता से हिेशा भेदभािपूणय व्यिहार
निला। नििाह के बाद तीि लडककर्ाूँ उत्पन्न करिे के कारण उसे सास ि जेठानिर्ों का बुरा व्यिहार सहिा पडा। ककसी
तरह पठरिार से अलग होकर सिृनद्ध पाई, परं तु भाग्र् िे उसके पनत को छीि नलर्ा। ससुराल िालों िे उसकी संपनि छीििी
चाही, परं तु िह संघर्य करती रही। उसिे बेठटर्ों का नििाह ककर्ा तथा बडे जिाई को घर-जिाई बिार्ा। शीघ्र ही उसका
देहांत हो गर्ा। इस तरह उसका जीिि शुरू से अंत तक दुखों से भरा रहा।
प्रश्न 5.लछनिि के पैरों के पंख गाूँि की सीिा िें आते ही क्र्ों झड गए?

140
उिर –लछनिि की सास का व्यिहार सदैि कटु रहा। जब उसिे लछनिि को िार्के र्ह कहकर भेजा कक “तुि बहुत कदि
से िार्के िहीं गई हो, जाओ देखकर आ जाओ” तो र्ह उसके नलए अप्रत्र्ानशत था। उसके पैरों िें पंख से लग गए थे। खुशी-
खुशी जब िह िार्के के गाूँि की सीिा िें पहुूँची तो लोगों िे िु सिु सािा प्रारं भ कर कदर्ा कक ‘हार्! बेचारी लछनिि अब
आई है।” लोगों की िजरों से सहािुभूनत झलक रही थी। उसे इस बात का अहसास िहीं था कक उसके नपता की िृत्र्ु हो चुकी
है र्ा िे गंभीर बीिार थे। नििाता िे उसके साथ अन्र्ार् ककर्ा था। इसनलए िह हतप्रभ थी। उसकी तिाि खुशी सिाप्त हो
गई।
प्रश्न 6.लछनिि ससुराल िालों से अलग क्र्ों हई? इसका क्र्ा पठरणाि हुआ?
उिर –लछनिि िेहिती थी। तीि लडककर्ों को जन्ि देिे के कारण सास ि जेठानिर्ाूँ उसे सदैि प्रतानडत करती रहती थीं।
िह ि उसके बच्चे घर, खेत ि पशुओं का सारा काि करते थे, परं तु उन्हें खािे तक िें भेदभािपूणय व्यिहार का साििा करिा
पडता था। उसकी दशा िौकरों जैसी थी। अत: उसिे ससुराल िालों से अलग होकर रहिे का िै सला ककर्ा। अलग होते सिर्
उसिे अपिे ज्ञाि के कारण खेत, पशु घर आकद िें अच्छी चीजें ले लीं। पठरश्रि के बलबूते पर उसका घर सिृद्ध हो गर्ा।
प्रश्न 7. लछनिि को शहर क्र्ों जािा पडा?
उिर –लछनिि के बडे दािाद की िृत्र्ु हो गई। उसके स्थाि पर पठरिार िालों िे नजठौत के साले को जबरदस्ती निििा
लडकी का पनत बििा कदर्ा। पाठरिाठरक द्वेर् बढ़िे से खेती चौपट हो गई। नस्थनत र्हाूँ तक आ गई कक लगाि भी िहीं
चुकार्ा गर्ा। जब जिींदार िे लगाि ि पहुूँचािे पर भनिि को कदिभर कडी िूप िें खडा रखा तो उसके स्िानभिािी हृदर्
को गहरा आघात लगा। र्ह उसकी कियठता के नलए सबसे बडा कलंक बि गर्ा। इस अपिाि के कारण िह दूसरे ही कदि
किाई के निचार से शहर आ गई।
प्रश्न 8. भनिि का दुभायग्र् क्र्ा था? उसे हठी क्र्ों कहा गर्ा है?
उिर- भनिि का दुभायग्र् ही था कक उसकी िाूँ उसको बचपि िें ही अके ला छोड कर भगिाि के पास चली गई I नििाता
के अत्र्ाचारों को सहिा पडा I छोटी आर्ु िें ही उसका नििाह कर कदर्ा गर्ा नजससे उसका बचपि छीि गर्ा I ककं तु
उसका दुभायग्र् इतिे पर ही खत्ि िहीं हुआ उसके नपता और पनत की भी अकाल िृत्र्ु से िह अके ली रह गई और अनत तब
हुई जब उसकी बडी लडकी का पनत भी उसके र्ुिती बिते ही िृत्र्ु को प्राप्त हो गर्ा I इसनलए भनिि के दुभायग्र् को हठी
कहा गर्ा है I
प्रश्न-9. भनिि पाठ िें लेनखका िे सिाज की ककि सिस्र्ाओं का उल्लेख ककर्ा है?
उिर- भनिि पाठ के िाध्र्ि से लेनखका िे भारतीर् ग्रािीण सिाज की अिेक सिस्र्ाओं का उल्लेख ककर्ा है I जैस-े
1. लडके -लडककर्ों िें ककर्ा जािे िाला भेदभाि
2. निििाओं की सिस्र्ा
3. न्र्ार् के िाि पर पंचार्तों के द्वारा नस्त्रर्ों के िाििानिकार को कु चलिा
4. अनशक्षा और अंिनिश्वास
5. बाल नििाह ।
प्रश्न-10. भनिि पाठ के आिार पर भारतीर् ग्रािीण सिाज िें लडके -लडककर्ों िें ककर्े जािे िाले भेदभाि का उल्लेख
कीनजए ।

141
उिर- भारतीर् ग्रािीण सिाज िें लडके -लडककर्ों िें भेदभाि ककर्ा जाता है । लडककर्ों को खोटा नसक्का र्ा परार्ा िि
िािा जाता है । भनिि िे तीि बेठटर्ों को जन्ि कदर्ा, नजस कारण उसे सास और नजठानिर्ों की उपेक्षा सहिी पडती थी ।
सास और नजठानिर्ाूँ आराि िरिाती थी क्र्ोंकक उन्होंिे लडके पैदा ककए थे और भनिि तथा उसकी िन्हीं बेठटर्ों को घर
और खेतों का सारा काि करिा पडता था । भनिि और उसकी बेठटर्ों को रूखा-सूखा िोटा अिाज खािे को निलता था
जबकक उसकी नजठानिर्ाूँ और उिके काले-कलूटे बेटे दूि-िलाई राब-चािल की दाित उडाते थे I
प्रश्न-11. भनिि पाठ के आिार पर पंचार्त के न्र्ार् पर ठटप्पणी कीनजए ।
उिर- भनिि की बेटी के सन्दभय िें पंचार्त द्वारा ककर्ा गर्ा न्र्ार्, तकय हीि और अंिे कािूि पर आिाठरत है । भनिि के
नजठौत िे संपनत के लालच िें र्डर्ंि कर भोली बच्ची को िोखे से जाल िें िं सार्ा । पंचार्त िे निदोर् लडकी की कोई बात
िहीं सुिी और एक तरफा िै सला देकर उसका नििाह जबरदस्ती नजठौत के निकम्िे तीतरबाज साले से कर कदर्ा । पंचार्त
के अंिे कािूि से दुष्टों को लाभ हुआ और निदोर् को दंड निला ।
प्रश्न 12.भनिि (लछनिि) का नििाह िाि पाूँच िर्य की आर्ु िें हो गर्ा था। अभी भी देश के कु छ राज्र्ों िें लडककर्ों का
नििाह बहुत छोटी उम्र िें कर देिे का ठरिाज है। क्र्ा ऐसा करिा सिाज के नलए उनचत है? अपिा तकय संगत उिर दीनजए।
उिर-भनिि का नििाह पाूँच िर्य और गौिा िौ िर्य की उम्र िें हो गर्ा था। कच्ची आर्ु िें ही उस पर घर-गृहस्थी का बोझा
लाद कदर्ा गर्ा था, जो सिाज के नलए कदानप उनचत िहीं था। छोटी आर्ु खेल-कू द, पढ़ाई-नलखाई और दुनिर्ा को देखिे-
सिझिे की होती है। र्ही सिर् हर बच्चे को भािी जीिि के नलए तैर्ार करता है।र्कद इसी उम्र िें उन्हें नििाह के बंिि िें
िूँ सा कदर्ा जाए तो िे िृत्र्ुपर्ंत अिेक दृनष्टकोणों से अिूरे ही बिे रहते हैं। छोटी आर्ु िें नजि लडककर्ों का नििाह कर
कदर्ा जाता है िे अनिकतर अनशनक्षत र्ा अल्पनशनक्षत ही रह जाती हैं नजस कारण िे पठरिार, सिाज और देश के नलए कार्य
िहीं कर पातीं जो नशक्षा प्रानप्त के बाद कर सकती थीं। जीि निज्ञाि की दृनष्ट से भी छोटी आर्ु िें नििाह-बंिि उनचत िहीं
होता।ििोिैज्ञानिक दृनष्ट से र्ह हानिकारक होता है। पठरिार की नजम्िेदाठरर्ों का बोझ सूँभालिा अबोि अिस्था िें िहीं
आ पाता। छोटी आर्ु िें बाल-बच्चों की नज़म्िेदारी व्यनित्ि को उभरिे िहीं देती। कई बार िे िािनसक कुं ठाओं और
हीिभाििा का नशकार बि जाती हैं। निनित रूप से छोटी आर्ु िें नििाह कर देिा अच्छा िहीं होता। बाल-नििाह प्रथा
का पालि ककसी भी अिस्था िें िहीं ककर्ा जािा चानहए।
प्रश्न 13.भनिि के इनतिृि पर ठटप्पणी कीनजए ।
उिर-भनि का िास्तनिक िाि लक्ष्िी था। िह ऐनतहानसक झूूँसी के एक प्रनसद्ध सूरिा की इकलौती बेटी थी। पाूँच िर्य की
अल्पार्ु िें ही उसका नििाह हूँनडर्ाूँ ग्राि के एक संपन्न पठरिार िें गोपालक के बेटे से कर कदर्ा। उसकी नििाता िे िौ िर्य
की आर्ु िें ही उसका गौिा कर कदर्ा था क्र्ोंकक उसकी िाूँ गोपानलका की बचपि िें ही िृत्र्ु हो गई थी।
प्रश्न 14.भनिि का खेत-खनलहाि के प्रनत ज्ञाि कै सा था और क्र्ों?
उिर-भनिि का खेत-खनलहाि के प्रनत ज्ञाि बहुत अच्छा था क्र्ोंकक िही अपिे घर के गार्-भैंस, खेत-खनलहाि आकद की
देखभाल ककर्ा करती थी। नजठानिर्ों की उपेक्षा के कारण उसे ही खेत-खनलहाि का कार्यभार सौंपा गर्ा था, नजसे करते-
करते उसे अनिक ज्ञाि हो गर्ा था।
प्रश्न 15.भनिि के जीिि का तीसरा अिुच्छेद कब प्रारं भ हुआ?

142
उिर-भनिि िे अिेक प्रर्ास करिे पर भी अपिी नजठानिर्ों के ससुरगणों की उपार्जयत जगह जिीि िें से िाििाि भी ि
देिे का नििर् कर नलर्ा। उसिे उसी घर िें रहिे की घोर्णा कर दी तथा भनिपर् िें भी संपनि सुरनक्षत रखिे हेतु अपिी
छोटी लडककर्ों का नििाह कर कदर्ा। उसिे बडे दािाद को अपिा घरजिाई बिाकर रख नलर्ा। इस तरह भनिि के जीिि
का तीसरा अिुच्छेद आरं भ हुआ।
प्रश्न 16.भनिि के जीिि की कियठता िें सबसे बडा कलंक क्र्ा बि गर्ा?
उिर-जब भनिि की संपनि गार्-भैंस, खेत-खनलहाि सब पाठरिाठरक द्वेर् िें िं स गए तो इससे लगाि अदा करिा भारी
हो गर्ा। जब अनिक सिर् तक जिींदार को लगाि िहीं निला तो उसिे भनिि को बुलाकर पूरा कदि कडी िूप िें खडा
करके रखा। र्ह उसके जीिि की कियठता िें सबसे बडा कलंक बि गर्ा।
प्रश्न 17.भनिि के जीिि का चौथा और अंनति पठरच्छेद का प्रारं भ कब और कै से हुआ?
उिर-जब भनिि को लगाि ि निलिे पर जिींदार िे उसको कदिभर िूप िें खडा रखा तो उसिे इसे अपिे जीिि पर कलंक
िािा। तब िह अपिा सब कु छ छोडकर आजीनिका पािे हेतु इलाहाबाद आ गई। र्हाूँ उसकी िुलाकात लेनखका िहादेिी
ििाय से हुई। उन्होंिे इस दीि-हीि का सहािुभूनतिश अपिे र्हाूँ सेनिका के रूप िें िौकरी दे दी। र्हीं से भनिि के जीिि
का चौथा तथा अंनति पठरच्छेद प्रारं भ हुआ।
प्रश्न-18. ‘सभी को अपिे िाि का निरोिाभास लेकर जीिा पडता है I’- क्र्ों? ‘भनिि’ पाठ के आिार पर स्पष्ट कीनजए I
उिर- भनिि पाठ की लेनखका िहादेिी ििाय के अिुसार संसार िें हि सभी िें से अनिकांश लोग अपिे िाि का निरोिाभास
लेकर जीते हैं अथायत हिारे िाि के अथय एिं गुणों िें साम्र् होिा अनििार्य िहीं है I लेनखका कहती है कक उिका िाि
िहादेिी है परं तु िे ऐसा निशेर् कु छ िहीं कर पाई हैं कक लोग उिको िहाि िािे और ऐसे ही उिकी सेनिका भनिि अपिे
िूल िाि लक्ष्िी के िाि को साथयक िहीं कर पाती है क्र्ोंकक उसके पास लक्ष्िी (िि) कभी िहीं आ पाई I
प्रश्न 19.भनिि ि लेनिका के बीच कै सा संबि
ं था?
उिर –लेनखका ि भनिि के बीच बाहरी तौर पर सेिक-स्िािी का संबंि था, परं तु व्यिहार िें र्ह लागू िहीं होता था।
दूसरे , िह िौकरािी कि, जीिि की िूप-छाूँि अनिक थी। िह लेनखका की छार्ा बिकर घूिती थी। िह आिे-जािे िाले,
अूँिेरे-उजाले और आूँगि िें िू लिे िाले गुलाब ि आि की तरह पृथक अनस्तत्ि रखती तथा हर सुख-दुख िें लेनखका के साथ
रहती थी।
प्रश्न-20. लेनखका को भनिि से निपटिा टेढ़ी खीर क्र्ों लगा ? लेनखका के नलए कोर्ले की रे खा लक्ष्िण रे खा कै से बि गई?
उिर- लेनखका को भनिि से निपटिा टेढ़ी खीर लगा क्र्ोंकक उसे पता था कक भनिि जैसे लोग पक्के इरादों के होते हैं । ऐसे
लोगों के कार्य िें बािा होिे पर र्े खािा-पीिा छोडकर जाि देिे तक तैर्ार रहते हैं ।भनिि िार्ियक प्रिृनि की औरत थी ।
िह रसोई के िािले िें बेहद पनििता रखती थी । रसोई बिाते सिर् िह कोर्ले से िोटी रे खा खींच देती थी ताकक बाहरी
व्यनि प्रिेश ि कर सके । स्िर्ं लेनखका का प्रिेश भी िर्जयत था। र्कद िह रे खा का उल्लंघि करती तो भनिि जैसे लोग
भूखे िरिे को तैर्ार हो जाते हैं अथायत खािा िहीं खाते । अत: कोर्ले की रे खा िहादेिी जी ले नलए लक्ष्िण रे खा जैसी बि
गई थी।
प्रश्न-21. इिर-उिर नबखरे रुपर्े-पैसों का भनिि जो कु छ करती है, क्र्ा आप उसे चोरी िािेंग?
े क्र्ों?

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उिर- इिर-उिर नबखरे रुपर्े-पैसों का भनिि जो कु छ करती है, उसे हि चोरी िािेंगे । इसका कारण र्ह है कक िह घर
िें िौकरी करती है । घर की ककसी िस्तु पर उसका स्िानित्ि िहीं है । पैसे र्ा अन्र् सािाि निलिे पर उसकी नजम्िेदारी
र्ह है कक िह उि चीजों को घर की िानलक िहादेिी जी को दे । ऐसा ि करिे पर उसका कार्य चोरी के अंतगयत आएगा ।
प्रश्न-22. भनिि अन्र् व्यनिर्ों से ककस प्रकार अनिक बुनद्धिाि प्रिानणत होती है?
उिर- अन्र् व्यनि िहादेिी जी के लेखि र्ा नचिकारी िें सहार्ता करिे के निर्र् िें सोच भी िहीं पाते हैं, परं तु भनिि
सदैि लेनखका के साििे बैठकर कु छ-ि-कु छ कक्र्ात्िक सहर्ोग देती रहती थी। अन्र् लोग जहाूँ लेनखका का हाथ बटािे की
कल्पिा तक िहीं कर पाते थे, िहीं भनिि पुस्तकों को बाूँिकर, रं ग की प्र्ाली िोकर, अिूरे नचि कोिे िें रखकर आकद
प्रकार से सहर्ोग करती थी। इससे नसद्ध होता है कक िह अन्र् लोगों से अनिक बुनद्धिाि थी।
प्रश्न-23. अिपढ़ भनिि को लेनखका की ििप्रकानशत पुस्तकों से निराश िहीं होिा पडता था-स्पष्ट कीनजए।
उिर- िहादेिी जी की पुस्तक प्रकानशत होिे पर भनिि पुस्तक को चारों ओर से छू कर तथा अपिी आूँखों के सिीप लाकर
असीि आिंद की अिुभूनत करती थी । इस तरीके से िह अपिी सहार्ता का अंश खोजती थी। उसकी िजरों से आत्ितुनष्ट
की झलक निलती थी । इससे लगता है कक भनिि को निराश िहीं होिा पडता ।
प्रश्न-24. िहादेिी जी के नलए आूँगि िें िू लिे िाला गुलाब और आि सेिक क्र्ों िहीं हैं? क्र्ा र्ह बात भनिि पर भी लागू
होती है?
उिर- लेनखका के नलए आूँगि िें नखलिे िाला गुलाब ि आि सेिक िहीं हैं । इसका कारण र्ह है कक र्े हिें सुख देते हैं,
परं तु हिसे कोई अपेक्षा िहीं रखते । इिका अपिा अनस्तत्ि है । भनिि पर भी र्ह बात लागू होती है । िह निस्िाथय से
लेनखका के नलए सारे कार्य करती है I
प्रश्न-25. भनिि िे िहादेिी ििाय के जीिि को कै से प्रभानित ककर्ा?
उिर- भनिि के साथ रहकर िहादेिी की जीिि-शैली सरल हो गर्ी, िे अपिी सुनििाओं की चाह को नछपािे लगी और
असुनििाओं को सहिे लगीं । भनिि िे उन्हें देहाती भोजि नखलाकर उिका स्िाद बदल कदर्ा। भनिि िाि एक सेनिका ि
होकर िहादेिी की अनभभािक और आत्िीर् बि गर्ी । भनिि, िहादेिी के जीिि पर छा जािे िाली एक ऐसी सेनिका है
नजसे लेनखका िहीं खोिा चाहती ।
प्रश्न 26.भनिि िे लेनखका को कौि-सा सारगर्भयत लेक्चर कदर्ा? उसका लेनखका पर क्र्ा प्रभाि पडा?
उिर-भनिि िे जब लेनखका के घर िें सेनिका-ििय का नििायह करते हुए पहली बार खािा बिार्ा तो उसे देखकर लेनखका
हैराि रह गई। बस किर भनिि लेनखका से कहिे लगी कक रोठटर्ाूँ अच्छी सेंकिे के प्रर्ास िें कु छ ज्र्ादा खरी हो गई हैं ककं तु
अच्छी हैं।तरकाठरर्ाूँ अिश्र् थीं परं तु जब दाल बिी है तो उिका क्र्ा काि। िह शाि की तरकारी बिा देगी। दूि-घी उसे
अच्छा िहीं लगता अन्र्था सब ठीक हो जाता। अब ि हो तो अिचूर और लाल निचय की चटिी पीस लें। र्कद इससे भी काि
ि चले तो िह गाूँि से लार्ा हुआ थोडा-सा गुड दे देगी। शहर के लोग र्े क्र्ा कलाबिू खाते हैं। किर िह अिानडि र्ा िू हड
िहीं है। उसके ससुर, नपनतर्ा ससुर, अनजिा सास आकद िे उसकी कु शलता के नलए असंख्र् िौनखक प्रिाण-पि कदए हुए हैं।
भनिि के सारगर्भयत लेक्चर का लेनखका पर बहुत गहरा प्रभाि पडा। उसिे िीठे से निरनि होिे के कारण तथा गुड और
घी से अरुनच के कारण रूखी दाल से एक िोटी रोटी खा ली। इसके पिात र्ह ठाठ से र्ूनििर्सयटी पहुूँची और न्र्ार्सूि
पढ़ते-पढ़ते शहर और देहात के जीिि के इस अंतर पर निचार करती रही।

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प्रश्न 27.भनिि की सहजबुनद्ध ककस संबि
ं िें निनस्ित कर देिेिाली है?
उिर-भनिि का लेनखका के पठरनचतों एिं सानहनत्र्क बंिुओं से निशेर् पठरचर् है ककं तु उिके प्रनत सम्िाि की भाििा
लेनखका के प्रनत सम्िाि की भाििा पर निभयर है। उसका सद्भाि उिके प्रनत लेनखका के सद्भाि से निनित होता है। इसी
संबंि िें भनिि की सहजबुनद्ध निनस्ित कर देिे िाली है।
प्रश्न 28.कारागार के िाि से भनिि पर क्र्ा प्रभाि पडता था?
उिर –िह जेल जािे के नलए क्र्ों तैर्ार हो गई? भनिि को कारागार से बहुत भर् लगता था। िह उसे र्िलोक के सिाि
सिझती थी। कारागार की ऊूँची दीिारों को देखकर िह चकरा जाती थी। जब उसे पता चला कक िहादेिी जेल जा रही हैं
तो िह उिके साथ जेल जािे के नलए तैर्ार हो गई। िह िहादेिी के नबिा अलग रहिे की कल्पिा िाि से परे शाि हो उठती
थी।
प्रश्न 29.भनिि लाट-साहब तक लडिे को तत्पर क्र्ों थी? इससे उसके स्िभाि की कौि-सी निशेर्ता उजागर होती हैं?
उिर-भनिि लाट-साहब तक लडिे को इसनलए तत्पर थी क्र्ोंकक िह अपिी िालककि को ककसी भी कीित पर खो देिा
िहीं चाहती। िह चाहती है कक उसकी िालककि सदैि उसके साथ रहे। इससे उसके स्िभाि की सच्ची सेनिका, अपिे ििय का
पालि करिे िाली, निडरता एिं साहसी निशेर्ताएूँ उजागर होती हैं।
प्रश्न 30:िहादेिी िे भनिि के जीिि को ककतिे पठरच्छेदों िें बाूँटा?
उिर -िहादेिी िे भनिि के जीिि को चार पठरच्छेदों िें बाूँटा जो निम्ननलनखत हैं -
प्रथि - नििाह से पूिय।
नद्वतीर् - ससुराल िें सििा के रूप िें।
तृतीर् - निििा के रूप िें।
चतुथय - िहादेिी की सेिा िें।
प्रश्न 31:'भनिि' अिेक अिगुणों के होते हुए भी िहादेि जी के नलए अििोल क्र्ों थी?
उिर-अिेक अिगुणों के होते हुए भी भनिि िहादेिी ििाय के नलए इसनलए अििोल थी क्र्ोंकक
1. भनिि िें सेिाभाि कू ट-कू टकर भरा था।
2. भनिि लेनखका के हर कष्ट को स्िर्ं झेल लेिा चाहती थी।
3, िह लेनखका द्वारा पैसों की किी का नजक् करिे पर अपिे जीििभर की किाई उसे दे देिा चाहती थी।
4. भनिि की सेिा और भनिि िें नि:स्िाथय भाि था। िह अििरत और कदि-रात लेनखका की सेिा करिा चाहती थी।
प्रश्न 32 - भनिि द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुनििा से सुलझा लेिे का क्र्ा उदाहरण लेनखका िे कदर्ा है?
उिर - लेनखका िे भनिि द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुनििा से सुलझा लेिे का र्ह उदाहरण कदर्ा है “शास्त्र का प्रश्न भी भनिि
अपिी सुनििा के अिुसार सुलझा लेती है। िुझे नस्त्रर्ों का नसर घुटािा अच्छा िहीं लगता। अतुः िैंिे भनिि को रोका। उसिे
अंकुठठत भाि से उिर कदर्ा कक शास्त्र िें नलखा है ।कु तूहलिश िैं पूछ ही बैठी-'क्र्ा नलखा है ?' तुरंत उिर निला-'तीरथ
गए िुंडाए नसद्ध' कौि से शास्त्र का र्ह रहस्र्िर् सूि है, र्ह जाि लेिा लेनखका के नलए संभि ही िहीं था। अतुः िह हारकर
िौि ही रही और भनिि का चूडाकिय हर बृहस्पनतिार को एक दठरद्र िानपत के गंगाजल से िुले अस्तुरे द्वारा र्थानिनि
होता रहा।

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प्रश्न 33 - भनिि के आ जािे से िहादेिी अनिक देहाती कै से हो गई?
उिर- भनिि एक देहाती अथायत् ग्रािीण िनहला थी जो अिपढ़ थी। इसनलए िह नबल्कु ल देहाती भार्ा का प्रर्ोग ककर्ा
करती थी। भनिि एक देहाती होिे के साथ-साथ सिझदार भी थी। उसका स्िभाि ऐसा बि चुका था कक िह दूसरों को तो
अपिे िि के अिुसार बिा लेती थी लेककि अपिे अंदर ककसी प्रकार का पठरितयि िहीं चाहती थी। िहादेिी ििाय बार-बार
प्रर्ास करके भी उसके स्िभाि को पठरिर्तयत ि कर सकी। इसनलए भनिि के आ जािे से िहादेिी अनिक देहाती हो गई।
लेनखका देहाती भोजि भी खािे लगी।
प्रश्न 34 ‘भनिि िाक्पटुता िें बहुत आगे थी’, पाठ के आिार पर उदाहरण देकर पुनष्ट कीनजए।
उिर: र्ह कथि सही है कक भनिि िाक्पटुता िें बहुत आगे थी। उसके पास हर बात का सटीक उिर तैर्ार रहता था।
लेनखका िे जब उसको नसर घुटािे से रोका तो उसका उिर था – तीरथ गए िुंडाए नसद्ध’। इसी तरह उसके बिाएूँ खािे पर
कटाक्ष करिे पर उसिे उिर कदर्ा – िह कु छ अिानडि र्ा िू छड िहीं। ससुर, नपनतर्ा ससुर, अनजर्ा सास आकद िे उसकी
पाक कु शलता के नलए ि जािे ककतिे िौनखक प्रिाणपि दे डाले थे।झूठ बोलिे और चोरी करिे को भी िह चतुराई से सही
नसद्ध कर देती थी।
प्रश्न 35. ‘आलो आूँिाठर’ की िानर्का और लेनखका बेबी हालदार और भनिि के व्यनित्ि िें आप क्र्ा सिािता देखते हैं?
उिर:‘आलो आूँिाठर’ की िानर्का एक घरे लू िौकरािी है। भनिि भी लेनखका के घर िें िौकरी करती है। दोिों िें र्ही
सिािता है। दूसरे , दोिों ही घर िें पीनडत हैं। पठरिार िालों िे उन्हें पूणयत: उपेनक्षत कर कदर्ा था। दोिों िे आत्िसम्िाि
को बचाते हुए जीिि-नििायह ककर्ा। दोिों को जीिि िें बहुत संघर्य करिा पडा। स्त्री होिे के कािय पग-पग पर दोिों के
जीिि िें कई कठठिाइर्ाूँ आईं। दोिों िे डटकर उिका साििा ककर्ा। भनिि को लेनखका और बेबी को तातुश जैसे सिि
लोगों का साथ और सहारा निला।
पाठ सं-12
बाजार दशयन
जैनेन्द्र कु मार
पाठ का प्रनतपादर् एिं सारांश
प्रनतपादर् – ‘बाजार दशयि’ निबंि िें गहरी िैचाठरकता ि सानहत्र् के सुलभ लानलत्र् का संर्ोग है। कई दशक पहले नलखा
गर्ा र्ह लेख आज भी उपभोिािाद ि बाजारिाद को सिझािे िें बेजोड है। जैिद्र
ें जी अपिे पठरनचतों, नििों से जुडे
अिुभि बताते हुए र्ह स्पष्ट करते हैं कक बाजार की जादुई ताकत ििुपर् को अपिा गुलाि बिा लेती है। र्कद हि अपिी
आिश्र्कताओं को ठीक-ठीक सिझकर बाजार का उपर्ोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं। इसके निपरीत, बाजार की
चिक-दिक िें िें सिे के बाद हि असंतोर्, तृपणा और ईपर्ा से घार्ल होकर सदा के नलए बेकार हो सकते हैं। लेखक िे कहीं
दाशयनिक अंदाज िें तो कहीं ककस्सागो की तरह अपिी बात सिझािे की कोनशश की है। इस क्ि िें इन्होंिे के िल बाजार
का पोर्ण करिे िाले अथयशास्त्र को अिीनतशास्त्र बतार्ा है।
सारांश – लेखक अपिे निि की कहािी बताता है कक एक बार िे बाजार िें िािूली चीज लेिे गए, परं तु िापस बंडलों के
साथ लौटे। लेखक के पूछिे पर उन्होंिे पत्नी को दोर्ी बतार्ा। लेखक के अिुसार, पुरािे सिर् से पनत इस निर्र् पर पत्नी
की ओट लेते हैं। इसिें ििीबैग अथायत पैसे की गरिी भी निशेर् भूनिका अदा करता है। पैसा पािर है, परं तु उसे प्रदर्शयत

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करिे के नलए बैंक-बैलेंस, िकाि-कोठी आकद इकट्ठा ककर्ा जाता है। पैसे की पचेबजंग पािर के प्रर्ोग से पािर का रस निलता
है। लोग संर्िी भी होते हैं। िे पैसे को जोडते रहते हैं तथा पैसे के जुडा होिे पर स्िर्ं को गिीला िहसूस करते हैं। निि िे
बतार्ा कक सारा पैसा खचय हो गर्ा। निि की अनिकतर खरीद पचेबजंग पािर के अिुपात से आई थी, ि कक जरूरत की।
लेखक कहता है कक िालतू चीज की खरीद का प्रिुख कारण बाजार का आकर्यण है। निि िे इसे शैताि का जाल बतार्ा है।
र्ह ऐसा सजा होता है कक बेहर्ा ही इसिें िहीं िूँ सता। बाजार अपिे रूपजाल िें सबको उलझाता है। इसके आिंिण िें
आग्रह िहीं है। ऊूँचे बाजार का आिंिण िूक होता है। र्ह इच्छा जगाता है। हर आदिी को चीज की किी िहसूस होती है।
चाह और अभाि ििुपर् को पागल कर देता है। असंतोर्, तृपणा ि ईष्र्र्ा से ििुपर् सदा के नलए बेकार हो जाता है।
लेखक का दूसरा निि दोपहर से पहले बाजार गर्ा तथा शाि को खाली हाथ िापस आ गर्ा। पूछिे पर बतार्ा कक बाजार
िें सब कु छ लेिे र्ोग्र् था, परं तु कु छ भी ि ले पार्ा। एक िस्तु लेिे का ितलब था, दूसरी छोड देिा। अगर उसे अपिी चाह
का पता िहीं तो सब ओर की चाह हिें घेर लेती है। ऐसे िें कोई पठरणाि िहीं होता। बाजार िें रूप का जादू है। र्ह तभी
असर करता है जब जेब भरी हो तथा िि खाली हो। र्ह िि ि जेब के खाली होिे पर भी असर करता है। खाली िि को
बाजार की चीजें नििंिण देती हैं। सब चीजें खरीदिे का िि करता है।
जादू उतरते ही िैं सी चीजें आराि िहीं, खलल ही डालती प्रतीत होती हैं। इससे स्िानभिाि ि अनभिाि बढ़ता है। जादू से
बचिे का एकिाि उपार् र्ह है कक बाजार जाते सिर् िि खाली ि रखो। िि िें लक्ष्र् हो तो बाजार आिंद देगा। िह आपसे
कृ ताथय होगा। बाजार की असली कृ ताथयता है-आिश्र्कता के सिर् काि आिा। िि खाली रखिे का ितलब िि बंद िहीं
करिा है। शून्र् होिे का अनिकार बस परिात्िा का है जो सिाति भाि से संपूणय है। ििुपर् अपूणय है। ििुपर् इच्छाओं का
निरोि िहीं कर सकता। र्ह लोभ को जीतिा िहीं है, बनल्क लोभ की जीत है।
िि को बलात बंद करिा हठर्ोग है। िास्ति िें ििुपर् को अपिी अपूणयता स्िीकार कर लेिी चानहए। सच्चा किय सदा इस
अपूणयता की स्िीकृ नत के साथ होता है। अत: िि की भी सुििी चानहए क्र्ोंकक िह भी उद्देश्र्पूणय है। िििािेपि को छू ट
िहीं देिी चानहए। लेखक के पडोस िें भगत जी रहते थे। िे लंबे सिर् से चूरि बेच रहे थे। चूरि उिका सरिाि था। िे
प्रनतकदि छह आिे पैसे से अनिक िहीं किाते थे। िे अपिा चूरि थोक व्यापारी को िहीं देते थे और ि ही पेशगी ऑडयर लेते
थे। छह आिे पूरे होिे पर िे बचा चूरि बच्चों को िुफ़्त बाूँट देते थे। िे सदा स्िस्थ रहते थे।
उि पर बाजार का जादू िहीं चल सकता था। िे निरक्षर थे। बडी-बडी बातें जािते िहीं थे। उिका िि अनडग रहता था।
पैसा भीख िाूँगता है कक िुझे लो। िह निियि व्यनि पैसे को अपिे आहत गिय िें नबलखता ही छोड देता है। पैसे िें व्यंग्र्
शनि होती है। पैदल व्यनि के पास से िूल उडाती िोटर चली जाए तो व्यनि परे शाि हो उठता है। िह अपिे जन्ि तक को
कोसता है, परं तु र्ह व्यंग्र् चूरि िाले व्यनि पर कोई असर िहीं करता। लेखक ऐसे बल के निर्र् िें कहता है कक र्ह कु छ
अपर जानत का तत्ि है। कु छ लोग इसे आनत्िक, िार्ियक ि िैनतक कहते हैं।
लेखक कहता है कक जहाूँ तृपणा है, बटोर रखिे की स्पृहा है, िहाूँ उस बल का बीज िहीं है। संचर् की तृपणा और िैभि की
चाह िें व्यनि की निबयलता ही प्रिानणत होती है। िह ििुपर् पर िि की और चेति पर जड की निजर् है। एक कदि बाजार
के चौक िें भगत जी ि लेखक की राि-राि हुई। उिकी आूँखें खुली थीं। िे सबसे निलकर बात करते हुए जा रहे थे। लेककि
िे भौचक्के िहीं थे और िा ही िे ककसी प्रकार से लाचार थे। भाूँनत-भाूँनत के बकढ़र्ा िाल से चौक भरा था ककं तु उिको िाि
अपिी जरूरत की चीज से ितलब था। िे रास्ते के िैं सी स्टोरों को छोडकर पंसारी की दुकाि से अपिे काि की चीजें लेकर

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चल पडते हैं। अब उन्हें बाजार शून्र् लगता है। किर चाूँदिी नबछी रहती हो र्ा बाजार के आकर्यण बुलाते रहें, िे उसका
कल्र्ाण ही चाहते हैं।
लेखक का िाििा है कक बाजार को साथयकता िह ििुपर् देता है जो अपिी जरूरत को पहचािता है। जो के िल पचेबजंग
पॉिर के बल पर बाजार को व्यंग्र् दे जाते हैं, िे ि तो बाजार से लाभ उठा सकते हैं और ि उस बाजार को सच्चा लाभ दे
सकते हैं। िे लोग बाजार का बाजारूपि बढ़ाते हैं। र्े कपट को बढ़ाते हैं नजससे सद्भाि घटता है। सद्भाि िष्ट होिे से ग्राहक
और बेचक रह जाते हैं। िे एक-दूसरे को ठगिे की घात िें रहते हैं। ऐसे बाजारों िें व्यापार िहीं, शोर्ण होता है। कपट सिल
हो जाता है तथा बाजार िाििता के नलए निडंबिा है और जो ऐसे बाजार का पोर्ण करता है जो उसका शास्त्र बिा हुआ
है, िह अथयशास्त्र सरासर औिा है, िह िार्ािी शास्त्र है, िह अथयशास्त्र अिीनतशास्त्र है।
शब्दाथय-
आशर् – अथय, ितलब। िनहिा – िहिा। प्रिानणत – नसद्ध। िार्ा – आकर्यण। ओट – सहारा। ििीबैग – पैसे रखिे का
थैला। पािर – शनि, ताकत। िाल-टाल – सािाि। परचेबज़ंग पािर – खरीदिे की शनि। किजूल – व्यथय। दरकार – इच्छा,
परिाह। बेहर्ा – बेशिय। हजय – िुकसाि। आग्रह – खुशािद। नतरस्कार – अपिाि। िूक – िौि। पठरनित – सीनित। अतुनलत
– अपार। काििा – इच्छा। निकल – व्याकु ल। तृपणा – लालसा, इच्छा द्वेर् – जलि।
िास – दुख। सेक – तपि। खुराक – भोजि। कृ ताथय – अहसाििंद। शून्र् – खाली।
सिाति – शाश्वत। निरोि – रोकिा। राह – िागय। अकारथ – व्यथय। व्यापक – निस्तृत। संकीण – सूँकरा। निराट – निशाल।
क्षुद्र – तुच्छ। बलात – जबरदस्ती। अप्रर्ोजिीर् –अथयरनहत। अनखल – संपूणय। सरिाि – प्रनसद्ध। खुद – स्िर्ं। खुशहाल –
संपन्न। पेशगी आडयर – सािाि के नलए अनग्रि पैसा देिा।
िाचीज – तुच्छ। अपदाथय – िहत्िहीि। अनडग – नस्थर। निियि – िितारनहत। कुं ठठत – व्यथय। दारुण – भर्ंकर। िंनचत –
रनहत। कृ तघ्न – अहसाि ि िाििे िाला। अपर – दूसरी। नस्पठरचुअल – िार्ियक। प्रनतपादि – िणयि। सरोकार – ितलब।
स्पृहा – इच्छा। अबलता – किजोरी। कोसिा – गाली देिा। पेशोपेश – असिंजस। अप्रीनत – िैर । ज्ञात – िालूि। नििाशक
– नििाशकारी। बेचक – व्यापारी। ठगिा – िोखा देकर लूटिा। पोर्ण – पालि।
िहत्िपूणय बबंद ु :-
1. बाजार का आकर्यण।
2. बाजार का जादू।
3. खाली िि और बंद िि का अंतर।
4. पैसे की व्यंग शनि
5. बाजार की साथयकता
पठठत गद्ांश-01
बाजार िें एक जादू है। िह जादू आंख की राह काि करता है िह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता
है, िैसे ही इस जादू की भी िर्ायदा है। जेब भरी हो, और िि खाली हो, ऐसे हालात िें जादू का असर खूब होता है। जेब
खाली पर िि भर आिा हो तो भी जादू चल जाएगा। िि खाली है तो बाजार की अिेकािेक चीजों का नििंिण उस तक
पहुंच जाएगा। कहीं हुई उस िि जेब भरी तब तो किर िह िि की ककसकी िाििे िाला है। िालूि होता है र्ह भी लूं, िह
148
भी लूं। सभी सािाि जरूरी और आराि को बढ़ािे िाला िालूि होता है। पर र्ह सब जादू का असर है। जादू की सिारी
उतरी कक पता चलता है कक िैं सी चीजों की बहुतार्त आराि िें िदद िहीं देती, बनल्क खलल ही डालती है।
प्रश्न 1. 'िि खाली होिे' का आशर् है -िि िें ककसी इच्छा र्ा आिश्र्कता का िा होिा। सत्र् र्ा असत्र् में उिर दीनजए-
क) सत्र् ख) असत्र्
ग) पूणय असत्र् घ) संदह
े है
प्रश्न 2. आज का उपभोिा जेब खाली होिे पर भी खरीदारी करता है,र्ह सिाज की अंि- उपभोिािादी प्रिृनि की ओर
संकेत करता है। सत्र् है र्ा असत्र् िें उिर दीनजए-
क) अपूणय सत्र् ख) अपूणय असत्र्
ग) नबल्कु ल सत्र् घ) संदह
े ात्िक सत्र्
प्रश्न 3. बाजार के जादू को 'रूप का जादू 'क्र्ों कहा गर्ा है?
क) बाजार िें सुंदर िनहलाओं की उपनस्थनत होिे के कारण।
ख) बाजार का रूप बडा आकर्यक होिे के कारण।
ग) बाजार िें आिश्र्कताओं की पूर्तय हो जाती।
घ) बाजार िें जरूरी िस्तुएं होिे के कारण।
प्रश्न 4 बाजार के जादू का लोगों पर जल्दी असर हो जाता है क्र्ोंकक?
अ) बाजार का जादू उि लोगों पर अनिक असर करता है नजिका िि खाली होता है, परं तु जेब भरी होती है।
ब) खाली जेब है अिूरे भरे िि पर बाजार का जादू चलता है ऐसे व्यनि अपिे शनि कदखािे के नलए गैर जरूरी
िस्तुएं भी खरीदते हैं।
स) बाजार का जादू का असर शीघ्रता से होिे के कारण।
द) बाजारिाद को बढ़ािा देिे के कारण।
क)अ और ब दोिों गलत है। ख) अ और ब दोिों सही है।
ग) स और द सही है। घ) सभी िाक्र् गलत है।
प्रश्न 5. िि खाली होिे पर ििुपर् कार्य करता है। अिुनचत िाक्र् बताइए-
क) जब िािि का िि खाली होता है तो बाजार िें अिाप-शिाप खरीदारी की जाती हैं।
ख) बाजार की सुंदरता को देख ििुपर् उसके जाल िें िं स जाता है।
ग) ििुपर् बाजार से नबिा कु छ िस्तुएं खरीदें िापस अपिे घर आ जाता है।
घ) रं ग नबरं गी लाइटों से प्रभानित होकर िहंगी ड्रेस खरीद कर ले आता है।
पठठत गद्ांश-02
बाज़ार को साथयकता भी िही ििुपर् देता है जो जािता है कक िह क्र्ा चाहता है और जो िही जािते कक िे क्र्ा चाहते है,
अपिी ‘पचेबजंग पािर' के गिय िे अपिे पैसे से के िल एक नििाशक शनि (शैतािी शनि, व्यंग्र् की शनि) ही बाज़ार को देते
है। ि तो िे बाज़ार से लाभ उठा सकते है, ि उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते है। िे लोग बाज़ार का बाज़ारूपि बढ़ाते
है। नजसका ितलब है कक कपट बढ़ाते है। कपट की बढ़ती का अथय परस्पर सद्भाि की घटी।
149
1.बाज़ार का बाज़ारूपि से लेखक का क्र्ा अनभप्रार् है?
a)अनिश्वास बढ़ािा b)सद्भाि घटािा
c)कपट बढ़ािा d)कपट के बढ़िे से सद्भाि का घटिा
2.बाजार को साथयकता कौि दे सकता है?
a)जरूरतिंद व्यनि b)नजज्ञासु व्यनि
c)स्िाथी व्यनि d)िििाि व्यनि
3.पचेबजंग पािर क्र्ा है?
a)बाजार देखिा b)क्र्शनि
c)निक्र् शनि d)बाजार घूििा
4.पचेबजंग पािर से बाज़ार का अनहत कै से होता है?
a)िहूँगाई बढ़िा b)बाजारूपि का बढ़िा
c)भ्रि िै लिा d)छल-कपट बढ़िा
5.नििाशक,शैतािी क्र् शनि का जन्ि बाजार िें कब होता है?
a)िि खचयिे से b)गिय से र्ुि होकर किजूलखचय करिे पर
c)गिय भाििा से d)कदखािा करिे से
6.बाज़ार दशयि पाठ के आिार पर लेखक भगत को चूरि बेचते हुए ककतिे िर्ों से देख रहा है?
a)आठ िर्ों से b)बारह िर्ों से
c)चौदह िर्ों से d)दस िर्ों से
7.बाज़ार दशयि पाठ के आिार पर िि की ओर कौि झुकता है?
a)निियि b)नििश
c)इििें से कोई िहीं d)निबयल
8."बाजार दशयि" निबंि िें लेखक के पडोसी कौि थे?
a)चरणदास b)भगत जी
c)चटिी िाला d)भनिि
9.बाज़ार िें एक ____ होता है।
a)िानलक b)भूत
c)जादू d)सेिक
उिर –
1.(d) कपट के बढ़िे से सद्भाि का घटिा
2. (a) जरूरतिंद व्यनि
3. (b) क्र्शनि
4. (b) बाजारूपि का बढ़िा

150
5. (b) गिय से र्ुि होकर किजूलखचय करिे पर
6. (d) दस िर्ों से
7. (d) निबयल
व्याख्या: निबयल व्यनि िि की ओर झुकता है।
8.(b) भगत जी
व्याख्या: लेखक के पडोसी भगत जी थे जो चूरि बेचा करते थे।
9.(c) जादू
व्याख्या: बाज़ार िें एक जादू है। र्ह जादू तभी असर करता है जब जेब भरी हो तथा िि खाली हो। र्ह िि ि जेब के खाली
होिे पर भी असर करता है। खाली िि को बाज़ार की चीजें नििंिण देती हैं।
पठठत गद्ांश-03
पैसे की व्यंग्र्-शनि की सुनिए। िह दारुण है। िैं पैदल चल रहा हूूँ कक पास ही िूल उडाती निकल गई िोटर। िह क्र्ा
निकली िेरे कलेजे को कौंिती एक कठठि व्यंग्र् की लीक ही आर-से-पार हो गई। जैसे ककसी िे आूँखों िें उूँ गली देकर कदखा
कदर्ा हो कक देखो, उसका िाि है िोटर, और तुि उससे िंनचत हो! र्ह िुझे अपिी ऐसी निडंबिा िालूि होती है कक बस
पूनछए िहीं। िैं सोचिे को हो आता हूूँ कक हार्, र्े ही िाूँ-बाप रह गए थे नजिके र्हाूँ िैं जन्ि लेिे को था! क्र्ों ि िैं
िोटरिालों के र्हाूँ हुआ! उस व्यंग्र् िें इतिी शनि है कक ज़रा िें िुझे अपिे सगों के प्रनत कृ तघ्न कर सकती है।
लेककि क्र्ा लोकिैभि की र्ह व्यंग्र्-शनि उस चूरि िाले अककं नचत्कर ििुपर् के आगे चूर-चूर होकर ही िहीं रह जाती?
चूर-चूर क्र्ों, कहो पािी-पािी।
तो िह क्र्ा बल है जो इस तीखे व्यंग्र् के आगे ही अजेर् ही िहीं रहता, बनल्क िािो उस व्यंग्र् की क्ू रता को ही नपघला
देता है?
उस बल को िाि जो दो; पर िह नििर् उस तल की िस्तु िहीं है जहाूँ पर संसारी िैभि िलता-िू लता है। िह कु छ अपर
जानत का तत्त्ि है। लोग नस्पठरचुअल कहते हैं; आनत्िक, िार्ियक, िैनतक कहते हैं। िुझे र्ोग्र्ता िहीं कक िैं उि शब्दों िें अंतर
देखूूँ और प्रनतपादि करूूँ। िुझे शब्द से सरोकार िहीं। िैं निद्वाि िहीं कक शब्दों पर अटकूूँ । लेककि इतिा तो है कक जहाूँ
तृपणा है, बटोर रखिे की स्पृहा है, िहाूँ उस बल का बीज िहीं है। बनल्क र्कद उसी बल को सच्चा बल िािकर बात की जाए
तो कहिा होगा कक संचर् की तृपणा और िैभि की चाह िें व्यनि की निबयलता ही प्रिानणत होती है। निबयल ही िि की ओर
झुकता है। िह अबलता है। िह ििुपर् पर िि की और चेति पर जड की निजर् है।
1.पैसों की व्यंग्र् शनि क्र्ा कर सकती है?
a)अपिों के प्रनत कृ तज्ञ b)अपिों के प्रनत कृ तघ्न
c)दूसरों के प्रनत कृ तज्ञ d)सोचिे को नििश
2.ििुपर् का िि की ओर झुकिा क्र्ा है?
a)िि पर ििुपर् की निजर् b)जड पर चेति की निजर्
c)ििुपर् पर िि की निजर् d)ििुपर् पर ििुपर् की निजर्
3.एक व्यनि की निबयलता ककससे प्रिानणत होती है?
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a)िि की चाहत से b)बल िहीं होिे से
c)िि िहीं होिे से d)िि होिे से
4.प्रस्तुत गद्ांश िें लेखक ककस बल की बात कर रहा है?
a)जो ििुपर् को र्ोग्र् बिाता है b)जो िैभि की व्यंग्र्-शनि को तोड देता है
c)जो ििुपर् को सबल बिाता है d)जो संसारी िैभि को बढ़ािा देता है
5.अककं नचत्कर शब्द का क्र्ा अथय है?
a)िहत्ि b)भर्ािह
c)अथयहीि d)अथयिाि
6.बाज़ार दशयि पाठ िें लेखक के ककतिे नििो का नजक् हुआ है?
a)तीि b)चार
c)दो d)एक
7.जैिन्े द्र का पहला उपन्र्ास क्र्ा है?
a)त्र्ागपि b)सुिीता
c)परख d)िुनिबोि
8.जैिन्े द्र को ककस रचिा के नलए सानहत्र् अकादिी पुरस्कार कदर्ा गर्ा?
a)त्र्ागपत्र b)सिर् और हि
c)िुनिबोि d)पाज़ेब
9.बाज़ार दशयि पाठ के अिुसार इस संसार िें पूणय कौि है?
a)प्रकृ नत b)र्ोगी
c)परिात्िा d)ििुपर्
उिर –
1.(b) अपिों के प्रनत कृ तघ्न
2. (c) ििुपर् पर िि की निजर्
3. (a) िि की चाहत से
4. (b) जो िैभि की व्यंग्र्-शनि को तोड देता है
5. (c) अथयहीि
6. (c) दो
व्याख्या: पाठ िें लेखक के दो नििों का नजक् हुआ है।
7. (c) परख
व्याख्या:जैिन्े द्र का पहला उपन्र्ास परख है, जो 1929 िें प्रकानशत हुआ था।
8.(c) िुनिबोि
व्याख्या:जैिन्े द्र को उिके उपन्र्ास िुनिबोि के नलए 1966 िें सानहत्र् अकादिी पुरस्कार कदर्ा गर्ा।

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9.(c) परिात्िा
व्याख्या:पाठ के अिुसार इस संसार िें परिात्िा संपण
ू य है। िह शून्र् होिे का अनिकार रखता है, परं तु ििुपर् अपूणय है।
उसिें इच्छा बिी रहती है।
लघूिरात्िक प्रश्न
1. बाजार दशयि से क्र्ा अनभप्रार् है?
उिर:-बाजार दशयि से अनभप्रार् है -बाजार के बारे िें बतािा। लेखक िे बाजार की प्रिृनि, ग्राहक के प्रकार, आिुनिक
ग्राहकों की सोच आकद के बारे िें पाठकों को बतार्ा है।
2. लेखक िे बाजार का जादू ककसे कहा है, इसका क्र्ा प्रभाि पडता है?
उिर:-बाजार की चिक -दिक के चुंबकीर् आकर्यण को बाजार का जादू कहा गर्ा है र्ह जादू आंखों की राह कार्य करता
है। बाजार के इसी आकर्यण के कारण ग्राहक सजी-िजी चीजों को आिश्र्कता ि होिे पर भी खरीदिे को नििश हो जाते
हैं।
3. बाजार की साथयकता ककसिें है?
उिर:-ििुपर् की आिश्र्कताओं की पूर्तय करिे िें ही बाजार की साथयकता है। जो ग्राहक अपिी आिश्र्कताओं की चीजें
खरीदते हैं िे बाजार को साथयकता प्रदाि करते हैं। जो निक्े ता ग्राहकों का शोर्ण िहीं करते और छल कपट से ग्राहकों को
लुभािे का प्रर्ास िहीं करते िह भी बाजार को साथयक बिाते हैं।
4. जेब भरी हो और िि खाली तो हिारी क्र्ा दशा होती है?
उिर:- जेब भरी हो और िि खाली हो तो हिारे ऊपर बाजार का जादू खूब असर करता है। िि, खाली है तो बाजार की
अिेकािेक चीजों का नििंिण िि तक पहुंच जाता है और उस सिर् र्कद जेब भरी हो तो िि हिारे निर्ंिण िें िहीं रहता।
5. पैसे की व्यंग -शनि का क्र्ा तात्पर्य है?
उिर:-पैसे की व्यंग शनि का तात्पर्य है-पैसे के आिार पर अपिे अभाि के कारण स्िर्ं को हीि सिझिा र्ा अनिक पैसे के
कारण स्िर्ं को ऊंचा सिझिा। पैसा ही हीिता र्ा श्रेष्ठता का एहसास कराता है र्ही पैसे की व्यंग्र् सकती है।
दीघय उिरीर् प्रश्न
प्रश्न 1. बाजार दशयि पाठ का प्रनतपाद् बताइए।
उिर: 'बाजार दशयि'निबंि िें गहरी िैचाठरक ता ि सानहत्र् के सुलभ लानलत्र् का सहर्ोग है। कई दशक पहले नलखा गर्ा
र्ह लेख आज भी उपभोिािाद िें बाजारिाद को सिझािे िें बेजोड है। लेखक अपिे पठरनचतों, नििों से जुडे अिुभि बताते
हुए र्ह स्पष्ट करते हैं कक बाजार की जादुई ताकत ििुपर् को अपिा गुलाि बिा देती है। र्कद हि अपिी आिश्र्कताओं को
ठीक-ठीक सिझकर बाजार का उपर्ोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं ।इसके निपरीत, बाजार की चिक -दिक िें िं सिे
के बाद हि असंतोर्, तृपणा और ईपर्ाय से घार्ल होकर सदा के नलए बेकार हो सकते हैं।
प्रश्न 2. भगत जी बाजार को साथयक और सिाज को शांत कै से कर रहे हैं? बाजार दशयि पाठ के आिार पर बताइए।
उिर: भगत जी निम्ननलनखत तरीके से बाजार को साथयक और सिाज को शांत कर रहे हैं-
*निनित सिर् पर चूणय बेचिे के नलए निकलते हैं।
*छुः आिे की किाई होते ही बचे चूणय को बच्चों िें िुफ्त बांट देते हैं।

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*बाजार िें जीरा ि ििक खरीदते हैं।
*सभी का अनभिादि करते हैं।
*बाजार के आकर्यण से दूर रहते हैं।
*अपिे चूणय का व्यिसानर्क तौर पर उत्पादि िहीं करते।
प्रश्न 3. कै से लोग बाजार से ि सच्चा लाभ उठा पाते हैं, ि उसे सच्चा लाभ दे सकते हैं? िे 'बाजारूपि' को कै से बढ़ाते हैं?
उिर:-लेखक कहता है कक सिाज िें कु छ लोग क्र् शनि के बल पर बाजार से िस्तुएं खरीदते हैं, परं तु उन्हें अपिी जरूरत
का पता ही िहीं होता। ऐसे लोग बाजार से ि सच्चा लाभ उठा पाते हैं, ि उसे सच्चा लाभ दे सकते हैं। िे िि के बल पर
बाजार िें कपट को बढ़ािा देते हैं। िे सिाज िें असंतोर् बढ़ाते हैं। सािान्र् लोगों के साििे अपिी क्र् -शनि का प्रदशयि
करते हैं। िे शाि के नलए उत्पाद खरीदते हैं। इस प्रकार से िे बाजारूपि को बढ़ाते हैं।
प्रश्न 4 लेखक ककसी बाजार को िाििता के नलए निडंबिा कहा है और क्र्ों?
उिर:-लेखक िे ऐसे बाजार को िाििता के नलए निडंबिा कहा है नजसिें लोग आिश्र्कता पूर्तय हेतु क्र् निक्र् िहीं करते
अनपतु परचेबजंग पािर का प्रदशयि करते हैं। ऐसे बाजार िें कपट बढ़ता है, सद्भाि िष्ट होता है, परस्पर भाई-भाई के संबंि
िें रहकर शोर्ण के संबंि बि जाते हैं। इसे बाजार िें सभी लोग दूसरे की हानि करके अपिा लाभ किािा चाहते हैं। ऐसा
व्यापार पूरी िाििता के नलए अनभशाप है। इसिें िािि की हानि भी अनिक होती है। बाजार का जो िूल लक्ष्र् है-
आिश्र्कता िें काि आिा, िह भी िहीं हो पाता।
प्रश्न 5 लेखक के दोिों नििों की स्िभाि िें कौि सी सिािता और असिािता कदखाई देती है?
उिर:-सिािता-लेखक के दोिों निि बाजार िें खाली िि से गए। पहला निि थोडा सा सािाि लेिे का लक्ष्र् अिश्र् रख
कर गर्ा, ककं तु उसका िि कु छ भी खरीदिे के नलए खाली था। दूसरा निि भी निर् उद्देश्र् बाजार िें घूििे गर्ा। दोिों
बाजार के आकर्यण जाल िें िं स गए। र्ह अलग बात है कक एक िे कु छ खरीदा, परं तु दूसरा सोचता ही रह गर्ा।
असिािता-पहले निि िें पैसे की गिी अनिक है। िह उत्साही है। िह पैसा बहािा जािता है। दूसरा निि दुनििा ग्रस्त हैं।
िह शीघ्र निणयर् िहीं ले पाता।
पाठ सं-13
काले िेघा पािी दे
(िियिीर भारती)
पाठ का सारांश-
लेखक बताता है कक जब िर्ाय की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाूँिों िें िंग-िडंग ककशोर
शोर करते हुए कीचड िें लोटते हुए गनलर्ों िें घूिते हैं। र्े दस-बारह िर्य की आर्ु के होते हैं तथा नसफय जाूँनघर्ा र्ा लूँगोटी
पहिकर ‘गंगा िैर्ा की जर्’ बोलकर गनलर्ों िें चल पडते हैं। जर्कारा सुिते ही नस्त्रर्ाूँ ि लडककर्ाूँ छिे ि बारजों से
झाूँकिे लगती हैं। इस िंडली को इंदर सेिा र्ा िेढक-िंडली कहते हैं। र्े पुकार लगाते हैं –
काले िेघा पािी दे पािी दे, गुडिािी दे
गगरी िू टी बैल नपर्ासा काले िेघा पािी दे।

154
जब र्ह िंडली ककसी घर के साििे रुककर ‘पािी’ की पुकार लगाती थी तो घरों िें सहेजकर रखे पािी से इि बच्चों को सर
से पैर तक तर कर कदर्ा जाता था। र्े भीगे बदि निट्टी िें लोट लगाते तथा कीचड िें लथपथ हो जाते। र्ह िह सिर् होता
था जब हर जगह लोग गरिी िें भुिकर िानह-िानह करिे लगते थे; कु एूँ सूखिे लगते थे; िलों िें बहुत कि पािी आता था,
खेतों की निट्टी िें पपडी पडकर जिीि िटिे लगती थी। लू के कारण व्यनि बेहोश होिे लगते थे।
पशु पािी की किी से िरिे लगते थे, लेककि बाठरश का कहीं िािोनिशाि िहीं होता था। जब पूजा-पाठ आकद नििल हो
जाती थी तो इं दर सेिा अंनति उपार् के तौर पर निकलती थी और इंद्र देिता से पािी की िाूँग करती थी। लेखक को र्ह
सिझ िें िहीं आता था कक पािी की किी के बािजूद लोग घरों िें कठठिाई से इकट्ठा ककए पािी को इि पर क्र्ों िें कते थे।
इस प्रकार के अंिनिश्वासों से देश को बहुत िुकसाि होता है। अगर र्ह सेिा इं द्र की है तो िह खुद अपिे नलए पािी क्र्ों
िहीं िाूँग लेती? ऐसे पाखंडों के कारण हि अंग्रज
े ों से नपछड गए तथा उिके गुलाि बि गए।
लेखक स्िर्ं िेढक-िंडली िालों की उिर का था। िह आर्यसिाजी था तथा कु िार-सुिार सभा का उपिंिी था। उसिें
सिाजसुिार का जोश ज्र्ादा था। उसे सबसे ज्र्ादा िुनश्कल अपिी जीजी से थी जो उम्र िें उसकी िाूँ से बडी थीं। िे सभी
रीनत-ठरिाजों, तीज-त्र्ोहारों, पूजा-अिुष्ठािों को लेखक के हाथों पूरा करिाती थीं। नजि अंिनिश्वासों को लेखक सिाप्त
करिा चाहता था। िे र्े सब कार्य लेखक को पुण्र् निलिे के नलए करिाती थीं। जीजी लेखक से इंदर सेिा पर पािी िें किािे
का काि करिािा चाहती थीं। उसिे साफ ििा कर कदर्ा। जीजी िे काूँपते हाथों ि डगिगाते पाूँिों से इं दर सेिा पर पािी
िें का। लेखक जीजी से िुह
ूँ िु लाए रहा। शाि को उसिे जीजी की दी हुई लड्डू -िठरी भी िहीं खाई। पहले उन्होंिे गुस्सा
कदखार्ा, किर उसे गोद िें लेकर सिझार्ा। उन्होंिे कहा कक र्ह अंिनिश्वास िहीं है।
र्कद हि पािी िहीं देंगे तो इं द्र भगिाि हिें पािी कै से देंग।े र्ह पािी की बरबादी िहीं है। र्ह पािी का अघ्र्य है। दाि िें
देिे पर ही इनच्छत िस्तु निलती है। ऋनर्र्ों िे दाि को िहाि बतार्ा है। नबिा त्र्ाग के दाि िहीं होता। करोडपनत दो-
चार रुपर्े दाि िें दे दे तो िह त्र्ाग िहीं होता। त्र्ाग िह है जो अपिी जरूरत की चीज को जिकल्र्ाण के नलए दे। ऐसे ही
दाि का िल निलता है। लेखक जीजी के तकों के आगे पस्त हो गर्ा। किर भी िह अपिी नजद पर अडा रहा। जीजी िे किर
सिझार्ा कक तू बहुत पढ़ गर्ा है। िह अभी भी अिपढ़ है। ककसाि भी तीस-चालीस िि गेहूूँ उगािे के नलए पाूँच-छह सेर
अच्छा गेहूूँ बोता है। इसी तरह हि अपिे घर का पािी इि पर िें ककर बुिाई करते हैं। इसी से शहर, कस्बा, गाूँि पर पािी
िाले बादलों की िसल आ जाएगी। हि बीज बिाकर पािी देते हैं, किर काले िेघा से पािी िाूँगते हैं।
ऋनर्-िुनिर्ों िे भी र्ह कहा है कक पहले खुद दो, तभी देिता चौगुिा करके लौटाएूँग।े र्ह आदिी का आचरण है नजससे
सबका आचरण बिता है। ‘र्था राजा तथा प्रजा’ सच है। गाूँिी जी िहाराज भी र्ही कहते हैं। लेखक कहता है कक र्ह बात
पचास साल पुरािी होिे के बािजूद आज भी उसके िि पर दजय है। अिेक संदभों िें र्े बातें िि को कचोटती हैं कक हि देश
के नलए क्र्ा करते हैं? हर क्षेि िें िाूँगें बडी-बडी हैं, पर त्र्ाग का कहीं िाि-निशाि िहीं है। आज स्िाथय एकिाि लक्ष्र् रह
गर्ा है। हि भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, परं तु खुद अपिी जाूँच िहीं करते। काले िेघ उिडते हैं, पािी बरसता है, परं तु गगरी
िू टी की िू टी रह जाती है। बैल प्र्ासे ही रह जाते हैं। र्ह नस्थनत कब बदलेगी, र्ह कोई िहीं जािता?
शब्दाथय-
इंदर सेिा – इंद्र के नसपाही। काूँदो – कीचड। अगिािी – स्िागत। जाूँनघर्ा – कच्छा। जर्कारा – िारा, उद्घोर्। छिा –
दीिार से बाहर निकला हुआ छत का भाग। बारजा –छत पर िुूँडरे के साथ िाली जगह। सििेत – सािूनहक। गुडिािी –

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गुड िें निलाकर बिार्ा गर्ा लड्डू । िककर्ाते – िक्का देते। दुिहले – दो िंनजलों िाला। जेठ – जूि का िहीिा। सहेजकर –
सूँभालकर। तर करिा – अच्छी तरह नभगो देिा। लोट लगािा – जिीि िें लेटिा। लथपथ होिा – पूरी तरह सराबोर हो
जािा। बदि – शरीर। हाूँक – जोर की आिाज। िंडली बाूँििा – सिूह बिािा। टेरिा – आिाज लगािा। भुििा – जलिा।
िानहिाि – िुझे बचाओ। दसतपा – भर्ंकर गरिी के दस कदि। पखिारा – पंद्रह कदि का सिर्। नक्षनतज-िरती – आकाश
के निलि का काल्पनिक स्थाि। खौलता हुआ – उबलता हुआ, बहुत गिय।
कथा-नििाि – िार्ियक कथाओं का आर्ोजि। निियि – कठोर। बरबादी – व्यथय िें िष्ट करिा।
पाखण्ड – ढोंग, कदखािा। संस्कार – आदत। कार्ि – स्थानपत होिा। तरकस िें तीर रखिा – हिले के नलए तैर्ार होिा।
खाि – भंडार। सनतर्ा –स्िानस्तक का निशाि। पूँजीरी – गुड और गेहूूँ के भुिे आटे से बिा भुरभुरा खाद्। हरछठ – जन्िाष्टिी
के दो कदि पूिी उिर प्रदेश िें ििार्ा जािे िाला पिय। कु ल्ही – निट्टी का छोटा बतयि। भूजा – भुिा हुआ अन्न। अरिा चािल
– नबिा उबाले िाि से निकाला चािल। िुहिु लािा – िाराजगी व्यि करिा। तितिािा – क्ोि िें आिा। अघ्र्य – जल
चढ़ािा।
ढकोसला – कदखािा। ककला पस्त होिा – हारिा। दजय होिा – नलखा होिा। संदभय –प्रसंग। कचोटिा – बुरा लगिा। चटखारे
लेिा – िजे लेिा। दार्रा – सीिा। अंग बििा – नहस्सा बििा। झिाझि – भरपूर, निरं तर।
पाठ से संबनं ित िुख्र् बातें-
 काले िेघा पािी दे पाठ की नििा का िाि – संस्िरण
 पाठ की िुख्र् निर्र्िस्तु – निज्ञाि ि लोक प्रचनलत निश्वासों का द्वंद्व
 िुख्र् पाि – जीजी, लेखक, िेढक - िंडली
 लेखक का ित (निचारिारा) – निज्ञाि सम्ित
 जीजी का ित (निचारिारा) – लोक प्रचनलत निश्वास सम्ित
 भारतीर् सिाज के नलए प्रर्ुि निशेर्ण – उत्सिििी
 बच्चों के सिूह का िाि – इन्दरसेिा,िेढकिंडली
 इन्दरसेिा का प्रिुख जर्कारा – गंगा िैर्ा की जर्
 पाठ िें उनल्लनखत बहंदी िहीिों का िाि – जेठ, आर्ाढ़
 िर्ाय के बादलों के स्िािी का िाि – इंद्र देिता
 लेखक ककस संगठि/सभा का उपिंिी था – कु िार सुिार सभा
 लेखक को संस्कार प्राप्त हुआ – आर्यसिाज से
पठठत गद्ांश-01
उि लोगों के दो िाि थे-इं दर सेिा र्ा िेढक-िंडली। नबलकु ल एक-दूसरे के निपरीत। जो लोग उिके ििस्िरूप शरीर, उिकी
उछल-कू द, उिके शोर-शराबे और उिके कारण गली िें होिे िाले कीचड काूँदो से नचढ़ते थे, िे उन्हें कहते थे िेढ़क-िंडली।
उिकी अगिािी गानलर्ों से होती थी। िे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लडके , साूँिला िंगा बदि नसिय
एक जांनघर्ा र्ा कभी-कभी नसफय लंगोटी। एक जगह इकट्ठे होते थे। पहला जर्कारा लगता था, “बोल गंगा िैर्ा की जर्।”

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जर्कारा सुिते ही लोग साििाि हो जाते थे। नस्त्रर्ाूँ और लडककर्ाूँ छिे, बारजे से झाूँकिे लगती थीं और र्ह निनचि िंग-
िडंग टोली उछलती-कू दती सििेत पुकार लगाती थी –
काले िेघा पािी दे पािी दे, गुडिािी दे
गगरी िू टी बैल नपर्ासा काले िेघा पािी दे।
उछलते -कू दते, एक-दूसरे को िककर्ाते र्े लोग गली िें दुिहले िकाि के साििे रुक जाते, पािी दे िैर्ा, “इं दर सेिा आई
है|”
1.पािी िाूँगिे िालों के िाि क्र्ा थे?
क.इंदर सेिा ख. िेढक िंडली
ग. के िल क सही है घ. क और ख दोिों सही है
2.िेढक िंडली के निर्र् िें कौि सा कथि सत्र् िहीं है –
क.जांनघर्ा र्ा लंगोटी पहिे हुए ख.शोर-शराबा पूणय प्रदशयि
ग.ििस्िरूप शरीर घ.अठारह से बीस बरस के लडके
3.इंदर सेिा के जर्कारे की क्र्ा प्रनतकक्र्ा होती थी?
क.लोग भागिे लगते थे ख.लोग उछलिे कू दिे लगते थे
ग.लोग साििाि हो जाते थे घ.उपर्ुयि सभी
4.गंगा िैर्ा से क्र्ा तात्पर्य है?
क.गंगा िािक औरत ख.गंगा िदी
ग.क और ख दोिों सही है घ.इििें से कोई िहीं
5.‘दुिहले’ शब्द का अथय होगा –
क.दो िहल ख. दो घर
ग.दो िंनजला घ. इििें से कोई िहीं
पठठत गद्ांश-02
िर्ाय के बादलों के स्िािी, हैं इं द्र और इंद्र की सेिा टोली बाूँिकर कीचड िें लथपथ निकलती, पुकारते हुए िेघों को, पािी
िांगते हुए प्र्ासे गलों और सूखे खेतों के नलए | पािी की आशा पर जैसे सारा जीिि आकर ठटक गर्ा हो। बस एक बात िेरे
सिझ िें िहीं आती थी कक जब चारों ओर पािी की इतिी किी है तो लोग घर िें इतिी कठठिाई से इकट्ठा करके रखा हुआ
पािी बाल्टी भर-भरकर इि पर क्र्ों िें कते हैं। कै सी निियि बरबादी है पािी की। देश की ककतिी क्षनत होती है इस तरह के
अंिनिश्वासों से। कौि कहता है इन्हें इंद्र की सेिा? अगर इंद्र िहाराज से र्े पािी कदलिा सकते हैं तो खुद अपिे नलए पािी
क्र्ों िहीं िाूँग लेत?
े क्र्ों िुहल्ले भर का पािी िष्ट करिाते घूिते हैं? िहीं र्ह सब पाखंड है। अंिनिश्वास है। ऐसे ही
अंिनिश्वासों के कारण हि अंग्रज
े ों से नपछड गए और गुलाि बि गए।
1.लेखक को कौि-सी बात सिझ िें िहीं आती?
क.पािी की अनिकता होिे पर पािी िें किा ख.पािी की किी होिे पर भी पािी िें किा
ग. क और ख दोिों सही है घ.इििें से कोई िहीं
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2.सत्र् कथि चुिकर नलनखए –
क.पािी की अनिकता होिे पर सभी पािी िें क रहे |
ख.पािी की आशा पर जैसे सारा जीिि आकर ठटक गर्ा हो |
ग .अंिनिश्वासों के कारण हि अंग्रेजों से आगे निकल गए |
घ.उपर्ुयि सभी
3. निम्ननलनखत िें से िेघ शब्द का पर्ायर्िाची है –
क.बादल ख. इंद्र
ग.पाखंड घ. इििें से कोई िहीं
4.निम्ननलनखत कथि कारण को ध्र्ािपूिक
य पकढ़ए उसके बाद कदए गए निकल्पों िें से सही निकल्प चुिकर नलनखए –
कथि (A) - ऐसे ही अंिनिश्वासों के कारण हि अंग्रज
े ों से नपछड गए और गुलाि बि गए।
कारण (R)- अगर इंद्र िहाराज से र्े पािी कदलिा सकते हैं तो खुद अपिे नलए पािी क्र्ों िहीं िाूँग लेत?
े क्र्ों
िुहल्ले भर का पािी िष्ट करिाते घूिते हैं?
क.कथि (A) और कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण (R) कथि (A) की सही व्याख्र्ा करता है |
ख.कथि (A) और कारण (R) दोिों सही हैं तथा कारण (R) कथि (A) की सही व्याख्र्ा िहीं करता है |
ग.कथि (A) सही है लेककि कारण (R) गलत है |
घ.कथि (A) गलत है लेककि कारण (R) सही है |
5. पािी की बबायदी कै सी है -
क.उििल ख. कठोर
ग. निियि घ.उपर्ुयि सभी
पठठत गद्ांश-03
िैं असल िें था तो इन्हीं िेढक-िंडली िालों की उिर का, पर कु छ तो बचपि के आर्यसिाजी संस्कार थे और एक कु िारसुिार
सभा कार्ि हुई थी उसका उपिंिी बिा कदर्ा गर्ा था-सो सिाज-सुिार का जोश कु छ ज्र्ादा ही था। अंिनिश्वासों के
नखलाि तो तरकस िें तीर रखकर घूिता रहता था। िगर िुनश्कल र्ह थी कक िुझे अपिे बचपि िें नजससे सबसे ज्र्ादा
प्र्ार निला िे थीं जीजी। र्ूूँ िेरी ठरश्ते िें कोई िहीं थीं। उम्र िें िेरी िाूँ से भी बडी थीं, पर अपिे लडके -बहू सबको छोडकर
उिके प्राण िुझी िें बसते थे। और िे थीं उि तिाि रीनत-ठरिाजों, तीज-त्र्ोहारों, पूजा-अिुष्ठािों की खाि नजन्हें कु िार
सुिार सभा का र्ह उपिंिी अंिनिश्वास कहता था, और उन्हें जड से उखाड िें किा चाहता था। पर िुनश्कल र्ह थी कक
उिका कोई पूजा-नििाि, कोई त्र्ोहार अिुष्ठाि िेरे नबिा पूरा िहीं होता था। दीिाली है तो गोबर और कौनडर्ों से गोिियि
और सनतर्ा बिािे िें लगा हूूँ, जन्िाष्टिी है तो रोज आठ कदि की झाूँकी तक को सजािे और पंजीरी बाूँटिे िें लगा हूूँ, हर-
छठ है तो छोटी रं गीि कु नल्हर्ों िें भूजा भर रहा हूूँ | ककसी िें भुिा चिा, ककसी िें भुिी िटर, ककसी िें भुिे अरिा चािल,
ककसी िें भुिा गेहूं | जीजी र्ह सब िेरे हाथों से करातीं, ताकक उिका पुण्र् िुझे निले | के िल िुझे |
1.कु िार सुिार सभा का उपिंिी ककसे अंिनिश्वास सिझता था?
क.कु िार सुिार सभा की बैठकों को ख.रीनत-ठरिाजों, पूजा-अिुष्ठािों को
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ग.गोबर से गोबियि बिािे को घ. ख और ग दोिों सही हैं
2.बेिल
े को चुिकर नलनखए –
क. हर-छठ - कु नल्हर्ों िें भूजा भरिा
ख. दीिाली - गोबर से गोबियि बिािा
ग.जन्िाष्टिी - आठ कदि तक झांकी सजािा
घ.होली - रं ग तैर्ार करिा
3.जीजी के प्राण ककसिें बसते थे?
क.लेखक िें ख.िेढक िंडली िें
ग. इंदरसेिा िें घ.ख और ग दोिों िें
4.गद्ांश के अिुसार जीजी का व्यनित्ि कै सा है –
i. रीनत-ठरिाज को िाििे िाली
ii. पूजा अिुष्ठाि करिे िाली
iii. निनि-नििाि से तीज-त्र्ौहार ििािे िाली
iv. लेखक को उपिंिी बिािे िें सहार्ता करिे िाली
निम्ननलनखत िें से कौि सा/ कौि से निकल्प सही हैं –
क.के िल (i) सही है ख.के िल (ii) सही है
ग. (i), (ii) और (iii) सही हैं घ. (i),(ii),(iii) और (iv) सही हैं
5.जन्िाष्टिी का क्र्ा तात्पर्य है -
क. एक त्र्ौहार
ख. कृ पण जी के जन्ि की नतनथ
ग. कृ पण जी के जन्ि के उपलक्ष्र् िें ििार्ा जािे िाला त्र्ौहार
घ. उपर्ुयि सभी
पठठत गद्ांश-04
लेककि इस बार िैंिे साफ इिकार कर कदर्ा। िहीं िें किा है िुझे बाल्टी भर-भरकर पािी इस गंदी िेढक-िंडली पर। जब
जीजी बाल्टी भरकर पािी ले गईं-उिके बूढ़े पाूँि डगिगा रहे थे, हाथ काूँप रहे थे, तब भी िैं अलग िुह
ूँ िु लाए खडा रहा।
शाि को उन्होंिे लड्डू -िठरी खािे को कदए तो िैंिे उन्हें हाथ से अलग नखसका कदर्ा। िुह
ूँ िे रकर बैठ गर्ा, जीजी से बोला
भी िहीं। पहले िे भी तितिाई, लेककि ज्र्ादा देर तक उिसे गुस्सा िहीं रहा गर्ा। पास आकर िेरा सर अपिी गोद िें
लेकर बोलीं, ‘देख भइर्ा, रूठ ित। िेरी बात सुि। र्ह सब अंिनिश्वास िहीं है। हि इन्हें पािी िहीं देंगे तो इं द्र भगिाि हिें
पािी कै से देंग?
े ” िैं कु छ िहीं बोला। किर जीजी बोलीं, “तू इसे पािी की बरबादी सिझता है पर र्ह बरबादी िहीं है। र्ह
पािी का अघ्र्य चढ़ाते हैं, जो चीज ििुपर् पािा चाहता है उसे पहले देगा िहीं तो पाएगा कै से? इसीनलए ऋनर्-िुनिर्ों िे
दाि को सबसे ऊूँचा स्थाि कदर्ा है।”
1. लेखक िे ककस कार्य को करिे से इिकार कर कदर्ा?
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क.लड्डू िठरी खािे से ख.िेढक िंडली पर पािी िें किे से
ग. के िल ख सही है घ. क और ख दोिों सही हैं
2. ऋनर्-िुनिर्ों िे .................. को सबसे ऊूँचा स्थाि कदर्ा है।”
क. किय ख. दाि
ग. ििय घ. इििें से कोई िहीं
3. जीजी का निश्वास है कक -
क.पािी का अघ्र्य देिे से इंद्र भगिाि पािी िहीं देंगे
ख. गरीबों को पािी देिे से इंद्र भगिाि पािी देंगे
ग. पािी का अघ्र्य देिे से इंद्र भगिाि पािी देंगे
घ. उपर्ुयि सभी
4. जब जीजी बाल्टी भरकर पािी ले गईं-उिके बूढ़े पाूँि –
क.डगिगा रहे थे ख. काूँप रहे थे
ग. दौड रहे थे घ. क और ख दोिों सही हैं
5. जीजी िे िाराज़ लेखक से क्र्ा कहा?
क. देख भैर्ा, रूठ ित ख. िेरी बात सुि
ग. र्ह अन्िनिश्वास िहीं है घ. उपर्ुयि सभी
पठठत गद्ांश-05
किर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-नलख गर्ा है। िैंिे तो गाूँि के िदरसे का भी िुह
ूँ िहीं देखा। पर एक बात देखी है
कक अगर तीस-चालीस िि गेहूूँ उगािा है तो ककसाि पाूँच-छह सेर अच्छा गेहूूँ अपिे पास से लेकर जिीि िें क्र्ाठरर्ाूँ
बिाकर िें क देता है। उसे बुिाई कहते हैं। र्ह जो सूखे के सिर् हि अपिे घर का पािी इि पर िें कते हैं िह भी बुिाई है।
र्ह पािी गली िें बोएूँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाूँि पर पािी िाले बादलों की िसल आ जाएगी। हि बीज बिाकर पािी
देते हैं, किर काले िेघा से पािी िाूँगते हैं। सब ऋनर्-िुनि कह गए हैं कक पहले खुद दो तब देिता तुम्हें चौगुिा-अठगुिा करके
लौटाएूँग।े भइर्ा, र्ह तो हर आदिी का आचरण है, नजससे सबका आचरण बिता है। ‘र्था राजा तथा प्रजा’ नसिय र्ही
सच िहीं है। सच र्ह भी है कक ‘र्था प्रजा तथा राजा’। र्ह तो गाूँिी जी िहाराज कहते हैं।” जीजी का एक लडका राष्ट्रीर्
आंदोलि िें पुनलस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गाूँिी िहाराज की बात अकसर करिे लगी थीं। इि बातों को आज
पचास से ज्र्ादा बरस होिे को आए पर ज्र्ों की त्र्ों िि पर दज़य हैं | कभी-कभी कै से-कै से संदभों िें र्े बातें िि को कचोट
जाती हैं, हि आज देश के नलए करते क्र्ा हैं? िाूँगें हर क्षेि िें बडी-बडी हैं पर त्र्ाग का कहीं िाि-निशाि िहीं है। अपिा
स्िाथय आज एकिाि लक्ष्र् रह गर्ा है। हि चटखारे लेकर इसके र्ा उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्र्ा कभी हििे
जाूँचा है कक अपिे स्तर पर अपिे दार्रे िें हि उसी भ्रष्टाचार के अंग तो िहीं बि रहे हैं? काले िेघा दल के दल उिडते हैं,
पािी झिाझि बरसता है, पर गगरी िू टी की िू टी रह जाती है, बैल नपर्ासे के नपर्ासे रह जाते हैं? आनखर कब बदलेगी
र्ह नस्थनत?
1. “र्था राजा तथा प्रजा” िुहािरे का सही अथय चुिकर नलनखए -
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क.जैसा राजा िैसी प्रजा ख. राजा के स्िभाि के अिुसार प्रजा का व्यिहार होता है
ग . के िल ख सही है घ. क और ख दोिों सही हैं
2. निम्ननलनखत िें कौि सा कथि गांिी जी कहते थे?
क . र्था राजा तथा प्रजा ख. र्था राजा र्था प्रजा
ग . र्था प्रजा तथा राजा घ. इििें से कोई िहीं
3. ‘आनखर कब बदलेगी र्ह नस्थनत?’ िाक्र् िें ककस नस्थनत को बदलिे का उल्लेख है?
क.स्िाथय और परिाथय ख. स्िाथय और भ्रष्टाचार
ग . जिकल्र्ाण और स्िाथय घ. उपर्ुयि सभी
4. “क्र्ा कभी हििे जाूँचा है कक अपिे स्तर पर अपिे दार्रे िें हि उसी भ्रष्टाचार के अंग तो िहीं बि रहे हैं?”िाक्र् िें ‘हि’
शब्द का क्र्ा अथय है –
क. िेता ख. अनिकारी
ग. आि जिता घ. इििें से कोई िहीं
5. गद्ांश के अिुसार असत्र् कथि छांटकर नलनखए -
क. स्िाथय आज एकिाि लक्ष्र् रह गर्ा है
ख. िैंिे तो गाूँि के िदरसे का भी िुूँह कई बार देखा है
ग . जो सूखे के सिर् हि अपिे घर का पािी इि पर िें कते हैं िह भी बुिाई है।
घ. देिता तुम्हें चौगुिा-अठगुिा करके लौटाएूँगे
(उिर - िाला)
पठठत गद्ांश-1
1-घ 2-घ 3-ग 4-ख 5-ग
पठठत गद्ांश-2
1-ख 2-ख 3-क 4-क 5-ग
पठठत गद्ांश-3
1-घ 2-घ 3-क 4-ग 5-घ
पठठत गद्ांश-4
1-घ 2-ख 3-ग 4-घ 5-घ
पठठत गद्ांश-5
1-घ 2-ग 3-ख 4-ग 5-ख
िहत्िपूणय हल -प्रश्न
प्रश्न 1:काले िेघा पािी दे,संस्िरण के लेखक िे लोक – प्रचनलत निश्वासों को अंिनिश्वास कह कर उिके निराकरण पर बल
कदर्ा है। – इस कथि की नििेचिा कीनजए ?

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उिर – लेखक िे इस संस्िरण िें लोक-प्रचनलत निश्वासों को अंिनिश्वास कहा है। पाठ िें इंदर सेिा के कार्य को िह पाखंड
िािता है। आि व्यनि इंदर सेिा के कार्य को अपिे-अपिे तकों से सही िािता है, परं तु लेखक इन्हें गलत बताता है। इंदर
सेिा पर पािी िें किा पािी की क्षनत है जबकक गरिी के िौसि िें पािी की भारी किी होती है। ऐसे ही अंिनिश्वासों के
कारण देश का बौनद्धक निकास अिरुद्ध होता है। हालाूँकक एक बार इन्हीं अंिनिश्वास की िजह से देश को एक बार गुलािी
का दंश भी झेलिा पडा।
प्रश्न 2: ‘काले िेघा पािी दे’ पाठ की ‘इं दर सेिा’ र्ुिाओं को रचिात्िक कार्य करिे की प्रेरणा दे सकती हैं-तकय सनहत उतर
दीनजए।
उिर – इंदर सेिा र्ुिाओं को रचिात्िक कार्य करिे की प्रेरणा दे सकती है। इंदर सेिा सािूनहक प्रर्ास से इंद्र देिता को
प्रसन्न करके िर्ाय करािे के नलए कोनशश करती है। र्कद र्ुिा िगय के लोग सिाज की बुराइर्ों, कनिर्ों के नखलाफ सािूनहक
प्रर्ास करें तो देश का स्िरूप अलग ही होगा। िे शोर्ण को सिाप्त कर सकते हैं। दहेज का निरोि करिा, आरक्षण का निरोि
करिा, िशाखोरी के नखलाफ आिाज उठािा-आकद कार्य सािूनहक प्रर्ासों से ही हो सकते हैं।
प्रश्न 3: ‘काले िेघा पािी दे’ पाठ के आिार पर जल और िर्ाय के अभाि िें गाूँि की दशा का िणयि कीनजए।
उिर – गली-िोहल्ला, गाूँि-शहर हर जगह लोग गरिी से भुि-भुि कर िानहिाि-िानहिाि कर रहे थे। जेठ िास भी अपिा
ताप िै लाकर जा चुका था और अब तो आर्ाढ़ के भी पंद्रह कदि बीत चुके थे। कु एूँ सूखिे लगे थे, िलों िें पािी िहीं आता
था। खेत की िाटी सूख-सूखकर पत्थर हो गई थी। पपडी पडकर अब खेतों िें दरारें पड गई थीं। झुलसा देिे िाली लू चलती
थी। ढोर-ढंगर प्र्ास से िर रहे थे, पर प्र्ास बुझािे के नलए पािी िहीं था। निरुपार् से ग्रािीण पूजा-पाठ िें लगे थे। अंत िें
इंद्र से िर्ाय के नलए प्राथयिा करिे इंदर सेिा भी निकल पडी थी।
प्रश्न 4: जीजी के व्यनित्ि पर प्रकाश डानलए।
उिर – लेखक िे जीजी के व्यनित्ि की निम्ननलनखत निशेर्ताएूँ बताई हैं
(क) स्नेहशील-जीजी लेखक को अपिे बच्चों से भी अनिक प्र्ार करती थीं। िे सारे अिुष्ठाि, कियकांड लेखक से करिाती थीं
ताकक उसे पुण्र् निलें।
(ख) आस्थािती-जीजी आस्थािती िारी थीं। िे परं पराओं, निनिर्ों, अिुष्ठािों िें निश्वास रखती थीं तथा श्रद्धा से उन्हें पूरा
करती थीं।
(ग) तकय शीला-जीजी अपिी बात के सिथयि िें तकय देती थीं। उिके तकों के साििे आि व्यनि पस्त हो जाता था। इंदर सेिा
पर पािी िें किे के पक्ष िें जो तकय िे देती हैं, उिका कोई सािी िहीं। लेखक भी उिके सिक्ष स्िर्ं को किजोर िािता है।
प्रश्न 5: ‘गगरी िू टी बैल नपर्ासा’ का भाि र्ा प्रतीकाथय देश के संदभय िें सिझाइए।
उत्तर – ‘गगरी िू टी बैल नपर्ासा’ एक ओर जहाूँ सूखे की ओर बढ़ते सिाज का सजीि एिं िार्ियक नचिण प्रस्तुत करता है
िहीं र्ह देश की ितयिाि हालत का भी नचिण करता है। र्हाूँ गाूँि तथा आि लोगों के कल्र्ाणाथय भेजी अरबों-खरबों की
रानश ि जािे कहाूँ गुि हो जाती है। भ्रष्टाचार का दािि इस सिूची रानश को निगल जाता है और आि आदिी की नस्थनत
िैसी की िैसी ही रह जाती है अथायत उसकी आिश्र्कता रूपी प्र्ास अिबुझी रह जाती है।
6. ‘काल िेघा पािी दें।’ सस्िरण निज्ञाि के सत्र् पर सहज प्रेि की निजर् का नचि प्रस्तुत करता हैं-स्पष्ट कीनजए।

162
उिर- ‘काले िेघा पािी दे’ संस्िरण िें िर्ाय ि होिा, सूखा पडिा आकद के निर्र् िें निज्ञाि अपिा तकय देता है और िर्ाय ि
होिे जैसी सिस्र्ा के सही कारणों का ज्ञाि कराते हुए हिें सत्र् से पठरनचत कराता है। इस सत्र् पर लोक प्रचनलत निश्वास
और सहज प्रेि की जीत हुई है क्र्ोंकक लोग इस सिस्र्ा का हल अपिे-अपिे ढंग से ढू ूँढ़िे िें जुट जाते हैं, नजिका कोई
िैज्ञानिक आिार िहीं है। लोगों िें प्रचनलत निश्वास इतिा पुष्ट है कक िे निज्ञाि की बात िाििे को तैर्ार िहीं होते हैं।
7. िियिीर भारती िेंढक िंडली पर पािी डालिा क्र्ों व्यथय िािते थे?
उिर- लेखक िियिीर भारती िेंढक िंडली पर पािी डालिा इसनलए व्यथय िािता है क्र्ोंकक चारों ओर पािी की घोर किी
हैं। लोग पीिे के नलए बडी कठठिाई से बाल्टी भर पािी इकट्ठा करके रखे हुए हैं, जो इस िेंढक िंडली पर िें क कर पािी की
घोर बबायदी करते हैं। इससे देश को क्षनत होती है। िह पािी को र्ूूँ िे किा अंिनिश्वास के नसिा कु छ िहीं िािता है।
8. ‘काले िेघा पािी दे’ िें लेखक िे लोक िान्र्ताओं के पीछे नछपे ककस तकय को उभारा है, आप भी अपिे जीिि के अिुभि
से ककसी अंिनिश्वास के पीछे नछपे तकय को स्पष्ट कीनजए।
उिर- ‘काले िेघा पािी दे’ िें लेखक िे लोक िान्र्ताओं के पीछे नछपे उस तकय को उभारा है, नजसके अिुसार ऐसी िान्र्ता
है कक जब तक हि ककसी को कु छ देंगे िहीं, तब तक उससे लेिे का हकदार कै से बि सकते हैं। उदाहरणतर्ा-र्कद हि इंद्र
देिता को पािी िहीं देंगे तो िे हिें पािी क्र्ों देंगे। इंद्र सेिा पर बाल्टी भरकर पािी िें किा ऐसी ही लोकिान्र्ता का प्रिाण
है।
हिारे जीिि के अिुभि से अंिनिश्वास के पीछे नछपा तकय र्ह है कक र्कद काली नबल्ली रास्ता काट जाती है तो अंिनिश्वासी
लोग कहते हैं कक रुक जाओ, बाद िें जािा, पर िेरा तकय र्ह है कक इसिें कोई सत्र्ता िहीं है। र्ह सिर् को बरबाद करिे
के अलािा कु छ िहीं है।
9. िेंढक िंडली पर पािी डालिे को लेकर लेखक और जीजी के निचारों िें क्र्ा नभन्नता थी?
उिर- िेंढक िंडली पर पािी डालिे को लेकर लेखक का निचार र्ह था कक र्ह पािी की घोर बबायदी है। भीर्ण गिी िें
जब पािी पीिे को िहीं निलता हो और लोग दूरदराज से इसे लाए हों तो ऐसे पािी को इस िंडली पर िें किा देश का
िुकसाि है। इसके निपरीत जीजी इसे पािी की बुिाई िािती हैं। िे कहती हैं कक सूखे के सिर् हि अपिे घर का पािी इंदर
सेिा पर िें कते हैं, तो र्ह भी एक प्रकार की बुिाई है। र्ह पािी गली िें बोर्ा जाता है नजसके बदले िें गाूँि, शहर, कस्बों
िें बादलों की िसल आ जाती है।
पाठ पर आिाठरत अन्र् प्रश्नोिर
1. इन्दर सेिा घर-घर जाकर पािी क्र्ो िाूँगती थी?
उिर- गाूँि के लोग बाठरश के नलए भगिाि इंद्र से प्राथयिा ककर्ा करते थे। जब पूजा-पाठ व्रत आकद उपार् असिल हो जाते
थे तो भगिाि इंद्र को प्रसन्न करिे के नलए गाूँि के ककशोर, बच्चे कीचड िें लथपथ होकर गली-गली घूिकर लोगों से पािी
िाूँगते थे।
2. इन्दरसेिा को लेखक िेढक-िंडली क्र्ों कहता है, जीजी के बार-बार कहिे पर भी िह इन्दरसेिा पर पािी िें किे को
राजी क्र्ों िहीं होता?

163
उिर- इन्दरसेिा का कार्य आर्यसिाजी नििारिारा िाले लेखक को अंिनिश्वास लगता है, उसका िाििा है कक र्कद इंदरसेिा
देिता से पािी कदलिा सकती है तो स्िर्ं अपिे नलए पािी क्र्ों िहीं िाूँग लेती? पािी की किी होिे पर भी लोग घर िें
एकि ककर्े हुए पािी को इंदरसेिा पर िें कते हैं। लेखक इसे पािी की निियि बरबादी िािता है।
3. रूठे हुए लेखक को जीजी िे ककस प्रकार सिझार्ा?
उिर- जीजी िे लेखक को प्र्ार से लड्डू िठरी नखलाते हुए निम्न तकय कदए-
1- त्र्ाग का िहत्ि- कु छ पािे के नलए कु छ देिा पडता है।
2- दाि की िहिा- ऋनर्-िुनिर्ों िे दाि को सबसे ऊूँचा स्थाि कदर्ा है। जो चीज अपिे पास भी कि हो और अपिी
आिश्र्कता को भूलकर िह चीज दूसरों को दाि कर देिा ही त्र्ाग है।
3- इंद्रदेि को जल का अध्र्य चढािा-इंदरसेिा पर पािी िें किा पािी की बरबादी िहीं बनल्क इंद्रदेि को जल का अध्र्य चढ़ािा
है।
4- पािी की बुिाई करिा- नजस प्रकार ककसाि फसल उगािे के नलए जिीि पर बीज डालकर बुिाई करता है िैसे ही पािी
िाले बादलों की फसल पािे के नलए इन्दर सेिा पर पािी डाल कर पािी की बुिाई की जाती है।
4. िकदर्ों का भारतीर् सािानजक और सांस्कृ नतक पठरिेश िें क्र्ा िहत्ि है?
उिर- गंगा भारतीर् सिाज िें सबसे पूज्र् सदािीरा िदी है। नजसका भारतीर् इनतहास िें िार्ियक, पौरानणक और
सांस्कृ नतक िहत्ि है। िह भारतीर्ों के नलए के िल एक िदी िहीं अनपतु िाूँ है, स्िगय की सीढ़ी है, िोक्षदानर्िी है। उसिें
पािी िहीं अनपतु अिृत तुल्र् जल बहता है। भारतीर् संस्कृ नत िें िकदर्ों के ककिारे िािि सभ्र्ताएूँ िली-िू ली हैं। बडे-बडे
िगर तीथयस्थाि िकदर्ों के ककिारे ही नस्थत हैं ऐसे पठरिेश िें भारतिासी सबसे पहले गंगा िैर्ा की जर् ही बोलेंगे। िकदर्ाूँ
हिारे जीिि का आिार हैं, हिारा देश कृ नर् प्रिाि है। िकदर्ों के जल से ही भारत भूनि हरी-भरी है। िकदर्ों के नबिा जीिि
की कल्पिा िहीं कर सकते, र्ही कारण है कक हि भारतीर् िकदर्ों की पूजा करते हैं।
5. आजादी के पचास िर्ों के बाद भी लेखक क्र्ों दुखी है, उसके िि िें कौि से प्रश्न उठ रहे हैं?
उिर- आजादी के पचास िर्ों बाद भी भारतीर्ों की सोच िें सकारात्िक बदलाि ि देखकर लेखक दुखी है। उसके िि िें
कई प्रश्न उठ रहे हैं-
1. क्र्ा हि सच्चे अथों िें स्ितन्ि हैं?
2. क्र्ा हि अपिे देश की संस्कृ नत और सभ्र्ता को सिझ पाए हैं?
3. राष्ट्र नििायण िें हि पीछे क्र्ों हैं, हि देश के नलए क्र्ा कर रहे हैं?
4. हि स्िाथय और भ्रष्टाचार िे नलप्त रहते हैं, त्र्ाग िें निश्वास क्र्ों िहीं करते?
5. सरकार द्वारा चलाई जा रही सुिारिादी र्ोजिाएूँ गरीबों तक क्र्ों िहीं पहुूँचती है?

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पाठ सं-14
पहलिाि की ढोलक
फिीश्वर नाथ रे िु
पाठ का प्रनतपादर् एिं सारांश
पहलिाि की ढोलक’ कहािी व्यिस्था के बदलिे के साथ लोक-कला और इसके कलाकार के अप्रासंनगक हो जािे की कहािी
है। राजा साहब की जगह िए राजकु िार का आकर जि जािा नसफय व्यनिगत सिा-पठरितयि िहीं, बनल्क जिीिी पुरािी
व्यिस्था के पूरी तरह उलट जािे और उस पर सभ्र्ता के िाि पर एकदि िर्ी व्यिस्था के आरोनपत हो जािे का प्रतीक है।
र्ह ‘भारत’ पर ‘इंनडर्ा’ के छा जािे की सिस्र्ा है जो लुट्टि पहलिाि को लोक-कलाकार के आसि से उठाकर पेट-भरिे के
नलए हार्-तौबा करिे िाली निरीहता की भूनि पर पटक देती है।
ऐसी नस्थनत िें गाूँि की गरीबी पहलिािी जैसे शौक को क्र्ा पालती? किर भी, पहलिाि जीिट ढोल के बोल िें अपिे
आपको ि नसफय नजलाए रखता है, बनल्क भूख ि िहािारी से दि तोड रहे गाूँि को िौत से लडिे की ताकत भी प्रदाि करता
है। कहािी के अंत िें भूख-िहािारी की शक्ल िें आए िौत के र्ड्यंि जब अजेर् लुट्टि की भरी-पूरी पहलिािी को िटे ढोल
की पोल िें बदल देते हैं तो इस करुणा/िासदी िें लुट्टि हिारे साििे कई सिाल छोड जाता है। िह पोल पुरािी व्यिस्था
की है र्ा िई व्यिस्था की ? क्र्ा कला की प्रासंनगक व्यिस्था की िुखापेक्षी है अथिा उसका कोई स्ितंि िूल्र् भी है?
ििुपर्ता की साििा और जीिि-सौंदर्य के नलए लोक-कलाओं को प्रासंनगक बिाए रखिे हेतु हिारी क्र्ा भूनिका हो सकती
है? र्ह पाठ ऐसे कई प्रश्न छोड जाता है।
सारांश-सदी का िौसि था। गाूँि िें िलेठरर्ा ि हैजे का प्रकोप था। अिािस्र्ा की ठं डी रात िें निस्तब्िता थी। आकाश के
तारे ही प्रकाश के स्रोत थे। नसर्ारों ि उल्लुओं की डराििी आिाज से िातािरण की निस्तब्िता कभी-कभी भंग हो जाती
थी। कभी ककसी झोपडी से कराहिे ि कै करिे की आिाज तथा कभी-कभी बच्चों के रोिे की आिाज आती थी। कु िे जाडे के
कारण राख के ढेर पर पडे रहते थे। सार्ं र्ा रानि को सब निलकर रोते थे। इस सारे िाहौल िें पहलिाि की ढोलक संध्र्ा
से प्रात:काल तक एक ही गनत से बजती रहती थी। र्ह आिाज िृत-गाूँि िें संजीििी शनि भरती थी।
गाूँि िें लुट्टि पहलिाि प्रनसद्ध था। िौ िर्य की आर्ु िें िह अिाथ हो गर्ा था। उसकी शादी हो चुकी थी। उसकी निििा
सास िे उसे पाला। िह गार् चराता, ताजा दूि पीता तथा कसरत करता था। गाूँि के लोग उसकी सास को तंग ककर्ा करते
थे। लुट्टि इिसे बदला लेिा चाहता था। कसरत के कारण िह ककशोरािस्था िें ही पहलिाि बि गर्ा। एक बार लुट्टि
श्र्ाििगर िेला िें ‘दंगल’ देखिे गर्ा। पहलिािों की कु श्ती ि दाूँि-पेंच देखकर उसिे ‘शेर के बच्चे’ को चुिौती दे डाली।
‘शेर के बच्चे’ का असली िाि था-चाूँद बसंह। िह पहलिाि बादल बसंह का नशपर् था। तीि कदि िें उसिे पंजाबी ि पठाि
पहलिािों को हरा कदर्ा था। िह अपिी श्रेष्ठता नसद्ध करिे के नलए बीच-बीच िें दहाडता किरता था। श्र्ाििगर के दंगल
ि नशकार-नप्रर् िृद्ध राजा साहब उसे दरबार िें रखिे की सोच रहे थे कक लुट्टि िे शेर के बच्चे को चुिौती दे दी।
दशयक उसे पागल सिझते थे। चाूँद बसंह बाज की तरह लुट्टि पर टू ट पडा, परं तु िह सफाई से आक्िण को सूँभालकर उठ
खडा हुआ। राजा िे लुट्टि को सिझार्ा और कु श्ती से हटिे को कहा, ककं तु लुट्टि िे लडिे की इजाजत िाूँगी। िैिज
े र से लेकर
नसपानहर्ों तक िे उसे सिझार्ा, परं तु लुट्टि िे कहा कक इजाजत ि निली तो पत्थर पर िाथा पटककर िर जाएगा। भीड
िें अिीरता थी। पंजाबी पहलिाि लुट्टि पर गानलर्ों की बौछार कर रहे थे। दशयक उसे लडिे की अिुिनत देिा चाहते थे।

165
नििश होकर राजा साहब िे इजाजत दे दी। बाजे बजिे लगे। लुट्टि का ढोल भी बजिे लगा था। चाूँद िे उसे कसकर दबा
नलर्ा था। िह उसे नचि करिे की कोनशश िें था। लुट्टि के सिथयि िें नसफय ढोल की आिाज थी, जबकक चाूँद के पक्ष िें
राजित ि बहुित था।
लुट्टि की आूँखें बाहर निकल रही थीं, तभी ढोल की पतली आिाज सुिाई दी’िाक-नििा, नतरकट-नतिा, िाक-नििा,
नतरकट-नतिा।’ इसका अथय था-दाूँि काटो, बाहर हो जाओ। लुट्टि िे दाूँि काटी तथा लपक कर चाूँद की गदयि पकड ली।
ढोल िे आिाज दी-चटाक् -चट् -िा अथायत उठाकर पटक दे। लुट्टि िे दाूँि ि जोर लगाकर चाूँद को जिीि पर दे िारा। ढोलक
िे ‘नििा-नििा, निक-नििा।’ कहा और लुट्टि िे चाूँद बसंह को चारों खािे नचि कर कदर्ा। ढोलक िे ‘िाह बहादुर!” की ध्िनि
की तथा जिता िे िाूँ दुगाय की, िहािीर जी की, राजा की जर्-जर्कार की। लुट्टि िे सबसे पहले ढोलों को प्रणाि ककर्ा
और किर दौडकर राजा साहब को गोद िें उठा नलर्ा। राजा साहब िे उसे दरबार िें रख नलर्ा।
पंजाबी पहलिािों की जिार्त चाूँद बसंह की आूँखें पोंछ रही थी। राजा साहब िे लुट्टि को पुरस्कृ त ि करके अपिे दरबार
िें सदा के नलए रख नलर्ा। राजपंनडत ि िैिज
े र िे लुट्टि का निरोि ककर्ा कक िह क्षनिर् िहीं है। राजा साहब िे उिकी
एक ि सुिी। कु छ ही कदि िें लुट्टि बसंह की कीर्तय दूर-दूर तक िै ल गई। उसिे सभी िािी पहलिािों को हरार्ा। उसिे
‘काला खाूँ’ जैसे प्रनसद्ध पहलिाि को भी हरा कदर्ा। उसके बाद िह दरबार का दशयिीर् जीि बि गर्ा। लुट्टि बसंह िेलों िें
घुटिे तक लंबा चोंगा पहिे, अस्त-व्यस्त पगडी बाूँिकर ितिाले हाथी की तरह झूिता चलता। हलिाई के आग्रह पर दो
सेर रसगुल्ला खाता तथा िुह
ूँ िें आठ-दस पाि एक साथ ठूूँ स लेता। िह बच्चों जैसे शौक रखता था। दंगल िें उससे कोई लडिे
की नहम्ित िहीं करता। कोई करता तो उसे राजा साहब इजाजत िहीं देते थे। इस तरह पंद्रह िर्य बीत गए। उसके दो पुि
हुए। उसकी सास पहले ही िर चुकी थी और पत्नी भी दो पहलिाि पैदा करके स्िगय नसिार गई। दोिों लडके पहलिाि थे।
दोिों का भरण-पोर्ण दरबार से हो रहा था।
पहलिाि हर रोज सुबह उिसे कसरत करिाता। कदि िें उन्हें सांसाठरक ज्ञाि भी देता। िह बताता कक उसका गुरु ढोल है,
और कोई िहीं। अचािक राजा साहब स्िगय नसिार गए। िए राजकु िार िे निलार्त से आकर राजकाज अपिे हाथ िें ले
नलर्ा। उसिे पहलिािों की छु ट्टी कर दी। लुट्टि ढोलक कं िे से लटकाकर अपिे पुिों के साथ गाूँि लौट आर्ा। गाूँि िालों िे
उसकी झोपडी बिा दी तथा िह गाूँि के िौजिािों ि चरिाहों को कु श्ती नसखािे लगा। खािे-पीिे का खचय गाूँि िालों की
तरि से बूँिा हुआ था। गरीबी के कारण िीरे -िीरे ककसािों ि िजदूरों के बच्चे स्कू ल िें आिे बंद हो गए। अब िह अपिे
लडकों को ही ढोल बजाकर कु श्ती नसखाता।
लडके कदिभर िजदूरी करके किाकर लाते थे। गाूँि पर अचािक संकट आ गर्ा। सूखे के कारण अन्न की किी हो गई तथा
किर िलेठरर्ा ि हैजा िै ल गर्ा। घर के घर खाली हो गए। प्रनतकदि दो-तीि लाशें उठिे लगीं। लोग एक-दूसरे को ढाूँढ़स
देते तथा शाि होते ही घरों िें घुस जाते। लोग चुप रहिे लगे। ऐसे सिर् िें के िल पहलिाि की ढोलक ही बजती थी जो
गाूँि के अियित
ृ , और्नि-उपचार-पथ्र्-निहीि प्रानणर्ों िें संजीििी शनि भरती थी। एक कदि पहलिाि के दोिों बेटे भी
चल बसे। पहलिाि सारी रात ढोल पीटता रहा। दोिों पेट के बल पडे हुए थे। उसिे लंबी साूँस लेकर कहा-दोिों बहादुर
नगर पडे। उस कदि उसिे राजा श्र्ािािंद की दी हुई रे शिी जाूँनघर्ा पहिी और सारे शरीर पर निट्टी िलकर थोडी कसरत
की किर दोिों पुिों को कं िों पर लादकर िदी िें बहा आर्ा। इस घटिा के बाद गाूँि िालों की नहम्ित टू ट गई।

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रात िें किर पहलिाि की ढोलक बजिे लगी तो लोगों की नहम्ित दुगि
ु ी बढ़ गई। चार-पाूँच कदिों के बाद एक रात ढोलक
की आिाज िहीं सुिाई पडी। सुबह उसके नशपर्ों िे देखा कक पहलिाि की लाश ‘नचत’ पडी है। नशपर्ों िे बतार्ा कक उसके
गुरु िे कहा था कक उसके शरीर को नचता पर पेट के बल नलटार्ा जाए क्र्ोंकक िह कभी ‘नचत’ िहीं हुआ और नचता सुलगािे
के सिर् ढोल जरूर बजा देिा ।
शब्दाथय-
अिािस्र्ा-चाूँद रनहत रात। भर्ात-भर् से पीनडत। सन्नाटा-चुप्पी। साम्राज्र्-राज्र्। निस्तब्िता-गनतहीिता। चेष्टा-कोनशश।
ज्र्ोनत-प्रकाश। क्दि-निलाप, रोिा। पेचक-उल्लू। कै -उल्टी। टेर-पुकार। कठ-गला। बािा-रुकािट। ताडिा-भाूँपिा। घूरा-
गंदगी का ढेर। िि िारिा-उदास होिा, इच्छा को सिाप्त करिा। भीर्णता-भर्ंकरता। ताल ठोकिा-चुिौती देिा।
ललकारिा-लडिे का नििंिण देिा। सजीििी-जीिि देिे िाली।
अिुसरण करिा-पीछे-पीछे चलिा। िारोपण-दुिारू पशु के थिों से निकला ताजा दूि। ककशोरािस्था-10 से 15 िर्य की
आर्ु। िांसल-नजस पर िांस चढ़ गर्ा हो। दाूँि-पेंच-तौर-तरीके , तकिीक। नबजली उत्पन्न करिा-तेजी से जगा देिा। चुिौती-
ललकार। नगरोह-सिूह। पट्ठा-पहलिाि। टार्ठटल-पदिी। ककलकारी भरिा-खुशी प्रकट करिे के नलए गले से आिाजें
निकालिा। दुलकी लगािा-उछल-उछल कर खेलिा। ककं नचत-शार्द। स्पिाय-िुकाबला। खलबली िचिा-हडकं प िचिा।
गोश्त-िांस। दुहाई-नििती। अिीर-व्याकु ल। जिार्त-सभा। बौछार करिा-अत्र्निक देिा। र्क्ष-सिथयि। प्रनतद्वंद्वी-िुकाबला
करिे िाला। नििश-िजबूर। हलुआ होिा-पूरी तरह कु चला जािा। नचि करिा-जिीि पर पीठ लगािा, हरािा।
सीिा ि रहिा-बहुत अनिक होिा। जिित-लोगों का सिथयि। जर्-ध्िनि-जर्-जर्कार। सि जािा-भर जािा, लथपथ हो
जािा। गदगद होिा-खुश होिा। लाज रखिा-सम्िाि बचािा। पुरस्कृ त-इिाि देिा। िुंह नबचकािा-घृणा भाि व्यि करिा।
संकुनचत-नसकु डा हुआ। कीर्तय-र्श। स्नेह-दृनष्ट-प्र्ार की िजर। चार चाूँद लगािा-शाि को अनिक बढ़ा देिा। आसिाि
कदखािा-हरा देिा। टूट पडिा-हिला करिा। लकिा िारिा-पंगु होिा।
दशयिीर्-देखिे र्ोग्र्। अस्त-व्यस्त-नबखरा हुआ। ितिाला-िस्त। चुहल-शरारत। उदरस्थ-पेट िें डालकर। हुनलर्ा-रूपसिा।
अबरख-रं गीि चिकीला कागज। िृनद्ध-बढ़ोतरी। देह-शरीर, ति। अजेर्-नजसे जीता ि जा सके । अिार्ास-नबिा प्रर्ास के ।
प्रताप-शनि।पािी किरिा-सिाप्त होिा। नशनथलता-कढलाई। चपेटाघात-लपेट िें लेकर आघात करिा। टैठरबुल-भर्ािक।
हठरबुल-िहाभर्ंकर। साि जिाब निलिा-इन्कार कर देिा। चरिाहा-पशु चरािे िाला। िज्रपात-िज्र नगरिा। अिािृनष्ट-
अकाल, सूखा पडिा। कलरि-िंद और ििुर स्िर। हाहाकार-चीख-पुकार। प्रभा-ज्र्ोनत, प्रकाश। दृनष्टगोचर होिा-कदखाई
देिा। काूँखते-कूं खते-सूखी खाूँसी खाूँसते हुए। आत्िीर्-अपिे। ढाूँढ़स-तसल्ली।
निभीनर्का-भर्ािक दशा। अियिृत-अििरा। संजीििी शनि-जीिि देिे िाली शनि। स्पंदि-शनिशून्र्-िडकि की शनि से
रनहत। स्नार्ु-िसें । सियिाश-सब कु छ िष्ट करिा। आूँख िूंदिा-िृत्र्ु होिा। क्ू र काल-कठोर िृत्र्ु। असहार् िेदिा-नजस कष्ट
को सहा ि जा सके । निस्र्द-भाििाहीि, चेतिाहीि। दंग रहिा-हैराि रहिा। नहम्ित टूटिा-निराश होिा। संतप्त-दुखी। डेढ़
हाथ का कलेजा-सहिशील। कदलेर-बहादुर। रुग्ण-बीिार।
पठठत गद्ांश-01
शांत दशयकों की भीड िें खलबली िच गई-'पागल है पागल, िरा-ऐं! िरा-िरा।'... पर िाह रे बहादुर! लुट्टि बडी सिाई से
आक्िण को सूँभालकर निकलकर उठ खडा हुआ और पैंतरा कदखािे लगा। राजा साहब िे कु श्ती बंद करिाकर लुट्टि को
167
अपिे पास बुलिार्ा और सिझार्ा। अंत िें, उसकी नहम्ित की प्रशंसा करते हुए, दस रुपर्े का िोट देकर कहिे लगे- "जाओ,
िेला देखकर घर जाओ।..."
1.शांत भीड िें खलबली क्र्ों िच गई?
a.चाूँद बसंह द्वारा लुट्टि बसंह को झपटकर दबोच लेिे के कारण
b.भीड िें उपद्रनिर्ों के घुस आिे के कारण
c.राजा द्वारा कु श्ती ि करिे का आदेश देिे के कारण
d.सभी निकल्प सही हैं
2.राजा िे ककसे अपिे पास बुला नलर्ा?
a.बादल बसंह को b.लुट्टि बसंह को
c.चाूँद बसंह को d.भीड के एक व्यनि को
3.राजा साहब िे लुट्टि बसंह की प्रशंसा क्र्ों की?
a.क्र्ोंकक उसिे गाूँि के लोगों की सहार्ता की b.क्र्ोंकक उसिे चाूँद बसंह को कु श्ती की चुिौती दी थी
c.क्र्ोंकक उसिे अपिे पठरिार को सूँभाला था d.क्र्ोंकक उसिे कु श्ती के नलए संघर्य ककर्ा था
4.पर िाह रे बहादुर। पंनि िें बहादुर शब्द ककस व्यनि के नलए प्रर्ुि हुआ है?
a.राजा साहब b.िैिेजर साहब
c.लुट्टि बसंह पहलिाि d.चाूँद बसंह पहलिाि
5.राजा द्वारा लुट्टि बसंह को दस रुपर्े का िोट देकर िेला देखकर घर जािे को कहिे के पीछे क्र्ा कारण था?
a.कु श्ती लडिे से ििा करिा b.कु श्ती लडिे के नलए तैर्ार करिा
c.कु श्ती की प्रनतर्ोनगता हार जािा d.कु श्ती की प्रनतर्ोनगता जीत जािा
6.पहलिाि की ढोलक कहािी िें लुट्टि को राजदरबार से हटािे का िुख्र् कारण क्र्ा था?
a.पुरािी सोच का होिा b.लुट्टि पर दैनिक व्यर्
c.लुट्टि का बूढ़ा होिा d.कु श्ती हार जािा
7.राजपुरोनहत और िैिज
े र लुट्टि का निरोि क्र्ों कर रहे थे?
a.क्र्ोंकक लुट्टि िे चाूँद बसंह को हरार्ा था b.क्र्ोंकक लुट्टि क्षनिर् िहीं था
c.क्र्ोंकक लुट्टि िे उिका कहिा िहीं िािा d.क्र्ोंकक लुट्टि किज़ोर पहलिाि था
8.लुट्टि बसंह िे ककस िािी पहलिाि को पटककर हरा कदर्ा था?
a.अिजल खाूँ b.कल्लू खाूँ
c.अब्दुल खाूँ d.काला खाूँ
9.निम्न िें से कौि सा रे णु का उपन्र्ास है?
a.िितुलसी की गंि b.ठु िरी
c.दीघयतपा d.िेपाली क्ांनत कथा
उिरिाला

168
1.(a) चाूँद बसंह द्वारा लुट्टि बसंह को झपटकर दबोच लेिे के कारण
2.(b) लुट्टि बसंह को
3.(b) क्र्ोंकक उसिे चाूँद बसंह को कु श्ती की चुिौती दी थी
4.(c) लुट्टि बसंह पहलिाि
5. (a) कु श्ती लडिे से ििा करिा
6. (b) लुट्टि पर दैनिक व्यर्
व्याख्र्ा: कहािी के अिुसार लुट्टि को राज दरबार से इसीनलए निकाल कदर्ा गर्ा, क्र्ोंकक उस पर होिे िाला दैनिक व्यर्
बहुत अनिक था और िए िहाराज को कु श्ती जैसे बेकार के खेल से कु छ लेिा देिा िहीं था।
7.(b) क्र्ोंकक लुट्टि क्षनिर् िहीं था
व्याख्र्ा:राज पंनडत और िैिज
े र उच्च जानत के थे और लुट्टि बसंह िीची जानत का था। राज-पंनडत और िैिज
े र क्षनिर् र्ा
ब्राह्मण को राज-पहलिाि बिािा चाहते थे इसनलए िे लुट्टि बसंह का निरोि कर रहे थे।
8. (d) काला खाूँ
व्याख्र्ा:लुट्टि बसंह िे काला खाूँ पहलिाि को पटककर हरा कदर्ा था।
9.(c) दीघयतपा
व्याख्र्ा:दीघयतपा रे णु का एक उपन्र्ास है, नजसिे इन्होंिे िनहलाओं के उत्पीडि को नचनित करके उजागर ककर्ा है।
पठठत गद्ांश-02
रानि की निभीनर्का को नसिय पहलिाि की ढोलक ही ललकार कर चुिौती देती रहती थी। पहलिाि संध्र्ा से सुबह तक,
चाहे नजस ख्र्ाल से ढोलक बजाता हो, ककं तु गाूँि के अद्धयित
ृ , और्नि-उपचार पथ्र्-निहीि, प्रानणर्ों िें र्ह संजीििी शनि
ही भरती थी। बूढ़े, बच्चे, जिािों की शनिहीि आूँखों के आगे दंगल का दृश्र् िाचिे लगता था। स्पंदि-शनि-शून्र्, स्नार्ुओं
िें भी नबजली दौड जाती थी। अिश्र् ही ढोलक की आिाज िें ि तो बुखार हटािे का कोई गुण था और ि िहािारी की
सियिाश शनि को रोकिे की शनि ही, पर इसिें संदह
े िहीं कक िरते हुए प्रानणर्ों को आूँख िूद
ूँ ते सिर् कोई तकलीि िहीं
होती थी, िृत्र्ु से िे डरते िहीं थे।
1.पहलिाि की ढोलक िें ककस बीिारी को रोकिे की शनि थी?
a.बुखार को b.तपेकदक को
c.िहािारी को d.इििें से कोई िहीं
2.गाूँि के िानसर्ों िें संजीििी शनि भरिे का काि ककसिे ककर्ा?
a.पहलिाि िे b.िैद् जिों िे
c.पहलिाि की ढोलक िे d.राजा िे
3.गाूँि के बच्चे, बूढ़े, जिािों को पहलिाि की ढोलक की आिाज़ सुिते ही क्र्ा र्ाद आ जाता था?
a.दंगल का दृश्र् b.िृत्र्ु का भर्
c.रानि का अंिकार d.राजा की दर्ालुता
4.ढोलक की आिाज़ को सुिकर नबिा ककसी तकलीि के अपिे प्राण कौि त्र्ाग देता था?
169
a.चाूँद बसंह b.लुट्टि बसंह
c.स्िस्थ व्यनि d.िरता हुआ व्यनि
5.गाूँि के लोगों की कै सी नस्थनत थी?
a.अद्धयिृत और और्नि उपचार पथ्र् निहीि दोिों b.संतोर्जिक
c.अद्धयिृत d.और्नि उपचार पथ्र् निहीि
6.लुट्टि के िाता-नपता उसे ककस उम्र िें अिाथ बिा कर चल बसे थे?
a.आठ िर्य b.दस िर्य
c.िौ िर्य d.ग्र्ारह िर्य
7.सियप्रथि आंचनलक शब्द का प्रर्ोग ककसिे ककर्ा?
a.जैिेन्द्र b.निपणु खरे
c.िणीश्वरिाथ रे णु d.िियिीर भारती
8.पहलिाि की ढोलक पाठ के आिार पर दंगल का स्थाि ककसिे ले नलर्ा था?
a.कक्के ट िे b.घोडों की रे स िे
c.भाला िें क िे d.िु टबाल िे
9.रे णु द्वारा नलनखत कौि सा कहािी संग्रह िहीं है?
a.ठु िरी b.दीघयतपा
c.अनिखोर d.आकदि रानि की िहक
उिरिाला
1.(d) इििें से कोई िहीं
2. (c) पहलिाि की ढोलक िे
3. (a) दंगल का दृश्र्
4. (d) िरता हुआ व्यनि
5. (a) अद्धयित
ृ और और्नि उपचार पथ्र् निहीि दोिों
6. (c) िौ िर्य
व्याख्र्ा:लुट्टि पहलिाि जब िौ िर्य का था, तब उसके िाता - नपता का स्िगयिास हो गर्ा था।
7. (c) िणीश्वरिाथ रे णु
व्याख्र्ा:रे णु िे सियप्रथि आंचनलक शब्द का प्रर्ोग 1954 िें प्रकानशत अपिे उपन्र्ास िैला आूँचल की भूनिका िें ककर्ा था।
8.(b) घोडों की रे स िे
9. (b) दीघयतपा
िहत्िपूणय प्रश्नोिर
1. ‘ढोल िें तो जैसे पहलिाि की जाि बसी थी’ - ‘पहलिाि की ढोलक’ पाठ के आिार पर नसद्ध कीनजए।

170
उिर- लुट्टि बसंह जब जिािी के जोश िें आकर चाूँद बसंह िािक िूँजे हुए पहलिाि को ललकार बैठा, तो सारा जिसिूह,
राजा और पहलिािों की सिूह आकद की र्ह िारणा थी कक र्ह कच्चा ककशोर नजसिे कु श्ती कभी सीखी िहीं है, पहले दाूँि
िें ही ढेर हो जाएगा। हालाूँकक लुट्टि बसंह की िसों िें नबजली और िि िें जीत का जज़्बा उबाल खा रहा था। उसे ककसी की
परिाह िे थी। हाूँ ढोल की थाप िें उसे एक-एक दाूँि-पेंच का िागयदशयि जरूर निल रहा था। उसी थाप का अिुसरण करते
हुए उसिे ‘शेर के बच्चे’ को खूब िोर्ा, उठा-उठा कर पटका और हरा कदर्ा। इस जीत िें एक िाि ढोल ही उसके साथ था।
अतुः जीतकर िह सबसे पहले ढोल के पास दौडा और उसे प्रणाि ककर्ा।
2. ‘पहलिाि की ढोलक’ कहािी के प्रारं भ िें नचनित प्रकृ नत का स्िरूप कहािी की भर्ािहता की ओर संकेत करता है। इस
कथि पर ठटप्पणी कीनजए।
उिर- कहािी के प्रारं भ िें प्रकृ नत का स्िरूप कहािी की भर्ािहता की ओर संकेत करता है। रात के भर्ािह िणयि िें बतार्ा
गर्ा है कक चारों तरि सन्नाटा है। नसर्ारों का क्ं दि ि उल्लू की डराििी आिाज निस्तब्िता को कभी-कभी भंग कर देती
थी। गाूँि की झोंपनडर्ों से कराहिे और कै करिे की आिाज़ सुिाई पडती थी। बच्चे भी कभी-कभी निबयल कं ठों से ‘िाूँ-िाूँ’
पुकारकर रो पडते थे। इससे रानि की निस्तब्िता िें बािा िहीं पडती थी।
3. पहलिाि लुट्टि के सुख-चैि भरे कदिों का िणयि अपिे शब्दों िें कीनजए।
उिर- पहलिाि लुट्टि के सुख-चैि के कदि तब शुरू हुए जब उसिे चाूँद बसंह को कु श्ती िें हराकर अपिा िाि रोशि ककर्ा।
राजा िे उसे दरबार िें रखा। इससे उसकी कीर्तय दूर-दूर तक िै ल गई। पौनष्टक भोजि ि राजा की स्नेह-दृनष्ट निलिे से उसिे
सभी िािी पहलिािों को जिीि सुूँघा दी। अब िह दशयिीर् जीि बि गर्ा। िेलों िें िह लंबा चोगा ि अस्त-व्यस्त पगडी
पहिकर िस्त हाथी की तरह चलता था। हलिाई उसे निठाई नखलाते थे।
4. लुट्टि के राज-पहलिाि बि जािे के बाद की कदिचर्ाय पर प्रकाश डानलए।
उिर- लुट्टि जब राज-पहलिाि बि गर्ा तो उसकी कीर्तय दूर-दूर तक िै ल गई। पौनष्टक भोजि निलिे से िह राज दरबार
का दशयिीर् जीि बि गर्ा। ठाकु रबाडे के साििे पहलिाि गरजता-‘िहािीर’। लोग सिझ लेते पहलिाि बोला। िेलों िें
िह घुटिे तक लंबा चोगा पहिकर अस्त-व्यस्त पगडी बाूँिकर ितिाले हाथी की तरह चलता था। िेले के दंगल िें िह लूँगोट
पहि, शरीर पर निट्टी िलकर स्िर्ं को साूँड र्ा भैंसा सानबत करता रहता था।
5. ‘पहलिाि की ढोलक’ कहािी का प्रनतपाद् बताइए।
अथिा
‘पहलिाि की ढोलक’ पाि के आिार पर लुट्टि का चठरि-नचिण कीनजए।
उिर- लुट्टि पहलिाि के चठरि की निम्ननलनखत निशेर्ताएूँ हैं-
(i) व्यनित्ि-लुट्टि बसंह लंबा-चौडा ि ताकतिर व्यनि था। िह लंबा चोगा ि अस्त-व्यस्त पगडी बाूँिता था। िह इकलौती
संताि था। िौ िर्य की आर्ु िें उसके िाता-नपता की िृत्र्ु हो गई थी। उसका पालि-पोर्ण निििा सास िे ककर्ा थीं।
(ii) भाग्र्हीि-लुट्टि का भाग्र् शुरू से ही खराब था। बचपि िें िाता-नपता गुजर गए। पत्नी र्ुिािस्था िें ही चल बसी थी।
गाूँि की िहािारी की भेंट उसके दोिों लडके चढ़ गए। इस प्रकार िह सदैि पीनडत रहा।
(iii) साहसी-लुट्टि साहसी था। उसिे इसके बल पर चाूँद बसंह जैरो पहलिाि को चुिौती दी तथा उसे हरार्ा। ‘काला खाूँ’
जैसे पहलिाि को भी नचत कर कदर्ा। िहािारी िें भी िह सारी रात ढोल बजाता था।

171
(iv) संिेदिशील-लुट्टि िें संिेदिा थी। िह अपिी सास पर हुए अत्र्ाचारों को सहि िहीं कर सका और पहलिाि बि गर्ा।
गाूँि िें िहािारी के सिर् निराशा का िाहौल था। ऐसे िें िह रात िें ढोल बजाकर लोगों िें जीिे के नलए उत्साह पैदा
करता था।
6. ‘पहलिाि की ढोलक’ कहािी का प्रतीकाथय स्पष्ट कीनजए।
उिर- र्ह कहािी व्यिस्था के बदलिे के साथ लोक कला और इसके कलाकार के अप्रासंनगक हो जािे को रे खांककत करती
है। राजा साहब के िरते ही िर्ी व्यिस्था िे जन्ि नलर्ा। पुरािे संबंि सिाप्त कर कदए गए। पहलिािी जैसा लोकखेल सिाप्त
कर कदर्ा गर्ा। र्ह ‘भारत’ पर ‘इंनडर्ा’ के छा जािे का प्रतीक है। र्ह व्यिस्था लोक कलाकार को भूखा िरिे पर िजबूर
कर देती है।
7. लुट्टि को गाूँि िापस क्र्ों लौटिा पडा?
उिर- तत्कालीि राजा कु श्ती के शौकीि थे, परन्तु उिकी िृत्र्ु के बाद निलार्त से नशक्षा पाए राजकु िार िे सिा सूँभाली।
उन्होंिे राजकाज से लेकर िहल के तौर-तरीकों िें भी पठरितयि कर कदए। ििोरं जि के साििों िें कु श्ती का स्थाि घुडसिारी
िे ले नलर्ा। अतुः पहलिािों पर राजकीर् खचय का बहािा बिाकर उन्हें जिाब दे कदर्ा गर्ा। इस कारण लुट्टि को गाूँि
िापस लौटिा पडा।
8. पहलिाि के बेटों की िृत्र्ु पर गाूँििालों की नहम्ित क्र्ों टूट गई?
उिर- पहलिाि के दोिों बेटे गाूँि िें िै ली िहािारी की चपेट िें आकर चल बसे। इस घटिा से गाूँििालों की नहम्ित टूट
गई क्र्ोंकक िे पहलिाि को अपिा सहारा िािते थे। अब उन्हें लगा कक पहलिाि अंदर से टूट जाएगा तथा उिकी सहार्ता
करिे िाला कोई िहीं रहेगा।
9. ‘पहलिाि की ढोलक; कहािी िें ककस प्रकार पुरािी व्यिस्था और िई व्यिस्था के टकराि से उत्पन्न सिस्र्ा को व्यस्त
ककर्ा गर्ा है? नलनखए।
उिर- ‘पहलिाि की ढोलक’ कहािी िें पुरािी व्यिस्था और िई व्यिस्था के टकराि से उत्पन्न सिस्र्ा र्ह है-
(i) पुरािी व्यिस्था िें कलाकारों और पहलिािों को राजाओं का आश्रर् एिं संरक्षण प्राप्त था। िे शाही खचे पर जीनित रहते
थे, पर िई व्यिस्था िें ऐसा ि था।
(ii) पुरािी व्यिस्था िें राजदरबार और जिता द्वारा इि कलाकारों को िाि-सम्िाि कदर्ा जाता था, पर िई व्यिस्था िें
उन्हें सम्िाि देिे का प्रचलि ि रहा।
पाठ पर आिाठरत अन्र् प्रश्नोिर
1. लुट्टि को पहलिाि बििे की प्रेरणा कै से निली?
उिर- लुट्टि जब िौ साल का था तो उसके िाता-नपता का देहांत हो गर्ा था। सौभाग्र् से उसकी शादी हो चुकी थी। अिाथ
लुट्टि को उसकी निििा सास िे पाल-पोसकर बडा ककर्ा। उसकी सास को गाूँि िाले परे शाि करते थे। लोगों से बदला लेिे
के नलए उसिे पहलिाि बििे की ठािी। िारोपण दूि पीकर, कसरत कर उसिे अपिा बदि गठीला और ताकतिर बिा
नलर्ा। कु श्ती के दाूँिपेंच सीखकर लुट्टि पहलिाि बि गर्ा।
2. रात के भर्ािक सन्नाटे िें लुट्टि की ढोलक क्र्ा कठरश्िा करती थी?

172
उिर- रात के भर्ािक सन्नाटे िें लुट्टि की ढोलक िहािारी से जूझते लोगों को नहम्ित बूँिाती थी। ढोलक की आिाज से
रात की निभीनर्का और सन्नाटा कि होता था। िहािारी से पीनडत लोगों की िसों िें नबजली-सी दौड जाती थी, उिकी
आूँखों के साििे दंगल का दृश्र् साकार हो जाता था और िे अपिी पीडा भूल खुशी-खुशी िौत को गले लगा लेते थे। इस
प्रकार ढोल की आिाज, बीिार-िृतप्रार् गाूँििालों की िसों िें संजीििी शनि को भर बीिारी से लडिे की प्रेरणा देती थी।
3. लुट्टि िे सिायनिक नहम्ित कब कदखाई?
उिर- लुट्टि बसंह िे सिायनिक नहम्ित तब कदखाई जब दोिों बेटों की िृत्र्ु पर िह रोर्ा िहीं बनल्क नहम्ित से काि लेकर
अके ले उिका अंनति संस्कार ककर्ा। र्ही िहीं, नजस कदि पहलिाि के दोिों बेटे िहािारी की चपेट िें आकर िर गए पर
उस रात को भी पहलिाि ढोलक बजाकर लोगों को नहम्ित बूँिा रहा था। श्र्ाििगर के दंगल िें पूरा जिसिुदार् चाूँद
बसंह के पक्ष िें था चाूँद बसंह को हराते सिर् लुट्टि िे नहम्ित कदखाई और नबिा हताश हुए दंगल िें चाूँद बसंह को नचत कर
कदर्ा।
4. लुट्टि बसंह राज पहलिाि कै से बिा?
उतर- श्र्ाििगर के राजा कु श्ती के शौकीि थे। उन्होंिे दंगल का आर्ोजि ककर्ा। पहलिाि लुट्टि नसह भी दंगल देखिे
पहुूँचा। चांदबसंह िािक पहलिाि जो शेर के बच्चे के िाि से प्रनसद्ध था, कोई भी पहलिाि उससे नभडिे की नहम्ित िहीं
करता था। चाूँदबसंह अखाडे िें अके ला गरज रहा था। लुट्टि बसंह िे चाूँदबसंह को चुिौती दे दी और चाूँदबसंह से नभड गर्ा।
ढोल की आिाज सुिकर लुट्टि की िस-िस िें जोश भर गर्ा। उसिे चाूँदबसंह को चारों खािे नचत कर कदर्ा। राजासाहब िे
लुट्टि की िीरता से प्रभानित होकर उसे राजपहलिाि बिा कदर्ा।
5. पहलिाि की अंनति इच्छा क्र्ा थी?
उिर- पहलिाि की अंनति इच्छा थी कक उसे नचता पर पेट के बल नलटार्ा जाए क्र्ोंकक िह बजंदगी िें कभी नचत िहीं हुआ
था। उसकी दूसरी इच्छा थी कक उसकी नचता को आग देते सिर् ढोल अिश्र् बजार्ा जाए।
6. ढोल की आिाज और लुट्टि के दाूँिपेंच िें संबि
ं बताइए।
उिर- ढोल की आिाज और लुट्टि के दाूँिपेंच िें संबंि
चट िा, नगड िा -आजा नभड जा।
चटाक चट िा -उठाकर पटक दे।
चट नगड िा - ित डरिा।
िाक नििा नतरकट नतिा - दाूँि काटो, बाहर हो जाओ।
नििा नििा, निक नििा -नचत करो

173
पाठ सं-17
नशरीर् के िू ल
आचार्य हजारी प्रसाद नद्विेदी
पाठ का सारांश-
लेखक नशरीर् के पेडों के सिूह के बीच बैठकर लेख नलख रहा है। जेठ की गरिी से िरती जल रही है। ऐसे सिर् िें नशरीर्
ऊपर से िीचे तक िू लों से लदा है। कि ही िू ल गरिी िें नखलते हैं। अिलतास के िल पंद्रह-बीस कदि के नलए िू लता है।
कबीरदास को इस तरह दस कदि िू ल नखलिा पसंद िहीं है। नशरीर् िें िू ल लंबे सिर् तक रहते हैं। िे िसंत िें नखलते हैं
तथा भादों िाह तक िू लते रहते हैं। भीर्ण गिी और लू िें र्ही नशरीर् अििूत की तरह जीिि की अजेर्ता का िंि पढ़ाता
रहता है। नशरीर् के िृक्ष बडे ि छार्ादार होते हैं| पुरािे रईस िंगल-जिक िृक्षों िें नशरीर् को भी लगार्ा करते थे ।
िात्स्र्ार्ि कहते है कक बगीचे के घिे छार्ादार िृक्षों िें ही झूला लगािा चानहए। पुरािे कनि बकु ल के पेड िें झूला डालिे
के नलए कहते हैं, परं तु लेखक नशरीर् को भी उपर्ुि िािता है। नशरीर् की डालें कु छ किज़ोर होती हैं, परं तु उस पर
झूलिेिानलर्ों का िज़ि भी कि ही होता है। नशरीर् के िू ल को संस्कृ त सानहत्र् िें कोिल िािा जाता है। कानलदास िे
नलखा कक नशरीर् के िू ल के िल भौंरों के पैरों का दबाि सहि कर सकता है, पनक्षर्ों का िहीं। इसके आिार पर भी इसके
िू लों को कोिल िािा जािे लगा पर इसके िलों की िज़बूती िहीं देखते। तभी स्थाि छोडते हैं, जब उन्हें िककर्ा कदर्ा
जाता है। लेखक को उि िेताओं की र्ाद आती है जो सिर् को िहीं पहचािते तथा िक्का देिे पर ही पद को छोडते हैं। सोचता
हूं कक पुरािे की र्ह अनिकार-नलप्सा क्र्ों िहीं सिर् रहते साििाि हो जाती। िृद्धािस्था ि िृत्र्ु-र्े जगत के सत्र् है।
नशरीर् के िू लो को भी सिझिा चानहए कक झडिा निनित है, परं तु सुिता कोई िहीं। िृत्र्ु का देिता निरं तर कोडे चला
रहा है। उसिें किज़ोर सिाप्त हो जाते हैं। प्राणिारा ि काल के बीच संघर्य चल रहा है। नहलिे-डु लिे िाले कु छ सिर् के
नलए बच सकते हैं। झडते ही िृत्र्ु निनित है। लेखक को नशरीर् अििूत की तरह लगता है। िह हर नस्थनत िें ठीक रहता
है। भर्ंकर गरिी िें भी र्ह अपिे नलए जीिि-रस ढू ूँढ़ लेता है। एक ििस्पनतशास्त्री िे बतार्ा कक र्ह िार्ुिड
ं ल से अपिा
रस खींचता है तभी तो भंर्कर लू िें ऐसे सुकुिार के सर उगा सका। अििूतों के िुह
ूँ से भी संसार की सबसे सरस रचिाएूँ
निकली हैं| कबीर ि कानलदास उसी श्रेणी के हैं। जो कनि अिासि िहीं रह सका, जो िक्कड िहीं बि सका, नजससे लेखा-
जोखा निलता है, िह कनि िहीं है। कणायट-राज की नप्रर्ा निनिका देिी िे ब्रह्मा बाल्िीकक ि व्यास को ही कनि िािा।
लेखक का िाििा है कक नजसे कनि बििा है, उसका िक् कड होिा बहुत ज़रूरी है। कानलदास अिासि र्ोगी की तरह
नस्थर-प्रज्ञ, निदग्ि प्रेिी थे। उिका एक-एक श्लोक िुग्ि करिे िाला है। शकुं तला का िणयि कानलदास िे ककर्ा। राजा दुपर्ंत
िे भी शंकुतला का नचि बिार्ा, परं तु उन्हें हर बार इसिें किी िहसूस होती थी। कािी देर बाद उन्हें सिझ आर्ा कक
शंकुतला के कािों िें नशरीर् का 'िू ल लगािा भूल गए हैं। कानलदास सौंदर्य के बाहरी आिरण को भेदकर उसके भीतर
पहुूँचिे िें सिथय थे। िे सुख-दुख दोिों िें भाि-रस खींच नलर्ा करते थे। ऐसी प्रकृ नत सुनििािंदि पंत ि रिींद्रिाथ िें भी
थी। नशरीर् पक्के अििूत को तरह लेखक के िि िें भाि तरं गें उठा देता है। िह आग उगलती िूप िें भी सरस बिा रहता है।
आज देश िें िारकाट, आगजिी, लूटपाट आकद का बिंडर है। ऐसे िें क्र्ा नस्थर रहा जा सकता है? नशरीर् रह सका है।
गाूँिी जी भी रह सके थे। ऐसा तभी संभि हुआ है जब िे िार्ुिंडल से रस खींचकर कोिल ि कठोर बिे। लेखक जब नशरीर्
की ओर देखता है तो हूक उठती है--हार्, िह अििूत आज कहाूँ है!
174
शब्दाथय-
िठरिी- पृथ्िी। नििूि
य - घुआूँरनहत। कर्णयकार- किेर र्ा कनिर्ार िािक िू ल। आरग्िि- अिलतास िािक िू ल। लहकिा-
नखलिा। खंखड- ठूूँ ठ, शुपक। दुिदार- पूूँछिाले। लंडूरे- पूूँछ निहीि। निघायत- नबिा आघात र्ा बािा के । उिस- गिी। लू- गिय
हिाएूँ। कालजर्ी- सिर् को परानजत करिे िाला। अििूत- सांसाठरक िोहिार्ा से निरि िािि। नितांत- पूरी तरह से।
नहल्लोल- लहर। अठरष्ठ- रीठा िािक िृक्ष। पुन्नाग- एक बडा सदाबहार िृक्ष। घििसृण- गहरा नचकिा। हरीनतिा-
हठरर्ाली। पठरिेनष्टत- ढूँका हुआ। कािसूि- िात्स्र्ार्ि के ग्रंथ का िाि। बकु ल- िौलनसरी का िृक्ष। दोला- झूला। तुंकदल-
तोंद िाला। परिती- बाद के । िियठरत- पिों की खडखडाहट की ध्िनि से र्ुि। जीणय- िटा-पुरािा। उध्ियिुखी- प्रगनत को
ओर। दुरंत- नजसका नििाश होिा िुनश्कल है। सियव्यापक- हर जगह व्याप्त। कालानि- िृत्र्ु की आग। हज़रत- श्रीिाि,
(व्यंग्र्ात्िक स्िर)। अिासक् त- निर्र्-भोग से ऊपर उठा हुआ। अिानिल- स्िच्छ। उन्िुि- स्ितंि। िक्कड- सांसाठरक िोह
से िुि। कणायट- प्राचीिकाल का किायटक राज्र्। उपालम्भ- उलाहिा। नस्थरप्रज्ञता- अनिचल बुनद्ध की अिस्था। निदग्ि-
अच्छी तरह तपा हुआ। िुग्ि- आिंकदत। नििूढ़- आिर्यचककत। कापयण्र्- कं जूसी। गण्डस्थल- गाल। शरच्चंद्र- शरद ऋतु का
चंद्रिा। शुभ्र- श्वेत। िृणाल-किलिाल। कृ नपिल- ककसाि। निदयनलत- भलीभाूँनत निचोडा हुआ। ईक्षुदण्ड- गन्ना । अभ्रभेदी-
गगिचुंबी। गतंव्य- लक्ष्र्। खूि-खच्चर- लडाई-झगडा। हूक- िेदिा।
िुख्र् बबंद-ु
(i) आचार्र् हजारी प्रसाद नद्विेदी द्वारा नलनखत निबंि कल्पलता से उद्िृत है। इसिें लेखक, आूँिी, लू और गिी की प्रचंडता
िें भी अििूत की तरह अनिचल होकर कोिल पुपपों का सौंदर्य नबखेर रहे है।
(ii) नशरीर् के िाध्र्ि से ििुपर् की अजेर् नजजीनिर्ा और तुिुल कोलाहल कलह के बीच िैर्प
य ूियक, लोक के साथ बचंतारत,
कतयव्यशील बिे रहिे को िहाि िाििीर् िूल्र् के रूप िें स्थानपत करता है| ऐसी भाििारा िें बहते हुए उसे देह-बल के
उपर आत्िबल का िहत्त्ि नसद्ध करिे िाली इनतहास-निभूनत गाूँिी जी की र्ाद हो आती है तो िह गाूँिीिादी िूल्र्ों के
अभाि की पीडा से भी कसिसा उठता है।
(iii) निबंि की शुरूआत िें लेखक नशरीर् पुपप की कोिल सुंदरता के जाल बुिता है, किर उसे भेदकर उसके इनतहास िें और
किर उसके जठरए िध्र्काल के सांस्कृ नतक इनतहास िें पैठता है, किर तत्कालीि जीिि ि सािंती िैभि-निलास को साििािी
से उके रते हुए उसका खोखलापि भी उजागर करता है। िह अशोक के िू ल के भूल जािे की तरह ही नशरीर् को िज़रअंदाज
ककए जािे की सानहनत्र्क घटिा से आहत है।
(iv) इस निबंि िें लेखक को सच्चे कनि का तत्ि-दशयि भी होता है। उसका िाििा है कक र्ोगी की अिासि शून्र्ता और
प्रेिी की सरस पूणयता एक साथ उपलब्ि होिा सत्कनि होिे की एकिाि शतय है। ऐसा कनि ही सिस्त प्रकृ नत और िाििीर्
िैभि िें रिकर भी चुकता िहीं और निरंतर आगे बढ़ते जािे की प्रेरणा देता है।
पठठत गद्ांश-01
एक बार िुझे िालूि होता है कक र्ह नशरीर् एक अद्भुत अििूत है। दुख हो र्ा सुख, िह हार िहीं िािता। ि ऊिों का
लेिा, ि िािो का देिा। जब िरती और आसिाि जलते रहते हैं, तब भी र्ह हज़रत ि जािे कहाूँ से अपिा रस खींचते रहते
हैं। िौज िें आठों र्ाि िस्त रहते है। एक ििस्पनतशास्त्री िे िुझे बतार्ा है कक र्ह उस श्रेणी का पेड है जो िार्ुिड
ं ल से
अपिा रस खींचता है। जरूर खींचता होगा। िहीं तो भर्ंकर लू के सिर् इतिे कोिल तंतज
ु ाल और ऐसे सुकुिार के सर को
175
कै से उगा सकता था ? अििूतों के िुह
ूँ से ही संचार की सबसे सरस रचिाएूँ निकली हैं। कबीर बहुत-कु छ इस नशरीर् के
सिाि ही थे, िस्त और बेपरिा, पर सरस और िादक। कानलदास भी ज़रूर अिासि र्ोगी रहे होंगे। नशरीर् के िू ल
िक्कडािा िस्ती से ही उपज सकते हैं और ' िेघदूत” का काव्य उसी प्रकार के अिासि अिानिल उन्िुि हृदर् िें उिड सकता
है। जो कनि अिासि िहीं रह सका, जो िक्कड िहीं बि सका, जो ककए-कराए का लेखा-जोखा निलािे िें उलझ गर्ा, िह
भी क्र्ा कनि है?
(क) लेखक िे नशरीर् को क्र्ा संज्ञा दी है?
(i)िादक (ii) अद्भुत अििूत
(iii) िक्कड (iv) अिासि
उिर - (ii) अद्भुत अििूत
(ख) ‘अििूतों के िुह
ूँ से ही संसार की सबसे सरस रचिाएूँ निकली है।’ इसका आशर् है-
(i) िक्कडपि, िस्ती ि अिासनि के कारण सरस रचिा कर सकता है।
(ii) सरल पठरनस्थनत िें रचिा कर सकता है।
(iii) िार्ुिंडल से प्रेठरत होकर रचिा कर सकता है।
(iv) िाििीर् िैभि िें रि कर रचिा कर सकता है।
उिर - (i) िक्कडपि, िस्ती ि अिासनि के कारण सरस रचिा कर सकता है।
(ग) ‘अिासि’ शब्द का अथय क्र्ा है-
(i) भलीभाूँनत निचोडा हुआ (ii) अनिचल बुनद्ध की अिस्था
(iii) निर्र्-भोग से ऊपर उठा हुआ (iv) सांसाठरक िोह से िुि
उिर - (iii) निर्र्-भोग से ऊपर उठा हुआ
(घ) कानलदास की प्रिुख रचिा इििें से कौि सी है?
(i) शकु न्तला (ii) िेघदूत
(iii) नशरीर् के िू ल (iv) अशोक के िू ल
उिर - (ii) िेघदूत
(ङ) कबीरदास जी के संदभय िें कौि सा कथि सत्र् है?
(i) िस्त और बेपरिा, पर सरस और िादक (ii) स्थूल और बाहरी
(iii) सूक्ष्ि और संम्पूणय (iv) अनतक्ि और अभ्रभेदी
उिर - (i) िस्त और बेपरिा, पर सरस और िादक
पठठत गद्ांश-02
नशरीर् के िृक्ष बडे और छार्ादार होते हैं। पुरािे भारत का रईस नजि िंगल-जिक िृक्षों को अपिी िृक्ष-िाठटका की
चारदीिारी के पास लगार्ा करता था, उििें एक नशरीर् भी है। (िृहतसंनहता 55, 13) अशोक, अठरष्ट, पुन्नाग और नशरीर्
के छार्ादार और घििसृण हरीनतिा से पठरिेनष्टत िृक्ष-िाठटका जरूर बडी ििोहर कदखती होगी। िात्सार्ि िे 'कािसूि'
िें बतार्ा है कक िाठटका के सघि छार्ादार िृक्षों की छार्ा िें ही झूला (प्रेंखा दोला) लगार्ा जािा चानहए। र्द्नप पुरािे
176
कनि बकु ल के पेड िें ऐसी दोलाओं को लगा देखिा चाहते थे, पर नशरीर् भी क्र्ा बुरा है। डाल इसकी अपेक्षाकृ त किजोर
जरूरी होती है, पर उसिें झूलिेिानलर्ों का िजि भी तो बहुत ज्र्ादा िहीं होता। कनिर्ों की र्ही तो बुरी आदत है कक
िजि का एकदि ख्र्ाल िहीं करते।
1. गद्ांश के अिुसार नशरीर् के िृक्ष की क्र्ा निशेर्ता होती है?
a. सूक्ष्ि और िलदार b. बडे और छार्ादार
c. िल एिं िू ल निहीि d. हरे और पीले
2. िास्त्र्ार्ि के अिुसार, झुला कहाूँ लगािा चानहए?
a. बगीचे के िजबूत पेडों की डानलर्ों िें b. बगीचे के घिे छार्ादार िृक्षों की छार्ा िें
c. जंगल के निशाल िृक्षों की छार्ा िें d. िदी के ककिारे िृक्षों की छार्ा िें
3. लेखक को कनिर्ों की कौि-सी बात बुरी लगती है?
a. सभी निकल्प सही हैं b. िे प्रकृ नत नचिण उनचत प्रकार िहीं करते
c. उिका अनतशर्ोनि पूणय िणयि करिा d. िे िजि का ख्र्ाल िहीं करते
4. डाल इसकी अपेक्षाकृ त किजोर जरूर होती है पंनि िें इसकी शब्द ककसके नलए प्रर्ुि हुआ है?
a. नशरीर् िृक्ष b. अठरष्ट िृक्ष
c. सभी निकल्प सही हैं d. अशोक िृक्ष
5. पुरािे कनि ककस पेड की डाली पर झूला डालिे की बात करते हैं?
a. नशरीर् के पेड पर b. अशोक के पेड पर
c. पुन्नाग के पेड पर d. बकु ल के पेड पर
6. नशरीर् की डालें कै सी होती हैं?
a. िजबूत b. पतली
c. िोटी d. किजोर
7. नशरीर् की सिािता का उपिाि है:-
a. अशोक b. बकु ल
c. अििूत d. ईश
8. नशरीर् के िू ल पाठ के आिार पर अिलतास ककतिे कदिों के नलए िू लता है?
a. 2 सप्ताह b. 1-2 िहीिे
c. 15-20 कदि d. 4 सप्ताह
9. लेखक िे नशरीर् को ककसकी संज्ञा दी है?
a. सियग्रासी b. कालजर्ी संन्र्ासी की
c. अिासि की d. अलिस्त
उिरिाला
1. (b) बडे और छार्ादार

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2. (b) बगीचे के घिे छार्ादार िृक्षों की छार्ा िें
3. (d) िे िजि का ख्र्ाल िहीं करते
4. (a) नशरीर् िृक्ष
5. (d) बकु ल के पेड पर
6. (d) किजोर
व्याख्र्ा: नशरीर् की डालें कु छ किजोर होती हैं, परं तु उस पर झूलिेिानलर्ों का िजि भी कि ही होता है।
7. (c) अििूत
व्याख्र्ा:लेखक को नशरीर् अििूत की तरह लगता है। र्ह हर नस्थनत िें ठीक रहता है। भर्ंकर गरिी िें भी र्ह अपिे नलए
जीिि-रस ढू ूँढ़ लेता है।
8. (c) 15-20 कदि
व्याख्र्ा:अिलतास के िल पंद्रह-बीस कदि के नलए िू लता है।
9. (b) कालजर्ी संन्र्ासी की
व्याख्र्ा:लेखक िे ऐसा ही कहा है क्र्ोंकक नशरीर् काल के परे र्ोगी की तरह संर्नित है।
िहत्िपूणय प्रश्नोिर
1. कानलदास िे नशरीर् की कोिलता और नद्विेदी जी िे उसकी कठोरता के निर्र् िें क्र्ा कहा है? ‘नशरीर् के िू ल’ पाठ के
आिार पर बताइए।
उिर- कानलदास और संस्कृ त सानहत्र् िे नशरीर् को बहुत कोिल िािा है। कानलदास का कथि कक “पदं सहेत भ्रिरस्र्
पेलिं नशरीर् पुपपं ि पुिुः पतनिणाि्” -नशरीर् पुपप के िल भौंरों के पदों का कोिल दबाि सहि कर सकता है, पनक्षर्ों का
नबलकु ल िहीं। लेककि इससे हज़ारी प्रसाद नद्विेदी सहित िहीं हैं। उिका निचार है कक इसे कोिल िाििा भूल है। इसके
िल इतिे िज़बूत होते हैं कक िए िू लों के निकल आिे पर भी स्थाि िहीं छोडते। जब तक िए िल-पिे निलकर, िककर्ाकर
उन्हें बाहर िहीं कर देत,े तब तक िे डटे रहते हैं। िसंत के आगिि पर जब सारी ििस्थली पुपप-पि से िियठरत होती रहती
है, तब भी नशरीर् के पुरािे िल बुरी तरह खडखडाते रहते हैं।
2. नशरीर् के अििूत रूप के कारण लेखक को ककस िहात्िा की र्ाद आती है और क्र्ों?
उिर- नशरीर् के अििूत रूप के कारण लेखक हजारी प्रसाद नद्विेदी को हिारे राष्ट्रनपता िहात्िा गाूँिी की र्ाद आती है।
नशरीर् तरु अििूत है, क्र्ोंकक िह बाह्य पठरितयि-िूप, िर्ाय, आूँिी, लू सब िें शांत बिा रहता है और पुनपपत पल्लनित
होता रहता है। इसी प्रकार िहात्िा गाूँिी भी िार-काट, अनिदाह, लूट-पाट, खूि-खच्चर के बिंडर के बीच नस्थर रह सके
थे। इस सिािता के कारण लेखक को गाूँिी जी की र्ाद आ जाती है, नजिके व्यनित्ि िे सिाज को नसखार्ा कक आत्िबल,
शारीठरक बल से कहीं ऊपर की चीज़ है। आत्िा की शनि है। जैसे नशरीर् िार्ुिंडल से रस खींचकर इतिा कोिल, इतिा
कठोर हो सका है, िैसे ही िहात्िा गाूँिी भी कठोर-कोिल व्यनित्ि िाले थे। र्ह िृक्ष और िह ििुपर् दोिों ही अििूत हैं।
3. नशरीर् की तीि ऐसी निशेर्ताओं का उल्लेख कीनजए नजिके कारण आचार्य हज़ारी प्रसाद नद्विेदी िे उसे ‘कालजर्ी
अििूत’ कहा है।

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उिर- आचार्य हज़ारी प्रसाद नद्विेदी िे नशरीर् को ‘कालजर्ी अििूत’ कहा है। उन्होंिे उसकी निम्ननलनखत निशेर्ताएूँ बताई
हैं-
(i) िह संन्र्ासी की तरह कठोर िौसि िें बजंदा रहता है।
(ii) िह भीर्ण गरिी िें भी िू लों से लदा रहता है तथा अपिी सरसता बिाए रखता है।
(iii) िह कठठि पठरनस्थनतर्ों िें भी घुटिे िहीं टेकता।
(iv) िह संन्र्ासी की तरह हर नस्थनत िें िस्त रहता है।
4. लेखक िे नशरीर् के िाध्र्ि से ककस द्वंद्व को व्यि ककर्ा है?
उिर- लेखक िे नशरीर् के पुरािे िलों की अनिकार-नलप्सु खडखडाहट और िए पिे-िलों द्वारा उन्हें िककर्ाकर बाहर
निकालिे िें सानहत्र्, सिाज ि राजिीनत िें पुरािी ि िर्ी पीढ़ी के द्वंद्व को बतार्ा है। िह स्पष्ट रूप से पुरािी पीढ़ी ि हि
सब िें िएपि के स्िागत का साहस देखिा चाहता है।
5. ‘नशरीर् के िू ल’ पाठ का प्रनतपाद् स्पष्ट कीनजए।

उिर- र्ह ‘निबन्ि ‘कल्पलता’ से उद्धत है। इसिें लेखक, आूँिी, लू और गरिी की प्रचंडता िें भी अििूत की तरह अनिचल
होकर कोिल पुपपों का सौन्दर्य नबखेर रहे नशरीर् के िाध्र्ि से ििुपर् की अजेर् नजजीनिर्ा और तुिुल कोलाहल कलह के
बीच िैर्यपूियक, लोक के साथ बचंतारत, कतयव्यशील बिे रहिे को िहाि िाििीर् िूल्र् के रूप िें स्थानपत करता है। ऐसी
भाििारा िें बहते हुए उसे देह-बल के ऊपर आत्िबल का िहत्त्ि नसद्ध करिे िाली इनतहास-निभूनत गाूँिी जी की र्ाद हो
आती है तो िह गाूँिीिादी िूल्र्ों के अभाि की पीडा से भी कसिसा उठता है।
निबन्ि की शुरुआत िें लेखक नशरीर् पुपप की कोिल सुंदरता के जाल बुिता है, किर उसे भेदकर उसके इनतहास िें और
किर उसके जठरए िध्र्काल के सांस्कृ नतक इनतहास िें पैठता है, किर तत्कालीि जीिि ि सािंती िैभि-निलास को साििािी
से उके रते हुए उसका खोखलापि भी उजागर करता है िह अशोक के िू ल के भूल जािे की तरह ही नशरीर् को िज़रअंदाज
ककए जािे की सानहनत्र्क घटिा से आहत है। इसी िें उसे सच्चे कनि का तत्ि-दशयि भी होता है। उसका िाििा है कक र्ोगी
की अिासि शून्र्ता और प्रेिी की सरस पूणयता एक साथ उपलब्ि होिा सत्कनि होिे की एकिाि शतय है। ऐसा कनि ही
सिस्त प्राकृ नतक और िाििीर् िैभि िें रिकर भी चुकता िहीं और निरं तर आगे बढ़ते जािे की प्रेरणा देता है।
6. कानलदास-कृ त शकुं तला के सौंदर्य िणयि को िहत्त्ि देकर लेखक ‘सौंदर्य’ को स्त्री को एक िूल्र् के रूप िें स्थानपत करता
प्रतीत होता है। क्र्ा र्ह सत्र् है? र्कद हाूँ, तो क्र्ा ऐसा करिा उनचत है?
उिर- लेखक िे शकुं तला के सौंदर्य का िणयि कर उसे एक स्त्री के नलए आिश्र्क तत्ि स्िीकार ककर्ा है। प्रकृ नत िे स्त्री को
कोिल भाििाओं से र्ुि बिार्ा है। स्त्री को उसके सौंदर्य से ही अनिक जािा गर्ा है, ि कक शनि से। र्ह तथ्र् आज भी
उतिा ही सत्र् है। नस्त्रर्ों का अलंकारों ि िस्त्रों के प्रनत आकर्यण भी र्ह नसद्ध करता है। र्ह उनचत भी है क्र्ोंकक स्त्री प्रकृ नत
की सुकोिल रचिा है। अत: उसके साथ छेडछाड करिा अिुनचत है।
7. ‘ऐसे दुिदारों’ से तो लूँडूरे भले’- इसका भाि स्पष्ट कीनजए।

179
उिर- लेखक कहता है कक दुिदार अथायत् सजीला पक्षी कु छ कदिों के नलए सुंदर िृत्र् करता है, किर दुि गिाकर कु रूप हो
जाते हैं। र्हाूँ लेखक िोर के बारे िें कह रहा हैं। िह बताता है कक सौंदर्य क्षनणक िहीं होिा चानहए। इससे अच्छा तो पूूँछ
कटा पक्षी ही ठीक है। उसे कु रूप होिे की दुगयनत तो िहीं झेलिी पडेगी।
8. निनिका िे ब्रह्मा, िाल्िीकक और व्यास के अनतठरि ककसी को कनि क्र्ों िहीं िािा है?
उिर- कणायट राज की नप्रर्ा निनिका िे के िल तीि ही को कनि िािा है। ब्रह्मा िे िेदों की रचिा की नजसिें ज्ञाि की अथाह
रानश है। िाल्िीकक िे रािार्ण की रचिा की जो भारतीर् संस्कृ नत के िािदंडों को बताता है। व्यास िे िहाभारत की रचिा
की। र्ह अपिी निशालता ि निर्र्-व्यापकता के कारण निश्व के सियश्रेष्ठ िहाकाव्यों िें से एक है। भारत के अनिकतर
सानहत्र्कार इिसे प्रेरणा लेते हैं। अन्र् सानहत्र्कारों की रचिाएूँ प्रेरणास्रोत के रूप िें स्थानपत िहीं हो पाई। अतुः उसिे
ककसी और व्यनि को कनि िहीं िािा।
पाठ पर आिाठरत अन्र् प्रश्नोिर
1. नसद्ध कीनजए कक नशरीर् कालजर्ी अििूत की भाूँनत जीिि की अजेर्ता के िंि का प्रचार करता है?
उिर- नशरीर् कालजर्ी अििूत की भाूँनत जीिि की अजेर्ता के िंि का प्रचार करता है। जब पृथ्िी अनि के सिाि तप
रही होती है िह तब भी कोिल िू लों से लदा लहलहाता रहता है। बाहरी गरिी, िूप, िर्ाय आूँिी, लू उसे प्रभानित िहीं
करती। इतिा ही िहीं िह लंबे सिर् तक नखला रहता है। नशरीर् निपरीत पठरनस्थनतर्ों िें भी िैर्यशील रहिे तथा अपिी
अजेर् नजजीनिर्ा के साथ निस्पृह भाि से प्रचंड गरिी िें भी अनिचल खडा रहता है।
2. आरग्िि (अिलतास) की तुलिा नशरीर् से क्र्ों िहीं की जा सकती?
उिर- नशरीर् के िू ल भर्ंकर गरिी िें नखलते हैं और आर्ाढ़ तक नखलते रहते हैं जबकक अिलतास का िू ल के िल पन्द्रह-
बीस कदिों के नलए नखलता है। उसके बाद अिलतास के िू ल झड जाते हैं और पेड किर से ठूूँ ठ का ठूूँ ठ हो जाता है। अिलतास
अल्पजीिी है। निपरीत पठरनस्थनतर्ों को झेलता हुआ ऊपण िातािरण को हूँसकर झेलता हुआ नशरीर् दीघयजीिी रहता है।
र्ही कारण है कक नशरीर् की तुलिा अिलतास से िहीं की जा सकती।
3. नशरीर् के िलों को राजिेताओं का रूपक क्र्ों कदर्ा िर्ा है?
उिर- नशरीर् के िल उि बूढ़े, ढीठ और पुरािे राजिेताओं के प्रतीक हैं जो अपिी कु सी िहीं छोडिा चाहते। अपिी अनिकार-
नलप्सा के नलए िए र्ुिा िेताओं को आगे िहीं आिे देते। नशरीर् के िए िलों को जबरदस्ती पुरािे िलों को िककर्ािा पडता
है। राजिीनत िें भी िई र्ुिा पीढ़ी, पुरािी पीढ़ी को हराकर स्िर्ं सता सूँभाल लेती है।
4. काल देिता की िार से बचिे का क्र्ा उपार् बतार्ा गर्ा है?
उिर- काल देिता की िार से बचिे का अथय है- िृत्र्ु से बचिा। इसका एकिाि उपार् र्ह है कक ििुपर् नस्थर ि हो।
गनतशील, पठरितयिशील रहे। लेखक के अिुसार नजिकी चेतिा सदा ऊध्ियिुखी (आध्र्ात्ि की ओर) रहती है, िे ठटक जाते
हैं।
5. गाूँिीजी और नशरीर् की सिािता प्रकट कीनजए।
उिर- नजस प्रकार नशरीर् नचलनचलाती िूप, लू िर्ाय और आूँिी िें भी अनिचल खडा रहता है, अिासि रहकर अपिे
िातािरण से रस खींचकर सरस, कोिल बिा रहता है, उसी प्रकार गाूँिी जी िे भी अपिी आूँखों के साििे आजादी के संग्राि

180
िें अन्र्ार्, भेदभाि और बहंसा को झेला। उिके कोिल िि िें एक ओर निरीह जिता के प्रनत असीि करुणा जागी िहीं िे
अन्र्ार्ी शासि के निरोि िें डटकर खडे हो गए।
पाठ सं-18
1.श्रि निभाजि और जानत प्रथा
2.िेरी कल्पिा का आदशय सिाज
लेखक- बाबा साहेब भीिराि आम्बेडकर
श्रि-निभाजि और जानत-प्रथा
पाठ का सारांश- लेखक कहता है कक आज के र्ुग िें भी जानतिाद के पोर्कों की किी िहीं है । सिथयक कहते हैं कक आिुनिक
सभ्र् सिाज कार्य-कु शलता के नलए श्रि-निभाजि को आिश्र्क िािता है । इसिें आपनि र्ह है कक जानत-प्रथा श्रि-
निभाजि के साथ-साथ श्रनिक निभाजि का भी रूप नलए हुए है । श्रि-निभाजि सभ्र् सिाज की आिश्र्कता हो सकती
है, परं तु र्ह श्रनिकों का निनभन्न िगों िें अस्िाभानिक निभाजि िहीं करती। भारत की जानत-प्रथा श्रनिकों के अस्िाभानिक
निभाजि के साथ-साथ निभानजत निनभन्न िगों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊूँच-िीच भी करार देती है । जानत-प्रथा को र्कद
श्रि-निभाजि िाि नलर्ा जाए तो र्ह भी िािि की रुनच पर आिाठरत िहीं है । सक्षि सिाज को चानहए कक िह लोगों
को अपिी रुनच का पेशा करिे के नलए सक्षि बिाए ।
जानत-प्रथा िें र्ह दोर् है कक इसिें ििुपर् का पेशा उसके प्रनशक्षण र्ा उसकी निजी क्षिता के आिार पर ि करके उसके
िाता-नपता के सािानजक स्तर से ककर्ा जाता है । र्ह ििुपर् को जीिि-भर के नलए एक पेशे िें बाूँि देती है । ऐसी दशा
िें उद्ोग-िंिों की प्रकक्र्ा ि तकिीक िें पठरितयि से भूखों िरिे की िौबत आ जाती है । बहंद ू ििय िें पेशा बदलिे की
अिुिनत ि होिे के कारण कई बार बेरोजगारी की सिस्र्ा उभर आती है ।जानत-प्रथा का श्रि-निभाजि ििुपर् की स्िेच्छा
पर निभयर िहीं रहता । इसिें व्यनिगत रुनच ि भाििा का कोई स्थाि िहीं होता । पूिय लेख ही इसका आिार है । ऐसी
नस्थनत िें लोग काि िें अरुनच कदखाते हैं । अत: आर्थयक पहलू से भी जानत-प्रथा हानिकारक है क्र्ोंकक र्ह ििुपर् की
स्िाभानिक प्रेरणा, रुनच ि आत्ि-शनि को दबाकर उन्हें स्िाभानिक निर्िों िें जकडकर निनपक्र् बिा देती है ।
िेरी कल्पिा का आदशय सिाज
सारांश- लेखक का आदशय सिाज स्ितंिता, सिता ि भ्रातृता पर आिाठरत होगा । सिाज िें इतिी गनतशीलता होिी
चानहए कक कोई भी पठरितयि सिाज िें तुरंत प्रसाठरत हो जाए । ऐसे सिाज िें सबका सब कार्ों िें भाग होिा चानहए
तथा सबको सबकी रक्षा के प्रनत सजग रहिा चानहए । सबको संपकय के सािि ि अिसर निलिे चानहए । र्ही लोकतंि है ।
लोकतंि िूलत: सािानजक जीििचर्ाय की एक रीनत ि सिाज के सनम्िनलत अिुभिों के आदाि-प्रदाि का िाि है । इसके
नलए व्यिसार् चुििे की स्ितंिता देिी होती है । इस स्ितंिता के अभाि िें व्यनि ‘दासता’ िें जकडा रहेगा ।
‘दासता’ के िल कािूिी िहीं होती । र्ह िहाूँ भी है जहाूँ कु छ लोगों को दूसरों द्वारा नििायठरत व्यिहार ि कतयव्यों का पालि
करिे के नलए नििश होिा पडता है । सिता के आलोचक कहते हैं कक सभी ििुपर् बराबर िहीं होते । र्ह सत्र् होते हुए भी
िहत्त्ि िहीं रखता क्र्ोंकक सिता असंभि होते हुए भी निर्ािक नसद्धांत है । ििुपर् की क्षिता तीि बातों पर निभयर है –
1. शारीठरक िंश परं परा,

181
2. सािानजक उिरानिकार,
3. ििुपर् के अपिे प्रर्त्न।
इि तीिों दृनष्टर्ों से ििुपर् सिाि िहीं होते, परं तु क्र्ा इि तीिों कारणों से व्यनि से असिाि व्यिहार करिा चानहए ।
असिाि प्रर्त्न के कारण असिाि व्यिहार अिुनचत िहीं है, परं तु हर व्यनि को निकास करिे के अिसर निलिे चानहए ।
लेखक का िाििा है कक उच्च िगय के लोग उिि व्यिहार के िुकाबले िें नििर् ही जीतेंगे क्र्ोंकक उिि व्यिहार का निणयर्
भी संपन्नों को ही करिा होगा । प्रर्ास ििुपर् के िश िें है, परं तु िंश ि सािानजक प्रनतष्ठा उसके िश िें िहीं है । अत: िंश
और सािानजकता के िाि पर असिािता अिुनचत है ।
शब्दाथय-
जीनिकोपाजयि – रोजगार जुटािा। आलोचक – बिंदक, तकय र्ुि सिीक्षक। िज़ि रखिा – िहत्त्िपूणय होिा। तथ्र् –िास्तनिक।
निर्ािक – कदशा देिे िाले। उिरानिकार – पूियजों र्ा नपता से निलिे िाला अनिकार। ज्ञािाजयि – ज्ञाि प्राप्त करिा।
निनशष्टता – अलग पहचाि। सियथा – सब तरह से। बाजी िार लेिा – जीत हानसल करिा । उिि – श्रेष्ठ। कु ल – पठरिार।
ख्र्ानत – प्रनसनद्ध। प्रनतष्ठा – सम्िाि। निपपक्ष – भेदभाि रनहत। तकाज़ा –आिश्र्कता। नितांत – नबलकु ल। औनचत्र् –
उनचत होिा। पाला पडिा – संपकय होिा। व्यिहार्य – जो व्यािहाठरक हो । कसौटी – जाूँच का आिार। निडंबिा – उपहास
का निर्र्। पोर्क – बढ़ािे िाला। सिथयि – स्िीकार। आपनिजिक – परे शािी पैदा करिे िाली बात। अस्िाभानिक – जो
सहज ि हो। करार – सिझौता। दूनर्त – दोर्पूणय। प्रनशक्षण – ककसी कार्य के नलए तैर्ार करिा। निजी – अपिी, व्यनिगत।
दृनष्टकोण – निचार का ढंग। स्तर – श्रेणी, नस्थनत। अिुपर्ुि – उपर्ुि ि होिा। अपर्ायप्त – िाकािी। तकिीक – निनि।
प्रनतकू ल – निपरीत। चारा होिा – अिसर होिा। पैतृक – नपता से प्राप्त। पारं गत – पूरी तरह कु शल। प्रत्र्क्ष – आूँखों के
साििे। गंभीर – गहरे । पूिय लेख – जन्ि से पहले भाग्र् िें नलखा हुआ। उत्पीडि – शोर्ण। नििशतािश – िजबूरी से।
दुभायििा – बुरी िीर्त। निर्ियिाद – नबिा नििाद के । आत्ि-शनि – अंदर की शनि। खेदजिक – दुखदार्क। िीरस गाथा
– उबाऊ बातें। भ्रातृता – भाईचारा। िांनछत – आिश्र्क। संचाठरत – िै लार्ा हुआ। बहुनिनि – अिेक प्रकार। अबाि –
नबिा ककसी रुकािट के । गििागिि – आिा-जािा। स्िािीिता – आजादी।
पठठत गद्ांश- 01
‘जानत-प्रथा के पोर्क, जीिि, शारीठरक-सुरक्षा तथा सम्पनत के अनिकार की स्ितंिता को तो स्िीकार कर लेंग,े परन्तु
ििुपर् के सक्षि एिं प्रभािशाली प्रर्ोग की स्ितन्िता देिे के नलए जल्दी तैर्ार िहीं होगें, क्र्ोंकक इस प्रकार की स्ितन्िता
का अथय होगा अपिा व्यिसार् चुििे की स्ितन्िता ककसी को िहीं है, तो उसका अथय उसे ‘दासता’ िें जकडकर रखिा होगा,
क्र्ोंकक ‘दासता’ के िल कािूिी परािीिता को िहीं कहा जा सकता । ‘दासता’ िें िह नस्थनत भी सनम्िनलत है नजससे कु छ
व्यनिर्ों को दूसरे लोगों के द्वारा नििायठरत व्यिहार एिं कतयव्यों का पालि करिे के नलए नििश होिा पडता है । र्ह नस्थनत
कािूिी परािीिता ि होिे पर भी पाई जा सकती है । उदाहरणाथय, जानत-प्रथा की तरह ऐसे िगय होिा सम्भि है, जहाूँ कु छ
लोगों की अपिी इच्छा के निरुद्ध पेशे अपिािे पडते हैं ।’
1. पोर्क’ शब्द का शानब्दक अथय क्र्ा है?
क. लेिे िाला ख. बढ़ािे िाला
ग. घटािे िाला घ. निटािे िाला
182
2. प्रस्तुत पाठ के अिुसार ककसके पोर्कों की किी िहीं हैं?
क. जानतिाद के ख. भाईचारे के
ग. ििय-निरपेक्ष के घ. सिाजिाद के
3.कु छ व्यनिर्ों को दूसरे लोगों द्वारा नििायठरत व्यिहार और कतयव्यों का पालि करिे के नलए िजबूर करिा क्र्ा कहलाता
हैं?
क. िजबूरी ख. आज्ञा पालि
ग. गरीबी घ. दासता
4. लेखक के अिुसार ‘दासता’ का संबि
ं ककसके िहीं है?
क. सिाज से ख. कािूि से
ग. नशक्षा से घ. िि से
5. लेखक के अिुसार जानत-प्रथा के सिथयक ककस अनिकार को देिे के नलए राजी हो सकते हैं?
क. ििुपर् के सक्षि ि प्रभािशाली प्रर्ोग की स्ितंिता का अनिकार
ख. व्यिसार् ि चुििे की स्ितन्िता का अनिकार
ग. जीिि, शारीठरक सुरक्षा ि सम्पनत का अनिकार
घ. इििें से कोई िहीं
उिरिाला पठठत गद्ांश- 01
1. (ख) बढ़ािे िाला
2. (क) जानतिाद के
3. (घ) दासता
4. (ख) कािूि से
5. (ग) जीिि, शारीठरक सुरक्षा ि सम्पनत का अनिकार
पठठत गद्ांश- 02
श्रि निभाजि, नििर् ही सभ्र् सिाज की आिश्र्कता है, परन्तु ककसी भी सभ्र् सिाज िें श्रि निभाजि की व्यिस्था
श्रनिकों का निनभन्न िगों िें अस्िाभानिक निभाजि िहीं करती । भारत की जानत-प्रथा की एक और निशेर्ता र्ह है कक
र्ह श्रनिकों का अस्िाभानिक निभाजि ही िहीं करती बनल्क निभानजत निनभन्न िगों को एक दूसरे की अपेक्षा ऊूँच-िीच
भी करार देती है, जो कक निश्व के ककसी भी सिाज िें िहीं पार्ा जाता ।’
1. आिुनिक सभ्र् सिाज कार्य कु शलता के नलए ककसे आिश्र्क िािता है?
क. जानत प्रथा को ख. श्रि-निभाजि को
ग. नशक्षा को घ. प्रोत्साहि को
2. कौि-सा सिाज ‘कार्यकुशलता’ के नलए श्रि निभाजि को आिश्र्क िािता है?
क. आकदिािि सिाज ख. असभ्र् सिाज
ग. सभ्र्-आिुनिक सिाज घ. सभी पुराति सिाज
183
3. ककस देश की जानत प्रथा ऊूँच-िीच िें भेदभाि करती है?
क. चीि की ख. अिेठरका की
ग. भारत की घ. इंग्लैण्ड की
4. जानत-प्रथा का श्रि निभाजि ककस प्रकार का है?
क. स्िाभानिक ख. अस्िाभानिक
ग. साथयक घ. निरथयक
5. जानत-प्रथा सिाज िें क्र्ा पैदा करती है?
क. सिािता ख. ऊूँच-िीच का भेदभाि
ग. गरीबी घ. कार्य-कु शलता
उिरिाला
1 (ख) श्रि-निभाजि को
2 (ग) सभ्र्-आिुनिक सिाज
3 (ग) भारत की
4 (ख) अस्िाभानिक
5 (ख) ऊूँच-िीच का भेदभाि
पठठत गद्ांश- 03
‘सिता’ का औनचत्र् र्हीं पर सिाप्त िहीं होता । उसका और भी आिार उपलब्ि है । एक राजिीनतज्ञ पुरुर् का बहुत बडी
जिसंख्र्ा से पाला पडता है । अपिी जिता से व्यिहार करते सिर्, राजिीनतज्ञ के पास ि तो इतिा सिर् होता है ि प्रत्र्ेक
के निर्र् िें इतिी जािकारी ही होती है, नजससे िह सबकी अलग-अलग आिश्र्कताओं तथा क्षिताओं के आिार पर
िांनछत अलग-अलग व्यिहार कर सके । िैसे भी आिश्र्कताओं ि क्षिताओं के आिार पर नभन्न व्यिहार ककतिा भी
आिश्र्क ि औनचत्र्पूणय क्र्ों ि हो, ‘िाििता’ के दृनष्टकोण से सिाज दो िगों ि श्रेनणर्ों िें िहीं बाूँटा जा सकता । ऐसी
नस्थनत िें, राजिीनतज्ञ का अपिे व्यिहार िें एक व्यिहार्य नसद्धांत की आिश्र्कता रहती है और र्ह व्यिहार्य नसद्धांत र्ही
होता है, कक सब ििुपर्ों के साथ सिाि व्यिहार ककर्ा जाए । राजिीनतज्ञ र्ह व्यिहार इसनलए िहीं करता, कक सब लोग
सिाि होते, बनल्क इसनलए कक िगीकरण एिं श्रेणीकरण सम्भि होता ।’
1. ककस पुरुर् का बहुत बडी जिसंख्र्ा से पाला पडता है?
क. राजिीनतक पुरुर् का ख. सािानजक पुरुर् का
ग. आर्थयक पुरुर् का घ. नशनक्षत पुरुर् का
2. सिाज को ककस आिार पर दो िगों और श्रेनणर्ों िें बाूँटिा अिुनचत है?
क. आर्थयक आिार पर ख. िाििता के आिार पर
ग. सािानजक आिार पर घ. राजिीनतक आिार पर
3. ‘सिता’ राजिीनतज्ञ के व्यिहार की एकिाि क्र्ा है?
क. पूूँजी ख. चाल
184
ग. राजिीनत घ. कसौटी
4. बाबा साहेब आंबेडकर िे ककस प्रकार के सिाज की कल्पिा की है?
क. स्ितंि सिाज की ख. सिाि सिाज की
ग. आदशय सिाज की घ. गनतशील सिाज की
5. व्यिहार्य नसदांत के अिुसार राजिीनतज्ञ को-
क. सब ििुपर्ों के साथ सिाि व्यिहार करिा चानहए ।
ख. सब ििुपर्ों के साथ उिकी क्षिताओं के आिार पर व्यिहार करिा चानहए ।
ग. सब ििुपर्ों के साथ उिकी आिश्र्कताओं के आिार पर व्यिहार करिा चानहए ।
घ. सब ििुपर्ों के साथ नभन्न व्यिहार करिा चानहए ।
उिरिाला
1. (क) राजनिनतक पुरुर् का
2. (ख) िाििता के आिार पर
3. (घ) कसौटी
4. (ग) आदशय सिाज की
5. (क) सब ििुपर्ों के साथ सिाि व्यिहार करिा चानहए ।
अथयग्रहण संबि
ं ी प्रश्न
प्रश्न 1: बाबा साहेब भीिराि आंबड
े कर की कल्पिा का सिाज कै सा होगा?
उिर – आंबेडकर का आदशय सिाज स्ितंिता, सिता ि भाईचारे पर आिाठरत होगा । सभी को निकास के सिाि अिसर
निलेंगे तथा जानतगत भेदभाि का िािोनिशाि िहीं होगा। सिाज िें कार्य करिे िाले को सम्िाि निलेगा ।
प्रश्न 2: ििुपर् की क्षिता ककि बातों पर निभयर होती है?
उिर –ििुपर् की क्षिता निम्ननलनखत बातों पर निभयर होती है –
1. शारीठरक िंश-परं परा के आिार पर ।
2. सािानजक परं परा के रूप िें िाता-नपता की प्रनतष्ठा, नशक्षा, ज्ञािाजयि आकद उपलनब्िर्ों के लाभ पर ।
3. ििुपर् के अपिे प्रर्त्न पर ।
प्रश्न 3: लेखक िे जानत-प्रथा की ककि-ककि बुराइर्ों का िणयि ककर्ा हैं?
उिर – लेखक िे जानत-प्रथा की निम्ननलनखत बुराइर्ों का िणयि ककर्ा है –
1. र्ह श्रनिक-निभाजि भी करती है ।
2. र्ह श्रनिकों िें ऊूँच-िीच का स्तर तर् करती है ।
3. र्ह जन्ि के आिार पर पेशा तर् करती है ।
4. र्ह ििुपर् को सदैि एक व्यिसार् िें बाूँि देती है भले ही िह पेशा अिुपर्ुि हो ।
5. र्ह संकट के सिर् पेशा बदलिे की अिुिनत िहीं देती ।
प्रश्न 4: लेखक की दृनष्ट िें लोकतंि क्र्ा है?
185
उिर – लेखक की दृनष्ट िें लोकतंि के िल शासि की एक पद्धनत िहीं है । िस्तुत: र्ह सािूनहक जीििचर्ाय की एक रीनत
और सिाज के सनम्िनलत अिुभिों के आदाि-प्रदाि का िाि है । इसिें र्ह आिश्र्क है कक अपिे सानथर्ों के प्रनत श्रद्धा ि
सम्िाि का भाि हो ।
प्रश्न 5: आर्थयक निकास के नलए जानत-प्रथा कै से बािक है?
उिर – भारत िें जानत-प्रथा के कारण व्यनि को जन्ि के आिार पर निला पेशा ही अपिािा पडता है । उसे निकास के
सिाि अिसर िहीं निलते । जबरदस्ती थोपे गए पेशे िें उिकी अरुनच हो जाती है िे एकाग्रता से कार्य िहीं करते । इस
प्रिृनि से आर्थयक हानि होती है और उद्ोगों का निकास िहीं होता ।
प्रश्न 6: डॉ. आंबेडकर ‘सिता’ को कै सी िस्तु िािते हैं तथा क्र्ों?
उिर – डॉ० आंबेडकर ‘सिता’ को कल्पिा की िस्तु िािते हैं । उिका िाििा है कक हर व्यनि सिाि िहीं होता । िह जन्ि
से ही । सािानजक स्तर के नहसाब से तथा अपिे प्रर्त्नों के कारण नभन्न और असिाि होता है । पूणय सिता एक काल्पनिक
नस्थनत है, परं तु हर व्यनि को अपिी क्षिता को निकनसत करिे के नलए सिाि अिसर निलिे चानहए ।
प्रश्न 7:जानत और श्रि-निभाजि िें बुनिर्ादी अंतर क्र्ा है? ‘श्रि-निभाजि और जानत-प्रथा’ के आिार पर उिर दीनजए ।
उिर – जानत और श्रि निभाजि िें बुनिर्ादी अंतर र्ह है कक –
1. जानत-निभाजि, श्रि-निभाजि के साथ-साथ श्रनिकों का भी निभाजि करती है ।
2. जानत-निभाजि िें श्रि-निभाजि र्ा पेशा चुििे की छू ट िहीं होती जबकक श्रि-निभाजि िें ऐसी छू ट हो सकती है ।
3. जानत-प्रथा निपरीत पठरनस्थनतर्ों िें भी रोजगार बदलिे का अिसर िहीं देती, जबकक श्रि-निभाजि िें व्यनि ऐसा कर
सकता है ।
प्रश्न 8: जानत-प्रथा को श्रि-निभाजि का आिार क्र्ों िहीं िािा जा सकता?
उिर – जानतप्रथा को श्रि निभाजि का ही एक रूप ि िाििे के पीछे डॉ.आंबेडकर के निम्ननलनखत तकय हैं –
1. जानत प्रथा श्रि निभाजि के साथ-साथ श्रनिक निभाजि भी कराती है ।
2. जानत प्रथा िें श्रि निभाजि ििुपर् की रुनच पर आिाठरत िहीं है । र्ह जन्ि पर आिाठरत होता है ।
3. भारत िें जानत प्रथा ििुपर् को जीिि भर के नलए एक पेशे िें बाूँि देती है, भले ही िह पेशा उसके नलए अिुपर्ुि क्र्ों
ि हो ।
प्रश्न 9: जानत-प्रथा भारतीर् सिाज िें बेरोजगारी ि भुखिरी का भी एक कारण कै से बिती रही हैं? क्र्ा र्ह नस्थनत आज
भी हैं?
उिर - भारत िें जानत-प्रथा के कारण व्यनि को जन्ि के आिार पर एक पेशे से बाूँि कदर्ा जाता था । इस निणयर् िें व्यनि
की रुनच, र्ोग्र्ता र्ा कु शलता का ध्र्ाि िहीं रखा जाता था । उस पेशे से गुजारा होगा र्ा िहीं, इस पर भी निचार िहीं
ककर्ा जाता था । इस कारण भुखिरी की नस्थनत आ जाती थी । इसके अनतठरि, संकट के सिर् भी ििुपर् को अपिा पेशा
बदलिे की अिुिनत िहीं दी जाती थी । भारतीर् सिाज पैतृक पेशा अपिािे पर ही जोर देता था । उद्ोग-िंिों की निकास
प्रकक्र्ा ि तकिीक के कारण कु छ व्यिसार्ी रोजगारहीि हो जाते थे । आज भारत की नस्थनत बदल रही है । सरकारी कािूि,
सािानजक सुिार ि निश्वव्यापी पठरितयिों से जानत-प्रथा के बंिि कािी ढीले हुए हैं, परं तु सिाप्त िहीं हुए हैं । आज लोग
अपिी जानत से अलग पेशा अपिा रहे हैं ।

186
प्रश्ि 10: लेखक के ित से ‘दासता’ की व्यापक पठरभार्ा क्र्ा हैं? सिझाइए।
उिर – लेखक के अिुसार, दासता के िल कािूिी परािीिता को ही िहीं कहा जा सकता । ‘दासता’ िें िह नस्थनत भी
सनम्िनलत है । नजससे कु छ व्यनिर्ों को दूसरे लोगों के द्वारा नििायठरत व्यिहार एिं कतयव्यों का पालि करिे के नलए नििश
होिा पडता है ।
प्रश्न 11: आदशय सिाज के तीि तत्िों िें से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक िे अपिे आदशय सिाज िें नस्त्रर्ों को भी सनम्िनलत
ककर्ा हैं अथिा िहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाूँ तक सहित हैं? र्कद िहीं, तो आप क्र्ा शब्द उनचत सिझेंग/े
सिझेगी?
उिर –आदशय सिाज के तीि तत्िों िें से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक िे अपिे आदशय सिाज िें नस्त्रर्ों को भी सनम्िनलत
ककर्ा है । लेखक सिाज की बात कर रहा है और सिाज स्त्री-पुरुर् दोिों से निलकर बिा है । उसिे आदशय सिाज िें हर
आर्ुिगय को शानिल ककर्ा है । ‘भ्रातृता’ शब्द संस्कृ त का शब्द है नजसका अथय है-भाईचारा । र्ह सियथा उपर्ुि है । सिाज
िें भाईचारे के सहारे ही संबंि बिते हैं । सिाज िें भाईचारे के कारण ही कोई पठरितयि सिाज के एक छोर से दूसरे छोर
तक पहुूँचता है ।
प्रश्न 12: शारीठरक िंश – परं परा और सािानजक उिरानिकार की दृनष्ट से ििुपर्ों िें असिािता संभानित रहिे के बािजूद
‘सिता’ को एक व्यिहार्य नसद्धांत िाििे का आग्रह क्र्ों करते हैं? इसके पीछे उिके क्र्ा तकय हैं?
उिर – शारीठरक िंश-परं परा और सािानजक उिरानिकार की दृनष्ट से ििुपर्ों िें असिािता संभानित रहिे के बािजूद
डॉ.आंबेडकर ‘सिता’ को एक व्यिहार्य नसद्धांत िाििे का आग्रह करते हैं क्र्ोंकक सिाज को अपिे सभी सदस्र्ों से अनिकति
उपर्ोनगता तभी प्राप्त हो सकती है जब उन्हें आरं भ से ही सिाि अिसर एिं सिाि व्यिहार उपलब्ि कराए जाएूँ । उिका
तकय है कक उिि व्यिहार के हक िें उच्च िगय बाजी िार ले जाएगा । अत: सभी व्यनिर्ों के साथ सिाि व्यिहार करिा
चानहए।

187
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पाठ सं-01
नसल्िर िैबडंग
ििोहर श्र्ाि जोशी
पाठ का सार
र्ह लंबी कहािी लेखक की अन्र् रचिाओं से कु छ अलग कदखाई देती है। आिुनिकता की ओर बढ़ता हिारा सिाज एक ओर
कई िई उपलनब्िर्ों को सिेटे हुए है तो दूसरी ओर ििुपर् को ििुपर् बिाए रखिे िाले िूल्र् कहीं नघसते चले गए हैं। जो
हुआ होगा और सिहाउ इं प्रापर के दो जुिले इस कहािी के बीज िाक्र् हैं। जो हुआ होगा िें र्थानस्थनतिाद र्ािी ज्र्ों-का-
त्र्ों स्िीकार लेिे का भाि है तो सिहाउ इं प्रापर िें एक अनिणयर् की नस्थनत भी है। र्े दोिों ही भाि इस कहािी के िुख्र्
चठरि र्शोिर बाबू के भीतर के द्वंद्व हैं। िे इि नस्थनतर्ों का नजम्िेदार भी ककसी व्यनि को िहीं ठहराते। िे अनिणयर् की
नस्थनत िें हैं।
दफ़्तर िें सेक्शि अफसर र्शोिर पंत िे जब आनखरी फाइल का काि पूरा ककर्ा तो दफ़्तर की घडी िें पाूँच बजकर पच्चीस
नििट हुए थे। िे अपिी घडी सुबह-शाि रे नडर्ो सिाचारों से निलाते हैं, इसनलए िे दफ़्तर की घडी को सुस्त बताते हैं।
इिके कारण अिीिस्थ को भी पाूँच बजे के बाद भी रुकिा पडता है। िापसी के सिर् िे ककशि दा की उस परं परा का नििायह
करते हैं नजसिें जूनिर्रों से हल्का िजाक ककर्ा जाता है।
दफ़्तर िें िए अनसस्टेंट चड्ढा की चौडी िोहरी िाली पतलूि और ऊूँची एडी िाले जूते पंत जी को ‘सिहाउ इं प्रापर’ िालूि
होते हैं। उसिे थोडी बदतिीजीपूणय व्यिहार करते हुए पंत जी की चूिद
े ािी का हाल पूछा। पंत जी िे उसे जिाब कदर्ा। किर
चड्ढा िे पंत जी की कलाई थाि ली और कहा कक र्ह पुरािी है। अब तो नडनजटल जापािी घडी ले लो। सस्ती निल जाती
है। पंत जी उसे बताते हैं कक र्ह घडी उन्हें शादी िें निली है। र्ह घडी भी उिकी तरह ही पुरािी हो गई है। अभी तक र्ह
सही सिर् बता रही है।
इस तरह जिाब देिे के बाद एक हाथ बढ़ािे की परं परा पंत जी िे अल्िोडा के रे म्जे स्कू ल िें सीखी थी। ऐसी परं परा ककशि
दा के क्वाटयर िें भी थी जहाूँ र्शोिर को शरण निली थी। ककशि दा कुं आरे थे और पहाडी लडकों को आश्रर् देते थे। पंत जी
जब कदल्ली आए थे तो उिकी उम्र सरकारी िौकरी के नलए कि थी। तब ककशि दा िे उन्हें िैस का रसोइर्ा बिाकर रख
नलर्ा। उन्होंिे र्शोिर को कपडे बििािे ि घर पैसा भेजिे के नलए पचास रुपर्े कदए। इस तरह िे स्िृनतर्ों िें खो गए।
तभी चड्ढा की आिाज से िे जाग्रत हुए और िेिि द्वारा शादी के संबि
ं िें पूछे गए सिाल का जिाब देते हुए कहिे लगे’िाि
लेट िी सी, आई िॉज़ िैठरड ऑि नसक्स्थ िरिरी िाइंटीि फोटी सेिि।’
िेिि िे उन्हें ‘नसल्िर िैबडंग की बिाई दी। र्शोिर खुश होते हुए झेपे और झेपते हुए खुश हुए। किर भी िे इि सब बातों
को अंग्रज
े ों के चोंचले बताते हैं, ककं तु चड्ढा उिसे चार्-िट्ठी ि लड्डू की िाूँग करता है। र्शोिर जी दस रुपर्े का िोट चार्
के नलए देते हैं, परं तु उन्हें र्ह ‘सिहाउ इंप्रॉपर िाइंड’ लगता है। अत: सारे सेक्शि के आग्रह पर भी िे चार् पाटी िें शरीक
िहीं होते है। चडढ़ा के जोर देिे पर िे बीस रुपर्े और दे देते हैं, ककं तु आर्ोजि िें सनम्िनलत िहीं होते। उिके साथ बैठकर
चार्-पािी और गप्प-गप्पाष्टक िें िि बरबाद करिा उिकी परं परा के निरुद्ध है।
र्शोिर बाबू िे इिर रोज नबडला िंकदर जािे और उसके उद्ाि िें बैठकर प्रिचि सुििे र्ा स्िर्ं ही प्रभु का ध्र्ाि लगािे
की िर्ी रीनत अपिाई है। र्ह बात उिकी पत्नी ि बच्चों को अखरती थी। क्र्ोंकक िे बुजग
ु य िहीं थे। नबडला िंकदर से उठकर
189
िे पहाडगंज जाते और घर के नलए साग-सब्जी लाते। इसी सिर् िे निलिे िालों से निलते थे। घर पर िे आठ बजे से पहले
िहीं पहुूँचते थे।
आज र्शोिर जब नबडला िंकदर जा रहे थे तो उिकी िजर ककशि दा के तीि बेडरूि िाले क्वाटयर पर पडी। अब िहाूँ छह-
िंनजला िकाि बि रहा है। उन्हें बहुिंनजली इिारतें अच्छी िहीं लग रही थीं। र्ही कारण है कक उन्हें उिके पद के अिुकूल
एंड्रर्ूजगंज, लक्ष्िीबाई िगर पर डी-2 टाइप अच्छे क्वाटयर निलिे का ऑफर भी स्िीकार्य िहीं है और िे र्हीं बसे रहिा
चाहते हैं। जब उिका क्वाटयर टू टिे लगा तब उन्होंिे शेर् क्वाटयर िें से एक अपिे िाि अलाट करिा नलर्ा। िे ककशि दा की
स्िृनत के नलए र्हीं रहिा चाहते थे।
नपछले कई िर्ों से र्शोिर बाबू का अपिी पत्नी ि बच्चों से हर छोटी-बडी बात पर ितभेद होिे लगा है। इसी िजह से उन्हें
घर जल्दी लौटिा अच्छा िहीं लगता था। उिका बडा लडका एक प्रिुख निज्ञापि संस्था िें िौकरी पर लग गर्ा था। र्शोिर
बाबू को र्ह भी ‘सिहाउ’ लगता था क्र्ोंकक र्ह कं पिी शुरू िें ही डेढ़ हजार रुपर्े प्रनतिाह िेति देती थी। उन्हें कु छ गडबड
लगती थी। उिका दूसरा बेटा आई०ए०एस० की तैर्ारी कर रहा था। उसका एलाइड सर्ियसज
े िें ि जािा भी उिको अच्छा
िहीं लगता। उिका तीसरा बेटा स्कॉलरनशप लेकर अिेठरका चला गर्ा। उिकी एकिाि बेटी शादी से इिकार करती है।
साथ ही िह डॉक्टरी की उच्चति नशक्षा के नलए अिेठरका जािे की ििकी भी देती है। िे अपिे बच्चों की तरक्की से खुश हैं,
परं तु उिके साथ सािंजस्र् िहीं बैठा पाते।
र्शोिर की पत्नी संस्कारों से आिुनिक िहीं है, परं तु बच्चों के दबाि से िह िॉडिय बि गई है। शादी के सिर् भी उसे संर्ि

पठरिार का दबाि झेलिा पडा था। र्शोिर िे उसे आचार-व्यिहार के बंििों िें रखा। अब िह बच्चों का पक्ष लेती है तथा
खुद भी अपिी सहूनलर्त के नहसाब से र्शोिर की बातें िाििे की बात कहती है। र्शोिर उसे ‘शािर्ल बुकढ़र्ा’, ‘चटाई
का लहूँगा’ र्ा ‘बूढ़ी िुह
ूँ िुह
ूँ ासे, लोग करें तिासे’ कहकर उसके निद्रोह का िजाक उडाते हैं, परं तु िे खुद ही तिाशा बिकर
रह गए। ककशि दा के क्वाटयर के साििे खडे होकर िे सोचते हैं कक िे शादी ि करके पूरा जीिि सिाज को सिर्पयत कर देते
तो अच्छा होता।
र्शोिर िे सोचा कक ककशि दा का बुढ़ापा कभी सुखी िहीं रहा। उिके तिाि सानथर्ों िे िकाि ले नलए। ठरटार्रिेंट के
बाद ककसी िे भी उन्हें अपिे पास रहिे की पेशकश िहीं की। स्िर्ं र्शोिर भी र्ह पेशकश िहीं कर पाए क्र्ोंकक िे शादीशुदा
थे। ककशि दा कु छ सिर् ककरार्े के िकाि िें रहे और किर अपिे गाूँि लौट गए। सालभर बाद उिकी िृत्र्ु हो गई। उन्हें
कोई बीिारी भी िहीं हुई थी। र्शोिर को इसका कारण भी पता िहीं। िे ककशि दा की र्ह बात र्ाद रखते थे कक नजम्िेदारी
पडिे पर हर व्यनि सिझदार हो जाता है।
िे िि-ही-िि र्ह स्िीकार करते थे कक दुनिर्ादारी िें उिके बीिी-बच्चे अनिक सुलझे हुए हैं, परं तु िे अपिे नसद्धांत िहीं
छोड सकते। िे िकाि भी िहीं लेंगे। ककशि दा कहते थे कक िूरख लोग िकाि बिाते हैं, सर्ािे उििें रहते हैं। ठरटार्रिेंट
होिे पर गाूँि के पुश्तैिी घर चले जाओ। िे इस बात को आज भी सही िािते हैं। उन्हें पता है कक गाूँि का पुश्तैिी घर टूट-
िू ट चुका है तथा उस पर अिेक लोगों का हक है। उन्हें लगता है कक ठरटार्रिेंट से पहले कोई लडका सरकारी िौकरी िें आ
जाएगा और क्वाटयर उिके पास रहेगा। ऐसा ि होिे पर क्र्ा होगा, इसका जिाब उिके पास िहीं होता।
नबडला िंकदर के प्रिचिों िें उिका िि िहीं लगा। उम्र ढलिे के साथ ककशि दा की तरह रोज िंकदर जािे, संध्र्ा-पूजा करिे
और गीता-प्रेस गोरखपुर की ककताबें पढ़िे का र्त्न करिे लगे। िि के निरोि को भी िे अपिे तकों से खत्ि कर देते हैं। गीता

190
के पाठ िें ‘जिादयि’ शब्द सुििे से उन्हें अपिे जीजा जिादयि जोशी की र्ाद आई। उिकी नचट्ठी से पता चला कक िे बीिार
है। र्शोिर बाबू अहिदाबाद जािा चाहते हैं, परं तु पत्नी ि बच्चे उिका निरोि करते हैं। र्शोिर खुशी-गि के हर िौके पर
ठरश्तेदारों के र्हाूँ जािा जरूरी सिझते हैं तथा बच्चों को भी िैसा बिािे की इच्छा रखते हैं। ककं तु उस कदि हद हो गई नजस
कदि किाऊ बेटे िे र्ह कह कदर्ा कक “आपको बुआ को भेजिे के नलए पैसे िैं तो िहीं दूग
ूँ ा।”
र्शोिर की पत्नी का कहिा है कक उन्होंिे बचपि िें कु छ िहीं देखा। िाूँ के िरिे के बाद निििा बुआ िे र्शोिर का पालि-
पोर्ण ककर्ा। िैठिक पास करके कदल्ली िें ककशि दा के पास रहे। िे भी कुं िारे थे तथा उन्हें भी कु छ िहीं पता था। अत: िे
िए पठरितयिों से िाककफ िहीं थे। उन्हें िार्ियक प्रिचि सुिते हुए भी पाठरिाठरक बचंति िें डू बा रहिा अच्छा िहीं लगा।
ध्र्ाि लगािे का कार्य ठरटार्रिेंट के बाद ठीक रहता है। इस तरह की तिाि बातें र्शोिर बाबू पैदाइशी बुजुगि
य ार है।

जब तक ककशि दा कदल्ली िें रहे, तब तक र्शोिर बाबू िे उिके पट्टनशपर् और उत्साही कार्यकताय की भूनिका पूरी निष्ठा से
निभाई। उिके जािे के बाद घर िें होली गिािा, रािलीला के नलए क्वाटयर का एक किरा देिा, ‘जन्र्ो पुन्र्ू’ के कदि सब
कु िाऊूँनिर्ों को जिेऊ बदलिे के नलए घर बुलािा आकद कार्य िे पत्नी ि बच्चों के निरोि के बािजूद करते हैं। िे र्ह भी
चाहते हैं कक बच्चे उिसे सलाह लें, परं तु बच्चे उन्हें सदैि उपेनक्षत करते हैं। प्रिचि सुििे के बाद र्शोिर बाबू सब्जी िंडी
गए। िे चाहते थे कक उिके लडके घर का सािाि खुद लाएूँ, परं तु उिकी आपस की लडाई से उन्होंिे इस निर्र् को उठािा
ही बंद कर कदर्ा। बच्चे चाहते थे कक िे इि कािों के नलए िौकर रख लें। र्शोिर को र्ही ‘सिहाउ इं प्रॉपर’ िालूि होता है
कक उिका बेटा अपिा िेति उन्हें दे। क्र्ा िह ज्िाइंट एकाउं ट िहीं खोल सकता था? उिके ऊपर, िह हर काि अपिे पैसे
से करिे की िौंस देता है। घर िें िह तिाि पठरितयि अपिे पैसों से कर रहा है। िह हर चीज पर अपिा हक सिझता है।
सब्जी लेकर िे अपिे क्वाटयर पहुूँच।े िहाूँ एक तख्ती पर नलखा था-िाई०डी० पंत। उन्हें पहले गलत जगह आिे का िोखा
हुआ। घर के बाहर एक कार थी। कु छ स्कू टर, िोटर-साइककलें थीं तथा लोग निदा ले-दे रहे थे। बाहर बरािदे िें रं गीि
कागजों की झालरें ि गुब्बारे लटक रहे थे। उन्होंिे अपिे बेटे को कार िें बैठे ककसी साहब से हाथ निलाते देखा। उिकी सिझ
िें कु छ िहीं आ रहा था। उन्होंिे अपिी पत्नी ि बेटी को बरािदे िें खडा देखा जो कु छ िेिसाबों को निदा कर रही थीं।
लडकी जींस ि बगैर बाूँह का टॉप पहिे हुए थी। पत्नी िे होंठों पर लाली ि बालों िें नखजाब लगार्ा हुआ था। र्शोिर को
र्ह सब ‘सिहाउ इं प्रापर’ लगता था।
र्शोिर चुपचाप घर पहुूँचे तो बडे बेटे िे देर से आिे का उलाहिा कदर्ा। र्शोिर िे शिीली-सी हूँसी हूँसते हुए पूछा कक
हि लोगों के र्हाूँ नसल्िर िैबडंग कब से होिे लगी है? र्शोिर के दूर के भांजे िे कहा, “जबसे तुम्हारा बेटा डेढ़ हजार िहीिे
किािे लगा है, तब से।” र्शोिर को अपिी नसल्िर बैबडंग की र्ह पाटी भी अच्छी िहीं लगी। उन्हें र्ह िलाल था कक सुबह
ऑकफस जाते सिर् तक ककसी िे उिसे इस आर्ोजि की चचाय िहीं की थी। उिके पुि भूर्ण िे जब अपिे नििों-सहर्ोनगर्ों
से र्शोिर बाबू का पठरचर् करिार्ा तो उस सिर् उन्होंिे प्रर्ास ककर्ा कक भले ही िे संस्कारी कु िाऊूँिी हैं तथानप
निलार्ती रीनत-ठरिाज से भी अच्छी तरह पठरनचत होिे का एहसास कराएूँ।
बच्चों के आग्रह पर र्शोिर बाबू अपिी शादी की सालनगरह पर के क काटिे के स्थाि पर जाकर खडे हो गए। किर बेटी के
कहिे पर उन्होंिे के क भी काटा, जबकक उन्होंिे कहा-‘सिहाउ आई डोंट लाइक आल कदस।” परं तु उन्होंिे के क िहीं खार्ा
क्र्ोंकक इसिें अंडा होता है। अनिक आग्रह पर उन्होंिे संध्र्ा ि करिे का बहािा ककर्ा तथा पूजा िें चले गए। आज उन्होंिे

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पूजा िें देर लगाई ताकक अनिकतर िेहिाि चले जाएूँ। र्हाूँ भी उन्हें ककशि दा कदखाई कदए। उन्होंिे पूछा कक ‘जो हुआ
होगा’ से आप कै से िर गए? ककशि दा कह रहे थे कक भाऊ सभी जि इसी ‘जो हुआ होगा’ से िरते हैं चाहे िह गृहस्थ हो
र्ा ब्रहिचारी, अिीर हो र्ा गरीब। शुरू और आनखर िें सब अके ले ही होते हैं।
र्शोिर बाबू को लगता है कक ककशि दा आज भी उिका िागयदशयि करिे िें सक्षि हैं और र्ह बतािे िें भी कक िेरे बीिी-
बच्चे जो कु छ भी कर रहे हैं, उिके निर्र् िें िेरा रिैर्ा क्र्ा होिा चानहए? ककशि दा अके लेपि का राग अलाप रहे थे।
उिका िाििा था कक र्ह सब िार्ा है। जो भूर्ण आज इतिा उछल रहा है, िह भी ककसी कदि इतिा ही अके ला और
असहार् अिुभि करे गा, नजतिा कक आज तू कर रहा है।
इस बीच र्शोिर की पत्नी िे िहाूँ आकर नझडकते हुए पूछा कक आज पूजा िें ही बैठे रहोगे। िेहिािों के जािे की बात सुिकर
िे लाल गिछे िें ही बैठक िें चले गए। बच्चे इस परं परा के सख्त नखलाफ थे। उिकी बेटी इस बात पर बहुत झल्लाई। टेबल
पर रखे प्रेजटें खोलिे की बात कही। भूर्ण उिको खोलता है कक र्ह ऊिी ड्रेबसंग गाउि है। सुबह दूि लािे के सिर् आप
िटा हुआ पुलोिर पहिकर चले जाते हैं, िह बुरा लगता है। बेटी नपता का पाजािा-कु ताय उठा लाई कक इसे पहिकर गाउि
पहिें। बच्चों के आग्रह पर िे गाउि पहि लेते हैं। उिकी आूँखों की कोर िें जरा-सी ििी चिक गई। र्ह कहिा कठठि है कक
उिको भूर्ण की र्ह बात चुभ गई कक आप इसे पहि कर दूि लेिे जार्ा करें । िह स्िर्ं दूि लािे की बात िहीं कर रहा।
शब्दाथय-

वसकिर – रजत, िैसर्ंग – वििाि अनदेखा करना – ध्यान न देना


वनराकरि – समाधान, उपाय वबरादरी – जावत – भाई
परं परा – प्रथा खुराफात – शरारती कायय
बदतमीजी – अवशष्ट व्यििार विरासत – उर्त्रावधकार, बाप दादा से जुर्ी हुई
चूनेदानी – पान खाने िालों का चूना रखने का चीजें
बरतन मौज – आनंद
धृष्टता – अवशष्टता पुश्तैनी – खानदानी
बाबा आदम का जमाना – पुराना समय लोक – संसार
निले पर दिला – जैसे को तैसा बाध्य – मजबूर
ठठाकर – जोर से िंसना बाट – पगर्ंर्ी
चोंचले – आर्ंबरपूिय व्यििार सियथा – पूरी तरि से
माया – धन – दौलत, सांसाटरक मोि लिजा – ढंग, तरीका
चुग्गे भर – पेट भरने लायक मयायदा पुरूष – परं पराओं एिं आस्थाओं को मानने
नगण्य – जो वगनने लायक न िो, न के बराबर िाला
नागिार – अनुवचत, मान्द्य निीं वनष्ठा – आस्था
वनिायत – एकदम दुराग्रि – अनुवचत िठ
गप-गपाष्टक – इधर-उधर की बेकार की बातचीत कु िराम – शोर-शराबा
विरूि – विपरीत मतयबा – बार
प्रिचन – धार्मयक व्याख्यान वखजाब – बालों को काला करने का पदाथय
कफकरा – िाक्यांश आमादा – तत्पर िोना
उपेक्षा – वतरस्कार का भाि रिैया – व्यििार
तरफदारी – पक्ष लेना भव्य – सुंदर
वजठानी – पवत के बर्े भाई की पत्नी अनमनी – उदासा – भरी
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ढोंग – ढकोसला, आर्ंबरपूिय आचरि ना नुकुर करना – आनाकानी करना
आचरि- व्यििार वमसाल – उदािरि
बहुनिकल्पात्िक प्रश्ि
1.िई पीढ़ी का रिैर्ा पाठ िें कै सा है?
(क) असंिेदिशील (ख) संिेदिशील
(ग) सहािुभूनतपूणय (घ) सहर्ोगात्िक
2. कहािी ‘नसल्िर िैबडंग’ िें ककशि दा की िृत्र्ु के संदभय िें ‘जो हुआ होगा’ से कहािीकार का क्र्ा तात्पर्य रहा है?
(क) लेखक िृत्र्ु से बहुत दुखी है (ख) लेखक को िृत्र्ु का कारण पता है
(ग) लेखक िृत्र्ु के कारण से अपठरनचत है (घ) लेखक को िृत्र्ु से कोई अन्तर िहीं पडता है l
3. ककशोर दा के ठरटार्र होिे पर र्शोिर बाबू उिकी सहार्ता क्र्ों िहीं कर पाए थे?
(क) र्शोिर बाबू की पत्नी ककशि दा से िाराज थी
(ख) र्शोिर बाबू के घर िें ककशि दा के नलए स्थाि का अभाि था
(ग) र्शोिर बाबू का अपिा पठरिार था नजसे िे िाराज िहीं करिा चाहते थे
(घ) ककशि दा को र्शोिर बाबू िे अपिे घर िें स्थाि देिा चाहा था नजससे ककशि दा िे स्िीकार िहीं ककर्ा
4. कहािी ‘नसल्िर िैबडंग’ के अिुसार –“र्शोिर बाबू की पत्नी सिर् के साथ ढल सकिे िें सिल होती हैं लेककि र्शोिर
बाबू असिल रहते हैं ।” र्शोिर बाबू की असिलता का क्र्ा कारण था?
(क) ककशि दा उन्हें भडकाते थे (ख) पत्नी बच्चों से अनिक प्रेि करती थी
(ग) पीढ़ी के अन्तराल के कारण (घ) िे पठरितयि को सहजता से स्िीकार िहीं कर पाते थे
5. िकाि के निर्र् िें ककशिदा की कौिसी उनि र्शोिर बाबू को जूँचती थी?
(क) अपिा िकाि होिा ही चानहए (ख) िूरख लोग िकाि बिाते हैं, सर्ािे उििें रहते हैं
(ग) सरकारी क्वाटयर सरकारी ही होता है (घ) इििें से कोई िहीं
6. र्शोिर बाबू िे ककस स्कू ल से िैठिक की परीक्षा पास की थी?
(क) सरस्िती निद्ालर् (ख) रे म्जे स्कू ल, अल्िोडा
(ग) नशपर्गण निद्ालर् (घ) अन्र्
7. र्शोिर पंत जब कदल्ली आए थे तब उन्हें िौकरी ककसिे कदलिाई?
(क) ककशिदा िे (ख) शिाय िे
(ग) ककसी िे िहीं (घ) अन्र्
8. र्शोिर बाबू का नििाह कब हुआ था?
(क) 6 िरिरी, 1947 (ख) 6 िरिरी, 1946
(ग) 5 िरिरी, 1947 (घ) 6 िरिरी, 1945
9. ककशिदा िे अपिा जीिि ककसके िाि कर कदर्ा था?
(क) पठरिार के िाि (ख) सिाज के िाि

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(ग) दोस्तों के िाि (घ) अन्र्
10. र्शोिर बाबू ककस िंिालर् िें काि करते थे?
(क) निि िंिालर् (ख) गृह िंिालर्
(ग) रक्षा िंिालर् (घ) खेल िंिालर्
11. र्शोिर बाबू के ककतिे बेटे थे?
(क) दो बेटे (ख) तीि बेटे
(ग) चार बेटे (घ) इििें से कोई भी िहीं
12.र्शोिर बाबू के बडे बेटे का िाि क्र्ा था?
(क) जिादयि (ख) नगरीश
(ग) भूर्ण (घ) इििें से कोई भी िहीं
13. ककशि दा का पूरा िाि क्र्ा था?
(क) कृ पण पांडे (ख) कृ पणािंद पांडे
(ग) ककशि पांडे (घ) उि िें से कोई भी िहीं
14. र्शोिर बाबू की बेटी क्र्ा करिा चाहती थी?
(क) अिेठरका जाकर इंजीनिर्ररं ग की पढ़ाई (ख) अिेठरका जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई
(ग) इंग्लैंड जाकर इंजीनिर्ररंग की पढ़ाई (घ) इंग्लैंड जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई
15. र्शोिर बाबू के नििाह के पिात् उिके क्वाटयर िें उिके साथ और कौि रहता था?
(क) र्शोिर बाबू के ताऊ जी (ख) र्शोिर बाबू के नपताजी
(ग) र्शोिर बाबू के चाचा जी (घ) उपर्ुयि िें से कोई भी िहीं
16. र्शोिर बाबू का व्यनित्ि ककससे प्रभानित था?
(क) ककशिदा से (ख) अपिे ताऊ जी से
(ग) अपिे नपताजी से (घ) उपर्ुयि िें से कोई भी िहीं
17. र्शोिर बाबू की पत्नी उिसे िाराज क्र्ों रहती थी?
(क) नििाह के पिात् संर्ुि पठरिार िें रहिे के कारण
(ख) नििाह के पिात् बंकदशों के कारण
(ग) ििनििानहता पर पुरािे निर्ि लागू होिे के कारण
(घ) उपर्ुयक्त सभी
18. आप ‘नसल्िर िैबडंग’ कहािी की िूल संिद
े िा ककसे कहेंग?

(क) हानशए पर िके ले जाते िाििीर् िूल्र् (ख) पीढ़ी का अन्तराल
(ग) पािात्र् संस्कृ नत का प्रभाि (घ) उपर्ुयि िें से कोई भी िहीं
19. र्शोिर बाबू के बेटे भूर्ण िे उन्हें उिकी शादी की 25 िीं िर्यगाूँठ पर क्र्ा उपहार कदर्ा?
(क) कु ताय पजािा (ख) ऊिी ड्रेबसंग गाउि

194
(ग) आिुनिक घडी (घ) इििें से कु छ भी िहीं
20. र्शोिर बाबू कहाूँ के रहिे िाले हैं?
(क) कु िाऊूँ प्रदेश (ख) गढ़िाल प्रदेश
(ग) पंजाब (घ) उपर्ुयि िें से कोई भी िहीं
21. र्शोिर बाबू स्िर्ं को डेिोक्े ठटक कै से सिझते हैं?
(क) िे अपिे निर्ि पठरिार िें लागू िहीं करते l (ख) सभी को पूणय स्ितंिता प्रदाि की है l
(ग) बेटा बेटी सभी को सिाि िािते हैं (घ) उपर्ुयि सभी
22. कहािी िें “जो हुआ होगा” और “सिहाउ इम्प्रापर” इि जुिले िें कौिसा भाि निनहत है?
(क) र्थानस्थनतिाद र्ानि ज्र्ों का त्र्ों स्िीकार कर लेिे का भाि
(ख) अनिणयर् की नस्थनत
(ग) द्वंद्व का भाि
(घ) उपर्ुयि सभी
23. र्शोिर बाबू का दफ्तर ककतिे बजे बंद होता था?
(क) पाूँच (ख) चार
(ग) सात (घ) आठ
24. कहािी िें “जो हुआ होगा” और “सिहाउ इम्प्रापर” र्े दो जुिले, जो कहािी के बीजिाक्र् हैं, कहािी के ककस पाि िें
बदलाि को असंभि बिा देते हैं?
(क) र्शोिर (ख) ककशिदा
(ग) र्शोिर की पत्नी (घ) उपर्ुयि सभी
25. र्शोिर बाबू बच्चों की तरक्की से खुश होते हुए “सिहाउ इम्प्रापर” क्र्ा अिुभि करते हैं?
(क) िह खुशहाली भी कै सी जो अपिों िें परार्ापि पैदा करे ।
(ख) अपिे बच्चों द्वारा गरीब ठरश्तेदारों की उपेक्षा उन्हें िहीं जूँचती ।
(ग) सािारण पुि को असािारण िेति देिे िाली िौकरी सिझ िहीं आती ।
(घ) उपर्ुयि सभी
26. र्शोिर बाबू की पत्नी िूल संस्कारों से आिुनिक ि होते हुए भी आिुनिकता िें कै से ढल गई?
(क) बच्चों की तरिदारी करिे की िातृसुलभ िजबूरी के कारण
(ख) िक़्त को देखते हुए
(ग) िि की इच्छा से
(घ) उपर्ुयि िें से कोई भी िहीं
27. ‘नसल्िर िेबडंग’ कहािी िें शादी की िर्यगाूँठ थी?
(क) 20 िीं (ख) 25िीं
(ग) 35िीं (घ) 15िीं

195
28. र्शोिर पंत का तीसरा बेटा कहाूँ रहता था?
(क) अिेठरका (ख) रूस
(ग) फ्ांस (घ) चीि
29. जिादयि जोशी कौि थे?
(क) र्शोिर पंत के अिीिस्थ कियचारी (ख) र्शोिर पंत के पडोसी
(ग) र्शोिर पंत के निि (घ) र्शोिर पंत के बहिोई
30. र्शोिर बाबू अपिे बीिार बहिोई को देखिे कहाूँ जािा चाहते थे?
(क) राजस्थाि (ख) इलाहाबाद
(ग) अहिदाबाद (घ) पटिा
31. र्शोिर को जीिि जीिे की कला ककसिे नसखाई?
(क) ककशि दा (ख) श्री टी एि शिाय
(ग) भूर्ण (घ) िाई. डी. पन्त
32. ककशि दा की ककस परं परा को र्शोिर िे जीिंत रखा?
(क) घर िें होली गिािा (ख) जन्िकदि ििािा
(ग) शादी की िर्यगाूँठ बिािा (घ) भोज का आर्ोजि करिा
33. भूर्ण प्रनतिाह किाता था?
(क) 2500 रु (ख) 2000 रु
(ग) 1500 रु (घ) 1000 रु
34. र्शोिर बाबू ऑकिस कै से जाते थे?
(क) कार से (ख) स्कू टर से
(ग) साइककल से (घ) पैदल
35. इििें नसल्िर िेबडंग कहािी के पाि िहीं हैं?
(क) र्शोिर बाबू (ख) भूर्ण
(ग) ककशि दा (घ) रनि दा
36. ककशि दा रहते थे?
(क) पंजाब (ख) कदल्ली
(ग) पटिा (घ) िहाराष्ट्र
37. र्शोिर बाबू से बदतिीजी ककसिे की?
(क) चड्ढा िे (ख) भूर्ण िे
(ग) िाई. डी. पंत िे (घ) जिादयि जोशी िे
38. घर िें दूि लािे की नजम्िेदारी ककस पर थी?
(क) भूर्ण पर (ख) र्शोिर पंत की बेटी पर

196
(ग) र्शोिर पंत की पत्नी पर (घ) र्शोिर पंत पर
39. र्शोिर पंत को भाऊ कौि कहता था?
(क) ककशि दा (ख) जिादयि जोशी
(ग) भूर्ण (घ) िाई. डी. पंत
40. भगिािदास कौि था?
(क) ऑकिस का चपरासी (ख) ऑकिस का कियचारी
(ग) ऑकिस का बडा बाबू (घ) ऑकिस का अदयली
41. ककशि दा के िािस पुि कौि हैं?
(क) जिादयि जोशी (ख) भगिाि दास
(ग) र्शोिर पंत (घ) िाई डी पंत
42. ‘जिादयि’ शब्द सुिकर र्शोिर पंत को ककसकी र्ाद आई?
(क) ककशि दा की (ख) भूर्ण की
(ग) अपिे बहिोई जिादयि जोशी की (घ) चड्ढा की
43. पाूँच बजकर तीस नििट होिे पर ऑकिस की घडी बजा रही थी?
(क) 3.00 (ख) 4.25
(ग) 5.25 (घ) 6.00
44. र्शोिर पंत ऑकिस के बाद प्रनतकदि कौि से िंकदर जाते थे?
(क) नबडला िंकदर (ख) र्ोग िार्ा िंकदर
(ग) गौरी शंकर िंकदर (घ) अक्षरिाि िंकदर
45. कदल्ली िें र्शोिर पंत को ककसिे आश्रर् कदर्ा?
(क) ककशि दा (ख) जिादयि जोशी
(ग) िाई. डी. पंत (घ) चड्ढा
46. र्शोिर पंत की बेटी पढ़ाई कर रही है?
(क) डॉक्टरी की (ख) इंजीनिर्ररं ग की
(ग) बैंक की (घ) एि.बी.ए. की
47. अिीिस्थ कियचाठरर्ों िे पाटी के रूप िें िाूँगा?
(क) चार् (ख) िट्ठी
(ग) लड्डू (घ) उपर्ुयि सभी
48. भूर्ण काि करता था?
(क) निज्ञापि एजेंसी िें (ख) पेपर के दफ्तर िें
(ग) टेलीिोि के दफ्तर िें (घ) नशक्षा कार्ायलर् िें
49. िाूँ की िृत्र्ु के पिात र्शोिर पंत ककसके पास रहे?

197
(क) चाची (ख) बुआ
(ग) भाभी (घ) दादी
50. चंद्र दि नतिारी कौि थे?
(क) र्शोिर पंत का भािजा (ख) र्शोिर पंत का निि
(ग) र्शोिर पंत का ििेरा भाई (घ) र्शोिर पंत का अिीिस्थ कियचारी
51. र्शोिर बाबू की ककतिी बेठटर्ाूँ थी?
(क) एक (ख) दो
(ग) तीि (घ) चार
52. ककशिदा की परं पराओं को जीनित रखिे की कोनशश िें र्शोिर बाबू िे ककसको िाराज़ ककर्ा?
(क) नगरीश को (ख) अपिी पत्नी को
(ग) अपिे बच्चों को (घ) पत्नी और बच्चों दोिों को
53. र्शोिर बाबू बार-बार कहा करते थे?
(क) ओके (ख) गुड बार्
(ग) सिहाउ इिप्रॉपर (घ) र्ू कै ि गो
54. चूिद
े ािी कहकर ककस का िजाक उडार्ा जाता है?
(क) घडी का (ख) साइककल का
(ग) पोशाक का (घ) चश्िे का
55. ठरटार्रिेंट के सिर् र्शोिर बाबू का िेति ककतिा था?
(क) दो हज़ार रुपर्े (ख) तीि हज़ार रुपर्े
(ग) डेढ़ हज़ार रुपर्े (घ) पाूँच हज़ार रुपर्े
56. र्शोिर बाबू की पत्नी और बच्चों को उिके घर िें ककए जािे िाले आर्ोजिों पर कौि-सी चीज़ें सख्त िापसंद थीं?
(क) िि की बबायदी (ख) खचय और होिे िाला शोर
(ग) निनभन्न लोगों का घर िें आिा (घ) अन्र्
57. दफतर से लौटते िि र्शोिर बाबू रोज़ कहाूँ जाते थे?
(क) नसिेिा घर (ख) दोस्त के घर
(ग) कहीं िहीं (घ) नबडला िंकदर
58. नबडला िंकदर से र्शोिर बाबू कहाूँ जाते थे?
(क) घर (ख) गोल िाके ट
(ग) पहाडगंज (घ) अन्र्
59. र्शोिर बाबू ककतिे बजे घर पहुूँचते थे?
(क) आठ बजे (ख) सात बजे
(ग) दस बजे (घ) अन्र्

198
60. र्शोिर बाबू के ककतिे बच्चे थे?
(क) पाूँच (ख) तीि
(ग) चार (घ) दो
उिरिाला

1 (क) 13 (ख) 25 (क) 37 (क) 49 (ख)


2 (ग) 14 (ख) 26 (क) 38 (घ) 50 (क)
3 (ख) 15 (क) 27 (ख) 39 (क) 51 (क)
4 (घ) 16 (क) 28 (क) 40 (क) 52 (ख)
5 (ख) 17 (घ) 29 (घ) 41 (ग) 53 (ग)
6 (ख) 18 (ख) 30 (ग) 42 (ग) 54 (क)
7 (क) 19 (ख) 31 (क) 43 (ग) 55 (ग)
8 (क) 20 (क) 32 (क) 44 (क) 56 (घ)
9 (ख) 21 (घ) 33 (ग) 45 (क) 57 (घ)
10 (ख) 22 (घ) 34 (ग) 46 (क) 58 (ग)
11 (ख) 23 (क) 35 (घ) 47 (घ) 59 (क)
12 (ग) 24 (क) 36 (ख) 48 (क) 60 (ग)

199
पाठ - 2
जूझ (निताि)
आिंद र्ादि (1922-1996)
पाठ का सार:
“जूझ” कहािी िूलरूप से िराठी उपन्र्ास “झोबी” से ली गई हैं। नजसके लेखक डॉ आिंद र्ादि हैं।इस िराठी कहािी का
बहंदी अिुिाद के शि प्रथि िीर द्वारा ककर्ा हैं। डॉ आिंद रति र्ादि का िूल िाि आिंदा रत्नाप्पा ज़काते हैं। जूझ (अथायत
जूझिा र्ा संघर्य करिा) कहािी आिंद र्ादि की आत्िकथा का एक नहस्सा है ।
लेखक के नपता िे उसे पाठशाला जािे से रोक रखा है। उसके नपता सारा कदि गाूँि िें घूिते रहते और रखिा बाई के कोठे
पर भी जार्ा करते थे। स्िर्ं काि ि करके लेखक को खेती के काि िें लगा कदर्ा था। लेखक पढ़िा चाहता था। उसे लगता
था कक खेती से कोई लाभ िही, बनल्क पढ़िे से उसे िौकरी निल जाएगी र्ा कु छ व्यापार कर सके गा। कदिाली बीत जािे पर
िनहिा भर ईख पेरिे के नलए कोल्हू चलािा पडता क्र्ोंकक लेखक के नपता को गुड की अच्छी कीित निल जाएगी। एक कदि
लेखक िे िाूँ से पाठशाला जािे की इच्छा प्रकट की। िाूँ भी चाहती थी कक िह पाठशाला जाए लेककि नपता के गुस्से के
कारण िह भी चुप थी। लेखक िे एक तरीका बतार्ा कक र्कद दिा राि साहब नपता जी को सिझाए तो बात बि सकती है।
दिा राि साहब उस इलाके के प्रभािशाली व्यनि थे। िाूँ –बेटे िे जाकर उिको सारी बात बताई। राि साहब एक सिझदार
व्यनि और नशक्षा प्रेिी थे। उन्होिे लेखक के नपता को डरा-ििका कर सिझार्ा कक बेटे को पाठशाला भेजो। र्कद तुि
असिथय हो तो िे स्िर्ं आिंदा को पाठशाला भेजग
ें ।े इस तरह लेखक का पाठशाला जािा किर से शुरू हुआ। िह दूसरे कदि
नपता जी की कडी शतों के अिुसार निद्ालर् जािे लगा। कक्षा िें सभी लडके िए थे। कक्षा के शरारती बच्चों िे उसका
उपहास ककर्ा। लडकों िे उसकी िोती खोलिे की कोनशश की। कक्षा िें उसकी दोस्ती िसंत पाठटल िाि के होनशर्ार बच्चे
से हुई। िह गनणत िे तेज़ था। लेखक भी उसकी तरह पढ़िे की कोनशश करिे लगा। िास्टर उसे आिंदा कहकर बुलािे लगे।
िराठी भार्ा के अध्र्ापक ि.पा.सौंदलगेकर से लेखक बहुत प्रभानित हुए। पढाते सिर् अध्र्ापक स्िर्ं रि जाते थे। सुरीले
कं ठ, छंद और रनसकता के कारण लेखक उिसे प्रभानित हुआ। लेखक भी घर जाकर िास्टर साहब की तरह कनिताएूँ रचिे
लगा। अब लेखक का अके लापि सिाप्त हुआ। अब िह खेत िें पािी लगाते हुए जाििर को चराते हुए कनिता रचिे लगा।
िह अपिे आस-पास के लोगों अपिे गाूँि , खेतो पर तुकबंदी करिे लगा। िह अपिी नलखी हुई कनिता िास्टर साहब को
कदखािे लगता। िस्टर साहब िे ही उसे छंद अलंकार लर्, का ज्ञाि करार्ा। साथ ही अन्र् कनिर्ों के काव्य संग्रह भी कदर्ा,
नजसे पढ़कर लेखक िे कनिता की सिझ निकनसत की।
शब्दाथय-
कोल्हू-रस निकालिे िाला र्ंि नजरह-बहस िापास-अिुिीणय बानलस्टर-बैठरस्टर
गिछा-पतले कपडे का तौनलर्ा काछ-िोती का छोर निबाह-नििायह िैलखाऊ-नजसिे िैल
कदखाई ि दे
दहशत-डर िुिानसब-उनचत कं ठस्थ-जबािी र्ाद होिा भाि-आभास
ढोर-पशु अपेक्षा-तुलिा तुकबंदी-छंदबद्ध सािान्र् कनिता ढरे -शैली

200
सूक्ष्िता-बारीकी से र्नत-गनत-कनिता िें रुकिे और आगे बढिे के निर्ि
पाठ के कु छ स्िरणीर् बबंदु –
1. पाठ ‘जूझ’ के लेखक आिंद र्ादि हैं।
2. ‘जूझ’ पाठ के िार्क/लेखक की निम्ननलनखत निशेर्ताएूँ हैं-
 पढ़िे की ललक- लेखक िाूँ और दिा जी राि देसाई की िदद से पुिुः पढ़ाई करता है।
 कठोर पठरश्रिी – िह पढ़ाई भी करता है, खेतों िें काि भी और ढोर भी चराता है।
 दूरदशी – उसे पता था कक अगर िह पढ़-नलख लेगा तो सरकारी िौकरी लग जाएगी।
 लगिशील – अपिी लगि के कारण ही िह स्कू ल िें होनशर्ार बच्चों िें नगिा जािे लगता है। गनणत िें दक्ष हो जाता
है।
 िराठी भार्ा का अच्छा ज्ञािाजयि करता है और कनिता भी नलखता है।
 अध्र्ापकों का चहेता --पाठ िें तीि अध्र्ापकों का नज़क् है। रणििरे िास्टर,िंिी सर जो गनणत पढ़ाते थे और
ि.िा.सौंदलगेकर जो िराठी पढ़ाते थे।
3. िसंत पाटील िाि का एक लडका शरीर से दुबला-पतला, ककं तु बडा होनशर्ार था। उसके सिाल हिेशा सही निकलते
थे। स्िभाि से शांत। हिेशा पढ़िे िें लगा रहता। दूसरों के सिालों की जाूँच करता था। िास्टर िे उसे कक्षा िॉिीटर बिा
कदर्ा था।
4. कनिता करिा सीख जािे के बाद लेखक को अके लेपि िें भी िज़ा आिे लगा, उसे र्ह भी लगिे लगा कक कनि भी ििुपर्
ही होते हैं और जब उसकी कनिता को स्कू ल के सिारोह िें गिार्ा गर्ा तो उसे ऐसा लगा िािो उसके पंख निकल आए हों।
5. लेखक जुझारू र्ोद्धा है क्र्ोंकक िह निर्ि पठरनस्थनत िें भी अपिे पढ़िे का िार्ग प्रशस्त कर लेता है और उसकी प्रनतभा
और बुनद्धििा तब नसद्ध हो जाती है जब िह पढ़ाई-नलखाई िे कु शल हो जाता है और कनिता भी नलखिा शुरू कर देता है।
बहुनिकल्पीर् प्रश्न
1. दादा कोल्हू जल्दी क्र्ों लगािा चाहते थे?
(क) काि जल्दी खत्ि करिे के नलए (ख) गुड की ज्र्ादा कीित के नलए
(ग) दूसरी िसल के नलए (घ) आराि करिे के नलए
उिर: (ख) गुड की ज्र्ादा कीित के नलए
2. ‘जूझ’कहािी के शीर्यक का अथय क्र्ा हैं?
(क) संघर्य करिा (ख) चालाकी
(ग) िेहित करिा (घ) कठठिाई
उिर: (क)संघर्य करिा
3. ‘जूझ’कहािी ककस उपन्र्ास से ली गई है?
(क) गुजराती उपन्र्ास'िटरंग' (ख) गुजराती उपन्र्ास"झोबी"
(ग) िराठी उपन्र्ास'िटरं ग' (घ) िराठी उपन्र्ास 'झोबी'
उिर: (घ) िराठी उपन्र्ास 'झोबी'
201
4. “झोबी” उपन्र्ास ककस भार्ा िें नलखा गर्ा हैं?
(क) राजस्तािी (ख) हठरर्ाणिी
(ग) गुजराती (घ) िराठी
उिर: (घ) िराठी
5. लेखक आिंद र्ादि के नपता िे उिकी पढ़ाई कब छु डिा दी?
(क) जब िो चौथी िें पढ़ते थे (ख) जब िो पांचिी िें पढ़ते थे
(ग) जब िो छ्ठी िें पढ़ते थे (घ) जब िो सातिी िें पढ़ते थे
उिर: (ख) जब िो पांचिी िें पढ़ते थे
6. लेखक िे दुबारा कौि सी कक्षा िें दानखला नलर्ा?
(क) पांचिी कक्षा िें (ख) छ्ठी कक्षा िें
(ग) सातिी कक्षा िें (घ) आठिी कक्षा िें
उिर: (क) पांचिी कक्षा िें
7. लेखक के नपता का क्र्ा िाि था?
(क) कणहप्पा (ख) राजप्पा
(ग) रत्नाप्पा (घ) सरहप्पा
उत्तर: (ग) रत्नप्पा
8. लेखक की कक्षा के िॉिीटर का िाि क्र्ा था?
(क) िसंत पाटील (ख) चव्हाण पाटील
(ग) ििोहर पाटील (घ) राि पाटील
उिर: (ख) चव्हाण पाटील
9. ‘जूझ' उपन्र्ास िूलतुः ककस भार्ा िें रनचत है?
(क) अििी (ख) ब्रज
(ग) िराठी (घ) गुजराती
उिर: (ग) िराठी
10. 'जूझ' के कथािार्क का क्र्ा िाि बतार्ा गर्ा है?
(क) आिंद (ख) आिंदा
(ग) नित्र्ािंदा (घ) परिािंदा
उिर: (ख) आिंदा
11. पाठशाला जािे की बात लेखक िे सबसे पहले ककससे की?
(क) दादा से (ख) िाूँ से
(ग) दिा जी राि से (घ) सौंदलगेकर
उिर: (ख) िाूँ से

202
12. सौंदलगेकर ककस निर्र् का अध्र्ापक थे?
(क) अंग्रेजी के (ख) गनणत के
(ग) िराठी के (घ) संस्कृ त के
उिर: (ग) िराठी के
13. खेत का कौि-सा काि सिाप्त होिे के बाद लेखक िे िाूँ से पढ़ाई की बात की?
(क) पािी लगािे का काि (ख) नबजाई का काि
(ग) कटाई का काि (घ) कोल्हू का काि
उिर: (घ) कोल्हू का काि
14. पाठ के अिुसार लेखक के घर कोल्हू कब शुरू होता था?
(क) साल की शुरुआत िें (ख) होली पर
(ग) कदिाली के बाद (घ) ििरानि िें
उिर: (ग) कदिाली के बाद
15. लेखक पढ़िा क्र्ों चाहता है?
(क) ज्ञाि के नलए (ख) कनि बििे के नलए
(ग) निद्वाि बििे के नलए (घ) िौकरी के नलए
उिर: (घ) िौकरी के नलए
16. लेखक की िाूँ के अिुसार पढ़ाई की बात करिे पर लेखक का नपता कै से गुरायता है?
(क) कु िे के सिाि (ख) शेर के सिाि
(ग) जंगली सूअर के सिाि (घ) चीते के सिाि
उिर: (ग) जंगली सूअर के सिाि
17. लेखक की िाूँ के अिुसार उसके पनत िे लेखक को पाठशाला जािे से क्र्ों रोक कदर्ा?
(क) खचे से बचिे के नलए (ख) बीिारी से बचिे के नलए
(ग) अिपढ़ता से बचिे के नलए (घ) खुद काि से बचिे के नलए
उिर: (घ) खुद काि से बचिे के नलए
18. दादा राि साहब के र्हाूँ तत्काल क्र्ों चला गर्ा?
(क) अपिा सम्िाि सिझकर (ख) डरकर
(ग) पैसों के लालच से (घ) घबराकर
उिर: (क) अपिा सम्िाि सिझकर
19. स्कू ल से छु ट्टी के बाद लेखक को ककतिे घंटे पशु चरािे होते थे?
(क) दो घंटे (ख) तीि घंटे
(ग) चार घंटे (घ) एक घंटा
उिर: (घ) एक घंटा

203
20. लेखक के कक्षा अध्र्ापक का िाि क्र्ा था?
(क) िसंत (ख) सौंदलगेकर
(ग) िंिी (घ) रत्नप्पा
उिर: (ग) िंिी
21. 'जूझ' कहािी से लेखक की ककस प्रिृनि का उद्घाटि हुआ है?
(क) पढ़िे की प्रिृनि का (ख) कनिता करिे की प्रिृनि का
(ग) लेखि प्रिृनि का (घ) संघर्यिर्ी प्रिृनि का
उिर: (घ) संघर्यिर्ी प्रिृनि का
22. नजस शरारती लडके िे लेखक के नसर से गिछा छीिा था, उसका िाि क्र्ा था?
(क) िसंत (ख) चह्िाण
(ग) ििोहर (घ) सुन्दर
उिर: (ख) चह्िाण
23. लेखक के दादा (नपता) की कै सी प्रिृनि थी?
(क) पठरश्रिी (ख) गुस्सैल और बहंसक
(ग) नििम्र (घ) अबहंसक
उिर: (ख) गुस्सैल और बहंसक
24. लेखक को गनणत पढ़ािे िाले िास्टर का क्र्ा िाि था?
(क) िसंत (ख) सौंदलगेकर
(ग) िंिी (घ) रत्नप्पा
उिर: (ग) िंिी
25. “आिे दे अब उसे, िैं उसे सुिाता हूूँ कक िहीं अच्छी तरह देख।" र्ह कथि ककसिे ि ककससे कहा?
(क) दिा राि िे लेखक के नपता से (ख) दिा राि िे लेखक की िाता से
(ग) लेखक के नपता िे लेखक से (घ) लेखक के नपता िे दिा राि से
उिर: (क) दिा राि िे लेखक के नपता से
26. िराठी अध्र्ापक की ककस बात से लेखक को लगा कक िह भी कनिता कर सकता है?
(क) जब िास्टर िे अपिे घर के दरिाजे पर छाई हुई िालती की बेल पर कनिता नलखी
(ख) जब िास्टर िे निद्ालर् िें एक प्रनतर्ोनगता रखी
(ग) जब गाूँि िें िास्टर जी िे लेखक की तारीि की
(घ) जब िास्टर िे उन्हे कनिता नलखिा नसखार्ा
उिर: (क) जब िास्टर िे अपिे घर के दरिाजे पर छाई हुई िालती की बेल पर कनिता नलखी
27. जूझ पाठ का शीर्यक उपर्ुि है क्र्ोंकक-
(क) लेखक पढ़ता रहता था (ख) लेखक खेती के काि िें संघर्य करता था

204
(ग) लेखक के नपता का संघर्य करिे के कारण (घ) लेखक के संघर्य से जूझिे की प्रिृनि के कारण
उिर: (घ) लेखक के संघर्य से जूझिे की प्रिृनि के कारण
28. 'जूझ'पाठ के अिुसार कनिता के प्रनत लगाि से पहले और उसके बाद अके लेपि के प्रनत लेखक की िारणा िें क्र्ा बदलाि
आर्ा?
(क) अके लापि डराििा है (ख) अके लापि उपर्ोगी है
(ग) अके लापि अिािश्र्क है (घ) अके लापि सािान्र् प्रकक्र्ा है
उिर: (ख) अके लापि उपर्ोगी है
29. जूझ कहािी से क्र्ा नशक्षा निलती है?
(क) खेतीबाडी िें कोई भनिपर् िहीं होता
(ख) अच्छे कार्य के नलए झूठ बोलिा गलत िहीं है
(ग) सहपाठी तो हंसी िज़ाक करते हैं उिसे दोस्ती बिा कर रखिी चानहए
(घ) जीिि िें ककतिी तकलीिें क्र्ों ि आर्ें, हिें हिेशा जुझारू रहिा चानहए
उिर: (घ) जीिि िें ककतिी तकलीिें क्र्ों ि आर्ें, हिें हिेशा जुझारू रहिा चानहए
30. 'िंिी' गनणत के अध्र्ापक के बारे िें कौि सी बातें असत्र् है?
(क) िह उिि करिे िाले बच्चों की नपटाई कर देते थे
(ख) िह पढ़ाई करिे िाले लडकों को शाबाशी देते
(ग) बच्चे 'िंिी' गनणत के अध्र्ापक के डर से पढ़कर आते
(घ) िंिी अध्र्ापक बच्चों को रोज दो कनिताएं सुिाते थे
उिर: (घ) िंिी अध्र्ापक बच्चों को रोज दो कनिताएं सुिाते थे
31. लेखक ककस बच्चे से प्रभानित होकर पढ़ाई के सभी काि करिे लगा?
(क) िसंत सैिी (ख) िसंत पटेल
(ग) िसंत पाटील (घ) िसंत दिा
उिर: (ग) िसंत पाटील
32. िराठी अध्र्ापक के अध्र्ापि के निर्र् िें क्र्ा असत्र् है?
(क) िे कनिता को सुरीले गले, छंद की बकढ़र्ा चाल, रनसकता के साथ पढ़ाते थे
(ख) िे अनभिर् के साथ कनिता का भाि ग्रहण कराते
(ग) िे प्रनसद्ध कनिर्ों के संस्िरण भी सुिाते
(घ) कनिता सुिाते सिर् अगर कोई बच्चा बोल दे तो उसकी नपटाई कर देते
उिर: (घ) कनिता सुिाते सिर् अगर कोई बच्चा बोल दे तो उसकी नपटाई कर देते
33. िराठी अध्र्ापक के अध्र्ापि से लेखक िें क्र्ा-क्र्ा िए पठरितयि आए?
(क) िह खेत िें अके ले काि करते हुए कनिता गाता
(ख) िास्टर के अनभिर्, र्नत-गनत, आरोह-अिरोह की िकल करते हुए खुले कं ठ से कनिता गाता

205
(ग) लेखक को अब अके ले रहिा अच्छा लग गर्ा
(घ) उपर्ुयि सभी
उिर: (घ) उपर्ुि
य सभी
34. कक्षा िें ककस बच्चे को िॉनिटर बिार्ा गर्ा था?
(क) िसंत पाठटल (ख) चाह्िाि
(ग) आिंदा (घ) िसंत दिा
उिर: (क) िसंत पाठटल
35. आिंद का निश्वास निद्ालर् िें पुिुः क्र्ों बढ़िे लगा?
(क) निद्ालर् िें पुरस्कार निलिे के कारण
(ख) िंिी अध्र्ापक से िाह िाही निलिे के कारण
(ग) अध्र्ापकों के अपिेपि और िसंत पाठटल से दोस्ती के कारण
(घ) दिा राि साहब के कारण
उिर: (ग) अध्र्ापकों के अपिेपि और िसंत पाठटल से दोस्ती के कारण
36. िास्टर सौंदलगेकर ककि कनिर्ों के साथ अपिी िुलाकात के संस्िरण सुिाते?
(i) कदिकर, िरें द्र कोहली, (ii) निराला जी के
(iii) बोरकर, तांबे (iv) नगरीश और के शि कु िार
उपठरनलनखत कथिो िें से कौि-सा / कौि-से सही है / हैं?
(क) के िल (i) (ख) के िल (ii)
(ग) (ii) और (iii) (घ) (iii) और (iv)
उिर: (घ) (iii) और (iv)
37. कनिताओं को िास्टर के बताए राग से अलग भी गार्ा जा सकता है। र्े आिंदा को कब अिुभि हुआ?
(क) कक्षा के दूसरे बच्चों को कनिता सुिाते सिर्
(ख) कनिता नलखते सिर्
(ग) रात को सोते सिर्
(घ) खेत िें ही काि करते सिर् िास्टर द्वारा गार्े कनिताओं को गाते –गाते
उिर: (घ) खेत िें ही काि करते सिर् िास्टर द्वारा गार्े कनिताओं को गाते –गाते
38. लेखक को र्ह क्र्ों लगिे लगा कक नजतिा िह अके ले रहे उतिा अच्छा है?
(क) अके लेपि िें िह थोडा आराि कर सकता था।
(ख) अके ले िें िह नसिेिा देख सकता है
(ग) अके ले िें िह अलग-अलग चालों से तेज़ आिाज़ िें कनिता गा सकता था
(घ) अके ले िें िह स्िर्ं से बाते कर सकता था
उिर: (ग) अके ले िें िह अलग-अलग चालों से तेज़ आिाज़ िें कनिता गा सकता था

206
39. 'चाूँद रात पसठरते' कनिता के सम्बंि िें कौि सी बात सत्र् है?
(क) र्ह कदिकर द्वारा रनचत है (ख) र्ह अिंत काणेकर द्वारा रनचत है
(ग) र्ह के शि कु िार द्वारा रनचत है (घ) र्ह सैंदलगेकर द्वारा रनचत है
उिर: (ख) र्ह अिंत काणेकर द्वारा रनचत है
40. आिंद िे 'चाूँद रात पसठरते'कनिता को नसिेिा के एक गीत की तज़य पर गार्ा। िह गािा ककस छंद की तज़य पर था?
(क) दोहा (ख) ििोरि
(ग) सिैर्ा (घ) के शि करणी जानत
उिर: (घ) के शि करणी जानत
41. िास्टर जी िे आिंदा के िए तज़य पर गीत गािे से प्रभानित होकर क्र्ा ककर्ा?
(क) आिंद को कनिता के राग बदलिे पर सिझार्ा कक र्ह गलत राग है
(ख) छठी-सातिीं कक्षा के निद्ार्थयर्ों के साििे उसे बुलाकर गिार्ा
(ग) उसे पुरस्कार कदर्ा
(घ) उसे कनिता ि गािे को कहा
उिर: (ख) छठी-सातिीं कक्षा के निद्ार्थयर्ों के साििे उसे बुलाकर गिार्ा
42. आिंदा को कब र्ह लगिे लगा कक कनि भी उसके जैसे ही हाड िांस के व्यनि हैं?
(i) जब उसिे िराठी अध्र्ापक को देखा
(ii) खुद िास्टर भी कनि थे
(iii) जब िराठी अध्र्ापक उसे कनिर्ों के चठरि और संस्िरण सुिाते
(iv) इििे कोई िही
उपठरनलनखत कथिों िें से कौि-सा / कौि-से सही है / हैं?
(क) (i) और (ii) (ख) (ii) और (iii)
(ग) (iii) और (iv) (घ) (i) और (iv)
उिर: (ख) (ii) और (iii)
43. आिंद िे कनिता नलखिे की शुरआत िें तुकबंदी के नलए ककि निर्र्ों को चुिा?
(क) अपिे पठरिार के लोग (ख) िसलों, जंगली िू लों अपिे आस पास के िातािरण पर
(ग) रोज़िराय की कक्र्ाओं पर (घ) पशु और पक्षीर्ों पर
उिर: (ख) िसलों, जंगली िू लों अपिे आस पास के िातािरण पर
44. िास्टर सौंदलगेकर द्वारा आिंदा को कनिता की बारीककर्ों को सिझािे का उस पर क्र्ा प्रभाि पडा?
(क) कनिता के प्रनत असीि प्रेि बढ़ गर्ा (ख) निद्ालर् के प्रनत अपित्ि और बढ़ गर्ा
(ग) खेतों िें काि करिा बंद कर कदर्ा (घ) पढाई पर ध्र्ाि देिे लगा
उिर: (क) कनिता के प्रनत असीि प्रेि बढ़ गर्ा
45.'जूझ' कहािी के िार्क द्वारा पढ़ाई के साथ-साथ खेती का काि करिे से सम्बंनित कौि सी बात असत्र् है?

207
(क) उसकी पढ़ाई के प्रनत रुनच कि हो गई (ख) िह और संघर्यशील हो गर्ा
(ग) िह अपिे लक्ष्र् को प्राप्त करिे िें सिल रहा। (घ) प्रनतकू ल पठरनस्थनतर्ों िे उसके दृढ़ नििर् को बढा कदर्ा
उिर: (क) उसकी पढ़ाई के प्रनत रुनच कि हो गई
46. कनिता पाठ करिे के सिर् िराठी अध्र्ापक क्र्ा करते थे?
(क) कनिता की लर् भूल जाते थे (ख) कनिता नलखिे को कहते थे
(ग) कनिता के नसद्धांतों पर चचाय करते थे (घ) कनिता पाठ के बीच-बीच िें संस्िरण सुिाते थे
उिर: (घ) कनिता पाठ के बीच-बीच िें संस्िरण सुिाते थे
47. इस कहािी के िाध्र्ि से ककसके संघर्य को अनभव्यनि प्रदाि की गई है?
(क) खेनतहर िजदूर के संघर्य (ख) आिंदा के जीिि का संघर्य
(ग) गरीब िाूँ का संघर्य (घ) गरीब ककसाि का संघर्य
उत्तर: आिंदा के जीिि का संघर्य
48. 'जूझ' कहािी िें आिंदा के उच्च स्तरीर् कनि बििे तक का सिर ककस बात का प्रिाण है?
(क) उसके पठरश्रि एिं लगि का (ख) नपता की बात को िहत्ि िा देिे का
(ग) झूठ बोल कर पढ़ाई करिे का (घ) के िल अपिे िि की करिे का
उिर: (क) उसके पठरश्रि एिं लगि का
49. 'जूझ' पाठ के अिुसार लेखक िे अपिी जन्िजात प्रनतभा का पठरचर् ककस प्रकार कदर्ा?
(क) निद्ालर् िें प्रिेश लेकर (ख) नपता का निरोि करके
(ग) िए-िए निर्र्ों पर कनिता नलख कर (घ) िाता की आज्ञा का पालि करके
उिर: (ग) िए-िए निर्र्ों पर कनिता नलख कर
50. 'जूझ' पाठ िें आिंदा की कक्षा िें शरारत ककस कारण कि होिे लगी?
(क) िसंत के आ जािे से
(ख) गनणत के अध्र्ापक द्वारा शरारती लडकों की नपटाई ककए जािे से
(ग) िराठी अध्र्ापक सौंदलगेकरके आिे से
(घ) निद्ार्थयर्ों िें जागरूकता पैदा होिे से
उिर: (ख) गनणत के अध्र्ापक द्वारा शरारती लडकों की नपटाई ककए जािे से
51. िास्टर सौंदलगेकर िे ककस पर कनिता नलखी थी?
(क) आिंद की जुझारू प्रिृनि पर (ख) निद्ालर् के अिुशासि पर
(ग) िालती लता की सुंदरता पर (घ) प्रकृ नत की सुंदरता पर
उिर: (ग) िालती लता की सुद
ं रता पर
52. आिंदा के नपता द्वारा स्िर्ं खेती िा करके अपिे बेटे से खेती का काि करिािा उिके ककस चठरि की ओर संकेत करता
है?
(i) नपता अपिे बेटे को पठरश्रिी बिािा चाहता है

208
(ii) नपता के आलसी और किजोर कािचोर रूप को दशायता है
(iii) नपता दूरदशी है
(iv) नपता के नलए पुि ही उसका सब कु छ है
उपठरनलनखत कथिो िें से कौि-सा / कौि-से सही है / हैं?
(क) के िल (i) (ख) के िल (ii)
(ग) (i), (iii) और (iv) (घ) (iii) (iv)
उिर: (ख) के िल (ii)
53. आिंदा जब पहले कदि पाठशाला गर्ा तो उसकी क्र्ा प्रनतकक्र्ा हुई?
(क) उसकी खुशी का ठठकािा िा रहा (ख) िह क्ोनित हुआ
(ग) िह अत्र्ंत उदास था (घ) उसकी कोई प्रनतकक्र्ा िहीं थी
उिर: िह अत्र्ंत उदास था
54. आिंदा और उसकी िाूँ द्वारा झूठ का सहारा िा नलए जािे की नस्थनत िें क्र्ा होता?
(i) आिंदा के जीिि िें अके लापि ठहर जाता
(ii) िह अपिी कनिता नलखिे के गुण को िहीं निकाल पाता
(iii) िह नशनक्षत होिे से िंनचत रह जाता
(iv) उपर्ुि
य सभी
उपठरनलनखत कथिो िें से कौि-सा / कौि-से सही है / हैं?
(क) (i) और (ii) (ख) (ii) और (iii)
(ग) (iii) और (iv) (घ) (iv)
उिर: (घ) (iv)
55. कनिता के साथ खेलिे से आिंदा को कौि सी शनि प्राप्त हुई?
(i) कदव्य शनि की
(ii) कनिता के साथ िृत्र् और अनभिर् करिे की
(iii) गार्क बििे की
(iv) अके लेपि िें भी आिंद अिुभि करिे की
उपठरनलनखत कथिो िें से कौि-सा / कौि-से सही है / हैं?
(क) के िल (i) (ख) के िल (iii)
(ग) (ii), (iv) (घ) (iii), (iv)
उिर: (ग) (ii), (iv)
56. 'जूझ ' पाठ के अिुसार पढ़ाई नलखाई के संबि
ं िें लेखक और दिा जी राि का रिैर्ा सही था क्र्ोंकक
(i) लेखक खेती बाडी िहीं करिा चाहता था
(ii) दिा जी राि जािते थे कक खेती-बाडी िें लाभ िहीं है

209
(iii) लेखक का पढ़ नलखकर सिल होिा बहुत आिश्र्क था
(iv) लेखक का नपता िहीं चाहता था कक िह आगे की पढ़ाई करें
उपठरनलनखत कथिो िें से कौि-सा / कौि-से सही है / हैं?
(क) के िल (i) (ख) के िल (ii)
(ग) के िल (iii) (घ) (ii) और (iii)
उिर: (ग) के िल (iii)
57. दिा जी राि की सहार्ता के नबिा जूझ कहािी का ‘िैं’ पाि क्र्ा सब िही कर पाता?
(i) पढ िही पाता
(ii) कनिता, उपन्र्ास ि नलख पाता
(iii) खती िही कर पाता
(iv) िह कभी स्कू ल िही जा पाता
उपठरनलनखत कथिो िें से कौि-सा / कौि-से सही है / हैं?
(क) के िल (i) (ख) के िल (ii)
(ग) (i) (ii) और (iii) (घ) (i) (ii) और (iv)
उिर: (घ) (i) (ii) और (iv)
58. कनिता के प्रनत रुनच जगािे िें नशक्षक की क्र्ा भूनिका हो सकती है?
(i) कनिता को रटिािा
(ii) कनिता को रस,लर्,छंद के आिार पर पढािा
(iii) छाि को प्रोत्सानहत करिा
(iv) काव्य उपकरणों की जािकारी देिा
उपठरनलनखत कथिो िें से कौि-सा / कौि-से सही है / हैं?
(क) (i) (iii) और (iv)
(ख) (ii) (iii) और (iv)
(ग) (i) (ii) और (iii)
(घ) (i) (ii) और (iv)
उिर: (ख) (ii) (iii) और (iv)
59. आिंदा को गनणत सिझ आिे के सम्बंि िे कौि सा/से कथि सत्र् है?
(क) िि की एकाग्रता के कारण (ख) िसंत पाठटल की सहार्ता से
(ग) अध्र्ापक की सहार्ता से (घ) नििो की सहार्ता से
उिर: (क) िि की एकाग्रता के कारण
60. कहािी िें आिंदा लेखि का अभ्र्ास कै से करता था?
(क) निट्टी पर नलखकर (ख) श्र्ािपट्ट पर नलखकर

210
(ग) अपिे पशुओं की पीठ पर नलखकर (घ) घर की दीिारों पर नलखकर
उिर: (ग) अपिे पशुओं की पीठ पर नलखकर
पाठ - 3
अतीत िें दबे पाूँि
ओि थाििी
(पाठ का सार)
अतीत िें दबे पाूँि” एक र्ािा िृतांत है नजसके लेखक ओि थाििी जी हैं। इस र्ािा िृतांत िें ओि थाििी जी िे पाककस्ताि
के बसंि प्रांत िें नस्थत बसंिु घाटी सभ्र्ता के एक िहत्त्िपूणय स्थल“िोहिजोदडो” की अपिी र्ािा का सजीि िणयि ककर्ा हैं।
बसंिु घाटी सभ्र्ता को लगभग 5,000 साल पुरािी सभ्र्ता िािा जाता हैं। इसिें दो सभ्र्ताएूँ हडप्पा सभ्र्ता (पंजाब
प्रांत) और िोहिजोदडो (पाककस्ताि के बसंि प्रांत िें नस्थत) प्रिुख हैं। बसंिु घाटी सभ्र्ता को निश्व की सबसे पुरािी
सुनिर्ोनजत िगरीर् सभ्र्ता िािा जाता है।
हडप्पा िें तो रे ल लाइि नबछिे की िजह से ज्र्ादा खुदाई िहीं हो पार्ी िगर िोहिजोदडो िें निस्तृत खुदाई की गई।
िोहिजोदडो की खुदाई का कार्य सि 1922 िें राखलदास बिजी िे उस सिर् के पुरातत्ि निभाग के निदेशक सर जॉि
िाशयल के कहिे पर ककर्ा।
िोहिजोदडो (िुदो का टीला) उस सिर् की ताम्रकालीि सभ्र्ता का सबसे बडा शहर था। जो करीब 200 हेक्टर क्षेि िें
िै ला था और नजसकी आबादी लगभग 85,000 रही होगी। ऐसा िािा जाता हैं कक अपिे सिर् िें िोहिजोदडो, घाटी की
सभ्र्ता का कें र अथायत राजिािी रही होगी।
लेखक जब िोहिजोदडो घूििे गए तो िहाूँ घूिते हुए उन्हें ऐसा िहसूस हुआ जैसे कक िो चुपके – चुपके 5,000 िर्य पूिय की
सभ्र्ता िें पहुूँच गए हैं। लेखक कहते हैं कक ताम्रकालीि शहरों का सबसे बडा शहर अपिी बडी-बडी गनलर्ों और इिारतों
के बल पर, आज के िहािगरों को भी िात देता हुआ िजर आता है।
िोहिजोदडो शहर “टीलों” पर बसार्ा गर्ा है। र्े टीले प्राकृ नतक िहीं है बनल्क छोटे-छोटे िािि निर्ियत टीले हैं जो कच्ची –
पक्की ईंटों के बिे हैं। ऐसा बसंिु िदी के बाढ़ के पािी के प्रकोप से बचिे के नलए ककर्ा गर्ा था।
लेखक िोहिजोदडो की िगरीर् सभ्र्ता – संस्कृ नत ि जल संस्कृ नत के बारे िें बताते हुए कहते हैं कक र्ह ताम्र कालीि
िगरीर् सभ्र्ता है। र्हाूँ के खंडहरों को देखकर ऐसा लगता है जैसे र्हाूँ आज भी कोई रहता है। शहर की निर्ोजि व्यिस्था
बहुत सुद
ं र हैं । र्हाूँ की चौडी -चौडी गनलर्ाूँ एक दूसरे को सिकोण पर काटती है।
र्हाूँ के सभी घर पक्की ईंटों ि लकडी से बिाए गए हैं नजिकी दीिारें कािी िोटी हैं। शार्द दो िंनजले घर बिािे के नलए
ऐसा ककर्ा गर्ा हो। घरों के दरिाजे िुख्र् सडक की ओर ि खुल कर पीछे की तरि खुलते हैं । िुख्र् सडक पर बैल गानडर्ाूँ
चला करती थी। संर्ोग िश हिारा चंडीगढ़ शहर भी इसी तजय पर बिा हुआ हैं।
र्हाूँ पर इंसािी जरूरत का हर िह सािाि िौजूद हैं जो कक ककसी भी सभ्र्ता के िलिे िू लिे के नलए आिश्र्क है िगर
सारी िस्तुएूँ बहुत छोटे – छोटे आकार िें िौजूद हैं।

211
पूिय कदशा िें “अिीरों की बस्ती” बिी हुई हैं नजसिें बडे – बडे घर, चौडी सडकें , अनिक कु एूँ आकद हैं । जबकक आिुनिक र्ुग
िें “अिीरों की बस्ती” पनिि कदशा िें िािी जाती है। िगर िोहिजोदडो िें ठीक इसका उलटा हैं।
र्हाूँ के लोग अपिे सभी कार्य आपसी तालिेल से करते थे। लेखक के अिुसार र्हाूँ के लोग व्यापार करते थे। इन्हीं लोगों िे
दुनिर्ा को उन्नत खेती करिा नसखार्ा। र्हाूँ पर एक निशाल कोठार भी हैं नजसिें कर के रूप िें प्राप्त अिाज रखा जाता
था। र्हाूँ कपास, गेहू,ूँ जौ, ज्िार, सरसों, बाजरा, चिे, खजूर, खरबूज, अंगरू आकद की खेती के प्रिाण भी निले हैं।
इस सभ्र्ता को अनिकतर निद्द्वाि “खेतीहर और पशुपालक सभ्र्ता” िािते हैं । र्हाूँ लोहा िहीं पार्ा गर्ा लेककि पत्थर
(बसंि) ि तांबे (राजस्थाि) के इस्तेिाल से कृ नर् के औजार बिािे के सबूत निले हैं।
िािा जाता हैं कक र्हाूँ के लोग बडे ही शांनतनप्रर् थे क्र्ोंकक र्हाूँ हनथर्ार जैसे कोई उपकरण िहीं निले हैं। सैनिकों के सबूत
भी िहीं निले हैं । दुनिर्ा का दूसरे िंबर का सबसे प्राचीि कपडा (सूती कपडा) र्हीं से प्राप्त हुआ है। पहला प्राचीि कपडा
जाूँडि
य से प्राप्त हुआ था। र्हाूँ रं गाई करिे के भी सबूत निले हैं।
र्हाूँ के लोगों को ड्रेिज
े नसस्टि (जल निकासी) के बारे िें अच्छी जािकारी थी। हर घर िें जल निकासी की उिि व्यिस्था
देखिे को निलती है। जल निकासी के नलए िानलर्ां बिाई गई हैं जो ढकी हुए हैं।
िगर िें एक 40 िु ट लंबा और 25 िु ट चौडा ि सात िु ट गहरा जलकुं ड भी है। िािा जाता है कक र्ह ककसी निशेर् अिुष्ठाि
के नलए प्रर्ोग ककर्ा जाता होगा। इसकी दीिारें पक्की ईंटों से बिी हुई हैं। इसके पास ही आठ स्नािागार भी हैं। जलकुं ड िें
गंदा पािी ि जार्े, इसकी भी व्यिस्था की गई है र्ािी साि सिाई का निशेर् ध्र्ाि रखा गर्ा हैं।
जलकुं ड के पास ही एक कु आूँ भी हैं जहां से शार्द जलकुं ड िें पािी आता होगा। इसके अलािा र्हाूँ 700 कुूँ ए ि कई तालाब
भी निले हैं जो पक्की ईटों से बिे हैं। र्ह संसार की पहली सभ्र्ता हैं नजसिे कुूँ ए खोदकर भूनिजल निकाला। इसीनलए बसंिु
घाटी सभ्र्ता को “जल संस्कृ नत” भी कहते हैं।
लेककि बसंिु घाटी सभ्र्ता िें ि तो कोई भव्य राजिहल निला और ि ही कोई भव्य िंकदर र्ा नपरानिड निला। इस संस्कृ नत
की खास बात र्ह थी कक र्हाूँ पर ककसी तरह की कोई भव्यता र्ा कदखािा िहीं कदखाई देता हैं। र्ानि िोहिजोदडो, बसंिु
घाटी सभ्र्ता का सबसे बडा िगर है किर भी इसिें भव्यता और आडंबर का िािोनिशाि िही है।
र्हाूँ िातु एिं पत्थर की िूर्तयर्ाूँ एिं बतयि निले हैं नजसिें नचिकारी की गई हैं। िोहरे , नखलौिे ि अन्र् साजो सािाि आकद
की िस्तुओं भी निली हैं। र्हाूँ पर निली एक ितयकी की िूर्तय, राष्ट्रीर् संग्रहालर् (िई कदल्ली) िें रखी हैं। र्हाूँ पर निली 50,
000 से अनिक चीज़ें दुनिर्ा के अलग – अलग संग्रहालर्ों िें रखी गई हैं।
िोहिजोदडो िें एक प्राचीि बौद्ध स्तूप भी है िगर र्ह कनिपक कालीि है। इसी के बारे िें जािकारी लेिे राखलदास बिजी
र्हाूँ आए थे। लेककि जब इसे खोदा गर्ा तो इसके िीचे उन्हें 5,000 साल पुरािी सभ्र्ता िोहिजोदडो का िगर देखिे को
निला नजसकी िगर र्ोजिा अद्भुत ि लाजिाब थी।
लेखक के अिुसार बसंिु सभ्र्ता की खूबी उसका सौन्दर्यबोि हैं जो िहाूँ की छोटी-छोटी िस्तुओं िें देखिे को निलता है जो
उस सिर् के सिाज द्वारा निर्ियत की गई है।
अभ्र्ास प्रश्न
1. “अतीत िें दबे पांि” िािक पाठ के लेखक कौि है?
उिर- ओि थाििी।
212
2. “अतीत िें दबे पांि” पाठ क्र्ा हैं?
उिर -एक र्ािा िृिांत और ठरपोतायज ।
3. “अतीत िें दबे पांि” िािक पाठ िें ककस सभ्र्ता का िणयि हैं?
उिर – िुअिजोदडो (बसंिक
ु ालीि)
4. ितयिाि िें र्ह पुरातानत्िक स्थल कहाूँ है?
उिर – पाककस्ताि के बसंि प्रांत िें।
5. िोहिजोदडो ककस िदी के तट पर नस्थत हैं?
उिर – बसंिु िदी ।
6. िुअिजो-दडो ककस काल के शहरों िें सबसे बडा शहर है?
उिर – ताम्रकालीि।
7. िुअिजो-दडो का अथय क्र्ा है?
उिर – िृतकों र्ा िुदों का टीला।
8. ितयिाि िें िुअिजोदडो को ककस िाि से जािा जाता है?
उिर – िोहिजोदडो।
9. िुअिजोदडो के टीले कै से हैं?
उिर – िाििनिर्ियत ।
10. बसंिु िदी के पािी से बचिे के नलए जिीि की सतह को ककस तरह ऊपर उठार्ा गर्ा था?
उिर – कच्ची – पक्की ईंटों की नचिाई से (टीलों के रूप िें) ।
11. िेसोपोटेनिर्ा के अनभलेखों िें प्रर्ोग “िेलह
ु ा” शब्द संभित ककसके नलए प्रर्ोग होता होगा?
उिर – िोहिजोदडो के नलए।
12. िुअिजो-दडो की खोज ककसिे की?
उिर – राखलदास बिजी ।
13. राखलदास बिजी कौि थे?
उिर – पुरातत्ििेदा।
14. राखलदास बिजी र्हाूँ पर ककस िर्य आए थे?
उिर – सि 1922 िें।
15. िोहिजोदडो की खुदाई ककस के निदेश पर शुरू हुई थी?
उिर – जाि िाशयल।
16. भारतीर् पुरातत्ि सिेक्षण के तत्कालीि िहानिदेशक कौि थे
उिर – जाि िाशयल।
17. र्ह स्थल ककस चीज की अिूठी निसाल है?
उिर – िगर निर्ोजि की।

213
18. बसंिु घाटी सभ्र्ता ककतिे साल पुरािी हैं?
उिर – 5,000 िर्य पूिय ।
19. िोहिजोदडो का िगर ककतिे हजार साल पहले का है?
उिर – 5,000 िर्य पूिय ।
20. िोहिजोदडो अपिे काल िें ककसका कें द्र रहा होगा?
उिर – सभ्र्ता का।
21. िोहिजोदडो का सिाज कै सा था?
उिर – साक्षर और सुसस्ं कृ त ।
22. बसंिु घाटी की सभ्र्ता को ककस सभ्र्ता के सिकक्ष िािा जाता है?
उिर- िसोपोटेनिर्ा (इराक) और निस्र की सभ्र्ता।
23. बसंिु घाटी की जल संबि
ं ी अिूठी निशेर्ता क्र्ा है?
उिर – जल निकासी का प्रबंि
24. िोहिजोदडो िगर ककतिे हेक्टेर्र िें िै ला हुआ था?
उिर – 200 हेक्टेर्र िें
25. लेखक के अिुसार िोहिजोदडो की आबादी लगभग ककतिी थी?
उिर 85000
26. िोहिजोदडो के अलािा बसंिु घाटी सभ्र्ता का दूसरा शहर कौि सा है?
उिर– हडप्पा
27. बसंिु घाटी संस्कृ नत ककस प्रकार की िािी जाती है?
उिर – िैदािी संस्कृ नत
28. 100 िर्ों िें अब तक िोहिजोदडो के ककतिे भाग की खुदाई की गई है?
उिर – एक नतहाई
29. िोहिजोदडो के स्तूप के चबूतरे िाले नहस्से को ककस िाि से पुकारते हैं?
उिर – गढ़
30. िोहिजोदडो की िुख्र् सडक की चौडाई ककतिी थी?
उिर– 33 िीट
31. िहाकुं ड ककतिे िु ट लंबा है?
उिर – 40 िु ट
32. िहाकुं ड की चौडई ककतिी है?
उिर – 25 िु ट
33. िहाकुं ड की गहराई ककतिी है?
उिर – 7 िु ट

214
34. िहाकुं ड के तीि तरि ककसके किरे बिे हुए हैं?
उिर – सािुओं के
35. िहाकुं ड िें पािी के प्रबंि के नलए क्र्ा व्यिस्था है?
उिर – कु आूँ।
36. िहाकुं ड िें ईंटों के बीच चूिे और नचरोडी के गारे का इस्तेिाल क्र्ों ककर्ा गर्ा था?
उिर – अशुद्ध पािी के प्रिेश को रोकिे के नलए
37. िहाकुं ड के पास निले ज्ञाि शालाओं के अिशेर्ों को क्र्ा िाि कदर्ा गर्ा है?
उिर – कॉलेज ऑि प्रीस्ट ।
38. दो पाूँत और 8 स्नािागार कहां बिे थे?
उिर – कुं ड के उिर िें।
39. कोठार ककस काि आते थे?
उिर – कर से प्राप्त अिाज जिा करिे के ।
40. दाढ़ी िाली िूर्तय का िाि क्र्ा रखा गर्ा?
उिर – र्ाजक िरे श।
41. ितयकी के अलािा और ककसकी िूर्तय निली थी?
उिर – दाढ़ी िाले िरे श।
42. िोहि जोदडो से बसंिु िदी ककतिी दूरी पर बहती है?
उिर – 5 ककलोिीटर की दूरी पर।
43. िोहिजोदडो, हडप्पा से प्राप्त हुई ितयकी की िूर्तय ककस राष्ट्रीर् संग्रहालर् िें रखी है?
उिर – राष्ट्रीर् संग्रहालर्, िई कदल्ली ।
44. िोहिजोदडो की गनलर्ों तथा घरों को देखकर लेखक को ककस प्रदेश का ख्र्ाल आर्ा?
उिर – राजस्थाि का।
45. िोहिजोदडो के घरों िें टहलते हुए लेखक को ककस गांि की र्ाद आई?
उिर– कु लिरा गांि।
46. िोहिजोदडो की खुदाई िें निकली पंजीकृ त चीजों की संख्र्ा ककतिी है?
उिर – 50,000 से अनिक
47. िोहिजोदडो की लंबी सडक अब ककतिी बची है?
उिर – 1/2 िील लंबी सडक
48. बसंिु घाटी सभ्र्ता िें कपास पैदा होता था। इसका क्र्ा प्रिाण है?
उिर – सूती कपडा।
49. िोहिजोदडो को िागर भारत का सबसे पुरािा क्र्ा कहा गर्ा है?
उिर – लैंडस्के प।

215
50. िोहिजोदडो की सभ्र्ता और संस्कृ नत अब ककस जगह की शोभा बढ़ा रही हैं?
उिर – अजार्बघरों की ।
51. िोहिजोदडो के िास्तुकला की तुलिा ककस िगर के साथ की गई है?
उिर – चंडीगढ़।
52. खुदाई से प्राप्त गेहूं का रं ग कै सा था?
उिर – काला।
53. अजार्बघर िें तैिात व्यनि का िाि क्र्ा था?
उिर – अली ििाज।
54. बसंिु सभ्र्ता की खूबी क्र्ा है?
उिर – सौंदर्यबोि।
55. लेखक िे बसंिु सभ्र्ता के सौंदर्यबोि को क्र्ा िाि कदर्ा है?
उिर – सिाज पोनर्त सौंदर्यबोि ।
56. र्हाूँ की आडी और सीिी सडकों को आज के िास्तुकार क्र्ा कहते हैं?
उिर – नग्रड प्लाि।
57. भि इिारत िें ककतिे खंभे हैं?
उिर – 20।
58. डी. के . हलका ककसके िाि पर रखा गर्ा हैं?
उिर – दीनक्षत काशीिाथ के ।
59. सोिे की 3 सुईर्ों ककसे निली थी?
उिर – काशीिाथ दीनक्षत
60. र्हाूँ के सबसे िहत्त्िपूणय नहस्से का िाि डी.के .जी ककसके िाि पर रखा गर्ा है?
उिर – पुरातत्िनिद काशीिाथ दीनक्षत।
61. बसंिु घाटी सभ्र्ता िें कौि से िल उगाए जाते थे?
उिर – खजूर और अंगरू ।
62. िोहिजोदडो के सबसे ऊंचे चबूतरे िें क्र्ा निद्िाि हैं?
उिर – बौद्ध स्तूप।
63. बौद्ध स्तूप ककतिे िु ट ऊंचे चबूतरे पर निर्ियत है?
उिर – 25 िु ट।
64. स्तूप से िहाकुं ड की ओर जािे िाले रास्ते का िाि क्र्ा रखा गर्ा है?
उिर– नडनिनिटी स्िीट र्ानि देि िागय।
65. चबूतरे पर ककसके किरे बिे हुए हैं?
उिर – बौद्ध नभक्षुओं के ।

216
66. सािु के किरे कहाूँ थे?
उिर – कुं ड के तीि तरि।
67. दनक्षण िें टू टे-िू टे घरों के जिघट को ककसकी बस्ती िािा गर्ा है?
उिर – कािगारों की।
68. उिर िें दो पांत िें ककतिे स्नािघर हैं?
उिर – 8 स्नािघर।
69. अिाज की ढु लाई के नलए ककस िाहि का प्रर्ोग ककर्ा जाता होगा?
उिर – बैलगाडी।
70. िोहिजोदडो िें कु ओं को छोडकर अन्र् चीजों के आकार कै से थे?
उिर -चौकोर र्ा आर्ताकार।
71. बसंिु घाटी के छोटे टीलों पर बिी बनस्तर्ों को क्र्ा कहा गर्ा है?
उिर – िीचा िगर।
72. रं गरे ज के कारखािों िें क्र्ा रखा जाता होगा?
उिर – रं गाई के बतयि।
73. रं गाई का छोटा कारखािा खुदाई के सिर् ककसे निला था?
उिर – िािोस्िरूप ित्स।
74. िानलर्ों की क्र्ा निशेर्ता थी?
उिर – िानलर्ों पक्की ईंटों से बिी और पत्थरों ढकी हुई थी।
75. बसंिु की खास पहचाि, छापे िाले कपडों को क्र्ा कहते हैं?
उिर – अजरक।
76. सिूची बसंिु सभ्र्ता िें औजार तो निले परं तु क्र्ा िहीं निले?
उिर – हनथर्ार।
बहुनिकल्पीर् प्रश्न
1.कोठार ककसके काि आता होगा?
i. सुरक्षा के नलए ii. िि जिा करिे के नलए
iii. अिाज जिा करिे के नलए iv.कर से से प्राप्त अिाज जिा करिे के नलए
उिर- iv.कर से से प्राप्त अिाज जिा करिे के नलए
2.िुअिजो-दडो हडप्पा से प्राप्त हुई ितयकी की िूर्तय ककस राष्ट्रीर् संग्रहालर् िें रखी हुई है?
i. इस्लािाबाद संग्रहालर् िें ii. लाहौर संग्रहालर् िें
iii. कदल्ली संग्रहालर् िें iv. लंदि संग्रहालर् िें
उिर- iii. कदल्ली संग्रहालर् िें
3.िुअिजो-दडो की गनलर्ों तथा घरों को देखकर लेखक को ककस प्रदेश का ख्र्ाल आर्ा?
217
i. हठरर्ाणा ii. पंजाब
iii. उिर प्रदेश iv. राजस्थाि
उिर- iv. राजस्थाि
4. िुअिजो-दडो के घरों िें टहलते हुए लेखक को ककस गाूँि की र्ाद आई?
i. शुभिरा ii. बुलिरा
iii. कु लघडा iv. कु लिरा
उिर- iv. कु लिरा
5.िुअिजो-दडो की खुदाई िें निकली पंजीकृ त चीज़ों की संख्र्ा ककतिी थी?
i. 52 हजार से अनिक ii. 50 हजार से अनिक
iii. 20 हजार से अनिक iv. 30 हजार से अनिक
उिर- ii. 50 हजार से अनिक
6.बसंिु सभ्र्ता की खूबी क्र्ा है?
i. िागर-बोि ii. सौंदर्य-बोि
iii. संस्कृ नत-बोि iv. सभ्र्ता-बोि
उिर- ii. सौंदर्य-बोि
7.लेखक िे बसंिु सभ्र्ता के सौंदर्य-बोि को क्र्ा िाि कदर्ा है?
i. िािि-पोनर्त ii. ििय-पोनर्त
iii. सिाज-पोनर्त iv. व्यापार-पोनर्त
उिर- iii. सिाज-पोनर्त
8.िुअिजो-दडो िें लगभग ककतिे कु एूँ थे?
i. 700 कु एूँ ii. 800 कु एूँ
iii. 900 कु एूँ iv. 500 कु एूँ
उिर- i. 700 कु एूँ
9.बसंिु घाटी सभ्र्ता िें कपास पैदा होती थी। इसका क्र्ा प्रिाण है?
i. सूती कपडा ii. कपास के बीज
iii. ऊि iv. गिय कपडा
उिर- i. सूती कपडा
10.िुअिजोदडो का िगर ककतिे हजार साल पहले का है?
i. 5000 साल ii. 7000 साल
iii. 4000 साल iv. 6000 साल
उिर- i. 5000 साल
11.राखालदास बैिजी र्हाूँ पर ककस िर्य आए थे?

218
i. सि् 1922 िें ii. सि् 1921 िें
iii. सि् 1923 िें iv. सि् 1924 िें
उिर- i. सि् 1922 िें
12.राखालदास बैिजी कौि थे?
i. पुरातत्त्ििेिा ii. अध्र्ापक
iii. अनतनथ iv. व्यापारी
उिर- i. पुरातत्त्ििेिा
13.िुअिजोदडो को िागर भारत का सबसे पुरािा क्र्ा कहा गर्ा है?
i. लैंडस्के प ii. िगर
iii. घर iv. स्नािघर
उिर- i. लैंडस्के प
14.िहाकुं ड ककतिे िु ट लंबा है?
i. 40 िु ट ii. 50 िु ट
iii. 45 िु ट iv. 20 िु ट
उिर- i. 40 िु ट
15.िहाकुं ड के तीि तरि ककसके कक्ष बिे हुए हैं?
i. सािुओं के ii. िेहिािों के
iii. व्यापाठरर्ों के iv. उपर्ुयि सभी
उिर- i. सािुओं के
16.'अतीत िें दबे पाूँि' िािक पाठ के लेखक का िाि क्र्ा है?
i. ओि थाििी ii. ििोहर श्र्ाि जोशी
iii. िणीश्वरिाथ रे णु iv. हजारी प्रसाद नद्विेदी
उिर- i. ओि थाििी
17. निम्न िें से सत्र् कथि का चुिाि कठरए -
1. िुअिजो-दडो ताम्र काल के शहरों िें सबसे बडा है।
2. हडप्पा के ज्र्ादातर साक्ष्र् रे ललाइि नबछािे के दौराि निकास की भेंट चढ़ गए।
3. िुअिजो-दडो के टीले प्राकृ नतक हैं।
4. िुअिजो-दडो के सबसे ऊूँचे चबूतरे पर बडा बौद्ध स्तूप है।
(क) (2) ि (3) (ख) (1),(2) ि (4)
(ग) (1),(2) ि (3) (घ) इििे से कोई िही
उिर- (ख) (1),(2) ि (4)
18.अतीत िें दबे पाूँि पाठ के आिार पर िुअिजो-दडो के सभी खंडहरों का िािकरण ककस आिार पर ककर्ा गर्ा है?

219
i.खुदाई करिे िाले दल के आिार पर ii.खुदाई करिे िाले पुरातत्त्ििेिाओं के संनक्षप्त िाि पर
iii.इििें से कोई िहीं iv.खुदाई िें निली िस्तुओं के आिार पर
उिर- ii.खुदाई करिे िाले पुरातत्त्ििेिाओं के संनक्षप्त िाि पर
19.अतीत िें दबे पाूँि पाठ के आिार पर िहाकुं ड के तीि तरि ककसके कक्ष बिे हुए हैं?
i.अिीरों के ii.िेहिािों के
iii.कािगारों के iv.सािुओं के
उिर- iv.सािुओं के
20.अतीत िें दबे पाूँि पाठ के अिुसार काशीिाथ दीनक्षत को ककस िातु की सुइर्ाूँ निली थी?
i.पीतल ii.चाूँदी
iii.लोहा iv.सोिा
उिर- iv.सोिा
21.िुअिजो-दडो का क्र्ा अथय है?
i.िुदों का टीला ii.िोहि का िगर
iii.पक्के िकािों का शहर iv.िुहािे पर नस्थत
उिर- i.िुदों का टीला
22.बसंिु घाटी िें ककस िसल के बीज िहीं निलते?
i.ज्िार ii.अंगूर
iii.कपास iv.गेहूूँ
उिर- iii.कपास

220
221
अध्र्ार्- 3
निनभन्न िाध्र्िों के नलए लेखि
जिसंचार - प्रत्र्क्ष संिाद के बजार् ककसी तकिीकी र्ा र्ानन्िक िाध्र्ि के द्वारा सिाज के एक निशाल िगय से संिाद कार्ि
करिा जिसंचार कहलाता है।
जिसंचार के प्रिुख िाध्र्ि-
 अखबार,
 रे नडर्ो,
 टीिी,
 इं टरिेट,
 नसिेिा आकद

बप्रंट िाध्र्ि (िुकद्रत िाध्र्ि)-


सिाचार पि, पनिकाएूँ, पुस्तकें

बप्रंट िाध्र्ि (िुकद्रत िाध्र्ि)-


 जिसंचार के आिुनिक िाध्र्िों िें सबसे पुरािा िाध्र्ि है ।
 िुद्रण कला की शुरुआत चीि से हुई |
 आिुनिक छापाखािे का आनिपकार जियिी के गुटेिबगय िे ककर्ा।
 र्ूरोप िें पुिजायगरण ‘रे िेसाूँ’ की शुरुआत िें छापेखािे का प्रिुख र्ोगदाि था |
 भारत िें पहला छापाखािा सि 1556 ई. िें गोिा िें खुला, इसे ईसाई निशिठरर्ों िे ििय-प्रचार की पुस्तकें छापिे
के नलए खोला था
222
 िुकद्रत िाध्र्िों के अन्तगयत अखबार, पनिकाएूँ, पुस्तकें आकद आती हैं ।
िुकद्रत िाि्र्ि की निशेर्ताएूँ:
 छपे हुए शब्दों िें स्थानर्त्ि होता है, इन्हें सुनििा अिुसार ककसी भी प्रकार से पढाा़ जा सकता है।
 र्ह िाध्र्ि नलनखत भार्ा का निस्तार है। इसिें भार्ा,व्याकरण,ितयिी का निशेर् ध्र्ाि रखा जाता है|
 र्ह बचंति, निचार- निश्लेर्ण का िाध्र्ि है।
िुकद्रत िाि्र्ि की सीिाएूँ:
 निरक्षरों के नलए िुकद्रत िाध्र्ि ककसी काि के िहीं होते।
 र्े तुरंत घटी घटिाओं को संचानलत िहीं कर सकते।
 इसिें स्पेस तथा शब्द सीिा का ध्र्ाि रखिा पडता है।
 इसिें एक बार सिाचार छप जािे के बाद अशुनद्ध-सुिार िहीं ककर्ा जा सकता।
िुकद्रत िाध्र्िों िें लेखि के नलए ध्र्ाि रखिे र्ोग्र् बातें:

भार्ागत शुद्धता का ध्र्ाि रखा जािा प्रचनलत भार्ा का प्रर्ोग ककर्ा जाए।
चानहए।

सिर्, शब्द ि स्थाि की सीिा का लेखि िें तारतम्र्ता एिं सहज प्रिाह
ध्र्ाि रखा जािा चानहए। होिा चानहए।

इलेकिानिक िाध्र्ि
 रे नडर्ो
 टेनलनिजि
 इंटरिेट
 नसिेिा
रे नडर्ो-
रे नडर्ो एक श्रव्य िाध्र्ि है । इसिें शब्द एिं आिाज का िहत्ि होता है। रे नडर्ो एक रे खीर् (लीनिर्र) िाध्र्ि है। रे नडर्ो
सिाचर की संरचिा उल्टा नपरानिड शैली पर आिाठरत होती है। उल्टानपरानिड शैली िें सिाचार को तीि भागों बाूँटा
जाता है-इंिो, बाूँडी और सिापि। इसिें तथ्र्ों को िहत्त्ि के क्ि से प्रस्तुत ककर्ा जाता है, सियप्रथि सबसे ज्र्ादा िहत्त्िपूणय
तथ्र् को तथा उसके उपरांत िहत्त्ि की दृनष्ट से घटते क्ि िें तथ्र्ों को रखा जाता है।
रे नडर्ो सिाचार-लेखि के नलए बुनिर्ादी बातें:

223
 सिाचार िाचि के नलर्े तैर्ार की गई कापी साफ-सुथरी ओर टाइप्ड कॉपी हो ।
 कापी को ठिपल स्पेस िें टाइप ककर्ा जािा चानहए।
 पर्ायप्त हानशर्ा छोडाा़ जािा चानहए।
 अंकों को नलखिे िें साििािी रखिी चानहए। 1 से 10 तक के अंकों को शब्दों िें, 11 से 999 को अंकों िें नलखा
जाए | बडे अंकों को शब्दों िें नलखिा चानहए |
 संनक्षप्ताक्षरों के प्रर्ोग से बचा जािा चानहए। संनक्षप्ताक्षरों के प्रर्ोग िें र्ह देखा जािा चानहए कक िह ककतिा
लोकनप्रर् है जैसे डब्लूटीओ,र्ूनिसेि,साकय ,आईसीआईसीआई आकद |
टेलीनिजि (दूरदशयि):
जिसंचार का सबसे लोकनप्रर् ि सशि िाध्र्ि है। इसिें ध्िनिर्ों के साथ-साथ दृश्र्ों का भी सिािेश होता है। इसके नलए
सिाचार नलखते सिर् इस बात का ध्र्ाि रखा जाता है कक शब्द ि पदे पर कदखिे िाले दृश्र् िें सिािता हो।
टी०िी० खबरों के निनभन्न चरण:
 फ़्लैश र्ा ब्रेककं ग न्र्ूज- इसिें कि से कि शब्दों िें सूचिा दी जाती है |
 ड्राई एंकर-इसिें एंकर खबर दशयकों को सीिे-सीिे बताता है कक कहाूँ,क्र्ा,कब,कै से हुआ आकद
 फोि इि-इसके बाद खबर का निस्तार होता है | एंकर ठरपोटयर से िोि पर बात करके सूचिाएूँ दशयको तक पहुूँचाता
है |
 एंकर-निजुअल – जब घटिा के दृश्र् र्ा निजुअल निल जाते है तब उि दृश्र्ों के आिार पर खबर नलखी जाती है
नजसे एंकर द्वारा पढ़ा जाता है |
 एंकर-बाइट – बाईट र्ानि कथि | टेलीनिजि िें बाईट का बहुत िहत्त्ि है | टेलीनिजि िें ककसी भी खबर को पुष्ट
करिे के नलए प्रत्र्क्षदर्शयर्ों के बाईट कदखाई जाती है |
 लाइि – लाइि र्ानि घटिा का सीिा प्रसारण |
 एंकर-पैकेज- ककसी खबर को संपूणयता के साथ प्रस्तुत करिा |
िेट साउं ड- ककसी खबर का िाइस ओिर नलखते हुए उसिे शॉट्स के िुतानबक ध्िनिर्ों के नलए गुंजाईश छोड देिी चानहए
| टीिी िें ऐसी ध्िनिर्ों को िेट साउं ड र्ानि प्राकृ नतक आिाज़े कहते है |
रे नडर्ो और टेलीनिजि सिाचार की भार्ा शैली:
 भार्ा आि लोगों की पहुूँच िाली होिी चानहए परन्तु भार्ा के स्तर और गठरिा के साथ कोई सिझौता भी ि
करिा पडे |
 सिाचार िें िाक्र् छोटे,सीिे और स्पष्ट भार्ा िें नलखे जाए |
 तथा,ककन्तु,परन्तु,र्ा,आकद शब्दों के प्रर्ोग से बचिा चानहए |
 क्र् निक्ह की जगह खरीद नबक्ी,स्थािांतरण की जगह तबादला और पंनि की जगह कतार टीिी िें सहज िािे
जाते है |

224
इं टरिेट- संसार का सबसे ििीि ि लोकनप्रर् िाध्र्ि है। इसिें जिसंचार के सभी िाध्र्िों के गुण सिानहत हैं। र्ह जहाूँ
सूचिा, ििोरं जि, ज्ञाि और व्यनिगत एिं साियजनिक सिादों के आदाि-प्रदाि के नलए श्रेष्ठ िाध्र्ि है, िहीं अश्लीलता,
दुपप्रचार ि गंदगी फै लािे का भी जठरर्ा है ।
इं टरिेट पिकाठरता:
इंटरिेट पर सिाचारों का प्रकाशि र्ा आदाि-प्रदाि इंटरिेट पिकाठरता कहलाता है। इंटरिेट पिकाठरता दो रूपों िें होती
है। प्रथि- सिाचार संप्रेर्ण के नलए िेट का प्रर्ोग करिा । दूसरा- ठरपोटयर अपिे सिाचार को ई-िेल द्वारा अन्र्ि भेजिे ि
सिाचार को संकनलत करिे तथा उसकी सत्र्ता, निश्वसिीर्ता नसद्ध करिे के नलए करता है
भारत- पहला चरण 1993 से तथा दूसरा चरण 2003 से शुरू िािा जाता है। भारत िें सच्चे अथों िें िेब पिकाठरता करिे
िाली साइटें ’रीनडफ डॉट कॉि’, इंनडर्ा इफोलाइि’ ि ’सीफी’ हैं । रीनडफ को भारत की पहली साइट कहा जाता है। िेब
साइट पर निशुद्ध पिकाठरता शुरू करिे का श्रेर् ’तहलका डॉट्कॉि’ को जाता है।
बहंदी िें िेट पिकाठरता:
िेब दुनिर्ा’ के साथ शुरू हुई। र्ह नहन्दी का संपूणय पोटयल है। प्रभा साक्षी िाि का अखबार बप्रंट रूप िें ि होकर नसफय िेट
पर ही उपलब्ि है। आज पिकाठरता के नलहाज से नहन्दी की सिय श्रेष्ठ साइट बीबीसी की है, जो इंटरिेट के िािदंडों के
अिुसार चल रही है। नहन्दी िेब जगत िें ’अिुभूनत’, अनभव्यनि, नहन्दी िेस्ट, सरार् आकद सानहनत्र्क पनिकाएूँ भी अच्छा
काि कर रही हैं। अभी नहन्दी िेब जगत की सबसे बडीा़ सिस्र्ा िािक की बोडय तथा फोंट की है । डार्िनिक फौंट के
अभाि के कारण नहन्दी की ज्र्ादातर साइटें खुलती ही िहीं हैं ।
िैकनल्पक प्रश्नोिर
1. इििें से कौि-सा जिसंचार िाध्र्ि अिपढ़ व्यनि के नलए उपर्ोगी िहीं है?
A. इंटरिेट B. सिाचार-पि
C. पनिकाएूँ D. तीिों
उिर- D. तीिों
2. सिायनिक खचीला जिसंचार िाध्र्ि कौि-सा है?
A. रे नडर्ो B. टेलीनिज़ि
C. सिाचार पि D. इंटरिेट
उिर- D. इं टरिेट
3. श्रव्य जिसंचार िाध्र्ि कौि-सा है?
A. सिाचार पि B. रे नडर्ो
C. इंटरिेट D. टेनलनिजि
उिर- B. रे नडर्ो
4. िुद्रण का आरं भ ककस देश िें हुआ?
A. भारत B. जापाि
C. चीि D. इंग्लैण्ड
225
उिर- C. चीि
5. ितयिाि छापेखािे का अनिपकार ककसिे ककर्ा?
A. गुटेिबगय िे B. नचिनिि िे
C. निहाल बसंह िे D. जॉिसि िे
उिर- A. गुटेिबगय िे
6. भारत िें पहला छापाखािा कब लगा?
A. सि् 1556 िें B. सि् 1546 िें
C. सि् 1656 िें D. सि् 1576 िें
उिर- A. सि् 1556 िें
7. भारत िें पहला छापाखािा कहाूँ पर लगार्ा गर्ा?
A. कदल्ली िें B. कोलकाता िें
C. गोिा िें D. कािपुर िें
उिर- C. गोिा िें
8. सिाचार लेखि की प्रभािशाली शैली कौि सी है?
A. िणयिात्िक शैली B. नििेचिात्िक शैली
C. नपरानिड शैली D. उल्टा नपरानिड शैली
उिर- D. उल्टा नपरानिड शैली
9. इििें से कौि-सा उल्टा नपरानिड शैली का अंग िहीं है?
A. िध्र् भाग B. बॉडी
C. इंिो D. सिापि
उत्तर- A. िध्र् भाग
10. उल्टा नपरानिड शैली िें सिाचार ककतिे भागों िें बाूँटा जाता है?
A. तीि B. चार
C. पाूँच D. दो
उिर- A. तीि
11. दृश्र्ों का ककस िाध्र्ि िें अनिक िहत्ि होता है?
A. सिाचार पि B. रे नडर्ो
C. टेलीनिज़ि D. इंटरिेट
उिर- C. टेलीनिज़ि

12. टेलीनिज़ि के नलए खबर नलखिे की िौनलक शतय क्र्ा है?

226
A. सानहनत्र्क भार्ा िें लेखि B. दृश्र् के साथ लेखि
C. सिसिीखेज लेखि D. सािान्र् लेखि
उिर- B. दृश्र् के साथ लेखि
13. नहन्दी िें िेट पिकाठरता ककसके साथ आरं भ हुई?
A. िैब दुनिर्ा के साथ B. दैनिक जागरण के साथ
C. दैनिक भास्कर के साथ D. राजस्थाि पनिका के साथ
उिर- A. िैब दुनिर्ा के साथ
14. कक्के ट िैच का प्रसारण ककस प्रकार का है?
A. िोि इि B. एंकर पैकेज
C. सीिा प्रसारण D. एंकर िाइट
उिर- C. सीिा प्रसारण
15. आिुनिक र्ुग िें इंटरिेट पिकाठरता का कौि-सा दौर चल रहा है?
A. नद्वतीर् B. तृतीर्
C. प्रथि D. चतुथय
उिर- B. तृतीर्
16. भारत िें इं टरिेट पिकाठरता का दूसरा दौर कब आरंभ हुआ?
A. 2001 िें B. 2002 िें
C. 2003 िें D. 2004 िें
उिर- C. 2003 िें
17. सिाचार पि प्रकानशत र्ा प्रसाठरत करिे के नलए आनखरी सिर् सीिा को क्र्ा कहा जाता है?
A. ब्लू लाइि B. ब्लैक लाइि
C. रै ड लाइि D. डैड लाइि
उिर- D. डैड ललाइि
स्िर्ं करें
1) निम्ननलनखत िें से कौि सी बातें रे नडर्ों के नलर्े सिाचार लेखि की बुनिर्ादी बातें हैं -
क) साि-सुथरी और टाइप्ड कॉपी ख) डेडलाइि, संदभय और संनक्षप्ताक्षरों का प्रर्ोग
ग) क और ख दोिों घ) कोई भी िहीं
2) प्रसारण के नलए तैर्ार की जा रही सिाचार कॉपी को कं प्र्ूटर पर ककतिे स्पेस िें टाइप ककर्ा जािा चानहए?
क) बसंगल स्पेस ख) डबल स्पेस
ग) ठिपल स्पेस घ) इििें से कोई भी िहीं
3) उल्टा नपरानिड शैली िें सिाचार के सबसे िहत्िपूणय तथ्र् को कहां नलखा जाता है?
क) सबसे पहले ख) बीच िें
227
ग) आनखर िें घ) कहीं भी
4) लेखि िें हिें ककि-ककि बातों का ध्र्ाि रखिा पडता है?
क) भार्ा ख) व्याकरण
ग) ितयिी घ) उपर्ुि सभी
5) प्रिुख जिसंचार िाध्र्ि कौि-कौि से होते हैं?
क) टी.िी. ख) रे नडर्ो
ग) इंटरिेट घ) उपरोि सभी
6) इंटरिेट क्र्ा है?
क) लोकल एठरर्ा िेटिकय का एक इंटरकिेक्शि ख) एक बसंगल िेटिकय
ग) निनभन्न िेटिकय का एक निशाल किेक्शि घ) इििें से कोई भी िहीं
7) इििें से कौि सा एक इं टरिेट िेटिकय है?
क) िैि ख) लेि
ग) िैि घ) उपरोि सभी
8) पहली िेबसाइट अनस्तत्ि ______ आई थी ?
क) 1992 िें ख) 1991िें
ग) 1994 िें घ) 1990 िें
9) गूगल क्ोि एक _____ है।
क) सचय इं जि ख) ईिेल
ग) िेबसाइट घ) ब्राउज़र
10) ड्राई एंकर कै सा चरण है?
क) कि से कि सिर् और शब्दों िें सूचिा दी जाती है
ख) एंकर, ठरपोटयर से निली जािकारी के आिार पर सूचिाएं पहुंचाता है
ग) घटिास्थल से सीिा प्रसारण
घ) एंकर, ठरपोटयर से िोि पर बात करता है
11) 'एंकर बाइट' िें बाइट का क्र्ा अथय है?
क) िेघा बाइट ख) कीडे का काटिा
ग) एंकर की आिाज घ) बाइट र्ािी कथि
12) ककसी बडी घटिा के दृश्र् तत्काल दशयकों तक सीिे पहुंचािा क्र्ा कहलाता है?
क) सीिी ठरपोटय ख) ब्रेककं ग न्र्ूज़
ग) लाइि र्ा सीिा प्रसारण घ) एंकर निजुअल
13) निम्ननलनखत िें से कौि-सा टी.िी. का सूचिा चरण िहीं होता?
क) िोि-इि ख) एंकर पैकेज

228
ग) ड्राई ऐंकर घ) नस्क्प्ट
14) भारत िें टेलीनिजि का आरं भ कब हुआ था?
क) 20 अगस्त 1949 ख) 15 नसतंबर 1959
ग) 26 जििरी 1975 घ) 4 िाचय 1942
15) टेलीनिजि िें 'लाइि' का क्र्ा अथय है?
क) ब्रेककं ग न्र्ूज़ ख) एंकर निजुअल
ग) घटिास्थल से खबर प्रस्तुत करिा घ) िोि-इि
16) बहंदी िें िेट पिकाठरता ककसके साथ शुरू हुई थी?
क) िेब दुनिर्ा ख) इंटरिेट
ग) अखबार घ) बी.बी.सी. साइट
17) निम्ननलनखत िें से कौि सा अखबार बप्रंट रूप िें ि होकर नसिय इंटरिेट पर उपलब्ि है?
क) अिर उजाला ख) बहंदस्ु ताि
ग) भास्कर घ) प्रभासाक्षी
18) पिकाठरता की सबसे सियश्रष्ठ
े साइट कौि सी है?
क) बी.बी.सी. साइट ख) आई.आई.एि.सी. साइट
ग) एच बहंदी साइट घ) बहंदी भार्ण साइट
19) टेलीनिजि लेखि िें इििें से ककसकी अहनिर्त सबसे ज्र्ादा होती है?
क) नस्क्प्ट ख) दृश्र्
ग) बप्रंट घ) इििें से कोई भी िहीं
20) टेलीनिजि के नलए खबर नलखिे की िौनलक शतय क्र्ा है-
क) शब्दों के साथ लेखि ख) श्रोता के नलए लेखि
ग) नचिों के साथ लेकि घ) दृश्र् के साथ लेखि
21) टेलीनिजि लेखि िें कौिसी कला का इस्तेिाल होता है?
क) कि शब्दों िें कि खबर ख) ज्र्ादा शब्दों िें कि खबर
ग) कि शब्दों िें ज्र्ादा खबर घ) इििें से कोई भी िहीं
22) टेलीनिजि पर प्रसाठरत खबरों िें सबसे िहत्िपूणय है-
क) निजुअल ख) बाइट
ग) िेट घ) उपर्ुयि सभी
23) टेलीनिजि पर खबर पेश करिे के तरीकों को हि ककस प्रकार सिझ सकते हैं-
क) खबरों के प्रचनलत ढांचे र्ा िॉिेट को सिझकर ख) खबरों के प्रचनलत ढांचे को सिझकर
ग) नसिय िॉिेट को सिझकर घ) टीिी पर कदखाई खबरों को सिझकर
24) टी.िी. िें दृश्र् और शब्दों के बीच और क्र्ा निल जाता है?

229
क) िीनडर्ो ख) िाटक
ग) ध्िनिर्ां घ) इििें से कोई भी िहीं
25) टी.िी. के नलए अच्छी खबर कै से नखलकर आती है?
क) छोटे िाक्र्ों एिं बेहतरीि संपादि से ख) अच्छे नचिों के रं ग से
ग) निजुअल इिे क्ट्स से घ) अच्छे कार्यक्िों से
26) आि आदिी को सिाचारों से जोडे रखिे के नलए क्र्ा िाध्र्ि है?
क) िेि और बस ख) रे नडर्ो और टी.िी.
ग) कागज और कलि घ) कोई भी िहीं
27) रे नडर्ो और टी.िी. पर ककस तरह की भार्ा का उपर्ोग होिा चानहए?
क) सरल ख) जठटल
ग) क एिं ख दोिों घ) कोई भी िहीं
28) सरल भार्ा नलखिे का सबसे बेहतर उपार् कौि-सा है?
क) छोटे, सीिे और स्पष्ट ख) बडे, सीिे और जठटल
ग) छोटे एिं जठटल घ) कोई भी िहीं
29) रे नडर्ो…………. िाध्र्ि है।
क) दृश्र् ख) श्रव्य
ग) दृश्र् और श्रव्य दोिों घ) इििें से कोई िहीं
30) पहला छापाखािा सि् 1956 िें कहां खुला?
क) के रल ख) कदल्ली
ग) गोिा घ) िहाराष्ट्र
िहत्िपूणय िणयिात्िक प्रश्न
बप्रंट िाध्र्ि (िुकद्रत िाध्र्ि)-
1. बप्रंट िीनडर्ा से क्र्ा आशर् है?
छपाई िाले संचार िाध्र्ि को बप्रंट िीनडर्ा कहते हैं। इसे िुद्रण-िाध्र्ि भी कहा जाता है। सिाचार-पि पनिकाएूँ, पुस्तकें
आकद इसके प्रिुख रूप हैं।
2. जिसंचार के आिुनिक िाध्र्िों िें सबसे पुरािा िाध्र्ि कौि-सा है?
उिर- जिसंचार के आिुनिक िाध्र्िों िें सबसे पुरािा िाध्र्ि बप्रंट िाध्र्ि है।
3. आिुनिक छापाखािे का आनिपकार ककसिे ककर्ा?
उिर- आिुनिक छापाखािे का आनिपकार जियिी के गुटेिबगय िे ककर्ा।
4. भारत िें पहला छापाखािा कब और कहाूँ पर खुला था?
उिर- भारत िें पहला छापाखािा सि १७७६ िें गोिा िें खुला, इसे ईसाई निशिठरर्ों िे ििय-प्रचार की पुस्तकें छापिे के
नलए खोला था।
230
5. जिसंचार के िुकद्रत िाध्र्ि कौि-कौि से हैं?
उिर- िुकद्रत िाध्र्िों के अन्तगयत अखबार, पनिकाएूँ पुस्तके आकद आती हैं।
6. िुकद्रत िाध्र्ि की निशेर्ताएूँ नलनखए।
उिर-
 छपे हुए शब्दों िें स्थानर्त्ि होता है, इन्हें सुनििािुसार ककसी भी प्रकार से पढ़ा जा सकता है।
 र्ह िाध्र्ि नलनखत भार्ा का निस्तार है।
 र्ह बचंति, निचार-निश्लेर्ण का िाध्र्ि है।
7. िुकद्रत िाध्र्ि की सीिाएूँ (दोर्) नलनखए।
उिर-
 निरक्षरों के नलए िुकद्रत िाध्र्ि ककसी काि के िहीं होते।
 र्े तुरंत घटी घटिाओं को संचानलत िहीं कर सकते।
 इसिें स्पेस तथा शब्द सीिा का ध्र्ाि रखिा पडता है।
 इसिें एक बार सिाचार छप जािे के बाद अशुनद्ध-सुिार िहीं ककर्ा जा सकता।
8. िुकद्रत िाध्र्िों के लेखि के नलए नलखते सिर् ककि-ककि बातों का ध्र्ाि रखा जािा चानहए।
उिर-
 भार्ागत शुद्धता का ध्र्ाि रखा जािा चानहए।
 प्रचनलत भार्ा का प्रर्ोग ककर्ा जाए।
 सिर्, शब्द ि स्थाि की सीिा का ध्र्ाि रखा जािा चानहए।
 लेखि िें तारतम्र्ता एिं सहज प्रिाह होिा चानहए।
रे नडर्ो (आकाशिाणी)
1. इलैक्िानिक िाध्र्ि से क्र्ा तात्पर्य है?
उिर- नजस जि संचार िें इलैकिानिक उपकरणों का सहारा नलर्ा जाता है इलैक्िानिक िाध्र्ि कहते हैं। रे नडर्ो, दूरदशयि,
इंटरिेट प्रिुख इलैक्िानिक िाध्र्ि हैं।
2. ऑल इं नडर्ा रे नडर्ो की निनिित स्थापिा कब हुई
सि् १९३६ िें
3. एफ.एि. रे नडर्ो की शुरुआत कब से हुई?
उिर-एफ.एि. (कफक्वेंसी िाड्युलेशि) रे नडर्ो की शुरुआत सि् १९९३ से हुई।
4. रे नडर्ो ककस प्रकार का िाध्र्ि है?
उिर- रे नडर्ो एक इलैक्िोनिक श्रव्य िाध्र्ि है। इसिें शब्द एिं आिाज का िहत्त्ि होता है। र्ह एक रे खीर् िाध्र्ि है।

5. रे नडर्ो सिाचार ककस शैली पर आिाठरत होते हैं?


उिर- रे नडर्ो सिाचार की संरचिा उल्टानपरानिड शैली पर आिाठरत होती है।

231
6. उल्टा नपरानिड शैली क्र्ा है? र्ह ककतिे भागों िें बूँटी होती है?
उिर- नजसिें तथ्र्ों को िहत्त्ि के क्ि से प्रस्तुत ककर्ा जाता है, सियप्रथि सबसे ज्र्ादा िहत्त्िपूणय तथ्र् को तथा उसके
उपरांत िहत्त्ि की दृनष्ट से घटते क्ि िें तथ्र्ों को रखा जाता है उसे उल्टा नपरानिड शैली कहते हैं। उल्टानपरानिड शैली िें
सिाचार को तीि भागों िें बाूँटा जाता है- इंिो, बॉडी और सिापि।
7. रे नडर्ो सिाचार-लेखि के नलए ककि-ककि बुनिर्ादी बातों पर ध्र्ाि कदर्ा जािा चानहए?
उिर-
 सिाचार िाचि के नलए तैर्ार की गई कापी साफ-सुथरी और टाइप्ड कॉपी हो।
 कॉपी को ठिपल स्पेस िें टाइप ककर्ा जािा चानहए।
 पर्ायप्त हानशर्ा छोडा जािा चानहए।
 अंकों को नलखिे िें साििािी रखिी चानहए।
 संनक्षप्ताक्षरों के प्रर्ोग से बचा जािा चानहए।
टेलीनिजि (दूरदशयि):
1. दूरदशयि जिसंचार का ककस प्रकार का िाध्र्ि है?
उिर- दूरदशयि जिसंचार का सबसे लोकनप्रर् ि सशि िाध्र्ि है। इसिें ध्िनिर्ों के साथ-साथ दृश्र्ों का भी सिािेश होता
है। इसके नलए सिाचार नलखते सिर् इस बात का ध्र्ाि रखा जाता है कक शब्द ि पदे पर कदखिे िाले दृश्र् िें सिािता
हो।
2. भारत िें टेलीनिजि का आरं भ और निकास ककस प्रकार हुआ?
उत्तर- भारत िें टेलीनिजि का प्रारं भ १७ नसतंबर १९७९ को हुआ। र्ूिेस्को की एक शैनक्षक पठरर्ोजिा के अन्तगयत कदल्ली
के आसपास के एक गाूँि िें दो टी.िी. सैट लगाए गए, नजन्हें २०० लोगों िे देखा। १९६७ के बाद निनिित टीिी सेिा आरं भ
हुई। १९७६ िें दूरदशयि िािक निकार् की स्थापिा हुई।
3. टी०िी० खबरों के निनभन्न चरणों को नलनखए।
उिर- दूरदशयि िे कोई भी सूचिा निम्न चरणों र्ा सोपािों को पार कर दशयकों तक पहुूँचती है।
(1) फ़्लैश र्ा ब्रेककं ग न्र्ूज (सिाचार को कि-से-कि शब्दों िें दशयकों तक तत्काल पहुूँचािा)
(2) ड्राई एंकर (एंकर द्वारा शब्दों िें खबर के निर्र् िें बतार्ा जाता है)
(3) फोि इि (एंकर ठरपोटयर से फोि पर बात कर दशयकों तक सूचिाएूँ पहुूँचाता है)
(4) एंकर-निजुअल (सिाचार के साथ-साथ संबंनित दृश्र्ों को कदखार्ा जािा)
(5) एंकर-बाइट (एंकर का प्रत्र्क्षदशी र्ा संबंनित व्यनि के कथि र्ा बातचीत द्वारा प्रािानणक खबर प्रस्तुत करिा)
(6) लाइि (घटिास्थल से खबर का सीिा प्रसारण)
(7) एंकर-पैकेज (इसिें एंकर द्वारा प्रस्तुत सूचिाएूँ; संबंनित घटिा के दृश्र्, बाइट, ग्राकफक्स आकद द्वारा व्यिनस्थत
ढंग से कदखाई जाती हैं)
इं टरिेट-
1. इं टरिेट क्र्ा है? इसके गुण-दोर्ों पर प्रकाश डानलए।
232
उिर- इंटरिेट निश्वव्यापी अंतजायल है, र्ह जिसंचार का सबसे ििीि ि लोकनप्रर् िाध्र्ि है। इसिें जिसंचार के सभी
िाध्र्िों के गुण सिानहत हैं। र्ह जहाूँ सूचिा, ििोरं जि, ज्ञाि और व्यनिगत एिं साियजनिक संिादों के आदाि-प्रदाि के
नलए श्रेष्ठ िाध्र्ि है, िहीं अश्लीलता, दुपप्रचार ि गंदगी फै लािे का भी जठरर्ा है।
2. इं टरिेट पिकाठरता क्र्ा है?
उिर- इंटरिेट (निश्व्यापी अंतजायल) पर सिाचारों का प्रकाशि र्ा आदाि-प्रदाि इंटरिेट पिकाठरता कहलाता है। इंटरिेट
पिकाठरता दो रूपों िें होती है। प्रथि- सिाचार संप्रेर्ण के नलए िेट का प्रर्ोग करिा। दूसरा- ठरपोटयर अपिे सिाचार को
ई-िेल द्वारा अन्र्ि भेजिे ि सिाचार को संकनलत करिे तथा उसकी सत्र्ता, निश्वसिीर्ता नसद्ध करिे के नलए करता है।
3. इं टरिेट पिकाठरता को और ककि-ककि िािों से जािा जाता है?
उिर- ऑिलाइि पिकाठरता, साइबरपिकाठरता, िेब पिकाठरता आकद िािों से।
4. निश्व-स्तर पर इंटरिेट पिकाठरता का निकास ककि-ककि चरणों िें हुआ?
उिर- निश्व-स्तर पर इंटरिेट पिकाठरता का निकास निम्ननलनखत चरणों िें हुआ
 प्रथि चरण ------- १९८२ से १९९२
 नद्वतीर् चरण ------- १९९३ से २००१
 तृतीर् चरण ------- २००२ से अब तक
5. भारत िें इंटरिेट पिकाठरता का प्रारम्भ कब से हुआ?
उिर-पहला चरण १९९३ से तथा दूसरा चरण २००३ से शुरू िािा जाता है। भारत िें सच्चे अथों िें िेब पिकाठरता करिे
िाली साइटें ‘रीनडफ डॉट कॉि’, ‘इंनडर्ाइंफोलाइि’ ि ‘सीफी’ हैं। रीनडि को भारत की पहली साइट कहा जाता है।
6. िेबसाइट पर निशुद्ध पिकाठरता शुरू करिे का श्रेर् ककसको जाता है?
उिर- ‘तहलका डॉटकॉि’
7. भारत िें सच्चे अथों िें िेब पिकाठरता करिे िाली साइटों के िाि नलनखए।
उिर- ‘रीनडफ डॉट कॉि’, ‘इंनडर्ाइंफोलाइि’ ि ‘सीफी’
8. भारत िें कौि-कौि से सिाचार-पि इंटरिेट पर उपलब्ि हैं?
उिर- टाइम्स आफ इंनडर्ा, बहंदस्ु ताि टाइम्स, इंनडर्ि एक्सप्रैस, बहंद,ू ठिब्र्ूि आकद।
9. भारत की कौि-सी िेट-साइट भुगताि देकर देखी जा सकती है?
उिर- ‘इंनडर्ा टुडे’
10. भारत की पहली साइट कौि-सी है, जो इं टरिेट पर पिकाठरता कर रही हैं?
उिर- रीनडि
11. नसफय िेट पर उपलब्ि अखबार का िाि नलनखए।
उिर- “प्रभा साक्षी” िाि का अखबार बप्रंट रूप िें ि होकर नसफय िेट पर उपलब्ि है।

12. पिकाठरता के नलहाज से बहंदी की सियश्रेष्ठ साइट कौि-सी है?


उिर- पिकाठरता के नलहाज से नहन्दी की सियश्रेष्ठ साइट बीबीसी की हैं, जो इंटरिेट के िािदंडों के अिुसार चल रही है।

233
13. बहंदी िेब जगत िें कौि-कौि सी सानहनत्र्क पनिकाएूँ चल रही हैं?
उिर- बहंदी िेब जगत िें ‘अिुभूनत’, अनभव्यनि, बहंदी िेस्ट, सरार् आकद सानहनत्र्क पनिकाएूँ चल रही हैं।
14. बहंदी िेब जगत की सबसे बडी सिस्र्ा क्र्ा है?
उिर- नहन्दी िेब जगत की सबसे बडी सिस्र्ा िािक की-बोडय तथा िोंट की है। डार्िनिक िोंट के अभाि के कारण नहन्दी
की ज्र्ादातर साइटें खुलती ही िहीं हैं।
स्िर्ं करें
1. भारत िें पहला छापाखाि ककस उद्देश्र् से खोला गर्ा?
2. गुटेिबगय को ककस क्षेि िें र्ोगदाि के नलए र्ाद ककर्ा जाता है?
3. रे नडर्ो सिाचर ककस शैली िें नलखे जाते हैं?
4. रे नडर्ो तथा टेलीनिजि िाध्र्िों िें िुख्र् अंतर क्र्ा है?
5. एंकर बाईट क्र्ा है?
6. सिाचार को संकनलत करिे िाला व्यनि क्र्ा कहलाता है?
7. िेट साउं ड ककसे कहते हैं?
8. ब्रेककं ग न्र्ूज से आप क्र्ा सिझते हैं?
पाठ-4
पिकारीर् लेखि के निनभन्न रूप और लेखि प्रकक्र्ा
सिाचार पि र्ा अन्र् सिाचार िाध्र्िों (टी.िी.,रे नडर्ो आकद) िें काि करिे िाले अपिे पाठकों, दशयकों और श्रोताओं तक
सूचिाओं को पहुंचािे के नलए लेखि के निनभन्न रूपों का इस्तेिाल करते हैं। इसे ही पिकारीर् लेखि कहते हैं।
पिकार तीि प्रकार के होते हैं पूणयकानलक अंशकानलक और फ्ीलांसर र्ािी स्ितंि ।
पूणक
य ानलक पिकार- िे पिकार जो ककसी सिाचार संगठि िें काि करिे िाले निर्नित िेतिभोगी कियचारी होते हैं।
अंशकानलक पिकार (बस्िंगर)- ककसी सिाचार संगठि के नलए एक निनित िािदेर् पर काि करिेिाले पिकार |
फ्ीलांसर पिकार -नजि पिकारों का सम्बन्ि ककसी खास सिाचार पि से िहीं होता है बनल्क िे भुगताि के आिार पर
अलग अलग सिाचार पिों के नलए नलखते हैं।
पिकारीर् लेखि का सम्बन्ि और दार्रा सिसािनर्क और िास्तनिक घटिाओं, सिस्र्ाओं और िुद्दों से होता है।इसनलए
र्ह सानहनत्र्क लेखि से नभन्न है। नजसिें अनििार्य रूप से तात्कानलक और अपिे पाठकों की रुनचर्ों और जरूरतों को ध्र्ाि
िें रखकर लेखि ककर्ा जाता है पि-पनिकाओं के पाठक सािान्र् साक्षर से लेकर निद्वाि और निशेर्ज्ञ होते हैं इसनलए
पिकार की लेखि शैली और भार्ा िें गूढ़ से गूढ़ निर्र् की प्रस्तुनत ऐसी सहज, सरल और रोचक होिी चानहए कक िह
आसािी से सबकी सिझ िें आ जाए। पिकारीर् लेखि िें आलंकाठरकता संस्कृ तनिष्ठ भार्ा शैली के बजार् आि बोलचाल
की भार्ा का इस्तेिाल ककर्ा जाता है। अखबारों िें सीिी, सरल, साि-सुथरी लेककि प्रभािी भार्ा के इस्तेिाल पर जोर
कदर्ा जाता है। शब्द सरल और आसािी से सिझ िें आिे िाले होिे चानहए। िाक्र् छोटे और सहज होिे चानहए। जठटल
और लम्बे िाक्र्ों से बचिा चानहए। भार्ा को प्रभािी बिािे के नलए गैर जरूरी निशेर्णों (ऐसी शब्दािली नजससे बहुत

234
कि पाठक पठरनचत होते हैं) और क्लीशे (दोहराि) का प्रर्ोग िहीं करिा चानहए। इिके प्रर्ोग से भार्ा बोनझल हो जाती
है।
सिाचार लेखि :- सािान्र्तुः अखिारों िें सिाचार पूणयकानलक और अंशकानलक पिकार नलखते हैं, नजन्हें संिाददाता र्ा
ठरपोटयर भी कहते हैं। अखबारों िें प्रकानशत अनिकांश सिाचार एक खास शैली िें नलखे जाते है। इि सिाचारों िें ककसी
घटिा सिस्र्ा र्ा निचार के सबसे िहत्िपूणय तथ्र् सूचिा र्ा जािकारी को सबसे पहले पैराग्राि िें नलखा जाता है। उसके
बाद के पैराग्राि िें उससे कि िहत्त्िपूणय सूचिा र्ा तथ्र् की जािकारी दी जाती है। र्ह प्रकक्र्ा सिाचार के खत्ि होिे तक
जारी रहती है और इसे ही सिाचार लेखि की 'उल्टा नपरानिड शैली 'कहा जाता है। र्ह सिाचार लेखि की सबसे लोकनप्रर्
उपर्ोगी और बुनिर्ादी शैली है। र्ह कथा लेखि की शैली के नबल्कु ल उलटी है नजसिें क्लाइिेक्स नबल्कु ल आनखर िें होता
है। इसे 'उल्टा नपरानिड' इसनलए कहा जाता है क्र्ोंकक इसिें सबसे िहत्त्िपूणय तथ्र् र्ा सूचिा र्ािी क्लाइिेक्स' नपरानिड
के सबसे निचले नहस्से िें िहीं होती बनल्क इस शैली िें नपरानिड को उलट कदर्ा कदर्ा जाता है।
उल्टा नपरानिड शैली की शुरुआत अिेठरका के गृह र्ुद्ध के दौराि हुई जब संिाददाताओं को ककसी घटिा की खबर टेलीग्राि
द्वारा शीघ्रता से और संक्षेप िें देिी होती थी। इस तरह उल्टा नपरानिड शैली का निकास हुआ और िीरे िीरे लेखि और
संपादि की सुनििा के कारण र्ह शैली सिाचार लेखि की िािक (स्टैंडडय) शैली बि गई।
सिाचार लेखि और छह ककार-
सिाचार नलखते हुए िुख्र्तुः छह सिालों का जिाब देिे की कोनशश की जाती है -क्र्ा हुआ, ककसके साथ हुआ, कहाूँ हुआ,
कब हुआ, कै से और क्र्ों हुआ? इस क्र्ा , ककसके (र्ा कौि) कहाूँ, कब, क्र्ों और कै से को छह ककारों के रूप जािा जाता
है। िुखडा (इंिो) सिाचार के िुखडे (इंिो र्ािी पहले पैराग्राि र्ा शुरुआती दो-तीि पंनिर्ों िें आितौर पर तीि र्ा चार
ककारों को आिार बिाकर खबर नलखी जाती है। र्े चार ककार है क्र्ा, कौि, कब और कहाूँ ? बाडी और सिापि िें बाकी
दो ककारों कै से और क्र्ों का जिाब कदर्ा जाता है। इस तरह छह ककारों के आिार पर सिाचार तैर्ार होता है। इििें से
पहले चार ककार क्र्ा, कौि, कब और कहाूँ सूचिात्िक और तथ्र्ों पर आिाठरत होते हैं जबकक बाकी दो ककारों कै से और
क्र्ों िें नििरणात्िक व्याख्र्ात्िक और निश्लेपणात्िक पहलू पर जोर कदर्ा जाता है। सिाचार िें सूचिा के स्रोत र्ािी
नजससे जािकारी निली है उसको भी अिश्र् नलखा जािा चानहए।
निशेर् ठरपोटय कै से नलखें -
ठरपोटय के गुण- ठरपोटय का आकार संनक्षप्त होिा चानहए। उसिें निपपक्षता का भाि बेहद जरूरी है। उसिें पूणयता ि संतुलि
होिा चानहए।
निशेर् ठरपोटय- ककसी निर्र् पर गहरी छािबीि, निश्लेर्ण और व्याख्र्ा के आिार पर बििे िाली ठरपोट्सय को निशेर् ठरपोटय
कहते हैं। उन्हें तैर्ार करिे के नलए ककसी घटिा सिस्र्ा र्ा िुद्दे की गहरी छािबीि की जाती है। उससे संबंनित तथ्र्ों को
एकनित ककर्ा जाता है। तथ्र्ों के निश्लेर्ण से उसके ितीजे, प्रभाि और कारणों को स्पष्ट ककर्ा जाता है।
निशेर् ठरपोटय के प्रकार-
खोजी ठरपोटय- इसिें ठरपोटयर िौनलक शोि ि छािबीि के जठरए ऐसी सूचिाएं र्ा तथ्र् साििे लाता है जो साियजनिक तौर
पर पहले उपलब्ि िहीं थी। उसका प्रर्ोग आितौर पर भ्रष्टाचार, अनिर्नितताओं और गडबनडर्ों को उजागर करिे के नलए
ककर्ा जाता है।

235
इि-डेप्थ ठरपोटय -इसिें साियजनिक तौर पर उपलब्ि तथ्र्ों, सूचिाओं और आंकडों की गहरी छािबीि की जाती है। छािबीि
के आिार पर ककसी घटिा सिस्र्ा र्ा िुद्दे से जुडे िहत्िपूणय पहलुओं को साििे लार्ा जाता है।

निश्लेर्णात्िक ठरपोर्ट- इसिें ककसी घटिा र्ा सिस्र्ा से जुडे तथ्र्ों के निश्लेर्ण और व्याख्र्ा पर जोर कदर्ा जाता है।
नििरणात्िक ठरपोटय-इसिें ककसी घटिा र्ा सिस्र्ा का निस्तृत और बारीक नििरण प्रस्तुत ककर्ा जाता है।
निशेर् ठरपोटय लेखि की शैली- सािान्र्तुः निशेर् ठरपोटय को उल्टा नपरानिड शैली िें ही नलखा जाता है, परन्तु कई बार इन्हें
िीचर शैली िें भी नलखा जाता है। इस तरह की ठरपोटय आितौर पर सिाचार से बडी होती है, इसनलए पाठक की रुनच
बिाए रखिे के नलए कई बार उलटा नपरानिड और िीचर दोिों शैनलर्ों को निलाकर इस्तेिाल ककर्ा जाता है। र्कद ठरपोटय
बडी हो तो उसे शृंखलाबद्ध करके कई कदि तक ककस्सों िें छापा जाता है।
िीचर लेखि
िीचर एक सुव्यिनस्थत, सुजिात्िक और आत्िनिष्ठ लेखि है।
िीचर लेखि का उद्देश्र्- िीचर का उद्देश्र् िुख्र् रूप से पाठकों को सूचिा देिा, नशनक्षत करिा तथा उिका ििोरं जि करिा
िीचर शब्द की उत्पनि लैठटि भार्ा के "िै क्िा'(Fectura) शब्द से हुई है नजसका आशर् स्िरूप, आकृ नत, रूपरे खा, लक्षण
र्ा व्यनित्ि होता है।
संक्षेप िें ककसी स्थाि पठरिेश, िस्तु र्ा घटिा का ऐसा शब्दबद्ध रूप जो भािात्िक संिेदिा से पठरपूणय कल्पिाशीलता से
र्ुि हो तथा नचिात्िक शैली िें सहज और सरल भार्ा द्वारा अनभव्यि ककर्ा जाए िीचर कहा जाता है। र्ह पाठक की
भाििाओं और संिेदिाओं को उत्प्रेठरत करता है। िीचर को नहन्दी िें 'रूपक' के िाि से भी जािा जाता है ककन्तु सियप्रचनलत
और लोकनप्रर् शब्द िीचर ही है। िीचर नलखिे का प्रिुख उद्देश्र् सािानजक दानर्त्ि/ सरोकार के साथ साथ ज्ञाििियि
ििोरं जि और जीििगत र्थाथय की भािात्िक अनभव्यनि है। िीचर लेखि के निर्र् का चर्ि लेखक की रूनच, निशेर्ज्ञता,
निर्र् की प्रासंनगकता और प्रकाशि की प्रकृ नत के आिार पर ककर्ा जाता है।
िीचर और सिाचार िें अन्तर:- सिाचार िें ठरपोटयर को अपिे निचारों को डालिे की स्ितंिता िहीं होती, जबकक िीचर
िें लेखक को अपिी रार् दृनष्टकोण और भाििाओं को जानहर करिे का अिसर होता है। सिाचार उल्टा नपरानिड शैली िें
नलखे जाते हैं, जबकक िीचर लेखि की कोई सुनिनित शैली िहीं होती। िीचर िें सिाचारों की तरह शब्दों की सीिा िहीं
होती। आितौर पर िीचर, सिाचार ठरपोटय से बडे होते हैं। पि-पनिकाओं िें प्रार्ुः 250 से 2000 शब्दों तक के िीचर
छपते हैं।
िीचर लेखि संबि
ं ी साििानिर्ाूँ-
 िीचर िें निर्र् से जुडे लोगों की िौजूदगी हो।
 कथ्र् को पािों के िाध्र्ि से बतलािा
 ििोरं जिात्िक और सूचिात्िक हो
 उद्देश्र् के इदय-नगदय प्रासंनगक सूचिाएं, तथ्र् और निचार गूंथे हुए हो।
 उसिें प्रभाि और गनत हो नजससे पाठक स्िर्ं देखकर अिुभि करें ।
 िीचर के साथ िोटो रे खांकि, ग्राकिक्स का होिा जरूरी है।

236
 निर्र् से संबंनित निजी अिुभिों की भािानभव्यनि हो।
 िीचर का प्रारं भ आकर्यक और उत्सुकता पैदा करिेिाला होिा चानहए। प्रारं भ, िध्र् और अन्त को स्िाभानिक
तरीके से बाूँििा।
 भार्ा प्रिाहपूणय हो नजसिें हर पैराग्राि एक पहलू पर ही िोकस करें और हर पैराग्राि अपिे पहले के पैराग्राि से
सहज तरीके जुडा हो।
िीचर सिाचार पिों िें प्रकानशत होिे िाली ककसी निशेर् घटिा, व्यनि, जीि-जन्तु, तीज त्र्ोहार, कदि, स्थाि, प्रकृ नत
पठरिेश से संबंनित व्यनिगत अिुभूनतर्ों पर आिाठरत निनशष्ट आलेख होता है जो कल्पिाशीलता और सृजिात्िक कौशल
के साथ ििोरं जक और आकर्यक शैली िें प्रस्तुत ककर्ा जाता है। अथायत् िीचर ककसी रोचक निर्र् पर ििोरं जक ढंग से
नलखा गर्ा निनशष्ट आलेख होता है।
िीचर के प्रकार:- सूचिात्िक िीचर, नििरणात्िक िीचर, निज्ञापि िीचर, निश्लेर्णात्िक िीचर, व्यनिपरक िीचर,
साक्षात्कार िीचर, इिडेप्थ िीचर अन्र् िीचर ।
िीचर की निशेर्ताएूँ:
 ककसी घटिा की सत्र्ता र्ा तथ्र्ता िीचर का िुख्र् तत्त्ि होता है। एक अच्छे िीचर को ककसी सत्र्ता र्ा तथ्र्ता
पर आिाठरत होिा चानहए।
 िीचर का निर्र् सिसािनर्क होिा चानहए।
 िीचर का निर्र् रोचक होिा चानहए र्ा िीचर को ककसी घटिा के कदलचस्प पहलुओं पर आिाठरत होिा चानहए

 िीचर को शुरू से लेकर अन्त तक ििोरं जक शैली िें नलखा जािा चानहए। िीचर को ज्ञाििियक, उिेजक और
पठरितयिसूचक होिा चानहए।
 िीचर को ककसी निर्र् से संबंनित लेखक के निजी अिुभिों की अनभव्यनि होिी चानहए।
 िीचर लेखक ककसी घटिा की सत्र्ता र्ा तथ्र्ता को अपिी कल्पिा का पुट देकर िीचर िें बदल सकता है।
 िीचर को सीिा सपाट ि होकर नचिात्िक होिा चानहए। िीचर की भार्ा सरल, सहज और स्पष्ट होिे के साथ-
साथ कलात्िक और बबंबात्िक होिी चानहए।
िीचर लेखि की प्रकक्र्ा
1. निर्र् का चर्ि
2 .सािग्री का संग्रह
3. िीचर र्ोजिा
1. निर्र् का चर्ि:- ककसी भी िीचर की सिलता इस बात पर निभयर करती है कक िह ककतिा रोचक, ज्ञाििियक और
उत्प्रेठरत करिे िाला है। इसनलए िीचर का निर्र् सिर्ािुकूल प्रासंनगक और सिसािनर्क होिा चानहए। अथायत् िीचर
का निर्र् ऐसा होिा चानहए जो लोगों की रुनच का हो, लोक िािि को छु ए, पाठकों िें नजज्ञासा जगाए और कोई िई
जािकारी दे।

237
2. सािग्री का संकलि:- िीचर का निर्र् तर् करिे के बाद दूसरा िहत्िपूणय चरण है निर्र् संबंिी सािग्री का संकलि।
उनचत जािकारी और अिुभि के अभाि िें ककसी निर्र् पर नलखा गर्ा िीचर उबाऊ हो सकता है। निर्र् से संबंनित
उपलब्ि पुस्तकों, पि-पनिकाओं से सािग्री जुटािे के अलािा िीचर लेखक को बहुत सािग्री लोगों से निलकर कई स्थािों
िें जाकर जुटािी पड सकती है।
3. िीचर र्ोजिा- िीचर से संबंनित पर्ायप्त जािकारी जुटा लेिे के बाद िीचर लेखक को िीचर नलखिे से पहले िीचर का
एक र्ोजिाबद्ध खाका बिािा चानहए।
िीचर लेखि की संरचिा
1. निर्र् प्रनतपादि र्ा भूनिका
2. निर्र् िस्तु की व्याख्र्ा
3. निपकर्य
निर्र् प्रनतपादि र्ा भूनिका : िीचर लेखि की संरचिा के इस भाग िें िीचर के िुख्र् भाग िें व्याख्र्ानर्त ककए जािे िाले
निर्र् का संनक्षप्त पठरचर् र्ा सार कदर्ा जाता है। इस संनक्षप्त पठरचर् र्ा सार की कई प्रकार िें शुरुआत की जा सकती है।
ककसी प्रनसद्ध कहाित र्ा उनि के साथ, निर्र् के के न्द्रीर् पहलू का नचिात्िक िणयि करके , घटिा की िाटकीर् प्रस्तुनत
करके , निर्र् से संबंनित कु छ रोचक सिाल पूछकर । भूनिका का आरम्भ ककसी भी प्रकार से ककर्ा जाए, इसकी शैली रोचक
होिी चानहए। िुख्र् निर्र् का पठरचर् इस तरह देिा चानहए कक िह पूणय भी लगे लेककि उसिें ऐसा कु छ छू ट जाए नजसे
जाििे के नलर्े पाठक पूरा िीचर पढ़िे को बाध्र् हो जाए।
निर्र् िस्तु की व्याख्र्ा:- िीचर की भूनिका के बाद िीचर के निर्र् र्ा िूल संिेदिा की व्याख्र्ा की जाती है। इस चरण
िें िीचर के िुख्र् निर्र् के सभी पहलुओं को अलग अलग व्याख्र्ा की जािी चानहए। लेककि सभी पहलुओं की प्रस्तुनत िें
एक प्रत्र्क्ष र्ा अप्रत्र्क्ष क्िबद्धता होिी चानहए। िीचर को कदलचस्प बिािे के नलए िीचर िें िार्ियकता,
कलात्िकता,नजज्ञासा, निश्वसिीर्ता, उिेजिा, िाटकीर्ता आकद का सिािेश करिा चानहए।
निपकर्र्:- िीचर लेखि के इस चरण िें व्याख्र्ानर्त िुख्र् निर्र् की सिीक्षा की जाती है। इस भाग िें िीचर लेखक अपिे
निर्र् को संनक्षप्त रूप िें प्रस्तुत कर पाठकों की सिस्त नजज्ञासाओं को सिाप्त करते हुए िीचर का सिापि करता है। साथ
ही िह कु छ सिालों को पाठकों के नलर्े अिुिठरत भी छोड सकता है र्ा कु छ िए निचारसूि पाठकों के साििे रख सकता
है नजससे पाठक उि पर निचार करिे को बाध्र् हो ।
िीचर लेखि से जुडे िहत्त्िपूणय पहलू-
शीर्यक- ककसी रचिा का र्ह एक जरूरी नहस्सा होता है और र्ह उसकी िूल संिेदिा र्ा उसके िूल निर्र् का बोि कराता
है। िीचर का शीर्यक ििोरं जक और कलात्िक होिा चानहए नजससे िह पाठकों िें रोचकता उत्पन्न कर सके । छार्ानचि
होिे से िीचर की प्रस्तुनत कलात्िक हो जाती है नजसका पाठक पर अिुकूल प्रभाि पडता है। निर्र् से संबंनित छार्ानचि
देिे से निर्र् और भी िुखर हो उठता है। साथ ही छार्ानचि ऐसा होिा चानहए जो िीचर के निर्र् को िुखठरत करे। िीचर
को कलात्िक और रोचक बिाए तथा पाठक के भीतर निर्र् की प्रस्तुनत के प्रनत निश्वसिीर्ता बिाए।
िीचर ि सिाचार िें अन्तर-

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1. िीचर िें लेखक के पास अपिी रार् र्ा दृनष्टकोण और भाििाएं जानहर करिे का अिसर होता है, जबकक सिाचार लेखि
िें िस्तुनिष्ठता और तथ्र्ों की शुद्धता पर जोर कदर्ा जाता है।
2. िीचर लेखि िें उलटा नपरानिड शैली का प्रर्ोग िहीं होता है। इसकी शैली कथात्िक होती है। िीचर लेखि की भार्ा
सरल ि आकर्यक होती है, परन्तु सिाचार की भार्ा िें सपाट बर्ािी होती है।
3. िीचर िें शब्दों की अनिकति सीिा िहीं होती। र्े आितौर पर 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के होते हैं, जबकक
सिाचारों पर शब्द सीिा लागू होती है।
4 िीचर का निर्र् कु छ भी हो सकता है, सिाचार का िहीं।
आलेख (लेख) लेखि
सिाचारों के सम्पादकीर् पृष्ठ पर सिसािनर्क िुद्दों पर िठरष्ठ पिकारों और उि निर्र्ों के निशेर्ज्ञों के आलेख प्रकानशत
होते है। आलेख िें लेखक के निचारों को प्रिुखता दी जाती है। लेककि र्े निचार तथ्र्ों और सूचिाओं पर आिाठरत होते हैं
और लेखक उि तथ्र्ों और सूचिाओं का निश्लेर्ण अपिे तकों के जठरए अपिी रार् प्रस्तुत करता है। निर्र् के बारे िें निस्तृत
और सिग्र जािकारी के साथ ही पर्ायप्त तैर्ारी आलेख नलखिे के नलए आिश्र्क है। आलेख िें लगा 'आ' उपसगय र्ह प्रकट
करता है कक आलेख सम्र्क और सम्पूणय होिा चानहए। आलेख गद् की िह नििा है जो ककसी एक निर्र् पर सिांगपूणय और
सम्र्क निचार प्रस्तुत करती है।
ककसी एक निर्र् पर प्रिाि रचिा को आलेख कहते हैं। नजसिें तथ्र्ात्िक निश्लेर्णात्िक अथिा निचारात्िक दृनष्टकोण से
संपूणय जािकारी होती है, आलेख गद् लेखि की िह नििा है नजसिें लेखक अपिी बातों को स्ितंितापूियक दुनिर्ा के साििे
बर्ा कर सकता है।
आलेख लेखि के िुख्र् अंग निम्न प्रकार हैं-
आलेख िें िुख्र् रूप से दो अंग होते हैं। प्रथि अंग है भूनिका तथा इसका नद्वतीर् ि िहत्िपूणय अंग है निर्र् का प्रनतपादि
भूनिका के अन्तगयत शीर्यक का अिुरूपण ककर्ा जाता है नजसिें भूनिका के अिुरूप संनक्षप्त लेखि द्वारा बात कही जाती है
तथा निर्र् के प्रनतपादि िें निर्र् के क्निक निकास तारतम्र्ता और क्िबद्धता का ध्र्ाि रखा जाता है, अन्त िें तुलिात्िक
निश्लेर्ण करके निपकर्य निकाला जाता है।
आलेख लेखि संबि
ं ी साििानिर्ाूँ-
1. आलेख नलखिे से पहले अध्र्र्ि शोि, बचंति, ििि और निश्लेर्ण आिश्र्क है।
2. निर्र्िस्तु से संबनं ित आंकडे और उदाहरण िोट कर लें और आलेख नलखते सिर् उनचत स्थाि पर उसका प्रर्ोग करें ।
3. शुरुआत उस निर्र् से जुडे सबसे ताजा प्रसंग र्ा घटिाक्ि का नििरण देकर की जा सकती है।
4. िैचाठरक और तकिीकी कु शलतार्ुि भार्ा का प्रर्ोग करें , नजसिें निचारों और तथ्र्ों की स्पष्टता हो। निचार उनचत
क्ि िें होिे चानहए।
5. भार्ा सरल, बोिगम्र्, रोचक और आकर्यक हो। एक अिुच्छेद िें एक ही भाि को प्रकट करें ।
6. शैली नििेचि निश्लेर्ण र्ा निचार प्रिाि हो सकती है।
7. भ्रािक जािकारी र्ा संकदग्ि जािकारी ि दें। अन्त िें निपकर्य अिश्र् नलखें।

239
िीचर और आलेख िें अन्तर –
पिकाठरता िें सिाचारों के बाद आलेख और िीचर का स्थाि है। लेख और िीचर दोिों ही सिाि रूप से िहत्िपूणय हैं,लेककि
दोिों का प्रभाि अलग अलग होता है। िीचर पाठकों की रुनच के अिुरूप, ककसी घटिा र्ा ककसी निर्र् की तथ्र्पूणय रोचक
प्रस्तुनत है। गहि अध्र्र्ि पर आिाठरत गम्भीर प्रिानणत लेखि, लेख की श्रेणी िें आता है। िीचर िि को प्रभानित करता
है जबकक लेख कदिाग को । िीचर एक प्रकार का गद् गीत है जबकक लेख गम्भीर ि उच्च स्तर की बहुआर्ािी गद् रचिा।
िीचर ककसी भी घटिा र्ा निर्र् के कु छ आर्ािों को छू ता है तो लेख उस घटिा के हर पहलू को स्पशय कर प्रस्तुत करता है
पिकार पीजी टंडि के अिुसार ककताबे पढ़कर आंकडे जिाकर के लेख नलखा जा सकता है। लेककि िीचर को अपिी आूँख,
काि, भािों, अिुभूनतर्ों, ििोिेगों और अन्िेर्ण का सहारा भी लेिा पडता है। लेख लम्बा गम्भीर और हर व्यनि के अिुकूल
ि होते हुए भी प्रशंसिीर् हो सकता है। लेककि र्े बातें िीचर के नलए जािलेिा है। िीचर को रोचक, कदलचस्प और सबकी
रुनच के अिुसार होिा ही होता है । लेख सािान्र्तुः ककसी निशेर् सिस्र्ा पर उसके नलए ककसी निशेर् पहलू का सूक्ष्ि और
गहि अध्र्र्ि होता है। लेख निर्र् की पृष्ठभूनि के अध्र्र्ि से तैर्ार ककर्ा जा सकता है, िीचर िहीं। लेख और िीचर
दोिों की शैली भी नभन्न होती है। लेख िें लेखक को उपलब्ि आिार सािग्री के अिुसार गंभीरतापूियक चीजें प्रस्तुत करिी
होती है, िगर िीचर लेखक को जीिि और जीिि की सिस्र्ाओं पर अपिा दृनष्टकोण प्रस्तुत करिे की भी छटपटाहट होती
है।
निचारपरक लेखि- लेख, ठटप्पनणर्ाूँ और संपादकीर्-
अखबारों िें सिाचार और फीचर के अलािा निचारपरक सािग्री का भी प्रकाशि होता है। कई अखबारों की पहचाि उिके
िैचाठरक रुझाि से होती है। एक तरह से अखबारों िें प्रकानशत होिे िाले निचारपूणय लेखि से उस अखबार की छनि बिती
है। अखबारों िें संपादकीर् पृष्ठ पर प्रकानशत होिे िाले संपादकीर् अग्रलेख, लेख और ठटप्पनणर्ाूँ इसी निचारपरक पिकारीर्
लेखि की श्रेणी िें आते हैं। इसके अलािा निनभन्न निर्र्ों के निशेर्ज्ञों र्ा िठरष्ठ पिकारों के स्तंभ (कॉलि) भी निचारपरक
लेखि के तहत आते हैं। कु छ अखबारों िें संपादकीर् पृष्ठ के साििे ऑप एड पृष्ठ पर भी निचारपरक लेख, ठटप्पनणर्ाूँ और
स्तंभ प्रकानशत होते हैं।
संपादकीर् लेखि-
संपादकीर् पृष्ठ पर प्रकानशत होिे िाले संपादकीर् को उस अखबार की अपिी आिाज िािा जाता है। संपादकीर् के जठरए
ककसी घटिा सिस्र्ा र्ा िुद्दे के प्रनत अपिी रार् प्रकट की जाती है। संपादकीर् ककसी व्यनि निशेर् का निचार िहीं होता
इसनलए उसे ककसी के िाि के साथ िहीं छापा जाता। संपादकीर् नलखिे का दानर्त्ि उस अखबार िें काि करिे िाले
संपादक और उिके सहर्ोनगर्ों पर होता है। आितौर पर अखबारों िें सहार्क संपादक, संपादकीर् नलखते हैं। कोई बाहर
का लेखक र्ा पिकार संपादकीर् िहीं नलख सकता है।
इसी तरह स्तंभ लेखि भी निचारपरक लेखि का एक प्रिुख रूप है। कु छ िहत्त्िपूणय लेखक अपिे खास िैचाठरक रुझाि के
नलए जािे जाते हैं। उिकी अपिी एक लेखि शैली भी निकनसत हो जाती है। ऐसे लेखकों की लोकनप्रर्ता को देखकर अखबार
उन्हें एक निर्नित स्तंभ नलखिे का नजम्िा दे देते हैं। स्तंभ का निर्र् चुििे और उसिें अपिे निचार व्यि करिे की स्तंभ
लेखक को पूरी छू ट होती है। स्तंभ िें लेखक के निचार अनभव्यि होते हैं। र्ही कारण है कक स्तंभ अपिे लेखकों के िाि पर

240
जािे और पसंद ककए जाते हैं। कु छ स्तंभ इतिे लोकनप्रर् होते हैं कक अखबार उिके कारण भी पहचािे जाते हैं। लेककि िए
लेखकों को स्तंभ लेखि का िौका िहीं निलता है।
संपादक के िाि पि-
अखिारों के संपादकीर् पृष्ठ पर और पनिकाओं की शुरुआत िें संपादक के िाि पाठकों के पि भी प्रकानशत होते हैं। सभी
अखबारों िें र्ह एक स्थार्ी स्तंभ होता है। र्ह पाठकों का अपिा स्तंभ होता है। इस स्तंभ के जठरए अखबार के पाठक ि
नसफय निनभन्न िुद्दों पर अपिी रार् व्यि करते हैं बनल्क जि सिस्र्ाओं को भी उठाते हैं। एक तरह से र्ह स्तंभ जिित को
प्रनतबबंनबत करता है। जरूरी िहीं कक अखबार पाठकों द्वारा व्यि ककए गए निचारों से सहित हो। र्ह स्तंभ िए लेखकों के
नलए लेखि की शुरुआत करिे और उन्हें हाथ िाूँजिे का भी अच्छा अिसर देता है।
लेख-
सभी अखबार संपादकीर् पृष्ठ पर सिसािनर्क िुद्दों पर िठरष्ठ पिकारों और उि निर्र्ों के निशेर्ज्ञों के लेख प्रकानशत करते
हैं। इि लेखों िें ककसी निर्र् र्ा िुद्दे पर निस्तार से चचाय की जाती है। लेख निशेर् ठरपोटय और िीचर से इस िािले िें अलग
है कक उसिें लेखक के निचारों को प्रिुखता दी जाती है। लेककि र्े निचार तथ्र्ों और सूचिाओं पर आिाठरत होते हैं और
लेखक उि तथ्र्ों और सूचिाओं के निश्लेर्ण और अपिे तकों के जठरर्े अपिी रार् प्रस्तुत करता है। लेख नलखिे के नलए
पर्ायप्त तैर्ारी जरूरी है। इसके नलए उस निर्र् से जुडे सभी तथ्र्ों और सूचिाओं के अलािा पृष्ठभूनि सािग्री भी जुटािी
पडती है। लेख की कोई एक निनित लेखि शैली िहीं होती और हर लेखक की अपिी शैली होती है। लेककि अगर आप
अखबारों और पनिकाओं के नलए लेख नलखिा चाहते है तो शुरुआत उि निर्र्ों के साथ करिी चानहए नजस पर आपकी
अच्छी पकड और जािकारी हो। लेख का भी एक प्रारं भ, िध्र् और अंत होता है। लेख की शुरुआत िें अगर उस निर्र् के
सबसे ताजा प्रसंग र्ा घटिाक्ि का नििरण कदर्ा जाए और किर उससे जुडे अन्र् पहलुओं को साििे लार्ा जाए, तो लेख
का प्रारं भ आकर्यक बि सकता है। इसके बाद तथ्र्ों की िदद से निश्लेर्ण करते हुए, आनखर िें आप अपिा निपकर्य र्ा ित
प्रकट कर सकते हैं।
साक्षात्कार इंटरव्यू-
सिाचार िाध्र्िों िें साक्षात्कार का बहुत िहत्त्ि है। पिकार एक तरह से साक्षात्कार के जठरए ही सिाचार, िीचर, निशेर्
ठरपोटय और अन्र् कई तरह के पिकारीर् लेखि के नलए कच्चा िाल इकट्ठा करते हैं। पिकारीर् साक्षात्कार और सािान्र्
बातचीत िें र्ह िकय होता है कक साक्षात्कार िें एक पिकार ककसी अन्र् व्यनि से तथ्र् उसकी रार् और भाििाएूँ जाििे के
नलए सिाल पूछता है। साक्षात्कार का एक स्पष्ट िकसद और ढाूँचा होता है। एक सिल साक्षात्कार के नलए आपके पास ि
नसिय ज्ञाि होिा चानहए बनल्क आपिें संिेदिशीलता, कू टिीनत, िैर्य और साहस जैसे गुण भी होिे चानहए।
बहुनिकल्पीर् प्रश्न
1. आलेख के निर्र् िहीं हैं?
a) ब्रेककं ग न्र्ूज b) राजिीनत
c) निज्ञाि d) सिसािनर्की
2. ऐसी पिकाठरता जो ककसी निचारािारा उद्देश्र् र्ा िुद्दे को उठाकर जिित तैर्ार करती है, ____ पिकाठरता कहलाती
है।
241
a) पीत b) पेज थ्री
c) एडिोके सी d) िैकनल्पक
3. सिाचार संगठि िें काि करिे िाले निर्नित िेतिभोगी पिकार को क्र्ा कहते हैं?
a) फ्ी लांसर b) अल्पकानलक
c) पूणयकानलक d) अंशकानलक
4. देश-निदेश िें घटिे िाली घटिाओं को सिाचार के रूप िें पठरिर्तयत करिे की प्रकक्र्ा को ____ कहते हैं।
a) पिकाठरता b) िॉचडॉग
c) सिाचार-पि d) खोजपरक
5. संपादक के दो नसद्धांत है-
a) सिझ एिं सिीक्षा b) अस्पष्ट एिं भ्रि
c) सुलभ एिं स्िच्छता d) िस्तुपरकता एिं निपपक्षता
6. ऐसा सुव्यिनस्थत, सृजिात्िक और आत्िनिष्ट लेखि; नजसके िाध्र्ि से सूचिाओं के साथ-साथ ििोरं जि पर भी ध्र्ाि
कदर्ा जाता है ___ कहते हैं।
a) सिीक्षा करिा b) िीचर लेखि
c) आलेख लेखि d) ठरपोटय बिािा
7. भारत िें पहला सिाचार पि कब और कहाूँ से प्रकानशत हुआ?
a) 1780, बंबई b) 1770, कलकिा
c) 1790, चेन्नई d) 1780, कलकिा
8. सिाचार-पि संपण
ू य कब बिता है?
a) प्रभानिकता, निकटता आकद तत्िों b) सिाचारों का संकलि
c) िाक्र् छोटे, सरल और सहज होिा d) ठटप्पणी, िोटो और काटूयि का होिा
9. जिसंचार का दृश्र् एिं श्रव्य िाध्र्ि का उनचत उदाहरण है-
a) रे नडर्ो और टेलीनिजि दोिों b) रे नडर्ो
c) टेलीनिजि d) अखबार
10. निनभन्न घटिाओं को सिाचारों के रूप िें पठरिर्तयत करते हैं-
a) लेखक b) संपादक
c) पिकार d) कनि
11. िह जो सिाचार के नचि िहीं आिे तक दशयकों को ठरपोटयर से निली जािकारी के आिार पर घटिा से संबनं ित सूचिा
देता है, कहलता है-
a) निजुअल एंकर-पैकेज b) एंकर-पैकेज
c) बाइट एंकर d) ड्राई एंकर
12. सिाचार पिों िें छपिे िाले िीचर िें लगभग ककतिे शब्द होिे चानहए?

242
a) 250 से 2000 शब्द b) 500 से 5000 शब्द
c) 100 से 500 शब्द d) 550 से 5000 शब्द
13. फीचर लेखि के ककतिे प्रकार है?
a) दस b) चार
c) पाूँच d) आठ
14. ____ नसद्धांत सिाचार लेखि का बुनिर्ादी नसद्धांत है।
a) निकोण b) रे खा
c) िृत d) उल्टा नपरानिड
15. जिसंचार के कौि-कौि से लोकनप्रर् िाध्र्ि ितयिाि िें प्रचनलत हैं?
a) टेलीनिजि एिं इंटरिेट b) अन्र्
c) रे नडर्ो और अखबार d) टेलीनिजि और अखबार
16. तथ्र्ों की शुद्धता, िस्तुपरकता, निपपक्षता, संतल
ु ि और स्रोत हैं-
a) संपादि के नसद्धांत b) संपादि के गुण
c) संपादि के प्रकार d) संपादि के तत्त्ि
17. ककि-ककि क्षेिों िें सिीक्षा की जाती है?
a) नशक्षा िें b) रोजगार िें
c) किल्िों िें d) सभी िें
18. पिकाठरता का िूल तत्ि क्र्ा है?
a) घूििा-किरिा b) नजज्ञासा
c) राजनिनतक d) जासूसी करिा
19. िीचर की कौि-सी निशेर्ता है?
a) सभी b) आत्िनिष्ठ
c) सृजिात्िक d) सुव्यिनस्थत
20 सिाचार लेखि की श्रेष्ठ शैली कौि-सी है?
a) सीिा नपरानिड शैली b) नििेचिात्िक शैली
c) व्याख्र्ा शैली d) उल्टा नपरानिड शैली
21. पिकारीर् लेखि िें सिायनिक िहत्त्ि ककस बात का है?
a) लोगों को निश्वास िें लािे का b) कदखािा करिे का
c) सभी d) सिसािनर्क घटिाओं की जािकारी
22. भुगताि के आिार पर अलग-अलग सिाचर पिों िें नलखिे िाले पिकार को क्र्ा कहते हैं?
a) अल्पकानलक b) संपादक
c) अंशकानलक d) फ्ी लांसर

243
23. सिाचार पि का संपादि करिे िाले को क्र्ा कहते हैं?
a) संपादक b) िीचर लेखक
c) प्रकाशक d) संिाददाता
24. िह पिकाठरता जो सरकार के कािकाज पर निगाह रखती है और गडबनडर्ों का पदायिाश करती है, ____ पिकाठरता
कहलाती है।
a) िॉचडॉग b) खोजपरक
c) एडिोके सी d) निशेर्ीकृ त
25. पिकाठरता के प्रिुख ककतिे प्रकार है?
a) छह b) पाूँच
c) चार d) आठ
26. ककसी सािग्री की अशुनद्धर्ों को दूर कर उसे पठिीर् बिािा। कहलाता है-
a) िेब पिकाठरता b) संपादि
c) पिकाठरता d) िीचर लेखि
27. इििें सिाचार पि की आिाज ककसे िािा जाता है?
a) िीचर लेखि b) संपादकीर्
c) आलेख लेखि d) स्तंभ लेखि
28. जिसंचार के प्रचनलत िाध्र्िों िें सबसे पुरािा िाध्र्ि क्र्ा है?
a) िेब िाध्र्ि b) इलैक्िोनिक िाध्र्ि
c) िुकद्रत िाध्र्ि d) रे नडर्ो िाध्र्ि
29. बहंदी का पहला साप्तानहक पनिका ककसे िािा जाता है?
a) उदंत िातंड b) के सरी
c) गरुड पनिका d) कियिीर
30. सिाचार लेखि के ककतिे 'क' कार होते हैं?
a) छह b) चार
c) सात d) पाूँच
31. जिसंचार िाध्र्ि का लाभ िहीं है-
a) ििय से लेकर सेहत तक की जािकारी निल रही है।
b) सरकारी कािकाज पर निगरािी बढ़ी है।
c) र्ह हिारे दैनिक जीिि िें शानिल हो गर्ा है।
d) इसिे काल्पनिक जीिि को बढ़ािा कदर्ा है।
32. इं िो िें ककतिे ककारों को आिार बिाकर खबर नलखी जािी चानहए?
a) दो र्ा तीि b) तीि र्ा चार

244
c) चार र्ा पाूँच d) एक र्ा दो
33. आलेख का िूल उद्देश्र् िही है?
a) सिाचार देिा b) ज्ञाि का निस्तार
c) ििोरं जि करिा d) जािकारी देिा
34. पिकाठरता एक तरह से कौि-सा लेखि है?
a) पुराति सिाचार लेखि b) पौरानणक प्रसंग लेखि
c) साप्तनहक कथा लेखि d) दैनिक इनतहास लेखि
35. पिकाठरता िें सिायनिक िहत्त्ि ककस बात का है?
a) चाटुकाठरता का b) सिसािनर्क घटिाओं का
c) सिीक्षाओं का d) िणयि का
36. जब दो व्यनि आपस िें और आििे-साििे संचार करते हैं तो इसे ____ कहते हैं।
a) िौनखक संचार b) जिसंचार
c) सिूह संचार d) अंतरिैर्निक संचार
37. िै शि, ग्लैिर, अिीरों की पार्टयर्ों और लोकनप्रर् जािे-िािे लोगों के जीिि की जािकारी देिे िाली सािग्री को ____
पिकाठरता कहते हैं।
a) इंटरिेट पिकाठरता b) िॉचडॉग पिकाठरता
c) पेज थ्री d) एडिोके सी पिकाठरता
38. पिकारीर् लेखि के नलए कच्चा िाल ककससे प्राप्त होता है?
a) साक्षात्कार से b) संपादक के िाि पि से
c) िीचर से d) संपादकीर् से
39. स्ितंि पिकार ककसे कहा जाता है?
a) ककसी निशेर् एक सिाचार पि से संबंि िहीं होता। ऐसे पिकार भुगताि के आिार पर कार्य करते हैं।
b) ऐसा पिकार जो ककसी सिाचार संगठि िें काि करता है और निर्नित िेति पाता है।
c) सीनित र्ा कि सिर् के नलए काि करिे िाला। इन्हें प्रकानशत सािग्री के आिार पर पाठरश्रनिक कदर्ा जाता
है।
d) संचार प्रकक्र्ा िें संदश
े को प्राप्त करिे िाला जो सकारात्िक र्ा िकारात्िक प्रनतकक्र्ा करता है।
40. ऐसा सिाचार जो दशयको तक कि से कि शब्दों िें तत्काल पहुूँचार्ा जािा जरूरी हो-
a) डेड लाइि न्र्ूज b) ब्रेककं ग न्र्ूज
c) िोि इि न्र्ूज d) पीत पिकाठरता
41. जब व्यनिर्ों के सिूह के साथ संिाद ककसी तकिीकी र्ा र्ांनिकी िाध्र्ि के जठरए सिाज के एक निशाल िगय से ककर्ा
जाता है तो इसे ____ कहते हैं।
a) निशेर् संचार b) जिसंचार

245
c) गुप्त संचार d) सिूह संचार
42. सिाचार बििे की संभाििा तब बढ़ जाती है, जब उििें-
a) जिरुनच b) तथ्र्ात्िकता
c) सभी d) ििीिता
43. सिीक्षक के गुण िहीं हैं?
a) सिसािनर्की का ज्ञाता b) िारदार भार्ा
c) गीतकारी d) निशेर्ज्ञ
44. सिाचार नलखते हुए िुख्र्तुः ककतिे सिालों के जिाब देिे की कोनशश की जाती है?
a) िौ b) छह
c) पाूँच d) सात
45. सिाचार लेखि की उल्टा नपरानिड शैली के तहत नलखे गर्े सिाचारो के सुनििा की दृनष्ट से िुख्र्त: ____ नहस्सों िें
निभानजत ककर्ा जाता है।
a) चार b) पाूँच
c) दो d) तीि
46. तथ्र्ों, सूचिाओं तथा आंकडों की गहरी छािबीि करिे िाली ठरपोटय को ____ कहते हैं।
a) इि डेप्थ ठरपोटय b) निश्लेर्णात्िक ठरपोटय
c) खोजी ठरपोटय d) नििेचिात्िक ठरपोटय
47. सिाचार तैर्ार करते सिर् कौि से ककार सूचिात्िक और तथ्र्ों पर आिाठरत होते है?
a) कब और क्र्ों b) क्र्ा, कौि, कब, और कहाूँ
c) क्र्ा और कै से d) कै से और क्र्ों
48. रनडर्ो सिीक्षा िें क्र्ा आिश्र्क िहीं है?
a) दुरूह भार्ा b) अंकों को शब्दों िें नलखिा
c) सिान्र् भार्ा d) िुहािरे दार भार्ा
49. बप्रंट िीनडर्ा के प्रिुख िाध्र्ि होते हैं-
a) पुस्तकें ि पि-पनिकाएूँ b) पि-पनिकाएूँ
c) इंटरिेट d) पुस्तकें
50. पि सिसिीखेज खबरों और व्यनि-परक चठरि-हिि जैसे सिाचारों को अनिक िहत्ि देते हैं, उन्हें कहते हैं-
a) िॉचडॉग पिकाठरता b) एडिोके सी पिकाठरता
c) र्ेलो जियनलज़्ि d) पिकाठरता िें बीट
उिरिाला-
1. (a) ब्रेककं ग न्र्ूज
व्याख्र्ा: ब्रेककं ग न्र्ूज़ आलेख का िहीं ठरपोतायज का भाग है।
246
2. (c) एडिोके सी
3. (c) पूणक
य ानलक
4. (a) पिकाठरता
5. (d) िस्तुपरकता एिं निपपक्षता
व्याख्र्ा:संपादि के दो नसद्धांत हैं- िस्तुपरकता एिं निपपक्षता।
6. (b) िीचर लेखि
7. (d) 1780, कलकिा
व्याख्र्ा:बंगाल गजट, नजसका प्रकाशि कलकिा (अब कोलकिा) से सि 1780 िें हुआ। इस के संपादक जेम्स ऑगस्ट नहकी
थे।
8. (d) ठटप्पणी, िोटो और काटूयि का होिा
व्याख्र्ा: जब सिाचार-पि िें सिाचारों के अलािा निचार, संपादकीर्, ठटप्पणी, िोटो और काटूयि होते हैं तब सिाचार-
पि पूणय बिता है।
9. (c) टेलीनिजि
व्याख्र्ा:टेलीनिजि जिसंचार का दृश्र् एिं श्रव्य िाध्र्ि है। टेलीनिजि िें आिाज के साथ दृश्र् को भी देखा जा सकता है।
10. (c) पिकार
11. (d) ड्राई एंकर
व्याख्र्ा:ड्राई एंकर िह है जो सिाचार के नचि िहीं आिे तक दशयकों को ठरपोटयर से निली जािकारी के आिार पर घटिा
से संबनं ित सूचिा देता है।
12. (a) 250 से 2000 शब्द
13. (d) आठ
व्याख्र्ा:फीचर के प्रकार निम्ननलनखत हैं
I. सिाचार िीचर
II. घटिापरक िीचर
III. व्यनिपरक िीचर
IV. लोकानभरुनच फीचर
V. सांस्कृ नतक फीचर
VI. सानहनत्र्क प्रिीचर
VII. निश्लेर्ण प्रिीचर
VIII. निज्ञाि फीचर
14. (d) उल्टा नपरानिड
15. (a) टेलीनिजि एिं इं टरिेट
व्याख्र्ा:टेलीनिजि एिं इंटरिेट लोकनप्रर् िाध्र्ि ितयिाि सिर् िें उपलब्ि है।

247
16. (a) संपादि के नसद्धांत
17. (d) सभी िें
व्याख्र्ा:सिीक्षा प्रत्र्ेक क्षेि िें िहत्िपूणय है।
18. (b) नजज्ञासा
19. (a) सभी
20. (d) उल्टा नपरानिड शैली
21. (d) सिसािनर्क घटिाओं की जािकारी
व्याख्र्ा:पिकारीर् लेखि िें सिायनिक िहत्त्ि सिसािनर्क घटिाओं की जािकारी पर है।
22. (d) फ्ी लांसर
23. (a) संपादक
24. (a) िॉचडॉग
25. (b) पाूँच
व्याख्र्ा:खोजपरक पिकाठरता, निशेर्ीकृ त पिकाठरता, िाचडाग पिकाठरता, एडव्होके सी (एडिोके सी) पिकाठरता,
िैकनल्पक िीनडर्ा।
26. (b) संपादि
व्याख्र्ा:संपादि का अथय है-ककसी सािग्री से उसकी अशुनद्धर्ों को दूर करके उसे पठिीर् बिािा। एक उप-संपादक अपिी
ठरपोटयर की खबर को ध्र्ाि से पढ़कर उसकी भार्ागत अशुनद्धर्ों को दूर करके प्रकाशि र्ोग्र् बिाता है।
27. (b) संपादकीर्
28. (c) िुकद्रत िाध्र्ि
व्याख्र्ा:बप्रंट र्ािी िुकद्रत िाध्र्ि जिसंचार के आिुनिक िाध्र्िों िें से सबसे पुरािा है। आिुनिक र्ुग का प्रारं भ छपाई के
आनिपकार से हुआ।
29. (a) उदंत िातंड
व्याख्र्ा:बहंदी का पहला साप्तानहक पि ‘उदंत िातंड’ को िािा जाता है, जो कलकिा से पंनडत जुगल ककशोर शुक्ल के
संपादि िें निकला था।
30. (a) छह
व्याख्र्ा:सिाचार िें छह तत्िों का सिािेश अनििार्य िािा जाता है। र्े हैं - क्र्ा, कहां, कब, कौि, क्र्ो और कै से।
31. (d) इसिे काल्पनिक जीिि को बढ़ािा कदर्ा है।
व्याख्र्ा:इसिे काल्पनिक जीिि को बढ़ािा कदर्ा है। इससे पलार्ििादी प्रिृनि बढ़ रही है।
32. (b) तीि र्ा चार
33. (c) ििोरं जि करिा
व्याख्र्ा:आलेख का िूल उद्देश्र् ििोरं जि करिा िहीं है
34. (d) दैनिक इनतहास लेखि

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35. (b) सिसािनर्क घटिाओं का
व्याख्र्ा:पिकाठरता िें सिायनिक िहत्त्ि सिसािनर्क घटिाओं का है।
36. (d) अंतरिैर्निक संचार
व्याख्र्ा:अंतरिैर्निक संचार:- जब दो व्यनि आपस िें और आििे-साििे संचार करते हैं तो इसे अंतरिैर्निक संचार कहते
हैं। इस संचार की िदद से आपसी संबि
ं निकनसत करते हैं और रोजिराय की ज़रूरतें पूरी करते हैं।
37. (c) पेज थ्री
व्याख्र्ा:पेज थ्री पिकाठरता का तात्पर्य ऐसी पिकाठरता से है नजसिें फै शि, अिीरों की पार्टयर्ों, िहकफलों और जािे-िािे
लोगों (सेलीनब्रटी) के निजी जीिि के बारे िें बतार्ा जाता है।
38. (a) साक्षात्कार से
39. (a) ककसी निशेर् एक सिाचार पि से संबि
ं िहीं होता। ऐसे पिकार भुगताि के आिार पर कार्य करते हैं।
व्याख्र्ा:ऐसा पिकार ककसी अखबार निशेर् से ि बूँिकर भुगताि के आिार पर अलग-अलग अखबारों के नलए नलखता है।
40. (b) ब्रेककं ग न्र्ूज
व्याख्र्ा:ऐसा सिाचार जो दशयकों तक कि से कि शब्दों िें तत्काल पहुंचार्ा जािा जरूरी हो, उसे ब्रेककं ग न्र्ूज कहते हैं।
इसिें के िल घटिा की सूचिा दी जाती है।
41. (b) जिसंचार
व्याख्र्ा:जब व्यनिर्ों के सिूह के साथ संिाद ककसी तकिीकी र्ा र्ांनिकी िाध्र्ि के जठरए सिाज के एक निशाल िगय से
ककर्ा जाता है तो इसे जिसंचार कहते हैं। इसिें एक संदश
े को र्ांनिक िाध्र्ि के जठरए बहुगुनणत ककर्ा जाता है ताकक उसे
अनिक-से-अनिक लोगों तक पहुूँचार्ा जा सके । रे नडर्ो, अखबार, टीिी, नसिेिा, इं टरिेट आकद इसके िाध्र्ि हैं।
42. (c) सभी
व्याख्र्ा:ककसी घटिा, निचार और सिस्र्ा के सिाचार बििे की संभाििा तब बढ़ जाती है, जब उििें निम्रनलनखत िें से
कु छ र्ा सभी तत्ि शानिल हों - तथ्र्ात्िकता, ििीिता, जिरुनच, सािनर्कता, निकटता, प्रभाि, पाठक िगय, िीनतगत
ढांचा, अिोखापि, उपर्ोगी जािकाठरर्ां।
43. (c) गीतकारी
व्याख्र्ा:र्ह सिीक्षक का गुण िहीं हैं
44. (b) छह
व्याख्र्ा:ककसी सिाचार को नलखते हुए िुख्र्तुः छह सिालों का जिाब देिे की कोनशश की जाती है। क्र्ा हुआ, ककसके साथ
हुआ, कहाूँ हुआ, कब हुआ, कै से और क्र्ों हुआ?
इस-क्र्ा, ककसके (र्ा कौि), कहाूँ, कब, क्र्ों और कै से-को छह ककारों के रूप िें भी जािा जाता है।
45. (d) तीि
46. (a) इि डेप्थ ठरपोर्ट
47. (b) क्र्ा, कौि, कब, और कहाूँ
व्याख्र्ा:सिाचार तैर्ार करते सिर् चार ककार क्र्ा, कौि, कब, और कहाूँ - सूचिात्िक और तथ्र्ों पर आिाठरत होते है।

249
48. (a) दुरूह भार्ा
व्याख्र्ा:रनडर्ो सिीक्षा िें दुरूह भार्ा आिश्र्क िहीं है।
49. (a) पुस्तकें ि पि-पनिकाएूँ
व्याख्र्ा:बप्रंट िीनडर्ा के प्रिुख िाध्र्ि होते हैं-अखबार, पुस्तकें ि पि-पनिकाएूँ आकद।
50. (c) र्ेलो जियनलज़्ि
व्याख्र्ा:र्ेलो जियनलज़्ि-पि सिसिीखेज खबरों और व्यनि-परक चठरि-हिि जैसे सिाचारों को अनिक िहत्ि देते हैं, ऐसी
प्रिृनि को पीत पिकाठरता कहते हैं।
िणयिात्िक प्रश्न
1. पिकारीर् लेखि क्र्ा है?
उिर- सिाचार िाध्र्िों िे काि करिे िाले पिकार अपिे पाठकों तथा श्रोताओं तक सूचिाएूँ पहुूँचािे के नलए लेखि के
निनभन्न रूपों का इस्तेिाल करते हैं, इसे ही पिकारीर् लेखि कहते हैं। पिकारीर् लेखि का संबंि सिसािनर्क निर्र्ों,
निचारों ि घटिाओं से है। पिकार को नलखते सिर् र्ह ध्र्ाि रखिा चानहए िह सािान्र् जिता के नलए नलख रहा है,
इसनलए उसकी भार्ा सरल ि रोचक होिी चानहए। िाक्र् छोटे ि सहज हों। कठठि भार्ा का प्रर्ोग िहीं ककर्ा जािा
चानहए। भार्ा को प्रभािी बिािे के नलए अिािश्र्क निशेर्णों, जागयन्स (अप्रचनलत शब्दािली) और क्लीशे (नपष्टोनि ,
दोहराि) का प्रर्ोग िहीं होिा चनहए।
2. पिकारीर् लेखि के अंतगयत क्र्ा-क्र्ा आता है?
उिर-पिकठरता र्ा पिकारीर् लेखि के अन्तगयत सिपादकीर्, सिाचार, आलेख, ठरपोटय, िीचर, स्तम्भ तथा काटूयि आकद
आते हैं।
3. पिकारीर् लेखि का िुख्र् उद्देश्र् क्र्ा होता है?
उिर-पिकारीर् लेखि का प्रिुख उद्देश्र् है- सूचिा देिा, नशनक्षत करिा तथा ििोरं जि करिा आकद होता है।
4. पिकारीर् लेखि के प्रकार नलखए।
उिर-पिकारीर् लेखि के कई प्रकार हैं र्था- ‘खोजपरक पिकाठरता', िॉचडॉग पिकाठरता और एड्िोकै सी पिकाठरता
आकद।
5. पिकार ककतिे प्रकार के होते हैं?
उिर-पिकार तीि प्रकार के होते हैं-
1. पूणय कानलक
2. अंशकानलक (बस्िंगर)
3. फ्ीलांसर र्ा स्ितंि पिकार
6. सिाचार ककस शैली िें नलखे जाते हैं?
उिर-सिाचार उलटा नपरानिड शैली िें नलखे जाते हैं, र्ह सिाचार लेखि की सबसे उपर्ोगी और लोकनप्रर् शैली है। इस
शैली का निकास अिेठरका िें गृह र्ुद्ध के दौराि हुआ। इसिें िहत्त्िपूणय घटिा का िणयि पहले प्रस्तुत ककर्ा जाता है, उसके

250
बाद िहत्त्ि की दृनष्ट से घटते क्ि िें घटिाओं को प्रस्तुत कर सिाचार का अंत ककर्ा जाता है। सिाचार िें इंिो, बॉडी और
सिापि के क्ि िें घटिाएूँ प्रस्तुत की जाती हैं।
7. सिाचार के छह ककार कौि-कौि से हैं?

उिर-सिाचार नलखते सिर् िुख्र् रूप से छह प्रश्नों- क्र्ा, कौि, कहाूँ, कब, क्र्ों और कै से का उिर देिे की कोनशश की
जाती है। इन्हें सिाचार के छह ककार कहा जाता है। प्रथि चार प्रश्नों के उिर इंिो िें तथा अन्र् दो के उिर सिापि से पूिय
बॉडी िाले भाग िें कदए जाते हैं।
8. फीचर क्र्ा है?
उिर-फीचर एक प्रकार का सुव्यिनस्थत, सृजिात्िक और आत्िनिष्ठ लेखि है।
9. फीचर लेखि का क्र्ा उद्देश्र् होता है?
उिर-फीचर का उद्देश्र् िुख्र् रूप से पाठकों को सूचिा देिा, नशनक्षत करिा तथा उिका ििोरं जि करिा होता है।
10. फीचर और सिाचार िें क्र्ा अंतर है?
उिर-सिाचार िें ठरपोटयर को अपिे निचारों को डालिे की स्ितंिता िहीं होती, जबकक फीचर िें लेखक को अपिी रार्,
दृनष्टकोण और भाििाओं को जानहर करिे का अिसर होता है। सिाचार उल्टा नपरानिड शैली िें नलखे जाते हैं, जबकक
फीचर लेखि की कोई सुनिनित शैली िहीं होती। फीचर िें सिाचारों की तरह शब्दों की सीिा िहीं होती। आितौर पर
फीचर, सिाचार ठरपोटय से बडे होते हैं। पि-पनिकाओं िें प्रार्ुः २५० से २००० शब्दों तक के फीचर छपते हैं।
11. निशेर् ठरपोटय से आप क्र्ा सिझते हैं?
उिर-सािान्र् सिाचारों से अलग िे निशेर् सिाचार जो गहरी छाि-बीि, निश्लेर्ण और व्याख्र्ा के आिार पर प्रकानशत
ककए जाते हैं, निशेर् ठरपोटय कहलाते हैं।
12. निशेर् ठरपोटय के निनभि्ि प्रकारों को स्पष्ट कीनजए।
(1) खोजी ठरपोटय: इसिें अिुपल्ब्ि तथ्र्ों को गहरी छाि-बीि कर साियजनिक ककर्ा जाता है।
(2) इन्डेप्थ ठरपोटय: साियजानिक रूप से प्राप्त तथ्र्ों की गहरी छाि-बीि कर उसके िहत्त्िपूणय पक्षों को पाठकों के साििे
लार्ा जाता है।
(3) निश्लेर्णात्िक ठरपोटय: इसिें ककसी घटिा र्ा सिस्र्ा का नििरण सूक्ष्िता के साथ निस्तार से कदर्ा जाता है। ठरपोटय
अनिक निस्तृत होिे पर कई कदिों तक ककस्तों िें प्रकानशत की जाती है।
(4) नििरणात्िक ठरपोटय: इसिें ककसी घटिा र्ा सिस्र्ा को निस्तार एिं बारीकी के साथ प्रस्तुत ककर्ा जाता है।
13. निचारपरक लेखि ककसे कहते हैं?
उिर-नजस लेखि िें निचार एिं बचंति की प्रिािता होती है, उसे निचार परक लेखि कहा जाता है। सिाचार-पिों िें
सिाचार एिं फीचर के अनतठरि संपादकीर्, लेख, पि, ठटप्पणी, िठरष्ठ पिकारों ि निशेर्ज्ञों के स्तंभ छपते हैं। र्े सभी
निचारपरक लेखि के अंतगयत आते हैं।
14. संपादकीर् से क्र्ा अनभप्रार् है?

251
उिर-संपादक द्वारा ककसी प्रिुख घटिा र्ा सिस्र्ा पर नलखे गए निचारात्िक लेख को, नजसे संबंनित सिाचार पि की रार्
भी कहा जाता है, संपादकीर् कहते हैं। संपादकीर् ककसी एक व्यनि का निचार र्ा रार् ि होकर सिग्र पि-सिूह की रार्
होता है, इसनलए संपादकीर् िें संपादक अथिा लेखक का िाि िहीं नलखा जाता।
15. स्तंभलेखि से क्र्ा तात्पर्य है?
उिर-र्ह एक प्रकार का निचारात्िक लेखि है। कु छ िहत्त्िपूणय लेखक अपिे खास िैचाठरक रुझाि एिं लेखि शैली के नलए
जािे जाते हैं। ऐसे लेखकों की लोकनप्रर्ता को देखकर सिाचरपि उन्हें अपिे पि िें निर्नित स्तंभ-लेखि की नजम्िेदारी
प्रदाि करते हैं। इस प्रकार ककसी सिाचार-पि िें ककसी ऐसे लेखक द्वारा ककर्ा गर्ा निनशष्ट एिं निर्नित लेखि जो अपिी
निनशष्ट शैली एिं िैचाठरक रुझाि के कारण सिाज िें ख्र्ानत-प्राप्त हो, स्तंभ लेखि कहा जाता है।
16. संपादक के िाि पि से आप क्र्ा सिझते हैं?
उिर-सिाचार पिों िें संपादकीर् पृष्ठ पर तथा पनिकाओं की शुरुआत िें संपादक के िाि आए पि प्रकानशत ककए जाते हैं।
र्ह प्रत्र्ेक सिाचारपि का निर्नित स्तंभ होता है। इसके िाध्र्ि से सिाचार-पि अपिे पाठकों को जिसिस्र्ाओं तथा
िुद्दों पर अपिे निचार एिि् रार् व्यि करिे का अिसर प्रदाि करता है।
17. साक्षात्कार/इंटरव्यू से क्र्ा अनभप्रार् है?
उिर-ककसी पिकार के द्वारा अपिे सिाचारपि िें प्रकानशत करिे के नलए, ककसी व्यनि निशेर् से उसके निर्र् िें अथिा
ककसी निर्र् र्ा िुद्दे पर ककर्ा गर्ा प्रश्नोिरात्िक संिाद साक्षात्कार कहलाता है।
अन्र् िहत्त्िपूणं प्रश्न
1. सािान्र् लेखि तथा पिकारीर् लेखि िें क्र्ा अंतर है?
2. पिकारीर् लेखि के उद्देश्र् नलनखए।
3. पिकार ककतिे प्रकार के होते हैं?
4. उल्टा नपरानिड शैली का निकास कब और क्र्ों हुआ?
5. सिाचार के प्रकारों के िाि नलनखए।
6. बाडी क्र्ा है?
7. फीचर ककस शैली िें नलखा जाता है?
8. फीचर ि सिाचार िें क्र्ा अंतर है?
9. निशेर् ठरपोटय से आप क्र्ा सिझते हैं?
10. निशेर् ठरपोटय के भेद नलनखए।
11. इन्डेप्थ ठरपोटय ककसे कहते हैं?
12. निचारपरक लेखि क्र्ा है तथा उसके अन्तगयत ककस प्रकार के लेख आते हैं?
13. स्ितंि पिकार ककसे कहते है?
14. पूणयकानलक पिकार से क्र्ा अनभप्रार् है?
15. अंशकानलक पिकार क्र्ा होता है?

252
पाठ 5
निशेर् लेखि- स्िरूप और प्रकार
निशेर्- लेखि-
एक सिाचारपि र्ा पनिका तभी सम्पूणय लगती है जब उसिें निनभन्न निर्र्ों और क्षेिों के बारे िें घटिे िाली घटिाओं,
सिस्र्ाओं के बारे िे निर्नित रूप से जािकारी दी जाए। अतुः निशेर् लेखि र्ािी ककसी खास निर्र् पर सािान्र् लेखि
से हटकर ककर्ा गर्ा लेखि ही निशेर् लेखि कहलाता है।
सिाचारपिों, पनिकाओं, टी.िी. और रे नडर्ो चैिलों िें निशेर् लेखि के नलए अलग डेस्क होता है और उस निशेर् डेस्क पर
काि करिे िाले पिकारों का सिूह भी अलग होता है अतुः सिाचार िाध्र्िों िें डेस्क का आशर् संपादि से होता है ।
सिाचार िाध्र्िों िें सपादकीर् कक् र् डेस्क और ठरपोर्टंग िें निभि होता है। डेस्क पर सिाचारों को संपाकदत ककर्ा जाता
है और उसे छपिे र्ोग्र् बिार्ा जाता है।
संिाददाताओं के बीच िें काि का निभाजि उिकी रुनच और ज्ञाि के आिार पर ककर्ा जाता है िीनडर्ा की भार्ा िें इसे
बीट कहते हैं।
बीट ठरपोर्टंग और निशेर्ीकृ त ठरपोर्टंग िें सबसे िहत्िपूणय अंतर र्ह है कक अपिी बीट की ठरपोर्टंग के नलए संिाददाता
िें उस क्षेि के बारे िें जािकारी होिा पर्ायप्त है लेककि निशेर्ीकृ त ठरपोर्टंग के नलए उस निशेर् क्षेि र्ा निर्र् से जुडी
घटिाओं िुद्दों और सिस्र्ाओं का बारीकी से निश्लेर्ण करके तथ्र्ात्िक ठरपोटय प्रस्तुत करता है और उसे ही निशेर् संिाददाता
कहा जाता है।
निशेर् लेखि के तहत ठरपोर्टंग के अलािा उस निर्र् र्ा क्षेि निशेर् पर िीचर ठटप्पणी साक्षात्कार, लेख, सिीक्षा और
स्तम्भ लेखि भी आता है।
निशेर् लेखि की भार्ा और शैली-
सािान्र् लेखि की तरह ही निशेर् लेखि की भार्ा भी सरल और सिझ िें आिे िाली होिी चानहए ककन्तु हर क्षेि निशेर्
की अपिी तकिीकी शब्दािली होती है अतुः ऐसे शब्दािली से पठरनचत करिािा भी आिश्र्क है। जैसे कारोबार और
व्यापार से जुडी खबरों िे हि सिाचारपि िें आिक, तेजनडए, िंदनडए, नििेश, नबकिाली, सोिे िें भारी उछाल इत्र्ाकद
शब्द आर्थयक जगत की खबरों िें पढ़िे को निलते हैं। इसी प्रकार पर्ायिरण और िौसि से जुडी खबरों के नलए - हिाएूँ,
आद्रयता, ग्लोबल िार्िंग आकद ।
निशेर् लेखि की शैली उल्टा नपरानिड शैली ही होगी लेककि र्कद आप सिाचार िीचर नलख रहे हैं तो उसकी शैली कथात्िक
हो सकती है।
न्र्ूज़पेग - न्र्ूज़पेग का अथय है ककसी िुद्दे पर नलखे जा रहे लेख र्ा िीचर िें उस ताजा घटिा का उल्लेख नजसके कारण िह
िुद्दा चचाय िें आ गर्ा।
निशेर् लेखि के क्षेि-
निशेर् लेखि के अिेक क्षेि हैं । सािान्र् ठरपोर्टंग और बीट को छोडकर िे सभी क्षेि नजििें निशेर्ज्ञता की जरूरत होती
है। । जैसे- खेल, कारोबार, नसिेिा, निज्ञाि, पर्ायिरण नशक्षा इत्र्ाकद ।

253
बहुनिकल्पीर् प्रश्न
1. ककसी भी निर्र् िें निरंतर कदलचस्पी और सकक्र्ता आपको क्र्ा बिा सकती है?
a) निर्र् निशेर्ज्ञ b) लेखक
c) स्तम्भ लेखक d) पाठक
2. उल्टा नपरानिड शैली के बाद कौि-सी अन्र् शैली भी निशेर् लेखि िें प्रर्ुि होती है?
a) कथात्िक शैली b) नििणायत्िक शैली
c) तथ्र्ात्िक शैली d) संस्िरणात्िक
3. निशेर् लेखि पद्धनत कहाूँ प्रचनलत है?
a) शोि प्रबंि b) जिकल्र्ाण संबि
ं ी लेखि
c) जिसंचार के िाध्र्िों िें d) शैनक्षकलेखि
4. बीट किर करिे िाले ठरपोटयर को कहते हैं-
a) लेखक b) एंकर
c) संपादक d) संिाददाता
5. आजकल पिकाठरता िें ____ की िाूँग की जा रही है।
a) जैक ऑफ ऑल िैड b) सभी निकल्प सही हैं
c) िास्टर ऑफ िि d) िास्टर ऑफ िि
6. बीट ठरपोर्टंग के नलए ठरपोटयर को ककि शब्दों का ज्ञाि होिा चानहए?
a) सानहनत्र्क b) तकिीकी
c) गंभीर d) अलंकार र्ुि
7. इििें से कौि-सा शब्द कक्के ट जगत का िहीं है?
a) तेजनडए b) नस्पि
c) नहट निके ट d) रि
8. कारोबार और व्यापार से संबनं ित खबर का सम्बन्ि ककससे है?
a) राजिीनतक क्षेि b) कृ नर् क्षेि से
c) आर्थयक क्षेि d) खेल क्षेि से
9. िह पिकाठरता, जो ककसी घटिा की तह िें जाकर उसका अथय स्पष्ट करे और पाठकों को उसका िहत्त्ि बताए, ____
पिकाठरता कहलाती है।
a) निशेर्ीकृ त b) आर्थयक
c) राजनिनतक d) खोजी
10. निशेर् लेखि होता है -
a) ककसी निशेर् लेखि पद्धनत पर आिाठरत लेखि
b) ककसी खास निर्र् पर सािान्र् लेखि से हटकर ककर्ा गर्ा लेखि
254
c) दैनिक निर्र्ों पर आिाठरत लेखि
d) सिस्र्ा प्रिाि लेखि
11. निशेर्ज्ञता कै से हानसल की जा सकती है?
a) निरंतर कदलचस्पी और सकक्र्ता b) सहजता
c) अध्र्र्ि d) अभ्र्ास
12. निशेर् लेखि का क्षेि है-
a) संकुनचत b) व्यापक
c) सीनित d) सािान्र्
13. निशेर् लेखि के नलए प्रर्ुि होिे िाली शैली कौि सी है?
a) उल्टा नपरानिड शैली b) सीिी नपरानिड शैली
c) र्थाथय परकशैली d) नपरानिड शैली
14. कारोबार और अथय जगत से जुडी खबरें ककस शैली िें नलखी जाती है?
a) तथ्र्ात्िक शैली b) उल्टा नपरानिड शैली
c) र्थाथयपरक शैली d) आि बोलचाल की भार्ा िें
15. ककसी भी सिाचार पि िें सिायनिक पढ़े जािे िाले पृष्ठ कौि से होते हैं?
a) देश-निदेश b) अथय और खेल
c) िुख्र् पृष्ठ d) अपिा शहर
16. निशेर् लेखि के ककतिे क्षेि हैं?
a) दो b) एक
c) अिेक d) चार
17. कदलचस्पी और ज्ञाि के आिार पर संिाददाताओं के बीच ककर्ा गर्ा कार्य निभाजि कहलाता है -
a) ठरपोर्टंग b) एंकररं ग
c) बीट d) बाइट
18. इििें से कौि-सा शब्द आर्थयक क्षेि से सम्बनन्ित िहीं है?
a) तेजनडए b) िंदनडए
c) नबकिाली d) रि आउट
19. ककसी क्षेि निशेर् से जुडी घटिाओं, िुद्दों का बारीकी से ककर्ा गर्ा निश्लेर्ण ____ कहलाता है।
a) सािान्र् ठरपोर्टंग b) ठरपोर्टंग
c) आि ठरपोर्टंग d) निशेर् ठरपोर्टंग
20. बीट ठरपोटयर को अपिी ठरपोटय से जुडी कौि-सी खबरें देिी होती है?
a) निशेर् खबरें b) पेज थ्री की खबरें
c) अंतराष्ट्रीर् d) सािान्र् खबरें

255
उिरिाला-
1. (a) निर्र् निशेर्ज्ञ
व्याख्र्ा: निरं तर कदलचस्पी और सकक्र्ता निर्र् निशेर्ज्ञ बििे िें सहार्क होते है।
2. (a) कथात्िक शैली
व्याख्र्ा: उल्टा नपरानिड शैली के बाद कथात्िक शैली भी निशेर् लेखि िें प्रर्ुि होती है।
3. (c) जिसंचार के िाध्र्िों िें
व्याख्र्ा: जिसंचार िाध्र्िों िें सिाचार पि-पनिकाओं, रे नडर्ो, टीिी के िाध्र्ि से दशयकों और श्रोताओं के नलए निशेर्
लेखि ककर्ा जाता है।
4. (d) संिाददाता
व्याख्र्ा: बीट की ठरपोटय लेखि करिे िाले को संिाददाता कहते हैं।
5. (c) िास्टर ऑफ िि
व्याख्र्ा: आजकल पिकाठरता िें िास्टर ऑफ िि की िाूँग की जा रही है।
6. (b) तकिीकी
व्याख्र्ा: ठरपोटयर को संबनं ित निर्र्ों के प्रर्ोग होिे िाले तकिीकी शब्द का ज्ञाि होिा आिश्र्क है।
7. (a) तेजनडए
व्याख्र्ा: तेजनडए शब्द कक्के ट जगत का िहीं है।
8. (c) आर्थयक क्षेि
व्याख्र्ा: कारोबार और व्यापार से संबनं ित खबर का सम्बन्ि आर्थयक क्षेि से है।
9. (a) निशेर्ीकृ त
व्याख्र्ा: निशेर्ीकृ त पिकाठरता ककसी घटिा की तह िें जाकर उसका अथय स्पष्ट कर पाठकों को उसका अथय बताती है।
10. (b) ककसी खास निर्र् पर सािान्र् लेखि से हटकर ककर्ा गर्ा लेखि
व्याख्र्ा: ककसी खास निर्र् पर सािान्र् लेखि से हटकर ककर्ा गर्ा लेखि निशेर् लेखि कहलाता है।
11. (a) निरं तर कदलचस्पी और सकक्र्ता
व्याख्र्ा: निरं तर कदलचस्पी और सकक्र्ता से निशेर्ज्ञता हानसल की जा सकती है।
12. (b) व्यापक
व्याख्र्ा: ितयिाि िें निशेर् लेखि देश-निदेश, रक्षा, गृह, राजिीनत आकद निनभन्न क्षेि हैं। अतुः निशेर् लेखि का क्षेतर्
व्यापक होता है।
13. (a) उल्टा नपरानिड शैली
व्याख्र्ा: निशेर् लेखि के नलए निर्र् चाहे कोई भी हो उल्टा नपरानिड शैली ही प्रर्ोग होती है।
14. (b) उल्टा नपरानिड शैली
व्याख्र्ा: र्े खबरे उल्टा नपरानिड शैली िें नलखी जाती है।
256
15. (b) अथय और खेल
व्याख्र्ा: िि और खेल हर एक के नप्रर् निर्र् होिे से सिायनिक पढ़े जाते हैं।
16. (c) अिेक
व्याख्र्ा: निशेर् लेखि के अिेक क्षेि हैं। जैस-े व्यापार, खेल, ििोरं जि, निज्ञाि, प्रौद्ोनगकी, कृ नर्, स्िास्थ्र् इत्र्ाकद।
17. (c) बीट
व्याख्र्ा: िीनडर्ा की भार्ा िें इस तरह का कार्य निभाजि बीट कहलाता है।
18. (d) रि आउट
व्याख्र्ा: रि आउट शब्द आर्थयक क्षेि से सम्बनन्ित िहीं है।
19. (d) निशेर् ठरपोर्टंग
व्याख्र्ा: निशेर् ठरपोर्टंग िें सािान्र् ठरपोटय से हटकर ककसी क्षेि निशेर् से जुडी घटिाओं, िुद्दों आकद का बारीकी से निश्लेर्ण
ककर्ा जाता है।
20. (d) सािान्र् खबरें
व्याख्र्ा: बीट ठरपोटयर को के िल सािान्र् खबरें ही पाठक को देिी होती है।
िणयिात्िक प्रश्न
1. निशेर् लेखि ककसे कहते हैं?
उिर- निशेर् लेखि ककसी खास निर्र् पर सािान्र् लेखि से हट कर ककर्ा गर्ा लेखि है; नजसिें निर्र् से संबंनित निस्तृत
सूचिाएूँ प्रदाि की जाती हैं।
2. डेस्क क्र्ा है?
उिर- सिाचारपि, पनिकाओं, टीिी और रे नडर्ो चैिलों िें अलग-अलग निर्र्ों पर निशेर् लेखि के नलए नििायठरत स्थल
को डेस्क कहते हैं और उस निशेर् डेस्क पर काि करिे िाले पिकारों का भी अलग सिूह होता है। र्था-व्यापार तथा
कारोबार के नलए अलग तथा खेल की खबरों के नलए अलग डेस्क नििायठरत होता है।
3. बीट से क्र्ा तात्पर्य है?
उिर- निनभन्न निर्र्ों से जुडे सिाचारों के नलए संिाददाताओं के बीच काि का निभाजि आि तौर पर उिकी कदलचस्पी
और ज्ञाि को ध्र्ाि िें रख कर ककर्ा जाता है। िीनडर्ा की भार्ा िें इसे बीट कहते हैं।
4. बीट ठरपोर्टंग तथा निशेर्ीकृ त ठरपोर्टंग िें क्र्ा अन्तर है?
उिर- बीट ठरपोर्टयग के नलए संिाददाता िें उस क्षेि के बारे िें जािकारी ि कदलचस्पी का होिा पर्ायप्त है, साथ ही उसे
आि तौर पर अपिी बीट से जुडी सािान्र् खबरें ही नलखिी होती हैं। ककन्तु निशेर्ीकृ त ठरपोर्टंग िें सािान्र् सिाचारों से
आगे बढ़कर संबंनित निशेर् क्षेि र्ा निर्र् से जुडी घटिाओं, सिस्र्ाओं और िुद्दों का बारीकी से निश्लेर्ण कर प्रस्तुतीकरण
ककर्ा जाता है। बीट किर करिे िाले ठरपोटयर को संिाददाता तथा निशेर्ीकृ त ठरपोर्टंग करिे िाले ठरपोटयर को निशेर्
संिाददाता कहा जाता है।
5. निशेर् लेखि की भार्ा-शैली पर प्रकाश डानलए।

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उिर- निशेर् लेखि की भार्ा-शैली सािान्र् लेखि से अलग होती है। इसिें संिाददाता को संबंनित निर्र् की तकिीकी
शब्दािली का जाि होिा आिश्र्क होता है, साथ ही र्ह भी आिश्र्क होता है कक िह पाठकों को उस शब्दािली से पठरनचत
कराए नजससे पाठक ठरपोटय को सिझ सकें । निशेर् लेखि की कोई निनित शैली िहीं होती।
6. निशेर् लेखि के क्षेि कौि-कौि से हो सकते हैं?
उिर-निशेर् लेखि के अिेक क्षेि होते हैं, र्था- अथय-व्यापार, खेल, निज्ञाि-प्रौद्ोनगकी, कृ नर्, निदेश, रक्षा, पर्ायिरण नशक्षा,
स्िास्थ्र्, कफल्ि-ििोरं जि, अपराि, कािूि ि सािानजक िुद्दे आकद।
अभ्र्ासाथय िहत्त्िपूणय प्रश्न:
1. ककसी खास निर्र् पर ककए गए लेखि को क्र्ा कहते हैं?
2. निशेर् लेखि के क्षेि नलनखए।
3. पिकारीर् भार्ा िें लेखि के नलए नििायठरत स्थल को क्र्ा कहते है?
4. बीट से आप क्र्ा सिझते हैं?
5. बीट ठरपोर्टयग क्र्ा है?
6. बीट ठरपोर्टंग तथा निशेर्ीकृ त ठरपोर्टंग िें क्र्ा अंतर है?
7. निशेर् संिाददाता ककसे कहते हैं?
पाठ-11
कै से करें कहािी का िाट्य रूपांतरण
कहािी के िाट्य रूपांतरण िें एक दृश्र् की कथािस्तु कथािक को साििे रखकर एक-एक घटिा को चुिकर निकाला जाता
है और उसके आिार पर दृश्र् बिता है तात्पर्य र्ह कक र्कद एक घटिा, एक स्थाि और एक सिर् िें घट रही है तो िह एक
दृश्र् होगा। स्थाि और सिर् के आिार पर कहािी का निभाजि करके दृश्र्ों को नलखा जाता ।
प्रश्न 1. कहािी और िाटक िें अंतर स्पष्ट कीनजए।
अथिा
कहािी और िाटक िें क्र्ा-क्र्ा असिािताएूँ हैं?
उिर-कहािी और िाटक दोिों गद् नििाएं हैं। इििें जहाूँ कु छ सिािताएं हैं, िहाूँ कु छ असिािताएूँ र्ा अंतर भी हैं जो इस
प्रकार है
कहािी
1. कहािी एक ऐसी गद् नििा है नजसिें जीिि के ककसी अंक निशेर् का ििोरं जि पूणय नचिण ककर्ा जाता है।
2. कहािी का संबंि लेखक और पाठकों से होता है।
3. कहािी कही अथिा पढ़ी जाती है।
4. कहािी को आरं भ, िध्र् और अंत के आिार पर बाूँटा जाता है।
5. कहािी िें िंच सिा, संगीत तथा प्रकाश का िहत्त्ि िहीं है।
िाटक
1. िाटक एक ऐसी गद् नििा है नजसका िंच पर अनभिर् ककर्ा जाता है।
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2. िाटक का संबंि लेखक, निदेशक, दशयक तथा श्रोताओं से है।
3. िाटक का िंच पर अनभिर् ककर्ा जाता है।
4. िाटक को दृश्र्ों िें निभानजत ककर्ा जाता है।
5. िाटक िें िंच सिा, संगीत और प्रकाश व्यिस्था का निशेर् िहत्त्ि होता है।
प्रश्न 2. कहािी को िाटक िें ककस प्रकार रूपांतठरत ककर्ा जा सकता है?
उिर-कहािी को िाटक िें रूपांतठरत करिे के नलए अिेक िहत्त्िपूणय बातों का ध्र्ाि रखिा आिश्र्क है जो इस प्रकार है
1. कहािी की कथािस्तु को सिर् और स्थाि के आिार पर निभानजत ककर्ा जाता है।
2. कहािी िें घठटत निनभन्न घटिाओं के आिार पर दृश्र्ों का नििायण ककर्ा जाता है।
3. कथािस्तु से संबंनित िातािरण की व्यिस्था की जाती है।
4: ध्िनि और प्रकाश व्यिस्था का ध्र्ाि रखा जाता है।
5. कथािस्तु के अिुरूप िंच सिा और संगीत का नििायण ककर्ा जाता है।
6. पािों के द्वंद्व को अनभिर् के अिुरूप पठरिर्तयत ककर्ा जाता है।
7. संिादों को अनभिर् के अिुरूप स्िरूप प्रदाि ककर्ा जाता है।
8. कथािक को अनभिर् के अिुरूप स्िरूप प्रदाि ककर्ा जाता है।
प्रश्न 3. िाट्य रूपांतरण िें ककस प्रकार की िुख्र् सिस्र्ा का साििा करिा पडता है?
अथिा
िाट् र् रूपांतरण करते सिर् कौि-कौि सी सिस्र्ाएूँ आती हैं?
उिर-िाट्य रूपांतरण करते सिर् अिेक सिस्र्ाओं का साििा करिा पडता है जो इस प्रकार है-
1. सबसे प्रिुख सिस्र्ा कहािी के पािों के ििोभािों को कहािीकार द्वारा प्रस्तुत प्रसंगों अथिा िािनसक द्वंद्वों के िाटकीर्
प्रस्तुनत िें आती है।
2. पािों के द्वंद्व को अनभिर् के अिुरूप बिािे िें सिस्र्ा आती है।
3. संिादों को िाटकीर् रूप प्रदाि करिे िें सिस्र्ा आती है।
4. संगीत, ध्िनि और प्रकाश व्यिस्था करिे िें सिस्र्ा होती है।
5. कथािक को अनभिर् के अिुरूप बिािे िें सिस्र्ा होती है।
प्रश्न 4. कहािी का िाट्य रूपांतरण करते सिर् ककि-ककि बातों का ध्र्ाि रखिा चानहए?
उिर- कहािी अथिा कथािक का िाट्य रूपांतरण करते सिर् निम्ननलनखत आिश्र्क बातों का ध्र्ाि रखिा चानहए
1. कथािक के अिुसार ही दृश्र् कदखाए जािे चानहए।
2. िाटक के दृश्र् बिािे से पहले उसका खाका तैर्ार करिा चानहए।
3. िाटकीर् संिादों का कहािी के िूल संिादों के साथ िेल होिा चानहए।
4. कहािी के संिादों को िाट्य रूपांतरण िें एक निनित स्थाि निलिा चानहए।
5. संिाद सहज, सरल, संनक्षप्त, सटीक, प्रभािशैली और बोलचाल की भार्ा िें होिे चानहए।
6. संिाद अनिक लंबे और ऊबाऊ िहीं होिे चानहए।

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प्रश्न 5. कहािी और िाटक िें क्र्ा सिािता है?
उिर- सिािता र्ह होती है कक कहािी और िाटक दोिों िें एक कहािी होती है, पाि होते हैं, पठरिेश होता है, कहािी का
क्निक निकास होता है, संिाद होते हैं, द्वंद्व होता है, क्ि उत्कर्य होता है। इस तरह हि देखते हैं कक िाटक और कहािी की
आत्िा के कु छ िूल तत्ि एक ही हैं। र्ह अिश्र् है कक कु छ िूल तत्ि जैसे द्वंद्व िाटक िें नजतिा और नजस िािा िें आिश्र्क
है उतिा सम्भितुः कहािी िें िहीं है।
प्रश्न 6. िाटक की वशकप संरचना पर प्रकाश र्ावलए?
उिर- िाटक के अंतगयत सियप्रथि कहािी के रूप को ककसी नशल्प िािय अथिा संरचिा के भीतर नपरोिा होता है। इसके
नलए िाटक के नशल्प की जािकारी होिी आिश्र्क होती है। र्ह बात सदैि ध्र्ाि िें रखिी चानहए कक िाटक का िंचि िंच
पर होता है। इसी कारण एक िाटककार को रचिाकार होिे के साथ-साथ कु शल संपादक भी होिा चानहए। घटिाओं,
नस्थनतर्ों, दृश्र्ों का चर्ि, िंचि का क्ि आकद रखिे का अिुभि और जािकारी होिी अत्र्ंत आिश्र्क है, तभी िाटक
सिल हो पाता है।
प्रश्न 7. कहािी लेखि िें कथािक के पािों का संबि
ं स्पष्ट कीनजए।
उिर- देशकाल, स्थाि और पठरिेश के बाद कथािक के पािों पर निचार करिा चानहए। हर पाि का अपिा स्िरूप, स्िभाि
और उद्देश्र् होता है। कहािी िें िह निकनसत भी होता है र्ा अपिा स्िरूप भी बदलता है। कहािीकार के साििे पािों का
अध्र्र्ि कहािी की एक बहुत िहत्त्िपूणय और बुनिर्ादी शतय है। र्ह नजतिा स्पष्ट होगा उतिी ही आसािी उसे पािों का
चठरि-नचिण करिे और उसके संिाद नलखिे िें आसािी होगी। इसके अंतगयत पािों के अंतुः संबंि पर भी निचार ककर्ा
जािा चानहए। कौि-से पाि की ककस ककस पठरनस्थनत िें क्र्ा प्रनतकक्र्ा होगी, र्ह भी कहािीकार को पता होिा चानहए।
पाठ सं- 12
कै से बनता िै रे वर्यो नाटक
रे नडर्ो श्रव्य िाध्र्ि है। और दृश्र् काव्य के अंतगयत आता है। श्रव्य िाध्र्ि के अंतगयत आिे िाले िाटक का प्रसारण कै से हो
सकता है ? र्ह बाद का प्रश्न है। ऐसे िाटक की रचिा कै से होगी र्ह पहला प्रश्न है? िाटक का रं गिंच से सीिा संबंि है
लेककि रे नडर्ो िाटक रं गिंच के नलए र्ा िंचि के नलए िहीं नलखा जाता। श्रव्य िाध्र्ि पर श्रोताओं के नलए इस िाटक का
प्रसारण होता है। र्ह दृश्र् से िंनचत हो जाता है और भी बहुत कु छ इसकी पठरनि िें िहीं आ सकता।
िंचीर् िाटक रं गिंच पर अभीनहत होता है और के न्द्र िें दशयक होते हैं। दशयकों के नलए लोकरं जि की व्यिस्था िाटक के तत्िों
और उपकरणों के िाध्र्ि से की जाती है। घटिा निन्र्ास ऐसा होता है कक कौतूहल बिा रहे । तिाि का सृजि हो पािों का
प्रभािशाली अनभिर् हो सके । प्रकाश व्यिस्था और संगीत का अनतठरि र्ोगदाि होता है। प्रस्तुनतक्ि िें निदेशकीर्
पठरकल्पिा िहत्िपूणय होती है लेककि दशयकों के साििे अनभिेता होता है। उसे त्िठरत प्रनतकक्र्ाएूँ निलती है। इन्ही
प्रनतकक्र्ाओं के आिार पर िाटक सिल र्ा असिल होता है। रं गिंच पर िाटक कई पािों और रं ग व्यिस्थापको के िाि्र्ि
से प्रस्तुत होता है और दशयकों को सािूनहक रूप से कलास्िादि का अिसर निलता है।
िंचीर् िाटक का उल्लेख इसनलए ककर्ा गर्ा कक रे नडर्ो िाटक इससे कब, ककतिा और कै से अलग है र्ह सिझा जा
सके ।रे नडर्ो िाटक िंच की सीिाओं से िुि िाटक है।

260
अदृश्र् होिे के पठरणािस्िरुरूप रोनडर्ो िाटक िें जहां कु छ किी रह जाती है िही इसी उन्िुि उडाि की संभाििाएूँ बि
जाती है।ऊपर िंच के िाटक की बात की गई हैं। रं ग अनभकल्प िंच तैर्ार करता है। िाटक की आिश्र्कता के अिुरूप दृश्र्
कै से रचा जाए कक कलात्िक भी हो और प्रभािशाली भी िंच सिाकार इसका ध्र्ाि रखता है। इस बात का भी ध्र्ाि रखा
जाता है कक ककसी प्रस्तुनत के िाटक की संख्र्ा अत्र्निक ि हो इसके निपरीत रे नडर्ो िाटक िें दृश्र् अनतकल्पिा पर आिाठरत
भी हो सकते हैं। िै न्टेसी र्ा रम्र्कल्पिा रे नडर्ो का नप्रर् क्षेि है। आशर् र्ह है कक िंच पर जैसे दृश्र् कदखार्े िहीं जा सकते
श्रि्र् िाटक िें ऐसे दृश्र् बडी सहजता से सनम्िनलत ककए जा सकते हैं।
रे नडर्ो िाटक के तत्ि-
इसके नलए 3 तत्िों का सहारा नलर्ा जाता है।रे नडर्ो िाटक िें र्े 3 तत्ि िहत्िपूणय है
● भार्ा
●ध्िनि
●संगीत
इि तीिों के कलात्िक संर्ोजि से निशेर् प्रभाि उत्पन्न ककर्ा जाता है। भार्ा कें द्र िें है और र्हाूँ ध्र्ातव्य है कक भानर्त
शब्द की शनि नलनखत सबसे अनिक होती है और शब्द प्रर्ोग ऐसे हो नजि का उच्चारण अनभिर् संपन्न हो सके । र्हां िानचक
अनभिर् की ओर संकेत है। प्रसंग िश र्हां उल्लेखिीर् है कक अनभिर् चार प्रकार का िािा गर्ा है-
१. अंनगक
२.आहार्य
३.सानत्िक
४.िानचक
के िल िानचक अनभिर् इस श्रव्य िाध्र्ि पर हो सकता है।
संगीत सािान्र्ता दृश्र् पठरितयि के नलए उपर्ोग िें आता है। र्ह संिाद के बीच के अंतराल को भरिे के नलए भी होता है।
और िाटक की निर्र् िस्तु और कथ्र् के अिुरूप िातािरण के नििायण के नलए भी। र्ह िातािरण अदृश्र् होता है इसनलए
संगीत की आिश्र्कता और भूनिका और बढ़ जाती है। शब्दों के िाध्र्ि से तो िातािरण का सृजि होता ही है संगीत का
र्ोगदाि भी निनशष्ट होता है। नचनडर्ों का चहचहािा, सुबह का संकेतक होता है निनिि प्रकार की नसगिेचर ट्यूि से भी
सुबह का आभास करार्ा जाता है । प्लेटिािय का शोर गानडर्ों के हॉिय की आिाज, कांच का टूटिा र्ा तेज हिाओं का प्रभाि
ध्िनि की निशेर्ताओं के िाध्र्ि से उत्पन्न ककर्ा जाता है। भार्ा संगीत और ध्िनि तीिों के सिनन्ित और कलात्िक प्रर्ोग
से श्रोता की कल्पिा शनि को जागृत करते हुए उसके िािस िें दृश्र् रचा जाता है। इस प्रकार के दृश्र् की रचिा श्रोता की
कल्पिाशील ग्रहण क्षिता पर भी निभयर है।
रे नडर्ो िाटक के लेखि क्ि िें रचिाकार अत्र्ानिक कल्पिाशील हो सकता है। उसके नलए कोई सीिा िहीं है, िा दृश्र् की,
िा सिर् की और िा स्थाि की। इस प्रकार ककसे िाटक के अनििार्य पक् र् के रूप िें देखा जाता है िह संकलििर् रे नडर्ो
िाटक के नलए िहत्िपूणय िहीं रह जाता।

261
ऊपर कहा गर्ा है कक रे नडर्ो िाटक के नलए सिर् की कोई सीिा िहीं है। रचिा के संदभय िें र्ह बात सही है लेककि प्रसारण
अिनि के संदभय िें सही िहीं है। र्ह िािा जाता है कक श्रोताओं के ध्र्ाि कें द्र की सीिा होती है। इसनलए सािान्र्तुः िाटक
15 से 30 नििट की अिनि का हो बहुत लंबा िा हो।
कल्पिा का तत्ि िहत्िपूणय है। कल्पिा का िहत्ि तीि स्तरों पर आिश्र्क उपर्ोगी और कलासृजि िें सहार्क है। र्े तीि
िुख्र् स्तर है
१. िाटककार का रचिाकिय
२. प्रस्तुतकताय की सृजिात्िकता
३. श्रोता की कल्पिाशीलता
श्रव्य िाटक सबसे पहले िाटक करके िािस के दृश्र् रूप िें घठटत होता है। इसके नबिा संिाद क्ि िें दृश्र् रचिा िहीं की
जा सकती दूसरा पक्ष प्रस्तुतकताय का है संगीत और ध्िनि प्रभाि का पक्ष इसिें शानिल है। प्रस्तुनत क्ि िें कै से संगीत और
कै सा ध्िनि प्रभाि अपेनक्षत है। इसका चर्ि नििायरण प्रस्तुतकताय के िाध्र्ि से होता है। तीसरा पक्ष अनििार्यतुः श्रोता का
है। उसकी कल्पिाशीलता के नबिा िंनचत प्रभाि का ग्रहण करिा संभि िहीं।
ध्िन्र्ांकि के क्ि िें कई तरह के व्यनिर्ों का सहारा नलर्ा जाता है। प्रकारान्तर से र्ह िाइक्ोिोि आिाज ध्िनि और
संगीत का रचिात्िक उपर्ोग है जैसे पाि का बोलते हुए िाइक्ोिोि से दूर हट जािा ऐसा प्रभाि उत्पन्न करता है कक जैसे
पाि दूर र्ा बाहर र्ा कहीं और जा रहा हो। इसे िे ड आउट कहा जाता है। इसके निपरीत हैं िे ड इि। इसिें पाि दूर से
बोलते हुए िाइक्ोिोि के निकट आता है।
रे नडर्ो िाटक के िाध्र्ि से अिंत की र्ािा संभि है। जैसे देश र्ा स्थाि की कोई सीिा िहीं िैसे ही काल की भी सीिा िहीं।
30 नििट के िाटक िें शतानब्दर्ों का अंकि हो सकता है। 1 ईसिी शताब्दी से अकबर के र्ुग तक का सिर संिादों ध्िनि
प्रभाि और संगीत के िाध्र्ि से सहज संभि है। कि साििों से अत्र्ानिक प्रभाि उत्पन्न करिे की क्षिता रे नडर्ो िाटक िें
है। र्ह अन्र् िाटकों की अपेक्षा गनतशील िाटक है जैसे ऊपर कहा गर्ा है शतानब्दर्ों का सिर संिाद के कु छ टुकडों के
िाध्र्ि से ककर्ा जा सकता है। दूर तक िै ली िरती शब्दों के दार्रे िें है। श्रव्य िाध्र्ि का र्ह िाटक िाटक के कार्य व्यापार
को िािस के िरातल पर बडी सहजता से उतार सकता है।
भार्ा के िाध्र्ि से शब्दों के िरातल से बाह्य दृश्र् नििाि तो होता ही है। आंतठरक िािनसक द्वंद के अंकि िें भी उतिा ही
सिल होता है। र्ही कारण है कक इसे अंतियि का िाटक भी कहा जाता है।

व्यनि िि के अंकि के नलए ििोिैज्ञानिक उपन्र्ासों िें चेतिा प्रिाह शैली अपिाई जाती है। रे नडर्ो िाटक इस शैली का
प्रभािशाली उपर्ोग करता है। इस शैली के अंतगयत अतीत ितयिाि भनिपर् ककसी भी कदशा िें र्ािा संभि है।
नजि रचिाकारों िे रे नडर्ो िाटक के क्षेि िें िहत्िपूणय र्ोगदाि ककर्ा है। उििें से कु छ र्े है- नसद्धिाथ कु िार, उदर् शंकर
भट्ट, भगितीचरण ििाय, नगठरजाकु िार िाथुर, भारत भूर्ण अग्रिाल और िियिीर भारती। िियिीर भारती का गीनतिाट्य
अंिा र्ुग पहली बार रे नडर्ो से ही प्रसाठरत ककर्ा गर्ा।

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रे नडर्ो िाटक के आंतठरक अनन्िनत का पक्ष िहत्िपूणय है। इस अंतठरक्ष संगठि के नबिा िंनचत प्रभाि उत्पन्न िहीं ककर्ा जा
सकता। दृश्र् नििाि, पाि पठरचर्, िातािरण का नििायरण, कार्य व्यापार की सूचिा पािों की भािी व्यनि र्ह सारी
कदशाएं रे नडर्ो िाटक की िानचक भार्ा के िाध्र्ि से स्पष्ट होती है। शब्दों के िाध्र्ि से सारा प्रभाि उत्पन्न ककर्ा जाता है।
इसके साथ ही ध्िनि और संगीत अपिी भूनिका का नििायह करते हैं।
रे नडर्ो िाटक िें िरे टर र्ा सूििार हो सकता है। ऐसा होता रहा है संिाद से जो िहीं हो सकता िह िरे शि से पूरा होता है
िैसे इसे अच्छा तरीका िहीं िािा जाता। जो काि िरे टर र्ा सूििार करिे िाला है। िह पािों के संिादों के िाध्र्ि से
संपन्न हो जाए तो नस्थनत अच्छी िािी जाती हैं। श्रव्य िाध्र्ि से भानर्त शब्द की िहिा की ओर संकेत ऊपर ककर्ा जा
चुका है।
इस प्रकार रे नडर्ो िाटक श्रव्य िाटक है। र्ह गनतशील है। अतीत ितयिाि भनिपर् तीिों देशों िें इसके िाध्र्ि से गिि ककर्ा
जा सकता है। र्ह िानचक भार्ा की शनि क्षिता का भरपूर उपर्ोग करता है। कल्पिा तत्ि से इसका गहरा संबंि है। र्ह
शब्दों के िाध्र्ि से एक पूरा संसार और दृश्र् को दृश्र् बिाता है। र्ह अंतियि का िाटक है नितव्यर्ी भी है। न्र्ूिति साििों
से अनिकति प्रभाि उत्पन्न करिे की क्षिता,ध्िनि और संगीत की रचिात्िक उपर्ोनगता इसके प्रभाि िें िृनद्ध करता है।
प्रश्न 1. नसिेिा, रं गिंच और रे नडर्ो िाटक िें क्र्ा-क्र्ा सिािताएूँ होती हैं?
उिर-नसिेिा, रं गिंच और रेनडर्ो िाटक िें अिेक सिािताएूँ हैं जो इस प्रकार है-
नसिेिा और रं गिंच
1. नसिेिा और रं गिंच िें एक कहािी होती है।
2. इििें कहािी का आरं भ, िध्र् और अंत होता
3. इििें चठरि होते हैं।
4. इििें पािों के आपसी संिाद होते हैं।
5. इििें पािों का परस्पर द्वंद्व होता है और अंत िें सिािाि।
6. इििें पािों के संिादों के िाध्र्ि से कहािी का निकास होता है।
रे नडर्ो िाटक
1. रे नडर्ो िाटक िें भी एक ही कहािी होती है।
2. इसिें भी कहािी का आरंभ, िध्र् और अंत होता है।
3. इसिें भी चठरि होते हैं।
4. इसिें भी पािों के आपसी संिाद होते हैं।
5.इसिें भी पािों का परस्पर द्वंद्व होता है और सिािाि प्रस्तुत ककर्ा जाता है।
6. इििें भी पािों के संिादों के िाध्र्ि से कहािी का निकास होता है।
प्रश्न 2. नसिेिा रं गिंच और रे नडर्ो िाटक िें क्र्ा-क्र्ा असिािताएूँ हैं?
उिर-नसिेिा रं गिंच और रे नडर्ो िाटक िें अिेक सिािताएूँ होते हुए भी कु छ असिािताएूँ अिश्र् होती हैं जो इस प्रकार
है-
नसिेिा और रं गिंच

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1. नसिेिा और रं गिंच दृश्र् िाध्र्ि है।
2. इििें दृश्र् होते हैं।
3. इििें िंच सिा और िस्त्र सिा का बहुत िहत्त्ि होता है।
4. इििें पािों की भािभंनगिाएूँ निशेर् िहि्ि रखती हैं।
5. इििें कहािी को पािों की भाििाओं के द्वारा प्रस्तुत ककर्ा जाता है।
रे नडर्ो िाटक
1. रे नडर्ो िाटक एक श्रव्य िाध्र्ि है।
2. इसिें दृश्र् िहीं होते।
3. इसिें इिका कोई िहत्त्ि िहीं होता।
4. इसिें भािभंनगिाओं की कोई आिश्र्कता िहीं होती।
5. इसिें कहािी को ध्िनि प्रभािों और संिादों के िाध्र्ि से संप्रेनर्त ककर्ा जाता है।
प्रश्न 3. रे नडर्ो िाटक की कहािी िें ककि-ककि बातों का ध्र्ाि रखिा आिश्र्क है?
उिर-रे नडर्ो िाटक िें कहािी संिादों तथा ध्िनि प्रभािों पर ही आिाठरत होती है। इसिें कहािी का चर्ि करते सिर्
अिेक बातों का ध्र्ाि रखिा आिश्र्क है जो इस प्रकार हैं
1. कहािी एक घटिा प्रिाि ि हो-रे नडर्ो िाटक की कहािी के िल एक ही घटिा पर आिाठरत िहीं होिी चानहए क्र्ोंकक
ऐसी कहािी श्रोताओं को थोडी देर िें ही ऊबाऊ बिा देती है नजसे श्रोता कु छ देर पिात् सुििा पसंद िहीं करते इसनलए
रे नडर्ो िाटक की कहािी िें अिेक घटिाएूँ होिी चानहए।
2. अिनि सीिा-सािान्र् रूप से रे नडर्ो िाटक की अिनि पंद्रह से तीस नििट तक हो सकती है। रे नडर्ो िाटक की अिनि
इससे अनिक िहीं होिी चानहए क्र्ोंकक रे नडर्ो िाटक को सुििे के नलए ििुपर् की एकाग्रता की अिनि 15 से 30 नििट
तक की होती है, इससे ज्र्ादा िहीं। दूसरे रे नडर्ो एक ऐसा िाध्र्ि है नजसे ििुपर् अपिे घर िें अपिी इच्छा अिुसार सुिता
है। इसनलए रे नडर्ो िाटक की अिनि सीनित होिी चानहए।
3. पािों की सीनित संख्र्ा-रे नडर्ो िाटक िें पािों की संख्र्ा सीनित होिी चानहए। इसिें पािों की संख्र्ा 5- 6 से अनिक
िहीं होिी चानहए क्र्ोंकक इसिें श्रोता के िल ध्िनि के सहारे ही पािों को र्ाद रख पाता है। र्कद रे नडर्ो िाटक िें अनिक
पाि होंगे तो श्रोता उन्हें र्ाद िहीं रख सकें गे। इसनलए रे नडर्ो िाटक िें पािों की संख्र्ा सीनित होिी चानहए।
प्रश्न 4. रे नडर्ो िाटक िें ध्िनि प्रभािों और संिादों का क्र्ा िहत्त्ि है?
अथिा
रे नडर्ो िाटक की निशेर्ताओं को स्पष्ट कीनजए।
उिर-रे नडर्ो िाटक िें ध्िनि प्रभािों और संिादों का निशेर् िहत्त्ि है जो इस प्रकार हैं-
1. रे नडर्ो िाटक िें पािों से संबंनित सभी जािकाठरर्ाूँ संिादों के िाध्र्ि से निलती हैं।
2. पािों की चाठरनिक निशेर्ताएूँ संिादों के द्वारा ही उजागर होती हैं।
3. िाटक का पूरा कथािक संिादों पर ही आिाठरत होता है।
4. इसिें ध्िनि प्रभािों और संिादों के िाध्र्ि से ही कथा को श्रोताओं तक पहुूँचार्ा जाता है।

264
5. संिादों के िाध्र्ि से ही रे नडर्ो िाटक का उद्देश्र् स्पष्ट होता है।
6. संिादों के द्वारा ही श्रोताओं को संदश
े कदर्ा जाता है।
प्रश्न 5. रे नडर्ो पर रे नडर्ो िाटक का आरं भ ककस प्रकार हुआ?
उिर-आज से कु छ दशक पहले रे नडर्ो ही ििोरं जि का प्रिुख सािि था। उस सिर् टेलीनिज़ि, नसिेिा, कम्प्र्ूटर आकद
ििोरं जि के सािि उपलब्ि िहीं थे। ऐसे सिर् िें घर बैठे ही रे नडर्ो ही ििोरं जि का सबसे सस्ता और सुलभ सािि था।
रे नडर्ो पर खबरें आती थीं इसके साथ-साथ अिेक ज्ञाििियक कार्यक्ि भी प्रसाठरत ककर्े जाते थे। रे नडर्ो पर संगीत और
खेलों का आूँखों देखा हाल प्रसाठरत ककर्ा जाता था। एि० एि० चैिलों की तरह गीत-संगीत की अनिकता होती थी। िीरे -
िीरे रे नडर्ो पर िाटक भी प्रस्तुत ककर्े जािे लगे तब रे नडर्ो िाटक टी० िी० िारािानहकों तथा टेली किल्िों की किी को
पूरा करिे के नलए शुरू हुए थे। र्े िाटक लघु भी होते थे और िारािानहक के रूप िें भी प्रस्तुत ककए जाते थे।
नहन्दी सानहत्र् के सभी बडे-बडे लेखक सानहत्र् रचिा के साथ-साथ रे नडर्ो स्टेशिों के नलए िाटक भी नलखते थे। उस सिर्
रे नडर्ो के नलए िाटक नलखिा एक सम्िािजिक बात िािी जाती थी। इस प्रकार रे नडर्ो िाटक का प्रचलि बढ़िे लगा।
रे नडर्ो िाटकों िे बहंदी और अन्र् भारतीर् भार्ाओं के िाट्य आंदोलि के निकास िें िहत्त्िपूणय भूनिका अदा की। बहंदी के
अिेक िाटक जो बाद िें िंच पर बहुत प्रनसद्ध रहे िे िूलतुः रे नडर्ो के नलए ही नलखे गए थे। िियिीर भारती द्वारा रनचत
'अंिा र्ुग' और िोहि राके श द्वारा रनचत 'आर्ाढ़ का एक कदि' इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है।
प्रश्न 6. रे नडर्ो िाटक के तत्िों का संनक्षप्त नििेचि कीनजए।
उिर-रे नडर्ो िाटक का िूल आिार ध्िनि िािी जाती है। र्ह िाििीर् भािों को सरलता-सहजता से व्यि कर देिे की
क्षिता रखती है। रे नडर्ो तत्िों के तीि तत्ि िािे जाते हैं।
उिके तत्ि हैं-(1) भार्ा (2) ध्िनि प्रभाि (3) संगीत।
1. भार्ा-भार्ा ही रे नडर्ो िाटक की िूल आिार होती है। र्ही सुििे और बोलिे का कार्य करती है। इसी से कठठि एिं
जठटल रे नडर्ो िाटक और संिाद जठटल हो जाते हैं। इसे नजि तीि भागों िें स्िीकार ककर्ा जाता है, िे हैं-
(क) कथोपकथि (ख) िरे शि (ििा का कथि) (ग) कथि।
(क) कथोपकथि-रे नडर्ो से दो प्रिुख संबंनित तत्ि होते हैं-कथोपकथि और प्रििा का कथि । कथोपकथि रे नडर्ो को पािों
की िािनसक नस्थनतर्ों को प्रकट कराते हैं और कथािक उसे गनत प्रदाि करता है। र्ही रे नडर्ो के िाटक के पािों और उि
की िािनसक नस्थनतर्ों का पठरचर् कराते हैं। इन्हीं से कथािक को गनत प्राप्त होती है और श्रोता को अपिी ओर आकृ ष्ट
करती है। िरे शि ही पाठकों के कक्र्ा-कलापों का नििायण प्रदाि करता है और निनभन्न घटिाओं/ नििशताओं की श्रृंखला िें
बांििे का कार्य करता है।
(ख) ध्िनि प्रभाि-ध्िनि तरह-तरह की िातािरणों को बिािे िें सहार्क बिाती है। तूिाि, बादल, बाज़ार आकद इन्हीं से
प्रसारण के िाध्र्ि से इिर-उिर प्रसाठरत करती है। इिकी सहार्ता से रे नडर्ो िाटकों की िातािरण की सृनष्ट होती है।
(ग) संगीत-र्ह रे नडर्ो-िाटक को संजीिता प्रदाि करिे का कार्य करता है नजससे प्रभानिता की सृनष्ट होती है। संगीत से
प्रभानिता की क्षिता बढ़ती है।
प्रश्न 7. कहािी का िाट्य- रूपांतरण करते सिर् ककि िहत्िपूणय बातों का ध्र्ाि रखिा चानहए?
उिर- कहािी का िाट्य रूपांतर करते सिर् इि िहत्िपूणय बातों पर ध्र्ाि देिा चानहर्े-

265
 कहािी एक ही जगह पर नस्थत होिी चानहर्े।
 कहािी िें संिाद िहीं होते और िाट्य संिाद के आिार पर आगे बढता है। इसनलर्े कहािी िे संिाद का सिािेश
करिा जरूरी है।
 कहािी का िाट्य रूपांतर करिे से पहले उसका कथािक बिािा बहुत जरूरी है।
 िाट्य िे हर एक पाि का निकास, कहािी जैसे आगे बढती है, िैसे होता है इसनलर्े कहािी का िाट्य रूपांतर करते
िि पाि का नििरण करिा बहुत जरूरी होता है।
 एक व्यनि कहािी नलख सकता है, पर जब िाट्य रूपांतर की बात आती है, तो एक सिूह र्ा टीि की जरूरत होती
है।
प्रश्न 8. रे नडर्ो िाटक िें पाि संबि
ं ी ककि िहत्िपूणय बातों की जािकारी निलती है स्पष्ट कीनजए।
उिर- रे नडर्ो िाटक िें पािों संबिी तिाि जािकारी हिें संिादों के िाध्र्ि से ही निलती हैं। उिके िाि, आपसी संबंि,
चाठरनिक निशेर्ताएूँ, र्े सभी हिें संिादों द्वारा ही उजागर करिा होता है। भार्ा पर भी आपको निशेर् ध्र्ाि रखिा होगा।
िो पढ़ा-नलखा है कक अिपढ़, शहर का है कक गाूँि का, क्र्ा िो ककसी निशेर् प्रांत का है, उसकी उम्र क्र्ा है, िो क्र्ा रोजगार-
िंिा करता है। इस तरह की तिाि जािकाठरर्ाूँ उस चठरि की भार्ा को नििायठरत करेंगी। किर पािों का आपसी संबंि भी
संिाद की बिािट पर असर डालता है। एक ही उदाहरण व्यनि अपिी पत्नी से अलग ढंग से बात करे गा, अपिे िौकर से
अलग ढंग से, आपिे बास के प्रनत सम्िािपूियक रिैर्ा अपिाएगा, तो अपिे निि के प्रनत उसका बराबरी और गरि-जोशी
का व्यिहार होगा। र्े सब प्रकट होगा उसके संिादों से।

पाठ सं-13
नए और अप्रत्यावशत विषयों पर लेखन
िैचाठरक और भाििात्िक रूप से रचिा करिा एिं अपिे िौनलक निचारों की अनभव्यनि करिा सृजिात्िक लेखि के
अंतगयत आता है , प्रश्नपि के खंड-ब िें कदए गए अप्रत्र्ानशत निर्र्ों िें से ककसी एक पर सृजिात्िक लेखि संबंिी प्रश्न पूछे
जाएंगे | इसका उिर नलखते सिर् निम्ननलनखत तथ्र्ों को ध्र्ाि िें रखिा आिश्र्क होगा -
 सृजिात्िक लेखि िें निद्ार्थयर्ों को अपिे निचारों की स्ितंि अनभव्यनि करिी है|
 निचारों िें क्िबद्धता आिश्र्क है |
 लेखि से पूिय अपिे निचारों को संनक्षप्त नबन्दुओं र्ा शीर्यकों िें बांट लें ताकक लेखि आसाि हो सके |
 निर्र्ािुकूलता ि रोचकता का ध्र्ाि रखा जािा चानहए ।
 लेखि से पूिय सभी निकल्पों पर निचार कर उपर्ुि निकल्प का चुिाि करें ।
 लेखि के निर्र् को तीि भाग िें निभानजत कर लें| (क) निर्र् का पठरचर् (ख) निर्र् का निस्तार (ग) निपकर्य
 रूपरे खा-लेखि के सिर् पूिायपर संबंि के निर्ि का नििायह ककर्ा जाए, पूिायपर संबंि के नििायह का अथय है कक
ऊपर की बात उसके ठीक िीचे की बात से जुडी होिी चानहए, नजससे निर्र् का क्ि बिा रहे |
 भार्ा सरल, सहज और बोिगम्र् हो|
 पुिरािृनि दोर् से बचा जाए|

266
 शब्द सीिा 120 शब्द सी.बी.एस.सी.द्वारा नििायठरत की गई है| अत: शब्द सीिा का ध्र्ाि रखें एिं अिािश्र्क
बातें नलखिे से बचें|
सृजिात्िक लेखि िें निम्न प्रश्नों के उिर तलाश करें -
 सिस्र्ा क्र्ा है?
 सिस्र्ा क्र्ो है?
 सिस्र्ा का प्रभाि – लाभ / हानि
 उपार् /सुझाब /प्रर्ास
 उपसंहार
सृजिात्िक लेखि के प्रारूप का निियहि निम्न प्रकार होिा चानहए-
1. आरम्भ (निर्र् का पठरचर्) -अंक-1
2. निर्र् का िहत्ि (िहत्ि,प्रासंनगकता ) -अंक-3
3. निपकर्य -अंक 1
सृजिात्िक लेखि - उदाहरण
भाग्र्िादी दृनष्टकोंण
इस संसार िें कु छ व्यनि भाग्र्िादी होते हैं और कु छ के िल अपिे पुरुर्ाथय पर भरोसा रखते हैं | प्रार्: ऐसा देखा जाता है
कक भाग्र्िादी व्यनि ईश्वरीर् इच्छा को सिोपठर िािता हैं और अपिे प्रर्त्नों को गौण िाि बैठते हैं | िे नििाता का ही
दूसरा िाि भाग्र् को िाि लेते है| भाग्र्िादी कभी-कभी अकियण्र्ता की नस्थनत िें भी आ जाते हैं| उिका कथि होता है कक
कु छ िहीं कर सकते सब कु छ ईश्वर के अिीि है| हिें उसी प्रकार पठरणाि भुगतिा पडेगा जैसा भगिाि चाहेगा| भाग्र्ोदर्
शब्द िें भाग्र् प्रिाि है | एक अन्र् शब्द है -सूर्ोदर्| हि जािते हैं कक उदर् सूरज का िहीं होता सूरज तो अपिी जगह पर
रहता है, चलती घूिती तो िरती ही है| किर भी सूर्ोदर् हिें बहुत शुभ और साथयक िालूि होता है| भाग्र् भी इसी प्रकार
है | हिारा िुख सही भाग्र् की तरि हो जाए तो इसे भाग्र्ोदर् ही िाििा चानहए| पुरुर्ाथी व्यनि अपिे पठरश्रि के बल
पर कार्य नसद्ध कर लेिा चाहता है| पुरुर्ाथय िह है जो पुरुर् को सप्रर्ास रखे| पुरुर् का अथय पशु से नभन्न है| बल-निक्ि तो
पशु िें अनिक होता है, लेककि पुरुर्ाथय पशु चेष्टा के अथय से अनिक नभन्न और श्रेष्ठ है |

इसी प्रकार “पर्ायिरण प्रदूर्ण” पर सृजिात्िक लेख नलखिा हो तो संभानित बबंद ु निम्न हो सकते हैं |
 भूनिका
 पर्ायिरण प्रदूर्ण से हानि
 बचाि / उपार् /सुझाि
 उपसंहार
सृजिात्िक लेखि के कु छ अन्र् उदाहरण /संभानित नबन्दु तथा उद्धरण:--
(अ) सािानजक रचिात्िक लेखि - र्े लेख सािानजक सिस्र्ाओं पर आिाठरत होते हें अत: इिको नलखते सिर् सिाचार
–पिों की खबरों, निद्ालर् के कार्यक्िों का नजक् करें ।
267
शीर्यक: -
 भूनिका --- (इसिे निर्र् का सािान्र् पठरचर् दें)
 क्र्ा है? (इसिें निर्र् को स्पष्ट करे )
 लाभ /हानि/ उपलनब्ि/र्ोजिाएं (इसका चर्ि निर्र् के अिुरूप करें )
 उपार् /सुझाि
 उपसंहार (इसिे सार नलखें)
उद्धरण – प्रारं भ-“र्ह भारत िािि लोक िहीं रे ,
र्ह है िरक अपठरनचत ।
र्हाूँ भारत की ग्राम्र् – सभ्र्ता
संस्कृ नत से नििायनसत ।।
अंत ---- “असिल हुर्े अिेक बार पर, िि िें कोई िलाल िहीं है ।
र्ुिा शनि उत्सुक उत्सानहत, अभी सिर है हार िहीं है ।
(ब) देश ि संस्कृ नत सम्बन्िी सृजिात्िक लेखि -
भारत की राष्ट्रीर् एकता / उपभोिा िाद की संस्कृ नत /ििय निरपेक्षता / िेरा भारत िहाि / आतंकिाद / आरक्षण की सिस्र्ा
शीर्यक --
 भूनिका
 लक्ष्र्
 िहत्त्िपूणय नबन्दु / सिाचार – पिों िें चर्चयत
 ितयिाि संदभय िें सुझाि
 उपसंहार
उद्धरण –
प्रारम्भ --- “र्ूिाि निस्र रोिा सब निट गए जहां से ।
बाकी बचा है के िल िािो निशां हिारा”
अंत ----- “लोहे के पेड हरे होंगे, तू गाि प्रेि के गाता चल ।
िि होगी र्ह निट्टी जरूर, आंसू के कण बरसाता चल ।।
(स) निज्ञाि ि संस्कृ नत -
संचार क्ानन्त / िोबाईल का प्रभाि / टेलीनिज़ि का दुपप्रभाि / इंटरिेट के लाभ –हानि /नडनजटल इंनडर्ा
प्रारं भ – “र्ह पशुत्ि हैं ििुज कक, आप ही आप चरे
िही ििुपर् है कक जो ििुपर् के नलए िरे “
अंत – “ििुपर् िही जो सबके सुख का ज्ञाि करे
करे निकास, राष्ट्र उन्नत हो, िाििता का ध्र्ाि रहे” |
िए और अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर लेखि / रचिात्िक लेखि पर आिाठरत कु छ प्रश्नोिर

268
प्रश्न 1 रटंत ज्ञाि क्र्ा है?
उिर- रटंत ज्ञाि एक बुरी आदत के सिाि है जो ककसी भी निर्र् के बारे िें रट कर पढ़ी गई बातों को ज्र्ों का त्र्ों प्रस्तुत
करती है। इसिें िािनसक अभ्र्ास के नलए कोई अिसर िहीं होता।
प्रश्न 2. रटंत अथिा कु टेि को बुरी लत क्र्ों कहा जाता है?
उिर- रटेत को बुरी लत इसनलए कहा जाता है क्र्ोंकक नजस निद्ाथी अथिा व्यनि को र्ह लत लग जाती है, उसके भािों
की िौनलकता खत्ि हो जाती है। इसके साथ-साथ उसकी बचंति शनि िीरे -िीरे क्षीण हो जाती है और िह ककसी निर्र् को
अपिे तरीके से सोचिे की क्षिता खो देता है। िह सदैि दूसरों के नलखे पर आनश्रत हो जाता है।
प्रश्न 3. िए अथिा अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर लेखि िें कौि-कौि सी बातों का ध्र्ाि रखिा चानहए?
उिर- िए अथिा अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर लेखि िें निम्ननलनखत बातों का ध्र्ाि रखिा चानहए-
1. नजस निर्र् पर नलखिा है लेखक को उसकी संपूणय जािकारी होिी चानहए।
2. निर्र् पर नलखिे से पहले लेखक को अपिे िनस्तपक िें उसकी एक उनचत रूपरे खा बिा लेिी चानहए।
3. निर्र् से जुडे तथ्र्ों से उनचत तालिेल होिा चानहए।
4. निचार निर्र् से सुसम्बद्ध तथा संगत होिे चानहए।.
5. अप्रत्र्ानशत निर्र्ों के लेखि िें िैं शैली का प्रर्ोग करिा चानहए।
6. अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर नलखते सिर् लेखक को निर्र् से हटकर अपिी निद्वता को प्रकट िहीं करिा चानहए।
प्रश्न 4- रचिात्िक लेख को चुिौती क्र्ों कहा जा सकता है?
उिर- अपिे िि िें उठते अिनगित निचारों को लेख का रूप देिा, आसािी से बोल कर कही जा सकिे िाली बातों को
सुसंबद्ध ढंग से नलनपबद्ध करिा आसाि िहीं है, अतुः आत्िनिश्वास के साथ लेख नलखिा ककसी चुिौती से कि िहीं है।
प्रश्न 5- इस निर्र् के सन्दभय िें लेखि का आशर् क्र्ा है?
उिर- र्हां लेखि का आशर् र्ांनिक हस्तकौशल िाि ि होकर भार्ा के सहारे ककसी चीज पर निचार करिे और उसे
व्याकरनणक शुद्धता के साथ सुसंगठठत रूप से प्रस्तुत करिे का सािि भी है।
प्रश्न 6.िए अथिा अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर लेखि िें क्र्ा-क्र्ा बािाएूँ आती हैं?
उिर- िए अथिा अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर लेखि िें अिेक बािाएूँ आती हैं जो इस प्रकार है-
1. सािान्र् रूप से लेखक आत्िनिभयर होकर अपिे निचारों को नलनखत रूप देिे का अभ्र्ास िहीं करता।
2. लेखक िें िौनलक प्रर्ास तथा अभ्र्ास करिे की प्रिृनि का अभाि होता है।
3. लेखक के पास निर्र् से संबंनित सािग्री और तथ्र्ों का अभाि होता है।
4. अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर लेखि करते सिर् शब्दकोश की किी हो जाती है।
5. लेखक की बचंति शनि िंद पड जाती है।
6. लेखक के बौनद्धक निकास के अभाि िें निचारों की किी हो जाती है।
प्रश्न 7- तैर्ारशुदा सािग्री हिसे क्र्ा छीि लेती है?
उिर- तैर्ारशुदा सािग्री की प्रचुरता और उपलब्िता, हिारी आत्िनिभयरता, िौनलकता और लेखि की क्षिता के साथ-
साथ हिारी रचिात्िकता भी छीि लेती है?

269
प्रश्न 8- रचिात्िक लेखि के नलए कै से निर्र् कदए जािे चानहए?
उिर - ऐसे निर्र्ों की संख्र्ा अपठरनित है कु छ निर्र् खुले होते हैं, कु छ तार्कय क कु छ स्िृनतर्ों पर आिाठरत कोई-कोई
अिुभि और नसद्धांतों पर आिाठरत होते हैं। इसिें लेखक की भािानभव्यनि और निचार निर्र् से ज्र्ादा िहत्त्िपूणय होता
है।
प्रश्न 9-िए और अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर लेखि को कै से सरल बिार्ा जा सकता है?
उिर - िए तथा अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर लेखि को सरल बिािे के नलए निम्ननलनखत बातों का ध्र्ाि करिा चानहए
1. ककसी भी निर्र् पर नलखिे से पूिय अपिे िि िें उस निर्र् से संबंनित उठिे िाले निचारों को कु छ देर रुककर एक
रूपरे खा प्रदाि करें । उसके पिात् ही शािदार ढंग से अपिे निर्र् की शुरुआत करें ।
2. निर्र् को आरं भ करिे के साथ ही उस निर्र् को ककस प्रकार आगे बढ़ार्ा जाए, र्ह भी िनस्तपक िें पहले से होिा
आिश्र्क है।
3. नजस निर्र् पर नलखा जा रहा है, उस निर्र् से जुडे अन्र् तथ्र्ों की जािकारी होिा भी बहुत आिश्र्क है। सुसंबद्धता
ककसी भी लेखि का बुनिर्ादी तत्ि होता है।
4. सुसंबद्धता के साथ-साथ निर्र् से जुडी बातों का सुसंगत होिा भी जरूरी होता है। अत: ककसी भी निर्र् पर नलखते हुए
दो बातों का आपस िें जुडे होिे के साथ-साथ उििें तालिेल होिा भी आिश्र्क होता है।
5. िए तथा अप्रत्र्ानशत निर्र्ों के लेखि िें आत्िपरक 'िैं शैली का प्रर्ोग ककर्ा जा सकता है। र्द्नप निबंिों और अन्र्
आलेखों िें 'िैं' शैली का प्रर्ोग लगभग िर्जयत होता है ककं तु िए निर्र् पर लेखि िें िैं शैली के प्रर्ोग से लेखक के निचारों
और उसके व्यनित्ि की झलक प्राप्त होती है।
प्रश्न 10- रचिात्िक लेखि का िॉिूल
य ा (सूतर् ) क्र्ा है?
उिर- सच्चाई र्ही है कक ऐसे लेखि का कोई िािूयला िहीं होता, र्कद होता तो कं प्र्ूटर हिसे ज्र्ादा श्रेष्ठ लेखक होता। इस
प्रकार का लेखि बंिी-बंिी लीक से हटकर खुले िैदाि िें निचरण करिे जैसा होता है जहाूँ प्रत्र्ेक लेखक का अपिे
निचारािुसार निर्र् का साथयक और सुसंगत रूप प्रकट होता है।
प्रश्न 11. क्र्ा रचिात्िक लेख नलखते सिर् भी निचारों का निर्ंिण आिश्र्क है?
उिर- र्द्नप कदए गए निर्र् के आलोक िें जो भी साथयक और सुसंगत निचार िि िें आते हैं, उन्हें व्यि ककर्ा जा सकता
है। परन्तु कु छ निर्र्ों पर अपिे निचार प्रिाह और शब्दों के चर्ि पर निर्ंिण आिश्र्क है निशेर्कर जब उससे ककसी की
व्यनिगत भाििा र्ा आत्िसम्िाि पर चोट पडती हो।
प्रश्न 12-लेखि का अक्षम्र् दोर् क्र्ा है?
उिर- अच्छे लेखि की निशेर्ता सुसंबद्ध होिे के साथ-साथ उसका सुसंगत होिा भी है बातों िें जुडाि और तालिेल होिे
की जगह र्कद िे परस्पर निरोिी हो तो र्ह लेखि के साथ-साथ अनभव्यनि का भी अक्षम्र् दोर् है।
िए और अप्रत्र्ानशत निर्र्ों पर लेखि /रचिात्िक लेखि के कु छ उदाहरण
कािकाजी िनहलाओं की सिस्र्ाएूँ
20िीं सदी के प्रारं भ िें निश्व िें िनहलाओं का स्थाि घर-पठरिार की नजम्िेदाठरर्ों तक ही सीनित था। ककं तु
आिुनिकीकरण के साथ-साथ सिाज के संरचिात्िक स्तर िें भी पठरितयि आर्ा। िनहलाओं के नलए नशक्षा के द्वार खुले और
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िनहलाओं िे आजादी के संघर्य िें बढ़-चढ़कर भाग नलर्ा। र्ही िहीं आजादी के बाद बदलते सािानजक पठरदृपर् की उपज
अभाि और िहूँगाई से दो-चार होिे के नलए िनहलाओं को घर की नजम्िेदाठरर्ाूँ निभािे के अलािा िौकरी ि अन्र् व्यिसार्
भी करिे पडे,जो तत्कालीि सिर् के अिुसार सही भी है और आिश्र्क भी। इि सबके बािजूद, उन्हें हीि दृनष्ट से देखा
जाता है। दूसरे , र्कद िनहला किी कुं िारी है तब सहकिी पुरुर्ों की ही िहीं, राह चलतों की नगद्ध दृनष्ट भी उसे निगलिे को
तत्पर रहती है। उसे अिुनचत संिाद सुििे पडते हैं तथा अिचाहे स्पशय ि संकेत झेलिे पडते हैं।
अनिकारी भी उन्हें अनिक सिर् तक रुकिे के नलए िजबूर करते हैं। इसका कारण भारतीर् पुरुर् की गुलाि िािनसकता
है। नििानहत कािकाजी िनहलाओं की सिस्र्ा भी कि िहीं होती। उन्हें िौकरी करिे के साथ-साथ घर के पूिय नििायठरत
सभी कार्य करिे पडते हैं। पुरुर्-प्रिाि सिाज िें उसके कार्ों को दूसरा कोई िहीं करता। उसका व्यनित्ि घर-बाहर िें बूँटा
रहता है। अनिक किािे िाला पनत स्िर्ं को िहत्िपूणय सिझता है तथा कि किािे िाला हीिग्रंनथ का नशकार हो जाता है।
ऐसी नस्थनत िें पनत-पत्नी के संबंि तिािपूणय हो जाते हैं।आज हिें अपिी िािनसकता को बदलिा होगा, तभी हि अपिे देश
के आगे बढ़िे िें सहार्क हो सकते हैं।
राष्ट्र नििायण िें र्ुिाओं की भूनिका
ककसी भी राष्ट्र के नििायण और उसके निकास िें सबसे बडी भूनिका र्ुिाओं की होती है। इस बात का इनतहास साक्षी है कक
आज तक सिाज िें जो भी पठरितयि र्ा सुिार हुआ है, िह र्ुिाओं के बल पर ही हुआ है। राि िे जब रािण का संहार
ककर्ा, तब िे र्ुिा थे। कं स का िि करिे िाले कृ पण भी र्ुिक थे। शंकराचार्य, चंद्रगुप्त, िहाराणा प्रताप, नशिाजी, स्िािी
दर्ािंद, स्िािी नििेकािंद, राजा राििोहि रार्, भगतबसंह, सुभार्, िेहरू, गाूँिी आकद सभी र्ुिािस्था िें ही सािानजक
पठरितयि के पुण्र् कार्य िें लग गए थे।
र्ुिा िही होता है, नजसके िि िें पठरितयि कर सकिे की इच्छाशनि एिं बल हो, जो अन्र्ार् देख कर दुुःखी हो सकता है,
अपिी एिं दूसरे की प्रसन्नता िें िाच और झूि सकता है, और जो दूसरों के दुुःख को अपिा दुुःख सिझे, और जो अपिी
कल्पिाओं को साकार करिे के नलए सियस्ि दाूँि पर लगा सकता है। ितयिाि िें हिारे राष्ट्र के साििे अिेक चुिौनतर्ाूँ हैं।
अनशक्षा, गरीबी, असिािता, शोर्ण, सांप्रदानर्कता और िगयभेद ऐसी चुिौनतर्ाूँ हैं, नजिका िुकाबला ककए नबिा सिाज
का ििनििायण संभि िहीं है।
प्रार्ुः र्ुिा उत्साही होते हैं इसनलए िे शीघ्र ही आंदोलि का रास्ता अपिा लेते हैं। र्ुिाओं को इंजीनिर्र बििा है, बुल्डोजर
िहीं। र्द्नप पठरनस्थनत के अिुसार कभी-कभी निध्िंस का रास्ता भी अपिािा पडता है, लेककि िह भी सृजि के नलए।
र्ुिा िगय को देश नििायण की ओर िोडिे का एक उपार् है-र्ुिाओं को सिर्-सिर् पर कल्र्ाणकारी, रचिात्िक कार्यक्िों
िें लगािा। र्द्नप इसके नलए एि. एस. एस., एि. सी. सी. और स्काउट जैसी संस्थाएूँ निद्िाि हैं, लेककि सच्ची भाििा के
अभाि िें र्े संस्थाएूँ अिुपर्ोगी नसद्ध हो गई हैं।
ककसी देश की उन्ननत उसके पठरश्रिी, लगिशील, पुरुर्ाथी तथा चठरििाि िागठरकों से ही संभि है। भारत के र्ुिा भी
चठरििाि बिकर देश िें व्याप्त बुराइर्ों को सिाप्त कर देश की प्रगनत िें िहत्त्िपूणय र्ोगदाि दे सकते हैं।अंततुः हि र्े कह
सकते हैं कक र्ुिाओं के र्ोगदाि के नबिा देश के प्रगनत की कल्पिा भी िहीं की जा सकती है।
चुिाि और लोकतंि

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‘लोकतंि’ दो शब्दों ‘लोक’ और ‘तंि’ के िेल से बिा है, नजसका अथय है-लोगों का तंि अथायत जिता का शासि।ऐसा शासि
जो जिता के द्वारा ही नििायठरत ककर्ा जाता है। शासि की इस प्रणाली िें लोग अपिी शासि-प्रणाली खुद बिाते हैं। निश्व
की सभी प्रणानलर्ों िें लोकतंि सियश्रेष्ठ िािी जाती है। लोकतंि को पाठरभानर्त करते हुए अब्राहि बलंकि िे कहा था,
“लोकतंि जिता के नलए, जिता द्वारा, जिता का शासि है।” ििुपर् िे घुिंतू जीिि छोडकर जब से सिाज िें रहिा शुरू
ककर्ा, उसी सिर् से उसे शासि की आिश्र्कता िहसूस हुई ताकक सिाज िें शांनत बिी रहे।
हिारे देश िे स्ितंिता-प्रानप्त के बाद आज तक इसी व्यिस्था को अपिार्ा हुआ है। भारत निश्व का सबसे बडा लोकतांनिक
देश है। र्हाूँ लोकतंि को शनिशाली बिाए रखिे के नलए हर पाूँच िर्य बाद चुिाि करािे का प्राििाि है ताकक जिता
अपिी इच्छािुसार िेताओं का चर्ि कर सके । चुिाि ही लोकतंि को सबल और साथयक बिाते हैं। निगत कु छ िर्ों िें
भारतीर् राजिीनत िें नगरािट आई है।अब हिारे िेतागण अनशनक्षत सिाज को अपिा निशािा बिाते हैं, और उिके िोटों
को पैसों से अथिा अन्र् लालच देकर अपिे पक्ष िें कर लेते हैं।
िेताओं का चठरि इतिा नगर गर्ा है कक िे स्िाथी प्रिृनि के कारण एक से कदखते हैं। चुिािों िें जीत हानसल करिे के नलए
िे ििबल, बाहुबल के अलािा सभी तरह के हथकं डे अपिाते हैं और अपिे कार्यकाल िें घोटाले तथा अन्र् अिैनतक कार्ों िें
संनलप्त रहते हैं। ऐसे िेता लोकतंि और राजिीनत दोिों के नलए काले िब्बे के सिाि हैं। इसके बाद भी र्हाूँ सिर्-सिर् पर
चुिाि होिा और सरकार बििा लोकतंि की िजबूती और उसके उज्ज्िल भनिपर् का प्रिाण है। लोकतंि को िजबूत बिािे
के नलए ितदाताओं को लालच और स्िाथय त्र्ागकर निपपक्ष होकर ितदाि करिा चानहए।
काश! िेरे पंख होते
ििुपर् एक ऐसा प्राणी है, नजसके पास कल्पिा करिे की शनि है। कोई भी इं साि उस िस्तु अथिा कार्य की भी कल्पिा कर
सकता है, जो िास्ति िें कभी संभि िहीं हो। हर ककसी इं साि की तरह िेरी भी एक सोच है कक काश िेरे पंख होते, तो िैं
भी आसिाि िें पनक्षर्ों की तरह उड पाता और आसिाि की सैर करता। र्कद िेरे पंख होते तो िैं ककसी की पकड िें िहीं
आता और तेजी से कहीं भी उड जाता। अक्सर हि इंसािों को एक स्थाि से दूसरे स्थाि पर जािे के नलए िाहिों की जरूरत
पडती है, लेककि अगर िेरे पंख होते तो िुझे ककसी भी िाहि की जरूरत िा होती क्र्ोंकक िेरे पंख ही िुझे एक स्थाि से
दूसरे स्थाि तक ले जाते। िेरे पंख होते तो ककतिा अच्छा होता।
हि सभी को जब भी अपिे ककसी िजदीकी ठरश्तेदार र्ा ककसी दोस्त की र्ाद आती है, तो हि उससे िोि पर बातचीत
करते हैं। और इससे हिारा ििोरं जि भी होता है, लेककि िेरे पंख होते तो िुझे िोि पर बात करिे की जरूरत िहीं पडती।
िैं पनक्षर्ों की तरह आसिाि िें उडता हुआ उस जगह पर पहुंचकर अपिे दोस्तों ठरश्तेदारों से बातचीत करता, तो िुझे बेहद
खुशी होती। िैं पनक्षर्ों की तरह, एक पतंग की तरह आसिाि की सैर कर रहा होता। काश! िेरे पंख होते।
िैं उडिा चाहता हूूँ, आसिाि की सैर करिा चाहता हूूँ। लोग िार्ुर्ािों के द्वारा आसिाि की सैर करते हैं, लेककि इिके
द्वारा आसिाि िें सैर करिे की बात अलग है और अपिे खुद के पंखों से आसिाि िें उडिा एक बात अलग है। काश िेरे पंख
होते तो िैं आसिाि की ऊंचाइर्ों िें उडता और ऐसा करिे िें िुझे खुशी का अिुभि होता। काश! िेरे पंख होते।
िूम्रपाि ककतिा घातक
'िूम्रपाि' शब्द दो शब्दों 'िूम्र' और 'पाि' से निलकर बिा है, नजसका अथय है-िूम्र अथायत िुएूँ का पाि करिा। अथायत िशीले
पदाथों के िुएूँ का निनभन्न प्रकार से सेिि करिा, जो िशे की नस्थनत उत्पन्न करते हैं और र्ह िशा व्यनि के ििोिनस्तपक
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पर हािी हो जाता है। इससे िूम्रपाि करिे िाले व्यनि का िनस्तपक नशनथल हो जाता है और िह अपिे आस-पास की
िास्तनिक नस्थनत िें अलग-सा िहसूस करिे लगता है। र्ही नस्थनत उसे एक काल्पनिक आिंद की दुनिर्ा िें ले जाती है।
सिाज िें िूम्रपाि की प्रिृनि बहुत पुरािी है। िूम्रपाि रोकिे के नलए सरकार के साथ-साथ लोगों को अपिी सोच िें बदलाि
लािा होगा और इसके खतरों से साििाि होकर इसे त्र्ागिे का दृढ़ नििर् करिा होगा। र्कद एक बार ठाि नलर्ा जाए तो
कोई भी काि असंभि िहीं है। बस आिश्र्कता है तो दृढ़ इच्छा-शनि की। इसके अलािा सरकार को िूम्रपाि कािूि के
अिुपालि के नलए ठोस कदि उठािा चानहए और अगर हिारा सिाज नशनक्षत होगा ,तो िूम्रपाि से बचिा अनिक आसाि
होगा।
िूम्रपाि का प्रचार करिे िाले निज्ञापिों पर अनिलंब रोक लगािा चानहए तथा इसका उल्लंघि करिे िालों पर कडी
कार्यिाही करिी चानहए। निद्ालर् पाठ्यक्ि का निर्र् बिाकर बच्चों को शुरू से ही इसके दुपपठरणाि से अिगत करािा
चानहए ताकक र्ुिािगय इससे दूरी बिािे के नलए स्िर्ं सचेत हो सके । हिें िूम्रपाि रोकिे िें सरकार और लोगों को हर संभि
िदद करिी चानहए।इसके अनतठरि िूम्रपाि के निरुद्ध निनभन्न प्रकार के जागरूकता अनभर्ाि चलार्ा जािा चानहए, ताकक
लोगों को इस दलदल से निकाला जा सके ।
िहािगरों िें आिास-सिस्र्ा
िािि की तीि िूलभूत आिश्र्कताएूँ हैं-रोटी, कपडा और आिास। नजि देशों िें इि तीिों आिश्र्कताओं की पूर्तय सहज
तरीके से हो जाती है, िे देश संपन्न हैं। अतुः आिास िािि की प्रिुख जरूरतों िें से एक है। र्ह ििुपर् को स्थानर्त्ि प्रदाि
करता है। आज के जीिि िें चाहे िह िगर हो, ग्राि हो र्ा कस्बा हो, आिास की सिस्र्ा गंभीर होती जा रही है।गाूँिों िें
आिास की सिस्र्ा उतिी भीर्ण िहीं है, नजतिी िहािगरों िें है।
िहािगरों िें रोजगार, स्िास्थ्र्, नशक्षा, सिा आकद का कें द्रीर्करण हो गर्ा है, अत: िहाूँ चारों कदशाओं से लोग बसिे के
नलए आ रहे हैं। इस कारण िहाूँ आिास की सिस्र्ा निकट होती जा रही है। इस सिस्र्ा का िुख्र् कारण सरकार की
अदूरदर्शयता है। सरकार िे देश के सिग्र निकास की िीनत िहीं बिाई। सरकार िे देश के चंद क्षेिों िें बडे उद्ोग-िंिों को
प्रोत्साहि कदर्ा। इि उद्ोग-िंिों के साथ बडी संख्र्ा िें सहार्क इकाइर्ाूँ लगीं। सरकार िे इि सहार्क इकाइर्ों को अन्र्
क्षेिों िें स्थानपत करिे िें कोई सहर्ोग िहीं कदर्ा। इसका पठरणाि र्ह हुआ कक बडी संख्र्ा िें लोगों का कें द्रण एक जगह
ही हो गर्ा। इस कारण बिे िहािगरों िें आिास की सिस्र्ा उत्पन्न हो गई। दूसरे , सरकार िे ऐसे क्षेिों िें आिास संबंिी
कोई स्पष्ट िीनत भी िहीं बिाई।इसके सिािाि के नलए सभी जगहों पर रोजगार और अन्र् दैनिक आिश्र्कताओं की
व्यिस्था होिी चानहए, ताकक िहािगरों िें इि सब के नलए िारािारी िा हो।
भारतीर् सिाज िें अंिनिश्वास
जीिि को व्यिनस्थत करिे के नलए िािि िे निर्िों की संकल्पिा की नजन्हें 'ििय' की संज्ञा दी गई। इि निर्िों का उद्देश्र्
िाििजीिि को सुखी, संपन्न ि व्यिनस्थत बिािा था। सिर् बदलिे के साथ-साथ कु छ निर्ि अप्रासंनगक हो गए और िे
अंिनिश्वास का रूप िारण करिे लगे। आिुनिक र्ुग िें र्े अंिनिश्वास प्रगनत िें बािक नसद्ध हो रहे हैं।
भारतीर् सिाज के अिेक निश्वास जीिि की गनतशीलता के साथ ि चलिे के कारण पंगु हो गए हैं। इि अंिनिश्वासों िें ििय
की रूकढबद्धता, आभूर्ण-प्रेि, जादू-टोिे िें निश्वास, देिी-देिताओं के प्रनत अबौनद्धक श्रद्धा आकद सािानजक कु रीनतर्ाूँ हैं।
र्े कु रीनतर्ाूँ आज देश की प्रगनत िें बािक नसद्ध हो रही हैं। उदाहरणस्िरूप हिारे ििय िें किय के अिुसार जानत-प्रथा का
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नििाि ककर्ा गर्ा, परं तु बाद िें उसे जन्ि के आिार पर िाि नलर्ा गर्ा। आज उसकी प्रासंनगकता सिाप्त हो गई है, परं तु
आरक्षण, जानतगत श्रेष्ठता के भाि संघर्य का कारण बिे हुए हैं।

इसी प्रकार भारतीर् सिाज का एक बडा िगय जादू-टोिे िें निश्वास रखता है। हालाूँकक िीनडर्ा के प्रसार ि बौनद्धकता बढ़िे
से जादू-टोिे का जाल कि होिे लगा है। किर भी र्दा-कदा िरबनल, सती–प्रथा आकद की घटिाएूँ प्रकाश िें आती ही रहती
हैं। इसके अनतठरि सिाज िें अिेक तरह के अपशकु ि अब भी प्रचनलत हैं, जैसे नबल्ली द्वारा रास्ता काटा जािा, कोई काि
शुरू करते सिर् ककसी को छींक आिा, पीछे से आिाज देिा, चलते हुए अूँिेरा होिा आकद।
कई लोग इिके कारण अपिे िहत्िपूणय काि तक रोक देते हैं। हिारे सिाज का सबसे बडा अंिनिश्वास सिग्र रूप िें परं पराओं
के प्रनत अंिभनि है। आज भी हि अिेक अव्यािहाठरक बातों से जुडे हुए हैं। िनलत ज्र्ोनतर् निद्ा के िकली ििी इस प्रकार
के निश्वास की आड िें अपिा पेट भरते हैं। लडकी के जन्ि को अशुभ िाििा, नििाह िें सािथ्र्य से अनिक व्यर् आकद भी
इन्हीं अंिनिश्वासों की उपज है। अब तो िियगुरुओं की एक ऐसी जिात' तैर्ार हो चुकी है जो आस्था के िाि पर जिता को
भ्रनित कर रहे हैं। िीनडर्ा भी इसिें पूरे ििोर्ोग से सहर्ोग कर रही है।जब अंिनिश्वासों के िाध्र्ि से भ्रनित होिे से
बचािे िाले ही जिता को भ्रनित करिे िें सहार्क हों तब ककर्ा भी क्र्ा जा सकता है?
आिश्र्कता इस बात की है कक ििय के िास्तनिक रूप को सिझकर आचरण करें और अपिी प्रगनत करें और जो भी ििय
आपके प्रगनत िें रुकािट लाए, िो कोई ििय िहीं हो सकता। सिाज को चानहए कक िए जिािे के साथ कदि से कदि
निलाकर चले और अंि परं पराओं को सदा के नलए दफि कर दे।
आिुनिक िै शि
एक फ्ांसीसी निचारक का कहिा है-आदिी स्ितंि पैदा होता है, लेककि पैदा होते ही तरह-तरह की जंज़ीरों िें जकड जाता
है। िह परं पराओं, रीनत-ठरिाजों, नशष्टाचारों, औपचाठरकताओं का गुलाि हो जाता है। इसी क्ि िें िह फै शि से भी प्रभानित
होता है। सिर् के साथ सिाज की व्यिस्था िें बदलाि आते रहते हैं। इन्हीं बदलािों के तहत रहि-सहि िें भी पठरितयि
होता है। ककसी भी सिाज िें फै शि िहाूँ की जलिार्ु पठरिेश तथा निकास की अिस्था पर निभयर करता है। सभ्र्ता के
निकास के साथ-साथ िहाूँ के नििानसर्ों के जीिि-स्तर िें पठरितयि आता जाता है।
20िीं सदी के अंनति दौर से फै शि िे उन्िाद का रूप ले नलर्ा। फै शि को ही आिुनिकता का पर्ायर् िाि नलर्ा गर्ा है। इस
फै शि की अनिकांश बातें आि जीिि से दूर होती हैं। फै शि से संबंनित अिेक कार्यक्िों का रसास्िादि अनिकांश लोग िहीं
ले सकते, परं तु आिुनिकता और फै शि की परं परा का नििायह करते हैं। फै शि का सिायनिक असर कपडों पर होता है। सिाज
का हर िगय इससे प्रभानित होता है।और आज के दौर िें हिारी िई पीढ़ी िे फै शि का पर्ायर् ही बदल कदर्ा है, अथिा अन्र्
शब्दों िें हि कह सकते हैं कक आज सिाज िें फै शि के िाि पर अंिनिश्वास िै ला हुआ है।
आिुनिकता और िै शि ितयिाि सिाज िें अब स्िीकार्य तथ्र् हैं। िै शि के अिुसार अपिे िें पठरितयि करिा भी स्िाभानिक
प्रिृनन्त है, लेककि इसके अिुकरण से पहले र्ह सुनिनित कर लेिा चानहए कक इससे व्यनित्ि िें िृनद्ध होती है र्ा िहीं। नसिय
फै शि के प्रनत दीिािा होिा ककसी भी दृनष्टकोण से उनचत िहीं।

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र्ुिा असंतोर्
आज चारों तरि असंतोर् का िाहौल है। बच्चे-बूढ़े, र्ुिक-प्रौढ़, स्त्री-पुरुर्, िेता-जिता सभी असंतुष्ट हैं। र्ुिा िगय निशेर् रूप
से असंतुष्ट कदखता है। घर-बाहर सभी जगह उसे ककसी-ि-ककसी को कोसते हुए देखा-सुिा जा सकता है। अब र्ह प्रश्न उठता
है कक आनखर ऐसा क्र्ों हो रहा है? इसका एक ही कारण िजर आता है िेताओं के खोखले आश्वासि िेता अपिे खोखले
िादों से र्ुिाओं को भरिाकर उन्हें बेरोजगारी की ओर िके ल देते हैं। र्ुिा िगय को नशक्षा ग्रहण करते सिर् बडे-बडे सब्ज़बाग
कदखाए जाते हैं, और जब उिकी नशक्षा पूणय होती है, तो िे बेरोजगारी की भीड िें नपस जाते हैं।
िह िेहित से नडनग्रर्ाूँ हानसल करता है, परं तु जब िह व्यािहाठरक जीिि िें प्रिेश करता है तो खुद को परानजत पाता है।
उसे अपिी नडनग्रर्ों की निरथयकता का अहसास हो जाता है। इिके बल पर रोजगार िहीं निलता। इसके अलािा, हर क्षेि िें
नशनक्षतों की भीड कदखाई देती है। िह र्ह भी देखता है कक जो नसफाठरशी है, िह र्ोग्र्ता ि होिे पर भी िौज कर रहा है
िह सब कु छ प्राप्त कर रहा है नजसका िह िास्तनिक अनिकारी िहीं है।इस कारण से र्ुिाओं िें एक अलग प्रकार का आक्ोश
रहता है।
इिकी शाि-शौकत भरी बिािटी बजंदगी आि र्ुिा िें हीिता का भाि जगाकर उन्हें असंतुष्ट बिा देती है। ऐसे िें जब
असंतोर्, अतृनप्त, लूट-खसोट, आपािापी आज के व्यािहाठरक जीिि का स्थार्ी अंग बि चुके हैं तो र्ुिा से संतुनष्ट की उम्िीद
कै से की जा सकती है? सिाज के िूल्र् भरभराकर नगर रहे हैं, अिैनतकता सम्िाि पा रही है, तो र्ुिा िूल्र्ों पर आिाठरत
जीिि जीकर आगे िहीं बढ़ सकते।

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प्रतिदर्श प्रश्न पत्र 2022- 23
तिषय त िंदी (आधार)
तिषय कोड-(302)
कक्षा बार िी िं
तिधाशररि समय -3 घिंटे अतधकिम अिंक– 80

सामान्य और आिश्यक तिदे र्-


 इस प्रश्न पत्र में 2 खंड है - खंड ‘अ’ और खंड ‘ब’। कुल प्रश्न 13 है ।
 खंड-‘अ’ में 45 वस्तु परक प्रश्न पूछे गए हैं , जिनमें से केवल 40 प्रश्ननं के उत्तर दे ने हैं ।
 खंड-‘ब’ में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं । प्रश्ननं के उजित आं तररक जवकल्प जदए गए हैं ।
 प्रश्ननं के उत्तर जदए गए जनदे शनं का पालन करते हुए दीजिए।
 दनननं खंडनं के प्रश्ननं के उत्तर दे ना अजनवार्ण है ।
 र्थासंभव दनननं खंडनं के प्रश्ननं के उत्तर क्रमशः जलखखए|
खिंड अ (िस्तुपरक प्रश्न)
अपतिि गद्ािंर्
प्रश्न 1. तिम्नतिखखि गद्ािं र् को ध्यािपूिशक पढ़कर सिाशतधक उपयुक्त उत्तर िािे तिकल्प को चुिकर
तिखखएः– (1X10=10)
जवज्ञान प्रकृजत कन िानने का महत्वपूर्ण साधन है । भौजतकता आि आधुजनक वैज्ञाजनक और तकनीकी प्रगजत
का स्तर जनधाण ररत करती है । जवज्ञान केवल सत्य, अथण और प्रकृजत के बारे में उपर्नग ही नहीं बखि प्रकृजत की खनि
का एक क्रम है । जवज्ञान प्रकृजत कन िानने का एक महत्वपूर्ण साधन है । र्ह प्रकृजत कन िानने के जवषर् में हमें महत्वपूर्ण
और जवश्वसनीर् ज्ञान दे ता है । व्यखि जिस बात पर जवश्वास करता है वही उसका ज्ञान बन िाता है । कुछ लनगनं के पास
अनुजित ज्ञान हनता है और वह उसी ज्ञान कन सत्य मानकर उसके अनुसार काम करते हैं । वैज्ञाजनकता और
आलनिनात्मक जविार उस समर् िरूरी हनते हैं िब वह जवश्वसनीर् ज्ञान पर आधाररत हनं। वैज्ञाजनक और आलनिक
अक्सर तकणसंगत जविारनं का प्रर्नग करते हैं । तकण हमें उजित सनिने पर प्रेररत करते हैं । कुछ लनग तकण संगत
जविारधारा नहीं रखते क्नंजक उन्नंने कभी तकण करना िीवन में सीखा ही नहीं हनता।
प्रकृजत वैज्ञाजनक और कजव दनननं की ही उपास्या है । दनननं ही उससे जनकटतम संबंध स्थाजपत करने की िेष्टा
करते है , जकंतु दनननं के दृजष्टकनर् में अंतर है । वैज्ञाजनक प्रकृजत के बाल्य रूप का अवलनकन करता है और सत्य की
खनि करता है , परं तु कजव बाह्य रूप पर मुग्ध हनकर उससे भावनं का तादात्म्य स्थाजपत करता है । वैज्ञाजनक प्रकृजत की
जिस वस्तु का अवलनकन करता है , उसका सूक्ष्म जनरीक्षर् भी करता है । िंद्र कन दे खकर उसके मखस्तष्क में अनेक
जविार उठते हैं उसका तापक्रम क्ा है , जकतने वषों में वह पूर्णतः शीतल हन िाएगा,ज्वार- भाटे पर उसका क्ा प्रभाव
हनता है , जकस प्रकार और जकस गजत से वह सौर मंडल में पररक्रमा करता है और जकन तत्वनं से उसका जनमाण र् हुआ
है ? वह अपने सूक्ष्म जनरीक्षर् और अनवरत जिंतन से उसकन एक लनक ठहराता है और उस लनक में खस्थत ज्वालामुखी
पवणतनं तथा िीवनधाररर्नं की खनि करता है । इसी प्रकार वह एक प्रफुखित पुष्प कन दे खकर उसके प्रत्येक अंग का
जवश्लेषर् करने कन तैर्ार हन िाता है । उसका प्रकृजत- जवषर्क अध्यर्न वस्तुगत हनता है । उसकी दृजष्ट में जवश्लेषर्
और वगण जवभािन की प्रधानता रहती है । वह सत्य और वास्तजवकता का पुिारी हनता है । कजव की कजवता भी
प्रत्यक्षावलनकन से प्रस्फुजटत हनती है वह प्रकृजत के साथ अपने भावनं का संबंध स्थाजपत करता है । वह उसमें मानव
िेतना का अनुभव करके उसके साथ अपनी आं तररक भावनाओं का समन्वर् करता है । वह तथ्य और भावना के संबंध
279
पर बल दे ता है । उसका वस्तुवर्ण न हृदर् की प्रेरर्ा का पररर्ाम हनता है , वैज्ञाजनक की भााँ जत मखस्तष्क की र्ां जत्रक
प्रजक्रर्ा नहीं। कजवर्नं द्वारा प्रकृजत-जित्रर् का एक प्रकार ऐसा भी है जिसमें प्रकृजत का मानवीकरर् कर जलर्ा िाता है
अथाण त प्रकृजत के तत्त्नं कन मानव ही मान जलर्ा िाता है ।
प्रकृजत में मानवीर् जक्रर्ाओं का आरनपर् जकर्ा िाता है । जहं दी में इस प्रकार का प्रकृजत-जित्रर् छार्ावादी
कजवर्नं में पार्ा िाता है । इस प्रकार के प्रकृजत-जित्रर् में प्रकृजत सवणथा गौर् हन िाती है । इसमें प्राकृजतक वस्तुओं के
नाम तन रहते हैं परं तु झंकृत जित्रर् मानवीर् भावनाओं का ही हनता है । कजव लहलहाते पौधे का जित्रर् न कर खुशी से
झूमते हुए बच्चे का जित्रर् करने लगता है ।
(i) तिज्ञाि प्रकृति को जाििे का एक म त्वपूर्श साधि ै क्ोिंतक य -
(क) समग्र ज्ञान के साथ तादात्म्य स्थाजपत करता है
(ख) प्रकृजत आधुजनक जवज्ञान की उपास्या है
(ग) महत्वपूर्ण और जवश्वसनीर् ज्ञान प्रदान करता है
(घ) आधुजनक वैज्ञाजनक का स्तर जनधाण ररत करता है
(ii) सूक्ष्म तिरीक्षर् और अििरि तचिंिि से िात्पयश ै -
(क) सौर मंडल कन एक लनक और परलनक ठहराना
(ख) छनटी-छनटी सी बातनं पर जिंता करना
(ग) बारीकी से सनिना व जनरं तर दे खना
(घ) बारीकी से दे खना और जनरं तर सनिना
(iii) कौि अििरि तचिंिि करिा ै ?
(क) सूक्ष्मािारी
(ख) जवज्ञाननपासक
(ग) ध्यानजवलीन र्नगी
(घ) अवसादग्रस्त व्यखि
(iv) कौि िास्ततिकिा का पुजारी ोिा ै ?
(क) र्थाथणवादी
(ख) काव्यवादी
(ग) प्रकृजतवादी
(घ) जवज्ञाननपासक
(v) कति की कतििा तकससे प्रस्फुतटि ोिी ै ?
(क) जविारनं के मंथन से
(ख) प्रकृजत के साक्षात दशण न से
(ग) भावनाओं की उहापनह से
(घ) प्रेम की तीव्र इच्छा से
(vi) कति के सिंबिंध में इिमें से स ी िथ्य ै -
(क) ज्वालामुखी के रहस्य िानता है
(ख) िीवधाररर्नं की खनि करता है
(ग) सत्य का उपासक नहीं हनता
(घ) प्रफुखित पुष्प का अध्यर्नकताण
280
(vii) िैज्ञातिक प्रकृति के बाह्य रूप का अििोकि करिे ैं :-
तिम्नतिखखि कथिोिं पर तिचार करके, स ी तिकल्प का चयि कीतजए।
(i) कतियोिं की िुििा में अतधक श्रेष्ठ ैं
(ii) ज्वारभाटे के पररर्ाम से बचिा चा िे ैं
(iii) िगश तिभाजि के पक्षधर बिे र िा चा िे ैं
(iv) प्रकृति के साथ र िे का प्रयास करिे ैं
ऊपर जलखखत कथननं में से कौन- सा /कौन -से सही है / है ?
(क) केवल (i)
(ख) (ii) और(iii) सही है
(ग) केवल (iv) सही है
(घ) उपरनि सभी
(viii) उपयुशक्त गद्ािंर् का उपयुक्त र्ीषशक ै
(क) कजव की सनि और वैज्ञाजनकता
(ख) प्रकृजत के उपासक-कजव और वैज्ञाजनक
(ग) वैज्ञाजनक उन्नजत और काव्य िगत
(घ) वैज्ञाजनक दृजष्टकनर्-अतुलनीर्
(ix) प्रकृति का माििीकरर् दर्ाशिा ै तक-
(क) कल्पना प्रधान व भावनन्मेशर्ुि कजवता रिी िा रही है
(ख) मानवीकरर्अलंकार का दु रुपर्नग हन रहा है
(ग) प्रकृजत व मानव के सामंिस्य से उजदत दीखि फैल रही है
(घ) मानव द्वारा प्रकृजत का संरक्षर् हन रहा है
(x) तिम्नतिखखि कथि कारर् को ध्यािपूिशक पतढ़ए उसके बाद तदए गए तिकल्पोिं में से कोई एक स ी
तिकल्प चुिकर तिखखए-
कथि(A)िैज्ञातिक प्रकृति के बाल्य रूप का अििोकि करिा ै और सत्य की खोज करिा ै।
कारर्(R)तिज्ञाि केिि सत्य, अथश और प्रकृति के बारे में उपयोग ी ि ी िं बखि प्रकृति की खोज का
एक क्रम ै ।
(क) कथन( A) तथा कारर्(R) और दनननं सही है तथा कारर् कथन की सही व्याख्या करता है ।
(ख) कथन (A) गलत है लेजकन कारर् (R)सही है ।
(ग) कथन (A)और कारर् (R) दनननं सही है ।
(घ) कथन(A) और कारर् (R) दनननं ही गलत है ।
प्रश्न 2. तिम्नतिखखि अपतिि पद्ािंर् में से तकसी एक पद्ािंर् से सिंबिंतधि प्रश्नोिं के स ी तिकल्प -चयि द्वारा
कीतजए- (1X5=5)
जफर से नहीं आता समर्, िन एक बार िला गर्ा।
िग में कहन बाधा रजहत कब कौन काम हुआ भला।
बहती नदी सूखे अगर उस पार मैं इसके िलूं।
इस सनि में बैठा पुजलन पर, पार िा सकता भला?
जकस रीजत से काम, कब करना बनाकर र्निना,
281
मन में जलए आशा प्रबल दृढ़ िन वही बढ़ िाएगा।
उसकन जमलेगा तेि बल अनुकूलता सब ओर से
कब कमणर्नगी, वीर, अनुपम साहसी सुख पार्ेगा।
र्ह वीर भनग्या, िन हृदर् तल में बनी वसुधा सदा,
करती रही आह्वान है , र्ुग वीर का पुरुषत्व का।
कजठनाइर्नं में खनि का पथ, ज्यनजत पूररत िन करें ,
जविर् वही हनता धरजर्-सुत वरर् अमरत्व का।
(i) एक बार जािे के बाद क्ा िापस िौटकर ि ी िं आिा ै ?
(क) धन
(ख) राज्य
(ग) समर्
(घ) स्वास्थ्य
(ii) ब िी िदी के माध्यम से कति क्ा तसद्ध करिा चा िा ै ?
(क) िल का महत्व
(ख) नदी का महत्व
(ग) बाधाओं से र्ुि िीवन
(घ) समर् का अभाव
(iii) कतििा में धरर्ी-सूि तकसे क ा गया ै
(क) वीर व्यखि कन
(ख) जकसान कन
(ग) उपरनि दनननं कन
(घ) दनननं में से कनई नहीं
(iv) ‘पुतिि’ र्ब्द का क्ा अथश ै ?
(क) पानी
(ख) नदी
(ग) जकनारा
(घ) वृक्ष
(v) अिुकूििा र्ब्द में प्रत्यय ै
(क) कुििा
(ख) िा
(ग) ििा
(घ) उपरोक्त में से कोई ि ी िं
अथिा
ऋतु वसन्त तुम आओ ना,
वासन्ती रं ग जबखराओ ना।
उिड़ रही आमनं की बजगर्ा,
बौर नर्े महकाओ ना।
282
सूनी वन-उपवन की डालें,
कनर्ल कन बुलवाओ ना।
नूतन गीत सुनाओ ना,
ओ वसन्त तुम आओ ना।
ऊाँिे -ऊाँिे महलनं में,
दे खन िाम छलकते हैं …।
कहीं अाँधेरी झनपजड़र्नं में ,
दु धमुाँहे रनि जबलखते हैं ।
कुजटर्ा के बुझते दीपक कन, बनकर तेल िलाओ ना…
भूखी मााँ के आाँ िल में तुम, दू ध की धार बहाओ ना…
जप्रर् वसन्त तुम आओ ना…
कनई धनता िूठे बतणन,
कनई कूड़ा बीन रहा।
पेट की आग जमटाने कन,
रनटी कनई छीन रहा।
काम पे िाते बच्चे के, हाथनं में जकताब थमाओ ना…
घना अाँधेरा छार्ा है , तुम ज्ञान के दीप िलाओ ना…
ऋतु वसं त तुम आओ ना।
(i) उजड़ र ी आमोिं की बतगया में िसन्त को क्ा करिे के तिए क ा ै ?
(क) गीत गाने के जलए
(ख) नए बौर महकाने के जलए और कनर्ल कन बुलवाने के जलए
(ग) दे खभाल करने के जलए
(घ) कनर्ल कन गाने के जलए
(ii). अँधेरी झोपतड़योिं की ािि क्ा ै ?
(क) वहााँ दु धमुंहे बच्चे हाँ स रहे हैं
(ख) वहााँ उिाला हनने वाला है
(ग) वहााँ दु धमुंहे बच्चे भूख के कारर् जबलख रहे हैं
(घ) अाँधेरी झनपजड़र्नं की हालत ठीक है
(iii) िसन्त से कुतटया में ……….. क ा ै। (िाक् पूरा कीतजए।)
(क) तेल बनकर बुझते दीपक कन िलाने और दू ध की धार बहाने के जलए
(ख) बौर खखलाने के जलए
(ग) कनर्ल कन बुलाने के जलए
(घ) गीत गाने के जलए
(iv) छोटे बच्चे मजबूरी में क्ा- क्ा-क्ा करिे ैं
िीचे तदए गए कथिोिं को पढ़कर स ी तिकल्प का चयि कीतजए-
कथि-
(i) कनई धनता िूठे बतणन
283
(ii) कनई कूड़ा बीन रहा है
(iii) कनई पेट की आग जमटाने कन, रनटी छीन रहा है
(iv) उपर्ुणि सभी
तिकल्प
(क) कथन (i) सही है
(ख) कथन (ii) सही है
(ग) कथन (ii) और (iii) सही है
(घ) कथन (iv) सही है
(v )काम पर जािे बच्चे के तिए िसन्त को क्ा करिे के तिए क ा ै और क्ोिं ?
(क) काम जदलाने के जलए
(ख) बच्चे के हाथनं में जकताब थमाने के जलए कहा है ताजक वह भी ज्ञान का उिाला पा सके
(ग) केवल खेलने के जलए
(घ) पररवार की सहार्ता करने के जलए
प्रश्न 3 तिम्नतिखखि प्रश्नोिं के उत्तर दे िे के तिए उपयुक्त तिकल्प का चयि कीतजए- (1X5=5)
(i) मीतडया की भाषा में बीट का अथश ै-
(क) क्षेत्र
(ख) समािार
(ग) खबर
(घ) नाटक
(ii) दृश्योिं का तकस माध्यम में अतधक म त्व ोिा ै ?
(क) समािार पत्र
(ख) रे जडर्न
(ग) टे लीजविन
(घ) इं टरनेट
(iii) समाचार िेखि के तिए तकििे ककार आिश्यक ै ?
(क) िार
(ख) तीन
(ग) पाि
(घ) छः
(iv) पेंज थ्री पत्रकारीिा ै।
(क) िानवरन के बारे मे ।
(ख) अमीरन के बारे में ।
(ग) गरीबनं के बारे में ।
(घ) छात्रन कन बारे में ।
(v ) िथ्योिं सूचिा िथा आिं कड़ोिं की ग री छािबीि करिे िािे ररपोटश को क्ा क िे ैं ?
(क) जववेिनात्मक ररपनटण
(ख) जवश्लेषर्ात्मक ररपनटण
284
(ग) खनिी ररपनटण
(घ) इन डे प्थ ररपनटण
प्रश्न 4 तिम्नतिखखि काव्ािंर् को ध्यािपूिशक पढ़कर पूछे गए प्रश्नोिं के स ी उत्तर िािे तिकल्प चुतिए।
(1X5=5)
बार-बार गिणन
वषणर् है मूसलधार
ह्रदर् थाम लेता संसार,
सुन-सुन घनर वज्र-हुं कार।
अशजन-पात से शाजपत उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-जवक्षत हत अिल-शरीर,
गगन-स्पशी स्पधाण धीर।
हाँ सते हैं छनटे पौधे लघुभार—
शस्य अपार,
जहल-जहल
खखल-खखल
हाथ जहलाते ,
तुझे बुलाते ,
जवप्लव-रव से छनटे ही हैं शनभा पाते।
(i) बादिोिं की गजशिा को तकसके समाि बिाया गया ै ?
(क) वज्र के समान
(ख) दु ख के समान
(ग) र्नद्धा के समान
(घ) प्रलर् के समान
(ii) बादि तकस प्रकार धरिी पर बरस र े ैं?
(क) बार-बार गिणन करके
(ख) मूसलाधार रूप में
(ग) क और ख दनननं
(घ) क्षत-जवक्षत रूप में
(iii) बादिोिं की गजशिा का सिंसार पर क्ा प्रभाि पड़िा ै ?
(क) संसार में प्रसन्नता छा िाती है
(ख) संसार भर्भीत हनकर ह्रदर् थाम लेता है
(ग) संसार दु खनं से मुि हन िाता है
(घ) संसार पर कनई प्रभाव नहीं पड़ता
(iv) बादिोिं का र्रीर तकससे आ ाि ो र ा ै
(क) जबिली रूपी तलवारनं से
(ख) वार्ुर्ानन के आवागमन से
(ग) उच्च वगण की महत्वाकां क्षाओं से
285
(घ) जनम्न वगण के संताप से
(v) काव्ािंर् में बादि की तकस तिर्ेषिा की ओर सिंकेि तकया गया ै ?
(क) बादल आकाश कन छूने वाले हैं
(ख) आकाश से प्रजतर्नजगता करने वाले हैं
(ग) धीर -वीर अपराजित है
(घ) उपरनि सभी
प्रश्न 5 तिम्नतिखखि गद्ािंर् को पढ़कर तदए गए प्रश्नोिं के स ी उत्तर िािे तिकल्प को चुतिए- (1X5=5)
राजत्र अपनी भीषर्ताओं के साथ िलती रहती और उसकी सारी भीषर्ता कन ताल ठनककर ललकारती रहती
थी जसफण पहलवान की ढनलक संध्या से लेकर प्रातः काल तक एक ही गजत से बिती रहती-िट् -धा, जगड़-था, ' िट् -धा,
धा' र्ानी 'आ जा | जभड़ िा, आ िा, जभड़ िा'' बीि-बीि में िटाक् - िट-धा, 'िटा्क-िट् -धा!' र्ानी 'उठाकर पटक
दे ! उठाकर पटक दे ।' र्ही आवाि मृत गााँ व में संिीवनी भरती रहती थी।
लुटुन के माता जपता उसे नौ वषण की उम्र में ही अनाथ बनाकर िल बसे थे। सौभाग्यवश शादी हन िुकी थीं,
वरना वह भी मााँ बाप का अनुसरर् करता। जवधवा सास ने पाल-पनसकर बड़ा जकर्ा। बिपन में वह गार् िराता, धारनष्ण
दू ध पीता और कसरत जकर्ा करता था। गााँ व के लनग उसकी सास कन तरह-तरह की तकलीफ़ जदर्ा करते थे , लुट्न
के जसर पर कसरत की धुन लनगनं से बदला लेने के जलए ही सवार हुई।
(i) िुट्टि कौि था?
(क) लुट्टन एक िालाक लड़का था
(ख) वह िनरी करने वाला एक िनर था
(ग)वह बालक था जिसके मां -बाप उस समर् मर गए थे िब वह 9 वषण का था
(घ) उपरनि में से कनई नही
(ii) प ििाि की ढोिक तकसको ििकारिी थी?
(क) पहलवान की ढनलक की ताल गां व वालनं कन ललकारती थी
(ख) पहलवान की ढनलक राजत्र की भीषर्ता कन ताल ठनककर ललकारती थी
(ग) (क) और (ख) दनननं
(घ) इनमें से कनई नहीं
(iii) धारोष्ण दू ध से क्ा िात्पयश ै ?
(क)धार का गमण दू ध
(ख) भट्टी में जकर्ा गर्ा गमण दू ध
(ग) तािा दू ध
(घ) इनमें से कनई नही
(iv) प्रस्तुि गद्ािंर् के िेखक का िाम बिाइए
(क) प्रेमिंद
(ख) कृष्णा सनबती
(ग) फर्ीश्वर नाथ रे र्ु
(घ) रामधारी जसंह जदनकर

(v) गद्ािंर् के आधार पर तिम्नतिखखि कथिोिं पर तिचार कीतजए, और स ी तिकल्प का चयि कीतजए-
286
कथि-
(i) पहलवान की ढनलक बिने का समर् संध्या से प्रातःकाल तक का था।
(ii) लेखक ने राजत्र की भीषर्ताओं के बारे में बताते हुए कहता है जक िाड़े की अमावस्या की रात थी।
मलेररर्ा का प्रकनप था। िारनं तरफ जनस्तब्धता थी।
(iii) लुट्टन का जववाह नौ वषण की आर्ु में हन गर्ा था
तिकल्प
(क ) कथन(i) सही है
(ख) कथन( ii) सही है
(ग) उपरनि सभी
(घ) इनमें से कनई नहीं
प्रश्न 6 तिम्नतिखखि प्रश्नोिं के उत्तर ेिु तिदे र्ािुसार स ी तिकल्प का चयि कीतजए (1X10=10)

(i) िेखक िे पढिे के तिए मॉ को तकससे बाि करिे के तिए क ा?


(क) दादा से
(ख) िािा से
(ग) मास्टर से
(घ) दत्ता िी राव से
(ii) दादा कोल्हू जल्दी क्ोिं िगािा चा िे थे ?
(क) दू सरी फसल के जलए
(ख) गुड की ज्यादा कीमत के जलए
(ग) काम िल्दी समाि करने के जलए
(घ) इनमे से कनई नहीं
(iii) कोिारी तकसके काम आिा ोगा?
(क) सुरक्षा के जलए
(ख) धन िमा करने के जलए
(ग) अनाि िमा करने के जलए
(घ) पानी िमा करने के जलए
(iv) अिीि मे दबे पॉि िामक पाि के रचतयिा का िाम क्ा ै ?
(क) ओम धानवी
(ख) मननहर श्याम िनशी
(ग) श्याम मननहर िनशी
(घ) फर्ीश्वर नाथ रे र्ु
(v) मुअिजो-दड़ो अपिे काि में तकसका केंद्र र ा ोगा?
(क) सभ्यता का
(ख) रादनीजत का
(ग) धमण का
(घ) व्यापार का
287
(vi) िेखक को मरािी कौि पढािे थे?
(क) सौंदलगेलर
(ख) रर्नवरे
(ग) दादा
(घ) इनमे से कनई नहीं
(vii) यर्ोधरा बाबू के तििा की कौि-सी िषशगाँि मिाई गई ें?
(क) बीसवी
(ख) तीसवी
(ग) पच्चीसवी
(घ) िालीसवी
(viii) ‘तसल्वर िैतडिं ग’ पाि के िेखक का िाम क्ा ैं ?
(क) ओम धानवी
(ख) मननहर श्याम िनशी
(ग) श्याम मननहर िनशी
(घ) फर्ीश्वर नाथ रे र्ु
(ix) राखिदास बैिजी कौि थे ?
(क) जशक्षक
(ख) जभक्षु
(ग) पुरातत्त्वेता
(घ) व्यापारी
(x) तसल्वर िैतडिं ग क ािी के िायक का िाम क्ा ैं ?
(क) र्शनधर बाबू
(ख) भूषर्
(ग) जकशनदा
(घ) िढ् डा
खिंड ब – (िर्शिात्मक प्रश्न)

प्रश्न 7. तदए गए अप्रत्यातर्ि तिषयोिं में से तकसी एक तिषय पर िगभग 120 र्ब्दोिं में रचिात्मक िेख
तिखखए- (6X1=6)
(क) स्वास्थ्य का महत्व
(ख) आिादी का अमृत महनत्सव
(ग) राष्टीर् एकता और अखंडता में जहन्दी भाषा की भूजमका
(घ) वार्ु प्रदू षर् से िीवन पर प्रभाव
प्रश्न 8. तकन्ही दो प्रश्नोिं के उत्तर िगभा 60 र्ब्दोिं में दीतजए- (3X2=6)
(क) नाट्य रूपाां तरण में ककस प्रकार की मुख्य समस्या का सामना करना पड़ता है ?
(ख). रे कियो नाटक की किशेषताओां को स्पष्ट कीकजए।
(ग) कजवता जलखने के क्ा क्ा उद् घेश्य हनते हैं ?

288
प्रश्न 9. तििंम्नतिखखि िीि में से तकन्ही दो प्रश्नोिं के उत्तर िगभा 80 र्ब्दोिं में तिखखए- (4X2=8)
(क) सं पादकीर् क्ा है ?
(ख) पत्रकाररता के प्रमुख प्रकार जलखखए।
(ग) इं टरने ट क्ा है इसके गुर्-दनषनं पर प्रकाश डाजलए?
प्रश्न 10. काव् खिंड पर आघाररि तििंम्नतिखखि िीि में से तकन्ही दो प्रश्नोिं के उत्तर िगभा 60 र्ब्दोिं में
तिखखए- (3X2=6)
(क) “आत्म पररिर्” कजवता में कजव सुख और दु ख – दनननं खस्थजतर्नं में मग्न कैसे रह पाता है ?
(ख) “बादल राग” कजवता में, बादलनं के आगमन से प्रकृजत में हनने वाले जकन-जकन पररवतणननं कन कजवता मे
रे खां जकत करती हैं ?
(ग) “छनटा मेरा खेत” कजवता में कजव कन खेत का रूपक अपनाने की िरूरत क्नं पड़ी?
प्रश्न 11. काव् खिंड पर आघाररि तििंम्नतिखखि िीि में से तकन्ही दो प्रश्नोिं के उत्तर िगभा 40 र्ब्दोिं में
तिखखए- (2X2=4)
(क) “पतंग” कजवता में खरगनश की आाँ खनं िेसा लाल सवेरा ‘कजव ने ऎसा क्नं कहा है ?
(ख) कजवतावली’ के आधार पर पुजष्ट कीजिए जक तुलसी कन अपने समर् की आजथणक-सामाजिक समस्याओं
की िानकारी थी।
(ग) कजवता के जकन उपमाननं कन दे खकर र्ह कहा िा सकता है जक उषा कजवता गााँ व की सुबह का
गजतशील शब्द जित्र है ?
प्रश्न 12. गद् खिंड पर आघाररि तििंम्नतिखखि िीि में से तकन्ही दो प्रश्नोिं के उत्तर िगभा 40 र्ब्दोिं में तिखखए-
(3X2=6)
(क) बाजार का िादू िढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्ा-क्ा असर पड़ता है ?
(ख) जशरीष कन ‘अद् भुत अवधूत’ क्नं कहा गर्ा है ?
(ग) िाजत प्रथा कन श्रम-जवभािन का ही एक रूप न मानने के पीछे आं बेडकर के क्ा तकण हैं ?
प्रश्न 13. गद् खिंड पर आघाररि तििंम्नतिखखि िीि में से तकन्ही दो प्रश्नोिं के उत्तर िगभा 40 र्ब्दोिं में तिखखए-
(2X2=4)
(क) लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्नं कहा हनगा जक मेरा गुरु कनई पहलवान नहीं, र्ही ढनल है ?
(ख) िीिी ने इं दर सेना पर पानी फेंके िाने कन जकस तरह सही ठहरार्ा?
(ग) बािार कन साथणकता दे ने का क्ा आशर् है ?

289
प्रतिदर्श प्रश्न पत्र 2022-23

तिषय – त न्दी (आधार)


कक्षा-12
अिंक योजिा
तिधाशररि समय—3 घिंटे अतधकिम अिंक- 80
सामान्य तिदे र्ः-
 अिंक योजिा का उद्दे श्य मूल्यािंकि को अतधकातधक िस्तुतिष्ठ बिािा ै।
 खिंड – अ में तदए गए िस्तुपरक प्रश्नोिं के उत्तरोिं का मूल्यािंकि तितदश ष्ट अिंक योजिा के आधार
पर ी तकया जाए।
 खिंड –ब में िर्शिात्मक प्रश्नोिं के अिंक योजिा में तदए गए उत्तर तबिं दु अिं तिम ि ी िं ैं । ये
सुझािात्मक एििं सािंकेतिक ैं।
 यतद परीक्षाथी इि सािं केतिक तबिं दुओ िं से तभन्न तकन्तु उपयु क्त उत्तर दे िो उसे अिं क तदए जाऍिं।
 मूल्यािंकि कायश तिजी व्ाख्या के अिुसार ि ी, बखि अिंक –योजिा में तितदश ष्ट तिदे र्ािुसार
ी तकया जाए।

खिंड – अ िस्तुपरक प्रश्नोिं के उत्तर


प्रश्न क्रम सिंख्या उत्तर अिंक
तिभाजि
प्रश्न 1. (i) (ग) महत्वपूर्ण और जवश्वसनीर् ज्ञान प्रदान करता है 1
(ii) (ग) बारीकी से सनिना व जनरं तर दे खना 1
(iii) (ख) जवज्ञाननपासक 1
(iv) (घ) जवज्ञाननपासक 1
(v) (ख) प्रकृजत के साक्षात दशण न से 1
(vi) (घ) प्रफुखित पुष्प का अध्यर्नकताण 1
(vii) (ग) केवल (iv) सही है 1
(viii) (क) कजव की सनि और वैज्ञाजनकता 1
(ix) (ख) मानवीकरर्अलंकार का दु रुपर्नग हन रहा है 1
(x) (ग) कथन (A)और कारर् (R) दनननं सही है । 1
प्रश्न 2. (i) (ग) समर् 1
(ii) (ग) बाधाओं से र्ुि िीवन 1
(iii) (क) वीर व्यखि कन 1
(iv) (ग) जकनारा 1
(v) (ख) ता 1
अथिा
(i) (ख) नए बौर महकाने के जलए और कनर्ल कन बुलवाने के 1
जलए
(ii) (ग) वहााँ दु धमुंहे बच्चे भूख के कारर् जबलख रहे हैं 1

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(iii) (क) तेल बनकर बुझते दीपक कन िलाने और दू ध की धार 1
बहाने के जलए
(iv) (घ) कथन (iv) सही है 1
(v) (ख) वच्चे के हाथनं में जकताब थमाने के जलए कहा है ताजक 1
वह भी ज्ञान का उिाला पा सके
प्रश्न 3. (i) (क) क्षेत्र 1
(ii) (ग) टे लीजविन 1
(iii) (घ) छः 1
(iv) (ख) अमीरन के बारे में । 1
(v) (ख) जवश्लेषर्ात्मक ररपनटण 1
प्रश्न 4. (i) ( क) वज्र के समान 1
(ii) (ग) क और ख दनननं 1
(iii) (ख) संसार भर्भीत हनकर ह्रदर् थाम लेता है 1
(iv) (क) जबिली रूपी तलवारनं से 1
(v) (घ) उपरनि सभी 1
प्रश्न 5. (i) (ग)वह बालक था जिसके मां -बाप उस समर् मर गए थे िब 1
वह 9 वषण का था
(ii) (ख) पहलवान की ढनलक राजत्र की भीषर्ता कन ताल 1
ठनककर ललकारती थी
(iii) (क)धार का गमण दू ध 1
(iv) (ग) फर्ीश्वर नाथ रे र्ु 1
(v) (ग) उपरनि सभी 1
प्रश्न 6 (i) ( घ) दत्ता िी राव से 1
(ii) (ख) गुड की ज्यादा कीमत के जलए 1
(iii) (ग)अनाि िमा करने के जलए 1
(iv) (क) ओम थानवी 1
(v) (क) सभ्यता का 1
(vi) (क) सौंदलगेलर 1
(vii) (ग) पच्चीसवी 1
(viii) (ख) मननहर श्याम िनशी 1
(ix) (ग) पुरातत्त्वेता 1
(x) ( क) र्शनधर बाबू 1
खिंड ब – (िर्शिात्मक प्रश्न)
प्रश्न 7. जकसी एक जवषर् पर लगभग 120 शब्दनं में रिनात्मक लेख 6x1=6
जलखखएः- आरं भ- 1 अंक
जवषर्वस्तु - 3 अंक

291
प्रस्तुजत- -1 अं क
भाषा-1 अंक
प्रश्न 8 (क) नाट्य रूपाां तरण करते समय कौन-कौन सी समस्याएँ आती 3X2=6
हैं ? उत्तर-नाट्य रूपाां तरण करते समय अनेक समस्याओां
का सामना करना पड़ता है जो इस प्रकार है
1. सबसे प्रमुख समस्या कहानी के पात्ोां के मनोभािोां को
कहानीकार द्वारा प्रस्तुत प्रसां गोां अथिा मानकसक द्वां द्वोां के
नाटकीय प्रस्तुकत में आती है ।
2. पात्ोां के द्वां द्व को अकभनय के अनुरूप बनाने में समस्या
आती है ।
3. सांिादोां को नाटकीय रूप प्रदान करने समस्या आती है ।
 4. सांगीत, ध्वकन और प्रकाश व्यिस्था करने में
समस्या होती है ।
(ख) रे कियो नाटक में ध्वकन प्रभािोां और सांिादोां का किशेष महत्त्व
है जो इस प्रकार हैं -
1. रे कियो नाटक में पात्ोां से सांबांकित सभी जानकाररयाँ
सांिादोां के माध्यम से कमलती हैं ।
2. पात्ोां की चाररकत्क किशेषताएँ सांिादोां के द्वारा ही उजागर
होती हैं ।
3. नाटक का पूरा कथानक सांिादोां पर ही आिाररत होता है ।
 4. इसमें ध्वकन प्रभािोां और सांिादोां के माध्यम से ही
कथा को श्रोताओां तक पहँ चाया जाता है ।
(ग)  कजवता मनुष्य के मंवेदनाओं के जनकट हनती है
इसजलए कजवता पाठक र्ा श्रनता के मन कन छीकर
उसे ऐसा आनंद की अनु भूजत कराती है जिसे वह
शब्दनं के माध्यम से अजभव्यि नही कर सकता।
 कजवता का उद्धे श्य हनता है दै जनक िीवन के अनुभवनं
कन शब्दनं की सहार्ता से कलात्मक अजभव्यखि
दे ना।
 र्ह पाठक र्ा श्रनता की भावनाओं का उदारीकरर्
करती हैं ।
 रिनाकाक अपनी इच्छाजनसार मन में उठने वाली
भावनाओं कन शब्दनं से िुटाता है और उसे लर् में
जपरनकर कजवता की रिना करता है । र्ही काव्य
रिना पाठक र्ा श्रनता ती संवेदनशीलता िैसे
सद् वृजत्तर्नं कन िगाती है ।
प्रश्न 9 (क) संपादकीर् : संपादक द्वारा जकसी प्रमुख घटना र्ा समस्या 4X2=8
पर जलखे गए जविारत्मक लेख कन जिसे संबंजधत समािारपत्र
की रार् भी कहा िाता है , संपादकीर् कहते हैं । संपादकीर्
जकसी एक व्यखि का जविार र्ा रार् न हनकर समग्र पत्र -

292
समूह की रार् हनता है , इसजलए संपादकीर् में संपादक
अथवा लेखक का नाम नहीं जलखा िाता ।
(ख) खोजी पत्रकाररिा
जिसमें आम तौर पर सावणिजनक महत्व के मामलनं िैसे
भ्रष्टािार ,अजनर्जमतताओं और गड़बजड़र्नं की गहराई से
छानबीन कर सामने लाने की कनजशश की िाती है ।
िाचडाग पत्रकाररिा
इसका मुख्य कार्ण सरकार के कामकाि पर जनगाह रखना
है और कहीं भी कनई गड़बड़ी हन तन उसका पदाण फाश करना
है ।
एडिोकेसी पत्रकाररिा
इसे पक्षधर पत्रकाररता भी कहते हैं । जकसी खास मुद्दे र्ा
जविारधारा के पक्ष में िनमत बनाने के जलए लगातार अजभर्ान
िलाने वाली पत्रकाररता कन एडवनकेसी पत्रकाररता कहते हैं ।
पीि पत्रकाररिा
पाठकनं कन लुभाने के जलए झूठी अफवाहनं, आरनपनं प्रत्यारनपनं
प्रेम संबंधनं आजद से संबंजधत सनसनीखेि समािारनं से संबंजधत
पत्रकाररता कन पीत पत्रकाररता कहा िाता है ।
पेज थ्री पत्रकाररिा
पिे थ्री पत्रकाररता उसे कहते हैं जिसमें फैशन, अमीरनं की
पाजटण र्नं मजहलाओं और िानेमाने लनगनं के जनिी िीवन के बारे
में बतार्ा िाता है ।
खेि पत्रकाररिा
खेल से िुड़ी पत्रकाररता कन खेल पत्रकाररता कहा िाता है ।
(ग) इं टरनेट जवश्वव्यापी अंतरिाल है ,र्ह िनसंिार का सबसे
नवीन व लनकजप्रर् माध्यम है । इसमें िनसंिार के सभी
माध्यमनं के गुर् समाजहत हैं । र्ह िहां सूिना मननरं िन, ज्ञान
और व्यखिगत एवं सावणिजनक संवादनं के आदान-प्रदान के
जलए श्रेष्ठ माध्यम है , वही अश्लीलता दु ष्प्रिारव गंदगी फैलाने
का भी िररर्ा है ।
प्रश्न 10 (क) कजव कहता है जक मैं दु ख में ज्यादा दु खी नहीं हुआ और सुख 3X2=6
में ज्यादा खुश नहीं हुआ। मैंने हमेशा दनननं खस्थजतर्नं में
सामंिस्य बनाए रखा। दु ख और सुख दनननं कन एक िैसा
माना क्नंजक र्े दनननं खस्थजतर्नं तन मानव िीवन में आती है ।
इसजलए कजव सुख और दु ख दनननं खस्थजतर्नं में मग्न रहता है ।

293
(ख) बादलनं के आगमन से प्रकृजत में हनने वाले जनम्नजलखखत
पररवतणननं कन र्ह कजवता रे खां जकत करती है -
- बादलनं की गिणना हनने लगती है ।
- पृथ्वी में से पौधनं का अंकुरर् हनने लगता है ।
- मूसलाधार वषाण हनने लगती है ।
- जबिली िमकती है तथा जगर भी िाती है ।
- छनटे -छनटे पौधे हवा िलने के कारर् हाथ जहलाते िान
पड़ते हैं ।
- कमल का फूल खखलता है तथा उससे िल की बूाँदें
(ग) कजव उमाशंकर िनशी िी हमें र्े बताना िाहते हैं जक कजवता
जलखना एक मुखिल कार्ण है । काफ़ी मेहनत और कल्पना
करने के बाद ही कजव कुछ शब्दनं कन कागज पर जलख पाते
हैं । ठीक इसी तरह खेती का हाल भी है । खेत में बीि बनने से
लेकर कटाई करने तक की पूरी प्रजक्रर्ा में बहुत अजधक
मेहनत लगती है ।
प्रश्न 11 (ख) खरगनश की आं खें िैसा लाल सवेरा, तेि बौछारें , घंटी 2X2=4
बिाते हुए िनर-िनर से , आकाश कन इतना मुलार्म बनाते
हुए, पतंग ऊपर उठ सके। इन सभी बातनं में िन जबंब प्रर्नग
हुआ है वह सभी गजतशील, खस्थर, दृश्य, श्रव्य जबंब है ।
(ख) कजवतावली’ में उद् धृत छं दनं के अध्यर्न से पता िलता है
जक तुलसीदास कन अपने र्ुग की आजथणक जवषमता की
अच्छी समझ है । उन्नंने समकालीन समाि का र्थाथणपरक
जित्रर् जकर्ा है । वे समाि के जवजभन्न वगनं का वर्णन करते हैं
िन कई तरह के कार्ण करके अपना जनवाण ह करते हैं । तुलसी
दास तन र्हााँ तक बताते हैं जक पेट भरने के जलए लनग गलत-
सही सभी कार्ण करते हैं । उनके समर् में भर्ंकर गरीबी व
बेरनिगारी थी। गरीबी के कारर् लनग अपनी संताननं तक कन
बेि दे ते थे। बेरनिगारी इतनी अजधक थी जक लनगनं कन भीख
तक नहीं जमलती थी। दररद्रता रूपी रावर् ने हर तरफ
हाहाकार मिा रखा था।
(ग) कजव ने गााँ व की सुबह का सुंदर जित्रर् करने के जलए
गजतशील जबंब-र्निना की है । भनर के समर् आकाश नीले
शंख की तरह पजवत्र लगता है । उसे राख से जलपे िौके के
समान बतार्ा गर्ा है िन सुबह की नमी के कारर् गीला
लगता है । जफर वह लाल केसर से धनए हुए जसल-सा लगता
है । कजव दू सरी उपमा स्लेट पर लाल खजड़र्ा मलने से दे ता

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है । र्े सारे उपमान ग्रामीर् पररवेश से संबंजधत हैं । आकाश
के नीलेपन में िब सूर्ण प्रकट हनता है तन ऐसा लगता है िैसे
नीले िल में जकसी र्ुवती का गनरा शरीर जझलजमला रहा है ।
सूर्ण के उदर् हनते ही उषा का िादू समाि हन िाता है । र्े
सभी दृश्य एक-दू सरे से िुड़े हुए हैं । इनमें गजतशीलता है ।
प्रश्न 12 (क) िब बाजार का िादू िढ़ता है तन व्यखि जफिूल की 3X2=6
खरीददारी करता है । वह उस सामान कन खरीद लेता है
जिसकी उसे जरूरत नहीं हनती। वास्तव में िादू का प्रभाव
गलत र्ा सही की पहिान खत्म कर दे ता है । लेजकन िब र्ह
िादू उतरता है तन उसे पता िलता है जक बाजार की िकािौंध
ने उन्ें मूखण बनार्ा है । िादू के उतरने पर वह केवल
आवश्यकता का ही सामान खरीदता है ताजक उसका पालन-
पनषर् हन सके।
(ख) आिार्ण हिारी प्रसाद जद्ववेदी' जशरीष कन अद् भुत अवधूत
मानते हैं , क्नंजक संन्यासी की भााँ जत वह सुख-दु ख की जिंता
नहीं करता। जशरीष कालिर्ी अवधूत की भााँ जत िीवन की
अिेर्ता के मंत्र का प्रिार करता है । िब पृथ्वी अजग्न के
समान तप रही हनती है वह तब भी कनमल फूलनं से लदा
लहलहाता रहता है ।
(ग) िाजत प्रथा कन श्रम जवभािन का ही एक रूप न मानने के पीछे
डॉ. अंबेडकर के जनम्नजलखखत तकण हैं :
- िाजत प्रथा श्रम जवभािन के साथ-साथ श्रजमक जवभािन भी
कराती है । सभ्य समाि में श्रजमकनं का जवजभन्न वगों में जवभािन
अस्वाभाजवक है । इसे नहीं माना िा सकता।
- िाजत प्रथा में श्रम जवभािन मनुष्य की रुजि पर आधाररत
नहीं है । िाजत प्रथा का दू जषत जसद्धां त र्ह है जक मनुष्य के
प्रजशक्षर् अथवा जनिी क्षमता का जविार जकए जबना जकसी दू सरे
के द्वारा उसके जलए पेशा जनधाण ररत कर जदर्ा िाए।
- िाजत प्रथा मनुष्य कन िीवन-भर के जलए एक पेशे में बााँ ध
दे ती है , भले ही वह पेशा उसके जलए अनुपर्ुि र्ा अपर्ाण ि
क्नं न हन। इससे उसके भूखनं मरने की नौबत आ सकती है ।
इस प्रकार डॉ. अंबेडकर के तकण र्ह बताते हैं जक श्रम
जवभािन की दृजष्ट से िाजत प्रथा गंभीर दनषनं से मुका है ।
प्रश्न 13 (क) उसने ऐसा इसजलए कहा क्नंजकलुट्टन पहलवान िब पहली 2X2=4
बार पहलवानी करने दं गल में िाता है , तन एकमात्र ढनल की
आवाज हनती है , िन उसे अपना साहस बढ़ाती नजर आती

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है । ढनल की हर थाप में वह एक जनदे श सुनता है , िन उसे
अगला दााँ व खेलने के जलए प्रेररत करती है । र्ही कारर् है
जक लुट्टन पहलवान ढनल कन अपना गुरु मानता है ।
(ख) र्द्यजप लेखक बच्चनं की टनली पर पानी फेंके िाने के जवरुद्ध
था लेजकन उसकी िीिी (दीदी) इस बात कन सही मानती है ।
वह कहती है जक र्ह अंधजवश्वास नहीं है । र्जद हम इस सेना
कन पानी नहीं दें गे तन इं दर हमें कैसे पानी दे गा अथाण त् वषाण
करे गा। र्जद परमात्मा से कुछ लेना है तन पहले उसे कुछ
दे ना सीखन। तभी परमात्मा खुश हनकर मनुष्यनं की इच्छाएाँ
पूरी करता है ।
(ग) जिन लनगनं में बािारूपन हनता है , वे बािार कन जनरथणक
बना दे ते हैं ; परं तु िन लनग आवश्यकता के अनुसार बािार से
वस्तु खरीदते है , वही बािार कन साथणकता प्रदान करते हैं ।
ऐसे लनगनं के कारर् ही केवल वही वस्तुएाँ बेिी िाती हैं
जिनकी लनगनं कन आवश्यकता हनती है । ऐसी खस्थजत में
बािार हमारी आवश्यकताओं की पूजतण का साधन बनता है ।

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