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Namostu Chintan 48 August 2022
Namostu Chintan 48 August 2022
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
Web site: www.vishuddhasagar.com Page 1 of 168
प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
आ ार्ष श्री मवशुद्धसागर िी द्वारा दीमित साधुओ ं के
वर्ाषर्ोग 2022
2. मुमन श्री प्रशमसागर िी (संसघ), मुमन श्री अनुपमसागर िी, मुमन श्री साध्र्सागरिी
स्र्ान:- श्री पार्श्षनार् मदगम्बर िैन मंमदर मोठे मंमदर इतवारी नागपुर महाराष्ट्र
3. मुमन श्री सुप्रभसागर िी (ससघं ), ममु न श्री प्रणतसागर िी, मुमन श्री सौम्र्सागर िी
स्र्ान:- स्टेशन िैन मंमदर मवमदशा मध्र्प्रदेश
4. मुमन श्री सुर्शसागर िी (संसघ), मुमन श्री सद्भावसागर िी, िु. श्री श्रुतसागर िी
स्र्ान:- श्री मदगम्बर िैन (खंडेलवाल भवन ) मंमदर दुगष
6. मुमन श्री आमदत्र् सागर िी (ससघं ), मुमन श्री अप्रममत सागर िी,
मुमन श्री सहिसागर िी
स्र्ान:- समवसरण िैन मंमदर इदं ौर मध्र्प्रदेश
7. मुमन श्री आमस्तक्र् सागर िी (ससंघ), ममु न श्री सुकुल सागर िी,
स्र्ान :- िैन मंमदर महेवा मिला पन्द्ना
8. मुमन श्री समत्व सागर िी (ससंघ), मुमन श्री साक्ष्र् सागर िी,
मुमन श्री मनवृत्त सागर िी
स्र्ान:- मदगम्बर िैन बािार मंमदर टीकमगढ़
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
पुनः पुनः ईमानदारी पूवषक सच ी मनष्ठा से कार्ष करने के कारण
अभी हाल में ही प्राप्त र्ह तीसरा प्रमाणपत्र (समटषमिके ट) मदखाई दे रहा
हैं. आर्कर अमधमनर्म की धारा 80 G के अंतगषत दातार को ममलने
वाली ्ुट का प्रमाण पत्र. इससे अब कार्ों में तेिी भी आएगी.
र्ह सब आ ार्ष श्री मवशुद्ध सागर िी महाराि की प्रेरणा,
कृपा दृमि एवं उनके द्वारा दी िाने वाली मशिाएं
और आपके सभी के मवर्श्ास और संस्र्ा के
सभी कार्षकताषओ ं द्वारा अर्क लगन
और सत्र्ता के कारण सभ ं व
एवं संपन्द्न हुआ हैं. आप सभी
नमोस्तु शासन सेवा समममत
को इसी तरह अपना
सहर्ोग प्रदान
करते रहें.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
अगस्त 2022 माह के पवष और त्र्ौहार
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
र्ह पं ांग मदल्ली के भारतीर् स्टैं डडष समर् के अनुसार ही मदर्ा गर्ा हैं इस पं ांग के कृमतकार हैं :
प्रमतष्ठा ार्ष प.ं मक
ु े श िैन शास्त्री “मवनम्र”
संपकष सूत्र सवाषर्षमसमद्ध ज्र्ोमतर्-वास्तु कें र, गुरुर्ग्ाम, हररर्ाणा.
09868600290, 0999744151, 08368002419.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
सम्पादकीर्
पी. के . िैन ‘प्रदीप’
ठाणे, मबुं ई
िर् मिनेन्द्र.
आि पुनः सम्पूणष मवर्श् बारूद के ढेर पर ही बैठा हुआ हैं और सबसे बड़ी मुमककल तो र्ह है
मक वह िानबूझकर आाँखे बंद मकर्े हुए हैं. िबमक अन्द्दर ही अन्द्दर वह भी परेशान हैं. आिकल एक
बहुत ही बड़ा मुद्दा मवर्श् में ्ार्ा हुआ हैं वह है – शमक्तशाली राष्ट्र रमशर्ा और र्ि ु े न का र्ुद्ध. इससे
होने वाली महंसा के दुष्ट्पररणाम और समस्त मानव िाती पर दीघषकामलक असर. िी हााँ आपने सही
ही समझा हैं. हम महस ं ा पर ाष नहीं कर रहे हैं परन्द्तु हम महस ं ा के मिर्ान्द्वर्न पर ाष कर रहे हैं.
महंसा तो मवकारी स्वभाव (मवभाव भाव) हैं और महंसात्मक मिर्ा नकारात्मक मिर्ा हैं. िब मक
अमहंसा तो स्वभाव भाव हैं और अमहंसात्मक मिर्ा सकारात्मक मिर्ा हैं.
िैन दशषन में कोई भी नकारात्मक मिर्ा र्ा नकारात्मक भाव (मवभाव भाव) के मलए कही
भी ाष नहीं हैं परन्द्तु नाकारा भी नहीं हैं. र्ह होती तो है परन्द्तु इससे कै से अपने आपको ब ार्ा िार्े
इस पर मवस्तृत ाष हैं. पहले (कल) अमहंसा की व्र्ाख्र्ा अलग तरह से की िाती र्ी परन्द्तु िैन
दशषन में अन्द्र् सभी दशषनों की व्र्ाख्र्ा ख़त्म होने के बाद प्रारंभ होती हैं. मन से मानमसक, व न से
वा मनक और कार् से कामर्क मिसे ही अन्द्र् दशषन महस ं ा मानते हैं.
आज़ादी अर्ाषतध स्वतत्रं ता परन्द्तु मकसकी ? इसका बहुत ही दुरुपर्ोग होने लगा हैं. स्वतत्रं ता
के नाम पर स्वच्ंदता का ही बोल बाला हैं. मानवीर् मूल्र्ों की तो स्वतंत्रता के नाम पर धमज्िर्ां
उड़ती मदखाई दे रही हैं.
आिकल तो व्हात्सप और िोन का अमत-दुरुपर्ोग होने लगा है. कु् अमववेकी साधु संतो
की मनंदा को ही धमष मानते हैं और और टाईमपास करने के मलए मनोरंिन का मवर्र्. हमें उनके
मव ारों पर बहुत ही तरस आता हैं. वे िाने-अनिाने में मकतने कमों का बध ं कर रहे हैं ? मनदं ा तो
मनंदनीर् कृत है ही मिर ाहे सामान्द्र् व्र्मक्त की हो र्ा मिर पञ् परमेमष्ठर्ों (आ ार्ष, उपाध्र्ार् और
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
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साध)ु की. र्ह भी मव ार नहीं करते हैं मक र्ह अमधकार उनको ममला भी है क्र्ा ? परन्द्तु नहीं,
स्वतंत्रता के लते वाणी स्वतंत्रता का नाम लेकर अनगषल वाताषलाप करना मकतना उम त हैं ?
स्वतंत्रता मकसी को गुलाम नहीं बनाती परन्द्तु वह मकसी के ररत्र हनन का अमधकार भी नहीं
देती. र्ह बहुत ही सीममत रहती हैं और सदैव एक दार्रे में रखने का नाम है. इसे ही समं वधान कहा
िाता हैं. मिसे मक हमारे आ ार्ष भगवंतों ने कई हिार वर्ों पहले ही मलख मदर्ा र्ा. आि का
वतषमान र्ुग इसे ही ISO SYSTEM (INTERNATIONAL STANDARD
ORGANISATION) के नाम से िनता हैं. श्रावकों के मलए श्रावका ार और साधु-संतों के मलए
मूला ार र्ही संमवधान हैं िैन दशषन के अनुसार. आिकल लोगों में संहनन भी नहीं के बराबर रह
गर्ा हैं. बात-बात में उत्तेमित हो कर अनगषल बातों पर ध्र्ान देना और मिर उस पर अपनी रार् देना
र्ा रार् र्ोपना र्ही सब होने लगा हैं अतः र्ह सभी के मलए व्र्मक्तगत रूप से और सामूमहक रूप से
लागू होता है मिर ाहे साधु संत हो र्ा मिर श्रावक. र्हााँ पर र्ह मवशेर् बात ध्र्ान रखने र्ोग्र् है मक
र्ह सब श्रावकों को साधु-संतों के बारे में मनणषर् लेने का अमधकार नहीं मदर्ा गर्ा हैं. उनके बारें में
िो भी मनणषर् लेना होगा वह उनके दीिा गुरु ही ले सकते हैं श्रावक नहीं. साधु-संत अपने प्रव नों
से ही नहीं बमल्क र्ाष से भी समाि को लाभामन्द्वत करे. र्ह सब मलखने का उद्देकर् मकसी पर परम
पूज्र् आ ार्ों, उपाध्र्ार्ों और साधुओ ं के मलए ही नहीं बमल्क हम सभी श्रावकों के मलए भी है मक
कभी भी कोई भूल से भी न भूलकर इस सब को ध्र्ान में रखकर मकसी की मनंदा र्ा अपशब्द नहीं
कहें र्ा नहीं मव ारे.
र्हााँ पर मिर से मव ार आ गए अर्ाषतध पुनः मानमसक महंसात्मक अनदेखी बात सामने आ
गर्ी. र्हााँ अमहस ं ा की बात करते हैं. महस ं ा से हम स्वर्ं अपना ही घात करते हैं. इसका बहुत सन्द्ु दर
वणषन परम पूज्र् मदगम्बरा ार्ष अध्र्ात्म र्ोगी, र्ाष मशरोममण, आगम उपदेिा, समर्सारोपासक,
स्वाध्र्ार् प्रभावक, श्रुत संवधषक, अध्र्ात्म रसार्न के मनपुण वैज्ञामनक, अध्र्ात्म भौमतकी के आदशष
तत्रं ज्ञ, िैन दशषन के तत्त्वज्ञ, गरुु देव अर्ाषतध लते मिरते धरती के देवता आ ार्ष रत्न श्री मवशद्ध ु सागर
िी महाराि ने अपनी देशना में मकर्ा हैं. आपने पढ़ा भी हैं. िी हााँ आपने सही समझा हैं. हम “पुरुर्ार्ष
देशना” की ही बात कर रहे हैं. मिसे आपकी अपनी पमत्रका ‘नमोस्तु म ंतन’ में भी धारावामहक रूप
से प्रकामशत मकर्ा िा रहा हैं. आप िानते ही है मक र्ह देशना “आ ार्ष श्री अमृत न्द्र स्वामी द्वारा
रम त “पुरुर्ार्ष मसदधध्र्ुपार्” पर आधाररत हैं.
वतषमान में हमें हमारे देश में, अमहस ं ा प्रधान देश में, महस
ं ा मदखाई दे रही हैं. िमा करें, परन्द्तु
र्ह सब हो रहा हैं मानवीर् मूल्र्ों का ह्रास करके ही. और लोगों की सो , धारणा बुरी तरह से मवकृत
हो गर्ी हैं.
र्ाद नहीं आ रहा है, कहााँ पढ़ा र्ा, परन्द्तु पररभार्ा िो बतार्ी गर्ी र्ी वह पूणष रूप से र्ाद
हैं. अक्सर लोग एक कमषठ िीव, मतर्ं का नाम लेकर अपशब्द कहते हैं. िी आपने सही समझा.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
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और हम उसी मतर्ं की बात कर रहे हैं वह है – “गधा”. परन्द्तु र्ह देखना िरुरी है मक उस िीव को
ही गधा नाम संज्ञा से क्र्ों कहा गर्ा और इस नाम संज्ञा का मतलब क्र्ा होता हैं ? ध्र्ान देने र्ोग्र्
बात है. “ग” से मतलब है ‘गलत’ और “धा” से मतलब होता हैं ‘धारणा’. अर्ाष तध मिसकी गलत
धारणा हो वह ही “गधा” हैं. िामहर है की सभी तो मानव हैं अतः मतर्ं नहीं हैं तो मिर मतर्ं िैसे
कार्ष क्र्ों कर रहे हैं ? र्ह मव ारणीर् ज्वलंत प्रश्न आप सभी के सामने हैं.
और भी कई उदाहरण है िैसे आगामी पवष मोि सप्तमी और वात्सल्र् पूमणषमा. इनकी कर्ाएं
एवं कहामनर्ााँ आप सभी ने मवगत मवशेर्ांकों में पढ़ ही ली है अतः पुनरावृमत्त नहीं कर रहे हैं.
हम कोई रािनीमतज्ञ भी नहीं हैं और न ही रािनीमत करना ाहते हैं. परन्द्तु देखा िा रहा है मक
वतषमान में रािनीमत के गमलर्ारों में भी अपशब्दों की भरमार हो गर्ी हैं. िनता के ुने हुए प्रमतमनमध
भी ऐसे-ऐसे अपशब्दों का उपर्ोग कर रहे हैं िो मक उनकी मवकृत मानमसक दशा को प्रगट करता हैं.
और र्ह हाल मसिष रािनीमतक गमलर्ारों में ही नहीं बमल्क हमारे आपके श्री मिनालर्ों में भी प्रत्र्ि
रूप से मदखार्ी दे रहा हैं. र्ह बहुत ही अशोभनीर् बात हैं. हम अपनी आगामी पीढ़ी को क्र्ा र्ही
सब सौंपना ाहते हैं और उनका िीवन दूमर्त करना ाहते हैं ? इसका उत्तर हम सभी को देना हैं
अतः िो भी करें मर्ाषदा में रहकर करें, स्वतत्रं ता पवू षक करें, स्वच्ंदता से रमहत होकर करें, अमहस
ं ा
पूवषक करें तो ही ातुमाषस को मनाना सार्षक होगा.
सभी िगत के िीवों को अमहंसामर् स्वतंत्रता की असीम शुभकामनार्ें.
इमत शभ ु मध
उपकृत हैं हम मशष्ट्र् सब, पाकर शीतल ्ााँव, अमतशर् तब-तब हो गर्ा, िब-िब ्ूते पााँव |
वरदार्ी है आपका, र्ह सामनध्र् ममला महान, वर देना, कर पार्ें हम, सार्षक आपका नाम ||
परम पूज्र् गुरुदेव,
धरती के देवता,
लते मिरते मसद्ध भगवनध के
रणों में मत्रकाल अनंतबार
नमोस्तु,नमोस्तु, नमोस्तु.
पी.के . िैन ‘प्रदीप’
डॉ. श्री मनमषल िैन शास्त्री, श्रीमती कीमतष पवन िैन, पमं डता ार्ष मुकेश ‘मवनम्र’,
टीकमगढ़, मध्र् प्रदेश. सहसपं ामदका, मदल्ली, प्रमतष्ठा ार्ष,वास्तुमवद,गुरुर्ग्ाम.
प.ं श्री लोके श िी िैन शास्त्री, श्रीमती प्रमतष्ठा सौरभ िैन, श्री अंकुश िैन,
गनोड़ा, रािस्र्ान. (कलाकृमत) बगं लरू ू . शाहगढ़ (सागर)
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
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व्हाटधसएप/टेलीर्ग्ाम र्ग्ुप्स : कुल 50 र्ग्ुप्स के सभी एडममन/सं ालक
आगरा : शुभम िैन, अलदंगडी : ममत्रसेन िैन
आगरा : अतुल िैन, अशोक नगर : अतुल िैन,
अशोक नगर : श्रीमती अनीता िैन बड़ामलहरा : अिर् पाटनी,
बड़ामलहरा : श्रीमती रिनी िैन बानपुर: नमवन िैन
बैतूल : अमवनाश िैन बंगलुरु : श्री सन्द्देश िैन
बंगलुरु : श्री गौरव िैन बंगलुरु : श्रीमती आरती िैन
बगं लरुु : श्रीमती प्रमतष्ठा िैन बरार्ठा: प्रीतेश िैन
भोपाल: पं. रािेश िी ‘राि’ म्ंदवाडा: श्रीमती मीनू िैन
हासन: प्रवीन HR हैदराबाद : डॉ. प्रदीप िैन
होसदुगाष : सुममतकुमार िैन हुबली : श्रीमती नंदारानी पामटल
इदं ौर: श्री मदनेशिी गोधा इदं ौर: श्रीमती रमकम गंगवाल
इदं ौर: श्री टी. के . वेद इदं ौर: श्री नमवन िैन
िबलपुर: म राग िैन िर्पुर : डॉ. रंिना िैन
कलबुगी : मकशोर कुमार कोलकाता : रािेश काला
कोलकाता : कुसुम ्ाबड़ा कोटा : नमवन लुहामडर्ा
कोटा : श्रीमती प्रममला िैन मड़ु मबरी : श्रीमती लक्ष्मी िैन
मुड़मबरी : सुहास िैन दावनगेरे : भरर् पंमडत
मड़ु मबरी : कृष्ट्णराि हेगड़े धमषस्र्ल : डॉ. िर्कीमतष िैन
मदल्ली : श्रीमती ररतु िैन मुंबई : गौरव िैन
मबुं ई : दीपक िैन मदुरै : िी. भरर्राि
मुंबई : प्रकाश मसंघवी मौरेना : मिम्मी िैन
मौरेना : गौरव िैन पुणे : प्रािक्ता ौगुले
मशवनी : श्री न्द्दन िैन मशवनी : पवन मदवाकर िैन
रार्परु : ममतेश बाकलीवाल रानीपरु : प्रा ी िैन
रानीपरु : सौरभ िैन टूमकुर : पद्मा प्रकाश
रतलाम : मांगीलाल िैन सांगली : राहुल नांरे
सांगली : रािकुमार ौगल ु े सोलापरु : कुमारी श्रद्धा व्र्वहारे
उज्िैन : रािकुमार बाकलीवा. मविापुर : मविर्कुमार
उज्िैन : नमवन िैन िर्परु ,मानसरोवर श्री प्रमोद िैन
ऑस्रे मलर्ा, पर्ष श्रीमती भमक्त हूले व्र्वहारे एवं सभी कार्षकत्ताष
अमेररका: श्री डॉ प्रेम ंद िी गडा एवं सभी कार्षकत्ताष
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवर ! अत्र अवतर-अवतर सवं ौर्टध
आह्वाननम !
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशद्ध
ु सागर ममु नवर ! अत्र मतष्ठ-मतष्ठ ठः ठः
स्र्ापनमध |
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ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशद्ध
ु सागर ममु नवर ! अत्र मम समन्द्नमहतो भव भव
वर्टध समन्द्नमधकरणमध |
ाररत्र महमालर् से मनझषर, र्ह सम्र्ग्ज्ञान सुगंगा है |
िो शीतल मनमषल वाणी दे, करती रहती मन ंगा है ||
मैं िन्द्म िरा का रोगी हू,ाँ तुम उत्तम वैद्य कहाते हो |
मनि ज्ञानमर्ी और्मधर्ााँ दे, सब िग के रोग ममटाते हो ||
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्र्ो िन्द्म िरा मृत्र्ु
मवनाशनार् िलं मनवषपामीमत स्वाहा।
मलर्ामगरर ंदन सम शीतल, है आप सुगंमधत भूतल पर|
गुरू भक्त भ्रमर मंडराते हैं, तेरी र्ाष पर झुक-झुक कर ||
उपसगों के मवर्धर मलपटे , मवर्पान मकर्ा, अमतृ सीं ा|
ऐसे अमृत वरर्ार्ी की, करता है िग न्द्दन पूिा ||
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्र्ो संसार ताप मवनाशनार्
न्द्दनं मनवषपामीमत स्वाहा।
ख्र्ामत पूिा से क्र्ा लेना, क्र्ा नाम म त्र संर ना से |
िो समर्सारमें मनत रमते, क्र्ा काम करें िग र ना के ||
है भक्त कामना एक आप, अिर् ख्र्ाती भंडार बनो |
अररहंत बनो र्ा मसद्ध बनो, मेरे मशवपर् आधार बनो ||
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्र्ो अिर् पद प्राप्तर्े अितानध
मनवषपामीमत स्वाहा ।
ैतन्द्र् वामटकामें सुरमभत, ुनकर अध्र्ात्म प्रसून मलए |
तब महकउठी प्रव न बमगर्ा,अध्र्ात्मरमसक रसपान मकर्े||
मिनधमष का सौरभ िै ल रहा, सब मदग-ध मदगन्द्त धरती अम्बर |
अमपषत करता सुमनावमलर्ााँ, हे परम पूज्र् मेरे गुरुवर ||
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्र्ो कामबाण मवनाशनार् पुष्ट्पं
मनवषपामीमत स्वाहा।
मनिज्ञान ध्र्ान वैराग्र् सहि, अरु स्वानुभूमत में र े-प े |
मनत मनिानद ैतन्द्र्मर्ी, अध्र्ात्म रसों में रसे-र े ||
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ु दाई है.
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ैतन्द्र् रसों का ममश्रण कर, मनि मन नैवेद्य बनार्ा है |
भव-भव की िुधा ममटाने को, गुरु पद नैवेद्य ढ़ार्ा है ||
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्र्ो िुधा रोग मवनाशनार्
नैवेद्यं मनवषपामीमत स्वाहा।
मेरा मप्रर् सम्र्ग्दशषन र्ह, मैं ेतन दीप िलाता हूाँ |
कमों की काली रिनी को, सममकत से दूर भगाता हूाँ ||
सम्र्क श्रद्धा से आलोमकत, गुरु गुण आरमतर्ााँ गाता हूाँ |
मनर्ग्ंर्ों की आरमतर्ााँ कर, मनर्ग्षन्द्र् भावना भाता हूाँ ||
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्र्ो मोहान्द्धकार मवनाशनार्
दीपं मनवषपामीमत स्वाहा ।
शद्ध
ु ात्म ध्र्ान की ज्वाला में, कमों की धमू िलाते हो |
पल-पल म्न-म्न मनशमदन सम्र्कध, शुद्धोपर्ोग ही ध्र्ाते हो||
तुम महारर्ी र्ह महार्ज्ञ! मनि कमों को स्वाहा कर लूाँ |
मैं अशरीरी अमवनाशी सुख, मनि मसद्ध अवस्र्ा को वर लूाँ ||
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्र्ो अि कमष दहनार् धूपं
मनवषपामीमत स्वाहा ।
र्ह नर तन का िल रत्नत्रर्, हो धन्द्र् भाग्र् तुमने पार्ा |
रत्नत्रर् का िल मशविल है, र्ह बीि ह्रदर् में उग आर्ा ||
मेरा श्रावक कुल धन्द्र् हुआ, अरू धन्द्र्, हुई र्ह नर कार्ा |
पूिा कर रत्नत्रर् पाऊाँ , मशविल पाने मन लल ार्ा ||
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशद्ध
ु सागर ममु नवरेभ्र्ो मोििल प्राप्तर्े िलं
मनवषपामीमत स्वाहा।
ैतन्द्र् तीर्ष के मनमाषता, तुम भगवत्ता बतलाते हो |
मेरा भगवनध ही मझ ु में हैं, शार्श्त सत्ता बतलाते हो ||
आ गर्ा काल मिर से ौर्ा, र्ा मिर बसंत लहरार्ा है |
मनर्ग्षन्द्र् मदगम्बर मुरा में, र्ह शुद्ध श्रमण अब पार्ा है ||1||
तन से मवशुद्ध मन से मवशुद्ध, ेतन मवशद्ध ु करने वाले |
मन के मवशुद्ध सं ारों से, िग मवपदाएाँ हरने वाले ||
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
तमु हो अनघष, र्ाष अनघष, ाष अनघष मगं लकारी |
मैं अर्घर्ष ढ़ाता हूाँ तुमको, तमु तीर्ंकर सम उपकारी ||2||
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्र्ो अनर्घर्ष पद प्राप्तर्े अर्घर्षमध
मनवषपामीमत स्वाहा।
िर्माला
(्ंद-दोहा)
तुमको पाकर हो गर्ा, भारतवर्ष मनहाल |
रत्नत्रर् म ंतामणी, गाऊाँ मैं िर्माल ||
(्ंद ज्ञानोदर्)
ैतन्द्र् धातु से मनममषत हो, क्र्ा मात-मपता का नाम कहूाँ |
शुद्धात्म प्रदेशों में िन्द्मे, क्र्ा नगर-शहर क्र्ा गाम कहूाँ |
दशलिण धमष सहोदर है, रत्नत्रर् ममत्र मनराला है |
समता बमहना राखी बांधे, अनुप्रेिा मााँ ने पाला है ||1||
र्ौवन की देहली पर आते, दीिा कन्द्र्ा से ब्र्ाह र ा |
मनर्ग्षन्द्र् मदगम्बर मुराधर, अपनार्ा मुमक्त पर् सच ा ||
हो भाव शुमद्ध के मवमल कें र, हो स्वानुभूमत के मनिाधार |
हे सस्ं कृमत के अलक ं ार ! ैतन्द्र् कल्पतरू सख ु ाधार ||2||
तुम पं -समममतर्ााँ त्रर्-गुमप्त शुद्धात्मलीन हो पाल रहे |
श्रुतज्ञान और वैराग्र् प्रबल, सब संघ इसी में ढाल रहे ||
िो महापुरुर् द्वारा धाररत, उन महाव्रतों को धारा है |
मनि भेदज्ञान पौरुर् बल से, खोला मुमक्त का द्वारा है ||3||
र्ाष के मनमषल स्रोतों से, सज्ञं ान के मनझषर िूट पड़े |
िन्द्मों के ज्ञान मपपासु िन, इसमलए एक दम टूट पड़े ||
व्रतशील शुद्ध आ रण मबना,शुद्धात्म तत्त्व ना ममलता है |
मदनकर के मबना मदवस क्र्ा हो,सर में पक ं ि क्र्ा मखलता है|4|
िो लते पर भी नहीं लें, िो और बोलते ना बोलें |
िो सदा देखते ना देखें, मनि में इतने मनश्चल होलें ||
है स्विातीर् सम्बन्द्ध मधुर, शुद्धात्म का शुद्धात्म से |
एकार्ग्म त्त हो िहााँ कहीं, बाते कर ले मसद्धातम से ||5||
परुु र्ार्ष परार्ण परमवीर, हो ममु क्त राज्र् के अमधकारी |
मैत्री प्रमोद करुणाधारी, हो उभर् लोक मगलकारी ||
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
हे मनमवषकार ! मनद्वंद ! नमन, हे मनरालम्ब ! मनर्ग्षन्द्र् नमन |
मनभषर् ! मनराग! मनलेप ! नमन, मनदोर् मदगम्बर श्रमण नमन ||6||
तुम पं ा ार परार्ण हो, तमु पं ेमन्द्रर् गि के िेता |
गभं ीर धीर हे शरू वीर ! ाररत्र दि मशवपर् नेता !
ाररत्र मबना दृगबोध मविल, कोठे में बीि रखे सम है |
िो मितनी उज्िवलता पाले, उतना मनवाषण मनकटतम है ||7||
शम दम र्म मनर्म मनके तन हैं, अमव ल अखंड अद्वैत रूप |
हो रत्नत्रर् से आभूमर्त, आ ार्ष श्रेष्ठ आ ार भूप ||
मैं भमक्तत्रर् र्ोगत्रर् से, त्रर्कालों तीन मवधानों से |
भव भेदक ! साधक सुरर प्रवर, नमता सममकत श्रद्धानों से ||8||
गुरु र्मी! र्त्न करते रहते, मनि समर् मनर्म प्रकाशक हो |
िो हमें र्ातनाएाँ देता, उस र्म के आप मवनाशक हो |
हो कमष वृि के उच्े दक, तुम कमषलों करते रहते |
मिर भी इस भोली िनता को, के वल क लो मदखा करते ||9||
गुरु अहो ! अर्ा क धन्द्र् तुम्हें, तुम कु् भी मााँग नहीं करते |
मनवाषण सुन्द्दरी की सुन्द्दर, भावों से मांग भरा करते ||
र्ह ब्रह्म र्ष की मनमषलता, लौकांमतक देव नमन करते |
वैराग्र् मदवस पर कब आर्े, बस इतनी ाह मकर्ा करते ||10||
र्ह धन्द्र् आपकी मिनमरु ा, र्ह धन्द्र्-धन्द्र् मनर्ग्षन्द्र् दशा |
मुमन नाम आलौमकक मिन र्ाष, िो प्रकटाती अररहंत दशा ||
तुम लते-मिरते मोिमागष, गन्द्तव्र् ओर बढ़ते िाते |
तमु कदम िहााँ पर रख देते, ैतन्द्र् तीर्ष गढ़ते िाते ||11||
मनर्ग्षन्द्र् साधु की र्ह पूिा, स में रत्नत्रर् पूिा है |
ना ख्र्ामत नाम की र्ह पूिा, ना ख्र्ामत नाम को पूिा है ||
है तीन ऊन नव कोमट मुमन, मिनके समान ना दूिा है |
अररहंत प्रभु के बीि रूप, मशवपर् पंर्ी की पूिा हैं ||12||
(्ंद-दोहा)
गरुु पूिा में आ गर्े, िग के सब मुमनराि |
कोमट-कोमट पि ू ा करूाँ, पाऊाँ ममु नपद आि ||1||
गुरु मनर्ग्षन्द्र् महान है, गुरु अररहंत समान |
गुरुवर ही भगवान है, गुरुवर िमा मनधान ||2||
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
ॐ ह्रुं णमो आइररर्ाणं श्रीमदध आ ार्ष परमेष्ठी मवशद्ध ु सागर ममु नवरेभ्र्ो िर्माला पण
ू ाषर्घर्षमध
मनवषपामीमत स्वाहा।
गुरुवर सम्र्ग्दशष दो, गुरुवर सम्र्ग्ज्ञान |
गरुु वर सम्र्कध ाररत्र दो, गरुु वर दो मनवाषण ||3||
इत्र्ामशवाषदं पुष्ट्पांिमलमध मिपेतध |
मवशुद्ध व न:
“राग हटाओ कि ममटाओ”
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
आ ार्ष श्री मवशुद्धसागर िी की आरती
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
नोट: अब तक आपने 60 काररकाएाँ पढ़ ली हैं और समझ भी ली हैं अर्ाषतध स्वर्ं आपने आप के ज्ञान
में आपसे ही आपके द्वारा मनरंतर आपके मलए ही सम्र्कध दशषन सम्र्कध ज्ञान और सम्र्कध ाररत्र की
वृमद्ध को प्राप्त कर मलर्ा हैं, अंगीकार भी कर मलर्ा हैं. सम्र्कध दशषन के आठ अंगों के बारे में तदनंतर
सम्र्ग्ज्ञान अमधकार अंग के सार्-सार् सम्र्कध ाररत्र के बारे में भी आपने िाना. सम्र्ग्दशषन के
सार् सार् मोि मागष पर आगे बढ़ने के मलए सम्र्ग्ज्ञान तो प्राप्त हो ही िाता हैं परन्द्तु मिर आगे बढ़ने
के मलए ाररत्र, सम्र्कध ररत्र भी बहुत िरुरी है. आपको र्ाद ही है मक सभी िीवों के कल्र्ाण के
मलए र्ह मागष, देशना के माध्र्म से बता रहे हैं परम पूज्र् प्रमतपल स्मरणीर्, ज्ञान मदवाकर, र्ाष
मशरोमणी, अध्र्ात्म र्ोगी, आगम उपदेिा, स्वाध्र्ार् प्रभावक, श्रतु सवं धषक, अध्र्ात्म रसार्नज्ञ,
अध्र्ात्म-भौमतक तत्रं ज्ञ, आ ार्ष रत्न श्री १०८ मवशुद्ध सागरिी महाराि. र्ह मवर्श् प्रमसद्ध मंगलकारी
देशना, परुु र्ार्ष देशना िो मक महान तत्त्व मवश्ले र्क आ ार्ष श्री अमतृ न्द्र स्वामी की महान र ना
“पुरुर्ार्ष मसदधध्र्ुपार्” आधाररत हैं. सभी इस देशना का रसपान करते हुए, भलीभााँमत समझकर
मोिमागष पर अबाध गमत से अर्ग्सर हो रहे हैं.
हम सभी ने अब तक मप्ली 60 काररकाओ ं में िैन दशषन के मवमवध आर्ामों के बारे में नर्
व्र्वस्र्ा, सम्र्ग्दशषन के आठों अंग, और र्ुगपत रूप से ज्ञान का सम्र्ग्ज्ञान में पररवतषन, भावों का
पररणमन और सबसे महत्वपूणष मनर्ग्षन्द्र् आलौमकक वृमत्त को रत्नत्रर् समहत िाना और समझा मक
मनर्ग्षन्द्र् अवस्र्ा ही बंध से ्ूटने में उपकारी हैं. और अब तक र्ह भी िाना मक सम्र्कध ररत्र के सार्
मकस प्रकार हम आगे मोि पर् पर बढ़ सकते हैं. सवषज्ञ की वाणी के अनुसार बतार्े गए रव्र् और
तत्त्व के श्रद्धान से मनन म ंतन करते हुए िाना मक सहिता से भव सागर को पार करने के मलए र्ोडा
सा िागरूक रहना ही मनतांत सरल और आवकर्क हैं. इसके सरल सहि मवस्तारीकरण से र्ह भी
ज्ञान हो गर्ा मक कै से हमारे भावों का पररणमन अमहंसा र्ा महंसा स्वरुप हो िाता हैं. इस पूरी प्रमिर्ा
को और सरल बना मदर्ा हैं परम पूज्र् आ ार्ष रत्न श्री १०८ मवशुद्ध सागरिी महाराि के आगम
िुओ ं द्वारा रोि-मराष के उदाहरणों से, सुगम और सरल भार्ा, लोक मप्रर् शैली के माध्र्म से. मिनेन्द्र
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
देव द्वारा बतार्े गए सात तत्त्वों का श्रद्धान करते हुए सम्र्गध ाररत्र को भलीभांमत िानने का प्रर्ास
कर रहें हैं.
मिनवाणी िगत कल्र्ाणी और महावीर स्वामी की पावन मपर्ूर् देशना का रसपान, आ ार्ष
श्री के मख ु ारमवदं से कणाषन्द्िलु ी द्वारा करते हुए आगे बढ़ाते हैं और प्रस्ततु काररका 61 एवं 62 में
मानव के िीवन का आधार अमहंसा और मानवता ही है और उस मागष में लते हुए श्रावक के मूल
गुणों का पालन करने वाला ही मोि मागी हैं. हमारे मनर्ग्षन्द्र् गुरुवर्ष हमारे िीवन में अपनी मवशुमद्ध
को बढ़ाते हुए कै से मोि मागष पर अर्ग्सर होते हुए, मसद्ध बनकर अव्र्ाबामधत सुख का वेदन करे. र्ह
हमारी कामना नहीं हैं परन्द्तु र्ह तो सम्र्ग्दशषन, सम्र्ग्ज्ञान और सम्र्क् ाररत्र की एकता का सुिल हैं
िो स्वमेव ही प्राप्त होता हैं. र्ही तो आ ार्ष भगवन अमतृ न्द्र स्वामी हमें समझाने का और उस पर
लने का मागष बता रहें हैं. मिससे मसद्धमशला पर आरोहण कर िन्द्म मरण के अनन्द्त दु:खो से रमहत
होकर मनमवषकल्प अव्र्ाबामधत सुख का वेदन कर सकें . मकतनी मनमषल और करुणामर्ी दृिी है
आ ार्ष भगवन्द्तो की. वे हमारे दुःख से रमवत होकर सुखी होने का मागष बता रहे हैं. र्ही हमारे पुरुर्ार्ष
की मसमद्ध का उपार् हैं.
इस र्ग्र्
ं राि का मगं ला रण तो आपको कंठस्र् हो ही गर्ा होगा. इस र्ग्र् ं राि के मगं ला रण
मिसमे आ ार्ष भगवन श्री अमृत न्द्र स्वामी ने ज्ञान ज्र्ोमत को ही नमस्कार मकर्ा गर्ा हैं. इसमें
व्र्मक्त को नहीं, गुणों का ही वणषन हैं और पूज्र् बतार्ा गर्ा हैं. और र्ही हमारे िैन दशषन का मूल
मसद्धांत हैं.
महस
ं ा त्र्ागने के उपार् ‘श्रावकों के अि-मूल-गुण’
मद्यं मांसं िौरं पं ोदुम्बरिलामन र्त्नेन ।
महस
ं ाव्र्ुपरमतकामैमोक्तव्र्ामन प्रर्ममेव ।। 61।।
अन्द्वर्ार्ष : महंसाव्र्ुपरमतकामैः = महंसा का त्र्ाग करने की कामना करनेवाले को |
प्रर्ममेव र्त्नेन =प्रर्म ही र्त्नपूवषक | मद्यं मांसं िौरं = शराब, मांस, शहद और |
पं ोदुम्बरिलामन = पं उदम्बर िल ( ऊमर, कठूमर, बड़, पीपल, पाकर िामत के ) |
मोक्तव्र्ामन = त्र्ाग करना ामहर्े |
मद्यं मोहर्मत मनो मोमहतम त्तस्तु मवस्मरमत धमषम।ध
मवस्मृतधमाषिीवो महंसाममवशंकमा रमत।। 62।।
अन्द्वर्ार्ष : मद्यं = शराब | मनो मोहर्मत = मन को मोमहत करती हैं । मोमहतम त्तः =
मोमहतम त्त पुरुर् । तु धमषमध मवस्मरमत = तो धमष को भूल िाता हैं । मवस्मतृ धमाष िीवः =
धमष को भूला हुआ िीव । अमवशंकमध = मनडर होकर । महंसा आ रमत = महंसा का आ रण
करता है (अर्ाषतध बेधड़क महंसा करने लगता है)
भो मनीमर्र्ो ! आ ार्ष भगवानध अमृत ंर स्वामी ने बहुत सही सूत्र मदर्ा है मक 'आत्मा का
धमष अमहंसा है' अमहंसा का िहााँ से प्रादुभाषव होता है, वहााँ से संपूणष धमष अपने आप में शुरू हो िाते
हैं और िहााँ महंसा का प्रारंभ होना शुरू होता है, वहााँ सभी धमष पलार्न कर िाते है.
एक िीव व्रत, संर्म, तप सबकु् करता है, भगवानध मिनेंर देव की आराधना भी घंटों करता
है. लेमकन र्मद उसके कमष महस ं ात्मक हैं, तो सारी मिर्ाएाँ ममथ्र्ा है. िो िीव स्वाध्र्ार् करता है,
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
प्रव न भी सनु ता है, देव-पि ू ा भी करता है, लेमकन र्ाष में र्टधकार् िीवों की महस ं ा ल रही है
अर्ाषतध बुमद्धपूवषक िीवों का भी घात कर रहा हो तो, भो ज्ञानी! उस िीव की सारी की सारी मिर्ार्ें
दुग्ध में मममश्रत िहर की एक कमणका के तुल्र् हैं; क्र्ोंमक तुम्हारा धमष अमहंसा है. महंसा के िो ार
भेद महस्ं र्, महस ं क, महस ं ा और महस ं ा का िल है, वे मात्र सनु ने के मलर्े नहीं है. भो ज्ञानी ! िब तक
महंस्र् का ज्ञान नहीं होगा, तब तक महंसा का त्र्ाग कै से होगा ? मकन-मकन स्र्ानों पर कै से-कै से िीव
हैं ? कै से-कै से घात होता है ? र्ह िानने की आवकर्कता है. र्ह लोभ नहीं, मववेक है. पहले के
बुिुगष िब भोिन करते र्े तो अंत में र्ाली में पानी डालकर पी िाते र्े तर्ा उतना ही भोिन लेते र्े
मितना उनको ामहर्े र्ा. आप कहेंगे मक इतना लोभ मक र्ाली धोकर पीते र्े. अरे ! अज्ञामनर्ों को
लोभ मदखता है, परंतु ज्ञामनर्ों को अमहस ं ा धमष मदखता है. मशकारी िो िगं ल में िाता है तो सीधा
मकसी प्राणी को पकड़ता नहीं है, िाल िै लाता है और उसमें िीव िाँ स िाते हैं . आप भोिन की
र्ाली ऐसी आधी-अधूरी खाकर ्ोड़ गर्े, उसमें ममक्खर्ााँ, ीमटर्ााँ आएाँगी और सम्मूच्ष न िीव
अन्द्तमषहु ूतष में उत्पन्द्न हो िार्ेंगें उनकी महंसा मकसे लगेगी ? वह दोर् मकसके मसर पर िार्ेगा ?
अहो! वह लोभ नहीं र्ा, वह मववेक र्ा मक मैं र्ाली में एक कण भी नहीं ्ोडूगाँ ा और ज्र्ादा
हुआ तो र्ाली उल्टी करके रख दी मक मेरे मकसी मनममत्त से मकसी भी िीव का वध न हो, क्र्ोंमक
गृहस्र् है. आिकल ररवाि हो गर्ा है मक पूरा खा लेंगे तो कोई क्र्ा कहेगा ? अतः आप झठू न
्ोड़कर ले गर्े. अमहंसा की दृमि से देखोगे तो अपना िूठा मगलास दूसरे को पीने को मत देना.
तम्ु हारे मखु के िीव और आपके शरीर के िीवाणु दूसरे के शरीर में प्रवेश करेंगे.
भो ज्ञानी! मकसी को िूठन मखलाना-मपलाना वात्सल्र् नहीं है. िूठन मखलाने को तुम लोग-
व्र्वहार मानते हो. एक साधु भी अपनी मपच्ी दूसरे साधु की मपच्ी से सटाकर नहीं रखता.
उमास्वामी महाराि मलख रहे हैं मक, अहो ! अमहंसा के पालको ! आस्रव के दो अमधकरण हैं - िीव
अमधकरण, अिीव अमधकरण. र्ह मपच्ी हमारा अमधकरण उपकरण है और मैंने इससे मािषन मकर्ा
है, तो मेरे शरीर के िीवाणु उसमें है. दूसरे के शरीर के कीटाणु उनके उपकरण में है. र्मद परस्पर में
संघर्षण होगा तो िीवों का घात होगा. अतः एक -दूसरे के वस्त्रों का प्रर्ोग भी नहीं करना ामहए.
अिीव - अमधकार सूत्र कह रहा मक आपस में िैसे आप लोग बैठे हो, वैसे नहीं बैठ सकते हो, संघर्षण
हो रहा हैं अभी तो आपको अमहंसा का ज्ञान ही नहीं है.
भो ज्ञानी ! आप मिसे व्र्वहार कहते हो, भगवानध महावीर उसे महंसा कहते हैं कै से ? सीधे
आए और हार् से हार् ममलार्ा, एक-दूसरे के हार् के मितने िीव र्े, सब मर गर्े. अरे ! हार् नहीं
ममलार्ा िाता, िुहार मकर्ा िाता है. तुलसीदास िी ने भी रामार्ण में िुहार शब्द को रखा है. िुग
के आमद में हुए अरू र्ामन पज्ू र् अरहंत आमदनार् स्वामी, उनको भी नमस्कार; इसका नाम है िुहार.
मकन-मकन स्र्ानों पर महंसा है ? बोलने में, लने में, बैठने में, सोने में, र्हााँ तक मक शौ -मिर्ा में इन
संपूणष स्र्ानों में सम्र्क्दृमि िीव र्ह देखता है मक िीव तो नहीं है. िहााँ मल का मवसिषन हो िाता
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
है, वहााँ कीड़े मनकलते हैं, मबलमबलाते है. भो ज्ञानी ! शरीर का गमष मल िब मगरता है, तब उन िीवों
की क्र्ा हालत होती होगी ? इसको र्ों ही मत डाल मदर्ा करो. अंदर िो िीव बैठा हुआ है, वह
मसद्ध-शमक्त से र्ुक्त है और आपने गरम पानी पटक मदर्ा आप लोग सामामर्क में पााँ मममनट सबके
बारे में म ंतन मकर्ा करो. कभी-कभी मविा का कीड़ा बनकर म ंतन करो मक एक तो मल में कीट
हुआ और मकसी सुअर ने उठा मलर्ा, उस समर् उस अवस्र्ा का, उस पर्ाषर् का म ंतवन करना.
अहो ज्ञानी ! ऐसी-ऐसी वेदनाएाँ तुमने प्राप्त की है. मिस मदन दूसरे की वेदना का वेदन हो
िाएगा, उस मदन आपका मववेक िार्ग्त हो िाएगा. लोटे भर पानी की िगह बाल्टी भर पानी का
उपर्ोग नहीं करोगे. र्मद देश का प्रत्र्ेक नागररक वद्धषमान के अनुसार अमहंसा का पालन करने लगे
तो नगर की दीवारों पर र्ह नहीं मलखना पड़ेगा मक बाँदू -बाँदू िल की रिा करो. भो ज्ञानी आत्माओ
! पानी का उपर्ोग ऐसे करो िैसे मक तुम घी और तेल का करते हो. खोल दी नल की टोंटी और
नी े बैठ गए. म ंता मत करो, सारी तपन तुम्हारी नरकों में ठंडी हो िार्ेगी. ज्र्ादा गमी लगती है तो
कूलर/पंखे का प्रर्ोग करते हो, र्हााँ तक मक मंमदर में भी र्ह लगने लगे. अरे ! कम से कम इतना तो
संर्म बरत लो मक मंमदर में पंखा नहीं लार्ेंगे. आप तो पूिा करके सो रहे र्े मक पुण्र्-आस्रव
हो रहा है, परन्द्तु वहााँ पख
ं े में एक पं ेमन्द्रर् आकर खत्म हो गर्ा, अतः आपको नरकगमत का आस्रव
हो गर्ा. पूिा के काल में भी तुम्हारा स्पशषन-इमं रर् का भोग ल रहा र्ा. इसमलर्, भैर्ा ! साँभलकर
लना; मिसलन बहुत है.
एक बार हम लोग सम्मेद मशखर की वदं ना करने गर्े. उस तीर्ष में बहुत आनदं है, लेमकन
एक अनोखी घटना देखी तो आाँखों में आाँसू भर आर्े मक र्ामत्रर्ों के मलए गमष पानी की व्र्वस्र्ा
हेतु वहााँ बड़े-बड़े हडं े रखे हुए है. नी े अमग्न िल रही है और नल की टोंटी में ्न्द्ने लगे हुर्े है. अब
बताओ उन िीवों का क्र्ा हो रहा होगा ? वह तो आपस में ही नि हो गर्े. आपने गीिर मलर्ा और
ालू कर मदर्ा. ठीक है, पहले ज्ञान नहीं र्ा, पर अब तो िीव को िीव मान कर कम-से-कम इतने
िूर तो मत बनो. दर्ा से दर्ा बढ़ती है. ध्र्ान रखना, िैसे धन से धन बढ़ता है, वैसे ही करुणा से
करुणा बढ़ती है. दर्ा ली गई, तो िीवन में ब ा क्र्ा ?
अहो ज्ञामनर्ो ! मिसके ेतन-घर में अमहंसा का दीप बझ ु गर्ा, तो समझो सब दीप बुझ गर्े
- ज्ञान का दीप, ाररत्र का दीप, श्रद्धा का दीप कुंदकुंद देव का सत्रू है “धम्मो दर्ा मवशुद्धो” (बो.पा.
25) धमष वही है, िो दर्ा से मवशुद्ध होता है दर्ा पाप नहीं, दर्ा धमष ही है. मनश्चर् से मनि पर दर्ा,
व्र्वहार से प्राणीमात्र पर दर्ा. अतः दर्ा को पाप मत कह देना. गौतम स्वामी ने सत्रू मदर्ा है-
”धमषस्र् मूलं दर्ा”. धमष का मूल दर्ा है.
धम्मो मंगल मुमक्कट्ठं अमहंसा संर्मो तवो
देवा मव तं णमसं ंमत िस्स धम्मे सर्ामणो ।।8 वी. भ.।।
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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धमष ही मगं ल हैं उत्कृि है, िो अमहस
ं ा, तप, सर्ं म से पमवत्र है, ऐसे धमष को देव भी नमस्कार
करते है. हे मन ! ऐसे धमष को तू मान. भो ज्ञानी ! मिनेन्द्र की वाणी मवरोध से रमहत होती हैं ध्र्ान
रखना, कठोरता में कि होता है, लेमकन िब कठोरता समझ में आ िाती है तब कठोरता के प्रमत श्रद्धा
अगाध हो िाती है. िो अध्र्ापक आपको ज्र्ादा कठोरता से पढ़ाते र्े , उनका मवर्र् आि भी
आपको र्ाद है, अतः पीठ-पी्े र्ह कहते हैं मक हमारे गुरुिी बहुत अच्ा पढ़ाते र्े. आ ार्ष श्री
अपनी घटना सुना रहे र्े मक एक बार वह िब कटनी मवद्यालर् में पढ़ते र्े, धन्द्र्कुमार नामक एक
ईमानदार एवं मवद्वानध पंमडतिी र्े. वे कहते र्े. बेटा ! मैं वेतन लेता हूाँ और आप माता-मपता का खाते
हो. इसमलर्े दोनों ईमानदारी से लो. उनके अमतअनुशासन में बच े घबरा गर्े, तो उनका वहााँ से
स्र्ानांतरण कराने के मलर्े आवेदन लगा मदर्ा. मिस मदन मबदाई र्ी, उस मदन वही ्ात्र आाँखों में
आाँसू भरकर रो रहे र्े. अनुशासन कठोर तो होता है, परन्द्तु अकल्र्ाणकारी नहीं होता है और
मशमर्ला ार मृदु लगता है, अकल्र्ाणकारी होता है. मिसको अपने िीवन का घात करना हो तो
मशमर्ला ार का पोर्ण कर लो. अपने बच े मबगड़वाना हो, उन्द्हें नाना-नानी के घर में भेि दो,
क्र्ोंमक उनके र्हााँ वे देवता कहलाने लगते हैं, वे उन्द्हें डााँटते-मारते नहीं ठीक है, मेहमानी के मलर्े भेि
दो, पर उनके भरोसे मत ्ोड़ देना. आ ार्ष-मवहीन-मशष्ट्र् और मपता-मवहीन-पत्रु की िो हालत होती
है, मनीमर्र्ों! अमहंसा से रमहत धमष की भी वही हालत होती है.
भो ज्ञानी! िब िीवन में समी ीन आ ार होगा, तभी सम्र्क्त्वा रण होगा और िब
सम्र्क्त्वा रण होगा, तभी तो स्वरूपा रण होगा. अब देखो, हमारे िीवन में सम्र्क्त्वा रण की
गंध ही नहीं है तो स्वरूपा रण की दृमि कै से हो सकती है ? र्ह तो ्ल है मनि के सार्. मनीमर्र्ो
! आ ार्ष भगवानध कह रहे हैं मक सबसे पहले िो अि-मूलगण ु ों का पालन करता है, वह िैन होता है.
मिसके िीवन में अि-मूलगुण नहीं है, वह िामत का िैन तो है, पर धमष का िैन नहीं है. इतनी मनडरता
से कहनेवाले आ ार्ष अमृत ंर स्वामी ही हैं मक िब तक तुम्हारे अन्द्दर अि-मूलगुण का पालन नहीं
है तो तम्ु हें प्रव न सनु ने का भी अमधकार नहीं है. िो िीव रामत्र-भोिन करता हो, दूध, िल, मेवा
आमद खता हो, उनसे अमृत ंर स्वामी िी कह रहे हैं मक िो रामत्र में र्ग्ास खाता है, वह मााँस के
मपण्ड को खाता है. अहो ! कभी तो सो ा करो मक हम मरण के समर् भी त्र्ाग नहीं कर पा रहे है .
मिसने स्वर्ं अि-मूलगुण धारण नहीं मकर्े, वह मिन का उपदेश क्र्ा करेगा ? इसमलर्े ध्र्ान रखना,
गणधर की गद्दी पर बैठो, तो कु् तो त्र्ाग करके बैठना.
भो ेतन! मााँस, मधु, ममदरा की तरह मितने रव्र् मलत हो ुके हैं अर्ाषतध मितने मलत रस
हैं और मितने और्मधर्ों के आसव आ रहे हैं, एलकोहल उसमें ममला हुआ है. भो ज्ञानी! बरसों-बरसों
की िो बोतलें रखी रहती है, कोका-कोला की और न िाने कब की भरी पड़ी हुई हैं, पानी उसमें है
मक नहीं? कब ्ना है? क्र्ा श्रावक-धमष का पालक ऐसी वस्तु को ्ू सकता है? मिनसेन स्वामी ने
महापुराण में मलखा मक आठ वर्ष तक बच े को अिमल ू गुण का पालन कराने का अमधकार माता-
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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मपता का रहता है. नहीं करार्ा, तो महस ं ा का दोर् माता-मपता को ही लगेगा. र्मद वह साधु बन गर्ा,
तुम्हारी बात उसको पता ल गई, तो वह कहेगा – मााँ! मधक्कार है िो मैंने तेरी कोख से िन्द्म मलर्ा,
तूने मेरे संर्म का िन्द्म ही से नाश करवा मदर्ा. इसमलर्े, हे माताओ! बच ों को ममदरा का पान मत
कराओ, अिीम मत मखलाओ. भो ज्ञानी! आर्वु ेद कहता है - बच ा मितना ज्र्ादा रो लेता है, उतना
तंदुरुस्त होता है. कब रोर्ेगा वह? उसको रोने का मौका तो दो. मााँ आाँ ल का पान कराती है, तो
उसके अंदर वात्सल्र्-भाव रहता है. पर िब िन्द्म से ही उसे कठोर बोतल पकड़ा देती है, तो उसके
अंदर कठोरता संस्काररत हो िाती है. अहो! आ ार्ष कुंदकुंददेव की मााँ ने शुद्ध हो, बुद्ध हो, मनरंिन
हो, ऐसी लोररर्ााँ कहकर अपने लाल में संस्कार डाले. परंतु तुम्हारा बच ा रोर्ा, तो तुमने टे लीमविन
खोल मदर्ा. बताओ, कै से तम्ु हारे घर में राम िन्द्में, कर्ाम िन्द्में, महावीर िन्द्में, कौन िन्द्में? वे कंस के
संस्कार हैं, तो कंस ही उत्पन्द्न होंगे. ‘बड़ा' खाते हो और 'मठे ' की कड़ी बनाकर खाते हों िैसे ही
बेसन, ्ा् आमद का संर्ोग लार से होता है, उसमें िीव पड़ गए और तुम्हारे मुाँह में ले गर्े.
आमं मव दमहर्मध मवदलनु होई ।
तमध असणे पापं भणंत िोई ।।अमरसेन ररऊ।।
इसी प्रकार कच े दूध से बने दही, ्ा् आमद खाने को र्ोमगर्ों ने पाप कहा है . टॉमनक में
मधु पड़ा हैं एक बूाँद शहद के भिण से सात गााँव िलाने के बराबर महंसा होती है. अहो ! शक्कर की
ासनी बना लेना, पर शहद में और्धी मत खाना. ध्र्ान रखना, मद्य, मााँस, मधु और पं -उदम्बर
िल का त्र्ाग, ऐसे महस ं ा की इन आठ वस्तओु ं का पहले ही त्र्ाग कर देना. र्ह ममदरा मन को
मोमहत कर देती है. मद्यपार्ी धमष को भूल िाता है. अतः मिनका शरीर खोखला, मन खोखला और
िो आ रण से भी खोखले हैं ऐसे लोगों की संगमत मत करना.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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ु दाई है.
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िैन दशषन आध्र्ामत्मक उन्द्नमत का आधार भूत दशषन और धमष है | िहााँ मनि आत्म तत्त्व की
उपलमब्ध होती है | आत्म रहस्र् मवद्या से पररपूणष र्ह धमष मवर्श् शांमत की आधार मशला भी रखता है
| इसमें मानवीर् अवधारणा की सवोच मत्रं णा, श्रेष्ठ तम गण ु ों की मगं ल कामना और सस्ं कार
संस्कृमत की उपलब्धता है | र्ग्हस्र् िीवन को उन्द्नत करने रुप श्रावक धमष में स्र्ामपत करके श्रमणत्व
की पराकाष्ठा से सम्पन्द्न तीर्ंकर स्वरूप को उद्घामटत करनेवाली सिल मवद्या के सम्र्कध रहस्र्
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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िैनदशषन में मवद्यमान हैं | ऐसे दशषन के रहस्र् िनोपर्ोगी बनाने के मलए नमोस्तु शासन सघं के अन्द्तगषत
अन्द्तराषष्ट्रीर् िैन मवद्वतध पररर्दध की स्र्ापना की गर्ी है |
र्ह पररर्दध मानवीर्ता के रहस्र् मर्ी गुणों को आधार बनाकर मिनेन्द्र वाणी पर शोध कार्ष
करेगी | भारतीर् तत्त्व मवद्या और मवर्श् सामहत्र् के मवपुल मसद्धान्द्तों में समन्द्वर् स्र्ामपत कर शोध
कार्ष करवार्ेगी | मवर्श् शांमत के सम्र्कध मसद्धांतों की पररभार्ाओ ं को उिागर करना और उन पर
शोधपूणष दृमि रखने का कार्ष करेगी | शोधात्मक संगोमष्ठर्ों का आर्ोिन, शोधामर्षर्ों को सामहत्र्
उपलब्ध कराना, उनको सहर्ोग प्रदान करना, शोध सामहत्र् का प्रकाशन और मामसक शोध पमत्रका
का प्रकाशन आमद कार्ष करना |
मवर्श् सामहत्र् की शान में, मिनवाणी उपकार |
शांमत समता समभाव में, शोध बोध सत्कार ||
आइर्े मंगल मव ारों की शोधात्मक वृहदध श्रंखला में हम सब अपनी ं ला लक्ष्मी का बढ़
ढ़ कर उपर्ोग करें | अपनी सदस्र्ता के सार् ज्ञान के महार्ज्ञ में शाममल होकर तीर्ंकरों की मंगल
वाणी का प्र ार प्रसार करें |
पी. के . िैन ‘प्रदीप’ (प्रदीप िैन)
अंतराषष्ट्रीर् अध्र्ि
नमोऽस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), मबुं ई (नमोऽस्तु शासन सघं )
अन्द्तराषष्ट्रीर् स्तर पर िैन-श्रमण परु ावशेर्ों के अन्द्वेर्ण के सार् िैन मसद्धान्द्तों और सस्ं कृमत
के प्र ार-प्रसार हेतु संिीवनी नगर, िबलपुर में मवरािमान परम पूज्र् आ ार्ष श्री मवशुद्धसागर िी
महाराि, ससंघ के आशीवाषद एवं पररर्दध के मवस्तार हेतु मदनांक 19 िून, 2022 को अध्र्ि समहत
अनेक मवद्वानध वहां पहुं े । संघ समहत आ ार्षश्री ने सभी को आशीवाषद प्रदान मकर्ा।
इस मवशेर् अवसर पर श्री अमनलकुमार िैन (कनाडा) मदल्ली और श्री न्द्रकुमार िैन,
म्न्द्दबाडा, ने पररर्दध का सरं िक बनते हुए प्रसन्द्नता व्र्क्त की।
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख ु दाई है.
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सवष सम्ममत से श्री पी. के . िैन, (ऑस्रेमलर्ा), मम्ु बई मनदेशक, प्रा ार्ष डॉ नरेन्द्र कुमार िी
िैन, गामिर्ाबाद वतषमान में टीकमगढ़, अध्र्ि पद पर एवं प्रो. ऋर्भकुमार िैन, िौिदार, दमोह,
महामंत्री, प्रोि. टीकम न्द्द िैन, मदल्ली, डॉ. नीलम िैन, पुणे और डॉ. सनतकुमार िैन, िर्पुर
उपाध्र्ि, डॉ. मनमषलकुमार िैन, टीकमगढ, मत्रं ी (प्रशासमनक कार्ष) डॉ. लोके शकुमार िैन,
बांसबाडा, मंत्री (प्र ार-प्रसार), डॉ. र्तीशकुमार िैन, िबलपुर मंत्री (एके डममक एवं पुरातत्व), श्री
सौरभ संघानी, आस्रेमलर्ा (मवदेश-कार्ष), ब्र. अिर् भैर्ा, उदर्पुर, मंत्री (अर्ष प्रबन्द्धन) श्री
वीरेन्द्रकुमार िैन, टीकमगढ़, कोर्ाध्र्ि, श्री सुरेश न्द्र िैन, टीकमगढ़ एवं डॉ. ममता िैन, पुणे,
कार्षकाररणी सदस्र् ुने गर्े ।
सरं िक सदस्र्ों में 1.श्री सौरभ िी सघं ानी िैन, ऑस्रेमलर्ा; 2.श्री अर्न िी िैन,
ऑस्रेमलर्ा; 3.श्री पदमिी अिमेरा, ऑस्रेमलर्ा; 4.श्री नवीन िी िैन, ऑस्रे मलर्ा ने संरिक पद
हेतु अपनी अपनी स्वीकृमत दे दी हैं. आप सभी को आ ार्ष श्री का मंगल आशीवाषद प्राप्त हो गर्ा हैं.
आिीवन सदस्र्ों में 1. श्री राम गोपाल िी िैन, मशकागो, अमेररका; 2. श्रीमती मीना
मदवाकर, हैदराबाद ने आिीवन सदस्र् पद हेतु सदस्र्ता स्वीकृत कर ली हैं. आप सभी को भी
आ ार्ष श्री का मगं ल आशीवाषद प्राप्त हो गर्ा हैं.
िैन श्रमण संस्कृमत का पोर्क स्नातक उपामध धारी मवर्श् का कोई भी व्र्मक्त रु. 11000/-
(रु. ग्र्ारह हिार) मात्र देकर पररर्दध की स्र्ाई सदस्र्ता तर्ा रु. 1100/-(एक हिार एक सौ) देकर
एक वर्ष की सदस्र्ता र्ग्हण कर सकता है। आप अपनी सदस्र्ता राशी सीधे बैंक में भी िमा कर
सकते हैं. अमधक िानकारी हेतु मंत्री - डॉ. मनमषलकुमार िैन, टीकमगढ़ मो. 8871533185 से सम्पकष
कर सकते हैं।
NAME : NAMOSTU SHASAN SEVA SAMITI (REGD.)
ACCOUNT NO. : 020301009013
BANK’S NAME : ICICI BANK LIMITED, KALYAN WEST, MUMBAI.
IFSC NO. : ICIC0000203
डॉ. श्री मनमषलकुमार िैन शास्त्री, टीकमगढ़, मध्र् प्रदेश.
मंत्री, अंतराषष्ट्रीर् िैन मवद्वत शोध पररर्दध
अंतगषत नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.),मबुं ई
अनन्द्र् ममु न भक्त एवं िैन दशषन के मध ू षन्द्र् मवद्वान एवं
दाशषमनक लेखक व म न्द्तक.
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ु दाई है.
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सभ
ं व मिन स्तुमत
(बसन्द्तमतलका)
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ु दाई है.
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ु दाई है.
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ध्रौव्र् आर् हामन रूप वस्तु रव्र् िामनए | वस्तु का स्वरूप तीन काल प्रज्ञ मामनए ||
एक-एक वस्तु भी अनन्द्त धमषवान है। वस्तु की स्वतंत्रता वस्तु का मवधान है ॥1 ॥
मुख्र्ता रूगौणता उपार् मसमद्ध का कहा । वस्तु मसद्ध है स्वतः, सु िानना र्हााँ रहा ॥
भाव रूप वस्तु भी अभाव रूप भी कही । िो अभाव रूप है स्वभाव रूप भी कही ॥2 ॥
रव्र् दोर् भेद मूल िीव औ अिीव हैं। िीव भी अनन्द्त हैं अनन्द्त ही अिीव हैं ।
ज्ञान दशषवान होर् िीव रव्र् िामनए । ज्ञान दशष नामह तो अिीव ही मप्ामनए ॥3 ॥
शेर् ार रव्र् में अनन्द्त काल शुद्धता। िीव औ अिीव में शुद्धता अशुद्धता ॥
कमष नाश िो करे मवशुद्ध िीव होर्गा । वासुपूज्र् देव सा मसद्ध होर्गा ॥ 4 ॥
स्पशष गंघ रूप स्वादध पुद्गला सुलिणं । दृकर्मान वस्तु औ अदृकर्मान पुद्गलं ||
धमष और अधमष काल शेर् है अकामसर्ा । रव्र् ्ः कहे मिनेश वीतराग भामसर्ा ॥ 5 ॥
अमस्त रूप नामस्त रूप अमस्त-नामस्त िानना । शेर् ार और भगं सप्त भगं मानना ॥
एक-एक वस्तु में सात-सात भंग हैं। र्े मववाद मेटने मलए सुस्र्ादध संग हैं ॥ 6 ॥
नोट : िमश: शेर् बारह तीर्ंकरों के स्तोत्र आगामी अंक में प्रकामशत मकर्े
िार्ेंगे: प्रधान संपादक : पी.के .िैन ‘प्रदीप’............. बस र्ोडा सा इतं ज़ार.
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ु दाई है.
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नोट: मदगम्बरा ार्ष श्रमण श्री १०८ मवशद्ध ु सागर िी ममु न महाराि की मगं ल देशना पर
आधाररत -“आत्मा की सैंतालीस शमक्तर्ााँ” र्ग्र् ं राि अपने आप में ही एक सार है – ‘समर्
देशना’ र्ग्ंर्राि का. और मवशेर् बात र्ह है मक अपने आप में सार हैं िैन दशषन के महानतम
र्ग्न्द्र् “समर्सार” का. इस उदेमित र्ग्न्द्र् की देशना को संकमलत मकर्ा हैं श्रमण मुमन श्री
प्रणुत सागर िी महाराि ने और इसका कुशल संपादन मकर्ा हैं श्रुत संवेगी श्रमण मुमन
श्री सुव्रत सागर िी महाराि ने. इस प्रकार र्ह अनेक र्ग्न्द्र् के सारों का सार है. श्रावकों
पर करुणा और अनुकम्पा के लते मुमनरािों द्वारा श्रावकों के महत हेतु इसका दूसरा भाग
(दस भाग) प्रस्तुत हैं. र्ह कृमत - सार रूप र्ग्न्द्र् बहु-उपर्ोगी एवं पठनीर्, अनुकरणीर् हैं.
अतः इसे आप सभी के स्वाध्र्ार् लाभ हेतु प्रस्तुत कर रहे हैं. :- पी. के . िैन ‘प्रदीप’
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
इसके पहले के ४१ सत्रू ों का अध्र्र्न व म ंतन आपने गत अंक में मकर्ा ही र्ा. अब आगे:
(42) ज्ञान प्रकाशक है, तप शोधक है, संर्म रिक है और इन तीनों के ममलने पर ही मिन-
शासन में मोि-प्रामप्त होती है ।
(43) बाह्य में शरीर के धोने से आत्मा की स्वच्ता नहीं हो सकती, स्वच्ता िो है वह
आत्मा का ही गुण है, वह कहीं बाहर से नहीं आती
(44) आत्मा तो स्वर्ं स्वच् है, उसके उपर्ोग में लोकालोक ज्ञात होने पर भी ममलनता न
लगे ऐसा उस आत्मा का स्वच् स्वभाव है।
(45) ज्ञान-ज्ञान की धुन लगाने से ज्ञान नहीं होगा, पढ़ने से भी ज्ञान नहीं होगा, अमपतु ाररत्र
की मनमषलता से ज्र्ों-ज्र्ों 'पररणामों की मवशमु द्ध बढ़ेगी त्र्ों-त्र्ों ज्ञान प्रकट होगा।
(46) ज्ञामनर्ो! िैनदशषन की मूल साधना ध्र्ान है। ध्र्ान िैनदेशषन का प्राणतत्त्व है। ध्र्ान के
बल से आत्मा अपने ऊपर आच्ामदत सम्पूणष कमष-कामलमा की ममलनता को दूर कर देता
है।
(47) मिस प्रकार मूल्र्वान रत्नों में कोमहनूर, न्द्दनों में गोशीर्ष तर्ा ममणर्ों में वैडूर्षममण
को सवोत्तम माना िाता है, उसी प्रकार सम्पण ू ष व्रतों में ध्र्ान सवोत्तम है । उस ध्र्ान के
मलए भव्र् आत्मा में वैराग्र्, मनर्ग्षन्द्र् अवस्र्ा, तत्वमवज्ञान, समताभाव और परीर्हिर्
होना अमनवार्ष एवं आवकर्क है।
(48) मकसी भी ममथ्र्ाभेर् को, मकसी भी ममथ्र्ाप्रमतमा को मकसी भी ममथ्र्ािेत्र को एक
िैन मुमन कभी मसर नहीं 'झक ु ाते, लेमकन मकसी भी ममथ्र्ादृमििीव की महंसा की बात भी
नहीं करते।
(49) िैसे दीपक स्वपरप्रकाशी है ऐसे ही ज्ञान स्वपरप्रकाशी है। स्वर्ं को भी प्रकामशत
करता है, पर को भी प्रकामशत करता है।
50) गण ु स्र्ान आत्मा का धमष नहीं है, मागषणास्र्ान आत्मा का धमष नहीं है, िीव-स्र्ान
आत्मा का धमष नहीं है। र्े मवभावदशार्ें हैं ,
र्े सौपामधक दशार्ें हैं।
51) ममत्र !िैसे कोई पुरुर् पररव्र् को िानकरके ्ोड़ देता है वैसे ही ज्ञानी िीव अपने
रागामदक कुभावभावों को पररव्र् मान करके ्ोड़ देता है।
52) आत्म-अन्द्वेर्ी को, आत्म-महतैर्ी को, आत्म-सुमखर्ा को कभी हर्ष नहीं आता है,
प्रासाद आता है। आत्म प्रासादमवशुमद्ध, िो मवशुमद्ध हैं, वह आह्लाद है, गद्गदध भाव है, अपूवष
आनंद है, अनुभूमत मात्र है।
(53) मिसका ममथ्र्ात्व मवगमलत हो ुका है उस िीव के आनदं की लहर उसके भीतर न
आए ऐसा नहीं हो सकता है।
(54) वधषमान साधना होना ामहए, हीर्मान साधना नहीं होना ामहए ।
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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(55) ज्ञानी । साधना के िेत्र में, ज्ञान के िेत्र में, मोिमागष के िेत्र में, पर्ाषर् की वद्ध
ृ ता को
मत देखना, र्हााँ गुणों की वद्ध ृ ता को देखना।
56) िो व्र्वहारतीर्ष को हीन कह रहा है वह व्र्वहारतीर्ष का शत्रु और िो तत्वज्ञान का
मनर्ेध कर रहा है वह 'मनश्चर्तीर्ष का शत्र।ु
(57) िो िीव परमार्षतीर्ष को नहीं स्वीकारता, वह मनश्चर्तीर्ष का शत्रु है और िो
व्र्वहारतीर्ष को नहीं स्वीकारता वह व्र्वहारतीर्ष का शत्रु है।
(58) ज्ञाता बनने के मलए कभी बूढ़े मत होना, मुमन बनने के मलए कभी िवान नहीं होना।
(59) एक भी रव्र् मकसी भी रव्र् की उत्पमत्त में कार्षकारण नहीं है, क्र्ोंमक रव्र् की
उत्पमत्त होती ही नहीं है और मिसकी उत्पमत्त होती है वह होता ही नहीं। अवस्तु की 'उत्पमत्त
होती नहीं है और वस्तु की उत्पमत्त होती नहीं है पर्ाषर् का पररणमन होता है।
(60) मैं मकसी से उत्पन्द्न नहीं हुआ हूाँ इसमलए अकार्ष में मकसी को उत्पन्द्न नहीं करता हूाँ
इसमलए अकारण। िब तुम मकसी के उत्पमत्तकत्ताष नहीं हो, मकसी को उत्पन्द्न करने के कत्ताष
नहीं हो, तो मिर इस कत्ताषदृमि में उलझ करके क्लेश को क्र्ों प्राप्त हो रहे हो ? पर तुिर्
का मैं कु् भी कर सकता नहीं हूाँ और पर तिु र् मेरा कु् भी कर सकता नहीं है; र्े
रव्र्त्वदृमि हैं।
(61) अरे मेरे ममत्र ! िो िैसा होना होता है वह भगवानध के ज्ञान में झलकता है। सवषज्ञ मात्र
ज्ञाता है, वक्ता है: सवषज्ञकत्ताष नहीं है। ऐसे ही कालरव्र् िो पररणत हो रहा है उसका बोध
करा देता है मक र्े उन्द्नीस साल का हो गर्ा, र्े बीस साल का हो गर्ा, लेमकन उस
कालरव्र् ने न मकसी को उन्द्नीस का मकर्ा, न बीस का मकर्ा, वह तो िो है सो है ।
(62) मिस िीव ने समझ मलर्ा है मैं पर का कार्ष नहीं हूाँ, मैं पर का कारण नहीं हूाँ, मेरा पर
कार्ष नहीं है, मेरा भी पर कारण नहीं है, र्े अकार्षकारणत्वशमक्त है। मैं त्रैकामलक हूाँ।
(63) ज्ञामनर्ो। अशभ ु भावों के सार् तो भेद करके िीना। िब-तक शद्ध ु ोपर्ोग में नहीं पहुाँ
पाओ तब तक शुभोपर्ोग से संमध कर लेना और भीतर-ही-भीतर इमन्द्रर् कसना, दमन
करना और मनि के पररणामों की मवशुमद्ध के पररणामों में शुद्धोपर्ोग का दाम देना, मिससे
तेरी मविर् कमष-शत्रओ ु ं से हो सके , क्र्ोंमक लोकधारा िो है र्े स्वकमाषधीन है करणानर्ु ोग
की दृमि से ।
(64) भैर्ा! हम दुःखी होना ाहेंगे तो ही िगतध के रव्र् दुःख के हेतु बनेंगे और हम दुःखी
नहीं होना ाहें तो (िगतध के रव्र् मेरे दुःख के हेतु नहीं बनेंगे।
(65) मिस िीव ने मनणषर् कर मलर्ा है मक नोकमष मेरा रव्र् नहीं है. रव्र्कमष मेरा रव्र् नहीं
है, भावकमष भी मेरा रव्र् नहीं है- र्े कमष का उदर् सख ु -दुःख देने के मलए आर्ा है, मैं दुःख
को दुःख ही नहीं स्वीकार रहा हूाँ, सुख को सुख नहीं स्वीकार कर रहा हूाँ। आत्मा रव्र्कमष,
भावकमष, नोकमष से मभन्द्न है, उसमें इनका अत्र्ंताभाव है ।
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(66) मान उसका िहााँ मानकर्ार् है, अपमान उसका िहााँ मानकर्ार् है। मैं कर्ार् को
अपना मानता ही नहीं हूाँ तो मान-अपमान मकसका? मिसका म त्त मविोभ को प्राप्त नहीं
हो, वहााँ मान न सम्मान।
(67) ममथ्र्ादृमििीव सामान्द्र् ज्ञान से िानेगा तभी श्रद्धान करेगा और िानेगा नहीं तो
श्रद्धान कै से करेगा और श्रद्धान नहीं करेगा तो सम्र्ग्दशषन-ज्ञान- ाररत्र कै से होगा?
(68) िो व्र्मक्त सामथ्र्ष होने पर तपस्र्ा नहीं करता है वह तस्कर है। शरीर स्वस्र् है उपवास
नहीं करेगा तो इमन्द्रर्ों में मवकार बढ़ेंगे, मोिमागष से चर्तु हो िाएगा और मिर मभन्द्न प्रकार
की संक्लेशता में ला िाएगा।
69)िैनदशषन में, रणानर्ु ोग की प्रत्र्ेक पद्धमत में कर्न
अनेकान्द्तभूत है, एकांतभूत नहीं है; वे ज्र्ादा मखं ाव करते हैं मिनका स्वाध्र्ार् नहीं है र्ा
गुरु आज्ञा में नहीं है ।सो ते तो र्े हैं मक अच्ी साधना करूाँगा, अच्ा साधक बनूाँगा,
लेमकन मबल्ली िैसी आवाज़ करके शून्द्र् हो िाते हैं ।,
(70) भैर्ा ! साधना के िेत्र में अभ्र्ास करने की आवकर्कता है । िो अभ्र्ास के अभाव
में पहले ही अपने आप को 'असमर्ष मान लेते हैं वे भी साधनामवहीन हैं और िो अपनी
सामथ्र्ष को िाने मबना बहुत कर लेते हैं वे बे ारे घर में बैठ िाते हैं।
(71) कमोदर् मेरे बंध का कारण नहीं है। कमोदर् पर संक्लेशता मेरे बंध का कारण है।
72 ) हे िीव! कमष अपना कार्ष उसी को िमलत कराता है मिसका तीव्र राग और द्वेर् होता
है और िब तीव्र पुरुर्ार्ष मोिमागष का होता है तो कमष को शांत होकर बैठना पड़ता है।
मिसका धमष है पूरण- गलन उसका नाम पुदगल है । िो पुरुर्ों के द्वारा मनगला िाता है
उसका नाम पुद्गल है। िीणष-शीणष होना तो इसका स्वभाव है ।
(73) अभेद में भेदवृमत्त का मिसको बोध नहीं वह कभी मदगम्बर मुमन बनकर िी नहीं
सकता।
(74) हम ाहें तो ही संक्लेशता होगी और नहीं ाहें तो नहीं हो सकती।
(75) भैर्ा ! मितनी सामथ्र्ष हो, र्ोग्र्ता हो उतना आगम को पढ़कर िीना सीखो।
(76) ममु ि ु ओ
ु ! मख ु का अभक्ष्र् तो दुमनर्ा ्ुड़ा देती है, पर अपन को सनु ने का भी
अभक्ष्र् ्ोड़ना ामहए। मिनके प्रव नों में मिनदेव के व न न हों वे सारे प्रव न अभक्ष्र्
हैं।
(77) िो मौन में शमक्त है वह मवर्श् में मकसी के पास नहीं है।
(78) भैर्ा! र्मद सुखमर् िीवन िीना हो तो िीवन में एक बार मदगम्बर मुमन बन लेना और
ऐसे बनना मक िगतध के सब झमेलों से दूर होकर िीना।
(79) हेर् को त्र्ाग दीमिए, उपादेर् को स्वीकार लीमिए और उपेिा की उपेिा- र्े
मत्रमवधधारा ज्ञान की लती है। उपेिा की रम सीमा परम र्र्ाख्र्ात ाररत्र है।
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(80) समता की रिा करना ाहते हो, ाररत्र को सि ं ोकर रखना ाहते हो, सम्र्कध को
सुरमित करना ाहते हो, ज्ञान को वृमद्धमान करना ाहते हो तो उपेिा को सीख -लेना,
समझ लेना, स्वीकार लेना ।
(81) िब-तक प्रमाण की प्रमाणता का बोध नहीं है तब-तक तम्ु हारे प्रमाण का भतू ार्षपना
कै सा? मैं ज्ञेर् हूाँ, पर के ज्ञान में आता हू,ाँ ज्ञाता हूाँ, पर मेरे ज्ञान में आता है र्े भी सत्र् है। क्र्ा
मैं पर के ज्ञान का मवर्र् नहीं हूाँ? क्र्ा पर मेरे ज्ञान का मवर्र् नहीं है ? र्ही आपकी
पररणम्र्पररणामकत्वशमक्त है।
(82) ेहरे पर रक्त होना, अधरों का डसना, दााँतों का पीसना, मुरिर्ों का बाँधना - र्े सब
रौरध्र्ान के बमहरंग म ह्न हैं ।
नोट: आगामी अंक में आपके समि इसके आगे का भाग-३ प्रस्तुत मकर्ा िार्ेगा मिसमे
भी ४० र्ा अमधक सूत्र होंगे. आप को र्ाद ही होगा मक इस “ अध्र्ात्म अममर्” के लगभग
४०० सूत्र हैं और मिन्द्हें हम प्रत्र्ेक अंक में गुरु कृपा से प्रस्तुत करने का प्रर्ास कर रहे हैं. र्ह
हम सभी पर गरुु देव की ही कृपा है मक इतने गहनतम र्ग्ंर्राि “समर्सार” को अत्र्तं सरल
और सहि भार्ा में हम सभी के उत्र्ान हेतु उपलब्ध करा मदर्ा गर्ा. पी. के . िैन ‘प्रदीप’
सम्र्कध मव ार :
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ु दाई है.
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ु दाई है.
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मवर्श् में सार भूत म ंतन अमहंसा से ही संभव है | प्रत्र्ेक प्राणी सुख की अमभलार्ा में िीता
है | उसका लक्ष्र् भी शांमत से पररपण
ू ष आत्मा की उपलमब्ध का होता है | र्ह उपलमब्ध अमहस ं ा से ही
संभव है | रा र मवर्श् में मानव ेतना का व्र्वहार व्र्मक्त के मन पर पड़ता है | इसमलए नीमतकारों
ने मलखा है मक –
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वतषमान से अतीत की ओर दृमिपात करते हैं तो र्ह अमहस ं ा मगं ल स्वरूप, दर्ा से पररपण ू ष,
करुणा, वात्सल्र् की सिगता, आत्म महतैर्ी भावना, िीव रिा, मवलामसता का अभाव, संर्म का
सद्भाव रही है |
िैन धमष अमहस ं ा प्रधान धमष है | िीवन में र्त्ना ार से कार्ष की पररणमत अमहस ं ा है | सस
ं ार
में संपूणष िीवों के प्रमत आंतररक सम्र् भाव रखना अमहंसा की सवोत्कृि साधना है | िल, अमग्न,
वार्ु, वनस्पमत, पृथ्वी आमद एके मन्द्रर् िीवों से पं ेमन्द्रर् िीवों के प्रमत रिा का पररणाम और राग
द्वेर् का पररत्र्ाग अमहंसा रुप परम धमष है |
प्रमाद ही भाव दूर्ण का आधार और महस ं ा का कारण है | इसमलए प्रमाद का त्र्ाग अपेमित
है | आि हम आधुमनक और मवलामसता के साधनों से प्रमादी होते िा रहे हैं | मिससे वस्तु व्र्वस्र्ा
की समझ, प्राणी महत, प्रकृमत मवज्ञान और मानव स्वभाव से व्र्मक्त दूर होता िा रहा है | राग द्वेर् की
पररणमत व्र्ाप्त हो रही है, िो मनिघात, परघात रूप महंसा में कारण बनती है |
पूवष में व्र्मक्त की इच्ाओ ं पर अंकुश रहता र्ा | वे संस्कारवान और आत्म पुरुर्ार्ष के प्रमत
सिग रहते र्े | मिससे उनमें धैर्ष, वात्सल्र्, सस्ं कृमत समन्द्वर्, धाममषक सौहादष, वस्तु मवमनमर् िैसे
गुण परस्पर नैमतकता के साधन र्े | धन, पद, की लोलुपता से अमधक पाररवाररक प्रमतष्ठा, सामामिक
उन्द्नमत और पर सेवा का संकल्प र्ा, मिससे महंसा को नहीं अमपतु अमहंसा को ही स्र्ान मदर्ा िाता
र्ा |
वतषमान समर् आधुमनकता की का ौंध से र्ुक्त है | अर्ष और पद की लोलुपता, वैभव का
प्रदशषन, सामामिक दूररर्ां, पाररवाररक मवघटन, पार्ाणी सभ्र्ता में राग द्वेर् की बढ़ती प्रवमृ त्त, मिससे
इच्ाओ ं का मवकास उत्तर उत्तर हो रहा है, िो मानव को महंसा की ओर ढके ल रहा है | आि हमें भावों
में साम्र्ता शांमत ामहए है तो अमहंसा की ओर बढ़ना होगा, सार् ही हमें आपसी सौहादष बढ़ाना
पड़ेगा |
इस िगत की माता अमहंसा ही है | कहा भी है मक "अमहंसैव िगतध माता" िगत के िीवों
का सम्र्कध पालन अमहंसा से ही संभव है | इसमलए मवर्श् को शांमत सद्भाव और उन्द्नमत के मलए
अमहंसा की मनतांत आवकर्कता है | समस्त िीवों के पररपालन, आनंददार्ी सन्द्तमत और धन धान्द्र्
समृमद्ध के मलए अमहंसा की ममहमा सवषत्र मदखाई देती है |
वतषमान में िहां मवर्श् के कु् देशों, कु् मनुष्ट्र्ों और कु् पररवारों में हड़प नीमत है, उससे
महंसा का ताण्डव देखने में आ रहा है | िो देश, व्र्मक्त और पररवार को गतष में ले िा रहे हैं , िबमक
अमहंसा वह म ंताममण रत्न है मिससे सुभगता, धनवान पना, कीमतष, कांमत, आर्ुष्ट्र् वृमद्ध और संतुमि
प्राप्त होती है |
“ जो है सो है ”
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एला ार्ष/ बाला ार्ष/ आ ार्ष कल्प परमेष्ठी
63. एला ार्ष श्री मत्रलोक भर्ू ण िी नॉएडा सेक्टर-27, उप्र
64. एला ार्ष श्री प्रभावना भूर्ण िी मर्ुरा ौरासी, उप्र
65. एला ार्ष श्री कीमतष सागर िी मवरार वेस्ट, मुंबई, महाराष्ट्र
66. बाला ार्ष श्री मनपूणाषनंदी िी श्री सम्मेद मशखर िी, झारखंड
उपाध्र्ार् परमेष्ठी
67. उपाध्र्ार् श्री गमु प्त सागर िी गमु प्तधाम, गन्द्नौर, हररर्ाणा
68. उपाध्र्ार् श्री उिषर्ंत सागर िी दौसा, रािस्र्ान
69. उपाध्र्ार् श्री सुधमष सागर िी देहरा मतिारा, अलवर, रािस्र्ान
साधु परमेष्ठी
70. मुमन श्री समर् सागर िी बंडा, मप्र
71. मुमन श्री प्रमाण सागर िी गुणार्तन, श्री सम्मेद मशखर िी, झारखंड
72. मुमन श्री अमित सागर िी मटकटोली, मुरैना, मप्र
73. मुमन श्री अभर् सागर िी मड़ावरा, सागर, मप्र
74. मुमन श्री सुधा सागर िी लमलतपुर, उप्र
75. मुमन श्री प्रणम्र् सागर िी पनागर, िबलपुर, मप्र
76. ममु न श्री वीर सागर िी शहपरु ा मभटौनी, मप्र
77. मुमन श्री मवहर्ष सागर िी िैकबपुरा, गुरुर्ग्ाम, हररर्ाणा
78. मुमन श्री मवहसंत सागर िी िैन नगर, भोपाल, मप्र
79. ममु न श्री मवभि ं न सागर िी पटपड़गि ं गांव, मदल्ली
80. मुमन श्री संस्कार सागर िी सीहोर, मप्र
81. मुमन श्री मवकसंत सागर िी रािाखेड़ा, रािस्र्ान
82. ममु न श्री अमरकीमतष िी – बैंगलरू
ु , कणाषटक
83. मुमन श्री प्रगल्भ सागर िी देवास नाका, मप्र
84. मुमन श्री प्रबल सागर िी नवागढ़, परभणी, महाराष्ट्र
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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85. मुमन श्री प्रतीक सागर िी नरवर, मशवपुरी, मप्र
86. मुमन श्री प्रसंग सागर िी गुलबगाष, कणाषटक
87. ममु न श्री सप्रु भ सागर िी मशवपरु ी, मप्र
88. मुमन श्री सुप्रभ सागर िी मवमदशा, मप्र
89. मुमन श्री मनोज्ञ सागर िी बीसपंर्ी कोठी, श्री सम्मेद मशखर िी, झारखंड
90. ममु न श्री आमदत्र् सागर िी इन्द्दौर, मप्र
91. मुमन श्री समत्व सागर िी टीकमगढ़, मप्र
92. मुमन श्री प्रशम सागर िी नागपुर, महाराष्ट्र
93. ममु न श्री सर्ु श सागर िी दुगष, ्त्तीसगढ़
94. मुमन श्री आमस्तक्र् सागर िी महवा, पन्द्ना, मप्र
95. मुमन श्री अररिीत सागर िी असम
96. ममु न श्री मवशोक सागर िी महसार, हररर्ाणा
97. मुमन श्री मवरंिन सागर िी कटरा बािार, सागर, मप्र
98. मुमन श्री मवमनश्चल सागर िी लवकुश नगर, लोड़ी, मप्र
99. मुमन श्री मवशेर् सागर िी िामनेर, महाराष्ट्र
100 मुमन श्री प्रर्मानंद िी रोमहणी सेक्टर-3, मदल्ली
101. मुमन श्री प्रमतज्ञानंद िी सूर्ष नगर, गामज़र्ाबाद, उप्र
102. मुमन श्री मसद्धांत सागर िी अररहंत नगर, इदं ौर, मप्र
103. ममु न श्री अनक ु रण सागर िी बरकत नगर, िर्परु , रािस्र्ान
104. मुमन श्री मवनर् सागर िी दीनदर्ाल नगर, ग्वामलर्र, मप्र
105. मुमन श्री मवनंद सागर िी तालबेहट, लमलतपुर, उप्र
106. ममु न श्री धमष सागर िी मशरगप्ु पी, बेलगांव, कणाषटक
107. मुमन श्री मसद्धांत सागर िी िर्मसंगपुर, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
108. मुमन श्री अमव ल सागर िी बुबनाळ, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
109. ममु न श्री अमित सागर िी कोरो ी, कोल्हापरु , महाराष्ट्र
110. मुमन श्री मनभषर् सागर िी दुधगांव, सांगली, महाराष्ट्र
111. मुमन श्री गुण सागर िी बुली, सांगली, महाराष्ट्र
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
112. मुमन श्री पार्श्ष सागर िी उगार, बेलगांव, कणाषटक
113. मुमन श्री पावन सागर िी टाकळी, परभणी, महाराष्ट्र
114. ममु न श्री मनदोर् सागर िी गिं बासौदा, मवमदशा, मप्र
115. मुमन श्री शुभ सागर िी सुंदर मवहार, पमश्चम मवहार, मदल्ली
116. मुमन श्री मवश्रुत सागर िी पन्द्ना, मप्र
117. ममु न श्री मवश्रांत सागर िी मभण्ड, मप्र
118. मुमन श्री मवशल्र् सागर िी कोडरमा, मबहार
119. मुमन श्री मशवानंद िी दाहोद, गुिरात
120. ममु न श्री श्रद्धानदं िी के शव नगर, उदर्परु , रािस्र्ान
121. मुमन श्री सुधीन्द्र सागर िी झाड़ोल, उदर्पुर, रािस्र्ान
122. मुमन श्री संबुद्ध सागर िी अिमेर, रािस्र्ान
123. ममु न श्री अपवू ष सागर िी नांदणी, महाराष्ट्र
124. मुमन श्री मंगलानंद िी सुरेन्द्र नगर, मुिफ्िरनगर, उप्र
125. मुमन श्री सुमंत्र सागर िी महम्मत नगर, गुिरात
126. मुमन श्री मवलोक सागर िी मसलवानी, रार्सेन, मप्र
127. मुमन श्री प्रवर सागर िी रिवांस, मप्र
गमणनी/ आमर्षका
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
137. गमणनी आमर्षका श्री सुप्रकाशमती पनवेल, मुम्बई, महाराष्ट्र
138. गमणनी आमर्षका श्री गुरुनंदनी िी पांडु ेरी
139. गमणनी आमर्षका श्री भरतेर्श्रमती दुगाषपरु ा, िर्परु , रािस्र्ान
140. गमणनी आमर्षका श्री धमेर्श्री िी नॉएडा सेक्टर-50, उप्र
141. गमणनी आमर्षका श्री ममु क्त भूर्ण िी बलबीर नगर, शाहदरा, मदल्ली
142. गमणनी आमर्षका श्री स्वमस्त भर्ू ण बाड़ा पद्मपरु ा, िर्परु , रािस्र्ान
143. गमणनी आमर्षका श्री मविर्मती िी गोवधषन नगर, सांगानेर, िर्पुर, रािस्र्ान
144. गमणनी आमर्षका श्री मवज्ञाश्री िी मनवाई, टोंक, रािस्र्ान
145. गमणनी आमर्षका श्री सगं ममती िी अिमेर, रािस्र्ान
146. गमणनी आमर्षका श्री आर्षमती िी मुरार, ग्वामलर्र, मप्र
147. गमणनी आमर्षका श्री मिनदेवी िी सतारा, महाराष्ट्र
148. गमणनी आमर्षका श्री श्रतु देवी िी डी.एल.एि., गरुु र्ग्ाम, हररर्ाणा
149. गमणनी आमर्षका श्री समु ववेकमती बूंदी, कोटा, रािस्र्ान
150. गमणनी आमर्षका श्री र्शमस्वनी िी मेड़ता मसटी, नागौर, रािस्र्ान
151. गमणनी आमर्षका श्री सौभाग्र्मती रामिम नर्ापारा, रार्पुर, ्त्तीसगढ़
152. आमर्षका श्री पूणषमती िी इदं ौर, मप्र
153. आमर्षका श्री मवज्ञानमती िी खमनर्ाधाना, मशवपुरी, मप्र
154. आमर्षका श्री सरस्वती भूर्ण िी ज्र्ोमत कॉलोनी, शाहदरा, मदल्ली
155. आमर्षका श्री समृ ि भर्ू ण िी श्री महावीर िी, रािस्र्ान
156. आमर्षका श्री दृमि भूर्ण िी – मत्रलोक तीर्ष, बड़ागांव, उप्र
157. आमर्षका श्री मवमितममत िी नंगली डेरी, मदल्ली
158. आमर्षका श्री प्रसन्द्नममत िी धररर्ावाद, प्रतापगढ़, रािस्र्ान
159. आमर्षका श्री सर्ु ोगममत िी – एरुमबुर, तममलनाडु
160. आमर्षका श्री सौम्र्नंदनी िी – झोटवाड़ा, िर्पुर, रािस्र्ान
161. आमर्षका श्री पद्मनदं नी िी – पीतमपरु ा एि-1-र्ू ब्लॉक, मदल्ली
162. आमर्षका श्री वधषस्वनंदनी िी अहुरा नगर, सूरत, गुिरात
163. आमर्षका श्री मवद्यांतश्री िी एटा, उप्र
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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164. आमर्षका श्री मवरम्र्ाश्री िी मामा का बािार, ग्वामलर्र, मप्र
165. आमर्षका श्री मवशाखाश्री िी श्री सम्मेद मशखर िी, झारखंड
166. आमर्षका श्री मवमशिश्री िी कानपरु , उप्र
167. आमर्षका श्री मवदुमर्श्री िी मविर्नगर, असम
168. आमर्षका श्री पुराणमती िी हापुड़, उप्र
169. आमर्षका श्री मवबोधश्री िी रार्परु , ्त्तीसगढ़
170. आमर्षका श्री सुमवज्ञामती िी गींगला, उदर्पुर, रािस्र्ान
171. आमर्षका श्री गररमामती िी तेिपुर (असम)
172. आमर्षका श्री अंतसमती िी गोरमी, मभण्ड, मप्र
173. आमर्षका श्री कुमुदमती िी अलवर, रािस्र्ान
174. आमर्षका श्री ओमश्री िी लखनादौन, मप्र
175. आमर्षका श्री अहंश्री िी कमला नगर, आगरा, उप्र
ऐलक/ िुल्लक/ िुमल्लका
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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ु दाई है.
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कण कण स्वतत्रं है. परंतु आि स्वतत्रं ता तो कम मदखाई दे रही है; उल्टे इसके मवपरीत ही आ रण
मदखाई दे रहा है. र्ह स्वतंत्रता नहीं है और इसे ही स्वच्ंदता कहते हैं. व्र्मक्त को िैसा लगता है,
िैसा मदखाई देता है, वह उसी अनुरूप व्र्वहार करने लगता है. आि तो िैन दशषन की आवकर्कता
बहुत ही बढ़ गई है. भगवान आमदनार् वतषमान के प्रर्म तीर्ंकर ने भी कोड़ा-कोड़ी वर्ों पहले मिसे
प्रवमतषत मकर्ा और वतषमान के अंमतम तीर्ंकर महावीर स्वामी ने भी अनेकांत / स्र्ाद्वाद समहत िैन
दशषन को मवर्श् के सामने प्रमतपामदत मकर्ा, प्रदीप्त मकर्ा. आि ढाई हिार वर्ष के पश्चात भी उनके
मसद्धांत आउट ऑि डेट नहीं बमल्क अप टू डेट है. सबसे पहले हम अमहंसा की बात करते हैं मिर
स्वतंत्रता की बात मवस्तार से करेंगे.
िब मवर्श् के सभी दशषनों की अमहस ं ा की बात पण ू ष होती है तो उसके बाद िैन दशषन की
अमहंसा प्रारंभ होती है. मवर्श् पटल पर मकसी को मारना/घात करना ही महंसा कहा िाता है परंतु िैन
दशषन अमहंसा की बहुत ही सूक्ष्म व्र्ाख्र्ा करता है. िैन दशषन के अनुसार आप मकसी को मारें र्ा ना
मारें, र्ह तो उसका आर्ु कमष ही मनधाषरण करेगा मक वह ब ेगा र्ा नहीं. इतना ही नहीं बमल्क आपने
मकसी की भी महंसा करने का मव ार मकर्ा तो आप महंसक ही हो (देखें पुरूर्ार्ष देशना -देशनाकार-
मदगम्बरा ार्ष श्रमण श्री १०८ मवशद्ध ु सागरिी ममु न महाराि – मल ू र्ग्न्द्र्कत्ताष : आ ार्ष श्री अमतृ
न्द्र स्वामी – गार्ा िमांक 47 एवं 48) र्र्ार्ष में आपने महंसा नहीं की है परंतु आप के पररणाम तो
महंसा के ही र्े अतः आप महंसक ही हो. मवर्श् का कोई कानून व्र्मक्त के पररणाम नहीं देखता. परंतु
िैन दशषन इसकी बहुत ही सक्ष्ू म से भी सक्ष्ू म व्र्ाख्र्ा करता है. इसमलए ही िैन दशषन में व्र्मक्त के
पररणाम को मापने के मलए 14 गुणस्र्ान बताए गए हैं. आि व्र्मक्त की सो मव ारों का पररणमन
भी अपने स्वार्ष के लते मानवता के मवरुद्ध हो गर्ा है . िो मक मानव की मवशमु द्ध के नि होने का
मुलभुत कारण है. संवेदनशीलता नि हो गई है और र्ह संवेदनहीनपना भी स्वतंत्रता में बाधाएं उत्पन्द्न
कर रहा है. असंवेदनशील वाणी की स्वतंत्रता मानमसक महंसा को ही िन्द्म दे रही है और पुनः र्ह
स्वतत्रं ता समाि की सपं मत्त का दुरुपर्ोग करा रही है. आि हमारे परु ाने आर्तन श्री ममं दरिी आमद
को नि करके नवीन रूप मदर्ा िा रहा हैं. प्रा ीन धरोहरों को नि न करते हुए उसका िीणोद्धार िरूर
करें और सार् ही सार् नवीन मनमाषण भी करें . प्रा ीन धरोहरों को ध्वस्त करके नवीन मनमाषण अपने
नाम की मलप्सा हेतु करना समाि की बहुत बड़ी हामन का कारण है. ऐसा करके हम मवर्श् के
प्रा ीनतम दशषन को नि कर रहे हैं आि स्वर्ं मव ार करें क्र्ा सही है ? क्र्ा गलत है ? समाि के
धन का दुरुपर्ोग टाला िा सकता है प्रा ीन धरोहरों का मवध्वस ं करना क्र्ा महस ं ा नहीं है ? क्र्ा र्ह
सब स्वतंत्रता का दुरुपर्ोग नहीं है ? आप मकसी भी पद पर आसीन हो परंतु ऐसे कृत-काररत-
अनुमोदन भरे कार्ष महंसा की श्रेणी में ही आएगं े और स्वतंत्रता नि करने वाले होंगे.
र्हां हम सावषिमनक तौर पर सावषिमनक बात ही कर रहे हैं. और समाि को इस पर मव ार
करना ही होगा. क्र्ा र्ह सब एक उच मशमित समाि, िैन समाि के मलए सही है ? र्ा मिर हम
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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महावीर के सदं ेश को, अमहस ं ा को िनमानस तक कै से पहुं ा पाएगं े और स्वतत्रं ता की बात करने
वाला दशषन, िैन दशषन, क्र्ा मवध्वंस से ही अपनी बात रखेगा ? स्वतंत्रता को मवध्वंस से ही पररभामर्त
करेगा ?
सम्प्रमत में देखने में आ रहा है मक उच पदासीन व्र्मक्त भी तोड़-िोड़ / मवध्वस ं की कारवाई
में मलप्त हैं और समाि में उनकी पैठ के लते र्ह सब कार्ष कर भी रहे हैं. र्हााँ पर हम उनके नाम का
उल्लेख भी कर सकते र्े परन्द्तु नहीं कर रहे हैं और करना भी नहीं ाहते.
स्वतंत्रता हमको मकसी के ररत्र पर उंगली उठाने की परममशन नहीं देती, उस व्र्मक्त के
ररत्र हनन की इिाित नहीं देती (देखें गुणस्र्ान मागषणा). र्ही तो मौमलक िकष है अन्द्र् दशषनों में
और िैन दशषन में. र्हााँ हमारा उद्देकर् मनदं ा करना मबल्कुल भी नहीं है. र्मद व्र्मक्त गणु स्र्ान को
समझता है तो वह कदामप मनंदा करने का मनंदनीर् कार्ष नहीं करेगा, िो उसे नी गोत्र का बंध करार्े.
हमारा एक ही उद्देकर् है मक समाि के धन का दुरुपर्ोग न मकर्ा िाए और प्रा ीन धरोहरों को भी
िीणोद्धार करके सुरमित मकर्ा िार्े और नवीन मनमाषण भी होते रहें. िैन समाि के धन का उपर्ोग
उच मशिा आर्तनों के मनमाषण में, म मकत्सालर्ों के मनमाषण में और िन-साधारण के महतार्ष
करुणा, दर्ा के कार्ों को करते रहें. र्ही हम सभी की शभ ु भावना है.
प्रस्तुमत :
श्रीमती मि ं ू पी. के . िैन
न्द्र्ास सदस्र् ( रस्टी )
नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.) मुंबई.
ठाणे, मुंबई, भारत.
सम्र्क मव ार :
अहो आत्मनध ! िहााँ मवर्श्-बंधुता का पाठ पढ़ार्ा िार्े
वही ाँ धाममषकता सभ
ं व है | िहााँ प्रामणर्ों को प्रतामड़त
कर प्राण हरण मकर्ा िार्े वहााँ धाममषकता कहााँ ?
मदगम्बरा ार्ष श्रमण श्री १०८ मवशुद्ध सागरिी मुमन महाराि
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
हमारे देश को आिाद हुर्े स्वमणषम मप हतर वर्ष हो गर्े हैं और हम इस साल आिादी का
स्वमणषम महोत्सव मना रहे हैं। आि हम सभी स्वतंत्र हैं और हमारे संमवधान ने देश के हर नागररक को
अंर्ग्ेिों के िाने के बाद इस आिादी का हमने भरपरू मज़ा मलर्ा है और आिादी का अर्ष
खाओ, पीओ और ऐश करो की मिंदगी से ले मलर्ा है । एक ऐसी मिंदगी िहां मसिष अपने स्वार्ष के
अलावा मकसी और के बारे में सो ना ज़रूरी नहीं समझा िाता ।
लेमकन क्र्ा सही मार्ने में र्ही स्वतत्रं ता है मिसके बारे में हमारे समं वधान मवशेर्ज्ञों ने अपने
नागररकों के मलर्े कल्पना की र्ी।
आि हमारे कारण हिारों मक ू प्रामणर्ों की स्वतत्रं ता म्न रही है। आकाश, धरती, िल हर
िगह मनुष्ट्र् के हस्तिेप के कारण मूक पशु -पिी स्वतंत्र नहीं हैं और उनको मारा िा रहा है । स्वतंत्रता
का सही अर्ष है प्रकृमत के हर प्राणी िीव, िंतु को समानता का अमधकार ममले और र्ही सच ी
अमहसं ा भी है अर्ाषत मकसी को भी मन, व न, कार् से दुखी ना मकर्ा िाए ।
िैन धमष में अमहंसा को ही परम धमष माना गर्ा है और माना गर्ा है मक हर िीव ही आत्मा
से परमात्मा बन सकता है इसमलर्े एकें रीर् से लेकर पं ेमन्द्रर् तक सभी िीवों को समान भाव से
देखने की बात कही गर्ी है।
दूसरे धमों में भी अमहंसा को परम धमष कहा गर्ा है और इसमलए ही शार्द सवे भरामण
पकर्न्द्तु की भावना व्र्क्त की गर्ी र्ी लेमकन इतने सक्ष्ू म रूप में मववे न मसिष िैन धमष में ही बतार्ा
गर्ा है। भगवान महावीर ने तो हिारों वर्ष पहले ही सभी मनुष्ट्र्ों को िीओ और िीने दो का उद्घोर्
कर मदर्ा र्ा।
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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स्वतत्रं ता सर्ग्ं ाम के समर् भी महात्मा गांधी ने अपने िैन गरुु से प्रभामवत होकर इसी अमहस ं ा
और सत्र् के माध्र्म से आिादी को प्राप्त मकर्ा और मकसी भी तरह की महंसा का मवरोध मकर्ा।
भारत प्रारंभ से ही अमहंसक देश है और इमतहास सािी है मक भारत ने कभी मकसी देश पर
कोई हमला नहीं मकर्ा क्र्ोंमक अमहस ं ा की प्रवृमत्त वाला व्र्मक्त कभी मकसी दूसरे प्राणी के समानता,
स्वतंत्रता और िीवन िीने के अमधकार को नहीं ्ीन सकता।
लेमकन आि सभी ताकतवर देश मवर्श् शांमत का हवाला देकर हमर्र्ारों के माध्र्म से अपने
से कमिोर को कु ल कर लाखों िीव -िंतु और मनुष्ट्र्ों का िीवन नि कर रहे हैं।
अगर प्रकृमत ने हर तरह के िीव को समानता और िीवन िीने का अमधकार मदर्ा है तब र्े
मनष्ट्ु र् क्र्ों मकसी िीव का िीवन ्ीनने में लगा है। आि मनष्ट्ु र्ों के िीभ के स्वाद के मलर्े हर मदन
लाखों पशु पमिर्ों को मौत के घाट उतारा िा रहा है मबना र्ह देखे मक र्े मूक प्राणी भी मकसी
अबोध के मां -बाप हैं और हर मदन मांसाहार करने वालों की िै शन के नाम पर इस तरह की महंसा
बढ़ती िा रही है।
पहले कु् वगष के लोग ही मांसाहारी हुआ करते र्े और मांसाहारी लोग भी अपनी इस प्रवृमत्त
के बारे में बताने से मह कते र्े लेमकन अब तो श्रमण और सनातन सस्ं कृमत को मानने वाले लोगों में
भी र्ह लन में आ गर्ा है और र्े लोग इसे अपनी स्वतंत्रता से िोड़ते हैं। लेमकन मकसी दूसरे िीव
का िीवन लेना हमारा अमधकार और स्वतंत्रता कै से हो सकती है ? अगर हम मानव िामत के मकसी
बच े का िीवन ्ीनते हैं तो क्र्ा काननू हमें माि करेगा ?
िब मनुष्ट्र्ों को पशु -पमिर्ों के मांस खाने पर कोई सिा का प्रावधान नहीं है तो एक नरभिी
िानवर को क्र्ों मौत के घाट उतारा िाता है ?
िब प्रकृमत ने सभी िीवों को समान अवसर मदर्े हैं तब समं वधान में िीवन िीने और समानता
का अमधकार मसिष मनुष्ट्र्ों को ही क्र्ों मदर्ा गर्ा है ?
अब तो मांस मनर्ाषत करने में भी र्ह अमहस ं क देश, हमारा िगतगरुु स्वमणषम भारत, आि
मसरमौर बन गर्ा है ।
मैंने कहीं बहुत ही सुन्द्दर कर्न पढ़ा है मक अगर आपकी र्ाली में मकसी िानवर का मांस है
तो आप मकसी और से कै से प्रेम और शांमत की बात कर सकते हैं। िो लोग हर मदन मांस म्ली खाते
हैं वही लोग आपको ग्लोबल वाममंग पर लम्बे भार्ण करते निर आएगं े ।
अपने िीवन िीने के अमधकार के नाम पर हमें हर तरह की स्वतत्रं ता की ्ूट नहीं है। क्र्ोंमक
मकसी भी देश, समाि और धमष से िुड़कर हम वहां के मनर्म और कानूनों को मानने के मलए बाध्र्
हैं और तभी हम उस देश के सभ्र् नागररक कहे िाते हैं लेमकन आिकल इसी स्वतंत्रता के नाम पर
स्वच्ंदता बढ़ती िा रही है और लोग बेखौि होकर कु् भी कर रहे हैं। मनुष्ट्र् के खाने , पीने, पहनने
के कार्ों में ना िाने मकतने िीवों को मौत के घाट उतारा िा रहा है शार्द इसमलए मक धरती पर रहने
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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वाला मानव प्रकृमत की हर ीि को हड़पने में अपना िन्द्म मसद्ध अमधकार समझता है। रोते - ीखते
हिारों पशु पमिर्ों की हार् लेकर कोई भी समाि सभ्र् नहीं बन सकता है। कहते हैं मक प्रकृमत मानव
के इसी उद्दण्ड का बदला कोरोना, बाढ़, भूकम्प िैसी अनेकों मवपदाओ ं की पररणमत के रूप में ले
रही है । अभी हाल ही में हमने कोरोना की वैमर्श्क महामारी को झेला हैं और उससे अभी तक उबर
भी नहीं पार्ें हैं ] और र्मद अब भी नहीं सावधान हुए तो कब होंगे ? म ंतन करें.
देखा िा रहा है मक अब तो आिादी का मखौल भी उड़ार्ा िा रहा हैं | अमभव्र्मक्त की
स्वतंत्रता के नाम पर लोगों की वाणी में भी महंसा बढ़ती िा रही है ।
इसी स्वतंत्रता के नाम पर मकसी िगह पर बहुसंख्र्क समुदार् दूसरे धमों के स्र्लों पर
नािार्ि कब्िा कर हमर्र्ा रहे हैं। एक - दूसरे के साधू - सतं ों व देवी- देवताओ ं के मखलाि
अपमानिक शब्दों का प्रर्ोग हो रहा है। र्ह स्वतंत्रता के नाम पर सरासर उच्ृंखलता है लेमकन
अिसोस की बात है मक मकसी को र्ह सब करने पर मकसी तरह की शममंदगी नहीं है ।
र्ुवा लड़के लड़मकर्ां स्वतत्रं ता के नाम पर मबना र्ह देखे मक क्र्ा सही और ग़लत है मकसी
भी िामत में शादी कर रहे हैं । हर तरि मनमिी हो रही है । घर और समाि में लोग अपने से बड़ों की
नहीं सनु रहे ।
हर समुदार् के पदामधकारी और धमाषमधकारी सभी बस मकसी भी तरह अपने पद पर बने रहने
की म ंता करते हैं।
इसमलर्े नेतृत्व मदशाहीन हो गर्ा है और धमष और सस्ं कृमत का मवच्े दन हो रहा है अगर
मस्र्ती नहीं बदली तो मनमश्चत ही समाि में बड़ा पतन देखने को ममलेगा।
इसमलए िैन दशषन की अमहंसा की व्र्ाख्र्ा के अनस ु ार समद्ध
ृ मवकमसत समाि, देश के मलए
कल भी िरूरी र्ी , आि भी िरूरी है और आने वाले कल में भी इसकी सार्षकता उतनी ही रहेगी।
स्वाती िैन
(पत्रकार)
हैदराबाद
तेलंगाना.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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िैन धमष अनुसार अमहंसा को ही परम धमष माना गर्ा है भगवान महावीर ने भी अपने पं शील
के मसद्धांत (अमहंसा,सत्र्, अ ौर्ष,अपररर्ग्ह एवं ब्रह्म र्ष) में अमहंसा को ही सवषप्रर्म रखा है अगर
हम गहराई से म ंतन करेंगे तो पाएगं े मक हमारे तीर्ंकरों ने आ ार्ों ने अमहंसा को र्ूं ही परम धमष नहीं
कहा है क्र्ोंमक इस एक शब्द में परू ा धमष समार्ा हुआ है मकसी भी िीव का प्रत्र्ि रूप से घात करना
ही महंसा नहीं अमपतु भाव से र्ा मन से हम मकसी का बुरा भी ाह रहे हैं र्ा मकसी से ईष्ट्र्ाष के भाव
भी रख रहे हैं तो वह भी महंसा ही है।भगवान महावीर के अनुसार 'अमहंसा परम धमष' है. इसे तीन िरूरी
नीमतर्ों का पालन करके सममन्द्वत मकर्ा िा सकता है. इसमें एक है कामर्क अमहस ं ा र्ानी मकसी
को कि न देना. अमहंसा को मानने वाले मकसी को पीड़ा, ोट, घाव आमद नहीं पहुं ाते. इसके
अलावा मानमसक अमहस ं ा र्ानी मकसी के बारे में अमनि नहीं सो ना. इसमें मकसी भी प्राणी के मलए
अमनि, बुरा, हामनकारक नहीं सो ना है. इसके अलावा बौमद्धक अमहंसा आती है. र्ानी मकसी से भी
घृणा न करना.
िैन धमष में रामत्र भोिन का त्र्ाग,पानी ्ान कर पीना, िीवाणी करना भी अमहस ं ा है,
पं उदबं र िलों का त्र्ाग भी अमहंसा है, सप्त व्र्सन का त्र्ाग अमहंसा है, समर्ष होते हुए भी सामने
वाले से िमा भाव रखना भी अमहंसा है, पां प्रकार के पापों का त्र्ाग भी अमहंसा है, ारों कर्ार्ों
का त्र्ाग अमहंसा है क्र्ोंमक महंसा मसिष मकसी का घात करना ही नहीं बमल्क दूमवष ार र्ुक्त मन र्ा
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
कर्ार् समहत मन भी महस ं ा ही है। उस अवस्र्ा में हम अपनी आत्मा का घात कर रहे होते हैं। दस धमष
का पालन भी अमहंसा ही है। असत्र् व न, ोरी,पररर्ग्ह व अब्रह्म भी महंसा ही है। अमहंसा का मितना
सूक्ष्मतम वणषन िैन धमष में मकर्ा गर्ा है। उतना अन्द्र् मकसी धमष में नहीं हमारे मुमनराि मपमच्का
रूपी उपकरण सार् लेकर लते हैं मिसका एकमात्र कारण सक्ष्ू मिीवों की रिा करना होता है। सर्ं म
धमष का पालन करना र्ा अमहंसा धमष का पालन करने के मलए ही होता है। आि हम भौमतक सुख-
सुमवधाओ ं में के इतने आदी हो ुके हैं मक र्ोड़ी सी गमी होते ही हार् गमी हार् गमी म ल्लाने लगते
हैं पंखा एसी कूलर ालू कर लेते हैं परंतु हमें र्ह एहसास नहीं मक इससे मकतने िीवों का घात कर
रहे हैं हमें अपने िीवन में शांमत ामहए तो अमहंसा धमष का पालन करना ही होगा। बंधुओ ं िैन धमष
में मितने भी मसद्धांत है। स्व और पर की कल्र्ाण की भावना मलए हुए हैं सभी अमहस ं ा से ही प्रेररत है
आत्म कल्र्ाण की ओर ले िाने वाले हैं। महंसा कभी कल्र्ाणकारी नहीं हो सकती। अमहंसा का कल
मितना महत्व र्ा आि भी उतना ही महत्व है और कल भी उतना ही महत्व रहेगा। आि बड़े पैमाने
पर िग में महंसा िै लाई िा रही है। रमशर्ा-र्ूिेन र्ुद्ध, तामलबान,और मवर्श् में बढ़ता आतंकवाद
इसके तािा उदाहरण हैं। हो सकता है आने वाला कल और भी भर्ावह हो तब ऐसे में हमें अपने
सस्ं कारों अपने मसद्धांतों अपने धमष की हर हाल में रिा करनी होगी और परू े मवर्श् को र्ह बताने की
कोमशश करनी होगी मक मिओ और िीने दो का मसद्धांत ही इस मवर्श् में शांमत स्र्ामपत कर सकता
है।
मव ारों में अमहंसा हो,अमहंसा कमष हो मेरा।
आ रण में अमहस ं ा हो,अमहंसा धमष हो मेरा ।।
मिर्ो और िीने दो सबको र्ही नारा हमारा हो।
भावना में मवशमु द्ध ही िीने का ममष हो मेरा ।।
महसं ा में कहीं भी और कभी भी धमष नहीं हो सकता अगर खदु शांमत से िीना ाहते हैं तो
दूसरों को भी िीने का अमधकार देना होगा। दूसरों की स्वतंत्रता भी बहाल करनी होगी। अब प्रश्न
उठता हैं - स्वतंत्रता मकसकी ? अनामद काल से ही हम कुरीमतर्ों, मोह की बेमड़र्ों में िकड़े हुए हैं
कर्ार् के बंधनों से र्ुक्त हैं। सही मार्ने में स्वतंत्रता हमें राग और द्वेर् पर प्राप्त करनी है। कर्ार् की
बेमड़र्ों से मुक्त होना है, कुरीमतर्ों से दूर होना है और ममत्र्ात्व रूपी िंिीरों को हटाना है मन के
मवकारों पर स्वतत्रं ता प्राप्त करनी है, परंतु आि हम लोगों ने स्वतत्रं ता का भी अपने अपने ढंग से
अलग अर्ष लगा मलर्ा है। स्वतंत्रता के नाम पर लोग मनमानी भी करने लगे हैं। स्वतंत्रता का अर्ष
स्वच्ंदता कदामप नहीं है स्वतंत्रता का अर्ष है खुद शांमत से मिए और दूसरों को भी शांमत दे िीने दे
स्वतंत्रता के कई रूप हो सकते हैं िैसे वाणी की स्वतंत्रता आमर्षक स्वतंत्रता एवं पहनावे की स्वतंत्रता
लेमकन स्वतंत्रता की एक मर्ाषदा होती है हमें उस मर्ाषदा का उल्लंघन नहीं करना ामहए हमारे
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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आ ार्ों ने साधु एवं श्रावक दोनों के ही मर्ाषदा का वणषन मकर्ा है। साधु एवं श्रावक दोनों को ही
अपनी मर्ाषदा में रहना ामहए मर्ाषदा में रहकर एक-दूसरे का सम्मान करना ामहए। कोई भी अपनी
मर्ाषदा का उलंघन ना करें। आि के दौर में स्वतत्रं ता के नाम पर र्ुवमतर्ां बेहद अशोभनीर् वस्त्रों को
पहनकर ममं दरों में िाने लगी है िबमक भगवान के सामने तो कम से कम मर्ाषमदत वस्त्रों में आना
ामहए , वाणी की स्वतंत्रता होनी ामहए आि मव ारों की अमभव्र्मक्त की स्वतंत्रता है लेमकन
मर्ाषदा में रहकर। वाणी ऐसी ना हो मक मकसी को ठे स पहुं े र्ा मकसी को आहत करें। इसीमलए हमें
सदैव कर्ार् रमहत एवं मर्ाषमदत िीवन िीने का प्रर्ास करना ामहए,मिर्ो और िीने दो के मसद्धांत
को आगे रख िीवन का मनवषहन करना ामहए तभी हम सही मार्ने में भगवान महावीर के मसद्धांतों
का पालन कर सकें गे और इस भौमतक एवं आमर्षक र्गु में भी अमहस ं ा धमष का पालन कर सकें गे।
सम्र्कध मव ार :
“उपदेश की कुशलता के सार् आ रण की कुशलता
भी लाना ामहए. तभी उपदेश की कुशलता सत्र्ार्ष-
बोध का कारण बन पार्ेगी. कोरा ज्ञान आत्ममहत का
साधन नहीं बन सकता हैं”
मदगम्बरा ार्ष श्री १०८ मवशद्ध
ु सागर िी मुमन महाराि
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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मेरा देश आि भी िगतगुरू कहलाता है, अमहंसा का पाठ पूरे मवर्श् को पढ़ाता है।।1।।
इसमलर्े पूरा मवर्श्, अंमहसा मदवस मनाता है।
र्ोग से शरीर रहता स्वस्र्, र्ह परू े मवर्श् ने माना है।।2।।
इसमलर्े र्ोग मदवस, पूरे मवर्श् में मनार्ा िाता है।
मंत्रो की शमक्त को मानते वैज्ञामनक, िो पूरे मवर्श् को िगतगुरू बतलाता है।।3।।
इसमलर्े आि भी मेरा देश, िगत गरू ु कहलता है।
अमस, ममस, कृमर् का ज्ञान मदर्ा, पूरा मवर्श् ‘‘दांतो तले अंगूली दबाता है’’।।4।।
प्राकृमतक सम्पदाओ ं में ममली िड़ी बूमटर्ां, रोगीर्ों के सभी रोगों को दूर कर देती है।
ऋमर् ममु नर्ो से ममलता मिनको आशीर्, उन्द्हें अवकर् सिलताऐ ं ममलती है।।5।।
मिर्ो और मिने दो में रखता मवर्श्ास, इसमलर्े सोने की म मड़र्ा कहलाता है।
शामन्द्त का संदेश देता मेरा देश, पूरा मवर्श् शांमत र्ज्ञ करवाता है।।6।।
मेरा देश आि भी िगतगुरू कहलाता है।
अमहंसा का पाठ, पूरे मवर्श् को पढ़ाता है।।7।।
उत्सि जैन
मु.पो. नौगामा त. बागीदौरा
वजला बाांसिाड़ा (राज.) 327603
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और
मवशद्ध
ु व न:
“भाव मवशुमद्ध आत्म मसमद्ध का मूल मंत्र है”
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मिन शासन िर्वंत हो । िैन दशषन के अनुसार "अमहंसा परमो धमष :" अर्ाषत अमहंसा परम
धमष है सवषश्रेष्ठ धमष है मिस व्र्मक्त के अंदर मकसी को भी िाने अनिाने में कि ना पहुं ाने के भाव हो
तो वह व्र्मक्त अमहंसक कहलाएगा क्र्ोंमक हमारे िैन दशषन में मकसी की भावों से भी अर्ाषत मन के
मव ारों से भी र्मद हम कि पहुं ाने की सो ते हैं तो भी अपने कमों का बंध कर लेते हैं िबमक
मव ारों से उस िीव को कि नहीं पहुं ता है । पानी ्ानना, रामत्र भोिन नहीं करना, िमी कंद का
त्र्ाग करना, िीवाणी करना, मबिली पानी आमद का आवकर्कता अनुसार ही प्रर्ोग करना,
टूर्पेस्ट, साबुन, मलपमस्टक, नेल पॉमलश, पाउडर आमद ीिों का प्रर्ोग न करना र्ह सभी िैन धमष
के मसद्धांत अमहंसा परम धमष को उत्कृिता पर ले िाते हैं उपरोक्त ीिों से ब कर हम अमहंसक रूप
से बनने वाली ीिों का प्रर्ोग दैमनक िीवन में कर सकते हैं। िैन दशषन में उपरोक्त सभी ीिों के
मवकल्प उपलब्ध हैं िैसे सूती कपड़े, हल्दी का उबटन, नीम र्ा बबल ू की दातनु , मल्ु तानी ममिी,
मिटकरी, िैतून, सरसों का तेल आमद । हम आि के समर् में भी अपने आप को महंसा से ब ा सकते
हैं महंसा के दो प्रकार हैं – १.भाव महंसा व २.रव्र् महंसा । रव्र् महंसा के ार भेद होते हैं – १.संकल्पी
महस ं ा - मकसी िीव को बमु द्धपवू षक मारना २.आरंभी महस ं ा - िैसे झाड़़ू लगाना, अमग्न लगाना, कपड़े
धोना व िमीन खोदना आमद ३.मवरोधी महंसा - अन्द्र्ार् पूणष कार्ों को रोकने में िो महंसा होती है वह
मवरोधी महंसा और ४.उद्योगी महंसा - व्र्ापार में िो महंसा होती है उसे उद्योगी महंसा कहते हैं ।
हम प्रमतमदन 24 घंटे में अनिाने में ही न िाने मकतने िीवो का घात कर देते हैं और महंसा
रूपी पाप कर लेते हैं तो हमें िानबूझकर तो कम से कम ऐसे कृत्र् नहीं करने ामहए । मैं ाहती हूाँ
मक सरकार को सभी बू ड़खाने मबल्कुल परू ी तरह से बदं कर देने ामहए, शराब के ठे के, नशीले
पदार्ष िैसे तंबाकू, गुटखा, बीड़ी, मसगरेट आमद पर परू ी तरह से बैन लगा देना ामहए । िब ऐसी
महंसात्मक वस्तुओ ं का उत्पादन ही नहीं होगा तो मिर उनका उपर्ोग भी नहीं होगा और उपर्ोग नहीं
होगा तो अपराध ना के बराबर होगा ।
आि मिस तरह का िीवन हम िी रहे हैं िहां प्रत्र्ेक काम रुतगमत से करना ही िीवन की
पह ान बना हुआ है भौमतकता की अंधी दौड़, मर्ाषदा की सीमा हीनता, पैसों की का ौंध और
आध्र्ामत्मकता मसमट गई है । मिनवाणी ैनल और पारस ैनल के सामने बैठकर ार् पीते हुए
प्रव न सुनते हुए हमने अपने आपको भुलावे में डाल मदर्ा है । िीवन िीने का तरीका पूणषतर्ा
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
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बदल ुका है । आि से लगभग 70-80 साल पहले तक देखें तो आहार, मनोरंिन, वस्त्र, घर, और्मध
के नाम पर इतनी महंसा नहीं र्ी । कॉस्मेमटक तो शार्द ही कोई िानता हो । भोिन सीधा सच ा हार्
का मपसा आटा मिसकी मात्रा बहुत ज्र्ादा संर्ग्ह नहीं की िा सकती र्ी। बािार का भोिन तो कोई
िानता भी नहीं र्ा। कपड़ों का सीममत सस ं ार, हार् के काते हुए सतू ी वस्त्र । आि हमारी आमदनी
का बड़ा महस्सा वस्तुओ ं की खरीद पर व्र्र् होता है। वस्त्र मदखावे, प्रदशषन की वस्तु बन गए हैं। सदी
बरसात गमी से ब ने में इनकी भूममका मद्वतीर् स्र्ान पर आ गई है। पहले ऐमतहामसक र्ा धाममषक
ररत्रों पर आधाररत नाटक मदखाए िाते र्े िो अच्ी बातों का प्रभाव हम पर ्ोड़ते र्े अब हम
क्र्ा देख रहे हैं महंसात्मक दृकर्, राग देश को बढ़ाने वाले दृकर्, संसार को बढ़ाने वाले दृकर् ही मदखाए
िाते हैं िो हमारी कामवासना की भावनाओ ं को बढ़ाने में तत्पर रहते हैं। आिकल ना मकसी को
शास्त्रीर् संगीत में रुम है ना सुनने का और सीखने का वक्त है, र्मद वक्त है भी तो डीिे पर ना करने
का और मन में ताममसक मव ारों के सं ार करने का । आि हमारे बच ों की मानमसकता ऐसी हो
गई है मक िो बातें दो पीढ़ी पहले अशोभनीर् मानी िाती र्ी अब उन्द्हें िीवन का महस्सा बनाकर
प्रदमशषत मकर्ा िाता है।
प्रत्र्ेक इस
ं ान स्वतत्रं रहना ाहता है तो उसी तरह से प्रत्र्ेक िीव को भी स्वतत्रं रहने देना
ामहए कभी भी मकसी िीव को ाहे वह कीट हो, पशु हो, पिी हो, व्र्मक्त हो अपनी इच्ा पूमतष के
मलए और शौक मलए कि मत पहुं ाइए । उन्द्हें भी िीने का पूणष अमधकार है िैसे हमें और तुम्हें ।
इसमलए कृपर्ा महस ं ा ्ोड़कर अमहस ं ात्मक िीवनशैली अपनाएं और उत्तरोत्तर प्रगमत प्राप्त करके श्रेष्ठ
पद को प्राप्त करें ।
गर हमें इस भारत को स्वगष बनाना है |
गर हमें मिन धमष को श्रेष्ठ कहलवाना है ||
तो के वल कहने मलखने र्ा सुनने से कु् नहीं होगा |
हमें अपनी िीवन शैली को बदलना ही होगा ||
अमहसं ात्मक ीिों को अब हमें घर-घर में पहुं ाना है |
महसं ा को दूर भगाना है, महस
ं ा को दूर भगाना है ||
मनीर्ा िैन w/o सि ं र् िैन सराषि
कामां
भरतपरु , रािस्र्ान
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
नोट: र्ह लेख सस ु ाईडर (SUICIDER) से मलर्ा गर्ा हैं. परम पज्ू र् श्रमण ममु न श्री प्रणीत सागर
िी महाराि (सुर्ोग्र् मशष्ट्र् परम पूज्र् मदगम्बरा ार्ष श्रमण श्री १०८ मवशुद्ध सागर िी महाराि) की
बहु- म षत कृमत सुसाईडर (SUICIDER) िो मक अंर्ग्ेिी भार्ा में प्रकामशत हो ुकी हैं, उससे ही
साभार उद्धृत मकर्ा िा रहा हैं. इससे पहले भी ममु न श्री द्वारा मलमखत/अनवु ामदत कई लेख आप सभी
ने पूवष के कई अंकों में बच ों द्वारा भी एवं सभी श्रावकों ने पढ़े भी हैं और समझे भी हैं. इस पर आप
में से कई ने अपने मव ार भी प्रगट मकर्े हैं. सभी की आकांिा के लते इसके अन्द्र् अध्र्ार् भी
समर्-समर् पर प्रकामशत मकर्े िार्ेंगे. प्रधान संपादक : पी. के . िैन ‘प्रदीप’.
NOTE: This article is being published from “SUICIDER” It is penned down viz.
written by Param Pujya Shraman Muni Shree Praneet Sagarji Maharaj who is a
disciple of Param Pujya Digambaraacharya Shraman Shri 108 Vishuddha Sagar
ji Maharaj. The said book, SUICIDER is already published in English. Earlier
you had read his books in series namely “O SINNER” which was liked by all of
you. Also wish to inform you that other articles from the same book will be
published in due course of time. Chief Editor : P. K. JAIN ‘PRADEEP’.
LOVE AFFAIR
O, Couples! Be very pure while Love Affair;
Otherwise, you'll have to Suicide one day. O,
Youths! Have full control over your all senses. Never
ever get attract towards opposite sex. O, Boys! If u
want to become Pearl, Then never open door for Girl...
In case you open, then never ever allow Third in
between. That mid person will compel you to go for
Suicide. These days, you'll find Misunderstanders
at every corner. So, beware.
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ु दाई है.
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O, Girls! If u don't want to become Toy, Then
never open door for Boy...
Use & Throw policy is in fashion these days.
Shame on them who adopt this policy. And shame
on them too who call pure relationship as use & Throw
due to some illusions and misunderstandings.
Dear! Just wanna say you one thing very clearly
that Either don't be in touch with any person or in
case you been into, then never say-bye to him/her in
any situation. Now a days, people are so smart and
they used to kick out from their lives after observing
bit loophole. Shame on them. Many go for Love
Affair to uncurtain your Life. They are pure
cheaters or can say Black Mailers. Dear!
Don't Go for Love Affair
Otherwise, be ready for Scare...
These days, playing with Emotions becomes
equivalent to playing with toys. Just think, you
used to play with toys in your childhood and now,
playing with emotions. Dear! Be it noted one thing,
Toys don't have hearts, but Human beings have.
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Disloyalty after Love Affair compels Heart-Breaker
to go for Suicide. Misunderstanding also plays role.
Rather Love Affair Zone
It is better to Live Alone...
Yes Dear! Do accept my saying. These days,
Loneliness is victimizing you like anything else
and at that time you are in need of someone. Aur
Pata Hai Fir Kya Hota Hai - That someone leaves
you alone. Pay Attention –
"It is better to live Alone than to be in contact
with person who leaves you Alone..."
I don't understand that how can you show trust
on anyone. Friends! Show red signal to such type of
non-sense.
"Your own shadow leaves you in Darkness..."
Your own shadow leaves you in darkness, then
what to talk about people to whom you call as your
closed ones. They'll also leave you one day and
compel you to weep hard. Stop loving people dear,
specially your closed ones. You gifted Love and in
return gift, you got feelings of Suicide. Really
Strange...
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Wanna Sit on Wheel Chair?
Then Go for Love Affair...
O, Youths! Beware while developing
relationships. Don't Love one-to whom someone
Loves. In case you, then you'll be kicked out by both
one day. Never ever give birth to Physical Touch
before permanent signing contract of living whole
life together; Otherwise, may it becomes the cause of
Suicide. O, Couples!
Don't only share a Cup Tea
Also concentrate on 4 T...
Yes... There is a lot need to go through 4 Ts
Concept for Youths. O, Youths! Always keep 4 Ts in
your mind. Not only keep, with that keep applying
too.
Rust
Ime
Alking
Ouch
Here, I'll not talk about starting 3 as these days
4th one is in fashion. O, Youths!
Don't Desire Much
Don't become crazy for Touch...
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Friends! Touch will force you for Suicide one
day. So, never ever plan for touch. The best way to
come out of it is hitting anyone out of 1st 3. Either
break trust or don't spent time or don't talk much,
ultimately you'll not reach to the state of Touching.
Dear! Beware of calling and video call also.
Better is to meet with your partner F2F; otherwise
anyone can blackmail you by call recording, video
call recordings and all. Thereafter, you'll remain
with an option of Suicide only.
Call Recordings & Video Call
Will hit u hard like Ball
Will send u behind big Wall
In all, will make you Fall...
So, be very strict. Go for finding partner after
lot jugding. Dear!
Judge & Then Accept
Then don't talk of Except...
Shake hand with people very carefully. They'll
shake hand & Later on will beat you like band.
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ु दाई है.
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सर्ं म परुु र्ोत्तम आ ार्ष श्री मवशद्ध
ु सागर िी के सर्ं म स्वमणषम िन्द्मोत्सव के उपलि मे मवर्श् प्रर्म
आ ार्ष श्री पर अनोखी कमवता
नोट : इस काव्र् के कुल १०८ ्ंद हैं. मिसमे से हमने मप्ले अंक में मसिष २७ ही प्रकामशत मकर्े र्े.
इस बार भी २७ आपके समि प्रस्ततु हैं. शेर् ५४ आगामी अंकों में िमशः प्रकामशत होंगे. इस काव्र्
पर आपके अपने मव ार और रार् िरुर भेमिएगा. हम सदैव ही, आपकी आशा के अनुरूप, आपके
समि कु् हटके और कु् नर्ा प्रस्तुत करना ाहते हैं.
हमें आपके पत्र की प्रतीिा रहेगी. ... पी. के . िैन ‘प्रदीप’ – प्रधान संपादक.
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ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
कीमतष िैन
विशुद्ध िचन :
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
ातमु ाषस महापवष में धमष की गगं ा बहती है. प्रत्र्ेक मदन उत्सव का और महोत्सव का रूप मदखाई देने
लगता है. आि तो कलशों की स्र्ापनाको ही वृहदध रूप मदर्ा िाने लगा है. इस मदखावे की प्रवृमत्त
पर रोक लगनी ामहए िो हमारे पूवषवती आ ार्ों द्वारा और समाि श्रेमष्ठर्ों द्वारा स्र्ापना होती र्ी
वो ही परंपरा हो और धमष को धमषमर्ी ही बनार्ा िाए मक मदखावे का धमष बनार्ा िार्े.
ातुमाषस की स्र्ापना के दूसरे मदन गुरु पूमणषमा आती है. सभी समाि के लोग भमक्त भाव
से मनाते हैं. लोग अपने अपने गुरुओ ं के ातुमाषस स्र्ल पर िाते हैं. र्ात्रा करते हैं और गुरु भमक्त
करते हैं.
एक माह पश्चातध रिाबंधन पवष को भी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं और संतों के सामनध्र् में खूब
भमक्त भाव से पि ू ा आमद करते हैं तर्ा रिाबध ं न का महत्व समझते हैं. इसके पश्चात सबसे महत्वपण ू ष
दशलिण महापवष आता है िो भारपद माह का सवषश्रेष्ठ पवष माना िाता है. र्ह पवष र्ा र्ों कहें मक
महापवष ातुमाषस काल में ही आने से और अमधक महत्वपूणष हो गर्ा है.
वर्ाषकाल में सोलहकारण पवष भी आते हैं मिसकी सभी अमत श्रद्धा से साधना करते हैं और
र्ही पाप कमों की घोर मनिषरा का कारण बनता हैं. इतना ही नहीं, मेघमाला व्रत, श्रुत स्कंध व्रत, श्री
न्द्दन र्ष्ठी व्रत, दसलिण व्रत, मत्रलोक तीि व्रत, पष्ट्ु पांिमल व्रत, आकाश पं मी व्रत, अनतं व्रत,
अनंत तुदषशी व्रत, रत्नत्रर् व्रत आमद आमद आते हैं. इससे स्पि है मक इन व्रतों को अपनी अपनी
शमक्त के अनुसार श्रावक -श्रामवकाए,ं कमों की घोर मनिषरा कर लेते है. और मोि पर् पर लते हुए
मोि की ओर अर्ग्सर होते हैं.
ातुमाषस काल में साधु गणों द्वारा मशमवर, पाठशाला, इत्र्ामद िो ज्ञान हेतु लाई िाती हैं
उससे समाि के हर वगष को लाभ होता हैं. अमभर्ेक-पि ू न करना, दशषन करना, आहार देना, वैय्र्ावमृ त्त
करना साधुओ ं की र्ाष करवाना, देखना, उनके प्रमत मवनर् करना आमद अनेकों प्रकार के संस्कार
ममलते हैं. र्ही संस्कार सामामिक एवं धाममषक ज्ञान भी देते हैं तर्ा िीवन में हर िेत्र में उन्द्नमत एवं
मवकास के पर् पर ले िाने में सहार्क होते हैं.
र्हााँ पर र्ह बताना भी उम त ही होगा मक भूतकाल में दृमिपात करें तो र्ह र्ाद आता है मक
ातुमाषस काल में मवशेर् रूप से प्रमतमदन सुबह और रामत्र में स्वाध्र्ार् होता र्ा, स्वाध्र्ार् गमद्दर्ााँ
होती र्ी. िहााँ-िहााँ साधु-संत मवरािमान होते र्े वहां पर उनके सामनध्र् में उनकी प्रेरणा से ज्ञानािषन
होता र्ा. और िहााँ साधु-सतं नहीं होते र्े वहां पर समाि के मवद्वानध /मुमखर्ा की प्रेरणा से स्वाध्र्ार्
गमद्दर्ों द्वारा शास्त्रों का वा न होता र्ा. र्ह बहुत ही सन्द्ु दर परंपरा र्ी. आि पनु ः समाि में इस परंपरा
को पुनः िागृत करने की आवकर्कता हैं. वतषमान पीढ़ी को इस कार्ष में लगाने हेतु र्ह एक अमभर्ान
के रूप में र्ह मंमदर-मंमदर में स्वाध्र्ार् गद्दी र्ा स्वाध्र्ार् सभा की र्ोिना प्रारंभ होनी ामहए. इस
पर हम सभी को बताना भी ाहते हैं मक मप्ले ातुमाषस वर्ष से ही परम पूज्र् मदगाम्बरा ार्ष श्रमण
श्री १०८ मवशुद्ध सागर िी महाराि की प्रेरणा एवं आशीवाषद से श्री पी. के िैन ‘प्रदीप’, नमोस्तु
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शासन सेवा समममत (रमि.), मबुं ई एवं श्री आिाद कुमारिी िैन, श्री अशोक खासगीवाला, श्री मनीर्
िैन एवं श्री तेिकुमार वेद िैन द्वारा देश भर के समस्त मंमदरों में मनशुल्क स्वाध्र्ार् दीघाष हेतु
मिनवाणी को भेिा िा रहा हैं. इतना ही नहीं, मिनवाणी के उम त रखरखाव एवं मवनर् हेतु लोहे की
अलमारी भी मनशल्ु क प्रदान की िा रही हैं. उनके ऐसे कार्ों की मितनी प्रशस ं ा की िार्े कम ही हैं.
इससे र्ह भी मसद्ध होता है मक र्ह टीम सभी साधाममषर्ों के उत्र्ान और ज्ञानािषन हेतु सममपषत हैं. उन
सभी को हमारा अमभवादन, अमभनन्द्दन और साधुवाद. और इसका सदुपर्ोग समाि के प्रत्र्ेक
व्र्मक्त को करना ही ामहए.
स्वाध्र्ार् से अनमगनत लाभ हैं. स्वाध्र्ार् से ज्ञान तो मनमश्चत रूप से बढ़ता ही हैं इसके सार्
ही सार् हमारे ज्ञान ततं ओ ु ं के खल
ु ने से स्मरण शमक्त का भी मवकास होता है, िीवन में सहनशीलता
आती हैं, अज्ञान का मवनाश होता है और िीवन की अनेकानेक उलझने स्वमेव ही सुलझ िाती हैं.
मन की ं लता दूर होती है और ज्ञान के सार् ाररत्र की भी प्रामप्त होती हैं.
अंत में र्ही कहना ाहता हूाँ मक वर्ाषकाल में िो अनावकर्क व्र्र्, मदखावे की प्रवृमत्त हो
रही है उस पर रोक लगनी ामहर्े और वास्तमवक रूप से धमष की गंगा बहनी ामहए, समर् का
सदुपर्ोग धमषमर् हो, महापरुु र्ों का िीवन ररत्र हमारे अपने ाररत्र में भी झलकना ामहए. इससे
िो पुण्र् का खिाना हैं, उस खिाने को अमवलम्ब लूट कर अपना िीवन धन्द्र् करना ामहए.
भवदीर्
उदर्भान िैन, बडिात्र्ा,
िर्परु
राष्ट्रीर् महामत्रं ी
िैन पत्रकार महासंघ
कण कण स्ितांत्र हैं.
हमें वित्त रागी नहीं
िीतरागी बनना हैं.
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नोट : इस लेख के लेखक श्री अमित िैन 'िलि' एम.एस-सी. बॉटनी टीकमगढ़ के मनवासी हैं और
आप अनेक पुरस्कारों से सम्मामनत हुए हैं मिनमे मवशेर् रूप से 1. प्रर्म राष्ट्रीर् आ ार्ष हस्ती करुणा
लेखक पुरस्कार (2013), 2. अमहंसा इटं रनेशनल शाकाहार एवं िीवदर्ा पुरस्कार (2008), 3. अनेक
राष्ट्रीर् एवं अंतराषष्ट्रीर् संगोमष्ठर्ों में शोध प्रस्तुमत, 4. मवगत 30 वर्ों से मवमभन्द्न पत्र पमत्रकाओ ं में
मवमभन्द्न मवधाओ ं में शतामधक र नाओ ं का प्रकाश एवं 5. करुणा क्लबों के माध्र्म से हिारों
मवद्यामर्षर्ों एवं सैकड़ों मशिको को मानवीर् मशिा का प्रमशिण दे रहे हैं.
िैन धमष पूरी तरह से िीवदर्ा पर आधाररत है। सम्पूणष िैन मव ार एवं आ ार िीवदर्ा को
पुि करते हैं अतएव हमें र्ह िानना िरूरी है मक हमारे िैसे मव ारों एवं कार्ों वाले मकतने व्र्मक्त है
तर्ा हमारी आराध्र् अमहंसा के पि में मकतने मवमध मवधान संस्र्ार्ें एवं लोकमप्रर् मसतारे हैं। नवीन
वैज्ञामनक तथ्र्ों के प्रामामणक प्रस्ततु ीकरण से एक बार मिर िीव िन्द्तु सरं िण की आवकर्कता एवं
शाकाहार की उपर्ोमगता मसद्ध की गई है और र्ह सब करते हुए कहीं भी िैन धमष का आर्ग्ह नहीं
मकर्ा गर्ा है। इस प्रकार से प्रस्तुत शोध आलेख में िैनत्व के प्रतीक िीवदर्ा की व्र्ापक मववे ना
की गई है।
अमहंसा, िीवदर्ा, करुणा इन समानार्ी शब्दों के मबना मकसी िीवन, धमष अर्वा र्ग्ंर् की
कल्पना करना भी कमठन लगता है और ूंमक मवज्ञान भी सत्र् का शोधक है अतः इसके मवमभन्द्न
तथ्र् भी अनवरत रूप से िीव दर्ा को पुि एवं प्रेररत कर रहे हैं।
(I) धमष एवं दर्ा :
सभी प्रामणर्ों पर दर्ा करो- कुरान शरीि
तुम िीव हत्र्ा नहीं करोंगे -ईसा मसीह
महसं ा मत करो - गरुु र्ग्न्द्र् सामहब
भगवान सब िीवों के हृदर् में रहता है – गीता
ना दूसरे िीवों को मारे न मारने की प्रेरणा दें-महात्मा बुद्ध
अमहंसा परमो धमष, परस्परोपर्ग्हो िीवानामध -िैन धमष
(II) महापुरूर्ों की महानता:
1. एलबटष मस्वटधिर 'प्रामणर्ों के िीवन की रिा करना महानतम गण ु है एवं िीवन को नि करना एवं
पीड़ा देना सबसे बुरा काम है।'
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2. महात्मा गांधी शद्ध ु शाकाहारी र्े। वे इग्ं लैण्ड में शाकाहार आदं ोलन से भी िड़ु े रहे हैं। अपने आश्रम
में सााँप को भी नहीं मारने देते र्े तर्ा अपनी पत्नी कस्तूरबा के िीवन को ब ाने के मलए भी मााँसर्क्त ु
और्मधर्ों से इन्द्कार कर मदर्ा र्ा।
3. मसध ं ी सतं टी. एल. वासवानी िीव दर्ा के ऐसे प्रमख ु प्र ारक हैं मिनको मााँस रमहत मदवस के
रूप में र्ाद मकर्ा िाता है।
4. एनीबीसेंट के अनुसार लोग कहते है मक हमारा पशओ ु ं पर अमधकार है वो हमारे उपर्ोग के मलए
बनार्े गर्े हैं (परन्द्तु ) तुम्हारा उन पर कोई अमधकार नहीं है। तुम्हारें तो उनके प्रमत कतषव्र् हैं।
5. मवश्नोई पंर् के गुरु िम्भेर्श्र ने अपने अनुर्ाइर्ों को िीवरिा हेतु बमलदान
होने के मलए प्रेररत मकर्ा।
6. इटली के ईसाई सतं सैंट फ्रांमसस सभी िीव िन्द्तुओ ं पर दर्ा करने का िीवन भर प्र ार करते रहे।
(III) मसतारों की सो (2) :
ममलेमनर्म महानार्क अममताभ बच न संसार के सबसे लोकमप्रर् शाकाहारी मसने मसतारे
हैं। िेम्स बांड हीरो पसष ब्रोसनान, देवानंद, एमलमसर्ा मसल्वरस्टोनस, शामहद कपूर, अमनल कुंबले,
र्ाना गप्तु ा, पामेला एन्द्डरसन ममन्द्दरा बेदी आमद अनेक लोकमप्रर् मसतारे भी िीवदर्ा प्रेमी,
शाकाहारी हैं।
(IV) मवमध मवधानों में िीवदर्ा
(क) अमेररका के राष्ट्रीर् अमभभावक अध्र्ापक सघं :
अमेररका के राष्ट्रीर् अमभभावक अध्र्ापक संघ ने 1933 में अपने घोर्णा पत्र में
कहा मक पशओ ु ं के प्रमत न्द्र्ार्, दर्ालतु ा एवं सहानभ
ु मू त रखने में प्रमशमित
बालकआपस में भी एक दूसरे के प्रमत सम्बन्द्ध रखने में बहुत ही न्द्र्ार्प्रद, दर्ालु
एवं मव ारवान होते हैं।' पशुओ ं के प्रमत दर्ालुता की भावना की मशिा व्र्ापक
मानव समाि, मिसमें सारी नस्लों एवं देशों के व्र्मक्त भी सम्ममलत है, के प्रमत ऐसे
व्र्वहार का प्रारमम्भक सोपान है ।
(ख) भारत का पशु िूरता मनवारण अमधमनर्म 1960 :
इसके अंतगषत मनम्नांमकत िूरतार्ें अपराध हैं
(1) पशुओ ं के सार् मनदषर्ता पूवषक व्र्वहार करना,
(2) पशु की िमता से अमधक उस पर भार ढोना,
(3) मकसी पशु को ऐसी मस्र्मत में ले िाना मिससे उसे अनावकर्क पीड़ा हो
(4) पालतू पशु को पर्ाषप्त खाना पीना, आश्रर् न देना,
(5) मनोरंिन हेतु पशुओ ं को परेशान करना इत्र्ामद ।
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(ग) भारत का समं वधान :
भारतीर् समं वधान के अनुच्े द 51A (g) में हमारा मूलभूत कतषव्र् मनम्नमलमखत
बतार्ा गर्ा है.
भारत के प्रत्र्ेक नागररक का र्ह दामर्त्व है मक वह प्राकृमतक पर्ाषवरण मिसमें वन, झीले,
नमदर्ााँ एवं वन्द्र् िीव िन्द्तु सम्ममलत हैं को संरिण एवं मवकास प्रदान करें और समस्त प्रामणर्ों के
प्रमत करुणा की सहानुभूमत का बताषव करें।
(घ) स्काउट एवं गाईड :
स्वतंत्रता के बाद स्व. मौलाना आिाद के प्रर्त्न से भारत में भारत स्काउटधस एण्ड
गाइडधस नामक सस्ं र्ा की स्र्ापना हुई िो अंतराष्ट्रीर् स्काउटधस एवं गाइडधस से
संबंमधत है। स्काउटधस गाईड का एक प्रमुख मनर्म मनम्नानुसार है
स्काउट-गाइड पशु-पमिर्ों का ममत्र एवं प्रकृमत प्रेमी होता है ।
(ड.) करूणा क्लब :
बच ों में िीवदर्ा के भावों को िागृत करने के मलए मवद्यालर्ों में करुणा क्लब
खोलने हेतु रािस्र्ान, गि ु रात, मदल्ली, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र एवं
हररर्ाणा की सरकारों ने मवमभन्द्न शासकीर् आदेश प्रसाररत मकर्े हैं
करूणा अंतराष्ट्रीर् ैन्द्नई पूरे देश में लगभग एक हिार मवद्यालर्ों में करूणा क्लबों के द्वारा
प्रेम पवू षक करूणा भाव िै ला रहा है। सल ं ग्न मवद्यामर्षर्ों तर्ा मवद्यामर्षर्ों को मनःशल्ु क पस्ु तकें देता
है।
भारत शासन द्वारा स्र्ामपत िीव िन्द्तु कल्र्ाण बोडष भी िीव िन्द्तओ ु ं पर दर्ा करने के
मानवीर् मशिा प्रमशिण कार्षिमों हेतु उदारता पूवषक अनुदान देता है।
(V) वैज्ञामनक व्र्ाख्र्ा :
(क) धमष मवज्ञान समन्द्वर्क
हमारे राष्ट्रपमत डॉ० अब्दुल कलाम देश के उच कोमट के वैज्ञामनक एवं शुद्ध
शाकाहारी व्र्मक्त हैं िो मक मशिा के सार् आध्र्ामत्मकता को ममलाने के प्रबल
पिधर हैं ।
प्रमसद्ध वैज्ञामनक िे. बी. एस. हाल्डेन अमहंसा के प्रमुख प्र ारक र्े। वे वैज्ञामनक
परीिणों के मलए िीव िन्द्तओ ु ं को उत्पीड़न पहुं ाने के सख्त मवरोधी र्े। िो प्रर्ोग
वे खुद पर नहीं कर सकते र्े वह दूसरे मकसी पर नहीं करते र्े ।
(ख) मानवेतर ममता
मनुष्ट्र्ों को मनुष्ट्र्ों के सार् अच्ा व्र्वहार करना ामहए इसे तो सब मानते हैं तर्ा
मानवीर् ममता को उसकी श्रेष्ठता के रूप में प्रमतपामदत मकर्ा िाता है परन्द्तु प्राणी
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मवज्ञानी हमें बताते है मक अन्द्र् प्राणी भी ऐसी ममता रखते हैं। अतः हमें इनके प्रमत
अपने िैसा व्र्वहार करना ामहए ।
(1) एक म्ली पहले मनर्ेम त अण्डों को और बाद में उनसे मनकले बच ों को अपने मुंह में सम्हाले
रखती हैं बच े मसर के आस-पास तैरते रहते हैं और खतरा भााँपते ही मााँ के माँहु की सरु मित खोह में
ले िाते हैं।
(2) अनेक ्ोटे पिी अपने ूिों को मदन में 11-12 बार खाना मखलाते हैं।
(3) भूरी सील मातार्ें अपने एक बच े को 17-18 मदन दूध मपलाती हैं।
(4) रीसस बंदरों में बड़े भाई बहन और मौसी भी बच ों की देखभाल करते हैं।
(5) बेबनू माता दो हफ्ते बच े को मवमभन्द्न सेलों में मशगल ू कर उसे ्ोड़कर र्ोड़ी देर तक िाती है,
मिर मुड़कर देखती है।
(ग) अमहंसक आहार : वैज्ञामनक आधार
सामत्वक आहार शाकाहार, मानव शरीर मवज्ञान, पर्ाषवरण मवज्ञान एवं स्वास्थ्र् मवज्ञान के
मनत नूतन अनुसंधानों के आलोक में सवषश्रेष्ठ बना हुआ है मिसके कारण अनमगमनत पशु पिी
असमर् काल के गाल में समाने से ब िाते हैं, ब सकते हैं।
(a) टी. बी. और बी :
हमारेसिे द रक्त कोमशकार्ें रोगाणु को िे गोसोम बंद करवाती हैं मिर इसे लाइसोसोम के
सपं कष में लाकर नि करवा देती हैं परन्द्तु टी. बी. का कीटाणु िे गोसोम को लाइसोसोम से
िुड़ने नहीं देता है और अन्द्दर बैठा बैठा बढ़ता रहता है।
र्रू ोमपर्न मामलक्र्ल ु र बार्ोलामिकल ररस ष िमषनी के एक अनस ु ध
ं ान के अनस ु ार वनस्पमत
तेलों में पाई िाने वाली बसार्ें एरेमपडोमनक अम्ल और सेरेमाइड िे गोसोम को लाइसोसोम
से िोड़ने में मदद करती हैं िबमक म्ली के तेल में पाई िाने वाली वसा इस मिर्ा में बाधक
होती है।
अर्ाषतध शाकाहार टी. बी. को रोकता है िबमक मांसाहार इस मारक रोग को बढ़ाता है। इस
शोध के प्रमुख गेरेर् मर्ग्मिथ्स के अनुसार शार्द इसीमलए खूब म्ली खाने वाले इनुइट
लोग टी. बी. से िल्दी र्ग्मसत हो िाते हैं । इस संदभष में र्ह तथ्र् ध्र्ान देने र्ोग्र् है मक भारत
में प्रमतवर्ष लगभग 5 लाख लोग टी.बी. से मर रहे हैं।
(b) कैं सर और शाकाहार :
इटं रनेशनल ऐिेन्द्सी ऑि ररस ष ऑन कैं सर के मनदेशक पॉल क्लीहाि के अनुसार पमश्चमी
देशों में 10 में से 1 मरीि िल और सब्िी नहीं खाने की विह से इस बीमारी की पेट में
आता है।
- अमेरीकी वैज्ञामनकों की एक अध्र्र्न ररपोटष के अनुसार र्मद लोग अमधक भुने हुए मांस
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तर्ा सड़ी बी न खार्ें तो उन्द्हें कैं सर होने की आशक ं ा बहुत कम रहेगी।
कै मलिोमनषर्ा मवर्श्मवद्यालर् के िीवन रसार्न मवभाग के अध्र्ि श्री ब्रूस एन एम्स ने बतार्ा
मक भोिन पकाने की प्रमिर्ा में खाद्य तेल और बी गोकत में मवकृमत बढ़ाते हैं मिससे इनके
सेवन में ऐसी कु् मवकृत मस्र्मतर्ााँ बनती हैं। मिनसे अनवु ांमशकी रव्र् िमतर्ग्स्त होते हैं और
शरीर में कैं सर होने की आशंका बढ़ िाती है ।
संतरे के रस और हरी समब्िर्ो में िोलेट नामक तत्व होता है िो स्तन कैं सर के खतरों को
कम करता है।
प्रमुख कैं सर रोधी और्मधर्ााँ: इवमनंग प्राइमरोि के बीि, लंदूसी नामक बूटी की पमत्तर्ों का
सलाद इत्र्ामद शाक पात हैं।
(घ) िैव मवमवधता संरिण हेतु िीव दर्ा :
सभी िीव िन्द्तु खाद्य श्रंखलाओ ं के द्वारा आपस में िुड़े हुए हैं तर्ा मकसी भी एक िीव के
अभाव में श्रंखलार्ें असंतमु लत हो िाती हैं। प्रकृमत में प्रत्र्ेक प्रिामत का महत्वपूणष स्र्ान है
परन्द्तु आि मानवीर् मलप्सा ने कई प्रिामतर्ों को मवलुप्त कर मदर्ा है मिससे पृथ्वी पर संकट
के बादल मडं राने लगे हैं।
लोगों का सबसे ज्र्ादा परेशानी कीड़ो मच्रों और कीटाणुओ ं से होती है मिनकी संख्र्ा
बढ़ती मदख रही है परन्द्तु र्े मबगड़ती खाद्य श्रंखलाओ ं के परीणाम हैं।
सांप ूहों पर मनर्त्रं ण रख कर मकसानों का भला करते हैं परन्द्तु मकसान उसे देखते ही मारने
को िुट पड़ता है। बहु से कीड़े मकोड़े िूलों को िलों में बदलते हैं परन्द्तु कीटनाशकों के
कारण र्े मर िाते हैं। इनसे ऐसे मटडधडे भी मरते हैं िो मच्रों पर मनर्त्रं ण रखते हैं। मेंढ़कों को
मारकर मवदेश मनर्ाषत मकर्ा िाता है िो मच्रों पर मनर्त्रं ण रखते हैं इसी प्रकार म्मलर्ााँ
भी मच्रों की वृमद्ध पर मनर्ंत्रण रखती हैं मिनको लोग िूरता पूवषक नि करने पर तुले हैं।
बरसात में आने वाले मबिली के कीड़े भी असतं मु लत खाद्य श्रख ं ला के प्रत्र्ि पररणाम हैं।
मकसी भी प्रिामत के कम होने का असर हम देख सकते हैं उसके सदा के मलए समाप्त होना
तो म न्द्तािनक है ही और अनेक िीवों की प्रिामतर्ों का लगातार लुप्त होना भर्क ं र है।
राबटष में के मतानुसार 'मप्ले 100 वर्ों में इस ं ानों के अवतरण से पूवष की रफ्तार की तुलना
में प्रिामत मवलुप्तीकरण रफ्तार 1000 गुना हो गई है तर्ा अगली सदी में र्ह दस गुना और
बढ़ िार्ेगी।
पर्ाषवरण मवज्ञान के प्र ार-प्रसार की आवकर्कता आि पूरे संसार में महसूस की िा रही है
और र्ह मवज्ञान पूणषतः िीव दर्ा को बढ़ावा देने वाला है। वस्तुतः हम कु् मवमशि दुलषभ प्रिामतर्ों
के संरिण की र्ोिना न बनाकर िीव मात्र के प्रमत करूणा, सुरिा के कार्ष पर िुटें तभी कु् सार्षक
सामने आ सके गा
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
मनष्ट्कर्ष :
दुमनर्ा भर के धगष, महापुरुर् मसतारे, संमवधान मवज्ञान िीवदर्ा को िीवन के मलए आवकर्क
मानते हैं। करूणा और अमहंसा पर कार्ष करने वाले व्र्मक्त सब िगह है परन्द्तु कहीं पर भी
मकसी भी स्तर पर कार्षकताष, सस्ं र्ार्ें सगं मठत हैं। अगर सब लोग सक ं ीणषताओ ं से उठकर
एक मं पर आकर पृथ्वी और प्रकृमत को ब ाने के मलए कार्षर्ोिना बना सकें तो िीवन
भी ब ेगा, िीव भी ब ेंगे और मनुष्ट्र् िीवदर्ा के द्वारा सुख संतोर् के सार् िी सके गा।
आभार :
मैं करुणा अन्द्तराषष्ट्रीर् के अध्र्ि श्री दुली न्द्द िैन सामहत्र् रत्न ैन्द्नई का आभारी हूाँ मिनके
मागषदशषन में, मैं मवद्यामर्षर्ों के बी िीव दर्ा के प्र ार कार्ष में सल ं ग्न हो सका तर्ा अब इस िेत्र
में शोधपरक कार्ों की ओर उन्द्मुख हूाँ ।
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ु दाई है.
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Next Generation.
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ु दाई है.
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A Letter to
Friends
Dear Friends,
Jai Jinendra. Excellent! I am very very
happy to note that you have fulfilled your
commitments towards yourselves. BRAVO!
You all have won my heart and in turn I am feeling proud of you all for the
various Oaths (Niyams) taken by you, my little friends, and your parents along with
other family members too! They had provided the support to fulfil your Oaths. It is still
continued and this resulted in the DAILY NIYAM, as you have developed strong will
power. It is a well defined self control towards the path of liberation viz. MOKSHA.
“Aacharya Bhagwan 108 Shri Vishuddha Sagar ji Maharaj always says that
– “DHARM TO KIYA NAHI JAATA, VAH TO APNE AAP HO JATA
HAIN.” It just happens. So, we should continue and follow the instructions given by
ARIHANT Bhagwaan. by just having a small concentration/focus on our daily
routine work, how the DHARM is fulfilled without doing any extra efforts.
Yours Friend
P. K. JAIN ‘PRADEEP’
You can reach me: - EDITOR-NAMOSTU CHINTAN
+91 9324358035
E-MAIL:
pkjainwater@gmail.com
namostushasangh@gmail.com
WEBSITE : WWW.VISHUDDHASAGAR.COM
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
नोट : कुछ तकवनकी िजह से इस अांक में भी वचत्रकलाएां प्रकावशत नहीं हो रही
हैं. हम सभी बच्चों को आश्वासन देतें है वक अगले अांक में उन्हें प्रकावशत करें ग.े
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ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
आि सुबह काम पर मनकल रहा र्ा तभी घर में कु् हल ल सी लगी, िैसे कोई अप्रत्र्ामशत
कोई अनहोनी घटना हो गर्ी हो।
मैं बैठक में गर्ा तो वहााँ मेरे स्वगीर् मपतािी के परम ममत्र के सुपुत्र अर्ग्वाल िी मेरे पररवार
के सार् बैठे हुए र्े और उनके मार्े पर बल पड़े हुए र्े। मवगत 80 वर्ों से हमारे और अर्ग्वाल िी के
पररवारक ममत्रता के सबं ंध रहे है। इनके पास पीमढ़र्ों से अकूत धन संपदा रही है।
मूलतः इनका खानदानी व्र्वसार् ब्र्ाि पर धन देना र्ा। इसके एवि में र्े लोग
मकान/दुकान/िेवर आमद मगरवी रखवा मलर्ा करते र्े। 20 सालो से र्े मसमवल कॉन्द्रेक्टर र्े हमारे
शहर में।
र्े वो भैर्ा र्े िो करीब 8–10 साल से हमारे घर नही पधारे र्े और इनके व्र्वहार में घमंड
की अमत रहती र्ी सदा, तो मन मे और भी अमधक उत्सक ु ता िागी। इन िैसे व्र्मक्त की अस्त व्र्स्त
दशा देखकर मुझसे रहा नहीं गर्ा और वे िैसे ही घर से गर्े, मैं मााँ से पू् बैठा:
"मााँ! सब कुशल मंगल ना!! र्े भैर्ा आि अपने र्हााँ इतनी सुबह मकसमलए आर्े िो कभी
सीधे मुाँह बात तक नही करते र्े?"
उसपर उन्द्होंने िो बतार्ा वो मेरे मलए घोर आश्चर्ष र्ा!
अर्ग्वाल िी मप्ले पााँ सालों में शेर्र बाज़ार में बरु ी तरह बबाषद हुए और करीब 20 करोड़
रुपर्े स्वाहा हो गए। नगर मनगम के िो कॉन्द्रैक्ट मलए और पूरा मकर्ा, उस काम का भुगतान कममश्नर
ने रोक मदर्ा मिससे इनको और बड़ा झटका लगा। कामों को पूरा करने के मलए इतने बड़े सेठ को
बाज़ार से सूदखोरों से रुपर्े 40 लाख लेने पड़े। और अब वो 40 लाख रुपर्े ब्र्ाि बढ़ते बढ़ते 70
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लाख हो गए है। इनके पास खाने के पैसे भी नही ब े है और इसीमलए र्े अपना आलीशान बगं ला
बे रहे है! मुझे एक झटका सा लगा। लेमकन मााँ ने िो आगे बतार्ा वो बहुत बड़ा झटका र्ा, ऐसा
आश्चर्ष र्ा मिसने र्े मलखने पर मिबूर कर मदर्ा मुझे! मााँ ने बतार्ा:
आि से करीब 50 साल पहले एक गरीब बढ़ू ी ममहला ने बड़े अर्ग्वाल िी से 40 रुपर्े उधार
मलए र्े और उसके एवि में अपनी ांदी की मोटी मोटी पार्ल, झुमके , ैन आमद इनके पास मगरवी
रख दी र्ी। वो बूढ़ी मााँ ने खून पसीना एक करके तीन ार सालों में 40 रुपर्े मर् ब्र्ाि ुका भी
मदए, लेमकन र्े अर्ग्वाल िी के मन मे ोर समा गर्ा। र्े उसको झठू े महसाब मकताब बताकर िबरन
ब्र्ाि बढ़ाते रहे और उसके िेवर देने से साि मना कर मदर्ा। कु् महीनों के संघर्ष के बाद वो बूढ़ी
मााँ र्क गई!
हमारा मनवास पास ही मे र्ा और मैं भी नई नई शादी करके आर्ी र्ी तेरे पापा के सार्। उस
मदन वो बूढ़ी मााँ अर्ग्वाल िी के घर आई और िुट िुट के रोई। रोते रोते बस एक बात बोल रही र्ी:
“तेरा सवषनाश होगा! मेरे 40 रुपर्े तेरे कण कण से मनकलेंगे! नही ामहए मेरे को मेरे िेवर!
तू रख अब! तेरी तबाही का कारण होंगे मेरे र्े िेवर!" और दो मदन में वो बूढ़ी अम्मा इस दुमनर्ा से
ल बसी! वो 40 रुपर्े र्े िो आि प ास सालो में 40 लाख मल ू धन + 30 लाख ब्र्ाि होकर 70
लाख हो गए है। इन 70 लाख की विह से अर्ग्वाल िी की िीते िी मरने वाली हालात हो गर्ी है
बेटा!”. मैं अवाक! सुना र्ा आितक की ऊपरवाले की लाठी में आवाज़ नही होती, मगर आि
प्रत्र्ि र्ा मेरे सामने सब कु् । न्द्र्ार् है ऊपरवाले की अदालत में!
मशिा:- िो लोग दूसरे लोगो का पैसा खा िाते है, रस्ट के महसाब में गडबडी
करते है उनको कभी ना कभी ब्र्ाि के सार् ुकाना ही होता है, इसमलए
ईमानदारी से रहो | कमष से बड़ा कोई ईमानदार नहीं हैं | र्ह िैन दशषन का मौमलक
कमष मसद्धांत हैं | िो िैसा करता है उसको वैसा ही िल ममलता हैं |
प्रस्तुमत :
श्रीमती मंिू पी. के . िैन
न्द्र्ास सदस्र् ( रस्टी )
नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.) मुंबई.
ठाणे, मबुं ई, भारत.
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नोट : मप्ले अंक से हमने गोम्मटे र्श्र बाहुबली नामक कॉममक्स का शभ ु ारम्भ मकर्ा र्ा. कई बच ों
ने व्र्मक्तगत रूप से हमें िोन करके इस कॉममक्स के मलए बधाईर्ााँ भी दी हैं. इसमे हमारा कु् भी
नहीं हैं बमल्क आपका मनवेदन र्ा. अतः आपके धमष के प्रमत लगाव को देखते हुए इस कॉममक्स को
दो भागों में प्रकामशत करने का प्रर्ास मकर्ा हैं. आपको र्ह कॉममक्स पसदं आई है आप िोन न
करें बमल्क आप अपने मव ार आपकी अपनी भार्ा में हमें मलखकर िरुर भेिें और उसे हम आगामी
अंक में प्रकामशत करेंगे. हम आपको िोन के मलए मन नहीं कर रहें हैं परन्द्तु िब आप हमें मलखते हो
तो वह पत्र हमें ऊिाष प्रदान करता हैं. और सबसे महत्व पूणष बात आपकी इस भावना को पूणष करने
में हम सबके मप्रर् मदगम्बरा ार्ष श्री मवशुद्ध सागर िी महाराि के सुर्ोग्र् मशष्ट्र् ‘प्रसन्द्न मन’ श्रमण
श्री प्रणुत सागर िी महाराि का मवशेर् मागषदशषन और सहर्ोग रहा हैं और हम सभी उनके अत्र्तं
ऋणी हैं. तो लीमिर्े आपका और अमधक समर् न लेते हुए आपके समि प्रस्तुत हैं - गोम्मटेर्श्र
बाहुबली नामक कॉममक्स का दूसरा भाग और आप इस पर अपने मव ार िरुर मलखकर भेिें –
आपका प्रधान संपादक : पी. के . िैन ‘प्रदीप’.
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ु दाई है.
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ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
नोट: अब तक आपने इस कॉवमक्स के पहले भाग को पढ वलया हैं कैसे भारत
स्िामी अपने छोटे भाई बाहुबली से जल युद्ध में भी हार जाते हैं. अब इसका अगला
भाग और अांवतम भाग प्रकावशत वकया जा रहा हैं. इस कॉवमक्स पर अपनी राय
और विचार जरुर वलख भेज.ें प्रर्ान सांपादक - पी. के. जैन ‘प्रदीप’.
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मवशुद्ध व न :
हमें मनि घर में कै से रहना हैं
र्ह मााँ मिनवाणी हमें बतलाती हैं
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ु दाई है.
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नोट : िैसा मक आप सभी को मवमदत है, गत माह के अंक में हमने आपको कु् परु ातत्व की दृमि से
मवमशि शोध समहत साक्ष्र् और िानकारी देने के मलए बतार्ा र्ा. अब इतं िार की घमड़र्ााँ ख़त्म हो
गई हैं तो लीमिर्े प्रस्तुत है ................ “नवागढ़ मवरासत” पर मवस्तृत िानकारी ......
Note : You are well aware that in the last month’s issue we had informed you that
we shall be presenting some information with details on acheological survey of …...
“NAVAGARH VIRASAT”
सौिन्द्र् : Curtsey:
पररकल्पनाकार – ब्र. िर्कुमार िैन ‘मनशांत’,
टीकमगढ़, मध्र् प्रदेश.
मवशेर् सहर्ोग : पं. गुलाब न्द्र पुष्ट्प प्रमतष्ठा ार्ष
स्ममृ त रस्ट, टीकमगढ़, मध्र् प्रदेश.
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प्रागैमतहामसक साक्ष्र् :
8 अप्रैल 1959को पं. गुलाब ंर पुष्ट्प एवं सामर्र्ों द्वारा अन्द्वेमर्त नवागढ़ िेत्र के प्रांगण में कई
मिनालर्ो के अवशेर्, शतामधक खंमडत प्रमतमाए,ं कलाकृमतर्ााँ तर्ा 8 सांगोपांग प्रमतमाएं प्राप्त हुई
र्ी. अन्द्र् साक्ष्र् मनम्न है, र्र्ा –
• पुरापार्ाण कालीन औिार (2 से 5 लाख वर्ष प्रा ीन)
• शैलाश्रर् (हिारो वर्ष प्रा ीन)
• पेरोमलक कप माकष (10 हज़ार वर्ष प्रा ीन)
• रॉक पेंमटंग्स (8 हज़ार वर्ष प्रा ीन)
• रॉक आटष (गुप्तकाल-तीसरी सदी)
• ममिी पार्ाण के मनके (2 हज़ार वर्ष प्रा ीन)
• प्रमतमाएं (प्रमतहार काल से आि तक)
PREHISTORIC EVIDENCES
It was 8 April 1959. Sage Gulabchandra Pushp & his friends investigated
Navagarh’s surroundings & found many things in form of left fragments of Abodes
of Jina, broken idols of Jina - more than hundreds in number, Various art works
and up to the mark idols eight in number.
Mentioning below the other evidences -
Palaeolithic age-Tools ( 2 to 5 lakh Years Old)
Rock shelters (Thousand Years old)
Petrolic Cup Park (10 Thousand Years old)
Rock Painting (8 Thousand Years old)
Rock Arts (Gupta era - 3rd century)
Soft & Stone Beads (2 Thousand years old)
Jina Idols (from Pratihar era till date)
टौररर्ा High Mounds
मैनवार टौररर्ा Mainvår Mounds
मडुं ी टौररर्ा Mundi Mounds
सापौन टौररर्ा Saapoun Mounds
मसद्धों की टौररर्ा Liberated Souls' Mounds
बगाि टौररर्ा Bagaaj Mounds
िैन टौररर्ा Jain Mounds
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शैलाश्रर् Rock-Shelters
साधना शैलाश्रर् for Spiritual Performings
आ ार्ष शैलाश्रर् for Acharyas (Heads)
उपाध्र्ार् शैलाश्रर् For Upadhyayas Spiritual Mentors)
साधु शैलाश्रर् For Sadhus (Knotless)
अध्र्र्न शैलाश्रर् for study purpose
शर्न शैलाश्रर् for Rest
शीर्ष Heads
रािकुमार अरनार् शीर्ष Emperor Arnath's
तीर्ंकर शीर्ष Teerthankar's
तीर्ंकर माता शीर्ष Teerthankar's Mother's
रािाओ ं के शीर्ष Emperor
महारानी शीर्ष Queens
सामंत शीर्ष Knights'
सामान्द्र् शीर्ष Ordinaries'
रॉक्स Rocks
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कलात्मक शीर्ष
नवागढ़ में संगृहीत मवलिण, मनोज्ञ,
म त्ताकर्षक, मवमभन्द्न शासकों, सामंतों,
महारामनर्ों, ममहलाओ ं के शीर्ो से र्ह
रािनैमतक, शैिमणक, व्र्ावसामर्क
महानगर मसद्ध होता है। इन मवमभन्द्न मक
ु ुट
शीर्ों की कला एवं मशल्प परु ातामत्वक,
सांस्कृमतक एवं ऐमतहामसक दृमि से अमत
महत्त्वपूणष है ।
इन शीर्ों का रासार्मनक सरं िण अमनवार्ष
है।
Artistic Heads
Navagarh is awarded as Political,
Academic and commercial
Metropolitan city. Credit for Some
good to stone-Heads- founding.
They belong to Various Rulers,
Knights, Queens and ordinary Women. They are remarkable, good looking and
minds attracter. The art and craft of various crowned heads are very crucial role
from Archaeology, Cultural and Historical point of view.
The chemical Protection of Said Heads is needed.
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सरं मित ममू तष मशल्प
नवागढ़ में संगृहीत मद्वशतामधक मूमतष
एवं कलामशल्प मवशाल मिनालर्ों
में सुन्द्दर, मनोज्ञ, आकर्षक, प्रा ीन
मदगम्बर प्रमतमाओ ं के सार् नगरीर्
सभ्र्ता, िैन बाहुल्र् िेत्र
रािनैमतक, परु ातामत्त्वक नगर की
स्र्ापना के साक्ष्र् हैं।
उपरर-पररकर में सम्पण
ू ष
कलात्मकता दृिव्र् है। र्र्ा-
मत्र्त्र, मृदगं वादक, अमभर्ेक करते
गिराि, सम्पूणष कलश, तीर्ंकर
समूह आमद शोभार्मान एवं
म त्ताकर्षक हैं।
Secured Idol-crafts
Navagarh consists of
approx., Two hundred plus
idols having awesome
craftism. Such detached idols
are good looking, attractive,
ancient and representing
Jainism on prominent and
bulk Stuff basis, with that
existence of Political and
Archaeological Point of view.
Idol consists of various art
work on upside, three
Parasols, drum player,
Elephants performing
Coronation, full urn, Various
Jina idols and attracting
minds of all.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
Web site: www.vishuddhasagar.com Page 152 of 168
प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
परु ातन वर्ृ भ रर्
अि धातु से मनममषत लघुकार् वृर्भ रर् की
सम्पूणष र ना मनोज्ञ एवं आकर्षक है।
वृर्भ, सारर्ी, पमहए एवं मशखर के सार् सम्पूणष
रर् भारतीर् कल एवं सांस्कृमतक मवरासत का
मवमध मशल्प है।
Archaic Taurus Chariot
Metallic Small sized Taurus Chariot is
really awesome and point of attraction.
The chariot consists of Bulls, Controller, wheels, Pinnacle and all. It is representing
Indian Craftism and best ever craft belongs to cultural Heritage.
िीवनोपर्ोगी उपकरण
नवागढ़ में खनन से प्राप्त धातु उपकरणों के सार्
िीवनोपर्ोगी सामर्ग्ी र्र्ा- लकड़ी की पोली,
ौमर्र्ा पैला (अनाि मापक उपकरण), लकड़ी
की परात तौलने के बााँट, धातु की ुनौटी, घोड़ा,
महरण, वृर्भ, पानदान, श्रृंगारदान, मप कारी,
दवात, कलश एवं कांसा, तांबा, पीतल के रसोई
के बतषन संगहृ ीत हैं।
Eco-friendly equipment’s
Mining Process comes up with various metallic equipment’s, with that eco-friendly
equipment’s too in form of Wooden Pole, chouthiya Poila (A type of equipment
measures grains), wooden Platter, weighing weights, metallic Tobacco lime box
Horse, Deer, Bull, Betel case, Makeup box, water gun, Ink pot stand, urn and
various utensils made up of Bronze, copper and Brass.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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कच्प मशला
नवागढ़ से 3 मकमी. दूर पमश्चम में िाईटोन मशलाओ ं के
मनकट िैन पहाड़ी पर 25 िीट लम्बी, 15 िीट ऊाँ ी कच्प
मशला मस्र्त है।
मशला के अधोतल में ब्र. िर्कुमार 'मनशांत' द्वारा अन्द्वेमर्त
"म तेरों की ंगेर" के नाम से प्रमसद्ध शैलम त्रों की श्रख
ृं ला
प्राकृमतक रंगों से बनाई गर्ी र्ी. िो संरिण के अभाव एवं
मौसम की प्रमतकूलता से ित-मवित हो ुकी है।
Tortoise shaped Rock :
Tortoise Shaped Rock is Placed near faiton rocks in west side. It is twenty-five. ft.
in length and fifteen feet tall. Resting place is three kilometres far away from
Navagarh. Celibate Jayakumar ‘Nishant’ found Rock Painting named ‘Chiteron
ki Changer’. It is with natural multicolours and got spoiled due to non-securing
and non-favourable atmosphere.
ंदेलकालीन बावड़ी
िेत्र के पूवष में 500 मीटर की दूरी पर 1000 वर्ष
प्रा ीन 40 िीट ौड़ी एवं 35 िीट गहरी, ईटं एवं
पार्ाण से मनममषत बावड़ी ंदेल शासक
मदनवमषन की धरोहर है, िो रख-रखाव के अभाव
में नि होने की कगार पर र्ी, मिसका िीणोद्धार
नवागढ़ समममत के प्रर्ास से मकर्ा गर्ा है।
इस बावड़ी में दोनों ओर से सीमढ़र्ााँ इस प्रकार
मनममषत की गई हैं मक व्र्मक्त पानी की सतह तक
िाकर पानी ला सकता है।
Step well during Chandel Era: Madan
Varman - The ruler of Chandel
Constructed step well before thousand years at east side of Navagarh pilgrim
centre having distance gap of half kilometres. It is 40 ft. broad and 35 ft. deep. It
was on the stage of spoiling due to improper upkeeping, but Navagarh "Committee
members renovated it. stairs are constructed on both the side. Anyone can move
& draw water easily.
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ु दाई है.
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शैलम त्र
मानवीर् सभ्र्ता का उत्र्ान पुरा पार्ाण काल से वतषमान तक सदैव मवकासशील रहा है। प्राकृमतक
वन्द्र् िीवन-र्ापन करते हुर्े मानव ने गुिाओ ं एवं कंदराओ ं का आश्रर् बनार्ा, वहााँ रहते हुर्े उन्द्होंने
प्राकृमतक रंगों से उस काल के पररवेश का म त्रण करते हुर्े वन्द्र् पशु, िल-िीवन, प्राकृमतक दृकर्ों
को मुख्र्ता से अंमकत मकर्ा है।
इस मवधा से नवागढ़ की िैन पहाड़ी पर मस्र्त कच्प शैला मवमभन्द्न शैलम त्रों के समूहों में िैनदशषन
के मवशेर् आर्ाम र्र्ा वृर्भ, पं महाव्रत, कर्ार्मनर्ग्ह, मनर्ीमर्का, के वलज्ञान सूर्ष मसद्धत्व का
सांकेमतक म त्रण मकर्ा गर्ा है।
नवागढ़ में उत्खनन से प्राप्त प्रा ीन ताम्र मुरार्ें भी दशषनीर् हैं
Rock Paintings :
The Progress of Human Civilization is always on boom from palaeolithic age till
date. Human being constructed Caves & Moorlands to live natural life. They draw
the scenes of various households’ activities, animals and scenes belong to nature
using natural colours.
Tortoise shaped resting rock on Jaina Mountain of navagarh consists various Rock
paintings in relation to main concepts of Jainology viz. Taurus, five great Vows,
Subsidence of Passionate thought process, enunciator Death Place, temples & all
(Nishithika), Omniscient Sun & Libera table ship.
Copper Currencies took place after Mining Process at Navagarh also the point of
attraction.
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ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
परु ातत्त्वान्द्वेर्क : Archaeologists :
श्री नीरि िैन, सतना सनध 1961 Mr. Neeraj Jain, Satna year 1961
डॉ. ए. पी. गौड़, लखनऊ सनध 2013 Dr. A.P. Gaur, Lucknow year 2013
डॉ. कस्तूर न्द्र सुमन, श्रीमहावीर िी, सनध 2013 Dr. Kastoorchandra Suman,
Shri Mahaveerji year 2013
बा. ब्र. िर्कुमार िैन 'मनशांत', टीकमगढ़ Bal Br. Jaykumar Jain 'Nishant", Tikamgarh
सन 2014, 2018 year 2014,2018
डॉ. स्नेहरानी िैन, सागर सन 2015 Dr. Snehrani Jain, Sagar, year 2015
डॉ. भाग न्द्र भागेन्द्दु, दमोह सन 2015 Dr. Bhagchandra Bhagendu, Damoh,year 2015
डॉ. के . पी. मत्रपाठी, टीकमगढ़ सन 2015 Dr. K. P. Tripathi, Tikamgarh year 2015
डॉ. एस. के . दुबे, झांसी सन 2016 Dr. S.K. Dubey, Jhansi year 2016
श्री नरेश पाठक, ग्वामलर्र सन 2016 Mr. Naresh Pathak, Gwalior year 2016
श्री हररमवष्ट्णु अवस्र्ी, टीकमगढ़ Mr. Harivishnu Awasthi, Tikamgarh year 2016
सन 2016
डॉ. मगररराि कुमार, आगरा (राष्ट्रीर् सम व, Dr. Giriraj Kumar, Agra (National Secretory
रॉक आटष सोसाइटी ऑि इमं डर्ा) Rock Art Society of India)
सन 2017, सनध 2018 year 2017, 2018
डॉ. बी. व्ही खरबड़े,एन.आर.एल.सी. Dr. B. V. Kharbade N.R.L.C.
लखनऊ-सनध 2017, Lucknow year 2017
डॉ. मारुमत नंदन प्रसाद मतवारी सनध 2018 Dr. Maruti Nandan Prasad Tiwari yr2018
(ऐममरेटधस प्रोिे सर, काशीमहन्द्दूमवर्श्मवद्यालर्) (EmiratesProf., KashiHindu University)
डॉ. एस. एस. मसन्द्हा, वाराणसी सनध 2018 Dr. S.S. Sinha, Varanasi, year 2018
डॉ. अमपषता रंिन सनध 2019 Dr. Arpita Ranjan year 2019
(भारतीर् पुरातत्त्व सवेिण, मदल्ली) (Indian Archaeology Survey," Delhi)
डॉ. ब्रिेश रावत, लखनऊ सनध 2020 Dr Brajesh Rawat Lucknow, year 2020
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
कार्ोत्सगष मरु ा
िैन पहाड़ी के साधना शैलाश्रर्
में गुप्तकालीन उत्कीणष साधु की
कार्ोत्सगष आकृमत र्हााँ
मदगम्बर सतं ों की तीसरी सदी के
पहले से श्री मवहार की साक्ष्र् है।
इसी गुिा की दूसरी िान पर
उत्कीणष र्ुगल रण म न्द्ह
मदगम्बर सतं ों की साधना एवं
प्रवास स्र्ली के साक्ष्र् हैं।
Mortification, or yogic
Posture
Ritual Practice
Performing. rock shelter
on Jain hills Consists
mortification Posture
image of knotless saint. It
represents travelling of
Skyclad (Digambar
Munis) from 3rd century
before.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
अमभलेखीर् साक्ष्र्
र्हााँ प्रमतहार कालीन (सातवीं सदी)
मूमतषर्ों के सार्
संवतध 1123 के ऋर्भदेव
संवतध 1188 के उपाध्र्ार्
सवं तध 1195 के महावीर
सवं तध 1202 के शांमतनार्
संवतध 1203 के मानस्तंभ
संवतध 1490 की ौबीसी
संवतध 1548 के लघु पार्श्षनार्
संवतध 1586 के ताम्र पार्श्षनार्,
संवतध 1885 के मवमलनार् समहत
सवं तध 2072 तक प्रमतमष्ठत
कई ममू तषर्ााँ वेमदर्ों में मवरािमान हैं।
Recorded Evidences :
Idols belong to Pratihaar era
(seventh century)
Era 1123 - Rishabhdev
Era 1188 - Upadhyaya
(Spiritual Mentor)
Era 1195- Mahaveer
Era 1202 - Shantinath
Era 1203 - Manastambh
(subduing Pillar)
Era 1490 - Chaubisi (Twenty
four teerthankar)
Era 1548 - Small sized lord
Parshvnath
Era 1586 - copper Metallic
Parshvnath
Era 1885- with lord Vimal
Nath
Era 2072 Many installed idols
are placed till 2072.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
रहस्र्मर् शैलाश्रर्ों
के आत्मसाधक
िुल्लक श्री
म दानंद िी
महाराि
आपने स्वप्रेरणा से
सनध 1965 एवं 1966
में नवागढ़ में 2
ातमु ाषस मकर्े।
आप आहार र्ाष के
पश्चातध बीहड़ में दो-
दो, तीन-तीन मदनों
के मलए प्रस्र्ान कर
िाते र्े, पर साधना
स्र्ली कहााँ एवं क्र्ा
र्ी? र्ह
र्ग्ामीणिनों के मलए
रहस्र् ही र्ा,
क्र्ोंमक खोिने पर
भी आपका पता
नहीं ममलता र्ा। इस
रहस्र् का उद्घाटन
वतषमान में ब्र.
िर्कुमार िी
'मनशांत' द्वारा
अन्द्वेमर्त संत शर्न एवं साधना शैलाश्रर् के माध्र्म से हुआ।
Spiritual Austere of Mysterious Rock-Shelter - Kshullak Shri Chidanandji
Maharaj : He passed two rainy seasons in Navagarh (Year 1965 & 1966) by own
will. After intake of food, he used to move Moorlands, but local resides were
unaware about your resting place. It was mysterious stuff for villagers. Celibate
Jaykumar "Nishant' in curtained such mystery by founding some symbols at
religious Performing rock shelter.
He in curtained the deep concepts of Jainology and delivered same to Jains & non-
Jains. He adopted the doings related to non-violence & beyond evil pursuits.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
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प्रमत ,
"नमोस्तु म ंतन "अंक िुलाई २०२२ "गुरु पूमणंमा एवं वीर शासन िर्ंती "अंक पढ़ने ममला -
इ-पेपर में धन्द्र्वाद .
अंक बहुत ही ज्ञानवधषक और बहुत ही श्रेष्ठ िानकाररर्ों से पररपूणष हैं .
आ ार्ष श्री मवशुद्ध सागर िी के सामहत्र् पढ़ने का सौभाग्र् ममलता रहता हैं.
गरुु पमू णंमा पर िो लेख आपके द्वारा मलमखत है,बहुत ही पठनीर् हैं. पमत्रका स्तरीर् हैं.
मेरी आपको हामदषक शुभकामना.
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ु दाई है.
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श्रीमान पी. के िैन साहब
प्रधान सम्पादक
नमोस्तु म ंतन
सादर िर् मिनेन्द्र
महोदर्,
“आओ ! बने भगवान गुरु कृपा से”. भगवान बनने की तैर्ारी में अगला कदम का
सम्पादकीर् पढ़ा. पढ़कर आत्मसात हुआ मक आपका एक एक शब्द गुरु के प्रमत समपषण और सभी
को मोि मागष की ओर बढ़ने के मलए प्रेररत कर रहा है । आपने कु् पंमक्तर्ााँ मलखी हैं उनसे मन बहुत
ही प्रभामवत हुआ है िैसे -
गुरु तेरे उपकार का, कै से ुकाऊं मैं मोल |
लाख कीमती धन भला, गुरु हैं मेरे अनमोल ||
मबना गुरु नहीं होता िीवन साकार, सर पर होता िब गरुु का हार् |
तभी बनता िीवन का सही आकार, गुरु ही है सिल िीवन का आधार ||
आपने माह िल ु ाई के अंक में िो सम्पादकीर् मलखा हैं, वह तो ‘आई ओपनर’ ही हैं. आपके
इस लेख से न मसिष समपषण मदखाई मदर्ा बमल्क आपके द्वारा िो कहा िाता हैं , मलखा िाता हैं
उसका कारण भी समझ में आ गर्ा. मुझे र्ाद हैं आपने कु् माह पहले एकलव्र् और रोणा ार्ष के
बारे में मलखा र्ा. अब समझ में आर्ा मक आप हमेशा अपने आगे अपने गुरु आ ार्ष श्री मवशद्ध ु
सागर िी महाराि का नाम लेकर ही क्र्ों आगे बढ़ते हैं ? वे तो मनर्ग्षन्द्र् हैं और िहााँ तक हमने उनको
िाना हैं वे तो सदैव कत्ताषपना से दूर ही रहते हैं, मिर भी आप उनका ही नाम लेते हैं. र्ह वास्तव में
आपका समपषण उनके प्रमत और अरहंत के प्रत्र्ेक उपदेश, मिनवाणी का सािातध मिर्ा रूप है. और
र्ह सब पढ़कर हमें वतषमान भव को सदधकार्ों में लगाकर मनर्ग्षन्द्र् होकर सल्लेखना समहत समामध
मरण को प्राप्त करने की ओर मनदेमशत कर रहा है िो मक अपने आपमें प्रशस ं नीर् है. आपने अगस्त
माह का अंक भी समर् के अनुसार अमहंसा और स्वतंत्रता पर प्रकामशत करने का मनणषर् मलर्ा हैं
उसके मलए अमर्ग्म बधाईर्ााँ स्वीकार करें. आपके प्रत्र्ेक अंक की उत्सुकता बनी रहती हैं. और बच े
भी अब पमत्रका को पढ़ने लगे हैं. र्ह आधाररत करता हैं मक आपकी पमत्रका की उपर्ोमगता.
शुभ कामनाओ ं समहत
भवदीर्
उदर्भान िैन,िर्पुर
राष्ट्रीर् महामंत्री
िैन पत्रकार महासंघ
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ु दाई है.
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हॉनरेबल श्री पी. के . िैन "प्रदीप" सर
अंतराषष्ट्रीर् अध्र्ि,
नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.)
प्रधान सम्पादक, नमोस्तु म न्द्तन
सादर नमस्कार.
मवशेर्ांक “गुरु पूमणषमा एवं वीर शासन िर्ंती” ररसीव मकर्ा. इस बार भी बहुत ही
मुमककल से समझ में आर्ा. आप बताते है तो ही समझ में आता है. िे सी ने मम. रर डष एलेंबगष को
भी बतार्ा र्ा िैसा आपने बतार्ा र्ा. मिर िेसी ने आपसे बात भी करवा दी र्ी. वे भी बहुत
प्रभामवत हो गए हैं.
िेसी ने तो नॉन-वेि के कारण अपनी समवषस ्ोड़कर दूसरी ज्वाइन कर ली हैं. वह बहुत खुश
हैं नई समवषस को लेकर. अब उसको पहले से भी अमधक सैलरी ममल रही हैं. वह र्ह समझ रही हैं मक
आपके गुरुदेव का उसको, हमको सभी को ब्लेमस्संग्स ममल रही हैं इसमलए उसकी इनकम अमधक
हो रही हैं. हमारा र्ह सन्द्देश गुरुदेव को दे देना.
मम. रर डष एलेंबगष के कु् और प्रश्न हैं वे आपसे बात करेंगे. उनको आपसे बात करके बहुत
ही गुड िील हुआ. िैसा आपने बतार्ा र्ा उस अनुसार आप गुरुदेव की मवमडओ भेि देना. मिससे
और लोग भी िान सके . आप उसका इमं ग्लश रांसलेट करके भी भेिना.
अब आपकी मैगिीन भी कलरिुल हो रही हैं. म त्र बहुत ही सन्द्ु दर आते हैं. मिससे समझने
में तकलीि नहीं होती. बच े बहुत खुस है. आपने कोममक्स भी मप्रंट की और उसका इमं ग्लश हमको
समझार्ा बहुत अच ा लगा.
धीरे धीरे िेसी सभी को वेगन बनाने की कोमशश कर रही हैं. वह अपना एक्साम्प्ल देती हैं.
उसको क्र्ा बेमनमिट हो रहा हैं. और समवषस ्ोड़ने के बाद लोग और अमधक समझने लगे हैं. आपके
कारण अब हमारी सेमवगं भी अमधक हो रही हैं आराम से. अब िेसी को मगफ्ट भी ममलने लगे हैं .
र्ह उसकी पोपुलारटी भी अमधक हो रही हैं. हम अगस्त/मसतम्बर में इमं डर्ा आ रहे हैं. हम आपको
िल्दी ही िमषनी में रांसलेट की हुई पुरुर्ार्ष देशना की टाइप्ड कॉपी भेि देंगे.
अब कु् बात होती है तो बच ें कहते हैं की PK सर से पू् लो. हम सब में
ेंि आ रहा है. इस सब का कारण आप है और आपके द्वारा
गरुु देव है. हमारे िीवन की सो ही बदल दी. बच े बहुत
क्वेश्चन करते हैं और आपसे पू्ना ाहते है.
आपका दोस्त
फ्रैंक िोसेि, फ़्रंकफ़टष , िमषनी.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
Jai Jinendra P K JAIN ‘Pradeep’ uncle.
Thanku uncle ...
बहुत बहुत बधाई आपको । और इस बार गोम्मेटर्श्र बाहूबली
की कॉममक्स के माध्र्म से िो नर्ा प्रर्ोग मकर्ा गर्ा है वो भी हमारे
बच ों को सीखने के मलए कामबले तारीि है ।
अंकल आपको बहुत बहुत बधाई और एक बात और नर्ी पता ली मक आपके माध्र्म से
बहुत से मवदेशी लोग शाकाहारी बन रहे हैं उसके मलर्े आपके प्रर्ासों की बहुत अनुमोदना.
श्रीमती स्वाती िैन
(पत्रकार)
हैदराबाद,तेलंगाना.
आओ ! िाने मिनवाणी मकसे कहते हैं ? तीर्ंकर की वाणी को ही
मिनवाणी कहते हैं. ‘िर्मत इमत मिन: “मिन्द्होंने इमन्द्रर् एवं कर्ार्ों
को िीता है, उन्द्हें मिन कहते हैं” तर्ा मिन की वाणी (व न) को
मिनवाणी कहते हैं. इसे समझाने के मलए ार भागों .. .. ...इस आलेख
पर प्राप्त म ंतन, डॉ. मनमषल कुमार िैन शास्त्री द्वारा:-
मानव को मानव समझें हम,
हर प्राणी का अमभनदं न हो |
वन में भी तो गठबंधन हो ||
सबका आदर सबका महत ही,
महादर्ा धमष, करुणा, समता का,
िीवीर म ंतन शुभ राह रही |
तीर्ंकर बनने के हेतु हैं र्े सब,
पररले र्ात्मक
बढ़े मंगललेख
शुभकेराह
लेखरहीक||:
डॉ. श्री मनमषल िैन शास्त्री,
टीकमगढ़, मध्र् प्रदेश.
महा मत्रं ी : अंतराषष्ट्रीर् िैन शोध मवद्वत पररर्दध
अनन्द्र् ममु न भक्त एवं
िैन दशषन के मध ू षन्द्र् मवद्वान,ध कमव एवं
दाशषमनक लेखक व म न्द्तक.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
आगामी मवशेर्ांक
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक:पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:48, वर्ष 5 अगस्त 2022.
ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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ता कभी न करना भाई, म ंता तो दुखदाई हैं ; आत्म शांमत न कभी ममलेगी, म ंतन ही सख
ु दाई है.
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