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।। श्रीहरि: ।।

श्रीस्वामीजी महािाजकी
यथावत-् वाणी
( श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज सत्संग- प्रवचनों में
जैसे- जैसे बोले थे वैसे- के - वैसे ही, ज्यों- के - त्यों ललखे हुए कुछ
लवशेष- प्रवचन और उपयोगी सामग्री
तथा -
सन् १९९० से सन् २००० तक के ग्यारह चातुमाासों के प्रवचनों की
लवषय- सूची ) ।
● ● ●

प्रवचन लेखनकताा -
संत डगुँ िदास िाम आदद
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २

।।श्रीहरि:।।

श्रीस्वामीजी महािाज की यथावत-् वाणी


दवषय सूची

दवषय पृष्ठ संख्या

(१) नम्र ननवेदन .................................................. ३


(२) अनतिम प्रवचन ............................................. ८
(३) सीखने की बाि और सरलिा से भगवत्प्प्रानि ........३६
(४) सेठजी श्री जयदयाल जी गोयतदका की
नवलक्षणिा .................................................११५
(५) जानने योग्य जानकारी (श्रद्धेय स्वामीजी
श्री रामसख ु दासजी महाराज के नवषयमें) .............१३१
(६) सत्प्संग-सामग्री .............................................१५५
(७) पााँच खण्डों में गीिा साधक-संजीवनी ................१६७
(८) ननत्प्य-स्िनु ि, गीिा और सत्प्सगं .........................१७७
(९) ग्यारह चािुमाासों के प्रवचनों की नवषय सचू ी ........१९१
(१०) पस्ु िक नमलने का पिा ...................................३९३
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३

(१) ■*नम्र दनवेदन*■

श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज ने समय-


समय पि जो अनेक सत्संग- प्रवचन दकये हैं । उनमें से
कई प्रवचनों की दवशाल रिकोदडिंग- सामग्री उपलब्ध
है। इनमें से कछ प्रवचनों का यथावत् लेखन किके इस
पस्तक ("श्रीस्वामीजी महािाज की यथावत-्
वाणी") में संग्रह दकया गया है ।

सत्संग प्रवचन किते समय जैसे- जैसे श्री स्वामीजी


महािाज बोले हैं, वैसा का वैसा ही दलखने की कोदशश
की गयी है अथाात् इसमें यह ध्यान िखा गया है दक जो
वाणी वो महापरुष बोले हैं, उसको वैसे के वैसे ही
दलखा जाय । अपनी होदशयािी न लगाई जाय । उस
वाणी के कोई भी वाक्य औि शब्द आदद छूटे नहीं ।
उनके द्वािा बोले गये शब्द औि वाक्य आदद बदलें नहीं,
जैसे वो बोले हैं वैसे- के - वैसे ही दलखे जायुँ- ऐसा
प्रयास दकया गया है ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४

महापरुषों द्वािा बोली गयी प्रामादणक आप्तवाणी को


दलखने में ईमानदािी पूवाक सत्यता का ध्यान िखा गया
है दक जैसे- जैसे वो बोले हैं, वैसे के वैसे ही दलखा जाय,
कछ फे ि- बदल न दकया जाय । इससे यह दलखी हुई
वाणी अत्यन्त दवश्वसनीय औि उपयोगी हो गयी है तथा
समझने में औि भी सगम हो गयी है । जब भगवान् की
बङी भािी कृपा होती है तब महापरुषों की हूबहू,
यथावत् वाणी दमलती है औि उससे बङा भािी लाभ
होता है ।

जहाुँ मािवाड़ी भाषा आदद के कछ कदिन शब्द औि


वाक्य आदद आये हैं, उनके कछ भाव औि अथा कोष्ठक
(ब्रैकेट) में ददये गये हैं । कहीं- कहीं दवषय को सिल
बनाने के दलये भी कोष्ठक का उपयोग दकया गया है ।
इस प्रकाि यह बहुत ही उपयोगी औि लाभदायक संग्रह
है ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५

सभी सत्संगी सज्जनों से नम्र दनवेदन है दक महापरुषों


के सत्संग- प्रवचनों को इसी प्रकाि ईमानदािी पूवाक
यथावत् दलखकि या दलखवाकि औि भी पस्तकें
छपवावें औि इस प्रकाि ददनयाुँ का तथा अपना
वास्तदवक दहत किें ।

(इसके बाद इसमें कछ औि उपयोगी सामग्री जोङी गई


है ) ।

इसमें जो अच्छाइयाुँ हैं, वो उन महापरुषों की है औि


लेखन आदद में जो त्रदटयाुँ है, वो मेिी व्यदिगत है ।
सज्जन लोग त्रदटयों की तिफ ध्यान न देकि अच्छाई
की तिफ ध्यान देंगे- ऐसी आशा है ।

इस पस्तक में ये लेख हैं-

1-
नम्र लनवेदन ,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६

2-
अलततम प्रवचन ,
3-
सीखने की बात और सरलता से भगवत्प्रालि ,
4-
सेठजी श्री जयदयाल जी गोयतदका की लवलक्षणता ,
5-
जानने योग्य जानकारी (श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज के लवषय में) ,
6-
सत्संग सामग्री ,
7-
पााँच खण्डों में गीता साधक संजीवनी ,
8-
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७

लनत्य स्तुलत और सत्संग ,


9-
ग्यारह चातुमाासों के प्रवचनों की लवषय सूची

आलद आलद ।

दनवेदक-
डुँगिदास िाम
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
शदनवाि, संमत २०७६
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८

(२) अदन्तम प्रवचन-


(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराज)।

[ प्रसगं -
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाजसे अदन्तम
ददनोंमें यह प्राथाना की गयी दक आपके शिीिकी अशि
अवस्थाके कािण प्रदतददन सत्संग-सभामें जाना कदिन
पड़ता है। इसदलये आप दवश्राम किावें। जब
हमलोगोंको आवश्यकता मालम पड़ेगी, तब आपको
हमलोग सभामें ले चलेंगे औि कभी आपके मनमें
सत्संदगयोंको कोई बात कहनेकी आ जाय, तो कृपया
हमें बता देना, हमलोग आपको सभामें ले जायेंगे। उस
समय ऐसा लगा दक श्री स्वामीजी महािाज ने यह
प्राथाना स्वीकाि किली।
इस प्रकाि जब भी परिदस्थदत अनकूल ददखायी देती,
तब समय- समय पि आपको सभामें ले जाया जाता
था।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९

एक ददन (पिम धाम गमन से तीन ददन पहले २९ जून


२००५ को, ) श्रद्धेय श्री स्वामीजी महािाजने अपनी
तिफसे (अपने मनसे) फिमाया दक आज चलो अथाात्
आज सभामें चलें। सनकि तिन्त तैयािी की गयी।
पदहयोंवाली कसी पि आपको दविाजमान किवा कि
सभामें ले जाया गया औि जो बातें आपके मनमें आयीं,
वो सनादी गयीं तथा वापस अपने दनवास स्थान पि
पधाि गये।

दूसिे ददन भी सभामें पधािे औि प्रवचन हुए।

इस प्रकाि यह समझ में आया दक जो अदन्तम बात


सत्संदगयोंको कहनी थी, वो उस (पहले) ददन कह दीं।

दूसिे ददन भी सभामें पधािे थे पिन्त दूसिों की मजी से


पधािे थे। अपनी मजीसे तो जो आवश्यक लगा, वो
पहले ददन कह चूके। दूसिे ददन (उन पहले ददन वाली
बातों पि)प्रश्नोत्ति हएु तथा अपनी बात भी कही ]।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के


अलततम प्रवचनों का यथावत् लेखन

(प्रवचन नं० १- )
■□मंगलाचरण□■

पराकृिनमद् बतधं परं ब्रह्म नराकृनि ।


सौतदयासारसवास्वं वतदे नतदात्प्मजं महः ।।

प्रपतनपाररजािाय िोत्प्रवेरैकपाणये ।
ज्ञानमद्रु ाय कृष्णाय गीिामिृ दहु े नमः ।।

वसदु वे सिु ं देवं कंसचाणरू मदानम् ।


देवकीपरमानतदं कृष्णं वतदे जगदगरू
ु म ।।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११

वंशीनवभनू षिकरातनवनीरदाभाि्
पीिाम्बरादरुणनवम्बफलाधरोष्ठाि् ।

पणू ेतदसु तु दरमख


ु ादरनवतदनेराि्
कृष्णाि् परं नकमनप ित्त्वमहं न जाने ।।

हररओम नमोऽस्िु परमात्प्मने नमः,


श्रीगोनवतदाय नमो नमः,
श्री गरुु चरणकमलेभ्यो नमः,
महात्प्मभ्यो नमः,
सवेभ्यो नमो नमः,

नारायण नारायण
नारायण नारायण
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२

( पहले मंगलाचिण दकया औि उसके बाद में श्रद्धेय


स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज बोले - )

एक बात बहुत श्रेष्ठ (है ), बहुत श्रेष्ठ बात, है बड़ी सगम,


बड़ी सिल । एक बात है, वो कदिन है - कोई इच्छा,
दकसी तिह की इच्छा मत िखो । दकसी तिह की कोई
भी इच्छा मत िखो। ना पिमात्मा की, ना आत्मा की, ना
ससं ाि की, ना आपनी (अपनी) मदि की, कल्याण की
इच्छा, कछ इच्छा, कछ इच्छा मत िखो औि चप हो
जाओ, बस। पूणा प्राप्त। कछ भी इच्छा न िख कि के
चप, शाऽऽऽऽऽन्त !! ।
क्योंदक पिमात्मा सब जगह, शाऽऽऽन्त रूप से परिपूणा
है । स्वतः, स्वाभादवक। सब ओि, सब जगह ; परिपूणा
[है])। कछ भी न चाहे, कोई इच्छा नहीं, कोई डि नहीं,
दकसी तिह की कोई कामना न िहे। चप हो जाय,
(बऽऽस) । एकदम पिमात्मा की प्रादप्त हो जाय।
तत्त्वज्ञान है वो पूणा। कोई इच्छा (न िखें )। क्योंदक कोई
इच्छा पूिी होती है, कोई नहीं होती। यह सब का अनभव
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३

है । सबका यह अनभव है क (दक) कोई इच्छा पूिी होती


है, कोई इच्छा पूिी नहीं होती । यह कायदा (है) ।

पूिी ( ... होनी चादहये दक नहीं? , इसके दलये ) कछ


नहीं किना, अि (औि) पूिी न होने पि भी कछ नहीं
किना। कछ भी चाहना नहीं, कछ चाहना नहीं औि
चप। एकदम पिमात्मा की प्रादप्त । ख्याल में आयी ?
कोई इच्छा नहीं, कोई चाहना नहीं। पिमात्मा में दस्थदत
हो गई पूिी आपकी। आपसे आप स्वतः, दस्थदत है। है,
पहले से है। वह अनभव हो जाएगा । कोई इच्छा नहीं,
कोई चाहना नहीं, कछ किना नहीं, कहीं जाना नहीं,
कहीं आना (जाना) नहीं, कछ अभ्यास नहीं । ...(कछ
किना नहीं)। इतनी ज (इतनी- सी) बात है, इतनी बात
में पूिी, पूिी हो गई ।

अब शंका हो तो बोलो । कोई इच्छा मत िखो।


पिमात्मा की प्रादप्त हो जाएगी। पिमात्मा की प्रादप्त,
एकदम। क्योंदक पिमात्मा सब जगह परिपूणा (है),
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४

समान िीदत से, िोस है । भूमा अचल [शाश्वत अमल]


सम िोस है तू सवादा। िोस है िोस । "है" । कछ भी
इच्छा मत किो। एकदम पिमात्मा की प्रादप्त । एकदम ।
बोलो ! शंका हो तो बोलो। कोई इच्छा (नहीं)। अपनी
इच्छा से ही संसाि में हैं । अपनी इच्छा छोड़ी,...(औि
उसमें दस्थदत हईु )। पूणा है दस्थदत, स्वतः, स्वाभादवक।
औि जो काम हो, उसमें तटस्थ िहो, ना िाग किो, ना द्वेष
किो ।
िुलसी ममिा रामसों समिा सब संसार । राग न रोष न दोष दख

दास भये भव पार।
(दोहावली 94)
एक भगवान है!! कोई इच्छा (नहीं), दकसी तिह की
इच्छा। कोई संसाि की क, पिमात्मा की क, आत्मा की
क ...(दकसी की) क, मदि की क,
कल्याण की क, प्रेम की क, कछ इच्छा (नहीं) ।...
(बऽऽस)। पूणा है प्रादप्त । क्यों(दक) पिमात्मा है ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५

कािण हैऽऽ (दक) एक किणा (किना,दिया) औि एक


आश्रय। एक दिया अि (औि) एक पदाथा । एक दिया
है, एक पदाथा है। ये प्रकृदत है। दिया औि पदाथा - ये
छूट जाय। कछ नहीं किना, चप िहना। अि (औि एक)
भगवान के , भगवान के शिण हो गये ( ... उस पिमात्मा
के ) आश्रय । कछ नहीं। किना कछ नहीं । पिमात्मा में
ही दस्थत ... ( दस्थत िहना) नहीं, उसमें दस्थदत आपकी
है। है। है दस्थदत, एकदम।

है एकदम परिपूणा ।
पिमात्मा में ही दस्थदत है। एकदम।
पिमात्मा सब (...जगह, सम, ) शान्त है। "है" "है" वह
"है" उस "है" में दस्थदत हो जाय।

"है" में दस्थदत, स्वभादवक, स्वभादवक है। "है" में


दस्थदत, सबकी स्वाभादवक।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६

कछ भी इच्छा (औि एक उनका- दिया औि पदाथों का


•••) आश्रय
- दो छोङने से --- ("है", पिमात्मा में दस्थदत हो जायेगी,
जो दक पहले से ही है । अनभव नहीं था।अब अनभव
हो गया।)।

पद आता है न!

एक बालक, एक बालक खो गया। एक माुँ का बालक


खो गया। सणाओ, वोऽऽ, वो पद सणाओ। ( भजन गाने
वाले बजिंगजी बोले- हाुँ ), बालक खो गया, व्याकल
हो गयी अि (औि) जागि देख्या (जगकि देखा) तो, वहीं
सोता है, साथ में ही। (हाुँ, िीक है, हाुँ हाुँ - सनाते हैं )
बहोत (बहतु ) बद़िया पद है। कबीिजी महािाज का है...
(वो पद)। (जो हुकम, कह कि, पद शरु कि ददया गया
- पिम प्रभ अपने ही में पायो।••• - कबीिजी महािाज)।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७

(प्रवचन नं०२)
संवत २०६२, आषाढ़, कृष्णा नवमी।
लदनांक ३०|६|२००५, ११ बजे, गीताभवन, ऋलषके श ।

[ आज श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज


सभा में आकि दविाजमान हुए। कल की बातों के
अनसाि दकसी ने श्रीस्वामीजी महािाज से प्रश्न
पछवाया। प्रश्नकत्ताा की उस बात को दबचौदलया अब
श्रीस्वामीजी महािाज को सना िहा है- ]
प्रश्न- (एक सज्जन पूछ िहे हैं दक) - कोई चाहना नहीं
िखना, (यह) आपने कल बताया था। तो इच्छा छोड़ने
में औि चप िहने में, इनमें- दोनों में ज्यादा कौन फायदा
किता है ?।
[ अभी दबचौदलये औि उसकी बातों की तिफ
श्रीस्वामीजी महािाज की रुदच नहीं है। इसदलये वे
अपनी तिफ से, अपनी बात कह िहे हैं- ]
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८

(१) भगवान का ह,ूुँ (२) भगवान मेिे हैं।, (३)


मैं औि दकसी का नहीं हूुँ औि (४) कोई
मेिा नहीं है।
प्रश्न - चप साधन में औि इच्छा िदहत होने में कोई फका
है ? चप साधन किना औि इच्छा िदहत होना ... ।

[प्रश्नकत्ताा की बात का जवाब न देकि श्री स्वामीजी


महािाज उसके एक ही शब्द (इच्छा) को लेकि पनः
अपनी बात आगे बढाते हएु कह िहे हैं- ]
एक इच्छा ही, एक ही इच्छा (हो के वल भगवान् की) ।

प्रश्न-
(चप-साधन औि इच्छा-िदहत होना- ) दोनों बातें एक
ही है ?
[ श्रीस्वामीजी महािाज उि प्रश्न का जवाब देकि चलते
दवषय में व्यवधान नहीं कि िहे हैं। प्रश्नकत्ताा के एक ही
अंश ( एक ही है?) को लेकि बोलते हैं- ]
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९

श्रीस्वामीजी महाराज-
एक ही है, एक ही है ।

[ अब श्रीस्वामीजी महािाज वापस अपने दवषय को


आगे बढाते हुए कह िहे हैं- ]

कछ भी इच्छा न िखे। ना भोगों िी (की),ना मोक्ष िी


(की) , कछ भी इच्छा न िखना। (... औि सब किते िहो,
पि ) कछ भी इच्छा नहीं िखना, कछ भी इच्छा नहीं
किना। ना प्रेम की, ना भदि की, ना मदि की, ना औि
कोई, संसाि की, (…औि) । इच्छा कोई किनी ही नहीं

नबचौनलया -
इच्छा नहीं किनी पि काम, कोई काम किना हो तो ?

श्रीस्वामीजी महाराज-
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०

काम किो ।

नबचौनलया –
काम भले ही किो ।

श्रीस्वामीजी महाराज -
काम किो, उत्साह से, आि पोहि (पहि) किो।
इण बातने (इस बात को) समझो खूब। िीक समझो
(इसको)। कोई इच्छा नहीं। अङचन आवे जो बताओ!
बाधा आवे जो बताओ ! (जो बाधा आवे, वो
बताओ)।

नबचौनलया -
आप (प्रश्नकत्ताा) कह िहे हैं (दक) काम तो किो औि कछ
इच्छा मत िखो। तो इच्छा का मतलब [ यहाुँ बीच में ही
अस्वीकाि किते हुए श्रीस्वामीजी महािाज बोले-] (--
नहीं नहीं ! ) । दूसिों का दख दूि किणो (किना) । उसका
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१

फल नहीं चाहना ? (यहाुँ तक प्रश्नकत्ताा का बाकी िहा


हुआ वाक्य पूिा हुआ)।

[ अब यहाुँ श्री स्वामीजी महािाज दबािा स्पष्ट बोलते हैं


दक- ]
दूसिों का दःख दूि किना । आये हुए की सेवा किणी
(किनी)। कछ चाहना ( मत िखो ) ।
प्रश्न -
औि चाहना से मतलब क्या? उसके , उस कमा का फल
नहीं चाहना? सेवा का फल नहीं चाहना- यही चाहना
छोड़ना है क्या ? चाहना नहीं िखने का क्या तात्पया है?।
श्रीस्वामीजी महाराज -
चाहना, कोई चाहना (नहीं िखना ), माने यूुँ दमले, दमल
जाय, मदि हो जाय, कल्याण हो जाय , उद्धाि हो जाय
क, न हो जाय -(ऐसा) कछ नहीं (हो)।
नबचौनलया -
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२

सेवा, सेवा किते िहें औि चाहना नहीं िखे, दक हम को


बदले में कछ दमले ।
श्रीस्वामीजी महाराज -
सेवा कि दो, बदले में (... कछ नहीं चाहना ) चप िहो ।
ऐकान्त में िहो, चप िहो।

नबचौनलया -
कोई कहीं नौकिी किता है, तो वो नौकिी किे ।
श्रीस्वामीजी महाराज -
हाुँ ।
नबचौनलया -
औि फल की चाहना नहीं किे।
श्रीस्वामीजी महाराज -
हाुँ चाहना नहीं किे ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३

(यहाुँ भी श्री स्वामीजी महािाज दबचौदलये की बात के


एक अंश (चाहना नहीं किे) को लेकि ही बोल िहे हैं।
दवषय को सगम िखते हएु , नौकिी, तनखाह आदद दूसिी
बातें इस प्रसंग में वे ज्यादा नहीं ला िहे हैं )।
नबचौनलया -
औि तनखा भले ही लेवो । तनखा तो भले ही लेवोऽऽ

श्रीस्वामीजी महाराज -
लेवो भले ही। (यहाुँ भी उस दवषय को अलग ही िख
िहे हैं औि जो दवषय चल िहा है, उसके अनसाि ही कह
िहे हैं-) इच्छा नहीं िाखणी (िखनी) ।
नबचौनलया -
इच्छा नहीं िखनी ।
प्रश्न -
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४

कह, इसका तात्पया सब प्रकाि से, भीति से खाली होना


ही है? ।

श्रीस्वामीजी महाराज-
हूुँ (हाुँ) , जहाुँ है ( जहाुँ आप हैं, वहाुँ पिमात्मा हैं), देखो!
साि बात- जहाुँ आप है, वहाुँ पिमात्मा है । आप मानो
क नहीं? (मानते हो दक नहीं? ); क्योंदक कछ नहीं
किोगे, कोई इच्छा नहीं, तो पिमात्मा में ही दस्थदत हो
गई या (यह) । औि कहाुँ (होगी? - कहाुँ होगी?) आप
जहाुँ है, वहीं चप हो जाओ । कछ नहीं चाहो, पिमात्मा
में दस्थदत हो गयी । आप (वहाुँ हैं) तो वहाुँ पिमात्मा पूणा
है। जहाुँ आप है, वहाुँ पूणा पिमात्मा पूणा है । कोई इच्छा
नहीं (तो कोई) बाधा नहीं । एक इच्छा मात्र सब (बाधा
है। इसदलये कछ भी इच्छा मत िखो)। ना भदि (भोग)
की इच्छा िखो, (ना) मदि की , दशानों की , ( ...ि की)
, कल्याण की क, कछ भी (इच्छा मत िखो) ! कोई
इच्छा नहीं िखोगे अि (औि चप हो जाओगे तो) वहाुँ
दस्थदत पिमात्मा में ही होगी; क्योंदक पिमात्मा में इच्छा
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५

है नहीं। सब पिमात्मा ही है । इच्छा दकसकी किे? अि


(औि) पिमात्मा हमािे (हैं), ओि (दूसिे) दकसकी इच्छा
किें ? समझ में आई दक नहीं, पतो (पता) नहीं ।
नबचौनलया -
(समझ में) आयी ।
स्वामीजी महाराज -
समझ में नहीं आई तो बोलो । क्या, क्या समझ में नहीं
आयी ...
[ अब दबचौदलये के द्वािा प्रश्नकत्ताा आदद से कहा जा
िहा है दक बात समझ में आ गई क्या? कछ कहना हो
तो बोल दें ]।
श्रीस्वामीजी महािाज बोले दक क्या, क्या (समझ में
नहीं आया?)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६

[ तख्त के ऊपि, जहाुँ श्रीस्वामीजी महािाज दविाजमान


थे, वहाुँ श्रोताओ ं की बातें सनायी नहीं पङ िही थी। उस
समय श्रीस्वामीजी महािाज बोले दक - ]
अिे सणीजे (या) नहीं सणीजे ... (श्रोताओ ं की बात
हमािे यहाुँ सनायी पङे या न पङे , इससे क्या? यह बात
तो ऐसे है ही, दस्थदत तो यहाुँ- पिमात्मा में ) है ही।
आप बताओ दस्थदत कहाुँ होगी आपकी ? पिमात्मा में
ही है “दस्थदत”। सस ं ाि की इच्छा है, इस वास्ते सस
ं ाि में
है (दस्थदत)। कोई तिह की इच्छा नहीं है (तो) पिमात्मा
में दस्थदत (है) । मनन किो, दफि शंका हो तो बताओ,
(...बोलो) बोलो।
नबचौनलया -
(ये कहते हैं) दक इसका तात्पया मैं यह समझा हूुँ दक
होनेपन में दस्थत िहे औि कोई काम सामने आवे तो कि
दे।
स्वामीजी महाराज -
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७

(काम नहीं,) सेवा ।


नबचौनलया -
सेवा आवे तो कि दे औि उदासीनता से िहे, हुँऽऽ? (यही
बात है क्या?)।

[ श्रीस्वामीजी महािाज जी ने इस बाल वचन को टाल


ददया औि वापस उसी दवषय को कहने लगे- ]
श्रीस्वामीजी महाराज -
आप की दस्थदत पिमात्मा में ही है । है ही पिमात्मा में।
इच्छा छोड़ दो , दस्थदत हो जायेगी।
इच्छा से ही संसाि में है (दस्थदत), इच्छा छोड़ दी
(पिमात्मा में दस्थदत हो गई ) सब की। मूखा से मूखा
(औि) अनजान से अनजान , जानकाि से ( ... जानकाि-
कोई भी हो,उसकी पिमात्मा में दस्थदत) हो गई। िीक
है? । (... हाुँ) सणाओ (भजन आदद)।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८

कोई कामना नहीं, कोई इच्छा नहीं, भदि की, मदि की


(दकसी प्रकाि की, कोई भी इच्छा नहीं है, तो सबकी
दस्थदत पिमात्मा में ही है)।

[ लिर श्रीबजराँगलालजी ने भजन गाया -


'हररका नाम जपाने वाले िमु को लाखों प्रणाम' ।। ० ।।

यह भजन उन्होंने नया बनाया था औि श्रीस्वामीजी


महािाज के सामने पहली बाि ही सनाया था तथा यह
पहली बाि सनाना ही अदन्तम बाि हो गया।

{ 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज ' के


अदन्तम प्रवचन किने के बाद में उनको सनाया गया
(अदन्तम) भजन- }
हरर का नाम जपानेवाले,
हरर का नाम जपानेवाले,
गीिा पाठ पढ़ानेवाले,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९

गीिा रहस्य बिानेवाले,


जग की चाह छुटानेवाले,
प्रभु से सम्बतध जड़ु ानेवाले,
प्रभक
ु ी याद नदलानेवाले,
िमु को लाखों परनाम ॥टेक॥
जग में महापरुु ष ननहं होिे,
नससक नससक कर सब ही रोिे,
आाँसू पौंछनेवाले,
सबका आाँसू पौंछनेवाले,
सबकी पीड़ा हरनेवाले,
सबकी जलन नमटानेवाले,
सबको गले लगानेवाले,
िमु को लाखों परनाम ॥१॥
जनम मरन के दख
ु से मारे ,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०

भटक रहे हैं लोग नबचारे ,


पथ दरशानेवाले,
प्रभु का पथ दरशानेवाले,
प्रभु का मागा नदखानेवाले,
सि का संग करानेवाले,
हरर के सनमख
ु करनेवाले,
िमु को लाखों परनाम ॥२॥
ऊाँ च नीच जो भी नर नारी,
अमरलोक के सब अनधकारी,
संशय हरनेवाले,
सबका सश
ं य हरनेवाले,
सबका भरम नमटानेवाले,
सबकी नचतिा हरनेवाले,
सबको आनशष देनेवाले,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१

िमु को लाखों परनाम ॥३॥


हम िो मरू ख नहीं समझिे,
सिं न का आदर ननहं करिे,
ननि समझानेवाले,
हमको ननि समझानेवाले,
हमसे ननहं उकिानेवाले,
हमपर क्रोध न करनेवाले,
हमपर नकरपा करनेवाले,
सब (पर नकरपा करनेवाले),
िमु को लाखों परनाम ॥४॥
अब िो भवसागर से िारों,
शरण पड़े हम बेनग उबारो,
पार लगानेवाले,
हमको पार लगानेवाले,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२

हमको पनवर करनेवाले,


हमपर करुणा करनेवाले,
हमको अपना कहनेवाले,
िमु को लाखों परनाम ॥५॥
िमु को लाखों परनाम (प्रणाम) ॰

भजन समाप्त हो जाने पि श्रीस्वामीजी महािाज (दबना


कछ कहे) अपने दनवास स्थान की ओि चल ददये। ऐसा
लग िहा था दक अपनी मदहमा वाला यह भजन सनकि
श्रीस्वामीजी महािाज िाजी नहीं हुए ।

िामायण में भगवान् श्रीिामचन्रजी महािाज सन्तों के


लक्षणों में भी ऐसी बात बताते हैं –
ननज गनु श्रवन सनु ि सकुचाहीं।
पर गनु सनु ि अनधक हरषाहीं।।
सम सीिल ननहं त्प्यागनहं नीिी।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३

सरल सभु ाउ सबनहं सन प्रीिी।।


(रामचररिमा.३|४६|१,२;)। ]
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श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज के द्वािा


ददया गया, यहाुँ यह पहला अदन्तम प्रवचन, ददनांक,२९
जून, सन २००५ को, सायं, लगभग ४ बजे का है औि
दूसिा आदखिी प्रवचन ददनांक ३० जून, सन २००५,
सबह ११ बजे का है।

मूल प्रवचनों की रिकॉदडिंग में दकसीने काुँट छाुँट किदी


है, कई अंश नष्ट कि ददये हैं औि मूल प्रवचन का
दमलना भी कदिन हो गया है। महापरुषों की वाणी के
दकसी भी अंश को काटना नहीं चादहये । यह अपिाध
है।
इन दोनों प्रवचनों की रिकोदडिंग को सन- सनकि, उन के
अनसाि ही, यथावत् दलखने की कोदशश की गयी है।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४

दजज्ञासओ ं के दलये यह बङे काम की वस्त है। साधक


को चादहये दक इन दोनों सत्संग- प्रवचनों को प़िकि
औि सनकि मनन किें तथा लाभ उिावें।

इसमें लेखन आदद की जो गलदतयाुँ िह गयी हैं, वो मेिी


व्यदिगत हैं औि जो अच्छाइयाुँ हैं, वे उन महापरुषों की
हैं। सज्जन लोग गलदतयों की तिफ ध्यान न देकि
अच्छाइयों की तिफ ध्यान देंगे, ऐसी आशा है।

दनवेदक- डगुँ िदास िाम


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अंदतम प्रवचन (१,२; कछ खदडडत )-


goo.gl/ufSn5W

अदन्तम प्रवचन १ (२९ जून २००५) का पता (दिकाना)


(खदडडत)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५

-(दलक
ं ) डाउनलोड किनेके दलये goo.gl/gTyBxF
अथवा सननेके दलये goo.gl/yR5SLd

अदन्तम प्रवचन २ (३० जून २००५) का पता (दिकाना)


(?)
-(दलक
ं ) डाउनलोड किनेके दलये goo.gl/QS68Wj
अथवा सननेके दलये goo.gl/wt7YNR

पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाजका
सादहत्य पढें औि उनकी वाणी सनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
http://dungrdasram.blogspot.com/2014/07/blog
-post_27.html?m=1
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६

(३) ■सीखने की बात■


● (पहला प्रवचन- ) ●
(श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज )
{ दिनाक
ां २०|०३|१९८१_ िपु हर २ बजे खेङापा
(जोधपुर) वाले प्रवचन का यथावत् लेखन - }

मनष्यको एक दबशेष(दवशेष) बदद्ध दी है। दनवााहकी


बदद्ध तो पश-पदक्षयोंको भी है, औि वृक्षों में भी है।
दजससे अपना जीवन दनवााह हो ज्याय(जाय), उसके
दलये अपणा (अपना) प्रयत्न किणा(किना) , ऐसी बदद्ध
तो वृक्ष, लता, घास- इसमें (इनमें) भी है। बेल होती है
ना, वहाुँ, दजस तिफ उसको जगह दमलती है उधि च़ि
ज्याती(जाती) है ऊपि औि बषाा(वषाा) बिसे तो घास,
पौधे- सब खश हो ज्याते(जाते) हैं।, गमी पड़े औि जळ
नहीं दमले , तो कम्हला ज्याते(जाते) हैं। तो अनकूलता
में िाजी ि प्रदतकूलता में नािाजी(नािाजपना) , उनमें भी
है। अगि यही हमािे - मनष्यों में िही, तो मनष्यों के
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७

बदद्धका क्या उपयोग हुआ ? वो पश भी कि लेते हैं


अपना । घाम तपता है, तावड़ो(घाम) तपे जोिदाि। गाय,
भेंस, भेड़, बकिी, ऊुँ ट - ये भी छायामें चले जाते हैं ,
औि अच्छी चीज दमलती है तो वो ही खा लेते हैं, बिी
चीज नहीं खाते । उनका भी कोई प्याि किे, आदि किे,
तो उनको अच्छा लगता है। उनका दतिस्काि किे, मािे ,
तो उनको बिा लगता है। कत्तेका भी आदि किो तो िाजी
हो ज्याता है, अि दनिादि किो तो उसको गस्सा आ
ज्याता है, काटनेको दौड़ता है। उसके चेहिे पि फका पड़
ज्याता है, अगि यही हमािेमें हुआ तो दफि मनष्यकी
बदद्धका उपयोग क्या हुआ? मानो दमनखपणों किे
काम आयो ? पशपणों ही हयु ो (मनष्यपना कहाुँ काम
आया ? पशपना ही हुआ)। । मनष्य भी अपणेको
(अपनेको) अच्छा देखणा(देखना) चाहता है दक मेिेको
लोग अच्छा मानें। ऐसे हमािे भाई- बहन भी चौखा
ओ़ि- पहि ि(कि) तैयाि हो जाय क(दक) मने(मेिेको)
लोग अच्छा मानें। तो दफि मनष्यों में ि(औि) पशओ ं में
क्या फका आया(हआ ु ) भाई ? वो मनष्यपणा नहीं है।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८

जके ने(दजसको) मानखो कहे, दमनखपणो कहे


ि(आदद), दमनखपणो नहीं है। दमनखपणो तो तभी है
दक जब जीते- जी आणुँद(आनन्द) हो ज्याय । दजसमें
दःख का असि ही न पड़े।

यद्धमें जाणेवाळे (जानेवाले) कवच पहना किते थे ,


बड़ा- बड़ा बखति लोहेका, दजणसे(दजससे दक) उसके
चौट न लगे, घाव न लगे। इसी तिहसे हम संसािमें
आकि ऐसे िहे(िहें ), जो हमािे , प्रदतकूल- से- प्रदतकूल
का भी घाव हमािे लगे ही नहीं । हम िीक साबत–
साबत (दबना दकसी टूट- फूटके , जैसे पहले थे वैसे ही)
बच जायुँ। तब तो है दमनखपणो औि चौट लग जाती है
तो दमनखपणा कहाुँ भाई? दमनखपणा नहीं हआ ु औि
इसी बात को ही वास्तव में सीखणा(सीखना) है,
समझणा(समझना) है। मनष्यके दलये यह, इस बात की
बड़ी भािी आवश्यकता है, जरुित है औि मनष्य ऐसा
बण(बन) सकता है, भाई हो, चाहे बहन हो, वे ऐसे बण
सकते हैं। हि दम खश िहें।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३९

पूिे हैं मदा वही जो हि हाल में खश है (िहे),


हि समय में प्रसन्न िहे, मौजमें िहे, मस्तीमें िहे, आणुँदमें
िहें , ऐसे हम औि आप - सब बण सकते हैं। इसमें सन्देह
नहीं है।

बाहिकी घटना मन- सहावती(मन- सहाती) हो, चाहे


बेसहावती(दबना मन- सहाती) हो, ये तो होती िहेगी।
बाहि की घटनाओ ं को ही सधाि ले , अपणे दलये
सखदायी ही सखदायी हो, ये दकसी के हाथ की बात
नहीं है।

भगवान् िामजी अवताि लेकि आते हैं, उनके सामने भी


सखदायी औि दःखदायी घटना आई है। [जब] ये
दवचाि हुआ क(दक) िामजी को िाजगद्दी दी
ज्यायगी(जायेगी) औि िाजगद्दीके बदळे (बदले)
बनवास(वनवास) हो गया। दकतनी दबदचत्र(दवदचत्र)
बात। प्रसन्नतां या न गतादभषेकतः (२|२) (
िामचरितमानस मं॰२|२), अदभषेककी बात
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४०

सणी(सनी), िाजदतलक की बात सणी हो[ऽऽ] तो


उनके मखाम्बजश्री- उनके मखकमल की शोभा कोई
प्रसन्न नहीं हईु औि तथा न मम्ले वनवास दखतः औि
बनवास(वनवास) की बात सणादी क( सनादी दक)
तम्हािेको चौदह बिस(वषा) तक बन में िहणा(िहना)
पड़ेगा। दकसी गाुँवमें जा नहीं सकते, पैि नहीं िख सकते।
चौदह बिस तक दकसी गाुँव में नहीं जा सकते। ऐसा
बनवास हो गया , तो उससे कोई दःखी नहीं हुए- तथा
न मम्ले वनवास दखतः । मखाम्बजश्री, ऐसी वो जो
शोभा है , वो हमािा मङ्गल किे अि(औि जो) स्वयं
सखी औि दःखी होता है (वो) हमािे मंगळ क्या किेगा
? वो हमािी सहायता क्या किेगा ? [ जैसे ] हम सखी-
दःखी होते हैं [ वैसे ] वो भी सखी- दःखी होता है।
िामायणमें तो बड़ी सन्दि बात आई है। मन्त्री जब गये हैं
िामजी को बलाणे(बलाने) के दलये, दशिथजी महािाज
बिदान देणेके(विदान देनेके) दलये , वो तैयाि नहीं हुए,
कै के यी ने हि कि दलया। दशिथजी दःखी हुए । उस
समय मन्त्री गये तो सबह हो गया , बात क्या है? उिे
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४१

नहीं भूपदत । तो कै के यी ने कहा क िाम को बला लाओ,


उसको सणाएुँगे(सनाएुँगे)। बलानेके दलये गये तो वहाुँ
आया है- 'िघकलदीपदह चलेउ दलवाई (लेवाई) ' , तो
'िघकलदीप' हुआ- दीपक, दीपक की तिह , िघवुँदशयों
में दीपक की तिह, उसको(उनको) लेकि चले।

जब िघनाथजी महािाज दशिथजी के सामने जाते हैं,


वहाुँ देखे हैं (देखा है) , तो गोस्वामीजी कहते हैं-
जाय'(जाइ) दीख रघबु ंसमनण(रघबु ंसमनन)'
(रामचररिमानस २|३९)

वहाुँ दीपकसे मदण हो गये औि जब बनवास की बात


सणाई(सनाई) तो 'मन मसकाय(मसकाइ) भानकल
भान'ू समझे ! , अब सिू ज(सयू ा) हो गये। बलाया
जब(तब) तो दीपक था, देखा जब मदण हो गया
अि(औि) बनवास की बात सणी(सनी) तो सूिज हो
गये, तो तेज ब़ि गया। मानो दबपिीत(दवपिीत) बात
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४२

सणणे (सनने) से तेज ब़िा है। मलीन औि दखी तो


होवे ही क्या, दवपिीत- से- दवपिीत बात सण किके
खश हो िहे हैं, प्रसन्न हो िहे हैं। हाुँ, वो जो
'मखाम्बजश्री' है न, वो हमािा कल्याण किे, हमािेको
आणुँद देवे (आनन्द दें)- 'सदास्त सा
मञ्जलमङ्गलप्रदा' (२|२) । तो , क्योंदक उसके
(समतायि , मनष्यपन वाले के ) तो मंगळ ही मंगळ है।

मदण होती है उसकी बात सणी है क उसको शाण


(कसौटी वाले पत्थि) पि लगा किके िगड़ते हैं तो वो
एकदम चमक उिती है, िाजाओक ं े मकट में च़ि ज्याती
है, तो दवपिीत अवस्थामें (वो मनष्य) चमक उिता है,
असली सतं होते हैं, महात्मा होते हैं , वो चमक उिते हैं।
औि ये दस्थदत मनष्यमात्र् प्राप्त कि सकता है। ऐसा बड़ा
सन्दि अवसि दमला है, मौका दमला है।
भाईयों ! बहनों ! यहाुँ थोड़ी- सी क चीज दमल ज्याय,
थोड़ा- सा शृङ्गाि कि दलया - थोड़ा [ दक लोग ] मेिेको
चौखा- अच्छा , अच्छा देखे । महान् मूखा है, महान्
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४३

मूखा, महान् मूखा। लोग अच्छा देखे ि, बिा देखे, तम


अच्छे बण ज्याओ भीतिसे, श्रेष्ठ बण ज्याओ(बन
जाओ) । चाहे लोग बिा देखे, अच्छा देखे, दनन्दा किे,
स्तदत किे, आदि किे, दनिादि किे , तम्हािे पि कोई
असि न हो। इतना बखति पहिा (पहना) हुआ है , ऐसा
जो मस्त- ही- मस्त है, आणुँद ही आणुँद है। ऐसे बण
ज्याओ तो मौत में भी दःखी नहीं होंगे ।
मिणे(मिने) की तो इच्छा नई(नहीं)
ं औि जीणे(जीने) की
भी इच्छा नीं(नहीं), भई (भाई !) मैं जी उिूुँ- येइ(यह भी)
इच्छा नीं औि कछ दमल ज्याय - ये दबलकल ही
भीतिमें भाव नहीं - मेिे को दमल ज्याय। तो जीणे की
इच्छा क्यों नहीं होती है दक वो सदा के दलये जी गया,
अब मिणा है ई(ही) नहीं । तो मिणे की बात कहाुँ हो?
मिणे की सम्भावना होती है तब न डिता है ! तो मिेगा
कौण? कह, शिीि। अि शिीि के साथ एक हआ ु – हआ

है तो वो तो मिेगा भाई ! दकतनी वाि मिे गा- इसका
पता नहीं है। औि मिणे का डि लगता है तब जीने की
इच्छा होती है।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४४

संतों ने कहा -
‘अब हम अमर भये न मरें गे '
अब मिेंगे नहीं
‘राम मरै िो मैं मरूाँ ननहं िो मरे बलाय ।
अनबनासी रा (का) बालका र मरे न मारा जाय’।।,

अि इसकी प्रादप्त में सब स्वतन्त्र हैं, पि धन दमल ज्याय


क, मान दमल ज्याय क, सन्दि शिीि दमल ज्याय क,
भोग दमल ज्याय क, रुपये दमल ज्याय- इसमें(इनमें)
कोई स्वतन्त्र नहीं है। िामजी भी स्वतन्त्र नहीं है क िाज
दमल ज्याय । (हल्की हुँसी) कोई स्वतन्त्र नहीं औि मौज
में सब स्वतन्त्र है, औि उसमें दजतना आणुँद है , [ उतना
] उन पिाई चीजसे सखी होणे वाळा कभी सखी हो नहीं
सकता क्यों(दक)
'पराधीन सपु नेह(ाँ सपनेह)ाँ सख
ु नाहीं' ।। '
(रामचररिमानस १|१०२|५)।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४५

धन के अधीन हुआ तो पिाधीन हो गया, िाज्य दमला


तो पिाधीन हो गया, पिाधीनको सख नहीं। सदा स्वतन्त्र
हो ज्याय । दकसी बात की पिाधीनता न िहे । उस
स्वतन्त्रता का अथा यह नहीं क उच्छृङ्खल हो ज्याय
(औि) मन मानें ज्यूुँ(ज्यों) किे। उद्दडडता किे- ये अथा
नहीं है। अपणे सख के दलये, अपणे आिाम के दलये,
अपणे आणुँद के दलये, कभी दकसी चीज की
गिज(गर्जा) दकंदचत् मात्र् िहे ही नहीं, भीतिसे खाता ही
उि ज्याय।

सज्जनों ! मैं बात तो कहता हू,ुँ आप लोग कृपा किें,


मेिी बात की तिफ ध्यान दें। ऐसे हम बण सकते हैं, ऐसा
बड़ा भािी लाभ हम ले सकते हैं, दबलकल ले सकते हैं,
अि बड़ी सगमता से ले सकते हैं। ऐसा धन हम इकट्ठा
कि सकते हैं, दजसमें सदा तृदप्त िहे, मौज ही मौज िहे।
मृत्यके समयमें भी दःखी न होवें । कबीि साहब ने कहा
है-
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४६

सब जग डरपे मरणसे अर मेरे मरण आणाँद ।


कब मररयै कब भेनटयै परू ण परमानतद।।

ददनयाुँमात्र् मिणे से डिती है, हमािे तो मिणे में आणुँद


है। यहाुँ से मिे तो बहुत ही आणुँद ही में - आणुँद में
जायेंगे डि दकस बात का , मौज है यहाुँ । डिता वही है
जो शिीि के आधीन हो गया- शिीिको 'मैं' अथवा 'मेिा'
मानता है , अपणेको शिीि मानणा अथवा शिीिको
अपणा मानणा। अपणेको शिीि मानणा हुआ 'मैं- पन'
-- 'अहतं ा' औि शिीिको अपणा मानणा हुआ 'ममता'
। तो 'मैं' 'यह ह'ूुँ ि ये 'मेिा है'- ऐसा दबचाि िखणे(िखने)
वाला तो मिेगा ि डिेगा , संसाि का कोई दःख ऐसा है
नहीं जो शिीिको 'मैं' औि 'मेिा' मानणे वाळे को न
दमले। ऐसा 'दःख' है ई(ही) नीं(नहीं)। कोई ऐसा 'दःख'
नहीं है जो उसको न दमले। सब तिह का 'दःख' दमलेगा
औि दमलेगा अि दमलता ही जायेगा, जब तक 'मैं' औि
'मेिा' मानेगा तब तक दमलता जायेगा 'दःख' -
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४७

मैं मेरे की जेवड़ी गळ बाँनधयो संसार।


दास कबीरा क्यों बाँधे नजसके राम आधार।।

उसका शिीि आधाि नहीं है, उसके िामजी आधाि है,


तो कबीिजी कहते हैं- हमािेको दकसका भय भाई? ये
'मैं' - 'मेिे' की जेवङी बुँधी है ना- गळ बाँलधयो संसार।
सस ं ाि एक गळे में फाुँसी है - 'मैं' - 'मेिे' की। सच्ची पूछो
तो बात ये है, कह, मनष्य 'मैं' औि 'मेिा' - ये दमटा
सकता है। 'मैं' औि 'मेिे' को ब़िा ले पूिा [ ये ] दकसी
के हाथ में नई(नहीं)
ं । दकतना ही ऊुँ चा 'मैं' बण ज्यायगा
तो उससे ऊुँ चा औि िह ज्यायगा कोई , बाकी औि ऊुँ चा
िह ज्यायगा , औि ऊुँ चा िह ज्यायगा । औि सवोपरि हो
ज्यायगा । ददनयाुँमात्र् में, कहीं भी उससे बड़ा नहीं िहा
है तो एक होगा। दो तो हो इ नई ं सकते। दोनों बिाबि हो
जायेगें, 'सबसे बड़े' कै से होगा? अि वो(जो) , सबसे
बड़ा होगा सबसे अदधक भयभीत होगा वो ; क्योंदक
सबके ऊपि आदधपत्य किता है तो आदधपत्य किणे
वालेको सख नहीं दमलता है। ये बहम है। एक दमदनस्टि
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४८

बणता है क मैं मादलक ह।ूुँ वो मादलक नहीं , ददनयाुँ का


गलाम है, गलाम, गलाम। अपणे को बड़ा मानता है, है
ददनयाुँ के आधीन। [ ददनयाुँ ] सबकी सब बदल जाय
तो जय िामजी िी(जय िामजी की) , कछ नहीं।
बोट(वोट) नहीं दे तो? क्या दशा हो? पिाधीन है
पिाधीन। सतं ो ने इस पट्टे को बद़िया नहीं (बताया) है,

राम पट्टा है रामदास, नदन– नदन दणू ा थाय।


पट्टा तो भई ! ये है जो
राम पट्टा है राम . नदन नदन दणू ा थाय।।

तो पट्टा दमल ज्याय तो दूणा(दूना)- ही- दूणा ब़िे, कभी


घाटा पङे ही नहीं । अि वो पट्टा सब को दमल ज्याय ।
एक- एक सवोपरि होजायेंगे, सब के सब सवोपरि हो
जायेंगे औि दकसी को ही दखल नहीं होगी, दकसी के
भी दूखेगा नहीं। दजनको दमल गया वे भी िाजी अि
दजसको(दजनको) नहीं दमला वे भी िाजी अि
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ४९

दमलना(पाना) चाहते हैं , वे भी िाजी हैं । सब- के - सब


प्रसन्न हो ज्याय । ऐसी बात है, अि सीधी बात है भाई।
सीधी, सिल बात - कह,
राम राम राम राम राम राम राम राम राम
राम राम राम राम राम राम राम राम राम ।।

आप कई तिह का(के ) उद्योग किते हो, कई तिह का


मनोिथ किते हो, कई तिह का सग्रं ह किते हो, जो दक
अपणे हाथ की बात नहीं है । दबद्वान (दवद्वान) बडणा
हाथकी (बात) नाहीं(नहीं), धनवान बनना हाथकी बात
नहीं, मान पा ज्याणा हाथकी बात नहीं, सब लोग
प्रशंसा किे, हाथकी बात नहीं, िाम िाम िाम िाम किे
जणा(तब) पिाधीन की बात ही नहीं, इनमें क्या पिाधीन
है भाई? हिदम िाम िाम किे । जबानसे नहीं हो तो भीति-
भीति से किे। अि शदि नहीं (है) तो पड़ा- पड़ा ही ,
भगवान् के चिणों में पड़ा हूुँ (ऐसा मानले)। के वल
इतनीज (इतनी- सी) बात ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५०

मैं ददनयाुँ में पड़ा हूुँ , ददनयाुँ में क्यों पड़ा [ है ] िे ?


भगवान् के चिणों में हूुँ [ - ऐसा मान ] ' सवातःपादणपादं
तत् ' (गीता १३|१३) - भगवान् के सब जगह चिण है
। तो जहाुँ आप पड़े हो, हम पड़े हैं, वहाुँ चिण नहीं है
क्या भगवान् के ? नहीं तो 'सवातःपादणपादम् ' कै से
कहा? सब जगह भगवान् के चिण हैं, तो हम भगवान्
के चिणों में पड़े हैं, हमािेको क्या भय है? क्या दचन्ता
है?
नधन शरणों महाराजको ननशनदन कररये मौज।
तो भगवान् िो शिणो है (भगवान् का आधाि है)।
ननशनदन कररये मौज (जयाँू - वैसे ही)
संिदास संसार सख
ु दई नदखावे नौज (नहीं ) ।।

ऐसा है हो ऽऽ ! - दई(भगवान)् कभी सख न ददखावे ,


संसािका सख न ददखावे, कृपा किे भगवान।् कह,
'सख के माथै दसल पङो'। ये नहीं ददखावे ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५१

अब संत तो आ(यह) बात कै वे(कहते हैं) ि आपाुँ


चावाुँ(अपने चाहते हैं) क(दक) - सख दमले।

जो नबनषया संिन िजी, िाही नर नलपटाय।


जयौं नर डारे वमनको र स्वान स्वाद सौं खाय ।।

उल्टी(वमन) हो जाती है न , उल्टी होती है तब अपणी


भाषामें - 'जी दोिो ह्वे है' कह (कहते हैं) (जीव- अन्दि
से दखी हो िहा है) जी दोिो ह्वे जणा उल्टी ह्वे है क। ,
जी दोिो ह्वे जणा उल्टी ह्वे है न ! कोई सोिे में ह्वे है?
(अन्दि से दखी होता है तब उल्टी होती है न , कोई सखी
िहने में होती है ? ) जी दोिो ह्वे जब(तब) उल्टी ह्वे , उल्टी
हू ज्याय जणा सोिो हू ज्याय (जीव- अन्दि से दखी होता
है तब उल्टी होती है औि जब उल्टी हो जाय , तब सखी
हो जाता है) , िीक, साफ उल्टी हो ज्याय, तो जी सोिो
हू ज्याय। तो संताुँ(संतों) ने उल्टी किदी- सस
ं ािको छोड़
ददया, भोग छोड़ ददया, तो उल्टी हो गयी। उल्टी कै से
है? कह, सल्टी तो खाणे- खाणे(खाने- खाने) में है , वह
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५२

(छोङना) तो उल्टी ही है। लोग खाणो चावे ि, वेिे दलये


वो उल्टी {लोग खाना चाहते हैं आदद औि उन (संतों)
के दलये वो दवषय आदद है उल्टी} , लोग दवषय
भोगणो चावे (भोगना चाहते हैं) , संसाि चावे (संसाि
को चाहते हैं) , दमल ज्याय रुपया पैसा ि मान ि सत्काि,
भोग दमल ज्याय । अि सतं ों के वो हईु उल्टी ।
उल्टी हो जाणेपि कल्ला भी किें तो औि ज्यादा [उल्टी
की सम्भावना ] , मदक्खयाुँ दभणके (दभनके ) ि नाक ि
(आदद) देखेंगे तो औि उल्टी हो ज्यायगी, इस वास्ते
(इसदलये) उसकी तिफ देखते ही नहीं, अि कत्ते लड़ते
हैं - वो तो कह , मैं खाऊुँ , वो कहते- मैं खाऊुँ । 'स्वान
स्वाद सौं खाय ' ( हुँसते हएु [- समझे? ] ) एक- एक
लड़कि खाते हैं। ऐसे लोग संसाि के भोगोंके दलये,
रुपयों के दलये ि पदाथोंके दलये, मान के दलये, बडाई
के दलये लड़ते हैं दक मेिेको दमल ज्याय , वो कहताा-
मेिेको दमल ज्याय, वो कहताे- मे िेको दमल ज्याय, तो
कत्ते से भी नीची दशा है भई, समझदाि होकि ऐसा किे।
कत्ता दबचािा बेसमझ औि अपणे समझते हैं।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५३

अजानन् दाहात्प्म्यं पिनि शलभो दीपदहने


स मीनोऽप्यज्ञानाद्वनडशयिु मश्नानि नपनशिम् ।
नवजानतिोऽप्येिे वयनमह नवपजजालजनटलान्
न मञ्ु चामः कामानहह गहनो मोहमनहमा ।।
(भिाहृ ररवैराग्यशिक)। (गीिा साधक- सजं ीवनी 11/29)।

मू़िता , हद हो गयी।
अजानन् दाहादतिं पतदत शलभस्तीव्र॰
(अजानन् दाहात्म्यं पतदत शलभो दीपदहने )
, पतंगा जाणता नहीं दक मैं जळ(जल) ज्याऊुँ गा , ऐसा
जाणता नहीं है ि आग में पड़ ज्याता है अि मि ज्याता है
दबचािा । ये कीट , पतंग, मछली भी जाणती नहीं , वो
टकड़ा है, जो काुँटा है, वो (उसको) दनगळ जाती है अि
मि ज्याती है दबचािी(बेचािी)। वे तो जाणते नहीं -
अजानन् दाहादतिं, न मीनोऽदप अज्ञात्वा । मछली को
पता नहीं औि हम कै से (हैं) क दवजानन्तः - दबशेषतासे
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५४

जाणते हैं, िीक- िीक जाणते हैं, भोग भोगकिके देखा


है, कई वाि उथल- पथल किके देखा है अि उससे
ग्लादन हईु है, मन(में) पश्चात्ताप हआ
ु है, दःख पाया है।
दवजानन्तोऽप्येते वयदमह दवपज्जालजदटलान् हम
लोग िीक तिहसे जाणते हुए दवपदत्तयों के जाल से
जदटल , ऐसे भोगोंका , हम त्याग नहीं किते हैं। अहह
गहनो मोह - मू़िता की हद्द(हद) हो गयी। इस मू़िता को
छोड़ दो भाई । ये ई तो काम है। सत्संग में आणा-
किणा(आना- किना) , इसका अथा यही दक मू़िता को
छोङदें। असली धन ले किके जावें (जायें) । वो धन क्या
काम का जो अिे (यहीं) ही िह ज्याय ि हम मि
ज्यावें(जायुँ) बीचमें ही ! ऐसा धन कमावें(कमायें)
जको(जो) मौज में , साथ में ही जाय, संतों का धन साथ
िहता है सदा। ऐसा धन कमाया जको सदा ही साथमें
िहे, कभी दबछड़े ही नहीं, वो धन लेणेके (लेनेके) दलये
हम लोग आये हैं। सच्चे ग्राहक बण ज्यायुँ , के वल
चाहना हमािी हो , उससे दमलते हैं भगवान।्
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५५

पिमात्मा चाहना मात्र् से दमलते हैं ; पण चाहना होणी


चदहए (होनी चादहये) एक ही, दूजी(दूसिी) नहीं ।

एक बाण(बानन) करुणा(करुना)ननधान की।


सो नप्रय जाके गनि न आन की ।।
(रामचररिमानस ३|१०|८)।

औि का सहािा न हो, वो उसको दमलता है क्योंदक


औि(दूसिा) सहािा िहणेसे उसका मन उस, औि की
तिफ चला जाता है, इस वास्ते वो(पिमात्मा) दमलता
नहीं । औि (दूसिी) चाहना न होणे से एक चाहना होती
है भगवान् की, तो भगवान् एकही है तो चाहना एक ही
है बस, फे ि(दफि) दमल ज्यायगा, खट दमल ज्यायगा ।
फे ि देिी का काम नहीं। औि चाहना नहीं, चीज भले ई
आपके पास िहो, शिीि आपके पास िहो, ऊमि िहे,
पदाथा िहे, पिन्त चाहना न िहे।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५६

चाह चहू ङी रामदास सब नीचोंसे नीच ।


िू िो के वल ब्रह्म था ये चाह न होिी बीच ।।

ये अगि तेिे पास नहीं होती तो तम तो के वल ब्रह्म हो ।


इस चाहना के कािण से भाई ! ये दशा है अि बड़ी दनन्दा
होगी, बड़ा दतिस्काि होगा, बड़ा अपमान होगा, बड़ा
दःख होगा औि दमलेगा कछ नहीं भाई। अपणी सीधी
भाषा में - कोिो माजणो गमावणो है (के वल इज्जत
गमाना- खोना है) औि कछ नहीं । दमलणो- दमलणो
कछ नहीं है, माजणो खोवणो(खोना) है । तो माजणो
खोवणने आया हा क्या? (तो इज्जत खोने के दलये
आये थे क्या?) मनष्य बडया(बने) हो, दक...(औि)
िामजी कृपा किी(की) है तो ऐड़ी(ऐसी) बेइज्जती
किावण ने आया हाुँ ?(किवाने के दलये आये हैं?) बड़ी
भािी बेइज्जती, दमनख बणकिके ि फे ि(मनष्य बन
किके औि दफि) भी सदा दःखी(ही) िहे, बडी गलती
(है)।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५७

महान् सख की बात है ये -

मैं तो प्राथाना किता हूुँ भाईयोंसे, बहनों(से) औि हमािे


आदिणीय साध समाजसे दक आप थोड़ा(थोङी) कृपा
किें, हम लोग दमल किके बातें किें, क भई ऐसा हो
सकता है क्या? अिे ऐसा ही हो सकता है । संसाि का
धन ि दवद्या ि मान ि बड़ाई- ये दमल ज्याय हाथकी बात
नहीं है। इसमें कोई स्वाधीन नहीं है औि इसकी प्रादप्तमें
कोई पिाधीन नहीं है। आप कृपा किें, थोड़ी सी कृपा
किें। मैं आपको धोखा नहीं देता ह।ूुँ आपको ललचाता
हूुँ , कोई दवपिीत- मागा में ले जाता ह,ूुँ िगाई किता ह,ूुँ
ऐसी बात, दनयत हमािा(हमािी) नहीं है, आपको महान्
आणुँद दमले(-ऐसी दनयत है हमािी) औि सतं -
महात्माओ ं ने कहा है वो बात कहणा चाहता ह,ूुँ उस
तिफ भी ले जाणा चाहता हूुँ। तो सब सतं कृपा किें औि
इकट्ठे होकि के इसका दबचाि किें, बहुत लाभ की बात
है, बहुत लाभ की बात है, बहुत ही लाभकी बात है। तो
ये प्राथाना है।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५८

मैं साध समाज में िह चूका हूुँ । बच्चा था तबसे


अभीतक इस साधूवेष में ह,ूुँ तो मैंने देखी है , बहुत बातें
देखी। अपणी मािवाड़ी भाषामें कह न- (कहते हैं न-)
'ऊुँ नी - िडडी के ई देखी (है)' (गमा - िडडी कई देखी
है) अच्छी- भूडडी(बिी) के ई(कई) बातें देखी है, तो मैं
भगत- भोगी(भिभोगी) ह।ूुँ

आदमी एक तो सीख्योड़ो ह्वे (सीखा हुआ होता) है ि एक


भोग्योड़ो ह्वे (भोगा हआ
ु होता) है, इणमें, दोनों में बड़ा
फका है । सीख्योड़ो तो भूल ज्याय पण भोग्योड़ो भूले
कोनी (सीखा हुआ तो भूल जाता है पि भोगा हुआ
भूलता नहीं) । कहावत है क नीं(है दक नहीं) ! –

'दोिो कूट्योङो ि सोिो दजमायौङो भूले कोनी' , याद


िेवै। (बहुत दखी किते हुए पीटा हुआ औि बहुत सखी
किते हुए भोजन किाया हुआ - भूलता नहीं , याद िहता
है)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ५९

(तो) मनें(मेिेको) बातें याद है, मेिे(को) बोहोत बिस


हुआ है(हुए हैं), इस बेष(वेष) में आये हुए, होश में आये
हएु , समझ में आये हएु , औि मैं भाई ! देखी है बातें। मैं
हाथ जोड़के (जोङकि) कहता हूुँ दक मेिी देखी हुई बातें
है, 'ए पापङ पोयौङा है म्हािा' । (ये पापङ बेले हुए हैं
मेिे) । देख्योड़ी ई(देखी हईु ही) बात है। नमूना देखा है
सब, तिह–तिह का देखा।

मेिे मन में आती है दक मैं भटका कई जगह औि मैं [ जो


] चाहता था वो चीज नहीं दमली, जब(तब) भटकता
िहा। उसके दलये मैंने गृहस्थोंका ि साधओक ं ा कोई
दबचाि ई(ही) नहीं दकया, कह, साधके पास दमल ज्याय
दक, गहृ स्थाी के ई पास दमल ज्याय, किे ही(कहीं भी)
दमल ज्याय । भूख लगती है, दभक्षा माुँगता है तो किे
ही दमल ज्याय , ऐसी मन में िही औि उससे लाभ हुआ
है भाई।
औि मेिे एक मन में आती है , आप क्षमा कि देंगे, मैं
अदभमान से नहीं कहता हूुँ । बहतु सगमता से वो मागा
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६०

दमल ज्याय हमािे को, बहुत सिलता से बड़ी भािी


उन्नदत हो ज्याय औि थोड़े ददनों में हो सकती है, मदहनों
में , बिसों में हो ज्याय औि दबलकल हो ज्याय- इसमें
सन्देह नहीं। के वल इसकी चाहना आप जाग्रत किें औि
आप पूछें औि वैसे ही चलें। थोड़ा(थोङे ) ददन, पहले तो
भई सहणा(सहना) भी पड़ता है, कष्ट भी सहणा पड़ता
है। पिन्त कष्ट वो कष्ट नहीं होता । जब अगाड़ी चीज
दमलने वाली होती है न , तो वो कष्ट कष्टदायी नहीं
होता, दःखदायी नहीं होता । ऐसे आप लोग लग ज्यायुँ
तो बड़ी कृपा मानगूुँ ा आपकी, बहुत बड़ी कृपा। एक,
मेिे एक शौक लगी है , एक , भीतिमें है ऐसी एक, उसको
जलन कहदें तो ई (तो भी) कोई आश्चयाकी [बात]
ना(नहीं) है पण जलन है नहीं वैसी। जैसी जलन जलाती
है, ऐसी नहीं जलाती है, पण जलन है । आप लोग कृपा
किके मेिी बात मानें, सणें, उस पि दबचाि किें, उसको
समझणे(समझने) का उद्योग किें, चेष्टा किें , शंका किें,
मेिेसे पूछें, अि मेिेसे ही क्यों , संतों की बाणी प़िे(पढें)
, सतं - महात्माओ ं की बात है न , उनको देखे(देखें) ,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६१

पढें, सणें, समझें औि जो समझणे वाले हैं उनसे आपस


में बात किे (किें) । तो बोहोत(बहुत) बड़े लाभ की बात
है । नहीं तो समय आज ददन का गया , वै से औि िहा
हुआ समय भी हाथों से दनकल ज्यायगा । औि फे ि कछ
नहीं। आज ददनतक का समय चला गया ऐसे ये चला
जायगा औि ले लो तो बड़ा भािी लाभ ले लोगे, हो
जायेगा लाभ- इसमें सन्देह नहीं, दकंदचत् मात्र् भी सन्देह
नहीं। अब इसमें कोई शंका हो तो बोलो आप।
भगवान् के नाम का जप है सीधा, सिल।
सनु मि सल
ु भ सख
ु द सब काहू ।
लोक लाह(लाह) परलोक ननबाहू ।।
(रामचररिमानस १|२०|२)।

लोक ि पिलोक, दोनों में ई(ही)


ं काम िीक हो ज्याय,
वो ही िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम
िाम [ है यह ] ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६२

श्रीजी महािाज, श्रीिामदासजी महािाज को


देषदनकाळा हुआ, देश दनकाळा। जोधपिसे हुक्म हो
गया क हमािे देश (खेङापा गाुँव) में मत िहो। आप
बाहि, देवळों के सामने है नीं(न) खेजड़ी, उसके नीचे
दातन कि िहे थे, (तो) हुकम आ गया। वहाुँ से ही चल
ददया(ददये) औि कहा भई ! हमािे गरु- महािाज की
बाणी(वाणी) का गटका(पस्तक) औि छड़ी, ये
दलयाओ (ले आओ) । भीति आकि नहीं देखा , बाहि
ही । आ ज्याओ(जाओ) , िाज का हक ु म हो गया। चीज-
बस्त भडडाि भिे , है जैसे- के - जैसे छोड़के (छोङकि) ,
वहाुँ से ही चल ददये। [ पीछे ] इस िाज में बड़ी आफत
आई, दःख हआ ु । [ उन सतं ों को ] बीकानेि दिबाि ने
बला दलया, द्यालजी (दयालजी) महािाज भी साथ में
ई ं थे। तो लोगों ने [ जोधपि दिबाि से ] कहा - कह ,
तमने साधओ ं को तंग दकया, दःख ददया , तो अब सख
कै से होगा? दःख पाओगे तो उनको बलाओ। यहाुँ से
बलावा भेजा । तो सणते हैं (सना है) दक [ िामदास जी
महािाज के पत्र ] द्याल- महािाज ने पत्र दलखा क दजस
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६३

अवगण(भजन) के कािण से हम दनकाले गये वो


अवगण ब़िा है, घटा नहीं है। हम िाम िाम किते थे न,
तो वो धन तो ब़िा ही है घटा थोड़े ही है। दजस कािणसे
आप(आपने) इस तिह दनकाळा है न , वो हमािा
अवगण दक कछ भी मानलो उसको आप , ऐब मानो ,
औगण(अवगण) मानो, खिाबी मानो, वो हमािी तो
ब़िी है। अब क्यों बलाते हो? क्या , अब शद्ध हो गये
क्या हम? (हुँसते हुए बोल िहे हैं ) दयालजी महािाज थे
वे, दयालजीके भी गरुजी (श्री िामदासजी महािाज)
औि दयाल थे महािाज ,
उन्होंने के ह्यो(कहा) दक बलावे(बलाते हैं) तो चलो भाई
। (हुँसत हएु बोल िहे हैं- ) समझे ?

अब तो यूुँ थोङी ही है , अब कहे तो यूुँ ही सही

[ 'देश दनकाला' देने वाली गलती को लेकि अङे नहीं


िहे दक अब हम वापस नहीं आयें गे , दया किके 'बलावे'
वाली बात भी मानली ]
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६४

अि पधाि गये, वो ऐसा पट्टा है महािाज, देश दनकाळा


देणे(देने) पि भी अपणा(अपना) तो ब़िे- 'ददन ददन
दूणा थाय', ।

नािायण, नािायण, िाऽऽम िाऽऽम िाऽम ।।


िामा ऽऽ श्री िाऽऽमा िामा ऽ श्री िाऽऽमा ।

(पीछे बोलते लोग- िामा ऽऽ श्री िाऽऽमा िामा श्री


िाऽऽमा।)

िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।।


(िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।। )

हे िामा ऽऽ श्री िाऽऽमा िामा ऽ श्री िाऽऽमा ।


(िामा ऽऽ श्री िाऽऽमा िामा श्री िाऽऽमा।)
िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६५

(िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।। )

हे िामा ऽऽ श्री िाऽऽमा िामा ऽ श्री िाऽऽमा ।


(िामा ऽऽ श्री िाऽऽमा िामा श्री िाऽऽमा।)
िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।।
(िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।। )

हे िामा ऽऽ श्री िाऽऽमा िामा ऽ श्री िाऽऽमा ।


(िामा ऽऽ श्री िाऽऽमा िामा श्री िाऽऽमा।)
िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।।
(िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।। )

िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।।


(िामा श्री िाम िाम िाऽऽऽम सीतािाम ।। )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६६

दसयावि िामचन्रकी जय,


मोिमकट बुँशीवाले की (जय) ।

●● ● ■><■ ●●●

■सिलता से भगवत्प्रादप्त■
● [ दूसिा प्रवचन ] ●
श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
( ददनांक २०|०३|१९८१_१४०० बजे खेङापा
का यथावत् लेखन , आगे का भाग - )

िा ऽम िा ऽम िा ऽम ।
नािायण नािायण नािायण नािायण।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६७

(तो) भाई- बहन अपणे कल्याणके दलये आये हैं,


पािमादथाक बातें सनने के दलये आये हैं, उनसे मेिी एक
नम्र दनवेदना (दवनती,नम्र दनवेदन) है , उणसे कहणा है,
अजा किणा(किना) है दक सिळता से काम लें। सीधे,
सिळ होकि उस पिमात्माकी तिफ चलें, तो बहुत
सगमता से कल्याण हो ज्याता है। हम जो अपने
ब्यदिगत(व्यदिगत) सख चाहते हैं न, मानो मेिे को
सख दमले, मेिी उन्नदत हो ज्याय , मैं बड़ा हो ज्याऊुँ ।
ये बात दीखणे में तो अच्छी दीखती है, पिन्त बोहोत
बड़ी बाधा होती है [ इससे ] । लोकमें औि पिलोकमें
वो अपणा लाभ ले ले - ये बात नहीं है ,
नकसाण(नकसान) उिाता है [ वो ]। ऐसे मैं भावों को
देखता ह,ूुँ आचिणोंको देखता ह,ूुँ तो मेिा बश(वश) तो
नहीं चलता है पि(न्त) दःख होता है। भई ! क्या दशा
होगी? ब्यवहाि(व्यवहाि) में ,पिमाथा में - सब जगह ही।
इस वास्ते हम सिळता का अगि आश्रय लें, सीधे - सिळ
हो ज्याय(जायुँ) , तो बहुत सगमता से हमािा कल्याण
हो ज्याय ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६८

बोलो मत भाई ! थोड़ी देि है कोई ज्यादा देि नहीं है ।


आप थोड़े चप िहें तो बड़ा अच्छा िहेगा, बातें अच्छी
पैदा होगी , अच्छी बात कहूुँगा औि आप बातें किते
िहेंगे तो भी मैं तो मेिी बातें कह दूगुँ ा ; पिन्त बद़िया
बातें पैदा नहीं होगी । वो मेिे हाथ की बात नहीं है। मैं
मेिे मन में कपट िखणे का तो दवचाि िखता ही नहीं ह,ूुँ
क्योंदक सिळता है वो कल्याण किणे वाळी है । इस
वास्ते सीधी , सिळ बात मैं कहता ह।ूुँ आपलोग कृपा
किके थोड़े चप िहकि के ध्यान दें।
मेिे मन में दबचाि आ िहे हैं तिह–तिह के । मैं देखता हूुँ
उन भाईयोंको , बहनोंको , दजसमें भी भाई लोग ,
गहृ स्थ भाई हैं वे औि जो हमािे आदिणीय सतं हैं वे। वो
िीक मयाादा से बैिणा- ऊिणा किे तो भी बड़ा अच्छा
िहे । बैिणे(बैिने) में , मैं साधओ ं की जगह गहृ दस्थयों
को देखता ह,ूुँ अि वो भी बे़िंग से बैिे हुए । हमािे को
दःख होता है औि हमािा बश तो चलता नहीं। मेिे हाथ
की तो बात है नहीं, पिन्त वो मयाादा- दवरुद्ध काम किते
हैं वो अच्छा नहीं है। उणके (उनके ) दलये भला नहीं है,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ६९

इस बात को लेकि के दःख है। सीधे , सिळ होकि , बड़ी


नम्रता से काम में लें , तो हमािा ये जो धाम है, ये
कल्याण किणे वाला है , यहाुँ सतं - महापरुषों ने भजन
दकया है, भगवान् की तिफ सच्चे हृदयसे चले हैं, तब
उनका प्रभाव ब़िा है ।

वैसे ही अगि हम सिळ हो किके भगवान के के वल


पीपास हो ज्यायुँ - दजज्ञास । , मानो भगवान् को हम
जाडणा(जानना) चाहते हैं। भगवान् की तिफ हम चलें
। हमािा कल्याण हो , लोक में , पिलोक में , सब तिह
हमािे को सख हो, दःख कभी न हो। ऐसा अगि दबचाि
है तो भई ! मयाादा सदहत , बड़ी सिळता से भगवान् की
तिफ चलें । इसमें बड़ा लाभ होगा।

भगवान् के नाम के जप का बड़ा माहात्म्य है । उसकी


बोहोत बड़ी , भािी मदहमा है । पण वो मदहमा प्राप्त होगी
सिळता से नाम लेणे से। आप पिीक्षा की दृदष्ट से देखेंगे
, तो भगवन्नाम -महािाज उतना लाभ आपको देंगे नहीं,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७०

क्यों क(क्योंदक) आपके लेणेकी उत्कट- अदभलाषा


नहीं है।
भगवान् िामजी ने अवताि दलया तो िावण ने पिीक्षा
किणा(किना) चाहा दक वास्तव में साधिण मनष्य है
क(दक) अवताि है, तो मायाका मृग बणाया(बनाया) ।
बणावटी(बनावटी-) हरिण बणाकि(बनाकि) औि
भेजा मािीच को दक ये पदहचाणते(पहचानते) हैं क नहीं
? तो भगवान् उसके पीछे दौड़े। िावण ने समझ दलया
दक [ इनमें ] अकल(समझ) नहीं है । तो िावण से
भगवान् को सादटा दफकट(सदटा दिके ट) लेणा नहीं था।
िावणका सादटा दफकट चलता, वो पास कि देता, तब
तो लोग मानते अि वो पास नहीं किणे से लोग नहीं
मानते - ऐसी कोई िेखा ही नहीं थी िामजी के भीति।
इस वास्ते बड़ी सिळता से , उस मृग के पीछे , पीछे -
पीछे चले गये। तो ऐसे ही नाम- महािाज की आप
पिीक्षा लोगे , तो नाम- महािाज फै ल हो जायेंगे, पास
नहीं होंगे । आपसे नाम- महािाजको गिज नहीं है दक
आप पास कि देंगे तो वे िीक िहेंगे, नहीं तो फै ल हो
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७१

जायेंगे तो उनकी कोई बेइज्जती हो जायेगी । वहाुँ


बेइज्जती - इज्जत की बात ही नहीं है । वे तो सबका
कल्याण किणे के दलये कदलयग में दवशेष अवताि
दलये हैं।
चहाँ जगु चहाँ श्रनु ि नाम प्रभाऊ ।
कनल नबशेष (नबसेनष) ननहं आन उपाऊ ।।
(रामचररिमानस १|२२|८) ।

चािों ही जगों(यगों) में , चािों ही बेदों(वेदों) में नाम का


बड़ा प्रभाव है ; पिन्ता कळजग(कदलयग) में नाम का
प्रभाव दबशेष है । क्यों ? दूसिे दजतनेक साधन है उन
साधनों में जो शदि है वो सब - की- सब शदि नाम-
महािाजमें आ गयी। बंगाल में चैतन्यमहाप्रभ हएु हैं ।
उन्होंने ऐसा ही कहा है-

नाम्नामकारर बहधा ननज सवाशनिस्िरानपािा ननयनमिः


स्मरणे न कालः ।।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७२

नाम में सब शदि दे दी भगवान् ने, कदलयग आते ही ,


ये सीदे(सीधे)- सादे आदमी होंगे । दबशेष साधना कि
नहीं सकें गे । तो के वल नाम- महािाज का सहािा ले ले
, िाम िाम िाम िाम िाम - ऐसे, तो उसका(उनका)
कल्याण हो ज्याय । इस वास्ते भगवान् ने नाम महािाज
में अपाि शदि िख दी औि स्मिण किणे के दलये कोई
समय- दबशेष नहीं बाुँधा दक अमक बगत (वि) में
ऐसे– ऐसे दकया जाय तो फायदा होगा, नहीं तो नहीं
होगा - ऐसी बात नहीं (है)। ऐसी भगवान् की कृपा ।
औि मैं समझता नहीं ह,ूुँ आ भी (यह भी) बड़ी नम्रता
प्रकट की है । चैतन्य महाप्रभ , बड़े महापरुष हुए हैं। ऐसे
सतं ों ने अपणी बात कही है । तो भाईयों से , बहनों से
मेिा कहणा है दक आप हि समय
िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम -
ये िटते िहें, -
रसना से रटबो करे आठूाँ पैहर (पहर) अभंग।
रामदास उस संि का राम न छााँडे संग।।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७३

जो आिों पहि अभंग रूपसे , बीचमें कोई बाधा न


देकि के नाम जपता िहे, तो वो भाई हो , चाहे बहन हो,
गहृ स्थ- आश्रम में हो, चाहे साध- आश्रम में हो, वो सतं
है अि उसके साथ िाम जी िहेंगे। हि दम भगवान् के नाम
को जपता िहे। तो भगवान् के नाम का जप बड़ा , बड़ा
सीधा , सिळ उपाय है, पिन्त भई ! दजतना हृदय सिळ
िखोगे उतना लाभ बहोत , दबशेष होगा। िामायण में
प्रसंग आता है क -

सरल सभु ाव न मन कुनटलाई । जथा लाभ सिं ोष सदाई ।।


(रामचररिमानस ७|४६|२)।

स्वभाव सिळ हो , मन में कोई कदटलता नहीं। जैसा


दमल जाय , उसमें सनत् ोष है औि
मोर दास कहाइ नर आसा ।
(करइ िौ कहह कहा नबस्वासा) ।।
(७|४६|३) ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७४

भगवान् का दास कहा कि ...[ कछ रिकादडिंग कट गई


] ( मनष्य की आशा किे तो उसका क्या दवश्वास है ? )
। (श्री तलसीदास जी महािाज ने) भगवान् के मखसे
कहलाया है
बहि कहउाँ का कथा बढाई ।
एनह आचरण(आचरन) बस्य मैं भाई ।।
(७|४६|४) ।
बोहोत बात कहकि कथा क्या ब़िाऊुँ , ऐसा सिळ
िस्ता है - दबचाि, उसके मैं बस(वश) में हो ज्याता ह।ूुँ
भगवान् बस में हो ज्याते(जाते) हैं । चतिाइयों से आप
दूसिों को बस में किणा चाहें तो होंगे नहीं ि होकि के
भी दनहाल कछ किेंगे नहीं। दसवाय बाधाके औि कोई
फायदा दनकळे गा नहीं , अि सीधे , सिळ होकि
भगवान् की तिफ ही चलें, तो भगवान् बहुत बड़ी कृपा
किें औि बस में हो ज्याय। अि उसके होणे पि क्या
बाकी िह ज्यायगा - कोऽसौऽस्यावदशष्यते ? सब तिह
से पूणा हो जायेंगे ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७५

(तो) भाईयों से, बहनों से, सतं ों से - सबसे हाथ जोड़कि


प्राथाना किता हूुँ क मन की कदटलता को छोड़कि ,
सिलता से भगवान् के चिणोंमें लग ज्याय -

कपट गााँठ मन में नहीं सबसें सरल सभु ाय ।


नारायण िा भगि की लगी नकनारे नाव ।।

सीधे, सिल होकि भगवान् में लग ज्याय , उसकी नौका


दकनािे लग गयी, उसका उद्धाि हो गया । दकतनी सीधी
बात है। चालाकी िखणे से, चतिाई किणे से, अपणे को
भी तकलीफ पड़ती है, दनगाह िखणी पड़ती है, औि
बाधा हो ज्याती है , बड़ी भािी हादन हो ज्याती है। सीधा
, सिळ अन्तःकिण िख किके औि भगवान् की तिफ
चलें , तो दकतना बड़ा फायदा हो ज्याय । स्वाभादवक
ही हो ज्याय ।
पािमादथाक फायदा बहुत चौड़े पड़ा हुआ है। हम देखते
हैं तो हम अपणे शिीि के दलये अन्नको आधाि मानते हैं
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७६

औि है भी, अन्न के दबना जी नहीं सकते ; पण अन्नसे


भी ज्यादे(ज्यादा) जरुित जळ की है। अन्न दबना
के ई(कई) ददन िह सकते हैं पिन्त जळ के दबना नहीं िह
सकते। वो अन्नसे जळ सस्ता है औि जळ के दबना
ई(भी) के ई घंटा(घंटे) िह सकते हैं, पिन्त श्वास (हवा)के
दबना नहीं िह सकते। तो हवा है , श्वास लेणेके दलये
बोहोत सस्ती है। इतना जळ सस्ता नहीं , दजतनी हवा है
- कहीं श्वास लो , सब जगह श्वास आता है, लेते हैं, जी
सकते हैं। श्वाससे हमािे प्राण िहेंगे , [ हमािा शिीि िहेगा
] ; पिन्त अन्तमें शिीि तो छूट ज्यायगा । हम िहेंगे । हमािे
असली आधाि भगवान् हैं। वे भगवान् वाय से भी बहुत
सिल है (सस्ते हैं ) । वे सब जगह मौजूद है। सब समय
में, सब जगह, सम्पूणा ब्यदियों में, सब बस्तओमं ें,
सम्पूणा घटनाओमं ें, सम्पूणा परिदस्थदतयों में सदा है ज्यों-
के - त्यों िहते हैं । औि सच्ची पूछो तो ये देश ,काल,
बस्त, ब्यदि, घटना, परिदस्थदत, उसके अन्तगात है, वो
तो असीम है, अनन्त है, अपाि है, औि सबके दलये
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७७

अपणे आपको दे िखा है। वो संतोंके तो हो ज्याय औि


जो दष्ट है , उनके न हो, ऐसी बात नहीं है।

समोऽहं सवाभिू ेषु न मे द्वेष्योऽनस्ि न नप्रयः ।


(गीिा ९|२९)।

- न मेिे कोई प्रेम का दबषय(दवषय) है, न मेिे द्वेष का


दबषय है, कोई मेिेको अदप्रय नहीं है -
सब मम नप्रय सब मम उपजाए ।
(रामचररिमानस ७|८६|४) ।

वो सब के भगवान् हैं। पि सनमख(सन्मख) होता है वो


ले लेता है, औि दबमख(दवमख) होता है वो ले नहीं
पाता । पिमात्मा अपणी तिफ से मना नहीं किते । हमािे
भाव शद्ध न होणे से हम ले नहीं पाते हैं अि अपणा
भाव शद्ध किणे में हम , आप - सब स्वतन्त्र हैं।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७८

बाहि की परिदस्थदत है , उसको िीक बणालें , ये दकसी


के हाथकी बात नहीं है। बाहि से हम धनवान बणें न बणें
, कटम्ब वाले बणें न बणें , लोग मदहमा किे न किे,
आदि किे न किे , ये हमािे हाथकी बात नहीं है, पिन्त
हम सीधे , सिळ होकि भगवान् की तिफ चलें , इसमें
दबलकल पितन्त्रता नहीं है। सब- के - सब हम स्वतन्त्र
हैं ।

पिमात्माकी तिफ चलणे में सब के सब स्वतन्त्र (है)।


तो दकतनी बद़िया बात है , बताओ । दकतनी एक
आणुँद की बात है। ये जो हमािा जीवन [ है ] , ये जनम
सफल हो ज्याय । दकतनी दवदचत्र बात है। बड़े सखकी
, बड़े आणुँद की बात है । तो सीधे , सिल होकि के
भगवान् की तिफ चलें हम, प्रभकी तिफ चलें।

आप- हम जो यहाुँ इकट्ठे हुए हैं । ये महािाजका धाम है।


ये धाम की मदहमा क्यों है ? क यहाुँ संतों ने भजन दकया
है। हम तो मदहमा महापरुषों की मानते हैं ; पिन्त
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ७९

महापरुषों में महापरुष(पन) कहाुँ से आया? ये(यह)


महापरुषपण है वो भगवान् के भजनसे आया है। इस
वास्ते वो , अगि भजन में हम लग ज्यायुँ सीधे , सिल
हो किके , तो बहुत बड़ी उन्नदत हमािी हो ज्याय , बड़ा
भािी लाभ हम ले लें , इसमें कोई सन्देह नहीं है। कािण
? दक ये समय दगिा है। दो सौ , ढाई सौ बिस हएु , इससे
पहले समय बोहोत अच्छा था। अभी समय बोहोत
दगिावट पि है । ये अनभव आप- हम कि सकते हैं। छोटी
उम्र वाळे भी , दजसकी(दजनकी) पचास- साि बिस की
ऊमि है, तीस- चाळीस बिस की ऊमि है, वे भी इस बात
का अनभव कि सकते हैं। हमािे देखते- देखते लोगों के
भाव में दकतना परिवतान हो गया। तो सौ , दो सौ , ढाई
सौ बिस पहले दकतना भाव अच्छा था। दजतना संसािमें
भाव अच्छा था ज्यादे , उतने उण अच्छे भावोंकी इतनी
कीमत नहीं थी, औि ज्यों- ज्यों ये भाव दगिते गये हैं,
त्यों ही त्यों अच्छे भाव की कीमत बहुत ब़िती चली
गयी।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८०

अभी बस्तओ ं की कीमत बोहोत ब़ि गयी । कहते हैं


सब चीजें महुँगी हो गई । हम दूसिी दृदष्ट से देखें तो रुपये
सस्ते हो गये। पहले एक सेि घी गाय का, उसका एक
रुपया दमलता। आज सत्ताईस - अट्ठाईस , तीस रुपयोंमें
भी शद्ध घी दमलणा मदश्कल है । तो घी की कीमत ब़ि
गयी - ऐसे कहदो, चाहे कह दो दक रुपये की कीमत घट
गयी। तो ऐसे ही सद्गण- सदाचाि औि सिल- हृदय से
भगवान् की तिफ चलने की बात है , इसकी बड़ी भािी
कीमत है - ऐसा कहदें औि चाहे भगवान् सस्ते हैं - यूुँ
कह दें । भगवान् बहुत सस्ते हैं । हमािे देखते- देखते
बहुत परिवतान हुआ है।

अनुभव भगवद् भजन का भाग्यवान को होय ।

भजन किने का अनभव जल्दी होता नहीं है, श्रद्धासे


किते िहते हैं, पिन्त सिळता से अगि लग ज्यायुँ , तो मैं
तो ददनोंमें औि मदहनोंमें समझता ह,ूुँ बिसों में तो लाभ
हो ही जायेगा - इसमें सन्देह नहीं है। पिन्त सच्चे हृदयसे
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८१

लगणा चादहये , लगनपूवाक। उसके बोहोत , दबशेष


लाभ होगा।

मेिी एक प्राथाना है, आप कृपा किके सिळता से लग


ज्यायुँ , अपणें में नम्रता िखें। लोग मेिे को मान लें - ऐसी
इच्छा न िखें । लोग मे िेको बड़ा मानें - ऐसी लालसा (है)
वो बड़ा होणे नहीं देती। वो लोकों का गलाम हो ज्याता
है, वो बड़ा हो नहीं सकता , क्योंदक लोगों से आशा
िखता है न,
आशा नह परमं दख
ु ं नैराश्यं परमं सख
ु म् ।
(श्रीमद्भा॰११| )

ये महान् दःख देणेवाळी चीज है। लोग मेिा कहणा मानें


, मेिे अनकूल हो ज्याय , ऐसी इच्छा है , वो बड़ी पतन
किणे वाली है।
िेरे भावै जो करो भलो बरु ो ससं ार ।
नारायण िाँू बैनठकै अपणा भवन बहु ार ।।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८२

ददनयाुँ चाहे तम्हािे को कै सा ही समझे, अपणा


अन्तःकिण दनमाल किो औि सज्जनों ! मैं ये बात बताणे
में, आपके (आपको) समझाणे में तो असमथा ह,ूुँ पि
बात ये पक्की है। मेिे को मानले लोग- ये भाव ज्यों-
ज्यों उिता चला जायेगा , त्यों ही [त्यों ] लोग मानते
चले जायेंगे औि इच्छा िखेंगे तो नहीं दमलेगा। आपाुँिी
(अपने लोगों की) साधािण भाषा में (ई)ं आवे है ना -
घी तो आडै हाथ ही आवै है । { घी तो (िोकने के दलये
ददये गये) आङे हाथ से ही आता है } । घी घालो , तो
घी घाले तो , फे ि वो सुँभेगा नहीं (कोई कहे दक मेिे को
घी पिोसो, तो घी पिोसे , तो दफि वो तैयाि नहीं होगा)।
घी की माुँग नहीं हो , ना- ना कहते- कहते घी आया
किे(किता) है , ऐसे ही आप कृपा कि थोड़ा- सा दबश्वास
किलें। अपणे मन का बड़ापन है ना,
मार मार िन मन मोटाई हाय ! दाव ऐसो मि हार ।
तन- मन मोटाई (बङप्पन का अदभमान ) - इसको माि।
ऐसा दाव दमलेगा नहीं,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८३

फळी जयाँू फूट जयावसी फटके िटके िागो िटू ै िेह।


झाड़ हाथ उठ जयासी झटके खटके िन हू जयासी खेह।।
ये िाख हो ज्यायगी ।
औि सज्जनों ! समय जा िहा है, छोटी अवस्था में साधू
है, उण से मेिा दबशेष दनवेदन है, क थोड़ी वे कृपा किें ,
सिळता से भगवान् की तिफ लग ज्याय(जायुँ) , बहुत
बड़ा लाभ होगा। आप जो चाहते हो क हमािे को लोग
अच्छा मानें , मेिी तिफ लोग दखंच ज्याय , आकृष्ट हो
ज्याय , ये इच्छा िखोगे तब तक होगा नहीं, औि ज्यों-
ज्यों भीति की इच्छा चली ज्यायगी , हम सच्चे
बणते(बनते) चले ज्यायुँ । तो लोगों का आकषाण होगा
पि लोगों का आकषाण तो बाधक होगा , फायदा नहीं
होगा। ये(यह) दजस ददन बात समझमें आ ज्यायगी ,
आपको पािमादथाक लाभ होगा दबलक्षण । स्वतःही
होगा - स्वाभादवक ही।
ये जो अभी 'नहीं'(सस ं ाि) हैं(है) , उसके पीछे पड़े हैं, इस
वास्ते 'है'(भगवान)् वो दीखते नहीं है । 'नहीं' है ये ,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८४

'नहीं' है वो - संसाि नहीं है। आज से पहले जमाना था ,


वो आज नहीं है अि आज है वो अगाड़ी िहेगा नहीं । सब
सस ं ाि अभाव में जा िहा है, प्रदतक्षण अभाव में जा िहा
है । अभाव हो िहा है, दमट िहा है । इसका क्या भिोसा
किते हो? इसकी आशा लगाये िहते हो क मान दमले ,
भोग दमले, सख दमले, आदि दमले, मदहमा दमले । कछ
नहीं दमलने का है। बहम िहेगा औि मि जायेंगे, िीते िह
जायेंगे । इस वास्ते सज्जनों ! सच्चे हृदयसे भगवान् की
तिफ चलें आप । तो बोहोत लाभ होगा। साधओ ं से
दबशेष मेिा कहणा है।

एक बात मनमें आती है , कहणे में सक ं ोच होता है ,


पिन्त अगि कोई ख्याल किे तो लाभ है । इस वास्ते
कहता ह।ूुँ है तो शमा की बात , लज्जा की बात है, पिन्त
दकसी के लाभ हो ज्याय तो कोई हजा नहीं है, हमािी
नीची बात ही सही। वो यह है क मैं साधू- आश्रम में
बहोत बिसों से ह,ूुँ मेिेको याद है बोहोत- सी बातें औि
बहतु - सी मैं भूल गया ह,ूुँ पिन्त ये जो आपसे मैं(मैंने)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८५

बातें कही- इन बातों को मैं जानता ह,ूुँ [ मेिे को याद है


]भगत- भोगी ह,ूुँ मैंने देखा है। ये ऊुँ चा- नीचा सब तिह
का समय मेिे सामने आया है। अपणें सीधी भाषामें कहे
है(कहते हैं) न - ए पापङ पोयोङा है , म्हािे देख्योड़ा है
ये (मेिे देखे हुए हैं ये) । इस वास्ते भगत- भोगी कोई
आदमी दमल ज्याय तो उनसे कोई लाभ लेणा चाहे तो
बहोत दबशेष लाभ ले सकता है । जके िे देख्योड़ी बाताुँ
है, बीत्योङी है अपणी ऊमि में । वो देखे (है) क ऐसा
चालणे से ऐसी आफत आती है, ऐसा चालणेसे ऐसा
लाभ होता है (दजसके देखी हुई बातें हैं , बीती हुई है
अपनी उम्र में । वो देखता है दक ऐसे चलने से ऐसी
आफत आती है , ऐसे चलने से ऐसा लाभ होता है) ।
उणसे(उनसे) अगि हम सीखलें तो बड़ा अच्छा है।

मेिी कछ ऐसी दजज्ञासा िही है। हमािे साथ िहने वालोंने


शास्त्रोंके ऊपि, पस्तकोंके ऊपि दवश्वास दवशेष दकया
औि किणा चादहये ि मैं भी अच्छा मानता हूुँ ि मैं भी
किता ह,ूुँ पि मेिे मन में कछ लगन िही क कोई अनभवी
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८६

आदमी दमले। इण बातोंको किके दकसी ने देखा हो ,


वैसे दमले , तो हम उणसे लाभ लें। ऐसी खोज किणे पि
मेिे को सतं दमले हैं। अच्छे सतं दमले हैं, तो दमल सकते
हैं संत - इसमें कोई सन्देह की बात नहीं।

भगवान् का अवताि होता है नैदमदत्तक- कभी- कभी


अवताि होता है औि संत- महात्माओ ं का अवताि हमने
सणा है दक दनत्यअवताि है- हि समयमें सतं िहते हैं।
दजसमें हमािी भाितभूदम है ये, ये बहुत दबलक्षण है ।
िाजस्थान उसमें भी दबलक्षण हैं(है)। इसमें अच्छे - अच्छे
महापरुष हएु हैं, होते िहते हैं। तो हमािी सच्ची लगन हो
, तो अच्छे - महात्मा दमल सकते हैं।

सज्जनों ! रुपये- पैसे ि भोग औि(आदद) दमलेगा ,


हिेक जूणी(योदन) में दमल ज्यायगा । इसमें ये भोगोंके
ऊपि (आपकी) अदधक रुदच है न , ये तो कत्तोंको ि
गधोंको भी दमल ज्यायगा । इसमें कमी नहीं िहेगी।
पिन्त पािमादथाक बातें दमलेगी नहीं अि वो मनष्य-
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८७

शिीिमें ही हम ले सकते हैं। वो मनष्य- शिीि हमािे को


दमला हुआ है औि दमला हुआ समय, समय जा िहा है,
मौत नजदीक आ िही है। अच्छा- अच्छा समय जा िहा
है,
आछा नदन पाछा गया (आछे नदन पाछे गये)
- संिों ने कहा है , नकयो न हरर से हेि ।
अब नपसिायााँ क्या हए
(अब पछिायै होि का , जब)
नचनङया (नचनङयााँ) चगु गई खेि ।।

आच्छा लदन जावे छै जी लदयााँ रे दगो ।

तो ददन दगा नहीं दे िहा है स्वयं हम दगा ले िहे हैं, तो


बहुत- सा समय तो चला गया है औि िहा हुआ समय
भी तेजी से जा िहा है, दजस ददन को कोई नहीं चाहता ,
वो मौत का ददन बोहोत नजदीक आ िहा है।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८८

बारी आपो- आपणी (आपरी) चले नपयारे नमत्त।


िेरी बारी रही है और नेड़ी आवे ननत्त।।

वो दनत्य ही नजदीक आ िहा है मौत का ददन। उस ददन


ये हेकड़ी चलेगी नहीं, जाणा पड़ेगा , दबलकल औि
अभी जो कदृष्टी िखी है अि खिाब- भाव भीति , मन में
भिे हैं , इसका बड़ा गहिा डडड दमलेगा ('दमलेगा' के
'गा' अक्षि पि जोि देि समझाया दक अवश्य दमलेगा)।
ये भगवान् के यहाुँ पि पोल नहीं है । इस वास्ते मैं प्राथा ना
किता ह,ूुँ आप कृपा किें । अभी तक बीता है जो . सो
बीत गया , अब अगाड़ी हमािा समय है वो अच्छे - से
अच्छे , उत्तम- से उत्तम काम में लगे , दजससे दक हमािा
जीवन सधि ज्याय ।

कूवे(कए) में लाव(िस्सी) चली ज्याती है । बाहि पिष-


दो- पिष (एक दो परुषों की लम्बाई दजतनी) िहती है,
दजससे वो सब की सब लाव [ खींचने पि वापस बाहि
] आ ज्याती है, कोष आ ज्याता है, जळ आ ज्याता है,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ८९

अि वो भी हाथों से अगि दनकळ गयी तो दफि एक पिष,


दो पिष गयी है, वो एक- दो- पिष नीचे नहीं दमलेगी,
बोहोत नीचे चली ज्यायगी पाणी के भी तळे चली
ज्यायगी । दनकालने में भी समय लगेगा। इसी तिह से
अभी जी िहे हैं तो हमािे हाथमें ये , क्या कहें , कोषङी
है , थोड़ी ऊमि है हमािी । इस ऊमि को अगि हम काम
में लें- बची हुई उमिको , तो हमािा जीवन सधि ज्याय,
हमािा जलम(जन्म) सधि ज्याय , मनष्यजन्म सफल हो
ज्याय औि आपको, खद को आणुँद आये गा, दबलक्षण
आणुँद आयेगा, अलौदकक आणुँद आयेगा । इसमें मेिे
सन्देह नहीं है, सच्ची बात है। औि ददनयाुँ का लाभ
आप ले लोगे, दकतना क ले लोगे? ददनयाुँमात्र् से
अदधक धनी औि अदधक भोगी हो जावेंगे(जायेंगे) तो
भी कछ नहीं दमलने का है। धोखा होगा, धोखा, धोखा,
धोखा ; क्योंक अभी वो ऊुँ चा पद नहीं है, अि थोड़े ददन
बाद भी नहीं िहेगा, तो क्या फायदा होगा?
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९०

सपु नो सो हो जयावसी (जावसी) सिु कुटुम्ब धन धाम।


हो सचेि बलदेव नींदसे जप ईश्वरका नाम।।

मनषु िन नफर नफर ननहं होई ।

ये बाि- बाि नहीं दमलता । इस वास्ते सज्जनों ! कृपा


किो। मेिे पि मेहिवानी किो । आप सच्चे हृदयसे
भगवान् की तिफ लग ज्याओ। नफो भजन में के तो िे ।
सहजिाम जी महािाज की बाणी में आता है , दक भजन
में दकतना नफा है , दकतना लाभ है दजसका कोई अन्त
नहीं है।
चेिो रे चेिो रे दनु नयााँ जतम जाय है चेिो रे ।
बैरी काळ िाळ नहीं लावे बाळ बद्ध
ृ काँू लेिो रे ।।
भल
ू ो कहा भरममें भोळा कछु क सक
ु ृ ि लेिो रे ।

क्या भोळा भूला हआ


ु है तू ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९१

चेिो रे चेिो रे दनु नयााँ जनम जाय है चेिो रे ।


ये बैरी काळ िाळ(समय) नहीं लावे ।
ये काळ , मौत है , देिी(ताळ) नहीं लाती । ये तो
बाळ बृद्ध कूाँ लेतो रे।
सगरामा ससं ार में बडो कसाई काळ ।
राजा नगणे न बादशाह र बढ़ू ो नगणे न बाळ।।
ये सबको भक्षण - काल भक्ष सबको करे ।
नव ग्रह चौसठ जोगणी बावन वीर प्रजति।
काळ भक्ष सबको करे हररशरणै डरपति।।
भगवान् के शिणै -
काळ डरे अणघङ साँू भाई , िा साँू सिं ााँ सरु ि लगाई।
िा मरू ि पर रामदास बार बार बनल जाइ।
भजन करे गरुु देव को िाको काळ न खाइ।।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९२

भगवान् का भजन किे , आश्रा (आश्रय) ले लेता है, तो


उसको काळ नहीं खाता , नहीं तो काळ तो सबको खा
ज्याता है अि वो खा िहा है बड़ी तेजीसे । हमािा जीवन
कहते हैं वो मौतमें जा िहा है । 'जी िहे हैं'- ये(यह) तो है
'बहम' औि 'मि िहे हैं'- ये बात है 'सच्ची'। चाहे लगे
बिी , पिन्त मि िहे हैं। दजतनी ऊमि आ गयी , इतने बिस
तो मि ही गये, अब बाकी दकतना है , इसका पता नहीं
, पिन्त मि गये- इसका दबलकल पता है। इतनी ऊमि
चली गयी, चली गयी, चली ही गयी औि िही हईु भी
जा िही है, वो जाणे में बन्द नहीं हुई है। ये रुकी हुई नीं है
- अटकी नहीं है। आप काम किें न किे(किें) , भजन किें
न किे , आप सोवें- आिाम किें , न किें । आपकी तिफ
देखता ही नहीं , काळ तो धना- धन, धना- धन, धना-
धन जा िहा है। अपणी अि सबकी आय को खतम कि
िहा है। ये खचा दनत्य- दनिन्ति हो िहा है औि ये समाप्त
हो जायेगा, तब उसी क्षण जाणा पङे गा। यहाुँ जोि नहीं
चलता दकसीका ई । ऊमि भगवान् ने दी है , उतने ददन
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९३

भाई ! जैसे- तैसे दबता(बीता) दो , पिन्त एक ददन ये


खतम हो ज्यायगा काम। कछ हाथ लगेगा नहीं, अि

सो परत्र िख
ु पावइ र दसर धदु न धदु न पदिताइ ।
(रामचररतमानस ७|४३)

दफि पिलोक में िोवेगा , दसि धन- धन के - हाय- हाय


मैंने कछ नहीं दकया। अब िोणे से क्या हो भाई? अभी
अगि चेत किले तो बड़ी अच्छी बात है। नहीं तो पीछे
िोणा(िोना) होगा , कोई फायदा नहीं होगा। उस िोणे का
फल िोणा ही दनकळे गा। आज अगि चेतकि के भगवान्
की तिफ चल दें, तो दबशेष लाभ हो ज्याय हमािे , बहतु
बड़ा लाभ हो ज्याय अि भगवान् इतने कृपाल , इतने
कृपाल , इतने कृपाल है क
सनमख
ु होइ जीव मोनह जबही (जबहीं) । क
जतम कोनट अघ नासनहं िबही (िबहीं) ।।
(रामचररिमानस ५|४४|२) ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९४

देिीका काम नहीं। सच्चे हृदयसे भगवान् के सनमख हो


ज्यायुँ।
बाळक को चप िखो भाई ! प्यािसे , स्नेहसे लेकि खड़े
हो ज्याओ ।
भइया ! टाइम हो जायेगा एक ददन खट सा, सच्ची बात
है, आप ध्यान देकि के सणें, मानें न मानें, ख्याल किे न
किें , आप की मजी, पिन्त सच्ची बात यह है। आप बिा
न मानें क्षमा माुँग लेता हूुँ । दजन लकङों में
बळोगे(जलोगे) ना , वो लकड़े अब ऊगेंगे नहीं ,
त्याि(तैयाि) है, वे बाुँसङा ई(बाुँसङे भी) त्याि है होऽऽ ,
दजनमें सीढी गथ ूुँ ी ज्यायगी न , वे बाुँसङा त्याि है। मूुँज
भी बण गई है, किण का कपड़ा भी बहतु ों के त्याि हो
गया है अि दूजों के त्याि हो िहा है, औि उिाणे(उिाने)
वाले आदमी अब नहीं जलमेंगे (जन्मेंगे) । के वल थाुँिी
आ धौंकणी(आपकी यह धौंकनी- श्वास) चलती है ना
, इसको अदडके है वे (प्रतीक्षा कि िहे हैं वे) । आ(यह)
बन्द होताुँ(होते) ही चटा- चट सामग्री दमल ज्यायगी
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९५

अि उि(उिे - वहाुँ अथाात् श्मशान में) ले जाकि फूुँक


देंगे । ये सामग्री त्याि है, अब नहीं होगी सामग्री। ये जिा
याद िखो । कृपा किो ! दसवाय भगवान् के औि कोई
बचाणे वाळा नहीं है। सब काल के गाल में जा िहा है,
क्या बचावेगा? वो खद दबचािा मिणे वाळा है , क्या
सहायता किेगा? सहायता तो अमि है वो ही किेगा , जो
सदा िहणे वाळे भगवान् हैं , हमािे, प्रभ हैं। उसके
चिणोंका शिणा(शिण) लो औि कोई िक्षा किणे वाला
नहीं है, सहायता किने वाला नहीं है, सपने(स्वप्न) में भी
कोई दनहाल किदे- ये बात है नहीं। बहम आपको पड़
गया है, उसका तो भई ! कोई इलाज नहीं है, पिन्त हादन
बड़ी भािी हो जायेगी-
अबके चक
ू ााँ राम दास होगी बहि ही हााँण।।
बड़ी हादण(हादन) हो ज्यायगी । इस वास्ते अब चूको
मत , अब तो सिळता से भगवान् की तिफ लग ज्याओ
। औि सीधी बात , बहुत सिल , संतों ने ये िस्ता बताया
है, दक
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९६

िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम िाम।


सीधा , सिल अन्तःकिण िख किके , सीधा हो किके
िाम िाम किो। तेिे पि जो दवपदत्त आवे, आफत आवे,
कोई कपट किे, झटू (झिू ) कपट किे, िगाई किे, किणे
दो , बेचािे को , किणे दो।

बोहोत बिसों की बात है-


मैंने एक अच्छे महापरुष से बात पूछी थी, दक मेिे को
लोग मूखा बणा किके अनदचत लाभ लेते हैं, तो मेिे
अकल में आ ज्याती है दक ये दबलकल मे िी मूखाता से
लाभ ले िहे हैं। तो मैंने पूछा क्या किणा चादहये?
कहते(उन्होंने कहा-) कछ नहीं किणा, लेणे दो उनको ।
यही उत्ति दमला था मेिे को।, वे लोग समझते [ हैं दक
यह ] मूखा है, समझता नहीं , बेसमझ है। उसमें नकसाण
नहीं है। समझदािी में नकसाण है। अपणे बे समझे समझे
तो हमािे को क्या हजा हुआ? लाखों - किोड़ों रुपये
दजसके पास में है ि लोग कुँ गला समझते हैं तो क्या हजा
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९७

है? रुपये है नहीं ि रुपये वाळाे समझे , तो सब तिह की


आफत आ गयी; चोि भी, डाकू भी, िाज भी- सब पीछे
पड़ा(पङे ) िहे। गिीब से गिीब साध औि ब्राह्मण , वे भी
तम्हािे पीछे पड़ेंगे, पिन्त पासमें कछ नहीं है तो क्या
होगा? अि है सब कछ ि लोगों को पता नहीं है तो बड़ी
बद़िया बात है। आप झिू ी इज्जत के दलये लालाइत
मत होवो(होओ), बेइज्जती होणे दो, अपणी
बेइज्जतीके लायक काम कोई मत किो। कै सा भी ,
छोटा- से- छोटा भी , बेइज्जती का काम नहीं किेंगे
भाई। हमािे वणा- आश्रम से , मयाादासे दबरुद्ध(दवरुद्ध)
है वो काम नहीं किेंगे, नहीं किेंगे, नहीं किेंगे । इस पि
पक्के िहो।

लोगों ने समझ िखा है क भजनसे, अच्छे आचिणों से


लाभ होता है , पिन्त दगाण- दिाचािों से दजतना
नकसाण होता है , उतना लाभ नहीं होता है। नकसाण
से बच ज्याय, दिाचािों से, दगाणों से, झिू , कपट,
बेईमानी , व्यदभचाि, अनाचाि, अत्याचाि, दिाचाि से
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९८

बच ज्याय औि इनको अपणे न आणें दे(न आनें दें) ,


तो बहुत बड़ी- उन्नदत होगी। दगाण- दिाचाि से िदहत
होणे से बहतु लाभ होगा, दवशेष लाभ होगा। इस तिफ
लक्ष्य नहीं होता है। मनष्य अच्छा काम तो किता है ,पण
बिे कमों का त्याग नहीं किता। अि त्यागका माहात्म्य
है उतना उनके ग्रहण किने का माहात्म्य नहीं है। इस
वास्ते इन दोनों को ही किें अपणे। अच्छे काम किें, बिे
काम न किें , पण बिा काम तो आज ही छोड़ दे(छोङदें)।

एक अच्छे महात्मा दमले थे, उन्होंने कहा क भजन-


स्मिण किणे में, अच्छे कामों को किणे में, संग्रह किणे
में तो देिी लगी, पण बिे कमों के छोड़ने में मेिे को देिी
लगी ही नहीं। कह, अब नहीं किणा है , कह, नहीं किणा
, बस । सगमता से छूट ज्याता है (क्योंदक) किणा नहीं
पड़ता न उसमें, उसमें तो 'नहीं किणा' ही है- हमें पाप
किणा नहीं है , अन्याय किणा नहीं है। इतने से आसिी-
सम्पदत्त छूट ज्याती है। दैवी- सम्पदत्त के लाणे में समय
लगे , (पण) आसिी- सम्पदत्त छूटते ही क्या है क नहीं
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ९९

किणा है , बस ! [ इसमें समय नहीं लगता ] किणा ही


नहीं है औि इस पक्के - दवचाि के किणे पि , दजतने संत
हो गये , वे सतं - महात्मा अि आज हैं दजतने ि अगाड़ी
होंगे जे (जो )- वे सब- के - सब हमािे साथ में है। शास्त्र
हमािे साथ में है, धमा हमािे साथ में है, सवोपरि पिमात्मा
हमािे साथ में है। प्रकृदत- भगवान् की माया , वो हमािी
सहायता किणे के दलये तैयाि है। हम सच्चे- हृदय से
दगाण- दिाचािों का त्याग किके औि पक्का दबचाि
किके भगवान् की तिफ लग ज्याय(जायुँ) तो मात्र्
ददनयाुँ हमािी सहायता किणे वास्ते तैयाि है। अभी पता
लगे , न लगे - अलग बात है , पिन्त बात एकदम सच्ची
है। सब सहायता किेंगे अि दगाण- दिाचाि किेंगे तो भाई
! कोई सहायता किणे वाला नहीं है। अपणे , आपके
होणे वाले माुँ- बाप, भाई , सम्बन्धी, कटम्बी - वे भी
जबाब दे देंगे। कपूत का कोई नहीं है, सपूत के सब कछ
है। इस वास्ते सच्चे हृदयसे भगवान् की तिफ लग
ज्याय(जायुँ) ये मेिी प्राथाना है। सिल हृदयसे भगवानकी
तिफ लगें। बस , भगवान् की तिफ ही लगणा है हमें ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १००

ये दो चीज बाधक है- एक तो रुपया, पईसों का संग्रह


हो जाय ि एक सख भोगल।ूुँ
भोगैश्वयाप्रसिानां ियापहृिचेिसाम् ।
(गीिा २|४४) ।
इनमें दजसका दचत अपहृत हो गया है , वो पिमात्मा हैं
औि वो (उनसे) मेिे को दमलणा है- इस बातको दनश्चय
में ही नहीं ला सकते, दमलणा तो दूि िहा। इस वास्ते इन
भोगों में औि संग्रह के लोभ में न फुँ से(फुँ सें) ।

रुपयों का लोभ छोड़ने पि रुपये आते हैं। ध्यान दो आप


। एक बात कह दू,ुँ दफि समाप्त किता ह।ूुँ ध्यान दें मेिी
बात की तिफ । रुपयों की चाहना छोड़ने पि रुपये
खल्ले आते हैं- ये बात सच्ची है। भगवान् के धाम में
कह िहा ह।ूुँ मैंने देखा है, आप(आपने) रुपये लेकि के
देखा है तो मफ्त में पचास हजाि साथ में नहीं आये होंगे
। मेिे पास पचास- पचास हजाि दो वाि आये हैं। एक
साथ पचास हजाि यहाुँ (इधि) , ये पचास हजाि है - [
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०१

लोग ] पीछे पड़े हैं औि भाईयों ने मेिे से पूछा है क


स्वामीजी ! कहीं लगाओ। मैंने पूछा दकतने क रुपये
लगाओगे ? हजाि- दसहजाि, पनिै(पन्रह) हजाि , बीस
हजाि- ऐसे मैंने प्रश्न दकया है। उन्होंने कहा एक लाख ।
ऐसे दो आदमी मेिे को दमले हैं। मैंने वो , उसको एक
हजाि भी लगाणे का कहा नहीं है , पि दमले हैं क एक
लाख रुपये लगा दूगुँ ा मैं , जहाुँ आप कहो ज्याुँ ही (जैसे
ही) लगा दूगुँ ा। आप िखणे वाले बताओ- दकतनेक
आदमी दमले (हैं ) आपको? लेणे वाळों को दकतनेक
आदमी दमले हैं पचास- पचास साथ में दे दे , पचास
हजाि ।
दमले होंगे , मैं अभाव नहीं कहता हूुँ , पण दबना उद्योग,
दबना माुँगे, दबना इच्छा, दबना आशा िखे हएु , आग्रह
दकया है उन लोगों ने।
ये भोग औि रुपये- ये कोई चीज नहीं है, मानव जीवन
की जो मदहमा है, उस मदहमा के सामने ये क्या चीज है?
ये कोई बड़ी चीज नहीं है। दजतना- दजतना आप इसको
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०२

बड़प्पन दोगे, आदि कि(किके ) देखोगे - बड़ी भािी है,


बड़ी भािी चीज है , उतना आपका पतन हो ज्यायेगा
महान-् इसमें सन्देह नहीं है।
आप चेतन होते हएु , कमाणेवाळे होते हएु , दफि रुपयों
के गलाम होते हो ! बगत(वि) पि क्या कहे(कहते हो)
- काुँई है , रुपयो तो हाथ िो मैल है , (क्या है , रुपया तो
हाथ का मैला है) थाुँिे हाथ िो मैल है क काळजे िी कौि
है ? (आपके हाथ का मैला है या कलेजे की कौि है ?)
जिा देखो। ये(यह) जड़ है, ये आपका कल्याण नीं (नहीं)
किेगा। आपके हृदय में चाहना न होणे पि गजा होगी गजा
; क्योंदक रुपये सफल मनष्यके पास में आकि होते हैं,
मनष्य सफल नहीं होता है रुपयों से। मनष्य- जीवन
रुपयों से सफल नहीं होता है। मनष्य- जीवन पिमात्मा
से सफल होता है। दजन रुपयों के लेणे से सफलता
मानते हो , वे रुपये अच्छे सतं ों की कृपामें लग ज्याय ,
उनकी सेवामें लग ज्याय तो रुपये सफल होते हैं। हम
दकतना(दकतने) गळती में , नीचे चले गये। उन रुपयों से
अपणी सफलता मानते हैं क अबकी या(यह) यात्रा
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०३

अच्छी हुई, जो हमािे[ को ] इतने रुपये दमल गये। पिन्त


रुपये अच्छे काम में लग ज्याय तो रुपये सफल हो
ज्याते हैं सज्जनों ! ये बात आपके , हमािी दबलकल है
ऐसी बात।
मानव- शिीि की बड़ी भािी मदहमा है- भगत मेिे
मगटमदण (मकटमदण) । भगवान् कहते हैं- भगत मेिा
मगटमदण है । भगवान् दजसको मगटमदण
बणावे(बनावे) , उसकी दकतनी मदहमा है, पण मदहमा
[ के दलये ] , मगट बडणे के दलये इच्छा न किे । सच्चे
हृदयसे भगवान् के चिणों में लग ज्याय । ज्यों- ज्यों वो
सच्चे हृदयसे लगता है, त्यों- ही- त्यों भगवान् के
दिबािमें उसका आदि ब़िता है -
एनह दरबार दीन को आदर रीनि सदा चनल आई ।
(नवनयपनरका १६५)
सदा की िीदत है। इस वास्ते सज्जनों ! क्यों दत्काि पाते
हो? क्यों दतिस्काि पाते हो? ददनयाुँ की गिज किके
क्यों गलाम बणते हो? सच्चे हृदयसे भगवान् की तिफ
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०४

चलो ना। एष दनष्कडटकाः पन्था । ये िस्ता(िास्ता)


बहुत ही बद़िया है, बड़ा लाभ का है। इस वास्ते सच्चे
हृदय से भगवान् की तिफ लग ज्यायुँ , दकतनी बद़िया
बात है, दकतनी उत्तम बात है, दकतनी ऊुँ चे दजे की बात
है। आप कृपा किके , लग किके देखें।
आज ही आप लग किके , आज ही आप फल-
चाहणा(फल- चाहना) चाहें- यह नहीं होगा, हो भी
ज्याय , पिन्त आप डट किके िह ज्याओ ि पक्के बण
ज्याओ इधि । दफि ये ददनयाुँ भी न दमले तो आपको
गिज ही नहीं है, गिज ही नहीं है, गिज ही नहीं है
दबलकल, दकंदचत् मात्र् (भी)।
राम नाम धन पायो प्यारा । जनम जनम के नमटे नवकारा ।।
दकतनी बद़िया बात है।
यो धन िन मन साटै लीजे प्रेम प्रीनि [सनहि] नलव लाई।।
राम धन ऐसा है मेरा भाई।।
पायो री मैंने राम रिन धन पायो ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०५

ये बोहोत दवलक्षण धन है, दजन संतों ने पाया है , वे


मस्त हो गये। वे [ही] नहीं , उनके नाम से ददनयाुँ मस्त
हो िही है, ददनयाुँ के लाभ हो िहा है।
आप , आज हम लोग यहाुँ बैिे हैं औि लाभ की दृदष्ट
से आये हैं। ये कौण(कौन)- सा िाज्य था क, सम्पदत्त थी
क, वैभव था क, कोई बड़े भािी ऊुँ चे दवद्वान थे क, क्या
थे? भगवान् का नाम लेणे वाळे थे। इसके दसवाय क्या
सामर्थया थी सा ? उसी(भजन) की यह सामर्थया है ि
सैकड़ों बिसों तक ददनयाुँ का उद्धाि होता है। इतना कोई
धन खचा किके कि सकता है उपकाि? है दकसी की
ताकत ? अिबों धन खचा किणे पि भी क्या [ कोई ]
इतना लाभ ले सकता है? नहीं ले सकता। औि भजन
किके आप बड़ा भािी लाभ ले लेंगे - इसमें सन्देह नहीं
है।
मेिे मन में बोहोत आती है तिुँगें । इस वास्ते कभी- कभी
आप लोगों के सामने अपणी भाप दनकाळ लेता हूुँ।
अपणे मन िी दनकाळ लूुँ बस। आप कृपाकि मानलें ,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०६

तो बोहोत कृपा मानगूुँ ा आपकी दक मेिे पि बड़ा अनग्रह


दकया , आपने बड़ी कृपा की। अपणी भाषा में- बोहोत
बङो माइतपणों दकयो थे , जो अिीनें लग ज्याओ । {
(अगि आप इधि , भगवान् की तिफ लग जायुँ, तो मैं
मानगूुँ ा दक ) बहुत बङा , माता दपता के समान बङप्पन,
दनःस्वाथा दहत दकया आपने , जो इधि जाओ } ।

इतिा(इतना) ददन किके देख ही दलया सस ं ािका,


दकतनाक िस है? वो कोई आपसे अपरिदचत नहीं है,
नमूना तो देख दलया है न । ऐसा ई औि है, औि क्या है
? औि जाती थोड़े ही है, अब अिीलो ही (इधि का भी)
देखो तो सही, ओ(यह) भी देखो। जो संत- महात्माओ ं
ने दलया है , वो लाभ भी लेकि देखो।

मेिे मन में था क वो ऐसे बात पहले होती है (थी) , आज


ऐसा नहीं है , पिन्त अब मेिे मन में ये नहीं है , आज तो
बोहोत सस्ती - सी ई चीज दमलती है । इस वास्ते कृपा
किें , सच्चे हृदयसे भगवान् में लग ज्यायुँ । ये ददनयाुँ
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०७

का भिोसा नहीं है, क्षणभुँगि है- एक क्षण भी नहीं िहता


[ संसाि ] । इसका क्या भिोसा।

िाऽऽमा श्री िाऽऽमा िामा ऽऽ श्री िाऽऽ मा ,


(लोग- िामा श्री िाऽऽमा िामा श्रीिा ऽऽमा),
िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म,
(िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म),

हे िामा श्री िाऽऽमा िामा ऽऽ श्री िाऽऽ मा,


( िामा श्री िाऽऽमा िामा श्रीिा ऽऽमा),
िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म,
(िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म),

हे िामा श्री िाऽऽमा िामा ऽऽ श्री िाऽऽ मा,


( िामा श्री िाऽऽमा िामा श्रीिा ऽऽमा),
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०८

िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म,


(िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म),

हे िामा श्री िाऽऽमा िामा ऽऽ श्री िाऽऽ मा,


( िामा श्री िाऽऽमा िामा श्रीिा ऽऽमा),
िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म,
(िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म),

हे िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म,


(िामा श्री िाम िाम िा ऽऽ म सीतािा ऽऽ म),

श्रीिाम गरुदेवजी महािाज की जय,


दसयावि िामचन्र की जय,
मोिमकट बुँशी वाले की जय..,।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १०९

[ यहाुँ शरुआत की रिकोदडिंग छूट गई है । यहाुँ श्रद्धेय


स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज एक भूल- सधाि
किने के दलये कह िहे हैं- ]

(••• आप भगवान् के नाम का जप- कीतान किते हैं वो


बहुत बद़िया बात है पि )
••• उसके साथ- साथ , भगवान् यहाुँ नहीं है, भगवान्
तो भदवष्य में कभी दमलेंगे , भगवान् अभी यहाुँ नहीं है,
नहीं है, नहीं है। ये अभ्यास कि िहे हैं। भगवान् के नाम
का जप- कीतान किते हुए इस बात को दृ़ि किते हैं क
अभी भगवान् नहीं दमलेंगे। अभी भगवान् है नहीं यहाुँ ,
वे आयेंगे तब दमलेंगे। भजन किते हुए उल्टा अभ्यास
किते हैं।

ख्याल दकया दक नीं आपने? अभी भगवान् कै से दमल


सकते हैं? अभी भगवान् यहाुँ थोड़े ही हैं। हम दूि है (हैं
), भगवान् दूि है (हैां )। हम योग्य बणेंगे, कभी
अदधकािी बणेंगे, तो भगवान् कभी दमलेंगे । वो ही
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११०

कृपा किके आ ज्याय तो दमल ज्याय । शिीि तो हमािे


साथ है , ये तो दमला हुआ है। अि पिमात्मा दमले हुए
नहीं है। बात तो वास्तवमें , शिीि आपको दमला हआ ु है
ही नहीं, ये तो हिदम बहता है, ज्यूुँ गंगाजी का प्रवाह बहे
, ज्यूुँ(ऐसे यह शिीि) हिदम नाश की तिफ जा िहा है। ये
दमला हआ ु कै से हैं? दमला हआ ु है तो[ पहले आप ]
बच्चे थे औि आज सफे द बाल हो गये, शिीि तो बदल
गया न- ये प्रत्यक्ष में। [ तो यह शिीि ] बदलने वाला है
हिदम , हमािे साथ से दबयि(दवयि) हो िहा है, अलग
हो िहा है, उसको तो साथ मानते हैं औि पिमात्मा दनत्य-
दनिन्ति हमािे साथ हैं , उनको अपणे पास नहीं मानते।
इस(उलटी मान्यता) को दूि किने के दलये एक बात
बताता ह,ूुँ उसको आप अगि पकड़ लें औि याद िख लें
औि किणे लग ज्याय तो बहुत ही लाभकी बात है,
बहतु ही लाभकी बात है , बहतु ही लाभकी बात ।
कहते (हैं ) वो क्या है ? क नामजप किते हुए , समझे
दक जहाुँ जप हो िहा है भीति - िाम िाम िाम िाम िाम
िाम- ऐसा जप हो िहा है, उस जप में पिमात्मा हैं । "िा
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १११

ऽ म" उस 'ि' में भगवान् हैं , 'िा - आ' में भगवान् हैं ,
'म' में भगवान् हैं, 'म' में 'अ' है , उसमें भगवान् हैं ,
िाम- िाम- िाम इस ध्वदन में भगवान् है, इस जीभ में
भगवान् है, इस दचन्तन में भगवान् है, शिीि में भगवान्
है, कछ भी याद आ ज्याय - उसमें भगवान् है। जो याद
आता है , वो तो िहता नहीं ि भगवान् उसमें िहते हैं। बिी
बात आ ज्याय तो उसमें ई(भी) भगवान् िहते हैं, कछ
भी स्मिण हो ज्याय , स्फिणा हो ज्याय , उसमें भगवान्
हैं- इस बातको मानलें ।

दशकायत किते हैं क भगवान् में मन नहीं लगता, मन


में तो संसाि की बात याद आती है, तिह- तिह की बातें
याद आती है , तो जो याद आती है , वे चीजें अभी नहीं
है यहाुँ औि पिमात्मा अभी हैं [ यहाुँ ] ।

'है' उसको तो नहीं मानते ि 'नहीं है' उसको 'है' मानते


हैं । दकतनी बड़ी गलती किते हैं । बहुत बड़ी गलती ।
इसको आज से ही छोड़ दें ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११२

हम जप कि िहे हैं वो जप में भगवान् है । दजस 'जबान'


से 'जप' किते हैं उस 'जबान' के भीति ओत- प्रोत
"भगवान"् दमले हएु हैं। जैसे बफा में पाणी िहता है, ऐसे
जीभ में भगवान् है । मनसे हम भगवान् को याद किें तो
मन में भगवान् है। ध्वदन सणाई देती है िाम िाम िाम िाम
िाम- ऐसे सणाई दे , तो उस सणणे में भगवान् हैं । सणणे
के साधन- कान है - उनमें भगवान् है। 'मैं' जप किता ह,ूुँ
सणता हूुँ , उस 'मैं' में भी भगवान् है। सणता हूुँ , उसमें
भी भगवान् है। देखता हूुँ , उसमें भी भगवान् है। जो
दीखता है उसमें भी भगवान् है। दजसके द्वािा देखता हूुँ ,
उस आुँख में भी भगवान् है औि आुँख के द्वािा दजसको
देख िहा ह,ूुँ उधि जो आुँख की बदृ त्त(वदृ त्त) जा िही है ,
उसमें भी भगवान् हैं। आपना(अपना) जो फिणा
(स्फिणा) है , वो जो देखना , सडणा , जो देखा ज्याता
है , उसमें- सबमें पिमात्मा परिपूणा हैं । इस बात को मान
लें आप, बड़ी दृ़िता से, तो बहुत बड़ा भािी फका पड़
ज्यायगा । अि फका पड़े चाहे न पड़े, फायदा दीखे चाहे
न दीखे, लाभ दीखे चाहे न दीखे, पिन्त इस बातको
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११३

आज आप मान लें। ये मेिा दबशेष कहणा है आप लोगों


से । इस बातको मानलें। तो
वासदु वे ः सवानमनि स महात्प्मा सदु ल
ु ाभः ।
(गीिा ७|१९) ।

सब कछ वासदेव है - ऐसा जाडणे (जानने) वाला


महात्मा है, वो बड़ा दलाभ है, वो ई हम , महात्मा(वही
महात्मा हम औि) आप हो ज्यायेंगे। क्योंदक सबमें
पिमात्मा है , तो सभी पिमात्मा ही तो होंगे औि क्या
होगे(होंगे) । तो सब , दजतना दीखता है ि सणता है , ये
तो िहेगा नहीं, ि पिमात्मा पिमात्मा िहेगा अि उसको
हमने पहले ही पकड़ दलया।

क्या जची? तो इसको भूलना नहीं है औि भूलें क्या ,


ये तो बात है ही ऐसी ई, भूले क्या? भूले , कोई याद
किणे से थोङी ही पैदा हुई है, इधि ध्यान नहीं देणे से
लक्ष्य नहीं था, पिमात्मा तो अभी(तभी) वैसे- के - वैसे
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११४

ही थे। जब तक ध्यान नहीं ददया तब , ध्यान देतें हैं तब


तक औि भूल ज्याते हैं तब, भगवान् तो वही िहते हैं ।
वे तो हैं ही- ऐसा आप मानलें औि इसमें आपके शंका
हो तो पूछलो(पूछलें) ।

- श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज


( ददनांक २०|०३|१९८१ _१४०० बजे आदद वाले
प्रवचन का यथावत् लेखन )
लेखनकताा - डगुँ िदास िाम आदद

○○○□●●□○○○
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११५

(४) सेिजी श्री जयदयाल जी गोयन्दका की


दवलक्षणता
( --श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख
ु दासजी महाराज के नदनांक
10/04/1981 वाले प्रवचन के अंश का यथावि-् लेखन) ।

नािायण नािायण नािायण नािायण नािायण नािायण ।


देखो आप मानें, न मानें, औि न मानें तो मेिा कोई
आग्रह नहीं, औि मानें तो लाभ की बात है, औि नई ं
मानें तो ई < > म्हाुँिे कोई, निक चले जाओगे उस समय
- आ बात नहीं (है) ।

श्री गोयन्दकाजी को, सेिजी गोयन्दकाजी, जो िहा -


जयदयालजी गोयन्दका । उनको मैं तत्त्वज्ञ, जीवन्मि
महापरुष मानता हूुँ । औि ये मैं माना है । अि, उनकी
लेदखनी प़िी है, उनके साथमें िहा ह,ूुँ उनके आचिण
देखे हैं । औि देखणे से वो बात दृ़ि होती है । दूजों के
दूि से सडणे पि श्रद्धा बैिती है, पास में िहणे पि वैसी
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११६

श्रद्धा नहीं िहती । तो ऐसी मेिे भी कछ- कछ हुई है बातें


; पिन्त मैं दफि भी उनको समझता हूुँ तो वैसे, हमें
इदतहास में महापरुष नहीं दीखते हैं उनके समान । इतना
दवलक्षण मानता हूुँ उनको । बहुत दवदचत्र परुष थे वो ।

एक महात्मा होते हैं, एक भगवान् होते हैं । तो महात्मा


होते हैं,जो सतं होते हैं, उनकी (जीवनी-) इदतहास आप
देखलो, जगह- जगह दजतना प्रमाण (है) वो देखलो,
कोई प्रमाण दमले तो मेिे को बता देना , एक बात कहता
हूुँ ।

पािमादथाक साधन में लगणे पि मनष्य की चाल


बदलती है, वेश बदलता है, िहन- सहन बदलता है, ये
बदलता ही है, नहीं बदला हो तो मने बतादो, उदाहिण
बतादें दफि । इता बैिा हो थे ई, जाणकाि हो, कोई एक-
दो बतायो (- बता देना)।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११७

सेिजी िे वाइ तो धोती है अि वाइ पगड़ी है अि वाइ


अुँगिखी है, अि वेइ जूता है ि, वो जूता तो चमड़े िा म्हें
देख्या ई कोनीं, कपड़े िा है, औि वाइ कामळ है देशी
बडयौड़ी, अि वाइ बोली है, - मोटि ने मटि कहता,
मटि।
(श्रौताओ ं को हुँसी आ गई - हुँहहहहहअ.) ।
इतनी ऊुँ ची दस्थदत होने पि िहन- सहन, वेशभूषा में कोई
फका नहीं, है ज्यूुँ िा ज्यूुँ, हि ये कहता म्हेंतो, एक बदणये
को बेटा हूुँ मैं । म्हे तो बादणया हाुँ । आ बात ही । औि
दववेचन किणे में इतनी दवलक्षणता ही दक जो गहिा
उतिता वे (उण) बात में, जो बड़ा चकिा जाय आदमी ।

अपणे साधओ ं में श्री चौकसिामजी महािाज, बहोत


बदद्धमान हा । तो वे भी उिे आया हा । िामधनजी - म्हािे
गरु भाई, वे भी हा ।
तो आया जणाुँ तो आ बात कही मेिे वास्ते, क ए
स्वामीजी तो प़ि्या दलख्या है, सेिजी तो, प़ि्या
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११८

दलख्या तो है ई नई ं । पढ्या दलख्या दीखता ई कोनी ।


तो आुँिो (स्वामीजी िो) व्याख्यान चौखो । ऐतो आप
(श्रीसेिजी) मािवाड़ी- दमदश्रत बोले है ।

बे चौकसिामजी महािाज कहणे लग्या कह, मैं एक बात


अिे देखी दजिी (-दजसी) किे ई नीं देखी ।
चौकसिामजी महािाज के यौ िामधनजी नें , वाुँ म्हने
के यौ ।

जो तत्त्वज्ञ, जीवन्मि, पािमादथाक दवशेष हो जायेगा,


वो व्यवहाि में इतना चति नहीं होगा । औि व्यवहाि में
बहुत सावधान होगा, वो पािमादथाक- ऊुँ चा नहीं होगा।
सेिजी से कोई ( - सी भी ) बात पूछलो भाई थे , ब्याह
सावे की पूछलो, सगाई सम्बन्ध िी पूछलो, पािमादथाक
पूछलो, ज्ञानयोग पूछलो, ध्यानयोग पूछलो, कमायोग
पूछलो, भदियोग पूछलो, अष्टांगयोग पूछलो । सब
बातों की बािीक- बािीक , पजाा- पजाा बता देंगे । येह
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ११९

एक बात मैं एक जगह ई देखी । चौकसिामजी महािाज


कही अन्तमें ।

सब बातों का चौधािो (चािों तिफ से धाि वाला, सब


प्रकाि से कशल) आदमी नीं हयु ा किे है , एक- एक
दवषय में हुया किे (है) । बड़े- बड़े वकीलों से लड़ायाुँ
नहीं सळझी है, वा सेिजी सळझायी है, अि वहाुँ सब
का फै सला दलखा है । मेिे सामने पाुँच- सात, दस, ऐसे
फै सला दकया है वहाुँ । सत्संग छोड़ देता, अबाि फै सला
किाुँ (बोलो) । अि किोड़पदत, लखपदत आदमी ि , अड़
जाय एक कछी पि - चमचो मैं लेएऊुँ , वो कहते - मैं
लेएऊुँ । अि नीं तो आदमी मि जाय - आपसमें ऐसी
लड़ाई । जके में सगळाुँ ने सळ्चा (सिचा) ददया, िाजी
कि ददया दोनूुँ (पक्ष) । ऐसा फै सला कि देता । वकालत,
जज भी जाणें कोनीं दजता जाणता (हा)।

तो व्यवहाि में भी इतना दवलक्षण, औि पिमात्मा में ई,ं


पिमाथा- िीदत में बहतु दवलक्षण । ऐसी मेिी धािणा िही।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२०

यूुँ तो आप भी दवचाि किो तो साधू होकि गहृ स्थी के


पास क्यों गया मैं ? पण कोई साधू ऐसा दमला नहीं मेिे
को । दमलता तो मैं नहीं जाता वहाुँ । ऐसे दवलक्षण थे ।

मेिी दृदष्टमें, उनकी चाल शाल, दवचाि, भले ई वेशभूषा


तो अवताि की । अवताि यूुँ - कह, िामजी क्या कहते
हैं, िामजी का परिचय -
कोसलेस दसरथ के जाए ।
हम नपिु बचन मानन बन आए ।।
( रामचररिमा. ४ । २ । १ )
पूछे दक तम कौण हो ? तो उन्होंने परिचय क्या ददयो ?
कौशलपदत, दशिथजी का बेटा हाुँ, औि दपताजी ने
वनवास ददया, वनवास में आया हाुँ , अि िाम ि
दलछमण म्हािो भाई है , म्हे भाई- भाई हाुँ । म्हािी लगाई
लोग लेग्या जो, जोवता दफिाुँ हाुँ ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२१

इमें काुँई अवताि है ि काुँई महात्मापणों है? सीधी सादी


बात है क नीं? गहृ दस्थयों जैसी बात ह्वे ,जैसी- जैसी साफ
कह दी । इहाुँ हिी दनदसचि बैदेही । खोजत हम, दफिदहं
दबप्र तेही - ब्राह्मण िा देवता ! म्हे तो बेने जोवता दफिाुँ
हाुँ । आ बात की - अपणो परिचय ओ ददयो । किे ई यूुँ
कौनी के यौ- महात्मा हूुँ क, म्हें भगवान् हूुँ क, सतं हूुँ क,
किे ई कोदन के हयो । ज्यूुँ ही सेिजी को परिचय वो ही
। वेशभूषा में ई ं वो ही परिचय । आप एक महात्मा
बताओ ऐसा ।

जैसे श्रीजी महािाज ने कहा है-


त्प्यागी शोभा जगि में करिा है सब कोय ।
हररया गहृ स्थी सिं का भेदी नबरळा होय ।।

आ बाणीमें आवे । दकतनी दवदचत्र बात है ।


सहजावस्था की बात पूछी, वो सहजावस्था की बात (
दजती ) श्रीजी महािाज िे, श्रीहरििामदासजी महािाज
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२२

की बाणी में दजतनी आती है, इतनी म्हें बाणी दूजी देखी
नहीं है, दजके में आ बात आयी ह्वै ।, दजतने - दजतने
आचाया हएु हैं, उन आचायों की देखी, श्रीजी महािाज
की, हिदेवदासजी महािाज, नािायणदासजी महािाज
हुए, िामदासजी महािाज हुए, दयालजी महािाज की
बाणी बहतु दवदचत्र । बे में भी आवे, थोड़ो आवे (घणाुँ
कोदन) । इनके खास बात है ।

हररया जैमलदास गरुु राम ननरंजन देव ।


काया देवल देह रो सहज हमारी सेव ।।

( 'सहज' शब्द पि ताळी िौक कि, उसको दवशेष


जताया )
हद किदी नीं ! हमािी सेवा सहज है -
सहजााँ मारग सहजका सहज नकया नबश्राम ।
हररया जीव र सीव का एक नाम एक ठाम ।।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२३

सहज िन मन कर सहज पूजा ।


सहज सा देव नहीं और दजू ा ।।

हद ई किदी है । ऐसी साफ बाणी, हिेक संत की दमले


नीं है । ऐसी बात सेिाुँ की है । दवदचत्र बात है उनकी,
ज्यादा नहीं कहूुँ मैं, उदाहिण थाुँ पूछ्यो जको उदाहिण
कहणे िे वास्ते आ भूदमका बाुँधी है ।

गोिखपि में हम लोग िहिे हुए थे, सेिजी दजसमें


िहते,उसके ऊपि मकान में । सबह चाि बजे सत्सगं होता
था । उसमें, प्रेस में से भी भाई आ जाते, हम लोग भी
आ जाते, गाुँव में, घि में - घिाुँ में से लोग आ जाते,
तादत्त्वक- बातें होती थी सबह िे समय में । बड़ी दवदचत्र-
दवदचत्र बातें होती थी । सणते थे हम ।

तो वहाुँ एक, गप्तानन्दजी नाम कि एक संत थे । वो िहिे


हुए थे प्रेसमें । गप्तानन्दजी महािाज थे, ऐसे साधू भी
बहोत कम देखणे में आते हैं । इतने बे दबिि थे । हाथ
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२४

का कता, हाथ का बणा ही कपड़ा पहनते । टे का लेता


तो भी, मील िा, सई िो डोिो भी लेता कोनी औि सोता,
जणाुँ आपिो कपड़ो ई दबछावता कोनी । यूुँ ई, छत पि
यूुँ ई सो जाता । दभक्षा में जाता, जको दमळ ज्याय ज्यूुँ
ले लेता ।

वाुँ िे गरुजी हा, वाुँ िी बात भी ऐसी मैंने सणी (अि) मैंने
दशान दकये हैं । कोई कहता महािाज ! दनमन्त्रण है । कह,
िीक है । खीचड़ी बणाणा, नमक भी मत डालणा
(बीचमें) । औि कछ नहीं । औि नेतो नीं लेता, जणाुँ
दनमक डालदो भले ही । खीचड़ी ले लेता, िोटी ले लेता
। घी क, दूध क, दही क, कछ नहीं ।

औि गप्तानन्दजी महािाज िी बात, जो दभक्षा माुँगता, जो


के वल िोटी ले लेता औि बे खा लेता । दस्ताुँ लगणे लग
गई । जणाुँ म्हें कहयो महािाज ! आप छाछ ले दलया
किो, घिाुँ में से छाछ ले लो । ज्यादा आग्रह दकया । तो
मेिे पि बहोत कृपा िखते थे, मेिी बात मानते थे । तो वाुँने
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२५

स्वीकाि कि दलया । मैं ने बहनों माताओ ं से कह ददया


भई ! आवे तो इनको छाछ घाल देना । एक हाुँडी देदी
छोटी । छाछ लेई - ईमें काुँई ं बात, छाछ लेलो ।

दो, तीन, चाि ददन हआ ु होगा- याद नहीं, दकतना ददन ।


एक ददन आ ि कह - स्वामीजी देखो आपका कहणा
मैंने कि दलया, अब नहीं लगूुँ ा । मको क्या हुयो ? कह,
दकसी माई ने दही डाल ददया उसमें । इस वास्ते अब
नहीं लगूुँ ा मैं । आ बात है । ओ वाुँ िे, गप्तानन्दजी िो
परिचय ददयो थाुँने ।

वे उतयोड़ा हा प्रेसमें । तो वे के वै क प्रेसमें िहता है ताळा


। तो पहले मैं शौच- स्नान करिआऊुँ , गगं ाजी जायआऊुँ
(श्री स्वामीजी महािाज कहीं- कहीं पि दूसिी नदी को
भी आदि से गगं ाजी कह देते थे) - नदी पास में बेवै ई है,
नदी में नहाइयाऊुँ , त्याि हू ज्याऊुँ चाि बजे से पहले । तो
मैं ताळो खोलाऊुँ जको साध िो धमा क्या है? दिबान ने
कह सकाुँ (हाुँ )? - थे ताळो खोलो । अथवा तो कह
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२६

सको - मत खोलो ? आपाुँने कहणो क्या है ? साधू िो


धमा क्या है? कत्ताव्य बताओ- साधू को ओ कत्ताव्य है।

देिी सूुँ ई ं आता दबचािा, चाि बज्याुँ, आता जणाुँ ही


आता । खोलता दिवाजो जणाुँ आ ज्याता । तो मेिे,
पीछे शौच- स्नान में देिी हो जाय । तो आपाुँने कहणो
धमा है क नीं दिबान ने ?

म्हें पूछ्यो भाई म्हें क्यों उत्ति दूुँ , जब सेिजी बैिा है तो


आनें ई ं पूछलाुँ । जैसे कोई बताणे वाळो ह्वै तो आपाुँ
क्यों कूद ि पड़ाुँ बीचमें ?

सेिजी ने पूछ्यो सेिजी ! आ दशा है । अब क्या किाुँ ।


म्हािे सतं पूछे है । सत्सगं उिग्यो , उिते हैं, कोई- कोई
तो जा िहा है, कोई बैिा है, यूुँ हो िहा है, बे वख्त मैंने
प्रश्न दकया । ऐसे ये पूछे है, तो आपाुँने, म्हाुँने क्या किणो
चइये - साधू िो धमा क्या है? दिवज्जे ऊपि है, तो आनें
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२७

कहदें - तू आडो खोलदे भाई । ओ कहणो िीक है क


नीं है ?
वाुँ बात मेिी सणली । शकदेवजी ! शकदेवजी !! - जा
िया था , आओ । क्या बात है? कह, तीन बजे आडो
खोल ददया किो, ताळो खोल ददया किो । ये बात हूगी
। चलाग्या ।

अब वे गप्तानन्दजी िे खळबळी मचगी क म्हेंतो एक मेिे


वास्ते कह,ूुँ िोजीनाुँ ड्यूटी लगा ददया आनें तो । -
िोजीनाुँ ही ड्यूटी लगा दी । बात िीक नहीं हुई । दभक्षािो
टाइम हो गयो म्हािे । सेिजी ! आपसे मेिे बात किणी है
। कहा - अच्छा ।

दभक्षा कि ि, भोजन किके आया (ह)ूुँ , मैंने कहा - आप


मनें ये बताओ , उनके तो एक अपणे दलये ही दिवज्जा
खोलाणे का सुँकोच, अि आपने सदा के दलये ड्यूटी
लगादी खोलणे की । तो उनके भािी लगी । इण वास्ते
ये क्या उत्ति ददया आपने ?
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२८

समझ में किे आयी ? ज्यूुँ या नहीं समझ में आयी न


! मैंने पूछा । पूछा तब महािाज ! उत्ति ददया , बङा ही
सन्तोष ( वाला ) ।

कहते हैं क साधू का कत्ताव्य पीछे बतावें, जब हम


अपणा कत्ताव्य पालन किें । हम तो कत्ताव्य पालन किें
ई ं नीं ि साधू का कत्ताव्य बतावें, हमािा अदधकाि नहीं है
बताना ।

तो उनको क्यों कहणा पड़े- क दिवज्जा खोल दो ।


हमािा कत्ताव्य है दक साधू को कोई अङचन (है)
दिवाजा खोल दो । तो क्या कत्ताव्य ? कत्ताव्य हमने
पालन दकया ।

इससे ये ई बताया क तम मत कहो । इतिा वषों से मैं


साथ में िहता ह,ूुँ मेिे अकल में नहीं आयी बात - आ
सेिजी कै से किदी ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १२९

तो आदमी िे आचिण समझमें थोड़े ई आवै सभी,


कौणसो आदमी, दकस वि में , कौणसा काम किता है?

म्हें के यौ बताओ बीती हुई घटना । ऐसी मेिी बीती हुई


है घटनाएुँ । मैंने देखी है, पूछी है । हमािे समझमें नीं
आयी थी भई ! हि कहणें से समझमें आ गयी चट सी ।
आप बताओ, आपके शंका िही हो तो ।

गप्तानन्दजी दबचािे के खळबळी हईु क िोजीनाुँ ही स


ड्यूटी लगाादी इनकी तो । मेिे भी समझमें नीं आयी वा
। दभक्षा दफिा, दकया, दजती बात, दचन्तन में वो - बात
क्या हईु भाई ? सेिजी ने ऐसे कै से कि ददया? या बात
ही सा ।

दूजो कोई कत्ताव्य पूछे , थािो कत्ताव्य ओ है - यूुँ बता दे


चट सूुँ । बतायो ई कोनीं, सीधो हक्ु म ही ददयो ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३०

इस वास्ते मनष्य की लीला भी समझमें नहीं आती है,


दकस समय में, कौणसा काम, कै से किते हैं? ऐसे
भगवान् कृष्ण की लीला, कै से समझमें आवे?

( --श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदास जी महािाज


के ददनांक- 10/04/1981 वाले प्रवचन के अंश का
यथावत-् लेखन ) ।

यह प्रवचन इस दिकाने (- पते) से प्राप्त दकया जा सकता


है-
- bit.ly/sethji10041981
- http://dungrdasram.blogspot.com/2019/01
/10041981.html
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३१

(५) जानने योग्य जानकािी


(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराज के नवषय में)।

प्रश्न- क्या आप श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी


महािाज के दवषय में कछ बता सकते हैं?
उत्तर- हाुँ, बता सकते हैं।

प्रश्न- तो बताइये, वे कहाुँ के थे औि क्या किते थे? तथा


उनके दसद्धान्त कै से थे?। सही- सही बताना।
उत्तर- जी, हाुँ । सही-सही बातें ही बतायी जायेगी;
क्योंदक हमको यह जानकािी उन (श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीिामसखदासजी महािाज) के द्वािा ही दमली है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज ने अपने


िहने के दलये कहीं भी कोई स्थान नहीं बनवाया। आप
गाुँव गाुँव औि शहि आदद में जा- जाकि कि लोगों को
सत्सगं सनाया किते थे औि दभक्षान्न से ही अपना शिीि
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३२

दनवााह किते थे। जहाुँ भी िहते थे, उस स्थान को भी


अपना नहीं मानते थे।

जानकािी के दलए प्रस्तत है उनके ही दवचाि-


" मेिे दवचाि "
( श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज ) ।
१. वतामान समय की आवश्यकताओक ं ो देखते हुए मैं
अपने कछ दवचाि प्रकट कि िहा ह।ूुँ मैं चाहता हूुँ दक
अगि कोई व्यदि मेिे नामसे इन दवचािों, दसद्धान्तोंके
दवरुद्ध आचिण किता हुआ ददखे तो उसको ऐसा
किनेसे यथाशदि िोकनेकी चेष्टा की जाय ।

२. मेिे दीक्षागरुका शिीि शान्त होनेके बाद जब दव०


स०ं १९८७ में मैंने उनकी बिसी कि ली, तब ऐसा पक्का
दवचाि कि दलया दक अब एक तत्त्वप्रादप्तके दसवाय
कछ नहीं किना है । दकसीसे कछ माुँगना नहीं है ।
रुपयोंको अपने पास न िखना है, न छूना है । अपनी
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३३

ओिसे कहीं जाना नहीं है, दजसको गिज होगी, वह ले


जायगा । इसके बाद मैं गीताप्रेसके संस्थापक सेिजी
श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके सम्पका में आया । वे मेिी
दृदष्टमें भगवत्प्राप्त महापरुष थे । मेिे जीवन पि उनका
दवशेष प्रभाव पड़ा ।
३. मैंने दकसी भी व्यदि, सस्ं था, आश्रम आददसे
व्यदिगत सम्बन्ध नहीं जोड़ा है । यदद दकसी हेतसे
सम्बन्ध जोड़ा भी हो, तो वह तात्कादलक था, सदाके
दलये नहीं । मैं सदा तत्त्व का अनयायी िहा ह,ूुँ व्यदिका
नहीं ।
४. मेिा सदासे यह दवचाि िहा है दक लोग मझमें अथवा
दकसी व्यदिदवशेषमें न लगकि भगवानमें ही लगें ।
व्यदिपूजाका मैं कड़ा दनषेध किता हूुँ ।
५. मेिा कोई स्थान, मि अथवा आश्रम नहीं है । मेिी
कोई गद्दी नहीं है औि न ही मैं ने दकसीको अपना दशष्य
प्रचािक अथवा उत्तिादधकािी बनाया है । मेिे बाद मेिी
पस्तकें (औि रिकाडा की हईु वाणी) ही साधकोंका
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३४

मागा-दशान किेंगी । गीताप्रेसकी पस्तकोंका प्रचाि,


गोिक्षा तथा सत्संगका मैं सदैव समथाक िहा हूुँ ।
६. मैं अपना दचत्र खींचने, चिण-स्पशा किने,जय-
जयकाि किने,माला पहनाने आददका कड़ा दनषेध
किता हूुँ ।
७. मैं प्रसाद या भेंटरूपसे दकसीको माला, दपट्टा, वस्त्र,
कम्बल आदद प्रदान नहीं किता । मैं खद दभक्षासे ही
शिीि-दनवााह किता हूुँ ।
८. सत्संग-कायािमके दलये रुपये (चन्दा) इकट्ठा
किनेका मैं दविोध किता हूुँ ।
९. मैं दकसीको भी आशीवााद/शाप या विदान नहीं देता
औि न ही अपनेको इसके योग्य समझता हूुँ ।
१०. मैं अपने दशानकी अपेक्षा गंगाजी, सूया अथवा
भगवदद्वग्रहके दशानको ही अदधक महत्त्व देता हूुँ ।
११. रुपये औि स्त्री -- इन दोके स्पशा को मैंने सवाथा
त्याग दकया है ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३५

१२. दजस पत्र-पदत्रका अथवा स्मारिकामें दवज्ञापन


छपते हों, उनमें मैं अपना लेख प्रकादशत किने का
दनषेध किता हूुँ । इसी तिह अपनी दूकान, व्यापाि
आददके प्रचािके दलये प्रकादशत की जानेवाली सामग्री
(कै लेडडि आदद) में भी मेिा नाम छापनेका मैं दनषेध
किता हूुँ । गीताप्रेसकी पस्तकोंके प्रचािके सन्दभामें यह
दनयम लागू नहीं है ।

१३. मैंने सत्संग (प्रवचन) में ऐसी मयाादा िखी है दक


परुष औि दस्त्रयाुँ अलग-अलग बैिें । मेिे आगे थोड़ी
दूितक के वल परुष बैिें । परुषोंकी व्यवस्था परुष औि
दस्त्रयोंकी व्यवस्था दस्त्रयाुँ ही किें । दकसी बातका
समथान किने अथवा भगवानकी जय बोलनेके समय
के वल परुष ही अपने हाथ ऊुँ चे किें, दस्त्रयाुँ नहीं ।

१४. कमायोग, ज्ञानयोग औि भदियोग - तीनोंमें मैं


भदियोगको सवाश्रेष्ठ मानता हूुँ औि पिमप्रेमकी प्रादप्तमें
ही मानवजीवनकी पूणाता मानता हूुँ ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३६

१५. जो विा अपनेको मेिा अनयायी अथवा कृपापात्र


बताकि लोगों से मान-बड़ाई किवाता है, रुपये लेता है,
दस्त्रयोंसे सम्पका िखता है, भेंट लेता है अथवा वस्तएुँ
माुँगता है, उसको िग समझना चादहये । जो मेिे नामसे
रुपये इकट्ठा किता है, वह बड़ा पाप किता है । उसका
पाप क्षमा किने योग्य नहीं है ।

- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज ।

ऐसे (मेिे दवचाि) एक सतं की वसीयत(प्रकाशक-


गीताप्रेस गोिखपि) नामक पस्तक (पृष्ठ १२,१३ ) में भी
छपे हुए हैं।
इस प्रकाि आप एक महान् दवलक्षण महापरुष थे। आप
कौन थे? इस दवषय में तो स्वयं आप ही जानते हैं , दूसिे
नहीं। दूसिे लोग तो अटकलें लगाकि अपनी बदद्ध का
परिचय देते हैं।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३७

आपने श्री मद् भगवद् गीता पि एक अदद्वतीय दहन्दी


टीका दलखी है। दजसका कोई अगि मन लगाकि िीक
तिह से अध्ययन किे, तो पिमात्मतत्त्व का बोध हो
सकता है। गीताजी का िहस्य समझ में आ सकता है।
घि परिवाि औि संसाि में िहने की दवद्या आ सकती है।
सब दःख,दचन्ता, भय आदद सदा- सदा के दलये दमट
सकते हैं औि आनन्द हो सकता है।

इसी प्रकाि उनकी "गीता-दपाण", "गीता-माधया",


"साधन-सधा-दसन्ध," "गहृ स्थ में कै से िहें?" आदद
किीब सत्ति अस्सी से भी अदधक पस्तकें छपी हईु है
औि उनके सत्संग, प्रवचनों की की हुई लगाताि सोलह
वषों (1990 से 2005 तक ) की ओदडयो रिकोदडिंग है
तथा उससे पहले के सत्सगं प्रवचनों की भी काफी
रिकोदडिंग है।

गीताप्रेस के संस्थापक सेिजी श्री जयदयाल जी


गोयन्दका औि आपने पस्तकों तथा सत्सगं प्रवचनों के
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३८

द्वािा ददनयाुँ का बङा भािी उपकाि दकया है । ददनयाुँ


सदा-सदा के दलये आपकी ऋणी िहेंगी।

( आप दोनों महापरुषों के प्रथम दमलन का वणान


तािीख एक अप्रैल उन्नीस सौ इकिानवें
(दद.19910401/900 ) के ददन नौ बजेके प्रवचनमें स्वयं
'पिम श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज' ने
गीताप्रेस, गोिखपिमें दकया है औि दद.
19951205/830 बजेके सत्संगमें भी दकया है।
तथा
"महापरुषों के सत्सगं की बातें " नामक पस्तक में भी
आप दोनों महापरुषों के दमलन का वणान है)।

आपका कहना है दक पिमात्मा की प्रादप्त कदिन नहीं है।


पिमात्मा की प्रादप्त बङी सगमता से हो सकती है औि
बहुत जल्दी, तत्काल हो सकती है। मनष्य मात्र
पिमात्मप्रादप्त का जन्मजात अदधकािी है, चाहे कोई
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १३९

कै सा ही क्यों न हो। कम से- कम समय में औि मूखा से


मूखा मनष्य को तथा पापी से पापी मनष्य को भी
पिमात्मा की प्रादप्त हो सकती है।

जो मनष्य जहाुँ औि दजस परिदस्थदत में है, वह उसी


परिदस्थदत में औि वहीं पिमात्मा की प्रादप्त कि सकता
है, कल्याण कि सकता है, मदि पा सकता है।
(परिदस्थदत आदद बदलने की जरूित नहीं है)-

... वास्तदवक बोध किण- दनिपेक्ष (अपने- आप से) ही


होता है।
(गीिा "साधक-संजीवनी" २|२९;)।

(भगवत्प्रादप्त के दलये न तो कहीं जाने की जरूित है औि


न वेष बदल कि साधू बनने की जरूित है )।
दजस पिमात्मा से सम्पूणा प्रादणयों की प्रवृदत्त (उत्पदत्त)
होती है (औि) दजससे यह सम्पूणा सस ं ाि व्याप्त है, उस
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४०

पिमात्मा का अपने कमा के द्वािा पूजन किके मनष्यमात्र


दसदद्ध को प्राप्त हो जाता है।
(गीिा "साधक-संजीवनी" १८|४६;)
(दसदद्ध अथाात् पिमात्मा को प्राप्त हो जाता है) ।

मेिा आश्रय लेनेवाला भि सदा सब कमा किता हुआ


भी मेिी कृपा से शाश्वत अदवनाशी पद को प्राप्त हो जाता
है।
(गीिा "साधक-सजं ीवनी" १८|५६;) ।

यदद पिमात्मप्रादप्त की उत्कट अदभलाषा अभी जाग्रत


हो जाय, तो अभी ही पिमात्मा का अनभव हो जाय।
(गीिा "साधक-संजीवनी" ३|२०;)।

ऐसी अनेक बातें आपने अपने गीता साधक-संजीवनी


आदद ग्रथ
ं ों में औि अपने सत्सगं प्रवचनों में बताई है;
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४१

जो बङी सिल, श्रेष्ठ औि शीघ्र भगवत्प्रादप्त किवाने


वाली हैं। हमािे को चादहये दक शीघ्र ही उनसे लाभ ले
लें।
आपने भगवत्प्रादप्त के ऐसे नये- नये अनेक साधनों का
आदवष्काि दकया है।

प्रश्न- (भगवत्प्रादप्त के दलये जब कहीं जाने की औि


साधू बनने की भी जरुित नहीं है) तब श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीिामसखदासजी महािाज साधू क्यों बने?
उत्तर- ऐसा प्रश्न एक व्यदि ने श्री स्वामी जी महािाज से
भी दकया था दक आप साधू क्यों बने?
जवाब में श्री स्वामी जी महािाज बोले दक मैं साधू नहीं
बना। (मेिी माुँ ने साधू बना ददया। आपका माताजी के
प्रदत बङा आदि भाव था)।

प्रश्न- माताजी ने आपको साधू क्यों बनाया?


श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४२

उत्तर- आपकी माताजी बङी श्रेष्ठ औि भगवान् का


भजन किने वाली थी। आप भगवान् के भजन से ही
मानव जीवन की सिलता मानती थी। आप िाम नाम
जपती थी। आपको बहुत भजन कडिस्थ थे। अनेक
संतों की वाणी आती (याद) थी । आप संत- महात्माओ ं
में बङी श्रद्धा भदि िखती थी। सतं - महात्माओ ं पि भी
असि था दक ये माताजी बङे जानकाि हैं। माताजी का
गाुँव था माडपिा (दजला नागौि; िाजस्थान)।

आपके यहाुँ जब कोई संत-महात्मा पधािते, तब आप


औि सदखयाुँ भजन (हरियश) गाया किती थी।

एक बाि की बात है दक आपके यहाुँ सतं श्री


दजयािामजी महािाज पधािे । सदखयों ने आप
(माताजी) से भजन गाने के दलये कहा। आपने गाया
नहीं। तब दकसी ने महािाज से कह ददया दक ये भजन
नहीं गा िही है। दकसी ने कहा दक ये गावे कै से ! इनके
तो लङका चला हआ ु है (शान्त हो गया है। आपके
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४३

बालक जन्मते थे औि शान्त हो जाते थे,ज्यादा जीते


नहीं थे) । तब श्री दजयािाम जी महािाज ने कहा दक
िामजी औि देंगे (लङका) । आप तो भजन गाओ। तब
आपने भजन गाया।

भगवत्कृपा से जब आपके लङका हुआ तो लाकि


दजयािामजी महािाज को सौंप ददया। महािाज ने कहा
दक यह बालक तो आप िखो। अबकी बाि बालक होवे
तब दे देना। तब उस बालक को माताजी ने अपने पास
में िख दलया।

उसके बाद (सवं त १९५८ में) दजयािामजी महािाज पिम


धाम पधाि गये (शिीि छोङ ददया)। दफि दो वषों के बाद
(संवत १९६० में) माताजी के जब दूसिा बालक हुआ
औि वो चाि वषा का हो गया, तब उसको माताजी ने
दजयािामजी महािाज के बाद वाले सतं ों को दे ददया,
साधू बना ददया। संतों ने इनको अपना दशष्य बना
दलया। बालक के जन्म का नाम था सखदेव। दफि
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४४

इनका नाम हुआ - श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी


महािाज ।

गरुजनों के प्रदत आपका बङा आदि भाव था। उनके


कहने से आपने संस्कृत आदद दवद्याएुँ पढीं औि आचाया
तक की पिीक्षा भी दी।

आपकी रुदच तो बचपन से ही भगवद् भजन किने की


थी। आपको भगवान् की बातें अच्छी लगती थी। गीता
प़िना अच्छा लगता था। बािह वषा की अवस्था में ही
आपका गीता जी से सम्बन्ध हो गया था। बाद में ध्यान
देने पि आपको गीता जी कडिस्थ दमली, कडिस्थ
किनी नहीं पङी। पाि किते - किते गीता जी याद हो गई
थी।

आपने गीता- पािशाला खोल िखी थी औि आप


लोगों को गीता पढाते थे। कभी-कभी आपके मन में
गीता जी के नये - नये ऐसे भाव आते दक जो दकसी भी
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४५

गीता की टीका में देखने को नहीं दमलते। इस प्रकाि


औि भी कई बातें हैं। (पिन्त यहाुँ संक्षेप में कही जा िही
है)।

दकसीके देने पि भी आप न रुपये लेते थे औि न रुपये


अपने पास में िखते थे। रुपयों को छूते भी नहीं थे। दकसी
वस्त की आवश्यकता होने पि भी आप दकसी से कछ
माुँगते नहीं थे। कष्ट उिा लेते थे पि कहते नहीं थे। आप
बङा संकोच िखते थे।

आप अपनी मान बङाई नहीं किवाते थे। मान दूसिों को


देते थे। आप स्वाथा, अदभमान, कञ्चन, कादमनी आदद
के त्यागी थे । आप पष्पमाला आदद का सत्काि
स्वीकाि नहीं किते थे। आप वषाा में भी अपने ऊपि
छाता नहीं लगाने देते थे। आप न रुई के दबछोनों पि
बैिते थे औि न सोते थे। खाट पि भी न बैिते थे औि न
सोते थे। बनी हईु कसी पि भी आप नहीं बैिते थे।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४६

कहीं पि भी आसन दबछाने से पहले आप उस जगह को


कोमलता पूवाक आसन की ही हवा आदद से झाङकि,
वहाुँ से सक्ष्ू म जीव जन्तओ ं को हटाकि दबछाते थे। दबना
आसन के बैिते समय भी आप जीव जन्तओ ं बचा कि
बैिते थे।

चलते समय भी आप ध्यान िखते थे दक कहीं कोई जीव


जन्त पैि के नीचे दब कि मि न जाय। आपका बङा
कोमल शील स्वभाव था। आपके हृदय में हमेशा
पिदहत बसा िहता था जो दूसिों को भी ददखायी देता
था।

आप हमेशा जल छान कि ही काम में लेते थे। छने हएु


जल को भी चाि या छः घंटों के बाद वापस छानते थे;
क्योंदक चातमाास में चाि घंटों के बाद औि अन्य समय
में छः घंटों के बाद में (छाने हुए जल में भी) जीव पैदा
हो जाते हैं। जल में जीव बहुत छोटे होते हैं, दीखते नहीं।
इसदलये आप गा़िे कपङे को डबल किके जल को
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४७

छानते थे औि सावधानी पूवाक जीवाणूं किके उन जीवों


को जल में छोङते थे। इस प्रकाि आप छाने हुए जल को
काम में लेते थे । खान, पान, शौच, स्नान आदद सब में
आप जल छानकि ही काम में लेते थे।

अपने दनवााह के दलये कमसे- कम आवश्यकता िखते


थे। आवश्यकता वाली वस्तएुँ भी सीदमत ही िखते
थे। परिदस्थदत को अपने अनसाि न बना कि खद को
परिदस्थदत के अनसाि बना लेते थे। दकसी वस्त, व्यदि
आदद की पिाधीनता नहीं िखते थे।

आपने दमलने वाले दजज्ञासओ ं को हमेशा छूट दे िखी


थी दक आपके कोई साधन-सम्बन्धी बात पूछनी हो तो
मेिे को नींद में से जगाकि भी पूछ सकते हो। लोगों के
दलये आप अनेक कष्ट सहते थे, दफि भी उनको जनाते
नहीं थे।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४८

आप न चेला चेली बनाते थे औि न भेंट पूजा स्वीकाि


किते थे। आप न तो दकसी से चिण छआते थे औि न
दकसी को चिण छूने देते थे। चलते समय पृर्थवी पि जहाुँ
आपके चिण दटकते , वहाुँ की भी चिणिज नहीं लेने
देते थे। कभी कोई स्त्री भूल से भी चिण छू लेती तो आप
भोजन किना छोङ देते थे । उपवास िख कि उसका
प्रायदश्चत्त किते थे। आप न तो स्त्री को छूते थे औि न स्त्री
को छूने देते थे। िास्ते में चलते समय भी ध्यान िखते थे
दक उनका स्पशा न हों। आपके कमिे में दस्त्रयों का प्रवेश
वदजात था।
स्त्री जाती के प्रदत आपका बङा आदि भाव था। आप
दस्त्रयों पि बङी दया िखते थे। लोगों को समझाते थे दक
छोटी बच्ची भी मातृशदि है। माता का दजाा दपता से
सौ गना अदधक है।
आप गभापात किवाने का भयंकि दविोध किते थे। दजस
घि में एक स्त्री ने भी गभापात किवा दलया हो, तो आप
उस घि का अन्न नहीं लेते थे औि जल भी नहीं लेते थे ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १४९

शास्त्र में गभापात को ब्रह्महत्या से भी दगना महापाप


बताया गया है। आप परिवाि- दनयोजन, दहेज- प्रथा
औि दवधवा- दववाह आदद का दविोध किते थे। दववाह
से पहले वि- वधू के दमलन को पाप मानते थे औि
इसका दनषेध किते थे।

आप गरु बनाने का भी दनषेध किते थे। आपने गौहत्या


िोकने की बङी कोदशश की थी। गौिक्षा के दलये
आपकी हमेशा कोदशश िही। गाय के सूई लगाकि दहने
को आप बङा पाप मानते थे औि इसका दनषेध किते
थे।
आप कूङे - कचिे के आग लगाने का प्रबल दविोध किते
थे। इस आग में असख्ं य जीव- जन्त दजन्दा ही जल जाते
हैं, जो बङा भािी पाप है।

आप न तो अपना दचत्र दखंचवाते थे औि न दकसी को


दचत्र खींचने देते थे । कोई दचत्र खींच लेता तो उसका
कङा दविोध किते थे। खींची हईु फोटो को नष्ट किवा
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५०

देते थे। आप मनष्य की फोटो को महत्त्व न देकि


भगवान् की फोटो को महत्त्व देते थे औि िखने की
सलाह देते थे।

आप सत्संग को बहुत अदधक महत्त्व देते थे। सत्संग तो


मानो आपका जीवन ही था। आप बताते थे दक सत्संग
से दजतना लाभ होता है उतना एकान्त में िहकि साधन
किने से भी नहीं होता।

वषों तक एकान्त में िहकि साधन किने से भी जो लाभ


नहीं होता है, वो लाभ एक बाि के सत्सगं से हो जाता
है।

सत्संग किे औि (दफि उसके अनसाि) साधन किे।


साधन किे औि सत्सगं किे। इस प्रकाि किने से (जल्दी
ही) बहुत बङा लाभ होता है।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५१

सत्संग सब की जननी है। सत्संग से दजतना लाभ होता


है, उस लाभ को कोई कह नहीं सकता।

अन्य साधन किके जो उन्नदत की जाती है, वो तो


कमाकि धनी बनना है औि सत्सगं किना है,यह गोद
चले जाना है। (दकसी धनवान की) गोद जानेवाले को
क्या प्रयास किना पङा? कल कुँ गला औि आज धनी।
ऐसे सत्संग किने वाले को कमाया हुआ धन दमलता है
(अनभव दमलता है, दबना साधन दकये,मफ्त में सवोपरि
लाभ दमलता है)।

आप जहाुँ भी दविाजते थे वहाुँ दनत्य- सत्सगं होता था।


प्रातः पाुँच बजे वाली सत्संग तो यात्रा में भी चलती
िहती थी। कभी- कभी यात्रा के कािण गाङी में चल िहे
होते औि प्रातः पाुँच बजे वाली प्राथाना सत्संग का
समय हो जाता तो गाङी में ही प्राथाना, गीता-पाि औि
सत्सगं कि दलया जाता था।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५२

ददन में भी कई बाि सत्संग होता िहता था। सत्संग के


दबना खाली ददन आपको पसन्द नहीं था। इस प्रकाि
बहतु बद़िया सत्सगं चलता िहा। ...

अन्त में सवं त २०६२, आषा़ि के कृष्णपक्ष वाली


एकादशी की िादत्र में, सा़िे तीन बजे के बाद, गीताभवन
ऋदषके श, गंगातट पि शिीि छोङकि आप पिमधाम को
पधाि गये।

अदधक जानने के दलए " महापरुषों के सत्संग की बातें


" नामक पस्तक पढें। वो पस्तक छपी हईु भी दमलती
है तथा "सत्संग संतवाणी" नाम वाले ब्लॉग से
दन:शल्क डाउनलोड भी की जा सकती हैं।

प्रश्न- क्या उनकी दचता भस्म को गंगाजी समेट कि ले


गई?
उत्तर- जी हाुँ, उनकी अदन्तम दिया गंगाजी के दकनािे
की गई थी। दाहदिया के बाद दूसिे तीसिे ददन ही
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५३

गगं ाजी इतनी ब़िी दक वहाुँ के दचताभस्म आदद सब


अवशेष बहाकि अपने साथ में ले गई। वहाुँ की धिती
ही बदल गई। मानो गगं ाजी भी ऐसे अवसि को पाना
चाहती थी। (महापरुषों के स्नान से गंगाजी भी पदवत्र
हो जाती है) ।

महापरुषों के वहाुँ से प्रस्थान कि जाने पि प्रकृदत ने भी


अपने दनयम बदल ददये। दो वषों तक आम के पेङों के
आम के फल लगने बन्द हो गये। (ये घटनाएुँ अनेक
लोगों ने अपनी आुँखों से देखी है)। हि साल उन पेङों
के इतने आम्रफल लगते थे दक दबिी आदद के दलये
आम िे के पि ददये जाते थे; पिन्त अबकी बाि वैसे लगे
ही नहीं। मानो महापरुषों के दवयोग का दःख पेङ- पौधे
भी नहीं सह सके । गोस्वामी जी श्री तलसीदास जी
महािाज ने िीक ही कहा है-
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५४

बंदउाँ संि असजजन चरना। दख


ु प्रद उभय बीच कछु बरना।।
नबछुरि एक प्रान हरर लेहीं। नमलि एक दख
ु दारुन देहीं।।
(रामचररिमानस १|५|३,४:)।

- http://dungrdasram.blogspot.com/2018
/07/blog-post.html?m=1
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५५

(६) सत्संग-सामग्री
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराजकी नलनखि
और ऑनडयो ररकॉडा वाली सत्प्संग-सामग्री आनद)

श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाजके सोलह


वषोंके तो लगाताि (सन् 1990 से 2005 तकके बािह
हजाि छःह सौ दतिानबे) सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है औि
इससे पहलेके(सन् 1975 से 1989 तकके ) भी कई
छटपट सत्सगं -प्रवचन उपलब्ध है।

[ऐसे पिाने प्रवचन औि भी इकट्ठे दकये जा िहे हैं, दजसके


अभीतक सौ-सौ प्रवचनोंके छः(600) प्रवचन-समूह
(शतक) बन चके हैं औि सातवाुँ शतक चल िहा है,
दजसमें 15 प्रवचनोंका संग्रह हो चका है तथा औि भी
प्रयास चल िहा है]।

इन (सन् 1975 से 2005 तकके ) हजािों सत्संग-


प्रवचनोंमेंसे कई प्रवचनोंके साथ तो उनके दवषय
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५६

(प्रवचनोंके नाम) भी दलखे हुए हैं दजससे हम अपनी


रुदचके अनसाि मनचाहा प्रवचन खोजकि सन सकते
हैं।

जैसे, हमािे मनमें आया दक मनकी हलचल कै से दमटे ?


तो हम कम्प्यूटि या मोबाइल में खोज (सचा) की जगह
'मन' शब्द दलखकि खोजेंगे तो इन हजािों प्रवचनोंमेंसे
जो-जो मन-सम्बन्धी प्रवचन हैं वो सब (229 प्रवचन)
इकट्ठे होकि हमािे सामने आ जायेंगे औि उनमेंसे हम
अपनी पसन्दका प्रवचन सनेंगे तो दवशेष लाभ होगा।
[जब भूख लगी हो औि उस समय अगि मनचाहा
भोजन दमल जाय तो दवशेष लाभ होता है।

इसी प्रकाि जब हमािी दजज्ञासा हो, जाननेकी भूख हो


औि उस समय अगि हम ये प्रवचन सनें तो दवशेष लाभ
होगा, जीवन सधि जायेगा, द:ख दमट जायेगा, आनन्द
हो जायेगा]।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५७

दवशेष-प्रवचन।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाजके दवशेष
कै सेटोंके ७१ सत्संग-प्रवचन चने गये हैं। इनके नाम
(दवषय) भी दलखे हुए हैं औि आवाज भी साफ है।
(इसमें कई प्रवचन तो ऐसे हैं दक जो दूसिी जगह
उपलब्ध होना मदश्कल है)
वो ७१ प्रवचन यहाुँ(इस पते)से) प्राप्त किें -
http://db.tt/FzrlgTKe

[इनके दसवाय सन् 1990 से पहलेके हजािों प्रवचन तो


अभी ऑदडयो कै सेटोंमें ही पड़े हुए हैं, कम्प्यूटि आददमें
आये ही नहीं है, वो कायाादन्वत नहीं हो पा िहे हैं। उनके
दलये तो जोिदाि लगन औि मेहनत आददकी
आवश्यकता है]।

इनके दसवाय श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी


महािाजकी आवाजमें कई भजन(सग्रं ह दकये हएु 40
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५८

भजन) औि कई प्रकािके कीतान(21 प्रकािके संकीतान)


उपलब्ध हुए हैं।

उनके द्वािा दनत्य-पाि किनेके दलये शरु किवाये हएु


गीताजीके पाुँच श्लोक भी (दो प्रकािके ) उन्हीं की
आवाजमें है।

उनके द्वािा गाया गया नानीबाईका मायिा(छः


कै सेटोंवाला 48 दवभागों (फाइलों) में है), (यह
"निसीजीका माहेिा" नामसे पाुँच भागोंमें भी उपलब्ध
है)।

श्रीदवष्णसहस्रनामस्तोत्रम-् पाि तथा उन्हीं की


आवाजमें गीता-माधया है (इसका चौदहवाुँ अध्याय
अनपलब्ध है औि पन्रहवाुँ अध्याय भी पूिा उपलब्ध
नहीं हुआ)। (इसकी पूदता अन्य आवार्ज द्वािा की गई है)।

इसी प्रकाि, गीता-गान(प्रथम प्रकािका गीता-पाि) है।


श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १५९

यह *सामूदहक आवृदत्त गीता-पाि* है,


दजसमें आगे (पहले) तो श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीिामसखदासजी महािाज बोलते हैं औि उनके पीछे
दूसिे लोग दबािा उसीको दोहिाते हैं, बोलते हैं।

[जो गीताजीका शद्ध-उच्चािण सीखना चाहते हैं औि


गीताजी सीखना चाहते हैं तथा गीताजीका गायन, गीत
सनना चाहते हैं, उनके दलये यह दवशेष उपयोगी है।

इसकी साफ आवाजके दलये दबािा रिकॉदडिंग भी की


गई है]।

गीता-पाि
(यह दद्वतीय प्रकािका गीता-पाि है)।
[जो श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाजके
साथ-साथ गीता-पाि किना चाहते हैं, उनके दलये यह
दवशेष उपयोगी है]।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६०

गीता-व्याख्या।
(यह किीब पैंतीस ददनों तककी कै सेटोंका सेट है, जो
124 फाइलोंमें दवभि है, दजसमें व्याख्या किके पूिी
गीताजी समझायी गयी है)।
[जो गीताजीका अथा समझना चाहते हैं , गीताजीका
िहस्य जानना चाहते हैं, उनके दलये यह दवशेष उपयोगी
है]
मानसमें नाम-वन्दना।
{िामचरितमानसके नाम वन्दना प्रकिण (1।18-28) की
जो नौ ददनोंतक व्याख्या की गई थी औि दजसकी
"मानसमें नाम-वन्दना" नामक पस्तक बनी थी उसके
आि प्रवचन हैं, (नौ प्रवचन थे पिन्त उपलब्ध किीब
आि ही हुए)}।
"कल्याणके तीन सगम मागा"।
'कल्याण के तीन सगम मागा' नामक पस्तककी उन्हीके
द्वािा की गयी व्याख्या (सन् 29-1-2001 से 8-2-2001
तकके 11 प्रवचन)।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६१

[यह एक, अदद्वतीय वो पस्तक है दजसकी व्याख्या स्वयं


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाजने की है]।

पाुँचसौ चौंसि प्रश्नोत्ति।


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाजसे कई
लोग तिह-तिहके प्रश्न पूछा किते थे, दजसके जवाब
देकि श्री महािाजजी बड़ी सिलतासे उनको समझा देते
थे।
प्रश्नोंके उत्ति बड़े सिल औि सटीक होते थे तथा सनकि
हिेकको बड़ा सन्तोष होता था।
ऐसे ही कछ (564) प्रश्नोत्ति उनके प्रवचनोंमेंसे छाुँटकि,
उन प्रवचनोंके अंश अलगसे इकि्टे दकये गये हैं, जो
बड़े कामके हैं। वो भी उपलब्ध है।

इकहत्ति(71) ददनोंके सत्संग-प्रवचनोंका सेट-


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाजके समयमें
िोजाना प्रातः पाुँच बजे दनत्य-स्तदत औि गीताजीके
किीब दस-दस श्लोकोंका पाि होता था तथा
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६२

हरि:शिणम् 2 हरि:शिणम् 2 संकीतान होता था दफि श्री


महािाजजी सत्संग सनाते थे। दजस प्रकाि उन ददनोंमें
प्रातः 5 बजे दनत्य-स्तदत, गीता-पाि, सत्सगं आदद
होता था उसी प्रकािसे इकहत्ति ददनोंके सत्संग-
प्रवचनोंका एक सेट (सत्संग-समूह) तैयाि दकया गया
है। वो भी उपलब्ध है।
इनके दसवा उनके द्वािा बतायी गयी अपने जीवन-
सम्बन्धी कई बातें भी दलखकि संग्रहीत की गई है। तथा
उनके श्रीमखसे सनकि दलखी हईु अनेक सदू ियाुँ (751
कहावतें, दोहे, आदद) भी उपलब्ध है।
इस प्रकाि औि भी अनेक कल्याणकािी उपयोगी-
सामग्री उपलब्ध है। हमािेको चादहये दक शीघ्र ही उनसे
लाभ लें।
[जो कोई अपना शीघ्र औि सिलता पूवाक कल्याण
चाहते हों तथा घिमें िहते हुए, सब काम-धन्धा किते हुए,
सखपूवाक भगवत्प्रादप्त चाहते हों तो उनको चादहये दक
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाजकी यह
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६३

सत्संग-सामग्री अवश्य अपने पासमें िखें औि काममें


लें ]
ये सािी सामदग्रयाुँ इडटिनेट पि उपलब्ध होनी मदश्कल
है। दकसीको चादहये तो कम्प्यूटिसे कोपी किके
दन:शल्क (फ्री में) दी जा सकती है।
जो लेना चाहें, कृपया वो इस पते पि सम्पका किें -
-डगुँ िदास िाम, गाुँव पोस्ट चाुँवदडडया, दजला नागौि,
िाजस्थान(भाित)। मोबाइल नं० ये हैं- 9414722389
औि ब्लॉगका नाम, पता इस प्रकाि है –

सत्सगां -सतां वाणी.


श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसख ु िासजी महाराजका
सादहत्य पढ़ें और उनकी वाणी सनु ें।
www.dungrdasram.blogspot.com
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६४

इनके दसवाय श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी


महािाजकी गीता साधक-संजीवनी, गीता-दपाण,
साधन-सधा-दसन्ध, एक सतं की वसीयत आदद किीब
तीस पस्तकें भी दनःशल्क दी जा सकती है, दजनको
कम्प्यूटि, टे बलेट या मोबाइल पि भी प़ि सकते हैं।

इस प्रकाि यह शीघ्र-कल्याणकािी सामग्री हमािेको


अपने पासमें िखनी चादहये औि यथाशीघ्र लाभ
अवश्य लेना चादहये।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाजके


लगाताि सोलह वषोंवाले 12693 (बािह हजाि छःह सौ
दतिानबे) प्रवचनोंका दवविण इस प्रकाि है-

सन् 1990 के 557 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


िामसखदासजी महािाज।
सन् 1991 के 870 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६५

सन् 1992 के 763 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


िामसखदासजी महािाज।
सन् 1993 के 876 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
सन् 1994 के 866 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
सन् 1995 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
सन् 1996 के 915 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
सन् 1997 के 885 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
सन् 1998 के 861 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६६

सन् 1999 के 982 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री


िामसखदासजी महािाज।
(सन् 2000 के 998 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी
श्री िामसखदासजी महािाज।
(सन् 2001 के 1005 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी
श्री िामसखदासजी महािाज।
सन् 2002 के 714 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
सन् 2003 के 729 सत्सगं -प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
सन् 2004 के 702 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
सन् 2005 के 85 सत्संग-प्रवचन -श्रद्धेय स्वामीजी श्री
िामसखदासजी महािाज।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६७

(७) पाुँच खडडों में गीता साधक-सज


ं ीवनी
(लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख
ु दासजी महाराज)
पीछे की नवषयानक्र
ु मनणका आनद सनहि।

कई लोगों के मन में आती है दक गीता "साधक-


सज
ं ीवनी" कलेवि में बहतु बङी औि वजनदाि है। अगि
यह अलग-अलग खडडों में दवभि होती तो प़िने में
औि लाने- ले जाने में भी सगमता हो जाती।

उसके दलये एक सझाव ददया जाता है दक इसी


(ओरिदजनल-मूल) गीता "साधक-
सज ं ीवनी" (प्रकाशक- गीताप्रेस गोिखपि) के अलग-
अलग दवभाग किके (बाजाि में) पाुँचों पि दर्जल्द
बुँन्धवा लें औि गीता "साधक-सज ं ीवनी" के मखपृष्ठ
आदद पि जो एक सदचत्र कवि च़िाया हुआ है, उसकी
चाि फोटो कॉपी औि किवा लें। इस प्रकाि ये पाुँच
कवि हो गये।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६८

अब इन पाुँचों कविों को गीता "साधक-सजं ीवनी" के


उन दवभाग दकये गये पाुँचों खडडों पि चढालें। (तो)
इस प्रकाि अपने मन की बात पूिी हो सकती
है, मनचाही हो सकती है।

इसमें गीता "साधक-संजीवनी" के उन्ही (असली)


पन्नों का दवभाग दकया है। पृष्ठ आदद में भी दकसी
प्रकाि का परिवतान नहीं दकया है। अगि अन्य प्रकाि से
छपवा कि दवभाग किते तो भूलें औि गलदतयाुँ होने की
सम्भावना थी ; पिन्त यह तो जैसे पहले थी, वैसे ही है।
दसफा दवभाग अलग-अलग हएु हैं,पन्ने वही हैं। पन्नों की
सिक्षा के दलए अलग-अलग दजल्दें बन्धवायी औि उन
पि कवि चढाये गये हैं।

[ पहले यह टीका गीताप्रेस गोिखपि से दस खडडों में


अन्य प्रकाि से छपी थी, दफि कछ संशोधन आदद किके
सम्पूणा टीका एक दर्जल्द में ही छपवा दी गयी, जो मूल,
ग्रथ
ं ाकाि रूप में (वहीं से) उपलब्ध है ]।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १६९

सम्पूणा गीता "साधक-सज ं ीवनी" को एक दजल्द में


छपवाते समय ही श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी
महािाज के ऐसी व्यवस्था ध्यान में आ गयी थी।

इसदलये उन्होंने (छपवाते समय) गीता "साधक-


संजीवनी" के प्रत्येक अध्याय की शरूआत में औि उस
अध्याय की समादप्त पि यह ध्यान िखा दक इनकी
अलग-अलग दजल्दें बन्धवाई जाय तो भी उसमें सम्पूणा
पृष्ठ आ जाय। न तो इस अध्याय का आदखिी पृष्ठ आगे
वाले अध्याय में िखना पङे औि न आगे वाले अध्याय
का पहला पृष्ठ इस अध्याय में िखना पङे ।

जैसे, गीता "साधक-सज ं ीवनी" का आिवाुँ अध्याय


६२१ वें पृष्ठ पि समाप्त होता है। अब नवाुँ अध्याय उससे
आगवाले (६२२ वें) पृष्ठ से छपवाना शरू दकया जा
सकता था; पिन्त ऐसा न किके उस पृष्ठ को खाली
िखा। (उस खाली जगह को भगवान् का िेखादचत्र देकि
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७०

भि ददया) औि इससे भी आगे वाले (६२३ वें) पष्ठृ पि


नवें अध्याय की शरूआत की।

ऐसी व्यवस्था कि देने से इस अध्याय की दजल्द अलग


से बान्धने पि भी इस अध्याय के सम्पूणा पष्ठृ इसी खडड
में िहेंगे औि आगे वाले अध्याय के भी सम्पूणा पृष्ठ उसी
में िहेंगे।

अगि ऐसी व्यवस्था न की गयी होती तो यह सदवधा


नहीं दमलती। यह उन महापरुषों की महान् कृपा है।

इस प्रकाि अिािहों ही अध्यायों को अलग-अलग


अिािह दजल्दों में बनवाया जा सकता है औि उनके
सम्पूणा पृष्ठ उसी खडड में आ सकते हैं।

इसी प्रकाि उन्होंने गीता "साधक-सज


ं ीवनी" के प्रत्येक
पृष्ठ के कौने में अध्याय औि श्लोक संख्या भी
दलखवादी, दजससे कहीं से भी तथा कोई भी पष्ठृ
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७१

खोला जाय तो पता लग जाय दक कौन से अध्याय के


कौन से श्लोक की व्याख्या चल िही है। हिेक टीका में
ऐसी सदवधा नहीं दमलती।

इसके अलावा उन्होंने गीता जी के उद्धिण वाले श्लोकों


की संख्याओ ं को भी अक्षिों में दलखवा कि छपवाया।
दजससे श्लोक सख् ं या के अंकों में भूल न हों। जहाुँ गीता
के श्लोक न देकि के वल संख्या का उद्धिण ददया गया
था, वहाुँ (दबािा छपने पि) भूल होने की सम्भावना थी।
अब सख् ं या की जगह अक्षिों में दलखवा ददया (दक
अमक अध्याय के अमक श्लोक में यह बात आयी है)
तो भूल होने की सम्भावना नहीं िही।

जहाुँ श्लोकांश के साथ श्लोक सख्ं या दलखी है, वहाुँ


अगि अंकों में भूल हुई तो वो श्लोकों के अंशों से पकङी
जायगी।

इस प्रकाि श्री स्वामीजी महािाज ने गीता "साधक-


सज
ं ीवनी" की शद्धता औि सिलता पि बहतु ध्यान
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७२

िखा है। साधकों की सदवधाओ ं का भी दवशेष खयाल


िखा है तथा सबके दहत का भी बहुत ध्यान िखा है।

यहाुँ, यह गीता "साधक-संजीवनी" पाुँच खडडों में


दवभि किके उनकी अलग-अलग बाइदडडंग बाुँन्धनी
है।

हि खडड पि गीता "साधक-सज ं ीवनी" के मखपृष्ठ


आदद वाली फोटो सदहत कवि लगाना है।

पाुँचों खडड नीचे दलखे गये अध्यायों के अनसाि


दवभि दकये जायुँ-
[१- गीता साधक-सज
ं ीवनी 1-3]
(स्वामी िामसखदास)
[२- गीता साधक-सज
ं ीवनी 4-7]
(स्वामी िामसखदास)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७३

[३- गीता साधक-सज


ं ीवनी 8-11]
(स्वामी िामसखदास)
[४- गीता साधक-सज
ं ीवनी 12-16]
(स्वामी िामसखदास)
[५- गीता साधक-सज
ं ीवनी 17-18]
(स्वामी िामसखदास)

(प्रत्येक खडड की दजल्द के ऊपि या अन्दि, पहले पन्ने


पि नाम भी िमशः इस प्रकाि दलख सकते हैं )
ये नाम अथवा खडडों की संख्या आङी साइड में भी
दलख सकते हैं दजससे दबना उिाये ही पता चल जाय
दक कौन सा खडड दकस खडड के नीचे है।
----------------------------------------------
कृपया इन बातों का ध्यान िखें औि काम पूिा हो जाने
पि जाुँच भी किलें-
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७४

1- गीता "साधक-संजीवनी" की वही प्रदत हो दक


दजसके पीछे 'दवषयानिमदणका' आदद दी गयी हो।

2- प्रत्येक खडड के ऊपि औि आङी साइज में नाम


िमशः सही-सही हो।

3- प्रत्येक खडड के ऊपि गीता "साधक-संजीवनी" के


मखपृष्ठ आदद वाले दचत्र सदहत कवि हो।

4- दर्जल्द सही ढंग से बाुँन्धी गई हो। कोई भी पृष्ठ छूटे


नहीं हो औि इधि ऊधि न हुए हों तथा मङे नहीं हो, एक-
दूसिे के दचपके नहीं हो, आदद बातों का ध्यान िखा गया
हो। (इस प्रकाि सब जाुँचलें)।

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श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७५
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७६
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७७

(८) दनत्य स्तदत, गीता औि सत्संग


(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसख ु दासजी महाराज के इकहत्तर
नदनों वाला सत्प्सगं -प्रवचनों का सेट)

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज प्रदतददन


प्रातः पाुँच बजे के बाद सत्संग किवाया किते थे।
पाुँच बजते ही गीताजी के चने हुए कछ (१९) श्लोकों
(२/७; ८/९; ११/१५-२२, ३६-४४;) द्वािा दनत्य-स्तदत,
प्राथाना शरु हो जाती थी। दफि गीताजी के लगभग दस-
दस श्लोकोंका (प्रदतददन िमशः) पाि औि हरि:शिणम्
हरि:शिणम् ... आदद का सक ं ीतान होता था।
इस प्राथाना की शरुआत से पहले यह श्लोक बोला जाता
था-
'गजाननं भिू गणानदसेनविं
कनपत्प्थजम्बफ
ू लचारुभक्षणम।्
उमासिु ं शोकनवनाशकारकं
नमानम नवघ्नेश्वरपादपड़्कजम'् ।।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७८

औि समादप्त के बाद यह श्लोक बोला जाता था -


त्प्वमेव मािा च नपिा त्प्वमेव
त्प्वमेव बतधश्चु सखा त्प्वमेव।
त्प्वमेव नवद्या द्रनवणं त्प्वमेव
त्प्वमेव सवं मम देवदेव ।।
(इस प्रकाि के वल प्राथाना के ही इक्कीस श्लोक हो जाते
थे। इसके बाद गीताजी के लगभग दस श्लोकों का पाि
औि होता था)। ये तीनों (प्राथाना, गीता-पाि औि
संकीतान) किीब सत्रह (या बीस) दमनटों में पूिे हो जाते
थे।
इसके बाद (किीब 0518 बजे से) श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीिामसखदासजी महािाज सत्सगं -प्रवचन सनाते थे,
जो प्रायः छःह(6) बजेसे किीब 13 या 18 दमनट पहले
ही समाप्त हो जाते थे।
यह सत्संग-प्रोग्राम कम समयमें ही बहुत लाभदायक,
सािगदभात, कल्याणकािी तथा बड़ा दवलक्षण औि
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १७९

अत्यन्त प्रभावशाली होता था। उससे बड़ा भािी लाभ


होता था।
वो सब हम आज भी औि उन्हीं की वाणीमें सन सकते
हैं तथा साथ-साथ में कि भी सकते हैं।
इसमें (1.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -
S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@
दनत्य-स्तदत, गीता, सत्संग- श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीिामसखदासजी महािाज-इकहत्ति ददनोंका सत्संग-
प्रवचन सेट में) वो सहायक-सामग्री है। (इसदलये यह
प्रयास दकया गया है)।
सज्जनोंसे दनवेदन है दक श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीिामसखदासजी महािाज के समयमें जैसे सत्संग
होता था, वैसे ही आज भी किनेका प्रयास किें। इस
बीचमें कोई अन्य प्रोग्राम न जोड़े।
दनत्य-स्तदत, प्राथाना, गीताजी के किीब दस-दस श्लोकों
का पाि औि हरिःशिणम् हरिःशिणम् आदद सक ं ीतान
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८०

भी उन्हीं की आवाजके साथ-साथ किेंगे तो प्रत्यक्ष औि


अप्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।
प्रातः पाुँच बजे श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी
महािाजकी आवाजमें (रिकोदडिंग वाणीके साथ-साथ)
दनत्य-स्तदत, प्राथाना औि गीताजी के दस श्लोकों का
पाि कि लेने के बाद यह हरिः शिणम् वाला सक ं ीतान
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज की
आवाज में ही) सनें औि साथ-साथ बोलें। इसके बाद
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाजका सत्सगं
जरूि सनें।
(हरिःशिणम् (संकीतान) यहाुँ(इस पते) से प्राप्त किें
- db.tt/0b9ae0xg )।
कई जने पाुँच बजे दसफा प्राथाना तो कि लेते हैं (औि कई
जने गीता-पाि भी कि लेते हैं), पिन्त सत्सगं नहीं सनते
; लेदकन जरूिी सत्संग सनना ही है। इसदलये 'श्रद्धेय
स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज' का सत्संग
जरूि सनें।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८१

यह बात समझ लेनी चादहये दक प्राथाना आदद सत्संगके


दलये ही होती थी। लोग जब आकि बैि जाते तो पाुँच
बजते ही तिन्त प्राथाना शरु हो जाती थी औि उसके
साथ ही सत्संग-स्थल का दिवाजा भी बन्द हो जाता
था,बाहिके (लोग) बाहि औि भीतिके भीति (ही िह
जाते थे)।

तथा प्राथाना, गीता-पाि आदद किते, इतनेमें उनका मन


शान्त हो जाता था, उनके मनकी वृदत्तयाुँ शान्त हो जाती
थी। उस समय उनको सत्संग सनाया जाता था।

(ऐसे शान्त अवस्थामें सत्सगं सनने से वो


भीति(अन्तिात्मा में) बैि जाता है)।

सत्सगं के बाद भी भजन-कीतान आदद कोई दूसिा


प्रोग्राम नहीं होता था, न इधि-उधि की या कोई दूसिी
बातें ही होती थी, दजससे दक सत्संग में सनी हुई बातें
उनके नीचे दब जायुँ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८२

सत्संग के समय कोई थोड़ी-सी भी आवाज नहीं किता


था। अगि दकसी कािणसे कोई आवाज हो भी जाती तो
बड़ी अटपटी औि खटकनेवाली लगती थी।

पहले दनत्य-स्तदत एक लम्बे कागज के पन्ने में छपी हईु


होती थी। प्राथाना के बाद में वो पन्ना लोग गोळ-गोळ
किके समेट लेते थे। समेटते समय सत्सगं में उस पन्ने
की आवाज होती थी,तो उस कागजकी आवाज
(खड़के ) से भी सनने में दवक्षेप होता था। तब वो प्राथाना
पस्तकमें छपवायी गयी, दजससे दक आवाज न हो औि
सत्संग सनने में दवक्षेप न हो तथा एकाग्रता से सत्संग
सनी जाय, सननेका ताि न टूटे, सत्सगं का प्रवाह
अबाध-गदत से श्रोता के हृदय में आ जाय औि उसी में
भिा िहे।

सत्संग सनते समय वृदत्त इधि-उधि चली जाती है तो


सत्सगं पूिा हृदय में आता नहीं है।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८३

सनने से पहले मनकी वृदत्तयों को शान्त कि लेने से बड़ा


लाभ होता है। शान्तदचत्त से सत्संग सनने से समझ में
बहतु बद़िया आता है औि लगता भी बहतु बद़िया है।

सत्संग शान्तदचत्त से सना जाय - इस के दलये पहले


प्राथाना आदद बड़ी सहायक होती थी। इस प्रकाि
प्राथाना आदद होते थे सत्सगं के दलये। इसदलये प्राथाना
आदद के बाद में सत्संग जरूि सनना चादहये।

सत्सगं तो प्राथाना आदद का फल है-

सिसंगि मदु मंगल मलू ा।


सोइ फल नसनध सब साधन फूला।।
(रामचररि.बा.३)।

'श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज' के समय


में दजस प्रकाि सत्संग होता था उसी प्रकाि हम आज
भी कि सकते हैं।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८४

प्रदतददन गीताजी के किीब दस-दस श्लोकों का पाि


किते-किते लगभग सत्ति-इकहत्ति ददनोंमें पूिी गीताजी
का पाि हो जाता था।
इस प्रकाि इकहत्ति ददनों में दनत्य-स्तदत औि गीताजी
सदहत सत्संग-प्रवचनों का एक सत्संग-समदाय हो
जाता था।
दजस प्रकाि श्री स्वामीजी महािाज के समय में वो
सत्संग होता था, वैसा सत्संग हम आज भी कि सकते
हैं-
-इस बातको ध्यानमें िखते हुए एक इकहत्ति ददनों के
सत्सगं का सेट (प्रवचन-समूह) तैयाि दकया गया है
दजसमें ये चािों है (1-दनत्य-स्तदत, 2-गीताजी के दस-
दस श्लोकों का पाि, 3-हरि:शिणम.् .. आदद संकीतान
तथा 4-सत्सगं -प्रवचन- ये चािों है)।
चािों एक नम्बि पि ही जोड़े गये हैं; इसदलये एक बाि
चालू कि देने पि ये चािों अपने-आप सनायी दे-देंगे।
बाि-बाि चालू नहीं किने पड़ेंगे।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८५

यन्त्र के द्वािा इसको एक बाि शरु किदो, बाकी काम


अपने आप हो जायेगा अथाात् आप पाुँच बजे प्राथाना
चालू किदो; तो आगे गीतापाि अपने-आप आ जायेगा
औि उसके बाद हरि:शिणम् वाला संकीतान आकि
अपने-आप सत्संग-प्रवचन आ जायेगा, सत्संग-प्रवचन
शरु हो जायेगा।
इस प्रकाि दनत्य नये -नये सत्संग-प्रवचन आते जायेंगे।
इकहत्ति ददन पूिे होनेपि इसी प्रकाि वापस शरु कि
सकते हैं औि इस प्रकाि उम्र भि सत्सगं दकया जा
सकता है।
इनके अलावा श्री स्वामीजी महािाज के नये प्रवचन
सनने हों तो प्राथा ना आदद के बाद पिाने, सने हएु
प्रवचनों की जगह नये प्रवचन लगाकि सने जा सकते
हैं।
इसमें दवशेषता औि दवलक्षणता यह है दक प्राथाना,
गीतापाि, हरि:शिणम(् संकीतान) औि प्रवचन- ये चािों
श्रीस्वामीजी महािाज की ही आवाज (स्वि) में है।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८६

महापरुषों की आवाज में अत्यन्त दवलक्षणता होती है,


बड़ा प्रभाव होता है, उससे बड़ा भािी लाभ होता है।
इसदलये कृपया इसके द्वािा वो लाभ स्वयं लें औि दूसिों
को भी लाभ लेनेके दलये प्रेरित किें।।
कई अनजान लोग साधक-संजीवनी औि गीताजीको
अलग-अलग मान लेते हैं, उनको समझाने के दलये दक
गीताजी साधक-सज ं ीवनी से अलग नहीं है, दोनों एक
ही हैं, दो नहीं है- इस दृदष्टसे इसमें प्रदतददन होने वाले
गीता पाि में श्लोक सख् ं या की सच ू ना बोलते समय
गीता साधक-सज ं ीवनी का नाम बोला गया है। इससे
गीता साधक-सज ं ीवनीका प्रचाि भी होगा।
इसमें सदवधा के दलए प्रत्येक फाइल पि गीताजीके
अध्याय औि श्लोकोंकी संख्या दलखी गई है तथा 71
ददनोंकी संख्या भी दलखी गई है औि बोली भी गई है।
यह (इकहत्ति ददनोंका "सत्संग-समूह") मोबाइलमें
आसानीसे देखा औि सना जा सकता है तथा दूसिे यन्त्रों
द्वािा भी सना जा सकता है। (मेमोिी काडा, पेन ड्राइव,
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८७

सीडी प्लेयि, स्पीकि या टी.वी. आदद के द्वािा भी सना


जा सकता है)।
यह सेट इकहत्ति ददनोंका इसदलये बनाया गया दक
इतने ददनों में पूिी गीताजी के पािकी आवदृ त्त हो जाती
है, गीताजी का पूिा पाि हो जाता है।
प्रदतददन प्राथाना के बाद गीताजी के लगभग दस-दस
श्लोकों का पाि होने से किीब सत्ति इकहत्ति ददनों में
पूिा गीता-पाि हो जाता है।
(गीताजी के ७००-सात सौ श्लोकों में से दस-दस के
दहसाब से सत्ति ददन होते हैं ; लेदकन गीता जी के प्रत्येक
अध्यायों की श्लोक संख्या देखते हुए औि अध्याय-
समादप्त पि दविाम हो जाय- इस दृदष्ट से यह काम ६९
ददनों में पूिा दकया गया है।
दफि एक ददन अंगन्यास किन्यास आदद के दलये औि
एक ददन गीता जी के माहात्म्य तथा आिती के दलये
जोड़े गये हैं।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८८

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज ने भी


गीता-पाि के आिम्भ में अंगन्यास किन्यास आदद का
पाि दकया है तथा गीता-पाि के अन्त में गीता जी के
माहात्म्य का पाि दकया है औि गीताजी की आिती
गायी है। यह उसी के अनसाि दकया गया है।

इस प्रकाि यह इकहत्ति ददनों वाला प्राथाना, प्रवचनों


सदहत गीताजी के पूिे पाि का समूह है। इसके दलये जो
एक प्रयास दकया गया है, वो है प्राथाना, गीतापाि सदहत
इकहत्ति ददनों वाला सत्सगं -प्रवचनों का यह सेट)।

इस प्रकाि हम घि बैिे या चलते-दफिते भी


महापरुषोंकी सत्सगं का लाभ ले सकते हैं।

वो सत्संग नीचे ददये गये दलंक, पते द्वािा कोई भी सन


सकते हैं औि डाउनलोड भी कि सकते हैं –

नं १ - goo.gl/DMq0Dc (ड्रॉपबॉक्स)
नं २ - goo.gl/U4Rz43 (गगू ल ड्राइव) ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १८९

तथा उस इकहत्ति ददनोंवाले सेटका पता-दिकाना यहाुँ


भी है। आप वो यहाुँसे दन:शल्क प्राप्त कि सकते हैं-
@दनत्य-स्तदत, गीता, सत्संग-श्रद्धेय स्वामीजी
श्रीिामसखदासजी महािाज@ (-इकहत्ति
ददनोंके सत्सगं -प्रवचनके सेटका पता-)
- goo.gl/X6SFNN

श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज कहते हैं


दक सत्संग के बाद में, बैि कि आपस में सत्संग की
चचाा किने से बड़ा लाभ होता है। बदद्ध का दवकास
होता है।
सत्सगं के बाद, थोड़ी देि चप िहें। कछ समय तक न तो
अन्य चचाा किें औि न कोई दूसिा प्रोग्राम शरु किें।
(भजन,कीतान, कथा आदद भी नहीं; क्योंदक इससे
अभी वाले सत्सगं की बातें भूल जाती है; सनी हईु बातों
को हृदय में बैिने दें। उनका मनन किें)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९०
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९१

(९) ग्यािह चातमाासों के प्रवचनों की दवषय सूची

दनत्य स्तदत, प्राथाना, सत्संग प्रवचन,


पिम श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
01.00-00(SHURUSE). PRARTHNA,
GEETA,19930918_0518_Aham Brahmasmi
1
Ahamta Bani Rahegi- (शरुसे)। प्राथाना, गीता,
अहं ब्रह्माऽदस्म, अहंता बनी िहेगी
01.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19930919_0518_Sharnagati Svatah
2
Siddh Hai- प्राथाना, गीता, शिणागदत स्वतः दसद्ध
है।
01.11-20. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19930920_0518_ Tattvavaadi Bane
3
Matvaadi Nahin- प्राथाना, गीता, तत्त्ववादी बनें
मतवादी नहीं
01.21-30. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19930921_0518 _Meinpan Ka 4
Parivartan- प्राथाना, गीता, “मैं” पन का परिवतान
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९२

01.31-40. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19930922_0518_Viyog Hi Satya Hai- 5
प्राथाना गीता, दवयोग ही सत्य है
01.41-47. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19930923_0518_ Saatvik Karta Gita 6
18(26)- प्राथाना, गीता, सादत्त्वक कताा गीता 18(26)
02.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19930924_0518_ Saadhan Mein Santosh 7
Na Kare- प्राथाना, गीता, साधन में सन्तोष न किे
02.11-20. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19930925_0518_ Radha Tattva Kya Hai- 8
प्राथाना, गीता, िाधा तत्त्व क्या है ?
02.21-30. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19930926_0518_ Sharnagati- , प्राथाना, 9
गीता, शिणागदत
02.31-40. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19930927_0518-Savdhani- प्राथाना, गीता, 10
सावधानी
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९३

02.41-50. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19930930_0518- Collector Ko Aadesh- 11
प्राथाना, गीता, कलेक्टि को आदेश
02.51-61. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931001_0518-Gyan Parmatma.- 12
प्राथाना, गीता, ज्ञान पिमात्मा
02.62-72. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931002_0518-Viyog Satya Hai. - 13
प्राथाना, गीता, दवयोग सत्य है
03.01-11. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931003_0518-Mar Rahe Hai hum.- 14
प्राथाना, गीता, मि िहे हैं हम
03.12-22. PRARTHNA, GEETA, 15
H.S.19931004_0518-Gupt Baat.- प्राथाना,
गीता, गप्त-बात
03.23-33. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931006_0518-Ek Parmatma Hi Hai- 16
प्राथाना, गीता, एक पिमात्मा ही है
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९४

03.34-43. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19931007_0518-Hum Kya Chahte Hain- 17
प्राथाना, गीता, हम क्या चाहते हैं
04.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931008_0518-Samta, Prem, Gyan- 18
प्राथाना गीता, समता, प्रेम, ज्ञान
04.11-20. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931009_0518-Tyaag Kya Hai. प्राथाना, 19
गीता, त्याग क्या है
04.21-32. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931010_0518-Prapt Hai. प्राथाना, गीता, 20
प्राप्त है
04.33-42. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931011_0518_ Kripa Ko Dekho- 21
प्राथाना, गीता, कृपा को देखो
05.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931012_0518_ Dukh Ka Kaaran Sukh
22
Ki Iccha- प्राथाना, गीता, द:ख का कािण सख की
इच्छा
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९५

05.11-20. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19931013_0518_ Rupayo Se Vastu 23
Shresth- प्राथाना, गीता, रुपयों से वस्त श्रेस्ि
05.21-29. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931014_0518-Karta Bhagwan.- प्राथाना, 24
गीता, कताा भगवान्
06.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931015_0518_ Mili Hui Vastu Apni
25
Nahin Hai- प्राथाना, गीता, दमली हुई वस्त अपनी
नहीं है
06.11-20. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931016_0518_ Bhagwan Par Vishwas- 26
प्राथाना, गीता, भगवान पि दवश्वास
06.21-30. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931017_0518_ Jaanna Maanna Karan
27
Nirpeksh- प्राथाना, गीता, जानना मानना किण
दनिपेक्ष
06.31-40. PRARTHNA, GEETA,
28
H.S.19931018_0518_ Jeev Bhagwan Ka
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९६

Sakha Hai- प्राथाना, गीता, जीव भगवान का सखा


है
06.41-47. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931019_0518_ Satsang Se Laabh 29
Kaise Le- प्राथाना, गीता, सत्संग से लाभ कै से ले
07.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931020_0518_Badalne Vaale Ko
Mahatva Na De Karne Mein Saavdhan- 30
प्राथाना, गीता, बदलने वाले को महत्त्व ना दें, किने में
सावधान
07.11-20. PRARTHNA, GEETA,
.S.19931021_0518_ Kaam Vritti Kaise Mite- 31
प्राथाना, गीता, कामवदृ त्त कै से दमटे
07.21-30. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931022_0518_ Prapti Mein Bhav Aur 32
Vivek- प्राथाना, गीता, प्रादप्त में भाव औि दववेक
08.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931023_0518_ Sampoorna Srishti Hai 33
Mein- प्राथाना, गीता, सम्पूणा सदृ ष्ट है में
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९७

08.11-20. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19931024_0518_ Gita 13(15) Jagrit
34
Sushupti- प्राथाना, गीता, गीता 13 (15) जाग्रत
सषदप्त
08.21-28. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931025_0518_ Bhakti Ki Vilakshanta- 35
प्राथाना, गीता, भदि की दवलक्षणता
09.01-11. PRARTHNA, GEETA,
.S.19931026_0518_ Saadhan Aur Sadhya 36
Gyan, Vivek Ka Sadupyog- प्राथाना, गीता,
साधन औि साध्य ज्ञान, दववेक का सदपयोग
09.12-22. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931027_0518_ Yogi Kaun- प्राथाना, 37
गीता, योगी कौन ?
09.23-34. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931028_0518_ Gita 03(6) Bhaav Ki 38
Mahatta- प्राथाना, गीता 03 (6) भाव की महत्ता
10.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931028_0518_ Gita 03(6) Bhaav Ki 39
Mahatta- प्राथाना, गीता 03 (6), भाव की महत्ता
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९८

10.11-20. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19931030_0518_ Mukti Svata Siddh Hai 40
- प्राथाना, गीता, मदि स्वत: दसद्ध है
10.21-31. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931031_0518_ Hum Sharir Se Asang 41
Hai- प्राथाना, गीता, हम शिीि से असगं है
10.32-42. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931101_0518_ Anta Karan Ki
42
Shuddhi Ashuddhi - प्राथाना गीता, अन्त: किण
की शदद्ध-अशदद्ध
11.01-11. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931102_0518_ Parivartansheel
43
Aparivartansheel- प्राथाना, गीता, परिवतानशील-
अपरिवतानशील
11.12-22. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931103_0518_ Sanyog Viyog Aur 44
Yog- प्राथाना, गीता, संयोग, दवयोग औि योग
11.23-33. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931104_0518_ Nitya Prapt Ka 45
Anubhav- प्राथाना, गीता, दनत्य-प्राप्त का अनभव
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी १९९

11.34-44. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19931105_0518_ Svata Siddh Shanti- 46
प्राथाना, गीता, स्वत: दसद्ध शादन्त
11.45-55. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931106_0518_ Samay Ka Moolya- 47
प्राथाना, गीता, समय का मल्ू य
12.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931107_0518_ Rupayon Ka Sangrah
48
Kharch Aur Tyag- प्राथाना, गीता, रुपयों का
सग्रं ह, खचा औि त्याग
12.11-20. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931108_0518_ Svata Siddh Gyan
49
Rupayon Ka Sadupyog- प्राथाना, गीता, स्वत:
दसद्ध ज्ञान, रुपयों का सदपयोग
13.01-11. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931109_0518_ Parivar Niyojan- 50
प्राथाना, गीता, परिवाि दनयोजन
13.12-22. PRARTHNA, GEETA,
51
H.S.19931110_0518_ Doosre Se Sukh
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २००

Chahna Paradhinta Hai- प्राथाना, गीता, दूसिे से


सख चाहना पिाधीनता है
13.23-34. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931111_0518-Nitya Kya Hai- प्राथाना, 52
गीता, दनत्य क्या है ?
14.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931112_0518-Swaroop- प्राथाना, गीता, 53
स्वरूप
14.11-20. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931113_0518-Ichha-Tyag - प्राथाना, 54
गीता, इच्छा-त्याग
14.21-27. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931114_0518_ Apne Saath Kya 55
Chalega- प्राथाना, गीता, अपने साथ क्या चलेगा ?
15.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931115_0518-Vishwas Kaise Ho.- 56
प्राथाना, गीता, दवश्वास कै से हो ?
15.11-20. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931116_0518-Tattva Ek Hi Hai.- 57
प्राथाना, गीता, तत्त्व एक ही है
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०१

16.01-12. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19931117_0518 Aatma Hi Parmatma- 58
प्राथाना, गीता, आत्मा ही पिमात्मा
16.13-24. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931118_0518_ Sab Ki Maa Satsang 59
Hai- प्राथाना, गीता, सब की माुँ सत्सगं है
17.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931119_0518- Laabh.- प्राथाना, गीता, 60
लाभ
17.11-20. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931120_0518 – Maanna Abhimaan.- 61
प्राथाना गीता, मानना अदभमान
17.21-28. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931121_0518_ Chetavini Manushya
62
Sharir ki Mahima- प्राथाना, गीता, चे तावनी-
मनष्य शिीि की मदहमा
18.01-10. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931122_0518_ Karne Jaanne Maanne
63
Ki Shakti- प्राथाना, गीता, किने, जानने, मानने की
शदि
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०२

18.11-20. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19931123_0518_ Kaliyug Ki
64
Bhayankarta- प्राथाना, गीता, कदलयग की
भयंकिता
18.21-30. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931124_0518_ Bhog Aur Sangrah Se 65
Haani- प्राथाना, गीता, भोग औि संग्रह से हादन
18.31-40. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931125_0518_ Sansar Ka Viyog 66
Sweekar Kare- प्राथाना, गीता, सस ं ाि का दवयोग
स्वीकाि किें
18.41-50. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931126_0518_ Gita 04(40) Dhan
67
Sangrah Se Haani- गीता, गीता 04 (40) धन
सग्रं ह से हादन
18.51-60. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931127_0518_ Mere To Girdhar 68
Gopal- प्राथाना, गीता, मेिे तो दगिधि गोपाल
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०३

18.61-70. PRARTHNA, GEETA,


H.S.19931128_0518_ Dhan Ka Tatva- प्राथाना, 69
गीता, धन का तत्त्व
18.71-78. PRARTHNA, GEETA,
H.S.19931129_0518-Dhaarna Galat - प्राथाना, 70
गीता, धािणा गलत
18.78 - MAHATMYA AARTEE
PRARTHNA, GEETA, H.19931130_0518_
71
Prem Aur Bhakti- गीता जी की महात्म्य, प्राथाना,
गीता, प्रेम औि भदि
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०४

चातमाास 1990 के 183 प्रवचन (बीकानेि) – पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19900701_0518_vastuon ka sadupyog
vyaktiyo ki seva ( वस्तुओ ां का सिपु योग‚ व्यदियों 72
की सेवा )
19900701_1645_Nashwan Ka Aadar Bhool
73
Hai (नाशवान का आिर भल ू है )
19900702_0518_sanyog ka daasatva, viyog
74
ka bhay ( सांयोग का िासत्व‚ दवयोग का भय )
19900702_1645_Apna Mat Maano
75
(अपना मत मानो )
19900703_0518_chahna me hi sab dukh
76
( चाहना में ही सब िुःु ख )
19900703_0830_sab jeevanmukt ho jaye
77
( सब जीवनमि ु हो जाएँ )
19900703_1645_Jaasu Satyata te Jad Maaya
78
( जासु सत्यता तें जड़ माया )
19900704_0518_vishyo ki priyata kaise
79
choote ? ( दवषयों की दप्रयता कै से िूटे ? )
19900704_0830_svarth abhiman ka tyag 80
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०५

( स्वाथथ‚ अदभमान का त्याग )


19900704_1645_Sharnagati Ki Masti
81
( शरणागदत की मस्ती )
19900705_0518_Bhaav Sudharne Se Labh
82
( भाव सधु ारने से लाभ )
19900705_0830_kaliyug nam ki ritu ( कदलयुग
83
नाम की ऋतु )
19900705_1645_Apne Liye Kuch Nahin
84
Karna ( अपने दलए कुि नहीं करना )
19900706_0518_kamna, mamta, ahankar ka
85
tyag ( कामना‚ ममता‚ अहांकार का त्याग )
19900706_0830_sambandhjanya sukh hi
86
dukh ka karan(सम्बन्धजन्य सखु ही िुःु ख का कारण )
19900706_1645_manushyta bhajan me hi hai
87
( मनुष्यता भजन में ही है )
19900707_0518_Asha Aur Chinta Ka Tyag
88
( आशा और दचन्ता का त्याग )
19900707_0830_Guru Tattva( गरुु तत्त्व ) 89
19900707_1645_sanmukhta me hi sukh hai
90
( सन्मखु ता में ही सख
ु है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०६

19900708_0518_Parmarthik Marg Me
Niraash Hona Galti ( पारमादथथक मागथ में दनराश 91
होना गलती )
19900708_0830_Bhagwan Ke Saath Nitya
92
Sambandh( भगवान् के साथ दनत्य – सम्बन्ध)
19900708_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 93
19900709_0518_Seva Ki Mahima ( सेवा की
94
मदहमा )
19900709_0830_Sansar Me Rahne Ki Kala
95
( सांसार में रहने की कला )
19900710_0518_Sarvatra Paripoorna
96
Paramatma (सवथत्र पररपणू थ परमात्मा)
19900710_0830_Asat Ke Tyag Ki
97
Aavashyakta ( असत् के त्याग की आवश्यकता )
19900710_1700_Dukh Paata Hai Kyonki
98
Maanta hai ( िुःु ख पाता है क्योंदक मानता नहीं है)
19900711_0518_Kalyan Ki Abhilasha
99
( कल्याण की अदभलाषा )
19900711_0830_Manushya Ki Teen
100
Shaktiyan - Jaanana, Karna Aur Maanana
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०७

( मनष्ु य की तीन शदियाँ जानना‚ करना और मानना )


19900711_1700_Jaanna, Maanna or Karna
101
( जानना‚ मानना और करना )
19900712_0518_“Hai” Ka Anubhav Kise Ho
102
? ( “ है ” का अनुभव कै से हो ? )
19900712_0830_Jeevkrit Shristi Se Hee
103
Bandhan ( जीवकृ त सृदि से ही बन्धन )
19900712_1700_Sab Bhagwan Ka Kaam
104
( सब भगवान् का काम )
19900713_0518_Sharnagati Aur Seva
105
( शरणागदत और सेवा )
19900713_0830_Chetavani ( चेतावनी ) 106
19900714_0518_Satsang Ka Chamatkaar
107
( सत्सगां का चमत्कार )
19900714_0830_Vishamta Main Samroop
Parmatma Ka Darshan ( दवषमता में समरूप 108
परमात्मा का िशथन )
19900714_1700_Jahee Vidhi Rakhe Ram
109
( जाही दवदध राखे राम )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०८

19900715_0518_Karm Bandhan Se Kaise


110
Choote ? ( कमथ– बन्धन से कै से िूटें ? )
19900715_0830_Manavharir Ke Upyog Ki
111
Mahima ( मानवशरीर के उपयोग की मदहमा )
19900715_1700_Sansar Nahin Rahega ( सांसार
112
नहीं रहेगा )
19900716_0518_Lakchyarth Aur Vaachyarth
113
( लक्ष्याथथ और वाच्याथथ )
19900716_0830_Bhagwan Ka Vidhan
114
Mangalmay ( भगवान् का दवधान )
19900716_1700_Sansar Nahin Parmatma Hai
115
( ससां ार नहीं परमात्मा है )
19900717_0518_Sansaar Apna Nahi Hai
116
( सांसार अपना नहीं है )
19900717_0830_Vyavhaar – Sudhar Ki
117
Aavshyakta ( व्यवहार–् सधु ार की आवश्यकता )
19900718_0518_Sfhurana Aur Sankalp 118
( स्फुरणा और सक ां ल्प )
19900718_0830_Bhagwan Bhav Ke Adheen
119
Hain ( भगवान् भाव के आधीन हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २०९

19900718_1700_QnA Satsang Se Laabh


120
( सत्सांग से लाभ )
19900719_0518_ ParmatmTattva nitya prapt
121
hai ( परमात्मतत्त्व दनत्य प्राप्त है )
19900719_0830_Sansaar Ke Bharose Se
122
Dukh ( ससां ार के भरोसे से िुःु ख )
19900719_1700_Sanmukh Hoi ( सन्मख ु होइ) 123
19900720_0518_Swaroop Ko Kaise Jane ?
124
( स्वरूप को कै से जानें ?)
19900720_0830_Sant Aur Unse labh
125
( सांत और उनसे लाभ )
19900721_0518_Apne Kalyan Ka Nishchay
126
( अपने कल्याण का दनश्चय )
19900721_0830_Kaam Karne Ki Vidhya
127
( काम करने की दवद्या )
19900722_0518_Swaroop Ko Dekho
128
Parishthiti (स्वरूप को िेखो‚ पररदस्थदत को नहीं )
19900722_0830_Manushyajanam Kee
129
Mahima ( मनष्ु यजन्म की मदहमा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१०

19900723_0518_Apne Me Shthit Raho, Aane


– Jaane Valon Main Nahi ( अपने में दस्थत रहो, 130
आने - जाने वालों में नहीं )
19900723_0830_Manushya Janam Ka
131
Udeshya ( मनष्ु यजन्म का उद्देश्य )
19900724_0518_Swaroop Me Koi Fark Nahi
132
Padta ( स्वरूप में कोई फकथ नहीं पड़ता )
19900724_0830_Badon Ke Aadar – Satkaar
133
Se Labh ( बड़ों के आिर-सत्कार से लाभ )
19900726_0518_Swaroop Ko Dekho
134
Vikaron Ko Nahi (स्वरूप को िेखो‚दवकारों को नहीं)
19900726_0830_Swaroop Ko Dekho
Vikaron Ko Nahi (स्वरूप को िेखो‚ दवकारों को 135
नहीं)
19900727_0518_Mukti Swatah Sidh Hai
136
( मदु ि स्वत: दसद्ध है )
19900727_0830_Mukti Swatah Sidh Hai
137
(मदु ि स्वत: दसद्ध है )
19900728_0518_Dosh Aagantuk Hai
138
( िोष आगन्तुक हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २११

19900728_0830_BhagwatPrapti Ki Lagan
139
( भगवत्प्रादप्त की लगन )
19900729_0518_Sansaar Main Kuch Bhi
140
Shthir Nahi(सांसार में कुि भी दस्थर नहीं )
19900729_0830_Manushyashareer Sukh
Bhog ke liye nahi hai (मनष्ु यशरीर सख ु भोग के 141
दलए नहीं है)
19900730_0518_Asat ko mahatv na de
142
( असत् को महत्त्व न िें )
19900730_0830_Asat ke liye sat ka tyag
mahan anarth hai (असत् के दलए सत् का त्याग 143
महान् अनथथ है )
19900731_0518_Manushya shrir kripa ka
144
certificate hai ( मनुष्यशरीर कृ पा का सदटथदफके ट है )
19900731_0830_Bhagvan ke sanmukh ho
145
jaye itni si bat hai ( भगवान् के सन्मखु हो जाएँ‚
इतनी सी बात है )
19900801_0518_Sansar ki aadar – buddhi
146
kaise mite ? (सांसार की आिर- बदु द्ध कै से दमटे?)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१२

19900801_0830_Bhagvan me man lagane ka


147
upay ( भगवान् में मन लगाने का उपाय )
19900802_0518_Apni svantantrata ka
148
durupyog na (अपनी स्वतन्त्रता का िरूु पयोग न करो)
19900802_0830_Jane ke moonj lakda sab
149
taiyar hai ( जाने के मँजू ‚ लकड़ा सब तैयार है )
19900803_0518_Mere man ki maan lo to
nihal ho jaoge ( मेरे मन की मान लो तो दनहाल हो 150
जाओगे )
19900803_0830_Apani shakti ke anusar sab
151
ko sukh do (अपनी शदि के अनसु ार सब को सख ु िो)
19900804_0518_Apana vairi kaun hai ? gita
152
6 / 05 ( अपना वैरी कौन है ? गीता 6 / 05 )
19900804_0830_Nitya – viyog me prasann
153
ho rahe hai (दनत्य- दवयोग में प्रसन्न हो रहे हैं)
19900805_0518_Achah aur aprayatn 154
( अचाह और अप्रयत्न )
19900805_0830_Bhajan bhookh se hota hai 155
( भजन भख ू से होता है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१३

19900806_0518_Bhajan Apne Aap Hota Hai


156
Kya ? ( भजन अपने आप होता है क्या ?)
19900806_1430_Gochar – bhoomi, gau –
6157
seva ( गोचर- भदू म , गौ- सेवा )
19900807_0518_Naya aavishkar hai
158
( नया आदवष्कार है )
19900807_0830_Satsang ki mahima
159
(सत्सांग की मदहमा)
19900808_0518_Ek nayi khoj ( एक नयी खोज ) 160
19900808_0830_Vyasan – tyag aur
chetavani, bacchon mein sanskar ( व्यसन - 161
त्याग और चेतावनी‚ बच्चों में सस्ां कार )
19900809_0518_Svarup mein raag – dvesh
162
nahin hain ( स्वरूप में राग- द्वेष नहीं हैं )
19900809_0830_Parmarthik unnati men
163
svabhav badha (पारमादथथक उन्नदत में स्वभाव बाधा)
19900810_0518_Vyarth – chintan kaise
164
mite? ( व्यथथ- दचन्तन कै से दमटे ? )
19900810_0830_Sukh kee asha, iccha
165
bhayank hai ( सख ु की आशा‚ इच्िा भयानक है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१४

19900811_0518_Svtantrata ka durupyog n
166
kare ( स्वतन्त्रता का िरूु पयोग न करें )
19900811_0830_Ram Janm Bhoomi
167
(राम जन्म-भदू म)
19900812_0518_Sfurna aur sankalp
168
( स्फुरणा और सक ां ल्प )
19900812_0830_Ramayan Se Shiksha
169
( रामायण से दशक्षा )
19900813_0518_Lobh ke tyag se mamta
170
mitati hai ( लोभ के त्याग से ममता दमटती है )
19900813_0830_Praarbdh ka fal paristhiti hai
171
( प्रारब्ध का फल पररदस्थदत है )
19900814_0518_Doosron ke avgun dekhne
172
se ahit (िसू रों के अवगुण िेखने से अदहत )
19900814_0830_Swabhav - sudhar
173
( स्वभाव- सधु ार)
19900814_2345_Janmashtami ( जन्मािमी ) 174
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१५

19900815_0518_Moh rahit aakarshan prem


175
hota hai (मोहरदहत आकषथण प्रेम होता है)
19900815_0830_Paap ke bhagi mat bano
176
( पाप के भागी मत बनो )
19900816_0518_Itni - si baat ( इतनी- सी बात ) 177
19900816_0830_Aham ko badlo, shuddh
178
karo, mitao ( अहम् को बिलो, शद्ध ु करो ,दमटाओ )
19900817_0518_Asadhan ka tyag
179
( असाधन का त्याग )
19900817_0830_Bhagvan ke sath hamara
akhand – sambandh hai ( भगवान् के साथ हमारा 180
अखण्ड – सम्बन्ध है )
19900818_0518_Apne bal ka abhiman badha
181
hai ( अपने बल का अदभमान बाधा है )
19900818_0830_Dukh se darna mahan pap
182
hai ( िुःु ख से डरना महान् पाप है )
19900819_0518_Nishidh ka bhi tyag nahi kar
183
sakte? ( दनदषद्ध का भी त्याग नहीं कर सकते क्या?)
19900819_0830_Apne anubhav ko mano
184
( अपने अनुभव को मानो )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१६

19900820_0518_Ahankar ke nash ke liye


bhagvan ke sharan ho jao ( अहांकार के नाश के 185
दलए भगवान् के शरण हो जाओ )
19900820_0830_“Main”—“mere” ko
bhagvan ke arpan kar do (“मैं”—“मेरे” को 186
भगवान् के अपथण कर िो)
19900821_0518_Gyan agyan ka nash karta
187
hai ( ज्ञान अज्ञान का नाश करता है )
19900821_0830_Bhav kaise paida ho ?
188
( भाव कै से पैिा हो ?)
19900822_0518_Bhagwan Vilakshan Hain
189
( भगवान् दवलक्षण हैं )
19900822_0830_Nandotsav ( नन्िोत्सव ) 190
19900823_0518_Agyan ki nivritti hi gyan hai
191
( अज्ञान की दनवृदत्त ही ज्ञान है )
19900823_0830_Sahrir “main” - nahin,
192
“mera” - nahin (शरीर “मैं”- नहीं, “मेरा”- नहीं)
19900824_0518_Apni bat, satsang ki mahima 193
(अपनी बात‚ सत्सांग की मदहमा)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१७

19900824_0830_Sant ke kanth me amrit


194
rahta hai ( सांत के कन्ठ में अमृत रहता है )
19900824_1130_Ganesh - Chaturthi - Bhajan
195
( गणेश-चतुथी - भजन )
19900825_0518_Sarvopari mahatva den
196
( सवोपरर महत्त्व िें)
19900825_0830_Pratyaksh kabhi n badle
197
( प्रत्यक्ष कभी न बिले )
19900826_0518_“Main” – pan ko badalna
198
( “मैं” – पन को बिलना )
19900826_0830_Hum to bhagvan ke hain-
199
karn–katha(हम तो भगवान् के हैं - कणथ–कथा)
19900826_1700_“Keel Makri Paas” —
200
Sharnagati ( “कील माँकड़ी पास” - शरणागदत )
19900827_0518_Sansar nahin hai, parmatma
201
hi hai ( सांसार नहीं है‚ परमात्मा ही है )
19900827_0830_Saccha pashachyatap hi ki
hui galtiyon ko mitata hai ( सच्चा पश्चाताप ही की 202
हुई गलदतयों को दमटाता है )
19900827_1700_Sharnagati ( शरणागदत ) 203
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१८

19900828_0518_Gyan aur anubhav me antar


204
( ज्ञान और अनुभव में अन्तर )
19900828_0830_Radhashtami Bhajan
205
(राधािमी भजन )
19900828_1700_Karne Se Prapti Nahin Hoti
206
( करने से प्रादप्त नहीं होती )
19900829_0518_Hai rup se parmatma hi hai
207
( “है”- रूप से परमात्मा ही है )
19900829_0830_Parmatma kriya se atit ka
208
vishay (परमात्मा दिया से अतीत का दवषय)
19900829_1700_QnA Apne Liye Na Kare
209
( अपने दलये न करे )
19900830_0518_Sahajavastha ( सहजावस्था ) 210
19900830_0830_Bhagvan se apnapan (Q n A
211
) भगवान् से अपनापन ( प्रश्नोत्तर )
19900830_1700_ Daivi Sampatti
212
( िैवी - सांपदत्त)
19900831_0518_Gyan Aur Bhakti
213
( ज्ञान और भदि)
19900831_0830_Chetavani ( चेतावनी ) 214
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २१९

19900831_1645_Panchamrit ( पञ्चामृत ) 215


19900831_1700_Sharnagati Sharan Nahin
216
Hona Hai ( शरणागदत शरण नहीं होना है)
19900901_0518_Sansar svatah chhoot rha
217
hai ( सांसार स्वत: ही िूट रहा है )
19900901_0830_Apne anubhav ka aadar kare
,sansar mit raha hai ( अपने अनभु व का आिर करें 218
,सांसार दमट रहा है )
19900901_1600_Satsang ka avsar bhagvan ki
kripa se milta hai ( सत्सांग का अवसर भगवान् की 219
कृ पा से दमलता है )
19900901_1645_Khud Ka Uddeshya Kripa
220
Hai ( खिु का उद्देश्य- कृ पा है )
19900902_0518_Apni pareeksha kare
221
( अपनी परीक्षा करें )
19900902_0830_Pratikulta se dukhi hona
murkhta ka parinam ( प्रदतकूलता से िखु ी होना 222
मखू थता का पररणाम )
19900902_1645_Chaah Se Hi Bhrasht Hai
223
( चाह से ही भ्रि है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२०

19900903_0518_Svarth ka tyag karo or dusro


ki seva karo ( स्वाथथ का त्याग करो और िसू रों की 224
सेवा करो )
19900904_0518_Svikriti or svarup me antar
225
( स्वीकृ दत और स्वरूप में अन्तर )
19900905_0518_Kamna or aavshyakta me
226
bhed (कामना और आवश्यकता में अतां र)
19900906_0518_Bhav mukhya hai
227
( भाव मख्ु य है )
19900906_0909_1700_Japyagya ( जपयज्ञ ) 228
19900907_0518_Parmarthik uddeshya banao
229
( पारमादथथक उद्देश्य बनाओ )
19900908_0518_Shrir mai nahi mera nahi
230
( शरीर “मैं” नहीं “मेरा” नहीं )
19900909_0518_Kamna hi sabhi dukho ka
231
karan (कामना ही सभी िख ु ों का कारण है)
19900909_1645_Kaamna Aur Aavashyakta
232
( कामना और आवश्यकता )
19900910_1645_Teen Yog Mein Bhakti
233
Sugam ( तीन योग में भदि सगु म )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२१

19900911_0518_Raag or dvesh ke vashibhut


234
na ( राग और द्वेष के वशीभतू न होवें )
19900911_1645_Uprati Kaise Ho Aur
235
Apnapan ( उपरदत कै से हो ? और अपनापन )
19900912_0518_Nashvan ki ruchi mitao
236
( नाशवान् की रूदच दमटाओ )
19900912_1645_Manushya Apna Uddeshya
237
Bana Le ( मनुष्य अपना उद्देश्य बना ले)
19900913_0518_Shighra kalyan kaise ho
238
( शीघ्र कल्याण कै से हो ? )
19900913_1645_Samay Ko Sambhalo ( समय
239
को सभां ालो )
19900914_1645_Bhagwan Mein Lago
240
Chetavini ( भगवान् में लगो– चेतावनी )
19900915_0518_Keval parmatma prapti ki
241
iccha (के वल परमात्मा प्रादप्त की इच्िा हो )
19900915_1645_Ek Aashray Sahara Lo
242
( एक आश्रय- सहारा लो )
19900915_1700_Garbhpaat Mat Karo Seva
243
Karo (गभथपात मत करो-सेवा करो)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२२

19900916_0518_Sansar nirantar nash ki taraf


244
ja rha hai ( सांसार दनरन्तर नाश की तरफ जा रहा है )
19900916_1645_Parivartan Ko Dekhe
245
(पररवतथन को िेखे )
19900916_1700_Bhagwan Ki Ruchi Karen (
246
भगवान् की रूदच करें )
19900917_0518_Kripa se kalyan hoga ( कृ पा
247
से कल्याण होगा )
19900917_1645_Bhagwan Ko Apna Maane
248
Diwali (भगवान् को अपना माने) ( दिवाली)
19900917_1700_Ant Kaal Mein Smriti
249
Karaao ( अन्तकाल में स्मृदत कराओ )
19900918_0518_Sansar ko satya manna hi 250
moh hai ( सांसार को सत्य मानना ही मोह है)
19900918_1700_Bhagwan Moh Nash Kripa
251
Se Karte(भगवान् मोह नाश कृ पा से करते हैं )
19900919_0518_Shrir sansar badlne vala hai
252
( शरीर ससां ार बिलने वाला है )
19900919_1700_QnA (प्रश्नोत्तर) (254) 253
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२३

19900920_0518_Daivi samptti ka aadar kare


254
( िैवी सम्पदत्त का आिर करें ).

चातमाास 1991 के 169 प्रवचन(जयपि) – पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19910723_0830_Gita Mahima ( गीता मदहमा ) 255
19910724_25_1700_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 256
19910724_0518_Naam Kaise Le ( नाम कै से लें
257
?)
19910724_0830_Sharir Ki Mahima Vivek Se
258
( शरीर की मदहमा - दववेक से)
19910724_1700_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 259
19910725_0518_Main aur Hoon Ka vivechan
260
( “मैं” और “ह”ँ का दववेचन )
19910725_0830_Seva Se Kalyan
261
( सेवा से कल्याण)
19910725_1700_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 262
19910726_27_1700_QnA (प्रश्नोत्तर ) 263
19910726_0518_Hum Pratikshan Mar Rahe
264
Hai ( हम प्रदतक्षण मर रहे हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२४

19910726_0830_Guru Purnima ( गरुु - पदू णथमा ) 265


19910726_1700_QnA ( प्रश्नोत्तर) 266
19910727_0518_Parhit se Apna Hit ( परदहत से
267
अपना दहत )
19910727_0830_Kaamna aur Aavashyakta
268
( कामना और आवश्यकता )
19910727_1700_QnA (प्रश्नोत्तर ) 269
19910728_0518_Sadupyog ka Mahattva
270
( सिपु योग का महत्त्व )
19910728_0830_Prarabdh aur Purusharth
271
( प्रारब्ध और परुु षाथथ )
19910728_1645_QnA (प्रश्नोत्तर) 272
19910728_1645_QnA (प्रश्नोत्तर ) 273
19910729_0518_Sanyog Ki Ruchi Kaise
274
Mite ( सयां ोग की रूदच कै से दमटे?)
19910729_0830_Bhogiccha Se Kaise Chute
275
( भोग इच्िा कै से िूटे ? )
19910729_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 276
19910729_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 277
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२५

19910730_0518_Kaamna ka Tyag Kaise Ho


278
( कामना का त्याग कै से हो ? )
19910730_0830_Apne Bhagwan
279
( अपने भगवान् हैं )
19910730_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 280
19910730_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 281
19910731_0518_Gita 6(32) गीता 6 ( 32 ) 282
19910731_0830_Sarvabhut Hite Rata
283
(सवथभतू दहते रताुः)
19910731_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 284
19910801_02_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 285
19910801_0518_Karan Nirpeksh Vivek
286
(करण दनरपेक्ष - दववेक )
19910801_0830_Bhog Ichha Se Patan ( भोग
287
इच्िा से पतन )
19910801_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 288
19910802_0518_Karan Nirpeksh
289
( करण दनरपेक्ष )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२६

19910802_0830_Har dam savdhan rahe ( हर


290
िम सावधान रहें )
19910802_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 291
19910803_0518_Uddeshya Kya Hai (उद्देश्य
292
क्या है? )
19910803_0830_Uddeshya Ko Pehchano
293
( उद्देश्य को पहचानो )
19910803_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 294
19910804_0518_Tyag Ki Mahima
295
( त्याग की मदहमा )
19910804_0830_Bhakta Eknath( भि एकनाथ ) 296
19910804_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 297
19910804_1645_Tantrik Vidya Hoti Hai aur
Uska Nivaran (तादन्त्रक दवद्या होती है और उसका 298
दनवारण)
19910805_06_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 299
19910805_06_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 300
19910805_0518_Nirmam Hone Ka Upay
301
( दनमथम होने का उपाय )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२७

19910805_0830_Bhakta Jaydev ( भि जयिेव ) 302


19910806_0518_Bhagwat sambandh
303
( भगवत्सम्बन्ध )
19910806_0830_Shudh Aacharan Adarsh Ma
304
(शद्धु -आचरण आिशथ माँ पत्रु )
19910807_0518_Kartavya Karma Ki
305
Aavashyakta (कतथव्य कमथ की आवश्यकता)
19910807_0830_Sansar Mein Mahatva
306
Buddhi Ka Tyag ( सांसार में महत्त्व बदु द्ध का त्याग )
19910807_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 307
19910807_1645_QnA Gita Pratiyogita
308
( प्रश्नोत्तर प्रदतयोदगता )
19910807_1645_QnA Side ( प्रश्नोत्तर ) 309
19910808_09_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 310
19910808_09_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 311
19910808_0518_Parhit Se Kalyan
312
(परदहत से कल्याण)
19910808_0830_Prapti Ki Sugamta
313
( प्रादप्त की सगु मता )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२८

19910809_0518_Manushya Ki Teen Shaktiya


314
( मनुष्य की तीन शदियाँ )
19910809_0830_Nishedhatmak Saadhan
315
( दनषेधात्मक साधन )
19910810_11_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 316
19910810_0518_Saccha Aashray Hari
317
Sharnam (सच्चा आश्रय हरर-शरणम)्
19910810_0830_Seva aur Bhakti
318
(सेवा और भदि)
19910810_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 319
19910811_0518_Kaamna Tyag Se Mukti
320
( कामना त्याग से मदु ि )
19910811_0830_Grihast Mein Kaise Rahe
321
( गृहस्थ में कै से रहें ? )
19910811_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 322
19910812_14_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 323
19910812_0518_Sukh Dukh Se Kaise Chute
324
( सखु - िुःु ख से कै से िूटे ? )
19910812_0830_Svadharm Paalan Se Kalyan
325
( स्वधमथ पालन से कल्याण )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २२९

19910812_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 326


19910813_0518_Prapti Mein Saaan Adhikar
327
( प्रादप्त में समान अदधकार )
19910813_0830_Prapti Mein Samaan
328
Adhikar ( प्रादप्त में समान अदधकार )
19910813_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 329
19910813_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 330
19910814_0518_Karan Nirpeksh(करण दनरपेक्ष) 331
19910814_0830_Gita 15(1 se 6)
332
गीता 15 ( 1 से 6 )
19910814_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 333
19910815_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 334
19910815_0830_Gita (7 se 12)
335
(गीता 15(7 से 12)
19910815_1730_Gita (गीता) 336
19910816_0518_Parmatma Kaise Mile
337
( परमात्मा कै से दमले ?)
19910816_0830_Gita (12 se 20)
338
गीता (12 से 20)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३०

19910816_1730_Gita (गीता 0107_0210) 339


19910817_0830_Gita (1 se 12)
340
गीता 16 ( 1 से 12 )
19910817_1730_Gita 0211_0221
341
(गीता 0211_0221 )
19910818_0830_Gita 16(7 se 24)
342
गीता 16 (7 से 24)
19910818_1730_Gita 0222_0230
343
(गीता 0222_0230 )
19910819_0830_Gita 17(1 se 19)
344
गीता 17 ( 1 से 19 )
19910819_1730_Gita 0229_0230
345
(गीता 0229_0230 )
19910820_0830_Gita 17(20 se 28)
346
गीता 17 (20 से 28)
19910820_1730_Gita 0231_0238
347
( गीता 0231_0238 )
19910821_0830_Gita 18(1 se 12)
348
गीता 18 (1 से 12)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३१

19910822_0830_Gita 18(13 se 39) गीता 18


349
(13 से 39)
19910822_1730_Gita 0247 ( गीता 0247 ) 350
19910823_0830_Gita 18(40 se 45)
351
गीता 18 (40 से 45 )
19910823_1730_Gita 0248_0251
352
( गीता 0248_0251 )
19910824_0830_Gita 18(45 se 48)
353
गीता 18 ( 45 से 48 )
19910824_1730_Bhaagwat Sunne Ki
354
Mahima Mauka ( भागवत सनु ने की मदहमा - मौका )
19910825_0518_Apne Anubhav Ko Dekhe
355
( अपने अनभु व को िेखें )
19910825_0830_Gita 2(52 se 55)
356
गीता 2 (52 से 55)
19910825_1730_Chup Saadhan ( चपु साधन ) 357
19910826_0830_Gita 18(49) Grihast
358
Karmayog गीता 18 (49 ) गृहस्थ – कमथयोग
19910826_1600_Gita 2(55 se 59)
359
गीता 2 ( 55 से 59 )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३२

19910826_1645_Gita 0254_0259
360
( गीता 0254_0259 )
19910827_0518_Vilakshan Saadhan
361
( दवलक्षण साधन )
19910827_0830_Vivek ka Aadar Gita 18(49
362
se 55) दववेक का आिर गीता 18 ( 49 से 55 )
19910828_0830_Gita 18(56 se 65)
363
गीता 18 ( 56 से 65 )
19910828_1600_Gita 2(64 se 69)
364
गीता 2 ( 64 से 69 )
19910828_1645_Gita 0264_0269
365
( गीता 0264_0269 )
19910829_1600_Mamta Ka Tyag
366
( ममता का त्याग)
19910830_1600_Mamta Ka Tyag
367
( ममता का त्याग)
19910831_29_30_1600_Mamta Ka Tyag
368
( ममता का त्याग )
19910831_0518_Chup Saadhan QnA
369
( चपु साधन )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३३

19910831_1600_Mamta Ka Tyag
370
( ममता का त्याग)
19910901_02_03_1600_1630_1215_
371
Nandotsav ( नन्िोत्सव )
19910901_0518_Prapti Par Kaisa Anubhav
372
( प्रादप्त पर कै सा अनभु व )
19910901_1600_Taapas prasang ( तापस प्रसगां ) 373
19910902_0518_Sansar Ka Abhav Tattva Ka
374
Bhav ( सांसार का अभाव, तत्त्व का भाव )
19910902_1630_ Ramayan ( रामायण ) 375
19910903_0518_Sva Mein Sahaj Stithi
376
( स्व में सहज दस्तदथ )
19910903_1215_Nandotsav ( नन्िोत्सव ) 377
19910904_0518_Chup Saadhan ( चपु साधन ) 378
19910904_1630_Vibheeshan Prasang
379
Ramayan (दवभीषण प्रसांग -रामायण)
19910905_0518_Seva Se Mukti( सेवा से मदु ि ) 380
19910905_1630_Avsar Ka Laabh Lo
381
Ramayan (अवसर का लाभ लो-रामायण)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३४

19910906_0518_Achah Ashanti Ka Kaaran


382
( अचाह‚अशाांदत का कारण )
19910906_1630_Ramayan ( रामायण ) 383
19910907_0518_Asha Hi Paramam Dukham
384
( आशा दह परमां ि:ु खम् )
19910907_1330_Kaakbhushundi
Rajyabhishek Ramayan ( काकभश ु ण्ु डी 385
राज्यादभषेक रामायण )
19910908_0518_Vasudev sarvam
386
(वासिु वे : सवथम् )
19910908_0830_Satsang aur Uska Prabhav
387
( सत्सगां और उसका प्रभाव)
19910908_1600_Bhagwan Mein Lagne Ki
388
Mahima ( भगवान् में लगने की मदहमा)
19910909_0518_Jeevan Nirvah Rupyon Ke
389
Adhin Nahin ( जीवन दनवाथह रुपयों के अधीन नहीं )
19910909_0830_Satsang Kya Hai
390
(सत्सगां क्या है ? )
19910909_1600_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 391
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३५

19910910_0518_Gita 18(45) गीता 18 ( 45 ) 392


19910910_0830_Burai Ka Tyag Uska Fal
393
( बरु ाई का त्याग‚ उसका फल )
19910910_1600_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 394
19910911_0518_Vastavik Unnati Svabhav
395
Sudhar ( वास्तदवक उन्नदत - स्वभाव सधु ार )
19910911_1130_Ganesh Chaturthi
396
(गणेश चतथु ी )
19910911_1600_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 397
19910912_0518_Vivek Ko Mahatva De
398
( दववेक को महत्त्व िें )
19910912_0830_Satsang se jeevan mukti
399
( सत्सगां से जीवन मदु ि )
19910912_1830_Brahman apne brahman tatv
400
raksha kare ( ब्राह्मण अपने ब्राह्मणत्व की रक्षा करे )
19910913_0518_Main Mere Ka Tyag
401
( “मैं” - “मेरे” का त्याग )
19910913_0845_Sharnagati ( शरणागदत ) 402
19910913_1600_Parhit Ka Bhav Paapo Se
403
Bacho (परदहत का भाव पापों से बचो)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३६

19910914_0518_Naam Jap Ki Vidhi


404
(नाम जप की दवदध)
19910914_0830_Badha Sansar Ka Aakarshan
405
( बाधा - सांसार का आकषथण)
19910914_1600_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 406
19910915_0518_Gita 13(17) गीता 13 (17) 407
19910915_0830_Chetavini ( चेतावनी ) 408
19910915_1600_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 409
19910916_0518_Gyan Svaroop Tatva
410
( ज्ञान स्वरूप तत्त्व )
19910916_0830_Chetavini Bhajan Ki Prerna
411
( चेतावनी - भजन की प्रेरणा)
19910916_1600_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 412
19910917_18_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 413
19910917_0518_Dridh Nishchay Ki Mahima 414
( दनश्चय की मदहमा )
19910917_0830_Uddeshya Ki Mahatta
415
(उद्देश्य की महत्ता)
19910917_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 416
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३७

19910918_0518_Pratiti Aur Gyan


417
(प्रतीदत और ज्ञान)
19910918_0830_Sharnagati Bhakta
418
Raghunath (शरणागदत- भि रघनु ाथ)
19910918_1645_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 419
19910919_0518_Yha rehna nahi hai - vichar
420
kare ( यहाँ रहना नहीं है - दवचार करें )
19910919_0830_Sachet raho ( सचेत रहो ) 421
19910919_1630_Nau bar nam uccharan
sarvopari samay mahima ( नौ बार नाम उच्चारण 422
सवोपरर समय मदहमा )
19910920_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 423

चातमाास 1992 के 129 प्रवचन (मथादनया) – पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19920711_0518_Aashray Keval Bhawan Ka
424
Lein ( आश्रय के वल भगवान का लें )
19920711_0830_Garbhpaat Maha Paap
425
(गभथपात महापाप )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३८

19920712_0518 Sarvabhoot Hite Rata


426
(सवथभतू दहते रताुः)
19920712_0830_Gita 12 गीता ( 12 ) 427
19920713_0518_Aashray ( आश्रय ) 428
19920713_0830_Gita 13 Bhakt Mal
429
Praygdaas गीता (भिमाल—प्रयागिास
19920714_0518_Sansar Ki Satta Nahin (ससां ार
430
की सत्ता नहीं )
19920714_0830_Gita 14 Bhakt Govind गीता
431
14 ( भि गोदवन्ि ) (432)
19920715_0518_Sarvashrestha Kaun ( सवथश्रेष्ठ
432
कौन ? )
19920715_0830_Gita 15 गीता अध्याय ( 15 ) 433
19920716_0518_Mile Hue Ko Apna Mat
434
Mano (दमले हुए को अपना मत मानो)
19920716_0830_Gita 16 गीता अध्याय ( 16 ) 435
19920717_0518_Parmatma Paripoorna Kaise
436
( परमात्मा पररपणू थ कै से ? )
19920717_0830_Gita 17 गीता अध्याय ( 17 ) 437
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २३९

19920718_0518_Jaane Hue Asat Ka Tyag Se


438
Mukti ( जाने हुए असत् के त्याग से मदु ि )
19920718_0830_Gita 18(1 se 48) गीता अध्याय
439
18 ( 1 से 48 )
19920719_0518_Pratikshan Mar Rahe Hai
440
( प्रदतक्षण मर रहे हैं )
19920719_0830_Gita 18(49 se 78) गीता 18
441
(49 से 78 )
19920720_0518_Vivek Drishti ( दववेक n`दि ) 442
19920720_0830_Gita 6(1 se 32) गीता 6 (1 से
443
32 )
19920721_0518_Sahajavastha Kaise Prapt
444
Ho ( सहजावस्था कै से प्राप्त हो ?)
19920721_0830_Gita 6(32 se 47) गीता 6 (32 445
से 47 )
19920722_0518_Sahajavastha Samarth Kaun
446
( सहजावस्था - समथथ कौन ?)
19920722_0830_Gita 7 गीता अध्याय ( 7 ) 447
19920723_0518_Badalnewala Na
448
Badalnewala ( बिलनेवाला‚ न बिलनेवाला)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४०

19920723_0830_Gita 8 गीता अध्याय ( 8 ) 449


19920724_0518_Gita Vigyataramare Ken
450
vijaniyat ( गीता - दवज्ञातामरे के न दवजानीयात् )
19920724_0830_Gita 9 गीता अध्याय ( 9 ) 451
19920725_0518_Ishwar Ko Kyon Maane
452
Pramaan ( ईश्वर को क्यों मानें ? प्रमाण )
19920725_0830_Gita 10 गीता अध्याय ( 10 ) 453
19920726_0518_Main Mera Kaise Mite
454
(“मैं”-“मेरा” कै से दमटे ? )
19920726_0830_Gita 11(1 se 14) गीता 11 (1
455
से 14)
19920727_0518_Sansar Pratikshan Ja Raha
456
Hai ( ससां ार प्रदतक्षण जा रहा है )
19920727_0830_Gita 11(15 se 55) ( गीता 11
457
(15 से 55 )
19920728_0518_Sadupyog Ki Mahatta
458
(सिपु योग की महत्ता )
19920728_0830_Gita 5(1 se 18) ( गीता 5 (1 से
459
18 )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४१

19920729_0518_Dridh Nishchay Se Laabh


460
(दृढ़ दनश्चय से लाभ )
19920729_0830_Gita 5(18 se 29) Gita 4(1 se
461
23) गीता 5 (18 से 2 9) गीता 4 (1 से 23 )
19920730_0518_Akriya Tatva ( अदिय तत्त्व ) 462
19920730_0830_Gita 4(20 se 42) Gita 3 (1 se
13)_Akriya Tatva गीता 4 ( 20 से 42) गीता 3 ( 1 463
से 13 )
19920731_0518_Tatva Gyan Man Buddhi Se
464
Nahin (तत्त्वज्ञान मन बद्धु ी से नहीं )
19920731_0830_Gita 3(11 se 43) गीता 3 (11
465
से 43)
19920801_0518_Prapti Ki Sugmata ( प्रादप्त की
466
सगु मता )
19920801_0830_Gita 2(1 se 37) गीता 2 (1 से
467
37 )
19920802_0518_Pratikshan Mrityu Chetavini
468
( प्रदतक्षण मृत्यु - चेतावनी )
19920802_0830_Gita 2(38 se 53) गीता 2 (38
469
से 53)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४२

19920803_0518_Sansarik Cheezo Se Kab


Tak Kaam Chalaoge ( साांसाररक चीज़ों से कब तक 470
काम चलाओगे ? )
19920803_0830_Gita 2(54 se 72) गीता 2 (54
471
से 72)
19920804_0518_Prarthana aur Sharnagati
472
( प्राथथना और शरणागदत )
19920804_0830_Gita 1(1 se 11) Ramayan
Maanas Ka Taapas Prasang ( रामायण - मानस 473
का तापस प्रसांग )
19920805_0518_Bhagwan Ka Aashray (
474
भगवान् का आश्रय )
19920805_0830_Gita 1(12 se 47) गीता 1 (12
475
से 47)
19920806_0518_Karmayog ( कमथयोग ) (477) 476
19920806_0830_Seva aur Vair Bhav Ka
477
Tyag ( सेवा और वैर भाव का त्याग )
19920807_0518_Prapti Ka Upay Lagan ( प्रादप्त
478
का उपाय लगन )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४३

19920807_0830_Kripa Dhan Ki Ninda Sant


479
aur Bhagwan (कृ पा, धन की दनांिा ,सांत और भगवान्)
19920808_0518_Pratikshan Mrityu Chetavini
480
( प्रदतक्षण मृत्यु चेतावनी )
19920808_0830_Vyavharik Shiksha
481
(व्यवहाररक दशक्षा )
19920809_0518_Samay Ka Sadupyog Kare (
482
समय का सिपु योग करें )
19920809_0830_Vyakti puja Ka Nishedh (
483
व्यदि पजू ा का दनषेध )
19920810_0518_Nirbal Ke Bal Ram ( दनबथल
484
के बलराम )
19920810_0830_Kaamna aur Aavashyakta (
485
कामना और आवश्यकता )
19920811_0518 mai mere ka tyag ( मैं - मेरे का
486
त्याग )
19920811_0830 iccha or aavshyakta ( इच्िा
487
और आवश्यकता )
19920812_0518 sharir nashvan hai ( शरीर
488
नाशवान है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४४

19920812_0830 Gita 4(36) गीता 4 (36) 489


19920813_0518 sharir nashvan,prahlad
490
katha (शरीर नाशवान, प्रहलाि कथा)
19920813_0830 sharnagati, apnapan
491
(शरणागदत, अपनापन )
19920814_0518 iccha or aavshyakta ( इच्िा
492
और आवश्यकता )
19920814_0830 Katha Nal Damyanti
Yudhishthir Darshan (कथा नल-िमयांती युदधदष्ठर 493
िशथन)
19920815_0518 Sansar Parivartansheel (सांसार
494
पररवतथनशील )
19920815_0830_Manushya Sharir Ki
495
Mahima_VV_Serial306 ( मनुष्यशरीर की मदहमा )
19920816_0518 Sabka Sanchalak Ek
496
Parmatma ( सबका सांचालक एक परमात्मा )
19920816_0830 Teen Yog Karmayog
497
vishesh ( तीन योग कमथयोग दवशेष )
19920817_0518 Raag or Aasakti Ka Tyag
498
(राग आसदि का त्याग )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४५

19920817_0830 Aaj Diye Upar Andhera Hai


499
(आज दिये ऊपर अांधेरा है )
19920818_0518 Ek Parmatma ki Sharnagati
Ek hi Chahna (एक परमात्मा की शरणगदत‚ एक ही 500
चाहना )
19920818_0830 Jeevan Ki Safalta ( जीवन की
501
सफलता )
19920819_0518 Parivartansheel Apna
502
Anubhav ( सांसार पररवतथनशील‚ अपना अनुभव )
19920819_0830 Parivartansheel Sansar
503
( पररवतथनशील ससां ार )
19920819_1700_D2_Baalkand 236_Pushp
Vatika Ramayan (बालकाण्ड - पष्ु प वादटका 504
रामायण )
19920820_0518 Yaha Se Jaana Hai ( यहाँ से
505
जाना है )
19920820_0830 Saath Jaane Ki Poonji ( साथ
506
जाने की पँजू ी )
19920820_1700_Kripa Se Avsar Ramayan (
507
कृ पा से अवसर रामायण )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४६

19920821_0518_Durlabh Manushya Sharir (


508
िलु थभ मनुष्यशरीर )
19920821_0830_Manushya Ki Teen
509
Shaktiyan ( मनुष्य की तीन शदियाँ )
19920821_1700_Kripa Se Avsar Khud
Kalyan Kare ( कृ पा से अवसर - खिु का कल्याण 510
करें )
19920822_0518_Ramayan Hari Vyapak
511
Sarvatra (रामायण हरर व्यापक सवथत्र)
19920823_0518 Ahamta Parivartan - Bhakti
512
Yog (अहतां ा पररवतथन - भदि योग)
19920823_0830_Mahapaapo Se Bacho
513
( महापापों से बचो )
19920824_0518_Ekant Mein Man Bhagwan
Mein Kaise Lage ( एकाांत में मन भगवान में कै से लगे 514
?)
19920824_0830_Pranaam Ki Mahima ( प्रणाम
515
की मदहमा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४७

19920825_0518_Rupya, Vastu,Vyakti
,Vivek, Sat ,Uttrotar (रुपया, वस्तु, व्यदि, दववेक, 516
सत्–उत्तरोतर )
19920825_0830_Shok Nash Ka Upay ( शोक
517
नाश का उपाय )
19920826_0518_Samay Ka Mulya Naam Jap
518
( समय का मल्ू य,नाम जप )
19920826_0830_Grihast Mein Rehne Ki
519
Vidya ( गृहस्थ में रहने की दवद्या )
19920826_1700_Grihast Shiksha Ramayan
520
( गृहस्थ दशक्षा – रामायण )
19920827_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 521
19920827_0830_Acche Bano Paapo se
522
Bacho ( अच्िे बनो‚ पापों से बचो )
19920827_1700_Rajyabhishek Ramayan
523
( राज्यदभषेक —रामायण )
19920828_0518_Mrityu Ke Baad Ki Chinta
524
Kare (मृत्यु के बाि की दचन्ता करें )
19920828_0830_Majdooro Ke Liye Shiksha
525
( मजिरू ों के दलए दशक्षा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४८

19920828_1630_Manushya Sharir Ki
526
Mahima ( मनुष्यशरीर की मदहमा )
19920829_0518_Gyan aur Bhakti
527
( ज्ञान और भदि)
19920829_0830_Krishna Ki Baal Lila
528
( कृ ष्ण की बाल लीला )
19920830_0518_Utpatti Ka Aadhar Pratiti
Ka Prakashak ( उत्पदत्त का आधार‚ प्रतीदत का 529
प्रकाशक )
19920830_0830 Sarvavyapi Bhagwan
530
(सवथव्यापी भगवान् )
19920830_1430_Grihastho Ke Liye
531
( गृहस्थों के दलए )
19920830_1630_Uddeshya Pehle 108
Ramayan Path Se Sambandh ( उद्देश्य पहले 108 532
रामायण पाठ से सम्बन्ध )
19920830_1630_Uddeshya Pehle Panchamrit
533
Ramayan ( उद्देश्य पहले पञ्चामृत‚ रामायण )
19920831_0518 Kripa Pukar Sansar
534
Nashvaan (कृ पा, पक ु ार, सांसार नाशवान)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २४९

19920831_0830_Mukti Sahaj Hai


535
( मदु ि सहज है )
19920901_0518_Naam Jap ( नाम जप ) 536
19920901_0830_Hindu Sanskriti Ki Mahatta
537
( दहन्िू सांस्कृ दत की महत्ता )
19920902_0518_Bhagwan Ki Bheji Tapasya
538
Pratikulta ( भगवान् की भेजी तपस्या -प्रदतकूलता )
19920902_0830_Gaay Ka Mahatmya
539
(गाय का महात्म्य)
19920903_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 540
19920903_0830_Chetavini ( चेतावनी ) 541
19920904_0518_Visham Mein Sam Ko
542
Dekhe ( दवषम में सम को िेखे )
19920904_0830 Radha Ashtami Krishna Lila
543
( राधा अिमी - कृ ष्ण लीला )
19920905_0300_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 544
19920905_0518_Sansar Ki Seva Bhagwan
545
Ka Smaran ( सांसार की सेवा‚ भगवान् का स्मरण )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५०

19920905_0830 Sukhasakti Kaise Chute


Satsang Mahima ( सख ु ासदि कै से िूटे‚? सत्सांग 546
मदहमा )
19920906_0300_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 547
19920906_0518_Sukhasakti Badhak Agyan
548
Nahin ( सख ु ासदि बाधक, अज्ञान नहीं )
19920906_0830_Mahapaap Se Bacho
549
(महापाप से बचो )
19920907_0518 Paancho Rin, Prabhu Ko
Yaad karo, Sant Mahima ( पाँचों ऋण‚ प्रभु को 550
याि करो‚ सतां मदहमा )
19920907_0830_Baalako Ke Prati
551
( बालकों के प्रदत )
19920908_0518 Shraadh Ke Bare Mein
552
(श्राद्ध के बारे में )

चातमाास 1993 के 221 प्रवचन (बीकानेि) – पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19930630_0518_Uddeshya chetan ka ho
553
( उद्देश्य चेतन का हो )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५१

19930630_0830_Chaturmas me sayam or sar


554
bate (चातुमाथस में सयांम और सार बातें )
19930701_0518_Jagrit Sushupti ( जाग्रत
555
सषु ुदप्त)
19930701_0830_Dharmatma Kasht Kyon
556
Paate Hai (धमाथत्मा कि क्यों पाते है?)
19930702_0518_Sansar Ka Viyog Nitya Hai
557
( सांयोग का दवयोग दनत्य है )
19930702_0830_Prapti Ke Sab Adhikari
558
( प्रादप्त के सब अदधकारी )
19930703_0518_Parmatma Ka Nitya Yog
559
( परमात्मा का दनत्य योग )
19930703_0800_Gita Ki Mahima Guru 560
Purnima ( गीता की मदहमा — गुरु पूदणथमा )
19930704_0518_Satsang Ki Durlabhta
561
( सत्सांग की िल ु थभता )
19930704_0800_Bhakti Ki Mahima
562
( भदि की मदहमा )
19930705_0518_Prapti Sugam Hai (प्रादप्त सगु म
563
है)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५२

19930705_0830_Kaamna Aur Aavashyakta


564
( कामना और आवश्यकता )
19930706_0518_Kartavaya palan ( कतथव्य
565
पालन )
19930707_0518_Prapti Kathin Nahin Lalsa
566
Kathin ( प्रादप्त कदठन नही लालसा कदठन)
19930707_0800_Prapti Kathin Nahin Lalsa
Kathin hai Satsang Mahima ( प्रादप्त कदठन नहीं, 567
लालसा कदठन है‚ सत्सांग मदहमा )
19930708_0518_Parmatma Mein Anant
568
Shaktiyan ( परमात्मा मे अनन्त शदां ियाँ)
19930709_0518_Vivek Ka Sadupyog
569
( दववेक का सिपु योग )
19930709_0800_Sansar Ko Satta Mahatta
570
Dena Galti ( सांसार को सत्ता महत्ता िेना गलती )
19930710_0518_Parmarthik Prem Ras
571
( पारमादथथक प्रेम रस )
19930710_0800_Sansar Ke Hit Mein Apna
572
Hit (सांसार के दहत में अपना दहत)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५३

19930711_0518_Ras Buddhi Kisme Hai ( रस


573
बदु द्ध दकसमें है ? )
19930711_0800_Jeev matra me bhagvan hai
574
( जीव मात्र में भगवान् हैं )
19930712_0518_Grihstho ke liye (गृहस्थों के
575
दलए )
19930712_0830_Grihast Ke Liye Namaskar
576
Pranam ( गृहस्थ के दलये ‚नमस्कार – प्रणाम )
19930713_0518_Seva Ka Tatva ( सेवा का तत्त्व) 577
19930713_0800_Grihast Mein Kaise Rahe
578
Striyon Ke Prati (गृहस्थ मे कै से रहें ? दियों के प्रदत)
19930714_0518_Parlok Ki Chinta Kare
Swabhav Sudhar ( परलोक की दचन्ता करें – स्वभाव 579
सधु ार )
19930714_0800_Bhakti Sharnagati Ki
Mahima Vairagya ( भदि‚ शरणागदत की मदहमा‚ 580
वैराग्य )
19930715_0518_Asaadhan Ka Nash
581
( असाधन का नाश )
19930715_0800_Prapti Ki Sugamta 582
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५४

(प्रादप्त की सगु मता )


19930716_0518_Asaadhan Ke Tyag Ki
583
Aavashyakta ( असाधन के त्याग की आवश्यकता)
19930716_0800_Bhakti Ki Mahima Seva
584
( भदि की मदहमा‚ सेवा )
19930717_0518_Hum Yaha Kis Liye Aaye
585
Hai ( हम यहाँ दकस दलये आये हैं?)
19930717_0800_Sugam Saadhan Burai Ka
Tyag Vaani ( सगु म साधन बरु ाई का त्याग‚ वाणी 586
सांयम )
19930717_1700_Krishna Bhajans ( कृ ष्ण
587
भजन)
19930717_1730_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 588
19930718_0518_Uddeshya Chetan Ka Ho
589
( उद्देश्य चेतन का हो )
19930718_0800_Uddeshya Chetan Ka Ho (
590
उद्देश्य चेतन का हो )
19930719_0518_Tattva Antah Karan Ke
591
Adhin Nahin (तत्त्व अतां :करण के अधीन नहीं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५५

19930719_0800_Samta Prapti Ka Upay


Grihast Kahani Choti Bahu ki( समता प्रादप्त का 592
उपाय गृहस्थ‚ कहानी िोटी बह की )
19930720_0518_Vivek Kya Hai ( दववेक क्या है
593
?)
19930720_0800_Sansar Ka Viyog Svata
594
Siddh Hai ( ससां ार का दवयोग स्वत: दसद्ध है )
19930721_0518_Vivek Ka Aadar (दववेक का
595
आिर )
9930721_0800_Satsang Ki Mahima
596
(सत्सगां की मदहमा )
19930722_0518_Chetavini ( चेतावनी ) 597
19930722_0800_Sab Shakti Vastu Bhagwan
598
Se Aati Hai ( सब शदि‚ वस्तु भगवान् से आती हैं )
19930723_0518_Sab kuch bhagvat swaroop
599
hai ( सब कुि भगवत्स्वरूप है )
19930723_0800_Bhakti Ki Mahima Katha
600
Prayagdasji ( भदि की मदहमा‚ कथा - प्रयागिासजी )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५६

19930724_0518_Kriya Padarth Se Ooncha


Uthne Par Prapti ( दिया‚ पिाथथ से ऊांचा उठने पर 601
प्रादप्त )
19930724_0800_ Nitya Seva Se Kalyan
602
(दनत्य सेवा से कल्याण )
19930725_0518_Vasudev sarvam (वासिु वे :
603
सवथम् )
19930725_0800_Tulsidasji Ki Vaani Ki
Vilakshanta Ramayan Taapas (तुलसीिासजी की 604
वाणी की दवलक्षणता रामायण )
19930726_0518_Upramta Vairagya Ki
605
Aavashyakta ( उपरामता‚ वैराग्य की आवश्यकता)
19930726_0800_Sansar Ka Khichaav Kaise
606
Mite (सांसार का दखांचाव कै से दमटे?)
19930727_0518_Upratti Aur Vritti Se Ateet
607
Swaroop ( उपरदत और वृदत्त से अतीत स्वरूप )
19930727_0800_Chetavini ( चेतावनी ) 608
19930728_0518_Ahamta Parivartan Ki
609
Aavashyakta ( अहांता पररवतथन की आवश्यकता)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५७

19930728_0800_vasudev sarvam ki mahima


610
(वासिु वे :सवथम् की मदहमा )
19930729_0518_Labh kisme hai
611
(लाभ दकसमें है ? )
19930729_0800_Sharnagati ( शरणागदत ) 612
19930730_0518_Sahajavastha ( सहजावस्था ) 613
19930730_0800_ Dhan Sangrah Se Haani
614
( धन सग्रां ह से हादन )
19930731_0518_Bhakti Mein Mukhya
615
Vishvaas ( भदि में मख्ु य दवश्वास )
19930731_0800_Vyavahaar Ki Shuddhi
616
( व्यवहार की शदु द्ध )
19930731_1700_Parmatma sabse atit hai
617
( परमात्मा सबसे अतीत है )
19930801_0518_Vasudev sarvam
618
( वासिु वे : सवथम् )
19930801_0800_Sab kuch bhagvan ka diya
hua apna keval abhiman ( सब कुि भगवान् का 619
दिया हुआ‚ अपना के वल अदभमान )
19930801_1700_Sharnagati ( शरणागदत ) 620
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५८

19930801_1930_Man kaise lage


621
( मन कै से लगे ?)
19930802_0518_Sab kuch bhagvan hi hai
622
(सब कुि भगवान् ही है )
19930802_0800_Shravani ( श्रावणी ) 623
19930802_1700_Garbhpat or parivar niyojan
624
mahapap ( गभथपात और पररवार दनयोजन महापाप )
19930803_0518_Sath me jane ki khas punji
625
(साथ में जाने की खास पँजू ी )
19930803_0800_Mitti ka launda nahi gend
626
bano ( दमट्टी का लौंिा नहीं गेंि बनो )
19930803_1700_Sansar ke liye rote ho
chitraketu katha ( ससां ार के दलए रोते हो - दचत्रके तु 627
कथा )
19930804_0800_Bhagvadbhav dilip katha
628
( भगवद्भाव - दिलीप कथा )
19930804_1700_Sansar ki seva karo or
parmatma se prem karo 629
( सांसार की सेवा करों और परमात्मा से प्रेम करो )
19930805_0800_Samay ki upyogita 630
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २५९

( समय की उपयोदगता )
19930805_1700_Chetavani ( चेतावनी ) 631
19930806_0518_Saar bat ko pakad lo
632
( सार बात को पकड़ लो )
19930806_0800_Nashvan ko mahatta dena
mahan badhk ( नाशवान को महत्ता िेना महान् 633
बाधक)
19930806_1700_Sacche hriday se bhagvan
634
lag jao ( सच्चे हृिय.से भगवान में लग जाओ)
19930807_0518_Hamari aavshaykata sansar
puri nahi kar sakta ( हमारी आवश्यकता सांसार परू ी 635
नहीं कर सकता )
19930807_0800_Tattva ek hi hai
636
( तत्त्व एक ही है )
19930807_1700_Sacchi lagan se prapti
637
( सच्ची लगन से प्रादप्त )
19930808_0518_Rag dvesh bhul bhulayia hai
638
( राग-द्वेष भल
ू भलु ैया है )
19930808_0800_Dharm or rajneeti ram
639
janmbhumi ( धमथ और राजनीदत‚ राम जन्मभदू म )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६०

19930808_1700_Apna nahi hai ( अपना नहीं है ) 640


19930809_0518_Nirbal ke balram
641
( दनबथल के बलराम )
19930809_0800_Dharma nistha me kami ke
642
karan deri ( धमं‚ दनष्ठा में कमी के कारण िेरी )
19930809_1700_Gita 15 ( 7 ) गीता 15 ( 7 ) 643
19930809_2000_Mukti moonde me hai thari
644
( मदु ि मन्ू डे में है थारी )
19930810_0518_Hum khilone hai bhagvan
645
khilate hai ( हम दखलोने हैं भगवान दखलाते हैं )
19930810_0800_Janmastmi Lila
646
( जन्मािमी लीला )
19930810_1700_Nandotsav ( नन्िोत्सव ) 647
19930810_2400_Janmashtami Janam
648
Karyakram ( जन्मािमी - जन्म कायथिम)
19930811_0518_Badlne vala na badalnevala
649
( बिलनेवाला‚ न बिलनेवाला )
19930811_0800_Bhagvan ka janm divya hai
650
( भगवान् का जन्म दिव्य है )
19930811_1700_Parmatma param dayalu hai 651
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६१

( परमात्मा परम ियालू हैं )


19930812_0518_Nitya viyog svikar kar lo
652
( दनत्य दवयोग स्वीकार कर लो )
19930812_0800_Satsang ki mahima
653
( सत्सांग की मदहमा )
19930812_1700_Sanyogjanya sukh bandhne
654
vala hai ( सयां ोगजन्य सख ु बाधां ने वाला है )
19930813_0518_Nitya viyog hai sadhan ki
655
kasauti ( दनत्य दवयोग है साधन की कसौटी )
19930813_0800_Ghar ka kam avshya karna
656
hai ( घर का काम अवश्य करना है )
19930813_1700_Sant or satsang ki mahima
657
( सतां और सत्सगां की मदहमा )
19930814_0800_Grihsth aashram sarvsresth
658
( गृहस्थ आश्रम सवथश्रेष्ठ )
19930815_0518_Sansar ka viyog nitya hai
659
( सांसार का दवयोग दनत्य है )
19930815_0800_Iccha aavshyakta prarabdh
660
purusharth ( इच्िा‚आवश्यकता ‚प्रारब्ध ‚परुु षाथथ )
19930815_1700_Sharnagati ( शरणागदत ) 661
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६२

19930816_0518_Bhagvaan Ke Hai
662
( भगवान् के हैं )
19930816_0518_Shrir sansar mera nahi hai
mere keval parmatma hai ( शरीर सांसार मेरा नहीं है 663
मेरे के वल परमात्मा हैं )
19930816_0800_Nam jap ki mahima
664
( नामजप की मदहमा )
19930816_1700_Bhagvan smran. har dam
665
karo ( भगवान् का स्मरण हरिम करो )
19930817_0518_ Hamara swroop sukh dukh
666
se atit hai ( हमारा स्वरूप सख
ु ि:ु ख से अतीत है )
19930817_0800_Shuddhi karne ki apeksha
ashuddhi na kare ( शदु द्ध करने की अपेक्षा अशुदद्ध न 667
करें )
19930818_0518_Sukh dukh aane jane vale
668
hai ( सख ु ि:ु ख आने जाने वाले हैं )
19930818_0800_Gita ke teen yog
669
( गीता के तीन योग )
19930818_1700_Bhagvat ke avsar par
670
( भागवत के अवसर पर )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६३

19930819_0518_Shrir sansar me maipan


murkhta ka parinam hai ( शरीर सांसार “मैंपन” 671
मख ू थता का पररणाम है )
19930819_0800_Dehabhiman kaise mite or
garbhpat se bacho ( िेहादभमान कै से दमटे और 672
गभथपात से बचो )
19930819_1700_Bhagvat ke avsar par
673
( भागवत के अवसर पर )
19930820_0518_Manushya janm durlabh
674
avsar hai (मनुष्य जन्म िल ु थभ अवसर है )
19930820_0800_Prachar pidhiyo ka kalyan
675
( प्रचार‚ पीदियों का कल्याण )
19930820_1700_Bhagwat uttar prasang
676
( भागवत प्रश्नोत्तर प्रसांग )
19930821_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 677
19930821_0800_Aankh Aur Pet Ki Bimari
Prarabhdh Purusharth ( आख ां और पेट की बीमारी, 678
प्रारब्ध, परुु षाथथ )
19930822_0518_Aap sarvansh me burai rahit
679
hai ( आप सवांश में बरु ाई रदहत है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६४

19930822_0800_Mamta Kaise Chode


680
( ममता कै से िोड़ें ?)
19930822_1700_Bhagvat kripa se
681
(भगवत्कृ पा से )
19930823_0518_Paristhiti Saadhan Samagri
682
( पररदस्थदत - साधन सामग्री )
19930823_0800_Hoy Ram Ko Naam Japo
683
( होय राम को नाम जप )
19930823_1700_Hum bhagvan ke hai
684
( हम भगवान् के हैं )
19930824_0518_Bhagwan Ki Sanmukhta
685
( भगवान् की सन्मख ु ता )
19930824_0800_Samadhi Ka Vivechan
Mukti Mein Adhikar ( समाधी का दववेचन‚ मदु ि में 686
अदधकार )
19930824_1700_Bhagvan me tatparta se lag
687
jao ( भगवान् में तत्परता से लग जाओ)
19930825_0518_Samta Kya Hai Gita 06(9)
688
समता क्या है ? – गीता 06 ( 9 )
19930825_0800_Karan Nirpeksh 689
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६५

( करण – दनरपेक्ष )
19930825_0945_Vidyarthiyo ke prati
690
( दवद्यादथथयों के प्रदत )
19930825_1700_Bhagvan ki kripa sab par
691
barabar hai ( भगवान् की कृ पा सब पर बराबर है )
19930826_0518_Karna Jaanna Paana
692
Maanav Sharir ( करना‚ जानना ‚पाना‚ मानवशरीर )
19930826_0800_Garbhpaat, Dharma, Aagya
693
Paalan ( गभथपात, धमथ, आज्ञा पालन )
19930826_1700_Anukullta seva sikhati hai
pratikulta tyag sikhati hai ( अनुकूलता सेवा 694
दसखाती है, प्रदतकूलता त्याग दसखाती है )
19930827_0518_Chetavini Asaavdhani Hi
695
Mrityu Hai ( चेतावनी - असावधानी ही मृत्यु है)
19930827_0800_Satsang Sunne Ki Vidya
Karan Nirpeksh ( सत्सगां सनु ने की दवद्या- करण - 696
दनरपेक्ष )
19930827_1700_Bhagvan ke yaha prem ki
697
mukhyta hai ( भगवान् के यहाँ प्रेम की मख्ु यता है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६६

19930827_2000_Naam pranam seva ,ma ka


698
darja ( नाम‚ प्रणाम‚ सेवा, माँ का िजाथ )
19930828_0518_Parmatma Sada Vidyaman 699
Hai (परमात्मा सिा दवद्यमान हैं )
19930828_0800_Tatva Tak Karan Nahin
700
Pahuchta ( तत्त्व तक करण नहीं पहुचँता )
19930828_1330_Sadgi se rahe ( सािगी से रहें ) 701
19930828_1700_Manushya shrir parmatma
ki prapti ke liye hi mila hai 702
( मनष्ु य शरीर परमात्मा की प्रादप्त के दलए ही दमला है )
19930829_0518_Gita 02(16) गीता 02 ( 16 ) 703
19930829_0800_Gita 02(47 ) ( गीता 02 ( 47 ) 704
19930829_1700_Bhagvat rukmani prasang
705
( भागवत् रुक्मणी प्रसांग )
19930830_0518_Kriya Padarth Ki Aasakti Se
706
Bandhan ( दिया पिाथथ की आसदि से बधां न )
19930830_0800_Jaasu Satyata Te Jad Maaya
707
(जासु सत्यता तें जड़ माया )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६७

19930830_0800_Ramayan Jaasu Satyata Se


708
Jad Maaya ( रामायण - जासु सत्यता तें जड़ माया )
19930830_1700_Pustako ka prachar or nam
709
mahima ( पस्ु तकों का प्रचार और नाम मदहमा )
19930831_0518_Main Ka Tyag
710
( “मैं” का त्याग )
19930831_0800_Badalnewala Na
711
Badalnewala ( बिलनेवाला‚ न बिलनेवाला )
19930831_1700_Bhagvan ka mangalmay
712
vidhan ( भगवान् का मांगलमय दवधान है )
19930901_0518_Mainpan Se Algav Ka
713
Anubhav ( “मैंपन” से अलगाव का अनभु व )
19930901_0800_Shanti Purnata Kaise Mile
714
( शादन्त‚पणू थता कै से दमले ?)
19930901_1700_Sar bate ( सार बातें ) 715
19930902_0518_Svrup avshathao se atit hai
716
( स्वरूप अवस्थाओ ां से अतीत है )
19930902_0800_Samay sabse badi punji hai
717
( समय सबसे बड़ी पँजू ी है )
19930903_0518_Shrir or shriri alag hai 718
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६८

( शरीर और शरीरी अलग है )


19930903_0800_Savdhani hi sadhana hai
719
( सावधानी ही साधना है )
19930904_0518_Sab kuch bhagvan ke arpan
720
kar do ( सब कुि भगवान् के अपथण कर िो)
19930904_0800_Balko ke prati ( बालकों के
721
प्रदत )
19930904_1700_Bhagvan ki bhakti mukti
722
dene vali hai ( भगवान् की भदि मदु ि िेने वाली है )
19930905_0518_Maipan aapka svrup nahi
723
hai ( “मैंपन” आपका स्वरूप नहीं है )
19930905_0800_Vasudev sarvam ( वासिु वे :
724
सवथम् )
19930905_1700_Bharat charitra ( भरत चररत्र ) 725
19930906_0518_Sab kuch bhagvan hi hai
726
(सब कुि भगवान् ही हैं )
19930906_0800_Bhagvan bhakti ke bhukhe
727
hai ( भगवान् भदि के भख ू े हैं )
19930906_1700 _Sab kuch bhagvan hi hai
728
(सब कुि भगवान् ही हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २६९

19930907_0518_Vasudev sarvam ( वासिु वे :


729
सवथम् )
19930907_0800_Anubhav kare keval sikhe
730
nahi ( अनुभव करें ! के वल सीखे नहीं )
19930907_1700_Bharat Charitra Ramayan
731
(भरत चररत्र - रामायण )
19930908_0518_Satsang se akant se jyada
labh hota hai ( सत्सांग से, एकाांत से ज्यािा लाभ होता 732
है )
19930908_0800_Bhagvan ko dhyan rakhne
se sab kaarya sahi hote hai 733
(भगवान् को ध्यान में रखने से सब कायथ सही होते हैं )
19930909_0518_Marne ke bad aage kya
dasha hogi socho (मरने के बाि आगे क्या िशा होगी 734
? सोचो ! )
19930909_1700_Abhiman Na Karen -
735
Ramayan ( अदभमान ना करें - रामायण )
19930910_0518_Vivek saccha guru hai
736
( दववेक सच्चा गुरु है )
19930910_0800_Vivek ka sadupyog kare 737
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७०

( दववेक का सिपु योग करे )


19930910_1700_Utsah Se Path Kare
738
Ramayan ( उत्साह से पाठ करें ‚ रामायण )
19930911_0518_Kripa Ko Maan Lo
739
( कृ पा को मान लो )
19930911_0800_Sakhsi bhav rahta hi nahi
740
( साक्षी भाव रहता ही नहीं )
19930911_1700_Apne dharam par date raho
741
( अपने धमथ पर डटे रहो )
19930912_0518_Sarvbhut hite rata
742
( सवथभतू दहते रताुः )
19930912_0800_Garbhpat se bacho
743
( गभथपात से बचो )
19930912_1900_Utsav Ramayan Ki Samapti
744
( उत्सव‚ रामायण की सांपदत्त)
19930912_1900_Utsav Ramayan Ki Samapti
745
( उत्सव‚ रामायण की सांपदत्त )
19930913_0518_Chinmay satta parmatma ki
746
hai (दचन्मय सत्ता परमात्मा की है)
19930913_0800_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 747
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७१

19930914_0518_Parmatma ki bhukh khud ki


748
honi chahiye ( परमात्मा की भख ू खुि की होनी
चादहए )
19930914_0800_Striyo ke liye pativrat
749
dharam ( दियों के दलए पदतव्रत धमथ )
19930915_0518_Kamna ka tyag karke burai
rahit ho jaye ( कामना का त्याग करके बरु ाई रदहत हो 750
जाए )
19930915_0800_Nashvan ka aadar na kare
751
( नाशवान का आिर ना करें )
19930916_0518_Hamari purti sansar matra
nahi kar sakta hai (हमारी पदू तथ ससां ार मात्र नहीं कर 752
सकता है )
19930916_0800_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 753
19930917_0518_Kisi ko bura na samjhe kisi
ka bura na kare (दकसी को बरु ा ना समझें दकसी का 754
बरु ा ना करें )
19930917_0800_Nashvan se uncha uthe
parmatma ki prapti karen 755
( नाशवान से ऊँचा उठें परमात्मा की प्रादप्त करें )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७२

19930918_0518_Aham Brahmasmi Ahamta


756
Bani Rahegi ( अहां ब्रह्मादस्म‚ अहांता बनी रहेगी )
19930918_0800_Prapti Mein Baadha
757
(प्रादप्त में बाधा )
19930918_1330_Vidyarthiyo ke liye
758
(दवद्यादथथयों के दलए )
19930919_0518_Sharnagati Svata Siddh Hai
759
( शरणागदत स्वत: दसद्ध है )
19930919_0830_Ganesh Chaturthi Ke
760
Uplaksh Mein (गणेश चतुथी के उपलक्ष में )
19930920_0518_Tatvaadi Bane Matvaadi
761
Nahin ( तत्त्ववािी बनें ! मतवािी नहीं )
19930921_0518_Meinpan Ka Parivartan 762
( “मैंपन” का पररवतथन )
19930922_0518_Viyog hi satya hai
763
( दवयोग ही सत्य है )
19930922_0800_Hum yha ke rahne vale nahi
764
hai (हम यहाँ के रहने वाले नहीं हैं )
19930923_0518_Saatvik Karta Gita 18(26)
765
( सादत्वक कताथ‚ गीता 18 ( 26 )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७३

19930923_0830_Karna Jaanna Maanna


766
( करना‚ जानना‚ मानना )
19930924_0518_Saadhan Mein Santosh Na
767
Kare ( साधन में सन्तोष न करें )
19930924_1630_Asli unnti ( असली उन्नदत ) 768
19930925_0518_Radha Tatva Kya Hai
769
( राधा तत्त्व क्या है ? )
19930925_0830_Samay Ka Moolya
770
Panchamrit ( समय का मल्ू य, पांचामृत )
19930926_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 771
19930926_0830_Dusro ki sadbhavna ko apna
772
gun na (िसू रों की सद्भावना को अपना गणु न मानें )
19930927_0518_Samay ka savdhani se
773
upyog ( समय का सावधानी से उपयोग करें )

चातमाास 1994 के 127 प्रवचन (बीकानेि) पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19940717_0830_Manushya Jeevan Ka
774
Lakshya ( मनुष्यजीवन का लक्ष्य )
19940717_1830_ vasudev sarvam 775
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७४

( वासिु वे सवथम् )
19940719_0518_Manushya Sharir ki
Sarthakta Sarvbhoot hiteratha 776
( मनुष्य शरीर की साथथकता सवथभतू दहते रताुः)
19940719_0800_Satsang Prapti mein
Vishesh Bhagwat Kripa ( सत्सगां प्रादप्त में दवशेष 777
भगवत्कृ पा )
19940720_0518_ vasudev sarvam
778
(वासिु वे :सवथम् )
19940720_0830_Satsang ki Vilakshanta
779
( सत्सगां की दवलक्षणता )
19940721_0518_Ek Nishchay karne se
780
Laabh ( एक दनश्चय करने से लाभ )
19940721_0800_Burai Ka Tyaag
781
( बरु ाई का त्याग )
19940722_0518_Prapti Kathin Nahi
782
( प्रादप्त कदठन नहीं )
19940722_0800_Guru Kise Kahte Hain
783
( गुरु दकसे कहते हैं ?)
19940723_0518_Sugam Saadhan Sharnagati 784
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७५

( सगु म साधन – शरणागदत )


19940723_0800_Sansar Ka Viyog Nitya Hai
785
Chetavini ( सांसार का दवयोग दनत्य है - चेतावनी )
19940724_0518_Sab jag Ishwar Roop Hai
786
( सब जग ईश्वर रूप है )
19940724_0800_Grihasto ke Prati ( गृहस्थ के
787
प्रदत )
19940725_0518_Abhyas Se Mukti Nahi
788
( अभ्यास से मदु ि नहीं )
19940725_0800 sansar ka nitya yog
789
( सांसार का दनत्य योग )
19940726_0518_Gita 18 (45) गीता 18 (45) 790
19940726_0800_ vasudev sarvam ( वासिु ेव:
791
सवथम् )
19940727_0518_Sharnagati Aur Seva
792
( शरणागदत और सेवा )
19940727_0800_Bhagwat darpan Roopi
793
( भगविपथणरूपी साधन )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७६

19940728_0518_Chitrakaar Bhakt aur


Vichitrakaar Gyaani ( दचत्रकार भि और 794
दवदचत्रकार ज्ञानी )
19940728_0800_Sab Jag Ishwar Roop Hai
795
( सब जग ईश्वर रूप है )
19940729_0518_Saavdhaan Rahne Ki
796
Avashyakta (सावधान रहने की आवश्यकता
19940729_0800_Hum Bhagwan Ke Hai
797
( हम भगवान् के हैं )
19940730_0518_Karm Gyan Bhakti ka
798
Vivechan ( कमथ‚ ज्ञान‚ भदि का दववेचन )
19940730_0800_Bhaktimarg ki Visheshta
799
( भदिमागथ की दवशेषता )
19940731_0518_Sukhasakti ka Tyaag
800
( सखु ासदि का त्याग )
19940731_0800_Parivartansheel Sansaar
801
( पररवतथनशील ससां ार )
19940801_0518_Naamjap Ki Mahima
802
( नामजप की मदहमा )
19940801_0800_Bhagwan aur Prakriti 803
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७७

( भगवान् और प्रकृ दत )
19940802_0518_Manav Jeevan Mein Samay
804
ka Mahatva ( मानवजीवन में समय का महत्त्व )
19940802_0800_Kalyug mein Bhajan ki
805
Mahima ( कदलयुग में भजन की मदहमा )
19940803_0518_Hum Yahan Rahnewale
806
Nahi Hai ( हम यहाँ रहनेवाले नहीं हैं )
19940803_0800_Karmyog ka Tatva
807
(कमथयोग का तत्त्व )
19940804_0518_Pramad se Haani
808
( प्रमाि से हादन )
19940804_0800_Bhakti ki Sugamta
809
(भदि की सगु मता )
19940805_0518_Bhog Sangrah ki Iccha se
810
Hani (भोग सांग्रह की इच्िा से हादन )
19940805_0800_Bhagwan mein Apnapan
811
Aur Satsang (भगवान् में अपनापन और सत्सांग
19940806_0518_Parivar Niyojan se Hani
812
( पररवार दनयोजन से हादन )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७८

19940806_0800_Dhan ke Nash ki Chinta


Kaise Mite, Chup Saadhan ( धन के नाश की 813
दचन्ता कै से दमटे ?, चपु साधन )
19940807_0518_Sansar se Alag Hone Par
Sansar ka Gyan ( सांसार से अलग होने पर सांसार का 814
ज्ञान )
19940807_0800_Sab Ke Hit ka Bhaav
815
( सब के दहत का भाव )
19940807_1630 _Ek parmatma hi hai
816
(एक परमात्मा ही है )
19940808_0518_Samta Kaise Ho
817
( समता कै से हो ?)
19940808_0800_Tyaag se Shanti
818
( त्याग से शादन्त )
19940809_0518_Prapti Sugam Hai
819
( प्रादप्त सगु म है )
19940809_0800_Bhagwan mein Apnapan
820
( भगवान् में अपनापन )
19940810_0518_Chetavini ( चेतावनी ) 821
19940810_0800_Mahapaap se Bacho 822
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २७९

( महापाप से बचो )
19940811_0518_Gita 02(48) गीता 02 (48) 823
19940811_0800_Seva Kaise Kare
824
( सेवा कै से करें ? )
19940812_0518_ vasudev sarvam
825
( वासिु वे : सवथम)्
19940812_0800_Satya Ki Mahima
826
(सत्य की मदहमा)
19940813_0518_Sacchidaanad Tatva
827
( सदच्चिानन्ितत्त्व )
19940813_0800_Karmyog Aur Svabhav
828
Shudhi ( कमथयोग और स्वभाव शदु द्ध )
19940814_0518_Lagan Ki Aavashyakta
829
( लगन की आवश्यकता )
19940814_0800_Maanav Jeevan Ki
Saarthakta Kisme ( मानव जीवन की साथथकता 830
दकसमें ? )
19940815_0518_Satya Bhaashan Se Satya
Tatva Ki Prapti_VV ( सत्य भाषण से सत्य तत्त्व की 831
प्रादप्त )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८०

19940815_0800_Samta Se Tatva Prapti


832
( समता से तत्त्व प्रादप्त )
19940816_0518_Ahamta Ka Tyag
833
( अहांता का त्याग )
19940816_0800_Hai Roop Parmatma
834
( है रूप परमात्मा )
19940817_0518_Kartritva Rahit Tatva Ka
835
Anubhav (कतृथत्व रदहत तत्त्व का अनुभव)
19940817_0800_Kartavya Paalan Ki Mahatta
836
( कतथव्य पालन की महत्ता )
19940818_0518_Chup Saadhan ( चपु साधन ) 837
19940818_0800_Prapti Vartamaan Ki Vastu
838
Hai ( प्रादप्त वतथमान की वस्तु है )
19940819_0518_Swaroop Aham Rahit Hai
839
( स्वरूप अहम् रदहत है )
19940819_0800_Prapti Sahaj Hai Chetavini
840
( प्रादप्त सहज है - चेतावनी )
19940820_0518_Ahamta Ka Tyag
841
( अहतां ा का त्याग )
19940820_0800_Chetavini ( चेतावनी ) 842
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८१

19940821_0518_Prapti Mein Baadha Satsang


843
Ka Anaadar ( प्रादप्त में बाधा - सत्सांग का अनािर )
19940821_0800_Lagan Ki Aavashyakta
844
( लगन की आवश्यकता )
19940822_0518_Mamta Ka Tyag
845
( ममता का त्याग )
19940822_0518_Mamta Ka Tyag
846
( ममता का त्याग )
19940823_0518_Gita 02 (72) गीता 02 (72) 847
19940823_0800_Tyag Ki Mahima
848
( त्याग की मदहमा )
19940824_0518_Beimani Ka Tyag
849
(बेइमानी का त्याग)
19940824_0800_VS Bhagwaan Ki Poornata
850
( भगवान् की पूणथता )
19940825_0518_Manushya Sharir Ka
851
Uddeshya ( मनष्ु यशरीर का उद्देश्य )
19940825_0800_Tatva Prapti Mein Anta
Karan Shuddhi Aavashyak Nahin 852
( तत्त्व प्रादप्त में अन्त:करण शदु द्ध आवश्यक नहीं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८२

19940826_0518_Paapo Se Bacho(पापों से बचो) 853


19940826_0800_Sharnagati ( शरणागदत ) 854
19940827_0518_Ramayan Path Ki Mahima
855
( रामायण पाठ की मदहमा )
19940827_0800_Ramayan Path Ki Mahima
856
( रामायण पाठ की मदहमा )
19940828_0518_Chetavini ( चेतावनी ) 857
19940828_0800_Sakal Shok Daayak
858
Abhimaana ( सकल शोक िायक अदभमाना )
19940828_1600_Sita Ram Milan Vivah
859
Ramayan ( सीता राम दमलन दववाह रामायण )
19940829_0518_Bhagwan Naam Mahima
860
( भगवन्नाम मदहमा )
19940829_0800 Sakal Shok Daayak
Abhimaana Ramayan 861
( सकल शोक िायक अदभमाना )
19940829_1600_Path Ka Avsar Kripa Se
862
Ramayan ( पाठ का अवसर कृ पा से – रामायण)
19940830_0518_Bhagwaan ke Mein ki
863
Apnapan ( भगवान् के नाम की मदहमा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८३

19940830_0800_Bhagwaan Ka Madhurya
864
Chetavini ( भगवान् का माधयु थ – चेतावनी )
19940830_1600_ Kisi Ko Dukh Na De
865
Ramayan ( दकसी को िुःु ख न िें –रामायण )
19940831_0518_Sukhi Dukhi Hone Se
866
Bandhan ( सख ु ी िखु ी होने से बन्धन )
19940831_0800_Sukhi Dukhi Hone Se
867
Bandhan ( सख ु ी िखु ी होने से बन्धन)
19940901_0518 vasudev sarvam
868
( वासिु वे : सवथम् )
19940901_0518_ kripa ka aashray
869
( कृ पा का आश्रय )
19940902_0518_Teen Yog Bhakti Ki
870
Sugamta ( तीन योग, भदि की सगु मता )
19940902_0800_Chetavini Samay
871
( चेतावनी - समय )
19940903_0518_Apni Sanskriti Ki Raksha
872
Karo ( अपनी सस्ां कृ दत की रक्षा करो )
19940903_0800_Kaliyug Se Bacho
873
( कदलयुग से बचो)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८४

19940904_0518_Sacchi Baat Ko Maan Le


874
( सच्ची बात को मान लें )
19940904_0800_Gita Mein Bhakti Ki
875
Mahima ( गीता में भदि की मदहमा )
19940905_0518_Laukik Aur Alaukik
876
Saadhana ( लौदकक और अलौदकक साधन )
19940905_0800_Bhagwaan Mein Apnapan
877
( भगवान् में अपनापन )
19940906_0518_Hamara Swaroop Vivek
878
Aur Vishwaas ( हमारा स्वरुप‚ दववेक और दवश्वास )
19940906_0800_Bhagwaan Ka Aashray
879
( भगवान् का आश्रय )
19940906_1500_Sukhi Dukhi Hona Bandhan
880
( सखु ी िख
ु ी होना बन्धन )
19940907_0518_Desh Ki Vartamaan Dashaa
881
( िेश की वतथमान िशा )
19940907_0800_Bhagwaan Ki Vilakshan
882
Kripaluta ( भगवान् की दवलक्षण कृ पालतु ा )
19940908_0518_Apne Karmo Se Sabka Hit 883
Karna ( अपने कमों से सबका दहत करना )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८५

19940908_0800_Sansar Apna Nahin Hai


884
( सांसार अपना नहीं है )
19940909_0518_Sagun Aur Nirgun
885
Upaasana ( सगुण और दनगथणु उपासना )
19940909_0800_Ganeshji Aur Maa Ki
Mahima, Grihastho Ke Prati ( गणेशजी और माँ 886
की मदहमा‚ गृहस्थों के प्रदत चेतावनी )
19940910_0518_Chetavini ( चेतावनी ) 887
19940910_0800_Gita 18(45) गीता 18 (45) 888
19940911_0518_Manushya Sharir Saadhan
889
Yoni Hai ( मनुष्यशरीर साधन योदन है)
19940911_0800_Prapti Ki Sugamta
890
( प्रादप्त की सगु मता )
19940912_0518_Prapti Mein Deri Ka Kaaran
891
( प्रादप्त में िेरी का कारण )
19940912_0800_Kripa Aur Smriti Katha
892
Karna Ki (कृ पा और स्मृदत- कथा कणथ की)
19940913_0518_Tatva Nirpeksh Hai
893
( तत्त्व दनरपेक्ष है )
19940913_0800_Nashe Se Haani (नशे से हादन) 894
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८६

19940914_0518_Saadhu Ko Kaisa Hona


895
Chahiye ( साधु को कै सा होना चादहये ? )
19940914_0800_Chetavini ( चेतावनी ) 896
19940914_1245_Vartamaan Dashaa Aur
897
Garbhpaat ( वतथमान िशा और गभथपात )
19940915_0518_Bhagwaan Ke Darshan
898
( भगवान् के िशथन )
19940915_1600 _ sharnagati ( शरणागदत ) 899
19940916_0518_Saadhan Ki Saar Baaten
900
( साधन की सार बातें)

चातमाास 1995 के 127 प्रवचन (जयपि) पिम श्रद्धेय


स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19950713_0518_Chup Saadhan ( चपु साधन ) 901
19950713_0830_Svabhaav Samaaj Sudhar
902
(स्वभाव,समाज सधु ार )
19950714_0518_Sharir Se Asangata
903
( शरीर से असांगता )
19950714_0830_Vilakshan Kripa
904
( दवलक्षण कृ पा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८७

19950715_0518_Dukh Ka Kaaran Doosra


905
Nahin ( िुःु ख का कारण िसू रा नहीं )
19950715_0830_Kotin Tyaktva Harim
906
Smaret ( कोदटन्त्यक्त्वा हररांस्मरे त् )
19950716_0518_Nitya Prapt Ki Prapti
907
( दनत्य प्राप्त की प्रादप्त )
19950716_0830_Sanyog Mein Viyog Ka
908
Anubhav ( सांयोग में दवयोग का अनुभव )
19950717_0518_Nirdoshata Svata Siddh Hai
909
( दनिोषता स्वतुः दसद्ध है )
19950717_0830_Baalakon Ki Sudhar Ki
910
Aavashyakta ( बालकों की सधु ार की आवश्यकता )
19950718_0518_Maane Hue Sambandh Ke
911
Tyag Se Mukti ( माने हुए सम्बन्ध के त्याग से मदु ि )
19950718_0830_Koi Bhi Bura Nahin
912
( कोई भी बरु ा नहीं )
19950719_0518_Seva Se Kalyan
913
( सेवा से कल्याण )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८८

19950719_0830_Burai Ka Tyag Karo


Bhalaai Svata Hogi ( बरु ाई का त्याग करो ! भलाई 914
स्वत: होगी )
19950720_0518_Prapt Paristhiti Ke
Sadupyog Se Kalyan ( प्राप्त पररदस्थदत के सिपु योग 915
से कल्याण )
19950720_0830_Kalyan Ki Sugamta
916
( कल्याण की सगु मता )
19950721_0518_Badalnewale Ke Saath Mat
917
Milo (बिलनेवाले के साथ मत दमलो )
19950721_0830_Vyavahaar Mein Parmarth
918
( व्यवहार में परमाथथ )
19950722_0518_Sukh Dukh Mein Samta
919
( सखु िुःु ख में समता )
19950722_0830_Satsang Ka vilakshan
Laabh Katha Nal Damyanti ( सत्सांग से दवलक्षण 920
लाभ कथा नल - िमयांती )
19950723_0518_Naashwaan Ki Seva Se
Avinaashi Ki Prapti (नाशवान की सेवा से 921
अदवनाशी की प्रादप्त )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २८९

19950723_0830 Paapo se Bacho Katha Nal


922
Damyanti (पापों से बचो, कथा नलिमयांती)
19950724_0518_Deh Aur Dehi Ka Vivek
923
( िेह और िेही का दववेक )
19950724_0830_Kartavya Paalan Se Kalyan
Katha Draupadi Cheer Haran ( कतथव्य पालन से 924
कल्याण - कथा द्रौपिी चीर हरण )
19950725_0518_Buddhi Ki Stirtha Ka
925
Mahatva_VV ( बदु द्ध की दस्थरता का महत्त्व )
19950725_0830_Prarabdh Aur Purusharth
926
( प्रारब्ध और परुु षाथथ )
19950726_0518_Man Ki Chanchalta Aur
927
Kaamna ( मन की चचां लता और कामना )
19950726_0830_Prarabdh Aur Purusharth
928
Karma Rahasya ( प्रारब्ध और परुु षाथथ, कमथ रहस्य )
19950727_0518_Naashwaan Aur Dukhaalay
929
Sansar ( नाशवान और ि:ु खालय ससां ार )
19950727_0830_Kaamna Tyag Ki
930
Aavashyakta ( कामना त्याग की आवश्यकता )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९०

19950728_0518_Svarth Buddhi Aur Bhog


Buddhi Ka Tyag ( स्वाथथ बदु द्ध और भोग बदु द्ध का 931
त्याग )
19950728_0830_Doosro Ko Sukh Pahuchane
932
Se Laabh ( िसू रों को सख ु पहँचाने से लाभ )
19950728_1645_Bhagwan Se Apnapan
933
( भगवान् से अपनापन )
19950729_0518_Vaastavik Sukh Kismein
934
Hai ( वास्तदवक सख ु दकसमें है ?)
19950729_0830_Manushya Sharir Kisliye
935
Mila Hai ( मनष्ु यशरीर दकस दलए दमला है ?)
19950729_1700_vasudev sarvam
936
( वासिु वे : सवथम् )
19950730_0518_Sab Kuch Prabhu Ka Hai
937
( सब कुि प्रभु का है )
19950730_0830_Grihastho Ke Prati
938
( गृहस्थों के प्रदत )
19950730_1700_Chetavini ( चेतावनी ) 939
19950731_0518_Sansar Mein Apnapan Ka
940
Tyag ( सांसार में अपनेपन का त्याग )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९१

19950731_0830_Prem Aur Seva (प्रेम और सेवा) 941


19950731_1700_Ek bhagvan me lag jaye
942
( एक भगवान् में लग जाएँ )
19950801_0518_Saadhakon Ke Prati
943
( साधकों के प्रदत )
19950801_0830_Chetavini Poorvak Naam
Jap Ke Liye Prerna ( चेतावनी पवू थक नाम जप के 944
दलये प्रेरणा )
19950801_1700_Chetavini Poorvak Naam
Jap Ke Liye Prerna ( चेतावनी पवू थक नाम जप के 945
दलये प्रेरणा )
19950802_0518_Svarth Aur Bhog Buddhi
946
Ka Tyag (स्वाथथ बदु द्ध और भोग बदु द्ध का त्याग )
19950802_0830_Prem Aur Kripa
947
( प्रेम और कृ पा )
19950802_1700_Prem Ki Mahima
948
( प्रेम की मदहमा )
19950803_0518_Prapti Ki Sugamta
949
( प्रादप्त की सगु मता )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९२

19950803_0830_Satsang Sunne Ki Vidya


Karma Yog Ka Tatva ( सत्सगां सनु ने की दवद्या, कमथ 950
योग का तत्त्व )
19950803_1700_Bhagwan Ka Nitya
951
Sambandh ( भगवान् का दनत्य सम्बन्ध )
19950804_0518_Main Ki Khoj ( “मैं” की खोज) 952
19950804_0830_Kaamna Se Haani Aur Tyag
953
Se Laabh_VV ( कामना से हादन और त्याग से लाभ )
19950804_1700_Sharnagati ( शरणागदत ) 954
19950805_0518_Antakaaleen Chintan Aur
Mukti Ka Upay (अन्तकालीन दचन्तन और मदु ि का 955
उपाय )
19950805_0830_Jadta Aur Chinmayata
956
(जड़ता और दचन्मयता )
19950805_1700_Bhagwan Shri Krishna Ki
957
Mahima ( भगवान् श्रीकृ ष्ण की मदहमा )
19950806_0518_Main Kya Hai ( “मैं” क्या है ?) 958
19950806_0830_Gyan Aur Prem
959
( ज्ञान और प्रेम )
19950806_1700_Prapti Kripa Saadhya Hai 960
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९३

( प्रादप्त कृ पा साध्य है )
19950807_0518_Avasthao Se Rahit Swaroop
961
( अवस्थाओ ां से रदहत स्वरूप )
19950807_0830_Pratikoolta Se Laabh
962
( प्रदतकूलता से लाभ )
19950807_1700_Manushya Sharir Bhagwat
963
Kripa Bhaagwat ( मनष्ु यशरीर भगवत्कृ पा- भागवत )
19950808_0518_Sharir Se Algaav Ka
964
Anubhav ( शरीर से अलगाव का अनुभव )
19950808_0830_Kaamna Se Haani Tyag Se
965
Laabh (कामना से हादन, त्याग से लाभ)
19950808_1700_Barsaat Mein Kirtan
966
(बरसात में कीतथन)
19950809_0518_Gyan Karma Bhakti Teen
Yog Ke Adhikari ( ज्ञान, कमथ, भदि तीन योग के 967
अदधकारी )
19950809_0830_Apni Aadat Apne Aap Ko
Sudharni Padegi (अपनी आित अपने आप को 968
सधु ारनी पड़ेगी )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९४

19950809_1700_Krishna Guru Hai Isht Par


969
Vishwas Bhaagwat ( कृ ष्ण गुरु है –इि पर दवश्वास )
19950810_0518_Apne Anubhav Ka Aadar
970
( अपने अनुभव का आिर )
19950810_0830_Jo Nirdosh Hai Wohi Bhay
971
Rahit (जो दनिोष है वो ही भय रदहत है )
19950810_1700_Kripa Se Bhaagwat Katha
972
Pranam( कृ पा से भागवत कथा –प्रणाम)्
19950811_0518_Sansar Ja Raha Hai
973
( सांसार जा रहा है )
19950811_0830_Naashwaan Ko Mahatva
974
Dene Se Haani ( नाशवान को महत्त्व िेने से हादन )
19950811_1700_Ashudh Man Ka Kaaran
Ashuddh Aahaar ( अशद्ध ु मन का कारण अशुद्ध 975
आहार )
19950812_0518_Hum Yahaa Ke Nahin Hai
976
( हम यहाँ के नहीं हैं )
19950812_0830_Hum To Bhagwan Ke Hi
977
Hai ( हम तो भगवान् के हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९५

19950812_1330_Manushya Sharir Ki
978
Mahima ( मनुष्यशरीर की मदहमा )
19950813_0518_Vivek Ke Sadupyog Ki
979
Mahima ( दववेक के सिपु योग की मदहमा )
19950813_0830_Sarvabhoot Hita Rata
980
( सवथभतु दहते रताुः)
19950813_1600_Chetavini ( चेतावनी ) 981
19950814_0518_Nahin Mein Hai Buddhi
982
( नहीं में है बदु द्ध )
19950814_0830_Aavashyakta Aur Icchha
983
( आवश्यकता और इच्िा )
19950815_0518_Lene Ki Iccha Bandhan Ka
984
Kaaran ( लेने की इच्िा बन्धन का कारण )
19950815_0830_Nishedhatmak Saadhan Ki
985
Mahatta (दनषेधात्मक साधन की महत्ता )
19950815_1730_Bhagwan Ke Charitro Ka
986
Mahatava ( भगवान् के चररत्रों का महत्त्व )
19950816_0518_Gita 02 (16) गीता 02 (16) 987
19950816_0830_Prem Ki Ananyata Ki
988
Aavashyakta ( प्रेम की अनन्यता की आवश्यकता )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९६

19950816_1730_Sharnagati ( शरणागदत ) 989


19950817_0518_Apne Kalyan Mein Svayam
990
Ki Mukhyata ( अपने कल्याण में स्वयां की मख्ु यता )
19950817_0830_Mukti Yog Svata Siddh
Prem Jagrit Hota Hai ( मदु ि योग स्वत: दसद्ध प्रेम 991
जाग्रत होता है )
19950817_1730_Chetavini ( चेतावनी ) 992
19950818_0518_Chetavini ( चेतावनी ) 993
19950818_0830_Bhakti Yog Ki Shresthta
994
( भदि योग की श्रेष्ठता )
19950818_1700_Garbhpaat Chetavini
995
Ramayan ( गभथपात – चेतावनी – रामायण)
19950818_2315_Bhagwan Prem Ke Bhookhe
996
Hai ( भगवान प्रेम के भख ू े हैं )
19950819_0518_Sharir Apne Liye Nahin Hai
997
( शरीर अपने दलए नहीं है )
19950819_0800_Sab Bhagwan Ka Hai-
Nandotsav Bhajan ( सब भगवान का है – नन्िोत्सव 998
भजन )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९७

19950819_0800_Sab Bhagwan Ka Hai-


999
Nandotsav (सब भगवान का है –नन्िोत्सव)
19950819_1700_Bharat Charitra Kripa
1000
Ramayan (भरत-चररत्र, कृ पा, रामायण )
19950820_0518_vasudev sarvam
1001
( वासिु वे : सवथम् )
19950820_0518_vasudev sarvam
1002
(वासिु वे : सवथम)्
19950820_0830_vasudev sarvam
1003
( वासिु वे : सवथम् )
19950820_1700_Taapas Prasang Ramayan
1004
(तापस प्रसगां –रामायण )
19950821_0518_Sarvabhoot Hite Rata
1005
( सवथभतू दहते रताुः)
19950821_0830_Saadhya Ek Saadhan Anek
1006
( साध्य एक, साधन अनेक )
19950821_1700_Dhol Gavaar Ramayan
1007
(िोल – गँवार –रामायण )
19950822_0518_Manushya Sharir Ki
1008
Mahima ( मनुष्यशरीर की मदहमा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९८

19950822_0830_Merapan Ke Tyag Se Mukti


1009
( “मेरेपन” के त्याग से मदु ि )
19950822_1700_Ayodhya Aagaman
1010
Ramayan ( अयोध्या आगमन –रामायण )
19950823_0518_Teeno Yog Margo Se Mukti
1011
( तीनों योग मागों से मदु ि )
19950823_0830_Bhagwan Ki Ore Gati
1012
( भगवान् की ओर गदत )
19950823_1700_Rajyabhishek Ramayan
Bhagwan Se Apnapan ( राज्यादभषेक 1013
रामायण,भगवान से अपनापन )
19950824_0518_Sabke Hit Mein Apna Hit
1014
( सबके दहत में अपना दहत )
19950824_0830_Bhagwat darpan Ki Mahima
1015
( भगविपथण की मदहमा )
19950824_1700_Saar Baat Bhagwan Apna
1016
Sambandh ( सार बात – अपना सम्बन्ध )
19950825_0518_Bal Vivek Aur Vishwaas
1017
( बल, दववेक और दवश्वास )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी २९९

19950825_0830_Bhog Aur Sangrah Se Haani


1018
( भोग और सांग्रह से हादन )
19950826_0518_Dukh Ka Prabhaav
1019
( िुःु ख का प्रभाव )
19950826_0830_Saadhakon Ke Prati
1020
( साधकों के प्रदत )
19950827_0518_Hindu Sanskriti Ki
Visheshta Varna Maala ( दहांिू सांस्कृ दत की 1021
दवशेषता वणथ माला )
19950827_0830_Saadhakon Ke Prati
1022
( साधकों के प्रदत )
19950828_0518_Pratikoolta Mein Aanand
1023
( प्रदतकूलता में आनन्ि )
19950828_0830_Tyag Ki Mahima
1024
( त्याग की मदहमा)
19950828_1600_Nishedhatmak Saadhan Ki
1025
Mukhyata (दनषेधात्मक साधन की मख्ु यता)
19950829_0518_Sharnagati Aur Kripa
1026
( शरणागदत और कृ पा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३००

19950829_0830_Granthi Bedhan Ka Sugam


1027
Upay ( ग्रांदथ भेिन का सगु म उपाय )
19950830_0518_Ahamta Mamta Ka Tyag
1028
(अहांता ममता का त्याग )
19950830_0830_Chetavini Parivar Niyojan
1029
Se Haani ( चेतावनी- पररवार दनयोजन से हादन )
19950831_0518_Apna Kuch Nahin Sab
Bhagwan Ka Hai ( अपना कुि नहीं, सब भगवान् 1030
का है )
19950831_0830_Desh Ka Naitik Patan
Vartamaam Dasha ( िेश का नैदतक पतन — 1031
वतथमान िशा )
19950901_0518_Karmayog Se Mukti
1032
( कमथयोग से मदु ि )
19950901_0830_Kripa Ki Satya Ghatnaae
1033
(कृ पा की सत्य घटनायें )
19950901_1600_Vidyarthiyon Ke Prati
1034
(दवद्याथीयों के प्रदत )
19950901_1830_Naam Mahima ( नाम मदहमा ) 1035
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०१

19950902_0518_Sab Ke Hit Ka Bhaav


Sarvabhoot Hite Rata ( सब के दहत का भाव 1036
सवथभतू दहते रताुः )
19950902_0830_Bhagwan Aur Unki Bhakti
1037
( भगवान् और उनकी भदि )
19950902_1600_Kaidiyon Ke Prati
1038
( कै दियों के प्रदत )
19950903_0518_Manushya Jeevan Ki Safalta
1039
( मनुष्य जीवन की सफलता )
19950903_0830_Vaastavik Badappan
1040
( वास्तदवक बड़प्पन )
19950903_1600_Chetavini ( चेतावनी ) 1041
19950904_0518_Bhagwan Aur Unki Kripa
1042
( भगवान् और उनकी कृ पा )
19950904_0830_Ras Buddhi Ki Nivritti Aur
1043
Tatva Gyan ( रस बदु द्ध की दनवृदत्त और तत्त्व ज्ञान )
19950905_0518_Karan Nirpeksh Aur Karan
1044
Rahit ( करण दनरपेक्ष और करण रदहत )
19950905_0830_Vartamaan Dasha
1045
( वतथमान िशा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०२

19950906_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 1046


19950906_0830_Sharnagati Aur Sanyam
1047
( शरणागदत और सांयम )

चातमाास 1996 के 151 प्रवचन (भीनासि) – पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19960723_0830_Hum yha rahne vale nahi
1048
hai ( हम यहाँ रहने वाले नहीं हैं )
19960723_1500_Manushya shrir ki durlabhta
1049
( मनुष्यशरीर की िल ु थभता )
19960723_2000_Bhagwan Khulla Dhan
1050
( भगवान् खल्ु ला धन )
19960724_0518_Shrir sansar se hamara
sambandh nahi hai ( शरीर ससां ार से हमारा सम्बन्ध 1051
नहीं है )
19960724_0830_Chetavini ( चेतावनी ) 1052
19960724_1600_Sharnagati ( शरणागदत ) 1053
19960724_2000_Sharnagati ( शरणागदत ) 1054
19960725_0518_Nahin Mein Hai Ki Satta
1055
( नहीं में है की सत्ता )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०३

19960725_0830_Svabhaav Sudhar
1056
( स्वभाव सधु ार )
19960726_0518_Buraai Ka Tyag
1057
( बरु ाई का त्याग )
19960726_0830_Chetavani ( चेतावनी ) 1058
19960726_1600_Garbhpaat Mahapaap
1059
( गभथपात महापाप )
19960727_0518_Burai ka tyag( बरु ाई का त्याग ) 1060
19960727_0830_ Chaturmas me aavshyak
1061
palniy niyam( चातुमाथस में आवश्यक पालनीय दनयम)
19960728_0518_Gita ke anusar yog ki
1062
paribhasha (गीता के अनसु ार योग की पररभाषा)
19960728_0830_Parmatma prapti -nitya
1063
prapt ki prapti ( परमात्म- प्रादप्त दनत्यप्राप्त की प्रादप्त )
19960729_0518_Sansar ka nitya viyog
1064
( सांसार का दनत्य दवयोग )
19960729_0830_Parmatma prapti ke liye
svayam prayatanshil ho 1065
( परमात्मा प्रादप्त के दलए स्वयां प्रयत्नशील हो )
19960730_0518_Sahajaavastha Svatah Hai 1066
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०४

( सहजावस्था स्वत: है )
19960730_0830_Guru Tatva ( गरुु तत्त्व ) 1067
19960731_0518_Sukh Iccha Ka Tyag
1068
( सखु इच्िा का त्याग )
19960731_0830_Sukh Iccha Ka Tyag
1069
( सखु इच्िा का त्याग )
19960801_0518_Parmatma Svata Prapt Hai
1070
( परमात्मा स्वत: प्राप्त है )
19960801_0830_Parmatma Svata Prapt Hai
1071
( परमात्मा स्वत: प्राप्त है )
19960802_0518_Nishidh Karmo Ka Tyag
1072
(दनदषद्ध कमों का त्याग )
19960802_0830_Iccha Ka Tyag
1073
( इच्िा का त्याग )
19960803_0518_Prapt parishthiti ka
1074
sadupyog ( प्राप्त पररदस्थदत का सिपु योग )
19960803_0830_Par Dukh Dukh Par Sukh
1075
Sukh ( पर िुःु ख िुःु ख पर सख ु सख
ु िेखे )
19960804_0518_Paradhinta ka tyag
1076
( पराधीनता का त्याग )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०५

19960804_0830_Nishidhta Ka Tyag
1077
( दनदष)ता का त्याग )
19960804_1630_Kshatriyon Ki Visheshta
1078
( क्षदत्रयों की दवशेषता )
19960805_0518_Tyag Aur Seva
1079
( त्याग और सेवा )
19960805_0830_Kaamna Ka Tyag
1080
( कामना का त्याग
19960806_0518_Sharir Main Nahin Mera 1081
Nahin ( शरीर “मैं” नहीं “मेरा” नहीं )
19960806_0830_Gabhpaat Ka Nishedh Ghar
1082
Sudhar ( गभथपात का दनषेध, घर सधु ार )
19960807_0518_Sharir Main Nahin Mere
1083
Liye Nahin ( शरीर “मैं” नहीं “मेरे” दलए नहीं)
19960807_0830_Vivek Virodhi Sambandh
Ke Tyag Ki Aavashyakta ( दववेक दवरोधी सम्बन्ध 1084
के त्याग की आवश्यकता )
19960808_0518_Tyag Ki Aavashyakta
1085
( त्याग की आवश्यकता )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०६

19960808_0830_Sharir Main Nahin Mera


Nahin Mere Liye Nahin ( शरीर “मैं” नहीं, “मेरा” 1086
नहीं, “मेरे” दलए नहीं )
19960809_0518_Sharir Main Nahin Mera
Nahin Mere Liye Nahin ( शरीर “मैं” नहीं, ”मेरा” 1087
नहीं, “मेरे” दलए नहीं )
19960809_0830_Satsang Aur Vyavahaar
1088
( सत्सांग और व्यवहार )
19960810_0518_Sharir sansar se sambndh
1089
vichhed (शरीर सांसार से सांबांध दवच्िे ि)
19960810_0830_Sharir mai nahi mera nahi
1090
( शरीर “मैं” नहीं, “मेरा” नहीं )
19960811_0518__Sharir Main Nahin Mera
Nahin Mere Liye (शरीर “मैं” नहीं, “मेरा” नहीं, मेरे 1091
दलए नहीं )
19960811_0800_Samaaj Sudhar( समाज सधु ार ) 1092
19960812_0518_Vyavhar me ekta asambhav
1093
( व्यवहार में एकता असभां व )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०७

19960812_0830_Akele Mein Rehne Ka


Svabhaav Banaao ( अके ले में रहने का स्वभाव 1094
बनाओ )
19960813_0518_Seva Dvaara Aasakti Ka
1095
Tyag ( सेवा द्वारा आसदि का त्याग )
19960813_0830_Gochar Bhoomi Raksha
1096
Hetu ( गोचर भदू म की रक्षा हेतु )
19960814_0518_Hum Bhagwan Ke Hai
Bhagwan Hamare Hai ( हम भगवान् के हैं भगवान् 1097
हमारे है )
19960814_0830_ guru tatv ( गरुु तत्त्व ) 1098
19960815_0518_Vasudev sarvam
1099
( वासिु वे : सवथम् )
19960815_0830_Utkrishth Abhilasha Ki
Mahima Mahabharat (उत्कृ ष्ठ अदभलाषा की 1100
मदहमा— महाभारत कथा )
19960816_0518_Prabhu Apne Hai
1101
( प्रभु अपने है )
19960816_0830_Bhagwan Ki Dayaaluta
1102
( भगवान् की ियालतु ा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०८

19960817_0518_Sarvabhoot Hite Rata


1103
( सवथभतू दहते रताुः )
19960817_0830_ Seva or bhajan me
manushya jivan ki sarthkta 1104
( सेवा और भजन में मनुष्य जीवन की साथथकता )
19960818_0518_Sarvabhoot Hite Rata
1105
( सवथभतू दहते रताुः )
19960818_0800_Karmayog Se Kalyan
1106
( कमथयोग से कल्याण )
19960819_0518_Nahin Miein Hai Buddhi
1107
( नहीं में है बदु द्ध )
19960819_0830_Ahamta parivartan se
sadhan me unnati ( अहतां ा पररवतथन से साधन में 1108
उन्नदत )
19960820_0518_Chaahna Tyag Ka Mahatva
1109
( चाहना का त्याग )
19960820_0800_Tyag Ki Mahima
1110
( त्याग की मदहमा)
19960821_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 1111
19960821_0800_Tulsidasji Ka Charitra 1112
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३०९

( तलु सीिासजी का चररत्र )


19960822_0518_Vasudev sarvam
1113
( वासिु वे : सवथम् )
19960822_0830_Sankhyayog Ram Charitra
1114
( साांख्ययोग - राम चररत्र )
19960823_0518_Gita 15 (07) गीता 15 (07) 1115
19960823_0830_Chetavini ( चेतावनी ) 1116
19960824_0518_Sharir Main Nahin Mera
Nahin Mere Liye Nahin ( शरीर “मैं” नहीं, “मेरा” 1117
नहीं, “मेरे” दलए नहीं )
19960824_0830_Mahabharat Ki Katha
1118
( महाभारत की कथा )
19960825_0518_Jaanewala Ko Pakadna
Bandhan Chodna Mukti 1119
( जानेवाले को पकड़ना,बन्धन िोड़ना मदु ि)
19960825_0830_Manushya Sharir Ki
1120
Mahima ( मनुष्यशरीर की मदहमा )
19960826_0518_Viyog Nitya Hai
1121
( दवयोग दनत्य है )
19960826_0800_Seva Ki Mahima 1122
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१०

( सेवा की मदहमा )
19960827_0518_Padarth Aur Kriya
1123
( पिाथथ और दिया )
19960827_0830_Chetavini ( चेतावनी ) 1124
19960828_0518_Sansar Hamare Liye Nahin
1125
Hai ( सांसार हमारे दलए नहीं है )
19960828_0800_Kaamna Ka Tyag
1126
( कामना का त्याग )
19960829_0518_Sarvabhoot Hite Rata
1127
( सवथभतू दहते रताुः )
19960829_0830_Prapti Ki Sugamta Aur
1128
Prerna ( प्रादप्त की सगु मता और प्रेरणा )
19960830_0518_Sansar Ki Satta Nahin Hai
1129
( ससां ार की सत्ता नहीं है )
19960831_0518_Sab Kuch Bhagwan Ka Hai
1130
( सब कुि भगवान् का है )
19960831_0830_Main Nahin Mera Nahin
Mere Liye Nahin ( “मैं” नहीं, “मेरा” नहीं, “मेरे” 1131
दलए नहीं )
19960901_0518_Parmatma Ki Shresthta 1132
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३११

( परमात्मा की श्रेष्ठता ).
19960901_0830_Aaj Kirtan Kare
1133
( आज कीतथन करें )
19960902_0518_Viyog Nitya Hai
1134
( दवयोग दनत्य है )
19960902_0830_Sanyog Viyog
1135
( सयां ोग - दवयोग )
19960902_1600)_Vivek ke sadupyog ki
1136
mahima hai (दववेक के सिपु योग की मदहमा है)
19960903_0518_Sharir Main Nahin Mera
Nahin Mere Liye Nahin ( शरीर “मैं” नहीं, “मेरा” 1137
नहीं, “मेरे” दलए नहीं )
19960904_0518_Saadhan Mein Lagne Ke
Vishay Chetavini ( साधन में लगने के दवषय — 1138
चेतावनी )
19960904_0830_Jaati Bhed Ki Saarthakta
1139
(जादत भेि की साथथकता)
19960905_0518_Chetavini ( चेतावनी ) 1140
19960905_0830_Vair Aur Virodh Mein
1141
Antar ( वैर और दवरोध में अन्तर )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१२

19960905_2230_Garbhpaat Aur Sakshartaa


1142
Ke Vishay (गभथपात और साक्षरता के दवषय में )
19960906_0518_Viyog Nitya Hai
1143
( दवयोग दनत्य है )
19960906_0830_Garbhpaat Aur Vyasano Se
Bachne Ki Prerna ( गभथपात और व्यसनों से बचने 1144
की प्रेरणा )
19960907_0518_Kisi Ko Bura Na Samjhe
1145
( दकसी को बरु ा न समझें )
19960907_1530_Vidyarthiyon Ke Prati
1146
(दवद्यादथथयों के प्रदत )
19960908_0518_Sharir Se Sambandh Nahin
1147
( शरीर से सम्बन्ध नहीं )
19960908_0830_Jadta Dvara Prapti Nahin
1148
Hoti( जड़ता द्वारा प्रादप्त नहीं होती )
19960908_1530_Vidyarthiyon Ke Prati
1149
(दवद्यादथथयों के प्रदत )
19960909_0518_Jadta Ke Tyag Se Prapti
1150
( जड़ता के त्याग से प्रादप्त )
19960909_0830_Murti Pooja ( मदू तथ पजू ा ) 1151
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१३

19960909_1600_Nyayyukt Kartavya Paalan


1152
( न्याययुि कतथव्य पालन )
19960910_0518_Main Nahin Mera Nahin
Mere Liye Nahin (“मैं” नहीं, “मेरा” नहीं, “मेरे” 1153
दलए नहीं )
19960910_0830_Sharir Main Nahin Hoon
1154
( शरीर मै नहीं हँ )
19960910_1530_Bhagvan ko bhagvan ka
hokar hi jana ja sakta hai ( भगवान् को भगवान् का 1155
होकर ही जाना जा सकता है )
19960910_1600_Saksharta Abhiyaan
1156
( साक्षरता अदभयान )
19960911_0518_Nirvikalp Avastha Aur
Bodh Ki Sugamta ( दनदवथकल्प अवस्था और बोध 1157
की सगु मता )
19960911_0830_Gyanyog ( ज्ञानयोग ) 1158
19960911_1400_Baalikaao Ke Prati
1159
( बालकों के प्रदत )
19960912_0518_Prapti Mein Iccha Ki
1160
Aavashyakta ( प्रादप्त में इच्िा की आवश्यकता )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१४

19960912_0830_Bhagwan Ki Dayaaluta
1161
( भगवान् की ियालतु ा )
19960913_0518_Sharir Aur Sansar Se Mera
1162
Sambandh ( शरीर और सांसार से मेरा सम्बन्ध नहीं )
19960913_0800_Mahapurusho Ke
Vyavahaar Mein Asamaanta Kyon ( महापरुु षों 1163
के व्यवहार में असमानता क्यों ? )
19960914_0518_Viibhuti Yog ( दवभदू त योग ) 1164
19960914_0800_Vishayon Ke Tyag Ki
Prerna Abhilasha Se Prapti 1165
( दवषयों के त्याग की प्रेरणा, अदभलाषा से प्रादप्त )
19960914_1600_Murti Puja Ramayan
1166
( मदू तथ पजू ा - रामायण )
19960915_0518_Sukhi Dukhi Hona Hi
1167
Bandhan ( सख ु ी ि:ु खी होना ही बन्धन )
19960915_0800_Gochar Bhoomi Ki Raksha
1168
Hetu ( गोचर भदू म की रक्षा हेतु )
19960915_1600_Garbhpaat Ke Vishay Mein
1169
( गभथपात के दवषय में )
19960915_1600_Parivar Niyojan 1170
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१५

( पररवार दनयोजन)
19960916_0518_vasudev sarvam
1171
( वासिु वे : सवथम् )
19960916_0800_Saadhako Ko Nirdosh Hone
1172
(साधकों को दनिोष होने की आवश्यकता)
19960916_1600_Taapas Prasang Ramayan
1173
( तापस प्रसगां - रामायण )
19960917_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 1174
19960917_0800_Karan Nirpeksh
1175
( करण - दनरपेक्ष)
19960917_1600_Gochar Bhoomi ( गोचर भदू म ) 1176
19960918_0518_Chup Saadhan ( चपु साधन ) 1177
19960918_0800_Karan Nirpeksh(करण-दनरपेक्ष) 1178
19960918_1600_Bharatji Kripa Dekho
1179
Ramaya ( भरतजी, कृ पा िेखो - रामायण)
19960919_0518_Karne Mein Saavdhaan
1180
Hone ( करने में सावधान, होने में प्रसन्न)
19960919_0800_Parivaar Niyojan Se Haani
1181
( पररवार दनयोजन से हादन)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१६

19960919_1000_Gita Pratiyogita
1182
( गीता प्रदतयोदगता )
19960919_1000_Vidyarthiyon Ke Liye
1183
(दवद्यादथथयों के दलए )
19960919_1600_Dhol Gavaar Ramayan
1184
( िोल, गँवार - रामायण )
19960920_0518_Sharir Apna Nahin
1185
(शरीर अपना नहीं )
19960920_0800_Guru Tatva ( गुरु तत्त्व ) 1186
19960920_0930_Vidyarthiyon Ke Prati
1187
(दवद्यादथथयों के प्रदत )
19960920_1630_Ramayan Ayodhya
1188
Aagaman ( रामायण - अयोध्या आगमन )
19960921_0518_Kripannta Ka Tatparya
1189
( कृ पणता का तात्पयथ )
19960921_0800_Shrishti Ki Utpatti Kyon
1190
(सृदि की उत्पदत्त क्यों )
19960921_1630_Ramayan Path Ki Samapti
1191
( रामायण पाठ की समादप्त )
19960922_0518_Parmatma Jeev Aur Sansar 1192
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१७

( परमात्मा, जीव और ससां ार )


19960922_0830_Ghar Kaise Sudhare
1193
( घर कै से सधु रे ? )
19960922_1930_Hum Sab Bhagwan Ke Hai
1194
( हम सब भगवान् के है )
19960923_0518_Nahin Mein Hai Buddhi
1195
( नहीं में है बदु द्ध )
19960923_0800_Ghar Mein Rahte Hue
Parmarthik Unnati (घर में रहते हुए पारमादथथक 1196
उन्नदत का उपाय )
19960924_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 1197
19960924_0830_Srishti Ki Utpatti ( सृदि की 1198
उत्पदत्त क्यों ? )

चातमाास 1997 के 166 प्रवचन (सीकि) – पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19970716_0518_Lagan Ki Kami Se Prapti ki
1199
Kathinta ( लगन की कमी से प्रादप्त की कदठनता )
19970716_0830_Chaturmaas Mein Sanyam 1200
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१८

( चातमु ाथस में सयां म )


19970716_2000_Vivek Ke Niraadar Se Patan
1201
( दववेक के दनरािर से पतन )
19970717_0518_Buraai Ka Tyag
1202
( बरु ाई का त्याग )
19970717_0830_Satsang Ki Mahima
1203
( सत्सगां की मदहमा )
19970717_2000_Sansar Parmatma Ka
1204
Swaroop ( सांसार परमात्मा का स्वरूप )
19970718_0830_Svayam Bhagwan Mein
1205
Lage ( स्वयां भगवान में लगें )
19970718_2000_Kisi Ko Dukh Na Dene Ka
1206
Bhaav ( दकसी को िुःु ख न िेने का भाव )
19970719_0518_Kaamna Mamta Ka Tyag
1207
( कामना, ममता का त्याग )
19970719_0830_Gita Ki Vilakshanta
1208
( गीता की दवलक्षणता )
19970719_2000_Sant Mahima ( सतां मदहमा ) 1209
19970720_0518_Vaastavik Badappan
1210
( वास्तदवक बड़प्पन )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३१९

19970720_0830_Bhagwan Jagat Guru Hai


1211
Guru Purnima ( भगवान् जगद्गरुु हैं - गुरु पूदणथमा )
19970720_2000_Satsang Ka Laabh Uthaaye
1212
( सत्सांग का लाभ, उद्देश्य )
19970721_0518_Sharir Shariri Ka Bhed
1213
( शरीर- शरीरी का भेि )
19970721_0830_Aparaa Paraa Aur Bhagwan
1214
( अपरा परा और भगवान् )
19970721_1430_Samay Ka Moolya Naam
Grihast Ka Dharma ( समय का मल्ू य, नाम, गृहस्थ 1215
का धमथ )
19970721_2000_Bhakt Ki Jaagriti
1216
( भदि की जाग्रदत )
19970722_0518_Jaankari Ka Aadar
1217
( जानकारी का आिर )
19970722_0830_VS Sab Kuch Bhagwan Hai
1218
( दवशेष, सब कुि भगवान् है )
19970722_2000_Sharnagat Ki Pukar
1219
( शरणागत की पक ु ार )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२०

19970723_0518_Prapti Ke Liye Gehra


1220
Vichar ( प्रादप्त के दलए गहरा दवचार )
19970723_0830_Sharnagati Mein Baadha
1221
( शरणागदत में बाधा )
19970723_2000_Parivar Niyojan Se Haani
1222
( पररवार दनयोजन से हादन)
19970724_0518_Seva Ki Aavashyakta
1223
( सेवा की आवश्यकता )
19970724_0830_Ek Doosre Ki Seva Se
1224
Kalyan ( एक िसू रे की सेवा से कल्याण )
19970724_1430_Baalako Ka Kartavya
1225
( बालकों का कतथव्य )
19970724_2000_Kartavya Paalan
1226
( कतथव्य का पालन)
19970725_0518_Seva Se Mukti
1227
( सेवा से मुदि )
19970725_0830_Eknath Praygdasji Katha
1228
( एकनाथ, प्रयागिासजी - कथा )
19970725_2000_Durguno Ka Tyag
1229
( िगु थणु ों का त्याग )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२१

19970726_0518_Nirmal Kaise Bane


1230
( दनमथल कै से बनें ? )
19970726_0830_Chaahna Chodne Se Nayaa
1231
Prarabdh ( चाहना िोड़ने से नया प्रारब्ध)
19970726_1430_Shiksha Aur Deeksha
1232
( दशक्षा और िीक्षा )
19970726_2000_Bhakti Ki Visheshta
1233
( भदि की दवशेषता )
19970727_0518_Sevamay Shuddh Jeevan
1234
( सेवामय शद्ध
ु जीवन )
19970727_0830_Gita 07 (16) Sharnagati
1235
(गीता 07 (16) , शरणागदत )
19970727_1500_Dharma Paalan Ki Yukti
1236
( धमथ पालन की युदि )
19970727_2000_Hamara Vaastavik Ghar
1237
( हमारा वास्तदवक घर )
19970728_0518_Sukh Ki Kaamna Se
1238
Bandhan ( सख ु की कामना से बन्धन )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२२

19970728_0830_Bhagwan Ke Bhakt Brahm


Hatya Mahapaap ( भगवान् के भि, ब्रह्म हत्या 1239
महापाप )
19970728_1500_Apne Karmo Se Bhagwan
1240
Ka Poojan (अपने कमो से भगवान का पजू न )
19970728_1500_Bhagwan Mein Lagne Se
Manushya Ki Mahima ( भगवान में लगने से मनुष्य 1241
की मदहमा )
19970728_2000_Aapas Mein Seva Ka
1242
Bartaav ( आपस में सेवा का बताथव )
19970729_0518_Sukh Lolupta Asaadhan
1243
( सखु लोलपु ता - असाधन )
19970729_0830_Paarivaarik Prem Ka Upay
1244
( पाररवाररक प्रेम का उपाय )
19970730_0518_Sharir Se Algaav
1245
( शरीर से अलगाव )
19970730_0830_Sansar Ka Swaroop
1246
( ससां ार का स्वरूप )
19970730_1430_Satsang Ki Durlabhta
1247
( सत्सांग की िल ु थभता )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२३

19970730_2000_Satsang Ka Prabhaav
1248
( सत्सांग का प्रभाव )
19970731_0518_Bandhan Hamara Banaya
1249
Hua Hai ( बन्धन हमारा बनाया हुआ है )
19970731_0830_Sharir Shariri Ka Vivek
1250
( शरीर - शरीरी का दववेक )
19970731_2000_Aapsi Khatpat Kaise Mite
1251
( आपसी खटपट कै से दमटे ? )
19970801_0518_Teeno Yogo Mein Vivek Ki
1252
Aavashyakta( तीनों योगों में दववेक की आवश्यकता )
19970801_0830_Kripa Ka Anubhav
1253
( कृ पा का अनभु व )
19970801_2000_Bhagwan Ki Dayaaluta
1254
( भगवान् की ियालतु ा )
19970802_0518_Doosre Ke Hit Mein
1255
Hamara Hit ( िसू रे के दहत में हमारा दहत)
19970802_0830_Bhagwan Ki Avtaar Lila
1256
( भगवान् की अवतार लीला )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२४

19970802_1500_Manushya Jeevan Ki
Mahima Garbhpaat Haani ( मनुष्यजीवन की 1257
मदहमा- गभथपात हादन )
19970802_2000_Hindu Sanskriti Mein Naari
1258
( दहन्िू सांस्कृ दत में नारी )
19970803_0518_Apna Aur Apne Liye Kuch
1259
Nahin ( अपना और अपने दलए कुि नहीं )
19970803_0830_Akhand Bhajan Aur
1260
Bhagwat Prem ( अखण्ड भजन और भगवत् प्रेम)
19970803_1600_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 1261
19970804_0518_Graahiya Aur Tyaajya
1262
( ग्राह्य और त्याज्य )
19970804_0830_Hum Yahaa Ke Nahin Hai
1263
Chetavini ( हम यहाँ के नही हैं - चेतावनी )
19970805_0518_Apni Aur Apne Liye Kuch
1264
Nahin ( अपनी और अपने दलए कुि नहीं )
19970805_0830_Sharir Se Algaav ( शरीर से
1265
अलगाव )
19970806_0830_Maa Baap Ki Seva Ki
1266
Mahima ( माँ बाप की सेवा की मदहमा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२५

19970807_0518_Saadhan Aur Asaadhan Ka


1267
Swaroop ( साधन और असाधन का स्वरूप )
19970807_0830_Hindutva Aur Gau Raksha
1268
Prabhu Apne Hai (दहांित्ु व और गौरक्षा, प्रभु अपने है)
19970808_0518_Bhool Mitane Ka Upay
1269
( भल ू दमटाने का उपाय )
19970808_0830_Sant Eknath Guru Nishtha
1270
( सांत एकनाथ गुरु दनष्ठा )
19970809_0518_Pratyek Paristhiti Saadhan
1271
Saamagri ( प्रत्येक पररदस्थदत साधन सामग्री )
19970809_0830_Guru Shishya Sharir Shariri
1272
( गरुु दशष्य, शरीर - शरीरी )
19970810_0518_Akhand Smriti (अखण्ड स्मृदत) 1273
19970810_0830_Ramayan Aur Bhakto Ki
1274
Mahima ( रामायण और भिों की मदहमा )
19970811_0518_Lagan Ki Aavashyakta
1275
( लगन की आवश्कता )
19970811_0830_Prapti Lagan Se Guru Se
1276
Nahin ( प्रादप्त लगन से, गरुु से नहीं )
19970812_0518_Prapti Svayam Se 1277
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२६

( प्रादप्त स्वयां से )
19970812_0830_Gita Ke Anusar Jeevan
1278
( गीता के अनुसार जीवन )
19970813_0518_Moorkhata Ka Bandhan
1279
( मख ू थता का बन्धन )
19970813_0830_Maanglik Vivaah Mein
1280
Vikriti ( मागां दलकदववाह में दवकृ दत )
19970814_0518_Anubhavyukt Aacharan
1281
( अनुभवयुि आचरण )
19970814_0830_Abhyaas Se Oonchi
Apnapan Ki Sveekriti ( अभ्यास से ऊँची अपनेपन 1282
की स्वीकृ दत )
19970815_0518_Saral Svabhaav Aur
1283
Apnapan ( सरल स्वभाव और अपनापन)
19970815_0830_Abhimaan Se Bacho
1284
( अदभमान से बचो )
19970816_0518_Sveekar Karne Se Prapti
1285
( स्वीकार करने से प्रादप्त )
19970817_0518_Sagun Nirgun Aagrah Rahit
1286
Dono Upaasna Se Poornata
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२७

( सगणु दनगथणु आग्रह रदहत िोनों उपासना से पणू थता )


19970817_0830_Bacho Mein Gharelu
Shiksha Shraavani Karma Ki Prerna 1287
( बच्चों में घरे लू दशक्षा श्रावणी कमथ की प्रेरणा )
19970817_1830_Naam Sankirtan Satsang
1288
Garbhpaat ( नाम सक ां ीतथन, सत्सगां , गभथपात )
19970818_0518_Buraai Tyag Ki
1289
Aavashyakta ( बरु ाई त्याग की आवश्यकता )
19970818_0830_Sat Asat Ka Vivechan
1290
( सत् - असत् का दववेचन )
19970819_0518_Pakshpaat Rahit Saadhan Ki
1291
Prerna ( पक्षपात रदहत साधन की प्रेरणा )
19970819_0830 vasudev sarvam
1292
( वासिु ेव: सवथम् )
19970820_0518_Nitya Prapt Ka Anubhav
1293
Kaise Ho ( दनत्य प्राप्त का अनुभव कै से हो ? )
19970820_0830_Chup Saadhan Kab
1294
Sambhav ( चपु साधन कब सभां व )
19970821_0518_Gyaanadvait Aur
1295
Premaadvait ( ज्ञानाद्वेत और प्रेमाद्वेत )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२८

19970821_0830_Gita Mein Bhakti Ki


1296
Visheshta ( गीता में भदि की दवलक्षणता )
19970822_0518_Gita 06 (25) ( गीता 06 (25) ) 1297
19970822_0830_Gutka Aadi Nashilo
Padartho Ka Tyag ( गुटका आदि नशीले पिाथों का 1298
त्याग )
19970822_1700_Acche Sang Ka Aadar Kare 1299
Ramayan ( अच्िे सांग का आिर करें रामायण )

19970823_0518_Bhagwan Ke Samaan
Hiteshi Koi Nahin ( भगवान् के समान दहतैषी कोई 1300
नहीं)
19970823_0830_Guru Manushya Nahi
1301
Bhaav Hai ( गुरु मनुष्य नहीं, भाव है )
19970823_1700_Pushp Vatika Vashikaran
Anushthan Ramayan ( पष्ु प वादटका, वशीकरण, 1302
अनुष्ठान - रामायण )
19970824_0518_Sadharan Aur Virakt Mein
1303
Farak ( साधारण और दवरि में फरक)
19970824_0830_Rupya Sab Kuch Nahi 1304
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३२९

( रुपया सब कुि नहीं)


19970824_1700_Vivah Ka Ramayan
1305
( दववाह का रामायण )
19970825_0518_Triloki Ke Sukh Se Bhi
Tripti Asambhav ( दत्रलोकी के सख ु से भी तृदप्त 1306
असम्भव )
19970825_0830_Parmatma Ki Ore Drishti
1307
( परमात्मा की ओर दृदि )
19970825_1145_Avtaar Ki Divyata
1308
Janmashtmi ( अवतार की दिव्यता, जन्मािमी)
19970826_0518_Sansar Ka sambandh Nitya
1309
Hai ( ससां ार का सम्बन्ध )
19970826_0830_Nandotsav ( नन्िोत्सव ) 1310
19970826_1700_Path Ki Prerna Ramayan
1311
( पाठ की प्रेरणा - रामायण )
19970827_0518_Apni Visheshta Doosro Ke
1312
Liye ( अपनी दवशेषता िसू रों के दलए)
19970827_0830_Mila Hua Sab Anitya
1313
( दमला हुआ सब अदनत्य )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३०

19970827_1700_Bhajan Ka Nishchay
1314
Ramayan ( भजन का दनश्चय रामायण )
19970828_0518_Sab Kuch Bhagwan Hai
vasudev sarvam ( सब कुि भगवान है, वासिु वे : 1315
सवथम् )
19970828_0830_Parmarthik Iccha
1316
Aavashyak ( परमादथथक इच्िा आवश्यक )
19970828_1700_Dhol Gavar Nari Sammaan
1317
Ramayan ( िोल, गँवार, नारी सम्मान - रामायण )
19970829_0518_Buraai Ka Tyag Saral
1318
Shreshth Saadhan (बरु ाई का त्याग सरल श्रेष्ठ साधन)
19970829_0830_Vairagya Aur Uprati ( वैराग्य
1319
और उपरदत )
19970829_2000_Panchamrit ( पञ्चामृत ) 1320
19970830_0518_Sukh Dukh Se Upar Uthna
1321
( सखु िुःु ख से ऊपर उठना )
19970830_0830_Grihasth Mein Prapti
1322
( गृहस्थ में प्रादप्त )
19970831_0518_Dukh Ka Kaaran Sukh Ki
1323
Iccha ( िुःु ख का कारण - सखु की इच्िा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३१

19970831_0830_Sacchi Lagan Ki
1324
Aavashyakta ( सच्ची लगन की आवश्यकता)
19970901_0518_Aapka Abhaav Nahin
1325
( आपका अनुभव नहीं )
19970901_0830_Asat Se Aapka Moolyankan
1326
Nahin ( असत् से आपका मल्ू याक ां न नहीं )
19970902_0518_Buraai Chodne Se Svata
1327
Bhalaai ( बरु ाई िोड़ने से स्वत: भलाई )
19970902_0830_Tyag Ka Mahatva
1328
(त्याग का महत्त्व )
19970903_0518_Sharir Dwara Prapti
1329
Asambhav ( शरीर द्वारा प्रादप्त असम्भव )
19970903_0830_Gau Raksha Ki
1330
Aavashyakta ( गौ रक्षा की आवश्यकता )
19970904_0518_Hamara Saccha Saathi
1331
( हमारा सच्चा साथी )
19970904_0830_Karma Yog Mein Udaar
1332
Bhaav ( कमथ योग में उिार भाव )
19970905_0518_Bhakti Yog Mein
1333
( भदि योग में )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३२

19970905_0830_Arakshit Raghu Katha


1334
( अरदक्षत रघु कथा )
19970906_0518_Kaun Hai Apna
1335
( कौन है अपना ?)
19970906_0830_Tyag Se Manushya Ki
1336
Saarthakta ( त्याग से मनष्ु य की साथथकता )
19970907_0518_Bhakti Mein Chaar Ritiyan
1337
( भदि में चार रीदतयाँ )
19970907_0830_Bhagwan Ke Sanmukh
Karnewalo Ka Sang ( भगवान् के सन्मख ु करनेवालों 1338
का सगां )
19970908_0518_Nitya Prapt Parmatma Ki
1339
Ore Drishti ( दनत्य प्राप्त परमात्मा की ओर दृदि )
19970908_0830_Mat Bhed Aur Bhaav Bhed
1340
( मत भेि और भाव भेि)
19970909_0518_Sharir Aur Shariri
Aavashyak Gyan ( शरीर और शरीरी आवश्यक 1341
ज्ञान)
19970909_0830_Vidhvaon Ke Prati
1342
( दवधवाओ ां के प्रदत)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३३

19970910_0518_Nirdoshta Ki Raksha
1343
( दनिोषता की रक्षा )
19970910_0830_Grihast Mein Rahte Prapti
1344
( गृहस्थ में रहते प्रादप्त )
19970910_0945_Maharshi Dadichi Jayanti
1345
( महदषथ िधीची जयदन्त )
19970911_0518_Mahaan Aanand Ki Prapti
1346
( महान आनन्ि की प्रादप्त )
19970911_0830_Prapti Mein Anta Karan Ki
1347
Bhoomika ( प्रादप्त में अांत:करण की भदू मका )
19970912_0518_Seva Bhaav ( सेवा भाव ) 1348
19970912_0830_Prapti Mein Anta Karan Ki
1349
Apeksha Nahin (प्रादप्त में अतां :करण की अपेक्षा नहीं)
19970913_0518_Kalyan Ke Liye Satsang Ki
1350
Prerna ( कल्याण के दलए सत्सांग की प्रेरणा )
19970913_0830_Gau Raksha Garbh Shishu 1351
Raksha Ki Prerna ( गौ रक्षा, गभथ दशशु रक्षा की
प्रेरणा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३४

19970913_1515_Samay Chetavini Anmol


Heere Teen Dukane Kahani ( समय, चेतावनी 1352
अनमोल हीरे , तीन िक ु ानें - कहानी )
19970914_0518_Parmatma Ka Sahara
1353
( परमात्मा का सहारा )
19970914_0915_Samay Prapti Mein Lagaave
1354
( समय प्रादप्त में लगावे )
19970914_1600_Aavashyakta Parmatma Ki
1355
( आवश्यकता परमात्मा की )
19970915_0518_Hamare Apne Keval
1356
Parmatma ( हमारे अपने के वल परमात्मा )
19970915_0830_Acche Vidyarthi Ka Jeevan
1357
( अच्िे दवद्याथी का जीवन )
19970915_1600_Grihast Jeevan Mein
Ahamta Mamta Tyag Ka Udaharan ( गृहस्थ 1358
जीवन में अहांता – ममता त्याग का उिाहरण )
19970916_0518_Virodhi Do Icchayen
1359
( दवरोधी िो इच्िायें )
19970916_0830_Prapti Ki Chaahna Ki
1360
Mahima ( प्रादप्त की चाहना की मदहमा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३५

19970916_1600_Seva Dwara Bado Ko


1361
Shiksha ( सेवा द्वारा बड़ों को दशक्षा )
19970917_0518_Bhagwan Ki Sharnagati
1362
Nirgun Hai ( भगवान् की शरणागदत दनगथणु है )
19970917_0830_Svabhaav Shuddh Banaave
1363
( सेवाभाव शद्ध
ु बनावें )
19970917_1830_Prarabdh Aur Purusharth
1364
( प्रारब्ध और परुु षाथथ )

चातमाास 1998 के 146 प्रवचन (जोधपि) – पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19980705_0900_Chaturmaas Aayojan Ka
1365
Laabh Uthaave( चातुमाथस आयोजन का लाभ उठावें)
19980706_0518_Karna Jaanna Paana Baaki
1366
Na ( करना, जानना ,पाना बाकी न रहे )
19980706_0900_Satsang Se Anukoolta
Pratikoolta Ka Prabhaav Mitta Hai 1367
( सत्सांग से अनुकूलता प्रदतकूलता का प्रभाव दमटा है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३६

19980706_1600_Bhog Aur Aishwarya Mein


1368
Na Phase ( भोग और ऐश्वयथ में न फसें )
19980707_0518_Buraai Ka Tyag
1369
( बरु ाई का त्याग )
19980707_0900_Anta KAran Shuddhi Ka
1370
Upay ( अन्तुः करण शदु द्ध का उपाय )
19980707_1600_Prapti Mein Kaal Kriya
Padarth Apekshit ( प्रादप्त में काल, दिया ,पिाथथ 1371
अपेदक्षत नहीं )
19980708_0518_Ahamta Badalna
1372
( अहतां ा बिलना )
19980708_0900_Bhagwan Ke Hokar Bhajan
1373
Kare ( भगवान् के होकर भजन करें )
19980708_1600_Kaamna Ka Tyag
1374
( कामना का त्याग)
19980709_0518_Prapti Aur Nivritti Karni
1375
Nahin Hai ( प्रादप्त और दनवृदत्त करनी नहीं है)
19980709_0900_Guru Mahima ( गरुु मदहमा ) 1376
19980709_1600_Utsaah Rakhe ( उत्साह रखें ) 1377
19980710_0518_Nirdoshta Kaayam Rakhe 1378
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३७

( दनिोषता कायम रखें)


19980710_0900_Samay Bhaag Raha Hai
1379
( समय भाग रहा है )
19980710_1600_Svarth Aur Abhimaan Ka
1380
Tyag ( स्वाथथ और अदभमान का त्याग )
19980711_0518_Sansar Ko Apni Maan Li
Parmatma Ko Bhool Gaye ( ससां ार को अपना मान 1381
दलया, परमात्माको भल ू गये )
19980711_0900_Yeh Hamara Ghar Nahin
1382
(यह हमारा घर नहीं )
19980711_1600_Sab Kuch Parmatma Hi Hai
vasudev sarvam ( सब कुि परमात्मा ही है, वासिु वे 1383
:सवथम)्
19980712_0518_Kaamna Aur Buraai Ka
1384
Tyag ( कामना और बरु ाई का त्याग )
19980712_0900_Sadgun Sadachaar Dharma
Bhakti Ke Liye Kashta Sahe ( सद्गणु ,सिाचार, 1385
धमथ, भदि के दलए कि सहें )
19980712_1600_Kripa Se Uddhar Pukar
1386
( कृ पा से उद्धार पक
ु ार )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३८

19980713_0518_Tatva HAi Baaki Sab Ja


1387
Raha Hai ( तत्त्व है बाकी सब जा रहा है )
19980713_0900_Sabse Bade Laabh Mein
1388
Lage ( सबसे बड़े लाभ में लगें )
19980713_1600_Bhaav Aur Cheshta Se
1389
Prapti ( भाव और चेिा से प्रादप्त )
19980714_0518_Ek Iccha Se Parmatma
1390
Milte Hai ( एक इच्िा से परमात्मा दमलते हैं )
19980714_0830_Manushya Sharir Prapti Ke
1391
Liye ( मनुष्यशरीर प्रादप्त के दलए )
19980714_1600_Kripa Aur Aashray
1392
( कृ पा और आश्रय )
19980715_0518_Ek Parmatma Paripoorna
1393
Hai ( एक परमात्मा पररपणू थ है )
19980715_0830_Sukhdaayi Ki Apeksha
Dukhdaayi Laabhdaayak (सख ु िायी की अपेक्षा 1394
िुःु खिायी लाभिायक )
19980715_1600_Varna Dharma Paalan Se
1395
Kalyan ( वणथ, धमथ पालन से कल्याण )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३३९

19980716_0518_Sharir Sansar Ka Hum


1396
Parmatma (शरीर सांसार का, हम परमात्मा के )
19980716_0830_Bhagwan Karm Nahin
1397
dekhte ( भगवान् कमथ नहीं िेखते )
19980716_1600_Sharir Se Algaav Ka
1398
Anubhav ( शरीर से अलगाव का अनभु व )
19980717_0518_Sharir Se Algaav Ka
Anuhav Teeno Yogo Mein ( शरीर से अलगाव का 1399
अनुभव तीनो योगों में )
19980717_0830_Kripa Se Yeh Avsar Mila
1400
Hai( कृ पा से यह अवसर दमला है )
19980717_1600_Bhagwan Ka Apnapan Aur
Ghor Kaliyug ( भगवान् का अपनापन और घोर 1401
कदलयुग )
19980718_0518_Marne Ka Bhay Sampoorna
Icchao Ka Tyag ( मरने का भय, सम्पणू थ इच्िाओ ां का 1402
त्याग )
19980718_0830_Prayagdasji ki Katha
1403
( प्रयागिास जी की कथा )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४०

19980718_1600_Kirtan Satsang Bhakt


Charitra Baar Baar Sune 1404
(कीतथन, सत्सांग, भि चररत्र बार-बार सनु ें)
19980719_0518_Hum Sharir Nahin Hai
1405
( हम शरीर नहीं है )
19980719_0900_Teen Yog Ka Nirupan
1406
( तीन योग का दनरूपण )
19980719_1100_Desh Ki Vartaman Dashaa
1407
Aur Parinaam ( िेश की वतथमान िशा और पररणाम )
19980719_1600_Bhagwan Ko Namaskar
Karne Ka Avsar ( भगवान को नमस्कार करनेका 1408
अवसर )
19980720_0518_Hum Sansar Apne Aur
Parmatma Ke Liye Upyogi ( हम सांसार, अपने, 1409
और परमात्मा के दलए उपयोगी )
19980720_0900_Paap Ka Dushparinaam
1410
( पाप का िष्ु पररणाम )
19980720_1600_Parmatma Prapt Hai Hi
1411
( परमात्मा प्राप्त है ही )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४१

19980721_0518_Hamara Nahin Bhagwan Ka


1412
Hai ( हमारा नहीं भगवान का है )
19980721_0830_Gau Mahima Naam Jap ( गुरु
1413
मदहमा, नाम जप )
19980721_1600_Sansar Se Sambandh Nahin
1414
Hai ( ससां ार से सम्बन्ध नहीं है)
19980722_0518_Do Tarah Ki Pravrittiyan
1415
( िो तरह की प्रवृदत्तयाँ )
19980722_0900_Dahej Praatha Aur Samaajik
1416
Dosh ( िहेज़ प्रथा और सामादजक िोष )
19980722_1600_Sthir Rahe ( शरीर रहे ) 1417
19980723_0518_Yeh Sab Badalta Hai
1418
( यह सब बिलता है )
19980723_0900_Hindu Sanskriti
1419
( दहन्िू सांस्कृ दत )
19980723_1600_Sat Asat Ka Vivechan
1420
( सत् - असत् का दववेचन )
19980724_0518_Kaam Ka Apne Liye Upyog
1421
Nahin ( काम का अपने दलए उपयोग नहीं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४२

19980724_0900_Jaane Aur Rahnevaale Ka


Vibhaag Se Shok Nahin ( जाने और रहनेवाले के 1422
दवभाग से शोक नहीं )
19980725_0518_Ek Parmatma Hi Hai
1423
( एक परमात्मा ही है )
19980725_0900_Sharir Se Sambandh Nahin
1424
( शरीर से सम्बन्ध नहीं )
19980726_0518_Parmatma Mein Rehana
1425
( परमात्मा में रहना )
19980726_0830_Satsang Ki Vilakshanta
1426
( ससां ार की दवलक्षणता )
19980727_0518_Buraai Ka Tyag
1427
( बरु ाई का त्याग )
19980727_0900_Buraai Chhod Kar Nidar
1428
Rahe ( बरु ाई िोड़ कर दनडर रहे )
19980728_0518_Aap Jagat Prabhu Aur Apne
Liye Upyogi Bane ( आप जगत, प्रभु और अपने 1429
दलए उपयोगी बनें )
19980728_0900_Bhagwat Lila ( भगवत् लीला ) 1430
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४३

19980729_0518_Apna Kuch Bhi Na Maan


1431
Kar Mast Rahe (अपना कुि भी न मान कर मस्त रहे )
19980729_0900_Gita 09 (30) ( गीता 09 (30) ) 1432
19980730_0518_Kripa Sab Par Baraabar Hai
1433
( कृ पा सब पर बराबर है )
19980730_0900_Tulsidasji Ka Din
1434
( तलु सीिास जी का दिन )
19980731_0518_Kuch Bhi Sthir Nahin
1435
( कुि भी दस्थर नहीं )
19980731_0900_Satsang Khaas Parmarthik
Unnati Ke Liye ( सत्सांग खास पारमादथथक उन्नदत के 1436
दलए )
19980801_0518_Bhajan Aur Seva
1437
( भजन और सेवा )
19980801_0900_Bhagwan Deekhne Par Sab
Jag BhagwatSwaroop Vasudev sarvam
1438
( भगवान िीखने पर सब जग भगवत्स्वरूप वासिु वे
:सवथम् )
19980802_0518_Bhagwan Se Nitya
1439
Sambandh ( भगवान् से दनत्य सम्बन्ध )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४४

19980802_0830_Brahmacharya Aavashyak
1440
( ब्रह्मचयं आवश्यक )
19980803_0518_Nashwan Mein Avinashi Ka
1441
( नाशवान् में अदवनाशी का िशथन )
19980803_0900_Badalnevaala Apna Nahin
1442
( बिलनेवाला अपना नहीं )
19980804_0518_Sab Bhagwan Ka Kaam
1443
( सब भगवान का काम )
19980805_0518_Jeevit Athva Mrit Ka Shok
1444
Nahin ( जीदवत अथवा मृत का शोक नहीं )
19980805_0830_Sharir Se Sambandh Nahin
1445
( शरीर से सम्बन्ध नहीं )
19980806_0518_Sharir Se Algaav
1446
( शरीर से अलगाव )
19980806_0830_Bhagwan Se Nitya
1447
Sambandh ( भगवान् से दनत्य सम्बन्ध )
19980807_0518_sab Dukho Se Ooncha Uthe
1448
( सब िख ु ों से ऊचा उठें )
19980807_0830_Prapti Saral Hai
1449
( प्रादप्त सरल है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४५

19980808_0518_Jad Chetan Ka Vibhaag


1450
( जड़ - चेतन का दवभाग )
19980808_0830_Baar Baar Sunne Ki
1451
Aavashyakta ( बार-बार सनु ने की आवश्यकता )
19980809_0518_Sharir Aur Aap Alag Hai
1452
( शरीर और आप अलग हैं )
19980809_0830_Parivar Niyojan Se Haani
1453
( पररवार दनयोजन से हादन )
19980810_0518_Sansaarik Sukh Dene Ke
1454
Liye Hai ( सांसाररक सख ु िेने के दलए है )
19980810_0830_Arakshit Raghu Ki Katha
1455
( अरदक्षत रघु की कथा )
19980811_0518_Manushya Jagat Apne Aur
Parmatma Ke Liye Upyogi 1456
(मनुष्य- जगत, अपने और परमात्मा के दलए उपयोगी )
19980811_0830_Manushya Sharir Ki
Mahima Algaav Ke Anubhav Mein Hai 1457
( मनष्ु यशरीर की मदहमा अलगाव के अनभु व में है )
19980811_1730_Path Ka Aarambh Ramayan
1458
( पाठ का आरम्भ - रामायण )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४६

19980812_0518_Buraai Ka Tyag
1459
( बरु ाई का त्याग )
19980812_0830_Kalyan Chaahne Vaala Kisi
Ko Buraa N Samjhe 1460
( कल्याण चाहनेवाला दकसी को बरु ा न समझे)
19980813_0518_Jiski Cheej Hai Usko Saup
1461
De ( दजसकी चीज है उसको सौप िे )
19980813_0830_Aaj Kal Sanskriti Ke Baare
Mein Jaante Hi Nahin 1462
( आजकल सांस्कृ दत के बारे में जानते ही नहीं )
19980813_1730_Vivah Kar Ke Aaye Hai
1463
Ramayan ( दववाह कर के आये हैं - रामायण )
19980814_0518_Sharir Aur Hai Aap Aur Hai
1464
( शरीर और है आप और हैं )
19980814_0830_Lagan Hi Mukhya Hai
1465
( लगन ही मख्ु य है )
19980814_1730_Taapas Prasang Ramayan
1466
( तापस प्रसगां — रामायण )
19980815_0518_Bhaav Shuddh Nirmal
1467
Banaave ( भाव शद्ध ु दनमथल बनावें )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४७

19980815_0830_Guru Banana Aavashyak


1468
Nahin ( गुरु बनाना आवश्यक नहीं )
19980815_1730_Parivar Niyojan Gau Vadh
Ki Bhayanak Paristhiti ( पररवार दनयोजन, गौ वध 1469
की भयानक पररदस्थदत )
19980815_1730_Parivar Niyojan Govadh Se
Bhayanak Parinam Ramayan ( पररवार दनयोजन 1470
गौ वध से भयानक पररणाम रामायण )
19980815_2330_Janmashtami ( जन्मािमी ) 1471
19980816_0518_Vastu Vyakti Ka Upyog
1472
( वस्तु व्यदि का उपयोग )
19980816_0830_Nandotsav ( नन्िोत्सव) 1473
19980817_0518_Dena Yog Lena Bhog
1474
( िेना योग, लेना भोग )
19980817_0830_Tyag Se Tatkal Shanti
1475
( त्याग से तत्काल शादन्त )
19980818_0518_Kam Se Kam Durachaar Na
1476
Kare ( कम से कम िरु ाचार न करें )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४८

19980818_0830_Shuddhi Ashuddhi Dharma


Adharma Samjhe ( शदु द्ध –अशदु द्ध, धमथ -अधमथ 1477
समझें )
19980819_0518_Bhagwan Sab Jagah
Paripoorna Hai vasudev sarvam ( भगवान् सब 1478
जगह पररपणू थ है वासिु वे : सवथम् )
19980819_0830_Darshan Ki Apeksha Prem
1479
Behtar ( िशथन की अपेक्षा प्रेम बेहतर है )
19980820_0518_Prabhu Ko Apna Maanne
Mein Yogyata Vyarth Hai ( प्रभु को अपना मानने 1480
में योग्यता व्यथथ है )
19980821_0518_Apne Bhaav Shuddh
1481
Banaave ( अपने भाव शद्ध ु बनावें )
19980821_0830_Bhagwan Se Sambandh
1482
( भगवान् से सम्बन्ध )
19980822_0518_Satta Matra Ka Dhyaan
1483
( सत्ता मात्र का ध्यान )
19980822_0830_Doosre Ki Chaah Se Karna
1484
Hai ( िसू रे की चाह से करना है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३४९

19980823_0518_Manushya Ki Trividha
1485
Yogyata ( मनुष्य की दत्रदवध योग्यता )
19980823_0830_Naashwan Se Kya
1486
Ghabrana ( नाशवान् से क्या घबराना )
19980824_0518_Sharir Sansar Ka Aap 1487
Parmatma ( शरीर ससां ार का, आप परमात्मा के )
19980824_0830_Paap Chhod Kar Bhajan
1488
Mein Lage ( पाप िोड़ कर भजन में लगें )
19980825_0518_Gita Ke Anusar Jad Chetan
1489
( गीता के अनुसार जड़ –चेतन दवभाग )
19980825_0830_Sharnagati ( शरणागदत ) 1490
19980826_0518_Parmatma Sab Jagah Hai
vasudev sarvam ( परमात्मा सब जगह है वासिु ेव: 1491
सवथम् )
19980826_0830_Sanyam Kare Aur Bhajan
1492
Mein Lage ( सांयम करें और भजन में लगें )
19980826_1600_Hardam Prasann Rahe
1493
( हरिम प्रसन्न रहें )
19980827_0518_Manushya Ki Teen
1494
Shaktiyan ( मनुष्य की तीन शदियाँ )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५०

19980827_0830_Vidyarthiyon Ke Prati
1495
(दवद्यादथथयों के प्रदत )
19980828_0518_Bhagwad Bhajan (भगवद्भजन) 1496
19980828_0830_Hindu Samaaj Ki Dashaa
1497
( दहन्िू समाज की िशा )
19980829_0518_Sharir Ka Sansar Se Apna
Parmatma Se Apnapan ( शरीर का ससां ार से, अपना 1498
परमात्मा से अपनापन )
19980829_0830_Garbhpaat Nishedh
1499
Nishkaam ( गभथपात दनषेध, दनष्काम भाव )
19980830_0518_Sharir Shariri Ka Vivek
1500
( शरीर - शरीरी का दववेक )
19980830_0900_Parivar Niyojan Garbhpaat
1501
Nishedh ( पररवार दनयोजन गभथपात दनषेध )
19980831_0518_Main Mera Sharir Nahin
1502
( “मैं” मेरा शरीर नहीं )
19980831_0830_Garbhpaat Ka Prayashchit
1503
Nishedh ( गभथपात का प्रायदश्चत दनषेध )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५१

19980901_0518_Mukti Varna Vishesh Nahin


Khud Ki Hoti Hai ( मदु ि वणथ दवशेष की नहीं, खिु 1504
की होती है )
19980901_0900_Bhajan Mein Lage
1505
( भजन में लगें )
19980902_0518_Acche Bhaav Aur Karma
1506
Saath Chalenge (अच्िे भाव और काम साथ चलेंगे)
19980902_0830_Panchamrit ( पञ्चामृत ) 1507
19980903_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 1508
19980903_0900_Accha kam bhagvan ki
kripa se hi hota hai ( अच्िा काम भगवान् की कृ पा 1509
से होता है )
19980904_0518_Parmatma Ke Sivay Aur 1510
Kuch Nahin ( परमात्मा के दसवाय और कुि नहीं)

चातमाास 1999 के 180 प्रवचन (नोखा) – पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
19990723_0518_Bhagwan Se Sambandh
1511
( भगवान से सम्बन्ध )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५२

19990723_0830_Jad Chetan Vibhaag


1512
( जड़-चेतन दवभाग )
19990723_1500_Chaturmas Aayojan Mein
1513
Sanyam Niyam (चातुमाथस आयोजन में सांयम–दनयम)
19990724_0518_Jad Chetan Ka Vibhaag
1514
( जड़ – चेतन का दवभाग )
19990724_0830Parmarthik Maarg Darshan
1515
( पारमादथथक मागथिशथन )
19990724_1700_Dhan Ka Mahatva Nahi
1516
( धन का महत्त्व नहीं )
19990725_0518_Apna Kuch Nahi
1517
( अपना कुि नहीं )
19990725_0830_Nirmam Nirahankaar Hone
1518
Ka Drishtant ( दनमथम, दनरहांकार होने का दृिान्त )
19990725_1630_Oonche Badho ( ऊांचे बढ़ो ) 1519
19990726_0518_Samta ( समता ) 1520
19990726_0830_Hum Bhagwan Ke
1521
Ramayan Katha ( हम भगवान् के - रामायण कथा )
19990726_1630_Bhagwan Apne Hai
1522
(भगवान अपने हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५३

19990727_0518_Mamta Chode ( ममता िोड़ें ) 1523


19990727_0830_Teeno Shariro Se Oonch
1524
Bhaav Sharir ( तीनों शरीरों से ऊँचा, भाव शरीर )
19990727_1630_Swaarth Tyaage( त्याग, स्वाथथ) 1525
19990728_0518_Sab Ke Hit Ka Bhaav
1526
( सब के दहत का भाव )
19990728_0830_Bhagwan Hi Bhaav Purtaya
1527
Samajhte Hai (भगवान् ही भाव पणू थतया समझते हैं
19990728_1630_Sab Ka Hit Ho
1528
( सब का दहत हो )
19990729_0518_Hum Bhagwan Ke Bete Hai
1529
( हम भगवान् के बेटे हैं )
19990729_0830_Baatein Maanne Se Laabh
1530
( बातें मानने से लाभ )
19990729_1600_Aasuri Sampatti Vaalo
Dvaara Satsang Ka Virodh ( आसरु ी सांपदत्त वालों 1531
द्वारा सत्सांग का दवरोध )
19990730_0518_Panchamrit ( पञ्चामृत ) 1532
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५४

19990730_0830_Buraai N Karna Bhalai


Karne Se Ooncha ( बरु ाई न करना भलाई करने से 1533
ऊँचा )
19990730_1600_Nirvaah Ke Liye Anna Jal
1534
Paryapt Hai ( दनवाथह के दलये अन्न – जल पयाथप्त है )
19990731_0518_Bhagwan Ko Yaad Karo
1535
( भगवान् को याि करो )
19990731_0830_QnA ( प्रश्नोत्तर ) 1536
19990731_1630_Kisi Ko Buraa Maanne Se
1537
Kya Laabh ( दकसी को बरु ा मानने से क्या लाभ ?)
19990801_0518_Hum Bhagwan Ke Svata
1538
Hai ( हम भगवान के स्वत: हैं )
19990801_0830_Aacharano Ki Apeksha
1539
Bhakti Mukhya ( आचरणों की अपेक्षा भदि मुख्य )
19990801_1630_Garbhpaat Parivar Niyojan
1540
Na Kare ( गभथपात पररवार दनयोजन न करें )
19990802_0518_Apne Ko Jo Bura Lagta Hai
Doosro Ke Prati Na Kare ( अपने को जो बरु ा 1541
लगता है, िसू रो के प्रदत न करें )
19990802_0830_Gita 09 (34) ( गीता 09 (34) 1542
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५५

19990802_1630_Parivar Niyojan Mahaan


1543
Ghaatak ( पररवार दनयोजन महान घातक )
19990803_0518_Hardam Naam Jap
1544
( हरिम नाम जप )
19990803_0830_Mahabharat Katha
1545
( महाभारत कथा )
19990804_0518_Hai So Sunder Ha Sada
1546
( है सो सन्ु िर है सिा )
19990804_0830_Bhagwan Anadi Suhrid Aur
Maheshwar Hai ( भगवान् अनादि‚ सह्रु ि और महेश्वर 1547
हैं )
19990804_1600_Parivar Niyojan Se Patan
1548
( पररवार दनयोजन से पतन )
19990805_0518_Mukti Svabhaavik Hai
1549
( मदु ि स्वाभादवक है )
19990805_0830_Prajaa Mein Prem Ka
1550
Bartaav ( प्रजा में प्रेम का बरताव )
19990805_1600_Ant Samay Mein Naam
Sunaana Chahiye ( अन्त समय में नाम सनु ाना 1551
चादहए )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५६

19990806_0518_Sabke Hit Ka Bhaav


1552
( सबके दहत का भाव )
19990806_0830_Bhagwan Ka Aishwarya
1553
Madhurya ( भगवान् का ऐश्वयथ माधयु थ )
19990806_1630_Lagan Aur Satsang Sunne
1554
Ki Vidya ( लगन और सत्सगां सनु ने की दवदध)
19990807_0518_Bhagwat Smriti Ke Liye
Main Bhagwan Hoon Maane ( भगवत्स्मृदत के 1555
दलए “मैं भगवान हँ” मानें )
19990807_0830_Gita 10 (09) ( गीता 10 (09) 1556
19990807_1630_Lobh Aur Kaam Se Mahaan
1557
Patan ( लोभ और काम से महान् पतन )
19990808_0518_Kam Se Kam Ek Yog Mein
1558
Poornata Ho ( कम से कम एक योग में पूणथता हो )
19990808_0830_Vidhi Nishedh Aur Drishti
1559
( दवदध दनषेध और दृदि )
19990808_1600_Gau Maata Aur Sanskriti Ki
1560
Raksha ( गौ माता और सस्ां कृ दत की रक्षा )
19990809_0518_Hum Bhagwan Ke
1561
Svabhaavik Hai ( हम भगवान् के स्वाभादवक हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५७

19990809_0830_Bhagwan Ke Vibhutiyon Ka
1562
Tatparya ( भगवान् की दवभूदतयों का तात्पयथ )
19990809_1630_Vaishnav Aur Smart Mat
1563
( वैष्णव और स्मातथ मत )
19990810_0518_Teen Yog ( तीन योग ) 1564
19990810_0830_Vibhutiyon Ka Varnan
1565
( दवभदू तयों का वणथन )
19990810_1600_Mauka Mat Gavaao
1566
Chetavini ( मौका मत गँवाओ- चेतावनी )
19990811_0518_Svarth Mein Svarth Nahin
1567
( स्वाथथ में स्वाथथ नहीं )
19990811_0830_Bhagwat Vibhutiyan
1568
( भगवत् दवभदू तयाँ )
19990811_1630_Hindu Sanskriti Ki Raksha
1569
( दहन्िू सांस्कृ दत की रक्षा )
19990812_0518_Hai Aur Nahin
1570
( “है” और “नहीं” )
19990812_0830_Bhagwan Ko Yaad Rakho
1571
( भगवान् को याि रखो )
19990812_1630_Kripa Se Katha Bhaagwat 1572
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५८

( कृ पा से कथा भागवत )
19990813_0518_Hardam Naam Jap
1573
( हरिम नाम जप )
19990813_0830_Vasudev Sarvam Aur Lekh
1574
Pathan ( वासिु वे : सवथम् और लेख पठन )
19990813_1630_Bhagwan Ke Hai Kripa Hai
1575
Bhaagwat ( भगवान् के हैं, कृ पा है भागवत )
19990814_0518_Prem Se Bhagwan Prakat
1576
Hote Hai ( प्रेम से भगवान् प्रकट होते हैं )
19990814_0830_Abhimaan Na Kare
1577
( अदभमान न करें )
19990814_1630_Parivar Niyojan Bhaagwat
1578
( पररवार दनयोजन - भागवत् )
19990815_0518_Dukh Mein Mauj
1579
( िुःु ख में मौज )
19990815_0800_Bhagwan Apne Aur Sabki
1580
Seva ( भगवान अपने और सबकी सेवा)
19990816_0518_Mukt Hone Par Mat Bhed
1581
Ka Kaaran ( मि ु होने पर मत भेि का कारण )
19990816_0830_Buraai Rahit Ho Jaave 1582
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३५९

( बरु ाई रदहत हो जावें )


19990817_0518_Koi Ek Maalik Hai
1583
( कोई एक मादलक है )
19990817_0800_Bhagwan Ka Vishwaroop
Dikhana vasudev sarvam Gita 11 ( भगवान् का 1584
दवश्वरूप दिखाना वासिु ेव: सवथम् गीता 11 )
19990817_1630_Hum Bhagwan Ke
Bhagwan Hamare Bhaagwat ( हम भगवान् के 1585
भगवान् हमारे - भागवत )
19990818_0518_Do Prakar Ka Bhagwan
1586
Mein Pravesh ( िो प्रकार का भगवान् में प्रवेश )
19990818_0830_Bhagwan Hamare Sansar
1587
Hamara Nahin ( भगवान् हमारे ससां ार हमारा नहीं )
19990818_1630_Bhagwan Ke Sharan
1588
Bhaagwat ( भगवान् के शरण - भागवत )
19990819_0518_Sabke Hit Ka Bhaav
1589
( सबके दहत का भाव )
19990819_0800_Arjun Ko Vishwaroop
Dikhana Gita 11 ( अजथनु को दवश्वरूप दिखाना - 1590
गीता 11 )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६०

19990819_1630_Bhagwan Ki Kripa
1591
Bhaagwat ( भगवान् की कृ पा - भागवत )
19990820_0518_Apna Kuch Nahin
1592
Sadupyog Kare ( अपना कुि नहीं सिपु योग करें )
19990820_0800_Abhiman Bhale Hi Kar Le
Hota Hai Kripa Se ( अदभमान भले ही कर लें, होता 1593
है कृ पा से )
19990820_1630_Bhagwan Ki Smriti
1594
Bhaagwat ( भगवान् की स्मृदत - भागवत )
19990821_0518_Bhaav Ke Anusar Laabh
1595
( भाव के अनसु ार लाभ )
19990821_0830_Baalakon Ke Prati
1596
( बालकों के प्रदत)
19990821_1630_Katha Sab Ko Priya Hai
1597
Bhaagwat ( कथा सबको दप्रय लगती है - भागवत )
19990822_0518_Hum Bhagwan Ke Ghar Ke
Yeh Sab Musafiri ( हम भगवान् के घर के , ये सब 1598
मसु ादफरी )
19990822_0830_Santo Se Laabh (सांतों से लाभ) 1599
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६१

19990822_1630_Aagya Paalan Seva Karo


1600
Bhaagwat ( आज्ञा पालन, सेवा करो - भागवत )
19990823_0518_Chetan Ka Swaroop
1601
( चेतन का स्वरूप )
19990823_0800_Vishwaroop Darshan Ka
Upsanhar Gita ( दवश्वरूप िशथन का उपसहां ार गीता 1602
11)
19990823_1630_Musalmaan Hindu Vaapas
Kaise Bane Bhaagwat ( मसु लमान दहन्िू वापस कै से 1603
? बने - भागवत )
19990824_0518_Hum Is Ghar Ke Nahin
1604
( हम इस घर के नहीं )
19990824_0830_Shreshth Bhakt ( श्रेष्ठ भि ) 1605
19990824_1630_Bhagwan Mein Lage
1606
Bhaagwat ( भगवान् में लगें - भागवत )
19990825_0518_Hum Sharir Nahin
1607
( हम शरीर नहीं )
19990825_0830_Nirgun Upaasako Ko
Bhagwan Ki Prapti ( दनगथणु उपासकों को भगवान् 1608
की प्रादप्त )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६२

19990826_0518_Jad Chetan Vibhaag


1609
( जड़ – चेतन दवभाग )
19990826_0800_Gita 12 (05 se 13)
1610
( गीता 12 (05 से 13 )
19990827_0518_Gyan Netro Se Dekhna
1611
( ज्ञान नेत्रों से िेखना )
19990827_1600_Karma Fal Samay Paakar
1612
Pakta Hai ( कमथ फल समय पाकर पकता है )
19990828_0518_Teen Yog ( तीन योग ) 1613
19990828_0800_Sukh Iccha Se Dukh Hota
1614
Hai ( सख ु इच्िा से िुःु ख होता है )
19990828_1600_Nashaa Tyag ( नशा त्याग ) 1615
19990829_0518_Hum Bhagwan Ke Sharir
Sansar Hamara Nahin ( हम भगवान् के , शरीर 1616
हमारा नहीं)
19990829_0800_Gita 12 Bhakt Ke Lakshan
1617
( गीता 12 भि के लक्षण )
19990829_1600_Hum Parmatma Ke Hai
1618
( हम परमात्मा के हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६३

19990830_0518_Yeh Cheeje Hamari Nahin


1619
Hai ( ये चीजें हमारी नहीं है )
19990830_0800_Kshetra Kshetagya Ka
Vivechan Gita 13 ( क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का दववेचन गीता 1620
13 )
19990830_1600_Parmarthik Unnati Kyo
1621
Nahin Hoti ( पारमादथथक उन्नदत क्यों नहीं होती )
19990831_0518_Bhog Ko Chodkar
Parmatma Mein Lage ( भोग को िोङकर परमात्मा 1622
में लगें )
19990831_0800_Gyan Ke Saadhan
1623
( ज्ञान के साधन )
19990831_1630_Kripa Se Path Ka Avsar
1624
Ramayan ( कृ पा से पाठ का अवसर रामायण )
19990901_0830_Nirdosh Kaise Bane
1625
( दनिोष कै से बनें ?)
19990901_1630_Pushp Vatika Ramayan
1626
( पष्ु प वादटका — रामायण )
19990902_0518_Hamare Mein Dosh Nahin
1627
( हमारे में िोष नहीं हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६४

19990902_0830_Gita 13 ( गीता 13 ) 1628


19990902_1630_Vivah Prasang Ramayan
1629
( दववाह प्रसांग रामायण )
19990903_0518_Nirdoshta Svabhaavik Hai
1630
( दनिोषता स्वभादवक है )
19990903_0830_Prakriti Purush Ka
1631
Vivechan ( प्रकृ दत परुु षाथथ का दववेचन )
19990903_1630_Taapas Prasang Ramayan
1632
( तापस प्रसांग रामायण )
19990903_2330_Janmashtami ( जन्मािमी ) 1633
19990904_0518_Doosre Ko Dhani Dekhkar
Prasann Hona Chaahiye ( िसू रों को धनी िेखकर 1634
प्रसन्न होना चादहए )
19990904_0800_Nandotsav_Bhajan
1635
( नन्िोत्सव भजन )
19990904_1630_Bharat Charitra Seva
1636
Ramayan ( भरत चररत्र सेवा रामायण )
19990905_0518_Bhagwan Ko Maane Na
1637
Maane ( भगवान् को मानें न मानें )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६५

19990905_0800_Sab Mein Bhagwat Darshan


1638
vasudev ( सब में भगवत िशथन वासिु ेव: सवथम् )
19990905_1630_Garbhpaat Goli Se Haani
1639
Ramayan ( गभथपात गोली से हादन रामायण )
19990906_0518_Bhagwan Hi Apne Hai
1640
( भगवान् ही अपने हैं )
19990906_0800_Gita 13 (31) ( गीता 13 (31) 1641
19990906_1630_Dhol Gavar Ramayan
1642
( िोल, गँवार रामायण )
19990907_0518_Mera Hai Hi Nahin
1643
( मेरा है ही नहीं )
19990907_0800_Gita 13 (32 se 33)
1644
( गीता 13 (32 से 33 )
19990907_1630_Ayodhya Mein Ma Ka
Ashcharya Ramayan ( अयोध्या में माँ का आश्चयथ - 1645
रामायण )
19990908_0518_Acche Bano ( अच्िे बनो ) 1646
19990908_0830_Gita 13 ( गीता 13 ) 1647
19990908_1630_Apni Pakad Chod De
1648
Ramayan ( अपनी पकड़ िोड िें - रामायण )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६६

19990909_0518_Sansar Apna Nahin Seva Ke


1649
Liye Hai ( सांसार अपना नहीं, सेवा के दलए है )
19990909_0930_Bhajan Mein Lago
1650
( भजन में लगो )
19990909_1630_Doosro Ki Seva Bhagwan
1651
Ki Yaad ( िसू रों की सेवा, भगवान् की याि )
19990910_0518_Satsang Durlabh Savdhaan
Raho ( सत्सांग िल
ु थभ, सावधान रहो ) 1652

19990910_0830_Dhanpati Bano Dhandas


1653
Nahin ( धनपदत बनो, धन िास नहीं)
19990910_1600_Matri Shakti Ka Tiraskar
1654
Na Kare (मातृशदि का दतरस्कार न करें )
19990911_0518_Gyan Aur Bhakti Se Ek
Parmatma Hi Hai ( ज्ञान और भदि से एक परमात्मा 1655
ही है )
19990911_0830_Shuddh Ann Jal Ka Sevan
1656
Kare ( शद्ध ु अन्न –जल का सेवन करें )
19990911_1630_Durgun Duraachar Tyage
1657
( िगु थणु िरु ाचार त्यागें )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६७

19990912_0518_Teen Yog ( तीन योग ) 1658


19990912_0830_Kab Lagenge Chetavini
1659
( कब लगेंगे ? चेतावनी )
19990912_1630_Duraachar Tyagen
1660
( िरु ाचार त्यागें )
19990913_0518_Hai Aur Nahin ( है और नहीं ) 1661
19990913_0830_Kalyan Ka Upay Pooncho
1662
( कल्याण का उपाय पिू ो )
19990913_1600_Parivar Niyojan Mahaan
1663
Ghaatak ( पररवार दनयोजन महान् घातक )
19990914_0518_Par Hit ( परदहत ) 1664
19990914_0830_Par Dukh Dukh Sukh Sukh
1665
( पर िुःु ख िुःु ख सखु सख
ु )
19990914_1630_Gita 06 (32) ( गीता 06 (32) 1666
19990915_0518_Chintan Parmatma Ka Ho
Sansar Ka Nahin ( दचन्तन परमात्मा का हो सांसार का 1667
नहीं )
19990915_0830_Choti Rakhen ( चोटी रखें) 1668
19990915_1630_Varnashram Se Bhaav
1669
Shreshth ( वणाथश्रम से भाव श्रेष्ठ )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६८

19990916_0518_Virodh Na Karke Upeksha


1670
Karo ( दवरोध न करके उपेक्षा करो )
19990916_0830_Khamat Khaamna Kshama
Karna magan rahana (खमत खम्मा – क्षमा करना 1671
मगन रहना )
19990916_1630_Jeevan Shuddh Banaave
Kalyan Hota Hai ( जीवन शद्ध ु बनावें कल्याण होता 1672
है )
19990917_0518_Prem Ras ( प्रेम रस ) 1673
19990917_0830_Sanskrit Vidyarthiyon Se
1674
QnA ( सस्ां कृ त दवद्यादथथयों से प्रश्नोत्तर )
19990917_1600_Doosro Se Matlab Nahin
1675
( िसू रों से मतलब नहीं )
19990917_2130_Kaaryakartao Ke Prati
1676
( कायथकताथओ ां के प्रदत )
19990918_0518_Gyan Aur Prem
1677
( ज्ञान और प्रेम )
19990918_0830_Radhashtami Keertan
1678
( राधािमी कीतथन )
19990918_1600_Gau Raksha ( गौ रक्षा ) 1679
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३६९

19990919_0518_Hai Ek Sam Shaant


1680
( “है” एक सम – शान्त )
19990919_0830_Kalyan Ki Saar Baaten
1681
( कल्याण की सार बातें )
19990919_1600_Sab Ke Hit Ke Upay ( सब के
1682
दहत के उपाय )
19990920_0518_Jad Vibhaag Apna Nahin
1683
( जड़ – दवभाग अपना नहीं )
19990920_0830_Hindu Sanskriti Ki Raksha
Bhagwan Ki Yaad ( दहन्िू सांस्कृ दत की रक्षा, भगवान् 1684
की याि )
19990920_1630_Seva Aur Bhagwat Smriti
1685
( सेवा और भगवत्स्मृदत )
19990921_0518_Hai Ek Parmatma ( “है” एक
1686
परमात्मा )
19990921_0830_Satsang Ki Saar Baaten
1687
( सत्सगां की सार बातें )
19990921_1600_Satsang Ka Upsanhaar
1688
( सत्सांग का उपसांहार )
19990922_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 1689
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७०

19990922_1630_Bhagwan Ke Hi Hai 1690


( भगवान् के ही हैं )

चातमाास 2000 के 178 प्रवचन (ितनग़ि) – पिम


श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज
20000712_0830_Bhagwad Sambandh
1691
Sweekar Kare ( भगवत्सम्बन्ध स्वीकार करें )
20000712_1600_Samay Ka Mahatva Samjhe
1692
( समय का महत्त्व समझें )
20000713_0518_Teen Yog Ka Vivechan
1693
( तीन योग का दववेचन )
20000713_0830_Satsang Ki Durlabhta
1694
( सत्सगां की िल ु थभता )
20000713_1600_Tyagashanti Anantaram
1695
Gita 12 (12) ( त्यागाच्िादन्तरनन्तरम् गीता 12 (12) )
20000714_0518_Nitya Yog Ki Prapti
1696
( दनत्य योग की प्रादप्त )
20000714_0830_Santo Aur Bhagwan Ki
1697
Aagya Se(सन्तो और भगवान् की आज्ञा से लाभ)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७१

20000714_1600_Jaanna Maanna Aur Karna


1698
( जानना, मानना और करना )
20000715_0518_Tatva Paripoorna Hai
1699
( तत्त्व पररपणू थ है )
20000715_0830_Bhagwan Apne Hai
1700
Sweekar Kare ( भगवान् अपने हैं स्वीकार करें )
20000715_1600_Prayagdasji ki Katha
1701
( प्रयागिासजी की कथा )
20000716_0518_Bhagwan Apne Hai
1702
( भगवान अपने हैं )
20000716_0830_Sharnagati ( शरणागदत ) 1703
20000716_1600_Bhagwat Kripa ( भगवत्कृ पा) 1704
20000717_0518_Sansar Ka Abhaav Hi Satya
1705
Hai ( ससां ार का अभाव ही सत्य है )
20000717_0830_Paraa Bhakti Ki Prapti
1706
( पराभदि की प्रादप्त )
20000717_1600_Prasannata Satsang Ka Fal
1707
( प्रसन्नता सत्सगां का फल )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७२

20000718_0518_Sansar Ka Sambandh Dukh


Ka Mool Kaaran ( सांसार का सम्बन्ध िुःु ख का मल ू 1708
कारण )
20000718_0830_Sharnagati Sugam Aur
1709
Shreshth ( शरणागदत सगु म और श्रेष्ठ )
20000718_1600_Ahamta Parivartan Se
1710
Vilakshanta (अहतां ा पररवतथन से दवलक्षणता )
20000719_0518_Akriyata Se Param Vishram
1711
( अदियता से परम दवश्राम )
20000719_0830_Asli Lagan Badhaao ( असली
1712
लगन बढ़ाओ )
20000719_1600_Sukhi Parivar ( सख ु ी पररवार ) 1713
20000720_0518_Parmatma Hai Sansar Nahin
1714
( परमात्मा है सांसार नहीं )
20000720_0830_Hum Yahan Ke Nahin Hai
1715
Chet Karo ( हम यहाँ के नहीं हैं चेत करो )
20000720_1600_Kirtan Mahima
1716
( कीतथन मदहमा )
20000721_0518_Sharir Sansar Ki Seva Ke
1717
Liye ( शरीर सांसार की सेवा के दलए )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७३

20000721_0830_Sharnagati Sugam
Sarvashreshth Saadhan ( शरणागदत सगु म सवथश्रेस्ठ 1718
साधन )
20000721_1600_Parivar Niyojan Se Haani
1719
( पररवार दनयोजन से हादन )
20000722_0518_vasudev sarvam
1720
(वासिु वे :सवथम् )
20000722_0830_Grihast Mein Bhi Kalyan
1721
Sambhav ( गृहस्थ में भी कल्याण सम्भव )
20000722_1600_Karma Rahasya ( कमथ रहस्य ) 1722
20000723_0518_Chet Karo ( चेत करो ) 1723
20000723_0830_Hindu Dharma Mein Maa
1724
Ka Aadar (दहन्िू धमथ में माँ का आिर)
20000723_1600_Grihast Mein Kaise Rahe
1725
( गृहस्थ में कै से रहें ? )
20000724_0518_Gita 13 (27) ( गीता 13 (27) ) 1726
20000724_0830_He Naath Bhooloo Nahin
1727
Pukar ( हे नाथ भल ू ँू नहीं ! – पक
ु ार )
20000724_1600_Milne Bichurnevaala Apna
1728
Nahin ( दमलने दबिुड़नेवाला अपना नहीं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७४

20000725_0518_Hum Bhagwan Ke Hai


1729
( हम भगवान् के हैं )
20000725_0830_Bhagwan Se Apnapan
1730
( भगवान् से अपनापन )
20000725_1600_Sharnagati Ke Sab Adhikari
1731
( शरणागदत के सब अदधकारी )
20000726_0518_Teen Yog Ka Vivechan
1732
( तीन योग का दववेचन )
20000726_0830_Bhaktiheen Na Mohe Sohe
1733
Praani ( भदिहीन न मोहे सोहे प्राणी )
20000726_1600_Gita 07 ( गीता 07 ) 1734
20000727_0518_Akriyata Se Prapti
1735
( अदियता से प्रादप्त )
20000727_0830_Jahi Vidhi Rakhe Ram
1736
( जाही दवदध राखे राम )
20000727_1600_Grihast Mein Rahne Ki
1737
Vidya ( गृहस्थ में रहने की दवद्या )
20000728_0518_Gita 09 (19) ( गीता 09 (19) ) 1738
20000728_0830_vasudev sarvam
1739
( वासिु वे :सवथम् )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७५

20000728_1600_Parivar Niyojan Ka Nishedh


1740
( पररवार दनयोजन से हादन )
20000729_0518_Bhagwan Hamare Apne Hai
1741
( भगवान् हमारे अपने हैं )
20000729_0830_Gita 07 (14) ( गीता 07 (14) ) 1742
20000729_1600_Apne Honepan Ka Anubhav
1743
( अपने होनेपन का अनभु व )
20000730_0518_Sharir Sansar Ka Hum
1744
Bhagwan Ke (शरीर सांसार का, हम भगवान् के )
20000730_0830_Gyani Bhakt Ki Mahima
1745
( ज्ञानी भि की मदहमा )
20000730_1600_Chinta Shok Aadi Kaise
1746
Mite ( दचन्ता शोक आदि कै से – दमटे? )
20000731_0518_Acchah Pad ( अचाह पि ) 1747
20000731_0830_Gita 07 (20 se 24) ( गीता 07
1748
(20 से 24 )
20000731_1600_Parivar Niyojan Ka Nishedh
1749
( पररवार दनयोजन का दनषेध )
20000801_0518_vasudev sarvam
1750
( वासिु वे : सवथम् )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७६

20000801_0830_Gita 07 (25 se 27) ( गीता 07


1751
(25 से 27 )
20000801_1600_Bhagwat Ke Ant Mein
1752
( भागवत् के अांत में )
20000802_0518_Gita 08 (22) 02 (17) ( गीता
1753
08 (22) 02 (17)
20000802_0830_Gita 07 (26 se 28) ( गीता 07
1754
(26 से 28)
20000802_1600_Bhagwat Ke Ant Mein
1755
( भागवत के अांत में )
20000803_0518_vasudev sarvam
1756
( वासिु वे : सवथम् )
20000803_0830_Titiksha Badhaao Gita 07
1757
( दतदतक्षा बढ़ाओ गीता 07 )
20000803_1700_Milne Bichurnevaali Apni
1758
Nahin ( दमलने दबिुड़नेवाली अपनी नहीं )
20000804_0518_Laukik Parlaukik Saadhna
1759
( लौदकक – पारलौदकक साधन )
20000804_0830_Gita 08 (1 se 5)
1760
( गीता 08 (1से 5)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७७

20000804_1700_Bhagwan Mein Lage


1761
( भगवान् में लगें )
20000805_0518_Laukik Parlaukik Saadhna
1762
( लौदकक पारलौदकक साधन )
20000805_0830_Panchamrit ( पञ्चामृत ) 1763
20000805_1700_Bhagwan Se Bhakti
1764
Maango ( भगवान् से भदि माँगो )
20000806_0518_Milne Bichurnevaali Apni
1765
Nahin ( दमलने दबिुड़नेवली अपनी नहीं )
20000806_0830_Ant Mati So Gati Tulsidasji
Ki Tithi_VV ( “अांत मदत सो गदत” – तुलसीिासजी 1766
दतदथ )
20000806_1700_Parivar Niyojan Garbhpaat
1767
Nishedh ( पररवार दनयोजन, गभथपात दनषेध )
20000807_0518_Parmatma Sarvavyapak Hai
1768
( परमात्मा सवथव्यापक है )
20000807_0830_Pratikoolta Saadhak Ki
1769
Kasauti ( प्रदतकूलता साधक की कसौटी )
20000807_1700_Bhakto Ki Katha Bhagwan
1770
Sunte ( भिों की कथा भगवान् सनु ते हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७८

20000808_0518_Bhakt Aur Bhagwan Ka


1771
Prem ( भि और भगवान् का प्रेम )
20000808_0830_Sweekriti Se Jeevan
1772
Parivartan ( स्वीकृ दत से जीवन पररवतथन )
20000808_1700_Plastic Thailiyon Ka
1773
Nishedh ( प्लादस्टक थैदलयों का दनषेध )
20000809_0518_Sansar Ki Vastuo Se Sansar
1774
Ki ( सांसार की वस्तुओ ां से सांसार की सेवा )
20000809_0830_Santo Ki Mahima
1775
(सन्तों की मदहमा )
20000809_1700_Anukoolta Pratikoolta Se
1776
Kripa ( अनक ु ू लता — प्रदतकूलता से कृ पा )
20000810_0518_Sansar Nirantar Badalta Hai
1777
( सांसार दनरन्तर बिलता है )
20000810_0830_Grihast Mein Rehne Ki
1778
Vidya ( गृहस्थ में रहने की दवद्या )
20000810_1700_Krishna Lila Pad
1779
( कृ ष्ण लीला पि )
20000811_0518_Sharir Sansar Ki Seva Ke
1780
Liye ( शरीर सांसार की सेवा के दलए )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३७९

20000811_0830_Apni Neeyat Theek Rakhe


1781
( अपनी नीयत ठीक रखें )
20000811_1700_Mata Pita Ki Seva
1782
( माता दपता की सेवा )
20000812_0518_Jiigyasu Ko Prapti
1783
( दजज्ञासु को प्रादप्त )
20000812_0830_Ahamta Parivartan
1784
( अहांता पररवतथन )
20000812_1700_He Mere Naath Bhooloo
1785
Nahin Pukar ( “हे मेरे नाथ भल ू ँू नहीं” — पक
ु ार )
20000813_0518_Sagun Ki Sugamta
1786
( सगणु की दवशेषता )
20000813_0830_Durvyasano Ka Tyag
1787
( िव्ु यथसनों का त्याग )
20000813_1700_Gita Press Ke Vishay Mein
1788
( गीताप्रेस के दवषय में )
20000814_0518_Jad Se Chetan Ki Prapti
1789
Nahin ( जड़ से चेतन की प्रादप्त नहीं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८०

20000814_0830_Parivar Niyojan Se
Aacharan Bhrasht ( पररवार दनयोजन से आचरण 1790
भ्रि)
20000814_1600_Bhagwat Ke Antargat Gita
1791
11(33) (भागवत के अांतगथत गीता 11 (33))
20000815_0518_Sharir Main Nahin Mera
1792
Nahin ( शरीर 'मैं' नही 'मेरा' नहीं )
20000815_0830_Bado Ki Aagya Paalan Se
1793
Laabh ( बड़ों की आज्ञापालन से लाभ )
20000816_0518_Parmatma Sarvatra Samaan
1794
Hai ( परमात्मा सवथत्र समान है )
20000816_0830_Gita 08 (16) ( गीता 08 (16) ) 1795
20000816_1600_Bhagwat Smaran Aur
1796
Sansar Ki ( भगवत्स्मरण और सांसार की सेवा )
20000817_0518_Mili Hui Cheeze Sansar Ki
Seva Ke Liye ( दमली हुई चीज ससां ार की सेवा के 1797
दलए )
20000817_0830_Manushya Janam Ka
1798
Uddeshya Prapti ( मनुष्य जन्म का उद्देश्य प्रादप्त )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८१

20000817_1600_Bhagwan Se Apna Parichay


1799
Banaao ( भगवान् से अपना पररचय बनाओ )
20000818_0518_He Naath Bhooloo Nahin
1800
Pukar ( “हे नाथ भल ू ँू नहीं” - पक
ु ार )
20000818_0830_Sacche Hriday Se Bhagwan
1801
Mein (सच्चे हृिय से भगवान् में लगें)
20000818_1600_Sarvabhoot Hite Rata
1802
( सवथभतू दहते रताुः)
20000819_0518_Mili Hui Vastu Sansar Ki
Seva Ke Liye ( दमली हुई वस्तु सांसार की सेवा के 1803
दलए )
20000819_0830_Milne Bichurnevaali Cheez
1804
Apni Nahin ( दमलने दबिुड़नेवाली चीज अपनी नहीं )
20000819_1600_Sarvottam Bhagwan
1805
( सवोत्तम भगवान् )
20000820_0518_Jad Chetan Vibhaag ( जड़ –
1806
चेतन दवभाग )
20000820_0830_Chet Karo ( चेत करो ) 1807
20000820_1700_Path Ka Vialkshan Avsar
1808
Ramayan ( पाठ का दवलक्षण अवसर - रामायण )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८२

20000821_0518_Aparaa Prakriti Sansar Ki


1809
Seva Ke Liye ( अपरा प्रकृ दत सांसार की सेवा के दलए)
20000821_0830_Kaamna Se Andhakar
1810
( कामना से अांधकार )
20000821_1700_Pushp Vatika Prasang
1811
Ramayan ( पष्ु प वादटका प्रसगां - रामायण )
20000822_0518_Buraai Ka Tyag
1812
( बरु ाई का त्याग )
20000822_0830_Gita 08 (24 se 26)
1813
( गीता 08 (24 से 26)
20000822_1700_Vivah Ka Anand Ramayan
1814
( दववाह का आनांि - रामायण )
20000823_0518_Sharir Sansar Ki Seva Ke 1815
Liye ( शरीर सांसार की सेवा के दलए )
20000823_0830_Bhajan Sthalo Aur Tirtho
Mein Bhajan Ka Prabhaav 1816
( भजन स्थलों और तीथो में भजन का प्रभाव )
20000823_1700_Taapas Prasang Ramayan
1817
( तापस प्रसांग - रामायण )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८३

20000824_0518_Vastu Sharir Yogyata Aadi


1818
Apni Nahin ( वस्तु, शरीर, योग्यता आदि अपनी नहीं )
20000824_0830_Nandotsav ( नन्िोत्सव ) 1819
20000824_1700_Keval Bhagwan Hamare
1820
Hai Ramayan ( “के वल भगवान हमारे है” - रामायण)
20000825_0518_Sharir Sansar Ka Hum
1821
Parmatma (शरीर, ससां ार का, हम परमात्मा के )
20000825_0830_Sharir Ghar Aadi Apne
1822
Nahin ( शरीर, घर आदि अपने नहीं )
20000825_1700_Bhagwan Se Bhakti
1823
Maango Ramayan ( भगवान् से भदि माांगो रामायण)
20000826_0518_Sharir Ki Sansar Se Hamari
Parmatma Se Ekta ( शरीर की ससां ार से हमारी 1824
परमात्मा से एकता )
20000826_0830_Nai Baat Ke Liye Vishesh
1825
Utsaah Rakkhe ( नई बात के दलए दवशेष उत्साह )
20000826_1700_Burai Ka Tyag Ramayan
1826
( बरु ाई का त्याग - रामायण )
20000827_0518_Teen Yog Ka Vivechan
1827
( तीन योग का दववेचन )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८४

20000827_0830_Satya Ki Sweekriti Se
1828
Shanti ( सत्य की स्वीकृ दत से शादन्त )
20000827_1700_He Nath Bhooloo Nahin
1829
Ramayan ( “हे नाथ भल ू ँू नहीं” - रामायण )
20000828_0518_Sharir Apna Nahin Apne
1830
Liye (शरीर अपना नहीं, अपने दलए नहीं)
20000828_0830_Hriday Ki Asli Lagan Ki
1831
Kami ( हृिय की असली लगन की कमी )
20000828_1700_Ram Rajya Abhishek
1832
Ramayan ( राम राज्यादभषेक रामायण )
20000829_0518_Sharir Main Nahin Mera
1833
Nahin ( शरीर “मैं” नहीं “मेरा” नहीं )
20000829_0830_Manushya Jeevan Ke
Samay Ki Mahatta ( मनुष्य जीवन के समय की 1834
महत्ता )
20000829_1600_Sugamta Se Prapti Ka
1835
Durlabh Mauka ( सगु मता से प्रादप्त का िल ु थभ मौका )
20000830_0518_Bhakti Marg Mein Sugamta
1836
( भदि मागथ में सगु मता )
20000830_0830_Vishay Nivritti Ke Upay 1837
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८५

( दवषय दनवृदत्त के उपाय )


20000830_1600_Sarvabhoot Hite Rata
1838
( सवथभतू दहते रताुः )
20000831_0518_Sharir Buddhi Vidya Sansar
1839
Ke Liye (शरीर बदु द्ध दवद्या सांसार के दलए )
20000831_0830_vasudev sarvam
1840
( वासिु वे : सवथम् )
20000831_1600_Bhagwat Sambandh
Sweekriti Sugam Marg ( भगवत सम्बन्ध स्वीकृ दत 1841
सगु म मागथ )
20000901_0518_Mili Hui Cheez Apni Nahin
1842
( दमली हुई चीज़ अपनी नहीं )
20000901_0830_Saral Hriday Se Bhagwan
Ke Sharan Sharnagati 1843
( सरल हृिय से भगवान् के शरण शरणागदत )
20000901_1600_Dukh Ke Parinam Mein
Bhayankar Dukh Bhogna Padta Hai 1844
( िुःु ख के पररणाम में भयांकर िुःु ख भोगना पड़ता है )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८६

20000902_0518_Manushya Sansar Bhagwan


Aur Apne Liye Upyogi 1845
( मनुष्य सांसार भगवान और अपने दलए उपयोगी )
20000902_0830_Prapti Ke Liye Jeevan
Uddeshya 1846
( प्रादप्त के दलए जीवन – उद्देश्य)
20000902_1600_Manushya Jeevan Ki
Aavashyak Baaten ( मनष्ु य जीवन की आवश्यक 1847
बातें )
20000903_0518_Gita Ki Vilakshan Reeti
1848
( गीता की दवलक्षण रीदत )
20000903_0830_Bhakti Ki Alukik
1849
Vilakshanta ( भदि की अलौदकक दवलक्षणता )
20000903_1600_Bhakt Mangalmay Vidhaan
Mein Anandit Rehta 1850
( भि मगां लमय दवधान में आनदन्ित रहता है )
20000904_0518_Parmatma Jaanne Mein
Nahin Maanne Mein Aate Hai ( परमात्मा जानने 1851
में नहीं मानने में आते हैं )
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८७

20000904_0830_Kripa Mein Vishwas


Rakhne Par Kalyan Hi Hoga ( कृ पा में दवश्वास 1852
रखने पर कल्याण ही होगा )
20000904_1600_Main Bhagwan Ka Hoon
Bhagwan Mere Hai ( मैं भगवान का हँ, भगवान मेरे 1853
हैं )
20000905_0518_Param Vishram Se
Parmatma Ki Prapti ( परम दवश्राम से परमात्मा की 1854
प्रादप्त )
20000905_0830_Gita Mein Pet Bharne Ki
1855
Vidya ( गीता में पेट भरने की दवद्या )
20000905_1600_Parivar Niyojan Garbhpaat
1856
( पररवार दनयोजन गभथपात )
20000906_0518_vasudev sarvam
1857
( वासिु ेव: सवथम् )
20000906_0830_Radha Ashtami ( राधािमी ) 1858
20000906_1600_Ekdeshiyata Kaise Mite
1859
( एक िेशीयता कै से दमटे ?)
20000907_0518_Param Vishram Kaise Mile
1860
( परम दवश्राम कै से दमले ?)
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८८

20000907_0830_Parivar Niyojan Garbhpaat


Se Bhayankar Dukh ( पररवार दनयोजन गभथपात से 1861
भयांकर िुःु ख )
20000907_1600_Apni Niyat Shudh Rakhe
1862
( अपनी नीयत शद्धु रखें )
20000908_0518_Hamara Swaroop Akriya
1863
हमारा स्वरूप अदिय )
20000908_0830_Shastra Anusar Aacharan Se
Shanti Aur Samvriddhi 1864
( शाि अनुसार आचरण से शादन्त और सांवदृ द्ध )
20000908_1600_Bhagwat Sambandh Ko
1865
Sweekar kare ( भगवत् सम्बन्ध को स्वीकार करें )
20000909_0518_Mili Hui Vastu Seva
1866
Samagri ( दमली हुई वस्तु सेवा सामग्री )
20000909_0830_Grihast Mein Rehne Ki
1867
Vidya ( गृहस्थ में रहने की दवद्या )
20000910_0518_Sharnagati ( शरणागदत ) 1868
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३८९

अन्य
20050629 अदन्तम प्रवचन नां. - 1 1869
20050630 अदन्तम प्रवचन नां. - 2 1870
19810410 Sethji Mahima ( सेठजी श्री जयियाल
1871
जी गोयन्िका की दवलक्षणता )
19810320_1400_ Chetavani ati ati vishesh
{ चेतावनी अदत दवशेष (खेड़ापा) सीखने की बात और 1872
सरलता से भगवत्प्रादप्त }

कृपया ध्यान दें-


श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसखु दासजी महाराज के इन ननत्प्य-
स्िनु ि ( इकहत्तर नदनों के सत्प्संग समदु ाय वाली सामग्री )
आनद और ग्यारह चािमु ाासों के प्रवचनों की ररकॉनडंग मेमोरी
काडा में क्रमसंख्या लगाकर भरी हई है । उन संख्या के
अनुसार , उस नम्बर का प्रवचन यतर में लगाकर िरु ति सनु ा
जा सकिा है । इस पस्ु िक के साथ-साथ वो सामग्री लेकर
और अनधक लाभ उठाया जा सकिा है ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३९०

(गीता २|१६; १८|७३)।

ये दोनों दचत्र श्रद्धेय स्वामीजी श्री िामसखदासजी महािाज द्वािा


बताये हुए सधाि के अनसाि बनाये गये हैं ।
गीता जी के इस आधे श्लोक (२|१६) में सब संतों की वाणी का साि
भिा हुआ है तथा वेदों , पिाणों , शास्त्रों औि भगवान् की वाणी का
भी साि भिा हुआ है ।
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३९१

।। श्रीहरि: ।।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीिामसखदासजी महािाज


द्वारा कल्याण प्रादप्त हेतु शरुु करवाये हुए
दनत्य-पाठ करने के दलये गीताजी के

पाुँच श्लोक ( गीता ४ / ६ से १० )

वसिु वे सतु ां िेवां कांसचाणरू मिथनम् ।


िेवकीपरमानन्िां कृ ष्णां वन्िे जगद्गरुु म् ।।
अजोऽदप सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्विोऽदप सन् ।
प्रकृदतं स्वामदधष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ६
यदा यदा ही धमास्य ग्लादनभावदत भाित ।
अभ्यत्थानमधमास्य तदात्मानं सज ृ ाम्यहम् ७
परित्राणाय साधूनां दवनाशाय च दष्कृताम् ।
धमासंस्थापनाथााय सम्भवादम यगे यगे ८
जन्म कमा च मे ददव्यमेवं यो वेदत्त तत्त्वतः ।
त्यक्त्वा देहं पनजा न्म नैदत मामेदत सोऽजान ९
वीतिागभयिोधा मन्मया मामपादश्रताः ।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः १०
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३९२

।। श्रीहरि: ।।

पच
ं ामतृ
१. हम भगवान् के ही हैं ।
२. हम भगवान् के घि(दिबाि) में िहते हैं ।
३. हम भगवान् का काम (कत्ताव्य-कमा)
किते हैं ।
४. हम भगवान् का प्रसाद(शद्ध सादत्त्वक-
भोजन) पाते हैं ।
५. हम भगवान् के ददये प्रसाद (कमाई)
से भगवान् के जनों की सेवा किते हैं ।

परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसख


ु दासजी महाराज
के 07 अगस्ि 1982, (08:18 बजे) वाले प्रवचन से
श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३९३

(१०) पस्तक दमलने का पता


श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत्- वाणी ३९४

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