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बानि नबिायकु अंब रनब गु रु हर रमा रमेस।

सु नमरर करहु सब काज सु भ, मंगल दे स नबदे स॥१॥

भगवती सरस्वती, श्रीगणे शजी, श्रीपावव तीजी, श्रीसू यवभगवाि, गु रुदे व, भगवाि शड् कर,
भगवती लक्ष्मी करो, स्वदे श और नवदे शमें सब कही ं कल्याण होगा॥१॥
(शुभ-कायव सम्बन्धी प्रश्न है तो सफलता नमलेगी।)

गु रु सरसइ नसं धूर बदि सनस सु रसरर सु रगाइ।


सु नमरर चलहु मग मुनदत मि, होइनह सु कृत सहाइ॥२॥

गु रुदे व, सरस्वती दे वी, गणे शजी, चन्द्रमा, गड् गाजी और कामधेिु का


स्मरण करणे मागव में प्रसन्न मिसे चलो, (तु म्हारे ) पुण्य सहायक होंगे॥२॥
(यात्रासम्बन्धी प्रश्नग हो तो यात्रा सफल होगी।)

नगरा गौरा गु रु िगप हर मंगल मंगल मू ल।


सु नमत करतल नसद्धि सब, होइ ईस अिुकुल॥३॥

श्रीसरस्वतीजी, पावव तीजी, गु रुदे व, गणे शजी, शकरजी और मंगलके दाता मंगल (ग्रह) का
स्मरण करिेसे दै व अिुकुल हो जाता है और सब नसद्धिय ं हाथमें आ जाती हैं ॥३॥
(सभी प्रकारके कायोमें सफलता होगी।)

भरत भारती ररपु दविु गु रु गिेस बु धवार।


सु नमरत सु लभ सधमव फल, नबद्या नबिय नबचार॥४॥

श्रीभरतलाल, सरस्वती दे वी, शत्रुघ्नकुमार, गु रुदे व, गणे शजी और बु धवार (के दे वता बुध) का
स्मरण करिेसे उत्तम धमवका फल, नवद्या, नविय तथा नवचार सु लभ हो जाते हैं ॥४॥
(यनद अध्ययि, धमवकायव, शास्त्र-चचाव सम्बन्धे प्रश्न॥ है तो सफलता होगी।)

सु रगु रु गु रु नसय राम गि राउ नगरा उर आनि।


जो कछु कररय सो होय सु भ, खुलनहं सु मंगल खानि॥५॥

दे वगु रु बृ हस्पनतजी, गु रुदे व, श्रीजािकीजी, श्रीरामजी, गणे शजी और सरस्वती दे वी


का हृदयमें ध्याि करकें जो कुछ नकया जाता है, पररणाम शुभ होता है और सु मड् गलकी खािें खुल जाती हैं
(बराबर कल्याण ही होता रहता है ।)॥५॥
(सभी प्रकारके प्रश्नों के नलये सफलता सू नचत होती है ।)

सु क्र सु नमरर गु रु सारदा गिपु लखिु हिु माि।


कररय काजु सब साजु भल, निपटनहं िीक निदाि॥६॥

दै त्यगु रु शुक्र, गु रुदे व, सरस्वती दे वी, गणे शजी, लक्ष्मणजी और हिुमाि् जी का


स्मरण करके सब काम करिा चानहये इससे सारी व्यवस्था ठीक हो जायगी और पररणाम भी अत्यन्त सु न्दर
होगा॥६॥
(सभी प्रकार के कायोंमें सपलता होगी)

तु लसी तु लसी राम नसय, सु नमरर लखिु हिुमाि।


काजु नबचारे हु सो करहु, नदिु नदिु बड़ कल्याि॥७॥

तु लसीदासाजी कहते हैं नक तुलसी (पौधे ) श्रीराम, जािकीजी. श्रीलक्ष्मणजी और


हिुमाि् जी का स्मरण करके जो कायव सोचा है , उसे करो। नदिोंनदि बड़ा कल्याण होगा॥७॥
(सभी प्रकारके कायोंमें

दसरथ राज ि ईनत भय, िनहं दु ख दु ररत दु काल।


प्रमुनदत प्रजा प्रसन्न सब, सब सु ख सदा सु काल॥१॥
महाराज दशरथके राज्यमें ि ईनत (अनतवृ नि, अिावृ नि, नटड्डी, चूहे तथा सु ग्ोंके उपद्रव तथा शत्रु राजओंनक
आक्रमण) का भय था, ि दु ुःख पाप या अकालका ही भय था। सारी प्रजा प्रसन्न थी, सब प्रकारका सु ख था सदा
सु काल (सु नभक्ष) रहता था॥१॥
(यनद प्रश्न नकसी भय या रोगानिवृ नत्तके सम्बन्धमें है तो वह भय या रोग दू र होगा।)

कौसल्या पद िाइ नसर, सुनमरर सु नमत्रा पाय।


करहु काज मंगल कुसल. नबनध हरर सं भु सहाय॥२॥
श्रीकौसल्याजीके चरणोमें मस्तक झुकाकर और सुनमत्राजीके चरणोंका स्मरण करके काम करो, आिन्द-मंगल होगा।
ब्रह्मा, नवष्णु और शंकरजी सहायक होंगे॥२॥
(सभी कायोंमे सफलता होगी।)

नबनधबस बि मृगया नफरत दीन्ह अन्ध मुनि साप।


सो सु नि नबपनत नबषाद बड़, प्रजनहं सोक सं तोष॥३॥
(महाराज दशरथका) दै ववश विमें आखेटके नलये घूमते समय अन्धे मुनििे शाप दे नदया॥ उसे सु िकर प्रजाको
बडीी़ नवपनत्तका बोध हुआ, महाि् दु ुःख शोक और सन्ताप हुआ॥३॥
(प्रश्न-फल अनििकी सू चिा दे ता है ।)

सु तनहत नबिती कीन्ह िृप, कुलगु रु कहा उपाउ।


होइनह भल सं ताि सु नि प्रमुनदत कोसल राउ॥४॥
महाराज दशरथिे पुत्रप्राद्धिके नलये प्राथविा की, कुलगु रु वनसष्ठजीिे उसका उपाय बतलाया (और कहा-) 'अच्छी
सन्ताि उत्पन्न होगी।' यह सु िक्र महाराज दशरथ अत्यन्त प्रसन्न हुए॥४॥
(सन्ताि-प्राद्धिसम्बन्धी प्रश्न है तो सफलता होगी।)

पुत्र जागु करवाइ ररनष राजनह दीन्ह प्रसाद।


सकल सु मंगल मू ल जग भू सुर आनसरबाद॥५॥
महनषव वनसष्ठजीिे पुत्रेनि - यज्ञ कराकर महाराजको प्रसाद नदया।
ब्राह्मणोंका आशीवाव द सं सारमें सभी श्रेष्ठ मंगलोंका॥ मूल (दे िेवाला) है ॥५॥
(प्रश्न-फल उत्तम है ।)

राम जिम घर घर अवध मंगल गाि निसाि।


सगु ि सु हावि होइ सत मंगल मोद निधाि॥६॥
श्रीरामका जन्म (अवतार) होिेपर अयोध्याके प्रत्येक घरमें मंगलगीत गाये जािे लगे , िौबत बजिे लगी। यह शकुि
शुभदायक है , कल्याण एवं प्रसन्नताका निधाि पुत्र होगा॥६॥

राम भरतु सािुज लखि दसरथ बालक चारर।


तु लसी सु नमरत सगु ि सु भ मंगल कहब पचारर॥७॥
तु लसीदासजी कहते हैं नक महाराज दशरथके चारों कुमार श्रीराम, भरत शत्रु घ्न तथा लक्ष्मणका स्मरण करिेसे शुभ-
शकुि और मंगल होता है , यह मैं घोषणा करके कह दे ता हूँ ॥७॥
(प्रश्न-फल शुभ है ।)

भू प भवि भाइन्ह सनहत रघुबर बाल नबिोद।


सु नमरत सब कल्याि जग, पग पग मंगल मोद॥१॥
महाराज दशरथके राजभविमें भाइयोंके साथ श्रीराम बालक्रीड़ा करते हैं । इसका स्मरण करिेसे सं सारमें सब प्रकार
कल्याण होता है और पद-पदपर (सवव दा) मंगल एवं आिन्द होता है ॥१॥
(प्रश्न- फल शुभ है ।)

करि बे ध चूड़ा करि, श्रीरघुबर उपबीत।


समय सकल कल्यािमय, मंजुल मंगल गीत॥२॥
श्रीरघुिाथजीके कणव वेध -सं स्कार, मुण्डि -सं स्कार और यज्ञेपवीत -सं स्कारके समय समस्त कल्याणमय सु न्दर
मंगलगीत गाये गये ॥२॥
(कणव - वे ध, यज्ञोपवीतानद संस्कारोंसे सम्बद्धन्धत प्रश्नर है तो फल शुभ होगा।)

भरत सत्रु सूदि लखि सनहत सु नमरर रघुिाथ।


करहु काज सु भ साज सब, नमलनहं सु मंगल साथ॥३॥
श्रीभरतजी, शत्रु घ्नकुमार और लक्ष्मणलालके साथ श्रीरघु िाजीका स्मरण करके काम करो, सभी सं योग उत्तम नमलेंगे,
कल्याणकारी साथी प्राि होंगे॥३॥

राम लखिु कौनसक सनहत सु नमरहु करहु पयाि।


लद्धच्छ लाभ जय जगत जसु , मंगल सगु ि प्रमाि॥४॥
श्रीराम-लक्ष्मणका नवश्वानमत्रजीके साथ स्मरण करके यात्रा करो। सं सारमें सु यश, नवजय तथा धिकी प्राद्धि होगी। यह
प्रामानणक मंगल शकुि है ॥४॥
(प्रश्न- फल शुभ है ।)

मुनिमखपाल कृपाल प्रभु चरिकमल उर आिु।


तजहु सोच, सं कट नमनटनह, सत्य सगु ि नजयूँ जािु॥५॥
मुनि नवश्वानमत्रजीके यज्ञकी रक्षा करिेवाले प्रभु श्रीरामके चरण-कमलको हृदयमें ले आओ, नचन्ता छोड़ दो, सं कट
दू र हो जायगा। इस शकुिको नचत्तमें सत्य समझो॥५॥
(नवपनत्तके दू र होिके सम्बन्धमें प्रश्ने है तो वह दू र होगी।)
हानि मीचु दाररद आनद अंत गत बीच।
राम नबमुख अघ आपिे गये निसाचर िीच॥६॥
श्रीरामसे नवमुख होिेपर आनद, अन्त और मध्य-सभी दशामें हानि, मौत, दररद्रता तथा कि है । (दे ख लो) श्रीरामसे
नवमुख िीच राक्षस अपिे ही पापसे िि हो गये ॥६॥

नसला साप मोचि चरि सु नमरहु तु लसीदास।


तजहु सोच, सं कट नमटनह, पूनजनह मि कै आस॥७॥
नशलारूप अहल्याके शापको छु डाी़िेवाले (श्रीरघु िाथजीके) चरणोंका स्मरण करो। तु लसीदासजी कहते हैं नक नचन्ता
छोड़ दो, सं कट दू र हो जायगा और मिकी अनभलाषा पूरी होगी॥७॥
(प्रश्न - फल शुभ है ।)

सीय स्वयं बर समउ भल, सगु ि साध सब काज।


कीरनत नबजय नबबाह नवनध, सकल सु मंगल साज॥१॥
श्रीजािकीजीके स्वयं वरका समय उत्तम है , यह शकुि सब कयोको नसि करिेवाला है । कीनतव , नवजय तथा नववाह
आनद कायोमें सब प्रकारके मंगलमय सं योग उपद्धस्थत होंगे॥१॥

राजत राज समाज महूँ राम भं नज भव चाप।


सगु ि सु हावि, लाभ बड़, जय पर सभा प्रताप॥२॥
राजाओंके समाजमें शंकरजीके धिुषको तोड़कर श्रीराम सु शोनभत हैं । यह शकुि सु हाविा है , बडाी़ लाभ होगा,
दु सरे की सभामें नवजय तथा प्रतापकी प्राद्धि होगी॥२॥

लाभ मोद मंगल अवनध नसय रघुबीर नववाहु।


सकल नसद्धि दायक समनउ सु भ सब काज उछाहु॥३॥
श्रीसीता-रामजीक नववाह लाभ तथा आिन्द-मंगलकी सीमा है ॥ यह समय बडाी़ शुभ तथा सभी नसद्धियोंको दे िेवाला
है , सभी कायोंमें उत्साह रहे गा॥३॥

कोसल पालक बाल उर नसय मेली जयमाल।


समउल सु हावि सगु ि भल, मुद मंगल सब काज॥४॥
श्रीअयोध्यािरे श (महाराज दशरथ) के कुमार (श्रीराम) के गलेमें श्रीजािकीजीिे जयमाला डाल दी। यह समय शुभ
है , शकुि उत्तम है , सब कयोमें आिन्द और भलाई होगी॥४॥

हरनष नबबु ध बरषनसं सु मि, मंगल गाि निसाि।


जय जय रनबकुल कमल रनब मंगल मोद निधाि॥५॥
दे वता प्रसन्न होकर पुष्प-वषाव कर रहे है , मंगलगीत गाये जा रहे हैं , िगारे बज रहे हैं , सूयवकुलरूपी कमल (को
प्रकुद्धित करिे) के नलये सू यवके समाि आिंद और मंगलके निधाि श्रीरामजीकी जय हो ! जय हो !॥५॥
(प्रश्नी - फल उत्तम है ।)

सतािंद पठये जिक दसरथ सनहत समाज।


आये नतरहुत सगु ि सु भ, भये नसि सब काज॥६॥
महाराज जिकजीिे अपिे कुलपुरोनहत शतािन्दजीको (अयोध्या) भे जा, महाराज दशरथ बरातके साथ जिकपुर
आये । (उिके) सभी कायव नसद् धु हुए। यह शकुि शुभ है ॥६॥

दसरथ पुरि परम नबधू , उनदत समय सं जोग।


जिक िगर सर कुमुदगि, तु लसी प्रमुनदत लोग॥७॥
तु लसीदास कहते हैं , नक इस (शुभ) समय (श्रीरामनववाह) का सं योग आिेसे (जिकपुरमें) महाराज दशरथरूपी
पूणव चंद्रका उदय हुआ है । इससे जिकपु रूपी सरोवरके कुमुदपुष्पके समाि सब लोग (िगरवासी) प्रफुद्धित हो
गये हैं ॥७॥
(यह प्रश्नप-फल नप्रयजिका नमलि बतलता है ।)

मि मलीि मािी मनहप कोक कोकिद बृं द।


सु हृद समाज चकोर नचत प्रमुनदत परमािंद॥१॥
(श्रीरामके धिुष्य तोड़् िेसे) चकवा पक्षी और कमलसमूहके समाि अनभमािी राजाओंका मि मनलि (म्लाि) हो
गया और (महाराज जिकके) नप्रयजिोंके समाजका नचत्त चकोरोंके समाि अत्यंन्त आिन्दसे प्रसन्न हो गया॥१॥
(यह शकुि नवपक्ष पर नवजय सू नचत करता है ।)

ते नह अवसर रावि िगर असगु ि असु भ अपार।


होनहं हानि भय मरि दु ख सू चक बारनहं बार॥२॥
उस समय रावणके िगर (लड् का) में अशुभदायक बहुत अनधक अपशकुि हुए, जो बार-बार यह सु नचत करते थे
नक हानि, भयकी प्राद्धत्प, मरण और दु ुःख होगा॥२॥
(यह शकुि अनिि सू नचत करता है ।)

मधु माधव दसरथ जिक, नमलब राज ररतु राज।


सगु ि सु वि िव दल सु तरु, फुलत फलत सु काज॥३॥
महाराज दशरथ और महाराज जिक चैत्र-वै शाखके समाि हैं , उिक नमलि ऋतु राज वसन्त है । इस समयके शकुि
उत्तम वृ क्षसे िवीि कोपल फूटिेके समाि हैं , जो शुभकायव रूपी पुष्प और फल दे ते हैं ॥३॥
(शुभकायव सम्बन्धी प्रश्न का फल सु खदायक है ।)

नबिय पराग सु प्रेम रस, सु मि सु भग सं बाद।


कुसु नमत काज रसाल तरु सगु ि सु कोनकल िाद॥४॥
उिकी (महाराज दशरथ और जिकजीकी परस्परकी नविम्रता पुष्प-पराग है , (परस्परका) उत्तम प्रेम रस (मधु ) है
और उिका परस्पर सं भाषण पुष्प है । इस समयका कायव (श्रीसीता-रामका नववाह) ही आमके वृ क्षमें पुष्प (मौर)
लगिा है , नजसमें शकुि कोनकलकी कूकके समाि होते हैं ॥४॥
(प्रश्न- फल उत्तम है ।)

उनदत भािु कुल भािु लद्धख लुके उलूक िरे स।


गये गूँ वाई गरूर पनत, धिु नमस हये महे स॥५॥
सू यवकुलके सू यव (श्रीराम) को उनदत दे खकर उिुओक
ं े समाि (अनभमािी) राजालोग अपिा गवव और सम्माि
खोकर नछप गये । मािो शंकरजीिे हो (अपिे) धिु षके बहािे उन्हें िि कर नदया॥५॥
(प्रश्न का फल पराजयसु चक तथा निकृि है ।)
चारर चारु दसरथ कुूँवर निरद्धख मुनदत पुर लोग।
कोसलेस मनथलेस को समउ सराहि जोग॥६॥
महाराज दशरथके चारों सु न्दर कुमारोंको दे खकर जिकपुरके लोग आिद्धन्दत हो रहे हैं । महाराज दशरथ तथा
महराज जिकका समय (सौभाग्य) प्रसं सा करिे योग्य है ॥६॥
(प्रश्न का फल उत्तम है ।)

एक नबताि नबबानह सब सु वि सु मंगल रूप।


तु लसी सनहत समाज सु ख सु कृत नसं धु दो उ भू प॥७॥
तु लसीदासजी कहते हैं -पुण्यके समुद्रस्वरूप दोिों िरे श (दशरथजी और जिकजी) एक ही मंडपके िीचे सु मंगलके
मूनतव माि रूप सभी (चारों) पुत्रोंका नववाह करके समाजके साथ सु खी हो रहे हैं ॥७॥
(नववाहनद मंगल-कायव संबधी प्रश्नाका फल उत्तम है ।)

दाइज भयउ् अिेक नबनध, सु नि नसहानहं नदनसपाल।


सु ख सं पनत सं तोषमय, सगु ि सु मंगल माल॥१॥
अिेक प्रकारसे (जिकजीद्वारा) दहे ज नदया गया, नजसे सु िकर नदक्पाल भी नसहाते । (ईष्याव करिे लगते ) हैं । यह
शकुि सु ख, सम्पनत्त तथा सन्तोषदायी एवं श्रेष्ठ मंगलपरम्पराका सू चक है ॥१॥

बर दु लनहनि सब परसपर मुनदत पाइ मिकाम।


चारु चारर जोरी निरद्धख दु हूँ समाज अनभराम॥२॥
मिकी साध पूणव होिेसे सभी वर एवं दु लनहिें परस्पर प्रसन्न हो रही हैं । इि सु न्दर चारों जोनड़योंको दे खकर दोिों
(अयोध्या और जिकपूरके) समाज अत्यन्त सु खी हैं ॥२॥
(प्रश्न - फल उत्तम है ।)

चररउ कुूँवर नबयानह पुर गविे दसरथ राउ।


भये मंजु मंगल सगु ि गु र सु र सं भु पसाउ॥३॥
महाराज दशरथ चारों कुमारोंका नववाह करके अपिे िगर (अयोध्या) को लौट गये । गु रु वनसष्ठ, दे वताओं तथा
शंकरजीकी कृपासे मंगलमय शकुि हुए॥३॥
(मड् गलकायव सम्बन्धी प्रश्नंका फल उत्तम है ।)

पंथ परसु धर आगमि समय सोच सब काहु।


राज समाज नवषाद बड़, भय बस नमटा उछाहु॥४॥
मागव में परशुरामजीके आ जािेके समय सभीको नचन्ता हो गयी। राजसमाजमें बड़ी उदासी छा गयी, भयके कारण
उत्साह िि हो गया॥४॥
(प्रश्नरका फल अशुभ है ।)

रोष कलुष लोचि भ्रु कुनट, पानि परसु धिु बाि।


काल कराल नबलोनक मुनि सब समाज नबलखाि॥५॥
क्रोधसे लाल िेत्र एवं टे ढीं भौहें नकये तथा हाथमें फरसा और धिुष्य-बाण नलये मुनि परशुरामजीको (साक्षात)
भयं कर कालके समाि दे खकर पूरा समाज दु ुःखी हो गया॥५॥
(प्रश्न फल निकृि है ।)
प्रभु नह सौनप सारं ग मुनि दीन्ह सु आनसरबाद।
जय मंगल सू चक सगु ि राम राम सं बाद॥६॥
प्रभु श्रीरामको अपिा शाड्व गधिुष्य दे कर मुनि परशुरामजीिे उन्हें आशीवाव द नदया। श्रीराम और परशुरामजीकीं
वाताव का यह शकुि नवजय और मंगल सू नचत करिेवाला है ॥६॥

अवध अिंद बधाविो, मंगल गाि निसाि।


तु लसी तोरि कलस पुर चूँवर पताका नबताि॥७॥
तु लसीदासजी कहते हैं नक अयोध्यामें आिन्दकी बधाई बज रही है , मंगल-गीत गाये जा रहे हैं , डं कोंपर चोट पड़
रही ं हैं : िगरमें तोरण बूँ धे हैं , कलश सजे हैं : चूँवर -पताका सनहत मंडप सजाये गये हैं ॥७॥
(प्रश्न- फल शुभ है ।)

सानज सु मंगल आरती, रहस नबबस रनिवासु ।


मुनदत मात पररछि चली ं उमगत हृदयूँ हुलासु ॥१॥
(अयोध्याका) रनिवास आिन्दमग्न हो गया। मंगल आरती सजाकर माताएूँ (वर-दु लनहिका) पररछि करिे चलीं।
हृदयमें आिन्दकी बाढ़ आ रही है ॥१॥
(प्रश्ना-फल शुभ है ।)

करनहं निछावरर आरती, उमनग उमनग अिुराग।


बर दु लनहि अिुरूप लद्धख सखी सराहनहं भाग॥२॥
सद्धखयाूँ प्रेमसे बार-बार उमंगलें आकर आरती करके न्योछावर करती हैं और वर तथा दु लनहिोंको परस्पर दे खकर
(अपिे) भाग्यको प्रशंसा करती हैं ॥२॥
(प्रश्न-फल उत्तम है ।)

मुनदत िगर िर िारर सब, सगु ि सु मंगल मू ल।


जय धु नि मुनि दुं दुभी बाजनहं बरषनहं फुल॥३॥
अयोध्या-िगरवासी सभी स्त्री - पुरुष प्रसन्न हैं । मुनिगण जयध्वनि कर रहे हैं और दे वता िगारे बजाकर पुष्प -
वषाव कर रहें हैं ॥ यह शकुि सु मंगलका मूल (मंगलदायी) है ॥३॥

आये कोसलपाल पुर, कुसल समाज समेत।


समउ सु ि सु नमरत सु खद, सकल नसद्धि सु भ दे त॥४॥
श्रीकोसलिाथ (महाराज दशरथ) बरातके साथ कुशलपूववक िगरमें आ गये । यह अवसर सु ििेसे तथा स्मरण
करिेसे सु ख दे िेवाले है और सभी शुभ नसद्धियाूँ दे ता है ॥४॥

रूप सील बय बं स गु ि, सम नबबाह भये चारर।


मुनदत राउ रािी सकल, सािुकूल नत्रपुरारर॥५॥
रूप, शील अवस्था, वं श और गु णमें चारों नववाह समाि हुए इससें महाराज (दशरथ) तथा सब रानियाूँ प्रसन्न हैं
नक भगवाि शंकर (हमारे ) अिुकुल हैं ॥५॥
(प्रश्नं फल शुभ है ।)

नबनध हरर हर अिुकुल अनत दशरथ राजनह आजु।


दे द्धख सराहत नसि सु र सं पनत समय समाजु॥६॥
आज महाराज दशरथके नलये ब्रह्मा, नवष्णु तथा शंकरजी अत्यन्त अिुकुल हैं । उिकी सम्पनत्त तथा सौभाग्यमय
समाजको दे खकर नसि तथा दे वतातक उिकी प्रशंसा करते हैं ॥६॥
(प्रश्न फल शुभ है ।)

सगु ि प्रथम उिचास सु भ, तु लसी अनत अनभराम।


सब प्रसन्न सु र भू नमसू र, गो गि गं गा राम॥७॥
तु लसीदासजी कहते हैं नक प्रथम सगव का यह उिचासवाूँ दोहा शुभ शकुिका सू चक, अत्यन्त सु न्दर है । दे वता,
ब्राह्मण, गायें, गं गाजी तथा श्रीराम-सभी प्रसन्न हैं ॥७॥

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