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Saraswati Stotra
Saraswati Stotra
अनुष्टुप
सरस्वती - सि्वाक्येन, सज्ज्ञानं के वलं भवेत् ।
जायते सववभव्येषु, स्वात्मकल्याण - भावना || 1 ||
सरस्वती के सि्वाक्यों से अर्ावत् आशीवावि से श्रुतञान (सि्ञान) के वलञान हो जाता है ।
इसी सरस्वती के प्रसाि से सभी भव्य जीवों में वनजात्मकल्याण की भावना उत्पन्न होती है
||1||
सरस्वती मया दृष्ट्या, प्रभुमुख प्रवावसनी ।
भारती भव्यवत्सल्या, स्वात्मतत्त्व - प्रकावशनी ॥ २ ॥
मेरी दृवष्ट में 1. सरस्वती, २. अहवन्मुख वनवावसनी,3.भारती, 4. भव्यवत्सल्या और 5
वनजात्मतत्त्व- प्रकावशनी अर्ावत् स्वतत्त्व को प्रकावशत करनेवाली है || २ ||
प्रवचनीय - ममवञा, सश
ु ब्ि - ब्रह्म-रूवपणी ।
सववभाषा ववशेषञा, वचिानिं ैक - रूवपणी ॥ 4 ॥
15. प्रवचनीय है, 16 ममवञा है, 17 सुशब्ि रूवपणी, 18 ब्रह्मरूवपणी अर्ावत सुन्िर शब्ि और
ब्रह्मरूप है, 19. सववभाषा है, 20.ववशेषञा है, 21. वचद्रूवपणी है, 22. आनंि-रूवपणी है,23 एक-
रूवपणी है ||४ ||
|| सरस्वती बृहन्नामस्तोत्रम् || 3 of 5
सहजमूवतव हैं; 121.तकव मूवतव है | 122. शुभंकरा है, 123 सुखंप्रिा है, 124 पंविता है "और 125
ववश्रुता है ||१६-१७||
भिं वववि-ववशेषा च, भंिवविी चानुत्तरा |
पच्ृ छावववि- ववशेषा च, पच्ृ छवविी च पष्ु कला ||१८||
126. भंिवविी है, 127 भंिववविववशेषा है, 128. पृच्छावविी है और 129. पृच्छाववविववशेषा
है, 130. अनुत्तरा है, 131· पुष्कला है ||१८||
प्रत्ना प्रवचनाद्धा च, प्रावचना प्रर्ा प्रिी |
प्रष्ठा प्रवचनार्ाव च, प्रवचना प्रबोविता ||१९||
132. प्रत्ना है, 133. प्रवचनाद्धा है, 134 प्रावचना है, 135 प्रर्ा है, 136 प्रिी है, 137 प्रष्ठा है,
138. प्रवचनार्ाव है, 133 प्रवचना है। और 140- प्रबोविता है ||१९||
हेतुवािा नयवािा, परवािा ववशारिा ।
मािववािा श्रतु वािा, प्रवरवाि - शारिा ||२०||
141 हेतुवािा है, 142 नयवािा, है, 143. परवािा है, 144 मािववािा है, 145· श्रतु वािा है, 146.
प्रवरवािा है, 147. शारिा है, और 148 ववशारिा है ||२०||
शभु ावन सववनामावन यिः शुद्धमनसा पठे त् |
ञानवृवद्धभववेत्तस्य काव्यकृवत - ववशारििः ||२१||
जो भव्यजीव शुद्धमन होकर इन 148 शुभ नामों को पढ़ता है उसके ञान की वृवद्ध होती है और
वह काव्यरचना में महारर् अर्ावत् ववशारि होता है ||२१||
उपजावत
आवित्य-तुल्योऽववचलो भवेत्सिः, कै वल्य-िामं लभते पठे द्यिः |
सरस्वती नाममयं प्रशंसां, कृत्वा च कमवप्रकृतेिः ववनाशम् ||२२||
॥ इवत सरस्वती बृहन्नामस्तोत्रं समाप्तम् ||
जो इस सरस्वती नाम मय स्तोत्र को अर्ावत् सरस्वती बहृ न्नामस्तोत्र को पढ़ता है, वह कमव की
148 प्रकृवतयों का नाश करके कै वल्य िाम को प्राप्त करता है और आवित्य / सूयव के समान
अववचल और अमर हो जाता है || 22||
॥ इस प्रकार सरस्वती बहृ न्नामस्तोत्र समाप्त हुआ।