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|| सरस्वती बहृ न्नामस्तोत्रम् ||

ववशेष सरस्वती के 148 नाम


भाषा संस्कृत
रचना छतरपुर विनांक- 5/8/20.
छंि - अनुष्टुप / उपजावत

अनुष्टुप
सरस्वती - सि्वाक्येन, सज्ज्ञानं के वलं भवेत् ।
जायते सववभव्येषु, स्वात्मकल्याण - भावना || 1 ||
सरस्वती के सि्वाक्यों से अर्ावत् आशीवावि से श्रुतञान (सि्ञान) के वलञान हो जाता है ।
इसी सरस्वती के प्रसाि से सभी भव्य जीवों में वनजात्मकल्याण की भावना उत्पन्न होती है
||1||
सरस्वती मया दृष्ट्या, प्रभुमुख प्रवावसनी ।
भारती भव्यवत्सल्या, स्वात्मतत्त्व - प्रकावशनी ॥ २ ॥
मेरी दृवष्ट में 1. सरस्वती, २. अहवन्मुख वनवावसनी,3.भारती, 4. भव्यवत्सल्या और 5
वनजात्मतत्त्व- प्रकावशनी अर्ावत् स्वतत्त्व को प्रकावशत करनेवाली है || २ ||

प्रमाण - नय-वारीशा, कला शमव-प्रिावयनी ।


वनत्या न्याया विरा सत्या, ववद्या ववद्या-प्रिावयनी ॥ 3 ॥
6. प्रमाणनय वारीशा अर्ावत प्रमाण-नय का समद्रु है, 7. कला-प्रिावयनी, 8. शमव-प्रिावयनी
अर्ावत् कला और प्रसन्नता िेनेवाली है, 9. वनत्या, 10 न्याया 11. विरा, 12. सत्या, 13 ववद्या
और 14 ववद्या-प्रिावयनी अर्ावत् ववद्या िेनेवाली हैं ||३||

प्रवचनीय - ममवञा, सश
ु ब्ि - ब्रह्म-रूवपणी ।
सववभाषा ववशेषञा, वचिानिं ैक - रूवपणी ॥ 4 ॥
15. प्रवचनीय है, 16 ममवञा है, 17 सुशब्ि रूवपणी, 18 ब्रह्मरूवपणी अर्ावत सुन्िर शब्ि और
ब्रह्मरूप है, 19. सववभाषा है, 20.ववशेषञा है, 21. वचद्रूवपणी है, 22. आनंि-रूवपणी है,23 एक-
रूवपणी है ||४ ||
|| सरस्वती बृहन्नामस्तोत्रम् || 3 of 5

विव्यध्ववन-मवहेश्वयाव , वाङ्मया भ्रमहाररणी ।


वािीश्वरी ववद्यािेवी, वािीशा भयहाररणी ॥ 5 ॥
24. विव्यध्ववन है, 25 महेश्वयाव अर्ावत् महान् ऐश्वयवशाली है, 26 वाङ्मया है, 27 भ्रमहाररणी,
28. भयहाररणी अर्ावत भ्रम और भय हरनेवाली है,29. वािीशा है, 30. वािीश्वरी है,
31.ववद्यािेवी है ||५||
श्रुती परम्परालवब्ि वववद्विाह्लाि - िावयनी ।
वसद्धहस्ता सुववस्तीणाव, वजनशासन- वविवनी ॥ 6 ॥
32. श्रतु ी है, 33. परम्परालवब्ि अर्ावत् परम्परा से प्राप्त है, 34.ववद्वि - आह्लाि-िावयनी अर्ावत
ववद्वानों को आनिं िावयनी है, 35. वसद्धहस्ता है, 36 सवु वस्तीणाव है और 37. वजनशासन-वविवनी
अर्ावत् वजनशासन का सवं िवन करनेवाली है || 6।।
सिुवतिः श्रुतिेवी च, वाग्िेवी -श्री-वनवावसनी ।
नयवविी यर्ार्ाव च, िुिःख- शोक-प्रणावशनी ॥ 7 ॥
38.सि्-उवत, 39.श्रुतिेवी, 40.वाग्िेवी है, 41.नयवववि है, 42.यर्ार्ाव है, 43. श्री वनवावसनी
अर्ावत् लक्ष्मी का वनवासस्र्ान है, 44.िुिःख-प्रणावशनी, और 45. शोक प्रणावशनी है अर्ावत
िुिःख - शोक का नाश करने वाली है ||७||
ईश्वरी श्रेष्ठववद्या च, वशवंका द्वािशांविनी ।
शुद्धा प्रवचनी तत्त्वा, सप्तभंि तरंविणी ॥ 8 ॥
46- ईश्वरी है, 47 श्रेष्ठववद्या है, 48. वशवंका, 49. द्वािशांविनी है, 50. शुद्धा है , 51. प्रवचनी है,
52. तत्त्वा है और, 53.सप्तभिं तरंविणी है ||८||
पूवाव यर्ानुमािाव च, वाणी महवषव-िाररणी ।
मािाव पूवाववतपूवाव च, ज्ज्योवतिः कै वल्य कावमनी || 9 ||
54. पूवाव है, 55 पूवाववतपवू ाव है, 56 मािाव है, 57.यर्ानुमािाव है,58. वाणी है, 59. ज्ज्योवत है, 60
महवषव िाररणी अर्ावत् महवषवयों के द्वारा िारण करनेवाली है, 61. कै वल्य-कावमनी अर्ावत्
कै वल्यप्रेमी है ||९||
लोकोत्तरीयवािा च, सववपाप-क्षयंकरी।
वलपी लौवकक वािा च, भिवती क्षेमंकरी ||10||
62. वलपी है, 63 भिवती है, 64· क्षेमंकरी है,65 लौवककवािा , 66. लोकोत्तरीयवािा है और
67. सववपाप-क्षयंकरी अर्ावत् सवव पापों का क्षय करने वाली है ||१०||
|| सरस्वती बहृ न्नामस्तोत्रम् || 4 of 5
ववश्वरूपा महाज्ज्वाला, कुशला बोिमेखला।
भव्यवप्रया सुववख्याता, वरिा सवव-ववं िता 11 ||
68 ववश्वरुपा है, 69. महाज्ज्वाला है, 70. कुशला है, 71.बोिमेखला है अर्ावत ञान की निी है,
72.भव्यवप्रया है, 73. सुववख्याता है, 74 वरिा है और, 75 .सवव वंविता है अर्ावत् सभी से ववं ित
है ||११||
पूवावपराववरुद्धा च, िीप्ता त्रैलोक्य-मिं ला ।
पूता भव्य शरण्या च, सववतत्त्व- प्रिीवपका ।। 12।।
76. पूवावपराववरुद्धा अर्ावत् पूवावपर ववरोिरवहत है, 77 .िीप्ता है, 78.पूता है, 79. त्रैलोक्य-
मिं ला है, 80-भव्य-शरण्या है और 81. सववतत्त्व प्रिीवपका है। अर्ावत् सभी तत्त्वों को प्रकावशत
करनेवाली है ||१२||
ब्रह्मपुत्री जिद्धात्री, प्रवीणा प्रिण
ु ा सुिी ।
भुवत मुवत प्रिात्री च, भूता भव्या सुरवप्रया ॥ 13 ॥
82. ब्रह्मपत्रु ी है, 83 जिद्धात्री अर्ावत् जित् की माता है, 84.प्रवीणा है, 85 प्रिणु ा है, 86. सिु ी
है, 87. भतू ा है, 88 भव्या है, 89.सरु वप्रया है अर्ावत् िेवों को वप्रया है 90. भवु त मवु त - प्रिात्री
है अर्ावत भोि और मोक्ष को िेनेवाली है ||१३||
आत्मा व्यापका वेिा, वाचा तुवष्टश्च पवू जता ।
प्रबुद्धा च प्रशस्ता च, प्रवसद्धा ब्रह्मरक्षका || 14 ||
91. आत्मा है, 92 व्यापका है, 93 वेिा है, 94.वाचा है, 95 तुवष्ट है, 96. पवू जता है, 97 प्रबद्ध
ु ा
है, 98 प्रशस्ता है, 99 प्रवसद्धा है, और 100. ब्रह्मरक्षका अर्ावत् आत्मा की रक्षा करनेवाली है
||१४||
ब्रह्मवक्त्री च ब्रह्माणी, ब्रह्मववद्या च ब्रह्मजा |
ब्राह्मी ब्रह्ममया ब्राह्मम्या, ब्रवह्मष्ठा ब्रह्मचाररणी ||१५||
101. ब्रह्मवक्त्री है, 102 ब्रह्माणी है, 103 ब्रह्मववद्या है, 104 ब्रह्मजा है, 105 ब्राह्मी है, 106
ब्रह्ममया है, 107. ब्राह्मम्या है, 108.ब्रवह्मष्ठा है, और 109 ब्रह्मचाररणी है ||१५||
शब्िमवू तव-िवयामवू तव:, ञानमवू तविः शभु क ं रा |
बोिमूवतविः तपोमूवतव-विवव्यामूवतविः सख ु ंप्रिा ||१६||
सुखमूवतविः प्रभामूवतविः, शीलमूवतवश्च पंविता ।
श्रीमूवतविः सहज मूवतविः, तकव मूवतवश्च ववश्रतु ा ||१७||
110. शब्िमूवतव है, 111 .ियामूवतव है, 112. ञानमूवतव है, 113 बोिमूवतव है, 114· तपोमूवतव है, 115.
विव्यमूवतव है, 116 सुखमवू तव है, 117 प्रभामूवतव है, 118. शीलमूवतव है, 119 श्रीमूवतव है, 120
|| सरस्वती बृहन्नामस्तोत्रम् || 5 of 5

सहजमूवतव हैं; 121.तकव मूवतव है | 122. शुभंकरा है, 123 सुखंप्रिा है, 124 पंविता है "और 125
ववश्रुता है ||१६-१७||
भिं वववि-ववशेषा च, भंिवविी चानुत्तरा |
पच्ृ छावववि- ववशेषा च, पच्ृ छवविी च पष्ु कला ||१८||
126. भंिवविी है, 127 भंिववविववशेषा है, 128. पृच्छावविी है और 129. पृच्छाववविववशेषा
है, 130. अनुत्तरा है, 131· पुष्कला है ||१८||
प्रत्ना प्रवचनाद्धा च, प्रावचना प्रर्ा प्रिी |
प्रष्ठा प्रवचनार्ाव च, प्रवचना प्रबोविता ||१९||
132. प्रत्ना है, 133. प्रवचनाद्धा है, 134 प्रावचना है, 135 प्रर्ा है, 136 प्रिी है, 137 प्रष्ठा है,
138. प्रवचनार्ाव है, 133 प्रवचना है। और 140- प्रबोविता है ||१९||
हेतुवािा नयवािा, परवािा ववशारिा ।
मािववािा श्रतु वािा, प्रवरवाि - शारिा ||२०||
141 हेतुवािा है, 142 नयवािा, है, 143. परवािा है, 144 मािववािा है, 145· श्रतु वािा है, 146.
प्रवरवािा है, 147. शारिा है, और 148 ववशारिा है ||२०||
शभु ावन सववनामावन यिः शुद्धमनसा पठे त् |
ञानवृवद्धभववेत्तस्य काव्यकृवत - ववशारििः ||२१||
जो भव्यजीव शुद्धमन होकर इन 148 शुभ नामों को पढ़ता है उसके ञान की वृवद्ध होती है और
वह काव्यरचना में महारर् अर्ावत् ववशारि होता है ||२१||
उपजावत
आवित्य-तुल्योऽववचलो भवेत्सिः, कै वल्य-िामं लभते पठे द्यिः |
सरस्वती नाममयं प्रशंसां, कृत्वा च कमवप्रकृतेिः ववनाशम् ||२२||
॥ इवत सरस्वती बृहन्नामस्तोत्रं समाप्तम् ||
जो इस सरस्वती नाम मय स्तोत्र को अर्ावत् सरस्वती बहृ न्नामस्तोत्र को पढ़ता है, वह कमव की
148 प्रकृवतयों का नाश करके कै वल्य िाम को प्राप्त करता है और आवित्य / सूयव के समान
अववचल और अमर हो जाता है || 22||
॥ इस प्रकार सरस्वती बहृ न्नामस्तोत्र समाप्त हुआ।

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