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प्रकाशक :नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.) सपं ादक : पी. के .

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आचार्य श्री
का संमिप्त
पररचर्

नमनकतायओ ं की ओर से

र्ह हमारा परम सौभाग्र् रहा है मक इस कमिकाि में भी हमें ऐसे


चतुर्यकािीन चर्ाय वािे आचार्य श्रमण संघ के दशयन प्राप्त हो रहे हैं. और
उससे भी अमिक सौभाग्र् की बात र्ह है मक हमें ऐसे आचार्य भगवन्
के बारे में मिखने का मौका भी ममि रहा हैं.
इस सक ं िन के कार्य का प्रारंभ भाई श्री रािेश-ममता िैन,
झााँसी, उत्तर प्रदेश ने मकर्ा हैं और इसमें ही हमने और अमिक मवशेष
िानकारी भी िोड़ दी हैं. परन्तु र्ह उनकी महानता है मक वे हमारा भी
नाम अपने नाम के सार् रखना चाहते हैं. हम उनके इस आत्मीर् व्र्वहार
के मिए प्रसन्नता और सािुवाद व्र्क्त करते हैं. र्ोडा सा मवचार करे तो
र्ह सब गरुु देव, आचार्य श्री मवशुद्ध सागर िी महाराि की हम सभी पर
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अमत करुणा, वात्सल्र्ता का ही द्योतक हैं. िैसे हमारे गुरुदेव हमें मशिा
देते हैं र्ह भी उसी का पररणाम हैं. इस वषय सन् २०२० में गुरुदेव आपके
अवतरण का ५० वााँ वषय मनार्ा िा रहा हैं. उस मवशेष प्रसंग पर र्ह हम
सभी द्वारा उनकी कृपा दृष्टी पर एक िघु प्रर्ास हैं. र्मद कोई भिू हो तो
समु ि पाठकगण इसे सि ु ारकर पढ़े और हमें अवगत भी करार्े मिससे
इसमें समुमचत सि ु ार मकर्ा िा सके .
इस कार्य को पूणय करने में मवशेष रूप से आचार्य श्री के सुर्ोग्र् मशष्र्
श्रमण श्री १०८ सव्रु त सागर िी महाराि (मिनके मुखमंडि पर सौम्र्
मुस्कान मवरामित रहती हैं) की मवशेष अनक ु म्पा/मागयदशयन हम सभी को
समर् समर् पर प्राप्त होता रहा हैं. आपके सहर्ोग के मबना तो र्ह सभ ं व
ही नहीं र्ा. और इसका माध्र्म बने र्र्ानाम तर्ा गुण वािे, सतना के
बाि ब्रह्मचारी श्री मपर्ूष भैर्ािी अतः उनका भी बहुत बहुत आभार.

रािेश-ममता िैन, पी. के . िैन ‘प्रदीप’


झााँसी प्रवासी मेिबोनय,ऑस्रे मिर्ा
उ.प्र. १८ मदसंबर २०२०. मनवासी मुंबई,भारत.
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आचार्य श्री का संमिप्त िीवन पररचर्


वतयमान के वद्धयमान, वतयमान के
कुंद कुंद आचार्य, सवयज्ञ शासन,
मिनशासन, नमोस्तु शासन के
आज्ञानुवती, अध्र्ात्म िगत के
ध्रुवतारे, समर्सार की मूमतय,
श्रमणसस्ं कृमत के पररचार्क,
मनिेप, मनष्काम, मनमवयकार,
मनस्पृही, मदगम्बर मुद्रािारी, चर्ाय
मशरोममण ,आगम उपदेष्टा, श्रुत
संवियक ,स्वाध्र्ार् प्रभावक ,
प्रमतपि प्रमतिण स्मरणीर् ,िमय
प्रभाकर ,र्ुग आचार्य रत्न भगवन
श्री १०८ मवशुद्ध सागर िी महाराि
के बारे में मिखने का एक िघु
प्रर्ास :
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१ .पूवय नाम : श्री रािेन्द्र कुमार िैन ( ििा)
२ .मपता : श्री रामनारार्ण िी िैन
(समामिस्र् ,मुमन श्री १०८ मवश्विीत सागर िी
महाराि)
३ .माता : श्रीममत रत्तीबाई िी िैन
(समामिस्र्, िमु ल्िका १०५ श्री मवश्वममत
माता िी )
४ .िन्म : १८ मदसम्बर १९७१ ग्राम रूर, मभंड ,म.प्र.
५ .मशिा : १० वीं तक
६ .पररवार: ५ भाई एवं २ बहन
७ब्रह्मचर्य . व्रत : १६ नवम्बर १९८८
श्री अमतशर् िेत्र बरासों, मभंड
आचार्य श्री १०८ मवराग सागर िी महाराि
८. िल्ु िक दीिा : ११ अक्टूबर १९८९, मभडं
:नामकरण: िल्ु िक श्री र्शोिर सागर िी
९ .ऐिक दीिा : १९ िून १९९१ पन्ना,म.प्र.
१० .मुमन दीिा : २१ नवम्बर १९९१।
अमतशर् िेत्र श्री श्रेर्ांसमगरर, पन्ना,
नामकरण: मुमन १०८ श्री मवशुद्व सागर िी महाराि
११ .आचार्य पद : ३१ माचय २००७ महावीर िर्ं ती
औरंगाबाद, महाराष्र
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१२. मशिा, दीिागुरु: प .पू .श्री १०८ गणाचार्य मवराग सागर िी महाराि
१३. प्रकाशन: १२५ महान ग्रन्र्ों पर टीका प्रवचन आमद ।
कई कृमतर्ों का महंदी, अंग्रेिी, मराठी,
कन्नड़, गि ु राती भाषा में भी अनवु ामदत
प्रकाशन।
१४ .पहिी कृमत
(अचेतन कृमत) का प्रकाशन:
शुद्वात्म तरंमगणी वषय २००१ में झााँसी (उ.प्र.)
१५. स्व दीमित : चेतन कृमतर्ााँ ३५ श्रमण (मुमन)
एक ऐिक और अिय शतक बाि ब्रह्मचारी ।
१६ .प्रर्म चातयमु ास: १९८९ मभंड )म(.प्र.
आचार्य पद के बाद चातयमु ास २०१९ मभंड) म(.प्र.
१७. पञ्चकल्र्ाणक: ९६ पञ्चकल्र्ाणक सम्पन्न करार्े ।
१८ .मनर्म देते हैं : ५ मममनट प्रमतमदन मौन एवम्
१० मममनट कम से कम स्वाध्र्ार् करने का ।
१९ .अष्टामनका, अष्टमी,
चतुदयशी में : स्वाध्र्ार् के अिावा पुरे समर् अखण्ड मौन
िारण ।
२० .पद र्ात्रा : िगभग ७० हिार मकिोमीटर से अमिक पद
र्ात्रा ।
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२१ .संबोिन: भो ज्ञानी ! , हंसात्मन ! , चैतन्र्! , मवज्ञात्मन !,
मुमुिु ! , हे िीव! , आमद ।
२२ .कण्ठस्र् गार्ाएाँ : ५००० से भी अमिक
२३ .ग्रन्र् की व्र्ाख्र्ा करते हुर्े, गार्ाओ ं पर ही प्रवचन करते हैं ।
२४ .आचार्य प्रणीत ग्रन्र्ों का स्वाध्र्ार् टीका समहत करते हैं ।
२५ .आिीवन त्र्ाग :हरी पत्ती आमद
२६ .आिीवन त्र्ाग :तेि ।
२६ .आिीवन त्र्ाग :नमक ।
२७ .आिीवन त्र्ाग :चावि ।
२८ .आिीवन त्र्ाग :दही ।
२९ .आिीवन त्र्ाग :अखबार, मैगमिन पढ़ने का त्र्ाग ।
३० .आिीवन त्र्ाग : मोबाइि, टीवी, एसी, पख ं ा, हीटर
३१. आिीवन त्र्ाग :प्िामस्टक चटाई, र्मायकोि का
३२. आिीवन त्र्ाग :हार् देखना र्ा गढ़ाताबीि आमद का त्र्ाग ।-
३३ .सघं में कोई वाहन नहीं ।
३४. संघ में सार् कोई चौका नहीं चिता है ।
३५ .हमेशा ज्ञान तप ध्र्ान में िीन रहते हैं ।
३६ .िघुशंका, शौच के मिए प्रासुक भूमम पर ही िाते है ।
३७. स्वर्ं के नाम से कोई संस्र्ा नहीं ।
३८. मकसी भी तरह के प्रोिेक्ट में मिप्त नहीं ।
३९. कोई फंड-िन आमद के एकत्र का त्र्ाग ।
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४० .आहार के मिए: पहिे बाद में श्रावक को मकसी/संस्र्ा के मिर्े
दान के मिए नहीं कहना ।
४१ .आिीवन त्र्ाग: स्वहार्ों शरीर को तेि,मामिश
४२. स्वहार्ों ,नेपमकन से शरीर पोछना नहीं ।
४३. मुख्र् एकसत्रू ी कार्यक्रम: मनि आत्मा का मचंतन,
स्वाध्र्ार् करना एवं कराना ।
४४ .मकसी श्रावक, कमेटी के पदामिकाररर्ो को डााँटना, क्रोि र्ा
दबाब में कार्य नहीं करवाते ।
४५ .प्रमतमदन कम से कम १०० गार्ाओ ं का मौमखक पाठ करना ।
४६ .प्रमतमदन प्रातः ९ बिे स्वाध्र्ार् श्रतु आचार्य /
भमक्त संघ समहत मवहार के समर् भी ।
४७. प्रमतमदन दोपहर ईर्ायपर् भमक्त सघं समहत
मवहार के समर् भी ।
४८ .प्रमतमदन ३ बिे स्वाध्र्ार् श्रुत आचार्य / भमक्त संघ समहत
मवहार के समर् भी ।
४९ .िो मुमन चर्ाय: सम्बन्िी २८ कृमत कमय प्रमतमदन
पािनपूणय/ करते है ।
५० .र्र्ा स्र्ान : सभी संघ के मुमनगुरु/, आमर्यका मातािी को/
आदर समहत मंच पर र्र्ा स्र्ान देते हैं ।
५१ .आमर्यका दीिा: नही ाँ देते हैं ।
५२. मवहार के समर् : अन्र् सघं के गरुु ओ से मैत्री भाव से ममिते हैं ।
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५३ . प्रमतमित मूमतयर्ााँ : िगभग ६५ हिार मूमतयर्ो को प्रमतमित कर
चुके हैं ।
५४ .प्रवचन : िगभग १० ०००,दस हिार प्रवचन मकर्े ।
५५. चेतन कृमतर्ााँ :
स्र्ान, वषय ,
दीमित मुमनश्री नाम
इदं ौर , दीिा २००७
मुमन श्री १०८ मनोज्ञ सागर िी
मुमन श्री १०८ प्रशम सागर िी
मुमन श्री १०८ प्रत्र्ि सागर िी (समामिस्र्)
अशोकनगर , दीिा २००९
मुमन श्री १०८ सुप्रभ सागर िी
मुमन श्री १०८ सुव्रत सागर िी
मुमन श्री १०८ सुर्श सागर िी
सागर , दीिा २०११
मुमन श्री १०८ अनुत्तर सागर िी
मुमन श्री १०८ अनुपम सागर िी
मुमन श्री १०८ अररमित सागर िी
मुमन श्री १०८ आमदत्र् सागर िी
मुमन श्री १०८ अप्रममत सागर िी
मुमन श्री १०८ आमस्तक्र् सागर िी
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मुमन श्री १०८आराध्र् सागर िी
नागपुर , दीिा २०१३
मुमन श्री १०८ प्रणेर् सागर िी
मुमन श्री १०८ प्रणीत सागर िी
मुमनश्री १०८ प्रणव सागर िी
मुमन श्री १०८ प्रणत सागर िी
मुमन श्री १०८ प्रणुत सागर िी

भीिवाड़ा ,दीिा २०१५


मुमनश्री १०८ सवायर्य सागर िी
मुमनश्री १०८ साम्र् सागर िी
मुमनश्री १०८ समर्य सागर िी
मुमनश्री १०८ सहि सागर िी
मुमनश्री १०८ समत्व सागर िी
मुमनश्री १०८ सम्पणू य सागर िी
मुमनश्री १०८ सदर् सागर िी
इदं ौर , दीिा २१०७
मुमनश्री १०८ साध्र् सागर िी
मुमनश्री १०८ संकल्प सागर िी
मुमनश्री १०८ सौम्र् सागर िी
मुमनश्री १०८ सारस्वत सागर िी
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मुमनश्री १०८ सद् भाव सागर िी
मुमनश्री १०८ संिर्न्त सागर िी
मुमनश्री १०८ संर्त सागर िी
मुमन श्री १०८ साक्ष्र् सागर िी
मभडं , दीिा २०१९
मुमन श्री १०८ र्शोिर सागर िी
मुमन श्री १०८ र्ोग्र् सागर िी
मुमन श्री १०८ र्तीन्द्र सागर िी
िल्ु िक श्री १०५ र्त्न सागरिी (वत्तयमान में ऐिक हैं )
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५६. श्रुतिर श्रुतोपासक आचार्य श्री मवशुद्धसागरिी गुरुदेव ने दीघय


श्रुत सािना की है, फितः शतामिक ग्रन्र् प्रकामशत हुए हैं.
आओ ! हम िाने उनकी श्रतु सािना को

आचार्य श्री मवशुद्धसागरिी द्वारा सामहत्र्-सृिन :


मदगम्बराचार्य प्रणीत मूि ग्रंर्ों पर देशना (प्रवचन)
 मवभाचार्य श्री अमृतचन्द्र स्वामी प्रणीत “परुु षार्य मसद्ध्र्ुपार् पर
 पुरुषार्य देशना (महदं ी, मराठी, कन्नड़, अंग्रेिी)
 आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी मनममयत “मनर्म सार” पर
 मनर्म देशना [ तीन भाग ]
 आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी सृमित “समर् पाहुड़” पर
 समर् देशन [ सत्रह भाग ]
 आचार्य श्री र्ोगेन्दुदेव र्ोमित “र्ोगसार” पर
 अध्र्ात्म देशना (महदं ी, अंग्रेिी)
 आचार्य श्री देवसेन प्रणीत “तत्त्वसार” पर
 तत्त्व देशना
 आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी कृत “वारसाणुपेक्खा” पर
 प्रेिा देशना
 आचार्य श्री पूज्र्पाद स्वामी कृत “ईष्टोपदेश” पर
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 सवोदर्ी देशना
 आचार्य श्री अकिंक देव समृ ित “स्वरुप संबोिन” पर
 स्वरुप देशना
 आचार्य श्री समन्तभद्र मवरमचत “रत्नकरण्डक श्रावकाचार” पर
 श्रावक िमय-देशना (महदं ी, कन्नड़)
 आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी सृमित “रर्णसार” पर
 सागार-अनगार देशना
 आचार्य श्री अममतगमत सरू र समृ ित “सामामर्क पाठ” पर
 सामामर्क देशना (महदं ी, मराठी)
 आचार्य श्री र्ोगीन्द्र देव रमचत “ ज्ञानांकुश” पर
 सद्ज्ञान देशना [दो खडं ]
 आचार्य श्री उमा स्वामी सृमित “तत्त्वार्य-सूत्र” पर
 तत्त्वार्य – देशना
 आचार्य श्री कुिभद्र स्वामी सृमित “सार – समुच्चर्” पर
 सद्-देशना [छह खंड]
 आचार्य श्री रामसेन मुमन मिमखत “तत्त्वानुशासन” पर
 प्रकृष्ट – देशना [सत्रह – खंड]
 आचार्य श्री सकिकीमतय कृत “सद् भामषताविी” (सुभामषत) पर
 सभ ु ामषत – देशना [पांच खडं ]
 आचार्य श्री गुणभद्र स्वामी रमचत “आत्मानुशासन” पर
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 मनग्रयन्र् – देशना
 मुमन प्रवर श्री अमोघवषय प्रणीत “प्रश्नोत्तर रत्नमामिका” पर
 पृच्छना – देशना
 आचार्य श्री कुन्दकुन्द रमचत “पंचामस्तकार्” पर
 परमागम – देशना
५७. सुप्रमसद्ध – देशना (प्रवचन)
 आचार्य श्री अमृतचन्द्र सुरर कृत “समर्सार टीका” पर
 सैंतामिश शमक्तर्ााँ
 आचार्य श्री कुन्दकुन्द कृत “अरसमरुवमगि ं ं” गार्ा पर
 अमिंगग्गहणं
५८. अत्र्न्त महात्वपूणय अन्र् प्रवचन
 मचन्ता रहस्र् (मचन्तन व मचन्तन पर अत्र्न्त िोकमप्रर् कृमत)
 िीवन रहस्र् (मवद्यामर्यर्ों के मिए अत्र्ंत प्रेरक)
५९. अत्र्ंत रोचक कर्ा – सामहत्र्
 भवाब्िेस्तारको – गुरु: (आचार्य श्री मवमिसागर िी के िीवन पर)
 गुरुवो भवमन्त शरणं (आचार्य श्री मवद्यासागर िी के िीवन पर)
 वात्सल्र् पवय (रिाबंिन कर्ा)

६०. आध्र्ामत्मक सूमक्तर्ााँ


 अध्र्ात्म वाणी
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 अमृत मबंदु
 अध्र्ात्म वचनामृत
 अध्र्ात्म अममर्
 आगम अमृत
६१. मचंतनीर् सूत्र
 आईना
 बोमि – संचर्
 अहयत् – सूत्र
 अध्र्ात्म – सत्रू
 सूमक्त – संग्रह
 सामामर्क – सूत्र
 बोि – वाक्र्ामृत
(महदं ी, अंग्रेिी, मराठी, प्राकृत, सस्ं कृत, अपभ्रंश, छत्तीसगढ़ी, ब्राह्मी)
 सूमक्त- सुिा (प्रकाशािीन)
 देशना – मबंदु
 देशना – सच ं र्
 मदव्र् वर्णं (महदं ी, प्राकृत, अंग्रेिी)
 भव्र् वर्णं (महदं ी, प्राकृत, अंग्रेिी)
 मवशुद्ध वचनामृत
६२.काव्र् –शास्त्र (िेखन)
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 वस्तुत्त्व महाकाव्र् (१२०० कमवता)
 शुद्धात्म काव्र् तरंमगणी (९९ कमवता)
 स्वानभ ु व [महदं ी, सस्ं कृत] (१५७ कमवता)
 ध्रुव – स्वभाव (५९४ कमवता)
 शब्द अध्र्ात्म पंर्ी का (३४६ कमवता)
 ज्ञार्क भाव (४३२ कमवता)
 वस्तु – स्वभाव
 मचद् – स्वभाव
 सत् – स्वभाव
६३. टीकात्मक सामहत्र्
 वस्तुत्व प्रबोमिनी टीका (महदं ी)
 वस्तु स्वभाव (प्राकृत टीका)
 बोमि – सूत्र (प्राकृत टीका)
 शब्द अध्र्ात्म पंर्ी का (संस्कृत टीका)
६४. पद्यानुवाद सामहत्र्
 बोि वक्र्ामृत
 मचंतन चमन्द्रका
 मनिात्म पद्यानवु ाद चमन्द्रका
 अध्र्ात्म पद्यानुवाद चमन्द्रका
 पंचशीि पद्यानुवाद चमन्द्रका
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६५. िघु प्रवचन कृमत
प्रवचन प्रभा (महदं ी, अंग्रेिी)
प्रवचन प्रदीप
प्रवचन पीर्ूष
तत्त्व तरंमगणी
६६.आचार्य प्रणीत ग्रर् ं ों पर मिमखत अनुशीिन, पररशीिन, भाष्र्
 स्वरुप संबोिन- पररशीिन (महदं ी, मराठी, अंग्रेिी, प्राकृत, संस्कृत)
स्वरुप संबोिन ग्रन्र् पर
 इष्टोपदेश भाष्र् ((महदं ी, मराठी, अंग्रेिी, प्राकृत)
इष्टोपदेश ग्रन्र् पर
 समािी तंत्र अनुशीिन ((महंदी, अंग्रेिी)
समािी तंत्र ग्रंर् पर
 सोिह कारण भावना –अनश ु ीिन
६७. आध्र्ामत्मक-मचंतन (िेखन)
 शद्धु ात्म तरंमगणी (महदं ी, मराठी, अंग्रेिी, प्राकृत, सस्ं कृत)
 मनिात्म तरंमगणी (महदं ी मराठी प्राकृत)
 मनिानुभव तरंमगणी (महदं ी संस्कृत प्राकृत)
 स्वानुभव तरंमगणी महदं ी प्राकृत अंग्रेिी मराठी सस्ं कृत
 आत्मबोि (महदं ी, अपभ्रंश, संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेिी)

६८.आध्र्ामत्मक - सत्रू (िेखन)


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 पंचशीि मसद्धांत (महदं ी, अंग्रेिी, मराठी) पंच अणुव्रतों पर
 सार सूत्र (महदं ी, संस्कृत)
 बोमिसत्रू (महदं ी, प्राकृत)
६९. नीमत शास्त्र (िेखन )
 सत्र्ार्य बोि महदं ी अंग्रेिी
७०. अन्र् मचंतनीर् कृमतर्ां
 मवशुद्ध मुमक्तपर्
 तत्व बोि
 सामामर्क कै से ?
 मवशद्ध ु देशना
 मवशुद्ध काव्र्ांिमि
 श्रवण िमय देशना िघु
 स्वरूप सबं ोिन िघु
 प्रक्रस्ट देशना सार
 मनर्म देशना सार
 अमिगं ग्गहणं सार
 सागार अनगार देशना सार
 सामामर्क देशना सार
 सैन्तािीस शमक्तर्ााँ सार
 सुभामषत देशना सार
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 तत्त्व देशना सार
 परमार्य तत्त्वदेशना सार
 सोिह कारण सार
 समर् देशना सार
 मवशुद्ध देशना (प्रवचनांश)

७१. संगोिीर्ों पर आिाररत : शोिात्मक कृमतर्ााँ

 समामि तंत्र इष्टोपदेश समीिा


 परू
ु षार्य देशना अनश ु ीिन
 स्वरूप संबोिन पररशीिन मवमशय
 तत्व देशना समीिा
 अध्र्ात्म देशना अनश ु ीिन
 सवोदर्ी देशना मवमशय
 स्वरूप देशना मवमशय
 समर् देशना मवमशय
७२. आचार्य श्री पर आिाररत िीवन वृत्त
 आदशय श्रमण : िेखक सामहत्र्कार सुरेश िैन ‘सरि’
 श्रुतोपासक : िेखक श्रमण सुव्रत सागर मुमन
 अध्र्ात्म र्ोगी : िेखक श्रमण सुव्रत सागर मुमन
 मवशुद्ध संघ पररचर् : संकिन श्रमण सुव्रत सागर मुमन
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 प्रत्र्ग-् आत्मदशी : िेखक श्रमण सुव्रत सागर मुमन
 मवशुद्ध सामहत्र्ावदान : िेखक श्रमण सुव्रत सागर मुमन
 अध्र्ात्म का सरोवर : रचमर्ता कमव ज्ञान चंद्र िैन
 स्व संवेदी श्रमण : रचमर्ता कमव मनहाि चंद्र िैन ‘चन्द्रेश’
 मवशुद्धोदर् महाकाव्र् : रचमर्ता पंमडत िािचंद ‘राके श’
 मवशुद्ध वैभव : संकिन कपूर चंद िैन ‘ितारा’

७३. आचार्य श्री की आरती, पूिनामद संग्रह

 मवशद्ध
ु भमक्त पञ्ु ि (मवमभन्न पि
ू ा व आरती)
 मवशुद्ध शतक
 मवशुद्ध सागर मविान
 मवशद्ध
ु वदं ना
 समपयण

७४. आचार्य श्री की प्रेरणा से प्रकामशत सामहत्र्

 समामिसार (आचार्य)
 अकिंकत्रर्ी (आचार्य अकिंक स्वामी कृत)
(न्र्ार् मवमनश्चर्, प्रमाण-मवमनश्चर्, िघीर्स्त्रीर् सर्ं ुक्त)
 सवयज्ञ शासन : नमोस्तु शासन
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 वागीश्वरी-संग्रह (पूवायचार्य प्रमणत 31 ग्रंर् सकं िन)
[इष्टोपदेश, द्रव्र् संग्रह, रत्न कांड, स्वरूप संबोिन, तत्वार्य सूत्र,
छहढािा, ज्ञानान्कुश, आिाप पद्धमत, परीिा मुख आमद]
 ज्ञानांकुश (भावार्य समहत)
 मिनेंद्र अचयना (देव शास्त्र गुरु पूिन, पवय पूिनामद सग्रं ह)
 सुभामषत रत्नाविी (भावार्य समहत)
 आत्मारािना (स्तोत्र पाठ, पूिन, आरती)
 दैमनक श्रमण चर्ाय (प्राकृत भमक्त एवं प्रमतक्रमण संग्रह)
 संप्रमत मदगंबराचार्य (वतयमान 108 आचार्ों का पररचर्)
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७५. पद-मवहार : बड़े शहरों के ही नाम


िर्पुर,
पद्मपरु ा िी
महावीर िी,
आगरा,
मभंड,
ग्वामिर्र,
डबरा,
सोनामगरिी,
झााँसी,
मचरगांव,
उरई,
कानपुर,
िखनऊ,
टोमडफतेहपुर,
टीकमगढ़,
िमितपुर,
आहार िी,
पपौरा िी,
काररटोरन,
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द्रोणमगरर,
नैनामगरर,
कुण्डिपुर,
िबिपरु ,
कटनी,
सागर,
दमोह,
हटा ,
मशवनी,
चंद्रपरु ,
गोंमदर्ा,
चंदेरी,
मसरोंि,
मक्सी िी,
मैसरू ,
देवगढ़,
प्र्ावि िी,
उज्िैन,
रतिाम,
इदं ौर,
ऊन,
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बड़वानी,
औरंगाबाद,
नागपुर,
भोपाि,
मवमदशा,
बेगमगंि,
बीना,
बंडा िी,
मछदवाडा,
दुगय,
मभिाई,
फाफाडीह
रार्पुर ,
मुक्तामगरी
मांगी तगुं ी िी
कचनेर
श्रवण बेि गोिा के समीपवती शहर,
अशोकनगर,
मशवपुरी,
गनु ा,
बिरंगगढ़,
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पन्ना,
भीिवाड़ा,
अमरावती,
सोिापरू ,
डोंगरगढ़,
नेमावर,
गुरसरार्,
रानीपुर,
मऊरानीपरु ,
बड़ा मिहरा
मशवपुरी,
सोिापुर,
अमरावती
बैतूि
इत्र्ामद इन रास्तो में बहुत सारे शहर,
गांव स्र्ानों का कई बार मवहार हुआ।
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७६. िगभग 10 राज्र्ो में पद मवहार मकर्ा


मिन राज्र्ों में कई बार पद मवहार हुआ
मध्र्प्रदेश, उत्तरप्रदेश, रािस्र्ान,
महाराष्र, कनायटक, छत्तीसगढ़,
झारखण्ड , तेिंगाना , मबहार ,
७७. चातुमायस तामिका
वषय स्र्ान
१९८९ मभडं
१९९० टीकमगढ़
१९९१ श्रेर्ांसमगरी
वषय स्र्ान
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१९९२ द्रोणमगरर
१९९३ श्रेर्ांसमगरर
१९९४ बीना
१९९५ पन्ना
१९९६ छतरपरु
१९९७ दुगय
१९९८ मभिाई
१९९९ झााँसी
२००० सागर
२००१ मसिवानी
२००२ भोपाि
२००३ िमितपुर
२००४ मवमदशा
२००५ अमरावती
२००६ सोिापरु
२००७ इदं ौर
२००८ िबिपुर
२००९ अशोकनगर
२०१० उज्िैन
२०११ आगरा
वषय स्र्ान
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२०१२ सागर
२०१३ नागपुर
२०१४ भोपाि
२०१५ भीिवाड़ा
२०१६ मभिाई
२०१७ इदं ौर
२०१८ औरंगाबाद
२०१९ मभंड
२०२० वासोकुण्ड, वैशािी, मबहार

७८. वतयमान में मसद्ध िेत्र श्री वासोकुण्ड,वैशािी, मबहार में वषायर्ोग
/चातुमायस चि रहा है ।
७९. ७ िाख से भी अमिक िोगों ने आचार्य श्री की प्रेरणा से
स्वेच्छा से मांसाहार का त्र्ाग मकर्ा हैं ।
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सर्ं म पुरुषोत्तम आचार्य श्री का अर्घर्य
िन्र् िन्र् अहोभाग्र् हमारे,हम नर भव पे गवय करें।
मवशुद्ध गुरु किर्गु मैं िखके ,सतर्ुग िैसो पवय करें॥
समर्सार के सतं मनरािे,कोनऊ नई एिेंडा है।
वत्शि भावी गंगा बहती,करती मन को ठंडा है॥
दुियभतम गुरुवर की चर्ाय,ने तेरा ने बीस करें।
सब सतं न को गिे िगाए,ं राग द्वेष की टीस हरें॥
समर्सार के आत्म मविर् की,िमय ध्विा फहरावत है।
ई से ई िरती पे गुरुवर,कुंदकुंद कहिावत है॥
मिनशासन की शान गुरु को,गौरव हमें बढ़ाने है।
गुरु के पद मचन्हों पे चिके ,पद अनर्घर्य प्रगटाने है॥

ऊाँ ह्ूाँ संर्म पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 मवशुद्धसागर मुनीन्द्रार् अनर्घर्य
पद प्राप्तार् अर्घर्य मनवय स्वाहा ||

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