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काशक : नमोS तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”.

अंक : 15 माह : जल
ु ाई 2019
Web site: www.vishuddhasagar.com

-: मंगलाचरण :-

( : )

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कहाँ पर या ह ?
म ु य प ृ ठ : गु पू णमा और वषायोग
मंगलाचरण 01
कहाँ पर या ह : 02
मंगलाशीष: आचाय ी िवशु सागरजी महाराज 03
धरती के देवता 03
िवशु ामृतम:् प.ं लोके श जैन ‘शा ी’ 04
स पादक य : पी. के . जैन ‘ दीप’ 06
नमो तु शासन सेवा सिमित (पज ं ीकृत सं था)
ट मंडल और पदािधकारी 07
आचाय ी िवशु सागरजी महाराज के का य .
सं ह: ‘श द अ या म पथ ं ी का’
से साभार : नमन 09
: शरण 09
समािध भि शतक : दशम् अिधकार
: सार वत किव ी िवभवसागर जी महाराज 10
“पु षाथ क िसि का उपाय” पु षाथ िस ायुपाय
आचाय अमृतच वामी रिचत ंथराज पर
आचाय ी िवशु सागरजी महाराज क देशना
पु षाथ देशना 13
वषायोग का योग
आचाय ी िवशु सागरजी महाराज क अनपु म कृित
“ वचन भा” से साभार 16
आ व जारी ह- यमल मुिन ी
मुिन ी 108 आि त य सागर जी महाराज 18
Asrav Jari Hai - English Translation by
Muni Shri 108 Pranit Sagarji Maharaj 20
वषायोग मनाय भी : जाने भी
ी सुरेश जैन ‘सरल’ सािह य कुमुदचं 23
गु पिू णमा : ी सज ं य राजू जैन 26
गु चरण म : ीमती रतू जैन 27
गु पूिणमा : ीमती अनीता जैन 27
वषायोग एवं गु पूिणमा पव :
ीमती क ित जैन 28
गु िबना ान नह 29
Varshayoga or Chaturmasa :
Vidushi Tejaswini D 30
ವ ಾ ೕಗ ಾತು ಾ ಸ:
Shri Niranjan jain 31
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मंगलाशीष

सव वाणी व व क याणी है. जो


धरती के देवता
क या वाद, अनेकांत त व से मं डत है. गगन है अ बर,
ऐसी वीतराग वाणी सव व व के क याण भूिम है श या,
का कारण बने, इस उ दे य को लेकर भुज है तिकया,
“नमो तु चंतन” प का प रवार जो
िव है प रजन,
उप म कर रहा है , वह अनक
ु रणीय है . ी
पुरजन है ािणमा
क णा-दया-अिहंसा है तात,
िजन वा वा दनी, ी िजन शासन, नमोऽ तु
स य है मात, अ तेय है भैया,
शासन क भावना हे तु मंगलाशीष.
शील है भिगनी,
अप र ह है सखा िजनके
आचाय ी 108 वशु सागरजी महाराज
वही है
परभणी, महारा .
धरती के देवता
11 जुलाई 2018. िन थ योगी |

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िवशु ामृतम्

म डनं िवशु ,ं ख डनं िवशु ं


आगमं िवशु ,ं च र ं िवशु म् |
वैरा यं िवशु ,ं िवरागं िवशु ं ,
मणािधपते रिखलं िवशु म् ||3||

वणं िवशु ,ं वदनं िवशु ं,


िच तनं िवशु ,ं लेखनं िवशु म् |
दशनं िवशु ,ं वचनं िवशु ं,
मणािधपते रिखलं िवशु म् ||1||

वाचनं िवशु ,ं च रतं िवशु ं ,


सनं िवशु ,ं चलनं िवशु म् |
िवनयं िवशु ,ं दशनं िवशु ं ,
मणािधपते रिखलं िवशु म् ||4||

अधरं िवशु ,ं वदनं िवशु ं ,


नयनं िवशु ,ं दयं िवशु म् |
हिसतं िवशु ,ं गमनं िवशु ं ,
मणािधपते रिखलं िवशु ं ||2||

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देशना िवशु ा, साधना िवशु ा ,


चया िवशु ा, चचा िवशु ा।
भावना िवशु ा, ेरणा िवशु ा,
मणािधपते रिखलं िवशु म् ||5||

िनयम: िवशु : समय:िवशु : ,


रयण: िवशु : सयं म: िवशु : |
आहार: िवशु :, िवहार: िवशु :
मणािधपते रिखलं िवशु म् ||8||

।।इित िवशु ामतृ म।् ।

शणृ मु : देशनां िन यं, मराम: िवमलां सदा|


याग: िवशु : भाव: िवशु : यायाम: स मितं िन य,ं व दे िवशु सागरम् ||
योग: िवशु :, शील: िवशु : |
क ठ: िवशु :, याय: िवशु : ,
मणािधपते रिखलं िवशु ं ||6||

नम कता :-

प.लोके श जै न "शा ी"


गनोड़ा, बांसवाडा,
राज थान
*
सं कृताचाय.
आपने आचाय ी सघं म कई
ऋि : िवशु ा, िसि : िवशु ा , माह तक सं कृत का अ ययन
सिृ : िवशु ा, बिु : िवशु ा | कराया ह.
भि : िवशु ा, मिु : िवशु ा,
मणािधपते रिखलं िवशु म् |7||

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स पूण िव म एक मा जैन दशन ही है िजसमे भगवान्
बनाये नह जाते बि क भगवान् कै से बने यह माग बताया जाता
ह. “च ारी शरणम् पव झािम” सस ं ार म शरण भी िसफ चार
ही ह. इं भिू त देव भी जै से ही भगवान् महावीर वामी क शरण
म पहँचे, भगवान् क वाणी िखर गयी और िफर काितक वदी
अमाव या को गौ-धिू ल बेला म के वल ान क ाि हो गयी.
गु शरण म या नह िमलता ? अथात् सब कुछ िमल जाता ह.
और िवशेष तो यह िक मांगने क भी ज रत नह होती ह, िबना
मांगे ही सब कुछ िमल जाता ह. जब भी गु के ित समपण
भाव होता ह वह भाव ही अ य उजा या शि का भ डार बन
नह धरा पर कुछ धरा, धरा अशेष कलेश जाता है और आपके सभी काय गु के आशीवाद से वमेव ही
बह आचाय दे रहे, यही िद य सदं ेश पूण होने लगते ह. इसे ही हम सा ात् णमोकार कहते ह.
िकतनी बड़ी बात हम आचाय भगवन बता रहे ह. इस ध र ी
अथात धरती पर कुछ भी शा वत नह ह और जो रह जाता ह वह अिहसं ा ही िव म सव म ह. और वषाकाल म नाना कार
िसफ मन को लेश ही पहँचाता ह. और जो काय हमारे मन को के जीव-जंतुओ ं क उ प ी होती ह और सभी साधू-सतं अिहंसा
शांत करे वह ही हम करना चािहए. हम तो हर पल हर काय म धम का पालन करने हेतु एक ही थान पर ककर धम-
अपने गु देव क िश ा सचेत करती ह और हम सद् माग का आराधना, र न य का पालन इ यािद करते रहते ह. यह समय
बोध कराती ह. गु देव आचाय ी बोिध वा य देते हए कहते ह चार माह का होता ह इसिलए इसे चातुमास या वषा योग भी
–“ ी बदलो सृि बदल जाएगी”. कहते ह. समाज को साधु सं कृित से जोड़ने वाला यह पावन पव
है. अ ि का पव म चातुमास क थापना होती है और ि तीय
भगवान् महावीर वामी को जब के वल ान हो गया था तब अ ि का पव म ही चातुमास का िन ापन होता है.
वे मौन हो गए थे. ा हण देव इं भूित आिद अपने १५०३ िश य
के साथ भगवान् ी महावीर वामी से वाद-िववाद करने पहच ं े
थे, वह िदन था आषाढ़ शु ल पौिणमा का. जैसे ही इं भिू त
अपने िश य के साथ वधमान वामी के समवशरण म पहंचे तो
वहां पर ि थत मान त भ को देख कर उनका मान गिलत हो
गया और वे नत म तक हो गए, िफर वहाँ तो मगं ल ही हो गया.
जैसे ही उ ह ने भगवान् से िकया, भगवान् क वाणी, सवाग
से िनकलने लगी और सस ं ार के सभी ािणय को अपनी अपनी
भाषा म बात समझ म आने लगी. यह िदन बहत ही मंगलदायी
ह. िपछले अंक म आपने . पंिडत ी िनहालच जी जैन,
‘चं ेश’ ारा रिचत तु पज ू न म भी पढ़ा था.....
नजर को बदिलए नजारे बदल जाएगं े
धमसभा म आने वाले, समवशरण जाते | सोच को बदिलए िसतारे बदल जायगे
धम देशना सनु ने वाले, िद य विन पाते || िकि तयां बदलने का कोई फायदा नह
गु िमलन से भु िमलन हो, वह पद म पाऊँ | िदशा को बदिलए िकनारे बदल जायगे
ादशा गमय िजनवाणी क , ुत पूजा गाऊँ || आप सभी को वषायोग /चातुमास क शुभकामनाएं .
आपका
इन पिं य को पढ़ते समय या ऐसा नह लगता क हम पी. के. जैन ‘ दीप’.
अपने हमारे मन क बात ही श द म पढ़ रहे ह ? अथात् ऐसा ही क याण, मबुं ई.
तीत होता है क यहाँ हमारी ही बात हो रही ह.

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नमो तु शासन सेवा सिमित पाठशाला सच
ं ािलका:
ीमती क त जै न, िद ली,
(पंजीकृत) पाठशाला सह-संचािलका:
ीमती िकरण जैन, हांसी, ह रयाणा.
ट मंडल : ीमती िवदुषी तेजि वनी डी., मैसूर
अ य ी पी. के . जैन ‘ दीप’ हाट्सएप ु स :
उपा य ा ीमती ित ा जैन कुल 50 ु स के सभी एडिमन/सच ं ालक
महामं ी बा. .अ यकुमार जैन आगरा : शुभम जैन,
अतुल जैन,
सह मं ी ी अिजत जैन अलदगं डी : िम सेन जैन
कोषा य : ी वीन जैन अशोक नगर : अतुल जैन,
सद य ीमती मंजू पी.के . जै न ीमती अनीता जैन
सद य ी सश ु ातं कुमार जैन बड़ामलहरा; अ यपाटनी,
ीमती रजनी जैन
बजगुली : वधमान जैन
-: कायका रणी मंडल :- बैतूल : अिवनाश जैन
देशा य : बानपरु : नवीन जैन
ी गौरव कुमार जैन, बंगलु , कनाटक. बंगलू : स देश जैन,
ीमती क त पवनजी जैन, िद ली. िनमल कुमार जैन
ी नंदन कुमार जै न, िछंदवाडा, म य देश. बेलगाँव : धरण कुमार एस. जे.
ी संजय राजु जैन, रािजम, छ ीसगढ़ भोपाल : पं. राजे श “राज’
चार सार मं ी : बरायठा : ीतेश जैन
ी राहल जैन, िविदशा, चामराज नगर: ीमती विनता सतीश
ी अनुराग पटे ल, िविदशा िछंदवाड़ा : ीमती मीनू आशीष जै न,
ीमती ल मी जैन
नैितक ान को मं ी: िचकमगलूर : बी. िजनराजया, कलस
ी राजेश जैन, झाँसी, उ र देश दावनगेरे : भरथ पंिडत
िवशेष सद य : िद ली : ीमती रतु जैन
महेश जैन, हैदराबाद; धम थल : डॉ. जयक ित जैन
दुग : सजल जैन,
गुडगाँव : पं.मुकेश शा ी
देश सिचव :
हासन : वीन एच. आर.
ी त ण जैन, िशवनी, म य देश.
हैदराबाद : डॉ. दीप जैन
ी सजल जैन, दुग, छ ीसगढ़
होसदुगा : सुमित कुमार जैन
हबली : ीमती नदं ारानी पािटल

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िसकंदराबाद (उ. .): िवपुल जैन,
इदं ौर : ी िदनेशजी गोधा, ऋषभ जैन
ीमती रि म गगं वाल सोलापरु : कुमारी ा यवहारे
ी नवीन जैन. िशवमोगा : दीप बी. कूट
जबलपरु : िचराग जैन िशवनी : ी च दन जैन,
जयपुर : डॉ. रंजना जैन ी पवन िदवाकर जैन
कलबुग : िकशोर कुमार िसरसी : महावीर जैन
कारकल : भारती िव का थ, टीकमगढ़ : अशोक ाि तकारी
सिमथ जैन, टुमकुर : प ा काश
कोलकाता : सुरे गंगवाल, िवजापुर : िवजयकुमार दुगा नानवर
राजेश काला, उ जैन : राजकुमार बाकलीवाल
कुसुम छाबड़ा, नवीन जैन
कोटा : नवीन लहु ािडया, उमरी : अभय जैन
ीमती िमला जैन ऑ ेिलया, पथ : ीमती भि हले यवहारे
मगलौर : संतोष पी. जैन एवं अ य सभी कायक ागण.
मुड़िब ी : िवन च जैन,
सुहास जैन,
कृ णराज हेगड़े
!!जो है सो है !!
मुंबई : दीपक जैन, !!नमो तु शासन जयवंत हो!!
गौरव जैन,
काश िसघं वी, !!जयवंत हो वीतराग मण सं कृित!!
भरथराज,
मुदर : जी. भरथराज जैन
मौरेना : गौरव,
िज मी जैन
मैसरू : िवदुषी तेजि वनी डी.,
जयल मी,
सिवता साद
पुणे : ाज ा चौगुले
रायपुर : िमतेश बाकलीवाल,
रानीपरु : सौरभ जै न
ाची जैन;
रतलाम : मांगीलाल जैन
सांगली : राजकुमार चौगुले,
राहल नां े

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नमन ये सब
श द अ या म पंथी का........ परमाथ से
ुव- ायक- वभावी
िनज-आ म को ही,
इसिलए तो
बार-बार कहता मन-
तू यान कर
िनज आ म का ही,
औ’
नमन कर
िनज आ म को ही |
...
शरण
नमन बड़ी अजब है दुिनयाँ
शरण खोकर
नमन अशरण म
वीर शरण खोजती,
व मान
स मित जैसे
अितवीर औ मगृ
महावीर को..... खोजता
मरीिचका म
नमन नीर
गणधर गौतम
कुंद कुंद आचाय औ जो वयं क शरण नह
सम तभ सू र को... वह या देगा
अ य को शरण ?
नमन
वा वािदिन और इसिलए कहा गया-
ानमूित औ के वली- णीत धम ही स चा शरण
सर वती को .... के विलपण ं ध मं सरणं पव झािम
के विलपण ं ध मं सरणं पव झािम... |
नमन
यवहार से आचाय ी िवशु सागर जी महाराज क का य
गणी-पद- दाता रचनाओ ं का सं ह “ श द अ या म पंथी का” से
मो माग-उ ाता साभार उ ृ त. यिद आप इस का य रचनाओ ं के सं ह
सू र िवरागिस धु को....
“ श द अ या म पंथी का” को िनशु क ा करना
पर चाहते है तो हम सपं क कर:- 9324358035.

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समािध भि शतक
दादा गु देव परम पू य गणाचाय ी िवराग सागर जी
महाराज कहते ह – “आगम ंथ का मंथन कर इस शा िवशेष
का सृजन नय च वत सार वत किव आचाय ी िवभवसागर
जी ने िकया ह.”

“जीवन क साधना तो िन थ अव था ही है और सफल


जीवन क सफल साधना का फल तो स लेखना-समािध ही है.
इसे सभी जानते ही ह. आ मा क शु िचत् चम कार प
शु ा म क अनुभूित को ा करते हए जीवन के अंितम िदन
म एवं ण म काय कषाय का लेखन करते हए मरण को ही महा
महो सव बनाते ह.”
सं ेप म कह तो दुलभ से दुलभ मानव जीवन क अनतं ानत
ज म क सफल साधना का फल समाधी ही है.
इस अनुपम अ ितम कालजयी अमर-भि -का य रचना
शायद ही कोई ऐसा ावक होगा िजसने इसे पढ़ा न हो या सुना
यिद वीतरागी भगवान् क भि बीज है तो यह समािध न हो. वैसे तो इसके थम अिधकार तो कई ावक को कंठ थ
शा बीज का उ म भ डार है. इस रचना म सुधी पाठकगण ही है.
पढ़ते पढ़ते वयं जान जायगे िक इसे भ डार क सं ा य दी सभी ावक क यही कामना होती है िक उसका अंत समय
गई. एक बीज से िवशाल उतंग वृ का िनमाण होता ह और उस गु -पादमूल म ही हो और िनिवक प समािध हो.
वृ से पुनः अनतं बीज पा सकते ह. अतः यह “समाधी शा ”
को भ डार कहना कोई अितशयोि नह होगी. गु के पा ुल
म शरण पाकर िश य के ान क कोई सीमा नह रहती है. एक
िश य अपनी अपवू अ ितम अमर रचना का सज ृ न कर लेता है,
यह होता है भि का भाव. ावक के मन के कुशल जानकार
गु देव ने इस थ म जैन दशन के अ यंत गूढ़ रह य का उ ाटन
करनेवाला आगम, िस ा त, योितष, र , धम थ, गु पदेश,
िजन वचन, शा वा याय और आ म िचतं न क उपलि ध
का सफलतम सच ं यकोश बना िदया ह. यही समािध शा है.
जैसा िक शीषक ह – “समािध भि शतक” यह
इसिलए िक इसके दो सौ से भी अिधक गाथाओ ं क अब तक
रचना हो गयी है. येक पव म एकादश गाथाएं ह. अब तक सार वत् किव मणाचाय ी 108 िवभव सागरजी महाराज
इसके बाईस पव क रचना पण ू हो चकु है अथात् अब तक क सार वत् किव नय च वत मणाचाय ी 108 िवभवसागर
दो सौ बयालीस गाथाएँ आप सभी के सामने ततु होने वाली जी महाराज के अ तरंग से जो भाव उठे , उसे पढ़ते समय पाठक
है. को ऐसा महसस ू होता है िक मानो वह वयं अपने मनोभाव से
िस शीला पर पहच ं कर िस िशला पर िवरािजत वीतरागी

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भगवन् से बात कर रहा है. अपने मनोभाव से भु से वयं बात
करते हए अब िचतं न करते ह दशम् अिधकार का.........
अहो ! या अ ु त रचना है :-
तेरी छ छाया भगवन् !, मेरे िसर पर हो |
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||

कम दय क गित िविच है, कब या हो जाये |


अचल मे भी िवचिलत होवे, धरा उलट जावे | कै सा कम उदय म आकर, कब या कर जाये ||
िकंतु इं भी मिु न के मन को, नह पलट पावे || कम िवपाक िचतं न करके, यह मन सिु थर हो |
सा य भाव का ऐसा वैभव, जीवन म भर दो | मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||103||
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||100|| तेरी छ छाया.......||
तेरी छ छाया.......||

मेरे कारण िजन शासन क , लाज नह जाये |


मेरे कारण मण सघं पर, आँच नह आये ||
जो चाहो तुम पा सकते हो, कामधेनु तप है | प रणाम क र ा करना, वीर िजने र हो |
तप ही िचंतामिण र न है, अलक ं ार तप है || मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||104||
म अ ान अंधेरे म ह,ं तपो दीप भर दो | तेरी छ छाया.......||
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||101 ||
तेरी छ छाया.......||

अब भी कोई हो उपाय तो, भवु र बतलाओ |


िजन शासन क ाण ित ा, आप बचा जाओ ||
िकस िविध भव को पार क ँ म, गु को तृि िमले |
कै सा भी दुब ध िकया हो, शी िवन र हो
सघं प र म सफल क ँ म, सबका िच िखले ||
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||105||
िदग-् िदगंत म, मण सघं क , क ित मनोहर हो |
तेरी छ छाया.......||
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||102||
तेरी छ छाया.......||

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पीड़ा भी परमा म बनाती, स य ि को | ानी क हर बात-बात म, त व के भेद िकतने ?


िनंदा भी अ या म िसखाती, स य ि को || य केले के पात-पात म, के ल प उतने ||
िनंदा और शंसाओ ं म, समरसता भर दो | ानीजन क सगं ित पाकर, धम यानधर हो |
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||106|| मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||109||
तेरी छ छाया.......|| तेरी छ छाया.......||

देव शा गु मुझे िमले ह, तेरी शरणा म |


शीश नवाकर गु आ ा को, म वीकार क ँ | गु िवराग भी मुझे िमले ह, तेरी क णा म ||
जो-जो गु वर कहा आपने, वैसा िन य क ँ || िमले साधना और समािध, यही िवभव वर दो |
वतः समािध लाभ िमलेगा, िश य िवनयधर हो || मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||110||
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||107|| तेरी छ छाया.......||
तेरी छ छाया.......||

अ ानी क बात-बात म, ह िवक प िकतने ?


अरे याज के िछलके भीतर, िछलके ह िजतने ||
पर भाव म, नह उलझना, सब छूमतं र हो |
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||108|| मश: ...........
तेरी छ छाया.......||

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अब तक आपने िपछली गाथा म, अंक म – ंथराज म


त व िव े षक आचाय ी अमतृ च नय यव था को समझते हए, आ मा के ानािद गुण के
वामी क महान रचना – िवकार प रागािद प रणाम से प रणमन करता हआ अपने
प रणाम का कता और भो ा तो वयं ह. जीव के वकम
“पु षाथ िसद् युपाय” ही प रणमन होते ह अ य तो िनिम मा ही होता ह. जब
पर आधा रत रागािद िवकार से (अशु आ मा) पार होकर स यक्
पु षाथ से अपने िवशु व प को ा होता ह तो िसि
पु षाथ देशना को ा कता हआ अपने मो माग को श त करता ह.
अब आगे बढ़ते हए चौदहव और पं हव गाथा म ंथराज
के नामानुसार “पु षाथ क िसि के हेतु उपाय” पर
आचाय ी अमतृ च वामी क त व ी को आचाय ी
िवशु सागर जी महाराज क िववेचना, देशना को समझते
हए हम और आगे जानेगे. िकस तरह सस ं ार बीज को,
िवपरीत ान को न कर िनज व प को जानकर अपने
पु षाथ क िसि का उपाय करते हए मो माग पर ही आगे
बढ़ते हए कदम ... मशः......

+ eaxykpj.k +
rTt;fr ija T;ksfr% lea leLrSjuUri;kZ;S%A
niZ.kry bo ldyk izfrQyfr inkFkZekfydk ;=A 1AA
नोट:- महान त व िव े षक आचाय ी अमृतच वामी
ijekxeL; thoa fuf"k)tkR;U/kflU/kqjfo/kkue~ A
क महान रचना “पु षाथ िसद् यपु ाय” पर आधा रत ldyu;foyflrkuka fojks/keFkua uekE;usdkUre~A 2A
ितपल मरणीय, चया िशरोमिण, अ या म योगी, आगम

“iq#"kkFkZ dh flf) dk mik;”


उपदे ा, वा याय भावक, ुत सवं धक, आचायर न ी
108 िवशु सागरजी महाराज क देशना “पु षाथ देशना”
का मश: काशन हो रहा है. अब तक आपने इस ंथराज
क बारह गाथाओ ं / ोक का पठन िकया है. इस ंथराज
,oe;a deZ—rSHkkZoSjlekfgrks·fi ;qDr boA
के मगं लाचरण म ान योित को ही नम कार िकया गया
है. यही जैन दशन क िवशेषता है. इसम यि को नह गुण izfrHkkfr ckfy'kkuka izfrHkkl% l [kyq
का ही वणन और पू य वताया गया है. Hkochte~AA 14AA

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माह म पानी िगरने से भूिम गभधारण करती है, इसम अनेक
कार के जीव क उ पि होती है. उन जीवो क र ाथ
वषायोग का योग
(आचाय वर ी १०८ िवशु सागर जी महाराज के िदगबं र मुिन चातुमास करते ह आ मा क साधना के िलए
वचन/देशना पर आधा रत कृित वषावास होता है.
वचन भा से साभार )

िदगबं र जैन मुिन जीवो क र ा के िलए, अिहंसा धम के िदगंबर मुिन हमेशा नगं े पैर पग िबहार करते ह सिदय म भी
पालनाथ वषा काल म एक ही नगर, गाँव म ठहर कर त व धारण नह करते और गम म तपती दोपहरी म िवहार करते
का पालन करते ह. जो दया से िवशु है, वही धम है। जीवो ह व धु ा-तषृ ा उ ण-शीत आिद प रषह को भी सहन करते ह.
क र ा करना ही धम है. िव म कोई परम है तो वह समता, सरलता, सहजता और साधना ही साधु क पहचान
अिहंसा है. है.पहले िदगबं र मिु न जगं ल म रहकर साधना करते थे परतं ु
वतमान म शि -हीन होने से साधु नगर म ठहर कर साधना करते
ह. वतमान म भी िदगंबर मिु न सम त प र ह के यागी, न न रहते
ह, मा एक बार ही कर-पा म िदन के उजाले म ासक ु आहार
हण करते ह.

चातुमास, वषायोग का उ े य है िक िविश साधना


करना. जैसे जननी गभधारण करती है वैसे ही आषाढ़ के

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जो धम को धारण करता है वह महान् हो जाता है. स य- य है ? य िक यहाँ दया से िवशु धमा मा मनु य रहते
अिहस ं ा के माग पर चलने वाला मनु य ही महा मा और ह. दया- क णा से िवशु जो है वही मनु य है.
महा मा से भगवान् बन जाता है. जो अहं-भाव का अभाव
कर देता है वह भगवान् बन जाता है. भगवान् बनना है तो
िहंसा, झठू , चोरी, कुशील और प र ह का याग कर दो.
अिहंसा ही परम धम है अिहस ं ा ही परम है. परम
कट करना है तो अिहंसा धम का पालन करो. चया म
अिहंसा, वाणी म य ाद और ि म अनेकांत है वही
िदगंबर योगी है. जो प र ह से दूर ह , िनज म लवलीन ह ,
वही िदगंबर साधु ह.

धम-धमा मा का िवकास हो, ाणी मा का क याण


हो, धम-समाज-रा -िव म शांित थािपत हो यही
वषायोग, चातुमास का उ े य है. व-पर िहताथ ही साधु का
वास होता है. यही मंगल भावना है िक धरती पर िवरािजत
सभी धरती के देवता िदगबं र मिु न, साधओु ं के वा य
अनुकूल रह, साधना-िनमल हो और र न य क पूणता हो.

भगवान् महावीर वामी ने कहा है िक ‘िजओ और जीने


दो’. िम ! जीना हमारा अिधकार है, तो जीने देना हमारा
कत य है. यही नैितक शा है और यही धम का सार है.

आज भी ब चे ब चे के अंदर धम के ित आ था है.
आपने कभी सोचा िक हमारे देश म सबसे अिधक िभखारी

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आ व जार है मंगलाचरण

चउवीसं ित थयरे उसहाइ वीर पि छमे वंदे |


स वे सगण गण हरे िस े िसरसा णमंसािम ||

ऋषभ नाथ वामी से लेकर अंितम तीथकर भगवान


महावीर वामी पयत चौबीस तीथकर को म नम कार
करता हँ | सभी मुिनय को, गणधर को और सभी िस
को िसर झुका कर नम कार करता हं |

गतांक से आगे ....

सुबह उठने से रात को सोने तक कै से पापा व जारी है ??

‘आ व जारी है’ |
नोट: िपछले अंक से एक नया और समाधान के
कॉलम का शुभार भ िकया गया था. आपने देखा क यह
सुबह सोकर उठा और िबना देखे नीचे धरती पर पैर रख
बहत ही सरल और मनो भाषा म ह. इसके रिचयता ह –
िदया वहां पर बहत सारी च िटयां थी, जैसे ही पैर रखा उन
मण मुिन ी आि त य सागर जी महाराज और इसका
जीवो का घात हो गया ...........
अं ेजी भाषानुवाद िकया ह मण मुिन ी णीत सागर
जी महाराज ारा. आप दोन मण के दी ा गु परम कम कहेगा -
पू य अ या म योगी, आगम उपदे ा, चया िशरोमिण, ‘आ व जारी है’ |
समयसारोपासक, ुत संवधक, वा याय भावक,
आचायर न ी 108 िवशु सागरजी महाराज है. िश य उठने के बाद कहता है अब दतं मंजन कर लूं िजस म
क पहचान तो गु से ही होती है. य िक आचाय ी 108 हड्डी का चूरा िमला हो. ऐसे अभ य व तु को अब तू
िवशु सागरजी महाराज कहते ह – “िजसके पास जो दात पर िघस रहा है...........
होता ह वह वही देता है.” आचाय ी क वाणी क धार
यमल मुिनराज के ओज वी वचन म साफ़-साफ़ कम कहेगा -
िदखाई देती है. हमारे रोजमरा क जीवनचया म अ यंत ही ‘आ व जारी है’ |
छोटी-छोटी बात से कम का आ व जारी रहता है और
उसे ही हम िकस कार से सवं र कर बंध से बच सकते ह
दतं मंजन के बाद नान गहृ म गया जहां तझ ु ेअ प
यही बताया गया ह. िपछले अंक म थ क तावना से
पानी से नान करना चािहए, वहां तू अनछने पानी का
आपके सम तुत िकया गया था अब आगे जानते ह
उपयोग कर रहा है. शावर चालू करके घटं ो घटं ो यह मलीन
रोजमरा क ि याय से आ व कैसे होता ह ?
देह को िनमल कर रहा है और साबुन से रगड़-रगड़ कर धो

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रहा है, वह झाग नािलय म जा रहा है - जीव मर रहे मंिदर से जाने के प ात तूने िवचार िकया महाराज ी
ह........... ससघं आए ह तो दशन कर लँू और िबना नीचे देखे चला
कम कहेगा - जा रहा है. अ य मुिनराज िवराजे थे तो उनक िपि छय
को लाँघता हआ चला जा रहा है, शा को लाँघता चला
‘आ व जारी है’ | जा रहा है. वंदन कर रहा है या बंध कर रहा है? ...........
कम कहेगा -
नान के बाद तुझे अपने व अपने हाथ से
सावधानीपूवक धोना चािहए और तूने उसे वॉिशंग मशीन ‘आ व जारी है’ |
म डाल िदया और एक साथ म बहत से व धुल रहे ह.
40-50 िलटस सफ़ का पानी नाली म जा रहा है. िजससे दशन के बाद वचन सनु ना चािहए है परंतु घर जाकर
अनेक जीवो का घात हो रहा है ........... चाय पीने लग गया, या वचन सभा म बैठा भी तो सनु ने
कम कहेगा - क जगह सो गया ...........

‘आ व जारी है’ | कम कहेगा -


‘आ व जारी है’ |
अब कहता है चलो मंिदर चलता ह.ँ नीचे जीव को
देख कर चलना था परंतु तू ऊपर देख कर चला जा रहा है, सोकर उठा तो देखा वचन समा हो गए महाराज ी
नीचे जीव का घात हो रहा है ........... आहार को जा रहे ह तो दौड़ते दौड़ते शु धोती दुप ा
कम कहेगा - पहनने गया और जै से ही पहन कर आया तो िकसी ने छू
िलया. पहले तो उसे अशुभ वचन कहे िफर चार ओर
‘आ व जारी है’ | देखता है कोई देख तो नह रहा और मंिदर म वेश कर
गया जहां सब शुि म थे. तूने सबको अशु कर
मंिदर पहंचकर िबना पैर धोए या आधे पैर धोए मंिदर िदया...........
म वेश कर रहा है ........... कम कहेगा -
कम कहेगा - ‘आ व जारी है’ |
‘आ व जारी है’ |
चौके म पहंच गया पूरा चौका अशु कर िदया यहां
मंिदर म गया था िवशुि के िलए और िकसी ने कुछ तक तो ठीक था जैसे ही आहार देने पहच
ं ा तो साम ी हाथ
कह िदया तो मन अशुभ कर बैठा. देखना था भगवान को म लेकर शुि बोल रहा है उस साम ी म थूक जा रहा है.
परंतु पर को देख रहा है िक वह या कर रहा है........... दाल म देखा बाल था तो धीरे से उस बाल को हटाया और
वह दाल तूने महाराज ी के अंजुली म दे दी...........
कम कहेगा -
‘आ व जारी है’ | कम कहेगा -
‘आ व जारी है’ |

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आहार देखकर घर पहच ँ ता है. दुकान जाने से पहले
टीवी चालू िकया और ना ता करने बैठ गया. िबना भोजन INFLUX IS ON
साम ी देखे भोजन करता जा रहा है ..........
Dear Parents,
कम कहेगा -
‘आ व जारी है’ | You had read English
Translation of “ASRAV JARI HAI”
means “INFLUX IS ON” from last
issue. As most of the children are
studying in English Medium. It
will be very easy to understand
Jainism from childhood and so they
will become perfect Shravak with
knowledge.

INVOCATION
I bow down to all Twenty Four
Tirthankaras from lord
Rishabhnath to lord Mahavir. I bow
down to all saints (skyclad),
Gandharas and all liberated ones.

INFLUX OF SIN BY DAILY


जीव
ROUTINE DEEDS
नजरा अजीव
You awoke and without looking
मो down, you kept your feet on land
संवर आ व which results into killing of many
बंध
ants/insects and small microbes…..
KARMA WILL SAY
शेष जारी है आगामी अंक म......
INFLUX IS ON

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Thereafter you plan to move to
Lateron, you planned for TEMPLE/ABODE OF JINA. You
brushing teeths and choose bone mix should have walked by downside eye
powder, you are brushing your teeth view but you are going by upside eye
by such non-eatables. ….. view, which results into killing of
KARMA WILL SAY microbes …..
INFLUX IS ON KARMA WILL SAY
INFLUX IS ON
After brushing, you planned to
have bath. You switched on shower Reaching to temple, you entered
and wasted water like anything inside without cleansing your feet
else, rather using essential properly, …..
quantity required. You are trying KARMA WILL SAY
to clean your dirty body using soap
INFLUX IS ON
and all foam is flowing inside
drainage. Thus Microbes are killing
You reach to temple to rise up
away …..
your level of purity but you spoiled.
KARMA WILL SAY your thought process by hearing
INFLUX IS ON one. You moved to worship/eye
Jinendra deva/God I didn't they
After bathing, you should have were jeena Deva/God. But what are
washed your clothes by your own you doing ? You are eyeing
with lot caring but used washing others…..
machine for same. You drop down KARMA WILL SAY
many clothes into it many microbes
INFLUX IS ON
dwell inside drainage remains no
more after coming into contact with
After worshipping you plan to
foam water …..
worship group of saints. You visited
KARMA WILL SAY there without eyeing, you were
INFLUX IS ON moving, you were over crossing
“Pichchhis” of other saints with that

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sacred books, Jinwani, too. It was piece of hair, after founding in bowl
disrespecting. Whether you were of pulse and offered to saint…..
winding karmas or adoring KARMA WILL SAY
Karma…..
INFLUX IS ON
KARMA WILL SAY
INFLUX IS ON After offering food to saint, you
return back to your home and prior
After slumbering, you found to moving to shop. You switched on
that the saint is going to intake of TV, started enjoying breakfast. You
food,Aahaaraa. You hurried for were watching TV and without
changing your attire from impure proper eyeing, eating foods…..
and as you moved out-side, KARMA WILL SAY
someone touched you. On a prior
INFLUX OF SIN IS ON 24 X 7
basis, you came up with vulgar
words and thereafter you looked to
surroundings, whether anyone had
looked upon you or not. You entered
into temple or a place where crowd of
people or devotees wearing pure
clothes, assembled and join them.
You made all of them impure…..
KARMA WILL SAY
INFLUX IS ON

You reached to place of intake of


food (Chaukaa) and impured it
fully. It was ok. Further as you
moved to offer food to saint, you are
saying purity (shuddhi) taking TO be CONTd……
bowl or eatable in your hand, you are
spitting into it. You removed out

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वषा योग मनाय भी ! जाने भी ! ह. यह थक बात है िक गत चार दशक से ावक ने सतं
क साधना के साथ ‘ भावना’ भी जोड़ रखी है. बड़ी बात
हमारी सतं ान वषा योग को सही तरीके से मनाने यह है िक भावना एकांत म या मंिदर के गभगृह से लेकर
क कला सीख, उससे पूव उसे यह भी जानकारी हो िक वषा िवशाल मंच तक, अपनी जड़े जमा चुक है. भावना
योग का वा तिवक अिभ ाय साधा है िक जब बादल से िकंिचत उिचत कही जा सकती है, पर इसके कारण ‘सादगी’
हई वषा का िनरतं र धरती से जड़ु ाव होता है, उसे वषाकाल, सदा खंिडत होती रहती है. मन क िनमलता मिलन होती है,
बरसात, वषायोग कहते ह. सच, वषा का अपना बड़ा मह व यि व क ग रमा खोखली हो पड़ती है. अतः भावना
है. उसके िवषय म हमारे मनीिषय ने कहा है - ‘वषा कुछ क एक सीमा होना चािहए, जबिक साधना क कोई सीमा
और नह यह तो वग का झरना है. िनझर है. यिद वग के नह होती.
झरने सख ू जाव तो धरती पर म कर रहा िकसान हल
जोतना (चलाना) ही छोड़ देगा. वह मनीिषय , ेि य के
िलए सक ं े त करता है – यिद जल न बरसे तो सारी पृ वी पर
चार तरफ अकाल और महामारी फै ल जायगे, भले ही धरती
चार ओर से समु से िघरी हई है. भले ही सिृ के भंडार म
सोना-चांदी हीरे भरे पड़े ह . मनीषी तो मनीषी होता है. मन
क महानता को श द म ढाल देता है. वह सतं ो के िलए भी
कहता है- यिद ऊपर क जल धाराय आना बंद हो जाए तो
वषा योग क प रभाषा िवशाल है, इससे मण,
िफर पृ वी पर न कह तप रहेगा, न दान. न योगी बचगे, न
मणी, ावक और ािवका सयं ु पा होते ह. इसम वषा
योग. सम त त, िवधान, पज ू ा, ित ाय, महो सव धरे रह
का धरती से सबं ंध बनता है, चतुिवध सघं का यान से सबं ंध
जाएगं े.
बनता है तो ावक का पार प रक मेल होता है. समाज का
सतं से सयं ोग बनता है. भ म आपस म ेम/ भाईचारा
बनता है, धम-लाभ होता है, िनयम सधते ह, ावक के
कत य के प रणाम सामने आते ह, जन-जन के वैरा य के
ित स मान बढ़ता है और आपसी जुड़ाव भी. वषायोग
के वल संत िहताथ नह होते, ये ावक िहताथ भी है. हर योग
साधक ‘योगी’ हो पड़ता है. ‘ यान’ पहले योगी बनाता है
िफर आ म- ानी. जो साधक आ म- ान ा कर ले ता है
वह वयं िनयोगी हो जाता है, िनयोगी माने िजसे िनयु
उ तमाम भावनाओ ं और सभ ं ावनाओ ं के चलते िकया गया हो. वो कहलाता है िनयोग थ.
हजार साल से हमारे सतं और ावक, हाँ चतुिवध संघ
वषायोग क साधना करते रहे ह. यह थक बात है िक
तीथकर ने कभी वषायोग-साधना नह क , उनक तो
बारह माह एकसी किठन साधना चलती थी, या ी म,
या शीत और या वषाकाल. पाठकगण यान रख –
वषायोग कोई समारोह नह है जो मनाया जाये, यह तो वह
अविध है जब- साधकगण योग-अ ययन- वा याय-लेखन-
सामाियक- ित मण-जप-तप-सयं म क ढ़ साधना करते

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यिद संत सािन य म वषा काल सपं न हो रहा हो
तो उस अविध म पव -उ सव क बाढ़ सी आ जाती है. यह
तो हर ावक जानता है िक ितवष अषाढ़ शु ल चतुदशी
से चातुमास ारंभ हो जाता है जो काितक कृ ण अमाव या
को पूण होता है. इस अविध के बीच और समय सीमा के
समीप भी कितपय पव को सावधानीपूवक आयोिजत
िकया जाता है. अ ाि हका पव, कलश थापना, गु
पूिणमा, वीर शासन जयंती, ह रयाली तीज, नाग पंचमी,
र ाबंधन, मो स मी, सोलहकारण, पयषण ु पव, र न य
त, ि कुल दशमी, अनंत चौदस, मावाणी, महावीर नई पीढ़ी इस अवसर पर सवािधक कारगर िस हो
िनवाण, दीपो सव. सतं के मागदशन से कुछ अ य-अ य सकती है. यिद वह धमाराधना का मन बनाये तो. अ यथा
उ सवािद भी हो सकते ह. क म रखा टी.वी. उ ह ि के ट के मैच देखने तक ही सीिमत
रखेगा. सनु , वषायोग का आयोजन ि के ट आिद खेल से
अिधक काम का है. उस पर यान द. सतं को भी चािहए
िक उबा देने वाले काय म पर अंकुश लगाएँ, बोिलय को
मच
ं का मु य काय म न बनाय और पिं डत- ित ाचाय
‘पांच लाख एक’, ‘पांच लाख दो’ कहने के बाद ‘पांच
लाख तीन’ कहने के िलए माइक पर आधा घंटे तक शोर
गान न कर. धन आव यक ह पर इतना नह िक धम क
वषा योग का उ े य अिहंसा धम क र ा और उसक उपे ा होने लगे. इस उप म पर सतं यान द तो वह दीघ से
थापना ही है. समूचे घर , नगर और वातावरण म अिहंसा लघु बन सकता है.
क अचना क गज ूं भर देने का समय है चातमु ास. आहार-
िवहार, िवचार, यवहार और िनहार क ि याओ ं म चरम
शुि और अिहंसा क भावना मुख होती है. ‘अिहंसा
परमो धम’ का आलोक िदग-िदगतं तक पहँचाने का
पु षाथ वषा योग देता है. संसार के सभी धम का आधार
अिहंसा धम मा चातुमािसक िदनचया से सह गुना सार
पाता है. सतं ो और ावक के चलने-िफरने-िवहारािद पर
अंकुश लग जाने से े अिहंसा धम क र ा होती है.
ािणय के जीवन क र ा का उ ोष चातुमास ही करता है.
िजससे ू रताहीन-िव क रचना को सहयोग िमलता है. अंितम बात यह है िक मंच संचालक िकसी दानवीर
वषायोग म आ म-िवकास करने का वचन मु य ार है. ावक क इतनी शंसा न कर द िक वह सतं से महान
अतः वषायोग क थापना से लेकर िन ापन तक सस ं ार का िदखने लगे. साथ ही संत का ऐसा गुड़गान न कर िक मंिदर
काफ बड़ा प र य बदल जाता है. ावक मुिन दी ा का म िवरािजत मूलनायक क चया हीन हो जाए. यह भी िहंसा-
मन बना लेता है तो तापस समािध पवू क मरण क भावनाएँ कम माना जायेगा, जबिक हम चातमु ास का आयोजन करते
भाने लगता है. ह अिहंसा क थापना और अचना के िलए. इस बीच िकसी
सतं क पल भर भी उपे ा ना हो पाये य िक वे सद्चा र

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के सा ात मूितमान होते ह. उनके तप, याग और सयं म देख नोट: जैन समाज के मूध य लेखक, कलम के अिधपित, ी
कर ही तो हमारे िव ान किवय ने िलखा है – सरु ेश जी जैन, ‘सरल’ ‘सािह य कुमुदचं ’ एक ऐसे यि व
का प रचय, िकसी श द का मोहताज नह ह. आपने समय-
करते तप शै ल नदी तट पर, समय पर अनेक कृितय का रचना मक सज ृ न िकया ह.
अित िवशेष प से अब तक नौ आचाय क जीवनी का
त तल वषा क झािड़य म । रे खांकन िकया ह. आपक एक अनमोल कृित आदश मण
समता रसपान िकया करते, “आचाय ी १०८ िवशु सागर जी महाराज” क जीवन
गाथा ही ह. इस थ का थम बार िवदेश क धरती
सख
ु दुख दोन क घड़ीय म ।। ऑ ेिलया ि थत मेलबन शहर से ई-सं करण का
लोकापण ई.स. २०१६ म िकया गया था. यिद आप इस
थ को घर बैठे िनशु क ा करना चाहते ह तो हम इस
नबं र पर सपं क कर. पी. के . जैन ‘ दीप’ 9324358035.

ी सुरेश जैन
“सरल”
‘सािह य कुमुदचं ’
*
जबलपरु
रचनाकार :
“आदश मण”
एवं अ य बहत से
ंथ के रचनाकार

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मेरे जैसे भ के िलए तो हर पूिणमा गु पूिणमा ही होती


गु पूिणमा है. इस िदन गु वर क पज ू न करके उनका मरण कर उ ह अपनी
िवनयांजिल अिपत करता हँ. यह भी यास करता हँ िक
गु पूिणमा जैसे पावन िदवस पर वयं को गु चरण म उपि थत
होकर ा- भि पवू क पूजन-वंदन कर सकूं.

यह स य ही है िक िजनके जीवन म गु नही है उ ह स चे


भगवान के व प क जानकारी ही नही होती है. परमा मा के
स चे व प के दशन कराने वाले गु ही होते ह. गु िश य के
जीवन क हर बुराई को दूर कर उसे सद् माग पर लगाते ह, िजससे
िश य भी अपने जीवन को प रवितत कर उ कष क ओर बढ़ता
जाता है.

हमारे गु देव चया िशरोमिण 108 गु वर आचाय ी


िवशु सागर जी तो ान , चया और वा स य के सागर है. हम
गु देव के आशीष के सहारे ान सागर म गोते लगते हए ान
पी मोती को पाने सतत य न करते रहते ह.
गु पिू णमा के पनु ीत अवसर पर गु चरण मे ि काल नमो तु
यह एक ऐसा पव है िनवेिदत करते हए यही भावना भाता हँ – “ हे गु वर ! जब भी
िजसे हर भारतीय ा के साथ मनाता है, इस जीवन क शाम होने लगे तो आपके ी चरण मे समािध
य िक वह गु का मह व जानता है । पवू क इस न र देह को याग सकूं. बस इतनी सी अरज है
भगवन ! आपके इस छोटे से भ क यह भावना पण ू हो ऐसा
गु पुिणमा का अथ गु पूण माँ. आशीष दान क िजयेगा , िजससे यह ज म सफल हो सके .
इसी मंगल भावना के साथ गु चरण म पुनः -
गु को पूरी माँ कहा जाता है परंतु गु म िपता, भाई, िम नमो तु - नमो तु - नमो तु !
आिद जो भी र ते ह सभी समािहत हो जाते ह. सच तो यह है
िक गु तो भु से भी बढ़कर है. गु क मिहमा का गान करते गु चरण राज का सतत अिभलाषी :- सज
ं य"राजू"जै न रािजम
हए कबीरदास जी ने कहा है :- छ ीसगढ़
गु गोिवदं दोन खड़े , काके लागू पाय । ी सज
ं य राजू जैन
बिलहारी गु आपक , गोिवंद िदयो बताय ।। रािजम छ ीसगढ़
गु पिू णमा का पावन िदवस सभी गु भ के िलए सभी छ ीसगढ़ देशा य
यौहार से बढ़कर होता है. हर भ चाहता है िक इस िदन वह नमो तु शासन सेवा सिमित
अपने गु के चरण मे उपि थत होकर गु क पज ू ा अचना कर (रिज.)
गु क चरणरज पा आशीष ा कर सके . गु भ के िलए सम वयक
गु का आशीष ही सबसे बड़ी सपं ि होती है , य िक िजसे गु नमो तु शासन
का आशीष िमल जाता है उसे सभी चीज सरलतापूवक ा हो सेवा सिमित पाठशाला
जाती ह.

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गु चरण म गु पू णमा

गु पूिणमा का पावन िदन था जब गौतम गणधर, भगवान


महावीर वामी ी चरण म पहंचे थे. य िप हम हर वष गु
पूिणमा मनाते ह पर खास मह व नह समझ पाते ह. जहाँ साधु
सतं नह होते वहाँ पता ही नह चल पाता िक गु पिू णमा है और
मालूम भी पड़ जाए तो य ?

हे दय के देवता…गु देव!

आप अंदर ही अंदर रहते हो,


और म आपको अपने अंदर रखना चाहता हँ। आचाय कुंदकुंद वामी ने अपने मूलाचार थ म कहा भी
आप बाहर आना नह चाहते, है िक – “ आइ रय पसाएण िव जा भतं े य िस झित” आचाय
अथात् गु के साद से िव ा मं क िसि करने क
और म आपके िबना, आव यकता नह पड़ती. ऐसा लगता है िक गौतम गणधर ने इसे
अंदर जा ही नह सकता हँ। अपने जीवन म साकार कर के िदखाया था उ ह ने मं साधना,
आराधना, अनु ान नह िकया था िफर भी वे रि -िसि ओ ं के
“ गु वर क पद रज को छूकर, िबगड़े काम सभी बनते। अिधपित हए. गौतम गणधर को भगवान महावीर वामी जैसे
ी गु वर जीवतं तीथ के,दशन से िविधमल नशते।। गु िमले और हम गौतम गणधर जैसे गु – आचाय ी िवशु
सागर जी महाराज िमले. यही कारण है िक आज के िदन से यह
िनज शु दातम दशक साधक, िवशु द सागर जी को वदं न है। परंपरा ारंभ हई थी और वष -वष के उपरांत भी चली आ रही
भतू ल पर जयवतं रहे िनत,भाव से अिभनदं न है॥” है. अतः “गु भि सज ं मेण च तरंित संसार सायरं घोरं” जो
यि गु भि से यु होता है वह सस ं ार सागर से पार हो जाता
ीमती रतु जैन है.”
पा िवहार, ीमती अनीता जैन
िद ली अशोक नगर,
म य देश
सद य :
नमो तु शासन सेवा सिमित सद य :
पाठशाला नमो तु शासन सेवा
सिमित पाठशाला

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सभी को धम-माग क याण-माग का मागदशन देकर हम कृताथ

वषायोग कर.

वषा योग के अंतगत अनेक पव भी आते ह. वषा योग ारंभ


से गु पिू णमा एवं वीरशासन जयंती के तद तर र ाबंधन पव
इ यािद होते ह. त प ात भा पद मास म जैन-धम, आ म-धम
क भावना हेतु दशल ण पव, इ यािद मनाये जाते है.
िजसका जैन धमावलबं ी त, उपवास, याग, सयं म आिद करके
बहत ही िनमल प रणाम के साथ भावना भाते ह और
महामहो सव मनाते ह।
गु पूिणमा पव
आज हम सबका सौभा य है िक हम वीतरागी िन थ गु ओ ं
क परंपरा िमली है. िजनशासन अके ले थ
ं से नही चलता इसे
चलाने के िलए िन थ क ज रत है. दशन, ान और चा र
भारत क वसधुं रा ऋिष मिु नय क भूिम कही जाती है, का पालन करने वाले, सम त आरंभ प र ह से रिहत आ म
िज ह ने अपनी तप या और साधना के मा यम से इसे पू य साधना म लीन रहने वाले अ ावीस मुलगुण के धारी िन थ
बनाया है. जैन दशन म य एवं त व क िवशेष िववेचना के मुिनराज (आचाय उपा याय और साधु) क पजू ा उपासना करना
साथ िहंसा का सू मतम िववेचन जैन आचाय ने िकया है. चािहए. जो वयं धम के माग म लवलीन ह, वह ही दूसर को
उस स चे माग म लगा सकते ह, समझा सकते ह, हमे आ मिहत
िदगबं र मुिन वषायोग म एक थान पर रहकर जीव दया का का माग बता कर चलने का यास करा सकते है.
िवशेष पालन करते ह. जीव दया का पालन कोई भी कर सकता
है. िजसके मन म अिहंसा का भाव जा त होगा, वो ही अिहंसक आज हमे गु िमले ह, िज ह ने भगवान् से प रचय कराया.
कहला सकता है. दूसर क पीड़ा को, दुख को जो ाणी अपनी न िसफ प रचय कराया अिपतु भगवान् कैसे बने यह भी बताया.
पीड़ा समझेगा, वही जीव दया का पालन कर सकता है. भगवान अतः येक ावक को ऐसे िन थ वीतरागी तपोधन गु ओ ं
महावीर का शुभ सदं ेश "िजयो और जीने दो" यही हम सब को क उपासना करनी चािहए.
रेणा दे रहा है िक िकसी भी से भी घृणा मत करो , भेद भाव मत
करो जैसे तु ह अपना जीवन, अपने ाण यारे ह ,उसी तरह दूसर लोक
को भी अपना जीवन ि य है , यारा है. येक आ मा म म िवरािजत
परमा मा बनने क शि है. वतमान म भौितक अशांित के सभी साधुओ ं को
वातावरण म अिहंसा के ारा ही पूरे िव म शांित का सा ा य मेरा अंतमन से नम कार है
थािपत िकया जा सकता है. िदग बर मिु न /साधु अिहंसा
महा त का पालन करते ह. अपनी चया से िकसी भी कार ीमती क ित जैन
जीव-घात नही करते ह. इसी िनिम से िवहार करते हए भी वषा
ऋतु म वषा योग क थापना अथात चार माह तक िकसी एक िद ली देशा य ा
थान पर रहकर आ म साधना, धम साधना करते ह. नगर क नमो तु शासन सेवा सिमित
जैन समाज िमलकर आचाय ी के चरण म ी फल समिपत (रिज.)
करके िवनय पवू क िनवेदन करते ह िक आचाय ी आप सघं सच
ं ािलका
सिहत चार माह वषायोग काल इस नगर म िवरािजत हो कर हम नमो तु शासन
सेवा सिमित पाठशाला

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गु िबना ान नह
“िजसका गु नह उसका जीवन शु नह ”

हर यि के जीवन म गु होता ही है, चाहे माता-िपता हो,


चाहे िश क ह , आचाय ह , िम ह . सभी से हर कोई िकसी न
िकसी यि से अपने जीवन म िश ा हण ही करता ह.
गलितय का अनभ ु व करवाकर, सधु ारने का माग तो गु ही बता
सकते ह.

जब तक हम अपने जीवन म िकसी को गु नह बना पाते


ह, तब तक अपने जीवन म सं कार पी बीज का रोपण होना
किठन ह. इसिलए सभी को अपने अपने जीवन म गु बनाना ही
चािहए.

आज आचाय ी नह ह, पर तु उनके िवचार हमारे िदल म


बसे हए ह िजससे हम उनके आदश पर चल रहे ह. आचाय ी
के प परपं रा के िश य ी ाकृताचाय १०८ सनु ील सागर जी
महाराज आज उ ह के पद िच ह पर चल कर स पण ू भारत म
धम वजा को फहरा रह ह और आज के इस यगु म चया च वित
के नाम से िसि पा रहे ह. जैसा नाम ह वैसा ही अनभ
ु व ह.

गु चरण का अिभलाषी

ी अिजत डी िजवावत जैन


क याण,
मुंबई

सद य :
जै से हम अपने जीवन म ी १०८ तप वी स ाट को गु बना नमो तु शासन सेवा सिमित
चुके ह. आज हम उनपर इतनी अटल ा ह िक हमारा हर
मुि कल काम उनके नाम- मरण मा से ही पूण हो जाता ह. य
क हम उनपर इतनी ा और िव ास है इसिलए ही हम
समिपत ह.

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Vidushi Tejaswini D.
(Research Asst
K’taka Sanskrut Univ.)
Mysore.
Co-ordinator Namostu
Shasan Seva Samiti
Pathshalla kannad-Lang.
Member :
Namostu Shasan Seva
Samiti (Regd.), Mumbai.

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ಪ ಬಲ ಅ ಂ
ವ ಾ ೕಗ ಾತು ಾ ಸ

ಬಹುಶಃ ಜಗ ನ ೖನ ಧಮ ವ ೂೕ ರುವ
ಪ ಬಲ ಅ ಂ ಾ ತತ ವನು ಾವ ಧಮ ವ
ಪ ಾ ರ ಲ . ಾಯ, ಾ ಾ, ಮನ ಾ ಈ
ೂೕಗಭೂ ಂದ ಕಮ ಭೂ ಯತ ಾ ದ ಮೂರ ಂದಲೂ ಂ ಾಗುತ ಎಂಬುದನು ೖನ
ೕವರ ಲವರು ಸಂ ಾರವನು , ಅದರ ದುಃಖವನು ಧಮ ವ ಪ ಾ ಸುತ . ಅದರಲೂ ೖನ ಮು ಗಳಂತೂ
ಅ ತು ೕ ದ ಾ ಯತ ಾಗುವರು. ೕ ಾ ದ ಾಚನ ಂದ ಾಗೂ ಮನ ಂದ ಅ ಂ ಯ
ಅ ೕಕರು ತಮ ಕಮ ಗಳ ಜ ಯನು ಾ ೂಂಡು ಾಲಕ ರು ಾ . ಾಯ ಂದ ಆರಂಭ ಂ ಯನು
ೕವಲ ಾನ ಸಂಪನ ಾ ೕ ವನು ಾ ಪ ಾ ೂಂಡು ಾ ಗ ಾ ದ ರೂ ಸ ಲ ಪ ಾಣದ ಂ ಯು
ಅನಂ ಾನಂತ ಸುಖದ ೕನ ಾದರು. ಅವರು ೂೕ ದ ಅ ಾಯ ಾರಣ ಂದ ಆಗುತ . ಇದನು ಆದಷು
ಾಗ ದ ಅ ೕಕರು ಒಲವನು ೂೕ ಾಶ ತ ಾದ ಪ ಾಣದ ಅಂದ ತನ ಉತ ೃಷ ಾಧ ಂದ
ಸುಖವನು ಪ ಯಲು ಸಂ ಾರ ಭ ಮ ಂದ ಾ ಾಗಲು ಕ ೂ ಸಲು ಪ ಯ ಸು ಾ . ಈ ಂ ಯು ಂ
ಪ ಯ ಸಲು ಮು ಗ ಾದರು. ನಂತರ ಮು ಗಳ ಪರಂಪ ಾಡ ೕ ಂಬ ಾವ ಂದ ಆಗುವ ಲ , ಅ ಾಯ
ಾ ರಂಭ ಾ ತು. ಕ ಣ ವ ತಗಳನು ಾ ಸು ಾ ಸಮ ಕ ಾರಣ ಂದ ಆಗುತ .
ಸಂಪನ ಾ ಅಂತರಂಗದ ಅ ೕಕರು ೕನ ಾದರು.
ಸೂ ಾ ಸೂ ಾ ಚ ಗಳನು ಾ ಸು ಾ ೕ ಾತು ಾ ಸ ಾರಣ
ಪ ರದತ ಾ ದರು. ಇಂತಹ ಪರಂಪ ಯನು ಇಂ ಗೂ ಾವ
ಾಣಬಹುದು. ನಮ ಂತಹ ಜನ ಾ ಾನ ತ ೕ ರತ
ಮು ಗಳನು ಕಂ ಾಗ ಭ ಾವ ಉಂ ಾಗುತ , ಅವರ
ಕ ಣ ತಪಸು ನಮ ನು ಚ ತರ ಾ ಾಡುತ . ಇಂತಹ
ಈ ಷಮ ಾಲದಲೂ ಮು ಗಳು ಘನ ೂೕರ ಾದ ವ ತ
ಯಮಗಳನು ಾ ೂಂಡು ಬರು ರುವ ದನು ಕಂಡು
ಗ ಾಗುತ . ಕ ಸುಖ ೂೕಗಗಳು ಾತಕೂ
ಾಲು ಲ ಎಂಬ ಮ ೂೕ ಾವ ಉಳ ನಮ ಂತಹ ಜನರ
ನಡು ಾ ಗಮ ೕ ಮು ಗಳನು ಕಂ ಾಗ ಾ ೕ ಾ ಾ
ನಮ ತನು ಮನ ಭ ಾವ ಂದ ಾಗುತ .

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ಾತು ಾ ಸ ೖಭವ

ನಮ ಪ ಸರದ ೕ ಾಲ, ಮ ಾಲ ಮತು


ಚ ಾಲ ಎಂದು ಮೂರು ೕ ಯ ಾಲಗಳು ಬರುತ .
ಾಲ ಸ ಾ ಅಸಂ ಾ ತ ಸೂ ೕ ಗಳ
ಉಗಮ ಾಗುತ . ಒಂ ೂಂದು ಾಲ ಅನುಗುಣ ಾ
ಆ ಾಯ ಪ ಸರ ೂಂದುವ ೕ ಗಳ ಉತ / ಾಶದ
ಪ ನ ಯು ರುತ . ಅದರಲೂ ಮ ಾಲದ
ಸಮಯದ ಅಸಂ ಾ ತ ೕ ಗಳ ಉತ ಯು ಇತರ
ಎರಡು ಾಲಗ ಂತ ಅ ಕ ಾ ಇರುತ . ಕ ಾಣದ,
ಾ ಸುವ ೕವ ಜಗ ನ ಉತ ಯು ಆಗುತ ರುತ .
ದ ೕ ೕ ದಂ ಅ ಂ ಯ ಅತು ಗ ಾಲಕ ಾದ ಮು
ಮ ಾ ಾಜರು ಮ ಾಲದ ಸಮಯದ ಪ ಯನು ಮು ಗಳ ಾತು ಾ ಸವ ಭವ ೕ ಗ ಪಣ
ಅವ ೂೕ ಸು ಾ . ಭೂ ಯ ಆಧ ಹಲ ಾರು ಪ ಾರದ ಸಂ ಾದ ಯ ಾಗ ಾಗುತ . ಾತು ಾ ಸವ ಾ ನ
ೕ ಗಳ ಹು ಾರಣ ಾಗುವ ದ ಂದ ಅಂತಹ ಜನ ಯ ಪ ಣ ದ ಉದಯ ಾ ರುವ ದರ ಸಂ ೕತ ಾ .
ಸಮಯದ ಮು ತನ ಭ ಮ ಾವೃ ಯನು ಮು ಗಳು ಎ ಾತು ಾ ಸ ಾಡು ಾ ೂೕ ಆ
ಒಂ ಸ ೕ ಾಗುತ . ಆದ ಾ ವೃಂದವ ಒಂ ೕ ಾ ನನ ಾಗೂ ಾ ನ ಜನರ ಸು ೕ ಯನು
ಸ ಳದ ಲು ವ ಯಮ ಲ . ಮ ಂದ ಮ , ಾಡುತ . ಾತು ಾ ಸದುದ ಕೂ ಮು ಗಳ ದಶ ನ,
ಊ ಂದ ಊ , ಾ ಂದ ಾ , ಾಜ ಂದ ಾಜ ೕ , ಾಗೂ ಅಮೃತ ವಚನವನು ಸ ಯುವ ಅವ ಾಶ
ಾರ ಾಡು ಾ ಇರು ಾ . ಾರದ ಸಮಯದ ೂ ಯುತ . ಾತು ಾ ಸ ಕಲಶ ಾ ಪ ಂದ ದು
ಅಂದ ನ ಾಡುವ ಸಮಯದ ತನ ಾ ನ ಸಜ ಯವ ಾ ವಕ ಪ ಾಜ ಪಲ
ಅ ಯ ರುವ ಅಥ ಾ ಾಲ ಯ ದು ಅವ ಾಶಗ . ಮು ಗಳ ಆ ಾರ ತ ಾ , ೕ ,
ಾಯಬಹು ಾದ ೕ ಗಳತ ಗಮನ ಹ ೕ ಹ ಸು ಾ . ೖ ಾವೃ ಮುಂ ಾದವ ಗಳ ಭ ಾವ ಂದ
ಈ ಾ ಪಥ ಶು ಯು ಮು ಗಳ ೕವನದ ಒಂದು ಾಗವ ಸಬಹುದು. ಪ ವಚನಗಳ ಸರ ಾ ಯನು
ಅ ಾಜ ಅಂಗ ಾ . ಾ ಾ ಮ ಾಲದ ಾನು ಆ ಾ ಸಬಹುದು. ಾತು ಾ ಸದ ಅವ ಯ ಹಲವ
ಾರ ಾಡುವ ಸಮಯದ ೕ ಸಮಯಗ ಂತ ಾ ಂಸ ಂದ ನ ಯುವ ೂೕ ಗಳ ಸ ಯನು
ಮ ಾಲದ ಸಮಯದ ಅ ಕ ೕ ಗ ಮನಃಪ ವ ಕ ಾ ಆ ಾ ಸಬಹುದು. ಇ ೕ ಸಮಯದ
ಾತ ಾಗುವ ದ ಂದ, ಈ ಂ ಾ ಾಯ ವನು ನ ಯುವ ಧ ಆ ಾಧ ಗಳು, ಪ ಗಳು ನಮ ಮನದ
ತ ಗಟ ೕ ಂಬ ಉ ೕಶ ಂದ ಮ ಾಲದ ಸಮಯವನು ಕಲಂಕವನು ೂ ದು ಾಕಬಹುದು. ದೂರದೂರದ
ಒಂ ರ ಾ ದು ಅಂದ ಾರ ರ ತ ಾ ಒಂದು ಊರುಗ ಂದ ಬರುವ ಪ ಾ ಾ ಗಳು, ಾ ವಕ ಆ ಥ
ಪ ೕಶದ ಸು ಾ . ಅ ೕ ತಮ ವತ ೕಡುವ ಸದವ ಾಶವ ೂ ಯುತ . ಮ ಾಲದ
ಯಮಗಳನು ಆತ ಾ ಾ ರ ೕ ಸು ಾ . ಾ ಾ ಕೃ ಕ ಕುಟುಂಬ ಸ ಲ ಾ ಂ ಯ ಸಮಯವ
ಈ ಸಮಯವನು ಮು ಗಳ ಾತು ಾ ಸ ಅಥ ಾ ಇರುತ . ಾ ಾ ಾ ಂ ಯನು ಾ ಕ ಾಯ ದ
ವ ಾ ೕಗ ಅನು ಾ . ಭವ ಾದ ಮು ಮ ಾ ಾಜರು ೂಡ ೂಳ ಬಹುದು. ಸ ಾರಗಳ ನಡು ೕ ಾ ಾ,
ಪ ಂದು ೕ ಯ ೕಲೂ ದ ಾ ಾವವ ಳ ವ ಂದು ಾ ಾ , ಮನಸ ನು ೂಡ ಸುವ ದ ಂದ ಶುಭ ಾವ
ಈ ಪ ಕರಣ ಂದ ೕದ ಾಗುತ . ಉಂ ಾ ಅ ಾನದ ೂ ಯ ಕಮ ಗಳನೂ

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ಕ ದು ೂಳ ಬಹುದು. ನಮ ಮ ೂೕ ಇ ಾ ಗಳ
ಾಸ ಾಗುತ .

ಾತು ಾ ಸದ ಮು ಾ ಯ
ಾತು ಾ ಸದ ಸಜ ಯ ಾಲವ ಹ ರ ಾದಂ
ಲವರ ಅ ಾಥ ಪ ಯು ಾಡ ಾರಂ ಸುತ . ಇಷು
ನ ನಮ ಮನದ , ನಮ ಮ ಯ , ನಮ ಪ ಾರದ
ಜನ ಏ ೕ ಸಮ ಗ ಪ ಾರ ೕಡುವ ಗುರುಗ ದ ರು
, ಇನು ಮುಂದ ನಮ ಾ ೂೕ ಸುವವರು ಾರು
ಎಂಬ ಂ ಾಡ ೂಡಗುತ . ಆದ ಗುರುಗಳು ಇ ಾವ ದರ
ಪ ಲ ೕ ಪ ಗ ಹ ಂದ ರ ತ ಾದ ಉತ ೕತ ರು
ಾರವನು ಾಡಲು ಾ ರಂ ಸು ಾ . ಲವರು
ಾರ ಾದ ಮನ ಂದ, ಲವರು ಉ ೕಗ ರ ತ ಾ
ೕಕಯುತ ಾ ಮು ಮ ಾ ಾಜರುಗಳನು ಭ
ಾವ ಂದ ೕ ೂ ಡುವರು. ಗುರುಗಳ ಾ ಧ ಂದ
ೂರ ದ ಅನುಭೂ ಯನು ಸ ಯು ಾ ಮು ೕಷ ರು
ೂೕ ದ ಾ ಯ ನ ಯು ಾ ಧಮ ಾಗ ದ
ಹ ಸುವರು.

ೕಖನ - ರಂಜ ೖ Shri Niranajan Jain,

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के िलए नमो तु शासन सेवा


सिमित के नबं र पर संपक कर :
हमसे जुड़ने के िलए तथा इस
पि का को अपने फोन पर
िनशु क ा करने के िलए सपं क
करे :-

पी. के . जैन ‘ दीप’


वा याय भी परम तप है. 9324358035
यिद आप भी घर बैठे फोन से
िनयिमत वा याय करना चाहते ह बा. . अ यकुमार जैन
तो नमो तु शासन सेवा सिमित 9892279205
पाठशाला से जुिड़ये और क िजये
अपना आ म क याण. संपक कर :-

आचाय ी िवशु सागरजी


महाराज क िविभ न ंथराज
पर हई देशना के गुजराती,
क नड़, अं ेजी (इिं लश) और
िहदं ी भाषा म थ ा करने

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(रिज टड सं था)

602/1, लाड शवा पेरेडाईज, बरला कॉलेज रोड,


क याण (पि चम)
मुंबई –

E-mail : namostushasangh@gmail.com
: pkjainwater@gmail.com
WWW.VISHUDDHASAGAR.COM

आप सभी का आभार
नमो तु शासन सेवा
स म त प रवार
“जय िजने ”
Q QQ
धािमक पि का िनःशु क
िवतरण के िलए
(िडिजटल सं करण)
Q QQ

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